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कामया बहू से कामयानी देवी
दोस्तों, यह कहानी नेट से ली गई है, जो रोमन में थी। मुझे अच्छी लगी, इसलिये हिन्दी लिपि में शेयर कर रहा हूँ। शायद कुछ लोगों ने पढ़ी भी होगी। मूल लेखक को आभार। यदि किसी को कोई आपत्ति हो तो सूचित करें, कहानी बंद कर दूंगा।
इस कहानी में कामया एक मध्यम वर्गीय परिवार की लड़की है, जिसकी शादी एक बहुत ही अमीर बड़े घर में हो जाती है। उसके जीवन में बहुत से मोड़ आते हैं, और आखीर में वो एक बहुत बड़े आश्रम की मुखिया कामयानी देवी बन जाती है। देखिये ये सब कैसे होता है। तो अब कहानी शुरू करते हैं।
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https://www.xossip.com/showthread.php?t=1089957 (बड़े घर की बहू - Roman)
https://www.xossip.com/showthread.php?t=1538983 (कामया बहू से कामयानी देवी)
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पात्र (किरदार) परिचय
01. ससुरजी- कामया के ससुर
02. सासूमाँ- कामया की सास
03. कामेश- कामया का पति
04. कामया- कहानी की नायिका, मध्यम वर्गीय परिवार की लड़की
05. भीमा- खाना बनाने वाला नौकर
06. भोला- कामेश का ड्राइवर
07. लक्खा- पापाजी और मम्मीजी का ड्राइवर
08. गुरूजी- आश्रम के मुखिया
09. रूपसा- गुरूजी की दासी
10. मंदिरा- गुरूजी की दासी
11. मनसा- गुरूजी की दासी
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यह कहानी एक बड़े ही मध्यम वर्गीय परिवार की लड़की की है नाम है कामया। कामया एक बहुत ही खूबसूरत और पढ़ी लिखी लड़की है। पापा उसके प्रोफेसर थे और माँ बैंक की कर्मचारी। शादी भी कामया की एक बहुत बड़े घर में हुई थी, जो की उस शहर के बड़े ज़्वेलर थे। बड़ा घर… घर में सिर्फ 4 लोग थे, कामया के ससुरजी, सासू माँ, कामेश और कामया बस।
बाकी नौकर भीमा, जो की खाना बनाता था और घर का काम करता था, और घर में ही ऊपर छत पर बने हुए कमरे में रहता था। ड्राइवर लक्खा, पापाजी और मम्मीजी का पुराना ड्राइवर था, जो की बाहर मंदिर के पास एक कमरे में, जो ससुरजी ने बनाकर दिया था, रहता था।
कामेश के पास दूसरा ड्राइवर था भोला, जो की बाहर ही रहता था। रोज सुबह भोला और लक्खा आते थे और गाड़ी साफ करके बाहर खड़े हो जाते थे, घर का छोटा-मोटा काम भी करते थे। कभी भी पापाजी और मम्मीजी या फिर कामेश को किसी काम के लिये ना नहीं किया था। गेट पर एक चौकीदार था जो की कंपाउंड में ही रहता था आउटहाउस में, उसकी पत्नी घर में झाड़ू पोंछा और घर का काम जल्दी ही खतम करके दुकान पर चली जाती थी, साफ-सफाई करने।
पापाजी और मम्मीजी सुबह जल्दी उठ जाते थे और अपने पूजा पाठ में लग जाते थे। नहा धोकर कोई 11:00 बजे पापाजी दुकान के लिये निकल जाते थे और मम्मीजी दिन भर मंदिर के काम में लगी रहती थी। (घर पर ही एक मंदिर बना रखा था उन्होंने, जो की पापाजी और मम्मीजी के कमरे के पास ही था)। मम्मीजी के जोड़ों में दर्द रहता था इसलिये ज्यादा चल फिर नहीं पाती थी, इसलिए हमेशा पूजा पाठ में मस्त रहती थी। घर के काम की कोई चिंता थी नहीं, क्योंकी भीमा सब संभाल लेता था।
भीमा को यहां काम करते हुए लगभग 30 साल हो गये थे। कामेश उनके सामने ही जन्मा था इसलिये कोई दिक्कत नहीं थी। पुराने नौकर थे तभी सब बेफिक्र थे। वैसे ही लक्खा था, बात निकालने से पहले ही काम हो जाता था।
सुबह से ही घर का महौल बिल्कुल व्यवस्थित होता था। हर कोई अपने काम में लगा रहता था। फ्री होती थी तो बस कामया। कोई काम नहीं था बस पति के पीछे-पीछे घूमती रहती थी और कुछ ना कुछ डिमांड करती रहती थी, जो की शाम से पहले ही पूरी हो जाती थी।
कामेश और कामया की सेक्स लाइफ भी मस्त चल रही थी, कोई शिकायत नहीं थी दोनों को। जमकर घूमते फिरते थे और खाते पीते थे और रात को सेक्स। सब कुछ बिल्कुल मन के हिसाब से, ना कोई रोकने वाला, ना कोई टोकने वाला।
पापाजी को सिर्फ दुकान से मतलब था, मम्मीजी को पूजा पाठ से।
कामेश को अपने बिज़नेस को और बढ़ाने की धुन थी। छोटी सी दुकान से कामेश ने अपनी दुकान को बहुत बड़ा बना लिया था। पढ़ा-लिखा ज्यादा नहीं था पर सोने चाँदी के उत्तरदाइत्वों को वो अच्छे से देख लेता था और प्राफिट भी कमा लेता था। अब तो उसने रत्नों का काम भी शुरू कर दिया था। हीरा, रूबी, मोती और बहुत से।
घर भर में एक बात सबको मालूम थी की कामया के आने के बाद से ही उनके बिज़नेस में चाँदी हो गई थी, इसलिए सभी कामया को बहुत इज्जत देते थे। पर कामया दिन भर घर में बोर हो जाती थी, ना किचेन में काम और ना ही कोई और जिम्मेदारी। जब मन हुआ तो शापिंग चली जाती थी। कभी किसी दोस्त के पास, तो कभी पापा मम्मी से मिलने, तो कभी कुछ, तो कभी कुछ। इसी तरह कामया की शादी के 10 महीने गुजर गये। कामेश और पापाजी जी कुछ पहले से ज्यादा बिजी हो गये थे।
पापाजी हमेशा ही यह कहते थे की कामया तुम्हारे आते ही हमारे दिन फिर गये हैं। तुम्हें कोई भी दिक्कत हो तो हमें बताना, क्योंकी घर की लक्ष्मी को कोई दिक्कत नहीं होना चाहिए। सभी हँसते और खुश होते। कामया भी बहुत खुश होती और फूली नहीं समाती।
घर के नौकर तो उससे आखें मिलाकर बात भी नहीं करते थे।
अगर वो कुछ कहती तो बस- “जी बहू रानी…” कहकर चल देते और काम हो जाता।
लेकिन कामया के जीवन में कुछ खालीपन था जो वो खुद भी नहीं समझ पाती थी की क्या? सब कुछ होते हुए भी उसकी आखें कुछ तलाशती रहती थीं। क्या? पता नहीं? पर हाँ कुछ तो था जो वो ढूँढ़ती थी। कई बार अकेले में कामया बिलकुल खाली बैठी शून्य को निहारती रहती, पर ढूँढ़ कुछ ना पाती। आखिर एक दिन उसके जीवन में वो घटना भी हो गई। (जिस पर यह कहानी लिखी जा रही है।)
***** *****
उस दिन घर पर हमेशा की तरह घर में कामया मम्मीजी और भीमा थे। कामवाली झाड़ू पोंछा करके निकल गई थी। मम्मीजी पूजा घर में थी कामया ऊपर से नीचे उतर रही थी। शायद उसे किचेन की ओर जाना था, भीमा से कुछ कहने के लिये। लेकिन सीढ़ी उतरते हुए उसका पैर आखिरी सीढ़ी में लचक खाकर मुड़ गया।
दर्द के मारे कामया की हालत खराब हो गई। वो वहीं नीचे, आखिरी सीढ़ी में बैठ गई और जोर से भीमा को आवाज लगाई- “भीमा चाचा, जल्दी आओ…”
भीमा दौड़ता हुआ आया और कामया को जमीन पर बैठा देखकर पूछा- क्या हुआ बहू रानी?
कामया- “उफफ्फ़…” और कामया अपनी एंड़ी पकड़कर भीमा की ओर देखने लगी।
भीमा जल्दी से कामया के पास जमीन पर ही बैठ गया और नीचे झुक कर वो कामया की एंड़ी को देखने लगा।
कामया- “अरे देख क्या रहे हो? कुछ करो, बहुत दर्द हो रहा है…”
भीमा- पैर मुड़ गया क्या?
कामया- “अरे हाँ… ना… प्लीज चाचा, बहुत दर्द हो रहा है…”
भीमा जो की कामया के पैर के पास बैठा था कुछ कर पाता, तब तक कामया ने भीमा का हाथ पकड़कर हिला दिया, और कहा- क्या सोच रहे हो, कुछ करो की कामेश को बुलाऊँ?
भीमा- “नहीं नहीं, मैं कुछ करता हूँ, रुकिये। आप उठिए और वहां चेयर पर बैठिये…” और साइड होकर खड़ा हो गया।
कामया- “क्या चाचा… थोड़ा सपोर्ट तो दो…”
भीमा थोड़ा सा आगे बढ़ा और कामया के बाजू को पकड़कर उठाया और थोड़ा सा सहारा देकर डाइनिंग चेयर तक ले जाने लगा। कामया का दर्द अब भी वैसा ही था। लेकिन बड़ी मुश्किल से वो भीमा का सहारा लिए चेयर तक पहुँची और धम्म से चेयर पर बैठ गई। उसके पैरों का दर्द अब भी वैसा ही था। वो चाहकर भी दर्द को सहन नहीं कर पा रही थी, और बड़ी ही दयनीय नजरों से भीमा की ओर देख रही थी।
भीमा भी कुछ करने की स्थिति में नहीं था। जिसने आज तक कामया को नजर उठाकर नहीं देखा था, वो आज कामया की बाहें पकड़कर चेयर तक लाया था। कितना नरम था कामया का शरीर, कितना मुलायम और कितना चिकना। भीमा ने आज तक इतनी मुलायम, चिकनी और नरम चीज नहीं छुआ था। भीमा अपने में गुम था की उसे कामया की आवाज सुनाई दी।
कामया- “क्या चाचा, क्या सोच रहे हो?” और कामया ने अपनी साड़ी को थोड़ा सा ऊपर कर दिया और भीमा की ओर देखते हुए अपने एंड़ी की ओर देखने लगी।
भीमा अब भी कामया के पास नीचे जमीन पर बैठा हुआ कामया की चिकनी टांगों की ओर देख रहा था। इतनी गोरी है बहू रानी और कितनी मुलायम? भीमा अपने को रोक ना पाया, उसने अपने हाथों को बढ़ाकर कामया के पैरों को पकड़ ही लिया और अपने हाथों से उसकी एंड़ी को धीरे-धीरे दबाने लगा।
हल्के हाथों से उसकी एंड़ी के ऊपर तक ले जाता, फिर नीचे की ओर ले आता था, और जोर लगाकर एंड़ी को ठीक करने की कोशिश करने लगा। भीमा एक अच्छा मालिश करने वाला था। उसे पता था की मोच का इलाज कैसे होता है? वो यह भी जानता था की कामया को कहां चोट लगी है, और कहां दबाने से ठीक होगा? पर वो तो अपने हाथों में बहू रानी की सुंदर टांगों में इतना खोया हुआ था की उसे यह तक पता नहीं चला की वो क्या कर रहा था? भीमा अपने आप में खोया हुआ कामया के पैरों की मालिश कर रहा था और कभी-कभी जोर लगाकर कामया की एंड़ी में लगी मोच को ठीक कर रहा था।
कुछ देर में ही कामया को आराम मिल गया और वो बिल्कुल दर्द मुक्त हो गई। उसे जो शांती मिली, उसकी कोई मिशाल नहीं थी। जो दर्द उसकी जान लेने को था अब बिल्कुल गायब था।
इतने में पूजा घर से आवाज आई और मम्मी पूजा छोड़कर धीरे-धीरे लंगड़ाती हुई बाहर आई और पूछा- “क्या हुआ बहू?”
कामया- मम्मीजी, कुछ नहीं सीढ़ी उतरते हुए जरा एंड़ी में मोच आ गई थी।
मम्मीजी- “अरे… कहीं ज्यादा चोट तो नहीं आई?”
तब तक मम्मीजी भी डाइनिंग रूम में दाखिल हो गई और कामया को देखा की वो चेयर पर बैठी है, और भीमा उसकी एंड़ी को धीरे-धीरे दबाकर मालिश कर रहा था।
मम्मीजी ने कामया से कहा- “जरा देखकर चला कर बहू। वैसे भीमा को बहुत कुछ आता है। दर्द का एक्सपर्ट डाक्टर है मालीश भी बहुत अच्छी करता है। क्यों भीमा?”
भीमा- “जी माँ जी, अब बहू रानी ठीक हैं…” कहते हुए उसने कामया के एंड़ी को छूते हुए धीरे से नीचे रख दिया और चला गया। उसने नजर उठाकर भी कामया की ओर नहीं देखा।
लेकिन भीमा के शरीर में एक अजीब तरह की हलचल मच गई थी। आज पता नहीं उसका मन उसके काबू में नहीं था। कामेश और कामया की शादी के इतने दिन बाद आज पता नहीं भीमा जाने क्यों कुछ बिचलित था। बहू रानी के मोच के कारण जो भी उसने आज किया, उसके मन में एक ग्लानि सी थी। क्यों उसका मन बहू की टांगों को देखकर इतना बिचलित हो गया था? उसे नहीं मालूम। लेकिन जब वो वापस किचेन में आया तो उसका मन कुछ भी नहीं करने को हो रहा था। उसके जेहन में बहू की एंड़ी और घुटने तक की टाँगें घूम रही थीं, कितना गोरा रंग था बहू का, कितना सुडौल था, कितना नरम और कोमल था उसका शरीर? सोचते हुए वो ना जाने क्या करता जा रहा था। इतने में किचेन का इंटरकाम बजा।
मम्मीजी- अरे भीमा जरा हल्दी और दूध ला दे, बहू को कहीं दर्द ना बढ़ जाए।
भीमा- “जी माँजी, अभी लाया…” और भीमा फिर से वास्तविकता में लौट आया। फिर दूध और हल्दी मिलाकर वापस डाइनिंग रूम में आया। मम्मीजी और बहू वहीं बैठे हुए आपस में बातें कर रहे थे।
भीमा के अंदर आते ही कामया ने नजर उठाकर भीमा की ओर देखा। पर भीमा तो नजर झुकाए हुए डाइनिंग टेबल पर दूध का ग्लास रखकर वापस किचेन की ओर चल दिया।
कामया- भीमा चाचा थैंक्स।
भीमा- जी… अरे इसमें क्या मैं तो इस घर का नौकर हूँ। थैंक्स क्यों बहू जी?
कामया- “अरे आपको क्या बताऊँ कितना दर्द हो रहा था। लेकिन आप तो कमाल के हो फट से ठीक कर दिया…” ऐसा कहती हुई वो भीमा की ओर बढ़ी और अपना हाथ बढ़ाकर भीमा की ओर किया और आखें उसकी भीमा की ओर ही थीं।
भीमा कुछ नहीं समझ पाया पर हाथ आगे करके- बहू क्या चाहती हो?
कामया- “अरे हाथ मिलाकर थैंक्स करते हैं…” और एक मदहोश करने वाली हँसी पूरे डाइनिंग रूम में गूँज उठी।
माँ जी भी वहीं बैठी हुई मुश्कुरा रही थी। उनके चेहरे पर भी कोई सिकन नहीं थी की बहू उससे हाथ मिलाना चाहती थी।
बड़े ही डरते हुए भीमा ने अपना हाथ आगे किया और धीरे से बहू की हथेली को थाम लिया। कामया ने भी झट से भीमा चाचा की हथेली को कसकर अपने दोनों हाथों से जकड़ लिया, और मुश्कुराते हुए जोर-जोर से हिलाने लगी और थैंक्स कहा।
भीमा जो की अब तक किसी सपने में ही था, और भी गहरे सपने में उतरते हुए उसे दूर बहुत दूर से कुछ थैंक्स जैसा सुनाई दिया। उसके हाथों में अब भी कामया की नाजुक हथेली थी, जो की उसे किसी रूई की तरह लग रही थी, और उसकी पतली-पतली उंगलियां, जो की उसके मोटे और पत्थर जैसी हथेली से रगड़ खा रही थीं, उसे किसी स्वप्नलोक में ले जा रही थी। भीमा की नजर कामया की हथेली से ऊपर उठी, तो उसकी नजर कामया की दाईं चूची पर टिक गई, जो की उसके महीन लाइट ब्लू कलर की साड़ी के बाहर आ गई थी, और डार्क ब्लू कलर के लो-कट ब्लाउज़ से बहुत सा हिस्सा बाहर की ओर दिख रहा था।
कामया अब भी भीमा का हाथ पकड़े हुए हँसते हुए भीमा को थैंक्स कहकर मम्मीजी की ओर देख रही थी और अपनी दोनों नाजुक हथेलियों से भीमा की हथेली को सहला रही थी। कामया ने कहा- “अरे हमें तो पता ही नहीं था, आप तो जादूगर निकले…”
भीमा अपनी नजर कामया के उभारों पर ही जमाए हुए, उसकी सुंदरता को अपने अंदर उतार रहा था और अपनी ही दुनियां में सोचते हुए घूम रहा था।
तभी कामया की नजर भीमा चाचा की नजर से टकराई और उसकी नजर का पीछा करती हुई जब उसने देखा की भीमा की नजर कहां है, तो वो अवाक रह गई, उसके शरीर में एक अजीब सी सनसनी फैल गई। वो भीमा चाचा की ओर देखते हुए, जब मम्मीजी की ओर देखी तो पाया की मम्मीजी उठकर वापस अपने पूजा घर की ओर जा रही थी।
कामया का हाथ अब भी भीमा के हाथ में ही था। कामया भीमा की हथेली की कठोरता को अपनी हथेली पर महसूस कर पा रही थी। उसकी नजर जब भीमा की हथेली के ऊपर उसके हाथ की ओर गई तो, वो और भी सन्न रह गई। मजबूत और कठोर और बहुत से सफेद और काले बालों का समूह था वो। देखते ही पता चलता था की कितना मजबूत और शक्तिशाली है भीमा का शरीर। कामया के पूरे शरीर में एक उत्तेजना की लहर दौड़ गई, जो की अब तक उसके जीवनकाल में नहीं उठ पाई थी, ना ही उसे ये उत्तेजना अपने पति के साथ कभी महसूस हुई थी, और न ही कभी उसके इतने जीवन में।
ना जाने क्या सोचते हुए कामया ने कहा- “कहां खो गये चाचा?” और धीरे से अपना हाथ भीमा के हाथ से अलग कर लिया।
भीमा जैसे नींद से जागा था। झट से कामया का हाथ छोड़कर नीचे चेहरा करते हुए- “अरे बहू रानी, हम तो सेवक हैं। आपके हुकुम पर कुछ भी कर सकते हैं, इस घर का नमक खाया है…” और सिर नीचे झुकाए हुए तेज गति से किचेन की ओर मुड़ गया। मुड़ते हुए उसने एक बार फिर अपनी नजर कामया के उभारों पर टिकाया, और मुड़कर चला गया।
कामया भीमा को जाते हुए देखती रही। ना जाने क्यों वो चाह कर भी भीमा की नजर को भूल नहीं पा रही थी? उसकी नजर में जो भूख कामया ने देखी थी, वो आज तक कामया ने किसी पुरुष के नजर में नहीं देखी थी। ना ही वो भूख उसने कभी अपने पति की ही नजरों में देखी थी। जाने क्यों कामया के शरीर में एक सनसनी सी फैल गई। उसके पूरे शरीर में चिटी सी रेगने लगी थी। उसके शरीर में अजीब सी ऐंठन सी होने लगी थी। अपने आपको भूलने के लिए, उसने अपने सिर को एक झटका दिया और मुड़कर अपने कमरे में आ गई। दरवाजा बंद करके धम्म से बिस्तर पर पड़ गई, और शून्य की ओर एकटक देखती रही।
भीमा चाचा फिर से उसके जेहन पर छा गये थे। फिर से कामया को उसकी नीचे की हुई नजर याद आ गई थी। अचानक ही कामया एक झटके से उठी और ड्रेसिंग टेबल के सामने आ गई, और अपने को मिरर में देखने लगी। साड़ी लेटने के कारण अस्त-व्यस्त थी ही, उसके ब्लाउज़ के ऊपर से भी हट गई थी। गोरे रंग के ऊपर से टाइट कसे हुए ब्लाउज़ और साड़ी के अस्त-व्यस्त होने की वजह से कामया एक बहुत ही सेक्सी औरत दिख रही थी। वो अपने हाथों से अपने शरीर को टटोलने लगी, अपनी कमर से लेकर गोलाई तक। वो जब अपने हाथों को उपर की ओर उठाकर अपने शरीर को छू रही थी, तो अपने अंदर उठने वाली उत्तेजना की लहर को वो रोक नहीं पाई थी। कामया अपने को मिरर में निहारती हुई अपने पूरे बदन को अब एक नई नजरिए से देख रही थी।
आज की घटना ने उसे मजबूर कर दिया था की वो अपने को ठीक से देखे। वो यह तो जानती थी की वो सुंदर दिखती है। पर आज जो भी भीमा चाचा की नजर में था, वो किसी सुंदर लड़की या फिर सुंदर घरेलू औरत के लिए ऐसी नजर कभी भी नहीं हो सकती थी। वो तो सयाद किसी सेक्सी लड़की और फिर औरत के लिए ही हो सकती थी।
क्या वो सेक्सी दिखती है? वैसे आज तक कामेश ने तो उससे नहीं कहा था। वो तो हमेशा ही उसके पीछे पड़ा रहता था, पर आज तक उसने कभी भी कामया को सेक्सी नहीं कहा था। न ही उसने अपने पूरे जीवन काल में ही अपने को इस नजरिए से देखा ही था। पर आज की बात कुछ अलग थी। आज ना जाने क्यों कामया को अपने को मिरर में देखने में बड़ा ही मजा आ रहा था।
वो अपने पूरे शरीर को एक बड़े ही नाटकीय तरीके से कपड़ों के ऊपर से देख रही थी, और हर उभार और गहराई में अपने उंगलियों को चला रही थी। उसने कुछ सोचते हुए अपने साड़ी को उतारकर फेंक दिया और सिर्फ पेटीकोट और ब्लाउज़ में ही मिरर के सामने खड़ी होकर देखती रही। उसके चेहरे पर हल्की सी मुश्कान थी। जब उसकी नजर अपने उभारों पर गई, तो वो और भी खुश हो गई।
उसने आज तक कभी भी इतने गौर से अपने को नहीं देखा था। शायद शादी के बाद जब भी नहाती थी या फिर कामेश तारीफ करता था तो, शायद उसने कभी देखा हो। पर आज जब उसकी नजर अपने उभारों पर पड़ी तो वो दंग रह गई। शादी के बाद वो कुछ और भी ज्यादा गोल और उभर गये थे। शेप और साइज का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता था की करीब 25% हिस्सा उसका ब्लाउज़ से बाहर की ओर था, और 75% जो की अंदर था। एक बहुत ही आकर्षक और सेक्सी महिला के लिए काफी था।
कामया ने जल्दी से अपने ब्लाउज़ और पेटीकोट को भी उतारकर झट से फेंक दिया, और अपने को फिर से मिरर में देखने लगी। पतली सी कमर और फिर लम्बी-लम्बी टांगों के बीच में फँसी हुई उसकी पैंटी, गजब की लग रही थी। देखते-देखते कामया धीरे-धीरे अपने शरीर पर अपना हाथ पूरे शरीर पर घुमाने लगी, ब्रा और पैंटी के उपर से। आआह्ह… क्या सुकून है उसके शरीर को? कितना अच्छा लग रहा था?
अचानक ही उसे भीमा चाचा के कठोर हाथ याद आ गये, और वो और भी बिचलित हो उठी। ना चाहते हुए भी उसके हाथों की उंगलियां उसकी योनि की ओर बढ़ चली, और धीरे-धीरे वो अपने योनि को पैंटी के ऊपर से सहलाने लगी। एक हाथ से वो अपनी चूचियों को धीरे-धीरे दबा रही थी, और दूसरे हाथ से अपनी योनि पर सहला रही थी। उसकी सांसें तेज हो चली थी, खड़े हो पाना दूभर हो गया था, टाँगें कांपने लगी थी, मुख से ‘स्स्शह और आअह्ह’ की आवाजें अब थोड़ी सी तेज हो गई थी। शायद उसे सहारे की जरूरत है, नहीं तो वो गिर जाएगी। वो हल्के से घूमकर बिस्तर की ओर बढ़ी ही थी की अचानक उसके रूम का इंटरकोम बज उठा।
कामया- जी।
मम्मीजी- अरे बहू, चाल आ जा। खाना खा ले। क्या कर रही है ऊपर?
कामया- “जी मम्मीजी। कुछ नहीं, बस आई…” कहकर कामया ने जल्दी से अपने कपड़े पहने और जल्दी से नीचे की ओर भागी।
जब वो नीचे पहुँची तो मम्मीजी डाइनिंग टेबल पर आ चुकी थी, और कामया का ही इंतेजार हो रहा था। वो जल्दी से ठीक-ठाक तरीके से अपनी सीट पर जम गई। पर ना जाने क्यों वो अपनी नजर नहीं उठा पा रही थी। क्यों पता नहीं? शायद इसलिए की आज जो भी उसने अपने कमरे में अकेले में किया।, उससे उसके मन में एक ग्लानि सी उठ रही थी। या कुछ और? क्या पता? इसी उधेड़बुन में वो खाना खाती रही और मम्मीजी की बातों का भी हूँ हाँ में जबाब भी देती रही। लेकिन नजर नहीं उठा पाई। खाना खतम हुआ और वो अपने कमरे की ओर पलटी। तो ना जाने क्यों उसने पलटकर भीमा चाचा की ओर देखा, जो की उसी की तरफ देख रहे थे, जब वो सीढ़ी चढ़ रही थी। और जैसे ही कामया की नजर से टकराई तो। जल्दी से नीचे भी हो गई। कामया पलटकर अपने कमरे की ओर चल दी। और जाकर आराम करने लगी।
सोचते-सोचते पता नहीं कब उसे नींद लग गई। फिर शाम को इंटरकोम की घंटी ने ही उसे उठाया, चाय के लिए। कामया कपड़े बदल कर नीचे आई और चाय पीकर मम्मीजी के साथ टीवी देखने लगी। सुबह की घटना अब उसके दिमाग में नहीं चल रही थी। 8:30 बजे के बाद पापाजी और कामेश घर आ जाते थे दुकान बढ़ाकर।
दोनों के आते ही घर का माहौल कुछ चेंज हो जाता था। सब कुछ जल्दी बाजी में होता था। खाना और फिर थोड़ी बहुत बातें और फिर सभी अपने कमरे की ओर चल देते थे। घर भर में सन्नाटा छा जाता था।
कमरे में पहुँचते ही कामेश कामया से लिपट गया। कामया का पूरा शरीर जल रहा था। वो जाने क्यों आज बहुत उत्तेजित थी। कामेश के लिपटते ही कामया पूरे जोश के साथ कामेश का साथ देने लगी। कामेश को भी कामया का इस तरह से उसका साथ देना कुछ अजीब सा लगा, पर वो तो उसका पति ही था उसे यह पसंद था। पर कामया हमेशा से ही कुछ झिझक सा लिए हुए उसका साथ देती थी। पर आज का अनुभब कुछ अलग सा था। कामेश कामया को उठाकर बिस्तर पर ले गया और जल्दी से कामया को कपड़ों से आजाद करने लगा।
कामेश भी आज पूरे जोश में था। पर कामया कुछ ज्यादा ही जोश में थी, आज लगता था की वो कामेश को खा जाएगी। उसके होंठ कामेश के होंठों को छोड़ते ही नहीं थे, और अपने मुख में लिए जम के चूस रही थी। कभी ऊपर के तो, कभी नीचे के होंठ कामया की जीभ और होंठों के बीच पिस रहे थे। कामेश भी कामया के शरीर पर टूट पड़ा था। जहां भी हाथ जाता कसकर दबाता था, और जितना जोर उसमें था उसका वो इश्तेमाल कर रहा था। कामेश के हाथ कामया की जांघों के बीच में पहुँच गये थे, और अपनी उंगलियों से वो कामया के योनि को टटोल रहा था।
कामया पूरी तरह से तैयार थी। उसकी योनि पूरी तरह से गीली थी। बस जरूरत थी तो कामेश के आगे बढ़ने की। कामेश अपने होंठों को कामया से छुड़ाकर अपने होंठों को कामया की चूचियों पर रख दिया और खूब जोर-जोर से चूसने लगा। कामया धनुष की तरह ऊपर की और उठ गई, और अपने हाथों का दबाब पूरे जोर से उसने कामेश के सिर पर कर दिया। कामेश का पूरा चेहरा उसकी चूचियों से धक गया था। कामेश को सांस लेने में भी तकलीफ हो रही थी, पर किसी तरह से उसने अपनी नाक में थोड़ा सा हवा भरा और फिर जुट गया वो कामया के चूचियों पर।
कामया जो की बस इंतेजार में थी की कामेश उसपर छा जाए। किसी भी तरह से बस उसके शीरीर को खा जाए। और उसके अंदर उठ रहे ज्वार को शांत कर दे। कामेश भी कहां देर करने वाला था। झट से अपने को कामया की गिरफ़्त से आजाद किया और अपने को कामया की जांघों के बीच में पोजीशन किया और दन्न से अंदर।
“आआह्ह्ह…” कामया के मुख से एक जबरदस्त आऽ निकली, और कामेश से चिपक गई, और फिर अपने होंठों को कामेश के होंठों से जोड़ दिया। और अपनी सांसें भी कामेश के मुख के अंदर ही छोड़ने लगी।
कामेश आवेश में तो था ही, पूरे जोश के साथ कामया के अंदर-बाहर हो रहा था। आज उसने कोई भी रहम या ढील नहीं दी थी। बस किसी जंगली की तरह से वो कामया पर टूट पड़ा था। पता नहींक्यों कामेश को आज कामया का जोश पूरी तरह से नया लग रहा था। वो अपने को नहीं संभाल पा रहा था। उसने कभी भी कामया से इस तरह से संभोग करने की नहीं सोची थी। वो उसकी पत्नी थी, सुंदर और पढ़ी लिखी। वो भी एक अच्छे घर का लड़का था, संस्कारी और ऊँचे घर का। उसने हमेशा ही अपनी पत्नी को एक पत्नी की तरह ही प्यार किया था। किसी जंगली या फिर हबसी की तरह नहीं।
कामया नाम के आनुरूप ही सुंदर और नाजुक थी। कामेश ने बड़ा ही संभाल कर ही उसे इश्तेमाल किया था। पर आज कामया के जोश को देखकर वो भी जंगली बन गया था, अपने को रोक नहीं पाया था। धीरे-धीरे दोनों का जोश ठंडा हुआ तो, दोनों बिस्तर पर चित्त लेटकर जोर-जोर से अपने साँसे छोड़नै लगे और किसी तरह अपनी सांसों पर नियंत्रण पाने की कोशिश करने लगे। दोनों थोड़ा सा संभले तो एक दूसरे की ओर देखकर मुश्कुराए।
कामेश कामया की ओर देखता ही रहा गया। आज ना तो उसने अपने को ढकने की कोशिश की और न ही अपने को छुपाने की। वो अब भी बिस्तर पर वैसे ही पड़ी हुई थी, जैसा उसने छोड़ा था। बल्की उसके होंठों पर मुश्कान ऐसी थी की जैसे आज उसको बहुत मजा आया हो।
कामेश ने पलटकर कामया को अपनी बाहों में भर लिया और कहा- क्या बात है, आज कुछ खास बात है क्या?
कामया- “उंह्ह… हूँ…”
कामेश- फिर? आज कुछ बदली हुई सी लगी।
कामया- अच्छा। कैसे?
कामेश- नहीं बस यूं ही। कोई फिल्म वगैरह देखा था क्या?
कामया- नहीं तो। क्यों?
कामेश- “नहीं। आज कुछ ज्यादा ही मजा आया, इसलिए…” और हँसते हुए उठकर बाथरूम की ओर चला गया।
कामया वैसे ही बिस्तर पर बिल्कुल नंगी ही लेटी रही, और अपने और कामेश के बारे में सोचने लगी की कामेश को भी आज उसमें चेंज दिखा है। क्या चेंज? आज का सेक्स तो मजेदार था। बस ऐसा ही होता रहे तो क्या बात है? आज कामेश ने भी पूरा साथ दिया था कामया का। इतने में उसके ऊपर चादर गिर पड़ी, और वो अपनी सोच से बाहर आ गई।
कामेश- चलो उठो।
कामया कामेश की ओर देख रही थी। क्यों उसने उसे ढक दिया। क्या वो उसे इस तरह नहीं देखना चाहता? क्या वो सुंदर नहीं है? क्या वो बस सेक्स के खेल के समय ही उसे नंगा देखना चाहता है, और बाकी समय बस ढक कर रहे वो। क्यों? क्यों नहीं चाहता कामेश उसे नंगा देखना? क्यों नहीं वो चादर को खींचकर गिरा देता है? और फिर उसपर चढ़ जाता है। क्यों नहीं करता वो यह सब? क्या कमी है उसमें?
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तब तक कामेश घूमकर अपने बिस्तर की ओर चला गया था, और कामया की ओर ही देख रहा था। कामया धीरे से उठी और चादर लपेटकर ही बाथरूम की ओर चल दी।
लेकिन अंदर जाने से पहले जब पलट कर देखा, फिर कामया चुपचाप बाथरूम में घुस गई और अपने को साफ करने के बाद जब वो बाहर आई तो शायद कामेश सो चुका था। वो अब भी चादर लपेटे हुई थी, और बिस्तर के कोने में आकर बैठ गई थी। सामने ड्रेसिंग टेबल पर कोने से उसकी छवि दिख रही थी, बाल उलझे हुए थे, पर चेहरे पर मायूसी थी कामया के। ज्यादा ना सोचते हुए कामया भी धम्म से अपनी जगह पर गिर पड़ी और कंबल के अंदर बिना कपड़े के ही घुस गई, और सोने की कोशिश करने लगी। न जाने कब वो सो गई और सुबह भी हो गई।
उठते ही कामया ने बगल में देखा, तो कामेश उठ चुका था, शायद बाथरूम में था। वो बिना हिले ही लेटी रही। पर बाथरूम से ना तो कुछ आवाज ही आ रही थी, ना ही पूरे कमरे से। वो झट से उठी और घड़ी की ओर देखा। बाप रे… 8:30 बज चुके हैं। कामेश तो शायद नीचे होगा। जल्दी से कामया बाथरूम में घुस गई और फ्रेश होकर नीचे आ गई। पापाजी, मम्मीजी और कामेश टेबल में बैठे थे, चाय बिस्कुट रखा था टेबल पर। कामया की आहट सुनते ही सब पलटे।
कामेश- क्या बात है, आज तुम्हारी नींद ही नहीं खुली?
कामया- जी।
मम्मीजी- और क्या? सोया कर बहू। कौन सा तुझे जल्दी उठकर घर का काम करना है। आराम किया कर, और खूब घुमा फिरा कर, और मस्ती में रह।
पापाजी- और क्या? क्या करेगी घर पर? यह बोर भी तो हो जाती होगी। क्यों ना कुछ दिनों के लिए अपने मम्मी पापा के घर हो आती बहू?
मम्मीजी- वहां भी क्या करेगी। दोनों ही तो नौकरी वाले हैं, वहां भी घर में बोर होगी।
इतने में कामेश की चाय खतम हो गई और वो उठ गया, कहा- “चलो। मैं तो चला तैयार होने। और पापा आप थोड़ा जल्दी आ जाना…”
पापाजी- हाँ हाँ आ जाऊँगा।
कामेश के जाने के बाद कामया भी उठकर जल्दी से कामेश के पीछे भागी। यह तो उसका रोज का काम था। जब तक कामेश शोरूम नहीं चला जाता था, उसके पीछे-पीछे घूमती रहती थी, और चले जाने के बाद कुछ नहीं बस इधर-उधर फालतू। कामेश अपने कमरे में पहुँचकर नहाने को तैयार था। एक तौलिया पहनकर कमरे में घूम रहा था। जैसे ही कामया कमरे में पहुँची, वो मुश्कुराते हुए कामया से पूछा- “क्यों, अपने पापा मम्मी के घर जाना है क्या? थोड़े दिनों के लिए?”
कामया- “क्यों, पीछा छुड़ाना चाहते हो?” और अपने बिस्तर के कोने पर बैठ गई।
कामेश- “अरे नहीं यार, वो तो बस मैंने ऐसे ही पूछ लिया, पति हूँ ना तुम्हारा। और पापा भी कह रहे थे, इसलिए। नहीं तो हम कहां जी पाऐंगे आपके बिना…” और कहते हुए वो खूब जोर से खिलखिलते हुए हँसते हुए बाथरूम की ओर चल दिया।
कामया- थोड़ा रुकिये ना… बाद में नहा लेना।
कामेश- क्यों, कुछ काम है क्या?
कामया- “हाँ…” और एक मादक सी मुश्कुराहट अपने होंठों पर लाती हुई कहा।
कामेश भी अपनी बीवी की ओर मुड़ा और उसके करीब आ गया। कामया बिस्तर पर अब भी बैठी थी, और कामेश के कमर तक आ रही थी। उसने अपने दोनों हाथों से कामेश की कमर को जकड़ लिया और अपने गाल को कामेश के पेट पर घिसने लगी, और अपने होंठों से किस भी करने लगी। कामेश अपने दोनों हाथों से कामया का चेहरे को पकड़कर ऊपर की ओर उठाया, और कामया की आँखों में देखने लगा। कामया की आँखों में सेक्स की भूख उसे साफ देखाई दे रही थी। लेकिन अभी टाइम नहीं था, वो, अपने शो रूम के लिए लेट नहीं होना चाहता था।
कामेश- “रात को, अभी नहीं। तैयार रहना, ठीक है?” और कहते हुये वो नीचे चुका और अपने होंठों को कामया के होंठों पर रखकर चूमने लगा।
कामया भी कहां पीछे हटने वाली थी। बस झट से कामेश को पकड़कर बिस्तर पर गिरा लिया, और अपनी दोनों जांघों को कामेश के दोनों ओर से घेर लिया। अब कामेश कामया की गिरफ़्त में था। दोनों एक दूसरे में गुत्थम-गुत्था कर रहे थे। कामया तो जैसे पागल हो गई थी। उसने कसकर कामेश के होंठों को अपने होंठों से दबा रखा था, जोर-जोर से चूस रही थी, और अपने हाथों से कामेश के सिर को पकड़कर अपने और अंदर घुसा लेना चाहती थी।
कामेश भी आवेश में आने लगा था, पर दुकान जाने की चिंता उसके दिलो-दोमाग पर हावी थी। थोड़ी सी ताकत लगाकर उसने अपने को कामया के होंठों से छुड़ाया और झुके हुए ही कामया के कानों में कहा- “बाकी रात को…” और हँसते हुए कामया को बिस्तर पर लेटा हुआ छोड़कर ही उठ गया। उठते हुए उसकी तौलिया भी खुल गई थी, पर चिंता की कोई बात नहीं। वो तौलिया को अपने हाथों में लिए ही जल्दी से बाथरूम में घुस गया।
कामया कामेश को बाथरूम में जाते हुए देखती रही। उसकी नजर भी कामेश के लिंग पर गई थी, जो की सेमी रिजिड पोजीशन में था। वो जानती थी की थोड़ी देर के बाद वो तैयार हो जाता, और कामया की मन की मुराद पूरी हो जाती। पर कामेश के ऊपर तो दुकान का भूत सवार था। वो कुछ भी हो जाए उसमें देरी पसंद नहीं करता था। वो भी चुपचाप उठी और कामेश का इंतेजार करने लगी।
कामेश को बहुत टाइम लगता था बाथरूम में, शेव करने, और नहाने में। फिर भी कामया के पास कोई काम तो था नहीं, इसलिए वो भी उठकर कामेश की ड्रेस निकालने लगी, और बेड में बैठकर इंतेजार करने लगी। कामेश के बाहर आते ही वो झट से उसकी ओर मुखातिब हुई, और थोड़ा गुस्सा में कहा- “आज जल्दी आ जाना शो रूम से…”
कामेश- “क्यों, कोई खास है क्या?” थोड़ा चुटकी लेते हुए कामेश ने कहा।
कामया- अगर काम ना हो तो क्या शोरूम में ही पड़े रहोगे?
कामेश- हाहाहा… अरे बाप रे। क्या हुआ है तुम्हें, कुछ नाराज सी लग रही हो?
कामया- आपको क्या, मेरी नाराजगी से? आपके लिए तो बस अपनी दुकान। मेरे लिए तो टाइम ही नहीं है।
कामेश- अरे नहीं यार, मैं तो तुम्हारा ही हूँ। बोलो क्या करना है?
कामया- जल्दी आना कहीं घूमने चलेंगे।
कामेश- कहां?
कामया- अरे कहीं भी। बस रास्ते रास्ते में, और फिर बाहर ही डिनर करेंगे।
कामेश- ठीक है। पर जल्दी तो मैं नहीं आ पाऊँगा। हाँ… घूमने और डिनर की बात पक्की है। उसमें कोई दिक्कत नहीं।
कामया- अरे थोड़ा जल्दी आओगे तो टाइम भी तो ज्यादा मिलेगा।
कामेश- तुम भी कामया, कौन कहता है अपने को की जल्दी आ जाना या फिर देर तक बाहर नहीं रहना। क्या फरक पड़ता है अपने को? रात भर बाहर भी घूमते रहेंगे तो भी पापा मम्मी कुछ नहीं कहेंगे।
कामया भी कुछ नहीं कह पाई। बात बिल्कुल सच थी। कामेश के घर से कोई भी बंदिश नहीं थी, कामया और कामेश के उपर। लेकिन कामया चाहती थी की कामेश जल्दी आए तो वो उसके साथ कुछ सेक्स का खेल भी खेल लेती और फिर बाहर घूमते फिरते और फिर रात को तो होना ही था। कामया भी चुप हो गई, और कामेश को तैयार होने में मदद करने लगी।
तभी कामेश ने कहा- अच्छा एक बात बतायो। तुम अगर घर में बोर हो जाती हो तो कहीं घूम फिर क्यों नहीं आती?
कामया- कहां जाऊँ?
कामेश- “अरे बाबा कहीं भी, कुछ शापिंग कर लो, कुछ दोस्तों से मिल लो। ऐसे ही किसी माल में घूम आओ, या फिर कुछ भी तो कर सकती हो पूरे दिन। कोई भी तो तुम्हें मना नहीं करेगा। हाँ…”
कामया- मेरा मन नहीं करता अकेले। और कोई साथ देने वाला नहीं हो तो अकेले क्या अच्छा लगता है?
कामेश- अरे अकेले कहां? कहो तो आज से मेरे दुकान जाने के बाद में लक्खा काका को घर भेज दूँगा। वो तुम्हें घुमा फिराकर वापस घर छोड़ देगा और फिर दुकान चला आएगा। वैसे भी दुकान पर शाम तक दोनों गाड़यां खड़ी ही रहती हैं।
कामया- नहीं।
कामेश- अरे एक बार निकलो तो सही, सब अच्छा लगेगा। पापा को छोड़ने के बाद लक्खा काका को मैं भेज दूँगा। ठीक है?
कामया- अरे नहीं। मुझे नहीं जाना बस, ड्राइवर के साथ अकेले नहीं। हाँ, यह अलग बात थी की मुझे गाड़ी चलानी आती होती तो मैं अकेली जा सकती थी। पर ड्राइवर के साथ नहीं जाऊँगी। बस।
कामेश- “अरे वाह… तुमने तो एक नई बात खोल दी। अरे हाँ…”
कामया- क्या?
कामेश- “अरे तुम एक काम क्यों नहीं करती? तुम गाड़ी चलाना सिख क्यों नहीं लेती? घर में 3 गाड़ियां हैं। एक तो घर में रखे-रखे धूल खा रही है। छोटी भी है, तुम चलाओ ना उसे…” कामेश के घर में 3 गाड़ियां थीं। दो में तो पापा और वो खुद जाता था शोरूम, पर घर में ई-10 मम्मीजी को लेने ले जाने के लिए थी, जो की अब वैसे ही खड़ी थी।
कामया- क्या यार तुम भी? कौन सिखाएगा मुझे गाड़ी? आपके पास तो टाइम नहीं है।
कामेश- “अरे क्यों? लक्खा काका है ना। मैं आज ही उन्हें कह देता हूँ कि तुम्हें गाड़ी सिखा दे…” और एकदम से खुश होकर कामया के गालों को और फिर होंठों को चूम लिया- “और जब तुम गाड़ी चलाना सीख जाओगी, तो मैं पास में बैठा रहूँगा और तुम गाड़ी चलाना…”
कामया- क्यों?
कामेश- “और क्या? फिर हम तुम्हारे इधर-उधर हाथ लगायेंगे, और बहुत कुछ करेंगे। बड़ा मजा आएगा। हीहीही…”
कामया- धत्… जब गाड़ी चलाऊँगी, तब छेड़छाड़ करेंगे, घर पर क्यों नहीं?
कामेश- अरे तुम्हें पता नहीं। गाड़ी में छेड़छाड़ में बड़ा मजा आता है। चलो यह बात पक्की रही की तुम अब गाड़ी चलाना सीख लो जल्दी से।
कामया- नहीं अभी नहीं। मुझे मम्मीजी से पूछना है, इसके बाद कल बताऊँगी। ठीक है?”
फिर दोनों नीचे आ गये। डाइनिंग टेबल पर कामेश का नाश्ता तैयार था। भीमा चाचा का काम बिल्कुल टाइम से बँधा हुआ था। कोई भी देर नहीं होती थी। कामया आते ही कामेश के लिए प्लेट तैयार करने लगी। पापाजी और मम्मीजी पूजा घर में थे, उनको अभी टाइम था। कामेश ने जल्दी से नाश्ता किया और पूजा घर के बाहर से ही प्रणाम करके घर के बाहर की ओर चल दिया।
बाहर लक्खा काका दोनों की गाड़ी को साफ सूफ करके चमकाकर रखते थे। कामेश खुद ड्राइव करता था। पर पापाजी के पास ड्राइवर था लक्खा काका।
कामेश के जाने के बाद कामया भी अपने कमरे में चली आई और कमरे को ठीक-ठाक करने लगी। दिमाग में अब भी कामेश की बात घूम रही थी, ड्राइविंग सीखने की। कितना मजा आएगा, अगर उसे ड्राइविंग आ गई तो? कहीं भी आ जा सकती है, और फिर कामेश से कहकर नई गाड़ी भी खरीद सकती है। वाह… मजा आजेगा। यह बात उसके दिमाग में पहले क्यों नहीं आई? और जल्दी से अपने काम में लग गई। नहा धोकर जल्दी से तैयार होने लगी। वार्डरोब से चूड़ीदार निकाला और पहन लिया। सफेद और लाल कंबिनेशन था, बिल्कुल टाइट फिटिंग का था। मस्त फिगर दिख रहा था उसमें उसका।
तैयार होने के बाद जब उसने अपने को मिरर में देखा तो, गजब की दिख रही थी। होंठों पर एक खूबसूरत सी मुश्कान लिए, उसने अपने ऊपर चुन्नी डाली और मटकती हुई नीचे जाने लगी। सीढ़ी के ऊपर से डाइनिंग स्पेस का हिस्सा दिख रहा था। वहां भीमा चाचा टेबल पर खाने का समान सजा रहे थे। उनका ध्यान पूरी तरह से टेबल की ओर ही था, और कहीं नहीं। पापाजी और मम्मीजी भी अभी तक टेबल पर नहीं आए थे। कामया थोड़ा सा अपनी जगह पर रुक गई।
कामया को कल की बात याद आ गई। भीमा चाचा की नजर और हाथों का स्पर्श उसके जेहन में अचानक ही हलचल मचा दे रहा था। वो जहां थी वहीं खड़ी रह गई, जैसे उसके पैरों में जान ही नहीं है। खड़े-खड़े वो नीचे भीमा चाचा को काम करते देख रही थी।
भीमा चाचा अपने मन से काम में जल्दीबाजी कर रहे थे, और कभी किचेन में और कभी डाइनिंग रूम में बार-बार आ जा रहे थे। वो अब भी वही अपनी पुरानी धोती और एक फाटुआ पहने हुए थे। (फाटुआ एक हाफ बनियान की तरह होता है, जो की पुराने लोग पहना करते थे।)
कामिया खड़े-खड़े भीमा चाचा के बाजू को ध्यान से देख रही थी। कितने बाल थे उनके हाथों में, किसी भालू की तरह, और कितने काले भी, भद्दे से दिखते थे। पर खाना बहुत अच्छा बनाते थे। इतने में पापाजी के आने की आहट सुनकर भीमा जल्दी से किचेन की ओर भागा, और जाते-जाते सीढ़ियों की तरफ भी देखता गया। सीढ़ी पर कोने में कामया खड़ी थी, नजर पड़ी और चले गये। उसकी नजर में ऐसा लगा की उसे किसी का इंतेजार था, शायद कामया का।
कामया के जेहन में यह बात आते ही वो सनसना गई। पति की आधी छोड़ी हुई उत्तेजना उसके अंदर फिर से जाग उठी। वो वहीं खड़ी हुई भीमा चाचा को किचेन में जाते हुए देखती रही।
पापाजी के पीछे-पीछे मम्मीजी भी डाइनिंग रूम में आ गई थी। कामया ने भी अपने को संभाला और एक लम्बी सी सांस छोड़ने के बाद वो भी जल्दी से नीचे की ओर चल पड़ी। पापाजी और मम्मीजी टेबल पर बैठ गये थे। कामया जाकर पापाजी और मम्मीजी को खाना लगाने लगी, और इधर-उधर की बातें करते हुए पापाजी और मम्मीजी खाना खाने लगे थे। कामया अब भी खड़ी हुई पापाजी और मम्मीजी की प्लेट का ध्यान रख रही थी। पापाजी और मम्मीजी खाना खाने में मस्त थे, और कामया खिलाने में। खड़े-खड़े मम्मीजी को कुछ देने के लिए जब वो थोड़ा सा नजर घुमाई तो उसे किचेन का दरवाजा हल्के से नजर आया। तो भीमा चाचा के पैरों पर नजर पड़ी, तो इसका मतलब भीमा चाचा किचेन से छुपकर कामया को पीछे से देख रहे हैं।
कामया अचानक ही सचेत हो गई। खुद तो टेबल पर पापाजी और मम्मीजी को खाना परोस रही थी, पर दिमाग और पूरा शरीर कहीं और था। उसके शरीर में चींटियां सी दौड़ रही थीं। पता नहीं क्यों, पूरे शरीर में सनसनी सी दौड़ गई थी कामया के? उसके मन में जाने क्यों एक अजीब सी हलचल सी मच रही थी। टाँगें अपनी जगह पर नहीं टिक रही थीं। ना चाहते हुए भी वो बार-बार इधर-उधर हो रही थी। एक जगह खड़े होना उसके लिए दूभर था। अपनी चुन्नी को ठीक करते समय भी उसका ध्यान इस बात पर था की चाचा पीछे से उसे देख रहे हैं, या नहीं? पता नहीं क्यों उसे इस तरह का चाचा का छुपकर देखना अच्छा लग रहा था, उसके मन को पुलकित कर रहा था। उसके शरीर में एक अजीब सी लहर दौड़ रही थी।
कामया का ध्यान अब पूरी तरह से अपने पीछे खड़े चाचा पर था। नजर सामने पर ध्यान पीछे था। उसने अपनी चुन्नी को पीछे से हटाकर दोनों हाथों से पकड़कर अपने सामने की ओर हाथों पर लपेट लिया और खड़ी होकर पापा और मम्मीजी को खाते हुए देखती रही। पीछे से चुन्नी हटने की बजह से उसकी पीठ, कमर और नीचे नितम्ब बिल्कुल साफ-साफ शेप को उभार देते हुए दिख रहे थे। कामया जानती थी की वो क्या कर रही है?
एक कहावत है की औरत को अपनी सुंदरता को दिखाना आता है कैसे और कहां यह उसपर निर्भर करता है?
कामया जानती थी की चाचा अब उसके शरीर को पीछे से अच्छे से देख सकते हैं। वो जानबूझ कर थोड़ा सा झुक कर मम्मीजी और पापाजी को खाना देती थी और थोड़ा सा मटकती हुई वापस खड़ी हो जाया करती थी। उसके पैर अब भी एक जगह नहीं टिक रहे थे।
इतने में पापाजी का खाना हो गया तो पापाजी बोले- “अरे बहू, तुम भी खा लो। कब तक खड़ी रहोगी? चलो बैठ जाओ…”
कामया- जी पापाजी, बस मम्मीजी का हो जाए फिर खा लूँगी।
मम्मीजी- “अरे अकेले-अकेले खाओगी क्या? चलो बैठ जाओ। अरे भीमा?”
कामया- अरे मम्मीजी आप खा लीजिए मैं थोड़ी देर से खा लूँगी।
भीमा- जी माँजी।
कामया- अरे कुछ नहीं, जाओ मैं बुला लूँगी।
मम्मीजी- “अरे अकेली-अकेली क्या?” और बीच में ही बात अधूरी छोड़कर मम्मीजी भी खाने के टेबल से उठ गई और थोड़ा सा लंगड़ाती हुई बेसिन में हाथ धोकर मुड़ी।
तब तक पापाजी भी तैयार होकर अपने रूम से निकल आए, और बाहर की ओर जाने लगे। मम्मीजी और कामया भी उनके पीछे-पीछे दरवाजे की ओर चल दी।
बाहर पोर्च में लक्खा काका गाड़ी का दरवाजा खोले सिर नीचे किए खड़े थे। वही अपनी धोती और एक सफेद कुर्ता पहने मजबूत कद-काठी वाले काका पापाजी के बहुत ही, बल्की पूरी परिवार के, बड़े ही विस्वासपात्र नौकर थे। कभी भी उनके मुख से किसी ने ना नहीं सुना था। बहुत कम बोलते थे और काम ज्यादा करते थे। सभी नौकरों में भीमा चाचा और लक्खा काका का कद परिवार में बहुत ज्यादा ऊँचा था। खैर, पापाजी के गाड़ी में बैठने के बाद लक्खा भी जल्दी से दौड़कर सामने की ओर ड्राइवर सीट पर बैठ गया, और गाड़ी गेट के बाहर की ओर दौड़ गई।
मम्मीजी के साथ कामया भी अंदर की ओर पलटी। मम्मीजी तो बस थोड़ी देर आराम करेंगी और कामया खाना खाकर सो जाएगी। रोज का रूटीने कुछ ऐसा ही था, कि कामया पापाजी और मम्मीजी के साथ खाना खा लेती थी, पर आज उसने जानबूझ कर अपने को रोक लिया था। वो देखना चाहती थी की जो वो सोच रही थी क्या वो वाकई सच है, या फिर सिर्फ उसकी कल्पना मात्र था? वो अंदर आते ही दौड़कर अपने कमरे में चली गई।
पीछे से मम्मीजी की आवाज आई- “अरे बहू, खाना तो खा ले?”
कामया- जी मम्मीजी बस आई।
मम्मीजी अपने रूम की ओर जाते समय भीमा को आवाज देती हैं- “भीमा, बहू ने खाना नहीं खाया है, थोड़ा ध्यान रखना…”
भीमा- जी माँ जी।
भीमा जब तक डाइनिंग रूम में आता, तब तक कामया अपने कमरे में जा चुकी थी। भीमा खड़ा-खड़ा सोचने लगा की क्या बात है, आज छोटी बहू ने साहब लोगों के साथ क्यों नहीं खाया? और टेबल से जूठे प्लेट और ग्लास उठाने लगा। पर उसके भीतर जो कुछ चल रहा था वो सिर्फ भीमा ही जानता था। उसकी नजर बार-बार सीढ़ियों की ओर चली जाती थी की शायद बहू उतर रही है। पर जब तक वो डाइनिंग रूम में रहा तब तक बहू नहीं उतरी।
भीमा सोच रहा था की जल्दी से बहू खाना खा ले तो वो आगे का काम निबटाए। पर पता नहीं बहू को क्या हो गया था? लेकिन वो तो सिर्फ एक नौकर था, उसे तो मालिकों का ध्यान ही रखना है, चाहे जो भी हो, यह तो उसका काम है। सोचकर वो प्लेट और ग्लास धोने लगा।
भीमा अपने काम में मगन था की किचेन में अचानक ही बहुत ही तेज सी खुशबू फैल गई थी। उसने पलटकर देखा तो बहू खड़ी थी किचेन के दरवाजे पर। भीमा बहू को देखता रहा गया। जो चूड़ीदार वो पहने हुए थी वो चेंज करके आई थी। एक महीन सी हल्के पीले कलर की साड़ी पहने थी, और साथ में वैसा ही स्लीवलेश ब्लाउज़। एक पतली सी लाइन सी दिख रही थी साड़ी की, जो की उसकी चूचियों के उपर से उसके ब्लाउज़ को ढका हुआ था, बाल खुले हुए थे और होंठों पर गहरे रंग की लिपस्टिक थी, आँखों में और होंठों में एक मादक मुश्कान लिए बहू किचेन के दरवाजे पर एक रति की तरह खड़ी थी।
भीमा सब कुछ भूलकर सिर्फ कामया के रूप का रसपान कर रहा था। उसने आज तक बहू को इतने पास से या फिर इतने गौर से कभी नहीं देखा था किसी अप्सरा जैसा बदन था उसका। उतनी ही गोरी और सुडौल, क्या फिगर है और कितनी सुंदर, जैसे हाथ लगाओ तो काली पड़ जाए। वो अपनी सोच में डूबा था की उसे कामया की खिलखिलती हुई हँसी सुनाई दी।
कामया- “अरे भीमा चाचा, खाना लगा दो भूख लगी है। और नल बंद करो, सब पानी बह जाएगा…” और हँसती हुई पलटकर डाइनिंग रूम की ओर चल दी।
भीमा कामया को जाते हुए देखता रहा। पता नहीं क्यों आज उसके मन में कोई डर नहीं था, जो इज्जत वो इस घर के लोगों को देता था, वो कहां गायब हो गया था उसके मन से पता नहीं? वो कभी भी घर के लोगों की तरफ देखना तो दूर आखें मिलाकर भी बात नहीं करता था, पर जाने क्यों वो आज बिंदास कामया को सीधे देख भी रहा था और उसकी मादकता का रसपान भी कर रहा था।
जाते हुए कामया की पीठ थी भीमा की ओर जो की लगभग आधे से ज्यादा खुली हुई थी। शायद सिर्फ ब्रा की लाइन में ही थी, या शायद ब्रा ही नहीं पहना होगा, पता नहीं? लेकिन महीन सी ब्लाउज़ के अंदर से उसका रंग साफ-साफ दिख रहा था। गोरा और चमकीला सा और नाजुक और गदराया सा। वैसे ही हिलते हुए नितम्ब जो की एक दूसरे से रगड़ खा रहे थे, और साड़ी को अपने साथ ही आगे पीछे की ओर ले जा रहे थे।
भीमा खड़ा-खड़ा कामया को किचेन के दरवाजे पर से ओझल होते देखता रहा, और किसी बुत की तरह खड़ा हुआ प्लेट हाथ में लिए शून्य की ओर देख रहा था। तभी उसे कामया की आवाज सुनाई दी।
कामया- चाचा कहा तो लगा दो।
भीमा झट से प्लेट सिंक पर छोड़कर नल बंद करके लगभग दौड़ते हुए डाइनिंग रूम में पहुँच गया, जैसे की देर हो गई तो शायद कामया उसकी नजर से फिर से दूर ना हो जाए। वो कामया को और भी देखना चाहता था, मन भरकर उसके नाजुक बदन को, उसकी खुशबू को वो अपनी सांसों में बसा लेना चाहता था। झट से वो डाइनिंग रूम में पहुँच गया और कहा- “जी छोटी बहू, अभी देता हूँ…” कहते हुए वो कामया के लिये प्लेट लगाने लगा।
कामया का पूरा ध्यान टेबल पर था। वो भीमा के हाथों की ओर देख रही थी। बालों से भरा हुआ मजबूत और कठोर हाथ प्लेट लगाते हुए उसकी मांसपेशियों में हल्का सा खिचाव भी हो रहा था, उससे उसकी ताकत का अंदाजा लगाया जा सकता था। कामया के जेहन में कल की बात घूम गई, जब भीमा चाचा ने उसके पैरों की मालिश की थी। कितने मजबूत और कठोर हाथ थे।
और भीमा जो की कामया से थोड़ा सा दूर खड़ा था प्लेट और कटोरी, चम्मच को आगे करके फिर खड़ा हो गया हाथ बाँधकर।
पर कामया कहां मानने वाली थी? आज कुछ प्लानिंग थी उसके मन में शायद, कहा- “अरे चाचा, परोस दीजिए ना प्लीज…” और बड़ी इठलाती हुई दोनों हाथों को टेबल पर रखकर बड़ी ही अदा से भीमा की ओर देखा।
भीमा जो की बस इसी इंतेजार में ही था की आगे क्या करे? तुरंत आर्डर मिलते ही खुश हो गया। वो थोड़ा सा आगे बढ़कर कामया के करीब खड़ा हो गया और सब्जी, पराठा, सलाद, दाल और फिर, पर उसकी आँखें कामया पर थीं, उसकी बातों पर थी, उसके शरीर पर से उठ रही खुशबू पर थी, नजरें ऊपर से उसके उभारों पर थी जो की लगभग आधी बाहर थी ब्लाउज़ से, सफेद गोल-गोल से मखमल जैसे या फिर रूई के गोले सा ब्लाउज़ का कपड़ा भी इतना महीन था की अंदर से ब्रा की लाइनिंग भी दिख रही थी। भीमा अपने में ही खोया कामया के नजदीक खड़ा-खड़ा यह सब देख रहा था।
कामया बैठी हुई कुछ कहते हुए अपना खाना खा रही थी। कामया को भी पता था की चाचा की नजर कहां है? पर वो तो चाहती ही यही थी। उसके शरीर में उत्तेजना की जो लहर उठ रही थी, वो आज तक शादी के बाद कामेश के साथ नहीं उठी थी। वो अपने को किसी तरह से रोके हुए, बस मजे ले रही थी। वो जानती थी की वो खूबसूरत है। पर वो जो सेक्सी दिखती है, यह वो साबित करना चाहती थी, शायद अपने को ही। पर क्यों? क्या मिलेगा उसे यह सब करके? पर फिर भी वो अपने को रोक नहीं पाई थी। जब से उसे भीमा चाचा की नजर लगी थी, वो कामाग्नि में जल उठी थी।
तभी तो काल रात को कामेश के साथ एक वाइल्ड सेक्स का मजा लिया था पर वो मजा नहीं आया था। पर हाँ… कामेश उतेजित तो था रोज से ज्यादा, पर उसने कहा नहीं कामया को की वो सेक्सी थी। कामया तो चाहती थी की कामेश उसे देखकर रह ना पाए, और उस पर टूट पड़े, उसे निचोड़कर रख दे, बड़ी ही बेदर्दी से उसे प्यार करे। वो तो पूरा साथ देने को तैयार थी, पर कामेश ऐसा क्यों नहीं करता? वो तो उसकी पत्नी थी, वो तो कुछ भी कर सकता है उसके साथ। पर क्यों वो हमेशा एग्ज़िक्युटिव स्टाइल में रहता है? क्यों नहीं सेक्स के समय भूखा दरिन्दा बन जाता? क्यों नहीं है उसमें इतनी समझ? उसके देखने का तरीका भी वैसा नहीं है की वो खुद ही उसके पास भागी चली जाए? बस जब देखो तब बस पति ही बने रहते हैं, कभी-कभी प्रेमी और सेक्स मेनियक भी तो बन सकता है वो?
लेकिन भीमा चाचा की नजरों में उसने वो भूख देखी, जो की उसे अपने पति में चाहिए था। भीमा चाचा के लालाइत नजरों ने कामया के अंदर एक ऐसी आग भड़का दी थी की कामया, एक शुशील और पढ़ी लिखी बड़े घर की बहू, आज डाइनिंग टेबल पर अपने ही नौकर को लुभाने की चाल चल रही थी। कामया जानती थी की भीमा चाचा की नजर कहां है? और वो आज क्यों इस तरह से खुलकर उसकी ओर देख और बोल पा रहे हैं? वो भीमा चाचा को और भी उकसाने के मूड में थी। वो चाहती थी की चाचा अपना आपा खो दें, और उस पर टूट पड़ें। इसलिए वो हर वो कदम उठाना चाहती थी। उसने जानबूझ कर अपनी साड़ी का पल्लू और भी ढीला कर दिया, ताकि भीमा ऊपर से उसकी गोलाइयों का पूरा लुत्फ ले सके और उनके अंदर उठने वाली आग को वो आज भड़का देना चाहती थी।
कामया के इस तरह से बैठे रहने से, भीमा ना कुछ कह पा रहा था और न ही कुछ सोच पा रहा था। वो तो बस मूक दर्शक बनकर कामया के शरीर को देख रहा था, और अपने बूढ़े हो गए शरीर में उठ रही उत्तेजना की लहर को छुपाने की कोशिश कर रहा था। वो चाह कर भी अपनी नजर कामया की चूचियों पर से नहीं हटा पा रहा था, और न ही उसके शरीर पर से उठ रही खुशबू से दूर जा पा रहा था, वो किसी बुत की तरह खड़ा हुआ अपने हाथ टेबल पर रखे हुए थोड़ा सा आगे की ओर झुका हुआ कामया की ओर एकटक टकटकी लगाए हुए देख रहा था, और अपने गले के नीचे थूक को निगलता जा रहा था। उसका गला सूख रहा था। उसने जिंदगी में भी कभी इस बात की कल्पना भी नहीं की थी की उसको कामया जैसी लड़की एक बड़े घर की बहू इस तरह से अपना यौवन देखने की छूट देगी, और वो इस तरह से उसके पास खड़ा हुआ इस यौवन का लुत्फ उठा सकता था। देखना तो दूर, आज तक उसने कभी कल्पना भी नहीं किया था।
नजर उठाकर देखना तो दूर नजर जमीन से ऊपर तक नहीं उठाई थी उसने कभी। और आज तो जैसे जन्नत के सफर में था वो, एक अप्सरा उसके सामने बैठी थी। वो उसकी आधी खुली हुई चूचियों को मन भर के देख रहा था, उसकी खुशबू सूंघ सकता था, और शायद हाथ भी लगा सकता था। पर हिम्मत नहीं हो रही थी। तभी कामया की आवाज उसके कानों में टकराई।
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दोस्तों, यदि कहानी पसंद आ रही हो तो आगे बढ़ाया जाय
धन्यवाद
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नजर उठाकर देखना तो दूर नजर जमीन से ऊपर तक नहीं उठाई थी उसने कभी। और आज तो जैसे जन्नत के सफर में था वो, एक अप्सरा उसके सामने बैठी थी। वो उसकी आधी खुली हुई चूचियों को मन भर के देख रहा था, उसकी खुशबू सूंघ सकता था, और शायद हाथ भी लगा सकता था। पर हिम्मत नहीं हो रही थी। तभी कामया की आवाज उसके कानों में टकराई।
कामया- अरे चाचा क्या कर रहे हो? पराठा खतम हो गया।
भीमा- “जी जी यह…”
और जब तक भीमा हाथ बढ़ाकर पराठा कामया की प्लेट में रखता, तब तक कामया का हाथ भी उसके हाथों से टकराया और कामया उसके हाथों से अपना पराठा लेकर खाने लगी। उसका पल्लू अब थोड़ा और भी खुल गया था, उसकी ब्लाउज़ में छुपी हुई चूचियां उसको पूरी तरह से दिख रही थीं, नीचे तक उसका पेट और जहां से साड़ी बंधी थी वहां तक। भीमा चाचा की उत्तेजना में यह हालत थी की अगर घर में माँजी नहीं होती तो शायद आज वो कामया का रेप ही कर देता। पर नौकर था इसलिए चुपचाप प्रसाद में जो कुछ मिल रहा था उसी में खुश हो रहा था, और इसी को जन्नत का मजा मानकर चुपचाप कामया को निहार रहा था।
कामया कुछ कहती हुई खाना भी खा रही थी, पर भीमा का ध्यान कामया की बातों पर बिल्कुल नहीं था।
हाँ, था तो बस उसके ब्लाउज़ पर और उसके अंदर से दिख रहे चिकने और गुलाबी रंग के शरीर का वो हिस्सा, जहां वो शायद कभी भी ना पहुँच सके। वो खड़ा-खड़ा बस सोच ही सकता था, और उस अप्सरा की खुशबू को अपने जेहन में समेट सकता था। इस तरह कब समय खतम हो गया, पता भी नहीं चला। पता चला तब जब कामया ने उठते हुए कहा।
कामया- बस हो गया चाचा।
भीमा- “जी जी…” और अपनी नजर फिर से नीचे की और चौंक कर हाथ बांधे खड़ा हो गया।
कामया उठी और वाशबेसिन पर गई और झुक कर हाथ मुँह धोने लगी। झुकने से उसके शरीर में बँधी साड़ी उसके नितम्बों पर कस गई, जिससे की उसके नितम्बों का शेप और भी सुडौल और उभरा हुआ दिखने लगा।
भीमा पीछे खड़ा हुआ मंत्रमुग्ध सा कामया को देखता रहा, और सिर्फ देखता रहा। कामया हाथ धोकर पलटी, तब भी भीमा वैसे ही खड़ा था, उसकी आखें पथरा गई थीं, मुख सूख गया था, और हाथ पांव जमीन में धंस गये थे, पर सांसें चल रही थी, या नहीं? पता नहीं। पर वो खड़ा था कामया की ओर देखता हुआ। कामया जब पलटी तो उसकी साड़ी उसके ब्लाउज़ के ऊपर नहीं थी, कंधे पर शायद पिन के कारण टिका हुआ था, और कमर पर से जहां से मुड़कर कंधे तक आई थी, वहां पर ठीक-ठाक थी। पर जहां ढकना था, वहां से गायब थी, और उसका पूरा यौवन या फिर कहिए चूचियां जो की किसी पहाड़ की छोटी की तरह सामने की और उठी हुई भीमा चाचा की ओर देख रही थी।
भीमा अपनी नजर को झुका नहीं पाया, वो बस खड़ा हुआ कामया की ओर देखता ही रहा, और बस देखता ही जा रहा था। कामया ने भी भीमा की ओर जरा सा देखा और मुड़कर सीढ़ी की ओर चल दी अपने कमरे की ओर जाने के लिए। उसने भी अपनी साड़ी को ठीक नहीं किया था।
क्यों नहीं ठीक किया था? भीमा सोचने लगा कि शायद ध्यान नहीं होगा, या फिर नींद आ रही होगी, या फिर बड़े लोग हैं, सोच भी नहीं सकते की नौकर लोगों की इतनी हिम्मत तो हो ही नहीं सकती, या फिर कुछ और? आज कामया को हुआ क्या है? या फिर मुझे ही कुछ हो गया है? पीछे से कामया का मटकता हुआ शरीर किसी सांप की तरह बल खाती हुए चाल की तरह से लग रहा था। जैसे-जैसे वो एक-एक कदम आगे की ओर बढ़ती थी, उसका दिल मुँह पर आ जाता था।
भीमा आज खुलकर कामया के हुश्न का लुत्फ ले रहा था। उसको रोकने वाला कोई नहीं था, कोई भी नहीं था घर पर। माँ जी अपने कमरे में थी, और बहू अपने कमरे की ओर जा रही थी और चली गई। सब शून्य हो गया, खाली हो गया, कुछ भी नहीं था, सिवाए भीमा के जो की डाइनिंग टेबल के पास कुछ जूठे प्लेट के पास सीढ़ी की ओर देखता हुआ मंत्रमुग्ध सा खड़ा था। सांसें भी चल रही थी की नहीं पता नहीं? भीमा की नजर शून्य से उठकर वापस डाइनिंग टेबल पर आई तो कुछ जूठे प्लेट ग्लास पर आकर अटक गई।
कामया की जगह खाली थी पर उसकी खुशबू अब भी डाइनिंग रूम में फैली हुई थी, पता नहीं? या फिर सिर्फ भीमा के जेहन में थी। भीमा शांत और थका हुआ सा अपने काम में लग गया। धीरे-धीरे उसने प्लेट और जूठे बर्तन उठाए और किचेन की ओर मुड़ गया। पर अपनी नजर को सीढ़ियों की ओर जाने से नहीं रोक पाया था, शायद फिर से कामया दिख जाए? पर वहां तो बस खाली था, कुछ भी नहीं था, सिर्फ सन्नाटा था। मन मारकर भीमा किचेन में चला गया।
और उधर कामया भी जब अपने कमरे में पहुँची तो पहले अपने आपको उसने मिरर में देखा। साड़ी तो क्या बस नाममात्र की साड़ी पहने थी वो। पूरा पल्लू ढीला था और उसकी चूचियों से हटा हुआ था। दोनों चूचियां बिल्कुल साफ-साफ ब्लाउज़ पर से दिख रही थीं, क्लीवेज तो और भी साफ था। आधे खुले गले से उसकी चूचियां लगभग पूरी ही दिख रही थीं। वो नहीं जानती थी की उसके इस तरह से बैठने से भीमा चाचा पर क्या असर हुआ था? पर हाँ, कल की बात से वो बस अंदाजा ही लगा सकती थी की आज चाचा ने उसे जी भरकर देखा होगा। वो तो अपनी नजर उठाकर नहीं देख पाई थी। पर हाँ… देखा तो होगा और यह सोचते ही कामया एक बार फिर गरम होने लगी थी। उसकी जांघों के बीच में हलचल मच गई थी, निपल्स कड़े होने लगे थे। वो दौड़कर बाथरूम में घुस गई और अपने को किसी तरह से शांत करके बाहर आई।
धम्म से बिस्तर पर अपनी साड़ी उतारकर लेट गई। सोचते हुए पता नहीं कब वो सो गई। शाम को फिर से वहीं पति का इंतेजार, या फिर मम्मीजी के आगे पीछे या फिर टीवी या फिर कमरा, सब कुछ बोरियत से भरी हुई जिंदगी थी कामया की, ना कुछ फन था और ना कुछ ट्विस्ट। सोचते हुए कामया अपने कमरे में इधर उधर हो रही थी। मम्मीजी शाम होते ही अपने पूजा घर में घुस जाती थी, और पापाजी और कामेश के आने से पहले ही निकलती थी, और फिर इसके बाद खाना पीना और फिर सोना। हाँ यही जिंदगी रह गई थी कामया की।
रात को 8:30 बजे पापाजी आ गये और अपने कमरे में चले गये। कामया इंतेजार में थी की कामेश आ जाए तो थोड़ा बहुत बोल सके, नहीं तो पूरा दिन तो बस चुपचाप ही रहना पड़ता था। मम्मीजी से क्या बात करो, वो बस पूजा पाठ और कुछ बोलो तो बस हाँ या हूँ में ही जबाब देती थी। लेकिन कामेश का कहीं पता नहीं। तभी इंटरकम की घंटी बजी, मम्मीजी थीं।
मम्मीजी- अरे कामया, आ जा खाना खा ले, कामेश को लेट होगा आने में।
कामया- जी आई।
धत् तेरी की। सब मजा ही किरकिरा कर दिया। एक तो पूरे दिन इंतेजार करो, फिर शाम को पता चलता है की देर से आयेंगे। कहां गये है वो? झट से सेल उठाया और कामेश को रिंग कर दिया।
कामेश- हेलो।
कामया- क्या जी लेट आओगे?
कामेश- हाँ यार कुछ काम है, थोड़ा लेट हो जाऊँगा। खाना खाकर आऊँगा, तुम खा लेना। ठीक है?
कामया- “तुम्हें क्या हुआ? आज ही कहा था की जल्दी आना कहीं चलेंगे, और आज ही आपको काम निकल आया…” कामया का गुस्सा सातवें आसमान में था।
कामेश- अरे यार बाहर से कुछ लोग आए हैं। तुम घर में आराम करो, मैं आता हूँ।
कामया- “और क्या करती हूँ मैं घर में? कुछ काम तो है नहीं, पूरा दिन आराम ही तो करती हूँ, और आप हैं की बस…”
कामेश- अरे यार माफ कर दो। आज के बाद ऐसा नहीं होगा। प्लीज… यार, अगर जरूरी नहीं होता तो क्या तुम जैसी बीवी को छोड़कर काम में लगा रहता? प्लीज यार समझा करो…”
कामया- “ठीक है जो मन में आए करो…” कहकर झट से फोन काट दिया, और गुस्से में पैर पटकती हुई नीचे डाइनिंग टेबल पर पहुँची।
मम्मीजी टेबल पर आ गई थी। पापाजी का इंतेजार हो रहा था। टेबल पर खाना ढका हुआ रखा था। मम्मीजी ने प्लेट सजा दिए थे। बस पापाजी आ जाएं तो खाना शुरू हो। तभी पापाजी भी आ गये और खाना शुरू हो गया। पापाजी और मम्मीजी कुछ बातें कर रहे थे, तीर्थ पर जाने का। कामया का मन बिल्कुल उस बात पर नहीं था, शायद मम्मीजी अपने किसी संबंधी या फिर जान पहचान वालों के साथ कोई टूर अरंज कर रही थी कुछ दिनों के तीर्थ यात्रा पर जाने का। तभी पापाजी के मुख से अपना नाम सुनकर कामया थोड़ा सा सचेत हो गई।
पापाजी- बहू, कामेश कह रहा था की तुम घर पर बहुत बोर हो जाती हो?
कामया- “नहीं पापाजी, ऐसा कुछ नहीं है…” बहुत गुस्से में थी कामया, पर फिर भी अपने को संतुलित करके कामया ने पापाजी को जबाब दिया।
मम्मीजी- “औरर क्या? दिन भर घर में अकेली पड़ी रहती है, कोई भी नहीं है बातचीत करने को, या फिर कहीं घूने फिरने को। कामेश को तो बस काम से फुर्सत मिले, तब ना कहीं ले जाए बिचारी को…”
कामया- नहीं मम्मीजी, ऐसा कुछ नहीं है।
पापाजी- सुनो बहू, तुम गाड़ी चलाना क्यों नहीं सीख लेती? लक्खा को कह देते हैं कि तुम्हें गाड़ी चलाना सिखा देगा।
कामया- नहीं पापाजी ठीक है, ऐसा कुछ भी नहीं जो आप लोग सोचे रहे हैं।
पापाजी- अरे इसमें बुराई ही क्या है? घर में एक गाड़ी हमेशा ही खड़ी रहती है, तुम उसे चलना, जहां मन में आए जाना, और कभी-कभी मम्मी को भी घुमा लाना।
मम्मीजी- हाँ… हाँ… तुम तो लक्खा को बोल दो, कल से आ जाए तुम्हें छोड़ने के बाद।
पापाजी- अरे दिन में कहां चलाएगी वो गाड़ी? सुबह को ठीक रहेगा।
मम्मीजी- अरे सुबह को इतना काम रहता है और तुम दोनों को भी तो काम पर जाना है। कामेश को तो हाथ में उठाकर सब देना पड़ता है, नहीं तो वो तो वैसे ही चला जाइए दुकान पर।
पापाजी- तो ठीक है। शाम को चले जाना ग्राउंड पर। दिन में और सुबह तो ग्राउंड में बच्चे खेलते हैं, तुम शाम को चले जाना। ठीक है?
मम्मीजी- हाँ हाँ ठीक है, शाम का टाइम ही अच्छा है। आराम से सो लेगी और शाम को कुछ काम भी नहीं रहता। तुम लोग एक ही गाड़ी में आ जाना।
पापाजी- हाँ हाँ क्यों नहीं? लक्खा को मैं शाम को भेज दूँगा। थोड़ा सा अंधेरा हो जाए तब जाना, बच्चे भी खाली कर देंगे ग्राउंड। ठीक है ना बहू?
कामया- जी, वैसे कोई जरूरा नहीं है पापाजी।
मम्मीजी बिल्कुल चिढ़कर बोली- “कैसे जरूरत नहीं है? मेरे जैसे घर में पड़ी रहोगी क्या? तुम जाओ पहले गाड़ी सीखो फिर मुझे भी खूब घुमाना। हीहीही…” डाइनिंग रूम में एक खुशी का माहौल हो गया था।
कामया ने भी सोचा- ठीक ही तो है, घर में पड़ी-पड़ी कामेश का इंतेजार ही तो करती है। शाम को अगर गाड़ी चलाने चली जाएगी, तो टाइम भी पास हो जाएगा और जब वो लौटेगी तब तक कामेश भी आ जाएगा। थोड़ा चेंज भी हो जाएगा और गाड़ी भी चलाना सीख जाएगी…” तो फाइनल हो गया की कल से लक्खा काका शाम को आयेंगे और कामया गाड़ी चलाने को जाएगी। थोड़ी देर में खाना खतम हो गया।
मम्मीजी ने भीमा को आवाज लगा दी- अरे भीमा प्लेट उठा ले, हो गया।
भीमा- “जी माँ जी…” और लगभग भागता हुआ सा डाइनिंग रूम में आया और नीचे गर्दन करके चुपचाप झूठे बर्तन उठाने लगा।
पापाजी ने हाथ धोया और भीमा को कहा- “अरे भीमा, आजकल तुम्हारे खाने में स्वाद कुछ अलग सा था, क्या बात है, कहीं और दिमाग लगा है क्या?”
भीमा- जी साहब नहीं तो कुछ गुस्ताखी हुई क्या?
पापाजी- अरे नहीं, मैंने तो बस ऐसे ही पूछ लिया था। तुम्हारे हाथों का खाते हुए सालों हो गये, पर आज कुछ चेंज था, शायद मन कहीं और था?
भीमा- जी माफ कर दीजिए, कल से नहीं होगा।
पापाजी- अरे यार तुम तो बस… गाँव में सब कुछ ठीक-ठाक तो है ना?
भीमा- जी साहब, सब ठीक है जी।
पापाजी- चलो ठीक है, कुछ जरूरत हो तो बताना शर्माना नहीं। तुम कभी कुछ नहीं मांगते।
भीमा- वैसे ही मिल जाता है साहब इतना कुछ, तो क्या माँगें? माफ करना साहब, अगर कुछ गलती हो गई हो तो।
मम्मीजी बीच में ही बोल उठी- “अरे अरे, कुछ नहीं भीमा। तू तो जा। इनकी तो आदत है, तू तो जानता है चुटकी लेते रहते हैं।
और मम्मीजी पापाजी की ओर देखते हुए बोली- क्या तुम भी… बहू के सामने तो कम से कम ध्यान दिया करो?
पापाजी- हाहाहा… अरे मैं तो बस मजाक कर रहा था। बहू भी तो हमारे घर की है, भीमा को क्या नहीं पता?
भीमा- “जी…” और मुड़कर जूठी प्लेटें और बचा हुआ खाना लेकर अंदर चला गया। जाते हुए चोर नजर से एक बार कामया को जरूर देखा उसने।
जिसपर की कामया की नजर पर पड़ गई। थोड़ा सा मुश्कुरा कर कामया मम्मीजी के पीछे-पीछे ड्राइंग रूम में आ गई। थोड़ी देर सभी ने टीवी देखा और कामेश का इंतेजार करते रहे, पर कामेश नहीं आया।
मम्मीजी- कामेश को क्या देर होगी आने में?
पापाजी- हाँ, शायद खाना खाकर ही आएगा। बाहर से कुछ लोग आए हैं, हीरा मार्चेंट्स हैं, एक्सपोर्ट का आर्डर है, थोड़ा बहुत टाइम लगेगा।
कामया चुपचाप दोनों की बातें सुन रही थी। उसे एक्सपोर्ट आर्डर हो या इम्पोर्ट आर्डर हो, उसे क्या? उसका तो बस एक ही इंतेजार था कामेश जल्दी आ जाए, पर कहां? कामेश तो काम खतम किए बगैर कुछ नहीं सोच सकता था। रात करीब 10:30 बजे तक सभी ने इंतेजार किया और फिर सभी अपने कमरे में चले गये।
सीढ़ियां चड़ते समय कामया को मम्मीजी की आवाज सुनाई दी- “भीमा कामेश लेट ही आएगा। सोना मत, दरवाजा खोल देना। ठीक है?
भीमा- “जी माँ जी आप बेफिकर रहिए…” और नीचे बिल्कुल सूनसान हो गया।
कामया ने भी कमरे में आते ही कपड़े चेंज किया और झट से बिस्तर पर ढेर हो गई। गुस्सा तो उसे था ही और चिढ़ के मारे काब सो गई पता नहीं। सुबह जब आँखें खुली तो कामेश उठ चुका था। कामया वैसे ही पड़ी रही।
बाथरूम से निकलने के बाद कामेश कामया की ओर बढ़ा और कन्धे को हिलाकर- “मेडमजी उठिए 8:00 बज गये हैं…”
पर कामया के शरीर में कोई हरकत नहीं हुई।
कामेश जानता था कामया अब भी गुस्से में है। वो थोड़ा सा झुका और कामया के गालों को किस करते हुए- “सारी बाबा, क्या करता, काम था ना?”
कामया- तो जाइये काम ही कीजिए, हम ऐसे ही ठीक हैं।
कामेश- अरे सोचो तो जरा, यह आर्डर कितना बड़ा है? हमेशा एक्सपोर्ट करते रहो। ग्राहकों का झंझत ही नहीं। एक बार जम जाइए तो बस फिर तो आराम ही आराम। फिर तुम मर्सिडीज में घूमना।
कामया- हाँ… मर्सिडीज में, वो भी अकेले-अकेले… है ना? तुम तो बस नोट कमाने में लगे रहो।
कामेश- “अरे यार, मैं भी तो तुम्हारे साथ रहूँगा ना। चलो यार, अब उठो। पापा मम्मी इंतेजार करते होंगे जल्दी उठो…” और कामया को प्यार से सहलाते हुए उठकर खड़ा हो गया।
कामया भी मन मारकर उठी और मुँह धोने के बाद नीचे पापाजी और मम्मीजी के पास पहुँच गई। दोनों चाय की चुस्की ले रहे थे।
पापाजी- क्या हुआ कल?
कामेश- हो गया पापा। बहुत बड़ा आर्डर है। 3 साल का कांट्रैक्ट है। अच्छा हो जाएगा।
पापाजी- हूँ… देख लेना कुछ पैसे वैसे की जरूरत हो तो बैंक से बात करेंगे।
कामेश- अरे अभी नहीं, वो बाद में। फिलहाल तो ऐसे ही ठीक है।
कामया और मम्मीजी भूत बने दोनों की बातें सुन रहे थे, कुछ भी पल्ले नहीं पड़ रहा था।
मम्मीजी भी इधर उधर देखती रही। थोड़ा सा गैप जहां मिला, झट बोल पड़ी- “और सुन कामेश, यह रात को बाहर रहना अब बंद कर। घर में बहू भी है, अब उसका ध्यान रखाकर…” और कामया की ओर देखकर मुश्कुराई।
पापाजी और कामेश इस अचानक हमले के लिये तैयार नहीं थे। दोनों की नजर जैसे ही कामया पर गई तो कामया नजरें झुकाकर चाय की चुस्की लेने लगी।
पापाजी- हाँ, बिल्कुल ठीक है तुम ध्यान दिया करो।
कामेश- जी।
पापाजी- हाँ, और आज लक्खा आ जाएगा। बहू तुम चले जाना। ठीक है?
कामेश- हो गई बात लक्खा काका आज से आयेंगे। चलो यह ठीक रहा।
सभी अब कामया के ड्राइविंग सीखने जाने की बात करते रहे, और चाि खतम करके सभी अपने कमरे की ओर रवाना हो गये, आगे की रुटीन की ओर। कमरे में पहुँचते ही कामेश दौड़कर बाथरूम में घुस गया और कामया कामेश के कपड़े वार्डरोब से निकालने लगी। कपड़े निकलते समय उसे गर्दन में थोड़ी सी दर्द हुई पर ठीक हो गया। अपना काम करके कामया कामेश का बाथरूम से निकलने का इंतेजार करने लगी। कामेश हमेशा की तरह अपने टाइम से निकला, एकदम साहब बनकर। बाहर आते ही जल्दी से कपड़े पहनने की जल्दी और फिर जूता-मोजा पहनकर तैयार, 10 बजे तक पूरी तरह से तैयार।
कामया बिस्तर पर बैठी-बैठी कामेश को तैयार होते देखती रही, और अपने हाथों से अपनी गर्दन को मसाज भी करती रही। कामेश के तैयार होने के बाद वो नीचे चले गये और कामेश तो बस हबड़-तबड़ कर खाता था। जल्दी से खाना खाकर बाहर का रास्ता। करीब 10:30 बजे तक कामेश हमेशा ही दुकान की ओर चाल देता था। पापाजी को करीब 11:30 बजे तक निकलते थे।
कामया भी कामेश के चले जाने के बाद अपने कमरे की ओर चल दी। टेबल पर भीमा चाचा जूठी प्लेटें उठा रहे थे। एक नजर उनपर डाली और अपने कमरे की ओर जाते-जाते उसे लगा की भीमा चाचा की नजरें उसका पीछा कर रही हैं। सीढ़ी के आखिरी मोड़ पर वो पलटी, तो चाचा की नजरें उसपर ही थीं। पलटते ही चाचा अपने को फिर से काम में लगा लिए, और जल्दी से किचेन की ओर मुड़ गये।
कामया के शरीर में एक झुरझुरी सी फैल गई और कमरे तक आते-आते पता नहीं क्यों वो बहुत ही कामुक हो गई थी। एक तो पति है की काम से फुर्सत नहीं, सेक्स तो दूर की बात, देखने और सुनने की भी फुर्सत नहीं
है। आज तो कामया कमरे में पहुँचकर बिस्तर पर चित्त लेट गई, छत की ओर देखते हुए पता नहीं क्या सोचने लगी थी, पता नहीं? पर मरी हुई सी बहुत देर लेटी रही। तभी घड़ी ने 11:00 बजे का बीप किया। कामया झट से उठी और बाथरूम की ओर चली। बाथरूम में भी कामया बहुत देर तक खड़ी-खड़ी सोचती रही।
कपड़े उतारते वक़्त कामया के कंधे में फिर से थोड़ा सा अकड़न हुई। अपने हाथों से कंधे को सहलाते हुए वो मिरर में देखकर थोड़ा सा मुश्कुराई, और फिर ना जाने कहां से उसके शरीर में जान आ गई। जल्दी-जल्दी फटाफट सारे काम चुटकी में निपटा लिए, और पापाजी और मम्मीजी के पास नीचे खाने की टेबल की ओर चल दी। पापाजी और मम्मीजी डाइनिंग टेबल पर आते ही होंगे, वो उनसे पहले पहुँचना चाहती थी। पर मम्मीजी पहले ही वहां थी, कामया को देखकर मम्मीजी थोड़ा सा मुश्कुराई और बैठ गईं।
कामया पापाजी और मम्मीजी का प्लेट लगाने लगी, और खड़ी-खड़ी पापाजी के आने इंतेजार करने लगी। पापाजी के आने बाद खाने पीने का दौर शुरू हो गया, और पापाजी और मम्मीजी की बातों का दौर। पर कामया का ध्यान उनकी बातों में नहीं था, उसके दिमाग में कुछ और ही चल रहा था। पापाजी और मम्मीजी की बातों का हाँ या हूँ में जबाब देती जा रही थी, और खाने खतम होने का इंतेजार कर रही थी। पता नहीं क्यों आज ज्यादा ही टाइम लग रहा था। किचेन में भीमा चाचा के काम करने की आवाजें भी आ रही थी। पर दिखाई कुछ नहीं दे रहा था। कामया का ध्यान उस तरफ ज्यादा था। क्या भीमा चाचा उसे देख रहे हैं? या फिर अपने काम में
ही लगे हुए हैं?
आज उसने इस समय सूट ही पहना था। रोज की तरह ही था, लेकिन टाइट फिटिंग वाला। उसका शरीर खिल रहा था उस सूट में, वो यह जानती थी। तो क्या भीमा चाचा ने उसे देख लिया है, या फिर देख रहे हैं? पता नहीं पापाजी और मम्मीजी को खाना खिलाते समय उसके दिमाग में कितनी बातें उठ रही थीं; हाँ और ना के बीच में आकर खतम हो जाती थी। कभी-कभी वो पलटकर या फिर तिरछी नजर से पीछे की ओर देख भी लेती थी। पर भीमा चाचा को वो नहीं देख पाई थी अब तक। इसी तरह पापाजी और मम्मीजी का खाना भी खतम हो गया।
मम्मीजी- अरे बहू, तू भी खाना खा ले अब।
कामया- जी मम्मीजी खा लूँगी।
पापाजी- ज्यादा देर मत किया कर, नहीं तो गैस हो जाएगा।
कामया- जी।
फिर पापाजी और मम्मीजी उठकर हाथ मुख धोने लगे। पापाजी जल्दी-जल्दी अपने कमरे की ओर भागे, उनके निकलने का टाइम जो हो गया था। मम्मीजी ने भीमा को आवाज देकर प्लेट उठाने को कहा और कामया के साथ ड्राइंग रूम के दरवाजे पर पहुँच गई। पीछे भीमा डाइनिंग टेबल से प्लेटें उठा रहा था और सामने ड्राइंग रूम के दरवाजे के पास कामया खड़ी थी उसकी ओर पीठ करके। भीमा प्लेटें उठाते हुए पीछे से उसे देख रहा था, सबकी नजर बचाकर।
मम्मीजी कुछ कह रही थी कामया से। तभी अचानक कामया पलटी और भीमा और कामया की नजरें एक हुईं। भीमा सकपका गया और झट से नजरें नीचे करके जल्दी से जूठे प्लेट लिए किचेन में घुस गया। कामया ने जैसे ही भीमा को अपनी ओर देखते हुए देखा, वो भी पलटकर मम्मीजी की ओर ध्यान देने लगी थी। तभी पापाजी भी आ गये थे, वो बाहर की चले गये तो मम्मीजी और कामया भी उनके पीछे-पीछे बाहर दरवाजे तक आए। बाहर गाड़ी के पास लक्खा काका अपनी वही पूरी पोशाक में हाजिर थे नीचे गर्दन किए धोती और शर्ट पहने हुए पीछे का गेट खोले खड़े थे।
पापाजी ने उसके पास पहुँचकर कहा- “आज से तुम्हारे लिए नई ड्यूटी लगा दी है, पता है?”
लक्खा- जी साहब।
पापाजी- आज से बहू को ड्राइविंग सिखाना है आपको।
लक्खा- जी साहब।
पापाजी- कोई दिक्कत तो नहीं?
लक्खा- जी नहीं साहब।
पापाजी- कोई शिकायत नहीं आनी चाहिए। ठीक है?
लक्खा- “जी साहब…” लक्खा का सिर अब भी नहीं उठा था, न ही उसने कामया की ओर ही देखा था।
मम्मीजी- शाम को जल्दी आ जाना, ठीक है।
लक्खा- जी माँ जी।
मम्मीजी- कितने बजे भेजोगे?
पापाजी- हाँ… करीब 6:00 बजे।
मम्मीजी- जी ठीक है।
फिर पापाजी गाड़ी में बैठ गये और लक्खा भी जल्दी से दौड़कर ड्राइविंग सीट पर बैठ गया और गाड़ी गेट के बाहर हो गई। मम्मीजी और कामया भी अंदर की ओर पलटे। डाइनिंग टेबल में कुछ ढका हुआ था, शायद कामया का खाना था।
मम्मीजी- “जा अब तू खाना खा ले। मैं तो जाऊँ आराम करूं…”
कामया- “जी…” और कामया डाइनिंग रूम में रुक गई।
और मम्मीजी अपने रूम की ओर चली गईं।
कामया किचेन की ओर चली और दरवाजे पर रुकी- “चाचा एक मदद चाहिए…”
भीमा- जी छोटी बहू कहिए, आप तो हुकुम कीजिए…” और अपनी नजर झुका कर हाथ बाँध कर सामने खड़ा हो गया। सामने कामया खड़ी थी पर वो नजर उठाकर नहीं देख पा रहा था। उसकी साँसे बहुत तेज चल रही थीं। सांसों में कामया के सेंट की खुशबू बस रही थी, वो मदहोश सा होने लगा था।
कामया- वो असल में आ आप बुरा तो नहीं मानेंगे ना?
भीमा- चुप रहा।
कोई जबाब ना पाकर कामया- वो असल में कल सोने के समय थोड़ा सा गर्दन में मोच आ गई थी। मैं चाहती थी की अगर आप थोड़ा सा मालिश कर दें तो?”
भीमा- “ज्ज्जीईईऽऽ…”
कामया भी भीमा के जबाब से कुछ सकपकाई, पर तीर तो छूट चुका था। कामया ने सभाला- “नहीं नहीं, अगर कोई दिक्कत है तो कोई बात नहीं। असल में उस दिन जब आपने मेरे पैरों की मोच ठीक किया था ना… इसलिए मैंने कहा। और आज से तो गाड़ी भी चलाने जाना है ना… इसलिए सोचा आपको बोलकर देखूँ…”
भीमा की तो जान ही अटक गई थी गले में, मुँह सुख गया था, नजरों के सामने अंधेरा छा गया था, उसके गले से कोई भी आवाज नहीं निकली। वो वैसे ही खड़ा रहा और कुछ बोल भी ना पाया।
कामया- आप अपना काम खतम कर लीजिए, फिर कर देना। ठीक है? मैं उसके बाद खाना खा लूँगी।
भीमा- चुप था
कामया- चलिए मैं आपको बुला लूँगी। कितना टाइम लगेगा आपको?
भीमा- “जी…”
कामया- “फ्री होकर रिंग कर देना, मैं रूम में ही हूँ…” कहकर कामया अपने रूम की ओर पलटकर चली गई।
भीमा किचेन में ही खड़ा था, किसी बुत की तरह सांसें ऊपर की ऊपर नीचे की नीचे, दिमाग सुन्न, आँखें पथरा गई थी, हाथ पांव में जैसे जान ही ना हो, खड़ा-खड़ा कामया को जाते हुए देखता रहा पीछे से, उसकी कमर बलखाती हुई और नितम्बों के ऊपर से उसकी चुन्नी इधर-उधर हो रही थी।
सीढ़ी से चड़ते हुए कामया के शरीर में एक अजीब सी लचक थी। फिगर जो की दिख रहा था, कितना कोमल था। वो सपने में कामया को जैसे देखता था, वो आज उसी तरह बलखाती हुई सीढ़ियों से चढ़कर अपने रूम की ओर मुड़ गई थी। भीमा वैसे ही थोड़ी देर खड़ा रहा, सोचता रहा की आगे वो क्या करे? आज तक कभी भी उसने यह नहीं सोचा था की वो कभी भी इस घर की बहू को हाथ भी लगा सकता था, मालिश तो दूर की बात… और वो भी कंधे को… मतलब वो आज कामया के शरीर को कंधे से छू सकेगा।
आअह्ह… भीमा के पूरे शरीर में एक अजीब सी हलचल मच गई थी, बूढ़े शरीर में एक उत्तेजना की लहर फैल गई, उसके सोते हुए अंगों में आग सी भर गई। कितनी सुंदर है कामया? कहीं कोई गलती हो गई तो
पूरे जीवन काल की बनी बनाई निष्ठा और नमकहलाली धरी रह जाएगी। पर मन का क्या करे? वो तो चाहता था की वो कामया के पास जाए। भाड़ में जाए सब कुछ, वो तो जाएगा। वो अपने जीवन में इतनी सुंदर और कोमल लड़की को आज तक हाथ नहीं लगाया था, वो तो जाएगा कुछ भी हो जाए। वो जल्दी से पलटकर किचेन में खड़ा चारों ओर देख रहा था सिंक पर जूठे प्लेट पड़े थे और किचेन भी अस्त-व्यस्त था, पर उसकी नजर बाहर सीढ़ियों पर चली जाती थी।
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(06-03-2019, 11:22 PM)Payal Wrote: Update .......nice story
(06-03-2019, 11:52 PM)bhavna Wrote: कहानी मस्त हैं।
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Thanks
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भीमा का मन कुछ भी करने को नहीं हो रहा था। जो कुछ जैसे पड़ा था, वो वैसे ही रहने दिया। आगे बढ़ने की हिम्मत या फिर कहिए मन ही नहीं कर रहा था। वो तो बस अब कामया के करीब जाना चाहता था। वो कुछ भी नहीं सोच पा रहा था, उसकी सांसें अब तो रुक-रुक कर चल रही थीं। वो खड़ा-खड़ा बस इंतेजार कर रहा था की क्या करे? उसका अंतरमन कह रहा था की नहीं यह गलत है। पर एक तरफ वो कामया के शरीर को छूना चाहता था। उसके मन के अंदर में जो उथल पुथल थी वो उसे पार नहीं कर पा रहा था। वो अभी भी खड़ा था।
और उधर कामया अपने कमरे में पहुँचकर जल्दी से बाथरूम में घुसी और अपने को सवांरने में लग गई थी। वो इतनी जल्दीबाजी में लगी थी की जैसे वो अपने बायफ्रेंड से मिलने जा रही हो। वो जल्दी से बाहर निकली और वार्डरोब से एक स्लीवलेश ब्लाउज़ और एक सफेद कलर का पेटीकोट निकालकर वापस बाथरूम में घुस गई।
वो इतनी जल्दी में थी की कोई भी देखकर कह सकता था की वो आज कुछ अलग मूड में थी, चेहरा खिला हुआ था, और एक जहरीली मुश्कान भी थी। उसके बाल खुले हुए थे, और होंठों पर डार्क कलर की लिपस्टिक थी, कमर के बहुत नीचे उसने पेटीकोट पहना था। ब्लाउज़ तो जैसे रखकर सिला गया हो, टाइट इतना था की जैसे हाथ रखते ही फट जाएगा। आधे से ज्यादा चूचियां सामने से ब्लाउज़ के बाहर आ रही थीं, पीछे से सिर्फ ब्रा के ऊपर तक ही था। ब्लाउज़ कंधे पर बस टिका हुआ था, दो बहुत ही पतली पट्टी लगभग ½ सेंटीमीटर की ही होगी।
बाथरूम से निकलने के बाद कामया ने अपने को मिरर में देखा तो वो खुद को देखती रह गई। क्या लग रही थी? बोल्कुल सेक्स की गुड़िया। कोई भी ऋषि-मुनि उसे ना नहीं कर सकता था। कामया अपने को देखकर बहुत ही उत्तेजित हो गई थी। हाँ, उसके शरीर में आग सी भर गई थी। वो खड़ी-खड़ी अपने शरीर को अपने ही हाथों से सहला रही थी, अपने उभारों को खुद ही सहलाकर अपने को और भी उत्तेजित कर रही थी, और अपने शरीर पर भीमा चाचा के हाथों के स्पर्श को भी महसूस कर रही थी। उसने अपने को मिरर के सामने से हटाया और एक चुन्नी अपने उपर डाल ली, और भीमा चाचा का इंतेजार करने लगी। पर इंटरकम तो जैसे शांत था, वैसे ही शांत पड़ा हुआ था।
उधर भीमा भी अपने हाथ को साफ करके किचेन में ही खड़ा था, सोच रहा था की क्या करे? फोन करे या नहीं? कहीं किसी को पता चल गया तो? लेकिन दिल है की मानता नहीं। वो इंटरकम तक पहुँचा और फिर थम गया अंदर एक डर था, मालिक और नौकर का रिश्ता था, उसको वो कैसे भूल सकता था? पागल सियार की तरह वो किचेन में तो कभी किचेन के बाहर तक आता और फिर अंदर चला जाता। इस दौरान वो दो बार बाहर का दरवाजा भी चेक कर आया, जो की ठीक से बंद है की नहीं? पागल सा हो रहा था वो, लग रहा था की हटो यार कर ही देता हूँ फोन, और वो जैसे ही फोन तक पहुँचा फोन अपने आप ही बज उठा।
भीमा ने भी झट से उठा लिया, उसकी सांसें फूल रही थी- “ज्ज्जीऽऽ…”
उधर से कामया की आवाज थी, शायद वो और इंतेजार नहीं करना चाहती थी- “क्या हुआ चाचा, काम नहीं हुआ आपका?” आवाज में जैसे मिशरी सी घुल गई थी भीमा के कानों में।
हकलाते हुए भीमा की आवाज निकली- “जी, बहू बस…”
कामया- “क्या जी जी? मुझे खाना भी तो खाना है आओगे की… …” जानबूझ कर कामया ने अपना वाक्य आधूरा छोड़ दिया।
भीमा जल्दी से बोल उठा- “नहीं नहीं बहू, मैं तो बस आ ही रहा था। आप बस आया…” और लगभग दौड़ता हुआ वो एक साथ दो तीन सीढ़ियां चड़ता हुआ कामया के रूम के सामने था। मगर हिम्मत नहीं हो रही थी की खटखटा सके। खड़ा हुआ भीमा क्या करे?
भीमा सोच ही रहा था की दरवाजा कामया ने खोल दिया, जैसे देखना चाहती हो की कहां रहा गया है वो? सामने से भी सुंदर बिल्कुल किसी अप्सरा की तरह खड़ी थी कामया। चुन्नी जो की उसके ब्लाउज़ के उपर से ढलक गई थी, उसके आधे खुले ब्लाउज़ जो की बाहर की ओर थे, उसे न्योता दे रहे थे की आओ और खेलो मेरे साथ, चूसो और दबाओ, जो जी में आए करो, पर जल्दी करो।
भीमा दरवाजे पर खड़ा हुआ कामया के इस रूप को टकटकी बांधे देख रहा था, हलक सुख गया था, इस तरह से कामया को देखते हुए।
कामया की आँखों में और होंठों में एक अजीब सी मुश्कुराहट थी, वो वैसे ही खड़ी भीमा चाचा को अपने रूप का रस पिला रही थी, उसने अपनी चुन्नी से अपने को ढकने की कोशिश भी नहीं की, बल्की थोड़ा सा आगे आकर भीमा चाचा का हाथ पकड़कर अंदर खींचा- “क्या चाचा, जल्दी करो ऐसे ही खड़े रहोगे क्या? जल्दी से ठीक कर दो, फिर खाना खाना है मुझे…”
भीमा किसी कठपुतली की तरह एक नरम से और कोमल से हाथ की पकड़ के साथ अपने को खिंचाता हुआ कामया के कमरे में चला आया, नहीं तो क्या कामया में दम था की भीमा जैसे आदमी को खींचकर अंदर ले जा पाती। यह तो भीमा ही खींचा चला गया उस खुशबू की ओर, उस मल्लिका की ओर, उस अप्सरा की ओर, उसके सूखे हुए होंठ और गला लिए अकड़े हुए पैरों के साथ, सिर घुमाता हुआ और आँखें कामया के शरीर पर जमी हुई।
जैसे ही भीमा अंदर आया कामया ने अपने पैरों से ही रूम का दरवाजा बंद कर दिया और साइड में रखे सोफे पर बैठ गई, जो की कुछ नीचे की ओर था, बेड से थोड़ी दूर। भीमा आज पहली बार कामेश भैया के रूम में आया था। उनकी शादी के बाद कितना सुंदर सजाकर रखा था बहू ने। जितनी सुंदर वो थी उतना ही अपने रूम को सजा रखा था। इतने में कामया की आवाज उसके कानों में टकराई।
कामया- क्या भीमा चाचा, क्या सोच रहे हो?
भीमा चुप था। वो बुत बना कामया को देख रहा था। कामया से नजर मिलते ही वो फिर से कोमा में चला गया। क्या दिख रही थी कामया? सफेद कलर की टाइट ब्लाउज़ और पेटीकोट पहने हुए थी, और लाल कलर की चुन्नी तो बस डाल रखी थी। क्या वो इस तरह से मालिश कराएगी? क्या वो कामया को इस तरह से छू सकेगा? उसके कंधों को, उसके बालों को, या फिर?
कामया- क्या चाचा, बताइए कहा करेंगे? यही बैठूं?
भीमा- “जी जी…” और गले से थूक निगलने की कोशिश करने लगा।
भीमा कामया की ओर देखता हुआ थोड़ा सा आगे बढ़ा, पर फिर ठिठक कर रुक गया, क्या करे हाथ लगाए? उफफ्फ़… क्या वो अपने को रोक पाएगा? कहीं कोई गड़बड़ हो गई तो? भाड़ में जाए सब कुछ। वो अब आगे बढ़ गया था। अब पीछे नहीं हटेगा। वो धीरे से कामया की ओर बढ़ा और सामने खड़ा हो गया, देखते हुए कामया को जो की सोफे के थोड़ा सा नीचे होने से थोड़ा नीचे हो गई थी।
कामया- “मैं पलट जाऊँ की आप पीछे आयेंगे?” कामया ने भीमा चाचा को अपनी ओर आते देखकर पूछा। उसकी सांसें भी कुछ तेज चल रही थीं। ब्लाउज़ के अंदर से उसकी चूचियां बाहर आने को हो रही थीं।
भीमा की नजर कामया के ब्लाउज़ पर से नहीं हट रही थी। वो घूमते हुए कामया के पीछे की ओर चला गया था। उसकी सांसों में एक मादक सी खुशबू बस गई थी, जो की कामया के शरीर से निकल रही थी। वो कामया का रूप का रस पीते हुए, उसके पीछे जाकर खड़ा हो गया। ऊपर से देखने में कामया का पूरा शरीर कीसी मोम की गुड़िया की तरह से दिख रहा था। सफेद कपड़ों में कसा हुआ उसका शरीर जो की कपड़ों से बाहर की ओर आने को तैयार था, और उसके हाथों के इंतेजार में था।
कामया अब भी चुपचाप वहीं बैठी थी, और थोड़ा सा पीछे की ओर हो गई थी। भीमा खड़ा हुआ, अब भी कामया को ही देख रहा था। वो कामया के रूप को निहारने में इतना गुम था की वो यह भी ना देख पाया की कब कामया अपना सिर ऊंचा करके भीमा की नजर की ओर ही देख रही थी।
कामया- “क्या चाचा शुरू करो ना प्लिज़्ज़…”
भीमा के हाथ कांप गये थे इस तरह की रिक्वेस्ट से। कामया अब भी उसे ही देख रही थी। उसके इस तरह से देखने से कामया की दोनों चूचियां उसके ब्लाउज़ के अंदर बहुत अंदर तक दिख रही थीं। कामया का शरीर किसी रूई के गोले के समान दिख रहा था भीमा को, कोमल और नाजुक। भीमा ने कांपते हुए हाथ से कामया के कंधे को छुआ तो, एक करेंट सा दौड़ गया भीमा के शरीर में। उसके अंदर का सोया हुआ मर्द अचानक जाग गया। आज तक भीमा ने इतनी कोमल और नरम चीज को हाथ नहीं लगाया था।
एकदम मखमल की तरह कोमल और चिकना था कामया का कंधा, उसके हाथ मालिश करना तो जैसे भूल ही गये थे, वो तो उस एहसास में ही खो गया था, जो की उसके हाथों को मिल रहा था। वो चाहकर भी अपने हाथों को हिला नहीं पा रहा था, बस अपनी उंगलियों को उसके कंधे पर हल्के से फेर रहा था, और उसकी नाजुकता का एहसास अपने अंदर भर रहा था। फिर वो अपने दूसरे हाथ को भी कामया के कंधे पर ले गया, और दोनों हाथों से वो कामया के कंधे को बस छूकर देख रहा था।
उधर कामया का तो सारा शरीर ही आग में जल रहा था। जैसे ही भीमा चाचा का हाथ उसके कंधे पर टकराया उसके अंदर तक सेक्स की लहर दौड़ गई, उसके पूरे शरीर के रोंगटे खड़े हो गये, और शरीर कांपने लगा था। उसे ऐसे लग रहा था की वो बहुत ही ठंडी में बैठी है। वो किसी तरह से ठीक से बैठी थी, पर उसका शरीर उसका साथ नहीं दे रहा था। वो ना चाहते हुए भी थोड़ा सा तनकर बैठ गई। उसकी दोनों चूचियां अब सामने की ओर बिल्कुल किसी पहाड़ की चोटी की तरह से खड़ी थीं और सांसों के साथ ऊपर-नीचे हो रही थी। उसकी सांसों की गति भी बाढ़ गई थी। भीमा के सिर्फ दोनों हाथ उसके कंधे पर छूने का ही एहसास उसके शरीर में वो आग भर गया था, जो की आज तक कामया ने अपनी पूरे शादीशुदा जिंदगी में महसूस नहीं किया था। कामया अपने आपको संभालने की पूरी कोशिश कर रही थी, पर नहीं संभाल पा रही थी। वो ना चाहते हुए भी भीमा चाचा से टिकने की कोशिश कर रही थी। वो पीछे की ओर होने लगी थी, ताकि भीमा चाचा से टिक सके।
उसके इस तरह से पीछे आने से भीमा भी थोड़ा आगे की ओर हो गया। अब भीमा के पेट से लेकर जांघों तक कामया टिकी हुई थी। उसका कोमल और नाजुक बदन उसके आधे शरीर से टीका हुआ उसके जीवन काल का वो सुख दे रहा था, जिसकी कल्पना भीमा ने नहीं सोची थी। भीमा का हाथ अब पूरी आजादी से कामया के कंधे पर घूम रहा था। वो उसके बालों को हटाकर उसकी गर्दन को अपने बूढ़े और मजबूत हाथों से स्पर्श करके कामया के शरीर का ठीक से अवलोकन कर रहा था। वो अब तक कामया के शरीर से उठ रही खुशबू में ही डूबा हुआ था, और उसके कोमल शरीर को अपने हाथों में पाकर नहीं सोच पा रहा था की आगे वो क्या करे? पर हाँ… उसके हाथ कामया के कंधे और बालों से खेल रहे थे।
कामया का सिर भीमा के पेट पर था और वो और भी पीछे की ओर होती जा रही थी। अगर भीमा उसे पीछे से सहारा ना दे तो वो धम्म से जमीन पर गिर जाए। वो लगभग नशे की हालत में थी और उसके मुख से धीमे-धीमे सांसें चलने की आवाज आ रही थी, उसके नथुने फूल रहे थे, और उसके साथ ही उसकी छाती भी अब कुछ ज्यादा ही आगे की ओर हो रही थी।
भीमा खड़ा-खड़ा इस नजारे को देख भी रहा था और अपनी जिंदगी के हसीन पल को याद करके खुश भी हो रहा था। वो अपने हाथों को कामया की गर्दन पर फेरने से नहीं रोक पा रहा था। अब तो उसके हाथ उसकी गर्दन को छोड़कर उसके गले को भी स्पर्श कर रहे थे। कामया जो की नशे की हालत में थी, कुछ भी सोचने और करने की स्थिति में नहीं थी। वो बस आँखें बंद किए भीमा के हाथों को अपने कंधे और गले में घूमते हुए महसूस भर कर रही थी, और अपने अंदर उठ रहे ज्वार को किसी तरह नियंत्रण में रखने की कोशिश कर रही थी। उसकी छाती आगे और आगे की ओर हो रही थी, सिर भीमा के पेट पर छुआ था, कमर नितम्बों के साथ पीछे की ओर हो रही थी।
बस भीमा इसी तरह उसे सहलाता जाए, या फिर प्यार करता जाए, यही कामया चाहती थी, बस रुके नहीं। उसके अंदर की ज्वाला जो की अब किसी तरह से भीमा को ही टंडा करना था, वो अपना सब कुछ भूलकर भीमा का साथ देने को तैयार थी।
उधर भीमा जो की पीछे खड़े-खड़े कामया की स्थिति का अवलोकन कर रहा था, और जन्नत की किसी अप्सरा के हुश्न को अपने हाथों में पाकर किस तरह से आगे बढ़े? सोच रहा था। वो अपने आप में नहीं था। वो भी एक नशे की हालत में ही था, नहीं तो कामया जो की उसकी मालेकिन थी उसके साथ उनके कमरे में आज इस तरह खड़े होने की कल्पना तो दूर की बात, सोच से भी परे थी उसके।
पर आज वो कामया के कमरे में कामया के साथ, जो की सिर्फ एक ब्लाउज़ और पेटीकोट डाले उसके शरीर से टिकी हुई बैठी थी, और वो उसके कंधे और गले को आराम से सहला रहा था। अब तो वो उसके गाल तक पहुँच चुका था, कितने नरम और चिकने गाल थे कामया के, और कितने नरम होंठ थे। अपने अंगूठे से उसके होंठों को छूकर देखा था भीमा ने। भीमा थोड़ा सा और आगे की ओर हो गया, ताकि वो कामया के होंठों को अच्छे से देख और छू सके।
भीमा के हाथ अब कामया की गर्दन को छूकर कामया के गालों को सहला रहे थे। कामया भी नशे में थी, सेक्स के नशे में, और कामुकता तो उसपर हावी था ही। भीमा अब तक अपने आपको कामया के हुश्न के गिरफ़्त में पा रहा था। वो अपने को रोकने में असमर्थ था। वो अपने सामने इतनी सुंदर स्त्री को पाकर अपना सुधबुध खो चुका था। उसके शरीर से आवाजें उठ रही थीं। वो कामया को छूना चाहता था, और छूना चाहता था, सब कुछ छूना चाहता था। भीमा ने अपने हाथों को कामया के ठोड़ी के नीचे रखकर उसकी ठोड़ी को थोड़ा सा ऊपर की ओर किया, ताकि उसे उसके होंठों को ठीक से देख सके।
कामया ने भी ना नुकर न करते हुए अपने सिर को ऊंचा कर दिया, ताकि भीमा जो चाहे कर सके, बस उसके शरीर को ठंडा करे, उसके शरीर की सेक्स की भूख को ठंडा कर दे, उसकी कामुकता को ठंडा करे बस।
भीमा उसको इस तरह से अपना साथ देता देखकर और भी गरमा गया था। उसकी धोती के अंदर उसके पुरुष की निशानी अब बिल्कुल तैयार था अपने पुरुषार्थ को दिखाने के लिया। भीमा अब सब कुछ भूल चुका था, उसके हाथ अब कामया के गालों को छूते हुए होंठों तक बिना किसी झिझक के पहुँच जाते थे। वो अपने हाथों के स्पर्श से कामया के स्किन का अच्छे से छूकर देख रहा था। उसकी जिंदगी का पहला एहसास था, वो थोड़ा सा झुका हुआ था, ताकि वो कामया को ठीक से देख सके।
कामया भी चेहरा उठाए चुपचाप भीमा को पूरी आजादी दे रही थी की जो मन में आए करो, और जोर-जोर से सांस फेंक रही थी। भीमा की कुछ और हिम्मत बढ़ी तो उसने कामया के कंधों से उसकी चुन्नी को उतर फेंका और फिर अपने हाथों को उसके कंधों पर घुमाने लगा। उसकी नजर अब कामया के ब्लाउज़ के अंदर की ओर थी पर हिम्मत नहीं हो रही थी। उसके हाथ एक कंधे पर और दूसरा उसके गालों और होंठों पर घूम रहे थे।
भीमा की उंगलियां जब भी कामया के होंठों को चूती तो कामया के मुख से एक सिसकारी निकल जाती थी, उसके होंठ गीले हो जाते थे। भीमा की उंगलियां उसके थूक से गीली हो जाती थीं। भीमा भी अब थोड़ा सा निडर होकर अपनी उंगली को कामया के होंठों पर ही घिस रहा था, और थोड़ा सा होंठों के अंदर कर देता था। भीमा की सांसें जोर-जोर से चल रही थी। उसका लिंग भी अब पूरी तरह से कामया की पीठ पर घिस रहा था, किसी खंबे की तरह था। वो इधर-उधर होता था तो एक चोट सी पड़ती थी कामया की पीठ पर। जब वो थोड़ा सा उसकी पीठ से दायें या बायें होता था तो उसकी पीठ पर जो हलचल हो रही थी, वो सिर्फ कामया ही जानती थी, पर वो भीमा को पूरा समय देना चाहती थी।
भीमा की उंगली अब कामया के होंठों के अंदर तक चली जाती थी, उसकी जीभ को छूती थी। कामया भी उत्तेजित तो थी ही, झट से उसकी उंगली को अपने होंठों के अंदर दबा लिया और चूसने लगी थी। कामया का पूरा ध्यान भीमा की हरकतों पर था।
भीमा धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था। वो अब नहीं रुकेगा। हाँ… आज वो भीमा के साथ अपने शरीर की आग को टंडा कर सकती है। वो और भी सिसकारी भरकर थोड़ा और ऊंचा उठ गई। भीमा के हाथ जो की कंधे पर थे, अब धीरे-धीरे नीचे की ओर उसकी बाहों की ओर सरक रहे थे। वो और भी उत्तेजित होकर भीमा की उंगली को चूसने लगी।
भीमा भी अब खड़े रहने की स्थिति में नहीं था वो झुक कर अपने हाथों को कामया की बाहों पर घिस रहा था, और साथ ही साथ उंगलियों से उसकी चूचियों को छूने की कोशिश भी कर रहा था। पर कामया के उत्तेजित होने के कारण वो कुछ ज्यादा ही इधर-उधर हो रही थी, तो भीमा ने वापस अपना हाथ उसके कंधे पर पहुँचा दिया, और वहीं से धीरे-धीरे अपने हाथों को उसके गले से होते हुए उसकी चूचियों तक पहुँचाने की कोशिश में लग गया। उसका पूरा ध्यान कामया पर भी था, उसकी एक ‘ना’ उसके सारे सपने को धूमिल कर सकती थी। इसलिए वो बहुत ही धीरे-धीरे अपने कदम बढ़ा रहा था।
कामया का शरीर अब पूरी तरह से भीमा की हरकतों का साथ दे रहा था। वो अपनी सांसों को कंट्रोल नहीं कर पा रही थी। तेज और बहुत ही तेज सांसें चल रही थी उसकी। उसे भीमा के हाथों का अंदाजा था की अब वो उसके चूचियों की ओर बढ़ रहे हैं। उसके ब्लाउज़ के अंदर एक ज्वार आया हुआ था। उसके सांस लेने से उसके ब्लाउज़ के अंदर उसकी चूचियां और भी सख़्त हो गई थी, निपल्स तो जैसे तनकर कोई ठोस से हो गये थे। वो बस इंतेजार में थी की भीमा उसकी चूचियों को छुए।
और तभी भीमा की हथेली उसकी चूचियों के ऊपर थी, बड़ी-बड़ी और कठोर सी हथेली उसके ब्लाउज़ के ऊपर से उसके अंदर तक उसके हाथों की गर्मी को पहुँचा चुके थे। कामया थोड़ा सा चिहुंक कर और भी तन गई थी। भीमा जो की अब कामया के गोलाईयों को हल्के हाथों से टटोल रहा था ब्लाउज़ के ऊपर से, और ऊपर से उनको देख भी रहा था, और अपने आप पर यकीन नहीं कर पा रहा था की वो क्या कर रहा था? सपना था की हकीकत था वो नहीं जानता था?
पर हाँ… उसकी हथेलियों में कामया की गोल-गोल ठोस और कोमल और नाजुक सी रूई के गोले के समान चूचियां थीं जरूर। वो एक हाथ से कामया की चूचियों को ब्लाउज़ के ऊपर से ही टटोल रहा था, या कहिए सहला रहा था; और दूसरे हाथ से कामया के होंठों में अपनी उंगलियों को डाले हुए उसके गालों को सहला रहा था। वो खड़ा हुआ अपने लिंग को कामया की पीठ पर रगड़ रहा था, और कामया भी उसका पूरा साथ दे रही थी, कोई ना नुकर नहीं था उसकी तरफ से। कामया का शरीर अब उसका साथ छोड़ चुका था। अब वो भीमा के हाथ में थी, उसके इशारे पर थी, अब वो हर उस हरकत का इंतेजार कर रही थी जो भीमा करने वाला था।
ूधर भीमा अपना सुध बुध खोया हुआ अपने सामने इस सुंदर काया को अपने हाथों का खिलोना बनाने के लिये आजाद था। वो उसकी चूचियों को तो ब्लाउज़ के ऊपर से सहला रहा था, पर उसका मन तो उसको अंदर से छूने को था। उसने दूसरे हाथ को कामया के गालों और होंठों से आजाद किया और धीरे से उसके ब्लाउज़ के गैप से उसके अंदर डाल दिया, तो मखमल सा एहसास उसके हाथों को हुआ और वो बढ़ता ही गया। जैसे-जैसे उसका हाथ कामया के ब्लाउज़ के अंदर की ओर होता जा रहा था, वो कामया से और भी सटता जा रहा था। अब दोनों के बीच में कोई भी गैप नहीं था।
कामया भीमा से पूरी तरह सटी हुई थी, या कहिए अब पूरी तरह से उसकी जांघों के सहारे से टिकी अपनी पीठ पर भीमा चाचा के लिंग का एहसास लेते हुए कामया एक अनोखे संसार की सैर कर रही थी।
कामया के शरीर में जो आग लगी थी, अब वो धीरे-धीरे इतनी भड़क चुकी थी की उसने अपने जीवन काल में इस तरह का एहसास नहीं किया था। वो अपने को भूलकर भीमा चाचा को उनका हाथ अपने ब्लाउज़ में घुसाने में थोड़ा मदद की। वो थोड़ा सा आगे की ओर हुई, अपने कंधों को आगे करके; ताकि भीमा चाचा के हाथ आराम से अंदर जा सकें। भीमा चाचा की कठोर और सख्त हथेली जब उसके स्किन से टकराए तो वो और भी सख्त हो गई, उसका हाथ अपने आप उठकर अपने ब्लाउज़ के ऊपर से भीमा चाचा के हाथ पर आ गया। फिर भीमा चाचा का हाथ ब्लाउज़ के अंदर रखे हुये वो और भी तन गई, अपनी चूचियों को और भी सामने की ओर करके वो थोड़ा सा सोफे से उठ गई थी।
भीमा ने भी कामया के समर्थन को पहचान लिया था। वो समझ गया था की कामया अब ना नहीं कहेगी। वो अब अपने हाथों का जोर उसकी चूचियों पर बढ़ाने लगा था। धीरे-धीरे भीमा उसकी चूचियों को छेड़ता रहा और उसकी सुडौलता को अपने हाथों से तौलता रहा, और फिर उसकी उंगलियों के बीच में निपल को लेकर धीरे-धीरे दबाने लगा।
कामया के मुख से एक लम्बी सी सिसकारी निकली- “ऊऊह्ह प्लीज़्ज़… आआह्ह्ह…”
भीमा को क्या पता क्या बोल गई थी कामया? पर हाँ उसके दोनों हाथों के दबाब से वो यह तो समझ ही गया था की कामया क्या चाहती थी? उसने अपने दोनों हाथों को उसके ब्लाउज़ के अंदर घुसा दिया। इस बार कोई औपचारिकता नहीं की, बस अंदर और अंदर और झट से दबाने लगा। पहले धीरे-धीरे फिर थोड़ा सा जोर से। इतनी कोमल और नरम चीज आज तक उसके हाथ में नहीं आई थी। वो अपने आप पर बिस्वास नहीं कर पा रहा था। वो थोड़ा सा और झुका और अपने बड़े-बड़े और मोटे-मोटे होंठों को कामया के चिकने और गुलाबी गालों पर रख दिया, और चूमने लगा। चूमने क्या लगा शहद जैसे चाटने लगा था, पागलों जैसी स्थिति थी भीमा की। अपने हाथों में एक बड़े घर की बहू को वो शारीरिक रूप से छेड़छाड़ कर रहा था और कामया उसका पूरा साथ दे रही थी। कंधे का दर्द कहां गया? वो तो पता नहीं।
हाँ पता था तो बस एक खेल की शुरुआत हो चुकी थी, और वो था सेक्स का खेल शारीरिक भूख का खेल, एक दूसरे को संतुष्ट करने का खेल, एक दूसरे को समर्पित करने का खेल।
कामया तो बस अपने आपको खो चुकी थी। भीमा के झुक जाने की बजह से उसके ब्लाउज़ के अंदर भीमा के हाथ अब बहुत ही सख़्त से हो गये थे। वो उसके ब्लाउज़ के ऊपर के दो तीन बटनों को खोल चुका था, दोनों तरफ के ब्लाउज़ के साइड लगभग अब उसका साथ छोड़ चुके थे। वो अब बस किसी तरह नीचे के कुछ एक दो या फिर तीन हुक के सहारे थे, वो भी कब तक साथ देंगे पता नहीं? पर कामया को उससे क्या? वो तो बस अपने शरीर की भूख को शांत करना चाहती थी, इसीलिए तो भीमा चाचा को उसने अपने कमरे में बुलाया था। वो शांत थी और अपने हाथों का दबाब भीमा के हाथों पर और जोर से कर रही थी। वो भीमा के झुके होने से अपना सिर भीमा के कंधे पर टिकाए हुए थी। वो शायद सिटी को छोड़कर अपने पैरों को नीचे रखे हुए और सिर को भीमा के कंधे पर टिकाए हुए अपने को हवा में उठा चुकी थी।
भीमा तो अपने होंठों को कामया के गालों और गले तक जहां तक वो जा सकता था ले जा रहा था। अपने हाथों का दबाब भी वो अब बढ़ा चुका था। कामया की चूचियों को जोर-जोर से दबा रहा था, जब तक की कामया के मुख से एक जोर से चीत्कार नहीं निकल गई।
कामया- “ईईईईईई… आअह्ह… उउफफफ्फ़…”
फिर झटक से कामया के ब्लाउज़ ने भी कामया का साथ छोड़ दिया अब उसकी ब्लाउज़ सिर्फ अपना अस्तित्व बनाने के लिए ही थे उसके कंधे पर; और दोनों पाट खुल चुके थे, अंदर से उसकी महीन सी, पतली सी ब्रा पतले-पतले स्ट्रैप्स के सहारे कामया के कंधे पर टिके हुए थे; और ब्रा के अंदर भीमा के मोटे-मोटे हाथ उसके उभारों को दबा-दबा के निचोड़ रहे थे।
भीमा भूल चुका था की कामया एक बड़े घर की बहू है, कोई गाँव की देहाती लड़की नहीं, या फिर कोई देहात की खेतो में काम करने वाली लड़की नहीं है। पर वो तो अपने हाथों में रूई सी कोमल और मखमल सी कोमल नाजुक लड़की को पाकर पागलों की तरह अब उसे रौंदने लगा था। वो अपने दोनों हाथों को कामया की चूचियों पर रखे हुए, उसे सहारा दिए हुए उसके गालों और गले को चाट और चूम रहा था। उसका थूक कामया के पूरे चेहरे को भीगा चुका था।
कामया अब एक हाथ से भीमा की गर्दन को पकड़ चुकी थी और खुद ही अपने गालों और गर्दन को इधर-उधर या फिर ऊंचा करके भीमा को जगह दे रही थी की यहां चाटो या फिर यहां चूमो। उसके मुख और नाक से सांसें अब भीमा के चेहरे पर पड़ रही थीं।
भीमा की उत्तेजना की कोई सीमा नहीं थी, वो अधखुली आँखों से कामया की ओर देखता रहा और अपने होंठों को उसके होंठों की ओर बढ़ाने लगा।
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कामया भीमा के इस इंतेजार को सह ना पाई, और उसकी आँखें भी खुल गईं। भीमा की आँखों में देखते ही वो जैसे समझ गई थी की भीमा क्या चाहता है? उसने अपने होंठों को भीमा के होंठों में रख दिया, जैसे कह रही हो, लो चूमो चाटो और जो मन में आए करो; पर मुझे शांत करो। कामया की हालत इस समय ऐसी थी की वो किसी भी हद तक जा सकती थी। वो भीमा के होंठों को अपने कोमल होंठों से चूस रही थी।
और भीमा जो की कामया की इस हरकत को नजर अंदाज नहीं कर पाया, वो अब भी कामया की दोनों चूचियों को कसकर निचोड़ रहा था, और अपने मुँह में कामया के होंठों को लेकर चूस रहा था। वो हब्सियों की तरह हो गया था। उसके जीवन में इस तरह की घटना आज तक नहीं हुई थी, और आज वो इस घटना को अपने आप में समेट कर रख लेना चाहता था। वो अब कामया को भोगे बगैर नहीं छोड़ना चाहता था। वो भूल चुका था की वो
इस घर का नौकर है। अभी तो वो सिर्फ और सिर्फ एक मर्द था, और उसे भूख लगी थी किसी नारी के शरीर की, और वो नारी कोई भी हो उससे फर्क नहीं पड़ता था, उसकी मालेकिन ही क्यों ना हो। वो अब नहीं रुक सकता था। उसने कामया को अपने बलिष्ठ हाथ से खींच लिया।
लगभग गिरती हुई कामया सोफे को छोड़कर भीमा के ऊपर गिर पड़ी। पर भीमा तैयार था। उसने कामया को सहारा दिया और अपनी बाहों में कसकर बाँध लिया। उसने कामया को अब भी पीठ से पकड़ा हुआ था। उसके होंठों की छीना झपटी में कामया की दोनों चूचियां ब्रा के बाहर आ गई थीं। बल्की कहिए खुद ही आजाद हो गई होंगी। कितना जुल्म सहे बेचारी कैद में। कामया का दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। वो इतनी उत्तेजित हो चुकी थी की लग रहा था की अब कभी भी भीमा पर चढ़ जाएगी।
पर भीमा की उत्तेजना तो इससे भी कहीं अधिक थी। उसका लिंग तो जैसे अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा था। भीमा अब नहीं रुकना चाहता था, और ना ही कुछ आगे की ही सोच पा रहा था। उसने कामया को अपनी और कब मोड़ लिया, कामया को पता भी ना चला। बस पता चला तब, जब उसकी सांसें अटकने लगी थीं। भीमा चाचा की पकड़ इतनी मजबूत थी की वो उनकी बाहों में हिल भी नहीं पा रही थी, सांस लेना तो दूर की बात वो अपने होंठों को भी भीमा चाचा से अलग करके थोड़ा सा सांस ले ले, वो भी नहीं कर पा रही थी।
भीमा जो की बस अब कामया के पूरे तन पर राज कर रहा था, उसके होंठों का खिलोना पाकर वो उसे अपनी बाहों में जकड़े हुए उसके होंठों को अपने मुख में लेता जा रहा था, और अंदर तक वो अपनी जीभ को कामया के सुंदर और कोमल मुख में घुसाकर अंदर उसकी लार को अपने मुख में लेकर आमृत पान कर रहा था। उसने कामया को कितनी जोर से जकड़ रखा था, यह वो नहीं जानता था। हाँ… पर उसे यह जरूर पता था कि रूई के गेंद सी कोई चीज, जो की एकदम कहीं से भी खुरदुरी नहीं है, उसकी बाहों में है। उसका लिंग अब कामया की जांघों के बीच में रगड़ खा रहा था। भीमा की दोनों हथेली कामया को थोड़ा सा ढीला छोड़कर अपनी बाहों में आए हुश्न की परिक्रमा करने चल दिया।
भीमा अब कामया की पीठ से लेकर नितम्बों तक घूम आया। कब कहां कौन सा हाथ था, यह कामया भी नहीं जनना चाहती थी, न ही भीमा। हाँ… स्पर्श जिसका ही एहसास दोनों को महसूस हो रहा था, वो खास था। कामया के शरीर को आज तक किसी ने इस तरह से नहीं छुआ था। इतनी बड़ी-बड़ी हथेलियों का स्पर्श और इतना कठोर स्पर्श, आज तक कामया के शरीर ने नहीं झेला था, या कहिए महसूस नहीं किया था।
भीमा जैसे आंटा गूँध रहा था। वो कामया के शरीर को इस तरह से मथ रहा था की कामया का सारा शरीर ही उसके खेलने का खिलोना था, वो जहां मन करता था वहीं उसे रगड़ रहा था। भीमा और कामया अब नीचे कालीन में लेते हुए थे, और भीमा नीचे से कामया को अपने ऊपर पकड़कर उससे खेल रहा था। उसके होंठ अब भी कामया के होंठों पर थे, और एक दूसरे के थूक से खेल रहे थे।
कामया अपने को संभालने की स्थिति में नहीं थी। उसका पेटीकोट उसकी कमर के चारों तरफ एक घेरा बनाकर रह गया था, अंदर की पैंटी पूरी तरह से गीली थी, और वो भीमा चाचा को अपने जांघों की मदद से थोड़ा बहुत पकड़ने की कोशिश भी कर रही थी।
पर भीमा तो जो कुछ कर रहा था उसका उसे अनुभव ही नहीं था। वो कभी कामया को इस तरफ, तो कभी उस तरफ करके उसके होंठों को अपने मुख में घुसा लेता था। दोनों हाथ आजादी से उसके जिश्म के हर हिस्से पर घूम-घूमकर उनकी सुडौलता का और कोमलता का एहसास भी कर रहे थे। भीमा के हाथ अचानक ही उसके नितम्बों पर रुक गये थे, और कामया की पैंटी की आउट लाइन के चारों तरफ घूमने लगे थे।
कामया का पूरा शरीर ही समर्पण के लिए तैयार था। इतनी उत्तेजना उसे तो पहली बार ही हुई थी। उसके पति ने भी कभी उसके साथ इस तरह से नहीं खेला था, या फिर उसके शरीर को इस तरह से नहीं छुआ था। भीमा चाचा के हर टच में कुछ नया था, जो की उसके अंदर तक उसे हिलाकर रख देता था। उसके शरीर के हर हिस्से से सेक्स की भूख अपना मुँह उठाकर भीमा चाचा को पुकार रही थी। वो अब और नहीं सह सकती थी। वो भीमा चाचा को अपने अंदर समा लेना चाहती थी। भीमा जो की अब भी नीचे था और कामया को एक हाथ से जकड़ रखा था और दूसरे हाथ से उसके पैंटी के चारों ओर से आउटलाइन बना रहा था।
अचानक ही भीमा ने अपना हाथ उसके पैंटी के अंदर घुसा दिया और कस-कस कर उसके नितम्बों को दबाने लगा, फिर दूसरा हाथ भी इस खेल में शामिल हो गया।
कामया पर पकड़ जैसे ही थोड़ा ढीली हुई कामया अपनी योनि को और भी भीमा के लिंग के समीप ले गई, और खुद ही ऊपर से घिसने लगी।
भीमा का लिंग तो आजादी के लिए तड़प ही रहा था। कामया के ऊपर-नीचे होने से वो और भी ख़ूँखार हो गया था। वो भीमा को परेशान कर रहा था, वो अपने जगह पर रह ही नहीं रहा था, अब तो उसे आजाद होना ही था। और भीमा को यह करना ही पड़ा।
कामया ऊपर से भीमा के होंठों से जुड़ी हुई अपने हाथों को वो भी भीमा के शरीर पर चला रही थी। उसके हाथों में बालों का गुच्छा-गुच्छा आ रहा था, जहां भी उसका हाथ जाता बाल ही बाल थे, और वो भी इतने कड़े की काँटे जैसे लग रहे थे। पर कामया के नंगे शरीर पर वो कुछ अच्छे लग रहे थे। यह बाल उसकी कामुकता को और भी बढ़ा रहे थे। भीमा की आँखें बंद थी।
पर कामया ने थोड़ी हिम्मत करके अपनी आँखें खोली तो भीमा के नंगे पड़े हुए शरीर को देखती रह गई, जो कसा हुआ था, मांसपेशियां कहीं से भी ढीली नहीं थीं, थुलथुलापन नहीं था कहीं भी। उसके पति की तरह भीमा में कोई कोमलता भी नहीं थी, कठोर और बड़ा भी था बालों से भरा हुआ, और उसके हाथ तो बस उसकी कमर के चारों ओर तक जाते थे। जांघों के बीच में कुछ गड़ रहा था, अगर उसका लिंग हुआ तो बाप रे… इतना बड़ा भी हो सकता है किसी का? उसका मन अब तो भीमा के लिंग को आजाद करके देखने को हो रहा था।
कामया अपने को भीमा पर जिस तरह से घिस रही थी, उसका पूरा अंदाजा भीमा को था। वो जानता था की कामया अब पूरी तरह से तैयार थी। पर वो क्या करे? उसका मन तो अब तक इस हसीना के बदन से नहीं भरा था। वो चाहकर भी उसे आजाद नहीं करना चाहता था। पर इसी उधेड़बुन में कब कामया उसके नीचे चली गई पता भी नहीं चला; और वो कब उसके ऊपर हावी हो गया नहीं पता?
वो कामया के पीठ को जकड़े हुए उसके होंठों को अब भी चूस रहा था, कामया के शरीर पर अब वो चढ़ने की कोशिश कर रहा था। कामया की पैंटी में एक हाथ ले जाते हुए वो उसको उतारने लगा। उतरने क्या लगभग फाड़ ही दी उसने, और बचाखुचा उसके पैरों से आजाद कर दिया। पेटीकोट तो कमर के चारों ओर था ही, जरूरत थी तो बस अपने साहब को आजाद करने की। भीमा होंठों से जुड़े हुए ही अपने हाथों से अपनी धोती को अलग करके, अपने बड़े से उअंडरवेर को भी खोलकर अपने लिंग को आजाद कर लिया और फिर से चढ़ गया कामया पर। अब उसे कोई चिंता नहीं थी, वो अब अपने हर अंग से कामया को छू रहा था। अपने लिंग को भी वो कामया की जांघों के बीच में रगड़ रहा था।
भीमा के लिंग के गर्मी से तो कामया और भी पागल सी हो उठी। अपनी जांघों को खोलकर उसने उसको जांघों के बीच में पकड़ लिया, और भीमा से और भी सट गई। अपने हाथों को भीमा के पीठ के चारों ओर करके भीमा चाचा को अपनी ओर खींचने लगी। कामया की इस हरकत से भीमा और भी खुल गया जैसे अपनी पत्नी को ही भोग रहा हो। वो झट से कामया के शरीर पर छा गया और अपनी कमर को हिलाकर कामया के अंदर घुसने का ठिकाना ढूँढ़ने लगा।
कामया भी अब तक सहन ही कर रही थी। पर भीमा के झटकों ने उसे भी अपनी जांघों को खोलने और अपनी योनि द्वार को भीमा के लिंग के लिए स्वागत पर खड़े होना ही था सो उसने किया पर एक ही झटके में भीमा उसके अंदर जब उतरा तो
कामया- “ईईईई… आआअह्ह…” कर उठी।
भीमा का लिंग था की मूसल? बाप रे मर गई… कामया की तो शायद फटकर खून निकल गया होगा, आँखें पथरा गई थी कामया की। इतना मोटा और कड़ा सा लिंग जो की उसके योनि में घुसा था, अगर वो इतनी तैयार ना होती तो मर ही जाती। पर उसके योनि के रस ने भीमा के लिंग को आराम से अपने अंदर समा लिया। पर दर्द के मारे तो कामया सिहर उठी।
भीमा अब भी उसके ऊपर उसे कसकर जकड़े हुए उसकी जांघों के बीच में रास्ता बना रहा था। कामया थोड़ी सी अपनी कमर को हिलाकर किसी तरह से अपने को अडजस्ट करने की कोशिश कर ही रही थी, की भीमा का एक तेज झटका फिर पड़ा, और कामया के मुख से एक तेज चीख निकल गई। पर वो तो भीमा के गले में ही गुम हो गई।
भीमा अब तो जैसे पागल ही हो गया था। उसे ना कुछ सोचने की जरूरत थी और न ही कुछ समझने की, बस अपने लिंग को पूरी रफ़्तार से कामया की योनि में डाले हुए अपनी रफ़्तार पकड़ने में लगा था। उसे इस बात की जरा भी चिंता नहीं थी की कामया का क्या होगा? उसे इस तरह से भोगना क्या ठीक होगा बहुत ही नाजुक है और कोमल भी पर भीमा तो बस पागलों की तरह अपनी रफ़्तार बढ़ने में लगा था।
और कामया मारे दर्द के बुरी तरह से तड़प रही थी। वो अपनी जांघों को और भी खोलकर किसी तरह से भीमा को अडजस्ट करने की कोशिश कर रही थी। पर भीमा ने उसे इतनी जोर से जकड़ रखा था की वो हिल तक नहीं पा रही थी, उसके शरीर का कोई भी हिस्सा वो खुद नहीं हिला पा रही थी, जो भी हिल रहा था वो बस भीमा के झटकों के सहारे ही था। भीमा अपनी स्पीड पकड़ चुका था और कामया के अंदर तक पहुँच गया था। हर एक धक्के पर कामया चिहुंक कर और भी ऊपर उठ जाती थी, पर भीमा को क्या?
आज जिंदगी में पहली बार भीमा एक ऐसी हसीना को भोग रहा था, जिसकी की कल्पना भी वो नहीं कर सकता था। वो अब कोई भी कदम उठाने को तैयार था। भाड़ में जाये सब कुछ। वो तो इसको अपने तरीके से ही भोगेगा और वो सचमुच में पागलों की तरह से कामया के सारे बदन को चूम चाट रहा था, और जहां-जहां हाथ पहुँचते थे, बहुत ही बेदर्दी के साथ दबा भी रहा था। अपने भार से कामया को इस तरह से दबा रखा था की कामया क्या कामया के पूरे घर वाले भी जमा होकर भीमा को हटाने की कोशिश करेंगे तो नहीं हटा पाऐंगे।
और कामया जो की भीमा के नीचे पड़े हुए अपने आपको नर्क के द्वार पर पा रही थी। अचानक ही उसके शरीर में अजीब सी फुर्ती सी आ गई, भीमा की दरिंदगी में उसे सुख का एहसास होने लगा, उसके शरीर के हर अंग को भीमा के इस तरह से हाथों से रगड़ने की आदत सी होने लगी थी, यह सब अब उसे अच्छा लगने लगा था। वो अब भी नीच पड़ी हुई भीमा के धक्कों को झेल रही थी, और अपने मुख से हर चोट पर चीत्कार भी निकालती, पर वो तो भीमा के गले ही गुम हो जाती थी।
अचानक ही भीमा की स्पीड और भी तेज हो गई और उसकी जकड़ भी बहुत टाइट हो गई। अब तो कामया का सांस लेना भी मुश्किल हो गया था, पर उसके शरीर के अंदर भी एक ज्वालामुखी उठ रहा था, जो की बस फूटने ही वाला था। हर धक्के के साथ कामया का शरीर उसके फटने का इंतेजार करता जा रहा था, और भीमा के तने हुए लिंग का एक और जोरदार झटका उसके अंदर कहीं तक टच होना था की कामया का सारा शरीर कांप उठा और वो झड़ने लगी और झड़ती ही जा रही थी।
कामया भीमा से बुरी तरह से लिपट गई, अपनी दोनों जांघों को ऊपर उठाकर भीमा की कमर के चारों तरफ एक घेरा बनाकर शायद वो भीमा को और भी अंदर उतार लेना चाहती थी। भीमा भी एक दो जबरदस्त धक्कों के बाद झड़ने लगा था, वो भी कामया के अंदर ढेर सारा वीर्य उसके लिंग से निकाला था, जो की कामया की योनि से बाहर तक आ गया था। पर फिर भी भीमा आखीर तक धक्के लगाता रहा, जब तक उसके शरीर में आखीरी बूँद तक बची थी, और उसी तरह कसकर कामया को अपनी बाहों में भरे रहा। दोनों कालीन पर वैसे ही पड़े रहे।
कामया के शरीर में तो जैसे जान ही नहीं बची थी, वो निढाल सी होकर लटक गई थी। भीमा चाचा जो की अब तक उसे अपनी बाहों में समेटे हुए थे, अब धीरे-धीरे अपनी गिरफ़्त को ढीला छोड़ रहे थे। और ढीला छोड़ने से कामया के पूरे शरीर में जैसे जान ही वापस आ गई थी, उसे सांस लेने की आजादी मिल गई थी वो जोर-जोर से सांसें लेकर अपने आपको संभालने की कोशिश कर रही थी।
भीमा कामया पर से अपनी पकड़ ढीली करता जा रहा था और अपने को उसके ऊपर से हटाता हुआ बगल में लुढ़क गया था। वो भी अपनी सांसों को संभालने में लगा था। रूम में जो तूफान आया था वो अब थम चुका था। दोनों लगभग अपने को संभाल चुके थे, लेकिन एक दूसरे की ओर देखने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे थे। भीमा वैसे ही कामया की ओर ना देखते हुए दूसरी तरफ पलट गया, और फटुआ और अपनी धोती ठीक करने लगा, अंडरवेर पहना और अपने बालों को ठीक करता हुआ धीरे से उठा और दबे पांव कमरे से बाहर निकल गया।
कामया जो की दूसरी ओर चेहरा किए हुए थी, भीमा की ओर ना उसने देखा, और ना ही उसने उठने की कोशिश की। वो भी चुपचाप वैसे ही पड़ी रही, और सब कुछ ध्यान से सुनती रही। उसे पता था की भीमा चाचा उठ चुके हैं, और अपने आपको ठीक-ठाक करके बाहर चले गये हैं। कामया के चहरे पर एक विजयी मुश्कान थी, उसके चेहरे पर एक संतोष था, एक अजीब सी खुशी थी आँखों में, और होंठों को देखने से यह बात सामने आ सकती थी।
पर वो वैसे ही लेटी रही और कुछ देर बाद उठी और अपने आपको देखा तो उसके शरीर पर सिर्फ पेटीकोट था, जिसका की नाड़ा कब का टूट गया था जो उसे नहीं पता था, और कुछ भी नहीं था। हाँ… था कुछ और भी… भीमा के हाथों और दांतों के निशान और उसका पूरा शरीर थूक और पशीने से नहाया हुआ था। वो अपने को देखकर थोड़ा सा मुश्कुराई। आज तक उसके शरीर में इस तरह के दाग कभी नहीं आए थे। होंठों पर एक मुश्कान थी। भीमा चाचा के पागलपन को वो अपने शरीर पर देख सकती थी, जो की उसने कभी भी अपने पति से नहीं पाया था, वो आज उसने भीमा चाचा से पाया था। उसकी चूचियों पर लाल-लाल हथेली के निशान साफ-साफ दिख रहे थे। वो यह सब देखती हुई उठी और पेटीकोट को संभालते हुए अपनी ब्लाउज़ और ब्रा को भी उठाया और बाथरूम में घुस गई।
जब वो बाथरूम से निकली तो उसे बहुत जोर से भूख लगी थी। याद आया की उसने तो खाना खाया ही नहीं था। अब क्या करे? नीचे जाने की हिम्मत नहीं थी। भीमा चाचा का सामना करने की हिम्मत वो जुटा नहीं पा रही थी, पर खाना तो खाना पड़ेगा, नहीं तो भूख का क्या करे? घड़ी पर नजर गई तो वो सन्न रह गई, 2:30 बज गये थे। तो क्या भीमा और वो एक दूसरे से लगभग दो घंटे तक सेक्स का खेल रहे थे? कामेश तो 5 से 10 मिनट में ही ठंडा हो जाता था। और आज तो कमाल हो गया।
कामया का पूरा शरीर थक चुका था। उसके हाथों पैरों में जान ही नहीं थी, पूरा शरीर दुख रहा था। हर एक अंग में दर्द था और भूख भी जोर से लगी थी। थोड़ी हिम्मत करके उसने इंटरकाम उठाया और किचेन का नम्बर डायल किया।
एक घंटी बजते ही उधर से भीमा- “हेलो जी, खाना खा लीजिए…”
भीमा की हालत खराब थी। वो जब नीचे आया तो उसके हाथ पांव फूले हुए थे। वो सोच नहीं पा रहा था की वो अब बहू का कैसे सामना करेगा? वो अपने आपको कहां छुपाए की बहू की नजर उसपर ना पड़े? पर जैसे ही वो नीचे आया तो उसके मन में एक चिंता घर कर गई थी और खड़ा-खड़ा किचेन में यही सोच रहा था की बहू ने खाना तो खाया ही नहीं। मर गये अब क्या होगा? मतलब कामया को खाना ना खिलाकर वो तो किचेन साफ भी नहीं कर सकता, और वो बहू को कैसे नीचे बुलाए? और क्या बहू नीचे आएगी? कहीं वो अपने कमरे से कामेश या फिर साहब को फोन करके बुला लिया तो? कहीं पोलिस के हाथों उसे दे दिया तो? क्या यार, क्या कर दिया मैंने? क्यों किया यह सब?
वो अपने हाथ जोड़कर भगवान को प्रार्थना करने लगा- “प्लीज भगवान्… मुझे बचा लो प्लीज… अब नहीं करूँगा…" उसकी आँखों में आँसू थे। वो सचमुच में शर्मिंदा था। जिस घर का नमक उसने खाया था, उसी घर की इज्जत पर उसने हाथ डाला था। अगर किसी को पता चला तो उसकी इज्जत का क्या होगा? गाँव में भी उसकी थू-थू हो जाएगी। और तो और वो साहब और माँ जी को क्या मुँह दिखाएगा? सोचते हुए वो
खड़ा ही था की इंटरकाम की घंटी बज उठी। डर के साथ हकलाहट में वो सब कुछ एक साथ कह गया पर दूसरी और से कुछ भी आवाज ना आने से वो फिर घबरा गया।
भीमा- हेल्लू।
कामया- “खाना लगा दो…” और फोन काट दिया। कामया के पास और कुछ कहने को नहीं था। अगर भूखी नहीं होती तो शायद नीचे भी ना जाती। पर क्या करे? उसने फिर से वहीं सुबह वाली सूट पहनी और नीचे चल दी। सीढ़ियां के ऊपर से उसने भीमा चाचा को देखा, जो की जल्दी-जल्दी खाने के टेबल पर उसका खाना लगा रहे थे। वो भी बिना कुछ आहट किए चुपचाप डाइनिंग टेबल पर पहुँची।
कामया को आता सुनकर ही भीमा जल्दी से किचेन में वापस घुस गया। कामया भी नीचे गर्दन किए खाना खाने लगी थी। जल्दी-जल्दी में क्या खा रही थी उसे पता नहीं था, पर जल्दी से वो यहां से निकल जाना चाहती थी। किसी तरह से उसने अपने मुँह में जितनी जल्दी जितना हो सकता था ठूंसा और उठकर वापस अपने कमरे की ओर भागी। नीचे बेसिन पर हाथ मुख भी नहीं धोया था उसने। कमरे में आकर उसने अपने मुँह के नीवाले को ठीक से खाया और बाथरूम में मुँह हाथ धोकर बिस्तर पर लेट गई अब वो सेफ थी।
पर अचानक ही उसके दिमाग में बात आई की उसे तो शाम को ड्राइविंग पर जाना था। अरे यार अब क्या करे? उसका मन तो बिल्कुल नहीं था, उसने फोन उठाया और कामेश को रिंग किया।
कामेश- हेलो।
कामया- सुनिए प्लीज… आज मैं ड्राइविंग पर नहीं जाऊँगी, कल से चली जाऊँगी। ठीक है?
कामेश- हाँ ठीक है। क्यों क्या हुआ?
कामया- अरे कुछ नहीं, मन नहीं कर रहा, कल से ठीक है।
कामेश- हाँ ठीक है, कल से चलो रखो।
कामया- जी…” और फोन काट गया।
कामया ने भी फोन रखा और बिस्तर पर लेटे-लेटे सीलिंग की और देखती रही, और पता नहीं क्या सोचती रही, और कब सो गई पता नहीं।
शाम को जब वो उठी तो एक अजीब सा एहसास था उसके शरीर में, एक अजीब सी कशिश थी, उसके अंदर एक ताजगी सी महसूस कर रही थी वो, सिर हल्का था, शरीर का दर्द पता नहीं कहां चला गया था? सोई तो ऐसी थी की जनम में ऐसी नींद उसे नहीं आई थी। बहुत अच्छी और फ्रेश करने वाली नींद आई थी। उठकर जब कामया बाथरूम से वापस आई तो मोबाइल पर रिंग बज रहा था। उसने देखा तो कामेश का फोन था।
कामया- हेलो।
कामेश- कहां थी अब तक?
कामया- क्यों क्या हुआ?
कामेश देखो 6-7 बार काल किया।
कामया- अरे मैं तो सो रही थी और अभी ही उठी हूँ।
कामेश- अच्छा बहुत सोई हो आज तुम?
कामया- जी कहिए, क्या बात है?
कामेश- पार्टी में चलना है रात को?
कामया- कहां?
कामेश- अरे बर्थ-डे पार्टी है मेहता जी के बेटे के बेटे का।
कामया- हाँ हाँ ठीक है, कितने बजे?
कामेश- वही रात को 9:30-10:00 बजे के करीब तैयार रहना।
कामया- “ठीक है…” कहकर कामया का फोन काट गया।
अब कामया ने देखा की 6 मिस्ड काल थे उसके सेल पर। कितना सोई थी आज वो? फ्रेश सा लग रहा था। वो मिरर के सामने खड़ी होकर अपने को देखा तो बिल्कुल फ्रेश लग रही थी, चेहरा खिला हुआ था, और आँखें भी नींद के बाद भी खिली हुई थीं। अपना ड्रेस और बाल को ठीक करने के बाद वो नीचे जाती की इंटरकाम बज उठा।
मम्मीजी- बहू, चाय नहीं पीनी क्या?
कामया- “आती हूँ मम्मीजी…” और भागती हुई नीचे चली गई।
भीमा चाचा का कहीं पता नहीं था, शायद किचेन में थे। मम्मीजी डाइनिंग टेबल पर थी और कामया का ही इंतेजार कर रही थी। कामया भी जाकर मम्मीजी पास बैठ गई और दोनों चाय पीने लगे।
मम्मीजी- कामेश का फोन आया था, कह रहा था की कोई पार्टी में जाना है।
कामया- जी बात हो गई।
मम्मीजी- हाँ कह रहा था की कामया फोन नहीं उठा रही है।
कामया- जी सो रही थी, सुनाई नहीं दिया।
मम्मीजी- “हाँ… मैंने भी यही कहा था…” फिर कुछ सोचते- “थोड़ा बहुत घूम आया कर तू। पूरा दिन घर में रहने से तू भी मेरे जैसे ही हो जाएगी…”
कामया- जी कहां जाऊँ?
मम्मीजी- देख बहू, इन दोनों को तो कमाने से फुर्सत नहीं है। पर तू तो पढ़ी लिखी है, घर के चारदीवारी से बाहर निकल और देख दुनियां में क्या चल रहा है? और कुछ खर्चा भी किया कर। क्या करेंगे इतना पैसा जमा करके? कोई तो खर्चा करे।
कामया- “जी हाँ…” और मम्मीजी को देखकर मुश्कुराने लगी।
मम्मीजी- और क्या? मैंने तो सोच लिया है कुछ दिनों के लिए तीरथ हो आती हूँ, घूमना भी हो जाएगा और थोड़ा सा बदलाव भी आ जाएगा। तू भी कुछ प्रोग्राम बना ले और घूम आ।
दोनों सासूमाँ और बहू में हँसी मजाक चल रहा था और एक दूसरे को सिखाने में लगे थे। पर कामया का मन तो आज बिल्कुल साफ था। आज का अनुभव उसके जीवन में जो बदलाब लाने वाला था, उससे वो बिल्कुल अनजान थी। बातों में दोपहर की घटना को वो भूल चुकी थी, या फिर कहिए की अब भी उसका ध्यान उस तरफ नहीं था। वो तो मम्मीजी के साथ हँसी मजाक के मूड में थी, और शाम की पार्टी में जाने के लिए तैयार होने जा रही थी। बहुत दिनों के बाद आज वो कहीं बाहर जा रही थी। चाय पीने के बाद मम्मीजी अपने पूजा के कमरे की ओर चली गई।
और कामया अपने कमरे की ओर, तैयार जो होना था। वार्डरोब से साड़ियों के ढेर से अपने लिए एक जरी की साड़ी निकाली और उसके साथ ही माचिंग ब्लाउज़। कामेश को बहुत पसंद था ए ड्रेस। यही सोचकर वो तैयारी में लग गई। 9:00 बजे तक कामेश आ जाएगा सोचकर वो जल्दी से अपने काम में लग गई। करीब 9:15 तक कामेश आ गया और अपने कमरे में पहुँचा।
कमरे में कामया लगभग तैयार थी। कामेश को देखकर कामया ड्रेसिंग टेबल छोड़कर खड़ी हो गई और मुश्कुराते हुए अपने आपको कामेश के सामने प्रेज़ेंट करने लगी। कामेश जो की उसका दिमाग कहीं और था, कामया की सुंदरता को अपने सामने खड़े इस तरह की साड़ी में देखता रह गया।
कामया इस समय एक जरी वाली महीन सी साड़ी पहने हुए थी। स्लीवलेश ब्लाउज़ था और चूचियों को समझ के ढका था, पर असल में दिखाने की ज्यादा कोशिश की थी। साड़ी का पल्लू भी दाईं चूची को छोड़कर बीच से होता हुआ कंधे पर गया था, उससे दाईं चूची बाहर की ओर उछलकर मुँह उठाए देख रही थी। बाईं चूचियां ढका क्या था, सामने वाले को निमंत्रण था की कोशिश करो तो शायद कुछ ज्यादा दिख जाए। क्लीवेज साफ-साफ नीचे तक दिख रहा था। मुश्कुराते हुए कामया ने पलटकर भी कामेश को अपना हुश्न दिखाया, पीछे से पीठ आधे से ज्यादा खुली हुई थी, पतली सी पट्टी ही उसे सामने से पकड़ी हुई थी, और वैसे ही कंधे पर से पट्टी उतरी थी।
कामेश सिटी बजाते हुए- क्या बात है आज कुछ ज्यादा ही तैयार हो? हाँ… कहां बिजली गिरने वाली हो?
कामया- हीहीही… और कहां, जहां गिर जाए? यहां तो कुछ फर्क नहीं पड़ता, क्यों है ना?
कामेश- हाँ… फिर आज नहीं जाते यहीं बिजली गिराते रहो। ठीक है?
कामया- ठीक है।
कामेश हँसते हुए बाथरूम में घुस गया और कामया भी वापस अपने आपको मिरर में सवारने का अंतिम रूप दे रही थी। कामेश भी जल्दी से तैयार होकर कामया को साथ में लेकर नीचे चल दिया। कामेश के साथ कामया भी नीचे जा रही थी। डाइनिंग रूम को पार करते हुए, वो दोनों पापाजी और मम्मीजी के कमरे की ओर चल दिए, ताकि उनको बोलकर जा सकें।
कामेश- मम्मी हम जा रहे हैं।
मम्मीजी- ठीक है, जल्दी आ जाना।
पापाजी- लक्खा रुका है, उसे ले जाना।
कामेश- “जी…” और पलटकर वो बाहर की ओर चले।
मम्मीजी- अरे भीमा, दरवाजा बंद कर देना।
कामया के शरीर में एक सिहरन सी फैल गई। जैसे ही उसने भीमा चाचा का नाम सुना, ना चाहकर भी पीछे पलटकर किचेन की ओर देख ही लिया। शायद पता करना चाहती हो की भीमा चाचा ने उसे इस तरह से तैयार हुए देखा की नहीं? क्यों चाहती थी कामया की भीमा उसे देखे? पर कामया थोड़ा सा रुक गई। कामेश आगे निकल गया था। पलटकर कामया ने जब किचेन की ओर देखा तो पाया की किचेन के पीछे के दरवाजे से किसी को बाहर की ओर निकलते हुए।
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किचेन में एक दरवाजा पीछे की ओर भी खुलता था, जिससे की भीमा कचरा वगैरा फेंकता था, या फिर नौकरों के आने जाने के लिये था। किसी को खाना खाना हो तो बाहर एक शेड बना था, उसमें वो बैठे थे। बाहर निकलने वाला शायद लक्खा ही होगा। पर वो इस समय किचेन में क्या कर रहा था? शायद पानी या फिर कुछ खाने आया होगा। जैसे ही लक्खा बाहर को निकला, वैसे ही भीमा किचेन के दरवाजे से दरवाजा बंद करने के लिये डाइनिंग स्पेस में निकलकर आया।
अब भीमा और कामया एकदम आमने सामने थे। कामेश बाहर निकल गया था। कामया ड्राइंग रूम के बीच में खड़ी थी, पूरी तरह से ड्रेसप होकर बिजली गराती हुई, कामसुख और मादकता लिए हुए, सुंदर और सेक्सी दिखती हुई और, और किसी भी साधु या फिर सन्यासी की नियत को हिलाने के लिए।
जैसे ही भीमा और कामया की नजर आपस में टकराई, दोनों जैसे जमीन में धंस गये थे। दोनों एक दूसरे को देखते रह गये। भीमा की नजर तो जैसे जम गई थी कामया के ऊपर। नीचे से ऊपर तक एकटक निहारता रह गया वो कामया को, क्या लग रही थी किसी अप्सरा की तरह।
और भीमा को देखकर कामया को दोपहर का वाकया याद आ गया की कैसे भीमा ने उसे रौंदा था, और कैसे उसके हाथ और होंठों ने उसे चूसा और चूमा था था। हर वो पहलू दोनों के जेहन में एक बार फिर ताजा हो गई थी। दोनों की आँखों में एक सेक्स की लहर दौड़ गई थी। कामया का पूरा शरीर सिहर गया था, उसकी जांघों के बीच में हलचल मच गई थी, निपल्स ब्रा के अंदर सख़्त हो गये थे।
भीमा का भी यही हाल था। उसकी धोती के अंदर एक बार फिर उसके पुरुषार्थ ने चिहुंक कर अपने अस्तित्व की आवाज को बुलंद कर दिया था, वो अपने को आजाद करने की गुहार लगाने लग गया था। दोनों खड़े हुए एक दूसरे को देखते रहे किसी ने भी आगे बढ़ने की या फिर नजर झुका के हटने की कोशिश नहीं की।
पर बाहर से कामेश की आवाज ने कामया और भीमा को चौंका दिया। कामया पलटकर जल्दी से गाड़ी की ओर भागी, और भीमा ने भी अपनी नजर झुका ली।
बाहर कामेश गाड़ी के अंदर बैठ चुका था और लक्खा गाड़ी का गेट खोले नजरें झुकाए खड़ा था। कामया अपने पल्लू को संभालकर जल्दी से गाड़ी के पास आई, और गाड़ी में बैठने लगी। पर ना जाने क्यों उसकी नजर लक्खा काका पर पड़ गई, जो की नजरें झुकाए हुए भी कामया के ऊपर नजर डालने से नहीं चूका था। जब कामया बैठ गई तो लक्खा दरवाजा बंद करके जल्दी से घूमकर ड्राइविंग सीट पर बैठ गया और गाड़ी गेट के बाहर की ओर दौड़ चली।
कामेश और कामया पीछे बैठे हुए बाहर की ओर देख रहे थे, और अपने पार्टी वाले जगह पर पहुँचने की बारे में सोच रहे थे। बीच-बीच में एक दूसरे से कुछ बातें भी करते जा रहे थे। लक्खा काका गाड़ी चलेने में लगे थे। कामया की नजर कभी बाहर कभी अंदर की ओर थी। आज बहुत दिनों बाद बाहर निकली थी।
पर अचानक ही उसकी नजर बैक व्यू पर पड़ी तो लक्खा काका की नजर को अपनी ओर पाकर वो चौंक गई। जब वो गाड़ी में बैठ रही थी तब भी उसे लगा था की लक्खा काका उसी को देख रहे हैं, पर उसने ध्यान नहीं दिया था। शायद वो कुछ गलत सोच रही थी। पर अब वो पक्का था की लक्खा काका की नजर अब उसी पर थी। अपने पति की नजर चुराकर वो कई बार इस बात को साबित भी कर चुकी थी।
जब भी गाड़ी किसी लाल लाइट पर खड़ी होती थी तो, या फिर जब भी वो मिरर में देखता था पीछे की ओर देखने के लिए तो एक बार वो कामया को जरूर निहार लेता था। कामया के पूरे शरीर में जो सनसनी भीमा चाचा के पास उनके देखने पर हुई थी, वो अब एक कदम और आगे बढ़ गई थी। वो ना चाहकर भी नजरें बचाकर लक्खा काका की नजर का पीछा कर रही थी। वो कई बार इस बात की पुष्टि कर चुकी थी की लक्खा काका उसे ही देख रहे थे।
तभी वो लोग वहां पहुँच गये, और गाड़ी पार्क करके लक्खा काका दौड़कर कामया की ओर के दरवाजे की ओर लपके। कामेश तो दूसरी तरफ का दरवाजा खोलकर उतर गये, और पास खड़े हुए किसी से बात भी करने लगे थे। पर कामया को उतरने में थोड़ी देर हुई। जब लक्खा काका ने दरवाजा खोला तब पहले उसने अपनी टांगों को बाहर निकालकर पैरों के ऊपर से उसकी साड़ी थोड़ी ऊपर की ओर हुई और उसके सुंदर और गोरे-गोरे पैरों के दर्शन लक्खा को हुए, जो की नजरें झुकाए अब भी वहीं खड़े थे।
सुंदर पिंडलियों में कामया की सुंदर सी सैंडल हील वाली, उसके गोरे-गोरे पैरों पर बहुत ही खूबसूरत लग रही थी। दूसरे पैर के बाहर निकलते ही कामया थोड़ा सा आगे की ओर हुई और झुक कर बाहर को निकली, तो लक्खा अपनी नजर को कामया के पेट और नाभि से लेकर ब्लाउज़ तक ले जाने से नहीं रोक पाया। वो मंत्रमुग्ध सा कामया की उठी हुई चूचियों को और नाजुक और सुडौल शरीर को निहारता रहा।
जब कामया लक्खा के सामने से निकलकर बाहर खड़ी हुई तो उसके नथुनों में एक कामुक और ताजी सी खुशबू उसके जेहन तक बस गई और वो लगभग गिरते-गिरते बचा था। उसका पूरा शरीर उसका साथ नहीं दे रहा था। वो इस अप्सरा के इतने पास था, पर वो कुछ नहीं कर सकता था। बीच में सिर्फ गाड़ी का दरवाजा और उस तरफ कामया, जिसका पूरा साड़ी का पल्लू उसके ब्लाउज़ के ऊपर से ढलका हुआ था और गाड़ी से बाहर निकलने के बाद उसके सामने खड़ी हुई ठीक कर रही थी। वाह… क्या दृश्य था, लक्खा खड़ा-खड़ा उस सुंदरता को अपने अंदर उतार रहा था, और नजरें नीचे किए अब भी उसकी कमर को देख रहा था, जहां कामया की साड़ी फँसी हुई थी और लक्खा अपने मुकद्दर को कोस रहा था।
तभी कामेश की आवाज पर कामया झटके से पलटी और कामेश की ओर देखने लगी।
ऊओह्ह… लक्खा तो शायद मर ही गया होता, जब कामया के पलटने से उसके खुले हुए बाल उड़कर लक्खा के चेहरे पर पड़े, और गेट के पास से होते हुए नीचे गिर गये उसके सिर के सहारे। लक्खा का तो जैसे दम ही घुट गया था, गला सूख गया था, हाथ पांव ने जबाब दे दिया था, वो जहां था वहीं जम गया था, मुँह खुला का खुला रह गया था, एक तेज लहर उसके शरीर में दौड़ गई थी, और उसके नथुनों में एक और खुशबू ने प्रवेश किया था। वो उसके शरीर के खुशबू से अलग थी।
उफफ्फ़… क्या खुशबू थी? गाड़ी के अंदर जो खुशबू थी वो तो उसने जो सेंट या पर्फ्यूम लगाया था उसकी थी, तो क्या यह खुशबू कामया के शरीर की थी? उफफ्फ़… लक्खा खड़ा-खड़ा यही सोच रहा था और नजरें उठाये कामया को बल खाते हुए अपने पति की ओर जाते हुए देखता रहा। क्या कमर मटका-मटका कर चलती थी बहू? क्या फिगर था? कमर कितनी पतली सी थी, और चूचियां तो बहुत ही मस्त हैं, कितनी गोरी और नाजुक सी दिखती है बहू? वो गाड़ी का दरवाजा पकड़कर, खड़ा-खड़ा कामया को अपने पति के साथ जाते हुए देखता रहा, जैसे कोई भूखा अपने हाथों से रोटी छिनते हुए देख रहा हो।
लक्खा अब भी मंत्रमुग्ध सा कामया को निहार रहा था की अचानक ही कामया पलटी और लक्खा की नजरें उससे टकराई, तो लक्खा पथरा गया और जल्दी से नजरें नीचे करके दरवाजा बंद करने लगा। पर नजरें झुकाते समय उसे बहू की नजरों में, होंठों में एक मुश्कुराहट को उसने देखा था। जब तक वो फिर से उस तरफ देखता, तब तक वो अंदर जा चुके थे।
लक्का सन्न रह गया था। क्या बहू को मालूम था की वो उसे देख रहा था? बाप रे बाप… कहीं साहब से शिकायत कर दिया तो मेरी नौकरी तो गई, और फिर बेइज्जती, बाप रे बाप… आज तक लक्खा इतना नहीं डरा था, जो अभी उसकी हालत थी। उसे माफी माँग लेना चाहिए। बहू से कह देगा की गलती हो गई। पर पर बहू तो मुश्कुराई थी। हाँ… यह तो पक्का था, उसे अच्छे से याद था। वो जानती थी की वो उसे देख रहा था, फिर भी उसने कुछ नहीं कहा। वो कामेश को कह सकती थी। लक्खा घर से लेकर अब तक की घटना को याद करने लगा था। जब भी वो पीछे देखता था तो उसकी नजर बहू से टकराती थी। तो क्या बहू जानती थी की वो उसे देख रहा था? या फिर ऐसे ही उसकी कल्पना थी?
और उधर कामया जब गाड़ी से बाहर निकली तो लक्खा उसके लिए दरवाजा खोले खड़ा था। उसके उतरते हुए साड़ी का उठना और फिर उसके खड़े होते हुए लक्खा के समीप होना, यह सब कामया जानती थी, और जब वो पलटकर जाने लगी थी तो एक लम्बी सांस लेने की आवाज भी उसे सुनाई दी थी। पति के साथ जब वो अंदर की ओर जाने लगी थी तो उसने पलटकर देखा भी था की वाकई क्या लक्खा काका उसे ही देख रहे हैं? या फिर उसके दिल की कल्पना मात्र थी? हाँ… काका उसे ही निहार रहे थे। कामया का शरीर झंझना गया था। पलटते समय उसके चेहरे पर एक मुश्कान थी जो की शायद लक्खा काका ने देख लिया था।
कामया तो अंदर चली गई, पर लक्खा काका को बेसुध कर गई। वो गाड़ी के पास खड़ा-खड़ा बहू के बारे में ही सोच रहा था, और अपने आपको बड़ा ही खुशनसीब समझ रहा था की वो एक इतनी सुंदर मालेकिन का नौकर है। घर पर सब उसे बहुत इज्जत देते थे, और बहू भी। पर आज तो बहू कमाल की लग रही थी। अचानक ही उसके दिमाग में एक बात बिजली की तरह दौड़ गई।
अरे, उसे तो बहू को ड्राइविंग भी सिखानी है, पर क्या वो बहू को ड्राइविंग सिखा पाएगा? कहीं उससे कोई गलती हो गई तो? और बहू अगर इस तरह के कपड़े पहनेगी तो क्या वो अपनी निगाहों को उसे देखने से दूर रख पाएगा? बाप रे अब क्या करे? अभी तक तो सब कुछ ठीक था, पर आज जो कुछ भी उसके मन में चल रहा था, उसके बाद तो वो बहू को देखते ही अपना आपा ना खो दे? यही सोचकर वो कांप गया था। बहू के पास जब वो सामने उसे ड्राइविंग सिखाएगा तो बहू उसके बहुत पास बैठी होगी और उसकी खुशबू से लेकर उसके स्पर्श तक का अंदाजा लक्खा गाड़ी में बैठे-बैठे ही लगा रहा था और अपने में खोया हुआ बहू की सुंदरता को अपनी सोच के अनुरूप ढाल रहा था।
तभी बाहर से कच में दस्तक हुई, तो लक्खा ने बाहर देखा की कामेश खड़ा है, और बहू भी उससे थोड़ी दूर अपने दोस्तों से बात कर रही है। वो झटपट बाहर निकला और दौड़ता हुआ गाड़ी का दरवाजा खोलने लगा। कामेश तो झट से बैठ गया, पर कामया अपने दोस्तों से बात करके जब पलटी तो लक्खा अपनी नजर को नीचे नहीं कर पाया, वो मंत्रमुग्ध सा कामया के यौवन को निहारता रहा, और अपनी आँखों में उसकी सुंदरता को उतारता रहा।
कामया ने एक बार लक्खा काका की ओर देखा और चुपचाप दरवाजे से अंदर जाकर अपनी सीट पर बैठ गई। लक्खा भी लगभग दौड़ता हुआ अपनी सीट की ओर भागा। उसे पता ही नहीं चला था की कैसे दो घंटे बीत गये थे? और वो सिर्फ कामया के बारे में ही सोचता रहा गया था। वो अपने अंदर एक ग्लानि से पीड़ित हो गया था। छीः छीः वो क्या सोच रहा था? जिनका वो नमक खाता है उनके घर की बहू के बारे में वो क्या सोच रहा था? कामेश को उसने दो साल का देखा था और तब से वो इस घर का नौकर था। भीमा तो उससे पहले का था। नहीं उसे यह सब नहीं सोचना चाहिए, यह गलत है। वो कोई जानवर तो नहीं है, वो एक इंसान है। जो गलत है वो उसके लिए भी गलत है।
लक्खा गाड़ी चला रहा था, पर उसका दिमाग पूरा समय घर तक इसी सोच में डूबा था, पर उसके मन का वो क्या करे? वो चाहकर भी अपनी नजर बहू के ऊपर से नहीं हटा पाया था। पर घर लौटते समय उसने एक बार भी बहू की ओर नहीं देखा था। उसने अपने मन पर काबू पा लिया था। इंसान अगर कोई चीज ठान ले तो क्या नहीं कर सकता? बिल्कुल कर सकता है। उसने अपने दिमाग पर चल रहे ढेर सारे सवालों को एक झटके से निकल दिया, और फिर से एक नमकहलाल ड्राइवर के रूप में आ गया, और गाड़ी घर की ओर तेजी से दौड़ चली थी। अंदर बिल्कुल सन्नाटा था।
घर के गेट पर चौकीदार खड़ा था। गाड़ी आते देखकर झट से दरवाजा खुल गया। गाड़ी की आवाज से अंदर से भीमा भी दौड़कर आया और घर का दरवाजा खोलकर बाजू में सिर झुकाए खड़ा हो गया।
गाड़ी के रुकते ही लक्खा काका बाहर निकले और पहले कामेश की ओर जाते, पर कामेश तो खुद ही दरवाजा खोलकर बाहर आ गया था, तो वो बहू की ओर का दरवाजा खोले नीचे नजरें किए खड़ा हो गया। कामेश गाड़ी से उतरते ही अंदर की ओर लपका, कामया को बाहर ही छोड़कर। भीमा भी दरवाजे पर खड़ा था और लक्खा गाड़ी के दरवाजे को खोले।
कामया अपनी ही नजाकत से बाहर निकली और लक्खा के समीप खड़े होकर कहा- “काका, कल से मैं गाड़ी चलाने चलूंगी, आप शाम को जल्दी से आ जाना…”
लक्खा- “जी बहूरानी…” उसकी आवाज में लड़खड़ाहट थी, गला सूख गया था।
कामया और लक्खा के बीच में सिर्फ गाड़ी का दरवाजा ही था, उसके बाल हवा में उड़ते हुए उसके चेहरे पर पड़ रहे थे। फिर जब कामया ने अपने हाथों से अपने बालों को सवांरा तो लक्खा फिर से अपनी सुधबुध खो चुका था। फिर से वो सब कुछ भूल चुका था, जो वो अभी-अभी गाड़ी चलाते हुए सोच रहा था। वो बेसुध सा कामया के रूप को नजरें झुकाए हुए देखता रहा। उसकी ब्लाउज़ में फँसी हुई उसकी दो गोलाईयों को और उसके नीचे की ओर जाते हुए चिकने पेट को, और लम्बी-लम्बी बाहों को। वो सब कुछ भूलकर सिर्फ कामया के हुश्न के बारे में सोचता रह गया, और कामया को घर के अंदर जाते हुए देखता रह गया।
दरवाजे पर कामया के गायब होते ही लक्खा को होश आया तो देखा की भीमा उसे ही देख रहा था। वो झेंप गया और गाड़ी लाकच करके जल्दी से अपनी स्कूटर लेकर गेट से बाहर निकल गया।
कामया भी जल्दी से अपनी नजर को नीचे किए भीमा चाचा को पार करके सीधे सीढ़ियों की ओर भागी और वो अपने रूम में पहुँची। रूम में जाकर देखा की कामेश बाथरूम में है तो वो अपनी साड़ी उतारकर सिर्फ ब्लाउज़ और पेटीकोट में ही खड़ी होकर अपने आपको मिरर में निहारती रही। वो जानती थी की कामेश के बाहर आते ही उसपर टूट पड़ेगा, इसलिए वो वैसे ही खड़ी होकर उसका इंतेजार करती रही। हमेशा कामेश उसे घूमकर आने के बाद ऐसे ही सिर्फ साड़ी उतारने को ही कहता था, बाकी उसका काम था। आज्ञाकारी पत्नी की तरह कामया खड़ी कामेश का इंतेजार कर रही थी।
बाथरूम का दरवाजा खुला। कामया को मिरर के सामने देखकर कामेश भी उसके पास आ गया और पीछे से कामया को बाहों में भरकर उसकी चूचियों को दबाने लगा। कामया के मुख से एक आऽऽ निकली और उसने अपने सिर को कामेश के कंधों के सहारे छोड़ दिया, और कामेश के हाथों को अपने शरीर में घूमते हुए महसूस करती रही। वो कामेश का पूरा साथ देती रही, और अपने आपको कामेश के ऊपर निछावर करने को तैयार थी।
कामेश के हाथ कामया की दोनों चूचियों को छोड़कर उसके पेट पर आ गये थे और अब वो कामिया की नाभि को छेड़ रहा था। वो अपनी उंगली को उसकी नाभि के अंदर, तो कभी बाहर करके कामया को चिढ़ा रहा था, अपने होंठों को कामया के गले और गले से लेजाकर उसके होंठों पर रखकर कामया के होंठों से जैसे शहद को निकालकर अपने अंदर लेने की कोशिश कर रहा था।
कामिया से भी नहीं रहा गया, वो पलटकर कामेश की गर्दन के चारों ओर अपनी बाहों को पहनाकर खुद को कामेश से सटा लिया, अपने पेट और योनि को वो कामेश से रगड़ने लगी थी। उसके शरीर में जो आग भड़की थी, वो अब कामेश ही बुझा सकता था। वो अपने आपको कामेश के और भी नजदीक ले जाना चाहती थी, और अपने होंठों को वो कामेश के मुख में घुसाकर अपनी जीभ को कामेश के मुख में चला रही थी।
कामेश का भी बुरा हाल था। वो भी पूरे जोश के साथ कामया के बदन को अपने अंदर समा लेना चाहता था। वो भी कामया को कसकर अपने में समेटे हुए धम्म से बिस्तर पर गिर पड़ा। गिरते ही कामेश कामया के ब्लाउज़ पर टूट पड़ा, जल्दी-जल्दी उसने एक झटके में कामया के ब्लाउज़ को हवा में उछाल दिया और ब्रा भी उसके कंधे से उसी तरह बाहर हो गई थी। कामया के ऊपर के बस्त्रों के बाद कामेश ने कामया के पेटीकोट और पैंटी को भी खींचकर उतार दिया और बिना किसी देरी के वो कामया के अंदर एक ही झटके में समा गया।
कामया उउउफ तक नहीं कर पाई और कामेश उसके अंदर था, अंदर और अंदर और भी अंदर और फिर कामेश किसी पिस्टन की भांति कामया के अंदर-बाहर होता चला गया। कामया के अंदर एक ज्वार सा उठ रहा था और वो लगभग अपने शिखर पर पहुँचने वाली ही थी। कामेश जिस तरह से उसके शरीर से खेल रहा था, उसको उसकी आदत थी। वो कामेश का पूरा साथ दे रही थी और उसे मजा भी आ रहा था।
उधर कामेश भी अपने आपको जब तक संभाल सकता था संभाल चुका था। अब वो भी कामया के शरीर के ऊपर ढेर लग गया था, अपनी कमर को एक-दो बार आगे पीछे करते हुए वो निढाल सा कामया के ऊपर पड़ा रहा, और कामया भी कामेश के साथ ही झड़ चुकी थी, और अपने आपको संतुष्ट पाकर वो भी खुश थी। वो कामेश को कसकर पकड़े हुए उसके चेहरे से अपना चेहरा घिस रही थी, और अपने आपको शांत कर रही थी।
जैसे ही कामेश को थोड़ा सा होश आया वो लुढ़क कर कामया के ऊपर हाथ और अपने तकिये पर सिर रखकर कामया की ओर देखते हुए कहा- “स्वीट ड्रीम्स डार्लिंग…”
कामया- “स्वीट ड्रीम्स डियर…” और उठकर वैसे ही बिना कपड़े के बाथरूम की ओर चल दी।
जब वो बाहर आई तो कामेश सो चुका था और वो अपने कपड़े जो की जमीन पर जहां तहां पड़े थे, उसको समेटकर वार्डरोब में रखा और अपनी जगह पर लेट गई, और छत की ओर देखते हुए कामेश की तरफ से नजरें घुमा ली, जो की गहरी नींद में था। कामया अपनी ओर पलटकर सोने की कोशिश करने लगी, और बहुत ही जल्दी वो भी नींद के आगोश में चली गई।
सुबह रोज की तरह वो लेट ही उठी। कामेश बाथरूम में था। वो भी उठकर अपने आपको मिरर में देखने के बाद कामेश का बाथरूम से निकलने का इंतेजार करने लगी। जब कामेश निकला तो वो भी बाथरूम में घुस गई और कुछ देर बाद दोनों चेंज करके नीचे पापाजी और मम्मीजी के साथ चाय पी रहे थे। पापाजी और मम्मीजी और कामेश एक दूसरे से बातों में इतना व्यस्त थे की कामया का ध्यान किसी को नहीं था, और न ही कामया को कोई इंटेरस्ट था इन सब बातों में। वो तो बस अपने आप में ही खुश रहने वाली लड़की थी कोई ज्यादा अपेक्षा नहीं थी उसे कामेश से, और अपने घर वालों से। एक तो किसी बात की बंदिश नहीं थी उसे यहां और ना ही कोई रोक-टोक, और न ही कोई काम था तो क्या शिकायत करे वो? बस कामेश की चाय खतम हुई और दोनों अपने कमरे की ओर चल दिए।
पापाजी और मम्मीजी भी अपने कमरे की ओर, और पूरे घर में फिर से शांति। सब अपने कमरे में जाने की तैयारी में लगे थे। कामया वहीं बिस्तर बैठी कामेश के बाथरूम से निकलने की राह देख रही थी और उसके कपड़े निकालकर रख दिए थे। वो बैठे-बैठे सोच रही थी की कामेश बाथरूम से निकलते ही जल्दी से अपने कपड़े उठाकर पहनने लगा।
कामेश- हाँ… कामया, आज तुम क्या गाड़ी चलाने जाओगी?
कामया- आप बताइए?
कामेश- “नहीं नहीं, मेरा मतलब है की शायद मैं थोड़ा देर से आऊँगा तो अगर तुम भी कहीं बीजी रहोगी तो अपने पति की याद थोड़ा काम आएगी हीहीही…”
कामया- कहिए तो पूरा दिन ही गाड़ी चलाती रहूँ।
कामेश- अरे यार, तुमसे तो मजाक भी नहीं कर सकते।
कामया- क्यों आयेंगे लेट?
कामेश- काम है यार, पापा भी साथ में रहेंगे।
कामया- ठीक है। पर क्या मतलब कब तक चलाती रहूँ?
कामेश- अरे जब तक तुम्हें चलानी है तब तक और क्या? मेरा मतलब था की कोई जरूरत नहीं है जल्दीबाजी करने की।
कामया- ठीक है। पर क्या रात को इतनी देर तक मैं वहां ग्राउंड पर लक्खा काका के साथ? मेरा मतलब?
कामेश- अरे यार, तुम भी ना… लक्खा काका हमारे बहुत ही पुराने नौकर हैं, अपनी जान दे देंगे पर तुम्हें कुछ नहीं होने देंगे।
कामया- जी पर?
कामेश- क्या पर पर? छोड़ो मैं भेज दूँगा, तुम तैयार रहना। ठीक है? जब भी आए चली जाना।
कामया- जी।
और दोनों नीचे की ओर चल दिए। डाइनिंग रूम में खाना लगा था। कामेश के बैठते ही कामया ने उसकी प्लेट लगा दिया और पास में बैठकर कामेश को खाते देखती रही। कामेश जल्दी-जल्दी अपने मुख में रोटी और सब्जी ठूंस रहा था और जल्दी से हाथ मुँह धोकर बाहर लपका। कामेश के जाने के बाद कामया भी अपने रूम की ओर चल दी।
पर जाते हुए उसे भीमा चाचा डाइनिंग टेबल के पास दिख गये वो जूठे प्लेट और बाकी का समान समेट रहे थे। कामया के कदम एक बार तो लड़खड़ाए फिर वो संभलकर जल्दी से अपने कमरे की ओर लपकी और जल्दी से अपने कमरे में घुसकर दरवाजा लगा लिया। पता नहीं क्यों उसे डर लग रहा था।
अभी थोड़ी देर में ही पापाजी भी चले जाऐंगे, और मम्मीजी भी अपने कमरे में घुस जाएंगी तब वो क्या करेगी? अभी आते समय उसने भीमा चाचा को देखा था। पता नहीं क्यों उनकी आँखों में एक अजीब सी बात थी की उनसे नजर मिलते ही वो कांप गई थी। उसकी नजर में एक निमंत्रण था, जैसे की कह रहा था की आज का क्या? कामया बाथरूम में जल्दी से घुसी और जितनी जल्दी हो सके तैयार होकर नीचे जाने को तैयार थी। जब उसे लगा की पापाजी और मम्मीजी डाइनिंग टेबल पर पहुँच गये होंगे, तो वो भी सलवार कुर्ता पहने हुए डाइनिंग टेबल पर पहुँच गई और मम्मीजी के पास बैठ गई।
पापाजी और मम्मीजी को भी कोई आपत्ति नहीं थी, या फिर कोई शक या शुबाहा नहीं। मम्मीजी ने भी कामया का प्लेट लगा दिया और कामया नजरें झुका कर अपना खाना शुरू रखा।
मम्मीजी- आज क्या आपको भी देर होगी?
पापाजी- हाँ… बैंक वालों को बुलाया है कामेश ने। कुछ और लोग भी हैं, खाना खाकर ही आयेंगे।
मम्मीजी- जल्दी आ जाना, और हाँ… वो टूर वालों से भी पता कर लेना।
पापाजी- “हाँ… कर लूँगा…” और कामिया की ओर देखते हुए- “हाँ… लक्खा आज आ जाएगा। तुम चली जाना गाड़ी सीखने।
कामया- जी।
कामया के सोए हुए अरमान फिर से जाग उठे थे। जो बात को वो भूल जाना चाहती थी, पापाजी ने एक बार फिर से याद दिला दिया था। वो आज अकेले नहीं खाना चाहती थी और ना ही भीमा चाचा के करीब ही आना चाहती थी। कल की गलती का उसे गुमान था, वो उसे फिर से नहीं दोहराना चाहती थी। पर ना जाने क्यों जैसे ही पापाजी ने लक्खा काका का नाम लिया तो उसे कल की शाम की घटना याद आ गई थी। और फिर खाते-खाते दोपहर की।
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उसके शरीर में एक सिहरन सी दौड़ गई थी, ना चाहते हुए भी उसने एक जोर की सांस छोड़ी, अपनी जांघों को आपस में जोड़ लिया और नजरें झुका के खाने लगी। पर मन था की बार-बार उसके जेहन में वही बात याद डालती जा रही थी। वो अपने आपसे लड़ने लगी थी, अपने मन से या फिर कहिए अपने दिमाग से। बार-बार वो अपनी निगाहें उठाकर पापाजी और मम्मीजी की ओर देखने लगी थी की शायद कोई और बात हो?
तो वो यह बात भूलकर कहीं और इन्वॉल्व हो जाए पर कहां? सेक्स एक ऐसा खेल है या फिर कहिए एक-एक नशा है की पेट भरने के बाद सबसे जरूरी शारीरिक भूख। पेट की भूख बुझी नहीं की पेट के नीचे की चिंता होने लगती है। कामया तो एक बार वो मजा चख चुकी थी, और उसका पूरा मजा भी ले चुकी थी। वो तो बस उसको नजरअंदाज करना चाहती थी। वो यह अच्छे से जानती थी की अगर वो ना चाहे तो भीमा क्या, भीमा का बाप भी उसे हाथ नहीं लगा सकता था। भीमा तो इस घर का नौकर है, किसे क्या बताएगा? एक शिकायत में तो वो घर से बाहर हो जाएगा। इसलिए उसे इस बात की चिंता तो बिल्कुल नहीं थी की भीमा उसके साथ कोई गलत हरकत कर सकता है।
पर कामया अपने आपको कैसे रोके? यही सोचते हुए ही तो वो आज पापाजी और मम्मीजी के साथ ही खाना खाने को आ गई थी। अभी जब कामेश गया था तब भी उसकी आँखें भीमा से टकराई थी। उसने भीमा चाचा की आँखों में वही भूख देखी थी, या फिर शायद इंतेजार देखा था, जो की उसके लिए खतरनाक था। अगर वो नहीं संभली तो पता नहीं क्या हो जायेगा? यही सोचते हुए वो अपनी निगाहें झुकाए खाना खा रही थी। पापाजी का हो गया था और वो उठ गये थे, पर मम्मीजी कामया का साथ देने को अब भी बैठी थी। कामया ने जैसे ही पापाजी को उठते देखा तो जल्दी-जल्दी करने लगी।
मम्मीजी- अरे अरे आराम से खा लो बहू।
कामया- “जी बस हो गया गया…” कहकर आखिरी निवाला किसी तरह से अपने मुँह में ठूंसा और पानी के ग्लास पर हाथ पहुँचा दिया।
मम्मीजी भी हँसते हुए उठ गई और कामया भी। सभी ने उठकर हाथ मुँह धोया और पापाजी के कमरे से निकलने का इंतेजार करने लगे। पापाजी भी आए और बाहर निकल गये। बाहर लक्खा गाड़ी के पास खड़ा था, पर आज उसकी नजर नहीं उठी, ना तो उसने कामया की ओर ही देखा, और न ही कोई ऐसी बात जो की कामया को परेशान कर सकती हो।
लेकिन जैसे ही लक्खा घूमकर वापस ड्राइविंग सीट पर बैठने जा रहा था की मम्मीजी की आवाज ने उसे रोक दिया- “अरे लक्खा, ध्यान रखना शाम को आ जाना। बहू को लेकर जाना है…”
लक्खा- “जी माँजी…” और उसकी नजर मम्मीजी के बाद एक बार कामया से टकराई और फिर नीचे हो गई।
मम्मीजी- तू ही याद रखना इन लोगों के भरोसे नहीं रहना, नहीं तो वहीं खड़ा रह जाएगा। याद से आ जाना। ठीक है?
लक्खा- “जी माँजी…” और एक बार फिर से उसकी नजर कामया से टकराई और वो झट से गाड़ी के अंदर समा गया।
जब गाड़ी गेट के बाहर चली गई तो कामया भी मम्मीजी के साथ अंदर दाखिल हो गई और मम्मीजी के पीछे-पीछे उनके कमरे की ओर बढ़ गई थी, ना जाने क्यों वो अपने को अकेला नहीं छोड़ना चाहती थी, या फिर डर था कि कहीं कोई फिर से गलत कदम ना उठा ले, या फिर अपने शरीर की भूख को संभालने की कोशिश थी? या जो भी हो?
कामया मम्मीजी के साथ उनके कमरे में आ गई थी। आते समय जब उसका ध्यान डाइनिंग टेबल पर गया तो देखा की डाइनिंग टेबल साफ था। मतलब भीमा चाचा ने आज जल्दी ही टेबल साफ कर दिया था, नहीं तो वो हमेशा ही सबके अपने कमरे में पहुँचने का इंतेजार करता था, और फिर आराम से डाइनिंग टेबल साफ करके बर्तन धोकर रख देता था। अंदर किचेन से बर्तन धोने की आवजें भी आ रही थी। वो कुछ और ज्यादा नहीं सोचते हुए जल्दी से मम्मीजी कमरे में घुस गई।
मम्मीजी कामया को अपने कमरे में घुसते हुए देखकर थोड़ा सा अचम्भित हुई पर हँसते हुए कहा- “क्या बात है बहू, कोई बात है?”
कामया- जी नहीं, बस ऐसे ही।
मम्मीजी- हाँ… मैं जानती हूँ तुझे बहुत अकेला लगता होगा ना? सारा दिन घर में अकेले अकेले और बस कमरे में, और कुछ भी नहीं है।
कामया- जी नहीं, मैं तो बस ऐसे ही आ गई थी। जाती हूँ।
मम्मीजी- “अरे अरे बुरा मान गई क्या? बैठ यहां…” और कामया को अपने पास बिठाकर मम्मीजी दुनियां भर की बातें करती रही, और सुनती रही।
पर कामया का ध्यान तो उनकी बातों में कम था। उसका ध्यान कमरे में रखी चीजों पर कहीं ज्यादा था। बहुत ही मंहंगी चीजें रखी थी कमरे में, और बहुत से फोटो भी। एक फोटो किसी साधु का भी था।
वो खड़ी होकर उन फोटो को देखने लगी।
मम्मीजी- वो हमारे गुरुजी हैं, उन्हीं के आशीर्वाद से कामेश का जनम हुआ था।
कामया- चुप रही
मम्मीजी- हाँ… हमारे बच्चे पहले पैदा होते ही मर जाते थे। पर जब से बाबाजी का आशीर्वाद हमारे ऊपर हुआ है, तब से हम लोगों ने दिन दूनी और रात चौगुनी तरक्की की है। कभी आयेंगे तो तुमको मिलाऊँगी। बहुत पहुँचे हुए हैं। वो शहर के बाहर एक आश्रम है, वहां रहते हैं। तुम्हारे पापाजी ने ही बनवाया है। मैं तीरथ से लौटूंगी तो तुम्हें ले चलूंगी। ठीक है?
कामया- “जी…”
कामया को इन साधु सन्यासियों से कोई मतलब नहीं था। वो तो बस दूर से नमस्कार करती थी उन सबको। कोई इच्छा भी नहीं थी मिलने की।
मम्मीजी कहते-कहते अपने बिस्तर पर पहुँच चुकी थी, और आराम से अपने तकिये में सिर रखकर लेट गई थी। कामया जानती थी की मम्मीजी को नींद आ रही है, पर वो अपने को मम्मीजी के साथ ही बांधे रखना चाहती थी। पर मम्मीजी हालत देखकर कामया ने अपना मूड बदला और जाने के लिये खड़ी हो गई।
कामया- “मम्मीजी, आप आराम कीजिए मैं चलती हूँ…”
मम्मीजी- “हाँ… थोड़ा तू भी सो ले। शाम को लक्खा आएगा तैयार रहना हाँ…”
कामया- “जी…” और एक लम्बी सी सांस फेंक कर कामया अपने कमरे की ओर चल दी। रूम के बाहर आते ही वो थोड़ा सा सचेत हो गई थी। उसकी नजर आनयास ही डाइनिंग रूम ओर, फिर उसके आगे किचेन तक चली गई थी। पर वहां शांति थी, बिल्कुल सन्नाटा था। वो थोड़ा रुकी और थोड़ा धीरे-धीरे अपने कदम बढ़ाते हुए सीढ़ियों की ओर चली, पर उसे कोई भी आहट सुनाई नहीं दी, कहां हैं भीमा चाचा? किचेन में नहीं है क्या? या फिर अपने कमरे में चले गये होंगे ऊपर? या फिर? सोचते हुए कामया सीढ़ियों पर चढ़ती हुई अपने कमरे की ओर जा रही थी। पर ना जाने क्यों उसका मन बार-बार किचेन की ओर देखने को हो रहा था। शायद इसलिए की कल दोपहार को जो घटना हुई थी, क्या वो भीमा चाचा भूल गये थे? या फिर घर छोड़कर भाग गये थे? या फिर कुछ और?
कामया सीढ़ियां चढ़ती जा रही थी और सोच रही थी- क्या भीमा चाचा उससे एक बार खेलकर ही उसे भूल गये हैं? पर वो तो नहीं भूल पाई। तो क्या वो जितनी सुंदर और सेक्सी लगती थी, वो है नहीं क्या? भीमा चाचा भी एक बार के बाद उसे फिर से अपने साथ सेक्स के लिए लालायित नहीं होंगे? मैंने तो सुना था की आदमी एक बार किसी औरत को भोग ले तो बार-बार उसकी इच्छा करता है, और वो तो इतनी खूबसूरत है, और उसने इस बात की पुष्टि भी की थी। उसे भीमा चाचा की नजरों में ही यह बात दिखी थी। पर अभी तो कहीं गायब ही हो गये थे? वो सीढ़ियां चढ़ना भूल गई थी। वहीं एक जगह खड़ी होकर एकटक किचेन की ओर ही देख रही थी।
कुछ सोचते हुए वो फिर से नीचे की ओर उतरी और धीरे-धीरे किचेन की ओर चल दी। उसका दिल जोर-जोर से धड़क रहा था, पर फिर भी हिम्मत करके वो किचेन की ओर जा रही थी, पर क्यों पता नहीं? पर कामया के पैर जो की अपने आप ही किचेन की ओर जा रहे थे, किचेन के दरवाजे पर पहुँचकर अंदर देखा तो वहां शांति थी। वो थोड़ा और आगे बढ़ी तो उसे भीमा चाचा के पैर देखकर, वो शायद नीचे फर्श पोंछ रहे थे। वो अपने को इस स्थिति में पाकर आगे क्या करे? सोचने का टाइम भी ना मिला की तभी भीमा की नजर कामया पर पड़ गई। वो कामया को दरवाजे पर खड़ा देखकर जल्दी से उठा और अपने धोती को संभालते हुये हाथ पीछे करके खड़ा हो गया।
और भीमा ने कहा- जी बहूरानी, कुछ चाहिए?
कामया- जी वो… पानी।
भीमा- “जी बहूरानी…” उसकी नजर अब भी नीचे ही थी, पर बहू का इस समय अपने पास खड़े होना उसके लिए एक बहुत बड़ा बरदान था। वो नजरें झुकाए हुए कामया की टांगों की ओर देख रहा था और पानी का ग्लास फिल्टर से भरकर कामया की ओर पलटा।
कामया ने हाथ बढ़ाकर ग्लास लिया तो दोनों की उंगलियां आपस में टच हो गईं। कामया और भीमा के शरीर में एक साथ एक लहर सी दौड़ गई, और शरीर के आंग-अंग पर छा गई। वो एक दूसरे को आँखें उठकर देखने की हिम्मत नहीं कर पा रहे थे। पर किसी तरह कामया ने पानी पिया। पिया क्या वो तो अपने आपको भीमा के सामने पाकर कुछ और नहीं कह पाई थी, तो पानी माँग लिया था, और झट से ग्लास प्लेटफोर्म पे रखकर पलट गई, और अपने कमरे की ओर चल दी।
भीमा वहीं खड़ा-खड़ा अपनी स्वप्न सुन्दरी को जाते हुए देखता रहा। वो चाहता था की कामया रुक कर उससे बात करे, कुछ और नहीं भी करे तो कम से कम रुक जाए और वहीं खड़ी रहे। वो उसको देखना चाहता था, बस देखना चाहता था नजर भर के। पर वो तो जा रही थी। उसका मन कर रहा था की जाकर रोक ले वो बहू को, और कल की घटना के बारे में पूछे की कल क्यों उसने वो सब किया मेरे साथ? पर हिम्मत नहीं हुई। वो अब भी कामया को सीढ़ियां चढ़ते देख रहा था, किसी पागल भिखारी की तरह। जिसे सामने जाते हुये राहगीर से कुछ मिलने की आशा अब भी बाकी थी।
तभी कामया आखिरी सीढ़ी पे जाकर थोड़ा सा रुकी और पलटकर किचेन की ओर देखी। पर भीमा को उसकी तरफ देखता देखकर जल्दी से ऊपर चली गई।
भीमा अब भी अपनी आँखें फाड़-फाड़कर सीढ़ियों की ओर ही देख रहा था, पर वहां तो कुछ भी नहीं था, सब कुछ खाली था, और सिर्फ उसके जाने के बाद एक सन्नाटा सा पसर गया था उसे कोने में कोने में। बल्की पूरे घर में। भीमा भी पलटा और अपने काम में लग गया, पर उसके दिमाग में बहू की छवि अब भी घूम रही थी, सीधी-सादी सी लगने वाली बहूरानी अभी भी उसके जेहन पर राज कर रही थी। कितनी सुंदर सी सलवार कमीज पहने हुए थी, और उसपर कितना जम रहा था? उसका चेहरा कितना चमक रहा था? कितनी सुंदर लगती थी वो? पर वो अचानक किचेन में क्यों आई थी?
भीमा का दिमाग ठनका। हाँ यार क्यों आई थी? वो तो मम्मीजी के कमरे में थी और अगर पानी ही पीना था तो मम्मीजी के कमरे में भी तो आर॰ओ॰ था और तो और उनके कमरे में भी था। तो वो यहां क्यों आई थी? कहीं सिर्फ उसे देखने के लिए तो नहीं? या फिर कल के बारे में कुछ कह रही हो? या फिर उसे फिर से बुला रही हो? अरे यार, उसने पूछा क्यों नहीं की और कुछ चाहिए क्या? क्या बेवकूफ है वो? धत् तेरी की। अच्छा मौका था निकल गया। अब क्या करे? अभी भी शाम होने को देर थी, क्या वो बहू को फोन करके पूछे? अरे नहीं, कहीं बहू ने शिकायत कर दी तो? भीमा अपने दिमाग को एक झटका देकर फिर से अपने काम में जुट गया था, पर ना चाहते हुए भी उसकी नजर सीढ़ियों की ओर चली ही जाती थी।
उधर कामया ने जब पलटकर देखा था तो वो बस इतना जानना चाहती थी की भीमा क्या कर रहा था? पर उसे अपनी ओर देखते हुए पाकर वो घबरा गई थी, और जल्दी से अपने कमरे में भाग गई थी, और जाकर अपने कमरे की कुण्डी लगाकर बिस्तर पर बैठ गई थी। पूरे घर में बिल्कुल शांति थी, पर उसके मन में एक उथल-पुथल मची हुई थी। उसने अपनी चुन्नी को उतार फेंका और चित्त होकर लेट गई। वो छत की ओर देखते हुए बिस्तर पर लेटी थी, उसके आँखों में नींद नहीं थी, उसका दिल जोरों से धड़क रहा था। उसके शरीर में एक अजीब सी कसक सी उठ रही थी।
वो ना चाहते हुए भी अपने आपको अपने में समेटने की कोशिश में लगी हुई थी। वो एक तरफ घूमकर अपने को ही अपनी बाहों में भरने की कोशिश कर रही थी। पर नहीं, वो यह नहीं कर पा रही थी। उसे भीमा चाचा की नजरें याद आ रही थीं, उसको पानी देते समय जो उंगलियां उससे टकराई थीं, वो उसे याद करके सनसना गई थी। वो एक झटके से उठी और बेड में ही बैठे-बैठे अपने को मिरर में देखने लगी। बिल्कुल भी सामान्य नहीं लग रही थी वो मिरर में।
पता नहीं क्या पर कुछ चाहिए था? क्या पता नहीं? हाँ… शायद भीमा हाँ… उसे भीमा चाचा का हाथ अपने पूरे शरीर में चाहिए था। वो बैठे-बैठे ही अपनी सलवार को खोलकर खींचकर उतार दिया और अपनी गोरी-गोरी टांगों को और जांघों को खुद ही सहलाने लगी थी, बड़ी ही शेप लिए हुए थी उसकी टाँगें। पतली और सुडौल सी, गोरी-गोरी और कोमल सी उसकी टांगों को वो सहलाते हुए उनपर भीमा चाचा के सख़्त हाथों की कल्पना कर रही थी। उसकी सांसें अब बहुत तेज चलने लगी थीं।
उसके हाथ अपने आप ही उसके कुर्ते के अंदर उसकी गोलाईयों की ओर बाढ़ चले थे, जैसे की वो खुद को ही टटोलकर देखना चाहती थी की क्या वो वाकई इतनी सुंदर है? या फिर ऐसे ही? हाँ वो बहुत सुंदर है। जब उसके हाथ उसके कुर्ते के अंदर उसकी गोलाईयों पर पहुँचे तो खुद को रोक नहीं पाई वो, उन्हें थोड़ा सा दबाकर देखा तो उसके मुख से एक ‘आआह्ह’ निकली। कितना सुख है, पर अपने हाथों के बजाए और किसी के हाथों से उसका मजा दोगुना हो जाएगा।
कामेश भी तो कितना खेलता है इन दोनों से, पर अपने हाथों के स्पर्श का वो आनंद उसे नहीं मिल पा रहा था। उसने अपने कुर्ते को भी उतार दिया और खड़े होकर अपने को मिरर में देखने लगी थी। सिर्फ ब्रा और पैंटी में वो कितनी खूबसूरत लग रही थी? लम्बी-लम्बी टाँगों से लेकर जांघों तक बिल्कुल सफेद और चिकनी थी वो। कमर के चारों ओर पैंटी फँसी हुई थी, जो की उसकी जांघों के बीच से होकर पीछे कहीं चली गई थी।
बिल्कुल सपाट पेट और उसपर गहरी सी नाभि और उसके ऊपर उसकी ब्रा में कैद दो ठग। हाँ… कामेश उनको ठग ही कहता था, जो मस्त उभार लिए हुए थे।
कामया अपने शरीर को मिरर में देखते हुए कहीं खो गई थी, और अपने हाथों को अपने पूरे शरीर में चला रही थी, और अपने अंदर सोए हुए ज्वालामुखी को और भी भड़का रही थी। वो नहीं जानती थी की आगे क्या होगा? पर उसे ऐसे अच्छा लग रहा था। आज पहली बार कामया अपने जीवनकाल में अपने को इस तरह से देखते हुए खेल रही थी।
कामया ने अपने आपसे खेलते हुए पता नहीं क्यों अपनी ब्रा और पैंटी को भी धीरे से उतारकर एक तरफ बड़े ही स्टाइल से फेंक दिया, और बिल्कुल नग्न अवस्था में खड़ी हुई अपने आपको मिरर में देखती रही। उसने अपने आपको बहुत बार देखा था, पर आज वो अपने आपको कुछ अजीब ही तरह से देख रही थी। उसके हाथ उसके पूरे शरीर पर घूमते हुए उसे एक अजीब सा एहसास दे रहे थे।
उसके अंदर एक ज्वाला सी भड़क रही थी, जो की अब उसके बर्दास्त के बाहर होती जा रही थी। उसकी उंगलियां धीरे-धीरे अपने निपल्स के ऊपर घुमाती हुई कामया अपने पेट की ओर जा रही थी, और अपनी नाभि को भी अंदर तक छूकर देखती जा रही थी। दूसरे हाथों की उंगलियां अब उसकी जांघों के बीच में लेने की कोशिश में थी, जिससे उसके मुख से एक हल्की सी सिसकारी पूरे कमरे में फैल गई, और वो अपने सिर को ऊंचा करके नाक से और मुख से सांसें छोड़ने लगी।
कामया की जांघों के बीच में अब आग लग गई थी। वो उसके लिए कुछ भी कर सकती थी। हाँ कुछ भी… वो एकदम से नींद से जागी। और फिर से अपने आपको मिरर में देखते हुए अपने आपको वार्डरोब के पास ले गई। फिर एक सफेद पेटीकोट और ब्लाउज़ निकालकर पहनने लगी। बिना ब्रा के ब्लाउज़ पहनने में उसे थोड़ा सा दिक्कत हुई, पर ठीक है वो तैयार थी। अपने बालों को एक झटका देकर वो अपने को एक बड़े ही मादक पोज में मिरर की ओर देखी और लड़खड़ाती हुई इंटरकम तक पहुँची और किचेन का नंबर डायल कर दिया।
किचेन में एक घंटी जाते ही भीमा ने फोन उठा लिया- हेलो।
कामया ने तुरंत फोन काट दिया, और फ़ोन रखकर तेज-तेज सांसें लेने लगी। उसके अंतरमन में एक ग्लानि सी उठ रही थी। ना चाहते हुए भी उसने फोन रख दिया था, और बिस्तर पर बैठे-बैठे सोचने लगी कि क्या कर रही है वो? एक इतने बड़े घर की बहू को क्या यह सोभा देता है अपने घर के नौकर के साथ? और वो भी इसी घर में। क्या वो पागल हो गई है? नहीं, उसे यह सब नहीं करना चाहिए। वो सोचते हुए बिस्तर पर लुढ़क गई और अपने दोनों हाथों से अपने को समेटे वैसे ही पड़ी रही। उसका पूरा शरीर जिस आग में जल रहा था, उसके लिए उसके पास कोई भी तरीका नहीं था बुझाने के लिये। पर क्या कर सकती थी वो? जो वो करना चाहती थी, वो गलत था पर? हाँ नहा लेती हूँ। सोचकर वो एक झटके से उठी और तौलिया हाथ में लिए बाथरूम की ओर चल दी।
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कामया का पूरा शरीर थरथर कांप रहा था, और शरीर से पशीना भी निकल रहा था। वो कुछ धीरे कदमों से बाथरूम की ओर जा ही रही थी की दरवाजे पर एक हल्की सी खटखट से वो चौंक गई। वो जहां थी वहीं खड़ी हो गई, और ध्यान से सुनने की कोशिश करने लगी। नहीं, कोई आहट नहीं हुई थी। शायद उसके मन का भ्रम था, कोई नहीं है दरवाजे पर। मम्मीजी तो नीचे सो रही होंगी, और कौन हो सकता है? भीमा चाचा? अरे नहीं, वो इतनी हिम्मत नहीं कर सकता। वो क्यों आएगा?
और उधर भीमा ने जैसे ही फोन उठाकर हेलो कहा, फोन कट गया था। वो भी फोन हाथ में लिए खड़ा का खड़ा रह गया था, सोचता हुआ की क्या हुआ बहू को कहीं कोई चीज तो नहीं चाहिए? शायद भूल गई हो नीचे? या फिर कोई काम था उसे? या कुछ और? वो धीरे से किचेन से निकला और ऊपर सीढ़ियों की ओर देखता रहा, पर कहीं कोई आवाज ना सुनकर वो बड़ी ही हिम्मत करके ऊपर की ओर चला और बहू के कमरे की ओर आते-आते पशीना-पशीना हो गया। बड़ी ही हिम्मत की थी उसने आज दरवाजे पर आकर। वो चुपचाप खड़ा हुआ अंदर की आवाज को सुनने की कोशिश करने लगा था। एक हल्की सी आहट हुई तो वो कुछ सोचकर हल्के से दरवाजे पर एक खटखट करके खड़ा हो गया, और इंतेजार करने लगा। पर कोई आहट नहीं हुई तो यह सोचते हुए नीचे की ओर चल दिया की शायद बहू सो गई होगी।
और अंदर कामया का पूरा ध्यान दरवाजे पर ही था। नारी मन की जिज्ञाशा ही कहिए, वो अपने को उस खटखट का कारण जानने की कोशिश में दरवाजे की ओर चली और कान लगाकर सुनने की कोशिश करने लगी की कहीं कोई आहट या फिर कोई चहल पहल की आवाज हो रही है की नहीं? पर कोई आवाज ना सुनकर वो दरवाजे की कुण्डी खोलकर बाहर की ओर देखती है, पर कोई नहीं था, वहां कुछ भी नहीं था तो वो बाहर आ गई थी। बाहर भी कोई नहीं था। लेकिन आचनक ही उसकी नजर सामने सीढ़ियों पर पड़ी तो वहां भीमा खड़ा था जो की अब उसी की ओर देख रहा था।
कामया ने अब भी सफेद ब्लाउज़ और पेटीकोट ही पहना हुआ था, और हाथ में तौलिया था। वो भीमा चाचा को सीढ़ियों में देखकर सब कुछ भूल गई थी। उसे अपने आपको ढकने की बात तो दूर, वो फिर से अपने को उस आग की गिरफ़्त में पाती जा रही थी, जिस आग से वो अब तक निकलने की कोशिश कर रही थी। उसकी सांसों में अचानक ही तेजी आ गई थी, और वो उसकी धमनियों से टकरा रही थी।
भीमा सीढ़ियों में खड़ा-खड़ा बहू के इस रूप को देख रहा था। बहू तो कल जैसे ही स्थिति में है, तो क्या वो आज भी मालीश के बहाने उसे बुला रही थी? हाँ शायद। पर अब क्या करे? वो हिम्मत करके सीढ़ियों में ही घूमा और बहू की ओर कदम बढ़ाया। अपने सामने इस तरह से खड़ी कोई स्वप्न सुंदरी को कैसे छोड़कर जा सकता था? वो उसका दीवाना था, वो तो उसके रूप का पुजारी था, उस रूप को उस काया को वो भोग चुका था, उसकी मादकता और नाजुकता का अनुमान था उसे। उसके लिए वो तो कब से लालायित था, और वो उसके सामने इस तरह से खड़ी थी। भीमा अपने आपको रोक ना पाया और बड़े ही सधे हुए कदमों से बहू की और बढ़ने लगा।
कामया ने जब भीमा चाचा को अपने ओर बढ़ते हुए देखा तो जैसे वो जमीन में गड़ गई थी। उसकी सांसें जो की अब तक उसकी धमनियों से ही टकरा रही थीं, अब उसके मुँह से बाहर आने को थी। हर सांस के साथ उसके मुख से एक हल्की सी सिसकारी भी निकलने लगी थी, उसके शरीर के हर एक रोम-रोम में सेक्स की एक लहर दौड़ गई थी। उसे भीमा चाचा के हाथ और उनके शरीर के बालों का गुच्छा… याद आने लगा था। कल जब भीमा चाचा ने उसे अपनी बाहों में लेकर रौंदा था, वो एक-एक वाकया उसे याद आने लगा था।
कामया खड़ी-खड़ी कांपने लगी थी, उसके शरीर ने एक के बाद एक झटके लेना शुरू कर दिया था। वो खड़े-खड़े लड़खड़ा गई थी, और दीवाल का सहारा लेने को मजबूर हो गई थी। उसकी और भीमा चाचा की आखें एक दूसरे की ओर ही थीं, एक बार के लिए भी नहीं हटी थीं। अब कामया पीछे दीवार के सहारे खड़ी थी, कंधा भर टिका था दीवाल से, और पूरा शरीर पांव के सहारे खड़ा था। सांसों की तेजी के साथ कामया की चूचियां अब ज्यादा ही ऊपर की ओर उठी जा रही थीं। वो नाक और मुख से सांस लेते हुए भीमा चाचा को अपने करीब आते देख रही थी।
भीमा करीब और करीब आते हुए उसके बहुत नजदीक खड़ा हो गया। अब भीमा की नजर बहू के शरीर का अवलोकन कर रही थी। वही शरीर, जिसे काल उसने भोगा था, और बहुत ही अच्छे तरीके से भोगा था, जैसे मन किया था, वैसे ही। आज फिर वो उसके सामने खड़ी थी कल जैसी ही परिस्थिति में और खुला आमंत्रण था भीमा को। वो सिर से पैर तक बहू को निहारता रहा और भीमा की नजर एक बार फिर से बहू के चेहरे पर पड़ी, और उसको देखते हुए उसने अपने हाथों को बहू की ओर बढ़ाया। धीरे से उसने बहू के पेट को छुआ।
कामया सिसकी- आआअह्ह… उउम्म्म्मम…”
भीमा के हाथों में जैसे मखमल आ गया हो। नाजुक-नाजुक और नरम-नरम सा बहू का पेट उसकी सांसों के साथ अंदर-बाहर और उपर नीचे होते हुए, वो अपने हाथों को एक जगह नहीं रख पाया। वो अपने दूसरे हाथ को भी लाकर बहू के पेट पर रख दिया और अपने दोनों हाथों से उसको सहलाने लगा। सहलाने क्या लगा, बल्की कहिए उनका आकर लेने लगा। वो अपने हाथों से बहू के पेट का आकर नाप रहा था, और उस ऊपर वाले की रचना को महसूस कर रहा था। वो अपनी आँखें गड़ाए बहू के पेट को ऊपर से देख भी रहा था, और अपने हाथों से उस रचना की तारीफ भी कर रहा था।
भीमा की आँखों के सामने बहू की दोनों चूचियां अपनी जगह से आजाद होने की कोशिश कर रही थीं। वो अपने हाथों को धीरे से बहू के ब्लाउज़ की ओर ले जाने लगा। तभी अचानक ही बहू लड़खड़ाई और भीमा की सख़्त बाहों ने बहू को संभाल लिया। अब बहू भीमा की गिरफ्त में थी, और बेसुध थी, उसकी आँखें बंद सी थीं, नथुनों फूल रहे थे, मुख से सिसकारी निकल रही थी। उसका पूरा शरीर अब भीमा के हाथों में था। उसके भरोसे में था, वो चाहे तो वहीं पटक कर बहू को भोग सकता था, या फिर उठाकर अपने कमरे में ले जा सकता था, या फिर अंदर उसके कमरे में कल जैसे बिल्कुल नंगा करके उसके सारे शरीर को जो चाहे वो कर सकता था। उसकी आँखें बहू की चेहरे पर थी।
कामया अपना सब कुछ भीमा के हाथों में सौंपकर लम्बी-लम्बी सांसें लेते हुई उसकी बाहों ले लटकी हुई थी। भीमा उस अप्सरा को अपनी बाहों में संभाले हुए, अपने एक हाथ से उसकी पीठ को सहारा दिया और दूसरे हाथ से उसके पैरों के नीचे से हाथ डालकर एक झटके से उसे उठाकर उसी के बेडरूम में घुस गया। वो कमरे में आते ही अपने हाथों की उस सुंदर और कामुक काया को कहां रखे? सोचने लगा। उसके हाथों में कामया एक बेसुध सी जान लग रही थी।
एक रति के रूप में कामया लगभग बेहोशी की मुद्रा में थी। उसे सब पता था कि क्या चल रहा था? पर उसके हाथों से अब बात निकल चुकी थी। वो अब भीमा को भेंट चढ़ चुकी थी, या कहिए वो अपने को भीमा के सुपुर्द कर चुकी थी। अब वो इस खेल का हिस्सा बनने को तैयार थी।
अब कामया उस भीमकाय दैत्य के हर उस पुरुषार्थ को सहने को तैयार थी, जो की उसे चाहिए था, जो की उसे कामेश से नहीं मिला था, या फिर उसे नहीं पता था इतने दिनों तक। वो अब अपने आपको किसी भी स्थिति में रोकना नहीं चाहती थी। भीमा के गोद में वो ऐसी लग रही थी की कोई बनमानुष उसे उठाकर अपनी हवस का शिकार करने जा रहा हो। वो तैयार थी उस बनमानुष को झेलने के लिये, उस सख्श को अपने अंदर समा लेने के लिये वो चुपचाप उस सख्श का साथ दे रही थी। उसके हर कदम को देख भी रही थी और समझ भी रही थी, जैसे कह रही हो करो और करो, जो मन में आए करो, पर मेरे तन की आग को ठंडा करो, प्लीज।
भीमा अपने हाथों में बहू को उठाए कमरे में दाखिल हुआ और सोचने लगा की अब क्या करे? पर वो खुद ही बिना किसी मुश्किल के बहू को उसके बिस्तर तक ले गया और धीरे से, हाँ बहुत ही धीरे से बहू को उसके बिस्तर पर लिटा दिया।
कामया अब सिर, नितम्बों और पैरों के तले को रखकर बिस्तर पर लेटी हुई थी। कामया को जैसे ही भीमा ने बिस्तर पर रखा, वो एक जल बिन मछली की तरह से तड़प उठी, उसके हाथ पांव और सिर बिस्तर पर अपने आपसे इधर उधर होने लगे थे। वो अपने को भीमा के शरीर से अलग नहीं करना चाहती थी। जब भीमा उसे अपनी गोद में भरकर लाया था तो उसके नथुनों में भीमा के पशीने की खुशबू को सूंघकर ही बेसुध हो गई थी। कितनी मर्दानी खुशबू थी? कितनी मादक थी यह खुशबू? कामाग्नि में जलती हुई कामया का पूरा शरीर अब भीमा के रहमो करम पर था। वो चाहती थी की भीमा कल जैसे उसे निचोड़कर रख दे। उसके शरीर में उठ रही हर एक लहर को अपने हाथों से रोक दे। वो अपने आपको अकेला सा पा रही थी बिस्तर पर।
और भीमा पास खड़े हुए बहू की इस स्थिति को अपने आँखों से देख रहा था। बहू के ब्लाउज़ में कैद हुए उसकी गोल-गोल बड़ी-बड़ी गोलाइयों को वहीं खड़े-खड़े निहार रहा था। उसके ऊपर-नीचे होते हुए आकार को बढ़ते घटते देख रहा था, उसके पेट को अंदर-बाहर होते देख रहा था, जांघों में फँसी हुई पेटीकोट को उसकी टांगों के साथ ऊपर-नीचे होते हुए देख रहा था। उसकी आँखें बहू के हर हिस्से को देख रही थीं, और उसकी सुंदरता को अपने अंदर उतारने की कोशिश कर रही थी।
भीमा खड़े-खड़े देख ही रहा था की उसके हाथों से बहू की नाजुक हथेली टकराई, कामया उसकी मजबूत हथेली को अपनी हथेली में लेने की कोशिश कर रही थी, वो अपनी हथेली को भीमा की हथेली पर कसकर पकड़ बनाने की कोशिश कर रही थी, और अपने पास खींच रही थी। उसके हाथ भीमा को अपने पास और पास आने का न्योता दे रहे थे।
भीमा भी अब कहां रुकने वाला था। वो भी बहू के हाथों के साथ अपने आपको आगे बढ़ाया और बहू के हाथों का अनुसरण करने लगा। बहू अपने हाथों को भीमा के हाथों के सहारे अपनी चूचियों तक लाने में सफल हो गई थी। उसकी चूचियां और भी तेज गति से ऊपर की ओर हो गईं। कामया के मुख से एक ‘आअह्ह’ निकली और वो भीमा के हाथों को अपनी चूचियों के ऊपर घुमाने लगी थी।
भीमा को तो मन की मुराद ही मिल गई थी, जो खड़े-खड़े देख रहा था, अब उसके हाथों में था। वो और नहीं रुक पाया, वो अपने अंदर के शैतान को और नहीं रोक पाया था। वो अपने दोनों हाथों से बहू की दोनों चूचियों को कसकर पकड़ लिया, और ब्लाउज़ के ऊपर से ही दबाने लगा। कामया का पूरा शरीर धनुष की तरह से अकड़ गया था, वो अपने सिर के और कमर के बल ऊपर को उठ गई थी।
कामया सिसकी- “उम्म्म्मम… आआअह्ह…”
और भीमा के होंठ उसकी आवाज को दबाने को तैयार थे। उसके होंठों ने कामया के होंठों को सील दिया और अब खेल शुरू हो गया। दोनों एक दूसरे से बिना किसी औपचारिकता से गुंथ गये थे। भीमा कब बिस्तर पर उसके ऊपर गिर गया, पता ही नहीं चला। वो कामया को अपनी बाहों में जकड़े हुए निचोड़ता जा रहा था, और उसकी दोनों चूचियों को अपने हाथों से दबाता जा रहा था।
कामया जो की नीचे से भीमा को पूरा समर्थन दे रही थी, अब उसकी जांघों को खोलकर भीमा को अपने बीच में लेने को आतुर थी। वो सेक्स के खेल में अब देरी नहीं करना चाहती थी। उसकी जांघों के बीच में जो हलचल मची हुई थी, वो अब उसकी जान की दुश्मन बन गई थी वो अब किसी तरह से भीमा को जल्दी से जल्दी अपने अंदर समा लेना चाहती थी। पर वो तो अब तक धोती में था और ऊपर भी कुछ पहने हुए था। अब तो कामया भूखी शेरनी बन गई थी, वो नहीं चाहती थी की अब देर हो। भीमा को अपने ऊपर से पकड़े ही उसने हिम्मत करके एक हाथ से उसके धोती को खींचना चालू किया और अपने को उसके साथ ही अडजस्ट करना चालू किया।
भीमा जो की उसके ऊपर था बहू के इशारे को समझ गया था, और आश्चर्य भी हो रहा था की बहू आज इतनी उतावली क्यों है? पर उसे क्या वो तो आज बहू को जैसे चाहे वैसे भोग सकता था। यही उसके लिए वरदान था। वो थोड़ा सा ऊपर उठा और अपनी धोती और अंडरवेर को एक झटके से निकाल दिया और वापस बहू पर झुक गया। झुका क्या झुका लिया गया।
नीचे पड़ी कामया को कहां सब्र था, वो खुद ही अपने हाथों से भीमा को पकड़कर अपने होंठों से मिलाकर अपनी जांघों को खोलकर भीमा को अडजस्ट करने लगी थी। भीमा का लिंग उसकी योनि के आस-पास टकरा रहा था बहुत ही गरम था और बहुत ही बड़ा। पर उससे क्या वो तो कल भी इससे खेल चुकी थी, उसको उस चीज का मजा आज भी याद था, वो और ज्यादा सह नहीं पाई
कामया- “आआआह्ह उउंम्म… चाचा पहले जैसे करो ना प्लीज…”
और भीमा चाचा के कानों में एक मादक सी घुल जाने वाली आवाज ने कहा तो भीमा के अंदर तक आग सी लहर दौड़ गई और भीमा का लिंग एक झटके से अंदर हो गया। और कामया की चीख- “ईईईईईईईई… उउम्म्म्मम… भी भीमा चाचा के गले में कहीं गुम हो गई।
भीमा का लिंग बहू के अंदर जाते ही जैसे कमरे में तूफान सा आ गया था। बिस्तर पर एक द्वन्द युद्ध चल रहा था। दोनों एक दूसरे में समा जाने की कोशिश में लगे थे और एक दूसरे के हर अंग को छूने की कोशिश में लगे हुए थे। कामया तो जैसे पागल हो गई थी। कल की बातें याद करके आज वो खुलकर भीमा के साथ इस खेल में हिस्सा ले रही थी। वो अपने आपको खुद ही भीमा चाचा के हाथों को अपने शरीर में हर हिस्से को छूने के लिए उकसा रही थी। वो अपने होंठों को भीमा के गालों से लेकर जीभ तक को अपने होंठों से चूस-चूसकर चख रही थी, और भीमा तो जैसे अपने नीचे बहू की सुंदर काया का आकार समझ ही नहीं पा रहा था। वो अपने हाथों को और अपने होंठों को बहू के हर हिस्से में घुमा-घुमाकर चूम भी रहा था और चाट-चाटकर उस कमसिन सी नारी का स्वाद भी ले रहा था और अपने अंदर के शैतान को और भी भड़का रहा था वो किसी वन मानुष की तरह से बहू को अपने नीचे रौंद रहा था और वो उसे अपनी बाहों में भरकर निचोड़ता जा रहा था।
उसके धक्कों में कोई कमी नहीं आई थी बल्की तेजी ही आई थी, और हर धक्के में वो बहू को अपनी बाहों में और जोर से जकड़ लेता था, ताकि वो हिल भी ना पाए, और उसके नीचे निश्चल सी पड़ी रहे। और कामया की जो हालत थी उसकी वो कल्पना भी नहीं कर पा रही थी। भीमा के हर धक्के पर वो अपने पड़ाव की ओर बढ़ती जा रही थी और हर धक्के की चोट पर भीमा चाचा की गिरफ़्त में अपने आपको और भी कसा हुआ महसूस करती थी। उसकी जान तो बस अब निकल ही जाएगी। सोचते हुए वो अपने मुकाम की ओर बढ़ चली थी और वो भीमा चाचा के जोरदार झटकों को और नहीं सह पाई और वो झड़ गई थी। झरना इसको कहते हैं उसे पता ही ना चला। लगा की उसकी योनि से एक लम्बी धार बाहर की ओर निकलने लगी थी जो की रुकने का नाम भी नहीं ले रही थी।
भीमा तो जैसे पागलों की तरह अपने आपमें गुम बहू को अपनी बाहों में भरे हुए अपनी पकड़ को और भी मजबूत करते हुए लगातार जोरदार धक्के लगाता जा रहा था। वो भी अपने पीक पर पहुँचने वाला था। पर अपने नीचे पड़ी बहू को ठंडा होते देखकर वो और भी सचेत हो गया और बिना किसी रहम के अपनी गति को और भी बढ़ा दिया, और अपने होंठों को बहू के होंठों के अंदर डालकर उसकी जीभ को अपने होंठों में दबाकर जोरदार धक्के लगाने लगा था।
कामया जो की झड़कर शांत हो गई थी, भीमा चाचा के लगातार धक्कों से फिर जाग गई थी, और हर धक्के का मजा लेते हुए फिर से अपने चरम सीमा को पार करने की कोशिश करने लगी थी। उसके जीवन कल में यह पहली बार था की वो एक के बाद दूसरी बार झड़ने को हो रही थी। भीमा चाचा की हर एक चोट पर वो अपनी नाक से सांस लेने को होती थी, और नीचे से अपनी कमर और योनि को उठाकर भीमा को और अंदर और अंदर तक उतर जाने का रास्ता भी देती जा रही थी।
उसके हर एक कदम ने उसका साथ दिया और भीमा का ढेर सारा वीर्य जब उसकी योनि पर टकराया तो वो एक बार फिर से पहली बार से ज्यादा तेजी से झड़ी थी। उसका शरीर एकदम से सुन्न हो गया था। पर भीमा चाचा की पकड़ अब भी उसके शरीर पर मजबूती से कसा हुआ था। वो हिल भी नहीं पा रही थी और न ही ठीक से सांस ही ले पा रही थी। हाँ अब दोनों धीरे-धीरे शांत हो चले थे।
भीमा भी अब बहू के होंठों को छोड़कर उसके कंधों के ऊपर अपने सिर को रखकर लम्बी-लम्बी सांसें ले रहा था, और अपने को शांत करने की कोशिश कर रहा था। उसकी पकड़ अब बहू पर से ढीली पड़ती जा रही थी और उसके कानों में कामया की सिसकारियां, और जल्दी-जल्दी सांस लेने की आवाज भी आ रही थी। जैसे उसे सपने में कुछ सुनाई दे रही थी।
भीमा अपने आपको संभालने में लगा था और अपने नीचे पड़ी हुई बहू की ओर भी देख रहा था। उसके बाल उसके नीचे थे। बहू का चेहरा उस तरफ था और वो तेज-तेज सांसें ले रही थी। बीच-बीच में खांस भी लेती थी। उसकी चूचियां अब आजादी से उसके सीने से दबी हुई थीं। भीमा की जांघों से बहू की जांघें अब भी सटी हुई थीं। उसका लिंग अब भी बहू के अंदर ही था।
वो थोड़ा सा दम लगाकर उठने की कोशिश करने लगा और अपने लिंग को बहू के अंदर से निकालकर बहू के ऊपर जोर ना देता हुआ उठ खड़ा हुआ, या कहिए वहीं बिस्तर पर बैठ गया। बहू अब भी निश्चल सी बिस्तर पर अपने बालों से अपना चेहरा ढके हुए पड़ी हुई थी।
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भीमा ने भी उसे डिस्टर्ब ना करते हुए अपनी धोती और अंडरवेर उठाया और उस सुंदर काया के दर्शन करते हुए अपने कपड़े पहनने लगा। उसके मन की इक्षा अब भी पूरी नहीं हुई थी। उस अप्सरा को वैसे ही छोड़कर वो नहीं जाना चाहता था। वो एक बार वहीं खड़े हुए बहू को एकटक देखता रहा और उसके साथ गुजरे हुए पल को याद करता रहा।
बहू की कमर के चारों और उसकी पेटीकोट अब भी बंधी हुई थी, पर ब्लाउज़ के सारे बटन खुले हुए थे और उसके कंधों के ही सहारे थे। उसकी चूचियां अब बहुत ही धीरे-धीरे ऊपर और नीचे हो रही थी नाभि से सहारे उसका पेट बिकुल बिस्तर से लगा हुआ था। जांघों के बीच काले-काले बाल जो की उस हसीना के अंदर जाने के द्वार के पहरेदार थे, पेट के नीचे दिख रहे थे, और लम्बी-लम्बी पतली सी जांघों के बाद टांगों पर खतम हो जाती थी।
भीमा की नजर एक बार फिर बहू पर पड़ी, और वो वापस जाने को पलटा। पर कुछ सोचकर वापस बिस्तर तक आया और बिस्तर के पास झुक कर बैठ गया, और बहू के चेहरे से बालों को हटाकर बिना किसी डर के अपने होंठों को बहू के होंठों से जोड़कर उसके मधु का पान करने लगा। वो बहुत देर तक बहू के ऊपर फिर नीचे के होंठों को अपने मुख में लिए चूसता रहा, और फिर एक लम्बी सी सांस छोड़कर उठा और नीचे रखी एक कंबल से बहू को ढक कर वापस दरवाजे से बाहर निकल गया।
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कामया पड़े हुए भीमा की हर हरकत को देख भी रही थी और महसूस भी कर रही थी लेकिन उसके शरीर में इतनी जान ही नहीं बची थी की वो कोई कदम उठाती या फिर अपने को ढकती। वो तो बस लेटी-लेटी
भीमा की हर उस हरकत का लुत्फ उठा रही थी जो की आज तक उसके जीवन में नहीं हुआ था। वो तब भी उठी हुई थी जब वो उसके ऊपर से हटा था, और उसने पलटकर अपनी धोती और अंडरवेर पहना था। कितना बलिष्ठ था वो बिल्कुल कसा हुआ सा और उसके नितम्ब तो जैसे पत्थर का टुकड़ा था, बिल्कुल कसा हुआ और काला-काला था। जांघों में बाल थे और लिंग तो झड़ने के बाद भी कितना लंबा और मोटा था, कमर के चारों ओर एक घेरा सा था और उसके ऊपर उसका सीना था, काले और सफेद बालों को लिए हुए।
वो लेटी हुई भीमा को अच्छे से देखी थी, उतना अच्छे से तो उसने अपने पति को भी नहीं देखा था। पर ना जाने क्यों उसे भीमा चाचा को इस तरह से छुपकर देखना बहुत अच्छा लगा, और जब वो जाते-जाते रुक गये थे और पलटकर आकर उसके होंठों को चूमा था, तो उसका मन भी उनको चूमने का हुआ था। पर शरम और डर के मारे वो चुपचाप लेटी रही थी, उसे बहुत मजा आया था।
उसके पति ने भी कभी झड़ने के बाद उसे इस तरह से किस नहीं किया था, या फिर ढक कर सुलाने की कोशिश नहीं की थी। वो लेटी-लेटी अपने आपसे ही बातें करती हुई सो गई, और एक सुखद कल की ओर चाल दी। उसे पता था की अब वो भीमा चाचा को कभी भी रोक नहीं पाएगी, और वो यह भी जानती थी की जो उसकी जिंदगी में खालीपन था, अब उसे भरने के लिए भीमा चाचा काफी हैं। वो अब हर तरीके से अपने शरीर का सुख भीमा चाचा से हासिल कर सकती है, और किसी को पता भी नहीं चलेगा और वो एक लम्बी सी सुखद नींद के आगोश में समा गई
शाम को इंटरकोम की घंटी के साथ ही उसकी नींद खुली और उसने झट से फोन उठाया- “हाँ…”
भीमा- “जी वो माँजी आने वाली हैं चाय के लिए…”
कामया- “हाँ…” और फोन रख दिया। लेकिन अचानक ही उसके दिमाग की घंटी बज गई।
अरे यह तो भीमा चाचा थे? पर क्यों उन्होंने फोन किया मम्मीजी भी तो कर सकती थी? तभी उसका ध्यान अपने आप पर गया। अरे वो तो पूरी तरह से नंगी थी। उसके जेहन में दोपहर की बातें घुमाने लगी थी। वो वैसे ही बिस्तर पर बैठी अपने बारे में सोचने लगी थी। वो जानती थी की आज उसने क्या किया था? सेक्स की भूख खतम होते ही उसे अपनी इज्जत का ख्याल आ गया था। वो फिर से चिंतित हो गई और कंधों पर पड़े अपने ब्लाउज़ को ठीक करने लगी, और धीरे से उतरकर बाथरूम की ओर चल दी।
बाथरूम में जाने के बाद उसने अपने आपको ठीक से साफ किया और बाहर से कमरे में आ गई थी। वार्डरोब से सूट निकालकर वो जल्दी से तैयार होने लगी थी। पर ध्यान उसका पूरे समय मिरर पर था। उसका चेहरा दमक रहा था, जैसे कोई चिंता या कोई जीवन की समस्या ही नहीं हो उसके दिमाग पर। हाँ… आज तक उसका चेहरा इतना नहीं चमका था। वो मिरर के पास आकर और गौर से देखी तो उसकी आँखों में एक अजीब सा नशा था, और उसके होंठों पर एक अजीब सी खुशी। उसका सारा बदन बिल्कुल हल्का लग रहा था।
दोपहर के सेक्स के खेल के बाद वो कुछ ज्यादा ही चमक गया था। वो सोचते ही उसके शरीर में एक लहर सी दौड़ गई और उसके निपल फिर से टाइट होने लगे थे। उसने अपने हाथों से अपनी चूचियों को एक बार सहलाकर छोड़ दिया और अपने दिमाग से इस घटना को निकाल देना चाहती थी। वो जल्दी से तैयार होकर नीचे की ओर चली। सीढ़ियों के कोने से ही उसने देख लिया था की मम्मीजी अपने कमरे से अभी ही निकली हैं। अच्छा हुआ भीमा ने फोन कर दिया था, नहीं तो वो तो सोती ही रह जाती। वो जल्दी से मम्मीजी के पास पहुँच गई और दोनों की चाय सर्व करने लगी। वो शांत थी।
मम्मीजी- तैयार हो गई?
कामया- जी।
मम्मीजी- अरे लक्खा के साथ नहीं जाना गाड़ी चलाने?
कामे- जी जी हाँ… बस चाय पीकर तैयार होती हूँ।
लक्खा का नाम सुनते ही पता नहीं क्यों उसके अंदर एक उथल पुथल फिर मच गई। उसे लक्खा काका की आँखें नजर आने लगी थी, और फिर वहीं बैठे-बैठे दोपहर की बातों पर भी ध्यान चला गया। किस तरह से भीमा चाचा ने उसे उठाया था और बिस्तर पर रखा था, और उसने किस तरह से उनका हाथ पकड़कर अपने सीने पर रखा था। सोचते-सोचते और चाय पीते-पीते उसके शरीर में एक सिहरन सी वापस दौड़ने लगी थी। उसकी चूचियां फिर से ब्रा में टाइट हो गई थीं, और उसकी जांघों के बीच में फिर से कूड़कुड़ी सी होने लगी थी। पर मम्मीजी के सामने वो चुपचाप अपने को रोके हुए चाय पीती रही। पर एक, लम्बी सी सांस जरूर उसके मुख और नाक से निकल ही गई।
मम्मीजी का ध्यान भी उस तरफ गया और कामया की ओर देखकर पूछा- क्या हुआ?
कामया- “जी कुछ नहीं, बस हम्म्म्म…”
मम्मीजी- आराम से चलाना और कोई जल्दीबाजी नहीं करना। ठीक है?
कामया- “जी हाँ…” वो ना चाहकर भी अपनी सांसों पर कंट्रोल नहीं रख पा रही थी। उसका शरीर उसका साथ नहीं दे रहा था। वो चाहती थी की किसी तरह से वो अपने आप पर कंट्रोल कर ले। पर पता नहीं क्यों लक्खा काका के साथ जाने की बात से ही वो उत्तेजित होने लगी थी।
मम्मीजी- "चल जल्दी कर ले, 6:00 बजने को हैं, लक्खा आता ही होगा। तेरे जाने के बाद ही पूजा में बैठूँगी। जा तैयार हो जा…”
मम्मीजी की आवाज ने कामया को चौंका दिया था। वो भी जल्दी से चाय खतम करके अपने कमरे की ओर भागी और वार्डरोब के सामने खड़ी हो गई। क्या पहनूं? सूट ही ठीक है। पर साड़ी में वो ज्यादा अच्छी लगती है, और सेक्सी भी। लक्खा भी अपनी आँखें नहीं हटा पा रहा था। उसके होंठों पर एक कातिल सी मुश्कान दौड़ गई थी। उसने फिर से वही साड़ी निकाली जो वो उस दिन पहनकर पार्टी में गई थी, और हैंगर पर लिए अपने सामने करती हुई उसे ध्यान से देखती रही। फिर एक झटके से अपने आपको तैयार करने में जुट गई थी। बड़े ही सौम्य तरीके से उसने अपने आपको सजाया था, जैसे की वो अपने पति या फिर किसी दोस्त के साथ कहीं पार्टी या फिर किसी डेट पर जा रही हो। हर बार जब भी वो अपने को मिरर में देखती थी तो उसके होंठों पर एक मुश्कान दौड़ पड़ती थी।
एक मुश्कान जिसमें बहुत से सवाल छुपे थे, एक मुश्कान जिससे कोई भी देख लेता तो कामया के दिल की हाल को जबान पर लाने से नहीं रोक पाता, एक मुश्कान जिसके लिए कितने ही जान निछावर हो जाते पता नहीं। जब वो तैयार होकर मिरर के सामने खड़ी हुई तो वो क्या लग रही थी, खुले बाल कंधों तक, सपाट कंधे और उसपर जरा सी ब्लाउज़ की पट्टी, सामने से ब्लाउज़ इतना खुला था की उसकी आधी चूचियां बाहर की ओर निकल पड़ी थीं, साड़ी का पल्लू लेते हुए वो ब्लाउज़ पर पिन लगाने को हुई, पर जाने क्यों उसने पिन वहीं छोड़ दिया, और फिर से अपने पल्लू को ठीक से ब्लाउज़ के ऊपर रखने लगी।
दायें साइड का चूची तो पूरा बाहर थी, और साड़ी उसकी दोनों चूचियों के बीच से होता हुआ पीछे चला गया था। खुले पल्ले की साड़ी होने की वजह से सिर्फ एक महीन लाइन या ढका हुआ था उसकी चूची, या कहिए सामने वाले की जोर आजमाइश के लिए थे। यह साड़ी का पल्लू की देखो क्या छुपा रखा है अंदर। हाँ… हाँ… ही ही साड़ी या पेटीकोट बांधते समय भी कामीया ने बहुत ध्यान से उसे कमर के काफी नीचे बांधा था, ताकी उसका पेट और नाभि अच्छे से दिखाई दे, और साफ-साफ दिखाई दे, ताकी उसपर से नजर ही ना हटे, और पीछे से भी कमर के चारों तरफ एक हल्का सा घेरा जैसा ही ले रखा था उसने, ना ही कमर को ढकने की कोशिश थी, और बल्की दिखाने की कोशिश ज्यादा थी। कामया ने हाथों में लटकी हुई साड़ी को लपेटकर वो एक चंचल सी लड़की के समान मिरर के सामने खड़ी हुई अपने को निहारती रही।
और तभी इंटरकाम की घंटी बजी, मम्मीजी ने कहा- क्या हुआ बहू तैयार नहीं हुई क्या? लक्खा तो आ गया है।
कामया- “जी आती हूँ…”
और कामया का सारा जोश जैसे पानी-पानी हो गया था। वो मम्मीजी के सामने से ऐसे कैसे निकलेगी? बाप रे बाप… क्या सोचेंगी मम्मीजी? धत्त उसके दिमाग में यह बात आई क्यों नहीं? वो अब सकपका गई थी दिमाग खराब हो गया था उसका। उसके अंदर एक अजीब सा द्वंद चल रहा था। वो खड़ी हुई और फिर से वार्डरोब के पास पहुँच गई, ताकी चेंज कर सके, वापस सूट पहनकर ही चलो जाए। वो सूट निकल ही रही थी की उसका ध्यान नीचे पड़े हुए एक कपड़े पर पड़ा। सादी से पहले का था, वो उसे बहुत अच्छा लगाता था। वो एक समर कोट टाइप का था (आप लोगों ने देखा होगा आजकल की लड़कियां पहनती हैं, ताकी धूप से या फिर धूल से बच सकें स्कूटी चलाते समय) रखा था।
उसके चेहरे पर एक विजयी मुश्कान दौड़ गई और वो जल्दी से उसे निकालकर एक झटका दिया और अपनी साड़ी को ठीक करके ऊपर से उसे पहन लिया और फिर मिरर के सामने खड़ी हो गई। हाँ, अब ठीक है। कोट के नीचे साड़ी दिख रही थी जो की बिल्कुल ठीक-ठाक थी और ऊपर से कोट उसके पूरे खुलेपन को ढके हुए था। अंदर क्या पहना था, कुछ भी नहीं दिख रहा था। हाँ… अब जा सकती है मम्मीजी के सामने से। एक शरारती मुश्कान छोड़ती हुई कामया जल्दी से अपने रूम से निकली और अपने हाई हील को जोर-जोर से पटकती हुई नीचे की ओर चली। गजब की फुर्ती आ गई थी उसमें, वो अब घर में रुकना नहीं चाहती थी।
वो जब नीचे उतरी तो मम्मीजी ड्राइंग रूम में बैठी थी। डाइनिंग रूम पार करते हुए उसने घूमकर किचेन की और देखा तो पाया की लक्खा काका भी शायद वहीं थे, और उसे देखते ही बाहर की ओर लपके, पीछे के दरवाजे से। भीमा चाचा कहीं नहीं दिखे। वो ड्राइंग रूम में मम्मीजी के सामने खड़ी थी।
मम्मीजी- अरे यह क्या पहना है?
कामया- जी वो ड्राइविंग पर जा रही थी सोचा की थोड़ा ढक कर जाती हूँ।
मम्मीजी- हाँ वो तो ठीक है, पर यह कोट क्यों? सूट भी तो ठीक था।
कामया- जी पर?
मम्मीजी- “अरे ठीक है कोई बात नहीं। तू तो बस चल ठीक है ध्यान से चलाना…” और कामया की पीठ पर हाथ देकर बाहर की ओर चल दी।
कामया भी मम्मीजी के साथ बाहर की और मुड़ी और बाहर आकर देखा की लक्खा काका कार का दरवाजा खोले खड़े हैं।
कामया थोड़ी सी ठिठकी पर अपने अंदर उठ रही कामाग्नि को वो ना रोक पाई, और अपने बढ़ते हुए कदम को ना रोक पाई थी वो। वो मम्मीजी की ओर मुश्कुराते हुए देखा, और गाड़ी के अंदर बैठ गई। लक्खा भी दौड़कर सामने की सीट पर बैठ गया था, और गाड़ी गेट के बाहर की ओर चल दी। गाड़ी सड़क पर चल रही थी और बाहर की आवाजें भी सुनाई दे रही थीं। पर अंदर एकदम सन्नाटा था। शायद सुई भी गिर जाए तो आवाज सुनाई दे जाए।
लक्खा गाड़ी चला रहा था, पर उसका मन पीछे बैठी हुई बहू को देखने को हो रहा था। पर बहुत देर तक वो देख ना सका। आज पहली बार बहू उसके साथ अकेली आई थी। वो सुंदरी जिसने की उसके मन में आग लगाई थी, उस दिन जब वो पार्टी में गई थी, और आज तो पता नहीं कैसे आई है।
एक बड़ा सा लबादा पहने हुए सिर्फ साड़ी क्यों नहीं पहने हुए है बहू? वो थोड़ा सा हिम्मत करके रियर व्यू में देखने की हिम्मत जुटा ही लिया। देखा की बहू पीछे बैठी हुई बाहर की ओर देख रही थी। गाड़ी सड़क पर से तेजी से जा रही थी। लक्खा को मालूम था की कहां जाना है? बड़े साहब ने कहा था की ग्राउंड में ले जाना, वहां ठीक रहेगा। थोड़ी दूर था पर थी बहुत ही अच्छी जगह। दिन में तो बहुत चहल-हेल होती थी वहां। पर अंधेरा होते ही सब कुछ शांत हो जाता था।
पर उससे क्या? वो तो इस घर का पुराना नौकर था और बहुत भरोसा था मालिकों को उसपर। वो सोच भी नहीं सकते थे की उनकी बहू ने उस सोए हुए लक्खा के अंदर एक मर्द को जनम दे दिया था, जो की अब तक एक लकड़ी की तरह हमेशा खड़ा रहता था, अब एक पेड़ की तरह हिलने लगा था। उसके अंदर का मर्द कब और कहां खो गया था इतने सालो में उसे भी पता नहीं चला था। वो बस जी साहब और जी माँजी के सिवा कुछ भी नहीं कह पाया था इतने दिनों में। पर उस दिन की घटना के बाद वो एक अलग सा बन गया था, जब भी वो खाली समय में बैठता था तो बहू का चेहरा उसके सामने आ जाता था। उसके चेहरे का भोलापन और शरारती आँखें वो चाहकर भी उसकी वो मुश्कान को आज तक नहीं भूल पाया था। वो बार-बार पीछे की ओर देख ही लेता था पर नजर बचाकर।
उधर पीछे बैठी कामया का तो पूरा ध्यान ही लक्खा काका पर था। वो दिखा जरूर रही थी की वो बाहर या फिर उसका ध्यान कहीं और था, पर जैसे ही लक्खा काका की नजर उठने को होती वो बाहर की ओर देखने लगती और मन ही मन मुश्कुराती। वो जानती थी की लक्खा काका के मन में क्या चल रहा है? वो जानती थी की लक्खा काका के साथ आज वो पहली बार अकेली आई है, और उस दिन के बाद तो शायद लक्खा काका भी इंतेजार में ही होंगे की कब वो कामया को फिर से नजर भर के देख सकें? यह सोच आते ही कामया के पूरे शरीर में फिर से एक झुनझुनी से फैल गई और वो अपने आपको समेटकर बैठ गई। वो जानती थी की लक्खा काका में इतनी हिम्मत नहीं है की वो कुछ कह सकें, या फिर कुछ आगे बढ़ेंगे, तो कामया ने खुद ही कहानी को आगे बढ़ाने की कोशिश की।
कामया- और कितनी दूर है काका?
लक्खा जो की अपनी ही उधेड़बुन में लगा था। चलती गाड़ी के अंदर एक मधुर संगीतमय सुर को सुनकर मंत्रमुग्ध सा हो गया और बहुत ही हल्की आवाज में कहा- लक्खा- “जी बस दो-तीन मिनट लगेंगे…”
कामया- जी अच्छा।
और फिर से गाड़ी के अंदर एक सन्नाटा सा छा गया। दोनों ही कुछ सोच में डूबे थे। पर दोनों ही आगे की कहानी के बारे में अंजान थे। दोनों ही एक दूसरे के प्रति आकर्षित थे पर एक दूसरे के आकर्षण से अंजान थे। हाँ… एक बात जो आम सी लगती थी और वो थी की नजर बचाकर एक दूसरे की ओर देखने की जैसे कोई कालेज के लड़के लड़कियां एक दूसरे के प्रति आकर्षित होने के बाद होता था। वो था उन दोनों के बीच में।
पीछे बैठी कामया थोड़ा सा सभलकर बैठी थी और बाहर से ज्यादा उसका ध्यान सामने बैठे लक्खा काका की ओर था, वो बार-बार एक ही बात को नोटिस कर रही थी की लक्खा काका कुछ डरे हुए, और कुछ संकोच कर रहे हैं, जो वो नहीं चाहती थी। वो तो चाहती थी की लक्खा काका उसे देखें, और खूब देखें, उनकी नजर में जो भूख उसने उस दिन देखा था, वो नजर को वो आज भी नहीं भुला पाई थी। उसको वो नजर में अपनी जीत और अपनी खूबसूरती दिखाई दी थी।
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अपनी सुंदरता के आगे किसी की बेबसी देखाई दी थी, उसकी सुंदरता के आगे किसी इंसान को बेसब्र और चंचल होते देखा था उसने। वो तो उस नजर को ढूँढ़ रही थी, उसे तो बस उस नजर का इंतेजार था। वो नजर जिसमें की उसकी तारीफ थी, उसके अंग-अंग की भूख को जगा गई थी। वो नजर भीमा और लक्खा में कोई फर्क नहीं था। कामया के लिए दोनों ही उसके दीवाने थे, उसके शरीर के दीवाने, उसके सुंदरता के दीवाने, और तो और वो चाहती भी यही थी।
इतने दिनों की शादी के बाद भी यह नजर उसके पति ने नहीं पाई थी, जो नजर उसने भीमा की और लक्खा काका के अंदर पाया था। उनके देखने के अंदाज से ही वो अपना सब कुछ भूलकर उनकी नजरों को पढ़ने की कोशिश करने लगती थी, और जब वो पाती थी की उनकी नजर में भूख है तो वो खुद भी एक ऐसे समुंदर में गोते लगाने लग जाती थी की उसमें से निकालना भीमा चाचा या फिर लक्खा काका के हाथ में ही होता था। आज वो फिर उस नजर का पीछा कर रही थी। पर लक्खा काका तो बस गाड़ी चलाते हुए एक-दो बार ही पीछे देखा था।
उस दिन तो पार्टी में जाते समय कामेश के साथ होते हुए भी कितनी बार काका ने पीछे उसे रियर व्यू में नजर बचाकर देखा था, और उतरते-उतरते भी उसे नहीं छोड़ा था। आज कहां गई वो दीवानगी? और कहां गई वो चाहत? कामया सोचने को मजबूर थी की अचानक ही उसने अपना दांव खेल दिया। वो थोड़ा सा आगे हुई और अपने समर कोट के बटनों को खोलने लगी, और धीरे से बहुत ही धीरे से अपने आपको उस कोट से अलग करने लगी।
लक्खा जो की गाड़ी चलाने पर ध्यान दे रहा था पीछे की गतिविधि को ध्यान से देखने की कोशिश कर रहा था। उसकी आँखों के सामने जैसे किसी खोल से कोई सुंदरता की तितली बाहर निकल रही थी उउफफ्फ़… क्या नजारा था… जैसे ही बहू ने अपने कोट को अपने शारीर से अलग किया, उसका यौवन उसके सामने था, आंचल ढलका हुआ था और बिल्कुल ब्लाउज़ के परे था, नीचे गिरा हुआ था।
कोट को उतारकर कामया ने धीरे से साइड में रखा और अपने दायें हाथ की नाजुक-नाजुक उंगलियों से अपनी साड़ी को उठाकर अपनी चूचियों को ढका, या फिर कहिए लक्खा को चिढ़ाया की देख यह मैं हूँ, और आराम से वापस टिक कर बैठ गई थी। जैसे की कह रही हो- “लो लक्खा काका मेरी तरफ से तुम्हें गिफ्ट, मेरी ओर से तो तुम्हें खुला निमंत्रण है अब तुम्हारी बारी है…”
और लक्खा को तो जैसे साप सूंघ गया हो, वो गाड़ी चलाए या फिर क्या करे? दिमाग काम नहीं कर रहा था। जो बहू अब तक उसकी गाड़ी के अंदर ढकी ढकाई बैठी थी, अब सिर्फ एक कोट उतरने से ही उसकी सांसें रोक सकती है तो, जब वो गाड़ी चलायेगी उसके पास बैठकर तो तो वो तो मर ही जाएगा।
वो अपने को क्या संभाले, वो तो बस उस सुंदरता को रियर व्यू में बार-बार देख रहा था और अपने भाग्य पर इठला रहा था की क्या मौका मिला था आज उसे? जहां वो बहू को गाड़ी चलाने के लिए सब लोगों को मना करने वाला था, और कहां वो आज उस जन्नत के दीदार कर रहा है। वो सोचते-सोचते अपनी गाड़ी को ग्राउंड की और ले चला था।
और कामया ने जो सोचा था, वो उसे मिल गया था। वो लक्खा काका का अटेन्शन खींचने में सफल हो गई थी, जो नजर गाड़ी चलाते समय सड़क पर थी, वो अब बार-बार उसपर पड़ रही थी। वो अपने इस कदम से खुश थी, अपनी सुंदरता पर इठला रही थी, वो अपने आप को एक जीवंत सा महसूस कर रही थी। उसके शरीर में जो आग लगी थी, अब वो आग धीरे-धीरे भड़क रही थी। उसकी सांसों का तेज होना शुरू हो गया था, और हो भी क्यों नहीं उसकी सुंदरता को कोई पुजारी जो मिल गया था। उसके शरीर की पूजा करने वाला और उसकी तारीफ करने वाला, भले ही शब्दों से ना करे, पर नजर से तो कर ही रहा था। कामया अपने को और भी ठीक करके बैठने की कोशिश कर रही थी। ठीक से क्या अपने आपको काका के दर्शन के लिए और खुला निमंत्रण दे रही थी। वो थोड़ा सा आगे की और हुई, और अपनी दोनों बाहों को सामने सीट पर ले गई।
फिर कामया ने बड़े ही इठलाते हुए कहा- “और कितनी दूर है हाँ?”
लक्खा- “जी बस पहुँच ही गये…”
और गाड़ी मैदान में उतर गई थी और एक जगह रुक गई। लक्खा अपनी तरफ का गेट खोलकर बाहर निकलते समय पीछे पलटकर कामया की ओर देखते हुए कहा- “जी आइए ड्राइविंग सीट पर…”
कामया ने लगभग मचलती हुई अपने साइड का दरवाजा खोला और जल्दी से नीचे उतरकर बाहर आई और लगभग दौड़ती हुई पीछे से घूमती हुई आगे ड्राइविंग सीट की ओर आ गई।
बाहर लक्खा दरवाजा पकड़े खड़ा था और अपने सामने स्वप्न-सुंदरी को ठीक से देख रहा था। वो अपनी नजर को नीचे नहीं रख पा रहा था। वो उस सुंदरता को पूरी इज्जत देना चाहता था। वो अपनी नजर को झुका कर उस सुंदरता का अपमान नहीं करना चाहता था। वो अपने जेहन में उस सुंदरता को उतार लेना चाहता था। वो अपने पास से बहू को ड्राइविंग सीट की ओर आते हुए देखता रहा, और बड़े ही आदाब से उसका स्वागत भी किया। थोड़ा सा झुक कर और थोड़ा सा मुश्कुराते हुए वो बहू के चेहरे को पढ़ना चाहता था। वो उसकी आँखों में झांक कर उसके मन की बातों को पढ़ना चाहता था। वो अपने सामने उस सुंदरी को देखना चाहता था, वो एकटक बहू की ओर नजर गड़ाए देखता रहा, जब तक वो उसके सामने से होते हुए ड्राइविंग सीट पर नहीं बैठ गई।
कामया का बैठना भी एक और दिखावा था। वो तो लक्खा को अपने शरीर का दीदार करा रही थी। बैठते ही उसका आंचल उसके कंधे से डालकर उसकी कमर तक उसको नंगा कर गया, सिर्फ ब्लाउज़ में उसकी चूचियां जो की आधे से ज्यादा ही बाहर थीं, लक्खा के सामने उजागर हो गईं, पर कामया का ध्यान ड्राइविंग सीट पर बैठते ही स्टियरिंग पर अपने हाथों को ले जाने की जल्दी में थे। वो बैठते ही अपने आपको भुलाकर स्टियरिंग पर अपने हाथों को फेरने लगी थी, और उसके होंठों पर एक मधुर सी मुश्कान थी। पर बाहर खड़े हुए लक्खा की तो जैसे जान ही निकल गई थी।
अपने सामने ड्राइविंग सीट पर बैठी हुई उसकी कामाग्नि से जलती हुई सुंदरता की उस अप्सरा को वो बिना पलकें झपकाए, आँखें गड़ाए खड़ा-खड़ा देख रहा था। उसकी सांसें जैसे रुक गई थीं, वो अपने मुख से थूक का घूंट पीते हुए दरवाजे को बंद करने को था की उसकी नजर बहू की साड़ी पर पड़ी जो की दरवाजे से बाहर जमीन तक जा रही थी, और बहू तो स्टियरिंग पर ही मस्त थी। वो बिना किसी तकल्लुफ के नीचे झुका और अपने हाथों से बहू की साड़ी को उठाकर गाड़ी के अंदर रखा, और अपने हाथों से उसे ठीक करके बाहर आते हुए हल्के हाथों से बहू की जांघों को थोड़ा सा छुआ और दरवाजा बंद कर दिया।
फिर वो जल्दी से घूमकर अपनी सीट पर बैठना चाहता था, पर घूमकर आते-आते उसने धोती को और अपने अंडरवेर को थोड़ा सा हिलाकर अपने लिंग को अकड़ने से रोका, या कहिए थोड़ा सा सांस लेने की जगह बना दी। वो तो तूफान खड़ा किए हुए था अंदर।
कामया अब भी उसी स्थिति में बैठी हुई थी। उसने अपने पल्लू को उठाने की जहमत नहीं की थी, और अपने हाथों को स्टियरिंग पर अब भी घुमाकर देख रही थी। लक्खा काका के आने के बाद वो उसकी ओर देखकर मुश्कुराई और कहा- “हाँ… अब क्या?”
लक्खा साइड की सीट पर बैठे हुए थोड़ा सा हिचका था पर फिर थोड़ा सा दूरी बनाकर बैठ गया और बहू को देखता रहा। ब्लाउज़ के अंदर से उसकी गोल-गोल चूचियां जो की बाहर से ही दिख रही थीं, उनपर नजर डालते हुए और गला को तर करते हुए बोला- “जी आप गाड़ी स्टार्ट करें…”
कामया- कैसे? और अपने पल्लू को बड़े ही नाटकीय अंदाज से अपने कंधे पर डाल लिया, ना देखते हुए की उससे कुछ ढका की नहीं?
लक्खा- “जी वो चाबी घुमा के साइड से…” और आँखों का इशारा करते हुए साइड की ओर देखा।
कामया ने भी थोड़ा सा आगे होकर चाबी तक हाथ पहुँचाया और घुमा दिया। गाड़ी एक झटके से आगे बढ़ी और फिर आगे बढ़ी और बंद।
लक्खा ने झट से अपने पैरों को साइड से लेजाकर ब्रेक पर रख दिया और ध्यान से बहू की ओर देखा। लक्खा के ब्रेक पर पैर रखते ही कामया का सारा बदन जल उठा, उसकी जांघों पर अब लक्खा काका की जांघें चढ़ी हुई थीं, और उसकी नाजुक जांघें उनके नीचे थीं। भारी और मजबूत थी उनकी जांघें और हाथ उसके कंधे पर आ गये थे। साड़ी का पल्लू फिर से एक बार उसकी चूचियों को उजागर कर रहे थे, वो अपनी सांसों को नियंत्रण करने में लगे थे। लक्खा ने जल्दी से अपने पैरों को उसके ऊपर से हटाया और गियर पर हाथ लेजाकर उसे न्यूट्रल किया और बहू की ओर देखता रहा। उसकी जान ही अटक गई थी, पता नहीं अब क्या होगा? उसने एक बहुत बड़ी गलती कर दी थी।
पर कामया तो नार्मल थी और बहुत ही सहज भाव से पूछी- “अरे काका हमें कुछ नहीं आता। ऐसे थोड़ी सिखाया जाता है गाड़ी।
लक्खा- “जी जी जी वो…” उसके गले में सारी आवाज ही फँस गई थी। क्या कहे उसके सामने? जो चीज बैठी है, उसको देखते ही उसके होश उड़ गये हैं और क्या कहे कैसे कहे?
कामया- अरे काका, आप थोड़ा इधर आकर बैठो और हमें बताओ की क्या करना है? और ब्रेक वगैरा सब कुछ, हमें कुछ नहीं पता है।
लक्खा- “जी जी…” और लक्खा अपने आपको थोड़ा सा सम्भालता हुआ बहू की ओर नजर गड़ाए हुए उसे बताने की कोशिश करने लगा- “जी वो बांये तरफ वाला अक्सीलिरेटर है, बीच में ब्रेक है, और दायें में क्लच है और बताते हुए उसकी आँखें बहू के उठे हुए उभारों को और उसके नीचे उसे पेट और नाभि तक दीदार कर रही थीं। ब्लाउज़ के अंदर जो उथल पुथल चल रही थी, वो उसे भी दिख रहा था।
पर जो शरीर के अंदर चल रहा था वो तो सिर्फ कामया को ही पता था। उसके निपल टाइट और टाइट हो चुके थे, जांघों के बीच में गीलापन इतना बढ़ चुका था की लग रहा था की सू-सू निकल गई है। पैरों को जोड़कर रखना उसके लिए दूभर हो रहा था। वो अब जल्दी से अपने शरीर में उठ रही अग्नि को शांत करना चाहती थी, और वो आई भी इसीलिए थी।
लक्खा काका की नजर अब उसपर थी, और वो काका को और भी भड़का रही थी। वो जानती थी की बस कुछ ही देर में वो लक्खा के हाथों का खिलौना बन जाएगी, और लक्खा काका उसे भीमा चाचा जैसे ही रौंदकर रख देंगे। वो चाहत जिसके लिए वो हर उस काम को अंजाम दे रही थी जिससे की वो जल्दी से मुकाम को हासिल कर सके।
कामया- उफ़्फऊ… काका एक काम कीजिए आप घर चलिए ऐसे में तो कभी भी गाड़ी चलाना सिख नहीं पाऊँगी।
लक्खा- जी। पर कोशिश तो आपको ही करनी पड़ेगी।
कामया- “जी… पर मैं तो कुछ भी नहीं जानती। आप जब तक हाथ पकड़कर नहीं सिखाऐंगे तो, गाड़ी चलाना तो दूर स्टार्ट करना भी नहीं आएगा…” और अपना हाथ स्टेयरिंग पर रखकर बाहर की ओर देखने लगी।
लक्खा भी सकते में था की क्या करे? वो कैसे हाथ पकड़कर सिखाए? पर सिखाना तो है, बड़े मालिक का आदेश है। वो अपने आपको संभलता हुआ बोला- “आप एक काम करें आक्सीलिरेटर पर पैर आप रखें, मैं ब्रेक और क्लच सम्भालता हूँ, और स्टेयरिंग भी थोड़ा सा देखा लूंगा…”
कामया- “ठीक है…” एकदम से मचलते हुए उसने कहा, और नीचे हाथ लेजाकर चाबी को घुमा दिया और आक्सीलिरेटर पर पैर रख दिया, दूसरा पैर फ्री था और वो लक्खा काका की ओर देखने लगी।
लक्खा भी नहीं जानता था की अब क्या करे?
कामया- अरे काका, क्या सोच रहे हैं? आप तो बस ऐसा करेंगे तो फिर घर चलिए।
घर चलिए के नाम से लक्खा के शरीर में जैसे जोश आ गया था। अपने हाथों में आई इस चीज को वो नहीं छोड़ सकता, अब चाहे कुछ भी हो जाए, चाहे जान भी चली जाए, वो अब पीछे नहीं हटेगा।
लक्खा ने अपने हाथों को ड्राइविंग सीट के पीछे रखा और थोड़ा सा आगे की ओर झुक कर अपने पैरों को आगे बढ़ाने की कोशिश करने लगा, ताकी उसके पैर ब्रेक तक पहुँच जाएं। पर कहां पहुँचे वाले थे पैर?
कामया लक्खा की इस परेशानी को समझते हुए अपने पल्लू को फिर से ऊपर करते हुए- “अरे काका, थोड़ा इधर आइये तो आपका पैर पहुँचेगा नहीं तो कहां?”
लक्खा- “जी पर वो?”
कामया- “उफफ्फ़… आप तो बस थोड़ा सा टच हो जाएगा तो क्या होगा? आप इधर आइये…” और अपने आपको भी थोड़ा सा दरवाजे की ओर सरका के वो बैठ गई।
अब लक्खा के अंदर एक आवेश आ गया था और वो अपने को रोक ना पाया। उसने अपने लेफ्ट पैर को गियर के उस तरफ कर लिया, और बहू की जांघों से जोड़कर बैठ गया। उसकी जांघें बहू की जांघों को रौंद रही थीं। उसके वजन से कामया की जांघों को तकलीफ ना हो, सोचकर लक्खा थोड़ा सा अपनी ओर हुआ, ताकी बहू अपना पैर हटा सके। पर बहू तो वैसे ही बैठी थी, और अपने हाथों को स्टियरिंग पर घुमा रही थी।
लक्खा ने ही अपने हाथों से उसकी जांघों को पकड़ा और थोड़ा सा उधर कर दिया, और अपनी जांघों को रखने के बाद उसकी जांघों को अपने ऊपर छोड़ दिया। वाह… कितनी नाजुक और नरम सी जांघों का स्पर्श था वो, कितना सुखद और नरम सा। लक्खा ने अपने हाथों को सीट के पीछे लेजाकर अपने आपको अडजस्ट किया और बहू की ओर देखने लगा।
बहू अब थोड़ा सा उससे नीचे थी, उसका आंचल अब भी जगह में नहीं था, उसकी दोनों चूचियां उसे काफी हद तक दिख रही थीं। वो उत्तेजित होता जा रहा था, पर अपने पर काबू किए हुआ था। अपने पैरों को वो ब्रेक तक पहुँचा चुका था, और अपनी पूरी जांघों से लेकर टांगों तक बहू के स्पर्श से अभिभूत सा हुआ जा रहा था। वो अपने नथुनों में भी बहू की सुगंध को बसाकर अपने आपको जन्नत की सैर की ओर ले जा रहा था। बहू लगभग उसकी बाहों में थी और उसे कुछ भी ध्यान नहीं था। वो अपनी स्वप्न-सुंदरी के इतने पास था, वो सोच भी नहीं सकता था।
गाड़ी स्टार्ट थी और गियर पड़ते ही चालू हो जाएगी। लक्खा का दायां हाथ अब गियर के ऊपर था और उसने क्लच दबाकर धीरे से गियर चेंज किया और धीरे-धीरे क्लच को छोड़ने लगा और कहा- “आप धीरे-धीरे आक्सीलिरेटर बढ़ाना…”
कामया- “जी हमम्म्म…”
लक्खा ने धीरे से क्लच को छोड़ा पर आक्सीलिरेटर बहुत कम था सो गाड़ी फिर रुक गई। कामया ने अपनी जगह पर से ही अपना चेहरा उठाकर काका की ओर देखा और कहा- क्या हुआ?
लक्खा- “जी थोड़ा सा और आक्सीलिरेटर दीजिएगा…” और अपने दायें हाथ से गियर को फ्री करके रुका। पर कामया की ओर से कोई हरकत ना देखकर बायें हाथ से उसके कंधे पर थोड़ा सा छूकर कहा- “जी वो गाड़ी स्टार्ट कजिए हमम्म्म आआह्ह…”
कामया- “जी हीहीही…” किसी इठलाती हुई लड़की की तरह से हँसी और झुक कर चाबी को घुमाकर फिर से गाड़ी स्टार्ट की।
लक्खा की हालत खराब थी। वो अपने को अडजस्ट ही कर रहा था, उसका लिंग उसका साथ नहीं दे रहा था। वो अपने आपको आजाद करना चाहता था। लक्खा ने फिर से अपनी धोती को अडजस्ट किया और अपने लिंग को गियर के सपोर्ट पर खड़ा कर लिया, ढीले अंडरवेर से उसे कोई दिक्कत नहीं हुई थी। अब वो गियर चेंज करने वाला ही था की कामया का हाथ अपने आप ही गियर रोड पर आ गया था, ठीक उसके लिंग के ऊपर था। जरा सा नीचे होते ही उसके लिंग को छू जाता। लक्खा थोड़ा सा पीछे हो गया और अपने हाथों को बहू के हाथों पर रख दिया और जोर लगाकर गियर चेंज किया और धीरे से क्लच छोड़ दिया गाड़ी आगे की ओर चल दी।
लक्खा- “जी थोड़ा सा और आक्सीलिरेटर दबाइए हमम्म्म…” उसकी गरम-गरम सांसें अब कामया के चेहरे पर पड़ रही थीं।
उधर र कामया की तो हालत ही खराब थी। वो जानती थी की वो किस परिस्थिति में है, और उसे क्या चाहिए? उसने अपने आप पर से नियंत्रण हटा लिया था और सब कुछ काका के हाथों में सौंप दिया था। उसकी सांसें अब उसका साथ नहीं दे रही थीं, उसके कपड़े भी जहां तहां हो रहे थे, उसके ब्लाउज़ के अंदर से उसकी चूचियां उसका साथ नहीं दे रही थीं। वो एक बेसुध सी काया बनकर रह गई थी, जो की बस इस इंतेजार में थी की लक्खा काका के हाथ उसे सहारा दें। वो बेसुधी में ही अपनी आँखें आगे की ओर गड़ाए हुए स्टियरिंग को किसी तरह से संभाले हुये थी। गाड़ी कभी इधर कभी उधर जा रही थी।
लक्खा का बायां हाथ तो अब बहू के कंधे पर ही आ गया था, और उस नाजुक सी काया का लुत्फ ले रहा था और दायां हाथ कभी उसके हाथों को स्टियरिंग में मदद करता, तो कभी गियर चेंज करने में। वो भी अपनी स्थिति से भली भांति परिचित था, पर आगे बढ़ने की कोशिश भी कर रहा था। पूरी थाली सजी पड़ी थी, बस हाथ धोकर श्री गणेश करना बाकी था। हाँ बस औपचारिकता ही उन्हें रोके हुए थी।
लक्खा अपने दायें हाथ से कामया का हाथ पकड़कर स्टियरिंग को डाइरेक्ट कर रहा था और अपने बायें हाथ से कामया के कंधों को अब जरा आराम से सहला रहा था। उसकी आँखें बहू की ओर ही थीं, और कभी-कभी बाहर ग्राउंड पर भी उठ जाती थीं। पर बहू की ओर से कोई भी ना-नुकर ना होने से उसके मन को वो और नहीं समझा सका। उसका बायां हाथ अब उसके कंधों से लेकर उसकी चूचियों तक को छूने लगे थे। पर बड़े ही प्यार से और बड़े ही नाजुक तरीके से वो उस स्पर्श का आनंद ले रहा था। उसका बायां हाथ अब थोड़ा सा आगे की ओर उसकी गर्दन तक आ जाता था, और उसके गले को छूते हुए फिर से कंधों पर पहुँच जाता था।
लक्खा अपने को उस सुंदरता पर मर मिटने को तैयार कर रहा था। उसकी सामने अब बहू थी, तेज चल रही थी, वो थोड़ा सा झुक कर कामया के बालों की खुशबू भी अपने अंदर उतार लेता था, और वो फिर से उसके कंधों पर ध्यान कर लेता था। उसके हाथ फिर से बहू के कंधों को छूते हुए गले तक पहुँचे थे, की छोटी उंगलियों को उसने और भी फैलाकर उसकी चूचियों के ऊपर छूने की कोशिश करने लगा था। और उधर कामया काका की हर हरकत को अपने अंदर समेटकर अपनी आग को और भी भड़काकर जलने को तैयार थी।
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उसके पल्लू ने तो कब का उसका साथ छोड़ दिया था। उसकी सांसें भी उखड़-उखड़ कर चल रही थीं। लक्खा के हाथों का कमाल था की उसके मुख से अब तक रोकी हुई सिसकारी एक लम्बी सी ‘आआह्ह’ बनकर बाहर निकल ही आई, और उसका बायां हाथ स्टियरिंग से फिसलकर गियर रोड पा आ गया। ठीक गियर रोड के साथ ही लक्खा अपने लिंग को टिकाए हुए था। बहू की उंगलियां उससे टकराते ही लक्खा का दायां हाथ बहू के ब्लाउज़ के अंदर और अंदर उतर गया, और उसके हाथों में वो जन्नत का मजा, या कहिए रूई का वो गोला आ गया था। जिसे वो बहुत देर से अपनी आँखें टिकाए देख भर रहा था।
वो थोड़ा सा आगे हुआ और अपने लिंग को बहू की उंगलियों को चुवा भर दिया और अपने दायें हाथ से बहू की चूचियों को दबाने लगा था। और कामया के हाथों में जैसे कोई मोटा सा रोड आ गया था। वो अपने हाथों को नीचे और नीचे ले गई थी, और लिंग को धोती के ऊपर से कसकर पकड़ लिया, जो उसकी हथेली में नहीं आ रहा था। पर गरम बहुत था कपड़े के अंदर से भी उसकी गर्मी वो महसूस कर रही थी। वो गाड़ी चलना भूल गई थी, ना ही उसे मालूम था की गाड़ी कहां खड़ी थी, उसे तो बस पता था की उसके ब्लाउज़ के अंदर एक बलिष्ठ सा हाथ उसकी चूचियों को दबा-दबाकर उसके शरीर की आग को बढ़ा रहा था और उसके हाथों में एक लिंग था, जिसके आकार का उसे पता नहीं था। उसके चेहरे को देखकर कहा जा सकता था की उसे जो चाहिए था, वो उसे बस मिलने ही वाला था।
तभी उसके कानों में एक आवाज आई- “आप बहुत सुन्दर हैं…” यह काका की आवाज थी, बहुत दूर से आती हुई और उसके जेहन में उतरती चली गई।
कामया का बायां हाथ भी अब उठकर काका के हाथों का साथ देने लगा था। उसके ब्लाउज़ के ऊपर से काका का दूसरा हाथ यानी की दायां हाथ अब कामया की दाईं चूची को ब्लाउज़ के ऊपर से दबा रहा था और होंठों से कामया के गले और गालों को गीला कर रहा था। कामया सब कुछ भूलकर अपने सफर पर रवाना हो चुकी थी, और काका के हाथों का खिलौना बन चुकी थी। वो अपने शरीर के हर हिस्से में काका के हाथों का इंतेजार कर रही थी, और होंठों को घुमाकर काका के होंठों से जोड़ने की कोशिश कर रही थी।
लक्खा ने भी अपनी बहू को निराश नहीं किया, और उसके होंठों को अपने होंठों में लेकर अपनी प्यास बुझानी शुरू कर दी। अब तो गाड़ी के अंदर जैसे तूफान सा आ गया था की कौन सी चीज पकड़े या किस पर से हाथ हटाए? या फिर कहां होंठों को रखे, या फिर छोड़े? दोनों एक दूसरे से गुंथ से गये थे। कामया की पकड़ काका के लिंग पर बहुत कस गई थी और वो उसे अपनी ओर खींचने लगी थी।
पर लक्खा क्या करता? वो बायें हाथ से अपनी धोती को ढीला करके अपने अंडरवेर को भी नीचे कर दिया और फिर से बहू के हाथों को पकड़कर अपने लिंग पर रख दिया और फिर से बहू के होंठों का रसपान करने लगा। बायें हाथ से उसने कब कामया की साड़ी ऊपर उठा दी थी, उसे पता ही नहीं चला। पर हाँ, उसके पत्थर जैसी हथेली का स्पर्श जैसे ही उसकी जांघों और टांगों पर हुआ, वो अपनी जांघों को और नहीं जोड़कर रख सकी थी। वो अपने आपको काका के सुपुर्द करके मुख को आजाद करके सीट के हेड-रेस्ट पर सिर रखकर जोर-जोर से सांसें ले रही थी। और लक्खा अपने हाथों में आई इस चीज का पूरा लुत्फ उठा रहा था।
तभी अचानक ही लक्खा अपनी सीट से अलग होकर जल्दी से बाहर की ओर लपका और घूमकर अपनी ढीली धोती और अंडरवेर को संभलता हुआ ड्राइविंग सीट की ओर लपका और एक झटके में ही दरवाजा खोलकर बहू को खींचकर उसके टांगों को बाहर निकाल लिया, और उसकी जांघों और टांगों को चूमने लगा।
कितनी सुंदर और सुडौल टाँगें थी बहू की, और कितने चिकने और नरम उऊफ… वो अपने हाथों को बहू के पेटीकोट के अंदर तक बिना किसी झिझक के ले जा रहा था और एक झटके में उसकी पैंटी को खींचकर बाहर भी निकाल भी लिया और देखते ही देखते उसकी जांघों को किस करते हुए उसकी योनि तक पहुँच गया,
और कामया ने अपने जीवन का पहला अनुभव किया, अपनी योनि को चूमने का। उसका पूरा शरीर जबाब दे गया था और उसके मुख से एक लम्बी सी सिसकारी निकली, और वो बुरी तरह से अपने आपको काका की पकड़ से छुड़ाने की कोशिश करने लगी थी।
पर कहां काका की पकड़ इतनी मजबूत थी की वो कुछ भी ना कर पाई। हाँ… इतना जरूर था की उसकी चीख अब उसके बस में नहीं थी, वो लगातार अपनी चीख को सुन भी सकती थी, और उसके सुख का आनंद भी ले सकती थी। उसे लग रहा था की जैसे उसका हार्ट फेल हो जाएगा। उसके अंदर उठ रही अम-अग्नि अपने चरम सीमा पर पहुँच चुकी थी, और वो काका की जीभ और होंठों का जवाब ढूँढ़ती और अपने को बचाती वो काका के हाथों में ढेर हो गई।
पर काका को कहां चैन था? वो तो अब भी अपने होंठों को बहू की योनि में लगाकर उसके जीवन का अमृत पी रहा था, उसका पूरा चेहरा बहू की योनि से निकलने वाले रस से भर गया था, और वो अपने चेहरे को अब भी उसपर घिस रहा था। कामया जो की अब तक अपने को संभालने में लगी थी, उसे नहीं पता था की वो किस परिस्थिति में है? हाँ, पता था तो बस एक बात की वो एक ऐसे जन्नत के सफर पर है, जिसका की कोई अंत नहीं है, उसके शरीर पर।
अब भी झटके से उसकी योनि से रस अब तक निकल रहा था और अपनी योनि पर उसे अभी तक काका के होंठों का और जीभ का एहसास हो रहा था। उसकी जांघों पर जैसे कोई सख़्त सी चीज ने जकड़ रखा था और उसकी पकड़ इतनी बजबूत थी कि वो चाहकर भी अपनी जांघों को हिला नहीं पा रही थी।
और उधर लक्खा अपनी जीभ को अब भी बहू की योनि के अंदर आगे पीछे करके अपनी जीभ से बहू के अंदर से निकलते हुए रस को पी रहा था, जैसे कोई अमृत मिल गया हो, और वो उसका एक भी कतरा बरबाद नहीं करना चाहता था। उसके दोनों हाथ बहू की जांघों के चारों और कस के जकड़े हुए थे, और वो बहू की जांघों को थोड़ा सा खोलकर सांस लेने की जगह बनाने की कोशिश कर रहा था। पर बहू की जांघों ने उसके सिर को इतनी जोर से जकड़ रखा था की वो अपनी पूरी ताकत लगाकर भी उसकी जांघों को अलग नहीं कर पा रहा था।
वो इससे ही अंदाजा लगा सकता था की बहू कितनी उत्तेजित है, या फिर कितना मजा आ रहा है।
लक्खा अपने को और भी बहू की योनि के अंदर घुसा लेना चाहता था। पर उसने अपने को छुड़ाने की कोशिश में एक झटके से अपना चेहरा उसकी जांघों से आजाद कर लिया, और बाहर आकर सांस लेने लगा। तब उसकी नजर बहू पर पड़ी, जो की अब भी ड्राइविंग सीट पर लेटी हुई थी, और जांघों तक नंगी थी। उसकी सफेद और सुडौल सी जांघें और पैर बाहर कार से लटके हुए थे। दूर से आ रही रोशनी उसके नंगे शरीर को चार चाँद लगा रहे थे। लक्खा का पूरा चेहरा बहू के रस से भीगा हुआ था और वो अब भी बहू को एक भूखे शेर की तरह देख रहा था, और अपने मजबूत हाथों से उसकी जांघों को और उसके पैरों को सहला रहा था। बहू का चेहरा उसे नहीं दिख रहा था, वो अंदर कहीं शायद गियर रोड के पास नीचे की ओर था। लक्खा उठा और सहारा देकर बहू को थोड़ा सा बाहर खींचा, ताकी बहू का सिर किसी तरह से सीट पर आ जाए।
लक्खा को अपने नौकर होने का एहसास अब भी था। वो नहीं चाहता था की बहू को तकलीफ हो, पर अपनी वासना को भी नहीं रोक पा रहा था। उसने एक बार बहू की ओर देखा और उठ खड़ा हुआ, और अपनी धोती से अपना चेहरा पोंछा और थोड़ा सा अंदर घुसकर बहू की ओर देखने लगा। बहू अब भी शांत थी, पर उसके शरीर से अब भी कई झटके उठ रहे थे। बीच-बीच में थोड़ा सा खांस भी लेती थी। पर काका को अचानक ही अपने ऊपर झुके हुए देखकर वो थोड़ा सा सचेत हो गई, और अपनी परिस्थिति का अंदाज लगाने लगी।
काका का चेहरा बहुत ही सख्त सा दिखाई दे रहा था, उस अंधेरे में भी उसे उनकी आँखों में एक चमक दिखाई दे रही थी। उसके पैरों पर अब थोड़ा सा ठंड का एहसास उसे हुआ तो वो अपने पैरों को मोड़कर अपने नंगेपन को छुपाने की कोशिश की।
तब काका ने उसके कंधों को पकड़कर थोड़ा सा उठाया और कहा- “बहू…”
कामया- चुप थी।
काका ने जब देखा की कामया की ओर से कोई जबाब नहीं है तो, वो बाहर आया और अपने हाथों से कामया को सहारा देकर बैठा लिया। काका जो की बाहर खड़ा था और लगभग कामया के चेहरे तक उसकी कमर आ रही थी, कामया के बैठे ही उसने कामया को कंधे से जकड़कर अपने पेट से चिपका लिया।
कामया भी काका की हरकत को जानकर अपने को रोका नहीं। पर जैसे ही वो काका के पेट से लगी तो उसके गले पर एक गरम सी चीज टकराई, गरम बहुत ही गरम। उसने अपने चेहरे को नीचे करके उस गरम चीज को अपने गले और ठोड़ी के बीच में फँसा लिया, और हल्के से अपने ठोड़ी को हिलाकर उसके एहसास का मजा लेने लगी। कामया के शरीर में एक बार फिर से उत्तेजना की लहर उठने लगी थी और वो वैसे ही अपने गले और ठोड़ी को उस चीज पर घिसती रही।
उधर लक्खा अपने लिंग के अकड़पन को अब ठंडा करना चाहता था। वो उत्तेजित तो था ही, पर बहू की हरकत को वो और नहीं झेल पा रहा था। वो भी बहू को अपनी कमर पर कसकर जकड़ लिया और अपनी कमर को बहू के गले और चेहरे पर घिसने लगा। वो अपने लिंग को शायद अच्छे से दिखा लेना चाहता था, की देख किस चीज पर आज हाथ साफ किया है? या कभी देखा है इतनी सुंदर हसीना को? या फिर तेरी जिंदगी का वो लम्हा शायद फिर कभी भी ना आए इसलिए देख ले।
और उधर कामया की हालत फिर से खराब होने लगी थी। वो अपने चेहरे पर और गले और गालों पर काका के लिंग के एहसास को झुठला नहीं पा रही थी, और वो भी अपने आपको काका के और भी नजदीक ले जाना चाहती थी। उसने अपने दोनों हाथों को काका की कमर में चारों ओर कस लिया और खुद ही अपने चेहरे को उनके लिंग पर घिसने लगी थी। पहली बार। जिंदगी में पहली बार वो यह सब कर रही थी, और वो भी अपने घर के ड्राइवर के साथ। उसने अपने पति का लिंग भी कभी अपने चेहरे पर नहीं घिसा था, या शायद कभी मौका ही नहीं आया था। पर हाँ… उसे अच्छा लग रहा था, उसकी गर्मी के एहसास को वो भुला नहीं पा रही थी। उसके शरीर में एक उत्तेजना की लहर फिर से दौड़ने लगी थी। उसकी जांघों के बीच में फिर से गुदगुदी सी होने लगी थी। ठंडी हवा उसकी जांघों और, योनि के द्वार पर अब अच्छे से टकरा रही थी। और वो अपने चेहरे को घिस कर अपने आपको फिर से तैयार कर रही थी।
उसके होंठ भी कई बार काका के लिंग को छू गये थे, पर सिर्फ टच और कुछ नहीं। उसके होंठों का टच होना और लक्खा के शरीर में एक दीवानेपन की लहर और उसपर उसका वहसीपन और भी बढ़ गया था। वो अपने लिंग को अब बहू के होंठों पर बार-बार छूने की कोशिश करने लगा था। वो अपने दोनों हाथों से एक बार फिर बहू की पीठ और बालों को सहलाने के साथ उसकी चूची की ओर ले जाने की कोशिश, बहू के उसकी कमर के चारों ओर चिपके होने से उसे थोड़ी सी मसक्कत करनी पड़ी। पर हाँ… कामयाब हो ही गया वो, अपने हाथों को बहू की चूचियों पर पहुँचने में।
ब्लाउज़ के ऊपर से ही वो उनको दबाने लगा और उनके मुलायमपन का आनंद लेने लगा। एक तरफ तो वो बहू की चूचियों से खेल रहा था और दूसरी तरफ वो अपने लिंग को बहू के होंठों पर घिसने की कोशिश भी कर रहा था। उसके हाथ अब उसके इशारे पर नहीं थे, बल्की उसको मजबूर कर रहे थे की बहू की चूचियों को अंदर से छुए तो वो अपने हाथों से बहू के ब्लाउज़ के बटनों को खोलकर एक ही झटके से उसकी ब्रा को भी आजाद कर लिया, और उसकी दोनों चूचियों को अपने हाथों में लेकर तौलने लगा उसके निपलों को भी अपनी उंगलियों के बीच में लेकर हल्के सा दबाने लगा।
नीचे बहू के मुख से एक हल्की सी सिसकारी ने उसे और भी बलिष्ठ बना दिया था और वो अपनी उंगलियों के दबाब को उसके निपलों पर और भी ज्यादा जोर से मसलने लगा था। बहू की सिसकारी अब धीरे-धीरे बढ़ने लगी थी, और उसका चेहरा भी अब कुछ ज्यादा ही उसके पेट पर घिसने लगा था। लक्खा अपने हाथों का दबाब खड़े-खड़े उसकी चूचियों पर भी बढ़ाने लगा था, और अब तो कुछ देर बाद वो उन्हें मसलने लगा था। बहू के मुख से निकलने वाली ‘सीऽ सी…’ अब थोड़ी बहुत दर्द भी लिए हुए थी। पर बहू मना कुछ नहीं कर रही थी, बल्की बहू की पकड़ उसकी कमर पर और भी ज्यादा होती जा रही थी, और उसका चेहरा भी उसके ठीक लिंग के ऊपर और उसके लिंग के चारों तरफ कुछ ज्यादा ही इधर-उधर होने लगा था।
लक्खा काका ने एक बार नीचे बहू की ओर देखा और जोर से उसकी चूचियों को दबा दिया दोनों हाथों से, और जैसे ही उसका मुख से ‘आआह्ह’ निकली काका ने झट से अपने लिंग को उसके सुंदर और सांस लेने की लिए खुले होंठों के बीच में रख दिया और एक झटका से अंदर गुलाबी होंठों में फँसा दिया।
कामया के तो होश ही गुम हो गये। जैसे ही उसके मुख में काका का लिंग घुसा, उसे घिन सी आई और वो अपने आपको आजाद करने की कोशिश करने लगी, और अपने मुख से काका के लिंग को निकालने में लग गई थी। पर काका की पकड़ इतनी मजबूत थी की वो अपने आपको उनसे अलग तो क्या हिला तक नहीं पाई थी। काका का एक हाथ अब उसके सिर के पीछे था और दूसरे हाथ से उसके कंधों को पकड़कर उसे अपने लिंग के पास और पास खींचने की कोशिश कर रहे थे।
कामया का सांस लेना दूभर हो रहा था। उसकी आँखें बड़ी-बड़ी हो रही थीं और वो अपने को छुड़ा ना पाकर ऊपर काका की ओर बड़ी दयनीय स्थिति में देखने लगी थी। पर काका का पूरा ध्यान अपने लिंग को कामया के मुख के अंदर घुसाने में लगा था, और वो उस परम आनंद को कहीं से भी जाने नहीं देना चाहते थे। वो अपने हाथों का दबाब बहू के सिर और कंधे पर बढ़ाते ही जा रहे थे, और अपने लिंग को उसके मुँह में अंदर-बाहर धीरे से करते जा रहे थे।
कामया जो की अपने को छुड़ाने में असमर्थ थी अब किसी तरह से अपने मुख को खोलकर उस गरम चीज को अपने मुख में अडजस्ट करने की कोशिश करने लगी थी।
घिन के मारे उसकी जान जा रही थी और काका के लिंग के आस पास उगे बालों पर से एक दुर्गंध आ रही थी, जिससे की उसे उबकाई भी आ रही थी। पर वो बेबस थी। वो काका जैसे बलिष्ठ इंसान से शक्ति में बहुत कम थी। वो किसी तरह से अपने होंठों को अडजस्ट करके उनके लिंग को उनके तरीके से अंदर-बाहर होने दे रही थी। पर जैसे ही उसने अपने मुख को खोलकर काका के लिंग को अडजस्ट किया, काका और भी वहशी से हो गये थे। वो अब जोर का झटका देते थे की उसके गले तक उनका लिंग चला जाता था, और फिर थोड़ा सा बाहर की ओर खींचते थे, तो कामया को थोड़ा सा सुकून मिलता था।
काका अपनी गति से लगे हुए थे और कामया अपने को अडजस्ट करने में। पर ना जाने क्यों थोड़ी देर बाद कामया को भी इस खेल में मजा आने लगा था। वो अब उतना विरोध नहीं कर रही थी बल्की काका के धक्के के साथ ही वो अपने होंठों को जोड़े ही रखी थी और धीरे-धीरे काका के लिंग को अपने अंदर मुख में लेते जा रही थी। अब तो वो अपनी जीभ को भी उनके लिंग पर चलाने लग गई थी। उसे अब उबकाई नहीं आ रही थी, और ना ही घिन ही आ रही थी। उसके शरीर से उठ रही गंध को भी वो भूल चुकी थी और तल्लीनता से उनके लिंग को अपने मुँह में लिए चूस रही थी।
लक्खा ने जैसे ही देखा की बहू अब उसके लिंग को चूस रही है और उसे कोई जोर नहीं लगाना पड़ रहा है तो उसने अपने हाथ का दबाव उसके सिर पर ढीला छोड़ दिया और अपनी कमर को आगे पीछे करने में ध्यान देने लगा। उसका लिंग बहू के छोटे से मुख में लाल होंठों से लिपटा हुआ देखकर वो और भी उत्तेजित होता जा रहा था। वो अब किसी भी कीमत पर बहू की योनि के अंदर अपने आपको उतार देना चाहता था। वो जानता था की अगर बहू के मुख में वो ज्यादा देर रहा तो वो झड़ जाएगा और वो मजा वो उसकी योनि पर लेने से वंचित रह जाएगा।
वो जल्दी से बहू के कंधों को पकड़कर एक झटके से उठाया और अपने होंठों को उसके होंठों से जोड़ दिया, और उसके लाल-लाल होंठों को अपने मोटे और भौड़े से होंठों की भेंट चढ़ा दिया। वो पागलों की तरह से बहू के होंठों को चूस रहा था, और अपनी जीभ से भी उसके मुख की गहराई को नाप रहा था। कामया जब तक कुछ समझती तब तक तो काका उसे अपने होंठों से जोड़ चुके थे, और पागलों की तरह से किस कर रहे थे। किस के छूटते ही वो बहू के ऊपर थे और काका का लिंग उसकी योनि के द्वार पर था और एक ही झटके में वो उसके अंदर था।
काका के मजे का लगाता था की आज इंतेहाँ था, या फिर उनके पुरुषार्थ को दिखाने का समय, या फिर बहू को भोगने का उतावलापन। जिससे वो भूल चुका था की वो उस घर का एक नौकर है, और जो आज उसके साथ है, वो मालेकिन है, एक बड़े घर की बहू। उसे तो लग रहा था की उसके हाथों में जो थी वो एक औरत है और सिर्फ औरत। जिसके जिश्म का वो दीवाना था और जैसे चाहे वैसे उसे भोग सकता था।
वो बहू को बोनट पर चित्त लिटाकर अपने लिंग को उसकी योनि के द्वार पर रखकर एक जोरदार धक्के के साथ उसके अंदर समा गया। उसके अंदर घुसते ही बहू के मुख से एक चीत्कार निकली, जो की उस सूनसान ग्राउंड के चारों ओर फैल गई और शायद गाड़ियों की आवाज में दबकर कहीं खो गई। दुबारा धक्के के साथ ही लक्खा अपने होंठों को कामया के होंठों पर ले आया और किसी पिस्टन की भांति अपनी कमर से धक्के पर धक्के लगाने लगा।
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