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Adultery JISM by Riya jaan
#41
page 30
 horseride  Cheeta    
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Do not mention / post any under age /rape content. If found Please use REPORT button.
#42
Amezing update brother par update jaldi jladi diya karo please aur iss kahani ko poora jarur karna...
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#43
Hot. Please update regularly.
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#44
Good start. Hope to get daughter's update.
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#45
कुछ देर तक यूँ ही अपने अधरों का अमृतपान कराने के बाद रेखा ने जो किया वो जाकिर के लिए 440 वाल्ट के झटके से कम नहीं था। रेखा ने अपने अधरों को जाकिर के लिए ऐसे छोड़ दिया मानों कोई निरीह हिरनी शेर के पंजो में अपने आपको बेबस होकर छोड़ देती है। जिससे उत्साहित जाकिर पूरी मर्दानगी और जोश के साथ पूरे ध्यान और मन लगाकर होठो को चूसने लगा। जाकिर के ध्यान का अपने होठो में लगे होने का फायदा उठाते हुए रेखा ने चुपके से जाकिर के जेब से अपनी पेंटी और उसके गले में लटकी अपनी ब्रा को चुपके से निकाला और अपनी सलवार के अन्दर ठूंस लिया। अब रेखा का ध्यान अपने होठो पर गया जो की जाकिर के मुह के अन्दर घुसे हुए थे और जाकिर के चूसने से और भी अन्दर ऐसे खींचे चले जा रहे थे मानो कोई शक्तिशाली वेक्यूम क्लीनर किसी गुलाब की पंखुड़ी को खिचता हो। रेखा ने धीरे धीरे अपने दोनों हाथ जाकिर और अपने बीच जगह बनाते हुए घुसाया और जाकिर के सीने पर अपनी हथेलियाँ रखकर अपनी पूरी शक्ति से एक जोर का धक्का लगाया। धक्का लगते ही जाकिर के मुह से रेखा के होठ जोर की पुच्च्च्च्च्च की आवाज के साथ आजाद हो गए और जाकिर रेखा से लगभग दो फुट दूर छिटक गया।
जाकिर अचानक लगे धक्के या यूँ कहें की अचानक मिले इस झटके से घबरा सा गया पर ज्यादा घबराहट उसे रेखा में आये इस अचानक बदलाव से होने लगी की कहीं उसकी जल्दबाजी ज्यादती से हाथ आई चिड़िया उड़ तो नहीं गयी। इसी पशोपेश में, घबराहट और उत्तेजना के कारण जोरो से धडकते दिल को सँभालते हुए अपनी आवाज में थोड़ी मिठास लाते हुए उसने अपने हाथ आगे बढ़ाते हुए कहा," क्या हुआ मेरी जान! अपने दीवाने को यूँ दूर क्यूँ कर दिया। कुछ खता हो गयी क्या मुझसे?" ये कहते हुए भी जाकिर की धडकने राजधानी एक्सप्रेस की तरह बढ़ने लगी जो की रेखा में आये इस बदलाव के कारण थी या फिर चुम्बन की गर्माहट से उत्पन्न उत्तेजना से थी ये तो खुद जाकिर भी नहीं समझ पा रहा था। अचानक जाकिर की नजर रेखा की नशीली आँखों से निचे उसके थरथराते हुए लाल सुर्ख होठ पर गयी जो चूसे जाने के कारण दहकते अंगारों जैसे सुर्ख हो गए थे। इस थरथराहट का साथीदार रेखा की सुराहीदार गर्दनो के लगभग छः इंच नीचे की ओर था। जब जाकिर की नजर हांफती रेखा के उन गोल गोल गुल्लकों पर पड़ी जो की उसकी तेज सांसो के साथ तेजी से उपर नीचे उछल रहे थे, तो वो ऐसी ललचाई नजरो से उन्हें देखने लगा मानों उसने अपनी जिन्दगी भर की जमापूंजी उन गुल्लको में ही जमा कर रखी हो।
"बस बहुत हुआ। सच में बहुत बड़े कमीने हो तुम।" उसकी तन्द्रा रेखा की मीठी पर गंभीर आवाज से टूटी।
 horseride  Cheeta    
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#46
जाकिर के कानो में ये बाते ऐसी लगी जैसे किसी ने चाशनी में डुबाकर चप्पल मारी हो। अगर किसी और ने ये बातें उससे कही होती तो वो अब तक खून में सराबोर उसके सामने चारो खाने चित्त पड़ा होता। पर कहते है न की हुस्न वालों के सौ गुनाह भी माफ़, यही सोचकर जाकिर उन शब्दों को अनसुना करने की कोशिश करने लगा पर अब आगे की कारवाही उसे समझ नहीं आ रही थी की किया क्या जाये। उसने जैसे ही रेखा की तरफ हाथ बढ़ाना चाहा, एक और झटके ने उसे हिला के रख दिया।"ख़बरदार, जो मुझे हाथ भी लगाया। या तो तुम्हे मार डालूंगी या खुद को।" जाकिर को तो मानों यकीन ही नहीं हो रहा था कि ऐसा कुछ हो रहा है। पिछले कई दिनों से वो जिस मुर्गी को दाना डाल रहा था, आज वोही मुर्गी चोंच मार मारकर उसकी मर्दानगी को लहूलुहान कर रही थी।

"जानेमन, आखिर बात क्या हुई ये तो बताओ।" उसकी मिमियाती आवाज बस इतना ही कह पाई। अब तक उत्पन्न उत्तेजना और घबराहट के मिश्रण की जगह उसके दिल में ग्लानी और गुस्से के भाव दस्तक देने लगे।
"क्या मै कोई खिलौना हूँ? तुम्हारा जब मन आये तुम तब मुझे बुलाओगे और जैसा चाहो वैसा करोगे मेरे साथ?" इतना कहते कहते रेखा की सीप जैसी आँखों से मोती बिखरने लगे।
"अरे नहीं मेरी जान। तुम तो मेरी जानेतमंन्ना, जानेजिगर हो। भला जाकिर भाई की जान खिलौना हो सकती है। " खुशामद भरे शब्दों में जाकिर बिगड़ी बात सँभालने की कोशिश करने लगा। "वो क्या है न, तुम्हारी याद बर्दाश्त नहीं हुई इसलिए बुलाया तुमको, पर तुम्हारे आते ही तुम्हारी खूबसूरती ने मुझे पागल ही कर दिया और मै खुद पर काबू न रख सका।" जाकिर ने खुशामद के साथ तारीफ को भी घोल लिया बातों में, क्यूंकि तारीफ औरतों की कमजोरी होती है।
"अच्छा अच्छा, ज्यादा बाते न बनाइये आप। कैसे जंगलियों की तरह बर्ताव करते है, मेरी जान ही निकाल दी।" तारीफ और खुशामद के असर से रेखा बच न सकी और उसकी आँखों में फिर वोही शरारत की चमक आ गयी। "बोलिए, क्यों बुलाया था मुझे? मेरा सारा काम पड़ा है घर में और उनका फोन भी आने वाला है।" रेखा ने ये बोलते हुए जता दिया की जो करना हो जल्दी कर लो।

रेखा के मुह से निकले शब्द और आँखों में बढती चमक से जाकिर के साँस में साँस आई और उसके मुह से सुकून की उफ्फ्फ निकल पड़ी मानो उसकी जान ही जाते जाते बची हो। मन ही मन जाकिर सोच रहा था,"साली को मारने दे नखरे, मैंने भी चुन चुन के बदले न लिए तो जाकिर मेरा नाम नहीं।"
"अब बोलेंगे भी या ऐसे ही बुत बनकर खड़े रहना है। आप तो मुझे आज देर करवाएंगे जाकिर भैया।" रेखा की सुरीली आवाज से मानो जाकिर के ताजा ताजा मिले घाव पर मरहम लगा पर अंत में बोले गए भैया ने उसी घाव पे डेटॉल की पूरी बोतल ही उड़ेल दी।
"कितनी बार कहा है तुझसे मुझे भैया या भाई न कहा कर मेरी जलेबी" जाकिर कुछ कुछ झुंझलाहट में बोल गया पर फिर अपने आवाज थोड़ी नरम बनाने की कोशिश करने लगा।"मैंने तो बस तेरी सूरत देखने के लिए बुलाया था, बहुत याद आ रही थी। कमबख्त ऐसी दिल में बस गयी है की लगता है दिल तेरी सूरत के साथ ही पैदा हुआ था।"
"आहा हा हा हा हा, कितना झूट बोलते हो आप जाकिर भा.... जी" रेखा ने इस बार जाकिर को भाई बोलने से खुद को बचाया जिसको सुनकर जाकिर की तो बांछे ही खिल उठी और एक मुस्कान चेहरे के पर फ़ैल गयी। मुस्कराहट से जाकिर और भी मक्कार दिख रहा था पर रेखा तो उत्तेजना के पहाड़ पर बैठी थी जिसकी उचाई से तो भेडिया भी भेड़ दिखता है। "और आपको भैया क्यूँ न बोलूं? आप मेरे पति के दोस्त हैं और उनसे भी बड़े है तो मै आपको भैया न कहूँ तो क्या सैयां कहूँ।"रेखा ने जाकिर को छेड़ते हुए कहा।

"मेरी रानी, एक बार सैयां कह के तो देख, कसम से पूरी दुनिया तेरे कदमो में न बिछा दी तो कहना।"जाकिर ने इस सोनमछरिया को फ़साने के लिए और भी लम्बा जाल फेंकते हुए कहा। कहने के साथ ही साथ वो धीरे धीरे बढ़ता हुआ रेखा के ठीक पीछे आ गया और फिर से लगा मछली फ़साने " तूने तो जान ही निकल दी थी मेरी, तुझसे एक ही गुजारिश है मेरी, बस तू रोया मत कर। तेरे आंसू मेरे दिल में पिघले लोहे की तरह टपकते है।" कहते हुए जाकिर ने अपने हाथ धीरे से रेखा के कंधो पर रख दिए, पर पिछली बातों को याद करते हुए अपने हाथो को हरकत करने से रोक लिया।
"अच्छा जी, तो अपनी हरकतों पर थोडा काबू रखा करें। मै आपसे साफ साफ कह देना चाहती हूँ, मेरी मर्जी के खिलाफ अगर कोई काम होता है तो मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लगता। इसलिए मै जब तक आपको संपर्क न करूँ आप न तो मुझे फोन करेंगे और न ही मिलने की कोशिश ही करेंगे। अगर मेरी थोड़ी भी एहमियत है आपकी नजर में तो मुझे वादा कीजिये।"
 horseride  Cheeta    
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#47
मन ही मन जाकिर ने सोचा की वादा करने में हर्ज ही क्या है। एक बार इसे काबू में कर लूँ फिर तो इसे ही नचाउंगा अपने इशारो पर। इस ख्याल के साथ जाकिर के चेहरे की मुस्कान और भी शातिर, और भी कमीनी होती चली गयी। रेखा की पीठ जाकिर की तरफ होने के कारण न तो वो उसकी मुस्कान देख पाई और न उसके मंसूबो को। पर देखा जाये तो रेखा खुद भी तो येही चाहती थी की उसे एक कड़क मर्द का साथ मिले या कहें तो कड़क मर्द से "सब कुछ" मिले जो उसे अपने सीधे सादे गौ जैसे पति से नहीं मिल पाया था। "कुछ बोलते क्यों नहीं" रेखा की आवाज ने ख़ामोशी को तोडा और जाकिर अपने मंसूबो और भविष्य में मिलने वाले आनंद की कल्पना को दबाते हुए आवाज में गंभीरता लाते हुए बोला "ठीक है, मैंने पहले भी कहा था कि मै तेरी मर्जी के खिलाफ कुछ नहीं करूँगा। आज फिर कहता हूँ कि तेरी मर्जी के सामने दुनिया की कोई ताकत को टिकने नहीं दूंगा, चाहे मेरी जान क्यों न चली जाये।" किसी औरत के लिए ये शब्द सुनने पर जो असर होना चाहिए ठीक वेसा ही असर रेखा पर भी हुआ, और उसने मन में अपने को जाकिर को समर्पित कर दिया। पर असल में तो वो थोडा और जाकिर को तडपाना चाहती थी।
"न बाबा ना, मुझे कोई आपकी जान वान नहीं चाहिए।" रेखा की खनकती आवाज गूंजी।

रेखा की खनकती आवाज ने जैसे चुम्बक का काम किया और जाकिर ने उसके कंधो पर रखे अपने हाथो का इस्तेमाल करके उसे अपनी ओर खीच लिया। "उह्ह्ह्ह" रेखा के मुह से निकली आश्चर्य की ये आवाज जाकिर के बदन से चिपकते ही उत्त्तेजना की "उम्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म" में बदल गयी। जाकिर ने कन्धो पर रखे हाथ को धीरे धीरे सहलाना शुरू किया तो रेखा के हाथ भी सहारा ढून्ढते हुए अपनी पूरी लम्बाई में खुल गए और जाकिर भाई की जांघो से टकरा गए। सहारे के तौर पर रेखा को ये सहारा अच्छा लगा और छुते ही उसने जाकिर की दोनों जांघो को अपने दोनों मुट्ठियो में भर लिया। अब की बार "आह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह" जाकिर के मुह से निकली जिसे सुनकर रेखा के चेहरे पर शरारती मुस्कान तैर गई। अब तो उसका ये खेल ही हो गया। वो जाकिर की जांघो को सहलाती और बीच बीच में मुटठी में दबोच लेती जिससे जाकिर सिसक उठता। बदले में जाकिर रेखा के कंधो को सहलाते सहलाते हाथ कब का निचे ले जा चूका था और रेखा के हिम पर्वतों पर अपने हाथो का कब्ज़ा जमा चूका था। रेखा के ताल में ताल मिलाता हुआ वो भी रेखा के जांघ दबोचने का जवाब उसके आम को मसल कर करता जैसे कोई आम चूसने से पहले उसे पिलपिला कर रहा हो। इस उत्तेजक जुगलबंदी में दोनों ही मजे ले रहे थे, और दोनों ही बढ़ चड़कर कोशिश कर रहे थे। इसी कोशिश में रेखा का हाथ ऐसी जगह टकराया की दोनों के मुह से एक साथ निकला "उह्ह्हह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह

जाकिर के पैजामे में कुछ उभार महसूस होने पर रेखा के हाथ खुद ही उस ओर बढ़ गए। रेखा उस उभार को देख तो नहीं पा रही थी पर अपने हाथ उस उभार पर फेरने से उसे ये अंदाजा हो गया की इसकी माप कुछ कुछ उसके सिने के उभार जितनी ही थी। मन ही मन वो हैरान रह गयी की उसके सीने के उभार और जाकिर के जांघो के बिच के तम्बू की ऊँचाई लगभग बराबर ही थी बस अंतर इतना ही था कि रेखा के उभार रुई के नरम गोलों को तरह थे हर तरफ से और जाकिर के उभारो में सिर्फ बिच में ही कुछ लकड़ी के मोटे ठूंठ सा था जिसके चारो तरफ पैजामे के कपड़े की तनावट महसूस होने से वो एक तम्बू जैसा दिख रहा था। बीच के ठूठ की मजबूती नापने के इरादे से रेखा ने उसे अपनी एक उगली से दबाने की कोशिश की पर वो तो जिद्दी बच्चे की तरह खड़ा ही रहा। हार न मानते हुए उसने अपनी हथेली फैला कर उस पर दबाव डाला पर जैसे ही उसे वहां नसों की फडकन और थिरकन महसूस हुई रेखा की ऑंखें रोमांच के मारे बंद हो गयी और इस कारण उसकी हथेलियाँ जो पूरी फैली थी भींच गयी जीनके बीच वोही कड़क ठूंठ आ गया। "आअह्ह्ह्ह्ह्ह।।। उम्म्म्म्म्म्म्म्म।" की आवाज के साथ जाकिर के मजे में और इजाफा हो गया और उसका हाथ रेखा के स्तनों का मर्दन और मस्ती से करने लगे। अब दृश्य ऐसा था की 55 साल के जाकिर के 6फिट से ज्यादा ऊँचे 80 किलो वजनी काले पहाड़ के जैसे शरीर से 28 साल की रेखा का 48 किलो वजनी छरहरा परन्तु सुडौल मख्खन के जैसा सफ़ेद बदन सर से लेकर उसकी टांगों तक पीछे की और से चिपका हुआ था। पीछे से चिपके जाकिर के दोनों हाथ रेखा के बाजुओं और बदन के बीच से होते हुए आगे आकार दोनों स्तनों को घोटने में लगे हुए थे और रेखा जाकिर के पेड़ के ताने जैसे हाथो को अपनी बगलों में दबाये निचे हाथ लेजाकर उसके लिंग से अपनी हथेलियों की जोर आजमाइश कर रही थी। देखने पर ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो एक भैसे के बदन से एक सफ़ेद बकरी चिपके खड़ी हो।

"कैसा लगा मेरा सामान मेरी फुलझड़ी।"जाकिर के इन शब्दों ने एक लम्बी ख़ामोशी को तोड़ते हुए रेखा को हकीकत की जमींन पर ला खड़ा किया। उसे समझ आया की वो भरी दोपहरी में छत पर एक गैर मर्द और वो भी अपने पति के दोस्त के साथ चिपक कर उसके अंगो का नाप ले रही है। शर्म के मारे उसकी आंखे झुक गयी और चेहरा लाल पड़ गया।
"धत्त्त्त्त! आप बड़े बेशरम है। छोडिये मुझे, थोडा तो जगह और समय का लिहाज करिए।"उसके कांपते होठ और लडखडाती जबान बस इतना ही कह पाए। इससे पहले जाकिर कुछ कहता, सीढ़ियो पर कुछ सरसराहट सी महसूस हुई। किसी भी काम को चोरी छुपे करते समय कान बड़े ही तेज हो जाते हैं। दोनों ही आवाज सुनकर सन्न रह गए।
 horseride  Cheeta    
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#48
आवाज कान में पड़ते ही दोनों के चेहरे सफ़ेद पड़ गए और सेकेंड के दसवें हिस्से में ही दोनों एक दुसरे से अलग होकर दूर दूर खड़े हो गए। रेखा ने डरते हुए जाकिर की तरफ देखा तो उसकी भी हालत भीगी बिल्ली जैसी हो रही थी। तुरंत ही जाकिर ने ऊपर से निचे तक एक नजर रेखा पर डाली मानो वो उसके रूप के खजाने से जितना हो सके उतना माल अपनी आँखों में भरकर ले जाना चाहता हो, और तुरंत ही अपने घर की बालकनी की दिवार पर चढ़कर नज़रों से ओझल हो गया। ये सब कुछ कुल 30 सेकेंड में ही हो गया। अब हालत के मैदाने जंग में रेखा अकेली ही खड़ी थी वो भी बिना जाने कि सीढ़ियो पर आफत का कौन सा दुश्मन दस्तक दे रहा है। थोड़ी देर तक कुछ हलचल न होने पर हिम्मत जूता कर रेखा ने धीरे धीरे सीढ़ियो की तरफ कदम बढ़ाने शुरू किये। हर एक कदम के साथ उसका दिल दुगनी तेजी से धडकने लगता। मन ही मन वो खुद को कोस भी रही थी कि क्यू वो ऐसे कामो में पड़ी वो भी भरी दोपहर में खुलेआम छत पर। सीढ़ी तक आते आते दिल इतनी जोर से धड़क रहा था कि उसे पूरी छत ही धड़कन के साथ कांपती महसूस हो रही थी। पता नहीं मन में अपने को धीरज देते हुए वो कैसे हिम्मत जुटा पाई और सीढ़ी वाले कमरे के दरवाजे से एक आंख से झांकते हुए जायजा लेने लगी। पर ये क्या यहाँ तो कोई नहीं दिखा। रेखा की धडकने थोड़ी संभली और उसने अपने कदम आगे बढ़ाकर खुद को सीढी वाले कमरे के बीचोबीच ल खड़ा किया।अब उसे पूरा कमरा और निचे तक जाती सीढिया साफ दिख रही थी जहाँ कोई नहीं था। जैसे ही उसने कदम सीढी से उतरने के लिए आगे बढाया "फ़र्र्र्र्र्र् फड़ फड़ फुर्रर्रर्" की तेज आवाज के साथ कबूतर का एक जोड़ा रोशनदान से उड़ता हुआ बाहर चला गया।

"धत्त तेरी की, इन कबूतरो ने अपनी चोंच लड़ाने के लिए दुसरो को डराना भी शुरू कर दिया।" चैन की साँस लेते हुए रेखा मन ही मन बड़बड़ाई और धीरे धीरे सीढिया उतरकर अपने घर का लम्बा आंगन पार करते हुए बरामदे में पड़ी कुर्सी पर ऐसे बैठी जैसे उसे कई बरसों बाद बैठना नसीब हुआ हो। सुकून के 5 मिनट भी नहीं बीते होंगे की दरवाजे पर दस्तक हुई जिसे देखने रेखा दरवाजे की और बढ़ चली।

उधर जाकिर बाल्कनी से लगे हुए अपने कमरे में अन्दर आकर अपनी बढ़ी हुई धडकनों को शांत करने लगा। उसका कमरा क्या था बस एक 10x14 का कबाडखाना था। पुरे कमरे में यहाँ वहां चीजे पड़ी हुई थी जो कब से पड़ी थी और किस काम की थी ये खुद घर के मालिक को भी नहीं पता था। दीवारों पर जगह जगह उखड़ती रंगाई ने कमरे को और गन्दा रूप दे दिया था। ऊपर छत से लटकता पंखा इतना पुराना दिख रहा था की उस पर जमने से पहले धूल भी ये सोचे की कही वो गन्दी न हो जाये। पंखे के ठीक निचे एक लकड़ी का डबल बेड का पलंग उसके पास रखी दराज वाली टेबल और उस पर रखा टेलीफोन कमरे की चुनिन्दा इस्तमाल हो सकने वाली चीजो में थे। खासकर पलंग पर बिछी सफ़ेद चादर और दो बड़े बड़े सफ़ेद कवर चड़े तकिये उसे कबाड़ख़ाने के बीच ऐसा बना रहे थे मानो अफ्रीकन देश में कोई गोरा अन्ग्रेज घुमने आया हो।

अन्दर आते ही पंखा चालू करके जाकिर ने धम्म से अपना शरीर पलंग पर पेट के बल पटक दिया जिसके वजन से पलंग भी किर्र्र्र्र्र्र् की आवाज के साथ कराहे बिना नहीं रह सका। हाथ आगे बढाकर उसने जैसे ही तकिये को खीचने के लिए दबोचा, उसकी नर्माहट से उसे रेखा के स्तन की नरमी याद आ गयी। "आह, साली के मम्मे है की रुई के ढेर हैं। इतने बड़े और कसे होने पर भी इतने नरम।" याद करते ही उसके शरीर में आनंद की एक लहर दौड़ गयी।और वो दोनों हाथ आगे बढाकर तकिये को यूँ मसलने लगा मानो वो रेखा के स्तन हो। उत्तेजना बढ़ने के साथ उसके शरीर का सारा खून उसके लिंग की और बढ़ने लगा जिससे लिंग पूरा अकड़ कर उसके पेट के निचले भाग और बिस्तर के बीच फड़फड़ाने लगा। जाकिर के आनंद की मात्रा दोगुनी हो गयी। आंखे बंद करके वो अब भी रेखा का हाथ अपने बगीचे के इकलौते पेड़ पर महसूस कर रहा था। "आह, साली क्या चीज है तू भी। एक दिन इसी पलंग पर तुझे न लिटाया तो मेरा नाम जाकिर नहीं। बहुत जल्द इस पलंग पर मेरे और बिस्तर के बीच तू होगी और मेरा लंड तेरी चूत में और तेरा पपीता मेरे मुह में होगा। स्साला, कब आयेगा वो दिन? आयेगा जाकिर। बहुत जल्द आयगा। पर तू ऐसे ही पड़ा बिस्तर की ऐसी तैसी करता रहा तो कुछ नहीं होगा।। कुछ कर।" खुद से ही सवाल जवाब करने के बाद पता नहीं क्या सोचकर वो उठा और एक लम्बी साँस लेकर फोन पर नंबर लगाने लगा।

उधर दरवाजे की दस्तक सुनकर रेखा सोच में पड़ गयी। "इस समय कौन आया होगा? अभी तो इनको आने में बहुत समय है। इस वक़्त तो कोई आता भी नहीं। कहीं जाकिर भाई तो नहीं आ गये फिर से? नहीं नहीं, अभी तो उनको समझाया था और उन्होंने वादा भी किया था कि मुझे खामखा परेशान नहीं करेंगे। वो मेरी बात नहीं टालेंगे।" इनही सवाल जवाबो को मन में टटोलते हुए रेखा दरवाजे पर पहुंची। कुण्डी खोलकर जैसे ही किवाड़ खोला तो सामने एक सफ़ेद झक्क धोती कुरता पहने बुजुर्ग पर उसकी नजर पड़ी जो किवाड़ खुलते ही रेखा को ऐसे मुह फाड़े देख रहा था जैसे कई दिनों से भूखा इन्सान मिठाई की दुकान में खोए की बर्फी को देखता है।
"जी कहिए, किससे मिलना है आपको।" रेखा ने उस बुजुर्ग के सपनो के शीशे पर अपनी मीठी आवाज की मिश्री की डल्ली मारकर उसे हकीकत में ला पहुचाया।
"द...द...द...दीनू है?" उस दादाजी टाइप व्यक्ति में मुह से येही निकल पाया।
"दीनू? माफ़ कीजियेगा चाचाजी, यहाँ तो कोई दीनू नहीं रहता। आपको कहाँ जाना है ठीक से पता तो है न?" रेखा कुछ आश्चर्य मिश्रित सवाल करते हुए बुजुर्ग को उपर से निचे ताड़ने लगी।
"दीनू .......,दीन दयाल...। वो यहीं तो रहता था, ये घर उसी का तो था।" उस बूढ़े ने कुछ खीजते हुए कहा जैसे रेखा जान बुझकर उसे गलत बता रही हो।
ओह्ह्ह....। तो आप इनकी बात कर रहे हैं। दीन दयाल तो मेरे पति हैं और ये घर अब भी उन्ही का, मतलब हमारा ही है।" रेखा ने झिझक के साथ सफाई दी। "पर माफ़ किजिएगा, मैंने आपको पहचाना नहीं और इनसे क्या काम है आपको?" रेखा ने सवालो की गेंद बूढ़े के पाले में डालते हुए कहा।
"अरे अरे,तू तो दीनू की बहुरिया है। मै मदनलाल हूँ बहू,दीनू के बाप मुरली का दोस्त। अजी दोस्त क्या भाई ही कहो। सामने वाली गली में ही रहता हूँ। पिछले दो साल से पहाडियों में जाकर योगाभ्यास सिख रहा था,अब मेरी संगत का तो कोई बचा नहीं गाँव में। आज ही लौटा, तो दीनू से मिलने चला आया। बचपन में उसे उसके घरवालों ने जितना नहीं खिलाया होगा,उतना मैंने अकेले खिलाया और घुमाया है वो भी अपने इन्ही कंधो में बैठाकर।" बूढ़े ने अपना परिचय कंधे उचकाते हुए समाप्त किया।
 horseride  Cheeta    
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#49
"जी नमस्ते चाचाजी, वो तो शाम तक ही लौटते हैं, कभी कभी रात 8 भी बजा देते हैं। कुछ कहना था उनसे, आएंगे तो मै बता दूंगी।" रेखा ने भारतीय नारी की तरह सुशीलता का परिचय देते हुए बूढ़े का अभिवादन किया। जिसके जवाब में बूढ़े ने "जीती रहो बहू" कहते हुए आशीर्वाद देने के लिए रेखा के सर पर हाथ रखा जो कि उसके रेशमी बालो के साथ सर से पीठ और कुलहो के बीच के संधि स्थल तक सहलाकर ही रुके।
"कोई बात नहीं, दीनू से मिलने फिर आ जाऊंगा। अब तो आना जाना लगा ही रहेगा।" मदन ने बड़े ही अपनेपन से बात ख़तम की और पलट कर चल दिया। रेखा को भी अन्दर जाने की जल्दी थी वो मुड़ी और दरवाजा बंद करके अपने कमरे में पहुचते ही चैन की साँस लेकर पलंग पर लेट गयी। पर तभी पलंग के किनारे रखी टेबल पर रखा फोन बज उठा।

जैसे ही फोन की घंटी रेखा के कानो में पड़ी वो बडबडाई "ओफ्फो... क्या मुसीबत है।आज क्या सब ने मिलकर मुझे परेशान करने का सोच रक्खा है, एक पल का भी चैन नहीं।" बिस्तर पर पेट के बल लेटते हुए उसने एक एक हाथ बढाकर रिसीवर उठाया और थोड़ी झुंझलाती आवाज में बोली "हेलो....,कौन?"
"सब ठीक तो है न? तूने फोन भी नहीं उठाया तो मै तो डर ही गया था। कहाँ थी तू?" जाकिर ने अपनी आवाज को थोडा चिंताजनक बनाते हुए कहा।"कौन था छत पर और अभी तेरे दरवाजे से भी किसी को जाते देखा।" जाकिर सवाल पर सवाल दागता चला गया।
" अरे सब ठीक है। छत पर तो कबूतरों की आवाज आई थी।" रेखा अपने खामखा डरने की वजह याद करते ही मुस्करा पड़ी। "पर अगर वाकई में कोई होता, तो आज तो मेरा मुह काला हो ही जाता। आप तो कैसे मुझे मुसीबत में अकेला छोड़कर भाग निकले थे। बड़ी बड़ी बाते करते हो, आज देख ली आपकी हिम्मत और दिलेरी।" रेखा ने जाकिर को छेड़ते हुए उसकी मर्दानगी पर सवालिया निशान खड़े कर दिए।
" कैसी बात करती है तू भी मेरी जान तूने तो मेरा दिल तोड़ दिया। मैंने वहां से खिसककर तेरा ही भला किया था। मुसीबत तो तेरी तब होती न जब हम दोनों को कोई साथ देख लेता।"जाकिर बात सम्हालते हुए बोल पड़ा।" साले उस कबुतर के तो सारे खानदान को तंदुर में भुन के खा जाऊंगा। अच्छे भले मजे की माँ चोद दी साले ने। ऊपर से तू भी मुझे जली कटी सूना रही है।" आगे की ये बाते उसके दिल से डायरेक्ट निकल पड़ी।
"बस बस रहने दो बड़ी बड़ी बाते। आपके मजे के चक्कर में मै बदनाम हो जाउंगी किसी दिन, फिर करते रहना बड़ी बड़ी बाते। आप तो मर्द हो, असली मुसीबत तो औरत की होती है। छुरी खरबूज पे गिरे या खरबूज छुरी पे, कटना खरबूज को ही है।" रेखा ने एक ही साँस में मन की पूरी आशंकाए सामने रख दी।

" हे उपरवाले, येही सुनने के लिए तूने मुझे कान दिए थे। तेरी बदनामी के पहले मै मरना पसंद करूँगा मेरी जान। तुझपे आंच भी आई, तो इस ज़माने की माँ चोद दूंगा कहे देता हूँ। और फिर भी तुझे मुझपर यकिन नहीं, तो मै अज के बाद तुझसे कोई वास्ता नहीं रखूंगा। बस तू खुश रह, येही मेरी ख्वाहिश है।" आवाज में थोडा दुखिपन लाते हुए जाकिर बोल पड़ा, पर असल में बोलते वक़्त उसके चेहरे पर मुस्कराहट थी। बिलकुल वेसी ही, जैसा फंदे में चारा डालते वक़्त शिकारी की होती है। उसने अपना तुरुप का इक्का फेक दिया और रेखा की चाल का इंतजार करने लगा।

जाकिर की इस बात का रेखा पर कुछ ज्यादा ही असर हो गया। वो ये बात सुनकर अन्दर तक तिलमिला उठी। "बहुत अच्छे, हर वक़्त बस छोड़ने की ही बात किया करो। उस वक़्त छत पर छोड़ गए थे, अब फिर छोड़ने की बात करते हो। मै भी कहा तुम्हारे चक्कर में फस गयी।" झुंझलाते हुए रेखा ने दांत पिसते हुए ये शब्द कहे।
"नहीं नहीं, मै कहाँ तुझे छोड़ रहा हूँ मेरी रानी। वो तो तूने बदनामी वाली बात की,तो मैंने कहा था वो तो। मर भी गया तो भी भूत बनकर तेरे पीछे पडूंगा देख लेना। मुझसे बच नहीं पायेगी मेरी रसभरी।" जाकिर अपने तीर के सही निशाने पर लगने से खुश होता हुआ बोला। "वैसे तूने बताया नहीं कौन आया था तेरे घर?"
"क्यूँ जी.... जलन हो रही है क्या? वैसे, मेरे घर कोई भी आये जाये, आपको इससे क्या?" बड़ी अदा से इतराते हुए लहजे में जाकिर को छेड़ते हुए रेखा चहकी। "था कोई हमारा चाहने वाला, आया था गुलाब का फूल देनेे।"
"कौन हरामखोर था, नाम बता उसका। साले की बीच चौराहे गांड न मारी, तो मेरा नाम भी जाकिर नहीं।" जाकिर गुस्से में आग बबूला होता हुआ दहाडा। "इस गाँव में किसकी मौत आई है। किसको अपनी माँ बहन चुदवाने का इतना शौक आया है।"
"छि.. छि.. छि... कितना गन्दा गन्दा बोलते हो आप। कितनी बार कहा है गालिया न दिया करो। सूरत अच्छी नहीं कम से कम बोली तो अच्छी रखो।" सम्झायिश के लहजे में रेखा बोली।

"अच्छा... बोलने सुनने में गन्दा लगता है, करने में गन्दा नहीं लगता तुझे?"जाकिर ने भी रेखा के नहले पे देहला फेंका। "और मुझे बताती क्यों नहीं दरवाजे पर कौन था?"
"अरे बाबा कोई नहीं था, क्यूँ ऐसे दरोगा जैसे सवाल पूछ रहे हो। ससुर जी के कोई दोस्त आये थे। क्या नाम बताया था उन्होंने अपना? हाँ.....मदनलाल।" रेखा जवाब में बोली।"कह रहे थे, हमारे इनको गोद में खिलाया है। भले आदमी लग रहे थे। बड़े प्यार से सर पे हाथ फेरकर आशीर्वाद दिया और चले गए।
"मदनलाल? वो सामने गली में रहता है, वो मदनलाल? साला ठरकी बुड्ढ़ा। और कुछ काम नहीं उसको, बस इधर उधर मुह मारता रहता है।" जाकिर ने तो उसकी जन्मकुंडली ही खोल दी। "मै पुरे यकिन से कह सकता हूँ कि आशीर्वाद के बहाने तेरे पुरे बदन की नाप लेकर गया होगा कमीना। बच के रहियो उससे।"

"ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। आप तो बस, सबको अपने जैसा ही समझते हो। खुद तो अपने दोस्त की बीवी पर बुरी नजर रखते हो और बाकि शरीफों को बदनाम करते हो।" रेखा झेपते हुए बोली, क्युंकी वाकई में मदनलाल रेखा के पुरे पृष्ठ भाग का अपने हाथों से जायजा लेकर गया था। "अच्छा अब मै रखती हूँ, बहुत काम पड़ा है।आपके जैसे निठल्ली बैठी रही, तो मुझे घर से निकाल देंगे आपके दोस्त।" बोलते ही रेखा ने झट से फोन रख दिया, जैसे उसकी चोरी पकड़ी गयी हो।
 horseride  Cheeta    
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#50
फोन रखते ही जाकिर की कही बाते रेखा के कान में गूंजने लगी। उसे मदनलाल का आशीर्वाद का हाथ अब वाकई में कुछ अलग ही महसूस हो रहा था। उस समय तो उसने गौर नहीं किया था,पर अब उसे ध्यान आया कि किस तरह मदन का हाथ उसके सर के ऊपर से होता हुआ, उसके रेशमी बालो के हाईवे पर बेरोक टोक चलता हुआ, उसके कमर तक की यात्रा कर चूका था।
"नहीं नहीं, जाकिर की तो आदत ही है बेमतलब बाते करने की। बेचारे अच्छे भले आदमी को अपने जैसे भेड़िये की जमात में खड़ा कर रहे थे। आखिर मै उनकी बेटी की बराबर हूँ।" अपने आप को जैसे तसल्ली सी दी उसने। "पर अगर जाकिर भेड़िया है, तो उसे मास का लालच भी तो मैंने ही दिखाया है। जहाँ गुड़ होगा चींटे तो आएंगे ही। वैसे उसका वो है बड़ा कड़क और जानलेवा। अआहह्ह....कैसे मेरे गोलाइयो को घोट रहा था, जैसे उन्हें और भी गोल कर रहा हो।" रेखा के दिमाग में उत्तेजना और तर्कों का एक अजब ही मिश्रण बन रहा था।
बिस्तर पर लेटे हुए खुद बखुद उसका एक हाथ अपने स्तन पर और दूसरा दोनों टांगो के संधि स्थल को सहलाने लगा। भावनाओ के अतिरेक में बहती रेखा कब निद्रा के टापू पे पहुच गयी, उसे पता ही नहीं चला।

स्वप्नलोक में भी न जाने वो क्या क्या करती रही।अचानक उसे ऐसा लगा, मानो उसके अन्दर से एक प्रवाह सा तेज गति से निकला हो, जिसके आवेश से वो चीख मारते हुए उठ बैठी। तेज दौड़ती सांसो को सम्हालते हुए उसने अपने आप को अपने पलंग पर पाया। जैसे ही उसने अपने लम्बे पैरो को समेटा, उसकी समझ में आ गया की वो प्रवाह कुछ और नहीं, बल्कि उसकी "फूलकुमारी" का मधुरस था जिससे उसकी पेंटी और पेटीकोट सराबोर थे, और बिस्तर पर भी एक गोल गीला धब्बा बना हुआ था। अपने ही आप से शरमाते हुए उसके चेहरे पर एक नटखट सी मुस्कराहट फ़ैल गयी।
"धत्त्त्त्त..... बहुत शरारती हो गयी है तू। बस जब देखो तब, लार टपकती है तेरी। पूरी दुनिया की लॉली पॉप खाकर भी तेरा मन नहीं भरने वाला। जल्दी ही तेरा कुछ करना पड़ेगा।" साड़ी के ऊपर से ही उसने अपनी फूलकुमारी पर एक हलकी सी चपत लगायी।
अचानक उसे ध्यान आया, कि कुछ अँधेरा सा है कमरे में। बड़ी मुश्किल से उसे घडी के दो कांटे दिखे। "ओह बाप रे। साढ़े छः बज गए, आज तो हो गयी छुट्टी तेरे चक्कर में गुलाबो।" अपनी प्यारी सी योनि को प्यार से झिडकते हुए वो बाथरूम जाकर अपने आपको ठीक करके खाना बनाने में जुट गयी।
आठ बजे के बाद दीनदयाल के आने पर खाना खाते हुए उसने मदन के बारे में बताया। दीनदयाल से मदन चाचा के बारे में कहानिया सुनी, कि कैसे बचपन से अब तक मदन ने उसे अपने बेटे जैसा समझा और प्यार किया। जिसे सुनकर रेखा अजीब दुविधा में पड़ गयी कि वो अपने पति की बात माने या अपने ताजातरीन चाहनेवाले की।
रात में थका मांदा दीनदयाल किसी फॉर्मेलिटी की तरह रेखा की गुलाबो को अपनी चार आने की चोकलेट खिलाकर खर्राटे भरने लगा। पर इसने तो रेखा को और उसकी गुलाबो की भूख और भी भड़का दिया था, जो कि एक पांच रूपये वाली लॉलीपॉप से ही बुझने वाली थी। और शायद रेखा को पता था की वो कहाँ मिलेगी।

सुबह की एक खुशनुमा सी हवा की लहर ने रेखा को धीरे से सहलाया, तो उसकी आंखे खुली। घडी पर नजर पड़ते ही पता लगा की 7 बजने वाले थे। दीनदयाल पहले ही उठ कर नहा धोकर पूजा पाठ में लगा हुआ था।
लगभग रोज का येही नियम था कि दीनदयाल लगभग पांच बजे उठ जाया करता था। उठकर रेखा को बिना जगाये गाँव के पास ही छोटा सा जंगल जैसा था वहां सैर पर जाता, जिसमे उसे एक से डेढ़ घंटा लग जाता। वापस आकर नहा धोकर एक घंटे पूजा करता। लगभग रोज ही उसके पूजा करने के समय ही रेखा जगती और चाय नाश्ते का इंतजाम करके खाने का डब्बा बनाकर उसे दे देती। नौ बजे श्रीमान जी अपने कार्यस्थल के लिए शहर रवाना ही जाते, अपनी सायकल से। शहर वहां से लगभग 10 कि मी था, जिसकी यात्रा दीनदयाल जी अपनी द्विचक्रवाहिनी, अर्थात सायकल से एक डेढ़ घंटे में पूरी कर लेते। श्रीमान जी वहां के एक सरकारी कार्यालय में क्लार्क के पद पर थे। शाम को लगभग छः बजे वहां से निकलते, तो गाँव पहुचते 8 बज जाते थे। प्रतिदिन की ये ही दिनचर्या थी दीनदयाल की।

बिस्तर पर हुस्न की देवी ने लेटे लेटे घडी का जायजा लिया कि वो ठीक समय से तो उठी है ना, और पर्याप्त समय होने की निश्चिन्तता से उसने वापस अपनी आंखे बंद कर ली। आंखे बंद करते ही उसे कल छत का दृश्य याद आ गया, और उसके पूरे शरीर में एक करंट सा दौड़ गया। उसकी आंखे तुरंत खुल गयी, जैसे कि उसकी आंखे बंद होने से कल का दृश्य उसके साथ बाकि सबको भी दिख रहा हो। आंखे खुलते ही एक चंचल सी मुस्कराहट उसके होठो पर तैर गयी, और एक अजीब सा रोमांच मन में भर गया। धीरे से रेखा बिस्तर पर उठ बैठी, और दोनों हाथ पूरी लम्बाई में उचे करके अंगडाई लेने लगी। बिस्तर पर बैठी, पल्लू निचे गिरा हुआ, ब्लाउस से आधे बाहर झांकते स्तन, जुल्फों की लटें चेहरे को चूमती हुई, आँखों में नींद का नशा, कुल मिलाकर रेखा अभी दुनिया की सबसे मादक सुन्दरी दिख रही थी। अगर कोई नपुन्सक भी उसे इस हाल में देख लेता, तो वो भी खड़े खड़े ही स्खलित हो जाता।
 horseride  Cheeta    
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#51
लगभग दो घंटे के अथक परिश्रम के बाद रेखा ने दीनदयाल जी को नाश्ता कराकर, खाने का डब्बा पकडाया और दीनदयाल जी चलने के लिए रवाना होने लगे। दरवाजे तक पहुचते तक रेखा की सुरीली आवाज उसके कान में घुली।
रेखा- "जी सुनिए !!!"
दीन दयाल- "हाँ बोलिए, क्या बात है रेखा जी!!!"
दीनदयाल रेखा से ऐसे ही इज्जत देकर बात करता है। क्युकी रेखा की सुन्दरता और कम उम्र होने के बावजूद उसके साथ शादी होने से वो शायद हमेशा थोडा ग्लानी और हीन भावना से दबा रहता था।
रेखा- "वो, आते आते कुछ किराने का सामान लेते आइयेगा। मैंने इस पर्ची में सब लिख दिया है।" अपने कमल के फूलो जैसे हाथ में एक कागज की पर्ची आगे बढाती रेखा बोली। "और साथ ही मेरे लिए दो जोड़ी ब्रा और पेंटी लेते आना शहर से।" नज़रे निचे करके झिझकते हुए आगे बोली।
दीनदयाल- "क.. क... किराने का सामान तो ठीक है, पर तुम्हारी वो ब्र...ब्र...,वो तुम्हारे कपडे, वो तुम खुद ही ले आना यहाँ की दुकान से। वो महिलाओ के सामान की दुकान में, मुझे जाना थोडा ठीक नहीं लगता।" दीनदयाल जैसे साधू इन्सान से रेखा कुछ ज्यादा ही मांग बैठी शायद।
रेखा- "पर यहाँ तो गिन चुनकर दो तीन दुकाने ही है, और वहां पर कपडे अच्छी क्वालिटी के नहीं मिलते, इसीलिए आपको परेशान कर रही हूँ इस बार। अभी एक महीने पहले ही लायी थी यहाँ से, पर लगता है हफ्ते भर से ज्यादा नहीं चलेगी। प्लीज लेते आइयेगा ना।" मिन्नत भरे लहजे में रेखा ने दीनदयाल की आँखों में देखते कहा, मानो कह रही हो बुद्धू तुम नहीं लाओगे अपनी पत्नी के अंतर्वस्त्र, तो क्या पडोसी लायेगा।

दीनदयाल- "रेखा जी, आप जो कहे मुझे मंजूर है, पर ये काम मुझसे नहीं होगा। अरे हां, याद आया!!! अभी पिछले महीने ही तो जाकिर भाई ने भी कपडे की दुकान खोली है। उनके यहाँ जाकर देख लेना, वो तो अपने घर की ही दुकान है। कह रहे थे अच्छी क्वालिटी के कपडे लाते है शहर से खुद खरीद्कर। पसंद आये तो साड़ी या सूट भी लेती आना अपने लिए।" दीनदयाल ने अपनी बला टालते हुए रेखा को साड़ी की रिश्वत भी दे डाली।
जाकिर का नाम सुनते ही रेखा की आंखे चमकने लगी और साँस के इंजन ने गियर बदलकर अपनी गति बढाई। पर अपनी उत्सुकता को दबाते हुए उसने जानबूझ कर अनमने ढंग से कहा।
रेखा- "वो भी क्या लाते होंगे? आखिर है तो गाँव की ही दुकान ना। खरीदने वाले ही जब देहाती हो, तो शहरी सामान कोई रखकर करेगा भी क्या। और वैसे भी, आपके दोस्त है उनके सामने मै कैसे उन कपड़ो के बारे में पुुछूुंगी और खरीद पाऊँगी। नहीं नहीं, मुझसे नहीं होगा। आप ही ला देना।" ऐसा बोलते हुए रेखा के मन में तो लड्डू फुट रहे थे और वो दुआ मांग रही थी की दीनदयाल फिर से मना करे, ताकि उसका रास्ता साफ हो जाये।
दीनदयाल- "अरे भई, वो भी तो हमारे परिवार की तरह है, मेरे बड़े भाई जैसे। फिर तुम्हारे भी तो भैया ही हुए। तुम एक बार उनकी दुकान में जाकर देख तो आओ, अगर उचित न लगे, तो बाद में मै चलूँगा तुम्हारे साथ। जो चाहिए होगा ले आना, मै बाद में उनसे हिसाब कर लूँगा। अब मै जाता हूँ, देर हो जएगी नहीं तो।
चर्चा को वही समाप्त कर वो झटपट बाहर निकल गया मानो किसी चक्रव्यूह से निकला हो। पर जिस चर्चा को वो समाप्त कर आया था वो एक बहुत बड़े अध्याय का आरंभ करने वाली थी ये वो सपने में भी नहीं सोच सकता था।

दीनदयाल बाहर निकलते हुए दरवाजा भिड़ा गया, पर बंद होते दरवाजे के पीछे अपनी बीवी को ऐसी दुविधा के बीच छोड़ गया, जहाँ एक तरफ तो उसका चंचल मन और जवान बदन मौके का फायदा उठाने को प्रेरित कर रहा था, और दूसरी तरफ उसका दिमाग उसे सही गलत का फर्क समझाते हुए पीछे हटने को कह रहा था।
दीनदयाल को गए लगभग आधा घंटा हो चुका था, और रेखा अब भी दरवाजे की तरफ मुह किये, आंगन के बीचोबीच खड़ी थी, और अब भी उसके अन्दर उठा तूफान थमा नहीं था। तभी फोन की तेज बजने वाली घंटी ने उसे जैसे जगा दिया, और सब कुछ भूल के वो अपने कमरे में फोन के लिए लपकी।
रेखा- "हेलो... कौन बोल रहा है?" ऐसे लहजे में उसकी आवाज निकली, मानो अभी अभी ही बोलना सिखा हो उसने। अभी भी सोच के घोड़े दौड़ने शांत नहीं हुए थे।
जाकिर- "मेरी जान... मेरे अलावा और कौन हो सकता है? अब तो तू मेरी आवाज की आदत ही डाल ले। ही...ही...ही..."जाकिर की हमेशा की तरह छिछोरो जैसी हंसी फोन पर गूंजी। "क्या कर रही थी? चला गया दीनू?"
रेखा जैसे सुबह की सारी बाते ही भूल गयी, और अपने नए आशिक की आवाज के नशे से उसके पुरे शरीर में एक नए उत्साह का संचार हुआ। होठो पर मायूसी की जगह मुस्कान, दिल में असमंजस की जगह उमंग और दिमाग में संशय की जगह शरारत ने कब्ज़ा कर लिया।
रेखा- "ओफ्फो.... आप सुबह सुबह फिर से शुरू हो गए। आपको कोई काम नहीं होगा, पर मुझे तो है।" मन ही मन खुश होने के बावजूद भी रेखा जाकिर को छेड़ कर मजा ले रही थी।
 horseride  Cheeta    
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#52
जाकिर- "तू सुबह की बात कर रही है। अरे हर समय मेरे दिमाग में तेरी बाते, मेरी आँखों में तेरी सूरत, मेरी सांसो में तेरी महक और दिल में तू और बस तू ही घूम रही है। मुझे तो बस हर जगह, तू ही तू दिख रही है। अब तू ही बता, मै करू तो क्या करू?" जाकिर फ़िल्मी डायलौग मारते हुए, क्या क्या बोल गया, ये शायद उसे खुद भी समझ नहीं आया। पर इन बातों का रेखा पर जादुई असर हुआ, और ये बाते उसके कान से सीधे दिल में छप गई।
रेखा- "उफ्फ्फ.... ये सब बोलते हुए, ये याद कर लो की मै शादीशुदा हूँ और वो भी तुम्हारे दोस्त के साथ। बोलो क्या रिश्ता है मेरा तुम्हारा?" रेखा ने आखिर मुद्दे का सवाल खड़ा कर ही दिया।
जाकिर- "मै तुझे शादी को दांव पे लगाने नहीं केह रहा हूँ। हम दुनिया के सामने अनजाने ही बने रहेंगे। पर सिर्फ हम दोनों के लिए मै तेरा दीवाना और तू मेरी माशुका, बस येही रिश्ता होगा हमारा।" जाकिर ने ये बोल के जता दिया कि चोरी छिपे का ही सम्बन्ध वो कायम करना चाहता है और शायद रेखा भी येही चाहती थी।

रेखा- "बस बस..., छोड़ो ये सब बातें, बोलो फोन कयूँ किया? मुझे नहाने जाना है, और फिर काम भी पड़े है।"
जाकिर- "आये हाये, नहाती तो तू रोज ही है, कहे तो आज मै नहला दूँ तुझे। एक बार मौका देके देख, कसम से रोज मुझे ही बुलाएगी नहलाने, हे हे हे हे।"
रेखा- "धत्त्त... कितने गंदे हो आप, कैसी कैसी बाते करते हो। मुझे ठीक नहीं लगता ऐसी बाते करना। किसी ने सुन लिया तो मेरी मुसीबत हो जाएगी। थोडा तो कण्ट्रोल किया करो खुद पर।"
जाकिर- "अरे मेरी बुलबुल, कोई नहीं सुनेगा। अभी तो कोई नहीं है न तेरे घर पे, जो चाहे बाते कर सकते है अभी तो।"
रेखा- "मेरे घर पे तो कोई नही है, पर आप तो दुकान में है न। आपको किसीने सुन लिया,तो क्या सोचेगा?"
जाकिर- "अच्छा ठीक है, तो मै आ जाता हूँ तेरे घर। फिर तो कोई तकलीफ नहीं है न तुझे।"
रेखा- "ना बाबा ना... रहने ही दो आप तो। छत पे तो छोड़ नहीं रहे थे, घर आओगे तो क्या करोगे पता नहीं। अच्छा सुनिए... मै नहा के आती हूँ, फिर बात करेंगे... ठीक है।"
जाकिर- "जैसा आपका हुक्म महारानी जी। मै 10 मिनट में फोन करूँ फिर???"
रेखा- "ओफ्फो... क्या है आपको भी? चैन नहीं है क्या? नहाने धोने के बाद खाना भी खाऊँगी। और अभी वो दूधवाली मुनिया भी आयेगी, कम से कम एक घंटा तो लगेगा न। उसके बाद फोन करना, अब जाती हूँ।"कहते हुए रेखा ने फोन रख दिया।
औरतो को ये अच्छे से पता होता है कि अपने दीवाने को जितना तडपाओ, उसका दीवानापन और भी बढ़ता जाता है। देखें, ये दीवाना क्या गुल खिलाता है।

फोन रखते ही जाकिर के मन में तो लड्डू ही फूटने लगे। उसका मन किया, वो सारी दुनिया को चीख चीख कर बताये कि पुरे गाँव के मर्द जिस बिजली का नाम ले लेकर आहें भरते है और याद करने भर से स्खलित हो जाते हैं, वो बिजली कुछ ही दिनों में उसकी "ट्यूबलाइट" को रोशन करेगी। चिरयौवना से लेकर बुढ्ढीयों तक और कवारियों से लेकर ब्याहता तक हर तरह की महिला को पटा चुके और अपने निचे लेटा चुके जाकिर को इतना तो समझ आ चूका था कि बहुत जल्द उसका कड़क सिपाही, रेखा के गुफा प्रदेश को फ़तेह कर लेगा। इस ख़ुशी से उसके पैर जमीन पर नहीं टिक रहे थे। ख्वाबो में खोया, वो वही बिस्तर पर लेटा आगे की योजना में डूब गया और उसे झपकी सी आ गयी।

उधर रेखा का हाल कुछ अलग ही था। शादी के पहले लडको को उंगलियों पर नचाने का काम उसने चार पांच बार किया था और अपने चाचा चाची से पूरी ना होने वाली फरमायिशे उन लडको से पूरी करवाई थी। पर उसे अच्छी तरह पता था कि इसके एवज में मर्दों को क्या चाहिए होता है। एक गहरी साँस लेकर, मन ही मन उसने एक बार फिर वोही खेल खेलने का फैसला कर लिया, पर इस बार जरुरत उसे भी अपने शारीरिक सुख की थी।
ऐसा नहीं है की वो अपने पति का सम्मान नहीं करती थी, या उसे प्यार नहीं करती थी। संसार में उसके लिए सबसे आदरणीय और प्रेम योग्य पुरुष अगर कोई था, तो वो उसका पति दीनदयाल ही था। परन्तु जैसे घर का खाना परमप्रिय होने पर भी, बाहर मिलने वाली चाट पकोडियो का एक अलग ही आकर्षण होता है, वैसे ही रेखा का मन भी अब जाकिर की चॉकोबार खाने को मचल रहा था। पर मन ही मन उसने जाकिर को अपना शरीर सौंपने से पहले तरसाने का ठान लिया और एक शरारत भरी मुस्कान के साथ वो नहाने चली गयी।
रेखा अपने पति द्वारा विशेषरूप से उसीके लिए बनवाए बाथरूम में घुस गयी। गाँव में बाथरूम और टॉयलेट सबके घर नहीं होता। दीनदयाल ने भी रेखा के साथ सगाई होने के बाद रसोई के ठीक सामने एक बाथरूम विथ टॉयलेट अटेच बनवा दिया था, ताकि शादी के बाद घर की इज्ज़त को बाहर जाकर अपनी इज्ज़त ना धोनी और पोंछनी पड़े।

अन्दर घुसते ही रेखा ने दरवाजे के ठीक पीछे लगे आदमकद शीशे में अपने आप को देखा। गहरे लाल रंग का गाउन, जुड़े में बंधे उसके बाल, कुछ लटें गाल और गले को चूमती हुई, कुछ नींद और कुछ उत्तेजना से डूबी उसकी नशीली आंखे, कुल मिलाकर वो शरीर में कैद क़यामत ही लग रही थी। अपने इस रूप को देखकर, एक बार तो शर्म से खुद उसकी ही आंखे झुक गयी, फिर नज़रे उठाकर उसने खुद को निहारा और ऐसे सीटी बजाई, जैसे मवाली सुन्दर लडकियों को देखकर बजाते हैं। अपनी ही शरारतो से उसके लब मुस्कराए बिना नहीं रह सके। धीरे धीरे उसने अपने फ्रंट ओपन गाउन के बटन खोलना शुरू किया ही था कि उसें एक फिल्म में देखा दृश्य याद आ गया, जिसमे एक लड़की नाचते हुए अपने कपडे उतारती है। अब उसने भी शीशे के सामने अपने बदन को लहराना शुरू कर दिया और लहराते हुए अपने गाउन के बटन खोलने लगी। हर बटन के साथ उसके दिल की धड़कन और बढती जा रही थी। और आखिरी बटन के खुलते ही उसका गाउन, ऊपर से निचे तक लगभग छः इंच की जगह बनाता हुआ उसके कंधो से उसके स्तनों पर होता हुआ झूल गया। उस बीच की जगह से झांकता सुनहरा गोरा जिस्म बिलकुल वैसा दिख रहा था, जैसे खजाने से भरी सन्दूक का ढक्कन थोडा सा खुलने पर अन्दर सोने की मुहरे चमकती हैं। बड़ी ही अदा से रेखा गाउन के ऊपर से ही अपने स्तनों को सहलाने लगी और मस्ती में अपने होठो को दांतों में भींच लिया। फिर उसने मुड़कर अपने गाउन को धीरे धीरे अपने बदन से ढलकाया। जैसे सुबह की नारंगी धुप धीरे धीरे पूरे संसार को जगमगा देती है, वैसे ही गाउन के धीरे धीरे उतरने से, शीशे पर दिख रही रेखा की पूर्ण नग्न पीठ से आइना और पूरा बाथरूम मानो जगमगा उठा। जैसे ही वो अदा से पलटी, तो उसके सपाट पेट के ऊपर स्थित दो वनिला आईसक्रीम जैसी सफ़ेद गोलाइयाँ, उसकी हर पल तेज होती साँस के साथ एक लयबद्ध नृत्य सा करने लगी, जिन्हें देखकर रेखा का मन खुद ही ललचा गया और उसने अपने दोनों हाथ उन पहाडियों की चोटी पर जैसे ही रखे, एक करंट सा उसके बदन में दौड़ गया और एक सिसकारी उसके मुह से फुट पड़ी।
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#53
रात को सोने से पहले रेखा अपनी ब्रा उतार ही देती थी ताकि उसके आकार में कुछ ज्यादा ही बड़े कबूतर चैन से रात भर साँस ले सकें। रेखा अब सिर्फ एक सफ़ेद रंग की साधारण सी पेंटी में थी, जिससे निकलते धागे बता रहे थे की वो काफी पुरानी हो चुकी थी। पेंटी पर नजर पड़ते ही रेखा को याद आया, "ओफ्फो....मै तो भूल ही गयी थी। इन्होने तो पेंटी और ब्रा जाकिर के यहाँ से लेने को कहा है। मै भी बुद्धू हूँ, जब सब रस्ते अपने आप ही खुल रहे हैं, तो मुझे क्या सोचना है। बस चलना है तो ऐसे इतराकर, की हर कोई देखता ही रह जाये। इसी सोच के साथ, उसने दोनों हाथों के अंगूठों को नाभि के दोनों और से निचे की और सरकाते हुए पेंटी के अन्दर घुसाया और पेंटी को नीचे सरकाती चली गयी।

पेंटी निचे खसकते ही, चमचमाती योनि का दो इंच का चीरा बेपर्दा हो गया। उसकी आबरू को ढकने के लिए, बस करीब 1 इंच लम्बे, कुछ सुनहरे भूरे रेशमी बालों की फौज ही रह गयी थी, जिन्होंने गुलाबो रानी को घेर रखा था। योनि पे नजर पड़ते ही रेखा को अजीब सा एहसास हुआ। आज से पहले कई बार इसी बाथरूम में वो नग्न हो चुकी थी, पर आज कपडे उतारते हुए अजीब से रोमांच का संचार उसके तन बदन में हो रहा था। उसने अपनी टांगो को एक बार भींच कर थोडा फैलाया, तो उसकी योनि की फांके आपस में चिपक कर थोड़ी खुल गयी और एक हलकी सी पुच्च की आवाज निकली, जैसे की गुलाबो ने अपनी मालकिन को एक प्यारी सी पप्पी दी हो। रेखा को गुलाबो की इस हरकत पर बड़ा प्यार आया और जवाब में उसने भी उसे देखकर अपने कमल के पंखुडियो जैसे होठो को गोल करके एक पप्पी समर्पित कर दी। अपनी इस शरारत पर उसके लबों पर एक कातिल मुस्कान छा गयी। अपने और अपनी गुलाबो में बीच उसे अब ये बाल नहीं सुहा रहे थे। उसने वही ऊपर रखी हेयर रेमुविंग क्रीम निकाली, जो वो खास तौर से अपनी गुलाबो के लिए ही शहर से पिछली बार लायी थी, पर उसे आज पहली बार इस्तमाल कर रही थी।

रेखा ने फटाफट अपनी गुलाबो को चिकनी चमेली बना दिया और साथ ही हाथ पैर पर यहाँ वहाँ उग आए हलके रोओ को भी साफ कर दिया। अब गुलाबो और उसकी मालकिन दोनों ही क़यामत लग रहे थे। रेखा ने अपने आईने के सामने आकर दोनों हाथों और अपनी जांघो पर हाथ फेराया तो उसे ऐसा लगा मानो मखमल पे हाथ फेरा हो। उसके मुह से अनायास ही निकल पड़ा "चिकनी चमेंली... चिकनी चमेली.... पौवा चढ़ा के आई...." और एक अदा के साथ मुस्कुराते हुए शर्माकर नज़रे झुक गयी। जैसे ही रेखा के हाथ गुलाबो का हाल पूछने पहुचे, तो वहां कुछ गीला गीला सा महसूस हुआ, तब रेखा ने ध्यान से देखा, कि उसकी योनि से शहद बहकर टप टप निचे टपक रहा है। किसी चुम्बक की तरह, उसकी ऊँगली, योनि की फांको को चीरती हुई सीधी गहरायी में उतर गयी। "आआआह्ह्ह्ह्ह्ह....." एक लम्बी सी आवाज निकली जो कि "उम्म्म्म्म्म्म......" की सिसकारी के साथ दब गयी। धीरे धीरे ऊँगली अन्दर बाहर करते हुए उसकी आंखे बंद हो गयी और बंद आँखों में जो चेहरा उसे नजर आया, वो जाकिर का था। "छोडूंगी नहीं मै तुमको....!!! देख लेना....!!! पता नहीं क्या कर दिया है तुमने...!!! इतना तडपा रहे हो...!!!!!" बाएं हाथ से अपनी योनि की सेवा में मग्न, पता नहीं क्या क्या बडबडाते हुए, उसका दायाँ हाथ खुद ही उसके बाये स्तन तक पहुच गया और उसे कस कस कर मसलने लगा। इतने से भी मन न भरने पर उसने अपने स्तनों को ऊपर उठाया और गर्दन निचे करके निप्पल को मुह में भर लिया और उसे जोर जोर से चूसने लगी, जैसे की उसे आज ही ये स्तन मिले हों। पूरा बाथरूम "उम्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म................
ऊऊऊऊउन्न्नघ्घ्ग्ग्ग्ग्ग्ग............... ऊऊऊउम्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म.............." आवाजो से लगभग 5 मिनट गूंजता रहा। अचानक रेखा की आंखे फ़ैल गयी और नथुने फडकने लगे। पूरा शरीर ऐसे कम्पन करने लगा, जैसे तूफान में सुखा पत्ता। रेखा का निप्पल, मुह से छुट गया और उसने अपना चेहरा छ्त की तरफ करते हुए लगभग चीख जैसी एक आह भरी और उसकी योनि के रास्ते आनंद का ज्वालामुखी फट पड़ा, जिससे निकलने वाला रस किसी लावे से कम गरम नहीं था। चेहरे पर पूर्ण तृप्ति का भाव लिए, लगभग 2 मिनट में अपने को सामान्य करते हुए, फिर एक बार प्यारी सी मुस्कान रेखा के चेहरे को रौशन कर गयी। उसके मुह से इतना ही निकला "मुझे इस कदर पागल बनाने की कीमत चुकाओगे जाकिर मियां...!!!अब देखना, मै कैसे बदला लेती हूँ इसका...!!


बाथरूम में लगभग 10 मिनट तक पानी गिरने की और किसी कोयल के जैसे सुरीले महिला स्वर के गुनगुनाने की आवाजे गूंजती रही। फिर और 5 मिनट की शांति के बाद बाथरूम का दरवाजा खुला और जो दृश्य उपस्थित हुआ, वो उस सूने कमरे में ऐसा ही था, जैसे बियाबान जंगल में एक बिजली सी कडकी हो और सब कुछ अचानक उससे चका चौंध हो गया हो। दरवाजा खुलते ही एक हुस्न की मलिका प्रगट हुई। कहते हैं कि बदसूरत से बदसूरत नारी की देह भी भीगने के बाद अत्यंत उत्तेजक हो जाती है, तो फिर ये तो साक्षात् एक अप्सरा का बदन था। सर से पांव तक एकदम सफ़ेद मखमली बदन, जिसपर कहीं कहीं पानी की बुँदे जमी हुई थी, मानो इस रेशमी बदन को छोड़कर जाना ही नहीं चाह रही हों। सर से लेकर कमर से 8 इंच ऊपर तक लम्बे, घने, काले, रेशम जैसे भीगेे, भीने भीने, महकते बाल, जिन से पानी की बुँदे कुछ कुछ टपक रही थीं। रेखा के बदन पर कपड़ो के नाम पर एक गहरे लाल रंग का तौलिया था, जो कि उसके स्तनों से लेकर उसकी आधी जांघो तक के भाग को ढके हुए था। तौलिया इतनी कसके बंधा था, कि रेखा की पूरी आकृति को ढकने की बजाये और उभार रहा था। बाँहों और पैरों की पूरी लम्बाई, बिलकुल बालों के बिना थी, जो की अभी अभी रेखा ने नहाते वक़्त ही किया था। हुस्न की मलिका ने अपने हाथी दाँत जैसे चिकने गोरे पैर आगे बढ़ाये, तो कमरे की फर्श ने मानो उसके कदम चूमकर इस्तकबाल किया। इठलाती, बलखाती रेखा पंजों के बल चलती पलंग के बाजु रखी अलमारी के पास पहुंची। वो एक साधारण सी लोहे की अलमारी थी, जिसमे कपडे वगैरह रखे जाते थे और उसी के दरवाजे पर बाहर की तरफ लगभग 5 फिट का आइना भी लगा था। अलमारी के ठीक बाजु में एक टेबल थी,जिस पर रेखा के सौन्दर्य प्रसाधन और टेबल के नीचे एक दो फुट ऊँचा स्टूल था, जिस पर रेखा आइने के सामने बैठकर अपने रूप को निखारा करती थी। अलमारी के ठीक सामने कमरे से निकलने का दरवाजा था, जो सीधे आंगन में खुलता था।

रेखा पंजो के बल वैसे ही चल रही थी, जैसे आधुनिक महिलाये हाई हील पहनकर चलती है, जिससे उनके पृष्ठ भाग यानि की गांड और उभर जाती है, और चाल में लचक थोड़ी और बढ़ जाती है। अलमारी खोलकर एक और सुखा तौलिया निकाल कर उसने अपने बालों को अच्छे से सुखाया और एक झटके में अपने बदन पर लपेटे तौलिये को खोलकर टेबल पर पटक दिया।
उजला, गोरा बदन, उघडते ही जैसे एक बिजली सी कौंधी, और एक पल के लिए मानो आइने की भी आंखे बंद हो गयी इस चमक से। गोरा चिट्टा, गदराया, चिकना, मखमली बदन वो भी एकदम निर्वस्त्र अवस्था में, किसी कमजोर ह्रदय वाला यदि देख ले, तो उसका दिल ही रुक जाये। खुबसूरत, परियों जैसे चेहरे से निचे सुराहीदार गर्दन पर अपनी किस्मत पर इठ्लाता सुहाग की निशानी मंगलसूत्र था, जो की बार बार उसके स्तनों के उपरी भाग को चूम रहा था, और मन आने पर उसके पर्वतो के बीच की खायी में छुप जाता। अपने बदन को अच्छे से पोछने के बाद ऊसकी चिकनाई इतनी बढ़ गयी थी, कि देखने वालों की नजरें भी फिसल जाये। अलमारी खोलकर रेखा पहनने के लिए कपडे निकालने लगी, उसने आज के लिए एक हलके नारंगी रंग की साड़ी को चुना, जिसके साथ का बिना बाँहों का ब्लाउज था तो साधारण, पर उस असाधारण सुन्दरी के तन पर आते ही लाजवाब ही हो जाता। जैसे ही उसकी नजर अलमारी में रखे अंतर्वस्त्रो पर पड़ी, तो उसके चेहरे की नटखट मुस्कान ने जता दिया कि उसके दिमाग में एक शरारत ने जन्म ले लिया है।
 horseride  Cheeta    
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#54
अपने पति से की गयी सुबह की बातो को ध्यान में आते ही रेखा ने मन ही मन कुछ सोचकर एक सबसे पुरानी सफ़ेद और साधारण सी पेंटी और ब्रा को बहार निकाला और अलमारी बंद की। ब्रा पुरानी होने के कारण उसमे कुछ छोटे छोटे छेद से हो गये थे और पेंटी का हाल तो और भी बुरा था। कुछ छोटे छोटे छेदों के साथ एक थोडा बड़ा सा छेद था, जो पहनने पर ठीक गांड के दाहिने उभार के ऊपर आता, जिस जगह पर रेखा के एक प्यारा सा तिल था।

उसने फटाफट अपने पुरे बदन पर नारियल तेल की मालिश कर उसे चिकना और खुश्की रहित बनाया और फटाफट निकाले हुए कपडे पहन लिए। अब रेखा आइने के सामने बैठकर अपने को निहारने लगी और अपने बालों पर कंघी फेरते हुए गुनगुनाने लगी.....
सजना है मुझे....सजना के लिए....
सजना है मुझे....सजना के लिए..........
और इस गीत के साथ उसके चेहरे पर एक अदा और मुस्कराहट ने उसे और कातिल बना दिया। चेहरे पर थोडा क्रीम और पाउडर, आँखों में गहरा काजल और लबों पर सुर्ख लाल लिपस्टिक लगाकर वो तो मानो मिस वर्ल्ड जाने की ही तयारी कर चुकी थी। पर ये सजना सवरना एक काले, भैंस जैसे छिछोरे इन्सान के लिए जो गाँव की हर औरत के लिए बुरी नजर रखता था और शायद आधी की योनियो को अपना लिंग खिला भी चूका था। पर रेखा तो प्यार में, या सरल भाषा में कहें तो हवस में अंधी होकर उसी से पींगें लडाना चाहती थी।
तैयार होकर उसने एक बार खुद को आइने में देखा। "कसम से अगर मै लड़का होती, तो आज तो तू गयी थी रेखा डार्लिंग!!!! ही... ही .. ही...।" खुद को यूँ छेड़ते हुए उसने आइने में अपने अक्स को आंख मारी, और एक सिक्को की खनक जैसी हंसी कमरे में गूंज गयी।
रेखा कमरे से बाहर निकलकर आंगन के दुसरे छोर पर बने चौके में जाकर खाना थाली में निकाला और अपने कमरे में वापस आकर खाने के लिए हाथ बढाया ही था, कि फोन बज उठा।
"उफ़्फ़्फ़्फ़्फ़ॊओह्ह्ह्ह्ह........बस इन मर्दों को थोडा सा छूट दो तो साँस लेना मुहाल कर देते हैं।" बड़बडाती हुई रेखा फोन उठाने के लिए बढ़ी। पर उसने छूट तो क्या, शायद जाकिर को चूत भी देने के लिए कदम बढ़ा लिया था।
"हेलो.....कौन!!!" अपनी आवाज को सुरीला बनाकर, सब कुछ जानते हुए भी उसने अनजान बनते हुए पूछा।
"मै हूँ जानेमन, तेरा आशिक। और कितना तड़पाएगी, अब आ भी जा छत पर। कब से तेरी छत पर खड़ा हूँ।" जाकिर की भर्रायी हुई आवाज दुसरी तरफ से आयी।
"ओफ़्फ़ॊओह्ह्ह... जाकिर भाई। खाना तो खाने दो।" रेखा ने और थोडा छेड़ते हुए कहा। "आप घर जाओ, और अगर आप छत पर हो, तो बात कैसे कर रहे हो?"
"कितनी बार कहा की मुझे भाई मत बोला कर।" जाकिर थोडा झल्लाया। "अरे मेरी जान, कल ही शहर से मोबाईल लाया हूँ।"इतराते हुए जाकिर बोला। "कहे तो तेरे लिए भी ले आऊं।"
"न बाबा ना। मेरेे लिए ये फोन ही ठीक है। आप अपना नम्बर मुझे दे दो मै खाना खाके फोन करुँगी।" रेखा ने भूख को थोडा दबाते हुए जल्दी से ये बात कह डाली।
"अच्छा ठीक है। मेरा नंबर लिख ले। और जल्दी फोन कर आज जीभर के बातें करुंगा तुझसे।" जाकिर ने कहा।
"बस बातें ही करोगे या.......!!!" नम्बर लेने के बाद जैसे रेखा ने खुलेआम हरी झंडी दिखा दी जाकिर को।

क..क..क्या मतलब तेरा....... !!!" बस जाकिर के मुह से इतना ही निकल पाया और दूसरी तरफ से फ़ोन कट गया। रेखा ने ऐसा दहकता हुआ सवाल छोड़ा, जिसकी तपिश से जाकिर तो मानो खड़ा खड़ा ही पिघल गया। फिर मन ही मन वो सोचने लगा "साली, कहना क्या चाहती थी समझ ही नहीं आया। कभी तो एकदम बिफर जाती है जरा हाथ भी
लगाओ तो, और कभी तो खुलेआम हरी झंडी दिखाती है। एक तो औरत का मिजाज़ समझना वैसे ही कठिन है, ऊपर से ये वाली मिर्ची तो कुछ ज्यादा ही तीखी है। इसका स्वाद तो धीरे धीरे लेना पड़ेगा, नहीं तो या तो मेरा मुह जल जायेगा, या फिर ये मुझे ही जल डालेगी पूरा का पूरा।"
विचारो में डूबा जाकिर रेखा के छत की दिवार का सहारा लेकर कुछ खो सा गया। "किसके ख्यालों में खोये हो जाकिर भाई।" एक प्यारी सी मखमली आवाज उसके कानो में पड़ी।
"कितनी बार कहा तुझसे मुझे भाई मत....।" झल्लाते हुए जाकिर ने ऊपर सर उठाया, पर उसे कोई दिखाई नहीं दिया। चारो तरफ नज़रे दौड़ाने पर भी कोई नजर न आया।
"जाकिर भाई। हिः ....हिः ...हिः..... हिः.......!!!" इस आवाज और खनकती हुई हसी से पक्का हो गया कि ये रेखा की ही आवाज थी। पर जाकिर को समझ नहीं आ रहा था, कि ये आवाज किधर से आ रही थी। आवाज की दिशा में ध्यान से देखने पर उसे रेखा के छत से निचे जाने वाली सीढी के दरवाजे के पीछे से साड़ी का पल्लू दिखाई दे गया।
"ठहर.... अभी मजा चखाता हूँ मुझे भाई बोलने का।" कहता हुआ जाकिर तेज कदमो से सीढियों की तरफ बढ़ा। "ही ही ही ही ही" और उससे बचने के लिए रेखा ने हँसते हुए नीचे की तरफ दौड़ लगा दी। दौड़ती हुई रेखा आंगन में पहुची और बीच में बनी क्यारियो के पीछे खड़ी होकर हसने लगी।
जाकिर नीचे पहुचते ही शिकायती लहजे में बोल पड़ा "क्यों अपने दीवाने का खून जलाती है? भाई न कहा कर, सुनते ही छुरिया चल जाती है दिल पर।"
"क्यों न कहूँ!!! अगर भाई नहीं तो क्या हो आप मेरे, हम्म्म!!!" उसे छेड़ते हुए रेखा आंखे नचाती बोली। "सौ बार बोलूंगी, भैया..भैया..भैया..। ऊऊह्हँ।" जीभ दिखाती रेखा मानो उस सांड को लाल कपडा दिखा रही थी
"ठहर अभी।" कहता हुआ जाकिर उसे पकड़ने दौड़ा, जिससे बचने रेखा ने और कही नहीं अपने कमरे की तरफ दौड़ लगा दी।
रेखा के पीछे लगभग दौड़ता हुआ जाकिर कमरे में पंहुचा, तो कमरे में सामान के अलावा उसे कोई नहीं दिखा। वो आश्चर्य से चारो तरफ नजरें दौड़ाने लगा। तभी उसे कमरे में रखा पलंग दिखा, जिसे देख जाकिर को यकीन नहीं हुआ कि उसे वो स्वप्नसुंदरी सीधे बेडरूम तक ले आई है।
 horseride  Cheeta    
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#55
जाकिर को एक पल को यकीन नहीं हुआ, कि उस मृगनयनी के पीछे भागता हुआ वो जिस कमरे में दाखिल हुआ था, वो उस कामिनी का काम क्रीडा स्थल था। डबलबेड का साधारण सा पलंग और उस पर बिछी साफ सुथरी, गुलाबी रंग की चादर और सुर्ख लाल रंग के दो तकियों के बीच एक गुलाबी रंग का दिल के आकार का तकिया, ऐसा लग रहा था जैसे कि उस हृदयेश्वरी को ये पलंग भी अपना दिल समर्पित करना चाह रहा हो। कमरे के दरवाजे पर ही ठिठककर खड़े हुए ऐसा खुबसूरत नजारा देखकर जाकिर की तबियत और भी गुलाबी हो गयी और उसका दिल दोगुनी तेजी से धडकने लगा।
जिस कामायनी कि तलाश जाकिर दरवाजे पर ही खड़ा होकर कमरे का मुआयना करते हुए कर रहा था, वो और कही नहीं, ठीक वहीँ दरवाजे के पीछे दुबकी खड़ी थी। जब बहुत देर तक उसने देखा कि जाकिर या तो झिझक कर वहीँ खड़ा है, या उसे ढूंढ नहीं पाने के कारण खड़ा है, तो रेखा ने खुद ही पहल करते हुए अपनी चूडियाँ खनकाई और वैसी ही खनकती हंसी से जाकिर के कानो को धन्य कर दिया।

अपनी नव प्रियतमा को ढूंढ़ता जाकिर तब तक दरवाजे से लगभग 5 फिट अन्दर आ चूका था। चूड़ी की आवाज सुन जैसे ही जाकिर पलटा रेखा दरवाजे की ओट से निकली और बाहर भागने का असफल प्रयास करती, उससे पहले ही जाकिर ने आगे बढ़कर रेखा के दोनों बाजुओं को पीछे से दबोच लिया।
"उई माँ....!!! छोड़ो न जाकिर जी..., दुखता है..!!! आह्ह.......।" पकड़ में आते ही रेखा मछली की तरह तड़पने लगी, पर इस तड़प में बनावटी दर्द था, जो कि जाकिर को तडपाने के लिए था। "कितने बेदर्दी हो आप...!!! कितनी जोर से पकड़ते हो...!!! आईई..............।"
"अच्छा...!!! और जब तू मुझे भाई बोलती है, तो मुझे भी तो दुखता है न दिल में।" जाकिर अब तक रेखा को खीचकर अपनी छाती से उसकी पीठ चिपका चूका था और उसका एक हाथ रेखा के नग्न पेट पर घूम रहा था और दुसरे से उसने रेखा के एक हाथ को पकड़ रखा था। "अब देख, मै बताता हूँ कि मुझे कितना दुखता है जब तू मुझे भाई बोलती है।"

"आआह्ह्ह........ऊई माँ......ऊऊऊईईई......!!!" रेखा की हलकी सी चीख कमरे में गूंज उठी, क्यूकि दर्द देने के लिए जाकिर ने पेट पर हाथ घुमाते हुए अपनी पूरी मुट्ठी में रेखा के मखमली पेट को जोर से भींच लिया। इससे रेखा को दर्द जितना हुआ उससे दोगुना मजा आया। अपनी नशीली आवाज में वो बोली, "ऊफ़्फ़्फ़......अच्छा बाबा, माफ़ कर दो! अब नहीं बोलूंगी आपको भाई। अब तो छोड़ दो न...!!!"
आवाज के नशिलेपन से जाकिर को समझ आ गया कि वो सही दिशा में जा रहा है। दुसरे हाथ में पकडे हुए रेखा के हाथ को उसने कंधे के ऊपर से अपनी ओर किया और उसकी एक ऊँगली को मुह में लेकर चूसने लगा। "उम्म्म्म्म्म्म........!!!आआअह्ह्ह्ह.......!!!" रेखा के मुख से एक तेज सिसकारी सी फुट पड़ी। जाकिर की इस हरकत से कंपन की एक लहर उसके नख से शिख तक दौड़ गयी और अपने दुसरे हाथ को पीछे लेजाकर उसने जाकिर के सर के बालो को सहलाना शुरू कर दिया। इससे जाकिर का दूसरा हाथ आगे की कार्यवाही के लिए स्वतंत्र हो गया। वक़्त न गंवाते हुए जाकिर ने रेखा के कमर में बंधी साड़ी की गांठ को खोलकर साड़ी निचे गिरा दी।

"आआह्ह्ह्ह्ह.....!!!!!! ये क्या करते हो..! नहीं, ऐसा मत .......!!!!! " रेखा ने समझ आने के बाद मना करने के लिए वाक्य पूरा भी नहीं बोला था, कि उसकी साड़ी जमीन पर पड़ी हुई थी। "छी...., कितने बेशर्म हो आप, चलो हटो... जाने दो मुझे।" सिर्फ बातो में ही रेखा जाने देने की बात कर रही थी, उसके हाथ यथावत जाकिर के सर पर और मुह में ही थे।
"ऐसे कैसे जाने दूँ मेरी रानी। अभी तुझे जी भर के महसूस तो कर लूँ पहले।" मुह में चूसती हुई ऊँगली को उगलते हुए जाकिर बोला। चुसे जाने से रेखा की गोरी ऊँगली एकदम सुर्ख लाल और थूक से सराबोर हो चुकी थी। ईसी ऊँगली को जाकिर ने धीरे से रेखा के लबो से छुआया, तो रेखा झट से अपनी ही ऊँगली को चूसने लगी और उस पर लगे एक पराये मर्द के थूक को चाशनी के जैसे चाटने लगी।

जाकिर का मुह जो की खाली हो गया था, धीरे से रेखा के कानो तक पहुच चुका था। कानो के नीचे वाले हिस्से, जहाँ बाली पहनी जाती है, को उसने पहले धीरे से अपनी जीभ से छुआ और फिर उसे अपने मुह में भरकर धीरे धीरे चुभलने लगा। "उम्म्म्म्म्म्म......म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म.....!!!!!!" छटपटाती हुई रेखा के भरे हुए मुह से सिसकारी तेज और ज्यादा मादक होने लगी, साथ ही वो दुसरे हाथ से जाकिर के सर के बालों को खीचने लगी।
-"खट.. ख़ट.. खट.. खटट्ट्ट..."- तभी दरवाजे की खटखट की आवाज पूरे घर में गूंज उठी। काम सागर में गोते लगाने की तैयारी मे जुटे इस युगल को इस खटखट ने वास्तविकता की जमींन पर ला पटका।
दोनों झट से अलग हो गए और एक दुसरे की आँखों में देखने लगे। ऐसा लगा, मानो किसी ने उनकी चोरी पकड़ ली हो। दोनों के मन में एक ही मुहावरा गूंज उठा "खाया पिया कुछ नहीं, गिलास फुटा बारह आना।"
 horseride  Cheeta    
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#56
बिजली की तेजी दिखाते हुए रेखा ने झट से जमीन पर पड़ी साड़ी उठाकर पहनना शुरू कर दिया। साड़ी पहनते हुए उसने जाकिर की तरफ देखा, तो वो अब भी मिट्टी का माधो बनकर वहीँ खड़ा रेखा को देख रहा था। साड़ी पहनते पहनते ही रेखा ने उसे आँखों से ऊपर छत पर जाने का इशारा किया, जिसका अनुसरण करता जाकिर तुरंत सीढियों से जाकर ओझल हो गया।
ये सब कुछ बिलकुल 30 सेकंड में ही हो गया, तब तक रेखा साड़ी बांध चुकी थी। जाकिर के मसले जाने से उसके पेट पर लाल निशान जैसा हो गया था, जिसे उसने पल्लू से छिपा लिया।
-"खट... ख़ट... खट्ट....."-तब तक दरवाजे की दस्तक दोबारा गूंज उठी।
"पता नहीं कौन मरा जा रहा है इतना।"जल्दी से दरवाजे पर पहुच कर रेखा ने बड़बड़ाते हुए कुण्डी खोलकर आगंतुक का चेहरा देखा।

"क्या भाभी, कितनी देर से खड़ी हूँ मै!!! कहाँ थी तुम? एक तो मुझे जल्दी जाना है, ऊपर से तुम और देर करा रही हो!!!" दूधवाली मुनिया की फटे बांस जैसी आवाज पंचम सुर में गूंज उठी। "इतनी देर में तो मै, पुरे गाँव को दूध पिला आती।" अपने गोल चेहरे को थोडा बिगाडते हुए, आंखे नचाती वो बोली।
"आ हा हा हा...., ज्यादा पटर पटर मत मारा कर कलमुही। अच्छी भली नींद लगी थी तूने उठा दिया।" पहले से ही गुस्से में रेखा ने मुनिया की बात सुनकर थोडा और भड़कते हुए कहा। "सारे गाँव को दूध 5 मिनट में पिलाकर, जल्दी कहाँ मरेगी जाकर तू, सब पता है मुझे। उस छोटू को दूध पिलाएगी, अपनी इन टंकियों का।" मुनिया के फ्रॉकनुमा कपडे से फाड़कर बाहर आने को बेताब उसके स्तनों की ओर इशारा करते रेखा बोली।
मुनिया की उम्र कोई 19 होगी, पर उसके 36 साइज़ के स्तन तो जैसे बड़ी बड़ी औरतों को भी मात देते थे।
"ओफ्फो भाभी, तुम भी न, कुछ भी बोलती हो!!! मै कहाँ जाती हूँ छोटू के पास ज्यादा। वो तो ऐसे ही कभी कभी दुःख सुख की दो बाते हो जाती है।" मुनिया शर्माती हुई अपनी नजरें नीचे करके खड़ी हो गयी। "लाओ जल्दी से दूध के लिए पतीला, मुझे आज जल्दी जाना है, घर पर थोडा काम है।"
रेखा झट से पतीला लाकर दुध लेते हुए पूछने लगी। "ऐसा क्या काम है रे घर में तुझे। आज बड़ी जल्दी मची है, मेरा तो दरवाजा ही तोड़ देती तू आज उतावली में।"

"वो भाभी...व.. व.. वो...।" झिझकते हुए मुनिया बोली। "मुझे देखने पड़ोस के गाँव से लड़के वाले आ रहे हैं।"
"आये हाये मेरी बन्नो। तभी तो इतनी जल्दी है तुझे।" आंखे नचाकर रेखा बोल पड़ी। "सुहागरात तो न जाने कितने बार मना चुकी, अब शादी करने चली छिनाल।" रेखा और मुनिया में इस तरह की बातें लगभग रोज की ही बात थी।
"धत्त्त्त.....। तुम भी ना भाभी।" कहती हुई मुनिया दूध देकर बिना पीछे देखे तुरंत चल पड़ी।
उसके जाते ही रेखा के दिमाग में बात आई। "उफ्फ्फ....! इस लड़की की शादी के चक्कर में, मेरी सुहागरात को तो भूल ही गयी मै।" चौके में दूध रखकर, घडी पर नजर डालकर, उसने हिसाब लगा लिया की उसके पास अभी पर्याप्त समय बचा है और सीढ़ियो से ऊपर चढ़ने लगी।
छत पर जाकिर कबाब में हड्डी को कोसता हुआ, दिवार का सहारा लेकर बैठा हुआ था। रेखा वहीँ सीढ़ी के कमरे के दरवाजे का टेक लगाकर कमर पर एक हाथ रखकर खड़ी हुई और अपने पैर को जमीन पर पटक कर अपनी पायल को खनकाया, जिससे जाकिर अपने विचारो से बाहर आकर उसी की तरफ देखने लगा।

"सुनिए ना, मुझे आपसे कुछ काम था।" एक शरारती सी मुस्कान के साथ रेखा बोली।
"हाँ हाँ, बोल ना। तेरे लिए तो जान भी हाजिर है।" एक आज्ञाकारी बच्चे जैसे गर्दन हिलाकर जाकिर बोला। "पर पहले ये बता निचे कौन हरामी आया था।"
"छी बाबा... आप क्यों इतनी गाली देते हो। मुनिया दूध देने आयी थी। रोज ही आती है इसी समय।" रेखा बोली।
"साली रंडी। उस कमीनी के तो मम्मो में ही नल फिट करके चौराहे में बिठा दूंगा, फिर जो चाहे नल खोलकर दूध ले लेगा।" गुस्से में अनाप शनाप बकता जाकिर गुर्राया।
"ओफ्फो...फिर वोहि बात। मै नहीं बताती आपको काम, जाओ...।" मुह फुलाकर रेखा सीढियों की तरफ पलटी।
"अच्छा बाबा अच्छा, बोल मेरी गुलाबजामुन, क्या काम है?" उसके पीछे आता जाकिर बोला।
"वो यहाँ नहीं बता सकती। मुझे शर्म आती है।"रेखा बोली।
"उम्म्ममम.... तो चल नीचे चले, तेरे घर।"जाकिर ने मस्ती करने का एक और मौका हाथ में लाने के लिए कहा।
"हाँ..., वोही सही रहेगा। चलिए।" रेखा ये कहकर सीढियाँ उतरने लगी जिसके पीछे, उसकी गांड का मोहक नृत्य देखता हुआ जाकिर भी नीचे आने लगा।
नीचे आंगन में पहुचते ही रेखा के मन की बात ताड़ने की इच्छा से जाकिर ने पूछा "हाँ...अब बोल क्या बात है।"
"अरे बाबा, यहाँ नहीं। पहले अन्दर तो चलिए।" अपने हाथ के इशारे से रेखा ने वापस बेडरूम में चलने का इशारा किया। इस इशारे से जाकिर की तो बांछे खिल उठी। आज किस्मत उस पर पहली बार इतने कम अन्तराल में दोबारा मेहरबान हुई थी।

अन्दर आते ही रेखा और जाकिर दोनों के ही दिल मानो फार्मूला वन रेसर कार की तरह फुल स्पीड में भाग रहे थे और एक दुसरे से ज्यादा जोरो से धडकने की जैसे रेस कर रहे थे। कमरे के बीचोबीच पहुचते ही रेखा पलटी और उससे लगभग दो फिट दूर उसका अनुसरण करता जाकिर ठिठक कर वहीँ जड़वत खड़ा रह गया। न जाने रेखा की आँखों में उसे क्या दिखा कि न चाहते हुए भी उसकी निगाहें निचे झुक गयी। आज पहली बार जाकिर की नजरों में एक झिझक सी थी वो भी एक औरत के सामने। किसी ने सच ही कहा है की एक औरत अपने औरतपने पे आ जाये तो अच्छे अच्छे मर्द भी उसके आगे झुक जाते हैं।
 horseride  Cheeta    
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#57
निगाहों ही निगाहों में रेखा ने अलमारी के पास पड़ी कुर्सी की ओर इशारा किया और जाकिर किसी आज्ञाकारी बच्चे की तरह सर झुकाए उस पर बैठ गया। बैठते ही उसने ज्यो ही रेखा की ओर देखा तो उसे अपनी ओर ही देखता पाकर उसके पैरों के नाख़ून से लेकर उसके सर तक एक सिहरन सी दौड़ उठी। अपनी दोनों भौहों को उचकाकर उसने सवाल सा किया कि बात क्या है वो बताओ। रेखा उसके सवाल पर मुस्कुराई, पर उसकी आँखों में वो चमक सी आई जैसी की एक शेरनी की आंखे किसी हिरन को देखकर चमक उठती हैं।
"व्वो... क्या है न कि.....।" एक झिझक के साथ रेखा कोयल बनकर उस कमरे में कूकी। ""आज सुबह मैंने उनसे कहा था कि....(और रेखा ने उसके और दीनदयाल के बीच हुई बाते विस्तार से बताई)।" और जैसे जैसे उसकी बाते पूरी होती जा रही थी रेखा का कांफिडेंस और जाकिर का हवस का बुखार बढ़ता ही जा रहा था। "तो बताइए आप मेरे लिए लायेंगे न वो कपडे।" अपनी बात ख़त्म करते ही जाकिर की ओर सवालो की तोप चलाकर वो जवाबी कारवाही का इंतजार करने लगी।

"ले बस इतनी सी बात। अरे मेरी फुलझड़ी तेरे लिए तो जान भी हाजिर है और ये बात तो तू मुझे सुबह बता चुकी है फोन पर।" जाकिर अपने आप को थोडा संभालता हुआ बोला। "चल बता तेरा साइज़ क्या है।"
इस सवाल ने रेखा को स्वप्नलोक के बादलों से सीधे यथार्थ के धरातल पे ला पटका। घर में अकेली एक शादीशुदा औरत, अपने ही बेडरूम में, एक ऐसे मर्द के साथ जो कि पुरे गाँव का सबसे बदनाम मर्द हो और वो उससे उसके अंतर्वस्त्रों की माप पुछ रहा है। सामान्य स्थिति में तो ऐसा होने पर महिला चीखने लगती या उस मर्द को भला बुरा सुनाने लगती। पर यहाँ तो रेखा के भी जिस्म में आग फिर से भड़क उठी थी, जिसे उसने शादी के बाद से दबा रखा था।
"साइज का तो पता नहीं, मै तो अंदाज से ले आती हूँ।" खेल को और दिलचस्प बनाने के लिए उसने झूट कहा,"दुकानदार तो आप है आप ही बताइए न।" खुला आमंत्रण देकर वो उसके आँखों में देखने लगी और जाकिर के अगले वाक्य का इंतजार करने लगी।
"ऐसे कैसे बता सकता हूँ? दुकानदार हूँ, जादूगर थोड़े ही हूँ। और वैसे भी, मेरे पास इंच टेप थोड़े ही है, जो मै मापकर बता सकूँ। तेरे पुराने कपडे ले आ, उससे मै मापकर लेता आऊंगा।" जाकिर भी रेखा को तरसाकर उसे पूरा बेशर्म बनाना चाहता था। "हो सकता है तेरे उन पुराने कपड़ो पर माप ही लिखी हो।"

"ओफ़्फ़्फ़ो...आप भी न। वो...वो कपडे तो इतने पुराने हैं कि ख़राब हो गए है पूरे।"बात को हाथ से फिसलता देख रेखा झुंझलाते हुए बोली। "और वैसे भी एक भी फिट नहीं आता मुझे, या तो बहुत टाईट है, या एकदम ढीला। कैसे दुकानदार हो आप, देखकर माप भी नहीं बता सकते। हुंह...।"
"बता तो सकता हूँ, पर उसके लिए तुझे अपनी ये साड़ी, ब्लाउस और साया उतारकर सिर्फ अपने कच्छे बनियान में आना पड़ेगा, तभी बात बन सकती है।" आख़िरकार जाकिर ने अपने तुरुप का बादशाह फेककर महफ़िल में आग ही लगा दी। "बोल, है मंजूर मेरी मलाई बर्फी।"
"व्वो... वो ऐसा कैसे...।" रेखा ने कुछ झिझकते हुए अपनी बात कहने की कोशिश की। जाकिर को लग रहा था कि शिकार को उसने जाल में फसा ही लियाआखिरकार, पर यहाँ तो दरअसल शिकार जाकिर था, जो कि रेखा के सोचे समझे शब्द ही बोल रहा था और वो जो चाहती थी, वही कर भी रहा था।
"ठीक है। पर मेरी भी एक शर्त है। पहली बात तो ये कि उसे कच्छा बनियान नहीं ब्रा पेंटी कहते हैं। और मेरी शर्त ये है कि आपको सिर्फ देखकर ही बताना होगा, अपनी जगह से आप उठेंगे भी नहीं।"रेखा ने आखिर जाकिर के तुरुप के बादशाह पर अपना इक्का जड़ते हुए बाज़ी अपने नाम कर ली।"बोलिए है मंजूर।"t


भला इस वक़्त किस माई के लाल में इतना दम होगा की वो हुस्न की मलिका के कहे को ठुकरा दे। "मुझे मंजूर है मेरी जान, मै देखकर ही बता दूंगा। वैसे भी, इतने दिनों से ये काम कर रहा हूँ, अब इतना तो देखकर ही बता सकता हूँ।" जाकिर डींगे मारता हुआ अपने फेके जाल को समेटने लगा।
पर यहाँ तो मछली इतनी आसानी से उसके हाथ नहीं आने वाली थी। रेखा के शातिर दिमाग में कई खेल चल रहे थे। आखिर शहर की पढ़ी लिखी लड़की, वो भी हुस्न की दौलत से मालामाल, अगर इस तरह से लुटने लगे, तो हुस्न की कीमत ही क्या रह जाएगी।
"आsssहहाहाहाsssss....! बड़े आये तीस मार खान। लगता है बस इन्ही चीजों का माप लेते रहते हैं आप।" रेखा छेड़ते हुए बोली, "मुझे आप पर यकीन नहीं, आप शरारत जरुर करेंगे। पर इसका इलाज भी है मेरे पास।"
इतना कहते ही रेखा ने जाकिर को पीछे धक्का दिया और उसके कुछ समझने के पहले ही वो पीछे पड़ी कुर्सी पर धम्म की आवाज के साथ बैठ चूका था। उसने जैसे ही कुछ पूछना चाहा रेखा ने झुककर अपनी ऊँगली उसके होठों पर रखकर चुप रहने का इशारा किया। एक तो रेखा के जिस्म की भीनी सुगंध, दूसरा उसकी नाजुक मलाई कुल्फी की तरह उँगलियों का होठो पर स्पर्श, और उस पर सबसे बड़ा झटका ,झुकने के कारण उसके उरोजों के अन्दर बनी पतली लाइन का नजारा, जाकिर को तो मानो किसी डॉक्टर ने अनास्थिसिया दे दिया, ऐसे सुध बुध खो चूका था।
कुछ पलों में जब उसे थोडा होश आया तो उसके हाथ कुर्सी के दोनों हैण्डलों पर उसके पैर कुर्सी के पायों के साथ और उसकी कमर कुर्सी के पिछले हिस्से के साथ रेखा एक मजबूत साड़ी से कस के बांध चुकी थी।
"ये सब क्या है।" जाकिर छटपटाते हुए हाथ पैरों को झटककर खोलने की कोशिश करने लगा पर सब नाकाम। "उफ्फ्फ ऐसे क्यों बांधा है मुझे, मैंने तुझे वादा तो किया था की मै सिर्फ देखूंगा। खोल दे ना, मेरी रानी।"

"देख तो अभी भी सकते हो, पर मुझे आप पर यकीन नहीं था इसीलिए ऐसा किया। आपको मंजूर नहीं तो बता दो।" रेखा ने आवाज में कुछ भारीपन लेट हुए कहा जिससे की जाकिर उसकी मुठ्ठी में आ जाये।
अच्छा बाबा अच्छा। जैसी तेरी मर्जी।" अपने हाथियार डालते हुए उसने रेखा से कहा। "अब जल्दी कर वरना फिर तेरे खसम के आने का समय हो जायेगा तो मुझे मत कहना।"
"अभी एक चीज और बची है।" कहते हुए रेखा जाकिर के पीछे आई। जाकिर सोचता ही रह गया की अब ये क्या करने वाली है तभी एक काले रंग की चुनरी सीधे उसके आँखों के ऊपर कसती चली गयी।
"अरेरेरेरेरेरेरे.....! ये क्या है अब। देखने की तो बात हुई थी ना। देखूंगा नहीं तो तेरी माप क्या सूंघकर बताऊंगा।" अब तो जाकिर झुंझला ही उठा। उसकी मजे की आखरी उम्मीद की दुकान भी रेखा बन्द कर चुकी थी।
तभी उसके कानो में मिश्री घोलती आवाज गूंजी।"सबर कीजिये। सबर का फल मीठा ही होता है।"
 horseride  Cheeta    
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#58
इस सुरीली आवाज ने जाकिर के जख्मो पर कुछ मरहम के जैसा असर किया और वो थोडा झुंझलाना कम करते हुए शिकायती लहजे में बोला,"सबर! और कितना सबर करवाएगी। तेरे इस सबर के चक्कर में तेरे इस आशिक की कबर ही न बन जाये।"
"ऒफ़्फ़ॊ! आप और आपकी बाते। बस बाते ही बनाते रहिएगा। कितना बोलते हैं आप। लगता है की इसका भी कुछ करना पड़ेगा।"और इतना कहते ही रेखा ने एक दूसरी चुनरी से जाकिर के मुह को भी बांध दिया।

अब कमरे की हालत देखकर ऐसा लग रहा था की जैसे रेखा ने जाकिर को अगवा कर के उसे कैद कर रखा हो। जाकिर की हालत तो ऐसी हो रही थी की काटो तो खून नहीं। उसके दिमाग ने तो सोच सोच के आसमान सर पर उठा रखा था की अब क्या होने वाला है कहीं ये औरत उसे फसा तो नहीं देगी। आज तक गाँव की कई कलियों का रस चूस चूका था वो पर किसी ने ऐसा कुछ नहीं किया था। सच कहो तो जाकिर की सारी इन्द्रियों को रेखा कैद कर बेबस कर चुकी थी।सिर्फ उसकी नाक और कान अब भी खुले थे।
जाकिर को तभी ऐसा एहसास हुआ, की रेखा कमरे का दरवाजा बंद कर रही है। "कहीं ये मुझे यहाँ बंद करके बाहर से किसी को बुलाने तो नहीं गयी। अगर ऐसा हुआ, तो आज तो जेल पक्की जाकिर मिया। ऊपर से गाँव वालों के लात घूंसे खाओगे वो अलग। बड़े आये थे शिकारी बनने, हो गया शिकार खुद तुम्हारा ही।" ऐसे ही उधेड़बुन में लगे जाकिर को ना जाने कितना वक़्त बीता होगा तभी उसे कुछ भीनी भीनी सी महक आई जिसे वो दिमाग पर जोर डाले बिना ही पहचान गया की ये महक रेखा की थी।
"तो आप तैयार हैं ना।" जाकिर के कानो के पास मुह लाकर रेखा ने खुसफुसाते हुए कहा। इस तरह खुसफुसाती हुई रेखा की नशीली आवाज कानो पर पड़ती उसकी गर्म साँसें और बदन की महक से जाकिर को कई बोतलों का नशा एक साथ ही हो गया। एक आज्ञाकारी बच्चे की तरह उसने सर को कई बार हिलाकर रेखा के सवाल का जवाब हाँ में दिया। और अगले ही पल एक झटके में उसके आँखों की पट्टी खुल गयी। पलकों को बार बार जल्दी जल्दी झपककर वो चारो ओर देखने लगा। कमरे का दरवाजा बंद होने से अन्दर हल्का हल्का उजाला आ रहा था। चारो तरफ देखने पर उसे रेखा कहीं नजर नहीं आई। उसके ठीक सामने पलंग पर रेखा की कपडे पड़े थे जिसे रेखा ने थोड़ी देर पहले पहन रक्खा था।

"तो क्या रेखा अभी नंगी है। ऒह्ह्ह्ह..... । इसी पल का तो न जाने कब से इंतजार था। पर ये साली बिना कपड़ो के चली कहाँ गयी। कहाँ है बुलबुल।" जाकिर की नजरे रेखा को ढूंढ़ रही थी और दिमाग अपने पहाड़े पड़ने में व्यस्त था।
"क्या हुआ। किसे ढूंढ़ रहे है आप। ही.. ही.. ही....!" खनकती सी हंसी के साथ रेखा की आवाज उसे सुनाई दी जो की उसके ठीक पीछे से आ रही थी। बिना कपड़ो के रेखा उसके पीछे खड़ी है ऐसा दिमाग में आते ही जाकिर का दिल तो मानो बुलेट ट्रेन के जैसे दौड़ने लगा। उसके गले की दीवारे सुखकर मानो आपस में ही चिपक रही थी जिसे उसने अपना थूक गटककर थोडा तर किया। अंडरवियर के अन्दर उसका लिंग तो फुल कर ऐसा दबा जा रहा था जैसे खरगोश के पिंजरे में शेर को डाल दिया गया हो।
"अब मै आपके सामने आने वाली हूँ। पर उससे पहले आपको अपनी आंखे बंद करनी होंगी फिर जब मै बोलूं उससे पहले आंखे मत खोलना। समझे।" एक आदेशात्मक लहजे में रेखा की आवाज आयी। जिसके जवाब में जाकिर का सर अपने आप ही हाँ में कई बार हिल गया। "तो कीजिये आंखे बंद।" और जाकिर ने पलके मूंद ली। एक बार तो उसका ख्याल आया की वो आंखे खोलके देखे की ये हो क्या रहा है पर न जाने क्या सोचकर उसने पलके बंद ही रखी पूरी ईमानदारी के साथ।

रेखा के उसके बगल से निकलकर आगे की ओर जाने और पलंग पर चढने का एहसास उसे हो गया। आगे क्या होने वाला है ये सोच सोचकर ही धडकने बढती जा रही थी।
"अब आप आंखे खोलिए।" रेखा की इसी बात की राह देखती जाकिर की आंखे तुरंत ही खिल गयी। सामने देखने पर उसने पाया की रेखा पलंग के ऊपर खड़ी है। पलंग एक तरह के छोटे से स्टेज की तरह हो गया था मानो किसी स्ट्रिप क्लब में होता है और सामने जाकिर दर्शक की तरह कुर्सी पर बैठा था पर हाथ पैर बंधे हुए।
पलंग के बीचोबीच रेखा खड़ी हुई थी, पर जाकिर ने जैसी उम्मीद की थी वैसी नहीं। रेखा का सिर्फ गर्दन के ऊपर का हिस्सा ही खुला था। गर्दन से लेकर घुटनों के कुछ निचे तक का भाग छिपाने के लिए उसने एक चादर ओढ़ रखी थी।
"अब आप कुछ ऐसा देखने जा रहे हैं जो मेरे पति के अलावा कोई और नहीं देख पाया आज तक। वादा कीजिये की ये राज आप अपने सीने में दफ़न करके रखेंगे।"शर्म से जाकिर से नजरे न मिला पा रही रेखा अपने पैर के नाखुनो की ओर देखते हुए बोली और बोलने के तुरंत बाद जाकिर की ओर देखा उत्तर जानने के लिए। जाकिर ने तुरंत ही हामी भर दी। और एक लम्बी साँस लेते हुए रेखा ने चादर पर अपनी पकड़ ढीली कर दी। सरसराहट के साथ निचे गिरकर चादर सेकेंड के सौवें हिस्से में ही रेखा के पैरो को चूमने लगी।

सामने उपस्थित दृश्य से तो मानों जाकिर के दिल ने धडकना ही छोड़ दिया। उस मद्धम उजाले से रौशन कमरे में रेखा का बदन कुछ इस तरह चमका की एक बार तो जैसे उसकी आंखे ही चौंधिया गयी। अपनी आँखों पर यकीन करने के लिए जाकिर ने तीन चार बार पलके झपका कर आँखों को अच्छी तरह साफ किया और फिर मानो उसके मुह और उसकी आँखों में प्रतिस्पर्धा सी होने लगी क्यूंकि जैसे जैसे हैरत से उसकी आंखे फैलती जा रही थी वैसे वैसे ही उसका मुह भी खुलता जा रहा था। सामने दृश्य ही ऐसा था कि कही ये सब सपना तो नहीं ये सोचकर उसने अपनी जीभ को दांतों से हल्का सा काट कर देखा।
चादर के गिरते ही एक खूबसूरती का जीता जागता नमूना पलंग के बीचोबीच खड़ा था। चाँद की किरणों जैसे उजले चेहरे के साथ साथ उसका पूरा बदन भी मानो चांदनी में धुला हुआ लग रहा था। जाकिर की नजरें ऊपर से निचे तक उसके यौवन का मुआयना करने लगी। शर्म से गिरी हुई चादरों की तह में छुपना चाह रही ऑंखें, पतली सी सुतवा नाक, कुछ झिझक और कुछ उत्तेजना से लरजते होठ, और उनकी सुर्ख खिडकियों से झांकते दांत रूपी मोतियों की कतारें, थोड़ी सी बाहर को उभरी हुई ठोड़ी, उसके चेहरे के खजाने के अनमोल रत्न थे।

चेहरे से जाकिर की नजर उसकी मोर जैसी गर्दन से नीचे फिसलती चली गयी जो की सीधे रेखा के उभारों को ढके हुए साधारण से ब्रा में आकर रुक गयी। "ओह्ह तो इसने ब्रा पेंटी पहनी हुई है।" मन ही मन जाकिर ने सोचा जो की उसके नंगे बदन की उम्मीद लगाये बैठा था। इस अल्प अन्तराल के बाद फिर से शारीरिक निरीक्षण शुरू हो गया।
कन्धों पर सफ़ेद रंग के ब्रा के स्ट्रेप्स के अलावा और कुछ नहीं था। पर असली खजाने की चौकीदारी तो ये ब्रा ही कर रही थी। इन साधारण से कपड़ो के निचे छिपे असाधारण सौन्दर्य शिखरों के दबाव से उसने लगभग 36 साइज़ होने का अंदाजा लगा लिया। पर असली आकर्षण माप का नहीं था बल्कि इतने बड़े होने पर भी जो कसावट और गोलाईयाँ जाकिर की पारखी नजरों ने महसूस की वो अद्वितीय लगी। ब्रा ने लगभग 80% स्तनों को ढक रखा था पर ऊपर से झांकता उसका बचा हुआ हिस्सा भी जानलेवा था। एकदम केसर कुल्फी के जैसी रंगत इस नज़ारे को और भी हसीं बना रही थी। छाती लगभग पूरी ढकने की ब्रा बस असफल सी कोशिश ही कर रहा था पर उन सिंदूरी पपीतों के बीच की गहरी खाई में तो अच्छे अच्छों का इमान भी खो सकता था।
 horseride  Cheeta    
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#59
अमृतकलशों से जी भर कर आंखे तर करने के बाद उसकी नजरें सपाट चिकने पेट पर फिसलती हुई निचे आने लगी तभी बीच में एक छोटे से छिद्र में अटक सी गयी। सपाट चिकने तने हुए पेट के बीचोबीच इस छोटे से नाभि के कुँए से मानो कई कामचक्षुओं की सौन्दर्य पिपासा शांत करने का सामर्थ्य है।

अपनी नजरों की प्यास बुझते ही नजरों की यात्रा और निचे बढ़ी। नाभि से नीचे कमर आते आते अचानक चौडाई बढ़ सी गयी जो कि भारी नितम्बों का साफ संकेत था। नीचे फिर से एक साधारण सी सफेद पेंटी ने रेखा के सौदर्य केंद्र को ढक रखा था। पर जाकिर वहीँ नजरे गडाए मानो एक्सरे की तरह अन्दर का नजारा भी ले लेना चाहता था।
रेखा ने जब देखा की जाकिर की नजरें केंद्र से हट ही नहीं रही तो वो झिझकते हुए अपनी तितली को छिपाने के लिए पीछे मुड़ गयी पर इससे तो जाकिर के लिए और भी जानलेवा स्थिति उत्पन्न हो गयी। पीछे मुड़ते ही पेंटी में कैद विशाल नितंबो सहित पृष्ठ भाग सामने आ गया। ऐसा लग रहा था जैसे मध्यम आकार के दो तरबूजों पर पेंटी चढ़ा दी गयी हो। एक बार नितम्बों से लेकर चिकने रेशरहित जांघो से होते हुए उसकी नजर रेखा की एड़ियों तक जाकर वापस नितम्बों पर अटक गयी। अब तो जाकिर का लिंग इतना फुफकारने लगा था मानो उसके शरीर से छूट कर अभी के अभी रेखा की पेंटी में घुस कर अपनी प्रेयसी से मिल जाये। अपनी कसती हुई अंडरवियर से उसे हल्का दर्द सा होने लगा। कुछ इस दर्द से और कुछ इस यौवन के हमले से जाकिर के मुह से एक अह्ह्ह निकल गयी। जिसे सुनते ही रेखा वापस पलती और बोल पड़ी "क्या हुआ? आप ठीक तो हैं न?"

जाकिर की नजरे रेखा से मिली तो उसकी नजरों के नशे ने उसपर और भी नशा चढ़ा दिया। वो और भी गहरी गहरी सांसे लेने लगा और उत्तेजना से उसका पूरा शरीर पसीने से तर बतर हो चूका था। पसीने से उसका कुरता पूरी तरह भीग कर उसके शरीर से चिपका था जिससे अन्दर से काली छाती कुर्ते से ही दिखने लगी थी।
"बाबा रे.....आपको तो कितना पसीना आ रहा है। आप ठीक तो है ना?" उसकी ऐसी हालत देखकर रेखा थोड़ी घबराकर झट से पलंग से निचे उतर आयी बिना इसका ध्यान किये की वो इस वक़्त सिर्फ इतने ही कपड़ों में है जिससे उसका बदन सिर्फ 25% ही ढका हुआ है। और देखा जाये तो किसी शरीर की सुन्दरता पूरी तरह से अनावृत्त होने से या पूरी बेशर्मी से प्रदर्शन से अधिक, कुछ कुछ ढकने छुपाने या कुछ शर्म लिहाज में ज्यादा घातक हो जाती है।
रेखा को पलंग से उतरकर नीचे जाकिर के पास पहुचने में पलक झपकने तक का समय ही लगा पर इतने वक़्त में ही उसके दिमाग में तरह तरह की बाते आ चुकी थी। "कहीं मैंने इस भले इन्सान के साथ कुछ ज्यादती तो नही कर दी। आखिर 50-55 की इस उम्र में इस तरह बांधने का ख्याल मेरे दिमाग में आया ही क्यूँ। कहीं इनका दम तो नहीं घुट रहा। बेचारा।" मन में इन्ही तरह के बातों से घिरी रेखा उसके पास कड़ी हुई और कुछ देर पहले आँखों से खोली पट्टी से उसके माथे का पसीना पोछने लगी जो की उसके लगभग आधे से ज्यादा बालों से साफ सर पर भी चमक रहा था।

"उफ्फ्फ.... आपका तो पूरा कुरता ही भीग गया है। इसे उतार देती हूँ।" इतना बोलते ही रेखा को अपनी हालत का ध्यान आया और उसने सोचा की इस हालत में इसे खोल दिया तो ये मुझे कच्चा चबा जायेगा। तभी कुछ सोचकर वो पीछे टेबल की दराज खोलने लगी। इधर जाकिर तो मानो बादलो की दुनिया में ही सवार था। नशे की हालत से बाहर आने लगता ही था की ऐसा कुछ हो जाता था की उसे दोगुना नशे का डोज मिल जाता था। वो तो बस घटनाओं को घटते हुए देखना चाहता था। जो भी हो रहा था उसके लिए तो कल्पना से परे और उसकी उम्मीद से अलग और बड़ा अच्छा अच्छा ही लग रहा था उसे। इधर रेखा जाकिर के पास वापस पहुची और उसने जाकिर का कुरता निचे से पकड़ा और दराज से निकालकर लायी कैची का उपयोग करने लगी। कच्च कच्च कच्चा कच्च चर्र्र चर्र्र्र्र्र्र्फ़ की आवाजे लगभग 15 सेकण्ड तक कमरे में गूंजती रही और उसके बाद बिना हाथ पैर या मुह खोले जाकिर मिया ऊपर से पूर्ण निर्वस्त्र हो चुके थे। उजले कुर्ते के भीतर से उनका काजल के पहाड़ की तरह का शरीर बाहर आ चूका था जो की आकार में बिलकुल लाफिंग बुद्धा के जैसा थुलथुला ही था।

अब तक रेखा समझ चुकी थी की जाकिर की इस हालत का कारण उत्तेजना है। आखिर 50 के ऊपर के इन्सान के सामने एक 30 साल के एटम बम को रखा जाये तो जो अंजाम होता हो वही जाकिर के साथ हुआ था। समझ में आने के बाद भी रेखा इस अनजान होने के खेल को जारी रखना चाहती थी। "ओफ्फो देखिये तो आपका पूरा बदन पसीने पसीने हो चूका है। च्च.. च्च.. च्च...! मै पोछती हूँ अभी, आप फिकर मत कीजिये, मै हूँ न।"
जाकिर उत्तेजित तो था ही ऊपर से रेखा की ऐसी नशीली आवाज सुनकर उसे और सुरूर चढ़ने लगा आखिर ऐसी स्वप्न सुन्दरी किसी की सेवा अपने हाथ से करना चाहे तो या तो कोई बेवकूफ ही मना करेगा या कोई नामर्द। जाकिर और बेचारा बनने के लिए कुर्सी पर और भी फसर गया जिससे उसकी जांघे कुर्सी से काफी बाहर निकल गयी थी।
रेखा जाकिर के अलग अलग दिशाओं की ओर फैली दोनों जांघो के बीच खड़ी हुई और झुककर उसका बदन पोंछने लगी। अचानक रेखा जाकिर के कन्धों पर हाथ रखकर एक गहरी साँस लेते हुए उसकी बायीं जांघ पर बैठ गयी। उसके नितम्बों का जैसे ही संपर्क जैसे ही जाकिर की जांघों से हुआ तो एक साथ दोनों की आंखे 2 सेकण्ड के लिए बंद हो गयी और ऐसी सनसनी दोनों के बदन में हुई जैसे बर्फ का पानी अचानक डालने पर होती है। आंखे खुलते ही दोनों की निगाहें टकराई तो एक कातिलाना मुस्कराहट रेखा के चेहरे पर आ गयी। इतना आकर्षक और मनोहारी दृश्य वहाँ उपस्थित हो चूका था की सिर्फ पोर्न फिल्मो में ही देखने को मिलता होगा। एक अधेढ़ थुलथुले बदन के काजल जैसे काले आदमी की जांघों पर एक दूध जैसे उजले कमनीय बदन वाली कामिनी सिर्फ अपने अंतर्वस्त्रों में चिपककर बैठी हुई थी जिसे देखकर तो किसी का भी स्खलन हो जाये।
अगले 1 मिनट में जाकिर का बदन अच्छे से पोछ लेने के बाद वो उठने से पहले एक बार अपने कूल्हों को एक बार अच्छे से उसकी जांघों पर रगड़ कर उठी। एक बार उसने ऊपर से नीचे जाकिर को देखा और चहकी "ओफ्फो मै भी बुद्धू हूँ। ऊपर इतना पसीना आया है तो आखिर नीचे भी तो आया ही होगा।" और इतना बोलते ही एक बार फिर कैची रेखा के हाथ में थी।

फिर एक बार वही कैची का स्वर गूंजता रहा और इस बार जाकिर मिया नीचे से भी वस्त्र रहित हो गये थे। बड़ी ही सफाई से रेखा ने सिर्फ जाकिर के पैजामे को काटकर अलग किया था उसकी अंडरवियर को नहीं। अब जाकिर की इज्जत बचाने के लिए बस यही कपडे का टुकड़ा बचा था। अजीब बात थी की जाकिर इस कमरे में आया रेखा के कपडे उतारने था पर उसके खुद का वस्त्र हरण हो चुका था। उसका लिंग तो अब तक पूरी तरह से बगावत पर उतर आया था और उसकी जंग अंडरवियर से चल रही थी। जिसका सबूत अंडरवियर में बने तम्बू से मिल रहा था जो कि कोल्ड ड्रिंक की बोतल जितना बड़ा हो चूका था। कैची रखकर रेखा ने जाकिर की आँखों में देखा और फिर से शरारत से मुस्कुरायी और उसके दोनों जांघों के बीच जमीन पर पैर मोड़कर बैठ गयी।

 horseride  Cheeta    
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#60
जमीन पर बैठते ही रेखा ने जाकिर की नजरों में देखा और अपना एक हाथ उसकी जांघों पर रखकर दुसरे हाथ से उसकी जांघो और आस पास के पसीने को पोछने लगी बीच बीच मे उसकी नजरे जाकिर से टकरा जाती तो वो जान बूझकर अपने दोनों हाथो से जांघों को दबा देती। अब तो जैसे जाकिर की उत्तेजना की बैटरी लगभग चरम तक चार्ज हो चुकी थी। अगर और कुछ देर ऐसा चलता तो वो रेखा के छुने से ही स्खलित हो जाता। जाकिर की चड्डी के अन्दर राकेट के बढ़ते साइज को देखकर रेखा ने भांप लिया की अब और छेड़ना ठीक नहीं और वो उठकर खड़ी हो गई। उठते हुए उसके ब्रा में कैद कबूतरों ने जाकिर की नजरों से गुटर गूं किया तो उसकी नजरे बस उन्ही से चिपक गयी। और पलक झपकते ही एक बार फिर रेखा पलंग रूपी स्टेज पर चढ़ कर खड़ी हो गयी।

उस 12X15 फिट के कमरे में अब दो विपरीत लिंग के प्राणी सिर्फ अपने अंतर्वस्त्रों में मौजूद अपनी उत्तेजना के चरम पर पहुच चुके थे।
" हाँ तो अब देखिये क्या है मेरा साइज़। ये ब्रा पेंटी थोड़ी ढीली है पर आप तो बड़े पारखी बनते हो न बताओ क्या है मेरा साइज़।" ऐसा कहते कहते रेखा मानो एक कुशल मॉडल की तरह घूम घूम कर उसे अपने बदन का हर एक कटाव हर एक उतार चढ़ाव दिखाने लगी। कभी वो अपना एक हाथ कमर में रखकर कमर लचका कर खड़ी हो जाती तो कभी दोनों हाथ सर पर रखकर अपने गुब्बारों को सामने की तरफ़ निकालकर अदा के साथ कमर को लचकाती।
जाकिर के तो मन में ये देखकर गाना बजने लगा-
जरा जरा टच मी टच मी टच मी
जरा जरा होल्ड मी होल्ड मी होल्ड मी
आखिर में तो रेखा एक अदा के साथ कमर लचकाते हुए मुड़ी और जाकिर की ओर पीठ करके खड़े खड़े ही ऐसे नीचे झुककर अपने घुटनों पर अपनी हथेलियों को रख कर लगभग 10 सेकण्ड के लिए इसी पोज में रुकी रही। ऐसा करने से उसके कातिल नितम्ब या जाकिर की भाषा में मतवाली गांड उभर कर जाकिर की चड्डी के रॉकेट को उसकी लैंडिंग की जगह का असल पता देने लगी।
कुछ पांच मिनट के इस फैशन शो के बाद एक हाथ कमर पर रखकर थोडा मटकाकर खड़ी होकर रेखा बोली " हाँ तो अब तो अपने सही माप देख लिया न। अब तो ला देंगे न मेरे लिए कपडे।"
जाकिर तो फैशन शो को और आगे देखना चाहता था इसीलिए उसने अपनी गर्दन न में हिलाकर कहना चाहा की वो ठीक से नहीं देख पाया।
जाकिर के इंकार में सर हिलाने पर रेखा ने सोचा की वो कपडे लाने से मना कर रहा है। "अरे आपने तो कहा कहा था की साइज़ देखकर कपडे ला देंगे। ये तो गलत बात है। आपसे नहीं तो अब और किससे बोलूं मै। प्लीज़ आप ही ला दीजिये ना।" रेखा बोली।
इस बार जाकिर ने हाँ में सर हिलाया। "ओफ्फो आप तो कभी हाँ बोले हैं कभी ना। मै तो कन्फयूस हो रही हूँ। मै आपके मुह की पट्टी भी हटाती हूँ पर आप बेवजह की बाते नहीं करेंगे। ठीक है।"

तुरंत रेखा उतारकर जाकिर के पीछे पहुची और उसके मुह पर बंधी चुनरी को खोलने लगी जो थोड़ी कसकर बंधी हुई थी। इस दौरान जाकिर ने उसकी खुशबु लेने के लिए सर थोडा पीछे किया तो उसका सर सीधा रेखा के गद्देदार गुब्बारों के मुलायम तकिये में टिक गया। एक हलकी सी आह रेखा के मुह से निकली पर उसने अपने को हटाने की कोई कोशिश नहीं की। आज पहली बार जाकिर को अफ़सोस हुआ की उसका मुह उसके सर के पीछे क्यूँ नहीं है।
मुह खुलते ही उसके मुह से एक चैन की लम्बी साँस निकली। "कितनी जालिम है तू। अगर मै मर जाता तो।" जाकिर थोडा शिकायती शरारती लहजे में बोला।
" मर जाते तो मै आपको किस करती जिससे आप वापस जिन्दा हो जाते।" इस शरारत के खेल में वो भी शामिल होती हुई बोली।
" अच्छा तो समझ मै मर चुका हूँ।" जाकिर अपने आधे उजड़े हुए सर से रेखा के स्तनों की मसाज करता हुआ बोला।
और कुछ ऐसा हुआ जिसकी न तो जाकिर ने कल्पना की थी न रेखा ने ऐसा कुछ सोचा था। बस उत्तेजना के वशीभूत होकर "अच्छा ऐसी बात है।" कहकर रेखा तुरंत आगे आई एक बार फिर जाकिर के जांघों पर बैठ गयी। और जाकिर के कुछ समझने के पहले ही रेखा ने एक हाथ से जाकिर के सर को पीछे से थामा और अपने दहकते कोयले जैसे सुर्ख लाल होठ उसके कोयले जैसे होठो पर रख दिए। "पुच्च्च्च्च्च" की एक लम्बी आवाज गुंजी और कुछ 5 सेकण्ड में ही रेखा जाकिर से अलग होकर खड़ी हो गयी। "लो कर दिया जिन्दा। हम मारना जानते हैं तो बचाना भी आता है हुजुर।"

एक बार तो जाकिर को यकीं ही नहीं हुआ जो कुछ भी हुआ था। वो तो बस आंखे फाड़े रेखा को घूर रहा था। फिर उसने अपने होठो पर जीभ फिराकर रेखा के होठो की मिठास समेटते हुए कहा "हाय मेरी जान ऐसी जिन्दगी के लिए तो हजार्रों बार मर जाऊं मैं। कसम से तूने आज मेरा दिल खुश कर दिया।"
रेखा- "अच्छा तो फिर खुश है तो मेरे कपड़ो के लिए क्या इरादा है आपका।"
जाकिर-"अरे तेरे कपडे इतने ढीले है की सिर्फ साइज का अंदाजा हुआ। माशाअल्लाह 36 है तेरी साइज़। पर कप साइज़ ऐसे नहीं पता चलेगा।"
रेखा-आंखे नचाते हुए"अरे तो अब मै आपके लिए इंच टेप कहाँ से लाऊं। मेरे घर पर तो नहीं है।"
जाकिर-अपना पासा फेकते हुए"उसके लिए तो एक ही तरीका है अब। मुझे अपने हाथो से मापना होगा।"
ऐसा बोलकर जाकिर रेखा के मनोभावों को पढने लगा की उसपर इस बात का क्या असर होता है।
रेखा-थोडा झिझककर"ह्ह्ह ह्हहाँथो से। हाय दैया। मम मै ऐसे कैसे.....। नहीं नहीं कोई दूसरा तरीका होगा ना।"
इतनी आसानी से रेखा अपने को जाकिर के हाथो में नहीं सौंपना चाहती थी। अभी ड्राइविंग सीट पर रेखा बैठी थी जिसमे उसे बड़ा मजा आ रहा था। वैसे भी महिलाओं को पुरुषो को इस तरह टीज़ करने में बड़ा मजा आता है और रेखा तो अपने कॉलेज के समय में इसमें चैंपियन थी।
जाकिर- विचार की मुद्रा बनाते हुए"और कोई तरीका....! म्मम्म....। और तो कोई तरीका मुझे समझ नहीं आता। इन कपड़ो की वजह से ठीक से दिख भी तो नहीं रहे है तेरे बोबे कि मै अंदाजा ही लगा लेता।"

रेखा-थोडा आँखों में चमक के साथ "अरे हाँ। आप तो वैसे भी इतने माहिर हो कि देखकर ही अंदाजा लगा लिया साइज़ का तो कप का भी अंदाजा तो लगा ही लोगे। रही बात साफ दिखने की तो वो अड़चन मै दूर किये देती हूँ।"
इतना बोलते ही फिर से रेखा पलंग आर चढ़ी। जाकिर की आँखों में एक बार देखा और बोली "आंखे बंद कीजिये।"
जाकिर एक आज्ञाकारी बच्चे की तरह तुरंत आंखे बंद कर लेता है। लगभग 2 मिनट की शांति के बाद रेखा की आवाज आती है "अब आप धीरे धीरे खोल सकते हैं आंखे।"जाकिर आंखे खोलता है तो सामने रेखा उसकी ओर पीठ किये खड़ी थी और अब तक उसकी चन्दन जैसी चिकनी काया में अवरोध बनने वाली ब्रा उसके शरीर पर नहीं थी। उसकी संगमरमर जैसी सफ़ेद चमकदार चिकनी पीठ जाकिर के सामने बिलकुल नंगी थी। बदन में हलकी कंपकपाहट और गहरी साँस के कारण उसका उजला पृष्ठभाग किसी अप्सरा का ही जान पड़ता था।
जाकिर-दिल की तेज धडकनों को सँभालते हुए लम्बी साँस लेता हुआ"आअह्ह मेरी जलेबी। तेरे तो रोम रोम से रस टपकता है। साले उस दीनदयाल ने क्या पुण्य किये थे पिछले जनम में जो उस लंगूर को ये अंगूर मिला है। क़यामत है तू तो सच में।"
रेखा-कुछ शरमाते और अपनी तारीफ सुनकर खुश होते हुए"बस बस। इसी लिए आपका मुह बंद किया था मैंने। आप ये मक्खन लगाना बंद कीजिये और आपसे जो कहा है वो कीजिये ना।"

जाकिर-कमीनो की तरह अपने दांत दिखाते हुए"तू भी न सच में भोली है एकदम। अरे मेरी छम्मकछल्लो जिस चीज का अंदाजा लगाना है वो तेरी छाती में लटके हैं पीठ में नहीं। हाहा.. हा... हा.... हाहा... हाहा।" (एक जोरदार ठहाका लगाता है।)
रेखा-अपने आप पर मन ही मन हँसते हुए"हां हां पता है मुझे भी। मई तो इस तरफ इसलिए मुड़ गयी की कहीं आप बेहोश ही न हो जाओ कहीं नजारा देखके। ही.. ही.. ही...।"
जाकिर-अभी भी कमीनों की तरह दांत दिखाते हुए "अरे जानेमन। बेहोश हो भी गया तो तुझे तो मुझे होश में लाना आता ही है न। चल अब जल्दी से अपने खजाने को इस दीवाने की नजरों के सामने तो कर। कब से तेरे इन बोबो पे आंखे सेकने को मरा जा रहा हूँ मै।"
जाकिर की इन बातों को सुनकर रेखा की सांसे थोड़ी और तेज हो गयी। आखिरकार वो समय आ ही गया जब उसके बदन के पासपोर्ट पर जाकिर का भी वीजा लगने वाला था और उसीके लिए अब वो इसे जाकिर के सामने परोसने जा रही थी। रेखा पलक झपकते ही आगे घूम गयी और उतनी ही तेजी से अपने स्तनों को हाथो से ढक लिया। जाकिर की तो बुद्धि ही काम करना बंद कर चुकी थी इस दृश्य से। एक अल्हड मदमस्त औरत उसके सामने सिर्फ एक पेंटी पहने अपने स्तनों को हाथो से छुपाये खड़ी थी। हाथ भी बेचारे जैसे इतने बड़े क्षेत्रफ़ल को ढँक नहीं पा रहे थे जिससे उसका लगभग 80% स्तनों का जोड़ा जाकिर की भूखी नजरो की दावत बन चूका था।
 horseride  Cheeta    
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