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अतिसुन्दर!?
पूरी कहानी में एक जगह संगीता दीदी को उर्मि दीदी कहा गया है। बाकी कहानी में कहीं झोल नहीं दिखाई दिया।
मस्त कहानी।
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Badhiya kahani..kuchh aur bhi likho.
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[quote pid='3827953' dateline='1634211963']
neerathemallसमाप्त
"ये तो बहुत अच्च्छा किया तुम'ने, दीदी!" मेने खूस होकर कहा. फिर दीदी ड्रेसंग टेबल के आईने में देख'कर मेक अप कर'ने लगी. मेने हमारे बॅग लॉक किए और वार्ड रोब के अंदर रख दिए. फिर में चेर'पर बैठ'कर दीदी के तैयार होने की राह देख'ने लगा. जाहीर है के में उसे कामूक नज़र से चुपके से निहार रहा था. वो ड्रेस उसे अच्छा ख़ासा टाइट हो रहा था और उस वजह से उसके मांसल अंग के उठान और गहराईया उस'में से साफ साफ नज़र आ रही थी.
और उपर से उस'ने ओढ'नी नही ली थी जिस से उसकी मदमस्त चुचीया मेरी आँखों में चुभ रही थी. बीच बीच में वो आईने से मुझे देखती थी और हमारी आँखे मिलते ही वो थोड़ा सा शरमाकर हँसती थी. लेकिन में थोड़ा भी ना शरमा के हँसता था. उस'का मेक अप होने के बाद उस'ने आखरी बार अप'ने आप को आईने में गौर से देखा और फिर मेरी तरफ घूमके उस'ने बड़े प्यार से पुछा,
"कैसी लगा रही हूँ में, सागर?"
"एकदम दस साल कम उम्र की, दीदी!!" मेने उसे उप्पर से नीचे तक देख'ने का नाटक कर'ते कहा. जब उसके गले पर मेरा ध्यान गया तो मुझे थोड़ा अजीबसा लगा. मुझे वहाँ कुच्छ कमी नज़र आई. में उसके गले की तरफ देख रहा हूँ यह देख'कर दीदी हंस'कर बोली,
"ओह. में तो तुम्हे बताना ही भूल गयी. मेने मंगलसूत्र निकाल के रखा है. भले तुम कह रहे हो के हम दोनो शादीशुदा लगेंगे लेकिन मुझे नही लगता सबको ऐसा लगेगा. तो फिर लोगो को शक की कोई गुंजाइश ना रहे इस'लिए मेने मंगलसूत्र निकाल के रख दिया है."
[/quote]
(14-10-2021, 05:39 PM)neerathemall Wrote: ओह ! सागर! तुम इत'नी अच्छी बातें कर'ते हो के सुन'ने में बहुत प्यारा लग'ता है!" ऐसा कह'कर संगीता दीदी ने मेरे दोनो हाथ पकड़ लिए, जो उसकी कमर पर थे और मुझे नज़दीक खींच लिया. फिर मेरे हाथ उस'ने अप'ने पेट पर लपेट लिए जो बिल'कुल उसके छाती के उभारों के नीचे थे और उन'को हलका सा स्पर्श कर रहे थे.
संगीता दीदी की उस 'प्यारभरी' नज़दीकीयों का पूरा फ़ायदा उठाते मेने उसे ज़ोर से अप'नी बाँहों में भर लिया और उसके पिछे से चिपक गया. मेरा चह'रा मेने उसके कंधोपर रखा था जो उसके गालो को हलके से छू रहा था. मेरे हाथों से मेने उसके पेट को ज़ोर से आलींगन किया था जिस'से उसकी भरी हुई छाती मेरे हाथों से थोड़ी उपर उठ गयी थी. मेरे जांघों का भाग उसके गोला मटोल चुत्तऱ पर दब गया था.
"ओह ! सागर!" संगीता दीदी ने मेरी पकड़ और मजबूत कर के और खुद को और पिछे धकेल कर कहा, "तुम्हें तो मालूम है शादी से पह'ले अप'ने घर में मेने कभी ऐसा लिबास नही पहना क्योंकी पिताजी को ऐसा लिबास पसंद नही था. और शादी के बाद तो सवाल ही नही क्योंकी मेरे पति मुझे पंजाबी लिबास भी पहन'ने नही देते है. इस'लिए जींस और टी-शर्ट पहन'ने की मेरी बहुत दिन की 'इच्छा' आज पूरी हो गई. थॅंक्स, ब्रदर! तुम्हारी वजह से मेरा और एक 'इच्छा' पूरी हो गई."
"मेने तुम्हें कहा है ना, दीदी! तुम्हारी सभी 'इच्छाए' पूरी कर'ने के लिए में हमेशा तुम्हारे साथ हूँ. सिर्फ़ मुझे बताओ! तुम्हारी और कौन सी 'इच्छाए' पूरी कर'ना बाकी है" ऐसे कह'ते मेने और ज़ोर से उसे पिछे से कस लिया.
"अब और कोई 'इच्छा' बाकी नही है, सागर! तुम'ने मेरे लिए बहुत कुच्छ किया है. अब तुम मुझे बताओ.. में तुम्हारे लिए कुच्छ कर सक'ती हूँ क्या? तुम्हारी कोई 'इच्छा' में पूरी कर सक'ती हूँ क्या? बता मुझे कि में तुम्हारा कोई सपना पूरा कर सक'ती हूँ क्या?"
(26-10-2021, 11:15 PM)bhavna Wrote: बहुत ही उतेजक!?
(03-11-2021, 04:16 PM)neerathemall Wrote: उहा.आहा.उहा.आहा. आइईइ. सगरा." और संगीता दीदी ने आखरी चीख दे दी.. फिर उसके धक्के कम होते गये. उस'ने मेरे बाल छोड़ दिए और अपना बदन ढीला छोड़ के वो पड़ी रही. संगीता दीदी काम्त्रिप्त हो गई थी!! और मेने उसे काम्त्रिप्त किया था, उसके छोटे भाई ने!! मुझे ऐसा लग रहा था के मेने बहुत बड़ा तीर मारा है! अब भी मैं उसकी चूत चाट रहा था और उसे निहार रहा था. धीरे धीरे वो शांत होती गई. उसके बदन पर पसीने की बूंदे जमा हो गई थी.
अप'नी सुधबूध खोए जैसी संगीता दीदी पड़ी थी. बीच में ही उस'ने अपना हाथ उठा के मेरा मूँ'ह अप'नी चूत से हटाने की कोशीष की. मेने उसके चूत के छेद पर आखरी बार जीभ घुमा दी और मेरा सर उठा लिया. उसके चूत के निचले भाग से उस'का चूत'रस निकला था जो मेरे चाट'ने से मेरी जीभ पर आया था. मेरी बहन की चूत का वो रस चाट'कर में धन्य हो गया था!! बड़ी खुशी से मेरे मूँ'ह पर लगा वो चूत रस मेने चाट लिया.
फिर में उठा और आकर संगीता दीदी के बाजू में पहेले जैसे लेट गया. में उसके चेह'रे को निहार रहा था और नीचे उसके नंगे बदन'पर नज़र डालता था. उपर से नीचे से उस'का नंगा बदन कुच्छ अलग ही दिख रहा था. उसके चह'रे पर पहेले तो थकान थी लेकिन बाद में धीरे धीरे उसके चेहरे के भाव बदलते गये. अब उसके चह'रे पर तृप्त भावनाएँ नज़र आने लगी. में काफ़ी दिलचस्पी से उसके चह'रे के बदलते रंगो को देख रहा था.
थोड़ी देर के बाद संगीता दीदी ने अप'नी आँखें खोल दी. हमारी नज़र एक दूसरे से मिली. मेरी तरफ देखके वो शरमाई और दिल से हँसी. उसकी दिलकश हँसी देख'कर में भी दिल से हंसा.
"कैसा लगा, दीदी?"
"बिल'कुल अच्च्छा!! "
"ऐसा सुख पहेले कभी मिला था तुम्हें?"
"कभी भी नही!.. कुच्छ अलग ही भावनाएँ थी.. पह'ली बार मेने ऐसा अनुभाव किया है."
"जीजू ने तुम्हें कभी ऐसा आनंद नही दिया? मेने किया वैसे उन्होने कभी नही किया, दीदी??"
"नही रे, सागर!. उन्होने कभी ऐसे नही किया. उन्हे तो शायद ये बात मालूम भी नही होंगी."
"और तुम्हें, दीदी? तुम्हें मालूम था ये तरीका?"
"मालूम यानी. मेने सुना था के ऐसे भी मूँ'ह से चूस'कर कामसुख लिया जाता है इस दूनीया में."
"फिर तुम्हें कभी लगा नही के जीजू को बता के उनसे ऐसे करवाए?"
"कभी कभी 'इच्छा' होती थी. लेकिन उन'को ये पसंद नही आएगा ये मालूम था इस'लिए उन्हे नही कहा."
"तो फिर अब तुम्हारी 'इच्छा' पूरी हो गई ना, दीदी?"
"हां ! हां !. पूरी हो गई. और मैं तृप्त भी हो गई. कहाँ सीखा तुम'ने ये सब? बहुत ही 'छुपे रुस्तमा' निकले तुम!"
"और कहाँ से सीखूंगा, दीदी?.. उसी किताब से सीखा है मेने ये सब. हां ! लेकिन मुझे सिर्फ़ किताबी बातें मालूम थी लेकिन आज तुम्हारी वजह से मुझे प्रॅक्टिकल अनुभव मिला."
"उस किताब से और क्या क्या सीख लिया है तुम'ने, सागर?" संगीता दीदी ने हंस'कर मज़ाक में पुछा.
"वैसे तो बहुत कुच्छ सीख लिया है. अब अगर उन बातों का प्रॅक्टिकल अनुभव तुम'से मिल'नेवाला हो तो फिर बताता हूँ में तुम्हें सब." मेने उसे आँख मार'ते हुए कहा.
"नही हाँ, सागर!. अब कुच्छ नही कर'ना. हम दोनो ने पहेले ही अप'ने रिश्ते की हद पार कर दी है अब इस'के आगे नही जाना चाहिए. मैं नही अब कुच्छ कर'ने दूँगी तुम्हें."
"मुझे एक बात बताओ, दीदी. अभी जो सुख तुम्हें मिला है वैसा जीजू ने तुम्हें कभी सुख दिया है?"
"नही. फिर भी."
"यही!. यही, दीदी!. इसी बात की कमी है तुम्हारी शादीशूदा जिंदगी में."
"क्या मतलब, सागर?" उस'ने परेशान होकर मुझे पुछा.
"मतलब ये. के जीजू थोड़े पुराने ख्यालात के है इस'लिए उन्हे पूरी तरह से कामसुख लेने और देने के बारे में मालूम नही होगा. और इसीलिए एक बच्चा होने के बाद उनकी दिलचस्पी ख़त्म हो गई. उन्हे लग'ता होगा एक बच्चा बीवी को देने के बाद उनका उसके प्रती कर्तव्य पूरा हो गया. लेकिन वैसा नही होता है. सिर्फ़ घर, खाना-पीना, कपड़ा देना यानी शादीशूदा जिंदगी ऐसा नही होता है. उन्होने तुम्हें काम-जीवन में भी सुख देना चाहिए. वो वैसा नही कर'ते है इस'लिए तुम दुखी रह'ती हो."
(07-11-2021, 01:13 PM)bhavna Wrote: दीदी ने भाई की इच्छा जरूर पूरी की है। आप इस कहानी में पाठकों के भरपूर कमेंट्स नहीं आने की वजह से दीदी को भाई की इच्छा पूरी करने से मत रोकिए। कहानी को आगे बढ़ाईये।
(08-11-2021, 10:28 AM)neerathemall Wrote: कहानी बद्स्तूर जारी है ......................
(12-11-2021, 04:33 PM)neerathemall Wrote: "अले. मेले. लाड़ले." संगीता दीदी ने बड़े लाड से कहा, "कित'ने जलदी नलाज होता है मेला राजा भैया. उसे मश्करी भी समझ आती नही." ऐसा कह'कर वो ज़ोर से हंस'ने लगी. में कुच्छ नही बोला और चेह'रा मायूस कर के उसे दिखाने लगा के में नाराज़ हो गया हूँ.
"अच्च्छा! अच्च्छा!. इत'नी भी नाराज़ होने की ऐकटिंग कर'ने की ज़रूरत नही है, सागर. मुझे मालूम है मन ही मन लड्डू फूट रहे होंगे तुम्हारे." उस'ने बड़ी मुश्कील से अप'नी हँसी रोकते हुए कहा और वो सुन'कर मुझे भी हँसी आई.
"देखा. देखा. कैसे दिल से हँसे तुम." ऐसा कह'कर संगीता दीदी उठ गयी और अप'ने घुट'ने पर खड़ी होकर उस'ने मुझे उप्पर उठ'ने का इशारा किया. में झट से उठा के बैठ गया. उस'ने मेरा टी-शर्ट दोनो बाजू से पकड़ लिया और धीरे धीरे उप्पर उठाते हुए निकाल दिया. फिर उस'ने मुझे पिछे धकेल के लिटा दिया और वैसे ही अप'ने घुट'ने के बल चल के वो मेरे पैरो तले गई. फिर उस'ने मेरे -पॅंट के इलास्टीक में दोनो बाजू से अप'नी उंगलीया घुसा के उसे पकड़ लिया. उस'ने उंगलीया ऐसे घुसाई थी के शॉर्ट पॅंट के साथ उस'ने अंदर की मेरी अंडरावेअर भी पकड़ ली थी. धीरे धीरे वो उसे नीचे खींच'ने लगी.
मेरा लंड ज़्यादा कड़क नही था और नीचे की ओर पड़ा हुआ था इस'लिए पॅंट नीचे खींचते सम'य उसे मेरा लंड आड़े नही आ रहा था. मेरे लंड के उप्पर की झाँते नज़र आने लगी तो उसे हँसी आई और बड़ी मुश्कील से अप'नी हँसी दबाते हुए वो पॅंट और नीचे खींच'ती गई. जैसे जैसे मेरा लंड उसे नज़र आने लगा वैसे वैसे उसकी हँसी कम होती गई. मेरी बड़ी बहन के साम'ने मेरा लंड खुल रहा है इस ख़याल से में उत्तेजीत हो रहा था. संगीता दीदी ने पॅंट मेरे घुटनो तक खींची और यकायक मेरा लंड उसकी नज़र के साम'ने खुल गया! झट से उस'ने पॅंट मेरे पैरो से खींच के निकाल दी और बाजू में डाल दी.
अब में संगीता दीदी के साम'ने पूरा नंगा था. उसकी नज़र मेरे अध-खड़े लंड पर टिकी हुई थी. मेरी बहन के साम'ने में नंगा हूँ और वो मेरे लंड को देख रही है ये अह'सास मुझे पागल कर'ने लगा. देख'ते ही देख'ते मेरा लंड कड़ा होने लगा. उस में जैसे जान भर दी हो और एक अलग जानवर की तरह वो डोल'ने लगा और तन के खड़ा हो गया. जैसे जैसे मेरा लंड कड़ा होता गया वैसे वैसे संगीता दीदी की आँखें चौंक'ती गई.
एक पल के लिए वो मेरी तरफ देख'ती थी तो अगले पल मेरे कड़े हो रहे लंड को देख'ती थी. मेरे ध्यान में आया के मेरे जल्दी जल्दी कड़े हो रहे लंड को देख'कर वो हैरान हो रही थी.
"सागर!! क्या है ये.! कित'ना जल्दी तुम्हारा लंड तन के खड़ा हो गया!! मेने ऐसे लंड को खड़े होते हुए कभी नही देखा था!"
"सच, दीदी??. ये तो तुम्हारा कमाल है, दीदी!"
"मेरा कमाल?? मेने क्या किया, सागर?"
"नही. प्रैक्टिकली तुम'ने कुच्छ नही किया. लेकिन में तुम्हारे साम'ने नंगा हूँ ना. मेरी बहन के साम'ने में नंगा हूँ इस भावना से में इतना उत्तेजीत हो गया हूँ के पुछो मत.."
"मुझे पुच्छ'ने की ज़रूरत ही नही, सागर. में देख सक'ती हूँ ये कमाल." वो अब भी मेरे लंड को हैरानी से देख रही थी.
"ये, सागर. में ज़रा तुम्हारे लंड को अच्छी तरह से देख लूँ? मेरे मन में ये बहुत दिनो की 'इच्छा' है." ऐसा कह'कर संगीता दीदी ने मेरे दोनो पैर फैला दिए और वो मेरे पैरो के बीच में बैठ गयी.
"कमाल है, दीदी. तुम'ने कभी जीजू के लंड को अच्छी तरह से देखा नही क्या?" मेने आश्चर्य से पुछा.
"हाँ. उनके लंड को क्या अच्छी तरह से देख'ना. वो तो मुझे हाथ भी लगाने नही देते थे. और हम दोनो रात के नाइट लॅंप में सेक्स कर'ते थे इस'लिए उनका लंड कभी अच्छी तराहा से देख'ने को भी नही मिला मुझे."
"अच्च्छा!.. तो आद'मी का लंड अच्छी तरह से देख'ने को मिले ये तुम्हारी 'इच्छा' थी हाँ."
"हां. लेकिन किसी भी आद'मी का नही. सिर्फ़ तुम्हारे जीजू का लंड."
"ओहा आय सी!. लेकिन ये तो जीजू का लंड नही है, दीदी."
"हां ! डियर सागर. मुझे मालूम है वो.. मेरे पति का लंड नही तो ना सही.. मेरे भाई का लंड तो है. इसी को निहार के में अप'नी 'इच्छा' पूरी कर लूँगी.." संगीता दीदी की बात सुन'कर में ज़ोर ज़ोर'से हंस'ने लगा. उस'ने चौन्क के मेरी तरफ देखा और पुछा, "ऐसे क्यों हंस रहे हो, सागर?"
"इस'लिए के. अब तुम कित'नी आसानी से 'लंड' वग़ैरा शब्द बोल रही हो और थोड़ी देर पह'ले तुम 'शी!' कर रही थी. वो मुझे याद आया और मुझे हँसी आई!" मेने हंस'ते हुए उसे जवाब दिया.
"तो फिर क्या.. ये तो तुम्हारा ही कमाल है, सागर. तुम्ही ने मुझे गंदी कर दिया है."
"अब तक तो नही." उसे सुनाई ना दे ऐसी आवाज़ में मेने धीरे से कहा.
"क्या? क्या कहा तुम'ने??" उस'ने चमक कर पुछा.
"अम?. का. कुच्छ नही, दीदी. तुम कर रही हो ना मेरे लंड का परीक्षण??" मेने बात पलट'कर उसे कहा. फिर मेने संगीता दीदी को मेरे पैरो के बीच में आराम से लेट'ने के लिए कहा. वो मेरे पैरो के बीच अप'ने पेट'पर लेट गयी और उस'ने अपना चेह'रा मेरे लंड के नज़दीक लाया. कुच्छ पल के लिए मेरे लंड को उप्पर से नीचे देख'ने के बाद उस'ने धीरे से अपना हाथ बढ़ाया और मेरा लंड पकड़ लिया.
"अहहा!! !" मेरी बहन के हाथ का स्पर्श मेरे लंड को हुआ और अप'ने आप मेरे मूँ'ह से सिस'की बाहर निकल गई.
"क्या हुआ, सागर? तुम्हें दर्द हुआ कही?" संगीता दीदी ने परेशानी से पुछा.
"दर्द नही. सुख. सुख का अनुभव हुआ, दीदी!." उस अनोखे सुख से आँखें बंद कर'ते मेने कहा.
"सुख का अनुभव? यानी क्या, सागर??"
"अरे, दीदी!. तुम मेरा लंड हाथ में ले लो ये मेरी बहुत दिनो की 'इच्छा' थी."
"कौन, में???"
"तुम यानी.. कोई भी लड़'की. दीदी!"
(24-12-2021, 03:15 PM)neerathemall Wrote: अब ये कौन सा अलग सुख है, सागर??"
"धीरे से प्यार!!. में तुम्हें धीरे से प्यार करता हूँ, दीदी!"
"अब ये क्या है?. ज़रूर उस किताब में से कुच्छ पढ़ा होगा. है ना सागर?"
"हाँ !. लेकिन पूरी तरह से किताबी बातें नही. उस में कुच्छ मेरी भी कल्पनाएं है."
"चल हट. में नही करूँगी अभी कुच्छ." ऐसा कह'ते संगीता दीदी घूम गई और मेरी तरफ पीठ कर के अप'ने पेट पर लेट गई.
"तुम कुच्छ मत करो, दीदी.. तुम सिर्फ़ पड़ी रहो. जो भी कर'ना है वो में करूँगा." उसकी पीठ मेरी तरफ होने की वजह से मेने उसके भरे हुए चुत्तऱ हिलाते हिलाते उसे कहा. संगीता दीदी कुच्छ ना बोली और वैसे ही पड़ी रही में फिर उसके बाजू में लेट गया और उसके नंगे बदन को यहाँ वहाँ हाथ लगा के उसे कह'ने लगा,
"बोला ना, दीदी. करू ना में तुम्हें धीरे से प्यार?. तुम्हें पसंद आएगा जो में करूँगा. और मुझे यकीन है जीजू ने तुम्हें वैसे कभी किया नही होगा."
"करो बाबा. करो. जो भी कर'ना है कर." आख़िर उस'ने कहा,
"ओह थॅंक यू, दीदी!" मेने झट से उसे कहा. संगीता दीदी पेट के बल सोई थी और उस'का मूँ'ह उसके दाएँ हाथ की तरफ था में उसके बाएँ हाथ की तरफ लेटा हुआ था में उठा और घुट'ने पर बैठ गया फिर मेरा दायां हाथ उसके दाएँ कंधे के नज़दीक और बाया हाथ उसके बाएँ कंधे के नज़दीक रख'कर में उसके उप्पर झुक गया. धीरे से मेरा मूँ'ह में उसके कान के नज़दीक ले गया उसे मेरी साँसों का अह'सास हो गया और उस'ने अप'नी आँखें खोल के मेरी तरफ देखा फिर हंस'ते हंस'ते वापस उस'ने अप'नी आँखें बंद कर ली.
मेने धीरे से मेरे होठ संगीता दीदी के कान के छोर पर रख दिए और उसे होंठो में पकड़ लिया. फिर में जीभ निकाल'कर उसके कान का छोर चाट'ने लगा और उस'से खेल'ने लगा बीच बीच में में उसे दाँतों में पकड़'कर धीरे से काटता था. थोड़ी देर तो संगीता दीदी शांत थी लेकिन धीरे धीरे उस'ने अपना सर हिलाना चालू किया. शायद उसे गुदगूदी हो रही थी या तो वो उत्तेजीत हो रही थी लेकिन उसकी तरफ से मुझे साथ मिला'ने लगी.
"दीदी! तुम बहुत अच्छी हो. में तुम्हें बहुत पसंद करता हू." मेने धीरे से उसके कान'पर जीभ घुमाते हुए कहा
"में भी तुम्हें बहुत पसंद कर'ती हूँ, सागर!" उस'ने बंद आँखों से कहा
"में बहुत लकी हूँ, दीदी. जो मुझे तुम्हारे जैसी बहन मिली है. जो भाई के लिए कुच्छ भी कर'ती है."
"हां. और में भी बड़ी भाग्यशाली हूँ, सागर. जो मुझे तुम्हारे जैसा भाई मिला है. जो मुझे नंगा करता है. मुझे लंड चूस'ने को कहता है. और भी क्या क्या मेरे साथ करता है." उस'ने शरारत से कहा.
"हां. लेकिन तुम्हें भी अच्छा लग'ता है जो में करता हूँ. है ना, दीदी??"
"वो तो है.. इस'लिए में तुम्हें ये सब कुच्छ कर'ने देती हूँ."
"ओह ! दीदी! आई लव यू.. आय लव यू वेरी मच!! " ऐसा कह'कर मेने संगीता दीदी के मुलायम गालोपर अप'ने होठ रख दिए और में उसके गालों को चूम'ने लगा. उस'को चूम'ते चूम'ते में धीरे से नीचे हुआ और उसके बदन पर लेट गया. में उसके बदन पर लेटा ज़रूर था लेकिन अब भी मेरा ज़्यादातर भार मेरे दोनो हाथों पर ही था. उसके गालों को चूम'ते चूम'ते मेने मेरे होंठ और नीचे लिए और उसके होठों को ज़ोर से चूम'ने लगा कभी में उसके होंठ ज़ोर से मेरे होठों में पकड़ता तो कभी में उन्हे हलके से काट'ता तो कभी उस'पर अप'नी जीभ घुमाता था.
(31-12-2021, 12:52 PM)neerathemall Wrote: वापस संगीता दीदी के मूँ'ह से हल'की चीख बाहर निकली!! 'अहहा' 'उहहा' 'उफ़ा' वग़ैरा कर'ते कर'ते वो शांत होती गई. हमारी उस पह'ली चुदाई में मेरी बहन दूसरी बार झड़ के काम्त्रिप्त हो गई थी!! स्त्रियो का यही एक अच्छा होता है. एक के बाद एक वे कई बार काम्त्रिप्त हो सक'ती है. और मेरी बहन को तो पह'ली बार ऐसी काम्त्रिप्ती का आनंद मिला रहा था इस'लिए वो जी भर के अप'ने भाई से ये सुख ले रही थी.
अब तक तीन बार उसकी काम्त्रिप्ति हो गई थी लेकिन में एक ही बार झड़ गया था और दूसरी बार झड़'ने के लिए बेताब हो रहा था. पह'ली बार में अप'नी बहन के मूँ'ह में झड़ गया था और अब मुझे उसकी चूत में मेरा वीर्य छोड़'कर झड़ना था और मेरी कई बरसो की 'इच्छा' पूरी कर'नी थी.
(13-01-2022, 05:30 PM)neerathemall Wrote: ....
समाप्त
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(14-01-2022, 08:54 AM)bhavna Wrote: अतिसुन्दर!?
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होली की हार्दिक शुभकामनाएं
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(06-03-2019, 03:58 AM)neerathemall Wrote: किचन का दरवाजा पुराने स्टाइल का था
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भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
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(07-11-2021, 01:13 PM)bhavna Wrote: दीदी ने भाई की इच्छा जरूर पूरी की है। आप इस कहानी में पाठकों के भरपूर कमेंट्स नहीं आने की वजह से दीदी को भाई की इच्छा पूरी करने से मत रोकिए। कहानी को आगे बढ़ाईये।
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(06-03-2019, 03:55 AM)neerathemall Wrote: दीदी ने पूरी की भाई की इच्छा
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