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Romance मोक्ष : तृष्णा से तुष्टि तक
#81
अध्याय 34


अब तक अपने पढ़ा कि नीलोफर उर्फ नीलिमा अपनी बीती ज़िंदगी के बारे में बताती है कि कैसे उसकी माँ नाज़िया ने मुसीबतों के साथ उसे पालकर पढ़ना शुरू किया.... एक दिन ……उसने अपने घर में माँ और मुन्नी आंटी के साथ एक लड़के-लड़की को देखा...

अब आगे...............

मेंने पीछे हटकर एकबार फिर से सोचा कि माँ इन्हें कैसे जानती हैं और यहाँ क्यूँ लाई हैं... ये जानते हुये भी कि ये मेरे कॉलेज में ही पढ़ते हैं... और इनके द्वारा कॉलेज तक सबको मेरे और माँ के बारे में पता चल जाएगा। तभी मुझे ध्यान आया कि शायद माँ को ये पता ही नहीं कि आज में कॉलेज नहीं गयी.... और इन दोनों का अपने घरों से लापता होना, माँ और मुन्नी आंटी के साथ यहाँ इस घर में होना.... ये साबित करता है कि नेहा और ये लड़का कहीं ना कहीं माँ के धंधे से जुड़े हैं.... यानि नेहा तो रंडी है ही.... ये लड़का दल्ला है इसका... और क्या पता ड्रग्स के कारोबार में भी माँ और विजय अंकल वगैरह शामिल हों। में तुरंत जाकर अपने कमरे में छुप गयी...और अपनी किताबें वगैरह सब उठाकर रख दीं इन लोगों के जाने का इंतज़ार करने लगी... अचानक मुझे ऐसा लगा कि कोई सीढ़ियों पर ऊपर आ रहा है... सीढ़ियों से ऊपर आने पर पहला कमरा माँ का था उसके बाद मेरा... नीचे हॉल, रसोई, और एक कमरा था जिसे माँ अपने काम के सिलसिले में बातचीत करने, कोई सामान या कागजात रखने, विजयराज अंकल, मुन्नी आंटी, विमला आंटी या उनके पति विजय सिंह के रुकने के लिए इस्तेमाल करती थी.... जब मेंने किसी के ऊपर आने कि आहात सुनी तो मुझे लगा कि अगर किसी ने भी मेरे दरवाजे को खोलने की कोशिश की तो उसे पता चल जाएगा कि में कमरे में हूँ ....इसलिए मेंने तुरन कमरे के अंदर से चिटकनी खोल दी जिससे किसी को मेरे यहाँ होने का शक ना हो और में धीरे से बेड के नीचे सरक गयी...

थोड़ी देर बाद वही हुआ जिसका मुझे डर था... मेरे कमरे का दरवाजा खुला और दो जोड़ी पैर अंदर आए... लेकिन पैरो और कपड़ों की झलक से ही मुझे पता चल गया कि इनमें माँ नहीं हैं... ये मुन्नी आंटी और नेहा हैं... कमरे में आकर मुन्नी आंटी सीधी मेरे कपड़ों की अलमारी खोलकर उसमें से कपड़े निकालने लगीं.... उन्होने 1 जोड़ी ब्रा-पैंटी और सलवार कमीज दुपट्टे के साथ निकालकर नेहा को दी और बोली कि ये ले और नहाकर पहन ले। नेहा कपड़े लेकर मेरे बाथरूम में चली गयी। में वहीं दम साधे पलंग के नीचे पड़ी रही तभी माँ भी कमरे में आ गयी और मुन्नी आंटी से नेहा के बारे में पूंछा तो उन्होने बाथरूम की ओर इशारा किया,

“अब इन दोनों का क्या करना है?” माँ ने कहा

“में क्या बताऊँ, विजय तो कह रहा है कि इस लड़के को गायब कर दो... और लड़की को छोड़ दो.... लड़की के मिलते ही...पुलिस भी शांत हो जाएगी और लड़की के घरवाले भी.... फिर इस लड़के को भी छोड़ देंगे... लेकिन पता नहीं क्या सोच के तू इन दोनों को अपने घर ले आयी?” मुन्नी आंटी ने कहा

“मुन्नी तुम समझती क्यों नहीं.... अगर ये लड़की अकेली पकड़ी गयी तो भी इसको साथ लेकर ये लोग हमारे सारे ठिकानों पर छापे मरेंगे... उसका ड्रग का मामला है.... नेहा के घरवाले कितना भी ज़ोर लगा लें... पुलिसवाले इसको जरूर तलाश करेंगे.........

और दूसरी बात.... इस लड़के के पूरे ड्रग रैकेट को हमारे हर ठिकाने का पता है.... इस लड़की की तलाश में सब जगह छापे पड रहे हैं.... तू तो खुद कल रात इन दोनों को आगरा की बस में बैठाकर आयी थी, जहां से ये सुबह फिर वापस लौटे हैं.... इस घर के अलावा और है कोई ठिकाना... जिसका किसी को ना पता हो” माँ ने झुँझलाते हुये कहा

“लेकिन यहाँ नीलो के होते हुये कैसे रखेगी इन्हें” मुन्नी आंटी ने फिर कहा

“में नीलों को तेरे यहाँ भेज दूँगी, उसे बोलना है कि में कहीं बाहर जा रही हूँ काम से...नीलों अकेली ना रहे इसलिए तुम्हारे साथ भेज रही हूँ। अभी के लिए ये दोनों नीचे वाले कमरे में छुपे रहेंगे... अब जल्दी से दोनों को लेकर उस कमरे में बंद कर दे.... नीलों आनेवाली होगी। तुम उसे साथ लेकर निकाल जाना और अपने घर छोड़ देना, वहाँ ममता और शांति के साथ बनी रहेगी फिर विजय को बुला कर ले आना यहीं बैठकर बात करते हैं.... क्या किया जाए” नाज़िया ने कहा तो मुन्नी को भी यही ठीक लगा

नेहा नहाकर बाहर निकल आयी तो उसे साथ लेकर वो दोनों वहाँ से नीचे चली गईं। अब मेरे सामने समस्या ये थी कि में अब माँ या मुन्नी आंटी के सामने भी नहीं आ सकती थी क्योंकि मेरे घर में मौजूद होने से ही वो समझ जाते कि मेंने सबकुछ जान-समझ लिया है

में भी उन लोगों के जाने के बाद बेड के नीचे से निकली और छुपते हुये नीचे झाँककर देखा तो वो चारों नीचे वाले कमरे में जा रहे थे। उनके जाने के बाद में नीचे उतरी और हॉल में पहुंची लेकिन अब समस्या ये थी कि घर से बाहर जाने के लिए मुझे उस कमरे के सामने से गुजरना था जिसमें वो सब थे, और कमरे का दरवाजा खुला हुआ था... क्योंकि उनको तो लगा था कि घर में सिर्फ वो हैं और में तो कॉलेज में हूँ.... तभी मेरे दिमाग में एक बात आयी रसोई कि खिड़की में कोई जाली या रुकावट नहीं थी में उससे घर के बाहर कूद सकती थी। लेकिन अगर बाहर कोई मौजूद होगा तो मुझे देख लेगा फिर पता नहीं वो चोर समझकर शोर ना मचा दे। लेकिन दूसरा कोई रास्ता नहीं था इसलिए में बिना कमरे कि ओर जाए रसोई में घुसी और खिड़की खोलकर बाहर झांकी तो घर के पीछेवाली पतली गली में कुछ बच्चे खेल रहे थे। में आराम से खिड़की पर चढ़ी और बाहर को उन बच्चों कि ओर देखकर उतारने लगी... बच्चों कि नज़रें मुझ पर ही थी। में गली में उतरकर बच्चों के पास पहुंची

“यहाँ क्या कर रहे हो तुम लोग” मेंने उनके पास जाकर थोड़ा गुस्से से कहा

“दीदी हम तो यहाँ रोज खेलते हैं” एक बच्चे ने जवाब दिया

“सामने वाली चौड़ी सड़क पर खेला करो... यहाँ कूड़ा पड़ा रहता है” मेंने बात को आगे बढ़ते हुये कहा जिससे बच्चे मेरे इस तरह खिड़की से बाहर निकालने पर ध्यान न दें और यही समझें कि में उनको डांटने के लिए खिड़की से बाहर आयी हूँ

“दीदी... बाहर वाली सड़क पर लोग आते जाते हैं...तो हम वहाँ ढंग से खेल नहीं पते... पिछले महीने इसे एक साइकल से टकराकर चोट भी लग गयी थी... इसलिए हमारे घरवाले कहते हैं कि पीछे वाली गली में ही खेलने के लिए” लड़के ने नीलोफर को पूरी तरह संतुष्ट करने के लिए अपनी दलील दी

“अच्छा-अच्छा ठीक है तुम्हारे चक्कर में खिड़की से उतर आई अब घूम के वापस घर जाना होगा” कहते हुये में उस गली से बाहर निकली और मेन रोड से घर के दरवाजे पर पहुंची। दरवाजा अंदर से बंद था, मेंने घंटी बजाई तो माँ ने दरवाजा खोला...

“आ गयी नीलों... और ऐसे खाली हाथ... कॉलेज ही गयी थी? आजकल तेरे रंग बहुत बदल रहे हैं?” मुझे सामने खाली हाथ खड़े देखकर माँ का पारा चढ़ गया। मुझे भी अपनी गलती का अहसास हुआ की मुझे अपना कॉलेज बैग लेकर बाहर निकालना चाहिए था... जो में जल्दी-जल्दी में सोच ही नहीं पायी लेकिन अब क्या हो सकती है

“अब अंदर आएगी या वहीं खड़ी कोई नयी कहानी सोच रही है मुझे सुनाने के लिए” माँ ने दोबारा कहा तो में अपनी सोच से बाहर निकलकर होश में आयी। अंदर आकर मेंने दरवाजा बंद किया और देखा कि हॉल में सोफ़े पर मुन्नी आंटी बैठी हुई हैं

“आंटी नमस्ते!” मेंने कहा

“नमस्ते बेटा! आजा मेरे पास आ” उन्होने हाथ बढ़ाते हुये कहा तो में उनके पास जाकर बैठ गयी उनके दूसरी तरफ माँ गुस्से में बैठी हुई थी

“अरे नाज़िया क्यों गुस्सा होती है... स्कूल में थोड़े ही पढ़ रही है ये। कॉलेज में तो कभी-कभी घूमने भी चले जाते हैं... फिर पढ़ती तो है ही” कहते हुये मुन्नी आंटी ने मेरे कंधे पर हाथ रखते हुये हुये मुझे खुद से चिपका लिया और माँ को आँखों-आँखों में कुछ इशारा किया

“अच्छा अब सुन! में किसी काम से कुछ दिन के लिए बाहर जा रही हूँ... तुझे अकेला कैसे छोड़ूँ... इसलिए मुन्नी दीदी को बुलाया है मेंने। तू इनके साथ रहेगी, जब तक में वापस नहीं आ जाती। और ध्यान रहे.... मुझे कोई शिकायत नहीं मिलनी चाहिए। घर से कॉलेज और कॉलेज से घर... वक़्त से.... वरना ...” नाज़िया ने गुस्सा दिखते हुये नीलोफर से कहा

“अम्मी... में...” नीलोफर ने जवाब में कुछ कहना चाहा

“अब जा और अपने कपड़े किताबें रख ले और इनके साथ जा... जो कहना हो मेरे वापस आने के बाद कहना... मुझे भी अभी निकालना है” नाज़िया ने उसकी बात काटते हुये कहा

नीलोफर चुपचाप ऊपर अपने कमरे में गयी और अपना बैग लेकर नीचे आकर मुन्नी के साथ उसके घर चली गयी। मुन्नी ने अपने घर जाकर नीलोफर और अपनी दोनों बेटियों को बिठाकर समझाया की वो नाज़िया के साथ किसी काम से जा रही है... बाहर, इसलिए तीनों यहीं साथ में रहेंगी। उस समय तक ममता की शादी हो चुकी थी विमला के बेटे दीपक से लेकिन वो अभी अपने मायके आयी हुई थी। बल्कि मुन्नी ने ही विमला को बोलकर ममता को अपने घर बुला लिया था... शांति अकेली न रहे मुन्नी के जाने के बाद इसीलिए।

ममता और शांति को चाहे पता ना हो लेकिन, नीलोफर को पता था कि नाज़िया और मुन्नी कहीं भी नहीं जा रहीं बल्कि नेहा के मामले को शहर में रहते हुये ही गुपचुप तरीके से निपटाने में लगीं हैं। विमला भी विजय के साथ नाज़िया के घर पहुँच गयी थी घर पर दीपक, कुलदीप और सिमरन को ये बताकर कि वो दोनों कहीं बाहर जा रहे हैं और कुछ दिन में आएंगे। यहाँ ये सब इकट्ठे हुये तो बात करके रास्ता निकालने से ज्यादा सबने अपनी हवस मिटाने के मौके तलाशने शुरू कर दिये....विजय, विमला, मुन्नी, नाज़िया तो थे ही पुराने पापी... नेहा और उसके साथ वाले लड़के ने भी उसी घाट का पानी पिया था। इनमें से कोई भी घर से बाहर तो निकलता नहीं था... घर में पड़े बस चुदाई, चुदाई और चुदाई।

इधर नीलोफर जब अगले दिन कॉलेज गयी तो वहाँ आज फिर वही हाल था पुलिस और नेहा के माँ-बाप कॉलेज आए हुये थे और शक के आधार पर पूंछताछ चल रही थी... नीलोफर को नेहा के माँ-बाप को देखकर बड़ा दुख हुआ, उनके हालत खासतौर पर नेहा की माँ बहुत ही ज्यादा हताश और दुखी थीं। विक्रम उन लोगों के साथ लगा हुआ था और उनको तसल्ली दे रहा था। अचानक नीलोफर के मन में ना जाने क्या आया कि उसने विक्रम के पास जाकर धीरे से उसे अकेले में मिलने को कहा। हालांकि नीलोफर और विक्रम एक दूसरे को उस दिन से जानते थे जब नाज़िया विजय से मिली और उसके घर में रुकी... फिर भी बाद में इन सब बच्चों का एक दूसरे के घर आना जाना कम ही होता गया और अब तो ये रहा कि एक ही कॉलेज में पढ़ते हुये भी नीलोफर और विक्रम ने कभी आपस में बात ही नहीं की।

“हाँ! नीलोफर क्या बात है? आज मुझपे ये मेहरबानी कैसे... प्यार का इजहार तो नही करनेवाली” कॉलेज पार्किंग में पहुँचकर नीलोफर के पास आते हुये विक्रम ने हँसते हुये कहा

“विक्रम कभी सोचना भी मत... बचपन में जब में तुम्हारे घर रही और मेरी माँ को तुम्हारे पापा ने उन झमेलों से बचाया तो मुझे तुम सब पसंद थे... लेकिन जैसे-जैसे मेरी माँ, तुम्हारे पापा और यहाँ कॉलेज में तुम्हारे कारनामे मेरे सामने आते गए... मुझे तुम सब से नफरत सी हो गयी है... हम सब में मुझे या तो रागिनी दीदी पसंद हैं या शांति... बाकी तुम सब एक से बढ़कर एक कमीने हो, विमला आंटी, ममता और मुन्नी आंटी व उनके बच्चे भी.... में तुम सब से बात करना भी पसंद नहीं करती............... अभी मुझे तुमसे कुछ कहना है... क्योंकि तुम करते कुछ भी हो लेकिन तुम्हारा ज़मीर अभी मरा नहीं है...इसीलिए तुम नेहा के माँ-बाप के साथ भी लगे हये हो” नीलोफर ने विक्रम की बात सुनकर अपने मन की भड़ास निकालते हुये कहा तो नीलोफर के गंभीर चेहरे को देखकर विक्रम भी गंभीर हो गया

“बताओ क्या कहना है? जरूर कोई खास बात ही होगी जो आज तुमने मुझसे इतने दिनों बाद बात की” विक्रम ने कहा

“मुझे पता है नेहा कहाँ है” नीलोफर ने धीरे से कहा

“क्या” विक्रम का मुंह खुला का खुला रह गया

“मतलब तुम्हें नेहा के बारे .....”विक्रम ने आगे कहना चाहा तो नीलोफर ने फौरन उसके मुंह पर हाथ रखते हुये उसे चुप करा दिया

“धीरे बोलो और मेरी बात सुनो.... फिर कुछ बोलना” नीलोफर ने कहा और उसके होठों पर से अपना हाथ हटाने लगी तो विक्रम ने उसका हाथ चूम लिया

“तुम नहीं सुधरोगे...अब सुनो नेहा इस समय उस लड़के के साथ हमारे घर पर है... मेरी माँ साथ में तुम्हारे पापा...विजय अंकल, विमला आंटी, मुन्नी आंटी भी हैं इन सबने जो रंडीबाजी का धंधा खोल रखा है उसमें कॉलेज से लड़कियां फंसा के उन्हें ड्रूग एडिक्ट बनाकर या ब्लैकमेल करके लड़कियों को लाया जाता है... वो लड़का भी नेहा को ड्रूग एडिक्ट बनाकर इस धंधे में लाया... अब अगर तुम नेहा को वहाँ से पकडवाते हो तो ना सिर्फ वो लड़का बल्कि ये सब भी पकड़े जाएंगे और हमारी भी बदनामी होगी, क्योंकि वो हमारे माँ-बाप हैं.... में ये चाहती हूँ की नेहा अपने माँ-बाप के पास पहुंचे और इस रंडीपने और ड्रूग की गंदगी से बाहर निकलकर अपनी ज़िंदगी जिये और शायद तुम भी यही चाहते हो जिसके लिए उन लोगों के साथ लगे हुये हो.... अगर में गलत नहीं हूँ तो” नीलोफर ने कहा तो विक्रम गहरी स में डूब गया

“ठीक है में देखता हूँ इस मामले में क्या किया जा सकता है, तुम अपने घर का पता मुझे दो। में एक बार खुद जाकर इन लोगों से बात करता हूँ... लेकिन तुम इन लोगों को कुछ नहीं बताओगी, कहीं ऐसा ना हो की जब में वहाँ पहुंचूँ तो कोई भी ना मिले” विक्रम ने कहा

“में घर का पता तो तुम्हें दे रही हूँ लेकिन बस ये ध्यान रखना कि किसी को भी साथ लेकर मत जाना... ऐसा कुछ मत करना कि मेरी माँ के लिए मुश्किलें खड़ी हो जाएँ... बड़ी ठोकरें खाने के बाद हमें ये सुकून की ज़िंदगी नसीब हुई है” नीलोफर ने अपने घर का पता विक्रम को देते हुये कहा

“तुम चिंता मत करो, में अपने या तुम्हारे किसी भी परिवार के लिए कोई परेशानी खड़ी नहीं होने दूंगा....फिर भी अगर मेरी वजह से तुम्हें कोई परेशानी हुई तो उसकी पूरी ज़िम्मेदारी लेते हुये तुम्हारा हर मुश्किल में साथ दूंगा... नीलोफर में इतना बुरा भी नहीं हूँ... ये तुम भी जानती हो... जैसे तुम्हारे सिर से बाप का साया हटा ऐसे ही मेरे सिर से भी माँ का साया क्या हटा, माँ-बाप दोनों ही नहीं रहे... ऐसे बाप को क्या कहूँ जिसे अपनी ऐश, अपनी हवस के आगे अपनी औलाद कि ही फिक्र नहीं...हालांकि अब तो परिवार ने मुझे सहारा दिया हुआ है... लेकिन उस दौर कि परिस्थितियों ने मुझे ऐसा बना दिया... जिससे तुम भी मुझे पसंद नहीं करती...” विक्रम ने भावुक होते हुये कहा

“ऐसा नहीं विक्रम...में बचपन से तुम्हें पसंद करती थी... बल्कि मेरी ज़िंदगी में तुम अकेले लड़के थे जिसे में पसंद करती थी... लेकिन पहले तो मुझे लगा कि तुम शांति को पसंद करते थे बाद में तुम घर ही छोडकर चले गए और अब जब दोबारा मिले तो ऐसे हो गए कि मुझे तो आज भी यहाँ तुमसे बात करते में डर लग रहा है कि अगर किसी ने देख लिया तो वो शायद मुझे भी तुम्हारे बिस्तर पर लेटने वाली लड़कियों में ना शुमार कर ले” नीलोफर ने भी अपने दिल का दर्द बाहर निकाल दिया

“नीलों! ये सच है कि में औरतों-लड़कियों के मामले में बदनाम हूँ... लेकिन मेंने किसी कि मजबूरी का कभी फायदा नहीं उठाया ना किसी पर दवाब डाला... और रही प्यार की बात.... में बचपन से.... शांति से ही प्यार करता था... जब हम छोटे-छोटे थे तो हर खेल में वो मेरी पत्नी बनती थी.... लेकिन वक़्त और हालात ने जैसा भी जो कुछ भी किया.... अगर ज़िंदगी ने मौका दिया तो फिर भी शांति के साथ ही ज़िंदगी जीने कि तमन्ना है मेरी... लेकिन अगर कहीं भी तुम्हारी ज़िंदगी में कोई मुसीबत आई तो तुम हमेशा मुझे अपने साथ खड़ा हुआ ही पाओगी.... चलो अभी तुम कॉलेज में जाओ... में तुम्हारे घर जा रहा हूँ...” कहते हुये विक्रम वहाँ से अपनी गाड़ी लेकर निकल गया

शाम को नीलोफर जब मुन्नी के घर पहुंची तो वहाँ मुन्नी के साथ-साथ नाज़िया भी मौजूद थी। नीलोफर को देखते ही उसने उठकर नीलोफर के मुंह पर थप्पड़ मारा तो ममता और मुन्नी ने आगे बढ़कर नाज़िया और नीलोफर को सम्हाला

“ये क्या किया तूने... पता है... विक्रम ने उन दोनों को पुलिस के हवाले कर दिया और अब में या तू उस घर या इस शहर तो छोड़ इस देश में भी नहीं रह सकते... पुलिस ने उस पूरे मकान कि तलाशी ली और उन्हें मेरे बारे में सब पता चल गया... वो तो उस लड़के और लड़की को इन सबके बारे में कोई जानकारी नहीं थी... इसलिए हम यहाँ बैठे हैं... वरना अब तक इन सब ठिकानों पर पुलिस पहुँचकर हमें और इन सबको ले गयी होती...” नाज़िया ने कुससे से नीलोफर को घूरते हुये धीरे से कहा

“तो क्या करतीं आप? कब तक उन दोनों को छिपाकर रखतीं... कभी न कभी तो उन्हें बाहर निकालना ही था...” नीलोफर ने भी गुस्से से ही कहा

“नाज़िया आंटी! पहले मेरी बात सुनो...फिर कुछ बोलना” तभी भिड़े हुये दरवाजे को खोलकर अंदर आते हुये विक्रम ने कहा

“बोलो अब क्या बोलना है तुम्हें... तुमने अपने बाप और बुआ को तो बचा लिया ... में ही कुर्बानी के लिए मिली...तुम बाप-बेटे ने भी हम माँ-बेटी की ज़िंदगी जहन्नुम बनाने में कोई कसर नहीं रखी....” गुस्से से भड़कते हुये नाज़िया ने कहा

“आंटी आपके बारे में नेहा ने भी कुछ नहीं कहा था... मेंने उसे समझा दिया था... लेकिन उस लड़के पर जब पुलिस ने अपना कहर ढाया तो वो तोते कि तरह सब बोलता चला गया... अब इसमें मेरी कोई गलती नहीं है... में सिर्फ इतना कहना चाहता हूँ कि आप यहाँ से कहीं गायब हो जाओ... इस बारे में पापा से बात करो... वो कुछ इंतजाम कर ही देंगे... लेकिन न जाने कैसे हालात हों... इसलिए में नीलोफर को अपने कोटा वाले घर में छोड़ देता हूँ.... अब ये न तो उस घर में रह सकती है और न ही उस कॉलेज में पढ़ सकती है... अगर इस शहर में भी रही तो पुलिस इसे पकड़कर आपको दबोचने की कोशिश करेगी .... आपको कोटा ले जाने में ये मुश्किल है कि परिवार के लोगों से में क्या कहूँगा... इसलिए आपके लिए जो करना होगा पापा ही कर सकते हैं” विक्रम ने कहा

“लेकिन में नीलोफर को ऐसे अकेला कैसे भेज सकती हूँ तुम्हारे साथ” नाज़िया बोली

“आंटी आपको मुझ पर भरोसा हो या न हो... नीलोफर पर तो भरोसा है... और नीलोफर को मुझ पर भरोसा है या नहीं ....ये आप उससे पूंछ लो” विक्रम ने कहा तो नीलोफर ने तुरंत कहा

“माँ में विक्रम के साथ कहीं भी जाने या रहने को तैयार हूँ.... आप मेरी चिंता मत करो.... अपना देखो कि इस मामले से कैसे निकलोगी” कहते हुये नीलोफर विक्रम के साथ जाकर खड़ी हो गयी

………………………………….
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#82
अध्याय 35


कॉलेज पार्किंग में नीलोफर और विक्रम की बातचीत होने के बाद विक्रम वहाँ से नाज़िया के घर को निकाल गया। नीलोफर से किए गए वादे के मुताबिक ही विक्रम ने नेहा के बारे में पुलिस को कोई सूचना नहीं दी और नाज़िया के घर पहुँच गया। घर के दरवाजे पर जाकर जब विक्रम ने घंटी बजाई तो कुछ देर तक अंदर से कोई आवाज नहीं आयी... विक्रम ने दोबारा घंटी बजाई तभी उसे दरवाजे की ओर बढ़ते कदमों की आहट सुनाई दी।

“कौन?” अंदर से नाज़िया की आवाज आयी

“आंटी, में विक्रम... दरवाजा खोलिए मुझे आप लोगों से जरूरी बात करनी है” विक्रम ने कहा तो कुछ देर के लिए नाज़िया का कोई जवाब नहीं आया

“आंटी मुझे पता है आप, पापा, मुन्नी आंटी, विमला बुआ सब यहीं पर हो... और जिसे साथ लिए हो... मुझे उसी बारे में बात करनी है... अगर आपने मुझसे बात नहीं की तो आप सब बहुत बड़ी मुसीबत में पड़ जाएंगे” अंदर से कोई जवाब ना आते देख विक्रम ने दोबारा कहा

“2 मिनट रुको, में अभी दरवाजा खोलती हूँ...” विक्रम की धमकी सुनकर अंदर से नाज़िया की आवाज आयी

“सिर्फ 2 मिनट ...और कोई चालाकी नहीं” विक्रम ने कहा

“हाँ 2 मिनट .... सिर्फ..... और चालाकी नहीं... विजय जी को बुलाने जा रही हूँ... यहीं रुकना” कहते हुये नाज़िया के अंदर की ओर जाने की आवाज आयी। थोड़ी देर बाद ही अंदर से कुछ लोगों के बोलने की आवाज आने लगी और दरवाजा खुला

“तुम यहाँ क्यों आए हो और यहाँ का पता तुम्हें किसने दिया” दरवाजे के बीचोंबीच खड़े विजयराज ने कहा तो विक्रम ने कोई जवाब दिये बिना विजयराज को बलपूर्वक एक ओर हटाते हुये अंदर प्रवेश किया और विजयराज को भी अंदर की ओर खींचकर दरवाजा बंद कर लिया

“बुआ जी! इन्हें समझाओ.... ऐसे ही तेवर दिखाये तो अगली बार इस घर या किसी और घर में नहीं जेल में ही मुलाक़ात होगी मुझसे” विक्रम ने विजयराज को छोड़ा और विमला के पास आते हुये कहा

“भैया आप चुपचाप बैठ जाओ और मुझे बात करने दो... नाज़िया तुम भी बैठो.... आजा बेटा यहाँ बैठ मेरे पास और बता.... क्या बात है” विमला ने विक्रम को अपने पास सोफ़े पर बैठने का इशारा करते हुये कहा

विक्रम विमला के पास बैठ गया और उसने नेहा और उस लड़के को बुलाने को कहा। उन दोनों के साथ मुन्नी भी आकार सोफ़े पर बैठ गयी तो विक्रम ने उन सबसे कहा कि नेहा का मामला अब बहुत बड़ा बन गया है... इसलिए नेहा को किसी बाहरी जगह से अपने घर कॉल करके अपने माँ-बाप को बुलाना होगा और उन्हें बता दे कि वो नशे की लत की वजह से इस लड़के के साथ चली गयी थी...इन लोगों के सेक्स रैकेट या इनके किसी के नाम नहीं लेगी... तो नेहा और उस लड़के ने कहा कि वो नाज़िया के अलावा बाकी के सिर्फ नाम ही जानते हैं... और इनमें से किसी का नाम नहीं लेंगे। अब विक्रम ने उस लड़के से भी कहा कि उसके ऊपर ड्रग्स का मामला तो दर्ज है ही साथ ही नेहा के अपहरण का मामला भी है... लेकिन चूंकि नेहा बालिग है और अपनी मर्जी से उसके साथ गयी थी इसलिए अपहरण का मामला तो आसानी से खारिज करवाया जा सकता है... साथ ही ड्रग्स के मामले में भी विक्रम बड़ा से बड़ा वकील खड़ा करके उसे ड्रूग बेचने कि बजाय ड्रूग के शिकार के रूप में साबित करके नशा मुक्ति केंद्र भिजवा देगा... जहां से वो कुछ समय बाद सही होने पर रिहा कर दिया जाएगा। अगर किसी तरह से नेहा का मेडिकल होने पर नेहा को पुरुष संसर्ग कि पुष्टि के आधार पर बलात्कार का मामला बनाने कि कोशिश कि गयी तो वो नेहा के बालिग होने और सहमति से सहवास करने के आधार पर खारिज कर दिया जाएगा।  इस प्रस्ताव पर वो लड़का तुरंत सहमत हो गया। और कोई इससे बेहतर विकल्प भी नहीं था उसके पास।

इसके बाद विक्रम ने बाकी सब को तुरंत यहाँ से किसी दूसरी जगह चले जाने को कहा, बल्कि सभी को अपने-अपने घर जाने को कहा। नाज़िया को मुन्नी के साथ जाने को कह दिया और नेहा व उस लड़के को साथ लेकर विक्रम अपनी कार से कश्मीरी गेट के लिए निकल गया वहाँ बस अड्डे के सामने एक पीसीओ बूथ से नेहा ने अपने घर फोन किया और इंतज़ार करने लगी उनके आने का.... उस लड़के को भी मेंने वहीं रहने को कहा.... जिससे की पुलिस उसे बरामद कर सके। पुलिस और नेहा के परिवार को ऐसा लगना चाहिए कि नेहा उस लड़के के साथ बस अड्डे से बस पकड़कर कहीं भाग जानेवाली थी लेकिन फिर नेहा का इरादा बदल गया और उसने मौका देखकर अपने घरवालों को फोन कर दिया अब इतने लोगों के सामने वो लड़का कोई जबर्दस्ती तो कर नहीं सकता था नेहा के साथ इसलिए वो इसे मनाने कि कोशिश में लगा हुआ था।

लगभग आधे घंटे बाद हुआ भी यही... नेहा के घरवाले पुलिस को साथ लेकर आए और उन दोनों को गाड़ी में बिठाकर ले गए...लेकिन तब तक पुलिस की नज़र में उस लड़के के द्वारा ड्रग लेने वाली एक और लड़की आ चुकी थी जिससे उस लड़के और नाज़िया के सेक्स रैकेट के लिंक का पता लग चुका था तो... नेहा को उसके माँ-बाप के हवाले कर पोलिकेवालों ने उस लड़के को सीधा हवालात में ले जाकर नाज़िया के देह व्यापार के बारे में पूंछताछ शुरू कर दी... लड़का पुलिस के टॉर्चर के आगे ज्यादा देर टिक नहीं सका और उसने नाज़िया के घर का पता .... उन्हें बता दिया।

पुलिस नाज़िया के मकान पर पहुंची और जब वहाँ की तलाशी ली तो उसे ना सिर्फ नाज़िया के बारे में बल्कि नीलोफर के बारे में भी पता चला कि नाज़िया की एक बेटी भी है... कागजात कि तलाशी में उन्हें नीलोफर का एक जन्म प्रमाण पत्र मिला जिसमें पटियाला का पता दिया हुआ था। जब पुलिस ने जांच पड़ताल के लिए पटियाला पुलिस से संपर्क किया तो नाज़िया कि सारी कहानी ही पुलिस के सामने आ गयी। दुश्मन देश कि नागरिक होने का पता चलते ही पुलिस बहुत तेजी से हरकत में आयी और इन माँ बेटी कि तलाश करने लगी। सिर्फ कुछ घंटों में ही... नाज़िया और नीलोफर विदेश घुसपेथिया बन गईं।

इधर विक्रम नेहा के जाते ही बस अड्डे से कॉलेज निकला और नीलोफर से मिला।

“नीलोफर वहाँ का सब कुछ निपटा दिया... लेकिन अब तुम्हारी माँ के साथ तुम्हारा रहना खतरनाक हो सकता है... क्योंकि इन लोगों का सेक्स रैकेट या ड्रग के मामले को लेकर यदि कोई भी बवाल हुआ तो पापा, विमला बुआ और मुन्नी आंटी को इनके लिए काम करनेवाला कोई नहीं जानता, सिर्फ नाज़िया आंटी को ही वो लोग जानते हैं और वो ही बॉस समझी जाती हैं। तो में उनके लिए इतना ही कर सकता हूँ की उनको रिहा करवाने और उनकी सुरक्षा के लिए व्यवस्था कर दूँ। लेकिन इन झमेलों में फँसने से नहीं रोक पाऊँगा, इसलिए मे तुम्हें उनके साथ रखकर कोई रिस्क नहीं ले सकता।“

“फिर क्या करोगे तुम, मेरे बारे में क्या सोचा हुआ है। याद रखना तुमने मेरी ही नहीं मेरी माँ की भी हिफाज़त का वादा किया था” नीलोफर ने कहा

“तुम्हें तो में हर हाल में बचा ही लूँगा, लेकिन तुम्हारी माँ ने पहले ही इतने बीज बो रखे हैं मेरे बाप के साथ मिलकर कि उनको किसी तरह से इस झमेले में फँसने पर निकाल तो सकता हूँ...लेकिन फँसने से नहीं बचा सकता, यहाँ तक कि अपने बाप को भी फँसने से नहीं बचा पाऊँगा...अगर उनका कोई मामला खुला तो” विक्रम ने साफ-साफ कहा

“लेकिन मेरे लिए क्या करोगे?” नीलोफर ने पूंछा

“तुम्हें नाज़िया आंटी से अलग करके अपने साथ रखूँगा और तुमने मुझसे कहा था ना कि तुम मुझसे प्यार करती हो, तो आज सुन लो... में भी तुमसे प्यार करता हूँ, आज से नहीं... जब तुम्हें पहली बार बचपन में अपने घर देखा था... लेकिन मेंने कभी तुमसे मिलने या कहने कि कोशिश इसलिए नहीं की.... क्योंकि हम दोनों के बीच एक दीवार थी... और उसके रहते हम एक दूसरे के साथ ज़िंदगी नहीं बिता सकते थे.... तुम्हारा * और मेरा हिन्दू होना........ नाज़िया आंटी चाहे मान भी जातीं लेकिन मेरे घर में कोई नहीं मानता.... और फिर शायद कोई और भी इस मुद्दे को जरिया बनाकर बवाल खड़ा कर देता..... अब तुम अगर चाहो तो हम शादी कर सकते हैं....” विक्रम ने कहा

“यहाँ में अपनी और अपनी माँ की सलामती के लिए सोच रही हूँ और तुम शादी के लिए बोल रहे हो। हाँ! में आज भी तुमसे प्यार करती हूँ, शादी भी करना चाहती हूँ.... लेकिन पहले इस आफत से तो बाहर निकलें” नीलोफर ने झल्लाते हुये विक्रम की बात का जवाब दिया

“इस शादी से तुम्हारी हिफाज़त तो हो ही जाएगी... और तुम्हारी माँ की हिफाज़त के लिए कुछ तो इंतजाम वो लोग कर ही रहे होंगे बाकी में देख लूँगा” विक्रम ने मुसकुराते हुये कहा, नीलोफर की झल्लाहट देखकर उसे हंसी आ गयी

“शादी से हिफाज़त, जरा में भी तो सुनूँ, क्या सोचा है तुमने” नीलोफर ने मज़ाक उड़ाने वाले लहजे में कहा

“देखो सबसे पहली जरूरत तुम्हारी पहचान छुपाने की है उसके लिए तुम्हारा नाम नीलोफर से बदलकर नीलम कर दिया जाएगा... नीलम सिंह, इससे मेरे घरवाले भी तुमसे शादी करने की अनुमति दे देंगे... दूसरे तुम्हें नयी जगह छुपाने की जरूरत नहीं होगी... तुम मेरे साथ मेरी पत्नी के रूप में कहीं भी खुलेआम रह सकती हो... नीलम सिंह पत्नी विक्रमादित्य सिंह ......... कोई सोच भी नहीं सकेगा कि तुम नीलोफर जहां पुत्री नाज़िया हुसैन हो” विक्रम ने कहा तो नीलोफर भी सोच में पड़ गयी... कुछ देर सोचने के बाद वो बोली

“लेकिन अगर माँ या विजय अंकल तैयार नहीं हुये इस शादी के लिए... में और तुम दोनों ही जानते हैं कि हमारे माँ-बाप के बीच कैसे ताल्लुकात हैं... मुझे नहीं लगता कि वो हमारी शादी होने देंगे” नीलोफर ने कहा

“तो उन्हें बताने कि जरूरत क्या है... हम उन्हें सिर्फ ये बताएँगे कि तुम्हारी हिफाजत के लिए में तुम्हें अपने साथ कोटा ले जा रहा हूँ... और तुम वहीं रहोगी जब तक सब मामला शांत नहीं हो जाता” विक्रम बोला

“विजय अंकल को तो कोटा का पता मालूम है...और परिवार में से भी कोई उनको खबर कर सकता है कि में और तुम शादी कर रहे हैं... नाम बेशक बादल लोगे... लेकिन विजय अंकल बहुत तेज हैं... वो समझ जाएंगे कि नीलम सिंह में ही हूँ...और ये राज तुम्हारे और घरवालों को अगर विजय अंकल ने बता दिया तो ना तो हमारी शादी होगी और ना ही वो लोग मुझे वहाँ रहने देंगे” नीलोफर ने अपनी शंका सामने रखी।

“अरे कुछ नहीं होगा... पहली बात तो कोटा वाले घर का पापा को पता नहीं मालूम, दूसरे वहाँ हम सारे परिवार को इकट्ठा नहीं कर रहे... अकेले भईया ही हमारी शादी करा देंगे और उनके फैसले को घर में कोई बदल नहीं सकता” विक्रम ने नीलोफर को आश्वासन दिया

“ऐसा कैसे हो सकता है कि तुम्हारे घर का तुम्हारे ही पापा को पता ना हो और तुम्हारे कोई बड़े भाई भी हैं? मेंने तो आजतक सुना भी नहीं” नीलोफर ने शंकित भाव से कहा तो विक्रम मुस्कुरा दिया

“वास्तव में तुम्हारे जैसी बाल की खाल निकालने वाली लड़की से शादी करना भी बैठे बिठाये आफत मोल लेना ही है..... कोटा वाला घर मेरे छोटे चाचा का था... भईया ने वो उनको दिये पैसों के बदले लेकर मुझे दे रखा है.... और भईया मेरे ताऊजी के बेटे हैं.... मेरे पापा के बड़े भाई के बेटे..... राणा रविन्द्र प्रताप सिंह” विक्रम ने मुसकुराते हुये कहा

“ठीक है... चलो फिर पहले मुन्नी आंटी के यहाँ चलते हैं” नीलोफर ने कहा

“वहाँ तो जाना ही पड़ेगा... तुम्हारी मम्मी भी वहीं पर मिलेंगी... मेंने उन्हें मुन्नी आंटी के साथ ही उनके घर जाने के लिए बोला था” विक्रम बोला

और वो दोनों मुन्नी के घर की ओर चल दिये।

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#83
सभी मित्रों से देरी के लिए क्षमा चाहता हूँ.................... आज से यहाँ अपडेट आने शुरू हो जाएंगे
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#84
अध्याय 36


मुन्नी के घर के बाहर पहुँचकर विक्रम ने नीलोफर को अंदर जाने को कहा और खुद अपनी गाड़ी को एक ओर लगाकर आने का बताया। नीलोफर जब मुन्नी के घर पहुंची तो वहाँ मुन्नी के साथ-साथ नाज़िया भी मौजूद थी। नीलोफर को देखते ही उसने उठकर नीलोफर के मुंह पर थप्पड़ मारा तो ममता और मुन्नी ने आगे बढ़कर नाज़िया और नीलोफर को सम्हाला

“ये क्या किया तूने... पता है... विक्रम ने उन दोनों को पुलिस के हवाले कर दिया और अब में या तू उस घर या इस शहर तो छोड़ इस देश में भी नहीं रह सकते... पुलिस ने उस पूरे मकान कि तलाशी ली और उन्हें मेरे बारे में सब पता चल गया... वो तो उस लड़के और लड़की को इन सबके बारे में कोई जानकारी नहीं थी... इसलिए हम यहाँ बैठे हैं... वरना अब तक इन सब ठिकानों पर पुलिस पहुँचकर हमें और इन सबको ले गयी होती...” नाज़िया ने गुस्से से नीलोफर को घूरते हुये धीरे से कहा

“तो क्या करतीं आप? कब तक उन दोनों को छिपाकर रखतीं... कभी न कभी तो उन्हें बाहर निकालना ही था...” नीलोफर ने भी गुस्से से ही कहा

तब तक विक्रम भी गाड़ी खड़ी करके मुन्नी के फ्लॅट पर पहुँच गया जब उसने अंदर से नाज़िया और नीलोफर की तेज आवाजें सुनी तो दरवाजे को धकेलते हुये अंदर घुसा

“नाज़िया आंटी! पहले मेरी बात सुनो...फिर कुछ बोलना” भिड़े हुये दरवाजे को खोलकर अंदर आते हुये विक्रम ने कहा

“बोलो अब क्या बोलना है तुम्हें... तुमने अपने बाप और बुआ को तो बचा लिया ... में ही कुर्बानी के लिए मिली...तुम बाप-बेटे ने भी हम माँ-बेटी की ज़िंदगी जहन्नुम बनाने में कोई कसर नहीं रखी....” गुस्से से भड़कते हुये नाज़िया ने कहा

“आंटी आपके बारे में नेहा ने भी कुछ नहीं कहा था... मेंने उसे समझा दिया था... लेकिन उस लड़के पर जब पुलिस ने अपना कहर ढाया तो वो तोते कि तरह सब बोलता चला गया... अब इसमें मेरी कोई गलती नहीं है... में सिर्फ इतना कहना चाहता हूँ कि आप यहाँ से कहीं गायब हो जाओ... इस बारे में पापा से बात करो... वो कुछ इंतजाम कर ही देंगे... लेकिन न जाने कैसे हालात हों... इसलिए में नीलोफर को अपने कोटा वाले घर में छोड़ देता हूँ.... अब ये न तो उस घर में रह सकती है और न ही उस कॉलेज में पढ़ सकती है... अगर इस शहर में भी रही तो पुलिस इसे पकड़कर आपको दबोचने की कोशिश करेगी .... आपको कोटा ले जाने में ये मुश्किल है कि परिवार के लोगों से में क्या कहूँगा... इसलिए आपके लिए जो करना होगा पापा ही कर सकते हैं” विक्रम ने कहा

“लेकिन में नीलोफर को ऐसे अकेला कैसे भेज सकती हूँ तुम्हारे साथ” नाज़िया बोली

“आंटी आपको मुझ पर भरोसा हो या न हो... नीलोफर पर तो भरोसा है... और नीलोफर को मुझ पर भरोसा है या नहीं ....ये आप उससे पूंछ लो” विक्रम ने कहा तो नीलोफर ने तुरंत कहा

“माँ में विक्रम के साथ कहीं भी जाने या रहने को तैयार हूँ.... आप मेरी चिंता मत करो.... अपना देखो कि इस मामले से कैसे निकलोगी” कहते हुये नीलोफर विक्रम के साथ जाकर खड़ी हो गयी

“लेकिन जब तुम्हारी हमउम्र नीलोफर को साथ रखने पर तुम्हारे परिवार वालों को कोई ऐतराज नहीं तो मुझे साथ रखने में क्यों होगा... में तो तुम्हारी माँ की उम्र की हूँ? कहीं इसमें तुम्हारी कोई चाल तो नहीं... मेरी बेटी को क्या घुट्टी पीला दी जो वो मुझे छोडकर तुम्हारे साथ जाने को मारी जा रही है” नाज़िया ने भड़कते हुये कहा और घूरकर विक्रम व नीलोफर को देखा

“आंटी मेंने आजतक आपको कोई नुकसान पहुंचाया है कभी? मेरे पापा के साथ आप अपनी मजबूरी में जुड़ीं लेकिन उन्होने भी आपको कुछ न कुछ सहारा ही दिया होगा... मुझे नहीं पता हमारे बारे में आपके मन में क्यों और कैसे ये जहर भर गया... में आपको इसलिए नहीं ले जा रहा क्योंकि इस धंधे सिर्फ लड़कियों के ही नहीं, ड्रग्स और पासपोर्ट के भी... हर उस धंधे से जुड़ा व्यक्ति जो आप और पापा चलते हो.... आपको जानता और पहचानता है.... उनमें से कुछ पुलिस के मुखबिर भी हैं.... जब मुझे पता चल गया कि आपके उस लड़के ने क्या बयान दिया है पुलिस के सामने, आपको भी पता चल गया ....तो कल को आपके बारे में भी कोई बता सकता है.... और पुलिस आपके पीछे पागलों की तरह पड़ी हुई है.... आपके पड़ोसी देश की नागरिक होने के कारण......... मामला बड़ा है... इसलिए आपको ले जाने का रिस्क में नहीं लूँगा............रहा नीलोफर का सवाल ...तो... नीलोफर का सिर्फ नाम पता है उन्हें... फोटो मिला है उन्हें.... लेकिन उनका कोई मुखबिर या आपके धंधों से जुड़ा कोई भी व्यक्ति नीलोफर को नहीं जानता... इसलिए में नहीं चाहता कि ऐसे माहौल में नीलोफर आपके साथ रहे और वो पुलिस या आपके धंधे से जुड़े लोगों की नज़र में आए, कुछ भी हो... लेकिन हम सब में, नीलोफर, ममता, शांति, दीपक, कुलदीप और रागिनी दीदी... सब बचपन से एक परिवार कि तरह किसी न किसी तरह आपस में जुड़े रहे हैं.... इसलिए मुझे नीलोफर कि इतनी चिंता है...” विक्रम कि बात सुनने के बाद ना सिर्फ नाज़िया बल्कि नीलोफर, ममता, शांति और मुन्नी देवी भी थोड़ी देर तक उसकी ओर देखती रह गईं और कुछ कह ना सकीं

“ठीक है... लेकिन मुझे वहाँ का पता और अगर कोई फोन नंबर हो तो वो भी, दे दो जिससे में तुमसे संपर्क में रहूँ” आखिर हथियार डालते हुये नाज़िया ने कहा

“आंटी में आपको कोई भी जानकारी नहीं दूँगा... हो सकता है कल को कोई आपके जरिये नीलोफर तक भी पहुँच जाए.... रही नीलोफर से मिलने की बात... तो जब सब कुछ शांत हो जाएगा तो पापा आपको मुझ तक पहुंचा देंगे या आपकी सूचना मुझ तक पहुंचा देंगे तो में नीलोफर को लेकर आ जाऊंगा.... बीच में भी आप पापा से बोलकर मुझसे नीलोफर कि जानकारी प्रपट कर सकती हैं...” विक्रम ने सपाट लहजे में नाज़िया को समझते हुये कहा

इस सारी बातचीत के दौरान जिकों लेकर ये सब बातें हो रही थीं... यानि नीलोफर... वो चुपचाप खड़ी उनकी बातें ही सुनती रही... खुद कुछ भी नहीं बोली। विक्रम ने बात खत्म कि और नीलोफर को अपना जरूरी सामान कपड़े आदि लेकर साथ आने के लिए कहा और नेचे जाकर अपनी गाड़ी में बैठ गया

“विजय... अब विक्रम नीलोफर को अपने साथ ले जा रहा है... कह रहा है कि वो उसे कोटा में अपने घर में सुरक्शित रखेगा” नाज़िया ने विक्रम के जाते ही विजयराज को फोन मिलाया और सारी बात बता दी जो उसके और विक्रम के बीच हुई थी

“कोई बात नहीं ... ये तो और भी अच्छा रहा... तुम किसी बात कि चिंता मत करो कोटा के पास मेरे भाई देवराज की हवेली है वो वहीं ले जा रहा है... वहाँ मेरा भतीजा रविन्द्र रहता है... अगर कोई परेशानी हुई तो वो सबकुछ सम्हाल भी लेगा... किसी भी तरह से....... और तुम्हें जब भी नीलोफर से बात करनी हो में करवा दिया करूंगा” उधर से विजयराज ने कहा तभी अंदर से अपना बैग लेकर नीलोफर भी वहाँ आ गयी

“अब तो हो गयी तसल्ली आपको? विजयराज अंकल ने भी कह दिया... अब तो में जाऊँ?” नीलोफर ने कहा तो नाज़िया ने फोन रखते हुये सहमति में सिर हिलाया और आगे बढ़कर नीलोफर को गले लगा लिया

“आज पहली बार तू मुझसे दूर जा रही है? अपना ख्याल रखना। मेरा तेरे सिवा कोई भी नहीं इस दुनिया में। में ये ज़िंदगी सिर्फ तेरे लिए ही जी रही हूँ” नाज़िया ने नीलोफर को गले लगाकर कहा तो एक बार को तो नीलोफर का मन हुआ कि वो विक्रम से हुई सारी बात नाज़िया को बता दे... लेकिन फिर उसने सोचा कि पहले शादी हो जाए... तभी बताऊँगी तो आखिरकार इन्हें और विजयराज अंकल दोनों को ही ये रिश्ता कबूल करना ही पड़ेगा। फिर नीलोफर वहाँ से निकलकर विक्रम की गाड़ी में बैठी और चल दी एक अंजान सफर पर, अपने बचपन के प्यार के साथ।

नीलोफर को लेकर विक्रम चल दिया, नीलोफर अपने ख्यालों में खो गयी। नीलोफर सिर्फ प्यार या आकर्षण की वजह से विक्रम से शादी नहीं करना चाहती थी.... उसे भलीभाँति पता था कि उसकी माँ का पाकिस्तानी घुसपेथिया होना कभी भी ना सिर्फ उसकी माँ की ज़िंदगी में बल्कि उसकी अपनी ज़िंदगी में भी अस्थिरता ला सकता है। विक्रम से शादी करने से उसे ना सिर्फ यहाँ का नागरिक होने का प्रमाणन मिल जाना था बल्कि उसकी ऐसी सब पहचान भी खत्म हो जानी थीं जो उसके लिए परेशानी खड़ी करतीं।

अचानक नीलोफर ने देखा कि वो एक शहर से होकर निकल रहे हैं तो उसने वहाँ दुकानों पर लगे बोर्ड पर ध्यान दिया तो वहाँ बागपत उत्तर प्रदेश लिखा देखकर वो चौंक गयी। हालांकि वो कभी दिल्ली क्षेत्र से बाहर नहीं गयी थी लेकिन पढ़ लिखकर उसे ये तो मालूम ही चल गया था कि कौन सी जगह कहाँ पर है।

“ये हम इधर कहाँ जा रहे हैं... ये तो कोटा से बिलकुल उल्टी तरफ है” नीलोफर ने विक्रमादित्य से कहा

“अगर हम कोटा जाते तो वहाँ तुम्हारे माँ और मेरे पापा भी पहुँच जाते और शायद हमारे पीछे-पीछे ही पहुँच जाते... तब क्या करते... फिर तो वही दिल्ली वाली हालत हो जाती... इसलिए हम कहीं और जा रहे हैं... वहाँ चलकर शादी करते हैं फिर देखते हैं कहाँ रहना है, क्या करना है”

“ठीक है, जैसा तुम्हें सही लगे” नीलोफर ने कहा और विक्रम के कंधे से सिर टिकाकर गाना गाने लगी

तुझे जीवन की डोर से बांध लिया है........

बांध लिया है...........

तेरे जुल्मो सितम सर आँखों पर

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इसी तरह इधर विक्रम और नीलोफर शहर-शहर बदलते इन लोगों कि नज़रों से छुपते फिरते रहे उधर विजयराज ने जब नाज़िया को बताया कि विक्रम और नीलोफर का कोई आता पता ही नहीं तो नाज़िया भी अपने छुपने के ठिकाने से बाहर निकलकर दिल्ली आ गयी और चुपचाप इन दोनों की तलाश करने लगी। जब किसी भी तरह से उसे कुछ पता नहीं चला तो नाज़िया ने विजय पर दवाब बनाना शुरू किया कि या तो वो नीलोफर को तलाश करके विक्रम से छुड़कर उसके हवाले करे या फिर बदले में अपनी बेटी रागिनी को नाज़िया कि जगह ये धंधा सम्हालने के लिए नाज़िया के हवाले करे वरना नाज़िया ना सिर्फ विजय बल्कि मुन्नी और विमला को भी अपने साथ जेल तक पहुंचा देगी। विजय शुरू में तो भड़क गया लेकिन मुन्नी और विमला ने जब डर कि वजह से नाज़िया के साथ मिलकर उसपर दवाब बनाना शुरू किया तो वो भी ना-नुकुर के बाद बेमन से तैयार हो गया... पर उसने अपनी एक शर्त राखी कि उसकी बेटी रागिनी के साथ कोई भी बाहरी आदमी कुछ नहीं करेगा...जो कुछ भी करना है वो खुद करेगा। इस बात पर नाज़िया सहमत तो हो गयी लेकिन उसने विजय को कोई चालाकी करने से रोकने और दवाब बनाए रखने के लिए मुन्नी की बेटी और विमला की बहू ममता को इस काम पर लगाया कि वो रागिनी को विजयराज के साथ चुदाई करने का इंतजाम करे और उसकी विडियो रिकॉर्डिंग करके नाज़िया को दे। ममता ने इस काम में रागिनी कि सहेली सुधा को शामिल करना चाहा और सुधा को ब्लैकमेल करके तैयार कर लिया... साथ ही उसने सोचा कि विजयराज के साथ-साथ अगर बलराज को भी इस मामले में शामिल कर लिया जाए तो सबूत और भी मजबूत बन जाएगा। आखिरकार ममता ने अपनी योजना पर काम करना शुरू कर दिया इधर सुधा ने भी किसी तरह नेहा का पता लगाकर उसे ममता की इस योजना के बारे में विक्रम को खबर करने को कहा... सुधा का अंदाजा सही था, विक्रम दिल्ली की गतिविधियों की जानकारी के लिए सिर्फ नेहा के ही संपर्क में था। और किसी पर वो भरोसा भी नहीं कर सकता था क्योंकि नाज़िया को जननेवाला उसका हर परिचित... विजय का जानकार था...

विक्रम को ये खबर मिलते ही उसने अपने छुपने के ठिकाने से नीलोफर को लेकर वापसी की, उस समय नीलोफर के पेट में बच्चा होने की वजह से विक्रम उसे अकेला भी नहीं छोडना चाहता था। विक्रम ने दिल्ली आकर सुधा से मुलाक़ात की तो पता चला की विमला रागिनी को लेकर गायब है, विजय मुन्नी और नाज़िया विमला और रागिनी की तलाश कर रहे हैं। हुआ ये कि ऐन वक़्त पर जब विमला रागिनी को लेकर नाज़िया के हवाले करने जा रही थी जहां ममता विजयराज और बलराज को लेकर अनेवाली थी... तभी विमला कि अंतरात्मा ने उसे ऐसा करने से रोक दिया। विमला को याद आया कि कैसे उसे बचपन में उसकी भाभियों यानि रागिनी कि ताई और माँ ने अपनी बेटी कि तरह पाला... उसकी सगी माँ से ज्यादा ख्याल रखा... तो वो रागिनी को उनके हवाले करने की बजाय उसे लेकर अपनी ससुराल आगरा चली गयी।

इधर विक्रम ने सुधा के बताए अनुसार पहले ममता से मुलाक़ात की तो विक्रम के खौफ से ममता ने उसे सारा सच बता दिया। विक्रम, बलराज और नाज़िया सभी विमला और रागिनी की तलाश करने लगे... लेकिन विक्रम कि विजयराज और नाज़िया से मुलाक़ात नहीं हुई। इधर किसी तरह अंदाजा लगाकर अचानक ही विजयराज के दिमाग में विमला की ससुराल का ख्याल आया तो वो नाज़िया को लेकर वहाँ को चल दिया... इधर विक्रम के दिमाग में विमला को लेकर पहला ख्याल ही आगरा जाने का आया। इस तरह से सभी लगभग साथ-साथ ही विमला की ससुराल पहुंचे। वहाँ पहुँचकर जब सभी का आमना सामना हुआ तो विमला ने मौके कि नज़ाकत को देखते हुये रागिनी को विक्रम के हवाले कर दिया और खुद विजयराज व नाज़िया के साथ दिल्ली वापस लौटने को तैयार हो गयी। नाज़िया ने विक्रम के साथ रागिनी को जाने देने के लिए अपनी शर्त रख दी कि दिल्ली पहुँचकर विक्रम नीलोफर को उसके हवाले कर देगा। तो विक्रम ने नाज़िया को  बताया कि उसने और नीलोफर ने शादी कर ली है साथ ही नीलोफर माँ बननेवाली है। नाज़िया ने कहा कि उसे इससे कोई ऐतराज नहीं है... लेकिन विक्रम एक बार नीलोफर से मिलवाये। इसके बाद वो सभी दिल्ली वापस आने लगे तो रास्ते में पलवल के पास मेवात इलाके के जंगल में उन्हें पाकिस्तानी इंटेलिजेंस के लोगों ने घेर लिया। वहाँ आपस में गोलीबारी हुई जिसमें विमला मारी गयी और रागिनी के सिर में चोट लगकर वो बेहोश हो गयी। आखिरकार इंटेलिजेंस वाले इन सबको मेवात के एक ,., गाँव में ले गए और विक्रम को इस शर्त पर छोड़ा कि वो नीलोफर को लेकर यहाँ वापस आए और रागिनी को ले जाए। रागिनी चोट लगने के बाद से ही बेहोश थी। विक्रम ने भी मौके की नज़ाकत और रागिनी की हालत को देखते हुये दिल्ली वापसी कि और नीलोफर को सबकुछ बता दिया तो नीलोफर ने भी उससे कहा कि अभी उसके हालात को देखते हुये उसके साथ कोई कुछ नहीं कर पाएगा जब तक कि उसके बच्चे का जन्म नहीं हो जाता, क्योंकि अगर उसके बच्चे को मरने कि कोशिश कि या उसके साथ जबरन बलात्कार करने कि कोशिश कि गयी तो बच्चे के साथ-साथ वो भी मारी जाएगी, अगर ऐसा हुआ तो नाज़िया उनके हाथ से निकल जाएगी...जो कि पाकिस्तानी इंटेलिजेंस नहीं चाहेगा। अभी विक्रम उसे उन लोगों के हवाले करे और रागिनी को बचाए उसके बाद अगर विक्रम को सच में नीलोफर से प्यार है तो वो लाहौर आकार उसे वापस लेकर आयेगा।

और हुआ भी ऐसे ही... बस कुछ तब्दीलियों के साथ

............. विक्रम और नीलोफर मेवात पहुंचे तो नीलोफर के हालात को देखते हुये इंटेलिजेंस वालों ने नीलोफर को गुपचुप तरीके से पाकिस्तान में घुसाने में असमर्थता जाहिर की और नीलोफर के बिना नाज़िया ने जाने से इंकार कर दिया। तब विक्रम ने कहा कि वो रागिनी को सुरक्षित जगह पर छोडकर यहाँ नीलोफर के साथ बच्चा होने तक रहेगा... बच्चा होने के बाद वो और नीलोफर बच्चे के साथ पाकिस्तान आ जाएंगे और फिर हमेशा वहीं रहेंगे.... नाज़िया के साथ। विक्रम को नए नाम राणा शमशेर अली के नाम से और नीलोफर को उसकी पत्नी के तौर पर पाकिस्तानी पासपोर्ट, भारतीय वीजा और उनके भारत में आने की जानकारी दर्ज करना पाकिस्तानी इंटेलिजेंस का काम होगा.... जिससे कि बच्चा होने के बाद वो लाहौर वापिस जा सकें।

इस तरह नाज़िया को लेकर वो लाहौर वापस लौट गए और विक्रम रागिनी व नीलोफर दोनों को लेकर दिल्ली वापस लौटा। दिल्ली आकर विक्रम ने ममता को रागिनी के अफरन और जान से मारने के मामले में पुलिस को ले जाकर गिरफ्तार करा दिया... विजय और मुन्नी पहले ही गायब हो गए  मेवात से निकलते ही। रागिनी कि तबीयत ठीक होने पर जब उसे होश आया तो पता चला कि उसकी याददास्त चली गयी है तो विक्रम ने उसे ले जाकर कोटा में अपनी हवेली में छोड़ा... जहां पहले ही वो ममता की बेटी अनुराधा को पुलिस से अपनी कस्टडि में लेकर छोड़े हुये था...

इधर दिल्ली में जब नीलोफर को बच्चा पैदा होने के लिए भर्ती कराया गया तब तक लाहौर से कागजात आ चुके थे तो नाम पता राणा शमशेर आली और उसकी पत्नी जो उमेरकोट पाकिस्तान के रहने वाले थे दर्ज कराया गया। यहाँ एक रहस्योद्घाटन हुआ... नीलोफर के जुड़वां बच्चे थे.... इसकी जानकारी मिलते ही विक्रम ने अस्पताल के लोगों से मिलकर इस बात को दबा दिया और बच्चे पैदा होते ही रेकॉर्ड में केवल एक बच्चा दर्ज करवाया तथा दूसरे बच्चे को ले जाकर कोटा रागिनी के पास छोड़ आया।

अब नीलोफर कि वजह से विक्रम को पाकिस्तान तो जाना ही था... क्योंकि उन लोगों से बिगाड़कर वो नीलोफर को यहाँ नहीं रख सकता था वरना यहाँ की पुलिस नीलोफर को पकड़कर पाकिस्तान भेज देती...इन सब हालात को गौर करते हुये विक्रम उर्फ राणा शमशेर अली अपनी पत्नी नीलोफर और बेटे राणा समीर के साथ पाकिस्तान में रहने लगा... बीच-बीच में वो चुपके-चुपके घुसपैठिए के रूप में सरहद पार करके कोटा भी आता जाता रहता था।

फिर एक दिन नाज़िया अपनी ज़िंदगी से आज़ाद हो गयी... नाज़िया की मौत के बाद विक्रम ने वापस हिंदुस्तान लौटने के लिए एक योजना बनाई। विक्रम की नकली लाश श्रीगंगानगर में बरामद करा दी गयी जिससे यहाँ उसकी मौत प्रमाणित हो जाए साथ ही पाकिस्तान में उनका घर आतंकवादी हमले में बम से उड़ा दिया गया जीमें राणा शमशेर अली, नीलोफर जहां और राणा समीर मारे गए। विक्रम नीलोफर और समीर को लेकर गुपचुप तरीके से सरहद पार करके चंडीगढ़ पहुंचा और नए नामों... रणविजय सिंह, नीलम सिंह व समर प्रताप सिंह …….. के रूप में चंडीगढ़ में बस गया।

...............................................

“अब बताइये रागिनी दीदी और सुशीला दीदी आप भी......... इस सब में हमारी क्या गलती थी... या हमने क्या गलत किया... किसी के भी साथ... आज क्या मुझे अपने ही बेटे को अपने सीने से लगाने का हक नहीं है

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#85
अध्याय 37


“अब बताइये रागिनी दीदी और सुशीला दीदी आप भी......... इस सब में हमारी क्या गलती थी... या हमने क्या गलत किया... किसी के भी साथ... आज क्या मुझे अपने ही बेटे को अपने सीने से लगाने का हक नहीं है” अपनी कहानी पूरी करने के बाद नीलिमा ने कहा

नीलिमा की कहानी सुनकर सभी की आँखों में आँसू भर आए थे। नीलिमा की बात सुनकर रागिनी ने प्रबल की पीठ पर हाथ रखकर उसे उठने का इशारा किया और खुद भी खड़ी हो गयी। प्रबल की पीठ पर हाथ रखे उसे लेकर रागिनी नीलिमा के पास पहुंची और दूसरे हाथ से नीलिमा का हाथ पकड़कर प्रबल के पास खींचा तो नीलिमा ने प्रबल को अपनी बाहों में भरकर अपने सीने से लगा लिया और रोने लगी... प्रबल को नीलिमा की बाहों में अपने अलावा भी किसी का अहसास हुआ तो उसने देखा की समर भी नीलिमा की बाहों में समाया उसके साथ खड़ा है...

“भैया! आप कभी ऐसा मत सोचना कि माँ आपको नहीं चाहती, में तो हमेशा उनके साथ रहा.... लेकिन आप हमेशा उनके दिल में रहे....वो इतने सालों से आपको ही याद करती थीं। माँ और पिताजी ने मुझे भी कभी अपने साथ नहीं रखना चाहा लेकिन हम दोनों में से किसी एक को साथ रखना उनकी मजबूरी थी...वरना इन दोनों के ही देश की इंटेलिजेंस एजेन्सीज हमारे पीछे पड़ी रहतीं....” समर ने प्रबल से कहा और उसे अपने गले लगा लिया।

“चलो अब तुम सब एक दूसरे से मिल लिए... लेकिन मेरे भाई से मिले हुये मुझे जमाना हो गया। भाभी! भैया कहाँ पर हैं? कोई खबर मिली?” विक्रम ने आगे बढ़कर नीलिमा के कंधे पर हाथ रखते हुये सुशीला से कहा तो सुशीला के चेहरे पर एक दर्द उभर आया

“नहीं भैया.... वो खुद तो हमारी पल-पल की खबर रखते हैं.... लेकिन अपनी कोई खबर हम तक नहीं पहुँचने देते कभी भी। सही कहते थे वो... इस घर में कभी किसी ने उनकी अहमियत ही नहीं समझी... सारे घर को जब उन्होने छोड़ दिया था तब भी मुझे नहीं छोड़ा.... लेकिन मेंने तब भी उनसे ज्यादा इस घर को अहमियत दी.... और आज अकेली बैठकर सोचती हूँ कि एक उनके बिना ही कुछ नहीं मेरे पास....सबकुछ होते हुये भी.... जब वो थे तो न जाने कितनी मुश्किलों, कितनी मुसीबतों का सामना वो खुद करके भी मुझे कभी अहसास तक ना होने देते थे... तुमसे तो कितनी बार कहा है मेंने ........ तुमसे ज्यादा उनको कौन जानता है... तुम उनका पता लगा सकते हो” कहते हुये सुशीला कि आँखों से आँसू कि बूंदें पलकों के बंधन से निकालकर बाहर आ गईं

“चुप हो जाओ बेटी... वो जरूर कहीं हमारे आसपास ही होगा... उसने ज़िंदगी में बुरे से बुरे वक़्त का सामने खड़े होकर मुकाबला किया है.... हम सब मिलकर उसका पता लगायेंगे” मोहिनी देवी ने आगे बढ़कर सुशीला को अपने सीने से लगा लिया

“भाभी! में खुद उलझनों में फंसा हुआ था... अब सबकुछ सही कर दिया है... अब बस भैया का ही पता करना है.... बलराज चाचा जी भी अब पता नहीं कहाँ चले गए” विक्रम ने शर्मिंदा होकर नज़रें चुराते हुये कहा

“सही कहते थे तुम्हारे भैया... इस घर में सबने हमेशा अपने मन की उनसे कही....कभी किसी ने उनके मन की नहीं सुनी.... कभी किसी ने उनसे ये नहीं पूंछा कि उनके मन में क्या है.... औरों की तो क्या कहूँ... हम दोनों... तुम और में.... जिन्हें उन्होने अपनी ज़िंदगी में सबसे ज्यादा चाहा.... हमने भी कभी उनके मन की जानने कि कोशिश नहीं की” सुशीला ने पछतावे भरे स्वर में कहा तो विक्रम कि भी नज़रें शर्मिंदगी से झुक गईं

फिर किसी ने कुछ नहीं कहा.... बहुत रात हो गयी थी तो सबने फैसला किया कि खाना खाकर सोया जाए और सुबह से बलराज और रवि यानि राणा रविन्द्र प्रताप सिंह की तलाश शुरू की जाए। अनुराधा, प्रबल और अन अनुभूति को पढ़ाई करनी थी.... समर का एड्मिशन कराने की ज़िम्मेदारी ऋतु को सौंप दी गयी.... हालांकि ऋतु भी इन सबके साथ जाना चाहती थी लेकिन फैसला ये हुआ कि बच्चों के साथ शांति और ऋतु यहाँ रहेंगी... क्योंकि किसी भी बड़ी परेशानी को सम्हालना अकेली शांति के बस में नहीं है... वो सीधी-सादी घरेलू महिला है।

सुबह सुशीला ने सभी को जगाया और तैयार होकर हॉल में आने को कहा और स्वयं रसोई की ओर चली गयी और नाश्ता बनाने लगी। थोड़ी देर बाद ही नीलिमा भी फ्रेश होकर रसोई में पहुंची और सुशीला को हटाकर नाश्ता बनाने लगी।

“दीदी आप हटो .... मेरे होते हुये कोई और रसोई में काम करे मुझे पसंद नहीं है... और अपने से बड़ों को तो में बिलकुल पसंद नहीं करती”

“मातलब में तुम्हें पसंद नहीं” सुशीला ने घूरकर नीलिमा को देखते हुये कहा

“मेरा मतलब ये नहीं था दीदी... में कह रही थी की अपने से बड़ों का काम करना मुझे पसंद नहीं” हड्बड़ाकर नीलिमा ने कहा तो सुशीला ठहाका मारकर हंसने लगी। उन्हें हँसते देखकर नीलिमा भी शर्मा गयी और हंसने लगी

इधर उनके हंसने की आवाज सुनके ऋतु, अनुराधा, वैदेही और अनुभूति भी रसोई में आ गईं। ये चारों दूसरी मंजिल पर सोयीं थीं रात, भानु, प्रबल और समर तीसरी मंजिल पर रणविजय (विक्रमादित्य) के साथ थे शांति, सुशीला, मोहिनी और रागिनी चारों औरतें नीचे ही रहीं। पवन बहुत रोकने के बावजूद अपने घर चला गया... उसका घर ज्यादा दूर भी नहीं था वो अपने परिवार के साथ शालीमार गाँव में रहता था।

“क्या बात है मेरी प्यारी भाभियो.... कैसे इतना खिलखिला रही हो....” ऋतु ने नीलिमा और सुशीला को अपनी दोनों बाहों में भरते हुये कहा तो नीलिमा पलटकर उसे घूरने लगी... जिससे ऋतु की पकड़ उन पर ढीली पड़ गयी। साथ ही नीलिमा की भाव भंगिमा देखकर बाकी सब लड़कियों के चेहरे की मुस्कान भी उड़ गयी।

“राधा! कहाँ छुपा है तेरा भाई.... आज इतने मेहमान कैसे हैं घर में.... उसे कोई लड़की तो देखने नहीं आ रही” अभी ये सब नीलिमा से सहमे हुये ही थे कि पीछे से अनुपमा कि आवाज आयी और अनुराधा को हटाते हुये रसोईघर में अंदर घुस गयी.... लेकिन सामने ऋतु के साथ 2 अंजान औरतों को देखकर वो भी चुप हो गयी।

“ओ गॉडमदर क्यों डरा रही है इन बच्चों को.... और ये ले तेरे लाल को देखने लड़की भी आ गयी” सुशीला ने हँसते हुये नीलिमा के कंधे पर हाथ मारा और दोनों हंसने लगीं.... लेकिन ऋतु, अनुराधा, अनुभूति, वैदेही और अनुपमा सभी लड़कियां वैसे ही सहमी सी खड़ी रहीं

“ऋतु बेटा जरा अपने भैया और भतीजों को भी बुला ला.... बता देना प्रबल को देखने कोई लड़की आयी है” नीलिमा ने हँसते हुये ऋतु का हाथ पकड़कर अपने कंधे से हटाकर उसे बाहर कि ओर धकेलते हुये कहा, तो ऋतु भी मुस्कुरा दी और तीसरी मंजिल से उन लोगों को बुलाने चली गयी

“कमीनी जल्दी बता ये कौन हैं?” अनुपमा ने अनुराधा कि ओर पीछे मुड़कर फुसफुसाते हुये कहा तो अनुराधा भी मुस्कुरा दी

“अभी रुक जा तुझे सब पता चल जाएगा...” अनुराधा ने भी फुसफुसाते हुये कहा

“अनु ये क्या कानाफूसी हो रही है दोनों में.... हमें भी तो बताओ कि ये कौन है जो हमारे प्रबल से मिलने आयी है” सुशीला ने दोनों को आपस में फुसफुसाकर बात करते देखा तो कहा

“आंटी मेरा नाम अनु है... आपसे पहली बार मिल रही हूँ लेकिन रागिनी बुआ मुझे बचपन से जानती हैं... मेरा घर पड़ोस में ही है ..... हम एक ही कॉलेज में पढ़ते हैं इसलिए में इन दोनों को बुलाने आयी थी कॉलेज चलने के लिए” अनुपमा ने अनुराधा को घूरते हुये कहा तो अनुराधा के पीछे किसी को देखकर उसकी आँखें खुली रह गईं। वहाँ विक्रम खड़ा था जिसके बारे में उसे पता था कि वो मर चुका है...

“विक्रम अंकल आप? लेकिन रागिनी बुआ तो कह रही थीं...” कहते हुये अनुपमा ने बात अधूरी छोड़ दी

“अनुराधा, अनुभूति तुम दोनों जाकर तैयार हो और भाभी आप दोनों नाश्ता लेकर हॉल में आ जाओ, अनुपमा तुम मेरे साथ आओ, में मिलवाती हूँ सबसे” पीछे से रागिनी ने कहा और सबको हॉल में आने का इशारा किया

थोड़ी देर बाद सब हॉल में बैठे नाश्ता करते हुये रागिनी की बातें सुन रहे थे

“अनुपमा! ये तो तुम्हें पता ही है कि में और विक्रम सगे भाई बहन हैं.... लेकिन एक बात तुम्हें नहीं पता.... मेरे 2 भाई हैं.... जुड़वां ..... बड़े भैया का नाम रणविजय सिंह है जो तुम्हारे सामने बैठे हैं .... ये बचपन से ही हमारे ताऊजी के पास रहे थे.... इसलिए हम सब से इनका कोई संपर्क नहीं रहा और ये इनकी पत्नी नीलिमा सिंह हैं.... इनके भी 2 बेटे हैं प्रबल और समर....और कमाल की बात ये हैं की इनके दोनों बेटे भी हमशक्ल हैं...पीछे देखो” कहते हुये रागिनी ने अनुपमा को पीछे देखने का इशारा किया

अनुपमा ने पीछे मुड़कर देखा तो आश्चर्य से उसकी आँखें फटी की फटी रह गईं... ऋतु के साथ 3 लड़के हॉल में घुस रहे थे जिनमें से 2 की शक्ल प्रबल जैसी थी.... यानि उनमें से कोई एक प्रबल था....

“लेकिन बुआ... पहले तो विक्रम अंकल ने आपको जो लिफाफे दिये थे उनमें दी गयी जानकारी के मुताबिक तो प्रबल किसी पाकिस्तानी राणा शमशेर और नीलोफर जहां का बेटा था... और आपने कहा भी था कि ये राणा शमशेर विक्रम अंकल ही हैं....” अनुपमा ने सवाल किया तो अपनी बात को सही साबित करने के लिए रागिनी ने फिर से दलीलें देनी शुरू कर दीं।

“बेटा वो मुझे ऐसा लगा था क्योंकि विक्रम ने ऐसी जानकारी छोड़ी थी उन लिफाफों में.... लेकिन .... हाँ इनसे तो मेंने मिलवाया ही नहीं... ये हमारे परिवार में सबसे बड़ी हैं.... मेरी बड़ी भाभी.... सुशीला सिंह.... मेरे ताऊजी के बेटे राणा रवीन्द्र प्रताप सिंह की पत्नी, और ये हैं इनके बेटे भानु प्रताप सिंह और ये वैदेही सिंह... इनकी बेटी” अनुपमा ने सुशीला को नमस्ते किया और भानु-वैदेही को विश...

“लेकिन बुआ वो बात तो आपने बताई ही नहीं... जो मेंने पूंछी थी” अनुपमा ने फिर से अपना सवाल दोहराया...

“बेटा वही बता रही हूँ, थोड़ा धैर्य रखो, भानु, प्रबल, समर और ऋतु चलो बेटा तुम भी नाश्ता करो फिर तुम्हें भी कॉलेज जाना है” रागिनी ने दिमाग में अनुपमा के सवाल का जवाब सोचते हुये उन तीनों को भी नाश्ते के लिए कहा

“तुम्हारे इस सवाल का जवाब में देती हूँ, रागिनी दीदी को भी मेंने ही बताया था... वरना ये भी प्रबल को विक्रम का बेटा समझती थीं और समर को देखकर चौंक गईं थीं तुम्हारी ही तरह” सुशीला ने रागिनी को आँख से इशारा करते हुये बात को अपने हाथ में लिया

“असल में रणविजय हमारे साथ रहते थे और विक्रम देवराज चाचाजी की हवेली में कोटा.... जब रणविजय के जुड़वां बच्चे हुये तो विक्रम भी हमारे पास चंडीगढ़ आए और जुड़वां बच्चे देखकर बोले कि एक बच्चे को में पालूँगा हालांकि हम सभी ने माना किया लेकिन जब उन्होने कहा कि उनको शादी नहीं करनी और अपने परिवार को आगे बढ़ाने के लिए वो प्रबल को पालेंगे... और साथ ही उन्होने ये भी बताया कि रागिनी दीदी भी उन्हीं के साथ रहती हैं तो प्रबल को दीदी ही पालेंगी... ये देखते हुये हमने प्रबल को विक्रम के हवाले कर दिया...../ अब रही वो पाकिस्तानी माँ-बाप कि कहानी.... तो विक्रम शुरू से ही खुराफाती था... उसे जिस लड़की से प्यार हुआ और भागकर शादी भी कर ली थी.... वो पाकिस्तानी निकली.... शायद उसको यहाँ लीगल तौर पर लाने के लिए विक्रम ने कोई चाल चली होगी प्रबल के नकली जन्म प्रमाण-पत्र और नकली माँ-बाप की” सुशीला ने अपनी बात खत्म की और अनुपमा के चेहरे के भाव पढ़ने लगीं... अनुपमा के चेहरे पर अब कोई उलझन नज़र नहीं आ रही थी

“चलो सारी कहानी इसी पर आज़माकर देख ली.... ये पूरी तरह से संतुष्ट हो गयी... अब यही कहानी सबको सुनानी है आगे चलकर.... जिससे विक्रम की कहानी खत्म हो जाए और रणविजय के परिवार को लोग जान जाएँ” सुशीला ने मन में सोचकर खुद ही अपनी पीठ थपथपा ली...... हे हे हे ... मन में ही थपथपाई

ये सारी बातें खत्म होने तक नाश्ता भी हो गया। नाश्ते के बाद अनुपमा और अनुराधा के साथ प्रबल, समर, वैदेही व भानु कॉलेज निकल गए और अनुभूति अपने स्कूल। कॉलेज में एड्मिशन के लिए ऋतु को साथ ले जाने की बजाय भानु ने कहा की वो कोई जूनियर क्लास में एड्मिशन लेने नहीं जा रहा जहां गुयार्डियन्स की जरूरत होती है.... वो अपना, समर और वैदेही का एड्मिशन खुद करा देगा। इन लोगों के जाने के बाद सुशीला ने सबको वहीं बैठने को कहा कि उसे कुछ जरूरी बात करनी है और आगे के कार्यक्रम में कुछ फेरबदल भी।

“रणविजय! पहली बात तो ये है कि में अब हमेशा के लिए गाँव में रहने जा रही हूँ.... और वहीं रहकर तुम्हारे भैया का इंतज़ार करूंगी.... जब तक वो लौटकर नहीं आते। में उन्हें उसी घर में वैसे ही मिलूँगी.... जैसे वो छोडकर गए थे। उनमें लाख कमियाँ हो, लाख बुराइयाँ हो.... लेकिन उन्होने मेरे ही साथ नहीं.... कभी किसी के साथ कुछ बुरा नहीं किया.... ये तो हम सब स्वार्थी थे जिनहोने हमेशा उनसे अपनी जरूरतें पूरी करनी चाहिए.... और मतलब निकलते ही उनसे दूर हट गए, तुम सब सोचते होगे कि वो अपनी मर्जी से मुझे छोडकर कहीं और भाग गए.... लेकिन ऐसा नहीं है, वो आजतक भी हम सबको जो चाहिए था उनसे ....वो दे रहे हैं... पैसा, नाम, रुतबा और सबसे बड़ी बात.... हर मुश्किल, परेशानी, मुसीबत से बचा देते हैं.... लेकिन हमने क्या दिया उन्हें..... जब और जैसी भी जरूरत हुई उन्हें.... हम ना तो तन से, ना मन से और ना धन से उनके साथ खड़े हुये.... जब वो गए थे... तब मेंने खुद अपने मुंह से उनसे कहा था कि में उनकी जरूरतें पूरी नहीं कर सकती, वो चाहें तो कहीं और से कर लें.... लेकिन मेरे घर में नहीं। पर उनका कहना था कि उन्होने मुझसे शादी के बाद एक प्रण किया था कि वो कभी किसी से सिर्फ जिस्म के लिए, हवस के लिए, वासना के लिए संबंध नहीं बनाएँगे.... बल्कि जिससे भी संबंध बनाएँगे.... हमेशा के लिए, जीवन भर के लिए संबंध बनाएँगे। हालांकि उनका ये भी कहना था कि कोई भी आ जाए, मेरा स्थान उन सबसे अलग और ऊपर रहेगा, मुझे या मेरे बच्चों को सिर्फ अधिकार ही नहीं सम्मान और प्यार भी वही मिलेगा जो हमेशा से रहा है.... लेकिन में नहीं मानी... तो उन्होने एक कठोर निर्णय लिया ............. कि ...... जैसे सारे परिवार का उन्होने त्याग कर दिया.... यहाँ तक कि अपनी माँ का भी.... उसी तरह वो मुझे भी त्याग कर अपनी नयी ज़िंदगी फिर से शुरू करेंगे.... हाँ! अपनी जिम्मेदारियों को वो हर हाल में पूरा करते रहेंगे.... मेरे लिए ही नहीं.... सबके लिए........और उन्होने ऐसा किया भी........................... हम सबको उनसे जरूरतें थीं......... बस उनकी ही जरूरत किसी को नहीं थी.........इसी लिए........ अब बस वो ही नहीं हैं... हमारी ज़िंदगियों में........... बाकी सबकुछ है...........उन्हीं का दिया हुआ”

सुशीला कि बातों को मोहिनी देवी, शांति, रणविजय (विक्रमादित्य), ऋतु, नीलिमा और रागिनी चुपचाप बैठे सुनते रहे....

“लेकिन भाभी अब करना क्या है? ये सब बातें तो रवि के मिलने के बाद भी हो सकती हैं” रागिनी ने कहा

“ये सब कहने कि वजह ये है............ में नहीं चाहती मेरी वजह से उनकी ज़िंदगी, उनका घर-परिवार... कुछ भी मुश्किल में पड़े.... इसलिए में यहीं रहूँगी बच्चों के साथ........... आप सब में से जो भी जाना चाहे.... जा सकता है.... लेकिन में उनसे मिलने नहीं जाऊँगी...बस एक प्रार्थना उन तक मेरी पहुंचा देना..... एक बार आकार मुझसे मिल लें... अपनी मौत से पहले उन्हें एक बार देख लेना चाहती हूँ...... और कुछ भी नहीं चाहिए उनसे .......” कहते हुये सुशीला रो पड़ी

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#86
अध्याय 38


सुशीला को रोते देखकर मोहिनी ने उसे अपने गले लगा लिया। शांति, रागिनी, नीलिमा भी सुशीला के पास आ गए...उसे चुप कराने लगे...लेकिन सब को अपने पास महसूस करके सुशीला और भी ज्यादा रोने लगी

“चुप होजा बेटी.... रवि हर हाल में आयेगा.... उसे आना ही होगा....” मोहिनी ने समझाते हुये कहा

“आपको क्या लगता है चाचीजी में सारे घर-परिवार और बच्चों के बीच हँसती मुसकुराती रहती हूँ तो में खुश हूँ.... या मुझे उनकी याद नहीं आती...वो तो घर में रहकर भी अकेले ही रहते थे....तब में भी उनसे ज्यादा घर को अपनाए हुयी थी... क्योंकि मुझे लगता था की वो तो मेरे हैं ही.......... लेकिन आज जब वो मेरे साथ नहीं हैं तो में उन से भी ज्यादा अकेली हो गयी हूँ..... जबकि वही सारा परिवार आज मेरे साथ है” कहती हुई सुशीला और भी ज़ोर से रोने लगी

“अच्छा अब चुप हो जाओ और हमें खुशी-खुशी भेजो.... में तुमसे ये नहीं कहूँगी कि तुम हमारे साथ चलो.... लेकिन यहाँ रहकर हमारी कामयाबी के लिए प्रार्थना तो कर सकती हो, हम हर हाल में रवि का पता लगाकर ही आएंगे” कहते हुये मोहिनी ने सबकी ओर देखा तो सब सुशीला के पास आए और उसकी पीठ पर हाथ रखकर सांत्वना देने लगे।

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“दादा जय सिया राम” उधर से आवाज आयी तो विनायक ने आवाज पहचानने की कोशिश की

“अरे चाचा आप..... जय सिया राम चाचा! में विनायक बोल रहा हूँ...” विनायक ने पहचानते ही कहा

“सब कैसे हैं बेटा.... और दादा कहाँ हैं?” उधर से कहा गया

“चाचा आज तो कई साल बाद आपने घर फोन किया है.... पिताजी बाहर ही हैं... में अभी उनसे बात कराता हूँ” विनायक ने कहा

“ठीक है... दादा को बुला ला.... तब तक भाभी से बात करा मेरी” उधर से फिर कहा गया तो विनायक ने अपनी माँ को ले जाकर फोन दिया

“किसका फोन है...” मंजरी ने पूंछा तो विनायक ने हँसकर फोन उसके कान पर लगा दिया

“आप ही पता कर लो” और हँसते हुये बाहर चला गया

“कौन” मंजरी ने फोन अपने कण पर लगते हुये कहा

“भाभी नमस्ते! कैसी हैं आप?” उधर से आवाज आयी तो मंजरी भाभी शब्द सुनते ही चोंक गयी

“नमस्ते में ठीक हूँ.... आप कौन” मंजरी ने पूंछा

“आप अब भी नहीं समझीं.... सोचो कौन हो सकता है” उधर से बात करनेवाले ने मंजरी की बेचैनी का मजा लेते हुये कहा

“मुझे कभी कोई भाभी नहीं कहता.... सिवाय...”मंजरी ने बोला तो दूसरी ओर से हंसने की आवाज आयी

“सिवाय मेरे.......... आपकी ज़िंदगी में अकेला में ही हूँ.....या कोई और भी है” उधर से बोलने वाले ने हँसते हुये कहा

“आज अपनी भाभी की कैसे याद आ गयी.... हमेशा तो अपनी भतीजे से ही संदेश भिजवाते हो” मंजरी ने गुस्सा होते हुये कहा

“भतीजा... अरे वो तो मेरा बेटा है....बड़ा बेटा और रहा मेरे बात न करने का सवाल... तो आप ही अपने इस बेटे को भूल गईं...आपने ही कहाँ कभी बात की” उसने उदास लहजे में कहा

“मेंने तो कितनी बार विनायक से तुम्हारा नंबर मांगा लेकिन वो बहाने बना देता है की तुम्हारा कोई नंबर उसके पास नहीं... हमेशा तुम ही उसे कॉल करते हो” मंजरी ने जवाब दिया

“मुझसे बात करने के लिए मेरा नंबर होना जरूरी है क्या? अगर आप सुशीला से भी मिल लेतीं, उससे बात कर लेतीं तो भी मुझे यही लगता की आपने मुझसे बात की है.... भाभी! पूरे परिवार में किसी ने ये जानने की कभी कोशिश ही नहीं की कि सुशीला और बच्चे कैसे हैं.... या उन्हें भी किसी कि जरूरत हो सकती है... चलिये छोड़िए.... आप कैसी हैं” उसने बात बदलते हुये कहा तो अपने मन में ग्लानि महसूस करती मंजरी के चेहरे पर फिर से मुस्कान आ गयी

“बूढ़ी हो गयी हूँ....और कैसी होऊंगी..... ये तो उम्र ही ऐसी है कि बिना पूंछे ही बीमारियाँ आती-जाती रहती हैं” मंजरी ने कहा

“कहाँ से बूढ़ी हो गईं आप.... दादा के काम की भी नहीं रहीं क्या.... तो दादा का भी कुछ इंतजाम कराना पड़ेगा....वो तो अभी बूढ़े नहीं हुये” उधर से कहा गया तो मंजरी हंस दी

“मुझे सुशीला मत समझ लेना ..... उसने तुम्हें आज़ादी दे दी... लेकिन में तुम्हारे दादा के पीछे-पीछे वहीं पहुँच जाऊँगी” मंजरी ने बोला

“में कहाँ जा रहा हूँ.... जो तुम्हें पीछा करना पड़े...” अचानक पीछे से आयी अपने पति की आवाज सुनकर मंजरी चोंक गयी

“क्या पता कहीं जाने की सोचने लगा...अपने भाई की तरह.... लो बात कर लो” कहते हुये मंजरी ने फोन अपने पति की ओर बढ़ा दिया

“दादा नमस्ते! कहाँ घूमते रहते हो.... दूसरे घर गए थे क्या?” उधर से बोलने वाले ने हँसते हुये कहा

“नमस्ते! एक ही चुड़ैल ने खून पी रखा है.... दूसरी आफत क्यों मोल लूँगा... ये तो तुम ही कर सकते हो.... कहाँ पर हो” उन्होने कहा

“दादा सब ठीक हूँ.... वक़्त आने पर सिर्फ बताऊंगा ही नहीं...बुलाऊंगा भी... अभी एक जरूरी बात बतानी थी आप लोगों को....” उधर से कहा गया

“हाँ बताओ... क्या बात है” उन्होने कहा

“बलराज चाचाजी दिल्ली से चुपचाप चले आए हैं घर पर बिना बताए, आप एक बार उनकी ननिहाल में पता करवाओ... मेरे ख्याल से वो वहीं पर हैं... उनका किसी भी तरह पता लगा के उन्हें अपने पास ले आओ... दिल्ली से कोई आकर उन्हें ले जाएगा” उधर से कहा गया

“कोई बात नहीं में देख लूँगा, और अब उन्हें दिल्ली जाने की भी जरूरत नहीं। वो हमारे साथ ही रह लेंगे, आखिरकार मेरे भी चाचा हैं” वीरेंद्र ने कहा

“ठीक है दादा, आप देख लेना जो आपको सही लगे” उधर से कहा गया

“और तुम कब आओगे? कितने साल हो गए तुम्हें देखे” वीरेंद्र ने कहा

“दादा देखो किस्मत कब मिलाये.... वैसे मुझे लगता है वो समय अब आ गया है... जल्दी ही हम सब फिर से मिलेंगे, अब में रखता हूँ” कहते हुये उधर से फोन रख दिया गया

वीरेंद्र ने फोन काटा और मंजरी की ओर देखा, वीरेंद्र की आँखों में हल्की सी नमी देख मंजरी उनके पास आयी, उनकी भी आँखों में नमी थी।

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“में बलराज बोल रहा हूँ” मोहिनी, ऋतु, रागिनी और नीलिमा अभी घर से बाहर निकलकर गाड़ी में बैठते ही जा रहे थे कि मोहिनी का फोन बजने लगा मोहिनी ने देखा किसी अंजान नंबर से कॉल थी तो उन्होने बाहर खड़े हुये ही फोन उठाया... फोन उठाते ही उधर से बलराज की आवाज सुनाई दी

“बलराज! कहाँ हो तुम? ऐसे बिना बताए कहाँ चले गए” मोहिनी ने बलराज की आवाज सुनते ही गुस्से से कहा तो बलराज का नाम सुनते ही ऋतु, रागिनी, नीलिमा और ड्राइविंग सीट पर से रणविजय भी उतरकर उनके पास आ गए... इधर घर के दरवाजे पर खड़ी शांति और सुशीला भी पास में आकर खड़ी हो गईं

“बिना बताए! अरे .... मेंने तुम्हें बताया तो था कि में 4-5 दिन के लिए जा रहा हूँ.... तुम लोग पता नहीं कितने बेचैन हो गए। और रवि को क्यों बताया कि में घर छोडकर चला गया हूँ” उधर से बलराज ने कहा

“रवि को.... रवि का तो हमें पता भी नहीं... तुमसे किसने कहा कि रवि को हमने बताया? और सबसे पहले तो ये बताओ कि तुम हो कहाँ” मोहिनी ने फिर से पूंछा... इधर रवि का नाम सुनते ही सभी कि उत्सुकता बढ़ गयी

“में वीरेंद्र के पास हूँ... रवि ने वीरेंद्र को कॉल करके बताया था... सुशीला से तो नहीं कहा था तुमने... कभी सुशीला ने ही रवि को बोलकर यहाँ फोन कराया हो” बलराज ने कहा तो सुशीला ने मोहिनी को इशारा कर फोन अपने हाथ में ले लिया...

“चाचाजी नमस्ते! में सुशीला बोल रही हूँ”

“हाँ बेटी कैसी हो तुम....”

“में तो ठीक हूँ .... आप कैसे हैं और कहाँ हैं...” सुशीला ने पूंछा

“में वीरेंद्र के पास हूँ.... गढ़ी आया था में... वीरेंद्र को रवि ने फोन करके मेरे बारे में बताया और अपने साथ लाने के लिए कहा। रवि से तुमने कहा था क्या? और तुम क्या दिल्ली आयी हुई हो?” बलराज ने पूंछा

“चाचाजी में चंडीगढ़ गयी थी विक्रम के पास वहाँ से विक्रम और हम सभी यहाँ आ गए हैं रागिनी दीदी के पास... चाचीजी, विक्रम और ये सब आप की तलाश में निकाल ही रहे थे तब तक आपका फोन आ गया... वैसे आपका फोन तो बंद आ रहा है... ये किसका नंबर है” सुशीला ने कहा

“ये वीरेंद्र का ही नंबर है.... मेंने अपना फोन तो ऑन ही नहीं किया... कुछ दिन अकेला रहना चाहता था.... चलो गढ़ी ना सही यहीं सही... और इन लोगों से भी कह देना कि में अब कुछ दिन यहीं रहूँगा” बलराज ने कहा

“ठीक है चाचाजी कोई बात नहीं... वैसे में भी गाँव ही आ रही हूँ... आपका जब मन हो गाँव आ जाना... में भी अकेली ही रहूँगी... आप आ जाएंगे तो अच्छा लगेगा..... मंजरी दीदी से बात करा दो मेरी” सुशीला ने कहा तो बलराज ने फोन मंजरी को दे दिया और उन दोनों कि आपस में बातें होने लगीं

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सुशीला कि बात खत्म होने के बाद ऋतु ने कहा कि वो बलराज को लेने वहाँ जाएगी लेकिन मोहिनी और सुशीला ने मना कर दिया कि घूमने-मिलने जाना चाहें तो चल सकते हैं लेकिन उनको लाने के लिए दवाब नहीं दिया जाएगा। रणविजय ने भी उनकी बात का समर्थन किया तो ऋतु चुप हो गयी लेकिन रागिनी कुछ सोच में डूबी हुई चुपचाप ही खड़ी रही...जब तक इन सबकी बातें चलती रहीं। इस बात पर किसी और का ध्यान नहीं गया लेकिन सुशीला की नज़र से छुप नहीं सकी

फिर सुशीला ने कहा कि बच्चों को भी आ जाने दो फिर देखते हैं 2-3 दिन के लिए जाने का कार्यक्रम बनाएँगे... जिससे बलराज से भी मिल लेंगे और वीरेंद्र के परिवार से भी सबका परिचय हो जाएगा। फिर विक्रम यानि रणविजय ने बताया कि वीरेंद्र के यहाँ पहले वो भी घूमकर आया था रविन्द्र भैया के साथ लेकिन अब तो बहुत साल हो गए हैं.... तो सुशीला ने कहा की वो तो 5-6 साल पहले ही गईं थी ....वीरेंद्र भैया की बड़ी बेटी की शादी में।

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बच्चे स्कूल कॉलेज से वापस लौटकर घर आए तो प्रबल कुछ उदास सा था। थोड़ी देर बाद सबने हाथ-मुंह धोकर खाना खाया और अपने अपने कमरों की ओर चल दिये तो सुशीला ने सबको हॉल में बैठने को कहा, कुछ जरूरी बात करने के लिए। जब सभी हॉल में आकर बैठ गए तो सुशीला जाकर रागिनी के पास बैठ गयी और रागिनी का हाथ अपने हाथों में लेकर सबकी ओर नज़र घुमाते हुये बोलना शुरू किया

“पहली बात तो ये है कि आज रात या कल सुबह हम सभी गाँव चलेंगे...और अपने घर परिवार के लोगों से मिलकर आएंगे.... अब हमें इस घर को दोबारा बनाना है तो हमें पता होना चाहिए कि हमारे घर-पअरिवार में कौन-कौन हैं.... वरना फिर से पहले जैसे हालात बन जाएंगे कि सगे भाई बहन को भी एक दूसरे के बारे में जानकारी ही नहीं”

“हाँ भाभी.... में भी यही चाहती हूँ.... कि ये बच्चे हमारी तरह अकेले ना भटकते फिरें.... आज रात को ही गाँव चलते हैं” ऋतु ने भी चहकते हुये कहा

“अब दूसरी बात .....आप सभी ने पता नहीं इस बात पर ध्यान दिया या नहीं लेकिन मुझे ना जाने क्यूँ ऐसा लग रहा है की जब से हम सब यहाँ आए हैं रागिनी दीदी कुछ उदास और उलझी-उलझी सी हैं, अब ये अभी से हैं या पहले से ही...ये नहीं कह सकती...इनके अलावा यहाँ कोई और भी इन्हीं की तरह उदास और उलझा हुआ है... लेकिन उसके बारे में दीदी का मामला सुलझने के बाद बताऊँगी”

“हाँ मुझे भी ऐसा ही लगता है... और शायद इसकी वजह है कि रागिनी दीदी को पिछला कुछ भी याद नहीं हमारे बारे में इसीलिए ये उलझी हुई रहती हैं” रणविजय ने कहा

“याद तो इन्हें पिछले 20 साल से नहीं था.... ये बात तुमसे अच्छा और कौन जानता है...आखिर पिछले 20 साल से तुम्हारे ही साथ तो रही थीं... ये वजह कुछ और है” कहते हुये सुशीला ने रागिनी की ओर देखा और फिर रणविजय की ओर गहरी सी नज़र डाली तो रणविजय ने कुछ असहज सा महसूस किया और रागिनी कि ओर देखा तो वो भ रणविजय कि ओर ही देख रही थी...कुछ देर एक दूसरे कि आँखों में देखने के बाद दोनों ने अपनी नज़रें सुशीला की ओर घुमाईं तो उसे अपनी ओर घूरते पाया

“दीदी अब तक यहाँ जो भी हुआ या हो रहा है... अपने ही सम्हाला और आपके अनुसार चल रहा था.... लेकिन... अब कुछ फैसले मेंने आपसे बिना सलाह किए या आपको बताए बिना भी ले लिए... अब तक घर मेंने अपने बड़े होने के अधिकार से सबकुछ सम्हाला, फैसले लिए... उसी धुन में यहाँ भी.... लेकिन अभी मुझे अहसास हुआ कि यहाँ आज जो हम सब इकट्ठे हुये हैं.... सब आपकी वजह से ही हैं... और आपके फैसलों से ही आज पूरा परिवार इकट्ठा हो पाया है...जुड़ पाया है॥ में आपसे अपनी भूल के लिए क्षमा चाहती हूँ.... अबसे हम सभी आपके अनुसार ही चलेंगे" कहते हुये सुशीला ने अपने हाथ में थामे हुये रागिनी के हाथों को अपने माथे से लगा लिया

"नहीं... तुम सब का अंदाजा गलत है...... मुझे अपना हुक्म चलाने या लोगों के बारे में जानने का कभी ना तो शौक रहा और ना ही आदत मेरी इस उलझन की वजह कुछ और है" रागिनी न कहा तो सभी उनके मुंह कि ओर देखने लगे

"फिर क्या बात है दीदी..." अबकी बार नीलिमा भी उठकर रागिनी के बराबर में दूसरी ओर बैठ गयी और अपने हाथ सुशीला व रागिनी के हाथों पर ही रख दिये

"आज तुम सब को परिवार मिल गया .... प्रबल को भी माँ-बाप मिल गए, अनुराधा की ज़िम्मेदारी भी तुम सब मिलकर पूरी कर लोगे... मुझे पूरा भरोसा है...अब मेरे लिए क्या बचा करने को.... मुझे समझ नहीं आ रहा कि अब मुझे क्या करना है और क्यूँ?"
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#87
अध्याय 39


“माँ! आपको याद होगा... हमारे रिश्ते की सच्चाई खुलने के बाद हमारे बीच में एक वादा हुआ था........ कि.... चाहे जो हो.... लेकिन हम आपके ही बच्चे रहेंगे और आप हमारी माँ रहेंगी....... किसी के मिलने या बिछड़ने से हमारे आपसी रिश्ते पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा” अनुराधा ने अपनी जगह से उठते हुये कहा और रागिनी के पास आकर घुटनों के बल जमीन पर बैठकर अपना सिर रागिनी के घुटनों पर रख दिया, प्रबल भी अपनी जगह से उठा और अनुराधा के बराबर में आकर बैठ गया

“अब तुम दोनों ये बचपना मत करो, दीदी कि भी अपनी ज़िंदगी है... उन्हें भी आज न सही उम्र ढलने पर कभी अपने पति और परिवार कि कमी महसूस होगी। उन्हें अपनी ज़िंदगी जीने दो...” विक्रम ने थोड़े गुस्से से अनुराधा और प्रबल कि ओर देखते हुये कहा

“दीदी! हम सब यही चाहते हैं कि अब तक जो भी हुआ और जिसकी भी वजह से हुआ.... लेकिन अब जब सब सही हो गया है तो आप को भी अपनी ज़िंदगी जीने, अपना परिवार बसने का अधिकार है... हम सभी चाहते हैं कि आप स्वयं अपना जीवन साथी चुनें... अपनी पसंद से.... आप हम सब से बड़ी हैं और बड़ी ही रहेंगी... पूरा परिवार आपके साथ है...लेकिन अब आप भी अपना जीवन अपनी पसंद से जिएँ” नीलिमा ने भी रागिनी से कहा

“अगर तुम लोगों ने अपनी बात कह ली हो तो में भी अपनी बात कहूँ?” रागिनी ने गंभीर स्वर में कहा

“जी दीदी.... आप बताइये... यहाँ वही होगा जो आप कहेंगी” सुशीला ने कहा

“सबसे पहली बात.... अनुराधा और प्रबल अगर मेरे साथ रहना चाहते हैं, तो ये मेरे साथ ही रहेंगे। कोई भी इन पर ज़ोर जबर्दस्ती नहीं करेगा....कोई भी ....समझे। और दूसरी बात...अब सभी एक दूसरे को जान गए हैं...। लेकिन मुझे आज भी हमारे परिवार में कोई बदलाव नज़र नहीं आ रहा...यहाँ सब अपनी अपनी चलाने की कोशिश कर रहे हैं....क्या कोई इस परिवार का मुखिया है... जो सभी के लिए फैसले ले और सब उसके फैसले मानें” रागिनी ने कठोर शब्दों में कहा तो वहाँ एकदम सन्नाटा छा गया

“दीदी! हम सब भाई बहनों में आप ही सबसे बड़ी हैं.... तो आप ही इस परिवार की मुखिया हैं” सुशीला ने खामोशी तोड़ते हुये कहा तो रणविजय और नीलिमा ने भी सहमति में सिर हिलाया

“नहीं! में तुम्हारे परिवार की मुखिया नहीं हूँ... मुझे अपनी ज़िंदगी... तुम सब और अपने से बड़ों की फैलाई गंदगी साफ करने में नहीं बर्बाद करनी। पहले ही मेरी आधी ज़िंदगी एक तो उस बाप ने खराब कर दी.... जिसे हवस के अलावा कुछ भी नहीं पता था, अपनी बेटी को भी हवस की भेंट चढ़ा देता...दूसरा भाई... वो भी मेरी याददास्त जाने का फाइदा उठाकर कभी अपने चाचा की बीवी बना देता, कभी अपनी माँ और कभी इश्क़ फरमाता....अब मुझे अपनी ज़िंदगी अपने तरीके से जीनी है.... और मेरे पास अपने दो बच्चे हैं.... जिन्हें कोई भी मुझसे अलग नहीं कर सकता” 

“दीदी! पापा के बारे में तो में कुछ नहीं कहता... लेकिन मेंने क्या किया... आपको अगर विमला बुआ के घर उस नर्क में रहना पड़ा तो पापा की वजह से, ममता और नाज़िया ने आपके खिलाफ साजिश की तो पापा की वजह से, मेंने आपकी सुरक्षा की वजह से आपकी पहचान बदलकर आपको कोटा रखा... वो मेरे दुश्मन नहीं थे पापा, नाज़िया आंटी के दुश्मन थे.... और ये बच्चे मुझे पालने थे इसलिए आपके पास छोड़े थे.... मेंने कभी आपसे ये नहीं कहा की में आपसे प्यार करता हूँ, ना ही मेंने कुछ गलत किया आपके साथ..... फिर भी आप मुझे दोष दे रही हैं” रणविजय ने भी गुस्से में जवाब दिया

“में कहना तो नहीं चाहती थी लेकिन अब कहती हूँ.... जिससे तुम्हें अपनी गलतियाँ समझ आ सकें.... कम से कम जो मेरे साथ हुआ... वो तुम्हारे बच्चों के साथ ना हो............. पहली बात... जब और जो भी पापा ने किया... उस समय तुम भी बच्चे नहीं रह गए थे... बल्कि एक आम आदमी से ज्यादा समझदार और दबंग थे.... एक बहुत बड़े क्रिमिनल जिसके नाम से दिल्ली के आसपास 150-200 किलोमीटर तक लोग काँपते थे..... लेकिन तुमने क्या किया?..... कॉलेज में मेरे साथ पढ़ते थे... लेकिन बहन से ज्यादा ऐयाशी में लगे रहते.... बाप के कारनामों से वाकिफ थे.... फिर भी कभी ये नहीं सोचा कि बहन को अपने पास रखूँ .....बजाय उस बाप के.... और सोच भी कैसे सकते थे.... माहौल तो तुम्हारा भी उतना ही गंदा था..... मुझे इतने साल से कोटा में रखे हुये थे.... कभी ये सोचा कि बहन की शादी ही कर दूँ... मेरी याददास्त चली गयी थी, पागल नहीं थी में..... जब मेंने तुमसे प्यार का इजहार किया.... में तो नहीं जानती थी कि तुम मेरे भाई हो.... लेकिन तुम तो बता सकते थे कि में तुम्हारी बहन हूँ.... तो शायद में अपनी उस उम्र को नाकाम इश्क़ में तड़पते हुये गुजरने की बजाय.... एक नए विकल्प का सोचती.... मेरी ज़िंदगी बर्बाद करने में जितना पापा का हाथ है...उतना ही तुम्हारा भी है............... आज मुझे पछतावा होता है कि जब माँ कि मृत्यु हुई थी तब ताऊजी, ताईजी के पास रहने के उनके प्रस्ताव को मेंने क्यों नहीं माना... उस समय तो मेरे आँखों पर मोह कि पट्टी बंधी थी.... अपने पापा, अपना भाई...इनके बारे में सोचती थी.... उस समय कोटा ले जाने की बजाय अगर तुमने मुझे रवीन्द्र के पास भी छोड़ दिया होता तो वो मेरी सुरक्षा भी कर लेता और शायद आज में अपने घर बसाये हुये होती” रागिनी ने भी अपने दिल का गुब्बार सामने निकाल कर रक्ख दिया तो रणविजय चुपचाप सिर झुकाकर बैठ गया... सुशीला और नीलिमा भी एक दूसरे कि ओर देखने लगीं.... मोहिनी, शांति, ऋतु और सभी बच्चे चुपचाप बैठे थे

अचानक वैदेही अपनी जगह से उठकर खड़ी हुई और उसने भानु को भी साथ आने का इशारा किया। रागिनी के पास पहुँचकर वैदेही ने अनुराधा और प्रबल को हाथ पकड़कर उठाया और रागिनी को भी साथ आने को कहा। रागिनी, अनुराधा, प्रबल और भानु, वैदेही के पीछे-पीछे अंदर की ओर चल दिये। सुशीला ने उठकर उन्हें रोक्न चाहा तो भानु ने हाथ के इशारे से उन्हें वहीं बैठने को कहा।

अंदर रागिनी के कमरे में सभी के अंदर जाने के बाद भानु ने कमरे का दरवाजा अंदर से बंद कर लिया। बाहर बैठे सभी बेचैनी से एक दूसरे को देखने लगे

“सुशीला! ये बच्चे रागिनी को अंदर क्यों ले गए... क्या बात है?” आखिरकार मोहिनी देवी ने सुशीला से कहा

“चाची जी! वैदेही उन्हें अंदर क्यों ले गयी.... ये तो मुझे अंदाजा है.... लेकिन अब बात क्या होगी.... वो तो में क्या... कोई भी.... नहीं जान सकता....... पता है क्यों?” सुशीला ने बड़े शांत भाव से कहते हुये रणविजय की ओर देखा तो वो चौंक गया

“मतलब....भाभी....इसका मतलब....भैया से बात होगी दीदी की...इन बच्चों के पास नंबर है भैया का.........और आप कहती हो, आपकी बात नहीं होती...आपको उनके बारे में कुछ पता नहीं” रणविजय ने सुशीला से कहा तो मोहिनी और ऋतु भी चौंक गईं और रणविजय की ओर देखने लगीं

“धुरंधर तो तुम भी बहुत बड़े हो... तुमसे ज्यादा तुम्हारे भैया को और कौन जानता है....बस ये है.... कि हम सब को वो बिना कोशिशों के हासिल हो गए तो हम उनपर ध्यान नहीं देते...........वरना अब तक तो आप उनसे मिल भी लिए होते.... मुझसे वो खुद मिलने आएंगे.... लेकिन ऐसे नहीं...जिस दिन में उनकी शर्त मान लूँगी.... और ऐसा मेरा अभी कोई इरादा नहीं है....बच्चों की उनसे बात होती रहती है” सुशीला ने मुसकुराते हुये कहा तो रणविजय आकर उनके सामने जमीन पर बैठ गया...और उनके पैर पकड़कर आँखों में आँसू लाकर सुशीला से बोला

“भाभी मुझे भी भैया से बात करा दो.... एक बार उनसे मिलना चाहता हूँ”

“पता है तुम्हारे भैया तुम्हें ऐसे देखकर क्या कहते.... वो कहते हैं कि सारा परिवार नौटंकीबाज है और उनमें भी सबसे बड़ा ड्रामेबाज़ वो तुम्हें मानते हैं.... तुम मुझसे सीधे-सीधे भी कह सकते थे कि तुम्हारी उनसे बात करा दूँ….ये मुझे रोकर दिखाने की जरूरत क्या है” सुशीला ने मुसकुराते हुये कहा और रणविजय का हाथ पकड़कर उसे अपने बराबर में सोफ़े पर बैठने को कहा

रणविजय चुपचाप उठकर खड़ा हो गया... लेकिन सुशीला के बराबर में नहीं बैठा... तब सुशीला ने उसे फिर बैठने को कहा तो उसने बोला की वो आज तक कभी उनके बराबर में नहीं बैठा और आज भी उसी मर्यादा को बनाए रखेगा.... यहाँ ये बातें चल रही थी उधर अंदर रागिनी और बच्चों की क्या बातें हुई ये जानने की बेचैनी भी सभी में थी। क्योंकि पूरा परिवार जानता था हर बात को समझने और करने का नज़रिया रवीद्र का पूरे परिवार से अलग रहा था शुरू से.... अच्छा नहीं उचित निर्णय.... चाहे वो किसी को या सभी को बुरा लगे। सुशीला ने रणविजय और सभी से कहा कि वो रवीद्र से उनकी बात कराएगी लेकिन अभी पहले रागिनी और बच्चों कि बात हो जाने दो.... फिर सब आपस में रागिनी कि कही गयी बातों पर विचार-विमर्श करने लगे।

थोड़ी देर बाद रागिनी और बच्चे बाहर हॉल में आए तो सभी उनकी ओर देखने लगे। सबको ऐसे देखता पाकर रागिनी मुस्कुराई और जाकर सुशीला के बराबर में बैठ गयी।

“ऐसे क्या देख रहे हो सब.... अब मेरी बात सुनो... मेरी रवीद्र से बात हुई है... और रणविजय के बारे में अपना आखिरी फैसला मेंने उसे बता दिया.... रणविजय ने घर में कोई भी ज़िम्मेदारी आजतक ढंग से पूरी नहीं की... इसलिए अब से घर के मामलों में फैसले रवीद्र खुद लेगा या उसकी ओर से सुशीला भाभी.............. रणविजय आज से अपनी ज़िंदगी अपनी तरह से जीने को स्वतंत्र है... अपना घर, अपने बच्चे.... लेकिन प्रबल के मामले में रवीन्द्र का कहना है... कि वो कोई छोटा बच्चा नहीं.... अपने बारे में वो स्वयं फैसला करेगा..... अब रही मेरी बात तो में यहाँ भी रह सकती हूँ... और कोटा वाली हवेली में भी..... शांति, अनुराधा और अनुभूति मेरे साथ ही रहेंगे...प्रबल अगर रहना चाहे तो वो भी ...... रणविजय को कंपनी दे दी गयी है... उसमें धीरेंद्र भी शामिल रहेगा....लेकिन इन दोनों का परिवार के और किसी मामले में दखल नहीं होगा” रागिनी ने कहा तो रणविजय फूट-फूट कर रोने लगा और वहीं रागिनी के पास जमीन पर बैठ गया

“मुझे भैया और आपने घर से बिलकुल अलग कर दिया” रणविजय ने रागिनी से कहा

“तुम्हें किसी ने अलग नहीं किया.... तुम्हें जो जिम्मेदारिया दी गईं वो तुम ढंग से निभा नहीं सके...और अपनी गलतियों के लिए रोकर सबको भावुक बनाकर बच निकालना चाहते हो.... इसलिए तुम्हें तुम्हारे परिवार की ही ज़िम्मेदारी दे दी गयी है.... वो निभा कर दिखाओ...और यही धीरेंद्र के साथ भी है.... ऐसा नहीं की उसने तुम दोनों के साथ कुछ बुरा कर दिया.... लेकिन तुम्हारी लापरवाही से परिवार में किसी और के साथ बुरा ना हो पाये इसलिए बाकी परिवार की ज़िम्मेदारी उसने खुद अपने ऊपर ले ली है” रागिनी ने कहा

“दीदी! अब तो आपको कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए... में अपने बच्चों को लेकर गाँव में ही रहूँगी... अब अगर आप सब तैयार हों तो मेरा मन है कि इन सब बच्चों को लेकर गाँव और मंजरी दीदी के यहाँ चलते हैं....जिससे ये बच्चे भी परिवार के लोगों को जान-समझ सकें...और बलराज चाचाजी और मोहिनी चाचीजी का मामला भी निबटाएँ...फिर सब अपना-अपना देखते हैं.... कम से कम अब पहले की तरह हालात तो नहीं होंगे ...कि किसी को दूसरे के बारे में पता ही नहीं” सुशीला बोली

“ठीक है.... चलो सब तैयार हो जाओ... अभी निकलते हैं” रागिनी ने भी कहा

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#88
अध्याय 40


“ये हमारा घर है?” घर को देखते ही ऋतु ने आश्चर्य से पूंछा, रागिनी, अनुराधा और प्रबल भी उस घर को देखकर चौंक गए थे

“हाँ ये ही हमारा पुराना घर है...जो पुश्तैनी मकान के बँटवारे में हमें मिला था” मोहिनी ने कहा तो सब उनकी तरफ देखने लगे

“तो फिर माँ पहले हम जिस मकान में रहे थे वो किसका घर था... वो भी तो अपना ही घर बताया था आपने?” ऋतु ने मोहिनी से पूंछा

“मुझे नहीं मालूम। में यहाँ बहू बनकर रही हूँ...इसी घर में, दूसरा घर हमारा है या किसी और का, मुझे क्या मालूम.... सुशीला से पूंछो, हम सब तो पहले ही यहाँ से जा चुके थे सबसे बाद में रवि और सुशीला ही यहाँ रहे थे... बल्कि सुशीला अब भी यहीं रहती हैं.... घर देखकर ही मुझे लग रहा है.... उस घर में तो मुझे कुछ ऐसा लगा नहीं कि कोई वहाँ रहता भी होगा” मोहिनी ने अपनी बात साफ की

हुया ये था कि दिल्ली से निकलकर वो सभी गाँव पहुंचे तो मंदिर पर गाडियाँ रुकते ही गाँव के कुछ लड़के उनके पास आए और सबके पैर छूकर उनका उनका समान साथ लेकर वो लोग गाँव में अंदर घुसे और शुरू की ही एक छोटी सी गली जिसमें मुश्किल से 3-4 घर थे उसमें मुड़कर बिलकुल सामने वाले घर में घुस गए... गाँव के सभी लड़के सामान घर पर छोडकर चले गए। वो घर पहले वाले घर से काफी छोटा था, तो विक्रम की लाश (?) के साथ आए मोहिनी, रागिनी, ऋतु, अनुराधा और प्रबल चौंक गए और ऋतु ने अपनी माँ मोहिनी देवी से घर को लेकर सवाल कर दिया

उन लोगों कि ये हालत देखकर और भानु, वैदेही भी मुस्कुरा दिये लेकिन फिर सुशीला ने उन सबको बताया कि उस समय इतने सारे लोगों के लिए गाँव में परिवार के ही दूसरे खाली पड़े घर में उन लोगों के रहने की व्यवस्था की गयी थी। लेकिन ऋतु ने जब ये पूंछा की उस समय उन लोगों को इस घर के बारे मे क्यूँ नहीं बताया गया, यहाँ क्यूँ नहीं लाया गया और सुशीला व बच्चों से क्यों नहीं मिलवाया गया... बल्कि जब सारा परिवार इकट्ठा था तब सुशीला और भानु-वैदेही ना तो सामने आए और ना ही किसी से मिले। सुशीला ऋतु के पास आकर बोली

“वो इसलिए क्योंकि उस समय हम चंडीगढ़ में इन दोनों के साथ थे” सुशीला ने मुसकुराते हुये रणविजय और नीलिमा की ओर इशारा किया

“लेकिन आप तो पाकिस्तान में रहती थीं ना” ऋतु ने फिर भी संतुष्ट ना होते हुये कहा तो नीलिमा की हंसी छूट गयी

“ननद रानी......अपने भाई की बहादुरी के किस्से सुनकर ये मत समझो की सिर्फ ये ही तीसमारखाँ हैं.... में वहाँ की इंटेलिजेंस के लिए काम करती थी.... पिछले 18 साल में से कम से कम 12 साल दिल्ली चंडीगढ़ में ही बिताए हैं .... वो तो इन बच्चों का राज खुलने का डर था वरना वहीं कोटा की हवेली में इन सबसे मिलकर आती” नीलिमा न्रे कहा तभी सुशीला ने उनसे शांत रहने का इशारा किया तो देखा की गाँव की कुछ औरतें घर में आ रही थीं... सुशीला ने भानु से सभी लड़कों और रणविजय को बाहर चौपाल पर ले जाने को कहा...

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“भैया अनुराधा दीदी को कुछ काम है बाज़ार में ये अकेले जाने को थीं लेकिन मेंने कहा की आपके साथ चली जाएँ....... इनके लिए अंजान जगह है....” वैदेही ने आकर भानु से कहा तो भानु ने अनुराधा की ओर देखा और साथ चलने ka इशारा करते हुये बाहर की ओर चल दिया... अनुराधा भी बाहर आयी और गाड़ी के पास आकर खड़े भानु को चाबी देने लगी

“आप चलाये.... में कभी किसी की गाड़ी नहीं चलाता” भानु ने सपाट लहजे में कहा तो अनुराधा को थोड़ा अजीब लगा लेकिन वो चाबी से दरवाजा खोलकर गाड़ी की ड्राइविंग सीट पर बैठ गयी और दूसरी ओर से भानु के बैठते ही गाड़ी आगे बढ़ा दी

“आप इस तरह से क्यों बोलते हैं.... ये गाड़ी भी तो आपकी ही है.... आपके विक्रम चाचा, रागिनी बुआ, ऋतु बुआ या बलराज बाबा किसी की भी हो आपकी ही तो है.... हाँ में ऐसा सोचूँ तो ठीक भी है.... मेरी दादी और आपके बाबा भाई बहन थे... 3 पीढ़ी पुराना हो गया ये रिश्ता.... और आपका ये सब परिवार है” अनुराधा ने नज़रें सामने रखकर गाड़ी चलते हुये भानु से कहा

“आपका कहना गलत नहीं है.... लेकिन आप मेरे पिताजी से कभी मिली नहीं.... ये मेंने उनसे सीखा है... किसी के लिए जो कर सकते हो वो करो... लेकिन उससे कोई अपेक्षा मत रखो... और ज़िंदगी में जो कुछ भी चाहिए... खुद हासिल करो.... वरना उसके बिना जीना सीख लो” भानु ने गंभीर स्वर में कहा

“ह्म्म! राणा जी मतलब रवीद्र ताऊजी के बारे में जितना सुनने को मिलता है...उनसे मिलने की इच्छा उतनी ही तेज होती जाती है” अनुराधा ने कुछ सोचते हुये कहा

“इसी बात का तो मुझे डर लगता है... जब सुनके आप इतनी उतावली हैं मिलने के लिए.... तो फिर मिलने पर क्या करेंगी” भानु ने मुसकुराते हुये कहा

“मतलब??? मिलने पर क्या होगा? आपने ऐसा क्यों कहा कि आपको इस बात का डर लगता है.... ऐसी क्या बात है” अनुराधा ने कनखियों से भानु की ओर उत्सुकता से देखते हुये पूंछा

“आपको एक बात बताऊँ... लेकिन आप किसी से नहीं कहना... माँ और वैदेही से भी नहीं” भानु ने अनुराधा की ओर देखते हुये कहा

“नहीं कहूँगी.... लेकिन ऐसी क्या बात है............ कहीं मुझसे प्यार तो नहीं हो गया आपको” अनुराधा ने मुसकुराते हुये कहा

“आप भी मेरे पिताजी की तरह ही बात करती हैं....बात पिताजी के बारे में ही है.... घर में बड़े-बड़े सबको पता है.... लेकिन मुझे पता चले...ये कोई नहीं चाहता... इसलिए में भी नहीं चाहता किसी को पता चले...कि में इस बात को जानता हूँ” भानु ने मुसकुराते हुये बात शुरू की ओर गंभीर स्वर में पूरी करके अनुराधा की ओर देखने लगा और मन में सोचने लगा.........प्यार हो भी सकता है.... है तो इतनी प्यारी कि प्यार हो जाए.... घुँघराली लटें, तीखी नाक अपनी ओर खींचते होठ, लंबी गर्दन.... और चूचियाँ........ जान ले लेंगी......

“अब बात तो बताओ.... में सच में किसी से भी नहीं कहूँगी” अनुराधा ने फिर से पूंछा तो भानु अपनी सोच से बाहर निकला और अनुराधा के शरीर से नज़र हटाके उसकी आँखों में देखता हुआ बोला

“मेरे पिताजी की एक पत्नी... मुझसे सिर्फ 5 साल बड़ी हैं.... और पिताजी से 20 साल छोटी....पता नहीं उन्होने क्या देखा जो अपने से इतने बड़े, अपने बाप की उम्र के आदमी की नाजायज पत्नी बनने को भी तैयार हो गईं” भानु ने कहा

“तो तुम्हें डर लगता है... में अगर उनसे मिलूँगी तो उन पर फिदा हो जाऊँगी....” अनुराधा ने भोंहें चढ़ते हुये कहा लेकिन मन ही मन हँसते हुये सोचने लगी.... बाप का तो पता नहीं लेकिन बेटा जरूर मुझे जँचने लगा है......

“ये तो वक़्त ही बताएगा” मुसकुराते हुये भानु ने कहा और सामने देखने लगा

“वैसे तुम यहाँ गाँव में ही रहते हो.... या सिर्फ ताईजी ही यहाँ रहती हैं.... मुझे लगता है तुम और वैदेही बाहर रहकर पढ़ते हो....शायद दिल्ली” अनुराधा ने पूंछा

“नहीं में और वैदेही बचपन से यहीं रहकर पढे हैं... और गाँव में ही रहते हैं.... और जैसा लोग सोचते हैं पढ़कर नौकरी या बिज़नस करने के लिए शहर जाकर रहने की.... वो में बिलकुल नहीं सोचता...मेरे पिताजी इसलिए तो हमें गाँव लेकर आए थे ...” भानु ने गंभीर स्वर में कहा

तब तक वो कस्बे के बाज़ार में पहुँच चुके थे तो भानु ने अनुराधा को गाड़ी खड़ी करने के लिए जगह बताई और दोनों उतरकर बाज़ार में घुस गए। अनुराधा ने बाज़ार का एक चक्कर लगाया और पूरे बाज़ार बाज़ार को घूमकर वापस गाड़ी पर ही आ गयी और कुछ उलझन सी में सोच-विचार में गुम हो गयी तो भानु ने उससे पूंछा की वो क्या लेने आयी थी यहाँ। कोई और रास्ता ना देख उसने भानु को बताया कि उसकी महवारी शुरू होने वाली थी और उसे पैड चाहिए थे... भानु को भी सुनकर अजीब लगा...

“तो तुमने घर पर ही किसी से पूंछ लिया होता... पहले भी तो इस्तेमाल करती होगी.... और यहाँ आ ही गयी तो लिए क्यों नहीं” भानु को उससे इस बारे में बात करने में कुछ झिझक सी लग रही थी

“पहले तो सबकुछ माँ मतलब रागिनी बुआ देखती थीं...मेंने कभी कुछ बाज़ार से खरीदा ही नहीं” अनुराधा ने भी कुछ झिझकते हुये जवाब दिया

“तो अब क्यों नहीं कहा उनसे?”

“अब आपसे क्या बताऊँ, आप नहीं समझेंगे जो आज मेरे हालात हैं... आज जब पता चल गया है कि वो मेरी माँ नहीं बल्कि मेरे पापा के मामा की बेटी हैं तो बड़ा अजीब लगता है उनसे हर बात करना... इसीलिए यहाँ बाज़ार चली आयी....” अनुराधा ने उदास लहजे में कहा

“अच्छा चलो छोड़ो इस बात को... अभी आप का काम कर देता हूँ... आप मुझे पहले बता देती तो में सीधा वहीं लेकर चलता आपको... वैसे तो ये चीजें यहाँ मेडिकल स्टोर पर भी मिल जाती हैं .... फिर भी देहात का कस्बा है गाँव कि औरतें ख़रीदारी करने अति हैं, जिन्हें थोड़ी झिझक होती है तो औरतों के सब सामान के लिए एक अलग ही बाज़ार है.... उसे चूड़ी वाली गली कहते हैं... चूड़ियों से साज-सिंगार और औरतों के अंदर के कपड़े सब वहाँ एक ही जगह मिल जाते हैं....वो पूरा औरतों का ही बाज़ार है.... में आपको वहाँ लिए चलता हूँ... दुकान से आप खुद ले लेना... वहाँ दुकानों पर आदमी नहीं जा सकते” कहते हुये भानु बाज़ार की ओर चल दिया... अनुराधा भी उसके पीछे-पीछे चल पड़े बाज़ार के एक कोने में जाकर भानु ने एक गली में मुड़ने का इशारा किया... जो बाहर दिखती नहीं थी... उस गली में दोनों ओर सुनार और औरतों के समान कि दुकानें थीं। भानु एक दुकान के सामने खड़ा हो गया और अनुराधा को भेज दिया। अनुराधा जाकर अपना सामान ले आयी और दोनों जाकर गाड़ी में बैठ गए....

“आपने वैदेही से भी नहीं कहा होगा वर्ण वो आपके साथ ही आती और आपको आपका समान दिलवा ले जाती” भानु ने अपनी सीट पर बैठते हुये गाड़ी वापस गाँव कि ओर मोड़ने का इशारा करते हुये कहा

“बस कुछ दिमाग में ही नहीं आया... आपसे भी मजबूरी में ही कहना पड़ा” अनुराधा ने गाड़ी आगे बढाते हुये सड़क पर नज़रें जमाये हुये कहा

“पर एक बात मेरी समझ में नहीं आयी कि जो बात आप रागिनी बुआ और वैदेही से भी नहीं कह सकीं, मुझसे क्यूँ कह दी.... कहीं आप मुझे अपना प्रेमी तो नहीं समझने लगीं” भानु ने बात को ज्यादा गंभीर होते और अनुराधा को तनाव में देखकर मज़ाक में कहा...जिससे अनुराधा का मन भी हलका हो जाए

“मुझे भी ऐसा ही लगता है” अनुराधा के चेहरे पर भी मुस्कान आ गयी

“कैसा” अनुराधा के जवाब को सुनकर भानु ने छोंकते हुये कहा

“कि मुझे आपसे प्यार हो गया है” अनुराधा के मुंह से ये सुनते ही भानु चुप होकर बैठ गया और दोनों गाँव तक चुपचाप ही बैठे रहे...बल्कि यूं कहा जाए की भानु चुपचाप बैठा रहा...... अनुराधा ने तो एक दो बार रास्ते में बात करने की कोशिश भी की लेकिन भानु चुप ही रहा और बाहर देखते हुये कुछ सोचता रहा

गाँव पहुँचकर भानु चुपचाप घर के पीछे की तरफ चल दिया और अनुराधा घर में घास गयी। घर में आते ही अनुराधा का सामना रणविजय से हुआ तो रणविजय ने अनुराधा से पूंछा की वो कहाँ गयी थी...इस पर अनुराधा ने बताया की वो कुछ सामान लेने बाज़ार गई थी भानु के साथ, रणविजय ने उससे कहा की उसे कुछ बात करनी है...अकेले में। अनुराधा ने कहा की वो अभी कुछ जरूरी कम है उसे निबटाकर आएगी 10 मिनट में। अनुराधा ने अंदर पहुँचकर वैदेही को साथ लिया और उसके कमरे में जाकर अंदर से दरवाजा बंद कर लिया। थोड़ी देर बाद बाहर निकालकर वो रणविजय के पास पहुंची तो रणविजय उसे अपने साथ घर के पीछे की ओर ले गया जिधर अनुराधा ने भानु को जाते देखा था

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“अनुराधा बेटा कहाँ चली गईं थीं तुम” रागिनी ने अनुराधा को घर के पीछे से निकालकर आते देखा तो पूंछा

“कहीं नहीं माँ! पहले तो बाज़ार गयी थी भानु के साथ फिर यहाँ पीछे बगीचे में थी” अनुराधा ने संक्षिप्त सा जवाब दिया

“बेटा वहाँ अकेली मत जया करो साँप वगैरह भी होते हैं, और तुम्हें किसने बताया की यहाँ पीछे बग़ीचा भी है अपना” रागिनी ने अपनी बात रखी

“माँ वो विक्रम भैया मतलब रणविजय चाचाजी के साथ गयी थी” अनुराधा ने जैसे ही कहा... रागिनी की आँखों में गुस्सा उभर आया

“अच्छा तो अब बच्चों को भी मेरे खिलाफ भड़का रहा है, क्या कह रहा था तुमसे” रागिनी गुस्से से बोली

“माँ उन्होने ऐसा कुछ भी नहीं कहा जो तुम्हारे खिलाफ हो.... उनसे क्या बात हुई में आपको और प्रबल को सामने बैठकर सब बताऊँगी... आप ऐसा क्यों समझती हैंकी वो आपके खिलाफ हैं...... उन्होने आपके साथ कुछ गलत तो नहीं किया...आपका कुछ बुरा तो नहीं किया....आपके खिलाफ बोलना तो छोड़ो, आपकी किसी बात  उल्टे आप ही उनके खिलाफ बोल रही हैं आजकल” अनुराधा ने भी थोड़ा गुस्से के साथ जवाब दिया तो रागिनी का मुंह आश्चर्य से खुला ही रह गया

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रात के खाने के लिए गाँव में घर-परिवार के लोगों ने कहा लेकिन सुशीला ने कहा की यहाँ कोई भी रिश्तेदार नहीं हैं... सब घर के ही हैं तो मिलकर खाना बनाएँगे। रात को सुशीला, नीलिमा और शांति ने खाना बनाया, ऋतु, वैदेही, अनुराधा और अनुभूति ने सबको खाना खिलाया। सबके खाना खाने के बाद रणविजय ने कहा की एक तो घर छोटा है और दूसरे गाँव के प्रकृतिक वातावरण में बाहर खुले में सोने का मौका मिला है तो क्यों गंवाया जाए। इसलिए वो स्वयं और भानु, प्रबल, समर सब बाहर सामने की ओर सोयेंगे और महिलाएं-लड़कियां घर के आँगन में।

अनुराधा और वैदेही ने कहा की वो दोनों छत पर सोयेंगी, और उन्होने अनुभूति को भी अपने साथ छत पर ले जाने की बात काही तो अनुभूति ने कहा की वो अपनी माँ शांति के पास सो जाएगी, लेकिन रागिनी और सुशीला ने कहा की वो अपनी माँ से बाहर भी और लड़कियों के साथ रहना सीखे... आखिरकार अनुभूति को भी जाना ही पड़ा। अब मोहिनी, रागिनी, सुशीला, शांति और ऋतु नीचे आँगन में लेटी हुईं थीं।

वैदेही ने अनुराधा और अनुभूति को गाँव के बारे में और परिवार के बारे में बताया...और उन लोगों से शहर की उनकी ज़िंदगी के बारे में पूंछा तो दोनों ने ही कहा की वो दिल्ली और कोटा में बेशक शहर में रहीं लेकिन कभी घर से बाहर ही निकालना नहीं हुआ.... तो उन्हें शहर में रह कर भी अपने शहर के बारे में जानकारी ही नहीं। ऐसे ही बातों बातों में अनुराधा ने वैदेही से भानु के बारे में जानकारी लेनी शुरू की, तो पता चला की भानु ने पढ़ाई के अलावा खेती-बागवानी और सूचना प्रोद्योगिकी (इन्फॉर्मेशन टेक्नालजी – IT) के क्षेत्र में भी काफी कुछ सीखा है... बिज़नस मैनेजमेंट अपने पिता राणा जी से सीखा.... यहाँ पर राणा जी ने कुछ कृषि आधारित व्यवसाय शुरू किए थे जिन्हें भानु-वैदेही दोनों भाई-बहन मिलकर देखते हैं और ये सबकुछ सुशीला, भानु और वैदेही के ही नाम पर हैं.... पारिवारिक संपत्ति से अलग.... राणा जी का अपना बनाया हुआ। अनुराधा ने चालाकी से वैदेही के मोबाइल नंबर के साथ-साथ भानु का नंबर भी ले लिया।

प्रबल भी अपने मोबाइल पर लगा हुआ था। अनुपमा से चैट चल रही थी। इधर मोहिनी और सुशीला पुरानी यादें ताजा करने में लगी हुई थीं, रागिनी, ऋतु और शांति चुपचाप उनकी बातें सुन रही थीं.... कभी कभी ऋतु कुछ सवाल पूंछने भी लगती और सुशीला या मोहिनी उसका जवाब देतीं। बाहर प्रबल ने अपनी चैटिंग बंद करके वहाँ रणविजय और भानु में घर-परिवार और गाँव-रिशतेदारों के बारे में बातें चल रही थीं, उन्हें सुनने लगा, समर चुपचाप उनकी बातें सुन रहा था। ये सब कुछ प्रबल और समर के लिए बिलकुल नया था।

समर और प्रबल ने कभी रणविजय को इतनी बातें करते ही नहीं देखा था और यहाँ वो भानु से लगातार बातें किए ही जा रहा था, इसके अलावा इन दोनों ने अपने घर में रहने वाले गिने चुने लोगों के अलावा ना किसी को देखा था, न किसी के बारे में सुना था। रिश्ते और रिशतेदारों के बारे में तो उन्होने अपने आस-पड़ोस, मिलने-जुलने वालों, यार-दोस्तों और किताबों में ही पढ़ा था... वो भी ज़्यादातर नजदीकी रिश्ते जैसे चाचा-ताऊ, बुआ-फूफा, मामा-नाना.... लेकिन यहाँ तो रणविजय और भानु के बीच तो पता नहीं कितनी पीढ़ी पुराने रिश्ते, गाँव में रह रहे परिवार के अन्य लोगों की रिश्तेदारियों, ननिहाल, ससुराल की रिश्तेदारियों और पता नहीं किस-किस मुद्दे पर चर्चा हो रही थी।

“एक बात बताओ भानु? भाभी से तो मेंने पूंछा ही नहीं... पता नहीं भाभी क्या कहतीं, ताईजी कहाँ हैं” रणविजय ने कहा

“अम्मा धीरेंद्र चाचा के पास हैं.... 5-6 साल से उन्हीं के साथ रह रही हैं....” भानु ने जवाब दिया

“वो तो मुझे भी मालूम है... तब तो धीरेंद्र चंडीगढ़ रहकर ही उस काम को सम्हाल रहा था...और ताईजी हमारे साथ ही थीं.... अभी 2 साल पहले धीरेंद्र की शादी में में और नीलों ही तो ताईजी और धीरेंद्र को साथ लेकर आए थे चंडीगढ़ से” रणविजय ने कहा

“पापा ये ताईजी कौन हैं... में तो उनसे कभी मिला ही नहीं, और ये धीरेंद्र चाचा” अचानक समर ने सवाल किया रणविजय से

“बेटा वो तुम तीनों की दादी हैं....मेरी ताईजी और रवीद्र भैया की माँ, और धीरेंद्र तुम्हारे चाचा हैं, रवीद्र भैया के छोटे भाई, उनका नाम तो तुमने चंडीगढ़ में ऑफिस में सुना ही होगा, ये सारा बिज़नस रवीद्र भैया ने प्लान किया था और धीरेंद्र ने चलाया हैं पिछले 5 सालों से ...... तुम्हें पता है तुम्हारी 5 दादी थीं, जिनमें से सिर्फ मेरी माँ की मृत्यु 35 साल पहले हो गयी थी...बाकी सभी मौजूद हैं....समय आ चुका है...सबसे जल्दी ही मुलाक़ात होगी .........चलो अभी सब सोने की तैयारी करो सुबह कुछ और नयी खुशखबरी सुनने को मिलेगी” रणविजय ने सबको सोने का इशारा करते हुये कहा
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#89
अध्याय 41


सुबह सुशीला ने सबको नींद से जगाया और वैदेही ने सबको चाय आदि दिया और भानु ने सबको घर के पीछे बग़ीचे में चलने को कहा। बगीचा कुछ इस तरह है कि घर के पीछे पहुँचकर एक सम्पूर्ण प्रकृतिक वातावरण की झलक मिलती है। घर के पीछे की तरफ बहुत बड़ा आँगन है 50’ चौड़ा 150’ लंबा, उसके बाद लगभग 50’ चौड़ी और 300’ लंबी एक खाई है करीब 6’ गहरी जिसे तलब की तरह एकसार बनाया गया है और उसमें कमल की खेती की हुई है.... क्योंकि कमाल पक्के या साफसुथरे तलब में नहीं कच्चे और कीचड़ भरे तालाब में ही होता है। उसके बाद 200’ चौड़ा और 300’ लंबा एक केले का बाग है जो घर से लगभग 3’ गहराई पर है और तालाब या खाई से 3’ ऊंचाई पर, उसके बाद फिर 3’ ऊंचाई पर एक बाग हैं 150’ चौड़ा और 300’ लंबा जिसके 3 हिस्से किए हुये हैं 50’ चौड़ा 300’ लंबाई के, पहले अनार का बाग, फिर इतना ही नींबू और किन्नू/संतरा/मौसम्बी का बाग और फिर उसके बाद अमरूद इन्हीं पेड़ों के बीच खाली जगह में पपीता और पेड़ों के नीचे सब्जियों की खेती। घर से अमरूद के बाग तक सीधा रास्ता बना हुआ है जो लगभग एक गट्ठा चौड़ाई (लगभग 8’) में है। इस पूरे बाग के लिए पानी घर से ही पाइपलाइन द्वारा पहुंचाया गया है। बाग के चारों ओर प्रत्येक 3’ पर ककरोंदा (काँटेदार, फलवाला पेड़ )की बाड़ लगाई गयी है जो जानवरों और इन्सानों को अंदर नहीं घुसने देती। इस पूरे बाग के किनारे लगभग 3’ ऊंची मिट्टी की बाड़ है जिसके बाहर 6’ गहरी खाई है... मिट्टी की बाड़ पर आम, जामुन, इमली, कटहल आदि बड़े फलदार पेड़ लगाए हूए हैं।

इस बग़ीचे में पहुँचकर बच्चे ही नहीं बड़े भी भोंचकके रह गए, हालांकि अनुराधा कल रणविजय के साथ यहाँ आयी थी लेकिन तब न तो उसका ध्यान इन सब पर था और न ही वो पूरे बाग में घूमी....अब वो वैदेही, अनुभूति और ऋतु के साथ चारों ओर घूम-घूम कर देख रही थी। जिन पेड़ों पर फल लगे हुये थे उन पर से फल तोड़कर खाने लगीं। प्रबल और समर भी भानु के साथ बाग को देखने लगे।  मोहिनी, रागिनी, नीलिमा और शांति भी सुशीला के साथ वहाँ सारे में घूमने लगीं। विक्रम बाग के बीचों बीच रास्ते के किनारे खड़ा होकर चारों ओर देखता हुआ कुछ सोचने लगा और उसकी आँखों से आँसू निकल आए, उसने सभी को आवाज देकर अपने पास बुलाया, सभी वहीं बांस की झाड़ियों के किनारे बनी लकड़ी की बेंचों पर बैठ गए।

“भैया! हमें तो आजतक पता ही नहीं था की गाँव में हमारा इतना सुंदर बगीचा है...... बिलकुल ही अलग तरह का.......... पेड़ ही पेड़, फल ही फल... आपने पहले क्यों नहीं बताया... में यहाँ गर्मियों में तो जरूर ही आती” ऋतु ने खुश होते हुये रणविजय से कहा तो रणविजय ने एक नज़र सुशीला की ओर डाली

“ये बगीचा हमारा नहीं है... ये रवीद्र भैया, भाभी और इन दोनों बच्चों ने बनाया है... ये 12000 वर्ग मीटर में जो बाग है इसमें किसी समय पर हमारा 8वां हिस्सा होता था यानि 1500 मीटर उसमें भी 500 मीटर ऊपर वाले बाग में जिसमें नींबू के पेड़ हैं और 1000 मीटर नीचे केले और कमल वाले तालाब में... जो की पानी भरे रहने के कारण किसी प्रयोग में नहीं था... नींबू वाले में भी जंगली काँटेदार झाड़ियाँ होती थीं जिसके कारण इसका भी कोई इस्तेमाल नहीं था... ये सब यहाँ आकार भैया, भाभी और इनके छोटे-छोटे बच्चों ने दिन रात मेहनत करके न सिर्फ अपने हिस्से को बाग बनाया बल्कि अन्य हिस्सेदारों की भी बेकार पड़ी जमीन को लिया और उसको भी तैयार करके इसे पूरा बाग बना दिया” रणविजय ने खोये-खोये से अंदाज भावुक होते हुये कहा

“हमारे करने का था उतना हमने किया...इसका ये मतलब नहीं कि ये सिर्फ हमारा है...तुम सबका है ये.... पूरे परिवार का” सुशीला ने रणविजय से कहा

“भाभी दिलासा मत दो .... पूरे परिवार में किसने यहाँ पैसा खर्च किया, किसने जमीन दी, किसने मेहनत की, किसने समय दिया और किसने सोचा-समझा......... किसी ने नहीं....बल्कि सबने अपने-अपने हिस्से की जमीन के भी पैसे ले लिए भैया से.... यहाँ जो कुछ है या जो कुछ किया, जो कुछ लगाया सिर्फ आप सब ने... भाभी आपको पता है... आपकी शादी से पहले जब हम नोएडा में रहते थे तब एक साल में और भैया यहाँ गाँव में रहे थे.... भैया ही मुझे अपने साथ लाये थे.......और हम यहीं इसी बगिया में जो हमारा हिस्सा था जिसमें नीबु के पेड़ हैं वहाँ सब्जिय करते थे अपने खाने के लिए... कुछ पेड़-पौधे भी लगाए थे.... सारा दिन यहीं रहते थे सुबह से शाम तक...भैया का ये सपना था एक ऐसा बगीचा तैयार करके गाँव की बजाय यहीं रहने का.............. आज भैया का सपना साकार हो गया तो.......आज वो स्वयं पता नहीं कहाँ है....... यहाँ रह भी नहीं सके... पता नहीं क्यों.... वजह शायद बहुत बड़ी होगी... वरना वो यहाँ से हरगिज नहीं जाते” कहते हुये रणविजय की आँखें भर आयीं

“वजह तो समझ जाओगे अगर गहराई से सोचोगे” कहते हुये सुशीला की भी आँखें भर आयीं

“अच्छा भैया ये बताओ आप आज क्या खुशखबरी सुनाने वाले थे...” ऋतु ने माहौल को हल्का करते हुये रणविजय से पूंछा

“तुम्हें किसने बताया कि में कोई खुशखबरी सुनाने वाला हूँ आज?” रणविजय ने उल्टा सवाल दाग दिया

“नीलिमा भाभी ने बताया था.......कहीं ऐसा तो नहीं कि भाभी ही खुशखबरी सुना रही हों” ऋतु ने भी मजा लेते हुये कहा तो रणविजय और नीलिमा से भी ज्यादा समर और प्रबल शर्मा गए

“आज हम यहाँ से 100 किलोमीटर दूर एक गाँव में जाएंगे....जहां मेरे पिताजी की मौसी रहती हैं.........खुशखबरी उनके यहाँ पहुँचकर दूंगा” कहते हुये विक्रम (रणविजय) ने रागिनी की ओर देखा, रागिनी भी रणविजय द्वारा ऐसे देखे जाने से कुछ विचलित सी होकर उसे अजीब नज़रों से घूरने लगी।

उन दोनों को ऐसे एक दूसरे को घूरते देखकर पहले तो अनुराधा को गुस्सा आया लेकिन फिर पता नहीं क्या सोचकर मुस्कुरा दी...... और रणविजय का हाथ पकड़कर रागिनी रागिनी का हाथ उसके हाथ पर रख दिया......

“तुम दोनों भाई बहन मेरी समझ से बाहर हो.............. सीखो कुछ हम भाई-बहन से” अनुराधा ने कहते हुये प्रबल को अपने पास खींच लिया

“अच्छा तो अब तू सिखाएगी हमें.... पता है कितनी सी थी जब तुझे हम भाई बहन ने ही सिखाया था.. छोटा भाई कौन होता है” रणविजय ने रागिनी का हाथ पकड़े-पकड़े ही अनुराधा और प्रबल को बाँहों के बीच में ले लिया

“चलो अब भाई बहन का प्यार पूरा हो गया हो तो इन माँ-भाभी की भी सुन लो” ऋतु ने भी उन चारों को चिपकते देखकर मोहिनी, शांति, सुशीला और नीलिमा को अपनी बाँहों में भरते हुये कहा

“हाँ भाभी! क्या कह रहीं थीं आप?” रणविजय ने संजीदगी से सुशीला से पूंछा

“अब हम लोगों को चलना चाहिए, बड़े भैया को उनके गाँव से साथ ले चलेंगे और सर्वेश चाचा जी को भी बोल देते हैं उन लोगों को बुलवा लें। शाम को लौटकर आ पाना मुश्किल ही लग रहा है.... क्योंकि मंजरी दीदी के पास भी एक दिन तो रुकना ही पड़ेगा, विनायक ने खास तौर पर कहा है.......” सुशीला ने कहा

“ये बड़े भैया कौन हैं” रागिनी ने पूंछा

“दीदी अब आपको सबसे मिलकर पता चलता जाएगा, सब अपने परिवार के ही हैं... बाकी सब तो अपने में ही मस्त रहे.... आपके भाई हमें यहाँ ले आए तो हम इन सबके संपर्क में आ गए और भूले-बिछुड़े सब रिश्ते-नाते चलने लगे” सुशीला ने कहा

........................

गाँव में गाडियाँ अंदर घुसीं और शुरुआत में ही एक बड़ी सी खाली जगह में जाकर रुक गईं। वहाँ चारों ओर 10-12 मकान बने हुये थे और सभी मकानों के दरवाजे उसी मैदान में खुलते थे और चारों ओर से गलियाँ भी वहाँ आकार मिलती थीं। गाडियाँ रुकते ही सबसे पहले रणविजय, सुशीला और भानु उतरे तभी सामने एक घेर (जानवरों और चारे को रखने के लिए बनाया गया स्थान) में से एक लड़का और लड़की इन लोगों के पास पहुंचे... वैदेही भी गाड़ी से उतरकर दौड़ती हुई उस लड़की के पास पहुंची।

लड़के ने आकर रणविजय और सुशीला के पैर छूए, भानु ने उस लड़के के। तब तक बाकी सब भी गाड़ियों से बाहर निकलकर  रणविजय और सुशीला के पास खड़े हो गए तो लड़के ने सभी बड़ों के पैर छूए। भानु ने प्रबल और समर को इशारा किया तो उन्होने भी उस लड़के के पैर छूए

“विनायक?” रणविजय ने सुशीला की ओर देखते हुये कहा

“नहीं विक्रांत है ये... विनायक से छोटा” सुशीला ने कहा, तब तक एक और लड़का सामने की एक गली से बाहर निकलकर आया और आते ही सबके पैर छूने लगा तो सुशीला ने बाते “ये विनायक है”

फिर वो लड़का उन सभी को साथ आने का बोलकर, भानु का हाथ पकड़कर उसी गली में वापस चल दिया। सब घर के सामने पहुंचे तो दरवाजे पर ही मंजरी खड़ी थी, रणविजय और सुशीला ने उनके पैर छूए तो उनको देखकर बाकी छोटों ने भी उनका अनुसरण किया। फिर सुशीला ने मोहिनी, शांति, रागिनी, ऋतु, अनुभूति और अनुराधा से भी उनका परिचय कराया... साथ ही साथ वो सब धीरे-धीरे अंदर भी पहुँच गए। अंदर घर के आँगन में बलराज सिंह और वीरेंद्र दो चारपाइयों पर बैठे खाना खा रहे थे. तभी रसोई से एक वृद्ध महिला उनके लिए खाना लेकर बाहर निकली, उन्हें देखते ही सुशीला उनके पास पहुंची और पैर छूए।

“चाचीजी ये बड़ी माँ हैं?” सुशीला ने मोहिनी देवी से कहा तो वो पैर छूने को आगे बढ़ीं लेकिन उन्होने मोहिनी के कंधे पकड़कर अपने सीने से लगा लिया

“तुम तो मेरी छोटी बहन हो, तुम्हें मेंने गोद में खिलाया है बहुत दिन.... मेरी देवरानी तो कामिनी थी, तुम हमेशा मेरी बहन थी और बहन ही रहोगी.... चलो सब आराम से बैठ जाओ और खाना खाओ... फिर तुम सबके बारे में मुझे भी जानना है और मेरे बारे में तुम सब को बताऊँगी” कहते हुये उन्होने सबको बरामदे में पड़ी चारपाइयों और तख्त पर बैठने को कहा

“ताईजी! अभी खाना भी खाएँगे लेकिन ज्यादा नहीं थोड़ी सी तो पहचान सबसे करा ही दूँ आपकी” कहते हुये रणविजय ने भी उनके पर छूए और उनका हाथ पकड़कर अपने साथ ले जाकर तख्त पर बैठा लिया

बाकी सबने भी उनके पैर छूए और वहीं बरामदे में बैठ गए तब तक बलराज और वीरेंद्र भी खाना खाकर उनके पास ही आकर बैठ गए।

“आप सभी को थोड़ा सा अंदाजा तो हो ही गया होगा कि हम कहाँ और किसके पास आए हैं.... लेकिन में आप सबको एक दूसरे के बारे में बताना इसलिए जरूरी समझता हूँ कि फिर से परिवार के लोगों में इतने भ्रम ना पैदा हो जाएँ...कि कोई किसी को जान समझ ही ना सके” रणविजय ने कहना शुरू किया

“अब मुद्दे की बात करो... में समझ गयी हूँ कि हम यहाँ बड़ी ताईजी के पास आए हैं.... जयराज ताऊजी की पहली पत्नी....” रागिनी जो इतनी देर से चुप थी रणविजय को बात खींचते देखकर बोल पड़ी

“अरे रे रे ....बेटा गुस्सा क्यों हो रही हो.... ये बात को घूमा-घूमा के कहने का तो खानदानी गुण है....विजयराज कि भी यही आदत थी,,,,,चलो मेरे बारे में तो तुमने सबको बता दिया........लेकिन मुझे भी तो सबके बारे में बताओ...... सबसे पहले तुम ही अपने बारे में बता दो” बेला देवी ने मुसकुराते हुये रागिनी का हाथ पकड़कर कहा और उसे अपने बराबर में बैठा लिया

“ठीक है ताईजी आप सब आपस में बात करो मैं भैया के साथ घेर पर जा रहा हूँ......... और भाभी! खाना तैयार रखो.... इन सबको खिला दो... फिर आकर में और भैया खाएँगे” रणविजय ने मंजरी से कहा

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उसी समय वहाँ से कुछ किलोमीटर दूर एक गाँव में ...............

“देव अब भी सोच लो, कभी बाद में सबकुछ मेरे ऊपर डाल दो कि मेरी वजह से ये सब हुआ....सब मेरी गलती साबित करो” सरला ने देव से कहा

“भाभी में कुछ सोच समझकर ही आया हूँ.... जो भी होगा, आपसे कभी कुछ नहीं कहूँगा... में उससे प्यार करता हूँ, उसके लिए 20 साल इंतज़ार किया है...अब बड़ी मुश्किल से हमारे मिलने कि उम्मीदें बांध रही हैं...तो आप ऐसे कह रही हो” देव ने सरला से कहा

“देखा 20 साल बहुत लंबा समय होता है.......पता नहीं उसे किन-किन हालातों से गुजरना पड़ा हो...... क्या-क्या ना सहा हो उसने, और क्या पता अब वो तुमसे शादी भी ना करना चाहे” सरला ने फिर से कहा तो देव बिफर पड़ा

“भाभी! प्यार सिर्फ मेंने नहीं उसने भी किया था, वक़्त और हालात ने चाहे उसे कितना भी बादल दिया हो..........लेकिन ऐसा नहीं हो सकता...कि वो मुझसे शादी करने से इन्कार कर दे.... और ...एक बात......मुझे हर हाल में उससे शादी करनी है.... चाहे उसकी कोई भी हालत हो, कोई भी शर्त हो” देव बोला

“ठीक है तो में फोन करके बोल देती हूँ कि हम 1 घंटे में पहुँच रहे हैं” सरला ने कहा और फोन मिला दिया

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#90
अध्याय 42


“मुझे नहीं करनी कोई शादी-वादी, मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो, वीरेंद्र! इससे कह दो अपना बेटा अपने पास रखे.... और अनुराधा को भी ले जाए अपने साथ.... अब मुझे किसी की जरूरत नहीं... ना इस घर की ना परिवार की” गुस्से से रागिनी ने कहा

“दीदी आपसे कोई जबर्दस्ती नहीं कर रहा और ना ही हम आपको घर से बाहर निकालने के बहाने ढूंढ रहे। मुझे तो सरला बुआ जी ने भी बताया था... कि आपके और देव फूफा जी के बीच कुछ था, और उनके घरवाले भी शादी के लिए तैयार थे, हमारे घर में भी सब तैयार थे लेकिन पता नहीं विजय चाचाजी ने क्या सोचकर आपकी शादी को टाल दिया और फिर सबकुछ इतनी तेजी से बदलता चला गया कि ना तो वो रिश्ते की बात रही, ना बात करने वाले और ना ही आप। आप एकबार उनसे मिल तो लो, फिर जो भी आपका फैसला होगा” सुशीला ने कहा

आखिरकार बहुत समझाने पर रागिनी सुमित्रा मौसी के घर जाने को तैयार हुई... लेकिन उसने साफ कह दिया कि देव से शादी का फैसला वो किसी दवाब में नहीं लेगी। वो पहले उससे मिलेगी फिर सोच समझकर बताएगी

अब ये सवाल उठा कि वहाँ जाएगा कौन-कौन तो फैसला हुआ कि वहाँ थोड़ी देर को ही इस गंभीर मसले पर बात करने जाना है इसलिए बच्चों को नहीं ले जाना और बड़ों में से भी निर्णायक लोग ही जाएंगे। रणविजय ने कहा कि बलराज चाचाजी, वीरेंद्र भैया, रागिनी दीदी और सुशीला भाभी चली जाएँ, लेकिन सुशीला ने कहा कि वहाँ बेटी के रिश्ते के बारे में बात होगी और सुमित्रा दादी भी अब रही नहीं,,,, सर्वेश चाचाजी की पत्नी भी उतनी परिपक्व नहीं हैं इसलिए बेला माँ को रागिनी दीदी के साथ भेजा जाए, तो बेला देवी ने शांति और रणविजय को भी साथ ले जाने को कहा.... क्योंकि बाकी सब तो परिवार के हैं लेकिन रणविजय भाई और शांति माँ हैं बेशक सौतेली ही सही....साथ ही रणविजय ने कहा की रवीद्र भैया यहाँ नहीं हैं तो सुशीला भाभी को तो जाना ही चाहिए, तो सभी ने सुशीला को चलने के लिए कहा, इस पर सुशीला ने कहा कि जब उनकी सास (बेला देवी) और जेठ (वीरेंद्र सिंह) जा रहे हैं तो उनका जाना जरूरी नहीं है....और उनसे बड़ी उनकी सास मोहिनी चाची और जेठानी मंजरी दीदी भी नहीं जा रही हैं ..... बड़ों को ही इस काम को करने दो।

आखिरकार ये सभी वहाँ के लिए निकल गए.........

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गढ़ी में सर्वेश सिंह के घर सबके पहुँचे। सभी को चाय-नाश्ता करने के बाद सर्वेश सिंह ने उन्हें बताया कि कुछ दिन पहले उनके भांजे गौरव की शादी में शामिल होने वो अपनी बहन सरला के घर मध्य प्रदेश गए थे तब वहाँ सरला के देवर देवराज सिंह भी आए हुये थे। देवराज सिंह दिल्ली में नौकरी करते हैं और उन्होने अभी तक शादी नहीं की।

सरला से बातचीत में जब सर्वेश ने देवराज सिंह के शादी ना करने की वजह पूंछी तो सरला ने बताया कि अब से लगभग 20 साल पहले देवराज सिंह की शादी सरला ने ही अपने मौसेरे भाई विजयराज सिंह की बेटी रागिनी से करवाने के लिए बातचीत की थी। रागिनी और देवराज की शादी के लिए उनकी निर्मला मौसी और जयराज-विजयराज भैया भी तैयार थे। शादी के लेए तैयारियां शुरू हो गईं थीं, शादी का मुहूर्त लगभग 6 महीने बाद था लेकिन दोनों परिवार अपनी तैयारियां पहले से ही किए ले रहे थे, विजयराज उस समय अपनी बहन विमला देवी के साथ दिल्ली में कहीं रह रहे थे, लेकिन देवराज कि उन सबसे मुलाक़ात और बातचीत जयराज सिंह के घर नोएडा में ही हुयी थी। फिर कुछ दिन रागिनी भी नोएडा रहने आयी हुयी थी उसी दौरान देवराज ने भी नोएडा आना जाना शुरू कर दिया था निर्मला मौसी के पास। ऐसे में देवराज और रागिनी की भी आपस में जान-पहचान होने लगी और धीरे धीरे उनकी बीच नज़दीकियाँ भी बढ्ने लगीं। हालांकि दोनों ही अपनी हद में रहे। बाद में रागिनी वापस दिल्ली विमला दीदी के यहाँ रहने चली गयी, देवराज और रागिनी की मुलाक़ात फिर भी कभी-कभी कॉलेज के समय में बाहर हो जाती थी। शादी के करीब 1 महीने पहले अचानक पता चला कि रागिनी और विमला गायब हो गईं हैं, विजयराज सिंह ने पुलिस में भी रिपोर्ट दर्ज करा दी और उन दोनों कि बहुत तलाश की, लेकिन कुछ पता नहीं चला और एक दिन विजयराज सिंह भी गायब हो गए। इस सब के दौरान शादी की तारीख भी निकल गयी, देवराज ने अपनी ओर से भी रागिनी और विजयराज सिंह का पता लगाने कि कोशिश की लेकिन कुछ नहीं हो सका।

बाद में रागिनी के छोटे चाचा जिनका नाम भी देवराज सिंह है, वो अभी 2-3 साल पहले सरला की माँ यानि अपनी मौसी सुमित्रा की मृत्यु के समय यहाँ आए थे तब बता रहे थे कि विजयराज सिंह तो बहुत साल पहले ही सन्यास लेकर ऋषिकेश के पास कहीं जंगल में चले गए, विक्रम कोटा में है और रागिनी भी शायद विक्रम के साथ है....और उसकी शादी हो गयी है....दो बच्चे भी हैं..... हालांकि उन्होने इस बात से इन्कार किया की वो विक्रम या रागिनी से मिले हैं

अभी ये बातें चल ही रही थीं कि सरला और देवराज सिंह भी आ गए तो फिर उनके जलपान की भी व्यवस्था की गयी। फिर सब साथ में बैठे और आपस में परिचय कराया सर्वेश सिंह ने।

“बुआ जी! अभी सर्वेश चाचाजी ने  बताया कि देवराज फूफाजी और रागिनी दीदी की शादी पहले तय हो गयी थी लेकिन फिर हालात बदलते गए और शादी हो नहीं सकी..... तो भी इन्होने शादी क्यों नहीं की अभी तक?” विक्रम ने बात शुरू करते हुये कहा

विक्रम की बात सुनकर सरला ने देवराज की ओर देखा फिर कुछ बोलने को हुई तो देवराज ने उन्हें रुकने का इशारा करते हुये खुद बोलना शुरू किया

“विक्रम! में बात को घुमाने की बजाय सीधा और साफ कहना पसंद करता हूँ..... पहली बात तो मुझे मालूम है कि रागिनी की याददास्त जा चुकी है.... लेकिन मैं समझता हूँ कि बहुत सी बातें इंसान के मन में कहीं न कहीं दबी रहती हैं जो याद दिलाने पर सामने आ जाती हैं.... लेकिन मुझे तो सब याद है.... मुझे रागिनी से प्यार था, है और हमेशा रहेगा। रागिनी से मेरे रिश्ते की बात तुम्हारे घर से या मेरे घर से शुरू नहीं हुयी थी ये बात मेरे और रागिनी के बीच शुरू हुई थी.... लेकिन रागिनी ने पहली ही बात यही काही थी..... कि अगर प्यार करते हो, तो बारात लेकर आना..... और मेंने भी सबसे पहला काम यही किया.... सरला भाभी से कहकर रिश्ते की बात शुरू कराई और ये बात आगे बढ़कर शादी तय होने तक पहुँच गयी... लेकिन हमारी किस्मत में तो कुछ और ही लिखा था.... शादी से एक महीने पहले विमला भाभी रागिनी को साथ लेकर लापता हो गईं और फिर तुम्हारे पिताजी भी.... मेरी ज़िंदगी में रागिनी के अलावा कोई और नहीं आ सकती, इसीलिए मेंने शादी नहीं की.... और ये मेरे विश्वास की ही ताकत थी जो आज लगभग 20 साल बाद फिर से रागिनी को अपने सामने देख रहा हूँ”

देवराज बात तो विक्रम से कर रहा था लेकिन देख रागिनी की ओर रहा था रागिनी ने हालांकि अपनी नजरें नीचे जमीन कि ओर कि हुई थी लेकिन कनखियों से वो भी देवराज को ही देख रही थी। एक दो बार रागिनी ने आँखें उठाकर देवराज की ओर देखा तो दोनों कि नजरें मिलते ही रागिनी को देवराज कि आँखों में एक अपनापन सा लगा.... एक और भी चीज थी देवराज की आँखों में जिसे देखते ही रागिनी का मन बेचैन होने लगा, दिल में दर्द सा उठने लगा..... देवराज की आँखों में आँसू, हालांकि आँसू छलके नहीं थे, पलकों पर रुके आँखों में नमी ला रहे थे।

“सरला ये सब तो बच्चे थे लेकिन में और तुम तो सब जानते हैं.... देवराज ने कितने साल तक तो पहले इंतज़ार किया पहले तो अपनी नौकरी और परिवार की समस्याओं कि वजह से और फिर विजय भैया की वजह से...... जब शादी का समय आया तो विमला ने ऐसा कर दिया..... हमें अब दोबारा कुछ नहीं पूंछना..... कुछ नहीं जानना..... अब बताओ कि शादी कब करनी है” बलराज ने भावुक होते हुये कहा

“बल्लु भैया! शादी जल्दी से जल्दी करनी है.... अब में नहीं चाहती कि फिर से कोई नया मामला बने और फिर से इनकी शादी अटक जाए ...... वैसे भी अब इनकी उम्र अपनी शादी करने कि नहीं बच्चों की शादी करने की हो चुकी है” सरला ने कहा

तभी रागिनी ने नजरें उठाकर सभी की ओर देखा और सरला से कहा “बुआजी! कोई भी फैसला लेने से पहले में आपसे और इनसे कुछ बात करना चाहती हूँ”

“मुझे सबकुछ रवीद्र ने बता दिया है जो तुम कहना चाहती हो....” सरला ने जवाब दिया और अपने बराबर में बैठी रागिनी के कंधे पर हाथ रखकर अपने से सटा लिया

“भाभी! अगर रागिनी कुछ कहना चाहती है तो उनकी बात भी सुन लो.... क्या पता उनको कुछ और ही कहना हो.... आप कुछ और समझ रही हो” देवराज ने सरला से कहा तो सरला मुस्कुरा दी और रागिनी के कंधे पकड़कर अपनी ओर घुमाते हुये कहा

“ऐसा है तो अगर किसी को ऐतराज ना हो तो इन दोनों को ही आपस में अकेले बात कर लेने दो”

“नहीं...” सरला की बात सुनते ही देवराज और रागिनी के मुंह से एकसाथ निकला

“हा हा हा .... तुम दोनों तो अभी से एक सुर में बोलने लगे..... कोई बात नहीं....तुम दोनों ही आपस में बात कर लो। तुम्हें ही ज़िंदगी साथ में बितानी है.... हमें तो सिर्फ शादी का इंतजाम करना है सो आपस में बैठकर बात कर लेंगे.....”मोहिनी देवी ने हँसते हुये कहा तो सब हंस पड़े तो देव और रागिनी शर्मा गए... रागिनी के चेहरे पर मुस्कान देखकर देव भी मुस्कुराकर उसकी आँखों में देखकर इशारा करने लगा जैसे कह रहा हो...चलें।

“जाओ अंदर चले जाओ.... अब तुम दोनों कोई बच्चे नहीं हो....जो इतना शर्मा रहे हो” शांति देवी ने भी हँसते हुये कहा तो रजनी, सर्वेश की पत्नी उठ खड़ी हुई और दोनों को साथ आने का इशारा करती हुई अंदर को चल दी

देव भी उठ खड़ा हुआ और रागिनी की ओर देखने लगा तो सरला ने रागिनी का हाथ पकड़कर उसे उठने का इशारा किया तो आखिरकार रागिनी को उठना ही पड़ा, वैसे तो रागिनी खुद ही बात करना चाहती थी सरला और देवराज से लेकिन अकेले देवराज के साथ एकांत में बात करने जाना, वो भी सारे परिवार के सामने से... इस अहसास से ही रागिनी लजा गयी और आँखें झुकाये देव के पीछे अंदर की ओर चल दी

अंदर गैलरी में कुछ कमरे थे उसके बाद एक बड़ा सा आँगन था और आँगन के दूसरी ओर एक बड़ा सा हॉल था जिसमें दो सिंगल बैड पड़े हुये थे .... रजनी ने देवराज को उसी कमरे में जाने का इशारा किया और देव के अंदर जाने के बाद पीछे आ रही रागिनी जो कि देव को कमरे में जाते देख वहीं रुक गयी.... रजनी ने रागिनी का हाथ पकड़कर कमरे की ओर बढ़ाते हुये कहा....

“आप ऐसे मुझसे मत शर्माओ..... बेशक में आपकी चाची हूँ लेकिन उम्र में तो आपसे बहुत छोटी हूँ.... कम से कम 10-15 साल....” और रागिनी को अंदर करके बाहर से दरवाजा बंद करती हुई सबके पास वापस लौट गयी

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“गरिमा! श्री कहाँ है...?” रसोई में खाना बनती गरिमा ने आवाज सुनी तो निकालकर बाहर हॉल में आयी

“जी राणा जी! बताइये क्या सेवा कर सकती हूँ आपकी” अपनी कमर पर हाथ रखे गरिमा ने बड़े कामुक अंदाज में हॉल में सोफ़े पर बैठे रवीद्र से कहा

“सेवा तो जो भी कर दो कम ही रहेगी.... फिर भी जितनी कर सकती हो कर ही दो” कहते हुये रवीन्द्र ने बेडरूम की ओर इशारा किया

“सुबह-सुबह फिर से मूड बन गया.... कोई और काम नहीं है क्या?” गरिमा ने चिढ़ाते हुये कहा

“काम ही काम .............. बस काम ही तो करता हूँ में इसीलिए तो मेंने अपना नाम कामदेव रखा है..... लेकिन मेंने जो पूंछा उसका तो कोई जवाब नहीं दिया तुमने.... श्री कहाँ है”रवीन्द्र ने सोफ़े पर और भी पसरते हुये कहा

“दूध पिलाकर सुलाकर आयी हूँ.... नाश्ता करा दूँ आपको फिर उसे भी उठाकर नहला-धुला दूँ”

“उसकी तो माँ दूध पिलाकर सुला देती है और फिर नहला-धुला भी देती है.... इस बिन माँ के बच्चे का ख्याल रखने वाला कौन है” रवीद्र मुस्कुराकर बोला

“बिन माँ का बच्चा! अरे और बच्चों के तो एक माँ होती है.... तुम्हारे 2-2 माँ और 3-3 चाचियाँ हैं....उनमें से ही किसी का दूध पी लो जाकर और नहला-धुला भी देंगी.... कपड़े उतारके खड़े हो जाना” गरिमा ने भी मजे लेते हुये कहा

अच्छा जी” रवीद्र ने आँखें दिखते हुये कहा

“हाँ! तुम्हारी बुआ तो अब रही नहीं.... बहनें तो हैं उनसे ही काम चला लो.....” गरिमा ने मासूम सी सूरत बनाते हुये कहा तो रवीन्द्र सोफ़े से झटके से उठ खड़ा हुआ और गरिमा को पकड़कर उसके होठों पर अपने होंठ रख दिये

“सुशीला दीदी!” कहते हुये गरिमा एकदम रवीद्र से दूर हुई और रवीद्र भी नाम सुनकर गरिमा को अपनी बाहों से निकालकर पीछे घूमकर देखने लगा

“हा हा हा हा ...... वैसे तुमने ये तो पूंछा ही नहीं कि तुम्हारी ‘बहन’ सुशीला या मेरी दीदी” बहन शब्द पर ज़ोर देते हुये गरिमा ने कहा

“बहुत कमीनी है तू” रवीन्द्र ने भी झेपते हुये से हँसकर कहा

“बीवी किसकी हूँ..... कामदेव कि बीवी कमीनी नहीं होगी तो किसकी होगी” गरिमा ने मुसकुराते हुये कहा

“अच्छा जाओ नाश्ता ले आओ आज कुछ लोगों से मुलाक़ात कर लूँ..... बहुत दिन से कहीं गया नहीं”

“चलो में भी साथ चलती हूँ..... कुछ काम-धाम भी देख लेते हैं...कैसा चल रहा है.... सुशीला से वैसे तो रोज ही बात होती रहती है.... लेकिन कभी-कभी खुद भी देख लेना चाहिए” गरिमा ने रवीद्र की आँखों में झाँकते हुये कहा

“वहीं जाने की सोच रहा था.... तुम साथ चल रही हो तो और भी बढ़िया है.... वहाँ का काम तुम देख लेना” रवीन्द्र ने कमीनी मुस्कान के साथ कहा

“हाँ क्यों नहीं..... में काम देख लूँगी और तुम भी फुर्सत से अपनी बहन के हालचाल ले लोगे...बहुत दिन हो गए बहन को ‘प्यार’ किए हुये” गरिमा ने कहा और जीभ दिखती हुई रसोई में भाग गयी

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“सुशीला! क्या बात हो गयी तुम्हारे और रवीद्र के बीच जो वो घर छोडकर चले गए” मंजरी और सुशीला उन सबके जाने के बाद खाना खाकर मंजरी के कमरे में बैठकर बात कर रही थी। बेला देवी बच्चों क साथ घेर में चली गईं थी घर पर अब कोई भी नहीं था, इन दोनों के अलावा

“दीदी ऐसी कोई बात नहीं कि वो घर छोडकर चले गए, बस अब वो हमेशा घर पर नहीं रहते पहले की तरह.... महीने में 1-2 बार आते रहते हैं या कोई जरूरी काम हो तो फोन करके बुला लेती हूँ...... फोन पर तो सारे दिन बात होती रहती है.... ये तो अपने भी देखा होगा कि हर घंटे – दो घंटे में मुझे फोन जरूर करते हैं” सुशीला ने कहा

“फिर भी कुछ तो बात है.... अगर तुम नहीं बताओगी तो भी मुझे पता है.... विनायक बता रहा था वहाँ किसी लड़की के साथ रह रहे हैं.... विनायक ने पूंछा कौन है तो बोले तुम्हारी चाची हैं ये भी” मंजरी ने चिंतित स्वर में कहा

“सही बताया विनायक ने उन्होने गरिमा से शादी कर ली है.....” सुशीला ने दर्द भरी मुस्कान के साथ कहा

“फिर तुम चुप क्यों हो.... पहले पिताजी ने 2 शादियाँ की, फिर धीरेंद्र ने और रवीद्र जो ऐसे बिलकुल नहीं लगते थे....उन्होने इस उम्र में आकर ऐसा किया.... अब तो मुझे विनायक के पापा से भी डर लगने लगा है...पता नहीं किस दिन तुम्हारी नयी जेठानी दरवाजे पर खड़ी हो” मंजरी ने गंभीरता से कहा

“आप भी दीदी.... इतना मत सोचो.... बाकी सबमें और इनमें बहुत फर्क है.... पिताजी ने इन माँ से अलग होने के बाद दूसरी शादी की, धीरेंद्र ने भी ऐसा ही किया.... लेकिन तुम्हारे देवर.... वो तो कभी मुझसे अलग हुये ही नहीं....आजतक एक भी दिन ऐसा नहीं हुआ कि मुझे ये लगा हो कि उन्होने मुझे छोड़ दिया है.... हर बात या काम के लिए ही नहीं.... खाने के समय पर भी हमेशा तीनों समय फोन करके ये जरूर पूंछते हैं कि मेंने और बच्चों ने खाना खाया या नहीं.... यहाँ तक कि क्या बनाया और क्या नहीं बनाना चाहिए..... आपको सुनकर हंसी आ जाएगी.... आज भी वो मुझसे एक बात को लेकर परेशान हैं... क्या बना लूँ.... हर बार खाना बनाने से पहले पूंछती हूँ..... बस ये नहीं पूंछ पाती.... क्या खाओगे?” मुस्कुराकर बोलते हुये बात पूरी करते-करते सुशीला की आँखों में आँसू आ गए

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#91
Story End??
My Stories:
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The Naughty "Office" Thing!




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