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मधु अराम से अपने टांगो को मेरी झागों पे रखी मोबाइल देखती रही और मैं चाय चुस्की लेता पिता रहा और बोला तुम तोह वसंत को बोली अकेली हो पर वो मुझे देख के कही ठंडा पड़ गया तोह क्या करोगी ।
मधु बोली ऐसा नहीं है की वो आये और मैं जिस्म परोस दूँगी अगर उसे मधु को मसलना है तोह आपके सामने हिमत दिखानी पड़ेगी तभी तोह मज़ा आएगा वरना क्या फायदा ।
आप टेंशन मत लिजेए बस आप देखते जाईये क्या क्या होता है ।
घड़ी मे ठीक आठ बज कर तीस मिनट हुई और दरवाज़े पे दस्तक पड़ी मधु झट से अपने पाव को जमीन पे रखते बोली लिजेए आ गया वो जाईये स्वागत किजेए ।
मधु कमर मटकाती कप को लेती हुई मुस्कुराती किचन मे चली गई और मै एक अजीब कसमकश दिल मे दबाये दरवाज़े की और बढ़ा और दरवाज़े को खोला , एक सावला लंबा चौड़ा मर्द मेरी आँखों के सामने था , मुझे देख कर उसकी वो मुश्कान खो गयी जो उसके चेहरे पे मैंने थोड़ी देर पहले देखी थी और वो पसोपेश भरी मुद्रा मे दबी आवाज़ से घबराहट से लबरेज पूछा जी मधु भाभी ने बुलाया है ।
मैं हँसते हुए बोला ओह क्या तुम वसंत हो ,वो मुस्कुराते बोला जी ,मैंने बोला आओ बड़ी देर कर दी आने मे और वो घर के अंदर दाखिल हुआ और मैंने दरवाज़े को बंद करते हुए बोला ,आओ बैठो मधु आती होगी ।
मैं उसके सामने वाली सोफे पे बैठ गया और आवाज़ लगाई सुनती हो मधु ,वसंत आया है ।
वो किचन से आवाज़ लगाती बोली जी आती हू ।
वसंत की कद काठी काफी मर्दाना सी थी उसकी छाती चौड़ी बाजू तगड़े और शर्ट के दो बटन खुले हुई जिससे उसके सीने के घने घुघरेले बाल साफ दिखाई दे रहे थे ,उसका चेहरा भले ही सावला था लेकिन चेहरे की बनावट आकर्षक थी और उसके घने मुछे थी और गले मे एक हरे रंग की ताबीज़ सिल्वर की चैन से लटकी हुई साफ दिखाई दे रही थी । उसने शर्ट के बाजू को फोल्ड कर के ऊपर की और उठा रखा था और बालों को वेवस्तित ढंग से झाड़ रखा था ,देख के मालूम हुआ कि वो मधु से मिलने नाहा के घर से आया हो मानो वो आज मधु को हासिल कर के अपनी जिस्म से रौंद देगा ।
उसने आँख चुरा कर मुझे देखा और पसोपेश मे बोला आप कब आये भाईसाहब, मैं मंद मुस्कान लिए बोला एक हफ्ते से यहीं हु थोड़ी तबियत खराब सी लग रही थी तोह छुट्टी ले कर घर पे आराम फरमा रहा हु ।
वो दुविधा मे डूबता चला जा रहा था कि क्या बोलू उसने तोह मन ही मन ये सोच लिया था कि मधु अकेली होगी और वो दुकान मे अपने द्वारा किये गये मसलन को आगे बढ़ा के चर्मसुख की आंनद लेगा लेकिन मुझे देख के उसके मंसूबों पे मानो किसी ने आग लगा दी हो ।
मैं उसके इस मनोदशा को देख के काफी रोमांचित हुआ जा रहा था क्योंकि मुझे पता था मधु अपनी अदाओं से इसकी हालात और खराब करेगी और जो असीम दृश्य आने को है वो देख के मैं पुनः झड़ जाऊंगा ।
एक एक सेकंड वसंत को भारी लग रहा था और वो कमरे की दीवारों को घूरता पैरों को हिलाता जैसे तैसे वहा बैठा रहा मानो गले मे ऐसी हड्डी फ़स गई जो निगल न सके न ही उगल सके ।
अभी उसके आये पांच मिनट ही बीता था और दोनों की खामोशी से ऐसा प्रतीत होने लगा कि सदिया बीत गयी हो ,मैं सब्र करने का आदि हु क्योंकि मुझे हमेशा से यही लगता है कि सब्र हर घड़ी एक मनोरम और मनमोहक परिणाम प्रस्तुत करता है जिसके आने के बाद दिल गदगद हो के झूमने लगता है ।
वसंत से मैंने ही पुछा दुकान कैसी चल रही है , वो एक मुस्कान लिए बोला जी अल्लाह की मेहर से पेट पाल लेता हूँ।
दोनों एक साथ हँसते हुए हल्के हल्के बातों मै उलझने लगे और उसने बताया घर मे उसके अम्मी अबु चार बडी बहने और चार भाई है इसमें वो सबसे छोटा है और कुँवारा है ।
बाकी लोग सब पास के गांव मे रहते है और खेती बाड़ी का कार्य करते है और वो बचपन से ही अपने चाचा के साथ रह कर दर्ज़ी का काम सिख के आज खुद की दुकान चला रहा है ।
वो मोहल्ले मे ही एक चाचा के मकान मे किराये पर रहता है ।उससे खुल के बातें होने लगी थी और अब वो अपनापन सा महसूस करने लगा था उसके हिलते टांग अब श्थिर हो चुके थे और वो आँखे मिला के आराम से एक सामान्य आदमी सा बेहवाहर करने लगा ।
सच कहूँ तोह मुझे उसका बेवहार अच्छा लगा ,उसके बातों पे न घमंड न ही अकड़ थी एकदम साफ सुथरी मनमोहक व्यक्तित मालूम पड़ा ।
दोनों घुल मिल से गये और वो मुझे भाईसाहब कह के संबोधित करते बताने लगा कि भाभी जी उसके दुकान की सबसे पुरानी ग्राहक है और पिछले कई बरसों से वो मधु की ब्लाउज पेटीकोट पिको फॉल इत्यादि के काम करता आ रहा था ।
मैंने बेबाकी से बोला हा अक्सर मधु तुम्हारी बातें करती है ,वो मुस्कुराते बोला भाभी जी बहुत अच्छी है जब भी मिलती है मेरा दिन बन जाता है,वो हमेशा हस्ती मुस्कुराती बातें करती है ।
वसंत की बातों से मालूम हुआ वो मधु पे अच्छे से लटू है और न जाने कब से उसकी चुदाई के सपने सजाएं बैठा हैं ।
मैंने बोला हा ये तोह है मेरी मधु एक सुसील और ज़िंदा दिल औरत है और वो मिलनसार हैं ,वसंत बीच मे बोलने लगा जी भाईसाहब भाभी जी एक देवी की तरह है और मुझे देवर जैसा प्यार करती है और हमेशा हाल चाल पूछती रहती हैं।
मैं बोला वसंत न जाने मधु क्या करने लगी जाओ सामने किचन है देख आओ तोह ।
वसंत हल्की सरारती मुश्कान लिए बोला जी भाईसाहब और उठ के किचन की और बढ़ने लगा और आवाज़ लगाई मधु भाभी जी क्या आप यहां है मधु थोड़े ऊँचे स्वर में बोली हा वसंत यही हु आओ ।
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pati k aagey pehli baar mei hi na chudwao...
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वसंत धीमी कदमो से किचन मे दाखिल हुआ और मधु की खिलखिलाने की आवाज़ें मेरे कानों मे आई और थोड़ी ही इंतज़ार के बाद मधु हाथों मैं चाय की ट्रे लिए आती नज़र आई और पीछे पीछे वसंत कुछ लिए चला जा रहा था ।
मधु ट्रे टेबल पे रख कर वसंत के हाथों से गर्म गर्म पकोड़े की प्लेट लेते बोली आओ बैठो ,बड़ी देर कर दी आने मे, लगता है भाभी को तड़पने मे मज़ा आता हैं तुमको ,वसंत मधु के बग़ल मे बैठ कर बोला ऐसा नहीं है भाभी जी वो दुकान बढ़ा के आया सोचा कोई बेहद ज़रूरी काम से आप बुलाई है इसलिए थोड़ी देर हो गई।
मैं दोनों को टकटकी लगाए देखता पकोड़े का आनंद ले रहा था वसंत खुल के मेरे सामने सामान्य बातें मधु से करता जा रहा था मानो अब उसे मेरे घर पे होने से कोई परेशानी न हो और दोनों पकोड़े खाते हँसते एक दूसरे को आंखों ही आंखों मे मसल रहे हो ,ये दृश्य मेरे लड़ के लिए घातक था क्योंकि न जाने मेरे मन मे ये विचार आने लगा कि दोनों यही मेरे सामने लिपट के कही चुम्बन ना शुरू कर दे ,मेरे मन मस्तिष्क मे बस दोनों के शारीरिक मिलन का बवंडर उमड़ चुका था ,यू तोह दोनो के बीच एक हाथ की दूरी थी लेकिन वसंत की निगाहें मधु के प्रदशित चुचियो के उभार पे टिकी थी जो हल्के पसिने के बूंदों से बेहद कामुक्ता बरसा रही थी ,मधु ने साड़ी के पल्लू को यू डाला था कि उसके चुचियो की गहराई साफ साफ दिख सके और वसंत एक पेशेवर दर्ज़ी था जिससे वो ये तोह जान ही चुका था कि इस ब्लाउज के नीचे ब्रा की परत नहीं है बल्कि मांश का वो गोला है जिसे वो आज दोपहर ही अपने हाथों से सहलाया है ।
मधु शाम से ही कामुकता की आग के ताप से जल कर निखरने लगी थी और मधु ने बोला पकोड़े अच्छे नहीं बने क्या देवर जी वसंत झेप सा गया क्योंकि वो तोह मधु की बड़ी बड़ी चुचियो मे खोया हुआ था ,वो खुद को वास्तविक समय मे सम्हालते बोला जी बहुत टेस्टी है और मधु खिलखिलाती बोली और खाओ और उसने अपने हाथों को उठा कर अपने कांख को दिखाया जिसे देख वसंत का मुंह खुला का खुला रह गया ,मधु अपने हिसाब से वसंत को पूर्ण पागल करने का मन पहले ही बना बैठी थी । उसके काँख मे एक गज़ब सी चमक थी ,एक दम चिकनी और पसिने से लबरेज़ ,वसंत तोह यू देख रहा था जैसे पकोड़े की जगह उसके जीभ को मधु की काँख चाटनी हो ।
वसंत ने झट से अपने पैरों को एक दूसरे पे रखा जिससे मे समझ गया कि उसका लड़ तमतमा सा गया है ,मधु भी समझ गई कि वो अपने लड़ के कड़क को छुपाने की कोशिस कर रहा हैं ।
मधु एक पकोड़े को दांतों से काटी और संयोग बस एक छोटा टुकड़ा मधु के गदरायी चुचियो पे गिर गया ,मधु ने जान बूझ कर इसको नज़र अंदाज करते हुए पकोड़े का आनंद लेती हुई बोली और दुकान कैसी चल रही है ,वसंत की हालत पस्त सी हो चुकी थी ऐसा मालूम हो रहा था कि अगर मे सामने न होता तोह शायद वो अभी मधु को पटक के उसके बदन पे लेट के उसके चुत को गप्प गप्प पेल रहा होता ,वो बोला बस भाभी अच्छा चल रहा हैं।
मधु ने उसके झागों पे हाथ रखते बोली बस यहीं भगवान से प्रार्थना है कि तुम खूब कमाओ और झट से हाथ हटा ली ,वो कुछ सेकंड का स्पर्श वसंत को कामुक्ता के दरिया मैं डुबाने के लिए काफी था और उसकी हालत और खराब लगने लगी ।
मधु तिरछी नज़र से उसके टांगो को देखती बोली चाय लो आराम से बैठो न और मुझे कप हाथ मे देती बोली सुनिए जी आर्डर का क्या हुआ आया नहीं मे बोला और आधे घंटे मे आएगा वो वसंत की और मुड़ के एक हाथ को सोफे पे मोड़ के अपने चेहरे को उसकी और करती टांगो को ऊपर चढ़ा के बैठ गई और अपनी गहरी सुराख वाली नाभी को वसंत के लिए प्रदशित करती इठला के बोली क्या हुआ देवर जी ।
वसंत बिन पानी मछली की तरह तड़पता चाय उठा कर बोला बस भाभी पकोड़े का आनंद ले रहा हु और मधु अपने हाथ से पेट के ऊपर से साड़ी सरकाती उसको उकसाती बोली आनंद का भाव कहा है चेहरे पे तुम्हारे ।
मैं बोला मधु लगता है वसंत किसी ख्याल मे डूबा हुआ है ,मधु बोली हा एक जवान मर्द है मेरा देवर ज़रूर किसी देवरानी की याद सता रही होगी वैसे भी अक्सर कुँवारे लड़के शाम के नो बजे फोन लगा के दिल लगी करते है ।
वसंत बोला नही भैया ऐसी बात नहीं है देखिये मैं फ़ोन भी साथ नहीं रखता और मधु बोली ओह कही फोन आ न जाये इशलिये घर पे छोड़ आये हो ,मधु मज़े लेती उसके जज्बातो से यू खेल रही थी वो बेसब्र हो जाये और वो मधु को उसके पति के सामने दबोच ले ।
वसंत बोला भाभी आपसे क्या छुपाना आप तोह मेरी बेहद करिब है ,मधु होटो को दबाती बोली अगर करिब होती तोह इतनी दूर कैसे बैठे हो भाभी से ।
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वसंत लम्बी सास खिंचता मेरे और देखते मधु की और पलट के बोला भाभी जी आपके करीब ही तोह हु मे ,मधु मुँह सिकुड़ती बोली अगर करिब होते तोह मे क्यों कहती दूर हो ।
वसंत थोड़ी हिम्मत बटोर के मेरी तरफ तिरछी नारज़ो से घूर के सोफे पे एक टांग को मोड़ के मधु की मुद्रा मे बैठ गया और दोनों के घुटने और कोहनी आपस मे छू गई ।
मेरे मन की मोनोस्तिति अब और सहन योग न रही और मैंने बोला मधु ,वसंत बड़ा सरमिला हैं, वो हँसते हुए बोली सरमिला और ये ,एक नंबर का बदमाश हैं जी और हँसने लगी ,वसंत अपने बचाव मे बोला नहीं भाईसाहब भाभी तोह बस मेरे मज़े ले रही है ,मधु दाँतो तले होटो को दबाती बोली वही तोह लेना चाहती हु तुम दे कहा रहे हो देवर जी ।
वसंत यह सुन के सन हो गया और मेरे लड़ ने वीर्य की धार मेरे चड्डी मे बहा दी और मेरे मुख से अहह निकल गई, मधु समझ गई मे झड़ गया और वो हस्ती खिलखिलाती बोली क्या हुआ देवर जी चुप क्यों हो गए ।
वसंत शर्म और हया के ऐसे पसोपेश मे पड़ा बडी हिमाक़त दिखाते बोला भाभी आपके लिए जान हाज़िर है आप बस हुकुम फरमाए आपको शिकायत का मौका नहीं दूँगा ।
अच्छी बात है शिकायत हुई तोह खैर नही तुम्हारी देवर जी और रही बात हुकूम की तोह चिंता न करो वो भी आजमा लुंगी कितने खरे हो अपनी बातों के ,वसंत बिना वक़्त गवाए बोला अम्मी जान की कसम भाभी जी आपके लिए सब कुर्बान और नज़ाकत से सर को झुकाये वो मधु के घुटनों पे झुक गया, मधु उसके बालों को आहिस्ता आहिस्ता सहलाते हुए मेरी और देख के आँख मारी और इशारों इशारों मे मानो कह रही हों बस कुछ देर ओर फिर आप अपनी अर्धांगनी को निर्वस्त्र इसके लौड़े की सवारी करते दिखेंगे ।
मैं झड़ के शांत बैठा बस उस पल के इंतज़ार मे था जब दोनों के जिस्म की दूरी इतनी भी न रहे कि रोशनी भी भेद पाए ।
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bahot khoob....lekin aaj pati k samne mat chudwana
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मधु तसल्ली से उसके बालों को सहलात्ते आराम से बैठी हुई थी कि अचानक दरवाज़े की घंटी बज उठी ओर मधु बोल पड़ी खाना आ गया, वसंत अपने सर को उठा कर वापस बैठ गया और उसके चेहरे को देख के मालूम पड़ने लगा कि वो उस शक्श को मन ही मन कोस रहा है जिसके वजह से उसे उठना पड़ा ।
मधु साड़ी का पल्लू खिसका के अपने ब्लाउज से पैसे निकलतीं वसंत के हाथों मे देती हुई बोली जाओ खाना आया है ले लो पर वसंत की आँखे मधु के स्तनों पे गड़ी हुई थी और वो वसंत के हाथों को चाटा मारती बोली सुन भी रहे हो वो झेंपता हुआ हाथ को बढ़ा के पकौड़े के उस टुकड़े को मधु के दरार से उठा कर बोला जी भाभी ।
यू उसके हाथों का स्पर्श अपने चुचियो की दरार पर महसूस कर मधु रोमांच से लक़बरेज़ हो गई और गालो पे एक अजीब लालिमा बिखर गई और वो चंद सेकंड के लिए खुद ही झेप सी गई ।
मधु कमुक हँसी हस्ती बोली भाभी के बच्चे जाओ खाना आया है ले लो ,वो पकोड़े के टुकड़े को मुँह मे भर के मुश्कान के साथ उठा और हाथों पे लिए नोट को सूंघता दरवाज़े की और बढ़ा और मधु बोली आप झड़ गए अभी तोह मे कुछ की भी नहीं ,मैं बोला मेरी जान इतना देख के कहा रोक पाया खुद को वो हस्ती बोली आप भी न और दरवाज़े की ओर देखती बोली लगता है कुछ घंटों मे ये आपके सामने ही मेरे बदन से चिपक जाएगा ,मैं बोला अरे जिस तरह तुम उसके जवानी के जज्बातों से खेल रही हो मुझे तोह लगता है कही वो इतना न चोद दे तुम्हे की तुम दोनों उठ ही न पाओ अगले दिन ।
हम दोनों की नज़र वसंत पे ही थी उसने मधु के दिये हैं नोट को जेब मे रख लिया और अलग नोट डिलेवरी वाले लड़के को देते दरवाज़े को बंद कर के बोला भाभी इसे किचन मे रख देता हूं ,मधु बोली ह रख दो और वो खाना रख के इस बार खुद से ही मधु के और करिब बैठ कर बोला भाभी जी एक बात कहु ,मधु बोली हा बोलों न ,वो बोला जब आप मेरे बालों को सहला रही थी मुझे बहुत अच्छा लग रहा था क्या आप फिर से सहला देंगी ।
मधु हँसते हुए बोली हा देवर जी और अपने दोनों टांगो को मोड़ के वो बैठ गई और बोली यहाँ लेट जाओ और वसंत बिना देरी किये मधु के झांगो के बीच सर रखते हुए लेट गया और मधु उसके केसों को सहलाते हुई बोली आराम से लेटो ओर ये सुनते ही वसंत ने अपने दोनों हाथों को मधु के कमर पास फैला दिया और टांगो को सोफे के कोने पर मोड़ लिया ।
हालांकि उसके दोनों हाथ अभी मधु के गर्म जिस्म के तपन से अनभिज्ञ थे और उसका चेहरा मधु के साड़ी के ऊपर लेकिन प्यासी चुत के बेहद करिब था ,हालांकि उसके इतने करिब होने और यू बेफिक्र मधु के गोद मे आराम से सर रख कर लेट जाना उसके कुशल अभिनय की छाप छोड़ रहा था ।
यू तोह अमूमन ऐसा होना खून के रिश्ते मे भी संभव नहीं है लेकिन एक पराये अलग जाति धर्म के व्यस्क मर्द का एक परायी शादी शुदा औरत के गोद मे उसके पति के सामने यू लेट जाना किसी परस्तीति मे सामान्य नहीं हो सकता ये जानते हुए वसंत का यू मधु के गोद मे सर को दबाये लेटे देखना मेरे अंतरमन को ये यकीन दिला चुका था कि आज रात मे खुद की बीवी को इसके ही लड़ से चुदवाते देखने वाला हूं ।
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मधु ने वसंत के केसों को उँगलियों से सहलाते बोली देवर जी सो गए क्या ,वो मदहोश सुस्त आवाज़ मे बोला नहीं भाभी और मधु ने अपने हाथ को नीचे साइड करती हुई उसके गालो को सहलाती बोली खाना खा लो ,वो बोला भाभी प्लीज थोड़ी देर ओर ऐसे ही सोने दीजेए न और उसने कस कर मधु की कमर को जकड़ लिया और मधु उफ्फ करती सिहर उठी ओर मेरी तरफ देखने लगी ।
मैं मंद मुश्कान के साथ बोला मधु देखो वसंत बिल्कुल छोटे बच्चे की तरह कैसे सो रहा है ,देख के लगता है वो तुम्हारे गोद मे आ के सुकून महसूस कर रहा हो,मधु उसके गालो को सहलाती बोली ये मेरा सबसे प्यारा देवर है, बरसों बाद भाभी का स्नेह और प्यार मिला है ना इसे ।
वसंत अपने दोनों हाथों की उंगलियां फसाए मधु के कमर को जकड़ रखा था और उसके स्पर्श से बेसक उसकी नग्न चुत चीत्कार मारने लगी थी ओर संयम की बांध टूटने को बेताब थी लेकिन धर्य रखना मधु को भली भांति आता है ,वो खुद को इस कदर बेबस करना चाहती थी कि जब मिलन हो वो हवस के बसिबुथ रहे और हर तरह की मर्यादा और सीमा तोड़ दे ।
मधु हल्का झुक गई और अपने मदमस्त चुचियो को वसंत के सर पर दबाती उसके पीठ को सहलाती हल्का मसाज सा करने लगी और मुझसे बोली आज भगवान ने आपको एक प्यारा सा भाई दिया है, अब आप इकलौते नहीं है ,ये नटखट आपका छोटा भाई और मेरा देवर है ।
विल्कुल मधु आज से ये मेरा भाई है और तुम्हारा सरारती देवर है ,मैं हँसते हुए मधु को बोला वैसे एक खयाल आया बोलो तोह कह दु ,मधु अपनी उंगलिया वसंत के पीठ पर दबाती बोली जी बोलिये न ।
ये जो खाली कमरा है जो बंद पड़ा रहता है ये कल साफ कर दो, तुम्हारा नटखट देवर क्यों न हम दोनों के साथ ही रहे, क्यों भैया भाभी के होते किराये के मकान मे रहता है और बाहर खाता पीता है ,यहां रहेगा तोह तुम्हारा व मन लगा रहेगा वैसे भी मे तोह जब भी बाहर जाता हूँ तेरी चिंता लगी रहती है और जब छोटा भाई रहने लगेगा तोह मे भी निश्चिन्त रहूंगा ।
मधु होटो पे बड़ी मुश्कान लिए बोली सच , ये तोह और भी अच्छा होगा और मैं रोज देवर जी को अपने हाथों से गर्म गर्म खाना खिलाऊंगी और खूब प्यार दूँगी , देखिये न बेचारा कैसे कस के पकड़ा है मुझे ,ऐसा मालूम होता है कि बरसों से तन्हा अकेला हो ।
मधु ने बड़ी कुशलता से वसंत के मर्दाना जिस्म को उंगलियों से दबाती अपनी मंशा जाहिर किये जा रही थी और बस एक धागे सी पतली परत ही दोनों के बीच थी अन्यथा ये दोनों हवस की आग बुझा चुके होते ।
इस मनोरम घड़ी के दृश्य को देख के मेरा मन प्रफुलित था और मधु बेहद खुश थी और मुझे बोली सुनिए जी ज़रा ठंडा तेल दीजेए तोह,मैं अपने देवर जी के रूखे बालों मै लगा दु ये तोह बिल्कुल भी बालों का ख्याल नही रखता ,वसंत धीमे स्वर मे बोला भाभी अब आप मिल गयी भैया जी मिल गए अब और कुछ पाने की लालशा नहीं ,मधु उसके सर पे हल्का चपत मरते बोली अभी कहा सब पाया तूने अभी अभी तोह बस भाभी की गोद मिली है, प्यार ढेर सारा प्यार दूँगी अपने देवर को मैं ।
वसंत खुशी जाहिर करते मधु की कमर को अलग अंदाज मैं छुवा और उसके इस छुवन से मधु रोमांचित हो गयी और अब वसंत का एक हाथ मधु के साड़ी की गांठ के पास तोह दूसरा ब्लाउज की डोरी के पास था ।
मैंने मधु के हाथों मैं नवरत्न तेल दिया और वो वसंत के केसों को हल्के हाथों से सहलाने लगी और एक मंद मंद खुसबू बिखरने लगी ,वसंत के शर्ट का कॉलर खिसका के मधु ने अच्छी तरह उसके गर्दन मे भी तेल लगा कर सहलाया और वसंत ने उत्ज़ेना वश मधु के नग्न कमर और पीठ पर आहिस्ता से अपनी उँगलियों फेरी जिससे मधु तपने लगी ,वो आहिस्ता से वसंत को सहलाती और खुद उसके छुवन से रोमांचित होती ।
ये क्रीड़ा देख के मेरी हालत यू होने लगी कि मानो चिल्ला के कहु मधु अब रहा नहीं जाता ।
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मधु का बदन वसंत की उँगलियों के फेरने से हल्का हल्का इठलाने लगा जिसकी वजह से वो लगभग अपने आप को वसंत के जिस्म पर दबाती आधी लेट सी गई और वसंत का एक हाथ उसके नग्न पीठ पर पहुँच गया और आहिस्ता आहिस्ता वो आराम से उँगलियों फेरता मधु को पराये मर्द के अनोखे स्पर्श का अनुभव प्रदान करने लगा ,मधु की चुचिया पूर्ण रूप से वसंत के बदन पर दब चुकी थी और उसका चेहरा उसके पीठ पर पहुँच गया ,मधु अपने दोनों हाथों को वसंत के कमर पर आहिस्ता से फेरने लगी जबकि उसका चेहरा संपूर्ण रूप से मधु के आधे जिस्म के तले खो गया ।
वसंत निःसंकोच मधु के इठलाते जिस्म को महसूस किए जा रहा था और मधु भी खुल के उसके स्पर्श से रोमांचित होती निहाल होती चली जा थी ,मधु के गाल वसंत के कमर पर थे लेकिन उसकी मदहोश होती आँखे मेरी तरफ़, गर्म सासों का सैलाब वसंत महसूस ज़रूर कर रहा था , उसके सहलाने से वो लगभग निढ़ाल पड़ती जा रही थी और ललाट पे कई कामुक सिकन उभर आई थी और हॉट सुख रहे थे, आँखे आधी खुली मदहोश हो चुकी थी ।
मधु ने धीरे से वसंत के फोल्ड शर्ट को खींच के ऊपर किया और अपने हाथों को उसके नग्न जिस्म पर फेरने लगी और धीरे धीरे उसने शर्ट को इतना उठा लिया कि वो अपने तपते गर्म गालो की तपन उसके गर्म जिस्म को महसूस करा सके।
मधु ने एक झलक मेरी और देखा उसकी आँखें पूर्ण रूप से हवस से डूबी हुई थी और वो अपने सुर्ख़ लाल सूखे लबों को वसंत के नग्न बदन पे ले जाती चूमने लगी और उसके हॉट की लाली सावले जिस्म पर एक निसान बना दिया ।
मधु के चुंबन से वसंत इठलाता मधु को जोर से जकड़ के अपने ऊपर दबाने लगा और मधु उसके कमर को चुम्बन की लालिमा से लबरेज़ करती चली गयी।
अब मधु की तेज सासों की आवाज़ हॉल के सन्नाटे को भेदने लगी और वसंत के मजबूत जकड़न से चित्कारिया फूटने लगी और अनायास ही वसंत की उँगलियों के बीच मधु के ब्लाउज की डोरी आ गई और वसंत ने खिंच दिया जिससे मधु सिहर सी गई और वसंत ने कंधे के ऊपरी डोरी को दोनों और झूलने दिया और गर्दन को हाथों से सहलाता धीरे से पल्लू खिंचता चला गया और पल्लू बदन से अलग हो के फर्श पर गिर गया ।
मधु तपिस मे खुद के तेज सासों से लड़े चली जा रही थी कि वसंत ने अपने दोनों हाथों को मोड़ कर उसके कखो पर रख दिया और इस स्पर्श से वो बेताब हो उठी और अठहठहठहठहठहठह करती बोली देवर जी अहह और उठ बैठी ।
मधु पूरी तरह जल रही थी लेकिन न जाने क्यों वो उठते ही वसंत के हाथों को अलग करती अपनी ब्लाउज की डोर को बांध कर पल्लू से आधी चूची ढक कर बोली देवर जी चलिए बहुत आराम कर लिया अब खाना खा लिजेए ।
वसंत धीरे से मधु की गोद से उठ कर बैठ गया लेकिन अपने सख्त लड़ को छुपा न पाया जिसे देख मधु होटो को दबा के खड़ी हुई और बोली सुनिए जी चलिए आप दोनों मुँह हाथ धो लिजेए मे खाना लगाती हु ।
वसंत लज्जा से मेरी और देख नहीं पाया और लड़ को पैंट पे फसा मेरे पीछे पीछे बेसिन तक आया और हाथ धो के चुप चाप जा कर बैठ गया ।
मैं किचन मे पहुँच कर मधु को बाहों मे दबोच कर बोला वाह मेरी जानेमन क्या खेल खेला है ,शेर को बकरी दिखा कर रस्सियों से जकड़ दिया ,वो कोहनी मारती बोली तोह क्या झटके से खुद को खाने दे देती वो भी पल भर की मस्ती के बाद ।
मैंने मधु के सामने घुटनों पे बैठ गया, वो बिना बोले टांग उठा कर कंधे पर रखती मुझे साड़ी के अंदर छुपा कर बोली ध्यान रहे सुख जानी चाहिए रात अभी बाकी है। मैं लपालप मधु की गीली चुत को जीभ से चाटने लगा और तरो ताज़ा चुत का रासपान करने लगा । चुत की मनमोहक खुसबू और ताज़ा रस पा कर मेरे बदन मे मर्दाना ताकत समाने लगा ।
तकरीबन दस मिनट अंधेरी गीली गुफा से रस पान करने के बाद जब मैं बाहर निकला तोह मधु हस्ती हुई घुटनों पर बैठ गई और मुझे चूमने लगी ,कुछ देर दोनों एक दूसरे के होटो का रस चुसते जीभ एक दूसरे के मुँह मे डालते खोए रहे फिर मधु मुझसे अलग होती बोली आपने सच कहा था कि गैर से चुद जाओ ,वसंत के साथ ये अनोखा एहसास मुझे आपकी वज़ह से मिला और इसके लिए मैं आपकी कायल हु और आपके हर गंदे शौक को अब मैं पूरा करूँगी ।
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मधु के ऐसा बोलते ही मेरा लड़ फ़नफना उठा और मधु ने अपने हाथ से सहलाते हुए बोला उफ्फ आपका ये लड़ भी ना मेरी गर्म जवानी को देख के कड़क नहीं होता लेकिन मेरी गंदी बातें और ग़ैर मर्द की बातों से कड़क हो जाता हैं,
ख़ैर मॉफ किजेए जी मे इस तड़पते लड़ को नहीं शान्त करने वाली, अब तो आप वैसे ही झड़ेंगे जैसे थोड़ी देर पहले झड़े थे ,एक पराए मर्द के स्पर्श को मेरे मुलायम नग्न कमुक बदन पर देख कर ।
वो इठलाती मुस्कुराती कमर मटकाती पायल बजाती खाने के थाली को हाथों मे लिए चलती हुई बोली चलिए आईये वादा है इस बारी ज़्यादा गाढ़ा मुठ बहे गा आपके लड़ से जब आप सामने बैठ कर अपनी अर्धांगनी को शेर को उकसाते देखेंगे ।
मैंने अपने कमुक लड़ को साइड कर फसाया और मधु के पीछे पीछे चलने लगा,वो खुशी से लबरेज़ और उत्साहित मुद्रा में थाली को टेबल पर रख कर वसंत के केसों को सहलाती बोली अरे ये क्या मेरे देवर का चेहरा उतरा हुआ क्यों है भला ,वो झूठी मुश्कान लिए बोला कहा भाभी ।
मधु दो ही थाली लगाई थी ,पहले मुझे थाली देती बोली लिजेए और फिर कमर को मटकाती घूम के वसंत के बगल में खड़ी होते हुए बोली उफ्फ्फ क्या करूँ मैं इस मुड़ियल देवर का अजीब मुँह लटकाए बैठा है, मैं बोला वसंत क्या बात हो गई ,वसंत किसी तरह नज़रे मिलाता बोला कुछ भी नहीं भाई साहब और फिर से सर को झुका के आत्मग्लानि मे खो सा गया ।
मधु बोली आज के दिन सोची देवर के साथ खाना खाऊँगी पर हाये रे फूटी किस्मत मेरी, ये तोह मुँह फुलाए बैठा है ।
वसंत चाह के भी पसोपेश से बाहर नहीं निकल पा रहा था और मधु अपनी चाल चले जा रही थी ।
खैर जो भी हो रूठे देवर को कैसे मनाना है मैं जानती हूँ और वो रोटी के टुकड़े को मटन के ग्रेवी मे डुबो कर अपने हाथों से वसंत को खिलाई और वो झुकें सर को उठाने की हिमाक़त तक नहीं कर पा रहा था ।
मधु की चूड़ियां खन खन करती थाली से टकराई और वो दूसरा निवाला उसके मुँह मे देती बोली बढे निःठुर हो देवर जी ,मैं आपको प्यार से खिलाएं जा रहीं आप मुझे नहीं खिलाओगे क्या ।
वसंत थोड़ी हिमंत कर एक टुकड़े को मधु के मुँह के पास ले जाते बोला भाभी लिजेए , हये राम खड़े खड़े खाऊँगी क्या और झट से वसंत की गोद मे बैठ गई और बोली लाओ खिलाओ अब ।
मधु ने बाहों को उसके गर्दन पर रख कर अपनी दायीं नर्म बड़ी चूची को उसके मर्दाना छाती पर दबाती उसके बाँये हाथ को दूसरे हाथ के नीचे करती अपनी गदराई गांड को उसके घबराए लड़ के ऊपर रख दी ।
वसंत हल्का हिल डोल कर के अपने सोए लौड़े को कैसे भी कर के मधु की दरारों पर एडजस्ट किया और ज्यूँ ही ओ अपने हाथ को मधु के मुँह तक ले गया तोह उसके बाएं चुचियों पर वसंत के हाथ का स्पर्श हुआ और मधु ने वसंत की उँगलियी को अपने दांतों तले दबा लिया और वो सकपका के हाथ हिलाता मधु के हिलते दूध को अनजाने मे सहलाने लगा ओर मधु उसके उँगलियी को जीभ से चाटने लगी ,वसंत ने तुरंत ही विरोद्ध त्याग दिया और मधु की आंखों मैं देखता उँगलियों को थोड़ा और मुँह मे जाने दिया और मधु ने भी खुल के उसके उँगलियों को चूस कर उसके डर को भगा दिया ।
वसंत ने बड़ी हिमंत दिखाते अपने दूसरे हाथ को मधु के साड़ी के नीचे सरका कर कमर सहलाता नाभी के छिद्र को उंगली से सहलाने हुए बोला भाभी जी और चूसना है या खाना भी खाओगी ,मधु ने झट से मुँह खोल कर उसके उँगलियों को रिहा किया, पर वो होटो को सहलाता अपने उँगलियों को हटाया जिससे मधु उतावली सी होती वापस कामुक्ता के भवर मैं गोते लगाने लगी और वसंत झटके से मधु के कमर को खिंचता बोला भाभी साड़ी फ़िसल रही हैं, मधु शर्म हया ओढे बोली अब कहीं अटकी ही नहीं तोह फ़िसलेगी ना ,वसंत कमर को कस कर जकड़ते बोला अभी फ़िसलन है कैसे अटकेगी आप ही मदत कर दो ,वो लिपटती हुई बोली लो अब नही फ़िसलने वाली पकड़ ली अच्छे से तुझे ।
मधु ने दोनों हाथों से वसंत की गर्दन जकड़ लिया और उसके दूसरे हाथ के सरारत का महसूस करती उसके गोंद मैं इठलाने लगी ।
वसंत ने कुछ देर मधु को प्यार से खिलाया और बोला भाभी मुझे भी भूख लगी है ,वो बोली देवर जी आपकी हर भूख मिटा दूँगी और उसके कमर पर फिरते हाथ को हटा कर खड़ी हुई और दूसरी तरफ से गोद मे जा बैठी और हाथों से खिलाती बोली पेट भर खाओ देवर जी ।
वसंत अपने हाथ को मधु के नंगे पीठ पर आहिस्ता आहिस्ता फेरता बोला पेट कैसे भरेगा आपके साथ भाभी जी भूख तोह हमेशा लगी रहेगी चाहें जितना भी खाऊंगा ।
वसंत ने तिरछी नज़र मेरी और किया, हल्की मुश्कान सजाये अपने दूसरे हाथ को मधु के पेट पर सहलाता हुआ पल्लू के सहारे मुझसे छुपाता चुचियों पर रख कर बोला भाभी खाना अभी भी बहुत गर्म है, मधु इठलाती अपने पैरों को हिलकती पायल बजाती बोली जब तक तुम खा न लो ऐसे ही गर्म रहेगी इतनी जल्दी ठंडी नहीं होने वाली, वसंत हल्के हल्के चुचियों को दबाते बोला और खिलाओ न भाभी ।
इतना नर्म ओर गर्म खेल देख मुझे उतेजना ने घेर लिया और मटन की हड्डियों को चुसता सोचने लगा काश वसंत का चूस पाता ।
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suppperrrrrrrrrrbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbb
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मधु कामुक्ता के सुख को वसंत के हाथों से दिल खोल कर लेती उसको रोटियां खिलाती रही और वो बेफिक्र हो के नग्न पीठ को सहलाता चुचियों की दबाता मधु के अंतर्मन को उकसाते बोला भाभी जी थोड़ा गोश्त भी खिलाओ ।
मधु मटन के टुकड़े को उठा कर खुद आधी खा कर बोली मुझे लगा तुम्हें कच्चे गोश्त पसंद हैं इशलिये नहीं खिला रहीं थी, लेकिन ये लो, अपने झूठे मटन के टुकड़े को उसके मुँह मैं देती बोली बड़े नर्म है ना, वसंत हल्का ज़ोर से चूची को दबाता बोला बहुत नर्म और गर्म है भाभी ।
मधु थोड़ी हिलती डोलती पायल बजाती उसके गोद मे इठलाई और थोड़ा क़मर उठा कर फिर हिला कर बैठ गयी और बोली लगता है अब जा के अच्छे से फसा ,वसंत बोला भाभी ऐसे कैसे फसेगा ।
मधु होटो को दांतों से दबाती बोली फ़स तोह गया है बस इंतज़ार है अच्छे से धस जाए गहराईयो मे ,वसंत तपाक से बोल उठा बस भाभी आपके हुकुम का इंतज़ार हैं ,फिर देखना आप कैसे गोश्त को खाना पसंद करता हे आपका देवर ।
मधु और वसंत खुल के अर्ध नग्न बातें करते खाने का मज़ा ले रहे थे और मेरी परवाह दोनों मैं किसी को नहीं थी ओर हो भी क्यों । मैं भी मटन के हड्डियों को चुसता दोनों की दोहरी अश्लील बातें सुनता और हरकतों को बारीकी से नज़र गड़ाए देखता रहा ।
वसंत ने मधु को खींच कर कानों मे कुछ फुसफुसाया ओर मधु हस्ती हुई बोली देवर जी ये भी पूछने वाली बात है और फिर वसंत ने हल्के से मधु की कमर के ऊपर बंधी ब्लाउज की डोरी को खिंचा और दूसरे हाथ को नर्म चुचियों के एहसास के लिए ब्लाउज के निचले हिस्से से हाथ को अंदर सरकाया और डोरी तब तक खिंचती रही जब तक उसका हाथ मधु के संपूर्ण गोलाई के ऊपर अच्छी तरह चला न गया, मधु मदहोश सी आँखों को मूंद उसके स्पर्श को महसूस करती शांत बैठ गई ।
वसंत निर्भिग हो के चूची को सहलाता मसलने लगा और मधु की बाहों की पकड़ उसके गर्दन पर कसने लगी और वसंत का चेहरा मधु के नर्म गर्म चुचियों के दरार से जा मिला ।
अब वसंत संपूर्ण रूप से मधु की जकड़ मे बंध गया और अपने होटो से उसके नमकीन जिस्म को चूमने चाटने लगा और मधु सिसकियां भर्ती बोली देवर जी गोश्त खाना बाकी है ,वो दबा हुआ धीमे स्वर मे बोला जी भाभी वहीं तोह चख रहा हूं ।
मधु ने वसंत के बालों को कस के पकड़ के खिंचा और वसंत ने चूची को मसलते हुए तगड़े ढंग से दबाते हुए अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए बची हुई डोरी को खींच कर जिस्म से अलग कर दिया ।
मधु ने सच ही कहा था कि इस दफ़े मेरे लिंग से गाढ़ा मुठ बहने वाला है ,दोनों के क्रीड़ा देख के उत्सुकता और रोमांच मेरे जिस्म मे भरने लगा था ।
बिना परेशानियों के कहीं शारीरिक सुख का मिलन हुआ है क्या अपने देश मे, जो अभी हो जाता ,दरवाज़े पर दस्तक सुनते ही सब चौक गए और मधु वसंत की गोद से उठ खड़ी हुई और ब्लाउज की डोरी को कस के बांध कर बोली ये शर्मा जी कबाब की वो हड्डी है जिसका इलाज़ ही नहीं ।
वो झुंझलाती एक मटन के टुकड़े को हाथों मैं लेती खुद के शारीरिक पहनावें को अच्छी तरह वेवस्तित करती हुई पायल बजाती कमर को मटकाती दरवाज़े की कुंडी खोलती हुए बोली नमस्ते भाईसाहब ।
शर्मा जी अपने पीले दाँतो को दिखाते बड़ी मुस्कान लिए बोले जी नमस्ते भाभी जी और अंदर प्रवेश कर के सीधे मेरी और बढ़ आए और मेरा तमतमाता लड़ सिकुड़ के मूंगफली सा हो गया और मैं बोला आईये बैठिये शर्मा जी ।
वो तिरछी नज़र से वसंत को देखते बोले मेहमान आया है , मधु दरवाज़े की कुंडी बंद कर के अंदर आई और बोली नहीं भाईसाहब ये तोह मेरा प्यारा देवर है ओर वसंत के केसों को सहलाती किचन चली गई। ।
शर्मा जी हँसते हुए बोले सोचा आप घर आए हुए है तोह आपके ओर भाभी के लिए पान बनवा लाया और मे उठ कर हाथ धो कर पान ले कर चबाने लगा और मधु को आते देख शर्मा जी बोले गुलकंद वाली पान लाया हूँ भाभी, मधु मुश्कुरते मन ही मन शर्मा को कोसते पान लेती हुई बोली धन्यवाद भाईसाहब और थाली उठाने लगी ।
वसंत ने बचे हुए मटन को ताज़े गोश्त की लालच मे नज़रअंदाज़ कर दिया और हाथ मुँह धो कर वही अलग कुर्सी पर बैठा रहा ।
करिब आधे घंटे शर्मा ने मोहल्ले की भकचोदी चोद कर बोले अच्छा अब इज़्ज़ाज़त दीजेए और मै दरवाज़े तक छोर कर कुंडी लगा वापस सोफे पर बैठ गया और मधु मुँह मे पान भर कर सामने बैठ गईं और बोली क्यों देवर जी ज़्यादा खा लिए क्या, वो बोला कहा भाभी , अभी अभी तोह सोचा खाने को पर आप ही खिलाना छोर दी ।
मधु ने अपने हाथ को सोफे पे पटक के वसंत को पास बुलाया और वो मधु के करीब बैठ गया ,मधु अपने हाथ को उसके झाग पर फेरती बोली बढ़ी मीठी पान है, वसंत कुड़ करता बोला वाह भाभी अकेले अकेले पान खा रही हों ,मधु ने बोला तुझे भी खाना है क्या देवर जी ,वो बोला हा ।
मधु ने घुटनों को सोफे पे मोड़ के घुटनों के बल खड़ी हो गई और बोली मुँह खोलो खिला देती हूँ ,वसंत मुँह खोल कर बोला खिलाओ ,मधु साड़ी को एडजस्ट करती उसके ऊपर चढ़ गई और होटो से होटो को मिला कर अपने मुँह से आधे पान के टुकड़े को उसके मुँह मैं दे कर वापस बैठ गई ।
वसंत पान चबाता बोला भाभी पान तोह सच मे मीठा है और आपके मुँह मैं कुछ देर रह के और भी रसिला हो गया हैं ।
दोनों असल मे कामुक्ता की तपन से जल रहे थे लेकिन अभी आग भड़की नहीं थी कि दोनों बेशर्म हो जाए ।
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मधु झुक के सोफे पर इत्मिनान से बैठी पान का आनन्द उठा रहीं थी ओर वसंत भी हल्का टेढा टैंगो को फ़ैलाये आराम से मधु के झूठे पान को चबाता जा रहा था कि मधु ने अपने पाव को वसंत के पैरों पर रगड़ा और उसके पायल बजने लगें ,वसंत सब्र करता मधु के एहसास को ख़ुद पे महसूस करता रहा लेकिन वो ज़्यादा देर इस सहलाहट को झेल न सका और झुक कर मधु के तलवें को हाथों से पकड़ कर अपने गोद मे उठा लिया जिसकी वज़ह से मधु थोड़ी असंतुलित हो गई और कोहनी के सहारे खुद को सम्हाली ।
मधु के वक्चस्थल से पल्लू सरक गया और गदराई कोमल बड़ी बड़ी चुचिया दिखने लगी, वसंत की नज़रे वहाँ अटक गई और वो मधु के तलवों को उँगलियों से सहलात्ते मधु के बदन मे एक सिहरन उठा बैठा ।
मधु आँखे मुद सर को सोफे की हैंडल पर लगा ऐसे लेट गई जैसे एक प्यासी औरत अपने मर्द को रिझाने के लिए लेट जाती हैं । तेज़ सासों की वज़ह से मधु का उभार ऊपर निचे होने लगा और बिना किसी पर्दे के गले से नीचे कमर तक उसका योवन वसंत के सामने इठलाने लगा और वो तलवों को आहिस्ता आहिस्ता सहलाता मधु को बसीभूत करता तड़पाने लगा ।
वसंत ने मधु के बाएं पैर को अपने फंफ़नाते लड़ पर रख कर मोड़ा और दूसरे पाव को सहलाते रहा, मधु पैरों की उँगलियी से वसंत के मर्दाना लड़ को दबाने लगी और उँगलियों से ही लंबाई चौड़ाई का अंदाज़ा लगाने लगी लेकिन पिजड़े मैं कैद सख्त लड़ को नापना इतना आसान नही इस वज़ह से वो बस दबाब बनाती खुद को उतेजित करने लगी ।
शेरनी ख़ुद शिकारी की जाल मैं फ़स सी गई और वो भी इस कदर की बचने या पासा अपने हाथों में लेने का भी रास्ता ही नही बचा ।
वसंत ने चतुराई से एक हाथ को तलवे सहलाने मे व्यस्त कर दूसरे हाथ से मुड़े पाव के पायल को छूता धीरे से ऊपर की और बढ़ाने लगा और जल्द ही मधु के निचले झाग तक जा पहुँचा ।
मधु दोनों हाथों को सर के ऊपर उठाकर अपनी पसीने से लतपत काँखों को दिखाने लगी जिससे वसंत भटक गया ,मधु भले ही जाल में थी लेकिन पासे को उसने ग़ुलाम बना लिया था ।
वसंत पहले भी मधु के चिकने काँख को छू कर फ़िसल गया था और अभी भी वो फ़िसल ही गया ।
मधु ने चालाकी से दोनों पाव को मोड़ लिया और वसंत को तरसाते अपने पैर के अंग्गूठे से सहलाती मदहोश आंखों से देखती मानो कह रहीं हो चढ़ जाओ और रौंद डालो लेकिन पसोपेश मे फ़सा वसंत अलग ही अंदाज़ मे झुक कर पाव के अंग्गूठे को चुसने लगा ।
उइईई माँ मधु बोलती चित्कारिया मारने लगी और वसंत ने मन मुताबिक वापस दोनों मुड़े टांगों को गोद मे खिंच लिया और साड़ी को थोड़ा ऊपर सरका कर होटो से चूमने लगा । मधु की सासे बहुत तेज़ी से चलने लगी और वो मचलती इठलाती कमर हिलाती वसंत के नर्म होटो का साथ देने लगी ।
मधु के चेहरे को देख मैं समझ गया ज़्यादा से ज़्यादा दस मिनट ही वो अपनी आग दबा पाएंगी फिर खुद ही वसंत के लिए टाँगे फैला देगी ।
वसंत कोई बच्चा तोह है नही उसने भी वक़्त के नज़ाकत को भाँप लिया और साड़ी को घुटनों के पास तक उठा होटो से चूमने लगा ।
मधु की चुदासी चुत चित्कारिया मारने लगी जिसे देख मेरा मूंगफली सा लड़ पानी पानी होने को बेताब हो गया ।
मधु ने सच ही कहा था इस दफ़े गाढ़ा मुठ निकलेगा , अति उत्साह, रोमांच मेरे बदन मैं समा गया और मानो मेरा लड़ लोहे सा कड़क हो गया हो ।
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bhai wah....lekin abhi bhi isse pati k samne mat chudwao...pati ko kahin idhar udhar bhejo...phir khul k chudwao
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