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UPDATE 11
कहानी अब तक:
बप्पा के सामने म ऐन उनका विरोध कर नहीं सकता था सो मैंने उनकी बात मान ली| रात को खाना खाने के बाद मेरा बिस्तर नीतू ने अपने बिस्तर से करीब २० कदम दूर लगाया ताकि वो रात में उसकी नजर मुझ पर रहे| आमतौर पर हमारे गाँव में मर्द और औरतें अलग-अलग सोते हैं| (जब तक की उनका कोई चुदाई प्रोग्राम ना हो!) पर चूँकि मेरी हालत ऐसी थी मुझे ये ख़ास treatment मिल रहा था| अम्मा और भाभी का बिस्तर नीतू के बगल में था और बप्पा और भैया का बिस्तर दूर पेड़ के पास था|
अब आगे:
रात में मेरी आदत है की मैं एक बार तो मूतने अवश्य उठता हूँ| पर आज की रात में मूतने के लिए उठने में जैसे मौत आ रही थी| मैं कोशिश कर रहा था की कम से कम आवाज करूँ ताकि कोई जाग ना जाए| पर मूतने के लिए जब उठने लगा तो अचानक से कूल्हे पर हुई चमक से मेरी कराह निकल गई; "आह!" जिसे सुन नीतू दौड़ती हुई मेरे पास आई| "आह! अरे बेटा आप सोये नहीं?" "नहीं चाचू... मुझे लगा कहीं आपको उठना पड़े तो मैं आपको मदद कर दूँ|”
"THANK YOU बेटा!" नेहा ने मुझे सहारा देकर उठा के बैठा दिया| "बस बेटा मैं अब चला जाऊँगा ... आप सो जाओ!" मैंने नेहा से कहा और जैसे-तैसे उठ खड़ा हुआ| मैं मूतने के लिए थोड़ी दूर गया और जब वापस आया तो पाया नीतू अब भी जाग रही थी| "एक बार आपको लिटा दूँ फिर सो जाऊँगी|" फिर नीतू ने मुझे सहारा दे कर लेटने में मदद की और मैंने फिर उसे सो जाने को कहा| पर मेरा मन कह रहा था की वो सोने वाली नहीं है| थोड़ी देर बाद मैंने करहाते हुए करवट ली तो देखा की नीतू अब भी जाग रही थी और उसकी नजरें मुझ पर टिकी हुई थी| मैंने खुस-फुसा कर उसे सोने को कहा और फिर मेरी कब आँख लग गई पता नहीं चला|
सुबह जब आँख खुली तो नीतू ने मुझे उठा के बिठाया, उसकी शक्ल देख कर लग रहा था की वो रात भर तनिक न सोइ है| "बेटा...आप मेरे लिए रात भर जागे हो| अब आप आराम करो दोपहर में उठना|" मेरी बात सुनते हुए अम्मा भी वहाँ आ गई और उन्होंने भी नेहा को तारीफ की| अम्मा की बात सुन नीतू मान गई और सोने चली गई और अम्मा ने सबको कह दिया की उसे कोई नहीं जगायेगा| मैं रुपये में एक आने बेहतर महसूस कर रहा था सो मैं ने अम्मा से एक डंडा माँगा और उसे लाठी की तरह इस्तेमाल करता हुआ अपने घर आ गया| अम्मा ने मदद करनी चाही पर मैंने उन्हें मन कर दिया| अब अम्मा ने बी भाभी की ड्यूटी लगाईं को मेरी देख भाल करें जो मुझे गंवारा नहीं था| पर मरता क्या न करता, कुछ बोल नहीं पाया| मेरे घर पहुँचते ही भाभी भी पीछे से आ गई और बोली; "मैं....." पर मैंने उन्हें वहीँ चुप करा दिया; "मुझे कुछ नहीं सुनना बस मुझे एक बाल्टी गर्म पानी ला दो|"
भाभी कुछ नहीं बोली और पानी लेने चली गई| करीब आधे घंटे बाद उन्होंने मुझे गर्म पानी ला दिया और फिर से कुछ बोलने को मुंह खोला ही था की मैंने कहा; "GET OUT!" भाभी मेरी तरफ मुंह फाड़े देखती रही| "सुना नहीं? निकल जाओ यहाँ से! या फिर फिर से मेरे साथ 'बलात्कार' करने का मन है?" ये सुन कर भाभी का सर झुक गया और वो वहां से चली गई| मैंने दरवाजा बंद किया और गर्म पानी से नहाया और फिर खुद ही किसी तरह दवाई लगा ली और गर्म पट्टी बाँध ली| चाय पीने के बाद बप्पा दूसरे गाओं से एक मालिश वाले को ले आये और उसने जो जम के मेरी मालिश की! मेरे सारे अंजार-पंजर हिल गए!!! उसने बताया की कोई नस चढ़ने के कारन मुझे इतना दर्द हो रहा है| कुतिया वाली बात सुन कर वो बहुत हँसा और मुझे तो इसमें कुछ अजीब सा सुख मिल रहा था| दोपहर में खाना नीतू ले कर आई और खाना रख कर मेरा हाल-चाल पूछने लगी| जब मैंने उसे बताया की मालिश वाले ने कैसे मेरे अंजार-पंजर ढीले किये तो वो बहुत हँसी और उसे हँसता हुआ देख मुझे भी अच्छा महसूस होने लगा| मैंने नीतू को मेरी कल वाली पैंट थाके लाने को कहा और उसमें से चॉकलेट निकलने को कहा| जब नीतू ने चॉकलेट निकाली तो उसका काचुम्भर निकल चूका था जिसे देख वो बहुत हँसी और मेरी हँसी छूट गई| खेर ये हँसी-मजाक चलता रहा और अगले तीन-चार दिन नीतू ने मेरा बहुत ख़याल रखा और उस मालिश वाले ने जम कर मेरी हड्डियां ढीली कीं| पाँचवे दिन मैं पंद्रह आने ठीक हुआ तो भाभी बीमार पड़ गई!
to be continued!
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UPDATE 12
कहानी अब तक :
खेर ये हँसी-मजाक चलता रहा और अगले तीन-चार दिन नीतू ने मेरा बहुत ख़याल रखा और उस मालिश वाले ने जम कर मेरी हड्डियां ढीली कीं| पाँचवे दिन मैं पंद्रह आने ठीक हुआ तो भाभी बीमार पड़ गई!
अब आगे....
सुबह का समय था और मैं कपडे पहन के तैयार हो रहा था, मुझे अपने दोस्त को मिलने जाना था| तभी नीतू मुझे बुलाने आई; "चाचू... माँ को बहुत तेज बुखार है|" आमतौर पर ये सुन कर मैं भाग कर उनके पास पहुँच जाया करता था पर आज मैंने बाल बनाते हुए कहा; "ठीक है... आता हूँ|" मेरा जवाब सुन नीतू को बहुत बुरा लगा ये उसकी उत्तरी हुई शक्ल बता रही थी| नीतू वहांसे गई नहीं और मेरी तरफ देखती रही जैसे पूछ रही हो की क्यों आपको मेरी माँ की कदर नहीं रही| मैंने बाल बनाये और पीछे मुड़ा और नीतू की तरफ देख कर ऐसे बोलै जैसे मुझे कोई फर्क ही नहीं पड़ा; "क्या हुआ? आ रहा हूँ ना ....चल तू!" पर नीतू वहां से हिली नहीं| मुझे एहसास होने लगा की उसका सब्र का बाँध टूटने वाला है ... जो टूट भी गया| "आपको क्या होगया है चाचू? जब से आप का एक्सीडेंट हुआ है आपने माँ से बात-चीत करना बंद कर दिया है? आज माँ बीमार है तब भी आपको कुछ फर्क नहीं पड़ रहा?"
"नीतू समय आने पर आपको सब पता चल जायेगा|" मैंने इतना बोला और चारपाई पर बैठ जूते पहनने लगा| मेरा ये रवैय्या देख नीतू वहाँ से पाँव-पटकते हुए वापस चली गई| मैंने आराम से जूते पहने और आराम से टहलते हुए भाभी के पास पहुँचा| भाभी चारपाई पर लेती थी और उन्होंने एक चादर ओढ़ राखी थी| अम्मा उन्हीं के पास बैठी थी और उनसे हाल-चाल पूछ रही थी| मैं जब कमरे में घुसा तो मुझे जानी-पहचानी सी सुंगंध आई और मैं साड़ी बात समझ गया| मैं वहाँ पहुँच कर जेब में हाथ डाले खड़ा था और मेरा बर्ताव ऐसा था जैसे मुझे कुछ फर्क ही नहीं पड़ रहा| "नीतू ... तेरी माँ ने कुछ खाया-पीया है? बहुत कमजोर लग रही है!" अम्मा ने चिंतित होते हुए कहा| "नहीं अम्मा... माँ ने पिछले तीन दिन से कुछ नहीं खाया|" नीतू ने ये मेरी तरफ देखते हुए कहा जैसे की कह रही हो की अब तो पिघल जा! पर ये सुन कर भी मुझे कुछ फर्क नहीं पड़ा और मैं जेब में हाथ डाले खड़ा रहा| अम्मा भाभी से उनके खाना ना खाने का कारन पूछने लगी तो भाभी बात को घुमाने लगी ये कह के; "मेरा मन नहीं करता कुछ खाने को|" अम्मा कुछ कहती उससे पहले ही मैंने अपनी पहली चाल चली; "अम्मा होता है ऐसा... अब माँ को ही तो सबसे ज्यादा दुःख होता है की उसकी बेटी दूसरे घर जा रही है| कितने नाजों से माँ पालती है अपनी बेटी को और फिर एक दिन उसे दूसरे घर जाता देख मन तो दुखता ही है|" मैंने भाभी का बचाव करते हुए कहा| मेरी बात अम्मा को जाची और वो भाभी को समझाने लगी; "अरे पगली बेटी तो होती है पराया धन, आज नहीं तो कल तो उसे जाना ही होता है| उसके चक्कर में तू अपनी तबियत ख़राब कर लेगी तो कैसे चलेगा! चल अब और जिद्द मत कर और खाना खा ले| नीतू चल मेरे साथ मैं कुछ बना देती हूँ|" ये बोल कर अम्मा नीतू को अपने साथ ले गई और अब कमरे में बस मैं और भाभी ही रह गए| मैं भी जाने लगा तो भाभी ने लेटे-लेटे ही मेरा हाथ पकड़ लिया और रोने लगी| "मुनना... मुझे माफ़ कर दो! मैं.... मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूँ| उस दिन .... सब मेरी गलती थी .... तुमने इतने दिन से मुझसे बात नहीं की थी इसलिए मैं तुम्हारे प्यार के लिए प्यासी हो गई थी ... और इसी अंधी प्यास के चलते मैंने ....वो गोली..... खाली! ये सब जो कुछ हुआ वो सब उस गोली के कारन हुआ... सच्ची .... वर्ण तुम्हें तो पता है की मैं ऐसी नहीं हूँ| मैं तो तुमसे कितना प्यार करती हूँ....." भाभी इतना ही बोल पाई थी की नीतू सत्तू ले आई और उसे देख भाभी एक दम से चुप हो गई जैसे की उन्हें कोई सांप सूंघ गया हो| नीतू के हाथ में थाली थी और थाली में सत्तू, हमारे यहाँ नाश्ते में सत्तू और प्याज खाते हैं| मैंने नीतू से पूछा; "बेटा आप प्याज तो लाये ही नहीं! खेर कोई बात नहीं प्याज मैं ला देता हूँ|" ये कहते हुए मैंने भाभी के ऊपर से चादर खेंच दी और उनकी कांख (बगल) में दबे हुए प्याज उजागर हो गए| मैंने दोनों प्याज बाहर निकाले और नीतू को देते हुए कहा; "ये ले... और हाँ भाभी ..... मुझे पता है की आप मुझसे कितना प्यार करते हो| ये (प्याज) गवाह हैं|" मैंने बस इतना कहा और नखरे वाली मुस्खूरहत के साथ वहाँ से चला गया|
मैं पैदल ही अपने दोस्त के घर चल दिया और पूरे रास्ते यही सोच रहा था की मैंने भाभी की क्या गत बना दी उन्हीं की बेटी के सामने, और मुझे अपनी सैतानी हरकत पर बहुत हसीं आई| सच है की बदले का स्वाद बहुत जबरदस्त होता है….. पर मेरा बदला अभी पूरा नहीं हुआ था! ये तो पहली ही किश्त थी .....!!!
दोस्त के घर से वापस आते-आते मुझे रात हो गई थी और खाने का समय भी हो चूका था| मैंने सोच लिया था की मुझे अब क्या करना और मैंने आते ही अपने प्लान पर काम करना शुरू कर दिया| मैं सीधा अपने घर पहुंचा और नहाने लगा और जैसे ही मेरा नहाना खत्म हुआ नीतू आ गई| उसे देख कर मैं थोड़ा नाराज हो गया क्योंकि सुबह सुने मुझसे बहुत उखड के बात की थी| "sorry चाचू! मुझे सब पता चल गया की कैसे आपको चोट लगी और......" नीतू इतना कहते हुए चुप हो गई|उसकी आँखों में मुझे पछतावा नजर आ रहा था इसलिए मेरा दिल पिघल गया और मैंने उसे कहा; "कोई बात नहीं बेटा... आपकी कोई गलती नहीं थी|"
"पर माँ ने आपके साथ इस तरह जबरदस्ती क्यों की? मतलब आप उन्हें हमेशा प्यार ....." नीतू की झिझक उसके शब्दों में साफ़ दिख रही थी| एक बात जो मुझे महसूस हुई वो थी 'जलन'| जब उसने कहा 'आप उन्हें हमेशा प्यार....' और फिर बिना बात पूरे किये ही चुप हो गई| "बेटा हर चीज को पाने का तरीका जबरदस्ती नहीं होता| कुछ चीजें प्यार से भी पाई जा सकती हैं| पर काम अग्नि में जल रहा इंसान सिर्फ जबरदस्ती ही जानता है|" मैंने इतना खा और अपने कमरे में घुस के कपडे बदल कर आया| मैंने बाहर आकर देखा तो नीतू स्नानघर के पास थी और मेरे उतारे हुए कच्छे को छू कर कुछ कर रही थी| दरअसल नीतू मेरे कच्छे के सामने वाले हिस्से, जहाँ पर लंड बाहर निकलने का छेड़ होता है वहां लगे मेरे रास की बूंदों को हाथ से छू रही थी और कुछ सूंघने की कोशिश कर रही थी| "नीतू ये क्या कर रही हो?" मैंने उसे हड़काते हुए पूछा| "वो....वो... मैं ... इसे धो ....ने जारही थी|" नीतू ने सकपकाते हुए कहा| "नीतू ये गलत...." मेरे आगे कुछ बोलने से पहले ही भैया आ गए| "चलो मुनना खाना खाते हैं और तू कपडे धो कर आजा जल्दी से, जब देखो सारा दिन खाली बैठी मखियाँ मारती रहती है|" इतना कह भैया मुझे अपने साथ ले गए और मैं मन ही मन सोच रहा था की नीतू मेरे कच्छे के साथ क्या कर रही होगी?
आँखें बंद किये हुए उस कपडे को अपने नथुनों के पास लाकर सूंघना.... मदहोश कर देने वाली लंड की खुशबु को अपने मन में बसा लेना.... अपने गुलाबी होठों से कपडे को चूमना..... जीभ से चाटना.... कच्छे में लिप्त मेरी पिशाब की बूंदों की महक को सूंघ कर मदहोश हो जाना.... मेरे लंड की पसीने बूंदों का नमकीन स्वाद..... ये सब नीतू को पागल बना रहा होगा ये सोच कर ही मेरे मन में अजीब सी बेचैनी होने लगी थी|
खाना परोसा गया पर मैं भाभी से कुछ बात नहीं कर रहा था| खाना परोसने के 20 मिनट बाद नीतू भी वहां आ गई और उसके चेहरे पर मुझे संतोष नजर आने लगा था| जैसे की उसकी मन की मुराद पूरी हो गई हो! खाना खा के मैं अपने घर आ गया, भैया और बाप्पा अपने-अपने बिस्तर पर चले गए और उनके बीच कुछ बातें होने लगी| मैं कुछ देर तक पाने घर के बाहर ही छिप कर खड़ा रहा और करीब आधे घंटे बाद मैं नांद (जहाँ बैलों को बाँधा जाता है|) के पास आकर छिप गया| मुझे पता था की भाभी रोज की तरह खाना खाके, बचा हुआ खाना बैलों को डालने के लिए नांद पर आएगी| नांद वाली जगह तीन तरफ से ढकी हुई थी और ऊपर छत थी ताकि जानवरों को धुप और बारिश से बचाया जा सके| रात होने के कारन अंदर अँधेरा था और कोई अगर वहां छुप जाए तो उसे देख पाना मुश्किल था| जब भाभी वहां अपनी थाली ले कर आई तो मैं डीएम साढ़े वहां छुप कर खड़ा रहा और जब उन्होंने बचा हुआ खाना बैलों को डाल दिया और मुड के जाने लगी तो मैंने उन्हें पीछे से दबोच लिया| सीधे हाथ से उनका मुंह बंद कर दिया ताकि वो चिल्ला ना सके और बाएं हाथ से उनकी कमर के ऊपर से होते हुए खुद से चिपका लिया| मेरा अकड़ा हुआ लंड उनकी गांड पर अपना दबाव डालने लगा था| "मैं हूँ मुनना.... चिल्लाना मत|" इतना कह कर मैंने उनका विश्वास हासिल किया और भाभी शिथिल पड़ गई| फिर उनकी गर्दन पर अपने होंठ रख कर मैं उन्हें चूमने लगा और भाभी का कसमसाना शुरू हो गया| मेरे दाएं हाथ ने उनके चुचों को धीरे-धीरे मसलना शुरू किया और बाएं हाथ से मैंने उनकी बुर को साडी के ऊपर से टटोलना शुरू कर दिया| भाभी की सिसकारियां फूटने लगी; "सससस.....मम..."| मैंने उनके कान के पास अपने होठों को ले गया और फिर धीरे से काट लिया और भाभी की प्यार भरी आह निकल गयी| "आह!!!"
मैंने खुसफुसाते हुए कहा; "साढ़े बारह बजे ....सससस..... मैं... इंतजार करूँगा...!" ये सुन कर तो जैसे भाभी की साड़ी इच्छा पूरी हो गई| "मुझे माफ़......" भाभी खुसफुसाते हुए बोलना चाह रही थी पर मैंने उनके होठों पर अपनी बीच वाली रख दी और उन्हें अपनी तरफ घुमाया और; "खाना तो खा लिया अब थोड़ा मीठा भी खालो|" मैंने भाभी का हाथ अपने तननाये हुए लंड पर रखते हुए कहा| "मुनना..... मैंने अभी खाना खाया है| कहीं उलटी न हो जाये! मैं आउंगी ना रात को तब जो चाहे.कर लेना|" इतना सुन में गुस्से में जाने लगा तो भाभी समझ गई की मुझे गुस्सा आ गया है| उन्होंने मुझे रोका और नीच बैठ गई और पाजामे से मेरा लंड बहार निकल कर एक ही सांस में निगल गई
to be continued!!! [img]file:///images/smilies/smile.gif[/img]
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UPDATE 13
कहानी अब तक:
मैंने खुसफुसाते हुए कहा; "साढ़े बारह बजे ....सससस..... मैं... इंतजार करूँगा...!" ये सुन कर तो जैसे भाभी की साड़ी इच्छा पूरी हो गई| "मुझे माफ़......" भाभी खुसफुसाते हुए बोलना चाह रही थी पर मैंने उनके होठों पर अपनी बीच वाली रख दी और उन्हें अपनी तरफ घुमाया और; "खाना तो खा लिया अब थोड़ा मीठा भी खालो|" मैंने भाभी का हाथ अपने तननाये हुए लंड पर रखते हुए कहा| "मुनना..... मैंने अभी खाना खाया है| कहीं उलटी न हो जाये! मैं आउंगी ना रात को तब जो चाहे.कर लेना|" इतना सुन में गुस्से में जाने लगा तो भाभी समझ गई की मुझे गुस्सा आ गया है| उन्होंने मुझे रोका और नीच बैठ गई और पाजामे से मेरा लंड बहार निकल कर एक ही सांस में निगल गई|
अब आगे:
मैंने भी ताव में आ कर अपना पूरा लंड इनके गले उतार दिया| मेरी जबरदस्ती करने से भाभी को लगभग उलटी आ गई, पर जैसे -तैसे उन्होंने अपने पर काबू पाया और उलटी रोक ली और मेरी तरफ गुस्से से देखने लगी| मैंने उनके गुस्से को अनदेखा कर अपना लंड फिर उनके मुंह के आगे लहरा दिया| पर भाभी उसको मुंह में नहीं ले रही थी क्योंकि उनको उससे अब मेरे पेशाब की महक आने लगी थी| दरअसल उनके आने से पहले ही मैंने धार मारी थी और जान-बुझ कर लंड साफ़ नहीं किया था| भाभी गंदा सा मुंह बनाते हुए मेरी ओर देखने लगी और मैं भी समझ गया था की पेशाब की बदबू जर्रूर उनके नथुनों में भर गई होगी| फिर आगे जो मैंने किया उससे तो भाभी की हालत और भी ख़राब हो गई| मैंने अपने लंड को खोला और सुपाड़ा पूरी तरह बाहर निकला| सुपाडे के पीछे और नीचे गीला वीर्य लगा हुआ था| दरअसल काफी समय से मैंने अपने लंड की सफाई नहीं की थी... शायद आज ही के दिन के लिए! उसे देखते ही भाभी को उलटी जैसा मन हो आया और उस सूखे वीर्य की बदबू से भाभी बेहाल होने लगी और उन्होंने अपनी नाक पर हाथ रख लिया| मैं उनकी तरफ बड़ी हैरानी से देखने लगा जैसे की कह रहा हूँ की इससे क्या बदबू आ रही है? उस समय भाभी के मन में सेक्स के जितने भी कीड़े थे सब मर गए थे| उनका मुंह ऐसा बिदका हुआ था जैसे कोई मरा हुआ सांप देख लिया हो जिसमें से बदबू आ रही है|
"क्या सोच रही हो? प्यार करती हो ना मुझसे?" मैंने उन्हें याद दिलाया| "मुनना सच्ची बहुत गंधात है!" भाभी ने मुंह बिदकाते हुए कहा| "ठीक है..." इतना कहते हुए मैंने भाभी को अपना जूठा गुस्सा फिर दिखाया| भाभी ने मेरा हाथ पकड़ के रोक लिया; "सच्ची मुनना... वरना मैं कभी मन करती हूँ?" भाभी ने मुझसे विनती की पर मैंने उनकी एक न सुनी और जाने लगा| "अच्छा ठीक है... मैंने भी गलती की है, उसकी सज़ा समझ कर कर लेती हूँ|" ऐसा कह कर उन्होंने मुझे रोका और मेरे पहले से ही बाहर लटक रहे लंड को हाथ में लिया और अपनी आँखें बंद की और अपनी उँगलियों से मेरे सुपाडे को बाहर निकाला| उनका मुंह अब भी बिदका हुआ था और साफ़ पता चल रहा था की वो ये सब बेमन से कर रही हैं| "मन नहीं है तो छोड़ दो! मैं ने आजतक आप के साथ जबरदस्ती नहीं की है और आज भी नहीं करूँगा| जाने दो मुझे!" मैंने रूखे मन से कहा| पर मैं जानता था की भाभी हार मान जायेगी| उनके हार मानने का कारण मुझसे प्यार करना नहीं था बल्कि अपनी गलती की सजा भुगतना था! सो भाभी ने पहले तो नीचे धरती की तरफ देखा और फिर जब मेरी तरफ देखा तो उनके चेहरे पर वही कातिल मुस्कान थी| मुझे लगने लगा जैसे की भाभी जानबूझ कर मेरे साथ ड्रामा कर रही थी| भाभी ने अपने नीचले होंठ को दबाया और अपनी आँखें बड़ी की और अपना मुंह बड़ा सा खोल कर सिर्फ सुपाडे को अपने मुंह में भर लिया| मैंने महसूस किया की उनके मुंह में ढेर सारा थूक भरा हुआ था और जैसे ही मेरा सुपाड़ा उनके मुंह में पहुँचा, उन्होंने अपने होंठ से उसे अंदर ही सील कर दिया| उनके मुंह में मौजूद थूक को वो अपनी जीभ से मेरे लंड पर मलने लगी जैसे की किसी bottom load washing machine में कपडे घूमते हैं वैसे ही उनकी जुबान मेरे सुपाडे के इर्द-गिर्द घूम रही थी और वो अपनी जीभ की नोक से मेरे सुपाडे पर लगे सूखे वीर्य को निकालने लगी| मैं समझ गया था की भाभी इसे जल्द ही उगल देंगी इस लिए मैं भी हरकत में आ गया और अपने सुपाडे को और अंदर धकेलने लगा| मानो मैं उनके मुख को छूट समझ कर छोड़ रहा हूँ!
मैंने भाभी की तरफ देखा और कहा; "सब पी जाना ... एक बूँद भी बर्बाद मत करना|" ये शब्द उनके लिए आदेश था जिनका पालन उन्हें अवश्य करना था! "भाभी...धीरे-धीरे दांतों से काटो सुपाडे को|" मैंने भाभी से कहा और भाभी ने ठीक वैसा ही किया| जिससे मेरे अंदर आनंद की लहरें भरने लगी, भाभी के दांत मेरे लंड पर गाड़ने लगे और वो मादक दर्द मुझे संतुष्ट करने लगा| मैंने अपने लंड को उनके मुंह के भीतर गोल-गोल घुमाना शुरू कर दिया और जब उनके दांत मेरे लंड से टकराते तो बहुत मजा आता| ये मजा अब बर्दाश्त से बहार होने लगा था सो मैंने अपना पूरा लंड उनके गले में तेल दिया और दो-तीन झटके और मेरा सारा रास उनके गले में उतरने लगा| मैंने मस्ती में इतना भर गया था की मुझे ये भी महसूस नहीं हुआ की मेरे लंड अंदर तेल देने से भाभी की हालत ख़राब हो गई है क्योंकि उन्हें सांस नहीं मिल रही थी| भाभी; "गुं..गुं...." कर छटपटा रही थी| शुक्र है की मेरा ये आनंद अनुभव ५-७ सेकंड ही चला वरना भाभी 'टें' बोल जाती!!!! खेर भाभी ने मेरा सारा रस और 'सूखी मलाई निगल ली थी और एक भी बूँद बहार नहीं बहाई थी!
मैंने जब अपना लंड बाहर निकाला तो देखा भाभी बुरी तरह हाँफ रही थी... वो जमीन पर पसर गईं! मैंने उन्हें जबरदस्ती उठा के खड़ा किया और देखा तो भाभी बोली; "मेरी जान लेना चाहते हो क्या?" "अब भला आपकी जान ले कर मुझे क्या मिलेगा?" मेरा जवाब सुन भाभी समझ गई थी की मैंने उन्हें अभी तक माफ़ नहीं किया है| वो कुछ बोलने को हुई की मैंने अपनी ऊँगली उनके होठों पर रख दी; "श..श...श... रात साढ़े बारह बजे मैं आपका इंतजार करूँगा और हाँ ब्रश कर के आना!! पर याद रहे साढ़े बारह बजे न एक मिनट ऊपर न एक मिनट नीचे! साढ़े बारह!!!!" मेरे ये शब्द उनके लिए फरमान थे जिसे सुन भाभी खुश हो गई क्योंकि अब उन्हें कहीं न कहीं ये विश्वास हो गया था की मैंने उन्हें माफ़ कर दिया था|
इतना कह कर मैं सबसे छुपकर घर आगया और घर में घुसने ही वाला था की मुझे कुछ याद आया! मैं वापस घर आया पर इस बार छिपते हुए नहीं बल्कि खुल्ले में! दरअसल मैं ये देखने आया था की नीतू क्या कर रही है? कहीं उसने फिर से भाभी को मेरे पास आते देख लिया तो मुसीबत हो जायेगी| मैंने देखा नीतू अपने कमरे की तरफ जा रही थी और मुझे देख एकदम से मेरे पास आ गई| नीतू बहुत खुश दिख रही थी; "क्या हुआ इतना खुश क्यों हो?" तो नीतू ने कुछ जवाब नहीं दिया और हँसते हुए good night बोल कर चली गई| मुझे ऐसा लगने लगा जैसे मेरा कच्छा सूंघ कर उसे ये तृप्ति मिली है और इसीलिए वो इतनी खुश है| नीतू के जाने के बाद मैं भैया को ढूंढने लगा| भैया मुझे खेत से निकल कर आते हुए नजर आये तो मैंने उनसे कहा; "भैया एक काम था आपका!" भैया मेरा मतलब समझ गए और बोलै; "तुम चलो मैं आता हूँ|" मैं वापस आ गया पांच मिनट बाद भैया आगये और इधर मैंने अपना छोटा और भैया का पटियाला पेग बना कर रेडी कर दिया| भैया अपने साथ कटे हुए प्याज और सूखे मसाले से बानी आम की चटनी ले आये|
to be continued
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dear,
yhan tk to pdi hui hai. Xossip par ye aadhuri thi.
iske aage bhi post kroge kya??
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this much i got from xossip.
original writer has to come and continue.
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