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Adultery बस यात्रा
#1
[Image: wdAzocqn_t.jpg]

Following story is a Remake of an original story by name, “Mom with the stranger in bus.” All credits go to the original writer.

Thank You.
 


प्रस्तुत कहानी, मूल कहानी “Mom with the stranger in bus.” का रीमेक है.  सारा श्रेय मूल लेखक को जाता है.
 
धन्यवाद.
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#2
हैलो, मेरा नाम आयुष जोशी है.. मैं ***** का रहने वाला हूँ. ये घटना जो मैं आज यहाँ बताने जा रहा हूँ, मेरी मम्मी के साथ पिछले ही महीने हुआ है. मेरी मम्मी का नाम बबली जोशी है और वो आयु 45 साल की है. गोरी और आम महिलाओं जैसी. पर थोड़ी चर्बी होने के बावजूद भी उनकी फिगर काफ़ी अच्छी है. वो हमेशा साड़ी पहनना पसंद करती हैं और एक भारतीय नारी की तरह ही हाथों में बहुत सारी चूड़ियाँ, पाँव में पायल पहनती हैं. साथ ही माथे पर बिंदी और माँग में सिंदूर भी भर के लगाती है.


चलिए अब सीधे कहानी पर लिए चलता हूँ.. ये घटना तब की है जब पिछले महीने हम राँची से दुमका जा रहे थे. सिर्फ़ मैं और मेरी मम्मी. हम चाह तो रहे थे २x२ पुशबैक वाले बस में स्लीपर बुक करवाना लेकिन ऐसा ठीक समय पर करवा नहीं पाए क्योंकि घर से निकले ही थे इमरजेंसी के मूड में. दोपहर में अचानक से दुमका जाने का प्रोग्राम बना और इसलिए जल्दी - जल्दी कपड़े वगैरह पैक कर घर से समय रहते निकलने के चक्कर में न तो पहले से स्लीपर बुक करवा पाए और न ही बस स्टैंड में पहुँचने तक इसका ध्यान रहा.. गनीमत ये रही की हमें हम दोनों के लिए दो सीटें मिल गयीं. कंडक्टर ने आश्वासन दिया की आगे जब बस खाली होगी  और तब अगर कोई स्लीपर खाली होती है तो हमें बता दिया जाएगा. बस के खुलने का समय तो शाम के 5 बजे का था पर बस 15 मिनट बाद ही खुली.


यहाँ मैं बता दूँ की आज सफ़र के लिए तैयार हुई मम्मी को देख कर ऐसा लग रहा था मानो खुद की ही शादी में जा रही हो. मरून रंग की झीनी, हल्की पारदर्शी साड़ी, छोटी बाँह वाली मरून रंग की ब्लाउज, गदराई माँसल पीठ पर बीच – बीच में दिखाई देती हल्की गुलाबी रंग की ब्रा उनके पूरे फिगर में चार चाँद लगा रहे हैं. जो भी एक बार देखता वो पलट - पलट कर बार – बार देखने लगता. यहाँ तक की उम्रदराज बूढ़े भी नजरें बचा कर मम्मी की गदराई पीठ और उभरे गांड को देख रहे थे!

करीब २ घंटे बाद बस एक जगह रुकी... वहाँ कुछ सवारी उतर गई जिस कारण ५-६ सीटों के साथ - साथ एक स्लीपर भी खाली हो गया. कंडक्टर महाशय हमारे पास आए और मुझे स्लीपर फ्री होने के बारे में बताया और कहा की अगर हमारी इच्छा हो तो वहाँ जा सकते हैं. मैंने स्लीपर के लिए हाँ कर दिया. पर जब स्लीपर को देखा तो देखते ही मन तनिक छोटा हो गया... और ये इसलिए हुआ क्योंकि एक तो दो जन के लिए होने के बावजूद स्लीपर नॉर्मल लंबाई से थोड़ा छोटा था और दूसरा, मेरा स्वास्थ्य कुछ ज़्यादा ही अच्छा होने के कारण मैं और मम्मी दोनों एक साथ उसमें फिट नहीं आ सकते. थोड़ा सोचने के बाद मैंने मम्मी को स्लीपर में सोने को कहा पर न जाने क्यों मम्मी ने साफ़ मना कर दिया और बोली,

“तू जा कर सो जा... बाद में अगर कोई दूसरी स्लीपर खाली होगी तो मैं उसमें चली जाऊँगी.”

एक छोटी सी बहस भी हुई हम दोनों में जिसके अंत में मेरी करारी शिकस्त हुई और मैं चुपचाप स्लीपर में सोने चला गया.

 
थकान के कारण थोड़ी ही देर में सो गया. देर रात में कंडक्टर की आवाज़ से मेरी नींद खुल गयी --- समय देखा, १२:१५ बज रहे हैं --- कंडक्टर ज़ोर - ज़ोर से सबको कह रहा है कि,

जिस - जिस को भी भूख लगी हो वो नीचे आ कर खा – पी ले.

समझ गया, बस किसी ढाबे पर रुकी है. मैं अपने स्लीपर से बाहर आया और मम्मी की सीट पर गया... पर मम्मी वहाँ नहीं मिली --- तो मैंने सोचा की मम्मी शायद बाथरूम के लिए नीचे उतर गयी होगी.. मैं नीचे गया और मम्मी को ढूँढने लगा --- ढूँढ़ते हुए देखा की हमारी बस जहाँ खड़ी है उससे कुछ कदमों की दूरी पर सामने एक बड़ा सा रेस्टोरेंट है --- ‘लालसा होटल’!  व्यवस्था ढाबा जैसा ही कर रखा है यहाँ --- लोग-बाग बाहर बिछे खाट – चौकियों पर बैठ कर खाने का ऑर्डर दे रहे हैं एवं जिन लोगों का खाना आ गया है वो बड़े प्रेम से खाने का स्वाद लेने में लगे हैं. मैं रेस्टोरेंट के अंदर चला गया... सोचा शायद मम्मी वहाँ लेडीज़ बाथरूम में गई होगी. पर मम्मी वहाँ कहीं नहीं मिली. मैं परेशान हो कर सीधे कंडक्टर के पास गया और उससे मम्मी के बारे में पूछा तो उसने कहा की बाद में एक स्लीपर खाली हो गया था तो उसके कहने पर मेरी मम्मी उसी में चली गयी थी.

यह सुन कर मैंने राहत की साँस ली. कंडक्टर से स्लीपर नंबर जानने के बाद मैं सीधे मम्मी वाले स्लीपर के पास पहुँचा और स्लीपर डोर पर नॉक किया. गौर किया, ये वाला स्लीपर मेरे स्लीपर से बड़ा है. मतलब की इसमें मैं और मम्मी आराम से आ जाएँगे.. १० - १२ बार नॉक करने और कुछ मिनट इंतज़ार के बाद मम्मी स्लीपर डोर सरकाई. मम्मी की आँखों ने इस बात का स्पष्ट इशारा किया की वो अभी तक बहुत गहरी नींद में थी.. मैंने गौर किया कि उनके बाल भी थोड़े बिखरे हुए हैं.. उनको ऐसे जगा देने पर मुझे बहुत बुरा लगा.
 
बिना एक क्षण भी व्यर्थ गँवाए मैं मम्मी से बोला,

“मम्मी, ‘लालसा होटल’ आ गया है... आपको कुछ खाना है?”

मम्मी अपने पर एक चादर ओढ़ कर अधखुली आँखों से ही मुझसे बातें करने लगी...

“नहीं बेटा, अभी इतनी नींद आ रही है की ज़रा भी मन नहीं है खाने का..”

“चिप्स – बिस्कुट वगैरह?”

“नहीं...”

“पानी??”

“है मेरे पास.”

इसी समय मम्मी ने जो चादर ओढ़ रखी थी उसका आगे का हिस्सा थोड़ा ढीला हो कर सामने से खुल गया... और ऐसा होते ही चूचियों के मिलन से बनने वाली लंबी खाई दिखने लगी --- बस में चार बल्ब जल रहे थे और और उनमें से एक मम्मी वाले स्लीपर के ठीक बगल में था.. जिस कारण जैसे ही चादर सामने से ढीली हो कर नीची हुई; उस बल्ब की रोशनी में मम्मी का वो बेहद खूबसूरत दूधिया खाई एकदम से मेरी आँखों के समक्ष दृश्यमान हो उठा!


सीने पर पल्लू है नहीं और साथ ही ब्लाउज के दो हुक भी खुले हुए हैं... नींद में पल्लू का सरक जाना समझ में आता है लेकिन यूँ ब्लाउज के हुक खुल जाना; ये समझ से परे है. एक और बात जो समझ में नहीं आई, वो ये की मम्मी क्या पुशअप ब्रा पहनी है या फिर ब्लाउज ही तंग है क्योंकि उनकी चूचियों का बहुत सा हिस्सा उनके ब्लाउज कप से ऊपर उभर कर उठे हुए हैं --- क्या ऐसा स्लीपर जैसी जगह में सोने के कारण हो गया? --- ऐसा होता है क्या??

क्षण भर के आधे अंश में ही मेरा लंड टनक गया. एक भरी पूरी महिला, (भले ही मेरी मम्मी है) के रसदार क्लीवेज देख कर भला किसके लंड में ऐंठन नहीं होगी --- यही हाल मेरा भी हुआ --- पर दिमाग तो ख़राब हुआ उस दूधिया दरार में बहुत छोटे गोल लाल मोतियों वाली चेन को अंदर घुसा हुआ देख कर... समस्त संसार में भले कितने ही क्लीवेज न देख लूँ; मुझे मस्त वही लगता है जिसमें ऐसी ही एक सुंदर, पतली चेन क्लीवेज में घुसी हुई हो या उसके ऊपर हो!

हलक सूखने लगा मेरा --- हाथ काँपने लगे --- दर्द होने लगा लंड में; ऐसे में किसी तरह थूक गटक कर एक कॉमन सवाल किया,

“बाथरूम जाओगी?”

“नहीं बेटा.. अभी कुछ भी नहीं चाहिए.. बहुत नींद आ रही है.. तुम अब जाओ. मुझे सोना है.”

मम्मी को कुछ भी नहीं चाहिए, यहाँ तक की बाथरूम भी नहीं जाना... ये बहुत अजीब लगा मुझे. भई, ऐसी भी क्या नींद आ गई?

मैं मुस्करा कर बोला,

“ओके मम्मी.. गुड नाईट.”

“गुड नाईट बेटा!”

इसके बाद जो हुआ वो तो और भी अजीब लगा.. हुआ ये कि वहाँ से जाने के लिए अभी मैं ठीक से पलटा भी नहीं और उधर मम्मी भड़ाक से स्लीपर डोर लगा दी!  मम्मी की ये हरकत बड़ा हैरान करने वाली लगी मुझे, पर किसी बात का शक नहीं हुआ.


बस के चलने में टाइम था तो मैं बाहर आ कर घूमने लगा... बड़ी तसल्ली से अंडा भुर्जी बनवा कर पेट पूजन किया और फिर आराम से एक चौकी के कोने में बैठ कर चाय – सिगरेट लिया. करीब आधे घंटे बाद बस चल पड़ी. मम्मी को बेवजह डिस्टर्ब किए बिना मैं चुपचाप अपने स्लीपर में चला गया. बस चली और २०-२५ मिनट बाद वो दूसरे शहर में घुस कर वहाँ के बस स्टैंड के अपने काउंटर से थोड़ी दूरी पर जा कर रुक गई. कई सवारी उतर गए व कुछ सवार हुए और जिसे जहाँ जगह मिली वहाँ बैठ गए. अब चूँकि बस में काफ़ी सीट खाली थी तो किसी को कोई ख़ास दिक्कत नहीं हुई.

थोड़ी देर रुकने के बाद बस दोबारा अपने गंतव्य की ओर चल पड़ी. इस बार बस ने स्पीड पकड़ी और चूँकि अब तक आधी रात से भी अधिक का समय हो चुका था तो सबके सोने में आसानी होने के लिए बस वाले ने सारी लाइटें ऑफ़ कर के २ मद्धिम हरे रंग के नाईट बल्ब जला दिया. मैं भी सो चुका था पर शायद एकाध घंटा ही गुज़रा होगा की अचानक से बस के एक तेज़ झटके के कारण मेरी आँखें खुल गयीं. ये झटका कुछ ऐसा तेज़ था जिस कारण मेरी धड़कनें काफी तेज़ हो गयी थीं. बहुत कोशिश करने के बाद भी मुझे नींद नहीं आई...

परेशान हो कर मोबाइल में टाइम देखा --- २ बज रहे थे!


चूँकि अभी करने को कुछ भी नहीं था तो मैं मोबाइल पर गाने सुनने लगा --- चूँकि स्लीपर में रहते हुए अब थोड़ा बोरिंग लगने लगा था इसलिए वहाँ से बाहर निकल आया और मम्मी के स्लीपर की ओर चला गया... मम्मी का स्लीपर मेरे स्लीपर से पीछे था और उस के दूसरी साइड, पीछे बहुत सीट खाली थीं. मैं उन्हीं में से एक में बैठ गया और विंडो ग्लास को एक ओर कर के खिड़की पूरा खोल, आँखें बंद कर गाने सुनने लगा. संयोगवश थोड़े समय बाद अनायास ही मेरी आँखें खुलीं और तिरछी दिशा के बावजूद सीधे मम्मी वाले स्लीपर की ओर देखा.. ठीक तभी कुछ गाड़ियाँ बगल से निकलीं और उनके तेज़ हेडलाइट के कारण हमारे बस में भी तेज़ रोशनी हो गई --- इसी से मम्मी के स्लीपर में भी रोशनी हो गई. उन तेज़ रोशनी में उनके स्लीपर को जब अच्छे से देखा तो पाया की स्लीपर का एक ओर का दरवाज़ा बहुत हद तक दूसरे छोर की ओर सरका हुआ है --- डोर के साथ एक बेहद पतला सा आसमानी रंग का पर्दा भी लगा हुआ है जो रह रह कर हवा में उड़ रही है --- उसके होने या न होने में कोई फर्क नहीं है.... और उस रोशनी में अंदर का जो नज़ारा मुझे दिखा उससे तो मेरे होश ही उड़ गए --- मैंने देखा की...

मम्मी स्लीपर में अकेली नहीं है! उनके साथ कोई और भी है!!


वो मम्मी के ऊपर लेटा हुआ है और उनकी फ़ैली हुई टाँगों के बीचोंबीच खुद को फिट कर बार - बार ऊपर नीचे हो रहा है..!!



(क्रमशः)
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#3
दोस्तों, रोशनी भले ही कुछ सेकंड्स के लिए हुई थी पर उसने वो सब कुछ दिखा दिया जिसे देख कर किसी का भी दिमाग घूम जाए...

इस सीन को देखते ही मेरे हाथ पाँव जम गए --- गला सूखने लगा. समझ में नहीं आया की ये हो क्या रहा है --- ये मैं क्या देख रहा हूँ. एकबार के लिए लगा की मैं शायद गलत स्लीपर को देख रहा हूँ... पर, मैं ये भी जान रहा हूँ की जिस स्लीपर को देख कर उसके किसी ओर के होने की कामना करने वाला था वो दरअसल उसी का है जिसका अभी होना चाहिए --- मेरी मम्मी बबली जोशी का...!!

मेरे लिए ये एक बहुत बड़ा झटका था. मैं बरबस उसी मुद्रा में उस सीट पर बैठा रह गया. गाड़ियाँ आती रहीं... उनकी रोशनी से स्लीपर में रोशनी होती रही... और मुझे अंदर का नज़ारा दिखता रहा. वो आदमी मम्मी को चोदे और चूमे जा रहा था... बिना रुके. कोई 3-4 मिनट की तेज़ रोशनी के बाद एक बार फिर से अँधेरा हो गया --- हमारी बस अपनी मस्त चाल में चलती रही --- बस के अंदर एकदम शांति छाई हुई है --- खुद बस में भी बहुत धीमी आवाज़ में ‘जिंदगी इक सफ़र है सुहाना’ बज रहा है --- मैं बुत सा अपनी सीट पर बैठा रहा ये सोचते हुए की अभी मुझे क्या करना चाहिए? कुछ करना चाहिए भी या नहीं?!

इसी उधेड़बुन में कुछ समय बीत गया...

और फ़िर जब अगली बार गाड़ियों के गुजरने से रोशनी हुई तो देखा की वो आदमी अब पहले से भी बहुत तेज़ धक्के मार रहा है... धक्के मारते मारते अचानक से मम्मी के ऊपर लेट कर रुक गया. गाड़ियों की ही आती - जाती रोशनी में देखा की वो आदमी मम्मी के ऊपर कुछ देर तक लेटा रहा... फिर एकदम से पहले की तरह ही अँधेरा छा गया. १० मिनट बाद स्लीपर में फ़िर रोशनी हुई --- लेकिन इस बार गाड़ियों की नहीं; मोबाइल की रोशनी थी. उस रोशनी में ज़्यादा क्लियर तो नहीं दिखा कुछ, पर इतना समझ में आने लगा की अब अंदर क्या हो रहा है --- वो आदमी अब उठ कर बैठ गया और हाथ के इशारे से मम्मी को कुछ कहने लगा --- कुछ सेकंड बाद मम्मी भी उठ कर बैठी और जल्दी से अपने ऊपर कुछ डाल ली. इसके तुरंत बाद उस आदमी ने मम्मी को अपनी ओर खींचते हुए चूमने की कोशिश की पर मम्मी उसे दूर हटा दी... लेकिन उस आदमी ने अपनी कोशिश जारी रखी और थोड़ी देर में मम्मी भी उसका सहयोग करने लगी --- इसी सहयोग के चलते कपड़ा सामने से सरक गया और क्लीवेज उन्मुक्त हो गया --- वैसे क्लीवेज देख कर तो यही समझ आया की इनकी चूचियाँ ज़रूर बिना किसी कपड़े के आवरण के इस आदमी के सामने नंगे लटक रहे होंगे!

क्षण भर बाद उस आदमी का बायाँ हाथ जैसे ही थोड़ा नीचे गया; मम्मी का दायाँ चूची ऊपर की ओर तनिक फूल कर उठ गया --- इसी के साथ ये साबित हो गया की अभी कुछ सेकंड पहले मैं जो समझ रहा था... बिल्कुल सही था..!
 

अभी दोनों की काम क्रियाएँ धीरे धीरे ज़ोर पकड़ ही रही थी कि अचानक से बस की तेज़ बत्तियाँ जल उठीं और बस की गति धीमी हो गई... बत्तियाँ जलने से पूरे बस में भरपूर रोशनी हो गई --- इससे सकपका कर दोनों ने किस करना बंद कर दिया --- वो आदमी अपना मोबाइल देखने लगा और मम्मी अपने चेहरे को अपने हाथों से छुपा ली. हालाँकि मैं अभी भी उस आदमी की शक्ल ठीक से देख नहीं पाया था. इसके दो कारण हैं, एक तो उड़ते परदे के कारण उस आदमी की शक्ल लगातार अवरुद्ध हो रही है; और दूसरा ये की वो आदमी बड़ी सावधानी से खुद को तिरछा कर के बैठा हुआ. २ मिनट बाद बस एक जगह रुकी और कंडक्टर ने एक बार फ़िर ज़ोरदार आवाज़ में कहा,

“बस यहाँ २० मिनट रुकेगी.. जिसे बाथरूम करना है वो कर ले क्योंकि इसके बाद बस कहीं नहीं रुकने वाली.”

मैंने तुरंत पुशबैक सीट को जितना ज़्यादा हो सके पीछे किया और उसपर अधलेटा हो अधखुली आँखों से मम्मी वाले स्लीपर की ओर देखने लगा; ये पता करने के लिए की आख़िर वो बंदा है कौन जो इतनी देर से मेरी मम्मी श्रीमती बबली जोशी के साथ मज़े कर रहा है. देखते ही देखते स्लीपर का डोर थोड़ा और खुला और उस में से करीब २३-२४ साल का एक लड़का बाहर निकल कर अपने कपड़े ठीक करता हुआ बस से उतर गया.

उस लड़के के बस से उतर जाने के अगले पाँच मिनट तक अपनी सीट पर रहने के बाद मम्मी के पास गया... लड़का जाते - जाते स्लीपर डोर को लगा दिया था --- मैंने डोर पर नॉक किया. 3 – 4 नॉक के बाद मम्मी ने डोर खोला; ज़रा सा ही खोली...

मैंने उसी में देखा की मम्मी एक चादर ओढ़ रखी है और बाल अब भी बिखरे हुए हैं. मैं पूछा,

“सो रही थी?”

“हम्म.”

“ओह्ह.. सॉरी..”

“क्या हुआ, बोलो.”

“पूछ रहा था कि बस अभी २० मिनट रुकेगी.. कुछ चाहिए? मैं कुछ लाऊँ??”

मम्मी कितनी अच्छी अभिनेत्री है ये आज समझ आया क्योंकि बड़ी ख़ूबसूरती से अपनी आँखों को हल्के से रगड़ कर बंद किए हुए बोली,

“नहीं बेटा... कुछ नहीं चाहिए.”

आश्चर्य! मुझे एकबार के लिए भी ऐसा नहीं लगा की वो मेरे बारे में कुछ पूछना या सोचना चाहती हो... ऐसा पहले कभी नहीं हुआ --- कभी भी, कैसी भी स्थिति क्यों न रही हो; हमेशा खुद से पहले मेरे बारे में सोचती – पूछती थी... लेकिन आज?!

इस उधेड़बुन वाले सवाल को सम्भालते हुए अंदर झाँक कर देखा की मम्मी के सिरहाने दो छोटे कपड़े रखे हुए हैं... समझते देर न लगी की ये मम्मी के ब्लाउज और ब्रा हैं --- यानि की मम्मी चादर के अंदर से अभी भी टॉपलेस है!!

मैं कुछ और भी पूछने वाला था कि तभी मम्मी मुझे जाने को बोली और मुझसे कुछ सुने बगैर ही डोर बंद कर दी !

मम्मी का इस तरह से डोर बंद कर देना मुझे अजीब लगा. पहले तो सोचा की चलो अभी के लिए अपने स्लीपर में चला जाता हूँ लेकिन तभी एक मस्त आईडिया आया दिमाग में.. मैं फौरन बस से नीचे उतरा और उस लौंडे को ढूँढने लगा. ज़्यादा टाइम नहीं लगा उसे ढूँढने में --- वो कुछ ही दूर पर चाय पी रहा था. मैं उसके पास जा कर खड़ा हो गया और दुकान से एक सिगरेट ले कर फूँकने लगा. सिगरेट के कश लेते हुए उसके करीब जा कर खड़ा हो गया और उससे बातें करने लगा. इधर - उधर की थोड़ी सी बातें करने के बाद धीरे से उसे कहा,

“भई, एक बात बोलूँ?” उसकी चाय ख़त्म होने पर मैंने अपना सिगरेट उसकी ओर बढ़ाया.

“हाँ.. हाँ.. बोलो.”   सिगरेट लेकर उससे एक लम्बा कश ले, मुँह ऊपर कर बेख्याली में धुआँ उड़ाते हुए वो बोला.

“मुझे पता है...”   मैं थोड़ा सस्पेंस बनाने की कोशिश करते हुए बोला.

“क्या पता है भाई?”

“स्लीपर में क्या हो रहा था!”   कहते हुए दिल में दर्द तो हुआ पर उत्सुकता और उत्तेजना में वैसे भी जान जा रही थी.

सुनते ही वो लड़का खाँस पड़ा... मेरी ओर डर कर देखा --- उसके चेहरे की रंगत ही उड़ गई --- ऐसा सकपकाया की सिगरेट नीचे गिर गई. इधर मेरे चेहरे पर मुस्कान बनी रही. आँख मारते हुए बोला,

“मस्त माल है क्या?”

वो मेरी ओर घूर कर देखा... मेरा हँसी मज़ाक वाला बर्ताव देख वो भी हँस पड़ा और तुरंत नॉर्मल हो गया. चाय के पैसे देने के बाद उसने मुझे साइड में चलने को बोला --- चाय वाले से थोड़ा दूर होते ही उसने पूछा,

“भाई, तुझे कैसे पता चला?”      इस पर मैंने उसे सड़क के दूसरी ओर से आती जाती गाड़ियों की रोशनी वाली बात बताई. सुनकर वो कुछ बोला नहीं, सिर्फ़ मुस्कराया.

मैं थोड़ा मासूम बनते हुए उससे पूछा,

“भाई, क्या वो तुम्हारी बीवी है या गर्लफ्रेंड?

वो हँस पड़ा... बोला,

“न बीवी... न गर्लफ्रेंड...”

“तो?”

“आंटी है.”

“रिश्तेदारी में??”

“नहीं...”

“पड़ोसन?!”

“नहीं यार... यहीं बस में मिली.”

“बस में मिली?!!”  मैं चौंकने का एक्टिंग किया --- चेहरे के भावों में अविश्वासनीयता का झलक लाते हुए आगे बोला,

“ऐसे कैसे हो सकता है भाई.. आज ही बस में मिली और आज ही... मतलब की कुछ घंटों में ही.......”  कहते कहते मैं अटक गया... इसके बाद वाला शब्द गले तक आया तो सही लेकिन बाहर निकल नहीं पाया...

दुकान से वो हम दोनों के लिए एक - एक सिगरेट ले लिया था --- अपनी सिगरेट सुलगा कर जलती तीली मेरे होंठों में दबे सिगरेट की ओर बढ़ाते हुए मेरे वाक्य को पूरा करते हुए बोला,

“......की कुछ घंटों में ही ‘चोद’ दिया?! यही न?”

“अहम्म... हाँ.. यही.”

वो हँस पड़ा.. गर्व से चौड़ा हो कर २-३ तेज़ कश ले लिया. उसका खिला हुआ चेहरा बताने लगा की उसने जो लक्ष्य प्राप्त किया; वो सबके बस की बात नहीं है और चूँकि उसने ऐसा कर दिखाया इसलिए स्वयं पर विशेष गर्व होना उसका अधिकार है.
 
मैं मारे उत्तेजना और कौतुहल के छटपटाने लगा.

मैं लगभग विनती के स्वर में उससे याचना सा करता हुआ बोला की ‘प्लीज़ थोड़ा विस्तार से बताए की उसने ये सब किया तो कैसे किया’ --- कश लेते - लेते वो लड़का एक गहरी साँस लिया और अपनी कारगुज़ारी के बारे में कहना शुरू किया....
 


(क्रमशः)
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#4
great sexy story UPDATE ?
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#5
Waiting Bhai
[+] 1 user Likes Nadeem.Kn's post
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#6
भयंकर अपडेट था भाई।। अपडेट करते रहें।। yourock
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#7
Bhai update karo
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#8
Mast update
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#9
Awesome story bro you are a true writer keep it up
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#10
(22-03-2022, 09:08 AM)Itrestingboy Wrote: Osm.. update. Keep it up bro..

(22-03-2022, 03:13 PM)tanushree Wrote: great sexy story UPDATE ?

(22-03-2022, 03:22 PM)Nadeem.Kn Wrote: Waiting Bhai

(22-03-2022, 03:24 PM)Coolamy_111 Wrote: भयंकर अपडेट था भाई।। अपडेट करते रहें।। yourock

(23-03-2022, 05:02 PM)tanushree Wrote: Bhai update karo

(23-03-2022, 09:33 PM)Itsdaysain Wrote: Mast update

आप सबका बहुत बहुत धन्यवाद.  Namaskar Namaskar
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#11
(24-03-2022, 02:58 PM)Samfucker Wrote: Awesome story bro you are a true writer keep it up

Thank You So Much Bro. Smile Namaskar
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#12
“मैं जब बस में चढ़ा उस वक़्त कंडक्टर उस आंटी को, (यानि आयुष की मम्मी को) एक स्लीपर की ओर ले जा रहा था.. लेकिन आंटी को स्लीपर में चढ़ने में दिक्कत हो रही थी; तब मैंने आगे बढ़ कर उसकी हेल्प कर दी. जब वो स्लीपर में चली गई तब अचानक से मुझे एक आईडिया आया --- कंडक्टर वहीँ मेरे बगल में खड़ा था तो मैंने उससे थोड़ी ऊँची आवाज़ में पूछा की क्या मुझे भी कोई स्लीपर मिल सकती है? तो उसने नहीं में जवाब दिया --- बोला की ‘बस यही एक स्लीपर खाली है जिसमें दो जन जा सकते हैं.’ इस पर मैं उससे बोला,

“आंटी तो एक अकेली हैं; मैं चला जाऊँ इस स्लीपर में?”

कंडक्टर मुझे सिर से पैर तक देख कर बोला,

“पर तुम तो इनके परिचित नहीं हो इसलिए मैं तुम्हें इस पर जाने को नहीं बोल सकता.”

उसका जवाब सुन कर मैं मायूस हो गया.. ये देख कर कंडक्टर आगे बोला,

“बेहतर होगा अगर तुम एक बार इस आंटी से पूछ कर देख लो. यदि इन्हें आपत्ति नहीं होगी तो मुझे भी कोई दिक्कत नहीं है तुम्हें ऊपर जाने देने में.”

वो आंटी हम दोनों की बातें सुन रही थी --- कंडक्टर की बात खत्म होते ही मैं आंटी की ओर बड़ी आशा से देखा और मुझे स्लीपर में आ जाने देने की विनती की,

“आंटी, प्लीज़ मुझे स्लीपर में जगह दीजिए.. कल मेरा इंटरव्यू है और आज सुबह से बैठे - बैठे बहुत यात्रा कर चुका हूँ.. कमर अकड़ चुकी है --- अब और बैठा नहीं जाता.. थोड़ी देर लेटना चाहता हूँ. अगर ठीक से सो नहीं पाया तो शायद कल इंटरव्यू अच्छा नहीं जाए... प्लीज़ आंटी. प्लीज़ मान जाइए.”

मैं कुछ इस कदर रुआंसा हो कर गिड़गिड़ाने लगा की अंत में आंटी पिघल गई और मुझे अंदर, स्लीपर में आने दिया. पर मैं तुरंत नहीं लेटा --- बैठ कर उनसे बातें करने लगा. अब चूँकि मैं नहीं लेटा तो आंटी से भी पूरी तरह से लेटा नहीं गया और मजबूरन उन्हें भी मुझसे बात करनी पड़ी. जब बस की सबसे पहली बत्ती को छोड़ कर बाकी सभी बत्तियाँ ऑफ़ हो गयीं तब हम दोनों भी लेट गए.

 
मैं आंटी की पाँवों की तरफ़ लेट गया और वो मेरे पाँव की ओर. शायद एक अंजान लड़के की ओर पैर कर के लेटने में उन्हें संकोच हो रहा था इसलिए पैरों को थोड़ा ऊपर - नीचे कर के लेटी रही --- इससे उनकी साड़ी एक पैर के घुटने तक चढ़ आई. उनकी बाल रहित माँसल पैर देख कर मेरे मन में पाप घर कर गया और फिर कुछ ही सेकंड बाद लंड महाराज भी खड़े होने लगे; क्योंकि एक औरत के साथ अकेले सोने में और खास कर ऐसी अवस्था में तब यही होता ही है.
 
कुछ देर के बाद मैं उठ कर बैठ गया. ये देख कर आंटी पूछी,

“क्या हुआ बेटा?”

“अभी नींद नहीं आ रही है आंटी. आपको आ रही है?”

“नहीं. नींद तो मुझे भी नहीं आ रही है.”

“आंटी, एक काम करते हैं. क्यों न हम दोनों आपस में बातें करें --- बातें करने से हो सकता है की हमें जल्द नींद आ जाए...??”

आंटी २ सेकंड कुछ सोची --- अपनी तरफ़ का डोर सरका कर बाहर पता नहीं क्या देखी --- फिर डोर बंद कर के बोली,

“तुम सही कह रहे हो... ऐसा अक्सर होता है. बात करते - करते नींद आ जाती है.”

ये कह कर आंटी उठ बैठी. इसके बाद हम दोनों के बीच ढेर सारी बातें हुईं. हम दोनों एक दूसरे के घर, घर के सदस्य, काम, वगैरह की काफी बातें की. कुछ देर बैठ कर बातें करने के बाद आंटी लेट गई और मुझे भी अपने बगल में आ कर लेट कर बात करने को बोली. मुझे तो अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ... ये आंटी मुझ अजनबी लड़के को अपने पास लेटने को कह रही है!!

मैं बिना एक क्षण गँवाए उनके बगल में लेट गया.

अब हम दोनों के मुँह एक-दूसरे के सामने थे. हम दोनों बातें करने लगे... बात करते-करते मैं उनकी तारीफ़ में कुछ शब्द कह देता --- जैसे की, आप बहुत अच्छी हो, ख्याल रखती हो, आपका हृदय की गहराईयों से बहुत बहुत धन्यवाद जो मुझे स्लीपर में आने दी, इत्यादि. आंटी सुनती रही और शर्माती रही. इस तरह हमें बातें करते हुए काफी समय बीत गया --- पूरे बस में ड्राईवर, कंडक्टर और हेल्पर को छोड़ बाकी सब सो गए थे... स्लीपर लंबाई में बड़ी ज़रूर थी पर चौड़ाई बहुत ज़्यादा नहीं थी. इसी कारण बीच-बीच में मेरी बायीं कोहनी उनकी दायीं चूची पर कभी दब जाती तो कभी छू जाती. इन नरम अंगों के छूअन को आख़िर मेरे जैसा कुँवारा लौंडा कब तक बर्दाश्त कर सकता है? लंड महाराज भी फूल चुके थे --- ऐसे में मैंने थोड़ी हिम्मत की और उनके पास आते हुए अचानक से पलट कर उनके ऊपर लेट गया! इस अप्रत्याशित हरकत पर आंटी बुरी तरह से डर और चौंक उठी... पर जैसे ही सजग हुई, अपना पूरा ज़ोर लगा कर मुझे हटाने लगी और धमकी वाली स्वर में बोलने लगी,

“ये क्या कर रहे हो --- बदमाश, जल्दी हटो नहीं तो मैं शोर मचाऊँगी..!”

 
आंटी का इतना कहना था की मैंने भी मौके की नज़ाकत को भाँपते हुए अनुरोधों की झड़ी लगा दी --- कहा की ‘प्लीज़ आंटी शोर मत मचाईएगा... प्लीज़... बस एकबार किस करने दो फिर मैं कुछ नहीं करूँगा --- कुछ नहीं बोलूँगा --- अगर आप ऐसा नहीं करने दोगी तो न जाने मेरे साथ क्या से क्या हो जाए --- सच कह रहा हूँ आंटी जी, आपको देख के मैं बेकाबू हो गया हूँ.’

सुन कर आंटी की मुझ पर से पकड़ थोड़ी ढीली ज़रूर हुई लेकिन विरोध कम नहीं हुआ --- वो बोली,

बेटा, मैं कोई ऐसी-वैसी औरत नहीं हूँ.. ये तो सोचो की तुम पे दया कर के मैंने ही तुम्हें स्लीपर में आने दी, तुमसे बातें की, अपने पैरों के पास बुला कर यहाँ अपने बगल में सोने को बोली... इतना सब कुछ होने के बाद तुम ऐसा करोगे? कुछ तो शर्म करो बेटा --- तुम्हारी माँ की उम्र की हूँ. चुपचाप ऊपर से हट जाओ और सो जाओ.. मैं भी भूल जाऊँगी की तुमसे कोई गलती हुई थी.

इतना कह कर वो अपने ऊपर से मुझे हटाने लगी. पर मैं उनके ऊपर से नहीं हटा और लगातार प्लीज़-प्लीज़ कहता रहा --- साथ ही उन्हें मजबूती से अपने बाँहों में पकड़े रहा. कुछ देर बाद आंटी थक गई और उदास मन से बोली,

अच्छा सिर्फ़ एक किस --- उसके अलावा कुछ नहीं --- तुम चुपचाप मेरे ऊपर से हट जाओगे और मेरे पैरों के पास सो जाओगे --- तुम्हें अब मेरे बगल में सोने की कोई ज़रूरत नहीं.

मैं तो ख़ुशी से फूला नहीं समाया --- झट से हाँ बोल दिया; क्योंकि चुदाई कैसे शुरू करते हैं; ये मैं बहुत अच्छे से जानता हूँ. मैं बड़े प्यार से उनके गालों को सहलाते हुए उनको चूमने लगा --- उनके गालों पर, होंठों पर, गले पर... बात एक किस की हुई थी लेकिन मैंने शायद 3 सेकंड में आंटी को 10 बार चूम लिया था --- इतना चूमने के बाद मैं उनके कान के पास अपना होंठ ले गया और प्यार से फुसफुसा कर उनको उनके होंठ खोलने को बोला --- इस पर आंटी कसमसा कर मेरे दुस्साहस को आश्चर्य से देखी. मेरा ये दुस्साहस उनको बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा था शायद --- पर जैसे ही कुछ बोलने के लिए मुँह खोली; मैं झट से उनके होंठों को अपने होंठों में ले लिया और फिर तकरीबन 5 मिनट तक बिना रुके चूसता रहा.
 

उनके होंठों को अच्छे से, जी भर कर चूसने के बाद उनके पूरे चेहरे को चूमने लगा. इधर अब आंटी का धैर्य भी जवाब देने लगा था. वो लगातार एक ही रट लगाए जा रही थी, ‘ये क्या कर रहे हो.. छोड़ो मुझे.. हटो मेरे ऊपर से --- सिर्फ़ एक किस करने की बात हुई थी.’  आंटी मुझे हटने को तो बोल रही थी पर पहले वाला विरोध नहीं रहा था उनमें अब. साथ ही उनके चेहरे के भावों को देख कर भी अंदाज़ा हो गया था मुझे की शायद अब इनको भी इस बात का अहसास हो रहा था कि मैं इतनी आसानी से, इतने कम में नहीं छोड़ने वाला.

वो मन में कोई कठोर सिद्धांत न कर ले इसके लिए उनका ध्यान भटकाने के लिए उनके कन्धों को चूमने के दौरान फुसफुसाया,

‘आंटी जी, अब मत रोको... प्लीज़... हो जाने दो जो हो रहा है.’

‘प.. पर मैं....’

‘आपको कुछ नहीं करना.. बस, ऐसे ही लेटी रहो.’

बहुत देर से आंटी की चूचियाँ दबाने का बड़ा मन कर रहा था --- फूले अंगों को छूते ही कहीं वो तेज़ आवाज़ में कुछ बोल न दे इसलिए पहले उनके होंठों को दोबारा अपने होंठों के गिरफ़्त में लिया और फ़िर आँचल को सरका कर उसे पतला रस्सी के माफिक कर के दोनों ब्लाउज कप्स के बीचोंबीच रखा और बड़े प्रेम व आराम से चूचियाँ मींजने लगा. शायद शुरू में कुछ ज़्यादा ही ज़ोर लगा दिया था क्योंकि दबाने के कुछ सेकंड्स के भीतर ही बेचारी दर्द से बिलबिला उठी. ‘उंह ऊंह’ करके मेरे हाथ और कंधों पर मारने लगी. मैं उनके होंठ को अब नहीं छोड़ा --- अपने बाएँ हाथ से उनके गाल को सहला कर शांत करने की कोशिश करने लगा. कोशिश रंग लाई और वो जल्द ही शांत हो गई.

ज़्यादा समय नहीं लिया मैंने --- पर सच कहूँ तो मुझे ये याद ही नहीं की कब मैंने अपना पैंट और अंडरवेयर खोला, कब सख्त लंड को निकाला और न जाने कब और कैसे आंटी की साड़ी ऊपर करके चोदने लगा. बस, ये याद है की लंड पर आंटी की चूत की गरम छूअन से मैं एकदम पगला गया था. जी तो किया की आवाज़ निकाल कर ज़ोर-ज़ोर से थपेड़े मार - मार कर इनको चोदूँ; लेकिन कमबख्त जगह कम होने के कारण पूरे दिल से चोद नहीं पाया. इस एक बात का मलाल रह गया. पर कुछ भी कहो यार, आंटी की चूत थी बड़ी जबरदस्त! आह... मज़ा आ गया. ऐसी गर्मी भरी थी की सिर्फ़ 5 मिनट में मैं झड़ गया --- और --- वो आंटी भी.

चुदने के कुछ पल बीतने के बाद आंटी सिसकते हुए बोली,

ये तुमने क्या किया, मैं कहीं मुँह दिखाने लायक नहीं रही.’   ये कह कर आँचल का कुछ हिस्सा अपने मुँह पर रख कर और ज़्यादा सिसकियाँ लेने लगी. आँचल पूरी तरह से हट चुका था उनके सीने पर से... उनकी चूचियों के साथ गुत्थमगुत्थी करते समय ब्लाउज के दो हुक खुल गए थे --- इस कारण उनकी गोरी क्लीवेज का कुछ हिस्सा दिखने लगा था --- मैं आगे बढ़ कर अपने नाक को उनकी क्लीवेज के पास ले गया --- बाई गॉड, क्या मस्त खुशबू थी यार! मैं एकबार फिर से मस्ती में आने लगा --- और आंटी के साथ एकदम मस्त वाली मस्ती करने के लिए ज़रूरी था की उनको भी मस्त किया जाए... पर वो तो लगातार सिसकियाँ ले – ले कर रोए जा रही थी.

उनको चुप कराने के उद्देश्य से बोला,

‘ओहो आंटी जी, हम दोनों के अलावा किसी को भी नहीं पता है इस बारे में; जो हम दोनों के बीच अभी अभी हुआ है... और ना तो मैं किसी को कुछ बताऊंगा और ना ही आप किसी को बताएँगी --- तो किसी को कैसे पता चलेगा..?’

अभी उनको मनाने – चुप कराने का प्रोग्राम चल ही रहा था की मेरा घोड़ा फिर से खड़ा हो गया --- मैं आहिस्ते से उनकी ओर बढ़ा और होंठों को चूमने लगा. इस हरकत पर आंटी आश्चर्य से मेरी ओर देखी और आँखों में एक धिक्कारने वाली भाव लिए उखड़े स्वर में बोली,

क्या है... कर तो चुके जो करना था तुमको --- अब कितना करोगे? हटो, भागो यहाँ से.

क्या करूँ आंटी; सो सॉरी... आप हैं ही इतनी अच्छी की मन मानता ही नहीं. आप सुपर हो --- सुपर!’’

इस बार सिर्फ़ होंठों को चूमने तक ही दिमाग नहीं लगाया --- हाथों को भी काम पे लगाया और धीरे से ब्लाउज के सभी हुक एक-एक कर के खोल कर ब्रा कप्स को ऊपर कर के चूचियों को बिना देखे ही उन्हें मसलने लगा. मन तो किया बहुत उन नर्म, मुलायम माँसल पिंडों को देखने का पर क्या करता... एक तो घुप्प अँधेरा था और दूसरी दिक्कत ये की जैसे ही उनके होंठों को छोड़ कर कुछ और करने जाता; वो किसी पंख कटे पक्षी की तरह छटपटाने लगती. इसलिए मन मार कर बिना देखे चूचियों को केवल दबाने – मसलने में लगा रहा. उफ्फ! सच कहता हूँ यार... क्या मस्त चूचियाँ हैं साली की --- ये बड़े बड़े!! पहले जी भर कर दबाया --- फिर जी भर कर खूब चूसा --- और बाद में लंड के टोपे पर थूक लगा कर उनकी चूत में सेट किया व जम कर चोदा --- अब तक २ राउंड हो गए हैं --- दूसरे राउंड में तो साली छिनाल खुद ही मस्ती में भर कर कमर उचका - उचका कर लंड ली थी. मुझे तो मन ही नहीं करता था उनकी चूचियों या क्लीवेज से मुँह हटाने का --- पता नहीं कौन से फ्लेवर कर परफ्यूम लगाईं है --- मदहोशी छा जाती है यार! ऊपर से निप्पल इतने सॉफ्ट हैं की चूसने के साथ – साथ काटने का भी अलग मज़ा आ रहा था --- साली क्या सॉलिड मस्ती में चिहुँक उठती थी जब भी निप्पल को दाँतों से हल्के से पकड़ता था. मैं भी कहाँ कम हूँ --- फूल मज़ा लेने के लिए उनकी ब्लाउज – ब्रा, दोनों उतार दिया... कुछ नहीं बोली साली. हा हा.

अभी 2 राउंड हो गए हैं और इच्छा है की अभी फिर जा कर कम से कम दो राउंड और करने का.

कसम से, एक अलग ही लेवल का मज़ा आया उनके साथ --- और तो और, आज फर्स्ट टाइम है जो मैं बिना कंडोम के किसी को चोदा हूँ..!!”
 
.
.
.
वो शायद अभी और भी बहुत कुछ कहने वाला था; कि तभी बस का हॉर्न सुनाई दिया --- हम दोनों बस में जा कर आगे की दो सीट पर बैठ कर बातें करने लगे. यही कोई आधे घंटे तक हम दोनों विभिन्न विषयों पर अनवरत बातें करते रहे. बातें करते करते ही उसने अपने मोबाइल में टाइम देखा --- देखते ही एकदम अचानक से उठ खड़ा हुआ --- बोला,

“ओके दोस्त... अब चलता हूँ.. नींद आ रही है.”  कहते हुए आँख मारा... मैं इशारा समझ गया; फिर भी पूछा,

“कहाँ? वापस आंटी के पास?!”

“हाँ यार,  1-2 राउंड और लूँगा उसकी क्योंकि ऐसे मौके कभी - कभी ही मिलते हैं और वो आंटी है भी तो कितनी मस्त, सुंदर.. एकदम माल है माल.”   कहते – कहते अपने होंठों पर जीभ फिराया उसने. वाकई में बहुत बेचैन हो रहा है वो.

“सुन यार, तू तो अच्छे मजे ले रहा है --- थोड़े मजे मेरा भी करवा देना.”

“मतलब??”

“ज़्यादा कुछ नहीं माँग रहा मैं... बस, जब आंटी के साथ अपना कार्यकर्म कर रहे होगे तब एक ओर का स्लीपर डोर सरका कर रखना.. प्लीज़!”

लड़का समझ गया की वो चाह कर भी मेरी इस बात को टाल नहीं सकता है. अगर टाल भी दिया तो हो सकता है की मैं बुरा मान जाऊँ और शायद उसकी करतूतों की ख़बर आसपास के सह यात्रियों को दे दूँ.

मुस्करा कर बोला,

“क्या यार.. बस इतनी सी बात?! बिल्कुल सरका कर रखूँगा --- यू फिकर नॉट!”

फिर मेरे कंधे को दो बार थपथपा कर स्लीपर में चला गया.


.......





(क्रमशः)
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#13
थोड़ी देर में बस की लाइट्स बंद हो गई और बस में शांति हो गई. फिर थोड़ी देर में, मैं मम्म के स्लीपर के पास वाली सीट पर जाके बैठ गया... तो देखा की वहाँ लाइट थी, इसका मतलब चुदाई स्टार्ट हो गई. मोबाइल की हल्की लाइट में अंदर क्या चल रहा है दिख रहा था, मम्मी और वो बैठे हुए थे, वो के लिप्स को चूस रहा था और उसके हाथ मम्मी की पीठ पर चल रहे थे. फिर उसने मम्मी का ब्लाउज खोला और ब्रा उतार दी और फिर मम्मी को लेटाने लगा. मम्मी आराम से लेट गयी और फिर वो मम्मी के बूब्स चूसने लगा. मम्मी उसके बालों में हाथ फेर रही थी. वो मम्मी को चूमने लगा, फिर मोबाइल की लाइट बंद हो गई. जब मोबाइल की लाइट वापस ओं हुई तो दिखाई दिया की वो मम्मी की साड़ी उठा के साड़ी के अंडर घुस गया है और चूत चाट रहा है. फिर थोड़ी देर बाद उसने मम्मी के पाँवों को चौड़ा किया और मम्मी के बीच में आके उन्हें चोदने लगा. मम्मी ने अपनी टाँगें उसके कमर पर रख ली थी. फिर 5 मिनट बाद सब कुछ शांत हो गया.

 
कुछ देर बाद बस की सभी मेन लाइट ऑफ हो गयीं --- उनके जगह पहले की तरह दो हरे नाईट बल्ब जलने लगे; बहुत कम पॉवर के हैं. पूरे बस में पहले से ही बहुत शांति छाई हुई थी. अब तो घुप्प सन्नाटा छा गया. बीच – बीच में इस सन्नाटे को चीरती किसी एक यात्री की खर्राटा सुनाई दे जाती.

इतनी देर में मैं वापस अपनी पहली वाली सीट पर आ कर बैठ गया था. मेरे आगे और पीछे के लगातार दो सीटें भी खाली थीं.

मम्मी की स्लीपर की ओर गौर किया, डोर सरक चुका है --- और अंदर मोबाइल के टॉर्च लाइट से अच्छी रोशनी हो रही है.  कुछ मिनट बाद वो लाइट भी ऑफ़ हो गई --- उस टॉर्च की रोशनी में मैं जो देखा उससे यही लगा की वो लड़का शायद मम्मी के ऊपर से एक चादर हटा रहा है. जैसे - जैसे वो चादर हटा रहा है वैसे – वैसे मम्मी अपनी चूचियों सहित जिस्म के ऊपरी हिस्से को अपने हाथों से ढकने की असफ़ल कोशिश कर रही है...

कुछ मिनटों की शांति के बाद टॉर्च एक बार फिर जली --- देखा, मम्मी और वो लड़का बैठे हुए आपस में बातें कर रहे हैं. बात करते करते वो लड़का अचानक से मम्मी को पास खींच कर उनके होंठों को चूमने व चूसने लगा और उसका एक हाथ मम्मी की पीठ को बड़े उन्मुक्त, बिना किसी बाधा – भय के सहलाने लगा.  होंठों को चूसते हुए ही अपना दूसरा हाथ मम्मी के सीने पर रख कर ब्लाउज के ऊपर से चूचियों को सहलाने – दबाने लगा. जल्द ही सारे हुक भी खोल डाला. फिर होंठों को थोड़ा अलग कर धीरे से कुछ बोला --- सुनते ही मम्मी ब्लाउज और ब्रा उतार कर अपने सिरहाने रख दी.  रखने के बाद मम्मी जैसे ही उसकी ओर पलटी, लड़के ने झट से उनके होंठों पर अपने होंठ रख दिया और नग्न चूचियों को मसलने लगा.

तकरीबन 5 मिनट बाद मोबाइल की लाइट बंद हो गई --- फ़िर जब मोबाइल की लाइट वापस ऑन हुई तो उस रोशनी में मुझे दिखाई दिया की वो मम्मी की साड़ी उठा के साड़ी के अंदर घुसा हुआ है... समझ गया, महानुभाव चूत चाट रहे हैं. जी भर चाटने के बाद साड़ी के अंदर से सिर निकाल कर जल्दी - जल्दी उस लड़के ने गहरी साँस लिया.. फिर मम्मी के पाँवों को चौड़ा किया और जाँघों के बीच में खुद को फिट कर के उन्हें चोदने लगा. चोदते हुए दोबारा उसने कुछ फुसफुसाया --- जिसके बाद मम्मी एक शांत, आज्ञाकारी कर्मचारी की भांति बात मान कर अपनी टाँगें उसके कमर पर रख दी. चुदाई का ये खेल ऐसे ही शांत तरीके से चलता रहा. फिर तकरीबन 15-20 मिनट बाद सब कुछ शांत हो गया.
 

मम्मी और वो लड़का एक दूजे को बाँहों में लिए ऐसे ही सो गए. पर मेरी आँखों में नींद नहीं थी... आती भी कैसे --- जिसकी मम्मी उसके सामने किसी अपरिचित से लगातार चुदी हो, उस बंदे को नींद कहाँ से आए भला?  पर ज़रूर मैं भी अंदर से प्रचंड टाइप का कमीना हूँ, क्योंकि ऐसे अवांछनीय दृश्य देखने के बाद भी मुझे अंततः नींद आ ही गई और कब आई इसका पता भी न चला.

सुबह 5:15 बजे के आसपास बस दुमका (हमारी मंजिल) पहुँचने वाली थी;  मेरे मोबाइल में भोर 4:30 का अलार्म सेट किया हुआ था.. उसके बजने से नींद खुली. नींद खुलते ही पानी पिया और एक रजनीगंधा – तुलसी फाड़ कर मुँह में भर लिया. खिड़की से आती भोर की ठंडी हवा से मन – मस्तिष्क को ताज़ा करते हुए बीती रात की घटनाओं के साथ समंवय बैठाने लगा. वाकई में कुछ तो बहुत मस्त सीन थे; जिन्हें याद करते ही बदन में झुरझुरी दौड़ कर यौनेत्तेजना का बहाव कर देती. बस, एक ही टीस रह गई की ये सभी घटनाएँ मेरी खुद की मम्मी के साथ हुई थीं.

यादों में खोया हुआ था की तभी वो लड़का मेरी बगल वाली सीट पर आ कर बैठ गया... उसके मुँह में भी गुटखा था...

“और भई, देखा की नहीं?”

“हाँ यार.. देखा.”   मैंने अपनी ख़ुशी दिखाई.

“कैसा था?”

“बहुत क्लियर तो नहीं था पर जो भी था --- जितना दिखा... मस्त था.. एक नंबर.”

“हम्म..”

“कितनी बार किया?”

“वही... जितना बोला था.”   मुस्कराते हुए वो बोला.

2 बार??”

“बिल्कुल... 2 बार!”

“वो कुछ बोली नहीं?”

“क्या बोलेगी?”

“मना नहीं की.”

“धुर्र... उल्टा ही की.”

“मतलब?!”

“मतलब की पूरा सहयोग की.”

“सच्ची?”

“लो यार! मैं झूठ क्यों बोलूँगा?! पर यार, कुछ भी कहो... साली की दुदू मस्त हैं --- मन करता है बस दाबता और चूसता रहूँ.. पता है यार, मैं जितनी बार भी उनकी दोनों चूचियों में से किसी एक को मुँह में भर कर चूसता था तो साली आँखें बंद कर के इतना मस्त कराहती थी की लगता था मेरा लंड तो इसकी ऐसी मादक आहें सुनकर ही पानी छोड़ देगा.”

“वाह यार...!”    मुझे कुछ तो कहना ही था बदले में; इसलिए ‘वाह’ बोल दिया.

“मैं पूरे दावे के कह रहा हूँ दोस्त, अगर इस छिनाल को लंड चूसने के लिए देता न... तो ऐसी चूसती, ऐसी चूसती, ऐसी चूसती की सारा माल बाहर निकलवा कर लंड का संन्यास कर देती! क्या होंठ और क्या मस्त फेस-कट है इसकी.”

“हाहाहा.. ऐसा क्या?”

“हाँ यार, और पता है, मुझे तो अब घर ले जाने का मन कर रहा है.”

“किसको? आंटी को?”

“अरे नहीं यार. उनको ले जाऊँगा तो समझो घर में मेरा काम तमाम हो जाएगा.”    ऐसा कहते हुए उसका चेहरा मुरझा गया.

“तो फ़िर?”

“आंटी की दोनों दुदूओं को ले जाने का मन कर रहा है.”    उसने आँख मारते हुए कहा.... दुदू शब्द बोलते ही उसका चेहरा खिल उठा.

इस पर हम दोनों हँस पड़े.

थोड़ी देर चुप्पी के बाद वो लड़का बोला,

“अभी उसे चोद कर ही आया हूँ.”

“क्या?!”    मुझे घोर आश्चर्य हुआ --- साला इस लड़के का लंड, लंड है या मशीन..?!!

“हाँ. यानि कुल 5 राउंड हो गए. साली थकती ही नहीं. हर बार एक नए जोश से लंड लपक लेती है.”

“क्या बात कर रहा है यार?”    मैं हैरान हो गया उसकी बातों को सुन कर. मम्मी ऐसी है?! पता नहीं ये भोंसड़ी का सब सही बोल रहा है या नहीं??

“हाँ यार... क्यों.. विश्वास नहीं हो रहा?”

“नहीं, ऐसी बात नहीं है.....”

“रुक.. कुछ दिखाता हूँ तुझे.”


बोल कर वो अपने पैंट के बाएँ पॉकेट में हाथ घुसा कर कुछ टटोलते हुए निकाला. एक हल्की गुलाबी रंग का कपड़ा मेरी ओर बढ़ाया --- बोला, ‘थोड़ा छुपा कर देख.’ मैं खिड़की की ओर मुड़ कर उस फोल्ड किए हुए कपड़े को खोल कर देखा --- देखते ही मेरी आँखें मानो अपने कटोरों से बाहर लटक गई --- हलक सूख गया, हाथ काँप गए --- उसकी ओर पलट कर बड़ी बड़ी आँखे कर बोला,

“अबे! ये तो ब.....”

मेरी बात को बीच में काटते हुए मेरे हाथों से वो कपड़ा ले कर वापस अपने उसी पॉकेट में रखते हुए बड़ी सी मुस्कान लिए बोला,

“हाँ.. ये वही है जो तूने देखा व समझा, दोस्त.”

“ऐसे ही ले लिया?”

“नहीं.. उनको बोला उनकी कोई एक निशानी मुझे दे दे... जब उनको समझ नहीं आया की क्या दे तो मैं ही ये ले लिया... सिरहाने के पास ही रखा हुआ था.”

“तूने ले लिया तो वो कुछ बोली नहीं?”

“नहीं यार.. कुछ नहीं बोली... कुछ बोलने के लिए होंठ खोली ज़रूर थी; लेकिन फ़िर मुस्करा कर चुप रह गई.”

“ओह!”

“और भी कुछ है!”

“और क्या?”

“ये देख!”

उसने पैंट के दाएँ पॉकेट से मोबाइल निकाला... गैलरी में गया.. और एक – एक कर मुझे पिक्स दिखाने लगा. 7-8 पिक्स थे --- जिनमें वो और मम्मी थी. किसी में दोनों कपड़ों में थे, तो किसी में दोनों बिना कपड़ों के (मतलब, जिस्म के ऊपरी हिस्सों पर कोई कपड़ा नहीं था). मम्मी तीन पिक्चर में टॉपलेस थी. बाकी किसी में ब्रा तो किसी में ब्लाउज में थी.

“देखा?? कैसा है?!”

“ये सब पिक उसी आंटी की है?”

“हाँ यार... मस्त है न?”

“हाँ यार.. सुन न.. इनमें से कोई एक पिक मुझे भी दे न..”

“क्यों? क्या करेगा??”

“देख कर हिलाऊँगा.”

“हा हा हा...”   वो हँसा और मुझे तीन पिक सेंड कर दिया.

हम दोनों में थोड़ी और बात हुई.. अचानक से लड़का उठ खड़ा हुआ... बोला,

“दोस्त, मेरा स्टैंड आने वाला है. मैं चलता हूँ... भविष्य में अगर हुआ तो फिर मिलेंगे.”

“ओके. दोस्त.. बाय.”

“बाय.”

वो अपना बैग साथ ले कर ही मेरे पास बैठा था अब तक.. अलविदा कह कर वो सामने ड्राईवर के केबिन में चला गया.. एक स्थान पर बस के धीमे होते ही वो उतर गया. मेरी खिड़की की तरफ़ देख कर हाथ हिलाया.. मैंने भी हाथ हिला कर एक फाइनल अलविदा कह दिया.
 

बस ने दोबारा गति पकड़ी.. अब आधे घंटे में ही हमारा स्टैंड आने वाला है इसलिए अभी से ही तैयार हो जाना बेहतर होगा; ये सोच कर मैं जल्दी से मम्मी के स्लीपर की ओर गया और कुछेक तेज़ नॉक किया. मम्मी के स्लीपर डोर खुलते ही मैंने उंनसे कहा की ‘दुमका बस स्टैंड आने वाला है, रेडी हो जाओ.’ ये बोलते हुए मैं मम्मी को गौर से देखते हुए उनके सिरहाने की तरफ़ झाँका... सिरहाने उनके बैग और हैण्ड बैग के अलावा कुछ नहीं था --- मम्मी ब्लाउज पहनी हुई थी और आँचल को भी किसी तरह अपने सीने पर ली हुई थी --- पर दोनों ही बहुत ख़राब हो गए थे.

खैर,

हम दोनों ही समय रहते अपने सामान ले कर तैयार हो गए थे और स्टैंड पर बस के रुकते ही उतर गए. मम्मी उतरते ही बोली की उनको प्यास लगी है और कुल्ला भी करना है. मैं पास के एक दुकान, जो इतनी सुबह शायद हम जैसे यात्रीगणों के लिए ही अभी अभी खुली थी, से दो बोतल बिस्लेरी ले लिया. जब मम्मी चेहरा वगैरह धोने के बाद पानी पी रही थी तब तक स्टैंड में ही मौजूद एक छोटे से मंदिर में जा कर प्रणाम कर आया...
 

वहीं एक चाय दुकान में हम दोनों के लिए दो चाय का ऑर्डर दिया --- चाय जल्दी मिला --- स्वाद अच्छा था --- पहली सिप से ही एक अलग ताज़गी छा गई पूरे बदन में. मम्मी की ओर देख कर पूछा,

“अच्छा है न?”

वो कुछ बोली नहीं.. सिर्फ़ हाँ में सिर हिला दी..

मम्मी थोड़ी बदली - बदली लग रही थी... अब ये बदलाव अच्छा है या बुरा, कुछ समझ में नहीं आया. 

हम जिस जगह चाय पी रहे थे वहीं पर एक पेपर वाला आया --- साइकिल के आगे और पीछे के स्थान आज की ताज़ा अख़बारों से भरे हुए थे --- वो भी आ कर चाय का ऑर्डर दे कर बगल में खड़ा हो कर खैनी बनाने लगा. पता नहीं क्या मन किया जो मैंने उससे एक अख़बार खरीद लिया. अख़बार को बगल में रखे एक कुर्सी पर रख कर उसके पन्ने पलट - पलट कर देखने लगा... अंदर के चौथे पन्ने के कोने में एक बड़ा सा विज्ञापन जैसे चतुर्भुजाकार स्पेस में एक फ़ोटो दिया हुआ था --- उस फ़ोटो के ऊपर और नीचे, अंग्रेज़ी व हिंदी भाषा में बड़े व मोटे शब्दों में ‘वांटेड’ लिखा हुआ था..
 

फ़ोटो देखते ही मेरे हाथ से चाय छूटते - छूटते बची....

मुँह से बरबस इतना ही निकला,

“अरे, य... ये तो....”

 



*समाप्त*
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#14
Woww What a great writing.. Waiting for another big story
[+] 2 users Like Nadeem.Kn's post
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#15
Dhansu update likhte raho
[+] 2 users Like Samfucker's post
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#16
kahani to bahut hi achhchhi thi par apne bahut hi jldi end kar ........................wow
[+] 2 users Like saya's post
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#17
Brother lambi kahani likhni thi.ye kahani bahut acchi hai
[+] 1 user Likes pawanqwert's post
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#18
जबरदस्त कहानी
[+] 1 user Likes Super bike's post
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#19
(27-03-2022, 04:47 AM)Nadeem.Kn Wrote: Woww What a great writing.. Waiting for another big story

(27-03-2022, 03:52 PM)Samfucker Wrote: Dhansu update likhte raho

(27-03-2022, 09:44 PM)saya Wrote: kahani to bahut hi achhchhi thi par apne bahut hi jldi end kar ........................wow

(05-04-2022, 04:43 PM)Super bike Wrote: जबरदस्त कहानी

कहानी को पसंद करने के लिए आप सब का बहुत धन्यवाद.   Namaskar Smile
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#20
(28-03-2022, 07:22 AM)pawanqwert Wrote: Brother lambi kahani likhni thi.ye kahani bahut acchi hai

लघु कहानी में ही असल मज़ा होता है.

मैं खुद भी छोटी कहानियों का फैन हूँ... इसलिए छोटी कहानियाँ ही लिखता हूँ.


कोशिश करूँगा एक दिन लंबी कहानी लिखने का.


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