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Romance
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6 8.11%
Incest
35.14%
26 35.14%
Adultry
41.89%
31 41.89%
Thrill & Suspense
2.70%
2 2.70%
Action & Adventure
0%
0 0%
Emotions & Family Drama
6.76%
5 6.76%
Logic/Realistic
5.41%
4 5.41%
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Romance मोक्ष : तृष्णा से तुष्टि तक
#61
(09-01-2020, 06:14 PM)Theflash Wrote: Go ahead i think its something different
Just use more simple hindi words or every time I would have to use dictionary

(12-01-2020, 09:04 AM)Wickedsunnyboi Wrote: Badhiya Shuruwaat.. Anokhi lekhi hai aapki Smile

(12-01-2020, 12:49 PM)Rebel.desi Wrote: Good Start with wonderful vocubalary....
Keep it up ?

[Image: Screenshot-2020-01-11-10-30-00-222-com-g...rchbox.jpg]

(14-01-2020, 12:32 AM)bhavna Wrote: अभी से क्या प्रतिक्रिया देवें? कथानक कुछ तो आगे बढ़े। आप तो बस कहानी को आगे बढ़ाते चलें। प्रतिक्रिया अपने आप मिलेंगी।

(14-01-2020, 07:35 AM)Rebel.desi Wrote: Acchi chal rahi hai Kahani ...
Continuity bani rahe in regular intervals

[Image: Screenshot-2020-01-07-18-06-57-519-com-g...rchbox.jpg]

(15-01-2020, 11:56 PM)bhavna Wrote: ईतना छोटा अपडेट ? तृष्णा बढ़ रही हैं, तुुष्टि सही से मिल पायेेगी क्या??

(16-01-2020, 07:14 AM)manmohar Wrote: Good update bro... wating for next

(18-01-2020, 12:18 AM)bhavna Wrote: शानदार अपडेट।

(18-01-2020, 10:10 PM)bhavna Wrote: Great... Suspense is on... Keep posting little fast please.

(22-01-2020, 01:04 PM)Rkdesi007 Wrote: बहुत ही अच्छी कहानी है कृपया जारी रखे

(22-01-2020, 06:28 PM)Some1somewhr Wrote: Nice story...!

(03-02-2020, 03:05 PM)Some1somewhr Wrote: Nice story ....

(07-02-2020, 01:20 AM)bhavna Wrote: कहानी सही गति से आगे बढ़ रही हैं।

(13-02-2020, 01:14 AM)Gazisara Wrote: yourock कहानी काफी दमदार है आपकी ओर

(16-02-2020, 07:21 PM)Hotmaniac Wrote: Great, keep it up , very interesting.  I like this thread. Thanks

(17-02-2020, 02:22 PM)Some1somewhr Wrote: Are wah Thakur saab.. aap to sach mai bde writer nikle, bhout achi story hai...!
Keep it up dost

(17-02-2020, 11:00 PM)bhavna Wrote: Good one...

(19-02-2020, 11:45 PM)playboy131 Wrote: Update plz...

(25-02-2020, 11:27 AM)Fuckerwala Wrote: Aapka kahani padhkar bahut acha laga.  Keep update

(27-02-2020, 06:51 PM)Some1somewhr Wrote: Nice update Thakur saab..

(15-03-2020, 09:12 AM)Ajay4321234 Wrote: Nahut badhiya story h..
Lekin itne character hone se bahut confusing ho gayi h..
Math ki kisi theorem ki tarah..

आप सभी मित्रों का हृदय से धन्यवाद
आप सभी ने अपनी प्रतिकृया देकर मेरा मनोबल बढ़ाया 
उर कहानी को आगे तक लेकर जाने का साहस प्रदान किया

ए कहानी अब नियमित रूप से आगे बढ़ती रहेगी
प्रति सप्ताह कम से कम 1 अपडेट जरूर आयेगा

साथ बने रहें
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#62
अध्याय 22

इधर इन दोनों के घर से निकलने के बाद अनुराधा और अनुपमा आपस में बात करने लगीं तो प्रबल उठकर अपने कमरे की ओर चल दिया।
“तुम्हें क्या डॉक्टर ने मना किया है....बात करने को?” अनुपमा ने प्रबल को जाते देखकर उससे कहा तो प्रबल पलटकर उसकी ओर देखने लगा
“दीदी आपने मुझसे कुछ कहा क्या?” प्रबल ने अनुपमा से कहा 
“मेंने सुबह कॉलेज में भी कहा था ना..... दीदी कहा कर अपनी दीदी को..... मेरा नाम अनुपमा है” अनुपमा ने उसे गुस्से से घूरते हुये उंगली दिखाकर कहा और फिर शर्मीली सी मुस्कान चेहरे पर लाते हुये बोली “प्यार से तुम मुझे अनु भी कह सकते हो”
“ओए कल्लो...मेरे भाई पर डोरे डालना बंद कर.... प्रबल तू जा आराम कर... यहाँ रहा तो ये तेरा दिमाग खा जाएगी” अनुराधा ने अनुपमा को हड़काते हुये प्रबल से कहा लेकिन प्रबल अनुराधा की बात को अनसुना करते हुये जाकर अनुपमा के पास बैठ गया
“देखो अनु मुझे तो कोई अनुभव है नहीं प्यार के बारे में...इसलिए अगर तुम मुझे सीखा सको कि कैसे प्यार से कहा जाता है... अब से तुम मुझे प्यार से कहना-सुनना सब सिखाओ....जिससे कि में किसी से प्यार से बात कर सकूँ या प्यार की बात कर सकूँ” प्रबल ने मुस्कराते हुये अनुपमा से कहा तो अनुपमा ही नहीं अनुराधा का भी मुंह खुला का खुला रह गया...दोनों को समझ नहीं आया कि क्या कहा जाए
“चल अब चुप हो जा... तू तो बहुत तेज निकला .... इस कल्लो की बोलती बंद कर दी.... में तो सोचती थी मेरा छोटा भाई कुछ जानता ही नहीं” अनुराधा ने खुद को समहलते हुये कहा... “अच्छा अनु ये बता ये ऊपर वाले फ्लोर पर जो आंटी रहती हैं...उनकी बेटी का नाम भी अनु ही लिया था उन्होने... इनके घर में कौन-कौन हैं?”
“देख राधा यहाँ अनु तो सिर्फ में ही हूँ.... तेरा नाम भी सिर्फ राधा ही लिया जाएगा.... उस लड़की का नाम अनुभूति है लेकिन उसे यहाँ लाली के नाम से बुलाते हैं....आंटी ने तुम लोगों के सामने लाली कहने में संकोच किया होगा इसलिए अनु बोला होगा.... वो दोनों माँ-बेटी को ही मेंने यहाँ देखा है.... बाकी उनके घर में और तो ना किसी को रहते और ना ही किसी को कभी आते-जाते देखा है मेंने... और कमाल कि बात तो ये है कि लाली तो पढ़ती है...हमारे वाले ही स्कूल में... तुम्हारे विक्रम भैया ने ही एड्मिशन कराया था लेकिन वो आंटी हमेशा घर पर ही रहती हैं... ना तो आस-पड़ोस में किसी के पास उठती-बैठती हैं और ना ही कोई काम करती हैं.... पता नहीं इन लोगों कि आमदनी का जरिया क्या है?” अनुपमा ने अपनी बात पूरी कि ही थी कि बाहर के दरवाजे पर खटखटाने की आवाज हुई।
प्रबल उठकर दरवाजे पर पहुंचा और खोलकर देखा तो दरवाजे पर शांति देवी और उनकी बेटी लाली खड़े हुये थे... प्रबल ने एक ओर हटकर उन्हें अंदर आने का रास्ता दिया उनको देखकर अनुराधा और अनुपमा भी चुप होकर खड़े हुये और उन्हें दूसरे सोफ़े पर बैठने का इशारा किया.... लाली तो सोफ़े पर जाकर बैठ गयी लेकिन शांति देवी उन दोनों के पास चलकर आयीं और अनुराधा को गले लगा लिया... अनुराधा को अजीब सा लगा...उनका शरीर हलके हलके झटके लेता हुआ लगा तो अनुराधा ने अपना सिर उनकी गार्डन से पीछे खींचते हुये उनके चेहरे की ओर देखा तो उनकी आँखों से आँसू बहते देखकर चौंक गयी और उन्हें साथ लिए हुये सोफ़े पर उनके बराबर बैठ गई
“आंटी आप रो क्यों रही हैं... क्या बात है...प्लीज चुप होकर बताइये” अनुराधा ने कहा 
“राधा बेटा में तुम्हारी मौसी हूँ.... ममता दीदी की छोटी बहन... मेंने उस दिन रागिनी दीदी के परिचय देते ही तुमसे मिलने का सोचा.... लेकिन ममता दीदी ने उनके साथ जो किया था...मुझे डर था कहीं वो हमारे बारे में जानते ही इस घर से ना निकाल दें.... में अपनी इस मासूम बच्ची को लेकर कहाँ जाती...” शांति देवी ने रोते हुये ही कहा
“आप मेरी मौसी हो.... मतलब मेरी मम्मी कि छोटी बहन... लेकिन विक्रम भैया ने आपको यहाँ कैसे रखा हुआ था....ओह .... अब समझ में आया... विक्रम भैया को आपके बारे में पता था इसीलिए उन्होने आपको यहाँ रखा हुआ था ..... लेकिन अब आप क्यों बता रही हैं?” अनुराधा ने शांति देवी से कहा
“में विक्रम तक कैसे पहुंची इस बारे में तो में रागिनी दीदी के सामने ही बताऊँगी.... पूरी बात.... अभी में इसलिए आयी हूँ क्योंकि में उनसे पहले तुमसे मिलना चाहती थी.... पहले तुम फैसला करना कि तुम मुझे अपना सकती हो या नहीं...उसके बाद ही में रागिनी दीदी से कोई बात करूंगी.... आज जब उनको तुम दोनों के बिना यहाँ से जाते देखा तो में तुमसे अकेले में बात करने आ गयी...बात बहुत ज्यादा गंभीर है....क्या हम कहीं अकेले में बात कर सकते हैं?”शांति देवी ने अनुराधा से कहा
“ठीक है... मेरे कमरे में चलिये...” अनुराधा ने कुछ सोचते हुये कहा तो शांति देवी ने लाली यानि अनुभूति को वहीं बैठने का इशारा किया और अनुराधा के पीछे पीछे उसके कमरे में चली गयी
अंदर पहुँचकर शांति देवी ने अपने पीछे दरवाजा बंद करके कुंडी लगाई और बैड पर आकर बैठ गयी...अनुराधा सामने ही खड़ी थी तो उसका भी हाथ पकड़कर अपने पास बैठा लिया और बात करनी शुरू की.... अनुराधा बार-बार उनकी बातों को सुनकर चौंक जाती और कभी खुश तो कभी दुखी होती....करीब आधे घंटे बात करने के बाद दोनों मुसकुराती हुई कमरे से बाहर निकली और आते ही अनुराधा ने लाली को सोफ़े से हाथ पकड़कर उठाया और गले से लगा लिया।
“तू बिलकुल चिंता मत कर... माँ को आने दे...वो सब सही कर देंगी... वो बाहर से जितनी कडक हैं... अंदर से उतनी ही नरम.... और मौसी जी....मौसी जी ही कहूँ आपको...” अनुराधा ने शांति देवी कि ओर देखकर मुसकुराते हुये कहा तो वो शर्मा सी गईं “आप भी बिलकुल चिंता छोड़ दो.... माँ को आ जाने दो...आप उनके सामने सब सच-सच बता देना ....”
“अच्छा एक बात बताओ अभी कुछ दिन से एक लड़की जो तुम लोगों के साथ रह रही है...वो कौन है? कोई रिश्तेदार है क्या? आज भी रागिनी दीदी के साथ गयी है वो” शांति देवी ने पूंछा 
“वो ऋतु बुआ हैं.... विक्रम भैया की चचेरी बहन...” अनुराधा ने बताया
“मोहिनी चाची की बेटी....लेकिन वो तुम्हारे साथ क्यों रह रही है?” शांति देवी ने पूंछा
“आप जानती हैं मोहिनी चाची को?” अनुराधा ने आश्चर्य से पूंछा 
“हाँ ...वो विक्रम के साथ अक्सर यहाँ आती रहती थीं ...मुझसे मिलने.... विक्रम तो शुरू में बहुत गुस्से में थे...लेकिन मोहिनी चाची ने ही उन्हें अपनी कसम देकर हम दोनों को यहाँ रहने देने के लिए मनाया था....” शांति देवी ने कहा
“लेकिन आप लोगों का खर्चा कैसे चलता है... अभी हम लोग आपके बारे में ही बात कर रहे थे तो अनुपमा ने बताया कि आप हमेशा घर पर ही रहती हो और लाली अभी पढ़ रही है” अनुराधा ने पूंछा तो अनुपमा ने उसे घूरकर देखा... लेकिन अनुराधा ने उसकी ओर बिना ध्यान दिये शांति देवी कि ओर जवाब के इंतज़ार में देखा
“वो... मोहिनी चाची ने वैसे तो हमारा सारा इंतजाम किया था शुरू मे लेकिन फिर एक कंपनी से हर महीने कुछ पैसे मेरे और लाली के अकाउंट में आने लगे.... मोहिनी चाची ने बताया था कि ये कंपनी हमारी ही है और हमारे परिवार के सभी सदस्यों को इसी कंपनी से हर महीने पैसे मिलते हैं खर्चे के लिए.... इस कंपनी की पूंजी में परिवार के हर सदस्य का हिस्सा है.... लेकिन इसका प्रबंधन केवल विक्रम ही करते थे.... बाकी कोई भी परिवार का सदस्य इस कंपनी में दखल नहीं देता...” शांति देवी ने बताया
“कौन सी कंपनी है... मतलब उसका नाम वगैरह” अनुराधा ने पूंछा
“दीदी हमें ज्यादा जानकारी नहीं... लेकिन हमारे खाते में कंपनी का नाम सिंडिकेट लिख कर आता है.... राणा आरपी सिंह सिंडिकेट (ranarpsingh syndicate)” लाली ने बताया
“चलो ठीक है...अभी माँ से पूंछती हूँ कि वो कितनी देर में आ रही हैं” कहते हुये अनुराधा ने रागिनी को कॉल किया
“हाँ बेटा क्या बात है?” रागिनी ने फोन उठाते ही पूंछा
“माँ आप कब तक आ जाओगी?” अनुराधा ने कहा
“बस अभी निकले हैं बाहर 1 घंटे में घर पहुँच जाएंगे” रागिनी ने कहा “कोई खास बात है क्या?”
“नहीं माँ चिंता कि कोई बात नहीं.... लेकिन बात खास ही है....आप घर आ जाओ फिर बताती हूँ... और ऋतु बुआ को भी साथ ले आना”
“ऋतु भी मेरे साथ ही आ रही है....घंटे भर में पहुँच जाएंगे” कहते हुये रागिनी ने फोन काट दिया
“माँ एक घंटे में आ रही हैं” अनुराधा ने फोन रखते हुये बताया
“ठीक है... अभी हम ऊपर वाले घर में जा रहे हैं... रागिनी दीदी आ जाएँ तो फिर आते हैं” कहते हुये शांति देवी उठने को हुई 
“आंटी अप लोग बैठकर राधा से बात करो.... अभी मुझे अपने लिए कॉलेज की किताबें लानी थीं बाज़ार से लेकिन अब इन दोनों ने भी एड्मिशन ले लिया है तो में और प्रबल बाज़ार होकर आते हैं... तब तक रागिनी बुआ भी आ जाएंगी” अनुपमा ने अनुराधा और प्रबल कि ओर मुसकुराते हुये देखकर कहा और उठ खड़ी हुई
अब शांति देवी के सामने अनुराधा या प्रबल ने कुछ कहना सही नहीं समझा इसलिए अनुराधा ने प्रबल को इशारा किया तो वो भी उठकर खड़ा हुआ और कपड़े बदलने के लिए कमरे में जाने लगा...
“तुम कहाँ जा रहे हो?” अनुपमा ने प्रबल से कहा
“कपड़े तो बादल लूँ” प्रबल ने जवाब दिया
“कहीं बाहर घूमने नहीं जा रहे हैं.... यहीं करोल बाग से किताबें लेनी हैं... तो कपड़े बदलने कि जरूरत नहीं... ऐसे ही ठीक लग रहे हो” अनुपमा ने कहा
“अरे मेरी माँ.... उसे पैसे तो ले लेने दे...और तू क्या ऐसे ही जाएगी...” अनुराधा ने कहा
“हाँ! में तो ऐसे ही चली जाती हूँ.... और पैसे हैं मेरे पास.... वापस आकर तुमसे हिसाब करके पैसे ले लूँगी” कहते हुये अनुपमा ने प्रबल का हाथ पकड़ा और खींचती हुई सी बाहर चली गयी
“कैसे चलना है... गाड़ी तो माँ ले गयी हैं... उनके वापस आने के बाद चलते हैं” बाहर निकलकर प्रबल ने कहा
“कोई जरूरत नहीं गाड़ी की...... ये राजस्थान नहीं है... जहां सबकुछ बहुत दूर-दूर होता हो.... यहाँ गाड़ी लेकर चलोगे तो पहले तो पूरा चक्कर लगाकर आनंद पर्वत होकर करोल बाग पाहुचेंगे.... उसमें भी जाम में फंस गए तो घंटों का समय लगेगा... हम यहाँ से पैदल फाटक पर करेंगे और गौशाला से रिक्शा लेकर 15 मिनट में करोल बाग पहुँच जाएंगे...1 घंटे में तो वापस भी आ जाएंगे” अनुराधा ने प्रबल को अपने साथ आगे खींचते हुये कहा तो प्रबल चुपचाप उसके साथ चल दिया... लेकिन उसने अनुपमा के हाथ से अपना हाथ छुड़ा लिया... क्योंकि वहाँ आसपास के लोगों के सामने अनुपमा का हाथ पकड़े उसे अजीब सा लग रहा था
वहाँ से दोनों आगे बढ़े और किशनगंज रेलवे स्टेशन के पल को पार करके दूसरी तरफ उतरते ही वहाँ खड़े एक रिक्शे पर बैठ गए और उसे गुप्ता मार्केट चलने के लिए बोला। रिक्शे पर बैठते ही अनुपमा ने फिर से प्रबल का हाथ अपने हाथ में ले लिया प्रबल ने हाथ छुड़ना चाहा तो अनुपमा ने उसे घूरकर देखा
“ओए अब तो बड़ा हो जा...या अपनी दीदी की उंगली पकड़कर ही चलता रहेगा... तेरी दीदी से दोस्ती है मेरी...बचपन की दोस्ती... समझा ...इसीलिए तुझे बिना पटाये मेरे जैसी हॉट लड़की के साथ करोल बाग में घूमने का मौका मिल रहा है.... वरना यहाँ कॉलेज में नखरे उठाते उठाते कंगले हो जाते हैं लड़के और किसी के साथ अकेले बैठकर कॉफी भी नहीं पीती...कॉलेज की कैंटीन में भी”
“जबसे में यहाँ आया हूँ ...तुम मेरे पीछे ही पड़ गयी हो... दीदी की तो कोई बात नहीं लेकिन अगर माँ को कुछ पता चल गया तो तुम्हारा तो मुझे पता नहीं... लेकिन मेरा क्या हाल करेंगी? इसलिए मुझे इन सब चक्कर से दूर रखो” प्रबल ने झुँझलाते हुये कहा तो अनुपमा ने अनसुना करते हुये अपना मोबाइल निकाला और किसी को कॉल करने लगी
“कहाँ मरवा रही है कमीनी...फोन उठाने की भी फुर्सत नहीं” बहुत देर तक घंटी जाने पर फोन उठते ही अनुपमा ने चिल्लाकर कहा तो प्रबल ने चौंककर उसकी तरफ देखा फिर रिक्शेवाले और आसपास चलते लोगों की ओर... लेकिन किसी का भी ध्यान न पाकर फिर से अनुपमा की ओर देखने लगा जो दूसरी ओर से कही जा रही बात को सुन रही थी
“चल ठीक है... जल्दी से तैयार होकर आजा में गुप्ता मार्केट पहुँच रही हूँ... और उन सबको भी फोन करके बुला ले” अनुपमा ने फोन काटते हुये कहा
“तुम लड़की होकर इतने गंदे तरीके से ऐसे बात करती हो...और हम तो किताबें लेने जा रहे हैं ना... फिर किस-किसको बुला रही हो वहाँ.... हमें जल्दी लौटकर जाना है... माँ आनेवाली होंगी”
“बच्चे...अब दिल्ली में आ गए हो... देखते जाओ...यहाँ लड़कियां लड़कों से कम नहीं हैं.....” अनुपमा ने प्रबल का गाल खींचते हुये कहा
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#63
अध्याय 23

अनुराधा और शांति देवी अभी बैठकर बात कर ही रही थीं की तभी शांति देवी को कुछ याद आया तो उन्होने अनुराधा से प्रबल के बारे में पूंछा

“बेटा! तुम्हारा तो नाम सुनते ही में समझ गयी थी की तुम रागिनी दीदी की बेटी नहीं हो...बल्कि ममता दीदी की बेटी हो... क्योंकि मेंने तुम्हें बचपन में देखा था ममता दीदी जब घर आती थीं... कभी कभी...क्योंकि उनकी और माँ की आपस में बनती नहीं थी... इसलिए हम कभी भी यहाँ नहीं आते थे... .... लेकिन मुझे ये समझ में नहीं आया कि रागिनी की शादी विक्रम के चाचा से कैसे हो गयी और प्रबल क्या वास्तव में रागिनी का ही बेटा है....” शांति ने पूंछा 

“नहीं मौसी जी... ना तो माँ मतलब रागिनी बुआ की शादी हुई है किसी से और ना ही प्रबल उनका बेटा है... प्रबल शायद विक्रम भैया का बेटा है... बाकी आप माँ को आ जाने दो तब उनसे ही सबकुछ पता चलेगा... और आप उनको सबकुछ सच-सच ही बताना.... कुछ भी छुपाना मत...” अनुराधा ने जवाब दिया फिर बोली “मौसी! में कुछ खाने को बना लेती हूँ तब तक माँ भी आ जाएंगी... और प्रबल भी … अब शाम भी होने वाली है और इन सब बातों में पता नहीं कितना समय लग जाए...इसलिए अभी कुछ चाय नाश्ता करके बात करेंगे”

“अरे बेटा तुम मेरे पास बैठो लाली सब कर लेगी ....” शांति ने कहा

“फिर ऐसा करते हैं मौसी सब चलते हैं रसोई में... इससे कोई बोर भी नहीं होगा और मिलजुलकर बनाते हैं” ये कहते हुये अनुराधा रसोई कि तरफ बढ़ गयी और वो दोनों भी उसके पीछे पीछे चली गईं

लगभग आधे घंटे बाद बाहर गाड़ी रुकी और रागिनी ने ऋतु के साथ घर में प्रवेश किया तो अनुभूति ने आकार दरवाजा खोला... दोनों उसे यहाँ देखकर चौंक गईं

“अनुराधा और प्रबल कहाँ हैं” रागिनी ने पूंछा

“माँ में रसोई में थी...और प्रबल अनुपमा के साथ बाज़ार में किताबें लेने गया है... अब कल से कॉलेज भी तो जाना है...” अनुराधा ने शांति के साथ रसोई से आते हुये कहा तो रागिनी ने आकर सोफ़े पर बैठते हुये शांति को भी बैठने को कहा

“आइए बहन जी ...बैठिए.... यहाँ आए हैं तब से आपसे तो बात क्या मुलाक़ात भी नहीं हो पायी...बस भागदौड़ में ही लगे रहे” 

ऋतु भी रागिनी के बराबर में बैठ गयी, शांति देवी दूसरे सोफ़े पर बैठ गईं तो अनुराधा रागिनी के बराबर में दूसरी ओर आकर बैठी और शांति देवी को बोलने का इशारा किया 

“रागिनी दीदी! में अनुराधा की माँ ममता की छोटी बहन हूँ... आपकी याददास्त जा चुकी है इसलिए उस दिन भी मेंने आपको और अनुराधा को पहचानकर भी कुछ नहीं बताया.... लेकिन अब में आपको सबकुछ बता देना चाहती हूँ” शांति देवी ने कहा

“माँ अभी अप और बुआ बाहर से आए हैं... प्रबल भी थोड़ी बहुत देर में आता होगा तो क्यूँ न आप दोनों फ्रेश हो जाएँ में चाय नाश्ता लगती हूँ... फिर उसके बाद बात करेंगे.... क्योंकि मौसी से कुछ मुझे भी बताया है...और वो छोटी मोटी बात नहीं बहुत बड़ी कहानी है............में प्रबल से पूंछती हूँ कि कितनी देर में आ रहा है” कहते हुये अनुराधा ने प्रबल को फोन लगा दिया। इधर रागिनी और ऋतु भी उठकर अंदर चले गए... अनुभूति उठकर रसोई में चली गयी

“हाँ बोल! घबरा मत तेरे भाई को लेकर भाग नहीं जाऊँगी... अभी चल दिये हैं यहाँ से 15 मिनट में पहुँच जाएंगे” प्रबल का फोन अनुपमा ने उठाया और अनुराधा से बोली तो अनुराधा भी फोन काट कर रसोई की ओर ही चल दी...

थोड़ी देर में ही रागिनी और ऋतु आकर वहीं हॉल में शांति के साथ बैठ गईं इधर प्रबल भी आ गया... अनुराधा और अनुभूति (लाली) ने चाय नाश्ता वहीं सेंटर तबले पर लगा दिया .... अनुपमा दोपहर से कॉलेज से आने के बाद से उनके ही साथ थी इसलिए वो अपने घर चली गयी

नाश्ते के बाद अनुराधा ने सभी को रागिनी के कमरे में चलने को कहा कि वहीं बेड पर बैठकर बात करते हैं... यहाँ सोफ़े पर बैठे-बैठे सभी थक जाएंगे

“हाँ तो शांति भाभी... भाभी इसलिए कह रही हूँ आपको... क्योंकि अप ममता भाभी कि बहन हैं..... बताइये ....और सबसे पहले तो ये कि आप विक्रम के संपर्क में कैसे आयीं जो उन्होने आपको यहाँ इस मकान में बसाया हुआ था” रागिनी ने प्रश्न किया

“में अनुराधा कि मौसी और आपकी ममता भाभी कि बहन के अलावा भी...आपकी कुछ और बन चुकी हूँ... अगर आपकी याददास्त न भी जाती तब भी आपको उस रिश्ते का पता नहीं चलता...बिना हमारे संपर्क में आए” शांति ने अजीब से अंदाज में कहा तो सबकी निगाहें शांति पर जाम गईं

“आपके गायब होने और नाज़िया के फरार होने के बाद ममता दीदी को विक्रम ने गिरफ्तार करा दिया था आपके पिता विजय सिंह भी चुपचाप हमारे घर पहुंचे और हम माँ बेटी को लेकर दिल्ली गुड़गाँव बार्डर पर नयी बन रही द्वारिका टाउनशिप के मधु विहार में रहने लगे.... कुछ समय बाद माँ एक दिन सुबह को बिस्तर पर ही मृत मिलीं... विजय जी ने बताया कि रात में उन्हें कुछ बेचैनी सी महसूस हुई थी लेकिन फिर वो नींद कि दवा लेकर सो गईं और सुबह जगाने पर जब नहीं उठीं तो उन्होने उनकी सान और धड़कन चेक कि....अब जो भी रहा हो... लेकिन मेरा तो इस दुनिया में कोई ऐसा नहीं बचा जिसे में अपना कह सकती.... पिताजी तो पहले ही नहीं रहे थे.... भाई खुद नशे और अपराध की दुनिया में गुम हो चुका था, बहन जाईल में थी...और अब माँ भी नहीं रही.... माँ के अंतिम संस्कार के बाद विजय जी मुझे लेकर रोहिणी सैक्टर 23 बुध विहार आ गए.... हम दोनों के ही घर-परिवार जन-पहचान के सब लोग किशनगंज से ही छूट गए थे... यहाँ कोई नहीं जनता था कि हम कौन हैं...

एक दिन विजय जी ने मुझसे कहा कि अब हम दोनों के अलावा हमारा और कोई तो है नहीं.... और हमारे बीच कोई ऐसा रिश्ता भी नहीं जो हमारे लिए कोई मुश्किल पैदा करे तो क्यों न हम दोनों शादी कर लें और पति पत्नी के रूप में नया परिवार शुरू करें... आगे चलकर कम से कम हमारा ख्याल रखने को हमारे बच्चे तो होंगे.... मेरी भी उम्र उस समय कुछ ज्यादा नहीं थी... लेकिन इतनी कम भी नहीं थी कि दुनियादारी को समझ ना सकूँ ..... मुझे भी लगा कि मेरा अकेला रहना हर किसी को एक मौके कि तरह दिखेगा.... घर-परिवार के बिना कोई शादी नहीं करनेवाला .... जिस्म के लिए सब तैयार हो जाएंगे लेकिन घर बसाने वाला शायद ही कोई मिले.... अभी ये मेरे साथ हैं तो कहीं भी रह पा रही हूँ... अकेले तो शायद सिर छुपाने को भी जगह ना मिले...और पता नहीं ज़िंदगी में क्या-क्या देखना पड़े.... इससे तो अच्छा है कि इनसे शादी करके इनकी पत्नी बनकर एक घर भी मिल जाएगा और आगे चलकर अगर बच्चे भी हो गए तो ज़िंदगी उन्हीं के सहारे कट जाएगी.... अभी तो ये मेरा और बच्चों का पालन-पोषण कहीं से भी कुछ भी करके कमा के करेंगे... अकेले तो कहीं कमाने भी जाऊँगी तो जिस्म के भूखे भेड़िये झपटने को तैयार मिलेंगे... यहाँ इनके साथ भी रहकर अगर ये मुझसे शारीरिक संबंध बनाने पर उतारू हो जाएँ तो मजबूरी के चलते क्या में इन्हें रोक पाऊँगी? इससे तो अच्छा है कि इनकी पत्नी बनकर रहूँ

यही सब सोचकर मेंने उनसे शादी के लिए हाँ कर दी और हमने बुध विहार के ही एक मंदिर में रीति रिवाज के साथ शादी कर ली... शादी के लगभग 10-11 महीने बाद ही अनुभूति का जन्म हुआ... विजय जी ने बुध विहार में ही एक दुकान शुरू कर ली थी जिससे हमारा खर्चा सही चलने लगा था... लाली भी धीरे धीरे बड़ी होने लगी... और उम्र के अंतर के बावजूद मेरे और विजय जी के बीच प्यार और अपनापन, लगाव पैदा हो गया था....

एक दिन ये दुकान से 2 घंटे बाद ही वापस आ गए इनके साथ एक और आदमी भी था... इनहोने बताया कि ये आदमी इंका बहुत पुराना परिचित है नोएडा से... जहां पहले इंका और हमारा परिवार रहा करता था.... ये उसके साथ नोएडा में ही काम शुरू करना चाहते हैं... जिससे हम सभी नोएडा में रहें वहाँ अपनी जान पहचान के लोग भी हैं तो धीरे धीरे हमें एक परिवार जैसा सुरक्शित माहौल भी मिल जाएगा... और कभी कोई परेशानी हुई तो साथ देनेवाले भी होंगे... मेंने भी उनकी बात को सही समझकर अपनी सहमति दे दी...

लगभग 2-3 महीने वो वहाँ कि दुकान को छोडकर नोएडा आते जाते रहे उसके बाद उन्होने एक दिन कहा कि एक सप्ताह बाद हमें नोएडा चलकर रहना है...काम वहाँ पर शुरू हो चुका है.... जान-पहचान कि वजह से काम भी अच्छा चल रहा है... नोएडा-गाज़ियाबाद-दिल्ली के बीचोबीच एक कच्ची आबादी खोड़ा कॉलोनी के नाम से है... वहीं काम भी है और रहने का इंतजाम भी.... ऐसे ही एक सप्ताह में इनहोने दिल्ली में अपनी दुकान और घर का सब लें दें और जो समान नोएडा भेजना था... भेजकर...सब कम निबटाया और हम नोएडा आ गए... वहाँ आकार मुझे भी अच्छा लगा क्योंकि वहाँ आसपास बहुत सारे परिवार इनको जानते थे... बल्कि इनके पूरे परिवार को जानते थे.... इनके और भी भाई नोएडा में रहते थे... लेकिन इनसे उनके संबंध टूट चुके थे पता नहीं इनकी ओर से या उनकी ओर से.... लेकिन इनके बारे में मुझे बचपन से पता था तो में समझती थी कि शायद इनके उल्टे-सीधे कामों कि वजह से ही पूरा परिवार इनसे दूर हो गया... 

2005 में अनुभूति डेढ़ दो साल की होती एक दिन ये कहीं बाहर गए... ये बाहर आते-जाते ही रहते थे इसलिए कोई खास बात नहीं थी... लेकिन 2-3 दिन बाद भी जब ये वापस नहीं आए तो मेंने अपनी मकान मालकिन से बोला कि इनके साथियों से पता करें कि कहाँ पर है और कब आएंगे .... उन्होने पता किया तो पता चला कि ये 15 दिन के लिए हरिद्वार गए हुये हैं.... मेंने भी ज्यादा कोई गंभीरता से नहीं लिया... हो सकता है कोई काम हो... ऐसे ही 15 दिन बीत गए लेकिन ये नहीं आए... 20 दिन, फिर एक महीने से ज्यादा हो गया तो मेंने इनके साथियों से खुद जाकर कहा तो उन्होने कहा कि पिछले 10 दिन से उनकी खुद कि भी इनसे कोई बात नहीं हो प रही है.... 10 दिन पहले इनहोने बताया था कि काम के सिलसिले में वो ऋषिकेश से ऊपर पहाड़ों में रानी पोखरी नाम कि जगह है उसके पास किसी गाँव में जा रहे हैं... वहाँ फोन सुविधा ना होने की वजह से बात नहीं हो पाएगी... घर खर्च में भी परेशानी बताई मेंने तो उन लोगों ने कुछ पैसे भी दिये.... वैसे इन 4 सालों में उनके साथ रहकर मेंने अपने पास भी अच्छा खासा पैसा इकट्ठा कर लिया था... ये सोचती थी कि कुछ समय बाद लाली को भी स्कूल भेजना है.... बिना बाप के बच्चों कि ज़िंदगी हम भाई बहनों ने जी थी... लेकिन मेरी बेटी को एक भरपूर प्यार भरी ज़िंदगी मिलेगी माँ-बाप के साथ...........

लेकिन वक़्त ऐसे ही बीतता गया और उनकी कोई खबर नहीं मिली .... वहाँ के लोगों का भी नज़रिया बदलने लगा .... इनके परिवार के बारे में भी कोई बताने को तैयार नहीं था कि वो लोग कहाँ रहते हैं.... मेरे मकान मालिक भी इनके पूरे परिवार को जानते थे... एक दिन वो और उनकी पत्नी दोनों मेरे पास आए और बोले कि विजय के बड़े भाई जय कि तो मृत्यु वर्ष 2000 में ही कैंसर से हो चुकी थी... उनकी पत्नी और बच्चे 2003 में नोएडा से गाज़ियाबाद चले गए.... लेकिन कहाँ रहते हैं...कोई पता नहीं उनके छोटे भाई गजराज नोएडा से बहुत पहले ही गुड़गाँव रहने चले गए थे उनका भी पता किसी को मालूम नहीं.... एक भाई बलराज दिल्ली में कहीं रहते हैं लेकिन उनका भी किसी को पता नहीं............

अब वो मेरी एक ही सहता कर सकते हैं कि हमारा जो व्यवसाय था यहाँ पर उसका जो भी हिसाब किताब करके मिल सकता है... मुझे दिला देंगे...लेकिन उसके बाद मुझे कहीं और जाकर ही रहना होगा.... क्योंकि जो और साथी हैं विजय जी के व्यवसाय में वो आसानी से अब पैसा नहीं देना चाहेंगे.... तो जबर्दस्ती वसूलने पर वो दुश्मनी में कोई गलत कदम उठाते हैं तो हमारी ज़िम्मेदारी हमेशा के लिए कौन ले सकता है..... मेंने उनका कहा मन लिया.... साथ ही उन्होने मुझे थाने ले जाकर विजय जी के लापता होने कि रिपोर्ट भी दर्ज करा दी... और साथ ही मुझे उनके बिज़नस से मिल सक्ने वाला पैसा भी दिलवा दिया.... 

में एक बार फिर अकेली खड़ी थी... पहले विजय जी के साथ थी तो उन्होने ज़िम्मेदारी ली हुई थी मेरी ..... लेकिन अब मेरे ऊपर ज़िम्मेदारी थी मेरी बेटी की। कुछ समझ नहीं आ रहा था कि कहाँ जाऊँ, क्या करूँ... तभी मेरे दिमाग में ममता दीदी का ख्याल आया... कि उनसे एक बार जाईल में मुलाक़ात करूँ... शायद वही कोई रास्ता बताएं.... वैसे भी ममता दीदी को विजय जी के पूरे परिवार कि जानकारी थी.... बल्कि वो भी सबको जानती थी और सभी उन्हें भी जानते थे.... 

में जब ममता दीदी से तिहाड़ जेल में जाकर मिली तो उन्होने बताया कि में उनके किशनगंज वाले घर जाकर विक्रम से मिलूँ और उसे सब बताऊँ तो वो मेरी और लाली की व्यवस्था करा देगा....मेंने वैसा ही किया लेकिन यहाँ आकार पता चला कि विक्रम तो कोटा रहता है...और यहाँ कभी-कभी ही आता है... मेंने यहाँ किराए पर रह रहे परिवार से विक्रम का मोबाइल नंबर लिया और कॉल करके बात की तो विक्रम ने मुझे कोटा आने के लिए बोला... और एक नंबर दिया कोई सुरेश नाम के आदमी का... कि में उनसे कोटा में मिलूँ .... वो मेरी सारी व्यवस्था करा देंगे... विक्रम खुद कहीं बाहर था..... मेंने वैसा ही किया... वहाँ सुरेश ने मेरे रहने और लाली के पढ़ने कि सब व्यवस्था करा दी... और साथ में हमारे रहने खाने के सब खर्चे भी.... जब इसके लिए मेंने मना किया और कहीं कोई काम देखने को कहा तो उसने मुझसे कहा कि ये सब व्यवस्था विक्रम ने ही की है...और वो विजय जी के परिवार का ही है... तो मेंने भी ज्यादा ज़ोर नहीं दिया ..... 4-6 महीने में विक्रम भी कभी कभार आता था तो बस थोड़ी देर बैठकर मेरा और लाली का हालचाल लेकर चला जाता था.... हमारी ज़िंदगी ऐसे ही कट रही थी.... 10 साल बाद एक दिन विक्रम आया और मुझसे कहा कि अब हमें दिल्ली इसी मकान में रहना है हमेशा के लिए और अपने साथ ही दिल्ली लेकर आ गया यहाँ आकर उसने हमसे मोहिनी जी को भी मिलवाया और बताया कि वो उनकी चाची जी हैं.... बस तभी से हम यहीं रह रहे हैं” 

शांति की बात सुनकर रागिनी ने एक गहरी सांस ली...और बोली

“आपको मेरे बारे में भी ममता भाभी ने बता ही दिया होगा...में विजय सिंह उर्फ विजय राज सिंह की बेटी हूँ.... यानि इस रिश्ते से आप मेरी माँ और लाली मेरी छोटी बहन हुई............. मुझे आश्चर्य होता है कि मेरे पिता यानि आपके पति विजयराज सिंह ने अपने जीवन में क्या-क्या गुल खिलाये... अब भी उनकी मृत्यु का निश्चित नहीं........तो शायद कहीं कोई और नया परिवार बसाये बैठे होंगे.......

आपको पता है... विमला मेरी माँ नहीं थी...और दीपक कुलदीप भी मेरे सगे भाई नहीं थे..... विमला मेरी बुआ थी और दीपक कुलदीप उनके बेटे थे”

“हाँ! ये तो मुझे पता है.... लेकिन ममता दीदी ने एक और बात बताई थी मुझे” शांति ने कहा 

“क्या?” रागिनी बोली

“विजय जी का एक बेटा भी है... आपका भाई...सगा भाई.... जो उनके किसी भाई के पास रहने लगा था...उनके इन्हीं कारनामों की वजह से... और वो शायद विक्रम ही था”

“हाँ .... अब तक मुझे जितना पता चला है... उसके हिसाब से विक्रम मेरा भाई हो सकता है”

“दीदी एक बात और बतानी थी आपको” अचानक अनुभूति ने कहा तो रागिनी ने प्रश्नवाचक दृष्टि से उसे देखा

“हमारे खर्चे के लिए जब से हम दिल्ली आए हैं... एक कंपनी से पैसे ट्रान्सफर होते हैं... उस कंपनी का नाम राणाआरपीसिंह सिंडीकेट लिखा आता है हमारे खाते में... विक्रम भैया ने बताया था कि ये कंपनी अपने परिवार कि है और पूरे परिवार को इसी कंपनी से पैसा मिलता है... हिस्से के रूप में” लाली (अनुभूति) ने बताया

“राणाआरपीसिंह सिंडीकेट..... कुछ सुना हुआ सा लगता है.....” रागिनी ने कहा तभी उसकी बात काटते हुये ऋतु ने कहा

“दीदी ये जो हमने वसीयत का रेकॉर्ड निकलवाया था नोएडा से उसमें परिवार के मुखिया जयराज ताऊजी के बेटे राणा रवीद्र प्रताप सिंह का नाम था उनके नाम को राणा आर पी सिंह भी तो लिखा जा सकता है”

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#64
अध्याय 24

ऋतु की बात सुनते ही सब एक दूसरे की ओर देखने लगे....फिर रागिनी उठी और कहा की अब काफी समय हो गया है तो खाना बना लिया जाए... क्योंकि फिर खाना खाने के लिए ज्यादा देर हो जाएगी.... इस पर शांति भी उसके साथ रसोईघर की ओर चल दी। 

तभी दरवाजे पर घंटी बजी तो प्रबल निकलकर बाहर मेन गेट पर पहुंचा.... वहाँ एक 25-26 साल का लड़का खड़ा हुआ था... प्रबल ने दरवाजा खोला और उसकी ओर प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा.... 

“यहाँ एडवोकेट ऋतु सिंह रहती हैं” उसने प्रबल से पूंछा

“जी हाँ! आप?” प्रबल ने अंदर आने का रास्ता देते हुये कहा

“जी में उनके ऑफिस से एडवोकेट पवन कुमार सिंह” उस लड़के यानि पवन ने अंदर आते हुये कहा

“आप यहाँ बैठिए, में उन्हें बुलाता हूँ” कहते हुये प्रबल ने पवन को सोफ़े पर बैठने का इशारा किया और अंदर जाकर रागिनी के कमरे में बैठी ऋतु से पवन के आने के बारे में बताया

“ओह! में तो भूल ही गयी थी कि पवन को भी बुलाया था मेंने... रात के खाने पर” कहते हुये ऋतु उठ खड़ी हुई तो साथ ही अनुराधा और अनुभूति भी उसके पीछे पीछे चल दीं

“नमस्ते मैडम!” ऋतु को हॉल में आते देखकर पवन सोफ़े से खड़ा होता हुआ बोला

“अरे बैठो-बैठो। और मैडम में ऑफिस में हूँ यहाँ तुम मेरा नाम ले सकते हो” कहते हुये ऋतु दूसरे सोफ़े पर बैठ गयी

“जी मैडम.... ओह... मतलब ऋतु जी” पवन ने शर्माते हुये सा कहा

“ऋतु जी............ यार ऋतु ही बोल लिया करो..... अब गाँव से दिल्ली आ गए हो...अब तो शर्माना छोड़ दो........और जी तो दिल्ली कि जुबान में ही नहीं लगता” ऋतु ने उसके शर्माने पर हँसते हुये कहा

“नहीं... अब इतना भी नहीं........आप मुझसे सीनियर हैं में आपको ऋतु जी ही कहूँगा। अब बताइये क्या आदेश है मेरे लिए? क्योंकि मुझे ऐसा लगा कि आपने मुझे सिर्फ खाने के लिए तो नहीं बुलाया। जरूर कोई और बात भी है” प्रबल ने थोड़े संजीदा होते हुये कहा

“हाँ! बात ये हैं कि ये घर मेरी बड़ी बहन रागिनी सिंह का है... और अब में उनही के साथ रहूँगी... यहाँ मेरे परिवार के काफी सदस्य बल्कि लगभग सभी सदस्य रहते हैं..... ये मेरे बड़े भाई विक्रमादित्य सिंह का बेटा प्रबल प्रताप सिंह है...यानि मेरा भतीजा” ऋतु ने भी गंभीरता से कहा, फिर प्रबल से बोली “प्रबल! बेटा रागिनी दीदी को यहाँ बुला लो और शांति माँ को भी.... अनुराधा और अनुभूति को बोल दो वो रसोईघर में खाने कि व्यवस्था देख लेंगी”

“जी बुआ जी” कहते हुये प्रबल अंदर चला गया

“ऋतु जी! ये विक्रमादित्य सिंह तो वही थे न जिनकी मृत्यु श्रीगंगानगर में हुई थी...और उनकी वसीयत हमारे ही ऑफिस में है... अभय सर के मित्र” प्रबल के जाने के बाद पवन ने ऋतु से पूंछा

“हाँ! वो असल में अभय सर के दोस्त नहीं सीनियर थे कॉलेज में... मेरे ताऊजी के बेटे हैं... रागिनी दीदी उनकी बहन हैं... और शांति माँ उनकी माँ हैं...” ऋतु ने बताया और आगे बोली “अब मेंने तुम्हें इसलिए बुलाया है कि ये सब यहाँ अभी आए हैं...राजस्थान से...... तो अभी हमारा कोई भी काम-धंधा नहीं है यहाँ... अब हम चाहते हैं कि हम यहाँ कुछ ऐसा शुरू करें जिसे हम सब मिलकर सम्हाल सकें...और हमारे पैसे भी फँसने का खतरा न हो”

तभी रसोई से चाय और नाश्ता लेकर अनुराधा और अनुभूति आयीं और उनके पीछे-पीछे रागिनी और शांति भी आ गईं। पवन ने उन्हें देखकर उठ खड़े होकर नमस्ते किया तो उन्होने ने भी जवाब में नमस्ते करके उसे बैठने को कहा और ऋतु के बराबर में ही सोफ़े पर बैठ गईं

“पवन ये मेरी दीदी रागिनी सिंह हैं और ये मेरी ताईजी शांति माँ हैं” ऋतु ने पवन से परिचय कराया तो पवन उलझ सा गया

“पवन जी! ये मेरे पिताजी कि दूसरी पत्नी हैं... उम्र में बेशक मुझसे छोटी हैं लेकिन हैं तो माँ ही” पवन कि उलझन को देखते हुये रागिनी ने मुस्कुराकर कहा

“ऐसी कोई बात नहीं दीदी... अब ये बताइये कि इस काम को कौन-कौन चलाएगा...और उनको कितनी जानकारी व अनुभव है.... किस काम का...” पवन ने कहा

“देखो पवन तुम्हें स्पष्ट बता दूँ .... यहाँ किसी भी काम कि जानकारी होने से ज्यादा अनुभव जरूरी है... अनुभव स्वयं में ज्ञान है.... ऋतु को तो जानते ही हो... वो कानूनी मामलों कि जानकार है... लेकिन उसके अलावा उसे कोई विशेष अनुभव नहीं.... और हम में से भी किसी ने भी कभी कोई कम नहीं किया... तो अनुभव भी नहीं.... हम सभी स्त्रियाँ हैं.... अकेला प्रबल ही हमारे परिवार का पुरुष सदस्य है, लेकिन वो भी साथ में अपनी पढ़ाई करेगा.... तो अब बताओ कि तुम्हारी समझ से क्या किया जा सकता है”

“देखिये छोटा व्यवसाय तो आपको इतनी आमदनी नहीं देगा जो आप सभी के खर्चे निकाल सके.... इससे आप धीरे-धीरे करके अपनी जमा पूंजी खर्च कर लेंगे... और बड़े व्यवसाय में अनुभव मुख्य है, बिना अनुभव के आपके प्रतिद्वंदी आपको नुकसान पहुंचा सकते हैं....... तो आपको किसी भी व्यवसाय में मौजूद बड़ी कंपनी के स्थानीय प्रतिनिधि के रूप में काम करना चाहिए जिससे... आपको धीरे-धीरे अनुभव भी होता जाएगा और संकट कि स्थिति में वो कंपनी आपको सहयोग ही नहीं आपका पूर्ण संरक्षण भी करेगी” पवन ने कहा

“हाँ! ये तो तुम सही कह रहे हो........ क्योंकि अगर हमारे ऊपर संकट आयेगा तो उसका असर कंपनी के स्थानीय व्यवसाय पर भी पड़ेगा...... और वो कंपनी हमारे बारे में ना सही अपने व्यवसाय के बारे में तो सोचकर कुछ ना कुछ करेगी ही... हमें उस संकट से निकालने के लिए” रागिनी ने कहा

“जी हाँ! आप सही समझीं” पवन ने आगे कहा “ अब आते हैं कि व्यवसाय किस चीज का हो... यहाँ दिल्ली एनसीआर में सबसे बड़ा व्यवसाय भू-संपत्ति का है... मकान खरीदना बेचना.... लेकिन उसमें निवेश भी ज्यादा होगा और धैर्य के साथ प्रतीक्षा भी करनी होगी.... अपना निवेश और लाभ वापस पाने के लिए” 

“मेरा विचार है कि हमें खाने-पहनने के व्यवसाय पर गौर करना चाहिए ..... क्योंकि इनकी बिक्री प्रतिदिन होती है और हर व्यक्ति को इनकी आवश्यकता हमेशा रहती है... तो वो बार-बार खरीदता भी है” रागिनी ने सुझाव दिया

“मानना पड़ेगा... आपने पूरी तैयारी की हुई है.... आप सही कह रही हैं.... में इसी क्षेत्र में काम कर रही कम्पनियों से संपर्क करके आपको बताता हूँ?” पवन ने उत्तर दिया 

“सिर्फ बताना ही नहीं .......आपको भी हमारे साथ जुड़ना होगा, साझेदार के रूप मेँ” रागिनी ने कहा

“मेँ अभी पूरी तरह से नहीं जुड़ सकता क्योंकि बार काउंसिल मेँ पंजीकरण के लिए मुझे अभी लगभग 8-9 महीने अभय सर के साथ ही काम करना होगा... दूसरे मेँ पूंजी भी नहीं लगा सकता.... हालांकि अपने गाँव मेँ हमारी बहुत जमीन है... लेकिन वो मेरे दादाजी के नाम हैं.... और दादाजी उस जमीन को ना तो बेचेंगे और ना ही कोई ऋण लेंगे...उस जमीन के आधार पर” पवन ने अपनी समस्या बताई

“तुम्हें कोई पैसा लगाने कि जरूरत नहीं है....... वैसे मेंने तुम्हारे बारे मेँ तो पूंछा ही नहीं.... कहाँ के रहनेवाले हो और कौन कौन है तुम्हारे घर मेँ, शादी हो गयी या नहीं” रागिनी ने मुसकुराते हुये ऋतु की ओर देखा तो उसने नज़रें दूसरी और घूमा लीं

“दीदी मेरा गाँव उत्तर प्रदेश मेँ कासगंज के पास है... मेरे घर मेँ दादाजी-दादीजी, माँ-पिताजी और 2 बहनें व 1 छोटा भाई है.... बड़ी बहन कि शादी हो चुकी है....छोटे भाई बहन पढ़ रहे हैं.... रही बात मेरी शादी की ... तो अभी पहले कुछ कमाने तो लगूँ.... बेरोजगार से कौन अपनी लड़की की शादी करेगा”  पवन ने साधारण भाव से मुसकुराते हुये रागिनी को बताया

“कोई बात नहीं... कमाने तो लगोगे ही... तो घर वाले सभी गाँव मेँ ही रहते हैं?” रागिनी ने पुनः पूंछा

“हाँ अब तो गाँव मेँ ही रहते हैं.... पहले यहीं रहा करते थे दिल्ली मेँ.... फिर कुछ दिन नोएडा भी रहे... वहीं मेरी मुलाक़ात एक व्यक्ति से हुई.... उन्होने मेरी और मेरे पिताजी कि सोच को बिलकुल बदल दिया....इसी वजह से आज मेँ कोई छोटी मोती नौकरी करने कि बजाय वकील बनने जा रहा हूँ और मेरे पिताजी भी नौकरी करने कि बजाय अपने गाँव मेँ एक सम्पन्न और सम्मानित तरीके से परिवार चला रहे हैं.......... मेँ उन भैया का हमेशा अहसानमंद रहूँगा” पवन ने कृतज्ञता का भाव लाते हुये कहा

“ज़िंदगी मेँ हर किसी को कोई न कोई ऐसा जरूर मिलता है... जो उसकी ज़िंदगी कि दशा और दिशा दोनों बादल देता है” रागिनी ने कहा 

तब तक अनुराधा ने आकार सबको खाना खाने को कहा तो सभी डाइनिंग टेबल पर पहुँचकर खाना खाने लगे। खाना खाकर पवन अपने घर को चला गया और शांति व अनुभूति भी ऊपरी मंजिल पर अपने घर चली गईं। हालांकि रागिनी ने उनसे आज अपने साथ ही सोने को कहा लेकिन शांति देवी ने कहा की ऊपर भी इसी घर में हैं इसलिए परेशानी उठाने की जरूरत ही नहीं है.... ऊपर खाली रहेगा और यहाँ कम जगह में व्यवस्था बनानी पड़ेगी... उल्टे उन्होने उन लोगो को भी ऊपर चलने को कहा .... क्योंकि ऊपर दूसरी मंजिल पर एक कमरा और तीसरी मंजिल पर 2 कमरे खाली पड़े हुये थे.... लेकिन रागिनी ने कहा की नीचे फिर बच्चे अकेले रह जाएंगे इसलिए वो नीचे ही सोएगी... तब अनुभूति ने अनुराधा से कहा की वो ऊपर उसके पास सोये। अनुराधा जाने को तयार नहीं थी लेकिन शांति देवी ने बहुत कहा तो रागिनी ने भी कह दिया की वो आज ऊपर ही सो जाए। और कल से अपना समान लेकर चाहे तो ऊपर शिफ्ट कर सकती है....क्योंकि ये पूरा मकान भी अपना ही है और अब तो सभी रहने वाले भी अपने ही हैं तो ...सब अपने-अपने अलग कमरे में रह सकते हैं.... अनुराधा ने अनुभूति को थोड़ी देर में आने को कहकर प्रबल के कमरे में चली गयी। इधर ऋतु ने भी कहा की में भी सोचती हु की सबसे ऊपर की मंजिल पर जो 2 कमरे हैं उनमें से 1 कमरा वो ले लेगी.... इससे सभी को सुविधाजनक भी रहेगा।

अनुराधा प्रबल के कमरे में पहुंची तो प्रबल बेड पर लेता हुआ था, दरवाजे पर अनुराधा को देखते ही वो उठकर सिरहाने से पीठ टिकाकार बैठ गया। अनुराधा ने कमरे में आकर दरवाजा अंदर से बंद किया और प्रबल के पास ही बेड के सिरहाने से पीठ टिकाकर बैठ गयी और प्रबल का हाथ अपने हाथ में लेते हुये उसकी ओर प्रश्नवाचक दृष्टि से देखने लगी।

“आज से में ऊपर वाले कमरे में रहूँगी... अनुभूति के पास...मुझे मालूम है तुझे अच्छा नहीं लग रहा.... लेकिन बुरा भी नहीं लगना चाहिए, याद है हवेली में जब विक्रम भैया ने हमें अलग-अलग कमरे में रहने के लिए बोला था... तब कितना रोया था तू...और मुझे भी बुरा लगा था। लेकिन आज इस उम्र में आकर मुझे समझ में आया की उन्होने सही फैसला लिया था... हम नासमझ थे और माँ अपनी याददास्त जाने के बाद कभी परिवार के बीच रही नहीं... तो उन्होने भी इस बात पर ध्यान नहीं दिया... लेकिन बहुत बार मेंने इस बात पर गौर किया की एक उम्र के बाद हमें एक दूसरे से ही नहीं माँ से भी अलग कुछ निजी ज़िंदगी जीनी होती है, कुछ निजी काम करने होते हैं.... तो ये फैसला विक्रम भैया का बिलकुल सही था... बल्कि उनका हर फैसला सही था.... में ही नासमझ थी जो उन्हें अपना दुश्मन समझने लगी...उनसे नफरत करने लगी”

“हम्म! आप मुझसे ज्यादा जानती हैं... आपको जो सही लगे... मेरे लिए हमेशा सही ही होता है” प्रबल ने उदास सी मुस्कुराहट के साथ कहा

“पागल! अब तू छोटा बच्चा नहीं रह गया... अब बड़ा हो गया है...... आज मेरी बात मानता है... कल को जब बीवी आएगी तो वो मुझसे जलने लगेगी की मेंने अपने भाई को दबा के रखा हुआ है.... या फिर वो भी तुझे दबाने लगेगी..... आदमी बन अब... तू इस घर का मुखिया है... हम सब को बता की क्या सही है क्या गलत... अब कब तक माँ या मेरे पीछे दुबका रहेगा” अनुराधा ने कहा तो प्रबल को अनुपमा की बातें याद करके हंसी आ गयी। उसे मुसकुराते देखकर अनुराधा ने कहा

“क्या हुआ ऐसे हंस क्यों रहा है.... में कोई मज़ाक थोड़े ही कर रही हूँ... सच्चाई बता रही हूँ”

“अरे आपकी बात नहीं दीदी... वो अनुपमा की बात याद करके हंस रहा था ... वो भी आज ऐसे ही कह रही थी” प्रबल ने शर्माते हुये कहा

“अनुपमा! वाओ... एक घंटे में ही बदल दिया उसने.... दीदी से अनुपमा बन गयी... क्या क्या सीखा दिया मेरे भाई को उस कमीनी ने” अनुराधा ने प्रबल को छेडते हुये कहा

“अरे नहीं दीदी... अब जब में उनको दीदी बोलता हूँ तो वो नाराज हो जाती हैं, गुस्सा करने लगती हैं तो अब में उन्हें नाम से ही बुलाऊंगा... और क्या-क्या सिखाया मुझे पूंछों ही मत.... और उनकी सहेलियों का गैंग.... वो तो जल्दी घर आना था इसलिए सिर्फ जान पहचान ही कराई है अभी” प्रबल छोटे बच्चे की तरह खुश होते हुये अनुराधा को बताने लगा

“चल ठीक है... अब बड़ा हो रहा है तू... वो अच्छी लड़की है और सबसे बड़ी बात, घर की सदस्य की तरह है... घर की ही मान लो.... उसके साथ रहकर घर से बाहर निकालना और इस दुनिया को समझना सीख जाएगा.... लेकिन थोड़ा सम्हालकर...और अपनी मर्यादा का ध्यान रखना...” अनुराधा ने कहा और उठकर खड़ी हो गयी

“ठीक है दीदी...आप निश्चिंत रहें” प्रबल ने जवाब दिया

अब प्रबल भी अपने बिस्तर पर लेट कर आज दिन में अनुपमा के साथ हुयी बातों को याद करने लगा

........................

रास्ते भर अनुपमा प्रबल को अपनी बातों से पकाती रही... फिर गुप्ता मार्केट पहुँचकर जब वो रिक्शे से उतरे तो वहाँ पहले से ही खड़ी 3 लड़कियों ने रिक्शे वाले को 10 रुपए दिये और अनुपमा को हाथ पकड़कर खींच लिया ...अनुपमा को उतरते देख प्रबल भी रिक्शे से उतरा और उसके साथ खड़ा हो गया

“अरे कमीनीयों इसे 10 रुपये और दे दो.... तुम्हारे लिए बकरा लाई हूँ...उसका किराया कौन देगा... तेरी मम्मी से दिलवा दूँ...उन्हें बकरा भी पसंद आ जाएगा” अनुपमा ने उन लड़कियों से कहा

“वो तो बुड्ढी हो गईं.... इसे हम में से जो पसंद हो बता दे वही किराया दे देगी इसका...” जिस लड़की ने अनुपमा का हाथ पकड़ा हुआ था वो बोली

“अरे मेडम मुझे तो पैसे दे दो...” रिक्शे वाले ने कहा तो अनुपमा ने अपनी जेब से निकालकर उसे 10 रुपये दे दिये

“ओहो... तो अनु मेडम को पसंद कर लिया……. वैसे ये गूंगा है क्या.... तो किसी को बता भी नहीं पाएगा की इसके साथ क्या हुआ और किसने किया” उस लड़की ने दाँत फाड़ते हुये कहा

“चल पहले मुलाक़ात करा दूँ... ये हैं प्रबल, मेरी बचपन की सहेली अनुराधा के छोटे भाई.... और ये हैं निशा, रिचा और स्वाति मेरी सबसे खास दोस्त... और हमारे ही कॉलेज में पढ़ती हैं... तुम्हारी सीनियर हैं...”

“जी में प्रबल प्रताप सिंह...आप सभी से मिलकर बड़ी खुशी हुई” प्रबल ने प्रभावशाली तरीके से कहा तो वो सभी लड़कियां हंसने लगीं

“सच यार... ये तो बकरा ही है.... कल इसकी रैगिंग लेती हूँ... ‘जी में प्रबल प्रताप सिंह’ हा हा हा .... जैसे किसी बिजनेस मीटिंग में आया हो......” स्वाति ने हँसते हुये प्रबल की नकल उतारते हुये कहा “और ये तुम्हारा मुंह सूजा-सूजा क्यों है... कड़ी हंस भी लिया करो”

“चल यार अब तो रोज ही कॉलेज में मिलना होता रहेगा... अभी तो चलकर वो कम कर लें जिसके लिए आए हैं” अनुपमा ने स्वाति से कहा

“हाँ दी... चलो किताबें ले लेते हैं...फिर माँ भी आने वाली हैं तो जल्दी वापस लौटना है” प्रबल ने अनुपमा को दीदी कहते कहते उसकी आँखों में गुस्सा देखा तो जल्दी से बोला

“स्वाति, रिचा तुम दोनों ने सुना? ये तो अनु को दी कह रहा है...और इसको माँ की भी याद आ रही है.... बकरा नहीं ये तो मेमना लग रहा है... बच्चे को जल्दी किताबें दिलाकर घर लेकर जा... नहीं तो रोने लगेगा” निशा ने कहा

“ओए ज्यादा नहीं... वो दी नहीं जल्दी कह रहा था... और वो अपनी माँ से डरता नहीं है...असल में बुआ ने मुझे आज अपने साथ खाने की डावात दी है... तो हमें जल्दी से घर जाना है...वो ही याद दिला रहा था” अनुपमा ने जल्दी से कहा “अब चलो जल्दी”

“कोई बात नहीं अभी तू जितनी मर्जी सफाई दे ले...कल कॉलेज में देखती हूँ इसे कौन बचाएगा.... और पता है ना... जब कोई भी बकरा हमारे साथ मार्केट में होता है तो उसे वो सबकुछ खाना पड़ता है जो हम खाते हैं... अब ये मत कहने लगना की ये कुछ नहीं खाता” रिचा ने कहा

“देख अभी तो हम दोनों घर जाकर बुआ के साथ खाना खाएँगे.......... तो...कुछ नहीं... चल दुकान आ गयी किताबें ले ले” अनुपमा ने कहा

चारों लड़कियों ने अपनी किताबें लीन और प्रबल की भी …. अपने और प्रबल के पैसे अनुपमा ने दिये तो उन तीनों ने अनुपमा की ओर घूरकर देखा

“अरे यार पहले में अकेली आ रही थी... इसलिए बुआ ने मुझे पैसे दे दिये थे... फिर मेंने सोचा इसे भी साथ ले आऊँ तुमसे मिलवा दूँ... वरना कल कहीं तुम इसकी रैगिंग लेने लग जातीं... अच्छा ओके बाइ” अनुपमा ने कहा

“पहले खाते हैं गोलगप्पे... देखते हैं इसके सूजे-सूजे गाल गोलगप्पा खाकर कैसे लगेंगे” स्वाति ने कहा और वो सब वहीं दुकान के सामने ठेले पर गोलगप्पे खाने पहुँच गए, प्रबल ने एक बार तो माना करने का सोचा लेकिन फिर चुप हो गया और उनके साथ गोलगप्पे खाने लगा... 

वहाँ से चलते समय स्वाति ने अनुपमा को एक ओर पकड़कर अलग खीचा और बोली 

“देख .... मेरा कोई चक्कर चलवा दे इससे... और ये मत कहियो की तेरा चक्कर चल रहा है... मुझे अच्छी तरह पता है... तुझसे दीदी कह रहा था” 

स्वाति की बात सुनकर अनुपमा ने कुछ नहीं कहा लेकिन प्रबल को गुस्से से घूर के देखा....और वहाँ से रास्ते भर मुंह फुलाए रही... प्रबल ने एक बार पूंछा भी की क्या बात है...क्यों गुस्सा है लेकिन वो कुछ नहीं बोली घर तक

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प्रबल यही सोचते सोचते सो गया कि ऐसी क्या बात कह दी स्वाति ने जो अनुपमा इतनी नाराज हो गयी.... वो स्वाति के चुचे घूर रहा था चोरी छुपे... वो तो नहीं देख लिया स्वाति ने और अनुपमा को बता दिया हो..........

“हुंह... अब इस उम्र में इतने बड़े-बड़े होंगे तो नजर वहीं रुकेगी ना” सोचते हुये प्रबल नींद में डूबता चला गया

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#65
अध्याय 25


इधर अनुराधा के ऊपर जाने के बाद रागिनी ने ऋतु को साथ लिया और अपने कमरे में आकर पलंग पर बैठ गयी।

“क्या सोचा है ऋतु... उस समय में सबके सामने इस कंपनी को लेकर कोई बात नहीं करना चाहती थी.... अगर कोई ऐसी कंपनी है जिसमें हमारे पूरे परिवार की हिस्सेदारी है... तो उसे चला कौन रहा है... ये तुम्हें पता लगाना होगा.......और सबसे बड़ा सवाल ये है की अब तक पूरे घर में अकेला विक्रम ही ऐसा था जो सबसे जुड़ा हुआ था... तो उसकी मौत पर बाकी कोई क्यों नहीं आया.... यहाँ तक की न तो कंपनी से कोई आया और न ही शांति को किसी ने खबर दी... जबकि होना तो ये चाहिए कि जब राणा जी कि सारी संपत्तियाँ और अधिकार विक्रम के पास हैं तो कंपनी भी विक्रम ही चला रहा होगा... और कंपनी के पास पूरी डिटेल्स भी होंगी कि कौन कौन हैं परिवार में हैं और कहाँ हैं.... क्योंकि उन सबको कंपनी पैसा भेजती होगी...................और ये बड़े ताऊजी के बेटे राणा रवीद्र प्रताप सिंह जिंदा भी हैं या नहीं, हैं तो कहाँ हैं, इनका परिवार कहाँ है, इनके और भाई बहन भी होंगे.............. लेकिन कमाल है.......... जो परिवार का मुखिया है...........उसी का कोई अता-पता नहीं... यहाँ तक कि बड़े ताऊजी से जुड़ी किसी भी बात का कहीं कोई जिक्र ही नहीं.................. मोहिनी चाची भी बहुत कुछ जानती हैं...... लेकिन उन्होने हमें तो छोड़ो कभी तुम्हें भी किसी बात कि भनक नहीं लगने दी।”

“दीदी...दीदी...दीदी... इतना भी मत सोचो.... अभी कल ही तो अप कह रहीं थीं की सबकुछ भूलकर हम सब को नए सिरे से शुरुआत करनी है.............और अब फिर से आप इन्हीं उलझनों में डूबती जा रही हो” ऋतु ने भी रागिनी के दूसरे हाथ को अपने हाथ में पकड़ा और प्यार से उसके माथे को चूमते हुये कहा

“एक उलझन खत्म होती है तो दूसरी शुरू हो जाती है.......अब देख लो तुम्हारे ताऊजी यानि मेरे पिताजी का एक और नया कारनामा शुरू हो गया... मुझे तो ये समझ नहीं आता कि हमारे घर में हमसे बड़े-बड़े सभी ऐसे ही थे क्या.... बलराज चाचाजी के कारनामे सुधा ने सुनाये ही.... गजराज चचाजी का कुछ पता नहीं... और अब ये जयराज ताऊजी .... इंका कोई कारनामा तो सामने नहीं आया है... लेकिन इनके बेटे राणाजी का वजूद तो विक्रम से भी ज्यादा जबर्दस्त था घर में.... लेकिन घर के मुखिया होते हुये भी उनका कोई अता-पता नामो-निशान ही नहीं कि वो आखिर कहाँ गायब हो गए.... उनके कोई और भाई-बहन थे या नहीं, उनकी शादी भी हुई या नहीं... अगर हुई तो उनकी पत्नी बाल-बच्चे सब कहाँ हैं........” रागिनी ने कहा 

“दीदी एक बात आप भूल रही हैं?” ऋतु ने मुसकुराते हुये कहा

“क्या?” रागिनी ने आश्चर्य से पूंछा

“बड़े ताऊजी का भी एक कारनामा सामने आ चुका है, .... उनका अपनी पहली पत्नी से संबंध विच्छेद हो गया था और उन्होने दूसरी शादी भी कि थी... और उनकी दूसरी पत्नी के एक बेटी भी हुई थी 14 अगस्त 1979 को.... अब ये नहीं पता कि उनकी पहली पत्नी के कोई संतान थी या नहीं... और ये राणाजी भाई साहब पहली ताईजी के बेटे हैं या दूसरी के....

दीदी सवाल बहुत से हैं लेकिन जवाब हमें खुद ही ढूँढने होंगे........हर सवाल के.... इसलिए आप अभी निश्चिंत होकर सो जाओ.... में भी सो रही हूँ और कल सुबह से इन सबके बारे में पता लगाने के बारे में सोचते हैं” ऋतु ने कहा तो रागिनी भी अनमने मन से बिस्तर पर लेट गयी और ऋतु भी उसके बराबर में ही लेटकर सोने कि तैयारी करने लगी

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सुबह उठकर सभी ने सामान्य तरीके से अपनी दिनचर्या में लग गए। अनुराधा और प्रबल को कॉलेज जाना था तो वो दोनों तैयार होने लगे, इधर अनुभूति भी ऊपर अपने कमरे में तयार हो रही थी...उसे भी स्कूल जाना था। शांति को रागिनी ने सुबह ही नीचे बुला लिया था और अब वो दोनों मिलकर रसोईघर में बच्चों के लिए नाश्ता तैयार करने लगीं... थोड़ी देर बाद ऊपर से अनुभूति अपना बैग लेकर स्कूल ड्रेस में तैयार होकर आ गयी... उसने देखा की हॉल में कोई नहीं है तो वो अपना बैग वहीं रखकर रसोईघर में पहुंची और रागिनी को नमस्ते किया

“आंटी नमस्ते” उसकी आवाज सुनते ही रागिनी ने पलटकर देखा तो अनुभूति दरवाजे में खड़ी रागिनी को ही देख रही थी

“आंटी! माँ आप देख रही हैं... सबकुछ जानकर भी ये मुझे आंटी ही कह रही है” रागिनी ने शांति से कहा

“अब आपने जैसे मुझे जो कहा वो मानना ही पड़ा... ऐसे ही उसे भी आप समझा ही लेंगी” शांति ने मुसकुराते हुये रागिनी और अनुभूति की ओर देखकर कहा

“देखो माँ... मेंने आपसे कुछ गलत तो नहीं कहा.... जब आपने मेरे पिताजी से बकायदा शादी की है तो फिर आप मेरी माँ ही हुई ना.... लेकिन अब भी आप मेरी पूरी बात नहीं मान रहीं.... आप मुझे आप नहीं तुम कहकर बुलाया करो” रागिनी ने शांति से कहा और फिर अनुभूति की ओर देखकर बोली “सुन छोटी तेरे और मेरे पिताजी एक हैं.... तेरी माँ को में माँ कहती हूँ... तो में तेरी क्या हुई...क्या कहेगी तू मुझसे”

“जी... जी आप मेरी दीदी हैं...और में आपको दीदी कहूँगी” अनुभूति ने हड्बड़ाते हुए कहा तो रागिनी मुस्कुरा गयी तभी किसी ने पीछे से आकार अनुभूति को अपनी बाहों में भर लिया तो वो चौंक गयी

“अरे बुआ जी आप डर क्यों रही हैं... में हूँ ना...आपके साथ...हमेशा” अनुराधा ने अनुभूति को अपनी ओर घुमाते हुये कहा

“माँ! जल्दी से नाश्ता लगा दो... में और प्रबल छोटी बुआजी को स्कूल छोडते हुये कॉलेज निकल जाएंगे” अनुराधा ने अनुभूति की ओर मुसकुराते हुये देखकर कहा

“नाश्ता तो लगा रही हूँ में........ ऋतु कहाँ है........सुबह से वो कमरे से ही नहीं निकली उसे भी बुला लो.........वो भी नाश्ता कर लेगी” रागिनी ने अनुराधा से कहा तो वो पलटकर रागिनी के कमरे की ओर चली गयी, अनुभूति भी बाहर हॉल में पहुंची तो वहाँ प्रबल पहले ही बैठा हुआ था... अनुभूति दूसरे सोफ़े पर प्रबल के सामने जाकर बैठ गयी....दोनों एक दूसरे को चोरी-चोरी नजरें झुकाये तिरछी नजरों से देख तो रहे थे लेकिन एक दूसरे से बात करने की हिम्मत नहीं कर प रहे थे

“लाली! तू यहाँ कैसे? और देख ये मेरा बॉयफ्रेंड है..... इस पर नजर मत डाल, वरना मुझे जानती है” उन दोनों की आँख मिचोली चल ही रही थी की वहाँ एक नई आवाज गूंजी तो दोनों जैसे होश में आए और हड्बड़ाकर दरवाजे की ओर देखा तो वहाँ से अनुपमा अंदर आती दिखाई दी...अंदर आकर वो सोफ़े पर अनुभूति के पास ही बैठ गयी

“नन...नहीं दीदी ऐसी कोई बात नहीं...” अनुभूति सिर्फ इतना ही बोल पायी डरे हुये चेहरे से 

“अनु ये फालतू की बातें मत किया कर... हर समय तेरे दिमाग में यही भरा रहता है........ ये मेरी बुआ जी हैं....... विक्रम भैया की बहन....” प्रबल ने अनुपमा से कहा तो वो ज़ोर ज़ोर से हंसने लगी

“विक्रम भैया.......... हा हा हा और अब उनकी ये बहन बुआ जी.... हा हा हा हा” अनुपमा ने कहा तो

“अरे पागल वो तो हम बचपन से कहते आए थे इसलिए ये विक्रम कह रहा है...... तुझे तो मालूम ही है... विक्रम चाचाजी या ताऊजी जो भी हों मेरे....... ये उनका बेटा है... और रागिनी बुआ... उनकी बहन हैं..... उनके पिताजी की 2 शादियाँ हुई थी... शांति आंटी की बेटी मेरी और विक्रम की बुआ हुई या नहीं” अनुराधा ने भी अंदर आकर प्रबल के पास बैठते हुये कहा

“मुझे नहीं समझ में आता तेरी फॅमिली का... ये इतने साल से यहाँ रह रहीं थीं तब तो ऐसा कुछ सुनने में नहीं आया....अब रागिनी बुआ के आते ही नए नए राज खुल रहे हैं............ चलो कॉलेज चलते हैं” अनुपमा ने कहा

“अभी बस नाश्ता करके चलेंगे... जाते हुये ही रास्ते में छोटी बुआ जी को भी स्कूल छोडते जाएंगे”

तभी ऋतु, रागिनी और शांति भी नाश्ता लेकर आ गईं तो सबने वहीं हॉल में बैठकर नाश्ता किया और अनुराधा सबको गाड़ी में बैठकर निकाल गयी

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अनुराधा, अनुपमा, अनुभूति और प्रबल के जाने के बाद रागिनी ने ऋतु से पूंछा की वो अब क्या और कैसे करेगी तो ऋतु ने बताया कि वो सुबह सॉकर उठने के बाद से ही बिस्तर पर पड़ी इंटरनेट पर इन सब चीजों को ढूंढ रही थी और उसने पवन से भी बात की है.... 

“दीदी ये राणाआरपीसिंह सिंडीकेट बहुत सारी कंपनियों का समूह है...होल्डिंग कंपनी..... इस कंपनी के सीईओ का नाम रणविजय सत्यम है जो वास्तव में कंपनी चला रहे हैं... कंपनी के एमडी विक्रमादित्य सिंह हैं आज भी और चेयरमैन राणाआरपीसिंह हैं, कंपनी के पंजीकृत कार्यालय का पता सुनकर आप चौंक जाएंगी” ऋतु ने बताया

“कहाँ पर है... कोटा हवेली का या गाँव का” रागिनी ने बिना किसी उत्सुकता के शांत भाव से पूंछा

“गाँव का, और मुख्य कार्यालय या संचालन कार्यालय यहीं दिल्ली का है.... गुरुग्राम-महरौली मार्ग पर दिल्ली-हरियाणा सीमा पर आया नगर में....... में यही तो कहती हूँ... मेंने बेशक वकालत पढ़ी है और वकालत कर रही हूँ... लेकिन किसी भी मामले में आप मुझसे जल्दी समझ लेती हैं कि क्या हो सकता है” ऋतु ने मुसकुराते हुये कहा

“और पवन से क्या बात हुई?” रागिनी ने पूंछा

“पवन अभी कुछ देर में आ रहा है में उसके साथ जाऊँगी.... जो, काम के लिए उसे बोला था उसी सिलसिले में कहीं बात करने जाना है... पहले तो घर जाकर अपनी गाड़ी लेकर आती हूँ... क्योंकि एक गाड़ी तो बच्चों को स्कूल-कॉलेज जाने के लिए ही चाहिए, एक आपके और शांति ताईजी के लिए और एक मुझे” ऋतु ने अपना दिन का कार्यक्रम बताया

“ठीक है... लेकिन वहाँ चाचाजी-चाचीजी से कुछ कहना-सुनना मत... वैसे चाहे रहने ही दो उनसे गाड़ी मत लाओ... जरूरत होगी तो एक गाड़ी कोटा से ही और मंगा लेंगे, वहाँ अभी 3 गाडियाँ खड़ी हैं... सुरेश पूनम तो 1-2 गाड़ी ही इस्तेमाल करते होंगे” रागिनी ने जवाब दिया

“नहीं दीदी... ऐसी कोई बात नहीं... गाड़ी के लिए वो कुछ नहीं कहेंगे...” ऋतु ने कहा और तैयार होने चली गयी

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“पवन! ये तो काफी बड़ी रिटेल चेन है दिल्ली एनसीआर की इसकी फ्रेंचाइजी लेकर हमें पब्लिसिटी या मार्केटिंग करने की जरूरत भी नहीं... इसके तो नाम से ग्राहक खुद चलकर आयेगा और ऑनलाइन भी ऑर्डर आते हैं” ऋतु ने रिटेल स्वराज का बोर्ड देखकर कहा

पवन और ऋतु पहले तो घर से बलराज सिंह के घर गए पवन की बुलेट से फिर वहाँ से ऋतु की कार लेकर ग्रेटर नोएडा में रिटेल स्वराज नाम की कंपनी के ऑफिस गए उनका स्टोर अपने इलाके में शुरू करने की बात करने

घर पहुँचने पर बलराज सिंह और मोहिनी दोनों ने सामान्य तरीके से बात की, मोहिनी चाय बनाने रसोई में गईं तो ऋतु भी रसोई में चली गयी उनके साथ वहाँ मोहिनी ने ऋतु को अपने गले से लगाया और उसके ही नहीं रागिनी, अनुराधा और प्रबल सबके हालचाल लिए। फिर चाय पीकर ऋतु अपनी कार लेकर पवन के साथ ग्रेटर नोएडा चली आयी। पवन की बुलेट वहीं बलराज सिंह के घर छोड़ दी। जब ऋतु मोहिनी के साथ रसोई में थी तो बलराज सिंह ने पवन के साथ बात की और उसके बारे में जानकारी ली।

“मेम! आप अपना बैंक खाता संख्या दे दीजिये और यहाँ हस्ताक्षर कर दें” ऋतु और पवन वहाँ सारी बात करने के बाद जमानत राशि का बैंक हस्तांतरण करके उनके द्वारा अथॉरिटी लेटर मिलने की प्रतीक्षा कर रहे थे तभी एक लड़की ने आकर उनसे कहा

“मेंने सारी जानकारी आपके आवेदन पत्र पर दे दी है... वैसे मेरे बैंक खाते की जानकारी आप क्यों मांग रही हैं...” ऋतु ने कहा

“मेम इस बारे में बात करने के लिए आपको हमारी रिलेशनशिप मैनेजर जिनसे आपकी बात हुई है...उन्होने बुलाया है” उस लड़की ने ऋतु से कहा तो ऋतु भी उठकर उसके साथ चल दी, पीछे-पीछे पवन भी

केबिन में ऋतु के अंदर आते ही वहाँ मौजूद रिलेशनशिप मैनेजर उठकर खड़ी हुई और उसने ऋतु को बैठने को कहा, ऋतु और पवन को थोड़ा अजीब लगा... लेकिन वो सामने पड़ी कुर्सियों पर बैठ गए... उनके पास गयी लड़की ने भी अपने हाथ में मौजूद कागजातों को टेबल पर रख दिया और अपनी मैनेजर के इशारे पर बाहर चली गयी। मैनेजर ने अपनी कुर्सी पर बैठकर उनकी ओर देखा

“सॉरी मेम अपने पहले क्यों नहीं बताया कि आप हमारी पेरेंट कंपनी कि अंशधारक हैं आप कहीं भी और कितने भी स्टोर शुरू करा सकती हैं... आपको कोई जमानत राशि जमा नहीं करनी होगी...आज ही आपके पास कंपनी की फील्ड टीम पहुँच जाएगी उन्हें जगह दिख दें एक सप्ताह के अंदर आपका स्टोर शुरू हो जाएगा...” कहते हुये उसने ऋतु के खाते में जमानत राशि वापस भेजने के लिए एक फॉर्म पर उसके हस्ताक्षर कराये और खाता संख्या लिखकर सिस्टम में अपडेट कर दिया

“आपको किसने बताया की में शेयरहोल्डर हूँ.... मुझे अपनी पेरेंट कंपनी का नाम बताइये?”

“जी ये राणाआरपीसिंह सिंडीकेट की सहायक कंपनी है और आप सिंडीकेट की अंशधारक हैं...आपका आधार नंबर डालते ही हमारे सिस्टम में दिखने लगा....” रिलेशनशिप मैनेजर ने बताया “और आपका मोबाइल नंबर भी अब हमारे सिस्टम में आ चुका है तो किसी भी सहायता के लिए सिर्फ कॉल कर दें”

“ठीक है” बोलकर ऋतु उठकर खड़ी हुई तो वो रिलेशनशिप मैनेजर भी खड़ी हुई और ऋतु से हाथ मिलाया। ऋतु को उसका पहले का व्यवहार और अब का व्यवहार कुछ अलग लगा लेकिन उसने कुछ कहा नहीं और पवन के साथ वहाँ से चली आयी

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इधर ऋतु के जाने के बाद रागिनी और शांति ने घर के काम निबटाये और बैठकर आपस में बात करने लगीं... दोनों ने बात करके ये निर्णय लिया कि अब घर में रहने कि व्यवस्था इस तरीके से कि जाए जिससे पूरा परिवार एक दूसरे के संपर्क में रह सके...इसलिए रागिनी और शांति नीचे कि मंजिल पर रहेंगी.... ऋतु को भी नीचे की मंजिल पर ही साथ रखने का सोचा गया.... लेकिन ये फैसला ऋतु को खुद करना था..... दूसरी मंजिल पर 3 कमरे थे जो तीनों बच्चों अनुराधा, प्रबल और अनुभूति को दिये जाएंगे.... और तीसरी मंजिल के 2 कमरे मेहमानों के लिए...

अभी इन दोनों में बातें चल ही रही थीं कि बाहर एक गाड़ी रुकने कि आवाज आयी दोनों ने दरवाजे पर कोई आहात होने का इंतज़ार किया लेकिन कुछ देर में गाड़ी के दरवाजे खुलने और बंद होने, फिर गाड़ी के वापस जाने की आवाज आयी तो उन्होने सोचा कि शायद कोई आस-पड़ोस में आया होगा इसलिए ज्यादा गौर नहीं किया लेकिन जब उनके गेट पर से घंटी बजाई गयी तो शांति और रागिनी दोनों उठकर खड़ी हुईं और पर पहुँचीं। वहाँ मोहिनी खड़ी हुई थीं... शांति ने गेट खोला और मोहिनी को अंदर आने का रास्ता दिया, मोहिनी के अंदर आने के बाद गेट बंद करके तीनों हॉल में आ गईं। अब तक न मोहिनी ने कुछ कहा और न ही इन दोनों ने ही उनसे कुछ कहा। 

“में शांति जी और तुमसे कुछ बात करना चाहती हूँ इसीलिए यहाँ आयी हूँ” मोहिनी ने रागिनी से कहा

“वैसे तो में ये चाहती हूँ कि जो भी बात आप कहना चाहती हैं वो सबके सामने हो... ऋतु, अनुराधा और प्रबल अब बच्चे नहीं रहे और अनुभूति भी इतनी छोटी नहीं कि वो हमारी बातों को समझ न सके वो भी मौजूद रहेगी.... लेकिन अभी इन सभी के आने में समय है तो तब तक हम आपस में बात कर लेते हैं” रागिनी ने कहा

“कोई जल्दबाज़ी नहीं है.... में आज तुम सब के साथ ही रहूँगी जब तक बात पूरी नहीं हो जाती.... चाहे रात तक ही क्यों ना रुकना पड़े...लेकिन एक बात में बच्चों के आने से पहले ही अप दोनों को बताना चाहती हूँ जिसको सुनकर शायद आप दोनों के ही मन में कुछ अलग सा महसूस होगा” मोहिनी ने दोनों को देखते हुये कहा

“कोई बात नहीं... अभी में कुछ खाने-पीने को लाती हूँ....आप क्या लेंगी चाय या कॉफी?” रागिनी ने सोफ़े से उठते हुये कहा

“में दिल्ली में बेशक रहती हूँ... लेकिन मेरा जन्म भी गाँव में हुआ और गाँव में रही भी हूँ... तो कॉफी पीने कि आदत नहीं... चाय ही पीती हूँ” कहते हुये मोहिनी मुस्कुरा दीं तो रागिनी रसोईघर कि ओर चली गयी और थोड़ी देर बाद चाय लेकर आ गयी

“हाँ! अब बताइये चाचीजी क्या कह रहीं थीं आप” रागिनी ने मोहिनी से पूंछा

“पहल बात तो तुम जयराज भाई साहब की बेटी नहीं हो बल्कि उनसे छोटे विजयराज भाई साहब की बेटी हो” रागिनी की ओर देखते हुये मोहिनी ने कहा

“मुझे पता है” मोहिनी के अंदाजे के बिलकुल विपरीत रागिनी ने शांत भाव से मुसकुराते हुये कहा

“दूसरी बात.... शांति जी... विजयराज भाई साहब कि दूसरी पत्नी हैं.... यानि तुम्हारी सौतेली माँ और अनुभूति तुम्हारी सौतेली बहन है” मोहिनी ने रागिनी कि प्रतिक्रिया पर अपनी उत्सुकता दबाते हुये दूसरा धमाका किया हालांकि पहले सवाल पर ही रागिनी कि प्रतिक्रिया से उनके मन में बहुत सारे सवाल उठ खड़े हुये थे जिंका जवाब पाने के लिए वो बेचैन थीं

“ये भी मुझे पता है...और माँ को भी सब पता है.... अब आप अगर तीसरी बात भी वो बताना चाहती हैं जो में सोच रही हूँ तो मुझे ये भी पता है कि .......... विक्रम मेरा सगा भाई था” रागिनी ने मोहिनी कि मनोदशा को देखते हुये अपनी ओर से और एक वार किया

“चलो अच्छा हुआ तुम दोनों को एक दूसरे के बारे में सबकुछ पता चल गया.... लेकिन ऐसा हुआ कैसे” अब मोहिनी से अपनी उत्सुकता छिपाई नहीं गयी तो उन्होने आखिरकार सवाल कर ही दिया

“आपने तो सबकुछ जानते हुये भी छुपाने और हमें गुमराह करने की पूरी कोशिश कि लेकिन फिर भी सच्चाई किसी न किसी तरह सामने आ ही गयी” कहते हुये रागिनी ने इन सारी बातों के सामने आने का बताया कि कैसे उन सब को ये पता चला

“लेकिन आपने अभी तक ये तो बाते ही नहीं कि राणा रविन्द्र प्रताप सिंह कौन हैं और कहाँ हैं?” ये तीनों अभी आपस में बात कर ही रहीं थीं कि पीछे से आयी आवाज ने उन्हें चोंका दिया

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#66
अध्याय 26


दरवाजे से आयी आवाज सुनकर तीनों ने पलटकर देखा तो ऋतु और तीनों बच्चे खड़े हुये थे.... तीनों ने एक दूसरे की ओर देखा की ऋतु ने सवाल किस से किया है....

“माँ में आप से ही पूंछ रही हूँ? दीदी को तो जो कुछ पता चला है, दूसरों ने बताया है। लेकिन आप तो सबकुछ जानती हैं...अपने क्यों नहीं बताया अब तक” ऋतु ने मोहिनी देवी से कहा तो मोहिनी ने मुसकुराते हुये चारों को अपने पास आने का इशारा किया

“मेंने बलराज की वजह से नहीं बताया था, तुम्हें अजीब लग रहा होगा न बलराज का नाम मेरे मुंह से सुनकर... तुम्हारे सामने मेंने कभी उसका नाम लिया भी नहीं... में आज तुम लोगों को सबकुछ बताने ही आयी हूँ... क्योंकि अब तुम सब ही इस घर में रह गए हो... तुम्हें ही ये घर सम्हालना है.... रवि के बारे में तो शायद मुझसे ज्यादा कोई जानता भी नहीं होगा... वसुंधरा दीदी भी नहीं... और सुशीला भी नहीं” मोहिनी ने ऋतु से कहा “में आज यहीं रुकूँगी तुम सब अभी बाहर से आ रहे हो... हाथ मुंह धोकर पहले खाना खा लेते हैं फिर बताती हूँ सबके बारे में”

“अब ये रवि कौन है” ऋतु ने फिर पूंछा 

“राणा रविन्द्र प्रताप सिंह.... मेरा रवि... मेरे लिए वो तुम सब से बढ़कर है ... मेरा पहला बेटा....” मोहिनी ने भावुक होते हुये जवाब दिया साथ ही उनकी आँखों में नमी उतार आयी “आज कितने बरस हो गए उसे देखे हुये... अब तो उसकी शक्ल भी याद नहीं... लेकिन आज भी सामने आते ही पहचान लूँगी... उसको तो बंद आँखों से भी पहचान सकती हूँ में”

ऋतु ने उनकी ओर शंकित भाव से देखते हुये अनुराधा, प्रबल और अनुभूति को हाथ मुंह धोने को कहा और खुद भी चल दी। उनके जाते ही शांति देवी भी उठकर रसोईघर की ओर चल दीं, रागिनी भी उनके पीछे चल दी तो मोहिनी ने उठते हुये कहा

“बेटा तुम बैठो आज तुम्हारी माँ नहीं हैं तो चाचियाँ हैं... और में तो तुम्हारी मौसी भी हूँ... तुम्हारी माँ कामिनी मेरी बड़ी बहन थी... तुम्हें याद नहीं है... तुम मुझसे 2 साल बड़ी हो और में और तुम बचपन में साथ-साथ खेलते थे... तुम मुझे बहुत मारती थी.... फिर दीदी ने ही मेरी शादी तुम्हारे चाचा से करा दी”

कहते हुये मोहिनी देवी भी रसोईघर की ओर चली गईं... रागिनी भी उनके पीछे-पीछे चली गयी। थोड़ी देर बाद उन्होने खाना डाइनिंग टेबल पर लगा दिया और सभी बच्चे भी वहीं आ गए। इस बार कोई कुछ नहीं बोला और सभी ने चुपचाप बैठकर खाना खाया... खाना खाकर मोहिनी और शांति देवी रसोईघर में साफ सफाई और बर्तन साफ करने लगीं। 

रागिनी ने ऋतु और बच्चों को अपने पास हॉल में बैठाया और उनके रहने की व्यवस्था समझाई तो तीनों बच्चों ने अपनी सहमति जताई और ऋतु ने अपना नया सुझाव दिया कि क्यों ना वो भी बच्चों के साथ दूसरी मंजिल पर ही रहे और अनुराधा व अनुभूति को एक साथ एक ही कमरे में रखा जाए जिससे नीचे एक कमरा खाली रहे किसी विशेष अतिथि के आने पर प्रयोग के लिए... और तीसरी मंजिल के कमरों को पढ़ाई और व्यायाम के लिए सभी के प्रयोग हेतु रखा जाए... जिस पर रागिनी और बच्चों ने भी अपनी सहमति दे दी।

तब तक रसोईघर से शांति और मोहिनी भी आ गईं तो वो सभी पहले कि तरह सोफ़े पर बैठकर बात करने कि बजाय रागिनी के कमरे में पहुंचे ताकि आराम से बैठकर पूरी बात की जा सके

“अब बताइये आप क्या बताना चाहती हैं” वहाँ सभी के बैठते ही ऋतु ने मोहिनी से कहा 

“ऋतु! ऐसे बात करते हैं माँ से?” रागिनी ने गुस्से से ऋतु की ओर देखा

“कोई बात नहीं बेटा! उसका भी गुस्सा जायज है... लेकिन अब में तुम्हें बताती हूँ... जो कुछ में जानती हूँ... हालांकि में कभी परिवार के साथ नहीं रही... इसलिए बहुत ज्यादा मुझे नहीं पता सिर्फ अपने से जुड़े मामले ही पता हैं....लेकिन में वो बाद में सुनाऊँगी कभी फुर्सत से... अभी खास-खास बातें और परिवार के लोगों के बारे में बताती हूँ

सबसे पहले तो वो बात जो ऋतु के ही नहीं तुम सब के दिमाग में भी होगी कि बलराज और मेरे बीच में कैसा रिश्ता है और विक्रम के साथ में यहाँ क्यों आती थी....

मेरे पति का नाम गजराज सिंह था तुम्हारे बड़े चाचा, और ऋतु मेरी और उनकी ही बेटी है.... उनकी एक सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गयी थी.... उसके बाद मेरे मायके वाले मुझे नोएडा ले आए... में भी कभी परिवार के साथ नहीं रही तो मुझे भी अपने मायकेवालों के साथ रहना ज्यादा बेहतर लगा.... लेकिन कुछ समय बाद मेरे भाई के परिवार में भी वही कहानी शुरू हो गयी जो मेरे घर में थी, सब अलग-अलग हो गए तो मेंने ऋतु के साथ अकेले रहना शुरू कर दिया... तब ऋतु 4-5 साल कि थी। मेरे अकेले रहने की बात मेरे बड़े देवर बलराज सिंह को पता चली जिनकी शादी नहीं हुई थी... क्योंकि वो किसी काम में भी उतने तेज नहीं थे ... ना नौकरी में, न व्यवसाय में और ना ही उतने आकर्षक थे... इसलिए उनके लिए अनेवाले रिश्ते उनके छोटे भाई देवराज के लिए ज़ोर देने लगे... देवराज कि भी उम्र बढ़ रही थी और आर्थिक हालात हमारे परिवार के दिनोंदिन बिगड़ते जा रहे थे उसे देखते हुये आखिरकार देवराज कि शादी कर ली गयी... जिससे उनकी शादी होने कि संभावनाएँ ही खत्म हो गईं। बलराज को जब पता चला कि में ऋतु को लेकर अकेली रह रही हूँ तो वो आकर मेरे पास रहने लगे, मेरे पास पति कि दुरघाना कि क्षतिपूर्ति में मिला काफी पैसा था तो आर्थिक रूप से कोई परेशानी नहीं थी... लेकिन उनके साथ रहने से मेरे भाई-भतीजों को परेशानी होने लगी... उन्हें लाग्ने लगा कि मेरे पास जो पैसा है वो में कहीं अपने परिवार वालों को न दे दूँ और वो लोग हाथ मलते रह जाएँ, जिस उम्मीद में मुझे नोएडा लेकर आए थे। जब हालात काबू से बाहर होने लगे तो मेंने और बलराज ने फैसला किया कि कहीं ऐसी जगह चलकर रहते हैं जहां मेरे मायके का कोई कभी पहुँच ना सके। फिर हम नोएडा से दिल्ली आ गए और रहने लगे... लेकिन जिस मकान में रहते थे उसके मकान मालिक और आसपड़ोस के लोग मेरे और बलराज के रिश्ते को लेकर बातें करने लगे तो हमने ये फैसला किया कि अब हम फिर से किसी नयी जगह रहते हैं और वहाँ खुद को देवर भाभी नहीं पति-पत्नी बताएँगे और वैसे ही रहेंगे भी.... सिर्फ एक ही शर्त होगी कि अपने कमरे के अंदर हम देवर भाभी ही रहेंगे... कोई शारीरिक या भावनात्मक रिश्ता पति-पत्नी वाला नहीं होगा हमारे बीच कभी भी। और वो रिश्ता आजतक वैसा ही चला आ रहा है....  हम दोनों ने बाहर वालों को तो छोड़ो आजतक ऋतु को भी महसूस नहीं होने दिया कि वो ऋतु के पिता नहीं या ऋतु उनकी बेटी नहीं है....

अब बात करते हैं विक्रम के साथ मेरे यहाँ आने की... तो विक्रम के और मेरे संबंध बहुत अच्छे नहीं रहे तो खराब भी नहीं रहे। पारिवारिक मामलों में रवि के बाद अपने ऊपर ज़िम्मेदारी आने पर विक्रम मुझसे सलाह लेने लगा, बलराज तो पहले ही ना तो इन मामलों को ज्यादा जानते थे और ना दखल देते थे। में विक्रम के साथ यहाँ शांति से मिलने आती थी... और इनके पास रुकती भी थी... ये रिश्ते में बेशक मुझसे बड़ी, मेरी जेठानी हैं लेकिन उम्र में मेरे बराबर ही हैं और बेटी को लेकर यहाँ अकेली रहती थीं तो कभी कभी में पूरा दिन यहाँ आकर इनके पास रुकती थी... रात को रुकने के लिए बहुत बार इनहोने भी कहा और मेरा भी मन हुआ, लेकिन में इसलिए नहीं रुकती थी कि तुम्हें क्या बताऊँगी कि में किसके पास गयी और उनका रिश्ता क्या है....

अब बात करें बाकी परिवार की.... तो पहले तुम्हारे बड़े ताऊजी जयराज भाई साहब के परिवार से शुरू करते हैं.... जयराज भाई साहब 5 भाई और 2 बहनों में सबसे बड़े थे... वो इंडियन नेवी में थे .... ऑफिसर रैंक में.... उनकी पहली पत्नी से उनका तलाक हो गया था... किस वजह से हुआ, मुझे आजतक पता नहीं ... उनके बच्चों के बारे में जो मुझे पता चला बहुत साल बाद कि उनकी पहली पत्नी से एक बेटा है ....वो अपने बेटे के साथ अपने मायके में रहने लगीं... उनके कोई भाई-बहन भी नहीं थे इसलिए अपने पिता कि जायदाद की वो अकेली वारिस थीं

तलाक के बाद जयराज भाई साहब ने अपनी नौकरी भी छोड़ दी और दूसरी शादी कर ली ... वसुंधरा दीदी से .... उनके 3 बच्चे हैं ... बड़ा बेटा रवि जो मुझसे 3 साल छोटा है जिसे राणा रविन्द्र प्रताप सिंह के नाम से जाना जाता है... उससे छोटी बेटी है रुक्मिणी सिंह जिसकी शादी हो चुकी है और अपने घर है उससे छोटा एक और बेटा है धीरु उर्फ धीरेंद्र प्रताप सिंह इसकी 2 शादियाँ हुई हैं पहले एक लड़की से प्रेम विवाह किया... फिर कुछ समय बाद दोनों अलग हो गए पहली पत्नी से एक बेटी है जो अपनी माँ के साथ ननिहाल में रहती है...फिर दूसरी शादी हुई और उसे तुम जान सकती हो.... हमारे परिवार का ही सुरेश जो विक्रम के साथ पढ़ता था.... उसकी पत्नी पूनम की छोटी बहन स्वाति से दूसरी शादी हुई धीरेंद्र की, स्वाति के अभी कोई बच्चा नहीं है”

“पूनम की बहन.... यानि पूनम भी उन लोगों के बारे में जानती है... फिर उसने हमें क्यों नहीं बताया?” रागिनी ने पूंछा

“वो इसलिए कि अब उनमें से कोई भी किसी से संपर्क नहीं रखना चाहता न कोई किसी के संपर्क में रहा ....अब” मोहिनी ने जवाब दिया 

“अच्छा अब आगे बताइये” रागिनी ने उत्सुकता से कहा 

“रवि का तो मेंने बताया ही नहीं.... रवि की भी शादी हो गयी थी... रवि की पत्नी सुशीला बहुत मिलनसार, समझदार और सुंदर है.... मेरी हमउम्र है तो बहू से ज्यादा सहेली हुआ करती थी मेरी, रवि के 2 बच्चे हैं .... बेटा भानु और बेटी वैदेही। भानु तो लगभग अनुभूति की उम्र का होगा.... और बेटी शायद 3 साल छोटी है

अब बात करते हैं विजयराज भाई साहब की, उनका अंदाज हमेशा से ही निराला रहा है... वो पिछले 50 साल से घर से अलग रहे हैं हमेशा.... जब उनकी बेटी यानि तुम पैदा हुईं थीं तभी वो परिवार से अलग हो गए...कभी-कभी आते जाते रहे थे... लेकिन किसी को नहीं पता की कब क्या करते थे.... परिवार में कोई उनके बारे में कुछ नहीं बता सकता ....... 

लगभग 35 वर्ष पहले कामिनी दीदी की मौत हो गयी... उस समय तो हैजा होने से मौत बताई थी लेकिन बाद में वसुंधरा दीदी ने बताया था कि उन्होने जहर खाकर एटीएम हत्या कर ली थी... पति-पत्नी में आपस में किसी विवाद कि वजह से उस समय तुम 15 साल कि थी और विक्रम 8 साल का ….. लेकिन कामिनी दीदी के बाद तो विजयराज भइसहब तो सुधारने कि बजाय और भी आज़ाद हो गए... यहाँ तक कि कभी कभी तो महीनों तक घर में किसी को ये भी पता नहीं होता था की वो कहाँ रहते हैं और तुम लोग कहाँ पर हो....जयराज भाई साहब ने कहा कि बच्चे उनके साथ रहेंगे.... लेकिन विजयराज भाई साहब तैयार नहीं हुये... फिर विक्रम एक दिन घर से भाग गया.... पता नहीं कहाँ............. बहुत साल तक पता ही नहीं चला....बाद में विक्रम बहुत साल बाद पता लगाता हुआ रवि के पास पहुंचा... और वहीं से सबके संपर्क में आया.... लेकिन वो भी विजयराज भाई साहब कि तरह ही घर में कभी नहीं रहा... किसी के भी पास... बस जब कभी आता रहता था सबसे मिलने.... बाकी,…. कहाँ रहता है और क्या करता है... कोई नहीं जानता............ उधर उसी समय विक्रम के गायब होने के बाद ही विजयराज भाई साहब तुम्हें लेकर विमला दीदी के यहाँ रहने चले गए.... और फिर विमला दीदी के पति के एक मामले में जेल चले जाने के बाद विमला दीदी और विजयराज भाई साहब भी पता नहीं कहाँ गायब हो गए.... बहुत सालों तक कुछ पता नहीं चला.... जब विक्रम ने मुझे ये सारा मामला जिसमें तुम्हारी याददास्त चली गयी थी, बताया तब मुझे पता चला....

मेंने अपने और बलराज के बारे में तो तुम्हें बता ही दिया है............. देवराज की शादी हुई थी.... उस समय सारा परिवार नोएडा में रहता था और देवराज दिल्ली में.... शादी के बाद देवराज कि पत्नी स्नेहलता भी कभी परिवार के साथ नहीं रही...... हमेशा देवराज के साथ ही रही... हाँ! स्नेहलता को रवि से बहुत लगाव था और रवि को भी.... तुम, रवि, विक्रम, में और स्नेहलता लगभग एक ही उम्र के थे 2-3-4-5 साल का अंतर था आपस में.... लेकिन तुम और विक्रम कभी परिवार के साथ नहीं रहे ........... लेकिन रवि हम दोनों के साथ हमेशा रहा.... हमारी शादी के बाद इस घर में पहले दिन से......... इसलिए हमें उससे बहुत लगाव रहा। 

हालांकि देवराज को परिवार में सभी से लगाव था... सबकी इज्जत करता था.... लेकिन सबसे अलग भी रहना पसंद था उसे.... परिवार के किसी भी सदस्य से कोई मतलब नहीं रखता था कि कौन क्या कर रहा है.... देवराज के 2 बच्चे हैं... 1 बेटा सहदेव अभी लगभग 26-27 साल का होगा ..... ऋतु से 2 साल बड़ा है... पिछली साल शादी हो गयी है उसकी... लेकिन परिवार में से कोई शामिल नहीं हुआ.... बेटी कामना 22-23 साल की है.... अभी पढ़ रही है.............. लेकिन घर में किसी को भी उनका पता-ठिकाना मालूम नहीं... ना वो आते-जाते और ना ही किसी से कोई संपर्क रखते” कहकर मोहिनी ने एक गहरी सांस ली जैसे मन से एक बहुत बड़ा बोझ उतार गया हो

“तो पापा, असल में मेरे चाचा हैं.... मेरे पापा तो इस दुनिया में रहे ही नहीं” ऋतु ने दर्द भरी आवाज में कहा

“मानो तो सब हैं......... ना मानो तो कोई भी नहीं.... तुम्हें मालूम है.... जब तुम्हारे बाबा (दादाजी) खत्म हुये थे.... तब विजयराज भाई साहब के अलावा 3 तीनों भाई और दोनों बहनें छोटे-छोटे थे.......... जयराज भाई साहब ने अपने बीवी बच्चों से ज्यादा इन सबके लिए किया.... पढ़ाया-लिखाया, काम-धंधे से लगाया और शादियाँ भी कीं ... सबकी... गजराज, बलराज, देवराज, कमला, विमला ... सबकी शादियाँ ... जयराज भाई साहब ने कीं ............. और जब उनकी मृत्यु हुई तो उनके किसी भी बच्चे कि शादी नहीं हुई थी......... और .... जिन भाई बहनों की शादियाँ उन्होने कीं... उनमें से कोई भाई बहन उनके बच्चों की शादी कराने के लिए आगे नहीं आया .... यहाँ तक कि शादी में कुछ खर्च करना तो दूर.... शामिल तक होने से भी बचने कि कोशिश कि गयी........ सिर्फ इसलिए कि जयराज भैया कि मृत्यु कैंसर से हुई थी और उनके इलाज में उनका न सिर्फ सबकुछ खर्च हो गया बल्कि उनका व्यवसाय भी खत्म हो गया और कर्ज-देनदारी भी हो गयी.........” मोहिनी ने बड़े दर्द भरे स्वर में कहा

“माँ! ऐसा था तो आप तो उनके लिए कुछ कर सकती थीं” ऋतु ने कहा

“उस समय तुम्हारे पापा जिंदा थे, उन्होने और कुछ तो नहीं किया... लेकिन हाँ... हम शादियों में मौजूद जरूर रहे..... में उस समय किसी मामले में दखल नहीं देती थी” मोहिनी ने कहा

“कोई बात नहीं चाचीजी.......... वक़्त-वक़्त की बात है...... कल उनके साथ कोई नहीं था... आज उनके साथ की वजह से ही सब हैं... लेकिन मुझे ये नहीं समझ आया कि वो आखिर हैं तो कहाँ हैं............ और उन्होने सबकुछ अपने हाथ में आने के बाद..... विक्रम भैया को क्यों सौंप दिया.... आखिर क्या वजह थी?” रागिनी ने कहा

“इस बारे में मुझे पता नहीं.... आखिरी बार में उन सबसे गाँव में मिली थी... रवि परिवार सहित गाँव में ही रहने लगा था तो में वहाँ जब कभी आती जाती रहती थी.... लेकिन धीरे-धीरे वो भी बंद हो गाय...और फिर कुछ पता नहीं.... क्या हुआ.... बस एक दिन विक्रम ने आकर बताया कि रवि ने सबकुछ उसके हाथ में सौंप दिया है” मोहिनी ने कहा....

“ठीक है चाचीजी.... अब इसमें आपका या बलराज चाचा का तो कोई दोष नहीं है.........इसलिए आप लोग ऐसे मुंह मत छुपाओ.... अब आराम से खाने कि तैयारी करते हैं... छाछजी को भी फोन करके बुला लो... यहीं खाना खाना होगा उन्हें भी हमारे साथ” रागिनी ने मोहिनी से बोला....

और वो सभी शाम के खाने और घर के कामों में व्यस्त हो गए..........

उसी दौरान ऋतु के मोबाइल पर किसी का कॉल आया, ऋतु ने बात करने के बाद उन सबको बताया कि उसे अभी चंडीगढ़ जाना है.... जरूरी काम है.... किसी से मिलना है..............मोहिनी और रागिनी ने जब पूंछा कि क्या काम है तो ऋतु ने कोई स्पष्ट जवाब नहीं दिया..........लेकिन मोहिनी और रागिनी ने उसे ज़ोर देकर सुबह जाने के लिए बोला.... ऋतु को आखिरकार मानना ही पड़ा.... लेकिन वो एक मिनट भी चैन से नहीं बैठी.... पता नहीं क्या था उसके दिमाग में.......

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#67
अध्याय 27


“क्या बात है ऋतु.... तुम सोई नहीं अब तक” मोहिनी को रात में टॉइलेट जाना था तो उन्होने देखा की ऋतु के कमरे में हल्की सी रोशनी थी... पास जाकर देखा तो ऋतु बेड पर लेटकर मोबाइल में कुछ पढ़ रही थी

“माँ! क्या अप किसी रणविजय सिंह को जानती हैं?” ऋतु ने उसकी बात का जवाब देने की बजाय उल्टा सवाल किया

“नहीं मेरी जानकारी में तो कोई नहीं है, क्या बात है...पूरी बात बताओ” मोहिनी ने पूंछा और उसके बराबर में लेटकर उसके बालों में हाथ फिराने लगी

“माँ रवि भैया की कंपनी जो पूरी फॅमिली को लेकर बनाई है उन्होने.... उसके एमडी पहले विक्रमादित्य भैया थे.... लेकिन उनकी मृत्यु के बाद उनकी जगह चंडीगढ़ से कोई रणविजय सिंह हैं उन्हें एमडी बनाया जा रहा है...और उनके बेटे समर प्रताप सिंह को कंपनी में डाइरेक्टर बनाया जा रहा है। पता नहीं मुझे ऐसा क्यूँ लग रहा है की ये रणविजय सिंह हमारे परिवार के ही कोई सदस्य हैं। में वहीं जा रही हूँ कंपनी की बोर्ड मीटिंग में, क्योंकि मुझे अभी उस रिलेशनशिप मैनेजर का कॉल आया था जिससे आज मिलकर आयी थी कंपनी का रीटेल स्टोर यहाँ शुरू करने के लिए... और अपना फोन नंबर देकर आयी थी” ऋतु ने बताया

“लेकिन अगर बोर्ड मीटिंग है तो वो रिलेशनशिप मैनेजर तुम्हें क्यों बता रहा है कंपनी की बोर्ड मीटिंग के बारे में...तुम तो उनके फ्रैंचाइज़ हुये ना” मोहिनी ने कहा

“माँ वो लड़की है.... और वो मुझे इसलिए बता रही है.....” कहती हुयी ऋतु चुप हो गयी और मुस्कुराने लगी

“क्या हुआ...ऐसे हंस क्यों रही हो.... क्या बात है” मोहिनी ने उलझन भरे स्वर में कहा

“क्योंकि में भी उस कंपनी में डाइरेक्टर एपाइंट की जा रही हूँ, रागिनी दीदी के साथ.... और वो चाहती है की में डाइरेक्टर बन जाने के बाद उसको कुछ फाइदा दूँ.... जान पहचान का.......... हालांकि कंपनी ने मुझे कोई सूचना नहीं दी है.... लेकिन उसे लगता है की कंपनी ने मुझे भी बुलाया होगा............ अब आप लोगों ने मुझे रोक लिया तो मुझे सुबह जल्दी निकालना होगा... क्योंकि में उन लोगों से मिलना चाहती हूँ.... की आखिर वो हैं कौन?” ऋतु ने बताया

“तो फिर तब ये बात तुमने क्यों नहीं बताई? तुम बता देती तो शायद हम रोकते भी नहीं और शायद साथ ही चलते...तुम्हारे पापा को भी बुला लेती” मोहिनी ने कहा

“इसीलिए.... इसीलिए तो नहीं बताया... पहले में खुद उनसे मिलकर सबकुछ समझ लेना चाहती थी.... ये नहीं की कोई भी कैसी भी खबर मिले और हम सब भागकर चल दें....... अगर कंपनी हमें बुलाना चाहती तो हमारे पास कंपनी से आधिकारिक सूचना आयी होती.... जो अभी तक ना तो मेरे पास आयी है और ना रागिनी दीदी के पास.... तो पहले इस मामले की तह तक जाकर समझना जरूरी लगा मुझे....उसके बाद ही आप लोगों को बताती” ऋतु ने अपना पक्ष रखा

“हाँ! ये भी सही कह रही हो तुम। ठीक है में भी ये बात अपने तक ही रखती हूँ.... तुम पहले पता करो...फिर देखते हैं” मोहिनी ने कहा

“अच्छा एक बता तो में पूंछना ही भूल गयी... आपने पापा को बुलाया था शाम खाने के लिए... लेकिन वो आए नहीं... क्या कहा उन्होने...” ऋतु को अचानक ध्यान आया...तो उसने पूंछा

“उनको कहीं जाना था.... इसलिए रात को ही निकल गए... कल वापस आएंगे...तब तक तुम भी वापस आ जाओगी” मोहिनी ने बताया

“ठीक है माँ.... अब अप भी सो जाओ.... मुझे भी सुबह जल्दी उठकर चंडीगढ़ जाना है” ऋतु ने कहा तो मोहिनी भी उठकर अपने कमरे में चली गयी... आज मोहिनी ऋतु और रागिनी नीचे सो रही थी और शांति ऊपर बच्चों के साथ थी...

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सुबह उठकर ऋतु जल्दी से तैयार हुई और मोहिनी उसे कश्मीरी गेट बस अड्डे से चंडीगढ़ की बस में बैठा आयी...इधर रविवार होने की वजह से बच्चों के भी स्कूल कॉलेज की भी छुट्टी थी इसलिए वो भी सोकर नहीं उठा। रागिनी ने वापस आकर जब गाड़ी खड़ी की तो गाड़ी की आवाज सुनकर अनुपमा अपने घर से निकलकर बाहर आयी

“बुआ नमस्ते.... सुबह सुबह कहाँ घूमने गईं थीं?” अनुपमा ने रागिनी से मुसकुराते हुये कहा 

“नमस्ते बेटा.... कहीं नहीं बस तुम्हारी छोटी बुआ को छोडने गयी थी... बस अड्डे पर” रागिनी ने कहा

“छोटी बुआ? मतलब लाली....??? क्यों उसको कहाँ जाना था?” अनुपमा ने उलझे से स्वर में कहा

“अच्छा तो अब अनुभूति अब तुम्हारे लिए भी लाली से छोटी बुआ हो गयी.... अरे... उतनी छोटी बुआ नहीं.... ऋतु को छोडने गयी थी” रागिनी ने मुसकुराते हुये कहा

“हा हा हा हा .... उतनी छोटी नहीं तो कुछ कम छोटी.... और अब जब लाली राधा की बुआ है तो मेरी भी हुई वैसे राधा कहाँ है...?” अनुपमा ने हँसते हुया कहा

“जब में गयी थी तब तक तो सब सो ही रहे थे.... आज रविवार है तो शायद अभी तक उठे भी ना हो....” कहते हुये रागिनी गेट से अंदर की ओर चल दी

अनुपमा भी रागिनी के पीछे-पीछे अंदर आयी और गेट से अंदर घुसकर सीधे सीढ़ियों से ऊपर दूसरी मंजिल पर पहुँच गयी ..... थोड़ी देर बाद

“माँ! माँ! देखो अनुपमा ने सारा बिस्तर भिगा दिया” प्रबल की आवाज पूरे घर में गूंज गयी तो अनुराधा और अनुभूति सोते से उठकर कमरे से बाहर को निकली तो देखा कि प्रबल सिर से पाँव तक पूरा भीगा हुया है और कमरे के दरवाजे पर खड़े बाहर को भागती अनुपमा का हाथ पकड़कर खींच रहा है... इन दोनों को सामने देखते ही अनुपमा ने अपने सरीर को ढीला छोड़ दिया और प्रबल के खींचने कि वजह से झटके से जाकर उसके सीने से लग गयी....

“प्रबल छोड़ इसे” अनुराधा ने कहा तो अनुपमा ने उसकी आँखों में आँखें डालकर उसको आँख मर दी और जानबूझकर प्रबल से और ज्यादा चिपककर उसकी गर्दन में बाहें दल दीं

“ये क्या कर रही है तू?” अनुराधा ने अनुपमा कि हरकत देखकर गुस्से से कहा

“में क्या कर रही हूँ... इसने मुझे पकड़ा हुआ है...और तू मुझसे ही कह रही है” अनुपमा ने प्रबल से और ज्यादा चिपकते हुये कहा 

“छोड़ उसे... अब तू क्यों उसे पकड़े खड़ी है” अनुराधा ने कहा 

“ओह हो ... मेंने उसे पकड़ा है या उसने मुझे पकड़ा है.... बड़ी आयी भाई की वकालत करने वाली... लाली तू बता किसने किसको पकड़ा...” अनुपमा ने भड़कते हुये कहा तो इनकी बहस बढ़ते देखकर प्रबल ने अनुपमा का हाथ छोडकर उसकी बाहें भी अपने गले से निकाल दीं लेकिन अनुपमा तो अनुपमा ठहरी प्रबल के हाथों से छुटते ही वो प्रबल के ऊपर गिरि और उसे लेती हुई फर्श पर। 

“बुआ देखो प्रबल ने मुझे गिरा दिया” गिरते ही अनुपमा तुरंत ज़ोर से चिल्लाई जबकि प्रबल बेचारा नीचे दबा हुआ था और वो खुद उसके ऊपर थी

“अरे रे क्या हुआ बेटा” रागिनी इस धमाचौकड़ी को सुनकर पहले ही ऊपर आ गयी थी सो वो तुरंत भागती हुई उन दोनों के पास पहुंची और अनुपमा को हाथ पकड़कर उठाया... अनुपमा भी लड़खड़ाती सी उठी और रागिनी के कंधे के सहारे खड़ी हो गयी

“बुआ मेरे शायद चोट लग गयी है...प्रबल को भी हो सकता है लगी हो...” अनुपमा ने बिचारी बनते हुये अपनी जगह से उठकर खड़े होते प्रबल को देखा

“चल में देखती हूँ, कोई बाम लगा देती हूँ... और दर्द की दवा ले ले” रागिनी ने उससे कहा... इधर अनुराधा और अनुभूति दोनों अनुपमा को घूर-घूर कर देखे जा रही थी

“नहीं बुआ पता नहीं ...कभी बाद में फिर ज्यादा परेशानी हो.... इसलिए में और प्रबल दोनों ही डॉक्टर को दिखा आते हैं... सामने मेन मार्केट में ही” अनुपमा ने कहा तो रागिनी ने प्रबल को अनुपमा के साथ जाने का इशारा किया

“नहीं माँ! मुझे कुछ नहीं हुआ। में बिलकुल ठीक हूँ” प्रबल ने जल्दी से कहा

“तू ठीक होगा .... इसको तो दिखा के ले आ...और अपना भी दिखा लेना, बेचारी को चोट लग गयी” रागिनी ने प्रबल को आँखें दिखते हुये कहा तो मजबूरी में प्रबल को साथ जाना ही पड़ा... जाते-जाते अनुराधा ने रागिनी की नजर बचाकर प्रबल की ओर इशारा करते हुये अनुराधा को आँख मारी जिसे अनुभूति ने भी देख लिया...उन दोनों के जाते ही 

“बेचारी को सुबह-सुबह ही चोट लग गयी... ये प्रबल भी सोच-समझकर नहीं करता कुछ भी... लड़कियों के साथ कहीं ऐसे लड़कों की तरह खींच-तान की जाती है.....” रागिनी ने कहा

“माँ! उसे कहीं चोट नहीं लगी...आप तो वैसे ही बहकावे में आ जाती हो” अनुराधा ने रागिनी की बात कटते हुये गुस्से से कहा तो रागिनी की हंसी छूट गयी

“पगली में कोई पुराने जमाने की ललिता पँवार नहीं हूँ... में भी तुम लोगों की तरह थी...में सब समझती हूँ... तेरा भाई अब जवान हो रहा है... माँ-बहन के अलावा भी किसी और लड़की से कैसे बात करनी है... ये में या तुम नहीं सीखा सकते... अनुपमा सिखा देगी...उसे दिल्ली के तौर तरीके भी... वो तेरे भाई को बहका नहीं रही.... बस तू चिढ़ती है इसलिए वो चिढ़ाती है.... वो कहीं बाहर की नहीं... अपने ही घर की लड़की है” रागिनी ने कहा तो अनुराधा और अनुभूति के चहरे पर भी मुस्कुराहट आ गयी

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इधर सुबह जब रागिनी ऋतु को बस में बैठाकर वहाँ से वापस लौट गयी तो उसके जाते ही ऋतु ने किसी को कॉल मिलाया 

“हाँ! कहाँ पर हो”

दूसरी ओर से कुछ जवाब दिया गया

“ठीक है वहीं मिलना .... अभी 15-20 मिनट में पहुँच रही है मेरी बस.... बस का नंबर xxxxx है” कहते हुये ऋतु ने फोन काट दिया

बस अड्डे से निकालकर बस जब जीटी करनाल रोड पर मुकरबा चऔक पहुंची तो वहाँ चंडीगढ़ की ओर जाने वाली काफी बसें और सवारियाँ खड़े हुये थे... ये बस भी वहीं खड़ी हो गयी... कुछ सवारियाँ बस में चढ़ीं .... ऋतु खिड़की से बाहर देख रही थी जैसे किसी को तलाश कर रही हो... तभी उसके बराबर में कोई आकर खड़ा हुआ

“ऋतु मेम! में आ गया” ये पवन था... ऋतु ने उसी को फोन किया था.... असल में रात को ऋतु को पवन का फोन आया था की उसे रीटेल स्वराज की उस रिलेशनशिप मैनेजर काव्या रघुवंशी ने फोन करके वही सबकुछ बताया था जो की वो ऋतु को बता चुकी थी.... उसकी बात सुनकर पवन भी चौंक गया था तो उसने ऋतु को फोन लगाया... इस पर ऋतु ने उससे कहा की सुबह वो भी उसके साथ चंडीगढ़ चले... अकेले जाने से ऋतु को बेहतर लगा की वो पवन को भी साथ लेकर जाए

“आओ बैठो कहते हुये ऋतु ने खुद को खिड़की की ओर सरकाते हुये पवन को अपने बराबर में बैठने को कहा तो पवन उसके बराबर वाली सीट पर बैठ गया

“ये बताओ उस लड़की ने तुम्हें क्यों कॉल किया और तुम्हारा नंबर उसके पास कहाँ से आया.... वहाँ तो में सिर्फ अपना नंबर देकर आयी थी” ऋतु ने उत्सुकता से पूंछा

“मेम! जब आप फॉर्म भरकर वहाँ की प्रक्रिया पूरी कर रही थीं तब में उनके साथ बैठा हुआ था... तभी उन्होने मुझसे आपके बारे में पूंछा तो मेंने उन्हें बताया... उसी समय उन्होने मेरे बारे में भी जानकारी ली और मेरा मोबाइल नंबर भी लिया था” पवन ने झिझकते हुये कहा

“तो शर्मा क्यों रहे हो.... तुम्हें तो खुश होना चाहिए की एक लड़की ने तुम्हारा नंबर मांगा.... वरना लड़के ही लड़कियों से उनका नंबर मांगते हैं” ऋतु ने छेड़ते हुये कहा तो पवन और भी शर्मा गया

“मेम आप भी ऐसी बात करती हैं.... वो तो उन्होने इसलिए मेरा नंबर लिया था क्योंकि में आपका असिस्टेंट हूँ....” पवन बोला

इसी तरह बात करते वो दोपहर को जीरकपुर बाइपास ... मोतिया बस स्टैंड पर उतर गए लेकिन तभी ऋतु को ख्याल आया कि उन्होने जल्दबाज़ी में जाने का कार्यक्रम तो बना लिया है लेकिन मीटिंग कहाँ पर हो रही है... ये तो पता ही नहीं... ऋतु ने सोचा कि अब किस से पता किया तो पवन ने कहा कि काव्य से पता किया जा सकता है लेकिन ऋतु ने कहा कि अगर वो स्वयं फोन करेगी तो काव्य को भी अजीब लगेगा कि कंपनी में डाइरेक्टर नियुक्त होने वाले को मीटिंग का ही पता नहीं....

इस पर पवन ने कहा कि वो काव्य को फोन करके एड्रैस ले लेगा और उसे ये भी पता नहीं चलने देगा कि ऋतु उसके साथ है या ऋतु को कोई सूचना नहीं मिली... इस पर ऋतु ने कहा अगर ऐसा हो सकता है तो ठीक है। ऋतु कि सहमति मिलते ही पवन ने काव्या को फोन लगनेके लिए ऋतु से थोड़ा दूर जाना चाहा

“क्या हुआ यहीं से कर लो ना .... वहाँ दूर क्यों जा रहे हो मुझसे?” ऋतु ने कहा 

“मेम! व...व...वो ऐसी कोई बात नहीं... लेकिन में सोच रहा था” पवन ने हकलाते हुये कहा

“क्या सोच रहे थे.... कोई ऐसी बात करनी है जिसका मुझे पता ना चले?” ऋतु ने उसे घूरते हुये कहा

“जी नहीं मेम! असल में कभी कोई बात ऐसे भी कह सकती है काव्या जो आपको अच्छी ना लगे.... आपको तो पता है... वो भी आपकी एम्प्लोयी है और में भी आपका जूनियर हूँ... तो एम्प्लोयी और एम्प्लोयर का रिश्ता सास-बहू जैसा होता है.... जैसे 2 बहुएँ जब अकेले में बात करती हैं तो सास की बुराई  जरूर करती हैं.... ऐसा ही हमारे बीच भी बात होंगी तो आपकी बुराई भी कर सकती है वो... और मुझे भी उसकी हाँ में हाँ मिलनी पड़ेगी, शायद कुछ बुराई भी करनी पड़े” पवन ने शर्मीली सी मुस्कान के साथ ऋतु कि ओर देखते हुये कहा

“हा हा हा हा .... चलो मुझे भी शादी किए बिना ही सास बनने की फीलिंग मिल जाएगी.... यहीं बात कर लो... में कुछ नहीं कहूँगी और ना नाराज हौंगी... लेकिन स्पीकर ऑन कर लेना” ऋतु ने हँसते हुये कहा

“ठीक है मेम जैसी आपकी मर्जी... बाद में मुझे दोष मत देना” कहते हुये पवन ने काव्या को कॉल मिलाया और स्पीकर ऑन कर दिया

“हाइ पवन! रात तो 1 घंटे बात हुई ही थी... सुबह होते ही फिर बात करने का मन करने लगा क्या?” काव्या ने फोन उठाते ही कहा तो ऋतु ने घूरकर पवन को देखा, पवन झेंप गया

“हाइ काव्या! वो एक्चुअल्ली में चंडीगढ़ आया था... ऋतु मेम यहाँ आयी हुई हैं तो उनका कोई पेपर देने, लेकिन उनका फोन नहीं लग रहा अब मुझे ये भी नहीं पता कि मीटिंग कहाँ हो रही है जो उनके पास पहुँच सकूँ... तो मेंने सोचा कि तुमसे ही पता कर लूँ” पवन ने काव्या से कहा

“ये तो मुझे भी देखना होगा... यहाँ मेल आयी हुई है इस मीटिंग कि तो उसमें से एड्रैस देखकर बताती हूँ... तुम होल्ड रखो” कहते हुये काव्या ने फोन पर बात करना छोडकर अपनी ईमेल चेक करने लगी

“हाँ! ये एड्रैस नोट करो इस होटल में मीटिंग है और वहाँ कांटैक्ट पर्सन भानु प्रताप सिंह जी हैं... वो भी डाइरेक्टर हैं कंपनी में उन्हें कॉल कर लो... वो गाड़ी भेजकर तुम्हें बुला लेंगे उनका कांटैक्ट नंबर xxxxxxxxx है”

“ठीक है.... और थैंक्स” पवन ने कहा

“यार थैंक्स क्या हम तुम ही एक दूसरे के काम आएंगे... ये बॉस तो हम लोगों को बंधुआ मजदूर समझते हैं.... बताओ तुम्हें वहाँ चंडीगढ़ बुला लिया अपने पर्सनल काम से और अब मेडम फोन भी नहीं उठा रहीं... तुम्हें परेशान करने को बुलाया होगा... वरना जरूरी कम होता तो खुद फोन करके पूंछती और गाड़ी भेजकर बुला लेती” काव्या ने उधर से पवन के लिए अपनी सहानुभूति और ऋतु के लिए गुस्सा जाहिर किया

“अब क्या कहूँ काव्या जी! मजबूरी का फाइदा उठाता है हर कोई” पवन ने भी बेचारगी दिखते हुये कहा

“यार पवन तुम मुझे आप और जी मत बोला करो....  और हाँ याद रखना यहाँ मेंने तुम्हारा साथ दिया है... बदले में तुम्हें भी मेरा साथ देना होगा” काव्या ने बड़े अंदाज से कहा

“जी!... मतलब हाँ काव्या ... बताओ क्या करना होगा मुझे” पवन ने ऋतु की ओर देखते हुये कहा

“वहाँ से वापस आकर एक कॉफी मेरे साथ...बोलो मंजूर” काव्या ने शरारती अंदाज में बोला तो ऋतु कोअपनी हंसी दबाना मुश्किल हो गया

“ठीक है... वापस आकर कॉल करता हूँ... बाय” कहते हुये पवन ने फोन काटकर एक गहरी सांस ली

“लो तुम्हारा तो हो गया इंतजाम…. बिना चक्कर चलाये ही गर्लफ्रेंड मिल गयी.... अब चलें” ऋतु ने कहा

“सही है मेम! एक तो आपका काम करा दिया और असपे आप मेरा ही मज़ाक उड़ा रही हो.... चलिये चलते हैं.... या वैसे काव्या ने जो नंबर दिया था भानु प्रताप सिंह का... उनसे बात कर लें?” पवन बोला

“नहीं हम उसी एड्रैस पर चलते हैं सीधे... फिर देखते हैं” ऋतु ने कहा

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#68
अध्याय 28


दोनों वहाँ से बलटाणा के पास उस होटल में पहुंचे जहां राणाआरपीसिंह सिंडीकेट की बोर्ड मीटिंग हो रही थी... लेकिन उस मीटिंग में एंट्री पास चाहिए था जो उन दोनों के पास नहीं था। तो ऋतु ने उस मीटिंग के आयोजक से मिलवाने का आग्रह किया... साधारणतः ऐसा नहीं होता की किसी बाहरी व्यक्ति को वो अपने मेहमान से मिलवाने के लिए ज्यादा इच्छुक हों ... लेकिन ऋतु ने उन्हें अपना एडवोकेट होना बताया तो वो थोड़ा दवाब में आए और आयोजक को बुलवाया... ऋतु का विजिटिंग कार्ड लिए हुये एक युवक बाहर आया और उसने रिसिप्शन पर आकार पूंछा कि एडवोकेट ऋतु सिंह कौन हैं... तो ऋतु सोफ़े से उठ खड़ी हुई और उसे बताया तो उस युवक ने ऋतु के पैर छूए और बोला

“बुआ जी! क्षमा चाहता हूँ... आपका मोबाइल नंबर मेरे पास नहीं था और आपके घर सूचना देना चाहता नहीं था.... मेरा नाम भानु प्रताप सिंह है... आपके सबसे बड़े भाई राणा रविन्द्र प्रताप सिंह का बेटा... आइए आप मेरे साथ चलिये” इतना कहकर वो ऋतु को साथ आने का इशारा करके अंदर की ओर पलटा ऋतु अवाक सी उसके पीछे-पीछे चल दी और पवन भी... अंदर जाकर उसने ऋतु और पवन को सामने सोफ़े पर बैठने का इशारा किया... वहाँ दूसरे सोफ़े पर पहले से भी एक व्यक्ति बैठा हुआ था... भानु ने ऋतु के बराबर में बैठते हुये बताया कि आज की मीटिंग में कोई ज्यादा लोग नहीं बुलाये गए हैं.... सिर्फ टॉप मैनेजमेंट के लोग मिलकर फैसला लेंगे और सर्क्युलर भेजकर बाकी शेयरहोल्डर्स  की सहमति ले ली जाएगी... साथ ही वहाँ पहले से बैठे व्यक्ति का परिचय कराया...नाम रणवीर सत्यम और कंपनी के सीईओ हैं..... 

ऋतु ने बैठकर उस हॉल में नज़र घुमाई तो कोई फॉर्मल मीटिंग जैसी व्यवस्था नहीं थी.... हाल में 4 सोफ़े पड़े हुये थे 4 सीटर और उनके सामने 4 सेंटर टेबल्स फिर उसने प्रश्नवाचक रूप से भानु की ओर देखा

“अभी तक कोई नहीं आया... या मीटिंग खत्म हो गयी” 

“जी! अभी तक मीटिंग शुरू भी नहीं हुई है... वैसे आप चंडीगढ़ कब आयीं... आप कंपनी की वैबसाइट से किसी का भी नंबर लेकर कॉल कर देतीं तो आपको वहाँ से ही ले लिया होता...वैसे आप को इकी सूचना कहाँ से मिली” भानु ने वेटर के लाये हुये ड्रिंक्स और स्नैक्स को लेने का इशारा करते हुये कहा

“ये सब छोड़ो...बस आ गयी ना... ये बताओ कि आज मीटिंग में अपने परिवार से कौन-कौन आ रहा है” ऋतु ने व्यग्रता से कहा

“परिवार के ज़्यादातर लोग.... और उनमें से कम से कम 1 को तो आप अच्छी तरह जानती हैं” भानु ने रहस्यमयी तरीके से कहा

“कौन? कहीं पापा तो नहीं.... क्योंकि कल वो भी दिल्ली से बाहर गए थे...” ऋतु ने कहना चाहा तो

“नहीं.... उनमें इतनी हिम्मत नहीं कि वो यहाँ परिवार का सामना कर सकें.... हम लोगों के साथ जैसा उन्होने व्यवहार किया...उसकी ग्लानि ही उन्हें हमसे मिलने से रोक देती है..... बलराज बाबा, मोहिनी अम्मा या रागिनी बुआ के अलावा हैं... जिन्हें आप बहुत अच्छी तरह जानती हैं” भानु ने कहा तो ऋतु ने चोंकते हुये उसे देखा

“अभी 15 मिनट रुकिए.... बस 15 मिनट” भानु ने फिर बताया

“ठीक है! …. अच्छा रवि भैया... वो भी आएंगे मीटिंग में” ऋतु ने उत्सुकता से कहा

“नहीं बुआ जी! पिताजी तो गाँव से ही पहले दिल्ली चले आए यहाँ ये सबकुछ तैयार किया .... और फिर कहीं और चले गए….. वहीं रहते हैं.... यहाँ कभी नहीं आते... बस कभी-कभी कोई जरूरी संदेश आ जाता है” भानु ने दुख भरे स्वर में कहा और उसकी आँखों में आँसू छलक आए ये देखकर ऋतु से रहा नहीं गया तो उसने भानु के बालों पर हाथ फिराते हुये उसकी आँखों में झाँका

“ऋतु जी! में राणा जी का बहुत पुराना मित्र हूँ....... उनके बारे में मेरे अलावा किसी को जानकारी नहीं है.... सिर्फ में ही उनके संपर्क में हूँ.... और मुझे लगता है कि अब उनके इस अज्ञातवास से वापस लौटने का समय आ गया है.... तो कोशिश करूंगा कि उन्हें घर वापसी के लिए मना सकूँ” अब तक चुपचाप बैठकर इस सब को देख रहे रणवीर सत्यम ने अचानक कहा तो ऋतु ने उसकी ओर देखा

“बस आप सबसे एक ही प्रार्थना है.... कि .... जो कुछ जैसा आपके सामने आ रहा है, चल रहा है उसको वैसा ही स्वीकार करें... और सभी सवालों के जवाब के लिए राणा जी के संदेश या उनके स्वयं आप सभी से मिलने का इंतज़ार करें। क्योंकि ज्यादा कुरेदने से इन सब के घाव भी हरे हो जाएंगे.... सिवाय दुख और दर्द के और कुछ भी नहीं मिलेगा किसी को.... बस कुछ दिन का समय दें मुझे” रणवीर ने आगे कहा तो ऋतु ने सहमति में सिर हिलाया

तभी भानु के मोबाइल पर कॉल आया तो वो उस कॉन्फ्रेंस रूम से बाहर चला गया और थोड़ी देर बाद भानु वहाँ एक 18-19 साल की लड़की व एक 40-42 साल की औरत के साथ अंदर आया तो रणवीर सत्यम भी उठकर खड़े हो गए और उस औरत को नमस्ते करने लगे.... लेकिन ऋतु को सबसे ज्यादा आश्चर्य तब हुआ जब पावन उन्हें देखते ही उठकर खड़ा हुआ और हाथ जोड़कर नमस्ते करने लगा... पावन और उनकी नजर आपस में मिली तो दोनों एक दूसरे को देखकर ऐसे मुस्कुराए जैसे पुरानी पहचान हो.... उस लड़की ने भी सबको हाथ जोड़कर नमस्ते किया। वो चलकर सीधे ऋतु के पास आयी और उसे अपने सीने से लगा लिया

“कैसी हो ऋतु... मुझे तो पहचनती भी नहीं होगी... छोटी सी थी जब मेंने देखी थी... और पवन तुम कैसे हो? घर पर सब ठीक तो हैं” उन्होने कहा तो ऋतु को और भी आश्चर्य हुआ।

“बस आपका और भैया का आशीर्वाद है... मम्मी-पापा सब ठीक-ठाक हैं....आपसे मिलने की उम्मीद नहीं थी... में तो यही सोचकर आया था कि शायद यहाँ से आप लोगों के बारे में कुछ पता चलेगा” पवन ने मुसकुराते हुये कहा अब ऋतु पर रुका नहीं गया

“पवन तुम इन्हें जानते हो....? कैसे?” ऋतु ने पवन से पूंछा

“बुआ ये मेरी मम्मी हैं और ये मेरी बहन है वैदेही.... पवन चाचा जी को मेंने बचपन में देखा था... अब तो लगभग 8-9 साल से देखा ही नहीं तो पहचान भी नहीं पाया... लेकिन मम्मी तो जानती ही हैं.... वैसे चाचा जी अपने तो मुझे पापा के नाम से पहचान ही लिया होगा फिर अपने क्यों नहीं बताया?” भानु ने कहा

“बेटा में चाहता था कि कोई ऐसा मिले जो मुझे जानता भी हो तो उनसे बात करता पहले, वरना तो जाने से पहले तुमसे भैया-भाभी के बारे में जरूर पूंछता” पवन ने भानु से कहा

“एक मिनट... अब तुम मुझे ही नजरंदाज करने लगे। मेंने पूंछा कि तुम भाभी को कैसे जानते हो.... और भाभी! ये बताओ में आपको कैसे जानती जब आप कभी मिली ही नहीं मुझे इतने सालों से?” ऋतु ने कहा

“बेटा जब मोहिनी चाची ने ही हमसे मिलना नहीं चाहा तो कैसे मिलती में?” वो औरत यानि भानु की माँ सुशीला ने कहा

“और मेम! मेंने आपको बताया था न.... उन भैया के बारे में... जिनकी वजह से में आज इस कामयाबी को हासिल कर पाया हूँ.... वो राणा भैया हैं......... राणा रविन्द्र प्रताप सिंह......... उस दिन विक्रम भैया की वसीयत में उनका नाम देखने से पहले ही में जानता था कि इस सारे परिवार और इस सारी संपत्ति के मुखिया राणा भैया ही हैं......... इसीलिए उस दिन में आपको रीटेल स्वराज के ऑफिस में लेकर गया था.......... मुझे अभय सर के यहाँ इंटर्नशिप के लिए राणा भैया के कहने पर ही विक्रम भैया ने भेजा था....” पवन ने मुसकुराते हुये कहा

“इसका मतलब ये सब सोची समझी योजना थी.... वो काव्या जिसने मुझे फोन करके बोर्ड मीटिंग के बारे में बताया.....” ऋतु ने गुस्से में पवन से कहा

“नहीं...नहीं... वो तो उसे खासतौर पर इसलिए ही बताया गया ..... क्योंकि तुम अभी कल ही उससे मिली और तुरंत ही तुम्हें डाइरेक्टर बनाया जा रहा....तो वो तुमसे बात जरूर करती..... हाँ... बात अगर पुरानी हो गयी होती तो शायद ऐसा वो भूल भी जाती... इसलिए ये किया” पवन ने मुसकुराते हुये कहा

“चलो भाभी जी... अब सारी बातें खत्म करो और ये रहे सारे बोर्ड प्रस्ताव, मेंने सभी पर साइन कर दिये हैं.... आप इन्हें ले जाओ और जब सबके हस्ताक्षर हो जाएँ तो मुझे दिल्ली भिजवा देना.... और इन दोनों को घर ले जाकर असली सर्प्राइज़ तो दो....” रणवीर ने मुसकुराते हुए सुशीला सिंह से कहा 

“तो तुम भी चलो... फिर हमारे साथ ही दिल्ली निकल जाना” सुशीला ने कहा

“नहीं भाभी जी आप तो जानती हैं...... कल से आया हुआ हूँ... अब जाकर कंपनी और घर दोनों के हालचाल देखता हूँ.... फिर आपको तो दिल्ली आना ही है.... तब आप सबसे और दिल्ली वालों से भी मुलाक़ात करूंगा...फुर्सत से” कहते हुये रणवीर ने सभी कागज भानु को दिये और वहाँ से निकल गया

“चलो बुआ अब घर चलते हैं...” वैदेही ने ऋतु का हाथ पकड़ते हुये कहा

“हाँ चलो” कहते हुये ऋतु ने गुस्से से पवन को घूरकर देखा तो वो फिर से मुस्कुरा गया

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“अब ये बताओ भाभी... आपने ये मीटिंग यहाँ होटल में क्यों रखी....क्योंकि यहाँ और तो कोई आया नहीं.... हमें अप घर ले जा रही हो और वो जो सीईओ रणवीर सत्यम हैं.... उन्हें भी घर चलने को बोला था आपने?” ऋतु ने रास्ते में सुशीला से सवाल किया

“इसकी 2 वजह थीं... पहली तो ये कि में तुम्हें मिलना चाहती थी..... लेकिन घर पर कोई सर्प्राइज़ है तुम्हारे लिए... सीधा वहीं बुला लेती तो तुम उस सर्प्राइज़ में ही खो जाती फिर हम एक दूसरे को इतना जान नहीं पाते... और दूसरा ये होटल हमारे नए मैनिजिंग डाइरेक्टर रणविजय सिंह का है........... तो इसमें कोई तैयारी तो करनी नहीं थी….. वो कॉन्फ्रेंस रूम असल में हमारे टॉप मैनेजमेंट का कैंप ऑफिस है चंडीगढ़ में.... इसीलिए उसमें बिना हमारी अनुमति के होटल का स्टाफ भी नहीं आता” सुशीला ने मुसकुराते हुये कहा

“ऐसा क्या सर्प्राइज़ है…. अब बता भी दीजिये भाभी” ऋतु ने भी मुसकुराते हुये कहा

“ये लो आ गए..... अब खुद ही देख लेना” मोतिया हाइट्स कॉम्प्लेक्स में गाड़ी अंदर मुड़ते ही सुशीला ने कहा

“इसका मतलब बेकार में वहाँ तक दौड़ना पड़ा.... हम यहीं तो उतरे थे बस से... पहले ही बता दिया होता की अप यहीं रहती हैं तो हम तो पैदल ही घर आ जाते” ऋतु ने गुस्से भरी नजरों से पावन को देखते हुये सुशीला से कहा

इस पर सुशीला नौर पावन दोनों एक दूसरे की ओर देखकर हंस दिये

गाड़ी अंदर जाकर आखिरी बिल्डिंग के सामने रुकी और सभी उतरकर भानु के पीछे-पीछे चल दिये। वहाँ लिफ्ट देखकर ऋतु ने लिफ्ट की ओर कदम बढ़ाए तो सुशीला ने सीढ़ियों की तरफ इशारा किया। ऋतु ने एक बार उस 15 मंज़िला बिल्डिंग के ऊपर की ओर देखा और गहरी सांस लेकर उनके पीछे चल दी। पहली मंजिल पर ही सीडियों से ऊपर आते ही भानु ने बैन तरफ के फ्लॅट की घंटी बजाई तो एक ऋतु की उम्र की ही लड़की ने दरवाजा खोला और उन सबको मुस्कुराकर देखने लगी तो सुशीला ने उसे ऋतु की ओर इशारा किया... उसने आगे बढ़कर ऋतु के पैर छूए

“दीदी नमस्ते”

“ये धीरेंद्र की पत्नी है निशा.... तुम्हारी छोटी भाभी.... तभी रसोईघर से एक बहुत सुंदर औरत सलवार उरते में दुपट्टे से अपना पसीना पोंछते हुये निकली

“भाभी जी नमस्ते” पवन ने आगे बढ़कर उस औरत के पैर छूए

“आ गया तू.... अब तुझे फुर्सत कहाँ मिलती होगी” कहते हुये वो औरत आगे आयी और आकार उसने ऋतु के पैर छूए

“ऋतु बेटा तुम तो कभी मिली ही नहीं.... चलो आज सुशीला दीदी की वजह से तुमसे भी मुलाक़ात हो गयी” कहते हुये उसने ऋतु को गले लगा लिया

“मेरी वजह से या तुम्हारी वजह से.... तुमने और पवन ने ही ये सारा खेल रचा है... और में तो किशनगंज जाकर इनसे मिलने वाली थी लेकिन तुमने उल्टे दिल्ली से न सिर्फ इन्हें बल्कि मुझे भी यहाँ बुला लिया.....ऋतु बेटा.... ये तुम्हारी छोटी भाभियों में सबसे बड़ी हैं.... यानि मुझसे छोटी.... नीलम.... रणविजय भैया की पत्नी”

“भाभी जी नमस्ते” ऋतु ने उलझे से स्वर में कहा

“अब चलो अंदर तो आ जाओ....” नीलम ने कहा तो ऋतु ने उलझे से अंदाज में ड्राइंग रूम में नजर घुमई जैसे कहना छह रही हो कि अभी और कितना अंदर जाना है... घर में तो आ ही गए

पवन ने तबतक सामने के कमरे का दरवाजा खोला और उसमें घुस गया नीलम भी उसके पीछे ऋतु का हाथ पकड़े कमरे में घुसी

“भैया........आप?” सामने बैठे व्यक्ति को देखते ही ऋतु के मुंह से निकला

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#69
अध्याय 29


इधर किशनगंज में मोहिनी देवी सुबह से बार-बार फोन मिलाये जा रही थीं लेकिन बलराज सिंह का फोन आउट ऑफ कवरेज आ रहा था... वो बहुत ज्यादा तना:व में आ गईं थीं। रागिनी बहुत देर से उन्हें देखे जा रही थी

“चाची जी! आप भी आ जाओ खाना खा लेते हैं.... बच्चे तो नाश्ता करके अपने स्कूल-कॉलेज चले गए अब हम 3 ही लोग बचे हैं” रागिनी ने कहा

“मेरा मन कुछ ठीक नहीं है.... तुम लोग खा लो” मोहिनी ने अनमने से स्वर में कहा तो रागिनी उसके बराबर में सोफ़े पर बैठ गयी

“क्या बात है.... बलराज चाचा जी से बात नहीं हो पा रही.... कहाँ गए हैं वो” रागिनी ने उनसे पूंछा

“यही तो समझ नहीं आ रहा.... बलराज हमेशा बताकर जाते थे कि कहाँ जा रहे हैं और कब वापस आएंगे.... अबकी बार सिर्फ ये बोले कि किसी जरूरी कम से जाना है और अब सुबह से कोशिश कर रही हूँ बात करने की... लेकिन उनका फोन ही नहीं मिल रहा” मोहिनी ने रुँधे स्वर में कहा

“आप चिंता ना करें में पता लगाने की कोशिश करती हूँ, पहले आप खाना खाइये फिर एक बार घर चलकर देखते हैं....... शायद चाचा जी वहाँ ही मिल जाएँ” रागिनी ने समझते हुये कहा

“अगर घर पर होते तो या तो फोन मिलता या स्विच ऑफ आता... वो कहीं ऐसी जगह हैं जहां पर नेटवर्क नहीं मिल रहा” मोहिनी ने रोते हुये कहा

“दीदी आप चलिये पहले खाना खा लीजिये फिर रागिनी दीदी के साथ जाकर देख लीजिये एक बार... शायद घर से पता चल जाए की वो कहाँ गए हैं” शांति ने भी समझाया और हाथ पकड़कर उन्हें अपने साथ डाइनिंग टेबल पर ले आयी और तीनों ने बैठकर खाना खाया। हालांकि मोहिनी देवी का बिलकुल मन नहीं था लेकिन रागिनी ने ज़ोर दिया तो बेमन से थोड़ा बहुत खा लिया।

खाना खाने के बाद तीनों को रागिनी अपने कमरे में ले गयी की पहले एक बार फिर से बलराज को फोन मिलकर देखा जाए। रागिनी और मोहिने ने कई बार अपने अपने मोबाइल मोहिनी देवी ने कहा की ऋतु को भी बता दिया जाए अब चाहे सबकुछ सामने आ गया है... लेकिन ऋतु को बचपन से बलराज ने ही पाला बाप बनकर और ऋतु ने भी उन्हें ही अपना पिता जाना-माना... वैसे भी वो पिता न सही पिता के भाई तो हैं ही।

“हैलो ऋतु! बेटा कहाँ पर हो तुम?” फोन मिलते ही मोहिनी देवी ने पूंछा

“माँ! में चंडीगढ़ में हूँ...............” ऋतु ने उधर से कहा

“सुन! कल रात तेरे पापा कहीं गए थे... बताया था ना मेंने...” मोहनी ने कहा

“हाँ! बताया तो था आपने... क्या हुआ” ऋतु ने चिंता भरे स्वर में कहा

“सुबह से उनका फोन ही नहीं लग रहा... और वो बता कर भी नहीं गए कि कहाँ गए हैं” मोहिनी ने चिंता भरे स्वर में कहा

“माँ अप चिंता मत करो.... में रात तक वापस पहुँच रही हूँ... और कुछ लोग साथ आ रहे हैं मेरे.... वहाँ पहुँचकर बात करते हैं... फिर पापा के बारे में भी पता करेंगे...... आप चिंता मत करना” ऋतु ने कहा

“कौन लोग आ रहे हैं तेरे साथ?” मोहिनी ने पूंछा

“आप देखते ही पहचान लोगी.... बस ये बात अपने घर में ही रहे... अनुपमा या उसके घर तक भी ना पहुंचे कि कोई हमारे घर आ रहा है....शांति ताई जी, रागिनी दीदी और बच्चों से भी बोल देना...और हाँ! पापा की चिंता मत करना... हम वहाँ पहुँचकर उनका पता लगाते हैं” ऋतु ने मोहिनी को फिर से समझाते हुये कहा

“ठीक है ... बस जल्दी से आजा तू” मोहिनी ने चिंता भरे स्वर में कहा

मोहिनी ने फोन रख दिया और रागिनी को बताया ऋतु के बारे में

“अब ऐसा कौन है चंडीगढ़ में...जिसके पास ये अचानक बिना बताए गयी और अब किसको साथ लेकर आ रही है” रागिनी ने उलझन भरी आवाज में कहा

“रागिनी दीदी जब विक्रम और नीलोफर दिल्ली से गायब हुये थे तो काफी दिन चंडीगढ़ और उसके आसपास ही रहे थे... शायद कई साल रहे थे...वहाँ नीलोफर के कोई रिश्तेदार रहते थे.....नाज़िया आंटी माँ को बताया करती थीं कि वो लोग पटियाला के रहनेवाले थे... बँटवारे में लाहौर चले गए और फिर उनकी शादी हैदराबाद में हो गयी....  मुझे ऐसा लगता है.... नीलोफर चंडीगढ़ ही रहती है... और ऋतु उसी के पास गयी है... और नीलफर को लेकर ही आ रही है.........”

“तुम्हें कैसे पता...ये सब” मोहिनी ने पूंछा

“नीलोफर की माँ नाज़िया, मेरी माँ और रागिनी दीदी के पिताजी तीनों साथ मिलकर बहुत से उल्टे सीधे काम-धंधे करते थे... इसलिए हम सब बच्चे भी एक दूसरे के संपर्क में बने रहे...आपकी याददास्त चली गयी इसलिए आपको पता नहीं...  जब रागिनी दीदी के पिताजी और में नोएडा में रहने लगे थे तभी एक दिन उन्होने बताया था कि विक्रम चंडीगढ़ में रह रहा है नीलोफर के साथ और उसके कोई बच्चा भी था शायद.... वो कितने भी बुरे सही... लेकिन अपने बच्चों का मोह सबको होता है... इसीलिए वो विक्रम और रागिनी दीदी का पता लगाने में लगे रहे सालों साल तक.... फिर खुद ही गायब हो गए”

“माँ! आप मुझे दीदी मत कहा करो, आपकी शादी मेरे पिताजी से हुई है... इस रिश्ते से में आपकी बेटी हुई” रागिनी ने शांति से कहा

“आपको मेंने बचपन से दीदी कहा... और पता है... अगर मेरी शादी आपके पिताजी से हालात कि वजह से मजबूरी में हुआ समझौता था... उनके अलावा मेरा कोई और सहारा भी तो नहीं था.... अगर नीलोफर बीच में ना आती और हालात सही रहते तो मेरी शादी आपके छोटे भाई ...विक्रम.... विक्रमादित्य सिंह से होती... हम दोनों एक दूसरे को पसंद करते थे... शायद प्यार भी कह सकते हैं” शांति ने कहा तो रागिनी तो चोंकी ही मोहिनी भी अपनी परेशानी को भूलकर उसकी ओर देखने लगी

“चाची जी मुझे तो ये ही समझ नहीं आता की हमारे परिवार में ये क्या होता रहा... हमसे पहले वाली पीढ़ी के हमारे बुजुर्ग कैसे-कैसे झमेले करते रहे....इनमें से किसी ने भी ढंग से घर बसाया या चलाया कभी” रागिनी ने चिढ़े हुये से स्वर में कहा

“बड़े जीजाजी यानि तुम्हारे ताऊ जी...ने सिर्फ एक गलती की... बेला दीदी से तलाक लेने की.... वो भी अपनी माँ के दवाब में.... उसके अलावा उन्होने ज़िंदगी में कुछ भी ऐसा नहीं किया जिसके लिए कोई उन पर उंगली उठा सके.... बल्कि इस परिवार... पूरे परिवार के लिए ही उन्होने ज़िंदगी भर किया... ऋतु को आ जाने दो...और बलराज को भी... फिर एक कोशिश करके देखते हैं वसुंधरा दीदी का पता लगाने की... बेला दीदी अपने गाँव में ही रहती हैं...उनका बेटा ..... वीरू या वीरेंद्र.... वो भी वहीं अपनी ननिहाल में रहता है... नाना की जायदाद मिली थी उसे ...शायद उनसे पता चल जाए रवि के बारे में” मोहिनी ने कहा

“चलो देखते हैं शाम को ऋतु को आ जाने दो... तब तक चाचा जी से बात करने की कोशिश करते हैं... वरना फिर ऋतु को लेकर निकलते हैं उनकी तलाश में”

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“भैया........आप?” सामने बैठे व्यक्ति को देखते ही ऋतु के मुंह से निकला और वो अपनी जगह पर अवाक सी खड़ी रह गयी... तभी विक्रम के बराबर से बेड से उतरकर अपने पास आते व्यक्ति को देखकर तो उसकी आँखें फटी कि फटी रह गईं

“प्रबल तु.... तुम प्रबल तो नहीं” ऋतु ने उस लड़के को देखकर कहा तब तक आकर उसने ऋतु के पैर छूए और हाथ पकड़कर अंदर को ले चला

“अरे ऋतु बुआ अंदर तो आ जाओ... सबका रास्ता रोका हुआ है आपने” उसने हँसते हुये कहा तो ऋतु बिना कुछ सोचे समझे उसके साथ जाकर सामने बेड पर बैठे विक्रम के पास जाकर बैठ गयी बाकी सब भी उसके पीछे कमरे में आ गए। नीलम, निशा, धीरेंद्र तो वहीं बेड के बराबर में जमीन पर बिछे गद्दों पर बैठ गए पवन ने आगे बढ़कर विक्रम के पैर छूए तो विक्रम ने उसे अपने पास ही बैठा लिया, प्रबल-2, भानु और वैदेही तो बेड पर चढ़कर ऋतु के पास बैठ ही गए, सुशीला भी नीलम के पास नीचे बैठने लगीं तो विक्रम ने उन्हें अपने पास बेड पर ही बैठने को बोला

“भाभी आपसे कितनी बार कहा है आप मेरे सामने नीचे मत बैठा करो.... जगह कम हो तो में नीचे बैठ जाता हूँ... आप बड़ी हैं...मुझे अच्छा नहीं लगता” विक्रम ने कहा तो सुशीला भी जाकर ऋतु के पास ही बैठ गयी

“हाँ तो ऋतु... कुछ समझ आया” जब सुशीला ने कहा तो ऋतु जैसे होश में आयी

“भैया आप ठीक हैं....पिछले महीने....और ये प्रबल...ये कौन है” ऋतु के मन में हजारों सवाल उठ रहे थे जो वो विक्रम से करना चाहती थी... लेकिन कोई भी बात पूरी नहीं कह सकी, उसकी ये हालत देखकर विक्रम और सुशीला ने एक दूसरे की ओर देखा और मुस्कुरा दिये

“शांत हो जाओ बेटा.... अब भाभी तुम्हें सब बताएँगी कि ये कौन हैं और क्या हुआ मेरे साथ” विक्रम ने मुसकुराते हुये बात सुशीला के ऊपर डाल दी

“ऋतु बेटा! विक्रम को तो तुम जानती ही हो, और विक्रम कि मौत या लवारीश लाश मिलने का जो मामला था, वो विक्रम का ही करा-धरा था... अपनी पहचान खत्म करने के लिए..... अब विक्रम मर चुका है.... विक्रम का पुराना कोई रेकॉर्ड नहीं.... इसने अपना आधार कार्ड तो बनवाया ही नहीं था जिससे उँगलियों के निशान या आँखों कि पुतलियों से पहचान हो सके ............ अब इनका नाम ‘रणविजय सिंह’ है सरकारी आंकड़ों में और ये हैं इनकी पत्नी ‘नीलिमा सिंह’ जिनके बारे में तुमने नीलोफर नाम से सुना होगा, और ये प्रबल नहीं, प्रबल का जुड़वाँ भाई है जो रेकॉर्ड में इन दोनों का इकलौता बेटा है इसका नाम समीर था .... लेकिन अब ‘समर प्रताप सिंह’ के नाम से है”

“तो प्रबल भी आपका बेटा है भैया...अब वो भी आपके साथ ही रहेगा” ऋतु ने विक्रम यानि रणविजय सिंह से कहा

“देखो बेटा.... एक तो ये भूल जाओ पूरी तरह कि विक्रम या नीलोफर कोई थे... वो दोनों मर चुके हैं... में विक्रम का बड़ा भाई रणविजय सिंह हूँ जो अपने ताऊ जी के पास रहा बचपन से........ दिल्ली में भी घर पर सभी को ये ही समझा देना है। दूसरे रहा प्रबल का सवाल .... वो मेरा नहीं रागिनी दीदी का बेटा है... उन्होने ही उसे जन्म से पाला है... हाँ अगर वो उसे अपने पास न रखना चाहें तो फिर तो मेरे पास रहेगा ही... वरना वो उनके पास ही उनका बेटा होने के नाते... हमेशा बना रहेगा।“ विक्रम ने गंभीर आवाज में कहा

फिर उन सबकी आपस में बातें होने लगीं .......आज ऋतु को लग रहा था जैसे वो किसी और ही दुनिया में पहुँच गयी हो... बचपन से उसने अपने घर में अपने माता-पिता को ही देखा... जो सिर्फ जरूरी होने पर ही आपस में या ऋतु से बात करते थे.... हाँ कभी-कभी विक्रम के आने पर विक्रम और मोहिनी आपस में बात करते थे लेकिन उसमें न तो वो ऋतु को शामिल करते और न ही बलराज सिंह को...घर में कोई दूसरा बच्चा तो था नहीं और जिस क्षेत्र में वो लोग रहते थे वो पॉश कॉलोनी थी तो पड़ोसियों से भी कोई खास मतलब नहीं था... फिर बलराज और मोहिनी भी जब किसी से मतलब नहीं रखते थे तो ऋतु का भी कोई संबंध नहीं रहा किसी से..... कॉलेज में जरूर कुछ सहेलियाँ बनी लेकिन उनसे भी सिर्फ कॉलेज तक ही सीमित रही।

फिर जब वो रागिनी के साथ रहने आयी तब से कुछ न कुछ नयी परेशानियों में उलझी रही लेकिन फिर भी रागिनी, अनुराधा, प्रबल सब आपस में हर छोटी बड़ी बात करते और उनमें ऋतु को भी शामिल कर लेते, साथ ही अनुपमा भी अक्सर इनके साथ ही होती... तो ऋतु को एक नया अहसास होने लगा था.... परिवार होने का अहसास... कभी-कभी वो सोचती थी कि इतने साल उसने क्या खोया... एक भरा पूरा परिवार, जिसमें हर उम्र के और हर मिजाज के लोग होते हैं..........

लेकिन आज तो वो परिवार और भी बड़ा दिख रहा था... जिसमें हर उम्र के कई-कई लोग और उनका आपस में इतना हिलमिलकर रहना.... कोई फ़ार्मैलिटी नहीं...फिर उसकी नज़र पावन पर गयी जो उसे ही बार-बार देख रहा था... ऋतु से नजर मिलते ही पवन मुस्कुरा दिया

“ऋतु मेम! आप किस सोच विचार में हो... बहुत देर से हम ही कांव-कांव किए जा रहे हैं... आप तो पता नहीं कहाँ हो” पवन ने मुसकुराते हुये कहा तो रणविजय ने हँसते हुये पूंछा

“बेटा पवन तो तू ऋतु को मेम कहता है”

“भैया अब ये मेरी सीनियर हैं... मेम तो कहना ही पड़ेगा” पवन ने झेंपते हुये कहा

“सीनियर तो ऑफिस में है ना, यहाँ तो घर है... दीदी कहा कर” रणविजय ने कहा तो ऋतु ने जल्दी से कहा

“भैया! मेंने पहले भी कहा है इससे, मेरा नाम लिया करे, ऑफिस के अलावा कहीं भी मेम ना कहे” और पवन की ओर घूरकर देखा

“ओहो! ननद रानी .... क्या बात है... दीदी नहीं कहलवाना” नीलिमा ने ऋतु को छेड़ते हुये कहा “और बेटा पवन... तुझे भी दीदी नहीं कहना?”

“न...नहीं...भाभी ऐसी कोई बात नहीं... ऋतु जी ने मुझे पहले भी बोला था कि उनका नाम लिया करूँ” पवन ने नीलिमा कि बात का मतलब समझते हुये झेंपकर कहा और इन बातों को सुनकर ऋतु भी झेंप गयी और दोनों चुपचाप नीचे नजर करके बैठे रहे.... अभी नीलिमा और कुछ कहनेवली थी कि तभी ऋतु का फोन बजा तो उसने देखा मोहिनी देवी का कॉल था...उसने सबकी ओर देखकर चुप रहने का इशारा किया

“माँ का कॉल आ रहा है.... अभी में आप लोगों के बारे में नहीं बता रही... आज अप सब वहीं चलो सभी से एक बार मिल लो” ऋतु ने बोला

“तुम फोन उठाओ...हम लोग अभी खाना खाकर चलते हैं शाम तक पहुँच जाएंगे...” रणविजय ने कहा और कॉल उठाने का इशारा किया

“माँ! में चंडीगढ़ में हूँ...............” उधर से कुछ कहा गया तो जवाब में ऋतु ने कहा फिर उनकी वही बातें हुई जो मोहिनी देवी के द्वारा मेंने पहले बताई हैं...बात करने के बाद ऋतु ने फोन काटा और रणविजय की ओर देखा जो उसी की ओर देख रहा था

“तुमने हमारी बात भी करा दी होती चाची जी से” रणविजय ने कहा

“अरे भैया आप ठहरे पुराने जमाने के... अब हमारे जमाने में एक चीज होती है सर्प्राइज़..... में माँ को और वहाँ सभी को सर्प्राइज़ दूँगी...अप सबको साथ लेजाकर” ऋतु ने चहकते हुये कहा

“बेटा हम इतने पुराने जमाने के भी नहीं हैं.... हम सब उसी कॉलेज के पढे हुये हैं जहां तुम हमसे जूनियर हो..........और हमारे सर्प्राइज़ कितने जबर्दस्त होते हैं तुमने आज देख ही लिया होगा” नीलिमा ने भी चहकते हुये कहा तो सभी मुस्कुरा दिये और ऋतु ने मुसकुराते हुये पवन को आँखें दिखाई तो वो दूसरी ओर देखने लगा

“अब आप लोग अपने बारे में बताओ की बड़े भैया कहाँ हैं और आप सब ने अपने नाम क्यों बदल लिए” ऋतु ने रणविजय से कहा

“अभी पहले खाना खाते हैं उसके बाद दिल्ली निकलते हैं... असल में जब पवन ने बाते की सभी किशनगंज वाले मकान में हैं... तुम, रागिनी दीदी और बच्चे ........ शांति और लाली तो वहाँ पहले से रह ही रहे थे... तो हम सब वहीं आ रहे थे... लेकिन फिर नीलम ने पहले तुम्हें सर्प्राइज़ देने का सोचा... बाद में उन सबको संभालने में तुम हमारा साथ तो दोगी अब.... इसीलिए रुके हुये थे हम, इसीलिए भाभी को भी हमने यहीं बुला लिया था.... अब बस चलना ही है... फिर वहाँ चलकर ही सबके सामने बात करते हैं... क्योंकि ये सवाल वो सब भी पूंछेंगे .....वैसे एक बात नहीं बताई तुमने.... मोहिनी चाची क्या बोल रही थी... जिसके लिए तुमने कहा कि वहाँ आकर देखती हूँ... कोई परेशानी है क्या” रणविजय ने कहा

“ओ...हाँ भैया! पापा कल शाम के कहीं गए हुये हैं.... ये भी नहीं बताया कि कहाँ जा रहे हैं और माँ बता रही थी कि उनका फोन भी नहीं लग रहा” ऋतु ने कहा

“हूँ.... चलो पहले वहाँ पहुँचकर फिर देखते हैं कि बलराज चाचा जी आखिर गए कहाँ हैं” विक्रम ने सोचते हुये कहा

“पापा! ऋतु तुम्हारे पापा तो....और बलराज चाचाजी….” सुशीला ने उलझन भरे स्वर में कहा

“अरे भाभी वो बलराज चाचाजी मोहिनी चाचीजी के साथ रहने लगे थे तो ऋतु उन्हें पापा ही कहती है बचपन से....भैया को तो पता है... आपको शायद बताया नहीं होगा उन्होने” रणविजय ने बात संभालते हुये कहा

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#70
अध्याय 30


“ऋतु बेटा कब तक आओगी घर? हम सब भी तुम्हारे साथ ही खाना खाएँगे” मोहिनी ने ऋतु से फोन पर कहा

“माँ अभी हम समालका हैं करीब 10 बजे तक घर पहुँच जाएंगे... खाने की आप चिंता मत करो हम रास्ते से पाक कराकर ला रहे हैं... रागिनी दीदी और सब कहाँ हैं?” ऋतु ने कहा

“खाना तो हमने बना लिया है, रागिनी और शांति यहीं मेरे पास बैठी हैं...तीनों बच्चे ऊपर पढ़ाई कर रहे हैं” मोहिनी ने कहा फिर गहरी सांस लेते हुये बोलीं “तुम्हारे पापा का अब भी कुछ पता नहीं चल रहा”

“कोई बात नहीं.... हम पहुंचते हैं...10 बजे तक... अप लोग परेशान ना हों” ऋतु ने दिलासा देते हुये कहा और फोन कट दिया

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रात के साढ़े नौ बज रहे थे रागिनी, मोहिनी और शांति तीनों अब भी हॉल में सोफ़े पर बैठी हुई थीं...... साथ ही दूसरे सोफ़े पर तीनों बच्चे भी आकर बैठ गए थे सबकी निगाहें बार –बार घड़ी की ओर जा रहीं थीं... सबको ऋतु के आने का इंतज़ार था तभी बाहर गाड़ी रुकने की आवाज आयी, फिर दूसरी गाड़ी भी रुकी तो प्रबल बाहर निकला, वो दरवाजे तक ही पहुंचा तभी पहली गाड़ी में से एक लड़का बाहर निकला और उसके साथ ऋतु। लड़के को देखकर प्रबल चौंका क्योंकि वो लड़का बिलकुल प्रबल का हमशक्ल था.... गाड़ी बिलकुल गाते के सामने रोकी गयी थी और रात के 10 बजे थे तो आसपास कोई भी ऐसा नहीं था जिसकी नजर उनपर पद सकती। प्रबल कुछ कहने को हुआ तभी ऋतु ने आगे बढ़कर प्रबल का हाथ पकड़ा और अंदर को चली आयी, पीछे पीछे वो लड़का भी अंदर आ गया...बाहर उस गाड़ी और दूसरी गाड़ी के गेट खुलने की आवाज अंदर सुनाई दी और कुछ कदमो की आहट घर में घुसती मालूम पड़ी।

इधर ऋतु और प्रबल को देखकर अंदर सबके चेहरे खिल उठे लेकिन उनके पीछे अंदर घुसते उस लड़के यानि समर को देखते ही सबकी आँखें आश्चर्य से खुली की खुली रह गईं

“ऋतु ये तो प्रबल...” रागिनी ने बोलना चाहा तो ऋतु ने इशारे से उसे चुप रहने को कहा और सबको अपने पीछे आने का इशारा करती हुई प्रबल और समर के साथ रागिनी के बेडरूम में घुसकर दोनों को अंदर जाने का इशारा किया और खुद बाहर निकली

“माँ, दीदी आप इन सब को लेकर चलो... में बाहर से सबको लेकर आती हूँ... और अभी कोई कुछ नहीं बोलेगा” ऋतु ने कहा तो वो सब अंदर की ओर बढ़े तभी बाहर से विक्रम यानि रणविजय और नीलम ने सुशीला के साथ हॉल में कदम रखा तो ऋतु ने उन्हें भी अंदर मोहिनी वगैरह के पीछे-पीछे जाने का इशारा किया और इन लोगों के पीछे आ रहे धीरेंद्र, निशा, भानु और वैदेही को भी अंदर भेजकर बाहर का मेन गेट बंद किया और हॉल का गेट भी अंदर से बंद करके कमरे में पहुंची “सुशीला! ये तुम?” मोहिनी ने जब विक्रम यानि रणविजय और नीलम के साथ सुशीला को कमरे में आते देखा तो चौंककर उसकी ओर बढ़ी। सुशीला ने भी आगे बढ़कर मोहिनी के पैर छूए उसके बाद रणविजय और नीलम ने भी उनके पैर छूए। मोहिनी ने सुशीला को गले लगा लिया और रोने लगी

“चाचीजी आप ऐसे क्यों रो रही हैं, आपको तो खुश होना चाहिए आज 30 साल बाद सारा परिवार एक छत के नीचे इकट्ठा हुआ है...मेरी शादी के समय भी पूरा परिवार इकट्ठा नहीं हो पाया था... तब भी विक्रम भैया और विजय चाचाजी का पूरा परिवार ही गायब था ..........अब चुप हो जाइए, अपने नाती-नातिनों से तो मिल लो.... इन्होने आपका नाम ही सुना है... कभी देखा भी नहीं” कहते हुये सुशीला ने मुसकुराते हुये मोहिनी को अपने साथ चिपकाए हुये ही ले जाकर बेड पर बैठा लिया और सब बच्चों को पास आने का इशारा किया....

तभी सुशीला की नजर शांति पर पड़ी... जो एक कोने में खड़ी हुई थी वहीं उससे चिपकी अनुभूति भी खड़ी सबकी ओर देख रही थी तो सुशीला मोहिनी देवी को छोडकर खड़ी हुई और शांति के पास पहुँचकर उनके पैर छूने लगी तो शांति हड्बड़ा सी गईं

“चाचीजी आप ऐसे अलग क्यों खड़ी हैं.... आइए .... और ननद जी आप भी आओ” सुशीला ने शांति और अनुभूति के हाथ पकड़े और उन्हें भी लाकर मोहिनी के साथ बैठा दिया। तभी ऋतु दरवाजे पर नजर आयी तो उसे भी आकार बैठने का इशारा किया और विक्रम कि ओर देखा तो वो भी उनके पास आ गया लेकिन नीलम अपनी जगह पर ही खड़ी एकटक प्रबल कि ओर देख रही थी... उसकी आँखों में आँसू भरे हुये थे... लेकिन प्रबल वो किसी कि ओर नहीं देख रहा था... नजरें झुकाये खड़ा था रागिनी के पास, उसके साथ ही अनुराधा भी खड़ी थी।

“विक्रम! क्या मुझे इन सबसे नहीं मिलवाओगे....?” अजीब सी आवाज में अब तक चुपचाप खड़ी रागिनी ने कहा तो सभी का ध्यान रागिनी पर गया। विक्रम और सुशीला रागिनी की ओर बढ़े तब तक नीलम आगे बढ़कर रागिनी के पास पहुंची

“दीदी में नीलम, प्रबल की माँ” कहते हुये नीलम ने रागिनी के पैर छूने लगी तो प्रबल ने रागिनी का हाथ कसकर पकड़ लिया

“मेरी माँ सिर्फ ये हैं.... और .........” प्रबल ने गुस्से से कहा लेकिन उसकी बात को बीच में ही काटकर सुशीला बोली

“में आप सब की भावनाएँ समझ रही हूँ.... लेकिन इस सब से पहले में कुछ महत्वपूर्ण बातें आप सबसे कहना चाहती हूँ...... पहली बात तो ये हैं कि अब ये विक्रम नहीं रणविजय सिंह के नाम से जाने जाएंगे ...... विक्रम के जुड़वां भाई और ये इनकी पत्नी नीलोफर जो अब नीलम सिंह के नाम से जानी जाएंगी ... अब इसके पीछे की कहानी ये खुद बताएँगे, दूसरी बात, अब तक हमसे बड़े-बड़े सबने अपने फैसले खुद लिए और जब समय आया उन फैसलों कि जिम्मेदारियाँ लेने का तो एक दूसरे को दोषी ठहराया या छोडकर भाग गए ....अपनी जिम्मेदारियों से मुंह छुपाकर ............ अब से आप सब को भी अपने फैसले लेने का तो अधिकार है......... लेकिन उन फैसलों की जिम्मेदारियाँ भी लेनी होंगी.... क्योंकि में नहीं चाहती कि पहले की तरह परिवार बिखरे और हमारे बच्चों को वो सब सहना पड़े जो हमने सहा है.... प्रबल के बारे में फैसला प्रबल को लेना होगा... कि उसे रागिनी के साथ रहना है या रणविजय के”

“दीदी में एक बार प्रबल से अकेले में बात करना चाहती हूँ” नीलम ने रागिनी से कहा तो रागिनी ने कुछ नहीं कहा बल्कि अपने दोनों हाथ अनुराधा और प्रबल के हाथों से छुड़ाकर दोनों को अपनी बाहों में भर लिया, वो दोनों भी रागिनी से चिपक गए। सुशीला ने भी आगे बढ़कर रागिनी को अपनी बाँहों में लिया और बोली

“दीदी आप ये ना समझें कि हम सब आकर यहाँ अपने फैसले आप पर थोपने लगे.... बस आपके भाई ने इस घर की व्यवस्था को बनाए रखने की ज़िम्मेदारी विक्रम और मुझ पर डाली थी उसे पूरा करने की कोशिश कर रही हूँ... में उनकी तरह कठोर नहीं हूँ.... लेकिन फिर भी समय के अनुसार कड़े फैसले भी ले लेती हूँ.... लेकिन विक्रम भैया.... बस इनको आप अपने ताऊ जी का ही रूप मान लो.... हर बात कहने से पहले निश्चित कर लेते हैं कि किसी को बुरी ना लगे.... और जो बुरी लगने वाली बात होगी, उसे बोलेंगे ही नहीं। अब अभी सबसे पहले हमें विक्रम और नीलोफर की बात जाननी है कि आज ये रणविजय और नीलम क्यों हैं... उसके बाद ही प्रबल को अपना फैसला करना चाहिए... रही आपकी बात... तो दीदी... ये दोनों ही नहीं आपके हम सभी भाई-बहन और हमारे बच्चे सब आपके ही हैं.....आज हमारी पीढ़ी में आप सबसे बड़ी हैं.... लेकिन उन्होने...आपके भाई ने भी कुछ आपके बारे में सोचा है...जो विक्रम की बात सुनने के बाद में आप सबके सामने रखूंगी” कहते हुये सुशीला ने विक्रम उर्फ रणविजय की ओर इशारा किया तो रणविजय ने बोलना शुरू किया

“में अपनी कहानी बाद में सुनाऊँगा क्योंकि वो हमारे परिवार की बहुत सारी घटनाओं से जुड़ी है, में चाहूँगा की अभी प्रबल को ये बताने के लिए दो बातें सामने लाना चाहूँगा .....

पहली कि क्यों हमने उसे अपने से अलग रखा, बल्कि में तो लगभग साथ ही था... नीलू से ही अलग हुआ था वो.... लेकिन इस बात को प्रबल भी जानता है कि उसे कभी माँ की कमी महसूस नहीं हुई होगी.... रागिनी दीदी के साथ रहते हुये................

और दूसरी.......... कि क्यों हमने अपने नाम बदले, क्यों नीलू यहाँ से गायब हो गयी........ क्योंकि ये सबकुछ मुझसे ज्यादा नीलू से जुड़ा हुआ है... इसलिए में चाहूँगा कि नीलू ही बताए”

कहते हुये रणविजय चुप हुआ तो आँखों में आँसू भरे अपराधी कि तरह नज़रें झुकाये सबके सामने खड़ी नीलम ने एक बार सिर उठाकर सबकी तरफ देखा फिर रागिनी के साथ खड़े प्रबल पर नजरें जमा दीं

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मेरे पुरखे पटियाला के रहने वाले थे जो अंग्रेजों के जमाने तक पंजाब की एक बड़ी रियासत होती थी, 1947 में जब पंजाब का बंटवारा हुआ और पटियाला-अंबाला-शिमला इन तीन शहरों के अलावा पंजाब के लगभग सभी बड़े शहर पाकिस्तान में शामिल कर दिये गए.... लाहौर, रावलपिंडी जैसे पंजाब के बड़े शहरों में हमारे ज़्यादातर रिश्तेदार रहते थे.... तो मेरे नाना मुजफ्फर हुसैन जो उस समय जवान ही थे और नई-नई शादी हुई थी कोई बच्चा भी नहीं था, उन्होंने भी लाहौर चलने का प्रस्ताव घर में रखा, वो लीग के युवा नेताओं में से थे और पटियाला में उनका खासा वजूद था... इसलिए उनके ऊपर लीग से जुड़े उनके न सिर्फ बड़े नेताओं बल्कि आम जनता का भी दवाब था कि वो पाकिस्तान चलें... जिसे कि हिंदुस्तान का आम मु***न अपना मुल्क मान रहा था... हुसैन साहब को भी लगा कि नया मुल्क बना है तो वहाँ तरक्की भी ज्यादा तेजी से होगी और लीग में भी उन्होने जो अपना कद बनाया है उसका कुछ सियासी तरक्की में फाइदा मिलेगा....

लेकिन परिवार के बाकी सदस्यों ने इससे सहमति नहीं जताई .... उन लोगों का मानना था कि हम पुरखों के जमाने से यहाँ के रहनेवाले थे, हमारा घर-परिवार सब यहीं था तो नई जगह क्यों जाएँ.... कोई सरकारी फरमान ऐसा नहीं था कि सभी *ों को पाकिस्तान जाना ही पड़ेगा.... जिसकी मर्जी हो जाए और जिसकी मर्जी हो यहीं रहे... हमारे आसपास जो हिन्दू सिख थे उन्होने भी कहा कि हम यहाँ के रहनेवाले हैं और हमें यहीं रहना चाहिए..... उस समय हुसैन इन दलीलों से शांत हो गए और सबकुछ वक़्त पर छोड़ दिया। लेकिन जब पंजाब के उस हिस्से से हिन्दू सिख इधर आने लगे और इधर से ,., उधर जाने लगे तो कुछ लोगों को आपसी रंजिशें निकालने का मौका मिल गया और उन्होने एक दूसरे पर हमले शुरू कर दिये... जिसका नतीजा ये निकला कि आपसी रंजिश कि छोटी-मोती लड़ाइयाँ अब हिन्दू-,., फसाद में तब्दील हो गईं और पूरे पंजाब को उन्होने अपनी जद में ले लिया।

उस वक़्त हुसैन ने फैसला किया कि अगर परिवार से कोई नहीं जाना चाहता तो वो अकेले ही लाहौर चले जाएंगे अपनी बेगम को लेकर... और उन्होने ऐसा ही किया भी...एक दिन चुपचाप दोनों मियां बीवी अटारी पहुंचे और वहाँ से लाहौर.... घर से खाली हाथ गए लेकिन लीग के लोग जो उनके साथ जुड़े हुये थे उन्होने उन्हें लाहौर में बसने के लिए इंतजाम कराये और वो वहीं रहने लगे... वक़्त गुजरने के साथ उनके 2 बेटे और 4 बेटियाँ हुये.... और फिर उनकी शादियाँ-बच्चे....... लेकिन इस दौरान में वही हुआ जो डर यहाँ पटियाला में परिवार वालों को था.... देश बदल गया लेकिन लोग तो वही थे.... लीग, राजनीति यहाँ तक कि कारोबार में भी लाहौर के रहनेवाले लोगों ने अपनी पकड़ बनानी शुरू कर दी और इस ओर से गए लोगों को दरकिनार करना शुरू कर दिया.... क्योंकि उन्हें लगता था कि लाहौर उनका है और ये बाहर से आए लोग उनसे ज्यादा कामयाब होते जा रहे हैं

एक दिन मुजफ्फर हुसैन को लीग के दफ्तर से कुछ लोग मिलने आए और उन्होने उनसे किसी काम को कहा लेकिन हुसैन उसके लिए तैयार नहीं हुये...लेकिन वो अब बहुत डरे हुये और चोंकन्ने रहने लगे तब एक दिन उनके बड़े बेटे मुनव्वर ने उनसे बैठकर बात की कि इसकी वजह क्या है तो उन्होने बताया कि उनकी सबसे छोटी बेटी नाज़िया जो अभी पढ़ ही रही थी पंजाब यूनिवेर्सिटी में उसको इंटेलिजेंस में भर्ती होने के लिए कहा गया है.... अगर नाज़िया इंटेलिजेंस में नहीं जाती है तो उसके साथ तो जो कुछ बुरा हो सकता है होगा ही.... पूरे परिवार को हिंदुस्तानी जासूस साबित करके देश के गद्दारी के जुर्म में मौत की सजा दी जा सकती है। ये सुनकर मुनव्वर भी सकते में आ गया फिर वो बाप-बेटे दोनों ने लीग के उन लोगों से मुलाक़ात कि तो उन्होने बताया कि उनके परिवार पर ये दवाब इसलिए दिया जा रहा है क्योंकि वो उस तरफ के रहनेवाले हैं वहाँ के इलाके में उनकी जान-पहचान, रिश्तेदारियाँ भी हैं नाज़िया को इंटेलिजेंस में जुर्म की छानबीन के लिए नहीं.... हिंदुस्तान में रहकर वहाँ की खुफिया जानकारियाँ जुटाने के लिए भेजा जाएगा... साथ ही उसे वहाँ के स्थानीय लोगों में से अपने एजेंट भी तैयार करने होंगे।

दोनों बाप-बेटे ने जवाब देने के लिए वक़्त मांगा तो उन्हें कहा गया कि एक हफ्ते के अंदर जवाब दें वरना हुकूमत उनके खिलाफ कार्यवाही शुरू कर देगी। घर आकर उन्होने घर के बाकी सदस्यों से भी बात की तो मुजफ्फर के छोटे बेटे ज़ुल्फिकार ने कहा कि कोई भी फैसला करने से पहले एक बार नाज़िया कि भी राय ले ली जाए.... क्योंकि फैसले का असर सबसे पहले और सबसे ज्यादा तो उसी पर पड़ना है और नाज़िया कोई अनपढ़ घरेलू लड़की नहीं यूनिवर्सिटी में पढ़नेवाली दुनिदारी को समझने वाली ज़हीन लड़की है

नाज़िया को बुलाया गया और सारा मामला उसके सामने रखा गया तो उसने कहा कि वो सिर्फ खंडन कि हिफाजत ही नहीं मुल्क के लिए भी इस काम को करने को तैयार है... इस पर मुजफ्फर की आँखों में नमी आ गयी

“नाज़िया जो गलती मेंने की, यहाँ आकर... आज वही गलती तुम करने जा रही हो.... हमारा मुल्क वो है जहां हमारे अपने हों... में लाहौर का नहीं पटियाला का हूँ... ये अहसास मुझे मेरे परिवार या मेरे ज़मीर ने नहीं......... यहाँ के वाशिंदों ने कराया...इस मुल्क की हुकूमत ने कराया... कि मेरा असली मुल्क वो था जहां मेरे घर-परिवार, यार-दोस्त, जान-पहचान के लोग रहते थे.... यहाँ तो हम अपने पंजाब में होते हुये भी बाहरी .... महाजिर हैं....”

“अब्बा आप अपनी जगह सही हैं... और नाज़िया अपनी जगह.... आप पटियाला में पैदा हुये, रहे इसलिए आपको और अम्मी को वो अपना मुल्क लगता है.... लेकिन हम.... हम इसी सरजमीं पर पैदा हुये हैं यही हमारा मुल्क है... और में नाज़िया के फैसले से इत्तिफाक़ रखता हूँ.... रही बात महाजिर होने की तो... वहाँ भी सब आपके साथ नहीं होंगे कुछ तो खिलाफ होंगे ही... ऐसे ही यहाँ भी सब आपके खिलाफ नहीं... कुछ तो साथ देनेवाले हैं ही”

आखिर में तमाम बहस के बाद .... नाज़िया का फैसला उन अफ़सरान को बता दिया गया और उन्होने नाज़िया कि नयी पहचान के दस्तावेज़ बनवाए और उसे ट्रेनिंग देकर हिंदुस्तान भेज दिया गया.... अजमेर की दरगाह पर जियारत और दिल्ली-पटियाला में रिशतेदारों से मुलाक़ात के वीसा पर।

यहाँ आकर नाज़िया ने पहले से मौजूद अपने देश के इंटेलिजेंस एजेंट से मुलाक़ात की और फिर उसका रूट प्लान बना दिया गया कि वो यहाँ से वापस लाहौर जाएगी और उसके बाद राजस्थान के रास्ते वापस हिंदुस्तान में घुसेगी... जिसका इंतजाम अजमेर में मिले एजेंट ने करा दिया... उसके बाद उसे दिल्ली में रुकने और काम शुरू करने का इंतजाम दिल्ली में मौजूद एजेंट ने करा दिया.... और इस तरह नाज़िया ने दिल्ली में अपनी जड़ें जमाना शुरू कर दिया लेकिन उसी वक़्त 1975 में हिंदुस्तान में इमरजेंसी लगा दी गयी और लोगों के बारे में ज्यादा ही छानबीन होने लगी तो किसी तरह से नाज़िया दिल्ली से निकलकर पटियाला पहुँच गयी और वहाँ अपने परिवार के लोगों कि मदद से छुप गयी... उन लोगों ने भी ये जानकर कि वो मुजफ्फर हुसैन की बेटी है... उसका पूरा ख्याल रखा लेकिन इमरजेंसी का वक़्त जैसे जैसे बढ़ता जा रहा था... नाज़िया के लिए हालात मुश्किल होते जा रहे थे तो परिवार के लोगों ने फैसला किया कि ऐसे नाज़िया को रखने से नाज़िया का तो फंसना तय था ही... उन सबको भी सरकार के कहर का सामना करना पड़ सकता है... इसलिए आखिर में फैसला हुआ कि नाज़िया कि शादी परिवार के ही एक लड़के आसिफ से करा दी गयी और खास लोगों जिन्हें पता था कि नाज़िया पाकिस्तानी है... के अलावा सबको बताया गया कि ये एक दूर के रिश्तेदार कि बेटी है... दिल्ली की रहनेवली है... इसके परिवार में कोई नहीं रहा इसलिए ये यहाँ रहने आयी थी और अब उन्होने इसे अपनी बहू बना लिया.... शादी के करीब एक साल बाद नाज़िया ने एक बेटी को जन्म दिया... जिसका नाम नीलोफर रखा गया... नीलोफर जहां।

नीलोफर की कहानी आगे जारी रहेगी

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#71
(03-05-2020, 10:55 PM)kamdev99008 Wrote: अध्याय 30


“ऋतु बेटा कब तक आओगी घर? हम सब भी तुम्हारे साथ ही खाना खाएँगे” मोहिनी ने ऋतु से फोन पर कहा

“माँ अभी हम समालका हैं करीब 10 बजे तक घर पहुँच जाएंगे... खाने की आप चिंता मत करो हम रास्ते से पाक कराकर ला रहे हैं... रागिनी दीदी और सब कहाँ हैं?” ऋतु ने कहा

“खाना तो हमने बना लिया है, रागिनी और शांति यहीं मेरे पास बैठी हैं...तीनों बच्चे ऊपर पढ़ाई कर रहे हैं” मोहिनी ने कहा फिर गहरी सांस लेते हुये बोलीं “तुम्हारे पापा का अब भी कुछ पता नहीं चल रहा”

“कोई बात नहीं.... हम पहुंचते हैं...10 बजे तक... अप लोग परेशान ना हों” ऋतु ने दिलासा देते हुये कहा और फोन कट दिया

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रात के साढ़े नौ बज रहे थे रागिनी, मोहिनी और शांति तीनों अब भी हॉल में सोफ़े पर बैठी हुई थीं...... साथ ही दूसरे सोफ़े पर तीनों बच्चे भी आकर बैठ गए थे सबकी निगाहें बार –बार घड़ी की ओर जा रहीं थीं... सबको ऋतु के आने का इंतज़ार था तभी बाहर गाड़ी रुकने की आवाज आयी, फिर दूसरी गाड़ी भी रुकी तो प्रबल बाहर निकला, वो दरवाजे तक ही पहुंचा तभी पहली गाड़ी में से एक लड़का बाहर निकला और उसके साथ ऋतु। लड़के को देखकर प्रबल चौंका क्योंकि वो लड़का बिलकुल प्रबल का हमशक्ल था.... गाड़ी बिलकुल गाते के सामने रोकी गयी थी और रात के 10 बजे थे तो आसपास कोई भी ऐसा नहीं था जिसकी नजर उनपर पद सकती। प्रबल कुछ कहने को हुआ तभी ऋतु ने आगे बढ़कर प्रबल का हाथ पकड़ा और अंदर को चली आयी, पीछे पीछे वो लड़का भी अंदर आ गया...बाहर उस गाड़ी और दूसरी गाड़ी के गेट खुलने की आवाज अंदर सुनाई दी और कुछ कदमो की आहट घर में घुसती मालूम पड़ी।

इधर ऋतु और प्रबल को देखकर अंदर सबके चेहरे खिल उठे लेकिन उनके पीछे अंदर घुसते उस लड़के यानि समर को देखते ही सबकी आँखें आश्चर्य से खुली की खुली रह गईं

“ऋतु ये तो प्रबल...” रागिनी ने बोलना चाहा तो ऋतु ने इशारे से उसे चुप रहने को कहा और सबको अपने पीछे आने का इशारा करती हुई प्रबल और समर के साथ रागिनी के बेडरूम में घुसकर दोनों को अंदर जाने का इशारा किया और खुद बाहर निकली

“माँ, दीदी आप इन सब को लेकर चलो... में बाहर से सबको लेकर आती हूँ... और अभी कोई कुछ नहीं बोलेगा” ऋतु ने कहा तो वो सब अंदर की ओर बढ़े तभी बाहर से विक्रम यानि रणविजय और नीलम ने सुशीला के साथ हॉल में कदम रखा तो ऋतु ने उन्हें भी अंदर मोहिनी वगैरह के पीछे-पीछे जाने का इशारा किया और इन लोगों के पीछे आ रहे धीरेंद्र, निशा, भानु और वैदेही को भी अंदर भेजकर बाहर का मेन गेट बंद किया और हॉल का गेट भी अंदर से बंद करके कमरे में पहुंची “सुशीला! ये तुम?” मोहिनी ने जब विक्रम यानि रणविजय और नीलम के साथ सुशीला को कमरे में आते देखा तो चौंककर उसकी ओर बढ़ी। सुशीला ने भी आगे बढ़कर मोहिनी के पैर छूए उसके बाद रणविजय और नीलम ने भी उनके पैर छूए। मोहिनी ने सुशीला को गले लगा लिया और रोने लगी

“चाचीजी आप ऐसे क्यों रो रही हैं, आपको तो खुश होना चाहिए आज 30 साल बाद सारा परिवार एक छत के नीचे इकट्ठा हुआ है...मेरी शादी के समय भी पूरा परिवार इकट्ठा नहीं हो पाया था... तब भी विक्रम भैया और विजय चाचाजी का पूरा परिवार ही गायब था ..........अब चुप हो जाइए, अपने नाती-नातिनों से तो मिल लो.... इन्होने आपका नाम ही सुना है... कभी देखा भी नहीं” कहते हुये सुशीला ने मुसकुराते हुये मोहिनी को अपने साथ चिपकाए हुये ही ले जाकर बेड पर बैठा लिया और सब बच्चों को पास आने का इशारा किया....

तभी सुशीला की नजर शांति पर पड़ी... जो एक कोने में खड़ी हुई थी वहीं उससे चिपकी अनुभूति भी खड़ी सबकी ओर देख रही थी तो सुशीला मोहिनी देवी को छोडकर खड़ी हुई और शांति के पास पहुँचकर उनके पैर छूने लगी तो शांति हड्बड़ा सी गईं

“चाचीजी आप ऐसे अलग क्यों खड़ी हैं.... आइए .... और ननद जी आप भी आओ” सुशीला ने शांति और अनुभूति के हाथ पकड़े और उन्हें भी लाकर मोहिनी के साथ बैठा दिया। तभी ऋतु दरवाजे पर नजर आयी तो उसे भी आकार बैठने का इशारा किया और विक्रम कि ओर देखा तो वो भी उनके पास आ गया लेकिन नीलम अपनी जगह पर ही खड़ी एकटक प्रबल कि ओर देख रही थी... उसकी आँखों में आँसू भरे हुये थे... लेकिन प्रबल वो किसी कि ओर नहीं देख रहा था... नजरें झुकाये खड़ा था रागिनी के पास, उसके साथ ही अनुराधा भी खड़ी थी।

“विक्रम! क्या मुझे इन सबसे नहीं मिलवाओगे....?” अजीब सी आवाज में अब तक चुपचाप खड़ी रागिनी ने कहा तो सभी का ध्यान रागिनी पर गया। विक्रम और सुशीला रागिनी की ओर बढ़े तब तक नीलम आगे बढ़कर रागिनी के पास पहुंची

“दीदी में नीलम, प्रबल की माँ” कहते हुये नीलम ने रागिनी के पैर छूने लगी तो प्रबल ने रागिनी का हाथ कसकर पकड़ लिया

“मेरी माँ सिर्फ ये हैं.... और .........” प्रबल ने गुस्से से कहा लेकिन उसकी बात को बीच में ही काटकर सुशीला बोली

“में आप सब की भावनाएँ समझ रही हूँ.... लेकिन इस सब से पहले में कुछ महत्वपूर्ण बातें आप सबसे कहना चाहती हूँ...... पहली बात तो ये हैं कि अब ये विक्रम नहीं रणविजय सिंह के नाम से जाने जाएंगे ...... विक्रम के जुड़वां भाई और ये इनकी पत्नी नीलोफर जो अब नीलम सिंह के नाम से जानी जाएंगी ... अब इसके पीछे की कहानी ये खुद बताएँगे, दूसरी बात, अब तक हमसे बड़े-बड़े सबने अपने फैसले खुद लिए और जब समय आया उन फैसलों कि जिम्मेदारियाँ लेने का तो एक दूसरे को दोषी ठहराया या छोडकर भाग गए ....अपनी जिम्मेदारियों से मुंह छुपाकर ............ अब से आप सब को भी अपने फैसले लेने का तो अधिकार है......... लेकिन उन फैसलों की जिम्मेदारियाँ भी लेनी होंगी.... क्योंकि में नहीं चाहती कि पहले की तरह परिवार बिखरे और हमारे बच्चों को वो सब सहना पड़े जो हमने सहा है.... प्रबल के बारे में फैसला प्रबल को लेना होगा... कि उसे रागिनी के साथ रहना है या रणविजय के”

“दीदी में एक बार प्रबल से अकेले में बात करना चाहती हूँ” नीलम ने रागिनी से कहा तो रागिनी ने कुछ नहीं कहा बल्कि अपने दोनों हाथ अनुराधा और प्रबल के हाथों से छुड़ाकर दोनों को अपनी बाहों में भर लिया, वो दोनों भी रागिनी से चिपक गए। सुशीला ने भी आगे बढ़कर रागिनी को अपनी बाँहों में लिया और बोली

“दीदी आप ये ना समझें कि हम सब आकर यहाँ अपने फैसले आप पर थोपने लगे.... बस आपके भाई ने इस घर की व्यवस्था को बनाए रखने की ज़िम्मेदारी विक्रम और मुझ पर डाली थी उसे पूरा करने की कोशिश कर रही हूँ... में उनकी तरह कठोर नहीं हूँ.... लेकिन फिर भी समय के अनुसार कड़े फैसले भी ले लेती हूँ.... लेकिन विक्रम भैया.... बस इनको आप अपने ताऊ जी का ही रूप मान लो.... हर बात कहने से पहले निश्चित कर लेते हैं कि किसी को बुरी ना लगे.... और जो बुरी लगने वाली बात होगी, उसे बोलेंगे ही नहीं। अब अभी सबसे पहले हमें विक्रम और नीलोफर की बात जाननी है कि आज ये रणविजय और नीलम क्यों हैं... उसके बाद ही प्रबल को अपना फैसला करना चाहिए... रही आपकी बात... तो दीदी... ये दोनों ही नहीं आपके हम सभी भाई-बहन और हमारे बच्चे सब आपके ही हैं.....आज हमारी पीढ़ी में आप सबसे बड़ी हैं.... लेकिन उन्होने...आपके भाई ने भी कुछ आपके बारे में सोचा है...जो विक्रम की बात सुनने के बाद में आप सबके सामने रखूंगी” कहते हुये सुशीला ने विक्रम उर्फ रणविजय की ओर इशारा किया तो रणविजय ने बोलना शुरू किया

“में अपनी कहानी बाद में सुनाऊँगा क्योंकि वो हमारे परिवार की बहुत सारी घटनाओं से जुड़ी है, में चाहूँगा की अभी प्रबल को ये बताने के लिए दो बातें सामने लाना चाहूँगा .....

पहली कि क्यों हमने उसे अपने से अलग रखा, बल्कि में तो लगभग साथ ही था... नीलू से ही अलग हुआ था वो.... लेकिन इस बात को प्रबल भी जानता है कि उसे कभी माँ की कमी महसूस नहीं हुई होगी.... रागिनी दीदी के साथ रहते हुये................

और दूसरी.......... कि क्यों हमने अपने नाम बदले, क्यों नीलू यहाँ से गायब हो गयी........ क्योंकि ये सबकुछ मुझसे ज्यादा नीलू से जुड़ा हुआ है... इसलिए में चाहूँगा कि नीलू ही बताए”

कहते हुये रणविजय चुप हुआ तो आँखों में आँसू भरे अपराधी कि तरह नज़रें झुकाये सबके सामने खड़ी नीलम ने एक बार सिर उठाकर सबकी तरफ देखा फिर रागिनी के साथ खड़े प्रबल पर नजरें जमा दीं

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मेरे पुरखे पटियाला के रहने वाले थे जो अंग्रेजों के जमाने तक पंजाब की एक बड़ी रियासत होती थी, 1947 में जब पंजाब का बंटवारा हुआ और पटियाला-अंबाला-शिमला इन तीन शहरों के अलावा पंजाब के लगभग सभी बड़े शहर पाकिस्तान में शामिल कर दिये गए.... लाहौर, रावलपिंडी जैसे पंजाब के बड़े शहरों में हमारे ज़्यादातर रिश्तेदार रहते थे.... तो मेरे नाना मुजफ्फर हुसैन जो उस समय जवान ही थे और नई-नई शादी हुई थी कोई बच्चा भी नहीं था, उन्होंने भी लाहौर चलने का प्रस्ताव घर में रखा, वो लीग के युवा नेताओं में से थे और पटियाला में उनका खासा वजूद था... इसलिए उनके ऊपर लीग से जुड़े उनके न सिर्फ बड़े नेताओं बल्कि आम जनता का भी दवाब था कि वो पाकिस्तान चलें... जिसे कि हिंदुस्तान का आम मु***न अपना मुल्क मान रहा था... हुसैन साहब को भी लगा कि नया मुल्क बना है तो वहाँ तरक्की भी ज्यादा तेजी से होगी और लीग में भी उन्होने जो अपना कद बनाया है उसका कुछ सियासी तरक्की में फाइदा मिलेगा....

लेकिन परिवार के बाकी सदस्यों ने इससे सहमति नहीं जताई .... उन लोगों का मानना था कि हम पुरखों के जमाने से यहाँ के रहनेवाले थे, हमारा घर-परिवार सब यहीं था तो नई जगह क्यों जाएँ.... कोई सरकारी फरमान ऐसा नहीं था कि सभी *ों को पाकिस्तान जाना ही पड़ेगा.... जिसकी मर्जी हो जाए और जिसकी मर्जी हो यहीं रहे... हमारे आसपास जो हिन्दू सिख थे उन्होने भी कहा कि हम यहाँ के रहनेवाले हैं और हमें यहीं रहना चाहिए..... उस समय हुसैन इन दलीलों से शांत हो गए और सबकुछ वक़्त पर छोड़ दिया। लेकिन जब पंजाब के उस हिस्से से हिन्दू सिख इधर आने लगे और इधर से ,., उधर जाने लगे तो कुछ लोगों को आपसी रंजिशें निकालने का मौका मिल गया और उन्होने एक दूसरे पर हमले शुरू कर दिये... जिसका नतीजा ये निकला कि आपसी रंजिश कि छोटी-मोती लड़ाइयाँ अब हिन्दू-,., फसाद में तब्दील हो गईं और पूरे पंजाब को उन्होने अपनी जद में ले लिया।

उस वक़्त हुसैन ने फैसला किया कि अगर परिवार से कोई नहीं जाना चाहता तो वो अकेले ही लाहौर चले जाएंगे अपनी बेगम को लेकर... और उन्होने ऐसा ही किया भी...एक दिन चुपचाप दोनों मियां बीवी अटारी पहुंचे और वहाँ से लाहौर.... घर से खाली हाथ गए लेकिन लीग के लोग जो उनके साथ जुड़े हुये थे उन्होने उन्हें लाहौर में बसने के लिए इंतजाम कराये और वो वहीं रहने लगे... वक़्त गुजरने के साथ उनके 2 बेटे और 4 बेटियाँ हुये.... और फिर उनकी शादियाँ-बच्चे....... लेकिन इस दौरान में वही हुआ जो डर यहाँ पटियाला में परिवार वालों को था.... देश बदल गया लेकिन लोग तो वही थे.... लीग, राजनीति यहाँ तक कि कारोबार में भी लाहौर के रहनेवाले लोगों ने अपनी पकड़ बनानी शुरू कर दी और इस ओर से गए लोगों को दरकिनार करना शुरू कर दिया.... क्योंकि उन्हें लगता था कि लाहौर उनका है और ये बाहर से आए लोग उनसे ज्यादा कामयाब होते जा रहे हैं

एक दिन मुजफ्फर हुसैन को लीग के दफ्तर से कुछ लोग मिलने आए और उन्होने उनसे किसी काम को कहा लेकिन हुसैन उसके लिए तैयार नहीं हुये...लेकिन वो अब बहुत डरे हुये और चोंकन्ने रहने लगे तब एक दिन उनके बड़े बेटे मुनव्वर ने उनसे बैठकर बात की कि इसकी वजह क्या है तो उन्होने बताया कि उनकी सबसे छोटी बेटी नाज़िया जो अभी पढ़ ही रही थी पंजाब यूनिवेर्सिटी में उसको इंटेलिजेंस में भर्ती होने के लिए कहा गया है.... अगर नाज़िया इंटेलिजेंस में नहीं जाती है तो उसके साथ तो जो कुछ बुरा हो सकता है होगा ही.... पूरे परिवार को हिंदुस्तानी जासूस साबित करके देश के गद्दारी के जुर्म में मौत की सजा दी जा सकती है। ये सुनकर मुनव्वर भी सकते में आ गया फिर वो बाप-बेटे दोनों ने लीग के उन लोगों से मुलाक़ात कि तो उन्होने बताया कि उनके परिवार पर ये दवाब इसलिए दिया जा रहा है क्योंकि वो उस तरफ के रहनेवाले हैं वहाँ के इलाके में उनकी जान-पहचान, रिश्तेदारियाँ भी हैं नाज़िया को इंटेलिजेंस में जुर्म की छानबीन के लिए नहीं.... हिंदुस्तान में रहकर वहाँ की खुफिया जानकारियाँ जुटाने के लिए भेजा जाएगा... साथ ही उसे वहाँ के स्थानीय लोगों में से अपने एजेंट भी तैयार करने होंगे।

दोनों बाप-बेटे ने जवाब देने के लिए वक़्त मांगा तो उन्हें कहा गया कि एक हफ्ते के अंदर जवाब दें वरना हुकूमत उनके खिलाफ कार्यवाही शुरू कर देगी। घर आकर उन्होने घर के बाकी सदस्यों से भी बात की तो मुजफ्फर के छोटे बेटे ज़ुल्फिकार ने कहा कि कोई भी फैसला करने से पहले एक बार नाज़िया कि भी राय ले ली जाए.... क्योंकि फैसले का असर सबसे पहले और सबसे ज्यादा तो उसी पर पड़ना है और नाज़िया कोई अनपढ़ घरेलू लड़की नहीं यूनिवर्सिटी में पढ़नेवाली दुनिदारी को समझने वाली ज़हीन लड़की है

नाज़िया को बुलाया गया और सारा मामला उसके सामने रखा गया तो उसने कहा कि वो सिर्फ खंडन कि हिफाजत ही नहीं मुल्क के लिए भी इस काम को करने को तैयार है... इस पर मुजफ्फर की आँखों में नमी आ गयी

“नाज़िया जो गलती मेंने की, यहाँ आकर... आज वही गलती तुम करने जा रही हो.... हमारा मुल्क वो है जहां हमारे अपने हों... में लाहौर का नहीं पटियाला का हूँ... ये अहसास मुझे मेरे परिवार या मेरे ज़मीर ने नहीं......... यहाँ के वाशिंदों ने कराया...इस मुल्क की हुकूमत ने कराया... कि मेरा असली मुल्क वो था जहां मेरे घर-परिवार, यार-दोस्त, जान-पहचान के लोग रहते थे.... यहाँ तो हम अपने पंजाब में होते हुये भी बाहरी .... महाजिर हैं....”

“अब्बा आप अपनी जगह सही हैं... और नाज़िया अपनी जगह.... आप पटियाला में पैदा हुये, रहे इसलिए आपको और अम्मी को वो अपना मुल्क लगता है.... लेकिन हम.... हम इसी सरजमीं पर पैदा हुये हैं यही हमारा मुल्क है... और में नाज़िया के फैसले से इत्तिफाक़ रखता हूँ.... रही बात महाजिर होने की तो... वहाँ भी सब आपके साथ नहीं होंगे कुछ तो खिलाफ होंगे ही... ऐसे ही यहाँ भी सब आपके खिलाफ नहीं... कुछ तो साथ देनेवाले हैं ही”

आखिर में तमाम बहस के बाद .... नाज़िया का फैसला उन अफ़सरान को बता दिया गया और उन्होने नाज़िया कि नयी पहचान के दस्तावेज़ बनवाए और उसे ट्रेनिंग देकर हिंदुस्तान भेज दिया गया.... अजमेर की दरगाह पर जियारत और दिल्ली-पटियाला में रिशतेदारों से मुलाक़ात के वीसा पर।

यहाँ आकर नाज़िया ने पहले से मौजूद अपने देश के इंटेलिजेंस एजेंट से मुलाक़ात की और फिर उसका रूट प्लान बना दिया गया कि वो यहाँ से वापस लाहौर जाएगी और उसके बाद राजस्थान के रास्ते वापस हिंदुस्तान में घुसेगी... जिसका इंतजाम अजमेर में मिले एजेंट ने करा दिया... उसके बाद उसे दिल्ली में रुकने और काम शुरू करने का इंतजाम दिल्ली में मौजूद एजेंट ने करा दिया.... और इस तरह नाज़िया ने दिल्ली में अपनी जड़ें जमाना शुरू कर दिया लेकिन उसी वक़्त 1975 में हिंदुस्तान में इमरजेंसी लगा दी गयी और लोगों के बारे में ज्यादा ही छानबीन होने लगी तो किसी तरह से नाज़िया दिल्ली से निकलकर पटियाला पहुँच गयी और वहाँ अपने परिवार के लोगों कि मदद से छुप गयी... उन लोगों ने भी ये जानकर कि वो मुजफ्फर हुसैन की बेटी है... उसका पूरा ख्याल रखा लेकिन इमरजेंसी का वक़्त जैसे जैसे बढ़ता जा रहा था... नाज़िया के लिए हालात मुश्किल होते जा रहे थे तो परिवार के लोगों ने फैसला किया कि ऐसे नाज़िया को रखने से नाज़िया का तो फंसना तय था ही... उन सबको भी सरकार के कहर का सामना करना पड़ सकता है... इसलिए आखिर में फैसला हुआ कि नाज़िया कि शादी परिवार के ही एक लड़के आसिफ से करा दी गयी और खास लोगों जिन्हें पता था कि नाज़िया पाकिस्तानी है... के अलावा सबको बताया गया कि ये एक दूर के रिश्तेदार कि बेटी है... दिल्ली की रहनेवली है... इसके परिवार में कोई नहीं रहा इसलिए ये यहाँ रहने आयी थी और अब उन्होने इसे अपनी बहू बना लिया.... शादी के करीब एक साल बाद नाज़िया ने एक बेटी को जन्म दिया... जिसका नाम नीलोफर रखा गया... नीलोफर जहां।

नीलोफर की कहानी आगे जारी रहेगी

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Jabardast update Thakur saab
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#72
(07-05-2020, 02:57 PM)Some1somewhr Wrote: Jabardast update Thakur saab

dhanyawad rana ji

agla update prastut hai
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#73
(07-05-2020, 02:57 PM)Some1somewhr Wrote: Jabardast update Thakur saab

dhanyawad rana ji

agla update prastut hai
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#74
अध्याय 31


अब तक आपने पढ़ा कि नीलोफर सभी के सामने अपनी कहानी सुनाती है कि कैसे उसके नाना पटियाला से लाहौर जाकर बसे और कैसे उसकी माँ नाज़िया एक जासूस के रूप में दिल्ली आयी... फिर यहाँ आपातकाल लग जाने पर दिल्ली से पटियाला अपने परिवार के लोगों के पास पहुँच गयी.... जहां उसके पकड़े जाने के दर से उसके रिशतेदारों ने उसकी शादी परिवार के ही एक लड़के आसिफ से करा दी...और शादी के साल भर के अंदर ही उसके एक बेटी हुई जिसका नाम नीलोफर रखा गया...

नीलोफर ने अब आगे बताना शुरू किया

नाज़िया अब सबकुछ भूलकर पटियाला में अपने पति और बेटी के साथ रहने लगी... यहाँ कि सरकार ने उस पर कोई ध्यान भी नहीं दिया क्योंकि वो पासपोर्ट वीसा द्वारा तो यहाँ आयी नहीं थी... जिससे उसके हिंदुस्तान आने का कोई रेकॉर्ड होता.... और ना ही उसके परिवार वाले ही उसकी तलाश कर सकते थे... क्योंकि लाहौर में इंटेलिजेंस के अधिकारियों ने उन्हें कह दिया था कि हिंदुस्तान में एमेर्जेंसी खत्म होते ही उसे वापस निकाल लाएँगे...उन लोगों को भी लगता था कि वो या तो हिंदुस्तान में कहीं फंस गयी, मारी गयी या छुप गयी है... जिस वजह से उससे संपर्क नहीं हो पा रहा है

ऐसे ही वक़्त गुजरता गया और फिर 1977 में आपातकाल खत्म हुआ और चुनाव से नयी सरकार बनी... तो अब तक छुपे बैठे सारे इंटेलिजेंस एजेंट सक्रिय हो गए और उन्होने नाज़िया से भी संपर्क करने कि कोशिश की। लेकिन नाज़िया का कोई पता नहीं चल सका... तो उन्होने लाहौर में अपने अफसरान को नाज़िया के लापता होने कि खबर दी... उन्होने भी नाज़िया को मरा हुआ मान लिया... और उसके घरवालों को कह दिया कि वो वहाँ से भागकर कहीं छुप गयी है... इसलिए उसे गद्दार माना जाएगा... अगर ये लोग उसके लिए कोई बवाल करने कि कोशिश करेंगे तो इन्हें भी पूरे खानदान को मुल्क से गद्दारी के जुर्म में फांसी दे दी जाएगी।

इस पर बहुत दिनों तक मुजफ्फर हुसैन और उसके बेटे शांत बैठे रहे...एक तरह से उन्होने नाज़िया को भुला सा दिया लेकिन नाज़िया कि माँ... माँ का दिल अपने बच्चों को ऐसे कैसे भुला सकता है...उसने ज्यादा ज़ोर दिया, बार-बार कहा तो मुजफ्फर और उसके दोनों बेटे फिर जाकर इंटेलिजेंस वालों से मिले और उनसे कहा कि वो उनके रिशतेदारों से पटियाला किसी तरह से उनका संपर्क कराएं... हो सकता है कि वो लोग अपने तरीके से उसे वहाँ ढूंढ सकें। ये सुनकर इंटेलिजेंस वालों कि आँखों में भी चमक आ गयी... उन्हें भी लगा कि हो सकता है इस तरह उन्हें नाज़िया वापस मिल जाए। दुश्मन मुल्क में एक-एक एजेंट कीमती होता है... वो भी उसे खोना नहीं चाहते थे। उन्होने पटियाला में मुजफ्फर के रिशतेदारों कि जानकारी ली और अपने एजेंट जो हिंदुस्तान में थे उन्हें भेज दी... कि इस जगह नाज़िया का सुराग लगाएँ...और जरूरत पड़ने पर उन लोगों को मुजफ्फर का हवाला देकर उसकी बेटी को ढूँढने कि गुजारिश करें... लेकिन उन्हें इस बात कि भनक न लाग्ने दें कि नाज़िया जासूसी के लिए यहाँ आयी हुई थी।

और फिर एक दिन नाज़िया के सामने उसका गुज़रा हुआ कल फिर से आ गया जब एक मौलवी साहब उनके घर आए और मुजफ्फर के हवाले से उसकी बेटी कि गुमशुदगी कि इत्तला दी। पटियाला में नाज़िया के ससुराल वालों को लगा कि इससे नाज़िया को भी खुशी होगी और मुजफ्फर भी निश्चिंत हो जाएगा...इसलिए उन्होने सिलसिलेवार उन मौलवी साहब को सबकुछ बताया और नाज़िया से भी मिलवाया... नाज़िया ने उनसे मुलाक़ात की तो उनकी बातों से ही समझ गयी कि ये उसके परिवार वालों कि ओर से नहीं... इंटेलिजेंस कि ओर से उसका पता करने आए हैं, लेकिन जब वो सामने आ ही गयी तो अब वो कुछ नहीं कर सकती थी। जाते जाते वो मौलवी नजीय को अपना नाम-पता-फोन नंबर दे गया और उसके ससुरालवालों से कह गया कि ये मामला दो देशों.... वो भी दुश्मन देशों के बीच का है... इसलिए नाज़िया को एक बार दिल्ली आकर उनसे मिलना होगा... वहीं से वो उसका कुछ इंतजाम करा देंगे जिससे वो हमेशा पटियाला में रह सके।

परिवार वालों ने इसे साधारण तरीके से लिया लेकिन इस मामले कि गंभीरता को नाज़िया समझती थी, कि अगर वो दिल्ली जाकर उन लोगों से नहीं मिली तो हो सकता है उसकी और उसके पति, बेटी व परिवारवालों कि जान खतरे में पड़ जाए, या फिर अगर वो लोग और कुछ न कर सके तो यहाँ की इंटेलिजेंस को सूचना देकर उसे अवैध रूप से दूसरे देश से आकर यहाँ रहने के जुर्म में पकड़वा दें। अब नाज़िया के सामने सबसे बड़ी मुश्किल ये थी कि इन सब बातों को वो किसी से यहाँ तक कि अपने पति से भी नहीं कह सकती थी... वो लोग यहाँ अच्छे रसूख वाले लोग थे... जासूसी का मामला सामने आते ही क्या पता वो ही नाज़िया को पकड़वा देते... खुद को देशद्रोह और जासूसी के इल्ज़ाम से बचाने के लिए....इसी कशमकश में नाज़िया ने 2-3 दिन निकाल दिये फिर फैसला किया कि वो दिल्ली जाकर उन लोगों से एक बार मिलेगी और किसी ना किसी तरह इस मामले को निपटाएगी.... क्योंकि उसकी एक भी गलती यहाँ उसके ससुराल वालों और लाहौर में उसके घरवालों के लिए बहुत बड़ी मुसीबत बन सकती थी। लेकिन उसके ससुराल वाले उसे अकेले तो जाने नहीं देते उन्होने उसे आसिफ के साथ दिल्ली भेजने का फैसला किया और बेटी भी छोटी थी अभी उसका दूध पीती थी तो उसको तो साथ ले ही जाना था। इस तरह से आसिफ, नाज़िया और नीलोफर तीनों दिल्ली आ गए।

दिल्ली आकर वो नबी करीम के इलाके में एक मस्जिद में उस मौलवी से मिलने गए वहाँ पहुँचने पर उनके रुकने की व्यवस्था मस्जिद के पास ही मौलवी ने एक मकान में की और उन्हें बताया की 1-2 दिन में ही उनके सिलसिले में लाहौर बात करके वो कुछ हल निकलेगा। नाज़िया तो उसकी बातों का मतलब समझ रही थी कि ये आसिफ के सामने कुछ बात नहीं करेंगे और ना ही वो आसिफ के सामने कोई बात कर सकती थी खुलकर।

दूसरे दिन सुबह ही मौलवी ने अपने साथ आए एक लड़के से उन्हें मिलवाया और आसिफ को कहा कि वो उस लड़के के साथ चला जाए और कुछ लोगों से मिले जिनके द्वारा नाज़िया को यहाँ रखने के लिए लीगल कागजात का इंतजाम हो सके। नाज़िया आसिफ को उनके साथ अकेला नहीं भेजना चाहती थी लेकिन फिर उसे लगा कि शायद वो मौलवी उससे बात करने के लिए बहाने से आसिफ को वहाँ से अलग हटा रहा है तो उसने कोई ऐतराज नहीं किया। आसिफ के जाने के बाद मौलवी ने नाज़िया को वापस दिल्ली आकर इंटेलिजेंस का काम करने को कहा तो नाज़िया ने इनकार कर दिया और उनसे उसे अपने परिवार के साथ सुकून से रहने देने कि गुजारिश की जिस पर मौलवी ने कहा कि नाज़िया को आज शाम तक का वक़्त दिया जाता है...अपना फैसला लेने का.... और फैसला यही होना चाहिए कि वो फिर से दिल्ली में अपना काम शुरू करेगी... इस स्तिथि में उसे पटियाला वालों से अलग करने का इंतजाम वो खुद करेंगे और कुछ दिनों में उसे वापस लाहौर भेजने का भी इंतजाम कर दिया जाएगा...... अगर वो इस बात पर तैयार नहीं होती तो यहाँ और वहाँ दोनों जगह ही सिर्फ उसे ही नहीं उसके परिवार को भी इसका अंजाम भुगतना होगा।

नाज़िया सारे दिन कशमकश में उलझी आसिफ के वापस लौटने का इंतज़ार करती रही। उसने फैसला कर लिया था कि अब लाहौर में कुछ भी हो लेकिन वो यहाँ आसिफ और उसके परिवार को सबकुछ सच-सच बताकर इन सब के चंगुल से छूट जाएगी, वो लोग आखिरकार हैं तो उसके खानदानी ही... किसी भी हालत में उसको अपना ही लेंगे और अच्छे रसूखवाले हैं तो शायद किसी तरह से उसके परिवार को भी लाहौर से पटियाला बुलवा सकें तो आगे से सभी यहीं रहेंगे।

शाम हुई और फिर रात हो गयी लेकिन आसिफ वापस लौटकर नहीं आया... रात को मौलवी कुछ लोगों के साथ नाज़िया के पास आया

“ आज दिन में आसिफ का कत्ल हो गया है... लाश पुलिस को मिली है.... उसकी शिनाख्त उसके पास मौजूद कागजात से हो गयी है... पटियाला से उसके घरवाले दिल्ली पहुँच रहे हैं....” मौलवी ने कहा तो नाज़िया जैसे सकते में आ गयी

“क्यों मार दिया उसे... तुमने तो मुझे शाम तक का वक़्त दिया था ना” नाज़िया ने चिल्लाते हुये कहा तो मौलवी मुस्कुरा दिया

“तुझे क्या लगा.... तू यहाँ से वापस लौट जाएगी....जब तक वो जिंदा रहता तू हरगिज वापस नहीं आती...... और सुन उस कत्ल की वारदात को तूने अपने किसी यार के साथ अंजाम दिया है... और तू अपने उसी यार के साथ भाग गयी है” मौलवी बोला

“इससे तुम्हें क्या हासिल होगा.... मुझे यहाँ भी तो पुलिस तलाश करेगी ही” नाज़िया ने रोते हुये कहा

“ये दिल्ली करोड़ों की आबादी का शहर है.... बिना जाने, बिना सुराग के कोई किसी को नहीं पहचान सकता.... चल अब इनके साथ यहाँ से निकल जा और जहां ये लेकर जा रहे हैं वहीं रुकना.... में इस मामले को निपटाकर 2-3 दिन में तुझसे वहीं आकर मिलता हूँ.... फिर देखता हूँ क्या करना है तेरा” मौलवी ने साथ आए लोगों की ओर इशारा करते हुये कहा

“में कहीं नहीं जाऊँगी......... मुझे मारना है तो मार दो, पुलिस के हवाले करना है तो कर दो” नाज़िया ने अपने आँसू पोंछते हुये कहा

“तुझे मारने की क्या जरूरत है” कहते हुये मौलवी ने इशारा किया तो साथ खड़े एक आदमी ने नाज़िया की गोद से नीलोफर को छीन लिया

“इसको मारने का इल्ज़ाम भी तेरे ऊपर ही आयेगा, अगर इसकी लवारीश लाश मिली तो.... और तेरा....तू जासूसी के काम नहीं आएगी तो इन सबके जिस्म कि भूख मिटाने के काम तो आएगी.... और आखिर में यहीं किसी कोठे पर पहुंचा के हमारे मिशन के लिए कुछ फ़ंड में इजाफा कर लिया जाएगा” मौलवी ने मुसकुराते हुये कहा

“ऊपरवाले से डरो... इस मासूम बच्ची को तो बख्श दो....इसने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है....तुम जो कहोगे में करने को तैयार हूँ...बताओ कहाँ जाना है” नाज़िया ने आखिरकार हथियार डालते हुये कहा

नाज़िया पढ़ी लिखी और उस पर भी एक जासूस की ट्रेनिंग लेकर बहुत कुछ जानने समझने लगी थी.... वो भी समझ चुकी थी कि ये लोग जो कह रहे हैं... वो कर भी देंगे और दूसरी बात उसके साथ एक नहीं कई बातें खिलाफ जाती हैं... एक तो वो दूसरे देश से चोरी छुपे यहाँ घुसपेठकरके आयी है, दूसरे वो एक जासूस है... इसलिए उसको मामले में फंसाया जा रहा है.... इस बात पर यकीन करने के बाद भी कोई उसका साथ नहीं देगा ... न पुलिस और ना आसिफ के घरवाले, तीसरे आसिफ के कत्ल हो जाने के बाद.... चाहे वो कातिल न सही... लेकिन ये तो साबित होगा ही कि कत्ल नाज़िया कि वजह से हुआ... तो क्या आसिफ के घरवाले उसे कुबूल करेंगे............. ये सबकुछ बस कुछ ही पल में सोचकर नाज़िया ने फैसला लिया कि.... अब आसिफ तो इस दुनिया मे नहीं रहा... लेकिन अपनी बेटी को वो किसी भी हालत में खतरे में नहीं डालेगी... जो भी, जैसा भी हो...वो अपने ऊपर हर ज़ोर-जुल्म सहेगी लेकिन अपनी बेटी, अपने आसिफ की निशानी को वो एक खुशहाल ज़िंदगी देगी.... बस सही वक़्त और मौका मिलने की देर है....और उसके लिए अभी उसे इन लोगों कि सब बातें मान लेनी चाहिए।

उसी वक़्त वो लोग नाज़िया और उसकी बेटी को लेकर चुपचाप उत्तर प्रदेश के किसी गाँव में पहुँच गए और एक परिवार के साथ उन लोगों के रिश्तेदार के रूप में रुक गए... फिर 2-3 दिन बाद वो मौलवी आया और उससे नाज़िया ने अकेले में बात करने को कहा।

दोनों की बातचीत के बाद नाज़िया काम करने को तो तैयार हो गयी लेकिन उसकी एक ही शर्त थी.... इंटेलिजेंस से जुड़ा ना उसके पास कोई आयेगा और ना ही वो किसी के पास जाएगी.... क्योंकि उसकी बच्ची जब तक छोटी है तो उसे किसी अंजान जगह पर रहने और कम की व्यवस्था करा दी जाए जिससे की वो एक आम पारिवारिक औरत की तरह रह सके ..... साथ ही जो भी कम उसे दिया जाएगा.... वो ऐसा हो जिसे वो अपनी बच्ची को साथ लेकर भी कर सके....और पटियाला या लाहौर के लोगों को किसी भी तरह से ये भरोसा दिलाना होगा की किसी ने आसिफ का कत्ल कर दिया और नाज़िया को अगवा करके ले गए....नाज़िया आसिफ की कातिल नहीं...बल्कि वो भी मज़लूम थी.....और वो अब कहीं किसी से नहीं मिलेगी....हमेशा के लिए यहीं रहकर इंटेलिजेंस का काम देखेगी और अपनी बेटी को पालेगी।

उन लोगों ने उसे दिल्ली के जमुनापार इलाके में नयी आबाद हो रही लक्ष्मी नगर नाम की कॉलोनी में बसा दिया और काम के नाम पर एक सिलाई-कढ़ाई सिखाने का सेंटर खुलवा दिया ...... वहाँ रहनेवाले ज़्यादातर लोग या तो दिल्ली में नौकरियाँ करते थे या पास में बसाये जा रहे नए शहर नोएडा में बन रही फैक्ट्रियों के निर्माण में लगे हुये थे.... ज़्यादातर मिडिल क्लास लोग थे.... ज्यादा गरीब भी नहीं लेकिन पैसे के लिए परेशान भी.... उन लोगों के काम पर जाने के बाद उन घरों की औरतें लड़कियां भी ऐसे काम सीखना और करना चाहती थीं जिससे की कुछ एक्सट्रा आमदनी हो.... तो नाज़िया का सेंटर अच्छा चल पड़ा... साथ ही उन लोगों के लिए भी नाज़िया कुछ छोटे मोटे काम जैसे खबर को इधर से उधर देने का काम करने लगी.... फिर उन लोगों ने नाज़िया को समझाया कि वो अपने पास आनेवाली औरतों लड़कियों में से कुछ छांट कर निकाले जो पैसे के लिए कुछ भी करने को तैयार हो....यहाँ तक कि जिस्म्फ़रोशी भी.... पहले तो नाज़िया ने माना किया लेकिन उन लोगों के दवाब और इस वादे... कि किसी को जबर्दस्ती किसी काम के लिए ज़ोर नहीं दिया जाएगा.... सिर्फ उन्हें ही जोड़ा जाएगा जो अपनी खुशी से शामिल हो और जब तक चाहें तभी तक.....नाज़िया ने अपने पास अनेवाली औरतों लड़कियों को इशारे में ये प्रस्ताव देना शुरू कर दिया.... कुछ औरतें लड़कियां इच्छुक हुईं तो नाज़िया ने उन्हें अपने एजेंट से मिलवाना शुरू किया... ऐसे ही धीरे धीरे नाज़िया इस दलदल में उतरती चली गयी.....

जब धनदा बड़े स्तर पर चलने लगा तो नाज़िया ने नोएडा में एक मकान ले लिया और वहाँ रहकर इस काम को चलाने लगी.... पहले तो वो उन लड़कियों-औरतों को उन एजेंट के हवाले कर देती थी... बदले में वो उसे कुछ न कुछ दे देते थे... जो सही समझते। लेकिन अब इस धंधे को नाज़िया बहुत अच्छे से समझ चुकी थी तो उसने उन एजेंट के काम के अलावा अपने से जुड़ी औरतों-लड़कियों से खुद धंधा करवाना शुरू कर दिया इससे उन रंडियों को भी ज्यादा कमाई होने लगी और नाज़िया को भी दलाली में अच्छा खासा फाइदा होने लगा.... इधर उसकी बेटी नीलोफर भी अब बड़ी हो रही थी, नाज़िया को उसके भविष्य की भी फिकर थी...इस समय नीलोफर कि उम्र आठ साल थी।

1984 की बात है उसे उसके एजेंट ने एक आदमी का पता दिया कि वो उससे मिलकर बात कर ले वो फर्जी पासपोर्ट बनाता है इससे उनके नए एजेंटों को यहाँ घुसने में मदद मिलेगी.... नाज़िया उस पते पर जाकर मिली तो वहाँ एक लड़का मिला जिसने बताया कि जो इस काम को करते हैं वो उनके लिए काम करता है...उनका नाम विजयराज सिंह है... पिछले महीने उनकी पत्नी का देहांत हो गया है तो वो आजकल कम के सिलसिले में न तो यहाँ आ रहे हैं और ना ही कहीं आ-जा रहे हैं... क्योंकि उनके 2 बच्चे हैं उनकी देखरेख के लिए उन्हें अपने घर ही रहना होता है.... वैसे वो चाहें तो अपने घर से ही उसका काम कर दिया करेंगे... यहाँ के काम से जुड़ा सबकुछ वो अपने पास ही घर पर रखते हैं.....तो नाज़िया चाहे तो उनसे मिल सकती है।

नाज़िया ने उस लड़के से विजयराज सिंह का पता लिया तो वो नोएडा में ही उसके घर से 5-6 किलोमीटर दूर रहते थे। नाज़िया उनके घर पहुंची तो वहाँ विजयराज सिंह की बेटी रागिनी और बेटा विक्रम मिला रागिनी तब चौदह पंद्रह साल की और विक्रम सात-आठ साल का लगभग नीलोफर के बराबर का ही था। रागिनी ने नाज़िया को बताया कि विजयराज सिंह किसी कम से कहीं गए हुये हैं और रात तक वापस आ जाएंगे....वो कल सुबह जल्दी आ जाए तो मुलाक़ात हो सकती है...क्योंकि दिन में हो सकता है कि वो फिर कहीं निकल जाएँ

दूसरे दिन नाज़िया सुबह ही नीलोफर को साथ लेकर विजयराज के घर पहुंची तो वो कहीं जाने को तैयार थे....उनके बच्चे भी नहीं दिख रहे थे.... तो उन्होने बताया कि उनके बच्चे कल शाम को उनके बड़े भाई जयराज सिंह के यहाँ चले गए हैं और कुछ दिन वहीं रुकेंगे.... क्योंकि वो घर पर रुक नहीं पते और सारा दिन बच्चे अकेले ही घर पर रहते हैं.... फिर उन्होने नाज़िया से उनके पास आने कि वजह पूंछी तो नाज़िया ने बताया...अभी इन लोगों में बातें चल ही रही थीं कि तभी रेडियो पर सूचना आयी कि देश की प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी की गोली मार्कर हत्या कर दी गयी है नाज़िया ने तुरंत ही अपने घर जाने के लिए बोला और वहाँ से निकलकर मेन रोड पर आयी तब तक पुलिस की गाडियाँ शहर में बल्कि पूरे देश में ही धारा 144 लगाए जाने कि घोषणा करती हुई दिखीं.... साथ ही वो सभी को जहां हैं वहीं अंदर रहने की चेतावनी भी दे रहे थे.... नाज़िया अपनी बेटी को लिए असमंजस में खड़ी थी वहाँ बस-रिक्शा कुछ भी नहीं था और बेटी को लेकर इतनी दूर कैसे जाए। तभी विजयराज सिंह उसके पास पहुंचे और बोले कि अब अप अपने घर नहीं जा पाओगी इसलिए यहीं मेरे घर रुक जाओ...शाम तक सब शांत रहा तो वो खुद साथ जाकर छोड़ आएंगे...अभी बच्ची के साथ अकेली औरत का ऐसे माहौल में निकलना सही नहीं, नाज़िया को भी लगा कि यही सही रहेगा और वो विजयराज सिंह के साथ उनके ही घर वापस आ गयी।

नीलोफर कि कहानी जारी रहेगी.......... ये सिर्फ नीलोफर कि ही नहीं.........इस परिवार के कुछ और लोगों से भी जुड़ी बातें सामने लेकर आएगी...........जैसे अभी विजयराज सिंह के बारे में भी कुछ छुपे हुये पहलू सामने आ रहे हैं

साथ बने रहिए

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#75
Intresting plot and twist waiting for next updates
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#76
अध्याय 32.


अब तक आपने पढ़ा कि नीलोफर अपनी कहानी सबको बता रही है...जिसमें नाज़िया नीलोफर को लेकर विजयराज से मिलने उसके घर गयी थी लेकिन उसी समय प्रधानमंत्री कि हत्या के कारण बंद हो जाने कि वजह से उसे विजयराज के ही घर रुकना पड़ा

अब आगे...........................

“नाज़िया जी! आप आराम से बैठिए में कुछ खाने कि व्यवस्था करता हूँ... इतना सुबह-सुबह अपने भी कुछ नहीं खाया होगा और बच्ची को भी भूख लगी होगी..” विजयराज ने कहा

“अरे आप क्या व्यवस्था करेंगे... मेरे होते हुये... अगर आपको ऐतराज ना हो तो मुझे एक बार रसोई में समझा दीजिये... में खाना बना लेती हूँ... फिर ये कोई थोड़ी बहुत देर का मसला नहीं है.... शाम तक ही ये मामला शांत हो पाएगा... तो ढंग से खाना बनाकर सभी खा-पी लेते हैं” नाज़िया ने कहा

“मेरे यहाँ ऐसा कोई ऐतराज नहीं होता...चलिये में आपको रसोई में दिखा देता हूँ” विजयराज ने कहा और नाज़िया को लेकर रसोई में आ गया...और सब सामान क्या, कहाँ है...समझा दिया। नाज़िया खाना बनाने लगी और विजयराज बाहर कमरे में बैठकर नीलोफर से बातें करने लगा

“बेटा! आपका नाम क्या है?” विजयराज ने पूंछा

“जी! नीफ़ोफर जहां” नीलोफर ने कहा

“आप किस क्लास में पढ़ती हैं”

“जी! सेकंड क्लास में”

“आपके पापा क्या करते हैं”

“मेरे पापा नहीं हैं... मेरी सिर्फ मम्मी हैं”

“ओहह .... और कौन-कौन हैं घर में”

“बस में और मेरी मम्मी...बस दो ही लोग हैं हमारे घर में”

“आपके दादा-दादी, नाना-नानी कोई भी आपके साथ नहीं रहते”

“मेरे कोई दादा-दादी, नाना-नानी हैं ही नहीं.... मेंने बताया ना कि हम बस दो ही लोग हैं घर में”

विजयराज को कुछ अजीब लगा, उसने बच्ची से आगे कोई सवाल नहीं पूंछा...और वहीं अलमारी में रखे विक्रम के खिलौने उठाकर नीलोफर को दे दिये... जिनसे वो खेलने लगी। कुछ देर बाद नीलोफर भी चाय बनाकर ले आयी और बताया कि सब्जी बनते ही रोटियाँ सेक लेगी... तब तक चाय पीते हैं।

“नाज़िया जी! अगर आपको ऐतराज ना हो तो आपसे कुछ निजी सवाल पूंछ सकता हूँ?” विजयराज ने चाय पीते हुये अचानक नाज़िया से कहा

“जी हाँ! जरूर... लेकिन हो सकता है में किसी सवाल का जवाब ना देना चाहूँ तो आप उसके लिए कोई दवाब नहीं डालेंगे और ना ही बुरा मानेंगे” नाज़िया ने सधे हुये शब्दों में कहा

“ठीक है.... में वैसे भी आपसे कोई ज़ोर जबर्दस्ती नहीं कर रहा की आप मुझे बताएं ही.... में सिर्फ अपने मन में आए कुछ सवाल आपके सामने रखना चाहता हूँ...आपको अगर सही लगे तो मुझे जवाब दे दें” विजयराज ने नाज़िया को आश्वस्त करते हुये कहा

“कोई बात नहीं...आप पूंछिए क्या पूंछना चाहते हैं आप” नाज़िया ने भी मुसकुराते हुये कहा

“आपके परिवार में कौन-कौन हैं.... और आपके पति...उनके बारे में...” विजयराज की बात पूरी होने से पहले ही नाज़िया बोल पड़ी

“मेरे परिवार में कोई भी नहीं है... और नेरे पति की भी मौत हो चुकी है 7 साल पहले... जब नीलु 1 साल की थी.... और कुछ” नाज़िया ने तेज लहजे में कहा और उठकर रसोई की ओर चल दी

“आप नाराज क्यों हो रही हैं... मेंने तो आमतौर पर जैसे एक दूसरे के बारे में जानते हैं उसी तरह से पूंछा है.... अगर आपको कोई ऐतराज है तो फिर रहने दें... में अब ऐसी कोई बात नहीं करूंगा आपसे” विजयराज ने पीछे से कहा लेकिन नाज़िया ने पलटकर कोई जवाब नहीं दिया और रसोई में खाना बनाने लगी। विजयराज भी कुछ देर उसे रसोई में खाना बनाते देखता रहा फिर जब नाज़िया ने उसकी ओर दोबारा देखा ही नहीं तो वो भी चुपचाप सामने पड़ा आज का खबर उठाकर पढ़ने लगा.... हालांकि आज की सबसे बड़ी खबर इस अखबार में नहीं थी........ लेकिन और बहुत कुछ ऐसा था जो पढ़ने में उसकी रुचि थी।

थोड़ी देर बाद नाज़िया खाना लेकर वहीं कमरे में आ गयी और विजयराज को खाना परोस कर दिया तो विजयराज ने उससे भी खाना खाने को कहा। उसने अपने लिए भी खाना परोसा और नीलोफर के साथ बैठकर खाना खाने लगी, खाना खाने के बाद विजयराज ने कहा की वो थोड़ा बाहर का माहौल देखकर आता है... तब तक वो दोनों माँ-बेटी आराम कर लें। नाज़िया ने अपने और विजय के बर्तन उठाए और रसोई में लेजकर साफ करने लगी। नीलोफर खाने के बाद वहीं बिस्तर पर लेट गयी और कुछ देर में सो गयी। तभी विजय बाहर से बहुत तेजी से अंदर आया और दरवाजा बंद करके सीधा नाज़िया के पास पहुंचा

“नाज़िया जी! बहुत मुश्किल खड़ी हो गयी... बाहर तो दंगे हो रहे हैं, यहाँ तक की लोग घरो, फैक्ट्रियों में आग लगा रहे हैं?” विजय ने कहा तो नाज़िया ने चौंककर पीछे मुड़कर देखा

“विजय जी! ये तो मेरे लिए बहुत मुश्किल हो जाएगी” नाज़िया घबराती हुई सी बोली

“आपके घर में और भी कोई है क्या?” विजय ने पूंछा

“नहीं! बस हम दोनों माँ-बेटी ही हैं। क्यों क्या हुआ?” नाज़िया बोली

“तो फिर ये भी अच्छा है की अप नीलू को भी साथ लेकर आयीं... वरना आपको वापस भी जाना ही पड़ता... और जैसा माहौल है अभी बाहर... उसमें...आपका जाना तो बिलकुल सुरक्षित नहीं है... साथ ही वहाँ घर में भी अकेली औरत और बच्ची का रहना भी ठीक नहीं” विजय ने कहा तो नाज़िया सोच में डूब गयी, उसे बहुत घबराहट भी हो रही थी

“आप चिंता मत करो, यहाँ ये इलाका सुरक्षित है... आसपास के लगभग सभी मुझे जानते-पहचानते हैं, इस घर में आपको कोई खतरा नहीं है.... अगर आपको मुझपर भरोसा है तो अभी 1-2 दिन आप अपने घर मत जाओ...यहीं रुको वहाँ आपके साथ और कोई है भी नहीं...और पता नहीं कैसा माहौल हो” विजय ने नाज़िया को दिलासा देते हुये कहा तो नाज़िया फिर सोच में डूब गयी और थोड़ी देर बाद हाँ में अपनी गर्दन हिला दी

ऐसे ही उन दोनों में आपस में काफी देर तक कोई बात नहीं हुई... फिर नाज़िया ने विजय से कहा... “एक बात बताइये आप जो पासपोर्ट बना कर देते हैं इससे विदेश भी जा सकते हैं क्या?”

“हाँ भी और नहीं भी.... कुछ कहा नहीं जा सकता... क्योंकि दूसरे देश से जब वीसा लेते हैं तो वो अगर यहाँ विदेश मंत्रालय में पासपोर्ट की डीटेल जांच के लिए भेज देंगे तो पकड़े जाने की संभावना बहुत होती है....वैसे में सिर्फ उनको ही ये बनाकर देता हूँ जिन्हें यहाँ पर रहने के लिए अपनी पहचान का प्रमाण-पत्र चाहिए... क्योंकि ऐसे मामले में ज्यादा जांच नहीं होती.......... आपको क्या विदेश जाने को चाहिए?” विजयराज ने गंभीरता से नाज़िया को देखते हुये पूंछा....

“में कहाँ जाऊँगी... सुबह इस खबर की वजह से जल्दबाज़ी मे आपको मैं पूरी बात नहीं बता पायी.... ये मुझे अपने लिए नहीं चाहिए.... ये उन लोगों के लिए चाहिए जिनके पास कोई भी कागजात नहीं होते अपनी पहचान साबित करने के... कि वो यहाँ के रहनेवाले हैं.... ये काम हमें आपसे एक बार नहीं करवाना बल्कि आपके पास ये काम आता रहेगा...जब भी हमें जरूरत पड़ेगी” नाज़िया ने कहा

“हमें? मतलब आप के साथ कोई और भी है इस मामले में? और वो कौन लोग हैं जिनके लिए ये बनवाने हैं? देखिये कहीं कोई बड़ा बवाल ना खड़ा हो जाए...जिसमें आप तो फँसो ही साथ में मुझे भी फंसा दो.... मेरे बिना माँ के बच्चे हैं....” विजयराज ने शक भरी आवाज में कहा

“विजय जी! आप के ही नहीं मेरे भी बेटी है, और उसका भी मेरे सिवा कोई नहीं... अगर आपको मुझ पर भरोसा है तो ये समझ लो की आपसे ऐसा कोई काम नहीं करवाऊंगी जो अप किसी परेशानी में फँसो” कहने को तो नाज़िया ने विजय को ये बोल दिया लेकिन अपनी ही काही बात पर खुद उसे भी भरोसा नहीं था

“अच्छा ये तो बताइये कि आप क्या करती हैं... ?” विजय ने नाज़िया से पूंछा

“जी मेरा महिलाओं को सिलाई और ऐसे घरेलू काम सीखने का केंद्र है जहां से सीखकर वो घर बैठे कोई काम करके कुछ पैसे कमा सकें...” नाज़िया ने बताया

“ये तो अच्छी बात है... मेरे संपर्क में भी ऐसी बहुत सी औरतें लड़कियाँ आती रहती हैं जो कुछ करना चाहती हैं...लेकिन सीखने कि सुविधा नहीं... आप मुझे अपने केंद्र का पता बता दें... में कुछ को आपके पास भेज दूंगा” विजयराज ने बड़े साधारण तरीके से कहा तो नाज़िया ने उसे अपना पता दे दिया....... क्योंकि वो अपने घर में ही वो केंद्र चलाती थी। हालांकि उसका मन तो नहीं था अपने बारे में ज्यादा जानकारी विजयराज को देने की लेकिन इस स्टीठी में जब कि उसे विजयराज से ऐसा काम भी निकालना था जो और कहीं से आसानी से नहीं होता और फिर विजयराज कि बातों से भी उसे ऐसा लगा कि उसने साधारण तौर पर ये जानकारी ली है

पता लेने के बाद विजयराज ने उससे कहा कि वो भी आराम कर ले नीलोफर के पास ही लेटकर। चाहे तो अपने कमरे का दरवाजा भी बंद कर ले। और वो खुद दूसरे कमरे में आराम करने चला गया।

शाम को लगभग 5 बजे नाज़िया की आँख खुली तो उसने कमरे का दरवाजा खोलकर बाहर झाँका तो उसे दूसरे कमरे का दरवाजा खुला तो दिखा लेकिन विजयराज कहीं नहीं दिखा तो वो बाहर निकालकर उस कमरे में झांकी। विजयराज सोया हुआ था, उसने रसोई में जाकर चाय बनाई और विजयराज के कमरे के दरवाजे पर खटखटाकर उसे आवाज दी। विजयराज ने उठकर देखा नाज़िया 2 कप में चाय लिए खुले दरवाजे में खड़ी थी। विजयराज सावधानी से उठकर बैठ गया, पहले तो उसने जाकर नाज़िया से चाय लेने कि सोची फिर उसने ध्यान दिया कि जैसे आमतौर पर सॉकर उठने पर सभी आदमियों के साथ होता है...उसका भी लिंग खड़ा हुआ था तो वो चुपचाप बैठ गया और नाज़िया की ओर हाथ बढ़ा दिया चाय लेने के लिए, नाज़िया ने कमरे में अंदर आकर उसे चाय दी और अपनी चाय लेकर वापस अपने कमरे में चली गयी।

“में जरा बाहर का माहौल देख आऊँ और जरूरी सामान भी ले आता हूँ... पता नहीं कर्फ़्यू न लग जाए, तुम दरवाजा अंदर से बंद कर लेना, चाहो तो खाना भी बना लो बच्चों को भूख जल्दी लगती है” नाज़िया ने अभी चाय पीकर अपना खाली कप रखा ही था कि विजयराज ने उसके कमरे के दरवाजे पर आकर कहा और बाहर की ओर चल दिया। नाज़िया भी अपने कमरे से निकालकर उसके पीछे-पीछे मेन गेट पर आयी और उसके बाहर निकलते ही दरवाजा बंद कर नीलोफर को जगाने कमरे में चली गयी।

करीब साढ़े छः बजे नाज़िया को बाहर कुछ घोषणा होती मालूम पड़ी तो उसने ध्यान से सुना कि शहर में कर्फ़्यू लगा दिया गया है। सुनते ही उसे घबराहट हुई क्योंकि विजयराज अभी तक वापस नहीं आया था। फिर उसने सोचा कि तब तक खाना ही बना लेती हूँ... शायद यहीं कहीं आसपास हो या नहीं भी आ सका तो उसे और नीलोफर को तो खाना खाना ही था, अब घर पहुँचने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता।

‘खट-खट-खट’ नाज़िया रसोई में खाना बना रही थी कि तभी दरवाजे पर खटखटने की आवाज हुई तो वो दर गयी तभी उसे बाहर से विजयराज की आवाज सुनाई दी जो उसका नाम लेकर पुकार रहा था। नाज़िया ने जल्दी से जाकर दरवाजा खोला तो विजयराज तुरंत अंदर घुसा और दरवाजा बंद कर लिया

“कहाँ चले गए थे आप, पता है में कितना डर गयी थी, यहाँ कर्फ़्यू भी लग गया” नाज़िया ने घबराहट और गुस्से के मिले-जुले भाव से कहा तो विजयराज उसे देखता ही रह गया

“बस यहीं पास तक गया था... फिर करफेव लग गया तो अंदर के रस्तों से बचते-बचाते आया इसीलिए देर गो गयी” कहते हुये विजयराज की आँखों में भी थोड़ी नमी उतार आयी और आवाज भी भर्रा गयी तो नाज़िया को लगा की शायद उसे ऐसे नहीं कहना चाहिए था

“सॉरी विजय जी में डर गयी थी इसलिए गुस्से में आपको ऐसे ज़ोर से बोल दिया। चलिये खाना खा लीजिये” नाज़िया ने कहा तो विजयराज ने हाँ में सिर हिलाया और नाज़िया के पीछे-पीछे उसके कमरे में पहुंचा और वहाँ बैठकर दोनों ने खाना खाया। नीलोफर को नाज़िया ने पहले ही खाना खिला दिया था और वो खेलने में लगी हुई थी।

खाना खाकर नाज़िया बर्तन उठाकर रसोई में चली गयी इधर विजयराज नीलोफर के साथ बैठकर उसका खेल देखने लगा। थोड़ी देर बाद नाज़िया रसोई से बर्तन वगैरह साफ करके आयी और नीलोफर को सोने के लिए लिटाया और थोड़ी देर में वो सो गयी। नीलोफर के सोने के बाद नाज़िया ने विजयराज की ओर देखा जैसे कह रही हो की अब आप भी जाकर सो जाओ, लेकिन विजयराज का घर था तो वो कहने में झिझक भी रही थी।

“नाज़िया जी! आपसे कुछ बात करनी थी, यहाँ नीलोफर की नींद खराब हो सकती है तो दूसरे कमरे में चलकर बात करते हैं” विजयराज ने नाज़िया की सवालभरी नजर को देखकर कहा

“जी! ऐसी कोई बात नहीं... हम यहाँ भी बात कर सकते हैं”

“आप भरोसा रखें में आपके साथ कोई ज़ोर जबर्दस्ती नहीं करूंगा। सिर्फ कुछ बातें करनी हैं” विजयराज ने कहा तो कुछ सोच-समझकर नाज़िया उठकर उसके साथ चल दी। दूसरे कमरे में जाकर नाज़िया चुपचाप खड़ी हो गयी। विजयराज ने बेड पर बैठते हुये उसे भी सामने पड़ी कुर्सी पर बैठने को कहा

“बैठिए नाज़िया जी! आज में आपके घर गया था.... नोएडा में मुझे और मेरे परिवार को जानने वाले 1-2, 10-5 नहीं सैकड़ों हैं... हम नोएडा की शुरुआत से यहाँ रह रहे हैं... उससे पहले आपकी तरह लक्ष्मी नगर में भी रहते थे ..... मुझे सुबह से ही आपकी शक्ल कुछ जानी पहचानी लग रही थी, लेकिन जब आपने अपने महिला प्रशिक्षण केंद्र के बारे में बताया तो मुझे ध्यान आ गया की लक्ष्मी नगर में भी आपका यही काम था। अब कहानी ये है कि मुझे आपके बारे में इतना तो पता है आप इस प्रशिक्षण केंद्र कि आड़ में औरतों-लड़कियों से धंधा तो कराती ही हैं.... मतलब सभी से नहीं .... क्योंकि साफ सुथरी छवि के लिए आपका प्रशिक्षण केंद्र अपना काम भी सही तरीके से करता है। लेकिन आपसे कुछ लोग ऐसे भी मिलने आते हैं जो ना तो आपके इन दोनों कामों से जुड़े हैं और ना ही आपके घर-परिवार या रिश्तेदार हैं” विजयराज ने जब इतना कहा तो नाज़िया कुर्सी पर सिर झुकाये बैठी रही और उसकी आँखों से आँसू बहने लगे लेकिन उसने विजयराज कि किसी भी बात का कोई जवाब नहीं दिया

“नाज़िया जी मेरा मक़सद आपको बेइज्जत करना या आपका दिल दुखाना नहीं था... जितना मेंने आपको समझा है या आपके बारे में जाना है... मुझे लगता है कि आपको कोई बहुत बड़ा अपराधी इस्तेमाल कर रहा है और आप डर या मजबूरी में उसके लिए ये सब कर रही हैं....... आज मेरे देर से लौटकर आने पर अपने जिस तरह मुझे डांटा... मेरी आँखों में आँसू आ गए... लेकिन ये नहीं कि मुझे बुरा लगा, बल्कि मुझे अपनी पत्नी की याद आ गयी... कामिनी भी मुझे ऐसे ही बोलती थी... मुझे आपमें अपनी कामिनी दिखी, और आपकी बेटी में अपने बच्चे... इसीलिए में आपसे ये सब कह रहा हूँ... वरना इतनी बड़ी दुनिया में पता नहीं कितने ही लोग दुखी और परेशान हैं... में किस-किस के बारे में सोचता या कहता फिरूँगा” विजयराज ने कहा

“विजय जी आपने जो कुछ भी सुना या समझा है मेरे बारे में सब सही है... लेकिन में जिस भँवर में फंसी हूँ वो आपकी सोच से कहीं बहुत बड़ा है... आज मेरे साथ मेरे पति कि इकलौती निशानी.... नीलू, नीलोफर न होती तो में अपनी जान देकर भी इस जाल से छूट जाती.... आप शायद कुछ नहीं कर पाएंगे...आप ही क्या, शायद कोई भी कुछ नहीं कर पाएगा.... अब तक में आपके सामने खुली नहीं थी.... लेकिन अब सबकुछ आपके सामने है तो...... ये सब दुख दर्द सब भूलकर, एक दूसरे के दर्द को अपनेपन के अहसास से मिटा सकते हैं..... आपने अभी कहा ना कि मुझमे आपको अपनी पत्नी दिखी, आप भी मेरी ज़िंदगी के पिछले कुछ सालों में दूसरे व्यक्ति हैं... मेरे पति के बाद... जिसने मेरे मन को महसूस किया...तन से पहले” नाज़िया ने सिर उठाकर विजयराज की आँखों में देखते हुये कहा

“नाज़िया जी वक़्त आगे क्या रंग दिखाये लेकिन, अभी तक मेंने किसी कि मजबूरी का फाइदा नहीं उठाया... और जिससे भी संबंध जोड़े तो सिर्फ तन से नहीं मन से... मुझे सिर्फ आपका शरीर नहीं चाहिए.... मन में भी जो दर्द है... मुझे दे दीजिये... शायद आपका मन कुछ हल्का हो सके” विजयराज ने उसकी ओर हाथ बढ़ते हुये कहा तो नाज़िया उसका हाथ पकड़कर कुर्सी से खड़ी हुई और दोनों ने खड़े होकर एक दूसरे को बाहों में भरकर आँखों के रास्ते दर्द बहाना शुरू कर दिया। विजयराज नाज़िया को लेकर फिर बेड पर बैठ गया और उसे सीने से लगाकर सबकुछ बताने को कहा।

नाज़िया ने धीरे-धीरे ये सबकुछ विजयराज को बताया... कि कैसे उसके पिता यहाँ से लाहौर गए और कैसे उसकी शादी पटियाला में हुई........... और....और...और... कैसे आज वो किसी अपने से मिल भी नहीं सकती... एक मशीन कि तरह उन लोगों लिए हर अच्छा बुरा काम कर रही है... सिर्फ अपनी बेटी की खातिर... लेकिन जैसे-जैसे बेटी बड़ी होती जा रही है...उसकी चिंता भी बढ़ती जा रही है... कहीं नीलोफर की ज़िंदगी भी इसी दलदल में ना तबाह हो....और ये दिखने भी लगा है उसे... लेकिन मजबूर है...कि कुछ कर भी नहीं सकती...और कोई रास्ता और न कोई सहारा। विजयराज ने उससे कहा कि वो कोई बहुत पावरफुल या सम्पन्न व्यक्ति नहीं है......... लेकिन तिकड़मी है... बहुत बड़ा तिकड़मी... वो कुछ ना कुछ करके नाज़िया को इस सब से बाहर निकलेगा... जिससे वो आगे चलकर अपनी बेटी को एक सुकून भरी ज़िंदगी दे सके।

.............................................................
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#77
(17-05-2020, 12:12 AM)playboy131 Wrote: Intresting plot and twist waiting for next updates

abhi to lagbhag 50 update tak kahani ka buildup chalega............uske bad asli kahani flashback mein chalegi

aapko pasand ayi.......thanks 

padhte rahiye............. abhi jindgi ke naa jane kitne rang samne ayeinge.................
aur naa jane kitni prem kahaniyan..........

abhi tak sirf prabal aur anupama ki prem kahani ki shuruat hoti lag rahi hai...........
lekin kya ye prem kahani parwan chadhegi
kya ragini ki bhi koi prem kahani hai
vikram-neelofar ki prem kahani to apke samne aati hi ja rahi hai

aur................ apko ek khas baat bata du...............
ye kahani vikram ki ya ragini ki nahin hai..........
ye kahani ek pariwar ki hai........ aur us pariwar ke vartman mukhiya Rana Ravindra Pratap Singh yani Rana Ji ki
unke dard, unke prem, unki hawas aur unki ret ke mahal ko pathtar ka kila bana dene wali kabiliyat ki
ye kahani hai..............meri......meri jindgi aur mere apno ki
AATMKATHA hai ye

bas paatron ke naam, sthan aur ghatnaon mein ferbadal kiya gaya hai pehchan mein naa ane ke liye

to.................. abhi meri kahani baki hai, mere dost
abhi tak to sirf naam aya hai...........kam yani kamdev ko to ane do  cool2
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#78
(19-05-2020, 07:24 PM)kamdev99008 Wrote: abhi to lagbhag 50 update tak kahani ka buildup chalega............uske bad asli kahani flashback mein chalegi

aapko pasand ayi.......thanks 

padhte rahiye............. abhi jindgi ke naa jane kitne rang samne ayeinge.................
aur naa jane kitni prem kahaniyan..........

abhi tak sirf prabal aur anupama ki prem kahani ki shuruat hoti lag rahi hai...........
lekin kya ye prem kahani parwan chadhegi
kya ragini ki bhi koi prem kahani hai
vikram-neelofar ki prem kahani to apke samne aati hi ja rahi hai

aur................ apko ek khas baat bata du...............
ye kahani vikram ki ya ragini ki nahin hai..........
ye kahani ek pariwar ki hai........ aur us pariwar ke vartman mukhiya Rana Ravindra Pratap Singh yani Rana Ji ki
unke dard, unke prem, unki hawas aur unki ret ke mahal ko pathtar ka kila bana dene wali kabiliyat ki
ye kahani hai..............meri......meri jindgi aur mere apno ki
AATMKATHA hai ye

bas paatron ke naam, sthan aur ghatnaon mein ferbadal kiya gaya hai pehchan mein naa ane ke liye

to.................. abhi meri kahani baki hai, mere dost
abhi tak to sirf naam aya hai...........kam yani kamdev ko to ane do  cool2

Ohh fir to aage ki updates ka intezar rahega
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#79
अध्याय 33


नाज़िया की आपबीती सुनकर विजयराज को उससे ना सिर्फ हमदर्दी या लगाव हुआ बल्कि उसके शातिर दिमाग में नए नए खुराफाती मंसूबे पनपने लगे….

“नाज़िया जी! अब आप अपनी स्तिथि तो समझ ही रही होंगी... में आपको इन सब से बाहर निकालने के लिए अपनी पूरी कोशिशें करूंगा... लेकिन इसके लिए आपको भी कुछ करना होगा....”

“विजयराज जी! अब में जो कुछ और जैसा कर सकती हूँ... हमेशा तैयार हूँ... आप कुछ कर सकें या नहीं.... लेकिन आपने मेरे लिए कुछ करने का सोचा और कोशिश की यही बहुत है मेरे लिए.... आज मेरे जिस्म की कोई कदर नहीं... फिर भी अगर आपके काम आ सके तो .....” नाज़िया ने अपना प्रस्ताव खुलकर देते हुये भी बात को अधूरा ही छोड़ दिया

“मुझे भी कामिनी के जाने के बाद एक औरत की जरूरत है... लेकिन सिर्फ तन से ही नहीं मन से भी.... जिससे में हर बात कह सकूँ और कर भी सकूँ... और तुमने अपनी ज़िंदगी में जो ठोकरें खाईं हैं.... और उनसे जो सीखा है.... मुझे लगता है... तुम मेरे लिए वो भी कर सकती हो जो कामिनी कभी नहीं कर सकती थी... या यू कहो की कभी नहीं करती.... ऐसे ही में भी तुम्हारे लिए वो कर सकता हूँ जो तुम्हारा पति तुम्हारे लिए नहीं कर सका और शायद कर भी नहीं सकता था.... वास्तव में हम दोनों मिलकर ना सिर्फ घर चला सकते हैं बल्कि दुनिया को चला सकते हैं” कहते हुये विजयराज ने नाज़िया को बाहों में भरे उसकी आँखों में झाँका और अपने होठों को उसके होठों से मिला दिया....... और फिर दोनों के बीच जिस्म, दिल और दिमाग मिलने का सिलसिला शुरू हो गया ....3 दिन तक कर्फ़्यू रहा... इन 3 दिनों में विजयराज और नाज़िया के बीच ना सिर्फ हवस बल्कि प्यार और अपनापन का भी वो बंधन जुड़ा कि विजयराज ने नाज़िया के सामने शादी का प्रस्ताव रख दिया... और उसे वापस उस घर में लौटने के लिए मना कर दिया... जिस पर नाज़िया ने कहा की वो ऐसे अचानक कैसे सबकुछ छोड़ देगी... अभी तक तो जो हुआ उसके पति के साथ हुआ लेकिन उसके ऐसे गायब होने से तो वो लोग उसके घरवालों को लाहौर में परेशान करेंगे... और हो सकता है पटियाला में उसके ससुराल वालों के लिए भी मुश्किलें पैदा करने लगें।

“तुम अगर ये सोचती हो की किसी तरीके से तुम उनके चंगुल से हमेशा के लिए बच सकती हो... तो वो मौका अभी तुम्हारे पास है... बाद में हो सकता है हमारी कोशिश कामयाब ना हो या वो किसी तरह से तुम्हारे बारे में पता कर लें” विजयराज ने कहा

“लेकिन ऐसे कैसे ... मेरे एकदम से गायब होने से तो वो मुझे ढूँढने लग जाएंगे और उनके कहने पर ही मेंने आपसे संपर्क किया था तो वो आपसे पता करने या आप पर नज़र रखने की भी कोशिश करेंगे, तो भी मुझ तक पहुँच जाएंगे” नाज़िया ने चिंता भरे स्वर में कहा

“देखो... परसों सुबह तुम मेरे पास आयीं और उसके बाद पूरे दिन दिल्ली, नोएडा में बहुत बड़ा दंगा हुआ... जिसमें हजारों लोग लापता हो गए या मारे गए... जिनमें से एक तुम भी हो... मेरे घर में आस-पड़ोस के लोगों या तुम्हारे उन साथियों ने अगर नज़र राखी होगी तो, तुम्हें आते हुये देखा...और वापस जाते हुये भी.... जब तुम्हें मैं रोड से वापस लेकर आया था तब तक पुलिस सबकुछ बंद करा चुकी थी और ज़्यादातर लोग अपने घरों में वापस छुप गए थे.... तो मुझे लगता है कि किसी ने शायद ही तुम्हें यहाँ वापस लौटते हुये देखा होगा... और इन 3 दिनों से पूरे शहर में कर्फ़्यू लगा हुआ है... अगर कर्फ़्यू से पहले भी किसी ने इस घर पर नज़र रखी होगी तो उन्होने मुझे यहाँ से अकेले जाते और अकेले आते ही देखा होगा... तुम तो इस घर से बाहर निकली ही नहीं हो... 1-2 दिन में ही तुम्हारे घर के एरिया में रहनेवाला मेरा कोई जानकार तुम्हारे घर के कई दिन से बंद होने की रिपोर्ट पुलिस को देगा... या शायद पुलिस ही दंगे के बाद वहाँ के बंद घरों कि छानबीन करे.... मतलब दोनों हालात में तुम और नाज़िया दंगे में लापता दर्ज हो जाओगी... और ये इतना बड़ा मामला है कि सारी दुनिया को पता है कि इस दिन हजारों बल्कि देश भर में लाखों लोग, मकान, दुकान, फैक्ट्रियाँ खत्म कर दीं गईं... जिनमें से एक नाज़िया भी हो सकती है” विजयराज ने मुसकुराते हुये कहा

“चलो इस बात को मान भी लूँ तो कहीं तो रहूँगी.... अगर यहाँ रही तो पकड़ में आ ही जाऊँगी या कहीं भी आपके साथ रही तो हो सकता है वो लोग आप पर नज़र रखें” नाज़िया ने कहा

“मानता हूँ कि तुम जासूस हो.... लेकिन में भी इतने कारनामे करता हूँ... तो कुछ पैंतरे मुझे भी आते होंगे...आज ही में यहाँ किसी को यहाँ लेकर आऊँगा और अपने बच्चों को भी... और इस घर से न सिर्फ बच्चे बल्कि एक औरत का आना जाना भी सबके सामने बना रहेगा...बस तुम देखती जाओ.... अब जब तुमने मुझ पर भरोसा किया है तो उसे बनाए रखो और चुपचाप जैसे में कहता हूँ करती जाओ” विजयराज ने कहा तो नाज़िया ने भी सोचा कि जितना बुरा उसके साथ हो चुका है... अब उससे ज्यादा तो होना ही क्या है.... घर, परिवार यहाँ तक कि खुद की पहचान भी खत्म हो चुकी... और अभी जिन हालातों में फांसी हुई है... आज वो खुद वेश्यावृत्ति का धंधा चला रही है... कल को बेटी भी उसी दलदल में झोंक दी जाएगी...और वो कुछ नहीं कर पाएगी। हो सकता है विजयराज की योजना काम कर जाए तो कम से कम उसकी अपनी ना सही बेटी कि ज़िंदगी तो सुधार सकती है.... बस यही सोचकर नाज़िया भी विजयराज के कहे अनुसार चलने लगी।

विजयराज उसी दिन कहीं गया और शाम को एक औरत और उसके साथ 3 बच्चों को लेकर घर आया... जिनमें से एक लड़का रागिनी की उम्र का दीपक, एक लड़की लगभग नीलोफर की उम्र की हेमा और 1 लड़की ज्योति जो छोटी थी। उसने नाज़िया से मिलवाया कि ये उसकी बहन विमला और उसके बच्चे हैं और ये अब कुछ दिन यहीं रहेंगी कल वो अपने बेटे बेटी को भी बड़े भाई जयराज के यहाँ से ले आयेगा। अगले दिन वो रागिनी और विक्रम को भी ले आया और साथ में एक और औरत भी अपनी 2 बेटियों के साथ आयी जो कि वहीं पास में ही रहती थी और इनकी रिश्तेदार होने के साथ-साथ विमला की बचपन की सहेली भी थी... उसका नाम मुन्नी था, मुन्नी की बड़ी बेटी का नाम ममता था जो लगभग रागिनी की उम्र की थी और दूसरी बेटी का नाम शांति था जो नीलोफर की उम्र की थी....

इन सब के आने के बाद खाना वगैरह विमला, मुन्नी और नाज़िया ने मिलकर बनाया...फिर सबने खाना खाया और रात को मुन्नी अपने बच्चों को लेकर वापस अपने घर चली गयी... और वो सब बिना किसी खास घटना के विजय के घर ही सो गए....

दूसरे दिन भी मुन्नी दोबारा अपनी बड़ी बेटी के साथ उनके घर आयी और उनके घर मौजूद अपनी छोटी बेटी शांति को भी साथ लेकर विमला के साथ बाज़ार गयी... ऐसे ही 2-3 दिन विमला और मुन्नी का एक दूसरे के साथ घूमना होता रहा....और इसी उलटफेर, दिन रात के आने जाने बाज़ार घूमने के चक्रव्युह में पहले नीलोफर और फिर नाज़िया विजयराज के घर से मुन्नी के घर पहुँच चुकी थी... बिना किसी की नज़र में आए.... सबको यही लगता कि ये विमला-मुन्नी और उनके बच्चे ही आपस में एक दूसरे के घर आते जाते रहते हैं।

इसके बाद विमला जो अपने गाँव से यहाँ भाइयों के पास घूमने आयी हुई थी उसने अपने पति विजय सिंह को भी यहीं दिल्ली में काम धंधा शुरू करने के लिए बुलवा लिया और वो लोग दिल्ली नजफ़गढ़ में रहने लगे... लेकिन विजयराज नोएडा में ही अपने बच्चों को लेकर रहता रहा.... नाज़िया और नीलोफर को मुन्नी ने चुपचाप विमला के यहाँ नजफ़गढ़ पहुंचा दिया जहां वो विमला के साथ रहने लगी... इस तरह नाज़िया बिना किसी कि जानकारी के नोएडा से गायब भी हो गयी और विजयराज पर नज़र रखनेवालों के अंदाजे से भी बाहर हो गयी....

विजयराज भी बच्चों की वजह से अपने काम पर ध्यान नहीं दे पा रहा था.... नाज़िया से तो उसके संबंध दोबारा बन नहीं पाये इस भागदौड़ की वजह से लेकिन... विमला के दिल्ली चले जाने के बाद विजयरज़ ने मुन्नी के यहाँ आना जाना शुरू कर दिया था, एक बार खुद नाज़िया ने अपने तरीके से मुन्नी से मिलकर ऐसा मौका बनाया कि नाज़िया और विजयराज के बीच चुदाई हो सकी... लेकिन ऐसे बार-बार विजयराज का वहाँ आना नाज़िया के लिए खतरा बन सकता था जिसकी वजह से दोबारा ऐसा मौका नहीं लगा।

जब नाज़िया विमला के पास दिल्ली पहुँच गयी तो मुन्नी ने अक्सर शाम को या दिन में भी विजयराज के घर आना जाना शुरू कर दिया और फिर उनके बीच खुलकर संबंध बन गए... मुन्नी ने जब बच्चों को लेकर विजयराज की परेशानी देखी तो उसने विजयराज को कहा कि वो बच्चों को साथ लेकर उसके साथ ही रहे... वो भी बिना पति के बच्चों को पाल रही है......... वो दोनों पति पत्नी की तरह तो रहेंगे लेकिन शादी कभी नहीं करेंगे....... क्योंकि मुन्नी के पति की मौत के बाद भी उसे या उसके बच्चों को जायदाद में हिस्सा नहीं मिला, जायदाद मुन्नी के ससुर के नाम पर थी और वो जिंदा थे......... मुन्नी के दूसरी शादी कर लेने से जायदाद में हिस्सा हासिल करना और भी मुश्किल हो जाता।

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“अब इन सबके बारे में तो मुझसे बेहतर रवि भैया जानते हैं... या फिर विक्रम.... में अब फिर से सिर्फ अपने बारे में बताती हूँ...” नीलोफर ने रणविजय की आँखों में देखते हुये कहा... और सभी की नजरें नीलम पर गाड़ी हुई थीं तो किसी ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि रणविजय ने इशारा करके नीलम को आगे ना बोलने का इशारा किया.... लेकिन रागिनी कि नजरें नीलम कि नजरों पर ही थीं तो उसने रणविजय और नीलम के बीच कि इशारेबाजी देख ली...पर वो बोली कुछ नहीं

“ठीक है…. में और प्रबल भी सिर्फ ये जानना चाहते हैं कि तुमने अपने बेटे को खुद से अलग क्यों किया और इतने साल तुम उससे क्यों नहीं मिली” रागिनी ने कहा

“में उसी बात पर आ रही हूँ दीदी :-

समय बीतता रहा... माँ, विजयराज अंकल, मुन्नी आंटी, विमला आंटी इन लोगों के बीच कुछ समय बिताने के बाद 1990 से में बाहर हॉस्टल में रहकर पढ़ने लगी और 1997 में दोबारा घर रहने आ गयी जब माँ ने मेरा एड्मिशन कॉलेज में कराया। जब मेंने कॉलेज आना जाना शुरू किया तो उसी कॉलेज में मुझे रागिनी दीदी, विक्रम, दीपक और ममता भी मिले.... लेकिन अजीब बात थी कि रागिनी-विक्रम सगे भाई-बहन होकर भी कॉलेज में कभी एक दूसरे से बात भी नहीं करते थे ना ही किसी को ये पता था कि रागिनी विक्रम की बहन है.... उससे भी अजीब बात ये थी कि वहाँ रागिनी को दीपक कि बहन कहा जाता था और वो दीपक के घर ही रहती थी....और दीपक ममता के बीच इश्क़ परवान चढ़ रहा था... मुझे बहुत कुछ अजीब लगा लेकिन जैसे इन सब ने मुझे जानते हुये भी नजरंदाज कर दिया ऐसे ही मेंने भी किसी से कोई मतलब नहीं रखा....

कुछ समय बाद दीपक-ममता ने अपनी पढ़ाई छोडकर शादी कर ली, और तब मेंने विजयराज अंकल को उनके यहाँ देखा... जो विमला आंटी के पति के रूप में उनके साथ किशनगंज में रह रहे थे

इधर घर में रहते हुये मुझे माँ के द्वारा चलाये जा रहे वेश्यावृत्ति के कारोबार की जानकारी हो गयी थी... लेकिन बचपन से उनकी परिस्थितियाँ देखती आयी थी में... इसलिए नजरंदाज कर दिया.... माँ ने भी मुझे साफ-साफ कह दिया था कि मुझे पढ़ा-लिखकर इस गंदगी से बाहर एक साफ सुथरी ज़िंदगी देने के लिए वो ये सबकुछ करती आयी हैं... लेकिन मुझे इन सबसे बहुत दूर रहना है...हालांकि में उनसे छुप कर थोड़ा बहुत इन सब मामलों पर नज़र रखती थी लेकिन मुझे भी इन सब कामों से नफरत सी थी... और एक दिन माँ को भी इन सब से बाहर निकालना चाहती थी....

ऐसे ही चलता रहा और एक दिन मेरे कॉलेज में सुबह बड़ा हँगामा मचा हुआ था.... एक लड़की थी नेहा... नेहा कक्कड़ .... नेहा के माँ –बाप पुलिस लेकर कॉलेज आए हुये थे... पता चला कि नेहा कई दिन से घर से गायब है... जब उसके माँ-बाप ने पुलिस में कम्प्लेंट की तो उन्होने उसके बारे में जांच करने घर पर उसके कमरे की तलाशी ली जिसमें ड्रग्स मिले... इस बारे में जब छानबीन की गयी तो पता चला कि वो ड्रग्स उसे कॉलेज में ही कोई देता था.... इसीलिए पुलिस कॉलेज में आकर उसके ड्रग्स लेने और लापता होने की छानबीन में लगी हुई थी। इस मामले की छानबीन और ड्रग के कारोबारियों को पकड़वाने में विक्रम का बहुत बड़ा हाथ रहा... लेकिन नेहा को ड्रूग देने वाले लड़के और नेहा...दोनों का ही कुछ पता नहीं चला। 

फिर एक दिन एक ऐसी घटना हुई जिसने मेरी ज़िंदगी ही बदल दी, आम तौर पर सुबह में अपने कॉलेज चली जाती थी और शाम को अपने काम की वजह से माँ देर से ही आती थी.... हमारी आपसी मुलाक़ात सुबह नाश्ते और रात के खा.....ने पर ही होती थी... माँ के काम के सिलसिले में कोई भी मेरे मौजूद रहते घर नहीं आया कभी.... हमेशा माँ ही बाहर जाती थी...उस दिन माँ ने मुझे सुबह जगाया और बोला की उसे कोई जरूरी काम है इसलिए वो बाहर जा रही है... में तैयार होकर कॉलेज चली जाऊँ .... नाश्ता उन्होने बनाकर रख दिया है.... लेकिन माँ के जाते ही में दोबारा सो गयी और जब उठी तब तक कॉलेज जाने का समय निकाल चुका था तो मेंने फ्रेश होकर नाश्ता किया फिर अपने कमर में लेटकर पढ़ती रही.... लगभग 11 बजे मुझे नीचे हाल में आवाज सी सुनाई दी तो मेंने सोचा की माँ आ गयी हैं में भी उनके साथ ही बैठती हूँ कुछ देर। तभी मुझे लगा की माँ के साथ कोई और भी है... तो मुझे लगा कि मुन्नी आंटी, विजयराज अंकल और विमला आंटी होंगे क्योंकि इस घर में इन तीनों के अलावा माँ के संपर्क का कोई और नहीं आता था और शायद किसी को इस घर का पता भी नहीं होगा.... माँ ने मुझे बताया था कि इन तीन लोगों के अलावा ना तो किसी को इस घर का पता है और ना ही मेरे बारे में.... बाकी सबके लिए माँ ने एक अलग घर लिया हुआ था जहां से वो अपना काम देखती थी... और सबको यही पता था कि वही उनका घर है.... इस घर में कोई नौकर भी कभी नहीं रखा था उन्होने और ना ही कभी मेरे साथ कहीं आती जाती थी... यानि इस घर के आस-पड़ोस में भी कोई मेरी माँ को नहीं जानता था...बस सबको ये पता था कि में अपनी माँ के साथ रहती हूँ और मेरी माँ कहीं नौकरी करती हैं....नहीं ही किसी आस-पड़ोस वाले का हमारे घर आना जाना था

जब मेंने नीचे झाँका तो वहाँ माँ और मुन्नी आंटी के साथ एक लड़का और एक लड़की भी थे जिनको देखकर में चोंक गयी और पीछे को हटकर खड़ी हो गयी... क्योंकि वो दोनों भी मुझे जानते थे, मुझे आश्चर्य हुआ कि ये दोनों माँ के साथ कैसे और माँ इन्हें अपने इस घर में क्यों लेकर आयी....

शेष अगले भाग में.....
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#80
अगला अपडेट अभी थोड़ी देर में
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