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पुरानी हिन्दी की मशहूर कहनियाँ
मैं उस नये लड़के को नहीं जानती थी लेकिन रघु को तो जानती थी, कई बार कल्पनाओं में उसके नीचे खुद को मसलवा चुकी थी और उसके लिंग को अपनी योनि में ले चुकी थी।

मेरे उतावलेपन को देखते वे थोड़े हैरान तो जरूर हुए लेकिन मेरे ब्रा और पैंटी में आते ही उनमें भी जैसे करेंट सा लगा। मैं कोई संकोच, शर्म, लिहाज के मूड में इस वक्त बिलकुल नहीं थी और भूखी शेरनी की तरह उस पर टूट पड़ी। मैंने रघु को दबोच लिया और उसके शरीर पर जोर डालती उसे बेड पर गिरा लिया और खुद उस पर चढ़ गयी।

उसके होंठों से मैंने अपने होंठ जोड़ दिये और उन्हें ऐसे चूसने लगी जैसे खा जाऊँगी। उसके मुंह की गंध अच्छी तो नहीं थी लेकिन उस घड़ी जो मेरी स्थिति थी उसमें यह चीज कोई मायने ही नहीं रखती थी। उसके होंठ छोड़े तो उसके माथे, गाल, गर्दन को बेताबी से चूमने लगी। उसकी शर्ट के बटन जल्दबाजी में मैंने तोड़ दिये और नीचे की बनियान को फाड़ डाला, जिससे उसका बालों भरा चौड़ा चकला सीना सामने आ गया। मैं उसके सीने पे होंठ रगड़ने लगी।

“मैडम तो बहुत भूखी लगती हैं राजू … तू भी आ, अकेला नहीं संभाल पाऊंगा।” रघु ने याचना सी करते हुऐ कहा।

“हां बहुत भूखी हूँ, बहुत तरसी हूँ मर्द के लिये, बहुत तड़पी हूँ। जी भर के चोदो मुझे … दो घंटे हैं तुम लोगों के पास। मेरी चूत की धज्जियां उड़ा दो। वह सब कुछ करो जो तुमने कहीं पढ़ा या देखा हो .. मैं सबकुछ महसूस करना चाहती हूँ।” मैंने लहराती हुई आवाज में उसकी पैंट खोलते हुए कहा।
“मतलब?” दोनों ही अटपटा गये।
“मतलब एक दो टके की रांड बना दो मुझे … छिनाल बना के चोदो। मुझे मारो … तकलीफ दे सकते हो तो दो। बस चेहरे पे कुछ न करना। मेरी चड्डी ब्रा फाड़ के फेंक दो। मुझे कुतिया की तरह नंगी कर दो। गंदी-गंदी गालियां दो … जो गंदे से गंदा कर सकते हो करो। मेरे पूरे बदन को काट खाओ। मेरी चूचियों को संतरे की तरह निचोड़ कर रख दो। मेरी घुंडियों को बेरहमी से मसलो, दांतों से काटो। मेरी चूत में मुंह डाल के खा जाओ, मेरा मूत पी जाओ … मेरे चूतड़ों को तमांचों से मार-मार के लाल कर दो। मेरे मुंह में मूतो, मेरा मुंह चोद डालो, मेरे मुंह में झड़ जाओ और अपने लंडों से मेरी चूत और गांड सब चोद-चोद कर भर्ता बना दो। मुझे इतना चोदो कि मैं चलने लायक भी न रह पाऊं … जो कर सकते हो, करना चाहते हो करो। मैं महीनों इस चुदाई को भूल न पाऊं।”

मेरी तड़प मेरे शब्दों से जाहिर थी और वे भी कोई नये नवेले लौंडे नहीं थे, खेले खाये मर्द थे और मर्द तो मर्द … जब सामने नंगी लेटी औरत खुद खुली छूट दे रही हो तो उन्हें तो मौका मिल गया अपने अंदर के जानवर को जगाने का।

जब तक मैं रघु के पैंट से उसके उस लिंग को बाहर निकाल कर अपने मुंह में ले कर चूसना शुरू करती, जिसे महीनों से देखती और उसकी कल्पनायें करती आ रही थी, कि राजू ने भी कपड़े उतार कर फेंक दिये और पीछे से मेरी ब्रा के स्ट्रेप पकड़ कर ऐसे खींचे कि वे टूट गये और उसने ब्रा खींच कर मेरे शरीर से अलग कर दी।

मेरी मर्दाने स्पर्श को तरसती चूचियां एकदम से खुली हवा में सांस लेती आजाद हो गयीं और उसने मेरे बाल पकड़ कर ऐसे खींचा कि रघु का लिंग मेरे मुंह से निकल गया।

“तो ऐसे बोल न हरामजादी कि तू रांड है, लौड़े चाहिये थे तुझे कुतिया। ले तेरी माँ की चूत … देख कि कैसे तेरी बुर का भोसड़ा बनाते हैं रंडी। ले मुंह में लौड़ा ले छिनाल।” उसने कई थप्पड़ मेरे गाल पर थप्पड़ जड़ दिये जिससे मेरा चेहरा गर्म हो गया और आंख से आंसू छलक आये लेकिन इस पीड़ा में भी एक मजा था।

उसका लिंग रघु के लिंग से कम नहीं था। देख कर ही मजा आ गया और मैंने लपक कर उसे मुंह में उतार लिया और हलक तक घुसा कर जोर-जोर से चूसने लगी। मुझसे मुक्त होते ही रघु भी उठ खड़ा हुआ था और उसने भी मुझे गंदी-गंदी गालियां देनी शुरू कर दी थीं जो मेरे कानों में रस घोल रही थीं। उसने भी झटपट कपड़े उतार फेंके और मेरे चूतड़ों पर थप्पड़ जमाते हुए मेरी पैंटी खींचने लगा और इतनी बेरहमी से खींची कि वह फट गयी और मेरे शरीर से निकल कर उसके हाथ में झूल गयी।

फिर एक के बाद उसने कई जोरदार थप्पड़ जड़ दिये मेरे मुलायम चूतड़ों पर … दोनों चूतड़ गर्म हो गये और एकदम से ऐसा लगा जैसे चूतड़ों में मिर्चें भर गयी हों लेकिन फिर फौरन वह कुत्ते की तरह मेरे चूतड़ों को चाटने लगा। जबकि राजू अपना लिंग मेरे मुंह में घुसाये, हाथ नीचे करके मेरे दोनों स्तनों को जोर-जोर से भींचने लगा था।

चूतड़ों को चाटते-चाटते रघु ऊपर आया तो उसने मेरी पीठ पर चिकोटी काटते मुझे नीचे गिरा लिया। फिर दोनों मुझ पर भूखे जानवर की तरह टूट पड़े।

वह थप्पड़ों तमाचों से मुझे पूरे शरीर पर मार रहे थे, साथ ही मसल रहे थे, रगड़ रहे थे … मेरे सर पर इतनी ज्यादा उत्तेजना हावी थी कि मुझे उस मार से कोई तकलीफ नहीं महसूस हो रही थी। वे दोनों मेरी चूचियों को पूरी बेरहमी और बेदर्दी से मसल रहे थे। बीच-बीच में घुंडियों को मुंह में ले कर चूसने लगते, चुभलाने लगते, दांतों से काट लेते कि मैं सी कर के रह जाती।

कहीं मेरे होंठ उसी बेरहमी से चूसने लगते और अपना लिंग बार-बार मेरे मुंह में घुसा कर मेरा मुंह चोदने लगते। बीच-बीच में वे जितनी गंदी बातें कर सकते, जितना मुझे कह सकते थे … कह रहे थे और उनकी बातों के जवाब देते मैं भी ऐसे बिहेव कर रही थी जैसे मैं कोई थर्ड क्लास रंडी होऊं।

वे मेरे पूरे जिस्म पर काट रहे थे, चाट रहे थे और मेरे चेहरे को छोड़ बाकी जिस्म पर अपनी निशानियां अंकित कर रहे थे और मैं भी कम नहीं साबित हो रही थी। उनके आक्रमण का जवाब उसी अंदाज में दे रही थी। उन्हें गिरा लेती, उन पर चढ़ जाती, उनके पूरे बदन को चूमती चाटती और कई जगह काट भी लेती। उनके लिंग बुरी तरह चूसती, उनके टट्टे भी चूसती चाटती। उनके बाल पकड़ कर उनके मुंह पर अपनी योनि ऐसे रगड़ती जैसे उसे अपनी चूत में ही घुसा लेना हो। ऐसी हालत में दूसरा मेरे मुंह को चोदने लगता। चूत से ले कर गांड तक सब चटवा रही थी और वे भी पीछे नहीं हट रहे थे। इतने आक्रामक घर्षण में जाहिर है कि चूत का बुरा हाल होना था … मैं स्कवर्टिंग करती झड़ने लगी और वे भी इतने जोरदार आक्रमण को न झेल पाये। पहले मेरा मुंह चोदते गालियां देते हुए राजू झड़ने लगा तो उसने अपना लिंग बाहर निकालना चाहा लेकिन मैंने निकालने नहीं दिया।

यह नया अनुभव था, पहले कभी तो सोचा भी नहीं था … एकदम से मुंह उसके वीर्य से भर गया। अजीब स्वाद था, न अच्छा न बुरा … मैं आज हर हद पार कर जाना चाहती थी इसलिये पीछे हटने का सवाल ही नहीं था। मैं उसे निगल गयी और वह कांपता थरथराता झड़ता रहा और थोड़ा बहुत मैंने बाहर निकाल कर अपने दूधों पर मल दिया।

वह हटा तो मैंने रघु का लंड मुंह में लेना चाहा लेकिन उसने मना कर दिया कि वह चूत में ही झड़ेगा।

हालाँकि मैं झड़ चुकी थी और चूत बुरी तरह बह रही थी लेकिन लंड के लिये तो हर पल तैयार थी। मैंने उसे चित लिटाये उसके कठोर लिंग पर अपनी चूत टिकाई और बैठती चली गयी। चूत की संकरी मगर बुरी तरह पानी से भीगी दीवारें चरचराती हुई, ककड़ी की फांक की तरह फटती लंड को जड़ तक लेती चली गयी और मेरे मुंह से ऐसी राहत भरी जोर की ‘आह’ निकली थी जिसे बस मैं ही समझ सकती थी। भले झड़ चुकी थी लेकिन भट्ठी की तरह दहकती चूत को लंड से भला कैसे इन्कार होता।

आज पहली बार चूत को लंड का सही स्वाद मिला था। उस लंड के लिहाज से मेरी चूत एकदम कुंवारी ही थी और वह ऐसा फंसा-फंसा अंदर धंसा हुआ था जैसे कुत्ते कुतिया फंस जाते हैं। ऐसा नहीं था कि मुझे इस प्रवेश से दर्द नहीं हुई थी लेकिन इतनी तरसी तड़पी सुलगी हुई चूत को लंड मिला था, इस सोच से पनपी उत्तेजना उस दर्द पर भारी थी, लेकिन मैं फिर भी बिलबिलाती हुई उसे गालियां बकने लगी थीं जिसके प्रत्युत्तर में वह भी मुझे कुतिया, रंडी, छिनाल बना रहा था।

जबकि राजू झड़ने के बाद थोड़ी देर के लिये ठंडा पड़ गया था। जब मुझे लगा मैं बर्दाश्त कर सकती थी तो मैंने ऊपर नीचे होना शुरू किया। उम्म्ह… अहह… हय… याह… चूत में यह लंड का घर्षण। लग रहा था जैसे मुझे पागल कर देगा। मैं जोर जोर से सिसकारती ऊपर नीचे होने लगी और चूत गपागप लंड लेने लगी। ‘फच-फच’ की आवाज के साथ मेरे चूतड़ों के उसकी जांघों से टकराने की ‘थप थप’ भी कमरे में गूँजने लगी थी।

घचर पचर चुदते हुए जब मैं थमी तो वह नीचे से जोर-जोर से धक्के लगाने लगा। लेकिन कुछ धक्कों में ही उसे अंदाजा हो गया कि उसकी उत्तेजना स्खलन के करीब पहुंच रही थी तो वह उठ कर बैठ गया और मुझे अपने ऊपर से हटाते नीचे गिरा दिया।

“अब मै झड़ने वाला हूँ रंडी … कहां लेगी मेरा माल बोल छिनाल?” वह मेरे पैरों को अपने कंधों पर रखते हुए बोला।
“मुंह में तो ले चुकी हरामी … अब मेरी चूत में बारिश कर दे। भर दे मेरी चूत को अपने माल से।” मैंने भी उसी के अंदाज में उत्तर दिया।

उसने कामरस से भीगा लिंग मेरी दहकती चूत के मुंह पर टिकाया और एक जोरदार धक्के में समूचा लंड मेरी चूत में पेल दिया कि चूत चरमरा कर रह गयी। एकदम से मेरी चीख सी निकल गयी।
“फाड़ डाली रे मेरी चूत मादरचोद!” मैंने बिलबिलाते हुए कहा।
“भोसड़ा बना के रख दूंगा तेरी बुर का बहन की लौड़ी। रोज तकती थी मेरे लौड़े को। आज देख इस लौड़े से कैसे तेरी चूत फाड़ता हूँ मादरचोद। रंडी छिनाल। तेरी माँ की चूत.. यह ले यह ले।”
“फाड़ दे … फाड़ दे हरामी। बहुत लंड मांगती थी यह। आज मजा चखा दे इसको।”

वह मेरे पैरों को अपने कंधों पे चढ़ाये थोड़ा झुक आया था और अब खूब जोर-जोर से धक्के लगा रहा था। मेरी चूत की दीवारें इस घर्षण से तप कर बहने को आ गयी थीं। लंड चलाते वह मेरी चूचियों को भी बेरहमी से दबाये डाल रहा था और मैं मुट्ठियों में बिस्तर की चादर दबोच रखी थी।

फिर जब मैंने योनि की मांसपेशियों में तीव्र अकड़न महसूस की, तभी उसके शिश्नमुंड को फूलते महसूस किया और उससे उबले गर्म-गर्म वीर्य को अपनी योनि में भरते हुए अनुभव करने लगी। झड़ते हुए मैंने पैर उसके कंधे से हटा कर नीचे कर लिये थे और उसे अपने ऊपर गिरा कर दबोच लिया था और जोर-जोर से सिसकारने लगी थी। उसने भी स्खलन की अवस्था में भेड़िये जैसी जोरदार गुर्राहटों के साथ मुझे भींच लिया था और हम दोनों ने उस चरम अवस्था में इतनी जोर से एक दूसरे को भींचा था कि हड्डियां तक कड़कड़ा उठी थीं।

थोड़ी देर में संयत होने पर वह उठ कर मुझसे अलग हुआ तो उसका मुरझाया लिंग पुल्ल से बाहर आ गया और एकदम से वीर्य बाहर उबला जिसे मैंने हाथ लगा कर हाथ पर ले लिया कि बिस्तर न खराब हो।
“बाथरूम किधर है?” मैंने राजू की तरफ देखते हुए पूछा तो उसने बायीं तरफ एक बंद दरवाजे की तरफ संकेत कर दिया।

मैं उठ कर बाथरूम चली गयी … वहां सारा वीर्य फेंका, योनि में मौजूद वीर्य निकाला और फिर सर छोड़ के बाकी बदन पानी से अच्छे से धो लिया। मैं निकली तो वे दोनों एकसाथ ही बाथरूम में घुस गये।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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हम दोनों ने उस चरम अवस्था में इतनी जोर से एक दूसरे को भींचा था कि हड्डियां तक कड़कड़ा उठी थीं।
थोड़ी देर में संयत होने पर वह उठ कर मुझसे अलग हुआ तो उसका मुरझाया लिंग पुल्ल से बाहर आ गया और एकदम से वीर्य बाहर उबला जिसे मैंने हाथ लगा कर हाथ पर ले लिया कि बिस्तर न खराब हो।
“बाथरूम किधर है?” मैंने राजू की तरफ देखते हुए पूछा तो उसने बायीं तरफ एक बंद दरवाजे की तरफ संकेत कर दिया।

मैं उठ कर बाथरूम चली गयी … वहां सारा वीर्य फेंका, योनि में मौजूद वीर्य निकाला और फिर सर छोड़ के बाकी बदन पानी से अच्छे से धो लिया। मैं निकली तो वे दोनों एकसाथ ही बाथरूम में घुस गये।

थोड़ी देर बाद हम तीनों फिर बिस्तर पर थे।

“मजा आ गया … ऐसे ही फिर चोदो। इस बार वैसे भी जल्दी नहीं झड़ोगे तो दोनों मिल के मेरी चूत चोदो। एक निकालो तो दूसरा डाले … ऐसे ही चोदते-चोदते पागल कर दो मुझे।” मैंने उन दोनों को देखते हुए कहा।
“मुझे गांड भी मारनी है।” राजू ने कहा।

“इसके बाद वाले राउंड में सिर्फ गांड ही गांड मारना और पूरी भक्कोल कर के रख देना। इस बार बस चूत ही चूत चोदो और झड़ना चूत में नहीं, बल्कि जैसे ही झड़ने को होना मेरे मुंह में दे देना। मैं मुंह से ही सब साफ कर दूंगी।”
“कमाल है … ऐसी चुदैली औरत तो हमने बस ब्लू फिल्मों में ही देखी है।” रघु थोड़ी हैरानी से बोला।
“समझो, मैं वहीं से निकल के तुम लोगों के बीच पहुंच गयी हूँ। अब टाईम मत वेस्ट करो.. शुरू हो जाओ।”

वे भी समय की कीमत समझते थे। हम तीनों नंगे बदन फिर एक दूसरे से गुत्थमगुत्था होने लगे। शारीरिक घर्षण फिर वासनात्मक आंच से शरीर को गर्म करने लगा। इस बार वे पहले की अपेक्षा कम हिंसक हो रहे थे लेकिन मैं उसके लिये भी उकसा रही थी। बार-बार उनके लिंग मुंह में ले कर बेरहमी से चूसने लगती। उनके मुंह में अपनी चूची घुसा देती, कहीं उनके मुंह पर चूत रख कर रगड़ने लगती।

बहुत ज्यादा देर नहीं लगी जब उनके लंड पूरे आकार में आ कर एकदम कठोर हो गये और मेरी चूत भी गीली हो कर बहने लगी।
“चलो अब शुरू हो जाओ। जैसे ब्लू फिल्मों में देखते हो, वैसे चोदना है … दोनों लोग बारी-बारी से बुर का भोसड़ा बना दो। जिसका लंड मुर्झाने लगे मेरे मुंह में दे दो, मैं टाईट कर दूंगी।”

शुरुआत चित लिटा कर चोदने से हुई। पहले राजू ने लंड घुसाया और घचाघच पेलने लगा। मैं हर धक्के पर जोर जोर से सिसकारते हुए उम्म्ह… अहह… हय… याह… उसे बकअप कर रही थी कि वह मुझे गालियां देता गंदी-गंदी बातें भी करता रहे। रघु का लंड कमजोर पड़ने लगा तो उसने मेरे मुंह में दे दिया और टाईट होते ही उसने राजू को हटा दिया और खुद चढ़ गया। अब उसके जोरदार धक्कों से चूत चरमराने लगी। मैंने भी आहों कराहों में कोई कसर नहीं उठा रखी थी।

राजू पहले तो मेरी घुंडियां मसलने चूसने में लगा रहा लेकिन जब उसे लगा कि उसकी उत्तेजना कम पड़ रही थी तो उसने मेरे ही रस से भीगा लंड मेरे मुंह में दे दिया जिसे मैं चपड़-चपड़ चूसने लगी।

जब इस पोजीशन में रघु भी अच्छे खासे धक्के लगा चुका तो आसन बदलने के लिये मैं औंधी हो गयी और एक टांग सीधी रखते, दूसरी टांग इस तरह ऊपर खींच ली कि चूत बाहर उभर आये। इस तरह राजू ने अपना लंड घुसा दिया और अब चूँकि मेरे चूतड़ उनके सामने थे तो उन पर तमांचे मारते उन्हें भी साथ में सहलाने लगा। मैं उस आनंद की पहले शायद सटीक कल्पना भी नहीं कर पाई थी जो मुझे इस वक्त मिल रहा था।

आनंद के अतिरेक से मेरी आंखें मुंद गयी थीं और मैं बस बेसाख्ता ही जोर-जोर से सिसकारे जा रही थी। मुझे इस बात की भी कोई परवाह नहीं थी कि आसपास कोई सुन लेगा। सुन लेगा तो सुन ले.. आज मैं चुद रही थी जो मेरी कब से आरजू थी इसलिये आज कोई बंधन स्वीकार्य नहीं था।

राजू को हटा कर खुद चढ़ने से पहले रघु ने मेरे मुंह में दे कर फिर से अपना लंड कड़ा कर लिया और फिर राजू की जगह वह आ गया और राजू मेरे पड़ोस में लेट कर मेरे होंठ, मेरी जीभ चूसने लगा। एक हाथ से मेरी एक चूची भी मसले जा रहा था।

यह आसन भी हो गया तो मैं उठ कर बिस्तर के किनारे अपनी गांड हवा में उठ कर झुक गयी और उनसे कहा कि अब वह नीचे खड़े हो कर पूरी ताकत से चोदें।

पहल राजू ने की … मेरे चूतड़ों को दबोच कर वह जोर-जोर से धक्के लगाने लगा। उसकी सुविधा के लिये मैं खुद भी बार-बार चूतड़ पीछे करके उसके लंड को चूत में जड़ तक घुसने का मौका दे रही थी। कमरे में ‘फच-फच’ ‘थप-थप’ की मधुर ध्वनि के साथ मेरी मादक कराहें और उनकी जानवर जैसी हिंसक भारी सांसों के साथ ही उनकी गालियां और वे गंदी बातें भी गूंज रही थीं जो वे जोश बोले जा रहे थे।

यहां वे चोदने के लिये अपनी बारी में उतना टाईम नहीं ले रहे थे जितना पहले लिया था, बल्कि थोड़ी-थोड़ी देर में स्थान बदल रहे थे। जहां राजू का लंड समान मोटाई लिये था मगर लंबाई रघु से कम थी, वहीं रघु का लंड बच्चेदानी पर चोट करता लगता था जिसे बर्दाश्त करने में मेरी हालत खराब हुई जा रही थी।

इस बीच मैं झड़ भी चुकी थी और लंड खाते-खाते दुबारा भी गर्म हो गयी थी और अब फिर से उसी उफान पर थी जहां योनिभेदन करते लंड मुझे वापस चर्मोत्कर्ष तक पहुंचाये दे रहे थे।

“मेरा निकलने वाला है।” इस बार पहले रघु बोला और लंड निकालते मेरे मुंह की तरफ आ गया जबकि चूत खाली होते ही राजू ने अपना लंड पेल दिया था। रघु का लंड मैंने हलक की जड़ तक लेते जोर से दबा लिया … वह एकदम से फूला और बह चला। आगे पीछे उसने जो पिचकारी छोड़ी, वह सीधे हलक में उतरती चली गयी जिसका स्वाद भी मुझे न पता चला।

हां … बाद में लंड ढीला हुआ और थोड़ा बाहर निकला तो अंत की छोटी पिचकारी से उसके रस का नमकीन स्वाद मिला, जिसे अनुभव करते मैं हलक में उतार गयी और रघु ने हांफते हुए अपना लंड मेरे मुंह से निकाल लिया और बिस्तर पर फैल गया।

मेरी निमग्नता भंग होने से मेरा स्ख्लन भी डिले हो गया था, जिस पर वापस ध्यान दिया तो राजू के धक्के मुझे चरम सुख देने लगे और थोड़ी देर में मैं भी अकड़ गयी। मेरी योनि उसके लंड को भींचने लगी तो वह भी उत्तेजना के शिखर पर पहुंच गया और उसने भी जल्दी से लंड चूत से निकाल कर मेरे मुंह में ला ठूंसा। उसके साथ भी मैंने वही किया जो रघु के साथ किया था और वह भी कुछ पल बाद बिस्तर पर फैल गया।

अब अलग-अलग हम तीनों पड़े अपनी उखड़ी सांसें दुरुस्त कर रहे थे।
“बोलो … मैं तो बहुत भूखी थी। मुझमें अभी भी दम है, गांड मरवाने का। क्या तुम लोगों में दम है और लंड चलाने का या मैं पैकिंग करूँ?” मैंने चुनौती भरे अंदाज में कहा।

कोई आम हालात होते तो वे शायद मना कर देते लेकिन ऐसी खुली रांड सी औरत रोज कहां चोदने को मिलती है, वे इसका लोभ संवारण न कर सके।
“थोड़ा टाईम दो.. संभलने का। गांड भी मारेंगे और आज जब घर जाओगी तो महीनों इस चुदाई को भूले न भूल पाओगी।”
“मैं भी तो यही चाहती हूँ लेकिन गांड चूत के मुकाबले सख्त होती है। कुछ चिकनाहट का इंतजाम करना पड़ेगा।”
“कभी कभार हम यहीं खाना बनाते हैं तो सरसों का तेल ही है और कुछ नहीं।”
“वह भी चलेगा।”

करीब दस मिनट लगे उन्हें संभलने में … ज्यादा टाईम तो उन्हें मैं दे भी नहीं सकती थी। मैं खुद से उन पर चढ़ने, उन्हें चूमने चाटने लगी। उनके सोये मुरझाये लंडों को सहलाने चाटने लगी।

धीरे-धीरे उनमें गर्मी आने लगी और वे भी मूझसे लिपटने रगड़ने लगे। इस बार पहले वाली आक्रामकता गायब थी और उसका स्थान सौम्यता ने ले लिया था। उनके लंडों को जागने में टाईम भी ज्यादा लगा और करीब दस मिनट और खर्च हुए पूरी तरह तैयार होने में।

राजू तेल ले आया जिसकी फिलहाल मुझे जरूरत थी। मैंने दोनों के लंड उस तेल को चुपड़ कर एकदम चमका दिये और खुद औंधी लेट कर सिर्फ गांड वाले हिस्से को उभार दिया कि वे उसमें तेल लगा कर अपनी उंगलियों से चोदन करें।

उन्होंने भी पूरे चूतड़ तेल से चमका दिये और थोड़ा-थोड़ा तेल छेद में डालते और उंगली करते। यहां एक बात बता दूँ कि चूँकि पोर्न पढ़ और देख कर मैं खुद तरसती थी तो खुद अपनी उंगली, मोमबत्ती आदि से यह करती थी तो ऐसा भी नहीं था कि मेरी गांड का छेद इस चीज से अंजान था। वह उनकी उंगलियों को सहज रूप से स्वीकारने लगा। पहले एक उंगली, फिर दो और फिर तीन … ऐसा लगा जैसे गांड ही फट जायेगी।

“अब लंड डाल के फाड़ दो हरामियो!” मैंने खुद से अपने चूतड़ हिलाते और कुतिया की तरह होते, अपनी गांड उनके सामने पेश करते हुए कहा।

पहले राजू ने अपना लंड छेद पर टिका कर जोर डाला। जाहिर है कि चिकनाहट काफी थी तो रुकने का सवाल ही नहीं था। पूरा सुपाड़ा एकदम से सारी चुन्नटों को फैलाते हुए अंदर घुसा। ऐसा लगा जैसे गांड ही फट गयी हो … साथ ही ऐसा भी लगा जैसे गू ही निकल जायेगा लेकिन बर्दाश्त कर गयी और मुंह से बिलबिलाहट के साथ गालियां निकलने लगीं।

रघु थोड़ा होशियार खिलाड़ी साबित हुआ। उसने हाथ नीचे देकर चूत सहलानी और मेरे दाने को रगड़ना शुरू कर दिया। जिससे थोड़ी राहत मिली।
मैं चूत को मिलती राहत की तरफ ध्यान लगाने लगी और राजू ठेलता हुआ पूरा लंड अंदर कर गया। मोमबत्ती की बात और थी, एक मोटे लंड के लिहाज से यह अनुभव ऐसा था जैसे जोर की हगास लगी हो और जब उसने अपने लंड को बाहर खींचा तो हगने जैसी ही फीलिंग आई … लेकिन टोपी तक खींच कर उसने फिर वापस पूरा अंदर ठेल दिया।

मेरे मुंह से फिर गाली निकल गयी।

आठ दस बार करने के बाद उसने फिर बाहर ही निकाल लिया और बताया कि उसमें गू भी लगा हुआ था, जिसे उसने साफ किया और फिर से तेल लगाया, जबकि अब उसकी जगह रघु ने अंदर ठांस दिया था और वक्ती राहत फौरन ही दफा हो गयी थी। उसने एक समझदारी यह की थी कि पूरा ठांसने के बजाये आधा ही डाला और धीरे-धीरे अंदर बाहर खींचने लगा।

करीब दस मिनट तो लग ही गये होंगे मुझे संभलने में। इस बीच कभी यह कभी वह और कभी मैं खुद अपनी चूत और दाने को सहलाती रगड़ती रही कि मेरी उत्तेजना बनी रहे। दस मिनट बाद वह वक्त भी आया जब छेद इतना ढीला पड़ गया कि उनके लंड आसानी से अंदर बाहर होने लगे तब मुझे थोड़ा मजा आना शुरू हुआ।

चूँकि वे दो बार झड़ चुके थे तो जल्दी झड़ने का तो सवाल ही नहीं था, फिर वे जगह भी जल्दी-जल्दी बदल रहे थे तो और टाईम लगना था।

एक बार जब मैंने एडजस्ट कर लिया और अपनी गांड मराई एंजाय करने लगी तब हमने आसन चेंज करने शुरू किये और जिन-जिन आसन में उन्होंने मेरी चूत चोदी थी, उन-उन आसन से उसी अंदाज में गांड भी मारने लगे। मुझे अच्छा लग रहा था, मजा आ रहा था और उत्तेजित भी खूब हो रही थी लेकिन यह और बात थी कि एनल में मैं आर्गेज्म तक न पहुंच पाई।

जबकि वे आखिरकार आधे घंटे तक गांड मारते-मारते चरम पर पहुंच गये और इस बार चूँकि मेरी शुरुआती गर्मी निकल चुकी थी तो मैं मुंह में निकलवाने का साहस भी न कर पाई और दोनों को गांड में ही झड़वा लिया।

अंत में राजू के फारिग होते ही मैं टायलेट भागी और हगने के साथ उनका सारा माल बाहर निकाला।

अब मैं भी निढाल हो चुकी थी और वे भी। टाईम भी हो चुका था। बिना ब्रा और पैंटी के ही कपड़े पहन कर मैंने विदाई ली और अपने टाईम से थोड़ा लेट सही पर घर पहुँच गयी।

यह चुदाई यादगार थी.. मेरे बदन पर उनकी निशानियां महीने भर रही थीं और दोनों छेद सूज गये थे। मूतने में तो नहीं पर हगने में जरूर दो चार दिन समस्या रही। मैंने सोचा था कि महीने में एकाध बार यह महफिल जमा लिया करूँगी लेकिन फिर एक दिन मेरी आकांक्षाओं पर तुषारपात हो गया जब रघू का फोन आया कि वह मुलुक लौट रहा है। उसके घर कोई हादसा हो गया है। अब पता नहीं कब तक लौटे।

हालाँकि राजू का एक ऑप्शन तो था पर उसका नंबर मेरे पास नहीं था और रघु से लेती भी तो क्या पता उसके पार्टनर वापस आ चुके हों और वे कैसे हों। मुझे दो तरह के लोगों से डर लगता है जो आपकी पर्सनल लाईफ को डिस्टर्ब कर देते हैं … एक वे कुंवारे लौंडे जो फौरन दिल लगा बैठते हैं और दूसरे वे पजेसिव नेचर के मर्द जो किसी औरत को अपनी पर्सनल प्रापर्टी समझ लेते हैं … इनके सिवा मुझे हर मर्द स्वीकार है।

अब तीन महीने फिर हो रहे हैं … उस आक्रामक चुदाई के अहसास हल्के पड़ चुके हैं। मेरी योनि फिर सुलगने और लिंग मांगने लगी है। मैं फिर चुदने के पीछे वापस पागल सी होने लगी हूँ … काश … काश कि मुझे मुंबई में ही और खास कर सबर्ब में कोई अपने जैसा भूखा मर्द मिल जाता जो मुझे निचोड़ कर रख देता लेकिन मेरी पर्सनल लाईफ का भी ख्याल रखता कि वह इफेक्ट न हो।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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Heart  सना  Heart



मेरा नाम सना है और फिलहाल मैं दिल्ली में ओखला इलाके में रहती हूँ। शादीशुदा हूँ और ओखला में ससुराल है। अब तक जिंदगी दिल्ली में ही गुजरी है और जो भी मजे लिये जा सकते हैं एक जवान जिस्म और उफनती जवानी के साथ … वे सारे ही मैंने लिये हैं।

पहली बार अठारह की उम्र में सेक्स किया जब अपने शरीर में मौजूद उन नशीली तरंगों से परिचित हुई जो आपको एक अलग ही दुनिया में ले जाती हैं। आज मेरी उम्र चौबीस साल है और इस बीच मैंने लगभग हर तरह से अपने शरीर का मजा लिया है।
पहला ब्वायफ्रेंड तो स्कूल से ही बन गया था और अकेले में दूध दबाने मसलने का सिलसिला शुरू हो गया था। यहां मैं एक बात यह बता दूँ कि मुझे जो सबसे ज्यादा चीजें पसंद हैं, उनमें से एक तो अपने बदन को सहलवाना मसलवाना है और दूसरा लंड को हाथ से धीरे-धीरे सहलाते हुए चूसने का।
यह शौक इस हद तक है कि किसी भी मर्द को देखते ही मेरी कुत्सित निगाहें उसके पैंट में छुपे लंड तक चली जाती हैं और दिमाग इस कल्पना में डूब जाता है कि इसका कैसा होगा और चूसने में कितना मजा आयेगा।
फर्स्ट इयर तक आते-आते बात मेरे जिस्म की सहलाहट मसलाहट से कहीं आगे बढ़ कर सलवार के ऊपर से मेरी चूत रगड़ने मसलने, उंगली करने और मेरे हाथ से मूठ मरवाने तक पहुंच गयी थी जो अपनी पहली चुदाई से ठीक पहले तक लंड चूसने चाटने तक जा पहुंची थी।
मैंने बहुत पोर्न साहित्य पढ़ा था और फिल्में देखी थीं जिससे उनका असर मेरे दिल दिमाग पर बड़े गहरे तौर पर पड़ा था, जिससे मैं सबकुछ वैसे ही करना चाहती थी। एक बार चुद गयी तो जैसे एक नये आनन्द का द्वार खुल गया।
अब कालेज से बंक कर कर के ब्वायफ्रेंड बदल बदल के पार्क में चली जाती थी जहां ज्यादातर वक्त में चुदाई की तो नौबत नहीं आ पाती थी लेकिन दबाई मसलाई और चूत में उंगली तक के खेल के साथ मेरा मनपसंद ओरल जरूर होता था।
यहां तक कि शुरू शुरू में अटपटाने के बाद मैं मुंह में ही झड़वा लेती थी, क्योंकि वहां पौंछने पाछने का कोई इंतजाम भी नहीं होता था।

इक्कीस तक शादी होने की नौबत आई. तब सात सात ब्वायफ्रेंड बदल कर सात लंडों के मजे चख चुकी थी लेकिन शादी के बाद इस सिलसिले पर ब्रेक लग गया था और शौहर पर ही सब्र करना पड़ गया था।
लेकिन हाय री मेरी किस्मत … शौहर भी मिला तो गल्फ वाला। चार महीने यहां तो पौने दो साल कतर में। आये तो अंधाधुँध चुदाई और जाये तो चूत एक लंड को भी तरस के रह जाये।
जिस कहानी का मैं जिक्र कर रही हूँ वह इसी ईद से पहले वाली चांद रात की है। उन दिनों मैं अपनी चुदास के चलते बहुत तपी हुई थी। साल भर हो चुका था उन्हें गये … चुदाई के लिहाज से देखें तो चूत सूख चुकी थी।
मुंह अलग तरसा हुआ था एक अदद लंड के लिये।

इधर अपनी चुल मिटाने के लिये मैं अक्सर एक काम करती थी कि बाजार के दिन नकाब पहन के अकेली ही खरीदारी करने बाजार चली जाती थी। दिल तो करता था कि बिना अंदर कोई और कपड़ा पहने सिर्फ नकाब पहन कर ही बाजार चली जाऊ और हर तरह के मर्दाने स्पर्श का मजा ले आऊं लेकिन ससुराल में यह काम थोड़ा ज्यादा रिस्क वाला था।
आप दिल्ली के हैं तो आपको पता होगा कि हफ्ते के अलग-अलग दिन में अलग-अलग इलाकों में बाजार लगती है जहां काफी भीड़ भाड़ होती है और यहां हाथ और लंड सेंकने के चक्कर में काफी चालू लौंडे भी हर हाल में पहुंचते ही पहुंचते हैं।
तो मेरे इलाके में बटला हाऊस में संडे को बाजार लगती है और मैं खास इसी इरादे से बाजार चली जाती थी कि शौकीन लौंडों के हाथों से दूध और चूतड़ सहलवा दबवा और रगड़वा लेती थी जिससे थोड़ी चुल तो शांत हो जाती थी … बाकी गर्मी रात को उंगली कर के निकाल लेती थी। खास इस मौके पर न मैं ब्रा ही पहनती थी और न ही पैंटी, जिससे भरपूर टच मिल सके।
तो चांद रात को भी यही हुआ था … उस दिन बाजार में इतनी ज्यादा भीड़ थी कि एकदम सट-सट के चलना पड़ रहा था। किसका हाथ टच हो रहा, किसका लंड … ठीक से अहसास ही नहीं हो पा रहा था।
मैं उस वक्त एक दुकान पे कुछ देख कर हटी ही थी कि पीछे से किसी हाथ का अहसास हुआ जो कमर पर था। अंदाज ऐसा ही था जैसे चलते-चलते लोगों के अनजाने में लोगों के पड़ जाते हैं और लगा कि कमर पे हाथ रखने वाला जगह बना के आगे निकल जायेगा।
लेकिन वह सट कर कंधे से कंधा रगड़ता चलने लगा। मैंने कनखियों से देखने की कोशिश की लेकिन बस इतना ही देख पाई कि कोई जवान युवक था।
एक बार तो मेरा रियेक्शन जांचने के लिये उसने हाथ कुछ सेकेंड रखने के बाद हटा लिया था लेकिन मेरे कोई नोटिस न लेने पर उसने हाथ फिर टिका दिया था और भीड़ में लगभग सरकते हुए साथ ही चलने लगा था।
फिर उसका हाथ कमर से नीचे सरकते हुए चूतड़ों तक पहुंच गया। पहले तो एकदम अजीब सा लगा लेकिन अगले पल में जैसे ही मन ने उस स्पर्श को स्वीकार किया, एकदम से मादक सी सनसनाहट पूरे शरीर में फैल गयी।
उस सरसराहट को उसने भी महसूस किया होगा … शायद इसीलिये कुछ सेकेंड थमा था कि मैं पलट के कुछ रियेक्ट करूँगी लेकिन मैंने कुछ रियेक्ट नहीं किया। भले मेरी सांसें भारी हो गयी हों।
इससे उसने मेरी मौन सहमति का अंदाजा लगा लिया और जैसे उसकी मुंह मांगी मुराद मिल गयी हो। वह चूतड़ों को दबाने रगड़ने लगा और अपनी उंगलियां चूतड़ों की दरार में धंसाने लगा। उसे अहसास हो चुका था कि मैंने पैंटी नहीं पहनी।
मैं गनगना उठी।
वह मेरी गांड के छेद पर टच कर रहा था और अपनी उंगलियों को चूत के निचले हिस्से तक पहुंचा रहा था। यहां मैं एक बात यह भी बता दूँ कि मुझे अपने दोनों छेदों से मजा लेने का शौक है तो पीछे के छेद पर कोई स्पर्श भी मुझे उतना ही गर्म कर देता है जितना आगे के छेद पर और मैं गीली हो जाती हूँ।
मेरी मूक सहमति जान कर वह मेरे पीछे हो गया और मेरे चिपक कर चलने लगा।
इतना तो मैंने देख लिया था कि उसने कॉटन का पजामा पहना हुआ था और शायद मेरे जैसे शिकार का मजा लेने ही आता था तो नीचे अंडरवियर भी नहीं पहने था क्योंकि जब उसने खुद को मुझसे सटाया था तो मुझे उसके खड़े, कड़े और गर्म लंड का बिल्कुल साफ अहसास हुआ था।
मैंने सलवार कुरता और ऊपर से बुर्का पहना हुआ था जिससे चेहरा भी कवर कर के रखा हुआ था … बस मेरी आंखें ही देखी जा सकती थीं।
थोड़ी देर बुर्के के ऊपर से ही मेरे चूतड़ों की दरार में अपना लंड सटाये भीड़ में मुझे आगे ठेलता रहा। फिर नीचे से बुर्के को चूतड़ तक ऊपर उठा दिया और फिर सलवार के ऊपर से दोनों चूतड़ों के बीच अपना लंड गड़ा दिया।
इस पल में मुझे थोड़ा डर जरूर लगा कि कहीं सलवार ही न नीचे कर दे और भरी बाजार मेरे चांद जैसे चूतड़ अनावृत हो जायें लेकिन जब उसने ऐसा नहीं किया तो मेरी जान में जान आई।
इससे उसकी हिम्मत थोड़ी और बढ़ गयी और उसने लंड मेरे चूतड़ों पर दबाये एक हाथ से आगे मेरी जांघ पर दबाव बना लिया और दूसरे हाथ से मेरी चूचियों को दबाना मसलना शुरू कर दिया।
हाय …. कब से तरसी हुई थी मैं। दिल किया कि वहीं वह मुझे चोद दे। मैं महसूस कर सकती थी कि मेरी चूत बुरी तरह गीली हो कर बहने लगी थी।
“मजा आ रहा है न जानेमन?” उसने अपना मुंह मेरे कान से सटाते हुए फुसफुसा कर कहा।
तब पहली बार मैंने गर्दन घुमा कर उसकी तरफ देखा। सिग्रेट की महक मेरे नथुनों तक पहुंची जो मुझे हमेशा अच्छी लगती थी। कोई खास अच्छा तो नहीं पर कबूल सूरत युवक था।

नकाब के पीछे बंद मेरे होंठ मुस्कराये थे जो वह नहीं देख पाया होगा लेकिन होंठ के साथ मेरी आंखें भी मुस्कराई थीं जो उसने अवश्य महसूस कर ली होंगी। तभी नीचे वाले हाथ से उसने मेरी चूत दबाई थी।
मेरे शरीर का समर्पण, मेरी भावभंगिमा उसे संदेश दे रही थी कि मैं क्या चाहती थी और उसे वह संदेश कैच करने में कोई अड़चन नहीं थी।
वह मुझे अपने हिसाब से ठेलता हुआ बाजार से सट कर अंदर जाती एक छोटी, संकरी गली में ले आया जो एक दुकान का पिछवाड़ा भी था। उधर अंधेरा ही था और दुकान के पार होती बाजार की रोशनी की वजह से ही बस देख पाने की गुंजाइश भर थी।
देखकर लगता नहीं था कि उधर कोई आम रास्ता था कि लोग गुजरें लेकिन फिर भी रिस्क तो थी ही … फिर भी दिमाग पर इस हद तक गर्मी चढ़ी थी कि मैं वहां भी चुदने के लिये तैयार थी और मेरी हालत यह हो रही थी कि मैंने सोच लिया था कि और कोई भी आ गया तो उससे भी चुदवा लूंगी।
उसने एकदम कोने में मुझे दीवार से सटा लिया कि दूर से कोई देख भी न सके और बड़ी बेरहमी से मुझे चूमने रगड़ने लगा। होंठ चुसाने के लिये मैंने चेहरे से ढाटा खिसका कर नीचे कर लिया था और वह बुरी तरह मेरे होंठों को चूसते एक हाथ से मेरे छत्तीस साईज के दूध मसलने लगा तो दूसरे हाथ से मेरी चूत को ऊपर से ही रगड़ने लगा।
उसने टीशर्ट और पजामा पहन रखा था … मैंने भी एक हाथ उसके पजामे के अंदर डाल दिया और उसके कड़े तनतनाये लंड को पकड़ कर रगड़ने लगी। साईज अच्छा था लेकिन झांटे काफी बढ़ा रखी थीं उसने जो मुझे पसंद नहीं लेकिन फिलहाल उनकी तरफ ध्यान देने का वक्त नहीं था।
उसने नकाब के ऊपर से ही गले के अंदर साथ डाल दिया था और घुंडियों समेत दोनों दूधों को मसलने लगा था। उसका तो पता नहीं पर मैं समझ सकती थी कि हमारे पास बहुत कम वक्त था और कभी भी कोई उधर आ सकता था। मैंने खुद से नीचे होना शुरू किया और उसका हाथ गले से बाहर निकल गया।
पहले शायद वह समझ न सका कि मैं क्या चाहती थी इसलिये वह भी साथ झुका लेकिन मैंने उसे रोकते हुए दोनों हाथों से उसके पजामे को सामने की तरफ से इतना नीचे खींचा कि उसका लंड अंडकोषों समेत बाहर आ गया।
उफ यह नियामत …. कम रोशनी में भी लंड देखते ही मेरे मुंह में पानी आ गया और मैंने उसे लेने में देर नहीं लगाई। वह भी पानी छोड़ रहा था। मस्त स्वाद था … मैं किसी पोर्न स्टार की तरह उसका लंड चूसने लगी। बीच बीच में उसके टट्टों भी मुंह में ले लेती थी। हालाँकि उसके बढ़े हुए बाल भी मुंह में आ रहे थे जो मुझे खराब लग रहे थे लेकिन उस वक्त उत्तेजना इस कदर हावी थी कि मैं उन्हें नोटिस ही नहीं करना चाहती थी।
वह भी मेरी तरह पहले से ही काफी गर्म था और इस तरह की जबरदस्त लंडचुसाई से उसकी हालत खराब हो गयी। “बस कर … निकलने वाला है।” वह मेरे सर को दूर करने की कोशिश करता हुआ कसमसाया।
लेकिन मैंने दोनों हाथों से उसके चूतड़ दबोच लिये थे जिससे वह मेरे सर को दूर न कर सका और उसके लंड ने एकदम से फूल कर ढेर सा वीर्य उगल दिया।

यह मेरे लिये कोई नयी बात नहीं थी। पहले शुरुआती दौर में भले खराब लगता रहा हो पर अब तो वीर्य का टेस्ट अच्छा ही लगता था। मैंने उसे मुंह मे लिये तब तक चपड़-चपड़ करती रही, जब तक आखिरी बूंद भी मेरे गले न उतर गयी। वह खुद झड़ने के टाईम एकदम तन कर फिर ढीला पड़ गया था।
तभी ऐसा लगा जैसे कुछ लोग बातें करते उधर आ रहे हों। मैं तो बैठी ही रही और वह मेरे सामने ऐसे खड़ा हो गया जैसे कोने में पेशाब कर रहा हो।
कुछ लोग उधर से गुजरे थे और शायद उन्होंने उसे देखा भी हो लेकिन रोशनी इतनी पर्याप्त नहीं थी कि सही से सब देख सकते … या देख भी लिया हो पर कुछ कहने की हिम्मत न पड़ी हो, कहा नहीं जा सकता।
बहरहाल … वे गुजर गये तो सन्नाटा फिर छा गया।

मैं फिर उसके मुर्झा चुके लंड को चूसने लगी और साथ ही उसकी गोलियों को सहलाने दबाने लगी। नया बदन था, नया स्पर्श था … कोई खास टाईम नहीं लगा और वह लकड़ी की तरह फिर तन गया।
अब मुझे अपना पानी निकालना था तो मैं खड़ी हो गयी। नीचे से नकाब को उठाते हुए नाड़ा खोला और दीवार की तरफ मुंह किये झुक गयी। कुछ बोलने की जरूरत ही नहीं थी।

ऐसे मौके और ऐसी जगह यही इकलौती सुविधा थी, जिसे समझने में उसे भी देर न लगी और उसने पीछे से नकाब को उठा कर कमर पर कर दिया और सलवार नीचे खिसका दी कि पीछे से चूत खुल जाये।
फिर मैंने मेरे थूक से गीला उसका कड़ा लंड अपनी चूत की दीवारों पर दबाव डालते अंदर घुसते महसूस किया। वह पहले से ही इतनी गीली थी कि ज्यादा अवरोध न कर सकी और आगले पल में ही समूचे लंड को अंदर निगल लिया। मैंने खुद से चूतड़ पीछे धकेलते उसे धक्के लगाने का संकेत किया और वह दोनों हाथ से मेरी कमर पकड़ कर धक्के लगाने लगा। उस जगह में दूर होते बेतरह शोर के बावजूद भी फच फच मेरे कानों में रस घोलने लगी।
यहां चूँकि मैं पहले से काफी गर्म थी तो लंड के यूं ताबड़तोड़ घर्षण ने मुझे तीन मिनट में ही झड़ा दिया लेकिन वह एक तो झड़ चुका था और दूसरे जगह ऐसी कि किसी के भी आ जाने का डर था जो अब उसकी उत्तेजना पर हावी हो रहा था। वह धक्के लगाता रहा और मैं फिर से गर्म होने लगी।
गनीमत यह रही कि इस बीच उधर कोई आया नहीं और फिर वह टाईम भी आया जब उसके लंड ने फूल कर चूत के अंदर ही वीर्य उगल दिया।

मुझे फिलहाल अंदर झड़वाने से प्राब्लम नहीं थी। वह झड़ चुका तो उसने लंड बाहर निकाल लिया और मेरी सलवार में ही पौंछ दिया।
मौके की नजाकत देखते हुए मैंने भी कुछ कहना मुनासिब नहीं समझा और सीधे खड़े होते सलवार का नाड़ा बांधते नकाब नीचे गिरा लिया। मेरी चूत में भरा उसका वीर्य बह कर मेरी जांघों पर आ रहा था पर मुझे उसकी परवाह नहीं थी। मैं अब जल्दी से जल्दी वहां से हट जाना चाहती थी।

उसने मोबाइल निकाल कर मेरा नंबर मांगा … मैंने एक गलत नंबर थमा दिया। इस टाईप के मनोरंजन घर से दूर रहें, वही ठीक है। मेरी पर्सनल लाईफ है और मैं इस सब से किसी भी तरह उसे नहीं इफेक्ट करना चाहती।
उससे पीछा छुड़ा कर मैं बाजार में घुसी और पंद्रह मिनट बाद वापस घर पहुँच गयी। जो मकसद था मेरा … वह हल हो गया था।
ईद कल थी लेकिन मेरी ईद आज ही हो गयी थी … मेरी चूत में उस लंड का अहसास पूरी रात बना रहा। बस यहीं मेरी चांद रात की कहानी खत्म होती है।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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अपने स्टेशन से सीएसटी तक करीब आठ
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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पुराने जमाने के अमीरों
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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गौर करने वाली बात यह
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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हम दोनों ने उस
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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दोस्तो, मैं पारुल …
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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[Image: Hotties-On-Ice-The-10-Best-Winter-Bikini...s-_5-1.jpg]
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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मेरा नाम फैजान है और मैं बिहार के एक शहर का रहने वाला हूँ। गोपनीयता के चलते अपने शहर का नाम नहीं बता सकता लेकिन बस इतना समझ लीजिये कि यह शहर गुंडागर्दी और अराजकता के लिये बदनाम है।

यह बात साल भर पहले की है जब हम अपने पुराने मुहल्ले को छोड़ कर नये मुहल्ले में शिफ्ट हुए थे। मेरे परिवार में अम्मी अब्बू और एक बड़ी बहन रुबीना ही थी जिसकी उम्र इक्कीस साल रही होगी तब और वह ग्रेजुएशन कर रही थी। जबकि मैं उससे दो साल छोटा था और मैंने इंटर के बाद बी.ए. के लिये प्राईवेट का फार्म भर के काम से लग गया था।

दरअसल हमारा मुख्य घर शहर से तीस किलोमीटर गांव में था लेकिन अब्बू की टेलरिंग की दुकान शहर में थी तो हम किराये के मकान में यहीं रहते थे। इसी सिलसिले में हमें पिछला मकान खाली करना पड़ा था और नये मुहल्ले में शिफ्ट होना पड़ा था।

यूँ तो हम चार भाई बहन थे लेकिन बीमारी के चलते दो भाइयों की मौत छोटे पर ही हो गयी थी और हम दो भाई बहन ही बड़े हो पाये थे। माँ बाप दोनों चाहते थे कि हम कम से कम ग्रेजुएशन की पढ़ाई तो कर लें लेकिन मेरा खुद का पढ़ाई में कोई खास दिल नहीं लगता था तो इंटर के बाद प्राइवेट ही ऐसे कालेज से बी.ए. का फार्म भर दिया था जहां नकल से पास होने की पूरी गारंटी थी और खुद अब्बू की दुकान जाने लगा था कि उन्हें थोड़ा सहारा हो जाये।

जबकि बहन रेगुलर शहर के इकलौते प्रतिष्ठित कालेज से पढ़ाई कर रही थी. यहां जब मैं यह कहानी इस मंच पर बता रहा हूँ तो मुझे यह भी बताना पड़ेगा कि वह लंबे कद की काफी गोरी चिट्टी और खूबसूरत थी, जिसके लिये मैंने अक्सर लड़कों के मुंह से ‘क्या माल है’ जैसे कमेंट सुने थे, जिन्हें सुन कर गुस्सा तो बहुत आता था लेकिन मैं अपनी लिमिट जानता था तो चाह कर भी कुछ नहीं कह पाता था।

शक्ल सूरत से मैं भी अच्छा खासा ही था लेकिन कोई हीरो जैसी न पर्सनालिटी थी और न ही हिम्मत कि गुंडे मवालियों से भिड़ जाऊं. फिर मेरी दोस्ती यारी भी अपने जैसे दब्बू लड़कों से ही थी।

कुछ दिन उस मुहल्ले में गुजरे तो वहां के दबंग लड़कों के बारे में तो पूरी जानकारी हो गयी थी और खास कर राकेश नाम के लड़के के बारे में, जो उनका सरगना था। उनमें से ज्यादातर हत्यारोपी थे और जमानत पर बाहर थे लेकिन उनकी गुंडागर्दी या दबदबे में कमी आई हो, ऐसा कहीं से नहीं लगता था। उनमें से ज्यादातर और खास कर राकेश को राजनैतिक संरक्षण भी हासिल था, जिससे उसके खिलाफ पुलिस भी जल्दी कोई एक्शन नहीं लेती थी।

और रहा मैं … तो मेरी तो हिम्मत भी नहीं पड़ती थी कि जहां वह खड़ा हो, वहां मैं रुकूं… जबकि वह कुछ दिन में मुझे पहचानने और मेरे नाम से बुलाने लगा था। परचून की दुकान पे खड़ा होता तो जबरदस्ती कुछ न कुछ ले के खिला ही देता था। थोड़ी न नुकुर तो मैं करता था लेकिन पूरी तरह मना करने की हिम्मत तो खैर मुझमें नहीं ही थी।

उसकी इस कृपा का असली कारण तो मुझे बाद में समझ में आया था कि वह बहुत बड़ा चोदू था और उसकी नजर मेरी बहन पर थी। उसकी क्या मुहल्ले के जितने दबंग थे, उन सबकी नजर उस पर थी और शायद राकेश का ही डर रहा हो कि वे एकदम खुल के ट्राई नहीं कर पाते थे।

मेरे पिछले मुहल्ले का माहौल ऐसा नहीं था तो यहां सब थोड़ा अजीब लगता था और गुस्सा भी आता था। कई बार जब आते जाते लड़कों को मेरी बहन को इशारे करते या फब्तियां कसते देखता तो आग तो बहुत लगती थी लेकिन फिर इस ख्याल से चुप रह जाता था कि वहां तो बात-बात पे छुरी कट्टे निकल आते थे तो ठीक भी नहीं था मेरा बोलना।

रुबीना के लिये यहां जिंदगी बड़ी मुश्किल थी क्योंकि उसे कालेज के बाद कोचिंग के लिये भी जाना होता था जहां से शाम को वापसी होती थी और गर्मियों में तो फिर उजाला होता था वापसी में तो चल जाता था लेकिन जब दिन छोटे होने हुए शुरू हुए तो जल्दी ही अंधेरा हो जाता था जिससे उसे वापसी में बड़ी दिक्कत होती थी।

इस बारे में उसने तो मुझे बाद में बताया था लेकिन कहानी के हिसाब से मेरा यहां बताना जरूरी है कि गर्मियों के दिनों में तो फिकरे ही कसते थे लोग लेकिन जब से वापसी में अंधेरा होना शुरू हुआ तब से उसका फायदा उठाते वे लफंगे गली में उसे न सिर्फ इधर उधर टच करते थे, दूध दबाते थे बल्कि कई बार तो तीन चार लड़के पकड़ कर, दीवार से टिका कर बुरी तरह मसल डालते थे।

ऐसे ही एक दिन शाम को वापसी में मैंने इत्तेफाक से यह नजारा देख लिया था. मेरा घर एक लंबी बंद गली के अंत में था और गली के मुहाने पर यूँ तो एक इलेक्ट्रिक पोल था जो रोशनी के लिये काफी था लेकिन शाम को उस टाईम तो अक्सर कटौती की वजह से लाईट रहती ही नहीं थी।

तो उस टाईम मैं भी इत्तेफाक से घर की तरफ आ रहा था और शायद थोड़ा पहले ही रुबीना भी गली में घुसी होगी। अंधेरा जरूर था मगर इतना भी नहीं कि कुछ दिखाई न और लाईट हस्बे मामूल गायब थी। तो गली में घुसते ही मुझे वह तीन लड़के किसी को दीवार से सटाये रगड़ते दिखे जो मेरी आहट सुन के थमक गये थे।

फिर शायद उन्होंने मुझे पहचान लिया और वे उसे छोड़ के मेरे पास से गुजरते चले गये। मैं आगे बढ़ा तो समझ में आया कि वह रुबीना थी, उसने भी मुझे पहचान लिया था और बिना कुछ बोले आगे बढ़ गयी थी। हम आगे पीछे कर में दाखिल हुए थे और वह चुपचाप अपने कमरे में बंद हो गयी थी।

मैं उसकी मनःस्थिति समझ सकता था, इसलिये कुछ कहना पूछना मुनासिब नहीं समझा।

अगले दिन दोपहर में जब हम घर पे अकेले थे तब मैंने उससे पूछा कि क्या प्राब्लम थी तो पहले तो वह कुछ बोलने से झिझकी। जाहिर है कि हम भाई बहन थे और हममें इस तरह की बातें पहले कभी नहीं हुई थी… लेकिन फिर उसने बता दिया कि उसके साथ क्या-क्या होता था और वह अब सोच रही थी कि कोचिंग छोड़ ही दे।

तो मैंने उसे भरोसा दिलाया- अभी रुक जाओ, मैं देखता हूँ कुछ।
मैंने सोचा था कि राकेश से कहता हूँ… वह बाकी लौंडों को तो संभाल ही लेगा और जाहिर है कि खुद अपने जुगाड़ से लग जायेगा. लेकिन मुझे अपनी बहन पर यकीन था कि वह उसके हाथ नहीं आने वाली और इसी बीच उसका ग्रेजुएशन कंपलीट हो जायेगा।

मैंने ऐसा ही किया. अगले दिन मौका पाते ही राकेश को पकड़ लिया और दीनहीन बन कर उससे फरियाद की, कि वह मुहल्ले के लड़कों को रोके जो मेरी बहन को छेड़ते हैं। उसकी तो जैसे बांछें खिल गयीं। ऐसा लगा जैसे वह चाहता था कि मैं उससे ऐसा कुछ कहूँ। उसने मुझे भरोसा दिलाया कि मेरी बहन अब उसकी जिम्मेदारी… बस एक बार मैं उससे मिलवा दूं और बता दूं कि राकेश अब उसकी हिफाजत करेगा और फिर किसकी मजाल कि कोई उसे छेड़े।

मुझे उस पर पूरा यकीन नहीं था लेकिन फिर भी मैंने डरते-डरते रुबीना को राकेश से यह कहते मिलवा दिया कि वह मुहल्ले का दादा है और अब वह किसी को तुम्हें छेड़ने नहीं देगा।

इसके दो दिन बाद मैंने अकेले में रुबीना से पूछा कि अब क्या हाल है तो उसने बताया कि अब लड़के देखते तो हैं लेकिन बोलते नहीं कुछ और कोचिंग से वापसी में राकेश उसे खुद से पिक कर के दरवाजे तक छोड़ने आता है। मैं मन ही मन गालियां दे कर रह गया. समझ सकता था कि राकेश अपने मवाली साथियों को रुबीना के विषय में क्या समझाया होगा।

बहरहाल, इस स्थिति को स्वीकार करने के सिवा हमारे पास चारा भी क्या था। कम से कम इस बहाने वह मवालियों से सुरक्षित तो थी।
धीरे-धीरे ऐसे ही कई दिन निकल गये।

फिर एक दिन इत्तेफाक से मैं उसी टाईम वापस लौट रहा था जब वह वापस लौटती थी। वह शायद आधी गली पार कर चुकी थी जब मैं गली में दाखिल हुआ। लाईट हस्बे मामूल गुल थी और नीम अंधेरा छाया हुआ था। इतना तो मैं फिर भी देख सकता था उसके साथ चलता साया, जो पक्का राकेश ही था.. उसके गले में बांह डाले था और दूसरे हाथ से कुहनी मोड़े कुछ कर रहा था। पक्का तो नहीं कह सकता पर अंदाजा था कि वह उसके दूध दबा रहा था।

मेरे एकदम से आग लग गयी और मैं उसे आवाज देने को हुआ पर यह महसूस करके मेरी आवाज गले में ही बैठ गयी कि उसकी हरकत से शायद रुबीना को कोई एतराज ही नहीं था, क्योंकि न उसके कदम थमे थे और न ही वह अवरोध करती लग रही थी।

मुझे सख्त हैरानी हुई। दरवाजे पर पहुंच कर शायद दोनों ने कुछ रगड़ा रगड़ी की थी जो अंधेरे में मैं ठीक से समझ न सका और फिर वह अंदर घुस गयी और राकेश वापस मुड़ लिया।

मेरे पास पहुंचते ही उसने मुझे पहचान लिया और एक पल को सकपकाया तो जरूर लेकिन फौरन चेहरे पर बेशर्मी भरी मुस्कान आ गयी- घर तक छोड़ के आया हूँ बे, अब कोई नहीं छेड़ता। डोंट वरी… एश कर।
वह मेरे कंधे पर हाथ मारता हुआ गुजर गया और मुझसे कुछ बोलते न बना।

घर पहुंच कर मेरा रुबीना से सामना हुआ तो मेरा दिल तो किया कि उससे पूछूं लेकिन हिम्मत न पड़ी और बात आई गयी हो गयी।

अगले हफ्ते रात के करीब दस बजे मैं वापस लौट रहा था कि राकेश ने मेरी गली के पास ही मुझे रोक लिया। जनवरी का महीना था.. लाईट तो आ रही थी पर हर तरफ सन्नाटा हो चुका था। वे एक खाली खोखे में बैठे थे जो था तो धोबी का लेकिन अभी वहां अकेला राकेश ही था और उसका एक चेला, जिसने मुझे रोका था।

“अंदर चल।” चेले ने मुझे कंधे पर दबाव डाल कर खोखे के अंदर ठेलते हुए कहा और बाहर खुद खड़ा हो गया।
खोखा सामने से तो बंद था तो सामने से कुछ दिखना नहीं था और साइड से जो अंदर घुसने का रास्ता था, वहां चेला खड़ा था। अंदर जिस टेबल पर धोबी प्रेस करता था, उस पर दारू की एक आधी खाली बोतल और दो गिलास रखे थे और साथ ही रखा था एक देसी कट्टा, जो शायद मुझे डराने के लिये था।

ठंड में भी मेरे पसीने छूट गये।
“क्या बात है दद्दा?” मैंने डरते-डरते पूछा।
“आज मूड हो रहा है बे… इस टाईम कोई लौंडिया तो मिलेगी नहीं। तू ही सही। यह देख।” उसकी आवाज और चढ़ी हुई आंखें बता रही थीं कि वह नशे में था। मुझे उससे डर लगने लगा था।

जबकि उसने अपनी पैंट सामने से खोल कर अंडरवियर समेत नीचे कर दी थी जिससे उसका अर्ध उत्तेजित लिंग एकदम मेरे सामने आ गया था। उसके निगाहों से घुड़कने पर मैंने उसके लिंग की ओर देखा… अभी पूरी तरह खड़ा भी नहीं था तब भी सात इंच से लंबा ही लग रहा था और मोटा भी काफी थे। टोपे पर से आगे की चमड़ी अभी पूरी तरह हटी नहीं थी।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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“अभी बैठे-बैठे तेरी बहन के बारे में सोच रहा था। झेल पायेगी उसकी चूत।” वह लहराती हुई आवाज में बोला और ऐसे तो मुझे आग लग गयी लेकिन मेज पर रखे कट्टे की तरफ देख कर मेरे अंदर उठा गुस्से का गुबार झाग की तरह बैठ गया।
“मुझे क्या पता।” प्रत्यक्षतः मैंने अनमने भाव से कहा।
“तुझे पता तो होगा कि कितनी बार चुद चुकी है… उंगली डलवाने में तो साली सी-सी करने लगती है। वैसे चूत मस्त है उसकी फूली हुई।” वह अपने हाथ से मेरा हाथ पकड़ कर अपना लिंग सहलवाते हुए बोला।

और मैं मन ही मन हैरान रह गया कि यह क्या कह रहा था वह … मुझे तो नहीं लगता था कि रुबीना किसी को स्पर्श भी करने देती होगी और यह उसकी योनि में उंगली करने की बात कर रहा है। मुझे कुछ बोलते न बन पड़ा।

“अच्छा भोसड़ी के… कभी दूध देखे तूने उसके। एकदम झक्क सफेद हैं और ऊपर से गुलाबी-गुलाबी घुंडियां। मजा आ जाता है चूसने में.. बस दूध ही पिलाई है बहन की लौड़ी। अभी तक चूत के दर्शन भी न कराये हैं.. बस उंगली करा के ही रह गयी है।”

मेरे लिये सब किसी बड़े आश्चर्य से कम नहीं था कि मेरी सती सावित्री बहन, जो हमेशा नकाब में रह कर घर से निकलती थी… मुहल्ले के एक छंटे हुए बदमाश को अपने साथ यह सब करने दे रही थी। या हो सकता है कि वह भी ऐसे ही मजबूर पड़ जाती हो जैसे इस वक्त मैं था।

“देख बेटा फैजान… इस टाईम मेरे जितनी गर्मी चढ़ी है कि बिना माल निकाले लंड ठंडा नहीं होगा। तेरी बहन को तो जब चोदूंगा तब चोदूंगा लेकिन अभी तेरे पास दो ऑप्शन हैं। या तो गांड में ले सकता है तो ले ले या फिर मुंह से चूस कर निकाल दे।”

मन में गालियों का गुबार फूट पड़ा लेकिन जाहिर है कि कुछ कर तो सकता नहीं था। जी चाहा कि पलट कर भाग लूं लेकिन बाहर तो उसका चेला यमदूत की तरह जमा था।
“हाथ से निकाल देता हूं न दद्दा।” मैंने लगभग रो देने वाले अंदाज में कहा।

“उससे तो आधी रात हो जायेगी तुझे बेटा … इतनी आसानी से नहीं निकलता मेरा।”

यानि कोई ऑप्शन नहीं था… इस तरह के छोटे शहरों में रहने वाले जानते होंगे कि सीधे सादे लड़कों के साथ यह सब होता रहता है। ऐसा नहीं कि मेरे साथ कभी गुदामैथुन न हुआ हो … कभी सात आठ बार इसका शिकार अब तक हो चुका था लेकिन यह कोई सहज स्वीकार्य स्थिति मेरे लिये एक तो कभी नहीं हुई और दूसरे उसका लिंग ऐसा था कि मेरे बस से बाहर था।

तो पीछे से लेने का ऑप्शन ही नहीं था… मैंने रो देने वाले अंदाज में थोड़ा झुक कर उसकी टोपी को मुंह में ले लिया। यह मेरे लिये बिल्कुल पहला अनुभव था। एक तीखी सी गंध नथुनों में घुसी जो शायद मूत्र की थी और एकदम से उबकाई होने को हुई तो नीचे ही थूक दिया।

उसने एक हाथ से मेरे बाल पकड़ लिये ताकि मैं मुंह न हटा सकूँ और मैं मरे-मरे अंदाज में जहां तक हो सकता था, उसके लिंग को मुंह में लिये मन ही मन घिनाते हुए ‘चपड़-चपड़’ करने लगा।
“अबे चिकने, क्या मरे-मरे अंदाज में चूस रहा है… थोड़ा दबा के, रगड़ के चूस।” उसने लगभग गुर्राते हुए कहा।

मना करने की तो जुर्रत नहीं थी… जी भले हबक रहा हो। उसने दूसरे हाथ से मेरी कमर को अपनी तरफ खींच कर मेरे नितंब सहलाने और गुदा द्वार में ऊपर से ही उंगली करने लगा।
“कसम से फैजान … लंड तू ले रहा है और दिख मुझे रुबीना रही है। शाबाश और जोर से चूस।” वह थोड़े जोश में आता हुआ बोला।

थोड़ी ‘चपड़-चपड़’ के बाद ही वह फुल टाईट हो गया। मोटा तो दा ही, लंबाई में भी आठ इंच से कम न रहा होगा… उसे देखते बार-बार मेरे मन में यही ख्याल आ रहा था कि यह मेरी बहन पर चढ़ेगा तो उस बेचारी को कितनी तकलीफ होगा, कितना तड़पेगी वह।

चूसते चूसते एकदम से वह फूल गया और उसके झड़ने की आशंका में मैंने मुंह पीछे खींचना चाहा लेकिन उसने दोनों हाथों से मेरा सर जकड़ लिया। एकदम से वीर्य की पिचकारी मेरे गले में उतरती चली गयी। फिर और कुछ हल्की पिचकारी उसने मारी, कुछ हलक में उतर गयी तो कुछ मैंने हलक बंद करके रोक ली। एकदम से उबकाई होने लगी और मैं छटपटाने लगा तो उसने मुझे छोड़ दिया।

मैं झटके से बाहर खड़े चेले को धक्का देते बाहर निकला और झुक कर उल्टी करने लगा। जो पेट में गया था, वह तो निकला ही… जो पहले का था, वह भी निकल गया।
उल्टी रुकी तो मैं पलट के भाग लिया। पीछे से उसने आवाज दी थी लेकिन मैंने रुकने की जरूरत नहीं समझी।

घर तक पहुंचने पर सवा दस से ऊपर हो चुके थे। ठंडी के दिनों में इतनी देर तक अम्मी अब्बू सो जाते थे। मैंने रुबीना के फोन पे मिसकाल दी… देर से आने पर यह मेरा इशारा होता था और वह दरवाजा खोल देती थी।

उसके दरवाजा खोलते ही मैंने अम्मी अब्बू के बारे में पूछा तो उसने कहा कि शायद सो गये हैं। मैंने उसे अपने कमरे में आने को कहा और बेसिन पर जा कर मुंह धोने, कुल्ली करने लगा।

वह समझ गयी थी कि कोई बात थी तो चुपचाप मेरे कमरे में आ गयी थी। भले वह उम्र में मुझसे दो साल बड़ी थी लेकिन कोई बहुत अदब इज्जत वाली बात नहीं थी हमारे बीच और यही वजह थी कि हम दोस्तों की तरह बात कर लेते थे।

मैंने उसे वह सबकुछ बता दिया जो राकेश ने अभी मेरे साथ किया था। सुन कर वह थोड़ी हैरान जरूर हुई लेकिन परेशानी उसके चेहरे पर फिर भी न दिखी।
“मुझे उम्मीद नहीं थी कि वह तुम्हें भी छोड़ेगा।” उसने बस इतना ही कहा।

“वह बता रहा था कि वह तुम्हारे साथ सब करता है? एक दिन मैंने उसे देखा भी था तुम्हें रगड़ते, जब वह तुम्हें छोड़ने आया था।”
“रोज ही रगड़ता है जब छोड़ने आता है। कहता है कि बाडीगार्ड की ड्यूटी निभाता हूँ तो इतनी उजरत तो मिलनी चाहिये।”
“तुम्हें बुरा नहीं लगता।”
“हर वह लड़की जो जवान होती है, उसे इन तजुर्बों से गुजरना ही पड़ता है। पहली बार जब किसी ने हिप पे टच किया था तो बुरा लगा था, पहली बार जब किसी ने सीने पर हाथ मारा था तब बहुत खराब लगा था। लेकिन अपने शहर का हाल तो जानते ही हो … लड़की ज्यादा हिम्मत दिखाये तो कुछ भी कर सकते हैं हरामी। सिवा चुप रह जाने के सही विकल्प क्या था भला।

पहले भी सब होता था पर इस मुहल्ले में आते ही जैसे रोज का मामूल हो गया। नहीं अच्छा लगता था। जी करता था कि उन सब के हाथ तोड़ दूं लेकिन यह कहां मुमकिन था? फिर तुमने राकेश से बात की तो यह सिलसिला थम गया … लेकिन यह राहत भला कितनी देर की थी। आखिर उसे भी तो उजरत नहीं थी इस अहसान की।

पहली बार घर छोड़ते आने के टाईम उसने हिप पर टच किया। बुरा लगा, लेकिन कुछ कह न पाई… अगले दिन उसने गले में हाथ डाल दिया। तब भी अच्छा नहीं लगा और मना भी किया तो उसने कहा कि ठीक है, कल से वह छोड़ने नहीं आयेगा… फिर खुद झेलना। तो मुझे झुकना पड़ा, क्योंकि वह तजुर्बे इस तजुर्बे से ज्यादा बुरे और जलालत वाले थे। फिर उसे खुली छूट मिल गयी।”

“लेकिन वह तो और भी बहुत कुछ बता रहा था… चलते-चलते इतना सब का मौका कहां मिल जाता है?”

“वह हलवाई के साथ वाली गली है न, उसमें उसकी एक रखैल रहती है जो शाम के वक्त अकेली होती है तो कोचिंग से वापसी में पांच से दस मिनट मुझे वहीं जाना पड़ता है। उसका बस चले तो घंटा भर रोक ले लेकिन मैंने कह रखा है कि देर हुई तो अब्बू कोचिंग पहुंच जायेंगे और उन्हें पता चल जायेगा कि मैं बीच में कहीं गायब होती हूँ तो अगले दिन से कोचिंग बंद … इसी बिना पर पांच दस मिनट में छोड़ देता है।”

“मैंने यह सोच कर उसकी मदद मांगी थी कि यह तीन चार महीने संभाल लेगा, तब तक एग्जाम हो जायेंगे औल तुम्हें बाहर निकलने की जरूरत ही नहीं रह जायेगी लेकिन …”
“सोचा तो मैंने भी यही था लेकिन उसने भी यह भांप लिया है शायद … इसलिये एग्जाम से पहले ही सबकुछ कर लेना चाहता है।”

“क्यों न अब्बू को सबकुछ इशारों में बता कर मुहल्ला ही चेंज कर लें।”
“उससे क्या होगा? कौन सा यह दिल्ली मुंबई है… छोटा सा तो शहर है। हम जहां जायेंगे वह वहां पहुंच जायेगा। मुझे नहीं लगता कि हमें अब तब तक उससे छुटकारा मिलने वाला जब तक वह किसी केस में अंदर न हो जाये।”

“लड़की होना भी ऐसी जगह गुनाह है। तुम्हें कितना खराब लगता होगा यह सब।”

“एक बात कहूँ… तुम लड़के हो, शायद इस बात को ठीक से न समझ पाओ। जवान जनाना बदन स्पर्श पे मर्दाना संसर्ग मांगने ही लगता है। पहले जब जबरदस्ती, अनचाहे तौर पर मुझे छुआ जाता था तब बहुत खराब लगता था लेकिन फिर वह मौका आया जब उसकी गोद में बैठ कर खुद को छुआना पड़ा और वह उस उस अंदाज में जो पहले कभी सोचा भी नहीं था तो अहसास बदल गये।”
“मतलब?” मैं हैरानी से उसका चेहरा देखने लगा।
“मतलब कि मैं भले तुम्हारी बहन हूँ तो तुम्हें खराब लगेगा लेकिन हूँ तो एक लड़की ही, जिसके शरीर में भी एक भूख बसती है … तो उसका पांच दस मिनट में वह सब कर लेना बुरा नहीं बल्कि एक राहत जैसा महसूस होता है।”

“तो मतलब मौका आयेगा तो तुम उससे करा भी लोगी?” मैंने अविश्वास भरे अंदाज में कहा।
“क्या मेरे पास नकारने का विकल्प होगा? क्या अभी तुम्हारे पास था? जिस चीज से यह तय है कि हम बच नहीं सकते तो क्यों न उसे एंजाय ही कर लिया जाये। अक्लमंदी इसी में है।”
“तुमने उसका सामान देखा है कितना बड़ा है?”

“हां.. वह निकाल कर सहलवाता है तो देखा तो है ही और उसी वजह से तो डरती हूँ कि जल्दी पीछा छुड़ा के भागती हूँ लेकिन मन में कहीं न कहीं यह सोच के एक एक्सेप्टेंस तो रहता ही है कि बकरे की माँ कब तक खैर मनायेगी।”

“तुमने पहले किया है क्या कभी?” कोई और मौका होता तो यह बात मेरी जुबान से न निकल पाती लेकिन आज बात और थी।
“कभी नहीं। ज्यादा डर तो इसी से रहता है कि पहली बार में ही इतना बड़ा लेकिन खैर… देखते हैं।”

“हो ही न पायेगा।” मैंने बेयकीनी से कहा।
“तुम बुद्धू हो। तकलीफ ज्यादा होगी लेकिन हो सब जायेगा। कुदरत ने वह अंग बनाये ही इस तरह से होते हैं।”
“तुम्हें कभी उसने चुसाया?”

“कोशिश कई बार की लेकिन मैं न नुकुर कर के टाल गयी … लेकिन देर सवेर यह नौबत आयेगी ही तो मन में उसका भी नकार नहीं है।”
“और मुंह में ही निकाल दिया तो … छी। उल्टी करते आंतें गले में आ गयी हैं।”

“तुम्हारा मामला दूसरा है। न तुम समानलिंगी आकर्षण महसूस करते हो, न गे हो और न ही तुम्हारे लिये यह एक्सेप्टेड था जबकि मैं अपोजिट सेक्स हूँ तो मेरे लिये हर चीज में आकर्षण भी है और कुछ भी अनएक्सपेक्टेड नहीं।”

मैं बड़े ताज्जुब से उसे देखने लगा और वह मुस्करा रही थी… मुझे ऐसा लगा जैसे मेरी बहन और बड़ी हो गयी हो। अपना अच्छा बुरा मुझसे कहीं बेहतर समझती हो और उसे अपने शरीर को इस्तेमाल करने की भी पूरी आजादी है, जिसकी चिंता में मैं दुबला हुआ जा रहा हूँ।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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खैर… उस बात को कई दिन गुजर गये और यूं ही जनवरी निकल गयी। फिर फरवरी के पहले हफ्ते में ही राकेश ने एक रात मुझे अकेले में धर लिया कि संडे दोपहर मुझे रुबीना को ले के एक जगह आना है, चाहे जो भी बहाना बनाना पड़े।

मतलब यह कोई फरियाद नहीं थी बल्कि हुक्म था जो मुझे मानना ही था। मैंने बहन से बताया तो वह उसे पहले ही बता चुका था। वह समझ सकती थी, मैं समझ सकता था कि क्यों बुलाया था। संडे मतलब दो दिन बाद और इन दो दिनों तक लगातार मेरी आंखों के आगे मेरी नाजुक सी बहन और राकेश का लंबा मोटा लिंग नाचते रहे और मैं मन ही मन बुरी तरह बेचैन होता रहा।

जैसे तैसे संडे भी आ ही गया। संडे को कोचिंग की छुट्टी होती थी और अब्बू भी घर ही होते थे तो कालेज की किसी लड़की से मुलाकात के बहाने मुझे साथ ले कर उनकी ही स्कूटी से घर से निकलना न बहुत मुश्किल था और न ही अम्मी अब्बू के लिये किसी किस्म की शक शुब्हे वाली बात ही थी।

जो पता राकेश ने बताया था वह शहर के किनारे नये बसते मुहल्ले में एक बनते हुए मकान का था जहां एक ही कमरा रिहाइश के काबिल था और वहां दो तख्त मिला कर बिस्तर बना लिया गया था और उसी कमरे में एक प्लास्टिक टेबल सहित चार कुर्सियां मौजूद थीं जिन पर वह अपने जैसे दिखने वाले दो दोस्तों के साथ बैठा शराब पी रहा था।

हमें देखते ही उनकी आंखों में भेड़िये जैसी चमक आ गयी थी और मैं सहम गया था। राकेश के सिर्फ इशारे पर रुबीना ने नकाब उतार दिया था और वह तीनों इस तरह से उसे निहारने लगे थे जैसे कसाई बकरे का मुआयना कर रहा हो कि कहां कितना गोश्त निकलेगा।

राकेश के संकेत पर वह तख्त पर बैठ गयी और वह खुद भी उठ कर उससे चिपक कर बैठ गया, जबकि वह बाकी दोनों वैसे ही बैठे रहे।

उनकी बातों से अंदाजा हुआ कि वे तीनों ही किसी कॉमन केस में आरोपी थे, जिसकी कल सुनवाई होनी थी और उन्हें इस बात की पूरी आशंका थी कि कल उनकी आजादी खत्म हो सकती थी और वे लंबे नप सकते थे… तो आज मौज मेला कर लेना चाहते थे।

लेकिन राकेश तक तो ठीक था, पर यह दोनों क्यों थे … क्या तीनों ही रुबीना के साथ करने वाले थे? क्या उसे यह स्थिति पता थी? क्योंकि जैसा ताज्जुब वहां राकेश के दोनों साथियों को देख कर मुझे हुआ था, वैसा उसे होता मुझे नहीं लगा था।

उसके दोस्तों, जिनके नाम बाद में पता चले जिंकू और गुड्डा थे… ने इच्छा प्रकट की थी कि मुझे इस बीच टहलने के लिये बाहर भेज दिया जाये लेकिन खुद रुबीना ने ही मना कर दिया। यह मेरे लिये और ताज्जुब की बात थी कि क्या वह इन लोगों के साथ संभोग के दौरान मेरी मौजूदगी में सहज रह पायेगी।

लेकिन इसकी एक बड़ी वजह मेरी समझ में यही आई कि वह राकेश को जानती थी जबकि बाकी दोनों उसके लिये अजनबी थे, जिन्हें ले कर उसके मन में डर रहा होगा और वह भी कोई इस चीज की आदी तो थी नहीं, यह पहली बार ही हो रहा था तो ऐसी स्थिति में शायद मोरल सपोर्ट चाहती हो। वैसे भी जब हमारे बीच यह सब बातें ओपन थी ही तो एक कदम और आगे बढ़ जाने से क्या बिगड़ जाना था।

लेकिन यह मेरे लिये भी कम तकलीफ की बात तो नहीं होती कि मैं अपने सामने उन तीनों से अपनी बहन को चुदते देखता। मैं वहां से हट जाना चाहता था लेकिन मेरी निगाहें रुबीना से मिलीं तो वह याचना करती लगी। शायद भरोसा नहीं कर पा रही थी उन लोगों पर … वैसे भी वह नशे में थे।

उसकी हालत देखते हुए मैं चुपचाप बैठ गया और लाचारी और बेचारगी से उन्हें देखने लगा।

राकेश उसका चेहरा पकड़ कर उसके होंठों को चूसने लगा था। उसके मुंह से छूटते शराब के भभूके रुबीना को भारी पड़ रहे होंगे लेकिन बर्दाश्त करना ही था। फिर राकेश ने मेरे देखते उसकी जम्पर पकड़ कर ऊपर उठा दी कि उसकी पहनी काली ब्रा बाहर आ गयी।

कुछ पल तो वह एक हाथ से ऊपर से ही दोनों दूध दबाता रहा, फिर उसे उठा कर अपनी गोद में बिठा लिया और पीठ पर ब्रा के हुक खोलते हुए उसे ऊपर उठा कर रुबीना के दोनों दूध बाहर निकाल लिये और दोनों हाथों से दोनों दूध दबाने लगा।

भले वह मेरी बहन हो, हम एक घर में रहते हों और बचपन में मैंने उसे बिना कपड़े भी देखा हो लेकिन उसके विकसित दूध पहली बार देख रहा था। जैसी वह गोरी चिट्टी थी वैसे ही उसके दूध भी एकदम झक सफेद थे राकेश की भाषा में और उन पर उभरे आधा इंच के चुचुक गुलाबी थे, जिन्हें वह मसल रहा था।

अब मेरी कैफियत अजीब हो रही थी … मतलब कुछ भी हो लेकिन मैं पुरुष ही साबित हो रहा था। मुझे इस हालत में गुस्सा आना चाहिये था लेकिन मैं उस आक्रोश को महसूस ही नहीं कर पा रहा था।

राकेश ने दोनों दूध छोड़ के उसकी सलवार का नाड़ा खोला और उसे खड़ी करके एकदम सफेद रंग की पैंटी समेत घुटनों तक नीचे खिसका दिया। एकदम से उसकी योनि का ऊपरी हिस्सा अनावृत हो गया जो अस्पष्ट तो था लेकिन ऊपर चार पांच दिन पहले के शेव किये काले बाल साफ देखे जा सकते थे।

फिर उसकी कमर में हाथ डालते राकेश ने उसे बिस्तर में गिरा लिया और उल्टा कर दिया जिससे उसके चांद जैसे उज्ज्वल सफेद चिकने नितंब आंखों के सामने आ गये। राकेश ने अपनी पैंट भी अंडरवियर समेत घुटनों तक सरका दी जिससे उसका बड़ा सा झूलता हुआ लिंग आजाद हो गया। वह अपने लिंग को रुबीना के चूतड़ों की दरार में टिका कर उसे रगड़ने लगा और हाथों से उसकी पीठ और कमर मसलने लगा।

मैं देख सकता था उसका लिंग रुबीना के चूतड़ों को पार कर रहा था और मैं सोच रहा था कि यह जब अंदर डालेगा तो बेचारी का क्या हाल होगा… और यह सोच-सोच कर मेरा हलक सूखने लगा था।

जबकि इस रगड़ाई ने राकेश के दोनों साथियों जिंकू और गुड्डा को भी उकसा दिया था और वे दोनों भी अपनी पतलूनें जांघियों समेत घुटनों तक उतार कर अपने लिंग हाथ से सहलाते हुए बिस्तर पर पहुंच गये थे। उनके लिंग देख कर मुझे राहत हुई कि वे पांच से छः इंच तक के सामान्य लिंग ही थे न कि राकेश जैसे।

अब राकेश हटा तो जिंकू लद गया… वह रुबीना के होंठ चूस रहा था, दूध मसल रहा था, घुंडिया चूस रहा था और उसके चूतड़ों पर अपना लिंग रगड़ रहा था। ऐसा तो खैर मुझे नहीं लगा कि उसका यूँ रगड़ना रुबीना को कहीं से बुरा लग रहा हो और न ही ऐसा लग रहा था जैसे वह इस घर्षण को एंजाय कर रही हो। शायद वह खुद ही कशमकश में होगी अपनी शारीरिक अनुभूतियों को ले कर।

जिंकू हटा और गुड्डा तो और आक्रामक अंदाज में उसे रगड़ने लगा।

इस बीच राकेश ने कपड़ों से पूरी तरह आजादी पा ली थी और नंगा हो गया था। जबकि जिंकू अब अपने कपड़े उतारने लगा था। राकेश ने रुबीना की सलवार भी पैंटी समेत उतार कर मेरे मुंह पर फेंक दी, जैसे कह रहा हो कि बहन के कपड़े हैं तू संभाल। फिर उसका कुर्ता और ब्रेसरी भी उसके शरीर से निकाल कर मेरी तरफ उछाल दी।

गुड्डा अच्छे से रगड़ चुका तो हट कर कपड़े उतारने लगा और जिंकू जो कपड़े उतार चुका था, अब रुबीना के दोनों दूधों को मसल मसल कर पीने लगा था… राकेश घुटनों के बल रुबाना के मुंह के पास पहुंच गया था और एक हाथ से उसके सर को सपोर्ट देते दूसरे हाथ से लिंग को पकड़ कर उसके होंठों पर रगड़ने लगा।

पता नहीं क्यों मुझे लगा कि वह मना कर देगी और राकेश शायद मान भी जाये … लेकिन मुझे यह देख कर निराशा हाथ लगी कि उसने मुंह खोल कर राकेश का लिंग अंदर ले लिया और उसे चूसने लगी। मैंने अपने चूसने से उसकी तुलना की … उसने सही कहा था कि विपरीतलिंगी आकर्षण अलग होता है। उसके चूसने का अंदाज अलग था और जहां मुझे जबरदस्ती जैसा लग रहा था, वहीं वह मजा लेती लग रही थी।

गुड्डा कपड़े उतार चुका तो उसने पैरों की तरफ आ कर रुबीना के दोनों पैर इस तरह फैला दिये कि उसकी योनि पूरी तरह खुल कर सामने आ गयी और इस तरह वह मुझे भी दिख गयी। गोरी, गुदाज, फूली हुई जिसके गहरे रंग के उभरे हुए किनारे जैसे उसे घेरे हुए हों। उसने उंगली और अंगूठे से उसे फैलाया… अंदर ऊपर से नीचे तक सुर्ख गोश्त। जो छेद था भी वह इतना संकुचित होगा कि दूर से देखने पर दिख तक नहीं रहा था।

“उस्ताद, यह तो कच्ची है यार।” वह मजे लेते हुए बोला।

“हां बे पता है… पता है, इसने मेरे लंड के लिये ही झिल्ली बचा कर रखी हुई थी। आज मैं ही सील तोड़ूंगा इसकी।” राकेश अपना लिंग चुसाता हुआ बोला।

गुड्डा अपना मुंह उसकी योनि तक ले जा कर सूंघने लगा और अच्छे से सूंघने के बाद अपनी जीभ से उसकी योनि के उभरे गहरे किनारों को छेड़ने चुभलाने लगा। जिंकू ऊपर उसके वक्षों का बुरी तरह मर्दन किये दे रहा था और राकेश अपने लिंग को चुसाते हुए एकदम कठोर किये ले रहा था।

फिर वे एकसाथ तीनों मिल कर उसे रगड़ने लगे। राकेश ने भी लिंग निकाल लिया और उसके होंठ चूसने लगा। तीनों ही उसे बुरी तरह रगड़ रहे थे, चाट रहे थे और चूस रहे थे… उसके होंठ, वक्ष, चुचुक, योनि और नितंब कुछ भी महरूम न रहा और बार-बार तीनों में से कोई न कोई अपना लिंग उसके मुंह में दे देता, जिसे वह चपड़-चपड़ कर चूसने लगती।

अब देख के लग रहा था कि शरीर को मिलते घर्षण का आनंद अब उसे उत्तेजित कर चुका था और वह सिर्फ एक चीज को छोड़ कर बाकी सब भूल गयी थी कि वह स्त्री थी और कुछ पुरुष उसे यूँ शारीरिक सुख दे रहे थे, जो कि उसका हक था।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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वे एकसाथ तीनों मिल कर उसे रगड़ने लगे। राकेश ने भी लिंग निकाल लिया और उसके होंठ चूसने लगा। तीनों ही उसे बुरी तरह रगड़ रहे थे, चाट रहे थे और चूस रहे थे… उसके होंठ, वक्ष, चुचुक, योनि और नितंब कुछ भी महरूम न रहा और बार-बार तीनों में से कोई न कोई अपना लिंग उसके मुंह में दे देता, जिसे वह चपड़-चपड़ कर चूसने लगती।

अब देख के लग रहा था कि शरीर को मिलते घर्षण का आनंद अब उसे उत्तेजित कर चुका था और वह सिर्फ एक चीज को छोड़ कर बाकी सब भूल गयी थी कि वह स्त्री थी और कुछ पुरुष उसे यूँ शारीरिक सुख दे रहे थे, जो कि उसका हक था।

मैं सबके लिये नगण्य हो कर रह गया था और एक चीज मैं भी महसूस कर रहा था कि उस लाईव पोर्न को देखते मैं भी बस पुरुष हो कर रह गया था। न भाई बचा था न दोस्त… उन्नीस का होने तक भले मेरे साथ पांच छः बार गुदामैथुन किया गया हो लेकिन मुझे कभी वेजाइनल सेक्स का सौभाग्य नहीं प्राप्त हुआ था तो अब तक मैं उस सुख से वंचित ही था।

जो सामने था, वह उत्तेजना से भर देने वाला था, रगों में उबाल ला देने वाला था और मैं अपने लिंग को कठोर होते महसूस कर सकता था।

मेरी बहन का मखमली गोरा गुदाज बदन वह तीनों मजबूत मर्द मसल रहे थे, रगड़ रहे थे… उसका मुखचोदन कर रहे थे, दूध दबा रहे थे, घुंडियां चूस रहे थे, योनि सहला रहे थे, आगे पीछे के छेदों में उंगली कर रहे थे और वह सीत्कार कर रही थी, कभी-कभी जोर से कराह उठती थी और अब बस कमरे में पांच शरीर ही रह गये थे, कोई रिश्ता न बचा था। तीन मर्द एक स्त्री शरीर का घर्षण कर रहे थे और एक मर्द उस लाइव नजारे को देख कर उत्तेजना से तप रहा था।

मैंने महसूस किया था कि मेरे लिंग से भी पानी निकलने लगा था और मैं अपने सूखे होंठों पर जीभ फिराते पैंट के ऊपर से ही उसे दबाने सहलाने लगा था। बहन या बहन की चुदाई को ले कर जो भी प्रतिरोध या आक्रोश मेरे मन में था, वह खत्म हो चुका था… जब जिसके शरीर का उपभोग हो रहा था, शुरुआती हिचकिचाहट के बाद वह खुद उस सबको एंजाय कर रही थी तो मैं प्रतिरोध करने वाला कौन होता था।

जल्दी ही वह चारों पूरी तरह गर्म हो गये। तीनों के लिंग कठोर हो कर तन गये थे और रुबीना की योनि भी गीली हो कर बहने लगी थी… तब वह अलग हो गये।

“चल मेरी जान… अपने पहले लंड के लिये तैयार हो जा। थोड़ा दर्द तो होगा पर बाद में मजा भी खूब आयेगा।” राकेश अपने लिंग को हाथ से सहलाते हुए बोला।

गुड्डा और जिंकू उसके दायें बायें लेट कर उसका एक-एक दूध सहलाते पीने लगे और हाथ से नीचे योनि भी ऊपर-ऊपर से सहलाने लगे। राकेश ने रुबीना के घुटने मोड़ कर उसके पैर फैला लिये थे। इसके बाद राकेश ने उठ कर अलमारी में मौजूद एक शीशी उठाई और उससे ढेर सा जेल निकाल कर अपने लिंग पर मलने लगा। यह देख मुझे बड़ी राहत हुई कि कम से कम चिकना कर के घुसायेगा… वैसी ही घुसाने की कोशिश करता तो बेचारी की हालत खराब हो जाती।

इतना गर्म होने के बाद रुबीना की योनि हालाँकि आलरेडी बह रही थी लेकिन उसने वहां जेल डाल कर उसे और चिकना कर दिया और छेद में बिचली उंगली अंदर बाहर करने लगा… जबकि दोनों जमूरे उसकी योनि के ऊपरी सिरे पर छेड़छाड़ करते उसके दाने को सहला रहे थे।

फिर जब दोनों अंगों पर काफी चिकनाहट हो गयी तो वह अपने लंबे मोटे लिंग को एक हाथ से पकड़ कर उसकी चिकनाई बहाती योनि पर ऊपर नीचे रगड़ने लगा।

“डालूं?” राकेश ने उसकी तरफ देखते हुए पूछा और मेरी बहन ने सर हिला कर “हां” में इशारा किया।

हमारे यहां एक देसी कहावत है कि भैंस बियाये और बर्ध की गांड फटे। यह हाल मेरा हो रहा था कि चुदने मेरी बहन जा रही थी और फट मेरी रही थी कि कैसे जायेगा उसका इतना मोटा लिंग जहां छेद तक ठीक से नहीं दिख रहा था।

उधर राकेश ने एकदम से धक्का दिया और रुबीना की चीख निकल गयी। मेरा दिल जोर से धड़का और पसीना सा आ गया जबकि वह छटपटाने लगी थी। जिंकू और गुड्डा ने उसे दबोच लिया था कि वह ज्यादा हिल न सके और राकेश ने उस पर झुकते हुए उसका मुंह दाब लिया था कि वह और चीख न सके और उन्हें देखते मेरी हालत खराब हो रही थी।

फिर मेरे देखते राकेश ने दूसरा धक्का और जोर से लगाया और उस पर लद गया। दोनों चेले साइड हो गये और राकेश उस पर छा गया और उसके होंठ चूसने लगा। वह उसके नीचे दबी छटछपटाती रही और मेरी बेचैनी बढ़ती रही।

धीरे-धीरे उसकी छटपटाहट शांत हो गयी और फिर राकेश उसके होंठों को छोड़ उसके दूध दबाने और चूसने लगा। फिर अपनी कमर को उसी पोजीशन में रखते, घुटने मोड़ते वह उठा तो दोनों चेलों ने फिर हमला कर दिया उसके दूधों पे और उन्हें मसलने चुभलाने लगे।

बैठ कर राकेश ने अपना खून से नहाया लिंग बाहर निकाला तो उसकी खून खच्चर योनि मुझे दिखी और मेरा कलेजा हलक को आया। सारी उत्तेजना हवा हो गयी। मैं बेचैनी से हाथ मलता उठने को हुआ तो राकेश ने घुड़कती हुई निगाहों से मुझे देखा और मैं कसमसाते हुए वापस बैठ गया।
रुबीना शायद बेहोश हो गयी थी।

उसने सरहाने पड़ा अंगोछा उठाया और लिंग और योनि के खून को साफ करने लगा। अच्छे से साफ करने उसने फिर जेल लगाया और एक बार फिर उसकी योनि से लिंग सटा कर अंदर ठेल दिया। नीम बेहोशी में भी उसके शरीर का निचला हिस्सा हल्के से छटपटाया लेकिन इस बार राकेश ने थामने की कोशिश नहीं की।

दोनों चेले ऊपर पहले की तरह लगे रहे और राकेश धीरे-धीरे लिंग अंदर बाहर करने लगा। साथ ही वह अपने अंगूठे से उसके दाने को रगड़ भी रहा था ताकि उसमें उत्तेजना का संचार होता रहे। जबकि मुझे लग रहा था कि वह होश में ही नहीं रही थी।

सबकुछ यूँ ही होता रहा और करीब तीन चार मिनट बाद उसमें हलचल हुई और वह आंखें खोल कर राकेश को देखने लगी। फिर उसने चेहरा घुमा कर मेरी ओर देखा जैसे मुझे आश्वासन दे रही हो कि वह ठीक है … साथ ही उसकी निगाहों में गर्व का भी भाव मैंने महसूस किया कि जैसे कह रही हो कि देखा, मैंने कहा था न कि हमारे अंगों की बनावट ऐसी होती है कि मैं झेल लूंगी।

जबकि राकेश अब फिर उस पर झुकता हुआ उसके होंठों को चूसने लगा।

फिर धीरे-धीरे उसके धक्कों में तेजी आने लगी और वह उठ कर बाकायदा बैठ गया। अब जिंकू उसके सीने पर बैठ गया अपने ही घुटनों पर वजन रखते हुए और अपना लिंग उसके दूधों के बीच रख कर, उसे दोनों दूधों से दबाते हुए आगे पीछे करने लगा। गुड्डा उसी पोजीशन में उसके मुंह पर बैठ कर अपना लिंग उसके मुंह में दे कर आगे पीछे करने लगा और यूँ इन पोजीशंस में तीनों उसे चोदने लगे।

जब धीरे-धीरे मैंने उसे सहज होते देखा तो मुझे भी राहत हुई और मेरी उत्तेजना का स्तर फिर बढ़ने लगा।

जब राकेश ने भी उसकी सहजता को महसूस कर लिया तो उसने उन दोनों से हटने को कहा और दोनों ही रुबीना को छोड़ के अलग हट गये। ऐसा लगा जैसे वह अब वन ऑन वन चोदन के मूड में हो।

रुबीना को भी शायद यही चाहिये था। अब तक वह निर्लिप्त भाव से उन्हें जैसे झेल रही थी लेकिन अब वह खुद से सहयोग करने लगी। दोनों एक दूसरे से चिपटने रगड़ने लगे और अब वह खुद से एंजाय करने लगी राकेश के हैवी लिंग को। दोनों पोजीशन बदल-बदल कर एक अति उत्तेजित संभोग कर रहे थे। सबसे ज्यादा एंजाय शायद उसने डोगी स्टाईल में किया। मुझे लगा कि अब तक उसके दिमाग में शायद जो-जो रहा हो, वह सब भोग लेना चाह रही हो।

कमरे के सीमित वातावरण में उनकी धचर-पचर गूँज रही थी और मुझे यह देख कर थोड़ा हैरानी भी हो रही थी कि कैसे राकेश अपने लंबे मोटे लिंग से इतनी आसानी से उस योनि से समागम कर पा रहा था जिसने पहले कभी कोई उंगली तक अंदर न ली हो।

फिर वह थक कर हट गया तो रुबीना की योनि को फिर साफ कर के जिंकू ने अपना लिंग घुसा दिया और भचीड़ भचीड़ कर उसे चोदने लगा। मुझे यकीन था कि राकेश के मुकाबले उसे राहत महसूस हो रही होगी।

हालाँकि भले जिंकू उसके लिये अजनबी हो लेकिन उससे चुदाने में भी वह वही आत्मीयता दिखा रही थी जो राकेश के साथ दिखा रही थी और ऐसा लग रहा था जैसे कोई प्रेमी जोड़ा संभोगरत हो। धक्के खाते हुए उसका पूरा शरीर लहरें ले रहा था और उसके वक्ष बुरी तरह हिल रहे थे।

फिर वह थक गया तो उसे हटा कर गुड्डा लग गया और वह उससे भी उसी अंदाज में चुदाने लगी जैसे पहले राकेश और जिंकू से चुदा रही थी।

चुदते-चुदते वह झड़ी न झड़ी, मुझे नहीं पता लेकिन अगले दो घंटे तक वह तीनों मिल कर उसे बारी-बारी चोदते रहे और इस बीच दो-दो बार झड़े। बहरहाल मेरे हिसाब से गनीमत यह रही कि उसके मुंह में नहीं झड़े। कोई योनि में झड़ा, कोई चूतड़ों पे, कोई पेट पे तो कोई चूचों पे।

और इस दो घंटे की चुदाई में वह बुरी तरह थक गयी थी और उसका हाल ऐसा हो गया था कि वह ठीक से चल भी नहीं पा रही थी। हालाँकि उस चुदाई को देख के मेरी अंडरवियर भी भीग गयी थी और बड़ी मुश्किल से मैंने खुद को झड़ने से बचाया था।

इसके बाद वहां रुकने की जरूरत नहीं थी। मैं उसे ले के घर आ गया और वह पड़ गयी। अगले दो दिन उसकी हालत खराब ही रही और उसे तकलीफ से उबरने में दवा खानी पड़ी थी। अम्मी के पूछने पर खराब तबीयत का बहाना बना दिया था।

राकेश का अंदेशा सही निकला था और वह बुक हो गया था। एक बार की चुदाई में उससे छुट्टी मिल गयी थी। जैसा उसने कहा था कि उसके जाने के बाद भी कोई रुबीना को परेशान नहीं करेगा। वाकई उसके पीछे मुहल्ले के लौंडे लफाड़ी फब्तियां भले कसते रहे हों या पीठ पीछे बातें बनाते रहे हों लेकिन सामने से कोई हरकत नहीं करता था और इसी तरह उसका ग्रेजुएशन कंपलीट हो गया और बाहर निकलने की झंझट ही खत्म हो गयी।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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समाप्त
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