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(09-04-2020, 01:08 PM)@Kusum_Soni Wrote: बिल्कुल सच कहा कोमल जी आप ने
निहारिका जी ने हम सब के उस अल्हड़ दौर ओर बचपन से सयाने पन में आने और उस समय की मौज मस्ती के बीच भावी जीवन की जो चिंता होती थी उस को केनवास पर अपनी अदभुत लेखनी द्वारा जिस प्रकार उकेरा है में स्तब्ध हूँ जैसे उन्ही दिनों में जी रही हूं ऐसा लगता है पढ़ते हुए
कोमल जी आप ने हम सब को एक नया जीवन दिया है
आप का साथ जीवन का एक बहुत बड़ा पारितोषिक है हम सब लड़कियों के लिए
हमें अपने स्नेह और अपनत्व से यूँही सिंचती रहना
निहारिका जी कोई शब्द नहीं है आप की तारीफ में ये कर्ज़ बाकी ही रहेगा
आप की कुसुम सोनी
कुसुम जी ,
सही कही, कोमल जी, के जादू भरे शब्द, एक नयी दुनिया मैं पहुंचा देते है, जहाँ हम मैं से कई महिलाये सिर्फ सपना देखिती हैं, लड़कियों को उतनी आज़ादी नहीं मिलती, डर, अनुसाहशान के नाम पर कण्ट्रोल , हमारी मौज़ मस्ती से परिवार की इज़्ज़त का सवाल , अगले घर जा कर कर लेना जो करना है, अपने पति के साथ , उम्मीद की होगा पति के साथ ही होगा , न जाने कैसा मिलेगा, क्या होगा। .....
कोमल जी आपके साथ, सफर पर निकल जाते हैं, मस्ती, मज़े, और सारी दबी हुई इच्छाओ को आँख बंद कर के ही सही, पूरी कर लेते हैं.
"निहारिका जी कोई शब्द नहीं है आप की तारीफ में ये कर्ज़ बाकी ही रहेगा"
कुसुम जी, यह तो आपका प्यार है , मुझ जैसे न चीज़ को सम्मान दिया, साथ व् प्यार देते रहिये।
आपकी। ...............
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तभी
माँ बोली- चल हाथ - मुँह धो ले, मैं जा रही थी, की माँ ने रोका , तुझे लगी है क्या , खेलते हुए,
मैं - नहीं माँ, , फिर यह खून के दाग......
वो माँ का चेहरा आज भी याद है , शंका, चिंता , डर, अंदेशा। ..........
वो भी मेरे बाथरूम मैं आयी, दिखा तो जरा.
...............................
प्रिय सहेलिओं ,
निहारिका का प्यार भरा नमस्कार ,
अब आगे ,
वो माँ का चेहरा आज भी याद है , शंका, चिंता , डर, अंदेशा। ........
और , कुछ हलकी ख़ुशी , इतने सारे भाव माँ, के चेहरे पर आ जा रहे थे, मैं, तो कुछ भी समझने के काबिल ही नहीं थी , आखिर पूछ ही लिया क्या हुआ, माँ.
माँ- मेरे पास आयी, बाथरूम का दरवाजा बंद किया , रोशनदान को देखा, सब ठीक था,
फिर, माँ ने मुझे कपडे उतारने को कहा, बोलै चल नहला आज।
उफ़,यह सोच कर आज भी मुझे हंसी आ जाती है, हलकी सी, की, एक माँ को कितने बहाने को साथ कुछ समझाना पड़ता है, कितनी दूरी होती है, - माँ बेटी के बीच , फिर शादी और बच्चे के बाद सब नार्मल। मेरी बेटी, को सब मालूम हो गया होगा अब तक, अब तो बच्चो की माँ भी हो गयी है, पर एक बेटी को अपनी माँ की हमेश ज़रुरत होती है,
यहाँ, मुझे कुछ माँ [ जो अभी कुछ महीने ,या साल भर हुआ होगा माँ बने ] पूरी तरह सहमत होगी की, बच्चो को कैसे सम्हालना है और उनके पेट दर्द , हलकी सर्दी - खांसी के लिए क्या दवा दू, हमेशा माँ की याद आती है, मुझे तो बहुत आयी थी, कुछ समय तक, हां अभी भी आती है , पर ज़िंदगी सब सीखा देती है.
हम्म, अब मैं, बाथरूम मैं, टी शर्ट उतरे, एक समीज़ मैं , और स्कर्ट मैं खड़ी थी, सोच रही थी, नाहा मैं खुद लुंगी, और यह दाग कहाँ से आया. तभी।
माँ -मुझे और भी काम हैं, निहारिका जल्दी कर. उतार दे सब।
मैं - है , माँ उतारती हूँ.
फिर मैंने , सरे कपडे उतर दिए, सिर्फ पैंटी को छोड़ कर.
माँ - उफ़, हे भगवन, पागल लड़की यह भी उतार,
माँ, का पारा अब चढ़ने लगा था , मुझे डर लगता था, माँ के चांटे से , फिर क्या था उतर गई पैंटी भी, मुँह शर्म से लाल, आँख निचे और बिलकुल चुप.
माँ - ने पैंटी देखि, हम्म, दो धब्बे थे खून के, एक बड़ा, एक कुछ फैला हुआ सा था,
- मैं - माँ, क्या हुआ, कुछ बोलो न, अभी कुछ देर से दर्द भी हुआ था , क्या हुआ मुझे, स्टापू खेलने से हुआ क्या।
माँ - पागल, लड़की स्टापू से नहीं, यह तोह सबके साथ होता है, जब हम लड़किया बड़ी होने लगती हैं तब, अब ध्यान से सुन, यह हर महीने होगा , कुछ दर्द भी होगा तुझे , निचे पेट के। और, यह ले [ पैड्स देते हुए] इसमें से एक लगा लेना पैंटी मैं, ऐसे लगते हैं, तीन - चार दिन तक, बीच मैं बदल भी लेना।
अच्छा , अब तू नाहा ले, मैं जाती हु।
मैं - पर माँ , आपने कहा था , नेहला दो गे , काफी दिनों के बाद आज माँ के हाथो से नहाने का मौका मिला था ,
-माँ - अच्छा , अब , जल्दी कर, सारा काम पड़ा है, मैं, बैठ गई निचे।
मैं , कुछ और भी पूछना चाहाती थी, पर चुप रह गई , शर्म , झिझक , लड़कियों के गहने।
माँ, ने बालो मैं शैम्पू लगाया, फिर एक चपत भी, निहारिका तू तेल नहीं लगाती ,बालो मैं बराबर। देख कितने ख़राब हो रहे हैं. रात को सोने से पहले लगा कर , मेरे पास से ले लेना तीन - चार तेल का मिश्रण है उसमें बालो के लिए अच्छा रहता हैं.
लड़किओं के सुंदरता बालो से निखरती हैं, ध्यान रखा कर , एक चपत और, नाख़ून को देख कर, कितने गंदे हो रहे हैं, काट लेना , नहीं तो साफ़ रखा कर अगर लम्बे करने हैं तो.
अब खेल - कूद मैं नाख़ून का धायन कौन देता है.
मैं - हा , माँ काट लुंगी।
नेहला कर, पीठ रगड़ कर , शैम्पू बालो मैं से छुड़ा कर, हाथ धोती हुई बोली , निहारिका अब मैं जा रही हूँ। जल्दी आना बहार और वो लगा लेना।
- मैं - माँ , ठीक है, आप जाओ.
यही सोच रही थी, कैसे लगाउंगी , माँ ने बता तो दिया है, नाहा धो कर अपन रूम मैं आ गई , पैंटी मैं लगा कर पहना तो एक अजीब सा अहसास हुआ, कुछ मोटा सा कपडा जैसा कुछ, जो बिलकुल भी सहज नहीं था, शुरू मैं, कुछ देर मैं बेड पर बैठी रही , पैड कुछ एडजस्ट हुआ , पर चलते हुए लग रहा था, और अचनाक दिमाग मैं आया, किसी को पता चल गया तो, मैंने कुछ लगा रखा है,किसी को दिख गया तो.
मैं - सीधा माँ के पास, माँ - फ्रिज मैं से आलू - प्याज निकल रही थी.
माँ - आ गई, निहारिका , सब ठीक, लगा लिया तूने
मैं - हा , माँ ठीक तो है , पर किसी को दिख गया तो, चलने मैं कुछ अजीब सा लग रहा था
माँ - हँसते हुए , पागल लड़की, किसी को कुछ नहीं पता चलता , अब आराम कर. उछाल - कूद बंद , किचन - पूजा रूम मैं नहीं जाना , जब तक साफ़ न हो.
मैं - हम्म, ठीक है माँ.
मैं फिर अपने रूम मैं गई, बैठ गई। होम वर्क था करने को, निकल ली किताब कॉपी , पर जी, न लगा कुछ भी करने को. कभी कुछ खाने की इच्छा हुई , दो - मिनिट मैं नहीं, यह नहीं कुछ खट्टा , इमिली , आचार, केरी का मुँह मैं पानी आय और चॉकलेट की याद आयी.
फिरज मैं देखि थी चॉकलेट, भाग कर गई, उठा ली,और खाने लगी. इस बार चलते का स्वाद ही अलग लग रहा था
फिर टी. वि। चला लिया , चित्रहार आ रहा था , एक - दो गाने के बाद विज्ञापन आया, केयर फ्र्री , सटे फ्री याद नहीं अब तो , मैं भी ऐसा ही यूज़ कर रही हु यही सोच कर ध्यान से देख रही थी , लेकिन कुछ जायदा सोच पाती की विज्ञापन ख़तम हो गया और फिर गाने गए.
तभी माँ की आवाज़ आयी। ...... निहारिका औ निहारिका। .............
सभी महिलाओं से विनती है की, अपने विचार शेयर ज़रूर करे , प्लीज हम सब इसी दौर से गुज़रे है,,,,,,,,,,,,,,,
आपके। .........
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11-04-2020, 11:41 AM
(This post was last modified: 11-04-2020, 11:46 AM by @Kusum_Soni. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
(11-04-2020, 05:23 AM)Niharikasaree Wrote: तभी
माँ बोली- चल हाथ - मुँह धो ले, मैं जा रही थी, की माँ ने रोका , तुझे लगी है क्या , खेलते हुए,
मैं - नहीं माँ, , फिर यह खून के दाग......
वो माँ का चेहरा आज भी याद है , शंका, चिंता , डर, अंदेशा। ..........
वो भी मेरे बाथरूम मैं आयी, दिखा तो जरा.
...............................
प्रिय सहेलिओं ,
निहारिका का प्यार भरा नमस्कार ,
अब आगे ,
वो माँ का चेहरा आज भी याद है , शंका, चिंता , डर, अंदेशा। ........
और , कुछ हलकी ख़ुशी , इतने सारे भाव माँ, के चेहरे पर आ जा रहे थे, मैं, तो कुछ भी समझने के काबिल ही नहीं थी , आखिर पूछ ही लिया क्या हुआ, माँ.
माँ- मेरे पास आयी, बाथरूम का दरवाजा बंद किया , रोशनदान को देखा, सब ठीक था,
फिर, माँ ने मुझे कपडे उतारने को कहा, बोलै चल नहला आज।
उफ़,यह सोच कर आज भी मुझे हंसी आ जाती है, हलकी सी, की, एक माँ को कितने बहाने को साथ कुछ समझाना पड़ता है, कितनी दूरी होती है, - माँ बेटी के बीच , फिर शादी और बच्चे के बाद सब नार्मल। मेरी बेटी, को सब मालूम हो गया होगा अब तक, अब तो बच्चो की माँ भी हो गयी है, पर एक बेटी को अपनी माँ की हमेश ज़रुरत होती है,
यहाँ, मुझे कुछ माँ [ जो अभी कुछ महीने ,या साल भर हुआ होगा माँ बने ] पूरी तरह सहमत होगी की, बच्चो को कैसे सम्हालना है और उनके पेट दर्द , हलकी सर्दी - खांसी के लिए क्या दवा दू, हमेशा माँ की याद आती है, मुझे तो बहुत आयी थी, कुछ समय तक, हां अभी भी आती है , पर ज़िंदगी सब सीखा देती है.
हम्म, अब मैं, बाथरूम मैं, टी शर्ट उतरे, एक समीज़ मैं , और स्कर्ट मैं खड़ी थी, सोच रही थी, नाहा मैं खुद लुंगी, और यह दाग कहाँ से आया. तभी।
माँ -मुझे और भी काम हैं, निहारिका जल्दी कर. उतार दे सब।
मैं - है , माँ उतारती हूँ.
फिर मैंने , सरे कपडे उतर दिए, सिर्फ पैंटी को छोड़ कर.
माँ - उफ़, हे भगवन, पागल लड़की यह भी उतार,
माँ, का पारा अब चढ़ने लगा था , मुझे डर लगता था, माँ के चांटे से , फिर क्या था उतर गई पैंटी भी, मुँह शर्म से लाल, आँख निचे और बिलकुल चुप.
माँ - ने पैंटी देखि, हम्म, दो धब्बे थे खून के, एक बड़ा, एक कुछ फैला हुआ सा था,
- मैं - माँ, क्या हुआ, कुछ बोलो न, अभी कुछ देर से दर्द भी हुआ था , क्या हुआ मुझे, स्टापू खेलने से हुआ क्या।
माँ - पागल, लड़की स्टापू से नहीं, यह तोह सबके साथ होता है, जब हम लड़किया बड़ी होने लगती हैं तब, अब ध्यान से सुन, यह हर महीने होगा , कुछ दर्द भी होगा तुझे , निचे पेट के। और, यह ले [ पैड्स देते हुए] इसमें से एक लगा लेना पैंटी मैं, ऐसे लगते हैं, तीन - चार दिन तक, बीच मैं बदल भी लेना।
अच्छा , अब तू नाहा ले, मैं जाती हु।
मैं - पर माँ , आपने कहा था , नेहला दो गे , काफी दिनों के बाद आज माँ के हाथो से नहाने का मौका मिला था ,
-माँ - अच्छा , अब , जल्दी कर, सारा काम पड़ा है, मैं, बैठ गई निचे।
मैं , कुछ और भी पूछना चाहाती थी, पर चुप रह गई , शर्म , झिझक , लड़कियों के गहने।
माँ, ने बालो मैं शैम्पू लगाया, फिर एक चपत भी, निहारिका तू तेल नहीं लगाती ,बालो मैं बराबर। देख कितने ख़राब हो रहे हैं. रात को सोने से पहले लगा कर , मेरे पास से ले लेना तीन - चार तेल का मिश्रण है उसमें बालो के लिए अच्छा रहता हैं.
लड़किओं के सुंदरता बालो से निखरती हैं, ध्यान रखा कर , एक चपत और, नाख़ून को देख कर, कितने गंदे हो रहे हैं, काट लेना , नहीं तो साफ़ रखा कर अगर लम्बे करने हैं तो.
अब खेल - कूद मैं नाख़ून का धायन कौन देता है.
मैं - हा , माँ काट लुंगी।
नेहला कर, पीठ रगड़ कर , शैम्पू बालो मैं से छुड़ा कर, हाथ धोती हुई बोली , निहारिका अब मैं जा रही हूँ। जल्दी आना बहार और वो लगा लेना।
- मैं - माँ , ठीक है, आप जाओ.
यही सोच रही थी, कैसे लगाउंगी , माँ ने बता तो दिया है, नाहा धो कर अपन रूम मैं आ गई , पैंटी मैं लगा कर पहना तो एक अजीब सा अहसास हुआ, कुछ मोटा सा कपडा जैसा कुछ, जो बिलकुल भी सहज नहीं था, शुरू मैं, कुछ देर मैं बेड पर बैठी रही , पैड कुछ एडजस्ट हुआ , पर चलते हुए लग रहा था, और अचनाक दिमाग मैं आया, किसी को पता चल गया तो, मैंने कुछ लगा रखा है,किसी को दिख गया तो.
मैं - सीधा माँ के पास, माँ - फ्रिज मैं से आलू - प्याज निकल रही थी.
माँ - आ गई, निहारिका , सब ठीक, लगा लिया तूने
मैं - हा , माँ ठीक तो है , पर किसी को दिख गया तो, चलने मैं कुछ अजीब सा लग रहा था
माँ - हँसते हुए , पागल लड़की, किसी को कुछ नहीं पता चलता , अब आराम कर. उछाल - कूद बंद , किचन - पूजा रूम मैं नहीं जाना , जब तक साफ़ न हो.
मैं - हम्म, ठीक है माँ.
मैं फिर अपने रूम मैं गई, बैठ गई। होम वर्क था करने को, निकल ली किताब कॉपी , पर जी, न लगा कुछ भी करने को. कभी कुछ खाने की इच्छा हुई , दो - मिनिट मैं नहीं, यह नहीं कुछ खट्टा , इमिली , आचार, केरी का मुँह मैं पानी आय और चॉकलेट की याद आयी.
फिरज मैं देखि थी चॉकलेट, भाग कर गई, उठा ली,और खाने लगी. इस बार चलते का स्वाद ही अलग लग रहा था
फिर टी. वि। चला लिया , चित्रहार आ रहा था , एक - दो गाने के बाद विज्ञापन आया, केयर फ्र्री , सटे फ्री याद नहीं अब तो , मैं भी ऐसा ही यूज़ कर रही हु यही सोच कर ध्यान से देख रही थी , लेकिन कुछ जायदा सोच पाती की विज्ञापन ख़तम हो गया और फिर गाने गए.
तभी माँ की आवाज़ आयी। ...... निहारिका औ निहारिका। .............
सभी महिलाओं से विनती है की, अपने विचार शेयर ज़रूर करे , प्लीज हम सब इसी दौर से गुज़रे है,,,,,,,,,,,,,,,
आपके। .........
क्या बात है बिल्कुल एक सीरियल की तरह सब बचपन की बातें आप के साथ साथ फिर से जीवंत होती जा रही है
माँ की वो हिदायतें ऊफ़्फ़ आज कौन हमारा इतना ख्याल करता है
वो बचपन बहुत मीठा मीठा था,पर बहुत छोटा था,बहुत ज्यादा छोटा खास कर हम लड़कियों का तो
जब ठीक से समझ आनी शुरू तक नहीं हुई थी और हज़ारों वर्जनाएं, बंदिशें सर उठाएं खड़ी हो गयी थी
सिर्फ घर परिवार और जिम्मेदारियों का बोझ बड़ा है वो सब सामाजिक वर्जनाएं बंदिशें ज्यों की त्यों है
माँ, ने बालो मैं शैम्पू लगाया, फिर एक चपत भी, निहारिका तू तेल नहीं लगाती ,बालो मैं बराबर। देख कितने ख़राब हो रहे हैं. रात को सोने से पहले लगा कर , मेरे पास से ले लेना तीन - चार तेल का मिश्रण है उसमें बालो के लिए अच्छा रहता हैं.
अब ये तेल कहाँ कहाँ तक लगना शुरू हो गया है
सत्यानाश कर दिया है शादी ने तो हमारा
पर ये ही लिखा होता है हम औरतों के जीवन में
खेर,जीवन मे जहां है उस पल को खूब जियो
बस यही हकीकत है
आप की अदभुत लेखन कला को 100 बार नमन है
बस लिखती रहें,बहुत सुभकामनाएँ
आप की कुसुम सोनी
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11-04-2020, 01:45 PM
(This post was last modified: 11-04-2020, 01:47 PM by Niharikasaree. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
(11-04-2020, 11:41 AM)@Kusum_Soni Wrote: क्या बात है बिल्कुल एक सीरियल की तरह सब बचपन की बातें आप के साथ साथ फिर से जीवंत होती जा रही है
माँ की वो हिदायतें ऊफ़्फ़ आज कौन हमारा इतना ख्याल करता है
वो बचपन बहुत मीठा मीठा था,पर बहुत छोटा था,बहुत ज्यादा छोटा खास कर हम लड़कियों का तो
जब ठीक से समझ आनी शुरू तक नहीं हुई थी और हज़ारों वर्जनाएं, बंदिशें सर उठाएं खड़ी हो गयी थी
सिर्फ घर परिवार और जिम्मेदारियों का बोझ बड़ा है वो सब सामाजिक वर्जनाएं बंदिशें ज्यों की त्यों है
माँ, ने बालो मैं शैम्पू लगाया, फिर एक चपत भी, निहारिका तू तेल नहीं लगाती ,बालो मैं बराबर। देख कितने ख़राब हो रहे हैं. रात को सोने से पहले लगा कर , मेरे पास से ले लेना तीन - चार तेल का मिश्रण है उसमें बालो के लिए अच्छा रहता हैं.
अब ये तेल कहाँ कहाँ तक लगना शुरू हो गया है
सत्यानाश कर दिया है शादी ने तो हमारा
पर ये ही लिखा होता है हम औरतों के जीवन में
खेर,जीवन मे जहां है उस पल को खूब जियो
बस यही हकीकत है
आप की अदभुत लेखन कला को 100 बार नमन है
बस लिखती रहें,बहुत सुभकामनाएँ
आप की कुसुम सोनी
कुसुम जी,
मेरा प्यार भरा नमस्कार,
"सब बचपन की बातें आप के साथ साथ फिर से जीवंत होती जा रही है"
एक कोशिश, आज के व्यस्त जीवन मैं वो पुरानी यादें , वो बचपन की मीठी - खट्टी बाते फिर से याद करके खुश हो लिया जाए।
"वो बचपन बहुत मीठा मीठा था,पर बहुत छोटा था,बहुत ज्यादा छोटा खास कर हम लड़कियों का तो
जब ठीक से समझ आनी शुरू तक नहीं हुई थी और हज़ारों वर्जनाएं, बंदिशें सर उठाएं खड़ी हो गयी थी"
सही कहा,एकदम आपने, हमारा बचपन कब ख़तम हो गया पता न चला , और बंदिशे , हिदायते , इस घर [माईके] से उस घर [ससुराल] तक जैसे ट्रांसफर हो गई हो, साथ ही जिम्मेदारियां और बढ़ गई हैं.
"अब ये तेल कहाँ कहाँ तक लगना शुरू हो गया है
सत्यानाश कर दिया है शादी ने तो हमारा"
बात रही तेल की, शादी ने तो सारा तेल ही निकल दिया है, हम औरतो का , शुरू मैं तेल भी लगता था, अब। ..... जो मिल जाये, नहीं तो सूखा ही पेल दिया , बचपन व् अदकचरी जवानी तक इतना नहीं सोचा था, यह सब भी होता है, औरत के साथ, कोई खुल के आप बीती नहीं बताती , खुद ही "करवा" के सीखो।
बस यही हकीकत है
आप की अदभुत लेखन कला को 100 बार नमन है
बस लिखती रहें,बहुत सुभकामनाएँ
कुसुम जी, लेखन कला तो, कोमल जी की है, हम तो बस अपनी भावनाओ से जो बन पड़ता है लिख देते हैं, आपके प्यार व् साथ की चाहत है बस , जब भी समय मिले , आती रहा करे , कुछ अपनी बात कहने का मानसिक बल मिलता रहता है इस व्यस्त और जिम्मेदारी जिंदगी मैं, आप लोगो से दो बात करके "जी" कुछ हल्का हो जाता है ।
•
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11-04-2020, 11:07 PM
(This post was last modified: 11-04-2020, 11:10 PM by Niharikasaree. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
चित्रहार आ रहा था , एक - दो गाने के बाद विज्ञापन आया, केयर फ्र्री , सटे फ्री याद नहीं अब तो , मैं भी ऐसा ही यूज़ कर रही हु यही सोच कर ध्यान से देख रही थी , लेकिन कुछ जायदा सोच पाती की विज्ञापन ख़तम हो गया और फिर गाने गए.
तभी माँ की आवाज़ आयी। ...... निहारिका औ निहारिका। .............
...........
प्रिय सहेलिओं ,
निहारिका का प्यार भरा नमस्कार ,
अब आगे ,
सखिओ , हम सब इसी दौर से गुज़र चुके हैं , वो पहेली बार [पैड्स] लगाना अकेले बाथरूम मैं जाकर देखना, खून का फ्लो, कभी फ्लो जयादा , कभी कम , दर्द से झूझना जब न कबीले बर्दास्त हो जाये तब माँ को बताना , माँ दर्द हो रहा है, पर इतना नहीं, यह झूठ भी माँ समझ जाती , फिर गर्म पानी का सेंक , अजवाइन नहीं तो आखिर पैन किलर। धीरे -धीरे आदत हुई की पांच दिन महीने के यु ही निकलने हैं, सह लो, "सच्ची" बड़ा बुरा लगता था, वो पांच दिन, जब दूसरी लड़कियों खासकर "लड़को" को खेलते हुए देख कर [मन मैं गली देते हुए] इन्हे कुछ नहीं होता , इनको कुछ नहीं, कोई दर्द नहीं, मस्त एकदम।
लड़कियों को एक तो पता नहीं होता, की आगे "इस - योनि" का क्या "इस्तेमाल" होगा, पर उस समय सबसे बेकार चीज यह ही होती थी, कम - से - कम मेरे लिए , यह क्यों दी उपरवाले ने हमे, उस पर यह तकलीफ। उम्र बढ़ती गई,पीरियड्स का रूटीन चलता रहा, "उन दिनों" मैं खासकर मेरे मूड को न जाने क्या हो जाता था , अकेले बैठ जाना, किसी से बात न करने की इच्छा, कुछ खाने की इच्छा, अगले पल नहीं खाना, गार्डन मैं खेलने जाना पर कुछ न खेलना , दूसरी लड़कियों से बात करने मैं हिचक, न जाने क्या सोचेगी। पड़ोस वाली भाभी से बात करने की इच्छा भी हुई, हिचक कभी बात ही नहीं हुई उनसे इस बारे मैं, बस कॉलेज, कैसे चल रही है पढाई, सब ठीक, माँ क्या कर रही है. बात ख़तम.
एक दिन, शाम को, पार्क की बेंच पर बैठी थी, अँधेरा होने को था, बस माँ की आवाज का इन्त्रार की कब माँ बुला ले, और घर जाने का बहाना मिल जाये, "दूसरा" दिन था मेरा। फ्लो भी जयादा था, उम्र के साथ होता होगा, तभी माँ की आवाज आयी, निहारिका , आजा अँधेरा होने को है.
मैं, अनमने मन से उठी, और चल दी घर की और, माँ के पास एक झूठी स्माइल से साथ बोली हाँ माँ, क्या हुआ.
माँ - अरी, सुन. [धीरे से बोली] पैड्स हैं या ख़तम हो गए, तेरे पास ? लगता है आज रात या कल सुभे मुझे चाहिए होंगे। मेरे तो ख़तम हो गए, और लाना भी भूल गयी.
मैं - चुप थी, क्या बोलती, है, अब यह एक नार्मल रूटीन था, माँ बाज़ार जाती, तो ले आती थी, मुझे कभी टेंशन नहीं हुई की है या नहीं। मैंने बोलै, माँ ,देख कर आती हूँ,
टेंशन, दर्द को भुला देता है, तेज़ चल कर गई , अलमारी मैं देखा , पैकेट मैं सिर्फ दो बचे थे , अब , अब क्या। माँ को दू, या , मेरे भी तो चल रहे हैं, आज दूसरा दिन ही तो है. एक - एक काम आ जायेगा , पर लेने तो पड़ेंगे ही.
आयी माँ के पास, बोली , माँ - दो ही बचे हैं.
माँ - अब - बोल नहीं सकती थी की दो ही बचे हैं, बता देती तो कल ले आती , गई तो थी न बाज़ार। और मैं भी भूल गई , पागल, कब समझ आएगी तुझे। एक काम कर , अभी तो मैं नहीं जा सकती, पूजा का समय है, खाना भी बनाना है, कल तो तेरे पिताजी को ही शाम का दिया - बाती करनी है, तू ले आ , गली के बाहर मेडिकल पे मिल जायेगा। ले पैसे, सुन दो पैकेट ले आना. "व्हिस्पर" के बोलना "अल्ट्रा थींन" ,
मैं - चुप, बस सुने जा रहि थी, माँ, समझ गई , बड़ा , ग्रीन वाला , देख कर लाना। अब जा।
उफ़, काटो तोह खून नहीं, जैसी मेरी हालत , माँ से पैसे लेकर, चप्पल पहनी , दुपट्टा लिया , जोबन ढके ,निकलने वाली थी की, अचानक याद आया, बाल तो बनाये ही नहीं।
गई, कांच के सामने, कंघा लिया , बालो से रब्बर बेंड हटाया, बेखबर , बाल मैं कंघी करे जा रही थी, तभी माँ की आवाज आई, निहारिका , उफ़ अब तक गई नहीं, जा अँधेरा भी हो रहा है, आ कर , टिंडे काट देना, प्याज भी. जब तक मैं मंदिर देख लेती हूँ.
मैं - झटके से होन्श आया , जल्दी से बाल समेटे , रब्बर बेंड लगाया , बोली है , माँ बस निकल गयी। और घर से बाहर।
मेडिकल शॉप, जयादा दूर नहीं थी, बही तो माँ अकेले नहीं भेजती। मैं, कई बार कॉलेज / कॉलेज और बाजार के लिए उस दुकान के सामने से गई हूँ, पर आज न जाने क्यों वो दुकान बड़ी दूर लग रही थी, मैं चल रही हूँ और रास्ता ख़तम ही न हो रहा था।
फिर , कदम तेज़ किये, करीब दस कदम दूर, दुकान दिख गई , कुछ लोग थे दवा खरीद कर रहे थे, हल्का अँधेरा हो चला था, सोचा जल्दी ले लू, फिर घर जाकर, टिंडे और प्याज़ भी काटने हैं, माँ मंदिर से फ्री हो गई होने तो नाहक ही डांट सुनने को मिलेगी।
मैं, मेडिकल शॉप से तीन कदम दूर कड़ी थी, अब तक दो -तीन ही लोग बचे थे , खांसी की दवाई , कोई बुखार की दवाई मांग रहा था, दुकानवाला भी जल्दी निबटने के प्रयास मैं था उन सबको।।।।।।।
मैं, चुप खड़ी, देख रही थी, मुँह से आवाज निकलने की कोशिश करि तो, निकले न , होंठ एकदम सुख गए थे। मन ही मन सोच जा रही थी, क्या बोलूँगी , कैसे बोलूंगी। .
तभी, काउंटर खली हो गया था दुकान का , दुकानवाला जोर से बोला, हाँ जी मैडम क्या चाहिए आपको। ..........
.......................
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निहारिका का प्यार भरा नमस्कार ,
अब आगे ,
सखिओ , हम सब इसी दौर से गुज़र चुके हैं , वो पहेली बार [पैड्स] लगाना अकेले बाथरूम मैं जाकर देखना, खून का फ्लो, कभी फ्लो जयादा , कभी कम , दर्द से झूझना जब न कबीले बर्दास्त हो जाये तब माँ को बताना , माँ दर्द हो रहा है, पर इतना नहीं, यह झूठ भी माँ समझ जाती , फिर गर्म पानी का सेंक , अजवाइन नहीं तो आखिर पैन किलर। धीरे -धीरे आदत हुई की पांच दिन महीने के यु ही निकलने हैं, सह लो, "सच्ची" बड़ा बुरा लगता था, वो पांच दिन, जब दूसरी लड़कियों खासकर "लड़को" को खेलते हुए देख कर [मन मैं गली देते हुए] इन्हे कुछ नहीं होता , इनको कुछ नहीं, कोई दर्द नहीं, मस्त एकदम।
लड़कियों को एक तो पता नहीं होता, की आगे "इस - योनि" का क्या "इस्तेमाल" होगा, पर उस समय सबसे बेकार चीज यह ही होती थी, कम - से - कम मेरे लिए , यह क्यों दी उपरवाले ने हमे, उस पर यह तकलीफ। उम्र बढ़ती गई,पीरियड्स का रूटीन चलता रहा, "उन दिनों" मैं खासकर मेरे मूड को न जाने क्या हो जाता था , अकेले बैठ जाना, किसी से बात न करने की इच्छा, कुछ खाने की इच्छा, अगले पल नहीं खाना, गार्डन मैं खेलने जाना पर कुछ न खेलना , दूसरी लड़कियों से बात करने मैं हिचक, न जाने क्या सोचेगी। पड़ोस वाली भाभी से बात करने की इच्छा भी हुई, हिचक कभी बात ही नहीं हुई उनसे इस बारे मैं, बस कॉलेज, कैसे चल रही है पढाई, सब ठीक, माँ क्या कर रही है. बात ख़तम.
एक दिन, शाम को, पार्क की बेंच पर बैठी थी, अँधेरा होने को था, बस माँ की आवाज का इन्त्रार की कब माँ बुला ले, और घर जाने का बहाना मिल जाये, "दूसरा" दिन था मेरा। फ्लो भी जयादा था, उम्र के साथ होता होगा, तभी माँ की आवाज आयी, निहारिका , आजा अँधेरा होने को है.
मैं, अनमने मन से उठी, और चल दी घर की और, माँ के पास एक झूठी स्माइल से साथ बोली हाँ माँ, क्या हुआ.
माँ - अरी, सुन. [धीरे से बोली] पैड्स हैं या ख़तम हो गए, तेरे पास ? लगता है आज रात या कल सुभे मुझे चाहिए होंगे। मेरे तो ख़तम हो गए, और लाना भी भूल गयी.
मैं - चुप थी, क्या बोलती, है, अब यह एक नार्मल रूटीन था, माँ बाज़ार जाती, तो ले आती थी, मुझे कभी टेंशन नहीं हुई की है या नहीं। मैंने बोलै, माँ ,देख कर आती हूँ,
टेंशन, दर्द को भुला देता है, तेज़ चल कर गई , अलमारी मैं देखा , पैकेट मैं सिर्फ दो बचे थे , अब , अब क्या। माँ को दू, या , मेरे भी तो चल रहे हैं, आज दूसरा दिन ही तो है. एक - एक काम आ जायेगा , पर लेने तो पड़ेंगे ही.
आयी माँ के पास, बोली , माँ - दो ही बचे हैं.
माँ - अब - बोल नहीं सकती थी की दो ही बचे हैं, बता देती तो कल ले आती , गई तो थी न बाज़ार। और मैं भी भूल गई , पागल, कब समझ आएगी तुझे। एक काम कर , अभी तो मैं नहीं जा सकती, पूजा का समय है, खाना भी बनाना है, कल तो तेरे पिताजी को ही शाम का दिया - बाती करनी है, तू ले आ , गली के बाहर मेडिकल पे मिल जायेगा। ले पैसे, सुन दो पैकेट ले आना. "व्हिस्पर" के बोलना "अल्ट्रा थींन" ,
मैं - चुप, बस सुने जा रहि थी, माँ, समझ गई , बड़ा , ग्रीन वाला , देख कर लाना। अब जा।
उफ़, काटो तोह खून नहीं, जैसी मेरी हालत , माँ से पैसे लेकर, चप्पल पहनी , दुपट्टा लिया , जोबन ढके ,निकलने वाली थी की, अचानक याद आया, बाल तो बनाये ही नहीं।
गई, कांच के सामने, कंघा लिया , बालो से रब्बर बेंड हटाया, बेखबर , बाल मैं कंघी करे जा रही थी, तभी माँ की आवाज आई, निहारिका , उफ़ अब तक गई नहीं, जा अँधेरा भी हो रहा है, आ कर , टिंडे काट देना, प्याज भी. जब तक मैं मंदिर देख लेती हूँ.
मैं - झटके से होन्श आया , जल्दी से बाल समेटे , रब्बर बेंड लगाया , बोली है , माँ बस निकल गयी। और घर से बाहर।
मेडिकल शॉप, जयादा दूर नहीं थी, बही तो माँ अकेले नहीं भेजती। मैं, कई बार कॉलेज / कॉलेज और बाजार के लिए उस दुकान के सामने से गई हूँ, पर आज न जाने क्यों वो दुकान बड़ी दूर लग रही थी, मैं चल रही हूँ और रास्ता ख़तम ही न हो रहा था।
फिर , कदम तेज़ किये, करीब दस कदम दूर, दुकान दिख गई , कुछ लोग थे दवा खरीद कर रहे थे, हल्का अँधेरा हो चला था, सोचा जल्दी ले लू, फिर घर जाकर, टिंडे और प्याज़ भी काटने हैं, माँ मंदिर से फ्री हो गई होने तो नाहक ही डांट सुनने को मिलेगी।
मैं, मेडिकल शॉप से तीन कदम दूर कड़ी थी, अब तक दो -तीन ही लोग बचे थे , खांसी की दवाई , कोई बुखार की दवाई मांग रहा था, दुकानवाला भी जल्दी निबटने के प्रयास मैं था उन सबको।।।।।।।
मैं, चुप खड़ी, देख रही थी, मुँह से आवाज निकलने की कोशिश करि तो, निकले न , होंठ एकदम सुख गए थे। मन ही मन सोच जा रही थी, क्या बोलूँगी , कैसे बोलूंगी। .
तभी, काउंटर खली हो गया था दुकान का , दुकानवाला जोर से बोला, हाँ जी मैडम क्या चाहिए आपको। ..........
.......................
बहुत सुंदर , जिन परिस्थितयों से एक किशोरी गुजरती है , ..आज तक इस फोरम क्या , इस तरह के किसी फोरम पर , इस हालत का इस स्थिति का चित्र किसी ने नहीं खींचा होगा ,
तन का दर्द , मन का दर्द , झिझक , शर्माहट ,..एकदम परसनल बात किसी दूसरे से कहने की बात ,...
आप आप ही हो
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(12-04-2020, 09:21 AM)komaalrani Wrote:
बहुत सुंदर , जिन परिस्थितयों से एक किशोरी गुजरती है , ..आज तक इस फोरम क्या , इस तरह के किसी फोरम पर , इस हालत का इस स्थिति का चित्र किसी ने नहीं खींचा होगा ,
तन का दर्द , मन का दर्द , झिझक , शर्माहट ,..एकदम परसनल बात किसी दूसरे से कहने की बात ,...
आप आप ही हो
" जिन परिस्थितयों से एक किशोरी गुजरती है , ..आज तक इस फोरम क्या , इस तरह के किसी फोरम पर , इस हालत का इस स्थिति का चित्र किसी ने नहीं खींचा होगा ,"
कोमल जी ,
उपोरक्त दो लाइन्स, मेरे जीवन की कहानी के लिए बेहद सर्वश्रेस्ट उपमा अलंकृत करि है आपने, मैंने तो बस अपनी भावनाओ को उकेर दिया , हम सभी लड़किया जो आज औरत या माँ बन चुकी है, सभी इसी दौर से गुज़र चुकी है, मेरी यही कोशिश है की, उस सुनहरी यादो को एक बार फिर से "जी" ले , बस यादे ही बाकि रह गई हैं, उस दौर की.
"तन का दर्द , मन का दर्द , झिझक , शर्माहट ,..एकदम परसनल बात किसी दूसरे से कहने की बात"
हम्म, बस इन्ही बातो का मिलाजुला रूप है एक लड़की का जीवन। शर्म , झिझक, दर्द तो आज भी कायम है। सिवा साजन के और किसी पे जोर नहीं चलता , वो भी कुछ हद तक. अपना बचा ही क्या है, अपने पास ।
कोमल जी, बस दो लाइन ही लिख दिया करो टाइम निकल के , उत्साह वर्धन हो ही जाता है, वार्ना टेंशन तो चारो और है. कुछ अरमान जाग ही जाते हैं, आपकी कहानी से. अभी आधी पढ़ पाई हूँ, रोचक,कामुक चित्रण किया है आपने।
बाकि आपकी कहानी पे ही। .........
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मैं, चुप खड़ी, देख रही थी, मुँह से आवाज निकलने की कोशिश करि तो, निकले न , होंठ एकदम सुख गए थे। मन ही मन सोच जा रही थी, क्या बोलूँगी , कैसे बोलूंगी। .
तभी, काउंटर खली हो गया था दुकान का , दुकानवाला जोर से बोला, हाँ जी मैडम क्या चाहिए आपको। ..........
.......................
प्रिय सहेलिओं ,
निहारिका का प्यार भरा नमस्कार ,
अब आगे ,
हम लड़कियों ने शायद सभी ने कभी न कभी यह सिचुएशन फेस करि होगी जब हमे अपने "जरूरत" की चीज़ अकेले लेनी पड गई हो. और हर महीने होने वाली जरूरत की चीज़, ख़तम भी होती है, हॉस्टल मैं रहनेवाली या पेइंग गेस्ट रहने वाली लड़कियां , वर्किंग विमेंस , हाउस वाइफ सभी, कभी न कभी "पैड्स" की जरूरत होती है, और ऐसा मौका जब लेन अकेले गई होंगी, और पहेली बार तो उफ़ तौबा , क्या हालत होती है.
अब पहेली बार हो , या उम्र के साथ अनुभव हो , पर जब अकेले जाना होता है दुकान पर तब हमारी हालत हम ही जानते हैं.
तो, दुकानवाले की आवाज एक बार फिर से आयी , मैडम, क्या दू आपको।
मैं - [मन मैं ] साले, ज़हर दे दे, कितनी ज़ोर से चिल्ला कर बोलै जा रहा है.
खैर, कुछ गलती मेरी भी थी, मैं दुकान से थोड़ा दूर ही थी, शायद पांच या दस कदम, मैं आगे आयी काउंटर तक. कुछ देर दुकान मैं देखा , खोजा पर उफ़, नहीं दिखा शायद घबराहट , बैचनी की वजह से, अब वजह कुछ भी हो, मैं दुकान मैं देखे जा रही थी, और वो मुझे। बोल कोई नहीं रहा था.
[मन मैं - अब तो बोलना ही पड़ेगा]
मैं - भैया , वो ग्रीन वाला दे दीजिये। [ साला, नाम लेना ही भूल गई] वो। ......... व्हीसपर बोला , धीरे से।
दुकानवाला०- मैडम, क्या ग्रीन वाला , गोली , दवा. कोई पर्ची है डॉक्टर की.
मैं - [मन मैं] उफ़, गधे, को क्या बोलो। फिर बोली, भइया, वो व्हिस्पर आता हैं न, ग्रीन वाला। माँ ने वो ही मंगाया है.
दुकानवाला - अच्छा , ग्रीन व्हिस्पर, एक और आया है अभी नया , अगर चाहो तो इसका इस्तेमाल कर के देख लो , रेट बढ़िया है. माल भी जयादा है, २०% एक्स्ट्रा।
थी कोई नै कंपनी आल डे , आल नाईट, कुछ ऐसा ही , पिंक पैक था लग भी नया रहा था, मोटा भी , शायद दुकांवाल सही कह रहा था.
मैं - नहीं , भइया वो ग्रीन ही दे दो. माँ ने वो ही मंगाया है.
दुकानवाला - कोई नहीं , मैं दोनो दे देता हूँ, एक आपके काम आ जायेगा। पैसे कहाँ जा रहे हैं. आ जायेंगे
उफ़, मैं, शर्म से लाल, आँख नीची, दुपट्टे मैं ऊँगली घुमा रही थी, चेहरा गर्म , बगल मैं से पसीना बहता हुआ महसूस हुआ. फिर जोबन ढकते हुए बोली
मैं - नहीं भइया, एक ही दे दो, कितने पैसे हुए?
दुकानवाला - जैसे, नया पैड्स का पैकेट चिप्पकाने मैं लगा हुआ था, शायद उसे पता चल गया था की मैं, पैड्स नहीं खरीदी हु और शायद पहेली बार ही आयी हु.
मैं - बस , न नुकुर ही कर रही थी, और इंतज़ार की वो पैसे बताये और मैं घर भागू पैसे देकर।
इतने मैं, कुछ कॉलेज के तीन - चार लड़के आ गए , दुकानवाले को देख कर बोले, भाई, दो पैकेट "मूड्स" के देना।
मैं अनजान, बानी देख रही थी, यह साले कहा से आ मरे, अभी ही आना था, यह दुकांवाल दे भी नहीं रहा , क्या माँगा है. पागल लड़के ने.
अब, जाकर समझ आया, की "मूड्स" क्या था , जब "सब" हो गया.
लड़कियां मासूम होती हैं कुछ मेरी जैसे , बेवकूफ, हाँ, शायद सही भी था बेवकूफ शब्द मेरे लिए उस समय .
दुकानवाले - ने जल्दी से दो पैकेट "मूड्स" के उसको दिए , और व्हिस्पर "ग्रीन" पैक मेरे सामने रख दिया। और उस लड़के से बोलै ५० रुपए हो गए आपके।
फिर मुज़से बोला , मैडम आपके , इतने। ....... हो गए हो गए , मैंने जल्दी से पैसे दिए और, उसने कागज़ की थैली मैं डाला कर एक पस्टिक बैग मैं रखा और दे दिया मुझे उन लड़को के सामने। मैं चलने को हुई, तो वो दुकानवाला बोला। ..
दुकानवाला - मैडम, आपके बाकि पैसे , उफ़ , जल्दी से पैसे लिए और मैं करीब - करीब भागी वहां से. पीछे से एक लड़का बोला, आज सड़क गीली है, ध्यान से भाई फिसल जाओगे। फिर सब हसने लगे.
मैं - शर्म से, लाल चेहरा लिए वहां से निकल आयी, रास्ते भर, गीली सड़क के बारे मैं सोचते हुए, घर तक आ कर मुझ मुर्ख को समझ आया की, वो किस "सड़क" की बात कर रहा था. ग़ुस्सा तो बहुत आया, पर अब क्या था, सांप निकल गया, अब पीटो लाठी।
घर आकर, माँ लो मैं ले आयी.
माँ - अच्छा , अब रख दे, आगे से ध्यान रखना , ला उसमे से दो निकल कर मुझे दे दे.
मैं - अच्छा माँ।
फिर, मैंने पैकेट मैं से दो - तीन पैड्स निकले और माँ को देने गई।
माँ-जा अलमारी मैं रख दे मेरी।
मैं - अच्छा माँ, मैं अलमारी मैं रखने गई, तो ड्रावर खोला तो उसमे एक पैकेट था "मूड्स" का। .....
अब फिर, हलचल।
यु तो मन कभी माँ की अलमारी मैं जाती नहीं थी, आज शायद पहेली बार था , पैकेट उठाने की सोचा ही था की , देखु क्या है यह की आ गई माँ के आवाज। ...
माँ - निहारिका , हो गया क्या , आ जा जल्दी।
मैं - आयी माँ, बस पैड्स रखे , और अलमीरा बंद करि और तेज़ी से , आ गयी बाहर।
धड़कन तेज़ थी, शरीर गर्म। माँ से पूछने की हिम्मत नहीं हुई तब भी और आज भी नहीं है.
अब तो इतने साल हो गए "करवाते" हुए , अब तो "फ्लेवर" वाले भी आते हैं, पर वो याद उस समय की है, वो मासूमियत , वो अनजानापन, जवानी का ज़ोर , कुछ पूछने की हिचक।
फिर मैंने सोचा की अपनी सहेली से बात करुँगी कॉलेज जा कर.
फिर माँ ने खाना लगा दिया , खाकर सोने गई, तो सोचा "चेक" कर लू, "दूसरा" दिन था न आज, गई बाथरूम मैं, देखा, फ्लो जयादा था , भर गया था पैड् किया चेंज, नया लगाया। और सोने गई, पर नींद कहा आनी थी,
"मूड्स" ........
-------
एक गुंजारिश -
सभी महिलाओ व् लड़किओं से, अपना एक्सपीरियंस शेयर करे , पहेली बार अकेले "पैड्स" खरीदने का। वो पहेली बार की फीलिंग , अहसास हमेशा याद रहता है.
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(14-04-2020, 05:04 AM)Niharikasaree Wrote: मैं, चुप खड़ी, देख रही थी, मुँह से आवाज निकलने की कोशिश करि तो, निकले न , होंठ एकदम सुख गए थे। मन ही मन सोच जा रही थी, क्या बोलूँगी , कैसे बोलूंगी। .
तभी, काउंटर खली हो गया था दुकान का , दुकानवाला जोर से बोला, हाँ जी मैडम क्या चाहिए आपको। ..........
.......................
प्रिय सहेलिओं ,
निहारिका का प्यार भरा नमस्कार ,
अब आगे ,
हम लड़कियों ने शायद सभी ने कभी न कभी यह सिचुएशन फेस करि होगी जब हमे अपने "जरूरत" की चीज़ अकेले लेनी पड गई हो. और हर महीने होने वाली जरूरत की चीज़, ख़तम भी होती है, हॉस्टल मैं रहनेवाली या पेइंग गेस्ट रहने वाली लड़कियां , वर्किंग विमेंस , हाउस वाइफ सभी, कभी न कभी "पैड्स" की जरूरत होती है, और ऐसा मौका जब लेन अकेले गई होंगी, और पहेली बार तो उफ़ तौबा , क्या हालत होती है.
अब पहेली बार हो , या उम्र के साथ अनुभव हो , पर जब अकेले जाना होता है दुकान पर तब हमारी हालत हम ही जानते हैं.
तो, दुकानवाले की आवाज एक बार फिर से आयी , मैडम, क्या दू आपको।
मैं - [मन मैं ] साले, ज़हर दे दे, कितनी ज़ोर से चिल्ला कर बोलै जा रहा है.
खैर, कुछ गलती मेरी भी थी, मैं दुकान से थोड़ा दूर ही थी, शायद पांच या दस कदम, मैं आगे आयी काउंटर तक. कुछ देर दुकान मैं देखा , खोजा पर उफ़, नहीं दिखा शायद घबराहट , बैचनी की वजह से, अब वजह कुछ भी हो, मैं दुकान मैं देखे जा रही थी, और वो मुझे। बोल कोई नहीं रहा था.
[मन मैं - अब तो बोलना ही पड़ेगा]
मैं - भैया , वो ग्रीन वाला दे दीजिये। [ साला, नाम लेना ही भूल गई] वो। ......... व्हीसपर बोला , धीरे से।
दुकानवाला०- मैडम, क्या ग्रीन वाला , गोली , दवा. कोई पर्ची है डॉक्टर की.
मैं - [मन मैं] उफ़, गधे, को क्या बोलो। फिर बोली, भइया, वो व्हिस्पर आता हैं न, ग्रीन वाला। माँ ने वो ही मंगाया है.
दुकानवाला - अच्छा , ग्रीन व्हिस्पर, एक और आया है अभी नया , अगर चाहो तो इसका इस्तेमाल कर के देख लो , रेट बढ़िया है. माल भी जयादा है, २०% एक्स्ट्रा।
थी कोई नै कंपनी आल डे , आल नाईट, कुछ ऐसा ही , पिंक पैक था लग भी नया रहा था, मोटा भी , शायद दुकांवाल सही कह रहा था.
मैं - नहीं , भइया वो ग्रीन ही दे दो. माँ ने वो ही मंगाया है.
दुकानवाला - कोई नहीं , मैं दोनो दे देता हूँ, एक आपके काम आ जायेगा। पैसे कहाँ जा रहे हैं. आ जायेंगे
उफ़, मैं, शर्म से लाल, आँख नीची, दुपट्टे मैं ऊँगली घुमा रही थी, चेहरा गर्म , बगल मैं से पसीना बहता हुआ महसूस हुआ. फिर जोबन ढकते हुए बोली
मैं - नहीं भइया, एक ही दे दो, कितने पैसे हुए?
दुकानवाला - जैसे, नया पैड्स का पैकेट चिप्पकाने मैं लगा हुआ था, शायद उसे पता चल गया था की मैं, पैड्स नहीं खरीदी हु और शायद पहेली बार ही आयी हु.
मैं - बस , न नुकुर ही कर रही थी, और इंतज़ार की वो पैसे बताये और मैं घर भागू पैसे देकर।
इतने मैं, कुछ कॉलेज के तीन - चार लड़के आ गए , दुकानवाले को देख कर बोले, भाई, दो पैकेट "मूड्स" के देना।
मैं अनजान, बानी देख रही थी, यह साले कहा से आ मरे, अभी ही आना था, यह दुकांवाल दे भी नहीं रहा , क्या माँगा है. पागल लड़के ने.
अब, जाकर समझ आया, की "मूड्स" क्या था , जब "सब" हो गया.
लड़कियां मासूम होती हैं कुछ मेरी जैसे , बेवकूफ, हाँ, शायद सही भी था बेवकूफ शब्द मेरे लिए उस समय .
दुकानवाले - ने जल्दी से दो पैकेट "मूड्स" के उसको दिए , और व्हिस्पर "ग्रीन" पैक मेरे सामने रख दिया। और उस लड़के से बोलै ५० रुपए हो गए आपके।
फिर मुज़से बोला , मैडम आपके , इतने। ....... हो गए हो गए , मैंने जल्दी से पैसे दिए और, उसने कागज़ की थैली मैं डाला कर एक पस्टिक बैग मैं रखा और दे दिया मुझे उन लड़को के सामने। मैं चलने को हुई, तो वो दुकानवाला बोला। ..
दुकानवाला - मैडम, आपके बाकि पैसे , उफ़ , जल्दी से पैसे लिए और मैं करीब - करीब भागी वहां से. पीछे से एक लड़का बोला, आज सड़क गीली है, ध्यान से भाई फिसल जाओगे। फिर सब हसने लगे.
मैं - शर्म से, लाल चेहरा लिए वहां से निकल आयी, रास्ते भर, गीली सड़क के बारे मैं सोचते हुए, घर तक आ कर मुझ मुर्ख को समझ आया की, वो किस "सड़क" की बात कर रहा था. ग़ुस्सा तो बहुत आया, पर अब क्या था, सांप निकल गया, अब पीटो लाठी।
घर आकर, माँ लो मैं ले आयी.
माँ - अच्छा , अब रख दे, आगे से ध्यान रखना , ला उसमे से दो निकल कर मुझे दे दे.
मैं - अच्छा माँ।
फिर, मैंने पैकेट मैं से दो - तीन पैड्स निकले और माँ को देने गई।
माँ-जा अलमारी मैं रख दे मेरी।
मैं - अच्छा माँ, मैं अलमारी मैं रखने गई, तो ड्रावर खोला तो उसमे एक पैकेट था "मूड्स" का। .....
अब फिर, हलचल।
यु तो मन कभी माँ की अलमारी मैं जाती नहीं थी, आज शायद पहेली बार था , पैकेट उठाने की सोचा ही था की , देखु क्या है यह की आ गई माँ के आवाज। ...
माँ - निहारिका , हो गया क्या , आ जा जल्दी।
मैं - आयी माँ, बस पैड्स रखे , और अलमीरा बंद करि और तेज़ी से , आ गयी बाहर।
धड़कन तेज़ थी, शरीर गर्म। माँ से पूछने की हिम्मत नहीं हुई तब भी और आज भी नहीं है.
अब तो इतने साल हो गए "करवाते" हुए , अब तो "फ्लेवर" वाले भी आते हैं, पर वो याद उस समय की है, वो मासूमियत , वो अनजानापन, जवानी का ज़ोर , कुछ पूछने की हिचक।
फिर मैंने सोचा की अपनी सहेली से बात करुँगी कॉलेज जा कर.
फिर माँ ने खाना लगा दिया , खाकर सोने गई, तो सोचा "चेक" कर लू, "दूसरा" दिन था न आज, गई बाथरूम मैं, देखा, फ्लो जयादा था , भर गया था पैड् किया चेंज, नया लगाया। और सोने गई, पर नींद कहा आनी थी,
"मूड्स" ........
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एक गुंजारिश -
सभी महिलाओ व् लड़किओं से, अपना एक्सपीरियंस शेयर करे , पहेली बार अकेले "पैड्स" खरीदने का। वो पहेली बार की फीलिंग , अहसास हमेशा याद रहता है. मैं - अच्छा माँ, मैं अलमारी मैं रखने गई, तो ड्रावर खोला तो उसमे एक पैकेट था "मूड्स" का। .....
निहारिका जी ऊफ़्फ़ क्या टॉपिक छेड़ दिया है
वो बचपन की रातें जब मम्मी पापा हम को बच्चियां ही समझते थे और एक ही कमरे में सब का सोना होता था तब कभी किसी हलचल से अगर नींद टूट जाती तो जो सुनने को मिलता था ऊफ़्फ़ मत पूछो क्या हालत होती थी हमारी
पापा की आवाजें - सुन लेके नहीं आयी मेरा
मम्मी - मुझे नहीं पता ये सब
फिर पापा उठ के जाते और वो पैकेट ले के आते
सिरहाने रख के फिर मम्मी के साथ छेड छाड़ चालू
ओर पता नहीं कब मम्मी का पेटिकोट पलंग से निच्चे जाता कब मम्मी की चड्डी उतरती ओर मेरे कानों में सिर्फ ये पड़ता ohhh ऊफ़्फ़ नहीं प्लीज धीरे प्लीज नहीं ओर पापा के धक्के ओर तेज
साथ मे मम्मी से ज्यादा आवाज मत कर कुसुम की नींद खुल जाएगी और ये कहते ही एक ओर कस के
मम्मी के निच्चे से बेचारी माँ की क्या हालत उस समय होती होगी आज जब धक्के लगते है हमारे पता चलता है
निहारिका जी जब कहती है धीरे करो दर्द होता है तो हाथ पकड़ लेंगे और सर के पीछे करवा के ऊफ़्फ़ जो जटके मारते है क्या बताऊँ आप खुद भुगत रही है
लाजवाब लेखन आप का ओर साथ मे वो यादें
उम्मीद है कुछ बचपन की मम्मी पापा की मस्ती भी वर्णित होंगी एक दम निहारिका जी स्टाइल में जांनमारू
आप की कुसुम
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आप बहुत सही जा रही हो. बहुत अच्छी विवरण। उमीद करता हु के आगे आप जब लडकी पहली बार सेक्सी कपडे पहनतीं है उसका भी वर्णण देगी
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Bahut bahut bahut hi dilchasp thread hai ji padh kar hamesha lagta hai ki ye mere ghar pariwar rishtedaar ki hi kahani hai. Main to roz subah pehle cup tea ke saath apka thread hi check karta hu. Mujhe daily aapke update ka besabri se intezaar rehta hai. Aur haa Almira mein jo apko moods ka packet nazar aaya us se mujhe apni 8th class ki yaadein achanak taaza ho gayi.
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(14-04-2020, 11:11 AM)@Kusum_Soni Wrote: मैं - अच्छा माँ, मैं अलमारी मैं रखने गई, तो ड्रावर खोला तो उसमे एक पैकेट था "मूड्स" का। .....
निहारिका जी ऊफ़्फ़ क्या टॉपिक छेड़ दिया है
वो बचपन की रातें जब मम्मी पापा हम को बच्चियां ही समझते थे और एक ही कमरे में सब का सोना होता था तब कभी किसी हलचल से अगर नींद टूट जाती तो जो सुनने को मिलता था ऊफ़्फ़ मत पूछो क्या हालत होती थी हमारी
पापा की आवाजें - सुन लेके नहीं आयी मेरा
मम्मी - मुझे नहीं पता ये सब
फिर पापा उठ के जाते और वो पैकेट ले के आते
सिरहाने रख के फिर मम्मी के साथ छेड छाड़ चालू
ओर पता नहीं कब मम्मी का पेटिकोट पलंग से निच्चे जाता कब मम्मी की चड्डी उतरती ओर मेरे कानों में सिर्फ ये पड़ता ohhh ऊफ़्फ़ नहीं प्लीज धीरे प्लीज नहीं ओर पापा के धक्के ओर तेज
साथ मे मम्मी से ज्यादा आवाज मत कर कुसुम की नींद खुल जाएगी और ये कहते ही एक ओर कस के
मम्मी के निच्चे से बेचारी माँ की क्या हालत उस समय होती होगी आज जब धक्के लगते है हमारे पता चलता है
निहारिका जी जब कहती है धीरे करो दर्द होता है तो हाथ पकड़ लेंगे और सर के पीछे करवा के ऊफ़्फ़ जो जटके मारते है क्या बताऊँ आप खुद भुगत रही है
लाजवाब लेखन आप का ओर साथ मे वो यादें
उम्मीद है कुछ बचपन की मम्मी पापा की मस्ती भी वर्णित होंगी एक दम निहारिका जी स्टाइल में जांनमारू
आप की कुसुम
निहारिका जी ऊफ़्फ़ क्या टॉपिक छेड़ दिया है
.....
पापा की आवाजें - सुन लेके नहीं आयी मेरा
मम्मी - मुझे नहीं पता ये सब
फिर पापा उठ के जाते और वो पैकेट ले के आते
सिरहाने रख के फिर मम्मी के साथ छेड छाड़ चालू
ओर पता नहीं कब मम्मी का पेटिकोट पलंग से निच्चे जाता कब मम्मी की चड्डी उतरती ओर मेरे कानों में सिर्फ ये पड़ता ohhh ऊफ़्फ़ नहीं प्लीज धीरे प्लीज नहीं ओर पापा के धक्के ओर तेज
साथ मे मम्मी से ज्यादा आवाज मत कर कुसुम की नींद खुल जाएगी और ये कहते ही एक ओर कस के
....
कुसुम जी,
जी, एकदम सही कहा, आपने उन दिनों मैं समझ तो इतनी नहीं थी, और माँ - पिताजी भी बच्चा समझ करते थे , पर आवाजे तो आया ही करती थी, कुछ बड़ी होने पर , अलग रूम मैं सोया करती थी, रात को, अक्सर आवाजे आया ही करती थी, माँ की,अजी आप को सब्र ही नहीं है, थोड़ा आराम से, बच्चे है , पडोसी हैं, उहुह, आ। .....
आज हम भी देखो न , वो ही सब वापस दोहरा रहे है, बेचारी औरत कभी खुल कर मज़ा न ले पायी। बस "करवा" ले पर आवाज न निकले।
उन दिनों "मूड्स" क्या है, इसका इस्तेमाल क्या है, उन लड़को ने क्यों माँगा कई सवाल थे , शुरू से ही मैं "पीरियड्स" के दौरान "गर्म" होती थी, आखरी दिनों मैं, आज भी वो ही आलम है, अब तो "पीरियड्स" ख़तम होते ही "चाहिये" पर उन दिनों "बैचनी" बढ़ जाती थी, पर यह नहीं पता था "इसके" लिए बैचैन हूँ.
हम्म, हैं कुछ खट्टी - चटपटी यादे , बचपन से कुछ बड़ी होने की, कहती हूँ, आप भी और हमारी प्यारी सहेलिओं से भी निवेदन है की, कुछ सहयोग दे अपने चटपटी बातो से, बचपन के अनुभव शेयर करे।
आपके। ...
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(14-04-2020, 11:43 AM)jatindelhi1980 Wrote: आप बहुत सही जा रही हो. बहुत अच्छी विवरण। उमीद करता हु के आगे आप जब लडकी पहली बार सेक्सी कपडे पहनतीं है उसका भी वर्णण देगी
jatindelhi1980
जी, शुक्रिया आपका।
हम लड़किया सारे कपडे चुन - चुन के लाती हैं, आखिर सुन्दर जो दिखना होता है , और सुन्दर दिखने से जायदा मज़ा दूसरी लड़कियों को जलाने मैं आता है. अब रही बात "सेक्सी " कपड़ो की, लड़की या औरत जब अर्ध - नग्न अवस्था मैं होती है तभी सेक्सी लगती है, मेरी कहानी मैं आपको दूसरी कहानी जैसा मसाला शयद कम ही मिलेगा यहाँ मैं अपनी और शायद मेरी जैसी दूसरी लड़कियो की भावना व्यक्त करने व् साथ की कुछ लड़कियो वाली चटपटी बात शेयर करने आयी हूँ.
पुनः, धन्यवाद।
•
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(14-04-2020, 12:34 PM)ghost19 Wrote: Bahut bahut bahut hi dilchasp thread hai ji padh kar hamesha lagta hai ki ye mere ghar pariwar rishtedaar ki hi kahani hai. Main to roz subah pehle cup tea ke saath apka thread hi check karta hu. Mujhe daily aapke update ka besabri se intezaar rehta hai. Aur haa Almira mein jo apko moods ka packet nazar aaya us se mujhe apni 8th class ki yaadein achanak taaza ho gayi.
ghost19
जी, तहे दिल से शुक्रिया आपका,
जी सही कहा आपने, यह "कहानी" ही कह लीजिये, पर एक लड़की की सच्ची भावनाओ को व्यक्त करने की एक छोटी सी कोशिश है मेरी, यह "कहानी" आपको अपने आस - पास की इसलिए भी लगी, क्यूंकि आपने भी कुछ - देखा , कुछ - महसूस किया ही होगा।
जैसे , मडिकल शॉप पर , आपने भी किसी लड़की को, "पैड्स" लेते देखा हो, उसकी बैचनी, शर्म, सब, और जैसा आपने खुद वर्णित किया वो 8 क्लास की बात।
मुझे ख़ुशी है की मैं अपने इस छोटे से प्रयास से बीते दिनों मैं से कुछ यादे लौटा कर ला पायी , अगर हाँ तो शायद मेरी कोशिश सफल हो.
सुबह की चाय के साथ, मैं भी हाजिर हूँ जी, अपनी जीवन की कुछ खट्टी - मीठी - चटपटी यादो के साथ.
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Main soch raha hu ki 1 aur aisa thread shuru kiya jaaye boys ke bachpan teenage aur young age ke incidents par example pehli baar private part par baal ana shuru hona, pehli baar eroticness ko feel karna, pehli baar mastrubate karna and uske baad ki immediate feeling, ghar pariwar ya rishtedaari mein kuch galti se aisa scene dekh lena jo kisi ko bata na sake, college ka pehla din, pehli attraction ya koi pados ki sundar bhabhi ya young aunty etc bahut se topics ho sakte hain boys ke pass bhi, ab main apni 8th class ka kissa kaha share karu
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फिर माँ ने खाना लगा दिया , खाकर सोने गई, तो सोचा "चेक" कर लू, "दूसरा" दिन था न आज, गई बाथरूम मैं, देखा, फ्लो जयादा था , भर गया था पैड् किया चेंज, नया लगाया। और सोने गई, पर नींद कहा आनी थी,
" मूड्स" ........
------- एक गुंजारिश - ------------------
सभी महिलाओ व् लड़किओं से, अपना एक्सपीरियंस शेयर करे , पहेली बार अकेले "पैड्स" खरीदने का। वो पहेली बार की फीलिंग , अहसास हमेशा याद रहता है.
.......................
प्रिय सहेलिओं ,
निहारिका का प्यार भरा नमस्कार ,
अब आगे ,
"पहेली बार अकेले "पैड्स" खरीदने का। वो पहेली बार की फीलिंग , अहसास हमेशा याद रहता है." मैं पुनः गुंजारिश करुँगी की इस फोरम की सभी महिला सदस्यों से की अपने अनुभव शेयर करे, साथ ही यह बताय की उस डर, घबराहट की कैसे उबार पायी। हम लड़कियां, खुलकर इसके इस बारे मैं बात तो कर ही नहीं पाती और करे भी तो किस से माँ से डर, पड़ोस की भाभी, अगर माँ को कह दिया तो शामत, फिर बचती है तो हमउम्र सहेली या कुछ बड़ी दीदी।
तो , बात अब "पैड्स" की नहीं रही थी, वो लगाने की और लगा कर सोने की आदत सी हो गई थी उन दिनों मैं. पर अब जो "बैचनी" थी, "मूड्स" को ले कर वो मेरी नींद को लेकर उड गई थी.
रूम की लाइट बंद, बाकि घरवाले भी सो गए, यह माने लाइट सबकी बंद हो चुकी थी. यु तो मैं सो जाया करती थी उन दिनों मैं दर्द से या परेशान होकर जायदा हुआ तो दर्द की गोली खाकर। पर उस रात को नींद "मूड्स" ले उडा था, एक तो दुकान पर उन लड़को को देखा , फिर घर मैं भी तो था.
जैसा मेरी सहेली "कुसुम जी" ने लिखा था, "मूड्स" के इस्तेमाल के बारे मैं, माँ की आवाजे ,धीरे करो, ओह, आह। ......
उस रात को मुझे भी कुछ आवाज आयी , अब नींद तो थी ही नहीं आँखों मैं , कब सवेरा हो, कालेज जाऊ और कुछ पता करू. तभी माँ की एक हलकी - दबी आवाज आयी-
माँ - सुनो न, आज रहने दो
पिताजी - क्या हुआ , आज तुझे। आ जा
माँ - सुनो जी, थोड़ा दर्द है , लगता है की मैं होने वाली हु.
आवाज कम थी, मैं उठ कर खिड़की के पास आयी , मेरी रूम की खिड़की और माँ के रूम की खिड़की साथ - साथ ही थी. यही मौसम था, अप्रैल के बीच का गर्मी ने दस्तक देनी चालू कर दी थी, पीरियड्स वो भी गर्मी मैं , बैचनी, चड़चिड़ापन, पसीना। लगता था जब गर्मी और बढ़ेगी तब क्या होगा, " कूलर कुर्ती मैं ही लगाना पड़ेगा".
मैं , चुप आवाज सुनने की कोशिश मैं थी, आ रही थी आवाज माँ की दबी हुई. लगी थी पिताजी को मानाने, की आज बक्श दे.
पिताजी - क्या हुआ, नखरे जयादा हो गए , तेरे , आज क्या हुआ।
माँ - जी,वो पीरियड्स
पिताजी, - माँ कुछ और बोले, बोल पड़े. आ गया क्या , कब अभी या सवेरे?
- माँ - बस अभी शुरू, होने को है, शायद
पिताजी - अभी , कुछ नहीं है न , आजा , मूड्स लगा लेता हु, बस
"मूड्स" उफ़, क्या चल रहा है, इसका अंदाजा नहीं लग पा रहा था, माँ की पीरियड्स से पिताजी को क्या काम, और उनका कौनसा काम रुक गया. "मूड्स" का क्या लेना - देना पीरियड्स से माँ के. मेरे भी तो चल रहे हैं न, क्या मूड्स लगते हैं पीरियड्स मैं, पैकेट तो छोटा था, पैड्स तो बड़ा आता है.
खिड़की मैं , खड़े - खड़े पैरो मैं दर्द होने लगा, और वह "नीचे" तो हो ही रहा था , फिर भी ख़ड़ी थी, कुछ और सुनने को मिल जाये।
फिर , अलमीरा खुलने की आवाज आयी, गोदरेज की थी, लोहे वाली आवाज तो आनी ही थी, पर आज से पहले आयी तो नहीं। घर ,कॉलेज, पढाई , टीवी, और सो जाओ , यही रूटीन था। आज तो मूड्स ने नींद ख़राब करि थी.
पिताजी - अरे , खोल न। .....
- माँ - आप, मानोगे नहीं , अच्छा जी, कर लो।
पिताजी - "मूड्स" तो लगा लिया है न, आजा। तेरे पीरियड्स मैं अलग नखरे हो जाते हैं.
फिर, कुछ दबी - घुटी आवाजे , ओह , आह। ....
अब मेरे पैरो ने साथ देने से मना कर दिया था। अब मैं , बैठ गई बिस्तर पर, पानी की बोतल से पिया पानी, कुछ कुर्ती पर भी गिरा, गले से अंदर जाता महसूस हुआ, जोबन के बीच ब्रा ने रोक लिया पानी को. वैसे भी "नीचे सड़क गीली थी". की बात याद आ गई. गुस्सा भी आया .फिर से। सोचा अब सो जाती हूँ.
थोड़ी देर मैं, हलकी नींद आनी लगी, साथ मैं माँ की आवाजे, रॉक तो झींगुर, मोर , कुत्ते भी अपना कर्त्तव्य निभा रहे थे, पता नहीं कब सोई, सवेरे फिर माँ की आवाज, , ..
निहारिका , उठ। ....... देख कितना समय हो गया आज कॉलेज नहीं जाना क्या ?
मैंने टाइम देखा , नौ बज रहे थे , उफ़ इतना देर से कभी नहीं उठी , आज क्या हुआ. अब तो माँ से डांट पड़ने वाली है. "मूड्स" के चक्कर मैं लेट हो गई, क्या परेशानी है,
उफ़.
मैं - आयी माँ, उठ गई.
- माँ - क्या हुआ, सब ठीक , तू उठी नहीं। क्या दर्द जायदा है.
मैं - अब क्या बोलती , "मूड्स" , मैं बोली, हम्म, है थोड़ा।
फिर, याद आया की माँ भी तो होने वाली थी, पुछु जरा.
मैं - आपका , ...... दर्द है क्या
पूरा न पूछ पायी
माँ - हम्म, है तो हो गया, सवेरे आज।
फिर चुप्पी।।।।।।।।
मन मैं सोच रही थी आज कॉलेज जाओ या नहीं।
................
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आप बुरा मत मानियेगा , ....
आपकी पोस्ट्स पर कमेंट देने में कुछ प्राबलम आती है मुझे ,
एक तो एक एक लाइन पढ़ते हुए ,... क्या होता है क्या बताऊँ
फिर जैसे पिक्चर में फ्लैश बैक होता है न आधे घंटे पौन घंटे , ...
आपकी पोस्ट खुली रहती है और मैं बस जब १५-१६ साल की थी ,
घर वाले बचपना समझते हैं और मोहल्ले वाले , ...
एकदम सीन की तरह , एक एक चीज ,.. एक तो आप इतना डिटेल में लिखती हैं और फिर मन मने क्या उमड़ता घुमड़ता रहता था उस समय वो सब ,कोई आवाज देता है तो जल्दी से अतीत से वापस आती हूँ , लैपी बंद करती हूँ , फिर भी चाहे किचेन में रहूं , बस वो जो यादों की आंधी जगा देती हैं आप ,
आप ने तो कह दिया एक दो लाइन पर , क्या क्या नहीं गुजरता
इसी लिए कई कई बार कोशिश करने पर कुछ लिख पाती हूँ , ...
कहानी हो तो कोई कमेंट करे
आप तो हम सब की जिंदगी को उधेड़ कर रख देती हैं , पहली बार पैड खरीदना ,
मूड्स ,...
बस आप लिखती रहिये , लिखती रहिये ,...
लिखते समय आप जिन अहसासों से गुजरती होंगी बस वही हालत हम सबकी होती है
मेरी कुसुम जी की , पूनम जी की , हम सब हम उम्र , उसी स्टेज में ,...
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15-04-2020, 10:58 PM
(This post was last modified: 16-04-2020, 01:25 AM by Niharikasaree. Edited 2 times in total. Edited 2 times in total.)
(15-04-2020, 12:22 PM)komaalrani Wrote: आप बुरा मत मानियेगा , ....
आपकी पोस्ट्स पर कमेंट देने में कुछ प्राबलम आती है मुझे ,
एक तो एक एक लाइन पढ़ते हुए ,... क्या होता है क्या बताऊँ
फिर जैसे पिक्चर में फ्लैश बैक होता है न आधे घंटे पौन घंटे , ...
आपकी पोस्ट खुली रहती है और मैं बस जब १५-१६ साल की थी ,
घर वाले बचपना समझते हैं और मोहल्ले वाले , ...
एकदम सीन। .............................. आप बुरा मत मानियेगा , ....
आपकी पोस्ट्स पर कमेंट देने में कुछ प्राबलम आती है मुझे ,
एक तो एक एक लाइन पढ़ते हुए ,... क्या होता है क्या बताऊँ
फिर जैसे पिक्चर में फ्लैश बैक होता है न आधे घंटे पौन घंटे , ...
आपकी पोस्ट खुली रहती है और मैं बस जब १५-१६ साल की थी ,
कोमल जी,
मैं और आपकी बात का बुरा मानु, ऐसा हो ही नहीं सकता जी, आप तो मेरी जान हैं, मेरी सहेली वो भी पक्की वाली . अब जान की बात का बुरा मानु क्या।
मेरी यही कोशिश है की, अपने बीते पल याद कर सकू और मेरी सहेलिओं को भी याद दिला सकू , हम औरतो के पास बस यही यादी ही तो हैं , बाकि सब जिम्मेदारियां भरी हैं, हमारी जान पे, ऑफिस का वर्क, अगर वर्किंग हो तो, घर के काम तो मरने भी नहीं देते, और "मारने" के लिए "वो" तैयार डेटॉल से हाथ धो कर।
"घर वाले बचपना समझते हैं और मोहल्ले वाले , ..." "माल" , क्यों सही है न जी, चढ़ती जवानी, हमारे अरमान और मोहल्ले वालो की नज़रे, एकदम दुपट्टा, कुर्ती, ब्रा सब भेदती हुई सी लगती हैं, अब क्या -क्या छुपाओ , कहाँ तक बचाओ। अब तो सब लूट चूका , और रोज़ ही लुटा जाता है हक़ से.
"एक एक चीज ,.. एक तो आप इतना डिटेल में लिखती हैं और फिर मन मने क्या उमड़ता घुमड़ता रहता था उस समय वो सब ,कोई आवाज देता है तो जल्दी से अतीत से वापस आती हूँ , लैपी बंद करती हूँ , फिर भी चाहे किचेन में रहूं , बस वो जो यादों की आंधी जगा देती हैं आप ,"
यह तो आपका उपकार है मुझ जैसी नौसिखिया पर ,इस पोस्ट को "कमेंट" तो कहना उचित नहीं होगा इसे यह तो वो पुरस्कार है, जिसे कोई खरीद ही नहीं सकता , बस सीधे दिल से - दिल तक.
"आप ने तो कह दिया एक दो लाइन पर , क्या क्या नहीं गुजरता
इसी लिए कई कई बार कोशिश करने पर कुछ लिख पाती हूँ , ...
कहानी हो तो कोई कमेंट करे
आप तो हम सब की जिंदगी को उधेड़ कर रख देती हैं , पहली बार पैड खरीदना ,
मूड्स ,... "
उफ़, अगर आपको को "कोशिश" करनी पड रही है, तो हम कही नहीं टिकते, हम तो। कोमल जी मेरा शब्कोष ही खाली हो गया , क्या लिखू आपकी तारीफ़ मैं. बस अपना प्यार देते रहना , वो ही काफी है.
"लिखते समय आप जिन अहसासों से गुजरती होंगी बस वही हालत हम सबकी होती है
मेरी कुसुम जी की , पूनम जी की , हम सब हम उम्र , उसी स्टेज में ,... "
जी, सही कहा आपने, बहुत सी बाते - यादे हमारे जहन मैं सागर की लहेरो सी उतरती - चढ़ती रहती हैं बस ऊनि मैं से कुछ लिख देती हूँ , हालत तो हम सबकी एक ही जैसी है, सही कहा आपने थोड़ा मज़ा तब आये जब उस उम्र की कोई लड़की यहाँ फोरम पर हो और अभी जो वो फील कर रही हो बता पाए, हो सकता है हमारा कुछ एक्सपीरियंस उसके काम आ जाये , अगर ऐसा हुआ तो इस फोरम पर आना और लिखना सफल हो जायेगा।
देखे कोई किशोरी , कब दस्तक देती है.
कोमल जी,
एकदम दिल से , कहती हूँ , आपकी यह पोस्ट मेरे अब तक की सबसे खूबसूरत पोस्ट है , एकदम "ऑस्कर" अवार्ड जैसी।
आप तो "ऑस्कर" अवार्ड कहानिओ की रचियता हैं , चाहे तो पूछ लीजिये सभी सहेलिओं से, कोई न, नहीं करेगा।
कोई जोर नहीं, बस जब भी समय मिले , बस 'दो लाइन" ही बहुत हैं, आपके प्यार की.
आपके। ...................
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अब क्या कहूं , सब तो आप कह देती हैं , हाँ इतनी भी तारीफ़ न करिये की फिसल के धड़ाम से गिरूं , ....
मुझे पूरा विशवास है आपने मेरी कहानी मोहे रंग दे , एकदम शुरू से पढ़ी होगी , क्योंकि शुरू में ही उसमे मेरे बारे में , काफी कुछ इनके बारे में इतना है , जितना आज तक मैंने किसी से शेयर नहीं किया , न फोरम में न फोरम के बाहर।
कहानी का जिक्र इसलिए किया की आपसे दो गुजारिश करने का मन था , आपसे भी बाकी सहेलियों से भी , ... और एक बात पूछना भी चाहती थी
पहली बात गुजारिश अगर आप और बाकी सब को अच्छा लगे ,
आप की कहानी हम सब को अपने टीनेजर दिनों की ओर बार बार लौटा दे रही है , सच में इत्ता अच्छा लगता है
बरस पंद्रह या सोलह का सिन ,
वो जवानी की रातें मुरादों के दिन
लेकिन साथ साथ मैं सोच रही थी
हम सब आप के ही थ्रेड पर ' आज कल ' की बातें भी , थोड़ा इशारों में , थोड़ा साफ़ साफ़ , हम सब जानते हैं लाकडाउन में वर्क फ्रॉम होम में आफिस के काम के साथ 'औरक्या क्या काम' चल रहा है , न दिन न रात ,
मैं तो एक ऐसे शहर में हूँ जिसका नाम ही बाई के साथ जुड़ा है और आज कल बाई गायब , लेकिन उसका फायदा भी है २४ घण्टे की प्राइवेसी
हाँ लेकिन मैंने एक रूल बना दिया है ,
अगर उन्होंने दिन में घात लगाई , ...
तो रात का खाना बनाना उनके जिम्मे ,... ( इससे कोई ख़ास बचत नहीं होती लेकिन तब भी चिढ़ाने के लिए तो है ही , और उन्हें किचेन में अकेले भी नहीं छोड़ती मैं , सारे मसाले के डिब्बे इधर उधर )
जब उनकी लम्बी लम्बी कांफ्रेस काल चलती है तो बस उसी का फायदा निकाल के आप लोगों से गप्पिया लेती हूँ
तो क्या राय है आप लोगों की
दूसरी बात ,
मेरी कहानियों में लोक गीत बहुत रहते हैं , गाँव की हूँ , ... और मैं वही गाने लिखती हूँ ख़ास कर के गारी वाले जो या तो मैंने गाये या किसी ने मेरे लिए मुझे सुना सूना के गाये
पर मुझे लगता है की कई बार शायद कई लोगों को ( जैसे पिछली बार कन्यादान के गाने थे ) ठीक से समझ में न आये तो क्या मुझे हिंदी में उसका अर्थ भी उस पोस्ट में न सही बाद में लिखना चाहिए ,...
हम लोग हिन्दुस्तान के अलग अलग हिस्से के हैं हिंदी तो सबको आती है लेकिन बोलियों में कुछ दिक्कत हो सकती हैं
तो क्या राय है पंचों की
और आप सब भी अगर कुछ गाने अगर शेयर कर सकें ,... खास तौर से छेड़छाड़ वाले
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आप की कहानी हम सब को अपने टीनेजर दिनों की ओर बार बार लौटा दे रही है , सच में इत्ता अच्छा लगता है
कोमल जी,
सच्ची, टीनएज भी क्या उम्र होती है, उमंग , तरंग , जोश, जोबन, "गन्दी-बाते", सुनना, करना, हो। ..... तू कितनी बेशरम हो गई आज का....... ही , ही, हा , हा और फिर से, आगे बता न। .. क्या हुआ फिर, एकदम , "निचे" रस भर जाता था.
हम सब आप के ही थ्रेड पर ' आज कल ' की बातें भी ,
जी, कोमल जी, आपका हुकम सर आखो पर, जैसा आपक लोग कहे, यह हमारी बाते हैं, हम औरतो की, कहे जाओ, कभी न ख़तम होंगी। तड़का, मसाला, "और आज क्या हुआ", "कहा हुआ", पर सोच लो जी, इससे हमारी "रगड़ाई" और बढ़ जाएगी, "चाशनी" भर -भर के आयेगी।
मैं तो एक ऐसे शहर में हूँ जिसका नाम ही बाई के साथ जुड़ा है और आज कल बाई गायब , लेकिन उसका फायदा भी है २४ घण्टे की प्राइवेसी
जी, मैं समझ गई, क्या खूब इशारा दिया है, मान गई आपको। मैं तो शुरू से ही, मुर्ख थी, अब "ले" "ले" कर थोड़ी अकल आयी है, सच है, लड़की खुलती ही जब है , जब सारे "छेद" खुल जाते हे।
मेरी कहानियों में लोक गीत बहुत रहते हैं , गाँव की हूँ , ... और मैं वही गाने लिखती हूँ ख़ास कर के गारी वाले जो या तो मैंने गाये या किसी ने मेरे लिए मुझे सुना सूना के गाये
पर मुझे लगता है की कई बार शायद कई लोगों को ( जैसे पिछली बार कन्यादान के गाने थे ) ठीक से समझ में न आये तो क्या मुझे हिंदी में उसका अर्थ भी उस पोस्ट में न सही बाद में लिखना चाहिए ,...
जी, कोमल जी, आपका सोचना कुछ हद तक सही हो सकता है, पर जो मज़ा , जो तीखापन- मीठापन उन लोक गीतों मैं है वो आज कहाँ, पर उसे समझना इतना कठिन भी नहीं, भावनाओ से जुडी बाते होती हैं, उन गीतों मैं, और भावनाओ को समझने के लिए शब्दों की जरूरत नहीं होती।
फिर भी, आसानी के लिए, अगर समय मिले तो , सारल भाषा मैं अनुवाद कर दे तो अच्छा ही होगा।
आप सब भी अगर कुछ गाने अगर शेयर कर सकें ,... खास तौर से छेड़छाड़ वाले - अब आपके जैसे मज़ेदार लोक गीत अब कहाँ सुन पाते हैं, अब तो " राते दिया बूता के पिया क्या -क्या किया". लोक गीतों का खजाना तो आप ही शेयर करे तो जयादा अच्छा रहेगा।
कोमल जी,
"अब क्या कहूं , सब तो आप कह देती हैं , हाँ इतनी भी तारीफ़ न करिये की फिसल के धड़ाम से गिरूं",
बस आपकी पोस्ट का इंतज़ार करती हु तारीफ तो खुद बी खुद हो जाती है , अब तारीफ़ तो कबीले- ऐ - तारीफ़ लोगो की ही होती हैं न, आपके, कहानी, शब्द चयन, रुपरेखा, साथ यूज़ करि पिक्स, एकदम जानमारू, एकदम गरमा देती हैं, गर्दा उड़ा देती हैं जी.
मेरी सहेलिओं से भी विनती हैं , कुछ अपने सुझाव, जवानी की यादे शेयर करे।
आपके। ....................
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