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अनसुने से जज़्बात
कुछ बह जाते हैं तो कुछ थम जाते हैं...?
अनकहे से अल्फ़ाज़
कुछ छिप जाते हैं तो कुछ दिख जाते हैं...?
अनदेखे से ख्वाब
कुछ धुंधला जाते हैं तो कुछ आंखों के पर्दे पर छा जाते हैं...?
अनसोचे से ख्याल
कुछ उलझा जाते हैं तो कुछ तरो ताज़ा कर जाते हैं....?
अनसुलझे से रहस्य
कुछ सीने में दफ़न हो जाते हैं तो कुछ झुँझला जाते हैं....
अनजान रिश्ते
कुछ बेनाम रह जाते हैं तो कुछ बदनाम हो जाते हैं....
?
अधजले अरमान
कुछ ख़ाक हो जाते हैं तो कुछ सुलगा जाते हैं
✍️✍️
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बड़ी तब्दीलियाँ आईं हैं
अपने आप में लेकिन...
तुझे याद करने की
वो आदत नहीं गयी..
❤ ❤
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?? तुम ?…तुम और सिर्फ तुम…
लो ख़त्म हुइ मेरी दास्तान…??
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इश्क अगर खाक न कर दे,
तो समझो खाक हुआ इश्क !!
❤
❤
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*#वजूद ...... कितना भी हसीन हो*
*बाज़ी तो ...... किरदार ही ले जाता है?*
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•
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::#न जाने कैसे आग लग गई बहते हुए पानी में…
हमने तो बस कुछ खत बहाऐ थे उसके नाम के?
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::#न जाने कैसे आग लग गई बहते हुए पानी में…
हमने तो बस कुछ खत बहाऐ थे उसके नाम के?
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#सिर्फ अल्फाज और लफ्ज ही नहीं,
मेरी खामोशियाँ भी तुझे बुलाती है? ...!!!
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उलटी ही चाल चलते है, ये इश्क वाले....
आँखों को बंद करते है, दीदार के लिए..!!?
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तू ही बता ए दिल कि तुझे समझाऊं कैसे,
जिसे चाहता है तू उसे नज़दीक लाऊँ कैसे,
यूँ तो हर तमन्ना हर एहसास है वो मेरा,
मगर उस एहसास को ये एहसास दिलाऊं कैसे।
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35>
दीदी मेरे पीछे से उतर कर बॅग हाथ में लिए घर के अंदर जा रही थी, उसकी चाल कुच्छ बदली-2 सी देख भाभी को कुच्छ शक़ हुआ लेकिन उन्होने कुच्छ कहा नही..
हमें घर पहुँचते-2 शाम के 4 बज गये थे, तो भाभी ने हमें चाय नाश्ता दिया, क्योंकि खाने का तो ये समय ही नही था..
दीदी नाश्ता करके अपने कमरे में आराम करने चली गयी… वो बहुत थकान महसूस कर रही थी…
अब मे और भाभी ही रह गये तो वो मुझे अपने कमरे में ले गयी, और हम दोनो पलंग पर लेटे-लेटे बात करने लगे…
भाभी – और सूनाओ लल्ला… कैसा रहा तुम्हारा शहर का सफ़र… बड़े देवर्जी ने कुच्छ खातिर-वातिर की अपने छोटे भाई बेहन की या ऐसे ही टरका दिया…
मे – अरे भाभी ! पुछो मत ! क्या रूतवा है भैया का… पोलीस वाले उनके आगे-पीछे घूमते हैं…
और फिर मेने वहाँ भैया के साथ जो-जो खरीदारी की वो सब बताया, फिर दूसरे दिन मूवी देखी..
भाभी – अच्छा लल्लाजी ! अब मे जो पुच्छू.. उसका सच-सच जबाब दोगे..?
मे – क्या भाभी ! आपको लगता है कि मे आपसे कभी झूठ भी बोल सकता हूँ..?
वो – नही ! ऐसा अब तक तो नही हुआ है… पर ये सवाल ही ऐसा है कि शायद इसका तुम जबाब ही ना देना चाहो…!
मे – आप निश्चिंत रहो भाभी.. मेरे जीवन में आपसे बढ़कर ऐसी कोई बात नही है जो मे आपसे शेयर ना कर पाउ…आप पुछिये क्या पुच्छना है…
वो – मुझे शक़ है कि तुम्हारे और रामा के बीच ऐसा कुच्छ हुआ है, जो मुझे पता नही है…
आज जब वो बाइक से उतरकर अंदर आ रही थी, तो उसकी चाल कुच्छ बदली-2 सी लग रही थी… ये कहकर वो मुझे स्वालिया नज़रों से घूर्ने लगी..
मे कुच्छ देर चुप रहा और फिर नज़रें नीची करके बोला - सॉरी भाभी ! आज से पहले तो ऐसा कुच्छ नही था हम दोनो के बीच पर आज ही………..
वो – हां बोलो ! आज ही क्या…? बताओ मुझे.. वो मेरा हाथ अपने हाथ में लेकर बोली…
मे – आज से पहले हम दोनो के बीच बस कुच्छ बराबर के लड़को-लड़कियों जैसी थोड़ी बहुत छेड़-छाड़ होती रहती थी, जो मेरे लिए तो बस एक नॉर्मल भाई-बेहन वाली ही छेड़-छाड़ जैसी थी, लेकिन दीदी की भावना कुच्छ अलग ही थी मेरे लिए…
कल जब हम मूवी देख रहे थे तब….और फिर मेने जो भी हम दोनो के बीच हुआ, और फिर दीदी ने जो बताया वो सब मेने भाभी को बता दिया… जिसे सुनकर वो एकदम सकते में आ गयी….
फिर मेने आज जो कुच्छ हम दोनो के बीच हुआ वो भी सब बता दिया…उसके बाद रास्ते में जो हमारी बातें हुई वो भी बता दी…. तब जाकर उनको थोड़ा तसल्ली हुई..
मे – अब आप ही बताओ भाभी इसमें मेने कुच्छ ग़लत किया…?
कुच्छ देर वो चुप-चाप मेरे चेहरे को देखती रही… फिर कुच्छ सोच कर बोली – वैसे एक तरह से देखा जाए, तो रामा भी अपनी जगह सही है…
आख़िर उसकी भी उम्र ये सब करने की है ही, और ज़्यादातर लड़के लड़कियाँ इस उम्र में बहक कर ग़लत-सलत कदम उठा लेते हैं.. जिससे कभी-2 बदनामी का भी डर पैदा हो जाता है..
लेकिन अब तुम दोनो एक लिमिट में रह कर ही ये सब आगे करना, वैसे मे उससे भी बात करूँगी… पर तुम भी ये बात ध्यान रखना… कि अब अपना वीर्य उसके अंदर कभी मत छोड़ना… ठीक है..
फिर उन्होने मेरे होठों पर एक किस करके कहा – अब तुम थोड़ा अपने कॉलेज पर ध्यान दो, कल से रेग्युलर क्लास अटेंड करना…
फिर थोड़ा स्माइल करते हुए बोली - और हां ! समय निकाल कर थोड़ा छोटी चाची के पास चले जाया करो..
मे – क्यों ? उनको मुझसे क्या काम है.. मेने आपको बताया था ना, उनके बारे में..
वो – इसी लिए तो कह रही हूँ… मेरे अनाड़ी बलम… उन्हें तुम्हारी ज़रूरत है..शादी के इतने सालों बाद भी वो माँ नही बन पाई.. बेचारी अधूरी सी हैं…तो तुम थोड़ा कोशिश करो…प्लीज़… उन्हें भी खुशी होगी.
मे – क्या आप भी यही चाहती हैं..?
वो – मे भी यही चाहती हूँ… इसलिए तो कह रही हूँ… बोलो ! दोगे ना उन्हें ये खुशी…
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कुछ देर का इंतज़ार मिला हमको,
पर सबसे प्यारा यार मिला हमको...
तेरे बाद किसी और की ख्वाइश न रही,
क्योंकि तेरे प्यार से सब कुछ मिला हमको..
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तू ही बता ए दिल कि तुझे समझाऊं कैसे,
जिसे चाहता है तू उसे नज़दीक लाऊँ कैसे,
यूँ तो हर तमन्ना हर एहसास है वो मेरा,
मगर उस एहसास को ये एहसास दिलाऊं कैसे।
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?वही रिश्ते हमेशा
लाजवाब होते है.....
जो कभी एहसानों से नहीं
एहसासो से बने होते है.....?
रिश्ते जरूरतों के हो तो ?
मजबूर करते हैं....
रिश्तें जज्बातों के हो तो
मजबूत करते है...
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???मर्जी से जीने की बस ख्वाहिश की थी मैंने,
और वो कहते हैं कि खुदगर्ज़ बन गए हो तुम... ??
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यहां सबको सबकुछ रहबर नहीं देता।
जिसे दिल देता है उसे घर नहीं देता।
प्यास की भी अपनी हैसियत होती है-
अजी उसकी तृप्ति समंदर नहीं देता।
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36>
वो – मे भी यही चाहती हूँ… इसलिए तो कह रही हूँ… बोलो ! दोगे ना उन्हें ये खुशी…
मे – मेरी भाभी का हुकुम सर आँखों पर… फिर मेने उनको अपनी बाहों में कस लिया और बोला –
पहले अपनी डार्लिंग भाभी को तो खुशी दे दूं, ये बोलकर उनके होठ चूसने लगा……!
फिर हम दोनो ही अपना आपा खोते चले गये, दीं दुनिया से बेख़बर एक दूसरे में समाते चले गये..… !
दूसरे दिन मे अपनी बुलेट से कॉलेज पहुँचा… कॉलेज की नयी बिल्डिंग भी हमारे पुराने कॉलेज से ही सटी हुई थी… बस गेट ही अलग था…
कॉलेज का ये पहला ही साल था… और ज़्यादातर हमारे कॉलेज से पास हुए बच्चे ही थे.. तो सभी जानते ही थे…
मुझे बुलेट पर देख कर सारे फ्रेंड्स ने मुझे घेर लिया, और गाड़ी की खुशी में पार्टी माँगने लगे.. तो मुझे सभी को चाय नाश्ता कराना पड़ा…
अभी भी अड्मिशन चल ही रहे थे.. कॉलेज के प्रिन्सिपल मेरे पिताजी के मित्र थे.. और उपर से मे अपने कॉलेज का टॉपर था…
तो उन्होने मुझे अपने ऑफीस में बुलाया और मुझसे थोड़ा कॉलेज के कामों में मदद करते रहने के लिए कहा..
क्लास तो अभी लगने नही थे, तो टीचर्स के साथ इंटरॅक्षन वग़ैरह कर-करके मे जल्दी ही वापस घर लौट आया….
अभी गाड़ी स्टॅंड की ही थी, कि भाभी बोली – लल्लाजी.. थोड़ा छोटी चाची के यहाँ चले जाओ.. उनको कुच्छ काम है.. शायद बाज़ार जाना है उनको..
मे उल्टे पैर चाची के घर पहुँचा… वो नहा धोकर तैयार हो रही थी.. थोड़ा सा मेक-अप भी किया हुआ था, जैसा गाओं में नॉर्मली औरतें करती हैं..
जैसे क्रीम, पाउडर.. हल्की सी लाली होठों पर, बारीक आँखों में काजल..
इतने में ही चाची चमक रही थी, साड़ी भी थोड़ा कसकर लपेटे हुई थी, जिसमें उनके उभरे हुए कूल्हे कुच्छ ज़्यादा ही मादक लग रहे थे.
मेने जाकर चाची को आवाज़ दी, तो वो अपने कमरे से बाहर आई.. सीने पर साड़ी का पल्लू कस कर कंधे पर पिन किया हुया था.. मेरी नज़र में वो एकदम माल लग रही थी, जिसे अगर मिल जाए तो कोई भी चोदने को तैयार हो जाए..
वो – आगये लल्ला…
मे – जी चाची ! क्या काम था.. बोलिए…?
वो – मुझे थोड़ा बाज़ार जाना था, अब तुम्हारे चाचा तो समय देते नही हैं.. सुबह कॉलेज, फिर खेत….
हो सके तो मेरे साथ थोड़ा बाज़ार तक चलो ना..! इसी बहाने तुम्हारी बुलेट रानी पर बैठने का मौका मिल जाएगा मुझे भी… इतना कह कर वो हँसने लगी..
मे – अरे क्यों नही चाची..! वैसे लगता है आप बाज़ार में आज बिजलियाँ गिराने वाली हो… क्या लग रही हो…, मेने अपने उंगली और अंगूठे को मिलाकर टंच माल का इशारा किया.
वो शर्मा कर सर झुककर मुस्कराते हुए बोली – क्या लल्ला तुम भी कैसी मज़ाक करते हो.. मे ऐसी भी सुंदर नही लग रही…
मे – नही.. चाची सच में आज आप एकदम मस्त माल लग रही हो…
वो – हाए दियाय्ाआ…. लल्ला ! अपनी चाची को ही माल बोल रहे हो… बहुत बिगड़ते जा रहे हो…. लगता है जेठ जी को बोल कर जल्दी ही फेरे करवाने पड़ेंगे तुम्हारे…
मे – अब यहीं खड़े-2 फेरे करवाएँगी मेरे, या बाज़ार भी चलना है….
वो – हां चलो… मे तो एकदम रेडी हूँ… तुम अपनी फट-फटी तो लाओ…
चाची मेरे पीछे एक तरफ को दोनो पैर करके बैठ गयी, और बोली- लल्ला ये तुम्हारी हथिनी जैसी गाड़ी है, थोड़ा संभाल कर च्लना... मुझे तो डर लगता है..
मे – आप चिंता ना करो.. बस आप मुझे पकड़े रहना.. तो उन्होने अपना एक हाथ मेरे कंधे पर रख दिया. और थोड़ी तिर्छि सी होकर बैठ गयी…, मेने गाड़ी बाज़ार की तरफ बढ़ा दी…
अभी गाओं से निकले ही थे, चौथा गियर डाला ही था, कि एक गाय सामने आगयि.., मुझे एक साथ ब्रेक लगाने पड़े, और चाची का वजन मेरे उपर…
उनकी 36” की चुचि जो अभी तक कोई बच्चा ना होने की वजह से अभी भी मस्त ठोस बनी हुई थी मेरी पीठ से दब गयी….
चाची एक साथ डर गयी… और बोली – हाए लल्ला… लगता है मारोगे मुझे आज.. मेने तुम्हारे साथ आकर ग़लती करदी ..
मे – चाची आप डरती बहुत हो… अब ये साइकल तो है नही जो धीरे -2 चलेगी.. ब्रेक तो लगाने ही पड़ते हैं.. आप एक काम करो, मेरी कमर पकड़ लो कस्के..
तो उन्होने मेरी कमर में अपनी बाजू लपेट दी,., और सट कर बैठ गयी.. उनकी चुचियों की चुभन मे अपनी पीठ पर महसूस कर रहा था, जिससे मेरा मूसल चन्द पॅंट में खड़ा होने लगा.
कस्बे का बाज़ार थोड़ी दूर ही था, सो 10 मिनिट में ही बाज़ार पहुँच गये…
चाची अपना समान खरीदने लगी.. सारा समान लेने के बाद वो अंडर गारमेंट की एक छोटी सी दुकान पर पहुँची. चाची की ही उमर का दुकानदार देखते ही बोला..
आइए .. आइए बेहन जी इस बार तो आप काफ़ी दिनों के बाद आई हैं… बोलिए क्या दिखाऊ..?
चाची ने अपनी पुरानी ब्रा बॅग से निकाली… और बोली – भैया मुझे अपने लिए अंगिया और कच्छि लेनी थी…ये अंगिया छोटी हो गयी है, इससे बड़ा साइज़ का दीजिए..
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दुकानदार ने एक बार मेरी ओर देखा, और बोला – अब बहनजी ऐसे अंदाज़े से तो कैसे पता लगेगा.. आप अपना नंबर तो बताइए..
ये पुरानी तो 34 की है… और इसके उपर 36 की ही आती अब वो अगर ढीली, टाइट हुई तो…?
चाची – नही होगी वोही दे दो आप… , एक बार उसने चाची के पल्लू से ढके पपीतों पर नज़र डालते हुए बोला – ठीक है, मुझे क्या है.. मे दे देता हूँ 36 नंबर की ब्रा..
फिर वो दो टाइप की ब्रा निकाल के लाया… एक जो बड़े कप वाली, जिससे चुचियों का अधिकतर हिस्सा ढक सके, और एक ऐसी जिसमें से चुचकों के साथ-साथ उनका निचला हिस्सा ही ढक पाता…
चाची ने बड़े कप वाली ब्रा सेलेक्ट कर ली… जब वो दुकानदार पेंटी लेने अंदर गया.. तो मेने चाची के कान में फुसफुसा कर कहा…
चाची ये दूसरी वाली ब्रा आपको ज़्यादा अच्छी लगेगी… चाची ने मुझे गहरी नज़र से घूरा.. और स्माइल करते हुए बोली – च्चिि.. लल्ला ! इसमें तो कुच्छ ढकेगा ही नही.. उल्टा दिखेगा ज़्यादा..
मे – अरे चाची ! थोड़ा मॉर्डन बनके चाचा के सामने जाओंगी तो उन्हें ज़्यादा अच्छा लगेगा और आपको ज़्यादा प्यार करेंगे ना!
चाची – अरे लल्ला ! उन्हें तो मे बिना कपड़ों के भी…… इतना फ्लो में बोल तो दिया.. फिर शर्मा कर चुप हो गयी.., फिर ना जाने क्या सोच कर उन्होने एक छोटे कप वाली ब्रा भी ले ली…
अबतक दुकानदार दो-तीन तरह की पैंटी लेकर आया, और मेरे इशारे पर उन्होने एक माइक्रो पेंटी भी लेली…
लौटते में चाची ने मुझसे पुछा – लल्ला तुमने किसी को पहले ऐसी कच्छी और अंगिया पहने देखा है..?
चाची का सवाल सुनकर मुझे झटका सा लगा--- मेने हड़बड़ा कर कहा..न.न.नही तो चाची.. मेने तो किसी को नही देखा..
वो – तो फिर तुम्हें कैसे पता कि वो मुझपर अच्छी लगेगी…?
मे –व.वऊू..तो बस ऐसे ही कहा था… छोटे कपड़ों में शरीर ज़्यादा सेक्सी लगता ही है…
उन्होने मेरी पीठ पर हौले से एक थप्पड़ लगाया.. और शायद हँसते हुए… हूंम्म.. करके चुप हो गयी..
मेने उन्हें उनके घर उतारा…जब मे चलने लगा तो वो बोली – लल्ला ! थोड़ा रूको.. कुच्छ खा-पीक चले जाना…
मे – अरे नही चाची.. मे अब घर जाके खाना ही खा लूँगा.. !
वो – हां भाई ! अब घर में इतनी लाड करने वाली भाभी हो तो चाची के हाथ का खाना क्यों अच्छा लगेगा…
मे – ऐसी बात नही है चाची… अच्छा ठीक है, आप चलो.. मे कपड़े चेंज करके 10 मिनिट में आता हूँ, फिर देखता हूँ आप क्या खिलाती हैं.. मुझे..
वो हँसते हुए अपने घर के अंदर चली गयी, और मे अपने घर की तरफ…
घर आकर मेने अपने कपड़े चेंज किए और एक हल्की से टीशर्ट और बिना अंडरवेर के एक हल्का सा होजेरी का लोवर पहन लिया, जिससे गर्मियों की चिप-चिप में थोड़ा कंफर्टबल फील हो..
टाइट जीन्स में सुबह से ही मेरा घोड़ा जो कयि बार टाइट हुआ था उसको भी राहत हुई, और वो अब खुला-खुला फील कर रहा था.
भाभी ने खाने के लिए बोला, क्योंकि अभी लंच का समय था.. मेने कहा मे चाची के यहाँ जा रहा हूँ, उन्होने खाने के लिए बुलाया है.. अब देखते हैं क्या खिलाती हैं..?
भाभी ने मुझे गहरी नज़र से देखा.. लेकिन मेरे चेहरे से उन्हें ऐसा-वैसा कुच्छ नज़र नही आया.. तो फिर हँसती हुई बोली..ठ.हीककक…है, जाओ… आज अपनी चाची का लाड भी देख लो…
मे उनको एक स्माइल देकर घर से निकल आया और चाची के यहाँ पहुँचा…!
चाचा भी कॉलेज से आ गये थे, और खाना खा रहे थे, चाची ने मुझे भी बिताया और खाना दे दिया.. हम दोनो ने साथ-साथ खाना खाया..
कुच्छ देर इधर-उधर की बातें हुई.. फिर चाचा अपने खेतों की ओर चले गये..
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