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Adultery हर ख्वाहिश पूरी की
दरिया हूं यू तो मै भी इक मोहब्बत का
गई नही पर तिश्रगी••••अब क्या कहूं?
लौट आओ बरसो हुये हमको बिछङे अब
ये है अब दिल की लगी•••अब क्या कहूं?

[Image: FB-IMG-1602032886978.jpg]
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Update please  Bahot badhia story hai
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कुच्छ देर बाद भाभी मेरे कमरे में आईं, मुझे अपने ख़यालों में उलझे हुए पाकर वो मेरे सिरहाने पैर लटका कर बैठ गयी… और मेरे सर पर हाथ फिराया…

मेने उनकी तरफ देखकर अपना सर उनकी जाँघ पर रख दिया… वो मेरे बालों में उंगलियाँ घूमाते हुए बोली –

मेरा प्यारा बाबू कुच्छ परेशान लग रहा है…क्या हुआ है.. मुझे नही बताओगे..?

मे – आपके अलावा मेरा और है ही कॉन जिससे मे अपने मन की बात कर सकूँ…?

भाभी – तो बताओ मुझे हुआ क्या है… जिसकी वजह से मेरा लाड़ला देवेर इतना परेशान है.?

मेने भाभी को तुबेवेल्ल पर देखी हुई सारी घटना बता दी…

भाभी कुच्छ देर सन्नाटे की स्थिति में बैठी रही… फिर बोली – तो तुमने चाचा के आने के बाद की बातें नही सुनी…!

मे – नही ! मे तो ये देख कर हैरान था, कि जब चाची ने चाचा के लिए गेट खोला था, तब भी वो आधे से ज़्यादा नंगी ही थी, सिर्फ़ पेटिकोट को अपने दूधों तक चढ़ाया हुआ था…

भाभी – हूंम्म… इसका मतलब… चाचा-चाची मिलकर बाबूजी को लूट रहे हैं.. अब तो जल्दी ही कुच्छ करना पड़ेगा…!

मे – अब आप क्या करने वाली हैं भाभी…? मुझे तो बड़ा डर लग रहा है..

भाभी मेरे बालों को सहलाते हुए बोली – अभी तो मुझे भी नही पता कि मे क्या करूँगी…?

पर तुम बेफिकर रहो.. तुम्हारी भाभी सब ठीक कर देगी…!

मे – मुझे आप पर पूरा भरोसा है..

फिर भाभी ने झुक कर मेरे गाल पर चूमा और बोली – ये सब छोड़ो… ये बताओ आज छोटी चाची के यहाँ सारा दिन क्या किया..?

मेने शर्म से अपना मूह उनकी साड़ी के पल्लू में छिपा लिया… तो उन्होने मेरे दोनो बगलों पर गुदगुदी करते हुए कहा….

ओये-होये… मेरे शर्मीले राजा... इसका मतलब चाची अब जल्दी ही माँ बनने वाली हैं… आन्ं.. बोलो… !

मेने हँसते हुए कहा… पता नही… हो भी सकता है…!

भाभी – हो नही सकता… होगा ही.. मुझे अपने देवर पर पूरा भरोसा है…

मे – पर भाभी ! सच में चाची में ही कोई कमी हुई तो…?

भाभी – तुम्हें लगता है.. चाची जैसी भरपूर जवान औरत में कोई कमी होगी..?

मुझे 110% यकीन है.. एक महीने के अंदर ही कोई अच्छी खबर सुनने को मिलेगी…! देख लेना तुम…!

मे – भगवान करे.. चाची माँ बन जाएँ.. इससे बड़ी खुशी मेरे लिए और क्या होगी…

भाभी हँसते हुए बोली… और अपने बाप बनने की भी… है ना…. !

इस बात पर हम दोनो ही बहुत देर तक हँसते रहे.. जिसे रामा दीदी सुनकर हमारे पास आई और पुछ्ने लगी..

क्या बात है.. देवर भाभी इतने खुश क्यों हो रहे हैं…?

तो भाभी ने उसे गोल-मोल जबाब देकर टरका दिया… और फिर वो उठकर खाने पीने के इंतेजाम में लग गयी…..!
रात 8 बजे हम सभी एक साथ खाना खा रहे थे… भाभी ने हम तीनों को खाना परोसा और वो भी एक खाली चेयर लेकर हमारे पास ही बैठ गयी..

बाबूजी के कहने पर ही अब उन्होने उनसे परदा करना छोड़ दिया था, बस सर पर पल्लू ज़रूर डाल लेती थी..क्योंकि बाबूजी उन्हें अपनी बेटी ही मानते थे…!

हमारा खाना ख़तम होने ही वाला था, तभी भाभी ने बातों का सिलसिला शुरू किया – बाबूजी ! आपसे एक बात करनी थी…!

बाबूजी – हां कहो मोहिनी बेटा..! क्या बात करनी है…??

भाभी – रूचि के पापा कह रहे थे, शहर में कोई ज़मीन देखी है इन्होने, अच्छे मौके की ज़मीन है.., बड़े देवर जी से भी बात की थी उन्होने,

तो उस ज़मीन के लिए उन्होने भी हां बोल दिया है.., वो दोनो भी कुच्छ पैसों का इंतेज़ाम कर सकते हैं.

लेकिन ज़मीन ज़्यादा है, उनका विचार है कि मिलकर तीनों भाइयों के नाम से ले ली जाए.. अगर बाबूजी कुच्छ मदद करदें तो..?

बाबूजी कुच्छ देर चुप रहे फिर कुच्छ देर सोच कर बोले – राम का विचार तो उत्तम है.. पर सच कहूँ तो बेटा… अभी मेरे पास कुच्छ भी नही है….

भाभी चोन्कने की आक्टिंग करते हुए बोली – ऐसा कैसे हो सकता है बाबूजी..?
माना कि, सालों पहले जब वो दोनो भाई पढ़ते थे, तब खर्चे भी ज़्यादा थे..

लेकिन दो-तीन सालों से तो कोई ऐसा खर्चा भी नही रहा,

उपर से दोनो भाई जब भी आते हैं, कुच्छ ना कुच्छ देकर ही जाते हैं…

आपकी तनख़्वाह, खेतों की आमदनी…ये सब मिलाकर काफ़ी बचत हो जाती होगी,
मे तो समझ रही थी कि आपके पास ही इतना तो पैसा होगा कि उनको कुच्छ करने की ज़रूरत ही ना पड़े…!

बाबूजी थोड़े तल्ख़ लहजे में बोले – तो अब तुम मुझसे हिसाब-किताब माँग रही हो बहू..?

भाभी – नही बाबूजी ! आप ग़लत समझ रहे हैं… मे भला आपसे कैसे हिसाब माँग सकती हूँ..?

मे तो बस कह रही थी, कि कुच्छ समय पहले आप अकेले ही कमाने वाले थे, और खर्चे पहाड़ से उँचे थे, फिर भी आपने किसी बात की कोई कमी नही होने दी किसी को भी…,

पर अब तो इतने खर्चे भी नही रहे उपर से आमदनी भी बढ़ी है.. तो स्वाभाविक है कि बचत तो ज़्यादा होनी ही चाहिए….!
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बाबूजी थोड़े तल्ख़ लहजे में बोले – तो अब तुम मुझसे हिसाब-किताब माँग रही हो बहू..?

भाभी – नही बाबूजी ! आप ग़लत समझ रहे हैं… मे भला आपसे कैसे हिसाब माँग सकती हूँ..?

मे तो बस कह रही थी, कि कुच्छ समय पहले आप अकेले ही कमाने वाले थे, और खर्चे पहाड़ से उँचे थे, फिर भी आपने किसी बात की कोई कमी नही होने दी किसी को भी…,

पर अब तो इतने खर्चे भी नही रहे उपर से आमदनी भी बढ़ी है.. तो स्वाभाविक है कि बचत तो ज़्यादा होनी ही चाहिए….!

बाबूजी – मे ये सब तुम्हें बताना ज़रूरी नही समझता कि पैसों का क्या और कैसे खरच करता हूँ..?

भाभी – अगर मेरी जगह माजी होती, और यही बात उन्होने पुछि होती तो…, तो क्या उनके लिए भी आपका यही जबाब होता…?

भाभी की बात सुन कर बाबूजी विचलित से हो गये… जब कुच्छ देर वो नही बोले, तो भाभी ने फिर पुछा – बताइए बाबूजी… क्या माजी को भी यही जबाब देते आप..?

बाबूजी – उसको ये हक़ था पुछने का, वो इस घर की मालकिन थी…!

भाभी – क्यों ! उनके गुजर जाने के बाद मुझसे इस घर को संभालने में कोई कमी नज़र आई आपको…?

क्या उनके बाद इस घर की ज़िम्मेदारियाँ नही निभा पाई मे..? ये बोलते -2 भाभी की आँखों में आँसू आगये…!

फिर सुबकते हुए बोली - ठीक है बाबूजी.. जब मेरा कोई हक़ ही नही है कुच्छ सवाल करने का, तो मेरा इस घर में रहने का भी कोई मतलब नही है…,

इस बार जब रूचि के पापा यहाँ आएँगे, मे भी उनके साथ ही चली जाउन्गि.. !

बाबूजी भाभी की ओर देखते ही रह गये… अभी वो कुच्छ बोलते.., उससे पहले मे बोल पड़ा…

ठीक है भाभी, जहाँ आप रहेंगी वहीं मे रहूँगा… मे यहाँ किसके भरोसे रहूँगा… मे भी आपके साथ चलूँगा…!

अभी और भी अटॅक बाबूजी के उपर होने वाकी थे… सो मेरे चुप होते ही रामा दीदी भी बोल पड़ी –

मे भी आपके साथ ही चलूंगी भाभी, मे यहाँ अकेली क्या करूँगी..

बाबूजी की कराह निकल गयी, वो बोले – मुझे माफ़ कर्दे बहू.. मे भूल गया था, कि बिना औरत के घर, घर नही होता….

तुमने तो इस घर को विमला से भी अच्छी तरह से संभाला है.. इसलिए तुम्हें हर बात जानने का पूरा हक़ भी है….!

पर …! बोलते-2 वो कुच्छ रुक गये…! लेकिन अब जबाब तो देना ही था सो बोले –
अभी मेने वो पैसा कुच्छ इधर-उधर खर्च कर दिए है… लेकिन अब मे तुमसे वादा करता हूँ, आज के बाद इस घर के सारे पैसों का हिसाब किताब तुम रखोगी…!

बहू मे तुम्हारे आगे हाथ फैलाकर भीख माँगता हूँ, जिस तरह से तुमने अबतक इस घर को संभाला है, आगे भी सम्भालो… इस घर को बिखरने से बचा लो बेटा….!

बाबूजी की आँखें भर आईं, अपने आँसुओं को रोकने का प्रयास करते हुए वो उठकर बाहर चले गये..

भाभी के चेहरे पर एक विजयी मुस्कान तैर रही थी…

हमारी चौपाल पर ही एक बड़ा सा हॉल नुमा कमरा बैठक के लिए है, जो घर के बाहर मेन गेट के बराबर में है,

घर से उसका कोई डाइरेक्ट लिंक नही है, और ना ही उसका घर से कोई रास्ता….

बैठक की पीछे की दीवार से लगी सीडीयाँ हैं, जो उपर को जाती हैं, बैठक की दीवार में एक छोटा सा रोशनदान है जो जीने में खुलता है..

मे जल्दी से खाना ख़ाके सोने का बहाना करके अपने कमरे में चला गया…

भाभी ने भी काम जल्दी से निपटाया और सोने चली गयी, जिसकी वजह से अब दीदी को भी वहाँ बैठे रहने का कोई मतलब नही बनता था…

कोई दस बजे में जीने पर दबे पाँव चढ़ा, तब तक बैठक में पूर्ण शांति थी, वहाँ बाबूजी अकेले चारपाई पर लेटे हुए कमरे की छत को घूर रहे थे…

उनकी आखों में पश्चाताप के भाव साफ दिखाई दे रहे थे…

अभी आधा घंटा ही हुआ होगा कि दरवाजा खटखटाने की आवाज़ आई.. बाबूजी ने उठकर दरवाजा खोल दिया…

आशा के मुताबिक, सामने चंपा चाची हाथ में दूध का ग्लास लिए खड़ी थी…

बाबूजी, बिना कुच्छ कहे वापस अपने बिस्तर पर आकर बैठ गये..

चंपा रानी ने दूध का ग्लास पास में पड़ी एक टेबल पर रख दिया और वापस जाकर दरवाजा बंद करने चली गयी..

इतने में मुझे अपने कंधे पर किसी के हाथ का आभास हुआ, देखा तो भाभी मेरे बगल में खड़ी थी…

हम दोनो अब बेसब्री से अंदर होने वाले सीन के इंतेज़ार में थे…

चंपा रानी बाबूजी के बगल में आकर बैठ गयी… और बोली – आप लेट जाइए जेठ जी.. मे आपके पैर दबा देती हूँ..

बाबूजी – रहने दो चंपा, मे ऐसे ही ठीक हूँ.., फिर भी वो बैठे-2 ही उनकी जाँघ को दबाने लगी.. बाबूजी ने उसकी ओर मुड़कर भी नही देखा…

चंपा – आप कुच्छ जबाब देने वाले थे, नीलू की बाइक के लिए.. ?

बाबूजी ने झटके से कहा – क्यों ? नीलू तुम लोगों की ज़िम्मेदारी है.. मे क्यों बाइक दिलाऊ उसको..?

चंपा आश्चर्य से उनकी शक्ल देखने लगी… फिर कुच्छ देर बाद वो बोली – ये आप आज कैसी बहकी-बहकी बातें कर रहे हैं जेठ जी…

बाबूजी – क्यों ! इसमें क्या बहकी – 2 बातें लगी तुम्हें ? वो तुम्हारा बेटा है, उसकी ज़रूरतें तुम लोग पूरा करो…!

चंपा – दोपहर को आपने कहा था, कि रात को जबाब दूँगा… फिर अब क्या हुआ..?

बाबूजी – तो अब ना बोल दिया… बात ख़तम…

चंपा – ऐसे कैसे बात ख़तम…, भूल गये वो दिन.... जब जेठानी जी की मौत के बाद कैसे गुम-सूम से हो गये थे आप, मेने आपको वो सब सुख दिए जो आप पाना चाहते थे..

बाबूजी – तुमने भी तो मुझे दो साल में खूब लूट लिया.. अब और नही.. मेरे भी बच्चे हैं.. वो भी पुछ सकते हैं कि मे आमदनी का क्या कर रहा हूँ..

चंपा – ये आप ठीक नही कर रहे…! जानते हैं मे आपको बदनाम कर सकती हूँ, कहीं मूह दिखाने लायक नही रहेंगे…आप.

बाबूजी गुस्से में आते हुए बोले – अच्छा ! तू मुझे बदनाम करेगी हरामजादी, साली छिनाल, तू खुद अपनी चूत की खुजली मिटवाने आती है मेरे लौडे से..

तू क्या बदनाम करेगी मुझे… ठहर, मे ही खोलता हूँ दरवाजा और लोगों को इकट्ठा करके बताता हूँ.. कि ये यहाँ क्यों आई है…

इससे पहले कि मे तेरी गान्ड पे लात लगाऊ.. दफ़ा होज़ा यहाँ से…

ट्यूबवेल का पानी फ्री देता हूँ तुम लोगों को, बाग का अपना हिस्सा भी नही लेता, उससे तुम्हारा पेट नही भरा…

पता नही मेरे उपर क्या जादू टोना कर दिया तुमने, कि दो साल से मेरी सारी कमाई अपने भोसड़े में खा गयी..
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चंपा रानी ने ये सपने में भी नही सोचा था, वो तो यहाँ और खून चूसने के इरादे से आई थी, लेकिन यहाँ तो उल्टे बाँस बरेली लद गये… !

फिर भी उसने आखरी कोशिश की.. उठ कर दूध का ग्लास ले आई और बोली…

ठीक है जेठ जी.. मे आपसे अब आगे कुच्छ नही माँगूंगी… प्लीज़ आप नाराज़ मत होइए.. लीजिए दूध पी लीजिए, मे आपके लिए बादाम वाला दूध लाई थी…

बाबूजी – नही पीना तेरा ये जहर… क्या पता इसी से कोई टोना करती हो तू मेरे उपर..?

चंपा – कैसी बातें कर रहे हैं आप…? मे भला आपके उपर टोना-टोटका क्यों करूँगी… आप तो मेरे अपने हैं….!

बाबूजी – ऐसा है तो तू ही पी इसे मेरे सामने… और दफ़ा हो जा यहाँ से…

जब कुच्छ देर उसने कोई जबाब नही दिया तो उन्होने वो ग्लास उसके हाथ से छीन लिया और जबर्जस्ती उसे पिला दिया…!

खाली ग्लास उसके हाथ में थमा कर उसे गेट से बाहर धक्का दे दिया और दरवाजा बंद करके अपने बिस्तर पर बैठ गये…!

अपने सर को दोनो हाथों के बीच लेकर वो कुच्छ देर सोचते रहे.. फिर भर्राई आवाज़ में बोले –


मुझे माफ़ कर देना विमला… मे तेरे बच्चों के साथ न्याय नही कर पाया..

शायद भाभी की बातों ने उन्हें अपने कर्तव्य से भटकने से बचा लिया था..

पश्चाताप की आग में जलते हुए उन्होने अपने सर को दोनो हाथों में लेकर आँसू बहाते रहे..

हम दोनो की आँखें भी भीग गयी.. कुच्छ देर बाद वो बिस्तर पर लेट गये…

फिर उन्हें उसी अवस्था में छोड़ कर हम दोनो भी वहाँ से उठकर सोने चले गये….

मेने खेतों की देखभाल में बाबूजी का हाथ बटाना शुरू कर दिया था, उनकी हक़ीकत मेरे और भाभी के अलावा, हमने किसी और को पता नही चलने दी थी…

अब मे बाबूजी के लिए चिंतित रहने लगा…6 साल से विधुर का जीवन व्यतीत कर रहे आदमी के शरीर की ज़रूरतें उसे भटकने पर मजबूर कर ही सकती हैं…

जब मेने अपने आपको उनकी जगह रख कर देखा तो मुझे लगा कि बाबूजी ग़लत नही थे..

लेकिन जिस तरह से चंपा चाची ने उनकी भावनाओं को भड़का कर उनका फ़ायदा उठाया, वो ग़लत था…!

क्या मे बाबूजी के लिए कुच्छ कर सकता हूँ ? मेरे मन में ये विचार कोंधा…,
लेकिन क्या..?

ज़्यादा सोचने पर मुझे एक विचार सूझा… लेकिन उसे समय पर छोड़ कर अपने काम में लग गया..

इधर मेरे और छोटी चाची के बीच दिन में कम से कम एक बार खाट-कबड्डी ज़रूर ही हो जाती थी, वो दिनो-दिन खुलती ही जा रही थी मेरे साथ…

ऐसे ही एक दिन जब हम चुदाई कर रहे थे, चाची को मे एक बार टाँगें चौड़ा कर गान्ड के नीचे डबल तकिये रख कर जबरदस्त तरीके से चोद्कर झडा चुका था….

फिर कुच्छ देर बाद वो मेरे उपर आकर खुदसे गान्ड पटक पटक कर चुदने लगी…मेने उनकी मस्त गान्ड को मसलते हुए कहा…

मे – अच्छा चाची ! मान लो आप प्रेग्नेंट हो गयी तो मुझे क्या दोगि..?

चाची – अगर मगर की तो अब कोई गुंजाइश ही नही रही लल्ला…! मुझे तो पक्का यकीन है कि मे माँ बन ही गयी हूँ… अब तुम बताओ, तुम्हें क्या चाहिए…?

ये जान तो अपने बच्चे के लिए ज़ीनी है मुझे.. उसके अलावा जो मेरे बस में होगा वो सब तुम्हारा..

मे – ठीक है.. समय आने पर माँग लूँगा… और हां वो देना आपके बस में होगा.. ये मे अभी से कह सकता हूँ..

चाची – मे उस दिन का इंतेज़ार करूँगी…! अपने होनेवाले बच्चे के बाप को अगर मे खुच्छ खुशी दे पाई, तो वो मेरे लिए सबसे बड़ी खुशी होगी…….

अगले महीने रश्मि चाची को पीरियड नही आए, जब ये बात उन्होने मुझे बताई.. तो पता नही मुझे अंदर से एक अंजानी सी खुशी महसूस हुई…

दो दिन बाद उन्हें उल्टियाँ शुरू हो गयी, चाचा मेरे साथ उन्हें डॉक्टर के यहाँ दिखाने ले गये, तो ये बात कन्फर्म भी हो गयी की वो माँ बनने वाली हैं…
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Kaisi ye judai h , aankh bhar aai h
Hum majbur sahi lo dor sahi ..
Lab pe duhai h....

[Image: joanna-krupa.jpg]
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चलो एक काम करते है।
ज़िन्दगी तुम्हारे नाम करते है।
तुम रूठे हो कब से बेवजह।
हम ही पहले सलाम करते है।
ठीक है सब ग़लती हमारी है।
माफ़ी मांग कर किस्सा तमाम करते है।

[Image: regina.jpg]
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Nice one
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#मेरी आँखों में कैद तेरी तस्वीर क्यों है,
इतना दूर हो कर भी तू करीब क्यों है...!!!?

[Image: IMG-20201109-093938-745.jpg]
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#हम तराश देंगे तुमको___इस कदर लफ्जों के दरमियां..... !!
की हमारी शायरी में सिर्फ____तुम्हारा ही किस्सा होगा.... !!....

[Image: FB-IMG-1604933677135.jpg]
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#तोहमतें तो लगती रहीं...
रोज़ नई नई हम पर,...
मगर जो सबसे हसीन इल्जाम था.. वो तेरा नाम था?

[Image: FB-IMG-1605441864379.jpg]
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,?#बड़ी बारीकी #से तोडा है #उसने
#दिल____का__हर__कोना,
#सच कहुँ मुझे #तो उसके हुनर पे
#नाज़_____होता____हैं...!!!?

[Image: FB-IMG-1606410818140.jpg]
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अगले महीने रश्मि चाची को पीरियड नही आए, जब ये बात उन्होने मुझे बताई.. तो पता नही मुझे अंदर से एक अंजानी सी खुशी महसूस हुई…

दो दिन बाद उन्हें उल्टियाँ शुरू हो गयी, चाचा मेरे साथ उन्हें डॉक्टर के यहाँ दिखाने ले गये, तो ये बात कन्फर्म भी हो गयी की वो माँ बनने वाली हैं…

चाचा की तो खुशी का ठिकाना ही नही रहा… इधर चाची ने मुझे धन्यवाद के तौर पर एक पूरी रात ही सौंप दी थी, मनमाने ढंग से मज़ा लूटने के लिए…

हम तीन लोगों के अलावा और किसी को पता नही था.. कि ये खुशी उनके जीवन में आई कैसे….. सभी बहुत खुश थे उनके लिए…………………..

मझले चाचा और चाची प्रभावती कुच्छ चिढ़ते थे हम लोगों से, उसका कारण भी बाबूजी की बड़े चाचा से नज़दीकियाँ ही थी,

क्योंकि अपने हिस्से के बाग की आमदनी और ट्यूबवेल का फ्री पानी जो आमतौर पर सबको पता ही था, बाबूजी उनको देते हैं…

जब उनसे इस बारे में पुछा गया, तो उन्होने उनके खर्चे ज़्यादा होने की वजह बताई थी.. इस कारण से मझले चाचा और चाची हम लोगों से खफा रहते थे…

अब चूँकि, फ़ैसला बाबूजी ने लिया था, तो हम में से कोई उनकी बात का विरोध भी नही कर सकता था…

खैर ये बात बहुत पुरानी हो चुकी थी, और अब हालत भी बदल गये थे, तो मेने अब मझले चाचा-चाची से नज़दीकियाँ बढ़ाने का फ़ैसला किया…!

ऐसे ही एक दिन मे खेतों पर घूमता फिरता उनके हिस्से के खेतों की तरफ बढ़ गया.. शाम का वक़्त था, चाचा के साथ चाची भी बैठी हुई मिल गयी…

मंझली चाची थोड़ा दुबली पतली सी हैं, ऐसा नही है की वो शरीरक तौर पर कमजोर हैं, उनके चुचे तो 34डी साइज़ के हैं, और कूल्हे भी थोड़े उभार लिए हैं,

लेकिन कमर बहुत ही पतली सी है… और शायद ये उनके चाचा के साथ खेतों में ज़्यादा मेहनत करने की वजह से होगा.

थोड़ा पैसों की तंगी की वजह से ही वो अपने बच्चों को अपने भाई के पास पढ़ाती थी..

लेकिन जब मामा के बच्चे भी हो गये, और वो भी पढ़ने लिखने लगे तो मामा का रबैईया उनके प्रति रूखा-रूखा सा रहने लगा…

अब उनकी पढ़ाई का खर्चा इन्हें ही देना पड़ता था.

मेने दोनो के पैर छुये, दोनो ने खुश होकर मुझे आशीर्वाद दिया और अपने पास बिठाया.. बातों-बातों में मेने चाची से शिकायती लहजे में कहा…

क्या चाची आप तो पता नही हम लोगों से क्यों नाराज़ रहती हैं, कभी खैर खबर लेने भी घर की तरफ नही आती…

वो – अरे लल्ला ! तुम्हें तो सब पता ही है.. यहाँ खेतों मे काम करना पड़ता है, अब हमारे पास इतने पैसे तो हैं नही कि मजदूरों से काम करवा सकें..

उधर तुम्हारे बाबूजी भी पानी के पैसों में रियायत नही करते,.. उन्हें तो बस चंपा रानी के ही खर्चे दिखाई देते हैं.. हमारी परेशानियाँ कहाँ दिखाई देती हैं..

मे – अभी हाल-फिलहाल में आपने बाबूजी से बात की है क्या..?

वो – नही.. अभी फिलहाल में तो कोई बात नही हुई है… क्यों कुच्छ नयी बात हो गयी है..?

मे – नही ऐसी कोई नयी बात नही हुई… पर मे चाहता हूँ, आप फिरसे उनसे बात कीजिए… मेरा नाम बोल देना.. आप से भी शायद पानी के पैसे ना लें..

वो – क्या ? सच कह रहे हो लल्ला..! जेठ जी मान जाएँगे…?

मे – प्यार से सब कुच्छ हल हो सकता है चाची… आपको तो पता ही है.. पिताजी कितने अकेले-2 हो गये हैं..

अब जो भी उनसे दो प्यार की बातें करता है वो उसी की मदद कर देते हैं… फिर आप तो अपने ही हैं.. आपसे कोई दुश्मनी थोड़े ही है..

मेरी बातों का चाची पर असर हुआ और उनकी बातों से लगने लगा कि वो पिताजी के साथ नज़दीकियाँ बढ़ा सकती हैं…

फिर मेने उनसे सोनू, मोनू के बारे में पुछा तो वो थोड़ा दुखी होकर बताने लगी, कि कैसे अब उनके भाई का वर्ताब बदल गया है..

सोनू ग्रॅजुयेशन के पहले साल में ही था, मोनू 12थ में था, तो मेने कहा कि आप उनको यहीं रख कर क्यों नही पढ़ाती,

अब तो हमारा नया कॉलेज भी खुल गया है.. कम से कम सोनू का अड्मिशन मेरे साथ ही करदो.. चाहो तो बाबूजी की मदद ले सकती हो

उनको मेरी बात जँची, और दोनो ने फ़ैसला किया कि वो सोनू को यहीं कॉलेज में पढ़ाएँगे, और मोनू को एक साल वहीं से 12थ करा देते हैं…

उनसे बात करने के बाद मे ट्यूबवेल की तरफ आगया, खेतों में फिलहाल कोई ऐसा काम नही चल रहा था..

बाबूजी मुझे अकेले बैठे मिले, मे थोड़ी देर उनके पास बैठा, थोड़ा काम धंधे के बारे में समझा..

फिर धीरे से मेने मंझले चाचा चाची से जो बातें हुई, वो कही… उनको भी लगा कि मे जो कर रहा हूँ वो सही है.. घर परिवार में एक जुटता रहे वो अच्छा है..

दूसरे दिन मन्झले चाचा और चाची दोनो ही बाबूजी से मिले और जो मेने उन्हें कहा था वो बातें उन्होने बाबूजी से कही..

तो बाबूजी ने कहा की हां छोटू भी बोल रहा था.. मे भी चाहता हूँ तुम सब खुश हाल रहो..

बड़े चाचा चाची बहुत खून चूस चुके थे, सो बाबूजी ने फ़ैसला किया, कि अब उनके साथ कोई रियायत नही होगी, और जो फ़ायदा वो उनको दे रहे थे वो अब मन्झले चाचा को देंगे…

चाचा चाची बड़े खुश हुए, और मेरी बातों पर अमल करते हुए चाची ने बाबूजी से बात चीत करना शुरू कर दिया…

चाची अब जब भी घर से खेतों को जाती थी, तो वो बाबूजी के लिए भी कुच्छ ना कुच्छ खाने की चीज़ें बना के ले जाती थी…

इस तरह से दोनो परिवारों के बीच की कड़वाहट धीरे – 2 ख़तम होती जा रही थी…

प्रभा चाची ने सोनू को गाओं वापस बुलवा लिया था, मेने उसका अड्मिशन अपने कॉलेज में ही करवा दिया…,

अब उसका शहर का खर्चा भी बचने लगा, और थोड़ा-2 घर खेतों के काम में भी हाथ बंटने लगा था वो..

मेरी कोशिशों ने चाचा चाची की तकलीफ़ों को थोड़ा कम किया था…एक तरह से वो मेरे अहसानमद थे..!

एक दिन बाबूजी अकेले दोपहर में ट्यूबवेल के कमरे में खाना खा कर लेटे हुए थे, तभी मन्झ्ली चाची वहाँ आ गयी…

बाबूजी चारपाई पर अपनी आँखों के उपर बाजू रख कर लेटे हुए सोने की कोशिश कर रहे थे,
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?लगा कर गले मुझको, वो दिल में किसी और को बसाता है...
हर रोज़ ये सदमा, मुझे दिन- रात रूलाता है...?

[Image: FB-IMG-1606904367776.jpg]
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तेरा इंतजार करते करते,

दिन की शाम हो गई।।

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बाबूजी चारपाई पर अपनी आँखों के उपर बाजू रख कर लेटे हुए सोने की कोशिश कर रहे थे,

दरवाजे पर आहट पाकर उन्होने अपने बाजू को हटाकर देखा तो मन्झली चाची सरपे पल्लू डाले उसका एक कोना अपने दाँतों में दबाए खड़ी थी….

बाबूजी सिरहाने की ओर खिसकते हुए बोले… आओ..आओ प्रभा…कोई काम था…?

वो – नही जेठ जी… काम तो कुच्छ नही था, बस चली आई देखने… शायद आपको किसी चीज़ की ज़रूरत हो.. तो.. पुच्छ लूँ..

इतना बोलकर वो चारपाई के नीचे बैठ गयीं…

बाबूजी – अच्छा किया, तुम आगयि…, काम तो कुच्छ नही था, अभी खाना ख़ाके लेटा ही था…

अब कोई बोल- बतलाने को तो था नही… सो लेट गया…, तुम बताओ सब ठीक ठाक से चल रहा है…?

वो – हां ! आपकी कृपा है……., लाइए आपके पैर दबा दूं.. ये कहकर वो चारपाई की तरफ सरक कर नीचे से ही उन्होने बाबूजी की पीड़लियों पर अपने हाथ रख दिए…

बाबूजी ने उनका हाथ पकड़ कर रोकने की कोशिश की, तो वो बोली – लेटे रहिए, बड़ों की सेवा करने से मुझे आशीर्वाद ही मिलेगा…

उन्होने अपना हाथ हटा लिया, और चाची उनके पैर दबाने लगी…

चारपाई थोड़ी उँची थी, और चाची ज़मीन पर अपनी गान्ड टिकाए बैठी थी, सो उन्हें हाथ आगे करके पैर दबाने में थोड़ा असुविधा हो रही थी.. तो वो बोली –

जेठ जी आप थोड़ा मेरी ओर को आ जाइए, मेरे हाथ अच्छे से पहुँच नही पा रहे..

बाबूजी खिसक कर चारपाई के किनारे तक आगये, अब चाची अच्छे से उनके पैर दबा पा रही थी…

हाथ आगे करने से चाची का आँचल उनके सीने से धलक गया, और उनकी चुचियाँ खाट की पाटी से दबने के कारण ब्लाउस से और बाहर को उभर आई,

चौड़े गले के ब्लाउस से उनके खरबूजे एक तिहाई तक दिखने लगे…

बाबूजी उनसे बातें करते हुए जब उनकी नज़र चाची की चुचियों पर पड़ी, तो वो उनकी पुश्टता को अनदेखा नही कर सके, और उनकी नज़र उनपर ठहर गयी…

अब तक उनके मन में कोई ग़लत भावना नही थी चाची के लिए, लेकिन उनकी जवानी की झलक पाते ही, उनके 9 इंची हथियार में हलचल शुरू हो गयी…और वो उनके पाजामे में सर उठाने लगा…

चाची उनके पैर दबाते – 2 जब जांघों की तरफ बढ़ने लगी, तो उनके हाथों के स्पर्श से उन्हें और ज़्यादा उत्तेजना होने लगी, अब उनका मूसल पाजामे के अंदर ठुमकाने लगा…

चाची की नज़र भी उसपर पड़ चुकी थी, और वो टक टॅकी गढ़ाए उसे देखने लगी… मूसल अपना साइज़ का अनुमान बिना अंडरवेर के पाजामे से ही दे रहा था…

हाए राम…. क्या मस्त हथियार है जेठ जी का… चाची अपने मन में ही सोचकर बुदबुदाते हुए अपनी चूत को मसल्ने लगी…

बाबूजी का लंड निरंतर अपना आकार बढ़ाता जा रहा था, जिसे देख-2 कर चाची की मुनिया गीली होने लगी…

उनकी ये हरकत कहीं उनके जेठ तो नही देख रहे, ये जानने के लिए उन्होने एक बार उनकी तरफ देखा, जो लगातार उनकी चुचियों पर नज़र गढ़ाए हुए थे…

बाबूजी को अपने सीने पर नज़र गढ़ाए देख कर उनकी नज़र अपने उभारों पर गयी, और अपनी हालत का अंदाज़ा लगते ही… वो शर्म से पानी-2 हो गयी…

अभी वो अपने आँचल को दुरुस्त करने के बारे में सोच ही रही थी.., कि फिर ना जाने क्या सोच कर वो रुक गयी, और उसके उलट अपने शरीर को उन्होने और आगे को करते हुए अपना आँचल पूरा गिरा दिया…

उनके आगे को झुकने से उनकी चुचियाँ और ज़्यादा बाहर को निकल पड़ने को हो गयी…लेकिन उन्होने शो ऐसा किया जैसे उन्हें इस बारे में कुच्छ पता ही ना हो..

उनके हाथ अब उपर और उपर बढ़ते जा रहे थे… और एक समय ऐसा आया कि उनका हाथ बाबूजी के झूमते हुए लंड से टकरा गया…

चाची का हाथ अपने लंड से टच होते ही बाबूजी के शरीर में करेंट सा दौड़ गया…, उन्होने सोने का नाटक करते हुए अपना एक हाथ चाची की चुचियों से सटा दिया…

अब झटका लगने की बारी चाची की थी, उन्होने बाबूजी की तरफ देखा, तो वो अपनी आँखें बंद किए पड़े थे, फिर उनके हाथ को देखा, जो उनकी चुचियों से सटा हुआ था…

उन्होने धीरे से उनके हाथ को अपनी चुचियों पर रख दिया, और उनके लंड को आहिस्ता- 2 सहलाने लगी…

बाबूजी आँखें बंद किए हुए, आनद सागर में डूबते जा रहे थे…चाची अपनी चूत को अपने पैर की एडी से मसल रही थी…

बाबूजी अपनी आँखें बंद किए हुए ही बोले – प्रभा, तुम भी चारपाई पर ही बैठ जाओ, तुम्हें परेशानी हो रही होगी…नीचे से हाथ लंबे किए हुए..

बाबूजी की आवाज़ सुनते ही चाची झेंप गयी…, उन्होने बाबूजी का हाथ अपनी चुचियों से हटा कर चारपाई पर रख दिया, और उठ कर खड़ी हो गयी…!
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बाबूजी ने अपनी आँखें खोल कर चाची की ओर देखा और बोले – जा रही हो…?

चाची ने कोई जबाब नही दिया, वो अपने पल्लू को अपने दाँतों से चबाती रही…फिर कुच्छ सोच कर वो दरवाजे की तरफ बढ़ गयी…,

बाबूजी ने अपनी आँखें बंद कर ली……

चाची ने दरवाजे के पास पहुँच कर बाहर नज़र डाली, फिर धीरे से उसे अंदर से बंद करके कुण्डी लगा दी, और वापस बाबूजी की चारपाई के पास आकर खड़ी रही…

वो अपनी आँखें बंद किए हुए सोने की कोशिश कर रहे थे, उनका लंड भी अब धीरे - 2 सोने की कोशिश कर रहा था, कि तभी…..

चाची आहिस्ता से चारपाई पर बैठ गयी… और उन्होने उनके लंड को कस कर अपनी मुट्ठी में जकड लिया…

बेचारा अभी सही से बैठा भी नही था, कि फिरसे खड़ा होना पड़ा…..

बाबूजी ने झटके से अपनी आँखें खोल दी… और वो उनकी तरफ देखने लगे…
क्या हुआ प्रभा…गयी नही…? बाबूजी बोले…

वो उनके लंड की तरफ इशारा करते हुए बोली – आपके इसने मुझे जाने ही नही दिया जेठ जी… मुझे अब इसकी ज़रूरत है…देंगे ना ?

बाबूजी – तुम्हारी मर्ज़ी… जब इसने तुम्हें रोक ही लिया है… तो फिर लेलो…

इतना सुनते ही चाची ने उनका पाजामा खोल दिया, और उसे अपने हाथ में लेकर मुठियाने लगी… वो फिरसे फन उठाने लगा…

बाबूजी का मस्त तगड़ा लंड देख कर चाची की चूत, जो पहले ही पनिया गयी थी… और ज़ोर से बहने लगी, उन्होने उसे अपने मूह में भर लिया…

बाबूजी ने भी उनके कड़क मोटे-2 चुचों पर कब्जा जमा लिया और लगे मीँजने…
अहह…. जेठ जी धीरे मसलो……

कुच्छ ही देर में कमरे में तूफान सा आगया, दोनो के कपड़े बदन से अलग होकर एक तरफ को पड़े थे…

फिर चाची अपनी पतली सी कमर और मोटी गान्ड लेकर बाबूजी के लंड पर बैठती चली गयी…

अपने होठों को मजबूती से कस कर धीरे – 2 वो पूरे 9” के सोट को अपनी चूत में घोंट गयी..और हान्फ्ते हुए बोली….

हइईई……..दैयाआअ……जेठ जी कितना तगड़ा लंड है आपका… अब तक कहाँ छुपा रखा था…?

हइई…रामम्म….. कितना अंदर तक चला गया… और वो धीरे – 2 उसके उपर उठक बैठक करने लगी…

बाबूजी भी उनकी पतली कमर को अपने हाथों में जकड कर नीचे से धक्का मारते हुए बोले….

अरे प्रभा रनीईइ… ये तो यहीं था मेरे पास, तुम ही अपनी मुनिया रानी को घूँघट में छुपाये थी…. !

ससिईईईईई….आअहह….जेठ जी….अबतक इस पर किसी और का कब्जा था, तो मे क्या कर्तीईइ…उउउहह…..

आअहह…..प्रभा…सच में तुम्हारी चूत बड़ी लाजबाब है, मेरा लंड एकदम कस गया है… उस मादरचोद चंपा का तो भोसड़ा बन चुका है….

बाबूजी के मोटे तगड़े सोट की कुटाई, चाची की ओखली ज़्यादा देर तक नही झेल पाई…

और वो अपने मुलायम गोल-2 चुचियों को बाबूजी की बालों भारी चौड़ी छाती से रगड़ती हुई झड़ने लगी…

उनके कड़क कांचे जैसे निप्प्लो के घर्षण से बाबूजी भी उत्तेजना की चरम सीमा तक पहुँच गये….

एक लंबी सी हुंकार मारते हुए उन्होने नीचे से चाची को उपर उछाल दिया और अपनी मलाई से उनकी ओखली को भर दिया……

कुच्छ देर का रेस्ट लेकर वो दोनो फिरसे एक बार जीवन आनद में लौट गये, और अपनी जिंदगी भर का चुदाई का अनुभव एक दूसरे के साथ अजमाते हुए… चुदाई में लीन हो गये…

उस दिन के बाद चाची बाबूजी के लंड की दीवानी हो चुकी थी… मौका लगते ही वो उसे अपनी गरम चूत में डलवाकर खूब मस्ती करती….

इस तरह से बाबूजी को एक नयी चूत का स्वाद मिल गया था, और चाची को नये लंड के साथ – 2 कुच्छ मदद….. !

उधर बड़े चाचा और चाची जल भुन रहे थे, उनकी मज़े से आरहि कमाई जो बंद हो गयी थी,

यही नही, आने वाले समय में पानी और बगीचे वाली राहत भी बंद होने वाली थी…

लेकिन वो अब तक काफ़ी पैसा बाबूजी से ऐंठ चुके थे, तो हाल फिलहाल उनपर कोई असर पड़ने वाला नही था…लेकिन अब चाची का भी ज़्यादातर समय खेतों में ही गुज़रता था…

घर पर आशा दीदी ही देख भाल करती थी.. वो और रामा दीदी इस बार ग्रॅजुयेशन फाइनल एअर के एग्ज़ॅम देने वाली थी…

बाबूजी वाली बात उनके बच्चों को पता नही थी… ! नीलू भी ग्रॅजुयेशन फाइनल में था और वो रेग्युलर शहर में रह कर पढ़ रहा था…

एक दिन मुझे कॉलेज से लौटते वक़्त आशा दीदी घर के बाहर ही मिल गयी, जो शायद हमारे घर से ही आरहि थी, मुझे देखते ही वो चहकते हुए बोली…

आशा – ओये हीरो..! कहाँ रहता है आजकल…? अब तो तेरे दर्शन ही दुर्लभ हो जाते हैं.. थोड़ा बहुत इधर भी नज़रें इनायत कर लिया करो भाई….!

मे – ऐसा कुच्छ नही है दीदी.. बस थोडा अब मेने भी घर खेती के काम में हाथ बँटाना शुरू किया है.. इसलिए थोड़ा समय कम मिलता है और कोई बात नही है…

आप बताइए… सवारी किधर से चली आरहि है..?

वो – रामा के पास गयी थी यार ! थोड़ा नोट्स बनाने थे मिलकर… चल आजा थोड़ा बैठकर गप्पें लगते हैं.. अकेली घर में बोर होती हूँ यार !

मे उनके साथ साथ उनके घर आगया… आकर उनके वरामदे में पड़े तखत पर बैठ गये,

वो मेरे साथ सट कर बैठ गयी और पालती मारकर अपना घुटना मेरी जाँघ के उपर रख लिया…

वो – छोटू ! भाई तुझे अपने साथ बिताए पुराने दिन याद आते हैं कि नही..

मे – हां ! क्या मस्ती किया करते थे, हम मिलकर एक दूसरे के साथ.. बड़ा मज़ा आता था नही..!

वो मेरे कंधे और बाजू को सहलाते हुए बोली – हूंम्म…..! फिर मेरे मसल्स को दबा कर बोली.. भाई, तेरे तो मस्त डोले-सोले बन गये है.. एकदम गबरू जवान हो गया है यार…

मे – क्या दीदी आप भी ! नज़र लगाओगी क्या मुझे..? वैसे, पहले से तो आप भी थोड़ा मस्त हो गयी हो.. उनके आमों पर नज़र डालते हुए मेने चुटकी ली…

वो मेरी नज़रों को भांपती हुई बोली – कहाँ यार, इतना भी नही हुआ है..! अच्छा एक बात बता.. तेरे कॉलेज में लड़कियाँ भी पढ़ती हैं..?

मे - हां पढ़ती तो हैं ! क्यों..?

वो मेरी आँखों में देखते हुए बोली – फिर तो लगता है.. तुझे देख कर आहें ही भरती रह जाती होंगी.. है ना ! क्योंकि तू तो किसी को घास ही नही डालता…

मे – ऐसा कुच्छ नही है..! कोई आहें बाहें नही भरती.. वैसे घास ना डालने वाली बात क्यों कही आपने…?

उसने शर्म से अपनी नज़रें झुका ली, फिर थोड़ा मेरी तरफ देख कर बोली – यहाँ भी तो तू किसी को घास नही डालता .. इसलिए कहा है..

मेने हँसते हुए कहा – यहाँ मेरी घास की किसको ज़रूरत पड़ गयी..?

वो अपने उरोजो को मेरे बाजू से सटाते हुए बोली – अगर ज़रूरत हो तो क्या मिलेगी…?

मेने उसके चेहरे की तरफ देखा, उसकी आँखों में प्रेम निमंत्रण साफ-साफ दिखाई दे रहा था..

मेने भी उसकी कमर में हाथ डालते हुए अपने से और सटाया और बोला – कोई माँगे तो सही.. मे तो डालने के लिए कब्से तैयार हूँ..

मेरी बात सुनकर आशा दीदी की आखों में चमक आगयि, और उसने सारी शर्म-झिझक छोड़ कर मेरे गले में अपनी बाहें लपेट दी,

मेने भी अपने होठों को उसकी तरफ बढ़ाया.. तो उसने झट से उन्हें चूम लिया…

गेट खुला है दीदी.. मेने उसे गेट की तरफ इशारा करते हुए कहा.. तो वो भाग कर गेट बंद करने चली गयी… इतने में मे तखत से उठ खड़ा हो गया..

वो वापस आकर मेरे गले में झूल गयी और मेरे होठों पर टूट पड़ी.. मेने भी उसके मस्त उभरे हुए कुल्हों को पकड़ कर मसल दिया..

उसकी गान्ड एकदम कड़क सॉलिड गोल-गोल, मानो दो वॉलीबॉल आपस में जोड़ दिए हों…
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वो वापस आकर मेरे गले में झूल गयी और मेरे होठों पर टूट पड़ी.. मेने भी उसके मस्त उभरे हुए कुल्हों को पकड़ कर मसल दिया..

उसकी गान्ड एकदम कड़क सॉलिड गोल-गोल, मानो दो वॉलीबॉल आपस में जोड़ दिए हों…

गान्ड को अच्छे से मसल्ते हुए मेरे हाथ उसके कुर्ता के अंदर चले गये… और मे अब उसकी कुँवारी चुचियों जो कि एक दम मस्त उठी हुई थी को ब्रा के उपर से ही मसलने लगा…

अहह…………भाईईईईईईई…..धीरीए करना यार……दुख़्ते हैं..मेरे..

उफफफफफफफ्फ़…..दीदी…क्या मस्त आम हैं…तेरे.. मन करता है, कच्चे ही खा जाउ…

5 मिनिट हम यूँही खड़े -2 मस्ती लेते रहे, जिससे दोनो के अंदर की आग बुरी तरह से भड़क उठी…..

मेने फुसफुसाकर उसके कान में कहा – दीदी पहले कभी ये सब किया है..?

वो झिझकते हुए बोली - हां ! अपने मामा के लड़के के साथ एक बार किया था..

लेकिन पूरा नही हो पाया था.. वो साला हरामी डरपोक बहुत था.. तो मेरे चीखते ही भाग लिया… हहहे…

उसकी बात सुनकर मुझे भी हसी आगयि और बोला – तो इसका मतलब तुम्हारी सील पूरी तरह नही टूट पाई…

वो – थोड़ा सा खून तो निकला था, अब पता नही.. लेकिन तुम ये सब क्यों पुच्छ रहे हो..?

तू अपना काम कर यार ! बहुत मज़ा आ रहा है, ऐसी बातें करके खराब मत कर.. प्लीज़…

मे – यहीं करना है या अंदर कमरे में चलें.. तो वो मेरा बाजू पकड़ कर कमरे में खींच कर ले गयी, और मुझे पलंग पर धक्का दे दिया.. फिर मेरे उपर आकर मेरी पॅंट को खोलने लगी…

उसकी चुदने की ललक देख कर मुझे हँसी आगयि.., वो मेरी ओर देख कर बोली – हंस क्यों रहे हो.. ?

मे – बड़ी जल्दी है तुम्हें मेरा लंड लेने की..

सीधा लंड शब्द सुनकर उसके गाल लाल हो गये.. और झूठा गुस्सा दिखाकर मेरे सीने में हल्के से मुक्का मार कर बोली – कितना गंदा बोलता है तू… बेशर्म कहीं का…!

मे – लो कर लो बात.. कपड़े मेरे तुम उतार रही हो.. बेशर्म मे हो गया.. वाह भाई वाह… उल्टा चोर कोतवाल को डाँटदे… हहेहहे….

शर्म से उसने अपने हाथ रोक कर अपना चेहरा मेरे सीने में छुपा लिया..

मेने उसकी गान्ड सहलाते हुए कहा – दीदी ! शर्म ही करती रहोगी या कुच्छ और भी करना है….

मेरी बात सुनकर उसने झट से मेरा पॅंट उतार दिया.. और मेरे उपर बैठ कर मेरे होठ चूसने लगी..

मेने उसकी कमीज़ में हाथ डाल दिया और ब्रा के उपर से उसके 33+ साइज़ के बोबे अपने हाथों में लेकर मसल दिए…

अहह… भाई… थोड़ा आरामम्म सीई…... इसस्शह… और अपनी चूत को मेरे लंड के उपर रगड़ने लगी.. इतनी देर में उसकी आधी-फटी चूत रस बहाने लगी..

मेने उसके कुर्ते को उसके सर के उपर से निकाल दिया और जैसे ही सलवार के नाडे पर हाथ लगाया… तो उसने अपना हाथ मेरे हाथ पर रख दिया…

मे – क्यों नही करना है क्या..? उसने झट से अपना हाथ हटा लिया.. मेने उसका नाडा खीच दिया और पैर के सहारे से उसकी सलवार खिसका कर पैरों तक कर दी..

अब वो पिंक कलर की ब्रा और पेंटी में मेरे सामने थी…

उसके होठों को चूमते हुए मेने उसके आमो को अपने हाथों में कस लिया.. और उनसे रस निकालने की नाकाम कोशिश करने लगा…..

पतली कमर और पेट के अलावा, उसके चुचे और गान्ड परफेक्ट शेप में थे…

फिर मेने उसे अपने नीचे लिया और अपनी टीशर्ट निकाल कर उसपर छा गया..

ब्रा को उसके शरीर से अलग करके उसकी चुचियों को चूसने लगा.. वो मस्ती में हाए-2 करके रस बहाने लगी..

मुझे जल्दी से चोद अंकुश… अब और इंतेज़ार नही कर सकती जानू…!
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उसकी आतूरता देख कर मेने भी देर करना सही नही समझा और उसकी पेंटी उतार कर उसके उपर छाता चला गया…!

उसकी चूत लगातार रस बहा रही थी.. चूत के होठों को चौड़ा करके अपने लाल लाल चौबातिया गार्डन के सेब जैसे सुपाडे को उसके छेद से भिड़ा दिया..

और एक हल्का सा धक्का देते ही पूरा सुपाडा उसकी गीली चूत में समा गया…

आईईईईईईईईईईईई….. मररर्र्ररर….गाइिईई….रीईईई….माआआआआ…. उफफफफ्फ़…भाईईईई…प्लेआस्ीईई….रुक्क्क…जाआ…

मेरे मूसल जैसे लंड को वो सह नही पाई.. और मेरे सीने पर हाथ रख कर अपने उपर से धकेलने लगी…

मेने उसके होठों को चूमते हुए कहा… दीदी.. थोड़ा झेल ले.. ये कहकर मेने थोड़ा अपनी गान्ड को और दबा दिया…

आधे से ज़्यादा लंड उसकी चूत में और सरक गया…

बहुत बड़ा जालिम है तू… थोड़ा साँस तो लेने दे…यार ! मर जाउन्गि…

आधे लंड को उसकी कसी हुई चूत में डाले, मे चुचियों को मसल्ने लगा, उसके कंचे जैसे कड़क हो चुके निप्प्लो को मरोडते हुए, एक और धक्का मार दिया.. वो कन्फ्यूज़ हो गयी… इस बार दर्द चुचियों में हुआ या चूत में.

पूरा लंड चूत में फिट हो गया…., उसकी अधूरी सील पूरी तरह टूट गयी थी....

वो हान्फ्ते हुए बोली – आहह….बहुत बड़ा है तेरा…. मेरी तो दम निकल गया होता….उउउफफफफफफफफ्फ़…….माआ…. आहह…..!

थोड़ा रुक, साँस लेने दे मुझे….मेने कुच्छ देर उसके पेट और चुचियों को सहलाया, पुचकार्ते हुए मेने अपने धक्के देने शुरू किए…

थोड़ी देर में ही वो भी मज़े में आगयि, तो नीचे से अपनी गान्ड उच्छाल – 2 कर चुदने लगी..

आहह………..भाई….चोद मुझे….और ज़ॉर्सीई….हाआंणन्न्….हाईए….फाड़ दे मेरी चूत को…बड़ा मज़ा आ रहा है….इस्शह….

आशा फुल मस्ती में अपने कमर उठा – उठा कर बड़बड़ाती हुई चुदने लगी…

उसने अपनी एडीया मेरी गान्ड के दोनो तरफ से कस दी….और बुरी तरह झड़ते हुए मेरे सीने से चिपक गयी…

अब मेने उसको अपने गले से चिपकाए हुए पलंग से उठा कर दीवार के सहारे खड़ा कर दिया, और पीछे खड़े होकर, उसकी वेल शेप्ड गान्ड को चाटने लगा..

आशा दीदी फिरसे गरम होने लगी, और पलट कर मेरे होठों पर टूट पड़ी…

मेने उसकी पीठ पर अपने हाथ का दबाब डालकर उसको दीवार से टिका दिया, जिसकी वजह से उसकी गान्ड पीछे को हो गयी…

मेने पीछे से अपना लंड उसकी ताज़ा झड़ी चूत के मूह पर टिकाया, और एक ज़ोर का झटका अपनी कमर को दिया…

मेरा लंड सर्र्र्र्र्ररर… से उसकी गीली चूत में चला गया… आशा ने अपने होठ कस लिए और सारे दर्द को पी गयी…

मे उसकी पीठ से चिपक कर उसे दनादन धक्के लगा कर चोदने लगा… आशा दीदी भी अपनी गान्ड को पीछे धकेलने लगी… हम दोनो ही बुरी तरह से चुदाई में लगे हुए थे…

आख़िरकार 20-25 मिनिट की चुदाई के बाद मेने भी अपनी पिचकारी उसकी अध्कोरि चूत में छोड़ दी…..आशा भी ऊँट की तरह गर्दन उठाकर फिर एक बार और झड गयी….

दोनो की साँसें धोन्कनि की तरह चल रही थी….

आशा दीदी आज मेरा लंड लेकर बेहद खुश थी, मे भी अपना पुराना हिसाब चुकता करके अपने घर आगया………..

आशा दीदी की अधखुली चूत को अच्छी तरह से खोलने के बाद, मे जैसे ही घर पहुँचा… तो देखा पूरे घर में सन्नाटा पसरा हुआ है…

भाभी के कमरे में गया तो वो दोनो माँ-बेटी गायब, दीदी को आवाज़ दी, कोई जबाब नही….फिर मेने अपने कमरे में जाकर कपड़े चेंज करने लगा..

बाथरूम में जाकर अपने लौडे को साफ किया जिसपर अभी तक आशा दीदी की चूत का खून मिश्रित चूतरस लगा हुआ था…

मेने अपना अंडरवेर उतार कर बाथरूम में ही डाल दिया, और एक खाली शॉर्ट पहन लिया..,
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