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Adultery हसीन गुनाह
#1
लेखक:-राजवीर


मेरा नाम राज है, मैं 42 साल का तंदरुस्त, 5’11” रंग गेहुंआ, फिट बॉडी का आदमी हूँ। मेरी पत्नी सुधा 39 साल की, स्वस्थ, 5’5″ रंग गोरा और फिगर 36-26-38 है।
पंजाब के एक बड़े शहर में मेरा अपना एक छोटा सा सॉफ़्टवेयर एंड हार्डवेयर पार्ट्स सप्लाई का बिज़नेस है जिससे मुझे सब ख़र्चे और टैक्स इत्यादि निकाल के करीब दस से बारह लाख रुपये सलाना की कमाई हो जाती है। एक अपना ऑफिस है, गोदाम है, वर्कशॉप है, 9-10 लोगों का स्टाफ़ है, अपना घर है, कार है।

हमारे दो बच्चे हैं, एक बेटी 15 साल की और एक बेटा 12 साल का। हमारी 16 साल की शादीशुदा जिंदगी में हमारी सैक्स लाइफ बहुत ही बढ़िया है। बिस्तर में सुधा और मैं नए नए तज़ुर्बे करते ही रहते हैं, कभी-कभी कोई तज़ुर्बा बैक-फ़ायर भी कर जाता है पर ओवरआल सब मस्त है।

यह घटना आज से 3 साल पहले की है, जब मेरी माँ जो मेरे साथ ही रहती थी, की अचानक मृत्यु हो गई। पिता जी आठ साल पहले ही चल बसे थे लिहाज़ा सुधा, मेरी पत्नी अचानक से घर में बिल्कुल अकेली हो गई।
मैं तो सुबह का निकला शाम को घर आता था, पीछे दोनों बच्चे कॉलेज चले जाते थे और सुधा सारा दिन घर में अकेली रहती थी, अगर बाजार भी जाना हो तो घर ताला लगा के जाओ।


उन दिनों शहर में चोरियां बहुत होती थी और घर के मेनगेट पर लगा ताला तो जैसे चोरों को खुद आवाज़ मार कर बुलाता है।

एक दिन सुधा किसी काम से बाजार गई पर रास्ते में कुछ भूला याद आने पर आधे रास्ते से ही घर वापिस लौटी तो देखा कि चोरों ने मेनगेट का ताला तोड़ रखा था पर इससे पहले कि चोर अपनी किसी कारगुजारी को अंजाम देते, सुधा घर लौट आई और चोरों को फ़ौरन वहाँ से भागना पड़ा।
पर इस काण्ड के बाद सुधा बहुत डरी-डरी सी रहने लगी जिस का सीधा असर हमारे घर-परिवार पर और हमारी सेक्स-लाइफ़ पर पड़ने लगा।

अपनी सेक्स लाइफ बिगड़ते देख मुझे बहुत कोफ़्त होती… पर क्या करता?
अब मुझे इस समस्या का कोई समाधान सोचना था और बहुत जल्दी ही सोचना था पर कुछ सूझ नहीं रहा था और फिर एक दिन जैसे भगवान् ने खुद इस समस्या का समाधान भेज दिया।

मेरी बड़ी साली साहिबा जिनकी शादी मेरे शहर से 25-30 किलोमीटर दूर एक कस्बे में एक खाते पीते आढ़ती परिवार में हुई थी, की बेटी प्रिया ने B.Com पास कर ली थी लेकिन समस्या यह थी कि क़स्बे में कोई अच्छा कॉलेज नहीं था जहां मास्टर्स की जा सके और मेरे शहर में कई अच्छे कॉलेजों समेत यूनिवर्सिटी भी थी।

लिहाज़ा प्रिया ने मेरे शहर में एक नामी गिरामी कॉलेज में M.Com में ऐडमिशन ले लिया था लेकिन किस्मत से प्रिया को हॉस्टल में जगह नहीं मिल पाई थी सो मेरी साली साहिबा थोड़ी परेशान सी थी कि एक दिन मैं और सुधा उनके घर उनसे मिलने जा पहुंचे।

बातों बातों में इस बात का ज़िक्र भी आया तो मेरी पत्नी ने प्रिया को अपने घर रहने के लिए कह दिया। मैंने भी सोचा कि चलो ठीक ही है, कम से कम सुधा एक नार्मल औरत सा जीवन तो जियेगी।

मेरी शादी के समय प्रिया सात-आठ साल की पतली सी, मरगिल्ली सी लड़की थी जो हर वक़्त या तो रोती रहती थी या रोने को तैयार रहती थी। बहुत दफा तो वो घर आये मेहमानों के सामने ही नहीं आती थी और हम पर तो साहब ! हर वक़्त अपनी पत्नी का नशा सवार रहता था, मैंने भी प्रिया पर पहले कभी ध्यान नहीं दिया था।

लब्बोलुआब ये कि यह फाइनल हो गया कि प्रिया हमारे घर रह कर ही M.Com करेगी। फैसला ये हुआ कि मम्मी वाला कमरा प्रिया को दे दिया जाए ताकि वो अपनी पढ़ाई बे रोक-टोक कर सके।

इस बात से सुधा इतनी खुश हुई कि उस रात बिस्तर में सुधा ने कहर बरपा दिया। ऐसा बहुत दिनों बाद हुआ था लिहाज़ा मैं भी खुश था।

एक हफ्ते बाद प्रिया हमारे घर आ गई।
उस रात डाइनिंग टेबल पर मैंने पहली बार प्रिया को गौर से देखा। डेढ़ पसली की मरघिल्ली सी, रोंदू सी लड़की, माशा-अल्लाह ! जवान हो गई थी, करीब 5′-4″ कद, कमान सा कसा हुआ पतला लेकिन स्वस्थ शरीर, रंग गेहुँआ, लंबे बाल, सुतवाँ नाक, पतले गुलाबी लेकिन भरे-भरे होंठ, तीखे नैननक्श और काले कजरारे नयन!
फ़िगर अंदाजन 34-26-34 था।


यूं मैं कोई सैक्स-मैनियॉक नहीं पर ईमानदारी से कहूँ तो उस वक़्त मन ही मन मैं प्रिया के नंगे जिस्म की कल्पना करने लगा था।

खैर जी ! डिनर हुआ। सब लिविंग रूम में आ बैठे, बच्चे TV देखने लगे, प्रिया और सुधा दोनों बातें करने लगी और मैं इजी चेयर पर बैठा किताब पढ़ने लगा पर मेरे कान तो उन दोनों की बातों पर ही लगे हुए थे।

मैंने नोटिस किया कि बोल तो सिर्फ सुधा ही रही थी और प्रिया तो बस हाँ-हूँ कर रही थी।



खैर, धीरे धीरे प्रिया हमारे परिवार का अंग होती चली गई, दोनों बच्चों को प्रिया पढ़ा देती थी। रात का डिनर पकाना भी प्रिया की जिम्मेवारी हो गई थी लेकिन अब भी प्रिया मेरे सामने कम ही आती थी, आती भी थी तो मुझ से बहुत कम बोलती थी, बस हां जी… नहीं जी… ठीक है जी!



मैं तो इसी बात में खुश था कि मुझे मेरी पत्नी का ज्यादा समय मिल रहा था और मेरी सेक्स लाइफ नार्मल से भी अच्छी हो गई थी। धीरे धीरे समय गुजरने लगा।



शुरू शुरू में तो प्रिया हर शनिवार अपने घर चली जाया करती थी और सोमवार सवेरे सीधे कॉलेज आकर शाम को घर आती थी लेकिन धीरे धीरे प्रिया का अपने घर जाना कम होने लगा। अब प्रिया दो महीने में एक बार या बड़ी हद दो बार अपने घर जाती थी।



फर्स्ट ईयर के फाइनल एग्जाम ख़त्म होने के बाद प्रिया तीन महीने के लिए अपने घर चली गई। करीब पांच हफ्ते बाद एक रात, एक रस्मी से अभिसार से असंतुष्ट सा मैं सुधा के नग्न शरीर पर हाथ फेर रहा था कि सुधा ने मुझ से कहा- राज… चलो, कल जाकर प्रिया को ले आयें। प्रिया के बिना मेरा दिल नहीं लग रहा और दोनों बच्चे भी उदास हैं।



मैंने हामी भर दी।



अगले दिन हम दोनों जाकर प्रिया को ले आये। खुश सुधा ने उस रात अभिसार में मेरे छक्के छुड़ा दिए, सुधा ने मेरा लिंग चूस-चूस कर मुझे स्खलित किया और बाद में खुद मेरा लिंग पकड़ कर, उस पर तेल लगाया और अपने हाथ से मेरा लिंग अपनी गुदा पर रख कर मुझे गुदा मैथुन के लिए आमंत्रित किया, रतिक्रिया के किसी भी आसन को उसने ‘ना’ नहीं कहा बल्कि दो कदम आगे जाकर कुछ अपनी ओर से और नया कर दिया।



ख़ैर! जिंदगी वापिस पटरी आ गई थी लेकिन अब एक फर्क था, अब प्रिया सारा दिन घर पर ही रहती थी, उसके कॉलेज खुलने में अभी डेढ़ महीना बाकी था।

मैं दोपहर को खाना खाने घर आता था, पहले जब प्रिया कॉलेज गई होती थी तो मैं अक्सर दोपहर को ही सुधा को थाम लिया करता था, कभी रसोई में, कभी स्टोर में, कभी लॉबी में और कभी ड्राइंग रूम में भी… एक-आध बार तो बाथरूम में शावर के नीचे भी!



प्रिया के आने से दोपहर की इन तमाम खुराफातों में लगाम लग गई थी। कोफ़्त होती थी कभी कभी पर क्या किया जा सकता था?

फिर भी दांव लगा कर कभी-कभार मैं सुधा से छोटी-मोटी चुहलबाज़ी तो कर ही लेता था, जैसे पास से गुज़रती सुधा के नितम्बों को सहला देना, उसके उरोजों पर हल्के से हाथ फेर देना, निप्पल दबा देना, रसोई में सब्ज़ी बनाती सुधा से सट कर खड़े होकर कढ़ाई में सब्ज़ी देखने के बहाने सुधा के कान के पास एक छोटा सा चुम्बन ले लेना या उसकी साड़ी के पल्लू की आड़ में उसका हाथ पकड़ कर अपने लिंग पर दबा देना।



मेरे ऐसा करने पर सुधा दिखावटी गुस्सा दिखाती जरूर थी लेकिन तिरछी आँखों से मुझे देखते हुये उसके होंठों पर स्वीकृति की एक मौन सी मुस्कान भी होती थी।



दिन बढ़िया गुज़र रहे थे लेकिन मैं प्रिया में और उसके मेरे प्रति व्यवहार में कुछ कुछ फर्क महसूस कर रहा था। मैं अक्सर नोट करता कि डाइनिंग टेबल पर खाना खाते वक़्त या लिविंग रूम में टी.वी देखते वक़्त या कभी कभी कोई किताब पढ़ते-पढ़ते मैं जब जब सिर उठा कर प्रिया की ओर देखता तो उसे मेरी ओर ही देखते पाता और जैसे ही मेरी प्रिया की नज़र से नज़र मिलती तो वो या तो नज़र नीची कर लेती या कहीं और देखने लगती।



मुझे कुछ समय के लिए उलझन तो होती पर जल्दी ही मेरा ध्यान किसी और बात पर चला जाता और बात आई-गई हो जाती।



बरसात का मौसम आ गया था, बहुत निकम्मी किस्म की गर्मी पड़ रही थी, जिस दिन बरसात होती उस दिन तो मौसम ठीक रहता, अगले दिन जब धूप निकलती तो उमस के मारे जान निकलने लगती, जगह जगह खड़ा पानी बास मारने लगता और मक्खी-मच्छर पैदा करने की ज़िंदा फैक्टरी बन जाता।

एयर कंडीशनड कमरों में ही जिंदगी सिमटी पड़ी थी।



उसी मौसम में एक दिन प्रिया के कमरे के A.C की गैस लीक हो गई। बच्चों का बैडरूम छोटा था और उसमें तीसरे बेड की जगह नहीं थी, ड्राइंग रूम और लिविंग रूम तो रात को सोने के किये डिज़ाइन्ड ही नहीं थे तो एक ही चारा बचता था कि जब तक प्रिया के कमरे का A.C रिपेयर हो कर नहीं आता, प्रिया का बेड हमारे बैडरूम में हमारे बेड की बगल में ही लगाया जाए।



ऐसा ही हुआ और ऐसा होने से हम पति-पत्नी की रात वाली रासलीला पर टेम्परेरी बैन लग गया था!
पर क्या करते… मज़बूरी थी।

हमारे बैडरूम में बेड के साथ ही लेफ्ट साइड बाथरूम का दरवाज़ा था और मेरी पत्नी बैड के लेफ्ट साइड सोना पसंद करती थी और मैं राईट साइड सोता था, हमारे बेड के साथ ही राईट साइड प्रिया का फोल्डिंग बेड लगाया गया था। रात आती, खाना-वाना खा कर हम लोग सोने के लिए बैडरूम में आते।



सुधा मेरे बायें और प्रिया मेरे दायें… ये दोनों बातें करने लगती और मैं बीच में ही सो जाता।



दो-एक दिन बाद एक रात को अचानक मेरी आँख खुली तो पाया कि प्रिया बाईं करवट सो रही थी यानी उसका मुंह मेरी ओर था और उसका दायां हाथ मेरी छाती पर था।



मैंने सिर उठा कर देखा तो सुधा को घनघोर नींद के हवाले पाया। मैंने धीरे से प्रिया का हाथ अपनी छाती से उठाया और उस हाथ उस की बगल पर रख दिया।



पर नींद बहुत देर तक नहीं आई, दिल में बहुत उथल-पुथल सी चल रही थी।



क्या प्रिया ने जानबूझ कर ऐसा किया था? अगर हाँ तो क्यों? क्या प्रिया मेरे साथ… सोच कर झुरझुरी सी उठी और अचानक ही मेरे लिंग में तनाव आ गया।

इसी उहपोह में जाने कब मेरी आँख लग गई।



दिन चढ़ा, सब कुछ अपनी जगह पर, हर चीज़ नार्मल सी थी पर मेरे दिल में इक अनजान सी फ़ीलिंग थी, रह रह कर प्रिया के हाथ की छुअन मुझे अपनी छाती पर फील हो रही थी और रह रह कर मेरे लिंग में तनाव आ रहा था।

उस दिन मैंने अपनी शादी के बाद पहली बार बाथरूम में नहाते समय हस्त मैथुन किया।



अगली रात आई, फिर वही सोने का अरेन्जमेन्ट, सुधा डबलबेड के बाईं ओर, मैं दाईं ओर और प्रिया का फोल्डिंग बेड हमारे डबलबेड के दाईं ओर सटा हुआ और मुझ में और प्रिया में ज्यादा से ज्यादा डेढ़ फुट का फासला।



आज मैं अभी किताब ही पढ़ रहा था कि ये दोनों सोने की तैयारी करने लगी। जल्दी सोने का कारण पूछने पर प्रिया ने बताया कि आज दोनों बाज़ार गईं थी, थक गई हैं।



पन्द्रह बीस मिनट बाद मैंने लाईट बंद की और खुद उल्टा हो कर सोने की कोशिश करने लगा, उल्टा बोले तो पेट के बल! पन्द्रह-बीस मिनट ही बीते होंगे कि प्रिया का हाथ आज़ फिर से मेरे ऊपर आ पड़ा लेकिन आज़ चूंकि मैं उल्टा पड़ा था सो इस बार उसका हाथ मेरी पीठ पर पड़ा।



तीन चार मिनट बाद प्रिया ने अपना हाथ मेरी पीठ से उठा लिया और खुद सीधी होकर, मतलब पीठ के बल लेट कर सोने का उपक्रम करने लगी। उसका मेरी ओर वाला हाथ मतलब बायां हाथ उसके सिर के पास सिरहाने पर ही पड़ा था। मेरा मुंह प्रिया की ओर ही था और मेरा और प्रिया का फासला ज्यादा से ज्यादा डेढ़ फुट का रहा होगा।



अचानक मैंने अपने बायें हाथ को प्रिया पर रख दिया… मेरा दिल पसलियों में धाड़-धाड़ बज़ रहा था।

कोई हरकत नहीं.. ना मेरी ओर से… ना प्रिया की ओर से…



अचानक प्रिया ने सिर उठाया और मेरी ओर ध्यान से देखने लगी, मींची आँखों में मैं सोने की एक्टिंग करने लगा। एक डेढ़ मिनट मुझे ध्यान से देखने के बाद जब उसे यकीन हो गया कि मैं गहरी नींद में सो रहा था तो उसने अपने हाथ पर जो मेरा हाथ थामे था, चादर डाल थी और चादर के नीचे मेरे हाथ की उँगलियों को एकके बाद एक करके चूमने लगी।



उम्म्ह… अहह… हय… याह… उत्तेजना के मारे मेरा बुरा हाल था, तनाव के कारण मेरा लिंग जैसे फटने की कगार पर था। मैं प्रिया के हाथ का स्पंदन महसूस कर सकता था पर मैंने अपनी ओर से कोई हरकत नहीं की।

करीब आधे घंटे बाद प्रिया ने ऐसा करना बंद किया।



मैंने सर उठा कर देखा तो लगा कि प्रिया सो गई थी शायद! मेरा हाथ अब भी उसके हाथ में जकड़ा हुआ था। ऐसे ही जाने कब मैं सचमुच नींद के आगोश में चला गया।



सुबह उठा तो पाया कि सुधा और प्रिया उठ कर कब की जा चुकी थी, तभी सुधा अख़बार ले कर आ गई। दिल में अनाम सी ख़ुशी लिए मैंने जिंदगी का एक नया दिन शुरू किया।



तभी प्रिया भी बैडरूम में चाय की ट्रे लेकर आई, नहाई-धोई, सफ़ेद पजामी सूट में ताज़ा ताज़ा शैम्पू किये बालों से मनभावन सी खुशबू उड़ाती एकदम ताज़ा दम, सफ़ेद सूट में से सफ़ेद ब्रा साफ़ साफ़ उजाग़र हो रही थी।



जैसे ही मेरी प्रिया की आँख से आँख मिली, प्रिया की नज़र झुक गई और क्षण भर को ही ग़ुलाबी भरे भरे होंठों पर एक गुप्त सी मुस्कान आकर लुप्त हो गई।

रात वाली बात याद आते ही मेरे लिंग में जान सी आने लगी।



जैसे ही प्रिया बैठने लगी तो मेरी वाली साइड से सफ़ेद पजामी में से गहरे रंग की पैंटी साफ़ साफ़ झलकने लगी। एक क्षण में ही मेरा लिंग फुल जोश में फुंफ़कारने लगा और मैंने अपने साथ बैठी सुधा का हाथ चादर के अंदर ही पकड़ कर अपने लिंग पर रख कर ऊपर से अपने हाथ से दबा लिया।



सुधा चिंहुक उठी, लगी अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश करने… लेकिन मैं जाने दूं तब ना! जैसे ही सुधा ने मुझे देख कर आँखें तरेरी तो प्रिया ने पूछा- क्या हुआ मौसी?

‘कुछ नहीं…’ कह कर सुधा ने अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश बंद कर दी और चादर के नीचे से मेरा लिंग जोर से पकड़ लिया।



मैं अपने मुक्त हुए हाथ से सुधा की जाँघ जांचने लगा।

सारा दिन जैसे हवाओं के हिण्डोले पर बीता, जो मेरे और प्रिया के बीच चल रहा था, उस बारे में सारा दिन मेरे अपने ही अंदर तर्क कुतर्क चलते रहे।



एक बात तो पक्की थी कि प्रिया की तो ख़ैर कच्ची उम्र थी पर मैं जो कर रहा था वो सामाजिक और नैतिक दृष्टि से गलत था और मैं खुद जानता था कि मैं गलत कर रहा था।
लेकिन वो जैसा कहते हैं कि गुनाह की लज़्ज़त मेरा पीछा नहीं छोड़ रही थी।
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#2
साली की बेटी की कच्ची उम्र की लज़्ज़त मेरा पीछा नहीं छोड़ रही थी, मैंने सोच लिया था कि आज से मैं प्रिया वाली साइड सोऊंगा ही


नहीं लेकिन जैसे-जैसे दिन बीत रहा था, मेरा पक्का इरादा डाँवाडोल हो रहा था।

शाम आई… मैं घर आया, आते ही प्रिया मेरे लिए पानी का गिलास ले कर आई, ग़िलास पकड़ते वक़्त मैंने प्रिया की आँखों में देखा,

प्रिया ने शर्मा कर नज़र नीची कर ली और खाली गिलास ले कर चली गई।

आज रात तो कुछ हो कर रहना था, ऐसी सोच आते ही पतलून के अंदर ही मेरा लिंग भयंकर रौद्र रूप में आ गया, रात की प्रतीक्षा में


समय काटना मुश्किल हो गया था।
शाम को बाथरूम में नहाते समय मैंने एक बार फिर ‘अपना हाथ जगन्नाथ’ किया।

डिनर करते समय मैंने रह रह कर आती जाती सुधा के नितंबों पर चुटकी काटी। डिनर टेबल पर ही सुधा ने मुझ से प्रिया के कमरे के

A.C के बारे में पूछा कि कब ठीक हो के आएगा?
यूं मैंने कह तो दिया कि एक-आध दिन में आ जाएगा पर मेरा इरादा तो प्रिया के कमरे के A.C को कयामत के दिन तक ना लाने का

हो रहा था।राम राम कर के डिनर निपटाया।

वैसे हम फ़ैमिली के सब लोग डिनर के बाद लिविंग रूम बैठ कर कुछ देर गप्पें हांकते है लेकिन उस दिन मैं सीधा अपने बैडरूम में

चला गया।
बाथरूम में ब्रश करने के बाद मैंने अपना अंडरवियर उतार कर वाशिंग-बास्केट में डाल दिया और पजामा बिना अंडरवियर के पहन कर

सीधे अपने बिस्तर पर जा कर A.C का टेम्प्रेचर 20 डिग्री पर सेट कर दिया।

सुधा और प्रिया अभी बैडरूम में आईं नहीं थी, मैंने बिस्तर में लेट कर आँखें बंद कर ली, बीसेक मिनट बाद दोनों बैडरूम में आईं और

मुझे सोता पाया।
10-15 मिनट हल्की-फ़ुल्की बाद गप्पें हांकने के बाद दोनों सोने की तैयारी करने लगी और बैडरूम की लाइट बंद कर दी गई।

जैसे ही बैडरूम की लाइट बंद हुई मैंने तड़ाक से आँखें खोल ली और प्रिया को देखने लगा। प्रिया तब अपने बिस्तर पर लेटने की तैयारी

कर रही थी और अपने बाल बाँध रही थी।
मैंने चुपके से अपनी दाईं बाजु प्रिया के बिस्तर पर तकिये से ज़रा सी नीचे दूर तक फैला दी।

प्रिया चादर ऊपर खींच कर जैसे ही अपने बिस्तर पर लेटी, मेरी बाजु उसकी गर्दन के नीचे से उसके परले कंधे तक पहुँच गई। उसने

अपने हाथ से अपने दाएं कंधे के पास टटोल कर देखा तो मेरा दायां हाथ उसके हाथ में आ गया।

जैसे ही प्रिया के हाथ की उंगलियां मेरे हाथ से टच हुई, मैंने उस का हाथ जोर से पकड़ लिया।
पहले तो प्रिया ने दो-चार पल अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश की लेकिन जल्दी ही मेरा हाथ कस के पकड़ लिया।

मुझे तो दो जहान् की खुशियां मिल गई जैसे… मानो सारी कायनात ठहर गई हो!
मेरा दिल मेरे सीने में धाड़-धाड़ बज़ रहा था और मैं अपने ही दिल की धड़कन बड़ी साफ़-साफ़ सुन रहा था। पता नहीं ऐसे दो मिनट

बीते के दो घंटे… कुछ याद नहीं।

फिर मैंने प्रिया की ओर करवट ली और अपना बायां हाथ प्रिया के बाएं उरोज़ पर रख दिया, प्रिया ने मेरा वो हाथ फ़ौरन परे झटक दिया

और अपना सर बायें से दायें हिला कर जैसे अपना एतराज़ जताया लेकिन मैंने दोबारा अपना हाथ उसके बायें उरोज़ पर रख दिया।

प्रिया ने दोबारा मेरा हाथ अपने उरोज़ पर से उठाना चाहा लेकिन इस बार मेरा हाथ ना उठाने का इरादा पक्का था, दो एक मिनट की

असफ़ल कोशिश करने के बाद प्रिया ने अपना हाथ मेरे हाथ से उठा लिया और जैसे मुझे मनमानी करने की इज़ाज़त दे दी।
मैं अँधेरे में प्रिया के उरोज़ की नरमी और गर्मी दोनों को अपने हाथ में महसूस कर रहा था।

धीरे धीरे मैंने अपनी उँगलियों को प्रिया के उरोज़ पर ज़ुम्बिश देनी शुरू की। प्रिया का उरोज़ बहुत नर्म सा था, मैं उस पर बहुत नरमी से

उंगलियां चला रहा था।
अचानक एक जगह हल्की सी कुछ सख़्त सी मालूम पड़ी। हल्का सा टटोलने पर पता पड़ा कि यह उरोज़ का निप्पल है।

जैसे ही मेरा हाथ निप्पल को लगा, वो और ज़्यादा टाईट और बड़ा हो कर ख़डा हो गया। मैंने अपना हाथ प्रिया की चादर के अंदर डाल

कर, प्रिया की नाईट सूट का ऊपर वाला एक बटन खोल कर, ब्रा के अंदर से हौले से प्रिया के उरोज़ पर रखा तो प्रिया के पूरे ज़िस्म में

झुरझुरी की एक लहर सी दौड़ गई जिसे मैंने स्पष्टत महसूस किया।

प्रिया की गर्म तेज़ साँसें मैं अपनी कलाई पर महसूस कर रहा था। प्रिया के उरोज़ के कठोर निप्पल का स्पर्श मैं अपनी हथेली के ठीक

बीचों बीच महसूस कर पा रहा था।

धीरे से मैंने अपनी पाँचों उंगलियां उरोज़ के साथ साथ ऊपर उठानी शुरू की और अंत में निप्पल उँगलियों के बीच में आ गया जिसे मैंने

हलके से दबाया।
प्रिया के मुख से शाश्वत आनन्द की ‘आह’ की हल्की सी सिसकारी प्रफुटित हुई। जल्दी ही मैंने अपना हाथ दूसरे उरोज़ की ओर सरकाया

दूर वाला उरोज़ थोड़ा दूर पड़ रहा था तो प्रिया बिना कहे खुद ही सरक कर मेरीऔर ख़िसक आई।

दूर वाला उरोज़ थोड़ा दूर पड़ रहा था तो प्रिया बिना कहे खुद ही सरक कर मेरी ओर ख़िसक आई।

अब ठीक था।मैंने अपना हाथ ब्रा के ऊपर से ही परले उरोज़ पर ऱखा और उरोज़ को थोड़ा सा दबाया। प्रिय के मुंह से बहुत ही हलकी सी ‘सी… सी’

की सिसकारी निकली।

मैंने अपना हाथ उठा कर धीरे से ब्रा के अंदर सरकाया और परले उरोज़ पर कोमलता से हाथ धर दिया। परले उरोज़ का निप्पल अभी

दबा दबा सा था लेकिन जैसे ही मेरे हाथ ने निप्पल को छूआ, निप्पल ने सर उठाना शुरू कर दिया और एक सैकिंड में ही अभिमानी

योद्धा गर्व से सर ऊंचा उठाये खड़ा हो गया।

अचानक मुझे लगा की मेरे परले हाथ की हथेली पर कुछ नरम-नरम, कुछ गरम-गरम सा लग रहा है, देखा तो अपनी चादर के अंदर

प्रिया मेरा हाथ बहुत शिद्दत से चूम रही थी, पूरे हाथ पर जीभ फ़िरा रही थी।

जल्दी ही प्रिया ने मेरे हाथ की उँगलियाँ एक एक कर के अपने मुँह में डाल कर चूसनी शुरू कर दी। मैं प्रिया के होंठों की नरमी और

उस की जीभ का नरम स्पर्श अपनी उँगलियों पर महसूस कर कर के रोमांचित हो रहा था।मेरा लिंग 90 डिग्री पर चादर और पजामे का तंबू बनाये फौलाद सा सख्त खड़ा था, मारे उत्तेज़ना के मेरे नलों में तेज़ दर्द हो रहा था।

अब सहन करना मुश्किल था, लेकिन इस से और आगे बढ़ना खतरे से खाली नहीं था।

अपने ही बैडरूम में, अपनी ही पत्नी की कुंवारी भांजी के साथ शारीरिक संबंध बनाते या बनाने की कोशिश करते, अपनी ही पत्नी के

हाथों रंगे-हाथ पकड़े जाने से ज़्यादा शर्मनाक कुछ और हो नहीं सकता था।मैं ऐसी बेवकूफी करने वाला हरगिज़ नहीं था।जिंदगी रही तो आगे ऐसे बहुत मौक़े मिलेंगे जब आदमी अपने दिल की कर गुज़रे और प्रिया तो राज़ी थी ही!बेमन से मन ममोस कर मैं उठा और बाथरूम में जाकर पेशाब करने के लिए पजामा खोला तो मेरा लिंग झटके से बाहर आया।

जैसे ही मैंने लिंग का मुंह कमोड की ओर पेशाब करने के लिए किया, मेरे पेशाब की धार कमोड में नीचे जाने की बजाए कमोड के ऊपर

सामने दीवार कर पड़ी, मैं अपने लिंग को नीचे की ओर झुकाऊं पर मेरा लिंग नीचे की ओर हो ही ना!

जैसे तैसे पेशाब करके मैं वापिस बैडरूम में आया ही था कि सुधा ने मुझ से टाइम पूछा, मेरी तो फट के हाथ में आ गई।ख़ैर जी!सुधा को टाइम बता कर A.C का टेम्प्रेचर थोड़ा बढ़ा कर मैं भी सोने की कोशिश करने लगा, उधर प्रिया भी चुपचाप चित पड़ी सोने का

बहाना कर रही थी।

बहुत रात बीतने के बाद मुझे नींद आई।



अगला सारा दिन मैंने मन ही मन चिढ़ते कुढ़ते हुए गुज़ारा। जो कुछ और जितना कुछ प्रिया के साथ रातों को हो रहा था, उस से ज़्यादाहोने की गुंजाईश बहुत कम थी और ऐसा होना भी बहुत दिनों तक ऐसा होना मुमकिन नहीं था।

आज नहीं तो कल, प्रिया के कमरे का A.C ठीक हो कर आना ही था। ऊपर से अपने ही बैडरूम में सुधा के किसी भी क्षण उठ जाने का डर हम दोनों को खुल कर खेलने नहीं देता था।

मुझे जल्दी ही कुछ करना था।किसी दिन प्रिया को ले कर किसी होटल में चला जाऊं?ना… ना! यह निहायत ही बकवास आईडिया था, आधा शहर मुझे जानता था और प्रिया को होटल ले कर जाने के अपने खतरे थे।



और… घर में? घर में मेरे बच्चे थे, सुधा थी… नहीं नहीं! ऐसा होना भी मुमकिन नहीं था।तो फिर… क्या करूँ? कुछ समझ में नहीं आ रहा था, लिहाज़ा मैं चिड़चिड़ा सा हो रहा था।

रात को डिनर करने के बाद फिर बाथरूम में ब्रश करने के बाद मैं अपना अंडरवियर उतार कर पजामा बिना अंडरवियर के पहन कर A.C का टेम्प्रेचर 20 डिग्री पर सेट कर के सीधे अपने बिस्तर पर जा पड़ा। आज प्रिया और सुधा दोनों अभी तक बेडरूम में नहीं आई थी।

अपने आप में उलझे हुए मेरी कब आँख लग गई, मुझे पता ही नहीं चला।

अचानक मेरे कान में कुछ सुरसुरी सी हुई, मैंने नींद में ही हाथ चलाया तो मेरे हाथ में प्रिया का हाथ आ गया, प्रिया चुपके से मुझे जगाने की कोशिश कर रही थी।

मैंने प्रिया का हाथ अपनी छाती पर रख कर ऊपर अपना हाथ रख दिया और प्रिया की साइड वाला हाथ चादर के अंदर से उसके चेहरे पर फेरने लगा।माथा, गाल, कान, आँखें, नाक, होंठ, ठुड्डी, गर्दन… धीरे-धीरे मेरा हाथ नीचे की ओर अग्रसर था और प्रिया की साँसें क्रमशः भारी होती जा रही थी और प्रिया मुझे पिछले रोज़ की तरह से रोक भी नहीं रही थी, लगता था कि प्रिया खुद ऐसा चाह रही थी।
जैसे ही मेरा हाथ गर्दन के नीचे से होता हुआ प्रिया कंधे से होता हुआ प्रिया की छातियों तक पहुंचा तो मैं एक सुखद आश्चर्य से भर उठा। आज प्रिय ने नाईट सूट के नीचे ब्रा नहीं पहनी थी, बस एक पतली बनियान सी पहनी हुई थी। मेरा हाथ उरोज़ को छूते ही प्रिया के शरीर में वही परिचित झुनझुनाहट की लहर उठी।

आज मैं कल जैसी नर्म दिली से पेश नहीं आ रहा था, उरोज़ का निप्पल हाथ में आते ही फूल कर सख़्त हो गया था, मैं अंगूठे और एक उंगली के बीच में निप्पल लेकर हल्के हल्के मसलने लगा।

प्रिया का दायां हाथ मेरे हाथ के ऊपर रखा था, जहां जहां उसे तीव्र आनन्द की अनुभूति होती, वहीं वहीं उसका हाथ मेरे हाथ पर कस जाता।मेरा मन कर रहा था कि मैं प्रिया के उरोज़ों का अपने होंठों से रसपान करूँ लेकिन उस में अभी भयंकर ख़तरा था सो मैंने अपने मन पर काबू पाया और इसी खेल को आगे बढ़ाने में लग गया।

मैंने अपना दायां हाथ प्रिया के उरोजों से उठा कर प्रिया के बाएं हाथ पर (जो मेरी छाती पर ही पड़ा था) रख दिया।प्रिया के हाथ को सहलाते सहलाते मैंने प्रिया का हाथ उठा कर पजामे के ऊपर से ही अपने गर्म, तने हुए लिंग पर रख दिया।

प्रिया को जैसे 440 वाट का करंट लगा, उसने झट से अपना हाथ मेरे लिंग से उठाने की कोशिश की लेकिन उस के हाथ के ऊपर तो मेरा हाथ था, कैसे जाने देता?

दो एक पल की धींगामुश्ती के बाद प्रिया ने हार मान ली और मेरे लिंग पर से अपना हाथ हटाने की कोशिश छोड़ दी।

मैंने अपने हाथ से जो प्रिया का वो हाथ थामे था जिस की गिरफ़्त में मेरा गर्म, फौलाद सा तना हुआ लिंग था, को दो पल के लिए अपने लिंग से हटाया और अपना पजामा अपनी जांघों से नीचे कर के वापिस अपना लिंग प्रिया को पकड़ा दिया। प्रिया के शरीर में फिर से वही जानी-पहचानी कंपकंपी की लहर उठी।

अब के प्रिया का हाथ खुद ही लिंग की चमड़ी को आगे पीछे कर के मेरे लिंग से खेलने लगा, कभी वो शिशनमुंड पर उंगलिया फेरती, कभी लिंग की चमड़ी पीछे कर के शिशनमुंड को अपनी हथेली में भींचती, कभी मेरे अण्डकोषों को सहलाती।

ऊपर मेरे हाथों द्वारा प्रिया की छातियों का काम-मर्दन जारी था। धीरे धीरे मैं अपना दायां हाथ प्रिया के पेट पर ले गया, नाईट सूट के अप्पर को पेट से ऊंचा करके मैंने प्रिया के पेट पर हल्के से हाथ फेरा और फिर से प्रिया के शरीर में वही जानी पहचानी कंपकंपी की लहर को महसूस किया, प्रिया का हाथ मेरे लिंग पर जोरों से कस गया।

*********मैं धीरे धीरे अपना हाथ प्रिया के पेट पर घुमाता घुमाता नाभि के आस पास ले गया, प्रिया के शरीर में रह रह कर कंपन की लहरें उठ रही थी।

जैसे ही मेरा हाथ प्रिया के नाईट सूट के लोअर के नाड़े को टच हुआ, प्रिया ने अपने दाएं हाथ से मेरा हाथ पकड़ लिया और मजबूती से मेरा हाथ ऊपर को खींचने लगी।मैंने जैसे-तैसे अपना हाथ छुड़ाया और फिर से दोबारा जैसे ही प्रिया के नाईट सूट के लोअर के नाड़े को छूआ, प्रिया की फिर वापिस वही प्रतिक्रिया हुई, उसने मजबूती से मेरा हाथ पकड़ कर वापिस ऊपर खींच लिया।

ऐसा लगता था कि प्रिया मुझे किसी कीमत पर अपना लोअर खोलने नहीं देगी।मजबूरी थी… प्यार था, लड़ाई नहीं जो जोर जबरदस्ती करते, जो करना था खामोशी से और आपसी समझ बूझ से ही करना था।

मैंने प्रिया का हाथ उठा कर वापिस अपने लिंग पर रख दिया और अब की बार अपना हाथ चादर के अंदर पर उसके नाईट सूट के सूती लोअर बाहर से ही प्रिया की बाईं जांघ कर रख दिया प्रिया के शरीर में कंपन की लहर उठी और अब मैं प्रिया की जांघ सहलाते सहलाते अपना हाथ जांघ अंदर को और ऊपर की ओर ले जाने लगा।

मेरी स्कीम काम कर गई, आनन्द स्वरूप प्रिया के मुंह से हल्की-हल्की सिसकारी निकलने लगी ‘उम्म्ह… अहह… हय… याह…’ उसका हाथ जोर-जोर से मेरे लिंग पर ऊपर-नीचे चलने लगा।प्रिया की बाईं जांघ पर स्मूथ चलती मेरी उंगलियों ने अचानक महसूस किया कि उंगलियों और रेशमी जांघ के बीच में कोई मोटा सा कपड़ा आ गया हो।

मैं समझ गया कि यह प्रिया की पेंटी थी। धीरे धीरे मैं जाँघों के ऊपरी जोड़ की ओर बढ़ा।उफ़! एकदम गर्म और सीली सी जगह… मैंने वहां अपना हाथ रोक कर अपनी उंगलियों से सितार सी बजाई।फ़ौरन ही प्रिया ने मेरे लिंग को इतने जोर से दबाया कि पूछो मत!

मैंने नाईट सूट के सूती लोअर के बाहर से ही प्रिया की पेंटी को साइड से ऊपर उठाया और नाईट सूट के कपडे समेत अपनी चारों उंगलियां प्रिया की पेंटी के अंदर डाल दी। मेरे हाथ के नीचे जन्नत थी पर मुझे इस जन्नत पर कुछ जटाजूट सा कुछ महसूस होता। शायद प्रिया अपने गुप्तांगों के बाल नहीं काटती थी।

मैं कुछ देर अपनी उंगलियों से सितार बजाने जैसी हरकत करता रहा और इधर प्रिया मेरे लिंग को मथती जा रही थी।अचानक ही मैंने अपना दायां हाथ प्रिया की योनि से उठाया और फुर्ती से प्रिया के नाईट सूट के लोअर का नाड़ा खोल कर अपना हाथ प्रिया की पेंटी के अंदर से प्रिया की बालों भरी योनि पर रख दिया।

प्रिय ने फ़ौरन अपना दायां हाथ मेरे हाथ पर रखा और मेरा हाथ अपनी योनि से उठाने की कोशिश करने लगी लेकिन अब तो बाज़ी बीत चुकी थी, अब मैं कैसे हाथ उठाने देता।मैंने सख्ती से अपना हाथ प्रिया की योनि पर टिकाये रखा और साथ साथ अपनी बीच वाली उंगली योनि की दरार पर ऊपर से नीचे, नीचे से ऊपर फिराता रहा।
कुछ ही देर बाद प्रिया ने मेरे उस हाथ की पुश्त पर जिससे मैं उसकी योनि का जुग़राफ़िया नाप रहा था, एक हल्की सी चपत मारी और अपना हाथ उठा कर परे करके जैसे मुझे खुल कर खेलने की परमीशन दे दी।
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#3
प्रिया की योनि से बेशुमार काम-रस बह रहा था, उसकी पूरी पेंटी भीग चुकी थी। मैंने योनि की दरार पर उंगली फेरते फेरते अपनी बीच वाली उंगली से प्रिया की योनि के भगनासा को सहलाया, प्रिया ने जल्दी से अपनी दोनों जाँघें जोर से अंदर को भींच ली।मैंने वही उंगली प्रिया की योनि में जरा नीचे अंदर को दबाई तो प्रिया के मुंह से ‘उफ़्फ़’ निकल गया।

प्रिया शतप्रतिशत कंवारी थी, लगता था कि प्रिया ने कभी हस्तमैथुन भी नहीं किया था।
तभी मुझे अपनी बाईं ओर हल्की सी हलचल और कपड़ों की सरसराहट का अहसास हुआ, मैंने तत्काल अपना हाथ प्रिया की योनि पर से खींचा और प्रिया से जरा सा उरली तरफ सरक कर गहरी नींद में सोने के जैसी ऐक्टिंग करने लगा।
मिंची आँखों से देखा तो सुधा बाथरूम जाने के लिए उठ रही थी।
जैसे ही सुधा बाथरूम में घुसी मैंने फ़ौरन अपने कपड़े ठीक किये और फुसफुसाती आवाज़ में प्रिया को भी अपने कपड़े ठीक करने को कह दिया।सब कुछ ठीक ठाक करने के बाद हम दोनों ऐसे अलग अलग लेट गए जैसे गहरी नींद में हों।बाथरूम से बाहर आ कर सुधा ने AC का टेम्प्रेचर बढ़ाया और वापिस बिस्तर पर आकर मुझे पीछे से आलिंगन में ले लिया।बाल बाल बचे थे हम!मुझे बहुत देर बाद नींद आई।

अगले दिन शनिवार था और शनिवार के बाद इतवार की छुट्टी थी।शाम को लगभग 4 बज़े A.C वाले का फ़ोन आया कि A.C ठीक हो गया था और वो पूछ रहा था कि कब अपने आदमी मेरे घर भेजे ताकि A.C वापिस फ़िट किया जा सके।मैंने उसे इतवार शाम को आकर A.C फिट करने को बोला।
अब मेरे पास केवल एक ही रात थी जिसमें मैंने कुछ कर गुज़रना था और मैं रात को सबकुछ कर गुज़रने को दृढ़प्रतिज्ञ था। शाम को मैंने अपने परिचित कैमिस्ट से गहरी नींद आने की गोलियों की एक स्ट्रिप ली और आईसक्रीम की दूकान से एक ब्रिक बटरस्काच आईसक्रीम ले कर घर आया।सुधा को बटरस्काच आईसक्रीम बहुत पसंद थी।
चार गोलियां पीस कर में पुड़ी में अपने पास रख ली।
अगली रात डिनर के टाइम डिनर टेबल पर प्रिया डिनर सर्व कर रही थी, आमतौर पर सुधा डिनर सर्व करती थी लेकिन उस दिन प्रिया डिनर सर्व कर रही थी, आते-जाते बहाने बहाने से मुझे यहां वहां छू रही थी।

डिनर हुआ, आईस क्रीम मैंने खुद सबको सर्व की। बच्चों की और सुधा वाली प्लेट में मैंने वो पीसी हुईं नींद की गोलियां मिला दी। सब ने आईसक्रीम खाई और करीब 9:30 बजे मैं एक दोहरी मनस्थिति में अपने बैडरूम में आ गया।नींद की गोलियों का असर सुधा पर एक से डेढ़ घंटे बाद होना था।ब्रश करने के बाद मैंने हस्तमैथुन किया और अपना अंडरवियर पहने बिना ही पजामा पहन लिया और एक नावेल लेकर वापिस अपने बिस्तर पर आ जमा। मैं अपने बिस्तर पर दो तकियों के साथ पीठ टिका कर, पेट तक चादर ले कर ओढ़ कर और घुटने मोड़ कर नॉवल पढ़ने लगा।
सब काम निपटा कर, करीब सवा दस बजे प्रिया और सुधा दोनों बैडरूम में आईं। तब तक बैडरूम में चलते A.C की बड़ी सुखद सी ठंडक फ़ैल चुकी थी।आते सुधा बोली- आज तो मैं बहुत थक सी गई हूँ, बहुत नींद आ रही है!‘मुझे भी!’ प्रिया ने भी हामी भरी।
‘तो सो जाओ, किसने रोका है।’ मैंने कहा।‘और आप?’ सुधा ने पूछा।‘मैं थोड़ा पढ़ कर सोऊंगा, मुझे अभी नींद नहीं आ रही है।’ मैंने कहा।‘ठीक है… पर आप ट्यूब लाइट बंद करके टेबललैम्प जला लें!’ सुधा ने मुझ से कहा।
मैंने सिरहाने फिक्स टेबल-लैम्प जला कर ट्यूब लाइट बंद कर दी।
अब स्थिति यूं थी कि मेरे सर के ऊपर थोड़ा बाएं तरफ टेबल-लैम्प जल रहा था और प्रिया मेरे दाईं तरफ क़दरतन अंधेरे में थी और मेरे दाईं ओर से, मतलब सुधा की ओर से प्रिया को साफ़ साफ़ देख पाना मुश्किल था क्योंकि बीच में मैं था और प्रिया मेरी परछाई में थी।बीस-पच्चीस मिनट बिना किसी हरकत के बीते। वैसे तो मेरी नज़र नॉवेल के पन्नों पर थी लेकिन दिमाग प्रिया की ओर था।कनखियों से प्रिया की ओर देखा तो पाया कि प्रिया बाईं करवट लेटी हुई मेरी ओर ही देख रही थी।
फिर प्रिया ने आँखों ही आँखों में मुझे लाइट बंद करने का इशारा किया लेकिन मैंने उसे अभी रुक जाने का इशारा किया। जबाब में प्रिया ने मुझे ठेंगा दिखा कर मुंह बिचकाया, ऊपर चादर ले कर उलटी तरफ करवट ली और मेरी तरफ पीठ कर के लेट गई।
मुझे हंसी आ गई और मैंने हाथ बढ़ा कर प्रिया का कंधा छूआ तो उसने मेरा हाथ झटक दिया। मैंने दोबारा वही हाथ उस की कमर पर रखा तो प्रिया ने दुबारा मेरा हाथ अपनी कमर से झटक दिया।लड़की सचमुच रूठ गई थी।
अब के मैंने अपना हाथ हौले से प्रिया के ऊपर वाले नितम्ब पर रख दिया, इस बार प्रिया ने मेरा हाथ नहीं झटका। मैं धीरे-धीरे कोमलता से प्रिया का पूरा नितम्ब सहलाने लगा।
अचानक मुझे महसूस हुआ कि आज प्रिया ने लोअर के नीचे पैंटी नहीं पहन रखी थी। वही हाथ प्रिया की पीठ पर फिराने से पता चला कि ब्रा भी नदारद थी। इन सब का सामूहिक मतलब तो ये था कि मेरी प्रेयसी अभिसार के लिए आज पूरी तरह से तैयार थी।ऐसा सोचते ही मेरा लिंग अपनी पूरी भयंकरता के साथ मेरे पजामे में फुंफ़कारने लगा।
अपना वही हाथ प्रिया के कंधे तक ला कर मैंने प्रिया का कंधा हलके से अपनी ओर खींचा तो प्रिया सीधी हो कर लेट गई और आँख के इशारे से मुझे टेबल-लैम्प बुझाने को कहा।
मैंने पहले सुधा की ओर घूम कर देखा, अपना चेहरा परली तरफ घुमा कर हल्क़े से कंबल में चित लेटी सुधा गहरी निद्रा में थी। मैंने हाथ बढ़ा कर टेबल लैम्प बंद किया और अंधेरा होते ही झुक कर प्रिया के होंठों पर होंठ रख दिए।प्रिया ने फ़ौरन अपनी बाजुएं मेरे गले में डाल दी और बड़ी शिद्दत से मेरे होंठ चूसने लगी।
थोड़ी देर बाद मैं सीधा हुआ और फ़ौरन दोबारा प्रिया की ओर झुक कर मैंने प्रिया के माथे पर, आँखों पर, गालों पर, नाक पर, गर्दन पर, गर्दन के नीचे, सैंकड़ों चुम्बन जड़ दिए।प्रिया के दाएं कान की लौ चुभलाते समय मैं प्रिया के मुंह से, आनंद के मारे निकलने वाली ‘सी…सी… सीई… सीई… सीई… ई…ई…ई’ की सिसकारियाँ साफ़ साफ़ सुन रहा था।

मैंने प्रिया के नाईट सूट के ऊपर के दो बटन खोल दिए और अपना हाथ अंदर सरकाया। रुई के समान नरम और कोमल दो गोलों ने जिन के सिरों पर अलग अलग दो निप्पलों के ताज़ सजे थे, मेरे हाथ की उँगलियों का खड़े होकर स्वागत किया।क्या भावनात्मक क्षण थे!मेरा दिल करे कि दोनों कबूतरों को अपने सीने से लगा कर चुम्बनों से भर दूं, निप्पलों को इतना चूसूं… इतना चूसूं कि प्रिया के मुंह से आहें निकल जाएँ।यूं तो प्रिया के मुंह से आहें तो मेरे उसके उरोजों को छूने से पहले ही निकलना शुरू हो गई थी।

उधर प्रिया का बायां हाथ मेरे पाजामे के ऊपर से ही मेरा लिंग ढूंढ रहा था। प्रिया ने मेरे पजामे का कपड़ा खींच कर मुझे मेरे लिंग को पजामे की कैद से छुड़ाने का इशारा किया, मैंने तत्क्षण अपना पजामा अपनी जाँघों तक नीचे खींच लिया।

प्रिया ने बेसब्री से मेरे तपते, कड़े-खड़े लिंग को अपने हाथ में लिया और उसके शिश्नमुण्ड पर अपनी उंगलियां फेरने लगी।मेरे लिंग से उत्तेजनावश बहुत प्री-कम निकल रहा था और उससे प्रिया का सारा हाथ सन गया।

अचानक प्रिया ने वही हाथ अपने मुंह की ओर किया और अपने हाथ की मेरे प्री-कम से सनी उंगलियां अपने मुंह में डाल कर चूसने लगी।

मैंने तभी प्रिया के नाईट सूट के बाकी बटन भी खोल दिए और उसकी इनर उठा कर दोनों उरोज़ नग्न कर के अपनी जीभ से यहां-वहां चाटने लगा।इससे प्रिया बिस्तर पर मछली की तरह तड़फने लगी, प्रिया जोर जोर से मेरा लिंग हिला दबा रही थी और मैं प्रिया के उरोजों का, निप्पलों का स्वाद चेक कर रहा था।

प्रिया पर झुके झुके मैंने अपना बायाँ हाथ प्रिया के पेट की ओर बढ़ाया, नाभि पर एक-आध मिनट हाथ की उंगलियां गोल गोल घुमाने के बाद अपना हाथ नीचे की ओर बढ़ा कर हौले से प्रिया के नाईट सूट का नाड़ा खोल दिया।सरप्राइज ! आज प्रिया ने मुझे ऐसा करने से नहीं रोका।

मैंने जैसे ही अपना हाथ और नीचे करके प्रिया की पेंटी विहीन योनि पर रखा, एक और आश्चर्य मेरा इंतज़ार कर रहा था, आज प्रिया की योनि एकदम साफ़-सुथरी और चिकनी थी, योनि पर बालों का दूर दूर तक कोई निशान नहीं था, लगता था कि प्रिया ने शाम को ही योनि के बाल साफ़ किये थे।छोटी सी योनि ज्यादा से ज्यादा साढ़े चार से पांच इन्च की जिस पर ढाई इंच से तीन इंच की दरार थी, दरार के ऊपर वाले सिरे पर छोटे मटर के साइज़ का भगनासा और प्रिया की योनि रस से इतनी सराबोर कि दरार में से रस बह-बह जांघों की अंदर वाली साइडों को भिगो रहा था।

मैंने अपने हाथ की बीच वाली उंगली दरार पर ऊपर से नीचे और फिर नीचे से ऊपर फेरनी शुरू की, प्रिया के शरीर में रह रह कर काम तरंगें उठ रही थी जो मैं स्पष्टत: महसूस कर रहा था।

इधर प्रिया मेरे लिंग का भुरता बनाने पर तुली हुई थी, जोर जोर से लिंग दबा रही थी, चुटकियां काट रही थी और लिंग के शिश्नमुण्ड को अपनी उँगलियों में दबा दबा कर रस निकालने की कोशिश कर रही थी और बदले में मैं प्रिया के दोनों उरोज़ चूम रहा था, यहाँ-वहाँ चाट रहा था, निप्पल्स चूस रहा था।

निःसंदेह, हम दोनों जन्नत में थे।

प्रिया की योनि पर अपनी उंगलियां चलाते-चलाते मैंने अपने हाथ की बीच वाली उ।गली दरार में घुसा दी और अंगूठे और पहली उ।बगली से प्रिय का भगनासा हल्का हल्का मींजने लगा।इस पर प्रिया ने उत्तेज़नावश अपनी दोनों टाँगें और चौड़ी कर दी ताकि मेरी बीच वाली उंगली थोड़ी और योनि में प्रवेश पा सके।

मुझे पता था कि प्रिया पूर्णतः कँवारी थी और मेरे पास ज्यादा टाइम नहीं था, बस इक वही रात थी और जिंदगी में दोबारा ऐसी रात आनी मुश्किल थी। मैंने प्रिया की योनि में धँसी अपनी उंगली को योनि के अंदर ही गोल गोल घुमाना शुरू कर दिया।

इस का नतीजा फ़ौरन सामने आया, प्रिया बार बार रिदम में अपने नितम्ब बिस्तर से ऐसे ऊपर उठाने लगी जैसे चाहती हो कि मेरी पूरी उंगली उसकी योनि के अंदर चली जाए।

प्रिया की योनि से बेशुमार रस बह रहा था। मेरे लिंग पर उस की पकड़ और मज़बूत हो गई थी। मैं अपनी उंगली को हर गोल घेरे के बाद थोड़ा और अंदर की ओर धँसा देता था।

धीरे धीरे गोल गोल घूमती मेरी करीब पूरी उंगली प्रिया की योनि में उतर गई।अब मैंने अपनी उंगली को बाहर निकाला और बीच वाली और तर्जनी उंगली को भी योनि में गोल गोल घुमाते घुमाते डालना शुरू कर दिया।

रस से सरोबार प्रिया की योनि में मेरी दोनों उंगलियां प्रविष्ट हो गई।अब ठीक था, अपनी प्रेयसी को प्रेम-जीवन के और इस सृष्टि के एक अनुपम और गृहतम रहस्य से परिचित करवाने कासमय आ गया था।

मैंने टाइम देखा, सवा बारह बज रहे थे, मतलब कि नींद की गोलियों का जादू पूरी तरह सुधा पर चल चुका था और अब मेरे लिए ‘वन्स इन आ लाइफ टाइम’ जैसा मौका था।मैं बिस्तर से उठ खड़ा हुआ और पहले अपना पजामा संभाला। परली तरफ जाकर, इससे पहले प्रिया कुछ समझ पाती, प्रिया को अपनी गोद में उठा कर और अपने से लिपटा कर बाहर ड्राइंग रूम में आ गया।
ड्राइंग रूम में सड़क से थोड़ी सी स्ट्रीट लाइट आ रही थी और वहाँ बैडरूम के जैसा घुप्प अन्धेरा नहीं था।नीम अँधेरे में प्रिया मेरी बाहों में छटपटा रही थी- मैं नहीं… मैं नहीं… मौसी उठ जायेगी… मैं बदनाम हो जाऊँगी, आप मुझे कहीं का नहीं छोड़ोगे!ऐसे ऊटपटाँग बोल रही थी।
बाहर आते ही मैंने अपने बैडरूम का दरवाज़ा और बच्चों के कमरे का दरवाज़ा बाहर से लॉक किया और प्रिया को बताया कि मौसी नहीं उठेंगी क्योंकि मौसी आज नींद में नहीं नशे में है।फिर मैंने उसको नींद की गोलियों वाली बात बताई तो प्रिया आश्वस्त हुई।

मैंने प्रिया को बाहों में लेकर उसके तपते होठों पर होंठ रख दिए। अब प्रिया भी दुगने जोशो-खरोश से मेरा साथ देने लगी। मैं प्रिया का निचला होंठ चूस रहा था और प्रिया मेरा ऊपर वाला होंठ चूस रही थी।कभी मैं प्रिया की जुबान अपने मुंह में पा कर चूसता और कभी मेरी जीभ प्रिया के मुंह के अंदर प्रिय के दांत गिनती।

मेरे दोनों हाथ प्रिया के जिस्म की चोटियों और घाटियों का जायज़ा ले रहे थे, प्रिया का एक हाथ मेरे लिंग के साथ अठखेलियां कर रहा था और दूसरा हाथ मेरी गर्दन के साथ लिपटा था और प्रिया खुद मेरे साथ लिपटी हुई पूरी हवा में झूल रही थी।

ऐसे ही प्रिया को अपने साथ लिपटाये लिपटाये चलते हुये मैंने ड्राइंग रूम में बिछे दीवान के पास उस को खड़ा कर दिया और खुद प्रिया का नाईट सूट उतारने लगा।प्रिया ने रस्मी सा प्रतिरोध किया तो सही पर मैं माना ही नहीं… पलों में मैंने प्रिया के नाईट सूट के साथ साथ नीचे पहनी इनर भी उतार दी और अगले ही पल मैंने अपने कपड़ों को भी तिलांजलि दे दी और प्रिया की ओर मुड़ा।

वस्त्रविहीन खड़ी प्रिया कभी अपनी नग्नता छुपाने की, कभी दिखाने की कोशिश करती, कोई खजुराहो का दिलकश मुज्जस्मा लग रही थी। प्रिया के अनावृत दो उरोज़ और उन पर तन कर खड़े दो निप्पल जैसे पूरे संसार को चुनौती दे रहे थे कि ‘है कोई… जो हमें झुका सके?’



मेरा मन भावनाओं से भर आया, मैंने प्रिया को जोर से अपने आलिंगन में कस लिया और बदले में प्रिया ने दुगने जोर से मुझे अपने आलिंगन में कस लिया।प्रिया के दोनों उरोज़ मेरे सीने में धँसे हुए से थे। मैं प्रिया के दिल की धड़कनें साफ़ साफ़ अपने सीने में धड़कती महसूस कर रहा था। वक़्त का पहिया चलते-चलते अचानक थम सा गया था, उस वक़्त मैं… सिर्फ मैं था, ना कोई पति… ना पिता, सिर्फ मैं!

मेरी दोनों बाजुयें सख़्ती से प्रिया को लपेटे हुए प्रिया की पीठ पर जमी थीं। मैं अपना एक हाथ प्रिया की पीठ पर ऊपर नीचे फिरा रहा था कंधों से लेकर नितंबों के नीचे तक!कभी कभी मेरी उंगलियां नितंबों की दरार के साथ साथ नीचे… गहरे नीचे उतर जाती, बिल्कुल योनि-द्वार तक!

प्रिया की योनि से कामरस का अविरल प्रवाह जारी था जिससे मेरा हाथ सना जा रहा था लेकिन उस अलौकिक आनन्द को पाते रहने में मुझे प्रिया की योनि-द्वार तक अपने हाथों की गर्दिश कयामत के दिन तक मंज़ूर थी।

थोड़ी देर बाद मैंने बहुत प्यार से प्रिया को आलिंगन में लिए लिए, दीवान पर लेटा दिया और प्रिया के निप्पलों को अपने मुंह में लेकर कर खुद प्रिया के ऊपर झुक सा गया, उसके मुंह से सिसकारियां अपने चरम पर थी।

अचानक प्रिया ने अपना एक हाथ नीचे कर के मेरा लिंग अपने हाथ थाम लिया और जोर जोर से अपनी ओर खींचने लगी।

आज़माइश की घड़ी पास आती जा रही थी, बतौर प्रेमी, मेरे कौशल का इम्तिहान बहुत सख़्त था, मुझे ना सिर्फ बिना कोई हल्ला किये एक सफल अभिसार करना था, बल्कि अपनी कँवारी प्रेमिका को बिना कोई ठेस लगाए अपने प्यार का एहसास भी करवाना था।बगल वाले कमरे में मेरी पत्नी सो रही थी और किसी किस्म का हल्ला-गुल्ला उसकी नींद उचाट कर सकता था।

काम मुश्किल था… पर मुझे करना ही था… हर हाल में करना था और अभी करना था।

मैंने प्रिया को जरा सा सीधा किया और घुटनों के बल बैठ कर प्रिया की दोनों टांगों के बीच में आ गया, अपना लिंग मैंने अपने दाएं हाथ में लेकर प्रिया की योनि की दरार पर रख कर थोड़ा अंदर की ओर दबाते हुए ऊपर नीचे फिराना शुरू कर दिया। प्रिया के मुंह से आहें, कराहें क्रमशः तेज़ और ऊँची होती जा रही थी और उसके शरीर में रह रह कर उत्तेजना की लहरें उठ रही थी।

जैसे ही मेरे लिंग का शिश्नमुंड प्रिया की योनि की दरार के ऊपर भगनासा को दबाता, प्रिया के शरीर में मदन-तरंग उठती जिसका कम्पन मैं स्पष्टत: महसूस कर रहा था।प्रिया की योनि से कामरस अविरल बह रहा था, प्रिया रह-रह कर मुझे अपने ऊपर खींच रही थी जिससे यह बात साफ़ थी कि गर्म लोहे पर चोट करने का वक़्त आ गया था पर मैं कोई रिस्क नहीं ले सकता था।



अचानक मेरे लिंग का शिश्नमुंड प्रिया की योनि के मध्य भाग से जरा सा नीचे जैसे किसी नीची सी जगह में अटक गया और तभी प्रिया के शरीर में भी जोर से इक झुरझुरी सी उठी, जन्नत का मेहमान जन्नत की दहलीज़ पर ख़डा था, मैंने अपना लिंग प्रिया की योनि में वहीं टिका छोड़ दिया और ख़ुद प्रिया के ऊपर सीधा लेट गया।
मैंने प्रिया का निचला होंठ अपने होंठों में लिया और हौले हौले उस को चुभलाने लगा। प्रिया ने प्रतिक्रिया स्वरूप अपनी दोनों टांगें हवा में उठाईं और मेरी क़मर पर कैंची सी मार कर अपने पैरों से मेरी क़मर नीचे की ओर दबाने लगी।अभी मेरा शिश्नमुंड भी पूरा प्रिया की योनि के अंदर नहीं गया था और लड़की मेरे लिंग को और अपनी योनि के अंदर लेने को उतावली हो रही थी।
मैंने अपने लिंग पर हल्का सा दबाव बढ़ाया, अब मेरे लिंग का शिश्नमुंड पूरा प्रिया की योनि के अंदर था.

‘आ… ई…ई…ई… ई…ई…ईईईई!!!’ प्रिया के मुंह से आनन्द स्वरूप निकल रही सीत्कारों में पीड़ा का जरा सा समावेश हो गया. मुझे इस का पहले से ही अंदाज़ा था, मैंने फ़ौरन अपने लिंग पर दबाब डालना बंद कर दिया और यहीं से शिश्नमुंड वापिस खींच कर हौले से प्रिया की योनि में वापिस यही तक दोबारा ले जा कर फिर वापिस खींच लिया.

ऐसा मैंने तीन चार बार किया, प्रिया पर इसकी तत्काल प्रतिक्रिया हुई, पांचवी बार जैसे ही मैंने अपना लिंग प्रिया की योनि से बाहर निकाला, प्रिया ने मेरी पीठ पर अपनी टांगों की कैंची तत्काल पूरी ताक़त से अपनी ओर खींची, परिणाम स्वरूप मैं भी प्रिया की ओर जोर से खिंचा और मेरा लिंग भी प्रिया की योनि में ढाई से तीन इंच और गहरा चला गया.

‘सी…ई…ई…ई… आह…!’ प्रिया के मुख से आनन्द और पीड़ा भरी मिली-जुली सिस्कारी निकल गई..

प्रिया की योनि एकदम कसी हुई और अंदर से जैसे धधक रही थी, मुझे ऐसा लग रहा था कि मेरा लिंग जैसे किसी नर्म गर्म संडासी में फंसा हुआ हो. ऐसा लगता था कि योनि की उष्मा शनैः शनैः मेरे लिंग को पिंघला कर ही मानेगी तो विरोध स्वरूप मेरा लिंग भी बृहत्तर से बृहत्तर आकार लेने लगा.

योनि और लिंग के स्राव मिल कर खूब चिकनाहट पैदा कर रहे थे और योनि में लिंग का आवागमन थोड़ा सा सुगम होता जा रहा था लेकिन अभी मैं अपने लिंग को प्रिया की योनि के और ज्यादा अंदर प्रवेश करवाने से परहेज़ कर रहा था, आराम-आराम से अपने लिंग को प्रिया की योनि से बाहर खींच कर, फिर जहां था वहीं तक दोबारा ठेल रहा था.

अब प्रिया भी इस रिदम का लुत्फ़ अपने नितम्ब उठा-उठा कर ले रही थी, ऐसे करते करते दस मिनट हो चुके थे और प्रिया आँखें बंद कर के अभिसार का सम्पूर्ण आनन्द ले रही थी, लेकिन अभी कहानी आधी ही हुई थी, समय आ गया था कि इस अभिसार को सम्पूर्णता की ओर अग्रसर किया जाए.

प्रेमपूर्वक किये जा रहे अभिसार का सबसे मुश्किल क्षण आने को था, यह वो क्षण होता है जब एक पुरुष, पूर्ण-पुरुष की उपाधि पाता है और एक स्त्री, सुहागिन की पदवी पाती है. इसी क्षण से आगे चल कर स्त्री, एक जननी बनती है, एक माँ बनती है और एक नई सृष्टि रचती है.

इस पल में पुरुष अपनी प्रेयसी के साथ प्यार के साथ साथ थोड़ी सी क्रूरता से पेश आता है, वही क्रूरता दिखाने का पल आ पहुंचा था. मैंने प्रिया के बाएं उरोज़ के निप्पल को मुंह में लिया और उसे चुभलाने लगा, प्रिया के गर्म शरीर का उत्ताप फिर से बढ़ने लगा और उन्माद में प्रिया बिस्तर पर जल बिन मछली की तरह तड़पने लगी.

मैंने प्रिया का सर अपने दोनों हाथों से दाएं-बाएं से दबा कर, प्रिया के उरोज़ के निप्पल से मुंह उठाया और प्रिया के दोनों होठों को अपने होठों में दबा लिया और लगा चूसने!

अगले ही पल मैंने अपना लिंग प्रिया की योनि से बाहर निकाल कर पूरी शक्ति से वापिस प्रिया की योनि में उतार दिया. अगर मैंने प्रिया के दोनों होंठ अपने होंठों से बंद नहीं कर दिए होते तो यकीनन प्रिया की चीख सड़क के परले सिरे तक सुनाई दी होती.

तत्काल प्रिया के दोनों हाथों ने दीवान की चादर पकड़ कर गुच्छा-मुच्छा कर डाली और अपने पैरों से मुझे पर धकेलने की असफल कोशिश करने लगी. प्रिया की आँखों से आंसुओं की धारें फ़ूट पड़ी पर अब तो जो होना था सो हो चुका था.अब प्रिया कुंवारी नहीं रही थी.

मैं प्रिया के ऊपर औंधा पड़ा धीरे धीरे प्रिया के सर को सहला रहा था, उसके आंसू अपने होंठों से बीन रहा था.धीरे-धीरे प्रिया का रोना कम होता गया और मैंने हौले हौले अपनी क़मर को हरकत देना प्रारंभ किया, चार-छह धक्कों के बाद, अचानक प्रिया के शरीर में वही जानी पहचानी कम्पन की लहर उठी.

दो पल बाद ही प्रिया का शरीर इस रिदम का जवाब देने लगा. लिंग को प्रिया की योनि से बाहर खींचने की क्रिया के साथ साथ ही प्रिया अपने नितम्ब नीचे को खींच लेती और जैसे ही लिंग योनि में दोबारा प्रवेश पाने को होता तो प्रिया शक्ति के साथ अपने नितंब ऊपर को करती, परिणाम स्वरूप एक ठप्प की आवाज के साथ मेरा लिंग प्रिया की योनि के अंतिम छोर तक जाता.

प्रिया के मुख से ‘आह…आई… ओह… मर गई… हा… उफ़… उम्म्ह… अहह… हय… याह… हाय… सी… ई…ई’ की आधी-अधूरी सी मज़े वाली सिसकारियां अविरल निकल रही थी और मैं बेसाख्ता प्रिया को यहाँ-वहाँ चूम रहा था, चाट रहा था माथे पर, आँखों पर, गालों पर, नाक पर, गर्दन पर, गर्दन के नीचे, कंधो पर, उरोजों पर, निप्पलों पर, उरोजों के बीच की जगह पर!

हमारा अभिसार अपनी अधिकतम गति पर था, अचानक प्रिया का शरीर अकड़ने लगा, प्रिया ने अपने दांत मेरे बाएं कंधे पर गड़ा दिए, मेरी पीठ पर प्रिया के तीखे नाख़ून पच्चीकारी करने की कोशिश करने लगे.

ये लक्षण मेरे जाने पहचाने थे, मैं तत्काल अपनी कोहनियों के बल 

हुआ और प्रिया के दोनों हाथ अपने हाथों में जकड़ कर बिस्तर पर लगा दिए और अपनी कमर तीव्रतम गति से चलाने लगा, साथ साथ मैं कभी प्रिया के होठों पर चुम्बन जड़ रहा था, कभी उसके निप्पलों पर, कभी उसकी आँखों पर!

अचानक प्रिया का सारा शरीर कांपने लगा और प्रिया की योनि में जैसे विस्फोट हुआ और प्रिया की योनि से जैसे स्राव का झरना फूट पड़ा. प्रिया जिंदगी में पहली बार सम्भोगरत हो कर स्खलित हो रही थी और प्रिया की योनि की मांसपेशियों ने संकुचित होकर मेरे लिंग को जैसे निचोड़ना शुरू कर दिया.

प्रतिक्रिया स्वरूप मेरा लिंग और ज्यादा फूलना शुरू हो गया, इसका नतीजा यह निकला कि मेरे लिंग के लिए संकरी योनि में रास्ता और भी ज्यादा संकरा हो गया और मेरे लिंग पर प्रिया की योनि की अंदरूनी दीवारों की रगड़ पहले से भी ज्यादा लगने लगी.

करीब एक मिनिट बाद ही जैसे ही मैंने पूरी शक्ति से अपना लिंग प्रिया की योनि में अंदर तक डाला मेरे अंडकोषों में एक जबरदस्त तनाव पैदा हुआ और मेरे लिंग ने पूरी ताक़त से वीर्य की पिचकारी प्रिया की योनि के आखिरी सिरे पर मारी फिर एक और.. एक और… एक और… एक और… मेरे गर्म वीर्य की बौछार!अपनी योनि में महसूस कर के अब तक निढाल और करीब-करीब बेहोश पड़ी प्रिया जैसे चौंक कर उठी और उसने मुझसे अपने हाथ छुड़ा कर जोर से मुझे आलिंगन में ले लिया और मुझे यहाँ-वहाँ चूमने लगी.

एक भँवरे ने एक कली को फूल बना दिया था, एक लड़की, एक औरत बन चुकी थी, 




एक सफल अभिसार का समापन हो चुका था.
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#4
प्रिया के और मेरे उस रात के सपने जैसे प्रेमालाप के बाद हमें दोबारा कोई ऐसा मौका ही नहीं मिला और सच मानिये कि मैंने दोबारा ऐसी कोई कोशिश ही नहीं की.प्रिया के मन की तो प्रिया ही जाने लेकिन मैं भली-भांति जानता हूँ कि असली ख़ुशी ऐसे शाश्वत आनन्ददायक पलों को याद करने में ही होती है और अगर कोई उन सपनीले क्षणों को ज़बरदस्ती दोहराना चाहे तो गहरी मायूसी ही हाथ लगती है.

यूँ भी एक अकथनीय सा अपराधबोध मेरे मन में था. मैं तो प्रिया से आँख मिलाने में भी झिझकने लगा था. वैसे भी उस रात के बाद, प्रिया का और हमारे परिवार का साथ भी थोड़ा ही रहा. कुछ दिनों बाद प्रिया के कॉलेज खुल गए और प्रिया को हॉस्टल भी मिल गया, तो प्रिया हमारे घर से चली गयी.
कालान्तर में प्रिया कभी-कभार आ भी जाती थी मिलने लेकिन वो मिलना एक-आध घंटे का ही होता था जिस में सारा परिवार शामिल रहता. कोई किसी किस्म की शरारत नहीं, कोई चुहलबाज़ी नहीं. कभी कभी मेरी और प्रिया की नज़र मिल भी जाती तो क्षण भर के लिए… प्रिया की कजरारी आँखों में एक बिल्लौरी चमक और होंठों पर एक गुप्त सी ‘मोनालिसा मुस्कान’ आ कर गुम हो जाती जिसे सिर्फ मैं ही भांप पाता.प्रिया जैसी प्रियतमा से प्रेमालाप जैसे जैकपॉट जिंदगी में एक आध बार ही लगते हैं, यह सच्चाई मैं जानता था.
इधर मेरी अपनी वैवाहिक सैक्स-लाइफ बहुत बढ़िया थी! तो मुझे भी जिंदगी से कोई ख़ास शिक़वा नहीं था. लेकिन कभी कभी अनाम सा एक ख़ालीपन महसूस होता था. एक अरमान… दिल में कभी कभार तरंग के रूप में उठता था कि काश! मैं दिन के उजाले में या रात को लाइट जला कर प्रिया के सम्पूर्ण हुस्न को अपनी आँखों से चूम पाता… एक बार… बस! सिर्फ एक बार… प्रेमालाप के दौरान दोनों के जिस्मों की हर हरकत पर प्रिया की आँखों के भाव देख पाता, उसके बाद चाहे कयामत भी आ जाती तो मुझे रश्क़ ना होता.
लेकिन फिर वही ‘If the wishes were horses… beggars would ride!’तो मैं दिल के अरमान दिल में ही दबा लेता.
जिंदगी अपने ढर्रे पर चल रही थी. प्रिया ने M. Com कर ली और अपने घर लौट गयी. प्रिया के घर का माहौल बड़ा दकियानूसी सा था, अजीब ज़ाहिल लोग थे, औरतों को किसी प्रकार की आज़ादी नहीं थी. यहाँ तक कि लड़की घर से बाहर निकले तो परिवार का कोई ना कोई सदस्य साथ होना चाहिए.घर का छोड़िये… पूरे क़स्बे का माहौल भी सौ साल पुराना था.
पहले की बात और थी… लेकिन अब प्रिया दो साल बड़े शहर में रह कर, बड़े शहर की आज़ादी के रंग ढंग देख कर वापिस गयी थी तो… उस का ऐसी बंदिशों से ऊबना स्वाभाविक ही था. नतीज़न! घर में हल्की-फ़ुल्की बहस बाज़ी और छिट-पुट नाराज़गी के दौर शुरू हो गए थे.पता लगता था तो सुन कर कोफ़्त तो बहुत होती थी लेकिन हम क्या कर सकते थे. आँखिर यह उनके घर का अंदरूनी मसला था. फिर भी, सुन कर दुःख तो होता ही था.
प्रिया के घर वापिस लौट जाने के कोई तीन महीने बाद सुधा से उसकी बहन यानि प्रिया की मां ने फ़ोन पर सुधा को उनके यहाँ आने को कहा, कोई प्रिया की शादी-ब्याह का मसला था. आते इतवार, मैं और सुधा दोनों प्रिया के घर गए.हम से प्रिया के सब घरवाले बहुत खुल कर मिले, ख़ास तौर पर प्रिया.
मैंने नोट किया कि प्रिया का इकहरा शरीर आकर्षक रूप से थोड़ा भर गया था, वक्ष थोड़े ज्यादा सख़्त और ज्यादा उभर आये थे, फ़िगर भी शायद 34-26-34 हो चला था. काली आँखों में चमक और बढ़ गयी थी, प्राकृतिक रूप से गहन गुलाबी होंठ थोड़े और भर गए थे जिस से होंठों का कटाव और कातिल हो गया था. सर के गहरे भूरे बाल ज्यादा सिल्की हो गए थे, साफ़ गेहुंए रंग के जिस्म की रंगत में एक चमक थी और कदम धरते वक़्त पुष्ट जांघों और ठोस नितम्बों में हलकी सी हिलोर उठती थी.
कुदरत ने क़ातिल को तमाम हथियारों से नवाज़ दिया था और किसी ना किसी पर कयामत बरपा हो के रहनी ही थी.
हमारे घर में रहते या कभी हॉस्टल में रहते वक़्त जब प्रिया हमारे घर आती तो ‘मौसा जी! नमस्ते’ कह कर ही इतिश्री कर देती थी लेकिन उस दिन अपने घर में तो प्रिया ‘मौसा जी!’ कह कर मुझ से ज़ोर से लिपट कर मिली. होंठों से होंठ सिर्फ दो इंच दूर थे और बाकी सारा शरीर एक दूसरे से मिला हुआ. मेरी बायाँ हाथ प्रिया की पीठ पर ठीक ब्रा की पट्टी के ऊपर और प्रिया के दोनों हाथ मेरी पीठ पर… प्रिया का दायाँ उरोज़ मेरी छाती में इतनी ज़ोर से गड़ा हुआ था कि मैं स्पष्ट रूप से अपनी छाती पर प्रिया के उरोज़ का सख़्त निप्पल महसूस कर सकता था, प्रिया की दायीं जांघ मेरी दोनों टांगों के बीच थी और चूंकि मैं प्रिया से लंबा था फलस्वरूप मेरा लिंग प्रिया की नाभि की बगल में लग रहा था और मुझे ऐसा लगा कि प्रिया जानबूझ कर अपने पेट से मेरे लिंग को दबाया भी.एक क्षण में मेरे लिंग में ज़बरदस्त तनाव आ गया और मुझे लगा कि प्रिया ने मेरी पीठ पर एक जोर से चिकोटी भी काटी थी शायद!

अलग होते वक़्त प्रिया ने कपड़ों के ऊपर से ही अपने बाएं हाथ से मेरे लिंग को भी टटोला. यह सब कुछ क्षण भर में, सब घर वालों के सामने ही हुआ और किसी को भनक तक नहीं लगी. अलग होते वक़्त प्रिया की आँखों में वही बिल्लौरी चमक और होठों पर वही कातिल मुस्कान थी.मैं थोड़ा बदहवास सा हो चला था… मुझे प्रिया से ऐसी दीदा-दिलेरी की उम्मीद हरगिज़ ना थी. कस्बई लड़की शहर में रह कर सयानी हो चली थी.

मामला यह था कि प्रिया के माँ-बाप ने प्रिया के लिए एक लड़का भी देख रखा था जो आस्ट्रेलिया में था लेकिन प्रिया जिद वश हाँ नहीं कह रही थी. मेरी और सुधा की प्रिया को समझाने की लम्बी कोशिश (जिस में असली मुद्दा तो यह था कि आस्ट्रेलिया जा कर प्रिया अपने मां-बाप की दकियानूसी रोक-टोक से आज़ाद रहेगी और कुछ अपना अपने तौर पर कर पाएगी.) के बाद प्रिया ने अपने माँ-बाप को उस रिश्ते के लिए हाँ कह दी.

शाम को वापिसी में और घर आ कर भी मैं कुछ अजीब सा खालीपन महसूस कर रहा था.‘प्रिया की शादी हो जायेगी… प्रिया ऑस्ट्रेलिया चली जायेगी… फिर जाने प्रिया से मुलाक़ात कब होगी… होगी भी या नहीं… पता नहीं? वक़्त के साथ प्रिया की प्राथमिकतायें बदल जायेंगी और वो परी कथाओं जैसा हमारा मिलन भूली-बिसरी बात हो जायेगी. ओ भगवान! यह कहाँ ला कर पटका मुझे?’मुझे, मेरे जानने वाले बहुत ही प्रैक्टिकल सोच वाला व्यक्ति मानते हैं लेकिन यह सोच तो हरगिज़ प्रैक्टिकल ना थी.

जैसे-तैसे खुद को संभाला मैंने… दुनियावी तौर पर प्रिया पर मेरा किसी किस्म का कोई हक़ ही नहीं बनता था और सब से बड़ी बात यह थी कि मुझे अपना परिवार, अपनी बीवी जान से ज्यादा प्यारे थे. पर मन पर किस का ज़ोर चलता है.

अगले दिन शाम को जब मैं ऑफिस से घर आया तो देखा कि प्रिया की माँ और प्रिया के पिता यानि मेरी साली और साढू भाई घर आये बैठे थे. पूछने पर बताया कि आस्ट्रेलिया वाले लड़के ने आगामी नवंबर में आना है और प्रिया की शादी नवंबर में ही होगी.लेकिन लड़के ने कहा है कि प्रिया को बेसिक कम्प्यूटर कोर्स और अगर हो सके तो C++ का डिप्लोमा जरूर करवा दें. अब उन लोगों का कम्प्यूटर से खुद का नाता तो ईंट और कुत्ते वाला ही था तो वो लोग मेरी शरण में आये थे.

यह सब तो मेरे लिए चुटकी बजाने जैसा आसान काम था क्योंकि शहर के 80% कम्प्यूटर इंस्टिट्यूट मुझ से जुड़े थे. अभी तो अगस्त चढ़ा ही था सो इस फ्रंट पर तो कोई दिक्क़त नहीं थी.उन का इरादा यह था कि प्रिया मेरे सुझाये किसी अच्छे इंस्टिट्यूट में 2-3 घंटे की क्लास अटेण्ड करे और रोज़ घर वापिस लौट जाए पर मैंने उन लोगों को ऐसा समझाया कि C++ लैंग्वेज़ सीखने में बहुत मेहनत और समय चाहिए और समय ही हमारे पास कम है तो अच्छा रहेगा कि प्रिया रोज़ घर आने जाने के चक्कर में ना पड़ कर 3 महीने यहीं शहर में रहे और सीखे.

मुझे पता था कि आम तौर पर कम्प्यूटर इंस्टिट्यूटस का अपना कोई हॉस्टल नहीं होता सो इस नेक काम के लिए मेरा घर तो था ही!

थोड़ी ना-नुकर के बाद प्रिया के मां-बाप ने इस के लिए हाँ कर दी.‘प्रिया आने वाले 3 महीने हमारे घर में रहने वाली है.’ सोच कर ही मेरे लिंग में तनाव आ गया.

अगले ही दिन मैंने एक बहुत नामी कम्प्यूटर इंस्टिट्यूट के मालिक से बात पक्की की जिसने एक-आध दिन पहले ही सुबह 10 से 2 टाइमिंग का नया बैच शुरू किया था और उसी शाम को थोड़ा अँधेरा हुये मैं अपनी कार पर प्रिया को लेने प्रिया के घर जा पहुंचा. चूंकि सुधा ने सब कुछ पहले से ही फ़ोन पर तय कर रखा था तो प्रिया पहले से ही तैयार थी.

प्रिया मोरपंखिया कुर्ते और काली लैगी में कहर ढा रही थी. प्राकृतिक तौर पर लाल होठों पर दिलक़श मुस्कान, बिना दुपट्टे का उन्नत वक्ष, पतला कटि-प्रदेश, सपाट पेट, अर्ध-गोलाई लिए कसे हुये नितम्ब, पुष्ट जाँघें, पारे से थिरकते जिस्म का एक-एक कटाव नुमाया हो रहा था.

प्रिया को इस रूप में देख कर उत्तेजना से मेरा बुरा हाल था.पाठकगण! वैसे तो यह कोई ऐसा छुपा राज़ नहीं… लेकिन फिर भी बता देता हूँ कि इन जनाना लैगियों में नाड़ा नहीं होता, इलास्टिक होता है जिस कारण जल्दी से लैगी उतारना और पहनना बहुत सुविधाजनक होता है और गाहे-बगाहे हाथ अंदर सरका कर स्त्री की योनि से खेलने और भगनासा सहलाने में बहुत सुविधा रहती है.

जल्दी से चाय आदि पी कर मैंने प्रिया को ले कर वापस कार मोड़ी. आने वाले आधा-पौना घण्टा कार में मैं और प्रिया बिलकुल अकेले होंगे, ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था. उत्कंठा के मारे मेरा गला सूख रहा था. क्या करूंगा मैं…??? क्या मैं और प्रिया कार की पिछली सीट पर ही रति-रमण करेंगे या मैं प्रिया को अपनी लैगी और पैंटी नीचे कर के अपनी ओर प्रिया का मुंह कर के अपनी गोद बिठा कर ऊपर से प्रिया के गुलाबी होठों का रस चूसूंगा और नीचे से मेरा लिंग प्रिया का योनि-भेदन करेगा?

‘ना ना! हट… छिः छिः! यह कैसी छिछोरी सोच…?? यह तो वासना है… निकृष्टतम वासना… विकृत वासना का घिनौना रूप…!’ मेरे सोये विवेक ने वापिस अंगड़ाई ली.

‘मैं तो प्रिया से प्यार करता हूँ… चाहे मुझे हक़ नहीं है ऐसा करने का, लेकिन करता हूँ. अपनी प्रियतमा से ऐसे पशुवत व्यवहार की कल्पना भी अपराध है!!! थू… थू… थू!!!’मैं थोड़ा सयंत हुआ और कार के शीशे चढ़ा कर मैंने कार मंथर गति से आगे बढ़ाई.

क़स्बे की हद से निकलते ही मैंने हिम्मत कर के अपना बायाँ हाथ गियर रॉड से उठा कर प्रिया के दायें हाथ पर रखा दिया. तत्काल एक लहर सी प्रिया के रोम रोम से गुज़र गयी जिसे मैंने स्पष्ट महसूस किया. प्रिया ने मेरे हाथ में अपने हाथ की उंगलियाँ कस कर पिरो दी. मैंने एक पल के लिए प्रिया की ओर देखा. सामने से आते किसी वाहन की हैडलाईट के नीम उजाले में प्रिया की कजरारी आँखों में वही बिल्लौरी चमक और गुलाबी होंठों पर वही जानी-पहचानी मोनालिसा मुस्कान दिखी.
हम दोनों एक दूसरे से कुछ बोल तो नहीं रहे थे लेकिन मौन सम्प्रेषण चालू था. प्रिया के शरीर में रह रह कर उत्तेज़ना की तरंग उठ रहीं थी जिन के फलस्वरूप प्रिया का हाथ मेरे हाथ पर कस कस जाता था जिन्हें मैं स्पष्ट महसूस कर रहा था. मैं निःसंदेह जन्नत में था.
दो पल बीते या सदियाँ गुज़र गयी, कुछ पता नहीं. अचानक मेरे कानों में प्रिया की आवाज़ सुनाई दी…“मैंने आप से एक बात करनी है.”“कहो…!”“आप बुरा ना मानना… प्लीज़!”“अरे नहीं… तुम बोलो?” मैंने घूम कर एक नज़र प्रिया की ओर देखा.

नज़र झुकाये, अपने दोनों हाथों में मेरा हाथ थामे, प्रिया ग्रीक की कोई देवी की मूरत सी लग रही थी.“आप मेरे जीवन के प्रथम-पुरुष हैं, मैं मन ही मन आप को पूजती हूँ और मेरे दिल में हमेशा आप की एक ऊंची और ख़ास जगह है और हमेशा रहेगी. इस के साथ ही यह भी सच है कि आप का और मेरा साथ किसी भी सूरत संभव नहीं. मेरी आप से विनती है कि जिसे मैंने अपने मन-मंदिर का देवता माना है वो देवता ही रहे.”“मैं समझा नहीं?” मैंने अनजान बन कर पूछा हालांकि समझ तो मैं गया ही था.



“आप के और मेरे बीच एक बार जो हुआ वो किस्मत थी लेकिन मैं सुधा मौसी को बहुत प्यार करती हूँ और हरगिज़-हरगिज़ नहीं चाहती कि मैं उन के दुःख का कारण बनूँ. इंसान फ़ितरतन लालची है उसे और… और… और चाहिए लेकिन मैं नहीं चाहती कि इस और… और के लालच में ये जन्नत जो आज मेरे पास है, मैं उसे भी खो बैठूं!”“प्रिया! साफ़ साफ़ कहो कि तुम मुझ से चाहती क्या हो?”

“आइंदा क़रीब तीन महीने मुझे फिर से आप के घर में रहना है और मैं चाहती हूँ कि वहाँ घर में आप ना सिर्फ़ सब के सामने बल्कि अकेले में भी सिर्फ मेरे मौसा जी ही बन कर रहें.”

बहुत गहरी बात थी लेकिन बात तो प्रिया ठीक कह रही थी पर उस की इस बात से मेरे अन्तर्मन को गहरी ठेस लगी. शायद नकारे जाने का अहसास था. मेरा हाथ जिस में प्रिया का हाथ कसा हुआ था फ़ौरन ढीला पड़ गया. प्रिया को तत्काल इस का भान हुआ और उस ने मेरा हाथ अपने हाथ में जोरों से कस लिया और मेरा हाथ यहाँ वहाँ चूमने लगी.

अचानक मेरी हथेली के पृष्ठ भाग पर पानी की दो गर्म गर्म बूंदें गिरी. मैंने तत्काल अपना हाथ छुड़ा कर कार साईड में रोकी और प्रिया की ओर मुड़ा, उसकी ठुड्ढी उठा कर देखा तो प्रिया की आँखों से गंगा-जमुना बह रही थी.मेरा दिल भर आया, जैसे ही मैंने उसे खींच कर अपने गले से लगाया तो मानो कोई बाँध ही टूट गया. प्रिया मुझ से कस कर लिपट गयी और ज़ार-ज़ार रोने लगी और मैं अनजाने में ही प्रिया के कपोलों पर से अपने होंठों से उस के आंसू बीनने लगा.

कुछ ही क्षणों के बाद मैं प्रिया के होंठ चूम रहा था और प्रिया मेरे!अचानक प्रिया ने मेरे मुंह में अपनी जुबान धकेल दी और मैं आतुरता से प्रिया की जुबान चूसने लगा, अपनी जीभ से प्रिया की जीभ चाटी, प्रिया के उरोज़ मेरी छाती में धंसे जा रहे थे और मैं दोनों हाथों से प्रिया को आलिंगन में ले कर अपनी ओर खींचे जा रहा था. प्रिया के होंठ चूमें, गालों पर, आँखों पर, माथे पर दर्ज़नों चुम्बन लिए, दोनों कानों की लौ चूसी, कानों के पीछे, गर्दन पर अपनी जीभ फेरी. दोनों उरोजों के बीच की घाटी को चूमा-चाटा पर सब्र कहाँ?

हम लोग बड़ी ही असुविधजनक स्थिति में बैठे थे लेकिन परवाह किस को थी. दोनों की साँसें इतनी तेज़ हो रही थी जैसे मीलों भाग कर आए हों. कार में इस से ज्यादा कुछ होने/करने की गुंजायश भी नहीं थी. धीरे-धीरे प्रेम-उद्वेग हल्का पड़ा तो दोनों के होशो-हवास वापिस आये. रात 9 बजे… बिज़ी नेशनल हाईवे पर खड़ी कार में प्रेम-आलाप… अव्वल दर्ज़े की मूर्खता के सिवा कुछ और हो ही नहीं सकता.मैंने धीरे से प्रिया को अपने-आप से अलग किया, प्यार से उसके चेहरे पर अपना हाथ फिराया, बाल पीछे किये, आँखें पौंछी और माथे पर एक चुम्बन लिया.
प्रिया मुस्कुरा दी. वही जादुई मुस्कान जो सारे गम बिसरा दे. मैंने इक निःश्वास भरी- ठीक है प्रिया! जैसा तुम चाहती हो वैसा ही होगा.“थैंक्यू! आप ने मेरे शब्दों की लाज रखी. आप कुछ भी मुझ से मांग सकते हैं… भगवान-कसम! मैं दे दूंगी.”“छोड़! जाने दे.”“नहीं प्लीज़! आप कहिये…. मुझे ख़ुशी मिलेगी.”“नहीं… जाने दे.”“अरे! कहिये तो… आप को मेरी कसम.”“अरे छोड़! मैं तुझ से प्यार करता हूँ और जिस से प्यार करते हैं उस को दिया करते हैं, उस से मांगा नहीं करते.”“चाहे दिल में कोई अधूरी तमन्ना… दिन-रात का चैन हराम किये रखे… तो भी??
क्या कहना चाह रही थी लड़की? क्या उसे मेरे दिल में पल रही ख्वाहिश का पता चल गया था? हो ही नहीं सकता. यह बात तो मैंने ख़ुद अपने से भी नहीं कही थी किसी और से कहने की बात तो बहुत दूर की कौड़ी थी. मैं नज़रें फेर कर चुप सा ही रहा और प्रिया अपनी गहन दृष्टि सर मेरे चेहरे के भाव पढ़ती रही.“ओ.के! अब अगर मैं आप से कुछ माँगूँ तो क्या आप मुझे देंगें??” कुछ पल बाद प्रिया ने पूछा.“तेरे लिए… कुछ भी! जान मांगे तो जान भी!!” कहते-कहते जाने क्यों मेरी आँख भर आयी.

प्रिया ने हाथ बढ़ा कर मेरा मुंह अपनी ओर किया और मेरी आँखों में आँखें डाल कर बोली- लाखों, करोड़ों दुआएं क़ुबूल होने पर मिली मुराद जैसा उस रात का मिलन… एक बार! सिर्फ़ एक बार और… फिर से मुझे दे दीजिये.प्रिया की यह बात सुन कर मैं भौंचक्का सा रह गया.हे भगवान्… यह चमत्कार कैसे हुआ? क्या प्रिया ने मेरा दिमाग पढ़ लिया था?“लेकिन इस बार अँधेरे की बजाए उजाले में…” मैंने पलट कर कहा.

क्षण भर के लिए प्रिया के चेहरे पर उलझन की बदली सी छायी… लेकिन जैसे ही उस को बात समझ में आयी तो उस के चेहरे पर मुस्कान आ गयी, चेहरे पर हया की लाली छा गयी और उसने दोनों हाथों से अपना चेहरा छिपा लिया.“अगर ऐसा करने में तुम्हें कोई परेशानी है तो रहने दे प्रिया!”

प्रिया ने तिरछी नज़र से मेरी ओर देखा और बोली- ठीक है! जैसा आप चाहो… पर समय सीमा कोई नहीं.”“लेकिन यक़ीनन तेरी शादी से पहले!”“देखेंगे!!” प्रिया के हाव भाव में फिर से शरारत लौट आयी.मैंने कार स्टार्ट की और हम घर वापिस आ गए.

तमाम शिक़वे-शिकायतें दूर हो गए थे और मन हल्का हो गया था. इक अनाम सी ख़ुशी दिल में हिलोर मार रही थी. जिंदगी फिर शुरू हो गयी थी. प्रिया वापिस अपने कमरे में सैटल हो गयी थी. पाठक-गण! आज भी हमारे घर में उस कमरे को ‘प्रिया वाला रूम’ ही कहते हैं.

प्रिया रोज़ 9 बजे तैयार हो कर एक्टिवा लेकर कम्प्यूटर इंस्टिट्यूट चली जाती थी और करीब ढ़ाई बजे वापिस आ कर खाना खा कर थोड़ी देर आराम करती थी. पांच से सात सुधा के साथ रसोई आदि का काम, सात से नौ अपने कम्प्यूटर पर प्रेक्टिस, नौ बजे डिनर, साढ़े नौ से सोने के टाइम तक बच्चों और सुधा के साथ गप-शप.मेरा और प्रिया का आमना-सामना आम तौर पर डिनर टेबल पर या कभी कभार जब मैं ऑफिस से आता था तो प्रिया मुझे पानी देने आती थी… तब होता था. पानी का गिलास मुझे थमाते वक़्त प्रिया के होंठों पर वही ‘मोनालिसा मुस्कान’ देख कर मेरा मन तो कई बार मचला लेकिन क्या करता… वचन-बद्ध था.
दो-एक महीने बाद मैंने गौर किया कि प्रिया भी सुधा के साथ हर शनिवार शाम को ब्यूटी-पॉर्लर-कम-स्पा जाने लगी थी.एक रात सोने से पहले मैंने सुधा से इस बारे में पूछा तो उसने हंस कर कहा- अब उसकी शादी होने वाली है तो अपने शरीर को अपने पति का स्वागत करने के लिए तैयार कर रही है.“पति के स्वागत की तैयारी? मैं समझा नहीं?”“अरे बुद्धूराम! मैनिक्योर, पैडीक्योर, नेल-कलरिंग, नेल-पॉलिशिंग, स्किन-टोनिंग, फुल बॉडी वैक्सिंग, थ्रैडिंग, हेयर स्टीमिंग, हेयर कंडिशनिंग, स्टीम-बाथ, फुल बॉडी ऑइल-मसाज़ आदि आदि.”
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#5
“फुल बॉडी ऑइल-मसाज़? मतलब… सारे कपड़े उतार के?”“और नहीं तो क्या… कपड़े पहन कर?”“यार! तुम औरतें भी ना! अच्छा! एक बात बताओ… औरतें प्यूबिक हेयर भी वैक्स करवाती हैं?” (प्यूबिक हेयर मतलब- योनि के आस पास के बाल)“हाँ! बहुत करवाती हैं लेकिन मैं नहीं करवाती… पर प्रिया करवाती है.”
हुस्न की शमशीर को धार लग रही थी, कोई किस्मत वाला परम मोक्ष को प्राप्त होने वाला था. प्रिया के रेशम-रेशम जिस्म की कल्पना करते ही मेरे लिंग समेत मेरे जिस्म का रोयाँ-रोयाँ खड़ा हो गया और उस रात बिस्तर में मैंने सुधा की हड्डी पसली एक कर के रख दी.
ऐसे ही अक्टूबर का आखिरी हफ्ता आ पहुंचा. बच्चों को दशहरे की छुट्टियाँ थी. प्रिया का कंप्यूटर कोर्स भी अपने अंतिम चरण में था, पांच-छह दिन की और बात थी, 02 नवंबर को प्रिया ने घर लौट जाना था.प्रिया का मंगेतर 10 नवंबर को आने वाला था और शादी 19 नवंबर की फ़िक्स थी.
इधर प्रिया ने अभी तक मुझे अपने पुट्ठे पर हाथ तक नहीं धरने दिया था. मुझे अपने सपने का भविष्य बहुत अंधकारमय लग रहा था.
फिर अचानक एक चमत्कार हो गया. उसी शाम मेरी पत्नी सुधा के एक चाचा श्री हमारे घर पधारे. यह साहब एक बड़े ट्रांसपोर्टर है और इन की कोई 70-80 A.C टूरिस्ट बसें पूरे उत्तर भारत में चलती हैं, इन साहब ने अपनी कोई मनौती पूरी होने के उपलक्ष्य में अपने गोत्र की सारी लड़कियों समेत वैष्णो देवी दर्शन के लिए पूरी AC स्लीपर वाली वॉल्वो बस बुला रखी थी. यह साहब उस यात्रा के लिए हमें न्यौता देने आये थे. वीरवार रात को निकलना था, शुक्रवार सारा दिन चढ़ाई कर के दर्शन करने थे, शुक्रवार रात वहाँ से वापसी कर के शनिवार सवेरे वापिस घर पहुँच जाना था.
सुधा का बहुत मन था जाने का लेकिन मेरा जाना मुश्किल था क्यों कि सीज़न का समय था, मैं घर से सुबह का निकला रात 9-10 बजे घर आता था. चूंकि प्रिया का कंप्यूटर कोर्स आँखिरी चरण में था तो प्रिया भी सुबह की गयी शाम 5 के करीब घर वापिस आ पाती थी. तो प्रिया की मम्मी को साथ चलने के लिए फ़ोन लगाया गया और साली साहिबा भी फटाक से सुधा के साथ चलने को तैयार हो गयी.
फ़ाइनल प्रोग्राम यह बना कि प्रिया की माताश्री वीरवार शाम तक हमारे घर आ जाएंगी और सुधा और उन को मैं वीरवार शाम को चाचा जी के घर जा कर बस चढ़ा आऊंगा और शनिवार सुबह को चाचा जी के घर जा कर ले आऊंगा. दोनों बच्चे यहीं हमारे पास रहेंगें. एक ही दिन की तो बात थी.
वीरवार शाम 7 बजे के लगभग मैं घर आया तो देखा कि मेरे दोनों बच्चों ने रो रो कर आसमान सर पर उठा रखा था, दोनों अपनी मां और मौसी के साथ जाने की जिद कर रहे थे. बड़े धर्म-संकट की स्थिति थी. भगवान् जाने! बस में अब एक्सट्रा स्लीपर उपलब्ध था भी या नहीं!सुधा ने बहुत सकुचाते हुए चाचाजी को फ़ोन लगाया गया और मसला बयान किया. सुन कर चाचा जी फ़ोन पर ही रावण जैसी ऊँची हंसी हंसे और बोले- कोई बात ही नहीं… 5-7 जन और हों तो उन्हें भी ले आओ. बस एक नहीं, दो जा रहीं हैं. तुम लोग… बस! आ जाओ!
मामला हल हो गया था, आनन फ़ानन में बच्चों का भी बैग पैक किया गया. करीब 8 बजे मैं इन चारों को चाचा श्री के घर छोड़ने निकल पड़ा. प्रिया भी हमारे साथ ही थी. अचानक मुझे एक झटका सा लगा और महसूस हुआ कि आज की रात तो मुरादों वाली रात हो सकती है… आने वाले करीब 36 घंटे मेरी तमाम जिंदगी की हसरतों का हासिल हो सकते थे. ऐसा सोचते ही मैं तनाव में आ गया.
तभी सुधा ने पूछा- क्या बात है? आप अचानक चुप से क्यों हो गए?“ऐसे ही… तुम अपना और बच्चों का ख्याल रखना.”“अरे! एक दिन की तो बात है. आप फ़िक्र ना करें. बस आप कल शाम को टाइम से घर आ जाना, लेट मत होना. प्रिया घर में अकेली होगी.”“ठीक है.”
उन चारों को चाचा जी के घर छोड़ कर, जहाँ सब के लिए डिनर का प्रोग्राम भी था और साफ़ दिख रहा था कि बसें 11 बजे से पहले नहीं चलेंगी. खाना-वाना खा पी कर मुझे और प्रिया को वापिस घर पहुँचते पहुँचते 10:30 बज गए.घर पहुँचते ही प्रिया कार से उतर कर दौड़ कर अपने कमरे में जा घुसी और दरवाज़ा अंदर से बंद कर लिया.
मैंने गैरेज का शटर डाउन किया, मेन-गेट को अंदर से ताला लगाया और अंदर दाखिल हुआ, कपड़े बदले और किचन में जा कर कॉफ़ी बनायी.“प्रिया… कॉफी पियोगी?” मैंने आवाज लगाई.कोई जबाब नहीं मिला.दोबारा आवाज़ लगाई… फिर कोई जवाब नहीं!अजीब बर्ताब कर रही थी लड़की!ख़ैर! मैं अपना कॉफ़ी का मग उठा कर प्रिया के दरवाज़े के पास आया और पूछा- प्रिया! ठीक हो?“हूँ” की एक मध्यम सी आवाज़ सुनाई दी.
मैं दो पल वहीं खड़ा रहा और फिर कॉफ़ी सिप करता करता अपने बैडरूम में आ गया. मैं कुछ समझ नहीं पा रहा था कि क्या हो गया था लड़की को?सिप-सिप कर के मैंने अपनी कॉफ़ी ख़त्म की और वाशरूम में जा कर पहले ‘अपना हाथ, जगन्नाथ’ किया, फिर ब्रश किया. अंडरवियर उतार कर लॉन्ड्री-बास्केट में डाला और बिना अंडरवियरके नाईट सूट पहन लिया.
अजीब बात थी… मैं और मेरी मुजस्सम मुमताज़ घर में अकेले थे लेकिन एक नहीं हो पा रहे थे.यही वो प्रिया थी जो सवा डेढ़ साल पहले सुधा की मौजूदगी में भी मुझ से प्यार करने में नहीं हिचकी थी और आज जब कि घर में किसी के होने का, किसी को पता चल जाने का, मुहब्बत का राज़ फाश हो जाने जैसा कोई खतरा नहीं था तो ‘वो’ अपनी मर्ज़ी से, अपने कमरे का दरवाज़ा अंदर से बंद कर के बैठी थी.
बेड पर अधलेटे से बैठे, ऐसा सोचते सोचते जाने कब मेरी आँख लग गयी. ट्यूब लाइट भी जलती रह गयी. बैडरूम का दरवाज़ा तो खुला था ही!


रात नींद में ही मैंने करवट ली तो किसी नर्म-गुदाज़ चीज़ से मेरा हाथ टकराया. यह एक जनाना कंधा सा था. मैंने झट्ट से आँखें खोली तो पाया कि बैडरूम का दरवाज़ा भी बंद था और बैडरूम की ट्यूब-लाइट तो बंद थी ही अपितु फुट-लाइट भी बंद थी. पूरे बैडरूम में घुप्प अँधेरा छाया हुआ था.

मैंने कपड़ों की हल्की सी सरसराहट और साँसों की मध्यम सी आवाज़ सुनी. मेरे ही बैड पर, मेरे दायीं ओर कोई था. एक पल को तो मेरे रौंगटे खड़े हो गए लेकिन जैसे ही मुझे प्रिया के वहाँ होने का ध्यान आया तो मेरे लिंग में भयंकर तनाव आ गया. मैंने अपना बायाँ हाथ आगे बढ़ाया तो प्रिया का मरमरी और नाज़ुक हाथ मेरे हाथ पर कस गया.



अँधेरे में साईड-वॉल पर रेडियम वाल-क्लॉक 1:10 का टाइम दिखा रही थी. दो चार पल मैं बिना कोई हरकत किये ऐसे ही करवट लिए पड़ा रहा. अचानक मैंने अपने सिरहाने लगी टेबल लैंप ऑन कर दिया.सचमुच यह प्रिया ही थी. प्रिया ने तत्काल मेरा हाथ छोड़ा और चादर अपने सर तक ओढ़ ली और अपना सर जोर जोर से दाएं-बाएं हिलाती हुयी घुटी सी आवाज़ में बोली- प्लीज़… नहीं! लाइट बंद कर दीजिये.“मगर क्यों?”“मुझे शर्म आती है.”“शर्म आती है… मगर किस से?”“मुझे नहीं पता… लेकिन आप लाइट बंद कर दीजिये.”“लेकिन यहाँ तो मैं और तुम ही हो और तीसरा तो कोई है ही नहीं.”“पता है… पर प्लीज़ लाइट बुझाइये.”“प्रिया! लाइट बंद कर दी तो वादा कैसे पूरा होगा? ”“मुझे नहीं पता… लेकिन आप लाइट बंद कीजिये.”

अगर मेरी प्रियतमा को ये सब छुप छुप कर करना पसंद था तो ठीक है… मैं जो उस को पसंद है वैसे ही करूंगा. मैंने हाथ बढ़ा कर टेबल लैम्प बंद कर के हल्की नीली लाइट वाली नाईट लैंप जला दी.प्रिया ने चादर से सर बाहर निकाला और नीली लाइट जलती देखकर मेरी ओर शिकायत भरी नज़रों से देखा लेकिन कहा कुछ नहीं. चलो! बात थोड़ा तो आगे बढ़ी. अब तक मैं पूर्ण तौर पर चैतन्य हो चुका था.

“सुनो!” अचानक प्रिया ने सरगोशी की.“सुनो!” की प्रिया की आवाज़ सुन कर मुझे हल्का सा झटका सा लगा. यह संबोधन मेरे लिए सिर्फ सुधा प्रयोग करती थी. मैंने तकिये पर से सर उठाया और प्रिया की ओर सवालिया नज़रों से देखा.“उठो तो… ज़रा!” प्रिया ने इल्तिज़ा सी की.” ठूँ…?? बोले तो…?”“अरे बाबा! उठ कर खड़े हो जरा…!”“बैड पर…?”“ज़मीन पर!!… बुद्धू राम!”

एक झटका और लगा. सिर्फ सुधा ही कभी-कभार एकांत में मुझे बुद्धूराम कहती थी. भगवान् जाने… क्या चल रहा था लड़की के दिमाग में? मैं आहिस्ता से उठा और बैड से नीचे उतर कर फर्श पर खड़ा हो गया.“ज़रा ट्यूब-लाइट जलाओ तो.”प्रिया के लफ़्ज़ों में एक अधिकारपूर्ण और सत्तात्मक गूँज सी थी. मैंने नाईट-लैंप ऑफ़ कर के ट्यूब-लाइट ऑन कर दी. तभी प्रिया बैड के परली तरफ से नीचे उतर आयी और आ कर ठीक मेरे सामने खड़ी हो गयी. अजीब हालत थी मेरी… बिना अंडरवियर के मेरा लिंग पजामे को तम्बू बनाये हुये था.“अब आगे क्या?” मैंने मज़ाकिया लहज़े में पूछा.

अचानक ही प्रिया ने झुक कर अपने दोनों हाथों से मेरे पैर छू कर अपना दायाँ हाथ अपनी मांग में ऐसे फेरा जैसे सिन्दूर लगाते हैं.पल-भर के लिए मैं स्तब्ध रह गया- यह… यह क्या कर रही हो… प्रिया?कहते हुए मैंने प्रिया को दोनों कांधों से पकड़ कर उठाया.देखा तो काली कजरारी आँखों में आंसू बस गिरने की कगार तक भरे थे.

“मेरा ईश्वर गवाह है कि आप मेरे जीवन में आये प्रथम पुरुष हैं और उस रात के बाद से मैंने हमेशा आप को अपने पति के रूप में ही देखा और चाहा है. आज के बाद हम दोनों की जिंदगी में क्या क्या मोड़ आएं… मैं नहीं जानती लेकिन जो अभिसार अभी आप के और मेरे बीच में होने वाला है, मैं चाहती हूँ कि उसका स्वरूप एक पति-पत्नी के अभिसार का हो… ना कि प्रेमी-प्रेमिका के अभिसार का. आने वाले चंद घंटे मैं पूर्ण तौर पर आप की अर्धांगिनी की तरह गुज़ारना चाहती हूँ. इन चंद घंटों की मीठी याद के सहारे मैं जिंदगी की मुश्किल से मुश्किल दुश्वारी हसीं-ख़ुशी सह लूंगी. क्या आप आज मुझे यह अधिकार देंगें?”
बाप रे! … तो ये सब चल रहा था प्रिया के दिमाग में! अब मैं समझा सारी बात. मेरे गले लग कर बेवज़ह रोना, अधिकारपूर्ण मुझे पुकारना, मेरे पांव छूना और फिर मेरे पांव की वही धूल अपनी मांग में लगाना… प्रिया खुद को सुधा के स्थान पर रख कर मुझे अपना पति कह रही थी.“प्रिया! आने वाले चंद घंटे तो क्या तू हमेशा मेरे दिल में मेरी अपनी बन कर रहेगी. हो सकता है कि हम बरसों ना मिले लेकिन याद रखना कि मुझ पर तेरा इख़्तियार और अधिकार सुधा से कम नहीं.” कहते हुए मैंने भी कुछ भावुक हो गया और प्रिया को अपने अंक में समेट कर उस के माथे पर प्यार की मोहर लगा दी

ज़वाब में प्रिया ने मुझे जोर से अपने आलिंगन में ले लिया. आलिंगन में बंधे-बंधे दोनों बैड पर आजू-बाजू (मैं दायीं तरफ, प्रिया बायीं तरफ) लेट गए. अब की बार प्रिया ने मुझे ट्यूब-लाइट बंद करने को नहीं कहा.“अच्छा प्रिया! दो-एक बातें तो बता?”प्रिया की भवें प्रश्नात्मक तौर पर मेरी ओर उठी.
“आम तौर पर तू मुझे “मौसा जी नमस्ते” कह कर ही टाल देती रही है लेकिन उस दिन जब मैं और सुधा तेरे घर गए थे तो क्या हुआ था तुझे?”“उस दिन? उस दिन आप के आने से ज़रा पहले मेरी अपने पापा से जोरदार बहस हुई थी और उस टाइम मैं दिल से आप को याद कर रही थी.”“और वो मेरा लिंग दबाना, सहलाना और पीठ पर चिकोटी काटना?”” दबाने का तो ऐसा है कि वो या तो सिर्फ आप को पता या मुझे और यही बात पीठ पर चिकोटी काटने पर लागू होती है लेकिन सहलाने वाली बात का तो मैं कहूँगी कि वो सिर्फ एक एक्सीडेंट था.”” और आज जब हम वापिस आये थे तो क्या हुआ था तुझे? तू क्यों अपने कमरे में बंद हो गयी थी और कहने पर भी दरवाज़ा क्यों नहीं खोला तुम ने?”“आप समझे नहीं? पिछले तीन महीने से आप का इम्तिहान चल रहा था. इन तीन महीनों में आप ने मुझ से कभी कोई छिछोरी हरक़त नहीं की और आज शाम को आप का आखिरी इम्तिहान था. अगर आप ने मेरे कमरे का मुझ से दरवाज़ा खुलवाने की मनोमुनौवल की होती या जबरदस्ती दरवाज़ा खोलने की कोई जुगत की होती तो मुझे समझ आ जाना था कि आप सिर्फ एक जनाना जिस्म के पीछे पड़े हैं और प्रिया से आप को कोई लेना-देना नहीं और बीते समय में आप का मेरे साथ कोई ग़ैर-इखलाकी हरकत ना करने का कारण सिर्फ मौका नहीं मिलना ही था. अगर ऐसा होता तो मैंने आप को खुद को कभी भी छूने नहीं देना था और तमाम उम्र आप के साथ कोई वास्ता भी नहीं रखना था.”
तौबा तौबा! क्या खुराफाती सोच थी… लड़की की!“अच्छा! अब बता… मैं पास हुआ या फेल?”“आप को क्या लगता है?”“तू बता?”“मुझे ख़ुशी है कि जिसे मैंने देवता माना, वो सच में एक देवता ही है.”
भावावेश में मैंने प्रिया के चेहरे पर चुम्बनों की झड़ी लगा दी. हम दोनों के साँसों की गति निरंतर बढ़ती जा रही थी लेकिन इस से आगे ना वो बढ़ रही थी न मैं…लेकिन मैं पुरुष था… पहल तो मुझे ही करनी थी!आखिरकार आहिस्ता से मैंने अपना दायाँ हाथ ऊपर उठा कर प्रिया के बायें गाल पर रख दिया. प्रिया का दिल तेज़ी से धड़क रहा था, उसकी जलती गर्म सांसें मेरी कलाई झुलसाये जा रही थी. मैंने अपना हाथ आगे बढ़ाया तो मेरी तर्जनी और मध्यमा उंगली के बीच में प्रिया के बाएं कान की लौ आ गयी जिसे मैंने हल्के से मसल दिया.“सी… ई… ई… ई… ई… ई…!!!” शाश्वत आनन्द की पहली आनन्दमयी सिसकारी प्रिया के होंठों से फूट पड़ी. हम दोनों के बीच में कोई डेढ़-एक फुट का फ़ासला था. मैं थोड़ा सा प्रिया की तरफ़ सरका. अब मेरा दायाँ हाथ प्रिया की पीठ पर धीरे धीरे दायें-बायें, ऊपर-नीचे फिर रहा था. कपड़ों के ऊपर से प्रिया की कसी हुयी ब्रा की आउटलाइन स्पष्ट महसूस हो रही थी.
जैसे ही मैंने प्रिया का बायाँ हाथ उठा कर अपने ऊपर रखा तो प्रिया ने मुझे अपने साथ कस कर भींच लिया. दोनों के बीच का रहा सहा फासला भी ख़त्म हो गया. प्रिया के उरोज़ मेरी छाती में धँसे हुये थे और उस का बायाँ हाथ मेरी पीठ को कस कर जकड़े हुए था.कयामत तो तब बरपा हुई जब प्रिया ने अपनी बायीं टांग उठा कर मेरे ऊपर रख दी. कपड़ों के ऊपर से ही प्रिया की उतप्त योनि का ताप मेरे कठोर लिंग को जैसे जलाने पर आमादा था. मुझे ऐसा लग रहा था कि जैसे कोई जलती हुयी अंगीठी मेरे लिंग के पास पड़ी हो.
मेरा दायाँ हाथ प्रिया की पीठ पर ऊपर-नीचे गर्दिश करता करता अब नितम्बों पर से होता हुआ, पैंटी-लाइन नापता-नापता योनि-द्वार तक जा रहा था. प्रिया की आँखें समर्पण के आनन्द के अतिरेक से बंद थी और प्रिया का पूरा जिस्म रह रह कर हल्के-हल्के झटके खा रहा था.
मैंने अपना बायाँ हाथ प्रिया की गर्दन के नीचे से ले जा कर प्रिया को अपनी ओर खींचा तो प्रिया के रस भरे होंठ मेरे प्यासे होंठों से आ मिले. तत्काल मैंने प्रिया के होठों का अमृतपान करना शुरू कर दिया.प्रिया भी आज बहुत गर्मजोशी से मेरा साथ दे रही थी.
अचानक मेरे निचले होंठ पर किसी मधुमक्खी ने डंक मारा हो जैसे… 
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#6
मैं एकदम से हड़बड़ा गया और बैडरूम प्रिया की खनकदार हंसीं से गूँज उठा. प्रिया ने मेरे निचले होंठ पर काट लिया था. स्पष्ट था कि आज मेरा सामना छुई मुई प्रियतमा से नहीं बल्कि किसी जंगली बिल्ली से होने वाला था. मुझे सतर्क रहने की जरूरत थी लेकिन एक चीज़ मेरे हक़ में थी और वो थी मेरा बिस्तर में लम्बा अनुभव.प्रिया जिन शारीरिक अहसासों से अभी नयी नयी दो चार हो रही थी, वो सब मेरे बरसों के जाने पहचाने थे. मैंने प्रिया के होंठों पर फिर से अपने होंठ फिराने शुरू कर दिए. बीच बीच में प्रिया अपनी जीभ बाहर निकाल कर मेरे होंठों की गति अवरुद्ध करने की कोशिश कर रही थी लेकिन मैं उस की जीभ को ही चाटना चूसना शुरू कर देता था जिस से प्रिया के जिस्म में बेचैनी और ज्यादा बढ़ती जा रही थी.
मेरे दोनों हाथ प्रिया की पीठ पर सख़्ती से क्रॉस हो रहे थे. जैसे ही मेरा कोई हाथ उसकी पीठ सहलाते सहलाते उसकी दायीं या बायीं बगल की ओर बढ़ता तो प्रिया उत्तेजनावश मुझे अपने आलिंगन में और जोर से कस कर मेरे मुंह पर यहाँ-वहाँ चुम्बनों की बारिश कर देती.
इधर मेरा दायाँ हाथ प्रिया की पीठ पर पहुँच कर कपड़ों के ऊपर से ही ब्रा का हुक टटोल रहा था. जैसे ही मेरी उंगलियाँ ब्रा के हुक पर ठहरती तत्काल प्रिया का बायाँ हाथ मेरे दाएं हाथ को इधर उधर झटक देता.
लड़की अभी और खेलने के मूड में थी…ठीक है! मुझे भी कोई जल्दी नहीं थी, सारी रात अपनी थी.
अब हालत यह थी कि हम दोनों के बीच में से हवा भी नहीं गुज़र सकती थी. उत्तेज़ना के मारे हम दोनों के दिल धक धक कर रहे थे. तत्काल मेरा दायाँ हाथ प्रिया के बाएं कंधे पर से गर्दिश करते-करते नीचे की ओर अग्रसर हुआ, कोहनी और कलाई से होते हुये अंदर पेट की ओर मुड़ गया. नर्म गुदाज़ पेट और मेरे हाथ के बीच में सिर्फ एक टीशर्ट का पतला सा आवरण था.मैं अपनी हथेली पर प्रिया के जवान और मदमस्त जिस्म की झुलसा देने वाली गर्मी साफ़ महसूस कर रहा था. मैंने अपना हाथ ज़रा सा नीचे किया तो टीशर्ट का निचला सिरा मेरी उँगलियों के नीचे आ गया.
मैंने फ़ौरन टीशर्ट का सिरा उठा कर अपना हाथ अंदर सरका दिया और इसके साथ ही प्रिया की टीशर्ट थोड़ी और ऊपर को ख़िसक गयी; तत्काल प्रिया के सारे शरीर में एक कंपकंपी सी हुई और प्रिया ने अपना दायाँ हाथ उठा कर मेरी गर्दन के नीचे से निकाल कर मुझे खींच कर अपने साथ लगा लिया.
अब मेरे दायें हाथ की उंगलियाँ प्रिया के सपाट पेट पर ब्रा की निचली सीमा से ले कर कैपरी के ऊपरी इलास्टिक की सीमा तक ऊपर-नीचे, दाएं बाएं हरकत करने लगी. मैं जानबूझ कर ना तो प्रिया के वक्ष को अभी सीधे हाथ लगा रहा था और ना ही उसकी योनि को!पेट पर ऊपर की ओर गर्दिश करती मेरी उंगलियाँ ब्रा की निचली पट्टी को छूते ही और ऊपर को जाने की जगह दायें बायें बग़ल की ओर मुड़ जाती थी, ऐसा ही नीचे की ओर उँगलियों की गर्दिश करते वक़्त प्रिया की कैपरी के ऊपरी इलास्टिक को छूते ही और नीचे जाने की बजाए पेट पर ही इधर उधर हो जाती थी.
अचानक मैंने गौर किया कि प्रिया की काँखें एकदम रोमविहीन हैं, वहाँ एक भी बाल नहीं था और बग़लों के नीचे की त्वचा एकदम नरम और मुलायम थी.“ऐसी ही बालों से रहित, रोमविहीन प्रिया की मनमोहक और कोमल योनि भी होगी…” ऐसा सोचते ही मुझ में तीव्र उत्तेज़ना की लहर उठी.

ऊपर मैंने प्रिया के दायें कान की लौ होंठों से चुमकारना शुरू किया और मैं बीच बीच में प्रिया के कान में रह रह कर अपनी जीभ भी फिरा रहा था.“सी… ई… ई… ई… ई..ई..ई!!! आ… ई… ई..ई..ई!!! उफ़… फ़..फ़!!! आह… ह..ह..ह!! हा… ह..ह..ह!!!”
इस दोहरे काम-आक्रमण को झेलना प्रिया के लिए हर्गिज़ आसान न था; प्रिया के जिस्म में रह रह कर काम-तरंगें उठ रही थी और प्रिया के मुंह से आनन्ददायक सिसकारियों की आवाज़ ऊँची… और ऊँची होती जा रही थी और प्रिया की बेचैनी पल प्रतिपल उसके क़ाबू से बाहर होती जा रही थी.
अचानक प्रिया ने मुझे अपने से थोड़ा परे किया और अपने बाएं हाथ से मेरे नाईट-सूट के बटन खोलने की कोशिश करने लगी लेकिन एक हाथ से बटन खोलना और वो भी बाएं हाथ से… थोड़ी टेढ़ी खीर थी.बहुत कोशिश के बाद एक ही बटन खुल पाया. प्रिया ने शिकायत भरी नज़रों से मुझे देखा. मैंने तत्काल इशारा समझा और फ़ौरन अपने हाथों को फ़ारिग कर के चंद ही पलों में अपने नाईट-सूट के अप्पर के सारे बटन खोल दिए और उसे उतार कर परे फ़ेंक दिया.
अब मैं सिर्फ बनियान और पज़ामे में था और प्रिया के तन पर अभी भी टी-शर्ट और कैपरी थे.
मैंने प्रिया को कमर में हाथ डाल कर थोड़ा ऊपर उठाया और प्रिया के हाथ ऊपर कर के आराम से उस की टी-शर्ट निकाल दी. सफ़ेद कसी हुई ब्रा में प्रिया का कुंदन सा सुडौल शरीर मेरे सामने दमक रहा था. प्रिया ने हया-वश अपने वक्ष के आगे अपनी बाहों का क्रॉस बना कर सर झुका लिया. मैंने प्रिया का चेहरा उस की ठोढ़ी के नीचे उंगली लगा कर उठाया तो प्रिया ने शर्म के मारे आँखें बंद कर ली.
“आँखें खोलो प्रिया!”“उंहूं…! मुझे शर्म आती है.”“अरे खोलो तो… यहाँ कौन है तेरे मेरे सिवा?” मैंने दोनों हाथों से प्रिया के दोनों कंधे थाम लिए.
प्रिया ने हौले-हौले अपनी आँखें खोली तो मुझे सीधे अपनी काली कज़रारी आँखों में झांकते पाया.झट से प्रिया ने मेरी ही आँखों पर अपना हाथ रख दिया- आप मुझे ऐसे ना देखो प्लीज़… मैं तो शर्म से ही पिघल जाऊँगी.
मैंने बहुत नरमी से अपने एक हाथ से अपनी आँखों पर रखे प्रिया के हाथ को हटाया और उसी हाथ की हथेली का इक चुम्बन लेकर उसी हाथ की लम्बी पतली, नाज़ुक तर्जनी ऊँगली अपने मुंह में डाल ली और उसे चूसने लगा.

तत्काल प्रिया बेचैन हो उठी और अपनी उंगली मेरे मुंह में इधर उधर मोड़ने-तोड़ने लगी. तब तक मैं करीब क़रीब आधा प्रिया के ऊपर झुका हुआ था.अचानक ही प्रिया ने अपनी उंगली मेरे मुंह से निकाल ली और उसी हाथ का अंगूठा मेरे होंठों पर दाएं से बाएं, बाएं से दाएं फिराने लगी. बीच बीच में मैं मुंह से प्रिया का अंगूठा पकड़ने की कोशिश भी करता, लेकिन प्रिया अंगूठा किसी तरह छुड़ा लेती.

थोड़ी देर बाद ही मैंने प्रिया के दोनों हाथों की उंगलियाँ अपने दोनों हाथों की उँगलियों में लॉक कर के (अपना दायाँ हाथ प्रिया के बाएं हाथ में और अपना बायाँ हाथ प्रिया के दाएं हाथ में) सिरहाने के आजू बाजू रख दिए और सीधे प्रिया के ऊपर आ कर प्रिया की आँखों में झांका.प्रिया के होंठों पर वही मोनालिसा मुस्कान आयी और प्रिया ने अपनी उंगलियाँ मेरी उँगलियों में ज़ोर से कस दी.

क्या नज़ारा था…!!! साक्षात् रति भी इतनी सुन्दर ना होगी जितनी उस वक़्त प्रिया लग रही थी. मैंने झुक कर प्रिया के होंठों पर एक चुम्बन लिया, फिर धीरे से एक एक चुम्बन दोनों कपोलों पर लिया… एक ठोड़ी पर, एक गर्दन के बीच में ज़रा बायीं और दूसरा ज़रा दायीं ओर…प्रिया की गहरी साँसों में अब आनन्दमयी सीत्कारें निकलने लगी थी.

मैंने एक और चुम्बन ब्रा में कसे हुये दोनों उरोजों के मध्य में लिया और दोनों उरोजों में बनी दरार में अपनी जीभ घुसा दी.बस जी! कहर ही बरपा हो गया जैसे… प्रिया ने जोर से सीत्कार करते हुए ने जबरन अपने दोनों हाथ मेरे हाथों से छुड़ाए और दीवानावार मुझे यहाँ-वहाँ चूमने लगी; मेरे माथे पर… मेरे कंधे पर, मेरी गर्दन पर, मेरे सर पर.

प्रिया का बायाँ हाथ मेरी पीठ पर कस गया और दायाँ हाथ मेरे सर के पृष्टभाग पर जमा कर प्रिया मुझे ऐसे अपनी ओर दबाने लगी जैसे चाहती हो कि मैं उस के उरोजों में ही समा जाऊं. मैं प्रिया के उरोज़ों के बीच की दरार की लम्बाई अपनी जीभ से नापने में मशग़ूल था.“हा… हाँ, यहीं यहीं… और करो… यस! जोर से करो… यहीं हाँ यहीं… ओ गॉड!… आह हाय सी… ई..ई..ई!!! ” प्रिया आनन्द के सागर में अनवरत गोते लगा रही थी.

अचानक मैंने अपना सर जरा सा उठाया तो प्रिया की रोमविहीन आवरणहीन कोमल बायीं काँख पर मेरी नज़र पड़ी. मैंने अपनी जीभ को वक्षों की घाटी से निकला और प्रिया के बाएं वक्ष की ऊपरी सतह की कोमल और नाज़ुक त्वचा को चाटते-चूमते प्रिया की रोमविहीन बायीं बगल की ओर बढ़ा. प्रिया की बेफिक्र ऊंची-ऊंची आनन्दमयी सिसकारियाँ पूरे बैडरूम में गूँज रही थी.

जैसे ही मेरे होंठों ने प्रिया की बगल की नरम-नाज़ुक त्वचा को छुआ, तत्काल प्रिया के मुंह से लम्बी सी सिसकारी निकल गयी और प्रिया का दायाँ हाथ बनियान के अंदर से मेरी पीठ पर जोर जोर से ऊपर-नीचे फिरने लगा.

मैंने प्रिया की बगल में मुंह दे कर एक जोर से सांस ली; एक नशीली सी सुगंध मुझे बेसुध करने लगी; इस सुगंध में प्रिया के जिस्म की ख़ुश्बू, प्रिया के डिओ की ख़ुश्बू, काम-तरंग में डूबे नारी-शरीर में उठती वो अलग एक ख़ास मादक सी खुशबू… सब मिली-जुली थीं.मैंने प्रिया की कांख को चूमा… तत्काल प्रिया के मुंह से एक आनन्दमयी और लम्बी सीत्कार निकल गयी और मैंने प्रिया की बगल की अंदर वाली रेशम रेशम त्वचा को अपनी जीभ से चाटा. प्रिया के पसीने की खुशबू के साथ साथ प्रिया के पसीने का का हल्का सा नमकीन स्वाद साथ में शायद डियो का कसैला सा स्वाद था.
यही सब मैंने प्रिया की दायीं कांख पर दोहराया. कसम से! मजा आ गया. इधर प्रिया मारे उत्तेजना के बिस्तर पर जल बिन मछली की तरह तड़फ रही थी. बिस्तर की चादर पर मुट्ठियाँ कस रही थी, रह रह कर बिस्तर पर पाँव पटक रही थी, ऊँची ऊँची सिसकारियाँ ले रही थी, लम्बी लम्बी सीत्कारें भर रही थी.
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#7
Update
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#8
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