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Incest बहन की चूत की प्यास भाई के लंड से बुझी
#1
बहन की चूत की प्यास भाई के लंड से बुझी














[Image: 9c4ihv.gif]
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#2
अभी तो मैं कॉलेज

में ही पढ़ती हूँ तो ज़ाहिर सी बात है कि इतनी परिपक्व नहीं हुई हूँ कि किसी मर्द को
पटा सकूँ, और उससे अपनी प्यासी जवानी की प्यास बुझा सकूँ!
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#3
कहानियाँ पढ़ पढ़ कर इतनी लुच्ची ज़रूर हो गई हूँ कि सच में
चुदाई में कैसा मज़ा आता है, यह जानने के लिए मैंने अपनी कच्ची जवानी किसी के हवाले
कर दी।
बेशक बहुत दर्दनाक अहसास था वो … पहली बार था इस लिए।
मगर एक बात ज़रूर थी कि बेशक पहली चुदाई तकलीफदेह थी, खून भी निकला मेरे … मगर फिर
भी मुझे ये दर्द बहुत प्यारा लगा.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#4
मैं यही सोच भी रही थी कि बेशक मेरा पहला सेक्स तकलीफ देह था, मगर फिर दर्द होने
के बावजूद मुझे मज़ा भी तो आया था, इस बार तो दर्द भी नहीं होना था, इस बार तो मज़ा
आना पक्का था।
मैंने अपने बॉयफ्रेंड से पूछा तो उसने अपने किसी एग्ज़ाम की बात कह कर थोड़े दिन
रुकने को कहा।
मगर मुझे ऐसा अहसास हो रहा था कि मैं रुक तो बिल्कुल भी नहीं सकती थी, दिन रात मुझे
मेरे तन बदन में लगी वासना की आग तड़पा रही थी। हर हैंडसम मर्द को देखते ही सोचती कि
ये ही मुझसे पूछ ले “संस्कृति चुदवाएगी क्या?”
मगर ऐसा कैसे हो सकता था। मेरी कमसिन उम्र देख कर ज़्यादातर तो मुझे “बेटा, बच्चे”
कह कर ही बात करते थे।
तो इतना तो पक्का था कि कोई मैच्योर मर्द तो मुझे मिलने से रहा, हाँ क्लास के एक दो
लड़के बहुत आगे पीछे घूम रहे थे, मगर वो तो साले बिल्कुल ही बेकार से थे।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#5
अब यूं ही किसी ऐरे गैरे को अपना आप नहीं सौंप सकती थी क्योंकि जब जब भी मैं अपने
घर में शीशे के सामने नंगी हो कर खड़ी होती, तो मेरा दर्पण मेरे हुस्न की इतनी तारीफ
करता मेरे चेहरे की, मेरे गोरे बदन बदन की, मेरे मम्मों की, मेरी चूत की, मेरे
चूतड़ों की, मेरी जांघों की, मेरे पेटकी, मेरी पीठ की कि मैं खुद ही शर्मा जाती।
सर से पाँव तक हल्के गुलाबी रंग की 19 साल की लड़की, जिसको खुद अपने हुस्न पर इतना
गुमान हो वो किसी भी टुच्चे से लड़के से तो हाथ लगवाना भी पसंद न करे।
खैर मैंने सोचा, इस तड़पती हुई जवानी को संभालने का एक ही तरीका है कि अपना दिमाग
कहीं और लगाया जाए. और इस लिए मैंने सोचा कि कहीं बाहर घूम कर आया जाए।
तो मैंने अपने पापा से कहा- पापा, कॉलेज की छुट्टियाँ हैं, मैं सोच रही थी कि मैं
बुआ जी के घर कुछ दिन लगा आऊँ।
पापा को भी कोई ऐतराज नहीं था तो उन्होंने मुझे जाने की इजाज़त दे दी।
बुआ मेरे शहर से बस थोड़ी ही दूर रहती है, बस में बैठ कर मैं एक घंटे में बुआ के घर
पहुँच गई।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#6
जब बुआ के घर पहुंची तो वहाँ देखा ताला लगा था, बड़ा परेशान हुई मैं!
सोचने लगी कि अब क्या करूँ?
मैंने अपनी बुआ के लड़के निखिल को फोन लगाया तो उसने बताया कि मम्मी पापा तो आगे
किसी रिश्तेदारी में शादी में गए हैं, वो अपने कॉलेज गया हुआ है, बस थोड़ी देर में
ही आ जाएगा।
मैं वहीं घर के बाहर बैठ कर इंतज़ार करने लगी.
करीब डेढ़ घंटे बाद निखिल भैया आए, आते ही पहले गले मिले, फिर सॉरी सॉरी करते हुये
घर का ताला खोला तो हम अंदर गए।
मुझे पानी देते हुआ पूछा- तू कैसे आई?
मैंने कहा- भैया, मैं छुट्टियों में घर पर बोर हो रही थी, सोचा दो चार दिन आप लोगों
के साथ बिता लूँ, मगर यहाँ तो सभी बाहर गए हैं।
निखिल बोला- अरे तू चिंता मत कर, मैं हूँ न, मम्मी पापा तो कल शाम तक आएंगे, तब तक
हम दोनों भाई बहन मिल कर फन करेंगे।
मैं सोचने लगी ‘अरे निखिल भैया, जो फन मैं करना चाहती हूँ, वो तो तुम करोगे नहीं,
तो फन क्या साला घंटा होगा।’
मगर चलो अब आ ही गई हूँ, तो सोचा के एक दो दिन रुक जाती हूँ।
दोपहर का समय था, तो निखिल भैया मुझे अपनी बाईक पर बैठा कर बाहर ले गए, हमने लंच
बाहर ही किया. और कुछ करने को तो था नहीं तो वैसे ही फिर मूवी देखने पीवीआर में घुस
गए. मैं निखिल भैया के साथ चिपक कर बैठी, मैंने उनकी बाजू को अपनी दोनों बाजुओं के
जकड़ रखा था, इस तरह मेरा एक मम्मा निखिल भैया की बाजू से लग रहा था.
मैं तो इस चीज़ को समझ रही थी, मगर मुझे लग रहा था कि निखिल भैया भी ये चीज़ समझ गए
और वो भी बात बात में अपनी बाजू हिला हिला कर अपनी कोहनी से मेरे मम्मे को छेड़ रहे
थे।
तभी मेरे मन में खयाल आया कि निखिल भैया भी काफी तंदरुस्त हैं, जिम जाते हैं, मसल
वसल बना रखे हैं, अगर ये मेरे पे चढ़ जाए तो सच में तसल्ली करवा दे मेरी।
फिर सोचा ‘अरे नहीं … निखिल भैया तो मुझे अपनी छोटी बहन मानते हैं, वो ऐसा क्यों
करेंगे कि लोग उन्हें बहनचोद बोलें।’
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#7
मगर किसी को क्या पता चलेगा अगर बंद कमरे में आज रात वो मेरा चूत चोदन कर दें।
मैंने कौन सा शोर मचाना है, मैं तो खुद ही अपने कपड़े खोल दूँगी।
मेरा तो मूवी से मन ही उखड़ गया, मैंने निखिल भैया की बाजू और ज़ोर से कस ली और थोड़ी
सी करवट लेकर बैठी ताकि उनकी बाजू मेरे दोनों मम्मों के बीच में आ जाए, वो मेरे
दोनों मम्मों को महसूस कर सकें।
शायद मेरी स्कीम कामयाब रही, पूरी मूवी में निखिल भैया ने भी अपनी कोहनी से मेरे
दोनों मम्मों को खूब सहलाया।
मूवी देख कर बाहर निकले तो बाहर मौसम बड़ा सुहावना था। आसमान में बादल थे, ठंडी ठंडी
हवा मगर बरसात नहीं थी।
निखिल भैया बोले- अरे वाह, आज तो बड़ा मस्त मौसम है। आज तो कुछ हो जाए।
मैं समझी कि शायद निखिल भैया मुझे इशारा दे रहे हैं।
मगर फिर थोड़ी देर बाद बोले- आज तो बीयर पीने का मौसम है।
फिर मुझे देख कर बोले- अरे सुन कृति, तू किसी को बताएगी तो नहीं, अगर मैं बीअर पीऊँ
तो?
मैंने इठलाते हुये कहा- अगर अकेले पियोगे, तो ज़रूर बताऊँगी।
वो हैरान हो कर बोले- तू पीती है बीअर?
मैंने कहा- नहीं पीती तो नहीं हूँ, मगर आपके साथ कंपनी कर लूँगी।
वो खुश हुये- अरे वाह, फिर तो मज़ा आ गया।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#8
उसके बाद हम बाजार गए, वहाँ से निखिल भैया ने 4 बीअर ली, साथ में चखना,
नमकीन, पनीर, कोल्ड ड्रिंक वगैरह ली।
और हम घर को चल पड़े. मगर थोड़ी दूर ही चले थे कि तेज़ बारिश शुरू हो गई और तेज़ हवा भी
चल पड़ी। दो मिनट में ही हम भीग गए. मगर हम रुके नहीं और भीगते हुये ही घर वापिस आए।
जब घर पहुंचे तो हम दोनों के कपड़े टपक रहे थे।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#9
अंदर घुसते ही हम दोनों ने अपने अपने नए कपड़े निकाले और बाथरूम में घुस गए। मैंने
नहाने के बाद एक हाफ पैंट और टी शर्ट पहन ली, मगर नीचे से कोई ब्रा या पैंटी नहीं
पहनी, जिस वजह से ठंड से कड़क हुये मेरे छोटे छोटे निप्पल मेरी टी शर्ट से साफ दिख
रहे थे।
निखिल भैया भी अपने कपड़े बदल कर आए। उन्होंने भी एक टीशर्ट और निकर पहनी थी।
मेरे सामने आते ही उनकी नज़रें सबसे पहले मेरे निप्पलों पर पड़ी। छोटे छोटे मम्मो की
कड़क डोडी देख कर उनकी आँखों में एक चमक सी आई।
बेशक मैं उनकी छोटी बहन थी मगर अब मैं जवान हो चुकी थी. और मेरी चढ़ती जवानी किसी को
दीवाना कर सकती थी।
मैंने भी निखिल भैया को देखा, टी शर्ट और निकर में उनके बदन के बने हुये मसल बहुत
खूबसूरती से दिख रहे थे। मैंने भी उनके जिस्म को घूर कर देखा।
हम दोनों सोफ़े पर बैठ गए, निखिल भैया ने टीवी लगा दिया और हम यूं ही चैनल बदल बदल
कर कभी कुछ तो कभी कुछ देखने लगे।
बाहर झमाझम बारिश हो रही थी।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#10
फिर निखिल भैया ने पूछा- कृति, लाऊं बीअर?
मैंने भी हाँ कह दिया।
भैया उठे और फ्रिज से ठंडी बीअर निकाली और किचन से बाकी खाने का सामान ले आए। एक
बोतल खोली और दो गिलासों में डाल दी।
हम दोनों ने गिलास उठाए और चीयर्ज कह कर गिलास टकराए और एक एक घूंट भरी।
अब निखिल भैया तो पीते रहते थे, सो वो तो पी गए, मगर मुझे बड़ा अजीब लगा। बहुत ही
तेज़ स्वाद था, मगर बुरा नहीं था।
निखिल भैया को देख देख कर मैं भी पीती रही और साथ में अल्लम गल्लम खाती रही, एक एक
गिलास हम दोनों पी गए।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
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#11
मगर एक गिलास पीने के बाद मुझे लगा, जैसे मेरे आस पास सब कुछ घूमने लगा हो। उसके
बाद एक गिलास और पिया गया। और मैं तो जैसे हवा में उड़ने लगी।
बेशक हम दोनों बातें कर रहे थे, मगर मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि हम क्या बात कर
रहे हैं, मुझे जो जितना भी समझ आ रहा था, मैं निखिल भैया को जवाब दे रही थी।
फिर मुझे लगा जैसे मुझे पेशाब आ रहा हो। मैं उठ कर बाथरूम की तरफ जाने लगी तो टेबल
से टकरा कर गिर पड़ी।
बीअर का नशा मुझ पर चढ़ चुका था.
निखिल भैया ने मुझे एकदम से संभाला और अपनी मजबूत मसकुलर बांहों का सहारा देकर
बाथरूम तक ले गए। मगर सिर्फ बाथरूम तक नहीं ले गए, बल्कि मेरे साथ ही बाथरूम के
अंदर आ गए। मैंने कहा- भैया मुझे सुसू करना है।
वो बोले- अरे मुझे भी तो करना है, दोनों भाई बहन साथ में ही कर लेते हैं।
और इससे पहले मैं कुछ कहती उन्होंने मेरी तरफ पीठ की और अपने निकर नीचे करके दीवार
पर सुसू करने लगे। मुझे बड़ी शर्म आई कि मेरा भाई जिसे आज तक मैं सिर्फ अपना भाई ही
समझती थी, मेरे सामने किस बेशर्मी से पेशाब कर रहा है।
मैं चुपचाप खड़ी उन्हें देखती रही।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#12
मूतने के बाद निखिल भैया अपना लंड झटकते हुये मेरी तरफ घूमे और मुझे अपने लंड के
दर्शन करवा कर अपनी निकर में डालते हुये बोले- अरे तू अभी भी ऐसी ही खड़ी, चल जल्दी
कर फारिग हो, अभी तो 2 बीअर और पीनी हैं।
मैं सोच रही थी, मैं कैसे निखिल भैया के सामने अपनी हाफ पैंट उतारूँ।
हाँ, मगर ये ज़रूर कहूँगी कि निखिल भैया के गुलाबी टोपे वाला लंड देख कर मेरे जिस्म
में सर से पाँव तक झुरझुरी से दौड़ गई थी. और निखिल भैया ने भी मुझे उनके लंड को
घूरते देख लिया था।
मैं अभी कश्मकश में थी कि निखिल भैया मेरे पास और मेरी हाफ पैंट पकड़ कर नीचे को
खिसकाने लगे- चल उतार और मूत ले।
बड़े ही अधिकार से बोले वो … जैसे रोज़ ही मुझे ऐसे ही मुतवाते हों।
मैं भी जानबूझ कर ढीठ बन कर खड़ी रही और निखिल भैया ने मेरी हाफ पैंट मेरे घुटनों तक
नीचे सरका दी। मेरी गोरी गुलाबी फुद्दी मेरे बड़े भाई के सामने नंगी हो गई।
मगर मुझे शर्म नहीं आई बल्कि उतेजना पैदा हुई।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
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#13
निखिल भैया ने मेरी बाजू नीचे को खींच कर बैठाया और बैठते ही मेरा मूत निकल गया।
मैं मूत रही थी और निखिल भैया मेरी फुद्दी को घूर रहे थे कि कैसे लड़की की फुद्दी
में से मूत की धार बाहर निकलती है।
जब मैं मूत कर हटी तो निखिल भैया ने मुझे खड़ा किया और खुद ही मेरी हाफ पैंट ऊपर
सरका कर मुझे अपनी आगोश में लेकर बाहर ले आए।
बाहर सोफ़े पर बैठते ही उन्होंने एक एक गिलास और भर दिया और मुझे दिया। मगर मेरी
इच्छा अब बीअर पीने की नहीं बिस्तर पर लेटने की हो रही थी और शायद चुदने की भी।
मैं सोफ़े पर भी निढाल सी गिरी पड़ी थी।
निखिल भैया ने मुझे अपना सहारा दे कर उठाया. मगर मैंने महसूस किया के वो सिर्फ मुझे
सहारा नहीं दे रहे, बल्कि मुझे उठाते वक्त मेरा एक मम्मा बड़े अच्छे से अपने हाथ में
पकड़े थे, दिखा ऐसे रहे थे कि सहारा दे रहे हैं मगर पकड़ना मेरा मम्मा चाहते थे।
मैंने भी चुप्पी साध ली और जान बूझ कर थोड़ा और बेहोशी का, नशे का, बेख्याली का नाटक
करने लगी।
निखिल भैया मुझे अपनी गोद में उठा कर बेडरूम में ले गए और मुझे बेड पर लेटा दिया।
मैं अपनी आँखें बंद किए लेटी रही क्योंकि मैं भैया को पूरा मौका देना चाहती थी कि
अगर वो मेरे साथ कुछ भी करना चाहें, तो कर लें।
मुझे लेटा कर भैया खुद भी मेरे साथ ही लेट गए और मेरे घुटने पर अपना हाथ रखा। मैं न
हिली डुली तो उन्होंने अपना हाथ नीचे को सरकाना शुरू किया और मेरी जांघ तक ले आए।
पता नहीं नशे में या मज़े में मेरे मुंह से ‘ऊंह …’ निकल गई।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#14
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#15
भैया को लगा शायद मुझे मज़ा आया तो उन्होंने मेरे चेहरे से मेरी जुल्फ हटा कर अपना
चेहरा मेरे चेहरे के बिल्कुल पास लेकर आए, उनकी गर्म साँसे मैं अपने चेहरे पर महसूस
कर रही थी।
वो बोले- ओह … मेरी प्यारी कृति! जानती हो मैं तुम्हें बहुत पहले से चाहता हूँ, पर
कभी ऐसा मौका नहीं मिला के मैं तुमसे अपने दिल की बात कह सकूँ, आई लव यू मेरी
प्यारी कृति! और अपने प्यार का पहला किस मैं तुम्हें करने जा रहा हूँ. अगर तुम भी
मुझे चाहती हो तो मुझे किस करने से मत रोकना।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#16
(21-03-2022, 03:05 PM)neerathemall Wrote:
अभी तो मैं कॉलेज

में ही पढ़ती हूँ तो ज़ाहिर सी बात है कि इतनी परिपक्व नहीं हुई हूँ कि किसी मर्द को
पटा सकूँ, और उससे अपनी प्यासी जवानी की प्यास बुझा सकूँ!

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#17
(21-03-2022, 03:05 PM)Gneerathemall Wrote:
बहन की चूत की प्यास भाई के लंड से बुझी

[Image: 9c4ihv.gif]
N
[Image: 9c4ilj.gif]
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
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#18
(21-03-2022, 03:05 PM)Gneerathemall Wrote:
बहन की चूत की प्यास भाई के लंड से बुझी

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जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#19
Excellent
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#20
(28-09-2024, 04:15 PM)neerathemall Wrote:
[Image: 9c4ihv.gif]
N
बहन ने भाई की प्यास बुझाई

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उन दिनों दादाजी काफी बीमार रहने लगे. वे बार बार मेरी बहन को उसकी ससुराल से लाने की बात कहने लगे. चूंकि मेरी बहन घर में इकलौती लड़की होने के कारण सबकी लाड़ली थी. इसलिए दादा जी को उसकी ज्यादा याद आ रही थी.
मम्मी ने मुझे बहन को लाने उसके ससुराल भेजा, ताकि वो कुछ दिन दादाजी के साथ रह ले.
मेरी बहन के ससुराल जाने के लिए जंगल में से सड़क भी है और एक छोटा रास्ता पगडंडी से भी गुजरता है.
मैं बस से अपने बहन के ससुराल गया, तो वहां मेरे जीजा भी उसी दिन अपनी सर्विस से छुट्टी पर आये हुए थे. उन्होंने मेरी आवभगत की और बातचीत करते हुए मैंने अपने आने का कारण बताया.
जीजाजी एकदम से तनाव में आ गए, पर बात दादाजी की तबियत की थी, तो कुछ कहना भी संभव नहीं था.
उनकी माताजी ने बात संभालते हुए कहा- बेटा तू आज ही आया है, आज तू भी यहां रुक जा, अपने जीजा से बातें कर ले, सुबह जल्दी निकल जाना.
मैं भी उनकी स्थिति समझ कर मान गया. जीजा जी कभी कभी ही घर आ पाते थे और दीदी के साथ चुदाई का मजा ले कर चले जाते थे.
मेरे ये कहने पर कि मैं दीदी को आज ही ले जाने आया हूँ, जीजा जी का मूड ऑफ़ हो गया था. पर गनीमत थी कि दीदी की सासू माँ ने बात सम्भाल ली थी.
रात को खा पीकर थोड़ी देर बातें करके लगभग 8.30 पर सब सोने चले गए. मैं भी दीदी के देवर के रूम में सो गया.
अभी 9.00 ही बजे थे कि घर से कॉल आया कि पापा को अर्जेंट में आफिस के काम से जाना पड़ रहा है और छोटा भाई भी घर पर नहीं है. तो मुझे अभी रात में ही निकलना पड़ेगा.
सारी बात मैंने आँटी को बताई तो आँटी ने कहा- अपनी दीदी को जगा कर साथ ही ले जा और जीजा की बाइक से चला जा.
मैंने दीदी के कमरे को नॉक किया, तो दीदी थोड़ी अस्त व्यस्त हालत में बाहर आईं. मैं समझ गया कि अन्दर क्या हो रहा था. दीदी के ब्लाउज के बटन पूरे न लगे होने के कारण उनका एक निप्पल मुझे दिख गया. जिससे मेरा मूड बन गया.
खैर मैंने दीदी के निप्पल को देखते हुए उसको सब बताया और उससे अभी के अभी चलने को कहा.
वो मुझे रुकने का कह कर अन्दर चली गई. मैं दरवाजे से झांकने लगा, मैंने देखा कि दीदी अपनी पेंटी पहन रही थी और जीजाजी कुछ नाराज लग रहे थे.

[/url]
मैं पूरा माजरा समझ गया और यह देख कर थोड़ा गर्म भी हो गया.
कोई दस मिनट में हम दोनों वहां से निकल गए. मैंने जानबूझ कर बाइक जंगल के रास्ते से ली और थोड़ा दूर जाकर बाइक बन्द कर दी.
दीदी बोली- क्या हुआ?
मैंने कहा- शायद पेट्रोल खत्म हो गया है.
दीदी बोली- अब क्या होगा?
तो मैंने कहा कि बाइक खींच कर पैदल ही चलना पड़ेगा.
हम दोनों चल दिए.
कुछ दूर ही चले होंगे कि मैं जानबूझ कर हांफने लगा और प्यास से बेहाल होने का नाटक करने लगा.
दीदी बोली कि यहीं कहीं आराम कर लेते हैं.
मैंने कहा कि दीदी जंगल में रुकना खतरनाक हो सकता है, आगे कोई सुरक्षित जगह देखते हैं.
थोड़ा आगे चलकर हमें एक झोपड़ी दिखी, तो हमने वहीं रुकने का विचार बनाया. पर मुझे तो कुछ और ही चाहिए था, मैंने फिर से प्यास का बहाना बनाया और दीदी को कहीं से पानी ढूंढ लाने को कहा.
दीदी मोबाइल की रोशनी में पानी ढूंढने लगी, पर सुनसान जगह पर पानी कहां मिलता. दीदी परेशान हो गई.
मैंने दीदी से कहा- प्यास से हालत खराब हो रही है, मुझे गला तर करना है.
दीदी बोली- पानी तो नहीं है, फिर कैसे.
मैं बोला- एक आइडिया है आप थोड़ा मूत दो, तो मैं वही पी लूँगा और कुछ तो आराम मिलेगा.
दीदी- पर यह कैसे, मुझे शर्म आएगी.
मैं- यहां मैं और तुम ही तो हो, इसमें शर्म किससे . … मैं तो तुम्हारा भाई हूँ.
तो दीदी ने हां कह दिया.
मैं तो इसी की ताक में था. मैंने अपनी शर्ट और बनियान को खोल कर एक तरफ रख दिया.
दीदी- यह क्यों खोले?
मैं- क्योंकि यह भीग गए, तो घर पर क्या कहेंगे.
दीदी मान गयी, मैं जमीन पर सीधा लेट गया.
जैसे ही दीदी अपनी पेंटी उतार कर मेरे सामने आई, मैं तो पागल ही हो गया. क्या चूत थी. एकदम साफ, शायद जीजाजी के लिए ही साफ़ करके रखी थी.

जैसे ही दीदी ने मूतना चालू किया, मैंने मुँह खोल कर पूरा मूत पी लिया. मैंने मूत पीते समय दीदी की चूत को भी चाट लिया था. इससे दीदी भी गर्म हो गयी थी. वैसे भी वो अपनी चुदाई अधूरी छोड़कर ही आयी थी.
मूत पूरा होते ही मैंने अपना मुँह दीदी की चूत पर लगा दिया. दीदी इसके लिए तैयार तो नहीं थी, पर उसे यह अच्छा ही लगा और वो आह भर कर रह गयी.
अब मैं उसकी चूत से खेल रहा था और वो मेरे बालों से.
कुछ ही देर में हम दोनों पूरे मूड में आ गए थे. मैंने दीदी से कहा- क्या आपको प्यास नहीं बुझानी?
दीदी मेरा इशारा समझ गयी. उसने मेरी पेंट की जिप खोली और मेरा लंड बाहर खींच लिया. एक ही झटके में मेरा 7 इंच लंबा और 3 इंच छोड़ा लंड फुंफकारता हुआ बाहर निकल आया और अगले ही पल मेरी दीदी के मुँह में था.

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दीदी पूरे मन से मेरा लंड चूस रही थी, पर मैं कुछ कर नहीं पा रहा था.
मैंने दीदी को खड़ा किया और उसके कपड़ों की ओर देख कर कहा- अब तो यह सब हटा दो.
दीदी बोली- अपने ही हाथों से हटा दो ना भईया.
मैंने दीदी की साड़ी और सब कपड़े जल्दी से खोल दिए.
फिर दीदी से मेरी पेंट की तरफ इशारा किया, तो दीदी ने झट से मेरी पेंट और अंडरवियर निकाल फेंका. उसने फिर से मेरा लंड अपने मुँह में ले लिया और मस्त चूसने लगी. मेरा एक हाथ उसके मम्मों और पीठ को नाप रहा था. वैसे तो दीदी कोई ज्यादा आकर्षक नहीं थी, पर जब चूत का भूत सवार होता है, तो सब आकर्षक ही लगता है.
दीदी के चूसने से लंड जल्दी ही झड़ गया और दीदी मेरा पूरा माल चट कर गयी. जैसे मैं उसका मूत पी गया.
फिर दीदी बोली- अब मेरी आग कैसे शांत होगी, जो तेरे जीजा ने लगाई थी.
मैंने कहा- मुझे पता है इसीलिए तो मैंने गाड़ी बंद की और यह प्रोग्राम बनाया.
यह कहानी आप 
सुन कर दीदी अचंभित हो गयी और मुझे प्यार से मुक्के मारने लगी.
दीदी- साले इतना कमीना है तू . … और मैं तुझ बहनचोद को सीधा समझ रही थी.
मैं- आप मुझे बहनचोद क्यों कह रही हैं . … मैंने कब अपनी बहन चोदी.
दीदी- तो अब चोद दे अपनी बहन को और बन जा बहनचोद.
उसने कामुक होते हुए एक बार फिर अपने मुँह में मेरा लंड ले लिया और करीब पांच मिनट तक चूस कर फिर से कड़क कर दिया.

दीदी- अब नहीं रहा जाता भइया … जल्दी से मेरी प्यास बुझा दो, नहीं तो मैं तड़फ कर मर जाऊँगी.
मैं- नहीं दीदी, तेरे भाई के होते हुए तू प्यासी मर जाए … यह कभी नहीं हो सकता.
मैंने अपनी बहन को नीचे लिटा कर उसकी टांगें अपने कंधे पर रखीं और उसकी चूत पर अपना लंड सैट करके जोर से लंड पेलने की कोशिश करने लगा. मेरा यह पहला अनुभव था. उधर दीदी भी कई दिनों की प्यासी थी. उसकी चूत पहले से ही गीली हो चुकी थी. उसने अपने हाथ से मेरे लंड को चुत के छेद का रास्ता दिखाया और मुझे आँख मार दी. मैंने भी लंड को धक्का मारा, तो मेरा लंड दीदी की चूत में घुसता चला गया.
दीदी की आह निकल गई- उम्म्ह… अहह… हय… याह… मार दिया … भैनचोद … धीरे पेल साले तेरा लंड तेरे जीजा से बहुत बड़ा है.
मुझे यह सुनकर मजा आ गया. एक दो धक्के में ही मेरा पूरा लंड दीदी की चुत में खो गया था. मैंने लम्बे लम्बे झटके देने शुरू कर दिए. दीदी ने भी अपनी गांड उछाल कर लंड निगलना शुरू कर दिया.




हम दोनों जल्दी ही एक लय में आ गए थे. मैं दीदी की चुत में लंड पेलता, तो दीदी मेरी छाती से चिपक कर अपनी चूचियों का सुख मुझे देने लगती. और जब मैं लंड बाहर खींचता, तो दीदी भी अपनी गांड को दबा कर झटके के लिए तैयार कर लेती.
धकापेल चुदाई होने लगी. दीदी मुझे दूध चूसते हुए चुदाई की कहने लगी. मैंने दीदी की चूचियों को अपने हाथों से दबोच लिया और आटा जैसे गूँथते हुए दीदी की चुदाई का तूफ़ान चला दिया.
फिर तो वह घमासान मचा कि 20 मिनट की चुदाई के बाद ही शांत हो पाया.
अब तक मेरे घर से और दीदी की ससुराल से करीब 20 मिस कॉल आ चुके थे.
हम दोनों भाई बहन की चुदाई का तूफान थमा, तो हम दोनों को सब याद आया. मैंने समय देखा, तो रात के दो बज रहे थे. जल्दी से घर में फोन लगाया और गाड़ी की लाइट खराब होने का बोलकर देर होने की वजह बताई. अपनी कुशलता के समाचार भी दे दिए.
इसके बाद हम दोनों ने जल्दी से अपने अपने कपड़े पहने, एक दूसरे को चूमा और घर की तरफ निकल लिए.
गांव के पास पहुंच कर मैंने गाड़ी की लाइट बन्द की और धीमी स्पीड में घर पहुंच कर गाड़ी खड़ी की.
घर वाले टेंशन के मारे इंतजार कर रहे थे. कुछ देर बाद उन सबको बहाने से सुला कर हम भाई बहन भी सो गए. उसके बाद जब भी दीदी का या मेरा मूड होता, तो मैं दीदी से मिलने उसकी ससुराल पहुंच जाता और अपनी बहन को जम कर चोदता. उसे भी जीजा जी के कभी कभी मिलने वाले लंड से मेरा मोटा लम्बा लंड ज्यादा पसंद आ गया था.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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