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Incest भैया से ट्रेन में चुदाई
#41
री उंगलियों पर उसकी चिपचिपी लार लग गई थी जिसे मैंने मुंह में लेकर चाट लिया. फिर मैं पैंटी के अंदर से हाथ डालकर अंदर बुर के पास ले गया. उसकी बुर पूरी लार से गीली हो गई थी. मैं उसकी बुर को सहलाने लगा.
ऐसा करते ही शलाका ने अपने होंठ मेरे होंठों पर रख दिये. वो मेरे होंठों को अपने होंठों से चूसने लगी.
मुझे भी पूरे बदन में जोश आ गया. तब मैंने एक हाथ शलाका की चूचियों के अंदर डाल दिया और उसकी संतरे जैसी चूचियों को सहलाने लगा.
उसकी चूची के निप्पल काफी छोटे थे. मैं उनको अपने मुंह में लेकर चूसने लगा.
फिर मैंने एक उंगली अपनी छोटी बहन शलाका की बुर में ठोक दी. बुर गीली होने के कारण आसानी से उंगली उसकी बुर में चली गयी. उसके बाद मैं दो उंगली उसकी बुर में एक साथ ठोकने लगा.
आह्ह … शलाका कसमसाने लगी.
मैं एक हाथ से उसकी बुर में उंगली कर रहा था और दूसरे हाथ उसकी चूचियों के निप्पल की घुंडी मसल रहा था.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#42
मैंने धीरे-धीरे करके दोनों उंगली पूरी की पूरी उसकी बुर में घुसा दीं और फिर दोनों उंगलियों को चौड़ी कर लिया और उसकी बुर में चलाने लगा. आह्ह … बड़ा मजा आ रहा था.
मेरे उंगली चलाने से शलाका सिसयाने लगी और अपना हाथ मेरी पैंट की जिप के पास लाकर जिप को खोलने लगी.
मैंने जिप खोलने में उसकी मदद की.
शलाका ने मेरी पैंट की चेन खोल कर मेरा तना हुआ लंड अपने हाथ में ले लिया और मेरे लौड़े के सुपारे को सहलाने लगी.
ओह्ह … बहुत मजा देने लगी मेरी बहन मुझे मेरे लंड का सुपारा सहलाते हुए.
उसको भी मेरा लंड सहलाने में बहुत मजा आ रहा था.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#43
फिर मैंने आगे बढ़ते हुए तीन उंगली उसकी बुर में डाल दीं. उसकी बुर से कामरस की लार काफी ज्यादा बहने लगी थी जिसके कारण मेरा हाथ और शलाका की पैंटी दोनों ही पूरे के पूरे भीग गये थे. मगर मेरी तीनों उंगली उसकी बुर में चल नहीं पा रही थी.
मैंने दूसरे हाथ की मदद से उसकी बुर को खोल कर रखा और दूसरे हाथ की तीनों उंगली एक साथ डालने लगा.
शलाका मेरा हाथ पकड़ कर बुर के पास से हटाने लगी. शायद तीनों उंगली एक साथ जाने से उसकी चूत दर्द कर रही थी.
मगर मैंने उसके होंठ अपने मुंह में ले लिये और चूसने लगा.
जब तीनों उंगली आधी चूत में चली गई तो आगे जाकर उंगली अटकने लगी.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#44
अब मेरा जोश और ज्यादा बढ़ गया था. मैंने उसकी पैंटी को खींचकर नीचे करते हुए साइड में किया और अपना लंड उसकी बुर में लगाकर धक्का देने लगा.
लंड का सुपारा ही अंदर गया था कि शलाका कहने लगी- आह्ह … धीरे करो. बुर में दर्द हो रहा है.
मैंने थोड़ी सी पोजीशन लेकर उसके चूतड़ों को ही अपने लंड पर दबाया तो एक चौथाई हिस्सा लंड का उसकी बुर में चला गया.
मैं अपनी बहन को ज्यादा परेशान नहीं करना चाहता था इसलिए सोच-समझकर सब कुछ कर रहा था.
मैंने सोचा कि अब पूरा लंड उसकी चूत में धकेल देता हूँ.
लेकिन उसके मुंह से उम्म्ह… अहह… हय… याह… चीख सी निकलने लगी. उससे दूसरे लोगों के जाग जाने का डर था.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#45
इसलिए मैंने एक चौथाई हिस्सा ही लंड का बुर में डाले रखा और उसको अंदर-बाहर करने लगा.
पैंटी के किनारे ने मेरे लंड को कस लिया था. इसलिए उसको चोदने में मुझे दोगुना मजा आ रहा था. शलाका भी चुदाई की रफ्तार बांधने में मेरा साथ देने लगी.
पैंटी भी बुर पर लंड को चिपकाए रखने में मदद कर रही थी. पैंटी के घर्षण के कारण जल्दी मेरा लंड भी पानी छोड़ने के लिए तैयार हो गया.
मैंने शलाका की कमर को कस कर अपनी तरफ खींचते हुए अपने से चिपकाने की कोशिश की और मेरे लंड ने पानी छोड़ दिया.
आह्ह … मेरे लंड के पानी से शलाका की पैंटी पूरी भीग गयी.
सर्दी के कारण शायद उसको ठंड लगने लगी. फिर उसने अपनी पैंटी धीरे से उतार कर उसी से अपनी बुर को पोंछ लिया और अपनी पैंटी को अपने हैंड बैग में रख लिया.
फिर मैं और शलाका एक-दूसरे के साथ चिपक कर सोने लगे लेकिन हम दोनों की आंखों में नींद कहां थी!
मैंने शलाका के कान में कहा- कुतिया बन कर कब चुदोगी मुझसे?
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#46
शलाका बोली- घर चल कर चाहे कुतिया बनाना या घोड़ी बनाकर चोदना मगर यहाँ तो बस धीरे-धीरे ही मजा लो.
हम दोनों ने अपने को शॉल से पूरी तरह ढक रखा था.
शलाका ने दोबारा से मेरे लंड को पकड़ लिया और उसे मसलने लगी.
मैंने भी उसकी बुर के दाने को कुरेद कर मजा लेना शुरू कर दिया.
अब हम दोनों भाई-बहन आपस में काफी खुल चुके थे.
शलाका मेरे होंठों को चूसते हुए मेरे लंड को मसले जा रही थी. उसके हाथों की हरकत से मेरा लंड फिर से खड़ा होने लगा.
देखते ही देखते मेरा लंड शलाका की मुट्ठी से बाहर आ गया.
शलाका बहुत ही गौर से मेरे लंड की लम्बाई और चौड़ाई नाप रही थी.
इतना बड़ा लंड देख कर वो हैरान होकर मेरे कान में कहने लगी- इतना मोटा और लम्बा लंड तुमने मेरी बुर में कैसे ठोक दिया?
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#47
मैंने कहा- अभी पूरा कहां ठोका है! मेरी रानी अभी तो सिर्फ एक चौथाई हिस्से से कम ही अंदर डालकर चलाया था. पूरा लंड तो घर जाकर डालूंगा जब तुम कुतिया बनोगी. डॉगी स्टाइल में पूरे लंड का मजा चखेंगे.
इस पर वो जोर-जोर से मेरे गालों पर अपने दांतों से काटने लगी.
फिर मैंने उसके कान में धीरे से कहा- शलाका, तुम जरा करवट बदल कर लेट जाओ. अपनी गांड को मेरी तरफ कर लो.
वो कहने लगी- नहीं बाबा … गांड मारनी हो तो घर में जाकर मारना. यहां मैं तुमको गांड नहीं मारने दूंगी.
मैंने कहा- नहीं मेरी रानी, मैं तुम्हारी गांड नहीं मारूंगा. मैं तो तुम्हें लंड और बुर का ही मजा दूंगा.
मेरे कहने पर वो मान गयी और उसने करवट बदल ली.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
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#48
ने शलाका के दोनों पैर मोड़ कर शलाका के पेट में सटा दिये जिससे उसकी बुर पीछे से रास्ता देने लगी. मैंने उसकी गांड अपने लंड की तरफ खींच कर उसके पैरों को उसके पेट से चिपका दिया. उसकी बुर में फिर मैंने दो उंगली डाल कर बुर के छेद को फैलाया और फिर उसकी बुर में घुमाने लगा.
ऐसा करते ही वो थोड़ा चिहुंक गयी.
फिर मैंने उसके गाल पर एक किस किया और अपने लंड को शलाका की बुर में धीरे-धीरे घुसाने लगा.
बहुत कोशिश करने के बाद मेरा आधा लंड बुर में घुसा दिया.
मैं शलाका को ज्यादा से ज्यादा मजा देकर खुद भी ज्यादा से ज्यादा मजा लेना चाहता था इसलिए बहुत ही धीरे-धीरे घुसा रहा था.
एक हाथ से उसके निप्पल की घुंडी मसलने लगा.
मैंने देखा कि अब शलाका भी खुद ही अपनी गांड को मेरे लंड की तरफ धकेल रही थी.
उसकी बुर ने फिर हल्का सा पानी छोड़ा जिसके कारण मेरा लंड गीला हो गया.
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#49
लंड को जब मैं बुर में अंदर बाहर करने लगा तो वो थोड़ा और अंदर जाने लगा. अब मेरे लंड का एक चौथाई हिस्सा ही बाहर रह गया था.
मैंने धीरे-धीरे अपनी कमर चला कर शलाका को दोबारा चोदना शुरू कर दिया.
शलाका भी अपनी गांड हिला-हिला कर मजे से चुदवाने लगी.
इस बार करीब एक घंटे तक दोनों चोदा-चोदी करते रहे.
ट्रेन ने एक बार कहीं सिग्नल न मिलने के कारण एकदम से ऐसा ब्रेक मारा कि गचाक से दबाव बनाते हुए पूरा का पूरा लंड उसकी चूत में चला गया.
उसकी चीख निकलने ही वाली थी कि मैंने अपने एक हाथ से शलाका का मुंह बंद कर दिया और एक हाथ से उसकी दोनों चूचियों को बारी-बारी से मसलने लगा.
वैसे मैं सच बताऊं तो ट्रेन के अंदर उसके साथ ऐसा नहीं करना चाहता था लेकिन ट्रेन के अचानक ब्रेक लगने के कारण ऐसा हो गया.
शलाका धीरे-धीरे सिसकने लगी.
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#50
मैंने अपने लंड को वहीं पर रोक कर पहले शलाका के दोनों चूचे कस कर दबाये. फिर कुछ देर के बाद जब उसको राहत हुई तो शलाका खुद ही अपनी कमर को आगे पीछे करने लगी.
शायद अब उसे दर्द नहीं हो रहा था बल्कि मजा आ रहा था.
मेरा हाथ शलाका की बुर पर गया तो मुझे पता लगा कि उसकी बुर से गर्म-गर्म तरल पदार्थ गिर रहा है. मैं समझ गया कि ये बुर का पानी नहीं बल्कि उसकी झिल्ली फटने के कारण निकलने वाला रक्त गिर रहा है.
मैंने शलाका को यह बात नहीं बताई वरना वो घबरा जाती. मैंने अपनी पैंट से रुमाल निकाल कर उसकी बुर को अच्छी तरह से पौंछते हुए साफ किया और शलाका को अपनी गांड आगे-पीछे करते हुए घपा-घप धक्का देकर चोदने लगा.
शलाका अब मजे से चुदवा रही थी.
जब मैंने दस-पंद्रह धक्के आगे-पीछे होकर लगाये तो शलाका की बुर ने पानी छोड़ दिया.
मैं शलाका की संतरे जैसी चूचियों मसलने लगा.
दस मिनट तक मैंने उसकी बुर में लंड को अंदर बाहर करते हुए उसकी बुर को चोदा और मेरे लंड ने भी पानी छोड़ दिया.
पांच मिनट तक मैं उसकी चूत में लंड को डाले पड़ा रहा. जब मेरा लंड सिकुड़ गया तब खुद ही बुर से बाहर आ गया.
मैंने रुमाल से लंड और बुर दोनों को साफ कर दिया. रुमाल काफी गंदा हो गया जिसे मैंने विंडो से बाहर फेंक दिया. जब टाइम देखा तो सुबह के 4 बजकर 40 मिनट हो गये थे.
उस रात के बाद हम दोनों भाई-बहन खुल कर एक-दूसरे को प्यार करने लगे.
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#51
ट्रेन में देखी दीदी की चुदाई

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#52
(21-03-2022, 06:01 PM)neerathemall Wrote:
ट्रेन में देखी दीदी की चुदाई

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#53
री एक बड़ी बहन है जो शादीशुदा है और उसकी एक 2 साल की बेटी भी है।
ट्रेन से मैं दीदी के घर पहुंचा तो दीदी बहुत खुश हुई मुझे देखकर!
शाम को जीजाजी आए और हमने साथ में खाना खाया। थोड़ा वक्त टीवी देखा और काफी बातें कीं।
मेरे जीजाजी सरकारी नौकरी में थे इसलिए उनका बाकी परिवार गांव में रहता था।
दीदी अपनी बेटी और पति के साथ ही रहती थी।
जीजाजी नौकरी में बहुत ज्यादा व्यस्त रहते थे और दीदी को ज्यादा वक्त नहीं दे पाते थे।
इसलिए दीदी थोड़ी मायूस दिखाई देती थी और छोटी छोटी बातों पर दोनों में तनाव हो जाता था।
दूसरे दिन मैं ट्रेन की रिजर्वेशन करवाकर लाया था।
सफर बहुत लम्बा था।
हमारी ट्रेन रात में थी और शाम तक हम स्टेशन पहुंच गए। ट्रेन को चलने में अभी वक्त था। मैंने देखा कि सब लोग हमें घूर रहे थे।
मैं सोच में पड़ गया कि हमें सब लोग ऐसे क्यों देख रहे हैं।
फिर मैंने देखा तो पाया कि लोग दीदी को घूर रहे थे।
उसने काले रंग की साड़ी पहनी हुई थी। उसने बिना बाजू का ब्लाउज पहना था। उसके गोरे हाथ उसमें चमक रहे थे।
दीदी का साइज भी 34-30-36 का था तो उनकी गांड और चूचियां अलग से बाहर निकली हुई दिख रही थीं।
दीदी ने साड़ी ऐसे पहनी थी कि दीदी की कमर और उसकी पीठ दिख रही थी। जो भी बगल से जा रहा था वो दीदी को बिना देखे जाता ही नहीं था।
शायद दीदी भी यही चाहती थी कि लोग उसे देखें क्योंकि वो जीजाजी से संतुष्ट नहीं थी।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
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#54
हम लोग वहीं स्टेशन पर थे। मैं साइड में जाकर बैठ गया।
दीदी जान बूझकर कभी साड़ी ठीक करती तो कभी दूसरे लोगों को देखकर मुस्करा देती थी।
मैं भी जानकर अनजान बना हुआ था।
थोड़ी देर बाद पता चला कि जो हमारी ट्रेन थी वह 4 घंटे देरी से आएगी।
मुझे टेंशन होने लगी।
तभी एक लड़का आया और बगल वाली जगह पर बैठ गया।
उसने मुझे पूछा- कहां जा रहे हो?
मैंने कहा- इंदौर जा रहे हैं हम, मगर हमारी ट्रेन 4 घंटे की देरी से आएगी।
उसने कहा- मैं भी इंदौर जा रहा हूं। मगर मेरी ट्रेन थोड़ी देर में पहुंच जाएगी। अगर तुम्हें जल्दी जाना है तो मेरे पास सीट खाली हैं। मेरे दोस्तों की टिकट बुक थी लेकिन वो लोग आ नहीं सके।
मैंने सोचा 4 घंटे रुकने से जल्दी जाना बेहतर है।
बात करने के लिए मैंने दीदी को अपने पास बुलाया।
वो लड़का दीदी को देखता ही रह गया।
मैंने दीदी से बात की तो वो भी दूसरी ट्रेन में चलने के लिए राजी हो गई।
फिर मैंने उस लड़के से बात की तो पता चला कि उसका नाम समीर था।
वो 30 साल के करीब था और हाइट 6 फीट की थी। वो काफी हट्टा कट्टा नौजवान था। वो दीदी को बार बार देख रहा था।
मैं समझ गया था कि ये मेरी बहन की चुदाई करने की फिराक में है।
वो खुद ही हमारे लिए नाश्ता लेकर आ गया।
दीदी भी उसके साथ बात करने लगी। अब वो दोनों काफी बातें करने लगे थे।
कुछ देर के बाद हमारी ट्रेन आ गयी।
हम लोग ट्रेन में जाकर बैठ गए।
समीर मेरी दीदी की बगल में जा बैठा। हम तीनों आपस में बातें करने लगे।
मगर वो दोनों आपस में ज्यादा बात कर रहे थे।
ऐसे ही होते होते रात के 12 बज गए। सब लोग सोने लगे।
बोगी की लाइटें बंद हो गईं।
संयोग से हमारे वाली बोगी में बहुत कम लोग थे। जो थे वो भी बुजुर्ग आदि थे जो काफी समय पहले सो चुके थे।
समीर ने अपना लैपटॉप निकाल लिया और कुछ काम करने लगा।
कुछ देर बाद वो फिल्म देखने लगा।
मेरी दीदी की बेटी मेरे पास सो चुकी थी तो दीदी भी उसके साथ फिल्म देखने लगी।
वो दोनों फिल्म देखने में व्यस्त हो गए।
मेरे मन में पूरा शक था कि ये लोग रात में चुदाई करेंगे इसलिए मैं सोने का नाटक करने लगा।
मगर मैं अंधेरे का फायदा उठाकर उनकी हरकतों को देखता रहा।
वो बार बार बातों ही बातों में मेरी दीदी को छूने की कोशिश कर रहा था।
दीदी भी हंस हंसकर उसकी बातों का जवाब दे रही थी और जरा भी बुरा नहीं मान रही थी उसकी हरकतों के लिए।
उसने अपना हाथ दीदी की जांघ पर रख दिया।
दीदी ने कुछ नहीं कहा।
फिर समीर ने अपना हाथ उठाया और दीदी के कंधे पर ले जाकर दूसरी तरफ से उसकी चूची पर रख दिया।
अब भी दीदी ने कुछ नहीं कहा।
धीरे धीरे उसका हाथ मेरी बहन की चूची को साड़ी के ऊपर से ही दबाने लगा।
दीदी आराम से बैठी हुई थी।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
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#55
कभी वो बाकी लोगों को देख रही थी तो कभी मेरी ओर देख रही थी कि कहीं मैं जाग न रहा होऊं।
उधर समीर ने जोर जोर से उसकी चूची को भींचना शुरू कर दिया था।
मैं समीर के हाथ को अपनी बहन की चूची पर चलते हुए साफ साफ देख सकता था।
मेरी दीदी के मुंह से हल्की कराहटें आने लगी थीं।
ये देखकर मैं भी गर्म होने लगा था और मेरा लंड भी खड़ा हो चुका था।
अब मेरा खुद मन कर रहा था कि वो दोनों आगे बढें और मैं भी उनकी हरकतों का मजा लूं।
फिर दोनों ने यहां वहां देखा और समीर ने अपना लैपटॉप बंद करके रख दिया।
जब उनको लगा कि कोई नहीं जाग रहा है तो समीर ने दीदी का चेहरा अपनी ओर किया और दोनों एक दूसरे के होंठों को चूमने लगे।
दीदी भी उसका साथ देने लगी।
समीर दीदी की चूचियों को भी दबा रहा था और दीदी उसकी पैंट पर से लंड को सहलाने लगी।
दोनों की चूमा चाटी की आवाज मुझे तक भी आ रही थी और ये सब देखकर मेरा लंड फटा जा रहा था।
फिर उसने दीदी के ब्लाउज को ऊपर कर दिया और उसकी चूचियों को बाहर निकाल कर दोनों हाथों से दबा दबाकर चूसने लगा।
दीदी ने उसकी चेन खोल दी और उसकी पैंट में हाथ देकर उसके लंड को सहलाने लगी।
दोनों अब हवस में पागल हो चुके थे।
अब वो देख भी नहीं रहे थे कि कोई उनको देख रहा है या नहीं।
वैसे भी रात का 1 बज रहा था और कोई भी नहीं जाग रहा था।
वो दोनों अपनी मस्ती में लगे हुए थे।
फिर उसने दीदी को नीचे लिटा लिया और खुद उसके ऊपर चढ़ गया।
उसने दीदी की साड़ी को उठा दिया और उसकी चूत को सहलाने लगा।
दीदी की नंगी जांघें मैं भी साफ साफ देख सकता था।
रात में उसकी गोरी जांघें अलग से चमक रही थीं।
अब वो दीदी की पैंटी में हाथ देकर उसकी चूत में तेजी से उंगली करने लगा।
दीदी उसके सिर को पकड़ कर अपनी चूचियों पर दबाने लगा।
उसने दीदी की चूत में चुदाई की आग भड़का दी।
वो तेजी से उसके हाथ को पकड़ कर अपनी चूत में उंगली करवा रही थी।
फिर उसने दीदी की पैंटी को नीचे खींच दिया और अपनी पैंट खोलकर अपनी जांघों तक कर ली।
उसने अंडरवियर भी नीचे कर दिया।
उस लड़के की नंगी गांड मैं देख पा रहा था। जैसा वो हट्टा कट्टा था वैसा ही उसका लंड भी था। कम से कम 8 इंच का लंबा तगड़ा लंड था।
उसने दीदी से लंड चूसने के लिए कहा तो दीदी ने कहा कि जल्दी कर लो।
फिर उसने अपने लंड को पकड़ा और दीदी की चूत पर सेट करके दीदी के ऊपर लेट गया।
दीदी की चूत में लंड गया तो उसकी आह्ह निकल गई।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#56
मगर समीर ने एकदम से उसके मुंह पर हाथ रख दिया और पूरी तरह से दीदी से चिपक कर लेट गया।
दीदी की चूत में लंड देकर वो धीरे धीरे ऊपर नीचे होने लगा। दीदी की टांगें फैली हुई थीं और एक टांग तो सीट के नीचे ही लटक रही थी।
समीर अब उसकी चूचियों को पीते हुए अपनी गांड ऊपर नीचे करते हुए मेरी दीदी की चुदाई कर रहा था।
ये देखकर मुझसे भी रहा नहीं जा रहा था। मैंने अपनी लोअर में हाथ दे लिया और अपने लंड की मुठ मारने लगा।
वो दोनों अपनी चुदाई में मशगूल थे। अब दीदी मेरी तरफ देख भी नहीं रही थी।
उनकी चुदाई की ट्रेन सरपट दौड़ रही थी। दोनों मस्त हो चुके थे।
पांच मिनट तक चोदने के बाद उसने दीदी को सीट पर ही कुतिया बना लिया और घुटनों के बल होकर दीदी की चूत में पीछे से लंड दे दिया।
वो कुतिया बनाकर दीदी की चुदाई करने लगा।
मैं भी अब अपने लंड की मुठ मारने लगा। मैं ऊपर वाली सीट पर था तो दोनों को कुछ पता नहीं चल रहा था कि मैं भी अपने लंड को हिला रहा हूं।
इतना ज्यादा सेक्स मुझे भी कभी नहीं चढ़ा था। मेरा तो मन कर रहा था कि मैं भी अपनी दीदी की चूत मार लूं।
उसको ऐसे दूसरे लड़के से चुदते हुए देखकर मैं बहुत कामुक हो गया था।
पांच मिनट तक चोदने के बाद समीर मेरी दीदी की चूत में ही झड़ गया।
मैं भी उन दोनों को देखते हुए तेजी से मुठ मार रहा था कि एकदम से समीर का ध्यान मेरे ऊपर चला गया।
उसने मुझे देख लिया कि मैं उन दोनों को देख रहा हूं।
उसके बाद वो दोनों जल्दी से उठे और समीर ने अपनी पैंट ऊपर कर ली।
दीदी ने भी साड़ी ठीक कर ली और दोनों आराम से बैठ गए।
फिर समीर ने दीदी के कान में कुछ कहा।
पांच मिनट के बाद समीर ने मुझे उसके साथ वॉशरूम तक चलने के लिए कहा।
मैं जान गया कि वो जरूर मुझे मनाने की कोशिश करेगा।
वहां जाकर उसने मुझसे कहा कि ये सब उसने उसकी दीदी की मर्जी से किया है।
मैं तो पहले से ही सब देख चुका था तो मुझे पता था कि मेरी दीदी अपनी मर्जी से ही चुदी है।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#57
(21-03-2022, 05:42 PM)neerathemall Wrote:
ट्रेन में सहकर्मी लड़की की चुत चुदाई

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भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#58
Namaskar Namaskar
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#59
दीदी टांगे चौड़ी करके अपनी चूत का छेद दिखने लगी मुझे
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#60
(15-03-2024, 03:22 PM)neerathemall Wrote: Sleepy
दीदी टांगे चौड़ी करके अपनी चूत का छेद दिखने लगी मुझे

Sleepy Sleepy
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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