24-12-2021, 03:10 PM
.....................
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
Incest दीदी ने पूरी की भाई की इच्छा
|
24-12-2021, 03:10 PM
.....................
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
24-12-2021, 03:11 PM
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
24-12-2021, 03:11 PM
(This post was last modified: 24-12-2021, 03:12 PM by neerathemall. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
24-12-2021, 03:13 PM
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
24-12-2021, 03:13 PM
अचानक मेरे लंड से वीर्य की पिच'कारी छूट गई. उस सम'य मेरा लंड बराबर संगीता दीदी के गले में उतरा हुआ था इस'लिए वो पह'ली पिच'करी सीधा उसके गले में उतर गई होंगी. उस'को 'वो' अनुभाव हुआ इस'लिए वो अपना सर उप्पर कर'ने के लिए छटपटा'ने लगी. लेकिन मेरे अंदर जैसे शैतान जाग उठा था इस'लिए मेने उसे छोड़ा नही. हिच'कीया देते देते मेरा लंड मेरी बहन के मूँ'ह में झाड़'ने लगा. उसे मेरी पकड़ से छुट'कारा नही मिल रहा था इस'लिए मेरा पानी निगल'ने के सिवा उसके पास कोई चारा नही था. धीरे धीरे मेरे झाड़'ने की रफ़्तार कम होती गई. फिर मेने उस'का सर थोड़ा ढीला छोड़ दिया जिस'से वो ठीक तरह से साँस ले सके. लेकिन मेने उसे पूरी तरह से नही छोड़ा था. मेरे लंड से वीर्य की आखरी बूँद निकल'ने तक मेने उस'का सर मेरे लंड पर पकड़ के रखा था. आख़िर मेने उसे छोड़ दिया.
जैसे ही मेने संगीता दीदी को छोड़ा दिया वैसे ही उस'ने अपना सर उप्पर कर के ज़ोर से साँस ली. मूँ'ह पर हाथ रख'कर वो खांस'ने लगी. फिर वो वैसे ही उठ गई और दौड़'कर बाथरूम में गई. बाथरूम में उस'ने वश बेसीन का पानी चालू कर'ने की आवाज़ आई. वो अंदर खांस रही थी, मूँ'ह में पानी भर के उल'टीया कर रही थी. कुच्छ देर बाद वो शांत हो गई और बाद में बाहर आई. यह मैं. मेरे वीर्य पतन की धुन में था. जब में झाड़ रहा था तब मेने आँखें बंद की थी इस'लिए उस सम'य संगीता दीदी की क्या हालत थी ये मेने देखा नही था. जब वो बाथरूम में खांस'ने लगी तब में होश में आया. में जब झाड़ा रहा था तब मेने ज़बरदस्ती संगीता दीदी का मूँ'ह मेरे लंड पर पकड़'कर जानवरों सी हरकत की थी. और अब मुझे मेरे उस जानवरना हरकत से शरमिंदगी अनुभव होने लगी. मुझे मालूम था अब संगीता दीदी गुस्सा हो जाएगी. उस'का गुस्सा कैसे निकाला जाए इस बारे में मैं सोचने लगा. वो बाथरूम से बाहर आई और बेड'पर मेरे नज़दीक आकर बैठ गई. उसके चह'रे पर कोई भाव नही थे. "सॉरी दीदी!. मुझे होश ही नही रहा में पह'ली बार ऐसा अनुभव कर रहा था इस'लिए मुझ'से संभाला ना गया" मेने डरते डरते उसे कहा, "ठीक है सागर. में समझ सक'ती हूँ के ये तुम्हारा पह'ला अनुभव था फिर भी तुम्हें थोड़ा तो मेरा ध्यान कर'ना चाहिए था मेरी तो जान अटक गई थी मेरे गले में." शांत स्वर में ऐसे कह'ते वो बेड'पर मेरे बाजू में लेट गई "आइ आम एक्स्ट्रीमली सारी, दीदी!!" उस'का बोल'ने का ढंग गुस्सेवाला नही था ये जान'कर मेरी जान में जान आई और मेने आगे कहा, "तुम बहुत अच्छी हो, दीदी!!. बड़े दिल से तुम'ने मेरी 'इच्छा' पूरी कर दी जो कोई भी बहन पूरी नही कर सक'ती और मेने उस'का ग़लत फ़ायदा उठाया तुम मेरा विरोध कर रही थी फिर भी मेने तुम्हें छोड़ा नही. नही, दीदी!. तुम मुझे सज़ा दो!. मेने ग़लत किया है और उस बात की मुझे सज़ा मिल'नी चाहिए!" "अरे ठीक है रे, सागर!.. इस तरह शरमिंदा होने की ज़रूरत नही में गुस्सा वग़ैरा नही हूँ सिर्फ़ तुम मेरे मूँ'ह में झाड़ जाओगे इस बात के लिए में तैयार नही थी और इस'लिए में हैरान हो गई अगर तुम'ने मुझे पह'ले बताया होता तो में उस तरह से तैयार रह'ती" संगीता दीदी उलटा मुझे समझा रही थी. "नही, दीदी!. मेरी वजह से तुम्हें तकलीफ़ हुई और तुम मुझे सज़ा नही दे रही हो तो फिर मुझे ही मेरी गल'ती का प्रायश्चित कर'ना चाहिए. में क्या करू??.. हां !.. में तुम्हें कुच्छ अलग सुख दे के अपना प्रायश्चित कर लेता हूँ." जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
24-12-2021, 03:13 PM
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
24-12-2021, 03:14 PM
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
24-12-2021, 03:15 PM
अब ये कौन सा अलग सुख है, सागर??"
"धीरे से प्यार!!. में तुम्हें धीरे से प्यार करता हूँ, दीदी!" "अब ये क्या है?. ज़रूर उस किताब में से कुच्छ पढ़ा होगा. है ना सागर?" "हाँ !. लेकिन पूरी तरह से किताबी बातें नही. उस में कुच्छ मेरी भी कल्पनाएं है." "चल हट. में नही करूँगी अभी कुच्छ." ऐसा कह'ते संगीता दीदी घूम गई और मेरी तरफ पीठ कर के अप'ने पेट पर लेट गई. "तुम कुच्छ मत करो, दीदी.. तुम सिर्फ़ पड़ी रहो. जो भी कर'ना है वो में करूँगा." उसकी पीठ मेरी तरफ होने की वजह से मेने उसके भरे हुए चुत्तऱ हिलाते हिलाते उसे कहा. संगीता दीदी कुच्छ ना बोली और वैसे ही पड़ी रही में फिर उसके बाजू में लेट गया और उसके नंगे बदन को यहाँ वहाँ हाथ लगा के उसे कह'ने लगा, "बोला ना, दीदी. करू ना में तुम्हें धीरे से प्यार?. तुम्हें पसंद आएगा जो में करूँगा. और मुझे यकीन है जीजू ने तुम्हें वैसे कभी किया नही होगा." "करो बाबा. करो. जो भी कर'ना है कर." आख़िर उस'ने कहा, "ओह थॅंक यू, दीदी!" मेने झट से उसे कहा. संगीता दीदी पेट के बल सोई थी और उस'का मूँ'ह उसके दाएँ हाथ की तरफ था में उसके बाएँ हाथ की तरफ लेटा हुआ था में उठा और घुट'ने पर बैठ गया फिर मेरा दायां हाथ उसके दाएँ कंधे के नज़दीक और बाया हाथ उसके बाएँ कंधे के नज़दीक रख'कर में उसके उप्पर झुक गया. धीरे से मेरा मूँ'ह में उसके कान के नज़दीक ले गया उसे मेरी साँसों का अह'सास हो गया और उस'ने अप'नी आँखें खोल के मेरी तरफ देखा फिर हंस'ते हंस'ते वापस उस'ने अप'नी आँखें बंद कर ली. मेने धीरे से मेरे होठ संगीता दीदी के कान के छोर पर रख दिए और उसे होंठो में पकड़ लिया. फिर में जीभ निकाल'कर उसके कान का छोर चाट'ने लगा और उस'से खेल'ने लगा बीच बीच में में उसे दाँतों में पकड़'कर धीरे से काटता था. थोड़ी देर तो संगीता दीदी शांत थी लेकिन धीरे धीरे उस'ने अपना सर हिलाना चालू किया. शायद उसे गुदगूदी हो रही थी या तो वो उत्तेजीत हो रही थी लेकिन उसकी तरफ से मुझे साथ मिला'ने लगी. "दीदी! तुम बहुत अच्छी हो. में तुम्हें बहुत पसंद करता हू." मेने धीरे से उसके कान'पर जीभ घुमाते हुए कहा "में भी तुम्हें बहुत पसंद कर'ती हूँ, सागर!" उस'ने बंद आँखों से कहा "में बहुत लकी हूँ, दीदी. जो मुझे तुम्हारे जैसी बहन मिली है. जो भाई के लिए कुच्छ भी कर'ती है." "हां. और में भी बड़ी भाग्यशाली हूँ, सागर. जो मुझे तुम्हारे जैसा भाई मिला है. जो मुझे नंगा करता है. मुझे लंड चूस'ने को कहता है. और भी क्या क्या मेरे साथ करता है." उस'ने शरारत से कहा. "हां. लेकिन तुम्हें भी अच्छा लग'ता है जो में करता हूँ. है ना, दीदी??" "वो तो है.. इस'लिए में तुम्हें ये सब कुच्छ कर'ने देती हूँ." "ओह ! दीदी! आई लव यू.. आय लव यू वेरी मच!! " ऐसा कह'कर मेने संगीता दीदी के मुलायम गालोपर अप'ने होठ रख दिए और में उसके गालों को चूम'ने लगा. उस'को चूम'ते चूम'ते में धीरे से नीचे हुआ और उसके बदन पर लेट गया. में उसके बदन पर लेटा ज़रूर था लेकिन अब भी मेरा ज़्यादातर भार मेरे दोनो हाथों पर ही था. उसके गालों को चूम'ते चूम'ते मेने मेरे होंठ और नीचे लिए और उसके होठों को ज़ोर से चूम'ने लगा कभी में उसके होंठ ज़ोर से मेरे होठों में पकड़ता तो कभी में उन्हे हलके से काट'ता तो कभी उस'पर अप'नी जीभ घुमाता था. जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
24-12-2021, 03:16 PM
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
24-12-2021, 03:16 PM
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
24-12-2021, 03:17 PM
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
24-12-2021, 03:17 PM
थोड़ी देर वैसा कर'ने के बाद चूम'ते चूम'ते में पिछे आया और उसकी गर्दन को चूम'ने लगा. फिर में उसकी गर्दन दाएँ से चूम'ते चूम'ते बाई तरफ आया. संगीता दीदी ने झट से अप'नी गर्दन घुमा ली और दाएँ से बाएँ तरफ मूँ'ह कर लिया जैसा मेने उसे दाएँ तरफ चूमा था वैसे ही मेने उस'का बाया गला और ज़ोर से होंठ चूम लिए.
संगीता दीदी के चह'रे को चूम'ते चूम'ते में उप्पर आया और उस'का कंधा चूम'ने लगा. मेरे शरीर का भार मेरे हाथों पर था लेकिन फिर भी में संगीता दीदी के नंगे बदन पर मेरा बदन जितना हो सके उतना घिस रहा था. एक के बाद एक उसके दोनो कंधो को चूम'ने के बाद में उसके हाथों की तरफ मूड गया. उसके दोनो हाथों को एक के बाद एक में चूम'ने लगा. में मेरे होठ उसके बदन पर घुमा रहा था तो कभी उस'को जीभ से चाट रहा था तो कभी उस'को दाँतों से धीरे से काट रहा था. इस तरह मेने संगीता दीदी के दोनो कंधे, दोनो हाथ और उसकी पूरी पीठ एक के बाद एक चाट ली और चूम ली. बीच बीच में संगीता दीदी के बदन को हलका सा झटका लगता था. उसके मूँ'ह से सिस'कीया निकल'ती थी. कभी कभी उसके बदन पर रोंगटे खड़े हो जाते थे. इस तरह वो चुप'चाप पड़ी थी और जो कुच्छ में कर रहा था उस'का मज़ा ले रही थी. बाद में मैं उठ गया और संगीता दीदी के पाँव फैलाकर मेने उस में जगह बना ली. फिर में उसके पाँव के बीच में इस तरह अप'ने घुट'ने पर बैठ गया कि झुक'ने के बाद मेरा मूँ'ह उसके चुत्तऱ पर आए. नीचे झुक'कर मेने मेरे होठ उसके भरे हुए चुत्तऱ पर रख दिए. धीरे धीरे में उसके चुत्तऱ को चूम'ने लगा. उसके चुतडो को चूम'ते चूम'ते में उन्हे मसल रहा था. उसके गोरे गोरे चुत्तऱ मेरे मसल'ने से लाल होने लगे. थोड़ी देर उसके दोनो चुत्तऱ को अच्छी तरह से चाट'ने, चूस'ने और काट'ने के बाद में उनके बीच में सरक गया. संगीता दीदी के दोनो चुतडो के बीच में चूम'ते चूम'ते में उप्पर उसकी कमर तक गया. कुच्छ पल वहाँ चाट'ने के बाद मेने मेरी जीभ उसके चुत्तऱ के बीच वाली खाई में धकेल दी. मेरी जीभ से उसके चुत्तऱ की खाई चाटते चाटते में धीरे धीरे नीचे सर'कने लगा फिर मेने दोनो हाथों से उसके चुत्तऱ बाजू में दबाए जिस'से उसके चुत्तऱ के बीच की खाई और भी चौड़ी हो गई. कमरे की रौश'नी में वो खाई चमक रही थी थोड़ा नीचे उसकी गान्ड का छेद साफ साफ नज़र आ रहा था. मेने मेरी जीभ थोड़ी कड़ी की और उसके चुत्तऱ की वो खाई बड़े प्यार से चाट'ने लगा. चाटते चाटते में नीचे सरक गया और धीरे से मेने उसके गान्ड के छेद पर जीभ का चूमा दी. उस'से संगीता दीदी के नंगे बदन को अच्छा सा झटका लगा. उसे अनुभव हो गया के मेने उसके गान्ड के हॉल'पर जीभ लगाई है क्योंकी में जब जीभ घुमा रहा था. तब उसकी गान्ड का छेद थोड़ा सिकुड गया ऐसा मुझे अनुभव हुआ. फिर में जल्दी जल्दी उसके चुत्तऱ के बीच का भाग उप्पर से नीचे तक चाट'ने लगा. बीच बीच में जब में उसकी गान्ड के छेद को जीभ लगाता था तब वो पागल हो जाती थी. अब वो अप'ने चुत्तऱ हिलाने लगी थी उसके मूँ'ह से सिस'कीया और हल'की चींखे बाहर निकल'ने लगी थी. इसका मतलब ये था के जो कुच्छ में कर रहा था वो उसे पसंद आ रहा था और उस'से वो उत्तेजीत हो रही थी. फिर में पूरी तरह से नीचे लेट गया और दोनो हाथों से संगीता दीदी के चुत्तऱ निचोड़ते निचोड़ते उसके बीच की खाई ज़ोर से चूस'ने लगा. उस'को चुसते चुसते बाद में मैं मेरे दोनो हाथ उप्पर ले गया और उसके पीठ और छाती के साइड पर घुमाने लगा. उसकी छाती के उभार उसके बदन के नीचे दब गये थे और में उसके उभारो के साइड से उन्हे सहलाते सहलाते उसके नीचे हाथ डाल'ने लगा लेकिन उसके बदन का वजन उन उभारो पर था जिस'से में हाथ अंदर नही डाल सका. आख़िर संगीता दीदी ने समझदारी दिखाई और अप'ने हाथों पर वजन लेकर थोड़ी उप्पर उठ गई. मेने झट से मेरे हाथ नीचे से उसकी छाती के उभारो तले डाल दिए और उसके उभार पकड़'कर उन्हे निचोड़'ने लगा. मेने कई बार सपनो में देखी हुई ये एक पोज़ीशन थी संगीता दीदी पेट'पर लेटी हुई है और में उसके पैरो के बीच में लेटा हुआ हूँ. में उसके चुत्तऱ के बीच में मूँ'ह डाल के उसे चाट रहा हूँ और मेरे दोनो हाथ लंबे करके में उसकी छाती दबा रहा हूँ बिल'कुल वैसे ही हो रहा था काफ़ी देर तक में वैसे उसे चाट रहा था और दबा रहा था. जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
24-12-2021, 03:19 PM
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
24-12-2021, 03:20 PM
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
24-12-2021, 03:20 PM
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
24-12-2021, 03:23 PM
आख़िर में उठ गया और संगीता दीदी को पीठ'पर सीधा कर'ने लगा. वो घूम गई और अप'ने पीठ'पर सो गई. उसकी आँखें बंद थी. में उसके बाजू में लेट गया और उसके माथे पर मेने मेरे होठ रख दिए. में उसके माथे को धीरे धीरे चूम'ने लगा और नीचे सर'काने लगा. उस'का माथा, आइब्रो, आँखें, नाक, गाल. एक एक कर'ते में उसके पूरे चह'रे को चूम'ने लगा. उसकी दाढी का भाग था उसे मेने हलके से काट लिया.
उसके गालों पर मेरे गाल घिस लिए फिर में उसके होठों पर आया. थोड़ी देर उसके होठों को उप्पर ही उप्पर चूम'ने के बाद में उस'पर मेरी जीभ घुमाने लगा. फिर मेने जीभ उसके होठों के बीच डाल दी और उसके दाँत चाट'ने लगा. अप'ने आप उस'ने अपना मूँ'ह खोल दिया और उस'ने मेरी जीभ को अप'नी जीभ लगा दी. तो फिर क्या! हम दोनो भाई-बहेन की जीभ का एक दूसरे के मूँ'ह में तांडव न्रित्य चालू हो गया और चाटना, चूमना, चूसना चालू हो गया. जित'नी देर हम भाई-बहेन फ्रेंच किसींग कर रहे थे उत'नी देर में मेरी बहन के नंगे बदन पर मेरी हल'की उंगलीया फिरा रहा था. उसके बड़े बड़े छाती के उभारो पर, उसके उप्पर के निप्पल पर, उसके पेट पर, उसकी नाभी पर, उसकी चूत पर, उसके चूत के बालो पर, उसकी जांघों पर.. सब जगह मेरी उंगलीया जादुई छड़ी की तराहा फिर रही थी जिस'से संगीता दीदी का रोम रोम जाग उठा था. संगीता दीदी उत्तेजीत हो रही थी और मेरे बालों में हाथ फिरा रही थी. अचानक उस'ने मेरा सर ज़ोर से पकड़ लिया और वो मेरा ज़ोर से चुंबन लेने लगी. मेने उसकी छाती के उभारो पर मेरे हाथ लाए और में उन्हे मसल'ने लगा. हमारे चुंबन की गती बढ़ गई. मेरा उसके बदन'पर ज़ोर बढ़ गया. मेने उसकी छाती को छोड़ दिया और ज़ोर से उसे मेरी बाँहों में भर लिया. उस'ने भी मेरी गर्दन पर अपना हाथ डाल'कर मुझे ज़ोर से कस लिया. काफ़ी देर वैसे चुंबन लेने के बाद मेने उसे छोड़ दिया और नीचे सरक गया. वो मुझे छोड़ नही रही थी लेकिन मेने मेरे होठ उसके होंठो से हटाए तो उसे मुझे छोड़ना पड़ा. अब मेने पोज़ीशन बदल दी और उसकी टाँगों के बीच लेट गया. में ऐसे लेटा था के उसकी चूत मेरे पेट के नीचे थी और मेरा मूँ'ह उसके छाती के उभारो पर था. पह'ले तो मेने उसके दोनो उभारो के बीच की खाई को अच्छी तरह से चाट लिया और उस जगह चूम लिया फिर में उसके छाती के उभारो पर आया. में फिर उसके उभारो के उपर के अरोला को धीरे से चाट'ने लगा और उसकी गोलाई पर गोल गोल जीभ घुमाने लगा. मेरे ऐसे चाट'ने से संगीता दीदी के रोंगटे खड़े हो गये और उस'का अरोला बिल'कुल कड़क हो गया. उस अरोला के उप्पर के हलके बाल भी उत्तेजना से खड़े हो गये थे. जब में जीभ से उस'का निप्पल चाट'ने लगा तो उस'का निप्पल और अरोला और भी कड़ा हो गया. कभी में उसके निप्पल को चूमता था तो कभी चाटता था कभी उन्हे काट'ता था तो कभी होंठो में पकड़'कर दबाता था. बाद में मेरा पूरा मूँ'ह खोल के में उसके छाती का उभार अप'ने मूँ'ह में हो सके उतना भरके उसे चूस'ता रहा. हाथ से उभारो के नीचे का भाग दबाते दबाते में उप्पर का भाग चूस'ता रहा. में संगीता दीदी के दोनो छाती के उभारो का एक के बाद एक स्वाद ले रहा था. मुझे मेरे बहन की छाती को छोड़'ने का दिल नही कर रहा था लेकिन फिर भी में नीचे सरक गया उसके पेट को, उसकी नाभी को, उसकी कमर के भाग को चूम'ते चूम'ते में उसकी टाँगों पर आया. एक एक कर के मेने उसकी दोनो टाँगें, उसकी जाँघ से लेकर उसके पाँव की उंगलीयों तक चाट लिए और चूम लिए अब तक उसकी चूत को छोड़'कर मेने लग'भग उसके पूरे नंगे बदन को चूमा था, चाटा था. जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
24-12-2021, 03:24 PM
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
24-12-2021, 03:27 PM
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
24-12-2021, 03:27 PM
फिर में संगीता दीदी की चूत की तरफ आ गया मेने उसके दोनो पाँव उठाए और घुट'ने मेने मोड़ के पिछे की तरफ फैलाए. इस तरह से उसकी चूत मेरे साम'ने खुल गई. फिर में उसकी चूत चाट'ने लगा.
मेरी जीभ से में उसकी चूत के दाने से लेकर उसके गांद के छेद तक लंबे लंबे स्ट्रोक लगाकर मैं उसकी चूत चाट'ने लगा. कभी कभी में उसकी चूत के अंदर अप'नी जीभ डाल'ने की कोशीष करता था तो कभी उस'का चूत'दाना ज़ोर से चूस'ता रहा. उस'से वो पागल हो गई वो मेरा मूँ'ह अप'नी चूत पर दबाने की कोशीष कर'ने लगी लेकिन मेने मेरा सर ज़ोर से उप्पर पकड़ा के रखा था जिस'से वो मुझे ज़्यादा दबा नही सक'ती थी. मुझे संगीता दीदी को तड़फाना था इस'लिए जैसा मेरा मन चाहता था वैसे ही में उसकी चूत चाट रहा था. में ऐसे कर रहा था जिस'से उसे ज़्यादा सुख ना मिले बल्की वो और तड़फ़'ती रहे. अचानक में उठ गया और संगीता दीदी के बाजू में आकर लेट गया. उस'ने झट से आँखें खोल दी और मेरी तरफ हैरानी से देख'ने लगी. उसकी आँखों में काम वास'ना की आग दिख रही थी. मेरी बहन को सिर्फ़ चाट के और चूस के में काम उत्तेजीत कर सकता हूँ ये जान'कर में खूश हो गया. "कैसा लगा रहा है, दीदी?" मेने फक्र से उसे पुछा. "तुम रुक क्यों गये??" उस'ने थोड़ी नाराज़गी से पुछा. "ऐसेही. तुम्हें कैसा लग रहा है ये पुच्छ'ने के लिए." "अरे नालायक!. मेरे बदन में आग लगा दी. और बीच में ही पुच्छ रहे हो के कैसा लग रहा है?" "अरे हां. हां. नाराज़ मत हो, दीदी!. में वापस चालू करता हूँ. सिर्फ़ मुझे इतना बताओ. कभी ऐसी भावना का अनुभव किया था तुम'ने? इतना सेंसेशन. इत'नी उत्तेजना कभी अनुभव की थी तुम'ने?" "नही रे, सागर. कभी भी नही. जैसा तुम कर रहे हो वैसा तुम्हारे जीजू ने कभी नही किया. मेरी शादी शुदा जिंदगी में क्या कमी है इसका मुझे आह'सास होने लगा है. अब प्लीज़!. ऐसे ही कर'ते रहो. जो तुम कर रहे थे, सागर. मेरे बदन में आग सी लग गई है." "ओह ! येस. यस. दीदी! लेकिन तुम्हारी तरह मेरे भी बदन में आग लगी है इस'लिए हम दोनो को एक दूसरे की आग बुझानी पड़ेगी." ऐसा कह'कर में उठ गया और संगीता दीदी के बदन पर उलटा होकर झुक गया. उसके सर के दोनो बाजू में अप'ने घुट'ने रख दिए. "दीदी. मुझे लग'ता है. तुम्हें क्या कर'ना चाहिए ये मुझे तुम्हें बताने की ज़रूरत नही है." ऐसा कह'कर में नीचे झुक गया और में मेरा मूँ'ह संगीता दीदी की चूत पर लाया. उसी सम'य मेरा आध खड़ा लंड संगीता दीदी के मूँ'ह पर हिल'ने लगा. जैसे ही मेने उसकी चूत'पर मूँ'ह रखा वैसे ही उसकी समझ में आया के क्या कर'ना है. उस'ने मेरा लंड हाथ से पकड़ लिया और अप'ने मूँ'ह में भर लिया. इस तरह से हम भाई-बाहें एक दूसरे को चाट'ने लगे. में मेरी बहन की चूत को चाट रहा था और उसी सम'य वो अप'ने भाई का लंड चूस रही थी. धीरे धीरे मेरा लंड और कड़क होने लगा. उसके नाज़ुक और मुलायम मूँ'ह के जादू से मेरा लंड फैलता गया. मेने संगीता दीदी के चुत्तऱ के नीचे से हाथ आगे ले लिए और मेने उसकी चूत को फैलाया. फिर में उसकी चूत के दोनो पटल अंदर से चाट'ने लगा. वैसे कर'ने के लिए मुझे थोड़ा और आगे झुकना पड़ा जिस'से संगीता दीदी को मेरा लंड अप'ने मूँ'ह से निकालना पड़ा. तो फिर वो मेरा लंड मेरे पेट की तरफ दबाते हुए मेरी गोटीया चाट'ने लगी. में और नीचे हो गया जिस'से उसकी जीभ मेरे गोटीयो के नीचे, मेरी गान्ड के छेद को लग गई. संगीता दीदी की समझ में ये भी आया और वो बीना जीझक मेरी गोटीयो से लेकर मेरे गान्ड के छेद तक उप्पर नीचे जीभ घुमाने लगी. जब उसकी जीभ मेरे गान्ड के छेद को छुती थी तब में उत्तेजना से पागल हो जाता था. गोटीया और गान्ड के छेद का ये भाग काफ़ी नाज़ुक और संवेदनशील होता है और इस भाग'पर अगर कोई जीभ फिरा दे तो उत्तेजना से कभी भी आद'मी झाड़ सकता है. में भी उस उत्तेजना का अनुभव कर रहा था और बड़ी मुश्कील से अप'ने आप को झाड़'ने से बचा रहा था. नीचे में संगीता दीदी की चूत का पूरा ज़ायक़ा ले रहा था. मेने अब मेरी बीचवाली उंगली उसकी चूत में डाली और उसे अंदर बाहर कर'ने लगा. मेरे उंगली कर'ने से वो और भी बेताब होने लगी. अब वो अप'नी कमर हिला के मेरे उंगली से चुदवा'ने लगी. में उस'का चूत दाना भी चाट रहा था और उसकी चूत में उंगली भी अंदर बाहर कर रहा था. दीदी अब अपना सर इधर उधर कर के छटपटा'ने लगी. बीच बीच में वो मेरा लंड मूँ'ह में भर लेती थी और चूस'ती थी तो कभी वो मेरी गोटीया चाट'ती थी. मेरे दोनो चुत्तऱ उस'ने ज़ोर से पकड़ लिए थे और बीच बीच में वो मेरी जांघों पर हाथ घुमाती थी. संगीता दीदी की सह'ने की शक्ती ख़त्म हो गई! उसकी सिस'कीया. चींखे. बढ़'ती गई!! "ओह ! सागर. आहा. उूउउइइ. अहहाहा.. सागर. अब रहा नही जाता रे.. कुच्छ करो ना. 'वहाँ' नीचे आग लगी है रे. प्लीज़. कुच्छ तो करो.. अब सब्र नही होता.. उऊहहा.. अहहा. सागर.." मुझे मालूम था संगीता दीदी को क्या चाहिए. लेकिन मुझे उसके मूँ'ह से सुनना था इस'लिए मेने उसे पुछा, "दीदी! जो कह'ना है वो साफ साफ कहो. तुम्हें क्या लग'ता है के मुझे क्या कर'ना चाहिए?. बीना जीझक साफ साफ कह दो के में क्या करू??.." जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
24-12-2021, 03:28 PM
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
|
« Next Oldest | Next Newest »
|