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Adultery अहसान... complete
#61


तभी एक पोलीस वाला दौड़ता हुआ आया ऑर मुझ पर हमला कर दिया ख़ान ने जल्दी से नाज़ी को अपनी तरफ खींच लिया जो मेरा हाथ पकड़े चल रही थी... मुझे समझ नही आ रहा था कि ये क्या हुआ उस पोलिसेवाले ने लातें ऑर मुक्के मुझ पर बरसाने शुरू कर दिए मैं कुछ देर ज़मीन पर लेटा रहा ऑर मार ख़ाता रहा फिर जाने मुझे क्या हुआ मैने उस पोलिसेवाले का पैर पकड़ लिया ऑर ज़ोर से घुमा दिया वो हवा मे पलट गया ऑर धडाम से ज़मीन पर गीरा फिर मैने अपनी दोनो टांगे हवा मे उठाई ऑर झटके से दोनो पैरो पर खड़ा हो गया इतने मे 3 पोलीस वाले मेरी ओर लपके जिसमे से एक ने मुझे पिछे से पकड़ लिया बाकी जो 2 सामने से आए उनको मैने गले से पकड़ रखा था मैने सामने वाले दोनो आदमियो की दीवार की तरफ धक्का दिया ऑर पिछे वाले के मुँह पर ज़ोर से अपना सिर मारा जिससे वो अपना नाक पकड़कर वही बैठ गया तभी एक ऑर पोलीस वाला भागता हुआ आया जिसके हाथ मे लोहे का सरिया था जैसे ही वो मुझे सरिये से मारने लगा मैने सरिया पकड़ लिया ऑर घूमकर उसके कंधे पर वही सरिया ज़ोर से मारा इतने मे एक पोलीस वाला जो ज़मीन पर गिरा पड़ा था वो उठा ऑर उसने एक काँच के बर्तन जैसा कुछ उठा लिया ऑर पिच्चे से मेरे सिर मे मारा... मैं फॉरन उस ओर पलट गया ऑर गुस्से से उसको देखने लगा तभी मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे मेरे सिर से खून निकल रहा है मैने अपने सिर पर हाथ लगाया ऑर अपने खून को उंगलियो पर लगाकर उसका मुक्का बना लिया ऑर ज़ोर से उस आदमी के मुँह पर मारा फिर उसको कंधे पर उठाकर अलमारी पर फेंक दिया जिससे अलमारी के दोनो दरवाज़े अंदर को धँस गये फिर मैने पास पड़ी एक चेयर उठाई ऑर सामने गिरे हुए दोनो पोलीस वालो को खड़ा करके उनके सिर वो चेयर मारी जिससे चेयर टूट गई ऑर मेरे हाथ मे उसका एक टूटा हुआ डंडा सा रह गया अब मैने चारो तरफ देखा लेकिन मुझ पर हमला करने वाले तमाम लोग ज़मीन पर गिरे पड़े थे ऑर दर्द से कराह रहे थे मैं हाथ मे कुर्सी की टूटी हुई टाँग पकड़े ऑर आदमियो के आने का इंतज़ार करने लगा कि अब कौन आएगा लेकिन तभी पूरा कमरा तालियो की गड़-गड़ाहट से गूँज उठा मैने पलटकर देखा तो ये ख़ान था जो मुझे देखकर खुश हो रहा था ऑर तालियाँ ब्जा रहा था...

ख़ान: वाहह क्या बात है लोहा आज भी गरम है...

मैं: ख़ान साहब ये कौन लोग है जिन्होने मुझ पर हमला किया...

ख़ान: ये मेरे लोग है इनको मैने ही तुम पर हमला करने को कहा था...

मैं: लेकिन क्यो (गुस्से मे)

ख़ान: (अपने नाख़ून देखते हुए) कुछ नही मैने शेरा की ताक़त के बारे मे सुना था देखना चाहता था बस इसलिए... (मुस्कुराकर)

मैं: (गुस्से से ख़ान को देखते हुए) हहुूहह ये कोई तरीका है किसी की ताक़त आज़माने का...

नाज़ी: (ख़ान से अपना हाथ छुड़ा कर चिल्लाते हुए) तुम एक दम पागल हो कल बाबा ने कहा था ना कि ये पहले जैसे नही है अब बदल गये हैं फिर भी तुमने इन पर हमला करवाया देखो सिर से खून आ रहा है इनके (अपने दुपट्टे से मेरा सिर का खून सॉफ करते हुए) हमें कोई इलाज नही करवाना नीर चलो यहाँ से ये सब के सब लोग पागल है...

ख़ान: देखिए माफी चाहता हूँ लेकिन इसको आज़माना ज़रूरी था अब ऐसा नही होगा मैं वादा करता हूँ चलिए आइए मेरे साथ...

इतना कहकर वो एक कमरे मे चला गया ऑर हाथ से हम को भी पिछे आने का इशारा किया हम बिना कुछ बोले उसके पिछे चले गये नाज़ी ने अपना दुपट्टा मेरे सिर पर ही पकड़कर रख लिया ऑर दूसरे हाथ से मेरा हाथ पकड़ लिया ऑर हम दोनो ख़ान के पिछे चले गये जहाँ बड़ी-बड़ी मशीन पड़ी थी... तभी एक औरत मुस्कुराते हुए मेरे पास आई जिसने सफेद कोट पहना था ऑर देखने मे डॉक्टर जैसी लग रही थी...

डॉक्टर: हल्लो माइ सेल्फ़ डॉक्टर रेहाना करिशी... (अपना हाथ आगे बढ़ाते हुए)

मैं: जी क्या

डॉक्टर: माफी चाहती हूँ मैं भूल गई थी आपको अँग्रेज़ी नही आती मेरा नाम डॉक्टर रेहाना है ऑर आप...

मैं: (हाथ मिलाते हुए) नीर अली...

डॉक्टर: (कुर्सी की तरफ इशारा करते हुए) बैठिए जनाब...

मैं: (बिना कुछ बोले कुर्सी पर बैठ ते हुए) आप मेरा इलाज करेंगी?

डॉक्टर: (मेरा चेहरा पकड़कर मेरे सिर का ज़ख़्म देखते हुए) हमम्म हंजी मैं ही करूँगी लेकिन पहले आपके ज़ख़्म का इलाज कर दूं खून निकल रहा है (मुस्कुराते हुए)

फिर डॉक्टर रेहाना ने मेरे जखम पर पट्टी बाँधी ओर मैं बस बैठा उसको देखता रहा वो मुझे देखकर लगातार मुस्कुरा रही थी ऑर मैं उसकी बड़ी-बड़ी नीली आँखो मे देख रहा था एक अजीब सी क़शिष थी उसके चेहरे मे मैं बस उसके चेहरे को ही लगा तार देखे जा रहा था... फिर उसने मेरी बाजू पकड़ी ऑर एक इंजेक्षन सा लगा दिया जो मुझे लगा शायद मेरे सिर के दर्द के लिए होगा लेकिन इंजेक्षन के लगते ही मुझ पर एक अजीब सा नशा छाने लगा ऑर मेरी आँखो के आगे अंधेरा छाने लगा मुझे बहुत तेज़ नींद आने लगी जैसे मैं कई रातो से सोया ही नही हूँ... उसके बाद मेरी आँखों के सामने अंधेरा छा गया ऑर मुझे जब होश आया तो मैं एक बेड पर लेटा हुआ था मेरे पास मेरा हाथ पकड़कर नाज़ी बैठी हुई थी ऑर रेहाना ऑर ख़ान मेरे सामने खड़े मुस्कुरा रहे थे...

मैं: मैं यहाँ कैसे आया मैं तो कुर्सी पर बैठा था ना...

ख़ान: माफी नीर जी माफी आप सच कह रहे थे लाइ डिटेक्टोर टेस्ट के बाद हम को भरोसा हो गया जनाब (हाथ जोड़कर) लेकिन क्या करे भाई हमारी भी ड्यूटी है शक़ करने की बीमारी सी पड़ गई है अच्छा तुम अब रेस्ट करो कुछ चाहिए हो तो डॉक्टर रहना को बोल देना ठीक है...

फिर ख़ान तेज़ कदमो के साथ कमरे से बाहर निकल गया ऑर हम सब उसको देखते रहे... फिर मैने बिस्तर से खड़े होने की कोशिश की लेकिन मेरे हाथ पैर जवाब दे रहे थे जैसे उनमे कोई जान ही ना हो मैं चाह कर भी उठ नही पा रहा था इसलिए मैने सबसे एक के बाद एक सवाल पुच्छने शुरू कर दिए...

मैं: लाइ डिटेक्टोर टेस्ट हो भी गये ऑर मुझे पता भी नही चला... ऑर अब मैं कहा हूँ ऑर यहाँ आया कैसे?

रेहाना: आपको हमारे लोग यहाँ लाए हैं आप घबरईए नही आप एक दम महफूस है (मुस्कुराते हुए)

मैं: क्या अब मैं घर जा सकता हूँ (बिस्तर से उठ ते हुए)

रहना: अर्रे लेटे रहिए अभी दवा का असर है तो कुछ देर बॉडी मे कमज़ोरी रहेगी हो सकता है चक्कर आए लेकिन थोड़ी देर मे ठीक हो जाओगे तो आप घर चले जाना...

मैं: (नाज़ी का हाथ पकड़ते हुए) तुम ठीक हो

नाज़ी: (मुस्कुरा कर हाँ मे सिर हिलाते हुए) हमम्म

मैं: हम कितनी देर से यहाँ है

नाज़ी: सुबह से

मैं: अब वक़्त क्या हुआ है

नाज़ी: शाम होने वाली है

मैं: क्या मैं इतनी देर सोया रहा...

रेहाना: बाते बाद मे कर लेना पहले कुछ खा लो (मुस्कुराते हुए) बताओ क्या खाओगे

मैं: (नाज़ी की तरफ देखते हुए) तुमने खाना खाया

नाज़ी: नही तुम्हारे साथ खाउन्गी...

रेहाना: आप बाते करो मैं आपके लिए कुछ खाने को भेजती हूँ

फिर रेहाना चली गई ऑर मैं उसको जाते हुए देखता रहा तभी नाज़ी को जाने क्या हुआ वो अपनी जगह से खड़ी हुई ऑर बेड पर मेरे उपर आके लेट गई ऑर मुझे गले से लगा लिया...

मैं: नाज़ी क्या हुआ

नाज़ी: (ना मे सिर हिलाते हुए) कुछ नही बस तुमको गले लगाने का दिल कर रहा था सो लगा लिया...

मैं: वो तो ठीक है लेकिन वो डॉक्टरनी आ गई तो...

नाज़ी: एम्म्म बस थोड़ी देर फिर सही होके बैठ जाउन्गी...

मैं: नाज़ी एक पप्पी दो ना

नाज़ी: (मेरी छाती पर थप्पड़ मारते हुए) खड़ा हुआ नही जा रहा फिर भी सुधरते नही बदमाश...

मैं: (हँसते हुए) लो यार अब तुमसे नही तो क्या डॉक्टरनी से पप्पी मांगू...

नाज़ी: (मेरा गला दबाते हुए) माँगकर तो दिखाओ किसी ऑर से पप्पी... तुम्हारा गला नही दबा दूँगी बड़े आए डॉक्टर से पप्पी माँगने वाले (मुस्कुराते हुए)

मैं: तो फिर पप्पी दो ना

नाज़ी: म्म्म्मीम ठीक है लेकिन सिर्फ़ एक...

मैं: हाँ ठीक है एक ही दे दो बाकी घर जाके ले लूँगा... (मुस्कुराते हुए)

नाज़ी: तुम सुधर नही सकते ना (हँसते हुए)

मैं: (ना मे सिर हिलाते हुए ऑर मुस्कुराते हुए) उउउहहुउऊ


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#62
अपडेट-28

तभी गेट खट-खटाने की आवाज़ आई तो नाज़ी जल्दी से अपनी जगह पर बैठ गई... रेहाना एक नर्स के साथ अंदर आई नर्स के हाथ मे एक बड़ी सी ट्रे थी जिसमे शायद वो हमारे लिए खाना लाई थी... नाज़ी ने खड़ी होके नर्स से प्लेट पकड़ ली ऑर फिर नर्स ऑर रेहाना ने मिलकर मुझे बिस्तर पर बिठा दिया फिर एक कटोरे मे रेहाना मुझे खिचड़ी खिलाने लगी जो शायद नाज़ी को अच्छा नही लग रहा था इसलिए वो अजीब से मुँह बनाके कभी रेहाना को कभी मुझे घूर-घूर के देख रही थी...

नाज़ी: डॉक्टरनी जी लाइए मैं खिला देती हूँ आप रहने दीजिए...

डॉक्टर: (मुस्कुराते हुए) ठीक है ये लो... (मुझे देखते हुए) नीर आप आराम से खाना खा लो उसके बाद आपके कुछ टेस्ट करने है नर्स यही है जब आप खाना खा लो तो बता देना फिर मैं आपके कुछ टेस्ट करूँगी ठीक है...

मैं: (खाते हुए हाँ मे सिर हिलाते हुए) हमम्म

उसके बाद मैने ऑर नाज़ी ने मिलकर खाना खाया अब मैं काफ़ी बेहतर महसूस कर रहा था कमज़ोरी भी महसूस नही हो रही थी मैं अब बिना कोई सहारे के अपने पैरो पर खड़ा हुआ ऑर नर्स हम को एक ठंडे से कमरे मे ले गई जहाँ एक बड़ी सी मशीन थी ऑर उसके पास डॉक्टर रेहाना फाइल्स हाथ मे लिए ही खड़ी थी... उसने एक नज़र मुझे मुस्कुराकर देखा ऑर फिर मशीन पर लेटने का इशारा किया मैं चुप-चाप उस मशीन पर लेट गया...

डॉक्टर: नीर कोई लोहे की चीज़ तो नही तुम्हारे पास मेरा मतलब है कोई घड़ी चैन या अंगूठी पहनी है तुमने इस वक़्त...

मैं: (ना मे सिर हिलाते हुए) जी नही

डॉक्टर: अच्छा चलो अब अपनी आँखें बंद करके कुछ देर के लिए लेट जाओ

फिर मैं आराम से वहाँ लेटा रहा ऑर एक रोशनी मेरे सिर से लेके पैर तक बार-बार गुज़रती रही कुछ ही पल मे मुझे एक टीच की आवाज़ आई ऑर उसके बाद अगली आवाज़ रेहाना की थी जो मेरे कानो से टकराई...

डॉक्टर: बस हो गया नीर अब आप उठ सकते हैं...

मैं: बस इतना ही था ऑर कुछ नही...

डॉक्टर: (मुस्कुराकर ना मे सिर हिलाते) उऊहहुउ... चलो अब आप बाहर जाके बैठो मैं ख़ान से बात करके अभी आती हूँ

उसके बाद मैं वहाँ से खड़ा हुआ ऑर नर्स मुझे ऑर नाज़ी को एक कमरे मे छोड़ गई जहाँ सामने पड़े सोफे पर हम दोनो बैठ गये ऑर डॉक्टर रेहाना का इंतज़ार करने लगे...

 
कुछ देर बाद ही डॉक्टर रेहाना ऑर ख़ान दोनो एक साथ कमरे मे आए जिनके हाथ मे कुछ पेपर्स थे ऑर वो आपस मे किसी बात पर बहस कर रहे थे... कमरे मे आते ही मेरे सामने दोनो नॉर्मल हो गये ओर मुझे मुस्कुरकर देखने लगे...

ख़ान: चलिए जनाब आपको घर छोड़ आता हूँ...

मैं: बस इतना सा ही काम था...

ख़ान: हंजी बस इतना सा ही काम था बाकी आपका ऑर कुछ ज़रूरत होगी तो फिर आना पड़ेगा...

मैं: आ तो मैं जाउन्गा लेकिन मेरे खेत...

ख़ान: अर्रे उसकी फिकर तुम मत करो कुछ दिन के लिए नये आदमी रख लो ना यार...

मैं: साहब आदमी रखने की हैसियत होती तो मैं खुद काम क्यो करता

ख़ान: अर्रे तुम फिकर मत करो अब तुम मेरे साथ हो पैसे की फिकर मत करो तुमको जो भी चाहिए हो मुझे फोन कर देना तुम्हारा काम हो जाएगा...

उसके बाद उसने मुझे अपना कार्ड दिया जो मैने जेब मे डाल लिया फिर रेहाना ने नाज़ी को मेरे लिए कुछ दवाइयाँ भी साथ दी ऑर साथ ही कुछ हिदायतें भी दी कि किस वक़्त मुझे कौनसी दवाई देनी है...

डॉक्टर: नीर वैसे तो मैने नाज़ी को सब समझा दिया है वो तुमको वक़्त पर दवा देती रहेगी फिर भी मैं हफ्ते मे एक बार या तो तुम खुद अपने चेक-अप के लिए यहाँ आ जाओ या फिर मुझे तुम्हारे गाँव आना पड़ेगा बताओ कैसे करना पसंद करोगे...

मैं: जी मैं हर हफ्ते शहर नही आ सकता बेहतर होगा आप ही आ जाए...

डॉक्टर: (मुस्कुरकर) कोई बात नही

फिर मैं ख़ान ऑर नाज़ी उसी दरवाज़े से बाहर निकल गये जहाँ से आए थे... लेकिन हैरत की बात ये थी कि सुबह जब हम यहाँ आए थे तो बाहर बहुत से मुलाज़िम काम कर रहे थे लेकिन अब वहाँ कोई आदमी मोजूद नही था पूरा दफ़्तर खाली पड़ा था

मैं: ख़ान साहब यहाँ सुबह कुछ लोग काम कर रहे थे ना वो कहाँ गये...

ख़ान: वो यही काम करते हैं अब उनके घर जाने का वक़्त हो गया था इसलिए चले गये अंदर हमारा अपना सीक्रेट हेडक्वॉर्टर है... अंदर मेरी मर्ज़ी के बिना कोई नही जा सकता...

मैं: अच्छा ठीक है...

ऐसे ही बाते करते हुए हम बाहर निकल गये ऑर जीप मे बैठ गये ख़ान ड्राइवर की साथ वाली सीट पर आगे बैठा था जबकि मैं ओर नाज़ी फिर से पिछे ही बैठ गये नाज़ी वापिस मेरे साथ चिपक कर बैठी थी ऑर मेरे कंधे पर सिर रखा था पूरे रास्ते कोई खास बात नही हुई...


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#63
जब हम घर आए तो फ़िज़ा बाहर ही खड़ी थी जो शायद हमारा ही इंतज़ार कर रही थी जीप को देखते ही उसका चेहरा खुशी से खिल उठा ऑर जीप के रुकते ही वो तेज़ कदमो के साथ हमारी तरफ आई ऑर जीप के अंदर देखने लगी... फिर हम सब घर के अंदर चले गये जहाँ बाबा हॉल मे ही कुर्सी पर बैठे थे शायद वो भी मेरा ही इंतज़ार कर रहे थे...

बाबा: आ गये बेटा... (ख़ान की तरफ देखते हुए हाथ जोड़कर) ख़ान साहब आपका बहुत-बहुत शुक्रिया जो आपने मुझे मेरा बेटा वापिस कर दिया...

ख़ान: बाबा जी आप बुजुर्ग है शर्मिंदा ना करे हाथ जोड़कर (बाबा के हाथो को पकड़ते हुए) मैने आपसे कहा ही था कि अगर ये बे-गुनाह है तो इसे कुछ नही होगा...

फ़िज़ा: ख़ान साहब आप बैठिए मैं चाय लेके आती हूँ (नाज़ी को इशारे से बुलाते हुए)

फिर मैं बाबा ओर ख़ान वही हॉल मे ही कुर्सियो पर बैठ गये ऑर ख़ान मेरे बारे मे बाबा से पुछ्ता रहा...

ख़ान: बाबा जी मुझे आपसे अकेले मे कुछ बात करनी है...

बाबा: जी ज़रूर... (मेरी तरफ देखते हुए) बेटा जाके देखो चाय का क्या हुआ...

मैं: जी बाबा (ऑर मैं उठकर रसोई मे चला गया)

ख़ान ऑर बाबा मे क्या बात हुई मुझे नही पता लेकिन रसोई मे घुसते ही फ़िज़ा फिकर्मन्दि से मेरा मुँह पकड़कर मेरे सिर की चोट देखने लगी उसको शायद आते ही नाज़ी ने सब कुछ बता दिया था इसलिए उसके चेहरे पर भी मेरे लिए फिकर सॉफ झलक रही थी...

फ़िज़ा: ये ख़ान कितना कमीना है देखो कितनी चोट लग गई...

मैं: अर्रे तुम तो ऐसे ही घबरा जाती हो कुछ नही हुआ मैं एक दम ठीक हूँ ज़रा सी खराश है ठीक हो जाएगी...

फ़िज़ा: ऑर कही तो चोट नही लगी...

मैं: (मुस्कुराकर ना मे सिर हिलाते हुए) उऊहहुउ...

फिर हम कुछ देर ऐसे ही रसोई मे खड़े रहे ऑर नाज़ी दिन भर क्या-क्या हुआ वो सब फ़िज़ा को बताती रही मैं बस पास खड़ा दोनो की बाते सुनता रहा ऑर मुस्कुराता रहा तभी मुझे बाबा की आवाज़ आई तो मैं फॉरन बाहर चला गया जहाँ बाबा ऑर ख़ान बैठे थे...

बाबा: बेटा ख़ान साहब कह रहे हैं कि अब तुम आज़ाद हो लेकिन जब भी इनको तुम्हारी मदद की ज़रूरत होगी तो तुमको जाना पड़ेगा तुमको कोई ऐतराज़ तो नही है...

मैं: बाबा आप हुकुम कीजिए आप जो कहेंगे वही मेरी मर्ज़ी होगी...

बाबा: ठीक है बेटा... देखिए ख़ान साहब मैने कहा था ना आपसे... (मुस्कुराकर)

ख़ान: जी जनाब आप सही थे... मैं सोच भी नही सकता था कि शेरा जैसा इंसान इतना बदल सकता है आज सच मे मुझे बेहद खुशी है कि ये एक नेक़ इंसान की जिंदगी गुज़ार रहा है...


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#64
अभी हम बाते ही कर रहे थे कि एक काले रंग की कार हमारे दरवाज़े के सामने आके रुक गई... जिससे हम सब का ध्यान बाहर की तरफ गया... ये कार तो हीना की थी जिसमे मैं उसको कार चलाना सिखाता था... तभी कार के पिछे वाला गेट खुला ऑर हीना बाहर निकली मुझे देखते ही उसके चेहरे पर एक मुस्कान आ गई ऑर वो सीधा ही अंदर चली आई... उसने आते ही अदब से सबको सलाम किया फिर बाबा से दुआ ली...

हीना: बाबा देख लो आज फिर नीर नही आए मुझे गाड़ी सिखाने के लिए... (रोने जैसा मुँह बनाके)

बाबा: अर्रे बेटी वो आज कुछ काम था इसलिए शहर जाना पड़ा नीर को...

ख़ान: ये मोहतार्मा कौन है (घूरते हुए)

बाबा: ये हमारे गाव के सरपंच की बेटी हैं जिनको नीर कार चलानी सिखाता है...

ख़ान: अच्छा ये तो बहुत नेक़ बात है... बाबा जी अब मुझे भी इजाज़त दीजिए फिर कभी मुलाक़ात होगी...

बाबा: अच्छा बेटा आते रहना... (मुस्कुराकर)

फिर ख़ान ऑर बाबा बाते करते हुए दरवाज़े तक चले गये ऑर मैं हीना के पास ही बैठा रहा इतने मे नाज़ी चाय लेके आ गई ऑर हीना को देखते ही उसका पारा चढ़ गया... लेकिन फिर भी उसने हीना को सलाम किया ऑर टेबल पर चाय रख दी...

नाज़ी: आप यहाँ कैसे हीना जी...

हीना: वो आज नीर जी हवेली नही आए तो मैने सोचा मैं ही चली जाती हूँ... यहाँ आई तो पता चला कि आप लोग भी अभी शहर से आए हो...

नाज़ी: जी अभी आए हैं ऑर बहुत थके हुए हैं...

हीना: ये सिर मे क्या हुआ नीर ...

मैं: कुछ नही बस छोटी सी चोट लग गई थी (मैने हीना को कुछ भी नही बताया था अपने बारे मे इसलिए ये बात भी छुपानी पड़ी)

हीना: ख्याल रखा करो ना अपना... दिखाओ कितनी चोट लगी है...

नाज़ी: उसकी कोई ज़रूरत नही है चोट लगी थी पट्टी हो चुकी है अब क्या पट्टी खोलकर दिखाएँगे...

हीना: मेरा मतलब था कि इनका ठीक से ख़याल रखा करो...

नाज़ी: (गुस्से मे) हम ठीक से ही ख्याल रखते हैं...

हीना: हाँ वो तो मैं देख ही रही हूँ तुम कितना ख्यालो रखती हो तभी इतनी चोट लग गई है...

मैं: (दोनो को शांत करने के लिए) अर्रे तुम हर वक़्त लड़ने क्यों लग जाती हो... कुछ नही हुआ ज़रा सी खराश है बस ऑर हीना मैं अगर तुमको कल गाड़ी चलानी सिखाउ तो कोई समस्या तो नही...

हीना: जी नही कोई समस्या नही है पहले आप ठीक हो जाइए गाड़ी सीखने के लिए तो सारी उम्र पड़ी है मुझे पता होता कि आपको चोट लगी है तो मैं डॉक्टर साथ ही लेके आती... (मेरा हाथ पकड़ते हुए)

मैं: नही उसकी कोई ज़रूरत नही अब मैं एक दम ठीक हूँ (मुस्कुराते हुए)

नाज़ी को शायद हीना का इस तरह मेरा हाथ पकड़ना अच्छा नही लगा था इसलिए उसने चाय का कप हीना पर गीरा दिया...

हीना: (दर्द से कराहते हुए) ससस्स आयईयीई...

नाज़ी: ओह्ह माफ़ करना कप हाथ से फिसल गया

मैं: हीना ज़्यादा तो नही लगी (हीना के घुटने से सलवार पकड़कर झाड़ते हुए)

हीना: कोई बात नही मैं ठीक हूँ (फीकी मुस्कान के साथ)

मैं: नाज़ी ये क्या किया तुमने

नाज़ी: मैं जान-बूझकर नही किया माफ़ कर दो...

हीना: कोई बात नही... बाथरूम कहाँ है

मैं: नाज़ी इनको बाथरूम ले जाओ ऑर सॉफ करो अच्छे से...

नाज़ी: (गुस्से से मुझे देखते हुए हीना को अंदर लेके चली गई) इस तरफ आओ

तभी बाबा भी ख़ान को रुखसत करके अंदर आ गये...

बाबा: ये हीना बेटी कहाँ गई अभी तो यही थी...

मैं: कुछ नही बाबा वो ज़रा नाज़ी के हाथ से कप फिसल गया था इसलिए हीना पर चाय गिर गई बस वही धुल्वाने लेके गई है...

बाबा: अच्छा... ये नाज़ी भी ना इसको ख्याल रखना चाहिए घर आए मेहमान पर कोई चाय गिराता है भला...

मैं: कोई बात नही बाबा उसने जान-बूझकर तो गिराई नही ऑर फिर ग़लती तो किसी से भी हो सकती है...

कुछ देर बाद हीना ऑर नाज़ी बाहर आ गई ऑर मैं हीना को देखकर हँसे बिना नही रह सका क्योंकि उसने मेरे कपड़े पहने थे जो उसको काफ़ी बड़े थे... हीना को देखकर बाबा भी हँसने लगे ऑर हीना खुद भी मुस्कुराए बिना ना रह सकी... नाज़ी गुस्से से लाल हुई पड़ी थी ऑर वो बिना कुछ बोले ही अंदर चली गई...

बाबा: अर्रे बेटी ये नीर के कपड़े क्यो पहन लिए...

हीना: बाबा वो मेरे कपड़े खराब हो गये थे तो धोने से मेरी सारी सलवार गीली हो गई थी ऑर मुझे अंदर इनके ही कपड़े नज़र आए तो मैने वही पहन लिए...

बाबा: कोई बात नही...

हीना: अच्छा बाबा मैं अब चलती हूँ (मुस्कुराते हुए)

बाबा: अच्छा बेटा... माफ़ करना वो नाज़ी मे थोड़ा बच्पना है इसलिए उसने तुम्हारे कपड़े खराब कर दिए...

हीना: कोई बात नही बाबा इसी बहाने मुझे नीर के कपड़े पहने का मोक़ा मिल गया (हँसते हुए) ऐसा लग रहा है अब्बू के कपड़े पहने हो बहुत ढीले ऑर बड़े है...

मैं: अर्रे कोई बात नही घर तक तो जाना है वैसे भी तुमने कौनसा पैदल जाना है बाहर कार मे ही तो जाना है फिकर मत करो कोई नही देखेगा... (मुस्कुराते हुए)

हीना: कैसे जाउ... आज तो लगता है पैदल ही जाना पड़ेगा...

मैं: (हैरानी से) क्यो बाहर कार है ना

हीना: सिर्फ़ कार ही है ड्राइवर नही है मुझे लगा आप आज भी कार चलानी सिख़ाओगे इसलिए ड्राइवर को मैने तब ही भेज दिया था...

बाबा: अर्रे कोई बात नही बेटी नीर तुमको गाड़ी मे घर छोड़ आएगा फिर तो ठीक है ना...

हीना: हाँ ये ठीक रहेगा... (मुस्कुराते हुए) चलो नीर फिर चलते हैं (कार की चाबी मेरी ओर बढ़ाते हुए)

मैं: (कार की चाबी पकड़कर) हाँ चलो... (मुस्कुराते हुए) बाबा मैं ज़रा हीना को घर तक छोड़कर अभी आता हूँ...

बाबा: अब बेटा जब जा ही रहे हो तो गाड़ी चलानी भी सीखा देना इसी बहाने ये भी खुश होके जाएगी...

हीना: अर्रे वाह ये तो ऑर भी अच्छा है चलो आज मैं भी नीर बनके ही गाड़ी चलाउन्गी... (हँसते हुए)

मैं: ठीक है पहले चलो तो सही...


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#65
अपडेट-29

घर से निकलते हुए मैने पलटकर देखा तो नाज़ी मुझे रसोई मे खड़ी गुस्से से देख रही थी... जिसके गुस्से का मेरे पास कोई जवाब नही था इसलिए मैने वापिस गर्दन सीधी की ऑर हीना के साथ उसकी कार की तरफ चल पड़ा... आज जाने क्यो इस तरह नाज़ी का बर्ताव मुझे कुछ अजीब सा लग रहा था क्योंकि वो एक खुश-मिज़ाज़ ऑर तमीज़दार लड़की थी लेकिन आज जाने उसको क्या हो गया था जो वो हीना के साथ ऐसे पेश आ रही थी... अभी मैं अपनी इन्ही सोचो मे गुम था कि मुझे हीना की आवाज़ आई...

हीना: जनाब अब सारी रात कार के सामने ही खड़ा रहना है या चलना भी है...

मैं: (हीना की तरफ चोंक कर देखते हुए) क्या... हाँ चलो बैठो...

हीना: आप भी ना... (मुस्कुराते हुए)

मैं: मैं भी क्या...

हीना: कुछ नही जल्दी बैठो...

मैं: अच्छा

उसके बाद मैं ओर हीना कार मे बैठे ऑर मैने कार स्टार्ट कर दी ऑर कुछ देर बिना कुछ बोले कार चलता रहा थोड़ी देर मे ही हम हवेली के पास आ गये...

हीना: अर्रे हवेली क्यो ले आए मुझे (रोने जैसी शक़ल बनाके)

मैं: घर नही जाना आपने...

हीना: बाबा ने कुछ ऑर भी कहा था ना आप भूल गये क्या (मुस्कुराते हुए)

मैं: ऑर क्या कहा था बाबा ने यही कहा था कि हीना को घर छोड़ आओ बस...

हीना: (अपने सिर पर हाथ रखते हुए) ओुंओ... बाबा ने ये भी तो कहा था कि कार चलानी भी सीखा देना मुझे... भूल गये क्या...

मैं: अर्रे हाँ मैं तो भूल ही गया था...

हीना: अब चलो गाड़ी घूमाओ मैदान की तरफ अभी इतनी जल्दी नही मैने घर जाना ...

मैं: अच्छा... (मुस्कुराते हुए)

उसके बाद मैने कार को मोड़ लिया ऑर वही से ही हम मैदान की तरफ निकल गये हीना मुझे बार-बार देखकर आज मुस्कुरा रही थी ऑर काफ़ी खुश लग रही थी... मैने कार चलाते हुए देखा कि वो बार-बार मेरी पहनी हुई कमीज़ को देख रही थी...

मैं: एक बात बोलू हीना जी अगर आपको बुरा ना लगे तो...

हीना: आज तक आपकी कोई बात का बुरा माना है जो अब मानूँगी बोलो... (मुस्कुराते हुए)

मैं: आप पर मेरे कपड़े बहुत अच्छे लग रहे हैं... (मुस्कुराते हुए)

हीना: अगर आपको बुरा ना लगे तो ये कपड़े मैं रख लूँ...

मैं: क्यो नही ज़रूर अगर आपको पसंद है तो... लेकिन आप मेरे कपड़ो का करेंगी क्या...

हीना: शुक्रिया... पसंद भी आए हैं ऑर...

मैं: ऑर क्या...

हीना: इन कपड़ो मे आपकी महक भी है जो मुझे बहुत पसंद है (नज़रे झुका कर मुस्कुराते हुए)

मैं: लेकिन आप इनका करेंगी क्या ये तो मर्दाना कपड़े है...

हीना: आप पास होते हो तो खुद को बहुत महफूज़ महसूस करती हूँ... ये कपड़े जब मेरे पास होंगे तो ऐसा लगेगा आप मेरे पास हो...

मैं: अच्छा जैसा आपको अच्छा लगे (मुस्कुराते हुए)

हीना: नीर दवाई तो टाइम पर ले रहे हो ना जो हमने शहर से ली थी...

मैं: कौनसी दवाई (कुछ सोचते हुए) अर्रे हाँ याद आया

हीना: शूकर है याद तो आ गया (मुस्कुराते हुए) अब बताओ दवाई ली या नही...

मैं: (उदास मुँह बनाके ना मे सिर हिलाते हुए) भूल गया...

हीना: ऊओुंओ... क्या करूँ मैं तुम्हारा (रोने जैसा मुँह बनाके)

मैं: कुछ नही करना क्या है (मुस्कुराते हुए) अब याद नही रहता तो क्या करू मैं भी...

हीना: अच्छा तुम एक काम कर सकते हो


मैं: क्या


हीना: कल से अपनी दवाइयाँ मुझे लाके देदो मैं आपको रोज़ दवाई दे जाया करूँगी

मैं: लेकिन अगर आप रोज़ घर आएँगी तो शायद नाज़ी ऑर फ़िज़ा को अच्छा नही लगेगा...

हीना: (कुछ सोचते हुए) हम्म... ये तो है... ऐसा करूँगी सुबह आप खेत मे अकेले होते हो ना दिन मे आपको खेत मे आके आपकी दवाई दे जाया करूँगी ऑर शाम को कार मे दे दिया करूँगी फिर तो ठीक है... वैसे भी हम मिलते तो रोज़ ही है... (मुस्कुराते हुए)

मैं: हाँ ये ठीक रहेगा...



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#66
ऐसे ही बाते करते हुए हम कुछ ही देर मे हम उसी कच्चे रास्ते पर पहुँच गये जो रास्ता मैदान की तरफ जाता था... हीना भी उस रास्ते को देखकर एक दम खामोश हो गई शायद उसको उस दिन वाली बात याद आ गई थी जब वो मेरी गोद मे बैठी थी ऑर उसके उच्छलने से मेरा लंड उसकी गान्ड मे ज़ोर से चुभा था... मैने एक नज़र हीना की तरफ देखा ऑर फिर गाड़ी उसी कच्चे रास्ते पर बढ़ा दी कुछ देर उच्छलने के बाद हम मैदान मे आ गये इसलिए मैने कार रोक दी...

मैं: हीना जी मैदान आ गया अब आप मेरी सीट पर बैठ जाएँ ऑर कार चलानी शुरू करें जैसा मैने आपको उस दिन सिखाया था...

हीना: उस दिन जैसे गाड़ी नही सीखा सकते...

मैं: उस दिन जैसे कैसे मैं समझा नही...

हीना बिना कुछ बोले मेरे दोनो हाथ स्टारिंग व्हील से हटा कर धीरे से सरक कर मेरे पास आई ऑर थोड़ी सी कार के अंदर ही खड़ी होके मेरी एक टाँग पर बैठ गई ऑर फिर अपनी गान्ड को थोड़ा सा खिसका कर मेरी दोनो टाँगो पर बैठ गई...

हीना: ऐसे सीखने को कह रही थी...

मैं: अच्छा ठीक है अब आप चलाओ...

हीना के मेरी गोद मे बैठ ते ही उसके नाज़ुक बदन का वही गरम अहसास मुझे अपनी टाँगो पर होने लगा... मैने अपने दोनो हाथ उसकी कमर से निकाले ऑर वापिस स्टारिंग व्हील पर उसके हाथो के उपर रखे दिए उसकी नरम ऑर नाज़ुक टांगे मेरी टाँगो के साथ जुड़ी हुई थी जो मुझे बेहद मज़ा दे रही थी...

 
कुछ देर ऐसे ही कार चलाने के बाद उसने खुद ही मेरे हाथ स्टारिंग व्हील से हटाकर अपनी जाँघो पर रख दिए जिसे मैने फॉरन थाम लिया मेरे हाथो के छुने से शायद उसको झटका सा लगा जिससे वो थोड़ा सा हिल गई लेकिन बिना कुछ बोले वो कार चलाती रही अब मुझसे भी सबर नही हो रहा था इसलिए मैने धीरे-धीरे उसकी जाँघो पर हाथ फेरना शुरू कर दिया जिससे उसने अपनी टांगे चौड़ी कर ली... मेरा चेहरा उसकी गर्दन पर था जिससे चूमने का मुझे बार-बार मन कर रहा था इसलिए मैने अपने चेहरे को हल्का सा नीचे की तरफ झुकाया ऑर अपने होंठ उसकी गर्दन पर रख दिए उसको भी शायद मेरे होंठों का अहसास अपनी गर्दन पर हो गया था लेकिन वो बिना कुछ बोले गाड़ी चलाती रही नीचे से मेरे लंड ने भी जागना शुरू कर दिया था जो उसके टांगे फैला लेने की वजह से सीधा उसकी चूत पर दस्तक दे रहा था वो भी शायद मेरे लंड को नीचे से महसूस कर रही थी इसलिए बार-बार अपनी गान्ड को हिला कर उसको अपनी चूत के उपर अड्जस्ट करने की कोशिश कर रही थी... तमाम अमल मे हम दोनो ही खामोश थे मैं लगातार उसकी जाँघो पर हाथ फेर रहा था ऑर वो बिना कुछ बोले गाड़ी चला रही थी तभी उसकी धीमी सी आवाज़ मेरे कानो से टकराई...

हीना: एक हाथ से आप भी स्टारिंग पकड़ लो मुझसे अकेले संभाला नही जा रहा

मैं: (बिना कुछ बोले एक हाथ उसकी जाँघ (रान) से उठाकर स्टारिंग पकड़ते हुए) हमम्म...

अब उसने अपना दायां हाथ नीचे कर लिया ऑर मेरा बायां हाथ जो उसकी जाँघ (रान) पर था उस पर रख दिया... मुझे लगा शायद उसको मेरा छुना बुरा लगा है इसलिए उसने अपना हाथ मेरे हाथ पर रखा है इसलिए मैने अपना हाथ वही उसकी जाँघ पर ही रोक दिया ऑर बिना कोई हरकत किए वही रखा रहने दिया जबकि बाएँ हाथ से मैं गाड़ी चला रहा था... लेकिन मैं ग़लत था जब मैने हाथ रोका तो उसने खुद ही मेरे हाथ को पकड़कर अपनी जाँघ पर उपर-नीचे फेरना शुरू कर दिया ऑर हाथ को उपर की तरफ ले जाने लगी जिससे मेरा हाथ उसके पेट पर आ गया मैने अपना हाथ उसके पेट पर फेरना शुरू कर दिया तभी मुझे उसकी नाभि का छेद महसूस हुआ जिस पर मैने अपनी उंगली रोक दी ऑर नाभि के चारो तरफ गोल-गोल घुमाने लगा जिससे उसकी साँस एक दम तेज़ हो गई ऑर उसने अपनी गर्दन उपर की तरफ करके अपना सिर मेरे कंधे पर रख दिया... अब उसने खुद ही बिना कुछ बोले अपना दूसरा हाथ भी स्टारिंग से हटा लिया ऑर अपनी कमीज़ थोड़ी सी उपर उठाके मेरा हाथ पकड़कर अपनी कमीज़ मे डाल दिया... उसके पेट का गरम ऑर नाज़ुक लंज़ मेरे हाथो को मिलते ही मुझे बहुत अच्छा महसूस हुआ उसका पेट बेहद नाज़ुक ऑर किसी मखमल की तरह मुलायम था... अब मैं सीधा उसके पेट पर हाथ फेर रहा था ऑर वो आँखें बंद किए मेरे कंधे पर सिर रखे बैठी थी...

धीरे-धीरे मेरा हाथ उपर की तरफ जाने लगा जिससे उसकी साँस ऑर तेज़ चलने लगी अब उसका गाड़ी चलाने पर कोई ध्यान नही था इसलिए मैने गाड़ी को रोक दिया ऑर बंद कर दिया लेकिन वो अब भी वैसे ही बैठी रही... मैने अपना दूसरा हाथ भी स्टारिंग से हटा लिया ऑर उसकी जाँघो (जाँघो) पर रख दिया ऑर हाथ उपर से नीचे फेरने लगा... अब जो हाथ मेरा उसकी कमीज़ के अंदर था उसको मैने उपर की जानिब बढ़ाना शुरू किया ऑर थोड़ा सा उपर जाके मेरे हाथ उसकी ब्रा तक पहुँच गया जिसके उपर से ही मैने उसके दाएँ मम्मे को थाम लिया ऑर धीरे से दबा दिया जिससे उसको एक झटका सा लगा ऑर उसके मुँह से एक तेज़ सस्सस्स आअहह निकल गई... शायद मेरा हाथ उसको अपने मम्मों पर अच्छा लगा था उसके मम्मे काफ़ी बड़े थे जो मेरे एक हाथ मे पूरे नही आ रहे थे लेकिन फिर भी मम्मा जितना हाथ मे आ रहा था मैं उसको लगातार दबाए जा रहा था... तभी मैने अपना दूसरा हाथ उसकी जाँघो के दरम्यान चूत के उपर रख दिया उसको मेरे इस हमले की उम्मीद नही थी इसलिए उसने अपने दोनो हाथो से मेरे हाथ को पकड़ लिया ऑर अपनी दोनो टांगे बंद कर ली... मैने अपने होंठों से धीरे-धीरे उसकी गर्दन को चूमना शुरू कर दिया ऑर उसकी गर्दन से बढ़ते हुए मेरे होंठ उसके गालों पर आ गये ऑर अब मैं वहाँ धीरे-धीरे चूम रहा था वो अपनी आँखें बंद किए मेरी गोद मे बैठी थी मेरे कंधे पर सिर रख कर ऑर मेरे हाथ उसके बदन पर अपना कमाल दिखा रहे थे...

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#67
अपडेट-30

कुछ देर बाद मैने धीरे से अपना हाथ उसकी सलवार के अंदर डालने की कोशिश की लेकिन अज़रबंद बँधा होने की वजह से हाथ अंदर नही जा पा रहा था इसलिए उसने खुद ही अपना पेट अंदर की तरफ सिकोड लिया ताकि हाथ अंदर जाने की जगह मिल सके अब मेरा हाथ धीरे-धीरे अंदर की तरफ जाने लगा ऑर मेरी उंगलियों पर अब उसकी चूत के बाल टकराने लगे... अब मैने अपना हाथ थोड़ा ऑर आगे को सरकाया तो मेरा हाथ उसकी नर्म ऑर नाज़ुक चूत तक पहुँच गया जिससे उसको एक झटका सा लगा ऑर उसके मुँह से सिर्फ़ सस्सस्स हमम्म्मम ही निकल पाया... मेरा अब एक हाथ उसके ब्रा के उपर से मम्मों को दबा रहा रहा ऑर दूसरा हाथ उसकी सलवार मे घुसा उसकी चूत के साथ छेड़-छाड़ कर रहा था... उसकी चूत लगातार पानी छोड़ रही थी जिससे मेरे पूरे हाथ की उंगलियाँ गीली हो चुकी थी... लेकिन मैं फिर भी उसकी चूत के दाने पर अपनी उंगली से कमाल दिखाता रहा... कुछ ही देर मे उसकी टांगे काँपने लगी उसने अचानक मेरी तरफ अपना चेहरा किया ऑर मेरे गालो को हल्के-हल्के चूमना शुरू कर दिया ऑर फिर अचानक जैसे उसकी साँस रुक गई हो उसने अपनी आँखें ज़ोर से बंद कर ली ऑर अपनी गान्ड को उपर की तरफ उठा दिया मेरा पूरा हाथ उसकी चूत के निकलने वाले पानी से भीग चुका था अब कुछ देर गान्ड को हवा मे उठाए झटके खाने के बाद एक दम से मेरी गोद मे वापिस गिर गई ऑर तेज़-तेज़ साँस लेने लगी मैने भी अपना हाथ उसकी चूत पर रोक लिया लेकिन दूसरे हाथ से हल्के-हल्के उसके मम्मों को दबाता रहा... अब वो आँखें बंद किए मेरे कंधे पर अपना सिर रखे बैठी ऑर मुस्कुरा रही थी शायद वो फारिग हो गई थी... मैने अब अपना बायाँ हाथ उसकी सलवार मे से दायां हाथ उसकी कमीज़ मे से निकाल लिया ऑर उसे उसकी कमर से पकड़कर थोड़ा उपर उठा दिया ताकि मैं उसकी सलवार खिचकर थोड़ा नीचे कर सकूँ... जैसे ही मैने उसकी सलवार को थोड़ा नीचे की तरफ खिचा उसने मेरे दोनो हाथो पर अपने हाथ रख दिए ऑर मेरी आँखो मे देखने लगी उसकी आँखें उस वक़्त नशे ऑर वासना से एक दम नशीली हुई पड़ी थी... अचानक उसने अपना दाया हाथ उपर किया ऑर मेरे सिर के पीछे ले जाकर मेरे चेहरे को अपने चेहरे पर झुका दिया ऑर मेरे होंठों पर उसने अपने होंठ रख दिए उसके होंठ एक दम गुलाब की पंखुड़ियो के जैसे नाज़ुक ऑर रस भरे थे... मैने फॉरन अपना थोड़ा सा मुँह खोलकर उसके दोनो नाज़ुक होंठों को अपने मुँह मे क़ैद कर लिया ऑर जबरदस्त तरीके से चूसने लगा कुछ देर तो वो अपना मुँह सख्ती से बंद करके बैठी रही फिर उसने भी अपना मुँह खोल दिया जिससे मेरी जीभ को उसके मुँह मे जाने का रास्ता मिल गया... वो किसी भूखी शेरनी की तरफ मेरी जीभ पर टूट पड़ी ऑर बहुत ज़ोर से मेरी ज़ुबान को चूसने लगी...

ऐसा नही था कि मैने पहले किसी के होंठ नही चूसे थे लेकिन जो क़शिष उसके होंठ चूसने मे आ रही थी वैसा मज़ा ना फ़िज़ा के होंठों मे आया था ना ही नाज़ी के होंठों से वो लगातार मेरे होंठों को बुरी तरफ चूस ऑर काट रही थी... अचानक उसने खुद ही अपनी गान्ड थोड़ी सी उपर की ऑर मेरी गोद मे बैठे-बैठे ही अपनी सलवार को घुटने तक खींचकर उतार दिया... अब उसने खुद ही मेरा हाथ अपनी नरम ऑर हद से ज़्यादा गोरी टाँगो पर रख दिया उसका बदन मेरी सोच से भी ज़्यादा गोरा था... हलकी जहाँ हम थे वहाँ एक दम अंधेरा था लेकिन फिर भी उसका बदन इस कदर चमक रहा था कि मुझे उसकी गोरी जांघे अंधेरे मे भी सॉफ नज़र आ रही थी... मैं उसकी चूत देखना चाहता था लेकिन उसने मेरी पहनी हुई कमीज़ को आगे की तरफ किया हुआ था जिससे मैं उसकी चूत नही देख पा रहा था... लेकिन उसकी गान्ड नीचे से लगातार अपना कमाल दिखा रही थी जिसने मेरे लंड को एक दम लोहे जैसा खड़ा कर दिया था... अब की बार मैने उसकी जाँघो को सहलाते हुए अपना हाथ कमीज़ के अंदर लेजा कर अपना हाथ उसकी नरम ऑर नाज़ुक किसी गुलाब के फूल की तरह खिली हुई चूत पर रख दिया जो हद से ज़्यादा पानी छोड़ रही थी मैने कुछ देर उसकी चूत को सहलाया जिससे उसके मुँह मे से एक म्म्म्म म सस्स्सस्स की आवाज़ निकली जो मेरे मुँह मे ही दब गई... अब मैने हीना को उसकी कमर से पकड़ा ऑर थोड़ा उपर किया ताकि अपना पाजामा भी नीचे कर सकूँ... मेरे इशारे को समझते हुए उसने जल्दी से अपनी कमर को थोड़ा सा हवा मे उठा दिया जिससे मैने जल्दी से अपना पाजामा ऑर अंडरवेर नीचे कर दिया...

लंड आज़ाद होते ही किसी भूखे शेर की तरह सिर उठाए खड़ा हो गया जो किसी स्प्रिंग की तरह उपर को हुआ ऑर सीधा हीना की चूत को चूम कर नीचे आ गया... मेरे लंड का अपनी चूत पर अहसास होते ही उसने फिर से एक ऊऊऊओ किया सख्ती से मेरे बाजू को पकड़ लिया जो मैने उसकी कमर पर डाला था... अब मैने उसकी कमीज़ को गान्ड से थोड़ा उपर किया ऑर उसे फिर से अपनी गोद मे बिठा लिया अब मेरा लंड सीधा उसकी चूत के मुँह पर दस्तक दे रहा था ऑर अंदर जाने के लिए मुझसे बग़ावत कर रहा था शायद उस साले को मुझसे भी ज़्यादा जल्दी थी... इसलिए मैने भी उससे ज़्यादा इंतज़ार करवाना मुनासिब नही समझा ऑर अपना हाथ नीचे ले जाकर उसकी ऑर अपनी टाँगो को पूरी तरह फैला दिया ताकि लंड ऑर चूत का मिलन हो सके ऑर साथ ही अपने लंड को उसकी चूत पर रगड़ना शुरू कर दिया... हीना की चूत मेरी उम्मीद से भी ज़्यादा पानी छोड़ रही थी... जिसने कुछ ही पॅलो मे मेरे लंड को एक दम गीला कर दिया... हम दोनो मे ये जो कुछ भी हो रहा था एक दम खामोशी से हो रहा था ना वो कुछ बोल रही थी ना मैं... जब कुछ देर तक मैं अपने लंड को उसकी चूत पर रगड़ता रहा तो उसका सबर जवाब देने लगा ऑर आख़िर उसने मेरे कान मे धीरे से कहा...

हीना: नीर पिछे की सीट पर चले अब मुझसे ऑर बर्दाश्त नही हो रहा...

मैं: हमम्म चलो...

उसके बाद हम दोनो आगे वाली सीट को थोड़ा नीचे करके कार के अंदर से ही पिछे वाली सीट पर आ गये... हीना को मुझसे ज़्यादा जल्दी थी इसलिए वो मुझसे पहले पिछे चली गई ऑर जल्दी से अपनी कमीज़ उपर करके पिछे से अपनी ब्रा को भी खोल दिया ऑर अपने बड़े-बड़े मम्मों आज़ाद कर दिया जो ब्रा की क़ैद से आज़ाद होते ही किसी खरगोश की तरह उच्छल कर बाहर आ गये... उनको देखकर मेरे भी मुँह मे पानी आ गया ऑर मैं पिछे जाते ही उसके मम्मों पर टूट पड़ा मैने उसका एक मम्मा अपने हाथ से पकड़ लिया ऑर दूसरा मम्मा अपने मुँह मे लेके चूसने लगा ऑर वो मेरे नीचे लेटी मेरे सिर पर हाथ फेर रही थी ऑर अपने मुँह से सस्सस्स ऊऊऊहह आआआआहह नीईएरर्र्र्र्र्र्ररर करते रहो हो ऑर पता नही क्या-क्या बोले जा रही थी... मैं बारी-बारी उसके दोनों मम्मो के साथ इंसाफ़ कर रहा था क्योंकि मैं नही चाहता था कि दोनो मे से कोई भी मुझसे नाराज़ हो कि मैने किसी एक पर ज़्यादा मेहनत की ऑर दूसरे पर कम मेहनत की...

उस वक़्त कार मे काफ़ी अंधेरा था उपर से मेरी हाइट ज़्यादा होने की वजह से मैं कार मे पूरा भी नही आ रहा था इसलिए मैने पिछे का दरवाज़ा खोल दिया ऑर नीचे बैठकर उसकी चूत को देखने की कोशिश करने लगा... मैं चाहता तो था कि मैं उसके खूबसूरत बदन के एक-एक हिस्से के साथ खेलु लेकिन एक तो हमारे पास वक़्त कम था ऑर दूसरा अंधेरा भी काफ़ी था इसलिए मुझे कुछ भी नज़र नही आ रहा था... इसलिए मैं अंदाज़े से उसकी टाँगो के बीच बैठ गया ऑर उसकी चूत जिस पर थोड़े-थोड़े बाल उगे हुए थे उससे चूम लिया जिसका असर हीना पर काफ़ी हुआ ऑर उसके मुँह से एक तेज़ सस्स्स्स्स्स्सस्स आआआआहह न्ईएरर्र्ररर निकली अब मैने उसकी टांगे थोड़ा फोल्ड की ऑर उन्हे खोल दिया ऑर नीचे बैठकर उसकी चूत को चूसने लगा अभी मुझे कुछ ही मिनिट हुए थे उसकी चूत को चूस्ते हुए कि उसने एक दम से मुझे बालों से पकड़ लिया ऑर उपर की तरफ खींच लिया उसका पूरा बदन किसी सूखे पत्ते की तरह काँप रहा था उसने अंदाज़े से मेरा चेहरा पकड़ा ऑर फिर से मेरे होंठों को चूसना शुरू कर दिया ऑर फिर मुझे अपने गले से लगा लिया साथ ही हीना की एक मीठी से आवाज़ मेरे कानो मे मुझे सुनाई दी...

हीना: नीर मुझे अपनी बना लो मैं तुम्हारे प्यार के लिए कब से तड़प रही हूँ...

मैं: पक्का...

हीना (हां मे सिर हिलाते हुए) हमम्म पक्का... जल्दी करो मुझसे अब ऑर बर्दाश्त नही हो रहा...

मैने भी उसे ऑर इंतज़ार करवाना मुनासिब नही समझा ऑर अपना एक हाथ नीच ले जाकर उसे उसकी चूत के मुँह पर रख दिया लंड का टोपा चूत पर टच होते ही हीना ने मुझे अपनी बाहों मे कस के पकड़ लिया 
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#68
ऑर फिर से मेरे कान मे उसकी धीरे से आवाज़ आई...

हीना: नीर आराम से करना मैं अब तक कुँवारी हूँ...

मैं: अच्छा...

उसके बाद मैं अपने घुटनो पर बैठ गया ऑर अपने लंड पर ढेर सारा थूक लगा लिया वैसे तो उसकी चूत से इतना पानी बह रहा था कि मुझे मेरे लंड को ऑर गीला करने की कोई ज़रूरत नही थी लेकिन फिर भी एहतियात के लिए मैने अपने लंड को गीला कर लिया ऑर उसकी चूत के मुँह पर रखकर हल्का सा ज़ोर लगाया जिससे उसके मुँह से फिर एक सस्स्सस्स आराम से नीर... निकला... उसकी चूत काफ़ी तंग थी जिससे मेरा टोपा फिसल कर नीचे की तरफ चला गया... मैने फिर से अपना लंड उसकी चूत के मुँह पर रखा ऑर अंदाज़े से हल्का सा झटका लगाया जिससे लंड का टोपा अंदर चला गया साथ ही उसके मुँह से फिर एक आआययययीीईईईई आराम से नीर दर्द हो रहा है... की आवाज़ निकली मैने उसकी तरफ कोई ध्यान ना देकर अपने टोपे को चूत मे ही रहने दिया ऑर उसके कुछ नॉर्मल होने के इंतज़ार करने लगा...

कुछ देर बाद जैसे ही वो थोड़ा नॉर्मल हुई मैं उसके उपर लेट गया ऑर उसके होंठों को चूसना शुरू कर दिया वो भी मेरा पूरा साथ देने लगी तभी मैने एक ऑर झटका मारा ऑर मेरा 1/4 लंड अंदर चला गया उसने जल्दी से मेरे मुँह से अपना मुँह हटाया ऑर फिर से चीखना शुरू कर दिया साथ ही मुझे धक्का देकर अपने उपर से हटाने लगी...

हीना: आआययईीीई... नीर बहुत दर्द हो रहा है मुझसे नही होगा जल्दी से बाहर निकालो बहुत दर्द हो रहा है...

मैं: (उसके सिर पर हाथ फेरते हुए) बस हो गया थोड़ा सा बर्दाश्त कर लो फिर मज़ा आने लगेगा... अगला झटका मैं तब ही मारूँगा जब तुम खुद बोलोगि... जब तक दर्द कम नही होता तब तक हम ऐसे ही रहेंगे...

हीना: ऑर अंदर मत करना कुछ देर ऐसे ही रहो बहुत दर्द हो रहा है...

उसके बाद मैं कुछ देर वैसे ही रहा ऑर उसके दोनो मम्मों को चूस कर उसका दर्द कुछ कम करने लगा कुछ ही देर मे उसकी भी दर्द भरी चीखे आहो मे बदलने लगी ऑर वो फिर से मुझसे अपने मम्मे चुस्वकार गरम होने लगी साथ ही मेरे सिर पर हाथ फेरते हुए मेरे सिर को अपने मम्मों पर दबाने लगी...

हीना: अब कुछ आराम है नीर अब करो लेकिन धीरे करना अभी भी दर्द हो रहा है...

मैं: अच्छा

उसके इतना कहते ही मैने अपने दोनो हाथ उसके मोटे मम्मों पर रखे ऑर एक ऑर ज़ोरदार झटका मारा जिससे मेरा लंड उसकी चूत की सील तोड़ता हुआ आधे से ज़्यादा अंदर चला गया... इसके साथ ही उसने कार मे अपने पैर पटकने शुरू कर दिए लेकिन मेरे समझाने पर वो फिर से नॉर्मल हो गई ऑर मैं उसका दर्द कम करने के लिए फिर से उसके मम्मे चूसने लगा... कुछ देर बाद जब वो नॉर्मल हुई तो मैने अपना लंड उसकी चूत से बाहर निकाला जो उसकी चूत के खून ऑर ढेर सारे पानी से नहाया हुआ था...

मैं: हीना कोई गंदा कपड़ा होगा कार मे?

हीना: हाँ शायद होगा कार की सीट के नीचे चेक करो...

मैने अंधेरे मे अंदाज़े से कार की सीट के नीचे हाथ घुमाया तो मुझे एक कपड़ा मिल गया अब जाने वो क्या था लेकिन मैने उससे अपना लंड ऑर हीना की चूत अच्छे से सॉफ की ऑर फिर से अपने लंड पर थूक लगाके हीना की चूत मे अपना आधा लंड डाल दिया... जिससे उसके मुँह से फिर एक तेज़ आआआययययीीई सस्स्स्स्सस्स आराम से करो दर्द हो रहा है... की आवाज़ निकली जिस पर मैने ज़्यादा ध्यान नही दिया ऑर फिर से उसके मम्मे चूसने लगा

 
कुछ ही देर मे उसे भी मज़ा आने लगा तो उसने भी नीचे से अपनी गान्ड को उपर की तरफ उठाना शुरू कर दिया जिसके जवाब मे मैने भी अपना आधा लंड उसकी चूत मे धीरे-धीरे अंदर बाहर करना शुरू कर दिया...
कुछ ही देर मे हीना फिर से मेरा साथ देने लगी... अब मेरा लंड करीब 3/4 हीना की चूत के अंदर बाहर हो रहा था ऑर वो हल्के फुल्के दर्द ऑर मज़े के साथ चुदाई का मज़ा ले रही थी साथ मे सस्स्सस्स आआअहह ऊऊओह जैसी आवाज़े निकाल रही थी...
कुछ ही धक्को के बाद उसका बदन अकड़ने लग गया ऑर उसने मुझे कस कर गले से लगा लिया साथ ही फिर से मेरे होंठ चूसने शुरू कर दिए अब वो भी अपनी गान्ड उठा-उठाकर मेरा साथ दे रही थी इसलिए मैने भी अपने धक्को की रफ़्तार बढ़ा दी जिससे कुछ ही देर मे मेरा पूरा लंड उसकी चूत के अंदर बाहर होने लगा... जैसे ही मेरा पूरा लंड उसकी चूत मे गया उसकी चूत ने एक जबरदस्त झटके खाना शुरू कर दिया ऑर कुछ ही धक्को मे वो झड गई... अब मैने उसकी चूत से लंड बाहर निकाला ऑर उसे डॉगी स्टाइल मे कर लिया ऑर पिछे से अपना लंड उसकी चूत पर अड्जस्ट करके उसकी चूत मे धक्के मारने लगा... उसकी मोटी गान्ड अब मेरे हाथ मे थी ऑर मेरा लंड उसकी चूत की धज्जियाँ उड़ा रहा था... मैं उस वक़्त कार के बाहर खड़ा था ऑर वो कार के अंदर डॉगी स्टाइल मे चुदवा रही थी साथ ही उसके मुँह से लगातार सस्सस्स आआअहह ज़ोर से करो न्ईएरररर... जैसी आवाज़े निकाल रही थी... मैं अब पूरी रफ़्तार से उसकी चूत मे धक्के लगा रहा था ऑर उसके नीचे की तरफ बड़े-बड़े मम्मों को पकड़कर मसल रहा रहा था तभी उसका बदल फिर से अकड़ने लगा ऑर उसकी सिसकारियाँ भी बढ़ने लगी
कुछ ही देर मे वो फिर से झड गई जिससे उसकी टांगे काँपने लगी ऑर वो कार के अंदर ही पेट के बल लेटकर लंबे-लंबे साँस लेने लगी हम दोनो के ही बदन उस वक़्त पसीने मे नहाए हुए थे... अब वो फिर से सीधी होके पीठ के बल लेट गई ऑर उसने खुद ही अपने दोनो हाथो से अपनी टांगे पकड़कर कार की छत से लगा दी मैने अब अपनी दोनो टांगे कार की सीट पर रखी ऑर फिर से अपना लंड उसकी चूत मे डाल दिया ऑर धक्के मारने लगा उसने मुझे फिर से अपने उपर खींच लिया ऑर मेरे मुँह को अपने मम्मों पर दबाने लगी मैं भी किसी भूखे बच्चे की तरह उसके मम्मों पर टूट पड़ा... अब मेरा मुँह उसके मम्मों पर कमाल दिखा रहा था ऑर नीचे मेरा लंड उसकी चूत मे अपना जलवा दिखा रहा था... तभी हमें दूर से एक हेड लाइट चमकती हुई नज़र आई ऑर एक हॉर्न की आवाज़ सुनाई दी जिसे हीना ने फॉरन पहचान लिया...

हीना: ये तो अब्बू की जीप का हॉर्न है...

मैं: जल्दी से कपड़े पहनो

साथ ही मैने कार का दरवाज़ा अंदर से बंद कर लिया ऑर हम दोनो जल्दी से अपने-अपने कपड़े पहनने लगे...



(उस वक़्त दोस्तो यक़ीन करो अगर मेरे हाथ मे बंदूक होती तो गोली मार देता कमीनो को सालो ने क्या टाइम पर एंट्री मारी थी पूरे मूड की ऐसी तैसी करके रख दी थी... मेरा ये दर्द मेरा वही रीडर भाई समझ सकता है जिसके साथ ऐसा हुआ हो बाकी सब को तो इस वक़्त हँसी आ रही होगी कि बिचारे के साथ केएलपीडी हो गया)



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#69
अपडेट-31

हीना जल्दी से उठकर कार के अंदर से ही आगे वाली सीट पर चली गई ऑर जल्दी से अपनी सलवार पहनने लगी ऑर अपने कपड़े ठीक करने लगी तब तक मैं भी अपने कपड़े पहन कर आगे वाली ड्राइविंग सीट पर आ चुका था...

हीना: ये तो अब्बू की जीप है ये यहाँ कैसे आ गये अब क्या होगा...

मैं: डर लग रहा है (मुस्कुरा कर)

हीना: जब आप साथ होते हो तब डर नही लगता (मुस्कुरा कर)

इतना मे वो जीप हमारे पास आके रुकी ऑर उसमे से एक आदमी निकलकर बाहर आया...

आदमी: (गाड़ी के दरवाज़े पर हाथ से नीचे इशारा करते हुए) छोटी मालकिन आप अभी तक गाड़ी सीख रही है बड़े मालिक आपको बुला रहे हैं उन्होने कहा है कि बाकी कल सीख लेना...

हीना: अच्छा... तुम चलो हम इसी कार मे आ रहे हैं

आदमी: जी जैसी आपकी मर्ज़ी मालकिन...

फिर वो आदमी वापिस जीप मे बैठ गया ऑर हमने भी उसके पिछे ही अपनी कार दौड़ा ली... हीना पूरे रास्ते मेरे कंधे पर अपना सिर रखकर बैठी रही ऑर मुझे देखकर मुस्कुराती रही ऑर कभी-कभी मेरे गाल पर चूम लेती...

 
कुछ देर मे हवेली आ गई तो बाहर खड़े दरबान ने हमारी कार देखते ही बड़ा दरवाजा जल्दी से खोल दिया मैं गाड़ी हवेली के अंदर ले गया ऑर गाड़िया खड़ी करने की जगह पर गाड़ी रोक दी... तभी सरपंच वहाँ आ गया... जिसे देखते ही हीना जल्दी से कार से उतर गई... हालाकी उसे चलने मे तक़लीफ़ हो रही थी लेकिन उसने अपने अब्बू पर कुछ भी जाहिर नही होने दिया...

सरपंच: बेटी आज तो बहुत देर करदी मुझे फिकर हो रही थी...

हीना: अब मैं बच्ची नही हूँ अब्बू... बड़ी हो गई हूँ ऐसे फिकर ना किया करो ऑर वैसे भी नीर मेरे साथ ही तो थे... (मुस्कुरा कर)

सरपंच: अर्रे ये किसके कपड़े पहने है... हाहहहहहाहा

हीना: वो मैं इनको लेने इनके घर गई थी तो वहाँ बाबा जी चाय पी कर जाने की ज़िद्द करने लगे वहाँ चाय पकड़ते हुए मेरे हाथ से चाय का कप गिर गया था जो मेरे कपड़ो पर गिर गया (हीना ने झूठ बोला) इसलिए इन्होने मुझे अपने कपड़े दे दिए पहन ने के लिए... अच्छे है ना (मुस्कुराते हुए)

सरपंच: अच्छा... अच्छा अब तारीफे बंद करो ऑर चलो मैने खाना नही खाया तुम्हारी वजह से... (हीना के सिर पर हाथ फेरते हुए)

मैं गाड़ी से उतरते हुए दोनो बाप बेटी को बाते करते हुए देख रहा था ऑर उन दोनो की बाते सुनकर मुस्कुरा रहा था...

मैं: माफ़ कीजिए सरपंच जी आज थोड़ा देर हो गई... ये लीजिए आपकी अमानत की चाबी...

सरपंच: (चाबी पकड़ते हुए) कोई बात नही... अर्रे ये तुम्हारे सिर मे क्या हुआ

मैं: कुछ नही वो ज़रा चोट लग गई थी... (अपने माथे पर हाथ फेरते हुए)

सरपंच: (मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए) अपना ख्याल रखा करो

मैं: जी ज़रूर...

हीना: अब्बू वो गाड़ी वाली बात भी तो करो ना इनसे...

सरपंच: अर्रे हाँ मैं तो भूल ही गया... बेटा वो हीना कितने दिन से पिछे पड़ी है इसको नयी गाड़ी लेके देनी है... तो मुझे समझ नही आ रहा था कि कौनसी गाड़ी इसे लेके दूं तुम बताओ इसके लिए कौनसी गाड़ी अच्छी रहेगी...

मैं: कोई भी गाड़ी ले दीजिए... बस इतना ख़याल रखना कि गाड़ी छोटी हो जिससे इनको (हीना को) भी चलाने मे आसानी रहेगी...

हीना: अब्बू आप असल बात तो भूल ही गये ये वाली नही साथ जाने वाली बात पुछो ना...

सरपंच: आप खुद ही पूछ लो महारानी साहिबा... (हीना के आगे हाथ जोड़ते हुए)

हीना: नीर जी वो मैं सोच रही थी कि आप को हम से ज़्यादा समझ है गाडियो की तो आप भी हमारे साथ ही शहर चलें ना नयी गाड़ी लेने के लिए (मुस्कुराते हुए)

मैं: (चोन्कते हुए) मैं... मैं कैसे... नही आप लोग ही ले आइए मुझे खेतो मे भी काम होता है ना...

सरपंच: अर्रे बेटा मान जाओ नही तो ये सारा घर सिर पर उठा लेगी... जहाँ तक खेतो की बात है तो मैं अपने मुलाज़िम भेज दूँगा 1-2 दिन के लिए वो लोग तुम्हारे खेत का ख्याल रखेंगे जब तक तुम हमारे साथ शहर रहोगे...

मैं: ठीक है... लेकिन एक बार बाबा से पूछ लूँगा तो बेहतर होगा...

सरपंच: तुम्हारे बाबा की फिकर तुम ना करो मैं हूँ ना मैं कल ही जाके बात कर आउगा फिर परसो हम शहर चलेंगे... अब तो कोई ऐतराज़ नही तुमको...

मैं: जी नही... अच्छा सरपंच जी अब इजाज़त दीजिए काफ़ी रात हो गई है सब लोग खाने पर इंतज़ार कर रहे होंगे...

सरपंच: ठीक है... रूको तुमको मानसिंघ छोड़ आएगा... मानसिंघ... (अपने मुलाज़िम को आवाज़ लगाते हुए)

मानसिंघ: जी मालिक (दौड़कर सरपंच के सामने आते हुए)

सरपंच: नीर को उनके घर छोड़ आओ जीप पर...

मानसिंघ: जी... ठीक है मालिक...

उसके बाद मानसिंघ मुझे जीप पर घर तक छोड़ गया 
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#70
मेरे घर आते ही नाज़ी मुझे खा जाने वाली नज़रों से घूर-घूर कर देखने लगी लेकिन वो बोल कुछ नही रही थी ऑर ऐसे ही गुस्से से मुझे घुरती हुई चुप-चाप फ़िज़ा के कमरे मे चली गई...
 
तभी फ़िज़ा भी रसोई मे से आ गई...

फ़िज़ा: आ गये नीर बहुत देर करदी... (मुस्कुराते हुए)

मैं: कुछ नही वो ज़रा हीना को गाड़ी सीखा रहा था तो देर हो गई...

फ़िज़ा: तुम्हारे इतनी चोट लगी है एक दिन नही सीखते तो क्या हो जाना था...

मैं: नही वो बाबा ने हीना को बोल दिया था तो मैं मना कैसे करता इसलिए सोचा जब आ गया हूँ तो गाड़ी चलानी भी सीखा ही देता हूँ...

फ़िज़ा: वो सब तो ठीक है लेकिन कुछ अपना भी ख्याल रखा करो...

मैं: (चारो तरफ देखते हुए) तुम हो ना मेरा ख्याल रखने के लिए... (मुस्कुराकर)

फ़िज़ा: अच्छा अब ज़्यादा प्यार दिखाने की ज़रूरत नही है चलो जाओ जाके नहा लो फिर साथ मे खाना खाएँगे...

मैं: अच्छा...

उसके बाद मैं नहाने चला गया ऑर फ़िज़ा भी वापिस रसोई मे चली गई... कुछ देर बाद मैं जब नहा कर बाहर आया तो फ़िज़ा अकेली ही खाने का सब समान टेबल पर रख रही थी...

मैं: नाज़ी दिखाई नही दे रही वो कहाँ है...

फ़िज़ा: वो अंदर है कमरे मे कह रही थी भूख नही है इसलिए खाना नही खाएगी... अब तुम तो जल्दी आओ मुझे बहुत भूख लगी है चलो आज हम दोनो खाना खा लेते हैं... (मुस्कुरा कर)

मैं: तुम खाना शुरू करो मैं ज़रा नाज़ी को देखकर आता हूँ...

फ़िज़ा: अच्छा...

मैं जब फ़िज़ा के कमरे मे गया तो नाज़ी अंदर उल्टी होके गान्ड उपर करके लेटी थी ऑर बार-बार तकिये को तोड़-मरोड़ रही थी... मैने एक नज़र उसको देखा ऑर वापिस खाने के टेबल के पास आ गया...

मैं: फ़िज़ा ज़रा नाज़ी की खाने की थाली बना दो मैं अभी उसको खाना खिला कर आता हूँ...

फ़िज़ा: ठीक है... लेकिन वो तो कह रही थी भूख नही है...

मैं: तुम खाना तो लगाओ बाकी मैं खिला लूँगा उसको

फ़िज़ा: ठीक है...

फिर फ़िज़ा ने नाज़ी की खाने की थाली मुझे दे दी ऑर मैं वो थाली लेके कमरे मे चला गया अंदर अभी भी नाज़ी वैसी ही उल्टी होके लेटी हुई थी...

मैं: लगता है आज बहुत गुस्सा हो (मुस्कुराते हुए)

नाज़ी: तुमसे मतलब...

मैं: अच्छा तो मुझसे गुस्सा हो...

नाज़ी: मैं क्यो किसी से गुस्सा होने लगी...

मैं: अच्छा... तो फिर खाना खाने क्यो नही आई...

नाज़ी: मुझे भूख नही है

मैं: ठीक है थोड़ा सा खा लो मैं तुम्हारे लिए खाना लेके आया हूँ...

नाज़ी: (उठकर बैठते हुए) किसने बोला था खाने लाने को नही खाना मुझे तुम जाओ यहाँ से...

मैं: ऐसे कैसे जाउ तुमको खाना खिलाए बिना तो नही जाउन्गा... (मुस्कुराते हुए)

नाज़ी: अब मेरे पास क्या लेने आए हो जाओ उसी बंदरिया को जाके खाना खिलाओ जिसके साथ बड़ी हँस-हँस के बाते हो रही थी...

मैं: अच्छा... तो इसलिए नाराज़ हो... हाहहहहाहा

नाज़ी: हँसो मत मुझे बहुत गुस्सा चढ़ा हुआ है...

मैं: ठीक है गुस्सा मुझ पर उतारो ना फिर खाने ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है देखो कैसे मायूस होके थाली मे पड़ा है बिचारा...

नाज़ी: (हँसते हुए) नीर तुम जाओ ना मुझे भूख नही है...

मैं: अच्छा चलो आज सुबह जैसे करते हैं...

नाज़ी: सुबह जैसे क्या

मैं: जैसे तुमने मुझे खाना खिलाया था अपने हाथो से मैं भी तुमको वैसे ही खिलाता हूँ फिर तो ठीक है...

नाज़ी: तुम जाओ ना नीर मुझे नही खाना...

मैं: (बेड पर बैठ ते हुए ऑर थाली मे से रोटी का टुकड़ा तोड़कर नाज़ी के मुँह के सामने करते हुए) मैने तुमसे पूछा नही कि तुमको भूख है या नही चलो अब मुँह खोलो...

नाज़ी: (मुस्कुराकर मुँह खोले हुए) आपने खाया...

मैं: (ना मे सिर हिलाते हुए)

नाज़ी: क्या... चलो आप भी मुँह खोलो मैं खिलाती हूँ (मुस्कुराकर)

उसके बाद ऐसे ही हमने एक दूसरे को खाना खिलाया ऑर एक दूसरे को प्यार से देखते रहे...

मैं: वैसे तुम हीना से किस बात पर गुस्सा थी...

नाज़ी: जानते हो उस कमीनी ने कौन्से कपड़े पहने थे मेरे चाय गिराने के बाद...

मैं: मेरे कपड़े पहने थे तो क्या हुआ...

नाज़ी: ना सिर्फ़ आपके कपड़े पहने थे बल्कि उसने वो कपड़े पहने थे जो मैने खुद आपके लिए
बड़े प्यार से सिले थे... इसलिए मुझे गुस्सा आ रहा था...

मैं: कोई बात नही उसको कपड़ो से खुश हो लेने दो तुम्हारे पास तो तुम्हारा नीर खुद है फिर किसी से जलन कैसी... है ना

नाज़ी: (खुश हो कर मुझे गले से लगाते हुए) अब गुस्सा नही करूँगी...

मैं: चलो अब जल्दी से खाना ख़तम करो फिर सोना भी है बहुत रात हो गई है ना...

नाज़ी: एक बात बोलूं बुरा नही मनोगे तो...

मैं: हाँ बोलो

नाज़ी: वो जब आपके साथ होती है तो मुझे ऐसा लगता है जैसे आप मुझसे दूर हो गये हो...

मैं: किसी से बात कर लेने का मतलब ये नही होता नाज़ी कि मैं उसका हूँ... मैं सिर्फ़ ऑर सिर्फ़ इस घर का हूँ बॅस मुझे इतना पता है...

नाज़ी: मतलब सिर्फ़ मेरे हो... (मुस्कुराते हुए)

मैं: अच्छा अब दूर होके बैठो फ़िज़ा देख लेगी तो क्या सोचेगी...

नाज़ी: (दूर होके बैठ ते हुए) ये तो मैने सोचा ही नही... हाहहाहा

मैं: इसलिए कहता हूँ तुम मे अभी बच्पना है

नाज़ी: (नज़रे झुकाकर मुस्कुराते हुए)

मैं: अच्छा अब मैं चलता हूँ ठीक है बहुत रात हो गई है तुम भी सो जाओ अब...

नाज़ी: मेरे वाले कमरे मे जाके सोना आज ठीक है...

मैं: हम्म अच्छा... (थाली लेके खड़ा होते हुए)

नाज़ी: अर्रे ये आप क्यो लेके जा रहे हो छोड़ो मैं ले जाउन्गी (थाली मुझसे लेते हुए)

मैं: ठीक है

उसके बाद मैं खड़ा हुआ ऑर जैसे ही कमरे से बाहर जाने लगा नाज़ी की आवाज़ मेरे कानो से टकराई जिसने मेरे कदम रोक दिए...

नाज़ी: आज मुँह मीठा नही करना (मुस्कुरा कर)

मैं: करना तो है लेकिन... फ़िज़ा देख सकती है इसलिए अभी रहने देते हैं (मुस्कुराकर)

नाज़ी: सोच लो... ऐसा मोक़ा फिर नही दूँगी (मुस्कुराते हुए)

मैं: कोई बात नही मुझे कुछ करने के लिए मोक़े की ज़रूरत नही सिर्फ़ मर्ज़ी होनी चाहिए...

इतने मे फ़िज़ा की आवाज़ आ गई तो हम दोनो चुप हो गये...

फ़िज़ा: (कमरे मे आते हुए) अर्रे नाज़ी ने खाना खाया या नही...

मैं: खा लिया (मुस्कुराते हुए)

फ़िज़ा: क्या बात है जब मैने बोला था तो नही खाया तुम आए तो खा भी लिया...

नाज़ी: ऐसा कुछ नही है भाभी वो बस ये ज़िद्द करके बैठ गये तो खाना पड़ा...

फ़िज़ा: अच्छा अब चलो रसोई मे थोड़ा काम करवा दो मेरे साथ फिर सोना भी है...

नाज़ी: अच्छा अभी आई भाभी...

मैं: मेरे लिए ऑर कोई हुकुम सरकार... (मुस्कुराते हुए)

फ़िज़ा: जी... आप जाइए ऑर जाके अपने नये कमरे मे सो जाइए आराम से (मुस्कुरा कर)

मैं: जो हुकुम... आज बाबा के पास नही सोना क्या...

फ़िज़ा: नही वो बाबा कह रहे थे कि अगर नीर दूसरे कमरे मे सोना चाहे तो सुला देना नही तो यहाँ भी (बाबा के कमरे मे) सोएगा तो मुझे कोई ऐतराज़ नही...

मैं: तो मैं कहा सो फिर...

फ़िज़ा: जहाँ तुम चाहते हो सो जाओ आज तो सारा दिन मैं अकेली ही लगी रही नाज़ी भी तुम्हारे साथ शहर चली गई थी तो मुझे भी बहुत नींद आ रही है...

नाज़ी: तो भाभी आप सो जाओ ना वैसे भी बाबा ने ज़्यादा काम करने से मना किया है ना आपको...

फ़िज़ा: तो फिर घर का बाकी बचा हुआ काम कौन करेगा...

नाज़ी: मैं हूँ ना संभाल लूँगी आप जाओ जाके सो जाओ... (मुस्कुराते हुए)

फ़िज़ा: अच्छा... ठीक है (मुस्कुराते हुए) नाज़ी सोने से पहले याद से नीर को दूध गरम करके दे देना मैने उसमे दवाई डाल दी है...

नाज़ी: अच्छा भाभी...

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#71
अपडेट-32

उसके बाद नाज़ी रसोई मे चली गई ऑर फ़िज़ा अपना बिस्तर करने लगी मैं भी अपने नये कमरे मे जाके लेट गया ऑर सोने की कोशिश करने लगा ऑर दिन भर हुए सारे कामो के बारे मे सोचने लगा... थोड़ी देर मैं ऐसे ही बिस्तर पर लेटा करवटें बदलता रहा लेकिन मुझे नींद नही आ रही थी... कुछ देर बाद नाज़ी भी दूध का लेके मेरे कमरे मे आ गई...

नाज़ी: सो गये क्या...

मैं: नही जाग रहा हूँ क्या हुआ

नाज़ी: ये दवाई वाला दूध लाई हूँ आपके लिए पी लो...





मैने बिना कुछ बोले दूध पकड़ लिया ऑर पीने लगा... ऑर नाज़ी ऐसे ही मेरे पास खड़ी मुझे देखती रही ऑर मुस्कुराती रही...

मैं: लो जी ये दूध तो हो गया अब आपके दूध की बारी है...

नाज़ी: (चोन्कते हुए) मेरा कौनसा दूध

मैं: पास आओ

नाज़ी: (ना मे सिर हिलाते हुए) अब कोई शरारत मत करना भाभी जाग ना जाए...

मैं: जाके देख कर आओ अगर वो सो गई तो वापिस आ जाना... (मुस्कुराते हुए)

नाज़ी: मैं अभी देखकर आई हूँ भाभी तो कब की सो गई है

मैने जल्दी से नाज़ी की बाजू पकड़कर अपनी तरफ खींचा जिससे वो खुद को संभाल नही सकी ऑर मेरे उपर आके गिरी जिसको मैने अपनी दोनो बाजू मे थाम लिए...

नाज़ी: क्या कर रहे हो छोड़ो मुझे भाभी जाग जाएगी...

मैं: नही जागेगी अभी तुम खुद ही तो देखकर आई हो...

नाज़ी: फिर भी जाग गई तो... मुझे डर लगता है छोड़ो ना

मैं: अच्छा मुँह मीठा करवाओ फिर जाने दूँगा...

नाज़ी: लेकिन सिर्फ़ एक ठीक है...

मैं: (हाँ मे सिर हिलाते हुए) हम्म...

नाज़ी मेरे उपर लेटी हुई थी ऑर उसने भी अपनी सहमति मे आँखें बंद कर ली फिर मैने उसके चेहरे को अपने हाथ से पकड़ा ऑर अपने होंठ उसके नाज़ुक ऑर रसीले होंठों पर रख दिए... मेरे होंठ उसके होंठों के साथ मिलते ही उसने अपना पूरा बदन ढीला छोड़ दिया जिससे मैने उसके होंठ चूस्ते हुए अपने दोनो हाथ उसकी कमर पर रख दिए ऑर सख्ती से उसको अपनी बाजू मे क़ैद कर लिया अब मैं कभी उसके नीचे वाला होंठ चूस रहा था कभी उसके उपर वाला होंठ चूस रहा था वो बस अपनी आँखें बंद किए हुए मेरे उपर लेटी हुई थी ऑर अपने दोनो हाथ मेरी छाती पर रखे हुए थे... मुझे उसका नाज़ुक ऑर नरम बदन मदहोश सा करता जा रहा था जिससे मैं खुद पर काबू नही कर पा रहा था इसलिए मैने उसके होंठ चूस्ते हुए ही उसको पलटाया ऑर बिस्तर की दूसरी तरफ गिरा दिया ऑर खुद उसके उपर आ गया उसकी साँस लगातार तेज़ चल रही थी ऑर अब वो भी मेरी पीठ पर अपने हाथ फेर रही थी... मैं हीना के साथ हुई चुदाई से वैसे ही गरम था उस पर मुझे नाज़ी जैसा नाज़ुक बदन फिर से मिल गया इसलिए मैं बहुत जल्दी गरम हो गया...

अब मेरा एक हाथ नाज़ी की गर्दन पर घूम रहा था ऑर दूसरा हाथ उसके सिर के नीचे था जिससे मैने उसके सिर को उपर उठा रखा था ताकि होंठ चूसने मे आसानी रहे... नीचे मेरा लंड भी पूरी तरह खड़ा हो चुका था जो नाज़ी की टाँगो के बीच मे फसा हुआ था अब मैने अपने एक हाथ जो उसकी गर्दन पर था उससे नीचे ले जाना शुरू किया ऑर उसके एक मम्मे को पकड़ लिया जिसे नाज़ी ने फॉरन अपने हाथ से झटक दिया मैने फिर से अपना हाथ उपर ले जाकर दुबारा उसके मम्मे को थाम लिया ऑर दबाने लगा जिसे एक बार फिर नाज़ी ने पकड़ लिया ऑर नीचे को झटक दिया साथ ही आँखें खोल कर मेरी आँखो मे देखा ऑर ना मे इशारा किया लेकिन मैं उस वक़्त इतना गरम हो गया था कि कुछ भी समझने की हालत मे नही था इसलिए मैने एक बार फिर नाज़ी के मम्मे को सख्ती से थाम लिया इस बार नाज़ी ने कुछ नही कहा ऑर मेरी आँखों मे देखकर मुझे ना इशारा करती रही...

फिर मैने अपना हाथ नीचे ले जाकर नाज़ी की कमीज़ ज़रा उपर की ऑर अपना हाथ अंदर डालने की कोशिश करना लगा जिससे नाज़ी ने अपने होंठ मेरे होंठों से अलग किए ऑर अपने दोनो हाथो से मेरा हाथ पकड़ लिया...

नाज़ी: मत करो ना

मैं: कुछ नही होता मेरा दिल है...
उसके बाद मैने नाज़ी के दोनो हाथो को अपने एक हाथ से पकड़ लिया ऑर उपर कर दिया साथ ही दूसरा हाथ नीचे लेजा कर ज़बरदस्ती उसकी कमीज़ मे डाल दिया ऑर उसके पेट पर फेरने लगा साथ ही दुबारा उसके होंठ चूसने लगा... मेरा हाथ जैसे ही उसकी ब्रा तक पहुँचा उसने अपना एक हाथ छुड़ा लिया ऑर मेरे मुँह पर थप्पड़ मार दिया साथ ही डर कर अपना एक हाथ अपने मुँह पर रख लिया...

नाज़ी: नीर माफ़ कर दो मैने जान-बूझकर नही मारा वो ग़लती से हाथ उठ गया...

मैं: (नाज़ी के उपर से हट ते हुए) जाओ यहाँ से...

नाज़ी: नीर माफ़ कर दो मैने जान बूझकर नही मारा...

मैं: (गुस्से मे) मैने बोला ना जाओ यहाँ से...

इतना बोलने के साथ ही मैने उसकी बाजू पकड़ी ऑर अपने बिस्तर से उसको खड़ा कर दिया...

नाज़ी: नीर ज़्यादा ज़ोर से लगा क्या...

मैं: जाओ यहाँ से ग़लती मेरी थी जो तुम पर अपना हक़ जाता रहा था...

नाज़ी: (रोते हुए) ऐसा मत बोलो नीर ग़लती तो मुझसे हो गई माफ़ कर दो... (मेरा हाथ पकड़ते हुए) मुझे वहाँ किसीने कभी छुआ नही इसलिए ग़लती से हाथ उठ गया... अब कुछ भी कर लो मैं कुछ नही कहूँगी...

मैं: मुझे बहुत नींद आई है तुम जाओ ऑर जाके सो जाओ मुझे अब कुछ नही करना जो मिला इतना काफ़ी है... (अपना हाथ नाज़ी के हाथ से झटकते हुए)

उसके बाद मैं वापिस अपने बिस्तर पर लेट गया ऑर नाज़ी रोती हुई कमरे से चली गई... मुझे उस वक़्त सच मे बहुत गुस्सा आ गया था क्योंकि मैने नाज़ी से ऐसे-कुछ की कभी उम्मीद नही की थी लेकिन उसके इस तरह मुझ पर हाथ उठाने से जाने क्यो मुझे बहुत बुरा लगा...

 
कुछ देर ऐसे ही मैं बिस्तर पर लेटा रहा ओर फिर थोड़ी ही देर मे मुझे नींद आ गई लेकिन आधी रात को अचानक मुझे अजीब बैचैनि सी महसूस होने लगी ऑर मेरी नींद खुल गई मेरा पूरा बदन पसीने से भीगा पड़ा था मेरे सिर मे बहुत तेज़ दर्द हो रहा था जैसे अभी फॅट जाएगा ऑर मुझे बहुत तेज़ चक्कर भी आ रहे थे ऐसा लग रहा था जैसे पूरा कमरा घूम रहा हो... मेरा पूरा बदन टूटने लगा मैं हिम्मत करके उठा लड़खड़ाते हुए पास पड़े मटके से थोड़ा सा पानी पी लिया ऑर कुछ अपने सिर मे भी डाल लिया
 
थोड़ी देर बार मुझे एक उल्टी आई तो थोड़ा सुकून आया उसके बाद मैं आके फिर से बिस्तर पर लेट गया... पानी पीने से मुझे कुछ सुकून मिला ऑर कुछ ही देर मे मुझे फिर से नींद आ गई...

सुबह किसी के हिलाने से मेरी नींद खुली तो देखा फ़िज़ा मुझे उठा रही थी मेरे सिर मे अब भी तेज़ बहुत दर्द था ऑर मेरा पूरा बदन टूट रहा था मुझसे आँखें खोली नही जा रही थी ओर उनमे तेज़ जलन हो रही थी... जब मैने आँखें खोली तो बाबा नाज़ी ऑर फ़िज़ा मेरे पास ही खड़े थे... वो तीनो बड़ी फिकर-मंदी से मुझे देख रहे थे...

फ़िज़ा: नीर तुम्हे तो बहुत तेज़ बुखार है

मैं: पता नही हो गया होगा मेरे सिर मे भी बहुत दर्द हो रहा है...

फ़िज़ा: ये लो दवाई खा लो ठीक हो जाओगे...

नाज़ी: मैं सिर दबा दूँ...

मैं: ज़रूरत नही है...

बाबा: आज बेटा खेत नही जाना ऑर घर पर ही आराम करना...

मैं: जी बाबा...

उसके बाद मैने दवाई खाई ऑर सबने मुझे खेत नही जाने दिया ऑर घर मे ही आराम करने का बोल दिया... इसलिए अब मैं बाहर नही जा सकता था ओर दिन भर घर मे अपने कमरे मे ही बैठा रहा...

 
कुछ देर फ़िज़ा मेरा सिर अपनी गोद मे रखकर दबाती रही जिससे मुझे काफ़ी आराम मिल रहा था फिर जब मुझे थोड़ा सुकून मिला तो मैने फ़िज़ा को रोक दिया ऑर वो भी बाहर चली गई ऑर घर के बाकी कामो मे लग गई...
 
नाज़ी बार-बार मेरे सामने आ रही थी ऑर अपने कान पकड़कर माफी माँग रही थी लेकिन रात का वाक़या याद आते ही मेरे चेहरे पर उसके लिए गुस्सा आ जाता ऑर मैं उसकी तरफ देखता भी नही था...
 
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#72
दुपहर को हीना मुझसे मिलने घर आ गई जिसे फ़िज़ा ने सीधा मेरे कमरे मे ही भेज दिया...

हीना: क्या हुआ नीर आज खेत नही गये आप मैं तो आपको दवाई देने खेत गई थी...

मैं: कुछ नही वो ज़रा बुखार आ गया था इसलिए...

हीना: क्या... ओर आपने मुझे बताना भी ज़रूरी नही समझा...

मैं: अर्रे इसमे बताने जैसा क्या था हल्का सा बुखार था शाम तक ठीक हो जाएगा...

हीना: दवाई ली?

मैं: हाँ सुबह फ़िज़ा ने दे दी थी...

हीना: अच्छा आप आराम करो शाम को मैं फिर आउन्गि... (मेरे हाथ पर अपना हाथ रखते हुए)

उसके बाद हीना चली गई ऑर मैं उसको कमरे से बाहर निकलते हुए देखता रहा... सारा दिन ऐसे ही कमरे मे गुज़र गया ऑर शाम को हीना अपने वादे के मुताबिक़ फिर आ गई लेकिन इस बार उसके साथ एक डॉक्टर भी था... कुछ देर वो लोग बाहर बाबा के पास बैठे रहे ऑर फिर डॉक्टर , हीना, ऑर फ़िज़ा कमरे मे आ गये... ये वही डॉक्टर था जिसके पास हीना मुझे शहर मे दिखाने के लए लेके गई थी जिसको मैने देखते ही पहचान लिया... डॉक्टर ने आते ही पहले मेरा चेक-अप किया ऑर फिर मुझ दी हुई दवाई के बारे मे पुच्छने लगा जो डॉक्टर रिज़वाना ने मुझे रोज़ खिलाने के लिए दी थी...

डॉक्टर: आपको ये दवाइयाँ किसने दी है...

फ़िज़ा: जी शहर से इनके एक दोस्त आए थे उनके साथ एक डॉक्टर आई थी उसने दी है... क्यो क्या हुआ...

डॉक्टर: आप जानती है ये दवाई किस काम के लिए हैं...

फ़िज़ा: हंजी डॉक्टर ने इनकी याददाश्त के लिए इन्हे ये दवाइयाँ दी है ये हर बात भूल जाते हैं इसलिए...

डॉक्टर: (मुस्कुराते हुए) ये दवाइयाँ याददाश्त वापस लाने के लिए नही बल्कि दिमाग़ की तमाम याददाश्त को ख़तम करने के लिए है...

फ़िज़ा: (चोन्कते हुए) क्या...

डॉक्टर: ये तो अच्छा हुआ कि इनके ब्लड मे शराब इतनी ज़्यादा है जिस वजह से जब इन्होने दवाई खाई तो दवाई इनको सूट नही हुई ऑर इनकी तबीयत खराब हो गई नही तो ये अगर रोज़ ऐसे ही ये दवाई लेते रहते तो इनको जो अब थोड़ा बहुत याद है वो भी सॉफ हो जाना था...

ये बात हम सब के लिए किसी झटके से कम नही थी... सबके दिमाग़ मे एक ही बात थी कि क्यो डॉक्टर रिज़वाना ने मुझे ग़लत दवाई दी... आख़िर क्यो ख़ान जैसा नेक़ ऑर ईमानदार इंसान मेरे साथ ऐसा कर रहा है... अब मेरी समझ मे आ रहा था कि रात को मुझे इतनी बचैनि क्यो हुई आख़िर क्यो मेरे सिर मे इतना जबरदस्त दर्द हुआ ये सब डॉक्टर रिज़वाना की दी हुई दवाई का ही कमाल था... अभी मैं इसी बात पर सोच ही रहा था कि हीना की आवाज़ आई...

हीना: ये कौन्से बेफ़्कूफ़ डॉक्टर के पास लेके गये थे आप लोग नीर को अगर इन्हे कुछ हो जाता तो कभी सोचा है...

फ़िज़ा: (परेशान होते हुए) मुझे तो खुद कुछ समझ नही आ रहा नही तो इनका बुरा तो हम सोच भी नही सकते...

डॉक्टर: कोई बात नही अभी तो सिर्फ़ एक ही डोज अंदर गई थी इसलिए ज़्यादा कुछ असर नही हुआ... ये मैं आपको कुछ दवाई लिखकर देता हूँ आप लोग ले आइए ऑर इन्हे देना शुरू कर दीजिए ऑर बाकी ये वाली दवाई इन्हे दुबारा मत देना...

हीना: (दवाई की पर्ची पकड़कर हाँ मे सिर हिलाते हुए) कोई बात नही मैं किसी को भेज कर अभी शहर से मंगवा लेती हूँ...

फ़िज़ा: हमें माफ़ कर दो नीर हमे नही पता था कि उस खबीज ने तुमको ग़लत दवाई दी है हम तो उससे नेक़ इंसान समझकर भरोसा कर बैठे...

मैं: कोई बात नही इसमे आपका क्या कसूर है... अब जवाब तो ख़ान को देना है...

फ़िज़ा: अब घर मे घुसकर तो दिखाए कमीना टांगे तोड़ दूँगी उसकी...

मैं: कोई कुछ नही बोलेगा उसको... अभी मुझे ये बात जानने दो कि उसने ऐसा क्यो किया...

फिर डॉक्टर ने मुझे एक इंजेक्षन लगाया जिससे कुछ ही देर मे मेरा बुखार भी उतर गया उसके बाद हीना ने भी अपने ड्राइवर को डॉक्टर को शहर छोड़ने के लिए भेज दिया साथ ही वो दवाई की पर्ची भी उसको दे दी... जब तक ड्राइवर नही आया हीना ऑर फ़िज़ा मेरे पास ही बैठी रही लेकिन नाज़ी कमरे के बाहर ही खड़ी रही उसको सब अंदर बुलाते रहे लेकिन वो अंदर नही आई बस दरवाज़े पर खड़ी मुझे देखती रही...

मेरे दिमाग़ मे बस इनस्पेक्टर ख़ान ऑर डॉक्टर रिज़वाना का ही ख़याल था मेरे दिमाग़ मे इस वक़्त एक साथ कई सवाल चल रहे थे... फिर अचानक इस डॉक्टर की कही हुई बात याद आई कि मुझे मेरे खून मे मिली शराब ने बचाया... लेकिन मैं तो शराब पीता ही नही फिर मेरे खून मे शराब कैसे आई... ऐसे ही कई सवाल थे जिनके जवाब मुझे चाहिए थे मुझे सिर्फ़ एक ही इंसान पता था जो मेरी बीती हुई जिंदगी के बारे मे जानता था जिससे मैं अपने बारे मे जान सकता था कि मैं कौन हूँ ओर मेरी असलियत क्या है इसलिए मैने सोच लिया था कि अब इनस्पेक्टर ख़ान से ही अपनी असलियत पता करूँगा...


हीना ऑर फ़िज़ा मेरे पास बैठी रही ऑर मेरे बारे मे ही बाते करती रही लेकिन मैं बस अपने ही ख्यालो मे गुम था ऑर आने वाले वक़्त के बारे मे सोच रहा था... जाने कब मुझे नींद आ गई ऑर मैं सो गया मुझे पता ही नही चला...
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#73
 
अपडेट-33
रात को जब मेरी नींद खुली तो मैं उठकर बैठ गया मेरे पास ही कुर्सी पर फ़िज़ा बैठी-बैठी ही सो गई थी मैं उठ कर खड़ा हुआ तो मैने खुद को बहुत ताज़ा महसूस किया जैसे मुझे कुछ हुआ ही नही... मैने फ़िज़ा को उठाना सही नही समझा इसलिए उसको धीरे से सीधा करके कुर्सी पर बिठाया ऑर एक बाजू उसकी गर्दन मे डाली ऑर दूसरी उसकी टाँगो के नीचे से लेजा कर उसे गोद मे उठा लिया ऑर बेड पर अच्छे से लिटा दिया वो अब भी नींद मे थी ऑर सोई हुई बहुत मासूम लग रही थी... उसके चेहरे पर आने वाली लट उसकी खूबसूरती को ऑर निखार रही थी मैने उसके खूबसूरत चेहरे से वो बाल की लट को उंगली से साइड पर किया ऑर उसके मासूम चेहरे को देखने लगा ऑर दिन भर हुए सारे हालात के बारे मे सोचने लगा कि कैसे फ़िज़ा ने सारा दिन मेरी खिदमत की... वो शायद ठीक ही कहती थी कि दुनिया के लिए उसका शोहार क़ासिम था लेकिन असल मे वो मुझे अपना शोहार मानती थी... एक वाफ्फ़ादर बीवी की तरह हमेशा मेरा इतना ख्याल रखती थी... मैने हल्के से उसके होंठों को चूम लिया जिससे उसकी आँखें खुल गई ऑर वो मुस्कुरा कर मुझे देखने लगी...




फ़िज़ा: आप उठ गये जान... अब कैसा महसूस कर रहे हैं...


मैं: बहुत अच्छा महसूस कर रहा हूँ जैसे कुछ हुआ ही नही मुझे... लेकिन यार तुम क्यों जाग गई सो जाओ अभी बहुत रात बाकी है...

फ़िज़ा: मैं तो आपके पास ही बैठी थी... जान पता ही नही चला कब आँख लग गई...

मैं: कोई बात नही अब तुम आराम करो...

फ़िज़ा: नही आप यहाँ सो जाओ मैं अब उस कमरे मे जाके सो जाउन्गी...

मैं: क्यो यहाँ सो जाओगी तो कुछ हो जाएगा...

फ़िज़ा: होगा तो कुछ नही पर अभी आपको आराम की ज़रूरत है...

मैं: तुम्हारे उपर लेट जाता हूँ ना इससे ज़्यादा आराम तो दुनिया मे नही होगा...

फ़िज़ा: (मेरे दोनो गाल पकड़ कर खींचते हुए) ठीक होते ही बदमाशी शुरू करदी (मुस्कुराते हुए) अब आप उपर लेटना तो भूल ही जाइए कुछ वक़्त के लिए...

मैं: क्यों...

फ़िज़ा: वो इसलिए क्योंकि अब मेरे साथ कोई ऑर भी है... मैं नही चाहती मेरे छोटे नीर को आपकी किसी शरारत की वजह से तक़लीफ़ हो... (मुस्कुराते हुए) लेकिन हाँ साथ ज़रूर लेट सकती हूँ...

मैं: अच्छा मतलब अब प्यार करना भी बंद... (रोने जैसा मुँह बनाते हुए)

फ़िज़ा: सिर्फ़ कुछ महीनो के लिए उसके बाद जैसे चाहे प्यार कर लेना... (मेरे होंठ चूमते हुए)

उसके बाद हम ऐसे ही कुछ देर बाते करते रहे ऑर फिर फ़िज़ा अपने कमरे मे जाके सो गई ओर मैं भी वापिस अपने बिस्तर पर आके लेट गया ऑर कुछ देर मे दवाई के नशे की वजह से दुबारा सो गया...

 
 
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#74
मेरे 2-3 दिन ऐसे ही गुज़रे बाबा ने मुझे खेत पर भी नही जाने दिया ऑर मैं सारा दिन घर पर ही बैठा रहता... लेकिन नाज़ी से अब मैं दूरी बनाके रखने लगा था वो हर वक़्त मुझसे बात करने की कोशिश करती लेकिन मैं हर बार उसकी बात को अनसुना कर देता...
 
हाँ इतना ज़रूर था कि रोज़ शाम को हीना मेरा पता लेने आती ऑर मेरे साथ थोड़ा वक़्त गुज़ारती मेरी वजह से वो नयी गाड़ी लेने भी नही गई क्योंकि वो चाहती थी कि मैं ठीक होके उसके साथ शहर चल सकूँ... जितने दिन मैं खेत नही गया उतने दिन हीना ने अपने मुलाज़िमो को मेरे खेत मे लगाए रखा ताकि मेरी गैर-मोजूदगी मे वो लोग मेरे खेत का ख्याल रखे...

मुझे अब घर मे पड़े हुए 3 दिन हो गये थे ऑर फिर अगली सुबह डॉक्टर रिज़वाना आ गई मेरा चेक-अप करने के लिए... उस वक़्त बाबा सैर करने गये हुए थे इसलिए फ़िज़ा ने ऑर नाज़ी ने आते ही उसको सुनानी शुरू करदी... मैं भी उस वक़्त सो रहा था लेकिन फ़िज़ा ऑर नाज़ी की ऊँची आवाज़ से मेरी नींद खुल गई ऑर मैं उठकर अपने कमरे से बाहर चला गया तो वहाँ फ़िज़ा ऑर नाज़ी डॉक्टर रिज़वाना से झगड़ रही थी ऑर रिज़वाना नज़रे झुकाकर सब सुन रही थी...

मैं: क्या हुआ शोर क्यो मचा रखा है... (आँखें मलते हुए)

फ़िज़ा: तुम अंदर जाओ नीर मुझे बात करने दो... (गुस्से मे)

रिज़वाना: अब आप कैसे हैं...

मैं: अर्रे डॉक्टर आप... जी मैं एक दम ठीक हूँ... (मुस्कुराते हुए)

फ़िज़ा: ये झूठी हम-दरदी अगर आप ना दिखाए तो ही अच्छा है अगर आपको नीर की इतनी ही फिकर होती तो आप उसको कभी ग़लत दवाई ना देती... हमने आप पर ऑर इनस्पेक्टर ख़ान पर इतना भरोसा किया ऑर आपने हमारे साथ कितना फरेब किया... कभी आपने सोचा अगर आपकी ग़लत दवाई से इनको कुछ हो जाता तो...

रिज़वाना: जी कुछ नही होता इनको... आप लोग एक बार मेरी बात सुन लीजिए...

नाज़ी: हमे अब आपकी कोई बात नही सुननी मेहरबानी करके आप यहाँ से चली जाओ...

रिज़वाना: (परेशान होके अपने पर्स से मोबाइल निकलते हुए) अच्छा ठीक है मैं चली जाउन्गी लेकिन एक बार मेरी बात सुन लीजिए प्लज़्ज़्ज़...

नाज़ी: अब क्या झूठी कहानी सुननी है...

रिज़वाना: (फोन पर नंबर डायल करते हुए) बस 2 मिंट दीजिए मुझे...

रिज़वाना: (फोन पर) कहाँ हो तुम... जल्दी से शेरा के घर आओ... मुझे नही पता... हाँ ठीक है... अच्छा... ओके (फोन रखते हुए)

फ़िज़ा, नाज़ी ऑर मैं हम तीनो रिज़वाना के जवाब का इंतज़ार कर रहे थे ऑर सवालिया नज़रों से उसकी तरफ देख रहे थे...

रिज़वाना: देखिए मैने कोई भी काम ग़लत नही किया मैने वही किया जो मुझे इनस्पेक्टर ख़ान ने कहा... नीर जैसा अब है वैसा ही सारी उम्र रहे इसलिए इसकी पुरानी याददाश्त मिटनी ज़रूरी थी क्योंकि अगर इसकी यादशत वापिस आती है तो फिर ये आज जैसा नही रहेगा मुमकिन है फिर ये नीर भी ना रहे ऑर फिर से शेरा बन जाए... क्योंकि इसकी पुरानी जिंदगी मे ये एक बहुत बड़ा अपराधी है... ख़ान को भी इसकी ऐसे ही ज़रूरत है वो पुराने शेरा पर भरोसा नही कर सकता लेकिन नीर पर कर सकता है क्योंकि वो इसको एक ऐसे मिशन पर भेजना चाहता है जहाँ ये जाएगा शेरा बनकर लेकिन होगा नीर ही...

फ़िज़ा: मेरी तो कुछ समझ नही आ रहा आप क्या कह रही है... (परेशान होते हुए)

रिज़वाना: नीर आज एक नेक़-दिल इंसान है इसमे कोई शक़ नही मैने ही इसका लाइ डिटेक्टर टेस्ट किया था उसमे इसने मुझे वही सब बताया जो आप लोगो ने ख़ान को बताया था... लेकिन इसके दिमाग़ की स्कॅनिंग करके मुझे पता चला कि इसकी याददाश्त वापिस आ सकती है अगर इसको इसकी पुरानी जिंदगी याद करवाई जाए तो ऑर आज भी इसके दिमाग़ के सिर्फ़ एक हिस्से से याददाश्त ख़तम हुई है अगर इसको इसकी पुरानी जिंदगी मे वापिस लेके जाया जाए तो इसकी वो याददाश्त वापिस आ सकती है ऑर इसी वजह से आज भी इसको अपनी पुरानी जिंदगी की काफ़ी चीज़े आज ही याद है ऑर इसके दिमाग़ के इंटर्नल मेमोरी मे स्टोर है इसलिए आज भी ये लड़ाई करना, गाड़ी चलाना, हथियार चलाना ऑर बाकी काम जो ये बचपन से करता आया है इसको आज भी याद है ऑर आज भी ये वैसे ही बहुत महारत के साथ सब काम कर लेता है अगर ये वहाँ जाके शेरा बन गया तो फिर ये हमारे किसी का काम नही रहेगा...

फ़िज़ा: इनको भेजना कहाँ है (सवालिया नज़रों से)

रिज़वाना: वही तो मैं बता रही हूँ कि ख़ान इसको इसके गॅंग तक पहुँचा देगा जहाँ ये ख़ान का इनफॉर्मर बनकर इसके गॅंग की खबर हम तक पहुँच जाए... इससे ख़ान इसके सारे गॅंग को ख़तम कर सकता है...

अभी रिज़वाना बात ही कर रही थी कि घर के सामने एक जीप आके रुकी ऑर सब लोग एक साथ दरवाज़े के बाहर देखने लगे... जीप मे से ख़ान उतरा ऑर सीधा घर के अंदर आ गया फ़िज़ा ऑर नाज़ी अब भी उससे गुस्से से देख रही थी...

रिज़वाना: अच्छा हुआ तुम आ गये इनको दवाई के ऑर मिशन के बारे मे बताओ... (गुस्से से)

ख़ान: माफ़ कीजिए मैने आपसे कुछ बाते राज़ रखी लेकिन मैने आपके बाबा को सब बता दिया था ऑर उनकी इजाज़त से ही इसको याददाश्त की दवाई दिलवाई थी...

फ़िज़ा: (हैरानी से) बाबा जानते थे ग़लत दवाई के बारे मे...

ख़ान: जी जानते थे... मैने ही उनको मना किया था कि अभी किसी से कुछ ना कहे...

नाज़ी: आने दो बाबा को भी इनसे तो हम बात करेंगी पहले तुम ये बताओ ये डॉक्टरनी क्या कह रही है नीर के बारे मे इनको कहाँ भेजना है तुमने...

ख़ान: मैने आपसे पहले ही कहा था कि आज नीर कुछ भी है लेकिन इसके पुराने पाप इसको इतनी आसानी से नही छोड़ेंगे इसको क़ानून की मदद करनी पड़ेगी तभी ये आज़ाद हो सकता है...

मैं: (जो इतनी देर से खामोश सबकी बाते सुन रहा था) क्या करना होगा मुझे...

ख़ान: हमारी मदद करनी होगी तुम्हारे गॅंग का सफ़ाया करने मे...

मैं: गॅंग कौनसा गॅंग

ख़ान: (अपने कोट का बटन बंद करते हुए) ये लोग हर बुरा काम करते हैं ड्रग्स बेचने से लेके हथियार बेचने तक हर गुनाह मे इनका नाम है... इनके नाम अन-गिनत केस हैं लेकिन कोई सबूत नही है इसलिए हमेशा बरी हो जाते हैं...

मैं: तो आप मुझसे क्या चाहते हैं...

ख़ान: मुझे सबूत चाहिए जो मुझे सिर्फ़ तुम ही लाके दे सकते हो...

मैं: मैं ही क्यो आपके पास तो इतने लोग है किसी को भी शामिल कर दीजिए उन लोगो मे...

ख़ान: क्योंकि तुम इनके पुराने आदमी हो तुम पर वो लोग आसानी से भरोसा कर लेंगे नये आदमी को वो अपने पास तक नही आने देते... तुम अपनी पुरानी जिंदगी मे शेख साहब या तुम्हारे लिए बाबा के राइट-हॅंड थे इसलिए जहाँ तुम पहुँच सकते हो मेरा कोई आदमी नही पहुँच सकता...

मैं: ठीक है लेकिन उसके लिए मेरी याददाश्त ख़तम करने क़ी क्या ज़रूरत थी मैं तो वैसे भी आपका काम करने के लिए तैयार था...

रिज़वाना: क्योंकि तुम्हारे दिमाग़ की स्क़ेनिंग करके मुझे पता चला कि अगर तुमको तुम्हारी पुरानी ज़िंदगी मे लेके जाया जाए तो तुम्हारी याददाश्त लौट सकती है फिर ना तुम नीर रहोगे ना ही ये तुम्हारे घरवाले... मतलब सॉफ है फिर तुम उन लोगो मे जाके हमारी मदद नही करोगे अपनी पुरानी जिंदगी मे ही लौट जाओगे बस इसलिए तुम्हारी पुरानी याददाश्त मिटा रहे थे ताकि तुमको तुम्हारे ये घरवाले ओर तुम्हारी नेक़ी याद रहे...

ख़ान: सीधी सी बात है हम को नीर पर ऐतबार है शेरा पर नही...



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#75
तभी बाबा भी घर आ गये...

बाबा: अर्रे ख़ान साहब आप कब आए...

ख़ान: (अदब से सलाम करते हुए) जी बस अभी वो थोड़ा समस्या हो गया था...

नाज़ी: बाबा आपको सब पता था तो हम को क्यो नही बताया (गुस्से से)

बाबा: बेटी मैने जो किया इसके भले के लिए किया मैं नही चाहता था कि ये भी क़ासिम की तरह जैल मे अपनी जिंदगी गुज़ारे...

मैं: बाबा आपने जो किया ठीक किया लेकिन मुझे इस दवाई की ज़रूरत नही है मैं आपका बेटा हूँ ऑर आपका ही बेटा रहूँगा ऑर यक़ीन कीजिए मैं ख़ान का हर हालत मे साथ दूँगा...

ख़ान: सोच लो... तुम पर मैं बहुत बड़ा दाव खेलने जा रहा हूँ कुछ गड़बड़ हुई तो...

मैं: (बीच मे बोलते हुए) आप को मुझ पर भरोसा करना होगा...

ख़ान: ठीक है... वैसे भी मेरे पास ऑर कोई रास्ता है भी नही...

मैं: तो कब जाना है मुझे फिर...

ख़ान: अर्रे इतनी जल्दी भी क्या है तुम अभी इस लायक़ नही हो कि वहाँ तक भेज दूँ उसके लिए पहले तुमको ट्रेंड करना पड़ेगा हर चीज़ सीखनी पड़ेगी...

रिज़वाना: क्यो ना आप कुछ दिन के लिए हमारे पास शहर आ जाए वहाँ हम आपको सब कुछ सिखा भी देंगे...

फ़िज़ा: कितने दिन का काम है... (परेशान होते हुए)

ख़ान: ज़्यादा नही बस कुछ ही दिन की बात है...

बाबा: ख़ान साहब आपको हम से एक वादा करना होगा

ख़ान: (सवालिया नज़रों से बाबा को देखते हुए) कैसा वादा जनाब...

बाबा: यही कि आपका मिशन पूरा हो जाने के बाद आप सही सलामत नीर को वापिस भेज देंगे... अब ये हमारी अमानत है आपके पास...

ख़ान: जी बे-फिकर रहिए मेरा काम होते ही मैं खुद इसे आज़ाद कर दूँगा ऑर यहाँ तक कि पोलीस रेकॉर्ड्स से इसका नाम भी मिटा दूँगा... उसके बाद पोलीस रेकॉर्ड्स मे शेरा मर जाएगा ऑर फिर ये नीर बनके अपनी सारी जिंदगी चैन से आप सब के साथ गुज़ार सकता है...

बाबा: ठीक है...

ख़ान: कुछ दिन के लिए नीर को मेरे पास भेज दीजिए ताकि इसको मैं इसका काम सीखा सकूँ उसके बाद इसको मैं मिशन पर भेज दूँगा...

मैं: मेरे जाने के बाद इनका ख्याल कौन रखेगा...

ख़ान: तुम इनकी बिल्कुल फिकर ना करो ये अब मेरी ज़िम्मेदारी है इनको किसी चीज़ की कमी नही होगी ये मैं वादा करता हूँ...

मैं: ठीक है फिर मैं कल ही आ जाता हूँ

ख़ान: जैसा तुम ठीक समझो... अच्छा जनाब (बाबा की तरफ देखते हुए) अब इजाज़त दीजिए...

बाबा: अच्छा ख़ान साहब...

उसके बाद डॉक्टर रिज़वाना ऑर ख़ान दोनो चले गये ऑर मैं दोनो को जाते हुए देखता रहा... बाबा एक दम शांत होके कुर्सी पर बैठे थे जैसे वो किसी गहरी सोच मे हो...

मैं: क्या हुआ बाबा

बाबा: बेटा मुझे समझ नही आ रहा कि तुमको ऐसी ख़तरनाक जगह पर भेजू या नही...

मैं: अर्रे बाबा आप फिकर क्यो करते हैं अपने बेटे पर भरोसा रखिए कुछ नही होगा...

बाबा: एक तुम पर ही तो भरोसा है बेटा... लेकिन तुम्हारी फिकर भी है कही तुमको कुछ हो गया तो मुझ ग़रीब के पास क्या बचेगा...

मैं: कुछ नही होगा बाबा...

फ़िज़ा: बाबा आपको इतने ख़तरनाक काम के लिए ख़ान को हाँ नही बोलना चाहिए था जाने वो लोग कैसे होंगे...

बाबा: शायद तुम ठीक कह रही हो बेटी लेकिन मैं भी क्या करता एक बेटा आगे ही जैल मे बैठा है दूसरे को भी जैल कैसे भेज देता इसलिए मजबूर होके मैने हाँ कहा था...

नाज़ी: लेकिन बाबा अगर वहाँ नीर को कुछ हो गया तो...

फ़िज़ा: (बीच मे बोलते हुए) ऐसी बाते ना करो नाज़ी वैसे ही मुझे डर लग रहा है...

मैं: अर्रे आप सब तो ऐसे ही घबरा रहे हो कुछ नही होगा... मुझे बस आप लोगो की ही फिकर है...

बाबा: तुम बस अपना ख्याल रखना बेटा... हमें ऑर कुछ नही चाहिए (मेरे सिर पर हाथ फेरते हुए)

ऐसे ही हम काफ़ी देर तक बाते करते रहे शाम को हीना फिर से मेरा पता लेने आ गई मैने उससे कुछ दिन इलाज करवाने का बता कर शहर जाने का बहाना बना दिया जिस पर पहले वो नाराज़ हुई लेकिन फिर वो मान गई ऑर कुछ वक़्त उसके साथ बिताने के बाद वो भी चली गई...


 
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#76
अगले दिन वादे के मुताबिक़ सुबह ख़ान ने जीप भेजदी मुझे लेने के लिए... बाबा नाज़ी ऑर फ़िज़ा ने मुझे बहुत सारी दुआएँ ऑर भीगी आँखों के साथ रुखसत किया... मैं तमाम रास्ते नाज़ी... बाबा, फ़िज़ा ऑर हीना के बारे मे ही सोचता रहा ऑर इनके साथ बिताए वक़्त के बारे मे ही याद करता रहा... मुझे नही पता था कि जहाँ मैं जेया रहा हूँ वहाँ से वापिस आउन्गा या नही लेकिन इन लोगो के साथ बिताए वक़्त ने मेरे दिल मे इन लोगो के लिए बे-इंतेहा प्यार पैदा कर दिया था... वैसे तो ये लोग मेरे कोई नही थे लेकिन फिर भी ये मुझे मेरे अपनो से बढ़कर थे ऑर आज मैं जो कुछ भी करने जा रहा था इन लोगो के लिए ही करने जा रहा था...
 
आज मेरे पास जो जिंदगी थी वो इन लोगो का ही "अहसान" था... ऐसी ही मैं अपनी ही सोचो मे गुम्म था कि मुझे पता ही नही चला कब हम शहर आ गये ऑर कब एक घर के बाहर गाड़ी रुकी...

मैं: ये कौनसी जगह है ये तो ख़ान का दफ़्तर नही है...

ड्राइवर: आपको ख़ान साहब ने यही बुलाया है...

मैं: अच्छा...

उसके बाद मैं जीप से उतरा ऑर उस घर मे चला गया जो देखने मे सरपंच की हवेली जैसा बड़ा नही था लेकिन काफ़ी शानदार बना हुआ था... गेट के बाहर 2 पोलीस वाले बंदूक थामे खड़े थे जिन्होने मुझे देखते ही छोटा गेट खोल दिया... मैं जब अंदर गया तो घर के चारो तरफ लगे खुश्बुदार फूलों ने मेरा वेलकम किया सामने एक काँच का बड़ा सा गेट लगा था जिसे मैं धकेल्ता हुआ अंदर चला गया... घर काफ़ी खूबसूरती से सजाया गया था मैं चारो तरफ नज़रें घूमाकर घर की खूबसूरती देख रहा था तभी एक मीठी सी आवाज़ मेरे कानो से टकराई...

रिज़वाना: घर अच्छा लगा (मुस्कुराते हुए)

मैं: जी बहुत खूबसूरत घर है... क्या ये ख़ान साहब का घर है (चारो तरफ देखते हुए)

रिज़वाना: जी नही ये मेरा घर है... अर्रे आप खड़े क्यो हो बैठो...

मैं: लेकिन मुझे तो ख़ान साहब ने बुलाया था

रिज़वाना: अब कुछ दिन आपको भी यही रहना है यही हम आपकी ट्रैनिंग भी मुकम्मल करवाएँगे ऑर ये एक सीक्रेट मिशन है इसलिए ख़ान ने दफ़्तर मे किसी को भी इसके बारे मे नही बताया...

मैं: अच्छा... लेकिन ख़ान साहब है कहा...

रिज़वाना: आप बैठिए वो आते ही होंगे...

मैं: ठीक है...

रिज़वाना: यहाँ आपको रहने मे कोई ऐतराज़ तो नही...

मैं: जी नही मुझे क्या ऐतराज़ होगा मैं तो कहीं भी रह लूँगा...

अभी मैं ऑर रिज़वाना बाते ही कर रहे थे कि ख़ान भी अपने हाथ मे एक फाइल थामे हुए आ गया ऑर आते ही टेबल पर फाइल फेंक दी ऑर धम्म से सोफे पर गिर गया...

ख़ान: हंजी जनाब आ गये

मैं: जी... बताइए अब मुझे क्या करना है

ख़ान: यार तुम हर वक़्त जल्दी मे ही रहते हो क्या...

मैं: नही... वो आपने काम के लिए बुलाया था तो सोचा पहले काम ही कर ले...

ख़ान: कुछ खाओगे...

मैं: जी नही मेहरबानी...

ख़ान: यार शरमाओ मत अपना ही घर है...

मैं: जी नही मैं घर से खा कर आया था...

ख़ान: चलो जैसी तुम्हारी मर्ज़ी... अच्छा ये देखो तुम्हारे लिए कुछ लाया हूँ...

मैं: (सवालिया नज़रों से ख़ान को देखते हुए) जी क्या...

ख़ान: (उठकर मेरे साथ सोफे पर बैठ ते हुए) ये तुम्हारे पुराने दोस्तो की तस्वीरे हैं जिनके साथ अब तुमको काम क्रना है... (फाइल खोलते हुए)



 
 
 
 
 

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#77
अपडेट-34
 
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यहाँ से दोस्तो मे कुछ नये लोगो का इंट्रोडक्षन आप सब से करवा दूँ ताकि आगे भी आपको कहानी समझ आती रहे:-


 


दोस्तो यहाँ से कुछ नये करेक्टर का परिचय कराता हूँ ==>



शेख साब {बाबा}:- एज- 58 साल, दिखने मे काफ़ी रौबदार इंसान, काम- गॅंग का मैं लीडर, शेरा जैसे बाकी सब लोग इसके लिए ही काम करते हैं...

अनीस (छोटा शेख) :- एज- 32 साल, शेख का बेटा ऑर एक ला-परवाह किस्म का इंसान इसलिए शेख कोई भी काम इसको सोंपना ज़रूरी नही समझता... हर वक़्त ड्रग्स के नशे मे ऑर लड़कियो मे डूबा रहता है...

मुन्ना (जापानी) :- एज- 28 साल, शेरा का जिगरी दोस्त है ऑर देखने मे जापानी जैसा लगता है इसलिए जापानी नाम से अंडरवर्ल्ड मे मशहूर, काम- ड्रग्स एजेंट ऑर आर्म्स एजेंट के साथ डील फिक्स करना ऑर फाइट क्लब मे शेरा का पार्ट्नर...

रसूल:- एज-34 साल, काम- शेरा के बाद शेरा का सारा काम यही संभालता है...

सूमा:- एज-25 साल, काम- विदेशी क्लाइंट्स के साथ ड्रग्स ऑर आर्म्स की डील फिक्स करना ओर तमाम एजेंट्स से पैसा कलेक्ट करके शेख साहब तक पहुँचना...

लाला ऑर गानी:- एज-34-28 साल, काम- होटेल्स ऑर क्लब्स संभालना...




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#78
मैं बड़े गोर से बारी-बारी सब लोगो की तस्वीरे देख रहा था ऑर उनको पहचाने की कोशिश कर रहा था लेकिन मुझे किसी का भी चेहरा याद नही आ रहा था... तभी ख़ान ने एक ऐसी तस्वीर टेबल पर फेंकी जिसको मैं उठाए बिना नही रह सका... ये तो मेरी तस्वीर थी लेकिन मैने उस तस्वीर मे मूछ रखी हुई थी इसलिए मेरा हाथ खुद ही अपने चेहरे पर चला गया जैसे मैं अपने हाथ से अपने चेहरे का जायज़ा ले रहा हूँ कि क्या ये मेरी ही तस्वीर है...

ख़ान: क्या हुआ कुछ याद आया अपने बारे मे...

मैं: (ना मे सिर हिलाते हुए) क्या ये मेरी तस्वीर है

ख़ान: जी हुजूर ये आपकी ही तस्वीर है ऑर इन तस्वीरो को अच्छे से देख लो तुमको अब ऐसा ही फिर से बनना है...

मैं: लेकिन आपने बताया नही मैं वहाँ तक पहचूँगा कैसे...

ख़ान: उसका भी एक रास्ता है

मैं: कौनसा रास्ता

ख़ान: तुम्हारा पुराना दोस्त जापानी जो फाइट क्लब संभालता है वहाँ से तुम तुम्हारी दुनिया मे एंट्री कर सकते हो... वैसे भी शेरा उस फाइट क्लब का सबसे फ़ेवरेट फाइटर हैं (मुस्कुराते हुए)

मैं: तो क्या मुझे वहाँ जाके लड़ना होगा...

ख़ान: (मुस्कुराते हुए) ऐसा ही कुछ...

मैं: मैं समझा नही आप कहना क्या चाहते हैं...

ख़ान: तुमको वहाँ जाके वहाँ के उनके लोगो को मारना होगा ऑर उनका माल लूटना होगा ताकि उन लोगो का ध्यान तुम्हारी तरफ जाए ऑर वो तुमको पहचान ले...

मैं: क्या मैं बिना कोई वजह उनसे लड़ाई करूँ...

ख़ान: वजह मैं बना दूँगा... तुमको तो बस जाके लड़ाई करनी है...

मैं: ठीक है...

उसके बाद वो तस्वीरे मुझे देकर ख़ान वापिस चला गया ऑर अब मैं अकेला बैठा उन तस्वीरो को देख रहा था ऑर अपनी पुरानी जिंदगी को याद करने की कोशिश कर रहा था लेकिन मुझे कुछ भी याद नही आ रहा था... 
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#79
ऐसे ही मैं अपनी सोचो मे गुम्म बैठा हुआ तस्वीर देख रहा था कि मुझे पता ही नही चला कब डॉक्टर रिज़वाना मेरे पास आके बैठ गई...

रिज़वाना: कहाँ खो गये जनाब... (मेरे मुँह के सामने चुटकी बजाते हुए)

मैं: जी कही नही बस वो मैं अपनी पुरानी जिंदगी के बारे मे याद करने की कोशिश कर रहा था लेकिन कुछ भी याद नही आ रहा...

रिज़वाना: कोई बात नही जैसे-जैसे तुम अपने बारे मे जानोगे तुमको याद आता जाएगा... वैसे तुमको सच मे तुम्हारे घरवालो के बारे मे भी कुछ नही याद...

मैं: (मुस्कुरा कर ना मे सिर हिलाते हुए) आपके घर मे कौन-कौन है...

रिज़वाना: कोई भी नही मेरे अम्मी अब्बू की कार आक्सिडेंट मे डेथ हो गई थी तब से अकेली ही हूँ (मुस्कुरा कर)

मैं: कोई भी नही है... मेरा मतलब पति या बचे...

रिज़वाना: नही... (मुस्कुरा कर) इन सब चीज़ो के लिए वक़्त तब ही मिल सकता है जब ड्यूटी से फ़ुर्सत मिले यहाँ तो सारा दिन हेड क्वॉर्टर मे लोगो का इलाज करने मे ही वक़्त निकल जाता है...

मैं: हाँ जब आपके लोग ऐसे ही किसी पर हमला करेंगे तो इलाज तो करना ही पड़ेगा उनका...

रिज़वाना: अच्छा वो... हाहहहाहा नही ऐसी बात नही है वो तो ख़ान ने तुम्हारा टेस्ट लेना था बस इसलिए... ऑर वैसे भी तुमने कौनसी कसर छोड़ी थी...

मैं: मैने क्या किया मैं तो बस हल्का फूलका उनको दूर किया था खुद से... (मुस्कुरा कर)

रिज़वाना: रहने दो... रहने दो... उस दिन हेड क्वॉर्टर्स मे तुमने हमारे लोगो की क्या हालत की थी पता है मुझे... मैने ही इलाज किया था उनका बिचारे 5 लोगो के तो फ्रेक्चर तक आ गये थे बॉडी मे... ऐसा भी कोई किसी को मारता है...

मैं: (नज़रे नीचे करके मुस्कुरा कर) वो एक दम मुझ पर हमला हुआ तो मुझे कुछ समझ नही आया कि क्या करूँ इसलिए मैने भी हमला कर दिया...

रिज़वाना: हंजी... ऑर जो हाथ मे आया उठा के मार दिया... हाहहहहहाहा

मैं: (बिना कुछ बोले मुस्कुरा दिया)

रिज़वाना: चलो तुम बैठो मैं कुछ खाने के लिए लाती हूँ...

मैं: आप क्यो... कोई नौकर नही है यहाँ पर...

रिज़वाना: जी नही आपके ख़ान साहब को किसी पर भरोसा भी तो नही है इसलिए सारा काम मुझे ही करना पड़ेगा (रोने जैसा मुँह बनाके)

मैं: कोई बात नही मैं हूँ ना मैं आपकी मदद कर दूँगा...

रिज़वाना: (हैरान होते हुए) तुमको खाना बनाना आता है...

मैं: जी फिलहाल तो खाना ही आता है लेकिन आप सिखाएँगी तो बनाना भी सीख जाउन्गा...

रिज़वाना: हाहहहहाहा रहने दो तुम खाते हुए ही अच्छे लगोगे बना मैं खुद लूँगी...

उसके बाद रिज़वाना रसोई की तरफ चली गई ऑर मैं उसको जाते हुए देखता था... लेकिन मेरी शैतानी नज़र का मैं क्या करूँ जो ना चाहते हुए भी ग़लत वक़्त पर ग़लत चीज़ देखती है... रिज़वाना को जाते हुए देखकर मेरी नज़र सीधा उसकी गान्ड पर पड़ी जो उसके चलने से उपर नीचे हो रही थी उसकी जीन्स की फीटिंग से गान्ड की गोलाई के उभार ऑर भी वजह तोर पर नज़र आ रहे थे... जिससे मेरे लंड मे भी हरकत होने लगी ऑर वो जागने लगा... मैने अपने दोनो हाथो से अपने लंड को थाम लिया ऑर एक थप्पड़ मारा की साले हर जगह मुँह उठाके घुसने को तेयार मत हो जाया कर वो डॉक्टर हैं हीना या फ़िज़ा नही जिसकी गहराई मे तू जब चाहे उतर जाए... लेकिन मेरा लंड था कि बैठने का नाम ही नही ले रहा था मेरी नज़रों के सामने बार-बार रिज़वाना की गान्ड की तस्वीर आ रही थी ऑर मेरा दिल चाह रहा था कि उसकी खूबसूरत उभरी हुई गान्ड के दीदार मैं एक बार फिर से करूँ... इसलिए ना चाहते हुए भी मैं खड़ा होके रसोई की तरफ चला गया ताकि चुपके से रिज़वाना की मोटी सी ऑर बाहर को निकली हुई गान्ड को जी-भरकर देख सकूँ...


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#80
अभी मैं रसोई के गेट तक ही पहुँचा था कि अचानक रिज़वाना हाथ मे खाने की ट्रे लेके बाहर आ गई ऑर मुझसे टकरा गई जिससे सारी सब्जी की ग्रेवी मुझ पर ऑर रिज़वाना पर गिर गई ऑर कुछ बर्तन भी ज़मीन पर गिरने से टूट गये... सब्जी की ग्रेवी उसके ऑर मेरी दोनो की कमीज़ पर गिर गई थी... वो मेरे सामने प्लेट लेके अब भी खड़ी थी... हम दोनो ही इस अचानक टकराव के लिए तेयार नही थे इसलिए जल्दबाज़ी मे मैने उसके सीने से ग्रेवी सॉफ करने के लिए अपने दोनो हाथ उसकी छाती पर रख दिए ऑर वहाँ से हाथ फेर कर सॉफ करने लगा... मेरे एक दम वहाँ हाथ लगाने से रिज़वाना को जैसे झटका सा लगा ऑर पिछे हो गई साथ ही उसने अपने दोनो हाथ से ट्रे भी छोड़ दी जो सीधा मेरे पैर पर आके गिरी... ये सब इतना अचानक हुआ कि हम दोनो ही कुछ समझ नही पाए...

रिज़वाना: आपको लगी तो नही... (फिकर्मन्दि से)

मैं: जी नही मैं ठीक हूँ माफ़ कीजिए वो मैने आप पर सब्जी गिरा दी...

रिज़वाना: कोई बात नही... (अपने हाथ से अपने टॉप से ग्रेवी झाड़ते हुए) लेकिन आप यहाँ क्या करने आए थे...

मैं: जी वो मैने सोचा आपकी मदद कर दूं इसलिए आ रहा था (नज़रे झुका कर)

रिज़वाना: (मुस्कुराते हुए) कोई बात नही... इसलिए मैने आपको कहा था आप खाते हुए ही अच्छे लगेंगे... खाना तो सारा गिर गया अब क्या करे...

मैं: आप कोई फल खा लीजिए मैं तो पानी पीकर भी सो जाउन्गा... (मुस्कुराते हुए)

रिज़वाना: पानी पी कर क्यो सो जाओगे... अब इतनी गई गुज़री भी नही हूँ कि खाना दुबारा नही बना सकती...

मैं: रहने दो रिज़वाना जी दुबारा मेहनत करनी पड़ेगी आपको...

रिज़वाना: खाना तो खाना ही है ना नीर क्या कर सकते हैं... (कुछ सोचते हुए) म्म्म्माम चलो ऐसा करते हैं बाहर चलते हैं

खाने के लिए फिर तो ठीक है... (मुस्कुरा कर)

मैं: जैसी आपकी मर्ज़ी (मुस्कुराकर)

रिज़वाना: चलो फिर तुम भी कपड़े बदल लो मैं भी चेंज करके आती हूँ...

मैं: अच्छा जी...

उसके बाद हम दोनो कपड़े पहनकर तेयार हो गये ऑर मैं बाहर हॉल मे बैठकर रिज़वाना का इंतज़ार करने लगा... कुछ देर बाद रिज़वाना भी तेयार होके आ गई... उसने सफेद कलर का सूट पहन रखा था जिसमे वो किसी परी से कम नही लग रही थी जैसे ही वो मेरे सामने आके खड़ी हुई तो उसके बदन सी निकलने वाले खुश्बू ने मुझे मदहोश सा कर दिया...

रिज़वाना: मैं कैसी लग रही हूँ... (मुस्कुरा कर)

मैं: एक दम परी जैसी (मुस्कुरा कर)

रिज़वाना: हाहहहाहा शुक्रिया... अर्रे तुमने फिर से वही गाववाले कपड़े पहन लिए...

मैं: जी मेरे पास यही कपड़े हैं

रिज़वाना: (अपने माथे पर हाथ रखते हुए) ओह्ह मैं तो भूल ही गई थी कि तुमको नये कपड़े भी लेके देने हैं...

मैं: नये कपड़ो की क्या ज़रूरत है मैं ऐसे ही ठीक हूँ...

रिज़वाना: नीर अब तुम शेरा हो ऑर शेरा ऐसे कपड़े नही पहनता ख़ान ने मुझे बोला भी था तुम्हारे कपड़ो के लिए लेकिन मैं भूल ही गई... चलो पहले तुम्हारे लिए कपड़े ही लेते हैं उसके बाद हम खाना खाने जाएँगे ठीक है...

मैं: ठीक है...

फिर हम दोनो रिज़वाना की कार मे बैठ कर बाज़ार चले गये पूरे रास्ते मैं बस रिज़वाना को ही देख रहा... उसके बदन की खुश्बू ने पूरी कार को महका दिया था... उस खुश्बू ने मुझे काफ़ी गरम कर दिया था इसलिए मैं पूरे रास्ते अपने लंड को अपनी टाँगो मे दबाए बैठा रहा ताकि रिज़वाना की नज़र मेरे खड़े लंड पर ना पड़ जाए... अब मुझे रिज़वाना के साथ बैठे हुए हीना के साथ बिताए लम्हे याद आ रहे थे जब मैं उसको कार चलानी सीखाता था...

 
थोड़ी देर बाद हम बाज़ार आ गये ऑर वहाँ रिज़वाना ने पार्किंग मे गाड़ी खड़ी की ऑर फिर वो मुझे एक बड़ी सी दुकान (शोरुम) मे ले गई जहाँ उसने मेरे लिए बहुत सारे कपड़े खरीदे... रिज़वाना के ज़िद करने पर मैने बारी-बारी सब कपड़े पहन कर देखे ऑर रिज़वाना को भी अपना ये नया बदला हुआ रूप दिखाया जिसको देखकर शायद रिज़वाना की भी आँखें खुली की खुली ही रह गई... मैं भी अपने इस नये रूप से बहुत हैरान था क्योंकि अब तक मैने गाँव के सीधे-शाधे कपड़े ही पहने थे... लेकिन खुद को आज ऐसे बदला हुआ देखकर मुझे एक अजीब सी खुशी का अहसास हो रहा था ऑर मैं बार-बार खुद को शीशे मे देख रहा था ऑर खुद ही मुस्कुरा भी रहा था...

मैं: कैसा लगा रहा हूँ रिज़वाना जी...

रिज़वाना: (मुस्कुरा कर मेरी जॅकेट का कलर ठीक करते हुए) ये हुई ना बात अब लग रहा है कि शेरा अपने रंग मे आया है...

मैं: ये भी आपका ही कमाल है (मुस्कुरा कर)

रिज़वाना: चलो अब खाना खाने चलते हैं...

मैं: हंजी चलिए... वैसे भी बहुत भूख लगी है

रिज़वाना: भूख लगी है... पहले क्यो नही बताया चलो चलें...


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