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Incest भैया से ट्रेन में चुदाई
#21
बात उस समय की है जब मैं बेरोजगार था और अपने प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहा था.
मैं बैंक की प्रतियोगी परीक्षा देकर गुजरात से वापस अपने घर आ रहा था.
सूरत से मैंने अपनी ट्रेन पकड़ी. मुझे ऊपर वाली बर्थ मिली थी, जिस पर जाकर मैं बैठ गया.
मैं अकेला इंसान ट्रेन में मौजूद सभी खूबसूरत युवा जोड़ों को देख कर खुद को बोर महसूस कर रहा था.
मैं कुछ कर नहीं सकता था क्योंकि मैं इस वक्त किस्मत का मारा था.
सब कुछ ऐसे ही चलता रहा. कभी मैं अपनी सीट पर सो जाता, कभी उठ जाता, कभी अपनी पुस्तकें पढ़ने लगता, कभी कुछ खा लेता, कभी इधर-उधर टहलने लगता.
ट्रेन अपनी रफ्तार से चलती जा रही थी, वक्त गुजरता जा रहा था.
सभी युवा जोड़ों को देखकर मन में ख्याल आने लगा कि काश कोई मेरे साथ भी होता. लेकिन एक तो बेरोजगारी और दूसरे लड़कों की तरह हैंडसम ना होना, मेरे अकेलेपन के लिए पूरी तरह से जिम्मेदार थी.
हालांकि आप सभी दोस्त जानते हैं कि आपका सरस दिल से बहुत ही अच्छा इंसान है तथा जिस इंसान के साथ में दोस्ती करता है या प्यार करता है, उसे अपनी पूरी शिद्दत के साथ उस वक्त तक निभाता है, जब तक कि सामने वाला मुझे छोड़कर ना चला जाए.
इस सफर में भगवान को शायद कुछ और ही मंजूर था.
वह नहीं चाहते थे कि मैं यह सफर तन्हाई और अकेलेपन के साथ बिताऊं, इसलिए उन्होंने मेरे लिए एक साथी भेज ही दिया.
ट्रेन रतलाम रेलवे स्टेशन पर रुकी. वहां से एक ज्यादा खूबसूरत तो नहीं, लेकिन बहुत ही अच्छे फिगर की मालकिन एक बंजारन लड़की अपने कबीले के साथ ट्रेन में चढ़ गई.
उन लोगों को शायद जानकारी नहीं थी इसलिए वो सब रिजर्वेशन डब्बे को खाली देख कर उसमें चढ़ गए थे.
मेरी सीट के नीचे वाली तथा आसपास की सीटों पर वो सब लोग बैठ गए.
पहले तो वह लड़की मेरे नीचे वाली सीट पर बैठी हुई थी, बाद में उठकर लोअर साइड बर्थ पर आ गई.
उसे मैं बड़ी देर से गौर कर रहा था.
वह लड़की भी मुझे देखे जा रही थी … लेकिन मेरी हिम्मत उससे बात करने की नहीं हो रही थी.
थोड़ी देर थोड़ी देर बाद वह लड़की ऊपर वाली साइट बर्थ पर आ गई तथा उस पर सो गई.
उस लड़की का फिगर शायद 34-32-34 का रहा होगा.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#22
अगले स्टेशन से कुछ लोग चढ़े, जिनमें से एक छोटा बच्चा मेरे सामने ऊपर वाली सीट पर आकर बैठ गया.
मैं उस लड़की को देखे जा रहा था तथा अब वो लड़की भी मुझे कभी कभार देख लेती थी. वह लड़का हम दोनों को देखे जा रहा था.
उस लड़के को हम दोनों भी नोटिस कर रहे थे, जिसे देखकर मैं मुस्कुरा गया.
मेरे मुस्कुराने के साथ ही वह लड़की भी मुस्कुरा गई.
तब मैं समझ गया कि अब इस लड़की से बात करना आसान है.
मैंने इशारे से उसे अपनी सीट पर आने के लिए कहा लेकिन उसने मना कर दिया.
उसके बाद इशारों इशारों में ही उसे अपना नंबर देने के लिए कहा.
वह लड़की कभी इशारे से कभी धीरे धीरे बोलकर कर अपना नंबर बोलने लगी लेकिन ट्रेन की आवाज और लोगों के शोरगुल में कुछ समझ नहीं आ रहा था.
मैंने एक कागज पर लिखकर अपना नंबर उसकी तरफ फेंक दिया तथा उसे फोन करने के लिए कहा.
उसने तुरंत मुझे फोन किया और हम दोनों धीरे-धीरे बातें करने लगे जिससे किसी को सुनाई नहीं दे और कोई शक भी न कर सके.
बातों ही बातों में उसने मुझे अपना नाम सुनीता बताया और बताया कि वह कहां जा रही है.
हम दोनों की बातें काफी देर तक होती रहीं. इशारों में ही हम एक दूसरे से प्यार का इजहार कर रहे थे और दूसरे की तरफ मुस्कुरा भी रहे थे.
मैंने सुनीता को एक फ्लाइंग किस दिया तो बदले में सुनीता ने भी मुझे मुस्कुराते हुए फ्लाइंग किस दे दिया.
इशारे में ही मैंने सुनीता से सेक्स के लिए पूछा तो उसने मना कर दिया और कहा- मैं तुम्हें फिर कभी बुला लूंगी.
मैंने उसे कहा- ठीक है, लेकिन जब अंधेरा हो जाए और सब लोग सो जाएं तो बाथरूम में आ जाना. जिससे मैं तुम्हें जी भर कर किस कर सकूं और उन सुनहरे पलों को अपनी यादों में समेट कर अगली मुलाकात तक हिफाजत से रख सकूं.
पहले तो उसने मना कर दिया.
लेकिन काफी देर तक मेरे मनाने के बाद वह मान गई और हम रात होने का इंतजार करने लगे.
हम दोनों आंखों ही आंखों से एक दूसरे की जवानी का रसपान कर रहे थे.
हम दोनों कुछ मीटर की दूरी पर थे लेकिन हमारे जिस्म एक दूसरे में समा चुके थे.
मैंने इशारा करके उसे एक और किस देने के लिए कहा.
एक दूसरे को आंखों से भोगते भोगते कुछ ही देर बाद अंधेरा हो गया. सब लोग नींद की गिरफ्त में आ चुके थे.
लेकिन हम दोनों की आंखों से नींद कोसों दूर थी. हम दोनों प्यासी निगाहों से एक दूसरे की तरफ देख रहे थे.
रात के लगभग 11:00 बजे जब पूरा कंपार्टमेंट नींद के आगोश में था तो मैं बाथरूम में गया और सुनीता को बाथरूम में आने के लिए कह गया.
लगभग 5 मिनट बाद सुनीता भी बाथरूम में आ गई.
उसके आते ही मैंने उसको अपने आगोश में जकड़ लिया.
वह कसमसा दी.
मैं उसे किस करने लगा.
उसके होंठ मेरे होंठों की गिरफ्त में थे.
मैं उसके होंठों को और उसकी जीभ को जबरदस्त तरीके से चूस रहा था.
सुनीता अपने आपको छुड़ाने की कोशिश कर रही थी.
लेकिन मेरे हाथों की मजबूत पकड़ उसकी कमर के चारों तरफ से होते हुए उसके चूतड़ों तक थी जो उसकी कोशिश को नाकाम कर रही थी.
मैं उसके चूतड़ों को जोर जोर से दबा रहा था तथा उसके होंठों का रसपान कर रहा था.
बीच बीच में उसकी मुलायम कोमल जीभ को भी चूस लेता था जिसके आनन्द के वशीभूत होकर उसने अपना आत्मसमर्पण कर दिया और मुझे किस करने लगी.
हमने एक दूसरे को मजबूती से जकड़ रखा था. मैं कभी उसके चूतड़ों को दबाता, कभी उसके बड़े बड़े मम्मों को मसलता, जो ठीक से मेरी हथेलियों में आ भी नहीं रहे थे.
वह कसमसा रही थी और मुझे अपने अन्दर खींच रही थी. सुनीता मुझे जोर जोर से किस करने लगी.
थोड़ी देर बाद मैंने उसे अपने आप से अलग किया और उसका चेहरा अपनी हथेलियों के बीच लेकर उसकी आंखों में देखने लगा.
उसकी आंखें वासना के जाल में फंस गई थीं और मुझे अपनी चूत की चुसाई के लिए आमंत्रण दे रही थी.
मेरा लंड फनफना रहा था. ऐसा लग रहा था जैसे मेरे पैंट को फाड़ कर बाहर आ जाएगा.
मैंने अपना लंड बाहर निकाल कर सुनीता के मुँह में घुसा दिया.
थोड़ी नानुकर करने के बाद वह मेरा लंड चूसने लगी.
मैं सुनीता के मुँह को लंड से चोद रहा था.
मेरा लंड सुनीता के मुँह में उसके गले तक घुसा हुआ था, जिससे उसे सांस लेने में भी तकलीफ हो रही थी.
इस मुख चोदन में मुझे बहुत मजा आ रहा था.
2 मिनट तक सुनीता का मुखचोदन करने के बाद उसने मुझे जल्दी से चोद देने के लिए कहा जिससे कोई आकर हमारी रासलीला में विघ्न न डाल सके और हम अपनी तृप्ति को पा सकें.
मैंने उसे वाशबेसिन को पकड़कर झुकने के लिए कहा.
वो तुरंत कुतिया बन गई.
मैंने सुनीता की सलवार के साथ साथ उसकी चड्डी को जल्दी से निकाल दिया और पीछे से उसकी चूत को चूसने लगा.
मैं उसकी चूत को अपनी जीभ से अन्दर तक चाट रहा था तथा उसके दाने को काट लेता था, जिससे वह बहुत कामुक सीत्कार करने लगी थी.
वह वासना के वसीभूत होकर चिल्ला रही थी. उसकी ‘आह्ह आह्ह्हह्ह ओहाहह हम्म्म हम्म्म ..’ की कामुक सीत्कार मुझे भी उत्तेजित कर रही थी.
अब तक सुनीता इतनी उत्तेजित हो चुकी थी कि उसकी चूत पूरी तरह से चूतरस से गीली हो चुकी थी और वह बड़बड़ाने लगी थी.
‘आह सरस … मुझे चोद डालो … अब मुझे और मत सताओ सरस. मैं तुमसे तुम्हारा लंड भीख में मांग रही हूं … आह मुझे चोद दो, फाड़ दो मेरी कमीनी चूत को … जल्दी से चोद डालो मेरी चूत को … फाड़ डालो प्लीज मुझे चोद डालो.’
थोड़ी देर और उसकी चूत को चाटने के बाद जब उसकी चूत पूरी तरह से पानी से गीली हो गई.
तब मैंने अपना लंड उसकी चूत के मुँह पर लगाया और एक ही धक्के में पूरा लंड उसकी चूत में घुसा दिया.
सुनीता ने आगे होकर मेरे लंड के अचानक हुए हमले से बचना चाहती थी लेकिन मेरी पकड़ के मजबूत होने की वजह से वैसा नहीं कर सकी और मेरा पूरा लंड उसकी चूत की दीवारों को चीरता हुआ उसकी गहराई में समा गया.
सुनीता अचानक हुए इस हमले को सहन नहीं कर पाई और चिल्ला उठी.
उसे थोड़ा आराम देने के लिए मैं रुक गया और उससे पूछने लगा- क्या हुआ?
सुनीता ने थोड़ी दर्द भरी आवाज में कहा- सरस, तुम्हारा लंड बहुत बड़ा और मोटा है और बहुत दिनों से मेरी चूत छुट्टी मना रही है.
मैंने उसे शांत होने के लिए कहा.
थोड़ी देर बाद जब उसका दर्द कम हुआ तो वह अपनी गांड चलाने लगी और उसने मुझे चोदने के लिए स्वीकृति दे दी.
अब धीरे धीरे मैंने उसकी चूत को चोदना शुरू किया.
उसके मुँह से ‘आह्ह आह्ह ऊहह हम्म्म ओह आह्ह्मम म्महा म्म्म आह ..’ की कामुक आवाजें निकल रही थीं.
उसकी मदभरी ‘आह्ह अःह्ह अहहह ..’ की आवाज मुझे तेजी से चोदने के लिए मजबूर कर रही थी.
मैं उसकी चूत को तेजी से चोदे जा रहा था.
सुनीता मेरे लंड के ज्यादा धक्के नहीं झेल पाई और कुछ ही देर बाद झड़ गई.
मैं अब भी उसे चोदता जा रहा था, चोदता जा रहा था.
ट्रेन के हिलने से मेरे लंड के धक्कों में कभी कभी अप्रत्याशित तेजी भी आ रही थी.
अब सुनीता की चूत से आने वाली फच्च फच्छ की आवाज और भी तेज हो गई थी.
सुनीता की चूत के रस की चिकनाई ने मेरे उत्तेजना और टाइम को ज्यादा देर तक बढ़ाने में मदद की.
उसके मुँह से आह आहआह आःह्ह हम्म्म महाह आह की कामुक आवाजें फिर से तेज हो रही थीं.
मैंने अपने लंड के झटके और भी तेज कर दिए थे.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#23
सुनीता फिर से गर्मा गई और चिल्लाने लगी- आह मुझे चोद डालो सरस आह्ह ह्ह हम्मम. आज इस चूत को फ़ाड़ दो पूरा आह्ह आआह्ह साली फिर कभी किसी लौड़े की ये परवाह ना करे … आह्हह ऊह मेरी मुनिया को अपने लौड़े के लिए बना लो सरस … आह मुझे चोदो अह … आह्ह हहाह आम्म्म जोर से चोदो आह्ह अःह्ह अहहम्म महाह हआहह.
मैं उसकी इतनी लम्बी बड़बड़ाहट सुनकर खुद चकित था और ताबड़तोड़ लंड अन्दर बाहर अन्दर बाहर करे जा रहा था.
थोड़ी देर बाद सुनीता फिर से निढाल हो गई.
ये दूसरी बार था जब उसकी चूत का गर्म रस मेरे लंड को भिगोते हुए उसकी जांघों से होता हुआ बहने लगा था.
मैं अभी भी उसे चोदे जा रहा था.
अब सुनीता शायद थक चुकी थी लेकिन मेरा लंड अभी तक सर उठाए खड़ा हुआ था और अपनी विजय पताका फहराने के लिए लालायित था.
अब मैंने सुनीता को सीधा किया और उसे हाथों के पीछे करके वाशबेसिन को पकड़ने के लिए कहा जिससे मैं उसकी सामने से चुदाई कर सकूं.
सुनीता घूम गई और उसने अपनी पोजीशन ले ली. मैंने अपना विकराल लंड उसकी फूली हुई गीली चूत में घुसा दिया.
चूत गीली होने की वजह से अब सुनीता को कोई परेशानी नहीं हो रही थी.
मैंने अपने धक्के लगाना शुरू किए, जिसमें ट्रेन के हिचकोले भी मेरी मदद कर रहे थे.
थोड़ी देर चुदाई करने के बाद अबकी बार मैं और सुनीता दोनों ही अपने मुकाम पर पहुंचने वाले थे.
उसके मुँह से फिर से आह्ह अःह्ह आहह ओहह आःह्हा हम्ममा ममहा की आवाज माहौल को कामुक और उत्तेजित करने लगी.
अब तक सुनीता दो बार अपने रस से मेरे लंड को भिगो चुकी थी.
मैंने सुनीता से पूछा- तुम मेरे लंड के रस को कहां लेना चाहती हो?
सुनीता ने कहा- लंड का रस बहुत कीमती होता है, इसे मेरी चूत में डाल दो.
मैंने अपने लंड के रस से सुनीता की चूत को भर दिया.
सुनीता की चूत से अब हम दोनों का मिश्रित गर्म लावा बहने लगा था.
टॉयलेट सेक्स के बाद हम दोनों एक दूसरे को जकड़ कर थोड़ी देर खड़े रहे, अपनी सांसों को संभालने के बाद हमने एक दूसरे को अलग किया और हांफने लगे.
फिर मुस्कुराते हुए जम दोनों ने अपनी अपनी सफाई की और वापस आकर अपनी-अपनी सीटों पर लेट गए.
हम एक दूसरे को देखे जा रहे थे.
थोड़ी देर बाद थकान की वजह से सुनीता को नींद आ गई.
सुबह 3:00 बजे मेरा स्टेशन आ गया और मैं सुनीता के पास विदा का एक पत्र रख आया जिसमें मैंने उसे उसके प्यार के लिए शुक्रिया लिखा था.
मैं स्टेशन पर उतर गया.
जब सुनीता जागी तो उसने मुझे फोन किया और रोने लगी.
सुनीता कह रही थी कि वह मेरे बिना नहीं रह पाएगी.
उसने कहा कि इतना मजा उसे पहले कभी नहीं आया.
वह चाहती थी कि हम दोनों फिर मिलें और पूरे इत्मीनान से जिस्म के मजे लूटें.
मैंने उससे कहा कि अगर वक्त ने चाहा और किस्मत ने साथ दिया तो हम दोनों फिर जरूर मिलेंगे और एक दूसरे को सुकून देंगे.
वह रो रही थी.
मैंने उसे फोन पर ही किस किया, समझाया तथा वादा किया कि मैं उसे फिर मिलने आऊंगा.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#24
Angry Namaskar Angry
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#25
ShythanksShy
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#26
ट्रेन में सहकर्मी लड़की की चुत चुदाई

जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#27
मैं फेसबुक पर वंदना को काफी समय से फॉलो करता आया था. फिर किसी तरह हमारे संबंध नजदीक होते चले गए.
इसका अर्थ ये ही था कि कहीं ना कहीं भगवान भी मुझे उससे मिलवा ना चाहते थे.
हुआ यूं कि हमारी बैंक की ट्रेनिंग एक साथ आ गई थी और हम पहली बार ट्रेनिंग सेंटर पर मिले थे.
वह मुझे हमेशा से ही बहुत प्यारी और क्यूट लगती आई थी.
लेकिन उस दिन उसका मेरी तरफ पहली बार में देखकर आंखें मिलाना, मेरे दिल में घर कर गया था.
फिर हम दोनों ट्रेनिंग पर काफी समय साथ साथ रहे.
हम दोनों वहां फुर्सत के पलों में साथ में पार्क वगैरह घूमने गए. उधर के कई मॉल आदि में जाकर हम दोनों ने मिल कर बहुत सारी शॉपिंग भी की.
हम दोनों क्लास में भी काफी समय तक साथ साथ ही बैठते रहे थे.
मैं उसे चोरी छुपे देखता रहता था और वह भी मुझे कमोवेश कुछ इसी तरह से छुपी हुई नजरों से देखती रहती थी.
मैं अब आपको उसके बारे में बता देता हूँ.
वन्दना दिखने में बहुत ही सुंदर और हॉट माल थी. उसको देखकर किसी को भी उससे प्यार हो जाना सामान्य सी बात थी.
उसकी उम्र 27 साल थी और कद 5 फुट 4 इंच का था.
जबकि मेरी लंबाई 6 फीट है. मैं भी देखने में काफी गोरा और हैंडसम हूं.
ट्रेनिंग सेंटर के प्रवास के दौरान मॉल और पार्क आदि जहां भी हम दोनों घूमने गए.
वहां पर ऐसी कई सारी बातें हुईं जिससे मुझे लगा कि वंदना भी मेरी तरफ आकर्षित हो रही है.
वह बात बात में मुझे हर बात में अपने पति से कंपेयर करने लगती थी.
तब मुझे समझ आ गया था कि शायद वंदना मुझमें अपना पति ढूंढ रही है.
इतने दिनों की संगत में मैं भी उससे यही चाहता था कि मुझे उसका प्यार मिल जाए.
हमने साथ में कई फोटो खिंचवाए.
लेकिन कभी भी मैंने उसे अभी तक एक बार भी गलत नजर से नहीं देखा था.
फिर भी हां, जैसे ही मैं कभी उसका फोटो लेता था, तो मैं उसके हाथ को स्पर्श कर लेता था.
यह देखकर वह भी बहुत खुश हुआ करती थी.
मैं जानता था कि उनके पति बाहर जॉब करते हैं.
शायद यही वजह थी कि वंदना मुझमें अपना पति खोजने की कोशिश कर रही थी.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#28
मैं इतना तो नहीं जानता था कि उसके मन में क्या बात चल रही थी … लेकिन इतना बता सकता हूं कि वंदना की मनोदशा देख कर मुझे लगने लगा था कि उन दोनों के बीच में आज तक कभी सेक्स नहीं हुआ होगा.
हमारे साथ एक और बैंक कर्मी भी था, वह भी शायद वंदना को पसंद करता था. लेकिन वो मेरे सामने कुछ नहीं लगता था.
शायद वंदना भी मुझे पसंद करती थी.
यह बात उस दूसरे आदमी को पता थी, तो वह हम दोनों के बीच में आने की कोशिश करता था.
पर मुझे जब भी समय मिलता, मैं वंदना से बातें करता उसे हंसाता और उसका मन बहलाने लगता.
यह सब वंदना को भी पसंद आने लगा था.
फिर एक दिन ऐसा हुआ कि मुझे पूरी तरह से पक्का हो गया कि वह भी मुझे प्यार करती है.
उस दिन हम दोनों ट्रेन से लौट रहे थे. हम शाम के 5:00 बजे ट्रेन में बैठे और हम दोनों ने सेकंड एसी में टिकट बुक की थी.
आपको मालूम ही होगा कि इसमें आमने-सामने दो-दो सीटें होती हैं.
जिस बर्थ पर वंदना की सीट थी, उसके ऊपर वाली सीट खाली थी. लेकिन उसके सामने एक बुजुर्ग दंपत्ति थे और मेरी सीट कहीं और थी.
लेकिन मैं बार-बार फोन करके और व्हाट्सएप पर मैसेज करके उससे पूछता कि आपको खाने के लिए कुछ चाहिए तो नहीं … या पीने के लिए.
तो वह हर बार मुझे मना कर देती.
मगर जब मैं बार-बार पूछने लगा, तो उसने एक बार कह ही दिया कि मुझे खाने को तो कुछ नहीं चाहिए लेकिन तुम्हें यहां आना है, तो तुम आ सकते हो.
मुझे बस इसी बात का इंतजार था.
मैं झट से वंदना की बर्थ पर जा पहुंचा.
मैं उधर उसे देख कर एकदम हक्का बक्का रह गया. क्योंकि जब सामने उन बुजुर्ग दंपत्ति को मैंने खुद को घूरते हुए देखा, तो पहली बार तो मैं डर सा गया था कि कहीं यह कुछ गलत तो नहीं समझेंगे.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#29
तभी वंदना ने मुझसे कहा- आओ, यहां आकर बैठ जाओ.
तब मैं थोड़ा रिलैक्स हुआ और हम बातें करने लगे.
पहले हमारे बीच में एक बैग रखा हुआ था.
लेकिन जब वंदना को महसूस हुआ कि मैं यहां बात करने नहीं, कुछ और करने आया हूं. तब उसने वह बैग हम दोनों के बीच में से हटा कर साइड में रख दिया.
अब हम हमारी खींची हुई फोटो मोबाइल में देखने लगे.
उस समय वंदना की लटें और गाल ..मेरे गाल और कंधे से टच होने लगे और हमारी टांगें एक दूसरे से टच करने लगीं.
उस समय हम दोनों बिल्कुल चिपक कर यह सब कर रहे थे.
इससे एक बार को तो मुझे लगा कि मेरा पैंट में ही निकल जाएगा.
मेरे पैंट में फूले हुए डिक की तरफ वंदना का भी ध्यान था.
और यह सब देखकर वंदना मेरी तरफ देखते हुए मुस्कुरा रही थी.
इस दौरान मैंने कई बार उसकी जांघों पर हाथ रखा था. यह सब उसको पसंद आने लगा था.
लेकिन जो सामने बुजुर्गवार थे, वो हमें बार-बार बीच में टोक देते और बातें करने की कोशिश करने लगते.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#30
पर इस दौरान उस बुजुर्ग व्यक्ति ने एक काम बढ़िया किया; उन्होंने हमसे पूछा- बेटा क्या आप ऊपर वाली सीट पर चले जाएंगे!
तो इस पर वंदना ने झट से कह दिया- हां अंकल ठीक है. आप लोग नीचे आराम से बैठिए.
इसके बाद हम दोनों ऊपर चले गए और हमने फिर से फोटो देखने के बहाने अपने पैरों पर कंबल रख लिया.
अब मैं अन्दर ही अन्दर उसकी जांघों पर हाथ चलाने लगा. यह सब देखकर वंदना की मादक सिसकारियां निकलने लगीं.
मैंने एक दो बार अपनी कोहनी से उसके बूब्स को भी टच किया, तो वह मेरे और नजदीक आ गई. यह सब हमने करीब एक घंटे तक किया.
अब तक मैं पूरी तरह से खुल चुका था और बुजुर्ग दंपत्ति ने भी नीचे से लाइट बंद कर दी थी.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#31
पूरे कूपे में अंधेरा ही अंधेरा था. हम दोनों अब खुलकर एक दूसरे से चिपक गए थे और मैंने उसके गालों पर किस कर दिया था.
उसने किस पाकर मेरे होंठों पर अपने होंठ लगा दिए और हम दोनों बड़ी बेताबी से एक दूसरे को किस करने लगे थे.
हम दोनों करीब 15 मिनट तक किस करते रहे. इस बीच अब मैं खुलकर उसके बूब्स को दबाने लगा था.
कुछ ही देर बाद हम कुछ इस तरह एडजस्ट हो गए थे कि उसका सिर मेरी गोदी में आ गया था.
अब हम दोनों ने मोबाइल को बंद करके फोटो देखने का नाटक बंद दिया था और मैं खुल कर उसके बूब्स को दबाने लगा था, उसके बालों को सहलाने लगा था.
फिर हम दोनों ही सीट पर लेट गए और चादर ओढ़ कर एक दूसरे को किस करने लगे.
तब मैंने पहली बार किसी लड़की के बूब्स को अपने मुँह में लेकर चूसा था.
उसके बूब्स अंधेरे में भी दूध की तरह चमक रहे थे.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#32
मैंने करीब 5 मिनट तक उसके बूब्स को चूसना चालू रखा और उसके बाद वह मेरे अपॉजिट लेट गई.
अब मैंने उसे पीछे से पूरी तरह से पकड़ लिया. उसे अपनी बांहों में लेकर उसके बूब्स को दबाता रहा और उसकी गर्दन पर किस करता रहा.
इसी बीच उसने पीछे हाथ करके मेरे डिक को पकड़कर सहलाना चालू कर दिया.
तब मैंने अपना पैंट खोल कर उसे नीचे करके उसके हाथ में अपना लंड दे दिया.
वो मेरे लंबे लंड को सहलाने लगी.
मैंने भी उसकी जींस के पैंट को खोलकर उसकी पैंटी को नीचे कर दिया.
फिर वह मेरा लंड पकड़कर अपने बट बड्स बट्स के ऊपर सहलाने लगी और हाथ से मेरी डिक को ऊपर से सहलाने लगी.
मैंने अपना लंड पकड़कर उसकी जांघों के बीच में होते हुए उसकी चुत पर रगड़ना चालू कर दिया.
कुछ ही देर के बाद उसकी चुत से पानी निकलने लगा.
मैंने उसी पोजीशन में अपना लंड उसकी चुत में डालने की बहुत कोशिश की लेकिन लंड चुत के अन्दर नहीं गया.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#33
फिर वंदना ने अपने बैग से एक क्रीम की डिब्बी निकाली और मुझे दे दी.
मैंने अपने लंड पर क्रीम लगाई और उसकी चुत की फांकों में उंगली से अन्दर तक क्रीम लगाई.
वो इस दौरान सनसनी से पागल हो गई थी तथा उसने अपनी एक टांग हवा में उठाने की कोशिश भी की थी.
मैंने उसके कान में कहा- तुम अपनी जींस से अपना एक पैर बाहर निकाल लो.
उसने ऐसा ही किया.
इस बीच मैंने तो अपनी पूरी पैंट ही नीचे सरका दी थी.
अब हम दोनों चुदाई की फुल मस्ती में आ गए थे.
मैंने फिर से उसकी चुत में लंड पेलने की कोशिश की. कुछ ही पल बाद मेरे लंड का सुपारा चुत की फांकों के अन्दर चला गया.
वो एकदम से सिसक पड़ी. उसे दर्द होने लगा था.
उसने कराहते हुए कहा- तुम्हारा डिक बहुत मोटा है … मुझे दर्द हो रहा है.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#34
मैंने उससे कहा- झेल लो … बाद में मजा आएगा.
वो बोली- ठीक है … तुम धीरे धीरे अन्दर करते रहो.
मैंने उसे अपनी नीचे ले लिया और उसके ऊपर चढ़ गया. उसके बाद मैं अपने लंड को धीरे-धीरे अन्दर पेलने लगा.
उसे दर्द हो रहा था तो उसकी आवाज निकलने की स्थिति बन रही थी. मैंने उसके होंठों पर अपने होंठ जमा दिए और बेदर्दी से उसकी चुत को चीर दिया.
वो बेहद तड़फ रही थी. मगर मैंने अपना पूरा लंड अन्दर कर ही दिया.
फिर मैं रुक गया और कुछ देर इंतजार करने लगा.
कुछ देर बाद वो नीचे से अपनी कमर हिलाने लगी, तो मैंने उसके होंठ छोड़ दिए और उसके दूध चूसने लगा.
अब वो मस्त हो चली थी, तो मैं धीरे धीरे लंड को चुत में अन्दर-बाहर करने लगा. मेरा पूरा लंड चुत के अन्दर बाहर चलने लगा था.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#35
उसने अपनी टांगें हवा में उठा दी थीं और वो खुल कर चुदाई का मजा ले रही थी.
कोई पांच मिनट बाद वो झड़ गई और मुझसे रुकने के लिए कहने लगी.
मैंने बिना रुके ही उसे चोदना जारी रखा.
वो फिर से चार्ज हो गई थी और हम दोनों ने खुल कर सेक्स का मजा लिया.
कोई सुन ना ले … इसलिए हम आवाज नहीं कर रहे थे.
उस रात मैंने उसे तीन बार चोदा और हम दोनों सुबह 4:00 बजे तक सेक्स का मजा लेते रहे. इस दौरान बीच में जब हम दोनों थक कर एक दूसरे को प्यार करने लगते थे तब उसने मुझसे अपनी बहुत सारी बातें साझा की थीं.
उसने मुझे बताया था कि उसके पति ने उसके साथ सिर्फ एक बार ही सेक्स किया था. उसके बाद उनको मेरे लिए कभी समय ही नहीं मिला. न ही हम दोनों साथ रह सके.
इस चुदाई की यात्रा के बाद हम दोनों अलग अलग हो गए थे.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#36
चलती ट्रेन में छोटी बहन की सील तोड़ी

(Chalti Train Me Chhoti Behan Ki Seal Todi)
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#37
यह बात उस समय की है जब मैं अपनी मौसी के घर से अपनी बहन के साथ ट्रेन में बिहार से अपने दिल्ली वाले घर पर लौट कर आ रहा था.
कहानी को आगे बढ़ाने से पहले मैं अपनी बहन के बारे में भी कुछ संक्षिप्त परिचय देना चाहूँगा.
उसका नाम शलाका (बदला हुआ) है और वह 18.5 साल की है. शलाका अभी स्कूल में है और बारहवीं कक्षा में पढ़ाई कर रही है.
बिहार के गया जिले के एक गांव में मेरी मौसी का घर है. मौसी की लड़की सुजीना की मंगनी थी और उसी के फंक्शन में हम वहाँ पर गये हुए थे.
मौसी ने शलाका को लाल रंग का लहंगा-चोली मंगनी वाले दिन तोहफे में दिया था.
शलाका उसी को पहने हुए वह मेरे साथ दिल्ली वापस लौट रही थी.
गांव से जब हम स्टेशन के लिए निकले तो हम लोग चौराहे पर खड़े होकर ट्रैकर जीप का इंतजार कर रहे थे.
तभी मैंने देखा कि एक कुतिया दौड़ती हुई आ रही थी. वह आकर हमसे करीब 20 फीट की दूरी पर रुक गई.
उसके पीछे ही एक कुत्ता भी दौड़ता हुआ आ पहुंचा.
कुत्ते ने आते ही कुतिया की बुर को सूंघना शुरू कर दिया. फिर अचानक से उसने अपने दोनों पैर कुतिया की कमर पर लगा कर उसकी बुर को चोदना शुरू कर दिया.
वह तेजी के साथ कुतिया की चूत को चोदने लगा.
हम दोनों भाई-बहन खड़े होकर तिरछी नजरों से वह नजारा देख रहे थे मगर ये जाहिर नहीं होने दे रहे थे कि दोनों की ही नजरें सामने चल रहे कुत्ते और कुतिया की चुदाई के सीन पर हैं.
8-10 धक्के तेजी के साथ लगाकर कुत्ता पलट गया और उसका लंड कुतिया की चूत में ही फंस गया. कुत्ता अपनी तरफ जोर लगाने लगा और कुतिया उस कुत्ते को अपनी तरफ खींचने लगी.
तभी कुछ लड़के वहां पर दौड़ते हुए आये और उन्होंने दोनों के जोड़ को छुड़ाने के लिए उन पर कंकड़-पत्थर फेंकने शुरू कर दिये.
लेकिन वो दोनों फिर भी अलग नहीं हो रहे थे.
मैंने नीचे ही नीचे शलाका की तरफ देखा तो उसके चेहरे पर शर्म के भाव थे.
मगर शायद उसको भी यह सब देखना अच्छा लग रहा था. वो नीचे नजरें करके उन दोनों को गौर से देख रही थी.
वह सीन देखने के बाद मेरे अंदर की हवस भी जाग गई. मुझे उस कुतिया के बारे में सोचते हुए ही अपनी बहन का ख्याल आने लगा. वह मुझे सेक्सी लगने लगी.
अपनी बहन के बारे में सोच कर ही मेरा लंड मेरी पैंट में खड़ा होना शुरू हो गया.
मगर इतने में ही एक ट्रैकर जीप आ गई. हम दोनों जीप में बैठ गये.
जीप के अंदर एक सीट पर पांच लोग बैठ गये और शलाका मुझसे चिपक कर बैठी थी.
मेरा ध्यान बार-बार अपनी बहन की चूत की तरफ ही जाने लगा था. जब वो मेरे बदन के साथ चिपक कर लगी हुई थी तो मेरे अंदर की हवस और ज्यादा जागने लगी थी.
फिर हम रेलवे स्टेशन पहुंच गये.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#38
मैंने टिकट कन्फर्मेशन के लिए तत्काल श्रेणी ऑफिस जाकर पता किया मगर हमारा टिकट कन्फर्म नहीं हो पाया.
फिर सोचा कि किसी भी तरह कम से कम एक सीट तो लेनी ही पड़ेगी क्योंकि बिहार से दिल्ली का सफर बहुत लम्बा था.
ऑफिस में अधिकारी ने बताया कि आपको शायद ट्रेन के अंदर टी.टी.ई. से भी टिकट पर एक सीट तो मिल ही जायेगी.
ट्रेन टाइम पर आ पहुंची. मैं और शलाका ट्रेन में चढ़ गये. टी.टी.ई. से बहुत मिन्नतें करने के बाद वह कुछ रूपये में एक बर्थ देने के लिए तैयार हुआ.
वह एक सिंगल सीट पर बैठा था. उसने हमसे बैठने के लिए कहा और बोला कि मैं आप लोगों के लिए एक और सीट देख कर आता हूँ.
मैं और शलाका गेट के पास की सीट पर बैठे हुए थे.
रात के करीब दस बज गये थे और चलती हुई ट्रेन से ठंडी हवा अंदर आ रही थी.
हमने शॉल से अपने को ढक लिया.
तभी टी.टी.ई. ने आकर हम लोगों का टिकट दूसरी बोगी में ऊपर वाली बर्थ पर कन्फर्म कर दिया. मैंने उसको रूपये दे दिये.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#39
म जाकर दूसरी बोगी में अपने कन्फर्म टिकट पर बैठने लगे. ऊपर चढ़ाते समय मैंने शलाका के चूतड़ों को अपने हाथों से कस कर भींच दिया था.
शलाका मुस्कुराती हुई ऊपर चढ़ गई. उसके बाद मैं भी ऊपर चढ़ गया.
सारी सीट स्लीपर क्लास (शयन श्रेणी) वाली थी. सब लोग सो रहे थे. हमारे सामने वाली बर्थ पर एक छोटी लड़की सो रही थी. उसी साइड में बीच वाली बर्थ पर उसकी माँ और नीचे वाली बर्थ पर उसकी दादी सो रही थी शायद.
सारी लाइटें और पंखे बंद थे. बस एक नाइट बल्ब जल रहा था.
शलाका हमारी सीट पर जाकर लेट गई.
मैं बैठा हुआ था.
वो बोली- लेटोगे नहीं?
मैंने कहा- कहां लेटूँ? जगह तो है ही नहीं.
ऐसा कहने पर उसने करवट ले ली और मुझे फिर उसकी बगल में लेटने के लिए कहा.
मैं भी शलाका की बगल में लेट गया.
हम दोनों ने शॉल ओढ़ लिया.
शलाका का मुंह मेरी तरफ था और उसकी चूचियां मेरी छाती पर आकर दब गई थीं. शलाका की चूत तो मेरे दिमाग में पहले से ही घूम रही थी. मैंने खुद को शलाका के बदन से और करीब होकर चिपका लिया.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
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#40
मैंने शलाका को भी कह दिया- मेरी तरफ और थोड़ी खिसक जाओ, नहीं तो नीचे गिरने का डर रहेगा.
शलाका भी मुझसे चिपक गई. शलाका ने अपनी जांघ मेरी जांघ के ऊपर चढ़ा दी; उसके गाल मेरे गाल से आकर छूने लगे.
मैं उसके गाल से अपना गाल बहाने से रगड़ने लगा. धीरे-धीरे मेरा लंड भी तन रहा था.
कुछ ही पल में मेरा लंड मेरी पैंट में पूरा तन गया.
मैं अपना एक हाथ अपनी बहन शलाका की कमर पर ले गया और धीरे-धीरे उसका लहंगा उसकी कमर से सरकाने लगा.
शलाका की सांसें भी तेज चलने लगी थीं.
मैंने उसका लहंगा कमर के ऊपर कर दिया और उसके चूतड़ों को सहलाने लगा. फिर मैं उसकी पैंटी के ऊपर से हाथ घुमा कर देखने लगा. उसकी चूत के आस-पास से उसकी पैंटी गीली हो गई थी. उसकी बुर से चिपचिपी लार सी निकल रही थी.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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