Thread Rating:
  • 0 Vote(s) - 0 Average
  • 1
  • 2
  • 3
  • 4
  • 5
Adultery कामया बहू से कामयानी देवी
#21
.
वो जानता था की वो ज्यादा देर का मेहमान नहीं है। उसकी उत्तेजना शिखर पर है और वो इस कामुक सुंदरी को ज्यादा देर नहीं झेल पाएगा। इसलिये वो अपने गंतव्य स्थान पर पहुँचने की जल्दी में था और बिना किसी रोक-टोक के अपने शिखर की ओर बढ़ने लगा था।

उधर कामया जो की नीचे काका के हर धक्के के साथ ही अपने को एक बार फिर उस अशीम सागर में गोते लगाने लगी थी, जिसमें डूबकर अभी-अभी निकली थी। पर कितना सुखद था यह सफर, कितना सुखदाई था यह सफर, एक साथ दो-दो बार उसकी योनि से पानी झड़ने को था। अब भी उसकी योनि इतनी गीली थी की उसे लग रहा था की पहली बार की ही छूट पूरी नहीं हो पाई थी, की दूसरी छूट की तैयारी हो चली थी। वो भी अपनी कमर को उठाकर काका की हर चोट का मजा भी ले रही थी, और उसका पूरा साथ दे रही थी। अब तो वो भी अपनी जीभ काका के साथ लड़ाने लग गई थी।

वो भी अपने होंठों को उसके होंठों से जोड़कर उन्हें छूने लगी थी की अचानक ही उसके मुख से निकला- “आआह्ह काका और जोर से…”

काका- चुप थे।

कामया- “और जोऽऽर से उउम्म्म्मम…” और वो काका के चारों ओर अपनी जांघों का घेरा बनाकर उसकी बाहों में झूल गई, और काका के हर धक्के को कहीं अंदर, अपने अंदर बहुत अंदर महसूस करने लगी। उसकी योनि से एक बहुत ही तेज धार जो की सीधे काका के लिंग से टकराई और काका भी अब झड़ने लगे। काका की गिरफ़्त बहू के चारों तरफ इतनी कस गई थी की कामया का सांस लेना भी दूभर हो गया था। वो अपने मुख को खोल कर किस तरह से सांसें ले रही थी और हर सांस लेने से उसके मुख से एक लम्बी सी सांस निकलती थी।

काका भी अब अपना दम खो चुके थे और धीरे-धीरे उनकी पकड़ भी बहू पर से ढीली पड़ने लगी थी। वो अपने को अब भी बहू के बालों और कंधों के सहारे अपने चेहरे को ढके हुए थे और अपनी सांसों को कंट्रोल कर रहे थे। दोनों शांत हो चुके थे, पर एक दूसरे को कोई भी नहीं छोड़ रहा था। पर धीरे-धीरे हल्की सी तड़क और तेज हवा का झोंका जब उनके नंगे शरीर पर पड़ने लगा या फिर उनको एहसास होने लगा तो जैसे दोनों ही जागे हों, और अपनी पकड़ ढीली की और बिना एक दूसरे से नजर मिलाए काका ने सहारा देकर बहू के पैर जमीन पर टिकाए और नीचे गर्दन किए दूसरी तरफ पलट गये। वो बहू से नजर नहीं मिला पा रहे थे।

उधर कामया की भी हालत ऐसे ही थी। वो अपने ड्राइवर के सामने ऊपर से बिल्कुल नंगी थी। नीचे खड़े होने से उसकी साड़ी ने उसके नीचे का नंगापन तो ढक लिया था, पर ऊपर तो सब खुला हुआ था, वो भी एक सूनसान से ग्राउंड में। कामया को जैसे ही अपनी परिस्थिति का ज्ञान हुआ, वो दौड़कर पीछे की सीट पर आ गई, और जल्दी से दरवाजा खोलकर अंदर बैठ गई, और अपने कंधे पर पड़े हुए ब्रा और ब्लाउज़ को ठीक करने लगी। उसकी नजर बाहर गई तो देखा की बाहर काका अपनी अंडरवेर ठीक करने के बाद अपनी धोती को ठीक से बाँध रहे थे और अपने चेहरे को भी पोंछ रहे थे।

तब तक कामया ने अपने आपको ठीक किया और जल्दी से कोट भी पहन लिया, ताकी वो घर चलने से पहले ठीक-ठाक हो जाए। अपनी साड़ी को अंदर बैठे-बैठे ठीक किया और नीचे की ओर झटकारने लगी। उसकी नजर बीच-बीच में बाहर खड़े हुए काका पर भी चली जाती थी।

काका अब पूरी तरह से अपने आपको ठीक-ठाक कर चुके थे और बाहर खड़े हुए शायद उसी का इंतेजार कर रहे थे, या फिर अंदर आने में झिझक रहे थे। वो शायद उसके तैयार होने का इंतेजार बाहर खड़े होकर कर रहे थे। पर कामया में तो इतनी हिम्मत नहीं थी की वो काका को अंदर बुला ले। पर उसने काका को तभी ड्राइविंग साइड कर गेट खोलते हुए देखा तो झट से उसने अपना सिर बाहर खिड़की की ओर कर लिया और बाहर देखने लगी। पर कनखियों से उसने देखा की काका ने नीचे से कुछ उठाया और उसको गाड़ी की लाइट में देखा और अंदर की ओर कामया की तरफ भी उनकी नजर हुई।

पर कामया की नजर उस चीज पर नहीं पड़ पाई, जो उन्होंने उठाई थी। पर जब काका को उसे अपने मुँह के पास लेकर सूंघते हुए देखा तो वो शरम से पानी-पानी हो गई, वो उसकी पैंटी थी जो की काका के हाथ में थी। वो अंदर आकर बैठ गये और अपना एक हाथों पीछे करके उसकी पैंटी को साइड सीट के ऊपर रख दिया, ताकी कामया की नजर उसपर पड़ जाए और गेट बंद कर लिया। फिर गाड़ी का इग्निशन चालू करके गाड़ी को धीरे-धीरे ग्राउंड के बाहर की और दौड़ा दिया

गाड़ी जैसे ही ग्राउंड से बाहर की ओर दौड़ी, वैसे ही कामया ने अपनी पैंटी को धीरे से हाथ बढ़ाकर अपने पास खींच लिया, ताकी काका की नजर में ना आए। पर कनखियो से लक्खा की नजर से वो ना बच पाई थी। हाँ… पर लक्खा को एक चिंता अब सताने लगी थी की अब क्या होगा? जो कुछ करना था वो तो वो कर चुके, लेकिन वो चिंतित था कहीं बहू ने इस बात की शिकायत कहीं साहब लोगों से कर दी तो? या फिर कहीं बहू को कुछ हो गया तो? या फिर कहीं उसकी नौकरी चली गई तो? इसी उधेड़बुन में काका अपनी गति से गाड़ी चलाते हुए बंगलो की ओर जा रहे थे।

उधर कामया भी अपने तन की आग बुझाने के बाद अपने होश में आ चुकी थी। वो बार-बार अपनी साड़ी से अपनी जांघों के बीच का गीलापन और चिपचिपापन को पोंछ रही थी। उसका ध्यान अब भी बाहर की ओर ही था, और मन ही मन बहुत कुछ चल रहा था। वो काका के साथ बिताए बक्त के बारे में सोच रही थी, वो जानती थी की उसने बहुत बड़ी भूल कर ली है, पहले भीमा चाचा और अब लक्खा काका, दोनों के साथ उसने वो खेल लिया था जिसका की भविष्य क्या होगा उसके बारे में सोचने से ही उसका कलेजा कांप उठता था।

पर वो क्या करती? वो तो यह सब कुछ नहीं चाहती थी। वो तो उसके मन या कहिए अपने तन के आगे मजबूर हो गई थी। वो क्या करती जो नजर उसपर पड़ी थी भीमा चाचा की या फिर लक्खा काका की वो नजर तो आज तक कामेश की उसपर नहीं पड़ी थी क्या करती वो? उसने जानबूझ कर तो यह नहीं किया हालात ही ऐसे बन गये की वो उसे रोक नहीं पाई, और यह सब हो गया। अगर कामेश उसे थोड़ा सा टाइम देता। या फिर वो कहीं व्यस्त रहती, या फिर उसके लिए भी कोई टाइम-टेबल होता तो क्या उसके पास इतना टाइम होता की वो इन सब बातों की ओर ध्यान देती?

आज से पहले वो तो कालेज और स्कूल में दोस्तों के साथ कितना घूमी फिरी है। पर कभी भी इस तरह की बात नहीं हुई, या फिर उसके जेहन में भी इस तरह की बात नहीं आई थी। सेक्स तो उसके लिए बाद की बात थी। पहले तो वो खुद थी फिर उसकी जिंदगी और फिर सेक्स वो भी रात को अपने पति के साथ घर के नौकर के साथ सेक्स। वो तो कभी सोच भी नहीं पाई थी की वो इतना बड़ा कदम कभी उठा भी सकती थी, वो भी एक बार नहीं दो बार। पहली को तो गलती कहा जा सकता था पर दूसरी और फिर आज भी वो भी दूसरे के साथ
यह गलती नहीं हो सकती थी। यही सोचते-सोचते कब घर आ गया उसे पता भी ना चल।

फिर जैसे ही गाड़ी रुकी उसने बाहर की ओर देखा तो घर का दरवाजा खुला था, पर गाड़ी के दरवाजे पर काका को नजर झुकाए खड़े देखकर एक बार फिर कामया सचेत हो गई, और जल्दी से गाड़ी के बाहर निकली और लगभग दौड़ती हुई सी घर के अंदर आ गई, और जल्दी-जल्दी अपने कमरे की ओर चली गई। कमरे में पहुँचकर सबसे पहले अपने आपको मिरर में देखा। अरे बाप रे… कैसी दिख रही थी? पूरे बाल अस्त-व्यस्त थे और चेहरे की तो बुरी हालत थी। पूरा मेकप ही बिगड़ा हुआ था। अगर कोई देख लेता तो झट से समझ लेता की क्या हुआ है? कामया जल्दी से अपने आपको ठीक करने में लग गई और बाथरूम की ओर दौड़ पड़ी और कुछ ही देर में सूट पहनकर वापस मिरर के सामने थी। हाँ अब ठीक है उसने जल्दी से थोड़ा सा टचिंग किया और अपने पति का इंतेजार करने लगी। वो बहुत थकी हुई थी, उसे नींद आ रही थी और हाथ पांव जबाब दे रहे थे।

तभी इंटरकाम की घंटी बजी। कौन होगा कामया ने सोचा। पर फिर भी हिम्मत करके फोन उठा लिया- “जी…”

मम्मीजी- अरे बहू खाना खा ले, इन लोगों को तो आने में टाइम लगेगा।

कामया- “जी आई…” उसे ध्यान आया, हाँ आज तो उसके पति और ससुरजी तो लेट आने वाले थे। चलो खाना खा लेती हूँ फिर इंतेजार करूँगी। वो नीचे आ गई और मम्मीजी के साथ खाना खाने लगी। पर मम्मीजी तो बस बड़-बड़ किए ही जा रही थी। उसका बिल्कुल मन नहीं था कोई भी बात का जबाब देने का। पर क्या करे?

मम्मीजी- कैसा रहा आज का तेरा क्लास?

कामया- “जी बस…” क्या बताती कामया की कैसा रहा?

मम्मीजी- क्यों कुछ सीखा की नहीं?

कामया- “जी खास कुछ नहीं बस थोड़ा सा…” क्या बताती की उसने क्या सीखा? बताती की उसने अपने जीवन का वो सुख पाया था जिसके बारे में उसने कभी सोचा भी नहीं था? आज पहली बार किसी ने उसकी योनि को अपने होंठों से या फिर अपनी जीभ से चाटा था। सोचते ही उसके शरीर में एक सिहरन सी दौड़ गई थी।

मम्मीजी- चलो शुरू तो किया तूने। अब किसी तरह से जल्दी से सीख जा तब अपन दोनों खूब घूमेंगे।

कामया- जी।

कामया का खाना कब का हो चुका था पर मम्मीजी के बक-बक के आगे वो कुछ भी नहीं कह पा रही थी। वो जानती थी की मम्मीजी भी कितनी अकेली हैं, और उससे बातें नहीं करेंगी तो बेचारी तो मर ही जायेंगी। वो बड़े ही हँस हँस कर कामया की देखती हुई अपनी बातों में लगी थी, और खाना भी खा रही थी। जब खाना खतम हुआ तो दोनों उठे और बेसिन में हाथ मुँह धोकर कामया अपने कमरे की ओर चल दी और मम्मीजी अपने कमरे की ओर। ऊपर जाते हुए कामया ने मम्मीजी कहते हुए सुना।

मम्मीजी- अरे भीमा, ध्यान रखना जरा दोनों को आने में देर होगी तू जाकर सो मत जाना।

भीमा- जी आप निश्चिंत रहें।

तब तक कामया अपने कमरे में घुस चुकी थी उसकी थकान से बुरी हालत थी, जैसे शरीर से सब कुछ निचुड़ चुका था। वो जल्दी से चेंज करके अपने बिस्तर पर ढेर हो गई और पता ही नहीं चला की कब सो गई, और कब सुबह हो गई थी।

सुबह जब नींद खुली तो रोज की तरह बाथरूम के अंदर से आवाजें आ रही थीं। मतलब कामेश जाग चुका था और बाथरूम में था वो। कामया भी बिस्तर छोड़कर उठी और बाथरूम में जाने की तैयारी करने लगी। कामेश के निकलते ही वो बाथरूम की ओर लपकी।

कामेश- कैसा रहा कल का ड्राइविंग क्लास?

कामया- जी कुछ खास नहीं थोड़ा बहुत।

कामेश- हाँ… तो क्या एक दिन में ही सीख लोगी क्या?

कामया तब तक बाथरूम में घुस चुकी थी। जब वो वापस निकली तो कामेश नीचे जाने को तैयार था, और कामया के आते ही दोनों नीचे खाने पीने के लिए चल दिए। कामेश कुछ शांत था, कुछ सोच रहा था पर क्या? कुछ और नहीं पूछा उसने की कब आई थी? कब गई थी? क्या-क्या सीखा और क्या हुआ? कुछ भी नहीं।

कामया का मूड सुबह-सुबह ही बिगड़ गया जब वो नीचे पहुँची तो मम्मीजी चाय सर्व कर रही थीं, और पापाजी पेपर पर नजर गड़ाए बैठे थे। दोनों के आने की आहट से मम्मीजी और पापाजी सचेत हो गये।

पापाजी- कहो कैसी रही कल की क्लास?

कामया- जी ठीक।

पापाजी- ठीक से चलाना सीख लो, लक्खा बहुत अच्छा ड्राइवर है।

कामया- “जी…” वो जानती थी की लक्खा कितना अच्छा ड्राइवर है, और कितनी अच्छी उसकी ड्राइविंग है। उसके शरीर में एक लहर फिर से दौड़ गई। वो अपनी चाय की चुस्की लेती रही और काका के बारे में सोचने लगी की कल उसने क्या किया? एक ग्राउंड में वो भी खुले में कोई देख लेता तो? और कुछ अनहोनी हो जाती तो? पर कल तो काका ने कमाल ही कर दिया था, जब उसके योनि पर उन्होंने अपना मुँह दिया था तो वो तो जैसे पागल ही हो गई थी, और अपना सब कुछ भूलकर वो काका का कैसे साथ दे रही थी।

वो सोचते ही कामया एक बार फिर से गरम होने लगी थी। सुबह-सुबह ही उसके शरीर में एक सेक्स की लहर दौड़ गई। वो चाय पी तो रही थी, पर उसका पूरा ध्यान अपने साथ हुए हादसे या फिर कहिए कल की घटना पर दौड़ रही थी। वो ना चाहते हुए भी अपने को रोक नहीं पा रही थी। बार-बार उसके जेहन में कल की घटना ही घूम रही थी और वो धीरे-धीरे अपनी उत्तेजना को छुपाती जा रही थी।

चाय खतम होते-होते कामया की हालत बहुत ही खराब हो चुकी थी। वो अब अपने पति के साथ अपने कमरे में अकेली होना चाहती थी, और अपने तन की भूख को मिटाना चाहती थी। उसके शरीर की आग को वो अब कंट्रोल नहीं कर पा रही थी। तभी उसके होंठों से एक लम्बी सी सांस निकली, और सबका ध्यान उसकी ओर चला गया।

कामेश- क्या हुआ?

कामया लजा गई- कुछ नहीं बस।

सभी की चाय खतम हो गई थी सभी अपने कमरे की और चल दिए शोरूम जाने की तैयारी में थे। चाय की टेबल पर पापाजी और कामेश कल के शाम की बातें ही करते रहे और कामया भी अपने साथ हुई घटना के बारे में सोचती रही जब दोनों कमरे में आए तो कामेश कल की घटना को अंजाम देने के लिए जल्दबाजी में था और तैयार होकर शोरूम जाने को और कामया कल की घटना के बारे में सोचते हुए इतना गरम हो चुकी थी की वो भी उसको अंजाम देना चाहती थी।

पर जैसे ही कमरे में वो लोग घुसे, कामेश ने कहा- “सुनो, जल्दी से ड्रेस निकल दो। आज से थोड़ा जल्दी ही जाना होगा शोरूम, कभी भी बैंक वाले आ सकते है इनस्पेक्सन के लिए।

कामया- जी पर रोज तो आप 10:30 बजे तक ही जाते हैं, आज क्यों जल्दी?

कामेश- “अरे कहा ना कि आज से थोड़ा सा जल्दी करना होगा। पापाजी भी जल्दी ही निकलेंगे…” और कहता हुआ वो बाथरूम में घुस गया।

कामया का दिमाग खराब हो गया। वो झल्लाकर अपने बिस्तर पर बैठ गई और गुस्से से अपने पैरों को पटकने लगी, कामेश को कोई सुध नहीं है मेरी। हमेशा ही शोरूम और बिज़नेस के बारे में सोचता रहता है। अगर कहीं जाना भी होता है तो अगर उसकी इच्छा हो तो नहीं तो? कामया को अपने ऊपर गुस्सा आ रहा था वो अपने पैरों को झटकते हुए अपने शरीर में उठ रहे ज्वार को भी ठंडा कर रही थी। वो जानती थी की अब उसे किसी भी हालत में कामेश की जरुरत है। पर कामेश को तो जैसे होश ही नहीं है कि उसकी पत्नी को क्या चाहिए? और क्या उसकी तमन्ना है, उसे जरा भी फिकर नहीं है। क्या करे वो? कल की घटना उसे बार-बार याद आ रही थी। काका की जीभ की चुभन उसे अभी भी याद थी, उसके शरीर में उठने वाले ज्वार को वो अब नजर अंदाज नहीं कर सकती थी। वो कामेश के आते ही लिपट जाएगी और उसे मजबूर कर देगी की वो उसके साथ वो सब करे। वो सोच ही रही थी की इंटरकाम की घंटी बज उठी। वो ना चाहते हुए भी फोन उठा लिया।

उधर से मम्मीजी थी- अरे बहू।

कामया- जी।

मम्मीजी- अरे कामेश से कह देना की पापाजी भी उसके साथ ही जाऐंगे, पता नहीं लक्खा की तबीयत को क्या हो गया है, नहीं आएगा आज।
.
.
Like Reply
Do not mention / post any under age /rape content. If found Please use REPORT button.
#22
.
कामया- “जी बाथरूम में हैं, आते ही बता देती हूँ…” और कामया के शरीर में एक अजीब सी लहर दौड़ गई। वो फोन नीचे रखकर बिस्तर पर बैठी और सोचने लगी क्या हुआ लक्खा काका को? क्यों नहीं आ रहे हैं आज? क्या हुआ उनकी तबीयत को? बीमार हैं क्या? वो सोच रही थी और अपने साथ हुई एक-एक घटना को फिर से उसके जेहन में उतारती जा रही थी। उसकी सांसें फूलने लगी थीं, वो फिर से कामाग्नि की चपेट में थी। पर काका को क्या हो गया, से ज्यादा चिंता इस बात की थी की आज शाम को वो नहीं आयेंगे।

वो सोच ही रही थी की कामेश बाथरूम से निकाला और मिरर के सामने आकर खड़ा हो गया। कामया ने जो सोचा था वो सब धरा का धरा रह गया।

कामया- जी वो काका आज नहीं आएंगे, बीमार हैं।

कामेश- अरे यार यह साले नौकरों का भी झमेला है, साले कभी बीमार तो, कभी कुछ और।

कामया के जैसे शरीर में एक बिजली सी दौड़ गई हो। उसे बिल्कुल अच्छा नहीं लगा की काका के बारे में उसका पति इस तरह से बोले। कामया ने कहा- “अरे इसमें क्या तबीयत ही तो खराब हुई है? तुम ले जाना पापाजी को…”

कामेश- तुम्हें नहीं मालूम, कल से उसकी ड्यूटी एक और बढ़ गई है ना… साला इसलिए छुट्टी मार दिया।

कामया- छीः छीः इतने बड़े आदमी के बारे में इस तरह से कहते हो, वो तो आप लोगों के कितने वफादार हैं, और कितना काम करते हैं, कभी भी मना नहीं किया।

कामेश- हाँ… वो तो है। चलो ठीक है मतलब तुम्हारा आज का दिन कैन्सल। अब क्या करोगी?

कामया- “क्या करूँगी? घर ही रहूंगी, कौन सा रोज घूमने जाती हूँ?” कामया को अपने पति पर बहुत गुस्सा आ रहा था। उनकी बातों में कहीं भी नहीं लगा था की लक्खा काका उनके लिए जितने नमकहलाल और निष्ठावान हैं, उसका फल उन्हें मिल भी रहा है।

कामेश- ऐसे ही कहीं घूम आना, नहीं तो घर में बैठी बोर हो जाओगी। तुम थोड़ा बहुत घर से निकला भी करो बैठी-बैठी मोटी हो जाओगी मम्मी की तरह।

कामया- हाँ… अकेली-अकेली जाऊँ और जाऊँ कहां? बता दो तुम्हें तो काम से फुर्सत ही नहीं है।

कामेश- अरे काम नहीं करूँगा तो फिर यह शानो शौकत कहां से आएगी?

कामया- नहीं चाहिए यह शानो शौकत।

कामेश- “हाँ… तुम तो पता नहीं किस दुनियां में रहती हो? कोई नहीं पूछेगा अगर घर में नौकर चाकर नहीं हों, और खर्चा करने को जेब में पैसा समझी?” और कामेश मुँह बनाते हुए जल्दी से तैयार होने लगा। फिर इंटरकाम उठाकर डेल किया।
कामेश- हाँ… पापा आप जल्दी कर लो प्लीज… आज ही इस लक्खा को मरना था।

कामया का दिमाग गुस्से से भर गया था। कितना मतलबी है उसका पति, सिर्फ अपनी ही सोचते रहते हैं। पता नहीं क्या हुआ होगा काका को? और यह है की जब से सिर्फ गालियां दिए जा रहे हैं। कामया का चेहरा एकदम गुस्से से लाल था।

पर कामेश तो अपनी धुन में ही था और जल्दी से तैयार होकर कामया की ओर देखा, कहा- “चलो नीचे…” जैसे कुछ हुआ ही नहीं हो।

कामया भी गुस्से से उठी और अपने पति के पीछे-पीछे नीचे डाइनिंग रूम में चली आई। पापाजी भी तैयार थे और मम्मीजी भी। जो तैयार नहीं था वो थी कामया। सुबह की ड्रेस ही पहने हुई थी और दिमाग खराब, वो गुस्से में तो थी ही, पर खाने के टेबल पर पापाजी और मम्मीजी के रहते उसने कुछ भी ऐसा नहीं दिखाया की किसी को उसके बारे में कोई शक हो। वो शांत थी और खाने को परोस कर दे रही थी।

जब सब खा चुके तो मम्मीजी और पापाजी भी उठे और बाहर को जाने लगे और कामेश भी किसी भूत की तरह जल्दी-जल्दी खाना खतम करके बाहर की ओर भागा।

जब दोनों चले गये तो मम्मीजी ने कहा- “जा जल्दी से नहाकर आ जा, खाना खा लेते हैं…”

कामया- “जी…” और कामया अपने कमरे की चली गई। जाते हुए भी उसका मन कुछ भी नहीं सोच पा रहा था। अपने पति की कही हुई बात उसे याद आ रही थी, और अपने पति के स्वार्थीपन का अंदाज वो लगा रही थी। वो भी तो उसके लिए एक चीज ही बनकर रह गई थी, जब उसका मन होता तो बहुत ही अच्छे से बात करते नहीं तो कोई फिकर ही नहीं। जब मन में आया उसे किया और फिर भूल गये। बस उनके दिमाग में जो बात हमेशा घर किए हुए रहती थी, वो थी पैसा सिर्फ पैसा।

कामया झल्लती हुई अपने कमरे में घुसी और चिढ़ती हुई सी बिस्तर पर बैठ गई। पर जल्दी ही उठी और बाथरूम में घुस गई। वो नहीं चाहती थी की मम्मीजी को कुछ भी पता चले। क्योंकी उसे मम्मीजी और पापाजी से कोई शिकायत नहीं थी। वो जल्दी से नहा धोकर तैयार होकर जल्दी से नीचे पहुँची, ताकी मम्मीजी को फोन ना करना पड़े।

पर नीचे जब वो पहुँची तो मम्मीजी अब तक नहीं आई थी। वो जैसे ही डाइनिंग रूम में दाखिल हुई, उसकी नजर भीमा चाचा पर पड़ गई, जो की बहुत ही तरीके से टेबल को सजा रहे थे। जैसे ही रूम में आवाज आई तो उसकी नजर भी कामया की ओर उठ गई थी, और भीमा और कामया की नजर एक बार फिर मिली और दोनों के शरीर में एक सनसनी सी दौड़ गई। कामया जो की अब तक अपने पति के बारे में सोच रही थी, एकदम से अपने को जिस स्थिति में पाया उसके लिए वो तैयार नहीं थी।

पर भीमा चाचा की नजर जैसे ही उससे टकराई वो सब कुछ भूल गई और अपने शरीर में उठ रही सनसनी को सभालने में लग गई। वो वहीं खड़ी-खड़ी कुछ सोच भी नहीं पा रही थी की इस स्थिति से कैसे लड़े। पर ना जाने क्यों अपने होंठों पर एक मधुर सी मुश्कान लिए हुए वो आगे बढ़ी और मम्मीजी के आने पहले ही अकेली डाइनिंग टेबल पर पहुँच गई।

कामया- “क्या बनाया है चाचा?” और टेबल पर पड़े हुए बाउल को खोलकर देखने लगी।

वो जिस तरह से झुक कर टेबल पर रखी हुइ चीजों को देख रही थी, उससे उसके सूट के गले से उसकी चूचियों को देख पाना बड़ा ही सरल था। भीमा ना चाहते हुए भी अपनी नजर उसपर से ना हटा सका। वो अपना काम भूलकर बहू को एकटक देखता रहा। कितनी सुंदर और कोमल सी बहू जिसके साथ उसने कुछ हसीन पल बिताए थे, वो आज फिर से उसके सामने खड़ी हुई अपने शरीर का कुछ हिस्सा उसे दिखा रही थी जानबूझ कर या अंजाने में पता नहीं? पर हाँ… देख जरूर रहा था वो बहू की चूचियों को। वो आगे बढ़ा और उसकी पतली सी कमर तक पहुँचा ही था की मम्मीजी के आने की आहट ने सब कुछ बिगड़ दिया और वो जल्दी से किचेन की ओर चला गया।

मम्मीजी- अरे जल्दी नहा लिया तूने तो।

कामया- जी सोचा आपसे पहले ही आ जाऊँ।

मम्मीजी- हाँ… चल बैठ और सुन, शाम को तैयार हो जाना मंदिर चलेंगे।

कामया- “जी…” लेकिन उसका मन बिल्कुल नहीं था मम्मीजी के साथ मंदिर जाने का, पर कैसे मना करे? सोचने लगी वो कहीं भी नहीं जाना चाहती थी पर।

मम्मीजी- “आज मंदिर में कुछ बाहर से लोग आने वाले हैं, सत्संग है। तू भी चल क्या करेगी घर में?

कामया- जी पर?

मम्मीजी- पर क्या? थोड़ा बहुत घूम लेगी और क्या मैं कौन सा कह रही हूँ की बैठकर हम बुड्ढों के साथ तू सत्संग सुनना।

कामया- जी तो फिर?

मम्मीजी- अरे वहां आसपास गार्डेन है, तू थोड़ा घूम लेना और मैं भी ज्यादा देर कौन सा रुकने वाली हूँ। वो तो मंदिर हमने बनवाया है ना, इसलिए जाना पड़ता है। नहीं तो मुझे तो अपना घर का ही मंदिर सबसे अच्छा।

कामया- जी।

और दोनों खाना खाने लगे थे, और बातों का दौर चलता रहा। कामया और मम्मीजी खाने के बाद उठे और हाथ मुँह धोकर वहीं थोड़ा सा बातें करते रहे।

मम्मीजी- “अरे भीमा टेबल साफ कर दे…” और फिर कामया की ओर मुड़ गई और बातें चालू।

भीमा किचेन से निकला और टेबल पड़े जूठे बर्तन उठने लगा। पर हल्की सी नजर कामया पर भी डाल ली।

कामया उसी की तरफ चेहरा किए हुए थी, और मम्मीजी की पीठ उसकी त्तरफ थी। भीमा चोर नजर से कामया को देख रहा था, और सामान भी समेट रहा था। कामया की नजर भी कभी-कभी चाचा की हरकतों पर पड़ रही थी, और उसके होंठों पर एक मुश्कान दौड़ गई थी, जो की भीमा से नहीं छुप पाई और वो एकटक बहू की ओर देखता रहा। पर जैसे ही कामया की नजर उस पर पड़ी तो दोनों ही अपनी नजरें झुका के कामया अपने कमरे की ओर और भीमा अपने किचेन की ओर चल दिए।

मम्मीजी भी अपने कमरे की ओर जाते-जाते बोली- “शाम को 6:00 बजे तक तैयार हो जाना टैक्सी वाले को बोल दिया है।

कामया- “जी…” और मुड़कर मम्मीजी की ओर देखती, पर उसकी नजर भीमा चाचा पर वापस टिक गई, जो की फिर से किचेन से निकल रहे थे।

भीमा भी निकलते हुए सीढ़ियों पर जाती हुई बहू को देखना चाहता था। इसलिए वो वापस जल्दी से पलटकर डाइनिंग हाल में आ गया था। वो तो बहू की मस्त चाल का दीवाना था। जब वो अपने कूल्हे मटका-मटकाकर सीढ़ी चढ़ती थी तो उसका दिल बैठ जाता था, और वो उसी के दीदार को वापस आया था। पर जैसे ही उसकी नजर कामया पर पड़ी तो वो भी झेंप गया, पर अपनी नजर को वो वहां पर से हटा नहीं पाया था। उसे बहू की नजर में एक अजीब सी कशिश दिखी थी, एक अजीब सा नशा था, एक अजीब सा खिंचाव था जो कि शायद वो पहले नहीं देख पाया था। वो बहू को अपनी ओर देखते हुए अपने कमरे की जाते हुए देखता रहा, जब तक वो उसकी नजरों से ओझल नहीं हो गई। एक लम्बी सी सांस छोड़कर वो फिर से काम में लग गया।

और उधर जब मम्मीजी ने कामया को पुकार कर कहा तब वो जबाब देते हुए पलटी तो चाचा को अपनी ओर देखते पाकर वो भी अपनी नजर चाचा की नजर से अलग नहीं कर पाई थी। वो चाचा की नजर में एक भूख को आसानी से देख पा रही थी। उसके प्रति एक भूख, उसके प्रति एक लगाव, या फिर उसके प्रति एक खिंचाव को वो चाचा की नजर में देख रही थी। उसके शरीर में एक आग फिर से लग गई थी, जिसे वो अपनी सांसों को कंट्रो करके संभाली और एक तेज सांस छोड़कर अपने कमरे में चली गई।

कामया कमरे में घुसकर वापस बिस्तर पर ढेर हो गई, और अपने बारे में सोचती रही। उसे क्या हो गया है? जब देखो उसे ऐसा क्यों लगता रहता है? वो तो सेक्स की भूखी कभी नहीं थी। पर आज कल तो जैसे उसके शरीर में जब देखो तब आग लगी रहती है। क्या कारण है? क्या वो इतनी कामुक हो गई है की पति के ना मिलने पर वो किसी के साथ भी सेक्स कर सकती है? दो जनों के साथ तो वो सेक्स कर चुकी थी, वो भी इस घर के नौकरों के साथ, जिनकी हसियत ही क्या है उसके सामने?

पर आखिर क्यों वो चाचा को और लक्खा को इतना मिस करती है? क्यों उनके सामने जाते ही वो अपना सब कुछ भूल जाती है? अभी भी तो चाचा उसकी तरफ जैसे देख रहे थे, अगर मम्मीजी ने देख लिया होता तो वो अपने आपको संभालने की कोशिश करने लगी थी। नहीं यह गलत है? उसे इस तरह की बातों पर ध्यान नहीं देना चाहिए। वो एक घर की बहू है, उसका पति है, सम्पन्न घर है वो सिर्फ सेक्स की खातिर अपने घर को उजाड़ नहीं सकती। उसने एक खटके से अपने दिमाग से भीमा चाचा को और लक्खा काका को निकाल बाहर किया और सूट चेंज करने के लिए वार्डरोब के सामने खड़ी हो गई।

उसने गाउन निकाला और जैसे ही पलटी उसकी नजर कल के ब्लाउज़ और पेटीकोट पर पड़ गई जो की उसने पहना था चाचा के लिए। वो चुपचाप उसपर अपनी नजर गड़ाए खड़ी रही, और धीरे से अपने हाथों से लेकर उनको सहलाने लगी। पता नहीं क्यों उसने गाउन रखकर फिर से वो पेटीकोट और ब्लाउज़ उठा लिया और बाथरूम की ओर चल दी चेंज करने को। जब वो बाथरूम में चेंज कर रही थी तो जैसे-जैसे वो ड्रेस को अपने शरीर पर कस रही थी, उसके शरीर में फिर से सेक्स की आग भड़कने लगी थी। वो अपनी सांसों को कंट्रोल नहीं कर पा रही थी। उसकी सांसें अब बहुत तेज चलने लगी थीं, और उसकी चूचियां उस कसे हुए ब्लाउज़ को फाड़कर बाहर आने को हो रही थीं। पेटीकोट और ब्लाउज़ पहनकर उसने अपने को मिरर में देखा तो तो किसी अप्सरा सी दिख रही थी।

उसके कपड़ों को चूमा था, वो सब बाहर से साफ दिख रहा था और अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे थे वो अपने हाथों से एक बार अपने को सहलाते हुए अपने को मिरर में देखती रही, और पलटकर जल्दी से कमरे में आ गई थी और बिस्तर पर धम्म से गिर गई। उसके पूरा शरीर में आग लगी हुई थी पर वो किसी तरह से अपने को कंट्रोल किया हुआ था। उसने चद्दर खींचकर अपने को ढका और सब कुछ भूलकर सोने की कोशिश करने लगी। उसने कामेश के तकिए को भी चद्दर के अंदर खींच लिया और अपने आपको अपनी बाहों में भर कर सोने की कोशिश करने लगी थी।

और उधर भीमा अपने काम से फुर्सत हो गया था। पर उसकी नजर बार-बार इंटरकाम पर ही थी। उसे आज भी उम्मीद थी की बहू जरूर उसे बुला लेगी। पर जब बहुत देर तक फोन नहीं आया तो, उसने कई बार फोन उठाकर भी देखा की कहीं बंद तो नहीं हो गया था? पर टोन आते सुनकर उसने फोन वापस जल्दी से रख दिया, और किचेन में ही खड़ा-खड़ा इंतेजार करने लगा था। पर कोई फोन नहीं आया। वो अपने आपको उस हसीना के पास जाने से रोक नहीं पा रहा था। पर अपनी हैसियत और अपने छोटेपन का एहसास उसे रोके हुए था। पर कभी वो निकलकर सीढ़ियों की ओर देखता और वापस किचेन की ओर चला जाता। वो अपने को रोकते हुए भी कब सीढ़ियों की ओर उसके पैर उठ गये वो नहीं जानता था।

कहां से उसमें इतनी हिम्मत आ गई, वो नहीं जानता था। पर हाँ, वो अब सीढ़ियां चढ़ रहा था, बार-बार पीछे की ओर देखते हुए और बार-बार अपने को रोकते हुए। उसका एक कान किचेन में इंटरकाम की घंटी पर भी था, और दूसरा कान घर में होने वाली हर आहट पर भी था। वो जब बहू के कमरे के पास पहुँचा तो घर में बिल्कुल शांति थी। भीमा की सांसें फूल रही थीं, जैसे की बहुत दूर से दौड़कर आ रहा हो, या फिर कुछ भारी काम करके आया हो। भीमा अपने कानों को बहू के दरवाजे पर रखकर अंदर की आहट को सुनने लगा। पर कोई भी आहट नहीं हुई थी अंदर।

वो पलटकर वापस जाने लगा, पर थोड़ी दूर जाकर रुक गया। क्या कर रही है बहू? कहीं उसका इंतेजार तो नहीं कर रही है? अंदर फोन नहीं कर पाती होगी शायद शरम से, या फिर उसे लगता है की कल ही तो उसने बुलाया था, तो आज बुलाने की क्या जरूरत है? हाँ शायद यही हो। वो वापस मुड़ा और फिर से बहू के कमरे के बाहर आकर खड़ा हो गया। धीरे से, बहुत ही धीरे से दरवाजे पर एक थपकी दी। पर अंदर से कोई आवाज नहीं आई, और न ही कल जैसे दरवाजा ही खुला।

पर भीमा तो जैसे अपने दिल के हाथों मजबूर था। उसका दिल नहीं मान रहा था। वो देखना चाहता था की बहू क्या कर रही है? शायद उसका इंतेजार ही कर रही हो? और वो अपने कारण इस चान्स को खो देगा।

वो हिम्मत करके धीरे से दरवाजे को धकेल ही दिया। दरवाजा धीरे से अंदर की ओर खुल गया थोड़ा सा, पर हाँ अंदर देख सकता था। अंदर जब उसने नजर घुमाकर देखा तो पाया की बहू तो बिस्तर पर सोई हुई है, एक चद्दर ढक कर तकिया पकड़कर। एक टांग जो की चद्दर के अंदर से निकलकर बाहर से तकिये के ऊपर कर लिया था वो पूरी नंगी थी। सफेद-सफेद जांघों के दर्शन उसे हुए, उसकी हिम्मत बढ़ी और वो थोड़ा सा और आगे होकर देखने की कोशिश करने लगा। वो लगभग अंदर ही आ गया था और धीरे-धीरे बहू के बिस्तर की ओर बढ़ने लगा था।

उसकी आँखों में बहू की जांघें और फिर गोरी-गोरी बाहें भी दिखने लगी थीं। चादर ठीक से नहीं ओढ़ी थी बहू ने, पर वो जो कुछ भी देख रहा था वो उसके शरीर में जो आग लगा रहे थे, और उसके अंदर एक ऐसी हिम्मत को जनम दे रहे थे की अब तो चाहे जो हो जाए वो बहू को देखे बगैर बाहर नहीं जाएगा। वो बहू के बिस्तर के और भी पास आ गया था। बहू अब तक सो रही थी, पर उसके चद्दर के अंदर से उसके शरीर का हर उतार चढ़ाव उसे दिख रहा था।

वो थोड़ा सा झुका और अपने हाथों को बहू की जांघों पर ले गया। वो धीरे-धीरे उसकी जांघों को अपनी हथेली से महसूस करने लगा। उसके हाथों में जैसे कोई नरम सी और चिकनी सी चीज आ गई हो, वो बड़ी ही तल्लीनता से बहू की जांघों को उसके पैरों तक और फिर ऊपर बहुत ऊपर तक उसकी कमर तक ले जाने लगा था। पर बहुत ही आराम से जैसे उसे डर था कहीं बहू उठ ना जाए। पर नहीं बहू के शरीर पर कोई हरकत नहीं हुई थी उसकी हिम्मत और बढ़ी और वो धीरे से बहू के ऊपर से चद्दर को हटाने लगा।

बहू की पीठ उसकी तरफ थी पर वो बहू की सांसों के साथ उसके शरीर के उठने बैठने के तरीके से समझ गया था की वो सो रही थी। उसने हिम्मत करके बहू के ऊपर से चद्दर को धीरे से हटा दिया उफफ्फ़… क्या शरीर था चद्दर के अंदर, गजब का दिख रहा था, सफेद ब्लाउज़ और पेटीकोट था पहने। हाँ… वहीं तो था कल वाला। तो क्या बहू उसके लिए ही तैयार हुई थी? आअह्ह्ह… भीमा के मुँह से अचानक ही एक आऽ निकली और उसके हाथ बहू की पीठ पर धीरे-धीरे घूमने लगे थे।

उसकी मनो स्थिति उस समय ऐसी थी की वो चाहकर भी अपने पैरों को वापस नहीं ले जा सकता था। वो अब बहू के रूप और रंग का दीवना था और किसी भी हालत में उसे फिर से हासिल करना चाहता था। वो दीवनों की तरह अपने हाथों को बहू के शरीर पर घुमा रहा था और ऊपर वाले की रचना को अपने हाथों से महसूस कर रहा था। उसके मन में बहुत सी बातें भी चल रही थीं, वो अपने चेहरे को थोड़ा सा आगे करके बहू को देख भी लेता था और उसकी स्थिति का जायजा भी लेता जा रहा था। सोते हुए बहू कितनी सुंदर लगती थी बिल्कुल किसी निराह बच्चे की तरह कितना सुंदर चेहरा है और कितनी सुंदर उसकी काया है। उसके हाथ अब बहू की जांघों को बहुत ऊपर तक सहला रहे थे, और लगभग उसकी कमर तक वो पहुँच चुका था।

वो धीरे से बहू के बिस्तर पर बैठ गया और बहू की दोनों टांगों को अपने दोनों खुरदुरे हाथों से सहलाने लगा था। कितना मजा आ रहा था भीमा को यह वो किसी को भी बता नहीं सकता था। उसके पास शब्द नहीं थे उस एहसास का वर्णन करने को। उसके हाथ धीरे-धीरे ऊपर की ओर उठते और फिर बहू की जांघों की कोमलता का एहसास करते हुए नीचे उसकी टांगों पर आकर रुक जाते थे। वो अपने को रोक नहीं पाया और उस सुंदरता को चखने के लिए वो धीरे से नीचे झुका और अपने होंठों को बहू की टांगों पर रख दिया और उन्हें छूने लगा बहुत धीरे से और अपने हाथों को भी उस जगह पर घुमाते हुए धीरे-धीरे ऊपर की ओर उठने लगा।
.
To be contd.
.
Like Reply
#23
.
kya bat hai, koi comment nhin??
.
.
Like Reply
#24
.
वो अपने जीवन का वो लम्हा सब कुछ भूलकर बहू की जांघों और टांगों को समर्पित कर चुका था। उसे नहीं पता था की इस तरह से वो बहू को जगा भी सकता था। पर वो मजबूर था और अपने को ना रोक पाकर ही वो इस हरकत पर उतर आया था। उसकी जीभ भी अब बहू की जांघों को चाट-चाट कर गीलाकर रही थी और होंठों पर इतनी कोमल और चिकनी काया का स्पर्श उसे जन्नत का वो सुख दे रहे थे, जिसकी की उसने कभी भी कल्पना भी नहीं की थी।

वो अपने मन से बहू की तारीफ करते हुए धीरे-धीरे अपने काम में लगा था, और अपने हाथों की उंगलियों को ऊपर-नीचे करते हुए बहू की जांघों पर घुमा रहा था उसकी उंगलियां बहू की जांघों के बीच में भी कभी-कभी चली जाती थी। वो अपने काम में लगा था की अचानक ही उसे महसूस हुआ की बहू की जांघों और और टांगों पर जब वो अपने हाथ फेर रहा था तो उनपर थोड़ा सा खिंचाव भी होता था, और बहू के मुँह से सांसों का जोर थोड़ा सा बढ़ गया था। वो चौंक कर थोड़ा सा रुका कहीं बहू जाग तो नहीं गई? और अगर जाग गई थी तो कहीं वो चिल्ला ना पड़े।

वो थोड़ा सा रुका पर बहू के शरीर पर कोई हरकत ना देखकर वो धीरे से उठा और बहू की कमर के पास आ गया, और अपने हाथों को वो उसकी कमर के चारों ओर घुमाने लगा था, और एक हाथ से वो बहू की पीठ को भी सहलाने लगा था। वो आज अच्छे से बहू को देखना चाहता था, और उसके हर उसे भाग को छूकर भी देखना चाहता था, जिससे वो अब तक ठीक से देख नहीं पाया था। शायद हर पुरुष की यही इच्छा होती है, जिस चीज को भोग भी चुका हो उसे फिर से देखने की और महसूस करने की इच्छा हमेशा ही उसके अंदर पनपती रहती है। वही हाल भीमा का भी था।

उसके हाथ अब बहू की पीठ और, कमर पर घूम रहे थे और हल्के-हल्के वो उसकी चूचियों की ओर भी चले जाते थे। पर बहू जिस तरह से सोई हुई थी वो अपने हाथों को उसकी चूची तक अच्छी तरह से नहीं पहुँचा पा रहा था। पर फिर भी साइड से ही वो उसकी नर्मी का एहसास अपने हाथों को दे रहा था। लेकिन एक डर अब भी उसके जेहन में था कि कहीं बहू उठ ना जाए? पर अपने को रोक ना पाने की वजह से वो आगे और आगे चलता जा रहा था।

और उधर कामया जो की अब पूरी तरह से जागी हुई थी। जैसे ही भीमा चाचा उसके कमरे में घुसे थे, तभी वो जाग गई थी और बिल्कुल बिना हिले-डुले वैसे ही लेटी रही। उसके तन में जो आग लगी थी भीमा चाचा के कमरे में घुसते ही वो चार गुना हो गई थी। वो अपनी सांसों को कंट्रोल करके किसी तरह से लेटी हुई थी, और आगे की आने वाले घटनाक्रम को झेलने की तैयारी कर रही थी। वो सुनने की कोशिश कर रही थी की भीमा चाचा कहां हैं? पर उनके पदचाप उसे नहीं सुनाई दिए। हाँ… उसके नथुनों में जब एक महक ने जगह ली तो वो समझ गई थी की भीमा चाचा अब उसके बिल्कुल पास हैं। वो उस मर्दाना महक को पहचानती थी, उसने उस पशीने की खुशबू को अपने अंदर इससे पहले भी महसूस किया था।

उसके शरीर में उठने वाली तरंगें अब एक विकराल रूप ले चुकी थीं, वो चाहते हुए भी अपने को उस हालत से निकालने में असमर्थ थी। वो उसे सागर में गोते लगाने के लिए तैयार थी, बल्की कहिए वो तो चाह ही रही थी की आज उसके शरीर को कोई इतना रौंदे की उसकी जान ही निकल जाए। पर वो अपने आपसे नहीं जीत पाई थी, इसलिए वो चुपचाप सोने की कोशिश करने लगी थी। पर जैसे ही भीमा चाचा आए, वो सब कुछ भूल गई थी, और अपने शरीर को सेक्स की आग में धकेल दिया था।

वो अपने शरीर में उठ रही लहर को किसी तरह रोके हुए भीमा चाचा की हर हरकत को महसूस कर रही थी, और अपने अंदर उठ रही सेक्स की आग में डूबती जा रही थी। उसे भीमा चाचा के छूने का अंदाज बहुत अच्छा लग रहा था। वो अपने को समेटे हुए उन हरकतों का मजा लूट रही थी। उसे कोई चिंता नहीं थी, वो अपने को एक सुखद अनुभूति के दलदल में धकेलती हुई अपने जीवन का आनंद लेती जा रही थी। जब भी चाचा के हाथ उसके पैरों से उठते हुए जांघों तक आते थे, उसकी योनि में ढेर सारा चिपचिपापन सा हो जाता था, और चूचियां अपने ब्लाउज़ के अंदर जगह बनाने की कोशिश कर रही थीं। कामया अपने को किसी तरह से अपने शरीर में उठ रहे ज्वार को संभाले हुए थी, पर धीरे-धीरे वो अपना नियंत्रण खोती जा रही थी।

भीमा चाचा अब उसकी कमर के पास, बहुत पास बैठे हुए थे और उनके शरीर की गर्मी को वो महसूस कर रही थी। उसका पूरा शरीर गरम था और पूरा ध्यान भीमा चाचा के हाथों पर था। भीमा चाचा उसकी पीठ को सहलाते हुए जब उसकी चूचियों की ओर आते थे तो वो अपने को तकिये से अलग करके उनके हाथ को भर देना चाहती थी, पर कर ना पाई। भीमा चाचा अब उसके पेट से लेकर पीठ और फिर से जब वो उसकी चूची तक पहुँचने की कोशिश की तो कामया से नहीं रहा गया, वो थोड़ा सा अपने तकिये को ढीला छोड़ दी और भीमा चाचा के हाथों को अपनी चूचियों तक पहुँचने में मदद की।

भीमा के हाथ जैसे ही बहू की चूचियों तक पहुँचे, वो थोड़ा सा चौंका, अपने हाथों को अपनी जगह पर ही रोके हुए उसने एक बार फिर से आहट लेने की कोशिश की। पर बहू की ओर से कोई गतिविधि होते ना देखकर वो निश्चिंत हो गया, और अपने आपको उस खेल में धकेल दिया, जहां सिर्फ मजा ही मजा है और कुछ नहीं। वो अपने हाथों से बहू की चूचियों को धीरे-धीरे दबाते हुए उसकी पीठ को भी सहला रहा था और अपने हाथों को उसके नितम्बों तक ले जाता था। वो बहू के नथुनों से निकलने वाली सांसों को भी गिन रहा था, जो की अब धीरे-धीरे कुछ तेज हो रही थीं।

पर उसका ध्यान इस तरफ काम और अपने हाथों की अनुभूति की ओर ज्यादा था। वो अपने को कहीं भी रोकने की कोशिश नहीं कर रहा था। वो अपने मन से और दिल के हाथों मजबूर था। वो अपने हाथ में आई उस सुंदर चीज को कहीं से भी छोड़ने को तैयार नहीं था। अब धीरे-धीरे भीमा चाचा की हरकतों में तेजी भी आती जा रही थी। उसके हाथों का दबाब भी बढ़ने लगा था। उसके हाथों में आई बहू की चूची अब धीरे-धीरे दबाते हुए उसके हाथ कब उन्हें मसलने लगे थे, उसे पता नहीं चला था।

पर हाँ… बहू के मुँह से निकलती हुई आअह्ह उसे फिर से वास्तविकता में ले आई थी। वो थोड़ा सा ढीला पड़ा पर बहू की ओर से कोई हरकत नहीं होते देखकर उसके हाथ अब तो जैसे पागल हो गये थे। वो अब बहू के ब्लाउज़ के हुक की ओर बढ़ चले थे। वो अब जल्दी से उन्हें आजाद करना चाहता था, पर बहुत ही धीरे-धीरे से वो बढ़ रहा था पर उसे बहू के होंठों से निकलने वाली सिसकारी भी अब ज्यादा तेज सुनाई दे रही थी। जब तक वो बहू के ब्लाउज़ को खोलता, तब तक बहू के होंठों पर से आअह्ह और भी तेज हो चुकी थी।

वो अब समझ चुका था की बहू जाग गई है, पर वो कहां रुकने वाला था। उसके हाथों में जो चीज आई थी वो तो उसे मसलने में लग गया था, और पीछे से हाथ लेजाकर उसने बहू की चूचियों को भी उसकी ब्रा से आजाद कर दिया था। वो अपने हाथों का जोर उसकी चूचियों पर बढ़ाता ही जा रहा था और दूसरे हाथ से उसकी पीठ को भी सहलाता जा रहा था। वो बहू के मुँह से सिसकारी सुनकर और भी पागल हो रहा था। उसे पता था की बहू के जागने के बाद भी जब उसने कोई हरकत नहीं की तो उसे यह सब अच्छा लग रहा था।

वो और भी निडर हो गया और धीरे से बहू को अपनी ओर पलटा लिया और अपने होंठों को बहू की चूचियों पर लगा दिया और जोर-जोर से चूसने लगा। उसके हाथों में आई बहू की दोनों चूचियां अब भीमा चाचा के रहमो करम पर थीं। वो अपने होंठों को उसकी एक चूची पर रखे हुए उन्हें चूस रहा था, और दूसरे हाथ से उसकी एक चूची को जोर-जोर से मसल रहा था, इतना की कामया के मुँह से एक लम्बी सी सिसकारी निकली और निरंतर निकलने लगी थी।

कामया के हाथों ने अब भीमा चाचा के सिर को कसकर पकड़ लिया था और अपनी चूचियों की ओर जोर लगाकर खींचने लगी थी। वो अब और सह नहीं पा रही थी और अपने आपको भीमा चाचा की चाहत के सामने समर्पित कर दिया था। वो अपने आपको भीमा चाचा के पास और पास ले जाने को लालायित थी। वो अपने शरीर को भीमा चाचा के शरीर से सटाने को लालायित थी। वो अपनी जांघों को ऊपर करके और अपना पूरा दम लगाके भीमा चाचा को अपने ऊपर खींचने लगी थी।

भीमा जो की अब तक बहू की चूचियों को अपने मुँह में लिए हुए उन्हें चूस रहा था, अचानक ही अपने सिर पर बहू के हाथों के दबाब के पाते ही और जंगली हो गया। वो अब उनपर जैसे टूट पड़ा था। वो दोनों हाथों से एक चूची को दबाता और होंठों से उन्हें चूसता और कभी दूसरे पर मुँह रखता और दूसरे को दबाता वो अपने होंठों को भी कामया के शरीर पर घुमाता जा रहा था, और नीचे फँसी हुई पेटीकोट को भी उतारने लगा था। जब उसका नाड़ा खुल गया तो एक ही झटके में उसने उसे उतार दिया, पैंटी और, पेटीकोट भी। और देखकर आश्चर्य भी हुआ की बहू ने अपनी कमर को उठाकर उसका साथ दिया था।

वो जान गया था की बहू को कोई आपत्ति नहीं है। वो भी अपने एक हाथ से अपने कपड़ों से उतारने लगा था और अपने एक हाथ और होंठों से बहू को एंगेज किए हुए था। बहू जो की अब एक जल बिन मछली की भांति बिस्तर पर पड़ी हुई तड़प रही थी, वो अब उसे शांत करना चाहता था। वो धीरे से अपने कपड़ों से बाहर आया और बहू के ऊपर लेट गया। अब भी उसके होंठों पर बहू के निप्पलस थे और हाथों को उसके पूरे शरीर पर घुमाकर हर उंचाई और गहराई को नाप रहा था।

तभी उसने अपने होंठों को उसकी चूचियों से अलग किया और बहू की ओर देखने लगा जो की पूरी तरह से नंगी उसके नीचे पड़ी हुई थी। वो बहू की सुंदरता को अपने दिल में या कहिए अपने जेहन में उतारने में लगा था। पर तभी कामया को जो सूनापन लगा तो उसने अपनी आँखें खोल ली, और दोनों की आँखें चार हुईं।
भीमा बहू की सुंदर और गहरी आँखों में खो गया, और धीरे से नीचे होता हुआ उसके होंठों को अपने होंठों से दबा लिया।

कामया को अचानक ही कुछ मिल गया था, तो वो भी अपने दोनों हाथों को भीमा चाचा की कमर के चारों ओर घेरते हुए अपने होंठों को भीमा चाचा के रहमो-करम पर छोड़ दिया और अपनी जीभ को भी उनसे मिलने की कोशिश करने लगी थी। उसके हाथ भी अब भीमा चाचा के बलिष्ठ शरीर का पूरा जाएजा लेने में लगे थे। खुरदुरे और बहुत से उतार चढ़ाव लिए हुए बालों से भरे हुए उसके शरीर की गंध अब कामया के शरीर का एक हिस्सा सा बन गये थे। उसके नथुनों में उनकी गंध ने एक अजीब सा नशा भर दिया था, जो की एक मर्द के शरीर से ही निकल सकती थी। वो अपने को भूलकर भीमा चाचा से कसकर लिपट गई और अपनी जांघों को पूरा खोलकर चाचा को उसके बीच में फँसा लिया। उसकी योनि में आग लगी हुई थी और वो अपनी कमर को उठाकर भीमा चाचा के लिंग पर अपने आपको घिसने लगी थी।
.
.
Like Reply
#25
.
उसकी जांघों के बीच में चाचा के लिंग की गर्मी इतनी थी की लगभग झड़ने की स्थिति में पहुँच चुकी थी। पर चाचा तो बस अब तक उसके होंठों और उसकी चूचियों के पीछे ही पड़े हुए थे। वो लगातार अपनी योनि को उसके लिंग पर घिसते हुए अपने होंठों को और जीभ को भी चाचा के अंदर तक उतार देती थी। उसकी पकड़ जो की अब तक उनकी कमर के चारों तरफ थी, अचानक ही ढीली पड़ी और एक हाथ चाचा के सिर पर पहुँच गया और एक हाथ उनके लिंग तक ले जाने की कोशिश करने लगी। बड़ी मुश्किल से उसने अपने और चाचा के बीच में जगह बनाई और लिंग को पकड़कर अपनी योनि पर रखा और वैसे ही एक झटका उसने नीचे से लगा दिया।

भीमा चाचा इस हरकत को जब तक पहचानते तब तक तो बहू के अंदर थे, और बहू की जांघों ने उन्हें कसकर जकड़ लिया था। भीमा अपने को एक इतनी सुंदर स्त्री के साथ इस तरह की आपेक्षा करते वो तो जिंदगी में नहीं सोच पाए थे। पर जैसे ही वो बहू के अंदर हुए, उसका शरीर भी अपने आप बहू के साथ-साथ ऊपर-नीचे होने लगा था। वो अब भी बहू के होंठों को चूस रहे थे और अपने हाथों से बहू की चूचियों को निचोड़ रहे थे। उनकी हर हरकत पर बहू की चीख उनके गले में ही अटक जाती थी। हर चीख के साथ भीमा और भी जंगली हो जाता था, और उसके हाथों का दबाब भी बढ़ जाता था।

वो पागलों की तरह से बहू की किस करता हुआ अपने आपको गति देता जा रहा था। वो जैसे ही बहू के होंठों को छोड़ता, बहू की सिसकियां पूरे कमरे में गूंजने लगती तो वो फौरन अपने होंठों से उन्हें सील कर देता और अपनी गति को और भी तेज कर देता। पूरे कमरे में अचानक ही एक तूफान सा आ गया था, जो की पूरे जोर पर था। कमरे में जिस बिस्तर पर भीमा बहू को भोग रहा था, वो भी झटकों के साथ अब हिलने लगा था, और कामया की जिंदगी का यह एहसास जो की अभी भी चल रहा था, एक ऐसा एहसासा था जिसे की वो पूरी तरह से भोगना चाहती थी।

वो आज इतनी गरम हो चुकी थी की भीमा के दो तीन झटकों में ही वो झड़ चुकी थी। पर भीमा के लगातार झटकों में अपने को फिर से जागते हुए पाया और अपनी जांघों की पकड़ और भी मजबूत करते हुए भीमा चाचा से लिपट गई, और हर धक्के के साथ अपने मुँह से एक जोरदार चीत्कार निकालती जा रही थी। वो उन झटकों को बिना चीत्कार के झेल भी नहीं पा रही थी। पता नहीं कहां जाकर टकराते थे। भीमा चाचा के लिंग के ऊपर की ओर सरक जाती थी और एक चीख उसके मुँह से निकल जाती थी। पर हर बार भीमा चाचा उसे अपने होंठों से दबाकर खा जाते थे।

उसको भीमा चाचा का यह अंदाज बहुत पसंद आया और वो खुलकर उनका साथ दे रही थी। शायद ही उसने अपने पति का इस तरह से साथ दिया हो। वहां तो शरम और हया का परदा जो रहता है, पर यहां तो सेक्स और सिर्फ सेक्स का ही रिश्ता था। वो खुलकर अपने शरीर की उठने वाली हर तरंग का मजा भी ले रही थी, और अपने आपको पूरी तरह से भीमा चाचा के सुपुर्द भी कर दिया था और जमकर सेक्स का मजा भी लूट रही थी। उसके पति का तिरस्कार अब उसे नहीं सता रहा था ना उनकी अपेक्षा। वो तो जिस समुंदर में डुबकी ले रही थी, वहां तो बस मजा ही मजा था।

वो भीमा चाचा को अपनी जांघों से जकड़ते हुए हर धक्के के साथ उठती और हर धक्के के साथ नीचे गिरती थी, और भीमा तो जैसे, जानवर हो गया था। अपने होंठों को बहू के होंठों से जोड़े हुए लगातार गति देते हुए अपने चरम सीमा की और बढ़ता जा रहा था। उसे कोई डर नहीं था और न ही कोई शिकायत थी। वो लगातार अपने नीचे बहू को अपने तरीके से भोग रहा था और धीरे-धीरे अपने शिकार पर पहुँच गया। हर एक धक्के के साथ वो अपने को रिलीज करता जा रहा था और हर बार नीचे से मिल रहे साथ का पूरा मजा ले रहा था।

वो अपने को और नहीं संभाल पाया और धम्म से नीचे पड़े हुए बहू के ऊपर ढेर हो गया। नीचे बहू भी झड़ चुकी थी और वो भी निश्चल सी उसके नीचे पड़ी हुई गों-गों करके सांसें ले रही थी। उसकी सांसों से भी कभी-कभी कमरा गूँज उठता था, पर थोड़ी देर में सब कुछ शांत हो गया था, बिल्कुल शांत।

भीमा अपने आपको कंट्रोल करके बहू के शरीर के ऊपर से उठा और धीरे से बिस्तर पर ही बैठ गया। बहू अब भी शांत सी पड़ी हुई थी। वो बिस्तर पर बैठे हुए ही अपने कपड़े नीचे से उठाकर पहनने लगा था, पर नजर बहू के नंगे शरीर पर थी। उसके मन में अब भी उसके तन से खेलने की इच्छा थी, पर कुछ सोचकर वो कपड़े पहनकर उठा और वहीं चद्दर से बहू को ढक कर बाहर की ओर चला गया।

कामया जो की अब शांत थी भीमा के निकलने के बाद थोड़ा सा हिली, पर ना जाने क्यों वो वैसे ही पड़ी रही और धीरे-धीरे नींद के आगोश में चली गई। शाम को ठीक 5:15 पर इंटरकाम की घंटी बजी तो वो हड़बड़ा कर उठी और कहा- “हाँ…”

भीमा- “जी वो आपको माँ जी के साथ मंदिर जाना था इसलिए।

कामया ने झट से फोन रख दिया। दूसरी तरफ भीमा चाचा थे। वो चिंतित थे की कहीं वो सोती रह जाती तो मम्मीजी के साथ वो कैसे मंदिर जाती? उसके चेहरे पर एक मुश्कान थी। वो जल्दी से उठी और बाथरूम की ओर भागी, ताकी नहा धोकर जल्दी से तैयार हो सके। लगभग 6:00 बजे से पहले वो बिल्कुल तैयार थी। साड़ी और मैचिंग ब्लाउज़ के साथ।

मम्मीजी के साथ जाना था इसलिए थोड़ा सलीके की ब्लाउज़ और साड़ी पहनी थी, पर था तो फिर भी बहुत कुछ दिखाने वाला, टाइट और बिल्कुल नाप का। साड़ी वहीं कमर के बहुत नीचे और ब्लाउज़ भी डीप नेक आगे और पीछे से। थोड़ी देर में ही बाहर एक गाड़ी आकर रुकी तो वो समझ गई थी की टैक्सी आ गई है। वो फौरन बाहर की ओर लपकी, ताकी मम्मीजी के साथ ही वो नीचे मिल सके, मम्मीजी को फोन नहीं करना पड़े।

नीचे आते ही मम्मीजी ने एक बार कामया को ऊपर से नीचे तक देखा और मुश्कुराती हुई बोली- चलें?

कामया- “जी…” और बाहर जहां गाड़ी खड़ी थी आकर बैठ गये। गाड़ी में कामया ने बड़े ही हिम्मत करके मम्मीजी को कहा- “मम्मीजी…”

मम्मीजी- “हाँ…”

कामया- “जी वो…”

मम्मीजी- बोलो।

कामया- जी वो असल में मुझे ना यह सब मजा नहीं आता तो क्या मैं वहां से जल्दी निकलकर घर आ जाऊँ।

मम्मीजी- अरे मुझे भी कहां आता है, इतनी भीड़ भाड़ में। पर क्या करें बेटा जाना तो पड़ेगा ना। तू एक काम कर, वहां पार्क है तू थोड़ा घूम आना। मैं वहां थोड़ी देर बैठूँगी और फिर दोनों घर आ जाऐंगे।

कामया- जी ठीक है। पर क्या मुझे भी वहां बैठना पड़ेगा?

मम्मीजी- तेरी मर्ज़ी। नहीं तो आस-पास घूमकर देखना और क्या?

कामया- जी ठीक है।

दोनों ने एक दूसरे की ओर मुश्कुराते हुए देखा और गाड़ी को मंदिर के रास्ते पर घूमते हुए देखते रहे। जैसे ही गाड़ी मंदिर पर रुकी, बहुत से लोग गाड़ी के पास आकर मम्मीजी के पैर पड़ने लगे। कुछ कामया को भी नमस्कार करते हुए दिखे। सभी शायद मम्मीजी को जानते थे। मम्मीजी भी सभी के साथ कामया को लेकर मंदिर की सीढ़ियों पर चढ़ने लगी थी। मंदिर के अंदर जाकर दोनों ने नमस्कार किया और अपनी जगह पर बैठ गये थे। वहां बाहर से कुछ लोग आए थे कीर्तन वाले और कुछ गीता वाचक भी थे। मंदिर का समा धीरे-धीरे जैसे भक्तिमए होने लगा था।

पर कामया का मन तो बिल्कुल नहीं लग रहा था। वो चाहकर भी वहां बैठ नहीं पा रही थी। एक तो बहुत जोर से माइक बज रहा था, और फिर लोगों की बातें उसे समझ में नहीं आ रही थीं। वो इधर उधर सभी को देख रही थी और किसी तरह वहां से निकलने की कोशिश करने लगी थी। मम्मीजी आँखें बंद किए कीर्तन की धुन पर झूम रही थी और कहीं भी ध्यान नहीं था।

कामया- “मम्मीजी…” मम्मीजी के हाथों को हिलाकर कामया ने अपनी ओर ध्यान खींचा था।

मम्मीजी- “हाँ…”

कामया- जी मैं थोड़ा बाहर घूम आऊँ?

मम्मीजी- हाँ… हाँ… जा ना मैं यही हूँ।

कामया की जान में जान आई वो लोगों की तरफ देखती हुई थोड़ा सा मुश्कुराती हुई सिर पर पल्ला लिए हुए धीरे से उठी और बाहर की ओर चलने लगी। बहुत सी आँखें उसपर थीं। पर एक आँख जो की दूर से उसे देख रही थी, कामया की नजर उसपर जम गई थी। वो भीड़ में खड़ा दूर से उसे ही निहार रहा था। वो घूमकर उसे देखती पर अपने को उस भीड़ से बचाकर जब वो बाहर निकली तो वो आँख गायब थी। वो मंदिर के बाहर सीढ़ियों पर आकर फिर से इधर उधर नजरें घुमाने लगी थी, पर कोई नहीं दिखा उसे।

पर वो ढूँढ़ क्या रही थी और किसे? शायद वो उस नजर का पीछा कर रही थी जो उसे भीड़ में दिखी थी, पर वो था कौन? उसे वो नजर कुछ पहचानी हुई सी लगी थी। पर एक झटके से उसने अपने सिर को हिलाकर अपने जेहन से वो बात को निकाल दिया की उसे यहां कौन पहचानेगा? वो आज से पहले कभी मंदिर आई ही नहीं। वो मंदिर की सीढ़ियां उतरकर बाहर बने हुए छोटे से पार्क में आ गई थी और धीरे-धीरे चहलकदमी करते हुए बार-बार इधर-उधर देखती जा रही थी।
.
to be contd.
.
.
Like Reply
#26
Good story please rukna mat
Like Reply
#27
.
No comments here. I stopped posting,
pl read on other sites
Thanks
.
.
Like Reply
#28
.
.
कामया बहू से कामयानी देवी

पूरी कहानी पढ़ने के लिये .PDF फाइल डाउनलोड करें


Font- हिन्दी   Click link below:


.
.
Like Reply
#29
too good.... waiting for the sequel please
Like Reply
#30
Story is Good . Make a Part 2 this.
Like Reply
#31
कृपया आगे की कहानी भी पोस्ट करदे
Like Reply
#32
Update please
[+] 1 user Likes Rohan0064's post
Like Reply
#33
Please also add pics also

Like Reply
#34
(28-05-2019, 05:26 PM)koolme98 Wrote: too good.... waiting for the sequel please

(25-06-2019, 10:26 AM)BHAVY.S_King Wrote: Story is Good . Make a Part 2 this.

(29-12-2019, 02:58 PM)HinduWife Wrote: कृपया आगे की कहानी भी पोस्ट करदे
downlod the PDF for full story. link given above
.

(24-01-2021, 10:15 AM)Rohan0064 Wrote: Update please

(24-01-2021, 09:00 PM)dekay sutuz Wrote: Please also add pics also
.
downlod the PDF for full story. link given above.
thanks all.
.
.
Like Reply
#35
Very Exciting story
Like Reply




Users browsing this thread: 3 Guest(s)