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Incest दीदी ने पूरी की भाई की इच्छा
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जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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Sara Stokes



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जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
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जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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उस'ने मेरे कंधे पर हाथ रखे और वो भी मेरे धक्के के साथ उप्पर नीचे होने लगी.

 
"नही.नही. दीदी! तुम ऐसे नही कर'ना. इससे में ज़्यादा उत्तेजीत हो जाउन्गा.. तुम अप'नी चूत का दाना मेरे लंड के उपर के भाग पर घिसो. उस से तुम्हें ज़्यादा उत्तेजना मिलेगी. हाँ. ऐसे ही. आगे पिछे. बराबर." मेने जैसे बताया वैसे संगीता दीदी कर'ने लगी उसके ध्यान में आया के इस पोज़ीशन में वो कैसे अपना चूत'दाना मेरे लंड के उप्पर घिस सक'ती है और उत्तेजना प्राप्त कर सक'ती है उसकी रफ़्तार बढ़ गई.
 
नीचे में पीठ'पर लेटा हुआ था संगीता दीदी मेरी कमर पर बैठी थी मेरा लंड जड़ तक उसकी चूत में था. वो आगे पिछे होकर अपना चूत'दाना मेरे लंड के उप्परी भाग पर घिस रही थी. में उप्पर देख'कर उसे निहार'ने लगा. उस'ने अप'नी आँखें ज़ोर से बंद कर ली थी.
 
अपना चेह'रा उप्पर कर के दाँतों से अप'ने होठों को काट'कर वो आगे पिछे हो रही थी. आगे पिछे होने से उसकी छाती के बड़े बड़े उभार हिचकोले खा रहे थे. कभी कभी मैं उसकी कमर'पर हाथ फिरा रहा था तो कभी उसके चूतड़'पर. कभी में उसके छाती के उभारो को निचोड़ता था तो कभी उसके उप्पर के निप्पल को उंगलीयों में पकड़'कर मसलता था.
 
संगीता दीदी की स्पीड बढ़ गयी अब वो ज़्यादा ही ज़ोर से आगे पिछे होने लगी. उस'को सहारा देने के लिए मेने उसकी उंगलीयों में अप'नी उंगलीया फँसाई और उसके दोनो हाथ ज़ोर से पकड़ लिए. मेरे हाथ के नीचे का भाग मेने बेड'पर रखा हुआ था और में उसके हाथों को सहारा दे रहा था. वो भी मेरे हाथ ज़ोर से पकड़'कर उसके सहारे आगे पिछे हो रही थी. उसके मूँ'ह से सिस'कीया बाहर निकल'ने लगी. मेने नीचे मेरी कमर कस के रखी थी जिस'से उसे अपना चूत'दाना घिसते सम'य एक कड़ा आधार मिला रहा था.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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उसकी सिस'कीया बढ़'ने लगी. अब वो हल'की चिन्खो में बदल गई. मेने जान लिया के अब उसके स्त'खलन का समय आया है. 'अहहा' 'उहहाहा' कर'ते कर'ते वो ज़ोर से मेरे लंड पर अप'नी चूत घिस'ने लगी. अचानक उसके मूँ'ह से एक हल'की चीख बाहर निकली और उस'का बदन कड़ा हो गया. उस'का बदन काँप रहा था ये मेने अनुभाव किया. संगीता दीदी झाड़ गई थी! उसकी काम्त्रिप्ती हो गई थी!! धीरे धीरे उसकी गती कम कम होती गई. एक आखरी लंबी साँस छोड़'कर उस'का बदन ढीला हो गया और वो मेरे बदन पर गिर गई. मेने उसकी पीठ'पर मेरे हाथों से आलींगन किया और उसे ज़ोर से बाँहों में भींच लिया. मेरा कड़ा लंड अब भी उसकी चूत में था थोड़ी देर हम दोनो वैसे ही पड़े रहे.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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कुच्छ समय बाद में अप'ने हाथ आगे ले गया और संगीता दीदी के चुत्तऱ पकड़'कर मेने उसकी कमर थोड़ी उप्पर उठाई. उसे उप्पर उठाने से मेरा आधा लंड उसकी चूत से बाहर हो गया. अब में कमर हिला के नीचे से धक्के देने लगा और उसकी चूत चोद'ने लगा. मेरे पैर घुट'ने में थोड़े मोड़'कर में पैरो के सहारे कमर हिला रहा था और उसकी चूत में लंड अंदर बाहर कर रहा था. वो वैसे ही शांत पड़ी थी में नीचे उसे चोद रहा था और उस धक्के से उस'का बदन उप्पर नीचे हो रहा था.

 
उसके छाती के उभार मेरी छातीपर दब गये थे और उस'का बदन उप्पर नीचे होने की वजह से मेरी छाती को उसकी छाती का मसाज मिल रहा था.
 
धीरे धीरे संगीता दीदी वापस गरम होने लगी. मेरे चोद'ने से जो धक्के उसकी चूत'पर बैठ रहे थे उस'से उस'का चूत'दाना भी थोड़ा घिस रहा था. वो झट से उठ गई मेरी उंगलीयों में अप'नी उंगलीया फँसाकर उस'ने मेरा हाथ वापस पकड़ लिया और पह'ले जैसे वो अपना चूत'दाना मेरे लंड के उप्पर घिस'ने लगी. में जित'नी ज़ोर से नीचे से उसे चोद रहा था उत'ने ही ज़ोर से वो उप्पर से नीचे अप'नी चूत घिस रही थी. थोड़ी देर हम दोनो एक दूसरे के साथ ऐसे कर'ते रहे लेकिन आख़िर में रुक गया क्योंकी वो उप्पर थी इस'लिए वो अप'नी चूत'पर लगा धक्का उप्पर उठ के झेल'ती थी. लेकिन जब वो नीचे होकर मेरे लंड'पर ज़ोर देती थी तब मुझे तकलीफ़ होती थी इस'लिए मेने हार मानी और चुप'चाप पड़ा रहा, अप'नी कमर को कस के पकड़'कर मेने मॅन ही मन कहा के बाद मे जब में उसके बदन पर लेट कर उसे चोदून्गा तब में इस बात का बदला लूँगा.
 
पह'ले जैसी संगीता दीदी की रफ़्तार बढ़ गई. इस बार वो कुच्छ ज़्यादा ही ज़ोर लगा रही थी. उसके मूँ'ह से अजीबसी आवाज़े आने लगी. मेने बड़ी मुश्कील से अप'ने आप को संभाल रखा था. दिल कहा रहा था के उसे चोद के में भी उसके साथ झाड़ जाउ लेकिन मुझे इत'ने जल्दी मेरा पानी छोड़ना नही था. मुझे मेरी बहन को मेरे बदन के नीचे लेकर चोदना था और फिर उसकी चूत में मेरा वीर्य मुझे छोड़ना था.
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वापस संगीता दीदी के मूँ'ह से हल'की चीख बाहर निकली!! 'अहहा' 'उहहा' 'उफ़ा' वग़ैरा कर'ते कर'ते वो शांत होती गई. हमारी उस पह'ली चुदाई में मेरी बहन दूसरी बार झड़ के काम्त्रिप्त हो गई थी!! स्त्रियो का यही एक अच्छा होता है. एक के बाद एक वे कई बार काम्त्रिप्त हो सक'ती है. और मेरी बहन को तो पह'ली बार ऐसी काम्त्रिप्ती का आनंद मिला रहा था इस'लिए वो जी भर के अप'ने भाई से ये सुख ले रही थी.

 
अब तक तीन बार उसकी काम्त्रिप्ति  हो गई थी लेकिन में एक ही बार झड़ गया था और दूसरी बार झड़'ने के लिए बेताब हो रहा था. पह'ली बार में अप'नी बहन के मूँ'ह में झड़ गया था और अब मुझे उसकी चूत में मेरा वीर्य छोड़'कर झड़ना था और मेरी कई बरसो की 'इच्छा' पूरी कर'नी थी.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
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संगीता दीदी थक गई थी और वापस मेरे बदन पर पड़ी थी. वो ज़ोर ज़ोर से साँसे ले रही थी. मेने धीरे से उसे मेरी बाएँ तरफ धकेल दिया. उसकी चूत से मेरा लंड बाहर निकाला और वो मेरे बाजू में पीठ'पर गिर गई. में उठा और संगीता दीदी के पैरो तले घुट'ने पर खड़ा रहा. पह'ले तो में उसके नंगे बदन को निहार'ने लगा. अप'ने आप मेरा हाथ मेरे कड़े लंड की तरफ गया लेकिन संगीता दीदी के चूत रस से मेरा लंड गीला हो गया था इस'लिए मेने मेरा लंड जड़ पर पकड़ा लिया और हिल'ने लगा. मुझे मेरा लंड वैसे ही उसकी चूत रस से गीला रखना था ताकी उसे वापस चोदते सम'य उसकी चूत में लंड डाल'ने में आसा'नी हो.

 
अप'नी सुधबूध खो कर संगीता दीदी पड़ी थी. उस'का दायां पैर घुट'ने में मुड़ा था और बाया पैर तिरछा हो गया था उस'का दायां हाथ बाजू में सीधा पड़ा था और बाया हाथ उसके सर की दिशा में मुड़ा हुआ था. उसकी आँखें बंद थी और वो ज़ोर ज़ोर से साँसे ले रही थी. साँसों के ताल पर उसकी भरी हुई छाती उप्पर नीचे हो रही थी.
 
उसके निप्पल कड़े हो गये थे. उसकी जांघों के बीच उसके चूत के भूरे बाल का जंगल चूत रस से गीला होकर चमक रहा था. मेरी बहन एक रंडी की तरह मेरे साम'ने नंगी पड़ी थी और में किसी मस्त सांड़ की तरह लंड कड़ा करके उसे चोद'ने के मूड में था.
 
अब मुझ'से रहा ना गया. मेने नीचे झुक के संगीता दीदी का बाया सीधा पाँव उप्पर कर के मोड़ लिया और उसके पैरो के बीचवाली जगह में मैं सरक गया. जब मेने उस'का पाँव पकड़ा तब उस'ने अप'नी आँखें खोल दी. उसकी समझा में आया के अब क्या होनेवाला है. खैर! उसे मालूम था के में उसे चोद'नेवाला हूँ इस'लिए उसे अजीब अनुभव नही हुआ और वो शांत पड़ गयी.
 
में और आगे हो गया. संगीता दीदी के पैर और थोड़ा फैलाकर मेने उसकी चूत को अच्छी तरह से खोल कर, एक हाथ से मेरा लंड पकड़'कर मेने उसे उसकी चूत'पर उप्पर नीचे घिसा. फिर उसकी छेद में सुपाड़ा डाल'कर चूत के छेद का जायज़ा लिया और धीरे से धक्का लगाया. उसकी चूत में मेरा लंड घुस'ने लगा. जैसे ही मेरा लंड उसकी चूत में पूरा समा गया वैसे में उसके बदन'पर लेट गया. मेरे शरीर का भार मेरे हाथों पर था जो उसकी बगल से मेने उसके कंधे के नीचे रखे थे.
 
थोड़ी देर मेरी बहन की चूत में लंड डाले में चुप'चाप पड़ा रहा और उसके होंठो को चूम'ने लगा. चूम'ते चूम'ते उस'ने अपना मूँ'ह खोला और फिर उसकी जीभ को चुसते चुसते में कमर हिलाने लगा और उसे चोद'ने लगा. में उसे हलके से धक्के देकर चोद रहा था. फिर मेने उसे अप'ने हाथ से ज़ोर से कस लिया और मेरा लंड उसकी चूत में जड़ तक रख के में उप्पर नीचे होने लगा. जिस'से उस'का चूत'दाना मेरे लंड के उप्परी भाग से घिस'ने लगा.
 
मेरा वैसे चोदना संगीता दीदी को पसंद आया!! क्योंकी उस'ने धीरे से आँखें खोल के मेरी तरफ एक मादक नज़र से देखा और हंस'ते हंस'ते वो भी मेरा साथ देने लगी. उस'ने अप'ने पैरो से मेरी कमर को जाकड़ लिया था और उप्पर नीचे होकर वो अप'नी चूत मेरे लंड पर घिस'ने लगी. मेरी बहन को वैसे चोद'कर उसे वापस काम उत्तेजीत कर'ना ही मेरा मकसद था. मुझे और एक बार उसे काम्त्रिप्त कर'ना था. में चाहता था उसके अंदर इस कामसुख की प्यास हमेशा के लिए जाग उठे. इस'लिए जान बुझ'कर में उसे इस तरह चोद रहा था जिस'से उस'का चूत'दाना घिस जाए.
 
और वैसे ही हुआ!! संगीता दीदी उत्तेजीत होकर ज़ोर ज़ोर से हिल'ने लगी और थोड़े ही समय में वो वापस झड़ गई. जैसे ही वो काम्त्रिप्त हो गई वैसे वो वापस थक कर शांत पड़ गयी. फिर में बड़े उत्साह के साथ संगीता दीदी को चोद'ने लगा. अब में ज़ोर ज़ोर से धक्के देकर उसे चोद रहा था. मेरा लग'भग पूरा लंड उसकी चूत से बाहर निकाल'कर में वापस अंदर धास देता था. उसे तकलीफ़ हो रही थी के नही क्या मालूम.. लेकिन वो शिकायत नही कर रही थी और चुप'चाप मेरे धक्के सह रही थी.
 
बीच बीच में मैं नीचे झुक के उसके छाती के उभारो को चूस'ता रहा और कभी कभी उन्हे हाथ से दबाते दबाते उसे चोद रहा था.
 
मेरे लंड में प्रेशर बन'ने लगा! झड़'ने की भावनाएँ मेरे लंड के अंदर उच्छल'ने लगी. में संगीता दीदी के बदन'पर पूरी तरह से लेट गया और उसे ज़ोर ज़ोर से चोद'ने लगा. में मेरी बहन को चोद रहा था और अब उसकी चूत में मेरा पहेला पानी छोड़'ने वाला था. ये भावना मुझे पागल कर रही थी. में हो सके उत'नी ज़्यादा से ज़्यादा उत्तेजना से उसकी चूत में पानी छोड़ना चाहता था और मेरी उत्तेजना और बढ़े इस'लिए में बड़बड़ा'ने लगा
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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