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Non-erotic अनोखी दास्तान by Jayprakash Pawar 'The Stranger'
#1
अनोखी दास्तान
        
"काका, कल रात की बात को लेकर अभी तक नाराज हो ?" मेज पर काॅफी का प्याला रखकर ऑफिस का प्यून अनोखे अपना उदास चेहरा लिए सौम्या के चेम्बर से बाहर निकल रहा था, तभी अनोखे को सौम्या का सवाल सुनाई दिया तो वह रूककर सौम्या की ओर मुड़ा और अनमने स्वर में बोला- "नहीं मैडम।"

        "मुझे पता हैं कि मेरे काका अपनी बिटिया से ज्यादा देर तक नाराज रह हीं नहीं सकते। बाइ द वे, आप कल को मुझे बार-बार काॅल क्यूँ किसलिए कर रहे थे ?"

         "आपसे एक छोटा-सा काम पड़ गया था।"

         "वो काम हुआ या नहीं ?"

         "नहीं।"

         "तो अब मुझे बता दीजिए, मेरी केपिसिटी के बाहर का नहीं होगा तो मैं जरूर करा दूँगी।"

         "रहने दीजिए मैडम।"

          "क्यूँ ?"

          "क्योंकि हम जैसे छोटे-मोटे कर्मचारियों को अपनी जरा-जरा सी समस्याओं के लिए आप जैसे बड़े अधिकारियों को परेशान करना सही नहीं हैं।"

          "और ये दिव्य ज्ञान आपको कल रात मेरे मुँह से फोन पर आपके लिए गुस्से से दो-चार उल्टी-सीधी बातें निकल जाने पर प्राप्त हुआ, हैं न ?"

           सौम्या को अनोखे से अपने इस सवाल का कोई जवाब नहीं मिला तो कुछ पलों तक जवाब की प्रतीक्षा करने के बाद सौम्या ने अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहा- "काका, ऐसा क्यूँ होता हैं कि अक्सर लोग किसी इंसान के एक बार किए गए दुर्व्यवहार की वजह से उसके लम्बे समय से किए जा मधुर व्यवहार को भूल जाते हैं ? मैं जबसे इस ऑफिस में आयी हूँ तबसे आपकी उम्र का लिहाज करते हुए आपकी बड़ी से बड़ी गलतियों के लिए भी आपको डाँटने से खुद को रोकती आ रही हूँ लेकिन कल रात को अपनी फेमिली प्राॅब्लम्स की वजह से हद से ज्यादा डिस्टर्ब होने के कारण आपको डाँटने खुद नहीं रोक पायी तो आप मुझसे इतना नाराज हो गए कि मेरे पूछने के बावजूद मुझसे अपनी प्राॅब्लम तक शेयर तक नहीं करना चाह रहे हैं।"

         "ऐसी बात नहीं हैं मैडम। न मैं आपसे नाराज हूँ और न आपके मेरे किए गए कल रात के दुर्व्यवहार की वजह से आपके लम्बे समय से किए जा रहे मधुर व्यवहार को भूला हूँ। दरअसल, मैं कल रात को अपनी बेटी जूही को उदास देखकर बहुत ज्यादा परेशान हो गया था और मुझे लग रहा था कि मैं उसकी बात आपसे करा दूँगा तो उसका उदासी पूरी तरह से दूर हो जाएगी, क्योंकि आप उसकी आदर्श होने की वजह से आपकी बातें उस पर जादू की तरह असर करती हैं। लेकिन आपने कल रात चार-पाँच बार फोन नहीं उठाया और इसके जब उठाया तो मेरी पूरी बात सुने बिना हीं मुझे बुरी तरह से फटकार कर फोन काट दिया तो मुझे लगा कि आपको अपनी घरेलू समस्याओं के लिए परेशान नहीं करना चाहिए, इसलिए मैं आपको अपनी ये परेशानी नहीं बताना चाह रहा था। आपको बुरा लगा हो तो माफी चाहता हूँ। मुझे पता नहीं था कि आप खुद अपनी पारिवारिक समस्याओं से जूझ रहीं हैं, नहीं तो कल रात को भी बार-बार फोन नहीं करता। कल रात की गलती के लिए भी माफी चाहता हूँ। भविष्य में कभी आपसे अपनी घरेलू परेशानियों को हल करने के लिए मदद माँगकर आपको परेशान नहीं करूँगा।"

          "काका, आपने ये अभी ये कहकर मेरे दिल को जो चोट पहुँचाई हैं कि आप इन फ्यूचर कभी मुझसे अपनी डोमेस्टिक प्राॅब्लम को साॅल्व करने में हेल्प नहीं लेंगे, उसके लिए तो माफी माँगी हीं नहीं, जबकि आपको सिर्फ अपनी कही हुई इस बात के लिए माफी माँगने जरूरत हैं। चलिए, कोई बात नहीं। मैं आपको इस बात के लिए ऐसे हीं माफ कर देती हूँ लेकिन इस शर्त पर कि आप इन फ्यूचर मेरे साथ कभी भी ऐसी बातें नहीं करेंगे, जिससे मुझे ये लगे कि आप मुझे गैर समझते हैं। बोलिए, मेरी शर्त मंजूर हैं या नहीं ?"

          "खुशी-खुशी मंजूर हैं।"

          "अब आप ये बताइए कि आप मेरे कल रात के मिसबिहेव के लिए मेरे माफी माँगने पर मुझे माफ करेंगे या मेरी तरह बड़ा दिल दिखाकर बिना माफी माँगे हीं मुझे माफ कर देंगे ?"

          "अरे मैडम, जब मैं आपसे नाराज हीं नहीं तो ....।"

          "जब आपको पता हैं कि कोई मुझे मेरे कोश्चन का गोल-गोल घुमाकर डिप्लोमेटिक आन्सर देता हैं तो ऐसा आन्ससर मुझे बिल्कुल भी पसंद नहीं आता हैं, फिर आप मेरे कोश्चन का सीधा आन्सर देने की जगह उसकी जलेबी बना रहें हैं। मैं आपको ये मेरे कोश्चन का सीधा आन्सर देने के लिए ये सेकेंड एंड लास्ट चांस दे रही हूँ। यदि आपने इस बार मेरे कोश्चन की जलेबी बनाई तो हम दोनों के बीच का काका-बिटिया का रिश्ता हमेशा-हमेशा के खत्म हो जाएगा और इसके रिस्पांसिबल आप होंगे। चलिए, जल्दी से जवाब दीजिए क्योंकि आज की जनसुनवाई की कार्रवाई स्टार्ट करने का टाइम हो गया हैं।"

          "मैं भी आपको ऐसा हीं माफ कर रहा हूँ।"

          "थैंक्स। अब आप अपनी काॅफी उठाकर ले जाइए और बाहर खड़े लोगों में से बुजुर्गों और महिलाओं को प्राथमिकता देते हुए एक-एक करके अंदर भिजवाइए।"

          "दूसरी काॅफी लेकर आना हैं नहीं ?"

          "नहीं।"

          "क्यों ?"

          "क्योंकि मैंने अपना सारा टी-टाइम आपके साथ पर्सनल बातचीत में खर्च कर दिया हैं और ड्यूटी के टाइम से समय चुराकर चाय-काफी या किसी दूसरे पर्सनल काम के लिए खर्च करना मेरे प्रिंसिपल्स के खिलाफ हैं। ये बात आप खुद भी समझ लीजिए और बाहर घूम रहे हमारे ऑफिस के बाकी के कर्मचारियों को भी समझा दीजिए।"

        "जी मैडम।" कहकर अनोखे मेज से काॅफी का प्याला उठाकर चेम्बर से बाहर निकल गया।
                                ...........

         ठंड के मौसम का सुबह के करीब साढ़े-आठ बजे समय था। सौम्या के सरकारी बंगले के लाॅन में सुहावनी धूप फैली हुई थीं। बंगले के कम्पाउंड के गेट से बंगले में जाने के रास्ते और कम्पाउंड में दाई ओर बनी पाॅर्किंग तक वाहनों के आने-जाने के रास्ते के छोड़कर पूरी लाॅन हरी-भरी मुलायम घास से ढँका हुआ था। लाॅन में मौजूद घास शबनम की बूँदों से बुना हुआ और लाॅन में बैठी सौम्या का भोला मुखड़ा चिंता व शोक से बुना हुआ चादर ओढ़े हुआ था।

          सौम्या का मन कहाँ भटक रहा था, ये तो तय कर पाना मुश्किल हैं, लेकिन ये तो तय था कि उसका मन वहाँ हर्गिज नहीं था जहाँ उसकी काया मौजूद थीं, क्योंकि यदि उसका मन उसकी काया के साथ होता तो वह तेईस-चौबीस साल की उम्र की एक नवयुवती के स्कूटी लेकर बंगले के कम्पाउंड में दाखिल होने और अपनी स्कूटी पाॅर्क करके उसके करीब आकर खड़ी हो जाने की बात से बेखबर न होती।

          "दीदी, हैलो ...। अरे, किसकी यादों में खोई हुई हो यार ?" काफी देर तक शांत खड़ी रहकर सौम्या की तंद्रा खुद-ब-खुद भंग होने का इंतजार करने के बाद आगंतुक नवयुवती ने चुटकी बजाते हुए शरारती लहजे में कहा तो सौम्या कुछ इस तरह से चौंक उठी, जैसे उसे गहरी नींद से जगा दिया गया हो।

         "अरे जूही, तुम कब आयी ?" ख्यालों की दुनिया से बाहर निकलकर यथार्थ के धरातल के साथ ताल-मेल बिठाने का प्रयास करते हुए सौम्या ने आगंतुक नवयुवती से सवाल किया।

          "करीब दो मिनट पहले।"

          "मैं यहाँ बैठकर तुम्हारा हीं इंतजार कर रही थीं, लेकिन जिंदगी के बुने हुए मकड़जाल में उलझ जाने की वजह से मुझे तुम्हारे आने की भनक तक नहीं लगी। बैठों, मुझे तुम्हारे साथ कुछ जरूरी बातें करनी हैं।"

           "कहिए ..।" सामने पड़ी खाली कुर्सी पर बैठने के बाद जूही ने उसकी ओर सवालिया निगाहों से देखते हुए कहा।

           "मैंने तुमसे ये जानने के लिए यहाँ बुलाया हैं कि तुम परसो रात को किस वजह से इतनी ज्यादा उदास हो गई थीं कि तुम्हारे पापा को परेशान होकर मुझे बार-बार काॅल करने के लिए मजबूर होना पड़ा ?"

           "इसकी कोई खास वजह नहीं थीं दीदी, बस पिछली बार के आईपीएस के प्री-टेस्ट की तरह इस बार आईएएस के प्री-टेस्ट में भी मेरी उम्मीदों पर पानी फिर गया, इसलिए थोड़ी निराश हो गई थीं।"

           "थीं या अभी भी हो ?"

           "अरे दीदी, जिसकी रोल माॅडल आप जैसी ग्रेट पर्सन हो, उसे अपना खोया हुआ काॅन्फिडेंस रिकवर करने में इतना समय लगेगा क्या ?"

            "गुड ! मुझे तुम्हारा रिप्लाई बहुत पसंद आया। अब तुम ऐसा करों, पिछली नाकामयाबियों को भूल जाओ और अगले एग्जाम की तैयारी में अभी से जुट जाओं। मेरे गाईडेंस या कोई और हेल्प की जरूरत पड़े तो बेझिझक मेरे पास चली आना, ओके ?"

            "जी दीदी।"

            "चाय-काॅफी कुछ लोगी ?"

            "नहीं दीदी, घर से कम्प्लिट ब्रेक फास्ट लेकर निकली हूँ।"

            "तो ठीक हैं, अब तुम जा सकती हो।"

            "दीदी, आप परमिशन दे तो मैं आपसे एक कोश्चन करना चाहती हूँ।"

             "पूछो, क्या पूछना चाह रही हो ?"

             "दीदी, हर वक्त आपकी आँखों में अजीब-सा दर्द क्यूँ नजर आता हैं ? पिछले एक-डेढ़ माह से तो आप कुछ ज्यादा उदास नजर आ रही हैं। ये आपकी कोई अधूरी आरजू की टीस हैं या ये किसी टूटे हुए ख्वाब के नुकीले टुकड़ों की चुभन का दर्द हैं जो आप दुनिया से छुपाकर रखती हैं ? मेरी बहुत बार इच्छा हुई कि आपसे इस बारे में बात करूँ, लेकिन आपकी पर्सनाल्टी ऐसी हैं कि आपसे ज्यादा सवाल-जवाब करने की हिम्मत हीं नहीं होती। आज भी मैंने आते हीं आपके साथ हँसी-मजाक करने की कोशिश की, लेकिन जैसे आपने मेरी ओर देखा, वैसे हीं मेरी हिम्मत जवाब दे गई। ये जानने के बाद भी कि आप नारियल की तरह ऊपर से हार्ड और अंदर से बिल्कुल साॅफ्ट हैं, फिर भी पता नहीं क्यूँ आपसे आपकी पर्सनल लाइफ के बारे में पूछने डर लगता हैं। आज मैं बड़ी मुश्किल से हिम्मत जुटाकर अपना कोश्चन आपके सामने रख पायी हूँ। यदि आपको लगता हैं कि आपको मुझे इसका आन्सर दीजिए, अदरवाइज मैं बिना आन्सर लिए जा सकती हूँ बट आपसे रिक्वेस्ट हैं कि आप मेरे इस टाइप का कोश्चन करने की बात का बुरा मत मानिएगा। आप कीजिए, मैंने ...।"

           "अरे, हो गया यार। इतनी छोटी-सी बात के लिए कितनी सफाई दोगी ? एक कोश्चन हीं तो पूछा हैं तुमने, कोई क्राइम तो किया नहीं हैं जो एक के बाद एक सफाई दिए जा रही हो।"

            "क्या अब मैं जाऊँ ?"

            "क्यूँ , अपने कोश्चन का आन्सर नहीं सुनना हैं ?"

            "इसका मतलब ये हुआ कि आप मुझे मेरे कोश्चन का आन्सर देने के लिए एग्री हैं। दिस इज ग्रेट एचिवमेंट फाॅर मी। इस पूरे डिस्ट्रिक्ट में शायद मैं हीं पहली ऐसी पर्सन हूँ जो इस डिस्ट्रिक्ट के भू-माफियाओं, खनन-माफियाओं, मिलावटखोरों, शराब-माफियाओं और तमाम तरह के दो नम्बर के कारोबारियों की रातों की नींदे और दिन का चैन उड़ाने वाली यंग कलेक्टर साहिबा की पर्सनल लाइफ के बारे में जानने का एचिवमेंट हासिल करने जा रहीं हैं। एम आई राइट दी ?"

           "यू आर एब्सॅल्यूटली राइट, बट इतने छोटे-से एचिवमेंट के लिए तुम्हें इतना एक्साइटेड नहीं होना चाहिए, क्योंकि तुम भी फ्यूचर की आईएएस ऑफिसर हो, इसलिए तुम्हारे लिए एग्जाम की तैयारी के साथ-साथ अपने एक्साइटमेंट को काबू में रखना भी सीखना जरूरी हैं, अदरवाइज तुम एज द आईएएस ऑफिसर अपनी कोई विशिष्ट छाप नहीं छोड़ पाओगी।"

           "ये सब मैं आपसे किसी और दिन सीख लूँगी, अभी तो आप मुझे अपनी लाइफ की स्टोरी सुना दीजिए, ताकि ये सन्डे मेरे लिए सुपर सन्डे बन जाए।"

           "ठीक हैं, सुनो। मैं अपनी लाइफ की स्टोरी को उस चैप्टर से स्टार्ट करती हूँ, जो मेरी लाइफ का अब तक का सबसे खास और यादगार चैप्टर हैं। आज से लगभग सात साल पहले की बात हैं। उस समय मैं लगभग बीस साल की थीं और अपने होम टाउन में अपनी फेमिली के साथ रहकर उसी शहर के एक बड़े काॅलेज में एज द बीएससी फिफ्थ सेम स्टूडेंट स्टडी कर रही थीं। एक दिन मैं अपनी पहले से हीं तनावग्रस्त जिंदगी में एक बेहद अप्रिय घटना घट जाने की वजह से जिंदगी से पूरी तरह से हताश हो गई और सुसाइड करके अपनी जीवनलीला की इतिश्री करने के इरादे से अपने काॅलेज के पीछे मौजूद तालाब के पास पहुँच गई। इसके मैंने पहले आसपास देखकर ये सुनिश्चित किया कि मुझे अपनी जीवनयात्रा पर फुलस्टाॅप लगाने से रोकने वाला कोई नहींं हैं और और फिर तालाब के चक्कर लगाकर उस जगह की तलाश करने लगीं, जहाँ डूबने लायक गहरा पानी भी हो और उस जगह पर तालाब के किनारे से फर्स्ट अटैम्प में जम्प करके आसानी से पहुँचा भी जा सकता हो, क्योंकि मुझे लग रहा था कि मैं किनारे से छलाँग लगाते हीं सीधे पूरी तरह से डूबने लायक पानी में नहीं पहुँच पायी तो फिर शायद आगे बढ़कर गहरे पानी में जाने या बाहर आकर दुबारा तालाब कूदने का हौसला नहीं जुटा पाऊँगी और मुझे अपनी बदरंग और तनावग्रस्त जिंदगी के बोझ को ढोना कन्टिन्यु रखना पड़ेगा।" अपने जीवन की दास्तान सुनाते-सुनाते सौम्या अपने अतीत के गलियारे में पहुँच गई। वह अपने सामने नजर आनेवाली घास से ढँकी जमीन को इस तरह से देख रही थीं, जैसे उसे करीब सात वर्ष पूर्व उसके साथ घटी उस घटना के दृश्य जमीन के उस हिस्से पर नजर आ रहे हो, जो उसके अनुसार उसके जीवन के सबसे खास व यादगार अध्याय की शुरुआत थीं।
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#2
अनोखी दास्तान (भाग-2)
       
 "मैडम, आठ-दस कदम लेफ्ट साइड जाकर जम्प लगाइए। जहाँ आप खड़ी हैं, उसके सामने आपकी जम्प की रेंज में वाटर की डेप्थ साढ़े चार फीट से ज्यादा नहीं हैं।" मैंने कुछ देर तक तालाब के चक्कर लगाकर अपनी मंजिल तक पहुँचने के लिए उपयुक्त जगह का चयन किया और उस जगह से दौड़कर तालाब में जम्प लगाने के लिए एक कदम बढ़ाया हीं था कि तभी बगलवाली झाड़ियों के पीछे से आयी एक अननाउन मेल वाइस सुनकर मैं चौंक उठी और मेरा बढ़ा हुआ कदम खुद-ब-खुद पीछे लौट गया।

           "ये दुनिया इतनी कमीनी हैं कि न चैन से जीने देती हैं और न चैन से मरने देती हैं। मैं काॅलेज से डेढ़ किलोमीटर दूर इस सुनसान जगह पर ये सोचकर मरने आयी थीं कि यहाँ मुझे सुसाइड करने से रोकने कोई नहीं आएगा, लेकिन यहाँ तो मेरे और मेरी मौत के बीच अपनी टाँग अटकाने के लिए कोई पहले से मौजूद हैं।" मैंने झुँझलाते हुए मन हीं मन अपने आप से कहा और ये तय करने लगी कि झाड़ियों के पीछे मौजूद शख्स से निपटने के बाद अपनी मंजिल की ओर कदम बढ़ाऊँ या फिर उसे नजरअंदाज करके अपने मंजिल की ओर बढ़ जाऊँ।

          "और हाँ, तालाब में जम्प लगाने से पहले एक सुसाइड नोट जरूर छोड़ देना या फिर अपने किसी क्लोज फ्रेंड या रिलेटिव को मैसेज सेंड करके सुसाइड करने का रिजन बता देना, अदरवाइज सिक्युरिटी बेवजह आपके फेमिली मेम्बर्स और क्लोज फ्रेंड्स को परेशान करेगी।" कुछ पलों तक सोच-विचार करने के बाद मैं इस नतीजे पर पहुँची हीं थीं कि झाड़ियों के पीछे मौजूद शख्स को नजरअंदाज कर देना चाहिए, क्योंकि उसकी बात से मुझे ऐसा नहीं लगा कि उसका मुझे तालाब में जम्प लगाने से रोकने का इरादा हैं और वो मुझसे बीस-बाईस कदम दूर होने की वजह से मुझे जम्प लगाने से रोकना भी चाहे तो नहीं रोक सकता था, लेकिन तभी उस शख्स ने बिना माँगे मुझे दुबारा एडवाइज दी तो मेरा गुस्सा सातवें आसमान पर जा पहुँचा।

           "देखिए, आप जो कोई भी हैं, चुपचाप अपना काम कीजिए और मुझे अपना काम करने दीजिए, नहीं तो मैं तो मरूँगी हीं, साथ में आपको भी ले डूबूँगी।" मैंने झाड़ियों की तरफ देखकर उसके पीछे मौजूद शख्स को सर्द लहजे में चेतावनी दी।

           "साॅरी, यू केन डू योर जाॅब।" उसने कुछ वैसा हीं जवाब दिया, जैसी मुझे उससे उम्मीद थीं।

            "ये जो कोई भी हैं, इसने एक काम तो ये अच्छा किया कि इसने यहाँ अपनी मौजूदगी का अहसास दिला दिया, अदरवाइज मैं दिल में ये गलतफहमी लिए इस दुनिया से विदा हो जाती कि आजकल के लोग इतने ज्यादा भी बेरहम और संवेदनहीन नहीं हुए हैं कि किसी आत्महत्या करने वाले शख्स को देखकर अपनी आँखें बंद कर लें। आपका बहुत-बहुत धन्यवाद दोस्त। मुझे हमेशा सतानेवाली नेहा और उसकी उसकी माँ का भी शुक्रिया। मुझे सताने में इन दोनों माँ-बेटी का साथ देनेवाले मेरे पापा और दीदी को स्पेशल थैंक्स। मेरी अनफैथफुल फ्रेंड्स साक्षी, दीपिका, ....साॅरी यार, मैं तुम लोगों का हिसाब-किताब अपनी मम्मा के पास जाकर करूँगी, क्योंकि तुम लोगों का हिसाब करते तक कोई यहाँ आ गया तो बेवजह प्राॅब्लम क्रिएट हो जाएगी। ओके, गुड बाय माई डियर ब्यूटीफुल वर्ल्ड। मम्मा, मैं आपके पास आ रही हूँ।" झाड़ियों के पीछे मौजूद शख्स के कुछ देर के लिए मुझे मौत के मुँह में जाने से रोक देने की वजह से बदली मनःस्थिति में मेरे मन जो-जो बातें आ रही थीं, उन्हें जल्दी-जल्दी मुँह से बाहर निकालकर आखिरकार मैंने कुछ कदम दौड़कर तालाब में जम्प लगा लीं।

           लेकिन तालाब के गहरे पानी में सिर तक डूबने के कुछ पलों बाद हीं मेरे नाक-मुँह में पानी घुसने की वजह से मेरे दम घुटने की तकलीफ और जान निकल जाने की आशंका से मुझे अहसास हो गया कि जिंदगी इतनी सस्ती भी नहीं होती हैं कि उससे इतनी आसानी से मोह खत्म हो जाए, जितना मैं जम्प मारने से पहले समझ रहीं थी। ये अहसास होते हीं मैं अपनी जिंदगी को बचाने के लिए हाथ-पैर चलाने लगी।

           ये तो मैं आज तक नहीं जान पायी कि मेरे शरीर का कुछ हिस्सा डूबते समय हाथ-पैर चलाने की वजह से पानी से बाहर आया या फिर पानी के नीचे मौजूद ठोस जमीन से मेरे पैर टकराने की वजह से, लेकिन ये बात मैं उसी समय जान गई थीं कि मैं जैसे हीं मेरे गर्दन पानी से बाहर आयी, एक यंग ब्वाय ने किनारे से हाथ बढ़ाकर मुझे उसकी ओर आकर उसका थामने के लिए प्रेरित किया था, लेकिन मैं अपना पूरा प्रयास करने के बाद भी उसकी ओर एक इंच भी नहीं बढ़ पायी, क्योंकि मुझे स्विमिंग नहीं आती थीं। चंद लम्हों तक हाथ-पैर चलाकर अपनी गर्दन को पानी के ऊपर रख पाने के बाद मैं फिर से पानी के अंदर चली गई।

          दुबारा डूबने पर भी मेरी चेतना ने तो पूरी तरह से मेरा साथ नहीं छोड़ा, पर मेरी हिम्मत और ताकत ने छटपटाते हुए मेरे शरीर का पूरी तरह से मेरा साथ छोड़ दिया था। कुछ पलों तक पानी के अंदर अपनी जिंदगी बचाने के लिए मन हीं मन ईश्वर से प्रार्थना लायक भर शक्ति देते रहने के बाद मेरी चेतना ने भी मेरा साथ छोड़ दिया।

          'मैं जिंदा हूँ या मरकर किसी और दुनिया में पहुँच गई हूँ ?' जब दुबारा मेरे में शरीर में चेतना का संचार हुआ तो मैंने हैरानी से आँखें खोलकर इधर-उधर देखा और मन ही मन अपने आप से सवाल किया।

          "आप किसी और दुनिया में नहीं बल्कि इसी दुनिया में हैं।" मेरे मन में उठे सवाल का किसी और के मुँह से जवाब सुनकर मैं और ज्यादा हैरान हो गई। जवाब देनेवाले की आवाज पहचानकर भी मैं कम हैरान नहीं थीं, क्योंकि ये उसी शख्स की आवाज थीं, जिसने मेरे तालाब में कूदने से पहले झाड़ियों के पीछे से मुझसे बात की थीं। इस बार उसकी आवाज उस जगह से करीब पचास मीटर दूर मौजूद एक विशाल बरगद के पेड़ के पीछे आ रही थीं, जहाँ मैं गीले कपड़ों में छोटी-छोटी घास से ढँकी जमीन पर लेटी हुई थीं। मैं समझ गई कि इसी शख्स ने मुझे तालाब से बाहर निकालकर मेरी जान बचाई हैं।

           'अरे, लेकिन ये हैं कौन ? ये शायद वही हैं जो मेरे तालाब में डूबकर ऊपर आने पर नजर आया था। इसने पहले तालाब के किनारे से मेरी ओर हाथ बढ़ाकर ये कोशिश की कि मैं हाथ-पैर मारकर किसी तरह इसके करीब पहुँच जाऊँ और ये मुझे बाहर खींच ले, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया तो फिर इसने पानी में कूदकर मुझे बाहर निकाला होगा। थैंक्स गाॅड कि ये यहाँ था, नहीं तो इतनी देर में तो..., यार, पर मुझे बेहोश होने के बाद होश आया कितनी देर में ?' हाथ के सहारे से उठकर जमीन पर बैठने के बाद मन हीं मन विचारों का मंथन करते-करते ये सवाल मेरे दिमाग में उठा तो मैं एकाएक उस अजनबी और उसके मेरी जिंदगी बचाने के लिए किए गए क्रिया-कलापों के बारे में सोचना छोड़कर इस बारे में सोचने लगी कि मैंने अपनी जिंदगी की झँझटों से हमेशा के लिए छुटकारा पाने के चक्कर में कहीं अपने लिए नई मुसीबते तो पैदा नहीं कर लीं।

           मैने ये जानने के लिए अपनी रिस्टवाॅच की ओर देखा कि काॅलेज से यहाँ आने के लिए निकलने से लेकर अब तक समय कितना खर्च हुआ तो पता चला कि मेरी रिस्टवाॅच उसमें पानी घुस जाने की वजह से बेकाम हो चुकी हैं।

            "मैडम, आप लगभग दो बजकर सत्तावन मिनट पर हिरणी की तरह छलाँग लगाकर तालाब में कूदी थीं, इसके बाद करीब तीन मिनट तक आप तालाब के पानी में शाॅर्क की तरह गोते लगाती रही, इसके बाद मुझे तालाब में कूदकर आपको तलाशने और पानी से बाहर निकालने में करीब पाँच मिनट का टाइम लगा। करीब इतना हीं टाइम आपके फेफड़ों से पानी बाहर निकालने में लगा और इसके बाद होश में आने में आपने लगभग पैतीस मिनट का टाइम लिया, यानी इस आपके इस बेमतलब के फ्लाॅप शो में आपके पूरे अड़तालीस मिनट खर्च हुए और लगभग इतना हीं टाइम मेरा भी वेस्ट हुआ।" उस अजनबी ने बिना पूछे हीं मेरे इस सवाल का भी जवाब दे देने से मुझे ये सोचकर टेंशन से कुछ राहत मिली कि अभी मेरा काॅलेज टाइम खत्म होने में एक घंटे से भी कुछ ज्यादा समय बचा हुआ हैं।

         'पर मैं इन गीले कपड़ों का क्या करूँगी, ऐसी हालत में काॅलेज वापस गई तो लोग सवालों की झड़ी लगा देंगे और नेहा मुझे इस हालत में देख लेगी, तब तो कयामत हीं आ जाएगी। वो पापा और दीदी से मुझे डाँट खिलाने का ये गोल्डन चांस अपने हाथ से जाने देगी, ये सोचना भी बेवकूफी होंगी। इस हालत में मैं घर भी नहीं जा सकती, क्योंकि आज वीकली मार्केट डे या किसी रिलेटिव के यहाँ कोई फँक्शन नहीं हैं इसलिए नेहा की चुड़ैल माँ के घर में न होने की पाॅसिब्लिटी न के बराबर हैं, ऊपर से आज दीदी के ऑफिस का हाॅफ डे होने की वजह से इस वक्त वे भी घर में फन फैलाए बैठी होगी। एक घंटा यही रूककर धूप में बैठी रहूँगी, तब भी कपड़े पूरी तरह से नहीं सूखेंगे, क्योंकि ठंड का मौसम होने की वजह से धूप भी तेज नहीं हैं। यार, मुझे सुसाइड करने के लिए इस सीजन में ये तरीका नहीं चुनना चाहिए था और चुना भी था तो इतना तो सोचना चाहिए था कि यदि बाइ चांस मुझे किसी ने बचा लिया तो उसके बाद मैं क्या करूँगी ? साले, इस बचाने वाले को भी तो सोचना चाहिए था कि जिस यंग गर्ल को वो बचा रहा हैं, वो गीले कपड़ों में यहाँ से घर कैसे जाएगी। बचाना था तो पानी में जम्प लगाने से पहले ही मुझे रोक लेता, लेकिन तब तो ये मुझे रोकने की बजाए झाड़ियों के पीछे से सुसाइड डूबने के लिए राइट प्लेस बता रहा था और अभी भी सामने आकर मेरी प्राॅब्लम का कोई साॅलुशन बताने की जगह पेड़ के पीछे छुपकर बैठा हैं। कैसा अजीब-सा बंदा हैं न यार ये। दो बार बात की तो शक्ल नहीं दिखाई और एक बार शक्ल दिखाई तो मुँह से कुछ बोला नहीं। चलो, इस बार इसकी शक्ल देखते हुए इसके साथ बात करती हूँ। ये भी पता चल जाएगा कि ये एग्जेक्टली हैं किस टाइप का और ये भी पता चल जाएगा कि इस सिच्युएशन से निकलने में ये मेरी कोई हेल्प कर सकता हैं या नहीं।"

           "वहीं रूकिए, मैं दो मिनट में वहीं आ रहा हूँ।" खुद के साथ बातचीत बंद करके मैंं खड़ी हुई और दो-तीन कदम भी आगे नहीं बढ़ी थीं, तभी मुझे एक बार फिर उस अजनबी मददगार की आवाज सुनाई दीं तो मुझे न चाहते हुए भी अपने कदमों को ब्रेक लगाना पड़ा।

          "उस पेड़ के पीछे आपकी कोई गर्लफ्रेंड छुपी हुई हैं क्या ?" डेढ़-दो मिनट बाद पेड़ के पीछे से निकलकर वो अजनबी मददगार मेरे पास आया तो मैंने उससे सवाल किया।
       
           "मेरी कोई गर्लफ्रेंड हैं हीं नहीं तो उस पेड़ के पीछे कहाँ से आकर छुप जाएगी ?" उसने शांत स्वर में जवाब दिया।

           "तो आपने मुझे वहाँ आने से क्यूँ रोक दिया था ?"

           "उस समय मैं सिर्फ अंडरगारमेंट्स पहने हुए था, इसलिए।"

            "क्यूँ ?"

           "अरे यार, हर इंसान के अंदर इतना काॅमन सेंस तो होना हीं चाहिए कि किसी इंसान के पूरे गीले हो जाए और वो इस टाइप किसी सुनसान जगह पर हो तो वो जनरली उतने कपड़े उतारकर अलग सूखने डाल देता हैं, जितने कपड़ों के बिना उसे कोई देख भी ले तो......।"

           "मैं आपकी बात समझ गई, बट मैं तो यहाँ भी अपने  ......।"

            "नो नीड टू एक्सप्लेन, बिकाॅज आई आलरेडी नो योर लिमिटेशन्स और इसी वजह से मैंने आपको गीले कपड़ों से निजात दिलाने की कोशिश नहीं की।"

           "थैंक्स, बट मुझे तो कैसे भी करके अपने कपड़ों के गीलेपन से निजात पाना हीं पड़ेगा, क्योंकि मैं इन कपड़ों में यहाँ से कहीं भी नहीं जा सकती।" न जाने क्यूँ मुझे वो अजनबी कुछ देर की हीं मुलाकात में मुझे इतना अपना-सा लगने लगा था कि मैंने अपनी प्राॅब्लम उसके सामने इस तरह बेझिझक होकर रख दीं, जैसे वो मेरा काफी पुराना और काफी क्लोज फ्रेंड हो।

           "यू आर राइट, बट ये बात किसी लांग जम्प काॅन्टेस्ट की फाइनलिस्ट की तरह दौड़कर तालाब में जम्प लगाने से पहले सोचना चाहिए था कि बाइ चांस आपको किसी ने मरने से पहले बाहर निकाल लिया तो आप इन गीले कपड़ों में घर कैसे जाएगी।"

           "मुझे पता था क्या कि आप अचानक ओलिम्पिक स्विमर की तरह तालाब में कूदकर मुझे मरने से पहले बाहर निकाल लेंगे, जो मैं इस बारे में पहले सोचती ?"

          "आपकी इस बात में तो लाॅजिक हैं, बट आप जो करने जा रहीं थीं, उसमें मुझे कोई लाॅजिक नजर नहीं आया। आई थिंक, इंसान को किसी भी सिच्युएशन में सुसाइड करने के बारे नहीं सोचना चाहिए।"

          "आई कम्प्लिटली एग्री विद यू बट किसी इंसान को अपने घर में हर वक्त सिर्फ उलाहना और नफरत हीं मिलती हो और उसके बाहर भी उसके साथ हमदर्दी जताने वाला कोई न हो, ऊपर उसे हर फील्ड में लगातार एक के बाद एक नाकामयाबियाँ मिल रही हो तो वो मौत को गले नहीं लगाएगा तो क्या करेगा ?"

            "आई डोंट एग्री विद यू क्योंकि हर इंसान के पास अपनी लाइफ की प्राॅब्लम्स साॅल्व करके अपनी जिंदगी खुशनुमा बनाने के ढेर सारे सालुशन्स होते हैं, लेकिन कुछ लोगों के साथ दिक्कत ये होती हैं कि उन्हें प्राॅब्लम्स के साॅलुशन्स दिखाई नहीं देते हैं। एक मिनट, लगता हैं कि उस प्राॅब्लम का साॅलुशन आ गया हैं जिसके लिए आप पिछले पाँच मिनट से परेशान हैं ?"

              "मतलब ?" मैंने उलझनभरी निगाहों से उसकी ओर देखते हुए पूछा।

              लेकिन उसने मेरे सवाल को नजरअंदाज करके अपने मोबाइल पर आयी किसी काॅल रिसीव की और काॅलर से आधे मिनट तक बात की और मुझसे 'दो मिनट में आ रहा हूँ' कहकर मेरे काॅलेज के अपोजिट डायरेक्टन में चला गया।

            'अरे, ये बिना कोई रिजन बताए कहाँ चला गया ? कहीं ये मेरे साथ कोई गेम प्ले तो नहीं कर रहा हैं ?' उसके कुछ कदमों की दूरी करते हीं मैंने अपने दिमाग से सवाल किया।

            'अरे यार सौम्या, कितनी ज्यादा शक्की हो गई हैं तू ? वो प्यारा बंदा तुझे किस एंगल से इस टाइप का लग रहा हैं ?' मेरे दिमाग के कुछ तय कर पाने पहले हीं मेरे दिल ने मुझे जवाब दे दिया।

            'हाँ सौम्या, वो जो कोई भी हैं, काफी अच्छा लड़का हैं। उसने तेरी जान बचाने के लिए कितनी मेहनत की और तुझे इस बात का अहसास तक नहीं कराया कि उसने तुझ पर कोई अहसान किया। ऊपर से उसने तुझे कोल्ड से बचाने के बहाने तेरे कपड़े....।' मेरे दिमाग ने दिल की बात का समर्थन किया।

            'ओके-ओके, समझ गई यार। एक्चुअली, मुझे भी वो बहुत क्यूट लग रहा हैं, बट वो मेरे साथ इस तरह का बिहेव क्यूँ कर रहा हैं, जैसे उसकी नजरों में मेरी एक लिविंग थिंग से ज्यादा वेल्यु न हो ? पहले उसने ये भाप लेने के बाद भी कि तालाब में सुसाइड करने के इरादे से जम्प मारने वाली हूँ, कोई एक्साइटमेंट नहीं दिखाया और फिर मुझे निकालने के बाद भी मुझे मेरे हाल पर छोड़कर अपने कपड़े सुखाने में बिजी हो गया।' मैंने अपने दिल और दिमाग के सामने अपनी बात रखी।

           'सौम्या, तू कितनी अजीब लड़की हैं यार ? उसने तेरी गरिमा और लज्जा को कोई ठेस न पहुँचे, इसलिए तुझे सिर्फ उतना हीं ट्रीटमेंट दिया, जितना तेरी जान बचाने के लिए जरूरी था तो तुझे उसका बिहेव ठीक नहीं लग रहा हैं और तुझे वो इससे ज्यादा ट्रीटमेंट दे देता तो तू कहती, साले ने मुझे ट्रीटमेंट देने के बहाने .....?' 

           'साॅरी यार, बट वो मेरे होश में आने के बाद मुझसे सिम्पैथी तो जता हीं सकता था।'

           'क्यूँ , वो तेरा कोई क्लोज फ्रेंड या क्लोज रिलेटिव हैं जो उसके तेरे साथ सिम्पैथी न जताने पर गुस्सा हो रहीं हैं ?'

            'सही कहा यार, मैं उसकी क्या लगती हूँ जो वो मेरे साथ सिम्पैथी जताएगा या मेरे सुसाइड करने का रिजन पूछेगा। मुझे तो लगता हैं कि उसने मेरी इतनी हेल्प भी न चाहते हुए मजबूरी में की और वो मेरी कपड़ों की प्राॅब्लम साॅल्व करके मुझे बिना बुलाए गले पड़ी मुसीबत की तरह मुझसे छुटकारा पाकर ऐसे भूल जाएगा, जैसे वो मुझसे कभी मिला हीं नहीं।'

              'क्या तू भी उसे भूल जाएगी ?'

             'मैं तो उसे कभी नहीं भूल पाऊँगी। वो एक मधुर ख्वाब की तरह हमेशा मेरी यादों में रहेगा।'

             'सिर्फ यादों में ?'

            'हाँ।'
          
            'यार सौम्या, ये तू ये कैसी बातें कर रही हैं ? तू तो हमेशा कहती थीं कि तुझे कोई ऐसा क्यूट-सा लड़का मिल जाए जिसके अंदर खूबसूरत लड़कियों को देखकर अनदेखा करने की अदा हो और जिसे खूबसूरत लड़कियों के आगे-पीछे घूमकर उन्हें इम्प्रेस करने में बिल्कुल भी इन्ट्रेस्ट न हो तो तू उसकी ओर हाथ बढ़ाने में जरा-सी भी देर लगाएगी और अब जब तुझे इस टाइप का लड़का मिल गया तो तू भाव खा रही हैं।'

            'अरे यार, मैं भाव नहीं खा रही हूँ। मैं तो उससे गुस्सा हूँ। साला, एक तो इतने इंतजार के बाद मिला, ऊपर से मुझ पर जरा-सा भी ध्यान नहीं दे रहा हैं।'

            'सौम्या, तुझे पक्का यकीन हैं कि ये वही हैं जिसकी तुझे लम्बे समय से तलाश थीं ?'

            'हाँ यार, तभी तो मुझे उसके रूखे बर्ताव पर इतना गुस्सा आ रहा था, अदरवाइज मैं बेवकूफ हूँ क्या जो ये चाहती कि जिसे मैं जानती तक नहीं, उसे मेरी केयर करनी चाहिए।'

            'सौम्या, तू कुछ ज्यादा तेज नहीं चल रहीं हैं ?'

           'अरे, हद हो गई यार। बीस साल की उम्र हो जाने के बाद किसी के बारे में पहली बार कुछ सोचा और फिर भी तुम्हें सौम्या तेज चलती नजर आने लग गई।'

           'साॅरी यार, मेरे कहने का मतलब ये नहीं था। मैं तो सिर्फ ये चाह रहा हूँ कि पहले जाँच-परख कर लें, फिर कुछ सोचना।"

            'अरे यार, मैं इतनी भी बेवकूफ नहीं हूँ कि बिना जाँचे-परखे उसकी ओर हाथ बढ़ा दूँगी, बट आई एम श्योर कि वो मेरी कसौटी पर पक्का खरा उतरेगा, लेकिन ये भी तय हैं कि मैं इसकी कसौटी पर हीं खरी न उतरूँगी, क्योंकि उस पर मेरा फर्स्ट इम्प्रेसन काफी खराब पड़ा होगा। पता नहीं, वो मुझे कैसी लड़की समझ रहा होगा ? मुझे भी क्या जरूरत थीं, यहाँ आकर तालाब में छलाँग लगाने की ? इतने दिनों से जैसे अपमान के घूँट पीकर जी रही थीं, वैसे हीं आज हुए अपमान का जहर भी पीकर पचा लेती।'

            'अरे बेवकूफ, तू यहाँ आकर इस तालाब छलाँग नहीं लगाती तो इससे तेरी मुलाकात भी नहीं होती और कभी होती भी तो न ये तुझ पर ध्यान देता और न तू उस पर।'

            'हाँ यार, ये करके मैंने एक तरह से ....।'

           "फिर से तालाब में जम्प मारने के बारे में तो नहीं सोच रही हैं ?" उस अजनबी ने मेरे करीब आकर मुस्कराते हुए सवाल किया तो मेरी अपने दिल और दिमाग के साथ चल रही बातचीत में अचानक व्यवधान पैदा हो गया। मैं अपने शरीर के दोनों कलपुर्जो के साथ बातचीत में इतनी मग्न थीं कि मुझे उसके आने के भनक तक नहीं लगी।

           "कहाँ चले गए थे ?" मैंने उसके कोश्चन को इग्नोर करके उसी से एक कोश्चन कर लिया।

           "आपके लिए कपड़े लेने।"

            "मार्केट ?"

            "अरे यार, इतनी जल्दी कोई मार्केट जाकर कपड़े खरीदकर वापस आ सकता हैं क्या ?"

             "तो कहाँ से लेकर आए ?"

             "एक दोस्त मेरे कहने पर मार्केट से खरीदकर लाया और सामने वाली रोड पर आकर मुझे दे गया। एक्चुअली, मैंने उसे आपके पेट से पानी निकालने के बाद ही काॅल करके ये काम करने के लिए कह दिया था।"

             "उसने पूछा नहीं कि ये कपड़े आपने किसके लिए मँगाए ?"

             "पूछा था।"

             "तो आपने क्या कहा ?"

             "बाद बताऊँगा, कहकर भगा दिया।

             "बाद में पूछेगा तो क्या कहेंगे ?"

            "कह दूँगा कि मेरा गर्ल्स की ड्रेस पहनने का मन हो रहा था, इसलिए मँगा लिए।"

             "अरे यार, आप सडनली इस टाइप से बात क्यूँ करने लग गए ? एक सवाल हीं तो किया था मैनें।"

              "यू मीन टू से कि ये आपका पहला हीं सवाल हैं ?"

              "नहीं, बट मैंने इतने ज्यादा भी सवाल नहीं किए कि आपको इस तरह से चिढ़ जाना चाहिए।

              "ओके, आई एग्री विद यू। प्लीज, अब आप टाइमपास करना बंद कीजिए और उन झाड़ियों के बीच जाकर अपने कपड़े चेंज कर लीजिए, जहाँ मैं सबसे पहले बैठा हुआ था।" कहकर उसने अपने हाथ का बड़ा-सा थैला मेरे हाथ में थमा दिया।

               "आपके कहने का मतलब हैं कि खुले में ?"

               "यहाँ कोई चेंजिंग रूम भी हैं ?"

               "नहीं बट .....?"

               "अब ये बट-वट छोड़ों यार। वो जगह चारों तरफ से झाड़ियों से ढँकी हुई हैं और इस जगह पर फिलहाल दूर-दूर तक हम दोनों के अलावा कोई नहीं हैं।"

               "ओके, मैं जा रहीं हूँ बट .....।"

               "अरे यार, मैं ताँका-झाँकी करने नहीं आऊँगा। आपको मुझ पर भरोसा नहीं है तो एक मजबूत क्लेम्बरिंग प्लांट का रोप लेकर मुझे किसी पेड़ से बाँध दो या फिर मैं इतनी दूर चला जाता हूँ कि आपके ड्रेस चेंज करते तक यहाँ आना चाहू तो भी न आ पाऊ।"

              "अरे यार, आप बेवजह हीं गुस्सा हो रहे हैं। मैं तो ये कह रही थीं कि ये न्यू ड्रेस पहनकर घर जाऊँगी तो ......?"

              "पहले किसी फ्रेंड के जाकर अपनी ओल्ड ड्रेस सूखा लेना और फिर .....।"

               "समझ गई, बट अभी काॅलेज .....?"

               "काॅलेज वापस मत जाना। ये सामनेवाली रोड से कोई ऑटो पकड़कर .....।"

                "बट मेरा बैग तो क्लासरूम में हीं हैं, बिना काॅलेज गए उसे कैसे घर ले जाऊँगी ?"

                "किसी फ्रेंड को काॅल करके ले जाने के लिए कह देना।"

                "थैंक्स फाॅर एडवाइज, बट मैं अपनी किसी फ्रेंड को काॅल कैसे करूँगी ? मेरा मोबाइल तो मेरे बैग में हीं हैं।"

                 "मेरे मोबाइल से कर लेना यार।"

                 "ये तो मैंने भी सोचा था, बट मुझे काॅलेज की अपनी किसी फ्रेंड का काॅन्टेक्ट नम्बर याद नहीं हैं।"

                "डोंट वॅरी, मैं पता करके आपको बता देता हूँ। बताइए, आपकी किस फ्रेंड का काॅन्टेक्ट नम्बर आपको चाहिए ?"

                "दीपिका मिश्रा तो एक नम्बर की कमीनी हैं। उसे बैग ले जाने के लिए कहा तो वो अपने घर न ले जाकर मेरे घर छोड़ेगी ताकि मेरे फेमिली मेम्बर्स मुझपर काॅलेज से बंक मारने का एलीगेशन लगाकर मेरी क्लास ले। साक्षी यादव तो मेरे घर बैग छोड़ने नहीं जाएगी, बट वो नेहा को बता देगी कि ....।"

                "ओ मैडम, ......।"

                "साॅरी-साॅरी, प्लीज डाँटना मत। अब मैं डायरेक्ट राइट पर्सन का नेम बता रही हूँ। बस एक सेकेंड सोच लेने दीजिए। हाँ, आप विनीता शर्मा का नम्बर पता कर लीजिए, तब तक मैं ड्रेस चेंज करके आ जाती हूँ।"

                "अरे यार, उसकी क्लास तो बता दीजिए। ओनली बाइ नेम .....।"

                "बीएससी फिफ्थ सेम।"

                "बाॅयो या मैथ्स ?"

                "मैथ्स ।" 

               "आपका भी यही सब्जेक्ट हैं क्या ?"

               "हाँ, सेम सब्जेक्ट-सेम क्लास।"

                "ओह ! इसीलिए मैडम जी के दिमाग के सारे कलपुर्जे हिले हुए हैं। अरे आप जाइए, मैंने आपसे कुछ नहीं कहा। मैं अपने आपसे बातें कर रहा हूँ, आदत हैं मुझे इसकी।" उस अजनबी की ये बात सुनकर मेरे चेहरे पर मीठी मुस्कान आ गई। मेरा मन हुआ कि मैं कहू कि मुझे भी अपने आपसे बातें करने की आदत हैं लेकिन आपकी तरह बोलकर नहीं, बल्कि मन हीं मन में, पर उसकी फिर डाँट न पड़ जाए, ये सोचकर मन की बात मन में दबाए उन झाड़ियों के बीच चली गई, जहाँ से पहली हीं मुलाकात में मेरा दिल चुरा लेनेवाले बाजीगर की पहली बार मैंने आवाज सुनी थीं।

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#3
अनोखी दास्तान (भाग3)
       उस अजनबी के सुझाव को मानकर झाड़ियों के बीच जाने पर मुझे एक ऐसी जगह नजर आयी, जहाँ खड़े होने पर झाड़ियों के अंदर आए बिना किसी के लिए भी मुझे देख पाना लगभग नामुमकिन था। मैंने उस अजनबी के अपने दोस्त से मंगवाए थैला को खोलकर देखा तो उसकी समझ-बूझ की तारीफ किए बिना न रह सकी। उस थैले के अंदर एक जोड़ी स्कर्ट और टाॅप के साथ-साथ एक जोड़ी लेडीज अंडरगारमेन्ट्स और एक काफी बड़ा तौलिया भी मौजूद था। मैंने मन हीं मन उस अजनबी को बार-बार धन्यवाद देते हुए अपने गीले कपड़े उतारकर उसके मंगवाए कपड़े पहन लिए और अपने गीले कपड़े थैले में रखकर तौलिये से गीले बाल सुखाने की कोशिश करती झाड़ियों से बाहर निकली तो मुझे मेरा मददगार अजनबी उसी जगह पर झाड़ियों की ओर पीठ करके बैठा हुआ नजर आया, जहाँ आकर उसने मुझे कपड़ों का थैला दिया था।
     
        "अरे, कितने इर्रिस्पांसिबल हैं आप, एक यंग लड़की इतनी सुनसान जगह पर कपड़े चेंज कर रहीं थीं और आप उसकी पहरेदारी करने की जगह यहाँ आराम से बैठकर धूप का मजा ले रहे थे।" उसके करीब आते हीं न जाने कहाँ से मेरे मन में उसकी टाँग खींचने का ख्याल आया और मैंने शिकायती लहजे में उससे ऐसी बात कह दी जो आमतौर पर कोई लड़की अपने ब्वाय फ्रेंड या लवर से हीं करती हैं।

         लेकिन वो आम लड़कों की तरह नहीं था। उसने मेरे साथ क्लोज होने के लिए मिला ये मौका भुनाने में कोई रूचि नहीं दिखाई। मेरी उम्मीद के मुताबिक हीं उसने मेरी बात पर प्रतिक्रिया दीं- "आई थिंक, अब आपको ऐसी फिजूल की ड्रामेबाजी में टाइम वेस्ट न करके अपने घर जाने के बारे में सोचना चाहिए।"

         "यू आर राइट, बट पहले मुझे अपनी फ्रेंड को मेरा बैग....।" उसने मेरी बात पूरी होने से पहले ही मुझे अपना मोबाइल थमा दिया और कहा- "आपने अपनी जिस फ्रेंड का काॅन्टेक्ट नम्बर पता करने के लिए कहा था, वो काॅल्स हिस्ट्री में फर्स्ट नम्बर पर हैं।"

         "इट मीन्स, आप उसका नम्बर पता करने के बात उससे बात भी कर चुके हैं।"

         "आप वाकई बहुत हीं गजब की लड़की हैं यार। मैं आपकी फ्रेंड मैं किसलिए बात करूँगा ?"

          "आपने कहा कि उसका नम्बर काॅल हिस्ट्री में हैं इसलिए मुझे लगा कि आपने उसे काॅल करके मेरा बैग ....।"

          "यार, ये नम्बर उसे काॅल करने की वजह से काॅल हिस्ट्री में नहीं हैं बल्कि उसे आपके आते तक सुरक्षित रखने के लिए कुछ सेकंड्स के लिए काॅलिंग करके कट करने की वजह से हैं।"

         "आप सेव भी तो ....., साॅरी।" मेरी बकवास सुनकर उसके चेहरे पर उभर रहे नाराजगी के भाव देखकर मैं जल्दी से उसे साॅरी बोलकर उससे कुछ दूर चली गई ताकि उसका रिप्लाई सुनने से बच सकूँ। किसी अजनबी के साथ घुलने-मिलने के लिए मैं ऐसी नाॅनसेंस बातें करूँगी, ये मैंने कभी ख्वाब में नहीं सोचा था। लेकिन न जाने क्यूँ उस दिन मेरा दिल मुझे सिर्फ इतना हीं नहीं, बल्कि बहुत कुछ करने के लिए मजबूर कर रहा था। मेरा मन हो रहा था कि मैं आज अपने घर की चिंता छोड़कर उससे ढेर सारी बातें करूँ। उसको अपने बारे में सबकुछ जान लूँ और उसे भी अपने बारे में सबकुछ बता दूँ। लेकिन इसके लिए न वक्त इसकी इजाजत दे रहा था और न वो खुद इसके लिए तैयार नजर आ रहा था, जिससे मैं घुलना-मिलना चाह रही थीं, इसलिए मैंने अपने मन को नियंत्रित करके उसके मोबाइल से अपनी फ्रेंड विनीता को काॅल करके काॅलेज से अचानक गायब होने का एक मनगढँत बहाना बताया और उसे मेरा बैग अपने घर ले जाने के लिए कह दिया, क्योंकि मुझे डर था कि उसे मेरे काॅलेज से करीब डेढ़ घंटे तक गायब रहने का रियल रिजन बताया तो वो भले हीं खुद जान-बूझकर मेरे लिए कोई सिरदर्दी खड़ी नहीं करेगी, पर वो हम दोनों की किसी ऐसी काॅमन फ्रेंड के साथ ये बात शेयर कर सकती थीं जो तिल का ताड़ और राई का पहाड़ बनाकर मेरे लिए मुसीबत खड़ी कर सकती थीं। एक्चुअली मेरे लिए अपने सुसाइड अटैम्प को दुनिया से छुपाना इसलिए जरूरी था, क्योंकि आमतौर पर लोग हम जैसी यंग गर्ल्स के सुसाइड अटैम्प्स को खुद के कदम बहक जाने या किसी दरिंदे की हवस का शिकार होकर अपनी अस्मत गँवा देने जैसी बातों से जोड़कर देखते हैं जबकि मेरे उस अटैम्प का इस बात का दूर-दूर तक कोई सम्बंध नहीं था। उस अजनबी मददगार ने एक काम ये तो अच्छा किया कि मेरे बेहोश हो जाने और मुझे काफी देर होश न आने के बावजूद मुझे हास्पीटल में एडमिट कराने की कोशिश नहीं की, अदरवाइज मेरे लिए ये इन्सीडेंट छुपा पाना इम्पाॅसिबल हो जाता।

        विनीता से बात करने के बाद मैंने उस अजनबी का मोबाइल उसे वापस किया और उसे काॅलेज के अपोजिट डायरेक्शन में मौजूद सड़क तक छोड़ने के लिए कहा तो उसने बिना किसी ना-नुकुर के मुझे न सिर्फ सड़क तक छोड़ा, बल्कि वह मुझे कोई ऑटो मिलने तक मेरे साथ सड़क के किनारे खड़ा रहा। ऑटो से अपने गंतव्य तक जाने के लिए वो मुझे पैसे और एक दिव्य ज्ञान मुझे रास्ते में हीं दे चुका था- 'उपेक्षा, अपमान, तनाव, दुख और असफलताओं जैसी चीजों से परेशान होकर आत्महत्या करना मुक्ति का रास्ता नहीं हैं,  बल्कि एक तरह का पलायन हैं और ऐसा करनेवाले की आत्मा को मरकर भी शांति नहीं मिलती, क्योंकि ऐसा करनेवाला विधि के उस विधान का उल्लंघन करता हैं, जिसके अनुसार हर इंसान के लिए हर हाल में तब तक अपनी जिंदगी की गाड़ी खीचते रहना जरूरी हैं, जब तक उसे खुद-ब-खुद मौत अपने आगोश में न ले। यदि कोई इंसान अपने भाग्य में लिखे दुःखों से मुक्ति पाना चाहता तो इसका एकमात्र सही तरीका ये हैं कि वह इंसान तब तक ईमानदारी से कठिन परिश्रम करें, जब तक उसका दुर्भाग्य सौभाग्य में न बदल जाए।'

        इस ज्ञान के अलावा उसने मुझे एक नेक सलाह भी दी- 'इस दुनिया में किसी पर भी इतनी जल्दी भरोसा करके उससे क्लोज होने की अपनी आदत बदल लीजिएगा, क्योंकि यंग गर्ल्स की मासूमियत और नासमझियों का गलत इस्तेमाल करने के लिए पलभर की देर न करने वाले कमीनो से भरी पड़ी हैं।'

         उसकी इस सलाह से मुझे लगा कि वो मुझे बहुत हीं मासूम और नासमझ लड़की समझ रहा हैं जो मैं बिल्कुल भी नहीं थीं। मैं कुछ इस तरह घरेलू और बाहरी माहौल में पली-बढ़ी थीं, जिसमें कोई भी लड़की वक्त से पहले ही जरूरत से ज्यादा समझदार हो जाती हैं, लेकिन मैंने उसकी गलतफहमी दूर करने की कोशिश नहीं की। ये सोचकर कि उसकी नजरों में मासूम और भोली-भाली बनी रहूँगी तो उसके दिल में मेरे लिए साॅफ्ट काॅर्नर बनने के बेटर चांसेज बने रहेंगे। ऐसा नहीं था कि मैं उन लड़कियों में से थीं जो अंदर से निहायत हीं शातिर होने के बावजूद अपने पसंदीदा लड़कों के दिल में साॅफ्ट काॅर्नर पाने के लिए मासूम और भोली-भाली बनने का दिखावा करती रहती हैं। मैं तो हमेशा ये कोशिश करती थी कि मेरे टच में आनेवाले लड़के मुझे निहायत हीं शातिर लड़की समझें और मुझे एक इम्पाॅसिबल टाॅर्गेट समझकर मेरे आगे-पीछे मंडराकर मेरा दिमाग खराब न करें।

         लेकिन उस अजनबी की अजीब-सी शख्सियत और निःस्वार्थ भाव से की गई मदद ने मेरे दिल पर न जाने क्या जादू किया था कि उसका मेरी ओर आकर्षित न होना और उसका मुझे अपनी ओर आकर्षित करने की कोई भी कोशिश न करना मुझे बहुत अखर रहा था। ऐसा मेरे साथ पहली बार हो रहा था।

        'कैसा लड़का हैं यार, न इसने अपने बारे में कुछ बताया और न मेरे बारे में कुछ पूछा। न मेरा काॅन्टेक्ट नम्बर लिया और न अपना काॅन्टेक्ट नम्बर दिया। यहाँ तक कि अपना नाम बताने या मेरा नाम पूछने की भी जहमत नहीं उठाई। कहीं ऐसा तो नहीं कि इस बुकिंग कहीं और हैं ? ये ख्याल मन में आते मेरे चेहरे पर निराशा के भाव उभर आए। लेकिन अगले हीं पल मेरे मन ने ये जवाब दिया कि ये बात नहीं हैं क्योंकि उसी ने मेरे एक सवाल के जवाब में बताया था कि उसकी कोई गर्लफ्रेंड नहीं हैं, तो मुझे कुछ सुकून मिला। फिर मेरे मन में उठे इस विचार ने मुझे परेशान कर दिया, तो फिर मुझे भाव न देने का यही एक रिजन हो सकता हैं कि मैं उसमें अपनी ड्रीमगर्ल की झलक नहीं मिली होगी। लेकिन क्यूँ , लोग तो कहते हैं कि मैं बहुत खूबसूरत हूँ। मेरी फेमिली के लोग भले हीं जाहिर तौर पर मुझे खूबसूरत कहने से बचते हैं, पर मेरी ठीक-ठाक शक्ल-सूरत और आकर्षक शख्सियत वाली दीदी को जब भी कोई लड़के वाले देखने आते हैं, तब मेरी फेमिली का मुझे लड़के वालों के सामने न आने की वार्निंग देना और काफी खूबसूरत कही जानेवाली नेहा को सामने जाने देने से न रोकना, ये बताने के लिए काफी हैं कि मैं दीदी और नेहा से ज्यादा खूबसूरत हूँ। जरूर उसने मेरे सुसाइड जैसा इर्रिस्पांसिबल कदम उठाने की वजह से हीं मुझे एक लफड़ेबाज लड़की समझकर मेरे साथ जान-पहचान न बढ़ाना ही सही समझा होगा। ऐसा हैं तो मुझे उससे एकबार मिलकर उसकी ये मिसअंडरस्टैंडिंग दूर करके उसे बताना चाहिए कि मैं कोई लफड़ेबाज लड़की नहीं हूँ बल्कि हालात की सताई हुईं लड़की हूँ। यदि इसके बाद भी वो मेरे साथ नजदीकियाँ बढ़ाने के इच्छुक नजर आया तो मैं जबरन उसके गले नहीं पड़ूँगी, पर केवल किसी गलतफहमी की वजह से वो मेरे करीब आने से हिचक रहा हैं तो वो गलतफहमी दूर करना मेरा फर्ज हैं।' इस नतीजे पर पहुँचने के बाद मैंने अपनी विचार श्रंखला को ब्रेक लगा दिया।

          ऑटो से मेरी बचपन एक ऐसी भरोसेमंद फ्रेंड के घर पहुँची, जिसके मम्मी-पापा दिनभर घर पर नहीं रहते थे। वहीं मैंने अपने वे सभी कपड़े जिन्हें मैं पहनकर सुबह घर से निकली थीं, धुलकर सुखाए और उन्हें पहनकर अपनी फ्रेंड विनीता के घर गईं, जहाँ से अपना काॅलेज का बैग लेकर 'लौट के बुद्धु घर को आए' को चरितार्थ करती हुई अपने घर चली गई।
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