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09-03-2019, 11:19 AM
दोस्तों ! नमस्कार !
मैं कई कहानियां literotica dot com (किन्ही कारणों से ) अलग अलग नाम से पोस्ट की थी (जैसे की masterji1970, seksyseema, seemawithravi, raviram69 आदि), जो की मैं इस BIG PLATFORM पर पोस्ट करने जा रहा हूँ //
आपसे सहयोग की उम्मीद से ...
आपका
// सुनील पण्डित //
(suneeellpandit)
// raviram69 : संध्या की स्पर्म थेरेपी एक लंबी कहानी //
प्रेषक : रविराम69 © "लॅंडधारी" (मस्तराम मुसाफिर)
Note:
All characters in this story are 18+. This story has adult and incest contents. Please do not read who are under 18 age or not like incest contents. This is a sex story in hindi font, adult story in hindi font, gandi kahani in hindi font, family sex stories
पटकथा: (कहानी के बारे में) :
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रवि ने संध्या की तपती जवानी को शांत किया --एक लंबी कहानी
मम्मी ने मेरे फूफा जी से इस सन्दर्भ में बात की। फ़ूफा जी अक्सर मेरी मम्मी को चोदा करते थे। मैंने छुप कर कई बार देखा था, उनका लंड बहुत मोटा और लम्बा था जो कि मेरी मम्मी को बहुत पसन्द था और मुझे भी !
फूफा ने मम्मी का ब्लाउज खोल दिया। मम्मी की बड़ी-2 चूचियाँ बाहर आ गई।
उनका लंड फूफा जी के लंड से भी बड़ा था लगभग 8" लम्बा और 4" मोटा ! बिल्कुल घोड़े के लंड की तरह था।
इसको देखते ही मेरे मुँह से अनायास निकल गया- ओह माई गॉडऽऽ ! आपका तो लंड बहुत मोटा और लम्बा है... प्रदीप भय्य्य्या...!
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Tags:
बहू बूढ़े बहुत चोदा चुचियों छाती चोली पहनी थी चोली काफ़ी टाइट थी और छोटी भी थी चूसने चूत गाल गाँड गाउन होंठ जाँघ जिस्म जांघों उतारने कमली झड़ कमल खूबसूरत किचन कमर क्लीवेज लूँगी, लंड लंबा चौड़ा लंड मज़ा मुलायम माधुरी नाइटी नंगा निपल्स पिताजी पतली रवि ससुर सास टाइट उतारने
Story : कहानी:
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// आज सुबह से ही मौसम बहुत रोमान्टिक था। रिम झिम पानी बरस रहा था, मैं इस विचार में था कि आज कैसे अपने आफ़िस पहुँचूंगा। इतने में बारिश बन्द हो गई। हालांकि आफ़िस के लिये अभी बहुत समय था फिर भी मैं निकल पड़ा। आफिस में सफाई चल रही थी। मैं सीधे अपने केबिन में चला गया, और कम्प्यूटर खोल कर मेल चेक किया। मैंने सोचा कि अब क्या करें, आफिस में कोई था नहीं तो मैं नेट पर पोर्न साइट खोल कर वीडियो क्लिप्स का मजा लेने लगा। देखते देखते मैं इतना उत्तेजित हो गया कि मैं अपना लन्ड पैन्ट के बाहर निकाल कर सहलाने लगा।
// मैं अपने में पूरी तरह से मस्त था और मुझे पता ही नही चला कि इसी बीच संध्या (रिसेप्सिनिट) कब आ कर मेरी इस हरकत को निहार रही है। यह तो तब मुझे पता चला जब रिसेप्शन पर फोन की घन्टी अचानक बजी और उसको अटेन्ड करने के लिये मेरे केबिन की तरफ से भागी। मैंने तुरन्त नेट बन्द किया और अपने खड़े लन्ड को पैन्ट में किसी तरह डाल कर संध्या को डरते हुए आवाज लगाई यह जानने के लिये कि उसने मुझे उस हालत में देखा है या नहीं, उसके व्यव्हार से पता चल जायेगा।
// मेरे बुलाने पर वह थोड़ी देर के बाद आई और सर झुका कर बोली- यस सर... !
मैंने पूछा- तुम कब आई?
// वह थोड़ी सी रुकी, मेरी पैन्ट की तरफ देखा और मुस्करा कर बोली- जब आप कम्प्यूटर पर बहुत व्यस्त थे... सर !
// मैं सकपका कर हिम्मत कर के बोला- ओह ! तो तुमने कम्प्यूटर पर सब कुछ देख लिया?
// जी... ! आप जो कर रहे थे वह भी मैंने देख लिया !
// क्या देखा ? मैंने मुस्कराकर पूछा।
// वह बोली- आप का 'वो' बहुत सेक्सी है !
// वो' क्या? मैंने पूछा।
// वह बेशर्मी से बोली- आप का काले तिल वाला लन्ड !
// तुम्हें मेरा लन्ड पसन्द है?
// तो वह बोली- जी !
// मैंने बगैर देरी किये तुरन्त पैन्ट की जिप खोल कर लन्ड को बाहर निकाला जोकि अभी भी खडा़ था, उसको दिखाया और बोला- इसको अपने हाथ से पकड़ो और फिर बताओ कि कैसा है? वह बोली- सर कोई आ जाएगा........!!
// मैंने कहा- ठीक है, आज मैं पूरे आफिस की छुट्टी कर देता हूँ !
और मैंने फोन कर के सबको सूचित कर दिया कि आज अधिक बारिश के कारण ऑफ़िस बन्द रहेगा।
// फिर मैंने संध्या से कहा- मुख्य-द्वार को अन्दर से लॉक कर दो !
// वह अपनी कंटीली मुस्कुराहट के साथ दरवाज़ा लॉक करने चली गई। इसके बाद मैंने अपनी पैन्ट को खोल कर थोड़ा नीचे सरकाया ताकि पूरा लन्ड दिखे, जिसको देख कर वह प्रभावित हो जाये और मेरी सालों की हसरत पूरी हो जाये।
// खैर मैं अपना लन्ड सहलाने लगा। तभी संध्या हौले से अपना कदम मेरे केबिन में रखते ही बोली- माई गॉड ! यह तो बहुत लम्बा और मोटा है... सर !
// सुनील पण्डित //
(suneeellpandit)
// सुनील पंडित //
मैं तो सिर्फ तेरी दिल की धड़कन महसूस करना चाहता था
बस यही वजह थी तेरे ब्लाउस में मेरा हाथ डालने की…!!!
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// उसने बिना किसी डर के मेरी पैन्ट पूरी उतार दी, मेरा लौड़ा बाहर निकाला और चूसने लगी। मेरा लौड़ा और ज्यादा तन गया। वह ऐसे चूस रही थी जैसे काफी समय से प्यासी हो। मैं भी संध्या की चूचियों को कुर्ते के ऊपर से ही धीरे-2 दबाने लगा। उसकी चूचियां काफी बड़ी लग रहीं थी। वह मेरे लंड को बहुत अच्छी तरह से चूस रही थी। मैंने भी उसके मुँह को धीरे-2 चोदना शुरु किया उसको और मजा आने लगा।
// अब वह मेरा पूरा का पूरा लौड़ा अपने मुंह में ले रही थी और एक हाथ से मेरे अण्डकोषों और दूसरे हाथ से अपनी चूत को सलवार के ऊपर से सहला रही थी। शायद वह बहुत उत्तेजित हो चुकी थी। यह देख कर मैंने उससे कहा- अब तुम अपने सारे कपड़े उतार दो !
// मेरे लंड को अपने मुँह से बाहर निकालते हुए वह बोली- ठीक है सर...! मैं भी यही सोच रही थी ! और खड़ी हो कर वह अपने कपड़े उतारने लगी, मैंने अपने लंड की तरफ देखा, सुपाड़ा फूल कर लाल टमाटर की तरह हो गया था और मेरा लौड़ा संध्या की चूत में घुसने के लिये पूरे साइज़ में तैयार था । इस बीच संध्या पूरी तरह नंगी हो चुकी थी, क्या गजब की उसकी फीगर थी ! जैसे किसी मूर्तिकार ने बड़े इतमिनान से उसे तराशा हो !
// उसकी शक्ल और फिगर बिल्कुल "दिया और बाती" वाली संध्या जैसी थी, उसका नाम भी संध्या था – गोरा रंग, सुन्दर बॉब कट घने बाल, तीखे नाक-नक्श, नशीली नीली आँखें, सुराही दार गर्दन, बड़ी-2 ठोस चूचियाँ, पतली कमर, सुडौल उभरे हुए चूतड़, चूत के माथे पर झाँटों की एक बारीक रेखा और उसके बगल में एक काला तिल, जो कि उसकी चूत को और सेक्सी बना रहा था, केले के तने जैसी उसकी जांघें ! कुल मिलाकर वह आकाश से उतरी कामासक्त अप्सरा लग रही थी, जिसका एहसास मुझे आज हुआ ... इससे पहले संध्या को हमने हमेशा ढीले-ढाले कपड़ों में ही देखा था। मैं कभी सोच नहीं सकता था कि उसका जिस्म इतना खूबसूरत होगा यदि मैंने आज उसे नंगी देखा न होता।
// " कहाँ खो गए...सर ?" संध्या ने धीरे से कहा और मेरा लंड फिर से पकड़ कर सहलाने लगी।
// कुछ नहीं ! मैं तो तुम्हारी सुन्दर फीगर और चूत पर काला तिल, देख कर होश खो बैठा...!
// वह धीरे से मुस्कराई और बोली- आप के लन्ड के सुपाड़े के ऊपर की खाल पर भी तो काला तिल है जिसको देखते ही मैं जान गई कि आप भी बहुत बड़े चोदू हैं दुनिया की किसी भी लड़की को संतुष्ट कर सकने की क्षमता आप में है सर...।
// आप भी अपनी शर्ट उतारिए ना !
// तुम्हीं उतार दो ना... ! मैंने मुस्कराते हुए कहा।
// सुनील पंडित //
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// वो बे-झिझक मेरी शर्ट उतार कर और मेरे खड़े लंड को पकड़े थ्री-सीटर सोफे की तरफ खींचते हुए ले गई और वहाँ मुझे आराम से बैठा दिया और खुद फर्श पर घुटनों के बल बैठ कर मेरा लंड फिर से चूसने लगी।
// मैं भी आराम से बैठ कर उसके मुँह को चोदने लगा। कोई 15 मिनट चुसाने के बाद मेरा लण्ड जब झड़ने वाला था तो मैंने संध्या से कहा कि वो अपना मुँह मेरे लंड से हटा ले ताकि मैं बाहर झड़ सकूँ।
// वह बोली- मैं आप का सोमरस पियूँगी !
// और लगी कस के चूसने ! और फ़िर मैं एक झटके से उसके मुँह में झड़ गया। उसने मेरा सारा वीर्य बड़े चाव से स्वाद ले कर गटक लिया। संध्या का ब्लो-जोब इतना खास था कि मेरे जैसा चोदू और अनुभवी आदमी जिसको झड़ने के लिए कम से कम 45 मिनट चाहिए, उसको संध्या ने मात्र 15 मिनट में ही खलास कर दिया।
// मैं बगैर पूछे न रह सका- संध्या डार्लिंग ! यह बताओ ! आम तौर पर भारतीय नारी वीर्य नहीं पीती है, फिर तुमने मेरा सारा वीर्य क्यों पिया?
// उसने अपनी पूरी स्पर्म थैरेपी की बात बतानी शुरू की...
// मैं बचपन में बहुत दुबली थी, 18 साल तक मेरा मासिक धर्म शुरू नहीं हुआ और ना ही मेरी बड़ी चूचियाँ निकली, बहुत छोटी छोटी थी, हालांकि मेरी चूत की ग्रोथ सामान्य 18 साल वाली ही थी।
// मेरी सभी सहेलियों की बड़ी-2 चूचियाँ थी और मासिक धर्म भी होते थे। वो सब अक्सर चिढ़ाया करती थी कि तुम्हारी शादी नहीं होगी, कोई लड़का तुमको चोदेगा नहीं।
// मुझे बहुत आत्म-ग्लानि होती थी, तब मम्मी ने मेरा इलाज कराना शुरू किया। सभी बड़े डाक्टरों को दिखाया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।
// इन्हीं सब में पूरा एक साल निकल गया। फिर पड़ोस की आंटी ने मम्मी से कहा कि बम्बई में एक बहुत प्रसिद्ध डाक्टर है जिनका नाम डाक्टर जे के लाल जो सेक्सोलॉजिस्ट है, उनको दिखाओ।
// मेरी मम्मी बहुत स्मार्ट हैं, वह कॉलेज में पढ़ाती हैं, वह समझ गई कि समस्या बहुत गम्भीर है। अगर बेटी की जिन्दगी बनानी है तो कुछ करना पड़ेगा, इसलिए मम्मी मुझे बम्बई ले कर गई।
डाक्टर लाल की क्लीनिक बहुत बड़ी थी उनकी 1000 रूपए फीस थी, काउन्टर पर 1000/- जमा कर के पर्चा बनवाया, भीड़ बहुत थी बाहर के मरीज ज्यादा थे।
// कोई एक घंटे के बाद मेरा नम्बर आया और हम लोग डाक्टर के केबिन में घुसे, डाक्टर साहब की उमर तकरीबन 55 वर्ष की होगी, बहुत गम्भीर और सौम्य लग रहे थे। मम्मी ने डाक्टर साहब को मेरी समस्या एवं पूरी केस हिस्ट्री बताई।
// सुनील पंडित //
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// डाक्टर ने बड़े धैर्य से सुना, फिर बोले- इससे पहले आप के खानदान में कोई इस प्रकार की बीमारी से ग्रसित तो नहीं है?
// मम्मी ने कहा- नहीं ! कोई नहीं... डाक्टर साहब।
// फिर डाक्टर साहब ने बड़े गम्भीरता से मम्मी से कहा- चेकअप रूम में अपनी बेटी को ले जाइये, मैं आ कर देखता हूँ।
// हम लोग चेकअप रूम में चले गये। कोई 15 मिनट के अन्दर ही डाक्टर साहब आ गये। डाक्टर ने मेरे सारे कपड़े उतरवा दिए, बड़ी सावधनी से मेरे चुचूकों और बुर को देखा। फिर डाक्टर मेरी बुर के अन्दर दो तीन मशीनें डाल कर काफी देर तक देखते रहे। फिर मुझसे बोले- अब आप अपने कपड़े पहन लीजिये और अपने केबिन में मम्मी को बुलाते हुए चले गये।
// मैं कपड़े पहन कर मम्मी के साथ डाक्टर के केबिन में गई। डाक्टर ने मम्मी को बड़ी गम्भीरता से बाताया- रोग जटिल है, एक्यूट हार्मोनल डिसओर्डर है ! इसका इलाज बहुत महंगा है क्या आप इतना खर्च कर सकेंगी?
// मम्मी ने पूछा- कितना खर्च आएगा?
// तकरीबन 5 लाख... डाक्टर ने बताया।
// मम्मी निराश होते हुए बोली- हम लोग मध्यम वर्ग से हैं, हम लोग इतना खर्च नहीं कर सकते। कुछ सस्ता इलाज बताइये...डाक्टर साहब !
// डाक्टर कुछ सोच कर बोले- देखिये मैडम, जो इलाज मैं बताने जा रहा हूँ उसमें कोई खर्चा तो नहीं है, बस उस इलाज को भारतीय समाज में मान्यता नहीं मिली है ! क्या आप कर पाएंगी ?
// मम्मी पहले तो कुछ पल तक चुप रही फिर बोली- मुझे अपनी बेटी की जिन्दगी संवारनी है, मैं करुंगी, डाक्टर साहब आप इलाज बताइये।
// डाक्टर ने कहा- एक बार फिर से विचार कर लीजिए...
// मम्मी ने आत्मविश्वास के साथ जवाब दिया- डाक्टर साहब, मैं कर लूंगी।
// ओके ! डाक्टर बोले- देखिये आप की बेटी को "सेक्सुअल एराउज़ल एण्ड स्पर्म थैरेपी" करानी पड़ेगी।
// इसमें क्या होता है? मम्मी ने पूछा।
// डाक्टर साहब बोले- फ्रेश ह्युमन स्पर्म एक प्रकार का ऐसा नैचुरल प्रोटीन होता है, जिसके पीने से इंसान के हर्मोनल डिसओर्डर दूर हो जाते हैं इसलिये संध्या बोटिया को 50 एम एल बगैर हवा लगे फ्रेश ह्युमन स्पर्म प्रति दिन एक साल तक पीना है और इतने ही समय तक प्रति दिन कम से कम दो बार सेक्स करना है। इस थैरेपी से आपकी बेटी के सभी अविकसित अंगों का विकास हो जायेगा और फ़ीगर दूसरी लड़कियों की तरह बिलकुल सामान्य हो जायेगी...।
// मम्मी बोली- ठीक है, मैं तैयार हूँ ! लेकिन डाक्टर साहब... बगैर हवा लगे फ्रेश ह्युमन स्पर्म मैं कैसे अरेन्ज करूंगी?
// डाक्टर बोला- वो तो आपकी प्रोबलम है कि कैसे अरेन्ज करना है... हाँ मैं संध्या को ट्रेनिंग दे सकता हूँ कि कैसे फ्रेश ह्युमन स्पर्म पियेगी।
// मम्मी बोली- ठीक है डाक्टर साहब... मेरी बेटी को ट्रेनिंग दे दीजिये।
ओके !
// डाक्टर उठ कर चेकअप रूम की तरफ चलने लगे और मम्मी से बोले- अपनी बेटी को लेकर अन्दर आइये।
// मैं और मम्मी डाक्टर के पीछे चेकअप रूम में चले गये। वहाँ डाक्टर खुद चेकअप बेड पर लेट गये और बेड के बाईं साइड पर मम्मी से कहा कि आप यहाँ खड़ी होइये और मुझसे कहा- बेटा आप यहाँ हमारी दाहिने तरफ़ कमर के पास खड़ी होइये और मेरी पैंट खोल कर मेरा लिंग निकालिए...।
// मैंने मम्मी की तरफ देखा...
// मम्मी ने कहा- जैसे डाक्टर साहब कह्ते हैं, वैसे करो...
// मैंने डाक्टर साहब की पैन्ट खोली, फिर अन्डरवियर से मुर्झाया हुआ लिंग बाहर निकाला। मैं पहली बार किसी मर्द के लिंग को देख रही थी। फिर डाक्टर साहब की तरफ देखने लगी।
// डाक्टर साहब मम्मी से बोले- अपनी बेटी को लिंग खड़ा करना बताइये।
// मम्मी ने मुझे आदमी के लिंग को खड़ा करने का तरीका सिखाया।
// अब डाक्टर साहब का लिंग बिलकुल टाइट हमारे हाथों में था।
// अब डाक्टर साहब की बारी थी, वह बड़े सलीके से बोले- बेटी संध्या , मेरे लिंग को अपने मुँह में लेकर कस कर चूसो और साथ ही साथ अपनी जबान से लिंग के सुपारे को चाटो और यह क्रिया तब तक करती रहो जब तक कि लिंग से वीर्य न निकलने लगे और फिर उस वीर्य को तुम्हें अन्दर ही अन्दर पी लेना है। इस क्रिया को आम भाषा में "ब्लो जोब" कहते हैं। ध्यान रहे कि जब वीर्य निकलने लगे उस समय लिंग तुम्हारे मुँह में ही होना चाहिए। बाहरी हवा वीर्य में लगने से वीर्य ऑक्सीडाइज हो जाता है, उसको पीने से कोई फायदा नहीं। अब जैसा मैंने कहा वैसे करो।
// सुनील पंडित //
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// मम्मी ने बीच में कहा- हाँ बेटा, जैसे डाक्टर साहब ने कहा है, वैसे करो ! मैं हूँ ना तुम्हारे साथ।
// फिर मैं डाक्टर साहब के लिंग को वैसे ही चूसने लगी जैसे कि डाक्टर साहब ने बताया था। मुझे इस इलाज में बड़ा मजा आ रहा था, मैं डाक्टर साहब के लिंग को चूसे जा रही थी, डाक्टर सहब का लिंग और कड़ा होता जा रहा था डाक्टर साहब अपने लिंग को मेरे मुँह के और अन्दर तक घुसेड़ने में लगे थे। कभी कभी मुझे उबकाई जैसे लग रही थी लेकिन मुझे तो पूरी लड़की बनना था इसलिये इसकी परवाह किये बगैर डाक्टर साहब का लिंग चूसे जा रही थी।
// इतने में डाक्टर साहब ने अपनी कमर को मेरे मुँह की तरफ ठेला और उनके लिंग से कुछ नमकीन-2 गोंद सा मेरे मुँह में निकलने लगा। मैंने अपना मुँह लिंग से हटाना चाहा लेकिन डाक्टर साहब ने तुरन्त मेरे सर को पकड़ कर अपने लिंग को मेरे मुँह में गहराई तक घुसेड़ दिया। मेरा मुँह उस गोंद से भर गया। डाक्टर साहब ने धीरे से अपना लिंग मेरे मुँह से निकाला और बोले- इसे पी लो। यही वीर्य है जिसे तुम्हें रोज पीना है, चाहे तुम्हे अच्छा लगे या ना लगे ! और आपकी मम्मी आप को सेक्स करने का तरीका यानि कि चुदवाने का तरीका सिखा देंगी।
// यह कहते हुए उन्होंने अपने कपड़े ठीक किये और केबिन में चले गये।
// मम्मी ने मुझसे पूछा- कोई तकलीफ तो नहीं हुई?
// मैंने नकारात्मक सर हिलाया, कहा- नहीं !
// मम्मी डाक्टर साहब के इलाज से काफी संतुष्ट लग रही थी फिर हम लोग डाक्टर साहब के केबिन की तरफ बढ़ गये। डाक्टर साहब अपनी कुर्सी पर बैठे थे, हम लोगों को देख कर मम्मी से बोले- देखिये, संध्या को मैंने स्पर्म थैरेपी के बेसिक्स बता दिये हैं, शुरू में थोड़ी दिक्कत आ सकती है पर धीरे-2 सब ठीक हो जायेगा। यदि कोई दिक्कत हो तो आप मुझे फोन कर सकती हैं। विश यू आल द बैस्ट ! डाक्टर साहब बोले।
// शाम को हम लोगों का रिजर्वेशन था हम लोग वापस लखनऊ आ गये। अब मम्मी के सामने यह समस्या थी कि वीर्य के लिए किससे कहे, जोकि रोज ताज़ा वीर्य मुझे पिला सके। ऐसे किसी से कह नहीं सकते, समाज का भय था। इसी चिंता में मम्मी थी कि तभी फ़ूफा जी कानपुर से आ गए। फ़ूफा जी अक्सर ही आया करते थे और एक दो हफ्ते रहते थे। हम लोगों की सभी जरूरतें पूरी किया करते थे।
// मम्मी ने मेरे फूफा जी से इस सन्दर्भ में बात की। फ़ूफा जी अक्सर मेरी मम्मी को चोदा करते थे। मैंने छुप कर कई बार देखा था, उनका लंड बहुत मोटा और लम्बा था जो कि मेरी मम्मी को बहुत पसन्द था और मुझे भी !
// मम्मी को चुदते देख कर अच्छा लगता था, मन में मैं सोचा करती थी कि काश ऐसे ही कोई मुझे चोदे, लेकिन मेरी तरफ तो कोई लड़का देखता ही नहीं था।
// खैर मम्मी ने फ़ूफा जी को मेरे लिये तैयार कर लिया। रात को खाना खाने के बाद मम्मी ने मुझे अपने कमरे में बुलाया और कहा- तुम्हारे फूफा तैयार हैं, फिलहाल तुम अपने फूफा का लन्ड चूस कर जितना वीर्य निकले उसे पी जाओ।
// मैंने पूछा- यह लन्ड क्या है ?
// मम्मी ने बताया- लिंग को ही आम भाषा में लन्ड कहते हैं। चलो, जल्दी से पी जाओ।
// मैं फूफा के पास गई। फूफा अपने बिस्तर पर बिल्कुल नंगे लेटे थे। मम्मी ने पहले से ही उनके लन्ड को तैयार कर दिया था बस मुझे चूस कर वीर्य पीना था।
// मैंने फूफा का लन्ड अपने कोमल हाथों से पकड़ा और ठीक वैसे ही चूसने लगी जैसे डाक्टर साहब ने बताया था।
// फूफा को मजा आने लगा। फूफा ने मम्मी से कहा- यह तो बहुत मस्त तरीके से चूस रही है !
// मम्मी ने मुस्कराकर कहा- ट्रेनिंग जो ली है, इसीलिये मस्त चूस रही है।
// इतने में फूफा ने हाथ बढ़ा कर मम्मी को अपनी तरफ खींच लिया और लगे उनकी चूची दबाने...
// मम्मी ने विरोध करते हुए कहा- क्या करते हो? बेटी है।
// अब बेटी से क्या पर्दा...? फूफा बड़े प्यार से बोले- आओ हम सब आज मौज मस्ती करें ! बेटी का इलाज का इलाज हो जयेगा और मस्ती भी।
// फूफा ने मम्मी का ब्लाउज खोल दिया। मम्मी की बड़ी-2 चूचियाँ बाहर आ गई।
// फिर फूफा मुझसे बोले- बेटा, तुम भी अपने सारे कपड़े उतार दो।
// मैंने फूफा की आज्ञा का पालन किया। उधर फूफा ने मम्मी को बिलकुल नंगा कर दिया। अब हम सब लोग एक ही बिस्तर पर नंगे थे। मैं फूफा का लन्ड फिर से चूसने लगी, फूफा मम्मी की चूचियाँ चूस रहे थे और एक हाथ से मम्मी कि बुर में उंगली कर रहे थे और दूसरे हाथ से मेरी बुर सहला रहे थे। मुझे कुछ कुछ होने लगा और बुर से कुछ लसलसा पदर्थ निकल रहा था।
फूफा मम्मी से बोले- अरे, संध्या की चूत से पानी निकल रहा है !
// मम्मी ने तुरन्त मेरी टांगें फैला कर देखा और चूत पर उंगलियों से टटोला, फिर एक उंगली चूत में घुसेड़ कर अन्दर-बाहर करने लगीं और फूफा से बोली- संध्या अब चुदने लायक हो गई है क्योंकि इसके हल्की-2 झाटें भी आ गई हैं और चूत का छेद भी बड़ा लग रहा है। आप ही इसकी बुर का उदघाटन करिये, ठीक रहेगा।
// फूफा ने मम्मी की आज्ञा का पालन किया और उठ कर मेरी चूत को बड़े गौर से देखा... यार इसकी चूत तो बहुत छोटी है मेरा लन्ड झेल पायेगी... मम्मी से बोले।
// आप कोशिश तो करिये ! एक बार में न सही, दो तीन बार में तो हो ही जायेगा।
// मैं यह सब सुन कर बहुत उत्साहित थी कि आज से मेरी चुदाई शुरू हो जायेगी।
// फिर मम्मी ने मेरी दोनों टांगें फैलाते हुए ऊपर उठा लिया और फूफा से बोलीं- चलिये, अब आप इसे चोदिये !
// फूफा ने मेरी गीली चूर पर अपना हलब्बी लन्ड रखा और हलके से चूत में घुसेड़ा, मेरे मुँह से अचानक चीख निकल गई।
// क्या हुआ बेटा... मम्मी ने पूछा।
// बहुत दर्द हो रहा है... मैंने कहा।
// तब तक फूफा अपना लन्ड निकाल चुके थे और मम्मी से बोले- पहले संध्या को किसी पतले लन्ड से चुदवाना पड़ेगा फिर ये मेरा लन्ड सह सकेगी।
// ठीक है ! विशाल पाँच दिनों की छुट्टी में कल आ रहा है, उसका लन्ड अभी पतला ही होगा, पहले उसी से इसको चुदवाती हूँ, दो चार बार चुदेगी तो इसकी बुर रवां हो जायेगी, फिर आप चोदियेगा। फिल हाल बेटा तुम फूफा का रस पी लो। कम से कम आज की डोज तो मिल ही जाय... मम्मी मुझसे बोली।
// (विशाल मेरा ममेरा भाई, जो गाजियाबाद से बीटेक कर रहा था)
// मैंने फिर से फूफा का लन्ड चूसना चालू किया। फूफा का लन्ड फिर से टाईट हो गया और वो अपना लन्ड मेरे मुँह में बड़े जोरों से पेलने लगे, उन्हें बड़ा मजा आ रहा था। थोड़ी ही देर में मेरा मुँह उनके वीर्य से भर गया, मम्मी ने हमसे मुँह खोल कर दिखाने के लिए कहा। मैंने मुँह में जितना वीर्य था उसको दिखाया।
// मम्मी बोली- यह तो बहुत कम है ! ऐसे कैसे काम चलेगा? क्योंकि 50 एम एल वीर्य रोज चाहिए। खैर इसको तो तुम पी ही जाओ, कल देखेंगे।
// फिर मैं कपड़े पहन कर अपने कमरे में सोने चली गई। बाद में फूफा ने मम्मी की भी चुदाई की, क्योंकि उनके कमरे से भचा भच की आवाजें आ रही थी। मैं बहुत थक गई थी थोड़ी ही देर में मुझे नींद आ गई।
// अगले दिन रविवार था। सभी लोग जल्दी ही उठ गए थे क्योंकि विशाल भैया लखनऊ मेल से सुबह आठ बजे ही आ गये थे। हम लोग विशाल भैया से कोई एक साल के बाद मिल रहे थे। विशाल भैया को मेरे इलाज के बारे में कुछ पता नहीं था। सभी लोग खुश थे, चाय नाश्ते के साथ हंसी मजाक चल रहा था। मैं कुछ जादा ही उत्साहित थी, यह सोच कर कि आज विशाल भैया मुझे चोदेंगे।
// अचानक विशाल भैया मेरी तरफ देखते हुए मम्मी से बोले- लगता है संध्या छोटी की छोटी ही रह जाएगी, बढ़ेगी नहीं।
// इस पर मम्मी ने मेरे इलाज के बारे में विशाल भैया को विस्तार से, गम्भीरता से बताया।
// ठीक है ! मैंने भी डाक्टर लाल का नाम सुना है काफी मशहूर हैं, उन्होंने जो राय दी है वह ठीक है। जब तक मैं यहाँ हूँ। मैं ही अपना वीर्य पिला दूंगा !
// और फिर हंसी मजाक चलने, होने लगा।
// विशाल भैया चाय नाश्ता करने के बाद मम्मी से बोले- बुआ जी ! मुझे नींद आ रही है मैं रात को सो नहीं पाया।
// मम्मी बोलीं- ठीक है, तुम स्लीपिंग सूट पहन कर कुछ देर आराम कर लो, जब खाना तैयार हो जाएगा, तब मैं तुमको उठा दूंगी। इसके बाद मेरे फूफा अपने काम से बाहर चले गए, मम्मी और मैं खाने की तैयारी में लग गए।
खाना एक बजे तैयार हो गया। मम्मी ने मुझ से कहा- जाकर विशाल को जगा कर खाने के लिए बुला लो।
// मैं भैया को उठाने के लिए उनके कमरे में गई। विशाल भैया सो रहे थे लेकिन उसका लंड पजामे के अन्दर पूरी तरह से खड़ा दिख रहा था। तभी मेरे दिमाग में सुबह की डोज लेने का खयाल आया और मैं उनके लंड को पजामे के ऊपर से ही पकड़ कर ऊपर नीचे करने लगी। इतने में भैया की आँख खुल गई हम दोनों ने एक दूसरे की तरफ सामान्य तरीके से देखा।
// मैंने अपना हाथ लंड पर से हटा लिया और बोली- आप जब सोए हुए थे तो आप का लंड पूरी तरह से खड़ा था, देखिए अभी भी खड़ा है ! यह बताइये कि आप सपने में किसको चोद रहे थे? इतने में मम्मी भी कमरे में आ गईं, उन्होंने मेरी बातें सुन ली और भैया के पजामे की तरफ देखने लगी जिसमें भैया का लंड अभी भी ठुनकी मार रहा था और भैया उसको बैठाने की कोशिश कर रहा था ...
// हाँ विशाल ! बताओ... कोई लड़की है जिसकी तुम लेते हो? विशाल भैया थोड़ा सा शरमाते हुए बोले- रेनू ! मेरी क्लास-मेट है !
// अच्छा तो तुम उसी को नींद में चोद रहे थे... मम्मी ने व्यंग्य में कहा। भैया मुस्कराने लगा।
// फिर मम्मी ने कहा- चलो, अभी तुम्हारा मूड है ! रेनू समझ कर अपनी फुफेरी बहन को सुबह की डोज दे दो फिर आकर खाना खा लेना।
// यह कहते हुए मम्मी कमरे से बाहर निकल गई।
// विशाल अभी भी लेटा था उसने मेरी तरफ सेक्सी निगाहों से देखा और बोला- चल संध्या पहली बार चुदने के लिए तैयार हो जा।
// मैं बोली- मैं तो सुबह से ही तैयार हूँ...
// तो आ जा ! मेरा लंड पजामे के बाहर निकाल ! इसने भी बहुत दिनों से चूत के दर्शन नहीं किये हैं, तेरी अनचुदी चूत को चोद कर यह मस्त हो जाएगा। फिर मैने विशाल का पजामा पूरा उतार दिया. उसका लंड अभी भी खड़ा था, मैं गप्प से मुँह में ले कर चूसने लगी। भैया का लंड और कड़ा हो गया। मैं लंड के सुपारे को कस कर चूस रही थी, भैया मेरे मुँह को कायदे से चोद रहा था।
// पांच मिनट के बाद वह बोला- तुम अपने सारे कपड़े उतार दो ! अब मैं तुम्हारी चूत को चोदूँगा।
मैंने सारे कपड़े उतार दिए। फिर भैया ने मुझे बिस्तर पर लिटाया, मेरी टांगें फैलाई और फिर 69 की अवस्था में मेरी चूत को चाटने लगा। मैं उसके लंड को कस कर चूसने लगी। जैसे जैसे भैया मेरी चूत को चूस रहा था, वैसे-वैसे मेरी चूत में चुदाई की चाहत बढ़ती जा रही थी, मेरी चूत ने पानी का फव्वारा छोड़ना शुरू कर दिया था। भैया का पूरा चेहरा मेरी चूत के पानी से भीग गया था।
// सुनील पंडित //
मैं तो सिर्फ तेरी दिल की धड़कन महसूस करना चाहता था
बस यही वजह थी तेरे ब्लाउस में मेरा हाथ डालने की…!!!
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// भैया ने कहा- तुम तो बहुत जबरदस्त झड़ती हो ! लगता है तुम्हारी चूत अब चुदने के लिए तैयार है।
मैंने कहा- जी भैया... !
// और फिर विशाल उठ कर बैठ गया और मेरी टांगें फैलाकर अपना फनफनाता हुआ मोटा लंबा लंड मेरी चूत के मुँह पर रख कर धीरे से अन्दर की तरफ ठेला। हालांकि भैया का लंड थोड़ा पतला था लेकिन लम्बा था। फिर भी सुपारा घुसते ही मेरा चेहरा दर्द के मारे लाल हो गया। भैया ने मेरी तरफ देखा और बोले- दर्द हो रहा है?
// मैंने कहा- हाँ... बहुत दर्द हो रहा है।
// भैया बोले- बस थोड़ा सा सह लो ! अभी यह दर्द मस्ती में बदल जएगा।
// और भैया लगा कस कर पेलने। भैया ने सही कहा था ! करीब 5 मिनट के बाद मेरा सारा दर्द गायब हो गया था और मैं भैया से चिपटने लगी। विशाल मुझे कस कर चोदे जा रहा था !
// मेरे मुँह से अनायास ही निकलने लगा- ... ओह्ह्ह्ह्ह......आह्ह्ह्ह्... और कस कर चोदो मेरे अच्छे भैया... ओह माई गॉड प्लीज और अन्दर तक पेलो, मेरी बुर को चोद चोद कर भक्काड़ा कर दो प्लीज भैया... प्लीजऽऽऽ !
// इस अलौकिक आनन्द से जैसे मैं पागल हुई जा रही थी और कई बार मुझे ऐसा लगा कि जैसे मेरे बुर से पानी का फव्वारा निकला हो। इतने में भैया ने झट से अपना लंड मेरी चूत से बाहर निकाल लिया और मुझसे बोले- ले मेरे लंड को जल्दी से चूस ले ! माल निकलने वाला है !
// मैंने तुरन्त उनका लन्ड अपने मुँह में ले लिया और चूसने लगी। थोड़ी ही देर में भैया का ढ़ेर सारा वीर्य मेरे मुँह में भर गया, मैं तुरन्त वीर्य को गटक गई भैया का वीर्य काफी स्वादिष्ट था। इसके बाद हम लोग खाना खाने चले गए। लंच के बाद विशाल भैया अपने किसी दोस्त से मिलने चले गए और मैं मम्मी के साथ घर के काम में लग गई।
// शाम को विशाल भैया अपने दोस्त प्रदीप के साथ आये जो यहीं लखनऊ में रहते थे। वह भी बीबीडी से बी टेक कर रहे थे और साथ ही प्रईवेट फर्म में नौकरी करते थे। वह बहुत स्मार्ट थे, गोरा रंग, सुगठित बदन खिलाड़ियों जैसा, कद 5'7" कुल मिलाकर वह बिल्कुल मॉडल लगते थे। हम लोग उनसे पहले भी कई बार मिल चुके थे हम लोगों में शिष्टाचार का अदान प्रदान हुआ। फिर मम्मी ने प्रदीप से शिकायत भरे अन्दाज़ में कहा- जब विशाल आता है, तभी तुम भी आते हो, ऐसे भी कभी-2 आ जाया करो...।
// प्रदीप भैया ने तिरछी नज़र से मेरी तरफ देखा और सेक्सी मुस्कराहट के साथ बड़े नाटकीय ढंग से मम्मी को सम्बोधित किया- आज के बाद आप को शिकायत का मौका नहीं मिलेगा आंटी जी ! जब भी मुझे छुट्टी मिलेगी, मैं आप लोगों से मिलने अवश्य आऊंगा।
// इस पर सभी लोग ठहाका लगाते हुए ड्राइंग रूम में बैठ गए और इधर उधर की बातें करने लगे। मैं उठ कर सबके लिए चाय बनाने किचन चली गई। जब मैं चाय ले कर वापस ड्राइंग रूम आई, वहाँ पर सब लोग शांत बैठे थे और प्रदीप भैया गौर से मुझे देखने लगे।
// मैं समझ गई कि इस बीच मम्मी और विशाल भैया ने मेरे बारे में सब कुछ प्रदीप भैया को बता दिया होगा। और शायद मुझे वीर्य पिलाने के लिए प्रदीप भैया से आग्रह किया हो। इसीलिए प्रदीप भैया मेरी अविकसित चूचियों की तरफ बड़े गौर से देख रहे थे। खैर मैंने सबको चाय एवं नाश्ता दिया। प्रदीप भैया चाय पीते हुए बोले- यार संध्या , तुम चाय बहुत बढ़िया बनाती हो !
// इस पर मम्मी बोली- यह खाना भी बहुत अछा बनाती है ! आज तुम संध्या के हाथ का बना खाना खा कर ही जाना...! बीच में विशाल भैया बोले- हाँ यार ! चलो मुर्गा ले कर आते हैं ! बहुत दिनों से घर का बना मुर्गा नहीं खाया है। मम्मी बोली- हाँ ठीक है ! जाओ, तुम लोग मुर्गा ले कर आओ, हम लोग खाने की तैयारी करते हैं।
// भैया लोग मार्केट चले गए, थोड़ी ही देर में मुर्गा ले कर आ गए। मैं और मम्मी खाना बनाने में लग गए और भैया लोग ड्राईंग रूम में बैठ कर गप्प लड़ाने लगे। थोड़ी ही देर में फूफा जी भी आ गए, फ़ूफा जी अक्सर शाम को ड्रिंक किया करते थे। इसलिए वो अपने साथ एक बोतल व्हिस्की भी ले आए और मुझे आवाज दे कर पुकारा- संध्या ... जरा तीन ग्लास और कुछ नम्कीन ले आना।
// मैं समझ गई कि आज भैया लोगों को भी फूफा जी पिलायेंगे। खैर मैं तीन ग्लास, नमकीन और पानी का जग ले कर ड्राइंग रूम पहुचीं। वहाँ पर फ़ूफा जी बोतल खोल रहे थे और भाइयों से बोल रहे थे- तुम लोग अब बड़े हो गए हो, शरमाना छोड़ो और हमारे साथ पियो।
जी फूफा जी... !
भाइयों को जैसे उनकी मन की मुराद पूरी हो गई। इसके बाद ये सब लोग ड्रिंक करते रहे और हम लोग खाना बनाने में लगे रहे। थोड़ी ही देर बाद जब खान तैयार हो गया, मम्मी ने किचान से ही आवाज लगाई- आप लोगों की ड्रिंक अगर खत्म हो गई हो तो खाना लगाया जाये...? जवाब में फ़ूफा जी की आवाज आई- हाँ भाई... खाना लगाओ ... बहुत भूख लगी है। फिर सभी लोग डाइनिंग टेबल पर बैठ गए। मैंने सबको खाना परोसा। प्रदीप भैया पहला कौर खाते ही बोले- तुमने मुर्गा बहुत अछा बनाया है !
फिर सभी लोग खाने की तारीफ करने लगे। खाना खाने के बाद प्रदीप भैया बोले- यार विशाल मैं चल रहा हूँ ! वरना मकान मालिक दरवाजा नहीं खोलेगा।
विशाल भैया बोले- यार आज तुम यहीं रुक जाओ, कल सुबह यहीं से कॉलेज चले जाना।
// इस पर मम्मी बोली- हाँ ! यहीं रुक जाओ, इतनी रात में कहां जाओगे? प्रदीप भैया कुछ रुक कर बोले- ठीक है आँटी !
इसी बीच फूफा जी मम्मी के बेडरूम में सोने चाले गए क्योंकि उनको कुछ ज्यादा ही चढ़ गई थी। वो जब भी आते थे वहीं मम्मी के साथ सोते थे। फिर विशाल भैया बोले- ऐसा है कि हम लोग ड्राइंग रूम में सो जाते हैं...। //
मम्मी बोली- नहीं ! तुम तीनों संध्या के कमरे में सो जाओ... यहां ड्राइंग रूम में परेशानी होगी। मम्मी यह कहते हुए अपने बेडरूम की तरफ बढ़ गई।
मम्मी की बात सुन कर मैं बहुत उत्साहित हो गई और सोचने लगी कि आज तो प्रदीप भैया का भी लंड देखने को मिलेगा। खैर मैं विकास भैया से बोली- आप लोग मेरे कमरे में चलिए, मैं मेन-गेट लॉक करके आती हूँ। मैंने बाहर के सारे दरवाजे बन्द किए और फिर मम्मी के बेडरूम की तरफ से अपने कमरे जाने लगी। इतने में मम्मी के कमरे से कुछ अजीब सी, पर जानी पहचानी आवाजें आने लगी। मैंने खिड़की से झांक कर देखा- फूफा जी बेड पर सीधे नंगे लेटे हुए थे और मम्मी की चूत चाट रहे थे और मम्मी फूफा जी का लंड को लॉलीपाप की तरह चूस रही थी। दोनों 69 पोजीशन में थे और दुनिया से बेखबर सेक्स का पूरा मजा ले रहे थे।
यह देखकर मेरा हाथ अनायास ही बुर को सहलाने लगा, थोड़ी देर तक मैं उन लोगों की चुदाई देखती रही, मेरी बुर पानी छोड़ने लगी जिससे मेरी सलवार भीगने लगी। फिर मुझसे रहा नहीं गया और भाग कर अपने कमरे में आ गई जहाँ पहले से ही भैया लोग बिस्तर पर लेटे थे। मुझे देखकर विशाल भैया बोले- कोई लुंगी हो तो प्रदीप को दे दो ताकि वह अपने कपड़े बदल सके। कल फिर यही पहन लेगा।
// सुनील पंडित //
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मैंने कहा- लुंगी तो नहीं है ! आप चाहें तो मेरा लॉन्ग स्कर्ट पहन लें, वो भी लुंगी ही जैसी है !
यह कह कर मैं हंस दी... इस पर विशाल भैया बोले- हाँ यार ! पहन ले ! मजा आयेगा। मैंने उनको स्कर्ट दी, फिर प्रदीप ने मुझसे कहा- तुम बाहर जाओ, मैं कपड़े बदल लूँ... ! इस पर विशाल भैया बोले- यार संध्या से क्या परदा ।
अभी हम सब लोग नंगे हो जायेंगे ! यह कहते हुए विशाल भैया खुद अपना स्लीपिंग सूट उतारने लगे और मुझसे बोले- संध्या ... तुम भी अपने कपड़े उतारो... नहीं तो प्रदीप शरमाएगा।
मैं तो यही चाहती थी, मैंने तुरन्त अपनी सलवार और कुर्ता उतार दिया। अब मैं बिल्कुल नंगी थी, विशाल भैया भी नंगे हो चुके थे और अपने खड़े लंड से खेल रहे थे। यह देख कर प्रदीप भी अपने सारे कपड़े उतारने लगे। पहले उन्होंने अपनी शर्ट और बनियान उतारी फिर पैन्ट उतारी, जैसे ही प्रदीप ने अपनी चड्ढी उतारने के लिए हाथ बढ़ाया, वैसे ही विशाल भैया बोले- रुको प्रदीप, तुम्हारी चड्ढी संध्या उतारेगी ! फिर मुझसे बोले- चलो, इसकी इसकी चड्ढी उतारो !
मैं प्रदीप भैया के पास पहुंची और उनकी चड्ढी नीचे सरका दी, उनका लंड पूरी तरह खड़ा था, सुपाड़े की त्वचा नीचे थी, गुलाबी रंग का सुपारा चमक रहा था, उनका लंड फूफा जी के लंड से भी बड़ा था लगभग 8" लम्बा और 4" मोटा ! बिल्कुल घोड़े के लंड की तरह था।
इसको देखते ही मेरे मुँह से अनायास निकल गया- ओह माई गॉडऽऽ ! आपका तो लंड बहुत मोटा और लम्बा है... प्रदीप भय्य्य्या...!
इस पर विशाल भैया मुझसे बोले- यार संध्या ... हम लोगों को 'भैया' मत कहा करो। सेक्सी फीलिंग की ऐसी की तैसी हो जाती है।
इस पर प्रदीप भी बोले- हाँ 'भैया' ना बोला करो, कम से कम चुदाई के माहौल में तो बिल्कुल नहीं !
मैंने कहा- ठीक है ! मैं नहीं कहूँगी, लेकिन बाहर सबके सामने तो कहना ही पड़ेगा।
इस पर विशाल बोले- हाँ, सबके सामने तुम कह सकती हो। इसके बाद प्रदीप और विशाल दोनों हंसते हुए कहने लगे- हम लोग अब बहनचोद नहीं कहलाएंगे और संध्या ... तुम, भैया चोद नहीं कहलाओगी। इस पर हम सब हंसने लगे। फिर विशाल बोले- ऐसा है कि आज हम लोग तुमको एक साथ चोदेंगे।
मैंने पूछा- वो कैसे?
विशाल बोले- अभी बताता हूँ... ऐसा करो प्रदीप ! तुम लेट जाओ। संध्या … तुम प्रदीप की टांगों के बीच में डॉगी स्टाइल से प्रदीप का हलब्बी लंड चूसो और मैं तुम्हारी चूत को चोदता हूँ ! इस तरह से तुम्हारी चूत रँवा हो जाएगी और जब प्रदीप तुम्हें चोदेगा तो तुमको कोई परेशानी नहीं होगी। ठीक है?
मैंने कहा- ठीक है।
फिर प्रदीप लेट गए, मैं कुतिया की तरह पोजीशन बना कर प्रदीप का लंड अपने मुँह में लेने की कोशिश की, लेकिन उसका सुपाड़ा इतना बड़ा था कि मेरे मुँह में पूरा घुस ही नहीं रहा था। फिर मैंने सुपारे को कोन-आइस्क्रीम की तरह चाटना शुरू किया। प्रदीप का लंड और टाइट हो गया। प्रदीप के मुँह से अह्ह्ह्…ओह्ह्ह निकलने लगा। मैं उनका लंड लगातार चूसे जा रही थी। इधर विशाल फर्श पर खड़े हो कर मेरी चूत में दो उंगलियाँ डाल कर अन्दर बाहर करने लगे।
तकरीबन एक मिनट के बाद वो तीन उंगलियाँ डाल कर अन्दर बाहर करने लगे। मेरी चूत बहुत टाइट थी, सिर्फ एक बार की चुदी थी, वो भी विशाल के पतले लंड से। शायद इसीलिए विशाल अपनी उंगलियों से चोद कर मेरी चूत को प्रदीप के लंड के काबिल बना रहे थे लेकिन मुझे बड़ा मजा आ रहा था।
फिर अचानक विशाल अपनी चार उंगलियों को चूत में डाल कर अन्दर-बाहर करने लगे। मुझे दर्द होने लगा।
मैंने चीखते हुए विशाल से कहा- दर्द हो रहा है, क्या मेरी चूत आज ही फाड़ डालोगे ?
विशाल बोले- अभी दर्द गायब हो जायेगा।
फिर वो उंगली अन्दर बाहर करने की स्पीड और बढ़ाते हुए मुझसे बोले- तुम्हारी चूत को आज हम लोग भोसड़ा बना देंगे ताकि तुम्हें आगे कोई परेशानी ना हो।
खैर ! जैसा कि विशाल ने कहा था वैसा ही हुआ।
थोड़ी ही देर में दर्द काफूर हो गया और अब मेरी चूत कस कर पानी छोड़ने लगी। फिर विशाल ने अपना लंड मेरी चूत में डाला और चोदना शुरू किया। उनका पूरा का पूरा लंड मेरी चूत में घुस रहा था जो कि काफी लम्बा था लेकिन पतला होने के कारण मुझे कुछ पता नहीं चल रहा था। फिर भी मजा आ रहा था। इधर पूरी तरह से प्रदीप के लंड को चूसते चूसते मेरा मुँह भी ज्यादा खुलने लगा और अब मैं उसका पूरा सुपाड़ा अपने मुँह के अन्दर ले कर चूस रही थी। प्रदीप की हालत बिगड़ती जा रही थी और कमर उचका उचका कर मेरे मुँह को चोदने की कोशिश कर रहे थे। इतने में उनके मुँह से निकला- आह्ह्ह्… ! मैं तो खलास होने वाला हूँ ! संध्या तुम लंड से मुँह मत हटाना…
और प्रदीप मेरे मुँह में झड़ने लगे। प्रदीप के लंड से इतना वीर्य निकला कि मेरा पूरा मुँह भर गया और थोड़ा सा बाहर भी बह कर निकलने लगा। मैं तुरन्त पूरा वीर्य पी गई और जो बह कर नीचे प्रदीप के लंड पर और उनकी झांटो पर गिर गया था उसको भी मैं चाट गई।
इधर विशाल मेरी चूत में लगातार धक्के मारे जा रहा था और ओह्ह्ह्… आह्ह्ह्ह्… की आवाजें निकाल रहा था, शायद वह भी झड़ने वाला था। फिर एक दम से अपना लंड मेरी चूत से बाहर निकाला और मुझसे बोला- ले जल्दी से मेरे लंड को चूस ! माल निकलने वाला है ! मैं प्रदीप के लंड को छोड़ कर विशाल की तरफ घूमी और जल्दी से उसका लंड अपने मुँह में ले लिया और लगी कस कर चूसने।
कोई 30-40 सेकेंड में विशाल भी झड़ने लगा। विशाल का वीर्य उतना नही निकला जितना प्रदीप का निकला था, लेकिन विशाल का वीर्य ज्यादा स्वादिष्ट था और मुझे अपनी चूत के रस का भी स्वाद मिल रहा था। इन दोनो का वीर्य पी कर मेरा तो पेट ही भर गया था।
जब मैंने पलट कर प्रदीप की तरफ मुँह किया तो देखा कि प्रदीप अपने लंड को फिर खड़ा करने में लगा था। मैं समझ गई कि प्रदीप भी मेरी चूत को चोदना चाहता है।
मैंने उनसे कहा- मैं अभी आ रही हूँ… और मैं नंगी ही टॉयलेट की तरफ भागी क्योंकि मुझे बहुत तेज पेशाब लगी थी। जब मैं टॉयलेट से लौट रही थी तो मैंने सोचा कि मम्मी के बेडरूम में झांक कर देखा जाए कि यहाँ क्या चल रहा है !
जब मैं टॉयलेट से लौट रही थी तो मैंने सोचा कि मम्मी के बेडरूम में झांक कर देखा जाए कि यहाँ क्या चल रहा है !
मैंने देखा कि फूफा जी मम्मी को कुतिया की तरह बहुत तेजी से चोद रहे थे और मुँह से अजीब अजीब सी आवाजें निकाल रहे थे, साथ ही साथ उत्तेजना में गाली भी बक रहे थे।
इतने में मम्मी की नजर मेरे ऊपर पड़ी। मैं तुरन्त खिड़की से भागी लेकिन मम्मी ने आवाज दे कर मुझे अन्दर बुला लिया। दरवाजा खुला था। मैं अन्दर चली गई।
फ़ूफा जी लगातार मम्मी को आँख बन्द कर के चोदे जा रहे थे। मेरी उपस्थिति का उन्हें पता ही नहीं चला। मम्मी ने मुझे धीरे से बगल में बैठने के लिए इशारा किया और मैं उनके बगल में बैठ गई। लेकिन शायद फ़ूफा जी को कुछ आभास हुआ और उन्होंने अपनी आँखें खोल दी।
मुझे अपने सामने नंगी देख कर बोले- तुम कब आई? चलो अच्छा है, अब मैं झड़ने वाला हूँ ! तुम इसे पी लो...
यह कहते हुए उन्होने मम्मी के भोसड़े से अपना लंड बाहर निकाला और खुद बेड से उतर कर खड़े हो गए। मैं घुटनों के बल उनकी टांगों के बीच बैठ कर हुंकार मारते हुए लंड को एक हाथ से पकड़ कर, गप से अपने मुंह में ले कर चूसने लगी और दूसरे हाथ से मैं अपनी चूत को सहलाने लगी। मेरी चूत अभी भी पूरी तरह गीली थी। मैं अपनी दो उंगलियों को चूत में डाल कर अन्दर-बाहर करने लगी। इधर फूफा जी कुछ ही पलों में अपना पूरा लंड मेरे मुंह में घुसेड़ते हुए झड़ने लगे, मैं उनका वीर्य पीने लगी। जब उनका लंड झड़ना बन्द हुआ, तब मैंने उनका लंड मुँह से बाहर निकाला और भाग कर मैं अपने कमरे में आ गई।
यहाँ प्रदीप और विशाल अपना अपना लंड खड़ा किए हुए सहला रहे थे। मुझे देखते ही विशाल बोला- इतनी देर से तुम कहां थी?
कुछ नहीं... दरअसल फ़ूफा जी मम्मी को चोद रहे थे तो मम्मी ने मुझे उनका वीर्य पीने के लिए बुला लिया था, इसलिए थोड़ी देर लग गई।
विशाल बोले- ओह... यह बात थी। खैर उसी तरह से तुम मेरी टांगों के बीच डॉगी स्टाइल में आ जाओ। तुम्हारी चूत रंवा हो चुकी है और अब प्रदीप तुम्हें हचक कर चोदेगा।
मैंने वैसा ही किया जैसे विशाल ने कहा। प्रदीप अपना हलब्बी लंड हाथ से पकड़े मेरे चूतड़ों के पीछे पहुँच गया और उसने एक साथ अपनी तीन उंगलियों को मेरी चूत में घुसेड़ दिया। मैं एकदम से उचक गई। इसकी मुझे कतई आशा नही थी कि प्रदीप पहले उंगलियों से चोदेगा। वो अपनी तीनों उंगलियों से कुछ देर चोदता रहा। मैं विशाल का लंड चूसे जा रही थी।
फिर प्रदीप ने चार उंगलियों से चोदना शुरू किया। मुझे थोड़ा अटपटा लग रहा था लेकिन मजा भी आ रहा था। अब मेरी चूत पूरी की पूरी गीली हो चुकी थी मेरी चूत से पानी बिस्तर पर टपकना शुरू हो गया था, शायद प्रदीप के लंड के स्वागत के लिए तैयार थी। यह बात प्रदीप भी जान गया था, तभी उसने उंगलियों से चोदना बन्द कर अपने दोनों हाथों से मेरी कमर पकड़ ली और अपने खड़े लंड का सुपारा मेरी चूत के गुलाबी होठों पर धीरे-धीरे रगड़ने लगा। मेरे पूरे बदन के रोएँ खड़े हो गए इस एहसास से कि जब प्रदीप अपना हलब्बी लंड घुसेड़ेगा तो कैसा लगेगा। मैं यह सोच ही रही थी कि तभी लंड का सुपारा मेरी चूत में घुसा। मुझे लगा कि कोई बहुत मोटा लट्ठ मेरी चूत को फाड़ कर अन्दर घुस रहा हो।
मैं दर्द के मारे कराहने लगी, प्रदीप बोले- बस संध्या जान ! थोड़ा सा दर्द सह लो, अभी तुमको आराम मिल जायेगा। मैं करती तो क्या करती? प्रदीप मेरी कमर को कसकर पकड़े हुए थे और विशाल मेरा सिर को पकड़ कर अपना लंड मेरे मुँह में घुसेड़े हुए थे। मेरे मुँह से तो कराह की आवाज तक ठीक से नहीं निकल पा रही थी, मैं तो दोनों के बीच में फंसी थी। मेरी मजबूरी थी दर्द सहना।
// सुनील पंडित //
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लेकिन थोड़ी ही देर में मेरा दर्द कम हो गया क्योंकि अब प्रदीप का सुपारा मेरी चूत में थोड़ा थोड़ा अन्दर बाहर हो रहा था और बीच बीच में प्रदीप अपने लंड को मेरी चूत की थोड़ी गहराई में झटके से पेल देता था, फिर जल्दी से पूरा लंड बाहर निकाल लेता था। वह मुझे बड़े आहिस्ता आहिस्ता चोद रहा था अब मुझे धीरे-धीरे मजा आने लगा था। साथ ही साथ मैं विशाल के लंड को भी चूस रही थी। मैंने विशाल के लंड से अपना मुँह हटाया और प्रदीप से बोली- प्रदीप ! मुझे दर्द नहीं हो रहा है अब तुम अपना पूरा लंड मेरी चूत में डाल सकते हो।
यह सुनते ही प्रदीप ने एक झटके में अपना पूरा 8 इन्ची लंड मेरी चूत में पेल दिया। एक पल के लिए मुझे हल्का सा दर्द महसूस हुआ। इसके बाद तो चुदाई का मजा आने लगा। प्रदीप लगातार पूरी गति से मुझे चोद रहा था और उसी गति से मैं अपनी गाण्ड आगे-पीछे कर के उसका साथ दे रही थी। दोनों लोग मुझको कस कर चोदते रहे, एक मुँह को, और दूसरा मेरी चूत को। इस बीच मैं कम से कम कम 7-8 बार झड़ चुकी थी।
करीब 30 मिनट के बाद विशाल ऐंठने लगा और वह मेरे मुँह के अन्दर ही झड़ गया। मैंने उसका वीर्य पी लिया। इधर प्रदीप ने भी अपनी स्पीड और बढ़ा दी। फिर एक झटके से अपना लंड मेरी चूत से बाहर निकाल कर बोले- मैं झड़ने वाला हूँ ! मेरे लंड को अपने मुँह में ले लो।
मैं बिल्कुल उल्टा घूम कर अपनी चूत विशाल की तरफ कर के प्रदीप का लंड, जोकि चुदाई के बाद और भी ज्यादा मोटा हो गया था, अपने मुँह में लेने का प्रयास किया लेकिन सुपाड़ा चुदाई के बाद इतना बड़ा हो गया था कि मैं उसको अपने मुँह में नहीं ले सकी सिर्फ चाट चाट कर वीर्य पीना पड़ा।
उधर जैसे ही विशाल ने मेरी चूत को देखा तो चिल्लाया- अबे प्रदीप, तूने तो संध्या की चूत को भोसड़ा बना दिया। देखो तो इसकी चूत बिलकुल कमल की तरह खिल गई है।
प्रदीप मुस्कराने लगे और बोले- यार मैं जिसकी एक बार ले लेता हूँ उसकी बुर जिन्दगी भर के लिए भोसड़ा बन जाती है। इसमें मेरा कोई दोष नहीं है यार ! मेरा लंड ही ऐसा है, मैं क्या करूं।
मैंने सोचा- देखें ! मेरी चूत प्रदीप की एक चुदाई से भोसड़ा कैसे बन गई।
मैं तुरन्त बेड से उतर कर ड्रेसिंग मिरर के सामने पड़ी कुर्सी पर बैठ गई और अपनी दोनों टागें ऊपर उठा कर अपनी चूत को शीशे में देखते ही मेरे मुँह से निकला- ओह माई गॉड ! यह तो वाकई एक खूबसूरत भोसड़ा बन गई है।
अभी भी इसके दोनों लब दरवाजे की तरह दाएँ बाएँ खुले हुए थे और बीच में एक बड़ा सा दो इन्ची व्यास का छेद नजर आ रहा था। मैंने अपनी दो उंगलियों को उसमें डाला। मुझे कुछ पता ही नहीं चला कि मेरी भोसड़े में दो उंगलियां हैं !
मुझे बहुत खुशी हुई। इसके बाद मैं उठ कर बेड पर दोनों के साथ लेट गई। उस रात उन दोनों ने मेरी दो बार और चुदाई की। करीब तीन बजे हम सब थक कर वैसे ही नंगे सो गए।
सुबह मम्मी ने हम लोगों को करीब नौ बजे जगाया।
हम लोग हड़बड़ा कर उठे और अपने अपने कपड़े को खोजने लगे। हम लोगों की हालत देख कर मम्मी बड़ी प्रसन्ता से बोली- मैं तुम लोगों के लिए चाय नाश्ता बना रही हूँ, फ्रेश हो कर डाइनिंग टेबल पर आ जाना।
यह कहते हुए मम्मी रसोई की तरफ चली गई। हम सभी लोग थोड़ी ही देर में डाइनिंग टेबल पर आ गए। चाय नाश्ता मेज़ पर लगा था।
मम्मी रसोई से आते हुए मुस्कराते हुए बोली- लगता है तुम लोगों ने संध्या को रात भर कस कर चोदा है। इस बात पर प्रदीप और विशाल बगैर कुछ बोले मुस्कराने लगे। नाश्ता करने के बाद प्रदीप और विशाल एक साथ कॉलेज के लिए निकल गए।
पाँच दिनों तक विशाल और प्रदीप मुझे सुबह और रात में दो दो बार चोदते रहे। उसके बाद विशाल दिल्ली चला गया और प्रदीप अपने घर चला गया। लेकिन रोज शाम को आकर मुझे चोदता था और वीर्य पिलाता था। कभी कभी प्रदीप के दोस्त भी मुझे चोदते और वीर्य पिलाते थे।
एक दिन प्रदीप के साथ उसका दोस्त मोहन त्रिपाठी आया। मैं समझ गई कि आज यह भी मुझे चोदेगा और वीर्य पिलाएगा।
खैर प्रदीप ने मोहन त्रिपाठी का परिचय मेरी मम्मी से कराया ये मेरे बड़े भाई के और मेरे भी दोस्त हैं ये ज्योतिष और हस्त रेखा के विशेषज्ञ है ये जो भी बात बताते हैं वो बिल्कुल सही निकलती है।
यह सुन कर मेरी मम्मी तुरन्त मेरे बारे में पूछने लगीं- मेरी बेटी संध्या का बदन एक जवान लड़की की तरह होगा या नहीं और इसकी शादी कब होगी?
इस पर मोहन त्रिपाठी ने मेरी कुन्डली मांगी। मम्मी ने मोहन त्रिपाठी को कुन्डली ला कर दे दी। उन्होंने बड़े ध्यान से कुन्डली को पाँच मिनट तक देखा फिर मुझसे बोले- अपना बायाँ हाथ दिखाओ।
मेरा हाथ उलट पलट कर देखते रहे, फिर मम्मी से बोले- आपकी बेटी का हार्मोनल सिस्टम बिगड़ा है अगर एक चीज आपकी बेटी के शरीर में होगी तो वो बिलकुल ठीक हो जायेगी।
वोह क्या... मम्मी बोलीं।
इस पर पंडित जी ने प्रदीप के कान में कुछ कहा। फिर प्रदीप ने मम्मी को इशारे से अन्दर आने को कहा। प्रदीप और मम्मी अन्दर चले गए। प्रदीप ने मम्मी से कहा कि पंडित जी संध्या की बुर का निरीक्षण करना चाहते हैं।
मम्मी ने अनुमति दे दी। फिर प्रदीप ने आकर पंडित जी से कहा कि आप देख सकते हैं ! और मुझसे कहा कि सलवार उतार कर तुम अपनी बुर पंडित जी को दिखाओ। मैंने वैसा ही किया जैसे प्रदीप ने कहा। मुझे अब किसी के सामने कपड़े उतारने में कोई संकोच नही होता था।
पंडित जी ने मेरी चूत को बारीकी से देखा और मुस्कराकर मम्मी से बोले- आपकी लड़की बिल्कुल सही हो जायेगी क्योंकि इसकी योनि पर काला तिल है, आपकी लड़की इतनी सेक्सी है कि कोई साधारण लड़का इसको संतुष्ट नहीं कर पायेगा, वही लड़का इसको संतुष्ट कर सकता है, जिसके लिंग पर काला तिल होगा। आप इसकी शादी उसी लड़के से करियेगा। और जहाँ तक इसकी शादी की बात है वह 28-29 वर्ष में हो जायेगी। आप की लड़की तो सुन्दरता का प्रयाय बनेगी। आप देखती जाइये। क्योंकि इसकी कुन्डली में पिछले तीन महीने से शुक्र की महादशा चल रही है आप बिलकुल निश्चिंत रहिए। फिर प्रदीप और पंडित बाहर चले गए। मैं और मम्मी, पंडित जी की भविष्यवाणी सुन कर बहुत प्रसन्न हुए।
इसके बाद यह थैरेपी करीब तीन महीने तक चली लेकिन कोई खास परिवर्तन मेरे बदन में नही दिखा। लेकिन मेरी मम्मी ने कहा- तुम लगातार वीर्य पान करती रहो।
चौथे महीने के एक दिन जब सुबह उठी, तो मुझे लगा कि मेरी बुर के पास की सलवार गीली है। मैंने हाथ लगा कर देखा कि मेरी बुर से खून रिस रहा था। मैंने भाग कर मम्मी को बताया। मम्मी ने मुझे बेड पर लिटा दिया और सलवार उतार कर मेरी बुर के होठों को फैला कर देखते ही बोली- चलो, तुम्हारे पीरियड शुरू हो गये हैं अब सब ठीक हो जायेगा। इसके बाद तो चुदाई में मुझे और मजा आने लगा। मेरी चुदाई से अब मेरे शरीर में परिवर्तन आने लगा था। पांचवे महीने मेरी चूचियाँ सन्तरे के बराबर हो चुकी थी और मेरा रंग भी पहले से ज्यादा साफ हो रहा था।
एक साल के बाद तो कोई मुझे पहचान ही नही सकता था। मैं एक सम्पूर्ण खूबसूरत लड़की हो चुकी थी। जहाँ भी जाती, लोग मुझे देखते ही रहते। अब तो मैं महफ़िलों की शान थी। जो भी लड़का मुझे देखता, वो चोदने के फिराक में आ जाता था। लेकिन मैं सबसे तो चुदवा नहीं सकती थी।
समय बीतता गया, बीच बीच में मेरे रिश्ते के मामा ने भी मेरी खूब चुदाई की। मुझे उनकी चुदाई में मजा भी आता था।
मम्मी अक्सर कहती थी कि तुम्हारी शादी इन्हीं से करवा दे ! लेकिन वो कभी भी मुझे पूर्ण संतिष्टि नहीं दे पाये। इसलिए मैंने उनसे शादी के लिए मना कर दिया। इसीलिए मैंने अपने कई ब्वाय फ्रेन्ड्स के साथ सेक्स किया लेकिन सर... ! मैंने किसी के लण्ड पर काला तिल नहीं देखा। मेरी उम्र बढ़ती जा रही थी। फिर मेरे पापा के जानने वाले ने मेरी शादी एक सी.ए. से तय करा दी। वो सी ए साधारण लड़का था। मैंने भी सोचा कि चलो इसी से कर लेते हैं। शादी हमारे समाज में आवश्यक है। जब कोई आदमी, जिसके लन्ड पर काला तिल होगा, मिलेगा, तो उससे अपनी चूत की आग बुझवा लिया करूगीं।
// सुनील पंडित //
मैं तो सिर्फ तेरी दिल की धड़कन महसूस करना चाहता था
बस यही वजह थी तेरे ब्लाउस में मेरा हाथ डालने की…!!!
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09-03-2019, 11:27 AM
(This post was last modified: 08-02-2024, 09:48 AM by suneeellpandit. Edited 2 times in total. Edited 2 times in total.)
फिर कुछ दिनों के बाद मेरी शादी हो गई। दो महीने के बाद मैंने आप के यहाँ जॉब कर ली। और आज जब मैंने आप के लन्ड पर काला तिल देखा तो मुझसे रहा नहीं गया, मैंने तुरन्त आपके ऑफर को मान लिया। पंडित जी के अनुसार आप ही मुझे संतुष्ट कर सकते हैं !
यह सुनते ही मैंने कहा- ओह.. तो यह बात है... संध्या । यही तो मैं सोच रहा था कि तुम्हारे जैसी बला की खूबसूरत लड़की इतनी आसानी से कैसे तैयार हो गई।
खैर मैंने संध्या से कहा- चलो, आज मैं तुम्हारी अतृप्त वासना की इच्छा पूरी करता हूँ।
ओह.. तो यह बात है... संध्या । यही तो मैं सोच रहा था कि तुम्हारे जैसी बला की खूबसूरत लड़की इतनी आसानी से कैसे तैयार हो गई।
खैर मैंने संध्या से कहा- चलो, आज मैं तुम्हारी अतृप्त वासना की इच्छा पूरी करता हूँ।
यह सब कहते हुये उसने मेरा लंड छोड़ा नहीं था बल्कि और भी जोर से पकड़ लिया था। मेरा लंड लोहे की छड़ की तरह सख्त हो चुका था। अंदर से मैं बहुत उत्तेजित हो चुका था।
उसने पूछा- आपको मुझमें क्या अच्छा लगता है सर...?
मैंने कहा- तुम्हारे होंठ, तुम्हारे गाल ... !
उसने कहा- और..?
वह कुछ और ही सुनना चाहती थी ...
मैंने जारी रखा- तुम्हारे बड़े-बड़े स्तन ... तुम्हारे चूतड़ ... मैं इन्हें सहलाना चाहता हूँ ... इनमें डूब जाना चाहता हूँ..!
उसने सिसकारती आवाज़ में कहा- आपको रोका किसने है सर ... मैं तो कितने दिनों से यही चाह रही थी ...
उसका इतना कहना था कि मैंने अपने होंठ उसके नर्म मुलायम होंठों पर रख दिये और दोनों हाथों से उसके स्तनों को मसलने लगा ... उसके भरे-भरे कठोर और बड़े स्तन थे, घुटने के बल आकर उसने मेरे सुपारे को लॉलीपॉप की तरह फिर से चूसना शुरू कर दिया।
मैं सिसकारियाँ लेने लगा और जोर-जोर से उसके स्तन मसलने लगा ... थोड़ी देर बाद मेरे लंड के टिप पे लसलसा सा प्रि-कम आ गया था जो उसने मजे से चाट लिया।
अचानक वो खड़ी हुई ... मैं भी खड़ा हो गया। उसने मेरा एक हाथ अपने वक्ष से हटाया और अपने दोनों टाँगों के बीच वहाँ रख दिया जहाँ दहकता लावा था ...पहले तो मैं सहलाता रहा ... नापता रहा दोनों पंखुड़ियाँ ... उनके बीच की दरार ... जहाँ हल्की-हल्की रिसावट हो रही थी ... मैंने उसकी चूत के दरार पे उंगली फ़िराई ...उसने सिसकारियाँ भरना शुरु कर दिया और अपने गुदाज नितंबों को आगे-पीछे करने लगी...
मैंने अपनी एक उंगली धीरे से अंदर प्रविष्ट कर दी... वो चिहुँक उठी ... .और अपना वस्ति-दोलन और तेज़ कर दिया ... उसने अपनी आँखें बन्द कर रखी थीं ... मैंने उंगली को आगे पीछे करना शुरु कर दिया ...
वो मेरे लंड को एक हाथ में लेकर उसके चमड़े को आगे-पीछे करने लगी ... मेरा सुपाड़ा और मोटा होता जा रहा था... उसकी चूत गीली होती जा रही थी ... वो और बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी ... उसके मुँह से गूँ-गूँ की आवाज़ निकल रही थी।
और मैं उसकी दोनों टांगो के बीच फ़ँसी उस दरार को निहारने लगा जिसके पीछे ऋषि-मुनियों की तपस्या भंग हो गई थी ! मैं तो सिर्फ मानव हूं।
फिर वो पीछे घूम गई ... अब मेरा लंड उसके उन्न्त नितम्बों के बीच की खाई में झटके मार रहा था ... ..मैंने उसके दोनों स्तन पकड़े और पीछे सट गया ... वो अपने चूतड़ मेरे मुन्ने पर रगड़ने लगी। आह ... स्वर्गीय आनंद था ... कामुकता ... वासना ... अपनी चरम सीमा पर थी। मैंने उसके गर्दन पर एक चुम्बन दिया ... उसने कराहती सी वासना में लिप्त आवाज़ में कहा,"उँह्ह्ह्ह्ह्ह ..."
मैंने अपना एक हाथ उसके उरोज से हटाया और चूत पर फेरने लगा ... एक छोटी सी ... मटर के दाने जितनी घुंडी का अहसास हुआ ... जाने क्यों मैं उस घुंडी को रगड़ने लगा और वो बेसाख़्ता सिसकारियाँ भरने लगी ...और मेरे लंड को अपने गोल-गोल नितम्बो के बीच फ़ँसाकर ऊपर-नीचे रगड़ने लगी ...
लग रहा था किसी लावा में रगड़ा जा रहा है ... मैं अपने आपको संयत कर पाता कि अचानक वो अपने दोनों हाथ सोफे के बैक पर रखकर झुक गई और जन्नत का दरवाजा मेरे सामने था। साँसें घुटती हुई सी लग रही थीं ... धड़कनें थमी सी महसूस हो रही थीं ...
सीटी बजाने के आकार में सुकड़ा हुआ भूरा सा गुदाद्वार किसी खिले हुए चमेली फूल सा लग रहा था ...उसके कुछ आधे इंच नीचे भूरे-भूरे रेशमी झाँटों की एक बारीख लाइन दिखाई दे रही थी ... वो ऐसे लग रही थी जैसे संध्या के सेक्सी होंठों को किसी ने वर्टिकल कर दिया हो ... थोड़ा गुलाबी ... थोड़ा बादामी ... ऐसा कुछ रंग था उन होंठों के बीच ...मेरे हाथ-पाँव भारी से होते जा रहे थे ... मैं अपने घुटनों पर आ गया और जाने किस अनजान शक्ति ने मेरा मुँह उस खुशबूदार ... तीन इंची दरार में टिका दिया ...
मेरी जीभ बाहर निकल आई और मैं कुत्ते की तरह उसकी बुर को चाटने लगा ... कुछ नमकीन-कसैला सा स्वाद था ... अब वो कुछ अंड-बंड बकने लगी और अपने चूतड़ को आगे-पीछे करने लगी ... मैंने अपने जीभ के आगे का हिस्सा नुकीला करके उसके योनिद्वार में घुसा दिया ... उसकी सिसकारियाँ रुकने का नाम नहीं ले रही थीं ...मैंने जीभ को मटर के दाने जितनी घुंडी पर गोल-गोल घुमाना शुरु कर दिया ... उसकी दरारों से और ज़्यादा नमकीन पानी रिसने लगा ...
लंड का तनाव काबू से बाहर होता जा रहा था ...जो आम तौर पर आठ इंच का दिखता था ... आज नौ इंच का दिख रहा था ... सुपारा अंगारा हो गया था ... उतना ही गरम ... उतना ही लाल ... ! अपना दहकता अंगार मैंने संध्या के सुलगते लावा में रख दिया ... जिसे मैंने चाट-चाट के लाल कर दिया था ... उफ़ क्या गरमी थी ... क्या नरमी थी ... ।
अपने गरम सुपारे को उसकी चूत के दोनों होठों के बीच रगड़ने लगा ... ... जहाँ लसलसे पदार्थ का झरना सा बह रहा था ... संध्या अपना नियंत्रण खोती जा रही थी ... उसके तन-मन में मादकता छा गई थी ... उसने अपनी कमर को उछालना शुरू कर दिया ...
मैंने धीरे से सुपाड़ा अंदर घुसेड़ने की कोशिश की ...
कोशिश इसलिये कह रहा हूँ कि सुपारा बार-बार फ़िसल जाता था ... अंदर जा ही नहीं रहा था। इतनी चिकनाई होने के बावजूद उस चूत के छेद के लिये 4-5 इंच घेरे वाला लंड काफ़ी बड़ा साबित हो रहा था ...। मैंने एक हाथ से उसके नितंब को थामा ... दूसरे हाथ से अपने लंड को पकड़ा ... उसे जन्नत के दरवाजे पर टिकाया और हाथ से पकड़े-पकड़े अपने चूतड़ों को एक जुम्बिश दी ... सुपारा अन्दर समा गया ... अभी भी आठ इंच का फ़ड़कता हुआ रॉड बुर के बाहर था ... ऑफिस का एसी चलने चलने के बावज़ूद मैं पसीने-पसीने हो रहा था ...।
अब मैंने लंड को छोड़ा ... अपने आपको सीधा किया ... गहरी साँस ली ... दोनों हाथों से उसके गोल-गोल सुडौल नितंबों को थामा ...नज़रें चमेली के फूल पर टिकाई और अपने चूतड़ों को जबरदस्त झटका दिया ... अब मेरा लौड़ा तकरीबन 4-5 इंच अंदर था..। अंदर तो भट्टी दहक रही थी ... सब कुछ गरम-गरम महसूस हो रहा था ... संध्या कराह रही थी ...थोड़ी देर तक हम दोनो ऐसे ही निश्चल रहे ...लंड आधा ही अंदर था ... मेरा लंड अंदर के कसाव के बावजूद फड़क रहा था ...संध्या चुपचाप मेरे लंड का फड़कन महसूस कर रही थी।
... मैं भी उसके चूत की मांसपेशियों का फैलना और सुकड़ना को महसूस कर रहा था। करीब एक मिनट तक ऐसे ही रहने के बाद उसने अपने आपको आगे पीछे हिलाना शुरू किया ...
अभी भी लंड का आधा हिस्सा बाहर ही था ... मुझे याद नहीं आ रहा है जाने कब मैं कुत्ते वाली स्टाइल में उसके ऊपर झुक गया था ... उसके दोनों स्तन मेरे हाथ में थे और मैं पीछे से उसका चूतमर्दन कर रहा था।
मैं रफ़्तार पकड़ चुका था ... और संध्या भी अपने कूल्हों को हिला-हिला कर पूरा साथ निभा रही थी। उसकी सेक्सी आवाज़ मुझे और उत्तेजित कर रही थी ...
वो बड़बड़ा रही थी- पुश इट् हार्ड ... पुश दैट मोर इनसाइड ... ऊह्ह्ह्ह ... ओ गॉड ... आह..ऊँहु्ह्ह्ह ... और जाने क्या-क्या ... । अचानक उसका पूरा शरीर बुरी तरह काँपने लगा ... ऐसा लग रहा था कि उसके हाथ पैर उसका बोझ नहीं सम्हाल पा रहे हैं ... उसके नितंबों में अजीब सी थरथराहट हो रही थी ... और मैं था कि रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था। अचानक संध्या भरभराकर कोहनियों के बल सोफे की सीट पर आ गई ... उसका पेट और स्तन सीट पर टिके थे पर नितम्बों वाला हिस्सा ऊपर उठा हुआ था ...
मैंने अपना लंड एक इंच पीछे खींचा ... उसकी कमर दोनों हाथों से पकड़ा और दोनों कूल्हों के बीच निहारा ... उसके फ़ाँकों के बीच फ़ंसे अपने खुद के अंग को देखकर मैं इतना उत्तेजित हो गया कि पूरी ताकत के साथ लंड को वापिस पेल दिया ...
संध्या बोली- ओ गॉड ... यह तो यूटेरस में टकरा रहा है ...
इतना कहते ही उसके बुर से तेज धार सी निकली और मेरे झाँटों की भिगोती चली गई ... मैं दुगनी रफ़्तार से भिड़ गया ... कोई 20-25 मिनट के बाद मेरे लंड में अजीब सी ऐंठन हुई और पता नहीं कितना वीर्य उसके बच्चेदानी के छेद पे न्यौछावर हो गया ...
बस इतना पता है कि उसने कहा- ओह गॉड ... .इतना सारा ...?
मैं उसके खुशबूदार शरीर से चिपट गया ... उसके स्तनों को मसलने लगा ... मेरा लंड उसकी चूत में फैलने-सुकड़ने लगा ... उसने पता नहीं क्या किया ... ऐसा लगा जैसे मेरे लंड का पूरा रस अपने बुर को टाइट करके निचोड़ रही हो। मैं उसकी सुराहीदार गर्दन को चूमता जा रहा था ... हम दोनों तरबतर हो चुके थे !
इसके बाद हम लोग हांफते हुए सोफे पर कटे हुए पेड़ की तरह गिर पड़े। उस दिन मैंने संध्या को पाँच बजे तक चार बार चोदा। आखिर में संध्या ने कह ही दिया... सर आज से पहले इतनी खुशी नहीं मिली। फिर हम लोग ऑफिस बन्द कर के अपने अपने घर चले गये।
~~~ समाप्त ~~~
दोस्तो, कैसे लगी ये कहानी आपको ,
कहानी पड़ने के बाद अपना विचार ज़रुरू दीजिएगा ...
आपके जवाब के इंतेज़ार में ...
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