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Fantasy गेंदामल हलवाई का चुदक्कड़ परिवार
#61
(09-01-2019, 11:07 PM)bhavna Wrote: कहानी को आगे बढ़ाओ दोस्त। इतना इंतजार क्यों करवाते हो 
इंतेज़ार करवाने की बात नही है, थोड़ा काम मे वयस्त था, घर जा रहा हु एक महीने के लिए, इसलिए नही लिख पाया और न ही 1 महीने तक लिख पाउँगा, जो भी लिखा है अब तक उसे कल पोस्ट कर दूंगा, 
?????
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#62
जी शुक्रिया।
लेकिन एक महीना कैसे गुजारेंगे?
Anyways, छुट्टियां एंज्योय करें।
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#63
sahi hai bhai maza aa gya
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#64
1 month?
Yeh to badi nainsafi he.
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#65
Ek mahina galti se likha gaya rahenga. Ek saal ke liye chala gaya writer. Isliye Hain damak Halwayee ko bhul jana hi behtar hoga.
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#66
one hot pure desi gujarati erotic sex novel : http://xossipy.com/thread-4421.html
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#67
(31-12-2018, 03:39 PM)Starocks Wrote: भाग - 19

जैसे ही कुसुम ने अपने होंठों को उसके होंठों पर रखा.. उसने कुसुम के दोनों होंठों को चूसना शुरू कर दिया और नीचे अपनी कमर को पूरी रफ़्तार से हिलाते हुए.. राजू अपना लण्ड कुसुम की चूत में अन्दर-बाहर करता जा रहा था।

उधर कुसुम भी अपनी गाण्ड को बिस्तर से ऊपर उठा कर राजू का लण्ड अपनी चूत में ले रही थी।

फिर तो जैसे कुसुम की चूत से सैलाब उमड़ पड़ा।
उसका पूरा बदन अकड़ गया और उसने अपने नाख़ून राजू की पीठ में गड़ा दिए।
चमेली की खिली हुई के चूत के मुक़ाबले में कुसुम की कसी हुई चूत में राजू का लण्ड भी और टिक नहीं पाया और एक के बाद एक वीर्य की बौछार कर उसकी चूत की दीवारों को भिगोने लगा।

Badee mast kahani ben rehee hai
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#68
(02-01-2019, 11:47 AM)Starocks Wrote: भाग -24

वो जानता था कि अन्दर कौन आने वाला है और वो बिस्तर से खड़ा हो गया।

जैसे ही लता उसके कमरा में आई तो उसने अपने सर को झुका लिया।

लता ने एक बार सर झुकाए खड़े राजू की तरफ देखा, फिर पलट कर दरवाजे को बंद कर दिया।

लता ने अपने ऊपर शाल ओढ़ रखी थी।

Bahut acha likh rehe ho,gharelu stories ka mza hee alag hai,ma betee ka 3 some bhee kerwao kahi.
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#69
kya hua adhe main chhod diya kya
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#70
bahpt badhiya
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#71
देरी के लिए क्षमाप्रार्थी हु.... कुछ काम मे उलझ में गया था
अब आगे की कहानी लिखते है ...जल्दी है अगला भाग प्रकाशित होगा
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#72
भाग - 56

क्योंकि जिस शहर में गेंदामल सेठ की दुकान थी.. वहाँ पर बहुत बड़ा मेला लगने वाला था और मेला में दिन रात चहल-पहल बनी रहती थी। मेला पूरे हफ्ते भर चलता था.. इसलिए दुकान मेले के दिनों में दिन-रात खुली रहती थी। गेंदामल को दिन-रात दुकान में ही रहना पड़ता था। इसलिए वो दीपा और राजू को ले जाने आया था.. क्योंकि रात को कुसुम अकेली हो जाती।

आज उन तीनों को गाँव वापिस जाना था.. इसलिए तीनों घर वापिस जाने की तैयारी कर रहे थे और कुछ ही देर में वो तीनों घर के लिए रवाना हो गए।

शाम को जब तीनों घर पर पहुँचे.. तो कुसुम तीनों को देख कर बहुत खुश हुई खास तौर पर राजू को देख कर..

चमेली जो कि रतन के वापिस चले जाने से कुछ उदास थी.. वो भी राजू को देख कर खुश थी। आख़िर कोई तो उसे भी अपनी चूत की आग बुझाने के लिए चाहिए था।

चमेली अपना काम निपटा कर चली गई.. शाम के 4 बजे जब सब अपने-अपने कमरों में आराम कर रहे थे।

सेठ दुकान पर जा चुका था.. तो कुसुम चुपके से अपने कमरे से बाहर निकल कर पीछे राजू के कमरे की तरफ चल पड़ी।

राजू अपने कमरे मैं खाट पर लेटा हुआ था.. कुसुम को अपने कमरे में देखते ही वो चारपाई से उठ खड़ा हुआ और कुसुम को अपनी बाँहों में भर लिया।

कुसुम ने भी अपनी बाँहें उसकी कमर पर कस लीं और दोनों के होंठ आपस में जा लगे।

थोड़ी देर बाद कुसुम ने अपने होंठों को राजू के होंठों से हटाया और उसका हाथ पकड़ कर अपने पेट पर रख दिया।

राजू उसकी आँखों में सवालिया नज़रों से देख रहा था।

कुसुम ने मुस्कुराते हुए.. उसके कान के पास जाकर धीरे से बोला- तुम्हारा है..

कुसुम की ये बात राजू अच्छे से नहीं समझ पाया।

राजू ने धीमी आवाज़ में कहा- क्या ?

कुसुम ने मुस्कुराते हुए कहा- मेरे पेट में तुम्हारा बच्चा है।

राजू कुसुम की बात सुन कर एकदम से घबरा गया.. वो फटी हुई आँखों से कुसुम की तरफ देखे जा रहा था। अगले ही पल कुसुम एकदम से हँस पड़ी।

कुसुम- अरे तू इतना घबरा क्यों रहा है.. तुझे कुछ नहीं होने दूँगी.. तेरे जाने के बाद मैं तेरे सेठ के साथ कुछ रातों को हम-बिस्तर हुई थी। ये बच्चा उनके ही नाम से इस दुनिया में आएगा.. यकीन मानो किसी को पता भी नहीं चलेगा.. बस दु:ख इस बात का है कि अब कई महीनों तक तुझसे चुदवा नहीं पाऊँगी।

कुसुम की बात सुन कर राजू को थोड़ी राहत मिली और वो भी मुस्कुराते हुए.. उसके पेट पर धीरे-धीरे हाथ फेरने लगा।

“पर मालकिन अब मेरा क्या होगा.. इतना समय मैं कैसे गुजारा करूँगा..?”

उसने कुसुम की आँखों में देखते हुए कहा।

“ढूँढ़ दूँगी तेरे लिए एक नई चूत.. अब खुश..”

राजू- नई चूत? कहाँ से ढूँढोगी..?

कुसुम- है मेरी नज़र में एक.. वैसे तू भी जानता है उसके बारे में.. और मुझे लगता है कि वो भी तेरे ऊपर फिदा है।

राजू- अच्छा मुझे भी बताओ.. कौन मुझ पर फिदा है।

कुसुम- बता दूँ..?

राजू- हाँ.. जल्दी बताओ ना..।

कुसुम- दीपा… तुम्हें पसंद है ना..?

कुसुम की बात सुन कर राजू एकदम से चौंक जाता है.. पर उसे इस बात का अहसास हो जाता है कि कुसुम नहीं जानती कि उसके और दीपा के बीच पहले से ही सब कुछ हो चुका है।

राजू- वो तो ठीक है.. पर दीपा तो मुझसे घर में मिल भी नहीं पाती और आप तो जानती ही हो कि सेठ जी दीपा पर हमेशा नज़रें रखते हैं।

कुसुम- तू उसकी फिकर मत कर.. अब सेठ जी अगले एक हफ्ते के लिए दिन-रात दुकान पर ही रहेंगे और मैं तुम्हारे पास.. तो अब बहुत मौके होंगे.. बस किसी तरह एक बार तुम दीपा को पटा लो..।

राजू ने कुसुम के चेहरे पर ख़ुशी देखते हुए कहा- वो तो ठीक है.. पर आप को अच्छा लगेगा..? जब मैं और दीपा.. पर आप इतना क्यों खुश हो रही हो..?

कुसुम ने राजू की बात सुन कर एकदम सकपकाते हुए कहा- नहीं.. वो तो ऐसे ही बोल दिया, तुझे पता है ना.. मैं तुम्हें उदास नहीं देख सकती और तेरी वजह से ही तो अब मुझे अपने घर में पुरानी हैसियत वापिस मिलने वाली है.. और हाँ.. वैसे चमेली भी तो है.. उसे तो तुम कई बार चोद चुके हो ना…।

राजू कुसुम की बात सुन कर झेंप जाता है।

“नहीं मालकिन.. आपको किसने कहा.. मैं और चमेली.. हो ही नहीं सकता।”

कुसुम राजू की बातों का मज़ा ले रही थी।

“अच्छा.. मुझे बच्ची समझा है क्या.. बच्चे.. अच्छी तरह से जानती हूँ तुझे और उस चमेली को भी.. मुझसे होशियारी मत कर..।”

कुसुम हँसते हुए बाहर जाने लगती है और फिर पीछे मुड़ कर उससे कहती है।

“वैसे चमेली का मर्द भी दुकान पर ही रहेगा दिन-रात.. चाहो तो आज उसके घर चले जाना..।”

और फिर कुसुम घर के आगे के तरफ अपने कमरे में चली जाती है।

राजू तो जैसे ख़ुशी के मारे उछल पड़ता है.. वो जानता है कि कुसुम को इस बात का पता नहीं है कि उसकी और दीपा के बीच पहले से सब कुछ हो चुका है और अब तो कुसुम भी उसे खुल कर चमेली और दीपा को चोदने के लिए कह गई थी।

रात हो चुकी थी और चमेली सबको खाना खिला कर अपने घर वापिस जाने को थी।

जैसे ही चमेली दरवाजे तक पहुँची.. तो कुसुम ने उसे आवाज़ लगाई।

चमेली कुसुम की आवाज़ सुन कर वापिस आ गई।

आँगन में दीपा और कुसुम पलंग पर बैठे हुए थे.. जबकि राजू नीचे बैठा हुआ था।

कुसुम ने राजू के तरफ देखते हुए.. एक कातिल मुस्कान के साथ बात शुरू की।

कुसुम- चमेली मैं कह रही थी कि जब तक मेला चल रहा है और जब तक सेठ जी दुकान पर रहेंगे.. तब तक तुम यहीं सो लिया करो और वैसे भी तुम्हारे घर पर कौन है.. वहाँ पर भी जाकर तो सोना ही है।

चमेली- पर मालकिन वो में..।

कुसुम- पर..पर.. क्या लगा रखा है.. दीपा मेरे साथ सो जाएगी और तुम राजू के कमरे में सो जाना.. एक बिस्तर नीचे लगा लेना अपने लिए..।

जैसे ही चमेली ने ये बात सुनी। उसका दिल एकदम से ख़ुशी से उछल पड़ा.. पर अचानक से उसके मन में ख्याल आया कि आख़िर आज कुसुम को क्या हो गया है.. पहले तो वो राजू पर उसकी परछाई भी पड़ने नहीं देती थी और आज एकदम से वो इतनी मेहरबान कैसे हो गई।

चमेली सवालिया नज़रों से कुसुम की तरफ देख रही थी।

इस पहले कि कुसुम कुछ बोलती.. राजू उठ कर पीछे अपने कमरे की तरफ चला गया।

कुसुम ने देखा कि चमेली अब भी वहीं खड़ी है। उसने दीपा को बोला कि वो अन्दर जाकर बिस्तर ठीक करे.. मैं थोड़ी देर में आती हूँ।

दीपा उठ कर कुसुम के कमरे में चली गई और कुसुम उठ कर रसोई की तरफ जाने लगी। जैसे ही वो चमेली के पास से गुज़री.. तो उसने चमेली को धीरे से रसोई में आने के लिए बोला।

चमेली कुसुम के पीछे रसोई के तरफ चल पड़ी। थोड़ी देर में दोनों रसोई के अन्दर थीं।

“जी मालकिन..?” चमेली ने नीचे की तरफ देखते हुए कहा।

कुसुम के होंठों पर मुस्कान फ़ैल गई।

“अरे इतना क्यों घबरा रही हो.. क्या मैं जानती नहीं कि तू कितनी ही बार राजू से अपनी चूत चुदवा चुकी हो.. मैं तो बस यही चाहती हूँ कि आज तुम जी भर कर राजू का लण्ड अपनी चूत में लेकर चुदवा लो..

चमेली- पर मालकिन आप.. पर आप तो राजू को..

चमेली बोलते-बोलते चुप हो गई।

इस पर कुसुम के होंठों पर एक बार फिर से मुस्कान फ़ैल गई।

कुसुम- तू यही कहना चाहती है ना कि राजू को तो मैंने फँसा रखा है।

चमेली- जी..

कुसुम- चमेली.. तुम जानती हो कि जब शिकारी का पेट शिकार को खा कर भर जाए.. तो उसे अपना शिकार दूसरों से बाँटने में कोई परेशानी नहीं होती.. चल आज से मैं अपना शिकार तेरे साथ बाँट लूँगी.. जा मज़े कर जाकर..।

ये कहने के बाद कुसुम अपने कमरे में आ गई।

चमेली वहीं खड़ी कुसुम के कमरे का दरवाजा बंद होने का इंतजार कर रही थी.. उसकी चूत तो अभी से पानी छोड़ने लगी थी.. ये सोच-सोच कर कि आज तो मालकिन कुसुम ने भी उस चुदवाने के इजाज़त दे दी है।

जैसे ही कुसुम के कमरे का दरवाजा बंद हुआ.. चमेली तेज़ी से रसोई में से निकल कर राजू के कमरे की तरफ चल पड़ी। राजू के कमरे का दरवाजा खुला हुआ था और अन्दर लालटेन जल रही थी।

अन्दर लेटा हुआ.. राजू चमेली को अपने कमरे की तरफ आ हुए देख रहा था और फिर चमेली ने अन्दर आते ही.. जल्दी से दरवाजा बंद किया और राजू की तरफ हसरत भरी नज़रों से देखने लगी।

राजू चारपाई से उठा और चमेली को अपनी बाँहों में भरते हुए.. उसके होंठों को अपने होंठों में भर लिया।

चमेली किसी बेल की तरह राजू से लिपट गई और दोनों के होंठों के बीच घमासान शुरू हो गया।
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#73
भाग - 57

पूरे कमरे में ‘ओह्ह..आह्ह..’ की आवाज़ें गूँज रही थीं।

राजू के हाथ चमेली के पेट से नीचे की ओर सरकते हुए.. उसके मोटे-मोटे चूतड़ों पर आ चुके थे। राजू चमेली के होंठों को चूसते हुए.. उसके भारी और मोटे चूतड़ों को अपने दोनों हाथों में भर कर मसलने लगा।
चमेली उसकी बाँहों में पागलों की तरह छटपटाने लगी। राजू ने अपने होंठों को चमेली के होंठों से अलग किया और अपना पजामा उतार कर चारपाई पर नीचे पैर लटका कर बैठ गया। उसका 8 इंच का लण्ड हवा में झटके खा रहा था।

उसका 8 इंच लंबा और 3 इंच मोटा लण्ड देख कर चमेली की चूत की फाँकें फुदकने लगीं.. वो तेज़ी से राजू के पास आकर पैरों के बल नीचे ज़मीन पर बैठ गई और उसके लण्ड को हाथ में लेकर राजू के आँखों में देखते हुए बोली।

चमेली- आह राजू.. मेरी चूत का बुरा हाल था.. तेरे लण्ड के बिना…।

और अगले ही पल चमेली ने राजू के लण्ड को अपने होंठों में भर लिया और उसके लण्ड के सुपारे पर अपने होंठों को दबाते हुए.. उसके लण्ड को चूसने लगी।

राजू मस्ती में आकर पीछे के तरफ लुढ़क गया। अब भी उसके पैर चारपाई से नीचे लटक रहे थे।

चमेली तेज़ी से राजू के लण्ड को अपने मुँह में अन्दर-बाहर करते हुए चूस रही थी.. उसने जल्दी से अपनी चोली खोल कर नीचे ज़मीन पर गिरा दी।

फिर राजू के लण्ड को मुँह से बाहर निकाला और चारपाई के किनारे पर राजू की जाँघों के दोनों तरफ पैर रख कर बैठते हुए अपने लहँगे को अपनी कमर तक उठा लिया।

फिर उसने राजू के लण्ड को एक हाथ से पकड़ कर अपनी चूत के छेद पर टिका कर धीरे-धीरे लौड़े के ऊपर बैठने लगी। राजू के लण्ड का सुपारा चमेली की गीली चूत के छेद को फ़ैलाता हुआ अन्दर घुसने लगा।

चमेली के पूरे बदन में मस्ती की लहर दौड़ गई और उसने आगे की ओर झुकते हुए.. अपनी गाण्ड को ज़ोर से नीचे के तरफ पटका.. गीली चूत में राजू का लण्ड सरसराता हुआ.. अन्दर जा घुसा..।

“ओह राजूऊऊ आह्ह.. सस..इई”

चमेली राजू के लण्ड की गरमी को अपनी चूत में महसूस करके सिसक उठी।

चमेली मस्ती में आकर तेज़ी से अपनी गाण्ड को ऊपर-नीचे करने लगी।

राजू अपनी आँखें बंद किए हुए चुदाई का मज़ा ले रहा था।

चमेली का पूरा बदन चूत में लण्ड की रगड़ को महसूस करते हुए काँप रहा था.. पर वो लगातार अपने धक्कों को जारी रखे हुए थी।

थोड़ी देर बाद राजू ने चमेली को अपने ऊपर से उठने के लिए कहा और जैसे ही चमेली उसके ऊपर से उठी.. चूत में से पानी से भीगा हुआ लण्ड बाहर आकर लालटेन की रोशनी में चमकने लगा।

“आह.. क्या गरम चूत है काकी.. तुम्हारी.. इतनी बड़ी बेटी हो गई है.. और देखो अभी भी कुँवारी छोकरी की तरह पानी की नदियां बहा रही है”

राजू की बात सुन कर चमेली एकदम से शर्मा गई.. पर अभी तो उसकी चूत की अन्दर आग लगी हुई थी.. वो चारपाई पर पीठ के बल लेट गई और अपनी जाँघों को पूरा खोल कर फैला दिया।

राजू जल्दी से उसकी जाँघों के बीच में आया और उसकी टाँगों को घुटनों से पकड़ कर मोड़ कर ऊपर उठा दिया।

इससे उसकी चूत का छेद खुल कर सामने आ गया और अगले ही पल राजू ने अपने लण्ड के सुपारे को चूत के छेद पर टिका कर जोरदार धक्का मारा।

“आह्ह..”

चमेली एकदम से सिसक उठी और फिर राजू ने बिना रुके.. ताबड़तोड़ धक्के लगाने शुरू कर दिया।

दनादन 5 मिनट के चुदाई के बाद राजू के लण्ड से वीर्य की बौछार चमेली की चूत में होने लगी और चमेली का बदन झड़ने के कारण झटके खाने लगा।

अगली सुबह जब राजू उठा.. तो वो अकेला अपने कमरे में चारपाई पर लेटा हुआ था। उसका पूरा बदन दर्द कर रहा था.. एक तो सफ़र की थकान और दूसरा रात को उसने चमेली के जबरदस्त चुदाई की थी।

राजू मन मार कर चारपाई से उठा और कमरे का दरवाजा खोल कर बाहर आ गया। जैसे ही राजू कमरे से बाहर आया.. तो मानो उसकी सारी थकान एक पल में उतर गई हो.. उसके होंठों पर एक लंबी मुस्कान फ़ैल गई।

उसके सामने दीपा खड़ी थी.. राजू और दीपा दोनों की नजरें आपस में मिलीं.. शायद दीपा अभी नहा कर गुसलखाने से निकली ही थी.. उसके बालों से पानी की टपकती बूंदें ऐसे लग रही थीं.. जैसे मानो मोती हों।

राजू उससे बात करने के लिए जैसे ही आगे बढ़ा तो पीछे से उससे चमेली आती हुई दिखाई दी। अब राजू रुक तो नहीं सकता था.. इसलिए चलता हुआ.. वो घर के आगे की तरफ चला गया।

राजू खेतों में शौच के लिए गया और फिर आकर नहा-धो कर घर के सामने वाले आँगन में नास्ते के लिए नीचे फर्श पर बैठ गया। कुसुम वहीं पलंग पर बैठी हुई थी।

दीपा अपने कमरे में थी.. कुसुम ने वहीं से बैठे हुए.. चमेली को आवाज़ दी।

कुसुम- अरे ओ चमेली.. राजू के लिए नास्ता लगा दे..।

चमेली ने रसोई से कहा- जी मालकिन..

थोड़ी देर बाद चमेली राजू के लिए नास्ता लेकर आ गई और जैसे ही वो राजू को नास्ते की प्लेट देने के लिए झुकी थी.. दोनों ने एक बार एक-दूसरे की आँखों में देखा और रात की चुदाई के बारे में याद आते ही चमेली के होंठों पर कामुक मुस्कान फ़ैल गई।

पास में पलंग पर बैठी.. कुसुम उन दोनों को देख रही थी।

कुसुम- अरी रांड.. थोड़ा घी भी डाल देती.. इतनी मेहनत करवाती है लड़के से..

कुसुम के मुँह से यह सुन कर चमेली एकदम से झेंप गई.. पर चमेली भी कुसुम को करारा जवाब दिए बिना रह नहीं सकती थी।

चमेली- अरे हमारे ऐसे भाग कहाँ मालकिन.. ये बेचारा तो पिछले दो महीनों से तुम्हारे खेतों की ही तो जुताई कर रहा है।

कुसुम के दिल की धड़कनें चमेली की बात सुन कर और तेज हो गईं.. उसने पलट कर एक बार दीपा के कमरे की तरफ देखा और बोली। “कलमुँही.. धीरे नहीं बोल सकती क्या..? पता नहीं दीपा घर में है..”

कुसुम की फटकार सुन कर चमेली मुँह बिचकाते हुए रसोई में चली गई।

राजू खाना खा कर फिर से पीछे बने कमरे में चला गया।

चमेली रसोई का सारा काम खत्म कर चुकी थी और वो घर जाने ही वाली थी कि तभी कुसुम रसोई में आई।

कुसुम- सारा काम निपट गया ?

चमेली- जी मालकिन..।

कुसुम- अच्छा तो चल फिर आज मुझे अपनी काकी सास के घर जाना है… तू मेरे साथ चल.. बहुत दिन हो गए.. उनसे मिले हुए।

चमेली- जी चलिए…।

उसके बाद कुसुम दीपा को बता कर चमेली के साथ सास के घर चली गई। अब दीपा घर में राजू के साथ एकदम अकेली थी.. पर राजू घर के पीछे अपने कमरे में अकेला चारपाई पर लेटा हुआ था।

दीपा का दिल जोरों से धड़क रहा था.. हर पल उसके लिए काटना मुश्किल होता जा रहा था। पर राजू था कि दुनिया से बेसुध अपने उस कमरे मैं लेटा हुआ था।

करीबन आधा घंटा बीत चुका था.. दीपा को समझ में नहीं आ रहा था कि वो क्या करे। बार-बार उसका दिल राजू की और खिंचा चला जा रहा था.. उसके बदन के रोम-रोम में अजीब सी सनसनाहट दौड़ रही थी। दीपा एकदम से अपने बिस्तर से खड़ी हुई और उसके कदम अपने आप ही घर के पिछवाड़े की ओर बढ़ने लगे। धड़कते दिल और काँपते हुए पैरों के साथ हर पल उसे एक अजीब से बेचैनी का अहसास हो रहा था। जैसे ही वो घर के पिछवाड़े में पहुँची.. तो उसने राजू के कमरे का दरवाजा बंद पाया।

वो गुसलखाने की तरफ़ बढ़ने लगी.. पर निगाहें राजू के कमरे के दरवाजे पर गड़ी हुई थीं। तभी दीपा ज़ोर से किसी चीज़ से टकराई और जैसे ही वो गिरने को हुई.. तो किसी ने उसे थाम लिया। दीपा की आँखें डर के मारे बंद हो गई थीं।
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#74
मस्त कहानी। इतना बड़ा अंतराल होने से पात्रो के नाम तक भूल जाते हैं। कौन कुसुम कौन दीपा? सब कहानी दुबारा पढ़नी होती है।
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#75
Update plz
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#76
yourock superb Bro
Hats Of
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#77
KYA HUA ADHA MAIN CHHOD DIYA
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