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Adultery C. M. S. [Choot Maar Service]
#1
C. M. S.
[Choot Maar Service]



Disclaimer

यह कहानी पूरी तरह से काल्पनिक है। कहानी में मौजूद किसी भी पात्र का तथा घटनाओं का किसी के भी वास्तविक जीवन से कोई संबंध नहीं है। संपूर्ण कहानी सिर्फ और सिर्फ लेखक की अपनी कल्पना है, जिसका उद्देश्य सिर्फ और सिर्फ अपने प्रिय पाठकों का मनोरंजन करना ही है।
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#2
सी. एम. एस. नाम की एक सीक्रेट सर्विस थी। जिसका पूरा नाम था चूत मार सर्विस। :lol1: चूत मार सर्विस एक ऐसी संस्था का नाम था जो मर्दों और औरतों की सेक्स नीड को पूरा करने के लिए पार्टनर प्रोवाइड करती थी। ये एक ऐसी संस्था थी जिसके बारे में कोई ख़्वाब में भी नहीं सोच सकता था लेकिन इस संस्था के एजेंट्स गुप्त रूप से मर्दों और औरतों को सेक्स की सेवाएं प्रदान करते थे।

विक्रम सिंह नाम का एक बहुत ही शर्मीला लड़का था जिसकी सबसे बड़ी चाहत थी सुन्दर सुन्दर लड़कियों के खूबसूरत अंगों को अपनी मर्ज़ी से मसल मसल कर उनका रस पान करना और फिर उन लड़कियों के साथ मनचाहा सेक्स करना। इत्तेफ़ाक़ से उसकी मुलाक़ात सी. एम. एस. नाम की सीक्रेट सर्विस के चीफ़ ट्रिपल एक्स से हो गई और उस चीफ़ ने विक्रम सिंह को सीक्रेट सर्विस जैसी संस्था का एजेंट बना दिया। एजेंट के रूप में विक्रम सिंह ने अपनी सबसे बड़ी चाहत को पूरा करते हुए जाने कितनी ही लड़कियों और औरतों के साथ सेक्स का मज़ा लिया लेकिन उसे नहीं पता था कि ऊपर बैठा हुआ विधाता एक दिन उसके सिर पर एक ऐसे संगीन जुर्म का इल्ज़ाम रख देगा जिसकी वजह से उसे उम्र क़ैद की सज़ा हो जाएगी।

[Image: IMG-20210730-230453.jpg]
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#3
C. M. S.
(Choot Maar Service)

अध्याय-01



जेलर शिवकांत वागले के ऑफिस में एक ऐसे शख़्स ने क़दम रखा जिसके चेहरे पर बड़ी बड़ी दाढ़ी मूंछें थी और सिर पर लम्बे लम्बे किन्तु उलझे हुए बाल थे। उस शख़्स के जिस्म पर इस वक़्त अगर अच्छे कपड़े न होते तो उसे देख कर हर कोई यही कहता कि वो कोई पागल ही है। चेहरे पर अजीब से भाव लिए जब वो जेलर के सामने रखी टेबल के पार आ कर खड़ा हुआ तो कुर्सी पर बैठे किन्तु कहीं खोए हुए जेलर का ध्यान भंग हुआ और उसने सिर उठा कर उस शख़्स की तरफ देखा।

"अ..अरे! आओ विक्रम सिंह?" जेलर शिवकांत ने उस शख़्स की तरफ देखते हुए नरम लहजे में कहा____"हम तुम्हारा ही इंतज़ार कर रहे थे। पिछले पांच सालों से हम तुमसे जो सवाल पूछते आ रहे हैं उसका जवाब आज तो ज़रूर दोगे न तुम? आज तुम बीस साल बाद इस जेल से रिहा हो कर जा रहे हो इस लिए हम चाहते हैं कि तुम हमारे उस सवाल का जवाब ज़रूर दे कर जाओ। यकीन मानो कि इन पांच सालों में ऐसा कोई दिन नहीं गया जब हमने तुम्हारे बारे में सोचा न हो। सवाल तो बहुत सारे हैं लेकिन हमें सिर्फ उसी सवाल का जवाब चाहिए तुमसे।"

जेलर शिवकांत की बातें सुन कर विक्रम सिंह नाम के उस शख़्स ने कुछ पलों तक उसे देखा और फिर ख़ामोशी से अपने कंधे पर टंगे एक कपड़े वाले थैले को निकाला और उस थैले के अंदर हाथ डाल कर उससे एक मोटी सी किताब निकाली। उस मोटी सी किताब को हाथ में लिए पहले तो वो कुछ पलों तक उस किताब को देखता रहा और फिर जेलर शिवकांत वागले की तरफ देखते हुए उसने उस किताब को उसकी तरफ बढ़ा दिया।

"जेलर साहब।" फिर उसने अपनी भारी आवाज़ में कहा____"ये किताब रख लीजिए। इस किताब को आप मेरी पर्सनल डायरी समझिए। इसमें आपके सभी सवालों के जवाब मौजूद हैं और साथ ही वो सब भी मौजूद है जिससे आपको मेरे बारे में पता चल सके।"
"तो क्या तुमने इसी लिए हमसे ये डायरी मंगवाई थी कि तुम इसमें अपना सब कुछ लिख सको?" जेलर ने थोड़े हैरानी भरे भाव से पूछा____"अगर ऐसी ही बात है तो फिर तो हमारे मन में ये जानने की और भी ज़्यादा जिज्ञासा जाग उठी है कि आख़िर इस किताब में तुमने अपने बारे में क्या क्या लिखा होगा?"

"इस डायरी को पढ़ने के बाद।" विक्रम सिंह ने सपाट लहजे में कहा____"आप ये भी समझ जाएंगे कि मैंने आपके बार बार पूछने पर भी आपके सवालों के जवाब क्यों नहीं दिए थे? ख़ैर, चलते चलते आपसे बस एक ही गुज़ारिश है कि चाहे जैसी भी परिस्थितियां आ जाएं किन्तु आप मुझे खोजने की कोशिश नहीं करेंगे।"

"ऐसा क्यों कह रहे हो विक्रम सिंह?" जेलर ने चौंकते हुए कहा____"एक तुम ही तो थे जिसने इन पांच सालों में हमें सबसे ज़्यादा प्रभावित किया था। हम हमेशा सोचते थे कि बीस साल पहले जिन इल्ज़ामों के तहत तुम यहाँ पर आए थे तो क्या वो सच रहे होंगे? इन पांच सालों में हमने कभी भी तुम्हें ऐसा वैसा कुछ भी करते हुए नहीं देखा जिससे ये लगे कि तुम जैसे इंसान ने ऐसा संगीन जुर्म किया रहा होगा।"

"ये दुनियां एक मायाजाल है जेलर साहब।" विक्रम सिंह ने फीकी मुस्कान के साथ कहा____"यहां पर आँखों देखा और कानों सुना भी सच नहीं होता। ख़ैर, अब जाने की इजाज़त दीजिए मुझे।"

जेलर शिवकांत को तुरंत कुछ समझ न आया कि वो क्या कहे, अलबत्ता विक्रम सिंह के अंतिम वाक्य को सुन कर वो अपनी कुर्सी से उठ कर ज़रूर खड़ा हो गया था। उधर विक्रम सिंह ने जेलर को देखते हुए नमस्कार करने के लिए अपने दोनों हाथ जोड़े और ऑफिस के दरवाज़े की तरफ बढ़ गया।

विक्रम सिंह के जाने के बाद भी जेलर शिवकांत वागले काफी देर तक किंकर्तव्यविमूढ़ सा खड़ा दरवाज़े की तरफ देखता रहा था। फिर जैसे उसकी तन्द्रा टूटी तो उसने एक लम्बी सांस ली और वापस कुर्सी पर बैठ गया। नज़र सामने टेबल पर रखी उस डायरी पर पड़ी जिसे विक्रम सिंह उसे दे गया था।

विक्रम सिंह बीस साल पहले इस जेल में क़ैदी बन कर आया था। अपने माता पिता की हत्या का संगीन इल्ज़ाम लगा था उस पर। सिक्युरिटी ने उसे घटना स्थल पर रंगे हाथ पकड़ा था। मामला अदालत पर पहुंचा और फिर न्यायाधीश ने उसे उम्र क़ैद की सज़ा सुना दी थी। उस सज़ा के बाद विक्रम सिंह ने बीस साल इस जेल में गुज़ारे। इन बीस सालों में उसने हर वो यातनाएं सहीं जो जेल में ख़तरनाक अपराधियों के बीच रह कर सहनी पड़ती हैं और साथ ही उसने हर वो काम भी किया जो जेल में रहते हुए करना पड़ता है। गुज़रते वक़्त के साथ हर कोई ये समझ गया था कि विक्रम सिंह नाम का ये शख़्स ज़िंदा रहते हुए भी एक बेजान लाश की तरह है जिस पर किसी भी चीज़ का प्रभाव नहीं पड़ता।

जेलर शिवकांत वागले पांच साल पहले इस जगह पर तबादले के रूप में आया था। विक्रम सिंह के बारे में उसे भी पता चला था और उसके मन में विक्रम सिंह के बारे में जानने की जिज्ञासा भी पैदा हुई थी किन्तु उसके पूछने पर हर बार विक्रम सिंह ने उससे बस यही कहा था कि उसके पास उसके किसी भी सवाल का जवाब नहीं है। अदालत में भी विक्रम सिंह ने न्यायाधीश को ये नहीं बताया था कि क्यों उसने अपने ही माता पिता की हत्या की थी?

विक्रम सिंह के अच्छे वर्ताव के चलते अदालत ने उसकी बाकी की सज़ा को माफ़ कर दिया था। हालांकि अदालत के इस फ़ैसले से विक्रम सिंह ज़रा भी खुश नहीं था। उसका कहना था कि अब ये जेल ही उसकी दुनियां है और इसी दुनियां में एक दिन उसे फ़ना हो जाना है। इस दुनियां से बाहर वो जाना ही नहीं चाहता किन्तु अदालत ने उसकी इस इच्छा के विरुद्ध उसे रिहा कर दिया था।

एक महीने पहले विक्रम सिंह ने जेलर शिवकांत वागले से एक डायरी की मांग की थी। जेलर के पूछने पर उसने यही बताया था कि रात के समय उसे नींद नहीं आती इस लिए समय काटने के लिए उसे एक ऐसी डायरी चाहिए जिसमें वो अपनी स्वेच्छा से जो चाहे लिख सके। विक्रम सिंह ने क्योंकि पहली बार ऐसी किसी चीज़ की मांग की थी इस लिए वागले ने फ़ौरन ही उसके लिए एक डायरी मंगवा दी थी।

सामने टेबल पर रखी उसी डायरी को देखते हुए जेलर सोच रहा था कि विक्रम सिंह ने आख़िर इसमें ऐसी कौन सी इबारत लिखी होगी जो उसके बारे में उसे बताने वाली है? जेलर का मन किया कि वो फ़ौरन ही डायरी को खोल कर देखे कि उसमें क्या लिखा है किन्तु फिर ये सोच कर उसने अपना इरादा बदल दिया कि वो फुर्सत के समय इस डायरी को खोलेगा और देखेगा कि उस विक्रम सिंह ने इसमें क्या लिखा है।

☆☆☆

शिवकांत वागले अपनी ड्यूटी से फ़ारिग हो कर अपने सरकारी आवास पर पहुंचा। उसके परिवार में उसकी पत्नी सावित्री और दो बच्चे थे। उसके दोनों बच्चों में एक लड़का था और एक लड़की। लड़की कॉलेज में लास्ट ईयर की छात्रा थी और लड़के ने इसी साल कॉलेज ज्वाइन किया था। रात में डिनर करने के बाद शिवकांत वागले विक्रम सिंह की डायरी ले कर अपने स्टडी रूम में चला गया था।

स्टडी रूम में कुर्सी पर बैठा वागले सिगरेट जला कर उसके कश ले रहा था और टेबल पर रखी डायरी को देखता भी जा रहा था। उसके दिल की धड़कनें सामान्य से थोड़ा तेज़ चल रहीं थी। कदाचित इस एहसास से कि जाने इस डायरी में क्या लिखा होगा विक्रम सिंह ने? कुछ देर तक सिगरेट के कश लेने के बाद शिवकांत वागले ने सिगरेट को टेबल पर ही एक कोने में रखी ऐसट्रे में बुझाया और फिर एक गहरी सांस ले कर उसने उस डायरी की तरफ अपने हाथ बढ़ाए।

डायरी का मोटा कवर पलटाते ही शिवकांत वागले को उसमें एक तह किया हुआ कागज़ नज़र आया। वागले ने उसे हाथ में लिया और उसे खोल कर देखा। तह किए हुए उस कागज़ में कोई लम्बा सा मजमून लिखा हुआ था जिसे वागले ने मन ही मन पढ़ना शुरू किया।

आदर्णीय जेलर साहब,

पिछले पांच सालों से आप मेरे बारे में और मेरे उस अपराध के बारे में पूछते रहे जिसकी वजह से मैं आपकी जेल में मुजरिम बन कर आया था किन्तु मैंने कभी भी आपके सवालों के जवाब नहीं दिए। असल में मुझे कभी समझ ही नहीं आया कि मैं जवाब के रूप में आपसे क्या कहूं और किस तरह से कहूं? इस दुनियां में ऐसी बहुत सी चीज़ें देखने सुनने को मिलती हैं जिनके बारे में हम इंसान कभी कल्पना भी नहीं किए होते। इंसान अपनी ज़िन्दगी में कभी कभी ऐसे दोराहे पर भी आ जाता है जहां पर वो सही ग़लत का फैसला नहीं कर पाता। ऐसे दोराहे पर खड़े इंसान का अगर ज़रा सा भी विवेक काम कर जाए तो समझो अनर्थ होने से बच गया वरना तो सारी ज़िन्दगी पछताने के सिवा दूसरा कोई चारा ही नहीं रहता।

जेलर साहब जब एक महीने पहले आपने मुझे बताया कि अदालत ने मेरी बाकी की सज़ा माफ़ कर दी है और मुझे रिहा करने का फ़ैसला सुना दिया है तो यकीन मानिए मुझे अदालत के उस फैसले से ज़रा भी ख़ुशी नहीं हुई। मैं उस दुनियां में अब वापस नहीं जाना चाहता था जहां पर मेरा सब कुछ ख़त्म हो चुका था। ख़ैर शायद मेरे नसीब में सुकून जैसी चीज़ लिखी ही नहीं थी तभी तो मुझे यहाँ से रिहा कर के निकाल देने का फ़ैसला किया अदालत ने। आपके द्वारा मिली इस सूचना के बाद रात में मैंने बहुत सोचा और फिर ये फ़ैसला किया कि जाते जाते आपको वो सब बता कर ही जाऊं जिसके बारे में आप मुझसे पिछले पांच सालों से पूछते आ रहे थे लेकिन आपके सामने अपने मुख से वो सब बताने की ना तो पहले मुझ में हिम्मत थी और ना ही आगे कभी हो सकती थी इस लिए मैंने कागज़ और कलम का सहारा लेने का फ़ैसला किया। मैंने आपसे एक डायरी की मांग की और आपने मुझे एक डायरी ला कर दी।

मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं इस डायरी में आपके किन किन सवालों के जवाब लिखूं? मैंने बहुत सोचा और फिर मैंने बहुत सोच समझ कर ये फ़ैसला किया कि मैं अपने बारे में वो सब कुछ लिखूंगा जिसे पढ़ने के बाद आप ख़ुद इस बात का फ़ैसला कर सकें कि मैंने अपनी ज़िन्दगी में जो कुछ भी किया वो सही था या ग़लत? अगर मैं सही था तो कहां तक सही था और अगर मैं ग़लत था तो कहां तक ग़लत था?

इस डायरी में अपना इतिहास लिखते हुए मेरे हाथ बुरी तरह कांप रहे थे और मेरी धड़कनें थम सी गईं थी। मैं इस कल्पना से ही बेहद लाचार और बेबस सा महसूस करने लगा था कि सब कुछ पढ़़ लेने के बाद आपकी नज़र में मेरी क्या औकात बन जाएगी और आप मेरे बारे में किस तरह का नज़रिया बना लेंगे किन्तु फिर ये सोच कर मेरे होठों पर फीकी सी मुस्कान उभर आई कि भला अब किसी बात से मुझे कैसे कोई फ़र्क पड़ सकता है? जिसका मुकम्मल वजूद ही एक मज़ाक बन के रह गया हो उसके लिए किसी बात का आख़िर क्या महत्व रह जाता है? यही सब सोच कर मैंने इस डायरी पर अपनी कलम को चलाना शुरू कर दिया था।

अन्त में आपसे बस इतना ही कहूंगा कि इस डायरी में मैंने जो कुछ भी लिखा है और जिस तरीके से भी लिखा है उसे आप आख़िर तक ज़रूर पढ़िएगा। मैं जानता हूं कि इस डायरी में लिखी बहुत सी चीज़ें ऐसी हैं जिन्हें पढ़ना आपके लिए संभव नहीं हो सकेगा लेकिन मेरी गुज़ारिश का ख़याल रखते हुए ज़रूर पढ़िएगा। आख़िर में एक विनती भी है आपसे और वो ये कि इस डायरी में लिखी मेरी दास्तान पढ़ने के बाद चाहे जैसी भी परिस्थितियां बनें किन्तु आप मुझे खोजने की कोशिश मत कीजिएगा। अच्छा अब अलविदा.....नमस्कार!

_____विक्रम सिंह

लम्बे चौड़े इस मजमून को पढ़ने के बाद शिवकांत वागले ने एक गहरी सांस ली। कुछ देर तक वो उस कागज़ को और कागज़ में लिखे मजमून को देखता रहा उसके बाद उसने उस कागज़ को तह करके एक तरफ रख दिया। कागज़ को एक तरफ रखने के बाद वागले ने जब डायरी के प्रथम पेज़ को देखा तो उस पेज़ पर लिखे अक्षरों को पढ़ते ही उसके चेहरे पर चौंकने के भाव उभर आए।

डायरी के पहले ही पेज पर उसे बड़े बड़े किन्तु अंग्रेजी के अक्षरों में सी. एम. एस. लिखा नज़र आया था और साथ ही सी. एम. एस. के नीचे बिलकुल छोटे अक्षरों में उसे जो कुछ लिखा नज़र आया था उसे पढ़ते ही शिवकांत वागले के चेहरे पर हैरानी के साथ साथ चौंकने के भी भाव उभर आए थे। अंग्रेजी के छोटे अक्षरों में ही लिखा था____'चूत मार सर्विस'।

शिवकांत वागले चूत मार सर्विस पढ़ कर बुरी तरह अचंभित हुआ। उसे लगा कि उससे उन शब्दों को पढ़ने में कहीं कोई ग़लती तो नहीं हो गई है इस लिए उसने उन्हें आँखें फाड़ फाड़ कर बार बार पढ़ा किन्तु हर बार उसे वही लिखा नज़र आया जो उसके लिए बड़े ही आश्चर्य की बात थी। वो समझ नहीं पाया कि विक्रम सिंह ने इस डायरी में ये क्या बकवास लिख दिया है? अपलक उन शब्दों को देखते हुए शिवकांत के ज़हन में ख़याल उभरा कि अगर विक्रम सिंह ने ऐसा लिखा है तो ज़रूर इसके पीछे कोई ख़ास वजह ही होगी किन्तु सबसे ज़्यादा सोचने वाली बात तो ये थी कि आख़िर ये चूत मार सर्विस का मतलब क्या है?

शिवकांत वागले का दिमाग़ एकदम से भन्ना सा गया था। उसे ख़्वाब में भी उम्मीद नहीं थी कि विक्रम सिंह जैसा शख़्स ऐसी वाहियात बात लिख सकता है। उसने डायरी के कवर को झटके से बंद किया और हल्के गुस्से में उसने उस डायरी को उठा कर टेबल की ड्रावर में रख दिया। कुछ देर खुद के जज़्बातों को शांत करने के बाद वो कुर्सी से उठ कर स्टडी रूम से बाहर निकला और अपने कमरे की तरफ बढ़ गया।

कमरे में आ कर शिवकांत बेड पर अपनी पत्नी सावित्री के बगल पर लेट गया। उसकी पत्नी सावित्री को जल्दी ही सो जाने की आदत थी इस लिए वो सो गई थी जबकि वागले बेड पर करवट के बल लेटा गहरी सोच में डूबा नज़र आने लगा था। उसके ज़हन में अभी भी विक्रम सिंह द्वारा लिखे गए वो शब्द गूंज से रहे थे_____'चूत मार सर्विस।'

वागले को समझ नहीं आ रहा था कि इस सब का आख़िर क्या मतलब हो सकता है? क्या विक्रम सिंह ने अपनी डायरी में अपने गुज़रे हुए कल को लिखा है और अगर उसने अपने गुज़रे हुए कल को ही लिखा है तो क्या उसका गुज़रा हुआ कल डायरी में लिखे गए उन शब्दों से ही सम्बंधित है, लेकिन ऐसा कैसे हो सकता है? शिवकांत ने बहुत सोचा किन्तु वो किसी ठोस निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सका। अंत में उसने यही फ़ैसला किया कि कल वो उस डायरी को अपने साथ ऑफिस ले जाएगा और वहीं पर तसल्ली से उसमें लिखी हुई बातों को पढ़ेगा। ये सब सोच कर वागले ने अपनी आँखे बंद कर ली। कुछ ही देर में उसे नींद आ गई और वो नींद की वादियों में खोता चला गया।

दूसरे दिन शिवकांत वागले जेलर की वर्दी पहन कर जेल पहुंचा। अपने केबिन में पहुंच कर उसने कुछ देर ज़रूरी फाइल्स को चेक किया और फिर पूरी जेल का चक्कर लगाते हुए निरीक्षण किया। सब कुछ ठीक ठाक देख कर वो वापस अपने केबिन में आ गया। एक सिगरेट सुलगाने के बाद उसे विक्रम सिंह की डायरी का ख़याल आया। विक्रम सिंह की डायरी वो अपने साथ ही ले कर आया था।

अपने छोटे से ब्रीफ़केस से डायरी निकाल कर वागले ने उसे टेबल पर रखा और सिगरेट के कश लेते हुए उसे घूरने लगा। धड़कते दिल के साथ उसने डायरी के कवर को पलटा। नज़र फिर से पहले पेज पर अंग्रेजी के अक्षरों में लिखे सी. एम. एस. पर पड़ी और उसी के नीचे अंग्रेजी में ही लेकिन छोटे अक्षरों में लिखे चूत मार सर्विस पर पड़ी। शिवकांत वागले के ज़हन में बिजली की स्पीड से ये ख़याल उभरा कि सी. एम. एस. अंग्रेजी में लिखे छोटे अक्षरों का शार्ट नाम है जबकि चूत मार सर्विस उसका फुल फॉर्म है। कुछ देर शार्ट और फुल दोनों नाम के फॉर्मों को देखने के बाद वागले ने उस पेज को पलटाया। उस पेज के बाद बाकी के कुछ पेजेस पर भारत देश और उसके कई राज्यों के नक़्शे बने हुए थे और अलग अलग देशों के कोड्स लिखे हुए थे। शिवकांत वागले इस तरह के सभी पेजेस को एक ही बार में पलट दिया। उन पेजेस के बाद जो पहला पेज दिखा उसमें वागले की निगाह ठहर गई।

उस पहले पेज पर लिखे मजमून को पढ़ने के बाद शिवकांत वागले को ये समझ आया कि इस डायरी में विक्रम सिंह ने शायद अपने अतीत के बारे में ही लिखा है। ख़ैर वागले ने डायरी में लिखे विक्रम सिंह के अतीत को पढ़ना शुरू किया।

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#4
अध्याय - 02
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अब तक,,,,

उस पहले पेज पर लिखे मजमून को पढ़ने के बाद शिवकांत वागले को ये समझ आया कि इस डायरी में विक्रम सिंह ने शायद अपने अतीत के बारे में ही लिखा है। ख़ैर वागले ने डायरी में लिखे विक्रम सिंह के अतीत को पढ़ना शुरू किया।

अब आगे,,,,


20 दिसंबर 1998..

इस तारीख़ को मैं कभी नहीं भूल सकता। इस तारीख़ ने मेरी ज़िन्दगी को मुकम्मल तौर पर बदल दिया था। मैंने सपने में भी नहीं सोचा था कि मेरी सबसे बड़ी चाहत किसी चमत्कार के जैसे पूरी हो जाएगी। वैसे तो हर इंसान किसी न किसी चीज़ की चाहत रखता है और जीवन भर इसी कोशिश में लगा रहता है कि जिस चीज़ की वो चाहत किए बैठा है वो पूरी हो जाए। जब किसी इंसान की चाहत पूरी हो जाती है तो यकीनन उसे स्वर्ग मिल जाने जितनी ख़ुशी महसूस होने लगती है। इंसान अपनी उस ख़ुशी को अलग अलग तरीके से दुनियां वालों के सामने ज़ाहिर भी करता है।

ये खुशियां और ये चाहतों का पूरा होना हर किसी के नसीब में नहीं होता। कभी कभी तो इंसान अपनी ख़ुशियों और चाहतों के पूरा होने के इंतज़ार में सारी उम्र गुज़ार देता है और एक दिन वो इस दुनियां से चला भी जाता है। हालांकि इंसान की ख़्वाहिशें और चाहतें जीवन भर किसी न किसी चीज़ की बनी ही रहती हैं लेकिन कुछ ख़ास ख़्वाहिशें ऐसी होती हैं जिनको पाने की इंसान के दिल में एक अलग ही ललक रहती है। इंसान अपनी चाहतों को पूरा करने के लिए जाने कैसे कैसे जतन करता है जिसमें उसका अपना भाग्य और नसीब भी जुड़ा होता है। अगर नसीब में नहीं लिखा तो सारी उम्र हमारी चाहत पूरी नहीं हो पाती और अगर नसीबों में है तो एक दिन ज़रूर हमारी चाहत पूरी हो जाती है। ख़ैर हर किसी की तरह मेरे भी दिल में एक चाहत थी और मैं हमेशा इसी कोशिश में लगा रहता था कि किसी तरह मेरी वो चाहत पूरी हो जाए लेकिन मेरी चाहत के पूरा होने के कभी कोई आसार नज़र नहीं आए। अपनी उस चाहत के पूरा न होने की वजह से मैं एकदम से निराश सा हो गया था। मेरे ही जैसे ख़राब नसीब वाले मेरे दोस्त भी थे। वो भी मेरी तरह अपनी चाहत के पूरा होने के लिए ललक रहे थे।

कहते हैं कि हम जो सोचते हैं या हम जो चाहते हैं वो अक्सर नहीं होता बल्कि आपके लिए ईश्वर ने जो सोचा होता है वही होता है। क्योंकि इस संसार में सब कुछ उसी की मर्ज़ी से होता है। लोग तो ये भी कहते हैं कि ईश्वर हमारे लिए जो भी करता है वो अच्छे के लिए ही करता है लेकिन इस बात में कितनी सच्चाई है ये बात इस संसार का हर ब्यक्ति जानता है।

20 दिसंबर की शाम मैं अपने दोस्तों के साथ क्लब गया था। क्लब में हम सबने थोड़ी बहुत बियर पी और हमेशा की तरह उन लड़कियों को ताड़ने लगे जो बाकी लड़कों के साथ डांस फ्लोर पर डांस कर रहीं थी। छोटे छोटे कपड़ों में वो सुन्दर लड़कियां गज़ब ढा रहीं थी और जब गाने और ताल के रिदम पर उनकी कमर लचकती तो ऐसा लगता जैसे दिल पर बिजली गिरने लगी हो। उस वक़्त तो हालत ही ख़राब हो जाती थी जब उन लड़कियों के ब्वाय फ्रेंड उनकी गोल गोल गांड को दोनों हाथों से पकड़ कर ज़ोर से भींचने लगते थे। एक दूसरा लड़का अपनी गर्ल फ्रेंड की चूचियों को मुट्ठी में भर कर मसलता नज़र आता तो कोई तीसरा अपनी गर्ल फ्रेंड के होठों को अपने मुँह में ऐसे भर लेता था जैसे वो खा ही जाएगा। ये मंज़र देख कर बियर का तो घंटा कोई नशा नहीं होता था लेकिन उस गरम मंज़र को देख कर मेरे साथ साथ मेरे सभी दोस्तों के लंड ज़रूर औकात से बाहर होने लगते थे। उसके बाद हम सब क्लब के बाहर अँधेरे में एक तरफ जाते और मुट्ठ मार कर अपने अपने लंड को शांत कर लेते।

ऐसा नहीं था कि हम लोग दिखने में सुन्दर नहीं थे या हमारी पर्सनालिटी अच्छी नहीं थी, बल्कि वो तो अच्छी खासी थी। हम ऐसे परिवारों से ताल्लुक रखते थे जिन्हें हाई क्लास तो नहीं पर अमीर परिवारों में ज़रूर गिना जाता था। मेरे जैसे अमीर घर के लड़के हर रोज़ एक नई लड़की को रगड़ रगड़ कर चोद सकते थे किन्तु इस मामले में हमारी किस्मत बेहद ख़राब थी। किस्मत ख़राब का मतलब ये है कि हम सब बेहद शर्मीले स्वभाव के थे। दूर से किसी लड़की को देख कर हम आपस में चाहे जितनी ही गन्दी बातें करते रहें लेकिन किसी लड़की से खुल कर इस मामले में बात करने में हम लोगों की फट के हाथ में आ जाती थी। कॉलेज और कॉलेज लाइफ में बड़ी मुश्किल से एक दो लड़कियों से हमारी दोस्ती हुई थी लेकिन मामला दोस्ती तक ही रहा। हालांकि उन लड़कियों से दोस्ती का वो रिश्ता भी ज़्यादा समय तक का नहीं रह पाया था क्योंकि हमारे स्वभाव की वजह से कुछ ही समय में इन लड़कियों ने हमसे किनारा कर लिया था।

हम सभी दोस्त एक साथ बैठ कर इस बारे में बातें करते और यही फ़ैसला करते कि अब से हम शर्माएंगे नहीं बल्कि हर लड़की को लाइन मरेंगे लेकिन जब इस फ़ैसले के तहत ऐसा करने की बारी आती तो हम लोगों की फिर से गांड फट जाती थी। अपने इस शर्मीले स्वभाव की वजह से हम लोग अपने आपसे बेहद गुस्सा रहते लेकिन कुछ कर नहीं सकते थे। कॉलेज कॉलेज के बाकी लड़के हमारा मज़ाक उड़ाते थे। ईश्वर की दया से पढ़ाई लिखाई पूरी हुई और हम लोग अपने अपने घर आ गए। हमारे माता पिता भी जानते थे कि उनके बच्चों का स्वभाव कैसा है और इसके लिए वो हमें समझाते भी थे लेकिन इसके बावजूद हमारा ऐसा स्वभाव हमारा पीछा नहीं छोड़ता था।
उस रात क्लब से हम सभी दोस्त गर्म हो कर बाहर निकले और अँधेरे में एक जगह जा कर हमने मुट्ठ मार कर अपने अपने लंड को शांत किया। अंदर की गर्मी लंड के रास्ते निकाल कर हम लोग घर की तरफ चल दिए। मेरे तीनों दोस्तों के पास अपनी अपनी मोटर साइकिल थी और उस रात भी हम अपनी अपनी मोटर साइकिल में ही क्लब से आए थे। कुछ दूर साथ साथ आने के बाद मेरे बाकी दोस्त अपने अपने घरों की तरफ मुड़ गए और मैं अपने घर की तरफ चल दिया।

ठंड का महीना और ऊपर से कोहरे की हल्की धुंध में मोटर साइकिल की रफ़्तार ज़्यादा तेज़ नहीं थी। क्लब से मेरे घर की दूरी मुश्किल से दो किलो मीटर थी। मैं मोटर साइकिल चलाते हुए यही सोच रहा था कि काश क्लब की वो सारी सुन्दर लड़कियां इस वक़्त मेरे सामने आ जाएं और अपने जिस्म के बाकी बचे हुए कपड़े उतार कर मुझसे कहें कि____'आओ विक्रम, हमारे जिस्म को जैसे चाहो भोग लो।'

बार बार आँखों के सामने उन लड़कियों की मटकती गांड और उछलती चूचियां नज़र आ रहीं थी। अभी मैं इन सब में खोया ही हुआ था कि तभी मुझे ज़ोर का झटका लगा और मैं मोटर साइकिल के साथ ही सड़क पर गिर गया। सड़क में शायद कहीं पर स्पीड ब्रेकर था जिस पर मैंने ध्यान नहीं दिया था और जैसे ही स्पीड ब्रेकर पर मोटर साइकिल का अगला पहिया चढ़ा तो मुझे ज़ोर का झटका लगा जिससे हैंडल से मेरे हाथ छूट गए और फिर मैं कुछ न कर सका। ये तो शुक्र था कि मोटर साइकिल की रफ़्तार ज़्यादा नहीं थी वरना गहरी चोंट लग जाती मुझे। फिर भी एक घुटना छिल ही गया था और बायां कन्धा पक्की सड़क पर ज़ोर से लगने की वजह से दर्द करने लगा था।

उस वक़्त सड़क पर कोई नहीं था, और आस पास भी कोहरे की वजह से कुछ दिख नहीं रहा था। हालांकि कोहरे में दूर दूर कहीं हल्की रौशनी का आभास ज़रूर हो रहा था। ख़ैर मैं किसी तरह उठा और चलने की कोशिश की तो घुटने में तेज़ दर्द हुआ जिससे मेरे हलक से कराह निकल गई। मैं फ़ौरन ही सड़क पर बैठ गया और आस पास देखने लगा। कोहरे की वजह से मुझे इस बात का भी डर लगने लगा था कि सड़क पर किसी तरफ से अचानक कोई वाहन न आ जाए और मुझे कुचल दे इस लिए मैं फिर से उठा और दर्द को सहते हुए सड़क के किनारे पर आ कर बैठ गया।

सड़क के किनारे बैठे हुए अभी मुझे कुछ ही देर हुई थी कि तभी मुझे ऐसा आभास हुआ जैसे मेरे पीछे कोई खड़ा है। इस एहसास के साथ ही मेरे जिस्म का रोयां रोयां कांप गया और मेरी धड़कनें तेज़ हो गईं। मैंने हिम्मत कर के अपनी गर्दन को पीछे की तरफ घुमाया तो जिस शख़्स पर मेरी नज़र पड़ी उसे देखते ही मैं बुरी तरह उछल पड़ा और साथ ही मेरे मुख से चीख निकलते निकलते रह गई। मेरे पीछे एक ऐसा शख़्स खड़ा था जिसका समूचा बदन काले कपड़ों से ढंका हुआ था, यहाँ तक कि उसका चेहरा भी काले नक़ाब में छुपा हुआ था। सिर पर गोलाकार काली टोपी थी जो उसके अग्रिम ललाट की तरफ काफी ज़्यादा झुकी हुई थी।

"क..क..कौन हो तुम?" मारे दहशत के मैंने उससे पूछने की हिम्मत दिखाई तो उसने अजीब सी आवाज़ में कहा____"मैं वो हूं जो तुम्हारी हर इच्छा को पूरी कर सकता है।"

"क्..क्या मतलब??" मैं उसकी बात सुन कर चकरा सा गया था।
"मतलब समझाने के लिए ये सही जगह नहीं है।" उस रहस्यमयी शख़्स ने अपनी बहुत ही अजीब आवाज़ में कहा____"उसके लिए तुम्हें मेरे साथ एक ख़ास जगह पर चलना होगा।"

उसकी बात सुन कर अभी मैं कुछ कहने ही वाला था कि तभी जैसे क़यामत आ गई। उस रहस्यमयी शख़्स का एक हाथ बिजली की तरह मेरी तरफ लपका और मेरे हलक से घुटी घुटी सी चीख निकल गई। मेरी कनपटी के किसी ख़ास हिस्से पर उसने ऐसा वार किया था कि मुझे बेहोश होने में ज़रा भी देरी नहीं हुई।

☆☆☆

जब मेरी आँखें खुलीं तो मैंने अपने आपको एक ऐसी जगह पर पाया जो मेरे लिए निहायत ही अजनबी थी। मैं एक आलीशान कमरे में एक आलीशान बेड पर पड़ा हुआ था। मेरे जिस्म में जो कपड़े थे वो अब नहीं थे बल्कि उन कपड़ों की जगह दूसरे कपड़े थे। ये सब देख कर मैं आश्चर्यचकित रह गया। मुझे समझ में नहीं आया कि मैं एकदम से यहाँ कैसे आ गया? तभी मुझे ख़याल आया कि मुझे एक रहस्यमयी शख़्स ने बेहोश किया था। इस बात के याद आते ही मेरे अंदर घबराहट उभर आई। मैं सोचने लगा कि वो रहस्यमयी शख़्स कौन था और मैं यहाँ कैसे पहुंचा? मुझे एकदम से ख़याल आया कि कहीं मैं कोई सपना तो नहीं देख रहा? मैंने अपनी आँखों को मल मल कर बार बार चारों तरफ देखा किन्तु सच्चाई यही थी कि मैं एक आलीशान जगह पर था। मेरे ज़हन में सवालों की जैसे बाढ़ सी आ गई। उस आलीशान कमरे में मेरे अलावा दूसरा कोई नहीं था। कमरे का दरवाज़ा बंद था। ये देख कर मैं एक झटके से उठा और बेड से नीचे उतर आया। नीचे उतरते ही मैं बुरी तरह चौंका, क्योंकि एकदम से मुझे याद आया कि बेहोश होने से पहले मैं अपनी मोटर साइकिल से गिर गया था और मेरा एक घुटना छिल गया था जिसकी वजह से मुझसे चला नहीं जा रहा था किन्तु इस वक़्त मुझे ज़रा भी दर्द नहीं हो रहा था। मैंने फ़ौरन ही झुक कर अपने पैंट को पकड़ कर ऊपर सरकाया तो देखा मेरे घुटने पर दवा के साथ साथ पट्टी लगी हुई थी। इसका मतलब यहाँ लाने के बाद मेरे ज़ख्म पर मरहम पट्टी की गई थी किन्तु सवाल ये था कि ऐसा किसने किया होगा, क्या उस रहस्यमयी शख़्स ने? आख़िर वो मुझसे चाहता क्या है और यहाँ क्यों ले कर आया है मुझे?

मैं ये सब सोच ही रहा था कि तभी कमरे का दरवाज़ा खुला और एक ऐसा शख़्स कमरे में दाखिल हुआ जिसके समूचे जिस्म पर सफ़ेद लिबास था, यहाँ तक कि उसका चेहरा भी सफ़ेद रंग के नक़ाब में ढंका हुआ था। नक़ाब के अंदर से सिर्फ उसकी आँखें ही झलक रहीं थी। मैं उस सफ़ेदपोश को देख कर एक बार फिर से बुरी तरह हैरान रह गया था। आख़िर ये चक्कर क्या था कि एक बार काले कपड़े वाला मिलता है और अब ये सफ़ेद कपड़े में एक शख़्स आ गया है?

"अब तुम कौन हो भाई?" मैंने उस शख़्स को घूरते हुए पूछा तो उसने अपनी सामान्य आवाज़ में कहा____"एक ऐसा शख़्स जिसके बारे में जानना तुम्हारे लिए ज़रूरी नहीं है।" उस सफ़ेदपोश ने अजीब भाव से कहा____"तुम्हें इसी वक़्त मेरे साथ चलना होगा।"

"लेकिन कहां?" मैं उसकी बात सुन कर उलझ सा गया।
"उन्हीं के पास।" सफ़ेद कपड़े वाले ने कहा____"जो तुम्हें यहाँ पर ले कर आए हैं? क्या तुम जानना नहीं चाहोगे कि तुम्हें यहाँ किस लिए लाया गया है?"

सफ़ेदपोश ने एकदम सही कहा था। मैं यही तो जानना चाहता था कि मुझे यहाँ किस लिए लाया गया है? मैंने उस सफ़ेदपोश की बात पर हां में सिर हिलाया और उसकी तरफ बढ़ चला। मुझे अपनी तरफ आता देख वो शख़्स वापस पलटा और दरवाज़े के बाहर निकल गया।

उस सफ़ेदपोश के पीछे पीछे चलते हुए मैं कुछ ही देर में एक ऐसी जगह पहुंचा जहां पर बल्ब की रोशनी बहुत ही कम थी। हर तरफ मौत की तरह सन्नाटा फैला हुआ था। मैं हर तरफ देखता हुआ आया था किन्तु कहीं पर भी दूसरा आदमी नज़र नहीं आया था। पता नहीं ये कौन सी जगह थी लेकिन इतना ज़रूर था कि ये जगह थी बड़ी कमाल की और बेहद हसीन भी।

वो एक लम्बा चौड़ा हाल था जिसमें नीम अँधेरा था और उसी नीम अँधेरे में हाल के दूसरे छोर पर वो रहस्यमयी शख़्स एक बड़ी सी कुर्सी पर बैठा हुआ था जो मुझे पहले मिला था और जिसने मुझे बेहोश किया था। इस वक़्त भी उसका समूचा जिस्म काले कपड़ों में ढंका हुआ था और चेहरे पर काला नक़ाब था।

"हमारा ख़याल है कि तुम्हें यहाँ तक चल कर आने में ज़रा भी तक़लीफ नहीं हुई होगी।" उस रहस्यमयी शख़्स की बहुत ही अजीब सी आवाज़ हाल में गूंजी____"और हां, हमें इस बात के लिए माफ़ करना कि हम तुम्हें इस तरह से यहाँ ले कर आए।"

"मुझे ये बताओ कि तुम हो कौन?" मैं अंदर से डरा हुआ तो था किन्तु फिर भी हिम्मत कर के पूछ ही बैठा था____"और ये भी बताओ कि मुझे यहाँ क्यों ले कर आए हो? तुम शायद जानते नहीं हो कि मैं किसका बेटा हूं? अगर जानते तो मुझे इस तरह यहाँ लाने की हिमाक़त नहीं करते।"

"हमें तुम्हारे बारे में सब कुछ पता है लड़के।" उस रहस्यमयी शख़्स ने कहा____"संक्षेप में तुम ये समझ लो कि हमसे किसी के भी बारे में कुछ भी छुपा नहीं है। तुम्हारी जानकारी के लिए हम तुम्हें ये भी बता देते हैं कि हम किसी का भी कुछ भी बिगाड़ सकते हैं लेकिन हमारा कोई भी कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता।"

"पर मुझे इस तरह यहाँ लाने का क्या मतलब है?" उसकी बात सुनकर मेरे जिस्म में डर की वजह से झुरझुरी सी हुई थी, किन्तु फिर मैंने ख़ुद को सम्हालते हुए कहा____"मैंने तो ऐसा कुछ भी नहीं किया है जिसके लिए कोई मुझे इस तरह से यहाँ ले आए।"

"तो हमने कब कहा कि तुमने कुछ किया है?" उस रहस्यमयी शख़्स ने कहा____"जैसा कि हमने तुम्हें उस वक़्त भी बताया था कि हम वो हैं जो तुम्हारी हर इच्छा को पूरी कर सकते हैं, इस लिए अब तुम बताओ कि क्या तुम अपनी हर इच्छा को पूरा करना चाहोगे?"

"क्या तुम कोई भगवान हो?" मैंने उसकी तरफ घूरते हुए हिम्मत करके कहा____"जो मेरी हर इच्छा को पूरा कर सकते हो?"
"ऐसा ही समझ लो।" कुर्सी पर बैठे उस रहस्यमयी शख़्स ने अपनी अजीब आवाज़ में कहा____"हम एक तरह के भगवान ही हैं जो किसी की भी इच्छा को पूरी कर सकते हैं।"

"पर तुम मेरी इच्छाओं को क्यों पूरा करना चाहते हो?" मैंने कहा____"मैंने तो तुमसे या किसी से भी नहीं कहा कि मेरी इच्छाओं को पूरा कर दो।"
"तुमने मुख से भले ही नहीं कहा।" उस शख़्स ने कहा____"किन्तु हर पल तो तुम यही सोचते रहते हो न कि काश तुम्हारी सबसे बड़ी इच्छा पूरी हो जाए?"

"तु...तुम्हें ये कैसे पता?" मैं उसकी बात सुन कर बुरी तरह चौंका था।
"हमने बताया न कि हम सबके बारे में सब कुछ जानते हैं।" उसने कहा_____"ख़ैर तुम बताओ कि क्या तुम अपनी सबसे बड़ी इच्छा को पूरा करना चाहोगे?"

मैं उस रहस्यमयी शख़्स की बातें सुन कर चकित तो था ही किन्तु मन ही मन ये भी सोचने लगा था कि क्या ये सच में मेरी सबसे बड़ी इच्छा को पूरा कर देगा? यानी क्या ये मेरी इस इच्छा को पूरा कर सकता है कि मैं किसी सुन्दर लड़की को अपनी मर्ज़ी से जैसे चाहूं भोग सकूं? ये सब सोचते हुए जहां एक तरफ मेरे मन के किसी कोने में ख़ुशी के लड्डू फूटने लगे थे वहीं एक तरफ मैं ये भी सोचने लगा कि आख़िर ये शख़्स मेरी सबसे बड़ी इच्छा को बिना किसी स्वार्थ के कैसे पूरा कर सकता है? मतलब मेरे लिए ऐसा करने के पीछे ज़रूर इसका भी कोई न कोई मकसद या फ़ायदा होगा लेकिन क्या????

"क्या हुआ?" मुझे ख़ामोशी से कुछ सोचता देख उस रहस्यमयी शख़्स ने कहा____"क्या सोचने लगे?"
"म..मैं सोच रहा हूं कि तुम मेरे लिए ऐसा क्यों करना चाहते हो?" मैंने हड़बड़ा कर कहा____"इतना तो मैं भी जानता हूं कि इस दुनियां में कोई भी इंसान बिना किसी स्वार्थ के किसी के लिए कुछ भी नहीं करता। फिर तुम मेरे लिए ऐसा क्यों करोगे भला? मतलब साफ़ है कि मेरे लिए ऐसा करने के पीछे तुम्हारा भी अपना कोई स्वार्थ है या फिर कोई मकसद है।"

"बिल्कुल ठीक कहा तुमने।" उस शख़्स ने कहा_____"इस दुनियां में कोई भी इंसान बिना किसी मतलब के किसी के लिए कुछ भी नहीं करता। अगर हम तुम्हारे लिए ऐसा करेंगे तो ज़ाहिर है कि इसके पीछे कहीं न कहीं हमारा भी कोई न कोई स्वार्थ ही होगा।"

"क्या मैं जान सकता हूं कि ऐसा करने के पीछे तुम्हारा क्या स्वार्थ है?" मैंने हिम्मत कर के पूछा_____"कहीं ऐसा तो नहीं कि तुम मुझे किसी ऐसे संकट में फंसा देना चाहते हो जिससे मेरी लाइफ़ ही बर्बाद हो जाए?"

"तुम्हारा ऐसा सोचना बिलकुल जायज़ है लड़के।" उस शख़्स ने कहा_____"लेकिन यकीन मानो हमारा ऐसा करने का कोई इरादा नहीं है। तुम किसी भी तरह के संकट में नहीं फंसोगे और ना ही इससे तुम्हारी लाइफ़ बर्बाद होगी। बल्कि ऐसा करने से तुम्हें मज़ा ही आएगा और तुम्हारी लाइफ़ भी ऐशो आराम वाली हो जाएगी।"

"बड़ी अजीब बात है।" मैंने कहा____"क्या दुनियां में ऐसा भी कहीं होता है?"
"दुनियां की बात मत करो लड़के।" उस रहस्यमयी शख़्स ने कहा_____"अभी तुमने दुनियां देखी ही कहां है? तुम्हें तो अंदाज़ा भी नहीं है कि इस दुनियां में क्या क्या होता है। तुम जिन चीज़ों की कल्पना भी नहीं कर सकते वो सब चीज़ें इस दुनियां में कहीं न कहीं होती हैं। ख़ैर छोड़ो इस बात को और अच्छी तरह सोच कर बताओ कि क्या तुम अपनी सबसे बड़ी इच्छा को पूरा करते हुए अपनी लाइफ़ को ऐशो आराम वाली बनाना चाहोगे?"

"भला इस दुनियां में ऐसा कौन होगा जो अपनी लाइफ़ को ऐशो आराम वाली न बनाना चाहे?" मैंने कहा____"लेकिन मैं तुम पर भरोसा क्यों करूं? कल को अगर कोई लफड़ा हो गया तो मैं तो कहीं का नहीं रहूंगा? मेरे माता पिता का क्या होगा? मैं उनकी इकलौती औलाद हूं? ऐसे काम की वजह से अगर उनका सिर नीचा हो गया तो मैं कैसे उन्हें अपना चेहरा दिखा पाऊंगा?"

"तुम इस बात से बेफिक्र रहो विक्रम।" रहस्यमयी शख़्स ने मेरा नाम लेते हुए कहा_____"तुम्हारे ऐसे काम की वजह से तुम्हारी फैमिली पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। अभी तुम ये जानते ही नहीं हो कि हम कौन हैं और हम किस तरह की संस्था चलाते हैं।"

"क्या मतलब???" मेरे माथे पर बल पड़ा____"संस्था चलाने से क्या मतलब है तुम्हारा?"
"हम एक ऐसी संस्था चलाते हैं।" उस शख़्स ने कहा_____"जो औरतों और मर्दों की सेक्स नीड को पूरा करती है। दुनियां के किसी भी कोने में चले जाओ, हर जगह औरत और मर्द की ढेर सारी समस्याओं में से एक समस्या सेक्स भी है। कोई मर्द अपनी पत्नी से खुश नहीं है तो कोई पत्नी अपने पति से खुश नहीं है। इससे होता ये है कि हर औरत और मर्द अपनी सेक्स नीड को पूरा करने के लिए घर से बाहर अपने लिए पार्टनर ढूंढ़ते हैं। हालांकि औरतों और मर्दों के ऐसा करने से अक्सर उनकी मैरिड लाइफ़ ख़तरे में पड़ जाती है लेकिन इंसान करे भी तो क्या करे? ख़ैर, हमारी संस्था गुप्त रूप से औरतों और मर्दों की सेक्स नीड को पूरा करने के लिए पार्टनर प्रोवाइड करती है। हमारी संस्था के एजेंट्स गुप्त रूप से ऐसे लोगों के पास उनकी सेक्स नीड को पूरा करने के लिए जाते हैं जिन्हें इसकी ज़रूरत पड़ती है।"

"ये तो बड़ी ही अजीब बात है।" मैंने चकित भाव से कहा_____"लेकिन एक सवाल है मेरे मन में और वो कि जिनको अपनी सेक्स नीड को पूरा करने के लिए पार्टनर की ज़रूरत होती है वो लोग इस संस्था से सम्बन्ध कैसे बनाते हैं? क्योंकि तुम्हारे अनुसार तो ये संस्था गुप्त ही है न, जिसके बारे में बाहरी दुनियां को पता ही नहीं है कि ऐसी कोई संस्था भी है।"

"सवाल अच्छा है।" रहस्यमयी शख़्स ने कहा____"किन्तु इसका जवाब ये है कि इसके लिए हमारी संस्था के एजेंट्स गुप्त रूप से ऐसे लोगों का पता लगाते रहते हैं जिन्हें अपने लिए पार्टनर की ज़रूरत होती है। दुनियां में बहुत से ऐसे लोग होते हैं जो अपना टेस्ट बदलने के लिए दूसरी औरतों या दूसरे मर्दों से सेक्स करने की चाह रखते हैं। हमारी संस्था में ऐसे लोगों के बारे में पता लगाने का काम दूसरे एजेंट्स करते हैं, जबकि सेक्स की सर्विस देने वाले एजेंट्स दूसरे होते हैं।"

"ओह! तो इसका मतलब ये हुआ कि तुम्हें तुम्हारे एजेंट्स के द्वारा ही मेरे बारे में पता चला है।" मैंने गहरी सांस लेते हुए कहा तो उस शख़्स ने कहा____"ज़ाहिर सी बात है। जैसा कि हमने अभी तुम्हें बताया कि ऐसे लोगों का पता लगाने के लिए हमारी संस्था के दूसरे एजेंट्स होते हैं। उन्हीं एजेंट्स के पता करने का नतीजा ये हुआ है कि इस वक़्त तुम यहाँ पर हो।"

"अगर मैं इसके लिए मना कर दूं तो?" मैंने कुछ सोचते हुए ये कहा तो उस शख़्स ने कहा____"वो तुम्हारी मर्ज़ी की बात है। इसके लिए तुम्हें मजबूर नहीं किया जाएगा लेकिन हां अगर तुम अपनी मर्ज़ी से एक बार हमारी इस संस्था से जुड़ कर इसके एजेंट बन गए तो फिर तुम इस संस्था को छोड़ कर कहीं नहीं जा सकते।"

"ऐसा क्यों?" मैंने न समझने वाले भाव से कहा।
"दुनियां में हर चीज़ के अपने नियम कानून होते हैं।" उस शख़्स ने कहा____"उसी तरह हमारी इस संस्था के भी कुछ नियम कानून हैं जिनका पालन करना संस्था के हर एजेंट का फ़र्ज़ है। संस्था के नियम कानून तोड़ने पर शख़्त से शख़्त सज़ा भी दी जाती है। हालांकि आज तक कभी ऐसा हुआ नहीं है कि हमारी संस्था के किसी एजेंट ने कोई नियम कानून तोड़ा हो या अपनी मर्ज़ी से ऐसा कुछ किया हो जो संस्था के नियम कानून के खिलाफ़ रहा हो।"

"इसका मतलब ये हुआ कि इस संस्था से जुड़ने के बाद इंसान अपनी मर्ज़ी से कुछ भी नहीं कर सकता?" मैंने ये कहा तो रहस्यमयी शख़्स ने कहा_____"नियम कानून इस लिए बनाए जाते हैं ताकि इंसान किसी चीज़ का नाजायज़ फायदा न उठाए और अनुशासित ढंग से अपना हर काम करे। ये नियम कानून हर जगह और हर क्षेत्र में बने होते हैं। बिना नियम कानून के कोई भी क्षेत्र हो वो बहुत जल्द ही गर्त में डूब जाता है।"

रहसयमयी शख़्स की बातें सुन कर इस बार मैं कुछ न बोला। ये अलग बात है कि बार बार मेरे ज़हन में यही ख़याल उभर रहा था कि मुझे इस शख़्स के कहने पर इस संस्था से जुड़ जाना चाहिए। ऐसा इस लिए क्योंकि इस संस्था से जुड़ने के बाद मेरी सबसे बड़ी चाहत पूरी हो जाएगी। यानी एजेंट के रूप में मैं किसी न किसी लड़की या औरत की सेक्स नीड को पूरा करने के लिए जाऊंगा और फिर जैसे चाहूंगा वैसे उन्हें भोगूंगा। इस ख़याल के साथ ही मेरा मन बल्लियों उछलने लगा था। साला कहां आज तक मेरी किसी लड़की से बात करने में भी गांड फट के हाथ में आ जाती थी और कहां अब इस संस्था से जुड़ने के बाद मैं बिना किसी बाधा के किसी लड़की या औरत को सहज ही भोग सकता था। मुझे कहीं से भी इस काम में अपने लिए कोई लफड़ा नज़र नहीं आ रहा था बल्कि मेरे लिए तो हर बार एक नई और अलग चूत मारने को मिलने वाली थी। हालांकि मेरे लिए अभी भी एक समस्या ये थी कि मैं स्वभाव से शर्मीला था जिसकी वजह से मैं लड़की ज़ात से खुल कर बात नहीं कर पाता था किन्तु मैं जानता था कि इस संस्था से जुड़ने के बाद मेरी ये समस्या भी दूर हो जाएगी।

"तुम चाहो तो इसके बारे में सोचने के लिए समय ले सकते हो।" मुझे चुप देख उस शख़्स ने कहा_____"तुम्हें इस काम के लिए किसी भी तरह से मजबूर नहीं किया जाएगा। इस संस्था से जुड़ने का फ़ैसला सिर्फ तुम्हारा ही होगा, लेकिन संस्था से जुड़ने के बाद फिर तुम इस संस्था को छोड़ने के बारे में सोचोगे भी नहीं और ना ही संस्था के नियम कानून के खिलाफ़ जा कर अपनी मर्ज़ी से कुछ करोगे।"

"ठीक है।" मैंने गहरी सांस लेते हुए कहा____"मुझे इस बारे में सोचने के लिए दो दिन का समय चाहिए। वैसे, इस संस्था से जुड़ने के बाद ऐसा भी तो हो सकता है कि अपने परिवार के बीच रहते हुए मुझे संस्था के लिए काम करने में समस्या होने लगे। उस सूरत में मैं क्या करुंगा?"

"इस तरह की समस्या हमारे बाकी एजेंट्स को भी थी।" रहस्यमयी शख़्स ने कहा_____"लेकिन ये भी सच है कि आज तक उन्हें ऐसी समस्या का सामना नहीं करना पड़ा है। क्योंकि हमारी संस्था का काम गुप्त रूप से करने का है और संस्था के नियम कानून के अनुसार संस्था का कोई भी एजेंट्स न तो अपने बारे में किसी को पता चलने देता है और ना ही उसे ऐसी किसी सिचुएशन में फंसने दिया जाता है जिसके चलते एजेंट के साथ साथ हमारी संस्था को भी कोई नुकसान पहुंच सके। इस संस्था की गोपनीयता का सबसे बड़ा उदाहरण यही है कि संस्था का कोई भी एजेंट संस्था के दूसरे एजेंट्स के बारे में कुछ नहीं जानता। एक तरह से तुम ये समझो कि ये एक सीक्रेट सर्विस है, यानि कि एक गुप्त नौकरी। जिसके बारे में किसी को भी पता नहीं होता और ना ही किसी को पता चलने दिया जाता है। संस्था के साथ साथ संस्था के हर एजेंट्स की गोपनीयता का सबसे पहले ख़याल रखा जाता है।"

"वैसे इस संस्था का नाम क्या है?" मैंने जिज्ञासावश पूछा तो कुछ पल रुकने के बाद रहस्यमयी शख़्स ने कहा_____"संस्था के नाम के बारे में तुम्हें तभी बताया जाएगा जब तुम इस संस्था का एजेंट बनने के लिए पूरी तरह से तैयार हो जाओगे। ख़ैर तुमने सोचने के लिए दो दिन का वक़्त मांगा है इस लिए जाओ और आराम से सोचो इस बारे में।"

"तो क्या अब मैं अपने घर जा सकता हूं?" मैंने पूछा तो उस शख़्स की आवाज़ आई____"बेशक, तुम अपने घर ही जाओगे किन्तु उसी हालत में जिस हालत में तुम्हें यहाँ पर लाया गया था।"

"यहां से जाने के बाद।" मैंने कुछ सोचते हुए कहा_____"अगर मैंने लोगों को इस संस्था के बारे में बता दिया तो?"
"शौक से बता देना।" उस रहस्यमयी शख़्स ने कहा_____"लेकिन किसी को भी बताने से पहले एक बार ज़रा खुद भी सोचना कि तुम्हारी बात का यकीन कौन करेगा?"

उस रहस्यमयी शख़्स की ये बात सुन कर मुझे भी एहसास हुआ कि यकीनन मेरी इस बात पर भला कौन यकीन करेगा कि इस दुनियां में ऐसी कोई संस्था भी हो सकती है। एक तरह से इस बारे में लोगों को बता कर मैं अपना ही मज़ाक उड़ाऊंगा। ख़ैर अभी मैं ये सोच ही रहा था कि तभी मुझे मेरे पीछे से किसी के आने की आहट हुई तो मैंने पलट कर पीछे देखना चाहा लेकिन उसी पल जैसे क़यामत टूट पड़ी मुझ पर। एक बार फिर से मुझे बड़ी ही सफाई से बेहोश कर दिया गया था।

जब मुझे होश आया तो मैं उसी सड़क के किनारे पड़ा हुआ था जहां पर मैं पहली बार बेहोश हुआ था। मेरे बदन पर इस बार मेरे ही कपड़े थे। ये देख कर मैं एक बार फिर से चकित रह गया। मेरी नज़र कुछ ही दूरी पर खड़ी मेरी मोटर साइकिल पर पड़ी। मोटर साइकिल को किसी ने सड़क से हटा कर ऐसी जगह पर खड़ा कर दिया था जहां पर आसानी से किसी की नज़र नहीं पड़ सकती थी। कुछ पलों के लिए तो मुझे ऐसा लगा जैसे अभी तक मैं कोई ख़्वाब देख रहा था और जब आँख खुली तो मैं हक़ीक़त की दुनिया में आ गया हूं। आस पास पहले की ही भाँति कोहरे की हल्की धुंध थी और अब मुझे ठण्ड भी प्रतीत हो रही थी। कुछ देर मैं बेहोश होने से पूर्व की घटना के बारे में याद कर के सोचता रहा, उसके बाद उठा और अपनी मोटर साइकिल में बैठ कर घर की तरफ बढ़ गया।

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#5
अध्याय - 03
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अब तक,,,,,

जब मुझे होश आया तो मैं उसी सड़क के किनारे पड़ा हुआ था जहां पर मैं पहली बार बेहोश हुआ था। मेरे बदन पर इस बार मेरे ही कपड़े थे। ये देख कर मैं एक बार फिर से चकित रह गया। मेरी नज़र कुछ ही दूरी पर खड़ी मेरी मोटर साइकिल पर पड़ी। मोटर साइकिल को किसी ने सड़क से हटा कर ऐसी जगह पर खड़ा कर दिया था जहां पर आसानी से किसी की नज़र नहीं पड़ सकती थी। कुछ पलों के लिए तो मुझे ऐसा लगा जैसे अभी तक मैं कोई ख़्वाब देख रहा था और जब आँख खुली तो मैं हक़ीक़त की दुनिया में आ गया हूं। आस पास पहले की ही भाँति कोहरे की हल्की धुंध थी और अब मुझे ठण्ड भी प्रतीत हो रही थी। कुछ देर मैं बेहोश होने से पूर्व की घटना के बारे में याद कर के सोचता रहा, उसके बाद उठा और अपनी मोटर साइकिल में बैठ कर घर की तरफ बढ़ गया।

अब आगे,,,,,


"साहब लंच का टाईम हो गया है।" डायरी पढ़ रहे जेलर शिवकांत वागले के कानों में जब ये वाक्य पड़ा तो उसका ध्यान टूटा और उसने चेहरा उठा कर सामने की तरफ देखा। जेल का ही एक सिपाही उसके सामने टेबल के उस पार खड़ा था। उसे देख कर वागले की आँखों में सवालिया भाव उभरे।

"वो साहब जी।" सिपाही ने झिझकते हुए कहा_____"लंच का टाईम हो गया है। मैं घर से आपके लिए खाने का टिफिन ले आया हूं।"
"ओह! हां हां।" सिपाही की बात सुन कर वागले को जैसे समय का आभास हुआ और उसने गहरी सांस लेते हुए कहा____"अच्छा किया तुमने जो मुझे बता दिया। वैसे खाने में आज क्या भिजवाया है तुम्हारी मैडम ने?"

"मैंने टिफिन खोल कर तो नहीं देखा साहब जी।" सिपाही ने चापलूसी वाले अंदाज़ से अपनी खीसें निपोरते हुए कहा____"लेकिन टिफिन के अंदर से बहुत ही बढ़िया खुशबू आ रही है। इसका यही मतलब हुआ कि मैडम ने आज बहुत ही लजीज़ खाना आपके लिए मेरे हाथों भिजवाया है।"

"अच्छा ऐसी बात है क्या।" शिवकांत वागले ने मुस्कुरा कर कहा____"चलो अच्छी बात है। तुम भी जा कर अपना लंच कर लो।"
"अच्छा साहब जी।" सिपाही ने कहा और सिर को नवा कर केबिन से बाहर चला गया।

सिपाही के जाने के बाद वागले ने ये सोच कर एक गहरी सांस ली कि विक्रम सिंह की डायरी पढ़ने में वो इतना खो गया था कि उसे वक़्त के गुज़र जाने का ज़रा भी पता नहीं चला था। ख़ैर उसने डायरी को बंद किया और उसे अपने ब्रीफ़केस में रख दिया।

लंच करने के बाद जेलर शिवकांत वागले ने कुछ देर कुर्सी में ही बैठ कर आराम किया और फिर जेल का चक्कर लगाने निकल पड़ा। उसके ज़हन में डायरी में लिखी हुई बातें ही चल रही थी। वो खुद भी गहराई से सोचता जा रहा था कि क्या सच में ऐसी कोई संस्था हो सकती है जिसके बारे में विक्रम सिंह ने अपनी डायरी में ज़िक्र किया है? वागले सोच रहा था कि इस दुनियां में कैसे कैसे लोग हैं और कैसी कैसी चीज़ें हैं जिनके बारे में सोच कर ही बड़ा अजीब सा लगता है। विक्रम सिंह की डायरी के अनुसार सी. एम. एस. यानी की चूत मार सर्विस एक ऐसे आर्गेनाइजेशन का नाम है जो गुप्त रूप से औरतों और मर्दों की सेक्स नीड को पूरा करती है। शिवकांत वागले को यकीन नहीं हो रहा था कि दुनियां में इस नाम की ऐसी कोई संस्था भी हो सकती है किन्तु वो ये भी सोच रहा था कि विक्रम सिंह जैसा शख़्स भला अपनी डायरी में ये सब झूठ मूठ का क्यों लिखेगा? अगर विक्रम सिंह का लिखा हुआ एक एक शब्द सच है तो ज़ाहिर है कि दुनियां में इस नाम की ऐसी कोई संस्था ज़रूर होगी जो औरतों और मर्दों की सेक्स नीड को पूरा करती होगी।

डायरी के अनुसार किसी रहस्यमयी नक़ाबपोश ने विक्रम सिंह को ऐसे नाम की संस्था से जुड़ने के लिए आमंत्रित किया था। अब सवाल ये है कि क्या विक्रम सिंह सच में ऐसी किसी संस्था से जुड़ा हुआ था और वो औरतों और मर्दों की सेक्स नीड को पूरा करता था? हालांकि शिवकांत वागले ने डायरी में इसके आगे का कुछ नहीं पढ़ा था किन्तु ज़हन में ऐसे ख़्यालों का उभरना स्वाभाविक ही था। वागले के मन में इसके आगे जानने की तीव्र उत्सुकता जाग उठी थी।

शाम तक शिवकांत वागले ब्यस्त ही रहा, उसके बाद वो अपने सरकारी आवास पर चला गया था। घर आया तो उसकी नज़र अपनी पचास वर्षीया पत्नी सावित्री पर पड़ी। सावित्री को देखते ही वागले के ज़हन में जाने क्यों ये ख़याल उभर आया कि क्या उसकी पत्नी के मन में अभी भी सेक्स करने की हसरत होगी या फिर दो बड़े बड़े बच्चे हो जाने के बाद उसके अंदर से सेक्स की चाहत ख़त्म हो गई होगी? सावित्री दिखने में अभी भी सुन्दर थी और उसका गोरा बदन अभी भी ऐसा था जो किसी भी नौजवान को उसकी तरफ आकर्षित होने पर मजबूर कर सकता था।

शिवकांत वागले खुद भी सेक्स का बहुत बड़ा भक्त नहीं था। बच्चों के बड़ा हो जाने पर अब वो सेक्स के बारे में ज़्यादा नहीं सोचता था और लगभग यही हाल सावित्री का भी था। हालांकि कभी कभी रात में दोनों ही एक दूसरे के अंगों से छेड़ छाड़ कर लेते थे और अगर बहुत ही मन हुआ तो सेक्स कर लेते थे। शिवकांत को कभी भी ऐसा महसूस नहीं हुआ जैसे कि उसकी पत्नी सेक्स के लिए ज़रा भी पागल हो। सावित्री को अपलक देखते हुए शिवकांत वागले को बिलकुल भी अंदाज़ा नहीं हुआ कि इस मामले में उसकी पत्नी को सेक्स की ज़रूरत है कि नहीं।

वागले जानता था कि भारत देश की नारी चाहे भले ही कितना खुली हुई हो लेकिन सेक्स के मामले में सबसे पहले पहल मर्द को ही करनी पड़ती है। आज से पहले शिवकांत वागले ने ये कभी नहीं सोचा था कि दो बच्चों का पिता हो जाने के बाद उसका अपनी पत्नी सावित्री के साथ सेक्स करना ज़रूरी है कि नहीं या फिर उसकी पत्नी को इसकी ज़रूरत पड़ती होगी या नहीं, किन्तु आज विक्रम सिंह की डायरी में ये सब पढ़ने के बाद वो थोड़ा सोच में पड़ गया था कि हर औरत मर्द अपनी सेक्स की नीड को पूरा करने के लिए या अपना टेस्ट बदलने के लिए कोई दूसरा साथी खोजती या खोजते हैं। हालांकि वो ये समझता था कि अपने देश की नारी अभी इस हद तक नहीं गई है जिससे कि वो अपने पति के अलावा किसी दूसरे मर्द के बारे में सोचे किन्तु वो ये भी समझ रहा था कि अक्सर मर्दों के सम्बन्ध किसी न किसी औरत से होते हैं तो ज़ाहिर है कि यही हाल औरतों का भी है। सीधी सी बात है कि जो मर्द किसी दूसरी औरत से सम्बन्ध रखता है तो वो उस औरत के लिए दूसरा मर्द ही तो कहलाया। शिवकांत को अचानक से ख़याल आया कि वो बेकार में ही इन सब बातों के बारे में इतना सोच रहा है, जबकि हमारे देश में अभी इस तरह का परिवेश नहीं बना है। हां ये ज़रूर है कि कुछ औरतों और मर्दों के सम्बन्ध अलग अलग औरतों और मर्दों से होते हैं लेकिन इसका ये मतलब नहीं कि वो लोग ऐसी किसी संस्था के द्वारा ये सब करते हैं। ज़ाहिर है कि विक्रम सिंह ने अपनी डायरी में जो कुछ भी इस बारे में लिखा है वो सब झूठ है, कोरी बकवास है।

शिवकांत वागले ने अपने ज़हन से इन सारी बातों को झटक दिया और रात में खाना पीना करने के बाद वो अपने कमरे में सोने के लिए आ गया था। बेड पर लेटने के बाद फिर से वो विक्रम सिंह और उसकी डायरी के बारे में सोचने लगा था। इससे पहले उसने आँख बंद कर के सोने की कोशिश की थी किन्तु उसकी आँखों से नींद कोशों दूर थी। ज़ाहिर है कि जब तक मन अशांत रहेगा तब तक किसी भी इंसान को चैन की नींद नहीं आ सकती। वागले ने बेचैनी से करवट बदली और अपना चेहरा अपनी बीवी सावित्री की तरफ कर लिया। उसकी बीवी सावित्री पहले से ही उसकी तरफ करवट लिए सो चुकी थी। सावित्री को चैन से सोते देख शिवकांत के ज़हन में कई तरह के ख़याल उभरने लगे।

सावित्री इस उम्र में भी बेहद सुन्दर थी और उसका बदन घर के सभी काम करने की वजह से सुगठित था। उसके बदन पर मोटापा जैसी कोई बात नहीं थी। शिवकांत ने देखा कि सावित्री की नाईटी का गला उसके करवट लेने की वजह से काफी खुला हुआ था जिससे उसकी बड़ी बड़ी छातियों की गोलाइयाँ साफ़ दिख रहीं थी। उसकी बाएं तरफ वाली छाती के हल्का नीचे की तरफ होने से उसकी दाएं तरफ वाली छाती बिल्कुल नीचे दब गई थी। ये मंज़र देख कर शिवकांत के जिस्म में एक अजीब सी झुरझुरी हुई और उसने एक गहरी सांस ली। उसे अचानक से ऐसा प्रतीत हुआ जैसे सावित्री के सुर्ख होंठ उसे चूम लेने का आमंत्रण दे रहे हों। शिवकांत अपने इस ख़याल से ये सोच कर थोड़ा हैरान हुआ कि ये कैसा एहसास है? आज से पहले तो किसी दिन उसे ऐसा प्रतीत नहीं होता था, जबकि वो अपनी पत्नी के साथ हर रोज़ ही बेड पर सोता है।

शिवकांत वागले ने एक बार फिर से अपने ज़हन में उभर आए इन बेकार के ख़यालों को झटका और एक गहरी सांस ले कर अपनी आँखें बंद कर ली। उसे महसूस हुआ कि इस वक़्त उसके दिल की धड़कनें सामान्य से थोड़ा बढ़ी हुई हैं और बंद पलकों में बार बार सावित्री की वो बड़ी बड़ी छातियां और उसके सुर्ख होंठ दिख रहे हैं। वागले एकदम से परेशान सा हो गया। उसने एक झटके से अपनी आँखें खोली और सावित्री की तरफ एक बार गौर से देखने के बाद बेड से नीचे उतरा। उसके बाद वो कमरे से बाहर निकल गया।

किचेन में जा कर वागले ने फ्रिज से पानी की एक बोतल निकाल कर पानी पिया और फिर बोतल का ढक्कन बंद कर के उसे फ्रिज में वापस रख दिया। सारा घर सन्नाटे में डूबा हुआ था। उसके दोनों बच्चे अपने अपने कमरे में सो रहे थे। वागले पानी पीने के बाद वापस अपने कमरे में आया और बेड पर सावित्री के बगल से लेट गया।

काफी देर चुपचाप लेटे रहने के बाद वागले के मन में जाने क्या आया कि उसने फिर से सावित्री की तरफ करवट ली और थोड़ा खिसक कर सावित्री के क़रीब पहुंच गया। उसने अपने बाएं हाथ की कुहनी को तकिए पर टिका कर अपनी कनपटी को बाएं हाथ की हथेली पर रखा जिससे उसका सिर तकिए से ऊपर उठ गया। इस पोजीशन में वो सावित्री को और भी बेहतर तरीके से देख सकता था। उसकी नज़र सावित्री के गोरे चेहरे पर पड़ी। सावित्री दुनियां जहान से बेख़बर सो रही थी। उसे ज़रा भी भान नहीं था कि उसका पति इस वक़्त किस तरह के ख़यालों का शिकार है जिसकी वजह से वो थोड़ा परेशान भी है और थोड़ा बेचैन भी।

सावित्री के चेहरे से नज़र हटा कर वागले ने फिर से सावित्री की बड़ी बड़ी चूचियों की तरफ देखा। इतने क़रीब से सावित्री की चूचियां देखने पर शिवकांत को ऐसा प्रतीत हुआ जैसे उसकी बीवी की चूचियां आज से पहले इतनी खूबसूरत नहीं थी। वो बड़ी बड़ी और गोरी गोरी चूचियों को अपलक देखने लगा था जैसे सावित्री की चूचियों ने उसे सम्मोहन में डाल दिया हो। वागले अभी अपलक सावित्री की चूचियों को देख ही रहा था कि तभी सावित्री के जिस्म में हलचल हुई जिससे शिवकांत वागले सम्मोहन से निकल कर धरातल में आ गया। उधर सावित्री थोड़ा सा कुनमुनाई और फिर से वो शान्ति से सोने लगी।

शिवकांत के ज़हन में ख़याल उभरा कि क्यों न सावित्री के साथ थोड़ा छेड़ छाड़ की जाए। हालांकि वो जानता था कि उसके ऐसा करने पर सावित्री नाराज़ होगी और उसे चुपचाप सो जाने को कहेगी लेकिन वागले ने इसके बावजूद सावित्री को छेड़ने का सोचा। वागले की धड़कनें थोड़ा और तेज़ हो गईं थी। आज पहली बार उसे अपनी ही पत्नी को छेड़ने के ख़याल से घबराहट होने लगी थी, जबकि इसके पहले भी वो अपनी पत्नी को इस तरह छेड़ता था किन्तु तब उसके अंदर इस तरह की घबराहट नहीं होती थी।

शिवकांत वागले ने गहरी नींद में सोई पड़ी अपनी पत्नी के चेहरे को एक बार गौर से देखा और फिर अपने दाहिने हाथ को उसकी नाईटी से झाँक रही बड़ी बड़ी चूचियों की तरफ बढ़ाया। उसका हाथ कांप रहा था और उसकी साँसें भी थोड़ा भारी हो गईं थी। वागले ने कुछ ही पलों में अपने दाहिने हाथ को सावित्री की दाहिनी छाती पर हल्के से रख दिया। उसे अपनी हथेली पर हल्का गर्म और बेहद मुलायम सा एहसास हुआ जिसके साथ ही उसके जिस्म का रोयां रोयां एक सुखद रोमांच से भरता चला गया। वागले ने एक बार फिर से अपनी पत्नी के चेहरे पर नज़र डाली और फिर हल्के से सावित्री की उस छाती को पकड़ कर दबाया। वागले ने महसूस किया कि ऐसा करने पर उसे थोड़ा मज़ा आया था, ये सोच कर उसके होठों पर मुस्कान उभर आई। उधर सावित्री को आभास ही नहीं हुआ कि उसकी चूची के साथ इस वक़्त क्या हुआ था।

वागले ने सावित्री की उस छाती को हल्के हल्के दबाना शुरू कर दिया जिसकी वजह से अचानक ही सावित्री के जिस्म में हलचल हुई जिसे देख कर शिवकांत वागले ने झट से अपना हाथ सावित्री की छाती से हटा लिया। उसकी धड़कनें तेज़ी से दौड़ने लगीं थी। एकाएक ही उसके ज़हन में ख़याल उभरा कि वो इतना डर क्यों रहा है? सावित्री उसकी बीवी ही तो है और बीवी के साथ ये सब करना ग़लत तो नहीं है? इस ख़याल के तहत वागले ने पहले तो एक गहरी सांस ली और इस बार पूरे आत्मविश्वास के साथ अपना हाथ बढ़ा कर सावित्री की छाती को पकड़ लिया। पहले तो वागले ने हल्के हाथों से ही सावित्री की चूची को दबाना शुरू किया था किन्तु जब उसने मज़े की तरंग में आ कर सावित्री की छाती को थोड़ा ज़ोर से दबा दिया तो सावित्री के जिस्म को झटका सा लगा। ऐसा लगा जैसे सावित्री को दर्द हुआ था जिसकी वजह से वो ज़ोर से हिली थी। इधर सावित्री के हिलने पर वागले रुका नहीं बल्कि उसकी छाती को दबाता ही रहा। जिसका परिणाम ये निकला कि कुछ ही पलों में सावित्री की नींद टूट गई और उसने आँखें खोल कर देखा।

सावित्री ये देख कर बुरी तरह चौंकी कि उसका पति इस वक़्त उसकी चूची को दबाए जा रहा है। कमरे में लाइट जल रही थी क्योंकि सावित्री को अँधेरे में सोने की आदत नहीं थी। अपने चेहरे पर हैरानी के भाव लिए सावित्री ने वागले की तरफ देखा और फिर अपने एक हाथ से वागले के उस हाथ को पकड़ कर हटा दिया जो हाथ उसकी चूची को दबा रहा था।

"ये क्या कर रहे हैं आप?" फिर सावित्री ने थोड़ा नाराज़ लहजे में कहा____"रात के इस वक़्त सोने की बजाय आप ये सब कर रहे हैं?"
"अरे! तो क्या हुआ भाग्यवान?" वागले ने मुस्कुराते हुए कहा_____"अपनी प्यारी सी बीवी को प्यार ही तो कर रहा हूं।"

"बातें मत बनाइए।" सावित्री ने उखड़े भाव से कहा_____"और चुपचाप सो जाइए। "
"अब भला ये क्या बात हुई मेरी जान?" वागले ने कहा____"अपनी प्यारी सी बीवी को प्यार करने का मन किया तो प्यार करने लगा। मैं तो कहता हूं कि तुम भी इस प्यार में मेरा साथ दो। हम जवानी के दिनों की तरह अंधाधुंध प्यार करेंगे, क्या कहती हो?"

"आपका दिमाग़ तो ठिकाने पर है ना?" सावित्री ने हैरानी भरे भाव से कहा____"घर में दो दो जवान बच्चे हैं और आपको जवानी के दिनों की तरह प्यार करने का भूत सवार हो गया है।"

"अरे! तो इसमें क्या समस्या है भाग्यवान?" वागले ने बेचैन भाव से कहा____"बच्चों के जवान हो जाने से क्या हम एक दूसरे से प्यार ही नहीं कर सकते? भला ये कहां का नियम है?"

"मैं कुछ नहीं सुनना चाहती।" सावित्री ने खीझते हुए कहा____"अब परेशान मत कीजिएगा मुझे। दिन भर घर के काम करते करते बुरी तरह थक जाती हूं मैं। कम से कम रात में तो चैन से सो लेने दीजिए।"

सावित्री ये कह कर दूसरी तरफ घूम गई, जबकि वागले मायूस और ठगा सा उसे देखता रह गया। सहसा उसके ज़हन में ख़याल उभरा कि सावित्री का ऐसा बर्ताव ये दर्शाता है कि उसके अंदर सेक्स के प्रति ऐसी कोई भी बात नहीं है जिसके लिए उसे अपने पति के अलावा किसी दूसरे मर्द के बारे में सोचना भी पड़े और वैसे भी कोई औरत दूसरे मर्द के बारे में तभी सोचती है जब वो अपने मर्द से खुश नहीं होती या फिर उसका पति उसकी सेक्स की भूख को शांत नहीं कर पाता। शिवकांत वागले ये सब सोच कर खुश हो गया और फिर उसने दूसरी तरफ करवट ले कर अपनी आँखें बंद कर ली।

दूसरे दिन शिवकांत वागले अपने निर्धारित समय पर जेल के अपने केबिन में पहुंचा। ज़रूरी कामों से फुर्सत होने के बाद उसने ब्रीफ़केस से विक्रम सिंह की डायरी निकाली और एक सिगरेट सुलगा कर डायरी के पन्ने पलटने लगा। वागले डायरी के पन्ने पलटते हुए उस पेज पर रुका जिस पेज़ पर वो कल पढ़ रहा था। सिगरेट के दो चार लम्बे लम्बे कश लेने के बाद उसने सिगरेट को ऐशट्रे में बुझाया और डायरी पर विक्रम सिंह द्वारा लिखी गई इबारत को आगे पढ़ना शुरू किया।

☆☆☆

उस वक़्त रात के क़रीब एक बज रहे थे जब मैं अपने घर के दरवाज़े पर खड़ा डोर बेल बजा रहा था। मेरी उम्मीद के विपरीत दरवाज़ा जल्दी ही खुला और दरवाज़े के उस पार मेरी माता श्री नज़र आईं। मुझ पर नज़र पड़ते ही उन्होंने ब्याकुल भाव से झपट कर मुझे अपने गले से लगा लिया।

"कहां चला गया था तू?" फिर उन्होंने दुखी भाव से मुझे अपने गले से लगाए हुए ही कहा_____"मैं और तेरे पापा तेरे लिए कितना परेशान थे। मन में तरह तरह के ख़याल उभर रहे थे कि जाने तेरे साथ क्या हुआ होगा जिसकी वजह से तू वापस घर नहीं लौटा।"

"मैं एकदम ठीक हूं मां।" मैंने उन्हें खुद से अलग करते हुए कहा____"और हां माफ़ कर दीजिए, मुझे आने में काफी देर हो गई। असल में मैं मोटर साइकिल से गिर गया था जिसकी वजह से मेरे पैर के घुटने में चोंट लग गई थी।"

"क्या कहा???" मेरी बात सुनते ही माँ ने ब्याकुल हो कर कहा_____"तू मोटर साइकिल से कैसे गिर गया था? कहीं तू मुझसे झूठ तो नहीं बोल रहा? सच सच बता कैसे लगी तुझे ये चोट?" कहने के साथ ही माँ ने झट से मेरे पैंट को ऊपर सरका कर चोंट पर लगी पट्टी को देखा और फिर मेरी तरफ देखते हुए कहा____"कहीं तेरा एक्सीडेंट वग़ैरा तो नहीं हो गया था और ये तेरे घुटने पर पट्टी कैसे लगी हुई है?"

"वो मैं हॉस्पिटल चला गया था न।" मैंने बहाना बनाते हुए कहा____"वहीं पर मैंने मरहम पट्टी करवाई है। इसी सब में इतनी देर हो गई। वैसे ये तो बताइए कि पापा मुझ पर गुस्सा तो नहीं हैं ना?"

"पहले तो वो गुस्सा ही हुए थे।" माँ दरवाज़े से एक तरफ हटते हुए बोलीं जिससे मैं दरवाज़े के अंदर दाखिल हुआ____"उसके बाद जब तू इतना समय गुज़र जाने पर भी घर नहीं आया तो उन्हें तेरी चिंता होने लगी थी। उसके बाद वो एक एक कर के तेरे दोस्तों के घर वालों को फ़ोन किया और तेरे बारे में पूछा लेकिन तेरे दोस्तों ने उन्हें यही बताया कि तू उन लोगों के साथ ही चौराहे तक आया था। उस वक़्त तक तू ठीक ही था। उसके बाद का उन्हें कुछ पता नहीं था।"

"हां वो चौराहे के बाद ही मैं मोटर साइकिल से गिरा था।" मैंने कहा____"कोहरे की धुंध में मुझे सड़क पर मौजूद स्पीड ब्रेकर दिखा ही नहीं था। जिसकी वजह से मोटर साइकिल के हैंडल से मेरे हाथों की पकड़ छूट गई थी और मैं उछल कर सड़क पर गिर गया था।"

"चल कोई बात नहीं।" माँ ने दरवाज़ा बंद कर के मुझे अंदर की तरफ ले जाते हुए कहा_____"शुकर है कि ईश्वर की दया से तुझे ज़्यादा कुछ नहीं हुआ। हम दोनों तो तेरे लिए बहुत ही ज़्यादा चिंतित और परेशान हो गए थे।"

मैं माँ के साथ अंदर आया तो देखा ड्राइंग रूम में रखे सोफे पर पापा बैठे थे। मुझे देखते ही वो उठे और झट से मुझे अपने गले से लगा लिया। उसके बाद उन्होंने भी मुझसे वही सब पूछा जो इसके पहले माँ मुझसे पूछ चुकीं थी और मैंने भी उन्हें वही सब बताया जो माँ को बताया था। ख़ैर माँ ने मुझे खाना खिलाया। खाने के बाद मैं अपने कमरे में चला गया।

जैसा कि मैंने शुरू में ही बताया था कि मैं अमीर फैमिली से ताल्लुक रखता था। मेरे पापा का बहुत बड़ा बिज़नेस था और मेरे माता पिता दोनों ही उस बिज़नेस को सम्हालते थे। पढ़ाई पूरी होने के बाद मैंने भी उनसे ज्वाइन करने के लिए कहा था लेकिन पापा ने मुझे ये कह कर मना कर दिया था कि अभी कुछ समय लाइफ़ को एन्जॉय करो। उसके बाद तो बिज़नेस ही सम्हालना है। मैंने भी सोचा कि चलो कुछ समय के लिए मुझे इस झंझट से दूर ही रहना चाहिए।

मेरा घर, घर क्या था बल्कि एक बड़ा सा बंगला था जिसमें हर तरह की सुख सुविधाएं थी। बंगले में कई सारे नौकर चाकर थे। मैं भले ही अपने माता पिता की इकलौती औलाद था लेकिन मुझ में अपने अमीर माता पिता का बेटा होने का कोई घमंड नहीं था और ना ही मेरा ऐसा स्वभाव था कि मैं उनके पैसों को फ़ालतू में इधर उधर उड़ाता फिरुं। मैं दिखने में और पढ़ने लिखने में बहुत ही अच्छा था। मेरी बॉडी पर्सनालिटी भी ठीक ठाक थी लेकिन मुझ में सिर्फ एक ही ख़राबी थी कि मेरा स्वभाव औरतों के मामले में कुछ ज़्यादा ही शर्मीला था।

अपने कमरे में आ कर मैं बेड पर लेट गया था और कुछ समय पहले जो कुछ भी मेरे साथ हुआ था उसके बारे में सोचने लगा था। मेरे ज़हन में उस रहस्यमयी शख़्स की एक एक बातें शुरू से ले कर आख़िर तक की गूंजने लगीं थी। उन सब बातों को याद कर के मैं सोचने लगा कि क्या सच में ऐसा हो सकता है? क्या सच में ऐसी कोई संस्था हो सकती है जिसमें इस तरह के एजेंट्स होंगे जो औरतों और मर्दों को सेक्स की सर्विस देते हैं? क्या सच में बाहर के मर्द और औरतें ऐसी किसी संस्था के एजेंट्स द्वारा अपनी सेक्स की भूंख को शांत करते होंगे? क्या ऐसा करने से किसी को भी इसका पता नहीं चलता होगा? मर्दों का तो चलो मान लेते हैं कि वो ये सब आसानी से कर ही लेते होंगे लेकिन औरतें कैसे किसी ऐसे आदमी के साथ सेक्स कर लेती होंगी जो उनके लिए निहायत ही अजनबी होता है? क्या इसके लिए पहले से कोई ऐसा प्रोसेस होता है जिसके बाद औरतों के लिए किसी दूसरे मर्द के साथ सेक्स करना आसान हो जाता होगा?

इस बारे में मैं जितना सोचता जा रहा था उतना ही मेरे ज़हन में और भी सवाल उभरते जा रहे थे। किसी किसी पल मैं ये भी सोचने लगता कि कहीं ये कोई ख़तरनाक जाल तो नहीं है जिसमें वो रहस्यमयी शख़्स मुझे फ़साना चाहता है? मेरे माता पिता दोनों ही बिज़नेस वाले थे और ज़ाहिर है कि इस क्षेत्र में उनका कोई न कोई दुश्मन भी होगा जो उन्हें इस तरह से भी नुक्सान पहुंचाने का सोच सकता है। ये ख़याल ऐसा था जिसके बारे में सोचते ही मेरे ज़हन में ये बात आ जाती थी कि मुझे इस तरह के किसी भी लफड़े में नहीं फंसना चाहिए। क्या हुआ अगर मुझे किसी लड़की को भोगने का सुख प्राप्त नहीं हो रहा? कम से कम इससे मेरे माता पिता पर किसी तरह की कोई आंच तो नहीं आ रही। अब ऐसा तो है नहीं कि मुझे अपनी लाइफ़ में कभी कोई लड़की मिलेगी ही नहीं। मैं उस लड़की के साथ भी तो सेक्स ही करुंगा जिससे मेरी शादी होगी?

बेड पर लेटा मैं बेचैनी से करवटें बदल रहा था। मेरा मन बिलकुल ही अशांत था। मैं समझ नहीं पा रहा था कि इस मामले में मुझे क्या फ़ैसला लेना चाहिए। एक तरफ मैं ये भी चाहता था कि मेरे किसी भी काम की वजह से मेरे माता पिता पर कोई बात न आए वहीं एक तरफ मैं ये भी चाहता था कि किसी सुन्दर सी लड़की के साथ मैं भी उसी तरह मज़े करूं जिस तरह मेरे जैसे जवान लड़के मज़े करते हैं। शादी तो यकीनन एक दिन होगी ही और जिस लड़की से मेरी शादी होगी उससे जीवन भर मज़ा करने का मुझे लाइसेंस भी मिल जाएगा लेकिन उससे क्या मुझे तसल्ली मिलेगी? शादी के बाद तो मैं बस एक का ही बन के रह जाऊंगा और संभव है कि फिर किसी दूसरी लड़की या औरत के साथ मज़ा करने का मुझे कभी मौका ही न मिले। शादी के बाद क्या मैं कभी ये देख पाऊंगा कि दूसरी लड़कियों या औरतों के जिस्म कैसे होते हैं? उनके जिस्म का कौन सा अंग किस तरह का होता है?

ये सब सोचते हुए मैं बुरी तरह से उलझ गया था। मेरी तृष्णा और बेचैनी शांत होने की बजाय और भी बढ़ती जा रही थी। मेरा मन अलग अलग लड़कियों को भोगने की लालसा ही बनाता जा रहा था। रह रह कर मेरे ज़हन में उस रहस्यमयी शख़्स की बातें गूँज उठती थीं और मैं सोचने लगता था कि अगर सच में ही वो रहस्यमयी शख़्स ऐसी किसी संस्था का आदमी है तो उसकी संस्था से जुड़ने में भला मुझे क्या परेशानी हो सकती है? उस संस्था से जुड़ने के बाद तो उल्टा मेरे मज़े ही हो जाने हैं। हर रोज़ एक नई औरत को भोगने का मौका मिलेगा मुझे और मैं जैसे चाहूंगा औरतों के जिस्मों के साथ खेलते हुए उनसे मज़े करुंगा। उस शख़्स के अनुसार ये सब काम गुप्त तरीके से होते हैं, इसका मतलब किसी को इस सबके बारे में पता भी नहीं चलेगा। कम से कम एक बार मुझे इस संस्था से जुड़ कर चेक तो करना ही चाहिए।

ये सब सोचते हुए मैंने एक गहरी सांस ली कि तभी मुझे उस शख़्स की एक बात याद आई कि संस्था से जुड़ने के बाद मैं उस संस्था को छोड़ कर कहीं नहीं जा सकता। इस बात के याद आते ही मैं एक बार फिर से गहरी सोच में डूब गया। तभी मुझे उसकी ये बात भी याद आई कि संस्था से जुड़ने के बाद मैं अपनी फैमिली के बीच रहते हुए भी आसानी से संस्था के काम कर सकता हूं। यानि फैमिली के बीच रह कर मैं अपने बाकी के काम भी कर सकता हूं। संस्था के नियम कानून तो ये हैं कि मैं उनकी मर्ज़ी के खिलाफ़ संस्था का कोई काम नहीं करुंगा और ना ही अपना भेद किसी पर ज़ाहिर करुंगा। ज़ाहिर है कि संस्था में जो भी एजेंट्स हैं वो सब संस्था के बॉस के आर्डर पर ही सर्विस देने जाते होंगे।

मेरे ज़हन में ये ख़याल उभरे तो मैंने सोच लिया कि इस बारे में मैं एक बार फिर उस रहस्यमयी आदमी से पूछूंगा। अगर उसकी बातों से या उसके नियम कानून में मुझे कहीं पर भी अपने लिए कोई परेशानी न नज़र आई तो मैं उसकी संस्था से जुड़ने के बारे में सोचूंगा।

रात पता नहीं कब मेरी पलकें झपक गईं और मुझे नींद ने अपनी आगोश में ले लिया। ख़ैर ऐसे ही दो दिन गुज़र ग‌ए। उस रहस्यमयी आदमी ने मुझे सोचने के लिए दो दिन का वक़्त दिया था और दो दिन गुज़र गए थे।

मैं शाम को क़रीब आठ बजे उसी जगह पर आ कर खड़ा हो गया था जिस जगह पर वो शख़्स मुझे पहली बार मिला था। मेरे पास उस शख़्स से मिलने का बस यही एक जरिया था। क्योंकि उस दिन उसने मुझे ये नहीं बताया था कि दो दिन बाद उससे मेरी मुलाक़ात कैसे होगी? ये मेरा अनुमान ही था कि शायद उस जगह पर जाने से मेरी मुलाक़ात उस रहस्यमयी शख़्स से हो जाए।

ठंड ज़ोरों की थी, इस लिए मैं स्वेटर के ऊपर से कोट भी पहने हुए था। चारों तरफ कोहरे की धुंध छाई हुई थी जिससे आस पास कोई नज़र नहीं आता था। हालांकि सड़क पर इक्का दुक्का वाहन आते जाते नज़र आ जाते थे। मैं सड़क के किनारे उस जगह पर था जहां पर उस दिन मुझे मेरी मोटर साइकिल खड़ी मिली थी।

उस रहस्यमयी आदमी का इंतज़ार करते हुए मुझे क़रीब एक घंटा गुज़र गया था और अब मुझे लगने लगा था कि मैं बेकार में ही उसके आने का इंतज़ार कर रहा हूं। मुमकिन है कि दो दिन पहले जो कुछ भी हुआ था वो सब किसी का सोचा समझा मज़ाक रहा हो। हालांकि सोचने वाली बात तो ये भी थी कि इस तरह का मज़ाक करने के बारे में भला कौन सोच सकता था?

दस मिनट और इंतज़ार करने के बाद भी जब वो रहस्यमयी आदमी नहीं आया तो मैं गुस्से में आ कर सड़क की तरफ चल पड़ा। अभी मैं सड़क पर आया ही था कि तभी मेरे कानों में एक अजीब सी आवाज़ पड़ी जिसे सुन कर मैं एकदम से रुक गया। उस अजीब सी आवाज़ को सुन कर मेरे ज़हन में बिजली की तरह ये ख़याल उभरा था कि ऐसी आवाज़ तो उस रहस्यमयी आदमी की थी, तो क्या वो यहाँ पर आ गया है??? इस ख़याल के उभरते ही मेरी धड़कनें तेज़ हो गईं और साथ ही मैं बड़ी तेज़ी से पीछे की तरफ पलटा। नज़र कोहरे की हल्की धुंध में कुछ ही दूर खड़े उस रहस्यमयी आदमी पर पड़ी जिसके इंतज़ार में मैं पिछले एक घंटे से भी ज़्यादा समय से यहाँ खड़ा था।

"देरी के लिए हमें माफ़ करना विक्रम।" फ़िज़ा में उस रहस्यमयी आदमी की रहस्यमयी ही आवाज़ गूंजी_____"वैसे कहां जा रहे थे?"
"पिछले एक घंटे से मैं यहाँ आपके आने का इंतज़ार कर रहा था।" मैंने आज उसे आप से सम्बोधित करते हुए कहा____"जब आप नहीं आए तो मुझे लगा दो दिन पहले जो कुछ भी हुआ था वो सब शायद किसी के द्वारा किया गया ऐसा मज़ाक था जिसके बारे में मैं तो क्या बल्कि कोई भी नहीं सोच सकता था।"

"सही कहा तुमने।" उस आदमी ने मेरी तरफ दो क़दम बढ़ कर कहा____"इस तरह के मज़ाक के बारे में कोई भी नहीं सोच सकता किन्तु सच यही है कि वो सब मज़ाक नहीं था। ख़ैर, तो इन दो दिनों में क्या सोचा तुमने?"

"सच कहूं तो मैं अभी भी उलझन में ही हूं।" मैंने कहा____"और साथ ही मैं इस बात से डर भी रहा हूं कि इस सबकी वजह से कहीं मैं किसी ऐसे झमेले में न पड़ जाऊं जिससे मेरे साथ साथ मेरी पूरी फैमिली ख़तरे में पड़ जाए। दूसरी बात ये भी है कि इस सब के बाद मैं अपनी फैमिली के साथ क्या वैसे ही रह पाऊंगा जैसे अभी रह रहा हूं? आपने कहा था कि संस्था से जुड़ने के बाद मैं अपनी मर्ज़ी से कुछ नहीं कर सकता। अगर ऐसा होगा तो मेरी अपनी लाइफ़ का क्या होगा और अपनी फैमिली के प्रति मेरे जो भी फ़र्ज़ हैं उनको मैं कैसे निभा पाऊंगा?"

"तुमने उस दिन शायद हमारी बातों को ग़ौर से सुना ही नहीं था।" उस रहस्यमयी आदमी ने अपनी अजीब सी आवाज़ में कहा____"अगर सुना होता तो समझ जाते कि संस्था से जुड़ने के बाद इस तरह की कोई पाबंदी नहीं होगी। संस्था के नियम कानून ये हैं कि एजेंट्स अपने बारे में किसी को ना तो खुद बताएं और ना ही किसी को अपने बारे में पता चलने दें। यानि कि संस्था का कोई भी एजेंट बाहरी दुनियां के किसी भी ब्यक्ति के सामने अपने इस राज़ को फास न होने दे कि वो किस संस्था से जुड़ा हुआ है और वो किस तरह का काम करता है? दूसरा कानून ये है कि संस्था से जुड़ने के बाद कोई भी एजेंट हमारे हुकुम के बिना एजेंट के रूप में किसी औरत या मर्द को सर्विस देने न जाए। बाकी संस्था का कोई भी एजेंट अपनी रियल लाइफ़ में कुछ भी करने के लिए आज़ाद है। संस्था ने ऐसा कोई कानून नहीं बनाया है कि वो अपने एजेंट्स को उनकी पर्सनल लाइफ से ही दूर कर दे।"

"अगर ऐसी बात है तो फिर ठीक है।" मैंने मन ही मन राहत की सांस लेते हुए कहा_____"मैं आपकी संस्था से जुड़ने के लिए तैयार हूं। वैसे क्या आपकी संस्था में लड़के और लड़कियां दोनों ही सर्विस देने का काम करते हैं?"

"ज़ाहिर सी बात है।" रहस्यमयी आदमी ने कहा____"हमारी संस्था औरत और मर्द दोनों को ही सर्विस देने का काम करती है। इसके लिए मेल और फीमेल दोनों तरह के एजेंट्स हमारी संस्था में हैं। ख़ैर संस्था से जुड़ने के बाद तुम्हें ख़ुद ही सारी बातों का पता चल जाएगा।" कहने के साथ ही उस रहस्यमयी आदमी ने आगे बढ़ कर अपना एक हाथ मेरी तरफ बढ़ाते हुए कहा____"लो इसी ख़ुशी में अपना मुँह मीठा करो।"

रहस्यमयी आदमी की बात सुन कर मैंने अपनी तरफ बढ़े उसके हाथ को देखा। उसके हाथ में काले रंग के दस्ताने थे और उसकी हथेली पर पारदर्शी पन्नी में लपेटा हुआ मिठाई का एक छोटा सा टुकड़ा था। उस मिठाई के टुकड़े को देख कर मैंने एक बार उस रहस्यमयी आदमी की तरफ देखा और फिर उसकी हथेली से मिठाई का वो टुकड़ा उठा कर अपने मुँह में डाल लिया। मिठाई के उस टुकड़े को मैंने खा कर निगला तो कुछ ही पलों में मुझे मेरा सिर घूमता हुआ सा प्रतीत हुआ और फिर अगले कुछ ही पलों में मुझे चक्कर से आने लगे। मैं बेहोश होने वाला था जिसकी वजह से मेरा शरीर ढीला पड़ गया था और मैं लहरा कर गिरने ही वाला था कि मुझे ऐसा लगा जैसे किसी मजबूत बाहों ने मुझे सम्हाल लिया हो। उसके बाद मुझे किसी भी चीज़ का होश नहीं रह गया था।

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#6
अध्याय - 04
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अब तक,,,,

रहस्यमयी आदमी की बात सुन कर मैंने अपनी तरफ बढ़े उसके हाथ को देखा। उसके हाथ में काले रंग के दस्ताने थे और उसकी हथेली पर पारदर्शी पन्नी में लपेटा हुआ मिठाई का एक छोटा सा टुकड़ा था। उस मिठाई के टुकड़े को देख कर मैंने एक बार उस रहस्यमयी आदमी की तरफ देखा और फिर उसकी हथेली से मिठाई का वो टुकड़ा उठा कर अपने मुँह में डाल लिया। मिठाई के उस टुकड़े को मैंने खा कर निगला तो कुछ ही पलों में मुझे मेरा सिर घूमता हुआ सा प्रतीत हुआ और फिर अगले कुछ ही पलों में मुझे चक्कर से आने लगे। मैं बेहोश होने वाला था जिसकी वजह से मेरा शरीर ढीला पड़ गया था और मैं लहरा कर गिरने ही वाला था कि मुझे ऐसा लगा जैसे किसी मजबूत बाहों ने मुझे सम्हाल लिया हो। उसके बाद मुझे किसी भी चीज़ का होश नहीं रह गया था।

अब आगे,,,,


मैं नहीं जानता था कि मैं कब तक बेहोश रहा था किन्तु जब मुझे होश आया तो मैंने ख़ुद को एक बार फिर से उसी जगह पर पाया जहां इसके पहले भी मैंने किसी अजनबी जगह के किसी आलीशान कमरे में ख़ुद को पाया था। मैंने नज़र घुमा कर चारो तरफ देखा तो पता चला कि ये वही कमरा था और मैं उसी बेड पर पड़ा हुआ था किन्तु इस बार मेरे कपड़े बदले हुए नहीं थे, बल्कि मैं उन्हीं कपड़ों में था जो मैं अपने घर से पहन कर आया था।

मुझे होश आए अभी दो मिनट ही गुज़रे रहे होंगे कि तभी कमरे का दरवाज़ा खुला और एक बार फिर से वही सफ़ेदपोश कमरे में दाखिल होता नज़र आया। इस बार मैं उसे देख कर चौंका नहीं था और ना ही इस जगह पर ख़ुद को पा कर हैरान हुआ था, क्योंकि अब मैं समझ चुका था कि ये सब उसी रहस्यमयी आदमी का किया धरा है और शायद यहाँ का ये नियम है कि जब भी किसी बाहर वाले को लाया जाता है तो उसे बेहोश कर दिया जाता है ताकि बाहर वाला आदमी इस जगह के बारे में जान न सके।

"मेरे पीछे आओ।" उस सफेदपोश ने मेरी तरफ देखते हुए हुकुम सा दिया तो मैं बिना कुछ बोले बेड से नीचे उतरा और उसकी तरफ बढ़ चला।

उस सफेदपोश के साथ चलते हुए मैं कुछ ही देर में उसी जगह पर पहुंचा जहां पर मैं पहले भी ले जाया गया था। एक लम्बा चौड़ा हाल और उस हाल के दूसरे छोर पर एक बड़ी सी सिंघासन नुमा कुर्सी, जिस पर वो रहस्यमयी आदमी बैठा हुआ था। हाल में आज भी नीम अँधेरा था जिससे हाल के अंदर कुछ भी ठीक से दिख नहीं रहा था।

"तुम यकीनन सोच रहे होंगे कि तुम्हें इस तरह दो दो बार बेहोश कर के यहाँ क्यों लाया गया है?" हाल में उस रहस्यमयी आदमी की आवाज़ गूंजी_____"इसका जवाब यही है कि हम नहीं चाहते कि इस जगह के बारे में किसी भी बाहरी आदमी को पता चले। ख़ैर, अब जबकि तुम पूरी तरह से इस संस्था से जुड़ने के लिए तैयार हो तो हम तुम्हें बता दें कि अब से तुम पर भी संस्था के सारे नियम कानून लागू होंगे। सबसे पहला कानून तो यही है कि तुम इस संस्था के प्रति पूरी तरह से वफादार रहोगे और अगर कभी ऐसा वक़्त आया कि तुम्हारी वजह से इस संस्था का भेद बाहरी दुनिया को पता चलने वाला है तो तुम अपनी जान दे कर भी इस संस्था के राज़ को राज़ ही बना रहने दोगे। अगर किसी को किसी तरह से तुम्हारे बारे में पता चल जाता है तो तुम उसे उसी वक़्त जान से मार दोगे, ऐसा इस लिए ताकि तुम्हारा राज़ जानने वाला किसी और को तुम्हारे बारे में बता न सके। अगर तुम्हारा राज़ तुम्हारे किसी अपने के सामने खुल जाता है तो तुम उसे भी जान से मारने में रुकोगे नहीं।"

"ये कानून तो बहुत ही शख़्त है।" रहस्यमयी आदमी की बातें सुन कर मैंने हैरानी से कहा था_____"ऐसा भी तो हो सकता है कि अगर कोई हमारा अपना हमारा राज़ जान जाता है तो हम उसे समझा बुझा कर मना लें और उससे ये कह दें कि वो हमारे बारे में किसी को न बताए? राज़ जान जाने की सूरत में किसी अपने को जान से मार देना तो बहुत ही मुश्किल काम है।"

"नियम कानून सबके लिए एक सामान होते हैं।" उस शख़्स ने कहा____"हम उसे भी तो जान से मार देते हैं जो हमारा अपना नहीं होता, जबकि सच तो ये है कि वो भी तो किसी का अपना ही होता है। हम मानते हैं कि किसी अपने को जान से मारना बहुत ही मुश्किल है लेकिन अपने काम के बारे में और संस्था के बारे में राज़ रखने की यही एक शर्त है। इससे बेहतर यही है कि अपना हर काम इतनी सूझ बूझ और होशियारी से करो कि किसी को तुम्हारे और तुम्हारे काम के बारे में भनक भी न लग सके। जब किसी को तुम्हारे बारे में भनक ही नहीं लगेगी तो किसी को जान से मार देने की नौबत ही नहीं आएगी।"

"हां ये भी सही बात है।" मैंने गहरी सांस लेते हुए कहा तो उस आदमी ने कहा_____"अगर तुम्हें ये सारे नियम कानून मंजूर हैं तो बेशक तुम इस संस्था से जुड़ सकते हो, वरना अभी भी तुम अपनी दुनियां में वापस लौट सकते हो।"

"मुझे सब कुछ मंजूर है।" मैंने झट से कहा_____"अब ये बताइए कि मुझे आगे क्या करना है?"
"इस संस्था का मेंबर बनने के बाद तुम्हें सबसे पहले हर चीज़ की ट्रेनिंग दी जाएगी।" उस रहस्यमयी आदमी ने कहा____"उसके लिए तुम्हें हमारे ट्रेनिंग सेण्टर में ही रहना पड़ेगा।"

"लेकिन मैं अपनी फैमिली से दूर आपके ट्रेनिंग सेण्टर में कैसे रह पाऊंगा?" मैंने सोचने वाले भाव से कहा____"इतना तो मैं भी जानता हूं कि ट्रेनिंग एक दो दिन में तो पूरी नहीं हो जाएगी, यानी उसमें काफी समय भी लग सकता है तो इतने दिनों तक मैं कैसे अपनी फैमिली से दूर रह सकूंगा? मैं अपने माता पिता को क्या बताऊंगा कि मैं इतने समय के लिए कहां जा रहा हूं और ये भी सच ही है कि वो मुझे इतने समय के लिए कहीं जाने भी नहीं देंगे।"

"समस्या वाली बात तो है।" उस शख़्स ने कहा____"लेकिन फ़िक्र मत करो। शुरुआत में जिस चीज़ की ट्रेनिंग तुम्हें दी जाएगी वो मुश्किल से दो चार दिनों की ही होगी। उसके बाद की ट्रेनिंग के लिए कोई न कोई समाधान निकल ही आएगा। अभी तुम वापस अपने घर जाओगे और अपने पैरेंट्स से कहना कि तुम्हें अपने दोस्तों के साथ पिकनिक पर जाना है। पिकनिक का तुम्हारा टूर कम से कम पांच दिन का होना चाहिए। यानी पांच दिन के लिए तुम्हें अपने घर से दूर रहना है। हमारा ख़याल है कि पिकनिक पर भेजने के लिए तुम्हारे पैरेंट्स तुम्हें मना नहीं करेंगे।"

"सही कहा आपने।" मैंने कहा____"लेकिन दोस्तों के साथ पिकनिक पर जाने को कहूंगा तो फिर मेरे दोस्त भी मेरे साथ जाएंगे।"
"तुम अपने उन दोस्तों को मत ले जाना।" रहस्यमयी आदमी ने कहा_____"बल्कि अपने पैरेंट्स से कहना कि तुम्हारे कुछ नए दोस्त बने हैं इस लिए वो नए दोस्त ही तुम्हें पिकनिक पर ले जा रहे हैं।"

"ठीक है। मैं ये कर लूंगा।" मैंने खुश होते हुए कहा____"उसके बाद आगे क्या होगा?"
"हमारा एक आदमी तुम्हें तुम्हारे घर से पिक कर लेगा।" रहस्यमयी आदमी ने कहा____"उसके बाद हमारा वो आदमी तुम्हें यहाँ पहुंचा देगा।"

"ठीक है।" मैंने कहा____"मैं आज ही घर जा कर अपने पैरेंट्स से पिकनिक पर जाने की बात कहूंगा। मुझे यकीन है कि मेरे पैरेंट्स इसके लिए मना नहीं करेंगे।"
"बहुत बढ़िया।" उस शख़्स ने कहा_____"जिस दिन तुम्हें पिकनिक पर जाना हो उस दिन की सुबह तुम नीले रंग की शर्ट पहन कर अपने घर के बाहर कुछ देर तक खड़े रहना। इससे वहीं कहीं मौजूद हमारा आदमी समझ जाएगा और फिर वो तुम्हें लेने के लिए सुबह के क़रीब दस बजे पहुंच जाएगा।"

रहसयमयी आदमी की बात सुन कर मैंने हां में अपना सिर हिला दिया। उसके कुछ ही पलों बाद मेरे पीछे से फिर से वो सफेदपोश आया और मुझे बेहोश कर दिया। बेहोश होने के बाद जब मुझे होश आया तो मैं उसी जगह पर था जहां पर इसके पहले मैं रहस्यमयी आदमी के आने का इंतज़ार कर रहा था। ख़ैर उसके बाद मैं अपनी मोटर साइकिल से घर आ गया।

रात में खाना खाते समय मैंने अपने माता पिता से कल पिकनिक पर जाने की बात कही तो मेरे माता पिता ने पहले तो कई सारे सवाल पूछे। जैसे कि मेरे साथ और कौन कौन जा रहा है और पिकनिक के लिए हम कहां जा रहे हैं और साथ ही पिकनिक से कब वापस आएंगे? सारे सवालों के जवाब मैंने अपने माता पिता को दे दिए और उन्हें बताया कि पिकनिक का टूर पांच दिनों का है और छठे दिन हम वापस आ जाएंगे।

मेरे माता पिता जानते थे कि मैं कैसा लड़का हूं, दूसरी बात उन्होंने खुद ही कहा था कि कुछ समय एन्जॉय करो उसके बाद तो मुझे उनके साथ उनका बिज़नेस ही सम्हालना है। ख़ैर मैंने अपने माता पिता को बताया कि मुझे कल ही दोस्तों के साथ यहाँ से पिकनिक के लिए निकलना है। मेरी इस बात पर मेरे माता पिता बोले ठीक है और अपना ख़याल रखना।

खाने के बाद मैं ख़ुशी ख़ुशी अपने कमरे में चला आया था। असल में अब मुझे इस बात की जल्दी थी कि कितना जल्दी मैं उस संस्था से पूरी तरह जुड़ जाऊं और ट्रेनिंग पूरी होने के बाद मैं उनके हुकुम से वो काम करने जाऊं जो मेरी सबसे बड़ी चाहत का हिस्सा था। यही वजह थी कि घर आते ही मैंने अपने पेरेंट्स से दूसरे दिन ही पिकनिक पर जाने की बात कह कर उनसे इजाज़त ले ली थी। अब तो बस कल सुबह का इंतज़ार था मुझे। अपने कमरे में आ कर मैंने आलमारी खोली और उसमे नीले रंग की शर्ट देखने लगा जो कि किस्मत से मेरे पास थी। नीले रंग की शर्ट को आलमारी से निकाल कर मैंने उसे कमरे की दिवार में लगे हैंगर पर टांगा और फिर बेड पर लेट गया।

बेड पर लेटा मैं ये सोच सोच कर मुस्कुरा रहा था कि बहुत जल्द मेरी लाइफ़ बदलने वाली है और उस बदली हुई लाइफ़ में बहुत जल्द मेरी सबसे बड़ी चाहत पूरी होने वाली है। ये सब सोचते हुए मैं बहुत ही ज़्यादा खुश हो रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे कि मुझे कारून का कोई खज़ाना मिलने वाला था। मैं अपने मन में ही न जाने कैसे कैसे ख़्वाब सजाने लगा कि संस्था का एजेंट बनने के बाद मैं लड़कियों और औरतों की सेक्स नीड को पूरा करने के लिए जाऊंगा और उनके खूबसूरत जिस्मों से जैसे चाहूंगा खेलूंगा। उन औरतों की बड़ी बड़ी चूचियों को अपनी दोनों मुट्ठियों में ले कर ज़ोर ज़ोर से मसलूंगा और फिर चूचियों को अपने मुँह में भर कर ज़ोर ज़ोर से चूसूंगा।

बेड पर लेटे लेटे मैं जाने कैसे कैसे सपने देखने लगा था और फिर जाने कब मेरी आँख लग गई। सुबह उठा तो रात के सारे मंज़र याद आए जिससे मैं जल्दी से उठा और बाथरूम में घुस गया। बाथरूम से नहा धो कर मैंने नीले रंग की शर्ट पहनी और कमरे से बाहर आ गया। बाहर आया तो देखा माँ मेरे कमरे की तरफ ही आ रहीं थी। मुझे देख कर वो रुक गईं और मुस्कुराते हुए बोलीं_____"अरे! बड़ा जल्दी उठ गया तू। चल अच्छा किया और हां मैंने एक बैग में तेरे लिए ज़रूरत का सारा सामान पैक कर दिया है। तू नहा धो कर आ, तब तक मैं तेरे लिए नास्ता बनवा देती हूं।"

मां की बात सुन कर मैंने उन्हें बताया कि मैं नहा चुका हूं और अभी मैं दो मिनट के लिए बाहर खुली हवा लेने जा रहा हूं। मेरी बात सुन कर मां ने मुझे हैरानी से देखा। उनके लिए हैरानी की बात ये थी कि मैं जो हमेशा आठ बजे सो कर उठता था वो आज सुबह सुबह ही उठ गया था और इतना ही नहीं बल्कि नहा धो के फुर्सत भी हो गया था। खैर माँ के जाने के बाद मैं घर से बाहर की तरफ चल पड़ा। अब भला माँ को कैसे पता हो सकता था कि उनके शर्मीले बेटे ने आज इतनी जल्दी में अपने सारे काम क्यों कर लिए थे?

घर से बाहर आ कर मैं लम्बे चौड़े लान में दाहिनी तरफ आ कर खड़ा हो गया। मैं दूर सड़क पर इधर उधर देख रहा था। रहस्यमयी आदमी ने कहा था कि मैं जब अपने घर के बाहर नीले रंग की शर्ट पहन कर खड़ा हो जाऊंगा तो उसका कोई आदमी मुझे देख लेगा और फिर समझ भी जाएगा कि मुझे आज ही पिकनिक पर निकलना है। ख़ैर मैं क़रीब दस मिनट तक लान में खड़ा रहा उसके बाद वापस घर के अंदर आ गया।

नास्ते के समय डायनिंग टेबल पर पिता जी भी बैठे थे। उन्होंने मुझसे पूछा कि मेरे दोस्त मुझे लेने यहीं आएंगे या मुझे उनके पास जाना होगा? पापा के पूछने पर मैंने उन्हें बताया कि दस बजे मेरा एक दोस्त मुझे यहाँ लेने आएगा। ख़ैर नास्ते के बाद पापा ने अपना एक ब्रीफ़केस लिया और कार की चाभी ले कर अपने ऑफिस के लिए चले गए। पापा रोज़ाना ही सुबह नौ बजे ऑफिस चले थे जबकि माँ सुबह ग्यारह बजे घर से ऑफिस के लिए निकलतीं थी।

अपने कमरे में मैं एकदम से तैयार बैठा था और दस बजने का इंतज़ार कर रहा था। मेरे पास वो बैग भी था जिसे माँ ने मेरे लिए पैक किया था। एक एक पल मेरे लिए जैसे सदियों का लग रहा था। आख़िर किसी तरह दस बजे तो मैं बैग ले कर कमरे से बाहर निकल आया। अभी ड्राइंग रूम में ही आया था कि डोर बेल बजी। मैं समझ गया कि रहस्यमयी आदमी का कोई आदमी मुझे लेने के लिए आ गया है। मैंने तेज़ी से बढ़ कर बाहर वाले दरवाज़े को खोला तो देखा बाहर एक आदमी खड़ा था। वो आदमी मेरे लिए बिलकुल ही अजनबी था। मैंने आज से पहले उसे कभी नहीं देखा था।

"तैयार हो न?" मेरे कुछ बोलने से पहले ही उसने मुझे देखते हुए मुझसे धीमें स्वर में पूछा तो मैं समझ गया कि ये वही आदमी है इस लिए मैंने फ़ौरन ही हां में सिर हिला दिया। तभी मेरे पीछे से माँ की आवाज़ आई तो मैं एकदम से चौंक गया और ये सोच कर थोड़ा घबरा भी गया कि अगर माँ ने इस आदमी को देख कर मुझसे पूछ लिया कि ये कौन है तो मैं क्या जवाब दूंगा उन्हें? हालांकि जवाब तो मेरे पास तैयार ही था किन्तु माँ मेरे सभी दोस्तों को जानती थी इस लिए वो न जाने क्या क्या पूछने लगतीं, और मैं यही नहीं चाहता था।

"अरे! बेटा तूने अपने दोस्त को बाहर क्यों खड़ा कर रखा है?" माँ की आवाज़ से मैंने पलट कर उनकी तरफ देखा, जबकि उन्होंने आगे कहा_____"उसे अंदर ले आ और उससे पूछ ले कि अगर उसने नास्ता न किया हो तो अंदर आ कर पहले नास्ता करे उसके बाद ही यहाँ से तुझे ले कर जाए।"

"आंटी हम अभी लेट हो रहे हैं।" मेरे कुछ बोलने से पहले ही उस आदमी ने दरवाज़े के बाहर से ही कहा_____"इस लिए नास्ता करने का समय नहीं है। हम बाहर ही कहीं पर कर लेंगे नास्ता।"

उस आदमी की बात सुन कर माँ ने एक दो बार और कहा लेकिन हमें तो रुकना ही नहीं था इस लिए जल्दी ही मैं उस आदमी के साथ बाहर निकल गया। सड़क पर आ कर मैं उसकी कार में बैठा तो उसने कार को तेज़ी से आगे बढ़ा दिया। इस वक़्त मेरे दिल की धड़कनें तेज़ी से चल रहीं थी। मैं सोच रहा था कि ये आदमी मुझे आख़िर किस जगह पर ले कर जाएगा? क्या ये आदमी भी उसी संस्था का कोई सदस्य है?

सारे रास्ते हमारे बीच ख़ामोशी ही रही, ना मैंने उससे कोई सवाल किया और ना ही उसने कुछ कहा। क़रीब बीस मिनट बाद उसने एक ऐसी जगह पर कार को रोका जहां आस पास कोई नहीं था। कार के रुकते ही उसने मुझसे कार से अपना बैग ले कर उतर जाने को कहा तो मैं एकदम से चौंक सा गया। मैंने कार की खिड़की से सिर निकाल कर चारो तरफ देखा। कोई नहीं था आस पास। ऐसी जगह पर मुझे क्यों उतर जाने को बोल रहा था ये आदमी? मुझे उलझन में पड़ा देख उस आदमी ने फिर से मुझे उतर जाने को कहा तो इस बार मैं बिना कुछ बोले कार से उतर गया और अपना बैग भी निकाल लिया। मैंने जैसे ही अपना बैग निकाला वैसे ही उस आदमी ने कार को यू टर्न दिया और किसी तूफ़ान की तरह वापस उसी तरफ लौट गया जिस तरफ से वो मुझे ले कर आया था। उसके जाने के बाद मैं मूर्खों की तरह सड़क के किनारे खड़ा रह गया। मैं समझ नहीं पा रहा था कि वो आदमी मुझे ऐसे सुनसान जगह पर अकेला छोड़ के क्यों चला गया था? अब यहाँ से भला मैं किस तरफ जाऊंगा। सच कहूं तो उस वक़्त मैं अपने आपको दुनियां का सबसे बड़ा बेवकूफ ही समझ बैठा था।

मेरे पास उस जगह पर खड़े रहने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं था इस लिए मैं क़रीब आधे घंटे तक खड़ा रहा। आधे घंटे बाद मुझे सड़क पर एक काले रंग की कार आती हुई दिखाई दी। मैं समझ गया कि इस कार में ज़रूर वो रहस्यमयी आदमी होगा। ख़ैर कुछ ही देर में वो कार मेरे पास आ कर रुकी। कार के रुकते ही कार का पिछला दरवाज़ा खुला। अंदर एक सफेदपोश आदमी बैठा नज़र आया मुझे। उसने मुझे अंदर आने का इशारा किया तो मैं अपना बैग ले कर चुप चाप कार के अंदर जा कर बैठ गया। मेरे बैठते ही कार का दरवाज़ा बंद हुआ और कार एक झटके से आगे बढ़ चली। कार में मेरे अलावा वो सफेदपोश और एक ड्राइवर था जिसके जिस्म पर काले कपड़े थे और सिर पर बड़ी सी गोलाकार टोपी जिसका अग्रिम सिरा उसके ललाट पर झुका हुआ था। आँखों में काला चश्मा था और हाथों में दस्ताने। चेहरे पर नक़ाब नहीं था। हालांकि पीछे से मुझे उसका चेहरा दिख भी नहीं रहा था किन्तु कार के अंदर लगे बैक मिरर में उसका अक्श दिख रहा था जिसमें उसकी गोलाकार टोपी और आँखों पर लगा काला चश्मा ही दिख रहा था। अभी मैं उसे देख ही रहा था कि तभी मेरे बगल से बैठे सफ़ेदपोश ने मेरी आँखों पर काली पट्टी बाँध दी जिससे मेरी आंखों के सामने अंधेरा छा गया।

☆☆☆

"साहब जी।" विक्रम सिंह की डायरी पढ़ रहे शिवकांत वागले के कानों में अपनी जेल के एक सिपाही की आवाज़ पड़ी तो उसने चौंक कर उसकी तरफ देखा, जबकि सिपाही ने आगे कहा____"कोई आपसे मिलने आया है।"
"क..कौन मिलने आया है हमसे?" वागले ने न समझने वाले भाव से पूछा। इस बीच उसने विक्रम सिंह की डायरी को बंद कर के टेबल में ही एक तरफ रख दिया था।

"कोई शूट बूट पहना हुआ आदमी है साहब जी।" सिपाही ने कहा_____"मुझसे बोला कि जेलर साहब से मिलना है। इस लिए मैं आपके पास ये बताने चला आया।"
"ठीक है भेज दो उन्हें।" कहने के साथ ही वागले ने डायरी को टेबल से उठाया और उसे अपने ब्रीफ़केस में रख दिया।

इधर वागले के कहने पर सिपाही वापस चला गया था। कुछ देर बाद ही एक आदमी केबिन में दाखिल हुआ। वागले ने उस आदमी को गौर से देखा। आगंतुक आदमी के जिस्म पर शूटेड बूटेड कपड़े थे। दमकता हुआ चेहरा बता रहा था कि वो कोई मामूली आदमी नहीं था। ख़ैर वागले ने उसे अपने सामने टेबल के उस पार रखी कुर्सी पर बैठने का इशारा किया तो वो मुस्कुरा कर शुक्रिया कहते हुए बैठ गया।

"जी कहिए।" उस आदमी के बैठते ही वागले ने नम्र भाव से कहा____"ऐसी जगह पर आने का कैसे कष्ट किया आपने?"
"सुना है कि पिछले दिन आपकी इस जेल से एक क़ैदी रिहा हो कर गया है।" उस आदमी ने ख़ास भाव से वागले की तरफ देखते हुए कहा_____"मैं उसी क़ैदी के बारे में आपसे जानने आया हूं। उम्मीद है कि आप मुझे उसके बारे में बेहतर जानकारी देंगे।"

"देखिए महाशय।" वागले ने कहा____"यहां से तो कोई न कोई अपनी सज़ा काटने के बाद रिहा हो कर जाता ही रहता है। अब हमें क्या पता कि आप किसके बारे में पूछ रहे हैं? हां अगर आप हमें रिहा हो कर जाने वाले उस क़ैदी का नाम और उसका जुर्म बताएं तो शायद हमें उसके बारे में आपको बताने में आसानी हो।"

"उसका नाम विक्रम सिंह है जेलर साहब।" उस आदमी ने हल्की मुस्कान के साथ कहा_____"और पिछले दिन ही वो यहां से रिहा हो कर गया है। मैं आपसे ये जानना चाहता हूं कि यहाँ से निकलने के बाद वो कहां गया है?"

"बड़ी हैरत की बात है महाशय।" वागले उस आदमी के मुख से विक्रम सिंह का नाम सुन कर पहले तो मन ही मन चौंका था फिर सामान्य भाव से बोला_____"जिस आदमी की आप बात कर रहे हैं उससे इन बीस सालो में कभी कोई मिलने नहीं आया और ना ही उसके बारे में कोई कुछ पूछने आया। अब जबकि वो यहाँ से रिहा हो कर जा चुका है तो अचानक से उसके जान पहचान वाले कहां से आ गए? वैसे आपकी जानकारी के लिए हम बता दें कि यहाँ से जो भी क़ैदी रिहा हो कर जाता है उसके बारे में हम ये रिकॉर्ड नहीं रखते कि वो यहाँ से कहां जाएगा और किस तरह का काम करेगा?"

"ओह! माफ़ कीजिएगा।" उस आदमी ने अजीब भाव से कहा____"मुझे लगा यहाँ हर उस क़ैदी का एक ऐसा रिकॉर्ड भी रखा जाता होगा जिससे ये पता चल सके कि फला क़ैदी जेल से रिहा हो कर कहां गया है और वर्तमान में किस तरह का काम कर रहा है। असल में बात ये है कि मैं कुछ दिन पहले ही विदेश से भारत आया हूं इस लिए मुझे विक्रम सिंह के बारे में ज़्यादा पता नहीं है। हालांकि एक समय वो मेरा दोस्त हुआ करता था किन्तु फिर हालात ऐसे बदले कि मेरा उससे हर तरह का राब्ता टूट गया। अभी कुछ दिन पहले ही मुझे कहीं से पता चला है कि मेरे दोस्त को उम्र क़ैद की सजा तो हुई थी किन्तु उसके अच्छे बर्ताव की वजह से अदालत ने उसकी बाकी की सज़ा को माफ़ कर के रिहा कर दिया है। ये सब सुन कर मैं सीधा यहीं चला आया।"

"अगर विक्रम सिंह सच में आपका दोस्त है।" वागले ने एक सिगरेट सुलगाने के बाद कहा____"तो आपको ये भी पता होगा कि उसे किस जुर्म में उम्र क़ैद की सज़ा हुई थी?"
"जी बिलकुल पता है जेलर साहब।" उस आदमी ने कहा_____"उसने अपने माता पिता की बेरहमी से हत्या की थी और सिक्युरिटी ने उसे घटना स्थल से रंगे हाथों पकड़ा था। मामला अदालत में पहुंचा था और जज साहब ने उसे उम्र क़ैद की सज़ा सुना दी थी।"

"जब आपके दोस्त ने ऐसा संगीन अपराध किया था।" वागले ने सिगरेट के धुएं को हवा में उड़ाते हुए कहा_____"तब उस समय आप कहां थे?"
"मैं उस समय अपने पैरेंट्स के साथ विदेश में था।" उस आदमी ने कहा_____"असल में मेरे पैरेंट्स यहाँ का अपना सब कुछ बेंच कर विदेश में रहने का फ़ैसला कर लिया था और जब विदेश में सारी ब्यवस्था हो गई थी तो हम सब वहीं चले गए थे। जब विक्रम का मामला हुआ था तब मुझे अपने एक दूसरे दोस्त से इस बारे में पता चला था। मैं हैरान था कि विक्रम जैसा लड़का इतना संगीन अपराध कैसे कर सकता है? मैंने अपने पैरेंट्स से कहा था कि मुझे अपने दोस्त से मिलने इंडिया जाना है लेकिन मेरे पैरेंट्स ने मुझे यहाँ आने ही नहीं दिया। उसके बाद वक़्त और हालात ऐसे बने कि इंडिया आने का कभी मौका ही नहीं मिल पाया। इतने सालों बाद मौका मिला तो मैं सिर्फ अपने दोस्त से मिलने के लिए ही इंडिया आया हूं।"

"इसका मतलब।" वागले ने गहरी सांस लेते हुए कहा_____"आपको ये भी पता नहीं होगा कि विक्रम सिंह ने आख़िर किस वजह से अपने ही माता पिता की हत्या की थी?"

"क्या मतलब है आपका?" उस आदमी ने चौंकते हुए कहा_____"क्या आप ये कह रहे हैं कि सिक्युरिटी या अदालत को भी नहीं पता कि उसने ऐसा क्यों किया था, लेकिन ऐसा कैसे हो सकता है?"

"यही सच है महाशय।" वागले ने ऐशट्रे में बची हुई सिगरेट को बुझाते हुए कहा____" सिक्युरिटी की थर्ड डिग्री झेलने के बाद भी उस शख़्स ने ये नहीं बताया था कि उसने अपने माता पिता की हत्या क्यों की थी और इतना ही नहीं बल्कि इन बीस सालों में भी उसने कभी किसी से इस बारे में कुछ नहीं बताया। अब तो वो रिहा हो कर यहाँ से जा चुका है इस लिए ज़ाहिर है कि आगे भी कभी किसी को इस बारे में कुछ पता नहीं चलने वाला।"

"हैरत की बात है।" उस आदमी ने सोचने वाले अंदाज़ से कहा____"वैसे यहाँ से जाते समय आपने उससे पूछा तो होगा कि यहाँ से जाने के बाद वो अपने बाकी जीवन में क्या करेगा?"

"पूछने का कोई फायदा ही नहीं था।" वागले ने लापरवाही से कहा____"इस लिए हमने पूछा ही नहीं उससे।"
"क्या मतलब??" वो आदमी हल्के से चौंका।
"मतलब ये कि उससे कुछ भी पूछने का कोई फ़ायदा ही नहीं होता।" वागले ने कहा____"पिछले पांच सालों से हम इस जेल के जेलर पद पर कार्यरत हैं और इन पांच सालों में हमने न जाने कितनी ही बार उससे बहुत कुछ पूछने की कोशिश की है लेकिन उसने कभी भी हमारे किसी सवाल का जवाब नहीं दिया। वो अपने होठों को जैसे सुई धागे से सिल लेता था। हमने अपने जीवन में उसके जैसा अजीब इंसान नहीं देखा।"

"चलिए कोई बात नहीं जेलर साहब।" उस आदमी ने गहरी सांस ले कर कहा____"अब मुझे ही अपने दोस्त का पता करना पड़ेगा। ख़ैर बहुत बहुत शुक्रिया आपका इतना कुछ बताने के लिए। अच्छा अब चलता हूं, नमस्कार।"

कहने के साथ ही वो आदमी कुर्सी से उठ गया तो वागले भी कुर्सी से उठ गया। उस आदमी के जाने के बाद शिवकांत वागले सोचने लगा कि इतने सालों बाद विक्रम सिंह का कोई दोस्त कहां से आ गया? सिक्युरिटी के अनुसार उसके सभी दोस्तों से पूछताछ हुई थी किन्तु किसी भी दोस्त को ये नहीं पता था कि विक्रम सिंह ने आख़िर किस वजह से अपने माता-पिता की हत्या की थी? इन बीस सालों में विक्रम सिंह का कोई भी दोस्त उससे मिलने नहीं आया था। इसकी वजह शायद ये हो सकती थी कि उसका कोई भी दोस्त अब उससे कोई वास्ता नहीं रखना चाहता था। ख़ैर कुछ देर इस बारे में सोचने के बाद वागले अपने केबिन से बाहर निकल गया।

शाम तक शिवकांत वागले किसी न किसी काम में व्यस्त ही रहा, उसके बाद वो अपने सरकारी आवास पर चला गया। घर में कुछ देर वो टीवी देखता रहा और फिर रात का भोजन करने के बाद अपने कमरे में चला गया। उसका इरादा था कि रात में वो विक्रम सिंह की डायरी में उसकी आगे की दास्तान पड़ेगा किन्तु सावित्री अभी बर्तन धो रही थी। वो सावित्री के सो जाने के बाद ही आगे की कहानी पढ़ना चाहता था। ख़ैर, उसने सावित्री के सो जाने का इंतज़ार किया। जब सावित्री अपने सारे काम निपटाने के बाद कमरे में आ कर बेड पर सो ग‌ई तो वागले बेड से उतरा और ब्रीफ़केस से विक्रम सिंह की डायरी निकाल कर वापस बेड पर आ गया। अपनी पत्नी सावित्री की तरफ एक बार उसने ध्यान से देखा और फिर डायरी खोल कर आगे का किस्सा पढ़ना शुरू कर दिया।

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#7
अध्याय - 05
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अब तक,,,,,

शाम तक शिवकांत वागले किसी न किसी काम में व्यस्त ही रहा, उसके बाद वो अपने सरकारी आवास पर चला गया। घर में कुछ देर वो टीवी देखता रहा और फिर रात का भोजन करने के बाद अपने कमरे में चला गया। उसका इरादा था कि रात में वो विक्रम सिंह की डायरी में उसकी आगे की दास्तान पड़ेगा किन्तु सावित्री अभी बर्तन धो रही थी। वो सावित्री के सो जाने के बाद ही आगे की कहानी पढ़ना चाहता था। ख़ैर, उसने सावित्री के सो जाने का इंतज़ार किया। जब सावित्री अपने सारे काम निपटाने के बाद कमरे में आ कर बेड पर सो ग‌ई तो वागले बेड से उतरा और ब्रीफ़केस से विक्रम सिंह की डायरी निकाल कर वापस बेड पर आ गया। अपनी पत्नी सावित्री की तरफ एक बार उसने ध्यान से देखा और फिर डायरी खोल कर आगे का किस्सा पढ़ना शुरू कर दिया।

अब आगे,,,,,


किसी ने मेरे चेहरे पर पानी का छिड़काव किया तो कुछ ही पलों में मैं होश में आ गया। मेरी आँखें जब अच्छी तरह से देखने लायक हुईं तो मैंने देखा कि ये कोई दूसरी जगह थी। मैं कुर्सी पर बैठा हुआ था और मेरे सामने वही सफेदपोश खड़ा हुआ था जिसने कार में मेरी आँखों पर काले रंग की पट्टी बाँधी थी। बड़े से हाल में मेरे और उसके अलावा तीसरा कोई नहीं था।

"इस जगह पर तुम्हें पांच दिन रहना है।" उस सफेदपोश आदमी ने कहा____"यहां पर तुम्हारी पहली और सबसे ख़ास ट्रेनिंग होगी। मेरा दावा है कि इन पांच दिनों में तुम पूरी तरह से ट्रेंड हो जाओगे।"

"पर यहाँ पर मेरी किस चीज़ की ट्रेनिंग होगी?" मैंने उत्सुकतावश उससे पूछा_____"और कौन ट्रेंड करेगा मुझे?"
"बहुत जल्द पता चल जाएगा।" उस सफेदपोश आदमी ने कहने के साथ ही अपने दोनों हाथों से तीन बार ताली बजाई जिसके परिणामस्वरूप कुछ ही पलों में एक तरफ से तीन ऐसी लड़कियां हाल में आती नज़र आईं जिनका पहनावा देख कर मेरी आँखें फटी की फटी ही रह गईं थी।

वो तीनों लड़कियां आ कर कतार से खड़ी हो ग‌ईं। मेरी नज़र उन तीनों से हट ही नहीं रही थी। तीनों के दूध जैसे गोरे और सफ्फाक़ बदन पर सिर्फ ब्रा और पेंटी ही थी। ब्रा पेंटी भी ऐसी कि जिसमें उनके अंग साफ़ साफ़ नज़र आ रहे थे। ब्रा ऐसी थी कि उसमें से उन तीनों लड़कियों की चूचियों का सिर्फ निप्पल वाला भाग ही छुपा हुआ था। यही हाल उनकी पेंटी का भी था। एक पतली सी डोरी जो उनकी कमर पर दिख रही थी और चूत के ऊपर सिर्फ चार अंगुल की चौड़ी पट्टी थी। बाकी पूरा जिस्म दूध की तरह गोरा चमक रहा था। तीनों कतार में आ कर ऐसी मुद्रा में खड़ी हो गईं थी जैसे फोटो खिंचवाने का कोई पोज़ दे रही हों। मैं उन तीनों को मंत्र मुग्ध सा देखता ही रहता अगर मेरे कानो में उस सफेदपोश की आवाज़ न पड़ती।

"आज से इस लड़के को ट्रेंड करना शुरू कर दो।" उस सफेदपोश आदमी ने उन तीनों लड़कियों की तरफ देखते हुए कहा_____"लेकिन इस बात का ख़याल रहे कि इसकी ट्रेनिंग पांच दिन के अंदर पूरी हो जाए।"

"फ़िक्र मत कीजिए सर।" तीन लड़कियों में से बीच वाली लड़की ने मुस्कुराते हुए कहा____"पांच दिनों में हम इसे ऐसा ट्रेंड करेंगे कि इसके अंदर किसी भी तरह की कमी या कमज़ोरी नहीं रह जाएगी।"

"बहुत बढ़िया।" सफेदपोश ने कहा_____"मुझे पता है कि तुम तीनों अपना काम बेहतर तरीके से करोगी। ख़ैर अब मैं एक जनवरी को ही आऊंगा। बेस्ट ऑफ़ लक।"

उस सफेदपोश की बात पर तीनों लड़कियों ने मुस्कुराते हुए अपना अपना सिर हिलाया जबकि वो सफेदपोश आदमी हाल के एक तरफ बढ़ता चला गया। उस शख़्स के जाने के बाद उन तीनों लड़कियों ने मेरी तरफ गौर से देखा। इधर अब तक तो मेरी हालत ही ख़राब हो गई थी। पहली बार मैं एक नहीं दो नहीं बल्कि एक साथ तीन तीन लड़कियों को उस हालत में देख रहा था। मेरी धड़कनें ट्रेन की स्पीड से चल रहीं थी और जब उन तीनों ने एक साथ मेरी तरफ देखा तो मुझे ऐसा लगा जैसे ट्रेन की स्पीड से भागती हुई मेरी धड़कनों को एकदम से ब्रेक लग गया हो। दोनों कानों में जैसे कोई भारी हथौड़ा सा बजता सुनाई देने लगा था।

"लगता है तुमने कभी लड़कियों को ऐसी हालत में नहीं देखा।" उन में से एक ने बड़ी अदा से कहा_____"वरना तुम्हारे चेहरे का रंग इस तरह उड़ा हुआ नज़र न आता। ख़ैर फ़िक्र मत करो। हम तीनों सब ठीक कर देंगी।"

उस लड़की ने जब ऐसा कहा तो मैं उन तीनों से नज़र चुराने लगा। असल में अब मुझे बेहद शर्म आने लगी थी जिससे मैं उनसे नज़रें नहीं मिला पा रहा था। इसके पहले जाने कैसे मेरी नज़रें उन तीनों के बेपर्दा जिस्म पर गड़ सी गईं थी।

मुझे नज़रें चुराते देख वो तीनों मेरी तरफ बढ़ीं तो मेरी धड़कनें फिर से तेज़ हो गईं। उधर वो तीनों मेरे क़रीब आईं और एक ने मेरी कलाई पकड़ कर मुझे कुर्सी से उठाया तो मैं अनायास ही उनके थोड़ा सा ज़ोर देने पर कुर्सी से उठ गया। वो तीनों मेरे बेहद क़रीब थीं इस लिए उन तीनों के बदन की खुशबू मेरी नाक में समाने लगी थी। यकीनन कोई बढ़िया वाला इत्र लगा रखा था उन तीनों ने। ख़ैर मैं उठा तो तीनों ने मुझे अलग अलग जगह से पकड़ा और एक तरफ को खींचती धकेलती ले जाने लगीं। मैं बहुत कोशिश कर रहा था कि मैं सामान्य हो जाऊं लेकिन मैं नाकाम ही हो रहा था।

कुछ ही देर में वो तीनों मुझे एक ऐसे कमरे में ले आईं जो बहुत ही सुन्दर था। कमरे के एक तरफ बड़ा सा बेड था और एक तरफ दो सोफे रखे हुए थे। कमरे के एक तरफ एक छोटा सा दरवाज़ा भी था जो कि शायद बाथरूम था। ख़ैर उन तीनों ने मुझे बेड पर बैठा दिया। मैं अंदर से बुरी तरह घबराया हुआ था जिसकी वजह से मेरे चेहरे पर पसीना उभर आया था। मैं उन तीनों के सामने बहुत ही ज़्यादा असहज महसूस कर रहा था।

"माया, इसे ट्रेंड करना इतना आसान नहीं होगा।" एक लड़की की आवाज़ मेरे कानों में पड़ी तो मैंने चेहरा उठा कर उसकी तरफ देखा जबकि उसने माया नाम की लड़की को देखते हुए कहा_____"क्योंकि ये तो बेहद शर्मीला है। देखो तो ये हम तीनों की तरफ देखने से कैसे डर रहा है।"

"सही कहा तबस्सुम ने।" माया ने कहा____"ये हम तीनों के साथ बेहतर महसूस नहीं कर रहा है। ख़ैर कोई बात नहीं, हमारा तो काम ही है लड़कों को इस तरह ट्रेंड करना जिससे कि वो एक भरपूर मर्द बन जाएं और किसी भी लड़की या औरत को पूरी तरह संतुष्ट कर सकें।"

मैं उन तीनों की बातें सुन रहा था और अंदर ही अंदर ये सोच कर घबरा भी रहा था कि जाने ये तीनों मेरे साथ क्या करने वाली हैं? तभी मेरे ज़हन में ख़याल उभरा कि मैं इतना घबरा क्यों रहा हूं? अगर मैं इसी तरह घबराऊंगा तो इनके अनुसार भरपूर मर्द कैसे बन पाऊंगा और जब भरपूर मर्द ही नहीं बन पाऊंगा तो कैसे मैं किसी लड़की या औरत के साथ सेक्स कर सकूंगा जो कि मेरी सबसे बड़ी चाहत है? इस ख़याल के साथ ही मैंने अपने अंदर के तूफ़ान को काबू करने के लिए अपनी आँखें बंद की और गहरी गहरी साँसें लेने लगा।

अभी मैं अपनी आँखें बंद किए गहरी गहरी साँसें ही ले रहा था कि तभी मैं चौंका और झट से आँखें खोल कर देखा। उन में से एक मेरी कोट और स्वेटर उतारने लगी थी और एक दूसरी मेरा पैंट उतारने लगी थी। ये देख कर मैं फिर से घबरा उठा और अपने आपको उनसे छुड़ाने की कोशिश की लेकिन वो न मानी। यहाँ तक कि कुछ ही देर में उन तीनों ने मेरे सारे कपड़े निकाल दिए। अब मैं उन तीनों के सामने बेड पर मादरजात नंगा बैठा हुआ था।

"वैसे मुझे समझ नहीं आ रहा कि तुम जैसे शर्मीले लड़के को यहाँ ले कर क्यों आए हैं सर?" उनमें से उस लड़की ने कहा जिसका नाम तबस्सुम था_____"हालाँकि समझ में तो मुझे ये भी नहीं आ रहा कि ख़ुदा ने तुम्हें लड़का कैसे बना दिया है? तुम्हें तो लड़की बना कर इस दुनियां में भेजना था।"

"य..ये क..क्या कह रही हो तुम?" मैंने हकलाते हुए कहा तो उसने मुस्कुराते हुए कहा____"सच ही तो कह रही हूं मैं। तुम तो इतना ज़्यादा शर्मा रहे हो कि शर्मो हया के मामले में लड़कियां भी तुमसे पीछे हो जाएं। इसी लिए कह रही हूं कि ख़ुदा को तुम्हें लड़की बना कर इस दुनियां में भेजना था।"

"माना कि ये बेहद शर्मीला है तबस्सुम।" तीसरी वाली लड़की ने कहा_____"लेकिन इसका हथियार देख कर तो यही लगता है कि ये एक भरपूर मर्द है।"

उस लड़की ने कहने के साथ ही मेरे लंड को अपनी मुट्ठी में ले लिया जिससे मेरे मुख से सिसकी निकल गई। पहली बार किसी लड़की के कोमल हाथ मेरे लंड पर पड़े थे। मेरा पूरा बदन झनझना गया था और मेरे जिस्म में कम्पन होने लगा था। उधर उस लड़की की बात सुन कर बाकी दोनों ने भी मेरे लंड की तरफ देखा।

"अरे! वाह।" माया ने कहा_____"तूने सच कहा कोमल। इसका हथियार तो सच में काफी तगड़ा लगता है। जब हल्के नींद में होने पर इसका ये साइज़ है तो जब ये पूरी तरह जाग जाएगा तो कितना बड़ा हो जाएगा। बड़ी हैरत की बात है कि इतना बड़ा हथियार लिए ये लड़का अब तक किसी लड़की के संपर्क में कैसे नहीं पहुंचा?"

"ज़ाहिर है अपने शर्मीले स्वभाव की वजह से।" कोमल ने हंसते हुए कहा_____"ख़ैर अब हमें सबसे पहले इसकी शर्म को ही दूर करना पड़ेगा।"
"सही कहा तुमने।" तबस्सुम ने कहा____"चलो ले चलो इसे बाथरूम में।"

वो तीनों हंसी मज़ाक कर रहीं थी और मैं उन तीनों के बीच सहमा सा बैठा हुआ था। हालांकि मैं बहुत कोशिश कर रहा था कि मैं एकदम से सामान्य ही रहूं लेकिन मैं सामान्य नहीं हो पा रहा था। ख़ैर तीनों मुझे ले कर उसी कमरे में बने बाथरूम में गईं जहां पर बड़ा सा एक बाथटब था। मैंने देखा बाथटब में पहले से ही पानी भरा हुआ था जिसके ऊपर ढेर सारा झाग था। माया ने मुझे पकड़ रखा था और मैं अपने लंड को दोनों हाथों से छुपाए चुपचाप खड़ा था।

माया के अलावा बाकी दोनों लड़कियों ने अपने अपने जिस्म से बचे हुए वस्त्र भी निकाल दिए। मैं हैरान था कि मेरे सामने उन्हें लेश मात्र भी शर्म नहीं आ रही थी। ब्रा पैंटी के हटते ही उन दोनों की बड़ी बड़ी दुधिया छातियां उजागर हो ग‌ईं थी। पिंक कलर के निप्पल और निप्पल के चारो तरफ सुर्ख रंग का घेरा जो हल्का डार्क था। मेरी नज़र उन दोनों की चूचियों पर मानो जम सी गई। तभी दोनों ने मेरी तरफ मुस्कुरा कर देखा तो मैं एकदम से झेंप गया और अपनी नज़रें चुराने लगा। उधर इन दोनों को इस तरह नंगा देख मेरा लंड तेज़ी से सिर उठाते हुए खड़ा हो गया था, जो कि अब मेरे छुपाने से भी छुप नहीं रहा था। तीनों ने मेरे लंड की तरफ देखा तो उनके चेहरे पर हैरानी के भाव उभर आए।

मेरी हालत तो बहुत ज़्यादा ख़राब हो चली थी। उन तीनों हसीनाओं के सामने मैं इस हालत में अपने आपको बहुत ही लाचार सा महसूस कर रहा था। ख़ैर तीनों ने मुझे बाथटब के पानी में लगभग लिटा सा दिया। उधर तबस्सुम और कोमल भी बाथटब में मेरे दोनों तरफ से आ ग‌ईं। मैं अजीब सी कस्मकस में था किन्तु जो हो रहा था उसे रोक नहीं रहा था। मैं भले ही इस वक़्त बहुत ही ज़्यादा घबराया हुआ और दुविधा जैसी हालत में था लेकिन मैं इतना तो समझ ही रहा था कि जो कुछ भी ये लोग कर रही हैं वो मेरे भले के लिए ही है। इस लिए मैं उन्हें किसी बात के लिए रोक नहीं रहा था।

बाथटब में आने के बाद कोमल और तबस्सुम ने मुझे नहलाना शुरू कर दिया। वो बहुत ही आहिस्ता से और मादक अंदाज़ में मेरे बदन पर अपने हाथ फेरती जा रहीं थी। उनके हाथों के स्पर्श से मुझे बेहद मज़ा आने लगा था जिससे मेरी आँखें बंद हो गईं थी। मेरे दिल की धड़कनें बड़ी तेज़ी से चल रहीं थी जिन्हें मैं काबू में करने का प्रयास कर रहा था। काफी देर तक उन दोनों ने मेरे पूरे बदन पर उस झाग मिश्रित पानी को डाल डाल कर अपने हाथों को फेरा उसके बाद सहसा उनके हाथ मेरे बदन के निचले हिस्से की तरफ बढ़ने लगे। मेरे जिस्म में मज़े की लहर दौड़ रही थी और जैसे जैसे उनके हाथ मेरे बदन के निचले हिस्से की तरफ बढ़ रहे थे वैसे वैसे मेरी धड़कनें भी बढ़ती जा रहीं थी। कुछ ही पलों में मुझे उस वक़्त झटका लगा जब उनका एक हाथ एकदम से मेरे लंड पर पहुंच गया। मेरे लंड के चारो तरफ घने बाल थे जिन पर वो अपने हाथ की उंगलियां भी फेरने लगीं थी। मैं साँसें रोके और आँखें बंद किए इस सनसनीखेज़ मज़े में डूबा जा रहा था।

मेरी आँखें बंद थी इस लिए मुझे ये नहीं दिख रहा था कि वो ये सब करते हुए मेरी तरफ देख रहीं थी कि नहीं। मैं तो बस अपने बदन पर हो रही सुखद तरंगों के एहसास में ही डूबा हुआ था। तभी मैं चौंका जब कोई कोमल सी चीज़ मेरे होठों पर हल्के से छू गई। मैंने झट से आँखें खोली तो देखा एक चेहरा मेरे चेहरे पर झुका हुआ था। पहले तो मैं अंदर ही अंदर बुरी तरह घबरा गया किन्तु फिर एकदम से शांत पड़ गया। उन में से कोई मेरे होठों को चूमने लगी थी। उसकी गर्म गर्म साँसें मेरे चेहरे पर ऐसा ताप छोड़ रहीं थी कि मुझे लगा मेरा चेहरा उस ताप से झुलस ही जाएगा। ये सब मेरे लिए पहली बार ही था और ऐसे मज़े का अनुभव भी पहली बार ही मैं कर रहा था। उधर कुछ पलों तक मेरे होठों को चूमने के बाद उस लड़की ने सहसा मेरे होठों को अपने मुँह में भर लिया और मेरे निचले होठ को ऐसे चूसने लगी जैसे कोई छोटा सा बच्चा अपनी माँ के स्तनों को चूसने लगता है। जल्दी ही मेरी ऐसी हालत हो गई कि मुझे सांस लेना भी मुश्किल पड़ने लगा।

अभी मैं इसी में फंसा हुआ था कि तभी नीचे तरफ किसी ने मेरे लंड को अपनी मुट्ठी में जकड़ लिया। मेरा लंड अब तक पूरी तरह अपनी औकात पर आ चुका था। मेरे जिस्म को अब झटके से लगने लगे थे। मेरे जिस्म में दौड़ता हुआ लहू बड़ी तेज़ी से मेरे जिस्म के उस हिस्से की तरफ भागता जा रहा था जिसे उनमे से किसी ने अपनी मुट्ठी में जकड़ लिया था। मेरे मुख से सिसकियां निकली थी जो कि उस लड़की के मुँह में ही दफ़न हो गईं जिसने मेरे होठों को अपने मुँह में भर रखा था। जब मुझे सांस लेना मुश्किल होने लगा तो मैंने झटके से अपने सिर को पीछे कर लिया। सिर पीछे होते ही मैं ऐसे हांफने लगा था जैसे मीलों दौड़ कर आया था। आँखें खुली तो सामने माया के चेहरे पर मेरी नज़र पड़ी। उसकी आँखों में लाल डोरे तैरते दिखे मुझे और साथ ही उसका चेहरा सुर्ख पड़ा हुआ नज़र आया।

उधर नीचे तरफ मेरे लंड को मुट्ठी में जकड़े उन दोनों में से कोई ऊपर नीचे करने लगी थी। उन दोनों के हाथ नहीं दिख रहे थे इस लिए मैं ये नहीं जान पाया कि उनमें से मेरे लंड को किसने अपनी मुट्ठी में जकड़ रखा है?

"दम तो है लड़के में।" कोमल ने मुस्कुराते हुए माया की तरफ देखा____"वरना इतने में ही ये झड़ गया होता।"
"सही कहा।" माया ने कहा____"मैं भी यही परख रही थी कि ये अपने जज़्बातों को कितनी देर तक काबू किए रहता है। माना कि ये स्वभाव से शर्मीला है लेकिन इसके निचले हिस्से पर ख़ास बात है। ख़ैर इसे नहला कर जल्दी से बाहर ले आओ।"

माया के कहने पर उन दोनों ने मुझे नहलाना शुरू कर दिया। कुछ देर में दोनों ने मुझे बाथटब से बाहर निकाला और फिर शावर चला कर मेरे पूरे बदन को पानी से अच्छे से धोया। वो दोनों तो अपने काम में लगी हुईं थी लेकिन मैं उन दोनों की हिलती उछलती चूचियों को अपलक देख रहा था जिससे मेरा लंड शांत होने का नाम ही नहीं ले रहा था। मेरा मन कर रहा था कि मैं उन दोनों की बड़ी बड़ी और सुन्दर सी चूचियों को दोनों हाथों से पकड़ लूं और फिर ज़ोर ज़ोर से उन्हें मसलना शुरू कर दूं किन्तु ऐसा करने की मुझमें हिम्मत नहीं हो रही थी। ख़ैर कुछ ही देर में शावर बंद हुआ और फिर वो दोनों मेरे बदन को टॉवल से पोंछने लगीं। वो दोनों भी मेरे साथ साथ ही भींग गईं थी।

कोमल और तबस्सुम के साथ जब मैं वापस कमरे में आया तो देखा कमरे के नीचे बीचो बीच क़रीब ढाई या तीन फुट ऊँची और क़रीब छः फुट लम्बी एक टेबल रखी हुई थी जिसमें मोटे लेदर का एक कपड़ा बिछा हुआ था। उसी टेबल के उस पार माया खड़ी थी। उसके जिस्म पर अभी भी सिर्फ ब्रा और पेंटी थी। मेरे ज़हन में ख़याल उभरा कि इस संस्था वाले इतनी सुन्दर लड़कियां कहां से ले कर आए होंगे? हालांकि वो तीनों अपने ही देश की लगती थीं लेकिन मैंने अब तक जितनी भी लड़कियों को देखा था वो तीनों उन सबसे कहीं ज़्यादा खूबसूरत थीं और उनका बदन तो ऐसे था जैसे किसी मूर्तिकार ने बड़ी ही फुर्सत और लगन से उन तीन खूबसूरत मूर्तियों को रचा हो।

"इस टेबल पर पेट के बल लेट जाओ डियर।" माया ने बड़े ही प्रेम और अदा से कहा____"हम तीनों तुम्हारा मसाज करेंगी और वो भी ऐसा मसाज जिसकी तुमने कभी कल्पना भी न की होगी।"

माया की इस बात को सुन कर मैं कुछ न बोला, बल्कि जब कोमल और तबस्सुम ने मुझे टेबल की तरफ हल्के से धकेला तो मैं आगे बढ़ चला। कुछ ही पलों में मैं उस टेबल पर पेट के बल लेटा हुआ था। इस वक़्त मुझे बहुत ही ज़्यादा शर्म आ रही थी। ये तीनों लड़कियां तो ऐसी थीं जैसे इन्होंने शर्म नाम की चीज़ को किसी बड़े से बाज़ार में बेंच दिया हो।

टेबल पर लेटे हुए मेरी गर्दन बाएं तरफ मुड़ी हुई थी जिससे मेरी नज़र कोमल और तबस्सुम दोनों की ही चिकनी चूत पर जा पड़ी थी। उन दोनों की चूत पर मेरी नज़र जैसे गड़ सी गई थी जिसका असर ये हुआ कि टेबल पर दबा हुआ मेरा लंड जो अब थोड़ा शांत सा होने लगा था वो फिर से अपनी औकात पर आने लगा। तभी वो दोनों मेरी तरफ बढ़ीं जिससे उनकी चूतें भी मेरी आँखों के क़रीब आने लगीं। मेरी धड़कनें ये देख कर और भी तेज़ हो गईं। तभी मेरी पीठ पर कोई तरल सी चीज़ गिरने लगी जिससे मेरा बदन कांप सा गया।

मेरी पीठ पर कोई तरल पदार्थ गिराया गया था और उसके कुछ ही पलों बाद दो कोमल हाथों ने उस तरल पदार्थ को मेरी पीठ पर हल्के हाथों से फेरना शुरू कर दिया। मुझे बेहद मज़ा आने लगा था जिसकी वजह से मेरी आँखें बंद हो गईं और कुछ देर पहले जो चिकनी चूतें मुझे क़रीब से दिख रहीं थी वो गायब हो गईं। अभी मैं मज़े में आँखें बंद किए लेटा ही था कि तभी मेरी टांगों पर भी तरल पदार्थ गिरा और फिर वैसे ही कोमल हाथ मेरी टांगों पर फिसलने लगे।

वैसे तो कमरे में किसी की भी आवाज़ नहीं आ रही थी लेकिन मेरे कानों में हथौड़ा सा बजता प्रतीत हो रहा था। कुछ ही देर में मेरी पीठ और दोनों टाँगें उस तरल पदार्थ से चिपचिपी सी हो गईं, यहाँ तक कि मेरा पिछवाड़ा भी।

"चलो अब सीधा लेट जाओ।" कुछ देर बाद उनमें से किसी ने कहा तो मैं मज़े की दुनियां से बाहर आया। मुझे अपनी हालत का एहसास हुआ तो एक बार फिर से मेरे अंदर शर्म और घबराहट उभरने लगी जिसे मैंने बड़ी मुश्किल से दबाने की कोशिश की और सीधा हो कर लेट गया।

सीधा हो कर जैसे ही मैं लेटा तो मेरी नज़र बारी बारी से उन तीनों पर पड़ी। कोमल और तबस्सुम तो पूरी नंगी ही थीं लेकिन माया के बदन पर अभी भी ब्रा और पेंटी थी। हालांकि मेरी हालत ख़राब होने के लिए यही बहुत था। कोमल और तबस्सुम की बड़ी बड़ी सुडौल चूचियों को देखते ही मेरा लंड झटके खाने लगा था और जैसे ही मेरी नज़र उन दोनों की चूचियों से फिसल कर दोनों की टांगों के बीच नज़र आ रही चिकनी चूत पर पड़ी तो मुझे ऐसा लगा जैसे कि मेरे लंड से मेरा पानी पूरी स्पीड से निकल जाएगा। उन तीनों की नज़रें मेरे लंड पर ही टिकी हुईं थी जिससे मुझे शर्म भी आने लगी थी लेकिन मैंने इस बार अपने लंड को हाथों से छुपाने की कोई कोशिश नहीं की।

"इसका लंड तो सच में काफी तगड़ा है कोमल।" तबस्सुम ने मुस्कुराते हुए कहा_____"इसे देख कर लगता है कि अभी इसे अपनी चूत में भर लूं।"
"इतनी बेसब्र क्यों हो रही हो तुम?" माया ने सपाट लहजे में कहा_____"ये मत भूलो कि इसे हमारे पास ट्रेंड करने के लिए लाया गया है। अगर तुम ख़ुद ही अपना संयम खोने लगोगी तो इसे संयम करना कैसे सिखाओगी?"

"तू तो ऐसे कह रही है जैसे इसका लंड देख कर तेरी अपनी चूत में कोई खुजली ही न हो रही हो।" तबस्सुम ने बुरा सा मुँह बनाते हुए कहा_____"शायद इसी लिए अब तक तूने अपनी ब्रा पेंटी को अपने बदन से अलग नहीं किया है।"

"हमसे ज़्यादा सेक्स की गर्मी तो इसी के अंदर है तबस्सुम।" कोमल ने हंसते हुए कहा_____"सच को छुपाने के लिए हम पर अपना रौब झाड़ती रहती है।"
"मैंने कब रौब झाड़ा तुम पर?" माया ने आँखें दिखाते हुए कहा____"अब बातों में समय न गंवाओ और आगे का काम शुरू करो।"

माया की बात सुन कर दोनों ने मुस्कुराते हुए मेरी तरफ देखा और फिर कोमल ने अपने हाथ में ली हुई एक बड़ी सी कटोरी को तबस्सुम की तरफ बढ़ाया तो तबस्सुम ने उस कटोरी में अपने दोनों हाथ डाले और ढेर सारा तरल पदार्थ कटोरी से लेकर मेरे पेट से ले कर सीने तक गिरा दिया। उसके बाद उसने फिर से कटोरी से तरल पदार्थ लिया और इस बार उसे मेरे पेट के नीचे नाभि से होते हुए लंड पर और फिर जाँघों पर गिराया।

कटोरी रखने के बाद तबस्सुम के साथ कोमल भी आगे बढ़ कर मेरे बदन पर उस तरल पदार्थ को अपने कोमल कोमल हाथों से मलने लगी। कोमल मेरे सीने पर और तबस्सुम मेरी जाँघों से ले कर मेरे पेट तक मलने लगी थी। दोनों मेरे अगल बगल से खड़ी हो कर ये सब कर रहीं थी। मेरी नज़रें उनकी हिल रही चूचियों पर टिकी हुईं थी और मेरा लंड बैठने का नाम नहीं ले रहा था। मेरा बहुत मन कर रहा था कि मैं अपना एक हाथ बढ़ा कर कोमल की बड़ी बड़ी चूचियों को पकड़ लूं लेकिन मुझमें ऐसा करने की हिम्मत नहीं हो रही थी।

अभी मैं कोमल की चूची को पकड़ने का सोच ही रहा था कि तभी मुझे झटका लगा। तबस्सुम ने मेरे लंड को अपनी मुट्ठी में ले लिया था। उसकी मुट्ठी में जैसे ही मेरा लंड आया तो मेरे मुँह से सिसकी निकल गई। मेरे दिल की धड़कनें तेज़ हो गईं। उधर तबस्सुम मेरे लंड को उस तरल पदार्थ से भिगो रही थी और साथ ही मेरे लंड को दोनों हाथों से पकड़ कर कभी ऊपर तो कभी उसकी खाल को नीचे करने लगी। मैं मज़े के सातवें आसमान में पहुंच गया। मेरे पूरे बदन में बड़ी तेज़ी से सुरसुराहट होने लगी थी जो मेरे लंड की ही तरफ तेज़ी से बढ़ती हुई जा रही थी।

मैं आँखें बंद किए ज़ोर ज़ोर से सिसकियां ले रहा था और उधर तबस्सुम मेरे लंड को उस तरल पदार्थ से भिगोते हुए मुट्ठ सी मार रही थी। अभी मैं इस मज़े में ही था कि तभी फिर से मुझे झटका लगा और मैंने फ़ौरन ही अपनी आँखें खोल दी। मैंने देखा कि कोमल जो इसके पहले नीचे खड़े हो कर मेरे सीने और पेट पर मसाज कर रही थी वो अब टेबल पर चढ़ कर मेरे ऊपर आ गई थी। मैं ये देख कर बुरी तरह हैरान हो गया था। तभी वो मेरे ऊपर लेट गई जिससे उसकी बड़ी बड़ी चूचियां मेरे चिपचिपे सीने में धंस गईं और साथ ही उसका निचला हिस्सा मेरे लंड के ऊपर आ गया जिससे मेरा लंड उसकी चूत के पास दस्तक देने लगा। ये सब देख कर मुझे लगा कि मुझे दिल का दौरा ही पड़ जाएगा। बड़ी मुश्किल से मैंने खुद को सम्हाला।

माया ने तबस्सुम को कोई इशारा किया जिससे तबस्सुम ने उस कटोरी को उठाया और सारा तरल पदार्थ कोमल के ऊपर उड़ेल दिया जिससे वो बड़ी तेज़ी से बहता हुआ मेरे बदन पर भी आ गया। कोमल मेरे ऊपर लेटी हुई थी और मैं साँसें रोके अचरज से उसे देखे जा रहा था। तभी कोमल ने चेहरा घुमा कर मेरी तरफ देखा। उसके खूबसूरत होठों पर बड़ी ही मनमोहक मुस्कान उभर आई। उसने दोनों हाथों से टेबल को पकड़ा और अपने जिस्म को मेरे जिस्म के ऊपर फिसलाने लगी जिससे उसकी बड़ी बड़ी चूचियां मेरे सीने से फिसलती हुई मेरे पेट की तरफ जाने लगीं। कुछ ही पलों में उसकी दोनों चूचियां मेरे पेट और नाभि से होते हुए मेरे झटका खा रहे लंड पर पहुंच ग‌ईं। मेरा लंड उसकी दोनों चूचियों के बीच जैसे फंस सा गया। एक बार फिर से मेरे मुख से मज़े में डूबी सिसकारी निकल गई और साथ ही कराह भी। क्योंकि मेरे लंड की खाल पीछे की तरफ थोड़ा खिंच सी गई थी। उधर कोमल ने मेरी तरफ देखते हुए फिर से ज़ोर लगाया और नीचे से ऊपर आने लगी। उसकी बड़ी बड़ी चूचियां मेरे पेट से होते हुए वापस मेरे सीने पर आ ग‌ईं।

मैं आँखें बंद किए हुए मज़े में डूबा सिसकारियां भर रहा था कि तभी मेरे चेहरे पर कुछ चिपचिपा सा टकराया तो मैंने आँखें खोल कर देखा। कोमल की चूचियां उस तरल पदार्थ में सनी हुई मेरे चेहरे पर छू गईं थी। मैंने नज़र उठा कर कोमल की तरफ देखा तो उसे मुस्कुराते हुए ही पाया।

"ये तो छुपा रुस्तम निकला माया।" उधर तबस्सुम की आवाज़ मेरे कानों में पड़ी_____"ये तो अभी तक टिका हुआ है। इसकी जगह कोई दूसरा होता तो अब तक दो तीन बार अपना पानी फेंक चुका होता।"
"हां मैं भी यही सोच रही थी।" माया ने सिर हिलाते हुए कहा_____"इसके आव भाव देख कर शुरुआत में यही लगा था कि ये हम तीनों को नंगा देखते ही अपना पानी छोड़ देगा लेकिन नहीं, ये तो इतना कुछ होने के बाद भी टिका हुआ है। इसका मतलब ये हुआ कि ये बहुत ही ख़ास है।"

"इसका मतलब तो ये भी हुआ कि हमें इसके संयम की परीक्षा लेने की अब कोई ज़रूरत नहीं है।" तबस्सुम ने कहा_____"बल्कि इसे अब ये सिखाना है कि किसी औरत को कैसे संतुष्ट किया जाता है?"
"सही कहा तुमने।" माया ने कहा_____"हमें अब यही सिखाना होगा इसे। चलो जाओ इसे फिर से नहला कर लाओ।"

माया के कहते ही कोमल मेरे ऊपर से उतर गई। उसके उतरते ही मुझे बहुत बुरा लगा। कितना मज़ा आ रहा था मुझे जब कोमल की बड़ी बड़ी चूचियां मेरे जिस्म पर फिसल रहीं थी। ख़ैर अब क्या हो सकता था? माया के कहे अनुसार कोमल और तबस्सुम मुझे फिर से बाथरूम ले गईं और अच्छे से नहलाया। उसके बाद मैं उन दोनों के साथ वापस कमरे में आ गया। कमरे में आया तो देखा उस टेबल को हटा दिया गया था जिसके ऊपर लेटा कर मेरा मसाज किया जा रहा था।

कमरे में एक तरफ रखे आलीशान बेड पर माया पहले से ही बैठी हुई थी। उसके जिस्म पर अभी भी ब्रा और पेंटी ही थी। मुझे देखते ही माया बेड से उठी और मेरे पास आई। मेरी धड़कनें ये सोच कर फिर से बढ़ गईं कि अब इसके आगे क्या क्या होने वाला है। हालांकि उनकी बातों से मैं जान तो गया था कि आगे क्या होगा लेकिन वो सब किस तरीके से होगा ये जानने की उत्सुकता प्रबल हो उठी थी मेरे मन में।

☆☆☆
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#8
Nice story sir
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#9
अध्याय - 06
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अब तक,,,,,

कमरे में एक तरफ रखे आलीशान बेड पर माया पहले से ही बैठी हुई थी। उसके जिस्म पर अभी भी ब्रा और पेंटी ही थी। मुझे देखते ही माया बेड से उठी और मेरे पास आई। मेरी धड़कनें ये सोच कर फिर से बढ़ गईं कि अब इसके आगे क्या क्या होने वाला है। हालांकि उनकी बातों से मैं जान तो गया था कि आगे क्या होगा लेकिन वो सब किस तरीके से होगा ये जानने की उत्सुकता प्रबल हो उठी थी मेरे मन में।

अब आगे,,,,,


शिवकांत वागले डायरी में लिखी विक्रम सिंह की कहानी को पढ़ने में खोया ही हुआ था कि तभी किसी आहट से उसका ध्यान भंग हो गया। उसने चौंक कर इधर उधर देखा। नज़र गहरी नींद में सो रही सावित्री पर पड़ी। सावित्री ने नींद में ही उसकी तरफ को करवट लिया था। शिवकांत को सहसा वक़्त का ख़्याल आया तो उसने हाथ में बंधी घड़ी पर समय देखा। रात के क़रीब सवा दो बज रहे थे। वागले समय देख कर चौंका। उसने एक गहरी सांस ली और डायरी को बंद करके ब्रीफकेस में चुपचाप रख दिया।

डायरी को यथास्थान रखने के बाद वागले बेड पर करवट ले कर लेट गया था। कुछ देर तक वो विक्रम सिंह और उसकी कहानी के बारे में सोचता रहा और फिर गहरी नींद में चला गया। दूसरे दिन वो अपने समय पर ड्यूटी पहुंचा। आज जेल में कुछ अधिकारी आए हुए थे जिसकी वजह से उसे विक्रम सिंह की कहानी पढ़ने का मौका ही नहीं मिला। सारा दिन किसी न किसी काम में व्यस्तता ही रही।

शाम को वो अपनी ड्यूटी से फ़ारिग हो कर घर पहुंचा। रात में डिनर करने के बाद वो सीधा अपने कमरे में आ कर बेड पर लेट गया। जब से उसने विक्रम सिंह की डायरी में उसकी कहानी पढ़ना शुरू किया था तब से ज़्यादातर उसके दिलो-दिमाग़ में विक्रम सिंह का ही ख़्याल चलता रहता था। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि विक्रम सिंह अपनी पिछली ज़िन्दगी में इस तरह का इंसान था या उसका इतिहास ऐसा था। बेड पर लेटा वो सोच रहा था कि अगर विक्रम सिंह का शुरूआती जीवन इस तरह से शुरू हुआ था तो फिर बाद में आख़िर ऐसा क्या हुआ था जिसकी वजह से उसने अपने ही माता पिता की बेरहमी से हत्या की होगी?

शिवकांत वागले ने इस बारे में बहुत सोचा लेकिन उसे कुछ समझ में नहीं आया। थक हार कर उसने अपने ज़हन से इस बात को झटक दिया और फिर ये सोचने लगा कि डायरी के अनुसार कैसे विक्रम सिंह अपने शुरूआती दिनों में उन तीन तीन सुन्दर लड़कियों के साथ मसाज करवा रहा था और वो तीनों लड़कियां एकदम नंगी हो कर उसके जिस्म के हर अंग से खेल रहीं थी। उस वक़्त विक्रम सिंह की क्या हालत थी ये उसने विस्तार से अपनी डायरी में लिखा था।

वागले की आँखों के सामने डायरी में लिखा गया उस वक़्त का एक एक मंज़र जैसे उजागर होने लगा था। वागले की आँखें जाने किस शून्य को घूरने लगीं थी। आँखों के सामने उजागर हो रहे उन तीनों लड़कियों के नंगे जिस्मों ने उसके अपने जिस्म में एक हलचल सी मचानी शुरू कर दी थी। वागले को पता ही नहीं चला कि कब उसकी बीवी सावित्री कमरे में आई और कब वो उसके बगल में एक तरफ लेट गई थी।

"कहां खोए हुए हैं आप?" सावित्री ने वागले को कहीं खोए हुए देखा तो उसने फौरी तौर पर पूछा_____"सोना नहीं है क्या आपको?"
"आं हां।" वागले ने चौंक कर उसकी तरफ देखा_____"तुम कब आई?"

"कमाल है।" सावित्री ने थोड़े हैरानी वाले लहजे में कहा____"आपको मेरे आने की भनक भी नहीं लगी, ऐसा कैसे हो सकता है?"
"अरे! वो मैं।" वागले ने बात को सम्हालते हुए कहा_____"एक क़ैदी के बारे में सोच रहा था न तो शायद इसी लिए मुझे तुम्हारे आने का आभास ही नहीं हो पाया।"

"मैंने कितनी बार कहा है आपसे कि क़ैदियों के ख़याल अपने जेल में ही लाया कीजिए।" सावित्री ने बुरा सा मुँह बनाया____"यहां घर में उन अपराधियों के बारे में मत सोचा कीजिए।"

"ग़लती हो गई भाग्यवान।" वागले ने सावित्री की तरफ करवट लेते हुए मुस्कुरा कर कहा____"अब से किसी क़ैदी के बारे में घर पर नहीं सोचूंगा लेकिन घर आने के बाद तुम्हारे बारे में तो सोच सकता हूं न?"

"क्या मतलब?" सावित्री ने अपनी भौंहें सिकोड़ी।
"मतलब ये कि घर में मैं अपनी जाने बहार के बारे में तो सोच ही सकता हूं।" वागले ने मीठे शब्दों में कहा____"वैसे एक बात कहूं??"

"कहिए क्या कहना चाहते हैं?" सावित्री ने वागले की तरफ देखते हुए कहा तो वागले ने मुस्कुराते हुए कहा____"मैं ये कहना चाहता हूं कि तुम पहले से ज़्यादा खूबसूरत लगने लगी हो और मेरा मन करता है कि मैं अपनी इस खूबसूरत पत्नी को जी भर के प्यार करुं।"

"आप फिर से शुरू हो गए?" सावित्री ने आँखें दिखाते हुए कहा_____"आज कल कुछ ज़्यादा ही प्यार करने की बातें करने लगे हैं आप। अरे! कुछ तो बच्चों के बारे में सोचिए।"

"तो तुम्हें क्या लगता है कि मैं बच्चों के बारे में नहीं सोचता?" वागले ने कहा_____"जबकि अपनी समझ में मैं हमारे बच्चों के लिए वो सब कुछ कर रहा हूं जो एक अच्छे पिता को करना चाहिए। भगवान की दया से हमारे दोनों बच्चे भी सकुशल हैं और सही राह पर हैं। अब भला और क्या सोचूं उनके बारे में? सच तो ये है भाग्यवान कि बच्चों के साथ साथ तुम्हारे बारे में भी सोचना मेरा फ़र्ज़ है और मैं अपने फ़र्ज़ को अच्छी तरह से निभाना चाहता हूं।"

"बातें बनाना आपको खूब आता है।" सावित्री कहने के साथ ही दूसरी तरफ को करवट ले कर लेट गई। जबकि वागले कुछ पल उसकी पीठ को घूरता रहा और फिर खिसक कर सावित्री के पास पहुंच गया।

"मैं मानता हूं मेरी जान कि तुम दिन भर के कामों से बुरी तरह थक जाती हो।" वागले ने पीछे से अपनी बीवी सावित्री को अपनी आगोश में भरते हुए कहा_____"लेकिन मेरा यकीन मानो डियर। मैं इस तरह से तुम्हें प्यार करुंगा कि तुम्हारी सारी थकान पलक झपकते ही दूर हो जाएगी।"

"इसकी कोई ज़रूरत नहीं है।" सावित्री ने अपने पेट से वागले के हाथ को हटाते हुए कहा_____"और मुझे परेशान मत कीजिए। चुप चाप सो जाइए।"
"तुम्हारी इन बातों से मुझे अच्छी तरह पता चल गया है सवित्री।" वागले ने कहा_____"कि तुम्हारे दिल में मेरे लिए कोई जज़्बात नहीं है। ठीक है फिर, आज के बाद मैं भी तुमसे इस बारे में कोई बात नहीं करुंगा।"

शिवकांत वागले का दिमाग भन्ना सा गया था। ये सच है कि सावित्री कभी भी अपनी तरफ से पहल नहीं करती थी और अगर वो ख़ुद कभी उसको प्यार करने को कहे तो सावित्री उससे यही सब कह कर उसे मायूस कर देती थी। किन्तु आज की बात अलग थी, आज वागले का सच में बेहद मन कर रहा था कि वो अपनी खूबसूरत बीवी को प्यार करे। उसके अंदर विक्रम सिंह की कहानी ने एक उत्तेजना सी भर दी थी किन्तु सावित्री ने जब इस तरह से बातें सुना कर उसे प्यार करने से इंकार किया तो उसे ज़रा भी अच्छा नहीं लगा था। वो एक झटके से सावित्री से दूर हुआ और बेड से उतर कर कमरे से बाहर निकल गया।

वागले के इस तरह चले जाने से पहले तो सावित्री चुपचाप पड़ी ही रही लेकिन जब उसे आभास हुआ कि वागले कमरे से ही चला गया है तो उसने पलट कर दरवाज़े की तरफ देखा। कमरे में बल्ब का प्रकाश फैला हुआ था और सावित्री को कमरे में वागले नज़र न आया। कुछ देर तक वो खुले हुए दरवाज़े की तरफ देखती रही और फिर वो पहले की ही तरह करवट के बल लेट गई। उसने कमरे से बाहर निकल कर ये देखने की कोई भी कोशिश नहीं की कि वागले कमरे से निकल कर आख़िर गया कहां होगा? शायद उसे ये लगा था कि वागले किचेन में पानी पीने गया होगा।

दिन भर के कामों की वजह से थकी हुई सावित्री कुछ ही देर में गहरी नींद में जा चुकी थी। उधर वागले कमरे से निकल कर सीधा किचन में गया और पानी पीने के बाद ड्राइंग रूम में रखे सोफे पर बैठ गया। इस वक़्त उसके चेहरे पर बड़े ही शख़्त भाव थे। काफी देर तक वो सोफे में बैठा जाने क्या क्या सोचता रहा और फिर उसी सोफे पर लेट कर सो गया।

रात सोफे पर ही गुज़र गई। सुबह वो जल्दी ही उठ जाता था इस लिए सुबह नित्य कर्मों से फुर्सत हो कर वो नहाया धोया। सावित्री को भी सुबह जल्दी ही उठने की आदत थी। वो वागले से पहले ही उठ जाती थी, इस लिए जब वो सुबह उठी थी तो कमरे में वागले को न पा कर पहले तो वो सोच में पड़ गई थी फिर बाथरूम में घुस गई थी।

सावित्री किचेन में नास्ता बना रही थी जबकि वागले अपनी वर्दी पहन कर और ब्रीफ़केस ले कर बाहर आया। दोनों बच्चे भी उठ चुके थे और नित्य क्रिया से फुर्सत हो कर डाइनिंग टेबल पर नास्ते का इंतज़ार कर रहे थे। शिवकांत वागले ब्रीफ़केस ले कर कमरे से बाहर आया और बिना किसी से कुछ बोले घर से बाहर निकल गया। उसके इस तरह चले जाने से दोनों बच्चे पहले तो हैरान हुए लेकिन फिर ये सोच कर सामान्य हो गए कि शायद उनके पिता को ड्यूटी पर पहुंचना बेहद ज़रूरी रहा होगा, जैसा कि इस पेशे में अक्सर होता ही रहता है। हालांकि बच्चों को पता था कि अगर उनके पिता को जल्दी ही ड्यूटी पर जाना होता था तो वो ब्रेकफास्ट अपने साथ ही ले कर चले जाते थे किन्तु आज ऐसा नहीं हुआ था। वागले की बेटी ने फ़ौरन की किचेन में जा कर सावित्री को बताया कि पापा अपना ब्रीफ़केस ले कर ड्यूटी चले गए हैं। बेटी की ये बात सुन कर सावित्री मन ही मन बुरी तरह चौंकी थी। उसे पहली बार एहसास हुआ कि उसका पति सच में उससे नाराज़ हो गया है। इस एहसास के साथ ही वो थोड़ा चिंतित हो गई थी।

उधर वागले जेल पहुंचा। उसके ज़हन में कई सारी बातें चल रही थी जिनकी वजह से उसके चेहरे पर कई तरह के भावों का आवा गवन चालू था। जेल का चक्कर लगाने के बाद वो अपने केबिन में आया और कुछ ज़रूरी फाइल्स को देखने लगा। क़रीब एक घंटे बाद वो फुर्सत हुआ। इस बीच उसने एक सिपाही के द्वारा एक ढाबे से नास्ता मगवा लिया था। नास्ता करने के बाद उसने ब्रीफ़केस से विक्रम सिंह की डायरी निकाली और आगे की कहानी पढ़ने लगा।

☆☆☆

मैं अंदर से घबराया हुआ तो था किन्तु मेरे मन में ये उत्सुकता भी प्रबल हो रही थी कि अब ये तीनों नंगी पुंगी हसीनाएं मेरे साथ क्या क्या करेंगी। माया की बात मुझे अब तक याद थी जब उसने कोमल और तबस्सुम से ये कहा था कि अब मुझे सिर्फ ये सिखाना है कि किसी औरत को संतुस्ट कैसे किया जाता है। मतलब साफ़ था कि अब वो तीनों मुझे सेक्स का ज्ञान कराने वाली थीं। मैं मन ही मन ये सोच कर बेहद खुश भी हो रहा था कि अब ये तीनों मेरे साथ सेक्स करेंगी और मेरी सबसे बड़ी चाहत पूरी होगी। मैं क्योंकि नंगा ही था इस लिए मेरा लंड अपनी पूरी औकात पर खड़ा हो कर कुछ इस तरीके से ठुमकते हुए झटके मार रहा था जैसे वो उन्हें सलामी दे रहा हो।

"हम तीनों ये देख चुकी हैं कि तुम में संयम की कोई कमी नहीं है।" माया ने आगे बढ़ कर मुझसे कहा_____"हालाँकि पहली बार में तुम्हारी जगह कोई भी होता तो वो हम तीनों के द्वारा इतना कुछ करने से पहले ही अपना संयम खो देता। हम तीनों सबसे पहले यही देखना चाहते थे कि तुम में संयम रखने की क्षमता है या नहीं। अगर तुम में संयम की कमी होती तो हम तीनों तुम्हें संयम कैसे रखना होता है ये सिखाते। ख़ैर अब जबकि हमें पता चल चुका है कि तुम्हें कुदरती तौर पर सब कुछ मिला है और संयम की भी कोई कमी नहीं है। अब हम तुम्हें ये सिखाएंगे कि किसी औरत को सेक्स से खुश और संतुस्ट कैसे करना होता है।"

माया की बात सुन कर मैं कुछ न बोला बल्कि रेशमी कपड़े जैसी ब्रा में क़ैद उसकी बड़ी बड़ी चूचियों को देखता रहा। उसे भी पता था कि मैं उसकी चूचियों को ही देख रहा हूं किन्तु उसे इस बात से जैसे कोई ऐतराज़ नहीं था।

"एक बात हमेशा याद रखना।" कुछ पलों की ख़ामोशी के बाद उसने फिर से कहा____"और वो ये कि कभी भी किसी लड़की या औरत के साथ ज़ोर ज़बरदस्ती में सेक्स न करना। क्योंकि ऐसा करना बलात्कार कहलाता है और इससे न तो तुम्हें ख़ुशी मिलेगी और ना ही उस औरत को। किसी के साथ बलात्कार करने से दो पल के लिए भले ही मज़े का एहसास हो लेकिन मज़े के बाद जब वास्तविकता का एहसास होता है तब ये बोध भी होता है कि हमने कितना ग़लत किया है। ख़ैर सेक्स का असली मज़ा दोनों पर्सन की रज़ामंदी से ही मिलता है। ईश्वर ने औरत को इतना सुन्दर इसी लिए बनाया होता है कि मर्द उसे सिर्फ प्यार करे। औरत प्यार में अपना सब कुछ मर्द को सौंप देती है।"

"हालाँकि दुनिया में तरह तरह की मानसिकता वाले लोग भी होते हैं।" कोमल ने कहा____"जिनमें औरतें भी होती हैं। कुछ मर्द और औरतें ऐसी मानसिकता वाली होती हैं जिन्हें अलग अलग तरीके से सेक्स करने में मज़ा आता है। कोई प्यार से सेक्स करता है तो कोई सेक्स करते समय पागलपन की हद को पार कर जाता है। उस पागलपन में लोग सेक्स करते समय एक दूसरे को बुरी तरह से कष्ट पहुंचाते हैं। उन्हें सेक्स में ऐसा ही वहशीपना पसंद होता है।"

"यहां पर तुम्हें दोनों तरह से सेक्स करने के बारे में सीखना ज़रूरी है।" तबस्सुम ने कहा____"क्योंकि आने वाले समय में तुम्हें ऐसे ही काम करने होंगे।"
"वो सब तो ठीक है।" मैंने झिझकते हुए कहा____"लेकिन मेरी सबसे बड़ी समस्या ये है कि मैं बहुत ही ज़्यादा शर्मीले स्वभाव का हूं जिससे मैं किसी औरत ज़ात से खुल कर बात करने की भी हिम्मत नहीं जुटा पाता।"

"शर्म हर इंसान में होती है।" माया ने कहा____"फिर चाहे वो मर्द हो या औरत। ये एक कुदरती गुण होता है जो आगे चल कर वक़्त और हालात के साथ साथ घटता और बढ़ता रहता है। कुछ लोग सिचुएशन के अनुसार जल्दी ही खुद को ढाल लेते हैं और कुछ लोगों को सिचुएशन के अनुसार खुद को ढालने में थोड़ा वक़्त लगता है लेकिन ये सच है कि वो ढल ज़रूर जाता है। तुम भी ढल जाओगे और बहुत जल्दी ढल जाओगे।"

कहने के साथ ही माया मुस्कुराते हुए मेरी तरफ बढ़ी तो मेरी धड़कनें अनायास ही बढ़ चलीं। मैं उसी की तरफ देख रहा था और सोचने लगा था कि अब ये क्या करने वाली है? उधर वो मेरे पास आई और मेरा हाथ पकड़ कर हल्के से खींचते हुए बेड पर ला कर मुझे बैठा दिया।

"सपने तो ज़रूर देखते होंगे न तुम?" माया मेरे क़रीब ही बैठते हुए बोली____"और किसी न किसी के बारे में तरह तरह के ख़याल भी बुनते होगे?"
"मैं कुछ समझा नहीं?" माया की इस बात से मैं चकरा सा गया था।

"बड़ी सीधी सी बात है डियर।" माया ने मुस्कुराते हुए कहा_____"हर कोई सपने देखता है। कभी खुली आँखों से तो कभी बंद आँखों से। हर लड़का एक ऐसी लड़की के बारे में सोच कर तरह तरह के ख़याल बुनता है जो दुनियां में उसे सबसे ज़्यादा खूबसूरत लगती है। तुम भी तो किसी न किसी लड़की के बारे में सोच कर अपने मन में तरह तरह के ख़याल बुनते होगे?"

"ओह! हां ये तो सही कहा आपने।" मैंने हल्के से शर्माते हुए कहा____"पर शायद मैं बाकी लड़कों से ज़्यादा लड़कियों के बारे में तरह तरह के ख़याल बुनता हूं। वो बात ये है कि मैं और तो कुछ करने की हिम्मत जुटा नहीं पाता इस लिए जो मेरे बस में होता है वही करता रहता हूं। यानि दिन रात किसी न किसी लड़की के बारे में सोच कर तरह तरह के ख़याल बुनता रहता हूं। वैसे आपने ये क्यों पूछा मुझसे?"

"अब तक तुमने।" माया ने जैसे मेरे सवाल को नज़रअंदाज़ ही कर दिया, बोली____"जिन जिन लड़कियों के बारे में सोच कर तरह तरह के ख़याल बुने हैं उन ख़यालों को अब सच में करके दिखावो।"

"दि...दिखाओ???" मैं जैसे हकला गया_____"मेरा मतलब है कि मैं भला कैसे...???"
"मैं भला कैसे का क्या मतलब है?" माया ने मुस्कुरा कर कहा____"क्या तुम ये चाहते हो कि कोई दूसरा लड़का आए और तुम्हारे सामने हम तीनों के साथ मज़े करे?"

"न..नहीं तो।" मैं एकदम से बौखला गया_____"मैं भला ऐसा कैसे चाह सकता हूं?"
"देखो मिस्टर।" माया ने समझाने वाले अंदाज़ से कहा____"हमारा तो काम ही यही है कि हम तुम जैसे लड़कों को सेक्स की ट्रेनिंग दें और वो हम अपने तरीके से दे भी देंगे लेकिन मैं चाहती हूं कि तुम ख़ुद अपने उन ख़यालों को सच का रूप दो जिन्हें तुमने अपने मन में अब तक बुने हैं। इससे तुम्हें ही फायदा होगा। तुम्हारा आत्मविश्वास भी बढ़ेगा और तुम्हारे अंदर की झिझक व शर्म भी दूर होगी।"

"मैं माया की बात से सहमत हूं।" कोमल ने कहा____"ये सच है कि हम तुम्हें ट्रेंड कर देंगे लेकिन अगर तुम खुद अपने तरीके से अपने उन ख़यालों को सच का रूप दो तो ये तुम्हारे लिए बेहतर ही होगा।"

माया और कोमल की बातों ने मुझे अजीब कस्मकस में डाल दिया था। ये सच था कि मेरा बहुत मन कर रहा था कि मैं उन तीनों के खूबसूरत जिस्मों के साथ खेलूं। उनकी सुडौल चूचियों को अपने हाथों में ले कर सहलाऊं और मसलूं लेकिन ऐसा करने की मुझ में हिम्मत नहीं हो सकती थी।

"अच्छा अब ये बताओ कि हम तीनों में से तुम्हें सबसे ज़्यादा कौन पसंद है?" माया ने मुस्कुराते हुए पूछा तो मैंने उसकी तरफ देखा, जबकि उसने उसी मुस्कान में आगे कहा_____"सच सच बताना और हां ये मत सोचना कि अगर तुमने हम में से बाकी दो को पसंद नहीं किया तो हमें बुरा लग जाएगा। चलो अब खुल कर बताओ।"

साला ये तो ऐसा सवाल था जिसका उत्तर देना तो जैसे टेढ़ी खीर था। मेरी नज़र में तो वो तीनों ही बला की खूबसूरत थीं। तीनो में से किसी एक को पसंद करना या चुनना मेरे लिए बेहद ही मुश्किल था। तभी मेरे ज़हन में ख़याल उभरा कि मुझे कौन सा उनमें से किसी से शादी करनी है। कहने का मतलब ये कि मुझे तो किसी एक को पसंद कर के शायद उसके साथ सेक्स ही करना है न तो फिर इसमें इतना सोचने की क्या ज़रूरत है? किसी एक को पसंद कर लेता हूं बाकी जो होगा देखा जाएगा। मैंने तीनों को बारी बारी से देखा। मैंने सोचा कि कोमल और तबस्सुम को तो मैं पूरा ही नंगा देख चुका हूं जबकि माया अभी भी ब्रा पेंटी पहने हुए है इस लिए मैंने सोचा इसको भी नंगा देख लेता हूं।

"देखिए बात ये है कि।" फिर मैंने झिझकते हुए कहा_____"मुझे तो आप तीनों ही सबसे ज़्यादा खूबसूरत लगती हैं। आप तीनों में से किसी एक को पसंद करना मेरे लिए बेहद ही मुश्किल है, फिर भी आप कहती हैं तो मैं बताए देता हूं कि मुझे सबसे ज़्यादा आप ही पसंद हैं।"

"मुबारक़ हो माया।" तबस्सुम ने मुस्कुराते हुए कहा_____"इस लड़के की सील तोड़ने का पहला मौका तुम्हें ही मिल गया।"
"सही कहा तबस्सुम।" कोमल ने जैसे ताना सा मारा_____"हम तीनों में से एक माया ही तो है जो सबसे ज़्यादा सुन्दर है और पसंद करने वाली चीज़ भी है। ये लड़का तो बड़ा ही चालू निकला।"

"देखिए आप लोग प्लीज़ बुरा मत मानिए।" उन दोनों की बातें सुन कर मैं जल्दी से बोल पड़ा था____"मैंने तो पहले ही कहा था कि मेरे लिए आप में से किसी एक को पसंद करना बेहद ही मुश्किल है।"

"अरे! तुम इनकी बातों पर ध्यान मत दो।" माया ने मुस्कुराते हुए कहा____"ये दोनों तो मज़ाक में ऐसा बोल रही हैं तुम्हें। ख़ैर तो अब जबकि तुमने मुझे पसंद किया है तो आज के लिए मैं तुम्हारी हुई। आज के दिन अब तुम और मैं ही एक दूसरे के साथ रहेंगे। तुम ये समझो कि मैं वो लड़की हूं जिसके बारे में सोच कर तुम तरह तरह के ख़याल बुनते थे और अब जबकि मैं तुम्हारे ख़यालों से बाहर आ कर तुम्हारे पास ही हूं तो तुम मेरे साथ वो सब कुछ कर सकते हो जो ख़यालों में मेरे साथ करते थे।"

"क्या सच में???" मेरे मुख से जाने ये कैसे निकल गया, जबकि मेरे द्वारा इतनी उत्सुकता से कहे गए इस वाक्य को सुन कर कोमल और तबस्सुम ने एक साथ मुस्कुराते हुए कहा_____"ओए होए, देखो तो कितना उतावले हो उठे हैं ये जनाब।"

कोमल और तबस्सुम की ये बात सुन कर मैं बुरी तरह झेंप गया और शर्म से लाल हो गया। जबकि उन दोनों की बात सुन कर माया ने उन्हें डांटते हुए कहा____"क्यों छेड़ रही हो बेचारे को?"

"अच्छा ठीक है हम कुछ नहीं कहेंगी।" कोमल ने कहा____"लेकिन हां ये ज़रूर कहेंगे कि थोड़ा सम्हाल के करना। तुम तो जानती हो कि इस बेचारे की अभी सील भी नहीं टूटी है।"

कोमल ने ये कहा तो तबस्सुम ज़ोर ज़ोर से हंसने लगी। इधर उसके हसने से मैं और भी बुरी तरह से शर्मा गया। मैं समझ गया था कि कोमल के कहने का मतलब क्या था और क्यों उसकी बात से तबस्सुम हंसने लगी थी। ख़ैर माया ने उन दोनों को फिर से डांटा और दोनों को कमरे से जाने को कह दिया। उन दोनों के जाने के बाद माया ने कमरे को अंदर से बंद किया और पलट कर मेरे पास आ कर बेड पर बैठ गई। मेरे दिल की धड़कनें फिर से ये सोच कर बढ़ गईं कि अब इसके आगे शायद वही होगा जिससे मेरी सबसे बड़ी चाहत पूरी होगी। इस बात को सोच कर ही मेरे मन में खुशी के लड्डू फूटने लगे थे।

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#10
(01-08-2021, 08:21 PM)Eswar P Wrote: Nice story sir

Shukriya,,,,  Namaskar
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#11
अध्याय - 07
__________________


अब तक,,,,,

कोमल ने ये कहा तो तबस्सुम ज़ोर ज़ोर से हंसने लगी। इधर उसके हसने से मैं और भी बुरी तरह से शर्मा गया। मैं समझ गया था कि कोमल के कहने का मतलब क्या था और क्यों उसकी बात से तबस्सुम हंसने लगी थी। ख़ैर माया ने उन दोनों को फिर से डांटा और दोनों को कमरे से जाने को कह दिया। उन दोनों के जाने के बाद माया ने कमरे को अंदर से बंद किया और पलट कर मेरे पास आ कर बेड पर बैठ गई। मेरे दिल की धड़कनें फिर से ये सोच कर बढ़ गईं कि अब इसके आगे शायद वही होगा जिससे मेरी सबसे बड़ी चाहत पूरी होगी। इस बात को सोच कर ही मेरे मन में खुशी के लड्डू फूटने लगे थे।

अब आगे,,,,,


"चलो अब शुरू करो।" बेड पर मेरे एकदम पास बैठते ही माया ने मेरी तरफ देखते हुए कहा तो मेरे दिल की धड़कनें पहले से भी ज़्यादा तेज़ हो गईं। मैं अच्छी तरह समझ गया था कि उसने किस चीज़ को शुरू करने को कहा था किन्तु मेरे लिए ये सब शुरू करना अगर इतना ही आसान होता तो मैं यहाँ इस हाल में होता ही क्यों?

"क्या हुआ? तुम शुरू क्यों नहीं कर रहे?" मुझे कुछ न करते देख माया ने फिर से कहा_____"देखो डियर, तुम यहाँ सेक्स की ट्रेनिंग लेने आए हो और तुम्हारे लिए सबसे अच्छी बात ये है कि तुम्हें जिसके साथ सेक्स करने की ट्रेनिंग लेनी है वो तुम्हारा पूरा साथ देगी। यूं समझो कि तुम अपनी मर्ज़ी से जो चाहो मेरे साथ कर सकते हो। मैं तुम्हें किसी भी चीज़ के लिए मना नहीं करुंगी। दुनियां में बहुत ही कम ऐसे लोग होते हैं जिनके नसीब में इतना अच्छा मौका मिलता है। अगर तुम इसी तरह सेक्स के नाम पर शर्म करोगे तो फिर कैसे तुम किसी औरत के साथ सेक्स कर पाओगे और कैसे उसे संतुष्ट कर पाओगे? एक दिन तुम्हारी शादी भी होगी तो क्या तुम अपनी बीवी के साथ भी सेक्स नहीं करोगे? ऐसे में तो लोग तुम्हें नपुंसक और हिंजड़ा कहेंगे। वो ये भी कहेंगे कि तुम मर्द नहीं बल्कि गांडू हो जो किसी औरत के साथ सेक्स ही नहीं कर सकता बल्कि दूसरे मर्दों से खुद अपनी ही गांड मरवाता है। क्या तुम सच में गांडू बनना चाहते हो?"

"न..नहीं नहीं।" मैं एकदम से बौखलाते हुए बोल पड़ा_____"मैं ऐसा नहीं बनना चाहता।"
"तो फिर मर्द बनो डियर।" माया ने मेरे चेहरे को अपने एक हाथ से सहलाते हुए कहा_____"भगवान की कृपा से तुम्हें इतना तगड़ा हथियार मिला है तो अब तुम भी साबित करो कि तुम एक मुकम्मल मर्द हो और अपने इस हलब्बी लंड के द्वारा किसी भी औरत की चीखें निकाल सकते हो। दुनियां की हर औरत को तुम अपने इस हलब्बी लंड की दीवानी बना दो। जब ऐसा हो जाएगा तो देखना दुनियां की हर औरत ख़ुद ही अपना सब कुछ तुम्हें देने को तैयार रहेगी।"

माया के द्वारा खुल कर कही गई इन बातों ने मेरे अंदर एक जोश सा भर दिया था और मुझे पहली बार एहसास हुआ कि वो सच कह रही थी। यानी सच में मुझे ईश्वर ने एक ऐसा लंड दिया था जिसके बलबूते पर मैं किसी भी औरत की चीखें निकाल सकता था। ऐसे हलब्बी लंड के होते हुए भी अगर मैं मुकम्मल मर्द न बन सका तो फिर ये मेरे लिए डूब मरने वाली बात ही होगी। इस ख़याल के साथ ही मैंने एक गहरी सांस ली और मन ही मन फ़ैसला कर लिया कि अब मुझे मुकम्मल मर्द बनना है। मुझे अपने अंदर से इस शर्मो हया को निकाल कर दूर फेंक देना होगा।

मैंने आँखें बंद कर के दो तीन गहरी गहरी साँसें ली और फिर झटके से आँखें खोल कर माया की तरफ देखा। इस बार मेरे देखने का अंदाज़ पहले से काफी अलग था। मैं अपने अंदर एक निडरता महसूस करने लगा था। माया मेरे चेहरे के बदले हुए भावों को ही देख रही थी। मेरी नज़रें उसके खूबसूरत चेहरे पर जम सी गईं थी। कुछ पलों तक मेरी नज़रें उसके चेहरे पर ही जमी रहीं उसके बाद मेरी नज़र उसके रसीले होठों पर पड़ी। मैंने महसूस किया जैसे उसके वो रसीले होंठ मुझे इशारा करते हुए कह रहे हों कि आओ और मुझे अपने मुँह में भर कर चूस लो।

मैंने एक बार फिर से गहरी सांस ली और अपने दोनों हाथ बढ़ा कर माया के चेहरे को थाम लिया। मेरे ऐसा करते ही माया के रसीले होठों पर मुस्कान थिरक उठी जिससे मेरे अंदर के जज़्बात मचल से उठे और मैंने एक पल की भी देरी न करते हुए लपक कर उसके होठों पर अपने होठों को रख दिया। यकीनन माया को मुझसे इतनी जल्दी इस सबकी उम्मीद न रही होगी लेकिन मैंने तो अब सोच लिया था कि मुझे मुकम्मल मर्द बनना है।

माया के रसीले होंठों को जैसे ही मैंने अपने होंठों से छुआ तो मेरे जिस्म में एक सुखद अनुभूति हुई। जीवन में पहली बार मैं किसी लड़की के होठों पर अपने होठ रखे हुए था। मैं बयां नहीं कर सकता था कि उस वक्त मुझे कितना अच्छा महसूस हुआ था। उसके बाद तो जैसे सब कुछ अपने आप ही होता चला गया। माया के होठों में शराब से भी ज़्यादा नशा था जिसने मुझे मदहोश करना शुरू कर दिया था। मेरे अंदर लेश मात्र भी कहीं शर्म नहीं रह गई थी बल्कि जिस्म का हर रोयां मदहोशी में ये कह उठा कि अब रुकना नहीं क्योंकि इसमें उन्हें बेहद मज़ा आने लगा है।

माया कुछ पलों तक बुत सी बनी रही और जब मैंने उसके होठों को अपने मुँह में भर कर चूसना शुरू कर दिया तो जैसे उसे होश आया। उसने फ़ौरन ही अपने दोनों हाथों से मेरे सिर को थाम लिया और मेरे बालों में उंगलियां फिराते हुए मेरा साथ देने लगी। उधर माया के शहद जैसे मीठे होठों को चूसने में मुझे इतना मज़ा आने लगा था कि मैं एकदम से पागलों की तरह उन्हें चूसे ही चला जा रहा था। मेरे पूरे जिस्म में मज़े की लहर जैसे सागर की लहरों की तरह हिलोरें ले रही थी।

मुझे कोई होश नहीं था कि माया के होठों को चूसते हुए मैं किस हद तक जुनूनी हो उठा था। मुझे उसके होठ इतने मीठे और लजीज़ लग रहे थे कि मैं बस उन्हें खा ही जाना चाहता था। कुछ ही पलों में मेरी साँसें मेरे काबू से बाहर होने लगीं लेकिन मैं रुका तब भी नहीं बल्कि लगा ही रहा। उधर माया की भी साँसें भारी हो चलीं थी लेकिन वो भी मुझे रोक नहीं रही थी बल्कि मेरी तरह वो भी मेरा साथ दे रही थी। हम दोनों बेड पर बैठे हुए थे और मैं इस हद तक जूनून के हवाले हो चुका था कि प्रतिपल मैं उसके ऊपर हावी होता जा रहा था जिसका नतीजा ये निकला की कुछ ही देर में मैंने माया को उसी बेड पर गिरा दिया।

माया बेड पर सीधा गिरी तो हम दोनों के होठ एक दूसरे के होठों से अलग हो गए। होठ अलग हुए तो जैसे एक तूफ़ान कुछ पलों के लिए थम सा गया। मैंने आँखें खोल कर माया की तरफ देखा तो बेड पर लेटी हुई मुझे दो दो माया नज़र आ रही थी। मैं समझ न पाया कि ये माया के होठों को चूसने से उसका नशा मुझ पर चढ़ गया था या सच में दो दो माया प्रकट हो गईं थी। मैंने नशे की खुमारी जैसे आलम में उसकी तरफ देखा तो मेरी नज़र उसकी ब्रा में कैद बड़ी बड़ी चूचियों पर पड़ी जो तेज़ चलती साँसों की वजह से जल्दी जल्दी ऊपर नीचे हो रहीं थी।

माया की चूचियों ने भी जैसे मुझे मूक आमंत्रण दे दिया और मैंने भी उनके आमंत्रण को नहीं ठुकराया बल्कि आव देखा न ताव एक झटके से उन पर टूट पड़ा। माया की चूचियों पर रेशमी कपड़े की ब्रा इस तरह से बंधी हुई थी कि उसके किनारों से उसकी आधे से ज़्यादा चूचियां बाहर को झाँक रहीं थी। मैंने अपने दोनों हाथों से उन्हें थाम लिया। मुझे अपनी हथेलियों में ऐसा महसूस हुआ जैसे किसी बहुत ही मुलायम चीज़ पर मेरा हाथ पड़ गया हो जिसके एहसास ने मेरे जिस्म के हर ज़र्रे पर एक बार फिर से मज़े की लहरों को दौड़ा दिया। मैंने माया की दोनों चूचियों को मुट्ठी में भरा और ज़ोर ज़ोर से मसलना शुरू कर दिया जिसकी वजह से माया के मुख से सिसकियों के साथ साथ दर्द में डूबी मीठी सी कराहें निकलने लगीं।

माया ने एक बार फिर से मेरे सिर को थाम लिया और मेरे चेहरे को अपनी छातियों की तरफ झुकाने लगी। उसके झुकाने से मैं समझा तो कुछ नहीं लेकिन इतना ज़रूर हुआ कि मैं उसकी चूचियों के खुले हुए हिस्से को ज़रूर चूमने और चाटने लगा था। कुछ देर उसकी चूचियों को चाटने के बाद मैंने चेहरा उठाया और उस रेशमी कपड़े की ब्रा के ऊपर से ही माया की एक चूची को मुँह में भर कर ज़ोर से काट लिया जिससे माया की घुटी घुटी सी चीख निकल गई और वो एकदम से उछल पड़ी।

"आह्ह्ह्ह इतनी ज़ोर से मत काटो डियर।" माया ने कराहते हुए कहा_____"ये तो सलीके से प्यार करने वाली चीज़ है। इन्हें जितना प्यार करोगे उतना ही हम दोनों को मज़ा आएगा। अभी प्यार वाला सेक्स करो उसके बाद अगर तुम्हारा दिल करे तो वहशीपन वाला भी कर लेना।"

माया की इन बातों का मैंने कोई जवाब नहीं दिया बल्कि उसकी बात मान कर उसकी चूची को काटना बंद कर दिया। उसकी बातों ने एक पल के लिए मुझे होश में ला दिया था और उस एक पल ने मुझे ये भी एहसास करा दिया था कि मुझे इस तरह किसी के कोमल अंगों को काटना नहीं चाहिए। ख़ैर मैंने अपने ज़हन से इस बात को झटका और फिर से माया की चूचियों को दबाना और मसलना शुरू कर दिया। मुझे माया की बड़ी बड़ी खरबूजे जैसी चूचियों को दबाने और मसलने में बड़ा ही मज़ा आ रहा था। मन कर रहा था कि मैं उन्हें मसलता ही रहूं। एकाएक मुझे ख़याल आया कि मुझे माया की चूचियों से उस रेशमी कपड़े को हटा देना चाहिए क्योंकि अभी तक मैंने माया की चूचियों को पूरी तरह नंगा नहीं देखा था। ये सोच कर मैंने फ़ौरन ही माया की चूचियों से उस रेशमी कपड़े वाली ब्रा को पकड़ कर ऊपर खिसका दिया जिससे माया की दोनों खरबूजे जैसी चूचियां उछल कर मेरी आँखों के सामने आ ग‌ईं।

दूध की तरह गोरी चूचियों को देखते ही मुझे मेरा गला सूखता हुआ सा प्रतीत हुआ। मैंने लपक कर उसकी एक चूची के भूरे निप्पल को पूरा ही मुँह में भर लिया और उसे इस तरह से चूसना शुरू कर दिया जैसे कोई छोटा सा बच्चा अपनी मां का दूध निचोड़ निचोड़ कर पीना शुरू कर देता है। हालांकि माया के निप्पल से दूध नहीं निकल रहा था लेकिन मैं किसी बच्चे की तरह ही चूसे जा रहा था और उधर माया भी मेरे सिर पर वैसे ही प्यार से हाथ फेरने लगी थी जैसे वो मुझे अपना बच्चा समझ कर मुझे अपना दूध पिला रही हो। काफी देर तक मैं माया की उस चूची को चूसता रहा और माया मेरे सिर पर अपना हाथ फेरते हुए सिसकारियां भरती रही उसके बाद मैंने उसकी दूसरी चूची के निप्पल को भी मुँह में भर कर चूसना शुरू कर दिया।

मज़ा अथवा आनंद क्या होता है ये मैं आज महसूस कर रहा था। अपनी कल्पनाओं में मैंने न जाने कितनी ही बार अलग अलग लड़कियों को सोच कर उनके साथ न जाने क्या क्या किया था लेकिन जो मज़ा हक़ीक़त में मिल रहा था वो मेरी कल्पनाओ में तो हो ही नहीं सकता था।

"तुम तो किसी बच्चे की तरह मेरी चूचियों को पी रहे हो डियर।" माया ने मेरे सिर पर वैसे ही प्यार से हाथ फेरते हुए कहा_____"जबकी तुम्हें एक मर्द की तरह मेरे साथ पेश आना चाहिए। तुम ये मत भूलो कि तुम्हें एक मुकम्मल मर्द बनना है और हर औरत को सेक्स में संतुष्ट करना है।"

"मैं भूला नहीं हूं इस बात को।" मैंने उसकी चूची से अपना चेहरा उठा कर उससे कहा____"लेकिन इस वक़्त मैं सिर्फ वो कर रहा हूं जिसे मैंने पहले कभी नहीं किया था। पहले मुझे जी भर के एक लड़की के इन खूबसूरत अंगों को देखने के साथ साथ प्यार तो कर लेने दो उसके बाद मैं एक मर्द की तरह भी तुमसे पेश आऊंगा।"

"अच्छा तो ये बात है।" माया ने मुस्कुराते हुए कहा____"चलो कोई बात नहीं। तुम पहले अपनी उन हसरतों को ही पूरा कर लो जिन्हें पूरा करने की तुमने अपने मन में ख़्वाहिश की रही होगी। मुझे इसमें कोई ऐतराज़ नहीं है।"

माया की बात सुन कर मैंने उसे शुक्रिया कहा और इस बार थोड़ा ऊपर खिसक कर मैंने फिर से उसके रसीले होठों को मुँह में भर लिया। वो कहते हैं न कि सूखी रोटियां खाने वाले को जब घी में सनी हुई गरमा गरम रोटियां मिलती हैं तो वो उन पर ऐसे टूट पड़ता है जैसे दोबारा उसे वैसी रोटियां नसीब ही नहीं होंगी। मेरी हालात भी कदाचित वैसी ही थी। हालांकि सच में ऐसा नहीं था बल्कि सच तो ये था कि अब से तो मेरे नसीब में न जाने ऐसे कितने ही जिस्म मिलने वाले थे जिनके साथ मुझे मज़े भी करना था और उन जिस्मों की मालकिनों को संतुष्ट भी करना था।

माया के होठों का जाम पीने के बाद मैं फिर से नीचे आया और एक बार फिर से उसकी दोनों चूचियों को मसलते हुए उन्हें चूमने चाटने लगा। किसी भी लड़की या औरत की सुडौल चूचियां मुझे सबसे ज़्यादा पसंद थीं और सबसे ज़्यादा आकर्षित भी करती थीं। मैं अक्सर ये तक सोच बैठता था कि काश इतनी खूबसूरत चूचियां मेरे सीने में भी होतीं तो मैं दिन रात उन्हें अपने हाथों में ले कर सहलाता रहता।

कुछ देर मैंने माया की दोनों चूचियों को मसला और चूमा चाटा उसके बाद मैं नीचे की तरफ बढ़ा। मेरा लंड न जाने कब से मुझसे रहम की भीख मांग रहा था जिस पर मेरा कोई ध्यान ही नहीं था। मैं तो अभी अपनी ख़्वाहिश ही पूरी करने में लगा हुआ था। उसकी ख़्वाहिशों का ख़याल तो मुझे बाद में ही आना था। नीचे आया तो देखा माया का चिकना पेट दूध की तरह गोरा था जिस पर एक गहरी सी नाभि थी। मुझसे रहा न गया तो मैंने फ़ौरन ही उसके पेट पर अपना चेहरा रख दिया और मुँह से उसके पूरे पेट को चूमने चाटने लगा। मेरी इस क्रिया से माया की एक बार फिर से सिसकियां निकलने लगीं और उसका जिस्म झटका सा खाने लगा। मैं उसके पूरे पेट को चूमा और चाट रहा था। उसकी नाभि के चारो तरफ मैं अपनी जीभ फिरा रहा था। ये सब करना मुझे पहले से पता था। ऐसा नहीं था कि मैं एकदम से ही अनाड़ी था। हम सभी दोस्त गन्दी गन्दी किताबों में ये सब बहुत बार देख और पढ़ चुके थे। इस लिए मुझे अच्छी तरह पता था कि लड़कियों के साथ क्या क्या किया जाता है। ये तो हमारी ख़राब किस्मत ही थी कि शर्मीले स्वभाव की वजह से कभी भी किसी लड़की के साथ सेक्स करने का सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ था।

मैंने माया की गहरी नाभि में अपनी पूरी जीभ घुसा दी तो माया ने फ़ौरन ही अपने दोनों हाथों से मेरे सिर को पकड़ लिया और उसे अपने पेट पर दबाने लगी। शायद मेरे ऐसा करने से उसे भी बेहद मज़ा आने लगा था। उसका पेट बड़ी तेज़ी से सांस लेने की वजह से ऊपर नीचे हो रहा था। नाभि के नीचे रेशमी कपड़े की ही उसकी पेंटी थी जहां से बड़ी ही मादक खुशबू आ रही थी। मैंने उन गन्दी किताबों में पढ़ा था कि जब लड़की हद से ज़्यादा गरम हो जाती है या उत्तेजित हो जाती है तो उसकी चूत से कामरस का रिसाव होने लगता है और ये खुशबू उसी कामरस से निकल कर आती है। मेरे मन में ये देखने की बड़ी तीव्र जिज्ञासा जाग उठी कि एक लड़की की चूत किस तरह की होती है। हालांकि गन्दी किताबों में मैंने चूत देखी थी लेकिन असलियत में तो मैंने कभी नहीं देखा था।

चूत को देखने की हसरत जब प्रबल हो उठी तो मैंने माया के पेट से अपना चेहरा उठा कर चूत की तरफ बढ़ाना शुरू कर दिया। मेरा दिल अनायास ही तेज़ी से धड़कने लगा था। मेरे अंदर अब डर या घबराहट जैसी कोई बात नहीं रह गई थी। ऐसा शायद इस लिए कि अब मैं माया के साथ इस क्षेत्र में आगे निकल चुका था और मुझे किसी भी तरह से रोका नहीं गया था। चूत के ऊपर रेशमी कपड़े की पेंटी के पास जैसे ही मेरा चेहरा आया तो मेरे नथुनों में कामरस की खुशबू और भी तेज़ी से समाने लगी जिसकी वजह से मुझ पर एक अजीब सा नशा चढ़ने लगा।

☆☆☆

"ट्रिन्निंग...ट्रिन्निंग" अचानक ही टेबल पर रखे फ़ोन की घंटी ज़ोरों से बज उठी तो डायरी में विक्रम सिंह की कहानी पढ़ रहा शिवकांत वागले जैसे उछल ही पड़ा। उसने फ़ोन को बड़े ही गुस्से से देखा। उसके चेहरे पर बेहद ही अप्रसन्नता के भाव उभर आए थे। वो कहानी पढ़ने में इतना खो गया था कि इस वक़्त उसे फ़ोन का एकाएक इस तरह बज उठना बहुत ही नागवार गुज़रा था। कहानी इस वक़्त ऐसे मुकाम पर थी कि उसके असर से खुद वागले का जिस्म गरम हो उठा था और उसके पैंट में उसके खड़े हुए लंड का उभार साफ़ दिख रहा था।

"हैलो।" फिर उसने किसी तरह अपने गुस्से वाले भावों को दबाते हुए फ़ोन को उठा कर कान से लगाते हुए कहा तो उधर से उसके कान में उसके बेटे चंद्रकांत वागले की आवाज़ पड़ी।

"हैलो पापा मैं चंद्रकांत बोल रहा हूं।" उधर से उसके बेटे ने कहा____"आज आप सुबह ब्रेकफास्ट कर के नहीं गए और ना ही श्याम को दोपहर का खाना लाने के लिए भेजा।"

"हां वो मुझे किसी ज़रूरी काम से सुबह जल्दी ही निकलना था।" शिवकांत भला अब अपने बेटे से क्या कहता, इस लिए बहाना बनाते हुए आगे कहा_____"और दोपहर में भी मुझे अपने ऑफिस में नहीं रहना था इस लिए श्याम को नहीं भेजा। ख़ैर तुम फ़िक्र मत करो बेटा। मैंने बाहर ही लंच कर लिया है।"

शिवकांत वागले ने इतना कहने के बाद फोन का रिसीवर केड्रिल पर रख दिया। वो जानता था कि ये फ़ोन उसकी बीवी सावित्री ने अपने बेटे से लगवाया था और उसे इस बात से ये सोच कर बुरा भी लगा था कि सावित्री ने खुद उससे बात क्यों नहीं की? वो सावित्री से नाराज़ था और चाहता था कि सावित्री खुद उसे मनाए लेकिन ऐसा फिलहाल हुआ नहीं था। ख़ैर फ़ोन रखने के बाद वागले कुछ देर जाने क्या सोचता रहा उसके बाद उसने विक्रम सिंह की डायरी को ब्रीफ़केस में रखा और श्याम को बुला कर उसे किसी ढाबे से खाना लाने के लिए पैसे दिए। उसने श्याम को ख़ास तौर पर ये कहा कि वो अपनी मैडम से यानी वागले की बीवी से इस बात को न बताए कि वो आज कहां गया था या उसने कहां खाना खाया था? श्याम जो कि जेल का ही एक मामूली सा सिपाही था उसने वागले के कहने पर अपना सिर हां में हिलाया और केबिन से बाहर चला गया।

श्याम के आने के बाद वागले ने खाना खाया और जेल का चक्कर लगाने के लिए निकल गया। करीब एक घंटे बाद वागले अपने केबिन में आया और ब्रीफ़केस से विक्रम सिंह की डायरी निकाल कर उसे फिर से पढ़ने लगा।

☆☆☆

To be continued....
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#12
रेशमी कपड़े वाली पैंटी में छुपी माया की चूत से बड़ी ही मादक खुशबू आ रही थी जो मुझे प्रतिपल मदहोश सा किए जा रही थी। रेशमी कपड़े वाली पैंटी का रंग सुनहरा था जो माया की चूत को ढंकने में सक्षम तो था किन्तु पूरी तरह से नहीं। उस पैंटी के किनारों से माया की चूत के अगल बगल वाला हल्का सुर्ख भाग साफ़ दिख रहा था जिससे मेरे दिल की धड़कनें एकदम से थमने लगीं थी। सुनहरे कपड़े की वजह से मुझे माया का कामरस तो नज़र न आया लेकिन चूत पर चिपके होने की वजह से मुझे समझने में ज़रा भी देरी नहीं हुई कि माया इस वक़्त बेहद गरम हो चुकी है जिसकी वजह से उसका कामरस उसकी पैंटी को इस कदर भिगो दिया है जिससे उसकी पैंटी उसकी चूत पर चिपक गई है।

कुछ पलों तक मैंने गौर से उस चिपके हुए सुनहरे कपड़े को देखा और फिर हल्के से मैंने उस कपड़े पर यानी कि माया की चूत पर अपना चेहरा रख दिया। पहले तो मेरे चेहरे पर हल्का सा ठण्डा एहसास हुआ और फिर जैसे ही मेरा चेहरा पूरी तरह माया की चूत पर धर गया तो मेरे होठों और नाक पर गर्मी का एहसास हुआ। माया की चूत मानो धधक रही थी। मेरे पूरे जिस्म में झुरझुरी सी दौड़ गई और अचानक ही जाने मुझे क्या हुआ कि मैंने अपनी जीभ निकाली और उस गीले सुनहरे कपड़े को चाटने लगा। मुझे मेरी जीभ में बड़े ही अजीब से स्वाद का एहसास हुआ जो खारा भी था और थोड़ा खट्टा भी था। उधर मेरे जीभ द्वारा इस तरह चाटने से माया के जिस्म में भी झटका लगा था और उसने फ़ौरन ही अपने दोनों हाथ बढ़ा कर मेरे सिर को पकड़ कर अपनी चूत पर दबा लिया। एक तरफ से उसने अपनी दोनों टांगों को उठा कर मेरे सिर के दोनों तरफ से मेरे सिर को ही जकड़ लिया था।

मैं माया की चूत से निकले उस खटमिट्ठे कामरस को इस तरह चाटे जा रहा था जैसे वो मेरे लिए कोई अमृत था। उधर माया ज़ोर ज़ोर से सिसकियां लेते हुए मेरे सिर को हाथों से दबाए जा रही थी और साथ ही साथ अपनी टांगों की जकड़न को और भी बढ़ाती जा रही थी। मैं काफी देर तक माया की चूत को चाटता रहा उसके बाद मैंने अपने दाहिने हाथ की ऊँगली से माया की चूत को ढंके उस गीले रेशमी कपड़े को हटाया तो मेरी आँखों के सामने एक ऐसी चीज़ नज़र आई जो गुलाबी रंग की थी और उस पर न तो कहीं किसी बाल का एक रेशा था और ना ही कोई दाग़ था। एकदम चिकनी और गुलाबी चूत को मैं इस तरह देखने लगा था जैसे उसने मुझे अपने सम्मोहन में ले लिया हो। तभी माया ने मेरे सिर को फिर से अपनी चूत की तरफ दबाया तो मुझे होश आया।

मैंने किसी तरह चेहरा उठा कर माया की तरफ देखा। माया बेड पर आँखे बंद किए लेटी हुई थी। उसके चेहरे के भाव साफ़ साफ़ बता रहे थे कि इस वक़्त वो किस दुनियां में डूबी हुई है। चेहरे के नीचे उसकी पर्वतों की तरह शिखर वाली दूधिया चूचियां उसके ज़रा से हिलने पर थिरक जाती थी। मेरे जिस्म में ये सब देख कर एक रोमांच की लहर दौड़ गई और मैंने दोनों हाथ बढ़ा कर झट से उसकी दोनों चूचियों को पकड़ कर मसलना शुरू कर दिया। माया के मुख से सिसकियां निकलने लगी। उसने एक हाथ से मेरे सिर को अपनी चूत पर दबाया और दूसरे हाथ को ले कर मेरे उन हाथों पर रख लिया जिन हाथों से मैं उसकी बड़ी बड़ी चूचियां मसले जा रहा था।

माया ने अपने एक हाथ से मेरे सिर को अपनी चूत पर दबाया तो मैंने उसकी चूत को फिर से चूमना चाटना शुरू कर दिया। इस बार मेरी जीभ उसकी चूत की फांकों को खोल भी रही थी और उस पर घर्षण भी करती जा रही थी। माया की चूत बेहद गरम थी जिसका ताप मुझे अपनी जीभ पर महसूस हो रहा था। जीवन में मैं पहली बार किसी लड़की की चूत पर अपनी जीभ फिरा रहा था। मैं अक्सर सोचा करता था कि किताबों में जिस तरह लिखा होता है कि मर्द औरत की चूत को बड़े ही मज़े से चाटते हैं तो क्या ये सच में ऐसा ही होता होगा? क्या मर्द को किसी औरत की चूत चाटने में घिन न लगती होगी? आख़िर कोई मर्द औरत की उस जगह को कैसे इतना मज़े से चाट सकता है जिस जगह से औरत पेशाब करती है? ये तो हद दर्ज़े की घिनौनी बात हुई लेकिन इस वक़्त मेरी ये सोच जाने कहां गुम हो गई थी? इस वक़्त तो मैं ख़ुद ही माया की चूत को ये सोच कर मज़े से चाटे जा रहा था कि वो कोई अमृत है और उस अमृत को चाटने से मैं अमर हो जाऊंगा।

मैं इतने जुनूनी अंदाज़ से माया की चूत चाटे जा रहा था कि माया का कुछ ही देर में बुरा हाल हो गया। वो अपनी कमर को हवा में उठा उठा कर बेड पर पटकने लगी थी और साथ ही मेरे सिर को पूरी ताकत से अपनी चूत पर घुसेड़े दे रही थी। मेरा पूरा चेहरा माया के कामरस से लिसलिसा हो गया था जिसकी मुझे कोई ख़बर ही नहीं थी। एकाएक ही मैंने महसूस किया कि माया का जिस्म एकदम से अकड़ गया है और इससे पहले कि मैं कुछ समझ पाता माया के जिस्म को झटके लगने शुरू हो ग‌ए। झटकों के साथ ही माया की चूत से ढेर सारा कामरस निकल कर मेरे मुँह में भरने लगा। अपने मुँह में आए इस गाढ़े और गरम कामरस से मैं एकदम से बौखला गया और जल्दी से अपना सिर माया की चूत से हटाना चाहा लेकिन तभी माया ने अपनी दोनों टांगों के बीच फंसे मेरे सिर को और भी बुरी तरह से जकड़ लिया। मैंने बहुत कोशिश की लेकिन मैं माया की पकड़ से अपना सिर आज़ाद न कर सका। इस वक़्त माया में जाने कहां से इतनी ताकत आ गई थी कि उसने मुझे बुरी तरह अपनी टांगों के बीच जकड़ लिया था। मरता क्या न करता वाली हालत में मैं वापस ढीला हो कर उसकी बहती चूत पर ढेर हो गया। कुछ देर बाद जब माया के जिस्म पर लगने वाले झटके बंद हुए तो माया की जकड़ अपने आप ही ढीली पड़ती चली गई। माया की जकड़ ढीली हुई तो मैंने फ़ौरन ही अपना सिर उसकी चूत से उठा कर उसकी तरफ देखा।

मैं तो बुरी तरह हांफ ही रहा था लेकिन माया मुझसे कहीं ज़्यादा बुरी तरह हांफ रही थी। आँखें बंद किए वो इस तरह पड़ी थी जैसे उसमें अब कोई शक्ति ही न बची हो। लम्बी लम्बी सांस लेने की वजह से उसकी छातियां ऊपर नीचे हो रहीं थी। मैं भौचक्का सा माया की तरफ देखे जा रहा था। तभी मुझे अपने चेहरे और होठों पर चिपचिपा सा महसूस हुआ तो मेरा हाथ मेरे चेहरे पर गया। मैंने अपने चेहरे और मुँह के आस पास हाथ फिराया तो मुझे एहसास हुआ कि मेरा चेहरा तो माया के कामरस से पूरी तरह सन गया है।

काफी देर बाद जब माया की हालत ठीक हुई तो उसने अपनी आँखें खोल कर मेरी तरफ देखा। उसकी आँखों में मेरे लिए मुझे ढेर सारा प्यार झलकता हुआ नज़र आया। मैंने जब उसकी तरफ देखा तो उसके होठों पर गहरी मुस्कान उभर आई। कुछ पलों तक मेरी तरफ देखते रहने के बाद वो उठी और झपट कर मुझे अपने गले से लगा लिया।

"ओह! तुम तो कमाल हो डियर।" फिर उसने मीठे स्वर में कहा_____"मैं सोच भी नहीं सकती थी कि तुम पहली बार में ही मुझे इस तरह से ढेर कर दोगे। मैं हैरान हूं कि ये सब तुमने पहली बार में कैसे कर लिया?"
"मुझे नहीं पता।" मैंने धीमे स्वर में कहा_____"पता नहीं क्या हो गया था मुझे? मैं खुद अपने आप पर हैरान हूं कि ये सब मैंने कैसे किया?"

"तुमने मुझे असीम सुख दिया है डियर।" माया ने मुझे खुद से अलग करने के बाद मेरे चेहरे को अपनी हथेलियों में लेते हुए कहा____"मैंने ट्रेनिंग के दौरान न जाने कितने ही मर्दों के साथ सेक्स किया है लेकिन बिना सेक्स किए इस तरह से पहली बार मुझे इतना आनंद मिला है। मेरा रोम रोम अभी भी उस मज़े को महसूस कर के आनंदित हो रहा है। तुम सच में छुपे रुस्तम हो डियर। मुझे तो लगता है कि तुम्हें कुछ सुखाने की ज़रूरत ही नहीं है बल्कि तुम्हें तो सब कुछ आता है। ख़ैर अच्छा है कि तुम्हें ये सब करना आता है। चलो अब मैं भी तुम्हें वैसा ही सुख और वैसा ही आनंद देती हूं जैसा तुमने मुझे दिया है।"

"पहले मुझे अपना चेहरा तो अच्छे से साफ़ कर लेने दो।" मैंने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा_____"तुम्हारे कामरस से मेरा पूरा चेहरा ही भींग गया है। तुमने मुझे अपनी टांगों के बीच में इस तरह जकड़ लिया था कि मैं चाह कर भी अपना चेहरा तुम्हारी टांगों से छुड़ा नहीं पाया।"

"ओह! माफ़ करना डियर।" माया ने मुस्कुराते हुए कहा_____"उस वक़्त मैं मज़े के सातवें आसमान में थी जिसकी वजह से मुझे किसी चीज़ का होश ही नहीं रह गया था। ख़ैर तुम चिंता मत करो, मेरी वजह से अगर तुम्हारा चेहरा ख़राब हुआ है तो मैं ही इसे साफ़ भी करुंगी।"

कहने के साथ ही माया ने मुझे बेड पर लिटा दिया और मेरी आँखों में देखते हुए वो मेरे चेहरे पर झुकती चली गई। मेरी धड़कनें ये सोच कर फिर से बढ़ चलीं कि अब माया मेरे साथ क्या क्या करेगी? उसके झुकने से मेरी आँखें अपने आप ही बंद हो गईं और तभी मेरे होठों पर उसके बेहद ही मुलायम होठों का गरम स्पर्श महसूस हुआ जिससे मेरे पुरे जिस्म में झुरझुरी सी दौड़ गई। माया ने पहले दो तीन बार मेरे होठों को चूमा और फिर अपनी जीभ निकाल कर मेरे चेहरे के हर हिस्से पर फिराने लगी। मैं समझ गया कि वो मेरे चेहरे पर लगे अपने कामरस को चाट चाट कर मेरा चेहरा साफ़ कर रही है। मैं ये सोच कर बेहद ही रोमांचित हो उठा कि एक लड़की अपना ही कामरस चाट रही है।

मेरे जिस्म में मज़े की लहरें दौड़ने लगीं थी जिसकी वजह से फ़ौरन ही मेरा लंड तन कर खड़ा हो गया। माया मेरे बाएं तरफ बेड पर अधलेटी सी थी इस लिए शायद उसे मेरा खड़ा हुआ लंड नहीं दिख रहा था। माया पूरी तन्मयता से मेरे चेहरे पर लगे अपने कामरस को चाट रही थी और मैं उसके इस तरह चाटने से बेहद ही आनंद का अनुभव कर रहा था। उसकी चूचियां मेरे सीने पर कभी छू जातीं तो कभी धंस जातीं जिससे मेरा मज़ा दुगुना हो जाता था। कुछ देर बाद जब माया ने मेरे चेहरे से अपना सारा कामरस चाट लिया तो वो मेरे होठों को चूमते हुए मेरे गले की तरफ बढ़ी और गले से फिर सीने पर आ गई। माया मेरे सीने के हर हिस्से पर अपनी जुबान फेर रही थी और जब उसकी जुबान मेरे निप्पल पर चलती तो मेरे जिस्म का रोयां रोयां मज़े की तरंग में नाच उठता। मेरा लंड तो मज़े की इस तरंग में झटके पर झटके खा रहा था। मुझसे रहा न गया तो मैंने अपने दोनों हाथों से माया के सर को थाम लिया।

मेरे पूरे जिस्म को चूमते चाटते माया मेरे झटका खाते हुए लंड पर पहुंच ग‌ई। उसने अपने कोमल हाथों से जब मेरे लंड को पकड़ा तो मेरे जिस्म में एक बार फिर से झुरझुरी हुई। मैंने बड़ी मुश्किल से आँखें खोल कर माया की तरफ देखा। वो मेरे लंड को सहलाते हुए मुझे ही देख रही थी। मेरी नज़र जब उससे मिली तो उसके होठों पर मुस्कान उभर आई। उसने अपने जिस्म से पता नहीं कब अपनी ब्रा और पैंटी को उतार कर फेंक दिया था जिसकी वजह से उसकी बड़ी बड़ी चूचियां मुझे साफ़ दिख रहीं थी। उसकी दोनों चूचियां मेरे मसलने से लाल सुर्ख पड़ गईं थी और एक चूची पर तो मेरे काटने का निशान भी दिख रहा था। मैं अपने काटे हुए निशान को देख कर मुस्कुरा उठा। मुझे मुस्कुराते देख उसने इशारे से ही पूछा कि क्या हुआ तो मैंने न में सिर हिला कर इशारे से ही बताया कि कुछ नहीं।

मेरे देखते ही देखते माया मेरे लंड पर झुकी और अपना मुँह खोल कर उसने मेरे लंड के मोटे से टोपे को अपने मुँह में भर लिया। उसके गरम गरम मुँह पर जैसे ही मेरा लंड घुसा तो मज़े से मेरी आँखें फिर से बंद हो गईं। उधर उसने मेरे टोपे को मुँह में भरने के बाद अंदर ही अपनी जीभ से उसके छेंद को कुरेदना शुरू कर दिया जिसकी वजह से मेरे मुँह से सिसकियां निकलने लगीं। मज़े की तरंग ने मुझे एक झटके से सातवें आसमान में पंहुचा दिया। कुछ देर अपनी जीभ से मेरे लंड के छेंद को कुरेदने के बाद माया ने मेरे लंड को मुँह से निकाल दिया। उसके ऐसा करने से मैंने एकदम से अपनी आँखें खोल कर उसकी तरफ देखा। असल में मैं चाहता था कि अभी जिस मज़े में मैं पहुंच गया था उसी मज़े में मैं डूबा रहूं। मेरी तरफ देख कर माया शायद मेरे मनोभावों को समझ गई थी इस लिए उसने फिर से मेरे लंड को अपने मुँह में भर लिया।

मेरा लंड इतना मोटा और बड़ा था कि उसके मुँह में उसका टोपा ही समा पा रहा था। माया ने कोशिश करते हुए टोपे के साथ साथ मेरे लंड के कुछ और हिस्से को अपने मुँह के अंदर लिया और फिर अपना सिर नीचे ऊपर करते हुए मेरे लंड को कुल्फी की तरफ चूसने लगी। उसके गरम गरम मुख में मेरा लंड था और इसके बारे में सोच कर ही मैं मज़े के सागर में मानो गोते लगाने लगा था। मैंने फ़ौरन ही अपने हाथों को बढ़ा कर माया के सिर को पकड़ा और उसे अपने लंड पर दबाने लगा।

मज़े की तरंग में प्रतिपल मैं अपने होश खोता जा रहा था और पूरा ज़ोर लगा कर माया के मुँह में अपने लंड को और भी अंदर घुसेड़ता जा रहा था। आँखें बंद किए मैं अपनी कमर को उठा उठा कर माया के मुँह में अपना लंड पेल रहा था। मेरे मुँह से मज़े में डूबी सिसकारियां पूरे कमरे में गूंजने लगीं थी और उसी के साथ मेरी भारी होती साँसें भी। मुझे अब इस बात का कोई इल्म नहीं था कि मेरे इस तरह ज़ोर देने पर माया की क्या हालत हुई जा रही होगी बल्कि मुझे तो इस वक़्त सिर्फ अपने मज़े की ही पड़ी थी। मेरे जिस्म का लहू बड़ी तेज़ी से मेरे लंड की तरफ दौड़ता हुआ जा रहा था। उधर माया के मुँह से अजीब अजीब सी आवाज़ें निकल रही थी और मुझे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे वो मेरे लंड को अपने मुँह से निकालने की ज़द्दो जहद कर रही हो। अचानक ही उसने अपने दांत मेरे लंड पर गड़ाए तो मेरे मुख से घुटी घुटी सी चीख निकल गई और मैंने झट से उसके सिर को छोड़ दिया।

माया ने एक झटके से मेरे लंड को अपने मुँह से निकाल दिया। मैंने झटके से आँखें खोल कर उसकी तरफ देखा तो चौंक गया। उसका चेहरा बुरी तरह लाल सुर्ख पड़ा हुआ था और वो बुरी तरह हांफ रही थी। उसकी आँखों से आंसू के कतरे बहे हुए दिख रहे थे। उसकी हालत देख कर मैं ये सोच कर एकदम से घबरा गया कि इसे क्या हो गया है?

"तुम तो मेरी जान ही लेने पर उतारू हो गए डियर।" उसने अपनी उखड़ी हुई साँसों को सम्हालते हुए और ज़बरदस्ती मुस्कुराते हुए कहा_____"मज़े की तरंग में इतना भी अपना होश नहीं खो देना चाहिए कि अपने सेक्स पार्टनर का कोई ख़याल ही न रह जाए।"

"म..मुझे माफ़ कर दो।" मैंने जल्दी से उठ कर उससे शर्मिंदा हो कर कहा_____"मुझे सच में इस बात का ख़याल ही नहीं रह गया था कि अपने मज़े में मैं तुम्हें तक़लीफ दिए जा रहा हूं। प्लीज़ मुझे माफ़ कर दो। अब से ऐसा नहीं होगा।"

"कोई बात नहीं डियर।" माया ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा____"मैं समझ सकती हूं कि पहली बार में ये सब तुमसे अंजाने में हो गया है। ख़ैर चलो फिर से शुरू करते हैं।"

माया की बात सुन कर मैंने राहत की सांस ली और सिर को हिलाते हुए चुप चाप बेड पर लेट गया। मेरे लेटते ही माया ने अपना हाथ बढ़ाया और मेरी तरफ देखते हुए उसने मेरे लंड को फिर से थाम लिया। मेरा लंड थोड़ा ढीला सा पड़ गया था जोकि उसके हाथ में आते ही फिर से ठुमकने लगा था।

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#13
अध्याय - 08
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माया बड़े प्यार से मेरी तरफ देखते हुए मेरा लंड सहलाए जा रही थी और मैं आँखें बंद कर के ये सोचने लगा था कि साला समय भी क्या चीज़ है जिसके बारे में कोई भी इंसान ये नहीं कह सकता कि कब क्या हो जाए? मैंने तो इस बात का तसव्वुर भी नहीं किया था कि मेरे जीवन में कभी ऐसा भी वक़्त आएगा जब एक खूबसूरत लड़की मेरे लंड को इस तरह से अपने हाथ में ले कर सहलाएगी और मुझे मज़े के सातवें आसमान में पहुंचा देगी। एक वक़्त था जब मैं लड़की ज़ात से खुल कर बात करने में भी शर्माता था और आज ये वक़्त है कि वही लड़की ज़ात मुझे सेक्स का ज्ञान दे रही थी और मैं बिना शर्माए उससे अपना लंड सहलवाते जा रहा था।

मैं ये सोच ही रहा था कि तभी मेरे मुँह से मज़े में डूबी सिसकी निकल गई। माया ने मेरे लंड को अपने मुँह में भर लिया था और अब वो उसका चोपा लगा रही थी। उसने मेरे लंड को दोनों हाथों से कस कर पकड़ लिया था और मेरे लंड के टोपे को इस तरह से चूसे जा रही थी कि पूरे कमरे में दो तरह की आवाज़ें गूंजने लगीं थी। एक तो मेरी सिसकारियों की और एक उसके चोपा लगाने की। मैं एक पल में ही मज़े के सागर में गोते लगाने लगा था। मेरे अंडकोषों में बड़ी तेज़ी से झुरझुरी हो रही थी। मेरे मुँह से तेज़ तेज़ आहें और सिसकारियां निकल रहीं थी और मैं बेड पर पड़ा जैसे छटपटाने सा लगा था।

मुझसे बरदास्त न हुआ तो मैंने जल्दी से हाथ बढ़ा कर माया के सिर को पकड़ा और उसे अपने लंड से हटाने के लिए ज़ोर लगाया तो माया ने अपने मुँह से मेरे लंड को निकाल दिया और मेरी तरफ मुस्कुराते हुए देखा।

"क्या हुआ डियर?" माया ने मुस्कुराते हुए पूछा____"क्या तुम्हें मेरे ऐसा करने से मज़ा नहीं आ रहा?"
"अ..ऐसी बात नहीं है।" मैंने अपनी साँसों को और ख़ुद की हालत को काबू करते हुए कहा_____"मज़ा तो मुझे इतना आ रहा है कि मैं उसके बारे में बता ही नहीं सकता लेकिन मैं ये जानना चाहता हूं कि क्या आज सारा दिन हम यही करते रहेंगे? मेरा मतलब है कि क्या हम इसके आगे नहीं बढ़ेंगे?"

"बिल्कुल बढ़ेंगे डियर।" माया ने उसी मुस्कान के साथ कहा_____"मैं तो बस तुम्हें मज़ा देने के लिए तुम्हारे इस हलब्बी लंड को मुँह में ले कर चूस रही थी। अगर तुम्हारा मन इससे आगे बढ़ने का है तो ठीक है, चलो वही करते हैं।"

माया ने ये कहा तो मैंने खुश हो कर हां में सिर हिला दिया। असल में मैं अब सच में यही चाहता था कि अब मैं वो करूं जो हर लड़के की ख़्वाहिश होती है, यानी किसी लड़की की चूत में अपना लंड डाल कर उसे हचक हचक के चोदना। हालांकि मेरे लिए ये सब एक नया अनुभव था और मुझे इसमें बेहद मज़ा भी आ रहा था लेकिन अब ये सब मुझे ऊबता सा लगने लगा था। अब तो मुझे यही लग रहा था कि कितना जल्दी मैं इस माया की चूत में अपने लंड को डाल दूं और उसके ऊपर सवार हो कर उसकी धुआंधार चुदाई शुरू कर दूं।

"एक बात हमेशा याद रखना डियर।" माया मेरी तरफ आते हुए बोली_____"और वो ये कि तुम जिस फील्ड के लिए आए हो उसमें तुम्हें अपने मन का नहीं करना है बल्कि औरत के मन का करना होगा। औरत जिस तरह से चाहेगी तुम्हें उस तरह से उसे खुश करना होगा। औरत के खुश होने पर या संतुष्ट होने पर ही ये माना जाएगा कि तुम अपनी सर्विस देने में कामयाब हुए हो। अगर तुम्हारी वजह से कोई औरत खुश न हुई और उसने शिकायत का कोई पैग़ाम भेज दिया तो समझो कि इसके लिए तुम्हें संस्था द्वारा सज़ा भी दी जाएगी।"

"य..ये क्या कह रही हो तुम?" मैं माया की ये बातें सुन कर बुरी तरह हैरान हो गया था।
"यही सच है डियर।" माया मुझसे सट कर बैठते हुए बोली____"हालाँकि हम लोग ये बातें किसी को भी नहीं बताते लेकिन क्योंकि तुम ख़ास हो इस लिए मैंने तुम्हें बता दिया है और हां इस बात का ज़िक्र तुम संस्था में किसी से भी मत करना वरना इसका अंजाम अच्छा नहीं होगा।"

"बड़ी अजीब बात है।" मैंने गहरी सांस लेते हुए कहा_____"क्या ये भी संस्था का कोई नियम है?"
"शायद अभी तुम्हें संस्था के सारे नियम कानून नहीं बताये गए हैं।" माया ने कहा_____"वरना मेरी बात सुन कर तुम इस तरह हैरान नहीं होते। ख़ैर कोई बात नहीं, जल्द ही तुम्हें सारे नियम कानून पता चल जाएंगे। चलो अब छोड़ो ये बातें और अपनी मर्ज़ी से वो करो जो तुम करना चाहते हो।"

माया इतना कह कर बेड पर सीधा लेट गई थी। उसका गोरा और मादक जिस्म ऐसा था कि मैं चाह कर भी उसके बदन से नज़र नहीं हटा सकता था। उसके सीने पर गर्व से तने हुए बड़े बड़े पर्वत शिखर इतने सुडौल और सुन्दर थे कि मुझसे रहा न गया। मैंने झुक कर फ़ौरन ही उसकी एक चूची के निप्पल को मुँह में भर लिया। अपने दूसरे हाथ से मैंने माया की दूसरी चूची को मसलना शुरू कर दिया। एक हाथ से मैं उसके पेट और नाभि को सहलाने लगा। माया के जिस्म में इसका असर हुआ तो उसने मेरे सिर पर अपना एक हाथ रख लिया जबकि दूसरे हाथ से उसने बेड की चादर को अपनी मुट्ठी में भर लिया।

माया की चूचियों को चूमते हुए मैं जल्दी ही नीचे आया और उसकी रस से भरी चूत को कुछ पल देखने के बाद मैंने उस पर अपना मुँह रख दिया। अपनी जीभ निकाल कर मैंने उसकी चूत की फांकों के बीच नीचे से ऊपर की तरफ फेरा तो माया के जिस्म में कंपकंपी सी हुई। इधर मेरे मुँह में उसकी चूत के रस का खटमिट्ठा स्वाद भर गया। मैंने अपने एक हाथ की दो उंगलियों से उसकी चूत की फांकों को फैलाया तो मुझे उसके अंदर सुर्ख रंग का लिसलिसा सा मंज़र नज़र आया। मेरे बदन में एक झुरझुरी सी हुई और मैंने अपनी एक ऊँगली उसके छेंद पर डाल दिया जिससे माया के जिस्म में फिर से कंपकंपी हुई। उसकी चूत में एक ऊँगली डालने के बाद मैंने उसे यूं ही अंदर घुमाया। मेरी पूरी ऊँगली उसके कामरस से भींग गई थी। मैंने ऊँगली निकाल कर देखा और उसे मुँह में भर लिया। कामरस के स्वाद से बड़ा अजीब सा एहसास हुआ मुझे। मेरा मन किया कि मैं माया की चूत को खा ही जाऊं लेकिन ऐसा करना मुमकिन नहीं था।

मैं अब और बरदास्त नहीं कर सकता था इस लिए मैं उठा और माया की दोनों टांगों को फैला कर उसके बीच में आ गया। मेरा लंड इतना कठोर हो गया था कि अब मुझे उसमें दर्द सा होने लगा था। मेरे पास किताबी ज्ञान था जिसके सहारे मैंने एक हाथ से अपने लंड को पकड़ा और दूसरे हाथ से माया की चूत की फांकों को फैला कर अपने लंड को उसके छेंद के पास टिकाया। मेरी धड़कनें इस वक़्त काफी तेज़ी से चल रहीं थी और इस वक़्त मैं अजीब ही हालत में पहुंच गया था। चूत के छेंद पर लंड के टोपे को टिका कर मैंने अपनी कमर को आगे की तरफ हल्के से ढकेला तो मेरा हाथ माया की चूत से छूट गया जिससे मेरा लंड भी फिसल गया। मैंने चेहरा उठा कर माया की तरफ देखा तो उसे अपनी तरफ ही मुस्कुराते हुए देखता पाया। उसे इस तरह मुस्कुराते देख मुझे शर्म सी महसूस हुई और मैंने फ़ौरन ही उसकी तरफ से नज़रें हटा ली।

मैंने फिर से अपने लंड को माया की चूत के छेंद पर अच्छे से टिकाया और इस बार ज़रा सावधानी से अपनी कमर को आगे की तरफ ढकेला तो मेरे लंड का टोपा उसकी चूत में घुस गया। टोपा घुसते ही मेरे होठों पर मुस्कान उभर आई और मैंने फिर से नज़र उठा कर माया की तरफ देखा। इस बार उसे मुस्कुराता देख मुझे शर्म नहीं महसूस हुई बल्कि ऐसा लगा जैसे मैंने बहुत बड़ी फ़तह हासिल कर ली हो। खै़र मेरे लंड का टोपा उसकी चूत में घुसा तो मैंने अपने लंड से अपना हाथ हटा लिया और माया की दोनों जाँघों को पकड़ कर अपनी कमर को और भी आगे की तरफ धकेला तो मेरा लंड फिर से उसकी चूत में अंदर की तरफ घुसा। मैंने महसूस किया कि माया की चूत अंदर से बेहद गरम है और उसने चारो तरफ से मेरे लंड को जकड़ लिया है।

तीन चार बार में मैंने आहिस्ता आहिस्ता अपने लंड को आधे से ज़्यादा माया की चूत में उतार दिया था। माया के मुख से हर बार सिसकी निकल जाती थी। जब मेरा लंड आधा उसकी चूत में उतर गया तो माया ने मुझे धीरे धीरे धक्का लगाने को कहा तो मैं अपनी कमर को धीरे धीरे आगे पीछे करने लगा। गीली और गरम चूत पर मेरा लंड बहुत ज़्यादा तो नहीं लेकिन कसा हुआ ज़रूर लग रहा था और जैसे जैसे मैं उसे अंदर बाहर कर रहा था वैसे वैसे मुझे मज़ा आ रहा था। देखते ही देखते मज़े में आ कर मैंने तेज़ तेज़ धक्के लगाने शुरू कर दिए। मैंने महसूस किया कि अब ये मेरे लिए मुश्किल काम नहीं है और शायद यही वजह थी कि मेरे धक्कों की रफ़्तार पहले की अपेक्षा तेज़ हो गई थी। माया की मांसल जाँघों को पकड़े मैं तेज़ तेज़ धक्के लगाए जा रहा था। हर धक्के के साथ मेरा लंड और भी गहराई में उतरता जा रहा था जिसकी वजह से माया के मुँह से सिसकारियों के साथ साथ अब आहें भी निकलने लगीं थी।

किसी लड़की के साथ चुदाई करने में सच में इतना मज़ा आता है ये मुझे अब पता चल रहा था। मेरे आनंद की कोई सीमा नहीं थी। मैं आनंद में अपने होश खोता जा रहा था और धीरे धीरे मुझमें एक जूनून सा सवार होता जा रहा था। उसी जूनून के तहत मैं और भी तेज़ी से माया की चूत में अपने लंड को अंदर बाहर करता जा रहा था। मैंने नज़र उठा कर माया की तरफ देखा तो उसे मज़े में अपनी आँखें बंद किए पाया। उसकी बड़ी बड़ी खरबूजे जैसी चूचियां मेरे हर धक्के पर उछल पड़ती थीं। चूचियों का उछलना देख कर मुझे और भी ज़्यादा जोश चढ़ गया और मैं और भी तेज़ी से धक्के लगाने लगा।

पूरे कमरे में माया की मज़े में डूबी आहें और सिसकारियां गूँज रहीं थी। बीच बीच में वो ये भी बोलती जा रही थी कि हां डियर ऐसे ही, बहुत मज़ा आ रहा है। उसके ऐसा कहने पर मैं दोगुने जोश में धक्के लगाने लगता। मैं ख़ुद भी बुरी तरह हांफने लगा था लेकिन मज़ा इतना आ रहा था कि मैं रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था। काफी देर तक यही आलम रहा। उसके बाद माया ने मुझे रुकने को कहा तो मैं रुक गया। मुझे उसका यूं रोकना अच्छा तो नहीं लगा था लेकिन जब मैंने उसे घोड़ी बनते हुए देखा तो मुझे किताब में बने चित्र की याद आई और मैं मुस्कुरा उठा। घोड़ी बनते ही माया ने मुझसे कहा कि मैं पीछे से उसकी चूत में अपना लंड डाल कर चुदाई करूं तो मैंने ऐसा ही किया। मेरे मोटे लंड की वजह से उसकी चूत का छेंद खुला हुआ साफ़ दिख रहा था जिसकी वजह से मुझे उसके छेंद पर अपना लंड डालने में कोई परेशानी नहीं हुई।

माया घोड़ी बनी हुई थी और मैं उसकी कमर को दोनों हाथों से पकड़े तेज़ तेज़ धक्के लगा रहा था। काफी देर तक मैं ऐसे ही धक्के लगाता रहा। माया जब थक गई तो उसने फिर से मुझे रुकने को कहा।

"तुम सच में कमाल हो डियर।" माया ने सीधा हो कर लेटते हुए कहा_____"मैंने ऐसा मर्द नहीं देखा जिसका पहली बार में इतना गज़ब का स्टेमिना हो। काश तुम हमेशा के लिए मेरे पास ही रहते।"

"तुम एक ऐसी लड़की हो माया।" मैंने माया को उसके नाम से सम्बोधित करते हुए कहा____"जिसने मुझे जीवन में पहली बार सेक्स का इतना सुख दिया है। इस लिए तुम्हारे लिए मेरे दिल में हमेशा एक ख़ास जगह रहेगी। अगर तुम्हें संभव लगे तो मुझे ज़रूर याद करना। मैं जहां भी रहूंगा तुम्हारे पास ज़रूर आऊंगा।"

"यही तो मुश्किल है डियर।" माया ने जैसे अफ़सोस जताते हुए कहा_____"यहाँ से जाने के बाद कोई भी मर्द हमारे पास वापस नहीं आता और ना ही हमने कभी उन्हें बुलाने की कोशिश की। ऐसा नहीं है कि हमें कभी उन मर्दों की याद नहीं आती लेकिन नियम कानून के डर से हमने कभी भी उन्हें बुलाने का नहीं सोचा। दूसरी बात ये भी थी कि उनसे सम्बन्ध स्थापित करने का हमारे पास कोई जरिया नहीं था। ख़ैर छोड़ो ये सब बातें और इस असीम सुख का आनंद लो। जब तक यहाँ हो तब तक तो तुम हमारे ही रहोगे न।"

माया की इस बात ने मेरा दिल खुश कर दिया था। मैंने उसके होठों को प्यार से चूम लिया और एक बार फिर से उसकी चूत में अपना लंड डाल कर चुदाई का कार्यक्रम शुरू कर दिया। इस बार मैंने पहले से भी ज़्यादा जोश में आ कर माया की हचक हचक कर चुदाई की थी। माया इस बार ज़्यादा देर तक ठहर नहीं पाई और झटके खाते हुए झड़ने लगी थी। झड़ते वक़्त उसने अपनी दोनों टांगों के बीच मेरी कमर को जकड़ लिया था। जब वो झड़ कर शांत हो गई तो मैंने फिर से धक्के तेज़ कर दिए। क़रीब पांच मिनट बाद ही मुझे लगने लगा कि अब मैं भी झड़ने की कगार पर आ गया हूं। मेरे मुँह से निकलती सिसकारियों से ही माया को पता चल गया कि मैं झड़ने वाला हूं इस लिए उसने फ़ौरन ही मुझे अपनी चूत से मेरा लंड निकालने को कहा तो मैंने न चाहते हुए भी अपना लंड निकाल लिया।

मैंने लंड निकाला तो माया जल्दी से उठी और मेरे लंड को पकड़ कर अपने मुँह में भर लिया। मैं इस वक़्त बेहद आनंद और जोश में था इस लिए जैसे ही उसने मेरे लंड को अपने मुँह में भरा तो मैंने उसके सिर को पकड़ कर उसके मुख को ही चोदना शुरू कर दिया। जल्दी ही मैं मज़े की चरम सीमा पर पंहुच गया और फिर एक लम्बी आह भरते हुए मेरा पूरा जिस्म अकड़ गया। मैं जैसे आसमान से धरती पर गिरने लगा। मुझे कोई होश नहीं था कि मैंने कितने झटके खाए और मेरे लंड का सारा पानी कहां गया। चौंका तब जब माया ने मुझे ज़ोर का धक्का दिया। उसके धक्के से मैं बेड पर भरभरा कर गिर गया। उधर माया का मुँह मेरे लंड से निकले कामरस से लबालब भरा हुआ था और उसके मुख से बाहर भी निकल कर बेड पर गिरता जा रहा था। उसका चेहरा लाल सुर्ख पड़ा हुआ था। आँखें बंद करते वक़्त मुझे एहसास हुआ कि शायद एक बार फिर से मैंने माया की हालत ख़राब कर दी थी जिसके लिए मुझे बेहद अफ़सोस और शर्मिंदगी हुई।

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शिवकांत वागले ने फ़ौरन ही डायरी को बंद कर दिया और लम्बी लम्बी सांसें लेते हुए कुर्सी की पिछली पुश्त से अपनी पीठ टिका लिया। इस वक़्त उसकी हालत बड़ी अजीब सी दिख रही थी। चेहरे पर पसीना उभरा हुआ था। ऐसा लग रहा था जैसे उसके अंदर का तापमान इस वक़्त बढ़ गया था। हालांकि सच तो यही था कि उसके अंदर का तापमान बढ़ चुका था। विक्रम सिंह की डायरी में उसकी गरमा गरम कहानी पढ़ कर उसकी ख़ुद की हालत ख़राब हो गई थी। दो दो जवान बच्चों का बाप होते हुए भी वागले अपने अंदर सेक्स की गर्मी महसूस कर रहा था। कहानी में तो विक्रम सिंह और माया चरम सीमा में पहुंच कर तथा आनंद को प्राप्त कर के शांत पड़ गए थे लेकिन यहाँ वागले का हाल बेहाल सा नज़र आ रहा था। उसका अपना लंड पैंट के अंदर अकड़ा हुआ था।

वागले ने अपनी मौजूदा हालत को ठीक करने के लिए आँखें बंद कर ली किन्तु आँखें बंद करते ही उसकी बंद पलकों के तले कहानी के वो सारे मंज़र एक एक कर के दिखने लगे जिन्हें अभी उसने पढ़ा था। वागले ने फ़ौरन ही अपनी आँखें खोली और केबिन में इधर उधर देखने के बाद उसने टेबल पर रखे पानी के गिलास को उठा कर पानी पिया। माथे पर उभर आए पसीने को उसने रुमाल से पोंछा और फिर अपनी बेचैनी को दूर करने के लिए उसने एक सिगरेट जला ली। सिगरेट के लम्बे लम्बे कश लेने के बाद उसने ढेर सारा धुआँ हवा में उड़ाया। न चाहते हुए भी बार बार उसकी आँखों के सामने कहानी में लिखा एक एक मंज़र घूमने लगता था। वागले सोचने लगा कि विक्रम सिंह जैसा इंसान एक डायरी में अपनी इस तरह की आप बीती कैसे लिख सकता है जबकि उसे ख़ुद इस बात का एहसास हो कि अगर उसका लिखा हुआ किसी ने पढ़ लिया तो उसके बारे में क्या सोचेगा?

शिवकांत वागले को समझ में नहीं आ रहा था कि अगर विक्रम सिंह को उसे अपने अतीत के बारे में ही बताना था तो वो दूसरे तरीके से लिख कर भी बता सकता था लेकिन इस तरह सेक्स से भरी कहानी लिखने का क्या मतलब था उसका? आख़िर उसके ज़हन में इस तरह से अपनी आप बीती लिखने की मूर्खता क्यों आई होगी? वागले को याद आया कि जिस दिन विक्रम सिंह ने उसे ये डायरी दी थी उस दिन उसने जाते समय उससे ये भी कहा था कि चाहे जैसी भी परिस्थितियां बनें लेकिन वो उसे खोजने की कभी कोशिश न करे। वागले को समझ न आया कि आख़िर विक्रम सिंह ने उससे ऐसा क्यों कहा होगा? क्या इसके पीछे भी कोई ऐसी बात हो सकती है जिसके बारे में फिलहाल वो सोच नहीं पा रहा है?

शिवकांत वागले की बेचैनी जब सिगरेट पीने के बाद भी शांत न हुई तो वो कुर्सी से उठ कर जेल का चक्कर लगाने के लिए निकल गया। इसके पहले वो डायरी को ब्रीफ़केस में डालना नहीं भूला था। शाम तक वागले जेल में ही इधर उधर चक्कर लगाता रहा और दूसरे कुछ ख़ास कै़दियों से मिलता जुलता रहा। उसके बाद वो ब्रीफ़केस ले कर अपने सरकारी आवास की तरफ निकल गया।

घर पर आया तो सावित्री ने ही दरवाज़ा खोला। वागले ने एक नज़र सावित्री पर डाली और फिर बिना कुछ बोले ही अपने कमरे की तरफ बढ़ गया। उसका बेटा चंद्रकांत और बेटी सुप्रिया शायद घर पर नहीं थी वरना इस वक़्त वो वागले को ड्राइंग रूम में ज़रूर दिख जाते। ख़ैर वागले ने कमरे में जा कर अपनी वर्दी उतारी और तौलिया ले कर बाथरूम में घुस गया।

इधर सावित्री किचेन में उसके लिए चाय बनाने लगी थी और सोचती भी जा रही थी कि क्या उसका पति सच में उससे नाराज़ है या फिर ये उसका वहम है? हालांकि जब उसने दरवाज़ा खोला था तो वागले ने उससे कोई बात नहीं की थी और इसी बात से सावित्री को लगने लगा था कि उसका पति शायद सच में ही उससे नाराज़ है। उसे समझ नहीं आ रहा था कि अब वो अपने पति से किस तरह बात करे?

नहा धो कर और पजामा कुर्ता पहन कर वागले कमरे से निकला और घर से बाहर लान में एक तऱफ रखी कुर्सी पर बैठ गया। सावित्री उसी के निकलने का इंतज़ार कर रही थी। जैसे ही वो बाहर गया तो सावित्री भी ट्रे में दो कप चाय ले कर बाहर निकल गई। लान में वागले के पास आ कर उसने ट्रे को अपने पति के सामने किया तो वागले ने बिना कुछ बोले चुपचाप ट्रे से चाय का कप उठा लिया। सावित्री ने ट्रे से अपना कप ले कर ट्रे को वही सेंटर टेबल पर रख दिया और उस पार रखी एक कुर्सी पर बैठ गई।

शिवकांत वागले ने जब सावित्री को अपने सामने वाली कुर्सी पर बैठते देखा तो वो अपनी कुर्सी से उठ गया। सावित्री ये देख कर चौंकी और उसने वागले की तरफ देखते हुए धीमे स्वर में कहा_____"कहां जा रहे हैं? अब क्या मेरा चेहरा भी नहीं देखना चाहते हैं?"

वागले ने सावित्री की इस बात को सुन कर एक नज़र उसकी तरफ देखा और बिना कुछ कहे अंदर की तरफ चला गया। पति के इस तरह चले जाने से सावित्री को बहुत बुरा लगा। आज सारा दिन वो यही सब सोच कर उदास रही थी और इस वक़्त पति का ऐसा बर्ताव देख कर उसका गला भर आया था। हालांकि वो जानती थी कि दोष उसी का है। माना कि उसके दो दो जवाब बच्चे थे लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं हो सकता था न कि बच्चों के जवान हो जाने की वजह से उनका अपना कोई निजी जीवन ही नहीं रहा या अपनी कोई हसरतें ही नहीं रहीं? सावित्री जानती थी कि वागले कभी इस तरह उसे सेक्स के लिए नहीं कहता था बल्कि वो तभी कहता था जब कभी ख़ुद उसका मन होता था वरना दोनों के बीच अब सेक्स न के बराबर ही होता था। सावित्री तो कभी भी इसके लिए पहल नहीं करती थी और वागले अगर पहल करता था तो सावित्री हमेशा ही उसे जवाब में बच्चों का हवाला दे कर इसके लिए मना कर देती थी। इसके पहले वागले कभी भी इस तरह उससे नाराज़ नहीं हुआ था किन्तु इस बार शायद सावित्री ने सच में उसका दिल दुख दिया था।

सावित्री की आँखों में आंसू तो आए लेकिन कुर्सी से उठ कर वागले के पीछे जाने की उसमें हिम्मत न हुई। किसी तरह उसने चाय ख़त्म की और फिर अंदर जा कर रात के लिए खाना बनाने में लग गई। उधर वागले दूसरे कपड़े पहन कर घर से बाहर कहीं निकल गया।

रात में वागले उस वक़्त आया जब खाना खाने का वक़्त हो गया था। खाना खाने के बाद वो कमरे में गया और पैंट की जगह पजामा पहन कर बाहर आया। ड्राइंग रूम में रखे सोफे पर वो बैठ गया और टीवी चला कर उसमें न्यूज़ देखने लगा। न्यूज़ देखने में वो इतना खो गया कि उसे वक़्त का पता ही नहीं चला और शायद आगे भी उसे पता न चलता अगर सावित्री आ कर स्विच बोर्ड से टीवी का बटन न बंद कर देती।

"सोने का वक़्त हो गया है।" सावित्री ने शांत भाव से कहा_____"कमरे में चलिए। मैंने दूध का गिलास वहीं स्टूल में रख दिया है।"
"ज़रुरत नहीं है।" वागले ने रूखे भाव से कहा____"मैं यहीं सोऊंगा।"

"अब भला ये क्या बात हुई?" सावित्री ने कातर भाव से वागले की तरफ देखा तो वागले ने सपाट लहजे में कहा____"बात कुछ नहीं हुई। मुझे यहीं पर सोना है। तुम जाओ और सो जाओ।"
"पहले तो कभी आप यहाँ नहीं सोए।" सावित्री ने कहा____"फिर आज क्यों यहाँ पर सोने को कह रहे हैं?"

"क्योंकि यही पर मेरा सोने का मन है।" वागले ने कहा____"अब जाओ यहाँ से।"
"भगवान के लिए ऐसी बातें मत कीजिए?" सावित्री ने इस बार थोड़ा दुखी भाव से कहा____"बच्चे पास में ही अपने कमरे में है। अगर उन्होंने सुन लिया कि आप यहाँ सोने की बात कह रहे हैं तो वो क्या सोचेंगे?"

"तो क्यों सुना रही हो उन्हें?" वागले ने उखड़े हुए भाव से कहा____"जब मैंने कह दिया कि मुझे यहीं पर सोना है तो क्यों मुझे कमरे में सोने को कह रही हो? अब जाओ यहाँ से या फिर अगर चाहती हो कि बच्चे सुन ही लें तो ऐसे ही लगी रहो। मुझे कोई फ़र्क नहीं पड़ता।"

"मैं मानती हूं कि मुझसे ग़लती हुई है।" सावित्री की आँखों में आंसू भर आए____"इस लिए मैं अपनी ग़लती को स्वीकार करती हूं और अब से वही करुँगी जो आप चाहेंगे। अब भगवान के लिए गुस्सा थूक दीजिए और कमरे में चलिए।"

"तुम्हें क्या लगता है कि मैं तुमसे उस वजह से गुस्सा हूं?" वागले ने कहा____"नहीं, तुम ग़लत सोच रही हो। तुम्हारी इच्छाएं मर गई हैं तो इसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं है बल्कि दोष तो मेरा है जिसे अभी तक तृष्णा ने अपना शिकार बना रखा है, लेकिन तुम फ़िक्र मत करो। मैं अपनी ज़रूरत कहीं और से पूरी कर लूंगा। आज की दुनियां में पैसे से सब कुछ मिल जाता है।"

"हे भगवान! ये क्या कह रहे हैं आप?" सावित्री के चेहरे पर हैरत के भाव उभर आए____"इतनी सी बात के लिए आप ऐसा कैसे सोच सकते हैं?"
"क्यों नहीं सोच सकता?" वागले ने दो टूक भाव से कहा_____"मेरी ज़िन्दगी है, मैं जैसा चाहूं सोच सकता हूं। इसमें तुम्हें कोई समस्या नहीं होनी चाहिए। जिस तरह तुम अपनी सोच के अनुसार जीवन जी रही हो उसी तरह हर इंसान को अपनी सोच के अनुसार जीवन जीने का हक़ है।"

"मैं कह तो रही हूं कि अब से जो आप कहेंगे मैं वही करुंगी।" सावित्री ने बेचैनी से कहा_____"फिर ऐसी बातें क्यों कर रहे हैं आप?"
"मुझे अब तुमसे कुछ नहीं चाहिए।" वागले ने स्पष्ट रूप से कहा____"अब जाओ यहाँ से, मेरा दिमाग़ मत ख़राब करो।"

"क्या हुआ पापा?" तभी ड्राइंग रूम में चंद्रकांत की आवाज़ गूँजी तो सावित्री ने चौंकते हुए पीछे मुड़ कर देखा। पीछे कमरे के दरवाज़े पर चंद्रकांत खड़ा था। अपने बेटे को देख कर और उसकी बात सुन कर जहां सावित्री ये सोच कर बुरी तरह घबरा गई कि कहीं उसके बेटे ने सारी बातें तो नहीं सुन ली तो वहीं वागले पर जैसे अपने बेटे की इस आवाज़ से कोई फर्क ही नहीं पड़ा।

"कुछ नहीं बेटा।" वागले ने उसकी तरफ देखते हुए सामान्य भाव से कहा_____"वो हम ऐसे ही इधर उधर की बातें कर रहे थे। तुम जाओ अपने कमरे में, और आराम से सो जाओ।"
"जी पापा।" चंद्रकांत ने बड़े अदब से कहा और वापस अपने कमरे में जा कर उसने कमरे का दरवाज़ा बंद कर लिया।

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#14
अध्याय - 09
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"ये आप बिलकुल भी ठीक नहीं कर रहे हैं।" बेटे चंद्रकांत के दरवाज़ा बंद करते ही सावित्री ने वागले की तरफ देखते हुए जैसे आहत भाव से कहा_____"इतनी सी बात के लिए आप इतनी बड़ी ज़िद कर के क्यों बैठ गए हैं?"

"क्या तुमने सोच लिया है कि तुम इस वक़्त मुझे यहाँ पर शान्ति से नहीं बैठने दोगी?" वागले ने शख़्त भाव से कहा_____"और अगर सच में सोच लिया है तो ठीक है मैं इस घर से ही चला जाता हूं।"

"नहीं नहीं भगवान के लिए कहीं मत जाइए।" वागले जैसे ही सोफे से उठा तो सावित्री ने झट से उसके पैर पकड़ लिए_____"मैं कबूल कर चुकी हूं न कि मुझसे ग़लती हुई है और मैं ये भी कह चुकी हूं कि अब से मैं वही करुँगी जो आप कहेंगे। इस लिए मुझ पर दया कीजिए और मेरे साथ अंदर कमरे में चलिए। इस उम्र में ये सब करना आपको ज़रा भी शोभा नहीं देता।"

"मुझे क्या शोभा देता है और क्या नहीं इसका तो तुम्हें बहुत अच्छी तरह से ख़याल है।" वागले ने जैसे ताना मारते हुए कहा_____"लेकिन बाकी और किन चीज़ों का तुम्हे ख़याल रखना चाहिए क्या इसका भी ख़याल है तुम्हें?"

"अगर मुझे पता होता कि आपका वो सब करने का बहुत ही मन था।" सावित्री ने धीमे स्वर में नज़रें झुका कर कहा____"तो मैं उस वक़्त आपको बिलकुल भी मना न करती। मैं तो यही समझी थी कि हर रोज़ की तरह आप उस वक़्त भी मुझे बस परेशान ही कर रहे थे इस लिए मैंने वो सब कहा था। मुझे ज़रा भी अंदाज़ा नहीं था कि आप उतनी सी बात पर इस तरह नाराज़ हो जाएंगे।"

"बात सिर्फ इतनी नहीं है।" वागले ने सोफे पर बैठते हुए कहा_____"बल्कि ये भी है कि तुमने फ़ोन कर के मुझसे एक बार भी बात करना ज़रूरी नहीं समझा। दोपहर को तुमने अपने बेटे से फ़ोन करवाया और उससे ये पता लगवाया कि मैंने श्याम को खाना लाने के लिए क्यों नहीं भेजा? इतनी सी बात तुम ख़ुद भी तो फ़ोन पर मुझसे पूंछ सकती थी लेकिन तुमने नहीं पूछा। इसका तो यही मतलब हुआ न कि तुम्हें मेरी नाराज़गी से या किसी भी बात से कोई फ़र्क ही नहीं पड़ता?"

"नहीं नहीं ऐसी बात नहीं है।" सावित्री ने जल्दी से कहा____"आप ग़लत समझ रहे हैं। मैं तो सुबह ही आपको फ़ोन करने वाली थी लेकिन डर की वजह से आपको फ़ोन करने की मुझ में हिम्मत ही नहीं हुई। यही वजह थी कि मैंने हमारे बेटे को फ़ोन करने के लिए कहा था।"

सावित्री की बात सुन कर शिवकांत वागले ने मन ही मन सोचा कि शायद इतनी डोज सावित्री के लिए अब काफी हो गई है। हालांकि सावित्री से इस तरह बेरुख़ी से बात करने में उसे ख़ुद भी तक़लीफ हो रही थी। सावित्री जैसी भी थी लेकिन वो उसे बहुत मानता था। उसने सावित्री से इतनी कठोरता में बात करने के लिए खुद को बड़ी मुश्किल से कठोर बनाया था। ख़ैर उसने अब और ज़्यादा बात को न बढ़ाने का फैसला किया और फिर सावित्री से बिना कुछ बोले उठा और कमरे की तरफ बढ़ गया। इधर सावित्री ने जब उसे कमरे में जाते देखा तो उसने राहत की सांस ली और खुद भी कमरे की तरफ तेज़ी से बढ़ गई।

सावित्री जब कमरे में पहुंची तो उसने वागले को बेड पर लेटा हुआ पाया। ये देख कर वो मन ही मन खुश हुई और फिर कमरे के दरवाज़े को अंदर से बंद कर के वो भी बेड पर जा कर वागले के बगल से लेट गई। उसने सोच लिया था कि अब से वो किसी भी चीज़ के लिए अपने पति को मना नहीं करेगी। इस लिए बेड पर लेटते ही उसने वागले की तरफ करवट ली और अपने पति की तरफ देखने लगी।

"सुनिए।" वागले को ख़ामोशी से आँखें बंद किए देख उसने आहिस्ता से कहा____"वो मैं ये कह रही हो कि सब कुछ भुला कर मुझे प्यार कीजिए न।"

सावित्री के इस तरह कहने से वागले जो आँखें बंद किए लेटा हुआ था वो मन ही मन मुस्कुराया किन्तु बोला कुछ नहीं और ना ही उसने अपनी आँखें खोली। असल में वो खुद पहल नहीं करना चाहता था। वो चाहता था कि उसका दबदबा अभी फिलहाल ऐसे ही बना रहे। वो नहीं चाहता था कि सावित्री को ये भनक लग जाए कि ये सब वो नाटक कर रहा था ताकि सावित्री इस सबसे थोड़ा डर जाए और खुद ही वो सब करने के लिए राज़ी हो जाए।

"सुनिए न।" सावित्री खिसक कर वागले के क़रीब आती हुई बोली____"अब नाराज़गी छोड़ दीजिए न। मैं अब से वही करुँगी जो आप कहेंगे।"
"कोई ज़रूरत नहीं है।" वागले ने नाटक को जारी किए हुए कहा_____"चुपचाप सो जाओ और मुझे भी सोने दो।"

"अच्छा सुनिए तो।" सावित्री एकदम वागले से चिपक कर उसके सीने पर अपना हाथ फिराते हुए बोली_____"मैं ये कह रही हूं कि आप मुझे भी ऐसा कोई उपाय बताइए जिससे मेरा भी मन वो सब करने को किया करे।"

"क्या करने को?" वागले मन ही मन सावित्री की इस बात से चौंका था और मारे उत्सुकता के पूंछ बैठा था, जिसके जवाब में सावित्री ने धीमे से कहा____"वही, प्यार करने को।"
"अब ये क्या बकवास है?" वागले ने मानो खीझते हुए कहा____"चुपचाप सो जाओ।"

"ऐसे कैसे सो जाऊं?" सावित्री ने वागले के सीने से अपना हाथ उठा कर वागले के चेहरे को सहलाते हुए कहा____"मुझे आपसे जानना है कि मैं ऐसा क्या करूं जिससे मेरा भी मन हर वक़्त आपसे प्यार करने को किया करे? मुझे भी इस बारे में कोई उपाय बताइए न।"

सावित्री की बात सुन कर वागले को मन ही मन मज़ा तो आया लेकिन उसे ये न समझ आया कि वो इस बारे में सावित्री को जवाब के रूप में क्या उपाय बताए? वो बड़ी तेज़ी से सोचने लगा था कि सावित्री को ऐसा क्या बताए जिससे उसे उसके जवाब से संतुष्टि मिल जाए।

"क्या हुआ?" सावित्री ने वागले को ख़ामोश देखा तो उसने इस बार सिर उठा कर वागले की तरफ देखा और कहा____"बताइए न। आप इस तरह चुप क्यों हैं? क्या अभी भी नाराज़ हैं मुझसे?"

सावित्री की इतनी मासूमियत से कही गई इस बात को सुन कर वागले का दिल मानो बुरी तरह पसीज गया और उसके जज़्बात मचल उठे। उसने अपनी आँखें खोल कर और सिर को थोड़ा ब्यवस्थित करते हुए कहा_____"मेरी समझ में इसका कोई उपाय नहीं होता मेरी जान। ये तो बस एक एहसास है। एक ऐसा एहसास जिसके कई रूप होते हैं। हम जिसे प्यार करते हैं उसके लिए हमारे दिल में प्यार का एहसास होता है और उस एहसास के तहत इंसान के ज़हन में तरह तरह के जज़्बात उभरने लगते हैं। जैसे मैं तुमसे बेहद प्यार करता हूं तो मेरे अंदर तुम्हारे प्रति उस प्यार के एहसास के तहत ये ख़याल उभरते हैं कि मैं अपने प्यार को तुम्हारे सामने अपने तरीके से ज़ाहिर करूं।"

"ये तो ठीक है।" सावित्री ने कहा____"लेकिन जिनसे हम प्यार नहीं करते उनके प्रति हमारे अंदर किस तरह के ख़याल उभरते हैं?"
"ये तो किसी ब्यक्ति विशेष को देखने के बाद ही पता चलता है।" वागले ने सोचते हुए कहा____"जिनसे हमारे जैसे सम्बन्ध होते हैं उनके प्रति हमारे अंदर वैसे ही ख़याल उभरते हैं।"

"ख़ैर छोड़िए।" सावित्री ने जैसे पहलू बदला____"अब ये बताइए कि इस वक़्त मेरे प्रति कैसे ख़याल उभर रहे हैं आपके अंदर?"
"सच सच बताऊं या यूं ही?" वागले ने धड़कते दिल से ये कहा तो सावित्री ने मुस्कुराते हुए कहा____"सच सच ही बताइए न। झूठ मूठ का क्यों बताएँगे?"

सावित्री की बात सुन कर वागले ने उसको पकड़ कर उसे सीधा किया और फिर उठ कर उसके चेहरे की तरफ झुकते हुए कहा_____"तुम्हारे प्रति मेरे अंदर कैसे ख़याल उभर रहे हैं ये मैं कर के दिखाऊंगा।"

कहने के साथ ही वागले ने सावित्री के गुलाबी होठों पर अपने होंठ रख दिए। वागले के ऐसा करते ही सावित्री के जिस्म में झुरझुरी सी हुई और उसने अपनी आँखें बंद कर ली। उसने वागले को रोकने का सोचा भी नहीं था।

वागले जो विक्रम सिंह की गरमा गरम कहानी पढ़ कर जाने कब से भरा बैठा था उसने सावित्री के होठों को मुँह में भर कर चूसना शुरू कर दिया। उसके ज़हन में एकदम से माया का ख़याल उभर आया था और फिर वो खुद को विक्रम सिंह समझ बैठा था। सावित्री पहले तो चौंकी थी फिर उसने अपने आपको जैसे पूरी तरह से वागले के सुपुर्द कर दिया। वो भी देखना चाहती थी कि वागले में आज अचानक इस तरह बदलाव कैसे आ गया था?

उधर वागले कुछ देर तक सावित्री के होठों को चूमता चूसता रहा और जब उसकी साँसें भर आईं तो उसने चेहरा ऊपर कर लिया। उसने आँखें खोल कर सावित्री की तरफ देखा तो उसे अपनी आँखे बंद किए पाया। उसकी साँसें भी चढ़ी हुईं थी। बल्ब की रौशनी में उसका चेहरा हल्का सुर्ख पड़ा हुआ दिख रहा था। साँसें दुरुस्त हुईं तो उसने भी आँखें खोल कर वागले की तरफ देखा। वागले से नज़रें चार होते ही उसके चेहरे पर शर्म के भाव उभर आए और होठों पर मुस्कान नाच उठी।

"तुम्हारे इन होठों में आज भी शहद जैसी वही मिठास है जो तब थी जब तुम मेरी बीवी बन कर मेरी ज़िन्दगी में आई थी।" वागले ने सावित्री की गहरी आँखों में देखते हुए प्यार से कहा____"हमारे बच्चे क्या हुए जैसे हमारे बीच का सारा सिस्टम ही बिगड़ गया।"

"किसी के भी जीवन में वक़्त हमेशा एक जैसा नहीं रहता।" सावित्री ने वागले की आँखों में जैसे झांकते हुए कहा_____"वक़्त के साथ साथ हर चीज़ का सिस्टम भी बदल जाता है। उन चीज़ों के बारे में हमें बहुत कुछ सोचना भी पड़ता है और समझौता भी करना पड़ता है।"

"जानता हूं।" वागले ने सावित्री के दाहिने गाल को अपने एक हाथ से सहलाते हुए कहा____"किन्तु एक चीज़ जीवन के आख़िर तक बनी रहती है जिसे हम प्यार कहते हैं। ये प्यार ही है जिसके सहारे दुनियां का हर सिस्टम अपनी जगह पर ब्यवस्थित है। ख़ैर, ज़माना बदल गया है मेरी जान। आज के बच्चे भी ये समझते हैं कि उनके माता पिता को भी एक दूसरे की प्यार की ज़रूरत महसूसत होती है जिसके लिए उन्हें अपने माता पिता को उचित और मालूल समय देना चाहिए। आज कल तो ऐसे भी बच्चे होते हैं जो बड़े होने के बाद अपने माता पिता को अपना दोस्त समझने लगते हैं और उनसे हर तरह की बातें बड़ी आसानी से साझा करते हैं।"

"करते होंगे।" सावित्री ने कहा____"पर हमारे बच्चे ऐसे तो नहीं हैं न और ना ही हम ऐसे हैं कि अपने बीच की ऐसी बातों को उनके बीच सहजता से ज़ाहिर कर दें।"
"किसी के भी बच्चे या किसी के भी माता पिता शुरू से ऐसे नहीं होते।" वागले ने मानो समझाते हुए कहा____"बल्कि इन सब बातों के बारे में गहराई से सोच कर ही वो इसकी शुरुआत करते हैं ताकि माता पिता का अपने बच्चों के बीच एक ऐसा ताल मेल बना रहे जिससे उन्हें बड़ी से बड़ी बात के लिए एक दूसरे से कहने सुनने में संकोच करने जैसी सिचुएशन पैदा न हो।"

"तो क्या अब आप भी हमारे बच्चों के बीच इसी तरह का ताल मेल बनाने का सोच रहे हैं?" सावित्री ने सवालिया निगाहों से वागले को देखा।
"नहीं।" वागले ने मुस्कुराते हुए कहा____"मैं फिलहाल ये सोच रहा हूं कि इस वक़्त अपनी खूबसूरत बीवी को जी भर के प्यार करूं और हां ये भी चाहता हूं कि मेरी बीवी भी उसी तरह मुझसे प्यार करे।"

"आपको जो करना है कीजिए।" सावित्री ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा____"मैं आपको किसी चीज़ के लिए रोकूंगी नहीं।"
"ऐसे नहीं भाग्यवान।" वागले ने कहा____"बल्कि ऐसे कि उस प्यार में तुम्हें भी उतना ही आनंद और सुख प्राप्त हो जितना की मुझे प्राप्त होगा। एक तो तुमने घर परिवार और बच्चों के अलावा कुछ और सोचना ही बंद कर दिया है इस लिए तुम्हारे अंदर के प्यार वाले वो एहसास ही लुप्त हो गए हैं। उन्हें अपने अंदर फिर से जगाओ मेरी जान। हम दोनों के जीवन का कोई भरोसा नहीं है, इस लिए मैं चाहता हूं कि जब तक साँसें हैं और जब तक मुमकिन हो सके तब तक हम एक दूसरे के बीच प्यार को इस तरह बनाए रखें कि एक पल के लिए भी एक दूसरे से जुदा न रह सकें।"

"मैं पूरी कोशिश करुँगी कि अब से ऐसा ही हो।" सावित्री ने कहा____"किन्तु एक बात बताइए कि इतने सालों बाद अचानक से ऐसा क्या हो गया है जिसकी वजह से आपके अंदर प्यार करने का इस क़दर भूत सवार हो गया है?"

"क्या तुम्हें लगता है कि इसकी कोई ख़ास वजह है?" वागले ने उल्टा सवाल करते हुए पूछा।
"हां क्यों नहीं।" सावित्री ने वागले के चेहरे के भावों को जैसे गौर से पढ़ते हुए कहा____"मुझे तो पूरा यकीन है कि कुछ तो ऐसा हुआ है जिसकी वजह से अचानक से आप पर ये बदलाव आया है, वरना आज से पहले आप कभी भी ये सब करने के नाम पर मुझसे इस तरह नाराज़ नहीं हुए थे।"

सावित्री की बात सुन कर वागले तुरंत कुछ बोल न सका था, बल्कि सावित्री के चेहरे को ये सोच कर देखता रह गया था कि अब वो सावित्री को कैसे बताए कि ये सब विक्रम सिंह की डायरी पढ़ने से हुआ है? हालांकि कई बार उसके अपने मन में भी ये ख़याल उभरे थे कि उसके अंदर आए इन बदलावों की वजह क्या विक्रम सिंह की कहानी पढ़ना है? क्या सच में विक्रम सिंह की कहानी ने उसके अंदर सेक्स की एक उत्तेजना को जाग्रत कर दिया है? वागले इस बारे में न जाने कितनी ही बार सोच चुका था और वो इस बात को स्वीकार भी कर चुका था कि ये सब विक्रम सिंह की डायरी पढ़ने का ही नतीजा था किन्तु कहीं न कहीं विक्रम सिंह की कहानी ने उसे ये भी एहसास कराया था कि सेक्स एक ऐसी चीज़ है जो उम्र नहीं देखता बल्कि वो अपनी ज़रूरत को पूरा करने के लिए रास्ता और उपाय देखता है। विक्रम सिंह की कहानी ने उसे एहसास कराया था कि औरत और मर्द अपनी हवस को पूरा करने के लिए जाने क्या क्या कर डालते हैं। हवस का नशा जब इंसान के दिलो दिमाग़ पर हावी हो जाता है तो वो सही और ग़लत नहीं देखता बल्कि वो उस नशे का इलाज़ ही खोजता है।

"क्या हुआ?" वागले को एकदम से कहीं गुम हो गए देख सावित्री ने कहा____"कहां खो गए आप?"
"आं..हां।" वागले हल्के से चौंका____"नहीं, कहीं नहीं। असल में काफी समय से मैं इस बारे में सोच रहा था और तुमसे कह भी रहा था लेकिन तुम हमेशा की तरह मना कर देती थी और मैं भी ये सोच कर फिर कुछ नहीं कहता था कि तुम दिन भर के कामों की वजह से बुरी तरह थक जाती हो इस लिए क्यों तुम्हे परेशान करना? ख़ैर मैंने सोच लिया है कि मैं घर के काम के लिए एक नौकरानी रख दूंगा जिससे तुम पर ज़्यादा बोझ न पड़े।"

"अरे! इसकी कोई ज़रूरत नहीं है।" सावित्री ने बुरी तरह चौंकते हुए कहा____"आप किसी नौकरानी वौकरानी को मत रखना। घर के काम इतने भी ज़्यादा नहीं होते हैं कि मैं थक जाऊं और वैसे भी काम करना तो ज़रूरी ही है न। काम नहीं करुँगी तो खा खा के मोटी हो जाउंगी, और कुछ दिन बाद ऐसी हालत हो जाएगी कि उठना बैठना भी बंद हो जाएगा मेरा।"

"मैं कुछ नहीं सुनना चाहता।" वागले ने कहा____"मैंने सोच लिया है कि घर के सभी बड़े बड़े काम करने के लिए एक नौकरानी रख दूंगा। तुम्हारा काम सिर्फ खाना बनाने का रहेगा, क्योंकि मुझे तो तुम्हारे हाथ का बना हुआ खाना ही पसंद है।"

वागले की बात सुन कर सावित्री ने कुछ बोलने का मन तो बनाया पर फिर चुप रह गई। उसके चेहरे पर एकदम से ऐसे भाव आए थे जैसे वो वागले पर बलिहार हो जाने वाली हो।

"तो शुरू करें?" सावित्री को प्यार से अपनी तरफ देखते देख वागले ने मुस्कुराते हुए कहा तो सावित्री उसकी बात सुन कर मुस्कुरा उठी और हां में अपनी पलकों को झपका दिया।

वागले ने झुक कर फिर से सावित्री के होठों को चूम लिया। इस वक़्त वो सावित्री के बगल से अधलेटा हुआ सा था। उसकी कमर के ऊपर का हिस्सा उठा हुआ था और सावित्री की तरफ झुका हुआ था। एक हाथ सावित्री के ऊपर से होते हुए उसके दूसरी तरह बेड पर टिका हुआ था, जबकि दूसरा हाथ कुहनी के बल इस तरफ तकिए के पास ही था।

वागले कुछ पलों तक सावित्री के होठों को प्यार से चूमता चूसता रहा। सावित्री एकदम शांत पड़ी थी। तभी वागले का दूसरी तरफ वाला हाथ उठा और सावित्री की छाती पर आ गया। सावित्री के जिस्म पर इस वक़्त क्रीम कलर की नाइटी थी जिसकी डोरी उसने पेट के पास बाँध रखी थी। नाइटी के अंदर उसने सफ़ेद रंग की ब्रा पहन रखी थी जो ऊपर उसकी नाइटी के खुले गले से दिख रही थी।

वागले ने नाइटी के ऊपर से सावित्री की दाहिनी छाती को सहलाना शुरू किया तो सावित्री के जिस्म में एकदम से झुरझुरी होने लगी। वो जो पहले एकदम से शांत पड़ी थी उसका एक हाथ फ़ौरन ही वागले के उस हाथ के ऊपर आ गया जो हाथ उसकी छाती को सहला रहा था। सावित्री के सीने में बड़ी बड़ी छातियां थी जो वागले के पूरे हाथ में समां नहीं रही थी। इस उम्र में भी उसकी छातियों में हल्का कसाव था। वागले को शायद उसकी छाती सहलाने में मज़ा आया था इस लिए उसने थोड़ा ज़ोर ज़ोर से मसलना शुरू किया तो सावित्री ने अपने होठों को वागले के होठो से आज़ाद करके सिसकी ली।

सावित्री ने जैसे ही अपने होठों को वागले के होठों से अलग किया तो वागले उसके गले को चूमना शुरू कर दिया। सावित्री का दूसरा हाथ फ़ौरन ही वागले के सिर पर आ गया और वो उस हाथ से वागले के सिर के बालों को मुठियाने लगी। उधर वागले सावित्री के गले को चूमते हुए सावित्री के सीने की तरफ आया। एक हाथ से उसने नाइटी के छोर को पकड़ कर एक तरफ किया तो उसका सीना ब्रा समेत दिखने लगा। वागले पर जैसे नशा चढ़ने लगा था इस लिए वो बिना रुके सावित्री की छाती के हर हिस्से को चूमने लगा था। उसका एक हाथ अभी भी सावित्री की दाहिनी चूची को ज़ोर ज़ोर से मसले जा रहा था।

वागले ने सावित्री की चूची से हाथ हटा कर नाइटी की डोरी को पकड़ कर खींचा तो वो बड़े आराम से खुल गई। उसके बाद वागले ने सिर उठा कर नाइटी के दोनों सिरों को पकड़ कर सावित्री के बदन से हटा दिया जिससे सावित्री का गदराया हुआ गोरा बदन बल्ब की रौशनी में चमकने लगा। वागले ने ध्यान से सावित्री के जिस्म को देखा। आज भी उसके जिस्म में पहले जैसा ही आकर्षण था। सावित्री का जिस्म भरा हुआ तो था किन्तु एक्स्ट्रा चर्बी कहीं पर भी नहीं थी।

सावित्री ने आँखें खोल कर जब वागले को देखा तो उसे अपने बदन को गौर से निहारता पाया। ये देख कर सावित्री को शर्म महसूस हुई जिससे उसने फ़ौरन ही अपनी नाइटी के छोर को पकड़ कर अपने बदन को ढंकना चाहा लेकिन वागले ने फ़ौरन ही उसका हाथ पकड़ लिया।

"मुझसे क्यों छुपा रही हो मेरी जान?" वागले ने मुस्कुराते हुए कहा____"क्या तुम भूल गई हो कि तुम्हारे इस खूबसूरत बदन के हर हिस्से को मैं जाने कितनी ही बार देख चुका हूं?"
"हां लेकिन फिर भी मुझे शर्म आ रही है।" सावित्री ने अपनी गर्दन को दूसरी तरफ घुमा कर मुस्कुराते हुए कहा____"आपको तो जैसे अब कोई लाज ही नहीं आती।"

"अगर मैं भी शरमाऊंगा तो फिर तुम्हें खुल कर प्यार कैसे करुंगा?" वागले ने सावित्री के गुदाज पेट पर हाथ फेरते हुए कहा_____"तुम्हें देख कर मैं हमेशा ये सोच कर गर्व करता हूं कि तुम जैसी हसीन बीवी किस्मत से मुझे मिली है। एक मैं हूं कि दिन-ब-दिन बूढ़ा होता जा रहा हूं और एक तुम हो कि दिन-ब-दिन जवान होती जा रही हो। मुझे तो अब ये सोच कर डर सताने लगेगा कि मेरी इस जवान बीवी को कहीं कोई मुझसे छीन कर न ले जाए।"

"धत्।" सावित्री ने लजा कर कहा____"ये कैसी बातें करते हैं आप? ऐसा कुछ नहीं होने वाला और ना ही मैं ऐसा होने दूंगी।"
"और अगर दुर्भाग्य से ऐसा हुआ तो?" वागले जाने क्या सोच कर ये पूछ बैठा था।
"ऐसा नहीं होगा।" सावित्री ने जैसे दृढ़ भाव से कहा____"और अगर दुर्भाग्य से ऐसा हुआ तो ये भी समझ लीजिए कि वो दिन मेरी ज़िन्दगी का आख़िरी दिन होगा।"

सावित्री की ये बात सुन कर वागले ये सोच कर मन ही मन बेहद खुश हो गया कि उसकी बीवी उससे कितना प्यार करती है और उसके प्रति कितनी वफादार है। एक पति को इससे ज़्यादा भला और क्या सबूत चाहिए होता है? वागले उसकी बात से इतना गद गद हो उठा था कि उसने फ़ौरन ही आगे बढ़ कर पहले सावित्री के माथे को प्यार से चूमा और फिर उसके होठों को हल्के से चूम लिया। उसके बाद वो वापस नीचे आया और सफ़ेद रंग की ब्रा में कैद सावित्री की छातियों के बीच की दरार को चूमने लगा। एक हाथ से वो उसकी चूची को मसल भी रहा था और दूसरी को ब्रा के ऊपर से ही चूम रहा था।

वागले इस वक़्त बेहद खुश था और उसका बस चलता तो वो जाने क्या क्या कर जाता। उसके ज़हन में बार बार विक्रम सिंह की डायरी में लिखी कहानी के अंश घूम जाते थे। उसने अपने जीवन में कभी भी सावित्री के साथ वैसा कुछ नहीं किया था जिस तरह विक्रम सिंह ने अपनी डायरी में लिखा था। उसने तो बस एक ही तरह की क्रिया की थी। सावित्री की चूचियों को पहले मसलना और फिर उसकी चूत में अपना लंड डाल कर उसे चोदना। पांच मिनट में ही उसका काम तमाम हो जाता था। उसने ये जानने समझने की कभी कोशिश नहीं की थी कि उसके द्वारा किए गए सेक्स से उसकी बीवी को संतुष्टि होती थी या नहीं। हालांकि सावित्री ने भी उससे इस बारे में कभी कुछ नहीं कहा था। विक्रम सिंह की डायरी पढ़ने के बाद ही उसने जाना था कि किसी औरत के साथ एक मुकम्मल मर्द सेक्स करते समय क्या क्या करता है और किस तरह से औरत को संतुष्ट करता है?

कुछ ही देर में वागले के ज़हन में माया और विक्रम सिंह उभर आए और वो एकदम से जूनूनी अंदाज़ में वैसा ही करने लगा जैसे विक्रम सिंह ने अपनी कहानी में माया के साथ किया था। बेड पर लेटी उसकी बीवी अपने पति के द्वारा की जा रही ऐसी क्रियाओं से चौंक उठती थी लेकिन वो कुछ कह नहीं रही थी उसे। उसे खुद भी उसके द्वारा ऐसा करने में एक अलग ही मज़ा आने लगा था।

वागले ने सावित्री की ब्रा को उतार दिया था और अब वो उसकी एक चूची के निप्पल को मुँह में भरे बड़ी तेज़ी से चूस रहा था। उसका एक हाथ सावित्री की पेंटी के ऊपर से उसकी चूत को सहला रहा था। दो तरफ के हमले से सावित्री एक अलग ही रंग में डूबी नज़र आने लगी थी। उसका पूरा जिस्म छटपटा सा रहा था और वो आँखें बंद किए एक अलग ही मज़े में खोती जा रही थी।

सावित्री की दोनों चूचियों को जी भर के चूसने के बाद वागले नीचे आया और उसके गुदाज पेट और नाभि को चूमने चाटने लगा। सावित्री को पेट में गुदगुदी होने लगी थी या कुछ और लेकिन उसके द्वारा इस तरह चूमने चाटने से उसका पेट झटका ज़रूर खा रहा था। उसके मुख से सिसकारियां फूट रहीं थी। सावित्री एकदम से उस वक़्त उछल पड़ी जब वागले ने अपना हाथ पेंटी के अंदर डाल कर सावित्री की बालों से घिरी चूत पर रख दिया था। उसने जल्दी से अपना हाथ बढ़ा कर वागले के हाथ को पकड़ लिया।

"आह्ह ये क्या रहे हैं आप?" सावित्री ने बड़ी मुश्किल से कहा____"वहां से हाथ हटा लीजिए न। वो हाथ रखने की जगह नहीं है।"
"ये तुमसे किसने कहा?" वागले ने सिर उठा कर उसकी तरफ देखते हुए कहा____"अगर जिस्म का कोई अंग हाथ रखने लायक न होता तो भगवान इसे बनाता ही क्यों? अरे! भाग्यवान ये तो ऐसी जगह है जहां से इंसानों का उदय होता है। भला ऐसी महान जगह हाथ रखने लायक कैसे नहीं होगी? तुम बस आनंद लो मेरी जान।"

कहने के साथ ही वागले ने अपने हाथ को ज़ोर दिया तो उसका हाथ फ़ौरन ही सावित्री की गीली हो गई चूत पर जा पहुंचा। सावित्री ने उसके हाथ से अपना हाथ हटा लिया था। वागले ने उसके चहेरे की तरफ देखा तो उसे दूसरी तरफ अपना चेहरा किए पाया। सावित्री ने कस कर अपनी आँखों को बंद कर लिया था, जैसे वो किसी भी कीमत पर वागले के उस हाथ को अपनी चूत पर रखा हुआ नहीं देखना चाहती थी। वागले के होठों पर ये सोच कर गहरी मुस्कान उभर आई कि उसकी बीवी आज भी किसी कुवारी लड़की की तरह शर्मा रही है। उसे सावित्री पर बेहद प्यार आया और शायद यही वजह थी कि उसने फ़ौरन ही ऐसा काम किया जिसकी सावित्री को स्वप्न में भी उम्मीद नहीं थी। वो तेज़ी से नीचे खिसका था और इससे पहले कि सावित्री को इसकी भनक लगती उसने बड़ी तेज़ी से उसकी चूत पर अपना मुँह रख दिया था।

अपनी छूट पर गर्म साँसों का एहसास होते ही सावित्री को जैसे किसी बात का एहसास हुआ था इस लिए फ़ौरन ही तकिए से सिर उठा कर नीचे की तरफ देखा और जैसे ही उसकी नज़र अपनी चूत पर झुके अपने पति पर पड़ी तो वो हक्की बक्की सी रह गई। होश तब आया उसे जब वागले ने उसकी चूत को चूम लिया था। सावित्री को ज़बरदस्त झटका लगा। वो एकदम से उछल कर बेड पर बैठ गई। उधर उसके इस तरह बैठते ही वागले चौंक पड़ा था। उसने फ़ौरन ही पलट कर उसकी तरफ देखा।

"छी...! ये क्या किया आपने?" सावित्री ने आश्चर्य मिश्रित भाव के साथ साथ बुरा सा मुँह बनाते हुए कहा_____"ऐसा कैसे कर सकते हैं आप?"
"क्यों तुम्हें अच्छा नहीं लगा?" वागले ने हल्के से मुस्कुराते हुए पूछा तो सावित्री ने आँखें फैलाते हुए कहा____"हे भगवान! क्या आपके ऐसा करने से मुझे अच्छा लगेगा? मुझे तो यकीन नहीं हो रहा कि आपने ऐसा किया है। सच सच बताइए, ऐसा क्यों किया आपने? क्या आपको ज़रा भी उस गन्दी जगह पर अपना मुँह रखने पर घिन नहीं आई?"

"मेरे मन ने कहा कि वैसा करूं।" वागले ने मानो भोलेपन से कहा____"इस लिए कर दिया। हालांकि कुछ पलों के लिए मन ज़रूर मचला था लेकिन मैं भी देखना चाहता था कि उस जगह पर मुँह रखने से या उस जगह को चूमने से कैसा लगता है?"

"हे भगवान! पता नहीं आज कल आपको क्या हो गया है।" सावित्री ने अपनी नाइटी को फिर से पहनते हुए कहा____"अभी तक तो मैं यही समझ रही थी कि शायद आपको वो सब करने का बहुत मन करता होगा इस लिए आपने मुझे ज़ोर दिया था, पर अभी जो आपने किया उससे मैं समझ गई हूं कि कुछ तो हुआ है आपके साथ। भगवान के लिए बताइए मुझे कि आज कल ये क्या हो गया है आपको?"

"तुम बेवजह ही इतना ज़्यादा सोच रही हो भाग्यवान।" वागले ने कहा____"ऐसी कोई भी बात नहीं है। असल में मैंने ये सब कहीं पढ़ा था इस लिए आज अचानक ही जब मुझे याद आया तो मैंने सोचा एक बार मैं भी वैसा कर के देखता हूं कि कैसा लगता है।"

"आज से पहले तो कभी आपको ये सब याद नहीं आया था।" सावित्री ने शक भरी नज़रों से वागले की तरफ देखते हुए कहा____"फिर आज ही ये अचानक से आपको कैसे याद आ गया? मुझे सच सच बताइए कि असल बात क्या है। अगर नहीं बताएँगे तो सोच लीजिए मैं आपको हमारे बच्चों की कसम दे दूंगी।"

"अब ये क्या बात हुई यार?" वागले मन ही मन घबरा तो गया था किन्तु प्रत्यक्ष में कठोरता से कहा____"तुमने खुद कहा था कि तुम मुझे किसी भी बात के लिए नहीं रोकोगी। फिर अब क्यों रोक रही हो और क्यों इस तरह बच्चों की कसम देने की बात कर रही हो? अगर तुम्हें यही सब करना था तो उस वक़्त क्यों मुझे झूठा अस्वाशन दिया था?"

वागले की बात सुन कर एकदम से सावित्री को अपनी बात याद आई तो वो एकदम से चुप हो गई। उधर वागले झूठा गुस्सा दिखाते हुए बेड से उतरा और कमरे से बाहर चला गया। वागले के इस तरह जाते ही सावित्री ये सोच कर घबरा गई कि कहीं उसका पति फिर से उससे नाराज़ न हो जाए इस लिए वो भी तेज़ी से कमरे से निकल कर वागले के पीछे लपकी। उसे अब ये सोच कर अपने आप पर गुस्सा आ रहा था कि उसने ऐसी बातें अपने पति से की ही क्यों जिसकी वजह से उसका पति उससे फिर से नाराज़ हो जाए?

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#15
अध्याय - 10
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वागले कमरे से निकल कर सीधा किचेन में गया था। उसने फ्रिज से पानी निकाल कर पीना शुरू ही किया था कि तभी पीछे से उसे सावित्री के आने की आहट सुनाई पड़ी। उसने पीछे मुड़ कर देखने की कोई ज़रूरत नहीं समझी। उधर सावित्री किचेन के दरवाज़े पर आ कर खड़ी हो गई थी।

"तुम यहाँ क्यों आई हो?" पीनी पी लेने के बाद वागले ने जब सावित्री को किचेन के दरवाज़े पर खड़ा देखा तो उससे कहा।
"मैं आपको लेने आई हूं।" सावित्री ने धीमे स्वर में कहा____"मैं चाहती हूं कि हमारा जो काम अधूरा रह गया है उसे हम दोनों मिल कर पूरा करें और हां, इस बार मैं आपको किसी बात पर गुस्सा हो जाने का मौका नहीं दूंगी।"

"और अगर तुमने फिर से कोई नाटक किया तो?" वागले ने जैसे उसको परखते हुए कहा।
"तो आप मेरे साथ ज़बरदस्ती कर के जो चाहे कर लीजिएगा।" सावित्री ने उसकी आँखों में देखते हुए कहा____"अब चलिए कमरे में।"

"पहले अच्छी तरह सोच लो।" वागले ने सपाट लहजे में कहा_____"बाद में अगर तुमने मुझे किसी बात के लिए रोका या मेरा कहा नहीं माना तो फिर अच्छा नहीं होगा।"
"मैंने सोच लिया है।" सावित्री ने दृढ़ भाव से कहा____"अब न तो मैं आपको किसी बात के लिए रोकूंगी और ना ही आपके कहे को इंकार करुंगी।"

सावित्री की बात सुन कर वागले उसे कुछ पलों तक अपलक घूरता रहा उसके बाद वो उसके बगल से निकल कर कमरे की तरफ बढ़ गया। उसे कमरे की तरफ जाता देख सावित्री भी ख़ुशी ख़ुशी उसके पीछे कमरे की तरफ चल पड़ी।

"अपने सारे कपड़े उतार दो।" कमरे का दरवाज़ा बंद करके जैसे ही सावित्री बेड की तरफ पलटी तो वागले ने जैसे उसे हुकुम सा दिया, जिसे सुन कर सावित्री एकदम से हकबका गई। वो हैरानी भरे भाव से वागले की तरफ देखने लगी थी।

"क्या हुआ?" उसे कुछ न करता देख वागले ने जैसे उसे होश में लाते हुए कहा____"अभी बाहर तो बड़ा कह रही थी कि तुम वही करोगी जो मैं कहूंगा तो अब क्या हुआ?"

वागले की बात सुन कर सावित्री के चेहरे पर असमंजस के भाव उभरे किन्तु फिर उसने वागले की तरफ देखते हुए धीरे धीरे अपनी नाइटी की डोरी खोल कर उसे उतारने लगी। नाइटी के अंदर उसने सफ़ेद रंग की ब्रा और ब्लैक कलर की पेंटी पहन रखी थी। जैसे ही उसके गोरे बदन से नाइटी सरक कर फर्श पर गिरी तो सावित्री का जिस्म नुमायां हो उठा और साथ ही सावित्री का चेहरा लाज से झुक गया। वागले ख़ामोशी से उसी की तरफ देख रहा था और मन ही मन खुश भी हो गया था। हालांकि उसे सावित्री को यूं मजबूर करने का कोई इरादा नहीं था किन्तु उसके ज़हन में ये ख़याल जैसे घर कर गया था कि अब वो अपनी खूबसूरत बीवी के साथ बंद कमरे में वैसा ही प्रेम और वैसा ही सेक्स करेगा जैसा आज के वक़्त में होता है। उसकी इस सोच में विक्रम सिंह की डायरी में लिखी उसकी कहानी का बड़ा ही योगदान था।

"अब बेड पर आ जाओ।" वागले ने सावित्री को जैसे फिर हुकुम दिया। सावित्री उसकी बात मानते हुए हल्के क़दमों से बेड की तरफ बढ़ी। जबकि वागले ने कहने के साथ ही अपने कपड़ों को उतारना शुरू कर दिया था। उसका दिल ये सोच सोच कर धड़कने लगा था कि वो सावित्री के साथ जो जो करना चाहता है क्या वो सब सावित्री उसे करने देगी और क्या सावित्री उसके कहे अनुसार खुद भी करेगी?

कुछ ही देर में आलम ये था कि सावित्री ब्रा पेंटी में बेड पर नज़रें झुकाए बैठी थी और उधर वागले भी अपने कपड़े उतार कर अब सिर्फ एक कच्छे में बैठा था। उसका कच्छा कपड़े का सिलाया हुआ था।

"मैं जानता हूं सावित्री कि तुम्हें इस तरह किसी बात के लिए मजबूर करना अच्छी बात नहीं है।" वागले ने धीमे स्वर में कहा____"किन्तु यकीन मानो मैं जो भी करना चाहता हूं उससे हमें एक अलग ही आनंद आएगा। अब तक हमने अपने जीवन को कितना नीरस सा बनाया हुआ था किन्तु अब मैं चाहता हूं कि हम अपने जीवन में कुछ तो ऐसा करें जिससे हमारे बीच की ये नीरसता दूर हो। मैं जानता हूं कि शुरुआत में ये सब तुम्हारे लिए थोड़ा अजीब और थोड़ा मुश्किल सा होगा किन्तु मुझे यकीन है कि कुछ समय में ही तुम्हें इस सब में बेहद आनंद आने लगेगा।"

"ठीक है।" सावित्री ने उसकी तरफ देखते हुए धीमे स्वर में कहा____"आपको जो ठीक लगे कीजिए। मैं अपनी तरफ से पूरी कोशिश करुँगी कि आप जो करना चाहते हैं उसमें किसी भी तरह की समस्या न हो।"
"बहुत बढ़िया।" वागले ने अंदर ही अंदर खुश होते हुए कहा____"तो चलो शुरू करते हैं।"

कहने के साथ ही वागले ने सावित्री को कन्धों से पकड़ कर उसे बेड पर सीधा लेटा दिया। सावित्री इस वक़्त छुई मुई सी दिख रही थी। उसके चेहरे पर हल्की शर्म दिख रही थी। ख़ैर वागले ने उसे बेड पर लेटाया और फिर झुक कर उसके होठों को चूमने लगा। उसका एक हाथ सावित्री के गोरे और गुदाज बदन पर घूमने लगा था। उधर उसके ऐसा करते ही सावित्री के जिस्म में झुरझुरी सी होने लगी थी। वागले उसके होठों को अब चूसने लगा था और सावित्री जैसे अपनी साँसें थामे चुप चाप बेड पर पड़ी थी।

वागले कुछ देर तक सावित्री के होठों को चूमता चूसता रहा उसके बाद वो नीचे आया और सावित्री की ब्रा को एक हाथ से पकड़ कर ऊपर सरका दिया जिससे उसकी बड़ी बड़ी छातियां बेपर्दा हो ग‌ईं। वागले ने लपक कर उसकी एक छाती के निप्पल को मुँह में भर लिया। सावित्री के मुख से सिसकी निकल गई। उसने झट से अपना एक हाथ वागले के सिर पर रख कर अपनी उस छाती पर दबाया। वागले मज़े से उसके निप्पल को चूसते हुए दूसरे हाथ से उसकी दूसरी छाती को मसले जा रहा था।

कुछ ही देर में कमरे में सावित्री की सिसकारियां गूजने लगीं। हालांकि वो बहुत कोशिश कर रही थी कि उसके मुख से कोई आवाज़ न निकले किन्तु न चाहते हुए भी उसके मुख से ये सिसकियां निकल ही जाती थीं। कदाचित उसे भी अब मज़ा आने लगा था। उसकी आँखें बंद थीं और वो अपनी गर्दन को इधर उधर करती जा रही थी।

वागले उसकी चूचियों को चूमते चाटते नीचे की तरफ आया और सावित्री के पेट और उसकी नाभि पर अपनी जीभ को फेरने लगा। सावित्री का पेट बड़ी तेज़ी से सांस लेने की वजह से ऊपर नीचे हो रहा था। उधर वागले ने उसकी गहरी नाभि को अपनी जीभ से कुरेदते हुए अपना एक हाथ उसकी चूची से हटा कर सावित्री की चूत पर पेंटी के ऊपर से रखा और उसे हल्के हल्के सहलाने लगा। उसके ऐसा करते ही सावित्री को झटका लगा और उसने झट से अपनी टांगों को सिकोड़ने की कोशिश की। कुछ ही देर में वागले का वो हाथ सावित्री की चूत से निकले कामरस से गीला होता महसूस हुआ और साथ ही उसकी नाक में उस कामरस की खुशबू भी समाई।

वागले ने अपना चेहरा उठा कर सावित्री की तरफ देखा। सावित्री शख़्ती से अपनी आँखें बंद किए बेड पर पड़ी हुई थी। उसने एक हाथ से बेड की चादर को मुट्ठियों में पकड़ा हुआ था और दूसरे हाथ को बढ़ा कर उसने वागले के उस हाथ पर रख लिया था जो हाथ उसकी चूत को सहला रहा था।

"कैसा लग रहा है मेरी जान?" वागले ने सावित्री को देखते हुए मुस्कुरा कर कहा तो सावित्री ने अपनी आँखों को और शख़्ती से बंद कर लिया और गर्दन को दूसरी तरफ लाजवश घुमा लिया। उसके होठ कांप रहे थे। वागले उसे देख कर मुस्कुरा उठा। वो जानता था कि इस मामले में सावित्री से कुछ भी पूछना बेकार था क्योंकि वो शुरू से ही इस मामले में बेहद शर्म करती थी।

"अरे! कुछ तो बोलो।" वागले ने मुस्कुराते हुए कहा तो सावित्री ने आँखे बंद किए हुए ही कहा____"आपको तो लाज नहीं आती लेकिन मुझे आती है। इस लिए आपको जो करना है कीजिए, मुझसे कुछ मत पूछिए।"

सावित्री की बात सुन कर वागले की मुस्कान गहरी हो गई। उसने गर्दन घुमा कर सावित्री की चूत की तरफ देखा। ब्लैक कलर की पेंटी में उसकी चूत दिख तो नहीं रही थी किन्तु पेंटी के किनारों से चूत के बाल ज़रूर झलक रहे थे। ये देख कर वागले के ज़हन में फ़ौरन ही विक्रम सिंह की डायरी वाली माया का ख़याल उभर आया। विक्रम सिंह ने अपनी डायरी में लिखा था कि माया कोमल और तबस्सुम तीनों की चूतें एकदम चिकनी थीं और उन पर कहीं कोई दाग़ नहीं था बल्कि हल्की गुलाबी रंगत लिए चमक रहीं थी।

वागले ने सावित्री की पेंटी को दोनों हाथों से पकड़ कर नीचे खींचा तो सावित्री ने झट से उसका हाथ पकड़ लिया, किन्तु वागले भला कहां मानने वाला था? उसने ज़ोर दे कर सावित्री की पेंटी को खींचते हुए उसकी टांगों से निकाल कर एक तरफ फेंक दिया। सावित्री को पता था कि इस वक़्त वो एकदम से बेपर्दा हो चुकी है इस लिए वो अपनी चूत को छुपाने के लिए कसमसा रही थी किन्तु वागले को जैसे पहले से पता था कि सावित्री ऐसा करेगी इस लिए उसने सावित्री को अच्छे से पकड़ लिया था। इससे पहले कभी भी सेक्स करते समय सावित्री इस तरह नंगी नहीं हुई थी, बल्कि हमेशा कपड़ों में ही सेक्स हुआ था। वागले का अगर बहुत मन होता था तो वो अपना ब्लाउज उतार देती थी बाकी साड़ी और पेटीकोट को एक साथ ऊपर कर के ही वो वागले के लंड को अपनी चूत में डलवा कर सेक्स करती रही थी।

सावित्री की घने बालों से घिरी चूत को देखने के लिए वागले को जैसे थोड़ा ज़ोर लगाना पड़ा क्योंकि वो साफ़ साफ़ दिख ही नहीं रही थी। ये देख कर वागले के ज़हन में ख़याल उभरा कि अगर सावित्री ने अपनी चूत के बालों को साफ़ कर रखा होता तो इस वक़्त वो साफ़ साफ़ देख पाता कि वो बिना बालों के कैसी दिखती है।

कुछ देर सावित्री की चूत और उसके चारो तरफ उगे घनघोर जंगल को देखने के बाद वागले खिसक कर ऊपर आया और आँखें बंद किए पड़ी सावित्री को देखते हुए बोला____"सुनो।"

"ह्म्मम्।" सावित्री ने आँखे बंद किए ही हुंकार भरी।
"तुमने अपने वहां पर इतने बाल क्यों ऊगा रखे हैं?" वागले ने ये कहा ही था कि सावित्री हड़बड़ा कर झट से उठ बैठी।

वागले ने देखा सावित्री उसकी इस बात को सुन कर किसी कुंवारी कन्या की तरह शर्माने लगी थी। उसने अपनी चूत को छुपाने के लिए अपनी दोनों टांगों को मोड़ लिया था। चेहरे पर अजीब से भाव लिए वो कभी वागले को देखती तो कभी उससे नज़रें चुराने लगती। उसकी इस हालत को देख कर वागले के मन में ख़याल उभरा कि उसने नाहक में ही ऐसा कह कर सावित्री को शर्मिंदा कर दिया है।

"क्या हुआ मेरी जान।" फिर उसने सावित्री के सुर्ख पड़े चेहरे को अपनी हथेलियों में लेते हुए कहा_____"तुम इतना शर्मा क्यों रही हो यार? मैंने एक छोटी सी बात ही तो पूछी थी तुमसे, इसमें इतना शर्माने की भला क्या ज़रूरत है?"

"आप ऐसी बात करेंगे तो मुझे शर्म नहीं आएगी क्या?" सावित्री ने उसकी बात सुन कर उसकी तरफ देखते हुए कहा____"आपको मेरे वहां के बाल से मतलब है या उससे जो आप करना चाहते हैं?"

सावित्री की बात सुन कर वागले के होठों पर मुस्कान उभर आई। वैसे नार्मल तरीके से सोचा जाए तो उसने सच ही कहा था किन्तु उसे नहीं पता था कि आज कल उसका पति किस तरह की मनोदशा में है।

"बात तो तुम्हारी ठीक है भाग्यवान।" वागले ने सिर हिलाते हुए कहा____"लेकिन अब से तुम हर जगह की साफ़ सफाई कर के रखोगी। मैं चाहता हूं कि मेरी प्यारी और खूबसूरत बीवी हर जगह से साफ़ और खूबसूरत दिखे। वैसे मैं तो तुम्हें इस बात का ज्ञान दे रहा हूं लेकिन सच तो ये है कि मेरे भी लंड के चारो तरफ तुम्हारी तरह ही घने बालों का जंगल ऊगा हुआ है।"

"हे भगवान! कितने बेशर्म हैं आप।" सावित्री ने अपने माथे पर हाथ मारते हुए कहा____"पता नहीं कहां से आपके मन में ऐसी बातें भर ग‌ईं हैं?"

"ये सब छोड़ो।" वागले ने कहा____"मैं ये कह रहा हूं कि कल हम दोनों ही अपने अपने बाल साफ़ कर लेंगे। उसके बाद ही तसल्ली से काम क्रीड़ा करेंगे। चलो अब सो जाते हैं, क्योंकि रात भी काफी हो गई है।"

वागले की इस बात को सुन कर सावित्री ने गहरी सांस ली। उसके चेहरे पर राहत के भाव उभर आए थे। शायद वो यही चाहती थी कि वागले ये सब बंद कर के सोने की बात कह दे और क्योंकि वागले ने उसके मन की बात कह दी थी इस लिए उसने फ़ौरन ही अपने कपड़े पहने और बेड के एक तरफ लेट गई। वागले के अंदर की गर्मी कदाचित शांत पड़ ग‌ई थी या शायद सावित्री की चूत के बालों को देख कर उसका मन ये सब करने से उचट गया था। ख़ैर वागले ने भी अपना पजामा कुर्ता पहना और बेड पर लेट कर सोने की कोशिश करने लगा।

दूसरे दिन वागले अपने निर्धारित वक़्त पर जेल के अपने केबिन में पहुंचा। ब्रीफ़केस को टेबल पर रखने के बाद वो कुछ देर फाइल्स को देखते हुए अपना काम करता रहा उसके बाद वो जेल का चक्कर लगाने के लिए निकल गया। क़रीब डेढ़ घंटे बाद वो वापस अपने केबिन में आया । कुछ देर जाने वो क्या सोचता रहा उसके बाद उसने अपने ब्रीफ़केस से विक्रम सिंह की डायरी निकाली और उसे खोल कर आगे की कहानी पढ़ने लगा।

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काफी देर बाद जब अंदर का और साँसों का तूफ़ान थमा तो मैंने आँखें खोली और बेड पर एक तरफ लेटी माया की तरफ देखा। उसे बेड पर न पा कर मैं चौंका। तभी मेरी नज़र कमरे में ही एक तरफ रखे सोफे पर पड़ी। माया सोफे पर बैठी सिगरेट फूंक रही थी। उसका जिस्म अभी भी बेपर्दा ही था। मैं सोचने लगा कि क्या उसे ज़रा भी शर्म न आती होगी?

"स्वारी।" जैसे ही उसने मेरी तरफ देखा तो मैंने उसकी तरफ देखते हुए धीमें स्वर में कहा।
"स्वारी फॉर व्हाट?" उसके माथे पर सलवटें उभरीं।

"मेरी वजह से तुम्हें तक़लीफ हुई।" मैंने मासूमियत से उसकी तरफ देखा।
"भूल जाओ उस बात को।" उसने छोटे से स्टूल पर रखी ऐशट्रे में सिगरेट के बचे हुए टुकड़े को मसल कर बुझाया और मेरी तरफ देखते हुए कहा____"और ये बताओ कि अभी और करने का इरादा है या आज के लिए इतना काफी समझते हो तुम?"

"सच कहूं तो मेरा अभी और करने का मन है।" मैंने नज़रें झुका कर और हल्की मुस्कान होठों पर सजाते हुए कहा____"मेरा तो मन करता है कि तुम्हारे साथ ये सब करता ही रहूं।"

"मुझे पता था तुम यही कहोगे।" माया ने मुस्कुरा कर कहा____"सेक्स चीज़ ही ऐसी है कि इससे किसी का मन नहीं भरता, ख़ास कर तब जब किसी को पहली बार करने को मिला हो। ख़ैर चलो फिर शुरू करते हैं, लेकिन इस बार तुम्हें अपने मन का नहीं करना है बल्कि एक औरत के मन का करना होगा। यानी जैसा मैं कहूंगी वैसा ही तुम्हें करना होगा।"

माया की बात सुन कर मैंने हाँ में सिर हिला दिया। सच तो ये था कि दुबारा सेक्स करने की बात से ही मेरा मन ख़ुशी से झूम उठा था। ख़ैर माया सोफे से उठ कर मेरे पास आई। उसके बेपर्दा जिस्म पर मेरी नज़रें जैसे जम सी गईं थी। उसकी बड़ी बड़ी छातियां उसके चलने से जब हिलीं थी तो उसका असर ये हुआ कि मेरा मुरझाया हुआ लंड फ़ौरन ही सिर उठाने लगा था। माया बेड पर आ कर सीधा लेट गई। मैं उसी को देख रहा था। जैसे ही वो सीधा लेटी तो मेरी नज़र उसके गोरे सफ्फाक बदन के हर हिस्से पर दौड़ने लगी। उसकी चिकनी और फूली हुई चूत को देखते ही मेरा हलक मुझे सूझता हुआ सा प्रतीत होने लगा था।

"ऐसे क्या देख रहा है भड़वे?" माया एकदम से किसी शेरनी की तरफ गुर्राई तो मैं जैसे सहम गया, जबकि उसने उसी गुर्राहट में आगे कहा____"चल कुत्ते की तरह मेरी चूत चाट।"

माया का बदला हुआ रूप देख कर मेरी सिट्टी-पिट्टी ही गुम हो गई थी। मैं समझ नहीं पाया कि माया को अचानक से क्या हो गया है? उसके चेहरे पर हाहाकारी भाव थे और आँखों में गुस्सा झलक रहा था।

"सुनाई नहीं दिया क्या तुझे?" माया इस बार ज़ोर से चिल्लाई तो मैं एकदम से हड़बड़ा गया और फिर बोला____"ये...ये सब क्या है? ये तुम किस लहजे में बात कर रही हो?"
"अबे गांडू कहीं के।" माया झटके से उठी और गुर्राई____"लहजे को अपनी गांड में डाल ले समझे। अभी जल्दी से कुत्ते की तरह मेरी चूत चाट वरना गांड में इतने डंडे बरसाऊंगी कि हगते नहीं बनेगा तुझसे।"

मुझे माया से ऐसे बर्ताव की सपने में भी उम्मीद नहीं थी। कहां इसके पहले मैं दुबारा सेक्स करने की बात से मन ही मन खुशियां मना रहा था और कहां अब माया के इस खतरनाक रवैए से मेरी हालत ही पतली हो गई थी। ख़ैर मरता क्या न करता वाली हालत में आ कर मैंने माया के हुकुम का पालन किया। वैसे एक सच्चाई ये भी थी कि माया के इस बर्ताव से मेरा दिल बुरी तरह दुःख गया था।

माया फिर से सीधा लेट गई थी और इस बार उसने अपनी दोनों टांगों को फैला दिया था जिससे उसकी चूत खुल कर मुझे दिखने लगी थी। बल्ब की तेज़ रौशनी में मैं माया की चूत को साफ़ देख सकता था। एकदम चिकनी चूत की दोनों फांकें उसकी टाँगें फैली होने से हल्की खुल ग‌ईं थी जिससे उसके अंदर का गुलाबी हिस्सा मुझे साफ़ नज़र आ रहा था। मैंने अपने सूखे गले को थूक निगल कर तर किया और आगे बढ़ते हुए माया की टांगों के बीच आ गया।

मैंने माया की तरफ इस उम्मीद से देखा कि शायद वो मुझ पर दया कर दे लेकिन उसके चेहरे के भावों में कोई परिवर्तन नहीं आया, बल्कि उसने फ़ौरन ही मुझे उसकी चूत चाटने का शख़्ती से इशारा किया।

कोई नार्मल सिचुएशन होती तो मैं पूरे जोश में आ कर माया के ऊपर सवार हो गया होता किन्तु वक़्त और हालात जैसे एकदम से बदल गए थे। ख़ैर मैंने खुद को एडजस्ट किया और फिर माया की चूत पर झुकता चला गया। चूत के क़रीब जैसे ही मेरा मुँह पहुंचा तो मेरी नाक में इसके चूत के कामरस की खुशबू समाने लगी। जाने क्यों इस बार मुझे वो खुशबू बड़ी बेकार सी लगी। ऐसा शायद इस लिए कि माया के बर्ताव से मेरा मन अब इस सबसे उचट गया था, किन्तु मजबूरी थी इस लिए मैंने झुक कर उसकी चूत पर हल्के से पहले अपना मुँह रखा और फिर जीभ निकाल कर उसे चाटा। एक अजीब सा स्वाद मेरी जीभ में पड़ा तो मेरे जिस्म का रोयां रोयां झनझना गया।

"अब साले डर डर के क्या छू रहा है।" माया की तीखी आवाज़ मेरे कानों में पड़ी____"मैंने कहा न कि कुत्ते की तरह मेरी चूत चाट। अब जल्दी से चाट वरना गांड में हंटर बजाऊंगी।"

"मैं ये नहीं कर सकता।" मैंने हिम्मत करके ये कहा और एक तरफ हट गया। इस वक़्त मेरी धड़कनें धाड़ धाड़ करके बज रहीं थी। किन्तु मैंने भी अब ठान लिया था कि मैं माया के इस बर्ताव पर उसके किसी भी हुकुम को नहीं मानूंगा।

"क्या हुआ?" माया झट से उठ ग‌ई____"इतने में ही डर गए? अरे! वहशीपना वाला सेक्स करना है तो ये सब भी सुनना पड़ेगा। मान लो अगर किसी औरत को इसी तरह से सेक्स करना पसंद हुआ तब तुम कैसे उसे खुश कर पाओगे?"

"इसका मतलब।" मैं जैसे आसमान से धरती पर गिरा____"तुम सच मुच का मुझ पर गुस्सा नहीं हो??"
"अरे! यार, तुम पर भला मैं क्यों गुस्सा होऊंगी?" माया ने कहा____"मेरा तो काम ही यही है कि मैं तुम्हें हर तरह से सेक्स करने की ट्रेनिंग दूं।"

माया की बात सुन कर जैसे मेरी जान में जान आई और मेरे होंठों पर मुस्कान उभरी। उधर माया ने मुझे समझाया कि अब मैं वैसा ही करूं जैसा वो कहे। मैं ये समझूं कि वो एक ऐसी औरत है जिसे सेक्स करते समय अपने मेल पार्टनर को गाली देना पसंद है और वो भी चाहती है कि उसका पार्टनर उसे गाली दे और साथ ही ये भी कि सेक्स करते समय उसका पार्टनर उसे बुरी तरह से चोदे। मैं माया की बात समझ गया था इस लिए अब मैं उसके अनुसार सब कुछ करने के लिए खुद को तैयार करने लगा था। माया ने इशारा किया और वो फिर से लेट गई।

"चल कुत्ते चाट मेरी चूत को।" माया ने लेटने के साथ ही ये कहा तो मैं पहले तो मुस्कुराया और फिर मैं भी उसकी तरह बर्ताव करते हुए आगे बढ़ा।
"अगर मैं तेरा कुत्ता हूं तो तू भी मेरी कुतिया है साली।" मैंने हिम्मत करके कहा____"अब देख मैं कैसे तेरी चूत को चाटता हूं और फिर तेरी चूत को अपने मोटे लंड से चोद चोद कर फाड़ता हूं।"

"तो फाड़ न गांडू साले।" माया ने कहने के साथ ही अपनी टांग चला दी जो सीधा मेरी कमर में लगी। मुझे दर्द तो हुआ किन्तु मैंने सहन कर लिया और फिर तो जैसा मेरे अंदर का मर्द भी जाग गया।

"साली कुतिया।" मैंने कहते हुए अपने दोनों हाथों से उसकी टांगों को पकड़ कर फैलाया और झुक कर उसकी चिकनी चूत में अपना मुँह रख दिया।

मेरे अंदर एक अजीब सा जोश भर गया था। अब मुझे उसके चूत की खुशबू से कोई परेशानी नहीं हो रही थी, बल्कि मैंने उसकी चूत की फांकों को मुँह में भर कर ज़ोर से खींचा तो माया की सिसकी निकल गई। उसने दोनों हाथों से मेरे सिर को पकड़ा और अपनी चूत पर ज़ोर से दबाया।

मैं सच में किसी कुत्ते की तरह माया की चूत को लपर लपर चाटने लगा था। मैं कभी जीभ से उसकी चूत को चाटता तो कभी उसकी चूत को मुँह में भर कर ज़ोर ज़ोर खींचने लगता। कमरे में माया की आहें और सिसकारियां गूजने लगीं थी और उसका जिस्म छटपटाने लगा था। कुछ ही देर में आलम ये हो गया कि मैं पागलों की तरह उसकी चूत को चाटते हुए उसकी दोनों चूचियों को भी बुरी तरह मसलने लगा। माया की सिसकियों में दर्द भी शामिल हो गया। वो बार बार मुझे कोई न कोई गाली देती तो जवाब में मैं भी उसकी चूत से अपना चेहरा उठा कर उसे गाली देता और उसके निप्पल को ज़ोर से खींच लेता।

माया की चूत कामरस बहा रही थी और मेरा चेहरा उसके कामरस से भींग गया था लेकिन मैं इसके बावजूद लगा ही रहा। माया बुरी तरह मेरे बालों को खींच रही थी जिससे मुझे दर्द भी हो रहा था। बदले में मैं भी उसकी चूत को दांतों से काट लेता था जिससे माया उछल पड़ती थी और गन्दी गन्दी गालियां देने लगती थी।

"आह्ह कुत्ते कमीने मेरी चूचियों को भी ऐसे ही काट साले।" माया सीसियाते हुए बोली और मेरे सिर के बालों को पकड़ कर अपनी छातियों की तरफ खींचने लगी।

"साली कुतिया।" मैं उसकी छाती की तरफ बढ़ता हुआ बोला____"तेरी इन खरबूजे जैसी चूचियों को तो मैं मिर्च मसाला लगा के खाऊंगा।"
"हां तो खा न बहनचोद।" माया मेरे सिर को अपनी छातियों पर दबाते हुए बोली तो मैंने उसके एक निप्पल को मुँह में भर कर ज़ोर से काटा तो वो चिल्ला ही पड़ी।

"आह्ह्ह्ह और ज़ोर से काट गांडू।" माया ने दर्द से चीखते हुए कहा तो मैं मन ही मन ये सोच कर थोड़ा हैरान हुआ कि वो दर्द के बावजूद अभी और ज़ोर से काटने को कह रही थी।
"ऐसा क्या।" मैंने सिर उठा कर कहा____"ठीक है फिर, अब तो मैं ऐसा काटूंगा साली कि तू अगर रहम की भीख भी मांगेगी तो नहीं छोड़ूंगा।"

मैंने कहने के साथ ही माया की चूची के मांस को मुँह में भरा और इस बार थोड़ा ज़ोर से काटा तो माया बुरी तरह बिलबिला उठी और उसने अपनी चूची से मुझे हटाने के लिए मेरे सिर को ज़ोर से हटाना चाहा लेकिन मैं किसी जोंक की तरह उसकी चूची पर चिपक गया था। माया दर्द से सिसयाते हुए पूरा ज़ोर लगा रही थी मगर मैं उसकी चूची के हर हिस्से पर बारी बारी से काट ले रहा था। उसके बाद मैं लपक कर उसकी दूसरी चूची को भी काटने लगा। माया का बुरा हाल हो गया था। वो दर्द और गुस्से में मुझे और भी ज़्यादा गालियां देने लगी थी।

काफी देर तक मैं माया की चूचियों को ऐसे ही काटता रहा और वो ऐसे ही दर्द से बिलबिलाती रही। फिर जब मुझे लगा कि कहीं वो रोने ही न लगे तो मैंने सिर उठा कर उसकी तरफ देखा। माया का बुरा हाल था। उसकी आँखों के किनारों से आंसू के कतरे बहे हुए दिख रहे थे। मुझे ये सोच कर उस पर तरस आ गया कि यही वो लड़की है जिसने मुझे पहली बार जीवन का असली मज़ा दिया है। मैं झट से आगे को खिसका और उसके होठों को मुँह में भर कर चूसने लगा माया ने फ़ौरन ही मेरे सिर को पकड़ा और खुद भी मेरे होठों को चूसने लगी। अचानक ही मेरा हाथ सरक कर उसकी एक चूची को मुठियाया तो वो मचल उठी। शायद काटने से उसकी चूचियों पर गहरे घाव हो गए थे जिससे मेरा हाथ लगते ही उसे दर्द हुआ था।

कुछ देर माया के होठों को चूसने के बाद मैंने अपना चेहरा उससे दूर किया और उसके बालों को मुट्ठी में पकड़ कर उसे उठाया। इससे पहले की वो कुछ समझ पाती मैंने फ़ौरन ही खड़े हो कर अपने भन्नाए हुए लंड को उसके मुँह के पास ला कर उसके मुँह में ठूंसने की कोशिश करने लगा।

"चल कुतिया अब तू मेरा लंड चूस।" मैंने एक हाथ से अपने लंड को पकड़ कर उसके मुँह में मारते हुए कहा तो उसने फ़ौरन ही अपना मुँह खोल दिया। जैसे ही उसने मुँह खोला मैंने उसके मुँह में अपना लंड घप्प से डाल दिया। मुझ में इतना जोश चढ़ गया था कि मैंने उसके सिर को पकड़ कर ज़ोर से झटका दिया, जिससे मेरा लंड सनसनाते हुए उसके गले तक पहुंच गया। वो बुरी तरह छटपटाई लेकिन मैंने उसे छोड़ा नहीं। हालांकि जब मैंने उसके मुँह में एक झटके में लंड घुसाया था तो उसके दाँत मेरे लंड पर भी गड़े थे और मेरे मुँह से दर्द मिश्रित आह निकल गई थी।

मैं माया के सिर को दोनों हाथों से पकड़े उसके मुख को चोद रहा था। उसके मुख से उसकी लार बहने लगी थी और उसका चेहरा लाल सुर्ख पड़ गया था। मेरे धक्के देने से नीचे उसकी चूचियां बुरी तरह हिल रहीं थी। इधर मैं मज़े के सातवें आसमान में था।

"चूस साली और चूस।" मैं इसके सिर को पकड़े और धक्के लगाते हुए बोल रहा था____"अच्छे से चूस कुतिया वरना गले के नीचे उतार दूंगा लंड को।"

मैंने ज़ोर से धक्का लगाया तो माया के जिस्म को झटके लगने लगे। उसने पूरी ताकत से मुझे पीछे की तरफ धक्का दिया, जिससे मेरा लंड उसके मुख से निकल गया। लंड के निकलते ही वो बुरी तरह खांसने लगी थी। उसकी साँसें उखड़ी हु‌ईं थी।

"साले हरामी।" वो खांसते हुए कह रही थी____"मार ही डालने का इरादा था क्या तेरा?"
"लंड चूसने कोई नहीं मरता कुतिया।" मैंने उसे धक्का दिया तो वो बेड पर सीधा हो कर गिरी। उसके गिरते ही मैंने उसकी दोनों टाँगें फैलाई और उसकी दहकती चूत में अपना लंड एक ही झटके में डाल दिया।

"आह्हहह कुत्ते फाड़ दी मेरी चूत।" माया दर्द से चीखी।
"तेरी तो पहले से ही फटी हुई है साली।" मैंने फिर से ज़ोर का धक्का दिया।
"अब ज़ोर ज़ोर से चोद मुझे।" माया ने चिल्ला कर कहा_____"साले कुत्ते दम नहीं है क्या तुझमें?"

माया की बात सुन कर मैं पूरे जोश में तेज़ तेज़ धक्के लगाने लगा। मैं पूरी तरह भूल चुका था कि आज से पहले मैं क्या था। इस वक़्त मैं किसी प्रोफेशनल की तरह माया को चोदे जा रहा था। मेरा मोटा तगड़ा लंड माया की चूत में सटासट अंदर बाहर हो रहा था। उसकी चूत इतनी गीली थी कि फच्च फच्च की आवाज़ आ रही थी। ज़िन्दगी में पहली बार मैं स्वर्ग में था। मेरी नज़र माया की हिलती चूचियों पर पड़ी तो मैंने हाथ आगे बढ़ा कर ज़ोर से उसकी एक चूची पर थप्पड़ मारा जिससे उसके मुख से दर्द भरी कराह निकल गई और साथ ही उसने मुझे गाली दी।

क़रीब दस मिनट बाद ही माया झटके लेते हुए झड़ गई। झड़ने के बाद वो बेजान लाश की तरह शांत पड़ ग‌ई थी लेकिन मैं रुका नहीं बल्कि धक्के लगाता ही रहा। मुझे इतना मज़ा आ रहा था कि मैं रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था। कुछ देर में जब माया को फिर से जोश चढ़ा तो मैंने उसकी चूत से लंड निकाल कर उसे घोड़ी बना दिया और उसके गोरे गोरे चूतड़ में ज़ोर ज़ोर से थप्पड़ मारते हुए अपने लंड को उसकी चूत में डाल दिया।

क़रीब दस मिनट बाद माया फिर से चिल्लाने लगी। वो झड़ने की कगार पर आ गई थी और यही हाल मेरा भी था। मैं ट्रेन की स्पीड से धक्के लगाने लगा और फिर जैसे मज़े की चरम सीमा के अंत होने का वक़्त आ गया। माया झटके खाते हुए झड़ी तो उसका गर्म गर्म पानी मेरे लंड महसूस हुआ और फिर मैं भी अपने आपको रोक नहीं पाया। मेरा जिस्म अकड़ गया और मैं माया की चूत में ही झड़ता चला गया। पता नहीं कब तक मुझे झटके लगते रहे और फिर मैं उसके ऊपर ही जैसे बेहोश सा हो गया। सेक्स का तूफ़ान थम चुका था। कमरे में शान्ति छा गई थी। सिर्फ हम दोनों की उखड़ी हुई साँसों की ही आवाज़ें गूँज रहीं थी।

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#16
wah madst update.
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#17
(11-08-2021, 02:12 PM)Bhikhumumbai Wrote: wah madst update.

Shukriya bhai,,,, Namaskar
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#18
अध्याय - 11
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"क्या हुआ?" करीब पंद्रह मिनट बाद माया ने उस वक़्त मुझसे पूछा जब मैं बेड पर एक किनारे कुछ सोचते हुए बैठा था____"अब क्या सोच रहे हो? क्या फिर से करने का इरादा है?"

मैंने माया की तरफ देखा। वो बेड पर उठ कर बैठ गई थी। हम दोनों अभी भी पूरे नंगे ही थे। माया के चेहरे पर कोई शिकन नहीं थी किन्तु मैं थोड़ा उदास सा था और मुझे अंदर से बिल्कुल भी अच्छा नहीं लग रहा था। शायद इसी वजह से माया ने मुझसे ये पूछा था।

"नहीं, अब मेरा करने का कोई इरादा नहीं है।" मैंने पहले की ही तरह थोड़े उदास भाव से कहा।
"तो फिर तुम इस तरह सैड टाइप क्यों दिख रहे हो?" माया ने कहा____"क्या तुम्हें मेरे साथ सेक्स करने में मज़ा नहीं आया?"

"बात मज़ा आने की नहीं है।" मैंने उसकी तरफ देखते हुए कहा____"बल्कि बात ये है कि मैंने बहुत बुरी तरह से तुम्हें काटा था जिसकी वजह से तुम्हारी छातियों में ज़ख्म बन गए हैं। उस वक़्त तो जोश जोश में मैं वो सब कर गया लेकिन अब मुझे ऐसा लग रहा है कि मैंने तुम्हारे साथ बिल्कुल भी अच्छा नहीं किया।"

"ओह! डियर।" माया ने मुस्कुरा कर मेरा चेहरा सहलाते हुए कहा____"तो तुम इस वजह से सैड हो के बैठे हो? कमाल के हो तुम। सिर्फ इतनी सी बात के लिए बुरा फील कर रहे हो। वैसे मुझे अच्छा लगा कि तुम मेरे लिए ऐसा फील कर रहे हो लेकिन यकीन मानो डियर, मुझे तुम्हारे ऐसा करने से तुमसे कोई शिकायत नहीं है। तुमने वही किया जो करने के लिए मैंने कहा और तुम्हें उकसाया भी। इसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं है और सबसे बड़ी बात ये है कि ये सब तुम्हारी ट्रेनिंग का एक हिस्सा है। रही बात मेरे ज़ख्म और तक़लीफ की तो ये सब चलता ही रहता है। इस तरह का काम करने से पहले हमें खुल कर बताया गया था कि इस काम में हमें कितनी तक़लीफ मिलेगी। हमने इस तक़लीफ को ख़ुशी से चुना है डियर, इस लिए तुम इसके लिए सैड फील मत करो।"

"तो क्या तुम सच में मुझसे नाराज़ नहीं हो?" मैंने मासूमियत से उससे पूछा तो उसने मुस्कुराते हुए कहा____"बिल्कुल नहीं डियर, बल्कि मैं तो खुश हूं कि तुमने पहली बार में बहुत अच्छा करने की कोशिश की। सबसे बड़ी बात ये कि अब तुम्हारे अंदर शर्म और झिझक नहीं रही।"

"हां मुझे भी अब ऐसा ही लग रहा है कि अब मुझे पहले की तरह शर्म महसूस नहीं होती।" मैंने कहा____"हालाँकि तुम्हारे अलावा भी अगर किसी और के साथ मुझे शर्म नहीं महसूस होगी तो फिर मैं पूरी तरह समझ जाऊंगा कि अब मेरे अंदर से पूरी तरह शर्म और झिझक चली गई है।"

"अगर ऐसा है।" माया ने कहा____"तो जल्द ही तुम्हें मेरे अलावा दूसरी लड़की के साथ इस बात को आजमाने का मौका मिल जाएगा।"
"वो कैसे?" मैंने न समझने वाले भाव से पूछा।
"तुम कोमल और तबस्सुम को भूल गए क्या?" माया ने कहा___"अभी तो तुम्हें उन दोनों के साथ भी यही सब करना है।"

"ओह! हां।" मुझे जैसे याद आया।
"वो दोनों एक साथ ही रहती हैं।" माया ने कहा____"इस लिए तुम्हें एक साथ ही उन दोनों के साथ ये सब करना पड़ेगा। अगर तुमने इन दोनों को खुश कर दिया तो समझो तुम्हारी ट्रेनिंग पूरी हो गई।"

माया की इस बात से मैं मन ही मन ये सोच कर थोड़ा घबराया कि उन दोनों ने अगर मेरा बुरा हाल कर दिया तो?? ख़ैर उसके बाद मैं और माया दोनों ने अपने अपने कपडे पहने। माया के कहने पर मैं उसके साथ ही कमरे से बाहर आ गया।

उस दिन का कोटा माया के साथ पूरा हो गया था इस लिए बाकी का सारा दिन और रात कुछ नहीं हुआ। बल्कि दोपहर का लंच करने के बाद मैं एक अलग कमरे में चला गया था। माया के साथ सेक्स कर के मैं बुरी तरह थक गया था इस लिए बेड पर लेटते ही मैं गहरी नींद में चला गया था।

शाम को मेरी आँख कोमल के जगाने पर ही खुली। उसने मुझे फ्रेश हो कर आने को कहा तो मैं फ्रेश होने के लिए बाथरूम में चला गया। उसके बाद मैंने कोमल तबस्सुम और माया के साथ ही डिनर किया। डिनर के दौरान कोमल और तबस्सुम अपनी तरह तरह की बातों से मेरे और माया के साथ मज़ाक करती रहीं। मैं चुप चाप डिनर कर रहा था और साथ ही ये भी सोचता जा रहा था कि माया के बाद अब मुझे कोमल और तबस्सुम के साथ सेक्स करना है। माया ने कहा था कि मुझे उन दोनों के साथ ही सेक्स की ट्रेनिंग लेनी होगी। इस बात को सोच सोच कर ही मेरे अंदर एक अलग ही तरह की उत्सुकता बढ़ती जा रही थी।

रात में भी कुछ नहीं हुआ, बल्कि मैं डिनर करने के बाद एक अलग कमरे में सो गया था। दूसरे दिन मैं उठा और फ्रेश होने के बाद उन तीनों के साथ नास्ता वग़ैरा किया। माया ने बताया कि नास्ता करने के एक घंटे बाद मुझे कोमल और तबस्सुम के साथ जाना है। मैं कोमल और तबस्सुम को कनखियों से देख लेता था। कई बार मेरी उनसे नज़रें भी चार हो ग‌ईं थी। वो दोनों बस हल्के से मुस्कुरा देती थीं। मैं अंदर ही अंदर ये सोच रहा था कि उन दोनों के साथ मैं किस तरह से खुद को एडजस्ट कर पाऊंगा?

☆☆☆

वागले ने गहरी सांस लेते हुए डायरी को बंद कर दिया। वो सोचने लगा कि विक्रम सिंह उस समय कितने मज़े में था। माया कोमल और तबस्सुम जैसी खूबसूरत लड़कियों के साथ उसने जी भर कर के सेक्स का मज़ा लिया था। उसके बाद भी उसने अलग अलग लड़कियों या औरतों के साथ इसी तरह मज़े किए होंगे। एकाएक वागले के ज़हन में ख़याल उभरा कि इस सबके बीच आख़िर ऐसा क्या हुआ होगा जिसकी वजह से विक्रम सिंह को अपने ही माता पिता की हत्या करनी पड़ी होगी? वागले ने इस बारे में बहुत सोचा लेकिन उसे कुछ समझ नहीं आया। ख़ैर उसने केबिन के चारो तरफ नज़रें घुमाई और फिर हैंड वाच में टाइम देखा। लंच का टाइम हो गया था। जेल का ही एक सिपाही जिसका नाम श्याम था उसने उसके घर से खाने के लिए टिफिन ला दिया था। वागले ने लंच किया और जेल का चक्कर लगाने के लिए निकल गया।

जेल का चक्कर लगा कर वागले जब वापस अपने केबिन की तरफ आया तो गलियारे में उसे श्याम मिल गया। उसने उसे बताया कि एक आदमी उसके इंतज़ार में काफी देर से बैठा है। वागले उसकी बात सुन कर कुछ पल सोचा और फिर उसे बोला कि वो उस आदमी को उसके केबिन में भेज दे। वागले अपने केबिन में पहुंचा तो दो मिनट के अंदर ही एक आदमी उसके केबिन में दाखिल हुआ। वागले ने उस आदमी को गौर से देखा और फिर उसे अपने सामने टेबल के उस पार रखी कुर्सी पर बैठने का इशारा किया।

"शुक्रिया।" वो आदमी ये कहते हुए कुर्सी पर बैठ गया।
"कहिए कौन हैं आप?" उसके बैठते ही वागले ने उससे कहा____"और हमसे क्यों मिलना चाहते थे?"

"जी मैं इंटेलिजेंस विभाग से हूं।"उस आदमी ने अपनी आवाज़ को प्रभावशाली बनाते हुए कहा_____"और एक केस के सिलसिले में आपसे कुछ गुफ्तगू करने आया हूं।"

"ओह! आई सी।" वागले मन ही मन चौंकते हुए कहा____"जी कहिए किस केस के सिलसिले में आप हमसे गुफ्तगू करना चाहते हैं?"
"असल में मैं सीक्रेट रूप से केस पर छानबीन कर रहा हूं।" उस आदमी ने ख़ास भाव से कहा____"इस लिए आपको केस के बारे में डिटेल में कोई जानकारी नहीं दे सकता।"

"तो फिर आप हमसे क्या चाहते हैं?" वागले ने न समझने वाले भाव से पूछा।
"आपकी जेल में विक्रम सिंह का नाम कैदी था।" उस आदमी ने कहा____"जिसे उम्र कैद की सज़ा हुई थी किन्तु फिर उसके अच्छे बर्ताव की वजह से अदालत ने उसकी बाकी की सज़ा को माफ़ कर के रिहा कर दिया है। मैं ये जानना चाहता हूं कि उससे सम्बंधित आपके पास क्या क्या जानकारी है?"

"कमाल की बात है जनाब।" वागले उसके मुख से विक्रम सिंह का नाम सुन कर मन ही मन बुरी तरह चौंका था, किन्तु फिर अपने चेहरे के भावों को शख़्ती से दबाते हुए प्रत्यक्ष में कहा____"विक्रम सिंह नाम का कैदी इस जेल से रिहा हो कर क्या गया उसके तो कई सारे चाहने वाले नज़र आने लगे।"

"क्या मतलब।" उस आदमी के चेहरे पर सिलवटें उभरीं____"मैं कुछ समझा नहीं, आप कहना क्या चाहते हैं?"
"क्या आप मुझे अपना आई कार्ड दिखाएंगे?" वागले ने जाने क्या सोच कर ये कहा तो उस आदमी ने कुछ पलों तक वागले की तरफ देखा उसके बाद उसने अपनी कोट की जेब से अपना आई कार्ड निकाल कर वागले के सामने टेबल पर रख दिया।

"ओह! माफ़ कीजिएगा।" आई कार्ड देखने के बाद वागले ने उसका आई कार्ड वापस उसकी तरफ बढ़ाते हुए कहा____"असल में आपका आई कार्ड देखने के पीछे दो वजहें थीं। एक तो फॉर्मेलिटी के तौर पर दूसरे अपनी एक शंका को दूर करने के लिए। कुछ दिनों पहले हमसे मिलने एक आदमी आया था। उसने खुद को विक्रम सिंह का दोस्त बताया था जो कि हाल ही में विदेश से आया था। वो यहाँ पर हमसे अपने दोस्त विक्रम सिंह के बारे में जानने आया था और आज जब आप आए तो हम ये सोचने पर मजबूर से हो गए कि बीस सालों बाद जबकि विक्रम सिंह यहाँ से रिहा हो कर जा चुका है तो उसके चाहने वाले कहां से आ गए? अगर उसके इतने ही चाहने वाले थे तो वो इन बीस सालों कभी उससे मिलने क्यों नहीं आए? उसके यहाँ से रिहा होने के बाद जब इस तरह से कोई उसके बारे में जानने यहाँ आया तो अब हमें यही लग रहा है कि जैसे विक्रम सिंह के चाहने वाले उसके रिहा होने का ही इंतज़ार कर रहे थे। हालांकि सवाल तो कई सारे हैं किन्तु जवाब किसी का भी नहीं है। ख़ैर आप बताइए आप हमसे विक्रम सिंह के बारे में क्या जानना चाहते हैं?"

"सबसे पहले तो मैं ये कहना चाहूंगा कि मुझे ये जान कर बेहद आश्चर्य हुआ कि विक्रम सिंह के बारे में जानने के लिए उसका कोई दोस्त यहाँ आया था।" उस आदमी ने लम्बी सांस लेते हुए कहा____"जबकि मेरी जानकारी में उसके जितने भी दोस्त थे वो बहुत पहले ही उससे सम्बन्ध तोड़ चुके थे। कहने का मतलब ये कि विक्रम सिंह का ऐसा कोई गहरा दोस्त बचा ही नहीं था जो उसके लिए जानने को इस क़दर उत्सुक हो। ख़ैर मैं यहाँ आपसे ये जानने आया हूं कि विक्रम सिंह ने अपने बारे में आपको क्या बताया है?"

"आप ये कैसे कह सकते हैं जनाब कि विक्रम सिंह ने हमें अपने बारे में कुछ बताया है?" वागले ने उस आदमी की तरफ अपलक देखते हुए कहा।

"हमारे डिपार्टमेंट के कुछ लोग कई बार इस जेल की गतिविधियों पर नज़र रख चुके हैं।" उस आदमी ने कहा____"उन्हीं से हमें पता चला है कि इस जेल में विक्रम सिंह से आपका गहरा सम्बन्ध रहता था। बस इसी वजह से मुझे लगता है कि विक्रम सिंह ने अपने बारे में आपसे ज़रूर कुछ न कुछ बताया होगा।"

"फिर तो आपके जो डिपार्टमेंट वाले यहाँ की गतिविधियों पर नज़र रख रहे थे।" वागले ने मुस्कुराते हुए कहा____"उन्होंने ठीक तरह से नज़र नहीं रखी वरना उन्हें ये भी पता चल जाता कि विक्रम सिंह से भले ही हमारा गहरा ताल्लुक रहता था लेकिन हमारी लाख कोशिशों के बाद भी उसने अपने बारे में हमें कभी कुछ नहीं बताया।"

"बडे आश्चर्य की बात है।" उस आदमी ने सोचने वाले अंदाज़ से कहा____"ये विक्रम सिंह तो सच में बड़ा ही शख़्तजान आदमी लगता है। कहने का मतलब ये कि उसने न तो पहले कभी सिक्युरिटी या कानून को अपने बारे में कुछ बताया और ना ही यहाँ आपसे कुछ बताया।"

"वैसे क्या मैं जान सकता हूं कि विक्रम सिंह के मामले में इंटेलिजेंस विभाग वाले क्यों इन्वॉल्व हुए?" वागले ने कहा____"और अगर हुए भी तो इतने सालों बाद क्यों? विक्रम सिंह के मामले को दो दशक गुज़र चुके हैं किन्तु इन दो दशकों में कभी इंटेलिजेंस का उसके इस मामले में इन्वॉल्वमेंट नहीं हुआ। तो अब आख़िर ऐसा क्या हो गया है जिसके लिए इंटेलिजेंस वाले बीस साल बाद विक्रम सिंह के मामले पर इतनी दिलचस्पी दिखा रहे हैं?"

"जैसा कि मैं शुरू में ही आपसे बता चुका हूं कि हमारा ये केस सीक्रेट है।" उस आदमी ने कहा____"इस लिए डिटेल में मैं आपको कुछ नहीं बता सकता किन्तु हां, इतना ज़रूर बता सकता हूं कि इसके पहले कई सालों तक ये मामला सिक्युरिटी के हाथ में ही था किन्तु जब कोई पुख़्ता सबूत या सुराग़ नहीं मिला तो सिक्युरिटी ने फाइल को क्लोज कर दिया और इस मामले को जैसे भुला ही दिया। अभी कुछ समय पहले ये मामला फिर से उभरा और इस तरह से उभरा कि इस मामले को डायरेक्ट इंटेलिजेंस विभाग को सौंप दिया गया और इसकी छानबीन को सीक्रेट रूप से करने को कहा गया।"

"काफी दिलचस्प बात है।" वागले ने कुछ सोचते हुए कहा____"अब आप तो कुछ बता नहीं सकते क्योंकि आपके अनुसार ये सीक्रेट मामला है लेकिन सोचने वाली बात है ही कि आख़िर ऐसा क्या हुआ होगा जिसकी वजह से बीस साल हो चुके मामले में बीस सालो बाद इंटेलिजेंस विभाग इसमें इन्वॉल्व हुआ। हमारा ख़याल है कि ज़रूर इसमें किसी बड़ी हस्ती का भी नाम आया होगा और कुछ इस तरह से आया होगा कि उसने मामले की छानबीन के लिए डायरेक्ट इंटेलिजेंस विभाग को इन्वॉल्व कर दिया।"

"ख़ैर अब जो है सो है।" उस आदमी ने गहरी सांस ली____"लेकिन एक बात अच्छी नहीं हुई और वो ये कि मेरा यहाँ आना फायदेमंद नहीं हुआ। चलिए कोई बात नहीं। वैसे आपको क्या लगता है, विक्रम सिंह यहाँ से रिहा हो कर कहां गया होगा?"

"भगवान ही जाने।" वागले ने सिर हिलाते हुए कहा____"मैंने अपनी ज़िन्दगी में उसके जैसा अजीब इंसान नहीं देखा। वो हमसे थोड़ा बहुत बातें तो कर लेता था लेकिन जब हम उससे उसके बारे में कुछ भी पूछते थे तो वो अपने होठों को शख़्ती से भींच लेता था। जैसे ग़लती से भी वो ये न चाहता हो कि उसके होठों से कोई ऐसा शब्द निकल जाए जिसके तहत हमें उसके बारे में ज़रा सा भी कुछ पता चल जाए।"

आगन्तुक का नाम जयराज पाटिल था। वागले ने उसके आई कार्ड में यही नाम पढ़ा था। कुछ देर और इधर उधर की बातें करने के बाद वो वागले से विदा ले कर चला गया था। उसके जाने के बाद वागले काफी देर तक उसके और विक्रम सिंह के बारे में सोचता रहा था। उसके लिए अब ये सोचने वाली बात थी कि ऐसा क्या हुआ है जिसकी वजह से देश का इंटेलिजेंस विभाग विक्रम सिंह के बारे में छानबीन करने उसके पास पहुंच गया है? वागले के ज़हन में एकदम से ये ख़याल उभरा कि विक्रम सिंह का मामला यकीनन एक ऐसा मामला है जो मामूली नहीं हो सकता। इंटेलिजेंस विभाग के उस आदमी के आने के बाद वागले को पहली बार महसूस हुआ कि मामला गंभीर है किन्तु उसकी समस्या ये थी कि वो खुद कुछ कर नहीं सकता था, क्योंकि उसके पास सच में विक्रम सिंह के सम्बन्ध में कोई जानकारी नहीं थी और ना ही वो ये जानता था कि विक्रम सिंह उसकी जेल से रिहा हो कर कहां गया होगा?

अगर उसे पहले से इस मामले की गंभीरता का पता होता तो वो यकीनन विक्रम सिंह के पीछे अपने जेल के किसी सिक्युरिटी वाले को लगा देता, ताकि पता चल सके कि विक्रम सिंह कहां जाने का इरादा रखे हुए था? वागले ने एक सिगरेट जलाई और उसके लम्बे लम्बे कश लेते हुए सोचने लगा। एकाएक ही वो चौंका। उसके ज़हन में अचानक से विक्रम सिंह की डायरी का ख़याल उभर आया। विक्रम सिंह की डायरी में तो उसके बारे में लगभग सब कुछ ही लिखा हुआ था। यानी डायरी के आधार पर शायद वो पता लगा सकता था कि विक्रम सिंह कहां गया होगा। उसने अपनी डायरी में कहीं तो किसी प्रकार का सुराग़ छोड़ा होगा। वागले ने सोचा कि अगर वो विक्रम सिंह की डायरी को जयराज पाटिल के हवाले कर देता तो मुमकिन है कि वो उस डायरी के आधार पर उसके बारे में जान लेते और उसका पता भी कर लेते, लेकिन तभी वागले के ज़हन में ख़याल उभरा कि विक्रम सिंह ने वो डायरी सिर्फ उसके लिए लिखी थी और उस पर विस्वास कर के ही उसको दी थी। ऐसे में इस डायरी को किसी और के हवाले कर के क्या वो विक्रम सिंह से विश्वासघात नहीं कर बैठेगा? वागले ने गहरी सांस ली और मन ही मन सोचा कि अच्छा हुआ कि उसने जयराज से विक्रम सिंह की डायरी का ज़िक्र नहीं किया।

वागले को इंटेलिजेंस विभाग के उस आदमी यानि जयराज पाटिल की बात याद आई जब उसने उससे कहा था कि विक्रम सिंह के सभी दोस्तों ने उससे अपने संबंध तोड़ लिए थे। अगर जयराज पाटिल की ये बात सच है तो फिर वो शख़्स कौन था जो उस दिन उससे मिलने आया था और खुद को विक्रम सिंह का दोस्त कह रहा था? उसके अनुसार जब विक्रम सिंह ने अपने माता-पिता की हत्या की थी तब वो भारत देश में ही नहीं था। वागले के ज़हन में सवाल उभरा कि कहीं वो शख़्स कोई ऐसा व्यक्ति तो नहीं था जो झूठ मूठ का विक्रम सिंह को अपना दोस्त कह रहा था और किसी खास मकसद के तहत वो उससे विक्रम सिंह के बारे में जानकारी प्राप्त करना चाहता था?

वागले सोचने लगा कि आख़िर वो कौन रहा होगा और किस मकसद से विक्रम सिंह के बारे में उससे जानकारी प्राप्त करना चाहता था? वागले ने इस बारे में बहुत सोचा लेकिन उसको इससे संबंधित कुछ भी खास बात समझ में न आई। थक हार कर वागले ने इन सारी बातों को अपने दिमाग़ से झटका और ब्रीफ़केस से विक्रम सिंह की डायरी निकाल कर आगे की कहानी पढ़ना शुरू किया।

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#19
अध्याय - 12
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नास्ता करने के बाद मैं अपने एक अलग कमरे में आराम कर रहा था कि तभी मेरे कमरे पर किसी ने दस्तक दी। मैं बेड पर लेटा हुआ था और अपनी बदली हुई ज़िन्दगी के बारे में ही सोच रहा था। ख़ैर दस्तक हुई तो मैं उठा और जा कर दरवाज़ा खोला। दरवाज़े के बाहर कोमल और तबस्सुम खड़ी हुईं थी। उन दोनों को देखते ही मेरे दिल की धड़कनें बढ़ चलीं, जबकि मुझ पर नज़र पड़ते ही वो दोनों बड़ी अदा से मुस्कुराईं और कमरे के अंदर दाखिल हो ग‌ईं। मैं जानता था कि वो दोनों मेरे पास किस लिए आईं थी इस लिए मैंने ख़ामोशी से दरवाज़ा बंद किया और पलट कर उनकी तरफ देखा। वो दोनों बेड पर जा कर बैठ चुकीं थी।

"तो तुम तैयार हो न हमारे साथ मज़े के सागर में डूबने के लिए?" कोमल ने मेरी तरफ देखते हुए मुस्कुरा कर मुझसे पूछा।
"और किस लिए आया हूं मैं यहाँ?" मैंने बड़ी हिम्मत से और बड़े कॉन्फिडेंस के साथ कहा तो दोनों के होठों पर मुस्कान उभर आई।

"बहुत खूब।" तबस्सुम ने उसी मुस्कान के साथ कहा____"माया के साथ वक़्त गुज़ारने के बाद काफी बदलाव दिख रहा है तुम में। ख़ैर ये तो अच्छी बात हुई, क्योंकि हम तो ये सोच रहे थे कि तुम मारे शर्म और झिझक के हम दोनों के साथ खुल कर मज़े कैसे कर पाओगे?"

"कोशिश कर रहा हूं कि मेरे अंदर से शर्म और झिझक जितना जल्दी हो सके पूरी तरह निकल जाए।" मैंने आगे बढ़ते हुए कहा____"बाकि तुम दोनों तो हो ही मेरी शर्म और झिझक को दूर करने के लिए।"

"वो तो हम हैं ही।" कोमल ने कहा____"लेकिन शर्म और झिझक तो इंसान के स्वभाव में होती है जिसे इंसान को खुद ही दूर करनी पड़ती है। तुम जिस लाइन में जाने वाले हो उसमें इसके लिए कोई जगह नहीं है। अपने अंदर से शर्म और झिझक को दूर करने का बस एक ही तरीका है कि जब भी किसी औरत के पास सेक्स के लिए जाओ तो अपने ज़हन में ये विचार बिलकुल भी पैदा न होने दो कि वो औरत तुम्हारे बारे में क्या सोचेगी अथवा तुम उसे खुश कर पाओगे कि नहीं, बल्कि सिर्फ ये सोच रखो कि तुम एक हलब्बी लंड के मालिक हो जिसके बलबूते पर तुम दुनियां की किसी भी औरत को मस्त कर सकते हो।"

"अपने आप पर यकीन होना बहुत ज़रूरी है डियर।" तबस्सुम ने कहा____"अगर खुद पर यकीन नहीं होगा तो हलब्बी लंड के होते हुए भी तुम किसी औरत को खुश नहीं कर पाओगे। इस लिए अपने आप पर और अपनी काबिलियत पर यकीन होना चाहिए। उसके बाद जब किसी के साथ सेक्स की शुरुआत हो जाती है तो सब कुछ अपने आप ही होता चला जाता है। उस समय हमारा ज़हन अपने आप ही अलग अलग तरह की चीज़ों की कल्पना करते हुए कार्य करने लगता है।"

"तुम्हारे लिए सबसे अच्छी बात ये है डियर कि तुम्हें सब कुछ बड़े पैमाने पर पहले से ही कुदरत ने दे दिया है।" कोमल ने कहा____"अब ज़रूरत है उसका सही तरह से उपयोग करने की। हर दिन और हर किसी के साथ एक अलग ही अनुभव मिलेगा तुम्हें जो कि तुम्हारी कला को और तुम्हारी क्षमता को भी बढ़ाता रहेगा। ख़ैर अब छोड़ो ये सब और शुरू हो जाओ। तुम इस वक़्त ये समझो कि तुम हमारे पास अपनी ड्यूटी पूरी करने आए हो। इस लिए अपनी ड्यूटी निभाते हुए तुम्हें हम दोनों को खुश करना है।"

मैं दोनों की बातें बड़े गौर से सुन रहा था और सच तो ये था कि मेरा मन तरह तरह के विचारों से भरता जा रहा था। मैं निर्णय नहीं कर पा रहा था कि अब मैं किस तरह आगे बढ़ूं और उन दोनों के साथ वो सब करूं जिसके लिए इस वक़्त वो दोनों मेरे कमरे में आईं थी? कुछ देर सोचने के बाद मैंने एक गहरी सांस ली और फिर ये सोच कर आगे बढ़ा कि अब जो होगा देखा जाएगा।

कोमल और तबस्सुम दोनों ने इस वक़्त टाइट फिटिंग के कपड़े पहन रखे थे जिसमें उनकी गुदाज टांगों पर टाइट जीन्स था और ऊपर ऐसी टी शर्ट जिसमें उन दोनों की बड़ी बड़ी छातियां साफ़ तौर पर अपना आकार दिखा रहीं थी। मैं अपनी बढ़ चली धड़कनों को काबू करते हुए बेड पर उनके पास आया और बैठ गया। वो दोनों मुझे ही अपलक देखे जा रहीं थी। उनके सुर्ख होठों पर मनमोहक मुस्कान थी जिसकी वजह से मुझे मेरा आत्मविश्वास डगमगाता सा प्रतीत हो रहा था।

माया के साथ मैं पूरी तरह खुल चुका था और उसके साथ अब मुझे शर्म या झिझक नहीं महसूस होती थी लेकिन कोमल और तबस्सुम मेरे लिए अभी इस क्षेत्र में न‌ई थीं। ख़ैर मैंने आँखें बंद कर के एक लम्बी सांस ली और फिर आँखें खोल कर तबस्सुम की तरफ बढ़ा। मैंने आगे बढ़ कर अपनी दोनों हथेलियों के बीच उसका खूबसूरत सा चेहरा लिया और फिर उसकी आँखों में देखने के बाद मैं उसके सुर्ख और रसीले होठों की तरफ झुकने लगा। कमरे में इस वक़्त ब्लेड की धार की मानिन्द सन्नाटा छाया हुआ था। कुछ ही पलों में मैंने अपने होठ तबस्सुम के रसीले होठों पर रख दिए। जैसे ही मेरे होठ उसके होठों से छुए तो मेरे जिस्म में झुरझुरी सी हुई। बस उसके बाद मैंने अपने ज़हन से सब कुछ निकाल दिया।

आंखें बंद किए मैं बड़े ही आहिस्ता से तबस्सुम के लजीज़ होठों को चूम रहा था। उसके होठों को चूमने में मुझे बड़ा ही मज़ा आ रहा था। मेरी रंगों में दौड़ता हुआ लहू एकदम से तेज़ होने लगा था और इसके साथ ही मैं तबस्सुम के होठों को मुँह में भर कर चूसना शुरू कर दिया। अभी मैं उसके होठों को चूसने ही लगा था कि तभी मेरी पीठ पर किसी का हाथ आया और ऐसे अंदाज़ से मेरी पीठ पर घूमने लगा कि मुझे गुदगुदी सी होने लगी। मैंने तबस्सुम के होठों से अपने होठ अलग कर के एक बार पलट कर देखा तो कोमल को अपने पीछे अपने आप से सटा हुआ पाया। वो मेरी पीठ को सहलाए जा रही थी। मुझे अपनी तरफ देखता देख उसके होठों पर मुस्कान उभर आई थी।

मैंने कोमल से नज़र हटा कर अपनी गर्दन सीधी की और फिर से तबस्सुम के होठों को मुँह में भर कर चूसने लगा। उसके होठों को चूसते हुए मैंने अपने दाहिने हाथ से उसकी दाहिनी छाती को पकड़ा और टी शर्ट के ऊपर से ही उसे अपनी मुट्ठी में भर कर मसलने लगा। मेरे ऐसा करते ही तबस्सुम का जिस्म मचलने लगा और उसने अपने हाथों से मेरे सिर को थाम कर होठ चूसने में मेरा साथ देने लगी। इधर मेरे पीछे से कोमल अभी भी मेरे जिस्म को सहलाए जा रही थी और मेरे शर्ट के बटनों को वो पीछे से ही हाथ बढ़ा कर खोलने लगी थी।

मैंने कुछ देर तबस्सुम के होठों को चूसा और जब हम दोनों की साँसें काबू से बाहर होने लगीं तो मैंने उसके होठों को आज़ाद कर दिया। आँखें खुलते ही हमारी नज़रें मिली तो मैंने देखा तबस्सुम की आँखों में सुर्खी छा गई थी। मैंने एक झटके में उसकी टी शर्ट को पकड़ कर ऊपर खींचा और उसके सिर से निकाल दिया। टी शर्ट के निकलते ही ब्रा में कैद उसकी बड़ी बड़ी छातियां उछल कर मेरे सामने आ ग‌ईं। मैंने झट से एक को अपने हाथ में लिया और मसलते हुए झुक कर तबस्सुम के गले के हर हिस्से पर चूमने लगा। तबस्सुम ने मेरे सिर को फिर से थाम लिया था। उधर कोमल ने मेरी शर्ट के सारे बटन खोल दिए थे और अब वो मेरे जिस्म से मेरी शर्ट निकाल रही थी। मैंने अपने दोनों हाथों को पीछे किया तो कोमल ने शर्ट मेरे जिस्म से निकाल कर बेड पर ही एक तरफ उछाल दिया। शर्ट के अंदर मैंने बनियान नहीं पहन रखी थी इस लिए अब मैं ऊपर से नंगा ही हो गया था।

उधर तबस्सुम को चूमते हुए मैंने उसे बेड पर सीधा लेटा दिया और उसके ऊपर आ कर मैं इस बार उसके सीने पर चूमने लगा। उसकी छातियों की घाटी को चूमते हुए मैं उसकी छाती को भी मसल रहा था। तभी मैंने महसूस किया कि पीछे से कोमल मेरी नंगी पीठ पर चूमने लगी थी। मुझसे रहा न गया तो मैं एकदम से सीधा हुआ और उसे पकड़ कर उसे भी बेड पर तबस्सुम के बगल से लेटा दिया और झुक कर उसके होठों पर अपने होठ रख दिए।

एक साथ दो दो लड़कियां बेड पर लेटी हुईं थी। एक ऊपर से सिर्फ ब्रा में थी तो दूसरी के जिस्म में अभी भी टी शर्ट थी। मैंने कुछ देर कोमल को रसीले होठों को चूसा और फिर उसकी टी शर्ट को भी उसके जिस्म से निकाल दिया था। वो दोनों ऊपर से ब्रा में थी। दोनों बेहद ही खूबसूरत थीं और दोनों के ही जिस्म मक्कन की तरह चिकने और मुलायम थे। मेरा जी कर रहा था कि मैं दोनों के जिस्मों को चाटते हुए खा ही जाऊं। कभी मैं कोमल को तो कभी तबस्सुम के साथ मज़े ले रहा था। मेरा लंड तो बुरी तरह अकड़ गया था, लेकिन मेरा ध्यान अभी सिर्फ उन दोनों को चूमने चाटने और मसलने में ही लगा हुआ था।

कोमल के नंगे सपाट पेट को चूमते हुए मैं तबस्सुम की छाती को मसल रहा था। मैंने बारी बारी से दोनों के पेट को चूमा चाटा और फिर उन दोनों के जीन्स को खोल कर उनकी टांगों से अलग कर दिया। मक्कन की तरह चिकनी टांगों को देख कर मेरा मन मचल उठा और मैं बारी बारी से झुक कर दोनों की टांगों पर अपनी जीभ चलाने लगा। टांगों के बीच पतली सी पेंटी थी जिसमें दोनों की फूली हुई चूत का उभार साफ नज़र आ रहा था। मैंने सीधा हो कर बारी बारी से दोनों को देखा और फिर झुक कर तबस्सुम की नाभि पर अपनी जीभ की नोक को घुसा दिया। मेरे ऐसा करते ही वो मचल उठी और मेरे सिर को अपने पेट पर दबाने लगी। मेरा एक हाथ कोमल के पेट को सहलाते हुए उसकी चूत पर पहुंच गया था। मैं एक हाथ से उसकी चूत सहला रहा था और दूसरे हाथ से तबस्सुम के पेट को पकड़े मैं उसकी नाभि में अपनी जीभ को कुरेद रहा था। कुछ देर उसकी नाभि पर अपनी जीभ कुरेदने के बाद मैं नीचे आया और उसकी गुदाज़ जाँघों को चूमते हुए उसकी चूत पर आ गया।

मैंने पेंटी के ऊपर से ही तबस्सुम की चूत को दो तीन बार चूमा और फिर एकदम से मैंने उसकी चूत को मुँह में भर कर हल्के से काटा तो तबस्सुम के जिस्म को झटका लगा और उसके मुख से ज़ोरदार सिसकी निकल गई। मैं फौरन ही सीधा बैठा और बारी बारी से दोनों की ब्रा पेंटी को उनके जिस्म से अलग कर दिया। अब वो दोनों मेरे सामने पूरी तरह नंगी लेटी हुईं थी। बल्ब की रौशनी में दोनों का गोरा जिस्म चमक रहा था। मुझे समझ न आया कि पहले किसको चखूं। मैंने नज़र ऊपर कर के दोनों की तरफ देखा तो दोनों को अपनी तरफ देखता हुआ ही पाया। नज़र मिलते ही दोनों मुस्कुराईं। मेरी नज़र उनके चेहरों से फिसल कर उनकी छातियों पर पड़ी तो मैंने झट से झुक कर कोमल की छाती के एक निप्पल को मुँह में भर लिया और ज़ोर ज़ोर से चुभलाने लगा।

जीवन में पहली बार मैं ऐसे काम कर रहा था और वो भी दो दो लड़कियों के साथ। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं किसके साथ आगे बढ़ूं और किसको पहले खुश करने की कोशिश करूं? मैं अपनी समझ में वही करता जा रहा था जो करने का मेरा मन करता जा रहा था। काफी देर तक मैं दोनों की छातियों को ऐसे ही मुँह में भर कर चूमता चूसता रहा। जब मेरा मन भर गया तो मैं नीचे आया और तबस्सुम की चिकनी चूत को अपनी जीभ से चाटने लगा। उसकी चूत बुरी तरह धधक रही थी और उसका कामरस रिसने लगा था जो मेरी जीभ पर प्रतिपल लगता जा रहा था। मैं पागलों की तरह तबस्सुम की चूत पर अपनी जीभ चला रहा था और उसका जिस्म बिना पानी के मछली की तरह मचल रहा था। इस बीच कोमल उठ गई थी और वो मेरा पैंट खोलने लगी थी। थोड़ी ही देर में उसने मेरा पैंट निकाल दिया। उसके बाद वो मेरे कच्छे के ऊपर से ही मेरे लंड को सहलाने लगी। उसके ऐसा करते ही मरे जिस्म में मज़े की तरंगें उठने लगीं थी और मैं दुगुने जोश में तबस्सुम की चूत को मुँह में भर कर चूसने लगा था।

तबस्सुम दोनों हाथों से मेरे सिर को पकड़े अपनी चूत पर दबाए जा रही थी और साथ ही आँखें बंद किए मज़े में सिसकारियां भर रही थी। उसकी चूत से रिस रहा कामरस मेरे मुँह में जा रहा था जिसका नशा प्रतिपल मुझ पर चढ़ता जा रहा था। कोमल की तरफ से मेरा ध्यान ही हट गया था, हालांकि वो अभी भी मेरे लंड को कच्छे के ऊपर से सहलाए जा रही थी।

मैंने एकदम से अपने हाथ की दो ऊँगली तबस्सुम की चूत में घुसा दी और ज़ोर ज़ोर से अंदर बाहर करते हुए उसकी चूत को जीभ से चाटने लगा। मेरे ऐसा करते ही तबस्सुम के जिस्म को झटके लगने लगे। वो अपनी कमर को उठा उठा कर बेड पर पटकने लगी थी। शायद वो मज़े के चरम पर थी और कुछ ही पलों में मुझे इसका सबूत भी मिल गया। तबस्सुम की कमर कमान की तरह हवा में तन गई और उसने बुरी तरह मेरे सिर को अपनी चूत पर दबा लिया। उसके बाद झटके खाते हुए वो झड़ने लगी। उसकी चूत से निकला गरम गरम कामरस मेरे चेहरे को भिगोता चला गया। कुछ देर में वो एकदम से शांत पड़ गई जिससे उसकी पकड़ ढीली हो गई।

मैने फ़ौरन ही उसकी चूत से अपना चेहरा उठाया और पलटते हुए कोमल को पकड़ लिया। मैंने कोमल को अपनी तरफ खींचा और तबस्सुम के कामरस से भीगा चेहरा लिए मैं उसके होठों को मुँह में भर कर चूसने लगा। एक हाथ से मैं उसकी छाती को बुरी तरह भींचने लगा था।

कोमल खुद भी मेरे होठों को चूसने लगी थी। एकाएक उसने अपना हाथ आगे बढ़ाया और मेरे अकड़े हुए लंड को पकड़ कर ज़ोर से भीचा तो मेरे मुँह से सिसकी निकल गई। मैं फ़ौरन ही कोमल से अलग हुआ और तेज़ी से अपना कच्छा उतार कर तथा उसे धक्का दे कर लेटा दिया। उसके बाद मैंने पहले उसकी दोनों छातियों को मुँह में भर कर चूसा और फिर सरक कर नीचे उसकी चूत पर आ गया। उसकी चूत पानी छोड़ रही थी, मैंने जीभ निकाल कर उसकी फांकों पर चलाना शुरू कर दिया और एक हाथ की ऊँगली भी उसकी चूत में डाल दी। कुछ ही देर में कोमल का भी तबस्सुम की तरह बुरा हाल होने लगा। वो दोनों हाथों से मेरे सिर को पकड़े अपनी चूत में दबाए जा रही थी।

क़रीब पांच मिनट की चूत चुसाई के बाद ही कोमल का जिस्म अकड़ने लगा और वो आहें भरते हुए भरभरा कर झड़ने लगी। एक बार फिर से मेरा चेहरा चूत से निकले कामरस से सराबोर होता चला गया था। कोमल जब शांत पड़ गई तो मैंने तबस्सुम की तरफ रुख किया। तबस्सुम अपने एक हाथ से कोमल की छाती को सहला रही थी।

मैं आगे बढ़ा और तबस्सुम के होठों पर टूट पड़ा। कुछ देर उसके होठों को चूसने के बाद मैं उसकी छातियों को मसलते हुए चूसने लगा। मेरा लंड अब बुरी तरह अकड़ कर दर्द करने लगा था। इस लिए मैं उठा और तबस्सुम के चेहरे के पास सरक उसकी तरफ अपना लंड किया तो उसने मेरी तरफ देखा और मेरे लंड को पकड़ लिया।

कुछ देर वो मेरे लंड को सहलाती रही और फिर उठ कर बैठते हुए उसने मेरे लंड को मुँह में भर लिया। उसके गरम मुख में जैसे ही मेरा लंड गया तो मज़े से सिसकी लेते हुए मैंने अपनी आँखें बंद कर ली और साथ ही उसके सिर को दोनों हाथों से पकड़ कर अपने लंड की तरफ खींचने लगा।

तबस्सुम बड़े मज़े से मेरा लंड चूस रही थी और मैं मज़े के अथाह सागर में गोते लगाने लगा था। तबस्सुम के सिर को पकड़े मैं अपनी कमर को हिला हिला कर उसके मुख को चोद रहा था। तभी मेरी नज़र कोमल पर पड़ी। वो तबस्सुम के मुँह में मेरे लंड को अंदर बाहर होता देख रही थी। मैंने एक झटके से अपना लंड तबस्सुम के मुँह से निकाला और आगे बढ़ कर कोमल की तरफ कर दिया। तबस्सुम के थूक और लार से नहाए हुए मेरे लंड को देख कर कोमल ने पहले मेरी तरफ देखा और फिर अपने एक हाथ से मेरे लंड को पकड़ कर उसने गप्प से मेरा लंड अपने मुँह में भर लिया। ये देख कर तबस्सुम भी कोमल के पास सरक आई और एक हाथ से मेरे टट्टों को सहलाते हुए वो कोमल के सिर पर हाथ फेरने लगी।

मेरी आँखों के सामने अचानक ही गन्दी किताब में बने चित्र घूम गए और मैंने फ़ौरन ही उन चित्रों का अनुसरण किया। कोमल के मुँह से लंड निकाल कर मैंने तबस्सुम के मुँह की तरफ बढ़ाया तो वो अपना मुँह खोल कर जल्दी ही मेरे लंड को मुँह में भर कर चूसने लगी। मैं जैसे स्वर्ग में था। दो खूबसूरत लड़कियां बारी बारी से मेरा लंड चूस रहीं थी और मैं मज़े के सातवें आसमान में गोते लगा रहा था।

मैंने एक झटके में तबस्सुम के मुँह से अपना लंड निकाला और उसे धक्का दे कर बेड पर सीधा लेटा दिया। उसके बाद उसकी दोनों टांगों को पकड़ कर फैलाते हुए उसकी चूत में अपना लंड घुसेड़ दिया।

"आहहह एक ही झटके में अपने इस हलब्बी लंड को मेरी चूत में डाल दो डियर।" तबस्सुम ने सिसियाते हुए कहा____"मैं देखना चाहती हूं कि तुम्हारा ये मोटा लंड जब एक झटके में मेरी चूत में जाएगा तो मेरी चीख कितनी तेज़ निकलती है।"

तबस्सुम की बात सुन कर मैंने ऐसा ही किया। उसकी चूत के छेंद पर अपने टोपे को घुसा कर मैंने पूरी ताकत से धक्का मारा तो मेरा लंड उसकी चूत की दीवारों को चीरता हुआ अंदर की तरफ समाता चला गया। मेरे इस धक्के से तबस्सुम हलक फाड़़ कर चिल्लाई। इधर मेरे मुँह से भी दर्द में डूबी कराह निकल गई। तबस्सुम की चूत मेरे लंड के लिए संकरी थी और जब मैंने पूरी ताकत से धक्का मारा तो मेरे लंड की चमड़ी भी तेज़ी से पीछे होती चली गई थी जिससे मुझे दर्द हुआ था। कुछ पल रुकने के बाद मैंने धक्के लगाने शुरू कर दिए। उधर कोमल उठ कर तबस्सुम के मुँह पर बैठ गई थी जिससे उसकी चूत उसके मुँह पर छूने लगी थी। तबस्सुम ने अपने मुँह पर कोमल की चूत को महसूस किया तो उसने फ़ौरन ही जीभ निकाल कर उसे चाटना शुरू कर दिया।

मैं कोमल को तबस्सुम के मुँह में अपनी चूत टिकाए धीरे धीरे हिलते देख कर पहले तो चकित हुआ फिर जब मेरी नज़र कोमल की नज़र से मिली तो वो मुझे देखते हुए पहले मुस्कुराई फिर अपनी तरफ आने का इशारा किया तो मैं उसकी तरफ खुद को एडजस्ट करते हुए झुका। कुछ ही पलों में मेरे होठ कोमल के होठों से जा मिले। हम तीनों की पोजीशन अब कमाल की बन गई थी। तबस्सुम बेड पर सीधा लेटी हुई थी जिसकी दोनों टाँगें फैलाए मैं उसकी चूत में अपना लंड डाले धक्के लगा रहा था और कोमल अपनी चूत को तबस्सुम के मुँह पर रखे हल्के हल्के हिल रही थी जिससे नीचे से तबस्सुम उसकी चूत पर अपनी ज़ुबान चला रही थी और इधर मैं और कोमल एक दूसरे की तरफ झुके एक दूसरे के होठों को चूम रहे थे। मैं पलक झपकते ही मज़े की तरंग में पहुंच गया था और साथ ही ये सब देख कर बेहद रोमांचित भी हो उठा था।

मैंने कोमल के होठों से अपने होठ छुड़ाए और तेज़ तेज़ अपनी कमर को चलाते हुए तबस्सुम को चोदने लगा। मेरे हर धक्के पर वो आगे की तरफ उछल जाती थी जिससे उसकी चूचियां उछल पड़तीं थी और साथ ही उसके मुख से कोमल की चूत हट जाती थी। कोमल कुछ पलों तक उसके मुँह में अपनी चूत को घिसती रही उसके बाद वो उसके ऊपर से उतर कर उसकी एक चूची के निप्पल को चुभलाने लगी। इस पोजीशन में कोमल की गांड जो कि मेरी तरफ घूमी हुई थी वो उठ गई थी। मेरी नज़र उसकी गांड के गुलाबी छेंद पर पड़ी और फिर उसके नीचे पनियाई हुई चूत पर। ये देख कर मैंने ज़ोर से एक थप्पड़ उसकी गांड पर मारा तो वो एकदम से उछल पड़ी और साथ ही पीछे मुड़ कर मेरी तरफ देखा।

मैंने उसे उसी पोजीशन में तबस्सुम के ऊपर आने को कहा तो वो वैसे ही अपने घुटने को इस तरफ कर के तबस्सुम के ऊपर आ गई। एक तरह से वो तबस्सुम के ऊपर घोड़ी बनी हुई थी और उसकी उठी हुई गांड मेरी आँखों के सामने थी। मैंने तबस्सुम की टांगों को छोड़ा और कोमल के गोरे गोरे लेकिन भारी चूतड़ों को अपनी मुट्ठियों में भीचते हुए उसकी गांड के छेंद को उभारने लगा। कोमल की गांड का गुलाबी छेंद और उसके थोड़ा सा ही नीचे लिसलिसी चूत को देख कर मेरा मन जैसे मचल उठा तो मैं जल्दी से झुका और उसकी भारी गांड के मांस को मुँह में भर कर ज़ोर से काटा जिससे कोमल की दर्द भरी कराह निकल गई। मैंने इतने पर ही बस नहीं किया बल्कि दो तीन बार और काटा और फिर अपना मुँह पीछे से उसकी चूत पर लगा कर अपनी जीभ से उसकी रस बहाती चूत को चाटने लगा। खटमिट्ठा स्वाद मेरी जीभ पर पड़ा तो मैं और ज़ोर ज़ोर से चाटने लगा। इस क्रिया की वजह से मेरे धक्के बहुत ही धीमे हो गए थे, इस लिए नीचे से तबस्सुम खुद ही अपनी गांड उठा उठा कर मेरे लंड को अपनी चूत पर लेने लगी थी।

मेरी आँखों के सामने गन्दी किताब का एक चित्र फिर से घूम गया तो मैंने झट से अपना लंड तबस्सुम की चूत से निकाला और थोड़ा ऊपर हो कर पीछे से कोमल की चूत में एक झटके से डाल दिया। कोमल को मेरे द्वारा ऐसा किए जाने की उम्मीद नहीं थी इस लिए जैसे ही मैंने ज़ोर का धक्का मारा तो वो एकदम से तबस्सुम के ऊपर पसर गई थी और उसके मुख से आह निकल गई थी। मैं कोमल की कमर को पकड़े तेज़ तेज़ धक्के लगाने लगा था। दो दो खूबसूरत लड़कियों को मैं एक दूसरे के ऊपर लेटाए चोद रहा था। इस वक़्त मैं बेहद खुश था और इसी ख़ुशी के जोश में मैं ताबड़तोड़ धक्के लगाए जा रहा था। उधर नीचे पड़ी तबस्सुम कोमल के होठों को मुँह में भरे चूस रही थी और साथ ही उसकी चूचियों को भी मसले जा रही थी। पूरे कमरे में सेक्स का घमासान मचा हुआ था।

मैं काफी देर से उसी पोजीशन में धक्के लगा रहा था इस लिए अब मैं बुरी तरह हांफने लगा था और साथ ही मेरी कमर भी दुखने लगी थी। इस लिए मैंने कोमल की चूत अपना लंड निकाल लिया। मेरी आँखों के सामने गन्दी किताब का एक और चित्र घूम गया था और अब मैं उसी चित्र की तरह पोजीशन लेना चाह रहा था। मैंने जब लंड निकाल लिया तो कोमल ने गर्दन घुमा कर मेरी तरफ देखा तो मैंने उसे बताया कि मुझे पोजीशन चेंज करनी है।

मेरी बात सुन कर दोनों बेड से उठ ग‌ईं। उनके उठते ही मैं सीधा लेट गया। मेरा तना हुआ लंड कोमल और तबस्सुम के कामरस से चमक रहा था और बुरी तरह हवा में झटके मार रहा था। दोनों की नज़र उस पर पड़ी तो वो दोनों भूखी शेरनी की तरह उस पर झपटीं और मुँह में ले कर उसे चूसने लगीं। बारी बारी से दोनों ने उसे मुँह में भर कर चूसा, उसके बाद तबस्सुम उठी और मेरे ऊपर आ कर मेरे लंड को अपनी चूत में डाल लिया। तबस्सुम की गरम गरम चूत में जैसे ही मेरा लंड गया तो मज़े से मेरी सिसकी निकल गई। मैंने तबस्सुम की एक चूची को पकड़ अपनी तरफ खींचा और उसे मुँह में भर कर चूसने लगा। कुछ देर उसकी चूची को चूसने के बाद मैंने उसे छोड़ दिया। उधर जैसे ही मैंने उसकी चूची को छोड़ा तो कोमल मेरे मुँह पर अपनी चूत रख कर बैठ गई। मैं कोमल की चिपचिपी चूत पर अपनी ज़ुबान को लपलपाने लगा और उधर तबस्सुम मेरे लंड पर ज़ोर ज़ोर से अपनी गांड को पटकने लगी थी। एक बार फिर से चुदाई का माहौल गरम हो उठा था। मैं कोमल की चूत को चाटता भी जा रहा था और उस पर ऊँगली भी करता जा रहा था जिससे वो मज़े में सिसकारियां भर रही थी।

तबस्सम काफी देर तक मेरे लंड पर अपनी गांड को पटकती रही। उसके बाद जब वो थक गई तो उसने अपनी गांड को पटकना बंद कर दिया। मैंने नीचे से अपनी गांड उठा उठा कर धक्के लगाने की कोशिश की लेकिन मुझसे बराबर धक्का नहीं लगाया गया इस लिए मैंने उन्हें अपने ऊपर से हटने को कहा तो वो दोनों मेरे ऊपर से हट ग‌ईं। मैंने तबस्सुम को फिर से सीधा लेटाया और उसकी चूत में अपना लंड डाल कर ज़ोर ज़ोर से उसे चोदने लगा। तबस्सुम बुरी तरह सिसिया रही थी और अपने हाथ से ही अपनी चूचियों को मसले जा रही थी। कुछ ही देर में उसकी चूत की पकड़ मेरे लंड पर कसती हुई महसूस हुई और फिर वो एकदम से अकड़ने लगी। तबस्सुम को झटके लगने लगे थे और वो बुरी तरह चीखते हुए झड़ने लगी थी। वो झड़ रही थी और मैं धक्के लगाए जा रहा था। जब वो झड़ कर शांत पड़ गई तो कोमल मुझे इशारा करते हुए फ़ौरन ही लेट गई।

कोमल अपनी टाँगें फैला कर लेटी तो मैंने उसकी चूत में अपना लंड डाल दिया और ज़ोर ज़ोर से उसे चोदने लगा। असल में अब मुझे इतना मज़ा आ रहा था कि मैं रुकना नहीं चाहता था। मैंने दोनों हाथ बढ़ा कर कोमल की बड़ी बड़ी चूचियों को पकड़ा और पूरी ताकत से धक्के लगाने लगा। कुछ ही देर में कोमल की आहें तेज़ हो ग‌ईं। इधर मेरे जिस्म में भी अब हलचल होने लगी थी। मेरे अंडकोषों में बड़ी तेज़ी से झुरझुरी होने लगी थी और मैं मज़े के सातवें आसमान की तरफ बढ़ता चला जा रहा था। जैसे जैसे मैं अपनी चरम सीमा की तरफ पहुंच रहा था वैसे वैसे मेरे धक्कों की स्पीड भी तेज़ होती जा रही थी। उधर कोमल मुख से अजीब अजीब सी आवाज़ें निकालते हुए जाने क्या क्या बड़बड़ाने लगी थी। करीब पांच मिनट बाद ही कोमल का जिस्म ऐंठा और वो झड़ने लगी। उसकी चूत से निकला गरम गरम पानी जैसे ही मेरे लंड को भिगोया तो मैं उसका ताप सहन न कर सका और मैं भी आहें भरते हुए झड़ने लगा।

झड़ने के बाद मैं बेहोश सा हो कर कोमल के ऊपर ही ढेर हो गया। कमरे में उखड़ी हुई साँसों का तूफ़ान गर्म था। मैं उन दोनों खूबसूरत हसीनाओ के साथ एकदम पस्त सा पड़ा था। जाने कितनी ही देर तक हम तीनो यूं ही बेहोश से पड़े रहे उसके बाद सबसे पहले तबस्सुम उठी। उसने बड़े प्यार से मेरे सिर पर हाथ फेरा और बाथरूम की तरफ चली गई।  कुछ देर बाद हम दोनों भी उठे। सेक्स की गर्मी शांत हुई और जब मैंने कोमल की तरफ देखा तो उससे नज़र मिलते ही मेरे होठों पर मुस्कान उभर आई और साथ ही हल्की शर्म भी। कोमल मेरे चेहरे पर आई हल्की शर्म को देख कर मुस्कुरा पड़ी। ख़ैर तबस्सुम के आने के बाद हम दोनों भी बारी बारी से बाथरूम गए और खुद को साफ़ किया।

"तुमने तो कमाल कर दिया डियर।" तबस्सुम ने मुस्कुराते हुए कहा____"मुझे ज़रा भी उम्मीद नहीं थी कि पहली बार में तुम्हारा परफॉरमेंस इतना अच्छा होगा। तुम्हें सच में खुदा ने ख़ास बना कर भेजा है।"

"सही कहा तुमने।" कोमल ने कहा____"ऐसा पहला मर्द देखा है मैंने जो पहली बार में दो दो लड़कियों को झाड़ने के बाद खुद झड़ा हो। जब कि ऐसा होना लगभग असंभव सा होता है। ख़ैर मुझे भी लगता है कि तुम्हें ऊपर वाले ने कुछ ज़्यादा ही ख़ास बना कर भेजा है।"

"तुम दोनों की बातों से तो लगता है।" मैंने दोनों को बारी बारी से देखते हुए कहा_____"कि मैं तुम दोनों की परीक्षा में पास हो गया हूं।"
"बिल्कुल पास हो गए हो डियर।" कोमल ने कहा____"बल्कि अगर ये कहूं तो ज़्यादा बेहतर होगा कि तुमने पहली बार में इतना अच्छा परफॉरमेंस दे कर हम दोनों को हैरान कर दिया है।"

कोमल और तबस्सुम की ये बातें सुन कर मैं अंदर ही अंदर बेहद खुश हो गया था और अपने आप पर प्राउड सा फील करने लगा था जिसकी वजह से मैं एकदम से तन कर बैठ गया था। दोनों की बातों ने मेरे मनोबल को बढ़ा दिया था जिसकी वजह से मेरे अंदर एक अलग ही तरह का एहसास होने लगा था। मुझे ऐसा लगने लगा था जैसे अब मैं मुकम्मल मर्द बन गया हूं और अब मैं किसी भी औरत को खुश कर सकता हूं।

कुछ देर हम तीनों इसी बारे में बातें करते रहे उसके बाद वो दोनों मुझे आराम करने का बोल कर कमरे से चली ग‌ईं। दुबारा करने के लिए न उन्होंने कहा और ना ही मेरा मन था। क्योंकि दोनों को पेलने के बाद मैं बुरी तरह थक गया था। ख़ैर दोपहर को लंच करने के बाद मैं अपने एक अलग कमरे में सोने चला गया।

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#20
अध्याय - 13
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शाम को वागले अपने घर पहुंचा। उसे थोड़ा गर्मी लग रही थी इस लिए उसने नहाने का सोचा। बाथरूम में नहाते समय उसे याद आया कि कल रात उसने अपनी बीवी से क्या कहा था। इस बात के याद आते ही उसने अपने लंड के बाल साफ़ किए और फिर बच्चों से छुपा कर उसने सावित्री से पूछा कि उसने अपने बाल साफ़ किए हैं कि नहीं? उसकी ये बात सुन कर सावित्री पहले तो हैरान हुई थी फिर उसने नज़रें चुराते हुए कहा था कि उसे इस बारे में याद ही नहीं आया। वागले ने उसे सारे काम छोड़ कर पहले अपनी सफाई करने पर ज़ोर दिया। मजबूरन सावित्री को बाथरूम में अपनी सफाई करने जाना ही पड़ा।

रात में डिनर करने के बाद दोनों पति पत्नी अपने कमरे में लेते हुए थे। वागले बहुत ही ज़्यादा उत्सुक था कि वो अपनी खूबसूरत बीवी के साथ जल्द से जल्द ठीक उसी तरह सम्भोग करेगा जैसे विक्रम सिंह ने अपनी डायरी में लिखा था।

वागले ने जब सावित्री को दूसरी तरफ करवट लिए लेटा हुआ देखा तो वो सरक कर सावित्री के पास पहुंचा और उसे पीछे से पकड़ते हुए कहा कि क्या इरादा है भाग्यवान? सावित्री उसकी बात सुन कर चौंक गई थी। असल में उसके ज़हन में भी यही सब चल रहा था कि आज उसका पति उसके साथ क्या क्या करने वाला है।

वागले जनता था कि सावित्री खुद पहल करने वाली नहीं थी इस लिए उसने खुद ही पहल कर दी थी। उसने सावित्री को अपनी तरफ घुमाया और उसके होठों को मुँह में भर कर चूसने लगा था। एक हाथ से वो उसकी बड़ी बड़ी छातियों को भी मसलने लगा था। सावित्री उसके ऐसा करने से मचलने लगी थी। कुछ देर बाद वागले ने सावित्री के जिस्म से नाइटी निकाल दिया और ब्रा को भी। उसके बाद वो उसकी छातियों को बारी बारी से चूमने चाटने लगा था।

सावित्री के जिस्म में हलचल तो हो रही थी लेकिन वो खुद कुछ नहीं कर रही थी। वागले ने जब ये देखा तो उसने उससे कहा कि उसे भी उसका साथ देना चाहिए और इसमें मज़ा लेना चाहिए। वागले के कहने पर सावित्री ने उसका साथ देना शुरू कर दिया था। वागले पूरी तरह खुद को विक्रम सिंह की जगह पर रखे हुए था और सब कुछ वैसा ही करता जा रहा था जैसा डायरी में विक्रम सिंह ने लिखा था।

सावित्री की पेंटी उतार कर जब वागले ने उसकी चिकनी चूत को देखा तो देखता ही रह गया था। सावित्री की चूत आज बेहद साफ़ और चिकनी थी। अपनी चूत को इस तरह गौर से देखता देख सावित्री बुरी तरह शर्माने लगी थी। इधर वागले झुक कर उसकी चूत को चूमने लगा था। अपनी चूत को इस तरह चूमते देख सावित्री बुरी तरह मचलने लगी थी और साथ ही उसके जिस्म में मज़े की तरंगें उठने लगीं थी। आज से पहले कभी ऐसा नहीं हुआ था कि वागले ने उसकी चूत को इस तरह चूमा रहा हो। औरत का ये अंग बेहद ही संवेदनशील होता है। जब वागले लगातार उसकी चूत को चूमता चाटता रहा तो सावित्री का कुछ ही देर में बुरा हाल होने लगा। उसके मुख से मज़े में डूबी सिसकारियां उभरने लगीं थी जिसे वो बड़ी मुश्किल से दबाने की कोशिश कर रही थी।

वागले जो अब खुद को विक्रम सिंह ही समझ बैठा था वो पूरे जोश और पागलपन में अपनी बीवी की चूत को चाटे जा रहा था। हैरानी की बात थी कि आज से पहले वागले ने कभी ऐसा करने के बारे में सोचा तक नहीं था और आज वो किसी कुत्ते की तरह अपनी बीवी की चूत को चाटने में लगा हुआ था। यकीनन वो होश में नहीं था वरना अगर ज़रा भी उसे एहसास होता कि वो इस वक़्त क्या कर रहा है तो उसे उल्टियां आने लगतीं। ख़ैर जो भी हो वागले आज एक न‌ए ही रूप में था और उसकी बीवी उसकी इस क्रिया से हैरान परेशान तो थी ही लेकिन जब उसके जिस्म में मज़े की तरंगें उठने लगीं तो उसे भी वागले के ऐसा करने से अब कोई परेशानी नहीं हो रही थी बल्कि वो तो अब यही चाहती थी कि वागले इसी तरह उसकी चूत को चाटता रहे।

"आह्ह्ह्ह ये क्या हो रहा है मुझे?" मज़े में डूबी सावित्री सिसकारियां भरते हुए जैसे बोल पड़ी थी____"आज से पहले मेरे जिस्म में ऐसी आनंद की तरंगें कभी नहीं उठीं थी। आह्ह्ह्ह रूप के पापा ये क्या कर रहे हैं आप?"

सावित्री क्या बोल रही थी ये तो जैसे वागले को अब सुनाई ही नहीं दे रहा था वो तो बस पूरे जोश में उसकी चूत को चाटे जा रहा था। उसका पूरा मुँह सावित्री की चूत से निकले कामरस से लिसलिसा हो गया था। उधर सावित्री कभी बेड पर बिछी चादर को अपनी मुट्ठियों में खींचती तो कभी खुद ही अपने हाथों से अपनी बड़ी बड़ी छातियों को मुट्ठी में भर कर मसलने लगती।

जब सावित्री से बर्दास्त नहीं हुआ तो उसने हाथ बढ़ा कर वागले के बालों को पकड़ कर ज़ोर से खींचा तो वागले दर्द से आह भरते हुए उसकी चूत से हटा और उसकी तरफ इस तरह देखा जैसे भारी नशे में हो।

"क्या हुआ मेरी जान?" वागले जैसे नशे में ही बोला____"मज़ा नहीं आ रहा क्या तुम्हें?"
"आप मज़े की बात करते हैं और यहाँ मेरा बुरा हाल हुआ जा रहा है।" सावित्री अपनी उखड़ी हुई साँसों को किसी तरह काबू करते हुए बोली____"आख़िर क्या हो गया है आपको? आज से पहले तो ऐसा कभी नहीं किया आपने। आप उस जगह को कैसे इस तरह चाट सकते हैं जो जगह इतनी गन्दी होती है?"

"किसने कहा कि वो जगह गन्दी होती है मेरी जान?" वागले ने हाथ नचाते हुए कहा____"अरे! वो जगह तो स्वर्ग का द्वार होती है रानी। पहले मुझे भी इसका एहसास नहीं था लेकिन अब एहसास हो चुका है मुझे। अब मैं समझ गया हूं कि स्वर्ग का असली मज़ा कैसे मिलता है। तुम भी मेरे साथ स्वर्ग के इस मज़े में डूब जाओ डियर।"

"मैं तो ये सोच सोच के ही पागल हुई जा रही हूं कि आप ये सब कहां से सीख के आये हैं?" सावित्री ने कहा____"आज से पहले तो कभी आपने इस तरह से कुछ नहीं किया था।"

"सब कुछ बताऊंगा मेरी जान।" वागले ने उसकी एक चूची को मसलते हुए कहा____"अभी तो फिलहाल तुम इस सबका मज़ा लो। मैं जो करूं वो तुम करने देना और फिर मैं जो कहूं वो तुम करना। फिर देखना कैसे तुम्हें इस सब में मज़ा आएगा।"

वागले की बातें सुन कर सावित्री कुछ न बोली, बल्कि हैरत से उसे देखती रही। उधर वागले इतना कहने के बाद फिर से सावित्री पर टूट पड़ा था। वो हाथों से उसकी बड़ी बड़ी छातियों को मसलते हुए चूसने लगा था और सावित्री एक बार फिर से अपने जिस्म में उठने लगी मज़े की तरंगों में डूबने लगी थी। वागले उसकी चूचियों को चूसते हुए नीचे की तरफ सरका और पेट को चूमते हुए फिर से उसकी चूत पर आ गया। उसने उसकी चूत को फिर से जीभ से चाटना शुरू कर दिया। सावित्री के जिस्म में बड़ी तेज़ी से सनसनी हुई और वो बिना पानी के मछली की तरह मचलने लगी।

वागले ने एक झटके से अपना चेहरा सावित्री की चूत से हटाया और तेज़ी से अपने कपड़े उतारने लगा। जल्दी ही वो पूरी तरह नंगा हो गया। उधर सावित्री अचानक ही रुक गई मज़े की तरंगों की वजह से होश में आ गई थी और वो झटके से आँखें खोल कर अपने पति वागले को देखने लगी थी। वागले को पूरी तरह नंगा होते देख सावित्री की आँखें फैल ग‌ईं। लाइट के तेज़ प्रकाश में उसकी नज़रें वागले के खड़े हुए लंड पर जैसे जम सी गईं थी। वैसे तो उसने न जाने कितनी ही बार वागले के लंड को देखा था लेकिन आज की बात ही अलग थी। आज उसका पति एक अलग ही अवतार में नज़र आ रहा था। उसे लग ही नहीं रहा था कि वो दो दो जवान बच्चों का एक ऐसा पिता है जिसने आज से पहले कभी भी इस तरह सेक्स के प्रति इतनी उग्रता और निर्लज्जता नहीं दिखाई थी।

"अब देखती ही रहोगी या इसे प्यार भी करोगी मेरी जान?" वागले ने सावित्री को देखते हुए मुस्कुरा कर कहा तो सावित्री उसकी ये बात सुन कर हड़बड़ा गई और एकदम से अपनी नज़रें वागले के लंड से हटा कर वागले की तरफ देखने लगी।

"उठो मेरी जान।" वागले बेड पर सीधा लेटते हुए बोला____"और जैसे मैंने तुम्हारी चूत को चाट चाट कर प्यार किया है वैसे ही अब तुम मेरे लंड को अपने मुंह में भर कर इसे प्यार करो।"

"क् क्...क्या???" वागले की बात सुन कर सावित्री को जैसे ज़बरदस्त झटका लगा। उसने हैरतज़दा आँखों से वागले की तरफ देखते हुए आगे कहा____"ये क्या कह रहे हैं आप??"

"इतना चकित न हो डियर।" वागले ने सावित्री का हाथ पकड़ कर उसे उठाते हुए कहा____"असली मज़े की तरंग में डूबना है तो वही करो जो मैं कह रहा हूं। चलो उठो अब, देर मत करो वरना सारा मज़ा किरकिरा हो जाएगा।"

वागले के द्वारा हाथ पकड़ कर उठाए जाने पर सावित्री उठ तो गई लेकिन वो अभी भी उसकी तरफ फटी फटी आँखों से देखे जा रही थी। जैसे यकीन न कर पा रही हो कि उसके पति ने अभी अभी उससे जो करने के लिए कहा है वो सच है या बेवजह ही उसके कान बज उठे थे।

"ऐसे क्यों देख रही हो यार?" सावित्री को भौचक्की सी हालत में अपनी तरफ देखते देख वागले ने इस बार थोड़ा खीझते हुए कहा_____"जो कह रहा हूं वो करो जल्दी।"
"प...पर ये सब।" सावित्री के जैसे होश उड़े हुए थे, हकलाते हुए बोली____"ये मैं नहीं कर सकती। आप सोच भी कैसे सकते हैं कि मैं इतना गन्दा काम करुँगी?"

"तुमने मुझसे वादा किया था सावित्री कि तुम वही करोगी जो करने को मैं कहूंगा।" वागले ने शख़्त भाव से कहा___"और अब तुम अपना किया हुआ वादा तोड़ रही हो। अगर वादा ही तोड़ना था तो ऐसा बोला ही क्यों था तुमने?"

"म..मुझे क्या पता था कि आप मुझसे ये करने को कहेंगे।" सावित्री ने एक नज़र वागले के लंड पर डालते हुए कहा____"मैं तो यही समझती थी कि आप मुझे सेक्स करने के लिए कहेंगे और मैं वो ख़ुशी ख़ुशी आपके साथ कर लूंगी। भला मैं ये कैसे सोच सकती थी कि आप मुझसे ऐसा गन्दा काम करने को कहेंगे? आख़िर आपको हो क्या गया है? मैं तो यही सोच कर शर्म और हैरत में डूबी जा रही हूं कि आपने मेरे वहां पर मुँह कैसे लगाया। भला कोई ऐसी गन्दी जगह पर मुँह लगता है क्या?"

"मैं भी अभी तक इस बारे में ऐसा नहीं सोच सकता था।" वागले ने कहा____"लेकिन अब मैं जान चुका हूं कि दुनियां में ये सब भी होता है। आज कल सेक्स करने की शुरुआत ही इसी तरीके से होती है। पहले मुझे भी भरोसा नहीं हो रहा था लेकिन जब मैंने खुद किया तो मुझे यकीन हो गया कि ये सब करने में एक अलग ही मज़ा आता है। तुम खुद भी तो मेरे द्वारा ऐसा किए जाने पर कितना आनंद में डूब गई थी। याद करो जब मैं तुम्हारी चूत को मज़े से चाट रहा था तब तुम किस क़दर मज़े में डूब गई थी और मज़े में सिसकियां ले रही थी। यहाँ तक कि उसी मज़े में डूब कर तुम अपने हाथों से मेरे सिर को अपनी चूत पर झोंकती जा रही थी और ये भी कह रही थी कि तुम्हें ऐसा मज़ा इसके पहले कभी नहीं मिला।"

वागले की बातें सुन कर सावित्री का चेहरा ये सोच कर शर्म से झुकता चला गया कि उसका पति सही कह रहा है। उस वक़्त सच में वागले के ऐसा करने पर उसे बेहद आनंद मिल रहा था और उसका दिल कर रहा था कि वागले ऐसे ही उसकी चूत को चाटता रहे। उसे शर्म से सर झुकाए और कुछ न बोलता देख वागले ने उसके चेहरे को पकड़ कर ऊपर किया।

"मैं जनता हूं कि शुरू शुरू में ये सब करना किसी के लिए भी आसान नहीं होता।" वागले ने जैसे उसे समझाते हुए कहा____"ख़ुद मेरे लिए भी आसान नहीं था। जैसे तुम ये कह रही हो कि उस गन्दी जगह पर कोई कैसे मुँह लगा सकता है वैसे ही मैं भी यही सोचता था लेकिन सच के प्रमाण को जानने समझने के लिए मैंने ज़बरदस्ती ऐसा किया और यकीन मानो ऐसा करने के बाद मुझे बेहद मज़ा ही आया। उसके बाद तो मैं वैसा ही करता चला गया। मेरे ज़हन में ज़रा भी ये ख़याल नहीं आया कि वो जगह कितनी गन्दी होती है।"

"पर मुझसे नहीं हो पाएगा।" सावित्री ने उसकी आँखों में देखते हुए बेबस भाव से कहा____"मुझे तो सोच के ही घिन आती है। ऐसा करुँगी तो न जाने क्या हो जाएगा।"

"कुछ नहीं होगा मेरी जान।" वागले ने झुक कर उसके होठों को प्यार से चूमा और फिर कहा____"हर चीज़ को करने का एक तरीका होता है। जब किसी चीज़ को तरीके से किया जाता है तो वो चीज़ करने में बेहद आसान हो जाती है और ये बात मैं यूं ही नहीं कह रहा हूं बल्कि जब खुद किया तब मुझे भी समझ आया है। तुम भी करो डियर। अपनी आँखें बंद कर के और अपनी साँसें रोक कर करो। पहले धीरे धीरे करो और जब लगे कि ऐसा करने में कोई परेशानी नहीं है तो उसे मज़े में डूब कर करना शुरू कर दो।"

वागले की बातें सुन कर सावित्री ख़ामोशी से अपने पति की तरफ देखती रही। उसके चेहरे पर कई तरह के भाव उभर रहे थे। वो समझ चुकी थी कि उसे वो करना ही पड़ेगा जो करने के लिए उसका पति कह रहा है। वो जानती थी कि अगर उसने ऐसा नहीं किया तो उसका पति फिर से उससे नाराज़ या गुस्सा हो जाएगा। ये सोच कर उसने अपनी आँखें बंद कर के गहरी सांस ली। वागले उसी को ध्यान से देख रहा था। जब सावित्री ने आँखें बंद कर के गहरी सांस ली तो वो समझ गया कि सावित्री वैसा करने के लिए खुद को तैयार कर रही है।

वागले जानता था कि इन सारी बातों के चलते दोनों के जिस्म में मज़े की जो तरंगे इसके पहले भर गईं थी वो अब गायब हो चुकी हैं। इस लिए उसने उन मज़े की तरंगों को वापस लाने के लिए फिर से सावित्री को पकड़ कर उसके होठों को चूमना चूसना शुरू कर दिया। उसकी सोच थी कि सावित्री जब मज़े में डूब जाएगी तो उसके लिए उसके लंड को मुँह में भर कर प्यार करना थोड़ा आसान सा हो जाएगा।

वागले सावित्री के होठों को चूसते हुए एक हाथ से उसकी बड़ी बड़ी छातियों को भी मसलता जा रहा था। कुछ देर छातियों को मसलने के बाद उसने अपना हाथ सावित्री की चिकनी चूत पर रखा और उसे सहलाने लगा। उसके ऐसा करते ही सावित्री के जिस्म में हलचल होने लगी जिसे उसने खुद भी महसूस किया। ये महसूस करते ही उसने अपनी एक ऊँगली उसकी चूत के अंदर डाल दी और उसे अंदर बाहर करने लगा। उसके ऐसा करते ही सावित्री का जिस्म बुरी तरह मचलने लगा। उसने जल्दी से अपना हाथ बढ़ा कर वागले के उस हाथ पर रख लिया। इधर वागले ज़ोर ज़ोर से अपनी ऊँगली को उसकी चूत में अंदर बाहर करने लगा था जिससे सावित्री ने उसके होठों से अपने होठों को आज़ाद किया और तेज़ तेज़ सिसकियां लेने लगी। आँखें बंद किए वो बुरी तरह मचलने लगी थी। इधर वागले सिर नीचे कर के उसकी चूची के एक निप्पल को मुँह में भर कर चूसना शुरू कर दिया। दो तरफ से हो रहे हमलों ने सावित्री की हालत ख़राब कर दी। वो बुरी तरह छटपटाते हुए वागले के सिर को अपनी छाती पर दबाती जा रही थी।

"आह्ह्ह्ह रूप के पापा।" सावित्री आहें भरते हुए बोल पड़ी____"ये क्या हो रहा है मुझे? मेरा जिस्म क्यों इतना ज़्यादा मचला जा रहा है? ऐसा लगता है जैसे आअह्ह्ह शीश्श्श् जैसे मेरे अंदर एक ऐसी गर्मी सी भरती जा रही है जो मुझे जला भी रही है और मुझे असीम सुख भी दे रही है।"

"मेरे साथ इस आग में जलती रहो मेरी जान।" वागले ने उसकी चूची के निप्पल को मुँह से निकालते हुए कहा____"और जो मज़ा मिल रहा है उसमें बस डूबती जाओ। अच्छा ये बताओ कि इस सबसे तुम्हें कितना मज़ा आ रहा है?"

"मत पूछिए रूप के पापा।" सावित्री ने उसके चेहरे को अपनी उसी छाती पर ज़ोर से दबाते हुए कहा जिसे वागले चूस रहा था, बोली____"मैं कुछ बता नहीं सकती। बस इतना ही महसूस कर रही हूं जैसे मैं मज़े में डूबती जा रही हूं। फिर दूसरे ही पल ऐसा लगने लगता है जैसे मैं यहाँ पर हूं ही नहीं बल्कि किसी और ही दुनियां की तरफ भागी जा रही हूं। आह्हहहह मेरी छाती को ज़ोर से चूसिए न।"

वागले समझ गया कि उसकी बीवी अब उसी स्टेज पर है जहां पर वो उसे पहुंचा देना चाहता था ताकि जब वो उसे अपना लंड मुँह में भरने को कहे तो वो इंकार न कर सके। ख़ैर उसके कहने पर वागले ने एक बार फिर से उसकी चूची के निप्पल को मुँह में भरा और ज़ोर ज़ोर से चूसने लगा। वो निप्पल को चूसते हुए खींच भी लेता था जिससे सावित्री ज़ोर से मचलते हुए सिसिया उठती थी। उधर उसकी चूत में वो अभी भी ऊँगली करता जा रहा था जिससे उसकी वो ऊँगली ही नहीं बल्कि उसकी हथेली भी सावित्री के चूत से निकले कामरस से भींग गई थी।

वागले के मन में जाने क्या आया कि उसने सावित्री की चूत से अपनी ऊँगली निकाली और तेज़ी से ऊपर ला कर सावित्री के मुँह में डाल दिया। सावित्री आँखें बंद किए मज़े में डूबी हुई थी और अपने होठ खोले सिसकियां ले रही थी। जैसे ही वागले ने उसके मुँह में चूत रस से भींगी ऊँगली डाली तो सावित्री अपने होठ उसकी ऊँगली में कस लिए और उसकी उंगली को चूसना शुरु कर दिया। मज़े और मदहोशी में जैसे उसे पता ही नहीं चला था कि उसके पति की ऊँगली में उसका ही चूत रस लगा हुआ था।

वागले ने अपनी ऊँगली को आधा निकाल कर फिर से उसके मुँह में अंदर तक डाला। ऐसा उसने दो तीन बार किया, सावित्री ने उसकी ऊँगली को अपने होठों की पकड़ से छोड़ा नहीं। ये देख कर वागले मुस्कुराया।

"मेरी ऊँगली का स्वाद कैसा लगा मेरी जान?" वागले ने उसके कान में सरगोशी करते हुए पूछा तो सावित्री ने उसकी ऊँगली को अपने मुँह से निकाल कर सिसियाते हुए कहा_____"बड़ा नमकीन सा स्वाद है रूप के पापा। मेरे मुँह में अपनी ऊँगली फिर से डालिए न।"

सावित्री की बात सुन कर वागले मन ही मन ये सोच कर हँसा कि सावित्री को अभी भी ये एहसास नहीं हुआ कि उसे उसकी ऊँगली में जो नमकीन सा स्वाद महसूस हुआ था वो असल में क्या था। ख़ैर वागले उसके कहने पर अपना वो हाथ तेज़ी से नीचे लाया और सावित्री की चूत में उस हाथ की बड़ी वाली ऊँगली झटके से घुसेड़ दी, जिससे सावित्री ने मचलते हुए लम्बी आह भरी। इधर वागले ने तेज़ी से उसकी चूत में अपनी ऊँगली को दो तीन बार अंदर बाहर किया और फिर उसी तेज़ी से निकाल कर उसके मुँह में डाल दिया।

सावित्री के मुँह में जैसे ही उसकी ऊँगली घुसी तो सावत्री फ़ौरन ही उसे लोलीपाप की तरह चूसने लगी। ये देख कर वागले के होठों पर गहरी मुस्कान उभर आई। इस वक़्त सावित्री पर उसे बेहद प्यार आ रहा था और यही वजह थी कि उसने अगले ही पल उसके मुँह से अपनी ऊँगली निकाली और उसके होठों को अपने मुँह में भर लिया।

सावित्री पूरी तरह मज़े के तरंग में डूब चुकी थी। बंद कमरे में उसकी आहें तथा उसकी सिसकारियां गूँज रहीं थी। वागले ने उसे बड़े ही आहिस्ता से बेड पर सीधा लेटाया और फिर जल्दी ही उसके चेहरे के पास अपना लंड ला कर उसके होठों पर छुआया। सावित्री मज़े में आँखें बंद किए हुए थी और जैसे ही उसे अपने होठों पर किसी चीज़ का एहसास हुआ तो उसे लगा उसका पति फिर से अपनी ऊँगली उसके मुँह में डालना चाहता है इस लिए उसने फ़ौरन ही अपना मुँह खोल दिया।

सावित्री ने जैसे ही अपना मुँह खोला तो वागले ने अपने खड़े लंड को उसके मुँह में बड़ी ही सावधानी से घुसेड़ दिया। सावित्री को पहले तो समझ न आया लेकिन जल्दी ही उसे एक अलग एहसास हुआ और उसने फ़ौरन ही अपनी आँखें खोल दी। नज़र अपने बेहद क़रीब हल्का झुके वागले पर पड़ी। कुछ पल उसे कुछ समझ न आया लेकिन जल्द ही उसे पता चल गया कि इस वक़्त उसके मुँह में उसके पति का लंड है। उसकी आँखें हैरत से फट पड़ीं और उसने जल्दी से अपने मुँह से उसके लंड को निकालना चाहा मगर वागले जैसे पहले से ही जानता था इस लिए उसने सावित्री के सिर को मजबूती से पकड़ लिया और अपनी कमर को थोड़ा और आगे सरकाया जिससे उसका लंड सावित्री के मुँह में थोड़ा और अंदर चला गया।

"घबराओ मत मेरी जान।" वागले ने सावित्री को देखते हुए कहा____"आँखें बंद कर लो और ये समझो कि तुम मेरी ऊँगली को ही चूस रही हो। एक बार कोशिश तो कर के देखो डियर, मुझे पूरा यकीन है कि तुम्हें इसको लोलीपाप की तरह चूसने में बेहद मज़ा आएगा।"

सावित्री के चेहरे पर अभी भी अजीब से भाव थे। वागले की बात सुन कर उसने बेबस भाव से ही सही लेकिन आँखें बंद कर ली। उसके मुँह में वागले का लंड टोपे सहित घुसा हुआ था। जब सावित्री ने अपनी आँखें बंद कर ली तो वागले अपनी कमर को हिलाने लगा। उसने सावित्री के सिर को छोड़ा नहीं था, क्योंकि वो जानता था कि उसके हाथ हटाते ही सावित्री उसके लंड को अपने मुँह से निकाल देगी। कुछ देर बाद वागले ने महसूस किया कि सावित्री ने विरोध करना बंद कर दिया है तो उसने अपने दोनों हाथ उसके सिर से हटा लिए और उसकी छातियों को मसलने लगा।

सावित्री का चेहरा ही बता रहा था कि अपने मुँह में अपने पति का लंड होने से उसे कितना ख़राब लग रहा था लेकिन जैसे उसने अब ये सोच लिया था कि अब जब उसके पति का लंड उसके मुँह में आ ही गया है तो उसे भी अब एक बार ये देख ही लेना चाहिए कि लंड चूसने से कैसा लगता है? अभी तक वो शर्म और गन्दा होने की वजह से ऐसा नहीं कर रही थी। उसने अपनी जीभ से अंदर ही अंदर वागले के लंड के टोपे को छुआ। उसे बड़ा ही अजीब लगा और साथ ही कुछ नमकीन सा स्वाद महसूस हुआ। शायद वागले का लंड मज़े की तरंग में अपना रस छोड़ रहा था।

वागले की कमर दुखने लगी तो उसने सावित्री के मुँह से अपना लंड निकाल लिया। लंड के निकलते ही सावित्री ने राहत की लम्बी सांस ली और फ़ौरन ही उठ कर बैठ गई।

"आख़िर आपने अपने मन का ही किया न।" सावित्री ने हांफते हुए कहा___"बहुत गंदे हैं आप।"
"क्यों तुम्हें अच्छा नहीं लगा?" वागले ने मुस्कुरा कर पूछा।
"क्या ऐसा करने से अच्छा लगना चाहिए था?" सावित्री ने कहा____"मुझे तो रह रह कर उल्टी आ रही थी लेकिन आप नाराज़ न हो जाएं ये सोच कर आपके उसे मुँह में लिए हुए थी।"

"अच्छा ये बताओ कि।" वागले ने कहा____"जब तुम मेरी ऊँगली चूस रही थी तब तुम्हें उसमें नमकीन जैसा स्वाद लग रहा था न?"
"हां।" सावित्री ने कहा____"मेरा मन कर रहा था कि मैं उस नमकीन स्वाद को ऐसे ही आपकी ऊँगली से चूसती रहूं।"

"वाह भाई वाह!" वागले ने ब्यंगात्मक भाव से कहा_____"मतलब अपनी चूत का रस नमकीन जैसा स्वाद दे रहा था और उसे बार बार चूसने का भी मन कर रहा था और मेरे लंड को चूसने में उल्टी आ रही थी। गज़ब भाग्यवान, क्या बात है।"

"ये...ये क्या कह रहे हैं आप?" सावित्री उसकी बात सुन कर बुरी तरह चौंकी थी।
"और नहीं तो क्या।" वागले ने मुस्कुराते हुए कहा_____"मेरी ऊँगली में तुम्हारी ही चूत का रस लगा हुआ था। उसी ऊँगली से मैं तुम्हारी चूत में ऊँगली कर रहा था, याद करो ज़रा।"

वागले की बात सुन कर सावित्री के चेहरे पर घनघोर आश्चर्य तांडव कर उठा। फिर जैसे उसे कुछ याद आया तो एकदम से उसके चेहरे पर शर्म की लाली उभर आई और उसने झट से अपना चेहरा अपने घुटनों के बीच छुपा लिया।

"आप बहुत ख़राब हैं।" फिर उसने उसी पोजीशन में कहा_____"छी, ये क्या करवा दिया मुझसे। हे भगवान! मैंने अपनी चू....।"

आंगे के शब्द बोलते बोलते अचानक ही सावित्री रुक गई और उसने और भी ज़ोरों से अपने चेहरे को घुटनों के बीच भींच लिया। वो शर्म से जैसे गड़ी ही जा रही थी और इधर वागले उसकी हालत देख कर धीरे से हंस पड़ा था।

"अरे! तो क्या हुआ मेरी जान।" फिर वागले ने मुस्कुराते हुए कहा____"अगर तुमने अपनी ही चूत के रस का स्वाद ले लिया तो इसमें इतना शर्माने की क्या ज़रूरत है? वैसे ये बात तो तुमने सच कही कि उसका स्वाद नमकीन जैसा था।"

"चुप कीजिए आप।" सावित्री ने घुटनों में अपना चेहरा छुपाए हुए ही कहा____"आपको तो ज़रा भी शर्म नहीं आती लेकिन मैं अब ये सोच कर शर्म से मरी जा रही हूं कि ये मैंने क्या कर दिया है। हे भगवान! इस उम्र में यही सब करवाना था मुझसे।"

"इसमें भगवान को दोष क्यों दे रही हो भाग्यवान?" वागले ने उसके चेहरे को ऊपर करने की कोशिश करते हुए कहा तो सावित्री ने नाराज़ लहजे में कहा_____"मुझे हाथ मत लगाइए। आपने ऐसा कर के बिल्कुल भी अच्छा नहीं किया है।"

"अच्छा छोड़ो।" वागले ने कहा____"चलो अब वो काम तो कर लें जिसे करने में तुम्हें कोई ऐतराज़ नहीं होगा।"
"मुझे अब कुछ नहीं करना है।" सावित्री ने घुटनों से सिर निकाल कर कहा____"आपको अगर नाराज़ हो जाना है तो हो जाइए।"

कहने के साथ ही सावित्री बेड से नीचे उतर गई और अपनी ब्रा पेंटी के साथ नाइटी भी उठा कर बाथरूम में चली गई। उसे इस तरह चले जाते देख वागले समझ गया कि उसका के.एल.पी.डी. हो गया है। उसने अब सावित्री को इसके लिए मानना ठीक नहीं समझा। वो जानता था कि अब सावित्री कुछ भी करने वाली नहीं थी। ये सोच कर उसने गहरी सांस ली और अपने कपड़े पहनने लगा।

रात दोनों के बीच छा गई ख़ामोशी में ही गुज़र गई। बाथरूम से आने के बाद सावित्री चुप चाप बेड पर लेट गई थी। वागले ने उससे बात करने की कोशिश की थी लेकिन सावित्री ने उसे बस एक ही बार शख़्त लहजे में कहा था कि अब चुप चाप सो जाइए वरना अच्छा नहीं होगा। उसके बाद वागले ने भी चुप चाप सो जाना ही बेहतर समझा था।

दूसरे दिन वागले जेल पहुंचा। अपने सभी कामों से फुर्सत होने के बाद उसने ब्रीफ़केस खोल कर विक्रम सिंह की डायरी निकाली और उसके मोटे कवर पर लिखे सी एम एस शब्दों को ध्यान से देखा और फिर छोटे अक्षरों में लिखे उसके फुल फॉर्म को। कुछ देर यूं ही देखते रहने के बाद उसने उस पेज को खोला जहां पर वो इसके पहले पढ़ रहा था।

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