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Adultery हार तरफ चुत हि चुत (BIG & HOT STORY)
#81
मालूम हुआ कि वो तो सुबह सुबह ही खेतो पर चली गयी थी तो मैं भी उसी तरफ मूड गया.आज ठंड भी कुछ ज़्यादा थी और हवा भी तेज चल रही थी अपनी जॅकेट मे हाथो को घुसेडे मैं पैदल ही कच्चे रास्ते पर जा रहा था कि मुझे रास्ते मे प्रीतम मिल गयी.

प्रीतम- मनीष कहाँ जा रहा है,

मैं- कुवे पर

प्रीतम- कल कहाँ था मैं इंतज़ार करती रही.

मैं- एक पंगा हो गया था यार अभी थोडा जल्दी मे हूँ फिर बताउन्गा तुझे

प्रीतम- रुक तो सही मैं भी चलती हूँ तेरे साथ थोड़ा समय बिता लूँगी तेरे साथ.

अब मैं फस गया था प्रीतम को मना कर नही सकता और वहाँ पर अनिता भाभी इसको देखते ही फिर से शुरू हो जाएगी और मैं बीच मे लटक जाउन्गा.

मैं- यार , अनिता भाभी है कुवे पर तुझे देखते ही वो फिर से शुरू हो जाएगी.

प्रीतम- गान्ड मराने दे उसको, उसकी तो आदत है , उसका बस चले तो तुझे अपने पल्लू मे बाँध के रख ले, मैं बता रही हूँ तुझे उस से दूर रहा कर, .

मैं- यार वो समझने को तैयार नही है कि वक़्त बदल चुका है पहले जैसा कुछ भी रहा है क्या तू ही बता.

प्रीतम- छोड़ ना उसको , मेरा मूड खराब मत कर. मैं सिर्फ़ तेरे साथ रहना चाहती हूँ कल वैसे भी मेरा ससुर आ रहा है तो चली जाउन्गी.

मैं- तू बोल रही थी कि देल्ही मे जाएगी.

प्रीतम- पति ले जाएगा तो जाउन्गी वैसे कह तो रहा था कि होली के बाद उसको क्वॉर्टर मिलेगा.

मैं- मैं भी देल्ही मे ही हूँ, मिलती रहना.

प्रीतम- ये भी कहने की बात है क्या. वैसे ठंड बहुत करवा रखी है आज तूने.

मैं- तुझ जैसा बम साथ है तो मुझे सर्दी कैसे लग सकती है प्यारी.

प्रीतम- देख ले कही तेरी भाभी को मिर्च ना लग जाए.

मैं- चल एक काम करते है आज तुम दोनो की साथ ही ले लेता हूँ.

प्रीतम- चल पागल, मज़ा नही आएगा.

मैं- क्यो नही आएगा तुम दोनो आपस मे होड़ कर लेना कि कौन अच्छे से चुदता है.

प्रीतम- कहाँ से आते है ये ख्याल तेरे मन मे ,

मैं- मुझे भी नही पता .

बाते करते करते हम लोग कुवे पर पहुच गये चारो तरफ सरसो की फसल खड़ी थी और खेती की ज़मीन होने पर ठंड भी बहुत लग रही थी.

मैं- प्रीतम तूने खेत मे चूत मरवाई है

प्रीतम- कयि बार. तुझे याद है अपन लोग तो जंगल मे भी करते थे.

मैं- तेरी बात ही निराली है दिलदार है तू

प्रीतम- अब कुछ नही बचा यार, अब तो बस बालक पालने है और ऐसे ही जीना है.

मैं- बात तो सही है . चल कमरे मे चलते है ठंड बहुत है बाहर.

हम लोग अंदर गये पर भाभी नही थी वहाँ पर.

मैं- प्रीतम डोली मे दूध रखा हो तो दो कप चाय बना ले ना.

प्रीतम- हे, मैं तो अपना दूध पिलाने को मरी जा रही हूँ तुझे दूध की पड़ी है.

मैं- रानी, तेरी इसी अदा पे तो मैं फिदा हूँ. पर पहले चाय बना ले.

प्रीतम ने चूल्हा जलाया और चाय बनाने बैठ गयी. और मैं भाभी को ढूँढने निकल गया पर वो मुझे मिली नही . फिर सोचा की गीता से पूछ लूँ पर उसके घर जाता तो देर बहुत लग जानी थी . और भाभी भी कहाँ जानी थी मैं चारपाई पर बैठ गया और रज़ाई ओढ़ ली प्रीतम चाय ले आई और मेरे पास ही बैठ गयी.

प्रीतम- देख पहले हम ऐसे साथ होते तो बवाल हो जाना था और अब देख.

मैं- बावली , मेरी माँ नही है यहाँ वरना अब भी बवाल हो जाए.

प्रीतम- सही कहा तेरी माँ को अभी भी लगता है कि बेटा तो बहुत शरीफ है .

मैं - ना री एक बार इसी कमरे मे मुझे पकड़ लिया था एक चोरी के साथ जबसे आजतक शक बहुत करती है.

प्रीतम- कसम से.

मैं - तेरी कसम वो बिम्ला है ना उसकी छोरी थी.

प्रीतम- कहाँ कहाँ झंडे गाढ रखे है तूने.

मैं- तेरा चेला हूँ .

प्रीतम- हट, बदमाश.

तभी फोन बजने लगा मेरा चाची का फोन था मैने उठाया .

चाची- कहाँ हो,

मैं- कुवे पर

चाची- बिना कुछ खाए पिए ही निकल गये.

मैं- एक काम करना आज मीट बना लो और कुवे पर भिजवा देना साथ मे एक बोतल भी आज थोड़ा मूड है .

चाची- किसके हाथ भिजवाउंगी, मैं ही आ जाउन्गी.

मैं- ना मेरे साथ कोई और है तो रहने देना मैं भेज दूँगा किसी को और मम्मी पापा आ जाए तो बताना मत कि मैं कुवे पर हूँ.

चाची- ठीक है , पर किसके साथ है तू.

मैं- है कोई आप बस फोन कर देना जब खाना बन जाए.

चाची- ठीक है और कुछ चाहिए तो बता देना.

मैं- और कुछ देती कहाँ हो आप.

चाची- शरारती बहुत है तू.

मैने फोन रखा और उठ कर कमरे का दरवाजा अंदर से बंद कर लिया.

प्रीतम - रहने देना खुला

मैं- भाभी आ गयी तो ठीक ना लगेगा.

मैने प्रीतम को थोड़ा सा सरकाया और रज़ाई हम दोनो के उपर डाल ली .

प्रीतम मेरी बाहों मे सिमटने लगी कुछ सर्द मौसम और कुछ दिल मे भावनाओं का ज्वर बेशक प्रीतम मेरी मंज़िल नही थी पर सफ़र मे हमसफर ज़रूर थी . मैने उसे सीने से चिपका लिया और अपनी आँखो को मूंद लिया.

प्रीतम- ये सुकून पहले क्यो ना मिला.

मैं- सच कहूँ तो सुकून पहले ही था. आज तो बस हम भाग रहे है दौड़ रहे है पता नही किसके पीछे और किसलिए. सब रूठ गया अब ना घर है ना परिवार बस मुसाफिर बनके रह गये है भटक रहे है अपने आप को तलाश करते हुए, जानती है इस नौकरी ने मुझे रुतबा तो दिया पर मैं इसे अपना नही पाया हूँ. चाहे मेरी ड्यूटी घने जंगलों मे रही या बर्फ़ीली वादियो मे, देश मे या बाहर बस इस नौकरी के बोझ को कंधो पर महसूस किया है मैने. दुनिया नौकरी के लिए तरसती है पर मैं वापिस अपनी बेफिक्री को जीना चाहता हूँ.

प्रीतम- मुमकिन नही अब, समय आगे बढ़ गया है तुमको भी आगे बढ़ना होगा.

मैं- जानती हो अनिता भाभी के बहुत अहसान है मुझ पर उन्होने बहुत किया मेरे लिए . बेशक हमारे बीच शारीरिक संबंध थे पर एक दोस्त से बढ़कर, मैं बता ही नही सकता कि वो क्या थी और क्या है मेरे लिए, पर तुम्हारी बात को ले लो, समय बदल गया है भाभी को समझना चाहिए इस बात को कुछ चीज़े अब पहले सी नही रही. और जो बाते उन्होने निशा के लिए बोली दिल मे तीर की तरह चुभ रही है.

प्रीतम- बुरा मत मानियो पर अनिता को अभी काबू कर ले वरना ये आग जो वो लगा रही है सारा कुनबा जलेगा इसमे. कल को जब निशा के आगे तुम्हारे इन संबंधो की बात आएगी तो चाहे वो कितना भी विश्वास करती हो तुम पर , उसका दिल तो टूट ही जाएगा ना तब तुम क्या करोगे याद रखना औरत की नज़र मे एक बार गिरे तो उठ नही पाओगे. तुम्हे सदा ही अपना माना है इसलिए कहती हूँ अनिता को समझा लो .

मैं- सोचा तो है भाभी से बात करके कोई रास्ता निकालूँगा.

प्रीतम- बेहतर रहेगा यार.

प्रीतम ने अपना हाथ मेरी जॅकेट मे डाल दिया और मेरे सीने को सहलाने लगी.

मैं- याद है कैसे तेरे जिस्म को चाशनी मे भिगो कर खाया करता था मैं .

प्रीतम- नादानियाँ थी वो सब, पर आज मीठी यादे है .

मैं- पर उस टाइम तू टॉप थी गाँव की, हर कोई बस तेरे आगे पीछे ही घूमता था .

प्रीतम- चढ़ती जवानी की नादानियाँ, आज सोचो तो हँसी आ जाती है. याद है एक बार मेरी माँ ने बस पकड़ ही लिया था अपने को.

मैं- काश पकड़ ही लेती तो ठीक रहता ना.

प्रीतम- अच्छा जी तब तो सिट्टी – पिटी गुम हो गयी थी.

मैं- तब आज जितना हौंसला कहाँ था .

प्रीतम- क्या फ़ायदा इस हौंसले का , अब हम नही है.

मैने अपनी छाती पर उसका रेंगता हाथ पकड़ लिया और थोड़ा सा और उसको अपने करीब कर लिया.

प्रीतम- निशा को भी ऐसे ही पकाते हो क्या तुम

मैं- ये तो निशा ही जाने, कभी कहती नही कुछ ऐसा वो.

प्रीतम- समझदार लड़की है मुझे खुशी है कोई तो मिला जो तुमको थाम सकेगा.

मैं- अभी तो तुम ही थाम लो ना मुझे.

प्रीतम- मैं तो हमेशा ही महकती हूँ तुम्हारे अंदर कही ना कही.

प्रीतम ने करवट ली और मेरे उपर आ गयी अगले ही पल मेरे होंठ उसके होंठो की क़ैद मे थे मैने बस उसकी पीठ पर अपनी बाहे कस दी और खुद को उसके हवाले कर दिया. उसका चूमना कुछ ऐसे था जैसे चूल्हेस की दहक्ति लौ. उसके किस करने मे कुछ तो बात थी मेरे हाथ उसकी मांसल गान्ड को सहलाने लगे थे और आवेश मे मैने उसकी पाजामी को नीचे सरका दिया.

मेरे अंदर महकती उसकी सांसो ने मुझे उत्तेजित करना शुरू कर दिया था.कुछ ही देर मे हम दोनो के कपड़े चारपाई के नीचे पड़े थे और हम दोनो के दूसरे के जिस्म को रगड़ते हुए किस करने मे खोए हुए थे. प्रीतम के बदन पर बढ़ती हुई उमर के साथ जो निखार आया था उसने उसको और भी मादक बना दिया था . प्रीतम का हाथ मेरे लंड को अपनी मुट्ठी मे भर चुका था जिसे वो अपनी चूत पर तेज तेज रगड़ रही थी. उसकी बेहद गीली चूत पर बस एक हल्के से धक्के की ज़रूरत थी और मेरा लंड सीधा उन गहरी वादियो मे खो जाता जिसकी गहराई को शायद ही कभी कोई नाप पाया हो.

भयंकर सर्दी के मौसम मे एक रज़ाई मे मचलते दो जवान जिस्म एक दूसरे मे समा जाने को बेताब हो रहे थे. और जैसे ही प्रीतम का इशारा मिला मैने अपने लंड पर ज़ोर लगा दिया प्रीतम की चूत ने अपने पुराने साथी का मुस्कुराते हुए स्वागत किया और मैं पूरी तरह से उ पर छा गया .

“आह, आराम से क्यो नही डालता तू हमेशा आडा टेढ़ा ही जाता है ” प्रीतम ने कहा.

मैं- ज़ोर लग ही जाता है जानेमन.

प्रीतम- ज़ोर लग ही गया है तो अब पूरा लगाना .

प्रीतम का यही बेबाकपन मुझे बहुत पसंद था उसके इन्ही लटको झटको पर तो मैं फिदा था पहले भी और आज भी उसके नखरे जानलेवा ही थे. उसने अपनी टाँगे उठा कर मेरे कंधो पर रख दी और मैं उसकी छाती को मसल्ते हुए उसकी चूत मारने लगा. खाट चरमराने लगी .

प्रीतम- ये भी जाएगी क्या.

मैं- पता नही पर आज तू खूब चुदेगि ये पक्का है .

प्रीतम- सच मे

मैं- देख लियो.

प्रीतम- चल दिखा फिर.

मैं- आज तू देख ही ले, आज जब तक तेरे पुर्ज़े ना हिला दूं उतरूँगा नही तेरे उपर से.

प्रीतम- कसम है तुझे अगर उतरा तो जब तक मैं ना चीखू, ना चिल्लाऊ उतरना नही.

मैं- नही उतरूँगा. आज पुरानी यादो को ताज़ा कर ही लेते है जानेमन .

प्रीतम ने अपनी टाँगे उतारी और अपने होंठो को किस के लिए खोल दिया.

अपनी जीभ से मेरी जीभ को गोल गोल रगड़ते हुए मेरी नस-नस मे मादकता भर रही थी वो और मैं सच कहता हूँ कि मैं बहुत खुशनसीब हूँ जो मुझे जीवन मे कुछ ऐसी लड़कियो-औरतो के साथ जीने का मौका मिला जो बेस्ट इन क्लास थी. चूत तो सबके पास होती है पर ज़िंदगी मे कुछ लोग बस ऐसे आपसे जुड़ जाते है कि बेशक उन रिश्तो का कोई नाम नही होता पर उनकी अहमियत बहुत होती है.

गहरी सर्दी मे भी हम दोनो की बदन से पसीना अब टपकने लगा था रज़ाई कब उतर गयी थी मालूम ही नही हुआ था. एक दूसरे के होंठो को शिद्दत से चूस्ते हुए होड़ सी मच गयी थी कि आज एक दूसरे को पछाड़के ही दम लेना है पर प्रीतम को हराना आसान कहाँ था, वो तो हमेशा से खिलाड़ी थी इस खेल की और ये बात ही उसे औरो से जुदा करती थी.कुछ देर बाद प्रीतम मेरे उपर आ गयी और ज़ोर ज़ोर से उछलने लगी.

उसकी मोटी मोटी चुचिया बहुत जोरो से हिल रही थी और चूत से टपकता पानी पच पच की आवाज़ कर रहा था.

“आज तुझे इतना थका दूँगी कि तू याद रखेगा”अपनी उखड़ी सांसो को समेट ते हुए वो बोली.

मैं- ना हो सकेगा बावली,फ़ौज़ी हूँ मारना मंजूर है पर थकुन्गा नही चाहे लाख कॉसिश कर ले.

प्रीतम- ऐसी की तैसी तेरी और तेरी फ़ौज़ की.

प्रीतम ने अपने दोनो हाथ मेरे कंधो पर रखे और एक तरह से मेरे उपर लेट गयी अब वो अपनी भारी गान्ड का पूरा ज़ोर लगा सकती थी और उसने बिल्कुल वैसा ही करते हुए अपने चुतड़ों को पटकना शुरू कर दिया , तो मैं जैसे पागल ही हो गया , चुदाई का मज़ा पल पल बढ़ता ही जा रहा था , उपर से जिस दीवानगी के साथ वो मुझे किस कर रही थी मुझे लगा कि छोरी पागल तो नही हो गयी.मैने उसे अपनी बाहों मे कस लिया और उसका साथ देने लगा, नीचे से मेरे धक्को ने भी रफ़्तार पकड़ ली तो चुदाई का मज़ा दुगना हो गया.

मेरे होंठो को इतनी बेदर्दी से अपने मूह मे भरा हुआ था उसने कि सांस लेना मुश्किल हो गया था उपर से उसके दाँत जैसे मेरे होंठ को आज चबा ही जाने वाले थे और जिस हिसाब से मुझे दर्द हो र्हा था लगता था कि होंठ कट गया होगा .पर अब उसका बोझ संभालना मुश्किल हो रहा था तो मैने उसे घोड़ी बना दिया और क्या बताऊ यार उसका पिछवाड़ा इतना मस्त था कि पूछो ही मत.शायद अब मुझे समझ आया था की आख़िर क्यो उसे हमेशा से अपने हट्टी-कट्टी होने का नाज़ क्यो था.मैने अपना टोपा धीरे से उसकी चूत मे सरकाया और फिर निकाल लिया, फिर सरकाया और फिर निकाल लिया ऐसा कयि बार किया.

प्रीतम- मनीष चीटिंग मत कर ऐसे ना तडपा अभी पूरा मज़ा आ रहा है तो ठीक से कर.

मैं- कितना अच्छा लगता है ना जब तेरी भोसड़ी मे लंड को ऐसे आते जाते देखता हूँ.

प्रीतम- ज़िंदगी का एक ये ही तो मज़ा है प्यारे, बाकी तो सब उलझने ही है.

प्रीतम ने अपने पिछले हिस्से को पूरी तरह से उपर उठा लिया जिसकी वजह से मुझे भी उँचा होना पड़ा पर चुदाई मे कोई कसर नही थी, एक के बाद एक वो झड़ती गयी, तरह तरह के पोज़ बदलते गये पर ना वो थक रही थी और ना मैं रुक रहा था.

“और और्र्र्र्र्र्र्र्र्र्ररर अओर्र्र्ररर ज़ोर्र्र्र्र्र्ररर सीईईईई आआहह आहह आहह” प्रीतम अब सब कुछ भूल कर ज़ोर ज़ोर से चीखने लगी थी पर किसे परवाह थी, किसे डर था.उसके गालो पर मेरे दाँत बारबार अपने निशान छोड़ रहे थे . अब ये चुदाई चुदाई ना होकर पागलपन की हद तक पहुच गयी थी.

“और ज़ोर से चोद और दम लगा बस एक बार और झड़ना चाहती हूँ एक बार और मंज़िल दिखा दे मुझे आआआआआआआआआआआआआआआआऐययईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईई” प्रीतम बडबडाने लगी.

मैं उसकी भारी गान्ड को सहलाते हुए उसकी पीठ पर किस कर रहा था और वो पागल हुए जा रही थी.करीब पाँच-छे मिनिट और घसम घिसाई हुई और फिर उसने अपने अपने नाख़ून मेरी कलाईयों मे गाढ दिए इतना ज़्यादा मस्ता गयी थी वो इस बार जो वो झड़ी मुझे भी लगा कि बस पानी निकलने ही वाला हैं मैने उसके कान मे कहा कि चूत मे ही गिरा दूं क्या तो उसने मना किया और उठ कर तुरंत मेरे लंड को मूह मे भर लिया.

उसकी जीभ की गर्मी को मैं बर्दास्त नही कर पाया और अपनी मलाई से उसके मूह को भरने लगा जिसे बिना किसी शिकायत के उसने पी लिया.जैसे ही मेरा वीर्य निकला मेरे घुटने कांप गये और मैं बिस्तर पर पड़ गया.

प्रीतम- कहा था ना दम निकाल दूँगी.

मैं- हां,दम निकाल ही दिया तूने जानेमन.

उसने रज़ाई नीचे से उठाई और हम दोनो के उपर डाल ली.कुछ देर बस पड़े रहे ऐसे ही फिर मैं उठा कच्छा पहना और बाहर को चला .

प्रीतम- कहाँ जा रहा है.

मैं- पानी पीने.

प्रीतम- तुझे चोदने के बाद ही प्यास क्यो लगती है

मैं- हमेशा से ऐसा ही है पता नही क्यो.

मैने दरवाजा खोला और बाहर आया तो देखा कि खेली पर भाभी बैठी हुई है.मैने पहले तो पानी पिया .

मैं- भाभी आप कब आई.

भाभी- जब तुम उस कुतिया के साथ कचरा फैला रहे थे.

मैं-भाभी, आप कब्से ऐसे रिक्ट करने लगे.हो क्या गया है आपको आजकल प्रीतम कोई पराई है क्या और उसकी भी अहमियत है मेरे जीवन मे.

भाभी- हाँ जानती हूँ , मेरे अलावा सब किसी की अहमियत है तेरे पास. वो तो मैं ही पागल हूँ जो पता नही क्या क्या सोच लेती हूँ. सारा दोष मेरा ही हैं , मुझे क्या पड़ी है तुम चाहे किसी के पास भी मूह मारो. अब बड़े जो हो गये हो साहब हो गये हो.

मैं- क्या बोल रही हो भाभी, आपके लिए तो हमेशा ही आपका देवेर ही रहूँगा ना, पर अब चीज़े बदल भी तो गयी है ना टाइम देखो कितना बदल गया है .

भाभी- हाँ, तभी तो ….. खैर, मुझे क्या मुझे कुछ समान लेना है अंदर से फिर जा रही हूँ तुम्हे जो करना है करो.

भाभी उठी और अंदर कमरे मे गयी मैं पीछे पीछे आ गया. भाभी ने अंदर प्रीतम को देखा पर कुछ कहा नही. और वापिस जाने लगी तो मैने भाभी का हाथ पकड़ लिया.

भाभी- हाथ छोड़ मेरा.

मैं- रूको तो सही.

भाभी- मैने कहा ना हाथ छोड़.

मैं- आपका और प्रीतम का पंगा क्या है सुलझा लो ना.

प्रीतम- रहने दे ना मनीष, ये बड़े घर की बहू हम नाली के कीड़े इसका और मेरा कैसा साथ.

मैं- यार तुम दोनो ही मेरे लिए कितने इंपॉर्टेंट हो पता हैं ना फिर कम से कम मेरी खुशी के लिए ही मान जाओ.



भाभी- अब तुम्हारा तुम देखो मैं अपना देख लूँगी . वैसे भी मुझे भी कोई शौक नही है किसी के आगे-पीछे चक्कर काटने का,तुम अपने मे मस्त रहो मैं अपने मे. अब एक परिवार है तो आमना-सामना होता ही रहेगा बाकी तुम अपनी जगह मैं अपनी जगह.अनिता के इतने बुरे दिन भी नही आए है की उसे लोगो का मोहताज होना पड़े. ठीक है आज मेरा वक़्त खराब है और तुम बड़े हो गये हो तो ले लो अपने फ़ैसले, जो करना है करो आज के बाद मैं आगे से तुम्हे कुछ नही कहूँगी.

मेरा दिमाग़ सच मे झल्लाने लगा था जहाँ मैं भाभी को समझाने की पूरी कोशिश कर रहा था उतना ही उनके दिल मे मैल भरता जा रहा था.मैने फिर भी एक कोशिश की उनको समझाने की पर वो टस से मस ना हुई और चली गयी रह गये मैं और प्रीतम.

प्रीतम- इसको नशा बहुत है बड़े घर की होने का.

मैं- क्या बड़े घर की है यार. मैं क्या बदल गया , अब जो काम है वो तो करना ही पड़ेगा ना. साल मे मुश्किल से इतने ही दिन मिलते है और यहाँ आओ तो इनके ये तमाशे यार अब टाइम के अनुसार तो चलना पड़ेगा ना. बीते कुछ सालो मे दुनिया बदल गयी है तुम और हम तो इंसान ही हैं ना , मैं घर ना बसाऊ क्या. माना ठीक है, तब बच्पना बहुत है और जवानी का जोश भी हो गया और फिर मज़े तो दोनो ने ही किए थे ना. पर ज़िंदगी मे और भी चीज़ों को देखना पड़ता है .

प्रीतम- यही बात तो अनिता समझ नही रही है. खैर ,मूड खराब मत कर वैसे भी मैं जा रही हूँ फिर देखो कब मुलाकात हो . अब तू ऐसे रहेगा तो मुझे भी बुरा लगेगा.

कुछ देर सुस्ताने के बाद एक बार और हम ने चुदाई की फिर कुछ खाया पिया और फिर उसको तो जाना ही था . मैं उसको कुछ देना चाहता था पर उसने मना कर दिया .

घर गया तब तक मम्मी- पापा भी वापिस आ चुके थे तो थोड़ी बहुत बाते उनसे भी हो गयी. वैसे भी अगले दिन मुझे भी देल्ही के लिए निकलना था तो थोड़ा बहुत टाइम पॅकिंग मे निकल गया . मैं फादर साब से बात करना चाहता था पर कह नही पाया तो दिल की बात दिल मे लिए मैने बस पकड़ ली देल्ही के लिए. इस बार जब गाँव से चला तो ऐसा लगा कि पीछे कुछ रह गया है.एक अजनबी पन सा साथ लेकर मैं चला था इस बार अपने सफ़र मे. निशा मुझे देखते ही खुश हो गयी थी.रात को हम दोनो एक दूसरे के पास पास बैठे थे.

निशा- सोच रही हूँ, बुआ के बेटे की शादी है तो कुछ शॉपिंग कर लूँ

मैं- जो तेरा दिल करे , कर ले.

वो- तुम ही बताओ क्या गिफ्ट खरीदे.

मैं- कहा ना, जो तुम्हारा दिल करे. जो तुम्हे पसंद है वो ही मेरी पसंद है.

निशा ने मेरे काँधे पर अपना सर रख दिया और पास बैठ गयी. अक्सर हमारे पास कहने को कुछ नही होता था, दिल अपने आप समझ लिया करते थे दिलो की बाते. अगर निशा नही होती तो मेरा क्या होता मिथ्लेश के जाने के बाद जैसे उसने थाम लिया था मुझे, ज़िंदगी मे फिर से मुस्कुराने की वजह थी तो वो निशा थी, मेरी निशा.

और बहुत विचार करके मैने फ़ैसला किया कि निशा ही मेरी ज़िंदगी की डोर बनेगी. अगली शाम मैं उसे लेके झंडेवालान मे माता के मंदिर ले गया.

निशा- यहाँ क्यो आए है हम

मैं- कुछ कहना था तुमसे.

निशा- हाअ,

मैने वो दुल्हन का जोड़ा जिसे निशा ने पसंद किया था , जिसे उसकी नज़रों से बचाकर मैं खरीद लाया था मैने उसके हाथों मे रख दिया.

वो हैरान रह गयी थी , उसके चेहरे पर जो खुशी थी हां उसी को तो मैं देखना चाहता था.

निशा- मज़ाक कर रहे हो ना मनीष.

मैं- नही, इस से पहले कि मैं टूट कर बिखर जाउ, निशा मुझे थाम लो मुझे अपना बना लो. मुझसे शादी करोगी निशा.

निशा की आँखो से आँसू बह चले, पर उसके चेहरे पर मुस्कान थी , जो मेरे दिल को धड़का गयी थी. निशा ने बस अपनी बाहे फैला दी और मुझे अपनी बाहों मे भर लिया. जैसे गरम रेत पर बरसात की कुछ बूंदे गिर जाती है उतना ही करार मुझे उस पल था. जल्दी ही वो मेरे सामने दुल्हन का जोड़ा पहने खड़ी थी. मैने पहले ही सारी तैयारी कर रखी थी , उसका हाथ अपने हाथो मे थामे फेरे लेते हुए मैं और वो अपनी नयी ज़िंदगी के सपने सज़ा रहे थे, मैं कभी नही सोचा था कि निशा मेरी जीवनसाथी बनेगी पर उपर वाले ने शायद उसे ही चुना था मेरे हम सफ़र के रूप मे. कहने को तो वो बस सात फेरे थे पर मैं और निशा जानते थे कि हमारा बंधन अब दो जिस्म एक जान हो गया था.

हमारे रिश्ते को अब एक नाम मिल गया था, शादी के बाद हम दोनो वही पर सीडीयो पर बैठे थे.

निशा- कभी सोचा नही था ना.

मैं- तुम हमेशा से मुझसे प्यार करती थी ना

निशा- तुम जानते हो ना. मेरा था ही कौन एक सिवाय तुम्हारे.

मैं- कभी कभी डर लगता है मुझे

निशा- क्यो.

मैं- मेरी तकदीर ही ऐसी है .

निशा- अब से मैं तकदीर हूँ तुम्हारी, मैं तुम्हारे भाग्य को अपने हाथो की लकीरो मे लेके चलूंगी,

मैने उसका माथा चूम लिया. और रात होते होते हम घर आ गये.

मैने घर आके सबसे पहले पापा को फोन किया.

मैं- एक बात बतानी थी आपको.

पापा- हाँ बेटे, सब ठीक तो हैं ना.

मैं- सब ठीक है पापा, वो मैने , वो मैने शादी कर ली है .

पापा- चलो कुछ तो ठीक हुआ तुम्हारी ज़िंदगी मे पर किस से.

मैं- निशा से पापा.

पापा- अब मुझे चैन मिला , निशा ही तुम्हे ठीक रखेगी, रूको मैं तुम्हारी मम्मी को बुलाता हूँ.

और फिर मैने पापा की आवाज़ सुनी , खुशी से चहकते हुए, कुछ देर बाद फोन पर मम्मी थी अपनी ढेरो शिकायते लेकर.

मुंम्मी- हाय राम, क्या जमाना आ गया हमे बता तो देता , मुझे तो बुलाना ही नही चाहता फलना फलना.

मैं- सुन तो लो मेरी बात .

पर तभी निशा ने मेरे हाथ से फोन ले लिया ..




Uncomplet.........................................................
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#82
कहानी का ओरिजिनल नाम- दि डार्क साइड सागा (ग़ाशिप॰काम पर रोमन में)

ओरिजिनल लेखक- FrankanstienTheKount
 
कहानी के अन्य नाम, दूसरे फोरमों पर
- ज़िंदगी भी अजीब होती है
- अये दिल है मुश्किल
- हर तरफ चूत ही चूत
.
.
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#83
Complete story kaha per hai.....
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#84
bhai ye kahani originally xossip par FTK/franku yani manish fauji ne likhi thi...............
the darkside saga............... 
aur baad mein naam badalkar .......... ae dil hai mushkil
ye unki real life story hai jaisa unhone bataya tha

wo ajkal dusre forum par active hain............ aur mere personal contact me bhi

plz .........aap beshak unki kahani ko copy-paste kar rtahe hain..........
lekin unka original title aur original writer ko credit dein.............

for more info just PM me
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#85
(21-12-2020, 05:02 PM)kill_l Wrote: Complete story kaha per hai.....

bhai ye original writer ...... manish fauji /FTK/Musafir ki real life story hai.........
ye complete nahin hogi.......... ismein aage bahut kuchh judta rahta hai
jaise ki ab nisha bhi is duniya me nahin hain
manish ki maujooda wife isi kahani ki ek character hain

aur bhi bahut kuchh hai........ jo kahani me ab tak nahin aya......... 

bas apne padha aur anand liya...... yahi kafi hai  Smile
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#86
(23-12-2020, 10:32 AM)kamdev99008 Wrote: bhai ye original writer ...... manish fauji /FTK/Musafir ki real life story hai.........
ye complete nahin hogi.......... ismein aage bahut kuchh judta rahta hai
jaise ki ab nisha bhi is duniya me nahin hain
manish ki maujooda wife isi kahani ki ek character hain

aur bhi bahut kuchh hai........ jo kahani me ab tak nahin aya......... 

bas apne padha aur anand liya...... yahi kafi hai  Smile

Aage koi update aayega?? Aapko koi idea...... Kon se forum per original writer available hai??
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#87
(23-12-2020, 01:55 PM)kill_l Wrote: Aage koi update aayega?? Aapko koi idea...... Kon se forum per original writer available hai??

Me writer se touch me hu...
Lakin wo ab ise aage nahin likhenge.  

Wo dusri forum xf par kuchh new stories likh rahe hain....
Ajkal tabiyat theek na hone ki wajah se offline hain 2-3 mahine se...But touch me hain...
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#88
छा गए हरियाणा आले
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