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Misc. Erotica गैंग्स ऑफ फातिमा एंड टीम ।
#1
Hello friends. मै इस वेबसाइट में नया हूं । कहानी लिखने का कोई खास अनुभव नहीं है मुझे इसीलिए अगर मेरी कहानी थोड़ी boring लगे तो कृपया करके मुझे सूचित अवश्य करे । इस कहानी के कोई भी पात्र सत्य होने का दावा नहीं करता तथा यह सभी पात्र काल्पनिक है जिसका किसी से कोई संबंध नहीं। इस कहानी में किसी भी व्यक्ति विशेष को हानि नहीं पहुंचाई जाएगी । हमारा और आपका साथ बना रहे  ऐसा प्रयास जरूर रहेगा हमारा । 



 लखनऊ जिला में फातिमा कुरैशी नाम की एक औरत थी । उमर 29 वर्ष की । दिखने में बहुत ही खूबसूरत और दिल को झिंझोड देने वाली हस्न की मल्लिका । कोई भी उसे देखे तो खुद को रोक ना पाए । भारतीय रेलवे में नौकरी करती थी । रेलवे में टिकट काउंटर पर बैठती थी । लोगो का टिकट तो कभी कभी कई लोगो का चुतिय भी काट लेती थी । पैसों की पुजारी थी । कई दफा रेलवे में चोरी भी की लेकिन नसीब अच्छा होने की वजह से बच जाती थी । फातिमा को पैसों से ऐश और आराम की जिंदगी चाहिए लेकिन रेलवे की तंखा में कहा यह साब था । वैसे फातिमा के महीने की कमाई आची थी । रेलवे की तरफ से घर की सुविधा भी थी । 

    1991 का वक़्त था । ये वो दौर था जब जब लोग हिंदी पिक्चर के दीवाने थे तो उनमें से कई लोग गैंगस्टर के सपने देखते थे । ड्रग्स money लॉन्ड्रिंग, कोठे का धंधा और नजाने कितने गंदे काम होते थे । उन दिनो ना तो कोई मोबाइल फोन था ना कोई इंटरनेट की सुविधा । गुनाह कब हो जाए और गुनहगार के पकड़े जाने की कोई खास गारंटी नहीं थी ।  

   फातिमा रेलवे में रोज की तरह काम कर रही थी । रोज की तरह सुबह 8 बजे से टिकट काउंटर पर काम कर रही थी । थोड़ी देर काम करने पर एक आदमी आया और फातिमा को एक letter दिया । उस letrer मे फातिमा का ट्रांसफर ऑर्डर था । फातिमा को थोड़ा झटका लागा क्योंकि ट्रांसफर हुए उसे सिर्फ 6 महीने ही हुए थे तो भला आब किस बात का ट्रांसफर  ? बस यही बात उसे समझ ना आईं । तुरंत वह उठके अपने सीनियर ऑफिसर के पास पहुंची ।

"May I come in sir ?" फातिमा ने दरवाजा खटखटाया ।

"Come in." ऑफिसर ने कहा । 

"सर यह में क्या देख रही हूं ? मेरा ट्रांसफर letter ? ये कैसे हो सकता है ? अभी तो 6 महीने ही तो हुए मुझे यह आए ।" 

"अब हों गया तो हो गया । इसमें इतना क्या सोच रही हो ?"

"ये क्या के रही है आप अजीब बात है मेरा ट्रांसफर हुआ तो हुआ एक गांव में ? मध्य प्रदेश के कुसाग गांव में ? वहा के बारे में मुझे कुछ भी नहीं पता । आखिर ये तो बताइए की मेरा ट्रांसफर किस आधार पर हुआ ।"

ऑफिसर ने ग्लास पानी पीते हुए कहा "जो लापरवाही आप कई दिनों से रेलवे मे कर रही है ना उसका परिणाम है ये । दूसरी बात आपको तो नौकरी से निकालने वाले थे लेकिन मेरी सिफारिश से बच गई आप और इसीलिए इस कचरे से गांव में ट्रांसफर हुआ आपका वरना हो जाती suspend"

"लेकिन sir फ़िर भी। अच्छा वहा कोई रहने की arrangemt हुई ?"

"थोड़ा टाइम लगेगा पता लगाने में तब तक किसी lodge में रुक जाओ जैसे ही जवाब मिलेगा तुम्हारा रेलवे कॉलोनी में शिफ्ट करवा दिया जाएगा ।"

"बाकी काग़ज़ात का काम आज ही कर लेती हूं । 1 हफ्ते बाद joining होगी ।"

"Wish you all the best. Take care."

"Thank you sir."  इतना कहकर फातिमा अपने जगह से उठकर चली गई। 

     घुस्से से लाल पीली हुई फातिमा को इस बात की चिंता थी कि ऐसे बेकार जगह पोस्टिंग से प्रोमोशन कैसे मिलेगा ? बड़ा पोस्ट लेकर वह पैसों की हेरा फेरी कैसे करेगी ? उमर जा रही थी लेकिन अमीर बनने का वक़्त भी हाथ से जा रहा था । उन सब बातो में से एक बात अच्छी थी कि कम से कम उस असलम से पीछा तो चूट गया । बार बार गान्ड पे नज़र डालता रहता था टपोरी साला । 

     फातिमा घर पहुंचते ही सामान पैक करना शुरू किया । वैसे भी फातिमा अकेले रहती थी तो भला काम ही कितना ? फातिमा ने ये नौकरी भी दो नंबरी से पाया था । साल 1984 के  वक़्त लखनऊ में सुल्ताना गैंग का दबदबा था । फातिमा ने बड़ी मिन्नत करके उससे मदद मांगी । गैंग का लीडर हाजी हुसैन लट्टू था फातिमा पे । बस नौकरी लगवा दी लेकिन अपने लन्ड को उसकी चूथ पे लगवा दी । फातिमा भी काम शानी नहीं थी एक रात उसका बिस्तर गरम करने के बाद सिक्युरिटी को फोन करके एनकाउंटर करवा दिया जिससे उसने इनाम भी खूब कमाया ।  
     
    उसके बाद तब से फातिमा ने कई लोगो को बेवकूफ बनाया है । फातिमा का मानना था कि पैसा ही महान । अगर वो नहीं तो कुछ नहीं । बिना लगाम की घोड़ी थी यह चालू फातिमा । एक तरफ फातिमा तो दूसरी तरफ उसके सपने । 

     फातिमा ने 3 दिन बाद अपना letter रेलवे को दिया और फिर मध्य प्रदेश के कुसााग गांव के लिए निकल गई । कुसाग़ गांव मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के सीमा में था । काफी पुराना गांव था । वहा एक ही कॉलेज और अस्पताल था । रहने को अजनबियों के लिए एक lodge था । फातिमा को पता चला lodge के बारे में तो वहा चलने का फैसला किया । वैसे भी रेलवे कॉलोनी में सारे घर भर गए थे इसीलिए रहने का जुगाड भी करना पड़ेगा। रेलवे से कूसाग़ गांव बहुत नजदीक था। एक किलोमीटर का अंतर था । जिस lodge में फातिमा जा रही थी उस lodge का नाम था अख्तर lodge जो काफी साल पूराना था । उस lodge में सिर्फ 4 कमरे थे । फातिमा स्थानीय लोगो की मदद से वहा पहुंची । Lodge के दरवाजे के ठीक सामने एक टेबल और कुर्सी में एक आदमी था । वो वहा बैठा अखबार पढ़ रहा था । सफेद कुर्ता और नीली रंग की लूंगी । लंबी सफेद दाढ़ी वो भी लंबी । उमर करीब 60 या 65 और दिखने में खूब पतला । 

     नज़र नीचे अखबार पढ़ रहा उस आदमी का ध्यान दरवाजा खुलने की वजह से टूट गया । सामने देखा तो एक जवान और गोरे चमड़े वाली औरत आईं हुई थी जिसे देख वो बुड्ढा हड़बड़ा गया । हड़बड़ा इसीलिए गया क्योंकि सालो से इस lodge में कोई खातून नहीं आयी थी। अब अचानक से किसी औरत के आने पर थोड़ा अजीब तो लगेगा ही । सबसे ज्यादा अजीब इस बात का लगा की उसके हाथ में बक्सा था । 

"सलाम मोहतरमा यहा आना कैसे हुआ ?" बुड्ढे ने बड़े हैरानी से पूछा । 

"जी मुझे ये जानना था कि lodge में कोई कमरा खाली है ?"

"जी यह पे कुल चार कमरे है जिसमें से एक ही खाली है । आप रहना चाहेंगी ?"

"जी बिल्कुल ।" 

"तो ठीक है जाइए और अपने शौहर को लाइए उसके बाद अपना सामान लेकर रहना शुरू कर दीजिए ।"

"माफ़ करना मेरा कोई शौहर नहीं है ।"

"अच्छा कोई बात नहीं अपने अब्बा को बुलाइए ।"

"जी मै अकेली आयि हूं ।"

बुड्ढे का मुंह खुला का खुला रह गया । वह बड़ा हैरान हुआ "जी आप करती क्या है ?"

"में रेलवे में नौकरी करती हूं । मेरा ट्रांसफर हुआ है लखनऊ से और में यह के पास वाले रेलवे क्वाटर खाली ना होंने की वजह से यह  पे 
आईं हूं ।"

बुड्ढे ने रजिस्टर निकलते हुए कहा "पहली बार कोई औरत यह पे रहने आईं है । आईं तो आईं बिना किसी के साथ । ये रहा रजिस्टर आपका नाम और पूराना पता जरूर लिख दीजियेगा । यह नीचे advance का रकम लिखा है बस उसे पहले भर दीजिए ।" 

  फातिमा details लिखने लागी और बुड्ढा आगे बोला
 "आपको कुछ बात बता दूं। आपका कमरा  दाए तरफ पहले वाला कमरा है । कमरे में बाथरूम की सुविधा है और यह अपने 
कमरे की सफाई रहने वाले को खुद ही करनी होगी । बाकी के lodge की सफाई  खुद कर दूंगा और यह खाना में बनता हूं ।"

फातिमा ने details लिख लिया और बुड्ढे को सौंप दिया ।

"वैसे आपका नाम क्या है ?" 

"जी मेरा नाम सय्यद अंसारी है । मैं इस lodge की देखभाल करता हूं।"

सय्यद ने details देखा तो हैरान हो गया । "आपका नाम फातिमा कुरैशी है ?"

"है तो कोई गलत हो गया क्या ?"

"आपका शौहर नहीं है क्या ?"

"नहीं ।"

"या अल्लाह ये क्या ? आपने निकाह नहीं किया और अकेले रहती है साथ ही साथ नौकरी भी करती है ?"

"इसमें क्या गलत है ?"

"तौबा तौबा हमारे *ों में यह गलत है । औरतों का काम घर में है ना कि बाहर । सा समाज गलत मानेगा इसे । एक * होकर ऐसी गलती आप कर रही है ?"

"* हूं इसीलिए अकेली रहना या नौकरी करना हराम है ?"

"लोग गलत कहेंगे ।"

"पहली बात मुल्क इन चीजों की आज़ादी देती है । हम भारत में है कोई अरब मुल्क में नहीं । आगे की सोचो पीछे की नहीं ।" फातिमा ने थोड़ा घूस्सा दिखाते हुए कहा ।

"अरे आप तो बुरा मान गई । मेरा वो मतलाब नहीं था ।"

"मुझे आदत हो गई ऐसे सवालों की ।"

"देखिए में आपसे माफ़ी मांगता हूं । मेरी बात आपको बूरी लागी हो तो ।" सय्यद ने माफ़ी मांगते हुए हाथ जोड़ा । 

  फातिमा को बुरा लगा । अपने से बुजुर्ग आदमी से माफ़ी मंगवाना उसे सही नहीं लागा । फातिमा का घुस्सा शांत हो गया और दिल भी पिघल गया । 

"अरे आप मुझसे बड़े है । माफ़ी मात मांगिए । मुझे जहनुम में नहीं जाना । मेहरबानी करके खुदा के वास्ते ऐसा ना करिए ।" 

"शुक्रिया ये बड़ी बात कहने के लिए ।"

"चलिए में चलती हूं।" फातिमा सामान उठाने लगी ।

सय्यद दोस्त हुआ उसके पास आया और बोला "अरे आप मुझे दे दीजिए थोड़ा सामान में ले चलता हूं ।"

"अरे लेकिन ...."

"लेकिन वेकीन कुछ नहीं । आब चलिए ना ।"

     सय्यद फातिमा को कमरे तक ले गया और सामान सही जगह पे रखके बोला "आब में चलता हूं शाम होनेवाली है रात के लिए खाना बनाना है । अच्छा ये बताईए खाना यह लाऊ या आप सबके साथ खाएंगी ?"

"में खुद मेस में आ जाऊंगी । आप फिकर मात करिए ।"

"ठीक है । आप थोड़ा आराम कर लीजिए रात को मिलेंगे । खुदा हाफिज ।"

"खुदा हाफिज ।" 

      फातिमा फ्रेश होकर थोड़ा आराम किया । वैसे भी ठंडी का वक़्त था तो सामान भी ज्यादा ही होंगे ।  ठंडी बहुत ज्यादा थी और रात जल्दी हो गई ।  फातिमा खिड़की से रात का नज़ारा देख रही थी । वहा उसकी नजर खेत और रेलवे लाइन पे पड़ी । सामने देंखा तो चार गाड़ियां जा रही थी । वहा गाड़ी अचानक से रुक गई और देखा तो कई आदमियों के हाथ में बंदूके थी । उसमे से एक बुड्ढा आदमी बाहर निकाला जो सफेद पठानी कुर्ता में था । ऊपर सफेद टोपी दिख रही थी । हाथ में कट्टा था जो ऊपर की तरफ लहराते हुए बाकी के लोगो को अलविदा कह रहा था । चार गाड़ियां वहा से रेलवे ट्रैक क्रॉस करके दूर चली गई और वो आदमी एक बड़ी अंगड़ाई लेते हुए lodge की तरफ आ रहा था । फातिमा को समझ में नहीं आ रहा था कि यह बुड्ढा है कौन ? थोड़ी देर तक दिमाग में ये सवाल चलता रहा।  तभी एक आदमी के आने की आवाज़ आई । फातिमा तुरंत दौड़ते हुए दरवाजा को हल्के से खोला और देखा कि वही बुड्ढा सामने वाले कमरे में चला गया ।  फातिमा को इतना पता चल गया कि ये बुड्ढा इसी lodge में रहता है । 

    इस आदमी के बारे में जानने के लिए फातिमा नीचे गई  । नीचे मैस की तरफ गई तो सामने सय्यद था । सय्यद मुस्कुराते हुए बोला "आ गई आप ? में खुद आपको बुलाने वाला था । अच्छा हुआ आप आ गई । आइए खाना तैयार है ।" सय्यद ने टेबल पे खाना लागा दिया । चार लोगो का खाना लगा दिया । 

फातिमा थोड़ा सा धीमी आवाज़ में पूछी "सय्यद जी यह आदमी कौन है जो अभी अभी सामने वाले कमरे में गया ।"

"अरे वो ? वो तो है मेहमूद सिद्दीक़ी है । यह रहता है ।"

"लेकिन हाथ में कट्टा ?"

"वैसे फातिमाजी यह  बात आपको बता दूं की जिस जगह हम रह रहे है मतलब क़ुसाग गांव यह गांव कट्टो से ही चलता है । यह का बाहुबली है शोहैब अब्बासी उसके लिए काम करता है यह मेहमूद । कई बार यह पे गोलीबारी हुई है । इस गांव को तो आदत है इन साब चीजों की । आप थोड़ा सतर्क रहना । रात के समय ज्यादा बाहर मत जाना । यह के आवारा बदमाश आए रात औरतों के साथ खराब हरकत करते है अगर मिल गई तो और आप तो है ही किसी खूबसूरत परी जैसी ।"

"मेरी तारीफ करने के लिए शुक्रिया लेकिन......." फातिमा इससे आगे कुछ बोलने जाए कि तभी मेहमूद जगह पे आकर बोला "सलाम सय्यद मिया ।"

"सलाम मेहमूद मिया ?" 

  फातिमा की नजर मेहमूद पे पड़ी । काफी मोटा और पेट बाहर निकाला हुआ था उसका । लंबी घनी दाढ़ी वो भी काली । मेहमूद अपने बाल और दाढ़ी काले करवाता था ।   उसी वक़्त दो और आदमी आए जो बदकिस्मत से बुड्ढे ही थे । फातिमा को भी मन में हसी आ गई । इस lodge में चारो के चार बुड्ढे ही है । तीन बुड्ढों ने फातिमा को देखा तो हैरान हो गए । जो भी तो क्यों ना आखिर पहली बार कोई औरत इस lodge में आईं है । 

"जनाब ये आपकी बेटी है  ?"

"नहीं इनका नाम फातिमा कुरैशी है । ये रेलवे में काम करती है । ट्रांसफर हुआ है । यह रहेगी जब तक कोई एक रेलवे क्वाटर खाली ना हो ।"

"चलो अच्छा है कोई तो औरत आईं वो भी पहली बार। कुछ तो अब से अच्छा देखने को मिलेगा ।" मेहमूद गंदे ढंग से कहा ।

"फातिमा में तुमको बाकी के दो लोगो से पहचान करवाता हूं।" सय्यद ने कहा ।

"रहने दो सय्यद मिया हम खुद अपनी पहचान करवा देंगे ।" आधी बाही के शर्ट में खड़ा बुड्ढा आगे बोला "मेरा नाम शाकिब अल मख़दूम है । में बांग्लादेश का हूं। 20 साल से यह रह रहा हूं ।"

"अपने मुल्क वापिस नहीं गए ?"

"अरे वापिस जाके क्या करेंगे ? अब तो यह टिक गया हूं ।" शाकिब पान थूकते हुए कहा । 

"करते क्या है आप ?" फातिमा ने पूछा ।

"नचानियो का काम । मतलब ऑर्केस्ट्रा का काम । जवान नाचने वाली को काम दिलवाता है नाचने का साथ में दारू की दुकान है । माधरचोद यह कानून तोड़के आया है । ये हमारे मुल्क का नहीं है ।" मेहमूद टेबल पे बैठते हुए कहा ।

"क्या फिर यह कैसे ।"

"सय्यद मिया ने मदद की । वैसे भी एक ही मजहब है तो एक दूसरे के काम तो आएंगे ही ना ।"

फातिमा की नजर तीसरे पे गई ।  जो लूंगी और कुर्ता में था वह भी मेला ।  वह बुड्ढा बोला "मेरा नाम अब्बास नकवी है । पास में चिकन और मटन का दुकान है मेरा । में 25 साल से यह हूं ।"

"क्यों रे आज गोश्त नहीं लाया ?" मेहमूद ने पूछा ।

"कल लाएंगे । फातिमा जी आप खती है ना ?"

"अबे ओ ये कोई ब्राह्मण नहीं है हमारे बिरादरी की है खाएंगी ही ।" सय्यद ने हस्ते हुए कहा ।

सभी बुड्ढे हस पड़े । फातिमा को इतना तो पता चल गया कि इस lodge में सभी लोग कुछ ना कुछ गलत काम करते थे । सय्यद का कुछ खास मालूम नहीं पड़ रहा था । रात के वक्त जब सब खाना खाके चले गए तो फातिमा अपने कमरे में गई । ठंडी का मौसम था इसीलिए रजाई तैयार कर रही थी । ठंडी में सन्नाटा ज्यादा होता है इसीलिए नीचे से आही हुई आवाज़ ऊपर तक पहुंच जाती है । नीचे मेहमूद और शाकिब बात कर रहे थे । फातिमा की उनकी बाते सुनाई दे रही थी ।

"अबे शाकिब ये दारू का धंधा ठीक नहीं चल रहा क्या ? जो लाना भूल जाता है ।"

चिल्लम फुकते हुए शाकिब बोला "अबे चिल्लम चोड गांजा का ऑर्डर आया है । शोहेब भाईजान को बोल की कल गांजे का बड़ा ट्रक यह से जायेगा गाजियाबाद की तरफ । खबर पक्की है ।"

"साले पक्का ना । नहीं तो मोहिजुद्दिन को पता चला तो मार डालेगा तुझे । लेकिन इसके बारे में तुझे पता कैसे चला ?"

"आज ठेके पे दारू पीने आया था मोइजुद्दिंन का आदमी । पीते पीते अपने साथियों के साथ ये बात बताई और मैंने सब सुन लिया ।"

"सच में ?"

"है खबर पक्की है । कल रात से पहले शाम के 6 बजे ट्रक यह से पसार होगी ।"

"अगर ये खबर पक्की निकली तो तू जानता नहीं शोहेब भाई तुझे कितनी शाबाशी देंगे ।"

"मुझे शाबाशी नहीं कुछ और चाहिए ।"

"क्या ?"

"वो उसके हवेली में काम करती है ना वो नचनिया नगमा वो चाहिए एक रात के लिए ।"

"वो साली जवान है और तू बुड्ढा खड़ा भी होगा तेरा ?"

"उस नगमा को मेरे बिस्तर में भेज साली को ऐसा चोदूंगा कि मेरा नाम लेते फिरेगी ।"

    दोनों कामिने बुड्ढे जोर जोर से हंसने लागे । फातिमा ने सब सुन लिया ।  फातिमा को इन सब में खास पड़ना नहीं था इसीलिए कोई खास ध्य नहीं दिया और वो सोने चली गई । रात का वक़्त था और सभी लोग सोने चले गए । फातिमा को देर रात तक नींद नहीं आ रही थी ।  उस बार बार अं दोनों की बात याद आ रही थी ।  उसका शैतान मन जाग गया और सोचा इन दो माफिया गैंग के बीच पैसा कैसे कमाया जाए । उसके मन में ये बात गूंजने लागी की इन अफीम के धंधों में कितना पैसा होगा ? सोचो अगर बेरूपिया बैंक मुइजुद्दिन की मदद करे और बदले में मोती रकम ऐठ ले। आखिर इस रेलवे की नौकरी से कब तक ऐश होगा उसके हिसाब से इस माफिया के इलाकों में से जेब भरने का वक़्त आ गया । बारूद के ढेर में बेठा कुसाग गांव का वक़्त आ गया था जलने का और उसे जलने म एक छोटी सी चिंगारी कि ज़रूरत थी जो फातिमा जलाएगी । 

     अब देखना ये है कि फातिमा का क्रिमिनल माइंड कितना हद तक आगे जाएगा ? क्या इन बुड्ढों को लेकर ये अपना गैंग बनाएगी या इन सब को हजम कर जाएगी । आगे जरूर साथ दीजियेगा ।
[+] 3 users Like Vissle's post
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#2
Bohat hi acchi shuruaat.... waiting for next update
[+] 1 user Likes ShakirAli's post
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#3
बहुत अलग कहानी है। बोले तो फुलटू नयी  Big Grin

अगली कड़ी की उत्सुकता से प्रतीक्षा में . . . . .  welcome yourock
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#4
Bro Best Story Ka Update Jaldi Dete Rahna
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#5
nice start.........
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#6
Thank you all
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#7
Bahut badhiya kahani lag rahi hai

Keep it up
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#8
Update please
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#9
Nice plot and characters. Update.
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#10
Please write in Hinglish alphabets. Good story
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