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(16-04-2020, 12:10 PM)komaalrani Wrote: अब क्या कहूं , सब तो आप कह देती हैं , हाँ इतनी भी तारीफ़ न करिये की फिसल के धड़ाम से गिरूं , ....
मुझे पूरा विशवास है आपने मेरी कहानी मोहे रंग दे , एकदम शुरू से पढ़ी होगी , क्योंकि शुरू में ही उसमे मेरे बारे में , काफी कुछ इनके बारे में इतना है , जितना आज तक मैंने किसी से शेयर नहीं किया , न फोरम में न फोरम के बाहर।
कहानी का जिक्र इसलिए किया की आपसे दो गुजारिश करने का मन था , आपसे भी बाकी सहेलियों से भी , ... और एक बात पूछना भी चाहती थी
पहली बात गुजारिश अगर आप और बाकी सब को अच्छा लगे ,
आप की कहानी हम सब को अपने टीनेजर दिनों की ओर बार बार लौटा दे रही है , सच में इत्ता अच्छा लगता है
बरस पंद्रह या सोलह का सिन ,
वो जवानी की रातें मुरादों के दिन
लेकिन साथ साथ मैं सोच रही थी
हम सब आप के ही थ्रेड पर ' आज कल ' की बातें भी , थोड़ा इशारों में , थोड़ा साफ़ साफ़ , हम सब जानते हैं लाकडाउन में वर्क फ्रॉम होम में आफिस के काम के साथ 'औरक्या क्या काम' चल रहा है , न दिन न रात ,
मैं तो एक ऐसे शहर में हूँ जिसका नाम ही बाई के साथ जुड़ा है और आज कल बाई गायब , लेकिन उसका फायदा भी है २४ घण्टे की प्राइवेसी
हाँ लेकिन मैंने एक रूल बना दिया है ,
अगर उन्होंने दिन में घात लगाई , ...
तो रात का खाना बनाना उनके जिम्मे ,... ( इससे कोई ख़ास बचत नहीं होती लेकिन तब भी चिढ़ाने के लिए तो है ही , और उन्हें किचेन में अकेले भी नहीं छोड़ती मैं , सारे मसाले के डिब्बे इधर उधर )
जब उनकी लम्बी लम्बी कांफ्रेस काल चलती है तो बस उसी का फायदा निकाल के आप लोगों से गप्पिया लेती हूँ
तो क्या राय है आप लोगों की
दूसरी बात ,
मेरी कहानियों में लोक गीत बहुत रहते हैं , गाँव की हूँ , ... और मैं वही गाने लिखती हूँ ख़ास कर के गारी वाले जो या तो मैंने गाये या किसी ने मेरे लिए मुझे सुना सूना के गाये
पर मुझे लगता है की कई बार शायद कई लोगों को ( जैसे पिछली बार कन्यादान के गाने थे ) ठीक से समझ में न आये तो क्या मुझे हिंदी में उसका अर्थ भी उस पोस्ट में न सही बाद में लिखना चाहिए ,...
हम लोग हिन्दुस्तान के अलग अलग हिस्से के हैं हिंदी तो सबको आती है लेकिन बोलियों में कुछ दिक्कत हो सकती हैं
तो क्या राय है पंचों की
और आप सब भी अगर कुछ गाने अगर शेयर कर सकें ,... खास तौर से छेड़छाड़ वाले
कोमल जी आप की कोई राय या कोई बात ऐसी है आज तक जो मानी नहीं गयी हो
बल्कि आप की राय नहीं आदेश होता है और उनकी पालना भला कौन नहीं करेगा
हम सभी लड़कियों महिलाओं को बहुत खुशी होगी
अगर हम आप के साथ थोड़ी आप बीती आज कल की बयां कर सकें
ओर आप के लोकगीत आप की बेजोड़ लेखनी की अन्यतम विशेषता हैं
सोने पे सुहागा हो जाएगा अगर उन का हिंदी में रूपांतरण हो जाये तो
आप की ये दोनों बातें बहुत पसंद आयी हमें
फिर कब से शुरू करें
आदेश
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(17-04-2020, 01:01 AM)Niharikasaree Wrote: आप की कहानी हम सब को अपने टीनेजर दिनों की ओर बार बार लौटा दे रही है , सच में इत्ता अच्छा लगता है
कोमल जी,
सच्ची, टीनएज भी क्या उम्र होती है, उमंग , तरंग , जोश, जोबन, "गन्दी-बाते", सुनना, करना, हो। ..... तू कितनी बेशरम हो गई आज का....... ही , ही, हा , हा और फिर से, आगे बता न। .. क्या हुआ फिर, एकदम , "निचे" रस भर जाता था.
हम सब आप के ही थ्रेड पर ' आज कल ' की बातें भी ,
जी, कोमल जी, आपका हुकम सर आखो पर, जैसा आपक लोग कहे, यह हमारी बाते हैं, हम औरतो की, कहे जाओ, कभी न ख़तम होंगी। तड़का, मसाला, "और आज क्या हुआ", "कहा हुआ", पर सोच लो जी, इससे हमारी "रगड़ाई" और बढ़ जाएगी, "चाशनी" भर -भर के आयेगी।
मैं तो एक ऐसे शहर में हूँ जिसका नाम ही बाई के साथ जुड़ा है और आज कल बाई गायब , लेकिन उसका फायदा भी है २४ घण्टे की प्राइवेसी
जी, मैं समझ गई, क्या खूब इशारा दिया है, मान गई आपको। मैं तो शुरू से ही, मुर्ख थी, अब "ले" "ले" कर थोड़ी अकल आयी है, सच है, लड़की खुलती ही जब है , जब सारे "छेद" खुल जाते हे।
मेरी कहानियों में लोक गीत बहुत रहते हैं , गाँव की हूँ , ... और मैं वही गाने लिखती हूँ ख़ास कर के गारी वाले जो या तो मैंने गाये या किसी ने मेरे लिए मुझे सुना सूना के गाये
पर मुझे लगता है की कई बार शायद कई लोगों को ( जैसे पिछली बार कन्यादान के गाने थे ) ठीक से समझ में न आये तो क्या मुझे हिंदी में उसका अर्थ भी उस पोस्ट में न सही बाद में लिखना चाहिए ,...
जी, कोमल जी, आपका सोचना कुछ हद तक सही हो सकता है, पर जो मज़ा , जो तीखापन- मीठापन उन लोक गीतों मैं है वो आज कहाँ, पर उसे समझना इतना कठिन भी नहीं, भावनाओ से जुडी बाते होती हैं, उन गीतों मैं, और भावनाओ को समझने के लिए शब्दों की जरूरत नहीं होती।
फिर भी, आसानी के लिए, अगर समय मिले तो , सारल भाषा मैं अनुवाद कर दे तो अच्छा ही होगा।
आप सब भी अगर कुछ गाने अगर शेयर कर सकें ,... खास तौर से छेड़छाड़ वाले - अब आपके जैसे मज़ेदार लोक गीत अब कहाँ सुन पाते हैं, अब तो " राते दिया बूता के पिया क्या -क्या किया". लोक गीतों का खजाना तो आप ही शेयर करे तो जयादा अच्छा रहेगा।
कोमल जी,
"अब क्या कहूं , सब तो आप कह देती हैं , हाँ इतनी भी तारीफ़ न करिये की फिसल के धड़ाम से गिरूं",
बस आपकी पोस्ट का इंतज़ार करती हु तारीफ तो खुद बी खुद हो जाती है , अब तारीफ़ तो कबीले- ऐ - तारीफ़ लोगो की ही होती हैं न, आपके, कहानी, शब्द चयन, रुपरेखा, साथ यूज़ करि पिक्स, एकदम जानमारू, एकदम गरमा देती हैं, गर्दा उड़ा देती हैं जी.
मेरी सहेलिओं से भी विनती हैं , कुछ अपने सुझाव, जवानी की यादे शेयर करे।
आपके। ....................
पर सोच लो जी, इससे हमारी "रगड़ाई" और बढ़ जाएगी, "चाशनी" भर -भर के आयेगी।
[b]मैं तो शुरू से ही, मुर्ख थी, अब "ले" "ले" कर थोड़ी अकल आयी है, सच है, लड़की खुलती ही जब है , जब सारे "छेद" खुल जाते हे। [/b]
[b] निहारिका जी क्या बात है बिल्कुल सही कह दिया है आप ने[/b]
कोमल जी की कहानियां पढ़ के ही इतनी गर्मा जाती है हम ओर पता नहीं हमारा मूड कैसे सेयाँ जी पता कर लेते है फिर रात भर लेती रहती है हम देते रहते है वो
अब अगर हमारी आज कल की आप बीती बतियाएँगी तो ऊफ़्फ़ कोमल जी आप मार डालोगी
बस सब कुछ छोड़ छाड़ के जल्दी शुरू करो रहा नहीं जाता
निहारिका जी सच में जब से लेने लगी है तब से ही असल मस्ती का भान हुआ है
आज तक जिस शर्म हया के पर्दे में लिपटी रही
उन्होंने उस को दूर हटा के जब दिया कस के तो पता चला कामसुख क्या होता है बाकी सभी चीजें इस आनंद से कोसों दूर बसती है
बिल्कुल जब तक सारे छेद नहीं खुले थे हम भी नहीं खुली थी
अपने आप से भी अंजान थी
पर जब से फीता कटा है दोंनो तीनों दरवाजों का
जीवन मे क्या मस्ती छाई है
इस मे कोमल जी ही सारी काम शिक्षा है
एक औरत या लड़की को उस आनंद से परिचित करवाना
बस अब ये दोनों बातें सर्वसम्मति से स्वीकार है
हम सब को
निहारिका जी फिर कोमल जी का जलवा ओर आप का जलवा
तो हो जाये धमाल
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17-04-2020, 10:40 AM
(This post was last modified: 17-04-2020, 10:47 AM by Niharikasaree. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
- माँ - क्या हुआ, सब ठीक , तू उठी नहीं। क्या दर्द जायदा है.
मैं - अब क्या बोलती , "मूड्स" , मैं बोली, हम्म, है थोड़ा।
फिर, याद आया की माँ भी तो होने वाली थी, पुछु जरा.
मैं - आपका , ...... दर्द है क्या
पूरा न पूछ पायी
माँ - हम्म, है तो हो गया, सवेरे आज।
फिर चुप्पी।।।।।।।।
मन मैं सोच रही थी आज कॉलेज जाओ या नहीं।
.........................................................................
प्रिय सहेलिओं ,
निहारिका का प्यार भरा नमस्कार ,
अब आगे ,
सहेलियों , अब क्या था, लेट हो गई थी. कालेज के लिए , फिर सोचा चलो पहले फ्रेश हो जाते हैं फिर सोचा जायेगा।
गई, बाथरूम - पैड्स दिखाई दिया, अखबार मैं लिपटा था, ओह, शायद माँ ने रखा होगा फिर डस्टबिन मैं डालना भूल गयी होंगी।
इतने मैं, माँ की आवाज आयी, बाथरूम के बाहर से, निहारिका, सुन अरे मैं वो इस्तेमाल किया पैड हटाना भूल गई, तेरा भी हटा लेना और डस्टबिन मैं डाल आना.
मैं - हाँ, माँ। मैंने अभी देखा। कर दूंगी।
फिर मैं , आयी बाथरूम से बाहर, कर दिया माँ का बताया काम, फिर चाय पीते माँ के साथ बात कर रही थी.
माँ बोली - मुझे आज कपडे धोने थे , पर कमर मैं दर्द हो रहा है, पीरियड्स की वजह से , कोई नहीं कल या बाद मैं देख लेंगे। मेरे ही तो हैं.
मैं - माँ , मैं धो देती हु, इसमें क्या है। साथ ही मेरी दो - तीन कुर्ती भी धूल जायेंगी , हर कपडा मशीन मैं नहीं डाल सकते।
माँ - आह, लो जी हो गयी मेरी बेटी बड़ी , देखो तो माँ का ध्यान। तुझे कॉलेज नहीं जाना ? चली है कपडे धोने।
फिर, मुझे और मेरे जोबन को देखते हुए बोली [ अब घर मैं माँ के सामने दुप्पटा नहीं लेती थी, है पिताजी के सामने तो लेती थी, पहले डर से फिर शर्म से] हम्म, बड़ी तो हो गई मेरी बेटी। अब तो कुछ सोचना ही पड़ेगा, तेरे बारे मैं. आज बात करती हूँ तेरे पिताजी से.
मैं - क्या हुआ, मैंने अपने जोबन को देखा , फिर माँ को देखा, फिर से पूछा क्या हुआ, ऐसा क्यों बोल रही हो.
माँ - हंसती हुई , अब ऐसे गदराई जवान लड़की को कोई घर मैं बैठा के रखता है क्या , हाथ पीले कर , अगले घर भी जाना है, वहां करना सब.
उफ़, दस सेकंड तक कोई आवाज नहीं निकली , हलक सुख गया था, आँखों मैं डर , ख़ुशी, रोमांस, और नीचे गीलापन सब एक साथ.
मैं - हटो माँ, कुछ भी बोल देती हो, अभी कहाँ, अभी तो एक - डेढ़ साल बाकि है. मन मैं ख़ुशी हो रही थी एक अनजाने सफर की, बहुत शादी मैं जा चुकी थी, एक और मोड़ पर थी , जून मैं।
फिर मैं बोली, लाओ माँ, दे दो कपडे , आज कॉलेज नहीं जा रही, लेट तो वैसे भी हो गई हूँ.
माँ ने कपडे दिए, दो साड़ी साथ के ब्लाउज , पेटीकोट एक साथ गोल -मोल कर रखे थे , मैं गयी अपने रूम मैं, दो कुर्ती निकल कर लायी साथ की सलवार, दुपट्टा लेते, लेते छोड़ दिया की चल जायेगा दो - एक बार और , फिर ब्रा और पैंटी भी उठा लिए सोचा इनको भी हाथ से निकल देती हु, मशीन मैं ब्रा का हुक टूट गया था अटक के, पता नहीं कैसे।
आज तो कपडे धोने का मूड बना दिया "मूड्स" ने , हलकी स्माइल आ ही गयी.
बाथरूम मैं, नल चलु कर बाल्टी भरने को रख दी, दूसरी बाल्टी मैं, "निरमा" दाल कर झाग बना रही थी, की अचानक माँ आ गयी.
माँ - अच्छा , तो ऐसे धोने है कपडे, खेल ले, शाम हो जानी है ऐसे तो, हट ला मैं कर देती हु.
मैं - नहीं माँ, हो जायेगा, झाग से खेलने मैं मज़ा आ रहा था. बस बाल्टी भर ही गई.
माँ - अच्छा, अब और मत खेलने लग जाना। और जायदा थकना मत, नहीं हो तो रहने देना, कर लुंगी मैं.
मैं - आप जाओ माँ, कर लुंगी।
फिर, थोड़ा और खेला, झाग से।
माँ की साड़ी खोली और "निरमा" मैं डाली और अपनी कुर्ती और सलवार भी. ब्रा और पैंटी , सोचा "रिन" से रगड़ दूंगी इनको।
माँ के पेटीकोट को देखा , अरे यह कैसे छूट गए , मैंने पेटीकोट उठाया तो उसमे से माँ की पैंटी गिरी , ओह पैंटी, चलो "रिन" से इनको भी निकल दूंगी धोकर।
फिर , मैंने बाल्टी से साड़ी को निकला और सोचा हल्का सा रिन भी लगा दू, फिर साफ़ पानी मैं दो कर निकल देती हूँ. करीब आधा - पोना घंटा हो गया मेरे और माँ के कपडे धोते हुए, कपडे धूल चुके थे।
फिर याद आयी, अरे ब्रा और पैंटी भी हैं, फिर बैठी निचे , सलवार ऊपर करि घुटनो तक , गीली तो हो ही गयी थी, सोचा की इसे भी धो कर निकाल देती हु, पर यह धूल चुके कपडे भी हैं न, इन्हे सूखने डाल कर, नहाने के बाद धो लुंगी। हम्म , यही सही रहेगा।
फिर मैंने , माँ की पैंटी हाथ मैं ली, दो थी , एक गहरे नीले कलर की, दूसरी हरे कलर की, मेरी एक काली व् दूसरी नीले कलर की थी, कॉटन की थी सब, हाथ मैं रिन लिया और लगी लगाने, बीच मैं से माँ की पैंटी का कलर हट सा गया था, जैसे उसका कलर निकल गया हो, "वो" जगह जहां "नीचे वाली" का संपर्क होता है, उस जगह से मेरी वाली का भी रंग उड़ने लगा था , हल्का सा ही उडा था, पर दिखा रहा था, फिर देखा की, पैंटी "वही" से कट भी गयी है , घिस - घिस के छेद सा हो गया है , मेरी वाली नयी थी, दो - तीन महीनै ही हुए थे पर माँ की कुछ पुरानी थी.
मेरा दिमाग फ़ैल हुआ , समझ मैं नहीं आया, एक तो कलर "वही" से क्यों उड़ गया, दूसरा कट कैसे गई, "नीचे वाली" जगह तो नरम व् मुलायम होती है.
इसी उलझान के साथ जल्दी से रगड़ने लगी रिन ब्रा, और पैंटी पर फिर बाहर जाकर रस्सी पर साड़ी डाली , पेटीकोट डाला , कुर्ती व् सलवार डाली, सूखने को.
फिर एक कुर्ती के नीचे, अपनी ब्रा और पैंटी डाली, और एक पेटिकोट के नीचे माँ की पैंटी डाल दी सूखेने , माँ को भी ऐसे ही देखा था , ब्रा - पैंटी ढक कर सूखाते हुए, सो मैंने भी वही किया।
अलग से सुखाते हुए शर्म आ रही थी, पड़ोस वाली भाभी देख लेंगी तो क्या सोचेंगी।
फिर जल्दी से, अंदर आ गयी, सोचा अब नहा लेती हु,
..............
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(17-04-2020, 10:15 AM)@Kusum_Soni Wrote: कोमल जी आप की कोई राय या कोई बात ऐसी है आज तक जो मानी नहीं गयी हो
बल्कि आप की राय नहीं आदेश होता है और उनकी पालना भला कौन नहीं करेगा
हम सभी लड़कियों महिलाओं को बहुत खुशी होगी
अगर हम आप के साथ थोड़ी आप बीती आज कल की बयां कर सकें
ओर आप के लोकगीत आप की बेजोड़ लेखनी की अन्यतम विशेषता हैं
सोने पे सुहागा हो जाएगा अगर उन का हिंदी में रूपांतरण हो जाये तो
आप की ये दोनों बातें बहुत पसंद आयी हमें
फिर कब से शुरू करें
आदेश
अरे काल करे सो आज कर , और आज करे सो अब
तो बस शुरू हो जाइये न पूनम जी , कुसुम जी ,...
कैसे गुजरी रात सखी , ... बस बोलिये न , निहारिका जी का थ्रेड तो बस
नो होल्ड्स बार्ड , मतलब नो होल्स बार्ड और आप ने कबूल भी कर लिया को आपके वो , छेद छेद में भेद नहीं करते
और करना भी नहीं चाहिए
कितनी बार ,... और दिन में घात लगाई की नहीं बताइये न , ...
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(17-04-2020, 10:30 AM)@Kusum_Soni Wrote: पर सोच लो जी, इससे हमारी "रगड़ाई" और बढ़ जाएगी, "चाशनी" भर -भर के आयेगी।
[b]मैं तो शुरू से ही, मुर्ख थी, अब "ले" "ले" कर थोड़ी अकल आयी है, सच है, लड़की खुलती ही जब है , जब सारे "छेद" खुल जाते हे। [/b]
[b] निहारिका जी क्या बात है बिल्कुल सही कह दिया है आप ने[/b]
कोमल जी की कहानियां पढ़ के ही इतनी गर्मा जाती है हम ओर पता नहीं हमारा मूड कैसे सेयाँ जी पता कर लेते है फिर रात भर लेती रहती है हम देते रहते है वो
अब अगर हमारी आज कल की आप बीती बतियाएँगी तो ऊफ़्फ़ कोमल जी आप मार डालोगी
बस सब कुछ छोड़ छाड़ के जल्दी शुरू करो रहा नहीं जाता
निहारिका जी सच में जब से लेने लगी है तब से ही असल मस्ती का भान हुआ है
आज तक जिस शर्म हया के पर्दे में लिपटी रही
उन्होंने उस को दूर हटा के जब दिया कस के तो पता चला कामसुख क्या होता है बाकी सभी चीजें इस आनंद से कोसों दूर बसती है
बिल्कुल जब तक सारे छेद नहीं खुले थे हम भी नहीं खुली थी
अपने आप से भी अंजान थी
पर जब से फीता कटा है दोंनो तीनों दरवाजों का
जीवन मे क्या मस्ती छाई है
इस मे कोमल जी ही सारी काम शिक्षा है
एक औरत या लड़की को उस आनंद से परिचित करवाना
बस अब ये दोनों बातें सर्वसम्मति से स्वीकार है
हम सब को
निहारिका जी फिर कोमल जी का जलवा ओर आप का जलवा
तो हो जाये धमाल
तो हो जाए धमाल
और फिर अब रगड़ाई से कौन डरता है , इसी रगड़ाई के लिए तो हम मायका छोड़ के ससुराल आती हैं
तो बताइये न कैसी गुजारी रात
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17-04-2020, 02:21 PM
(This post was last modified: 17-04-2020, 02:23 PM by Niharikasaree. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
यह हुई न बात, अब आया है जोश सभी सहेलियों को .
कोमल जी,
अब दिन हो या रात, बस मूड की हो बात , जब हो जाए तब, आधा या पूरा , इतना तो होनीमून मैं भी नहीं करा होगा लोगो ने।
" फिर अब रगड़ाई से कौन डरता है , इसी रगड़ाई के लिए तो हम मायका छोड़ के ससुराल आती हैं " सही बात कोमल जी.
कोमल जी, पूनम जी, कुसुम जी, विद्या जी। ...... शब्दों के शहद के साथ "चाशनी" टपकाओ।
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जब तक कोमल जी निहारिका जी बैठी है भला में कौन होती हूँ शुरू करने वाली
ना ना बिल्कुल गलत बात,एक दम नाइंसाफी है
नेतृत्व कोमल जी निहारिका जी करेंगी
हमें आप के साथ चलने दे
क्या लिखना है,कैसे लिखना है ये तहजीब अभी हम जैसी बच्चियों में नहीं है
कोमल जी बरस जाओ,
निहारिका जी उमड़ घुमड़ के बातें भीगी रातों की
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निहारिका जी क्या अपडेट दिया है
कोई शब्द नहीं जिस से आप की तारीफ कर सकूं
माँ की ब्रा पेंटी धोने का मौका कई बार मिला है मुझे भी
वो पेंटी ना जाने क्या क्या राज माँ की पापा के साथ गुजरी रात के बता देती थी
निच्चे से घिस जाना फट जाना
क्या बात है बहुत बारीक बात लिखी है
बहुत कामुक लेखन और ह्रदयस्पर्शी
कमाल का लिख रही हो
उन बीती गुजरी बातों के साथ बीच बीच मे जो कामुक तड़का मारती हो
ऊफ़्फ़ हाथ से चेक करनी पड़ती है कहीं 2 तार की चाशनी तो नहीं आई बाहर
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(17-04-2020, 02:58 PM)@Kusum_Soni Wrote: जब तक कोमल जी निहारिका जी बैठी है भला में कौन होती हूँ शुरू करने वाली
ना ना बिल्कुल गलत बात,एक दम नाइंसाफी है
नेतृत्व कोमल जी निहारिका जी करेंगी
हमें आप के साथ चलने दे
क्या लिखना है,कैसे लिखना है ये तहजीब अभी हम जैसी बच्चियों में नहीं है
कोमल जी बरस जाओ,
निहारिका जी उमड़ घुमड़ के बातें भीगी रातों की
अरे पहली बात कुसुम जी ,
तहजीब वहजीब की तो ऐसी की तैसी ,... अरे उस समय हम लोग तहजीब सोचेंगी तो आधा मज़ा ख़तम
फिर आप लोग कोई लखनऊ वाली तो हो नहीं की पहले आप पहले आप ,
बस पिछले एक दो दिन की बात रातों की बातें
कैसे गीली हुयी
क्या कभी दिन में घात लगायी
और क्या छेद छेद में भेद न करने वाली बात , आखिरी बार कब हुयी / पहली बार कब हुयी
मैंने बताया था न अपना , जब ये दिन में घात लगाते हैं तो बस सजा यही की रात के खाने की जिम्मेदारी इनकी और कई दिन हो गए इस लाकडाउन में मुझे रात को खाना बनाये
ज्यादा कुछ नहीं कभी मैगी , कभी सैंडविच और साथ देने के लिए तो मैं रहती ही हूँ ,...
तो बताइये न
कैसी गुजरी रात सखी , जब नैनो से मिले नैना और अंगिया ,...
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(17-04-2020, 03:09 PM)@Kusum_Soni Wrote: निहारिका जी क्या अपडेट दिया है
कोई शब्द नहीं जिस से आप की तारीफ कर सकूं
माँ की ब्रा पेंटी धोने का मौका कई बार मिला है मुझे भी
वो पेंटी ना जाने क्या क्या राज माँ की पापा के साथ गुजरी रात के बता देती थी
निच्चे से घिस जाना फट जाना
क्या बात है बहुत बारीक बात लिखी है
बहुत कामुक लेखन और ह्रदयस्पर्शी
कमाल का लिख रही हो
उन बीती गुजरी बातों के साथ बीच बीच मे जो कामुक तड़का मारती हो
ऊफ़्फ़ हाथ से चेक करनी पड़ती है कहीं 2 तार की चाशनी तो नहीं आई बाहर
"निहारिका जी क्या अपडेट दिया है
कोई शब्द नहीं जिस से आप की तारीफ कर सकूं"
कुसुम जी
जी, शुक्रिया आपका। बस प्यार देते रहिये साथ ही दो लाइन अपने अनुभव की, इतना ही काफी है.
"माँ की ब्रा पेंटी धोने का मौका कई बार मिला है मुझे भी
वो पेंटी ना जाने क्या क्या राज माँ की पापा के साथ गुजरी रात के बता देती थी"
जी, कुसुम जी, "पैंटी" लड़की के सब राज़ जानती है, चिपक के रहती "उस" से दिन रात, सारी "चाशनी" की कहानी वो ही बयां करती है. जवान होने से अब तक "हमराज़" है 'पैंटी".
"निच्चे से घिस जाना फट जाना
क्या बात है बहुत बारीक बात लिखी है
बहुत कामुक लेखन और ह्रदयस्पर्शी "
जी, बस जो अहसास हुआ था वो ही लिख दिया यहाँ , "पैंटी" की "वो" जगह ही "घिसती" है, ऐसा की आहोता है पूरा समझ नहीं आया आजतक।
"कमाल का लिख रही हो
उन बीती गुजरी बातों के साथ बीच बीच मे जो कामुक तड़का मारती हो
ऊफ़्फ़ हाथ से चेक करनी पड़ती है कहीं 2 तार की चाशनी तो नहीं आई बाहर"
कहीं 2 तार की चाशनी तो नहीं आई बाहर - यह तो हमराज़ ही बता पायेगी अब तो तो हाल यह है की, "हमराज़" भी साथ छोड़ देती है, या छुड़वा दिया जाता है. मेरबानी "पतिदेव" की.
[b]कुसुम जी, आपकी बातो से मज़ा आ जाता है, दर्शन देती रहिये, जब भी समय मिले।[/b]
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फिर एक कुर्ती के नीचे, अपनी ब्रा और पैंटी डाली, और एक पेटिकोट के नीचे माँ की पैंटी डाल दी सूखेने , माँ को भी ऐसे ही देखा था , ब्रा - पैंटी ढक कर सूखाते हुए, सो मैंने भी वही किया।
अलग से सुखाते हुए शर्म आ रही थी, पड़ोस वाली भाभी देख लेंगी तो क्या सोचेंगी।
फिर जल्दी से, अंदर आ गयी, सोचा अब नहा लेती हु,
..............
प्रिय सहेलिओं ,
निहारिका का प्यार भरा नमस्कार ,
अब आगे ,
हम्म , आज लिखते हुए यह सोच रही थी, आज भी मेरी वो ही आदत है , पेटीकोट के निचे ब्रा और पैंटी सूखाने की, जवानी से आज तक यही होता आया है , हिम्मत ही नहीं हुई की ब्रा - पैंटी अलग से सूखा दू, अगर सिर्फ ब्रा - पैंटी धोकर रखती हु तो बाथरूम मैं ही, बाहर डालने ही हिम्मत नहीं होती।
सभी, महिला पाठको से गुंजारिश, क्या आप भी मेरी जैसे , - कपड़ो [जैसे - पेटीकोट या साड़ी ] के नीचे सुखाती है हाँ या न , प्लीज शेयर करे यदि नहीं, तो मेरा सलाम है आपको, पर यह जरूर बताये की इतनी हिम्मत कहाँ से ला पायी आप.
फिर, अपनी दुनिया से बीती यादो मैं। ..... एक सफर सुनहरी यादो का।
बाथरूम मैं आकर, दरवाजा बंद किया , जल्दी से फिर उतारी कुर्ती जो काफी भीग गयी थी फिर सलवार भी उसका भी वो ही हाल था, गीली। दोनों को "निरमा" डाल दी, ब्रा खोली फिर आईने मैं अपने जोबन को देखा एकदम उठे हुए , गोल हल्का भूरा कलर था निप्पल का , फिर माँ की बात याद आयी "शादी" की , "सच्ची" निप्पल कड़े व् खड़े हो गए थे और वो "नीचे वाली" एक करंट सा अहसास हुआ था , पता नहीं क्या हुआ था. फिर मैंने पैंटी उतार दी, देखा "चाशनी " से भरी हुई थी, उफ़, इतना हाय यह क्या।
फिर , कुछ होश आया, पागल अभी नहाना भी है, कुर्ती भी धोनी है. जल्दी कर नहीं तो माँ की आवाज आने वाली है.
फिर , जल्दी से "रिन" लगाया कपड़ो [ कुर्ती,सलवार, -ब्रा पैंटी] मैं, निकले साफ़ पानी से और टांग दिए खूंटी पर फिर बालो मैं शैम्पू लगया, पाउच था "सिनसिल्क" का खोला उसे, फिर झाग से खेलना ही , ही। ....
बाल्टी से पानी लिया , आँख बंद और लगी बाल धोने , फिर बालो का हल्का जुड़ा बनाया और साबुन लिया, "संतूर" था, हाँ , माँ को वो ही पसंद था, अक्सर वो यही लाया करती थी, मुझे लक्स, या लिरिल पसंद था पर कभी - कभी ही ला पाती थी.
लगाने लगी "संतूर" जोबन पर , उफ़,क्या अहसास था , साबुन जब जोबन पर उतरता व् चढ़ता था , क्या बताऊ कैसा लगता था , करीब पांच मिनिट्स थक यही करती रही. फिर पीठ और पैर पर लगाने लगी, जहंघो के बीच "वहां" ,सब साफ़ था , अक्सर पीरियड्स से पहले "वीट " से सब साफ़.
साबुन हाथ मैं मला और लगाने लगी "वहां" नीचे आज तो कुछ अजीब ही था , करंट चल रहा हो जैसे , हर बार हात लगते हुए जोबन तक.
उफ़, क्या परेशानी है ये , फिर जल्दी से पानी डाला बदन पर , कुछ करंट कम हुआ, फिर नाहा कर जैसे उठी देखा,
"टॉवल" उफ़,वो तो लायी ही नहीं। अब , मुश्किल , सुनो माँ के भजन.
दो मिनिट्स तक, खड़ी रही "निप्पल" भी खड़े थे ठंडी से, हलके कड़क भी थे , फिर हिम्मत कर के माँ को आवाज लगायी।
मैं - माँ, माँ , आना जरा इधर।
कुछ देर मैं माँ आयी, बाथरूम के दरवाजे के बाहर , बोली।
माँ - क्या हुआ, निहारिका , सब ठीक.
मैं है, माँ , सब ठीक, पर मैं "टॉवल" लाना भूल गयी , ला दो न।
माँ - पागल लड़की , ऐसे कोई जाता है बाथरूम मैं नहाने को, बिना टॉवल के. सुधर ले अपनी आदतों को , जवान हो गई , शादी के लायक और ये हरकत , उफ़ भगवान जाने क्या होगा इस लड़की का.
और भी " सुवचन" "भजन" जो अब शायद दिन भर ही सुनने थे , कुछ - कुछ बोलती चली गयी, कुछ सुनाई दिया कुछ नहीं। फिर टॉवल देकर बोली, जल्दी आ.
मैं - हाँ, माँ.
फिर गड़बड़, अब तो पीटना ही है माँ के हाथ से, निहारिका गयी आज तो तू.
कपडे नहीं लायी, कैसे भूल गई, ओह, कपडे सुखाने के बाद शर्म से सीधा बाथरूम मैं भाग आयी, कोई ब्रा - पैंटी न सूखाते देख ले.
फिर सुखाया बदन को, जोबन पर लपेटा , आईने मैं देखा "सेक्सी" लग रही थी, निप्पल फिर कड़े हो गए , धत्त, अब बाहर यह सोच कर धीरे से दरवाजा खोला बाथरूम का , देखा माँ नहीं दिखी , बच गए।
तेज़ी से , अपने रूम मैं भागी। किया दरवाजा बंद , पीछे मुड़ी
सांस ऊपर की उप्पर और निचे की नीचे , माँ खड़ी थी सामने , हाथ मैं नयी बेडशीट लेकर खड़ी थी, शायद चेंज करनी आयी थी।
माँ - निहारिका। ....................
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(18-04-2020, 07:23 AM)Niharikasaree Wrote: फिर एक कुर्ती के नीचे, अपनी ब्रा और पैंटी डाली, और एक पेटिकोट के नीचे माँ की पैंटी डाल दी सूखेने , माँ को भी ऐसे ही देखा था , ब्रा - पैंटी ढक कर सूखाते हुए, सो मैंने भी वही किया।
अलग से सुखाते हुए शर्म आ रही थी, पड़ोस वाली भाभी देख लेंगी तो क्या सोचेंगी।
फिर जल्दी से, अंदर आ गयी, सोचा अब नहा लेती हु,
क्या कहूं
शब्दहीन हूँ मैं।
जवानी की दहलीज पर कदम रखने के हर पलों के जो चित्र उकेरती हैं आप , ...एक एक पल , मन में चल रहा संघर्ष , लज्जा भी और मन भी करता है ,
बस प्रसाद जी की कामायनी की ये पंक्तिया याद आ जाती हैं
मैं रति की प्रतिकृति लज्जा हूँ मैं शालीनता सिखाती हूँ,
मतवाली सुन्दरता पग में नूपुर सी लिपट मनाती हूँ,
लाली बन सरल कपोलों में आँखों में अंजन सी लगती,
कुंचित अलकों सी घुँघराली मन की मरोर बनकर जगती,
चंचल किशोर सुन्दरता की मैं करती रहती रखवाली,
मैं वह हलकी सी मसलन हूँ जो बनती कानों की लाली।"
और फिर आगे का प्रश्न ,...
यह आज समझ तो पाई हूँ मैं दुर्बलता में नारी हूँ,
अवयव की सुन्दर कोमलता लेकर मैं सबसे हारी हूँ।
पर मन भी क्यों इतना ढीला अपने ही होता जाता है,
घनश्याम-खंड-सी आँखों में क्यों सहसा जल भर आता है?
सर्वस्व-समर्पण करने की विश्वास-महा-तरु-छाया में,
चुपचाप पड़ी रहने की क्यों ममता जगती हैं माया में?
आप की पोस्ट एक बार में पढ़ने की नहीं होती , बार बार और यादों से जोड़ जोड़ कर ,... और फिर कैसे दिन गुजर जाते हैं
गुड़िया की शादी रचाने वाली , उनकी डोली विदा करने वाली खुद डोली में बैठकर कैसे चली जाती हैं
अद्भुत
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(18-04-2020, 11:50 AM)komaalrani Wrote:
क्या कहूं
शब्दहीन हूँ मैं।
जवानी की दहलीज पर कदम रखने के हर पलों के जो चित्र उकेरती हैं आप , ...एक एक पल , मन में चल रहा संघर्ष , लज्जा भी और मन भी करता है ,
बस प्रसाद जी की कामायनी की ये पंक्तिया याद आ जाती हैं
मैं रति की प्रतिकृति लज्जा हूँ मैं शालीनता सिखाती हूँ,
मतवाली सुन्दरता पग में नूपुर सी लिपट मनाती हूँ,
लाली बन सरल कपोलों में आँखों में अंजन सी लगती,
कुंचित अलकों सी घुँघराली मन की मरोर बनकर जगती,
चंचल किशोर सुन्दरता की मैं करती रहती रखवाली,
मैं वह हलकी सी मसलन हूँ जो बनती कानों की लाली।"
और फिर आगे का प्रश्न ,...
यह आज समझ तो पाई हूँ मैं दुर्बलता में नारी हूँ,
अवयव की सुन्दर कोमलता लेकर मैं सबसे हारी हूँ।
पर मन भी क्यों इतना ढीला अपने ही होता जाता है,
घनश्याम-खंड-सी आँखों में क्यों सहसा जल भर आता है?
सर्वस्व-समर्पण करने की विश्वास-महा-तरु-छाया में,
चुपचाप पड़ी रहने की क्यों ममता जगती हैं माया में?
आप की पोस्ट एक बार में पढ़ने की नहीं होती , बार बार और यादों से जोड़ जोड़ कर ,... और फिर कैसे दिन गुजर जाते हैं
गुड़िया की शादी रचाने वाली , उनकी डोली विदा करने वाली खुद डोली में बैठकर कैसे चली जाती हैं
अद्भुत
प्रसाद जी की कामायनी की पंक्तियों को वर्णित कर के अपने अथाह मन और नारी की मनोवेदना का जो मार्मिक वर्णन किया है
आज इस शांत पड़े मन मे भावनाओं का फिर कोई ज्वार उमड़ आया है
कोमल जी waahhh में नतमस्तक हो गयी आप की प्रतिभा और अथाह ज्ञान के आगे
कामायनी का लज्जा सर्ग एक स्त्री के मन की किरचों को खोलता ओर उस अनंत सागर का ज्ञान कराता
प्रसाद जी को कोट करना सिर्फ आप जैसी प्रेम प्यार और नारी मन की मर्मज्ञ लेखिका के लिए ही संभव है
नतमस्तक
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[quote pid='1853585' dateline='1587174797']
फिर, अपनी दुनिया से बीती यादो मैं। ..... एक सफर सुनहरी यादो का।
सांस ऊपर की उप्पर और निचे की नीचे , माँ खड़ी थी सामने , हाथ मैं नयी बेडशीट लेकर खड़ी थी, शायद चेंज करनी आयी थी।
माँ - निहारिका। ....................
[/quote]
एक नारी मन को समझना हो,एक वो सफर जहां हर लडक़ी पहुंचती है उस की शुरुआत मां के आंगन से होती है,ये जानना हो,
एक बेटी और माँ की दुनियां देखनी हो
निःसंदेह सभी लड़कियों महिलाओं को निहारिका जी के थर्ड पर अपनी उपस्थिति दर्ज करवानी चाहिए
निहारिका जी मेरे बचपन वाले दिन फिर से लौटा दिये है आप ने
बस इस सफर को अनवरत जारी रखना
मां का आंगन है ये थर्ड
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निहारिका जी बहुत ही ज्यादा अच्छा लिखा है
साथ ही कोमल जी और पूनम जी के इतने अच्छे विचार और कामायनी की कुछ पंक्तियां क्या कहने
ये सिर्फ कोमल जी ही कर सकती है
मेरा प्रणाम है आप सब को
क्या कहाँ है पूनम जी ने " माँ का आंगन है ये थर्ड"
निःसंदेह ये वही आंगन है
वहीं सुकून, वहीं छांव वही प्यार
ओर साथ मे कोमल जी का अविरल स्नेह
अहा, में तो धन्य हो गयी आप सब के बीच में आ कर
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क्या कहूं
शब्दहीन हूँ मैं।
जवानी की दहलीज पर कदम रखने के हर पलों के जो चित्र उकेरती हैं आप , ...एक एक पल , मन में चल रहा संघर्ष, लज्जा भी और मन भी करता है ,
कोमल जी,
औरत ही दूसरी औरत को समझ सकती है।
आज आपने यह सत्य साबित कर दिया की आप मैं रचना समझने की व् व्यक्त करने की ग़हरी समझ है. जो पंकितिया आपने नारी को समर्पित करि हैं, भले ही वो लिखी किसी और ने हैं पर सबके सामने आज पुनरजीवित करि हैं, उसके लिए आपको साधुवाद।
बस प्रसाद जी की कामायनी की ये पंक्तिया याद आ जाती हैं
मैं रति की प्रतिकृति लज्जा हूँ मैं शालीनता सिखाती हूँ,
मतवाली सुन्दरता पग में नू.................
आज समझ तो पाई हूँ मैं दुर्बलता में नारी हूँ,
अवयव की सुन्दर कोमलता लेकर मैं सबसे हारी हूँ।
एक लाइन लिख पाउंगी - "हाँ मैं नारी हूँ." - सहने वाली "धरा" व् " शक्ति" दोनों।
आप की पोस्ट एक बार में पढ़ने की नहीं होती , बार बार और यादों से जोड़ जोड़ कर ,... और फिर कैसे दिन गुजर जाते हैं
गुड़िया की शादी रचाने वाली , उनकी डोली विदा करने वाली खुद डोली में बैठकर कैसे चली जाती हैं
अद्भुत
जी,कोमल जी, सही, बिलकुल सही,
एक विडम्बना देखो,
माँ के घर मैं - परायी अमानत
ससुराल मैं - पराये घर से आयी.
का कौन सा - ठोर, कौन सा ठिकाना
बस आपकी प्रोतसाहन की भरी "पोस्ट" सर्वोच पुरस्कार है. तहे दिल से शुक्रिया , बस प्यार बनाये रखिये।
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एक नारी मन को समझना हो,एक वो सफर जहां हर लडक़ी पहुंचती है उस की शुरुआत मां के आंगन से होती है,ये जानना हो, एक बेटी और माँ की दुनियां देखनी हो ,
निःसंदेह सभी लड़कियों महिलाओं को निहारिका जी के थर्ड पर अपनी उपस्थिति दर्ज करवानी चाहिए
निहारिका जी मेरे बचपन वाले दिन फिर से लौटा दिये है आप ने बस इस सफर को अनवरत जारी रखना
पूनम जी
" मां का आंगन है ये थर्ड ", - इससे बेहतर उपमा और अलंकरण हो ही नहीं सकता।
सीधा दिल तक - दिल से।
मैं भी , आप सभी के साथ अपनी पुरानी यादो तो ताज़ा कर लेती हूँ, जो याद आ पता है बस लिख देती हूँ।
बस साथ व् प्यार बनाये रखे, और समय निकल के थोड़ी फुहार अगर [b]ऐसा आपके साथ भी हुआ है.[/b]
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कुसुम जी,
"...... साथ ही कोमल जी और पूनम जी के इतने अच्छे विचार और कामायनी की कुछ पंक्तियां क्या कहने , ये सिर्फ कोमल जी ही कर सकती है"
सही कहा आपने , पूनम जी की उत्तम विचार और कोमल जी की "नारी" पंकितिया अति उत्तम।
" माँ का आंगन है ये थर्ड" - हाँ जी, कुसुम जी, माँ की याद तो आ गयी।
निःसंदेह ये वही आंगन है
वहीं सुकून, वहीं छांव वही प्यार
ओर साथ मे कोमल जी का अविरल स्नेह
कुसुम जी, अहा, में तो धन्य हो गयी आप सब के बीच में आ कर - प्यार है आपका। बिना सच्ची सहेलियो के कोई कुछ नहीं। यह आपका ही आँगन है, वही सुकून, और थोड़ी मस्ती भी. आखिर लड़किया [फीमेल] हैं हम लोग. आप भी कुछ शेयर करे , हम सभी उसी दौर से निकले हैं.
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19-04-2020, 03:40 AM
(This post was last modified: 19-04-2020, 03:42 AM by Niharikasaree. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
तेज़ी से , अपने रूम मैं भागी। किया दरवाजा बंद , पीछे मुड़ी
सांस ऊपर की उप्पर और निचे की नीचे , माँ खड़ी थी सामने , हाथ मैं नयी बेडशीट लेकर खड़ी थी, शायद चेंज करनी आयी थी।
माँ - निहारिका। ....................
.........................................
प्रिय सहेलिओं ,
निहारिका का प्यार भरा नमस्कार ,
अब आगे ,
मेरी हालत दस सेकंड के लिए ख़राब हो गयी थी , माँ के सामने सिर्फ टॉवल मैं खड़ी थी जोबन से टॉवल थोड़ा सरक गया था भागते हुए हलके से निप्पल तक दिखयी दे रहा था, मैंने जोबन को देखा फिर माँ को देखा माँ मेरे जोबन को देख रही थी पर कुछ बोल नहीं पा रही थी। फिर माँ बोली। ..
माँ - निहारिका, क्या है यह, तू टॉवल मैं क्यों घूम रही है , पुरे घर मैं. कपडे नहीं है क्या ?
मैं - माँ, वो ले जाना भूल गई आज.
माँ - पागल लड़की, देख तो जरा , जवान हो गयी है, शर्म हैं या नहीं , तेरे जोबन , उफ़ बाहा आ रहे है ठीक कर।
मैं - टॉवल को खोला , हल्का सा फिर कसा अपने जोबन पर, जायदा ही कस लिया था शायद , जोबन आपस मैं चिपक गए थे और क्लीवेज बन गया था।
माँ - हँसते हुए, उफ़, क्या हो रहा रहा है तुझे, क्या कर रही है.
मैं, उस समय किसी फ़िल्मी हीरोइन के जैसे , सिर्फ टॉवल मैं जोबन कसे, लूटने का इंतज़ार कर रही थी, निचे देख कर, हाँ , हूँ कर रही थी.
पैर के अंगूठे से कुरेदने लगी थी निचे देखते हुए , बालो मैं से पानी टपक रहा था, हलकी ठण्ड भी लग रही थी. सोच रही थी की, अब माँ के सामने कैसे चेंज करू, अंदर तो कुछ नहीं था.
तभी माँ बोली,
माँ - निहारिका , तेरा दिमाग तो ठीक है, ऐसे ही खड़ी रहेगी , "गीली", ठण्ड लग जाएगी। चेंज कर, कपडे पहन।
"गीली" तो थी उस समय पर "नीचे" से , पर माँ को क्या कहती एकहाथ अपने आप "नीचे" जा लगा.
माँ - चादर, बेड पर फेंकती हुए बोली, मैं जा रही हूँ , जल्दी कपडे पहन सर्दी लग जाएगी, आज वैसे भी खूब पानी मैं खेल लिया तूने।
अब जाकर सांस आयी, मैं बोली
मैं - हाँ , माँ ठीक है.
फिर, माँ गयी रूम से बहार हंसती हुई, और बोल रही थी, अब तेरा कुछ करना ही पड़ेगा। शादी का.
"शादी" उफ़, मेरे निप्पल ठण्ड से खड़े थे , "नीचे" से गीली थी और माँ ने एक बार और शादी की बात कर दी , अजीब बैचनी हो रही थी.
"बैचनी", का सबब अब समझ आता है , मैं पीरियड्स की आखिरी दिनों मैं गर्म हो जाती थी, पर उस समय यह समझ नहीं आता था, दिमाग काम करना बंद कर देता था , "कुछ" चाहिए था "जिस्म " को पर पता नहीं था, और बोलती भी कैसे कर किसको पता तो हो "क्या" चाहिए।
आज, भी यही हाल है मेरा, पर , अब "मिल" जाता है "जो" चाहिए था मेरे जिस्म को.
आप लोग , यह सब पढ़ कर मुझे मूर्ख, या बुद्धू बोलेंगे हम्म, सही है, मैं थी, शायद हर लड़की होती है कुछ समय तक , मैं कुछ जयादा ही थी, औरत को आज भी अपनी इच्छा की बारे मैं ठीक से नहीं पता होता है, "सही" सवाल न होने से, गलत जबाब ही मिलते हैं.
खैर, फिर मैंने अपने टॉवल पकड़ा एक हाथ से और दरवाजा बंद किया , चिटकनी लगायी अरु ग़हरी सांस ली, फिर सोचा जल्दी से कपडे फेहेन लो, आज तो शामत होनी ही है.
अलमारी खोली,
टॉवल फेंका बिस्तर पर, मैं बिना किसी कपडे के कड़ी थी,
अलमारी खोले, मेरी अलमारी मैं एक तरफ कांच था, और वो ही साइड बंद थी,
अचानक मेरी नज़र मेरे जिस्म पर पड़ी, "जोबन" , कमर, "नीचे" वाली कुछ झंगो पे दिखा , हाथ लगाया तो "चाशनी" थी, टपकी हुई.
एक स्माइल आ गई, खुद को देख कर, फिर स्टाइल मरते हुए, बालो को आगे , पीछे, करते कभी जोबन पर डालते हुए, हाथ कमर पर रख के पोज़ बनते हुए, फिर मैं पीछे मुड़ी उफ़, आज ध्यान से देखे थे मैंने मेरे, "पीछे" वाले "गोल- मटोल" एकदम राउंड गोल - गोल चिकने।
"शर्म" आ गयी , फिर ध्यान आया, पागल लड़की, कपडे तो पहन ले, माँ आती होंगी।
फिर मैंने , ब्रा - और पैंटी निकली, ब्रा - काले कलर की थी और पैंटी भी काली ही थी जिस पर कमर के इलास्टिक से नीचे एक नेट की लैसी लाइन थी फिर बाद मैं कपडा था. यह पैंटी मुझे बड़ी पसंद थी. फिर याद आया की पैड्स की जरूरत पड सकती है, हालाँकि फ्लो लगभग ख़तम सा ही था, पर लड़कियां रिस्क नहीं लेती "इस" मामले मैं।
निकला पैड्स पैकेट मैं से , और पैंटी पहनते हुए लगा लिया , थोड़ा एडजस्ट किया कमर की इलास्टिक मैं उँगलियाँ घुमा के चेक किया सब ठीक.
ब्रा के स्ट्रैप्स हाथ मैं डाले, और पीछे से हुक लगाने की कोशिश करने लगी, चार - पांच बार कोशिश किया, उफ़, नहीं आज भी फ़ैल, निहारिका तुझे कब आएगी पीछे से हुक लगाना।
हाँ मैं लगा लेती हूँ, पीछे से पर दस मैं से दो - तीन बार, नहीं तो ब्रा को उलटी घुमा के आगे से हुक लगा लिए फिर वापस पीछे घुमा कर स्ट्रैप्स चढ़ा लिए कन्धो पे और हो गया.
आज भी जब समय होता है तैयार होने का , तब कोशिश कर के लगा ही लेती हूँ, नहीं तो "पतिदेव" की मदद, पर उनकी मदद भारी पड़ती है, एक तो लिपस्टिक वापस लगाओ, लिप किस जो देनी पड़ती है, और जोबन दबवाओ जो अलग से. कर वो तो इसी फ़िराक मैं रहेते हैं की मैं कब उनको देखु और बोलू, "जी , ब्रा का हुक लगा दो न".
हमम, अब मैं ब्रा - पैंटी मैं थी, सोच रही थी आज क्या ड्रेस पहेनू सलवार - कुर्ती, जीन्स - टॉप, फिर एक स्कर्ट हाथ मैं आ गयी, सोचा आज यह ही ठीक है, बहार तो जाना नहीं है, चल जाएगी, लाल रंग की लॉन्ग स्कर्ट थी, घेर वाली, आज भी याद है, मार्किट मैं पहेली नज़र मैं पसंद आ गयी थी. फिर एक ब्लैक टॉप निकला, थोड़ा टाइट लगा पहने बाद, फिर सोचा अभी कुछ समय पहले तक तो ठीक आए रहा था, इसे क्या हुआ. ब्लैक टॉप मैं ब्लैक ब्रा नहीं दिखेगी, नहीं तो माँ आज इस पर भी भजन सुना देंगी। बड़ी हो गयी, कपडे पहनने के लखन नहीं हैं , नाक कटवा दो सारे ज़माने मैं माँ - पिताजी की. .....
फिर टॉप पेहन न लेने के बाद , अलमारी बंद कर, देखा, टॉप मैं से मेरे जोबान उफ़, क्या बताऊ। मैं खुद ही शर्मा गयी देख कर , फिर सोचा, माँ सही ही कह रही हैं शायद, "शादी" हो जनि चाहिए ..... एक करंट सा दौड़ा, "नीचे" से "उप्पर" "जोबन" तक.
उफ़, कितने अरमान होते हैं लड़कियों के , घंटो आईने मैं मैं खुद दे बात कर लेती हैं, सपनो की दुनिया , सपनो का राजकुमार, गुड्डे - गुड़िया का खेल, और न जाने क्या - क्या , और मैं मूर्ख, बस अपने आप को देख के ही खुश हुए जा रही थी.
अचानक , घंटी बजी, दरवाजे की, कोई आया था , मैं जल्दी से रूम से बहार निकली , ट्वॉयल था हाथ मैं, डालना था बहार सूखने के लिए , हाथ मैं कंघा और टॉवल को गीले बालो मैं रगड़ते हुए मैं चली, दरवाजे की और, माँ भी आ ही गयी खोलने मेरे साथ ही.
माँ ने दरवाजा खोला, देखा।
........................
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(19-04-2020, 03:40 AM)Niharikasaree Wrote: तेज़ी से , अपने रूम मैं भागी। किया दरवाजा बंद , पीछे मुड़ी
सांस ऊपर की उप्पर और निचे की नीचे , माँ खड़ी थी सामने , हाथ मैं नयी बेडशीट लेकर खड़ी थी, शायद चेंज करनी आयी थी।
माँ - निहारिका। ....................
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आज भी जब समय होता है तैयार होने का , तब कोशिश कर के लगा ही लेती हूँ, नहीं तो "पतिदेव" की मदद, पर उनकी मदद भारी पड़ती है, एक तो लिपस्टिक वापस लगाओ, लिप किस जो देनी पड़ती है, और जोबन दबवाओ जो अलग से. कर वो तो इसी फ़िराक मैं रहेते हैं की मैं कब उनको देखु और बोलू, "जी , ब्रा का हुक लगा दो न".
हमम, अब मैं ब्रा - पैंटी मैं थी, सोच रही थी आज क्या ड्रेस पहेनू सलवार - कुर्ती, जीन्स - टॉप, फिर एक स्कर्ट हाथ मैं आ गयी, सोचा आज यह ही ठीक है, बहार तो जाना नहीं है, चल जाएगी, लाल रंग की लॉन्ग स्कर्ट थी, घेर वाली, आज भी याद है, मार्किट मैं पहेली नज़र मैं पसंद आ गयी थी. फिर एक ब्लैक टॉप निकला, थोड़ा टाइट लगा पहने बाद, फिर सोचा अभी कुछ समय पहले तक तो ठीक आए रहा था, इसे क्या हुआ. ब्लैक टॉप मैं ब्लैक ब्रा नहीं दिखेगी, नहीं तो माँ आज इस पर भी भजन सुना देंगी। बड़ी हो गयी, कपडे पहनने के लखन नहीं हैं , नाक कटवा दो सारे ज़माने मैं माँ - पिताजी की. .....
फिर टॉप पेहन न लेने के बाद , अलमारी बंद कर, देखा, टॉप मैं से मेरे जोबान उफ़, क्या बताऊ। मैं खुद ही शर्मा गयी देख कर , फिर सोचा, माँ सही ही कह रही हैं शायद, "शादी" हो जनि चाहिए ..... एक करंट सा दौड़ा, "नीचे" से "उप्पर" "जोबन" तक.
उफ़, कितने अरमान होते हैं लड़कियों के , घंटो आईने मैं मैं खुद दे बात कर लेती हैं, सपनो की दुनिया , सपनो का राजकुमार, गुड्डे - गुड़िया का खेल, और न जाने क्या - क्या , और मैं मूर्ख, बस अपने आप को देख के ही खुश हुए जा रही थी.
अचानक , घंटी बजी, दरवाजे की, कोई आया था , मैं जल्दी से रूम से बहार निकली , ट्वॉयल था हाथ मैं, डालना था बहार सूखने के लिए , हाथ मैं कंघा और टॉवल को गीले बालो मैं रगड़ते हुए मैं चली, दरवाजे की और, माँ भी आ ही गयी खोलने मेरे साथ ही.
माँ ने दरवाजा खोला, देखा।
........................
उफ़ एक एक चीज कितने डिटेल में आप लिखती हैं बस लगता है सामने पिक्चर चल रही है
या टाइम मशीन पर बैठ कर मैं उन दिनों में वापस पहुँच गयी हूँ
हाँ आप की कुछ शिकायतों से मैं सहमत नहीं हूँ ,
आखिर दुनिया में फ्री कुछ भी नहीं है तो
नहीं तो "पतिदेव" की मदद, पर उनकी मदद भारी पड़ती है, एक तो लिपस्टिक वापस लगाओ, लिप किस जो देनी पड़ती है,
तो दे दिया करिये न , आखिर हम सजती किस के लिए हैं साजन के लिए न , फिर लिपस्टिक लगाओ और कोई किस न करे तो लिपस्टिक की बर्बादी ,
और आज कल तो ऐसी आती हैं , जो चूस भी कोई ले तो नहीं छूटने वाली ,
और मेरे लिए तो मेरे बिना कहे ये ' वही वाली ' लाते हैं
क्योंकि दुबारा लगाने पर भी लॉक डाउन में तो सारा दिन घर में ही कब मन कर जाए और कुछ नहीं तो एक किस्सी तो बन ही जाती है
और जोबन दबवाओ जो अलग से. कर वो तो इसी फ़िराक मैं रहेते हैं की मैं कब उनको देखु और बोलू, "जी , ब्रा का हुक लगा दो न".
किसी ने कहा था जोबन और बगावत दोनों दबाने पर बढ़ते हैं , तो फिर दबा लिया तो अगर कहीं काम वाम से आठ दस दिन के लिए बाहर चलें जाए तो उसी जोबन को देख देख कर , कितना खाली खाली लगता है ,
अगर अच्छी टाइट खूब लो कट वाली बैकलेस चोली कट पहनूं और
कोई देख के ललचाये नहीं , चोरी से एक चुम्मी खुली पीठ पे न ले ले , एक चुटकी न काट ले तो भी तो बहुत खराब लगता है न ,...
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