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19-04-2020, 12:17 PM
(This post was last modified: 19-04-2020, 12:21 PM by komaalrani. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
मोरे जोबना का देखो उभार ,
अरे पापी जोबना का देखो उभार
जैसे नदी की मौज ,
जैसे तुर्कों की फ़ौज
जैसे सुलगे ये बम
जैसे बालक उधम
मोरे जोबना का देखो उभार ,
अरे पापी जोबना का देखो उभार
जोहरा बेगम का गाया , मन की जीत पिक्चर का ये गाना भी कभी मैं इन्हे चिढ़ाने उकसाने के लिए गाती हूँ ,
या दादा पिक्चर का
हमने माना हम पर साजन जोबनवा भरपूर है , ... ये तो महिमा राम की इसमें हमरा का कसूर है ,
आपने सही कहा ललचाने उकसाने का अलग मज़ा है ,
पर कई बार उसकी सज़ा भी मिलती है पर उसी सज़ा में तो पति पत्नी का असली मज़ा है
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मेरी कुछ फेवरेट , और मुझे ज्यादा उनकीफेवरिट। जिस दिन मैंने पहन ली उस दिन हैटट्रिक होना तय
कुछ तो ऐसी होती हैं जिनके साथ ब्रा पहन ही नहीं सकते , टेलर मास्टर खुद समझदार होते हैं , उसके नीचे उसी तरह का अस्तर या ब्रा का कप लगा देते हैं
इनकी बहुत सी चीजें मैं तय करती हूँ लेकिन
मेरी चोली की डिजाइन , ... इन्ही की चलती है
, इनकी मेरी फेवरिट पार्टी वियर, ये नीचे वाली ,
अब आप लोग भी कुछ बताइये न
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उफ़ एक एक चीज कितने डिटेल में आप लिखती हैं बस लगता है सामने पिक्चर चल रही है या टाइम मशीन पर बैठ कर मैं उन दिनों में वापस पहुँच गयी हूँ
कोमल जी ,
सही कहा आपने, मेने लिखते हुए उस टाइम मैं जैसे मैंने फील किया बस उकेर दिया। पर जैसा आपने कहा एक बीती यादो की पिक्चर चल रही है, देख भी हम ही रहे हैं और किरदार भी हम ही हैं , खुद को खुद की आँखों के सामे देखना और कई बाते जो आज "पता" हैं उस समय नहीं पता थी , हांसी आ ही जाती हैं अपने आप पर .
हाँ आप की कुछ शिकायतों से मैं सहमत नहीं हूँ ,
आखिर दुनिया में फ्री कुछ भी नहीं है तो
नहीं तो "पतिदेव" की मदद, पर उनकी मदद भारी पड़ती है, एक तो लिपस्टिक वापस लगाओ, लिप किस जो देनी पड़ती है,
तो दे दिया करिये न , आखिर हम सजती किस के लिए हैं साजन के लिए न , फिर लिपस्टिक लगाओ और कोई किस न करे तो लिपस्टिक की बर्बादी ,
कोमल जी, यह सुनहेहरे शब्द जैसे उफ़, क्या बताऊ जितनी तारीफ करो कम ही है। "आखिर हम सजती किस के लिए हैं साजन" यह बात तो देश के हर मर्द को बतानी चाहिए फिर वो यह कहना छोड़ दे की "तैयार होने मैं कितना समय लगाती हो".
औरत हर तरह से परफेक्ट होना चाहती है, जब कही बाहर जाना हो, आखिर उनकी इजजत का सवाल होता है, और दूसरी औरतो को "जलाने - सुलगाने " का मज़ा. मई जब किसी ऑफिस की पार्टी मैं पतिदेव के साथ जाती हूँ, अगर बैकलेस ब्लाउज हैं , तो एक तो मेरी क़यामत आने के बाद , और वो औरते जिनकी जवानी कब की ढल चुकी और वो मानने को तैयार नहीं हैं , ऐसा मुँह बना - बना के खुसर - फूसार करती हैं, देख कर मज़ा आ जाता हैं.
"घर में ही कब मन कर जाए और कुछ नहीं तो एक किस्सी तो बन ही जाती है " - उफ़, क्या कहो, अब यह होंठ भी तो उनकी ही तरफ हैं, उनको लालचदेते हैं , मेरी आदत हैं घर मे भी लिपस्टिक लगा कर रखती हूँ, ग्लॉसी , रेड या ब्लड रेड। न जाने कितनी बार , दुबारा ठीक करनी पड़ती है, मैंने कह दिया, "खा जाओ - सब पर ला कर देनी होगी, लॉक डाउन मैं भी, मुझे नहीं पता"
"जोबन और बगावत दोनों दबाने पर बढ़ते हैं , तो फिर दबा लिया तो अगर कहीं काम वाम से आठ दस दिन के लिए बाहर चलें जाए तो उसी जोबन को देख देख कर , कितना खाली खाली लगता है , " - यह बात मने बाहरवीं क्लास मैं सुनी थी , बगावत तो समझ आयी, पर जोबन "अब" जा कर.
उफ़, कोमल जी, सच्ची, वो जोबन तो न छेड़े तो "यह कमीने" एक तो वैसे ही उनकी तरफदारी करते हैं, उस पर उदास हो जाते हैं, खाली खाली लगता हैं.
"कोई देख के ललचाये नहीं , चोरी से एक चुम्मी खुली पीठ पे न ले ले , एक चुटकी न काट ले तो भी तो बहुत खराब लगता है न " - कोमल जी, यह करि आपने औरतो के दिल की बात , सच्ची, देखने वाले हमारी , चोली, जोबन, और चिकनी पीठ देखते हैं और हम उनकी "निगाहे" , उफ़ इस आनंद का कोई जवाब नहीं।
"मोरे जोबना का देखो उभार ,
अरे पापी जोबना का देखो उभार
............
है , ... ये तो महिमा राम की इसमें हमरा का कसूर है ,
कोमल जी, इसी बात की तो हम सब सहेलिया कायल हैं, आपकी गजब की लेखनी ,
हम तारीफ़ करे, आपकी लेखनी ही कमाल की और महिमा है यह राम की, इसमें हमरा का कसूर हैं.
"कुछ तो ऐसी होती हैं जिनके साथ ब्रा पहन ही नहीं सकते , टेलर मास्टर खुद समझदार होते हैं , उसके नीचे उसी तरह का अस्तर या ब्रा का कप लगा देते हैं "
"सच्ची", "कप" , बड़ी मज़े दार किस्सा था, मेरी बहुद्धूपने का, बाटूंगी आप सब के साथ।
कोमल जी, आपकी पोस्ट से मुझ में एक जान सी आ जाती हैं, एक उत्साह , कुछ और शेयर करू, और यादे ,,
बस , अपने प्यार की फुहार , जब भी समय मिले।
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20-04-2020, 06:12 AM
(This post was last modified: 20-04-2020, 06:15 AM by Niharikasaree. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
उफ़, कितने अरमान होते हैं लड़कियों के , घंटो आईने मैं मैं खुद दे बात कर लेती हैं, सपनो की दुनिया , सपनो का राजकुमार, गुड्डे - गुड़िया का खेल, और न जाने क्या - क्या , और मैं मूर्ख, बस अपने आप को देख के ही खुश हुए जा रही थी.
अचानक , घंटी बजी, दरवाजे की, कोई आया था , मैं जल्दी से रूम से बहार निकली , ट्वॉयल था हाथ मैं, डालना था बहार सूखने के लिए , हाथ मैं कंघा और टॉवल को गीले बालो मैं रगड़ते हुए मैं चली, दरवाजे की और, माँ भी आ ही गयी खोलने मेरे साथ ही.
माँ ने दरवाजा खोला, देखा।
........................
प्रिय सहेलिओं ,
निहारिका का प्यार भरा नमस्कार ,
अब आगे ,
मैं , एक तो डरी हुई थी की आज क्या होगा मेरे साथ , माँ के भजन सुनना पड़ेंगे दिन भर, कॉलेज नहीं गयी, और वो "मूड्स" वाली बात तो गयी थी, माँ पड़ोस वाली भाभी से बात कर रही थी और मैं अपने आप से , फिर मुझे दोनों की बाते सुनाई दी.
सुमन भाभी कही जाने की बात बोल रही थी माँ को, होश मैं आयी जब सुमन भाभी ने मेरा नाम लिया " निहारिका" को भी साथ ले आना इसकी भी"उम्र" हो गयी है अब तो, और हंसने लगी दोनों, माँ बोली अच्छा ले आउंगी कितने बजे आना है.
भाभी - आज शाम छे बजे से होगा शुरू फंक्शन , खाना खाना भी वही है , आना जरूर।
माँ - अच्छा सुमन , ठीक है, आ जाउंगी निहारिका के साथ.
मैं - कुछ सुना नहीं, जबकि मैं वही थी, साला आज का दिन ही ,ख़राब है. मैंने बस हंस के स्माइल पास कर दी भाभी को और नीचे देखने लगी. और करती भी क्या ?
भाभी - "निहारिका" आना जरूर , अभी बहुत कुछ सीखना है, फिर हंसने लगी।
मेरी हालत, उफ़,क्या बताऊ सहेलियों , मेरी समझ मैं कुछ नहीं आ रहा था , मैं बस स्माइल पास कर रही थी और माँ को देख रही थी, और माँ और सुमन भाभी दोनों मुझे।
फिर भाभी गयी, माँ ने दरवाजा बंद किया और बोला "निहारिका" आज शाम को जाना है फंक्शन मैं।
मैं - , हाँ माँ पर कौन सा फंक्शन कोई भजन - कीर्तन हैं तो मैं नहीं जाने वाली , एकदम पक जाती हु आपके साथ जाकर , रहो दो - तीन घंटे और थोड़ा सा प्रसाद लेकर आ जाओ.
- माँ - पागल लड़की, तूने सुना नहीं , क्या बोला सुमन ने , भजन नहीं है " गोद - भराई " की रसम है। क्या हो गया है तुझे। सही कह रही थी सुमन , बहुत सिखाना पड़ेगा नहीं तो तू मेरी नाक ही कटा देगी।
मैं, पूरी कन्फ्यूज्ड , परेशां , क्या बोलू, "यह "गोद - भराई" क्या होती हैं, अब आज सुबह से अभी तक जो हुआ उसके बाद मेरी हिम्मत नहीं हुई माँ से कुछ पूछ लू.
मैं - ठीक है माँ , बस यही बोल पायी।
- माँ - चल ठीक है, एक काम कर तेरा एक अच्छा सा सूट निकाल ले शाम के लिए , मेरी साड़ी - ब्लाउज भी निकल देना। मैचिंग पेटीकोट के साथ।
क्या होगा इस लड़की का , भगवन अब तू ही कुछ कर, मैं तो हार गयी इस लड़की से, कहाँ तक सम्भालूंगी इस बावली को.आगे जाकर न जाने क्या करेगी, उफ़.....
कुछ - कुछ बोलती हुई, माँ गयी खाने की तैयारी करने , और मैं गयी अलमारी मैं से कपडे निकलने। माँ के रूम मैं जाते ही, एक उत्तेजना हुई, "वो मूड्स" का पैकेट पड़ा होगा, अब देख लेती हु.
जल्दी से , अल्मारी खोली, "मूड्स" उफ़, नहीं दिख रहा था, फिर इधर - उधर देखा नतीजा सिफर , अब गया चांस अब नहीं मिलेगा, जरूर माँ ने रख दिया होगा छुपा कर , जाने दो. कॉलेज मैं पूछती हु , साली बड़ी - बड़ी बाते करती हैं , देखती हूँ कुछ बता पाती हैं या यु ही फेंकती है.
फिर , माँ के लिए एक साड़ी निकली , हरा - नीला कलर था , पेटीकोट निकलने की सोचा नीला लू या हरा, नीला कलर जायदा था साड़ी मैं, सोचा नीला ही चल जायेगा , पर माँ से पूछ लेती हूँ, कौन डांट खाये .
गयी, माँ के पास और साड़ी दिखते हुए बोली, ठीक है, यह पेटीकोट नीला वाला, इस .साड़ी मैं , चल जायेगा।
माँ - उफ़, लड़की, क्या हुआ है तुझे आज, अरे,पागल , " गोद - भराई " की रसम है। कुछ लाल - पीला निकल यह क्या कलर लायी है, कुछ अंदाज़ा नहीं है तुझे फंक्शन का।
अब, मैं फिर फंस गयी, हाँ बोलू तो मरू न बोलू तो भी, फिर मैंने बोला , बस ऐसे ही ले आयी माँ, सबसे पहले यह ही दिखाई दी.
- माँ - अच्छा , रहने दे , मैं निकल लुंगी। अपने सूट निकल ले.
-मैं अच्छा माँ, मैं बस मुड़ी ही थी, की माँ की आवाज आयी,
- माँ - "निहारिका", सुन वो पिंक वाला सूट हैं न तेरा , चूड़ीदार पजामी के साथं जिसके दुपट्टे पर कुछ काम है, वो ही निकल लेना।
अच्छा हुआ माँ ने बता दिया , नहीं तो मैं, येलो एंड ब्लैक पटियाला निकलने वाली थी. बच गयी , ही ,ही [ मन मैं सोचा]
मैं - ठीक है , माँ.
देखते हुए बोली, तू तैयार हैं न, फिर मेरे "जोबन" को देखा, टॉप - टी थोड़ा टाइट ही था , मेरे जोबन कुछ जयादा ही बड़े दिख रहे थे.
फिर माँ बोली, ठीक ही है, दुपट्टा ले लेना उप्पर से, अच्छे से , अभी मार्किट जाना है. खाना बना देती हूँ, बस रोटी ही बाकि हैं, फिर चलते हैं.
मैं - ,हाँ माँ ठीक है.
फिर मैं गयी अपने रूम मैं, एक वाइट दुपट्टा लिया जिसमे चारो और गुलाबी लैस लगी थी. ले कर रखा बेड पर और लगी बाल बनाने , सुख चुके थे।
बाल बने, हुए यह सोच रही थी की " गोद - भराई " की रसम क्या है। और माँ , मार्किट क्या लेने जा रही है. दिन मैं, अक्सर माँ, मार्किट शाम को ही जाती थी पिताजी के साथ या संडे सुबहे। जल्दी से बाल सुलझाए और रबर बैंड लगा लिया और दुपट्टा लेकर आ गयी बहार, माँ खाना लिए तैयार थी।
मैं - आ गयी माँ, लाओ।
मैं और माँ , खाने बैठ गए, भरवां टिंडे बनाये थे माँ ने, कहते के हाथ मैं जादू होता हैं, सही कहते हैं. गज्जब का स्वाद था.
मैं,बना लेती हूँ, प वो स्वाद हाथो मैं था , मुझे पागल के हाथो मैं नहीं, पर "ये " ऐसे कहते हैं स्वाद लेकर, जैसे छप्पन भोग हो. पर पेट थोड़ा न भरता है, जब तक "चाशनी" का भोग न लगे , एक तो खाना बनाओ, खिलाओ फिर "ये" खुश और मेरी क़यामत।
"अच्छा" लगता हैं जब "ये", तृप्त हो कर , मुझे धीरे -धीरे , गरम कर के खाते हैं, "चाशनी" का मज़ा लेते हैं, मैं बस आँख बंद कर कर लेट जाती हूँ, और एक हाथ "इनके " सर पर , और दूसरा अपने "जोबन" पर , फिर पता नहीं कुछ मुझे।
[ उफ़,थोड़ा गर्म, और गीली हो गयी हूँ, बस कुछ लाइन और ही लिख पाउंगी। .....]
हाँ, तो हम, खाना खा रहे थे , फिर माँ बोली, अभी मार्किट चलना है, गिफ्ट लाने, जल्दी खा , वापस आना हैं, तैयार होना हैं. अच्छा तू बता क्या गिफ्ट मैं। .
मैं - क्या बोलू, ले लेना कुछ भी, वाल पेंटिंग , फ्लावर, और कोई गिफ्ट आइटम, दुकान पे मिल जाएँगी बहुत से।
माँ- मुझे देखती हैं, अपना खाना रोक के, उफ़, तुझे तो शादी वाले घर मैं ही छोड़ देना चाहिए, क्या करु तेरा, अब जल्दी खा।
मैं यह सोचती रह गयी , क्या गलत बोला मैंने। ..............
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"अच्छा" लगता हैं जब "ये", तृप्त हो कर , मुझे धीरे -धीरे , गरम कर के खाते हैं, "चाशनी" का मज़ा लेते हैं, मैं बस आँख बंद कर कर लेट जाती हूँ, और एक हाथ "इनके " सर पर , और दूसरा अपने "जोबन" पर , फिर पता नहीं कुछ मुझे।
[ उफ़,थोड़ा गर्म, और गीली हो गयी हूँ, बस कुछ लाइन और ही लिख पाउंगी। .....]
ऊफ़्फ़ निहारिका जी क्या लिखा है,
खाने के
दोहरान ही उन की नीयत पता चल जाती है
जब कुछ ज्यादा ही ख्याल करते है हमारा
फिर चाशनी तो टपका ही देते है
बिल्कुल आप ने ठीक लिखा है
गर्म कर के धीरे धीरे खाते है
पता नहीं क्या मजा आता है इन्हें हमें तड़पाने में उस काम से ज्यादा सताना तड़पाना
ओर सब कुछ हम से करवाना
फिर एक ना सुनना हमारी
बहुत ही बढ़िया अपडेट दिया है
अब आप के साथ बचपन से ले कर बीती रात तक सब कुछ तो जीवंत हो जाता है
निहारिका जी लाजवाब लेखन
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(22-04-2020, 07:30 AM)Poonam_triwedi Wrote: "अच्छा" लगता हैं जब "ये", तृप्त हो कर , मुझे धीरे -धीरे , गरम कर के खाते हैं, "चाशनी" का मज़ा लेते हैं, मैं बस आँख बंद कर कर लेट जाती हूँ, और एक हाथ "इनके " सर पर , और दूसरा अपने "जोबन" पर , फिर पता नहीं कुछ मुझे।
[ उफ़,थोड़ा गर्म, और गीली हो गयी हूँ, बस कुछ लाइन और ही लिख पाउंगी। .....]
ऊफ़्फ़ निहारिका जी क्या लिखा है,
खाने के
दोहरान ही उन की नीयत पता चल जाती है
जब कुछ ज्यादा ही ख्याल करते है हमारा
फिर चाशनी तो टपका ही देते है
बिल्कुल आप ने ठीक लिखा है
गर्म कर के धीरे धीरे खाते है
पता नहीं क्या मजा आता है इन्हें हमें तड़पाने में उस काम से ज्यादा सताना तड़पाना
ओर सब कुछ हम से करवाना
फिर एक ना सुनना हमारी
बहुत ही बढ़िया अपडेट दिया है
अब आप के साथ बचपन से ले कर बीती रात तक सब कुछ तो जीवंत हो जाता है
निहारिका जी लाजवाब लेखन
पूनम जी,
" पता नहीं क्या मजा आता है इन्हें हमें तड़पाने में उस काम से ज्यादा सताना तड़पाना ओर सब कुछ हम से करवाना"
शुक्रिया आपका,
खाना कहते हुए अगर जायदा तारीफ हुई, तो समज लो। ........ क़यामत। पर कितना अच्छा लगता है, पतिदेव का कहना खाना खाते हुए, क्या खाना बनाया है आज , मज़ा आ गया।
"सच्ची" , "उनको " खिला के मेरा पेट वैसे ही भर जाता है, पर खा लेती हूँ, बाद मैं "मेहनत" जो करनी होती है.
और सही कहै, की तड़पाने, टपकाने मैं और "चासनी" चाट जाने मैं, कितना मज़ा आता हैं "इन" मर्दो को , हम "डलवाने" को तड़पती हैं, और ये मज़ा लेते हैं.
लगता है, सब लोग बिजी हैं, आते रहिये टाइम निकल के जैसे बन पड़े.
आपके। ....
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माँ- मुझे देखती हैं, अपना खाना रोक के, उफ़, तुझे तो शादी वाले घर मैं ही छोड़ देना चाहिए, क्या करु तेरा, अब जल्दी खा।
मैं यह सोचती रह गयी , क्या गलत बोला मैंने। ..............
........................
प्रिय सहेलिओं ,
निहारिका का प्यार भरा नमस्कार ,
अब आगे ,
अब तक आप लोग मेरी नादानी को समझ ही चुके होंगे , कितनी नासमझ थी मैं, बस अपने आप मैं खोयी रहती थी, "नीचे" वाली से जायदा लगाव नहीं था उस समय पर "जोबन" को देखना , निहारना , थोड़ी टाइट ब्रा पहन कर इतराना और कभी मेरी सहेली मुझे छेड देती जोबन को लेकर "देख उसे , बाइक पर जो बैठा है, तेरे जोबन घूर रहा है, जो खिला दे , पुण्य का काम है", मैं कहती "तुझे जायदा चिंता हो रही है, तो तू ही जा न , तेरे कौन से कम हैं, और बढ़ जायेंगे "
कह तो देती, बुरा सा मुँह बना के , पर अंदर से , इच्छा होती की जाओ, पुण्य कमाओ, खिलालो न सही , हाथ ही लगवा लो. अब तक बाथरूम मैं , बस अपने हाथ से ही, खेला करती थी, निप्पल एकदम टाइट और नीचे से गीली , समझ नहीं आता था, पर अच्छा लगता था, खासकर पीरियड्स के आखिर दिनों मैं।
खैर , अब आगे, चलते हैं उन सुनहरी यादो मैं। ..
खाते हुए एकदम चुप, मैं अंदर ही अंदर यह सोचे जा रही थी, गिफ्ट ही तो हैं, ले लो कोई भी, इसमें मुझ शादी वाले घर मैं छोड़ देने की क्या बात हुई , पता नहीं माँ कभी - कभी क्या बोलती रहती है.
माँ - लड़की, जल्दी कर , खा लिया , और रोटी लौ।
मैं - माँ , बस हो गया.
माँ - ले , यह सब ले जाकर किचन मैं रख, और चल मार्किट।
मैं - अच्छा माँ
और मैं, उठ गयी और चल दी किचन की और, थैली , कटोरी व् गिलास रखने , तभी माँ की आवाज।।
माँ - निहारिका, ताला - चाभी भी लेती आना , फ्रिज पर पड़ा है.
मैं - अच्छा माँ, ठीक है.
फिर, ताला लिया, और आ गयी माँ के पास , चलो माँ.
माँ - लड़की, तेरा दुपट्टा कहाँ है, समझ ही नहीं है, ऐसे जायेगी मार्किट मैं, उफ़. जा , जल्दी ला दुपट्टा और बाहर निकल।
मैं - माँ , मैं वो किचन मैं गयी थी न, इसीलिए भूल गयी. अभी लायी दुपट्टा। बस एक मिनिट।
फिर मैंने दुपट्टा लिया, और "एकदम ठीक" से जोबन ढके , सर पे भी ले लिया था धुप की वजह से। मुझे देख कर माँ खुश।
माँ - हम्म, अब ठीक है, अच्छे घर की लड़कियां "खुला" नहीं घूमती , समझ कर , बड़ी हो गयी है, कब सीखेगी [ मेरे जोबन को देख कर बोली]।
मैं - हम्म, [आगे कुछ बोलने को रह ही कहँ गया था]
हम दोनों ने एक साइकिल रिक्शा किया जिसने हमे मार्किट तक छोड़ दिया, रिक्शे वाले भी मुझे घूर रहा था, इनका तो रोज़ का काम है, बात कुछ करना और देखना "कही" और. मेरे हलके जोबन दुपट्टे मैं से दिख से रहे थे और स्कर्ट मैं से गोल - मटोल का साफ़ अहसास।
अब चढ़ती जवानी को छिपा पाना किसी के बस मैं नहीं , झलक दिख ही जाती है , मेरे साथ भी हुआ, रिक्शे से उतारते हुए , सर से दुपट्टा उतर गया और पल्ला "जोबन से ढलक" गया माँ उसे पैसे देने मैं व्यस्त थी, पांच या दस सेकंड ही हुए होंगे, उसकी नज़र, मेरे जोबन पर, माँ की नज़र मेरे जोबन पर , मेरी नज़र माँ पर, फिर मैंने रिक्शे वाले को देखा , उसकी आँखों मैं "चमक".
उफ़, क्या बताऊ, माँ ने मेरे हाथ को लगभग खींचते हुए कहा, जल्दी चल, सामान लेना है। मैंने दुपट्टा फिर सर पर रखा और "सामने" से "ठीक" किया , अब चैन पड़ा माँ को.
न जाने, क्यों एक हलकी हंसी आ गयी थी, मेरी प्यारी पाठिकाओं, अगर आपको इस मुस्कान का पता है तो बताओ जल्दी ......
आखिर हम आ गए मार्किट, फिर मेरी बेवकूफी हाजिर , मैंने तपाक से कहा माँ.
मैं - माँ , गिफ्ट गैलरी "अर****" उधर है, उन दिनों काफी फेमस थी, हर लड़की के लिए कार्ड वही से आता था , मैं भी गयी थी सहेली के साथ, "वैलेंटाइन" कार्ड लेने , उफ़ कितना महंगे थे , उस वीक, बाद मैं वो ही नार्मल रेट.
माँ - तू चुप रह, अरे " गोद - भराई " की रसम है, पागल लड़की। वहां क्या मिलेगा। तू चल.
फिर हम लोग एक सुनार की दुकान पर आ गए, हमारे पहुंचते ही, आइये भाभी जी, नमस्कार , सब कुशल - मंगल
माँ - जी , भाईसाहब। सब कुशल - मंगल। कुछ दिखािये। ..
इससे पहले माँ कुछ आगे बोलती , दुकानवाला बोल पड़ा.
दुकानवाला - जी, भाभी जी, बेटी के लिए , सगाई , रोका के लिए कुछ।
मेरी , हालत ख़राब, उफ़. माँ ने कही पिताजी से कोई बात तो नहीं कर ली मेरी शादी की।
यह सुनार, भी ऐसा ही कुछ कह रहा है, न जाने क्या हुआ था मुझे, आँखों मैं चमक , साँसे तेज़, पसीना, हलकी स्माइल। सब एक साथ. सामने लगे कांच मैं मैंने अपने आप को देखा, दुपट्टा से पसीना पोंछा , जोबन पर ठीक किया फिर लगाए कान उन दोनों की बातो पर।
माँ - अरे भाईसाहब , अभी कहाँ , खोज बीन जारी है, अच्छा लड़का कहाँ आसानी से मिल जाता है, देखो कब भाग जगता है,
मैं , कुछ रिलेक्स फील करि, चलो आज तो बच गए, "शादी" क्या होगा मेरा पता नहीं।
माँ - जी, कुछ कंगन दिखाइए छोटे बच्चे के लिए , " गोद - भराई " है. शाम को जाना है।
दुकानवाला - जी, भाभी जी, अभी लीजिये, पर कंगन - गेहने आपको हमारी ही दुकान से लेने हैं, बिटिया की शादी के लिए, ध्यान रखना , ही , ही , ही। ...
मैं - [मन मैं। .. साले, अभी करा दे शादी, पीछे ही पड गया है. और माँ भी हांसे जा रही है ]
फिर , हमने कंगन पसंद किये , चांदी के थे काले दाने वाले। पैसे दिए और निकल आये बाहर, मैं सोच रही थी, मेरी शादी के गहने दे कर ही भेजेगा आज दुकानवाला।
मैं - माँ , इतने छोटे कंगन, किसके लिए. फिर मेरा सवाल, जो माँ को शायद पसंद नही आया. वो कुछ न बोली।
मेरा हाथ पकड़ा कर आगे चल दी , सामने एक साडी ही दुकान थी, जहाँ एक से एक शानदार साड़ी मिलती थी शहर की जानी - मानी दुकान थी.
दुकानवाला - आइये भाभीजी , क्या लेंगे, ठंडा मांगउ , छोटे दो ठंडा ले कर आ भाभीजी और बिटिया के लिए।
हाँ तो भाभीजी क्या दिखाऊ , साडी या लेहंगा - चोली , आपके लिए या बिटिया रानी के लिए , शादी टाइप या कुछ फैंसी।
मैं [ मन मैं - एक तो वो सुनार, अब यह भी, उफ़ मेरी शादी आज यह लोग करा के ही मानेंगे ]
माँ - भाईसाहब, अभी कहाँ, जोग ही नहीं बैठ रहे , बिटिया की शादी का , आप से ही लेना हे शादी का जोड़ा, निहारिका के लिए ।
दुकानववाला - वाह , कितना खूबसूरत नाम है, "निहारिका", एकदम अलग , हाँ जी क्या दिखाऊ अभी. इतने मैं ठंडा आ गया था. "ऑरेंज" वाला शायद "मिरनडा" था.
मैंने लिया और लगी पीने, फिर माँ बोली , " गोद - भराई " ककी रसम है उसके लिए कुछ दिखा दो, जल्दी से.
दुकानवाला - अरे , छोटू, वो नया माल आया है न , कल उसमे से निकल कर ला , चटक रंग लाना।
फिर, माँ ने , साड़ी पसंद करि, मस्त कलर था, सुनहरी बॉर्डर के साथ पीला बेस और पल्ला रानी कलर का साथ ही चटक हरा ब्लाउज।
माँ ने मुझसे पूछा, कैसे है, यह ले ले, या दूसरी निकलवाओ।
मैं - अच्छी है माँ, एकदम मस्त, कलर भी अच्छा है.
माँ - जी, इसे पैक करवा दीजिये।
दुकानवाला - और क्या दू, भाभीजी , कुछ आपके लिए , या बिटिया के लिए , एक - आध साड़ी तो लेनी ही पड़ेगी, आपकी अपनी दुकान है.
माँ - जी, मेरे पास तो बहुत हैं, अभी रहने दीजिये।
दुकानवाला - बिटिया के लिए, काम आ जाएगी किसी शादी - फंक्शन मैं।
माँ - हम्म, एक शादी है तो जून मैं, चलिए दिखा दीजिये। इसके काम आ जाएगी
दुकानवाला - भाभी जी , सेमि -फैंसी, या फुल फैंसी आजकल लड़कियों के लिए खूब सारे पैटर्न आ गए हैं.
माँ - सेमि - फैंसी दिखा दीजिये।
फिर, दुकानवाले ने क्या मस्त साड़ी दिखाई , मेरा मन किया सारी ले लू, फिर माँ ने एक साड़ी निकली जो पिंक कलर की थी, ऑफ वाइट बॉर्डर व् साथ मैं सेमि - नेट का ब्लाउज था आसमानी रंग का .
ब्लाउज को लेकर माँ , बोली,
भाई साहब , यह ब्लाउज चेंज हो जायेगा, नेट वाला है,
दुकानवाला - भाभीजी, यह सारे डिज़ाइनर पीसेज हैं, चेंज नहीं हो पायेगा। नार्मल साड़ी के तो हम चेंज कर भी देवे , फिर यह बिकेगा भी नहीं, बिना साड़ी के. बेकार हो जायेगा यह सेट.
माँ - ठीक है, इसे ही पैक कर दीजिये , पैसे ठीक लगाना।
दुकानवाला - जी, भाभी जी , आपको नाराज थोड़ी करना है, भी तो बिटिया की शादी का जोड़ा भी तो देना है , ही ही ही। ..
मैं - [मन मैं , साले, अभी दे दे , यही कर लेती हूँ शादी, मज़ाक बना दिया है]
उफ़, उस समय तो बड़ा बुरा लग रहा था, अब जा कर समझ आपई, की उम्र ही शादी की थी, और जवानी को देख कर, जोबन के उठाव को देखकर, लोग सही अंदाजा लगा रहे थे।
फिर माँ ने पैसे दिए, कुछ काम ही दिए जितने मांगे थे उस से , औरत कभी पुरे पैसे नहीं देती शॉपिंग के मामले मैं, जन्मसिद्ध अधिकार होता है हमारा।
दाम कम देना और दुसरो को जायदा बताना , आखिर औरत हैं न हम.
फिर हम ने किया साइकिल रिक्शा , और आ गए घर इस बार उतारते हुए मैंने ध्यान रखा की दुपट्टा न फिसल जाये नहीं तो शामत पक्की थी.
माँ - निहारिका , एक गिलास पानी पीला, थक गयी मैं.
मैं - अभी लायी माँ.
पानी पीकर माँ बोली।
माँ - अरे निहारिका, ऐसा करना तू सुमन के साथ अकेले चले जाना, मैं उसे फ़ोन कर देती हु.
मैं - क्यों माँ,
माँ - पागल, मैं अभी पूरी साफ़ नहीं हुई।
मैं - ओह, अच्छां माँ , ठीक है.
मैं - टेंशन मैं, करुँगी क्या वहां जाकर, माँ साथ होती तो ठीक था, सुमन भाभी के साथ, अब क्या। .......
तभी माँ बोली - निहारिका क्या हुआ,
मैं - कुछ नहीं, वो मुझे करना क्या है, वहां, " गोद - भराई " .....................................................
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निहारिका जी क्या तारीफ़ करें आप की आप बेमिसाल हो
आप के साथ साथ मैं खुद भी यादों में माँ के साथ बाजार हो आई
कहीं सैकड़ों मेले तीज त्योहार आज फिर जिंदा कर दिए मेरे दिल के बहुत करीब था ये अपडेट आप का
कहीं कहीं महीने अब जब माँ से नहीं मिल पाती वो पुरानी बचपन की यादें, हमारी जिद मस्ती सब कुछ बहुत याद आता है
आप ने क्या कमाल लिखा है लव यू निहारिका जी
आप इसी तरह लिखती रहो
भावनाओं को जीना कोई आप से सीखे
जो लेखनी आप की है उस के सामने सारे प्रतिमान थोड़े है
लाजवाब
•
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(22-04-2020, 01:00 PM)Poonam_triwedi Wrote: निहारिका जी क्या तारीफ़ करें आप की आप बेमिसाल हो
आप के साथ साथ मैं खुद भी यादों में माँ के साथ बाजार हो आई
कहीं सैकड़ों मेले तीज त्योहार आज फिर जिंदा कर दिए मेरे दिल के बहुत करीब था ये अपडेट आप का
कहीं कहीं महीने अब जब माँ से नहीं मिल पाती वो पुरानी बचपन की यादें, हमारी जिद मस्ती सब कुछ बहुत याद आता है
आप ने क्या कमाल लिखा है लव यू निहारिका जी
आप इसी तरह लिखती रहो
भावनाओं को जीना कोई आप से सीखे
जो लेखनी आप की है उस के सामने सारे प्रतिमान थोड़े है
लाजवाब
पूनम जी,
तारीफ के काबिल तो वो सुनहरी यादे है, जिस से आप हम और न जाने कितनी औरते जुडी हुई हैं, मैं तो सिर्फ कोशिश कर रही हूँ उन यादो को संजोने की.
"सच्ची", मुझे भी यही लगा की लिखते हुए मैं आज भी माँ के साथ थी, मार्किट मैं और "गोद - भराई " के फंक्शन मैं जाना है शाम को.
फिर इधर - उधर के मैसेज कोरोना को ले कर , बीती यादो से वापस लाने के लिए काफी थे।
आप ने क्या कमाल लिखा है लव यू निहारिका जी
आप इसी तरह लिख। ....
पूनम जी, "जी" भर आया, लव यू टू , बस अपने प्यार की फुहार ऐसे ही बनाये रखे , जब भी समय मिल जाये, बस दो लाइन ही काफी है.
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प्रिय सहेलिओं ,
[b]निहारिका का प्यार भरा नमस्कार ,[/b]
पूनम जी की प्यार भरी दो पंकितयों से उत्साह वर्धन हुआ , इस तनावपूर्ण माहौल मैं केवल बीती सुनहरी यादो का ही सहारा बचा है .
कुसुम जी, कोमल जी, विद्या जी, के लगतार स्नेह से जिंददगी काट रही है , है की "उनके " साथ इतना तनाव महसूस नहीं होता तो, जब वो अपने काम मैं व्यस्त होते हैं, तब मैं बिलकुल अकेली महसूस करती हूँ, आजाती हूँ ऑनलाइन पर आप लोगो को न पा कर , उदास हो जाती हूँ और बंद कर देती हूँ , ऑनलाइन गाने सुन लेती हूँ और जब उस से भी बोर ,तो एक बार और चेक करू, कोई आयी होगी मेरी सहेली , निराशा।
चलो कोई बात नहीं, सब व्यस्त है , और स्तिथि तो सबकी एक जैसे ही है , मेरी सखिओं निकालो कुछ समय इस लिए भी।
कोई जोर नहीं,, प जब भी समय मिले तब.
आपके। ......
•
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मैं - टेंशन मैं, करुँगी क्या वहां जाकर, माँ साथ होती तो ठीक था, सुमन भाभी के साथ, अब क्या। .......
तभी माँ बोली - निहारिका क्या हुआ,
मैं - कुछ नहीं, वो मुझे करना क्या है, वहां, " गोद - भराई " ...................
..................................
प्रिय सहेलिओं ,
निहारिका का प्यार भरा नमस्कार ,
अब आगे ,
मैं, टेंशन मैं थी, वहां जाकर करना क्या है, साथ मैं तो ठीक था, सुन लेती माँ के भजन, रोज का है. पर सुमन भाभी उफ़, पूरी मोहल्ले की डाकिया है, जब तक एक बात पुरे मोहल्ले की औरतो को न बता दे खाना हजम नहीं होता।
अगर, मेरी कोई बेवकूफी या कोइ गलती हो गयी, तो समझ लो, "डाकिया डाक लाया"- हो जायेगा।
अब मैं क्या करू?
इतने मैं माँ बोली - निहारिका , सुन. तेरा सूट निकल ले, प्रेस कर लेना अगर जरुरत लगे तो। और यह गिफ्ट, "साड़ी" सुमन के साथ उसे दे देना। समझी।
मैं - हा , माँ ठीक है,एकदम धीरे से बोली, और करती भी क्या।
फिर याद आया, छोटे - छोटे कंगन।
मैं - माँ,वो कंगन भी तो लाये थे न, वो नहीं देने क्या ?
माँ - अरे , पागल अभी नहीं, वो तो बच्चा हो जाये तब, देने के लिए मैंने पहले ही ले लिए , कौन जाता बाद मैं फिर.
मैं - "बच्चा" , अब यह "बच्चा" कहाँ से आ गया , "गोद - भराई " मैं. और बाद मैं क्यों, छुट्टी पाओ अभी देकर।
पर,अब कुछ पूछने की हिम्मत नहीं थी, पारा वैसे ही चढ़ा हुआ था .माँ का. सोचा भलाई इसी मैं है की चलो सूट निकलने।
मैं - माँ, मैं सूट को देखती हूँ, शायद प्रेस की जरुरत हो.
मैं गयी, अलमारी के पास, खोला, निकला सूट , देखा खोलकर, ठीक लगा मुझे तो. फिर बेड पर रख दिया। फिर सोचा हाथ - मुँह धो कर फ्रेश हो जाती हूँ, अभी तो टाइम है.
गयी, बाथरूम, दुपट्टा निकल कर बाथरूम के दरवाजे पर टांगा और लगी मुँह धोने, ठंडे पानी से एकदम ताज़गी आ गयी , दोनों हाथो पानी लेकर छपाक सीधा मुँह पर , कुछ पानी मेरे जोबन पर भी गिर गया , अब क्या ?
माँ ने देखा तो फिर भजन, दुपट्टा लिया, डाला कंधे पर , टॉवल से मुँह पोंछते हुए, सीधा कमरे मैं. अब क्या करू, अगर माँ ने बुला लिया तो , कर लेती हूँ चेंज टॉप को.
एक पीली टी - शर्ट निकली और पहन ली, थोड़ी पुरानी थी, गले से कुछ ढीली हो गयी थी, इसे अक्सर रात को सोते समय ही पहन लेती थी, गले की साइड से ब्रा का स्ट्राप दिख रहा था , पर जल्दी मैं ध्यान नहीं दिया। सोचा माँ को चाय बना कर दू , कुछ मूड ठीक होगा, साथ मैं भी पी लुंगी।
आ गई माँ के पास, बोली, माँ चाय बना दू, पियोगी ?
माँ - हाँ, मेरी बच्ची , कितनी समझदार है, जा बना ले.
मैं, खुश , अब डांट नहीं पड़ेगी। बच गयी.
माँ - निहारिका, तेरे दूसरी टी- शर्ट नहीं है, देख तो जरा, ब्रा का स्ट्राप दिख रहा है, पागल अब तो नादानी छोड़ , जवान हो गयी है. इधर बैठ, मेरे पास, फिर मेरी टी - शर्ट को ठीक करती हुई बोली।
माँ - बेटा, जमाना ख़राब है, लड़कियों को ही सम्भल कर चलना होता है, बोलने वाले नहीं चूका करते, चल घर मैं तो ठीक है, सोने के लिए, पर रूम से बहार आये तो ठीक कपडे पहना कर. अब जा , अच्छी सी चाय बना ला.
-मैं - जी,माँ. ।अभी लायी।
मैं, गयी किचन मैं, चाय का पानी चढ़ा दिया गैस पर , पत्ती डाली, थोड़ी अदरक डाली कूट कर, माँ को पसंद थी अदरक वाली चाय, दूध और शक्कर डाल कर इंतज़ार किया , दो - चार उफान आने पर गैस बंद करि, और कप मैं चाय डाली और ले आयी माँ के पास.
माँ - निहारिका, वाह अच्छी चाय बनाई तूने, चलो कुछ तो आया तुझे, फिर हंसने लगी,....
मैं - क्या माँ, खाना भी तो बना लेती हूँ, वो बात अलग है, रोटी कभी - कभी जल जाती हैं. ही , ही
ऐसे ही हंसी - मजाक मैं चाय ख़तम हुई, फिर माँ बोली, तू जा सूट चेक कर ले , एक बार प्रेस घुमा ही ले, मैं किचन मैं रख के थोड़ा आराम कर लेती हूँ.
अरे,सुमन को फ़ोन भी करना था, पहले वो ही कर लू, तू रख आ कप किचन मैं.
मैं - ठीक है, लाओ माँ.
माँ , फोन लगाती है, सुमन भाभी को.
माँ - हेलो, सुमन , कैसी है, सब आनंद - मंगल।
सुमन भाभी - हाँ जी, सब कुशल - मंगल, आप बताओ। कैसे फोन किया ?
माँ - अरे , सुबह तुझे बताना भूल गयी , मैं अभी साफ़ नहीं हुई पूरी तरह, मैं नहीं आ पाऊँगी आज.
सुमन भाभी - ओह, अब क्या, अब क्या करे मैंने तो उसे बोल दिया की मैं निहारिका और उसकी माँ को लेती आउंगी।
माँ - ऐसा कर , सुमन निहारिका को ही ले जाना , पागल कुछ तो सीखेगी। , ही ही,
सुमन भाभी - हाँ भाभी, शादी लायक हो गयी है, पर समझ इतनी नहीं है
माँ - हाँ री , अब क्या करू, कोशिश तो करती हूँ, पर अटक जाती हूँ, एक बाद एक बेवकुफो वाली हरकत मेरा दिमाग ही चढ़ जाता है.
सुमन भाभी - अच्छा , आप आराम करो , मैं आ कर ले जाउंगी निहारिका को.
माँ - अच्छा , सुमन मैं रखती हूँ।
सुमन भाभी - जी भाभी।
हो गयी थी दोनों की बात , मुझ बकरी को हलाल करने प्लानिंग। अभी शाम को समय था, माँ गयी आराम करने, मैंने सोचा , सूट प्रेस कर के मैं भी कुछ देर आराम कर लू.
सूट को फैलाया, देखा, जायदा सल नहीं थे पर गुंजाईश थी प्रेस की. सो निकाल ली प्रेस ही देर मैं, सूट ठीक, उसे टांगा
हेंगर पर और प्रेस साइड मैं रख कर पर.
आँख बंद करते ही , टेंशन, वहां जाकर करना क्या है, अरे अभी पूछ लेती माँ से, अब तक सो गयी होंगी , कहाँ फंसा दिया।
थोड़ी देर के बाद ,उठ गयी, नींद आयी पर थोड़ा आराम मिल गया, मार्किट की थकन जो थी. अब मैं फ्रेश थी, सोचा माँ को उठाऊ।
बाहर आकर देखा सुमन भाभी - और माँ , चाय पी रहे थे , तभी सुमन भाभी - बोली आजा , निहारिका अभी तेरी बात ही हो रही थी.
मैं - जी भाभी,
माँ - तेरी चाय यही रखी है, बस अभी लाई हूँ.
-मैं - जाकर बैठ गयी, माँ के पास, और ले लिया कप हाथ मैं चाय का. जो स्वाद माँ की चाय मैं था वो मेरी चाय मैं कहाँ, न जाने कब आएगा ऐसा स्वाद मेरी चाय मैं भी.
सुमन भाभी - निहारिका, तू तैयार नहीं हुई, जा, चाय पी कर तैयार हो जा.
मैं - जी भाभी।
फिर , मैंने चाय ख़तम करि, और कप रखे किचन मैं , और गई सीधा बाथरूम,
मुँह धोने को न चालू किया , आया याद फंक्शन तो लम्बा है शायद , "सु -सु" कर के चलो. नहीं तो दिक्कत होगी। नल बंद करके , स्कर्ट उठायी और पैंटी नीचे करि और बैठ गयी , एक हलकी सिटी सी आवाज आयी कुछ देर मैं ,फिर मैंने फ्लश को चला दिया जिस से आवाज न जाए बाहर।
उठी , पैंटी पहनी , स्कर्ट नीचे करि, और हाथ मुँह धो कर आ गयी बाहर बाथरूम से.. अपने रूम मैं जाकर अलमारी खोली, सोचा नयी ब्रा - पैंटी पेहेन ,लेती हूँ.
कौन सी ब्रा निकलू, हम्म,पिंक सूट है, पिंक ब्रा हैं न, मेरे पास, फिर मैंने अपनी टी - शर्ट उतारी फिर ब्रा के स्ट्रैप्स निकले कंधे पर से कर , हुक खोला और निकाल दी.
फिर , पिंक ब्रा ली, घुमा के हुक लगाया और , कंधे पर स्ट्रैप्स चढ़ा लिए, अब जल्दी मैं ऐसे ही करती हूँ, फिर पैंटी निकली पिंक वाली।
अपनी पहनी हुई पैंटी उतारी देखा , कुछ हल्का पीला सा था , कुछ गीला सा भी , वो तो अभी "सु-सु" करा है उस से, उफ़. आया याद, मार्किट मैं , सुनार और रिक्शे पर गीले हुई थी.
जल्दी से , पैंटी को बेड के किनारे दबा दिया , सोचा आ कर धो दूंगी। अभी जल्दी चलो.
नयी पैंटी पहनी, कुर्ती डाली, चूड़ीदार पायजामा उफ़, कुछ टाइट ही था, समय लगना ही था, और आ गयी माँ की आवाज,
माँ - निहारिका - हो गयी तैयार , जल्दी कर.
मैं - अंदर से, माँ, बस बाल बनाने हैं. आयी.
मैंने जल्दी से , बाल सुलझाए और रबर बैंड लगा लिया , सोचा तो चोटी करने का था, टाइट सूट और चूड़ीदार पर अच्छी लगती थी मेरी लम्बी चोटी।
दुपट्टा लिया और लगभग भागते हुए , आ गयी , चलो भाभी। जायदा देर तो नहीं हुई.
सुमन भाभी - अरे निहारिका, मेकउप नहीं किया कुछ.
मैं - उफ़, भूल गयी, चलो रहने दो
सुमन भाभी - अरे जवान लड़की है, कुछ तो कर, जा. जल्दी आना.
मैं , भाग कर गयी, सूट से मैच करती मेजेंटा लिपस्टिक लगा ली और आँखों मैं काजल बस और कुछ नहीं। वार्ना रात हो जाएगी आज तो.
बाहर माँ के पास आयी ,और बोली , - ठीक है?
- माँ - निहारिका, तू तो बड़ी सुन्दर लग रही है. नजर न लगे मेरी बच्ची को. सुमन जरा ध्यान रखना।
सुमन - जी भाभी, अब चले. निहारिका
मैं - जी भाभी, अच्छा माँ , चलती हूँ.
घर से निकलते ही धड़कन तेज़, हाथ मैं गिफ्ट पैक, और पसीना एक साथ आ रहा था , क्या करना है वहां जा कर. सुमन भाभी से पुछु ?
नहीं, " डाकिया डाक लाया " , चुप चलो देखा जायेगा जो होगा, माँ के भजन तो हैं ही सुननेको।
तब सुमन भाभी बोली - निहारिका तुझे पता है, फंक्शन के बारे मैं?
में - नहीं भाभी, जा रही हूँ आपके साथ देख लुंगी वहां।
सुमन भाभी - अरे "गोद - भराई " का फंक्शन है, जब कोई महिला गर्भवती होती है, तो नए मेहमान के स्वागत की तैयारी में पूरा परिवार जुट जाता है और सब लोगो को बुला कर एक फंक्शन होता है.
यह एक पारंपरिक रस्म है, जिसमें आने वाले बच्चे और गर्भवती को ढेरों आशीर्वाद दिए जाते हैं और दोनों के अच्छे स्वास्थ की कामना की जाती है चारो और हांसी - ख़ुशी का माहोल होता है. कुछ परिवारों में गोद भराई की रस्म गर्भावस्था के सातवें महीने में की जाती है कुछ के आठवे महीने मैं.। यह माना जाता है कि इन माह में मां और गर्भ में पल रहा शिशु पूरी तरह से सेफ होता है।
उफ़ ,इतना ज्ञान , सुमन भाभी आप ग्रेट हो , और मैं पागल,- मन मैं सोचा।
मैं - हम्म, भाभी। और क्या होगा।
सुमन भाभी - अरे बड़ा मज़ा आएगा , तू चल तो सही. मेहँदी , गेम्स , खाना - पीना , मस्ती, औरतो वाली बाते, सब.
हाथों में मेहंदी लगवाने के लिए मेहंदी वाले भी होंगे, तू भी लगवा लेना , नहीं तो मैं ही लगा दूंगी तेरे तो भीड़ हुई तो.
गेम्स, जैसे गर्भवती के पेट का आकार देखकर अंदाज़ा लगाना कि होने वाला बच्चा लड़की होगी या लड़का।
क्या खाने का मन किया - खट्टा - मीठा , मुल्तानी मिटटी या कुछ और. मौजूद महिलाएं इस बात का अंदाज़ा लगाएंगी कि गर्भवती को पूरे गर्भावस्था में सबसे ज्यादा क्या खाने की इच्छा हुई, खुद के बारे मैं भी , अगर कोई औरत बताना चाहे तो.
डिलीवरी की तारीख का अनुमान लगाना ,पेट देख कर , बच्चा कब होगा, दिन कौन सा होगा, कलर कैसा होगा , आँख और नाक किस पर जाएगी।
- मैं - मैं क्या बोलूंगी, वहां ?
सुमन भाभी - निहारिका, बड़ी जल्दी है तूज़े माँ बनने की , , ही ही , ही करती हूँ तेरी बात , तेरी माँ से।
मैं - धत, भाभी आप भी न.
ऐसे बाते करते हुए हम पहुँच गए , अच्छा खासा फंक्शन था , काफी भीड़ थी. सब औरते मुझे ही देख रही थी, सब साड़ी मैं , और मैं अकेली सूट मैं.
मैं - भाभी कुछ अजीब लग रहा है, सब मुझे ही देखे जा रहे हैं. मैंने जोबन भी ढक कर रखे हैं, कुछ गड़बड़ हुई क्या मुझ से।
सुमन भाभी - नहीं रे, एक तो तू बाला की खूबसूरत लग रही है, दूसरी तू अकेलि है जिसकी शादी नहीं हुई, कुंवारी, कच्ची कलि ।
फिर फंक्शन चालू हुआ, गीत - संगीत , हांसी - मजाक, एक दूसरे को छेड़ना -
सुमन भाभी - पिंकी सुन , अब तो दूसरा कर ले , हो गया तेरा बेटा ३ साल का.
पिंकी - जी भाभी, मैं तो कह रही हूँ, इनसे। यह मानते .ही नहीं। "मूड्स" लगा लेते हैं, बस.
सुमन भाभी - अरे कर ले कोशिश, आज रात, बिना "मूड्स" के, हो जा फ्री कर ले दो बच्चे। एक से भले दो.
पिंकी - जी भाभी, आज देखती हूँ, है आपके साथ.कौन है, नयी शादी हुई है क्या , सिंदूर - चूड़ा दिख नहीं रहा।
सुमन भाभी - अरे यह, कुंवारी है, एकदम कच्ची कली। इसकी माँ की तबियत जरा ख़राब थी, तो इसे भेज दिया। गिफ्ट देने।
मैं ० - चुप इनकी बाते सुन रही थी और हाथो मैं मेहँदी लगवा रही थी. उफ़ क्या माहौल था, मस्ती - मज़ा , खाना - पीना, मेहँदी- संगीत , गीत, छेड़छाड़ , बच्चे की बाते, और यह नासपीटा "मूड्स" यह पीछा ही नहीं छोड रहा मेरा।
[b]सुमन भाभी - निहारिका। .........................[/b]
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क्या बात है निहारिका जी एक दम लाजवाब अपडेट दिया है
बस आप का ही थर्ड है जहाँ कुछ सुकून मिलता है
कोमल जी तो लगता है भरपूर मज़े कर रही है और करवा भी रही है साजन के साथ
वेसे तो सब के हल चल रहे है,पर सहेलियों के बिना मन उदास ही रहता है
उम्मीद है कोमल जी जल्दी ही हमारे बीच आएंगी
पूनम जी ,विद्या जी कहाँ हो
दिन में तो कभी कभार मिल जुल लो
निहारिका जी,लोकडाउन कैसा कट रहा है आप का
मेरी तो हालात बीमार वाली हो गयी है
बुखार आ गया है रात से तो
बस आप से मिलने की तलब खिंच लाती है आप के पास
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(24-04-2020, 07:24 AM)@Kusum_Soni Wrote: क्या बात है निहारिका जी एक दम लाजवाब अपडेट दिया है
बस आप का ही थर्ड है जहाँ कुछ सुकून मिलता है
कोमल जी तो लगता है भरपूर मज़े कर रही है और करवा भी रही है साजन के साथ
वेसे तो सब के हल चल रहे है,पर सहेलियों के बिना मन उदास ही रहता है
उम्मीद है कोमल जी जल्दी ही हमारे बीच आएंगी
पूनम जी ,विद्या जी कहाँ हो
दिन में तो कभी कभार मिल जुल लो
निहारिका जी,लोकडाउन कैसा कट रहा है आप का
मेरी तो हालात बीमार वाली हो गयी है
बुखार आ गया है रात से तो
बस आप से मिलने की तलब खिंच लाती है आप के पास
कुसुम जी ,
आपके प्यार भरी दो लाइन, एक सुकून सा ला देती हैं. अपने प्यार की बौछार बिखेरती रहिये जी. "दिल" से अच्छा लगता है. जैसे भी समय मिले।
सच्ची , कोमल जी तो "गायब जी" हो गयी हैं, पक्का कुछ न कुछ काम मैं बिजी होंगी, नहीं तो दिन मैं एक बार दस्तक दे ही देती हैं.
निहारिका जी,लोकडाउन कैसा कट रहा है आप का
वैसा ही, जो सब औरतो का हाल हैं, "करवा" के , घर के रूटीन काम, सोने - उठने का समय बिगड़ गया , सब गड़बड़।
क्यों जी, बुखार कैसे , कुछ "जायदा" हो गया क्या। ध्यान रखो जी, हम ऑटो पर बहुत जिम्मेदारी हैं, सब संभालना होता हैं. उनको भी, और "उनका" भी। गोली ले लेना , पर कलर देख के.
जल्दी स्वस्थ व् मस्त हो जाओ, ईसि कामना के साथ , आपकी निहारिका।
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पिंकी - जी भाभी, आज देखती हूँ, है आपके साथ.कौन है, नयी शादी हुई है क्या , सिंदूर - चूड़ा दिख नहीं रहा।
सुमन भाभी - अरे यह, कुंवारी है, एकदम कच्ची कली। इसकी माँ की तबियत जरा ख़राब थी, तो इसे भेज दिया। गिफ्ट देने।
मैं ० - चुप इनकी बाते सुन रही थी और हाथो मैं मेहँदी लगवा रही थी. उफ़ क्या माहौल था, मस्ती - मज़ा , खाना - पीना, मेहँदी- संगीत , गीत, छेड़छाड़ , बच्चे की बाते, और यह नासपीटा "मूड्स" यह पीछा ही नहीं छोड रहा मेरा।
सुमन भाभी - निहारिका। ........................
************
प्रिय सहेलिओं ,
निहारिका का प्यार भरा नमस्कार ,
अब आगे ,
सुमन भाभी - निहारिका। हो गयी तेरी मेहँदी ??
मैं - हाँ भाभी, देखो अच्छी है न।
सुमन भाभी - निहारिका, मस्त लगायी है , मज़ा आ गया होगा लगाने वाले को, ही, ही,ही
मैं - भाभी , आप भो न , शर्मा के।
मेहँदी लगवा के कुछ - कुछ हुआ था मुझे , जोबन टाइट और निचे गीली हुई थी अब कैसे बताऊ भाभी को, अगर बता दिया तो समझ लो, "डाकिया डाक लाया"- हो जायेगा।
सो चुप रही. मैं थी तो बेवकूफ पर इतना तो देखा था की शादी से पहले मेहँदी ही लगाई जाती हैं दुल्हन को, और हाथो मैं मेहँदी मस्त रची थी, कलर भी अच्छा आया था. मैं कितनी खुश थी उस दिन जैसा लड़की शादी से पहले होती है. अपने सपनो मैं खोई, मैं भी यही सब सोच रही थी.
सुमन भाभी - अब चले , घर, नहीं तो तेरी माँ मेरी जान ले लेगी , कहाँ ले गयी मेरी बेटी को, सुमन। टाइम हो गया है, चल।
मैं - हाँ भाभी , चालो।
मैंने दुपट्टा ठीक किया जोबन पर और सब से नमस्ते कर के चले को तैयार , गिफ्ट तो दे ही दिया था मेहँदी लगवाने से पहले।
पर मन मैं काफी सवाल घुमड़ रहे थे , "गोद - भरई", "बच्चा", "पेट" कितना बड़ा था, कैसे संभल लेती है औरत, उफ़, क्या मेरा भी इतना बड़ा होगा ? उफ़, बाप रे. और अगर बच्चा हुआ तो वो कैसे होता हैं. दूसरी औरतो के दो - तीन बच्चे हैं पर उनका पेट, तो लगभग नार्मल ही है. हाँ थोड़ी मोटी हो गयी है नहीं तो सब ठीक है. और यह नासपीटा "मूड्स", वो पिंकी भाभी कह रही थी की आज बिना मूड्स के , पर क्या करेंगी और उनकी पति मूड्स का क्या करते हैं.
घर मैं भी. मूड्स का पैकेट था , अब तो पूछना ही पड़ेगा, "मूड्स" के बारे मैं, सुमन भाभी , नहीं बाबा मजाक बना देंगी सब लोगो मैं, सहेली से ही पूछ लेती हूँ कल.
तभी, मेरा हाथ पकड़ा सुमन भाभी ने, और बोला चले निहारिका।
मैं - हम्म, [ एकदम होश मैं आयी]
रास्ते मैं, सुमन भाभी का लाइव रेडियो चल रहा था , पूरी औरतो वाली बाते,
सुमन भाभी - निहारिका, पता है तुझे, वो पिंकी पूछ रही थी तेरे बारे मैं, कौन है.
मैं - जी, भाभी फिर आपने क्या कहा.
सुमन भाभी - क्या कहती, "कच्ची - कली " हैं यही कहा. क्यों सही कहा न, कही "सब" हो तो नहीं गया , बिना "सिन्दूर" , ही ही
मैं - शर्म से लाल, नहीं भाभी , कुछ नहीं।
सुमन भाभी - अरे , आज कल लड़किया बड़ी तेज़ हैं, "सब" करवा लेती हैं. और फिर देखो निखार। ब्यूटी पारलर वाले तरस जाते हैं लड़कियों के लिए. एकदम चिकन - सामन बन जाती हैं.
मैं - सच्ची भाभी।
सुमन भाभी - और नहीं तो क्या , अरे शादी शुदा को ही देख ले , वो पिंकी थी न , देखा था उसे।
मैं - हाँ , भाभी सुन्दर थी.
सुमन भाभी - सुन्दर, बस , उसके जोबन देखे, और पिछवाड़ा किसा गोल - मटोल हो गया है, "करवा" के.
मैं - भाभी, जोबन तो ठीक से नहीं देखे, पल्ले मैं थे साड़ी के, हाँ , पीछे से अच्छी थी.
सुमन भाभी - "अच्छी" बस, ही ही, गज़ब थी, पहले देखती उसे , अरे दो गली छोड़ के मायका हैं उसका, बचपन से जानती हूँ उसे. तुज से भी कमजोर थी, अब देख कैसे जवानी आयी हैं, एक बच्चे के बाद भी मस्त है.
मैं - हमम.
ऐसे ही बाते करते घर कब आ गया पता ही नहीं चला , तभी सुमन भाभी बोली।
सुमन भाभी - निहारिका , आ गया तेरा घर, तुझे तेरी माँ को सोप दू तो मेरी जिम्मेदारी ख़तम हो. आखिर जवान कच्ची - कली हैं. सारे ज़माने की नज़र होती है. औरतो की भी , "खास - काम " के लिए.
मैंने घर की घंटी बजायी, माँ ने दरवाजा खोला , बोली।
माँ - आ गयी निहारिका। आ सुमन आजा तू भी, बता कैसा रहा सब. आने की बड़ी इच्छा थी, पर क्या करू.
सुमन भाभी - कोई नहीं, भाभी , सब मस्त था, लो आपकी बेटी सही - सलामत। ही ही
माँ - अरे , तेरे साथ गयी थी , कोई चिंता नहीं थी, पर जमाना ख़राब है आज कल है आज कल, जवान लड़की है.
मैं - माँ देखो, मेहँदी।
माँ - अरे वाह, कितनी सुन्दर लगवाई है, सुमन अच्छी लगाई हैं न.
सुमन भाभी - अरे अब तो शादी की मेहँदी लगाने की तैयारी करो भाभी,
मैं - माँ, मैं चेंज कर लेती हूँ. और भागी मैं वहां से.
सुमन भाभी - देखो, शर्मा गयी, निहारिका। शादी होती ही ऐसी है.
माँ - हाँ, सुमन, देखो कहाँ भाग जुड़ता है .
और बता , कौन आया था, किसका "उप्पर" हुआ, पिंकी का तो एक ही हैं न, या हो गया दूसरा ?
सुमन भाभी - नहीं, अभी कहाँ, वो तो मेरे जा रही है, "लगवाने" को पर उसका पति "मूड्स" लगा लेता है,
मुझे कमरे मैं उनकी बाते सुनाई दे रही थी, "मूड्स" अच्छे से सुनाई दिया, फिर सोचा इस "मूड्स" का कुछ करना ही पड़ेगा।
सुमन भाभी - उसे लड़का ही होगा, साली ने खूब आचार - खट्टा खाया है, दबा के. पेट भी अच्छा बड़ा था.
माँ - अच्छा, तू बड़ी आयी, पेट नापने वाली, लड़का देने वाली।
सुमन भाभी - मेरा नाम पलट देना, भाभी , अगर लड़का न हुआ तो. अगर मेरी बात सच निकली तो आपसे "साड़ी" लेकर जाउंगी, वो भी अच्छी वाली।
माँ - हाँ , साड़ी भी ले जाना , रुक तो सही, दो - महीने।
सुमन भाभी - ही, ही, मैं तो इंतज़ार हूँ, ..... "साड़ी का.
माँ - सुमन , तू तो पूरी पागल हो गयी, क्या खाया वहां। खट्टा खा आयी क्या ?
मैं - माँ, मैं सोने जा रही हूँ. .......
सुमन भाभी - अच्छे से सोना , ही , ही
माँ - सुमन , छेड मत लड़की को, लगता है आज तू गरम हो गयी है, घर जा, "ठंडी" हो. तेरी प्यास तो खाली "मर्द" से कहाँ भुज पाती है,
सुमन भाभी - उफ़, याद मत दिलाओ, साली पिंकी की याद आ गई.
मैं - "पिंकी" भाभी की याद , सुमन भाभी को , क्यों ?
............
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Bahut badhiya aur secret baaton se bhara hua update "saare zamane ki nazar hoti hai, auraton ki bhi khaas Kaam ke liye" , "teri pyaas khali mard se kaha bujh paati hai" , "uff yaad mat dilao saali pinki ki yaad aa gayi" , "Pinki Bhabhi ki yaad Suman Bhabhi ko kyu" in sab baaton ne to mahaan suspense paida kar diya please next big update dijiye aur hamari jigyasa dooor kijiye
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(24-04-2020, 04:49 PM)ghost19 Wrote: Bahut badhiya aur secret baaton se bhara hua update "saare zamane ki nazar hoti hai, auraton ki bhi khaas Kaam ke liye" , "teri pyaas khali mard se kaha bujh paati hai" , "uff yaad mat dilao saali pinki ki yaad aa gayi" , "Pinki Bhabhi ki yaad Suman Bhabhi ko kyu" in sab baaton ne to mahaan suspense paida kar diya please next big update dijiye aur hamari jigyasa dooor kijiye
ghost19
जी शुक्रिया आपका,
क्या करे जी, जमाना ख़राब है, "नज़ारे" दिख ही जाते हैं कितना भी छुपाओ , दुपट्टे मैं।
जुड़े रहिये , लेते रहिये चटकारे हम औरतो की बातो मैं.
पुनः ध्यनवाद
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(24-04-2020, 09:45 AM)Niharikasaree Wrote: पिंकी - जी भाभी, आज देखती हूँ, है आपके साथ.कौन है, नयी शादी हुई है क्या , सिंदूर - चूड़ा दिख नहीं रहा।
सुमन भाभी - अरे यह, कुंवारी है, एकदम कच्ची कली। इसकी माँ की तबियत जरा ख़राब थी, तो इसे भेज दिया। गिफ्ट देने।
मैं ० - चुप इनकी बाते सुन रही थी और हाथो मैं मेहँदी लगवा रही थी. उफ़ क्या माहौल था, मस्ती - मज़ा , खाना - पीना, मेहँदी- संगीत , गीत, छेड़छाड़ , बच्चे की बाते, और यह नासपीटा "मूड्स" यह पीछा ही नहीं छोड रहा मेरा।
सुमन भाभी - निहारिका। ........................
************
प्रिय सहेलिओं ,
निहारिका का प्यार भरा नमस्कार ,
अब आगे ,
सुमन भाभी - निहारिका। हो गयी तेरी मेहँदी ??
मैं - हाँ भाभी, देखो अच्छी है न।
सुमन भाभी - निहारिका, मस्त लगायी है , मज़ा आ गया होगा लगाने वाले को, ही, ही,ही
मैं - भाभी , आप भो न , शर्मा के।
मेहँदी लगवा के कुछ - कुछ हुआ था मुझे , जोबन टाइट और निचे गीली हुई थी अब कैसे बताऊ भाभी को, अगर बता दिया तो समझ लो, "डाकिया डाक लाया"- हो जायेगा।
सो चुप रही. मैं थी तो बेवकूफ पर इतना तो देखा था की शादी से पहले मेहँदी ही लगाई जाती हैं दुल्हन को, और हाथो मैं मेहँदी मस्त रची थी, कलर भी अच्छा आया था. मैं कितनी खुश थी उस दिन जैसा लड़की शादी से पहले होती है. अपने सपनो मैं खोई, मैं भी यही सब सोच रही थी.
सुमन भाभी - अब चले , घर, नहीं तो तेरी माँ मेरी जान ले लेगी , कहाँ ले गयी मेरी बेटी को, सुमन। टाइम हो गया है, चल।
मैं - हाँ भाभी , चालो।
मैंने दुपट्टा ठीक किया जोबन पर और सब से नमस्ते कर के चले को तैयार , गिफ्ट तो दे ही दिया था मेहँदी लगवाने से पहले।
पर मन मैं काफी सवाल घुमड़ रहे थे , "गोद - भरई", "बच्चा", "पेट" कितना बड़ा था, कैसे संभल लेती है औरत, उफ़, क्या मेरा भी इतना बड़ा होगा ? उफ़, बाप रे. और अगर बच्चा हुआ तो वो कैसे होता हैं. दूसरी औरतो के दो - तीन बच्चे हैं पर उनका पेट, तो लगभग नार्मल ही है. हाँ थोड़ी मोटी हो गयी है नहीं तो सब ठीक है. और यह नासपीटा "मूड्स", वो पिंकी भाभी कह रही थी की आज बिना मूड्स के , पर क्या करेंगी और उनकी पति मूड्स का क्या करते हैं.
घर मैं भी. मूड्स का पैकेट था , अब तो पूछना ही पड़ेगा, "मूड्स" के बारे मैं, सुमन भाभी , नहीं बाबा मजाक बना देंगी सब लोगो मैं, सहेली से ही पूछ लेती हूँ कल.
तभी, मेरा हाथ पकड़ा सुमन भाभी ने, और बोला चले निहारिका।
मैं - हम्म, [ एकदम होश मैं आयी]
रास्ते मैं, सुमन भाभी का लाइव रेडियो चल रहा था , पूरी औरतो वाली बाते,
सुमन भाभी - निहारिका, पता है तुझे, वो पिंकी पूछ रही थी तेरे बारे मैं, कौन है.
मैं - जी, भाभी फिर आपने क्या कहा.
सुमन भाभी - क्या कहती, "कच्ची - कली " हैं यही कहा. क्यों सही कहा न, कही "सब" हो तो नहीं गया , बिना "सिन्दूर" , ही ही
मैं - शर्म से लाल, नहीं भाभी , कुछ नहीं।
सुमन भाभी - अरे , आज कल लड़किया बड़ी तेज़ हैं, "सब" करवा लेती हैं. और फिर देखो निखार। ब्यूटी पारलर वाले तरस जाते हैं लड़कियों के लिए. एकदम चिकन - सामन बन जाती हैं.
मैं - सच्ची भाभी।
सुमन भाभी - और नहीं तो क्या , अरे शादी शुदा को ही देख ले , वो पिंकी थी न , देखा था उसे।
मैं - हाँ , भाभी सुन्दर थी.
सुमन भाभी - सुन्दर, बस , उसके जोबन देखे, और पिछवाड़ा किसा गोल - मटोल हो गया है, "करवा" के.
मैं - भाभी, जोबन तो ठीक से नहीं देखे, पल्ले मैं थे साड़ी के, हाँ , पीछे से अच्छी थी.
सुमन भाभी - "अच्छी" बस, ही ही, गज़ब थी, पहले देखती उसे , अरे दो गली छोड़ के मायका हैं उसका, बचपन से जानती हूँ उसे. तुज से भी कमजोर थी, अब देख कैसे जवानी आयी हैं, एक बच्चे के बाद भी मस्त है.
मैं - हमम.
ऐसे ही बाते करते घर कब आ गया पता ही नहीं चला , तभी सुमन भाभी बोली।
सुमन भाभी - निहारिका , आ गया तेरा घर, तुझे तेरी माँ को सोप दू तो मेरी जिम्मेदारी ख़तम हो. आखिर जवान कच्ची - कली हैं. सारे ज़माने की नज़र होती है. औरतो की भी , "खास - काम " के लिए.
मैं - माँ, मैं सोने जा रही हूँ. .......
सुमन भाभी - अच्छे से सोना , ही , ही
माँ - सुमन , छेड मत लड़की को, लगता है आज तू गरम हो गयी है, घर जा, "ठंडी" हो. तेरी प्यास तो खाली "मर्द" से कहाँ भुज पाती है,
सुमन भाभी - उफ़, याद मत दिलाओ, साली पिंकी की याद आ गई.
मैं - "पिंकी" भाभी की याद , सुमन भाभी को , क्यों ?
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Sahi kaha Niharika ji, aapne...
Na jaane in shadi shuda auraton ko kya mazzaa aata hai Kunwari Ladkiyon ko chedne mein, inke samne adult jokes maarne mein...
College se 4th year mein placement ke baad main aur meri ek College ki ladki same company mein naukri lagi.
Hum dono ka jahan oar desk tha, wahin aas pass mein shadi shuda lady colleagues ka bhi desk tha...
Ye jo mere sath placed hui thi company mein, wo kamar ke niche se kafi jyada viksit thi, matlub aap samajh hi rahe hongey, itni jyada ki jab ye chalti thi to aisa lagta tha ki do do football laga rakhe hain isne Jeans ke andar, ekdum madmast hathi ki chaal... haayeeee
Wahin upar se kafi normal thi, matlub niche ka saman upar ke saman se match nahi karta tha, ekdum kele ke tane jaisi jaanghein, lekin dudhu, aise jaisa lagta hai kisi ne in par mehnat nahi kar hai, jo bhi mehnat hui hai, piche hi hui hai
Ye jab bhi jaati to mere desk ke samne se hokar jana padta tha inko, aur mera favourite kaam tha ki apne Computer se nazar upar karke, jab tak Madma nazar se ojhal nahi ho jaatin, tab tak inke Footballs ka to and fro motion dekhun, is firak mein ki kaash iski panty line dikh jaaye, kahaan fasi hui hai, lekin Madam bahut chalaak, Thong pahan kar aati thin, jo dono bade bade footballs ke madhya mein jakar fas jaati hai aur kapde par koi nishan nahi aata, aisa lagta hai bahar se ki kuch pahna hi nahi hai andar(ek bar kuch uthane ke liye niche baith gayin Madam aur inki red thong upar ki taraf sarak gayi, jo shirt pahni thi, wo chhoti thi, to kamar nahi dhak paayi aur thong dikh gaya mujhe )
Ek bar one piece party wear pahan kar aayi thin Madam office, kyunki Friday tha aur us din vening mein Office party thi, piche se kuch jyada hi chipka hua tha...
Main is manoram drishya ka lutf utha hi raha tha ki tabhi un shadi shuda colleagues ne in Madam ko chidhate hue kaha ki - Yarr, aaj tu piche se bahut mast dikh rahi hai, haaye, mazzaa aa gaya...
Ye bhi hasi, wo auratein dil khol kar hasin, aur mera jo dhire dhire sir utha raha tha, wo niche gir gaya, aur meri bhi hasi chut gayi...
Foreign se ek banda aya humari team mein, ye madam usse has has kar English mein baatein ki ja rahi hain, aur in shadi shuda auraton ne itni jor se bola use - Sab pata chal raha hai, sab pata chal raha hai, ki us Foreign bande ne bhi sun liya, but use kuch nahi pata chala...
Ye dono ghatnayein mere samne huin, isiliye mujhe laga ki Shadi ke baad to auratein kuch jayada hi khul jaati hain in sab mamlon mein....
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(24-04-2020, 09:31 PM)rahulgoku1008 Wrote: Sahi kaha Niharika ji, aapne...
Na jaane in shadi shuda auraton ko kya mazzaa aata hai Kunwari Ladkiyon ko chedne mein, inke samne adult jokes maarne mein...
College se 4th year mein placement ke baad main aur meri ek College ki ladki same company mein naukri lagi.
Hum dono ka jahan oar desk tha, wahin aas pass mein shadi shuda lady colleagues ka bhi desk tha...
Ye jo mere sath placed hui thi company mein, wo kamar ke niche se kafi jyada viksit thi, matlub aap samajh hi rahe hongey, itni jyada ki jab ye chalti thi to aisa lagta tha ki do do football laga rakhe hain isne Jeans ke andar, ekdum madmast hathi ki chaal... haayeeee
Wahin upar se kafi normal thi, matlub niche ka saman upar ke saman se match nahi karta tha, ekdum kele ke tane jaisi jaanghein, lekin dudhu, aise jaisa lagta hai kisi ne in par mehnat nahi kar hai, jo bhi mehnat hui hai, piche hi hui hai
Ye jab bhi jaati to mere desk ke samne se hokar jana padta tha inko, aur mera favourite kaam tha ki apne Computer se nazar upar karke, jab tak Madma nazar se ojhal nahi ho jaatin, tab tak inke Footballs ka to and fro motion dekhun, is firak mein ki kaash iski panty line dikh jaaye, kahaan fasi hui hai, lekin Madam bahut chalaak, Thong pahan kar aati thin, jo dono bade bade footballs ke madhya mein jakar fas jaati hai aur kapde par koi nishan nahi aata, aisa lagta hai bahar se ki kuch pahna hi nahi hai andar(ek bar kuch uthane ke liye niche baith gayin Madam aur inki red thong upar ki taraf sarak gayi, jo shirt pahni thi, wo chhoti thi, to kamar nahi dhak paayi aur thong dikh gaya mujhe )
Ek bar one piece party wear pahan kar aayi thin Madam office, kyunki Friday tha aur us din vening mein Office party thi, piche se kuch jyada hi chipka hua tha...
Main is manoram drishya ka lutf utha hi raha tha ki tabhi un shadi shuda colleagues ne in Madam ko chidhate hue kaha ki - Yarr, aaj tu piche se bahut mast dikh rahi hai, haaye, mazzaa aa gaya...
Ye bhi hasi, wo auratein dil khol kar hasin, aur mera jo dhire dhire sir utha raha tha, wo niche gir gaya, aur meri bhi hasi chut gayi...
Foreign se ek banda aya humari team mein, ye madam usse has has kar English mein baatein ki ja rahi hain, aur in shadi shuda auraton ne itni jor se bola use - Sab pata chal raha hai, sab pata chal raha hai, ki us Foreign bande ne bhi sun liya, but use kuch nahi pata chala...
Ye dono ghatnayein mere samne huin, isiliye mujhe laga ki Shadi ke baad to auratein kuch jayada hi khul jaati hain in sab mamlon mein....
rahulgoku1008 जी
आपका शुक्रिया ,
आपकी कही हुई दोनों घटनाओ मैं, एक बात है, शादी के बाद हम औरतो मैं बदलाव।
शादी के बाद , हम औरतो का जिस्म "खुल" जाता है, "खिल" जाता है. रही बात "उपर" और "नीचे" के "संतुलन" का. कुछ तो अनुवांशिक होता है, और कुछ "इस्तेमाल" की वजह से. हाँ, उम्र और काम - काज की वजह से भी अंतर आ जाता है.
आपने कामवाली बाई को देखा होगा , कही भी मोटापा नज़र नहीं आता, दिन भर भाग दौड़ लगी रहती है. "घर" मैं भी "काम" और बाहर मेहनत सब संतुलित कर देती है.
पुनः, शुक्रिया आपका।
आइए, हम औरतो की दुनिया का , औरतो की भावनाओ का करीब से आनंद लीजिये।
शादी के बाद , कुछ बचा ही नहीं होता , जो की न खुले , सब "खुल" जाता है वो भी हक़ से , साथ ही औरत भी.
औरत की दुनिया एक "भानुमति" के पिटारे के जैसे होती है, जितनी आसान दिखाई देती हैं उतनी होती नहीं।
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मन भाभी - उफ़, याद मत दिलाओ, साली पिंकी की याद आ गई.
मैं - "पिंकी" भाभी की याद , सुमन भाभी को , क्यों ?
.............................................
प्रिय सहेलिओं ,
निहारिका का प्यार भरा नमस्कार ,
अब आगे ,
बेड पर लेटी हुई थी, आँखों मैं नैनंद आ भी रही थी और नहीं भी बार -बार सुमन भाभी की बाते ध्यान मैं आ रही थी मन मैं हलचल थी आज के फंक्शन के बाद , मन मैं काफी सवाल घुमड़ रहे थे , "गोद - भराई", "बच्चा", "पेट" कितना बड़ा था, कैसे संभल लेती है औरत, उफ़, क्या मेरा भी इतना बड़ा होगा ? उफ़, बाप रे. और अगर बच्चा हुआ तो वो कैसे होता हैं. और यह नासपीटा "मूड्स", वो पिंकी भाभी कह रही थी की आज बिना मूड्स के , पर क्या करेंगी और उनकी पति मूड्स का क्या करते हैं. पिताजी ने भी कल "कुछ" किया था माँ के साथ , पर क्या ? क्या किया होगा ? फिर माँ ने "मूड्स" का पैकेट भी हटा दिया वहां से। और सुमन भाभी कह रही थी , जवान कच्ची - कली पर सारे ज़माने की नज़र होती है. औरतो की भी , "खास - काम " के लिए.
अब यह कौन सा खास काम होता यही औरतो और लड़कियों के बीच ? फिर मैंने टेबल लैंम्प जलाया और देखा अपने हाथो को जिनपे खूबसूरत मेहँदी रची थी, हाय ! कितनी सुन्दर है , कुछ देर तक उसे ही देखती रही. यु तो मेहँदी लगवाई थी मैंने काफी बार, पर यु ही की सब लगवा रही है तो मैं भी, पर आज कुछ अच्छा और अजीब लग रहा था.
गोरे हाथो मैं लाल- लाल मेहँदी की डिज़ाइन , उफ़ कुछ - कुछ दुल्हन वाली फीलिंग आ रही थी आज, "सच्ची" पर दुल्हन के साथ आगे "क्या" होता है इसका पूरा पता नहीं था.
शादी मैं जाना, हसना - खेला , मस्त , नाच -गाना , खाना पीना और थोड़ी छेड - छाड़ जिसमे मैं सीधा शामिल नहीं होती थी, पर देखा था की औरते कैसे "गन्दी" वाली बाट करती हैं एक रूम मैं इकठ्ठा होकर, कुछ आता था समझ मैं और कुछ नहीं।
अब, पूछो भी तो किस- से ? बस सुनते रहो और स्माइल देते रहो. और आ जाओ घर. फिर दो - चार महीने के बाद जिसकी शादी मैं गए थे वह से खबर मिलती की, "मेहमान" आने वाला है. पर "कैसे", कोई डिटेल "अंदर" वाली पता न थी.
फिर जाओ माँ के साथ रिश्तेदारी मैं, बधाई दे आओ, मैंने कई बार देखा है, शुरू मैं "पेट" नार्मल ही होता है पर कुछ महीने के बाद, आज वाली भाभी के जैसा हूँ जाता है, फिर बच्चा होने के बाद फिर पहले जैसा , जैसे कुछ हुआ ही न हो.
फिर मैंने, टेबल लैंप बंद किया , और कोशिश करने लगी सोने की, आँख बंद करते ही, सुमन भाभी और "मूड्स" फिर आखो के सामने थे. पता नहीं कब आँख लग गयी, जो सुबह माँ की आवाज के साथ ही खुली।
माँ - निहारिका , उठ, आज फिर लेट हो जाएगी।
मैं - हाँ, माँ आयी.
फिर उठ कर गयी बाथरूम मैं, दरवाजा बंद किया , आज टॉवल , ब्रा - पैंटी, कुर्ती - सलवार सब ले लिया था, कल का सबक याद था.
कपडे टाँगे, और टी- शर्ट उतारी , पिंक ब्रा मैं ऊठे हुए जोबन देखकर शर्म सी आ गयी , हाथ लगाया जोबन पर बा के ऊपर से तो हाथो मैं रची मेहँदी नजर आयी. हाय कितने सुन्दर लग रहे थे मेरे हाथ कोहनी तक मेहँदी लगी थी, शायद मेरे ही लगायी थी उसने कोहनी तक , दूसरी औरतो के तो बस हथेली पर ही लगायी थी कल मेरा ध्यान ही नहीं गया.
फिर, ब्रा का हुक खोला कंधे से ब्रा के स्ट्रैप्स उतार के और निकल के रख दी साइड मैं, दोनो जोबन जब मेरे मेहँदी वाले हाथ मैं दोबारा आये तो "सच्ची" क्या बताऊ उफ़, एक अलग ही दुनिया मैं जा पहुन्ची , मेहँदी भरे हाथ और बीच मैं इतराते हुए जोबन, और कड़क निप्पल। कुछ देर अपनी आँखे सेकने के बाद ध्यान आया , निहारिका तू कुछ करे आयी है बाथरूम मैं, ऐसी ही खड़े रहना है ?
फिर पैंटी और सलवार उतरे , बैठ गयी सीट पर "सु -सु " करने अपने हाथो को देखती हुई तभी "सीटी" की आवाज से ध्यान आया की फ्लश चलना है. मैं हंसी और चला दिया फ्लश।
फिर नाहा - धो कर बदन सुखाया और टॉवल सर पर लपेटा ताकि गीले बाल कुछ सुख जाए , ब्रा पहनी सफ़ेद वाली थी जिसमे पिंक फ्लावर थे और ब्रा के स्ट्रैप्स कफी पतले थे दूसरी ब्रा के मुकाबले। फिर मैंने ब्लैक पेंटी पहनी, अक्सर हम लड़कियाँ - औरते गहरे कलर की पेंटी ही इस्तेमाल करते हैं. पता नहीं कभी हिम्मत ही नहीं हुई, की कहले कलर या सफ़ेद कलर की पेंटी खरीद लू. बस नीला, काला, डीप हरा, बैंगनी और हो गया सिलेक्शन, हाँ ब्रा के मामले मैं कलर देखे जाते हैं, ब्लाउज या कुर्ती के मैचिंग के साथ।
पर लोगो की नज़र "नाज़रे" देख ही लेती हैं.
नाहा कर रूम मैं आयी , बाल सुखाये और आँखों मैं कालेज लगाया , मैरून ग्लॉसी लिपस्टिक लगायी, मेरा और लिपस्टिक का ग़हरा नाता रहा है, घर मैं भी मैं बिना लिपस्टिक के नहीं रहती आज भी, वो बात अलग है की, कई बार दुबारा लगनी पड़ जाती है. मेहेरबानी "पतिदेव" की. पर लिपस्टिक की कीमत वसूल हो जाती है, और फिर लानी भी तो उन्हे ही हैं.
गयी माँ के पास, माँ तैयार थी नास्ते के साथ, मेरे हाथो मैं मेहंदी देख कर बोली , वाह किती रची है तेरे हाथो मैं, सुन्दर लग रही है, दुल्हन के जैसे।
मैं , शर्म से लाल, आँखे नीचे खाने की थाली पर , क्या खा रही थी उसका भी पता नहीं, बस खा लिया और उठ गयी हाथ धोने के लिए, हाथ धोते हुए फिर , मेहँदी दिख गयी. उफ़ क्या हो रहा है मुझे, निप्पल एकदम से खड़े हो गए थे, वो तो अच्छा था की, जोबन पर दुप्पट्टा ओढ़ रखा था, नहीं तो कुर्ती से सीधा दिख रहे थे।
निकलो यहाँ से, जल्दी।
अच्छा माँ, जाती हूँ. - मैं निकलते हुए बोली।
माँ - अच्छा, ठीक है, ध्यान रखना।
मैंने गेट बंद किया, बाहर का, एक बार फिर दुपट्टा ठीक किया , जो मैं अक्सर करती हूँ, घर से निकलते हुए आज भी, "जमाना" ख़राब है जी.
स्कूटी उठाई, उफ़, पंचर , लो हो गया बंटाधार। अब जाओ कॉलेज , "मूड्स" का क्या होगा। नहीं - नहीं आज बस मैं ही चलते हैं , माँ को बाहर से ही बोला माँ, यह पंचर हो गयी है , मैं बस से जा रही हूँ.
माँ - अच्छा , ठीक है, मैं बनवा दूगी, किसी से कह के, तू जा.
मैं - ठीक है माँ.
फिर मन तेज़ी से चलती हुई, बस स्टॉप की तफर की और आने लगी, गली के बाहर वो ही मेडिकल दिखाई दिया , वहां फिर कुछ लड़के खड़े दिखे, पर हिम्मत नहीं हुई, जायदा देखने की, कंधो पे दुपट्टा संभाला और आगे चल दी.
कुछ देर में बस स्टॉप पर आ गयी, हल्का पसीना आ गया था, माथे पर और गर्दन पर , रुकी दुपट्टे के पल्लू से पोंछा कुछ आराम मिला , स्कूटी को भी आज ही पंचर होना था. साली वो कामिनी कब की कॉलेज पहुँच गयी होगी, मैं फिर लेट एक - दो क्लास निकल ही जायेगी, जब तक कालेज पहुंचूंगी।
एक बस आयी, लगभग भारी हुई थी, कुछ लोग चढ़ गए कोशिश कर के , में रह गयी की दूसरी आती होगी। कम लोग ही रह गए थे अब. बस के लिए। इतने मैं दूर से बस आती दिखाई दी, फिर मैंने आस - पास देखा की कितने लोग हैं, जाने के लिए, पांच - सात ही थे मुझे मिला के। हो जायेगा काम , बस का अब। इतने मैं एक औरत आयी, जिसका पेट निकला हुआ था, पर कल वाली के जैसा नहीं, कुछ काम ही था, सीधे पल्ले की साड़ी मैं अच्छे से ढँक रखा था, फिर भी दिखाई दे रहा था, मैंने उसे देखा, उसने मुझे फिर एक हलकी स्माइल दी उसने, फिर अपने पेट को देखा। फिर आती हुई बस को देखने लगी.
मुझे लगा , की पूछ लू, की इसी बस मैं जाना है, इस से पहले पूछ पाती, वो बोली, बेहेन एक काम कर दोगी मेरा ?
मैं - हाँ , जी बिलकुल।
औरत - मैं हॉस्पिटल जा रही हूँ चेकउप के लिए छठा महीना है, बस मैं चढ़ने मैं थोड़ी हेल्प करवा दो अब मर्दो को क्या बोलो।।
मैं - हाँ , क्यों नहीं, एक औरत ही दूसरी औरत के काम आती हैं, आप चिंता न करे.
इतने मैं बस रुकी, बस वाले को बोलै मैंने, भइया , जरा आने दो। जगह करो पलीज.
बस वाला - आइए मैडम, कहाँ हॉस्पिटल जाना है, अंदर आइए उसने एक सीट खली करवा दी, कुछ बच्चे थे शायद कॉलेज वाले।
हम दोनों सीट पर बैठ गयी, हॉस्पिटल मेरे कॉलेज के रास्ते मैं ही आता था , कुछ दूर पहले। मैंने उस से कहा, मैं आपके साथ हूँ, मेरी कॉलेज हॉस्पिटल के बाढ़ि आता हैं कुछ काम हो तो बता देना।
उसने कहा, बड़ी मेरबानी आपकी , इन दिनों मैं काफी समस्या हो जाती हैं, औरतो के साथ.
अब मेरा दीमाग चकरा गया, समस्या , कल तो खूब मस्ती कर के आयी हूँ, वहां तो कुछ नहीं था ऐसा ?
फिर वो बोली, अभी छठा चल रहा रहा है न , आठवे तक कुछ आराम आ जाये गा. तुम्हारी शादी की बात चल रही होगी , मेरे जोबन को देखती हुई बोली, उम्र हो गयी अब तो. कर लो.
मैं, शर्मा के, हम्म।
फिर सोचा इस से ही पूछ लेती हूँ की बच्चा कैसे आता है, कैसे होता है. हिम्मत नहीं हो रही थी, बस गाल लाल और पसीना।
वो बोली - आरी क्यों शर्म कर रही है, लड़कियों को शादी करनी ही है, और फिर बच्चा। ......
मैं - बच्चा , यह ही तो मालूम करना ही, पर पुछु कैसे , इसी उधेड़बुन मैं आगया हॉस्पिटल, वो बोली,
अच्छा अब मैं चली हूँ , सुन्दर हो , जवान हो जल्दी कर लेना शादी, औरत पूरी हो जाती है बच्चे के बाद..
मैं - जी, [ और क्या बोलती]
वो उठी , मैंने उसे सहारा दिया उठने मैं, मेरा हाथ उसके पेट से जा लगा, उसने मुझे देखा और हलकी सी स्माइल दी, फिर धीरे से बोली, मैं लड़की चाहती हूँ, पता नहीं क्या होगा, तुम जैसे सुन्दर लड़की।
मैं - शर्म से लाल , कुछ न बोल पायी, फिर वो धीरे से बस मैं से उतर गयी, और मुझे देखती रही, जब तक बस न चल दी. और मैं भी उसे। ..........
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अच्छा अब मैं चली हूँ , सुन्दर हो , जवान हो जल्दी कर लेना शादी, औरत पूरी हो जाती है बच्चे के बाद..
मैं - जी, [ और क्या बोलती]
वो उठी , मैंने उसे सहारा दिया उठने मैं, मेरा हाथ उसके पेट से जा लगा, उसने मुझे देखा और हलकी सी स्माइल दी, फिर धीरे से बोली, मैं लड़की चाहती हूँ, पता नहीं क्या होगा, तुम जैसे सुन्दर लड़की।
मैं - शर्म से लाल , कुछ न बोल पायी, फिर वो धीरे से बस मैं से उतर गयी, और मुझे देखती रही, जब तक बस न चल दी. और मैं भी उसे। ..........
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प्रिय सहेलिओं ,
निहारिका का प्यार भरा नमस्कार ,
अब आगे ,
आज लिखते हुए अपनी सखियों की कमी महसूस हो रही है , कोमल जी, कुसुम जी, पूनम जी, विद्या जी एक लगाव सा हो गया है आप सब से. आपकी दो लाइन भी तरंग - उमंग ला देती, "जी" खुश हो जाता है, वैसे तो हम सभी औरतो की हालत एक जैसे ही है पर गुंजारिश है की जब भी समय मिले बस अपनी उपस्तिति दर्ज करवा दो , दो लाइन प्यार भरी ही काफी है इस समय "जीने" के लिए।
मेरी विनिती। ..... इस फोरम की और भी औरतो लड़कियों से जो चुप चाप सब पढ़ के चली जाती हैं, अपनी बातो और इच्छाओ को अंदर ही दबा लेती हैं, अरे .यही तो हमलोग करती आयी हैं जीवन भर , चुप रहो - .सब सहो.
यह आपका अपना आँगन है , मेरी कहानी [ जो लगभाग] सच्ची है, कुछ नाम नहीं लिए है, कुछ लिए भी है जो जरूरी थे। जो भी हो, मैं जरूरी नहीं हु, आप लोग जरूरी हो, आपका साथ - आपका प्यार जरूरी है। आप हो तो मैं हु.
कल हो न हो, "जी" लो आज मैं, वैसे भी औरतो को "जीना" कहाँ नसीब होता है अपने लिए , सारी जिंदगी पति, बच्चो, घर और बाकि घरवालों की सेवा मैं ही निकल जाती है.
यहाँ तक "मरते" हुए अगर औरत से पूछ लो की कुछ कहना है, तो वो शायद, पति या बच्चो की ही बात करेगी। अपनी नहीं।
विनती, सभी औरतो - लड़कियों से , आओ अपने दिल की बात शेयर करो. "जी' लो अपनी जिंदगी। ऑनलाइन ही सही.
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जवान हो जल्दी कर लेना शादी, औरत पूरी हो जाती है बच्चे के बाद..
मेरा कॉलेज कुछ दूर था लगभग दस - पंद्रह मिनट , मेरी आँख बंद थी , बस चल रही थी खिड़की से हवा आती हलके से दुपट्टा उड़ जाता जोबन से मैं आँख बंद किये ही उसे ठीक कर लेती, लड़कियां कर लेती है - हो जाता है अपने आप, आदत सी हो जाती हैं. लड़कियां दुपट्टे को ठीक कर जोबन ढाक ही लेती हैं आखिर जमाना ख़राब है जी.
उस औरत के पेट का अहसाह मेरी उंगलिओं पैर अब भी था , कैसा गोल - उभरा हुआ, अंदर बच्चा, कितना ध्यान रख रही थी उसका , कल भी गोद - भराई मैं उसका पेट इससे जायदा बड़ा था , हम्म, इसका छठा महीना चल रहा है, बोली थी, कल उसका आठंवा था। वहां औरते डेट तो अगले माह की निकाल रही थी मतलब नौ महीने तक, पर उसके बाद. बच्चा , पर पेट से बहार कैसे आता है. अचानक 'मूड्स" का ध्यान आ गया , इतने मैं बस वाला बोला - मैडम आपका कॉलेज आ गया , उतरना है या आगे जाना है.
मैं - हाँ, भैया , रुकवाओ बस.
फिर मैं बस से उतर गयी, और कॉलेज की और चलने लगी , फिर सोचा की टाइम कितना हुआ, जाऊ या नहीं क्लास मैं, आधी - ख़तम हो गयी होगी। रहने दो, आज वैसे भी मन अजीब सा है.
फिर सोचा कैंटीन जा कर चाय पी लेती हूँ , कुछ आराम आएगा शायद। मेरी सहेली का ध्यान आया, बहुत कुछ पूछना था, पत्ता नहीं आयी या नहीं आज. सोचती हुई कैंटीन की और चल दी, वहाँ जाकर टेबल पर बैठ गयी, कैंटीन वाला आया , बोलै क्या लाऊ ?
मैं - एक चाय, बस.
कैंटीन वाला - समोसे भी हैं, एकदम गरम ले आउ एक प्लेट।
मैं जायदा बात करने की मूड मैं नहीं थी, उसे भागने के लिए , बोल दिया - ठीक है.
वो गया, और पांच मिनिट मैं ले आया चाय और समोसे। सही कह रहा था गरम थे समोसे, गरम तो मैं भी थी, पर कारण नहीं पता था, - सवाल ही - सवाल जिनका जबाब नहीं पता , और पूछ भी नहीं सकती , शर्म के मारे.
अजीब सी घुटन , कही मन न लगे. आस पास क्या चल रहा है, कुछ नहीं पता. यु तो कॉलेज की काफी चहलपहल होती है, पर आज न जाने क्यों कुछ सुनाई नहीं दे रहा था.
मैं समोसा खा रही थी, इतने मैं गेट से मेरी "कमिनी सहेली " आती दिखाई दी, साली क्या मस्त लग रही थी [ गाली - निकल ही गयी थी उस समय, "सच्ची" जब कोई लड़की आपसे अधिक सुन्दर लगती है तो जलन से गाली निकल ही जाती है.]
हलके आसमानी सूट मैं थी, टाइट चूड़ीदार उस पर वाइट और आसमानी दो रंग का दुपट्टा वो भी गले से चिपका हुआ, जोबन उफ़, कोई ऐसा नहीं था जिसने उसके जोबन न देखे हो, मैं भी शामिल थी. अब झूठ क्यों कहना , 38 - C थे।
बहुत हुआ, कामिनी सहेली पुराण, अब बस. जलन हो रही है, अभी भी , ही ही, औरत हूँ न. औरते कुछ नहीं भूलती।।
मुझे अच्छे से याद है, उसके इसी सूट को देखकर , मैंने भी ठीक ऐसा सूट सिलवाया था उसके टेलर से. तब जाकर ठंडक मिली थी.
हाँ, तो आ गई, सीधा मेरे पास, बोली,
सहेली - निहारिका , तू यहाँ, क्लास में नहीं गयी?
मैं - मैडम जी खुद लेट हैं और मुझे से सवाल ? तू कहाँ थी अब तक ?
सहेली - अकेले समोसे खा रही है, मुझे नहीं खिलाएगी साली।
मैं - तो खा ले न , कुत्ती , मर क्यों रही है.
सहेली - तूने "सच्ची ", कहा आज तो मैं "कुत्ती" ही बानी हुई थी.
-मैं - क्या, ?
सहेली - कुछ नहीं, समोसे माँगा , जल्दी।
-मैं बैठ तो सही,
फिर मैंने समोसे और चाय के लिए ।बोल दिया कैंटीन वाले को.
मैं - हम्म, अब बता कहाँ थी.
सहेली - अरे लम्बी कहानी है, मज़ा आ गया। "सारे खुल गए " आज तो.
मैं - तू कामिनी ही रहेगी , साली बता न.
सहेली - पहले तू बता , आज यहाँ कैसे ?
मैं - अरे कुछ ख़ास नहीं, सुबह स्कूटी पंचर फिर बस मैं आयी। और क्या।
सहेली - मैं सोची ,........ ही ही कुछ और ही चक्कर।
मैं - पागल। कुछ भी. तू बता क्या बात हुई, इतना खुश क्यों लग रही है.
सहेली - खुश ? सारा बदन टूट रहा है, साले ने जम के ली मेरी।
मैं - क्या , कुछ बतायेगी या मैं जाउ. अगली क्लास , शुरू होने वाली होगी। नहीं तो कॉलेज आना बेकार हो जायेगा आज का.
सहेली - आज क्लास छोड़, समोसा खाते हुए बोली।
मैं - हाँ, जी, क्यों नहीं। एग्जाम मेरा काका जी देंगे।
सहेली - [ समोसा ख़तम करते हुए बोली] बताती हूँ न सब, रुक तो।
मैं भी कहाँ जाना चाहती थी आज क्लास मैं, मुझे भी तो पूछना था उस से. पर "नखरे" पुरे। [ औरत हूँ न - नखरे न करू - नामुमकिन , क्यों सहेलिओं सही कहा न
हम्म,ठीक है, बोल.
सहेली - पागल , यहाँ नहीं। कही और चलते हैं.
मैंने सोचा, ठीक ही तो कह रही है, और कोई आ गयी तो बात भी नहीं होगी। फिर मैंने कहा - ठीक है
फिर हम लोग चाय - समोसा ख़तम कर के निकल आये कैंटीन से , मैं बोली - हम्म, अब बता कहाँ चले ?
सहेली - हम्म, लाइब्रेरी चले ?
मैं - ठीक है, कोई नहीं होगा अभी तो वहां।
फिर हम दोनों, लाइब्रेरी की तरफ चल दिए , मेरे जोबन उस से थोड़े छोटे थे पर हम दोनों खूबसूरत थी रास्ते मैं सब लोगो की नजर "नज़ारे" देख रही थी, हम दोनों ने दुपट्टे को एकदम गले से चिपका लिया था , मैंने एक हाथ मैं लपेट लिया था ताकि उड़ न जाये चलते हुए।
हम पहुँच गए लाइब्रेरी , देखा की वहां जायदा भीड़ नहीं थी, कुछ किताबी कीड़े लगे हुए थे किताबो मैं। मैं ठीक थी पढ़ई मैं, पर किताबी - कीड़ा नहीं थी.
मैंने कहा - चल पीछे बैठते हैं.
सहेली - हम्म, चल.
फिर हम , बैठ गए, वो बोली - मज़ा आ गया आज तो। तोड़ दिया मुझे।
मैं - साली बता रही है, या जाऊ मैं.
सहेली - रुक तो. सांस तो लेने दे.
फिर मैं अचनक् बोली रुक।
मुझे मालूम थी की यह बड़ी बातूनी है, बात को बढ़ा - चढ़ा कर मसालेदार बना कर बताती है. और यह अगर शुरू हो गयी तो मेरी बात रह जाएगी।
सहेली - क्या हुआ ?
मैं - कुछ पूछना है, पहले मैं। फिर बताना अपनी कथा.
सहेली - हाँ मेरी जान, पूछ न क्या हुआ. सब ठीक.
मैं - हम्म, वैसे तो ठीक ही है. पर कुछ सवाल हैं जो परेशां कर रहे हैं, तू किसी को बताना नहीं.
सहेली - पागल है क्या तू, मैं किसी को नहीं बोलती, और तू तो मेरी जान है, पक्की वाली।
मैं - हम्म, यार , वो , आज बस मैं। ....
सहेली - क्या हुआ, किसी ने कुछ दबा दिया क्या?
मैं - साली , तेरे को यही सूझता है, सुन तो।
जब मैं बस के लिये वेट कर रही थी, तो बस स्टॉप पर एक औरत आयी, उसका पेट निकला हुआ था, वो मेरे पास आकर बोली बहन मेरी हेल्प कर दो बस मैं उतरने - चढ़ने मैं। फिर वो मेरे साथ ही बस मैं बैठ गयी थी, एक - दो बार मेरा हाथ उसके पेट पर भी लगा था, बड़ा अजीब सा अहसास था , पेट इतना बड़ा हो जाता है, कल भी मैं एक फंक्शन मैं गयी थी, जाना तो माँ को था पर 'वो वाली" प्रॉब्लम की वजह से मुझे जाना पड़ा. "गोद - भराई" फंक्शन था, वहां भी उस औरत का पेट काफी निकला हुआ था, वो बहुत खुश थी, और सब लोग भी. मैंने वहां मेहँदी भी लगवाली देख.
सहेली - वहा, मस्त रची है. कितनी खूबसूरत बनायीं है. सच.
मैं - हम्म, तो एक बात कर हैं, वहां सुमन भाभी कह रही थी, पिंकी भाभी को आज बिना "मूड्स" के करवा ले। अब "मूड्स" क्या होता है. इसका करना क्या होता है ?
सहेली - तुझे और कोई नहीं मिला , मेरे सिवा "चु**" बनाने को.
मैं - पागल है, सच कह रही हु, मुझे जायदा नहीं पता. तू बता न.
सहेली - अरे मेरी भोली चिड़िया , मैं भी तो यही बताने लायी हूँ.
मैं - मतलब। ??
सहेली - सुन, "मूड्स" एक कॉन्डम होता है, उसे मर्द के "उस" पर लगते हैं, और फिर "सम्भोग" करते हैं, "समभोग" लिख रही हु, वो कामिनी तो सीधा "च ***" ही बोली थी। इसे लगा के "नीचे वाली मुनिया" मैं डाल देते हैं. इससे बच्चा होने का खतरा नहीं रहता लड़की को. नहीं तो अब तक मैं कितने बच्चो की माँ बन चुकी होती , ही ही। .
फिर वो बोली।
रुक , तुझे दिखती हु, उसने अपना मोबाइल निकला और कुछ खोजने लगी उसमें। वो कुछ दिखा पाती, उससे पहले , एक लड़की आँखों पर चश्मा लगाए , चार किताबो से अपने जोबन दबाये हमारे पास आ गयी, बोली -
बॉस, एक काम था, आपसे।
हमारी जूनियर थी। .....
मैं - हम्म, बोलो। क्या काम है.....................
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