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पुरानी हिन्दी की मशहूर कहनियाँ
किसी तरह रात निकल गई और मैं सुबह तक सोती रही, मुझे भैया ने जगाया तब मैं ज़गी.
भाबी बोलीं- आज संडे है… ऋतु जाओ तुम नहा कर आओ और सुनो, आज तुमको कल ली हुई नई वाली ड्रेस ही पहननी है.

मैं शर्माते हुए नहाने चली गई. भाबी ने कपड़े निकाले और मुझे दे दिए. एक बहुत छोटा सा स्कर्ट और ट्रांसपेरेंट टॉप उसके साथ ब्लैक ब्रा पेंटी थी. मैंने भाबी से कहा- भाबी, घर में भैया हैं… मैं इनको नहीं पहन सकती हूँ.
भाबी बोलीं- ये तो कपड़े हैं इनमें इतनी क्यों परेशान हो रही हैं.
मैं बोली- भाबी, मुझे भैया के सामने इनको पहनने में शर्म आती है.
भाबी बोली- जब तेरी शादी होगी तो जब नहीं पहनेगी क्या?
मैं बोली- तब की बात और है.
भाभी बोलीं- जा मैं तेरे से बात नहीं करती.

मुझे लगा कि भाबी नाराज़ हो गईं, तो मैंने भाबी को हग किया और बोली- अच्छा जैसा आप कहोगी मैं वैसे ही कपड़े पहन लूँगी… बस आप नाराज़ मत होना.
भाबी हंस कर बोलीं- जा तू अपने भैया को पानी देके आ.
मैं भैया के रूम में गई तो भैया मुझे देखने लगे. भैया की निगाहों में एक अजीब सा भाव था. मुझे उनके देखने के अंदाज से अन्दर तक गुदगुदी सी होने लगी.

उसके बाद सबने खाना खाया और आराम करने लगे. सारा दिन यूं ही चुहलबाजी में बीत गया.

जब रात को हम सोने गए तो भाबी ने मुझे बीच में खिसका दिया और खुद साइड में सो गईं. थोड़ी देर में भैया का हाथ मेरे सीने पर घूमने लगा था. भाबी ना जाग जाएं, मुझे तो यही डर लग रहा था. मैं इसलिए चुपचाप लेटी रही. इसका नतीजा ये हुआ कि भैया की हरकतें बढ़ती गईं.

एक तो रूम में अंधेरा था और दूसरा भैया के हाथों की हरकतों से मुझे भी मस्ती छाने लगी. भैया ने मेरे दोनों मम्मों ऊपर से खूब दबाए फिर मेरे टॉप में हाथ डाल दिया. वो अपना काम करने लगे तो मैंने भी अपनी आँखें बंद कर लीं और मजा लेने लगीं. भैया ब्रा के ऊपर से मेरे मम्मों को दबाते रहे.

मुझे सबसे ज्यादा अजीब तब लगा, जब भैया मेरे ऊपर चढ़ गए और मेरे होंठ चूसने लगे. मैं भी वासना में भर उठी थी… सो मैं भी उनका साथ देने लगी.

हम दोनों की जीभें आपस में लड़ रही थीं. तभी मुझे फिर से याद आया कि भाबी बगल में ही सो रही हैं, तो मैंने भैया को साइड किया और उठ कर बाथरूम में चली गई. उधर देखा कि पूरी पेंटी गीली हो गई थी. मैंने पेशाब की, चुत धोई और फिर से रूम में आ गई. मैंने भाबी को उनकी जगह पर सरका दिया और खुद किनारे लेट गई.

मुझे लगा कि भैया को पता नहीं है कि उनके नीचे में थी, शायद वो मुझे भाबी समझ कर चोदने के मूड में थे कि इतने में भाबी जाग गई थीं. उन्होंने मुझे हिलाया, मैं तो अब तक गर्म थी सो जाग ही रही थी. भैया भी जागे हुए ही थे.

तभी बिजली चली गई और चूंकि गर्मी का मौसम था तो बेचैनी होने लगी.
भाबी बोलीं- चलो, बाहर आँगन में चलते हैं.

भैया तो कुछ कहने की जगह सीधे उठ कर ही बाहर आँगन में चले गए. उनको ज्यादा गर्मी लग रही थी तो वे आँगन में बैठ कर नहाने लगे.

इसके बाद भाबी भी पानी में भैया के साथ मस्ती करने लगीं और बोलीं कि चलो एक गेम खेलते हैं, हम में से किसी एक इंसान की आँखों में ब्लैक पट्टी बाँधते हैं और उस इंसान को दूसरे इंसान को छू कर बताना है कि वो कौन है. जिसको वो छुएगा उसको नहीं बोलना है… कोई भी नहीं बोलेगा.

गेम स्टार्ट हुआ, भाबी ने मुझे भी पानी में खींच लिया. हम सब लोग पानी में भीग गए, सबने एक दूसरे को पानी में खूब भिगोया.

पहले भाबी की आँखों पर पट्टी बंधी और भाबी ने मुझे ही पकड़ लिया और मेरा टॉप जानबूझ कर खींचते हुए फाड़ दिया. अब मैं ब्रा और स्कर्ट में रह गई थी. मैंने बोला- भाबी ये क्या किया आपने… मेरा टॉप फाड़ दिया?
भाबी बोलीं- कोई बात नहीं, ये तो गेम है.
इसके बाद भाबी ने भैया को पकड़ा. वे अपने हाथ से उनके अन्डरवियर को पकड़ने लगीं और उनका लंड दबाने लगीं. मैं ये सब देख रही थी.

भैया कुछ नहीं बोले और अपना लंड भाबी के हाथ से मसलवाने लगे.

अब भैया की बारी थी, भैया ने भाबी को पकड़ा और भाबी का भी टॉप फाड़ कर भैया उनके मम्मों को दबाने लगे. उसके बाद भैया ने मुझे पकड़ा और मेरे मम्मों को दबाने लगे, मैं भी सिसकारी लेने लगी क्योंकि मुझे तो बहुत मजा आ रहा था. भाभी भी मुझे मम्मे मसलवाते हुए देख रही थीं और मुस्कुरा रही थीं मेरा डर भी खत्म हो गया था. इसी तरह हम 2 से 3 घंटे पानी में ही खेलते रहे.

बाद में भाबी मजाक करते हुए मुझसे बोलीं- क्या बात ऋतु, आज तो तू अपने भैया से ही अपने मम्मों को मसलवा रही थी… गेम अच्छा लगा या नहीं.
मैं बोली- भाबी गेम तो अच्छा था, मैं क्या मजा ले रही थी, वो तो गेम था, जिसमें आप भी तो अपने फुकने दबवा कर मजा ले रही थीं.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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आज के गेम से मेरी झिझक कम हो गई थी और भाबी मेरे से बहुत मज़ाक करने लगी थीं. अब तो वे कभी मेरे मम्मों को दबा देतीं, कभी मेरे हिप्स में चपत मार देतीं… ये अब आम बात हो गई थी. हम दोनों सहेलियों के जैसे बर्ताव करने लगे थे.

उसी रात को भाबी फिर एक साइड में ही सोईं. मैं भैया की तरफ़ वाली साइड में सो गई.

कुछ देर बाद भैया शुरू हो गए, उनका हाथ मेरे मम्मों पर आ गया. आज मैंने भी कुछ नहीं कहा. उस दिन भैया ने पहली बार मेरी पेंटी और मेरी चूत को टच किया. अब मैं तो आसमान में उड़ रही थी और भैया मेरे दोनों मम्मों पर अपनी मजबूत पकड़ बना रहे थे. मैं भी चाहती थी कि भैया आज मुझे चोद कर अपना बना लें.

कुछ ही पलों में वो मुझे पागलों की तरह चूमने लगे. मैं भी उनके बालों में हाथ फेर रही थी. भैया ने मेरा हाथ अपने लंड पर सरका दिया तो मैंने भी भैया का लंड भी टच किया. उनका लंड एकदम टाइट मोटा लंबा था.

कुछ ही देर में भैया ने मेरी ब्रा भी निकाल दी. अब मैं ऊपर से नंगी थी. नीचे मेरे जिस्म पर स्कर्ट और पेंटी थी. भैया ने वो भी निकाल दी.

अब भैया ने नीचे को होकर पहली बार मेरी क्लीन चूत पर किस किया और अपनी जीभ से मुझे चोदने लगे. मैंने भी अपने टांगें खोल दीं और चुत चटवाने का मजा लेने लगी ‘आआआहह ओह…’

मैं अपनी कामुक आवाज़ को अपने मुँह में ही रहने की कोशिश करती रही.

फिर अचानक से भाबी उठ गईं और बोलीं- यहां का एसी बहुत तेज चल रहा है, मुझे तो ठंड सी लग रही है, मैं बाहर जाकर सोती हूँ.
मैं समझ गई कि भाबी ने मुझे चुदने का पूरा मौका दे दिया है. जैसे ही भाबी गईं, भैया ने मुझे अपने ऊपर लिटा लिया और मेरी कमर और गांड पे हाथ फेरने लगे.

फिर भैया ने मेरी चूत चूसना शुरू किया मेरी मादक सिसकारियां निकल रही थीं- आआ उम्म्ह… अहह… हय… याह… आहह ओह मुऊ… उम्मईं आआहह…
मैं ये सब कर रही थी तो भैया बोले- तू तो एकदम मस्त माल हो गई है.
मैंने बोला- आप भी तो मुझे पाकर मस्त हो गए हो.

फिर भैया ने अपना लंड मेरे मुँह पर रख दिया. मैंने अपना मुँह खोल दिया और लंड को प्यार करने लगी, भैया का लंड चूसने लगी. मुझे बहुत मजा आने लगा. भैया अपने लंड से मेरा मुँह चोदने लगे.

थोड़ी देर में भैया ने कहा- ऋतु अब मैं तेरी चूत में अपना लंड डालूँगा… आज तुझे अपनी बना लूँगा.
मैं बोली- हां बना लो ना… मैं तो आपकी ही हूँ मेरे राजा भैया.
भैया बोले- एक प्रॉमिस कर आज से भैया नहीं कहेगी… तू मुझे वीरू बोलेगी.
मैंने कहा- ठीक है मेरे वीरू राजा… अब जल्दी से डाल भी दो अन्दर.

जब वीरू ने अपना लंड मेरी चूत में डाला तो मुझे दर्द भी हुआ था और ये लग रहा था कि भाबी अन्दर ना आ जाएं… और खेल न बिगड़ जाए.
कुछ देर के दर्द के बाद मैं बहुत मजे में आ गई थी. खुद नीचे से अपनी गांड उठा कर लंड ले रही थी ‘आआआहह… आअहह…’
भैया जब तेज झटके मारते थे तो मैं ‘उईईईई मम्मीं… मर गई…’ मचल कर कामुकता से बोलने लगती थी.

भैया मुझे चोदते हुए बोले- बोल… तू मेरी कुतिया है.
मैं भी बोल देती- हाँ हूँ तेरी कुतिया… साले चोद मुझे आआआहह ओह मुऊऊउउ… मम्मीममम मर गई… कितना मोटा लंड है… आअहह…’

तभी मैं एकदम से अकड़ कर फ्री हो गई थी. कुछ देर मुझे पेलने के बाद वीरू भैया भी मेरी चूत में ही झड़ गए और मेरे ऊपर ही लेटे हुए थे. मैं उनको किस करने लगीं. भैया का लंड अब भी मेरी चूत में ही था. फिर पता ही नहीं चला और हम दोनों ऐसे ही सो गए.

सुबह मुझे वीरू भैया ने जगाया और मैं उठ कर फ्रेश होने चली गई. फिर आज मैंने चाय बनाई, भाबी भैया को चाय दी.
भाबी हंस कर बोलीं- तू रात में इतना शोर क्यों मचा रही थी… आराम से सोया कर ना.
मैंने सोचा शायद मैं पकड़ी गई. तभी भाबी बोलीं- चल अब नहा ले.

मैं नहा कर आई तो भैया भाबी के होंठ चूस रही थीं. मैं उन दोनों को देख कर कमरे में आते हुए ठिठक गई. मैं खांस कर बोली- मैं बाद में आती हूँ.
भाबी अलग होते हुए बोलीं- कोई बात नहीं ननद रानी… इसमें क्या शर्म इधर आओ.
उन्होंने मुझे अपने पास बुलाया तो भैया बोले- इसको जाने दो.
तभी भाबी बोलीं- क्यों जब रात को तुम दोनों ये सब कर रहे थे, तो दिन में भी तो कर सकते हो.

मैं डर के मारे सकपकाने लगी. भाबी बोलीं- घबरा मत… सच बता क्या चाहती है तू?
अब मैं बोली- जैसा आप चाहें.
तो भाबी बोलीं- मैं तो ये चाहती हूँ कि तुझे वीरू से अभी मेरे सामने चुदवाना होगा.
मैं मन ही मन में बहुत खुश हुई. मैंने पहले मना किया. तभी भाबी ने भैया से कहा- तुम क्यों चुप हो… चोदो साली को.

वीरू ने मुझे अपनी गोद में खींच लिया और भाबी के सामने ही मुझे नंगी करके चोदने लगे.
उस दिन भैया ने मुझे 3 बार चोदा और आज इस चुदाई में भाबी भी नंगी होकर चुत चुदाई का मजा ले रही थीं.

बस इसके बाद तो जब तक मैं मौसी के घर रही समझो मेरी चुत में भैया का लंड आता जाता रहा. अब बिना लंड लिए मुझे चैन ही नहीं पड़ता है.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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मेरा नाम रचना है. हम दो बहनें हैं, मेरी बड़ी बहन कुसुम जो मुझसे 7 साल बड़ी है। मैं घर में सबसे छोटी हूं और शुरू से सबकी बहुत दुलारी रही हूँ।
बात उस वक्त की है जब मैं 18 साल की थी। हमारे यहाँ एक मुंहबोली बुआ जी का आना जाना था. बुआजी का हम सबके साथ बहुत लगाव था, उनका घर हमारे घर से आगे कुछ दूरी पर था, बुआ जी का एक ही लड़का था जिसका नाम था विनय. जिसकी उम्र उस वक्त शायद 21 की रही होगी। फूफा जी का निधन पहले ही हो चुका था। विनय की एक गारमेंट की दुकान थी और बुआजी को पेंशन मिलती थी। बुआ जी और विनय अक्सर घर आते रहते थे. हम सबसे उनकी खूब बनती थी।

मैं दीदी के साथ हमेशा रहती थी. दीदी भी मुझे बहुत प्यार करती थी। मैं देखा करती थी कि जब बुआ जी और विनय घर आते तो विनय भैया हमारे ही रूम में आ जाते और बातें करते रहते थे, गेम खेलते रहते थे. अक्सर विनय भैया मेरी नजर बचाकर दीदी से कुछ छेड़छाड़ भी करते रहते थे और दीदी मेरी नज़र बचाकर मुस्करा देती, अगर कभी मैं देख लेती तो दोनों मुझे फुसलाने लगते।
उस वक्त मैं इन बातों को नहीं समझती थी। मैंने कई बार विनय भैया को दीदी से लिपटते देखा था.

एक बार विनय भैया हमारे साथ टीवी देख रहे थे. दीदी विनय भैया से बिल्कुल सटकर बैठी थी. मैं टीवी में मशगूल थी. मगर वो दोनों कुछ खुसर-फुसर बातों में लगे थे.
तभी मैं पेशाब करने के लिए बाथरूम चली गई. जब मैं वापस कमरे में आई तो दीदी विनय भैया के सीने से लिपटी थी और विनय भैया दीदी के होंठ चूस रहे थे. मुझे अचानक आया देखकर दोनों घबरा कर अलग हो गये और फिर मुझे दोनों ने अपने पास बुला लिया.
मुझे प्यार से बैठाकर बोले- तुम किसी से कुछ कहना मत!
फिर मुझे एक हजार रूपये भी दिये. मेरा तो लड़कपन था. रूपये पाकर मैं खुश हो गई.

फिर तो मुझे अक्सर कभी दीदी से कभी विनय भैया से पैसे मिलने लगे. मैं खुद में मस्त रहती और वे दोनों मेरे सामने भी सब बातें करते रहते। पर जल्दी ही दोनों के चक्कर के बारे में सबको मालूम हो गया।

दीदी और विनय भैया घबराने लगे. मैं भी न जाने क्यों नर्वस हो रही थी. खैर बुआजी का व्यवहार और पापा व मम्मी की सूझ-बूझ से दीदी की सगाई विनय भैया के साथ कर दी गई। अब विनय भैया विनय जीजू बन गये थे. दीदी की ससुराल तो पास में ही थी और मेरा लगाव तो था ही दीदी और विनय जीजू से तो मैं अक्सर दीदी के घर जाती रहती थी।

धीरे-धीरे एक साल बीत गया. इस दौरान बुआ जी का भी लम्बी बीमारी के बाद स्वर्गवास हो गया।

एक दिन शाम को मैं दीदी के घर गई तो वहाँ जीजू की ही हमउम्र गठीले बदन का एक युवक जीजू के साथ बैठा हुआ था. मुझे देखते ही दोनों ठिठके, अगले ही पल जीजू मुस्कराते हुए बोले- आओ रचना, बैठो!
मैं उनके साथ बैठ गई.
फिर जीजू ने बताया- यह मेरा दोस्त अनन्त है. तुम इसे भी जीजू बोल सकती हो।

तभी दीदी चाय लेकर आ गई और मुझे देखकर हड़बड़ा गई. मुझे देखकर सबका हड़बड़ा जाना मुझे अजीब लगा. खैर उसके बाद सबने चाय पी. फिर दीदी खाना बनाने लगी और हम लोग टीवी देखने लगे। मैंने देखा वे सब मुझसे छुपाकर कुछ बात कर रहे थे. फिर सबने खाना खाया और सोने की तैयारी करने लगे।

अभी तक मैं जब भी दीदी के यहां जाती थी तो दीदी जीजू के साथ बेड पर ही सोती थी इसलिए मैं बेड पर ही सोने लगी. अनन्त जीजू को बगल के रूम में लिटाकर दीदी, जीजू और मैं हमेशा की तरह लेट गये। जीजू दीदी से कुछ बात कर रहे थे।

फिर मैं सोने लगी, दीदी ने गौर से मेरी तरफ देखा और उनको ये लगा कि मैं गहरी नींद में सो गई तब वे बेफिक्र होकर बात करने लगे.
दीदी ने जीजू से कहा- यार आज कुछ करना ठीक नहीं रहेगा, रचना यहीं है।
जीजू- अरे यार, आज पहली बार तो तुमने हां बोली, अब इन्कार मत करो. अनन्त भी आ गया है।
दीदी- क्या करूं, रचना यहीं है।
जीजू- रचना सो गई है. तुम अनन्त के रूम में चली जाओ।
दीदी- नहीं, मैं नहीं जाऊंगी, तुमको जो करना हो करो बाकी सब कैंसिल।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
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उसके बाद मैंने हल्के से आंख खोलकर देखा तो जीजू मेरी दीदी से लिपटते हुऐ उनको मनाने लगे। मैं चुपके-चुपके सब देख रही थी. आज ये पहली बार मुझे रोमांचक लग रहा था. अब से पहले मैंने कभी गौर ही न किया था। तभी जीजा जी ने दीदी के सब कपड़े अलग कर दिये. अब दीदी केवल पैंटी में थी। जीजू दीदी के दूध चूस रहे थे. साथ ही उनका एक हाथ दीदी की पैंटी के अन्दर चल रहा था। मैं कुछ नहीं जानती थी कि ये सब क्या हो रहा है. मगर वह सब मुझे बहुत रोमांचक लग रहा था। दीदी के दूध गोल और सख्त लग रहे थे।

जीजू की हरकतों से दीदी जल्दी ही कसमसाने लगी और पैरों को फैलाने लगी।
जीजू- जान चली जाओ न … अनन्त के कमरे में, एक बार चुदवाकर देखो, बहुत मजा आयेगा. वो गजब की चुदाई करेगा, मैंने उसका लन्ड देखा है तभी तो बुलाया है।
दीदी कुछ नहीं बोली, बस आंखें बन्द किये हुए कसमसाती रही। तभी अनन्त जीजू हमारे रूम में आ गये।

अनन्त- यार मुझे कितना इन्तजार करवा रहे हो … जब से कुसुम को देखा है लन्ड सम्भल नहीं रहा।
विनय- क्या करूं दोस्त, कुसुम से बोल तो रहा हूं पर वो तुम्हारे रूम में जा ही नहीं रही।
इतना सुनते ही अनन्त जीजू के तेवर बदल गये और अनन्त जीजू मेरी कुसुम दीदी की तरफ मुखातिब होकर बोले- साली, इतना नखरा मत कर वर्ना यहीं चोदना शुरू कर दूगां. देख मेरा लंड कितना ताव में है!
यह बोलकर अनन्त ने अपनी जाँघिया उतार दी।
बाप रे! ये क्या था, मैं देखती रह गई. आज तक मैंने किसी आदमी को नंगा नहीं देखा था. मैं कुछ डरने लगी। मैंने लंड पहली बार देखा था, बड़ा ही भयानक लम्बा, मोटा और डंडे जैसा तना हुआ काले रंग का। मेरी तो सांस थम सी गई, मैं चुप्पी साधकर सब देख रही थी पर किसी का ध्यान मेरी तरफ नहीं था।

अनन्त का लंड विनय जीजू ने थाम लिया और सहलाते हुऐ बोले- कितना मस्त लंड है, आज तुम अपने लंड से मेरी प्यारी कुसुम की दमदार चुदाई करो, हम दोनों कब से यही चाहते हैं।
अनन्त- तो फिर हटो एक तरफ और अपनी बीवी को मेरे हवाले करो।
इतना बोलकर अनन्त जीजू कुसुम दीदी के होंठों को चूसने लगे. साथ ही वो दोनों स्तनों को दबाने लगे। विनय जीजू थोड़ा अलग होकर लेटे रहे. कुछ ही देर में दीदी अनन्त के बदने से बुरी तरह लिपटने लगी.

तभी अनन्त ने दीदी की पैंटी खींच कर फेंक दी. जो मेरे मुंह के पास आकर गिरी. पैंटी बेहद गीली थी और उसमें अजीब सी बदबू आ रही थी। पैंटी फेंकने के बाद अनन्त ने दीदी की जांघों को फैलाया और अपना मुंह उनकी टांगों के बीच में लगा दिया.

कुसुम दीदी बुरी तरह तड़पने लगी। तब मैं नहीं समझ पाई थी कि अनन्त क्या कर रहा है. पर चपड़ चपड़ की आवाज साफ सुन रही थी मैं।
दीदी बुरी तरह तड़पकर लगभग चिल्लाने लगी- जल्दी चोदो मुझे … बर्दाश्त नहीं हो रहा.

उसके बाद विनय जीजू को मेरा ख्याल आया और उन्होंने कहा- अनन्त यार, कुसुम बहुत चुदासी हो रही है इसे कुछ होश नहीं है, इसको यहां चोदना ठीक नहीं है. अगर रचना जाग गई तो मजा खराब हो जायेगा।
इतना सुनते ही अनन्त जीजू ने कुसुम दीदी को गोद में उठा लिया. दीदी नंगी ही थी और अनन्त जीजू की गोद में बड़ी मनमोहक लग रही थी। अनन्त जीजू मेरी दीदी को अपने कमरे में ले गये, अब मेरे पास विनय जीजू शान्त लेटे थे. कमरे में बिल्कुल शांति छा गई थी. तभी अनन्त के कमरे से दीदी की चीख सुनाई दी और जीजू तुरन्त उस रूम की तरफ चले गये।

अब मैं बिल्कुल अकेली थी. कुछ देर में दीदी की कराहट भरी अवाजें आने लगीं, मुझे भी उलझन सी होने लगी। तब मैं चुपके से उठी और उस कमरे की तरफ दबे पांव चल पडी. मैं डर के मारे कांप रही थी पर न जाने कौन सी उत्सुकता थी कि कदम कमरे तक पहुंच गये। दरवाजा बन्द था पर खिड़की पर किसी का ध्यान नहीं था. मैं खिड़की से अन्दर झांकने लगी।

मैंने देखा कि अनन्त जीजू मेरी दीदी की दोनों टांगें उठाकर अपने कन्धों पर रखे हुए थे और दीदी का सर पकड़े हुए होंठों को चूस रहे थे. वह अपनी कमर को दीदी की कमर पर पटक रहे थे। दीदी बिल्कुल गुडीमुडी हुई अनन्त जीजू के नीचे दबी हुई थी। अनन्त और विनय दोनों ही जीजू मेरी दीदी पर रहम नहीं कर रहे थे। मैं बुरी तरह से डरकर वापस अपने कमरे में आ गई. मेरी दिल जोर से धड़क रहा था. कुछ देर के बाद मेरी धड़कन कुछ कम हो गई.

मगर मुझे चैन नहीं आ रहा था. मैं पसीने-पसीने हो गई। मैं लेटे हुए अनन्त जीजू और विनय जीजू के नंगे जिस्मों के बारे में सोच रही थी. कुछ देर बाद मन नहीं माना और मैं फिर देखने पहुंच गई. अबकी बार तो यकीन नहीं हुआ मुझे अपनी आंखों पर. दीदी अनन्त जीजू से लिपटी हुई हर धक्के पर अपनी कमर उछालते हुऐ बोल रही थी- और तेज चोदो! आह्ह … और तेज करो मेरी जान। तब मुझे समझ आया कि दीदी को कोई तकलीफ नहीं हो रही बल्कि अच्छा लग रहा है.

अब मेरा भी डर कम होने लगा था और मैं लगातार देखने लगी कि कुछ देर बाद अनन्त जीजू और दीदी तेजी से हांफते हुऐ शान्त हो गये. दोनों एक दूसरे को चूम रहे थे. फिर विनय जीजू, जो उसी बेड पर बैठे थे दीदी को चूमकर उन्होंने पूछा- कैसा लगा जान अनन्त का लन्ड?

दीदी- बहुत पसन्द आया. अनन्त जी ने तो मेरी चूत की सारी तमन्ना पूरी कर दी. मैं तो बहुत थक गई हूं।
अनन्त जीजू हँसते हुऐ बोले- नहीं जी, तुमने पूरी रात चुदवाने का वादा किया था, अभी तो रात बहुत बाकी है।

फिर अनन्त जीजू और विनय जीजू दोनों दीदी से लिपट गये. विनय ने मेरी दीदी की के चूचों को हाथ में ले लिया और उनको दबाने लगे. विनय जीजू कुसुम दीदी के चूचुकों को अपने दांतों से काटने लगे.
नीचे की तरफ अनन्त ने दीदी की चूत में अपनी उंगली डाल दी और उनको अंदर बाहर करने लगे. दीदी की टांगें बेड पर फैली हुई थीं. मैं बाहर खिड़की से खड़ी होकर यह पूरा नजारा देख रही थी.
मुझे डर भी लग रहा था मगर मेरे बदन में एक आग सी भी लगने लगी थी. मैंने अपने बदन पर वहीं खड़ी होकर हाथ फिराना शुरू कर दिया. अनन्त ने मेरी दीदी की चूत में उंगलियों की रफ्तार को तेज कर दिया.

मेरी दीदी के मुंह से कामुक सिसकारियां निकलना शुरू हो गईं. दीदी अपने हाथों को पीछे बिस्तर की तरफ ले जाकर बेड के सिरहाने को पकड़े हुए थी. दीदी की टांगें अनन्त की उंगलियों की रफ्तार के साथ और ज्यादा फैल रही थीं.
जब कुछ देर के बाद मैंने अपनी सलवार के ऊपर अपनी पैंटी पर हाथ लगाया तो मेरे बदन में एक सरसरी सी दौड़ गई. मेरी चूत में पहली बार मैंने गीलापन महसूस किया था. जब अनन्त ने कमरे के अंदर दीदी की पैंटी को मेरे मुंह पर फेंक दिया था तो मुझे उस पैंटी के अंदर से अजीब सी बदबू आई थी. अब मैं समझ गई थी कि यह बदबू कामरस की होती है.

मुझे सेक्स के बारे में ज्यादा कुछ नहीं पता था लेकिन अनन्त और विनय जिस तरह से कुसुम दीदी को अपने नीचे लेटा कर उसके बदन को भोग रहे थे. आज मेरा ज्ञान काफी बढ़ गया था. मैंने पहली बार मर्द के लंड के दर्शन किए थे.
विनय का लंड भी काफी बड़ा था. लेकिन अनन्त के लंड के सामने अगर नापा जाए तो उससे छोटा ही लग रहा था. मेरे चूचों में वहीं पर खड़े-खड़े कुलबुलाहट सी होने लगी थी. मैंने अपनी छाती को वहीं पर दबाना शुरू कर दिया.

जब मैंने अंदर की तरफ दोबारा देखा तो विनय ने अपना लंड कुसुम दीदी के मुंह में डाल रखा था. मेरी दीदी विनय के चूतड़ों को पकड़ कर उसके लंड को अपने मुंह की तरफ धकेल रही थी. विनय ने भी दीदी के बालों को पकड़ा हुआ था और उनके मुंह को अपने लंड की तरफ धकेल रहे थे.
मेरा ध्यान अनन्त पर गया तो उसने दीदी की चूत में अपनी जीभ डाल रखी थी. दीदी अनन्त के सिर को अपनी जांघों के बीच में दबोचने की नाकाम कोशिश कर रही थी क्योंकि अनन्त ने उसकी जांघों को पकड़ कर अपने मजबूत हाथों से विपरीत दिशाओं में फैला रखा था.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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दीदी बेड पर बुरे तरीके से तड़प रही थी. अनन्त का लंड बेड के पायदान की लकड़ी पर छू कर बार-बार लग रहा था. उसके लंड में अभी वह पहले जैसा तनाव नहीं था जबकि विनय जीजू का लंड अपने पूरे उफान पर था. उनका लंड किसी डंडे की तरह तनकर कुसुम दीदी के हलक में जाकर लगता हुआ दिखाई दे रहा था. उसके बाद विनय जीजू ने अचानक ही अपने लंड को दीदी के मुंह से निकाल लिया और विनय के हटते ही अनन्त ने भी अपनी जीभ दीदी की चूत से निकाल दी.

अब विनय जीजू दीदी की चूत के पास आ गए थे और अनन्त कुसुम दीदी के मुंह की तरफ चले गए थे. अनन्त के पास जाते ही दीदी ने उसके लंड को पकड़ लिया और अपने हाथ में लेकर उसको सहलाना शुरू कर दिया. कुछ ही पलों के बाद अनन्त का लंड फिर से अपने पहले जैसे तनाव में आकर दीदी के हाथ में भर गया. अनन्त ने दीदी के दोनों तरफ अपने पैरों को रखा और अनन्त की टट्टे दीदी के होंठों के पास आ गये.

दीदी अनन्त जीजू के अंडकोषों को अपने मुंह में लेकर प्यार करने लगी. अनन्त ने अपने हाथों को पीछे लाकर दीदी के चूचों पर टिका लिया और उनको पकड़ने के साथ उनको दबाना और मसलना भी शुरू कर दिया.
नीचे की तरफ विनय जीजू ने दीदी की चूत में अपनी जीभ डाल दी और चूत में उसको अंदर बाहर करने लगे. कुछ पलों तक दीदी की चूत को चाटने के बाद विनय जीजू ने अपने लंड को दीदी की चूत पर रख दिया और उसकी चूत में अपने लंड को अंदर की तरफ धकेल दिया.

दीदी अनन्त के टट्टों के साथ ही चूमा-चाटी में लगी हुई थी. दीदी ने अनन्त के चूतड़ों को अपने हाथों से पकड़ रखा था और वह अनन्त के चूतड़ों की दरार के बीच में उगे बालों में अपनी उंगली को फिरा रही थी. उसके बाद अनन्त ने दीदी के हाथों को अपने हाथों से हटा दिया और एक तरफ आकर दीदी के मुंह में अपने लंड को पेल दिया.
दीदी के मुंह में अनन्त का लंड जाते ही दीदी का चेहरा लाल हो गया. दीदी को शायद सांस लेने में मुश्किल हो रही थी. अनन्त ने अपने लंड को दीदी के मुंह में तेजी के साथ धकेलते हुए अंदर बाहर करना शुरू कर दिया.

जब अनन्त जीजू का लंड पूरी तरह से खड़ा हो गया तो उसके बाद अनन्त ने दीदी के चूचों को अपने हाथों में भर लिया. हाथों में दबाचकर उन्होंने दीदी के चूचों के बीच में अपने लंड को फंसा दिया और वहीं पर मैथुन करने लगे. अनन्त के चूतड़ दीदी के होंठों की तरफ थे. दीदी शायद अनन्त के चूतड़ों पर पीछे से किस करने में लगी हुई थी. दीदी के हाथ अनन्त की कमर पर थे और दीदी ने दोनों हाथों से अनन्त की कमर को संभाला हुआ था. विनय जीजू ने दीदी की चूत में लंड डालकर चुदाई शुरू कर दी थी.

उसके बाद अनन्त जीजू ने अपने लंड को दीदी के चूचों के बीच से निकाल लिया और एक तरफ हट गए. जब विनय जीजू ने देखा कि अनन्त ऊपर की तरफ से हट चुका है तो उन्होंने भी दीदी की चूत से अपने लंड को निकाल लिया.
उसके बाद अनन्त नीचे की तरफ आ गए और दीदी की टांगों को अपने हाथों में पकड़ कर ऊपर उठा लिया. मैंने सोचा कि शायद अब अनन्त दीदी की टट्टी करने वाली जगह में अपने लंड को डालने की तैयारी में है लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया. अनन्त ने दीदी की टांगों को उठाकर अपने कंधों के ऊपर रख लिया और दीदी की चूत के नीचे तकिया लगा दिया.

ऊपर की तरफ विनय जीजू ने फिर से दीदी के मुंह में अपने लंड को डाल दिया जिसको दीदी ने बिना देर किए ही चूसना शुरू कर दिया. विनय के लंड का साइज ज्यादा बड़ा नहीं था इसलिए दीदी उनके लंड आराम से चूस पा रही थी.
बाहर खड़े-खड़े मेरे पैर जवाब देने लगे थे. मेरा पूरा बदन कांप रहा था. मगर फिर भी मेरा मन वहां से हिलने को नहीं कर रहा था. मैं वहीं पर खड़े रहकर देखना चाहती थी कि आगे क्या होने वाला है. दीदी विनय जीजू के लंड को चूसने में मस्त थी और अनन्त ने अपने लंड को दीदी की चूत के छेद पर लगाकर उसको ऊपर नीचे फिराना शुरू कर दिया था.

विनय जीजू के झटके दीदी के मुंह में काफी तेज होने लगे थे. जीजू के मुंह से कामुक सिसकारियां निकलने लगी थीं. मगर वह तेजी से अपने चूतड़ों को आगे की तरफ धकेल रहे थे और पूरा लंड दीदी के गले में उतार रहे थे. कुछ देर के बाद विनय जीजू ने कुसुम दीदी के सिर को पकड़ लिया. उम्म्ह… अहह… हय… याह… ओह्ह … विनय के मुंह से तेज आवाज निकलने लगी. फिर विनय जीजू के लन्ड से सफेद रस निकलकर दीदी के मुंह पर गिरा और विनय जीजू अलग हट गये.

तब अनन्त और दीदी ने अगली चुदाई शुरू की. अब मुझमें वहाँ खड़े रहने की और हिम्मत नहीं रह गई थी. इसलिए मैं वहाँ से आ गई. अब शायद विनय जीजू भी कमरे से बाहर आने वाले थे. इसलिए भी वहाँ पर खड़े रहना मैंने ठीक नहीं समझा.
जब मैं वापस दीदी और जीजू के बेडरूम में आई तो मेरे पूरे बदन में आग लगी हुई थी. मैंने आते ही दरवाजे को अंदर से बंद कर लिया. दरवाजे पास खड़ी होकर ही मैंने अपनी सलवार को नीचे किया और अपनी पैंटी को देखा. वह पूरी भीग चुकी थी.

मैंने अपनी पैंटी को नीचे किया और अपनी चूत को धीरे से छूकर देखा. वह फूली-फूली सी लग रही थी. मैंने धीरे से अपनी चूत के फलकों को मसाज देना शुरू कर दिया. मगर कुछ ही पल के बाद मुझे बगल वाले कमरे के दरवाजे के खुलने की आवाज सुनाई दे गई. मैंने जल्दी से अपनी सलवार को ऊपर किया, झट से कमरे के दरवाजे की कुंडी को खोलकर बिस्तर पर जाकर लेट गई. मैंने चादर ओढ़ ली थी क्योंकि इस वक्त मैं सोने का नाटक नहीं कर पाती.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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कुछ के पल के बाद दरवाजा खुला और तुरंत ही बंद हो गया. शायद विनय जीजू यह चेक करने आए थे कि मैं सो रही हूँ या नहीं. उसके बाद दरवाजा दोबारा बंद हो गया तो मैं धीरे से चादर हटाकर देखा. कमरे में कोई भी नहीं था. मेरा दिल जोर से धड़क रहा था. मैंने जल्दी से अपनी सलवार को बांध लिया और आराम से मुंह खोलकर लेट गई.

मेरी आंखें तो बंद थीं लेकिन अभी भी वह चुदाई का सीन मेरी आंखों में यूं का यूं चल रहा था. मैं बहुत देर तक उन तीनों के बारे में ही सोचती रही. उसके बाद पता नहीं मुझे कब नींद आई.

इस तरह उस रात दीदी की घमासान चुदाई मैंने देखी। लेकिन सारी फिल्म मेरे अलावा किसी ने नहीं देखी. किसी को नहीं मालूम था कि मैंने भी उन तीनों की ये चुदाई देखी। लेकिन तब से मैं दीदी के घर जाने से हिचकने लगी। मगर अनन्त का दीदी के घर पर आना-जाना आज भी जारी है. अब मैं जवान हो चुकी हूँ और सब कुछ समझती हूँ कि अनन्त यहाँ पर क्या करने आता है.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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घर आकर मैंने डोरबेल बजाई तो मेरी प्रियतमा राशि मुस्कराती हुई दरवाजा खोलकर मुझे अंदर खींचने लगी. मैं समझ गया कि आज जरूर यह मस्ती के मूड में है.
दरवाजा बंद होते ही उसने मुझे दरवाजे के सहारे ही वहीं पर सटा लिया और मेरी पैंट के ऊपर से ही मेरे लंड पर हाथ फिराते हुए मेरी छाती को सूंघने लगी. मैंने भी उसकी गर्दन के ऊपर से बालों को एक तरफ किया और एक प्यारी सी पप्पी देते हुए उसकी गांड को अपने हाथों में लेकर दबा दिया.
“बहुत देर कर दी आज? मैं कब से इंतजार कर रही थी!” राशि ने नाटकीय गुस्से के साथ सवाल फेंका.
“आज काम थोड़ा ज्यादा था तो थोड़ी देर हो गई.” मैंने उसके गालों को सहलाते हुए कहा.
“ठीक है तुम जरा हाथ-मुंह धो लो, मैं तुम्हारे लिए पानी लेकर आती हूं.”
राशि मटकती हुई किचन की तरफ चली गई.

उसकी गोल मोटी गांड आज उसकी मस्तानी चाल से भी ज्यादा मस्त लग रही थी. मैंने बाथरूम में जाकर कमोड को खोला और अपना अधसोया लंड निकालकर पेशाब की धार को कमोड की तलहटी में इकट्ठा हो रखे पानी में गिराने लगा.
मैंने जल्दी से अपना मुंह धोया और बाहर आ गया.

राशि अभी किचन से वापस नहीं आई थी. मैं स्टोर रूम में चला गया और दरवाजा ढाल दिया. शर्ट के बटन खोले और बाजुओं से कमीज को उतारते हुए पीछे दरवाजे पर टांग दिया. बनियान उतारी और मेरी छाती नंगी हो गई. अपने हाथ से लंड को पैंट के ऊपर से ही सहलाया और पैंट को खोलकर पीछे की तरफ टांग दिया. कपड़े उतारने के बाद बदन में खुलापन आ गया था. मैंने सोचा कि थोड़ी खुल्लस लंड को भी दे दी जाए. मैंने अपने अंडरवियर को निकाल दिया और मेरा काला ‘लाल’ मेरी जांघों के बीच में लटकर झुलता हुआ बाहर आकर चैन की सांस लेने लगा.

मैंने दरवाजे से तौलिया उतारा और अपनी कमर पर लपेट लिया. तभी मेरे कानों में मेरी रानी की आवाज पड़ी- कहाँ गायब हो गए आते ही? तुम्हारा भी पता नहीं चलता, क्या कर रहे हो?
राशि ने जोर से आवाज़ दी.
“कपड़े बदल रहा हूँ, स्टोर रूम में हूँ.” मैंने जवाब दिया.
कपड़े उतार कर तौलिया लपेट कर बाहर आया और पूछा- क्या हुआ? कोई काम है क्या?

राशि ने बिना कोई जवाब दिए मुस्कुराकर एक हाथ की उंगलियाँ मेरे निप्पल्स पर फेरनी शुरू कीं और मेरा टॉवल निकाल कर दूसरे हाथ से लंड हिलाना शुरू किया और अपने होंठ मेरे होंठों पर रख दिए. मैंने भी ब्लाउज के ऊपर से ही उसके चूचे मसलना शुरू किया और हम दोनों की जीभ एक दूसरे के मुंह में सैर करने लगी.
उसके अधखुले ब्लाउज के सारे बटन खोलकर उसके चूचों को कैद से आज़ाद किया और धीरे-धीरे एक हाथ को नीचे ले जाते हुए उसकी कमर सहलाते हुए पेटीकोट का नाड़ा खोला और हम दोनों सांपों की तरह नंगे एक दूसरे से लिपट गए.

उसकी नशीली आँखों में झाँक कर मैंने पूछा- क्या बात है, बड़ी बेचैन हो? तुम्हारे चूचे इतने उफान पर कम ही होते हैं.
राशि विस्तार से बताने लगी:
आज घर गयी थी माँ के पास दोपहर में. माँ और बाबा तो कहीं गए हुए थे पर घर पर बड़े भैया और आशा भाभी दरवाज़ा खुला छोड़ कर भूल गए और रसोई में ही चुदाई कर रहे थे. मैं थोड़ी ओट में थी तो उन दोनों ने ध्यान नहीं दिया और मैं पूरी फिल्म देखने लगी. भाभी कुतिया बन कर बड़े भैया का लंड चूस रही थी.
मैं जब गई तब शायद भाभी को लंड चूसते हुए काफी वक़्त हो गया था, तभी मेरे पहुँचने के कुछ मिनट बाद ही बड़े भैया ने अपना सारा वीर्य आशा भाभी के मुंह में छोड़ दिया और भाभी ने भी पूरा वीर्य पी लिया और लंड साफ़ करके भैया का मुंह अपनी चूचियों में घुसा दिया.
भैया भी मज़े से चूचियां चूसते रहे और कुछ 20 मिनट बाद भाभी को रसोई की स्लैब पर बैठा कर चूत चाटने लगे.
आशा भाभी की टांगें स्लैब पर चौड़ी होकर फैलती ही जा रही थीं. भैया उसकी चूत की चटाई ऐसे कर रहे थे जैसे उन्होंने कभी चूत देखी ही न हो. उफ्फ … भाभी का वह चेहरा अब मुझे याद आता है तो मेरी चूत में कुलबुली मच जाती है. वह तुम्हारे होंठों के लिए चीख पुकार करने लगती है.
भैया स्लैब पर भाभी की चूत चाटने में लगे हुए थे और मैं अपनी चूत को शांत करने की नाकाम कोशिश कर रही थी. यह हरामन मगर मेरी उंगलियों से कहां शांत होने वाली थी. फिर भी मैंने पूरी कोशिश की भैया और भाभी की फिल्म देखते हुए मजा लेने की मगर तुम्हारे लंड के अलावा इसको भला और कौन शांत कर सकता है मेरे राजा!
बहुत देर तक भैया ने भाभी की चूत अपनी जीभ से चोदी और जब तीसरी बार भाभी झड़ी तब भैया ने दोबारा अपना लंड भाभी के मुंह में दे दिया.
आशा भाभी भूखी कुतिया की तरह उस पर टूट पड़ी. कुछ ही पल बाल भैया ने लंड को भाभी के मुंह से निकलवा दिया और उसके गीले होंठों पर फिराने लगे. भैया के लंड का सुपाड़ा लाल गाजर के जैसे रंग में आ चुका था जिसको भाभी लॉलीपोप की तरह बीच-बीच में अपनी जीभ से चाट लेती थी.
भैया ने आशा के भाभी के बालों को पकड़ा और अपने लंड की गोलाई पर भाभी के होंठों को फिराने लगे. भाभी भी गंदी फिल्मों की रांड की तरह भैया के लंड को चाट कर गीला कर रही थी. जब इतने से भी मन नहीं भरा तो भाभी ने उनके लंड को अपनी आंखों पर रखवा लिया और भैया ने भाभी के चूचों को इतनी जोर से मसला कि भाभी ने भैया के चूतड़ों को कचोट दिया. आह्ह … यह देखते ही मेरी चूत ने वहीं पर पानी छोड़ दिया.
मगर मेरा दिल भी नहीं भर रहा था. ऐसी चुदाई भला मैं बीच में छोड़कर कैसे आती.

राशि आगे बताने लगी:
फिर भैया ने आशा भाभी को कुतिया बनाया और अपना लंड उसकी चूत में पेलते हुए मस्त चुदाई शुरू कर दी. भाभी की हालत गली की कुतिया के जैसी हो गई थी जो तीन-चार कुत्तों का लंड लेने के बाद अपनी जान छुड़ाती हुई भागने लगती है. भैया ने पूरी स्पीड के साथ भाभी की चूत की खुदाई चालू रखी और अचानक से उन्होंने भाभी के चूचों को अपने हाथों में भर लिया और उनकी कमर पर लेटते चले गए.
भैया ने सारा वीर्य भाभी की चूत में छोड़ दिया और दो मिनट के बाद दोनों ही शांत होकर उठ खड़े हुए.
पूरी चुदाई करने के बाद दोनों ने नंगे ही खाना बनाया और खाना खाकर पहले तो भैया ने भाभी की चूचियां चूसीं, फिर भाभी की चूत तब तक चाटते रहे जब तक वो झड़ नहीं गयी और फिर लंड पर तेल लगा कर आशा भाभी की गांड में अपना मोटा काला लंड घुसा दिया.
भाभी को देखकर मैं हैरान थी. वह बड़े आराम से भैया का लंड अपनी गांड में ले रही थी. बल्कि भाभी को इतना मजा आ रहा था कि वह बड़े भैया के चूतड़ों को पकड़ कर अपनी गांड की तरफ धकेल रही थी. भैया ने भी भाभी के बालों को पीछे की तरफ खींच रखा था जैसे भूरी घोड़ी पर काली लगाम हो.
भैया के धक्के इतने तेज थे कि पूरे किचन में थप्प-थप्प की आवाज गूंज रही थी. मगर भाभी के जिस्म और चेहरे पर शिकन नाम की कोई रेखा मुझे कहीं पर भी दिखाई नहीं दे रही थी.
भाभी भी गांड हिला-हिला कर मज़े ले रही थी, शायद भैया ने झड़ने से पहले ही लंड निकाल लिया और फिर पहले तो लंड भाभी से चुसवाया और फिर आशा भाभी की चूचियों को अपने लंड से थोड़ा सहलाया और फिर एक बार और चूत चुदाई की.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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मेरी बीवी राशि बोली- इस पूरे सीन के दौरान दो तीन घंटे मैंने खुद कितनी बार हस्तमैथुन किया तुम नहीं जानते! फिर उसके बाद भी घर आकर मूली से खुद को शांत करने की कोशिश कर चुकी हूँ. मगर जानेमन … अब तुम और कुछ मत सोचो … बस मुझे मसल कर रख दो. एक बात की ख़ुशी है मुझे कि आशा भाभी के मुकाबले मैं ज्यादा बड़ा, ज्यादा मोटा और ज्यादा काला लंड चूसती भी हूँ और अपनी चूत और गांड में लेती भी हूँ. लेकिन आशा भाभी की चूचियां मेरी चूचियों से बड़ी हैं, तुम इन पर कम ध्यान देते हो!
राशि एक ही साँस में बोल गई. सारी दास्तान सुनाकर राशि ने एक लम्बी-गहरी साँस ली.

मैंने राशि की गांड पर जोर से एक तमाचा मारा और उसकी गांड पर चिकौटी काटकर बोला- मेरी रसमलाई, आज से मिशन चूचे शुरू! दस दिन में तेरे चूचे डबल न कर दूं तो नाम बदल देना! चाहे ग्याहरवें दिन तेरी आशा भाभी से चूचों का कम्पिटीशन कर लेना, मैं और तेरे भैया रिजल्ट दे देंगे!
इतना बोलकर मैंने उसकी गांड सहलाते हुए उसके चूचों को अपने होंठों से मसलना शुरू किया और राशि भी मेरा लंड एक हाथ से सहला रही थी. साथ ही वह दूसरे हाथ से मेरी गांड सहला रही थी.
करीब एक घंटा मैं उसके चूचों को मसलता रहा और जब मैंने उनको छोड़कर उसके होंठों को किस किया तो उसने मुझे धक्का दिया और उकडू बैठकर मेरा लंड मुंह में ले लिया. लंड चूसते-चूसते राशि को बीच-बीच में टट्टे चूसने और चूतड़ चाटने का भी शौक है.

मर्दों के जिस्म में बहुत सारी ऐसी जगह होती हैं जिनको चूसने और चाटने के लिए औरतें ललायित रहती हैं. मगर इसके लिए उनको गर्म करना बहुत जरूरी होती है. जब तक औरत गर्म नहीं होती तब तक वह खुल नहीं पाती. मगर एक बार जब वह खुल जाती है तो उनके अंदर सेक्स की ऐसी ज्वाला भड़क जाती है जो मर्दों से कई गुना ज्यादा आग फेंकती है.
मेरी पत्नी राशि के साथ भी मेरे संबंध कुछ ऐसे ही थे. हम दोनों एक दूसरे के जिस्म को पागलपन की हद तक भोगते रहते हैं. मुझे भी अच्छा लगता है क्योंकि यहीं से भेद खुलता है कि औरतों को क्या पसंद है और क्या नहीं.

कई बार देखा जाता है कि मर्द अपना वीर्य निकालते ही एक तरफ गिरकर सो जाते हैं. ऐसे में औरत के अरमान दबे के दबे रह जाते हैं. धीरे-धीरे वह इसकी आदी होने लगती है और वहीं से मर्द और औरत के जिस्मानी रिश्तों में मिठास कम होता चला जाता है जो वक्त के साथ बिल्कुल ही खत्म हो जाता है.
मुझे राशि पर गर्व होता था कि वह खुले दिल से अपनी मन की इच्छाओं को पूरी करती है. अगर उसको मेरी गांड चाटने का दिल भी करता था तो मैं कभी पीछे नहीं हटता था. हालांकि कुछ लोगों को यह बेहूदा लगे मगर सबकी अपनी-अपनी पसंद होती है. अगर हम अपने सामने वाले की पसंद को पहचान जाते हैं तो उसको संतुष्ट करने में सफल हो पाते हैं. किंतु यदि अपने ही संतोष में संतुष्ट रहते हैं तो फिर सामने वाले की इच्छाओं के साथ यह बेईमानी हो जाती है. इसलिए राशि मेरे लंड को चूसते हुए मेरे जिस्म के हर उस हिस्से को चाटती और चूसती रहती थी जहां उसका दिल करता था.

मैं भी उसकी इन हरकतों को मजा लेता था. कई जगह पर तो गुदगुदी हो जाती है मगर एक फ्रेशनेस की फीलिंग भी आती है. राशि मेरे टट्टों को हाथ में लेकर सहला देती तो कभी मेरे चूतड़ों की दरार में अपनी उंगली फिरा देती थी. मेरी गांड के बालों को अपनी चूंटी से खींच देती तो मुझे हल्का सा मीठा दर्द हो जाता था.
वो बीच-बीच में मुझे घुमा कर कभी मेरे चूतड़ चाटती, कभी लंड चूसती और कभी टट्टे. राशि ये खेल कभी-कभी तो डेढ़ घंटे तक करती थी और आज तो वो पूरी उफान पर थी, इसलिए मैं भी उसके बाल पकड़ कर उसका सर हिला-हिला कर उसका साथ दे रहा था.

बहुत देर तक लंड चूसने के बाद उसने सोफे पर बैठ कर अपनी टाँगें फैलाईं और कहा- आजा मेरे लंड राजा, इस चूत को चाट-चाट कर मुलायम कर और फिर इसमें जलती आग को बुझा दे!
मैंने भी राशि के चूत के दाने को चूसना शुरू किया और उसकी सिसकारियों से पूरा कमरा गूँज उठा. आज राशि जल्द ही झड़ गयी और फिर मेरे लंड को पकड़ कर बोली- अब बस कर, मैं आग से तपी जा रही हूँ, अब चाटने से काम नहीं चलेगा, अपना मोटा-काला लंड इस चूत में घुसा दे.
इतना बोलकर उसने लंड को थोड़ा-सा चूस कर गीला किया और खुद कुतिया बन कर अपनी गांड और चूत मेरे लंड के सामने रख दी.

मैंने पूरे जोर से अपना लंड उसकी तपती चूत में घुसाया और दे घपाघप, दे घपाघप चोदने लगा! फच-फच … फच-फच … की आवाजों से और राशि की सिसकारियों से पूरा कमरा गूँज रहा था. पता नहीं कितनी देर राशि गांड हिला-हिला कर मज़े लेती रही और मैं उसको चोदता रहा, पर जब हम दोनों झड़े तब हम दोनों पसीने से तर-ब-तर थे और राशि की आँखों में मदहोशी थी. उसके चेहरे के भाव देखकर मुझे खुशी हो रही थी.

वह ऐसे लग रही थी जैसे अभी पैग लगाकर आई हो. होश में थी मगर फिर भी बेहोशी की हालत में रहकर चुदाई के बाद के अहसास का मजा ले रही थी.
लम्बी चुदाई के बाद मेरे अंदर का जोश भी ठंडा पड़ गया था. जिस तरह दूध में उफान आकर वह पतीले से बाहर आ जाता है वैसे ही वीर्य निकलने के बाद धीरे-धीरे शरीर की ऊर्जा कम होने लगती है.

मैं भी थक गया था इसलिए हम दोनों नंगे ही सो गए!

रात के करीब दो बजे नींद खुली तो राशि मुझ से चिपक कर सो रही थी, उसके मस्त गोरे चूचे और गोल-गोल गांड को देख कर लंड फिर खड़ा हो गया.
मैंने धीरे से उसकी गांड को अपनी हथेलियों में लेकर हाथों में भरने की कोशिश की और धीरे से उसके नर्म चूतड़ों को दबाने लगा. बहुत गुदाज गांड है मेरी राशि की. मैं उसकी गांड को अपने हाथों में लेकर उसका मजा ले रहा था. काफी देर तक उसकी गांड को दबाने के बाद मैंने उसकी गांड की दरार को अपने दोनों हाथों अलग करके देखा तो उसकी गांड का छेद सिकुड़ा हुआ था. धीरे उसकी गांड के छेद पर उंगलियाँ फिराईं और हल्के से उसकी गांड के छेद की गोलाई के आस-पास हल्के से मसाज दी. नींद में भी उसकी गांड जवाब दे रही थी और मेरी उंगलियों की मसाज से अपना सिकुड़ा हुआ मुंह फैला देती थी.

राशि की कमर पर चुम्बन किया और फिर उसकी गर्दन पर अपने होंठों को रख कर उसके बालों की खुशबू लेते हुए उसकी गांड के छेद पर लंड लगाकर उसको पीछे से बांहों में भर लिया. मेरा लंड तो कह रहा था कि घुसा दे अंदर मगर राशि अभी नींद में थी. अगर इस वक्त मैं लंड घुसाता तो उसकी नींद भंग हो जाती. मैंने हल्के से अपने लंड को उसकी गांड की दरार पर ऊपर नीचे फिराना शुरू किया. अब मेरे अंदर की गर्मी बढ़ने लगी थी.
मैंने बिना कुछ सोचे उसकी चूचियां दबाना शुरू किया और उसके होंठों को चूमना शुरू किया! नींद खुलते ही राशि मुझ पर चढ़ कर बैठ गयी और अपने बालों को समेटकर, चूत मेरे मुंह पर लगा कर खुद लंड चूसने लगी 69 पोजीशन बना कर. यहाँ मैं उसकी चूत को चाट रहा था और वहां राशि लंड को भूखी कुतिया की तरह चूस रही थी.

जल्दी ही राशि ने पानी छोड़ दिया और फिर उसने लंड अपनी चूत में घुसा कर उस पर कूदने लगी, उसकी उछलती चूचियों और सिसकारी मारती आँखों को देख-देख कर लंड में और उत्तेजना आ रही थी और राशि मेरे तीन बार झड़ने तक खुद को चुदवाती रही और फिर हम दोबारा वहीं नंगे सो गए.
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सुबह करीब आठ बजे नींद खुली तो देखा कि राशि और मैं सांपों की तरह एक दूसरे में समाये हुए फर्श पर सो रहे हैं और बाहर सूरज सिर पर चढ़ आया था. राशि को थोड़ा साइड करके मैं नंगा ही उठा और लंड की तरफ देखा. रात की चुदाई के बाद लंड में हल्की सी सूजन थी और बाकी दिनों की अपेक्षा थोड़ा मोटा भी लग रहा था.

मैंने बिना आवाज किए बाथरूम का दरवाजा खोला और लंड को हाथ में लेकर दोनों आंखें बंद करके पेशाब करने का मजा लेने लगा. मन कर रहा था कि काश राशि मेरे घुटनों के पास बैठकर अभी मेरे लंड को अपने गर्म मुंह में ले ले और मैं उसके मुंह में ही मूत लूं. मगर इस वक्त वह गहरी नींद में थी. मैंने पेशाब करने के बाद मुंह धोया और नंगा ही किचन में चला गया.

मैंने रसोई में कॉफ़ी बनायी. कॉफी लेकर बाहर आने ही वाला था कि राशि भी किचन में आ गई और उसने पीछे से मेरी पीठ पर अपने नर्म होंठों का चुम्बन देते हुए मुझे बांहों में भर लिया. मैं उसकी तरफ घूम गया तो उसने प्यार से मेरे दोनों निप्पल्स पर किस किया और कहा- जानेमन, कॉफी की क्या ज़रुरत थी, अपना लंड मुंह में डाल देते … मैं खुद ही उठ जाती!
मैंने उसके चूचों के निप्पलों को अपने अंगूठे और उंगली से पकड़ कर भींच दिया और उसके होंठों पर एक लम्बा सा, गहरा सा चुम्बन दे दिया. कॉफी लेकर हम दोनों फिर से बेडरूम की तरफ चले गए.
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Heart Heart चाहत चुदवाने की Heart Heart


Heart Heart






























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मेरी शादी 25 वर्ष की उम्र में एक सीधे-सादे व्यक्ति के साथ हुई।

मैं शुरू से ही पुरुषों से ज्यादा मेल-मिलाप नहीं रखती थी, क्योंकि मैं जानती थी कि मौका मिलते ही ये चुदाई करने से बाज नहीं आने वाले हैं। इनकी नजर हमेशा औरत के चूत और चूचियों पर ही रहती है।

शादी से पहले मैं ये सब नहीं करना चाहती थी, लेकिन शादी के बाद स्थिति ऐसी बदल जाएगी, ये मैंने पहले कभी नहीं सोचा था।

सुहागरात के दिन मेरे पति ने मुझसे सिर्फ थोड़ी सी बात की, लेकिन कोई भी शारीरिक स्पर्श या सम्भोग आदि कुछ नहीं किया।

अगले दो दिन भी कुछ नहीं।
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ऐसी स्थिति में मेरी चिंता बढ़नी स्वाभाविक थी।

शादी से पहले तो कुछ भी नहीं किया, अपनी चूत को बचा के रखा, लेकिन अब! क्या अब भी ऐसे ही जिंदगी चलती रही?

तो इतनी सुन्दर काया और तनी हुई चूचियों, उभरे हुए नितम्ब तथा मस्तानी चूत जिसकी अभी तक सील भी नहीं टूटी थी, का क्या अर्थ रह जायेगा?

यह सोच कर मैं बहुत परेशान रह रही थी।

मेरी परेशानी को देख कर मेरी भाभी ने मुझसे जब इसके बारे में पूछा तो मैंने सब कुछ खुलकर बता दिया।

इसके समाधान में उन्होंने मुझे समझाया- तुम स्वयं ही इसकी कोशिश करो, हो सकता है कि शर्मीले स्वभाव के वजह से वो ऐसे नहीं करना चाहते हों।

अगली रात मैंने ऐसा ही किया और अर्धनग्न अवस्था में उनके पास गई ताकि मुझे देख कर उनको जोश जगे तथा सम्भोग आदि की स्थिति बने, वरना बिना चुदाई के ही जीवन न गुजारना पड़े।

मेरे पति ने मेरी तनी हुई चूचियों एवं सेक्सी अंदाज को देखकर बस थोड़ी ही प्रतिक्रिया दी।

मैं समझ गई कि अब सारी स्थिति मुझे ही संभालनी पड़ेगी।

यह सोचकर मैंने लाइट बुझाकर उनके पास लेट गई और उनके कच्छे को ऊपर से ही सहलाने लगी जिससे मुझे उनके लिंग के उभार का पता चला।

काफी देर बाद मैंने कच्छे के अन्दर हिम्मत कर के अपना हाथ डाला तो पाया कि उनका लिंग पतला तथा औसत लम्बाई का था।

काफी मशक्कत के बाद उनका लिंग खड़ा हुआ जिससे मेरी उम्मीदें बढ़ चलीं कि मेरी चुदाई का रास्ता अब साफ़ हो चला था। इसके बाद मैंने उन्हें उत्तेजित किया जिससे उन्होंने मेरी चूचियों को सहलाना और मसलना शुरू किया।

यह मेरा पहला अनुभव था जोकि मुझे मदहोश किये जा रहा था। अब उन्होंने मेरी चूत की तरफ अपना हाथ फेरना चालू किया जिससे मेरी चूत धीरे-धीरे गीली होने लगी।

अब मैं समझ गई कि अब मेरी चुदाई में ज्यादा देर नहीं है। मैंने भी उनका साथ देना चालू रखा।

कच्छे को सरका कर उन्होंने मेरी चूत पर अपने लण्ड को रख कर धक्का मारा, जिससे वो थोड़ा अंदर की ओर सरकने लगे।

मुझे थोड़ी सी पीड़ा होने लगी लेकिन मैं भविष्य का रास्ता साफ़ करना चाहती थी, सो मैंने इसकी परवाह न करते हुए उनका मनोबल ऊँचा रखा।

मैंने भी अपनी तरफ से भी नितम्ब उठा कर पूरा लेने किए लिए धक्का लगाना शुरू किया, जिससे लण्ड अंदर की ओर चीरता हुआ मेरी चूत में समा गया।

इसके साथ ही खून भी निकालने लगा, जो मेरी सील टूटने का संकेत था।

उस औसत दर्जे के लण्ड से भी मेरी सील टूट गई थी।

करीब 10 मिनट में ही धक्कम पेल के बाद मेरे पति का वीर्य छूट गया और वो लण्ड बाहर निकाल कर सो गए।

मैं अभी ठीक से चुद भी नहीं पाई थी। आगे भी कुछ इसी तरह से चलता रहा।

मैंने अपने इस दर्द को फिर से भाभी को बताया जिसे उन्होंने समझते हुए सब्र से काम लेने की बात कही, लेकिन अधूरी चुदाई का दर्द मुझे परेशान कर रहा था।

एक दिन मैं भाभी के कमरे में गई, उस समय वहाँ और कोई नहीं था। वहाँ पर एक बेहद अश्लील किताब पड़ी हुई थी जिसमें चुदाई के बहुत से चित्र थे, चूत, लण्ड, चूचियों के चित्र दिखाई दे रहे थे। यह देख कर मेरे अन्दर आग सी लगने लगी, मैं यह भी भूल गई कि यहाँ पर कोई आ सकता है।

मैंने एक-एक पन्ना पलट कर काफी बारीकी से सारे चित्रों को देखा। मेरा हाथ अपने आप ही मेरी चूत पर चला गया और मैं उसे सहलाने लगी जैसे कि चुदाई की तैयारी चल रही हो।

तभी मेरी भाभी आई और मुझे रंगे हाथों पकड़ लिया।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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मेरी सारी बातें जानने के वजह से उन्होंने मुझे ज्यादा कुछ नहीं कहा, बस इतना बताया कि तुम्हारे जेठ इस तरह की किताबें पढ़ते हैं और हर रात तुम्हारी भाभी को अलग-अलग आसनों से चोदते हैं।

यह सब सुनकर मेरी चूत गीली होने लगी। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।

मैं अपने रूम में चली आई और सोचने लगी कि कितनी धन्य होंगी वो औरतें जिन्हें बढ़िया से चोदने वाले पति मिले होंगे।

कुछ दिनों के बाद मेरे यहाँ दो लोग किराये पर रहने के लिए आए जो कि स्टूडेंट थे।

एक का नाम यश और दूसरे का राज। दोनों ही शरीर से स्वस्थ और मांसल थे।

दोनों ही स्वभाव से अच्छे थे। धीर-धीरे हमसे मेल-जोल बढ़ने लगी तथा हम लोग खुल कर बातें करने लगे।

मेरे अन्दर की आग शांत होने का नाम ही नहीं ले रही थी।

मेरी नजरें बातें करते हुए अक्सर उनके लण्ड को ऊपर से ही पढ़ने की कोशिशें करने लगतीं।

मेरा बातों-बातों में अक्सर मुस्कुराना, मेरी पहाड़ की तरह उठी हुई चूचियों और पीछे की तरफ उठे हुए नितम्ब की तरफ धीरे-धीरे उनका भी ध्यान होने लगा तथा मेरी ओर उनकी रूचि बढ़ने लगी।

एक दिन जब मैं किसी काम से उनके रूम में गई तो देखा कि जय सिर्फ कच्छे में ही सोया था और बीच वाले कटे हुए जगह से उसका मोटा और लम्बा लण्ड बाहर की तरफ निकला हुआ था और वो नींद में था।

मैं शरमाकर जल्दी ही बाहर चली आई, लेकिन उसका लम्बा और मोटा लण्ड मुझे भूल नहीं रहा था। मैं सोचने लगी, काश मेरे पति के पास भी ऐसा ही होता तो मेरी जवानी कितनी तृप्त होती।

अब जब भी वो मिलता मैं उसे चाह भरी नज़रों से देखने लगी, वह भी मेरी नज़रों को पहचान गया था।

एक दिन जब घर में कोई नहीं था और लाइट चली गई। वो कुछ माँगने के बहाने मेरे रूम में आया। मैं उस समय सिर्फ साये और ब्रा में थी।

उसने मुझे देखा तो उसका लण्ड खड़ा हो गया, फिर भी उसने बाहर जाने की कोशिश कि तो मैंने सही समय समझकर उसे टोका, “यहाँ आओ अपना काम तो बताओ।”

यह कहकर जैसे ही मैं उसकी और बढ़ी उसकी नजरें मेरी बड़ी-बड़ी चूचियों पर जाकर टिक गईं।

मैं उसके पैंट के अन्दर से उफान मार रहे लण्ड की तरफ देखने लगी।

हम दोनों एक दूसरे में खोने लगे।

शादी न होने के वजह से उसकी भूख भी साफ़ दिखाई दे रही थी।

उसने मेरी चूचियों को पीछे से आकर पकड़ लिया।

मैंने भी छुड़ाने की कोई कोशिश नहीं कि उसका लिंग अभी भी मुझे याद था, इसलिए चूत के घायल होने की चिंता भी थी।

लेकिन चुदाई की इच्छा सब पर भारी पड़ रही थी। एक हाथ उसका मेरी चूचियों पर तथा एक मेरी चूत की तरफ था।

मैंने भी साहस कर के उसका तम्बू की तरह उभरा लिंग पकड़ किया।

अब सब कुछ साफ़ था, वह भी अब समझ चुका था कि अब मेरी तरफ से कोई बाधा नहीं

है।

मेरी चूत गीली होने लगी।

उसने मेरा साया ऊपर की तरफ उठा दिया जिससे मेरी चूत जो कि काले झांटों से ढकी हुई थी, उसके सामने आ गई।

अब उसने आव देखा न ताव, झट से मुझे अपनी और खींचते हुए अपने पैंट के ऊपर ही मुझे बैठा लिया।

उसका उभरा हुआ लण्ड मुझे नीचे से स्पष्ट अनुभव हो रहा था।

मैंने भी यह सोच लिया था कि आज सारी शर्म छोड़ कर जम कर चुदूँगी, मैंने उससे कहा- मेरी चूत तो तुमने देख ली, अब अपना तो दिखाओ।

यह सुनकर उसने अपनी पैंट का जिप खोलकर अपना मूसल जैसा लण्ड बाहर निकाला, जो कि मेरी चूत को फाड़ने के लिए एकदम उतावला था।

उसने मुझे एक मंजे हुए आदमी की तरह से घोड़ी बनाया और पीछे से मेरी चूत को सहलाते हुए अपना लिंग लाकर उस पर टिका दिया।

मेरी चूत पहले से ही गीली होने के वजह से उसके सामने तैयार थी, उसको अपने अन्दर लेने के लिए।

जब उसने सटाकर जोरदार धक्का लगाया तो मेरी तो 'आह' निकल गई।

मैंने उससे कहा- धीरे से डालो न ! यह तुम्हारे लण्ड को झेलने में अभी नाकाबिल है, धीरे-धीरे ही करना, कोई जल्दी नहीं है। जब तक मेरे यहाँ हो, मेरी चूत हमेशा तुमसे चुदाने के लिए तैयार मिलेगी।

उसने मेरी चूत में धीरे-धीरे अपना पूरा लण्ड सरका दिया।

पहले से चुदने के लिए मानसिक रूप से इसके लिए पूरी तरह से तैयार थी। अब अंदर-बाहर कर के उसने मुझे चोदना शुरू कर दिया।

मैं भी उसका साथ देने लगी।

आज मुझे असली लण्ड की मार का पता चला।

मेरी चूचियाँ भी उससे हो रही चुदाई को उछल-उछल कर सलाम कर रही थीं।

लगभग 20 मिनट तक उसने मुझे कुतिया बना कर हचक कर चोदा। मेरी चूचियों को वो अपने हाथों से ऐसे मसल रहा था जैसे वे रसीले आम हों।

उससे चुद कर मुझे वास्तव में चुदाई के आनन्द का अनुभव हुआ। मैं उससे चुदते समय एक बार झड़ चुकी थी पर उस के लंड को तो मानो कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा था।

अचानक उसने मुझसे चिपकते हुए जोर-जोर से धक्के मारने शुरू कर दिए।

उसके मुँह से बड़बड़ाने की आवाजें निकलने लगीं, “हा हा आई मैं जा जा रहा हूँ भाभी ई ई ले मेरा पूरा माल पी ले।”

और वो झड़ गया। मेरी पीठ से चिपक कर उसने अपने वीर्य की आखिरी बूँद तक मेरी चूत में छोड़ दी।

फिर हम दोनों अलग हुए।

सच में बहुत मज़ा आया उस दिन ...
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ght हवसनामा: सुलगती चूत-




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भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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पारूल नाम की एक चौबीस वर्षीय महिला की, जिसके जीवन में सेक्स की कितनी अहमियत थी, यह उससे बेहतर कोई नहीं समझ सकता था और सालों साल इसके लिये तड़पने के बाद आखिर एक दिन उसने इसे हासिल भी किया तो बस एक मौके के तौर पर … आगे की कहानी खुद पारुल के अपने शब्दों में।

दोस्तो, मैं एक शादीशुदा चौबीस वर्षीय युवती हूँ और मुंबई के एक उपनगर में रहती हूँ। अपनी पहचान नहीं जाहिर करना चाहती इसलिये नाम भी सही नहीं बताऊंगी और स्थानीयता भी। बाकी पाठकों को इससे कुछ लेना देना भी नहीं होना चाहिये। जो है वह मेरी कहानी में है और वही महत्वपूर्ण है।

सेक्स … आदिमयुग से लेकर आज तक, कितनी सामान्य सी चीज रही है जनसाधारण के लिये। लगभग सबको सहज सुलभ … हम जैसे कुछ अभागों वंचितों को छोड़ कर। यह शब्द, यह सुख, यह जज्बात मेरे लिये क्या मायने रखते हैं मैं ही जानती हूँ। राह चलते फिकरों में, गालियों में इससे जुड़े लंड, बुर, लौड़ा, चूत, चुदाई जैसे शब्द कानों में जब तब पड़ते रहे हैं और जब भी पड़ते हैं, मन हमेशा भटका है। हमेशा उलझा है अहसास की कंटीली झाड़ियों में।

एक मृगतृष्णा सी तड़पा कर रह गयी है। न चाहते हुए भी एक अदद लिंग को तरसती अपनी योनि की तरफ ध्यान बरबस ही चला जाता है जो क्षण भर के संसर्ग की कल्पना भर में गीली होकर रह जाती है और फिर शायद अपने नसीब पर सब्र कर लेती है। कितने किस्मत वाले हैं वह लोग जिन्हें यह विपरीतलिंगी संसर्ग हासिल है. हमेशा एक चाह भरी खामोश ‘आह’ होंठों तक आ कर दम तोड़ गयी है।

जब अपने घर में थी तब कोई तड़प न थी, कोई भूख न थी, कोई तृष्णा न थी. बस संघर्ष था जीवन को संवारने का, इच्छा थी कुछ उन लक्ष्यों को हासिल करने की जो निर्धारित कर रखे थे अपने घर के हालात को देखते हुए।

मैं एक टिपिकल महाराष्ट्रियन परिवार से ताल्लुक रखती हूँ। दिखने में भले बहुत आकर्षक न होऊं लेकिन ठीकठाक हूँ, रंगत गेंहुआ है और फिगर भी ठीक ठाक ही है. परिवार में पिता निगम में निचले स्तर का कर्मचारी था और एक नंबर का दारूबाज था और मां इधर उधर कुछ न कुछ काम करती थी। म्हाडा के एक सड़ल्ले से फ्लैट में हम छः जन का परिवार रहता था। एक आवारा भाई सहित हम तीन बहनें. एक निम्नतर स्तर के जीवन को जीते हुए इसके सिवा हमारे क्या लक्ष्य हो सकते थे कि हम पढ़ लिख कर किसी लायक हो जाये और इसके लिये कम संघर्ष नहीं था।

हमें खुद ट्यूशन पढ़ाना पढ़ता था कि कुछ अतिरिक्त आय हो सके क्योंकि पढ़ाई के लिये भी पैसा चाहिये था। बहरहाल ग्रेजुएशन तक की पढ़ाई जैसे तैसे हो पाई कि बड़ी होने के नाते बाईस साल की उम्र में हमें एक खूंटे से बांध दिया गया। वह तो हमें बाद में समझ आया कि बिना दान दहेज इतनी आसानी से हमारी शादी हो कैसे गयी।

पति एक नंबर का आवारा, कामचोर और शराबी था. भले अपने घर का अकेला था लेकिन जब किसी लायक ही नहीं था तो लड़की देता कौन? हम तो बोझ थे तो एक जगह से उतार कर दूसरी जगह फेंक दिये गये। ससुर रिटायर्ड कर्मचारी थे और अब पार्ट टाईम कहीं मुनीमी करते थे तो घर की गुजर हो रही थी। लड़का इधर उधर नौकरी पे लगता लेकिन चार दिन में या खुद छोड़ देता या आदतों की वजह से भगा दिया जाता। घरवालों ने सोचा था कि शादी हो जायेगी तो सुधर जायेगा लेकिन ऐसा कुछ होता हमें तो दिखा नहीं।

फिर भी अपना नसीब मान के हम स्वीकार कर लिये और तब असली समस्या आई। पत्नी का मतलब चौका बर्तन साफ सफाई और साज श्रृंगार ही तो नहीं होता। रात में पति का प्यार भी चाहिये होता है, मर्दाना संसर्ग भी चाहिये होता है और वह तो इस मरहले पर एकदम नकारा साबित हुआ। बाजारू औरतों और नशेबाजी के चक्कर में वह बेकार हो चुका था, उसका ठीक से ‘खड़ा’ भी नहीं होता था और जो थोड़ा बहुत होता भी था तो दो चार धक्कों में ही झड़ जाता था।

शादी के बाद पहली बार जिस्म की भूख समझ में आई. मैंने उसे प्यार से संभालने और कराने की कोशिश की लेकिन बिना नशे के भी वह नकारा साबित हुआ। उस पर तो वियाग्रा टाईप कोई दवा भी कारगर साबित नहीं होती थी और मैं इसका इलाज करने को बोलती तो मुझे मारने दौड़ता कि किसी को पता चल गया तो उसकी क्या इज्जत रह जायेगी।

जैसे तैसे तो वह मेरी योनि की झिल्ली तक पहुंच पाया था लेकिन कभी चरम सुख न दे पाया। उसके आसपास भी न पहुंचा पाया और मेरी तड़प और कुंठा अक्सर झगड़े का रूप ले लेती थी जिससे उसकी सेक्स में अयोग्यता का पता बाहर किसी को चलता न चलता पर घर में सास ससुर को तो चल ही गया था। वह बेचारे भी क्या कर सकते थे।

अपनी नाकामी से मुंह छुपाने के लिये वह रात को नशे में ही लौटता कि बिस्तर में गिरते ही टुन्न हो जाये और मैं सहवास के लिये उसका गला न पकड़ सकूँ। लेकिन यह तो वह आग है जो जितना दबाने की कोशिश की जाये, उतना ही भड़कती है। गीली लकड़ी की तरह सुलगते चले जाना कहीं न कहीं आपको बगावत पर उतारू कर ही देता है। मैंने एक कोशिश घर से बाहर की जो परवान तो न चढ़ी लेकिन उसे पता चल गया और उसने अपने लफंगे दोस्तों के साथ उस युवक को ऐसा पीटा कि उसने मुझसे खुद ही कन्नी काट ली।

उसके पीछे मुझे भी धमकाया लेकिन मुझ पर खैर क्या फर्क पड़ना था. मैंने तो दिन दहाड़े ही दरवाजा बंद किया और कपड़े उतार के नंगी लेट गयी उसे चैलेंज करती कि तो आओ और मेरी भूख शांत कर दो।
उसे पता था यह उसके बस का था नहीं … गालियां बकता बाहर निकल गया। बाहर सास सब सुन रही थीं लेकिन उनके बोलने के लिये कुछ था ही नहीं और उस दिन मैंने पूरी बेशर्मी से उन्हें सुनाते हुए उंगली से अपना योनिभेदन करते चर्मोत्कर्ष तक पहुंची कि वह मेरी हालत समझें तो सही।

इसके बाद कोई और विकल्प न देख मैंने सब्र ही कर लिया और अपने हाथ से ही अपनी चुल शांत कर लेती लेकिन मर्दाना संसर्ग तो अलग ही होता है, चाहे कैसा भी हो।

धीरे-धीरे फोन से दिल बहलाने लगी. मार्केट में जियो क्या आया, कम से कम एक विकल्प तो और खुल गया। न सिर्फ अंतर्वासना पे पोर्न साहित्य पढ़ती बल्कि देर रात तक पोर्न मूवीज देखती रहती। इच्छायें जितनी दबाई जायें, वे उतनी ही बलवती होती हैं और जब इंसान के तेवर बगावती हों तो इंसान अंतिम हद तक जाने की ख्वाहिश करने लगता है।

मुझे सच में तो कुछ भी नहीं हासिल था, कल्पनाओं में अति को छूने लगी। जो वर्जित हो, घृणित हो, अतिवाद हो, वह सब मुझमें आकर्षण पैदा करने लगा। मैंने शादी से पहले कभी कोई अश्लील बात शायद ही की हो लेकिन अब तो जी चाहता कि कोई मर्द मुझसे हर पल अश्लील से अश्लील बातें करें … मेरे साथ क्रूर व्यवहार करे … क्रूरतम संभोग करे … मुझे गालियां दे … गंदी-गंदी गालियां दे … मेरे होंठों को ऐसे चूसे कि खून निकाल दे।

मेरे कपड़े फाड़ कर मुझे नंगा कर दे … मेरे वक्षों को बेरहमी से मसले, मेरे चूचुकों को दांतों से काटे, मेरे नितंबों को तमांचे मार-मार के लाल कर दे. मैं उसके मुंह पर अपनी योनि रगड़ूं, वह जीभ से खुरच दे मेरे दाने को, खींच डाले मेरी कलिकाओं को और मैं उसके मुंह पर स्क्वर्ट करूँ.
वह सब पी जाये और फिर मेरे बाल पकड़ कर, मुझे गालियां देते, पूरी बेरहमी से अपना मूसल जैसा लिंग मेरी कसी हुई योनि में उतार कर फाड़ दे मेरी योनि को। मैं चीखती चिल्लाती रहूं और वह पूरी बेरहमी से धक्के लगाते मेरी योनि का कचूमर बना दे। एकदम सख्त क्रूर मर्द बन कर मुझे एक दो टके की रंडी बना के रख दे। धीरे-धीरे सुलगती आकांक्षायें यूं ही और आक्रामक होती गयीं।

सुलगना क्या होता है यह कोई मुझसे पूछे.
साल भर इसी तरह तड़पते सुलगते गुजर गया। बस फोन, पोर्न और अपनी उंगली का ही सहारा था। वह नामर्द तो कभी बहुत उकसाने पर चढ़ता भी था तो योनि गर्म भी नहीं हो पाती थी कि बह जाता था. फोरप्ले तो उसके बस का था ही नहीं और मैं तड़पती सुलगती और उसे गालियां देती रह जाती थीं।

साल भर बाद मैंने कोई भी नौकरी करने की ठानी. उसी नामर्द ने विरोध किया लेकिन सास ससुर चुपचाप मान गये। बेटे को लेकर जो उम्मीदें उन्होंने बांधी थीं, वह साल भर में खत्म हो चुकी थीं और अब मुझे रोकने का कोई मतलब नहीं था। या बेटा कमाये या बहू, और बेटा तो ढर्रे पे आता लगता नहीं था तो अंततः मुझे नौकरी की स्वीकृति मिल गयी।

ससुर जी की वजह से ही मुझे सीएसटी की तरफ एक नौकरी मिल गयी, जो थोड़ी टफ इसलिये थी कि सुबह सात बजे से शुरू होती थी और चार बजे वापसी होती थी लेकिन आने जाने के लोकल के पास सहित बारह हजार इतने कम भी नहीं थे तो शुरुआत यहीं से सही।

इसके लिये सुबह जल्दी उठना पड़ता था, नाश्ता बना के और अपने दोपहर के लिये कुछ खाने को बना कर सात बजे हार्बर लाईन की लोकल पकड़ कर निकल लेती थी। अब सुबह जो इस लाईन पे चलता है उसे लाईन के आसपास के नजारे तो पता ही होंगे. आखिर किसी अंग्रेज ने इसी आधार पर तो भारत को एक वृहद शौचालय की संज्ञा दी थी।

आपको दोनों तरफ जगह-जगह शौच करते लोग दिखते हैं और कमबख्त बेशर्म भी इतने होते हैं कि रुख ट्रेन की ओर ही किये रहते हैं। यह स्थिति भले दूसरी औरतों के लिये असुविधाजनक होती हो लेकिन मेरे जैसी तरसती औरत के लिये तो बेहद राहत भरी थी। सुबह सवेरे मुर्झाये, अर्ध उत्तेजित और उत्तेजित लिंगों के दर्शन हो जाते थे। छोटे, मध्यम आकार के और बड़े-बड़े भी।

मैं लेडीज डिब्बे में ही बैठती थी और बाकी भले नजरें चुराती हों लेकिन मैं बड़ी दिलचस्पी से उन शौच करते लोगों को देखती थी और उनके लिंग मेरे मन में एक गुदगुदी मचा देते थे। अक्सर मेरी योनि पनिया जाती थी और होंठ शुष्क हो जाते थे. तो बाद में योनि में रुई फंसा कर घर से निकलती थी जो अपने अड्डे पर पहुंचते ही जब निकालती थी तो भीगी हुई मिलती थी।

नौकरी स्वीकार करते वक्त मन में एक उम्मीद यह भी रहती थी कि शायद वहां कोई जुगाड़ बन जाये और मेरी तरसती सुलगती योनि को एक अदद कड़क लिंग मिल जाये लेकिन वहां मालिक उम्रदराज थे और ससुर के परिचित होने की वजह से मुझे घर की लड़की जैसे समझ के नजर भी रखते थे और काम में टच में आने वाले जो लोग थे, उनसे भी इसी वजह से ऐसी कंटीन्युटी बन पाने की उम्मीद बनती लगती नहीं थी।

ले दे के बस उन लिंगों के दर्शन का ही सहारा था जो सुबह सवेरे दिखते थे। रोज-रोज देखते कुछ चेहरे पहचान में आने लगे थे। अपना तो एक फिक्स टाईम था और शायद उन्हें भी नियत समय पर कहीं जाना होता हो। उनमें से कुछ के लिंग सामान्य थे लेकिन कुछ के हैवी जो मुंह में पानी भर देते थे और मन में एक अजब सी गुदगुदाहट भर देते थे। मैं जानबूझकर उनसे आंखें मिलाती थी कि वे मुझे पहचान लें. शायद किसी मोड़ पर मिल ही जायें तो कुछ कहने सुनने की जरूरत तो नहीं रहेगी।

चार महीने यूँ ही गुजर गये और उन नियमित लोगों से निगाहों का एक परिचय बन गया। जिनके लिंग हैवी थे, उनके लिंग की तारीफ भी आंखों ही आंखों में कर जाती थी कि वे समझ लें और चूँकि बेचारे चूँकि शौच कर रहे होते थे तो शर्मा कर रह जाते थे लेकिन देखने दिखाने की दिलचस्पी में निगाहें भी ट्रेन की दिशा में गड़ाये रहते थे।

रात को उन्हीं को याद करके कल्पना करती थी बेहद आक्रामक संभोग की और जब तक स्खलित न हो जाती थी, नींद ही नहीं आती थी और रोज भगवान से प्रार्थना करती थी कि उनमें से कोई तो कहीं टकरा जाये।

इसी तड़पन के साथ दो महीने और गुजर गये, निगाहों का परिचय और गहरा हो गया लेकिन संपर्क का कोई माध्यम मेरी समझ में न आ पाया। कभी-कभी दिल करता कि पास के स्टेशन पर उतर जाऊँ और वापस चली आऊं जहां पसंदीदा मर्दों में से कोई बैठा हग रहा होता था, लेकिन स्त्री तो स्त्री … बगावत अपनी जगह लेकिन ऐसे कदम उठाने के लिये जो साहस चाहिये वह मुझमें नहीं था।

फिर एक आइडिया सूझा … ड्राईक्लीनर्स वगैरह के यहां जो कपड़ों की पहचान के लिये कागज के टैग लगाते हैं। वे थोड़े खरीद लिये और उन पर अपना नंबर लिख के रख लिया।

अपने स्टेशन से सीएसटी तक करीब आठ ऐसे मर्द थे जिनसे निगाहों का परिचय बन चुका था। वे देख के ही उत्तर भारतीय लगते थे. उनके लिंग बड़े थे और आकर्षक थे और यही हमारे परिचय का आधार थे। शुरु में तो यह होता था कि वे रोज नहीं दिखते थे, बल्कि कभी कोई दिखता तो कभी कोई. लेकिन फिर शायद उन्होंने मेरी निगाहों की भूख समझ ली तो वे भी ट्रेन की टाईमिंग के हिसाब से ही शौच के लिये आने लगे। ट्रेन आगे पीछे हो जाती थी लेकिन उन्हें कौन सा कहीं ऑफिस जाना था तो बैठे रहते।

मैं खास उन लोगों के लिये अपने हाथ में आठ ऐसे टैग दबाये खिड़की के पास बैठी रहती और जब सामना होता तो चुपके से एक टैग गिरा देती।

यहां यह बता दूँ कि इस सिलसिले की शुरुआत भले लेडीज कोच से हुई हो लेकिन हमेशा विंडो सीट मिलनी पॉसिबल नहीं होती थी तो विंडो सीट के चक्कर में मैं बाद में जनरल डिब्बे में भी बैठ जाती थी और चूँकि जहां से मुझे चलना होता था, वहीं से ट्रेन भी चलती थी तो ऐसा शायद ही कभी हुआ हो कि मुझे उस खास साईड में विंडो सीट न मिली हो।

बहरहाल, अंततः कई दिन के बाद मेरा यह प्रयास रंग लाया. हालाँकि बीच में कुछ और फालतू फोन भी आये जिन्होंने मेरा नंबर उसी टैग से लिया था लेकिन वे मेरे परिचय वाले न साबित हुए तो मैंने बात बढ़ानी ठीक न समझी। क्या पता कौन हो कैसा हो.

लेकिन फिर एक फोन वह भी आया जिसके लिये मैंने टैग गिराया था। थोड़ी सी पहचान बताने पर मैंने उसे पहचान लिया और चार बजे सीएसटी स्टेशन पर मिलने को कहा।

जरूर काम धंधे वाला बंदा रहा होगा लेकिन औरत का चक्कर जो न कराये। बेचारा अपने हिसाब से तैयार होकर चार बजे सीएसटी पहुंच गया जहां मैंने बताया था। पहचानने में कोई दिक्कत न हुई

उसने अपना नाम रघुबीर बताया, पूर्वी उत्तरप्रदेश का रहने वाला था और यहां दादर में रेहड़ी लगाता था। था तो शादीशुदा मगर बीवी बच्चे गांव में थे और किसी भी औरत के लिये अवलेबल था। मुझे कौन सी उससे यारी करनी थी। हालाँकि मैंने क्लियर कर दिया कि उसकी सेवा के बदले मैं कुछ पे कर पाने की स्थिति में नहीं हूँ और जगह का इंतजाम भी उसे ही करना होगा। मैं बस आ सकती हूँ और दूसरे कि वह दिन के सिवा कभी फोन नहीं करेगा।

वह दो दिन का वक्त ले कर चला गया।

इस बीच और भी कुछ फोन आये जो काम के न साबित हुए लेकिन दो दिन बाद रघु का फोन आया कि जगह का इंतजाम हो गया है. इतना सुन कर ही मेरी योनि ने एकदम से पानी छोड़ दिया।

उसने मुझे बांद्रा स्टेशन पर दो बजे मिलने को कहा और मेरे लिये यह कोई मुश्किल नहीं था क्योंकि मैं अमूमन छुट्टी नहीं लेती थी तो आज मुझे मना करने का सवाल ही नहीं था। मैं सवा बजे रवाना हुई और दो बजे बांद्रा स्टेशन पे पहुंच गयी, जहां वह मुझे इंतजार करता मिला।

वहां से वह मुझे ऑटो से रेलवे कालोनी ले आया, जहां एक बिल्डिंग के वन बेडरूम वाले फ्लैट तक ले कर इस अंदाज में पहुंचा जैसे हम पति पत्नी हों और किसी रिलेटिव के यहां मिलने आये हों। इस बीच स्टोल से चेहरा मैंने कवर ही कर रखा था कि कोई कहीं पहचान वाला मिल भी जाये तो पहचान न सके।

उस फ्लैट में एक युवक और मौजूद था. रघु ने बताया कि वह उसका गांव वाला था और यहां दो पार्टनर्स के साथ रहता था, लेकिन फिलहाल वे दोनों मुलुक गये हुए थे तो वह अकेला ही था और अपनी जगह हमें देने को तैयार था लेकिन उसकी बस अकेली यही शर्त थी कि वह भी हिस्सेदारी निभायेगा।

आम हालात में यह शर्त भले जलील करने वाली लगती लेकिन फिलहाल तो मैं इतना तड़पी तरसी और भूखी थी कि उसके दोनों पार्टनर्स और भी होते और वे भी हिस्सेदारी मांगते तो भी मैं इन्कार न करती, उल्टे यही कहती कि सब मिल कर मुझ पर टूट पड़ो और मेरी इज्जत की बखिया उधेड़ कर रख दो।
चूत की भूख क्या होती है, यह मुझसे बेहतर कौन समझ सकता था।

प्रत्यक्षतः मैंने थोड़े सोच विचार के बाद हामी भर दी।

दोपहर का टाईम था, आसपास भी सन्नाटा ही था। उसके दोस्त जिसका नाम राजू था, ने बताया कि आसपास भी सब काम वाले लोग ही रहते थे उस फ्लोर पे और इस वक्त कोई नहीं था।

बेडरूम में पहुंचते ही मैंने न सिर्फ स्टोल उतार फेंका बल्कि अपने ऊपरी कपड़े भी साथ ही उतार दिये। यहां योनि में आग लगी हुई थी, इतनी देर में ही सोच-सोच के बह चली थी कि आज उसे खुराक मिलेगी। कब से अपनी उत्तेजना को मैं दबाये थी।

भाड़ में गयी स्त्रीसुलभ लज्जा, भाड़ में गयी मर्यादायें … सहवास के नाजुक पलों में सिकुड़ना, सिमटना, स्वंय पहल न करना, यह सारे तय नियम अब मेरे लिये कोई मायने नहीं रखते थे। एक जवान जनाना बदन के अंदर कैद औरत जो जाने कब से पुरुष संसर्ग के लिये तड़प रही थी, सुलग रही थी… उसने जैसे खुद को एकदम आजाद कर दिया था। हर बंधन से मुक्त कर लिया था।

बस मैं उस क्षण खुद को औरत महसूस करना चाहती थी… सिर्फ औरत, जिसके सामने दो मर्द मौजूद थे जिनके गर्म कड़े कठोर उत्तेजित लिंग मेरी उस तृष्णा को मिटा सकते थे जो अब नाकाबिले बर्दाश्त हो चली थी।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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