Posts: 727
Threads: 15
Likes Received: 610 in 360 posts
Likes Given: 839
Joined: Mar 2019
Reputation:
17
अपडेट-11
खाने के वक़्त मैने एक नयी चीज़ नाज़ी ऑर फ़िज़ा मे देखी दोनो मुझे अज़ीब सी नज़रों से देख रही थी ऑर मुझे देखकर बार-बार मुस्कुरा रही थी मैने भी 1-2 बार पूछा कि क्या हुआ लेकिन दोनो ने बस ना मे सिर हिला दिया... रात को खाने के बाद दोनो रसोई मे काम कर रही थी ऑर मैं कमरे मे बैठा था कि फ़िज़ा ने इशारे से मुझे बाहर आने का कहा...
मैं: क्या हुआ
फ़िज़ा: नींद तो नही आ रही?
मैं: ये पूछने के लिए बाहर बुलाया था
फ़िज़ा: (मुस्कुराते हुए) नही कुछ ऑर बात थी
मैं: हाँ बोलो क्या काम है
फ़िज़ा: (झुनझूलाते हुए) हर वक़्त काम हो तभी बुलाऊ ये ज़रूरी है क्या
मैं: नही मैने ऐसा कब कहा बोलो क्या हुआ फिर
फ़िज़ा: कुछ नही बस तुमसे कुछ बात करनी है
मैं: हाँ बोलो
फ़िज़ा: अभी नही रात को जब सब सो जाएँगे तब अकेले मे मेरे कमरे मे आ जाना तब बात करेंगे
मैं: अभी बता दो ना क्या बात है
फ़िज़ा: हर बात का एक वक़्त होता है... रात को मतलब रात को... ठीक है
मैं: (हाँ मे सिर हिलाते हुए) ठीक है ऑर कोई हुकुम?
फ़िज़ा: नही जी बस इतना ही बस अब सो मत जाना रात को मैं इंतज़ार करूँगी तुम्हारा ठीक है
मैं: ठीक है
मुझे रात को सबके सो जाने के बाद अपने कमरे मे आने का कह कर फ़िज़ा चली गई ऑर मैं वापिस अपने कमरे मे आ गया ऑर अपनी चारपाई पर लेट गया... साथ मे नाज़ी के सो जाने का इंतज़ार करने लगा ताकि मैं फ़िज़ा के कमरे मे जा सकूँ... वैसे तो क़ासिम के जैल से जाने से फ़िज़ा को ऑर बाकी घरवालो को दुखी होना चाहिए था लेकिन 1 ही दिन मे ना-जाने क्यो सब ऐसे बर्ताव कर रहे थे जैसे कुछ हुआ ही ना हो शायद सबने क़ासिम को भुला दिया था... आज फ़िज़ा भी मुझसे बात करते हुए बहुत खुश नज़र आ रही थी... जैसे कुछ हुआ ही ना हो... अभी मैं यही बात सोच ही रहा था कि अचानक मुझे याद आया कि फ़िज़ा ने उस दिन रात को कहा था कि वो माँ बनने वाली है ज़रूर इसी मसले पर बात करने के लिए मुझे बुलाया होगा... लेकिन फिर मैने सोचा कि यार मैं तो खुद हर बात फ़िज़ा ऑर नाज़ी से पूछ कर करता हूँ मैं भला उसकी क्या मदद कर सकता हूँ...
यही सब सोचते हुए काफ़ी वक़्त गुज़र गया ऑर मैं बस अपने बिस्तर पर पड़ा इन सब बातों के बारे मे सोच रहा था कि अचानक मुझे बाहर से किसी के छ्ह्हीई... छ्ह्हीई... की आवाज़ सुनाई दी... मैने आँखें खोलकर बाहर देखा तो फ़िज़ा दरवाज़े पर खड़ी मुस्कुरा रही थी ऑर हाथ हिलाकर मुझे बाहर बुला रही थी... मैने इशारे से उसको नाज़ी के बारे मे पूछा कि क्या वो सो गई तो उसने भी सिर हिला कर हाँ मे जवाब दिया ऑर साथ ही मुझे उंगली से पास आने का इशारा किया जैसे ही मैं अपनी चारपाई से खड़ा हुआ तो फ़िज़ा पलटकर चलने लगी मैं जानता था वो कहाँ जा रही है इसलिए मैं भी उसके पिछे ही चल दिया... वो बिना पिछे देखे सीधा अपने कमरे मे चली गई ऑर अपने कमरे की लाइट बंद कर दी ऑर नाइट बल्ब ऑन कर दिया... मुझे कुछ समझ नही आया कि इसने अगर बात करनी है तो कमरे मे अंधेरा क्यो कर रही है... अभी मैने कमरे मे पहला कदम ही रखा था कि फ़िज़ा ने मेरे दाएँ हाथ को पकड़ कर जल्दी से अंदर खींचा ऑर बाहर की तरफ मुँह करके दाए-बाएँ देखा ऑर कमरा अंदर से बंद कर दिया मुझे बस कुण्डी लगाने की आवाज़ सुनाई दी फिर फ़िज़ा मेरी तरफ पलटी ऑर एक मुस्कुराहट के साथ मुझे देखने लगी मैने भी मुस्कुरा कर उसे देखा...
फ़िज़ा: क्या हुआ ऐसे क्या देख रहे हो...
मैं: वो तुमने कुछ ज़रूरी बात करनी थी ना...
फ़िज़ा: बताती हूँ पहले वहाँ चलो (बेड की तरफ इशारा करते हुए)
मैं: अच्छा... लो आ गया जी अब जल्दी बताओ...
फ़िज़ा: तुमको कोई गाड़ी पकड़नी है क्या?
मैं: नही तो क्यो
फ़िज़ा: तो फिर हर वक़्त इतना जल्दी मे क्यो रहते हो 2 पल मेरे साथ नही गुज़ार सकते?
मैं: ऐसी बात नही है... मैं बस जल्दी के लिए इसलिए कह रहा था कि कोई आ ना जाए कोई हम को ऐसे देखेगा तो अच्छा नही सोचेगा ना इसलिए बस ओर कोई बात नही... (मुस्कुराते हुए)
फ़िज़ा: अच्छा ये बताओ मैं तुमको कैसी लगती हूँ
मैं: बहुत अच्छी लगती हो... तुम, नाज़ी ऑर बाबा तो बहुत अच्छे हो मेरा बहुत ख्याल भी रखते हो...
फ़िज़ा: ऑह्ह्यूनॉवो... (सिर पर हाथ रखते हुए) क्या करूँ मैं तुम्हारा
मैं: क्या हुआ अब मैने क्या किया
फ़िज़ा: मैने सिर्फ़ अपने बारे मे पूछा है सबके बारे मे नही सिर्फ़ मेरे बारे मे बताओ
मैं: म्म्म्मेम तुम बहुत बहुत बहुत अच्छी हो... खुश (मुस्कुराते हुए)
फ़िज़ा: ऐसे नही बाबा... मेरा मतलब देखने मे कैसी लगती हूँ...
मैं: देखने मे भी तुम सुंदर हो... तुम बताओ तुमको मैं कैसा लगता हूँ?
फ़िज़ा: हाए... ऐसे स्वाल मत पूछा करो दिल बाहर निकलने को हो जाता है... तुम तो मुझे मेरी जान से भी ज़्यादा प्यारे हो तुम नही जानते तुम मेरे लिए क्या हो... जानते हो जब तुम नही थे तो मैं हमेशा रात को रोती रहती थी नींद भी नही आती थी खुद को बहुत अकेला महसूस करती थी
मैं: ऑर अब?
फ़िज़ा: अब तो मुझे बहुत सुकून है तुम्हारे आने से जैसे मुझे सारे जहांन की खुशियाँ मिल गई है... जानती हो हर लड़की तुम जैसा पति चाहती है जो उसको बहुत सारा प्यार करे उसकी हर बात माने उसका खूब ख्याल रखे हर तक़लीफ़ मे उसके साथ खड़ा हो तुम मे वो सब खूबियाँ है...
मैं: अर्रे... मुझमे ऐसा क्या देख लिया तुमने... खुद ही तो कहती हो मैं बुद्धू हूँ...
फ़िज़ा: नही पागल वो तो मैं मज़ाक मे कहती हूँ तुम बहुत अच्छे हो (मेरे गाल खींच कर)
मैं: ऐसे मत किया करो यार (अपने गालो को सहलाते हुए) मैं कोई बच्चा थोड़ी हूँ जो मेरे गाल खींच रही हो...
•
Posts: 727
Threads: 15
Likes Received: 610 in 360 posts
Likes Given: 839
Joined: Mar 2019
Reputation:
17
फ़िज़ा: मैने कब कहाँ बच्चे हो... तुम बच्चे नही मेरी जान तुम तो मेरे होने वाले बच्चे के बाप हो... (मेरे होंठों को चूमते हुए)
मैं: हाँ बच्चे से याद आया इसका अब हम क्या करेंगे?
फ़िज़ा: करना क्या है मेरा बच्चा है मैं पैदा करूँगी ऑर क्या
मैं: लेकिन अगर किसी को पता चल गया कि ये क़ासिम का बच्चा नही तो... ?
फ़िज़ा: कुछ भी पता नही चलेगा वो तो वैसे भी जैल मे है जब तक वो बाहर निकलेगा हमारा बच्चा चलने फिरने लगेगा वैसे भी वो आया था ना कुछ दिन के लिए यहाँ तो मैं बोल दूँगी कि उसका है... तुम फिकर मत करो मैने सब कुछ सोच लिया है ऑर किसी को पता भी नही चलेगा...
मैं: लेकिन उस दिन तो तुम कह रही थी कि वो जो तुमने उस दिन कोठरी मे मेरे साथ किया था जैल से आने के बाद क़ासिम ने तुम्हारे साथ एक बार भी नही किया तो फिर उसको पता नही चल जाएगा?
फ़िज़ा: कुछ पता नही चलेगा उस शराबी को अपनी होश नही होती वो मेरी परवाह कहाँ से करेगा कुछ होगा तो कह दूँगी कि क़ासिम ने नशे मे मेरे साथ किया था वैसे भी नशे मे उसको कौनसा होश होता है... अब अगर तुमको तुम्हारे सारे सवालो का जवाब मिल गया हो तो मेहरबानी करके बेड पर लेट जाओ कब से जिन्न की तरह मेरे सिर पर बैठे हुए हो... (हँसती हुई)
मैं: वो तो ठीक है लेकिन तुम जानती हो जब मुझे सब कुछ याद आ जाएगा तो हो सकता है मेरे घरवाले मुझे यहाँ से ले जाए तब तुम क्या करोगी?
फ़िज़ा: कोई बात नही मैने तुम्हे ये तो नही कहा कि मुझसे शादी भी करो... तुम जितना वक़्त भी मेरे साथ हो मैं बस उस हर पल को जी भरके जीना चाहती हूँ तुम्हारे साथ ऑर फिर तुम चले जाओगे तो क्या हुआ तुम्हारी निशानी तो हमेशा मेरे पास रहेगी ना जिसमे मैं हमेशा तुम्हारा अक्स देखूँगी...
मैं: जैसी तुम्हारी मर्ज़ी...
फ़िज़ा: चलो अब बाते बंद करो ऑर लेट जाओ मेरे साथ...
मैं: यहाँ क्यो मैं तो बाहर बाबा के पास सोता हूँ ना...
फ़िज़ा: आज एक दिन मेरे पास सो जाओगे तो तूफान नही आ जाएगा चलो चुप करके लेट जाओ नही तो मैं तुमसे बात नही करूँगी...
मैं: अच्छा ठीक है लेट रहा हूँ...
फ़िज़ा: इसलिए तुम मुझे बहुत प्यारे लगते हो जब मेरी हर बात इतनी आसानी से मान जाते हो (मुस्कुराते हुए) ...
मेरे बेड पर लेट ते ही फ़िज़ा ने मेरा बायां हाथ अपने हाथो मे लिया ऑर अपने गाल सहलाने लगी ऑर मैं करवट लेके उसकी तरफ मुँह करके लेट गया... ये देखकर उसने भी मेरी तरफ करवट कर ली... अब हम दोनो के चेहरे एक दूसरे के पास थे यहाँ तक कि हम एक दूसरे की साँस की गर्माहट अपने चेहरे पर महसूस कर रहे थे...
फ़िज़ा: मैं तुम्हारे उपर आके लेट जाउ...
मैं: (हाँ मे सिर हिलाते हुए) हमम्म...
फ़िज़ा: ऐसे नही तुम खुद मुझे अपने उपर लो...
मैं: ठीक है (मैने फ़िज़ा को कमर से पकड़कर अपने उपर लिटा लिया)
फ़िज़ा: चलो अब अपनी आँखें बंद करो
मैं: कर ली अब...
फ़िज़ा: अब कुछ नही बस मुँह बंद करो नही तो मुझे करना पड़ेगा...
मैं: वो कैसे (मुस्कुराते हुए)
फ़िज़ा: बोल कर बताऊ या करके बताऊ?
मैं: जो तुमको अच्छा लगे
फ़िज़ा: पहले अपनी आँखें बंद करो मुझे शरम आती है...
मैं: तुमको शरम भी आती है (हँसते हुए)
फ़िज़ा: म्म्म्मीमम... आँखें बंद करो ना नीर
मैं: अच्छा ये लो अब...
फ़िज़ा: हम्म तो अब पुछो क्या पूछ रहे थे
मैं: मैं पुछ रहा था कीईईई... (अचानक फ़िज़ा ने अपने होंठ मेरे होंठों पर रख दिए)
##
•
Posts: 727
Threads: 15
Likes Received: 610 in 360 posts
Likes Given: 839
Joined: Mar 2019
Reputation:
17
अपडेट-12
फ़िज़ा अपने रसभरे ऑर नाज़ुक होंठ कुछ देर ऐसे ही मेरे होंठ के साथ जोड़ कर मेरे उपर पड़ी रही... फिर कुछ देर बाद उसने मेरे चेहरे को अपने हाथो से पकड़ लिया ऑर मेरी आँखो पर, माथे पर, नाक पर, गालो पर हल्के-हल्के चूमने लगी... कुछ देर वो मेरे चेहरे को ऐसे ही धीरे-धीरे चूमती रही फिर वो रुक गई ऑर मेरी आँखो पर हाथ रख लिया... मैं कुछ देर ऐसे ही उसके अगले कदम का इंतज़ार करता रहा तभी मुझे मेरे होंठों पर कुछ गीलापन महसूस हुआ जैसे मेरे होंठों पर कुछ रेंग रहा हो... फिर फ़िज़ा ने अपना हाथ भी मेरी आँखो से उठा दिया ये फ़िज़ा की ज़ुबान थी जो वो मेरे होंठों पर फेर रही थी ऑर मेरे होंठों को अपनी रसभरी ज़ुबान से गीला कर रही थी... अब मज़े से मेरी खुद ही आँखें बंद हो गई ऑर धीरे-धीरे मेरा मुँह खुलने लगा... मेरे मुँह ने फ़िज़ा की ज़ुबान को खुद ही अंदर आने का रास्ता दे दिया ऑर अब मैं धीरे-धीरे फ़िज़ा की ज़ुबान को चूस रहा था ऑर अपने दोनो हाथ फ़िज़ा की कमर पर उपर नीचे फेर रहा था... ये मज़ा मेरे लिए एक दम अनोखा था इससे मेरी साँसे भी तेज़ होने लगी ओर मेरे पाजामे मे भी हरकत शुरू हो गई... मेरा सोया हुआ लंड अब जागने लगा था... मैने अपने दोनो हाथो फ़िज़ा को ज़ोर से अपने गले से लगा लिया ओर नीचे अपनी दोनो टांगे फैला कर फ़िज़ा की टाँगो को अपनी टाँगो मे जाकड़ लिया...
अब हम दोनो ही मज़े की वादियो मे खो चुके थे हम दोनो बारी-बारी एक दूसरे के होंठ चूस रहे थे ओर काट रहे थे... पूरे कमरे मे हमारे चूमने से पुच... पुच... जैसी आवाज़े आ रही थी... इधर फ़िज़ा का बदन भी गरम होने लगा था उसने सलवार के उपर से अपनी चूत को मेरे लंड पर रगड़ना शुरू कर दिया था जिससे मेरा लंड अब पूरी तरह से जाग चुका था ऑर अपने असल रूप मे आ चुका था... फ़िज़ा बार-बार मेरे लंड को अपनी टाँगो के बीच मे दबा रही थी... वैसे तो ये अहसास मुझे पहले भी महसूस हो चुका था लेकिन जाने आज क्या खास था कि मुझे उस दिन से भी ज़्यादा मज़ा आ रहा था... अचानक फ़िज़ा ने मेरे चेहरा पकड़ा ऑर मेरे उपर उठकर मेरे लंड पर बैठ गई साथ ही मुझे भी बिठा लिया... अब हम दोनो बैठ कर एक दूसरे के होंठ चूस रहे थे फ़िज़ा ने अपना मुँह मेरे होंठों से हटाया ऑर मेरे मुँह को पकड़कर अपने गले पर लगा दिया मैने उसके इशारे को समझकर उसके गले पर चूसना ऑर काटना शुरू कर दिया इधर वो मेरी कमीज़ के बटन जल्दी-जल्दी खोल रही थी...
फ़िज़ा: अपने हाथ उपर करो मैं तुम्हे बिना कपड़ो के गले से लगाना चाहती हूँ...
मैने भी उसकी मदद के लिए अपनी दोनो बाहे उपर हवा मे उठा दी ताकि उसको आसानी हो जाए ऑर उसने मेरी कमीज़ उतार दी अब मेरा उपर का बदन एक दम नंगा हो चुका था... कमीज़ के उतरते ही वो किसी जंगली बिल्ली की तरह मेरे सीने पर टूट पड़ी ओर मेरी छाती पर कभी चूम रही थी कभी काट रही थी ऑर कभी काटी हुई जगह को चूस रही थी साथ मे नीचे से वो बार-बार मेरे लंड पर अपनी चूत कभी दबा रही थी तो कभी रगड़ रही थी जिससे उसकी सलवार एक दम गीली हो गई थी उसका गीलापन मुझे भी मेरे लंड पर महसूस हो रहा था...
अब उसने मेरे सीने पर हाथ रखकर पिच्चे को दबाया ओर अब मैं फिर से बेड पर लेट चुका था ओर वो मेरे उपर आके फिर से लेट गई लेकिन इस बार वो मेरी पूरी छाती को जगह-जगह चूस रही थी ऑर चूम रही थी... मुझे उसकी इस हरकत से बहुत मज़ा मिल रहा था... अब मुझसे बर्दाश्त करना बहुत मुश्किल हो रहा था... मैने उससे गर्दन से पकड़कर गला दबाने जैसे अंदाज़ मे उपर की तरफ लाया ऑर उसके होंठ जबरदस्त तरीके से चूस लिए जैसे उसके मुँह से अलग करना चाहता हूँ... अब मैने उसको बालो से पकड़ा ऑर बेड पर पटक दिया ऑर खुद उसके उपर आ गया... मैं उसकी आँखो मे देख रहा था कि क्या उसको मेरी ये हरकत बुरी लगी लेकिन उसने खुद ही एक प्यारी सी मुस्कुराहट के साथ मेरे स्वाल का जवाब दे दिया... मैं भी अब उसकी गर्दन को चूस ऑर काट रहा था ऑर साथ मे उसके बड़े-बड़े मम्मे दोनो हाथो से दबा रहा था... वो बस मज़े से सस्सिईइ... ससिईईईईई... कर रही थी ऑर मेरे बालो मे हाथ फेर रही थी अचानक मैने उसकी कमीज़ को दाएँ कंधे की तरफ से ज़ोर से खींच दिया जिससे उसका बयाँ कंधा एक दम नंगा होके मेरी आँखो के सामने आ गया मैने उसके गले से होता हुआ कंधे पर पहले चूमना फिर काटना शुरू कर दिया... वो बस मज़े से बार-बार सीईईई... सीईइ... ऑर आअहह करके ऑर करूऊ... ऑर करूऊ ही कहे जा रही थी...
फ़िज़ा: जाआअँ कमीज़्ज़्ज़्ज़्ज़ उतार दूओ नाआअ मेरिइई भीईीईईई...
उसकी ये शब्द ऐसे थे जैसे वो बहुत ताक़त लगाके इतना कह पाई हो... मैने उसको फिर से बिठाया ऑर उसने अपनी दोनो टांगे मेरी टाँगो की दोनो तरफ करके बैठ गई ऐसे ही मैने उसकी कमीज़ भी उतार दी अब वो सिर्फ़ ब्रा ओर सलवार मे थी... उसकी कमीज़ के उतरते ही उसने मुझे गले से लगा लिया ऑर एक आअहह की आवाज़ उसके मुँह से निकली... उसने जैसे ही मुझे गले लगाया मेरे भी हाथ उसकी पीठ पर चले गये मैं अब उसको अपने गले से लगाए उसकी पीठ पर हाथ फेर रहा था ऑर मेरे हाथ बार-बार उसकी ब्रा के स्टॅप से टकरा रहे थे इसलिए मैने उसकी ब्रा के स्टॅप खोल दिए अब उसकी ब्रा सिर्फ़ कंधे के सहारे ही उसके शरीर से जुड़ी हुई थी ऑर मैं उसकी नंगी पीठ पर हाथ फेर था था नीचे से वो बार-बार मेरे लंड पर अपनी चूत रगड़ रही थी... अचानक उसने धीरे से मेरे कान मे कहा...
फ़िज़ा: सारे कपड़े उतार दे मुझसे बर्दाश्त नही हो रहा अब...
मैं: हमम्म्म
•
Posts: 727
Threads: 15
Likes Received: 610 in 360 posts
Likes Given: 839
Joined: Mar 2019
Reputation:
17
हम दोनो एक दूसरे से अलग हुए ऑर जल्दी जल्दी अपने सारे कपड़े उतारकर बेड से नीचे ज़मीन पर फेंक दिया... उसने मुझसे पहले कपड़े उतार दिए थे इसलिए वो बस मुझे नंगा होता देख रही थी ऑर मुस्कुरा रही थी... जैसे ही मैने अपना आखरी कपड़ा यानी अंडरवेर उतारा वो मेरे उपर टूट पड़ी ऑर मुझे बेड पर गिरा लिया अब वो फिर से मेरे उपर थी ऑर मेरे पूरे बदन पर हाथ फेर रही थी ऑर मेरे होंठों को चूम रही थी ऑर चूस रही थी... साथ ही बार-बार अपने बड़े-बड़े मम्मे मेरे मुँह पर दबा रही थी... कुछ देर बाद उसने मुझे अपने मम्मे चूसने को कहा ऑर मैं किसी छोटे बच्चे की तरह उसके निपल को चूसे ऑर काटने लगा वो मेरे उपर पड़ी बारी-बारी अपने दोनो मम्मे चुस्वा रही थी ऑर मेरे सिर पर हाथ फेर रही थी... साथ मे सीईइ... सीईइ... कर रही थी मेरा काटना शायद उसको चूसने से भी ज़्यादा पसंद था इसलिए जब भी मैं उसके निपल पर काट ता तो वो ऑर ज़ोर से... ऑर ज़ोर से... कहती... ऐसे ही काफ़ी देर तक मैं उसके निपल्स को चूस्ता रहा उसके निपल्स को मैने चूस-चूस कर लाल कर दिया था ऑर उसके मम्मों के जगह-जगह पर मेरे काटने से गोल चक्रियो के निशान से पड़ गये थे जिसको वो देखकर बार-बार खुश हो रही थी ऑर अपनी उंगली के इशारे से मुझे दिखाकर मुस्कुरा रही थी... ऐसे ही काफ़ी देर हम लोग लगे रहे फिर अचानक वो मुझे बोली...
फ़िज़ा: एक नया मज़ा डून?
मैं: क्या मज़ा
फ़िज़ा: दिखाती हूँ अभी
मैं उसकी बात पर सिर हिला कर उसके अगले कदम का इंतज़ार करने लगा कि वो क्या नया करती है... वो फिर से मेरे सीने पर चूमने लगी लेकिन इस बार वो उपर से लगातार नीचे की तरफ जा रही थी... अचानक उसका हाथ मेरे लंड पर पड़ा तो उसने मेरे लंड को झट से पकड़ लिया ऑर हैरत से मेरी ओर देखकर बोली...
फ़िज़ा: ये इतना बड़ा कैसे हो गया उस दिन भी इतना ही था क्या जब पहली बार किया था तो... ?
मैं: पता नही शायद इतना ही होगा
फ़िज़ा: हमम्म्म... अब पता चला उस दिन इतना दर्द क्यो हुआ था मुझे
मैं: किस दिन दर्द हुआ था?
फ़िज़ा: उस दिन कोठरी मे जब हमने किया तब... जानते हो अगला पूरा दिन मैं ठीक से चल नही पाई थी... नाज़ी ने मुझसे पूछा भी था कि भाभी आज लंगड़ा के क्यो चल रही हो तो मैने उससे झूठ बोल दिया कि पैर मे मोच आ गई है...
मैं: (हँसते हुए) तो मैने कहा था रात को मेरे पास आने को?
फ़िज़ा: नही आना चाहिए था (मुस्कुराते हुए)
मैं भी उसकी इस बात पर मुस्कुरा दिया ऑर वो वापिस मेरे पेट पर चूमने लगी ओर मेरे लंड को पकड़ कर उपर-नीचे करने लगी मुझे उसका ऐसा करने से एक अलग ही किस्म का मज़ा मिल रहा था तभी मेरे लंड पर मुझे कुछ गीलापन महसूस हुआ ऑर मेरे मुँह से एक जोरदार आआहह... निकल गई... ये सुनकर फ़िज़ा एक दम से रुक गई ऑर मेरा लंड अपने मुँह से निकालकर ऑर अपने मुँह पर उंगली रखकर ज़ोर से मुझे सस्शह... किया ऑर बोला कि आवाज़ मत करो कोई जाग जाएगा ऑर फिर से वो मेरे लंड के उपर के हिस्से को ज़ुबान से चाटने लगी... धीरे-धीरे उसने पूरा लंड अपने मुँह मे ले लिया ओर चूसना शुरू कर दिया ये मज़ा मेरे लिए एक दम नया था मैं मज़े की वादियो मे गोते लगा रहा था कुछ देर मेरा लंड चूसने के बाद वो फिर से मेरे उपर आ गई ऑर मेरे होंठ चूसने लगी... लेकिन अब उसने मुझे अपने उपर आने को कहा...
मैं: फ़िज़ा मैं भी ऐसे ही करूँ जैसे तुमने मेरे साथ किया?
फ़िज़ा: आज नही कल कर लेना अभी बस डाल दो अब मुझसे ऑर बर्दाश्त नही हो रहा है...
मैं: ठीक है
इसके साथ ही उसने आपनी टांगे चौड़ी कर ली ऑर मुझे बीच मे आने का इशारा किया... मैने जैसे ही अपना लंड उसकी चूत पर रखा उसने एक दम से मुझे रुकने को कहा...
मैं: क्या हुआ
फ़िज़ा: आराम से डालना उस दिन जैसे मत करना नही तो मेरी चीख निकल जाएगी...
मैं: तुम खुद ही डाल लो ना फिर अपने हिसाब से...
फ़िज़ा: ठीक है फिर मैं उपर आती हूँ ऑर खबरदार जो नीचे से झटका मारा तो (मुस्कुराते हुए) ...
मैं: अच्छा... (हाँ मे सिर हिलाकर मुस्कुराते हुए)
...
•
Posts: 727
Threads: 15
Likes Received: 610 in 360 posts
Likes Given: 839
Joined: Mar 2019
Reputation:
17
अपडेट-13
अब मैं नीचे लेट गया था ऑर फ़िज़ा फिर से मेरे उपर आ गई थी उसने एक बार फिर से मेरे लंड को थोड़ा सा चूस कर गीला किया ऑर अब मेरे लंड के टोपी पर काफ़ी सारा थूक जमा हो गया कुछ थूक उसने खुद ही अपनी चूत मे लगाया ऑर लंड को अपने हाथो से पकड़ कर अपनी चूत पर सेट किया ऑर साँस अंदर खींच कर धीरे-धीरे लंड पर बैठने लगी अभी आधा लंड ही अंदर गया था कि उसके चेहरे से पता चल रहा था कि उसको लंड पूरा अंदर लेने मे अभी भी परेशानी हो रही है इसलिए जितना लंड उसके अंदर गया था उतने से ही वो उपर-नीचे होने लगी अब हर झटके के साथ वो थोड़ा ज़्यादा लंड अंदर ले रही थी... कुछ ही देर मे उसने पूरा लंड अपने अंदर उतार लिया ऑर उपर नीचे होने लगी साथ ही उसने मेरे हाथ पकड़कर अपने मम्मों पर रख दिए ऑर मैं उसकी निपल्स को अपनी उंगली ऑर अंगूठे से मरोड़ने लगा... अब उसको भी मज़ा आने लगा था इसलिए वो अपनी गान्ड को धीरे-धीरे उपर-नीचे करती हुई वापिस मेरे सीने पर लेट गई ऑर मेरे सीने पर चूमने लगी...
मैं: अब मैं उपर आउ?
फ़िज़ा: हमम्म आ जाओ लेकिन इसको बाहर मत निकलना बहुत मज़ा आ रहा है...
मैं: ठीक है
मैने ऐसे ही बिना लंड बाहर निकाले उसको कमर से पकड़ कर घुमा दिया अब वो नीचे थी ऑर मैं उसके उपर था उसने अपनी दोनो टांगे हवा मे उठाके मेरी कमर पर लपेट दी थी ऑर मैने धीरे-धीरे झटके लगाने शुरू कर दिए उससे शायद अभी भी दर्द हो रहा था इसलिए उसने मुझे गले से लगाए मेरे होंठ चूसने लगी मैं नीचे से झटके लगा रहा था... अब मैने धीरे-धीरे रफ़्तार बढ़ानी शुरू करदी जिससे उसकी चूत भी पानी छोड़ने लगी ऑर लंड अंदर जाने मे ऑर आसानी हो गई धीरे-धीरे अब उसको भी मज़ा आने लगा था इसलिए उसने आँखें बंद किए ही मुझे कहा कि तोड़ा तेज़ करो... मैने अब अपनी रफ़्तार थोड़ी बढ़ा दी थी जिससे पूरे कमरे मे उसकी आहह... आअहह... ऑर फ़च... फ़च... की आवाज़े आ रही थी जो शायद कमरे के बाहर तक जा रही होंगी...
आज फ़िज़ा ऑर मुझे पहली बार से भी ज़्यादा मज़ा आ रहा था शायद इसलिए हम दोनो ही अपने होश मे नही थे ना ही बाहर आवाज़ जाने की परवाह थी हम दोनो ही बस अपने मज़े मे डूबे लगे हुए थे...
कुछ ही देर मे वो फारिग होने करीब आ गई ऑर उसने मुझे ज़ोर से गले से लगा लिया ऑर अपनी गान्ड को उपर उठाना शुरू कर दिया...
फ़िज़ा: अब रुकना मत ज़ोर से करो तेज़्ज़्ज़... ऑर तेज़्ज़्ज़्ज़... मैं अब करीब ही हूँ...
कुछ ही जोरदार झटको के साथ वो अपनी मंज़िल पर आ गई उसका पूरा बदन अकड़ गया ऑर उसने अपनी गान्ड हवा मे उठा ली साथ ही उसने मुझे भी उपर को कर दिया कुछ सेकेंड्स वो ऐसे ही आकड़ी रही ऑर फिर एक दम से बेड पर गिर गई ऑर लंबे-लंबे साँस लेने लगी...
फ़िज़ा: आपका हुआ नही अभी तक?
मैं: (ना मे सिर हिलाते हुए)
फ़िज़ा: थोड़ी देर धीरे झटके लगाओ फिर तेज़ कर देना
इसके साथ ही मैं फिर से झटके लगाने लगा ऑर उसकी चूत जो कुछ मिंट पहले ठंडी हो गई थी वो फिर से गरम होने लगी अब उसने भी मेरा फिर से साथ देना शुरू कर दिया... अब मैने उसकी दोनो टाँग हवा मे उठाई ऑर अपने कंधे पर रख ली ऑर ऐसे ही तेज़-तेज़ झटके मारने लगा
चन्द जोरदार झटको के बाद मैं भी मंज़िल पर पहुँच ही गया मेरे लंड मे एक अजीब सा उबाल आने लगा ऑर इसी के साथ मेरे लंड ने फ़िज़ा की चूत के अंदर एक झटका खाया जिसको फ़िज़ा की चूत महसूस करते ही फिर से एक बार ऑर फारिग हो गई जिससे फ़िज़ा की चूत अजीब सी सिकुड़न सी आने लगी जैसे वो मेरे लंड को अंदर चूस रही हो वो अहसास ने मुझे इंतेहा मज़ा दिया ऑर फिर मेरे लंड ने लगतार 5-6 झटके खाए ऑर अपनी सारी मानी फ़िज़ा की चूत मे उडेल दी...
हम दोनो की साँस ही फूली हुई थी ऑर हमारा बदन पसीने से नाहया हुआ था लेकिन दोनो को इस वक़्त बहुत सुकून था ऑर शरीर एक दम हल्का महसूस हो रहा था मैं फ़िज़ा के मम्मो के बीच अपना सिर रखे लेटा हुआ था ऑर अपनी सांसो को ठीक करने की कोशिश कर रहा था... फ़िज़ा का हाल भी मेरे जैसा ही था वो भी मुझे गले से लगाए मेरे बालो मे अपनी उंगलियो की कंघी बनाए हाथ फेर रही थी उसके चेहरे पर सुकून था ऑर वो बार-बार मेरे सिर को चूम रही थी साथ मे मेरी पीठ पर हाथ फेर रही थी ऑर मुझे देखकर मुस्कुरा रही थी...
मैने भी उसके चेहरे की तरफ देखा ऑर उसके होंठों को हल्के से चूम लिया ऐसे ही हम दोनो कुछ देर एक दूसरे की आँखो मे देखते रहे ऑर फिर मैं उसके उपर से उठ गया ऑर कपड़े पहन ने लगा... अभी मैं कपड़े ही पहन रहा था कि अचानक किसी के दरवाज़ा खट-खटाने की आवाज़ आई हम दोनो ही घबरा गये थे कि इस वक़्त कौन आया होगा... मैने ऑर फ़िज़ा ने जल्दी से अपने-अपने कपड़े पहने ऑर फ़िज़ा ने मुझे बेड के नीचे घुसने को कहा... मैं बिजली की फुर्ती के साथ बेड के नीचे घुस गया... मेरे नीचे घुसते ही फ़िज़ा ने दरवाज़ा खोला...
...
•
Posts: 727
Threads: 15
Likes Received: 610 in 360 posts
Likes Given: 839
Joined: Mar 2019
Reputation:
17
मुझे नीचे से कोई लड़की के पैर ही नज़र आए शायद ये नाज़ी थी जो जल्दी उठ गई थी... मैं नीचे से ही उनकी बाते सुनने लगा...
फ़िज़ा: क्या बात है नाज़ी ख़ैरियत है इतनी रात को
नाज़ी: भाभी रात कहाँ बाहर देखो दिन निकलने वाला है
फ़िज़ा: अच्छा मैं तो सो रही थी आज नींद ही नही खुली
नाज़ी: कोई बात नही मैं बस आपको उठाने ही आई थी
फ़िज़ा: तुम चलो मैं आती हूँ
नाज़ी: ठीक है तब तक मैं नीर को भी उठा देती हूँ आज पता नही वो भी नही उठा अभी तक
फ़िज़ा: (घबरा कर) नीर को... तुम रहने दो उसको मैं उठा दूँगी तुम जाके नहा लो फिर तुम्हारे बाद मैं भी नहा लूँगी
नाज़ी: अच्छा भाभी... (अंदर कमरे मे झाँकते हुए) अर्रे भाभी रात को चद्दर के साथ कुश्ती कर रही थी क्या (मुस्कुराते हुए)
फ़िज़ा: नही तो क्या हुआ
नाज़ी: आपकी चद्दर कैसे बिखरी पड़ी है
फ़िज़ा: (ज़मीन पर देखते हुए) वो मैं सो रही थी हो गई होगी...
नाज़ी: हाँ भाई अकेले बेड पर आप ही शहंशाहों की तरह सोती हो कैसे भी सो जाओ आपका अपना बेड है (मुस्कुराते हुए)
फ़िज़ा: अच्छा... अच्छा अब ज़्यादा बाते ना बना ऑर जाके नहा ले
नाज़ी: ठीक है मेरी प्यारी भाभी (फ़िज़ा के गाल पकड़ते हुए)
इसके साथ ही नाज़ी नहाने चली गई ऑर फ़िज़ा कमरा बंद करके जल्दी से मेरे पास आई...
फ़िज़ा: नीर जल्दी बाहर निकलो
मैं: क्या हुआ नाज़ी थी ना
फ़िज़ा: हम को पता ही नही चला हम रात भर लगे रहे (मुस्कुराते हुए)
मैं: हाँ
फ़िज़ा: चलो अब तुम भी अपने कमरे मे जाओ नही तो किसी को शक़ हो जाएगा ऑर सुनो जाके कुछ देर बेड पर लेट जाना ताकि थोड़ी देर बाद आके मैं तुमको उठा सकूँ...
मैं: अच्छा जाता हूँ
फ़िज़ा: सुनो नीर रात को कैसा लगा मेरे साथ (मुस्कुराते हुए)
मैं: (पलटते हुए) म्म्म्मरममम... बोल कर बताऊ या करके (हँसते हुए)
फ़िज़ा: अच्छा बदमाश मेरे अल्फ़ाज़ मुझे ही सुना रहे हो... चलो करके ही दिखा दो (फ़िज़ा ने अपना मुँह आगे कर लिया ऑर आँखें बंद)
मैं: चलो फिर तैयार हो जाओ ऑर चीखना मत
फ़िज़ा: हमम्म्म (आँखें बंद किए हुए ही)
मैं: (मैने उसके दाएँ मम्मे पर काट लिया)
फ़िज़ा: आईईईईई... बदमाश काटा क्यो... मुझे लगा था मेरे होंठों को चूमोगे तुम (अपने मम्मे को मसल्ति हुई)
मैं: मेरी मर्ज़ी जैसे चाहूं वैसे बताऊ (मुस्कुराते हुए)
फ़िज़ा: रात को आना बच्चू तब बताउन्गी
मैं: मैं रात को आउन्गा ही नही (हँसते हुए)
फ़िज़ा: हाए सच मे नही आओगे (रोने जैसी शक़ल बनाके)
मैं: अच्छा अब रोने मत लग जाना आ जाउन्गा बस... मैं तो ऐसे ही कह रहा था
फ़िज़ा: नही आए तो देख लेना फिर... (अपने दोनो हाथ कमर पर रखकर)
मैं: अच्छा-अच्छा अब जाने दोगि तो रात को आउन्गा ना
फ़िज़ा: लो जी मैं तो भूल ही गई चलो जल्दी जाओ
मैं धीरे से फ़िज़ा के कमरे से निकल कर जल्दी से अपने बिस्तर पर आके लेट गया ऑर रात भर जागने की वजह से मुझे थकावट सी हो रही थी इसलिए मुझे पता ही नही चला कब मेरी आँख लग गई ऑर मैं सो गया...
•
Posts: 727
Threads: 15
Likes Received: 610 in 360 posts
Likes Given: 839
Joined: Mar 2019
Reputation:
17
मैं अभी सोया ही था कि कुछ ही देर मे मुझे कोई कंधे पर हाथ रखकर ज़ोर-ज़ोर से हिलाने लगा जिससे मेरी आँख खुल गई... मैं हड़बड़ा कर उठा मेरी आँखो मे अभी तक रात की नींद थी जिससे मेरी आँखें लाल हो गई ऑर मेरी आँखें ठीक से खुल भी नही रही थी... मुझे नज़र नही आ रहा था कि मुझे कौन उठा रहा है इसलिए मैने अपने दोनो हाथो से अपनी आँखो को मसला तो मुझे कुछ सॉफ नज़र आने लगा ये फ़िज़ा थी जो मुझे उठा रही थी... जिसको देखते ही मुस्कान अपने आप मेरे चेहरे पर आ गई...
फ़िज़ा: नीर क्या हुआ सो गये थे क्या?
मैं: हाँ ज़रा आँख लग गई थी...
फ़िज़ा: अगर रात की थकान है तो तुम आराम कर लो आज मैं ओर नाज़ी ही खेत चली जाएँगी...
मैं: अकेले जाओगी?
फ़िज़ा: तुम्हारे आने से पहले भी तो अकेली ही जाती थी ना कोई बात नही हम चली जाएँगी तुम आराम से सो जाओ वैसे भी मेरे शेर ने रात को बहुत मेहनत की है (आँख मारकर मुस्कुराते हुए)
मैं: नही मैं ठीक हूँ मैं भी चलूँगा तुम दोनो के साथ
फ़िज़ा: रहने दो ना जान नींद पूरी नही होगी तो बीमार पड़ जाओगे...
मैं: तुम्हारी भी नींद पूरी नही हुई बीमार तो तुम भी पड़ सकती हो ना... चलो कोई बात नही दोनो साथ मे बीमार पड़ेंगे फिर तो ऑर भी अच्छा होगा ऑर ये जान क्या नया नाम रख दिया है मेरा
फ़िज़ा: आज से मैं तुमको अकेले में हमेशा जान ही बुलाउन्गी क्योंकि तुम मेरी जान हो इसलिए (मुस्कुराते हुए) अच्छा बाबा कहाँ है?
मैं: पता नही जब मैं कमरे मे आया था तो बाबा यहाँ नही थे...
फ़िज़ा: अच्छा ज़रूर बाहर घूमने गये होंगे इनको कितनी बार मना किया है कि अकेले बाहर ना जाया करो लेकिन सुनते ही नही है किसीकि... (सिर को झाड़ते हुए)
मैं: कोई बात नही जब आएँगे तब मैं समझा दूँगा फिर तो ठीक है (मुस्कुराते हुए)
फ़िज़ा: हाँ ये ठीक है तुम्हारी बात तो मान ही जाते हैं हमारी सुनते भी नही... अच्छा एक मिंट रूको मैं अभी आती हूँ...
मैं: अब तुम कहाँ जा रही हो मुझे नहाना भी तो है...
फ़िज़ा: बस 1 मिंट अभी आ रही हूँ जाना मत ठीक है
मैं: (हाँ मे सिर हिलाते हुए) जो हुकुम सरकार का...
अपडेट-14
फ़िज़ा बाहर चली गई ऑर मैं बैठा उसको बाहर जाते देखता रहा ऑर अपनी दोनो बाहें उपर हवा मे उठाए अंगड़ाई लेने लगा... अभी 1 मिंट भी नही हुआ था कि फ़िज़ा वापिस आ गई ऑर कमरे मे घुसते हुए उसके चेहरे पर उसकी प्यारी सी सदा-बाहर मुस्कान थी...
फ़िज़ा: उठो ऑर इधर आओ...
मैं: आता हूँ रूको (मैं उठकर चलता हुआ उसके सामने जाके खड़ा हो गया)
फ़िज़ा: (पिछे मुड़कर एक बार फिर देखते हुए) यहाँ नही दरवाज़े के पिछे
मैं: ये लो जी ऑर कोई हुकुम सरकार
फ़िज़ा: अच्छा सुनो आज मैं नाज़ी ऑर बाबा को अपने माँ बनने के बारे मे बताना चाहती हूँ तो तुम उनके सामने ऐसे ही बर्ताव करना जैसे तुम्हे भी उनके सामने ही पता लगा हो ज़्यादा खुश मत होने लग जाना कही उनको शक़ ही ना हो जाए...
मैं: ठीक है फिर मैं भी उनके साथ ही मुबारकबाद दूँगा (आँख मारते हुए)
फ़िज़ा: हमम्म ये ठीक है...
मैं: ऑर कोई हुकुम सरकार
फ़िज़ा: कुछ खास नही... अब बस मुझे थोड़ा सा प्यार करो सुबह जो रह गया था
मैं: सारी रात तो किया था दिल नही भरा क्या
फ़िज़ा: उउउहहुउऊ वो वाला नही बुधु... रूको हर काम मुझे ही बताना पड़ता है (मुँह चिड़ाकर)
मैं: (कुछ ना समझने जैसा मुँह बनाके फ़िज़ा को देखते हुए)
फ़िज़ा: दरवाज़े के पिछे आओ बाहर कोई आ गया तो देख सकता है हम को इसलिए
मैं: हमम्म्म आ गया अब...
फ़िज़ा: थोड़ा नीचे तो झुको लंबू... (हँसते हुए)
मैं: (अपने आपको थोड़ा नीचे झुकाते हुए) अब ठीक है
फ़िज़ा: हमम्म्म अब एक दम ठीक है...
..
•
Posts: 727
Threads: 15
Likes Received: 610 in 360 posts
Likes Given: 839
Joined: Mar 2019
Reputation:
17
फ़िज़ा ने अपनी दोनो बाहें मेरे गले मे हार की तरफ डाल ली ऑर अपनी एडियाँ थोड़ी सी उपर को उठा ली जिससे उसका ऑर मेरा मुँह एक दम आमने सामने आ जाए... अब उसका बदन मेरी छाती से चिपक सा गया था ऑर उसके बड़े-बड़े मम्मे मेरी छाती के साथ लगे हुए थे ओर दब से गये थे फिर उसने अपनी आँखें बंद की ऑर मेरे होंठों पर अपने रसीले होंठ रख दिए मैने भी अपनी दोनो बाहें उसकी कमर मे डाल ली ऑर उसको अपने साथ चिपका लिया जैसे हम 2 जिस्म नही बल्कि 1 ही जिस्म हो कुछ देर हम ऐसे ही होंठों से होंठ जोड़े खड़े रहे फिर मुझसे उसके होंठों की जलन सहन करना बर्दाश्त के बाहर हो गया इसलिए मैने ही धीरे-धीरे उसके रसभरे होंठों को चूसना शुरू कर दिया फ़िज़ा ने भी मेरा पूरा साथ दिया हम दोनो फिर से रात की तरह मज़े की वादियो मे पहुँच रहे थे ऑर हम दोनो पर खुमारी छाने लगी थी...
अभी हम को कुछ ही पल हुए थे कि बाहर नाज़ी की आवाज़ आई जो कि फ़िज़ा को पुकार रही थी... इसलिए हम को ना चाहते हुए भी एक दूसरे से अलग होना पड़ा... मैं जल्दी से फ़िज़ा से दूर होके कुर्सी के पास जाके बैठ हो गया ऑर फ़िज़ा मेरे बिस्तर की चद्दर तह करने लगी...
नाज़ी: भाभी आप यहाँ हो मैं आपको सारे घर मे ढूँढ रही हूँ...
फ़िज़ा: क्या हुआ मैं यहाँ नीर को उठाने आई थी...
नाज़ी: हुआ तो कुछ नही पर मैने बस यही पुछ्ना था कि आप दोनो अभी तक यही हो आज खेत मे नही जाना क्या...
फ़िज़ा: हाँ हाँ जाना है ना... मैं तो बस नीर को उठाने के लिए ही आई थी बस जा रही हूँ...
नाज़ी: लाओ ये सब मैं कर लूँगी आप बस जाके तेयार हो जाओ फिर नीर को भी तो नहाना होगा ना...
मैं: कोई बात नही पहले फ़िज़ा जी तेयार हो जाए मैं बाद मे तेयार हो जाउन्गा...
फ़िज़ा मुझे एक मुस्कान के साथ देखती हुई एक आँख मारकर बाहर को चली गई ऑर मैं उसको देखता रहा... तभी मुझे ख़याल आया कि बाबा कहाँ है इसलिए मैने नाज़ी से ही पुछ्ना ठीक समझा...
मैं: नाज़ी बाबा कहाँ है सुबह से दिखाई नही दिए...
नाज़ी: पता नही रात के बाद तो मैने भी बाबा को नही देखा...
मैं: (चिंता से) वो आगे भी ऐसे घूमने चले जाते है या आज ही गये हैं...
नाज़ी: वैसे तो वो पहले रोज़ सैर करने जाया करते थे सुबह लेकिन कुछ वक़्त से उनकी तबीयत ठीक नही रहती थी तो हमने उनको मना कर दिया था बाहर घूमने जाने से...
मैं: अच्छा
इतना कहकर नाज़ी भी अपने बाकी काम निबटाने मे लग गई ऑर मैं बाहर बैठक मे बैठा बाबा का इंतज़ार करने लगा...
कुछ ही देर मे मुझे डोर से बाबा आते हुए दिखाई दिए तो मेरा चेहरा भी खुशी से खिल उठा... बाबा हाथ मे एक छड़ी लिए हुए मुस्कुराते हुए मेरे सामने आके खड़े हो गये...
मैं: बाबा आज सुबह-सुबह किसकी पिटाई करने गये थे (मुस्कुराते हुए)
बाबा: (अपनी छड़ी की तरफ देखते हुए ऑर ज़ोर से हँसते हुए) अर्रे पिटाई नही बेटा मैं तो बस अपनी नीम की दान्तुन ढूँढने गया था... इस उम्र मे किसकी पिटाई करूँगा...
मैं: बाबा मुझे कह देते आपको जाने की क्या ज़रूरत थी
बाबा: बेटा अब इतना भी नकारा ना बनाओ मुझे कि कोई भी काम ना करने दो... कुछ काम तो मेरे लिए भी छोड़ दिया करो इससे मेरा भी दिल लगा रहता है नही तो घर मे अकेला बैठा तो दिल ही नही लगता...
मैं: जैसा आप बेहतर समझे बाबा... (मुस्कुराते हुए)
बाबा: अच्छा बेटा तुम सुबह-सुबह कहाँ गये थे... जब मैं उठा तो तुम बिस्तर पर नही थे...
मैं: (सोचते हुए) कही नही बाबा रात को ज़रा खुली हवा मे घूमने का दिल था तो कोठारी मे खड़ा था... (मैं जानता था बाबा सीढ़िया नही चढ़ सकते इसलिए उन्होने कोठरी मे नही देखा होगा इसलिए ये झूठ बोला)
बाबा: अच्छा तभी मैं सोच रहा था कि नीर कहाँ चला गया इतनी रात को...
मैं: (मुस्कुराते हुए) ठीक है बाबा हम शाम को बातें करेंगे अभी खेत जाने के लिए देर हो रही है...
बाबा: अच्छा बेटा...
कुछ ही देर मे फ़िज़ा भी तेयार होके आ गई ऑर मेरे तेयार होने के बाद हम खेत चले गये...
..................
•
Posts: 727
Threads: 15
Likes Received: 610 in 360 posts
Likes Given: 839
Joined: Mar 2019
Reputation:
17
अपडेट-15
दुपेहर तक हम तीनो अपने-अपने कामो मे बिज़ी रहे तभी एक आदमी हमारे खेतो मे आता हुआ नज़र आया... जिससे फ़िज़ा ने सबसे पहले बात की ऑर फिर वो दोनो मेरी तरफ आने लगे...
आदमी: सलाम जनाब आपको छोटी मालकिन ने याद किया है...
मैं: वेलेकम... सलाम आप कौन हो ऑर कौनसी छोटी मालकिन...
आदमी: जी मेरा नाम खुदा बक्ष है मुझे सरपंच जी की बेटी ने भेजा है वो आपसे मिलना चाहती है...
मैं: अच्छा उनको बोलो थोड़ी देर मे आता हूँ
वो आदमी इतना सुनकर वापिस चला गया ऑर फ़िज़ा मुझे गुस्से से खा जाने वाली नज़रों से देखने लगी... मुझे समझ नही आ रहा था कि फ़िज़ा मुझे ऐसे गुस्से से क्यो देख रही है तभी वो वापिस पलट गई ऑर वापिस अपने काम वाली जगह जाने लगी...
मैं: फ़िज़ा क्या हुआ ऐसे बिना कुछ बोले कहाँ जा रही हो बात तो सुनो...
फ़िज़ा: (गुस्से मे) क्या है... जाओ अपनी छोटी मालकिन के पास वो तुम्हारा इंतज़ार कर रही है मेरे पिछे क्यो आ रहे हो...
मैं: अर्रे हुआ क्या है बताओ तो सही गुस्सा किस बात पर हो मैं तुम्हारे लिए उसके पास जा रहा हूँ तुम तो हर वक़्त गुस्सा ही करती रहती हो...
फ़िज़ा: अच्छा जी मैं गुस्सा करती हूँ तुम हवेली गये ऑर मुझे बताया भी नही वहाँ जाके क़ासिम की बात भी कर ली फिर भी मुझे बताना ज़रूरी नही समझा ऑर मैं बिना बात के गुस्सा कर रही हूँ क्यो हैं ना...
मैं: फ़िज़ा वो लड़की क़ासिम को जैल से निकलवाने मे हमारी मदद करेगी इसलिए मैं उसके पास गया था ऑर मैं तुमको बताना भूल गया था नाज़ी को सब पता है जाके पूछ लो...
फ़िज़ा: मैं क्यो पुछू नाज़ी से मुझे तुमको बताना चाहिए था ना ऑर क़ासिम को निकलवाने की कोई ज़रूरत नही है...
मैं: (चोन्क्ते हुए) क्यो तुम नही चाहती की वो बाहर आए ऑर तुम्हारे साथ रहे...
फ़िज़ा: नही मैं बस ये नही चाहती कि तुम मुझसे दूर हो जाओ...
मैं: क्या मतलब
फ़िज़ा: ज़ाहिर सी बात है कि क़ासिम अगर बाहर आएगा तो हम दोनो जैसे अब मिलते हैं वैसे नही मिल पाएँगे ऑर वैसे भी क़ासिम से मुझे सिर्फ़ आँसू ऑर तक़लीफ़ ही मिली है जो खुशी मुझे तुमसे मिली वो मैं खोना नही चाहती बस...
मैं: ठीक है जैसे तुम बोलोगि वैसा ही होगा...
फ़िज़ा: अब तुम छोटी मालकिन के पास भी मत जाना ठीक है...
मैं: (हाँ मे सिर हिलाते हुए) हमम्म अब तो खुश हो...
फ़िज़ा: हमम्म (मुस्कुराते हुए)
अभी हम बात की कर रहे थे कि नाज़ी भी हमारे पास आ गई...
नाज़ी: क्या हुआ नीर वो आदमी कौन था
मैं: वो हवेली से आया था
फ़िज़ा: (मुझे चुप रहने का इशारा करके नही मे सिर हिलाते हुए) कुछ नही वो बस सरपंच ने ऐसे ही आदमी भेजा था कि हम क़ासिम के लिए हुए पैसे देंगे या नही तो मैने मना कर दिया कि हमारे पास पैसे नही है... जब होंगे तो दे देंगे...
नाज़ी: ओह्ह अच्छा
फिर हम तीनो अपने-अपने कामों मे लग गये ओर शाम को खेत से घर आ गये...
...............
•
Posts: 727
Threads: 15
Likes Received: 610 in 360 posts
Likes Given: 839
Joined: Mar 2019
Reputation:
17
रात को मैं बाबा के पास बैठा बातें कर रहा था ऑर उनके पैर दबा रहा था ऑर नाज़ी ऑर फ़िज़ा रसोई मे खाने बनाने मे लगी थी कि अचानक बिजली चली गई...
बाबा: ये बिजली वालो को रात मे भी सुकून नही है...
मैं: बाबा रुकिये मैं रोशनी के लिए मोमबत्ती लेके आता हूँ...
मैं मोमबत्ती लेने रसोई मे गया तो मुझे 2 नही बल्कि एक साया नज़र आया जो झुका हुआ था ऑर कोई समान निकाल रहा था डब्बे मे से
मुझे लगा कि फ़िज़ा है इसलिए मुझे शरारत सूझी ऑर मैने पिछे से जाके उसको पकड़ लिया इससे पहले कि वो चोंक कर चीखती मैने उसके मुँह पर हाथ रख दिया...
मैं: चिल्लाना मत मैं हूँ नीर (बहुत धीमी आवाज़ मे)
वो साए वाली लड़की: (वो खामोश होके खड़ी हो गई) हमम्म
मैं: एक पप्पी दो ना (धीमी आवाज़ मे)
वो साए वाली लड़की: (ना मे सिर हिलाते हुए)
तभी लाइट आ गई ऑर मैं हैरान-परेशान वही खड़ा का खड़ा ही रह गया मेरी समझ मे नही आ रहा था कि मुझसे ऐसी ग़लती कैसे हो गई क्योंकि वो लड़की फ़िज़ा नही नाज़ी थी जिसको मैं गले लगाए खड़ा था... लाइट आने के बाद जैसे ही मैने उसको देखा जल्दी से उससे अलग हो गया ऑर रसोई से बाहर निकल गया तेज़ कदमो के साथ...
फ़िज़ा: अर्रे तुम यहाँ क्या कर रहे हो मैं तो तुमको मोमबत्ती देने गई थी...
मैं: कुछ नही वो मैं भी मोमबत्ती लेने आया था
मैं तेज़ कदमो के साथ वापिस कमरे मे आ गया...
रात को खाने पर नाज़ी मुझे अजीब सी नॅज़ारो से देख रही थी लेकिन मुझमे उससे नज़ारे मिलाने की हिम्मत नही थी ना ही ये बात मैं किसी को बता सकता था... मैं बस जल्दी-जल्दी खाना ख़तम करके वहाँ से उठना चाहता था
तभी नाज़ी बोली...
नाज़ी: भाभी आजकल बिजली जाने के भी फ़ायदे हो गये हैं ना (मेरी तरफ देखती हुई)
मैं: (डर से ना मे सिर हिलाते हुए ऑर मिन्नत वाले अंदाज़ मे नाज़ी को देखते हुए)
फ़िज़ा: (कुछ ना समझने वाले अंदाज़ मे) क्या मतलब...
नाज़ी: कुछ नही वो आजकल हम जैसे गाँव वाले भी शहर वालो की तरह मोमबत्ती जला के खाना खा सकते हैं जैसे फ़िल्मो मे दिखाते हैं...
फ़िज़ा: चल पागल (हँसती हुई)
नाज़ी: (मुझे देख कर हँसती हुई ऑर आँख मारते हुए) हमम्म्म...
फ़िज़ा: अच्छा नाज़ी तुम सबको एक बात बतानी थी (सिर झुका कर मुस्कुराते हुए)
नाज़ी: क्या भाभी...
फ़िज़ा: अब तू थोड़ी समझदार हो जा तुझे एक नये मेहमान की ज़िम्मेदारी उठानी है मेरे साथ...
नाज़ी: क्या मतलब
फ़िज़ा: मतलब ये कि तुम बुआ बनने वाली हो (शर्मा कर मुस्कुराती हुई)
नाज़ी: सचिईीई... (अपनी जगह से खड़ी होके फ़िज़ा को गले लगाते हुए) हाए कोई मुझे सम्भालो कहीं मैं खुशी से बेहोश ही ना हो जाउ...
मैं: बहुत-बहुत मुबारक हो फ़िज़ा जी...
फ़िज़ा: शुक्रिया...
नाज़ी: चलो क़ासिम भाई ने एक काम तो अच्छा किया
फ़िज़ा: चल बदमाश कही की (कंधे पर मुक्का मारते हुए)
नाज़ी: अच्छा भाभी सुबह बाबा को भी बता दूं वो भी ये सुनकर बहुत खुश होंगे...
फ़िज़ा: (शर्म से मुँह नीचे करते हुए) जो तुमको ठीक लगे...
इसी तरह बातें करते हुआ हमने खाना खाया ऑर रात को सब जल्दी सो गये... फ़िज़ा भी कल रात की चुदाई से बहुत खुश थी इसलिए वो भी मुझे बुलाने नही आई ऑर कुछ हम दोनो पर नींद का भी खुमार था इसलिए आज मैं ऑर फ़िज़ा भी सो गये थे अपने-अपने कमरो मे...
•
Posts: 727
Threads: 15
Likes Received: 610 in 360 posts
Likes Given: 839
Joined: Mar 2019
Reputation:
17
सुबह बाबा को नाज़ी ने बता दिया तो वो भी फ़िज़ा के बारे मे सुनकर बहुत खुश हुए ऑर उसको बहुत सी दुआएँ दी...
अगले दिन मैने शहर जाना था फसल के लिए नये बीज लेने के लिए इसलिए जल्दी ही तेयार हो गया... आज मैं पहली बार अकेला शहर जा रहा था क्योंकि 2 बार हम जब भी शहर गये थे तो फ़िज़ा ऑर नाज़ी भी मेरे साथ जाती थी... फ़िज़ा मुझे जाने से पहले तमाम हिदायते दे रही थी जैसे मैं शहर नही किसी जंग पर जा रहा हूँ...
जब मैं घर से निकला तो नाज़ी ऑर फ़िज़ा दोनो दरवाज़े पर खड़ी मुझे जाता हुआ देखती रही...
फिर मैं बस स्टॅंड आ गया जहाँ शहर जाने के लिए बस आती थी ऑर वहाँ खड़े तमाम लोगो के साथ बस का इंतज़ार करने लगा तभी एक काले रंग की कार मेरे सामने आके रुकी जिसका काँच नीचे हुआ तो अंदर सरपंच की बेटी बैठी थी...
मैं: सलाम छोटी मालकिन...
छोटी मालकिन: वालेकुम... सलाम शहर जा रहे हो?
मैं: हंजी
छोटी मालकिन: चलो अंदर गाड़ी मे आ जाओ मैं भी शहर ही जा रही हूँ
मैं: जी नही शुक्रिया मैं बस मे चला जाउन्गा बेकार मे आपको तक़लीफ़ होगी...
छोटी मालकिन: इसमे तक़लीफ़ की क्या बात है वैसे भी मैं अकेली ही तो हूँ आ जाओ अंदर चलो शाबाश... (कार का दरवाज़ा खोलते हुए)
मैं: जी आपका बहुत-बहुत शुक्रिया... (कार मे बैठ ते हुए)
छोटी मालकिन: कल मैने तुमको बुलाया था तुम आए नही...
मैं: माफ़ करना काम मे मसरूफ़ था फिर भूल गया...
छोटी मालकिन: कोई बात नही ऑर ये तुम मुझे क्या छोटी मालकिन-छोटी मालकिन बुलाते हो मैं तुम्हारी थोड़ी ना मालकिन हूँ...
मैं: सारा गाँव आपको यही कहता है तो मैने भी यही बुला दिया
छोटी मालकिन: गाव वालो मे ऑर तुम मे फ़र्क है...
मैं: क्या फ़र्क है जी मैं भी तो उन जैसा ही हूँ...
छोटी मालकिन: (हँसती हुई) गाँव मे किसी की हिम्मत नही कि मेरे घर मे इस तरह घुस कर मेरे ही लोगो की पिटाई कर दे...
मैं: जी माफी चाहता हूँ वो मैं...
छोटी मालकिन: अर्रे मैं नाराज़ नही हूँ उल्टा खुश हूँ कि कोई तो है जिसमे इतनी हिम्मत है बस कल थोड़ा सा बुरा लगा...
मैं: जी... क्या हुआ मुझसे कोई ग़लती हो गई क्या...
छोटी मालकिन: आप मिलने जो नही आए बस यही खता हुई पहले मैने सोचा कि मैं चलती हूँ फिर अब्बा जान घर थे तो आपकी समस्या याद आ गयी फिर मैने बात की थी अब्बू से...
मैं: अच्छा फिर क्या कहा उन्होने छोटी मालकिन...
छोटी मालकिन: वो कह रहे थे कि अब कुछ नही हो सकता क़ासिम को सज़ा एलान हो चुकी है अब तो सज़ा पूरी ही काटनी पड़ेगी... (नज़रें झुका कर) माफ़ करना मैं आपकी मदद नही कर सकी...
मैं: कोई बात नही छोटी मालकिन आपने कोशिश की यही मेरे लिए बहुत है... (मुस्कुराते हुए)
छोटी मालकिन: ये तुम क्या मुझे छोटी मालकिन बुला रहे हो हीना नाम है मेरा...
मैं: लेकिन मैं आपको आपके नाम से कैसे बुला सकता हूँ
हीना: क्यो नही बुला सकते मैं भी तो तुमको नीर ही कहती हूँ ना
मैं: ठीक है जैसा आप बेहतर समझे हीना जी...
हीना: हीना जी नही सिर्फ़ हीना...
मैं: अच्छा हीना
हीना: अच्छा मैं तो शहर नये कपड़े खरीदने जा रही हूँ तुम शहर क्यो जा रहे हो...
मैं: वो मैने फसल के लिए नये बीज लेने थे इसलिए जा रहा हूँ...
हीना: अच्छा... तुमको मैने पहले इस गाँव मे कभी देखा नही तुम कही बाहर रहते थे क्या पहले... ?
मैं: जी... (मुझे याद आ गया कि फ़िज़ा ने अपने बारे मे किसी को भी बताने से मुझे मना किया हुआ है)
हीना: अच्छा तुमने ऐसा लड़ना कहाँ सीखा?
मैं: पता नही जब ज़रूरत होती है खुद ही सब कुछ आ जाता है...
हीना: हथियार भी चला सकते हो?
ये बात सुनकर मुझे जाने क्या हो गया ऑर मुझे अजीब सी तस्वीरें नज़र आने लगी जिसमे मैं लोगो पर गोलियाँ चला रहा हूँ मैने शहर के लोगो जैसे कपड़े पहने है मेरे आस-पास बहुत सारे लोग है तभी मेरे सिर मे दर्द होने लगा ऑर मुझे चक्कर से आने लगे ओर मेरा पूरा बदन पसीने से भीग गया...
............
•
Posts: 727
Threads: 15
Likes Received: 610 in 360 posts
Likes Given: 839
Joined: Mar 2019
Reputation:
17
अपडेट-16
हीना: क्या हुआ ठीक तो हो... (मुझे कंधे से हिलाते हुए)
मैं: जी नही... हाँ मैं ठीक हूँ...
हीना: कहाँ खो गये थे...
मैं: कुछ नही... कुछ नही आप मुझे यही उतार दीजिए मैं चला जाउन्गा अपने आप...
हीना: मैने कुछ ग़लत बोल दिया क्या...
मैं: नही मेरी शायद तबीयत खराब है आप मुझे यही उतार दीजिए मैं चला जाउन्गा...
हीना: अरे क्या हुआ बताओ तो सही... रूको... ये लो पानी पीओ (पानी की बोतल मुझे देते हुए)
मैं: (पानी पी कर अपना पसीना सॉफ करते हुए) शुक्रिया
हीना: क्या हुआ था तुमको एक दम से...
मैं: पता नही
हीना: बीज बाद मे ले लेना पहले तुम मेरे साथ डॉक्टर के पास चल रहे हो ठीक है
मैं: नही मैं ठीक हूँ बेकार मे तक़लीफ़ ना करे...
हीना: अर्रे ठीक कैसे हो अभी देखा नही कैसे पसीना-पसीना हो गये थे...
शहर आके हीना मुझे डॉक्टर के पास ले गई जिसने मेरा चेक-अप किया... फिर डॉक्टर ने मुझे बाहर जाने को कह दिया ऑर खुद हीना से बात करने लगा कुछ देर बाद हीना भी डॉक्टर के कमरे से बाहर आ गई...
मैं: क्या कहा डॉक्टर ने आपसे?
हीना: तुम ठीक हो (मुस्कुराते हुए) बस ये कुछ दवाइयाँ दी है डॉक्टर ने जो तुमको लेनी है ऑर एक बार फिर हम को चेक-अप के लिए आना पड़ेगा ऑर कुछ टेस्ट करवाने पड़ेंगे...
मैं: हीना जी क्यो पैसे खराब कर रही है मैं एक दम ठीक हूँ ये डॉक्टर तो बस ऐसे ही...
हीना: तुम डॉक्टर हो... नही ना फिर जैसा कहती हूँ वैसे करो...
मैं: कितने पैसे हुए?
हीना: तुमसे मतलब
मैं: नही वो आपको वापिस भी तो करने है इसलिए...
हीना: तुम इतना क्यो सोचते हो... पैसे की फिकर छोड़ो ऑर अपनी सेहत का ख्याल रखा करो अगर मैं साथ ना होती तो...
मैं: तो कुछ नही (मुस्कुराते हुए)
हीना: अब तुम मेरे साथ ही वापिस जाओगे समझे...
मैं: मेरा तो यहाँ छोटा सा काम है मैं यहाँ क्या करूँगा
हीना: कुछ नही पहले हम तुम्हारे बीज लेने चलते हैं फिर मेरी शॉपिंग के लिए चलेंगे ठीक है...
मैं: ठीक है...
.................
•
Posts: 727
Threads: 15
Likes Received: 610 in 360 posts
Likes Given: 839
Joined: Mar 2019
Reputation:
17
हॉस्पिटल से निकलकर हम पहले बीज मंडी गये फिर वहाँ से हीना के लिए शॉपिंग करने चले गये जहाँ मैने फ़िज़ा ऑर नाज़ी के लिए भी कुछ कपड़े खरीद लिए फिर हम घर के लिए निकल पड़े... सारे सफ़र के दोरान मैं बस चुप-चाप बैठा अपने ज़हन मे आने वाली तस्वीरो के बारे मे सोचता रहा कि आख़िर मैं हूँ कौन... क्यो मुझे मेरा अतीत याद नही है... क्यो 20-20 लोग भी मिलकर मुझसे लड़ाई नही कर सकते... ऑर वो हथियार चलाना मुझे कहाँ से आए वो मेरे ज़हन का बस ख्याल था या मैं सच मे हथियार चला सकता हूँ...
तभी एक जीप तेज़ी से हमारी तरफ आई जिसमे कुछ शहर के लड़के बैठे थे जो बार-बार चिल्ला रहे थे उन्होने हाथ मे शराब की बोतल पकड़ी हुई थी... अचानक उन्होने बीच सड़क मे जीप रोक दी ऑर हमारी कार भी उनकी वजह से रोकनी पड़ी...
हीना: ड्राइवर बाहर जाके देखो क्या समस्या है इन लड़को के साथ...
मैं: हीना जी मैं जाके देखता हूँ
हीना: नही तुम रहने दो जाओ ड्राइवर तुम जाओ ऑर उनको जीप साइड पर करने को बोलो
ड्राइवर: अच्छा छोटी मालकिन...
ड्राइवर उन लड़को के पास गया ऑर थोड़ी-देर बहस के बाद उन्होने ड्राइवर को मारना शुरू कर दिया
मैने एक मुस्कुराहट के साथ हीना की तरफ देखा ऑर बिना कुछ कहे कार से बाहर निकल गया... बाहर निकलते ही मैं दौड़कर उनकी तरफ गया ऑर उन लड़को पर धावा बोल दिया सबसे पहले एक सामने खड़ा था जिस पर मैने हमला किया इससे पहले कि वो कुछ कह पाता या कर पाता मैने उसके मुँह पर मुक्का मारा ऑर वो ज़मीन पर गिर गया...
अचानक सब लड़के मुझे देखकर हैरान से हो गये ऑर मुझसे लड़ने की बजाए सब अपने घुटनो पर बैठ गये ओर माफी माँगने लगे मुझे कुछ समझ नही पाया कि ये क्या हुआ ये तो अभी इतनी गुंडागर्दी कर रहे थे अचानक इन्हे क्या हो गया जो ये मुझसे माफी माँगने लगे...
1 लड़का: भाई माफ़ कर दो हम को पता नही था आप की गाड़ी है...
2 लड़का: भाई आप ज़िंदा हो ये जानकार बहुत खुशी हुई...
मुझे उनके इस तरह के बर्ताव से कुछ समझ नही आ रहा था कि क्या कहूँ इनको...
मैं: तुम जानते हो मैं कौन हूँ...
1 लड़का: भाई माफ़ कर दो आपके पैर पड़ता हूँ पहचानने मे ग़लती हो गई...
मैं: बताओ मुझे मैं कौन हूँ क्या तुम मुझे जानते हो...
2 लड़का: भाई माफ़ भी कर दो आगे से ऐसा नही होगा हम को पता नही था आपकी कार है
मैं: बता मुझे मैं कौन हूँ मैं तुम्हे कुछ नही कहूँगा...
1 लड़का: शेरा भाई कैसी बात कर रहे हो आपको कौन नही जानता...
मैं: मैं शेरा हूँ... कौन शेरा...
इससे पहले कि मैं कुछ ऑर कह पाता हीना कार से निकलकर बाहर आ गई ऑर जैसे ही मैं पिछे को मुड़ा वो लोग वहाँ से भाग गये ऑर अपनी जीप मे बैठकर चले गये...
हीना: (मुस्कुराते हुए) क्या बात है एक ही मुक्के मे इतने सारे लड़को को अपने पैरो मे डाल लिया
मैं: हीना जी आपने ये क्या किया उनको भगा दिया जानती हो आपके आने से वो लोग भाग गये मुझे उनसे कुछ पुछ्ना था...
हीना: क्या पुछ्ना था अर्रे माफ़ भी कर दो उनको बिचारों ने पैर तो पकड़ लिए अब क्या जान लोगे उनकी चलो कार मे... अर्रे अब कार कौन चलाएगा ये तो बेहोश हो गया ऑर मुझे कार चलानी तो आती ही नही (रोने जैसा मुँह बनाके ऑर अपने ड्राइवर की तरफ देखते हुए)
मैं: मैं चलाउन्गा
हीना: (हैरानी से) तुम कार भी चला लेते हो...
मैं: हाँ शायद
हीना: वाह क्या बात है तुम तो छुपे रुस्तम हो चलो पहले इस ढक्कन को कार मे फेंको कोई काम के नही है अब्बू के आदमी (मुँह बनाते हुए) मैं अगली सीट पर तुम्हारे साथ ही बैठ जाती हूँ पिछे ये मनहूस पड़ा रहेगा...
(असल मे मैं नही जानता था कि मैं कार चला सकता हूँ या नही लेकिन उन लड़को ने जैसे कहा कि हम को पता नही था कि आपकी कार है उससे मैने बस अंदाज़ा लगाया था कि शायद मैं कार चला सकता हूँ...)
मैं कार मे ड्राइवर सीट पर बैठा ऑर मैं नही जानता मैने कार चलानी कहाँ सीखी लेकिन जैसे ही मैं कार की ड्राइवर सीट पर बैठा अचानक से मुझे सब कुछ याद आने लगा ऑर कुछ ही देर मे कार हवा से बातें करने लगी आज ना जाने क्यो कार चलते हुए मुझे बहुत खुशी हो रही थी ऑर मैं हवा से बाते करते हुए कार को तेज़-तेज़ दौड़ा रहा था...
हीना: नीर आराम से चलाओ तुम बहुत तेज़ चला रहे हो मुझे डर लग रहा है...
मैं: देखती जाओ आज बहुत वक़्त के बाद ये स्टारिंग व्हील मेरे हाथ आया है आज इसको चलाउन्गा नही उड़ा दूँगा...
हीना: इतना ख्याल रखना कि कही मुझे ना उड़ा देना... हाहहहहहाहा
ऐसे ही बाते करते हुए हम गाँव वापिस आ गये मैने सरपंच की हवेली के सामने कार रोकी ऑर खुद पैदल चलता हुआ अपने घर की तरफ कदम बढ़ा दिए आज मैं बहुत खुश था क्योंकि आज इतने वक़्त के बाद मुझे मेरा असल नाम पता चला था शेरा हाँ यही नाम लेके पुकारा था उन लड़को ने मुझे मैं बे-क़रार हुआ जा रहा था ये खबर फ़िज़ा ऑर नाज़ी को देने के लिए...
..................
•
Posts: 727
Threads: 15
Likes Received: 610 in 360 posts
Likes Given: 839
Joined: Mar 2019
Reputation:
17
अपडेट-17
जैसे ही मैं घर पहुँचा तो नाज़ी ने दरवाज़ा खोला ऑर मुझे देखते ही उसके चेहरे पर एक मुस्कान आ गई जिसका जवाब मैने भी एक मुस्कान के साथ दिया...
नाज़ी: इतनी जल्दी कैसे आ गये...
मैं: मैं वहाँ बीज लेने गया था घर बसाने नही (हँसते हुए)
नाज़ी: आज कल नीर साहब आपको बहुत बातें आ गई है (मुस्कुराते हुए)
मैं: बस जी आपकी सोहबत का असर है
नाज़ी: अच्छा जी... देखना कही सोहबत मे बिगड़ ना जाना हमारी...
मैं: नही बिगड़ता जी आप तो बहुत अच्छी हो
नाज़ी: हमम्म तभी अच्छाई का फ़ायदा उठाते हो अंधेरे मे बदमाश... (हँसती हुई)
मैं: वो मैं वो... (ज़मीन पर देखते हुए)
नाज़ी: बस... बस... अच्छा ये बताओ शहर से आ रहे हो मेरे लिए क्या लाए?
मैं: बीज लाया हूँ खाओगी (हाहहहहहहहाहा) ये लो तुम्हारे, बाबा ऑर फ़िज़ा जी के लिए ओर नये सूट लाया हूँ...
इतने मे फ़िज़ा की रसोई से आवाज़ आई...
फ़िज़ा: कौन आया है नाज़ी
नाज़ी: कोई नही भाभी एक बुधु है जो नये कपड़े लाया है (हँसती हुई)
मैं: अच्छा... बुधु वापिस करो नया सूट...
नाज़ी: (भागते हुए) भाभी बचाओ... मेरा नया सूट ले रहे हैं...
इतने मे फ़िज़ा रसोई मे से बेलन लेके बाहर आ गई... ऑर नाज़ी उपर कोठरी मे कपड़े लेके भाग गई ऑर अंदर से दरवाज़ा बंद कर लिया...
फ़िज़ा: अर्रे नीर तुम हो ये पागल तो कह रही थी बुधु है कोई
मैं: जी वो बुद्धू आपके सामने है
फ़िज़ा: नाज़ी भी पागल है ऐसे ही डरा दिया... मुझे लगा पता नही कौन है
मैं: ओह्ह अच्छा तो इसलिए आप बेलन लेके आई थी... हाहहहहहाहा
फ़िज़ा: अच्छा तुम इतनी जल्दी कैसे आ गये
मैं: वो बस सीधी मिल गई थी ना इसलिए
फ़िज़ा: लेकिन अपने गाव से तो शहर के लिए सीधी बस कोई है ही नही
मैं: वो कुछ लोग कार मे शहर जा रहे थे तो मुझे भी उन्होने शहर छोड़ दिया पैसे भी नही लिए (मैने फ़िज़ा को झूठ बोला क्योंकि हीना के बारे मे बोलता तो उसको अच्छा नही लगता इसलिए)
फ़िज़ा: ओह्ह अच्छा... ऐसे ही किसी अंजान के साथ ना जाया करो नीर अगर वो ग़लत लोग होते तो... अपने बारे मे नही तो कम से कम हमारे बारे मे ही सोच लिया करो...
मैं: अर्रे तुम तो ऐसे ही घबरा जाती हो देखो कुछ नही हुआ सही सलामत तो हूँ वैसे भी तुमको लगता है मेरा कोई कुछ बिगाड़ सकता है (मुस्कुराते हुए अपने डोले फ़िज़ा को दिखाते हुए)
फ़िज़ा: फिर भी आगे से ऐसे किसी अंजान के साथ नही जाना ठीक है
मैं: जो हुकुम सरकार का (मुस्कुराते हुए)
फ़िज़ा: अच्छा वो बीज मिल गये
मैं: हंजी मिल गये... ये बाकी के पैसे भी रख लो ऑर इसमे से कुछ पैसे खर्च हो गये वो मैं नये कपड़े आपके नाज़ी ऑर बाबा के लिए लाया था वो नाज़ी उपर लेके भाग गई
•
Posts: 727
Threads: 15
Likes Received: 610 in 360 posts
Likes Given: 839
Joined: Mar 2019
Reputation:
17
फ़िज़ा: कोई बात नही... नीर तुम सारे पैसे मुझे क्यो दे रहे हो कुछ अपने पास भी रखा करो तुम्हारी ज़रूरत के लिए
मैं: मेरा खर्चा ही क्या... ख़ाता यहाँ हूँ, रहता यहाँ हूँ ऑर कोई बुरी आदत मुझे है नही सिवाए तुम्हारे तो फिर पैसे किसलिए आप ही रखू...
फ़िज़ा: हमम्म पता है... अब मैं बुरी आदत हो गई हूँ ना... नीर तुम अपने लिए कुछ नही लाए...
मैं: नही वो अपने लिए मुझे कुछ पसंद ही नही आया
फ़िज़ा: अगली बार जब जाओगे तो या तो अपने लिए भी कुछ लेके आना नही तो ये भी वापिस कर आना मुझे नही चाहिए...
मैं: अर्रे ऐसे भी क्या कर रही हो मैं बहुत प्यार से लाया था
फ़िज़ा: जानती हूँ... लेकिन तुम अपने लिए अगर कुछ खरीद लोगे तो क्या हो जाएगा आख़िर मेरा भी मन करता है कि मेरा नीर अच्छे-अच्छे कपड़े पहने ऑर गाव मे सब आदमियो से सुंदर दिखे...
मैं: कुछ नही वो बस ऐसे ही पैसे बहुत लग गये थे इसलिए... अच्छा छोड़ो ये सब बाबा कहाँ है...
फ़िज़ा: वो ज़रा पड़ोस मे हैदर साब के घर गये हैं उनके पोते का पता लेने
मैं: क्यो क्या हुआ
फ़िज़ा: कुछ नही दोपहर को वो छत से गिर गया था उसकी टाँग टूट गई
मैं: ओह्ह्ह अच्छा... तभी मैं सोच रहा था आज ये तितली इतना शोर कैसे मचा रही है
फ़िज़ा: इस तितली को जल्दी इस घर से रवाना करना पड़ेगा (मुस्कुराते हुए)
हम ऐसे ही बाते कर रहे थे कि तभी पिछे से नाज़ी की आवाज़ आई...
नाज़ी:भाभी नीर अगर कमरे मे चले गये तो मैं नीचे आ जाउ
फ़िज़ा: हाँ नीचे आजा वो बुद्धू अपने कमरे मे चला गया (हँसती हुई)
मैं: तुम भी बुधु... ठीक है (नाराज़ होके जाते हुए)
फ़िज़ा: अर्रे जान गुस्सा क्यो होते हो मैं तो मज़ाक कर रही थी अच्छा लो कान पकड़े अब तो माफ़ कर दो अपनी फ़िज़ा को...
मैं: (मुस्कुराते हुए) तुम ऑर नाज़ी दोनो एक जैसी हो एक नंबर की ड्रामेबाज़...
नाज़ी: क्यो जी आप मेरी भाभी से कान क्यो पकड़वा रहे हो (अपने दोनो हाथ कमर पर रखते हुए)
मैं: मैने तो कुछ भी नही कहा जी आपकी प्यारी भाभी को ये खुद ही कान पकड़े खड़ी है...
फ़िज़ा: देखो नाज़ी ये हम सब के लिए नये कपड़े लाए हैं ऑर अपने लिए कुछ नही लाए...
नाज़ी: क्यो जी अपने लिए कुछ क्यो नही लाए
मैं: अर्रे ग़लती हो गई अगली बार जब जाउन्गा तो ले आउन्गा अब तो खुश हो दोनो
फ़िज़ा: ठीक है फिर हम सब एक साथ ही नये कपड़े पहनेगे तब तक नाज़ी मेरे कपड़े भी संभालकर अंदर रख दो
अभी हम तीनो ऐसे ही बात कर रहे थे कि इतने मे बाबा भी आ गये ऑर मुझे घर मे देखकर खुश होते हुए बोले...
बाबा: आ गये बेटा
मैं: जी बाबा आप बीज देख लीजिए ठीक लाया हूँ या नही
बाबा: (बीज हाथ मे लेके देखते हुए) बहुत अच्छे बीज लाए हो बेटा अब तो तुम लगभग सारा काम ही सीख चुके हो...
मैं: जी ये सब तो मुझे फ़िज़ा जी ने सिखाया है
बाबा: हाँ बेटा ये मेरी सबसे लायक बच्ची है
फ़िज़ा: (नज़रे झुका के मुस्कुराते हुए)
नाज़ी: ऑर मैं... बाबा मैं आपकी लायक बच्ची नही हूँ (रोने जैसा मुँह बनाके)
बाबा: ऑह्हूनो तुम्हारे सामने तो बात करना ही बेकार है जाने तुम्हारा बच्पना कब जाएगा
फ़िज़ा: बाबा अब हम को इसके लिए कोई अच्छा सा लड़का देखना शुरू कर देना चाहिए सिर पर ज़िम्मेदारी आएगी तो खुद ही बचपना करना छोड़ देगी...
नाज़ी: क्या भाभी आप भी... (मुस्कुराते हुए ऑर मेरी तरफ देखते हुए)
बाबा: बेटी कोई अच्छा लड़का भी तो मिले तब ही बात चलाए तुम्हारी नज़र मे कोई हो तो बता दो
फ़िज़ा: नही बाबा मैं तो ऐसे ही मज़ाक कर रही थी अभी तो इसके खेलने खाने के दिन है...
बाबा: चलो फिर ये ज़िम्मेदारी भी मैं तुमको ही देता हूँ जब तुमको लगे कि ये शादी के लायक हो गई है तो खुद ही इसके लिए लड़का ढूँढ लेना मुझे तुम्हारी पसंद पर पूरा भरोसा है...
फ़िज़ा: जी बाबा... अच्छा बाबा आप ऑर नीर बाते करो मैं रसोई मे ज़रा खाना बना लूँ
बाबा: हाँ बेटा अच्छा याद करवाया फ़िज़ा ने... मुझे तुमसे एक ज़रूरी बात करनी थी...
मैं: जी बाबा हुकुम कीजिए
बाबा: बेटा अब तो तुम सब काम देखने लग गये हो ऑर तुम तो जानते हो कि अपनी फ़िज़ा बेटी भी अब उम्मीद से है तो इस हालत मे इसका काम करना सही नही है ऑर खेत का मेहनत वाला काम तो बिल्कुल भी नही तो मैं सोच रहा हूँ कि जब तक बच्चा नही हो जाता तुम अकेले ही खेत का सारी देखभाल करो क्योंकि फ़िज़ा के बाद एक तुम ही हो जिस पर मैं भरोसा कर सकता हूँ क़ासिम का तो तुम जानते ही हो वो हुआ ना हुआ एक बराबर है... बाकी नाज़ी को तुम चाहो तो अपनी मदद के लिए साथ लेके जाना चाहो तो ले जाना तुम्हे मेरे फ़ैसले से कोई ऐतराज़ तो नही...
मैं: ऐतराज़ किस बात का बाबा आपका हुकुम सिर आँखो पर
बाबा: खुश रहो बेटा मुझे तुमसे यही उम्मीद थी... अल्लाह सबको ऐसी लायक औलाद दे
(इतना कह कर बाबा नाज़ी को आवाज़ लगते हुए अपने कमरे मे चले गये)
मैं वही पर बैठा बाबा के फ़ैसले के बारे मे सोचने लगा ऑर साथ ही अपने असल नाम के बारे मे सोच रहा था... काफ़ी देर मैं बाहर खड़ा रहा ऑर अपनी पुरानी जिंदगी को याद करने की कोशिश करता रहा लेकिन मुझे कुछ भी पिच्छला याद नही आ रहा था... अब मैं सोच रहा था कि अपने नाम के बारे मे सबको बताऊ या चुप रहूं बरहाल मैने ये फ़ैसला किया कि मैं इस बारे मे किसी को भी कुछ नही बताउन्गा ऑर जब तक मुझे कुछ ऑर बाते अपने बारे मे पता नही चल जाती या फिर याद नही आ जाती अपने बारे मे तब तक चुप रहूँगा...
•
Posts: 727
Threads: 15
Likes Received: 610 in 360 posts
Likes Given: 839
Joined: Mar 2019
Reputation:
17
रात को खाने के वक़्त मैं नाज़ी ऑर फ़िज़ा तीनो खाने पर बैठ गये ऑर रोज़ की तरह बाबा आज भी जल्दी सो गये थे... खाने के वक़्त मैने सबको बाबा का फ़ैसला सुना दिया... जिस पर पहले तो फ़िज़ा नही मानी लेकिन मेरे इसरार पर वो मान गई ऑर घर मे रहने का फ़ैसला कर लिया... लेकिन उसने ये शर्त रखी कि मैं अकेले काम नही करूँगा ऑर नाज़ी को भी अपने साथ लेके जाउन्गा ताकि वो मेरी खेत मे मदद कर सके जिस पर नाज़ी खुशी-खुशी मान गई... फिर हम तीनो खाना खाने लग गये...
नाज़ी: अच्छा भाभी बाबा ने मुझे आपके लिए कुछ हिदायतें दी है...
फ़िज़ा: (खाना खाते हुए) क्या कहा बाबा ने
नाज़ी: वो शाम को बाबा ने मुझे कमरे मे बुलाया था तो कह रहे थे कि अब हमारे घर मे कोई बड़ी बुजुर्ग औरत तो है नही जो तुम्हारी भाभी का ख्याल रख सके इसलिए मैं ही अबसे तुम्हारा ख्याल रखूँगी...
फ़िज़ा: (हँसती हुई) अच्छा जी... खुद को संभाल नही सकती मेरा ख्याल रखेगी...
नाज़ी: (चिड़ते हुए) हँसो मत ना भाभी मैं सच कह रही हूँ अब से आप ना तो रसोई मे ज़्यादा काम करेंगी ना ही कोई सॉफ-सफाई करेंगी...
फ़िज़ा: चलो जी... तो खाना कौन बनाएगा घर कौन सॉफ करेगा महारानी जी...
नाज़ी: मैं हूँ ना मैं सब संभाल लूँगी इतना तो आपसे काम सीख ही लिया है
फ़िज़ा: कोई बात नही कल सुबह देख लेंगे तुम कितने पानी मे हो... (हँसते हुए)
नाज़ी: हाँ... हाँ... देख लेना
फ़िज़ा: मज़ाक छोड़ ना नाज़ी मैं कर लूँगी तू रहने दे तुझसे अकेले नही संभाला जाएगा ये सब...
नाज़ी: आप भी तो संभालती हो ना... फिर मैं भी संभाल लूँगी फिकर ना करो...
फ़िज़ा: लेकिन अभी तो मुझे बस दूसरा महीना लगा है तुम सब अभी से मुझे बिस्तर पर डाल रहे हो ये तो ग़लत है अभी तो मैं काम करने लायक हूँ सच मे...
नाज़ी: मैं कुछ नही जानती बाबा का हुकुम है उन्ही को जाके बोलो मुझे ना सूनाओ हाँ...
फ़िज़ा: (मुझे देखते हुए) तुम ही समझाओ ना इसे
मैं: (अभी तक चुप-चाप बस इनकी बाते सुन रहा था) यार मैं क्या समझाऊ बाबा का हुकुम है तो मैं क्या बोल सकता हूँ इसमे...
फ़िज़ा: ठीक है सब मिलकर मुझे मरीज़ बना दो (रोने जैसा मुँह बनाते हुए)
नाज़ी: ये हुई ना बात (फ़िज़ा का गाल चूमते हुए) मेरी प्यारी भाभी...
ऐसे ही हम बाते करते हुए खाना खाते रहे फिर खाने के बाद मैं तबेले मे पशुओ को बाँधने चला गया ऑर फ़िज़ा ऑर नाज़ी रसोई मे काम निबटाने मे लग गई... मैं मेरे सब काम से फारिग होके जब अंदर आया तब तक नाज़ी ऑर फ़िज़ा भी लगभग अपना सारा काम निबटा चुकी थी... तभी फ़िज़ा ने मुझे इशारे से रसोई मे बुलाया... जब मैं अंदर गया तो नाज़ी वहाँ नही थी ऑर फ़िज़ा मुझे कुछ परेशान सी लग रही थी...
मैं: क्या हुआ परेशान हो?
फ़िज़ा: जान एक ऑर गड़-बॅड हो गई है (मुँह रोने जैसा बनाते हुए)
मैं: क्या हुआ सब ख़ैरियत तो है
फ़िज़ा: आज से नाज़ी भी मेरे साथ मेरे कमरे मे सोया करेगी ताकि रात को अगर मुझे किसी चीज़ की ज़रूरत हो तो मेरी मदद कर सके...
मैं: तो इसमे रोने जैसा मुँह बनाने की क्या बात है ये तो अच्छी बात है तुमने तो मुझे भी बेकार मे डरा दिया...
फ़िज़ा: नहियिइ... जान तुम मेरी बात नही समझे...
मैं: अब क्या हुआ है यार बाबा ठीक ही तो कह रहे हैं अब मैं या बाबा तो तुम्हारे साथ सो नही सकते ना इसलिए नाज़ी एक दम सही है...
फ़िज़ा: लेकिन फिर मैं मेरी जान को प्यार कैसे करूँगी (रोने जैसा मुँह बनाते हुए)
मैं: अच्छा तो ऐसा बोलो ना फिर...
फ़िज़ा: ये बाबा ने तो सब गड़बड़ कर दिया अब हम क्या करेंगे... (मेरे कंधे पर सिर रखते हुए)
मैं: मैं सोचता हूँ कुछ आज-आज का दिन कैसे भी गुज़ार लो कल देखेंगे ठीक है
फ़िज़ा: कल रात भी हमने प्यार नही किया एक-दूसरे को ऑर ऐसे ही सो गये थे जान...
मैं: अब कर भी क्या सकते हैं मुझे बस एक दिन दो कुछ सोचता हूँ मैं तुम भी कुछ सोचो...
फ़िज़ा: हमम्म
मैं: ये नाज़ी कहाँ है
फ़िज़ा: तुम्हारा बिस्तर करने गई है (मुस्कुराते हुए)
मैं: तभी तुम इतना चिपक के खड़ी हो...
फ़िज़ा: क्यो अब चिपक भी नही सकती... मेरी जान है (मुझे ज़ोर से गले लगाती हुई)
मैं: अच्छा अब छोड़ो नही तो नाज़ी आ जाएगी तो क्या सोचेगी...
फ़िज़ा: म्म्म्मडमम थोड़ी देर बसस्स... फिर चले जाना वैसे भी रात को सोना ही तो है...
मैं: जैसी तुम्हारी मर्ज़ी... (फ़िज़ा को गले से लगाते हुए)
•
Posts: 727
Threads: 15
Likes Received: 610 in 360 posts
Likes Given: 839
Joined: Mar 2019
Reputation:
17
अपडेट-18
इतना मे नाज़ी की आवाज़ आई ऑर हम को ना चाहते हुए भी अलग होना पड़ा...
नाज़ी: क्या बात है आज तुम भी रसोई मे (मुझे देखते हुए) बर्तन धुलवाने आए हो क्या...
फ़िज़ा: जी नही इनको मैने बुलाया था
नाज़ी: क्यो कोई काम था तो मुझे बुला लेती...
फ़िज़ा: अर्रे नही वो बस कल से तुम दोनो ने ही खेत जाना है तो इनको सब काम अच्छे से समझा रही थी ऑर कौनसा समान मैने कहाँ रखा है वो सब बता रही थी...
नाज़ी: वो सब तो इनको पहले से ही पता है भाभी तुम तो ऐसे कर रही हो जैसे हम पहली बार खेत जा रहे हैं (हँसती हुई)
फ़िज़ा: नही फिर भी बताना तो मेरा फ़र्ज़ है ना...
फिर हम तीनो रसोई से अपने-अपने कमरो मे चले गये ऑर कमरे मे जाते हुए फ़िज़ा बार-बार मुझे पलटकर देखती रही ऑर मैं बस उसको देखकर मुस्कुराता रहा... फिर मैं भी अपने कमरे मे आके अपने बिस्तर पर लेट गया उस रात चुदाई वाला काम तो हो नही सकता था इसलिए मैं भी करवट बदलता हुआ आख़िर सो ही गया...
सुबह मैं ऑर नाज़ी तेयार होके खेत चले गये ऑर अपने-अपने कामो मे फ़िज़ा वाले काम भी शामिल करके अपना काम बाँट लिया...
दोपहर को मैं ऑर नाज़ी खाना खा रहे थे तभी हीना भी वहाँ आ गई...
हीना: सलाम जनाब... लगता है मैं ग़लत वक़्त पर आ गई (मुस्कुराते हुए)
मैं: वालेकुम... सलाम छोटी मालकिन (खाने से उठते हुए)
हीना: अर्रे उठो मत बैठे रहो खाना खाते हुए उठना नही चाहिए पहले खाना खा लो मैं बाहर इंतज़ार कर रही हूँ
मैं: बाहर क्यो यहीं आ जाइए... आप भी आइए ना हमारे साथ ही खाना खा लीजिए...
हीना: नही शुक्रिया मैं खा कर आई हूँ आप लोग खाओ
मैं हीना की वजह से जल्दी-जल्दी खाना ख़तम करने लगा कि तभी नाज़ी मुझे धीमी आवाज़ मे बोली...
नाज़ी: ये चुड़ैल यहाँ क्यो आई है...
मैं: मुझे क्या पता मैने थोड़ी बुलाया है तुम्हारे सामने तो बात हुई है अभी जाके देखते हूँ
नाज़ी: मुझे इसकी शक़ल पसंद नही है जल्दी दफ्फा करो इसे यहाँ से चैन से खाना भी नही खाने देती (मुँह बनाते हुए)
मैं: अर्रे तो क्या हो गया अब आ गई है तो उसको धक्का मारकर तो नही निकाल सकते ना...
नाज़ी: (हवा मे सिर झटकते हुए) हहुूहह...
•
Posts: 727
Threads: 15
Likes Received: 610 in 360 posts
Likes Given: 839
Joined: Mar 2019
Reputation:
17
मैं खाना खाने के बाद बाहर चला गया ऑर बाहर आके सामने देखने लगा तो मुझे हीना नज़र नही आई तभी मुझे बाई ऑर से किसी ने पुकारा तो मेरा ध्यान उस तरफ गया जब मैने देखा तो हीना पानी के नाले के पास मे बैठी हुई दूर से मुझे हाथ हिला रही थी... मैं भी उस तरफ ही चला गया... जब जाके देखा तो वो अपनी सलवार घुटनो तक उपर किए हुए ठंडे पानी मे पैर डूबाए बैठी थी ऑर मुझे देखकर मुस्कुरा रही थी... मैं भी उसके पास ही चला गया...
हीना: हंजी हो गया आपका खाना...
मैं: मालिक के करम से हो ही गया जी आप बताओ यहाँ कैसे आना हुआ कोई काम था तो मुझे बुला लेती...
हीना: जैसे मेरे बुलाने से तुम आ जाओगे ना (मुस्कुराते हुए)
मैं: (अपना सिर खुजाते हुए) अब एक बार मसरूफ़ था तो इसका मतलब ये थोड़ी कि हर बार मसरूफ़ रहूँगा... फरमाइए क्या कर सकता हूँ मैं आपके लिए...
हीना: पहले ये बताओ दवाई ली या नही...
मैं: कौनसी दवाई
हीना: अर्रे बाबा जो कल तुमको डॉक्टर ने दी थी वो वाली दवाई ऑर कौनसी तुम भी ना...
मैं: अच्छा वो तो मैं भूल ही गया (मुस्कुरा कर नज़रें नीचे करते हुए)
हीना: बहुत खूब शाबाश... फिर मेरा यहाँ रुकना ही बेकार है मैं चलती हूँ फिर...
मैं: अर्रे नाराज़ क्यो होती हो मैं आज से ही दवाई लेनी शुरू कर दूँगा पक्का...
हीना: (अपना हाथ आगे करते हुए) वादा करो...
मैं: वादा (सिर हाँ मे हिलाते हुए)
हीना: ऐसे नही मेरे हाथ पर अपना हाथ रखो फिर पक्का वाला वादा करो तब मानूँगी...
मैं: अच्छा ये लो अब ठीक है (उसके हाथ पर अपना हाथ रखते हुए)
हीना: हमम्म अब ठीक है... (मुस्कुराते हुए)
उसका हाथ जैसे ही मैने अपने हाथ मे लिया दिल मे एक अजीब सी झुरजुरी सी पैदा हो गई... उसका हाथ बेहद कोमल ऑर मुलायम था जबकि मेरे हाथ खेत मे काम करने की वजह से कुछ सख़्त हो गये थे उन चन्द पलों मे जब मैने उससे छुड़वाया तो दिल मे ख्याल आया कि इसका हाथ इतना नाज़ुक है काश कि मैं इससे एक बार गले से लगा सकता... अभी मैं अपनी सोचो मे ही गुम था कि हीना ने मुझे दूसरे हाथ से कंधे से पकड़कर हिलाया...
हीना: कहाँ खो गये जनाब...
मैं: कहीं नही वो मैं बस ऐसे ही...
हीना: लगता है मेरा हाथ आपको काफ़ी पसंद आया है (शरारती हँसी के साथ)
मैं: जी... मैं समझा नही...
हीना: नही मैं देख रही हूँ काफ़ी देर से हाथ छुड़ाने की कोशिश कर रही हूँ आप छोड़ ही नही रहे... हाहहहहहहाहा
मैं: (शर्मिंदा होते हुए) ओह्ह माफ़ करना मुझे ख्याल ही नही रहा
हीना: कोई बात नही... अच्छा मुझे आपसे एक काम था
मैं: हंजी बोलिए क्या कर सकता हूँ मैं आपके लिए
हीना: वो मुझे भी गाड़ी सीखनी थी अगर आपको कोई तक़लीफ़ ना हो तो सिखा देंगे मैं पैसे भी देने को तेयार हूँ...
मैं: बात पैसे की नही है हीना जी... लेकिन मैं ही क्यो आपके अब्बू के पास तो बहुत सारे लोग है जो आपको कार चलानी सिखा सकते हैं आप मुझसे ही क्यो सीखना चाहती है...
हीना: अब्बू के लोग मुझे गाड़ी चलानी सिखा सकते हैं लेकिन मुझे चलानी नही उड़ानी सीखनी है उस दिन जैसे...
मैं: देखिए सिखाने मे मुझे कोई तक़लीफ़ नही लेकिन वो बाबा ने सारे खेत की ज़िम्मेदारी मुझे दे रखी है तो ऐसे मैं काम छोड़कर आपको गाड़ी चलानी कैसे सीखा सकता हूँ देखिए बुरा मत मानियेगा लेकिन मैं बाबा के हुकुम की ना-फरमानी नही कर सकता...
हीना: एम्म्म (कुछ सोचते हुए) तो फिर आप मुझे शाम को सिखा सकते हैं खेत के काम से फारिग होने के बाद...
मैं: सिखा तो सकता हूँ लेकिन बाबा से पुच्छना पड़ेगा...
•
Posts: 727
Threads: 15
Likes Received: 610 in 360 posts
Likes Given: 839
Joined: Mar 2019
Reputation:
17
हीना: (चिड़ते हुए) क्या तुम भी... 20-20 लोगो को एक झटके मे गिरा देते हो 5-5 आदमियो का काम अकेले कर लेते हो लेकिन अभी भी हर काम बाबा से पूछ-पूछ के करते हो तुम अब बड़े हो गये हो बच्चे थोड़ी ना हो...
मैं: वो बात नही है लेकिन मुझे अच्छा लगता है बाबा से ऑर फ़िज़ा जी ऑर नाज़ी से हर काम पूछ कर करना... (मुस्कुराते हुए)
हीना: ठीक है जैसे तुम्हारी मर्ज़ी... अच्छा फिर मैं चलती हूँ
मैं: (मुझे भी समझ नही आ रहा था क्या कहूँ उसको) हमम्म...
हीना: दवाई वक़्त पर लेते रहना ऑर अगले हफ्ते एक बार फिर मेरे साथ तुमको शहर चलना है भूलना मत ठीक है...
मैं: नही हीना जी यहाँ खेतो मे बहुत काम है मैं ऐसे शहर नही जा पाउन्गा मैं तो बस अगर कुछ समान लेना हो या फिर कोई काम हो तभी जाता हूँ
हीना: हाँ तो मैं कौनसा तुमको घुमाने लेके जा रही हूँ तुमको डॉक्टर के पास ही लेके जाना है बस ऑर कुछ नही फिर वापिस आ जाएँगे...
मैं: अच्छा फिर मैं आपको सोच कर बताउन्गा
हीना: ठीक है अच्छा अब काफ़ी वक़्त हो गया मैं चलती हूँ घर मे किसी को बोलकर भी नही आई...
मैं: अकेली आई हो तो मैं घर तक छोड़ आउ... ?
हीना: नही रहने दो आप अपना काम करो मैं चली जाउन्गी... कोई सॉफ कपड़ा मिलेगा पैर पोंच्छने है...
मैं: ये लो (मैने अपने गले का साफ़ा उसको दे दिया)
हीना: अर्रे ये नही कोई ओर कपड़ा दो इस कपड़े से तुम अपना मुँह सॉफ करते हो मैं इससे अपने पैर थोड़ी ना सॉफ करूँगी
मैं: कोई बात नही वैसे भी आपके पैर सॉफ है इससे पोंछ लीजिए ऑर कोई कपड़ा इस वक़्त है नही मेरे पास...
हीना: (मुस्कुरा कर मेरे हाथ से साफ़ा लेते हुए) शुक्रिया...
फिर उसको मैं खेत के फाटक तक छोड़ आया ऑर पिछे नाज़ी खड़ी हम दोनो को घूर-घूर कर देखती रही जब उसको मैं छोड़कर वापिस आया तब भी नाज़ी मुझे घूर-घूर कर देख रही थी लेकिन बोल कुछ नही रही थी अचानक मेरी उस पर नज़र पड़ी...
मैं: क्या हुआ मुझे ऐसे खा जाने वाली नज़रों से क्यो देख रही हो...
नाज़ी: तुम इस सरपंच की लड़की पर कुछ ज़्यादा ही मेहरबान नही हो रहे
मैं: अर्रे क्या हुआ मिलने आई थी तो साथ बैठकर बात करने से कौनसा गुनाह हो गया मुझसे...
नाज़ी: अपना साफा क्यो दिया उसको (गुस्से से मुझे देखते हुए)
मैं: उसके पैर गीले हो गये थे इसलिए पोंच्छने के लिए
नाज़ी: मुझे तो कभी अपना रुमाल भी नही दिया उसके लिए गले का साफा उतारके दे दिया... वैसे पैर गीले क्यो हो गये थे महारानी के?
मैं: वो नाले मे पैर डालकर बैठी थी इसलिए...
नाज़ी: (गुस्से से) पैर नही इसका गला डुबोना चाहिए था पानी मे...
मैं: (हँसते हुए) तुम इससे इतना जलती क्यों हो...
नाज़ी: जले मेरी जुत्ति... मैं क्यो जलने लगी बस मुझे ये ऐसे ही पसंद नही... वैसे ये क्या काम से आई थी यहाँ मैं भी तो सुनू...
मैं: (सोचते हुए) कुछ नही वो बस कह रही थी कि मैं उसको कार चलानी सिखाऊ ऑर कुछ नही...
नाज़ी: तुमने क्या कहा... ऑर तुमने कार चलानी कब सीख ली ऑर जो उसको सीख़ाओगे?
मैं: (परेशान होते हुए) अर्रे उस दिन शहर गया था ना रास्ते मे ये मिली थी इसकी कार खराब हो गई थी तो मैने ठीक करदी थी (मैने नाज़ी को हीना के साथ जाने वाली बात नही बताई) इसलिए वो साथ मे शुक्रिया करने आई थी ऑर बोल रही थी कि मैं उसको भी कार चलानी सिखाऊ लेकिन मैने मना कर दिया...
नाज़ी: अच्छा किया जो मना कर दिया इसका कोई भरोसा नही... (खुश होते हुए)
मैं: अच्छा चलो अब काम कर लेते हैं बाते घर जाके कर लेंगे...
नाज़ी: ठीक है
फिर हम दोनो दिन भर खेतो के काम निबटाने मे लगे रहे
•
Posts: 727
Threads: 15
Likes Received: 610 in 360 posts
Likes Given: 839
Joined: Mar 2019
Reputation:
17
शाम को जब घर आए तो सरपंच के कुछ लोग घर के बाहर खड़े थे... जिन्हे मैने ऑर नाज़ी दोनो ने दूर से ही देख लिया था
नाज़ी: ये तो सरपंच के लोग है यहाँ क्या कर रहे हैं...
मैं: क्या पता चलो चलकर देखते हैं अब ये यहाँ क्या लेने आया है...
मैं ऑर नाज़ी तेज़ कदमो के साथ घर आ गये अंदर देखा तो बाबा ऑर सरपंच बैठे बाते कर रहे थे... मैने दोनो को जाके सलाम किया जबकि नाज़ी सीधा रसोई मे फ़िज़ा के पास चली गई ऑर मैं भी बाबा के पास ही कुर्सी पर बैठ गया...
बाबा: आ गये बेटा
मैं: जी बाबा
बाबा: बेटा सरपंच साब तुमसे कुछ बात करना चाहते हैं...
मैं: जी फरमाइए... क्या कर सकता हूँ मैं
सरपंच: बेटा तुमसे एक काम था वो मेरी बेटी चाहती है कि तुम उसको गाड़ी चलाना सिख़ाओ...
मैं: जी... मैं ही क्यो आपके पास तो इतने सारे लोग है किसी को भी बोल दीजिए वैसे भी मेरे पास इतना वक़्त नही है मुझे खेत भी संभालना होता है...
सरपंच: मैने तो बहुत समझाया अपनी बच्ची को लेकिन वो बचपन से थोड़ी ज़िद्दी है एक बार कुछ फरमाइश कर दे फिर सुनती नही है किसी की... मैं तुम्हारा क़र्ज़ माफ़ करने को तेयार हूँ बस तुम उसको कार चलानी सीखा दो
मैं: (बाबा की तरफ सवालिया नज़रों से देखते हुए) जी आप बाबा से पुछिये
बाबा: बेटा मैं क्या कहूँ तुम देख लो अगर तुम्हारे पास फारिग वक़्त होता है तो सिखा देना
सरपंच: ये हुई ना बात बहुत अच्छे तो फिर मैं अगले हफ्ते ही मेरी बेटी को नयी कार खरीद दूँगा तब तक तुम मेरी कार पर ही उसको कार चलानी सिखा देना फिर कल से सिखा दोगे ना...
मैं: दिन-भर तो मैं खेत मे उलझा रहता हूँ शाम को ही वक़्त निकाल पाउन्गा उससे पहले नही
सरपंच: ठीक है मुझे कोई ऐतराज़ नही... ये कुछ पैसे हैं तुम्हारा मेहनताना (1 नोटो का बंडल टेबल पर रखते हुए)
बाबा: सरपंच साब इसकी कोई ज़रूरत नही आपने क़ासिम का क़र्ज़ माफ़ कर दिया यही बहुत है ये पैसे हमें नही चाहिए आप वापिस रख लीजिए...
सरपंच: ठीक है तो फिर मैं चलता हूँ (पैसे जेब मे वापिस डालते हुए) ...
फिर सरपंच वहाँ से चला गया ऑर फ़िज़ा ऑर नाज़ी दोनो मुझे रसोई से घूर-घूर कर देखे जा रही थी लेकिन बाबा के पास बैठे होने की वजह से दोनो ना तो रसोई से बाहर आई ना ही मुझसे कोई बात की मैं भी चुप-चाप नज़ारे झुकाए बैठा रहा...
अपडेट-19
बाबा: बेटा तुम कार चलानी जानते हो?
मैं: जी बाबा वो जिस दिन मैं शहर गया था तब रास्ते मे सरपंच की बेटी की कार खराब हो गई थी तो मैने उसकी कार ठीक कर दी थी फिर काफ़ी दूर तक चला कर भी दी थी शायद इसलिए वो मुझसे कार सीखना चाहती है (मैं ये सब फ़िज़ा को सुनाने के लिए कह रहा था)
बाबा: ओह्हो मैं क्या पूछ रहा हूँ तुम क्या जवाब दे रहे हो... मैने पूछा तुमको कार चलानी कहाँ से आई?
मैं: पता नही बाबा याद नही
बाबा: अच्छा चलो कोई बात नही... अब तुम आराम करो थके हुए होगे मैं भी ज़रा बाहर सैर कर लूँ... खाना बन जाए तो आवाज़ लगा देना मैं पड़ोस मे हैदर साब के साथ ज़रा सैर कर रहा हूँ यही पास मे...
मैं: अच्छा बाबा...
बाबा के घर से निकलते ही फ़िज़ा ऑर नाज़ी दोनो मेरे पास आके खड़ी हो गई ऑर गुस्से से मुझे घूर्ने लगी...
फ़िज़ा: अच्छा तो इसलिए जल्दी आ गये थे उस दिन शहर से...
मैं: अर्रे क्या हुआ क्यो गुस्सा कर रही हो बेकार मे
फ़िज़ा: मुझे बताया क्यो नही कि हीना के साथ आए थे तुम
मैं: यार मैं आना नही चाहता था लेकिन वो ज़बरदस्ती साथ ले आई (मैने फ़िज़ा को ये नही बताया कि मैं गया भी हीना के साथ ही था)
फ़िज़ा: मैने सोचा नही था कि तुम मुझसे भी झूठ बोल सकते हो
मैं: बेकार मे झगड़ा ना करो छोटी सी बात थी नही बताया तो क्या हुआ यार
नाज़ी: हाँ भाभी आज दिन मे भी वो चुड़ैल मिलने आई थी
मैं: तो मैने तो उसको मना किया ही था ना यार अब मुझे क्या पता था वो अपने बाप को भेज देगी... ठीक है अगर तुमको नही पसंद तो नही सिखाउन्गा उसको कार चलानी... अब तो खुश हो दोनो...
फ़िज़ा: अब बाबा ने हाँ बोल दिया है तो सिखा देना (मुँह दूसरी तरफ करके बोलती हुई)
ऐसे ही हम तीनो काफ़ी देर लड़ाई करते रहे फिर वो दोनो रसोई मे चली गई ऑर मैं कुर्सी पर बैठा दिन भर के बारे मे सोचने लगा जाने क्यो मुझे बार-बार अपने हाथो मे हीना का वही कोमल अहसास बार-बार हो रहा था...
थोड़ी देर बाद फ़िज़ा ऑर नाज़ी ने खाना बना लिया ऑर बाबा को बुलाने के लिए बाहर आ गई... लेकिन अब वो मेरी तरफ देख भी नही रही थी जबकि मैं उसके पास ही खड़ा था...
मैं: अब तक नाराज़ हो...
फ़िज़ा: मैं कौन होती हूँ नाराज़ होने वाली जो तुम्हारा दिल करे वो करो
मैं: ऐसे क्यो बात कर रही हो यार आगे कोई काम बिना तुमसे पुच्छे कभी किया है जो अब करूँगा... यकीन करो मैं सच मे नही जानता था कि वो सरपंच को घर भेज देगी आज दिन मे भी मैने उसको मना कर दिया था...
फ़िज़ा बिना मेरी बात का जवाब दिए बाबा को 2-3 बार आवाज़ लगाके अंदर चली गई... मुझे उसका इस तरह का बर्ताव मेरे साथ बहुत बुरा लगा... लेकिन मैं चुप रहा पर उसको मनाने के लिए कोई ऑर तरीका सोचने लगा...
•