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Adultery JISM by Riya jaan
#61
जाकिर- अपनी उत्तेजना पर थोडा काबू करते हुए "ओफ्फो और कितना शरमाएगी। दिखा भी दे क्यों तरसती है।"
रेखा-झेंपते हुए"दिखाने के पहले आपको वादा करना होगा की ये बाते हम दोनों के बीच ही रहेंगी और आप मेरी हर बात मानोगे।"
अपनी ओर रेखा को देखता पाकर जाकिर ने झट से हाँ में सर हिलाकर स्वीकृति प्रदान की। और इस गाँव का सबसे हसीं नजारा उस भद्दे इन्सान के आगे आ गया। रेखा ने अपने हाथो को स्तनों से हटाकर अपना चेहरा छुपा लिया। जाकिर की नजरे तो मानो उसके स्तनों का दूर से ही मर्दन करने लगीं और उसका लिंग तो अब काबू के बहार ही हो चला था। पूरी गोलाइयाँ लिए उसके स्तन किसी लैंप की तरह उस अँधेरे में भी चमक रहे थे और उसकी गोलाइयो के सबसे उभरे हुए हिस्से के ठीक ऊपर अंगूरों के साइज़ के निप्पल इठला इठला कर अकड़े जा रहे थे। गहरी गहरी सांसे लेती रेखा के स्तन जब जोर जोर से उपर निचे होते तो किसी कमजोर दिल वाले का तो देखकर ही हार्ट फेल हो जाता ख़ुशी और उत्तेजना से।
जाकिर-अपने होठो पर जीभ फेरता हुआ कंपती आवाज में"व व व वाह वाह। जो भी हो तुम खुदा की कसम लाजवाब हो। इन बोबों को देखने पूरा गाँव मरता है आज मेरी खुशकिस्मती है की मेरे नसीब में इन्हें देखना है। अब आगे देखते है कि और क्या क्या मिलता है। जी करता है कि इन्हें इतना दबाऊँ इस कदर चूसूं कि तुझे मेरे सिवा कोई और दिखे ही ना। साला दीनदयाल बड़ी किस्मत वाला है रोज इन फुटबालो से रात भर खेलता होगा। साले से बड़ी जलन हो रही है।"

रेखा-इन बातो को सुनकर आंख खोलकर मुह बिचकाते हुए "हुँह.... उन्हें तो इनकी कदर ही नहीं। इनकी तरफ देखते तक नहीं। बस जब मन हुआ तो महीने में एक या दो बार साड़ी उठाकर अपना काम किया और मुह घुमाकर सो गए।"(इतना कहकर झेंप जाती है कि वो बातो बातो में ये क्या कह गयी।)
जाकिर-आँखों में चमक आने पर आंख मारते हुए "अरे रे रे.... वो पागल क्या जाने कि फुलझड़ी को जलाया कैसे जाता है और सम्हाला कैसे जाता है मेरी फुलझड़ी। मेरा बस चले तो पुरे समय मेरा लंड तेरी चूत में रहे और तेरा बोबा मेरे मुह में। इतना चुसुं इनको कि जितना तूने आमो को भी नहीं चूसा होगा।"
ऐसी बाते सुनकर रेखा का रोम रोम खड़ा हो जाता है और पुरे बदन में एक सिहरन सी दौड़ जाती है। जिसकी थिरकन जाकिर को भी दिखती है।
रेखा-संभलते हुए कंपती आवाज में "छि कैसे बोलते हो आप। जरा भी लिहाज नहीं। ना मुझे कुछ डलवाना है और ना डालना है और वैसे भी इन्हें चूसकर आपको क्या मिलेगा भला।"

जाकिर- थोडा आश्चर्य का भाव लाते हुए "क्या मिलेगा? कैसी बात करती है तू भी। इनसे तो देखकर ही इतना रस टपक रहा है की मेरे मुह में पानी आ रहा है। अब जरा इन दोनों दुल्हनो की मुह दिखाई भी तो करा दे मेरी रानी।" इतना कहकर जाकिर उसके स्तनों की ओर देखकर अपनी जीभ होठो पर फरता है।
रेखा- एक बार नजरे झुकाकर फिर से उसके नज़रों में देखते हुए "अच्छा तो अब आपको इनको देखना है। पहले बोलते थे सिर्फ बात करना है। फिर सिर्फ बाँहों में भरना है। फिर मुझे फुसलाकर मेरी चुम्मी ली। अभी मुझे इस हालत में अपने आगे खड़ा कर के रखा है। और अब आपको मेरे ये (स्तनों को दोनों हाथों से दबाकर) देखने हैं। आपकी डिमांड तो बढती ही जा रही है। पता नहीं आगे क्या क्या मांगोगे।"
इतना कहकर कुछ उत्तेजना और कुछ बातो में खोकर रेखा अपने स्तनों को निरंतर दबाते ही रही जिससे जाकिर की तोप झटका खाने लगी।
जाकिर- "अरे तू तो मालामाल है इस दौलत से तो तुझसे ही तो मांगूंगा ना थोड़ी भीख। देख भूखे को खाना खिलाना पुन्य होता है तो मै भी तो तेरे हुस्न का भूखा हूँ।" थोडा बेचारे जैसा मुह बना लेता है।

रेखा- हँसते हुए अपने निचले होठो को एक बार दांत से काटकर"अच्छा जी । तो आप भूखे हैं तो बताइए क्या खातिर करें आपकी। अब आप जो कहें वो ही होगा। ठीक है 'जाकिर भाई'।" खिलखिलाकर हंसती है।
हंसने से तो उसके स्तन ऐसे फुदकते हैं की जाकिर के तो नेत्र ही धन्य हो जाते हैं।
जाकिर- थोडा झुंझलाकर "कितने बार बोल चूका हूँ भाई नहीं। मै अच्छा नहीं लगता तो मेरा गला काट दे या चाहे तो मेरा लंड काट ले। पर भाई मत बोल।"
रेखा- थोडा झेंपकर "छि छि। आप कैसे बोलते हो मई क्यों काटने लगी आपका ल..ल..ल..लं.... (अपने शब्दों को बदलकर)आपका गला। और किसने कहा की अप मुझे बुरे लगते हो। वो तो आपको नाम से बुलाना कुछ अजीब लगता है।"
जाकिर- उसकी इस अदा पर घायल होकर सम्हलते हुए "आये हाय। मतलब तुझे अच्छा लगता हु मै। तुझपर तो अपनी जान सौ बार कुर्बान करू मेरी जान। बस भाई छोड़कर कुछ भी बोल ले।"
रेखा- थोडा सोचकर" उम्म्म्म्म... अच्छा तो मै आपको जाजी बोलूंगी। जाकिर का 'जा' और जी आपके आदर के लिए। ठीक है ना जाजी।"
जाकिर- खुश होकर "आये हाय। क़त्ल कर दिया तूने। चल अब जल्दी से दुल्हन का घुंघट खोल।" ललचाई नजरों से रेखा की दूध की थैलियों को देखकर कहता है।

रेखा- शरमाकर 5 सेकेंड नीचे नजरे झुकाकर हौले से "मेरा सब देख लेंगे और बदले में मुझे क्या मिलेगा।"
जाकिर- थोडा फुसलाते हुए "मेरी जान बस तू मेरा कहना मानती जा फिर देख तुझे कैसे जन्नत दिखाता हूँ। अगर ऐसा न हुआ तो मेरा नाम बदल देना।"
रेखा- कुछ कुछ शरमाते हुए "वो तो मै बदल ही चुकी हूँ। है ना जाजी। ही ही ही"
जाकिर- "जानेमन तू जो बोले सब मंजूर। तेरा गुलाम बन जाऊंगा। बस अब और ना तडपा।"
रेखा के मन में इस बात से अजीब उथल पुथल मच गयी थी। अब वो उस दोराहे पर आ खड़ी हुई थी जहाँ से एक रास्ता उसे अपनी उसी जिंदगी की तरफ ले जाता था जो वो कल तक जी रही थी। जहाँ उसका पति ही सब कुछ और उसकी सारी जरूरतों का एकमात्र साधन था। और दूसरा रास्ता जाता था रंगीन दुनिया की ओर जिसकी दहलीज पर वो खड़ी ही हुई थी और उसके रोम रोम में आनंद की लहरें दौड़ रही थी।
रेखा- उहापोह की स्थिति में नजरे झुकाए हुए "पर जाजी ये सही होगा। मै शादीशुदा हूँ और आपके दोस्त की पत्नी भी। अगर कुछ बदनामी हुई तो मै तो मर जाउंगी कुए में कूद के देख लेना।"

जाकिर- थोड़ी गंभीर आवाज बनाते हुए "देख तू कितनी अकेली है ये मई जानता हूँ। दीनदयाल की कितनी औकात है मर्दानगी में ये भी मुझे पता है। तू समंदर है हुस्न का और मै प्यासा। हम कुछ गलत नहीं कर रहे। और मै तुझे दीनू को छोड़ने नहीं कह रहा हूँ। तू उसी की पत्नी रह बस मेरी माशुका बन जा। रही बदनामी की बात तो ना किसी को मै बताने वाला हूँ न तू तो बदनामी का सवाल ही नहीं उठता।" आवाज और कठोर करते हुए "अब फैसला तेरा है कि तुझे मुझपर भरोसा है या नहीं।"
जाकिर का बोला गया आखिरी वाक्य उसकी खासियत थी। उसे पता था की औरतों को फ़साने की सबसे बेहतरीन चाले कैसे और कब चलनी हैं। उसने फंदा लगा दिया था अब शिकार के फसने का इंतजार था।

उसका आखिरी तीर बिलकुल सही निशाने पर लगा। अंतर्द्वंद से घिरी रेखा एक झटके से इस बात को सुनकर बाहर आ गयी। नजरें उठाकर उसने जाकिर की नजरो से भिड़ा दी कुछ 30 सेकण्ड यूँ ही नजरो की भाषा सुनने सुनाने के बाद रेखा ने उसकी नजरो में सीधे देखते देखते ही अपने दोनों हाथों को पीछे ले गयी और कुछ करने लगी। कुछ 5 सेकंड में ही उसने अपने हाथो को एक झटका सा देकर आगे किया और उसके साथ ही साथ झटके के साथ भारी भरकम बोझ को सम्हाल रहे ब्रा के स्ट्रेप्स ढीले पड़ गए और कंधो को झटककर रेखा ने उनको अपनी छाती से अलग करते हुए जाकिर की इस बात पर जैसे अर्पण ही कर दिया। अब भी उसकी नजरें सीधे जाकिर से भिड़ी हुई थी जिसके कारण वो भी अपनी नजरें नहीं हटा सकता था। मानो रेखा उसकी परीक्षा लेना चाह रही थी कि वो नजरें मिलाये रखता है या हसीं नजारे के लालच में जाता है।

जाकिर भी कच्चा खिलाडी नहीं था। उसे भी पता था कि कुछ मिनटों के उपवास करने पर अगर उम्र भर पकवान मिले तो उपवास कर लेना चाहिए। कुछ पलों तक जब उसकी नजरें न हटी तो रेखा ने नजरों से नीचे इशारा किया कि देख तो लो। तब उसने अपनी नजरें वहां से हटाकर नीचे लगाई और देखते ही वो तो होश ही खो बैठा। इतनी उम्र में उसने अनगिनत लड़कियों औरतों को अपने नीचे लेकर भोगा था अनगिनत स्तन देखे चुसे दबाये और सब कुछ किया था पर ये स्तन तो एकदम किसी चित्रकार की खुबसूरत रचना जान पड़ते थे। उसका हलक सूखने लगा ये नजारा देखने से। एकदम गोलाई लिए हुए दो मैदे के पिंड जैसे उसके सामने आ गए हो सोने पे सुहागा बिलकुल स्तनों के केंद्र से थोडा सा नीचे मोटे मोटे अंगूर के आकार के गुलाबी निप्पल और उनकी सीमा रेखांकित सी करते सिक्के के आकार के ऐरोला आअह्ह्ह ऐसा घातक नजारा देखने भर से उसके दिलो दिमाग में सैकड़ो सितार एक साथ बज उठे। उसे लगा जैसे यही बैठे बैठे ही उसका लंड गोले बरसा देगा और चड्डी फाड़के ये गोले सीधे उसकी नजरो के निशाने पर ही गिरेंगे। ऊपर से नीचे तक सिहरते हुए जाकिर दबी सी आवाज में आनंद की एक सिसकारी भरता है जिसे सुनकर रेखा फूली नहीं समाती। एक अप्रतिम सौन्दर्य की प्रतिमूर्ति यौवना आज उत्तेजना के कारण एक अधेड़ बेडौल बदनाम बदसूरत मर्द की सिसकारी से इतनी खुश हो रही थी मानो उसे मिस वर्ल्ड का ख़िताब मिला हो।
 horseride  Cheeta    
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#62
रेखा- कुछ बढती अन्दर की गर्मी के कारण लहराती आवाज में "लो देख लो जी भर के ऐसा कोई अजूबा नहीं है।

सबके पास होता है सिर्फ मेरे पास ही नहीं है। अब तो हो गयी मन की मुराद या और कुछ भी बचा है।"
जाकिर- स्वप्नलोक या कहें स्तनलोक से बाहर आते हुए "क क क्या? तू नहीं जानती की ये क्या है मेरी नजर से देख मेरी रसभरी। तू मेरी बीवी होती न तो मै तो तुझे खा ही जाता। और ख्वाहिशों का क्या है वो तो जो हो जाये वो ही कम है।"
कहते हुए रेखा की नजरों में देखता जाकिर एक बार नीचे उसकी पेंटी तक नजरे घुमाकर वापस उसकी स्तनों को नजरो से चूमता हुआ रेखा को एकटक देखने लगता है। अब सुरूर रेखा पर भी चढने लगा था और जाकिर का इशारा समझकर एक झटके में ही वो अपने दोनों हाथों की उँगलियों को पेंटी में फसाती है।

जाकिर की नजरों से नजरे बिना हटाये धीरे धीरे वो अपने हाथों को नीचे करती जाती है जिसके साथ साथ उसकी पैंटी घुटनों तक की यात्रा कर लेती है। एक पैर को थोडा झटका देकर वो पेंटी को अपने नए नए आशिक के लिए नतमस्तक कर देती है। अब किसी संगमरमर की मूरत की तरह चिकना मलाई की तरह जिस्म हलके उजाले मे भी जैसे उजाला कर रहा था।

रेखा की पेंटी उसके एक पैर में फसी हुई उसके पैरो से चिपकी पड़ी थी जिसे रेखा ने पैरो से ही जाकिर की तरफ उछाला। पेंटी सीधे जाकर जाकिर के चेहरे से टकरायी जिससे उसकी आंखे एक बार झपकी और जब वापस खुली तो उसे ख्याल आया की वो तो ऊपर की दुल्हनो की मुहदिखायी में ही मगन रहा जबकि नीचे रानी भी जलवाअफरोज हो चुकी है। इस सोच के साथ ही जाकिर का लंड इतना अकड़ने लगा कि अब चड्डी की इलास्टिक के छोर तक जा पहुंचा। जैसे जैसे उसकी नजर रेखा के योनि की तरफ बढ़ने लगी उसके दिल की धड्कन और लन्ड का स्पंदन तेज, और तेज, और तेज, और तेज हो रहा था। तभी अचानक पेट के सपाट मैदानों के अंतिम छोर पर वो स्वर्ण भूमि नजर आई जिसके पीछे सारी दुनिया मरती है। दोनों पैरों के जोड़ो के ठीक बीचोबीच लगभग दो-ढाई इंच की दरार जैसी दिखी जो कि त्वचा से इस तरह दबी हुई थी कि दबाव के कारण वहाँ ठीक वैसा ही उभार बन गया था जैसा बर्गर की बन हो।

ईस दृश्य के देखते ही जाकिर के लिंग ने ऐसा झटका मारा की थोडा सा प्रिकम उसमे से निकलकर चड्डी में एक सिक्के के आकार का दाग बना गया। जाकिर की उफ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्च स्स्स्स्सीसिसिसिसिसी की गहरी आवाज रेखा के बदन को भी सिहरन दे गयी।
रेखा- कांपते हुए लडखडाती आवाज में "लो हो गयी पूरी नंगी। सिर्फ आपके लिए। अब आप पर भरोसा किया है जाजी। देख लो।"

जाकिर- कभी योनि कभी स्तन कभी रेखा की नजरों में देखते हुए "अरे मेरी जलेबी। फिकर न कर आज से तू जाकिर की जान है। मै हूँ न सब संभाल लूँगा बस अब मुझे खोल दे तू।"
रेखा- शरारत से आंखे नचाते हुए "अच्छा जी, तो आपको छुटना है। छुटकर क्या करेंगे आप।"
जाकिर- "मेरी जान तुझे बाँहों में भरने का दिल कर रहा है।"
रेखा-"ओहोहोहो.... मुझे भी पता है आपका दिल क्या कर रहा है। आपके दिल की बात ये साफ़ साफ़ बता रहा है।"जाकिर की अंडरवियर की ओर इशारा करती है।
जाकिर- थोडा कसमसाकर अपने कसते लिंग को एडजस्ट करने की नाकाम कोशिश करते हुए "अब तेरे जैसी बिजली सामने खड़ी हो तो इसमें तो करेंट दौड़ेगा ही ना।"
रेखा- नजरें नचाते हुए"अच्छा जी। तो इस खम्बे में भी करेंट आता है।"
जाकिर-कमर उचकाकर और उभारकर"अरे एक बार तेरा और मेरा करेंट मिल जाये तो सारी दुनिया रोशन हो जायेगी मेरी जान। उफ्फ्फ अब क्यों बांध रखा है अब खोल तो दे मुझे।"
रेखा-शरारती मुस्कान के साथ उसके उभरे अंग को देखकर"अच्छा क्या करोगे खुलकर ऐसे ही रहो ना। इतनी जल्दी मेरी कैद से छुटना चाहते हो।"
जाकिर-कसमसाकर"जानेमन इस रस्सी के बंधन से छुटने बोल रहा हूँ तेरे इस हुस्न के जाल से तो अब कहीं नहीं जा पाउँगा। खोल दे ना तुझे बाँहों में भरने की बड़ी इच्छा हो रही है।"
रेखा-कुछ पल के लिए कुछ सोचकर"ओफ्फो बस इतनी सी बात। मैंने कहा ना की आप जो बोलोगे वो ही होगा आज।"
इतना कहकर जाकिर के कुछ समझने के पहले ही झट से रेखा निचे उतरकर उसके पास आ कड़ी हुई। एक पल के लिए उसने ऊपर से निचे तक जाकिर को देखा और उसकी कमर के दोनों ओर अपनी दोनों टांगे फैलाकर इस तरह उसकी जांघो पर बैठी जैसे घोड़े की सवारी की जाती है।
कुर्सी के हत्थे के नीचे काफी गैप था जैसे खास इसी काम के लिए डिजाईन की गयी हो कुर्सी। एक पल के लिए जाकिर की नजरो में सीधे देखा और उसके गले में अपनी बाँहों का हार डाल कर उसे कस के भींच लिया अपने बदन से।
 horseride  Cheeta    
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#63
दोनों के नंगे बदन जैसे ही सटे रेखा के मुह से सिसिसिसिसी..... और जाकिर के मुह से आह्ह्ह्ह्ह्ह... ह्म्म्म्म्म्म्म....एक साथ निकल पड़ा। जाकिर को तो यूँ लगा मानो वक़्त वही रुक गया है। दोनों की दिल की धडकने एक दुसरे को साफ महसूस हो रही रही थी। रेखा के नग्न स्तन जाकिर के छाती से भीचे जा रहे थे उसके गुलाबी निप्पल जाकिर के सीधे दिल में ही छेद कर रहे थे। नीचे जाकिर का बाबुराव उसके और रेखा के बीच दबा गर्माहट पाकर इतना अकड़ने लगा की उसकी चड्डी के बाहर झाकने लगा नज़ारे के लालच में।
जाकिर- इस हरकत पर कपकंपाती आवाज में"आह जानेमन ठंडक मिल गयी कलेजे में। आज तो दिन बन गया मेरा।"
ऐसा कहता हुआ अपने होठों को रेखा के कान तक लेजाकर गर्म सांसे छोड़ता है। धीरे से एक दो बार जबान निकालकर उसके कानो को चाटता है फिर कान के निचले हिस्से को चूसने और चुभलने लगता है।

रेखा-लगभग थिरकते हुए जाकिर से और चिपकते हुए"आअह्ह्ह्ह्ह........ मत करो जाजी। मै पागल हो जाउंगी। आपने तो बस गले लगाने का बोला था ना ह्म्म्म्म।"
जाकिर-रेखा के कानो में फुसफुसाते हुए"वो तो शुरुआत होती। गले लगाकर तेरे होठों का रस भी तो पीता।"
रेखा-थोडा चेहरा सामने करके जाकिर को देखते हुए "अच्छा। तो पहले कहना था ना।"
और कहने के साथ ही रेखा के होठ जाकिर के होठों से भिड़ा देती है। रेखा के होठो का स्पर्श पाते ही जाकिर अपने होठो को खोलकर उसके होठो को अन्दर आने देता है और फिर जोर जोर से पागलों की तरह चूसने लगता है।

अब जो भी हो रहा था वो सब अपने आप ही हो रहा था, किसी का भी कोई कण्ट्रोल नहीं था होने वाली घटनाओं पर

रेखा के हाथ जाकिर के सर के पीछे से उसे जकड़े हुए उसके मुह को अपने मुह की ओर दबाये जा रहे थे साथ ही साथ वो खुद भी अपना मुह ज्यादा से ज्यदा उसके मुह के अन्दर घुसाए जा रही थी। चूसने के दौरान ही जाकिर ने अपनी जीभ उसके होठो पर फेरना शुरू कर दिया जिसके प्रभाव से रेखा के होठ अपने आप ही खुलते चले गए और जाकिर की जीभ रेखा के मुह के अन्दर जाकर उसकी जीभ के साथ आलिंगनबद्ध होने लगी। म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्ह्ह्ह्ह्ह की घुटी घुटी सी आवाज के साथ ही रेखा ने अपने मुह में आई इस मेहमान का स्वागत अपनी जीभ से उसे दुलार कर किया और फिर वो उसे जोर जोर से चूसने लगी। दो जिस्म एक दुसरे में गुथे जा रहे थे और उनके होठ और मुह तो जैसे बिना गोंद के चिपक से ही गये थे।

जाकिर का लंड तो अकडकर बिलकुल पत्थर जैसा सख्त हो गया था और उसके अन्दर ज्वालामुखी के भीतर जैसा लावा उबलने लगा था जो किसी भी छोटी सी चिंगारी से किसी भी चेतावनी के बिना फट सकता था। उसके काले लिंग का टोपा फूलकर किसी बड़े से जामुन की तरह उसके अंडरवियर से झाककर रेखा के मलाइदार पेट से रगड़ खा रहा था। कुछ १० मिनट की इस चूसम चुसाई के बाद दोनों की ही सांस रुकने लगी तो दोनों अलग होकर गहरी गहरी सांसे लेने लगे लेकिन फिर भी दोनों के जिस्म अब भी एकदम चिपके हुए थे आपस में जिससे दोनों की ही गहरी गर्म सांसे एक दुसरे के चेहरे पर पड़ने लगी। जाकिर पूरी तयारी से आया था आज जिससे उसके मुह से आती लौंग की खुशबु रेखा पर एक अजीब सा खुमार डाल रही थी। वैसे ही रेखा की सांसों की खुशबु तो जैसे जाकिर को परफ्यूम जैसी ही लग रही थी।
रेखा चुसम चुसाई के बाद जाकिर की आँखों में देखकर शर्मा सी गयी पर अब उसकी झिझक खुलने लगी थी।उसने नजरें नहीं हटाई और जाकिर को देखते देखते ही उसने अपने एक स्तन को पकड़कर अपने मुह में भर लिया।

उत्तेजना के कारण अपने इस कार्य से अचानक थोड़ी शर्मा सी गयी वो। पर इससे उत्तेजित जाकिर फिर से उसके अधरों का रसपान करने के लिए अपने होठ आगे करने लगा पर रेखा ने अपनी ऊँगली उसके होठो पर रखकर उसे पीछे करके वापस कुर्सी से टिका दिया और उसे कातिल मुस्कराहट के साथ देखने लगी।

अब दोनों के बीच की सारी बाते आँखों ही आँखों में हो रही थी। प्रश्नवाचक दृष्टि से जाकिर ने रेखा की नजरों में देखा जिसके जवाब में रेखा ने अपना मुह गोल करके जाकिर को एक फ्लाइंग किस किया।

फिर थोडा ऊपर होकर उसके माथे को चूमा फिर दोनों आँखों को फिर नाक के उभार को फिर होठो को सिर्फ चूमा और अपनी जीभ फेर दी। अब उसकी जीभ जाकिर के जिस्म को ऐसे ही चाटते और चुमते नीचे की ओर आने लगी। वो अपनी जीभ से जाकिर के बदन को चाटते हुए उसकी ठोड़ी से गरदन से होते हुए उसकी छाती पर पहुची। पूरी बाल विहीन छाती को चाटने चूमने के बाद जाकिर के निप्पल को उसने ऐसे चूसा की सिस्कारियों की आवाजे तीव्र होने लगी जाकिर के मुह से। धीरे धीरे जाकिर के पेट पर भी जबान फेरने के बाद नीचे आते आते ही जाकिर की जबान एक गरम गरम लिसलिसी सी चीज से टकराई।

एक तो कमरे में अँधेरा ऊपर से झुकने से उसकी घनी जुल्फों से और अँधेरा सा हो गया था जिससे उसे समझ नहीं आया की वो क्या है। उसने हाथ लगकर देखा तो उसकी पूरी रूह कंपकंपा उठी। ये जाकिर के लिंग का टोपा था जो की अकड़कर उसकी चड्डी से बाहर आ चूका था और उसकी नाभि के थोडा सा नीचे अपनी पोजीशन लिए हुए था। जाकिर के पेट को चाटती चूमती रेखा की जबान उसे भी चाट चुकी थी जिसका जायका कुछ अजीब सा कसैला सा लगा उसे।
जब उसने टोपे को देखा तो उसकी आंखे हैरत से दोगुनी बड़ी हो गयी। चड्डी से लगभग डेढ़ इंच बाहर आ चुके लिंग का टोपा एकदम तन्नाया हुआ रेखा के थूक से गिला होकर चमक रहा था।
दोनों के बदन पर अगर कपड़ो की बात की जाये तो बस ये जाकिर की चड्डी ही आखिरी बची हुई थी। एक बार उसने जाकिर की आँखों में झांक के देखा तो वो तो लगातार आनंद के सागर में गोते लगता सिसकारियो की मौजों से घिरा हुआ था। उसके देखते ही देखते रेखा ने उसकी चड्डी निचे खसकाकर उसके घुटने तक कर दी जिससे उसका लिंग किसी स्प्रिंग की तरह बोइंग्ग्ग से झटके से बाहर तनकर खड़ा होकर रेखा को सेल्यूट मारने लगा।

चमकते काले रंग के इस लगभग 7 इंच लम्बे और 3 इंच मोटे करिश्मे को वो आंखे फाड़ फाड़ के देखने लगी।
 horseride  Cheeta    
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#64
chaddi niche khaskate hi mano rekha ke najron ke samne ek kayamat hi upasthit ho gyi thi. lagbhag 7 ya 8 inch ka kala naag jiski motai lagbhag uski kalayi jitni hi rahi hogi uchalkar jaise hi samne aaya rekha ko to mano saamp hi sungh gaya.


is najare se awaq wo ye hi sochti rahi ki akhir ab at kya karna hai. "Bas dekhti hi rahegi kya. Tera hi hai ab ye. Ise pyar to kar jara." Jakir ki hawas me dubi lehrati si awaj uske kano me padi jisse use kuch hosh aya.


Rekha- "ye... ye... t.. tt.. to bahut b.. bb.. bb...bada hai. Tum insan hi ho na. Ye kaise ho sakta hai."


Jakir-"are mai insan hi hun. Aur kya tujhe janwar dikhta hun mai. Ab tune ise nikala hai to pyar to karna hi padega na. Chal ab sharma mat. ise pakad to sahi katega nahi tujhe."


Rekha-jhijhkte aur kampte hatho se pehle chuti hai fir himmqt karke apni ungliyon ke ghere me kaste hue


"ssssiiii aaahhh kitna garam hai ye ufffff. Lagta hai mefa hath jal hi jayega. Kitna sunder......." Uttejna me achanak apne muh se nikli baat use samajh ati hai to jhijhakkar chup hokar najren niche jhuka leti hai.
Jakir-uski ada dekhte hue fuslakar "aye haye meri rani. Teri is ada par to aise sau land kurbaan. Ab dulhan ki tarah sharmayegi to mai to budha hi ho jaunga. Abhi to ekdam bindaas hokad mujhe chummiya de rahi thi achanak itna sharmane lagi. Chal jaldi ise thoda pyar to kar."
Rekha-sawaliya najro se kabhi jakir ki najron me kabhi uske ling ko dekhte hue"kaise karu. Aur karu to kya karun. Apke ling ko pyar karna aap hi sikha do."
Jakir-chedte hue "kya ling ling laga rakha hai. School me padha rahi hai kya koi. Ye land hai land. Bol LAND. Bol."
Rekha-jhempte hue" chiiii aap bhi na jaji. Mujhse nahi bola jayega ye sab. Mujhe kyu besharm banane par tule ho."
Jakir-man hi man khisiyakar "waah re meri mom ki gudia. Apne padosi ko apne bedroom me nanga bithakar uske kadmo me nagi baithi hai uske land ko apne hatho me bhichkar, aur abhi bhi laaj sharam ki bate kar rahi hai. Dekh ghuma firakar mujhe baat nahi karna ata. Maja lena hai to khulke le nahi to aise hi pyasi reh jayegi jaise abhi tak thi."
Rekha-sacchayi ke dharatal par girte hi jaise howh me ate hue" aap sahi kwh rahe ho jaji. Ab mai wahi karungi jo aap bologe. Bolo kaise khush karun apko aur apke is l... l.. llan.. landd.. ko."
Jakir-khush hokar" shabash. Aise hi meri baat manegi to tujhe janaat dikha dungw janeman. Ab iski camdi ko upar niche kar dhire dhire."
Rekha- agyakari student ki tarah uske ling ko muth marte hue"aise hi na."


Jakir- maje ki lehar me gote lagate hue "aahh kya jadu hai tere hatho me. Uhhh ummmm waahh. Meri jaan maja aa gya bas aise hi karti reh.aaahhhh."
Rekha- garam ling ki ragad aur jakir ki madak maje se bhari sikariyon se uttejit hokr" aah apko maja aa raha hai na jaji. Apkke maje ke liye mai kuch bhi karungi aap bas bolte jao." Aur jor jor se hath chalane lagti hai.


Jakir- thode dard ki anubhuti hone par" aahh aayiiii are ruk ruk aise to mera land chil jayega aise sukha ghasse maregi to. Thoda gila kar ise."
Rekha-ashchary se " gila. Pae kasie karu gila. Ruko mai pani lekar ati hun."
Jakir- hanste hue "haa haa ha pani ka kya kaam. Tujhe hi gila karna hai use aur with bhi apni jaban se."
Rekha- ankhe badi karke chaunkte hue " k.. Kkk..kkya. Jaban se gila matlab chatkar. Chiii chhiii aisa mai kaise...... Chii."
Baat sach bhi thi. Rekha ke shadi ke pehle ke samay me bhi usne aisa kuch nahi kiya tha. Uske sare premi sidhe uski chut ke kile par halla bolkar apne jhande gaadkar chale jate the. Oral sex arthat mukh maithun jaisi chije usne collage ke samay me kuch pustakon me dwkhi jarur thi par wo inse grina karti thi dekhkar.
Jakir- sukhe ling ki chamdi ki ragad se karahta hua" aah aaj hi aaahhh chhil degi kya mere land ko. Jaldi gila kar na."
Rekha- fir se thda virodh karte hue" par jaji. Ye bhi koi jaban lagqne ki jagah hai. Mai kaise ise chat..... Chi mujhse nahi hoga."
Jakir- "fir wohi bat. achcha ankh band karke chatke dekh achcha na lage to mat karna, thik. "
Rekha- man marke paas ate hue budbudati hai " kahan fas gayi mai bhi. Ab ye hi din dekhna bacha tha. Logon ki nuniyan chatna hi bacha tha."
Jakir-haskar " nuni nahi land bol ya lauda bhi bol sakti hai. "
Tab tak rekha ka chehra ling ke itne karib aa chuki thi ki wo jaban nikale to land chua jaye. Ek tej land ki gandh uske nathuno me padti hai jo ek pal ke liye to use durgandh lagti hai magar agle hi pal jase wo is gandh se sammohit si ho jati hai.


Aur apne aap uski jabaan nikalkar pehle thoda sa chatti hai to use wahi swad milta hai jo kuch der pwhle galti se jaban takrane se mila tha. Us samay ki tulna me use ye swad utna khwrab ya ajib nahi laga.
Jakir-uske jabaan ki garmahat pakar kasmasate hue" aahh waahhh gaon ki sabse katil chammak challo mera land chat rahi hai aaj. Mere to bhag hi khil gye aaahh. Aise kanjusi chakh mat ye pura tera hi hai. Niche se upar takk chat. Jab tak mai na bolu rukiyo mat."
Rekha- gehri sans lekarek baar upar se niche chatkar "saarrrp.... Aise hi na. Thik hai."
 horseride  Cheeta    
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#65
Badi chalaki se rekha ne ling ke tope ko chamadi se dhakkar upar ka hissa chata tha jisse use upar ke tope ko na chatna pade jise jakir samajh gaya.
Jakir- aawaj kabu karte hue "hatho se pakad mat land ko. Hatho ko sar par rak aur fir chat."
Rekha ne aisa hi kiya jisse jakir ko do fayde hue.ek to hath upar karte hi rekha ke vishal stan aur ubharkar samne aa gye aur uski jangho ko ragqd khane lage aur dusra hathon ki pakad se ling ki chamdi tope par ruki hui thi wo fisalkar niche aa gayi samne chamakdar topa hajir ho gya jo ki ankh band karke chat rahi rekha ko pata nahi chala.
Rekha-chatna jaari karte hue "ye lo baba. Kae di apke man ki. Mmmm... saarrp... saarrp...sllaarpp.... Ab khush... Saarrrpp..."


Jakir- maje leeta hua"aahh bahut achcha kar rwhi hai tu. Aise hi chat. Aur jara upar wale hisse ko apne hotho me leke achche se gila kar de."
Rekha-chatte hue "saarpp.... Ab ye bhi... Pata nahi kya kya karwaoge mujhse."
ankh band kit hue rekha ne pan jaban upar ki tarwf feri to use chamdi ke khurdurepan ki jagah ling ke tope ki chiknayi apni jubaan par mehsus hui jisse ashchary me ate hue uski ankhe apne aap hi khul gyi jisse uski ankhon se mehaj kuch centimeter ki duri par ek fula hua chili jamun ki tarqh rang rup ka ling mund usi ki jaban se chata ja raha tha. Sharm aur uttejnawash uski ankhe swatah hi band ho gyi par chatna aur bhi tivra ho gya. Ab use halka kasaila khara aur khatta sa swad kuch kuch achcha lagne laga tha.
Jakir-"aaahh wwaah meri rqni. Bas aise hi. Haan aise hi chat. Maja hi qa gya.aaaahhhhhhhh"
Ye lambi karah isliye thi ki rekha ne achanak chatte chatte land ke supare ko muh me bharkar ek baar jor se chus diya. Fir achanak apne kiye par sharmakar ek bar jakir ko dekha aur kutil muskan se fir se chatne lagi..


Rekha-pure rang me akar"saarpppp... Slaarrrpp..... Apko pata nahi ki mujhe icecream kitni pasand hai. Aur wo bhi chocobar. Mmmmm.... Srrpppppp.."
Jakir-maje se dohra hota hua "aaahhh.. Haan tere liye hi hai ye ice cream meri bulbul. Par iska asli maja to niche wale hotho se khane me ayega tujhe. Bol khayegi na."
Rekha- age hone wali ghatnao ko sochkar hi sihrte hue"aahhh .. Srrpppppp.... Aapp jo bologe manjur hai jaji. Bas aise hi sab chalta rahe lekin kisi ko pata na chale. Mmmmm..."
Kehte hue rekha ne is baar supade ke sath sath lagbhag do inch land bhi muh me lekar jordar chuski mari aur bahar nikalkar hatho se muthiyane lagi aur uske tope par chatna bhi jari rakha.


Ye dohra attack to jakir ke liye asahniy tha. Jwalamukhi ki tarah uski goliyon me viry ubalne laga tha jo kisi choti si chingari se bhi uske land se bahar aa jata.
Jakir-buri tarah chatpatate aur kasmasate hue"aahhhh.... Meri rani bas kar aab to. mai aise hi chut jaunga nahi to. Ab mijhe khol to de"
Rekha-shararat se muskate hue "aise kaise. Ji bhar kar icecream kha lun fir kholungi.mmmmmmm.... "
Aur is bar himmat karte hue usne lagbhag adha land muh me bhar liya jo ki uske gale ke pichle hisse se takraya.


Jakir-paglon ki tarah chatpatata hua"aahhh bas kar. Warna mai pagal ho jaunga. Khol bhi de mujhe."
Ab rekha ne chatna chodkar adhe land ko muh me hi bhar rakha tha aur andar hi andar uske tope par jibh se malish si kar rahi thi. Apne hatho ko usne jakir ke jangho par rakh liya tha jisse sirf muh se hi wo long ki sewa me lagi hui thi. Jakir bandhe hone ke bawjud kamar uchkakar uske muh me ling ko andar bahar karke jaise muh ko chod raha tha. Par baji rekha ke hi hath me thi kyuki kitna andar tak lena hai ye usike hath me tha.
Jakir ke andar ka jwalamukhi akhir charam par aa hi gya aur rekha ko apne gale ke pichle hisse me ek garam malayi jaisi chij ke takrane ka abhas hua jise wo samajh pati aur ling ko bahar nikal pati uske pehle hi do majbut haath uske sar ko piche se jakad chuke the aur uske dabaw se aur jakir ke kamar ke jhatkon se mlayi barsata land aur andar aur andar aur andar gale me utarta chala gya. Aur akhirkar rekha ke nichle hoth jakir ke andkosh se aur uski naak jakir ke jhanto se chipak gayi.


Rekha ke gale se fislti hui viry ki wo nadi sidhe uske pet me utrne lagi. Aur sans roke wo bebas is nadi ko rasta deti jadvat aise hi baithi rahi. Lagbhag ek minat tak aise hi sthiti me wo bechari sanse roke musal ko apne gale me ghusaye badh ke thamne ka intzaar karti rahi aur jakir ki pichkari uske gale me jhatke marti rahi.


Uski sanse ukhdne ko ho gyi ankho ke agey andhera sa chane laga ab tak pasine se lathpath chehra pura ansuon se bhig gya. Aur akhirkar sunami thamne ke baad jakir ne sar se hath hataya aur rekha ke thode hi prayas se ling uske halak se pucchh se bahar aa gya

jiske sath rekha dwara na nigali jane wali malayi bhi tapkne lagi.
______________________________
 horseride  Cheeta    
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#66
itni der se ghuti hui sanse thame intzar karti rekha ki jaan me jaan aayi aur usne ek lambi sans khichi jisse uske fefdo me thodi tazi hawa ka sanchar hua aur achanak use ye hosh sa aya ki abhi abhi ye kya ho gya.



apne aap ko aaj tak usne aisi kisi bhi sthiti se bacha rakha tha yahan tak ki wo dindayal ko muh me muh dalke kiss bhi karne nahi deti thi sirf hotho ko chumne se hi wo apna muh ghuma leti thi. use apne yauvan khaskar khubusrat chehre par bada abhiman tha. aur uske is abhiman ko jakir ne raund dala tha. lagbhag uske chehre muh aur gale ka balatkar hi kar dala tha usne jiski nishani ke rup me uske muh se bahar tapkta virya uske stano ki ghatiyon ke bich se nadi ki tarah beh raha tha



aur andar bhi uske gale se virya ki dhhara sidhe uske pet me utar rahi thi. abhi bhi reh rehkar jakir ka jhatka khata land ekadh bund viry ki chod deta jo ki sidhe niche muh kholke sans leti rekha ke muh me gira



jisne atmglani me jalti rekha ke aag me ghee ki tarah kam kiya. wo jakir ko maja dena bhi chahti thi aur lena bhi par sab kuch apne hath me rakhkar. par yahan to shuruat me hi uske plan ka bang ho chuka tha.
ajib sa kasaila sa kuch kuch khata aur kuch kuch khara swad use ajib lag jarur raha tha par jaisa wo socha karti thi ghinauni baat hai muh me kuch lena use ulti ho jayegi aisa kuch bhi nahi hua tha balki abhi abhi mili is khurak se to uske andar ki hawas aur bhadak uthi thi aur uska ek hath apne aap hi uski yoni par chala gaya aur wo use kas kaskar maslne lagi aur jibh nikalkar muh se bahar lagi malayi ko chatkar andar karne lagi. jab muh ke aspas ka hissa jibh se saf kar liya to apne dusre hath se gale aur chati se niche tapkti bundon ko bhi sametkar usne ungliyon ko mu me bharkar chusa aur lagbhag sara maal saf karne ke bad samne maujud kali cream roll ko pakda aur uske supare ke ched par apne hoth lagakar itni jor se chusne lagi ki jakir ke land ki naso me bache kuche viry ki bunden bhi usne khinch li.



sth hi sath uska ek hath apni yoni par aur ek hath jakir ke land par aur tej aur tej chalne laga jisse jakir ka land jhadne ke baad bhi dhila padne ki bajay aur bhi sakht aur bhi bada aur bhi tanna gaya.



abhi abhi jhadne ke karan jakir ko rekha par bada hi pyar aa raha tha. aaj tak usase chdwane wali gaon ki ladkiya to dur ki baat hai shehar ki ladkiyan bhi uske rang rup ko dekhkar uske land ko hath tak lagana pasand nahi karti thi to blowjob to dur ki bat hai. aaj is swapn sundari ke hath se pehle handjob fir blowjob aur uske baad uske ras ko chus chuskar jis tarah khali kiya tha rekha ne wo to uski ada ka kayal ho chuka tha.
achanak jakir ko jhatka sa laga kyuki rekha ko apne chut ki khujli ke age majbur hona hi pada aur usne bandhno se ajad ho chuke jakir ko ek dhakka diya aur wo palang par gir pada. uske girte hi rekha uske upar sawar ho gayi aur uske pet par sawar hote hi jakir ka land thik uske kulhon ke do gendon ki darar me ragad khane laga.



rekha ne ek hath niche lejakar uske ling ko letakar uske upar apna wajan dalkar baith gayi jisse ling thik yoni ki darar ki sidh me akar uske niche dab gaya. thoda sa age jhukkar rekha ne apna ek stan jakkir ke muh ke upar jhulaya to uska ishara samajhkar jakir ne sir uchkakad uske nipple ko apne muh me jakad liya aur fir jor jor se chusne laga. uska ek hath rekha ke dusre stan ka mardan karne laga aur ek hath se chuse jane wale stan ko nichodne laga jaise aam ka ras chus raha ho.kamagni me jalti rekha apni kamar hila hilakar jakir ke land par apni chut ragdne lagi.



stano ki shandar sewa aur chut ki ragdayi se wo to pagal ho gayi.
rekha-pagalon ki tarah badbadate hue "ummmm... jaji aaahhh.... raha nahi jata aab. jal rahi hun mai. kuch karo bujha do meri pyas."
jakir- "meri jaan... aaaaammm... chusssss... chusssssss...... teri pyas to thodi bujh hi chuki hai mere ras se. pyas to meri bhadki hai ab mujhse nahi raha jaata.. umm..... mujhe bhi pine de thoda ras."
rekha-"achcha to apko bhi pina hai ras. aahhh.... lijiye abhi."
kehte hue rekha ne apne stan jakir ke muh se khicha jo ki ek puchchhh ki awaj se bahar aa gaya. jakir uthne ko hua to rekha ne uski chati par hath rakhkar use wapas leta diya aur uthkar lete hue jakir ke sar ke thik dono or pair karke khadi ho gayi.



jakir ke ankho ke thik upar rekha ki laslasati fadkti yoni mahaj ek hath ki duri par thi jise dekh wo pagal sa ho gya aur apne akdte land ko apne ek hath se maslne laga aur dusra hath badhakar rekha ki yoni me ungli ghusakar uska ras apni muh me lejakar chusne laga. jakir ki is harkat se rekha sisak uthi aur ek gehri sans lekar niche jakir ke chehre ke thik upar baithi aur apni chut ko uske hotho se bhida diya jisse uske muh se ek chikh nikal padi.



uske upri hotho ka ji bharke anand le chuka jakir ab uske nichle hothon ko bhi jibhar ke chusne laga.



kafi der se apni uttejna ki jwala me jalti rekha ne apne lawe ko tham rakha tha par jakir ke hotho se yoni ka sparsh hote hi uske jwalamukhi me ab to bekabu dabaw badhne laga tabhi yoni ko chuste chuste hi jakir ne apni jibh andar ghusa di jisse wohi asar hua jo gubbare me pin chubhane se hota hai. tej awajo aur anand me dubi siskariyon ke sath rekha jhadne lagi aur uske shahad ki bunden ek ek karke jakir ke halak se niche utarne lagi.



Ek lambe arse bad itna bhayanak orgasm rekha ko hua tha dindayal se sex karte waqt to kabhi wo uttejit bhi yada kada hi hoti thi to orgasm to dur ki baat thi. Itni bhari matra me skhalan hone aur andar uthe uttejna ke badlon ki hui barsaat ke baad kuch asim shanti ke anubhav ke karan aur kuch thakan ke karan wo lagbhag besudh si ho gyi. Ab wo jakir ke upar se hatkar uske bagal me hi dham se aundhe muh gir padi. Uski to jaise jaan hi nikal gayi thi orgasm ke sath sath. Par jakir par to iska asar ulta hua tha usko chuste chuste apne nanhe sipahi ko masal masalkar usne itna uttejit kar liya tha ki uski fauj ka wo nanha sipahi tankar senapati ki tarah khada tha aur use dushman ki sena me ghusna hi tha.
Idhar rekha pet ke bal pade pade takiye me apna muh chipakar gehri gehri sanse le rahi thi jisse ki jakir ke samne uske nitambon ki pahadiyan upar niche hokar ajib sa nritya prqstut kar rahi thi.jakir dhire se utha aur rekha ke tangon par chadkar uske kulhon ke upar baith gaya aur apne ling se uske kulho ki dono pahadiyon par bari bari se thapkiyan dene laga.



Chatt..... Chattt... Chatttttt.... Ki awaj pure kamre me gunjne lagi. Twb tak rekha bhi apni sanso aur hridya gati ko thoda samhal chuki thi. Aur uttejna ke sagron ki nayi yatra ke liye mano taiyar hone lagi thi. Uske sharir me fir se umangon ki fuljhadiya jalne lagi jiski chingari aur jwala use apni yoni me mehsus ho rahi thi.
Achanak jakir ne apne dono hatho se uske ghutno ko pakadkar thoda failaya to uske dono kulho ke bich karib 3 inch ka gap ban gaya aur usme se laar tapkati yoni jhankne lagi. Jakir ne usi gap me se apne sipahi ko rasta dikhate hue uski yoni ke upar karib 10 12 baar ragada. yoni se beh rahe chiknayi ke kwrwn uska lund ekdam chikna ho gya aur bina chetavni ke hi usne ragdte ragdte hi chut ke darwaje ka nishana lekar ek jordar dhakka maara jisse uske lund ka topa chut ko chirta hua andar ja dhansa.



Rekha -achanak hue is hamle se tilmilakar "Aaaahhhhhhhh....... Ufffffffffmmmmmm...,...... Aayiiii..... Marrrr........ Gyiiiiiiiiiiii....... Jaaallaaad ho aap ekdam aise koi karta hai kyaaa..... Ufffffff....... Nikalo bahar. Thoda saabar bhi nahi hota kya. Mai koi bhagi ja rhi hun. ummmmm....."
Jakir-uski chhut me topa fasaye hue bina hile rekha ke gaal gale aur kano ko chumte chatate aur chuste hue "meri jaan teri itni manmohak gaand ko dekhkar sabar nahi hua. Ummmm... Pucchh... puchhh.. Ab chala gaya to rehne de na aise hi. Waise manna padega teri chut aaj bhi itni tight hai ki jaise kunwari ho. Waah maja aa gya." Kehte hue thoda thoda tope ko bahar andar karta hai aur fir ek jhatka marta hai to tope ke injan ke piche piche lagbhag do inch relgadi bhi gufa me ghus jati hai.
Rekha-jakir ke bhari sharir ke niche kulhe dabe hone ke karan kamar ke upari hisse ko chatpatate hue



"aaahhhhh.... Maaaarrr daallaaaaa..... Ummmmm...... Thoda aram se to karo. Kya aaj faad hi doge kya. Hay re mori maiya.... Kahan kis kasayi ke fer me pad gayi mai."
Is position me na to rekha kuch kar sakti thi na kuch rok sakti thi aur to aur wo to bhari bharkam pahad ke niche dabi thi ki kamar ke niche ka bhag hila bhi nahi pa rahi thi. Rahat ki baat ye thi ki abhi abhi hue orgasm ke karan uski yoni andar aur bahar puri tarah se chikni thi. Halanki abhi abhi hue skhalan ke karan use thodi thodi jalan mehsus hui par ab wo bhi rang me ane lagi thi.

rekha ke andar lagbhag 3 inch dhanse hue musalchnd ki ragad se uski yoni ki maspeshiyon me tarange uthne lagi. rekha ke man me sitar ki jhankar aur dard ki lehar ek sath daud uthi.

rekha-"uhhh. jakir ji aise bedrd mat baniye. aaaahhhhh uhhhhh thooda dhiireeeed daaaaa.....daliye warna mai ummmmmm uiiii maa mar hi jaungiiiii.ammmmmm."




rekha ki choti si tight yoni me mushkil se apni top ko ghusane me jakir ko bhi taklif to ho rahi thi par wo to har tarah ki yoni ke kile ko fateh karne me ekdam champion tha.rekha ki tadap ko dekhte hue usne aur andar na dalna hi uchit samjha. use laga agar wo ye bata dega ki abhi to lagbhag 4 inch aur jana baki hai to wo kahi bidak hi na jaye. isliye wo 3 inch ko hi dhire dhire andar bahar karne laga.
 horseride  Cheeta    
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#67
wo ab rekha ke upar puri tarah se so chuka tha par uska bhar palang par tiki uski kohni ne samhal rakha tha. sirf sharirik ragag ka anand lene ke liye uski chati rekha ki chikni sapat pith se aise chipki thi jaise kele se uska chilka chipka rehta hai. anand ki sima ko aur badhate hue usnee rekha aur bistar ke bich apne hathon ko ghusakar uske dono stano ko apni hatheliyo se dabooch liya aur aate ki tarah gunthne laga.

jakir-"aah.... janeman bas ho gya jitna jana tha. tu to itni kasi hui hai jaise ki teri chut ka kanwarapan abhi maine hi liya ho jaise. kasam se maja aa gya."

jakir ne jhut muth me rekha ko bol diya ki uska pura ling andar ja chuka hai. use laga ki aisa bolne se use dilasa ho jayega ki ab aur dard nahi sehna padega. aur waise bhi ab tak dindayal ke 4 inch ke sukhe hue ling se chudi rekha ki yoni me khire jaisa mota jakir ka ling 3 inch andar jane me hi use aisa lag raha tha ki jaise andar ek ratti bhar bhi jagah na bachi ho.



jakir ne andar gaye 3 inch se hi rekha ko chodna shuru kar diya. wo yoni se ling ko tope tak bahar khinchta aur fir use teji se andar dhakelta. har dhakke ke sath rekha ke andar ek bar fir se uttejna jagne lagi aur ab wo bhi jakir ke har dhakke ka swagat apni yoni ko bhinchkar karti jisse jakir ko maja doguna milta aur ab usne apne dhakko ki gati doguni kar di jiske karan kuch kuch aur andar gehrata hua ling aur ek inch andar utar chuka tha.

rekha-"aaahhh.... jakir jiiiiiiiii...... ummmmm.........ap to sach me jadugar hain.... uiiiii maaaaa....... aise hi karte rahiye ummmmffffffff....."

rekha ki bate sunkar aur usko sath deta dekh jakir ko lagne laga ki sunar ki 100 chot marte marte ab lohar ki 1 chot ka samay ho chuka hai. par is bat ko pukhta karne ke liye usne ab kamar hilani band karke apna ling itna bahar khinch kar ruk gya ki uska topa bas yoni ke bhitar rahe.



jakir ke rukne par rekha ne kuch second ka hi sabr kiya fir wo khud hi apni kamar uchkakar jakir ke ling ko andar aur bahar karne lagi aur jor jor se uski siskariyan kamre me bhi gunjne lagi. ab jakir ko pakka ho gya ki sahi waqt aa chuka hai. rekha ke chut ki bhatti ko aur bhadkane ke liye ab usne apne muh me uske kan ko daboch liya aur dhire dhire pyar se uske kano ko chusne aur danto se chubhlane laga. is chautarfa hamle se rekha ekdam pagal ho gyi aur uske andar jwalamukhi lagbhag futne ki kagaar par pahuch gya. ab jakir aur rekha dono hi kamar tej gati se hilane lage jisse rekha ki yoni me har second lagbhag 4 ya 5 baar ling anndar bahar hone laga. wasna ki relgadi ka engine me piston pure joro se chalne laga aur charam sukh ka station karib hi tha tabhi ek jhatke me second ke daswen hisse me hi jakir ne rekha ko palang ke kinare tak khinch liya jisse rekha ka kamar tak ka hissa to palang par hi raha aur uske niche ka hissa palang ke niche khade hokar jakir ne sambhal liya. ab rekha ki tange V ke akaar me fail gayi jiske bich me jakir uski yoni me apne ling ka topa fasaye khada tha.



achanak hue is position me change se rekha thodi achambhit hui aur usne jakir ki or palat kar dekha aur ek jhatka apni kamar ka marke jske ling ko andar bahar karne lagi mano keh rahi ho ki karte kyu nahi rukk kyu gaye. jakir ne rekha ke is harkat ka jawab ek kutil hansi se diya jise dekhkar rekha samajh gyi ki kuch aisa hone wala hai jo uski soch se pare hai aur uske intzaar me wo bistar me apna muh gadaye dono muththiyon se takiye ko bhinchkar taiyar ho gyi.

jakir-"to meri jaan.... tu taiyar hai meri rani banne ke liye... aaj mai tujhe apni rakhail banaunga ki tu mere isharo par nachegi."

aisa kehte hue jakir ne 10-15 dhakke purani gehrayi tak lagaye jiske jawab me rekha fir kamar hilane lagi aur fir ekdam se jakir ne pehle to apna ling fir se tope tak bahar khincha aur purani gehrayi tak wapas andar kiya aur uski tangon ko ghutno tak modkar apne dono hatho se pakadkar ek jordar dhakkka mara ki is baar kuch ek ya dedh inch chodkar pura ka pura ling andad thuns diya.



rekha-"aaaaaYyyyYyyyyyyyyiiIiiiiiiiiii.................. mmmmmmaaaaaaaaaaaaaa.................. jaaaallllllaaaaaadddddd............ kasssssaaaaayyyyyiiiiiii.......
maaarrrrrr ddaaaalllllllaaaaaaa.......
ummmmmmffffffffff............ choddddooooo mujheeeeee... jaaaannn nikaallll di meriii..........aaaahhhhhhH bhut dard ho rhaaaaaaaa haiiiii....... unnnnnn uhhhhhhhhh aahhhhh"

sach me jakir ka ye shot itna tagda tha ki ek shadishuda aurat ko bhi aisa lag raha tha ki uski kaumarya ki jhilli abhi hi tuti ho. rekha palang par bina pani ki machli jaise chatpata rahi thi. uska pura gora sharir par pasine ki bunde chamak rahi thi jo ki uske dard ko bayan kar raha tha par pasine se uska sharir aur bhi chikna aur madak lag raha tha.

is nayi gehrayi ka abhyast hone ke liye jakir lagbhag 30 second bina hile dule aise hi khada khada bas apne hatho me pakdi rekha ki tangon ko chatta aur chumta raha jjsse rekha ka karahna thoda maddham hone laga.

jakir-"meri jaan sabar kar.... aaj tu mujhe kitna bhi kos le gali de le.... par akhir ise andar lena to tujhe padega hi na."

kehne ke sath hi jakir ne ek bar fir ling ko tope tak bahar khincha. rekha ko laga shayad jakir ko daya aa gyi aur wo bahar nikal raha hai isliye usne apni yoni ko dhila chod diya jo ki uski bahut badi bhul thi.

tope tak bahar khinchkar puri shakti ke sath ek baar fir jakir ne prahar kiya aur ab tak koyla engine ki tarah speed wala ling bulet train ki gati se apni puri lambayi ke sath rekha ki gufa me sama gaya aur akhirkar pehli baar rekha ki yoni ke hontho ne jakir ke andkosho ka chumban liya. rekha ke kuch samjhne se pehle hi jakir ne apne ling ki puri lambayi ko 10-15 baar tej tej jhatko ke sath andar bahar kiya jisse ki rasta thoda sugam ho jaye aur ek bar fir usne jad tak andar thuns kar uske kile par fateh paa li.
 horseride  Cheeta    
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#68
rekha-"aaaayyyyyiiiiiiii........... morriiii maiiiyyyyyyaaaaa....... faaaadddd diiyyyaaaaaaaaa...... jallllllaaaadddd neeee...... haaaayeeeeeee..... kaunn see muhurattt mee tumseeee miliiiiiiii......... jaannnn leee liiiiiiiii.... chodoo mujheee... nahiiii karnaa kuch mujheeee. janeeeee doo..... pehleee hi achchiiiii thiii maiiiiii..... kasaayyiiiiii...... nirdayyiiiiiiiii....."

na jane kitni hi galiya sunte sunte jakir apne ling par rekha ki yoni ki sikaayi ka anand le raha tha. use to ye sab sunne ki adat thi kyoki uska ling jyada bada nahi hone ke bawjud bhi achchi khasi motaayi ka tha jise lene par shuru shuru me to badi se badi chalu aurat ko bhi din me taare dikh jate the.

rekha ka ab chaatpatana palang par mukke marna aur badbadana ab kuch kam ho gya tha aur jakir ko apne ling par rekha ke yoni ki pakad baar baar kam jyada hoti mehsus hui jiska matlab tha rekha ki yoni ab jakir ke ling ke liye ab fadfadane lagi thi.

fir se ek baar jakir ne rekha ko apna ling fasaye fasaye hi palang par pehle jaise letaya aur fir uspar pehle ki hi tarah letkar stano ko maslte hue dhakke marne laga. pehle to rekha kuch 3-4 minute ke liye charpatayi aur karahne lagi fir dhire dhire wo sab karahen madak siskariyon me badsl gyi.

jakir-"ummmff.... hummmfff...
ab bol meri chammak challo.. pehle to bada itra rahi thi ki jo mai kahunga karegi ab aayi na nani yaad"

rekha-"aaahhmmm.. uhhnnnnn... kar to rahi thi na sab kuch.. ummmm... aise jalad banne ko thode hi baat hui thi...aaahhhmm.."

jakir-"to bol... ab bhi taklif ho rahi hai.. ki maja aa raha hai."

rekha-sharmate hue "hato besharam kahin ke.. apne dost ki biwi ko usike palang par chodkar bhi khush nahi hue ki ab use aise besharm banane par tule ho.."

jakir-"are ab to tu meri rakhail hai meri jaaan... mere land ki gulaaam.. aur tujhe to itna besharam bana dunga dekha ki tu mere kehne par kuch bhi karne ko taiyar ho jaye, kisi se bhi chudwane ko taiyaar ho jaye."

rekha-aisi bate sunkar siharte hue"haye re mori maiyaaa... aaaahhh... kaisa bolte ho mai to khudd se hi najre nahi mila paungi aisa hua to... ummmffff ummmmmm..."

jakir-"meri jaan tu najre to kya sab kuch milayegi aur wo bhi bade maje se.. dekh iski shuruat mai aaj hi karta hun"

kehte hue jakir ne rekha ko ek baar fir palang ke kinare tak khincha aur ling andar fasaye fasaye hi usne rekha ki dono jangho ke niche se hath lejakar use hatho se thamte hue apni god me uthaa liya jisse ki rekha uske ling par mano baith si gayi par muh samne ki taraf karke.

ab jakir chodte chodte hi use rekha ki dressing table ki taraf le gaya jispar ek 5 feet ka aaina laga hua tha. ab uske thik samne jakar jakir khada hokar use god me uthaye uthaye hi chodne laga.

rekha-jhijhak kar ankhe band karte hue "aaahhh... uhhh.... ye kya hai aisa mat kijiye naa.. mujhe sharam ati hai.. ummm.... chaliye na bistar par... ummmm..."

jakir-"waah re waah meri fuljhadi.. apne yaar ka land jad tak ghusa ke sharm nahi aayi aur najren milane me sharm aa rahi hai... khol ankhe aur dekh is najare ko... dekh.... nahi to mai chala jaunga.... 3 tak ginunga ginti....
1....
2........
..........
.........."

rekha-jaldi se tokte hue" ummmm..... rukiye baba.... kholti hun ..... aaahhhh.... haayee daiyaaaa...."


ankhe kholte hi rekha ki ankho ke samne ek aisa drishy aa jata hai jisme ek kala takatwar jism ek najuk gore sangmarmari badan ko apni god me uthaye use tej gati se chod raha tha aur uska khire ki tarah mota kala syah land har jhatke ke sath bahar ata aur chala jata aur ye gatividhi kahi aur nahi uski khud ki yoni me chal rahi thi.

ab tak kisi tarah khud par kabu rakhe rekha ka jwalamukhi is drishya ki uttejna ko na jhel saka aur tej masti bhari chikh ke sath hi uske kaamras ne yoni bhar di aur jakir ke ling ko andar hi andar pighlana shuru kiya.

jakir bhi aaine me dikh rahe madak drishy aur rekha ke kamras se ublti yoni ki garmi na seh saka aur usne bhi apna virydaan rekha ki yoni ko samarpit kar diya.rekha is anand ke nashe me lagbhag besudh hokar jakir ke kandhe par pasar gayi. jakir ne use dhire se palang par letakar uske stano ko ek bar guntha aur fir ek jordar french kiss dekar apne bache kuche fate kapde lapetkar jane ki taiyari karne laga.

jakir-"aaj tune kharid liya mujhe meri rani... ab aaram kar... jaldi hi milenge.."

rekha-flying kiss dete hue "sirf milenge nahi... fir khelenge... aur meri bra panty mat bhulna"


idhar rekha thakan se chur behti yoni liye nangi hi bistar par nind ki aagosh me chali jati hai aur udhar jakir sidhiyon se hota hua rekha ki chat se apni gallery me chadkar apne ghar chala jata hai.
 horseride  Cheeta    
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#69
Bistar pe pade pade rekha ne najren tirchi karke ghadi me Dekha 5 baje the yani abhi bhi dindayal ke aane me 2 se jyada ghante the ye sochte sochte chehre par ek santushti ka bhav aur sharmili muskaan liye wo nind ki aagosh me chali gayi.

Kamre me ek alhad jawan jism apni puri masti lutane ke baad tarotaja hone ke liye aise fasra hua tha jaise chand utrne ke baad raat ki kali chadar asman pe fasarti ho. Rekha ke jism pe chamak rahi pasine ki kuch bunden bilkul taron ki tarah chamak rahi thi. Uski tangon ke bich pahadnuma fuli hui akriti liye hue uski suji hui yoni me se safed safed viry aur raj ka mila jula prawah baha ja raha tha jaise jwalamukhi me se lawe ki jagah malayi beh rahi ho.
Kuch 1 ghante ke baad achanak rekha ki ankhe khuli aur kamre me achanak najre daudane par use andhera hi dikhayi diya ghadi me samay dekhne ka prayas bhi asafal hi rha kyunki andhere me use ghadi ke kante to dur thik se ghadi bhi nahi dikh rahi thi.


"Offo oohhh.... kitni der ho gyi. Abhi to kitna kaam bhi pada hai. Aaj to pakka gali hi sunne milegi." Jaldi jaldi uthte hue usne apne sadi ke pallu ko sahi karne ke liye hath badhaya jaise ki aam taur par har mahila uthte hi karti hai. Hath ka sparsh sidhe kandhe ki twacha se hote hi use dhyan aaya ki wo to nangi hi soyi hui thi. Aur achanak hi use chand ghanto pehle hui ek ek harkat aur ghatna kisi film ki tarah dikh gyi jisse uski sanse fir se teji se chalne lagi.
Hath badhakar usne apni yoni ko chua jiske charo taraf dono ke prem ki nishani rupi dono ka mila jula ras sukhkar papdi ki tarah jam chuka tha. Wasnamay dil ne fir dhadkne ki shuruaat kar di thi aur man me fuljhadi jalne lagi jisse uske adharo pe ek chanchal muskaan tair gayi. Apne sukhte gale ko tar karne ke liye usne jaise hi thuk ko gatka to ab bhi uske muh me ghule jakir ke viry ke ansh ka swad uski jaban hota hua halak se utarkar mano hriday me jalti kaamagni me ghi ka kaam karne laga.
Par tabhi bistar ke kinare par swich ki dabate hi pura kamra table lamp ki maddham roshni me drishtisulabh ho gya aur ghadi me bajte 6.30 ne rekha ko jimmedariyon ka ehsaas kara diya. Bistar se uthte hi use apne nagn sharir par padne wali hawa kuch mitha mitha sa ehsaas kara rahi thi. Uske sharir me sb kuch pehle jaisa hi tha bas use apni yoni me kuch khali khali sa mehsus ho rha tha. Kuch der pehle hi ek mustande ling ki motaai ne uski yoni ko kafi chauda kar diya tha jiske karan uski yoni ki kali khilkar fool ban chuki thi.



Ek kone me padi apni sadi ko dohri kar usne apne sharir par lapeta aur pure kamre me yahan wahan bikhre prem krida ke ansh rupi samano ko thik karke 5 minat me hi bistar sahit pure kamre ko pehle jaisa kar diya.
Iske baad jaldi se nahakar akar usne fir wahi patiwrata ka chola odh liya aur kuch 20 minute me hi uska khana bankar taiyar ho gya tha. Kaam se fursat pakar rekha ne wapas kamre me jaise hi palang par baithi to use najro ke samne apne hi bistar par pet ke bal leti rekha dikhne lagi jiske kulhon par ek mota adhedh umra ka wyakti sawar hokar apne ling se uski yoni ke maje lut raha tha.


"Off..... mmmmm... jakir ji... ye kaisa rog laga diya apne mujhe..." budbudate hue jaise hi rekha age kuch keh ya kar pati darwaje par hui dastak ne use swapn lok se dharti par la khada kiya."lagta hai aa gaye hamare pehle patidev... hii.. hii.. hiii.."
"Aa gaye aap, aaj der kar di aane me." darwaje ka kiwad kholkar andar aate dinu se rekha ne ek chir parichit sawal kiya jo lagbhag har patni ape pati se karti hai.
"Haan... mahine ka akhir chal raha hai to kaam jyada hai. Aur bade saheb log bhi ane wale hai to taiyariyan bhi karni pad rahi hain." Dinu ne daftar ka rona roya jo ki rekha ne ek kaan se sunkar dusre se niklakar ek muskan se swagar kiya.
Khana khate pite aur sote tak to 9.30baj gya. Chand ghanto pehle jis bistar par rekha ek saand se chud rahi thi ab usi bistar par apne pati ke sath leti intzaar kar rahi thi ki dinu kuch kadam badhaye. par hamesha ki tarah kam ke bojh ka mara bechara dinu bistar par girte hi nindra sagar me samahit ho chuka tha. Aur idhar rekha aane wale waqt ke sajile aur rangile sapne ankho me lie dhire dhire swapn lok ki sawari karne lagi.
 horseride  Cheeta    
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#70
aat gehrati jaa rahi thi.din ki mastiyo se tutata badan aur kayi dino ke baad mili santusti ke baad aaj badi achchi nind rekha ko aa rahi thi. swapn lok me khoyi rekha sirf ek gown pehan kar soyi thi jo ki uska roj raat ka paridhan tha.


nind me khoye use achanak apne jangho par sarsarahat ka ehsas hone laga jisse use apne aram me aur maja aane laga. dhire dhire ye sarsarhat kisi hath ke sparsh me badal gayi jo ki uske ghutne ke upar se lekar jangho ke jod tak sahla raha tha. uske muh se awaj to nahi nikal rahi thi par uski sanse dhire dhire bhari aur tej hoti ja rahi thi.


achanak sahlane wale hath uske tangon ke jod par sthit uske yoni pradesh ke upri chamdi ko sehlane lage jisse rekha ki bhari hoti sanse jb baahar niklti to ek halki si siskaari bhi uske mukh se nikal jati.


kuch 3-4 minute sehlane ke baad sparh kar rahe hatho ki ek ungli upri bhag ko chirti hui gehrayi me utar chali.
"ahhhhhh..." ki ek tej siskari ke sath rekha ka jism ek baar pura ka pura dhanush ki tarah akda fir us ungli ka abhyast hokar andruni hisse me ragad ka anand lene laga. pehle dhirre dhire fir madhyam gati se aur fir kuch 5 minute baad teji se ungli ne andar aur bahar aana aur jana shru kiya jisse anand vibhor rekha kuch nind me aur kuch maje ki lahar me ankhe band kiye kiye hi hoth chabate hue fusfusane lagi,
"ishhhhh....... ummmmmm........ kya kar rahe hai aap, aaj apko ho kya gaya hai, aahhhh.... ufffff......"
rekha us kamre me maujud dindayal ko hi ye karya karne wala samajh kar use kehne lagi.


sach bhi tha kyunki is samay us kamre me to kya us ghar me bhi rekha ke alawa ekmatra insan dinu hi tha jo ki is waqt uske sth hi palang par soya hua tha.

achanak ek jhatke ke sath gehraiyon me khlti ungliyan bahar nikal gayi aur kuch gili naram aur lijliji si chij pehle to yoni ke upri parto par aur fir dhire dhire ghraiyo me utrne lagi. gehrayi me utrne ke sath hi kuch uske nichle hotho se takrane laga. nind me hi sahi par rekha ko samjhte der nahi lagi ki nichle hotho se takrati chij kisi ke hoth hain aur uski gehrayi me thirkati chij jibh hai.


itna sochne tak to gehrayi tak jibh utarkar hotho ne rekha ki yoni ko chusna bhi chalu kar diya jisse mile jhatke se ekdam se rekha ki ankhe khul gayi, par ankhe kholkar bhi use andhere me dekh pana sambhav nhi lag raha tha. ankhe band aur ankhe khuli rakhne par ek jaisa hi andhkaar dikh raha tha.

apna hath pasarkar usne dinu ke takiye par hath mara, par waha khali jagah paakar wo ashwast ho gayi ki ye dinu hi hai.
"aaj kya hua hai aapko..., ummm.., itne baras hue shadi ko, aaj to bilkul pagal hi hue jaa rahe hain aap... issshhhh...."
apni dono janghe failakar jagah deti hui rekha boli.


par koi jawab na pakar rekha ne socha jo ho raha hai hone do aur wo dono hatho se apni kamar tak upar uthe apne gown ko dhire dhire sarkakar apne sar se upar nikalkar puri tarah se nagn ho gayi aur jor jor se kabhi apne stan ko nichodti aur kabhi apni nippalon ko maslne lagi.


achanak chuste chuste rekha ko lagne laga ki wo ab tik nahi payegi aur shayad aisa hi chalta rahe to apne pati ke muh me hi jhad jayegi. "ummm... bas kijiye, chutne wala hai....., hat jaiye.... aahhh...." par na to koi jawab mila aur na hi chusna band hua. shadi ke itne salo baad aaj pehli baar dinu rekha ko charam sukh dene jaa raha tha, aur wo bhi hothon se chuskar, aur lagbhag rekha uske muh me hi jhadne wali thi. itne sare achraj bhare romanch se rekha ke man me umdta ghumdta sagar aur tivra gati se hilore marne laga. ab use lagne laga tha ki wo bardasht nahi kr payegi aur kisi bhi samay uska bandh dinu ke mukh me hi fut padega.


akadte sharir ko samhalti hui usne apna ek hath niche lejakar sir ko dhakelna chaha par sir par hath rakhte hi use ek aur jhatka laga. dinu ki umar lagbhag 50 ke aas pas ho chali thi par uske sar par pure baal the, aur is samay rekha ke jangho ke bich ka khajana lutata sir lagbhag pura ganja tha sirf kinare kinare kuch chote chote baal mehsus ho rahe the. achanak rekha ke man me ek hi naam aaya,
"jakir......."

awaj sunkar wo saya thoda ruka par fir usne apna kaam jari rakha, bas antar ye aaya ki ab tak rekha leti hui thi aur jakir bhi leta hua chat rha tha, par apna naam sunte hi usne rekha ki kamar pakadkar uski dono tango ko apne kandho par dala aur khud palang par ghutno ke bal khada ho gaya jisse rekha ka adha sharir hawa me uthta chala gaya. Ab rekha hawa me jhulte hue maje se hawa me hi udne lagi.


usne ab tak jin hatho se jangho ko tham rakha tha usme se ek hath uske nitmbo ke niche jakar unhe maslne lage aur dusra hath rekha ke cheehre ke upar thi jiski bich wali ungli rekha ke sochne ke pehle hi uske muh ke andar dakhil ho gayi. anand ke ghode par sawar rekha ne is ungli ka swagat puri tallinta se chuskar karna shuru kar diya jisse wo ungli andar, aur andar, aur andar hote hote puri lambayi me rekha ke muh me samayi hui thi jise wo kisi bachche ki tarah kas kaskar chuse ja rahi thi.


ab wasna aur bhay ke mishrit bhav se rekha ke man me jo uthal puthal chal rahi thi use shant karne ka ek hi upay rekha ko najar aaya. usne hath badhakar bistar ke bagal me rakhi table par rakhe night lamp ka button on kar diya jisase madhyam roshni hui par wo itni jaruru thi ki pure kamre me rakhi ek ek wastu saaf saaf najar aa sake.

roshni hote hi jangho ke bich ghusa hua chehra upar utha aur rekha ke premras se sarabor chehre par chir parichit kutil muskaan liye jakir maujud tha. uske is kale kalute gulab jamun jaise chehre pe lipti apni chashni dekhkar pehle se hi bhari baithi rrekha ne raj ki pichkaari chod di jo ki sidhe daant dikhate jakir ke upar barsane lagi.


kuch do minute tak to rekha ki ankhe hi band ho gayi, mano wo besudh si padi rahi par jakir nirantar uske dono stano ko sehlata raha bich bich me wo dhire se kabhi uski nabhi to kabhi uski jangho ko chum aur chat leta.

jis tarah sharab ka nasha adhik ho jaane par use utarne ke liye kuch ghunt sharab ke bade kaam aate hain waise hi kaam ki madira me puri trah se 'tunn' ho chuki rekha, is tarah ke ang-gharshan se kuch kuch hosh me aane lagi. dhire dhire use khyaal aaya ki ardh ratri me uske apne bistar par jise apne yauvan ki madira wo apna pati samajh ke pila rahi thi wo koi aur nahi balki dopahar me uski fulkumari ka ras loot chuka uska padosi kala bhaura jakir hai. Uske hath apni yoni tak gye jinke sparsh se wo sihar si uthi.


Is siharan se ek jhatke me usne ankhe kholi to uske chehre se kuch 6-8 inch ki duri par jakir ka chehra use dikha jo ki uske bagal me hi bistar par leta use nihaar raha tha.
"aap pagal ho gaye hai, aap yaha kyu aaye? aur.... aur mere wo kahan gaye?"
charo taraf najre daudate hue darte darte uske muh se ye nikla.

charo or muaayna karke use ye to samajh aa chuka tha ki dinu is kamre me is waqt nahi hai. kahan hai ye to shayad jakir janta tha, ya khud dinu. ghabrati rekha ke hotho par usike ras se bhigi ungliya rakhkar use chup karakar jakir rekha ke upar aaya aur isse pehle ki rekha kuch samajh pati ek jhatke me pura ka pura mota mushtanda ling rekha ki gehrayi me utar chuka tha.


is jhatke ko rekha bardasht nahi kr paayi aur uske muh se jordar chikh nikal gayi, "aaaaaaaiiiiiiiiiiiiiiiii.....
 horseride  Cheeta    
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#71
रेखा, रेखा... क्या हुआ तुम्हे?
रेखा, क्या हुआ? ठीक तो हो! डरावना सपना देखा क्या???" उसकी चीख सुनकर उसे झंझोड़कर उठाते हुए दीनू बार बार यही दोहरा रहा था। उसकी ऐसी चीख सुनकर वो भी घबराहट में पसीने पसीने हो चुका था। कुछ चीख के कारण और कुछ दीनू के जगाने से रेखा फट से उठ बैठी तब उसे समझ आया की उसकी कामक्रीड़ा दरअसल सपने में चल रही थी।

पसीने से तरबतर, गहरी सांसो को सम्हालती वो इतना ही बोल पायी," क..क ..क्या हुआ था अभी? आप कब आये?"

"हा... हा... हा... अरे, तुमने कोई सपना देखा है शायद डरावना, इसीलिए डरकर चीख रही थी तुम, तो मैंने जगा दिया तुम्हे। कोई बात नहीं ये लो पानी पी लो। और डरो मत, मैं हूँ तुम्हारे पास। ठीक है।" इतना कहकर उसे पानी का ग्लास पकड़ाकर दीनू ने उसके सर पर हाथ फेरा और गालो को थपथपाकर उसका पसीना पोंछने लगा।

पानी पीकर वापस लेटकर रेखा की आँखों में नींद और दिमाग में चैन दोनों का आभाव हो गया था। सपने की एक एक हरकत और आनंद की एक एक लहर उसे अच्छी तरह अब तक महसूस हो रही थी। पर दीनू का इस तरह अपने प्रति विश्वास और प्रेम देखकर उसे खुद पर ग्लानि भी हो रही थी। अजीब द्वन्द उसके दिमाग में चल रहा था, जिसमे एक ओर आदर्श भारतीय नारी के रूप में साड़ी में लिपटी रेखा थी, तो दूसरी ओर एक वासना की साक्षात् मूर्ति बनी नग्न खड़ी रेखा थी।

"ओह्ह... तो वो सब सपना था। अच्छा ही हुआ, कि ये सपना था। कहीं मेरे मुख से कुछ उल्टा सीधा तो नहीं निकल गया, जो इन्होंने सुन लिया हो। नही नही, सपने में तो इंसान सिर्फ बड़बड़ाता है, साफ़ नही बोलता। पर... ये सब जो हो रहा है, क्या वो सही है। इतना प्यार करते हैं ये मुझे, कितना ख्याल है मेरा। ये सब मैं क्या कर रही हूँ। ओफ़्फ़... कुछ समझ नहीं आ रहा, क्या करूँ।" इसी उधेड़बुन में सोचते-सोचते, न जाने कब उसकी आँख लग गयी।

उधर जाकिर ने आज नई चिड़िया का मांस चख लिया था, और उसका जायका अब भी उसके मुह में चिपका हुआ था। पर उसकी रातें हमेशा की तरह ही रंगीन करती माला, आज भी उसके बिस्तर की शोभा बढ़ा रही थी। जाकिर के घर के एक ओर रेखा का एक मंजिला घर था, जिसके बगल में जाकिर का तीन मंजिला घर था और फिर दूसरी और माला का एक मंजिला घर था, जो कि लगभग रेखा के घर जितना ही बड़ा था।


माला कहने को तो एक 32 साल की ब्याहता थी, जिसका पति गुलाबचन्द, दीनू की ही तरह शहर में नौकरी करता था, पर अच्छा कमाने के बावजूद भी, सेल्स की नौकरी होने के कारण हफ्ते में एक या दो दिन ही घर पर रहता था। उनका एक ही बेटा था, जो कि शहर में माला के माता-पिता के पास रहकर आठवीं कक्षा में पढ़ रहा था। गाँव में खेत होने की वजह से माला को वहीं रहना पड़ता था। खेती का सारा काम वैसे तो मजदूर करते थे, पर कभी कभी हिसाब-किताब लेने के लिए माला भी खेत जाती थी। खेत के काम के सिलसिले में ही जाकिर की दोस्ती गुलाबचन्द से हुई थी, जिसके कुछ दिन बाद से ही जाकिर ने माला को फसाकर, उसकी जवानी को ठंडा करने का बंदोबस्त किया था, और अब जाकिर माला के जवानी खेत में भी पिछले 4 सालो से हल चला रहा था।


32 साल की उम्र होने के बावजूद भी माला का चेहरा एकदम मासूम कली जैसा था। गोरा रंग, कन्धों तक घने काले बाल, मोटी मोटी कजरारी आँखे, भरे भरे होठ और कचौरी की तरह फुले गाल, उसके चेहरे की खासियत थी। पर उसकी विशेषता तो थी उसका भरा बदन। उसके स्तन और उसके नितम्ब औसत से कुछ ज्यादा ही बड़े थे, जिससे की साड़ी में बंधा उसका शरीर भी ऐसा मादक लगता था, कि मानो बिना बोतल की शराब।


"उम्म्ह्ह्ह्ह...... कितना और निचोड़ोगे, अब तो बस करो जाकिर! आह्ह्ह.... प.. प... पहले ही इन्हें दबा-दबा कर ऊऊईईई.... तुमने इन्हें आम से पपीता बना दिया है। म्मम्मम्मम्म....!!!" पलंग पर पसरे हुए जाकिर के लण्ड पर चढ़कर उछलती माला बोली,"आअह्ह.... और ये तुम्हारा मूसल जब अंदर जाता है, साला ऐसा लगता है, चीर रहा है मुझे, आह्ह्ह्ह.....।"


"साली... 4 साल से इसे खा रही है, अब भी ऐसा बोलती है, जैसे अभी नथ उतरी है तेरी। अब तक तो तेरे तीनो छेद को मेरे पप्पू की आदत हो जानी चाहिए।" धक्के लगाते जाकिर बोला।

अब्बब्ब.... बस, मैं थक गयी! मुझसे नहीं उछला जाता। अह्ह्ह...." इतना कहकर, धीरे से अपने नितम्ब को ऊपर करके माला ने मूसल को अपने अंदर से सरकाया, तब समझ आया कि माला के गांड के अंदर जाकिर का लण्ड तूफान मचाये हुए था। अभी अभी गांड खाली हुई थी, पर जाकीर के लण्ड की चौड़ाई में अब भी फैली हुई थी।


माला जाकिर के ठीक बगल में पीठ के बल फसर गयी, और जाकिर का लण्ड अब भी सीधा खड़ा झटके खा रहा था। "साली, इतनी जल्दी थक गयी आज। अभी तो बस 2 बार ही मारी है तेरी। चल, तू लेटी रह, मैं ही बजा लेता हूँ तुझे। पर पहले, इसे थोडा गिला तो कर।" कहता हुआ जाकीर, माला के स्तनों के ठीक ऊपर घुटनो के बल खड़ा हो गया। उसने माला पर वजन नहीं डाला था, पर फिर भी माला के बड़े बड़े स्तन, जाकिर के काली मोटी गांड से रगड़ खा रहे थे।

"थोडा तो सुस्ताने दो... म्मम्मम्मम..... गग्ग्गुनगुंगु.....।"

माला वाक्य पूरा कर पाती, उसके पहले ही जाकिर का लिंग उसके मुह में आधा घुस चूका था, और गले की दीवारो पर ठोकर लगती पाकर माला ने अपने गर्दन को हिलाकर उसे आगे जाने का रास्ता दिया, और जाकिर का लिंग पूरी लम्बाई में माला के गले तक उतर गया, जिससे उसके ठोड़ी पर जाकिर की गोटियां टकराने लगी।

"उम्म्म्म.... गम्म्मम्म.... ह्म्म्म्म्म्म.... अम्मम्मम्म...." बस यही आवाजे माला के मुह से निकल रही थी। शुरू-शुरू के 5-7 झटकों में दिक्कत हुई, पर उसके बाद माला का मुह और गला अभ्यस्त होकर जाकिर के लिंग की पूरी लम्बाई को मालिश देने लगा।

वैसे भी मिलने के 3 महीने के भीतर ही माला को जाकिर ल्ंड चूसने का विशेषज्ञ बना चुका था, और लगभग 6 महीनो मे सारी काम्कृड़ाओ मे माला पारंगत हो चुकी थी! कुछ 5 मिनट की घनघोर चुसाई के बाद, जाकिर ने लिंग को बाहर खिंचा, तो लम्बी-लम्बी साँस लेती माला "जान ले लो मेरी, एक बार में ही, बार-बार मारने से अच्छा।" इतना ही बोल पायी थी, कि उसकी फिर से चीख निकल गयी, क्योंकि जाकिर ने चित्त लेटी माला के योनि को अपने मुह में भरके चूसना शुरू कर दिया।


जल्दी ही उसकी योनि को अच्छे से चिकना करके जाकिर पलंग से उतरा, और माला के जांघो को पकड़कर पलंग के किनारे तक लाकर, एक ही झटके में पूरा लिंग उसकी गहराई में उतार दिया, इस झटके से एक बार तो माला की जान निकल गयी और उसकी आँखे फट के बाहर आ गयीं।


फिर धीरे धीरे उसे आनंद की अनुभूति होने लगी जिससे माला की आँख एक पल को बन्द हुई और फिर आँखे बन्द किये हुए ही वो इस आनंद के घोड़े पर सवार बादलों की सैर करने लगी। "आह्ह्ह... कितना सुकून देता है ये कमीना, अंदर जाते ही। सारी प्यास, सारी कसर निकल जाती है एक बार में ही।" अपने पैर जाकीर के गांड के चारो ओर लपेटकर, दोनो हाथो को उसके गले में डालकर, उसने जाकिर के होठो को चूमा, चूसा।


और जोर से करने का इशारा करती माला बोली। "पर तुमको तो जबसे मेरे पिछवाड़े का चस्का लगा है, बेचारे मेरे इस पुराने छेद को तो भूल ही जाते हो। उईईईईई......। आज कोई नई चिड़िया फसी है लगता है, तभी उसकी याद में आज मेरी चूत पे मेहरबानी हुई है इतनी। ह्म्म्म्म्म्म..."

"तू भी, कुछ भी बोलती है। हफ़्फ़्फ़्.... हफ़्फ़्फ़्फ़्..।" धकके मारता जाकिर एक पल को ऐसी बाते सुनकर रूका, और फिर दनादन दुगुने ताकत से धकके मारने लगा। नयी चिड़िया की बात सुनकर, उसे रेखा के साथ हुई दिन की जोरदार चुदाई याद आ गयी। "वो तो तेरी गांड, है ही इतनी मस्त की मेरे सामने आती है तो मेरा तो मन करता है कि अपने पहलवान को सारी जिंदगी वहीं कुश्ती करने दूँ।" कहता हुआ जाकिर उसके मोटे-मोटे स्तनों पर टूट पड़ा और बेदर्दी से निप्पलो को मसलने लगा और स्तनों का मर्दन करने लगा।


"वो तो तुम्हारे जोश को देखकर ही पता चल रहा है। हम्मम... हम्म्फ... हम्ममम....." जाकीर जैसे सांड के धक्के को झेलती माला से, जाकिर के चेहरे की मुस्कान छिप ना सकी। "कौन नयी मुर्गी हलाल हुई है आज। इस कमीने मुस्टंडे को झेलने कौन तैयार हो गयी। आअह्हह...... कहीं वो छम्मक छल्लो रेखा तो नहीं सो गयी तूम्हारे निचे।


उईईईई......." इतना सुनते ही जाकिर के चेहरे की मुस्कान और चौड़ी हो गयी, जिसे देख माला को समझते देर नहीं लगी। जाकीर के धक्के और तेज और तेज होते गए, और कमरे का माहौल गर्म से गर्म होता गया।

न जाने कितने बार जाकिर का भुजंग, माला के सारे बिलों की सवारी करके अब आराम करने चला था| दोनों के शरीर थककर चूर थे, पर अब भी गुत्थम-गुत्था होकर लिपटे पड़े थे, और दोनों के दिल और दिमाग मे एक ही नाम गूंज रहा था "रेखा........"
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#72
page 50
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#73
Awesome
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#74
अगला दिन, नई सुबह, रेखा आज सुबह बड़ी ताजगी लिए उठी और उठते ही पता नहीं क्यों उसके चेहरे पर एक मुस्कान सी थी| उसके उठने के पहले ही हमेशा की तरह दिनु उठ चुका था और नहाने के लिए जाने की तैयारी कर रहा था| रेखा फटाफट उठी और उठकर चाय नाश्ता बनाकर उसे दिया| किसी मशीन की तरह दिनु के नहा के आने के पहले ही रेखा ने उसके लिए खाना बना दिया और टिफिन भी लगा दिया| और दिनु साहब फिर से अपने घर की घटनाओं और अपनी बीवी की कारस्तानियों से बेखबर अपनी साइकल उठा कर निकलने लगे|

"एक गाड़ी क्यो नहीं ले लेते आप| कितना थक जाते हैं वापस आते हैं तो|" शायद रात के दिनु के व्यवहार के याद आने पर रेखा को भी दिनु की इस मशक्कत पर तरस आ गया| "बस अड्डे तक साइकल मे जाते हैं फिर बस के धक्के खाते शहर आना-जाना| क्यो इतनी मेहनत करते हैं? थोड़ा अपना भी ख्याल रखा करिए|" टिफिन पकड़ाते रेखा बोली|

"अच्छा बाबा, ले लेंगे| पर बहुत दिनो से गाड़ी चलायी नहीं है, तो पहले कोई पुरानी गाड़ी ही लेंगे|" टिफिन लेकर बाहर निकलता दिनु बोला," ओफिस जाकर जाकिर भाई से फोन पे बात करता हूँ, उन्हे जरूर जानकारी होगी| उनसे ज्यादा भरोसे वाला बंदा पूरे गाँव मे नहीं है|"

जाकिर का नाम सुनते ही जैसे रेखा पर कोई बम गिरा| सुबह के काम-धाम मे वो तो भूल ही गयी थी कि अब फिर से जाकिर का सामना करना पड़ेगा उसे| अजीब सा डर, कुछ झिझक, थोड़ी शर्म और बहुत सारे रोमांच से उसके दिल कि धड़कने अपने आप बढ़ गयी। उसके जांघों के बीच कुछ गीला-गीला सा महसूस होने लगा उसे, जो कि पसीना तो कतई नहीं था।

"अरे क्या हुआ? कहाँ ध्यान है तुम्हारा?" घर के बाहर जाने को तैयार खड़ा दिनु चिल्लाया| "दरवाजा बंद कर लो, तीन बार कह चुका हूँ| तबीयत तो ठीक है ना|"

"हं...हं...हं...हाँ, क...कुछ नहीं हुआ। आप जाइए, मै बंद कर लेती हूँ।" हड़बड़ाती रेखा बोली," शाम को जल्दी आइएगा, कल देर कर दी थी आपने।"

"अभी कुछ दिन तो रोज ही देर होगी, मुख्यालय से बड़े साहब लोग आए हैं। अगर मुझे देर हुई, तो फोन कर दूंगा।" कहता हुआ दिनु चल पड़ा और मिनट से भी कम समय मे रेखा के नजरों से ओझल हो गया।

रेखा ने पलटकर जाकिर के घर कि ओर देखा और फिर वापस दिनु के जाने कि दिशा मे देखा और फिर घर मे घुसकर किवाड़ बंद करके उससे टिककर आंखे बंद करके ऐसे गहरी-गहरी साँसे लेने लगी मानो 10 कदम चलकर नहीं 10 किलोमीटर से दौड़कर आई है।

कुछ 5 मिनट खुद को समहालने के बाद ना जाने क्या सोचकर उसके चेहरे पर एक अनोखी नटखट सी मुस्कान आ गयी। उसने अपने हांथ नीचे ले जाकर साड़ी के ऊपर से ही अपनी योनि को कसके मुट्ठी मे भींच लिया," सारी मुसीबत कि जड़ तू ही है कमबख्त। तेरी खातिर क्या-क्या करना पड़ता है। अब जो होगा उसकी जिम्मेदार तू ही होगी कमीनी।" अपने होठो को चबाती रेखा बड़बड़ाई, फिर मुसकुराते हुए अपने कमरे कि तरफ चल पड़ी।

ठंडा पानी पीकर उसे बड़ा सुकून मिला, और वो एक अंगड़ाई लेती हुई नहाने जाने के लिए जैसे ही बाथरूम कि ओर मुड़ी, एक आवाज ने उसके कदम जैसे जमीन से ही चिपका दिये।

[ट्रिन.. ट्रिन...] [ट्रिन.. ट्रिन...] [ट्रिन.. ट्रिन...] [ट्रिन.. ट्रिन...] [ट्रिन.. ट्रिन...] [ट्रिन.. ट्रिन...]

फोन बजने लगा। फोन बजते-बजते बंद हो गया, पर रेखा कि हिम्मत फोन उठाने कि तो दूर, उसके पास जाने कि भी नहीं हो रही थी। उसके पैर जहां खड़ी थी, वहीं जैसे जम गए थे। फोन बजना बंद होते ही उसने राहत कि साँस ली ही थी, कि तभी फिर से...
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#75
[ट्रिन.. ट्रिन...] ... खटक... "ह..ह..हैलो!" पता नहीं क्या सोचकर, अपनी जगह पर जमी खड़ी रेखा, झट से जाकर, फोन कि एक घंटी पूरे होने के पहले ही फोन उठा चुकी थी। दूसरी तरफ से एक चिर-परिचित आवाज गूंजी।

जाकिर:- "क्या कर रही थी मेरी रानी। फोन क्यो नहीं उठा रही थी। अभी-अभी तो अंदर आई है और अचानक कहाँ खो गयी।"

रेखा:- जाकिर की आवाज सुनके घबराते हुए "क क क्या? कुछ भी तो नहीं हुआ। वो मै बाथरूम गयी थी।"

जाकिर:- "हा हा हा हा हा । अच्छा हुआ, तैयार हो गयी तू सब कर के, तो मै आ जाऊँ?"

रेखा:- एकदम से सकपका कर "क क क्या...???अभी तो मै नहाई भी नहीं हूँ। अभी क क कैसे? और आपको दिन रात ये ही काम सूझता है क्या?"

जाकिर:- "अरे मेरी जान, तूने दीवाना ही ऐसा बना दिया है मुझे अपना। हर समय तुझे ही देखता हूँ आंखो के सामने। और तो और रात मे सपने मे भी तू ही आती है अब तो।"

रेखा:- अपनी तारीफ सुनके इठलाते हुए "आहा हाहाहा... ऐसे बोल रहे हैं जैसे पहले कोई लड़की देखी नहीं आपने। पता नहीं किस-किस घाट का पानी पिया होगा।"

जाकिर:- "भले ही पिया हो, पर अब तो सिर्फ तेरी चूत का पानी ही पीऊँगा तेरी कसम, हा हा हा हा हा...।

रेखा:- शर्माते हुए "छी छी... कितना गंदा बोलते हो। कुछ तो शरम करो। औरत से कैसे बात करते हैं, नहीं पता क्या?"

जाकिर:- "अच्छा! जब कल मेरे लन्ड को चूस रही थी और अपनी चूत का पानी मुझे पिलाया, तब शर्म नहीं आई। अब शर्मा रही है मेरी रानी।"

रेखा:- जाकिर की बातों से उत्तेजित होकर अपनी चूत को भींचते हुए "हाय दइया, आपसे तो बात करना ही बेकार है।"

जाकिर:- "अच्छा-अच्छा, मत कर बात, बस प्यार करते रह। वैसे तेरी छत पर एक चीज मैंने छोडी है तेरे लिए, जाकर ले आना और बताना कैसी है।"

रेखा:- आश्चर्य से "मेरी छत पर??? ऐसा क्या है? मुझे पता है, फिर से बहाने से बुला रहे हो छत पर मुझे। मै नहीं आने वाली।"

जाकिर:- "अरे नहीं-नहीं। तेरी कसम, सच मे, एकदम शानदार कच्छी-बानियान भेजी है तेरे लिए। पहनना, फिर मै 10 मिनट मे फोन करूंगा, तब बताना मेरी जान। जा, जल्दी से ले आ अब। या मै खुद ला के दूँ।"

रेखा:- एकदम से हड्बड़ाकर " न न न न नहीं...। मै खुद ले आऊँगी जाकर। और आप 10 मिनट नहीं, कम से कम आधे घंटे मे फोन करना, मुझे नहाना भी है। अब रखो फोन।"

जाकिर:- "हा हा हा हा हा। चल ठीक है। देख लेना, तुझे बहुत पसंद आएगी और वो पहने हुए तू मुझे पसंद आएगी। हा हा हा। " "

रेखा:- झेंपते हुए "ओफ्फो... रखती हूँ।" कहकर फोन रख देती है।

पहले दो मिनट तक तो रेखा सोच मे पड़ जाती है कि वो क्या करे, कहीं ये जाकिर का बहाना तो नहीं उसे छत पे बुलाने का। लेकिन फिर आखिर अपने दिल के हाथो मजबूर, या कहें कि अपनी चूत के हांथों मजबूर होकर, वो धड़कते दिल और कांपते पैरो से ऊपर छत की ओर बढ़ती है।

सिर्फ एक मिनट के छत तक के इस सफर मे उसकी चूत का पानी बह-बहकर उसकी जांघों से होता हुआ उसके घुटनो तक आ चुका था। उसने पहले छत के दरवाजे से कनखियों से पूरे छत का मुआयना किया, जिससे उसे पता चला कि छत पूरी खाली पड़ी है, जिससे उसकी जान मे जान आई। छत मे आने पर उसने देखा कि छत पर एक छोटा सा गुलाबी रंग का पैकेट पड़ा है, जिसे उठाकर वो लगभग दौड़ते हुए वापस कमरे मे आ गयी।

कमरे मे आते ही उसने वो पैकेट पलंग पर पटका और धम्म से पलंग पर बैठकर पहले अपनी सांसों को सम्हाला और फिर झट से नहाने के लिए बाथरूम मे घुस गयी। आज बड़े दिनो के बाद बड़े अच्छे से एक-एक अंग को साफ करके नहाते हुए रेखा गुनगुना भी रही थी। नहाकर अपने बदन को अच्छे से तौलिये से सुखाकर, वो उसी तौलिये को लपेटकर बाहर आई और जाकिर के गुलाबी पैकेट को खोलकर जैसे ही उसने देखा कि उसकी आँखें फटी कि फटी रह गयी। "ये क्या है? ये कैसे..." बस उसके मुह से इतना ही निकल पाया।

रेखा अपनी आंखो पर यकीन नहीं कर पा रही थी कि ऐसी कोई चीज उसे देखने को मिलेगी और वो भी गाँव मे। उसने ये चीजे देखी तो थी पहले भी, पर कॉलेज के समय मे, उसकी कुछ बिगड़ैल सहेलियों के घर पर, अकेले मे, सिर्फ वैसी वाली फिल्मों मे देखा था जिन्हे वो अकसर अपनी गर्मी मिटाने के लिए देखा करती थी। उसने जल्दी-जल्दी कई बार अपनी पलकें झपकाई कि वो यकीन कर सके कि ऐसी कोई चीज वाकई मे उसके सामने चंद इंच दूर पड़ी है। उस चीज को छूना चाहती थी वो, पर डर के मारे उसके हांथ कांप रहे थे। अभी अभी अपने शरीर को ठंडा और तरो ताजा करके आई रेखा की गर्मी का ज्वालामुखी उसके बदन मे फिर से उबाल मारने लगा, जिसका लावा धीरे धीरे उसकी योनि से रिसना शुरू हो चुका था।
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#76
उस पैकेट मे एक छोटी सी सफेट पैकेट और थी, जिसे खोलने पर रेखा को फिर से झटका लगा," पूरा का पूरा ठरकी है ये इंसान तो। या हो सकता है कि रंगीन मिजाज शौकीन हो। पर बेचारा करे भी तो क्या करे अकेला पड़े-पड़े? आखिर शरीर कि जरूरते भी होती हैं, जैसे मुझे जरूरत है। ओहह... ये सब मै क्या सोच रही हूँ। जाकिर... तूने तो मुझे पागल बना दिया है। अब तुझे मैंने पागल ना बनाया, तो मेरा भी नाम रेखा नहीं। जलवे देखना चाहता है ना? अब तुझे तो ऐसे-ऐसे जलवे दिखाऊँगी कि डर है, कहीं तेरा हार्टफेल ना हो जाए। ही ही ही ही ही...।" अपनी रिसती हुई योनि मे दो उँगलियो से अपनी खुजली को शांत करने का असफल प्रयास करती हुई रेखा बड़बड़ाने लगी।



[ट्रिन.. ट्रिन...] [ट्रिन.. ट्रिन...] [ट्रिन.. ट्रिन...] [ट्रिन.. ट्रिन...] फोन बजने लगा तो रेखा ने घड़ी देखी, ("समय का पूरा पक्का है ये आदमी तो, एकदम आधे घंटे मे फोन किया है, जैसे फोन के पास एक हाथ मे घड़ी लेकर बैठा हो और दूसरे हाथ मे... हे हे हे हे...।")मन ही मन रेखा ने सोचा, फिर अपने बदन पर अटका एकमात्र तौलीया भी निकाल फेका और फोन का रिसीवर लेकर बिस्तर पर वापस लेट गयी।


रेखा:- अनजान बनते हुए "हैलो, कौन???"

जाकिर:- "अरे मेरी जलेबी, तेरा एक ही तो दीवाना है इस दुनिया मे। तूने खुद ही टाइम दिया था आधे घंटे का, और खुद ही भूल गयी। कैसा लगा मेरा तोहफा मेरी जान को? पसंद आया कि नहीं???"

रेखा:- इठलाते और अदाओं के साथ "ये कैसा तोहफा है? कैसी-कैसी ऊटपटाँग चीजे आती रहती हैं आपके दिमाग मे? मै ये कैसे पहनूँगी? कुछ ढंग का आपको लाने बोला था। इसमे पहनने जैसा कुछ है भी? एक काम ढंग का नहीं कर सकते हो आप, और बड़ा कहते रहते हो कि दीवाने हो।"

जाकिर:- आवाज थोड़ी गंभीर बनाते हुए "अरे पहनने का ही है वो। क्या बुराई है उसमे? तेरे लिए कितने प्यार से भेजा था मैंने, सोचा था कि तू खुश हो जाएगी। पर तुझे तो कदर ही नहीं है अपने इस दीवाने की। रुक मै अभी आता हूँ और देखता हूँ कि ऐसा क्या खराब है मेरा तोहफा?" [खट्ट...]

जाकिर ने फट से फोन रख दिया जो कि रेखा ने सोचा ही नहीं था। उसने तो सोचा था कि वो जाकिर को और थोड़ा तड़पाएगी, पर पिछली बार कि तरह इस बार फिर से रेखा का खेल बीच मे ही बिगड़ चुका था और अब जो होना था वो रेखा के हाथ मे नहीं था। उधर जाकिर मन मे तरह-तरह कि तस्वीरें बनाता हुआ अपने शरीर पर सेंट छिड़क रहा था। अपने भेजे हुए कपड़े पहने खड़ी रेखा की कल्पना करके ही उसका दिल धड़कने और उसका लिंग फड़कने लगा था।

"बस मेरे प्यारे बस, चल ही रहे है अभी। कल जहां घूमने ले गया था, तुझे वो जगह कितनी पसंद है मै जानता हूँ।" बड़बड़ाता हुआ जाकिर मुस्कुराया। अपने लिंग को लूँगी के ऊपर से ही चड्डी मे एडजस्ट करता हुआ वो अपनी गैलरी पर आया। चारो ओर एक बार सरसरी निगाह डालकर अपनी गैलरी मे लगी लोहे कि ग्रिल को पकड़कर वो धिरे से रेखा के छत कि दीवार पर उतरा और वहाँ से होता हुआ रेखा कि सीढ़ियो से उतरकर सीधे रेखा के बेडरूम पर पहुँच चुका था।

बेडरूम मे कोई नहीं था। थोड़ा और अंदर आकर उसने पाया कि बाथरूम का दरवाजा अंदर से बंद है। जाकिर अपने चेहरे पर एक कमीनी मुस्कान लाते हुए हल्के से दरवाजे को बजाकर प्यार से पुकारता है, "क्या कर रही है अंदर।" जिसके जवाब मे अंदर से आवाज आई, "आप बैठिए मै अभी आई।" इतना सुनते ही जाकिर पूर्ण आश्वस्त होकर, वहीं पलंग पर एक राजा की तरह पीछे टिककर, अगल-बगल पड़े तकियों पर हाँथ फैलाकर, मंद मंद मुस्कराता ऐसे बैठा था, जैसे कहीं का नवाब हो और अभी उसके सामने नर्तकियाँ नृत्य प्रस्तुत करने वाली हों।

[खटक] दरवाजा खुलते ही रेखा बाहर आती है, जिसका चेहरा देखकर जाकिर उसकी सुंदरता मे एक बार तो खो ही जाता है। पर जैसे ही उसकी निगाह नीचे जाती है, तो उसके पैरो तले से जमीन निकल जाती है। रेखा तो एक साधारण से गाउन मे उसके सामने खड़ी थी। हालांकि साधारण सा गाउन भी उसके सजीले शरीर पर बिजलीयाँ गिराने को काफी था, पर जो उम्मीदें लगाए जाकिर आया था, वो तो चकनाचूर हो गयी थी।



जाकिर:- "ये क्या है? तुझे तो मेरा तोहफा पहनना था न? क्यों नहीं पहना?"

रेखा:- आंखे नचाते हुए "अरे... वो पहनने लायक ही नहीं था, तो कैसे पहनती।"

जाकिर:- "मै क्या-क्या उम्मीदे लगाकर आया था, तूने सब चौपट कर दिया। एक बार पहन कर देख लेती, तो क्या चला जाता तेरा। मेरा दिल रखने के लिए ही पहन लेती।"

रेखा:- अपने कमर पर हाँथ रखते हुए "आहा-हाहाहा... आपके दिल रखने के लिए मै ऐसे कपड़े पहनू? और क्या क्या करूँ आपका दिल रखने के लिए? वो भी बता दीजिये लगे हाथो।"

जाकिर:- "अच्छा बाबा रहने दे। मै ही कुछ ज्यादा उम्मीद लगा बैठा था शायद। पर मुझे समझना चाहिए था कि आज की दुनिया मे सच्चे प्यार की कोई कदर नहीं है।" कहता हुआ जाकिर उठने को हुआ, तभी रेखा कि आवाज ने उसे वहीं के वहीं रोक दिया।

रेखा:- नशीली आवाज मे "अरे ,मेरे भोंदू बलम, रुक भी जाओ। आपका तोहफा कबुल किया है मैंने, वो भी सिर्फ और सिर्फ आपके लिए। पता नहीं ऐसी चीजे आपको मिली कहाँ से। शायद आप भूल गए हो कि आपका तोहफा अंदर पहनने वाली चीज है। समझे...। ही ही ही ही...।" कहती हुई रेखा खिलखिलाकर हंसने लगी।



जाकिर वापस अपनी पुरानी स्थिति मे बैठ गया और रेखा के भोले चेहरे की चंचल आँखों मे देखकर, उसकी इस अदा पर फिदा हो गया। उसने अपनी आंखो से मिन्नत की, जिसे मानते हुए रेखा पलंग के ठीक सामने आकर खड़ी हो गयी और एक लंबी सांस भरकर, अपनी भोहें नचाते हुए, अपने ढीले-ढाले गाउन को दोनों हाथो से पकड़ा और एक ही झटके मे अपने सर के ऊपर से निकालकर जाकिर के मुह पर फेक दिया। रेखा के शरीर के गंध से भरा हुआ गाउन जाकिर के लिए वैसा ही था, जैसे शराब के नशे मे झूमते हुए को एक बोतल और पिला दी जाये। इस नशे से उबरकर जाकिर ने जैसे ही अपने चेहरे से गाउन हटाया, तो उसके दिल ने इतनी ज़ोर से धड़कना शुरू कर दिया, कि धड़कने रेखा को भी सुनाई दे रही थी। अपनी लूँगी के ऊपर से ही वो लिंग को मसलने लगा, क्योंकि दृश्य ही कुछ ऐसा उसकी आंखो के सामने था।
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#77
जाकिर का मुह खुला का खुला रह गया, उसकी पलकें झपकना भी बंद हो गयी। रेखा के नंगे बदन को पहले ही देख और भोग चुका जाकिर, अपने सामने प्रस्तुत रेखा के इस नए रूप से मानो जड़वत ही रह गया। सामने रेखा सकुचाती हुई सफ़ेद रंग की एक टॉप नुमा ब्रा और एक सफ़ेद रंग की छोटी सी पैंटी मे खड़ी थी। अपनी इस हालत से वो शर्म के मारे जाकिर से नजरे भी नहीं मिला पा रही थी। उसकी ब्रा सिर्फ इतनी ही थी, कि उसके स्तनो को ढक सके और सिर्फ स्तनो को ढकने के अलावा उसमे जरा भी अतिरिक्त कपड़ा नहीं था। कंधो से सिर्फ पतले-पतले डोरे से वो टिकी हुई थी, और पीठ पर कपड़े की चौड़ाई और पतली होकर सिर्फ दो इंच की थी, जिसमे एक जिप लगी हुई थी। ऐसा ही हाल पैंटी का भी था। कमर से सिर्फ 3 इंच की चौड़ाई वाली उसकी पैंटी, उसके जांघों के जोड़ तक आते-आते इतनी कसी और छोटी हो रही थी, कि उसकी योनि का कटाव और आकार साफ दिख रहा था। सबसे बढ़कर बात तो ये थी कि ब्रा-पैंटी का कपड़ा इतना झीना और पारदर्शक था कि अंदर का सारा खजाना तिजोरी के बाहर से ही नजर आ रहा था।



"आहह, कयामत है तू तो। वो तो अच्छा है कि मेरा दिल मजबूत है, वरना तुझे ऐसे देखकर तो अच्छे-अच्छों का हार्ट अटैक हो जाए मेरी रानी।" अपने खुले मुह से टपकती लार को पोंछता जाकिर बोला, "क्या बेमिसाल हुस्न है तेरा, वाह... जी चाहता है कि ऐसे ही देखता रहूँ तुझे। बड़ी फुर्सत से बनाया है तुझे बनाने वाले ने। बेमिसाल... लाजवाब... वाहह.... आहह...।" अब जाकिर बेशर्मी से रेखा को देखते हुए अपनी लूँगी के ऊपर से ही अपने लिंग को मसलते हुए उसे ऊपर नीचे करने लगा।

"धत्त... आप भी ना, कुछ भी बोलते हो। ऐसा क्या है मुझमे खास? साधारण सी सीधी-सादी हूँ मै तो, ऐसी कोई खूबसूरत तो नहीं, कि आप ऐसी तरीफे कर रहे हो।" अपनी तारीफ सुनकर रेखा इठलाते हुए बोली। इस दुनिया मे महिलाओं के लिए तारीफ वो टॉनिक है, जिसे पीकर महिलाएं बड़े से बड़ी जंग भी जीत जाए। फिर ये तो सिर्फ बिस्तर कि जंग है, जहां औरतें हमेशा मर्दों से बीस ही रहती हैं, उन्नीस नहीं। "और ये गंदा काम क्या कर रहे हो हम्म... शरम नहीं आती ऐसे करते।" रेखा अपनी आंखो से जाकिर के लिंग मसलने को इशारे से बताते हुए बोली।



"ये... ये तो बस तुझे देखकर काबू नहीं रहा मेरा खुद पर, अपने आप ही हाथ चला गया यहाँ।" अपने पीले-पीले दाँतो को दिखाता जाकिर बोला, और बोलते ही अपने हांथ लिंग पर से हटा लिए, जोकि अब भी किसी कडक सिपाही कि तरह सीधा खड़ा था, और बीच बीच मे उचक कर रेखा को सल्युट मार रहा था। "अब वही खड़ी रहेगी क्या? जरा पास से तो देखने दे। इधर तो आ।" माथे पर आए पसीने को पोंछता हुआ वो बोला।

"अच्छा... आपकी आंखे इतनी तो खराब नहीं, कि आपको मै दिखाई नहीं दे रही हूँ। मै और पास नहीं आने वाली।" चेहरे पर मादक मुस्कान लिए रेखा अपनी आंखे नचाते हुए बोली। "देखना था देख लिया ना, अब ऐसी बेकार कि चीजे नही देना मुझे, समझे... जो मै इस्तेमाल ही ना कर पाऊँ। देखो, कितनी छोटी-छोटी है हर जगह से, और इसे पहनने का मतलब ही क्या है, जब सब कुछ दिखता है अंदर का। ऐसी चीजे कोई पहनता है भला। एक काम कर नहीं सकते आप ढंग से, हुंह।" अपने स्तनो और अपनी योनि प्रदेश को बारी बारी से इशारे से दिखाती रेखा, गोल गोल घूम के जाकिर को अपना बदन दिखाते और छेड़ते हुए बोली।




"ढंग का काम तो आज ही हुआ है मेरी जान। अब तो तू ऐसे ही कपड़े पहनेगी, बाकी समय पहनने के लिए भी मै तेरे लिए कपड़े लाया हूँ। पर ऐसे कपड़े तू सिर्फ और सिर्फ मेरे लिए पहनेगी।" कहकर जाकिर ने अपने कुर्ते कि जेब से एक सफ़ेद रंग कि साधारण सी ब्रा निकाली, उसे चूमा, और रेखा कि तरफ उछाल दिया। ऐसे ही उसने कुल 3 ब्रा रेखा कि तरफ उछाले, जिसे रेखा किसी मंजे हुए फील्डर कि तरह लपकती गयी। फीर कुर्ते कि दूसरी जेब से उसने एक-एक करके तीन साधारण सी पैंटी निकालकर, पहले कि तरह ही चूमते हुए दो को तो फेक दिया, पर तीसरी को अपने तने हुए लिंग पर लूँगी के ऊपर से ही लपेट लिया। "अब इसे तो तुझे आकर ही लेना पड़ेगा। आजा... ले ले इसे, तेरे लिए ही है।" जाकिर ने इशारा किया लिंग पर लिपटी पैंटी कि तरफ, पर वहाँ मौजूद दोनों जानते थे कि उसका इशारा किस ओर है।

रेखा कि आंखो मे शरारत और चेहरे कि मुस्कुराहट मे नटखटपना बढ़ गया, उसने एक बार नीचे जमीन कि ओर देखा, फिर धीरे-धीरे जाकिर कि ओर बढ्ने लगी। हर कदम के साथ उसके दिल कि धड़कने, 5 धड़कन प्रति कदम के हिसाब से बढ़ती जा रही थी। पलंग के कोने पर आकर रेखा ठिठकी, फिर ना जाने क्या सोचकर पलंग पर चढ़कर, अपने घुटनो और हथेलियों के बल चलती हुई, जाकिर के बिलकुल पास आकर रुक गयी। कुछ पाँच सेकंड दोनों कि आंखो ही आंखो मे इशारा हुआ, और अप्रत्याशित रुप से रेखा ने नीचे झुककर, लिंग को पैंटी और लूँगी समेत ही लगभग तीन इंच तक अपने मुह मे भर लिया।



जाकिर के मुह से एक सित्कार सी निकली, जो कि रेखा के मुह से निकलती "उम्म...ग्गग्म्म...अम्मम्म... " कि आवाजों मे दब सी गयी। 5 सेकंड मे ही रेखा ने अपना सर उठाया और जाकिर कि ओर देखा। रेखा ने मुह से लिंग पर लिपटी निकाल ली थी, जिसे अब वो अपने हांथ मे लेकर जाकिर को जीभ दिखाकर चिढ़ाते हुए खिखिलाकर हंसने लगी। "कैसा लगा... मजा आया? ही ही ही ही ही..." शहद मे डूबे रेखा के शब्द जाकिर के कानो को भी मीठा कर गए।



इतने पास से ऐसी खूबसूरत परी को अपने सामने इन उत्तेजक कपड़ो मे देखकर जाकिर का लिंग तो जैसे उचक-उचक कर ऐसे अकड़ रहा था, मानो अभी रॉकेट बनकर उड़ जाएगा, और मंगल गृह कि परिक्रमा कर आएगा। जाकिर ने रेखा के दोनों हाथो को पकड़ कर हल्का सा अपनी ओर खींचा, और रेखा किसी डोर से बंधी पतंग की तरह जाकिर की गोद मे आ गिरी। पीठ टिकाकार, पलंग पर पैर फैलाये जाकिर के ऊपर रेखा ऐसे गिरी, कि उसका बदन ऊपर से जाकिर के बदन से चिपक गया और टांगें जाकिर के एक जांघ पर चढ़ गयी। इस पोजीशन मे जाकिर का लिंग रेखा की नंगी जांघों से रगड़ खा रहा था, बीच मे सिर्फ लूँगी का पतला सा कपड़ा था।



"आऊच... कैसे करते हो जंगली जैसे, मुझे चोट लग जाती तो?" बनावटी गुस्से मे रेखा जाकिर के सीने पर मुक्का मारते हुए बोली, "कितने गंदे हो ऐसे कोई करता है क्या। और जरा ये तो बताओ, ये ऐसे विचित्र कपड़े आपको मिल कहाँ से गए?" जाकिर के सीने पर हाथ फेरती रेखा बोल पड़ी।

"गंदे... कितने मस्त तो हैं ये सब कपड़े। तेरी जवानी कैसी निखार के आ रही है, वाह...। मै तो कहता हूँ अब से तू ऐसे ही कपड़े पहना कर। बाकी समय के लिए जो सिंपल वाले दिये है वो पहन लेना, और मेरे लिए अब से तू ऐसे ही कपड़े पहनेगी।" जाकिर रेखा कि नंगी पीठ पर हाथ फेरता हुआ बोला, " देख तो कैसे तेरा एक-एक अंग निखर के आ रहा है बाहर, जी करता है कि तुझे ऐसे ही रखूँ ज़िंदगी भर अपने से चिपका कर।" कहते हुए जाकिर का पीठ पर घूमता हांथ रेखा की नंगी गांड पर आ गया और उसने कस के अपनी मजबूत हथेलियों से उसे भींच लिया। रेखा के मुह से सिसकारी सी निकली, जिसके बाद वो कुछ कह पाती, उससे पहले ही जाकिर ने दूसरे हाथ से रेखा की ठोड़ी पकड़कर उसका चेहरा ऊपर किया और उसके होठो को झट से अपने होठो कि गिरफ्त मे लेकर ज़ोर-ज़ोर से चूसने लगा।



गांड कि मसलाई और होठो कि चुसाई से रेखा ने मदमस्त होकर अपनी आंखे बंद कर ली, और उसकी गहरी होती साँसो से उसके स्तन ड्योढे आकार के होकर जाकिर के सीने पर दबाव बढ़ाने लगे। जाकिर के सीने पर रेंगते उसके हाथ अपने आप ही नीचे सरकते-सरकते जाकिर के पेट, नाभि से होते हुए सीधे एक कुतुबमिनार से टकराए, जिसे बिना वक्त गँवाए उसने अपनी मुठ्ठियों मे भींच लिया। इस बार सिसकने कि बारी जाकिर कि थी, पर जैसे ही सिसकने के कारण उसके होठ खुले, रेखा के होठ आजाद हो गए और अब रेखा ने जाकिर के होठो को अपनी गिरफ्त मे लेकर चूसना शुरू कर दिया।



अब जितने ज़ोर से जाकिर रेखा कि गांड दबाता, रेखा कि मुटठिया भी उतनी ही कसके जाकिर के लाँड़ पर कस जाती। जाकिर के दूसरे हाथ ने अब रेखा के एक स्तन पर अपना कब्जा कर लिया और उसे ज़ोर-ज़ोर मसलने और भींचने लगा, जिसके जवाब मे रेखा ने अब जाकिर के लिंग पर अपनी जकड़ बरकरार रखते हुए ही उसे धीरे-धीरे लूँगी के ऊपर से ही मुठियाना शूरु कर दिया।

कुछ देर तक ऐसे ही दोनों अपने अपने मुट्ठियों की जोर आजमाईश करते रहे, फिर अचानक जाकिर ने अपने मुह में खेलती रेखा की जबान को हल्का सा चुभला दिया, जिससे रेखा की हलकी सी चीख निकल गयी, जो जाकिर के मुह में ही दब गयी।

"उफ्फ्फ... कोई मौका छोड़ भी दिया करो मेरी जान निकालने का। मार ही डालोगे क्या?" मुह हटाकर हांफती हुई रेखा शिकायती लहजे में बोली।

"छोड़ कैसे दूँ रानी। अभी छोडूंगा नहीं सिर्फ चोदूँगा।" कहता हुआ जाकिर फिर होठों को चूसने में लग गया।

रेखा ने अपना हाथ लिंग से हटाकर जाकिर के सीने पर दो चार शिकायती मुक्के बरसाए, जिससे जाकिर ने फिर से जबान को चूसना शुरू कर दिया। रेखा को समझ आ चुका था आज उसके बदन की ऐसी तैसी होने वाली है।

जैसे ही रेखा का हाथ वापस अपने प्रिय खिलौने तक पंहुचा, कुछ पलों को उसकी तो साँसे थम गयी ही गयी। दरअसल जाकिर ने रेखा के हाथ हटते ही अपनी लुंगी को झटके से खोल दिया था, जिससे अब वो निचे से नंगा बिस्तर पर बैठा हुआ था और रेखा का हाथ सीधे उसके फड़कते हुए लिंग पर पड़ा था। उसके फड़कते लण्ड के गर्म टोपे का स्पर्श उसे मन्त्रमुग्ध कर गया।
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#78
ये दूसरी बार था जब जाकिर के लिंग का स्पर्श सीधे उसकी हथेलियों से हुआ था। उसका हाथ जड़वत वैसा ही लिंग पर पड़ा देख जाकिर ने गांड को मसलते हाथ को सीधा पैंटी के अंदर डालकर उसकी गांड को मसलना शुरू कर दिया, जिससे उत्तेजित रेखा की आँखे बन्द हुई और उसका हाथ लिंग पर कस गया, और खुद बखुद मुठियाने लगा।

आनंद के समुन्दर में हिचकोले खाती दोनों कश्ती अब उत्तेजना के तूफान में वासना की लहरो से थरथराने गई थी। जाकिर का दूसरा हाथ अब रेखा की झीनी सी ब्रा के अंदर घुसकर उसके दोनों स्तनों को बारी बारी निचोड़ और मसल रहा था। अब तो रेखा की उत्तेजना का पार नहीं था और उसके हाथ जाकिर के लिंग पर इतने तेज चलने लगे थे कि तूफान मेल भी फेल हो जाये। इस तूफान मेल की गति से कहीं झड़ ना जाऊं इस डर से जाकिर ने अपने होठ अलग किए पर उत्तेजित रेखा इससे भूखे शेरनी की तरह जाकिर के चेहरे गर्दन और कंधो को चूमने और चाटने लगी।



लोहा गर्म देखकर जाकिर ने एक झटके में अपने ऊपर अटखेलियां करती हुस्नपरी को नीचे लिटाया और ताबड़तोड़ उसके चेहरे पर चुम्बनो की बारिश करने लगा। रेखा इससे आनंदित होकर अपने दोनों हाथ फैलाकर कभी नीचे बिछी चादर को मुट्ठी में कसती, कभी अपने स्तनो को भींचती तो कभी जाकिर के सर के बचे खुचे बालो को नोचती। समय ना गंवाते हुए पलक झपकते ही रेखा के नाममात्र के कपडे जमीन पर पड़े हुए थे और जाकिर के कपडे उनके ऊपर। एक स्वप्नलोक की अप्सरा एक दुःस्वप्नलोक के भैंसे जैसे शरीरधारी इंसान के साथ बिस्तर पर नंगी हालत में गुत्थमगुत्था हुए पड़ी थी।



कमरे में बस उम्म्म्म्म...अह्ह्ह्ह्ह... आआह्हह्हह... अम्म्मम्मम्म... पुच्च्च्च्च्च्च्च...हम्मम्मम्मम्मम्मम... बस ऐसी ही आवाजे गूंज रही थी। कुछ मिनटों तक ऐसे ही एक दूसरे के शरीर को सहलाने, चूमने, चाटने और चूसने के बाद जाकिर घुटनो के बल बिस्तर पर खड़ा हुआ, और तेज सांसे लेती अपने आवेग को सम्हालती रेखा के छाती के दोनों ओर पैर करके अपना लण्ड रेखा के दोनो स्तनों के बीच की दरार में फंसाकर घिसने लगा, जिससे उत्तेजित रेखा ने अपने हाथो से अपने दोनों स्तनों को ऐसे भींचा कि जाकिर के लण्ड को चारो ओर से स्तनों ने जकड़ लिया।



ऐसे नरम और गर्म मुलायम एहसास से जाकिर के मजे की सीमा नही रही और वो ज्यादा जोश और ज्यादा जोर जोर से धक्के मारता हुआ उसके स्तनों को चोदने लगा। रेखा के लिए ये नया एहसास था और जाकिर के झटके और उसके रगड़ से स्तनों की झनझनाहट उसके दिल से होती हुई उसके चूत तक पहुच रही थी। इतना मजा तो कभी उसे चुदाई में भी नहीं मिला था, जितना उसे इस ऊपरी खेल में मिल रहा था। जाकिर का लण्ड रेखा के स्तनों की गिरफ्त में एकदम गायब हो जाता और अगले पल 2 इंच बाहर निकलकर रेखा की ठोड़ी पर चोट करता। उत्तेजित रेखा ने अपना चेहरा कुछ नीचे करके ठोड़ी की जगह पर अपनी जीभ निकाल दी, जिससे अब जाकिर के लिंग का टोपा उसके जीभ पर रगड़ खाने लगा।



जाकिर को दोगुना मजा मिलने लगा। रेखा के नरम और गरम गुब्बारे ही क्या कम थे, जो उसकी लिजलिजी कोमल जीभ लिंग के सबसे सम्वेदनशील हिस्से को ना केवल सहला रही थी, बल्कि उसकी जीभ की नोक ठीक लिंग के छेद पर चुभ रही थी। कुछ झटको बाद रेखा अपना चेहरा और नीचे लाकर लण्ड के स्वागत में अपना मुह खोलकर जितना हिस्सा आ पाता उसे चूस भी लेती। इस आनंद से जाकिर सहन नहीं कर पाया और कुछ 7-8 मिनट के इस सम्मिलित खेल से उसका गाढ़ा वीर्य रेखा के छाती और चेहरे पर फ़ैल गया, जिसकी गरमाहट से पहले ही एक बार झड़ चुकी रेखा भी झड़ गयी।



ये उसके जीवन का पहला अवसर था जब वो इतनी जोरदार तरीके से झड़ी थी, नहीं तो दीनू की चुदाई से तो उसे ठीक से एहसास भी नहीं होता था, झड़ना तो दूर की बात है। जाकिर और रेखा दोनो ही एक एक गोल करके बराबरी पर चल रहे थे। रेखा का पहले एक बार का झड़ना तो चूमा चाटी के दौरान ही हो गया था, जिसे मैच शुरू होने के पहले का माना जा सकता है।

कुछ पांच मिनट बाद जाकिर ने रेखा के चेहरे को पोंछा, तो आँखे मींचे पड़ी रेखा को होश आया। आँख खोलते ही जाकिर के नंग धड़ंग काले पहाड़ जैसे शरीर को अपने से कुछ दुरी पर बिस्तर पर घुटनो के बल खड़ा पाया, तो उसकी नजरे शर्म से झुक गयी। मन ही मन रेखा सोचने लगी, "मेरे जिस कोमल, गदराये, गोरे बदन को पाने का सपना देखने भर से ही सारे के सारे मर्दों के लण्ड टपकने लगते हैं, वो आज लेटा भी है तो, किस राक्षस के नीचे। पर सच ही है कि आखिर मीठे सफेद बताशों पर काले, मोटे चींटे ही चिपकते हैं। ही.. ही... ही.." और ऐसी सोच से उसके चेहरे पर एक अलग सी शरारती मुस्कान आ गयी, जिसे पढ़कर जाकिर के मन में लड्डू फूटने लगे।
 horseride  Cheeta    
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#79
"चल, जरा उठ! अब तुझे भी तो आसमान की सैर कराऊँ। तूने तो आज मुझे सातवें आसमान पर पहुँचाया, उसका कुछ तो बदला मुझे भी चुकाना होगा ना।" कहता हुआ जाकिर रेखा के बराबर में लेटता हुआ अपने नरम पड़ चुके लण्ड को बेशर्मो की तरह मसलने लगा। रेखा उठकर बैठ गयी और अपने ही बिस्तर पर एक मुस्टंडे को ऐसे लण्ड मुठियाते देखकर कल्पना करने लगी, अगर दीनू ये दृश्य देख ले तो झटके से वो तो मर ही जाये।


"अब ऐसे ही देखती रहेगी क्या इसे। तेरा ही है, जी भर के खेलना इससे, किसने रोका है।" कहते हुए जाकिर ने एक हाथ से रेखा के निप्पल को मसला और उसके गालो को थपथपाकर कर बोला "चल खड़ी हो जा बिस्तर पे।"


आवाज सुनते ही किसी आज्ञाकारी बच्चे की तरह रेखा उठ खड़ी हुई, जिसे देख जाकिर भी उठ बैठा, और रेखा की हाथ से अपने पास खिंचकर उसे अपनी ओर पीठ करके खड़ा कर लिया। जाकिर का ये नया खेल को रेखा के समझ में आता, उसके पहले ही दो हांथों ने उसके पैरो को थोडा फैलाया और रेखा के जांघो के बीच से जाकिर ने सर निकालकर उसकी चूत को अपने मुह में भींच लिया और कस कस के चूसने लगा।



"हाहाहाहा.......... आअह्ह्ह्ह्ह.............!!!!!!" की जोरदार सीत्कार के साथ दीवार की ओर मुह घुमाए खड़ी रेखा के सबसे सम्वेदनशील अंग पर हुए अप्रत्याशित हमले से वो थरथरा उठी। उसकी कांपती टांगों ने उसका वजन उठाने से इंकार करना चाहा, जिससे बचने के लिए उसने एक हाथ से दीवार को सहारा दिया और तभी जाकिर ने एक जोरदार चुस्का मारा, तो उसका दूसरा हाथ जाकिर के सर पे जाकर उसके बचे बालों को नोचने लगी। जोर जोर से चुस्के मारते जाकिर की अदा की कायल हो चुकी रेखा, उसके जीभ अंदर तक डालकर चूसने से दिए जाने वाले सुख की तुलना में उसे अपने जीवन का हर सुख तुच्छ लगने लगा।



"चल, अब घूम जा!" कुछ देर चूसकर उसके गांड को थपथपाकर रेखा को इशारा करता जाकिर बोला। और अब रेखा जाकिर के बदन की ओर मुह किये खड़ी थी। जाकिर फिर से अपने चुसाई कार्यक्रम में तल्लीन हो गया। रेखा ने अब देखा कि वो एक हाथ से अपने लण्ड को तेजी से ऊपर नीचे करने लगा था। रेखा ने धीरे से जाकिर के कन्धों पर अपने हाथो से दबाव बनाकर उसे लेटने का इशारा किया और उसके लेटते ही वो उसके मुँह पर अपनी चुनमुनी को रखकर उसके बदन पर पेट के बल फसर गयी। अब उसके ठीक सामने चॉकोबार आ गयी जिसे लपककर मुह में गपकते उसे देर नहीं लगी।



अब दोनों ही अपने अपने पसंदीदा खिलौनों से खेलने में व्यस्त थे। जाकिर तो जैसे चूस चूसकर चूत का सारा रस निचोड़ना चाहता था, पर वो जितना रस जिस गति से चूसता, उसका दोगुना रस दोगुने प्रवाह से उसकी चूत से बहने लगता। उधर रेखा भी धीरे धीरे करके इंच दर इंच लण्ड को अपने मुँह और फिर गले की गहराइयो तक उतारकर उसे चूसने में लगी थी। बीच बीच में दोनों आनंद के अतिरेक में आकर सिसियाते और सित्कारते भी थे।

69 पोजिशन की इस ताबड़तोड़ चुसाई के जी भर के मजे ले लेने के बाद जाकिर रेखा के चूत में मुह घुसाये हुए उसके चुत्तडो को अपने बाँहों में जकड़कर उठकर बैठ गया, जिससे रेखा का शरीर जाकिर के शरीर के साथ चिपका हुआ उल्टा हो गया। गिरने से बचने के लिए रेखा ने अपनी दोनों टाँगे जाकिर के गर्दन पर लपेट दी और इसके पहले वो कुछ समझ या कह पाती, जाकिर तो पलँग से उतरकर वैसे ही अवस्था में जमीन पर खड़ा हो गया। अब रेखा अपनी टाँगे जाकिर के गले में लपेटे उल्टी लटकी हुई थी और जाकिर अब भी उसकी चूत को चूस चाट और चुभल रहा था।



"उफ्फ्फ... ये क्या ककक....." बस इतना ही वाक्य निकल पाया था रेखा के मुह से कि जाकिर ने अपने कमर को झटका मारा और उसका लण्ड रेखा की बोलती बंद करता उसके मुंह में आधा घुस गया। गुँ गूँ गुँ की आवाज से ज्यादा वो कुछ कर भी नहीं सकती थी। जाकिर दनादन झटके मारता रेखा का मुंह चोदने लगा।

ऐसे कुछ देर मुह को चुदवाकर जब रेखा का जबड़ा दुखने लगा, तो वो जाकिर के जांघों को थपथपाने लगी और जाकिर ने उसका इरादा समझकर उसे धीरे से पलँग पर ऐसे लिटाया कि उसका कमर से नीचे का आधा शरीर पलँग के बाहर लटक रहा था और उसे जाकिर ने अपने दोनों हाथों से दोनों टांगों को फैलाकर अपने लण्ड के बराबर लाया और एक तगड़े झटके के साथ पूरा लण्ड एक झटके में ही रेखा की गुलाबी गुफा में घुसेड़ दिया। एक "चुबब्ब" की आवाज के साथ लण्ड के घुसते ही रेखा बिलबिला उठी और उसकी जोरदार चीख निकली और वो कुछ पलों के लिए बेहोश ही हो गयी।
 horseride  Cheeta    
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#80
कुछ सेकण्ड बेहोश रहने के बाद उसकी आंखें खुली, तो उसका शरीर जोर जोर से झटके खा रहा था, जिससे उसे तुरंत अपनी अवस्था का ध्यान आ गया। अब भी वो वैसे ही आधी पलँग से बाहर लटकी हुई दनादन जाकिर के झटके खा रही थी, जिससे उसकी चूत में जाकिर का काला मुश्टंडा लण्ड धड़ाधड़ अंदर बाहर हो रहा था। जाकिर ने अपने कमर में लिपटी उसकी टांगो को दोनों हाथों से पकड़कर V के आकार में फैला लिया था, जिससे उसे टांगो के बीच में ज्यादा जगह मिल सके। रेखा तो बस पड़े पड़े "आह... अम्मममम.. हम्मममम..." की आवाजें निकालती हाथ से कभी चादर को भींचती, तो कभी थपाथप ऊपर नीचे उछलते अपने स्तनों को निचोड़ती, और उनके निप्पलों को उमेठती। कुल मिलाकर कहा जाये तो ऐसा आनंद उसे कभी मिला नहीं था, जो जाकिर पिछले कुछ समय में उसे दे चुका था और अभी क्या क्या होगा, इसका पता किसी को भी नहीं था।



अब जाकिर ने उसकी टांगो को छोड़ा, तो गिरने से बचने के लिए रेखा ने अपनी टाँगे वापस उसकी कमर पर लपेट लीं। थोड़ा रुककर जाकिर ने झुकते हुए रेखा के स्तनों को मसलते हांथो को अपने दोनों हाथों से अपनी ओर खींचा, तो रेखा उठते हुए आगे की ओर आयी। जाकिर ने समय न गंवाते हुए बिना अपना लण्ड निकाले रेखा को किसी नाजुक गुड़िया की तरह गोद में उठा लिया।



इन नए नए पोजिशन से रेखा का मजा कई गुना बढ़े जा रहा था। गोद में रेखा का पूरा शरीर जाकिर के शरीर से बुरी तरह चिपका हुआ था, उसके स्तन दोनों के शरीरों के बीच पिसे जा रहे थे। उसके पैर अब भी जाकिर के कमर के इर्द गिर्द लिपटे हुए थे, और उसकी चूत ठीक जाकिर के गोलियों से चिपकी हुई थी, जिसका मतलब वो पूरा का पूरा जाकिर का लण्ड अपने अंदर लिए हुए थी।



जाकिर ने अब धीरे धीरे अपने कमर को पीछे ले जाकर आगे झटकना शुरू किया, जिससे उसका लण्ड टोपे को छोड़कर पूरा रेखा के बाहर सरसराकर बाहर आता और "थप्प" की आवाज के साथ गहराइयों तक खो जाता, और रेखा की चूत जाकिर के गोलियों को चूम लेती। रेखा से अब बर्दाश्त होना असंभव हो रहा था, तो उसने अपनी बांहे जाकिर के गर्दन के चारो ओर लपेटते हुए उसके होठो को अपने होठों के बीच लेकर बेतहाशा चूसने लगी।



अब जाकिर ने दनादन झटके मारते मारते रेखा के कूल्हों को भींचने शुरू कर दिया।
जिससे आनंदित रेखा लण्ड पर उछलने के साथ साथ जाकिर के छाती पर अपने स्तनों को और जोर जोर से भींचने और रगड़ने लगी। जाकिर ने अब आव देखा ना ताव, और एक बार लण्ड बाहर तक खींच कर जोरदार गति से पूरी गहराई तक उसे रेखा को सौंप दिया, और कूल्हों को मसलते हाथ की सबसे बड़ी अंगुली को भी रेखा के गांड की गहराइयों में इसी झटके के साथ उतार दिया। अपनी चूत में मिले इस झटके से रेखा की ऑंखें बन्द हो गयी। ऐसे ही धड़ाधड़ झटको की अभ्यस्त होकर जब उसे होश आया, तो उसे अपनी कुंवारी गांड में एक अनजान मेहमान के आने की भनक लगी, और जाकिर के लण्ड के साथ ही साथ उसकी ऊँगली भी सटासट गांड में अंदर बाहर हो रही थी। ऐसा दोहरा मजा लेकर रेखा धन्य हो गयी, और उसने हथियार डालते हुए भरभराकर झड़ना शुरू कर दिया। उसके चूत से ऐसा सैलाब बह निकला, कि जाकिर के जांघ से लेकर पूरा पैर भीग गया। झड़ने के बाद उसने अपना सारा शरीर जाकिर की गोद में ही ढीला छोड़ दिया।



अब जाकिर ने भी अपने पैरो को आराम देने का सोचा, और रेखा को लिए लिए ही वो पलंग पर फसर गया। रेखा का बदन जाकिर के बदन पर पेट के बल पड़ा हुआ था, और अब भी उसका लण्ड गहराइयों तक धँसा ही हुआ था। रेखा को कुछ होश आने पर उसने जाकिर के चेहरे की ओर देखा, और दोनों में मुस्कान का आदान प्रदान हुआ, और दोनों एकटक एक दूसरे को देखने लगे। जाकिर ने एक बार अपने लण्ड को झटका दिया, तो "सीसीसीसीसी...." की सित्कार के साथ रेखा ने सर हिलाकर उसे ना करने का इशारा किया।

"अरे... तेरा तो हो गया, अब मेरा क्या होगा।" कहता हुआ जाकिर, फिर से एक झटका मारकर रेखा का रुख जानने की कोशिश करता है।

"उफ्फ्फ.... बस अब जलन हो रही है। रुक जाइये न थोड़ी देर।" कुछ कुछ कराहती आवाज में रेखा का दर्द सा झलक रहा था।

"अच्छा, तो इधर तो हरी झंडी है ना।" कहता जाकिर इस बार अपनी दो उंगलियो को रेखा के गांड में सटाकर उसके कुछ सोचने के पहले ही गांड की गहराइयों में उतार देता है।

"आइईईईईई...." चिल्लाती रेखा के शरीर में करंट जैसा लगता है, और वो अप्रत्याशित से हमले से पूरी जागृत अवस्था में आके जाकिर के सीने पर मुक्के बरसाने लगती है। "मर जाउंगी... उफ्फ्फ्फ्फ... वहां नहीं प्लीज। आप आगे कर लो कुछ भी पर वहां नहींइईईईईई।"

"अच्छा अच्छा। ठीक है। पर जितना चला गया उसका तो मजा ले रानी।" कहता हुआ जाकिर बेशर्मो की तरह दांत दिखाता दनादन ऊँगली को अंदर बाहर करने लगता है, जिसके प्रभाव से रेखा के चूत में फिर से फुलझड़ियां चलनी शुरू हो जाती है, और उसकी चूत की कुलबुलाहट से जाकिर समझ जाता है, और उसका लण्ड फिर से सटासट अंदर बाहर होना शुरू होने लगता है। जोश में चिल्लाती रेखा अपने ही कूल्हों पर चटाचट मारने लगती है।



अब तक पूरी सचेत हो चुकी रेखा जाकिर के लण्ड पर बैठी अवस्था में आ चुकी थी, और उसके उछलने से ऐसा लग रहा था मानो वो घोड़े की सवारी कर रही हो। उसकी गांड भी अब काफी आसानी से जाकिर की उँगलियों को लील रही थी, जिससे रेखा को अजीब सी उत्तेजना और उमंग का भाव आ रहा था। जाकिर की उंगलियां अनवरत गांड को भी छेदे जा रही थी, जिससे रेखा के किले पर दोहरा आक्रमण हो रहा था, और उसे पता था वो ज्यादा नहीं ठहर पायेगी। पर उससे पहले ही उसकी नशीली "ह्म्फ ह्म्फ ह्म्फ" की आवाज से उत्तेजित और कातिल बलखाती जवानी को भोगता जाकिर अब "आहाहाहाहा" की लंबी सीत्कार के साथ रेखा के चूत की गहराई में ही झड़ने लगा, जिसकी गर्माहट पाकर रेखा भी झड़ते हुए जाकिर की छाती पर ही फसर गयी, और दोनों के मिश्रित प्रेम रस का बहाव दोनों की जांघो के बीच से होता हुआ टप टप टप चादर पर टपकने लगा।

दोनों ना जाने कितने देर ऐसे ही पड़े रहे। जाकिर के ऊपर पेट के बल औंधी पड़ी रेखा के रेशमी बालो पर हाथ फेरते हुए जाकिर और रेखा दोनों को ही एक झपकी आ चुकी थी। इतने देर के घमासान के बाद दोनों का ही बदन टूट रहा था, जिससे आराम के लिए ये झपकी जरुरी भी थी। अचानक कुछ आहट से रेखा की नींद खुली, और कुछ होश आने पर उसे समझ आया कि ये आवाज दरवाजा बजने की है। वो झट से उठी, जिससे जाकिर का लण्ड सरसराता हुआ उसकी चूत से पककक की आवाज से निकल गया। इस घर्षण से रेखा की आँखे फिर से मजे से बंद हुई पर परिस्थिती की गम्भीरता को देखते हुए उसने जाकिर को झँझोड़कर उठाया। हड़बड़ाकर उठते ही जाकिर के सामने रेखा नंगी खड़ी थी।



"उठिये... उठिये... उठिये भी। जल्दी से जाइये, कोई आया है। दरवाजे पर।" झँझोड़कर उसे उठाते हुए रेखा बोली। हड़बड़ाकर होश में आकर जाकिर उठते हुए रेखा के नँगे शरीर को घूरता है और उसके निप्पल को अपने हाथ से मसल देता है। "उफ्फ्फ... अभी नहीं। कहा ना, जल्दी जाइये आप। कोई आया है।" कहती हुई रेखा फटाक से अलमारी खोलकर अपना एक गाउन निकालकर उसे बिना ब्रा पैंटी के ही पहन लेती है।

"कम्बख्त, कौन मरता है हमेशा ऐसे मौके पे। अभी तो मजा लेना शुरू ही हुआ था।" बड़बड़ाता जाकिर उठ खड़े होता है, और अपनी लुंगी को लपेटने लगा। रेखा ने अपने झीनी ब्रा पैंटी को उठाया, और एक दराज के हवाले कर दिया। इतने में जाकिर को कुरता पहनता देख उसने पुरे कमरे पे निगाह दौड़ाई, जो कि अब पहले जैसा ही हो चुका था।

"आप जल्दी से सीढियो से ऊपर जाइये, मैं दरवाजा खोलती हूँ।" कहती हुई रेखा जाकिर को हाँ में सर हिलाता देख, दरवाजे की ओर बढ़ गई, और जाकिर सीढियो की तरफ। कुछ 6-7 सीढी चढ़ने पर जाकिर को याद आया कि उसकी घड़ी तो मेज पर ही खोल कर रखी है उसने। और वो वापस उतरकर रेखा के कमरे में वापस घुसा। इसी समय रेखा ने दरवाजे तक पहुंचकर, सीढियो की ओर मुड़के देखा, जहाँ जाकिर को ना पाकर उसने सोचा वो जा चुका है। एक लंबी साँस लेकर उसने दरवाजा खोल दिया।

"दीनू कितने बजे तक आएगा बहू।" सामने दरवाजा खोलते ही सवाल दागते हुए मदनलाल ने अपनी मुस्कान बिखेरते कहा। उसकी निगाहें रेखा के शरीर का पूरा मुआयना करने में लगी हुई थी। वैसे भी जल्दबाजी में रेखा ने बिना अंतःवस्त्रों के जो गाउन पहना था, वो स्लीवलेस और घुटनों तक का ही था, जो उसकी कातिल जवानी को छुपाने से ज्यादा उभार रहा था।



"जी चाचाजी वो तो आज कुछ देर से आने का बोल गए हैं।" नमस्ते करके रेखा ने जवाब दिया। "अगर आपको कुछ काम हो, तो आप उनके दफ्तर का फोन नम्बर ले लीजिये, बात कर लीजियेगा।"

"हां, हां, ये ठीक रहेगा, और साथ ही घर का भी नम्बर दे दो, ताकि अगली बार फोन करके ही पूछ लूँ, तुम्हे तकलीफ ना दूँ। हे हे हे हे।" कहता हुआ मदन खिसियाई हुई हंसी हंसा।

"जी तकलीफ कैसी, ये आपका ही घर है।" कहती हुई रेखा ने मदन के दिए पेपर पर दीनू के ऑफिस और उसके घर का नम्बर लिखकर पकड़ा दिया और मदन पलटकर जाने लगा। रेखा किवाड़ बन्द करके अंदर चली गयी और उधर मदन अपने घर की ओर चलते हुए मन में बार बार यही बड़बड़ा रहा था।

"जाकिर...!!! जाकिर... और वो भी दीनू के गैरहाजिरी में???? इसका मतलब......!!!"

और इस तरह वो जाते जाते पूरे रास्ते इसी उधेड़ बुन मे लगा रहा और अपने घर के दरवाजे तक पहुँचते पहुँचते उसके चेहरे का प्रश्न चिन्ह बदलकर, मुस्कान बनकर तैर रहा था। उसके दिमाग मे जो खुराफ़त आई थी, उसके लिए वो बार बार अपने ही आप को शाबाशी देता हुआ अपने घर के भीतर चला गया।

उधर रेखा इन सब से अनभिज्ञ अपने घर के भीतर गई और धम्म से अपने पलंग पर अपने टूटते हुए शरीर को पसारकर चैन की सांस लेने का सोचती उसके पहले ही आवाज गूंजी!

"ट्रिन्न... ट्रिन्न... ! ट्रिन्न... ट्रिन्न...!"

"ओफ्फो... इस बंदे को भी चैन नहीं है, अभी अभी तो पेट भर कर खाकर गया है, फिर भी मेरे जिस्म की भूख लग आई। वैसे बेचारा करे भी तो क्या, ये निगोड़ी जवानी है ही ऐसी चटाकेदार। ही...ही...ही...ही...!" बजते फोन की घंटी सुनकर रेखा मन ही मन ऐसा सोचकर खिलखिला उठी।

वैसे ही आधी लेटी अवस्था मे उसने फोन उठाया और अपने हाथ मे लेकर कान से चिपका लिया।

"हैलो...!
अब क्या हुआ!
इतनी जल्दी मेरी याद आ गयी!" ऐसा कहती रेखा अपने आप पर इठलाते हुए, इतराती आवाज मे बोली और उत्तेजना को न सम्हाल पाने के कारण उसका एक हाथ खुद ब खुद ही उसके स्तनो पर पहुँचकर उन्हे भींचने लगा।
 horseride  Cheeta    
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