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Incest मैं चुदी रवि भैया से
#1
Heart Heart Heart

मैं चुदी रवि भैया से











Heart Heart
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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#2
मैं एक कॉलेज में पढ़ाती हूँ। उसका एक बड़ा कारण है कि एक तो कॉलेज कम समय के लिये लगता है और इसमें छुट्टियाँ खूब मिलती हैं। मैं टीचर की जॉब में हूँ। हाँ बड़े शहर में रहने के कारण मेरे घर पर बहुत से जान पहचान वाले आकर ठहर जाते हैं खास कर मेरे अपने गांव के लोग। इससे उनका होटल में ठहरने का खर्चा, खाने पीने का खर्चा भी बच जाता है। वो लोग यह खर्चा मेरे घर में फ़ल सब्जी लाने में व्यय करते हैं। एक मल्टी स्टोरी बिल्डिंग में मेरे पास दो कमरो का सेट है।

जैसे कि खाली घर भूतों का डेरा होता है वैसे ही खाली दिमाग भी शैतान का घर होता है। बस जब घर में मैं अकेली होती हूँ तो कम्प्यूटर में मुझे सेक्स साईट देखना अच्छा लगता है। उसमें कई सेक्सी क्लिप होते है चुदाई के, शीमेल्स के क्लिप... लेस्बियन के क्लिप... कितना समय कट जाता है मालूम ही नहीं पड़ता है। कभी कभी तो रात के बारह तक बज जाते हैं।

इन दिनों मैं एक मोटी मोमबती ले आई थी। बड़े जतन से मैंने उसे चाकू से काट कर उसका अग्र भाग सुपारे की तरह से गोल बना दिया था। फिर उस पर कन्डोम चढ़ा कर मैं बहुत उत्तेजित होने पर अपनी चूत में पिरो लेती थी। पहले तो बहुत कठोर लगता था। पर धीरे धीरे उसने मेरी चूत के पट खोल दिये थे। मेरी चूत की झिल्ली इन्हीं सभी कारनामों की भेंट चढ़ गई थी।

फिर मैं कभी कभी उसका इस्तेमाल अपनी गाण्ड के छेद पर भी कर लेती थी। मैं क्रीम लगा कर उससे अपनी गाण्ड भी मार लिया करती थी। फिर एक दिन मैं बहुत मोटी मोमबत्ती भी ले आई। वो भी मुझे अब तो भली लगने लगी थी। पर मुझे अधिकतर इन कामों में अधिक आनन्द नहीं आता था। बस पत्थर की तरह से मुझे चोट भी लग जाती थी।

उन्हीं दिनों मेरे गांव से मेरा भाई रवि किसी इन्टरव्यू के सिलसिले में आया। उसकी पहले तो लिखित परीक्षा थी... फिर इन्टरव्यू था और फिर ग्रुप डिस्कशन था। फिर उसके अगले ही दिन चयनित अभ्यर्थियों की सूची लगने वाली थी।

मुझे याद है वो वर्षा के दिन थे... क्योंकि मुझे रवि को कार से छोड़ने जाना पड़ता था। गाड़ी में पेट्रोल आदि वो ही भरवा देता था। उसकी लिखित परीक्षा हो गई थी। दो दिनों के बाद उसका एक इन्टरव्यू था। जैसे ही वो घर आया था वो पूरा भीगा हुआ था। जोर की बरसात चल रही थी। मैं बस, स्नान करके बाहर आई ही थी कि वो भी आ गया। मैंने तो अपनी आदत के आनुसार एक बड़ा सा तौलिया शरीर पर डाल लिया था, पर अपने आधे मम्मे छिपाने में असफ़ल थी। नीचे मेरी गोरी गोरी जांघें चमक रही थी।

इन सब बातों से बेखबर मैंने रवि से कहा- नहा लो ! चलो... फिर कपड़े भी बदल लेना...

पर वो तो आँखें फ़ाड़े मुझे घूरने में लगा था। मुझे भी अपनी हालत का एकाएक ध्यान हो आया और मैं संकुचा गई और शरमा कर जल्दी से दूसरे कमरे में चली गई। मुझे अपनी हालत पर बहुत शर्म आई और मेरे दिल में एक गुदगुदी सी उठ गई। पर वास्तव में यह एक बड़ी लापरवाही थी जिसका असर ये था कि रवि का मुझे देखने का नजरिया बदल गया था। मैंने जल्दी से अपना काला पाजामा और एक ढीला ढाला सा टॉप पहन लिया और गरम-गरम चाय बना लाई।

वो नहा धो कर कपड़े बदल रहा था। मैंने किसी जवान मर्द को शायद पहली बार वास्तव में चड्डी में देखा था। उसके चड्डी के भीतर लण्ड का उभार... उसकी गीली चड्डी में से उसके सख्त उभरे हुये और कसे हुये चूतड़ और उसकी गहराई... मेरा दिल तेजी से धड़क उठा।

मैं 24 वर्ष की कुँवारी लड़की... और रवि भी शायद इतनी ही उम्र का कुँवारा लड़का... जाने क्या सोच कर एक मीठी सी टीस दिल में उठ गई। दिल में गुदगुदी सी उठने लगी। रवि ने अपना पाजामा पहना और आकर चाय पीने के लिये सोफ़े पर बैठ गया।

पता नहीं उसे देख कर मुझे अभी क्यू बहुत शर्म आ रही थी। दिल में कुछ कुछ होने लगा था। मैं हिम्मत करके वहीं उसके पास बैठी रही। वो अपने लिखित परीक्षा के बारे में बताता रहा। फिर एकाएक उसके सुर बदल गये... वो बोला- मैंने आपको जाने कितने वर्षों के बाद देखा है... जब आप छोटी थी... मैं भी...

"जी हाँ ! आप भी छोटे थे... पर अब तो आप ‘बड़े’ हो गये हो..."
"आप भी तो इतनी लम्बी और सुन्दर सी... मेरा मतलब है... ‘बड़ी’ हो गई हैं।"

मैं उसकी बातों से शरमा रही थी। तभी उसका हाथ धीरे से बढ़ा और मेरे हाथ से टकरा गया। मुझ पर तो जैसे हजारों बिजलियाँ टूट पड़ी। मैं तो जैसे पत्थर की बुत सी हो गई थी। मैं पूरी कांप उठी। उसने हिम्मत करते हुये मेरे हाथ पर अपना हाथ जमा दिया।

"रवि भैया आप यह क्या कर रहे हैं? मेरे हाथ को तो छोड़..."

"बहुत मुलायम है ... जी करता है कि..."

"बस... बस... छोड़िये ना मेरा हाथ... हाय …राम कोई देख लेगा..."
रवि ने मुस्कराते हुये मेरा हाथ छोड़ दिया।
अरे उसने तो हाथ छोड़ दिया- वो मेरा मतलब... वो नहीं था...

मेरी हिचकी सी बंध गई थी।

उसने मुझे बताया कि वो लौटते समय होटल से खाना पैक करवा कर ले आया था। बस गर्म करना है।

"ओह्ह्ह ! मुझे तो बहुत आराम हो गया... खाने बनाने से आज छुट्टी मिली।"

शाम गहराने लगी थी, बादल घने छाये हुये थे... लग रहा था कि रात हो गई है। बादल गरज रहे थे... बिजली भी चमक रही थी... लग रहा था कि जैसे मेरे ऊपर ही गिर जायेगी। पर समय कुछ खास नहीं हुआ था। कुछ देर बाद मैंने और रवि ने भोजन को गर्म करके खा लिया। मुझे लगा कि रवि की नजरें तो आज मेरे काले पाजामे पर ही थी।मेरे झुकने पर मेरी गाण्ड की मोहक गोलाइयों का जैसे वो आनन्द ले रहा था। मेरी उभरी हुई छातियों को भी वो आज ललचाई नजरों से घूर रहा था। मेरे मन में एक हूक सी उठ गई। मुझे लगा कि मैं जवानी के बोझ से लदी हुई झुकी जा रही हूँ... मर्दों की निगाहों के द्वारा जैसे मेरा बलात्कार हो रहा हो। मैंने अपने कमरे में चली आई।

बादल गरजने और जोर से बिजली तड़कने से मुझे अन्जाने में ही एक ख्याल आया... मन मैला हो रहा था, एक जवान लड़के को और उसके लंड के उभार को देख कर मेरा मन डोलने लगा था।

"भैया... यहीं आ जाओ ना... देखो कितनी बिजली कड़क रही है। कहीं गिर गई तो?"

"अरे छोड़ो ना दीदी... ये तो आजकल रोज ही गरजते-बरसते हैं।"

ठण्डी हवा का झोंका, पानी की हल्की फ़ुहारें... आज तो मन को डांवाडोल कर रही थी। मन में एक अजीब सी गुदगुदी लगने लगी थी। रवि भी मेरे पास खिड़की के पास आ गया। बाहर सूनी सड़क... स्ट्रीटलाईट अन्धेरे को भेदने में असफ़ल लग रही थी। कोई इक्का दुक्का राहगीर घर पहुँचने की जल्दी में थे।

तभी जोर की बिजली कड़की फिर जोर से बादल गर्जन की धड़ाक से आवाज आई। तभी मुहल्ले की बत्ती गुल हो गई।

मैं सिहर उठी और अन्जाने में ही रवि से लिपट गई,"आईईईईईई... उफ़्फ़ भैया..."

रवि ने मुझे कस कर थाम लिया,"अरे बस बस भई... अकेले में क्या करती होगी...?" वो हंसा।

फिर शरारत से उसने मेरे गालों पर गुदगुदी की। मैं तो और भी उससे चिपक सी गई। गुप्प अंधेरा... हाथ को हाथ नहीं सूझ रहा था।

"भैया मत जाना... यहीं रहना।"

रवि ने शरारत की... नहीं शायद शरारत नहीं थी... उसने जान करके कुछ गड़बड़ की। उसका हाथ मेरे से लिपट गया और मेरे चूतड़ के एक गोले पर उसने प्यार से हाथ घुमा दिया। मेरे सारे तन में एक गुलाबी सी लहर दौड़ गई। मेरा तन को अब तक किसी मर्द के हाथ ने नहीं छुआ था। ठण्डी हवाओं का झोंका मन को उद्वेलित कर रहा था। मैं उसके तन से लिपटी हुई... एक विचित्र सा आनन्द अनुभव करने लगी थी।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
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#3
अचानक मोटी मोटी बून्दों की बरसात शुरू हो गई। बून्दें मेरे शरीर पर अंगारे की तरह लग रही थी।रवि ने मुझे दो कदम पीछे ले कर अन्दर कर लिया।

मैंने अन्जानी चाह से रवि को देखा... नजरें चार हुई... ना जाने नजरों ने क्या कहा और क्या समझा... रवि ने मेरी कमर को कस लिया और मेरे चेहरे पर झुक गया। मैं बेबस सी, मूढ़ सी उसे देखती रह गई। उसके होंठ मेरे होंठों से चिपकने लगे। मेरे नीचे के होंठ को उसने धीरे से अपने मुख में ले लिया। मैं तो जाने किस जहाँ में खोने सी लगी। मेरी जीभ से उसकी जीभ टकरा गई।

उसने प्यार से मेरे बालों पर हाथ फ़ेरा... मेरी आँखें बन्द होने लगी... शरीर कांपता हुआ उसके बस में होता जा रहा था। मेरे उभरे हुये मम्मे उसकी छाती से दबने लगे। उसने अपनी छाती से मेरी छाती को रगड़ा मार दिया, मेरे तन में मीठी सी चिन्गारी सुलग उठी।

उसका एक हाथ अब मेरे वक्ष पर आ गया था और फिर उसका एक हल्का सा दबाव ! मेरी तो जैसे जान ही निकल गई।

"रवि ... अह्ह्ह्ह...!"

"दीदी, यह बरसात और ये ठण्डी हवायें... कितना सुहाना मौसम हो गया है, है ना..."

और फिर उसके लण्ड की गुदगुदी भरी चुभन नीचे मेरी चूत के आस-पास होने लगी। उसका लण्ड सख्त हो चुका था। यह गड़ता हुआ लण्ड मोमबत्ती से बिल्कुल अलग था। नर्म सा... कड़क सा... मधुर स्पर्श देता हुआ। मैं अपनी चूत उसके लण्ड से और चिपकाने लगी। उसके लण्ड का उभार अब मुझे जोर से चुभ रहा था। तभी हवा के एक झोंके के साथ वर्षा की एक फ़ुहार हम पर पड़ीं। मैंने जल्दी से मुड़ कर दरवाजा बन्द ही कर दिया।

ओह्ह ! यह क्या ?

मेरे घूमते ही रवि मेरी पीठ से चिपक गया और अपने दोनों हाथ मेरे सख़्त और मोटे मम्मों पर रख दिये। मैंने नीचे मम्मों को देखा... मेरे दोनों कबूतरों को जो उसके हाथों की गिरफ़्त में थे। उसने एक झटके में मुझे अपने से चिपका लिया और अपना बलिष्ठ लण्ड मेरे चूतड़ों की दरार में घुमाने लगा। मैंने अपनी दोनों टांगों को खोल कर उसे अपना लण्ड ठीक से घुसाने में मदद की।

उफ़्फ़ ! ये तो मोमबत्ती जैसा बिल्कुल भी नहीं लगा। कैसा नरम-सख्त सा मेरी गाण्ड के छेद से सटा हुआ... गुदगुदा रहा था।

मैंने सारे आनन्द को अपने में समेटे हुये अपना चेहरा घुमा कर ऊपर दिया और अपने होंठ खोल दिये। रवि ने बहुत सम्हाल कर मेरे होंठों को फिर से पीना शुरू कर दिया। इन सारे अहसास को... चुभन को... मेरे मोटे मम्मों को दबाने से लेकर चुम्बन तक के अहसास को महसूस करते करते मेरी चूत से पानी की दो बून्दें रिस कर निकल गई। मेरी चूत में एक मीठेपन की कसक भरने लगी।

मेरे घूमते ही रवि मेरी पीठ से चिपक गया और अपने दोनों हाथ मेरे मम्मों पर रख दिये। मैंने नीचे मम्मों को देखा... मेरे दोनों कबूतरों को जो उसके हाथों की गिरफ़्त में थे। उसने एक झटके में मुझे अपने से चिपका लिया और अपना बलिष्ठ लण्ड मेरे चूतड़ों की दरार में घुमाने लगा। मैंने अपनी दोनों टांगों को खोल कर उसे अपना लण्ड ठीक से घुसाने में मदद की।

उफ़्फ़ ! ये तो मोमबत्ती जैसा बिल्कुल भी नहीं लगा। कैसा नरम-सख्त सा मेरी गाण्ड के छेद से सटा हुआ... गुदगुदा रहा था।

मैंने सारे आनन्द को अपने में समेटे हुये अपना चेहरा घुमा कर ऊपर दिया और अपने होंठ खोल दिये। रवि ने बहुत सम्हाल कर मेरे होंठों को फिर से पीना शुरू कर दिया। इन सारे अहसास को... चुभन को... मम्मों को दबाने से लेकर चुम्बन तक के अहसास को महसूस करते करते मेरी चूत से पानी की दो बून्दें रिस कर निकल गई। मेरी चूत में एक मीठेपन की कसक भरने लगी।

"दीदी... प्लीज मेरा लण्ड पकड़ लो ना... प्लीज !"

मैंने अपनी आँखें जैसे सुप्तावस्था से खोली, मुझे और क्या चाहिये था। मैंने अपना हाथ नीचे बढ़ाते हुये अपने दिल की इच्छा भी पूरी की। उसका लण्ड पजामे के ऊपर से पकड़ लिया।

"भैया ! बहुत अच्छा है... कितना मोटा है... और लम्बा भी है... ओह्ह्ह्ह्ह !"

उसने अपना पजामा नीचे सरका दिया तो वो नीचे गिर पड़ा। फिर उसने अपनी छोटी सी अण्डरवियर भी नीचे खिसका दी। उसका नंगा लण्ड तो बिल्कुल मोमबत्ती जैसा नहीं था ... ओह्ह्ह्ह्ह !" !! यह तो बहुत ही गुदगुदा... कड़क... और टोपे पर गीला सा था। मेरी चूत लपलपा उठी... मोमबती लेते हुये बहुत समय हो गया था अब असली लण्ड की बारी थी। उसने मेरे पाजामे का नाड़ा खींचा और वो झम से नीचे मेरे पांवों पर गिर पड़ा।

"दीदी चलो, एक बात कहूँ?"

"क्या...?"

"सुहागरात ऐसे ही मनाते हैं ! है ना...?"
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#4
"नहीं... वो तो बिस्तर पर घूंघट डाले दुल्हन की चुदाई होती है।"

तो दीदी, दुल्हन बन जाओ ना... मैं दूल्हा... फिर अपन दोनों सुहागरात मनायें?"

मैंने उसे देखा... वो तो मुझे जैसे चोदने पर उतारू था। मेरे दिल में एक गुदगुदी सी हुई, दुल्हन बन कर चुदने की
इच्छा... मैं बिस्तर पर जा कर बैठ गई और अपनी चुन्नी सर पर दुल्हनिया की तरह डाल ली।

वो मेरे पास दूल्हे की तरह से आया और धीरे से मेरी चुन्नी वाला घूँघट ऊपर किया। मैंने नीचे देखते हुये थरथराते हुये रस भरे होंठों को ऊपर कर दिया। उसने अपने अधर एक बार फ़िर मेरे अधरों से लगा दिये... मुझे तो सच में लगने लगा कि जैसे मैं दुल्हन ही हूँ। फिर उसने मेरे शरीर पर जोर डालते हुये मुझे लेटा दिया और वो मेरे ऊपर छाने लगा।

मेरी कठोर चूचियाँ उसने दबा दी। मेरी दोनों टांगों के बीच वो पसरने लगा। नीचे से तो हम दोनो नंगे ही थे। उसका मोटा लण्ड मेरी कोमल चूत से भिड़ गया।

"उफ़्फ़्फ़... उसका सुपारा... " मेरी चूत को खोलने की कोशिश करने लगा। मेरी चूत लपलपा उठी। पानी से चिकनी चूत ने अपना मुख खोल ही दिया और उसके सुपारे को सरलता से निगल लिया- यह तो बहुत ही लजीज है... सख्त और चमड़ी तो मुलायम है।

"भैया... बहुत मस्त है... जोर से घुसा दे... आह्ह्ह्ह्ह... मेरे राजा..."

मैंने कैंची बना कर उसे जैसे जकड़ लिया। उसने अपने चूतड़ उठा कर फिर से धक्का मारा...
"उफ़्फ़्फ़्फ़्फ़... मर गई रे... दे जरा मचका के... लण्ड तो लण्ड ही होता है… और वो भी इतना मोटा..."

उसके धक्के तो तेज होते जा रहे थे... फ़च फ़च की आवाजें तेज हो गई... यह किसी मर्द के साथ मेरी पहली चुदाई थी... जिसमें कोई झिल्ली नहीं फ़टी... कोई खून नहीं निकला... बस स्वर्ग जैसा सुख... चुदाई का पहला सुख... मैं तो जैसे खुशी के मारे लहक उठी। फिर मैं धीरे धीरे चरमसीमा को छूने लगी। आनन्द कभी ना समाप्त हो । मैं अपने आप को झड़ने से रोकती रही... फिर आखिर मैं हार ही गई... मैं जोर से झड़ने लगी। तभी रवि भी चूत के भीतर ही झड़ने लगा। मुझसे चिपक कर वो यों लेट गया कि मानो मैं कोई बिस्तर हूँ।

"हो गई ना सुहागरात हमारी...?"

"हाँ दीदी... कितना मजा आया ना...!"

"मुझे तो आज पता चला कि चुदने में कितना मजा आता है ..."

बाहर बरसात अभी भी तेजी पर थी। रवि मुझे मेरा टॉप उतारने को कहने लगा। उसने अपनी बनियान उतार दी और पूरा ही नंगा हो गया। उसने मेरा भी टॉप उतारने की गरज से उसे ऊपर खींचा। मैंने भी यंत्रवत हाथ ऊपर करके उसे टॉप उतारने की सहूलियत दे दी।

हम दोनो जवान थे, आग फिर भड़कने लगी थी... बरसाती मौसम वासना बढ़ाने में मदद कर रहा था। रवि बिस्तर पर बैठे बैठे ही मेरे पास सरक आया और मुझसे पीछे से चिपकने लगा। वहाँ उसका इठलाया हुआ सख्त लण्ड लहरा रहा था। उसने मेरी गाण्ड का निशाना लिया और मेरी गाण्ड पर लण्ड को दबाने लगा।

मैंने तुरन्त उसे कहा- तुम्हारे लण्ड को पहले देखने तो दो... फिर उसे चूसना भी है।

वो खड़ा हो गया और उसने अपना तना हुआ लण्ड मेरे होंठों से रगड़ दिया। मेरा मुख तो जैसे आप ही खुल गया और उसका लण्ड मेरे मुख में फ़ंसता चला गया। बहुत मोटा जो था। मैंने उसे सुपारे के छल्ले को ब्ल्यू फ़िल्म की तरह नकल करते हुये जकड़ लिया और उसे घुमा घुमा कर चूसने लगी। मुझे तो होश भी नहीं रहा कि आज मैं ये सब सचमुच में कर रही हूँ।

तभी उसकी कमर भी चलने लगी... जैसे मुँह को चोद रहा हो। उसके मुख से तेज सिसकारियाँ निकलने लगी। तभी रवि का वीर्य निकल पड़ा। वीर्य की मात्रा बहुत ज़्यादा थी । मुझे एकदम से खांसी उठ गई... शायद गले में वीर्य फ़ंसने के कारण। रवि ने जल्दी से मुझे पानी पिलाया।

पानी पिलाने के बाद मुझे पूर्ण होश आ चुका था। मैं पहले चुदने और फिर मुख मैथुन के अपने इस कार्य से बेहद विचलित सी हो गई थी... मुझे बहुत ही शर्म आने लगी थी। मैं सर झुकाये पास में पड़ी कुर्सी पर बैठ गई।

"रवि ... सॉरी... सॉरी..."
"दीदी, आप तो बेकार में ही ऐसी बातें कर रहीं हैं... ये तो इस उम्र में अपने आप हो जाता है... फिर आपने तो अभी किया ही क्या है?"

"इतना सब तो कर लिया... बचा क्या है?"

"सुहागरात तो मना ली... अब तो बस गाण्ड मारनी बाकी है।"

मुझे शरम आते हुये भी उसकी इस बात पर हंसी आ गई।

"यह बात हुई ना... दीदी... हंसी तो फ़ंसी... तो हो जाये एक बार...?"

"एक बार क्या हो जाये..." मैंने उसे हंसते हुये कहा।
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#5
बहुत आनन्द आया... जब तक उसका इन्टरव्यू चलाता रहा... उसने मुझे उतने दिनों तक सुहानी चुदाई का आनन्द दिया। मोमबत्ती का एक बड़ा फ़ायदा यह हुआ कि उससे तराशी हुई मेरी चूत को एकदम से उसका भारी लण्ड मुझे झेलना नहीं पड़ा। ना ही तो मुझे झिल्ली फ़टने का दर्द हुआ और ना ही गाण्ड में पहली बार लण्ड लेने से कोई दर्द हुआ।... बस आनन्द ही आनन्द आया... ।

एक वर्ष के बाद मेरी भी शादी हो गई... पर मैं कुछ कुछ सुहागरात तो मना ही चुकी थी। पर जैसा कि मेरी सहेलियों ने बताया था कि जब मेरी झिल्ली फ़टेगी तो बहुत तेज दर्द होगा... तो मेरे पति को मैंने चिल्ला-चिल्ला कर खुश कर दिया कि मेरी तो झिल्ली फ़ाड़ दी तुमने... वगैरह...
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#6
धोखा..........दिया
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#7
Good one.
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#9
(24-04-2019, 09:14 AM)neerathemall Wrote:
Heart Heart Heart

मैं चुदी रवि भैया से




[Image: pic-39-bigr.jpg]






Heart Heart
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#10
Chance Mil Gya


September 02, 2013
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#11
i am 30 male from mumbai i tell u this real story in hindi...me is story me mera ya kisika bhi naam nahi bataunga coz this is real story or i am also bit famous person in mumbai.. Me gujarati hu or mumbai me rahta hun..mere sab relative gujarat me hi hay me or meri wife hum dono mumbai me rahte hay..meri ek cousin sister hay jisko hum log sheetal kahenge..vo bhi gujarat me rah ti hay... Hum log join family se hay..sheetal marrieg hamare parent ki choise hi hua tha lekin 5 saal ki marrieg life ke baad mere jija ji heart ateck ke vajah se dehant ho gaya or joint family ki vajah se mere sheetal ke ghar aana jana rahta tha..vo gav me abhi akeli hi rahti hay uski ek beti hay jiski abhi years ke age hay..jija ji ka dehant ke baad sheetal ne deside kiya ke vo dusri saadi nahi kare gi esi hi life bitayegi. Or uske sas or sasur ka bhi dehant ho chuka hay or uski do nannd thi uski sadi ho gai hay.. Baat us din ki hay jab me mumbai se gujarat gaya tha mene socha chalo me sheetal ko bhi milke aau coz vo abhi akeli hay or unko abhi hamare sahare ki jarurat hay..to last october ko me gujarat gaya that tabhi me sheetal ke ghar gaya saamko or sari bate hui..kafi dino ke baad hum log mile the to bahot sari baate hui..fir ratko 8 baje hum logo ne sath me dnnr liya..or fir uski doughter ko nind aa rahi thi to vo so gai or hum dono bhai or bahen kafi sare baate karte rahe.
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#12
Raat ko 12 baje tak baat hone tak fir hum log sone ki tyari karne lage to sheetal ne muje kaha ke hum log flour pe hi so jayenge..or is time uske dil me bhi kuchh nahi tha or mere dil me bhi kuch nahi tha..mene kaha chalega. Jab hum log so gaye to vo bhi mere paas me hi soyi thi pata nahi ninnd me mera per mene uus pe rakh diya..vo bhi nind me this hum log ek dam pass chipak ke soye the..tabhi pata nahi mera unke chhune ke baad mere dil me jara sa bijli jaisa current aa gaya ..fir mere dimag me sirf sex ki hi baate hi gujne lagi...fir vo to real nind me this lekin mera dimag sirf sex kelie soch raha tha...tabhi mene jaan bujke mera haath uske boob pe rakh diya to vo to nind me this lekin ye sab ho kar me sex me pagal ho gaya tha..mera haath unke boobs per that unki or koi reply nathi tha to me unke boobs ko mere hath se dabana suru kiya or unko mere paas khich liya..or hug karne laga.
Light band thi or me usko meri baho me leke hug kar raha tha or boobs ko daba raha tha lekin pata nahi vo janti thi yaa nahi lekin mere ko vo spot kar rahi thi..e dekh ke mene mera haat uske peticoat ki taraf badaya or ahista ahista uske peticoat me daal diya or uski chut pe ghumane laga to me heran ho gaya ek dam clean saved uski chut this ...or mene meri ungli uski chut me daal ke nadar bahar karne laga to
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#13
vo kafi hot gai or jab muje laga ke abhi koi problem nahi hay to mene uske peticoat ki rassi khol di or peticot nikal diya..or mene uske haath ko pakad ke mere lund ko uske hath me thama diya. Vo mere lund ko hilane lagi to me samaj gaya ke vo bhi raji hay to mene kuchh der me hi me uske upper so gaya lekin herani ki baat ye hay ki ye sab hote hote hamari kucch bhi baat nahi hui...or me andher me uske uper chad gaya me bhi kuchh bol nahi paa raha tha..me tray kar raha tha uski chut me ghusnane ko lekin jaa nahi raha tha to tab mene mera cock uske haath me thama diya or bola tum dalo..usne apni chut me mere cock ko daad diya or fir to kya kahu ek jawan or sal se bhukhi chut ko kya chahie? Mene jor se usko chodna chalu kia..to vo bhi muje sath de rahi thi or me jor se chod raha that lekin me bahot hi jaldo refresh ho gaya or muje thoda tension bhi ho gaya ke mera juice uski chut me daadl to diya lekin vo pregnet naa ho jaye to achha hay..fir hum log ese hi so rahe the to pata nahi 5 saal ke baad uski sex ki bhukh kafi thi to unhone muje puchha or ek baar karo na.mene kaha ok tum mere lund ko hard karo to vo bolui me kaisa hard karu? Me ne kaha tum muhme lo or suck karo to vo boli mene kabhi muhme nahi
Liya hay or agar me muhme lungi to muje vermit ho jayegi..lekin faki kuchh samjane ke baat usne mere cock suck karna chalu kiaya or vapas me hard ho gaya.us raat mene uske sath karib 4 time sex kiya lekin usne aaj tak mere sath baat nahi ki hay vo sex ke baare me or saari raat bigar baat ke hi me usko chodte raha. Or in mrng usne kaha ke tum bahot strong ho..tumne muje bahot santosh diya.
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#14
e sirf ek hi raat me hua tha or aaj din tak mene vapas kabhi bhi unko nahi choda hay or usne muje ek baar phone kiya tha or sirf itna hi boli this ke u r a good in activity.
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#15
A widow satisfactory
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#16
Umar 25 saal ki lekin aaj mein ek vidhwa hoon. Aaj mein meri jindagi ka ek secret aapko bayan kar rahi hoon.

Meri shaadi huye 2 saal beet gaye aur mere pati meri shaadi ke 6 mahine baad hi gujar gaye. Mere papa aur mummy ka dehant 7 barash pahle ek car accident mein ho gaya tha. 2 saal pahle mere do bhai, Sunil aur Suresh ne bade dhoom-dhaam se meri shaadi ki. Dono bhai mujhse 7 aur 5 saal bade hai. Dono ki shaadiyan ho chuki hai.

Shaadi to bade dhoom-dhaam se huyi lekin Suhaag Raat se hi main apne aap ko taghi huyi mehsoos karne lagi. Mera pati Rohan bada hi sexy aadmi tha. Shuhaag Raat ki raat woh saraab ke nashe mein jhoomta hua aaya aur mere saath koyi baatein naa karke sirf apni hawas mitane ki koshish karne laga. Mere kapde usne kheench kar mujhese alag kar diye. Mere nange jism ko dekhkar uski aankhein chamak ne lagi.

Aakhir kyon nahi chamakti. Mere husn hai hi aisa. Meri ufanti huyi jawaani ko dekhkar kayi ghayal ho chuke hai. Gora-chitta badan aur uss per upar waale ki meharbaani se ekdum perfect utaar aur chadhav. Badi ankhon ke alaawa mere patle aur nazuk honth. Taraase huye mere mumme aur patli kamar. Gol-gol chutad aur gadrayi huyi janghein. Kapde pahne hone ke bavzood raah chalte huye log aahein bharte the phir yahan to mera jism ek dum beparda mere pati ki ankhon ke saamne tha.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#17
ohan ne jhat se apne kapde utaare aur jhumta hua mujhe apni bahon mein lekar bedardi se mere gaal aur mere dono mummo ko masalne laga. Apne daanto se mujhe kaat kar mere mummo per apne nishaan de daale. Phir apne Lund ko haath mein lekar meri tango ko chauda kiya aur mujh per toot pada. Uska Lund dikhne mein ek mazboot Lund dhikayi pad raha tha. Mujhe laga ki yeh maujhe buri tarah se raund daalega.

Usne mere dono hothon per apne hoth rakhte huye ek karara shot meri Choot per de maara. Main cheekh se bilbilai lekin mere hoth uske hotho se chipke huye the. Awaaj nahi nikli lekin ankhon se dard ke aanshu bah nikle. Phir wah mujhe chodta gaya lekin 5 minute mein hi mujh per se utar kar bagal mein so gaya. Uske Lund se nikla virya meri Choot aur meri jhangho per chipchipahat paida kar raha tha. Mere jism abhi tak tyaar hi nahi hua tha ki uska rus nikal gaya. Maine siskate huye saari raat gujaari.

Phir yeh sissalaa roj hone laga. Ab mujhe Rohan ke baare mein sab kuchh pata chal chuka tha. Woh bachpan se hi aiyaashi karta aa raha tha. Uski kayi auraton se sambandh the. Isi wajah se uske ghar waalo ne uski shaadi kar di ki shaadi ke baad sudhar jaayega. Lekin uski jawaani khatam ho chuki thi. Roj mere badan mein aag lagaa kar khud chain ki neend sota aur main raat bhar karwatein badalte huye saari raat nikaal deti. Kabhi-kabhi blue films ki CD laakar room ke CD player mein mujhe filme dikhata.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#18
Un films ko dekhkar main to sulagti rahti lekin Rohan 5-7 minute ke maje lekar unko raat bhar dekhta rahta. In filmo ki tarah hi kabhi-kabhi meri gaand bhi maar deta. Mukh se uske Lund ko 3-4 din mein choosna hi padta. Jis din uska Lund mere muhn mein jaata us din meri Choot ko sakoon rehta tha. Lekin dhire-dhire uska kamjor jism aur kamjor padta gaya aur shaadi ke 6 maah baad is duniya se gujar gaya.

Mere dono bhai mujhe apne saath hi apne ghar le aaye. Halanki dono ab alag-alag rahne lage the. Dono ke ghar paas-paas hi the. Do-teen mahine to jaise-taise gujar gaye lekin ab mere andar ki vasna ki aag mujhe jalaane lagi. Her raat ko bhabhiyon ko bhaiya ke saath hansi-mazak karte dekh mera man bhi chhat-pataane lagta. Meri dono bhabhiya hai bhi sexy nature ki aur mere dono bhaiyo ko apne control mein rakhti thi. Lekin naa jaane kya hua ki dono bhabhiyan mujhse naraaz rahne lagi. Unhe lagta tha ki main unki CID karti hoon. Ek din mujhe lekar ghar mein bada hangama hua. Phir faisla hua ki mere naam 10 laakh ki fixed deposit kar mujhe hamare puraane ghar mein rahna hoga. Main badi dukhi huyi. Sasuraal to chhuta hi tha ab maika bhi chhoot raha hai.

Phir main apne bhaiya logo ko dukhi nahi karna chahti thi. Apne puraane makaan mein aa gayi. Yeh makaan mere mummy papa ne liya tha. 1 bedroom aur 1 hall ka cottage tha. College ke paas tha. Din bhar to chahal pahal rahti lekin shaam hone ke baad ekka-dukka aadmi hi road per nazar aata. Main akeli us ghar mein rahne lagi. Jab din mein man nahi lagta to college campus mein chali jaati. Aajkal ke nauzavaan chhore aur chhokriyon ko dekha karti thi. Halaanki mujhe college chhode huye 5 saal hi beetein hai lekin tab mein aur ab mein kaafi farak aa chuka hai.
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#19
ss college ke paas hi ek pahadi hai aur sunsaan jungle numa jagah hai. Bada jungle to nahi hai lekin sunsaan rahta hai. College ke ladke-ladki wahan apne pyaar ka izhaar karne chale jaate hai. Dopahar mein ghumne jaati to 7-8 jode mujhe mil hi jaate. Apas mein khoye huye. Ek dusre ki bahon mein chhupe huye. Kayi chumban lete huye mil jaate. Dur kahin ghani jhaadiyon mein ek dusre ke badan ko sahlaate huye bhi milte the. Main inko dekhte huye aage badh jaati lekin mere jism mein ek sarsarahat shuru ho jaati. Kitni baar mera man bekaabu ho jaata lekin kya karti main. Kaafi baar kisi ladke ko ladki ke mumme ko chuste huye dekha aur kitni hi baar kisi ladki ko apne pyaare ke Lund se khelte huye dekha hai maine. Dil mein halchal machi huyi rahti.

Ghar aa kar thande paani se naha kar apne jism ko thanda karne ki koshish karti lekin sab bekaar tha. Phir ek din market se gazar le aayi aur apni Choot mein daal kar apni aag ko thanda karne ki koshish ki. Iss se thodi raahat mili. Ab yeh meri roj ki aadat ho gayi.

Phir ek din mere nanihaal ke ghar ke paas se ek aadmi aaya. Jise dekhte hi main pahchaan gayi. Kamal naam hai uska. Mujhse 4 saal bada. Mera nanihaal yahan se 60 kilometer ki duri per ek chhote se gaon mein hai. 7-8 saal pahle gayi thi. Tab mere nanaji jinda the. Ab mauzud nahi hai.
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#20
Wahi meri jaan-pehchaan Kamal se huyi thi. Kamal ek graduate tha aur waha ek chhoti si dukaan chalata hai. Gaon ka alhad nauzavan jise maano kisi ki fikra nahi ho. Manchale kism ka hai lekin badmaash nahi.

Maine use dekhte hi puchha, "Arre Kamal, yahan kaise?"

Kamal mujhe dekhte hi kaha, "Kaisi ho Indra. Tumhare baare mein pata chala to milne aa gaya. Tumhare sasuraal gaya tha lekin maloom pada tum yahan rahti ho."

Main boli, "Haan ab takdeer ko jo manzoor wahi..."

Kamal bola, "Sun kar bada dukh hua."

Main boli, "Koyi baat nahi. Tum batao kaise ho. Shaadi ki yaa nahi?"

Kamal, "Aare itni jaldi kya hai? Jise dekho meri shaadi ke pichhe pada rahta hai."

Main kaha, "To naraaz kyon hote ho. Jab shaadi ke laayak umar ho tabhi to sab jane puchhte hai naa."

"Kar lenge shaadi bhi aur jab karenge to sab ko bataa kar hi karenge," kahkar Kamal hansne laga.
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