Posts: 84,429
Threads: 906
Likes Received: 11,320 in 9,384 posts
Likes Given: 22
Joined: Dec 2018
Reputation:
118
Posts: 84,429
Threads: 906
Likes Received: 11,320 in 9,384 posts
Likes Given: 22
Joined: Dec 2018
Reputation:
118
22-01-2021, 11:29 AM
(This post was last modified: 18-10-2021, 05:25 PM by neerathemall. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
Posts: 84,429
Threads: 906
Likes Received: 11,320 in 9,384 posts
Likes Given: 22
Joined: Dec 2018
Reputation:
118
22,181
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
Posts: 84,429
Threads: 906
Likes Received: 11,320 in 9,384 posts
Likes Given: 22
Joined: Dec 2018
Reputation:
118
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
Posts: 84,429
Threads: 906
Likes Received: 11,320 in 9,384 posts
Likes Given: 22
Joined: Dec 2018
Reputation:
118
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
Posts: 84,429
Threads: 906
Likes Received: 11,320 in 9,384 posts
Likes Given: 22
Joined: Dec 2018
Reputation:
118
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
Posts: 2,484
Threads: 5
Likes Received: 498 in 435 posts
Likes Given: 10
Joined: Oct 2019
Reputation:
5
Posts: 84,429
Threads: 906
Likes Received: 11,320 in 9,384 posts
Likes Given: 22
Joined: Dec 2018
Reputation:
118
12-10-2021, 05:07 PM
(This post was last modified: 14-10-2021, 05:16 PM by neerathemall. Edited 2 times in total. Edited 2 times in total.)
क्स्क्स्क्स्क्स्क्स्क्स्क्स्क्स्क्स्क्स्क्स्क्स्क्स्क्स्क्स्क्स्क्स्क्स
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
Posts: 84,429
Threads: 906
Likes Received: 11,320 in 9,384 posts
Likes Given: 22
Joined: Dec 2018
Reputation:
118
(06-03-2019, 04:02 AM)neerathemall Wrote: "तुम तो ना .. बहुत ही स्मार्ट हो , सागर !" ऐसा कहकर संगीता दीदी हंसने लगी .
"हंसती क्यों हो , दीदी ! अगर सचमुच हमें खंडाला जैसी रोमांटिक जगह का आनंद लेना हैं तो हमें भूलना पड़ेगा कि हम दोनों भाई -बहन हैं . वैसे भी हममें दोस्ती का नाता ज्यादा हैं तो फिर यहाँ हम दोस्तों जैसे ही रहेंगे . तुम्हें क्या लगता हैं , दीदी ?"
"हा ! हा ! हा !." संगीता दीदी अभी भी हंस रही थी और हँसते हँसते उसने जवाब दिया , "हाँ . माय डियर फ्रेंड ! अगर तुम कह रहे हो तो मुझे कोई ऐतराज नहीं अपना असली नाता भूल जाने में . वैसे भी मैं तुम्हें नाम से ही पुकारती हूँ . सिर्फ तुम्हें मुझे 'दीदी' कि बजाय 'संगीता' कहना पड़ेगा . लेकिन मुझे उससे कोई ऐतराज नहीं हैं ." संगीता दीदी ने मेरे इस सुझाव का विरोध नहीं किया यह देखकर मेरी जान में जान आयी और मैं खुश हो गया .
"wow!. कितना अच्छा , नहीं ?. हम दोनों .. दोस्त !." संगीता दीदी ने उत्तेजित होकर कहा , "वैसे भी कोई लड़का मेरा दोस्त नहीं था . ये भी इच्छा मैं पूरी कर लेती हूँ अभी . हैं , सागर .. सचमुच हमारी जोड़ी अच्छी लगेगी ? या तुम मेरे साथ मजाक कर रहे हो ?"
"मैं मजाक नहीं कर रहा हूँ , दीदी !" मैंने उसे समझाते हुए कहा , "उलटा तुम अगर इस साड़ी कि बजाय सूट पहनोगी तो कोई बोलेगा भी नहीं कि तुम्हारी शादी हो गयी हैं . हम दोनों प्रेमी जोड़ी लगेंगे अगर हम हाथ में हाथ लेकर घूमेंगे तो ."
"तुम्हारी कल्पना तो अच्छी हैं , सागर . लेकिन इसका क्या ??" संगीता दीदी ने अपना मंगलसूत्र मुझे दिखाते हुए कहा , "इसे देखने के बाद तो कोई भी समझ लेगा कि मेरी शादी हो गयी हैं ."
"हाँ ! तुम सही कह रही हो , दीदी ! लेकिन उससे क्या फर्क पड़ता हैं ? हम दोनों शादीशुदा हैं ऐसा ही सबको लगेगा ना . अब हम दोनों शादीशुदा जोड़ी लगे या प्रेमी जोड़ी लगे ये तुम तय कर लो , दीदी !"
"अच्छा ! अच्छा ! सागर . चल ! अब हम तैयार होते हैं बाहर जाने के लिए ." ऐसा कहकर संगीता दीदी उठ गयी और बाथरूम में गयी .
फ्रेश होकर वो बाहर आई और फिर मैं बाथरूम में गया . बाथरूम में आने के बाद मैंने अपना लंड बाहर निकलकर सटासट मूठ मार ली और कमोड के अंदर मेरा माल गिराया . सुबह जब मैंने संगीता दीदी को साड़ी में देखा था तब मैं काफी उत्तेजित हो गया था . तब से मुझे मूठ मारने की इच्छा हो रही थी लेकिन सफर की वजह से मैं मूठ नहीं मार सका . बाद में संगीता दीदी के साथ जैसे जैसे मेरा समय कट रहा था वैसे वैसे मैं ज्यादा ही उत्तेजित होता गया . और थोड़ी देर पहले मेरी उसके साथ जो प्यारी बातचीत हुई थी उसने तो मेरी कामभावना और भी भड़का दी थी . इसलिए बाथरूम में आने के बाद मूठ मारने का मौका मैंने छोड़ा नहीं . फिर फ्रेश होकर मैं बाहर आया .
अब आगे ..............................
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
Posts: 84,429
Threads: 906
Likes Received: 11,320 in 9,384 posts
Likes Given: 22
Joined: Dec 2018
Reputation:
118
बाहर आने के बाद मेने देखा के दीदी ने साड़ी बदल दी थी और हल्का पिंक कलर का पंजाबी ड्रेस पहन लिया था. वो ड्रेस देख'कर में खिल उठ. मेरी बहेन का ये ड्रेस मुझे काफ़ी पसंद था क्योंकी उसमें से उस'का काफ़ी अंगप्रदर्शन होता था. में उसके ड्रेस से उसे निहार रहा हूँ ये देख'कर दीदी ने कहा,
"ऐसे क्या देख रहे हो, सागर. हैरान हो गये ना ये ड्रेस देख'कर?" दीदी ने बड़े लाड से कहा, "ये ड्रेस मेरी बॅग में था जो में लेके जा रही थी अप'नी मौसी की लड़'की को देने के लिए. क्योंकी मुझे ये ड्रेस थोड़ा टाइट होता है और वैसे भी आज कल में ड्रेस पहनती ही नही हूँ. वो तो अभी थोड़ी देर पह'ले तुम'ने कहा था ना के ड्रेस पहन'ने से में कुवारी लगूंगी इस'लिए मेने सोचा चलो पहन लेते है आज के दिन ये ड्रेस!"
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
Posts: 84,429
Threads: 906
Likes Received: 11,320 in 9,384 posts
Likes Given: 22
Joined: Dec 2018
Reputation:
118
"ये तो बहुत अच्च्छा किया तुम'ने, दीदी!" मेने खूस होकर कहा. फिर दीदी ड्रेसंग टेबल के आईने में देख'कर मेक अप कर'ने लगी. मेने हमारे बॅग लॉक किए और वार्ड रोब के अंदर रख दिए. फिर में चेर'पर बैठ'कर दीदी के तैयार होने की राह देख'ने लगा. जाहीर है के में उसे कामूक नज़र से चुपके से निहार रहा था. वो ड्रेस उसे अच्छा ख़ासा टाइट हो रहा था और उस वजह से उसके मांसल अंग के उठान और गहराईया उस'में से साफ साफ नज़र आ रही थी.
और उपर से उस'ने ओढ'नी नही ली थी जिस से उसकी मदमस्त चुचीया मेरी आँखों में चुभ रही थी. बीच बीच में वो आईने से मुझे देखती थी और हमारी आँखे मिलते ही वो थोड़ा सा शरमाकर हँसती थी. लेकिन में थोड़ा भी ना शरमा के हँसता था. उस'का मेक अप होने के बाद उस'ने आखरी बार अप'ने आप को आईने में गौर से देखा और फिर मेरी तरफ घूमके उस'ने बड़े प्यार से पुछा,
"कैसी लगा रही हूँ में, सागर?"
"एकदम दस साल कम उम्र की, दीदी!!" मेने उसे उप्पर से नीचे तक देख'ने का नाटक कर'ते कहा. जब उसके गले पर मेरा ध्यान गया तो मुझे थोड़ा अजीबसा लगा. मुझे वहाँ कुच्छ कमी नज़र आई. में उसके गले की तरफ देख रहा हूँ यह देख'कर दीदी हंस'कर बोली,
"ओह. में तो तुम्हे बताना ही भूल गयी. मेने मंगलसूत्र निकाल के रखा है. भले तुम कह रहे हो के हम दोनो शादीशुदा लगेंगे लेकिन मुझे नही लगता सबको ऐसा लगेगा. तो फिर लोगो को शक की कोई गुंजाइश ना रहे इस'लिए मेने मंगलसूत्र निकाल के रख दिया है."
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
Posts: 84,429
Threads: 906
Likes Received: 11,320 in 9,384 posts
Likes Given: 22
Joined: Dec 2018
Reputation:
118
ये सून'कर में हैरान हो गया!! ठीक है. मेने संगीता दीदी को कहा के हम दोस्तो जैसे रहेंगे लेकिन मंगलसूत्र निकाल के रखना बहुत ही हो गया. खैर! मुझे उस'से कुच्छ आपत्ती नही थी बाल्की मेरी बहेन जैसा में कह रहा हूँ वैसा सुन रही है ये देख'कर में खूस हो रहा था. संगीता दीदी के बारे में मेने जो भी कामूक कल्पनाएं की थी वो अब मुझे सच होती नज़र आ रही थी और उस वजह से मेरे मन में खूशी के लड्डू फूट'ने लगे.
"हाँ तो, सागर! मेने तुम्हारी 'प्रेमीका' कहलाने के लिए इत'ना सब किया है चलेगा ना?" ऐसा कह'कर संगीता दीदी ने मुझे आँख मारी.
"चलेगा क्या, दीदी.. दौड़ेगा!" मेने खूस होकर कहा, "एकदम परफ़ेक्ट, सिस्टर!"
"क्या? क्या बोले तुम??" संगीता दीदी ने आँखें बड़ी बड़ी करके मुझे कहा, "नोट सिस्टर.. संगीता. से संगीता.!"
"ओहा. सारी, दी...... ऊफ.. संगीता." और हम दोनो खिल खिलाकर हंस'ने लगे.
"अच्च्छा, सागर! तो फिर चालू करे हमारी पिक'नीक?"
"वाइ नोट. संगीता!" हंसते हंसते 'संगीता' इस शब्द पर ज़ोर देकर मेने कहा और हाथ बढ़ा के उसे इशारा किया के वो मेरे हाथ में हाथ डाले.
"होल्ड आन. मिस्टर!" संगीता दीदी ने मुझे डाँट'ते हुए कहा, "ज़्यादा बेशरामी मत दिखाओ, सागर!"
"सारी, दी..... संगीता! में सिर्फ़ कह रहा था के तुम्हारा हाथ मेरे हाथ में डाल'कर चलो." मेने हड़बड़ा कर कहा ये सोच'कर के संगीता दीदी को मेरा वैसे कर'ना शायद पसंद नही आया. मेरे चेहरे का रंग उड़ गया और मुझे मायूस होते देख संगीता दीदी खिल खिल'कर हंस'ने लगी.
"इटस. ओके., सागर!" उस'ने हँसते हँसते कहा, "में मज़ाक कर रही थी. आय. डोन्ट माइंड, होल्डींग युवर हन्ड, डियर! लेकिन जब हम दोनो अकेले होंगे तभी!" ऐसा कह'कर हँसते हँसते संगीता दीदी ने मेरे हाथ में हाथ डाल दिया और मेरा हाथ अप'नी छाती पर दबाके पकड़ा. उसकी मुलायम छाती के स्पर्श से में तो हवा में उड़'ने लगा. एक अलग ही धुन में और अलग नाता जोड़ के हम दोनो, भाई-बहेन रूम से बाहर निकले
होटेल की लिफ्ट के बाहर आते आते संगीता दीदी ने मेरा हाथ छ्चोड़ दिया. फिर हम होटेल से बाहर आए. वहाँ पर हम'ने एक रिक्शा बुक की और उस रिक्शा से हम दो तीन अच्छे स्पॉट देख'ने के लिए गये. रिक्शा में संगीता दीदी मुझसे चिपक के बैठ'ती थी. कभी कभी वो मेरे हाथ में हाथ डाल'कर बैठ'ती थी जिस'से मेरी बाँहों पर उसकी छा'ती से मालीश होती थी. हम दोनो बातें कर रहे थे. में उसे खंडाला के बारे में बहुत कुच्छ बता रहा था. वो दो तीन दर्श'नीय स्थान देख'ने के बाद हम'ने रिक्शा छ्चोड़ दी.
बाद में हम दोनो पैदल ही घूमे. में संगीता दीदी को हरदम खूस रख'ने की कोशीष करता था. जो भी वो बोल'ती थी या माँग'ती थी वो सब में उसे देता था. उसकी काफ़ी 'इच्छाये' में पूरी कर रहा था. उसे अगर किसी जगह जाना है तो में उसे ले जाया करता था. उसे अगर घोड़े पर बैठना है तो में उसे बिठाता. उसे अगर कुच्छ खाना है तो में उसे वो देता था. दोपहर तक हमलोग घूम रहे थे और तकरीबन आधे दर्श'नीय स्थान हम'ने देख लिए.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
Posts: 84,429
Threads: 906
Likes Received: 11,320 in 9,384 posts
Likes Given: 22
Joined: Dec 2018
Reputation:
118
फिर हम एक झर'ने के दर्श'नीय स्थान पर आए. बहुत लोग झर'ने के नीचे खड़े रह'कर मज़ा कर रहे थे और झर'ने के पानी का आनंद ले रहे थे. उन में लड़के - लड़किया थी, आदमी थे, औरते थी और बूढ़े लोग भी थे. जैसे हम दोनो झर'ने के नज़दीक पहुँचे वैसे ही में झट से झर'ने के नीचे गया. मेने संगीता दीदी को कहा के वो भी झर'ने के नीचे आए लेकिन वस्त्र गीला होगा ये कह के उस'ने टाल दिया.
मेने हंस'कर उसे कहा अब और कौन सा लिबास गीला होना बाकी है. पह'ले उसकी समझ में नही आया के में क्या कह रहा हूँ लेकिन जब उस'ने झुक के अप'ने लिबास को देखा तो उसके ध्यान में आया में क्या कह रहा था. झर'ने के पानी के छींटे जो हवा में उड़ रहे थे उस'से संगीता दीदी का लिबास थोडा गीला हो गया था. मेने उसे कहा के उस'का लिबास और भी गीला हो गया तो कोई बात नही बाद में होटेल वापस जा के वो लिबास चेंज कर सक'ती है.
फिर मेरे ध्यान में आया के वहाँ की भीड़ देख'कर संगीता दीदी थोड़ी शरमा रही थी. लेकिन में उसे बार बार पुछता रहा और फिर आखीर वो तैयार हो गयी और झर'ने के नीचे आई. उस'ने सुझाव दिया के हम दोनो भीड़ से थोड़ा दूर एक बाजू में जाएँ. जैसे ही हम दोनो एक बाजू में आए वैसे ही संगीता दीदी खुल गयी. और फिर क्या!!!. झर'ने के पानी के ज़ोर का मज़ा लेते, एक दूसरे के उप्पर पानी उड़ाते, हँसते- खेलते हम दोनो ने काफ़ी मज़ा किया. थोड़ी देर बाद हम दोनो झर'ने के एक बाजू में पऱे बड़े बड़े पत्थर पर बैठ गये.
हम दोनो पूरे भीग गये थे. गीला होने की वजह से संगीता दीदी का टाइट लिबास उसके बदन से चिपक गया था. और उस में भी वो लाइट कलर का लिबास था इस'लिए अंदर पह'नी हुई ब्रेसीयर और पैंटी उस में से नज़र आ रही थी. बहुत लोग मेरी बहेन की भीगी जवानी की झल'कीयों का नयनसुख ले रहे थे, और में भी उन में से एक था. खैर! मेरी नज़र का उसे कुच्छ ऐतराज नही था लेकिन बाकी लोगो की नज़र से परेशान होकर वो शरम से लाल हो रही थी. पह'ले मुझे इस बात में कुच्छ अजीब ना लगा लेकिन बाद में मेरे ध्यान में आया के वहाँ पर ज़्यादा देर रुकना ठीक नही है. हम लोग फिर वहाँ से निकले. आगे आकर हम एक रिक्शा में बैठे और जल्दी ही होटेल में वापस आए.
हँसी मज़ाक कर'ते कर'ते हम होटेल के रूम में आ गये. अंदर आने के बाद संगीता दीदी ने बॅग में से दूसरे कपड़े निकाले और वो सीधा बाथरूम में चली गयी. मेने भी मेरा दूसरा लिबास मेरे बॅग में से निकाला. थोड़ी देर बाद संगीता दीदी पेटीकोट और ब्लॉज पहन'कर बाहर आई. मेरे लिए उसे इस तरह देख'ना यानी आँखे सेक'ने का मन था लेकिन में भी पूरा भीग गया था सो अप'ने कपड़े बदल'ने के लिए में तुरंत बाथरूम में गया.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
Posts: 84,429
Threads: 906
Likes Received: 11,320 in 9,384 posts
Likes Given: 22
Joined: Dec 2018
Reputation:
118
अंदर आने के बाद मेने झट से अप'ने पूरे कपड़े निकाल दिए और में नंगा हो गया. मेने देखा के संगीता दीदी ने अपना गीला लिबास शावर की रोड पर सूख'ने के लिए डाला था. वो देख'कर मेने झट से सोचा के जैसे उस'का लिबास गीला हो गया है वैसे उसकी ब्रेसीयर और पैंटी भी गीली हो गयी थी तो फिर उस'ने वो कहाँ पर सूख'ने के लिए डाली होंगी? क्योंकी मुझे उसके वो वस्त्र दिखाई नही दे रहे थे. मेने उस'का लिबास उठाकर देखा तो उसके नीचे मुझे वे नज़र आए.
फिर क्या!! मेने संगीता दीदी की वो गीली ब्रेसीयर और पैंटी निकाली. उनको सिर्फ़ हाथ में लेते ही मेरा लंड स्प्रिंग की तरह उठ गया. पैंटी की वो जगहा जहाँ पर मेरी बहेन की चूत चिप'की होती है, उस जगह को मेने प्यार से सूंघ लिया. उसकी चूत की गंध से नशीला होकर अप'ने आप मेरा हाथ मेरे कड़े लंड पर गया और में मूठ मार'ने लगा. फिर मेने उसकी ब्रेसीयर ले ली और उस'का कप में चूस'ने लगा. नीचे उसकी पैंटी मेने मेरे लंड'पर लपेट ली और मेरा लंड ज़ोर ज़ोर्से हिला'ने लगा. फिर में आँखे बंद कर के याद कर'ने लगा के संगीता दीदी के साथ होटेल के रूम से बाहर निकल'ने के बाद से वापस आने तक मेने कैसे कैसे उस'का स्पर्श सुख और नयन सुख लिया था. उन ख़याल से दो मिनिट में ही मेरे लंड से वीर्य की पिच'करी छुट गयी और संगीता दीदी की पैंटी उस'से भर गयी.
मेरे विर्यपतन के बाद में थोड़ा शांत हो गया. फिर मेने संगीता दीदी की पैंटी पानी से साफ की और फिर वो ब्रेसीयर और पैंटी मेने ड्रेस के नीचे पह'ले जैसी वापस रख दी. मेरे गीले कपड़े भी मेने वहाँ सूख'ने के लिए डाल दिए. झट से में फ्रेश हो गया और दूसरा लिबास पहन'कर बाहर आया. मेने देखा के संगीता दीदी आईने में देख'कर मेक अप कर रही थी. उस'ने आसमानी रंग की साऱी पहन ली थी.
"अरे, दीदी! तुम'ने वापस साऱी पहन ली?"
"फिर क्या करूँ, सागर? मेरे पास एक ही लिबास था जो गीला हो गया. तो मुझे वापस साऱी पहेन'नी पड़ी,"
आईने में से मेरी तरफ देख'कर संगीता दीदी ने कहा, "लेकिन तुम फ़िक्र मत करो, सागर. भले मेने साऱी पहन ली है फिर भी में तुम्हारी दोस्त ही रहूंगी."
"ओहा, दीदी! मुझे इस में कोई ऐतराज नही है. साऱी तो तुम्हे अच्च्ची ही दिख'ती है. उलटा में ये कहूँगा के ड्रेस से ज़्यादा तुम साऱी में अच्छी दिख'ती हो."
"वो तो में लगूंगी ही, सागर. अब क्या मेरी उम्र लिबास पहन'ने जैसी रही क्या?"
"ऐसा क्यों कह रही हो, दीदी? तुम्हें लिबास भी अच्छा दिखता है. सच कहूँ तो तुम'हे बीच बीच में लिबास पहनना चाहिए."
"अब वो संभव नही है, सागर! क्योंकी तुम्हारे जीजू को मेरा लिबास पहेनना पसंद नही है. काफ़ी महीने हो गये मेने लिबास पहना ही नही था. लेकिन ठीक है! मुझे उस'से कोई ऐतराज नही है. मुझे भी साऱी पहनना अच्च्छा लगता है."
'और मुझे भी!'.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
Posts: 84,429
Threads: 906
Likes Received: 11,320 in 9,384 posts
Likes Given: 22
Joined: Dec 2018
Reputation:
118
संगीता दीदी को पिछे से निहार'ते मेने मन ही मन में कहा. में उसके पिछे ऐसे खड़ा था जिस'से उसे आईने से नज़र नही आ रहा था के में कहाँ देख रहा हूँ. हमेशा की तरह उस'ने साऱी अच्छी तरह लपेट के पह'नी हुई थी जिस'से उसकी फिगर उभर के दिख रही थी.
मेक अप कर'ने के लिए वो थोड़ा झुक गयी थी और उसके भरे हुए चूतड उभर आए थे. जैसे आदत से मजबूर वैसे मेने उसके चूतड को गौर से देखा और मुझे उसके चूतड़'पर अंदर पह'नी हुई पैंटी की लाइन नज़र आई और में खूस हुआ. लड़कियों और औरतों के चूतड को निहार कर उनके अंदर पह'नी हुई पैंटी की लाइन ढूँढना मेरा पसंदीदा खेल था और उस'से मुझे एक अलग ही खुशी मिल'ती थी. और वो चूतड अगर मेरे बहन के हो तो फिर में कुच्छ ज़्यादा ही खूश होता हूँ. भूके भेड़ीये की तरह में संगीता दीदी के चूतड को पिछे से देख रहा था.
हम लोग तैयार हो गये और फिर एक रेस्टोरेंट में खाना खाने गये. खाने के बाद बाकी जो हरे भरे दर्श'नीय स्थान रह गये थे उन्हे देख'ना हम'ने चालू किया. ज़्यादा तर दर्श'नीय स्थान शांत जगह के थे. हम दोनो भाई-बहेन वहाँ प्रेमी जोड़ी की तरह घूमे. फिरते सम'य कभी कभी संगीता दीदी मासूमीयत से मेरा हाथ पकड़ लेती थी. किसी जगह चढ़'ने, उतर'ने के लिए उसे में हाथ देकर मदद करता था और बाद में वो मेरा हाथ वैसे ही पकड़ के रख'ती थी. कोई साँस रोक'नेवाला, बहुत ही प्यारा सीन देख'ते सम'य वो मुझे ज़ोर से चिप'का के खड़ी रह'ती थी. कभी वो मेरे पिछे खड़ी रह'ती थी तो कभी में उसके पिछे उसे चिपक के खड़ा रहता था.
संगीता दीदी जब मुझ से चिपक के खड़ी रह'ती थी तब उसकी गदराई छा'ती मेरे बदन पर दब'ती थी. किसी दर्श'नीय स्थान पर अगर रेलंग है तो में उस पर हाथ रख'कर खड़ा रहता और संगीता दीदी आकर मुझसे चिपक के खड़ी रह'ती थी. उस'से कभी कभी मेरा हाथ उसकी टाँगो के बीच में दब जाता था. में ठीक से बोल नही सकता लेकिन शायद मेरे हाथ को उसकी चूत या चूत के उप्पर की जगह का स्पर्श महसूस होता था. जब में उसके पिछे उस'से सट के खड़ा रहता था तब उसके भरे हुए चुत्तऱ पर मेरा लंड दब जाता था और उस'से मेरा लंड थोड़ा सा कड़क हो जाता था. उसे वो महसूस होता होगा लेकिन कभी वो बाजू में हटी नही. उलटा जब मेरा लंड ज़्यादा ही कड़क होता था तब में खुद बाजू हटता था ये सोच'कर के उसे वो ज़्यादा महसूस ना हो.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
Posts: 84,429
Threads: 906
Likes Received: 11,320 in 9,384 posts
Likes Given: 22
Joined: Dec 2018
Reputation:
118
संगीता दीदी के लिए ये सब अन'जाने में हो रहा था जब वो साँस रोक'कर, अप'ने आप को भूला के कोई अच्छा दर्श'नीय स्थान देख'ती थी तभी. मेरी बहन तो सही मायनो में खंडाला के नेचर से भरपूर दर्श'नीय स्थान का मज़ा ले रही थी और में, उस'का भाई सही मायनो में मेरी बहन के जवान अंगो के स्पर्श का मज़ा ले रहा था.
सन सेट स्पाट'पर रंगो की होली खेल'ते खेल'ते पर्वतो के पिछे लूप्त होते ढलते सूरज का हम'ने दर्शन कर लिया. बाद में होटेल में आते आते काफ़ी अंधेरा हो गया. काफ़ी घंटे घूम'ने से हम दोनो अच्छे ख़ासे थक गये थे इस'लिए हम'ने तय किया के रात का खाना खाकर ही हम होटेल रूम में वापस जाएँगे. हम'ने फिर एक अच्छे होटेल में खाना खाया. मेने जान बूझ'कर संगीता दीदी के पसंदीदा डिशस ऑर्डर किए. खाना खाते सम'य में उसे कुच्छ 'सेमी नन्वेज' जोक्स सुनाकर उस'का मनोरंजन कर रहा था. वो दिल खोल'कर हंस रही थी और मेरे जोक्स की दाद दे रही थी. मेने मेरी बहन को इतना खूस और खुल'कर बातें कर'ते पह'ले कभी देखा नही था. होटेल के हमारे रूम पर आने तक में उसे मजेदार बातें सुनाकर हंसता रहा
हम दोनो रूम के अंदर आए और मेने दरवाजा बंद कर दिया. संगीता दीदी जा कर बेड पर बैठ गयी और साऱी के पल्लू से अप'ने चह'रे का पसीना पोन्छ'ने लगी. फिर 'में थक गयी घूम के' ऐसा कह'ते वो पिछे बेड'पर सो गयी. में अंदर आया और उसके नज़दीक बेड पर बैठ गया. संगीता दीदी अप'ने हाथ फैलाकर पड़ी हुई थी. पसीना पोन्छ'ने के लिए निकाला हुआ अपना पल्लू उसके फैले हुए हाथ में ही था जिस'से उसकी छाती खुली पड़ी थी. मेने उसके चह'रे को देखा. उसके चह'रे पर थकान थी और आँखें बंद करके वो चुपचाप पड़ी थी.
संगीता दीदी की बंद आँखों का फ़ायदा लेकर में वासना भरी निगाह से उसे निहार'ने लगा. छाती पर पल्लू ना होने से दीदी की ब्लाउस में ठूंस'कर भरी हुई बड़ी बड़ी छाती साफ नज़र आ रही थी. पसीने से उस'का ब्लाउस भीग गया था जिस'से उस'ने अंदर पह'नी हुई काली ब्रेसीयर और उभारों की गोलाई नज़र आ रही थी. वो ज़ोर से साँस ले रही थी और साँसों की लय पर उसकी छाती के उठान उप्पर नीचे हो रहे थे. ब्लाउस और कमर के बीच उस'का सपाट चिकना पेट दिख रहा था. ज़ोर से साँस लेने की वजह से उस'का पेट भी उप्पर नीचे हो रहा था.
उसकी कमर'पर थोड़ी चरबी चढ़ गयी थी जो पह'ले नही थी. लेकिन उस'से वो और भी सेक्सी दिख रही थी. उसकी गोल गोल नाभी आज मुझे कुच्छ ज़्यादा ही गहरी नज़र आ रही थी.
संगीता दीदी को उस सेक्सी पोज़ में पड़ी देख'कर में काम वासना से व्याकूल हो गया. मेरा लंड कड़ा हो गया था. ऐसा लग रहा था झट से उस'का ब्लाउस फाड़ दूं.. उसकी ब्रेसीयर तोड़ दूं. और उसकी छाती नंगी करके उसे कस के दबा दूं! उसकी गोल नाभी में जीभ डाल के उसे जी भर के चाटू. लेकिन मुझे मालूम था में वैसे नही कर सकता था.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
Posts: 84,429
Threads: 906
Likes Received: 11,320 in 9,384 posts
Likes Given: 22
Joined: Dec 2018
Reputation:
118
संगीता दीदी काफ़ी देर वैसे पड़ी थी और शायद थकान की वजह से उसकी आँख लग गयी थी. में उसके बाजू में सो गया और मेरा चेहरा उसकी बगल के नज़दीक आया. उसके बगल के पसीने की गंध मुझे महसूस हुई. मेरी बहन के पसीने की गंध मुझे बेहद पसंद है और वो अगर उसकी बगल से आ रहा हो तो उस'से मुझे वास'ना का एक अलग ही नशा चढ़ता है. मेरे दिल ने चाहा के उसकी पसीने से भरी बगल चाट लूँ लेकिन वैसा कर के में मुसीबत में नही पड़ना चाहता था इस'लिए मेने उसे उठाने के बारे में सोचा. उसे स्पर्श ना हो इस बात का ध्यान रख'कर में हो सके उतना उसके नज़दीक सरक गया. मेरे एक हाथ पर मेरा वजन देकर में थोड़ा उप्पर उठ गया और दूसरे हाथ से मेने संगीता दीदी की छाती के नीचे छूकर उसे में उठाने लगा.
"संगीता दीदी! उठो अभी!"
"अँ.? क्या.?" संगीता दीदी बौखलाकर उठ गयी.
"मेने कहा. उठ जाओ अभी, रानी सहीबा!" मेने हंस'कर उसे कहा.
"सॉरी, सागर! मेरी आँख लग गयी थी" संगीता दीदी ने अध खुली आँखों से हंस'कर जवाब दिया.
"अरे, दीदी! उस में सारी क्या कह'ना? में समझ सकता हूँ. इतना घूम'ने के बाद तुम थक गयी होगी."
"हाँ! थोड़ी थकान महसूस हो गयी मुझे लेकिन अब में ठीक हूँ" संगीता दीदी ने अब अच्छी तराहा से आँखें खोल दी और मेरी तरफ देख'कर कहा, "आज में बहुत खूस हूँ, सागर. खंडाला जैसी खूबसूरत जगह देख'ने की मेरी बहुत दिन की 'इच्छा' आज पूरी हो गयी. और ये सब तुम्हारी वजह से हुआ, सागर! थॅंक्स, ब्रदर!"
"दीदी. इस में थॅंक्स कह'ने की क्या ज़रूरत? तुम्हें खूस कर'ने के लिए और तुम्हें सुख देने के लिए में हमेशा तैयार हूँ!"
"ओह ! सागर!. तुम बहन का कित'ना ध्यान कर'ते हो! मुझे तुम पर नाज़ है, ब्रदर!!" ऐसा कह'कर संगीता दीदी ने मुझे अप'ने उप्पर खींच लिया और अप'नी बाँहों में भर'कर कहा,
"तुम'ने मुझे बहुत बहुत खुशियाँ दी है, सागर! और मुझे लग'ता है के में भी तुम्हें उतना ही खूस कर दूं. उसके लिए में कुच्छ भी कर'ने को तैयार हूँ. तो फिर बताओ मुझे. में क्या करूँ जिस'से तुम्हें उत'नी ही खूशी मिले जित'नी मुझे मिली है?"
थोड़ी देर हम दोनो भाई-बहेन वैसे ही चिपक के पड़े रहे. संगीता दीदी मेरी बाँहों में सुरक्षा महसूस कर रही थी और में उसके गदराए बदन का स्पर्श महसूस कर रहा था. उस के मन में ममता थी, प्यार था और मेरे मन में काम वास'ना थी. मेरा लंड ज़्यादा ही कड़क होते जा रहा था और वो उसकी टाँगों को छू रहा था. उसकी समझ में वो ना आए इस'लिए मुझे उस'से दूर होना पड़ा.
"कम ऑन, दीदी! उठो अभी.. हम फ्रेश हो जाते है और आराम से सो जाते है." ऐसा कह'ते में बेड से उठ गया. मेने बॅग में से मेरा रात को पहन'ने का लिबास निकाला. फिर कमर पर टेवेल लपेट कर मेने मेरी जींस निकाल दी और टी-शर्ट भी निकाल'कर बाजू के चेअर पर डाल दिए. फिर में बाथरूम में नहाने के लिए गया. काफ़ी सम'य लेकर मेने जी भर के शावर के नीचे स्नान लिया और मेरा पूरा बदन अच्छी तरह से साफ किया. ख़ास कर के मेरा लंड और जाँघो का भाग मेने अच्छी तरह से घिस के साफ किया इस पागल ख़याल से के मेरी बहन उन भागों को चाट लेगी. मुझे मालूम था वैसे कुच्छ होनेवाला नही था लेकिन फिर भी मन में एक उम्मीद थी.
जब में बाथरूम से बाहर आया तब मेने देखा के संगीता दीदी पूरे बदन'पर बेड शीट ओढ़ के चेर पर बैठी थी. वैसे बैठ के वो मेरी तरफ देख रही थी और शरार'ती अंदाज में हंस रही थी. मुझे थोड़ा अजीब सा लगा के वो ऐसी क्यों बैठी है और मेरी तरफ देख के ऐसे क्यों हंस रही है.
"क्या हुआ, दीदी? तुम्हें ठंड लग रही है क्या?" मेने परेशान होकर उसे पुछा.
"ना.. ही ..! !" उस'ने बड़े लाड से जवाब दिया.
"तो फिर तुम ऐसी बदन पर बेडशीट ओढ़ कर क्यों बैठी हो?" मेने आश्चर्य से पुछा.
"क्योंकी.. क्योंकी.." ऐसे कह'ते संगीता दीदी उठ खड़ी हुई और अप'ने बदन से बेडशीट पिछे धकेल के खुद को मेरे साम'ने पेश कर'ते बोली,
"क्योंकी इस'लिए, सागर." जब मेने उसे देखा तो में दंग रहा गया. संगीता दीदी ने मेरी जींस और टी-शर्ट पहन लिया था.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
Posts: 84,429
Threads: 906
Likes Received: 11,320 in 9,384 posts
Likes Given: 22
Joined: Dec 2018
Reputation:
118
"कैसी लग रही हूँ में, सागर?" दोनो हाथ कमर'पर रख के, सीना तान के खड़ी होकर संगीता दीदी ने मुझे पुछा, "अब में मॉडर्न लग'ती हूँ के नही, बोलो?" संगीता दीदी गोल घूम के मुझे दिखा रही थी के वो कैसी लग रही थी. इस में कोई गुंजाइश नही थी के वो अलग और ख़ास नज़र आ रही थी क्योंकी आज तक मेने उसे सिर्फ़ पंजाबी लिबास और साऱी पह'ने हुए देखा था. उस'ने जींस और टी-शर्ट कभी नही पह'ने थे. उसके कॉलेज के दिनो में उस'ने ज़्यादा से ज़्यादा स्कर्ट और फूल टॉप पह'ने थे. इस'लिए पहिली बार में संगीता दीदी को इन कपडो में देख रहा था और मुझे वो इन कप'डो में पसंद आई थी.
मेरा टी-शर्ट बड़ी फिटींग का था और संगीता दीदी का बदन मेरे से भारी था इस'लिए वो मेरा टी-शर्ट उस'को छोटा हो रहा था. अब बड़ी तो ठीक है लेकिन छाती का क्या?? मेरी छाती और उसकी छाती में ज़मीन-आसमान का फरक था. इस'लिए वो टी-शर्ट उसके बदन पर दूसरी चमड़ी की तरह चिपक गया था. उस'ने पह'नी हुई काली ब्रेसीयर उस क्रीम कलर के टी-शर्ट में से साफ साफ नज़र आ रही थी और ऐसा लग रहा था के उस'ने सिर्फ़ ब्रेसीयर पह'नी थी. टी-शर्ट की लंबाई छोटी थी इस'लिए वो बड़ी मुश्कील से जींस के बेल्ट तक आ रहा था. उस'ने अगर हाथ उपर किया तो उस'का गोरा गोरा चिकना पेट नज़र आ जाएगा.
"तुम्हें कुच्छ कर'ने की ज़रूरत नही है, दीदी!" मेने अपना चह'रा उपर किया और संगीता दीदी की नज़र से नज़र मिलाकर कहा, "तुम खूस हो तो में खूस हूँ. तुम सुखी हो तो में सुखी हूँ. तुम हमेशा खूस रहो यही में चाहता हूँ, दीदी!"
"ओह ! सागर!. मेरे प्यारे भाई.!" ऐसा कह'कर संगीता दीदी ने मुझे ज़ोर से आलींगन दिया. अचानक मुझे आह'सास हुआ के में संगीता दीदी की बाँहों में तकरीबन उसके बदन पर लेट गया हूँ. मेरा सर उसकी भारी हुई छाती के दोनो उभारों के बीच था और मेरा दायां हाथ उसकी कमर पर था. मुझे उसकी कड़ी फिर भी उत'नी ही मुलायम छाती का स्पर्श महसूस हो रहा था. मेरी जाँघो का भाग और मेरा लंड उसके घुट'ने के उप्परी टाँगों पर सटा हुआ था.
जब मेने उसकी कमर के नीचे देखा तो मुझे हँसी आई. हमारी कमर में फरक होने की वजह से मेरी जींस उसे कमर पर हो नही रही थी. जींस के बटन की जगहा पर तकरीबन दो ढाई इंच का गॅप पड़ गया था और इस'लिए वो बटन नही लगा सकी. लेकिन जींस नीचे ना सरके इस'लिए उस'ने बेल्ट लगाया था. बटन की जगहा गॅप होने की वजह से वो ज़ीप पूरी ना लग के आधी ही लग स'की. इस वजह से आधी खुली ज़ीप के उपर और बेल्ट के नीचे एक त्रिकोण बन गया था जो खुला था. और उस खुले त्रिकोण में के उपर के आधे भाग में उसकी गोरी गोरी
चमड़ी नज़र आ रही थी और नीचे के आधे भाग में उसकी नीले रंग की पैंटी नज़र आ रही थी. काफ़ी देर तक में बिना जीझक मेरी बहन को उपर से नीचे निहार रहा था और वो आगे, पिछे से खुद को मुझे दिखा रही था.
"सिर्फ़ देख क्या रहे हो, सागर. कुच्छ बोलो भी तो. कैसी लग रही हूँ में?" संगीता दीदी ने बेसब्री से कहा.
"एक'दम झकास, दीदी!! लेकिन मेरी जींस छोटी पड़ गयी आपको. वारना उस त्रिकोण का प्रदर्शन नही होता." उसके खुले त्रिकोण की तरफ बीना जीझक उंगली दिखा के मेने कहा.
"नालायक, लड़के! बेशरामी मत करो. और वहाँ पर देख'ना नही! सिर्फ़ मुझे इतना बता दे के में कैसी दिख'ती हूँ?" ऐसा कह'कर वो ड्रेसंग टेबल के साम'ने गई और खुद को आईने में निहार'ने लगी.
मेने सप'ने में तो कई बार कल्पना की थी के संगीता दीदी ने जींस और टी-शर्ट पहना है लेकिन आज में पह'ली बार उसे हक़ीक़त में इन कप'डो में देख रहा था. अब में उसे क्या बताऊ के वो कैसी दिख रही थी?
मेने मन ही मन कहा के मेरे लंड को पुच्छ लो तुम कैसी दिख रही हो, जो तुम्हे देख'कर पागल हो रहा है और कड़ा होते जा रहा है. में संगीता दीदी के पिछे जा के खड़ा हो गया और बिना शर'माए उसकी कमर पर हाथ रख दिए. फिर आईने में से उसकी तरफ देख'कर मेने कहा,
"तुम एक'दम आकर्षक लग रही हो, दीदी!"
"सिर्फ़ आकर्षक?. और कुच्छ नही??" संगीता दीदी ने तिरछी नज़र से आईने से ही मुझे देख'कर वापस सवाल किया.
"और बोले तो. तुम आकर्षक दिख रही हो. और ग्रेट दिख रही हो. और. और." में आगे बोल ना सका और दीदी ने मुझे चुप कर'ते कहा,
"और. सेक्सी भी. बराबर ना, सागर?"
"ओह ! येस!!" मेने झट से कहा, "तुम सेक्सी भी दिख रही हो. उलटा इस लिबास में तुम किसी और लिबास से ज़्यादा सेक्सी दिख'ती हो!"
"ओह ! कम ऑन, सागर! कभी तुम कह'ते हो में साऱी में एक'दम सेक्सी दिख'ती हूँ तो कभी तुम कह'ते हो में पंजाबी लिबास में एक'दम सेक्सी दिख'ती हूँ. और अब तुम कह रहे हो में इस जींस, टी-शर्ट में एक'दम सेक्सी दिख रही हूँ. तुम अच्छी तरह से सोच'कर तय कर लो और मुझे बताओ के में कौन से लिबास में सेक्सी लग'ती हूँ." संगीता दीदी ने शरारत से हंस'ते हुए मज़ाक में मुझ'से पुछा.
उसके सवाल से पह'ले तो में बौखला गया लेकिन उसे क्या जवाब देना है ये मुझे अच्छी तराहा से मालूम था. मन ही मन मेने खुद को वो जवाब हज़ारो बार कहा था.
"सच बताउ, दीदी?. सेक्सीनेस तुम्हारी साऱी में नही तुम्हारे पंजाबी ड्रेस में नही तुम्हारे कोई भी लिबास में नही है. अगर है तो. वो.. तुम्हारे अंदर है. तुम्हारे बदन में है. इस'लिए तुम'ने कोई भी लिबास पहन लिया तो तुम सेक्सी दिख'ती हो. और इसी वजह से कभी मुझे तुम साऱी में सुंदर नज़र लग'ती हो तो कभी पंजाबी लिबास में. और अभी तुम मुझे इस मॉडर्न जींस में अच्छी लग रही हो" मेने एक ही साँस में ये सब कह डाला.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
Posts: 84,429
Threads: 906
Likes Received: 11,320 in 9,384 posts
Likes Given: 22
Joined: Dec 2018
Reputation:
118
14-10-2021, 05:39 PM
(This post was last modified: 18-10-2021, 05:06 PM by neerathemall. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
ओह ! सागर! तुम इत'नी अच्छी बातें कर'ते हो के सुन'ने में बहुत प्यारा लग'ता है!" ऐसा कह'कर संगीता दीदी ने मेरे दोनो हाथ पकड़ लिए, जो उसकी कमर पर थे और मुझे नज़दीक खींच लिया. फिर मेरे हाथ उस'ने अप'ने पेट पर लपेट लिए जो बिल'कुल उसके छाती के उभारों के नीचे थे और उन'को हलका सा स्पर्श कर रहे थे.
संगीता दीदी की उस 'प्यारभरी' नज़दीकीयों का पूरा फ़ायदा उठाते मेने उसे ज़ोर से अप'नी बाँहों में भर लिया और उसके पिछे से चिपक गया. मेरा चह'रा मेने उसके कंधोपर रखा था जो उसके गालो को हलके से छू रहा था. मेरे हाथों से मेने उसके पेट को ज़ोर से आलींगन किया था जिस'से उसकी भरी हुई छाती मेरे हाथों से थोड़ी उपर उठ गयी थी. मेरे जांघों का भाग उसके गोला मटोल चुत्तऱ पर दब गया था.
"ओह ! सागर!" संगीता दीदी ने मेरी पकड़ और मजबूत कर के और खुद को और पिछे धकेल कर कहा, "तुम्हें तो मालूम है शादी से पह'ले अप'ने घर में मेने कभी ऐसा लिबास नही पहना क्योंकी पिताजी को ऐसा लिबास पसंद नही था. और शादी के बाद तो सवाल ही नही क्योंकी मेरे पति मुझे पंजाबी लिबास भी पहन'ने नही देते है. इस'लिए जींस और टी-शर्ट पहन'ने की मेरी बहुत दिन की 'इच्छा' आज पूरी हो गई. थॅंक्स, ब्रदर! तुम्हारी वजह से मेरा और एक 'इच्छा' पूरी हो गई."
"मेने तुम्हें कहा है ना, दीदी! तुम्हारी सभी 'इच्छाए' पूरी कर'ने के लिए में हमेशा तुम्हारे साथ हूँ. सिर्फ़ मुझे बताओ! तुम्हारी और कौन सी 'इच्छाए' पूरी कर'ना बाकी है" ऐसे कह'ते मेने और ज़ोर से उसे पिछे से कस लिया.
"अब और कोई 'इच्छा' बाकी नही है, सागर! तुम'ने मेरे लिए बहुत कुच्छ किया है. अब तुम मुझे बताओ.. में तुम्हारे लिए कुच्छ कर सक'ती हूँ क्या? तुम्हारी कोई 'इच्छा' में पूरी कर सक'ती हूँ क्या? बता मुझे कि में तुम्हारा कोई सपना पूरा कर सक'ती हूँ क्या?"
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
Posts: 84,429
Threads: 906
Likes Received: 11,320 in 9,384 posts
Likes Given: 22
Joined: Dec 2018
Reputation:
118
6...........................................
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
|