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और ये कहते हुए भाभी ने ब्रा खोल के वापस कबर्ड में फेंक दी।
बात भाभी की सोलहो आना सही थी।
बिचारा, कितने दिनों से पीछे पड़ा था।
मैं एक-एक दिन जोड़ रही थी, हर महीने 14-15 चिट्ठियां और औसतन 246 मेसेज उसके आते थे,
और ये तब थे जब मैं किसी का जवाब नहीं देती थी।
जनाब कितने दिनों से मुझे कॉलेज छोड़ने लाने का काम करते थे, सारी लड़कियां उसका नाम लेकर चिढ़ाती थीं।
और आज तो वो सुबह से ही जोश में था वो।
जब मैं और भाभी सुबह छज्जे पे खड़े जीजू की राह देख रहे थे, तब होलियारों का लीडर बना वो,
मेरे नाम के एक से एक जोगीड़े गाता हुआ, और जो उसने रंग भरा गुब्बारा मारा सीधे मेरे बाएं उभार पे लगा, पूरी तेजी से, और मैं रंग से सराबोर हो गई।
एकदम अंदर तक।
“यार तेरेवाले का निशाना तो बहुत पक्का है, और ताकत भी बहुत है,
सोच ले जब तेरी जाँघों के बीच मारेगा तो क्या हालत होगी?”
भाभी ने चिढ़ाया।
और जब से जीजू गए थे, तब से भाभी उसकी वकालत कर रही थीं।
भाभी-
“यार अब तो तेरी गली का रास्ता खुल ही गया है, अपने वाले को दे दे ग्रीन सिग्नल।
अरे जीजू लोग तो होली दिवाली वाले हैं दो चार महीने में एक बार, लेकिन अब तो तेरी चिड़िया रोज चारा मांगेगी।
होली का दिन भी है, उस बिचारे का मन भी रह जाएगा, तेरा काम भी हो जाएगा…”
बात तो भाभी की सही थी।
लेकिन खुलकर हाँ करना खतरे से खाली नहीं था।
तबतक भाभी ने एक टाप निकालकर पकड़ा दिया मुझे, बहुत ही पतली, लो कट, एकदम खुली, टाइट टाप निकालकर पकड़ा दी मुझे-
“ले इसे पहन…”
मैं- “पर भाभी इसमें तो मैं साल भर पहले नहीं घुस पाती थी, अब कैसे?”
उनकी ओर देखकर मैंने अपनी परेशानी बतायी।
मेरे गदराए किशोर कड़े-कड़े मम्मों की ओर देखते भाभी हँस के बोलीं-
“मैं बताती हूँ कैसे घुसवाया जाता है?”
ब्रा तो उन्होंने पहले ही उतार फेंकी थी टाप की बटनें भी सारी, खुली, फोर्स करके मुझे पहनाया।
टाइट इतनी थी की लग रहा था कि मेरे टीन मम्मे उसे फाड़कर बाहर आ जाएंगे।
वैसे भी एकदम पतली सी थी, फिर टाइट इतनी कि उभार, कटाव, यहाँ तक की कबूतर की चोंचें उठाये झलक रही थीं। बटन बंद होने का सवाल ही नहीं था, और खुले टाप से गहरी गहराइयां दिख रही थी।
बल्कि मांसल गोलाइयां भी, कबूतर के रंगे पुते पंख, जो उसने गुब्बारा तो अभी भी खूब गाढ़ा, बाएं उभार पे,
भाभी ने स्कर्ट भी छोटी सी पहनाई, मुश्किल से डेढ़ दो बित्ते की, वो भी साइड से स्प्लिट,
गोरी चिकनी जांघें साफ दिख रही थीं।
साथ में काजल, मस्कारा, डार्क पैशन रेड लिपस्टिक,
ऊपर से भाभी मुझे अपनी साढ़े तीन इंच की हाई हील पहना के मानी।
भाभी ने छेड़ा-
“अरे यार तेरे मस्त चूतड़ अब खूब मटकेंगे…”
और चलने के पहले फिर, टिपिकल शैतानी, स्कर्ट उठाकर लेसी पैंटी के ऊपर दबाती दबोचती बोलीं-
“उस यार को झलक दिखला देना। अब तेरी इस बु… मेरा मतलब बुलबुल को परमानेंट चारे की जरूरत है। पटा ले उसे…”
“मैं समझ गई भाभी…”
मुश्कारते हुए बोली और छुड़ाते हुए चलने के लिए बढ़ी।
विनया के अठाइस मेसज आ चुके थे, और दस मेसेज, जीजू का खड़ा है आ जल्दी।
बाहर निकलने के पहले भाभी ने एक बार फिर रोक लिया और दोनों निपल्स को जोर से पिंच कर दिया और खींच दिया।
मैं मस्ती से सिहर उठी।
अब वो खूब जोश में खड़े, कड़े-कड़े, टाप से रगड़ रहे थे। खुल के झलक रहे थे।
बाहर होली का हंगामा मचा हुआ था।
शाम की सूखी होली शुरू हो गई थी, अबीर और गुलाल की होली।
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शाम होली की
बाहर होली का हंगामा मचा हुआ था। शाम की सूखी होली शुरू हो गई थी, अबीर और गुलाल की होली।
उड़त गुलाल लाल भए बादर,
जोगीड़ा, कबीर और वो
उड़त गुलाल लाल भए बादर,
शाम की होली, सूखी भले हो लेकिन किसी भी मामले में दिन की होली से कम रंगीन नहीं होती।
चारों ओर अबीर गुलाल उड़ रहा था।
लोग होली मिलने जा रहे थे, लड़के लड़कियां औरतें, और साथ में खुल के मस्ती भरे कमेंट्स, कही लड़की का भेस धरे लौंडा, जोगीड़ा में नाच रहे थे,
तो कहीं खुल लाउडस्पीकर पे कबीर-
जोगीरा सारा रहा रा हो जोगीरा,
एक से एक खुले भोजपुरी होली के गाने-
अरे तानी टोवे दा आपन जोबनवा हो, और
भौजी खोला न आपन चोलिया, देवर छोट बाटे तोहार पिचकारियां
और होली के फिल्मी गाने भी,
बालम पिचकारी तूने ऐसी मारी।
कोई अगर जान पहचान की लड़की नजर आ जाती तो फिर तो उसकी मुसीबत,
उसका नाम ले ले के,
पर लड़कियां बजाय बुरा मानने के और खुल के मजे ले रही थीं।
फाग का रसिया जगह-जगह,
आज बिरज में होरी रे रसिया, आज बिरज में होरी,
अपने-अपने घर से निकली कोई सांवर कोई गोरी रे
आज बिरज में होरी रे रसिया,
फाग मेरी आँखों और कानों से होता हुआ तन मन में उतर गया था।
थोड़ा और आगे बढ़ी तो ‘उसके’ दोस्त, लीडर था वो इन सबका।
सुबह मेरी गली में भी इन सबके साथ ही घुसा था।
लेकिन लड़के थे सब, मिश्राइन भौजी की बोलीं में बोलूं तो थे ‘जबरदंग’
और आज तो एकदम ही भांग के नशे में मस्त, गाते बजाते, अबीर गुलाल उड़ाते।
और कोई लड़की बचती नहीं थी उनके कमेंट्स से,
और सच बोलूं तो ऐसे ‘जबरदंग’ लड़कों से बचना भी कौन चाहेगी।
खूब तगड़े, जवान और मस्ती में चूर।
होली बचने का दिन थोड़े ही होता है, आज जीजू से होली खेलने के बाद मैं सीख गई थी।
पहले के दिन होते तो शायद मैं बचने की सोचती लेकिन आज… मेरा वाला ‘वो’ दिख तो नहीं रहा था था लेकिन शायद इनके बीच कहीं…
और जो मैं पास पहुंची तो सुनाई पड़ा, क्या मस्त गा रहे थे, झूम झूम के-
रंग बनारस के छोरा ने लगाय दिया रे
मोरे आगा से आगा सटाय दिया रे,
मोरे जुबना को दोनों दबाय दिया रे
रंग बनारस के छोरा ने लगाय दिया रे।
उह्ह ओह्ह, हाय दइया
रंग बनारस के छोरा ने लगाय दिया रे
पहिले साया सरकाया, हाथ भीतर घुसाया
मैं बहुत चिल्लाई, मोरा मुँह वो दबाया,
मोरी जांघन से जांघन सटाया दिया रे।
मोरे दोनों जुबना दिया दिया रे।
रंग बनारस के छोरा ने लगाय दिया रे।
मजा बहुते मोहे आया जब भीतर घुसाया
एक फिट की पिचकारी घुसाय दिया रे।
सटासट, फचाफच रंगवा चलाय दिया रे।
मोरो दोनों जुबना दबाय दिया रे।
रंग बनारस के छोरा ने लगाय दिया रे।
लेकिन तभी एक को मैं दिख गई, और फिर तो वो हंगामा हुआ, अबीर गुलाल उड़ा की सीधे आसमान तक
“अरे जोबन की रानी…”
ये टाइटिल जब मैं हाईकॉलेज में पहुंची तभी गली के लड़कों ने मुझे दे दी थी,
और अब तो सारे लड़के, और लड़के क्या मेरी सहेलियां भी, और मेरे उभार हैं भी ऐसे कातिल मार्का।
फिर गाने का लेवल भी तुरंत ऊपर हो गया और वो भी मेरा नाम ले ले के,
जो न भी जाने वो भी जान जाए, असली जोगीड़ा-
“दिन में निकले सूरज और रात में निकले चन्दा,
हो रात में निकले चन्दा, जोगीड़ा सरर सरर,
हो हमरे यार ने, अरे हमरे यार ने,
अरे किसकी देखो चूची पकड़ी, अरे किसकी देखो चूची पकड़ी
और किसको टांग उठाकर चोदा।
हो जोगीड़ा सरर सरर, जोगीड़ा सरर सरर
अरे संगीता की, हाँ संगीता की चूची पकड़ी,
और संगीता की, हाँ संगीता की टांग उठाकर चोदा,
हो जोगीड़ा सरर सरर, जोगीड़ा सरर सरर।
बजाय बुरा मानने के मैं मुश्कुरा रही थी और सीधे धंस गई और उसके खास चमचे से पूछा-
“हे तेरा यार है कहाँ आज दिख नहीं रहा?”
जवाब दूसरे ने दिया-
“अरे तुम जोबन की रानी हो तो हमारा यार भी लण्ड का राजा है। पूरे बालिश्त भर का है,
एक बार दे दोगी न तो खुद टांग उठाने आओगी…”
तब तक बगल से पड़ोस की एक भाभी गुजर रही थी, वो क्यों मौका छोड़तीं उन्होंने भी दहला लगाया-
“अरे दे दो न जोबन का दान, होली में नए उम्र की लड़कों को जोबन दान देने से बहुत पुन्न मिलता है…”
लेकिन मेरे सवाल का जवाब उसके चमचे ने दिया-
“बिचारा कब से इन्तजार कर रहा है अपनी जोबन की रानी का, अगले मोड़ पे…”
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जोबन की रानी
मेरे सवाल का जवाब उसके चमचे ने दिया- “बिचारा कब से इन्तजार कर रहा है अपनी जोबन की रानी का, अगले मोड़ पे…”
अगला मोड़ यानी जहाँ से विनया के घर के लिए सड़क मुड़ती थी। बस उसके बाद पास में ही विनया का घर, यानी जनाब को अंदाजा था की शाम को मैं विनया के घर जाऊँगी, ये लड़के बिचारे भी क्या-क्या प्लानिंग करते हैं, लगे रहते हैं।
मैं आगे बढ़ी।
और पीछे से उसके दोस्तों ने मुझे सुनाकर-
“अरे एक बार देबू, अरे एक बार देबू, मजा पईबू
अरे दुई बार देबू, जोड़ा लड़का खेलैबु, मजा पईबू
साढ़े तीन बजे, साढ़े तीन बजे संगीता जरूर मिलना, साढ़े तीन बजे।
साढ़े तीन ही बज रहा था, और वो सड़क के मोड़ पे खड़ा था, अकेला मेरी राह ताकता।
बिचारा, कितना अकेला लग रहा था। कब से पता नहीं यहाँ खड़ा होकर मेरी राह ताक रहा होगा।
वो चाहता तो, मेरी कितनी सहेलियां तैयार थीं, लेकिन वो तो बस मेरे पीछे,
कितने मेसेज, कितनी चिट्ठियां, हैंडसम भी था स्ट्रांग भी, लेकिन…
आज मुझे अहसास हो रहा था कितनी बड़ी गलती कर रही थी मैं, और अब मन भी कर रहा था मेरा।
रोज का दिन होता तो उसे उस पटरी पे देखकर मैं रोज पटरी बदल देती थी। पटरी आज भी मैंने बदली लेकिन उसके पास आने के लिए। चुपके से सीधे से एकदम उसके पीछे पहुँच गई, और वो चौंक गया।
लेकिन असली मजा तो तब आया, जब उसने मेरी ओर देखा,
भाभी होती तो बोलतीं-
“साल्ले की फट के हाथ में आ गई…”
एकदम वही हालत हुई, और होती भी क्यों नहीं?
मैं दूनो जोबना उभार के ठीक उसके सामने खड़ी थी, मेरे टाप फाड़ते उभार, और बिना ब्रा के,
ऊपर की सारी बटने भी खुली, और मैं इस एंगल से खड़ी थी की सुबह जिस उभार पे उसने हचक के रंग भरा गुब्बारा मारा था, जिसका रंग अभी भी नहीं उतरा था,
उसकी झलक एकदम साफ-साफ, कुछ देर तक तो बिचारे का मुँह खुला का खुला रह गया।
मुश्किल से बोल फूटे,
बल्कि पहले मैं ही बोली-
“हैप्पी होली…”
बिचारा मुश्किल से बोल पाया- “हैप्पी होली…”
फिर उसकी निगाह वहीं मेरे उभार पे। गोलाइयों और गहराइयों पे, और उसपे लगे रंग पे।
हिम्मत करके बोल पाया- “हे सुबह जोर से तो नहीं लगा?”
“पहले मारते हो, फिर हाल पूछते हो?”
बड़ी अदा से मुश्कुरा के मैं बोली, एक बार फिर जोबन का जलवा दिखा के चलने के लिए बढ़ी।
तो पीछे से वो बोला,-
“अरे जानू, आज होली है, आज तो डलवा लो…”
मैंने कुछ जवाब नहीं दिया, खिस्स से हँस दी।
और आगे बढ़ के विनया के घर की ओर मुड़ते, एक पल रुक के उसकी ओर देखा,
जीभ निकालकर चिढ़ाया, और छेड़ते हुए बोली-
“डालने वाले डाल देते हैं, पूछते नहीं है…”
जब तक वो कुछ जवाब सोचता, मैं विनया के घर के अंदर।
जैसे मैंने घंटी बजाई, विनया ने दरवाजा खोला। शोला लग रही थी, शोला।
वैसे ही पूरे शहर में आग लगाती रहती थी, लेकिन आज तो, एक स्टिंग टाइप चोली और सारोंग किसी तरह कूल्हे पे अटका।
आज न उसने हड़काया न गालियां सुनाई, बस सीधे खींच के अंदर कमरे में ले गई।
मेरी भी ऊपर की सांस ऊपर, नीचे की नीचे, सो स्ट्रांग, सो हैंडसम, सो मैस्क्युलिन, बिचारी विनया क्या, कोई भी लड़की खुद अपनी पैंटी सरकाने को तैयार हो जाती।
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विनया के जीजू
जैसे मैंने घंटी बजाई, विनया ने दरवाजा खोला। शोला लग रही थी, शोला। वैसे ही पूरे शहर में आग लगाती रहती थी, लेकिन आज तो, एक स्टिंग टाइप चोली और सारोंग किसी तरह कूल्हे पे अटका। आज न उसने हड़काया न गालियां सुनाई, बस सीधे खींच के अंदर कमरे में ले गई।
मेरी भी ऊपर की सांस ऊपर, नीचे की नीचे, सो स्ट्रांग, सो हैंडसम, सो मैस्क्युलिन, बिचारी विनया क्या, कोई भी लड़की खुद अपनी पैंटी सरकाने को तैयार हो जाती।
जीजू वास्तव में, विनया के जीजू मेरे जीजू।
टी-शर्ट और शार्ट में, खूब गोरे, लम्बे, रसीले और एक-एक मसल्स उनकी खुली बांहों की छलक रही थी।
टेबल पर व्हिस्की की खुली बोतल रखी थी, ग्लासेज
और दीवाल पर लगे 40” इंच के टीवी पर शायद कोई मस्त ब्लू-फिल्म चल रही थी,
जिसे पाज कर दिया गया था।
मेरी निगाहें जीजू पर चिपकी थीं और
उनकी निगाहें मेरे छोटे से टाइट टाप को फाड़ते मेरे नए-नए आये जुबना पे टिकी थीं।
और उनकी चोरी जब मुझसे नहीं छिपी तो उनकी खेली खायी, खास साली, विनया से कैसे छिपती।
मुझे धकेल कर उनके बगल में बिठाती दुष्ट बोली-
“अरे दूर से क्यों ललचा रहे हैं। पास से देख लीजिए, ठीक से नाप जोख कर लीजिए,
ये भी आपकी साली है, जो जो आप मेरे साथ कर सकते हैं इसके साथ भी कर सकते हैं…”
विनया की बात बीच में काटती, मैं खुद जीजू के पास चिपक के बैठ गई और अपना हाथ उनके कंधे पर रखकर ठसके से बोली-
“उससे से भी ज्यादा, कोई रोक टोक नहीं, तू हट न सुबह से जीजू से चिपकी बैठी है।
अब मेरा नंबर है…”
जीजू की तो चांदी हो गई। उन्होंने सामने पड़े ग्लास में थोड़ा सा ढाल कर, मेरी ओर बढ़ाया।
मेरी तो लग गई, विनया को भी मालूम था की मैंने ड्रिंक कभी नहीं किया। मैं बोली-
“जीजू प्लीज… नहीं, मैंने इसके पहले कभी नहीं लिया, मैं लेती नहीं, आज तक नहीं…”
बात विनया ने सम्हाली, हड़काती बोली-
“अरे मेरी नानी, आज होली है। जो चीज आज तक नहीं घोंटा वही तो घोंटने का दिन है। चल जीजू का परसाद समझकर ले ले, बस होंठ गीला कर ले…”
और आँख से इशारा भी किया-
“ले ले वर्ना कहीं जीजू बुरा मन गए तो सब किया धरा…”
जीजू- “हाँ प्लीज, अरे तेरे जीजू की पहली रिक्वेस्ट है मान जा…”
मुझसे वो बोले और अपनी साली से कहा- “विनया यार जरा पकौड़े तो ले आना…”
फिर उन्होंने मुझे कुछ अपनी ओर खींचा, और मैं कुछ, आधी से ज्यादा अब मैं जीजू को गोद में थी, लैपटाप। उनका एक हाथ कस के पेग मेरे होंठों से लगाए था और दूसरा हाथ अब हल्के-हल्के टाप के ऊपर से मेरे उभारों को सहला रहा था।
मैं- “चलिए जीजू, आप भी क्या याद करेंगे कैसी साली से पाला पड़ा है…”
और मैंने होंठ खोल दिया। बस ग्लास की व्हस्की मेरे होंठों से होते हुए सीधे पेट में, जाने कैसे-कैसे लग रहा था।
लेकिन आज मेरी हिम्मत बढ़ी हुई थी, मुश्कुरा के जीजू से मैं बोली-
“किस साल्ली की हिम्मत है जो मेरे इत्ते प्यारे हैंडसम जीजू को मना करे?”
बस, अबकी जो जीजू ने पेग बनाया तो सीधे एक बार में ही, पूरा का पूरा।
बुरा सा मुँह बनाते मैं बोली-
“जीजू, मुझे यही बात नहीं अच्छी लगती, थोड़ा-थोड़ा कहते-कहते पूरा अंदर डाल देते हैं…”
जीजू- “अरे तुम साल्लियों को अच्छा भी तो यही लगता है। आधे तीहे में क्या मजा?”
जीजू ने ये कहते हुए अब खुल के मेरे उभार को कस के टाप के ऊपर से दबोच लिया और रगड़ते मसलते बोले।
मैं- “बात तो जीजू आपकी एकदम सही है…” खिलखिलाते मुश्कुराते मैं बोली।
शार्ट में जीजू का खूंटा पूरी तरह खड़ा हो चुका था और मैं अपने कोमल सेक्सी नितम्बों पर उसका दबाव खुल के महसूस कर रही थी। शरारत और मस्ती में क्या खाली जीजू का नाम लिखा था, हम सालियां कौन सी कम है।
एक बार कातिल अदा से मैंने जीजू को मुश्कुरा के देखा,
हल्के से अपने नितम्बों को उनके तने खूंटे पे रगड़ते हुए उन्हें इस बात का इशारा दे दिया की उनकी साली को भी मालूम हो गया है की शेर अब बेताब हो रहा है।
उसे बहुत देर तक पिजड़े में बंद नहीं रख सकते।
साथ ही मैंने खुद झुक के बोतल से व्हिस्की ग्लास में ढाल के बड़ा सा पेग बनाया, और अपने होंठों से बस जूठा करके जीजू के होंठों पे, (मैं सोच रही थी इसी बहाने शायद मैं पीने से बच जाऊँगी।)
जीजू ने पूरा का पूरा पेग गटक लिया। लेकिन जीजू भी कम चालाक नहीं थे। मेरे हाथ तो ग्लास में फंसे थे, बस उन्होंने मुझे पकड़कर अपनी ओर भींचा, चुम्मा लिया खूब जोर से, और फिर पूरा का पूरा बड़ा पेग सीधे उनके मुँह से मेरे मुँह में,
और जब तक सारा का सारा मेरे पेट में नहीं गया, उन्होंने मेरे मुँह छोड़ा।
मैं समझ गई बचने की कोई कोशिश करना बेकार है, तब तक विनया पकौड़े लेकर आ गई
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(04-04-2019, 01:21 AM)Bunty4g Wrote: अद्भुत....बेहतरीन.....
Thanks so much ....
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क्या कमाल की लिखाई है, और पिक्चर भी बढ़िया सेट किए है ,अपडेट जल्दी दीजिए,
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(10-04-2019, 07:11 PM)Veer.rajvansh Wrote: क्या कमाल की लिखाई है, और पिक्चर भी बढ़िया सेट किए है ,अपडेट जल्दी दीजिए,
Thanks so much...update aaj
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विनया
विनया पकौड़े लेकर आ गई एकदम गरमा-गरम, बस मैंने सीधे प्लेट से एक पकौड़ा उठाया, अपने गुलाबी रसीले होंठों के बीच पकड़ा, और जीजू को आफर कर दिया-
“क्यों जीजू लेना है…” और कस के आँख मार दी।
बस जीजू के लालची होंठ सीधे मेरे होंठों पे, लेकिन मैं काम शरारती थोड़े थी।
पकौड़ा मेरे मुँह ने गप्प कर लिया।
लेकिन जीजू कौन से कम थे, उनकी जीभ मेरे मुँह के अंदर, और अब जैसे वो मेरे गुलाबी होंठ चूस रहे थे, मैं उनकी जीभ चूस रही थी।
जमकर जीभ लड़ाई के बाद, मेरे मुँह से, मेरे मुखरस से सने, थूक से लिथड़े, आधा खाया, कुचला पकौड़ा सीधे जीजू के मुँह में।
वैसे भी जीजू के दोनों हाथ अब बिजी हो गए थे, उनकी ‘फेवरिट’ चीजों में।
एक हाथ टाप उठाकर, सीधे मेरे चूजों पे (ब्रा का कवच तो भाभी ने चलने के पहले ही उतरवा लिया था।)
और दूसरा हाथ स्कर्ट के अंदर पतली सी लेसी पैंटी के ऊपर से मेरी चुनुमिया का रस ले रहा था।
विनया- “अब लग रहा है पक्का जीजू-साली का रिश्ता…” खिलखिलाती विनया बोली।
मैं- “अरे तुझ साल्ली की क्यों सुलग रही है, तू भी आज मैदान में…”
जवाब देने में मैं क्यों चूकती।
विनया- “
अरे साल्ली, इस साल्ली ने तो जीजू के आने के पहले ही सुलगने वाली चीज एकदम साफ सपाट कर दी है…”
विनया बोली और मैदान में आ गई, सीधे बोतल से ग्लास में ढालने के काम में लग गई वो। एक ही ग्लास से हम तीनों।
और पकौड़े मेरे मुँह से जीजू के मुँह में और कभी-कभी उनके मुँह से विनया के मुँह में।
उस समय मुझे क्या मालुम था की पकौड़े, भांग के पकौड़े हैं।
जीजू के दोनों हाथ अब एकदम खुल के, ऊपर मेरे जोबन और नीचे मेरी गुलाबी सहेली का रस ले रहे थे।
वैसे भी दो-दो सालियों के होते जीजू को हाथ का इश्तेमाल करना पड़े तो… कुछ देर में बोतल भी खाली हो गई और पकौड़े की प्लेट भी।
पहली बार मैंने पी थी और फिर भांग के पकौड़े भी साथ में, साथ में सबसे बढ़ के जिस तरह से जीजू के हाथ मेरी चूची और चूत रगड़ मसल रहे थे, मैं नशे में मतवाली हो रही थी।
खड़ी होकर अपने गदराते जोबना को उभार के, जीजू को देखते दिखाते मैंने एक मस्त अंगड़ाई ली और सामने रखी गुलाल से भरी प्लेट को देखते पूछा-
“क्यों जीजू हो जाए होली?”
जीजू भी उसी अंदाज में बोले-
“एकदम, लेकिन मुझे होली साली से खेलनी है उसके कपड़ों से नहीं…”
और जब तक मैं सम्हलती, समझती, उन्होंने मेरा टाप उतारकर फेंक दिया, और गुलाल की प्लेट लेकर दूसरे कमरे में।
मैं और विनया उनके पीछे-पीछे दूसरे कमरे में।
जीजू लम्बे भी बहुत थे और तगड़े भी बहुत। हम लोगों का गुलाल और रंग का सारा स्टॉक उन्होंने कब्जे में कर लिया।
यहां तक की मैं घर से जो पेंट की ट्यूब्स लाई थी और भाभी ने बरतनों की कालिख और काजल मिला के जो पक्का स्याही वाला रंग बनाया था, एक छोटी सी बोतल में वो भी लाई थी मैं, वो भी उन्होंने जब्त कर लिया था।
एक अबीर-गुलाल का पैकेट सीधे उन्होंने मेरे चेहरे और टापमुक्त उभारों पर खोल के, चेहरा और मेरे गदराए जोबन लाल गुलाबी हो गए। दुष्ट भी बहुत थे वो और मौका परस्त भी।
जरा सा अबीर मेरी कजरारी आँखों में भी गिर गया। मैं आँख से अबीर निकालने लगी और बदमाश जीजू ने ये भी नहीं की इन्तजार करें, आँख से अबीर निकलने का… बस मौका पाया और पीछे से दबोच लिया, ढेर सारा सूखा रंग अपनी मुट्ठी में भर के, मेरे दोनों उभारों को।
रंग तो बहाना था।
पूरी मस्ती से जिस तरह से वो मेरी चूचियां रगड़ मसल रहे थे और साथ में उनका मोटा बित्ते भर का खूंटा, शार्ट को फाड़ता सीधे मेरे कुंवारे किशोर पिछवाड़े के बंद दरवाजे के अंदर घुसने की कोशिश कर रहा था।
सच तो ये है की भले मैं छोड़ो-छोड़ो कर रही थी, जीजू को भला बुरा कह रही थी, लेकिन मैं अच्छी तरह पनिया गई थी।
जिस तरह जीजू हथेली से मेरी चूची रगड़ रहे थे और साथ में अंगूठे और तरजनी के बीच कस कस के मेरी कंचे की तरह गोल-गोल कड़े खड़े निपल पिंच कर रहे थे थे, मेरी सिसकियां निकल जा रही थी।
जीजू के दोनों हाथ मेरा जोबन लूटने में लगे थे और मौके का फायदा उठाया विनया ने। जीजू ने मुझे टापलेश किया था, तो विनया ने जीजू की टी-शर्ट झटके में उतार के उन्हें भी टापलेश कर दिया।
लेकिन बिचारी विनया, उसने तो सिर्फ स्ट्रिंग चोली पहन रखी थी और जीजू ने दाएं हाथ से मेरे उभार को मसलना रगड़ना जारी रखा, और बाएं हाथ से विनया की चोली खोल दी, सरक कर वो फर्श पर गिर गई।
अब तो जीजू के दोनों हाथों में लड्डू। एक हाथ से मेरी चूची मसल रहे थे और दूसरे से विनया की। और बात यही तक नहीं रुकी, बहुत ताकत थी हाथों में। एक साथ बाएं हाथ से उन्होंने मेरी और विनया की पतली-पतली कलाइयां दबोच लीं थी और छुड़ाना तो दूर हम दोनों टस से मस नहीं हो सकते थे। और दाएं हाथ से दोनों सालियों की रंगाई पुताई।
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(11-04-2019, 06:31 PM)rajeshsarhadi Wrote: wah kya shuruwat hai
Thanks so much
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Wow very erotic storie bro keep it up
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(11-04-2019, 06:56 PM)Ppatel777 Wrote: Awesome update it's good to see your story back in new forum
Thanks please do read my new story Mohe rang de too
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(12-04-2019, 02:53 PM)komaalrani Wrote: Thanks please do read my new story Mohe rang de too
Mein ne aapki xossip pe bhi Sabhi story padi hai aap ek talented writer ho aapki story padne me bohat MAza aata hai aap ki har story mein padta hu mein story aap bas aise hi story likhte rahiyega looking forward in the story
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(12-04-2019, 07:32 PM)Ppatel777 Wrote: Mein ne aapki xossip pe bhi Sabhi story padi hai aap ek talented writer ho aapki story padne me bohat MAza aata hai aap ki har story mein padta hu mein story aap bas aise hi story likhte rahiyega looking forward in the story
Thanks so much
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Too long time u have taken for update please update very soon all readers are waiting
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09-07-2021, 06:01 PM
(This post was last modified: 03-03-2022, 06:38 AM by usaiha2. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
Best story
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