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(08-04-2020, 02:35 PM)m8cool9 Wrote: as always gajab ka update....
too hot....
thanks so much , agala update bhi jald
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निहारिका जी , पूनम जी , कुसुम जी , अपडेट के बाद आपके कमेंट नहीं आते न तो डर लगता है
कहीं आप लोग नाराज तो हो गयीं , और बिना आपके कमेंट के अगले अपडेट को देने का मन नहीं करता
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(09-04-2020, 11:45 AM)komaalrani Wrote: निहारिका जी , पूनम जी , कुसुम जी , अपडेट के बाद आपके कमेंट नहीं आते न तो डर लगता है
कहीं आप लोग नाराज तो हो गयीं , और बिना आपके कमेंट के अगले अपडेट को देने का मन नहीं करता
माफ़ करना कोमल जी
2 दिन से थोड़ी तबियत का मिज़ाज बिगड़ा हुआ था तो ऑनलाइन आना नहीं हुआ इस बीच आप का एक बहुत मस्त मीठा वाला अपडेट आ गया
बहुत ही अच्छा अपडेट दिया है,साजन से बिछोह हुआ है पर बहुत धमाचौकड़ी के बाद थोड़ा मीठा इंतज़ार भी चाहिए होता है हम को
सासु जी के साथ उन के उन दिनों की बातें कमाल किया है आप ने अपडेट में
बिल्कुल हमारी सब की सास ससुर जी के साथ रात भर कोल्हू चलवाती ही है और इस उमर में बिना किये रात गुजर ही नहीं पाती है
तो ये बहुत जीवंत चित्रण था
फिर गुड्डी हम सब की छोटी ननंद वो तो हर कहानी की असली जान है ओर इस समय आप का पसंदीदा शिकार में तो कहती हूँ एक अपडेट में सिर्फ उसकी मस्त जवानी को आप अच्छे से चखने का प्रसंग ही लिखो
आप की उस के साथ मस्ती पढ़ के बहुत मजा आया कोमल जी सच में
फिर रेणु की कुटाई बहुत दूर नहीं है और इस बार छेद में भेद नहीं होना चाहिए और साथ मे अच्छे से दोनो तरफ चटाई तो होनी ही चाहिए
इंतज़ार करूंगी अगले अपडेट का ओर ढेर सारी संभावनाओं का जिस में बहुत मस्ती छुपी हुई होगी, अब क्या होता है वो आप के ऊपर है
निहारिका जी पूनम जी आप सब को बहुत याद ओर आ जाओ कोमल जी की स्टोरी पर ओर रखो अपने अपने विचार
ताक़ि ये सिलसिला अपने स्नेह प्यार का बना रहे
आप सब की कुसुम सोनी
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(09-04-2020, 11:45 AM)komaalrani Wrote: निहारिका जी , पूनम जी , कुसुम जी , अपडेट के बाद आपके कमेंट नहीं आते न तो डर लगता है
कहीं आप लोग नाराज तो हो गयीं , और बिना आपके कमेंट के अगले अपडेट को देने का मन नहीं करता
कोमल जी,
" अब जान ही, बाकि है ले लो" पर यह न कहो, हम नाराज है.
जब भी समय मिलता है, लोग इन करते ही सबसे पहले आपकी पोस्ट खोजी जाती है अगर नहीं मिली तो दिल को दिलासा देते है, कही,"बिजी" होंगी, काम मैं, या "काम" मैं.
आखिर औरतो के काम कभी ख़तम हुए हैं, आपने आज तो गज़ब ही कर दिया, गुड्डी की शर्म हवा कर दी, लड़कियों की शर्म ही बहुत सारी इच्छा को मार देती हैं, यही चलता आया है हमारे साथ।
गुड्डी का "होमवर्क" वाह , सोच कर ही, गीली हो गई मैं तो, सच कहु तो , गीलापन चेक किया था मैंने "सच्ची".
रही बात , दुरी और इंतज़ार की , यह एक औरत ही जान सकती है, उनकी चिंता, कहाँ है, कैसे हैं ,कुछ खाया होगा या नहीं , अंदर की बैचनी और सबके साथ हसना - बोलना , एक मुखौटा लग जाता है, हँसते हुए चेहरे का , अंदर के भाव कोई नहीं जान सकता जब तक औरत न बताना चाहे।
अब ऐसा है कोमल जी, हम तो आते ही हैं आपके उपदटेस और सावन की फुहार के लिए , जो आप बरसाती हैं। ........
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(09-04-2020, 12:55 PM)@Kusum_Soni Wrote: माफ़ करना कोमल जी
2 दिन से थोड़ी तबियत का मिज़ाज बिगड़ा हुआ था तो ऑनलाइन आना नहीं हुआ इस बीच आप का एक बहुत मस्त मीठा वाला अपडेट आ गया
बहुत ही अच्छा अपडेट दिया है,साजन से बिछोह हुआ है पर बहुत धमाचौकड़ी के बाद थोड़ा मीठा इंतज़ार भी चाहिए होता है हम को
सासु जी के साथ उन के उन दिनों की बातें कमाल किया है आप ने अपडेट में
बिल्कुल हमारी सब की सास ससुर जी के साथ रात भर कोल्हू चलवाती ही है और इस उमर में बिना किये रात गुजर ही नहीं पाती है
तो ये बहुत जीवंत चित्रण था
फिर गुड्डी हम सब की छोटी ननंद वो तो हर कहानी की असली जान है ओर इस समय आप का पसंदीदा शिकार में तो कहती हूँ एक अपडेट में सिर्फ उसकी मस्त जवानी को आप अच्छे से चखने का प्रसंग ही लिखो
आप की उस के साथ मस्ती पढ़ के बहुत मजा आया कोमल जी सच में
फिर रेणु की कुटाई बहुत दूर नहीं है और इस बार छेद में भेद नहीं होना चाहिए और साथ मे अच्छे से दोनो तरफ चटाई तो होनी ही चाहिए
इंतज़ार करूंगी अगले अपडेट का ओर ढेर सारी संभावनाओं का जिस में बहुत मस्ती छुपी हुई होगी, अब क्या होता है वो आप के ऊपर है
निहारिका जी पूनम जी आप सब को बहुत याद ओर आ जाओ कोमल जी की स्टोरी पर ओर रखो अपने अपने विचार
ताक़ि ये सिलसिला अपने स्नेह प्यार का बना रहे
आप सब की कुसुम सोनी
एकदम ,मैं आप सब का वेट इसलिए भी कर रही थी , की आज ही मैं एक और अपडेट देने वाली थी ,
एकदम दिल से वाला , ... और आप सब न हो तो सच में मज़ा नहीं आता
और अपनी तबियत ठीक रखिये , लाकडाउन में हम सब को एक्स्ट्रा ध्यान रखना पडेगा , एकदम फिट रहिये , और खूब मजे करिये , ...
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(09-04-2020, 01:05 PM)Niharikasaree Wrote: कोमल जी,
" अब जान ही, बाकि है ले लो" पर यह न कहो, हम नाराज है.
जब भी समय मिलता है, लोग इन करते ही सबसे पहले आपकी पोस्ट खोजी जाती है अगर नहीं मिली तो दिल को दिलासा देते है, कही,"बिजी" होंगी, काम मैं, या "काम" मैं.
आखिर औरतो के काम कभी ख़तम हुए हैं, आपने आज तो गज़ब ही कर दिया, गुड्डी की शर्म हवा कर दी, लड़कियों की शर्म ही बहुत सारी इच्छा को मार देती हैं, यही चलता आया है हमारे साथ।
गुड्डी का "होमवर्क" वाह , सोच कर ही, गीली हो गई मैं तो, सच कहु तो , गीलापन चेक किया था मैंने "सच्ची".
रही बात , दुरी और इंतज़ार की , यह एक औरत ही जान सकती है, उनकी चिंता, कहाँ है, कैसे हैं ,कुछ खाया होगा या नहीं , अंदर की बैचनी और सबके साथ हसना - बोलना , एक मुखौटा लग जाता है, हँसते हुए चेहरे का , अंदर के भाव कोई नहीं जान सकता जब तक औरत न बताना चाहे।
अब ऐसा है कोमल जी, हम तो आते ही हैं आपके उपदटेस और सावन की फुहार के लिए , जो आप बरसाती हैं। ........
अरे नहीं आपकी जान सलामत , जो आपकी जान है वो भी सलामत रहें ,
मैं समझ सकती हूँ लाकडाउन में ' काम ' कुछ बढ़ जाता है , न दिन देखते हैं न रात ,...
बस अभी मैं एक और अपडेट देने वाली हूँ , खास आप के लिए ,... जरूर बताइयेगा , कैसा लगा , डिटेल में
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बिदेसिया
बात चीत में मैं और जेठानी उसे चिढ़ाने में लगे रहते थे , बनारस और आजमगढ़ के मुकाबले ,
गुड्डी को हम लोग बोलते , असल में गाँव की ही तरह खाली कहने को शहर है ,
तो उस के पास एक पक्का जवाब था , ...लेकिन आप दोनों लोग आयी तो यही हमारे भैया के पास , अपने माँ बाप का घर छोड़ के ,
ये बात तो उस छोरी की एकदम सही थी , ...
सच्च में यार उस लड़के के लिए तो मैं कहीं चली जाती , ...
माना थोड़ा , थोड़ा नहीं काफी बुद्धू था , ..कुछ ज्यादा ही सीधा , और शर्मिला कितना ,...आजकल तो लड़कियां भी उतनी नहीं शर्माती , और लापरवाह भी एकदम , ...
उसे अपना जरा भी नहीं ख्याल , ...अगर मैं उसे कपडे न निकाल के दूँ न तो बस , ...
दोनों पैरों में अलग रंग के मोज़े पहन के चला जाय , ...
लेकिन वो लड़का बैंगलोर , ...
पांच दिन इत्ती मुश्किल से कटते थे और जब वो आता था , फुर्र से समय उड़ जाता था ,...
मैं जानती थी इस लड़के के साथ यही होना है , एक दिन पूरी जिंदगी इसी तरह , हफ्ते महीनो में बदलेंगे , महीनो सालों में और एक दिन पूरी जिंदगी ,...
लेकिन बस ये सोच के ढांढ़स बंधाती थी , बच्चू बच के कहाँ जायेंगे , ...
पूरे सात जन्म के लिए लिखवा के लायी हूँ उसे ,... अगले जन्म में फिर करुँगी रगड़ाई उसकी , बच के कहाँ जायेगा ,...
मम्मी जब से मेरी शादी तय हुयी , शादी के गाने और उन में से कुछ तो ऐसे मैं मना भी करती , लेकिन ,... एकदम
निमिया के पेड़ जिन कटाया मोरे बाबा , निमिया चिरैया क बसेर र ललनवा।
निमिया के पेड़ जिन कटाया मोरे बाबा , निमिया चिरैया क बसेर र ललनवा।
होतें बिहान चिरैया उड़ जाहिएँ , होय जाहिंएं निमिया अकेल र ललनवा ,
....होतें बिहान बेटी चल जाहिएँ , हो जाहिएँ मम्मी अकेल रे ललनावा
निमिया के पेड़ जिन कटाया मोरे बाबा , निमिया चिरैया क बसेर र ललनवा।
.... बेटी बिदेसिया के साथ रे ललनवा , होते बिहान बेटी चल जाहिए , हो जाहिए मम्मी अकेल रे ललनवा
मम्मी रोटी बनाती जाती थी , आंसू रुकते नहीं थे ,
और कहीं मैं पूछती थी तो बोलती थी नहीं कुछ नहीं , बस जरा धुंवा लग गया था , ...
पर मैं जानती नहीं थी क्या , .... जब तक बुआ भाभियाँ , चाचियां रहतीं , छेड़छाड़ , काम काज की बातें , लेकिन जैसे वो अकेले बैठती ,
बस सूनी आँखों से दरवाजे को निहारती रहतीं , ...
जैसे इसी दरवाजे से कुछ दिन बाद मैं चली जाउंगी , फिर तो कभी काम काज कभी परब त्योहार , ....
सबसे बड़ी तीनो बहनों में मैं थी ,
आज मैं. कल मंझली , फिर छुटकी , ... तीनो चिरैया , बारी बारी से फुर्र ,... और मम्मी दरवाजे के पास बैठी , अकेली
मैं समझती नहीं थी क्या , ... मैं भी आ के , उनके बगल में ,... उनकी गोद में अपना सर रख कर ,
कैसे छोटी बच्ची की तरह , मेरे रिबन बांधती , बाल संवारती , नाक छिदी तो कितना दर्द हुआ था , लेकिन बस मम्मी ने ऐसे ही गोदी में , ...
देर तक बस हम माँ बेटी ऐसे ही बिना बोले , वो बस मेरा बाल सहलाती रहतीं , और जब मैं सर ऊपर कर के देखती तो
उनकी दियली सी आँखों में , ... मुझे देखते ही वो आँख बंद कर लेती , झूठमूठ का आँख रगड़ने लगतीं , बोलती कुछ नहीं कुछ पड़ गया था ,
पर शादी ब्याह का घर , गांव का माहोल ,... कोई न कोई कुछ काम ले के , ... और वो उठ के , ... मुझे अभी भी याद है , उनके आँचल में सारी चाभियाँ बंधी रहती थी , और थोड़ा सा फुटकर पैसा भी , ...
सोच के ,
कन्यादान के समय के गाने , ...
पाँव पूजी चलती रहती थी और आँख में आंसू भी , ...
जब हम जनतीं , धिया कोखिये होइए
प्रभु जी से रहतीं उछास
अरे लागल सेजिया उढ़स देतीं ,
कटती अंगनवा सारी रात ,
धिया के जनमते माहुरवा हम चटावती,
----
...... बेटी होली घर क सिंगार ,
गइया , भैंसिया भले दान करिया पापा , बेटी हो दूर जिन भेजिया बिदेस ,
कटोरवा कटोरवा दुधवा पियालुं और खियवली दूध भात ,
हो धियवा चलली सुन्दर बर के साथ ,...
होत भिनसरवा जाइबों हो पापा बड़ी हो दूर ,
होत भिन्सारवा जाइबो हो चाचा बड़ी हो दूर
.....
जब हम जनती कन्यादान करतीं पापा जी ,
खातीं जहर मर जातीं हो पापा जी
सोने के पिंजड़ा बना देती पापा जी ,
सुन्दर धियवा छुपा देतीं पापा जी
....
काठ के करेजवा पापा करैला बाटा हो हमरो के करैले बाटा हो
......
घूंघट के अंदर मैं बार बार अपनी आँखे बंद कर लेती , जोर जोर से भींच लेती , ...
सहेलियां , भाभियाँ , नाउन , नाउन की बेटी मुझे सुना सुना के इन्हे छेड़ती ,
पर मैं जानती थी ये सब मेरा मन रखने को , ...
आखिर वो सब भी तो उसी रास्ते से गुजर के आयीं है , या जानेवाली हैं सब को उस का दर्द मालूम है , ...
कालेज से आती थी कहीं अपना बस्ता फेंका ,
कभी मंझली से झगड़ा करने बैठ गयी तो कभी मम्मी से दस ओरहन , ...
पर अब जब जाउंगी तो कोई बोलेगा , सामान यहाँ रखवा दो ,
मुझे बार बार उनकी एक ही बात याद आती थी , गुड़िया खेलने वाली , गुड़ियों की शादी रचाने वाली बेटियाँ जब कब खुद डोली पर चढ़ कर चली जाती हैं पता नहीं चलता ,
किसी तरह से झटक के मैंने उन यादों को अलग किया , जैसे पुराने अल्बम कहीं बक्से के कोने में , ... पर , ...
सच में , ... वो तो मेरी सास , इतनी अच्छी इतनी अच्छी , सास कम सहेली ज्यादा , मुझसे ज्यादा मेरा ख्याल रखने वाली
नहीं तो पहले दिन से ही मजाक में सही , सोहर की तैयारी शुरू ,
और अगर साल दो साल हो गए , ... तो फिर झाड़ फूंक , डाकटर बैद सब ,...
मैंने तो इन्ही से बोल दिया था , साफ़ साफ , और सासु से भी , ... पहले पांच साल कुछ नहीं , उसके बाद , ... एकदम ,...
दिन कटते नहीं थे , लेकिन चारा भी क्या था , ... बस वीकेंड के इंतजार में और आखिरी के हफ्ते में तो वो भी
उनको फॉरेन जाना पड़ा , ...
मेरे तो कुछ समझ में नहीं आता था
पता नहीं क्या क्या , ... बिग डाटा , आर्टिफिशयल इंटेलिजंस , डार्क वेब ,...
मुझे सिर्फ गुस्सा लगता था , इस के चक्कर में दस दिन और ,
हाँ जब पहली बार जेनेवा से उनका फोन आया तो मैं एकदम उछल पड़ी ,
' बिदेस से बोल रहे हैं ,... "
मैं गाँव की लड़की , मेरे लिए कोई बनारस से लखनऊ चला जाए तो ,..
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09-04-2020, 03:39 PM
(This post was last modified: 25-05-2020, 12:00 AM by komaalrani. Edited 2 times in total. Edited 2 times in total.)
बिदेस
हाँ जब पहली बार जेनेवा से उनका फोन आया तो मैं एकदम उछल पड़ी ,
' बिदेस से बोल रहे हैं ,... "
मैं गाँव की लड़की , मेरे लिए कोई बनारस से लखनऊ चला जाए तो ,..
हम लोग जो ईस्टर्न यूपी वाले बिहार वाले हैं तो बिदेस तो जैसे उनकी किस्मत में , ....
आज से नहीं सैकड़ों साल से , एक दिन मैं मम्मी के साथ बी एच यू में मंन्दिर में , और कुछ वेस्टइंडीज की औरतें , वैसे तो फ्रेंच या पता नहीं क्या बोल रही थी पर गाना गाने लगीं तो एकदम भोजपुरी ,
सच में , फिजी , गुयाना , मारसिश और पता नहीं कितने कितने देस , ईस्ट इण्डिया कम्पनी के सिपाही बनकर चीन , बर्मा , मलाया , ...
मेरी सास बताती थीं , ...
उनकी सास ने बताया था , तब यहाँ बड़ी लाइन नहीं थी , सब लोग गाँव के , शाहगंज जाते थे गाँव से कोई जाता था कलकत्ता , उसे छोड़ने , चटकल की मिल में काम करें ,
इसी इलाके से , भोजपुरी इलाके से ही , भिखारी ठाकुर हो सकते थे , और बिदेसिया भी ,...
मैंने देखा तो नहीं लेकिन अपने गाँव में भी पुरानी औरतों से सुना था , ...
गौना हो के दुल्हिन आती थी , पहली रात को ही सब औरतें सीखा पढ़ा के
अपनी आँखी की पुतरी में बंद कर लेना , पलक अच्छी तरह , ...
आठ दिन , हद से हद दस दिन , फिर वो कमाने ,... और उसके बाद बस कभी चिट्ठी का इन्तजार कभी छुट्टी का ,
और अभी भी , एक दिन मैं लखनऊ गयी थी , स्टेशन पर , कोई ट्रेन थी , हाँ पुष्पक , ठूंस ठूंस कर , जनरल डिब्बे में , ... सब लोग बंम्बई ,
बमबई , सूरत , पंजाब , और कुछ जुगाड़ लग गया , गहना गुरिया गिरवी रख के हाथ पैर जोड़ के कभी दुबई कभी कत्तर , कभी ,...
एक गाना मैं बहुत गाती थी , कॉलेज में किसी कम्पटीशन में ,
रेलिया बैरन पिया को लिए जाए रे,
रेलिया बैरन पिया को लिए जाए रे ।
जौन टिकसवा से बलम मोरे जैहें, रे सजना मोरे जैहें,
पानी बरसे टिकस गल जाए रे, रेलिया बैरन ।।
जौने सहरिया को बलमा मोरे जैहें, रे सजना मोरे जैहें,
आगी लागै सहर जल जाए रे, रेलिया बैरन ।।
जौन सवतिया पे बलमा मोरे रीझे, रे सजना मोरे रीझें,
खाए धतूरा सवत बौराए रे, रेलिया बैरन
लेकिन उसका मतलब अब समझ में आया , गाने का असली मतलब उसकी आखिरी लाइन में
ना रेलिया बैरन , न जहाजिया बैरन , इसे पइसवा बैरन हो ,....
देह की आग , मन की आग बहुत कठिन होती है लेकिन पेट की आग उससे भी ज्यादा , ...
गाँव में सुने एक गाने की लाइन अक्सर कान में गूँजती रहती है ,
भुखिया के मारे बिरहा बिसरिगै , बिसरैगे कजरी कबीर ,
अब देख देख गोरी क जोबना
न उठै करेजवा में पीर ,....
आप भी कहेंगे न कहाँ की बातें लेकर बैठ गयी मैं आज , पर मन में जो उमड़ता घुमड़ता रहता है न कभी वो वो आँख से फिसल पड़ता है तो कभी शब्द बनकर
एम्स्टर्डम में भी बजाय तीन दिन के दस दिन रहना पड़ा उन्हें , ...
मुझे सब से बड़ी चिंता यही लगी रहती थी खाएंगे क्या , वहां दाल चावल मिलेगा की नहीं ,
इनके नखड़े भी तो बहुत नहीं मिलेगा नहीं खाएंगे , कौन समझाये इन्हे
लेकिन एक अच्छी बात थी ,
ज्यादा तो नहीं लेकिन बताया था इन्होने, एक लड़की मिल गयी थी , पंजाब की , काफी दिनों से एम्स्टर्डम में रहती है ,
वो भी इन्ही सबी चीजों में ,...
उसका कुछ बनारस से कभी का ,...
दूबे भाभी को अच्छी तरह जानती है , अरे वही औरंगाबाद वाली ,...
कुछ नाम बताया तो था उन्होंने , अच्छा सा नाम है , इनका ख्याल रखती है , ...
नाम उसका , ... हाँ याद आ गया ,
रीत।
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आपकी बात ही अलग हैं,
आपकी जज्बात ही अलग हैं।
क्या खूब लिखा है....सारे शब्द न्योछावर करने को जी चाहता है।
ऊपर से मालिनी अवस्थी की लोक गीत।
क्या कहना !!
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कभी कभी कुछ लिखा जाता है वो कहीं अंदर से ह्रदय की अनंत गहराइयों से शब्द बन के फुठ पड़ता है वो कुछ ऐसा ही लिखा है आप ने
एक बेटी और उस की माँ का जो भावनात्मक लगाव होता है उस की क्या कोई थाह ले पाया है जो ले पायेगा
ओर वो घड़ी जब आती है जब बेटी ससुराल विदा होती है दोनों तरफ जो भावनाओ का ज्वार उमड़ता है वो एक लड़की या एक बेटी की माँ ही समझ सकती है
तमाम भावनाओं का त्याग कर के एक नए घर संसार का हो जाना कितना मुश्किल होता है मैं ओर आप सभी समझ सकती है
खैर कहते है समय सब दुखों की दवा है जो कल बेगाना था आज सब कुछ अपना है
एक नया घर संसार है पर जब आप जैसी कोई लेखिका इस तरह से मां के हाथों से लिपे आलिंद की याद दिला देती है तो आसूं अपनी अनंत यात्रा पर निकल पड़ते है
कोमल जी दिल को छू गयी आप की कलम
कुसुम जी,निहारिका जी जय श्री कृष्णा
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09-04-2020, 11:38 PM
(This post was last modified: 09-04-2020, 11:50 PM by Niharikasaree. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
(09-04-2020, 04:58 PM)Poonam_triwedi Wrote: कभी कभी कुछ लिखा जाता है वो कहीं अंदर से ह्रदय की अनंत गहराइयों से शब्द बन के फुठ पड़ता है वो कुछ ऐसा ही लिखा है आप ने
एक बेटी और उस की माँ का जो भावनात्मक लगाव होता है उस की क्या कोई थाह ले पाया है जो ले पायेगा
ओर वो घड़ी जब आती है जब बेटी ससुराल विदा होती है दोनों तरफ जो भावनाओ का ज्वार उमड़ता है वो एक लड़की या एक बेटी की माँ ही समझ सकती है
तमाम भावनाओं का त्याग कर के एक नए घर संसार का हो जाना कितना मुश्किल होता है मैं ओर आप सभी समझ सकती है
खैर कहते है समय सब दुखों की दवा है जो कल बेगाना था आज सब कुछ अपना है
एक नया घर संसार है पर जब आप जैसी कोई लेखिका इस तरह से मां के हाथों से लिपे आलिंद की याद दिला देती है तो आसूं अपनी अनंत यात्रा पर निकल पड़ते है
कोमल जी दिल को छू गयी आप की कलम
कुसुम जी,निहारिका जी जय श्री कृष्णा
पूनम जी,
कहाँ हो जी, सब मस्त, सब ठीक - आनंद मैं,
जय श्री कृष्णा ,
दिल को छु जाने वाले शब्द , कोमल जी की जादूगरी। शब्द कम पड़ने लगे है अब तो ........
पूनम जी, आते रहा करो, अच्छा लगता है। ....
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कोमल जी ,
मस्ती, दर्द, अनगिनत भावनाओ से भरा एक खूबसूरत अपडेट , जिसकी जितनी तारीफ़ करो कम है। .....
उसे अपना जरा भी नहीं ख्याल , ...अगर मैं उसे कपडे न निकाल के दूँ न तो बस , ...
दोनों पैरों में अलग रंग के मोज़े पहन के चला जाय , ...
एकदम सही कहा जी आपने, हम लोग अगर ध्यान न दे तो अलग रंग के मोज़े तो पहने ही, और वो भी उतरे न, पैरों मैं से, लापरवाह, आलसी, पर प्यारे हमारे सहारे, उपरवाले ने शायद इसीलिए औरतो को जल्दी समज़दार कर दिया, ताकी उन्हें सम्हाल सके.
सभी महिला इस बात से सहमत होंगी की , लड़की , लड़को से जल्दी परिपव्क हो जाती है, और लड़के , मस्त , मनमौजी, अल्हड। ...
पूरे सात जन्म के लिए लिखवा के लायी हूँ उसे ,... अगले जन्म में फिर करुँगी रगड़ाई उसकी , बच के कहाँ जायेगा ,...
न, बच ही नहीं सकता जी, आपके प्रेम पाश से, सात जनम कम पड़े हैं,जी प्यार करने व् निभाने को.
कैसे छोटी बच्ची की तरह , मेरे रिबन बांधती , बाल संवारती , नाक छिदी तो कितना दर्द हुआ था , लेकिन बस मम्मी ने ऐसे ही गोदी में , ...
देर तक बस हम माँ बेटी ऐसे ही बिना बोले , वो बस मेरा बाल सहलाती रहतीं , और जब मैं सर ऊपर कर के देखती तो
उनकी दियली सी आँखों में , ... मुझे देखते ही वो आँख बंद कर लेती , झूठमूठ का आँख रगड़ने लगतीं , बोलती कुछ नहीं कुछ पड़ गया था ,
यह, ही एक माँ , की भावना , दर्द अपने अंदर ही समाते हुए समेट लेना, किसी को भी न बताना, लड़कियाँ भी यही सब न जाने कैसे सिख लेती हैं, अपने आप। बस आ जाता है, दर्द से रिश्ता निभाना।
नहीं तो पहले दिन से ही मजाक में सही , सोहर की तैयारी शुरू ,
और अगर साल दो साल हो गए , ... तो फिर झाड़ फूंक , डाकटर बैद सब ,...
मैंने तो इन्ही से बोल दिया था , साफ़ साफ , और सासु से भी , ... पहले पांच साल कुछ नहीं , उसके बाद , ... एकदम ,...
उफ़, शादी होते ही, सबको चिंता, पहले दिन से , बहु पोता कब देगी , अगर लेट हो गया तो तरह तरह के बहने - बाते , गैर ज़रूरी सलाह , रायचन्दो की जैसे पूरी जमात ही आ जाती है , बहु को को उस हकिम के पास ले जाओ, वो काशी के वैधराज , बेटे के लिए मशहूर हैं, ताने तो जैसे विरासत मैं ही मिले हो.
सच्ची,कोमल जी हम सभी औरतो ने यह समय काटा है, अगर , पहले साल "कुछ" हो गया , बढ़िया , मेरी बहु कब ला रही है, इसका छोटा भाई। ... देख बहु , अब हमारे दिन ही कितने रह गए हैं........ इमोशनल अत्त्याचार
' बिदेस से बोल रहे हैं ,... "
मैं गाँव की लड़की , मेरे लिए कोई बनारस से लखनऊ चला जाए तो ,..
बिदेस। ..........
मुझे सब से बड़ी चिंता यही लगी रहती थी खाएंगे क्या , वहां दाल चावल मिलेगा की नहीं ,
इनके नखड़े भी तो बहुत नहीं मिलेगा नहीं खाएंगे , कौन समझाये इन्हे
कोमल जी, बिदेस , एक ऐसा एहसास औरत के लिए अनजान डर , उनकी चिंता , फ़िक्र सोचना अब उनके नखरे कौन झेल रहा होगा।
मजबूरी मैं ही , कौन अपने शौक से अपनी जगह , अपनी मिटटी से दूर होना चाहता है , आदमी अपनी काम की तलाश मैं,औरत अपनी मजबूरी, के साथ इंतज़ार करती हुई, कुछ उनकी आने की इतनी खुसी नहीं होती जितना वापस जाने का गम होता है, उनके .आते ही
पर मन में जो उमड़ता घुमड़ता रहता है न कभी वो वो आँख से फिसल पड़ता है
कोमल जी, अपनी लाख टके की बात कह दी, एक यही तो रास्ता रह गया है हम औरतो के पास, पर उस पर भी यह कहना , आँख मैं कुछ गिर गया था.
"कोमल जी दिल को छू गयी आप की कलम" , जादू है, जो हमको खेंच लता है,
बस प्यार बरसाते रहिये। .......
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(10-04-2020, 01:10 AM)m8cool9 Wrote: Bahut khub Komal ji
Thanks so much
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(09-04-2020, 04:29 PM)UDaykr Wrote: आपकी बात ही अलग हैं,
आपकी जज्बात ही अलग हैं।
क्या खूब लिखा है....सारे शब्द न्योछावर करने को जी चाहता है।
ऊपर से मालिनी अवस्थी की लोक गीत।
क्या कहना !!
आपकी तारीफ़ के शब्द , क्या बोलूं , ... बस मन करता है पढ़ती रहूं , पढ़ती रहूं , चलिए इसी बात पर एक और अपडेट
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(09-04-2020, 04:58 PM)Poonam_triwedi Wrote: कभी कभी कुछ लिखा जाता है वो कहीं अंदर से ह्रदय की अनंत गहराइयों से शब्द बन के फुठ पड़ता है वो कुछ ऐसा ही लिखा है आप ने
एक बेटी और उस की माँ का जो भावनात्मक लगाव होता है उस की क्या कोई थाह ले पाया है जो ले पायेगा
ओर वो घड़ी जब आती है जब बेटी ससुराल विदा होती है दोनों तरफ जो भावनाओ का ज्वार उमड़ता है वो एक लड़की या एक बेटी की माँ ही समझ सकती है
तमाम भावनाओं का त्याग कर के एक नए घर संसार का हो जाना कितना मुश्किल होता है मैं ओर आप सभी समझ सकती है
खैर कहते है समय सब दुखों की दवा है जो कल बेगाना था आज सब कुछ अपना है
एक नया घर संसार है पर जब आप जैसी कोई लेखिका इस तरह से मां के हाथों से लिपे आलिंद की याद दिला देती है तो आसूं अपनी अनंत यात्रा पर निकल पड़ते है
कोमल जी दिल को छू गयी आप की कलम
कुसुम जी,निहारिका जी जय श्री कृष्णा
पूनम जी , सच कहा आपने आप ,निहारिका जी , कुसुम जी ,... एक औरत ही औरत का दुःख दर्द समझ सकती है ,
कुछ पोस्ट वास्तव में दिल की स्याही से डुबो के लिखी जाती हैं पर उन्हें समझने वाली भी वैसी ही हो तो लिखने का मजा सौ गुना हो जाता है
मेरी किस्मत की आप मेरे थ्रेड पर आयीं , लेकिन मेरी कसम अगर आप ये थ्रेड छोड़ कर गयीं तो ,... हर पोस्ट पर चाहे मैं कैसा भी लिखूं
ऐसी मीठी मीठी बातें जरूर लिखियेगा
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(09-04-2020, 11:45 PM)Niharikasaree Wrote: कोमल जी ,
मस्ती, दर्द, अनगिनत भावनाओ से भरा एक खूबसूरत अपडेट , जिसकी जितनी तारीफ़ करो कम है। .....
उसे अपना जरा भी नहीं ख्याल , ...अगर मैं उसे कपडे न निकाल के दूँ न तो बस , ...
दोनों पैरों में अलग रंग के मोज़े पहन के चला जाय , ...
एकदम सही कहा जी आपने, हम लोग अगर ध्यान न दे तो अलग रंग के मोज़े तो पहने ही, और वो भी उतरे न, पैरों मैं से, लापरवाह, आलसी, पर प्यारे हमारे सहारे, उपरवाले ने शायद इसीलिए औरतो को जल्दी समज़दार कर दिया, ताकी उन्हें सम्हाल सके.
सभी महिला इस बात से सहमत होंगी की , लड़की , लड़को से जल्दी परिपव्क हो जाती है, और लड़के , मस्त , मनमौजी, अल्हड। ...
पूरे सात जन्म के लिए लिखवा के लायी हूँ उसे ,... अगले जन्म में फिर करुँगी रगड़ाई उसकी , बच के कहाँ जायेगा ,...
न, बच ही नहीं सकता जी, आपके प्रेम पाश से, सात जनम कम पड़े हैं,जी प्यार करने व् निभाने को.
कैसे छोटी बच्ची की तरह , मेरे रिबन बांधती , बाल संवारती , नाक छिदी तो कितना दर्द हुआ था , लेकिन बस मम्मी ने ऐसे ही गोदी में , ...
देर तक बस हम माँ बेटी ऐसे ही बिना बोले , वो बस मेरा बाल सहलाती रहतीं , और जब मैं सर ऊपर कर के देखती तो
उनकी दियली सी आँखों में , ... मुझे देखते ही वो आँख बंद कर लेती , झूठमूठ का आँख रगड़ने लगतीं , बोलती कुछ नहीं कुछ पड़ गया था ,
यह, ही एक माँ , की भावना , दर्द अपने अंदर ही समाते हुए समेट लेना, किसी को भी न बताना, लड़कियाँ भी यही सब न जाने कैसे सिख लेती हैं, अपने आप। बस आ जाता है, दर्द से रिश्ता निभाना।
नहीं तो पहले दिन से ही मजाक में सही , सोहर की तैयारी शुरू ,
और अगर साल दो साल हो गए , ... तो फिर झाड़ फूंक , डाकटर बैद सब ,...
मैंने तो इन्ही से बोल दिया था , साफ़ साफ , और सासु से भी , ... पहले पांच साल कुछ नहीं , उसके बाद , ... एकदम ,...
उफ़, शादी होते ही, सबको चिंता, पहले दिन से , बहु पोता कब देगी , अगर लेट हो गया तो तरह तरह के बहने - बाते , गैर ज़रूरी सलाह , रायचन्दो की जैसे पूरी जमात ही आ जाती है , बहु को को उस हकिम के पास ले जाओ, वो काशी के वैधराज , बेटे के लिए मशहूर हैं, ताने तो जैसे विरासत मैं ही मिले हो.
सच्ची,कोमल जी हम सभी औरतो ने यह समय काटा है, अगर , पहले साल "कुछ" हो गया , बढ़िया , मेरी बहु कब ला रही है, इसका छोटा भाई। ... देख बहु , अब हमारे दिन ही कितने रह गए हैं........ इमोशनल अत्त्याचार
' बिदेस से बोल रहे हैं ,... "
मैं गाँव की लड़की , मेरे लिए कोई बनारस से लखनऊ चला जाए तो ,..
बिदेस। ..........
मुझे सब से बड़ी चिंता यही लगी रहती थी खाएंगे क्या , वहां दाल चावल मिलेगा की नहीं ,
इनके नखड़े भी तो बहुत नहीं मिलेगा नहीं खाएंगे , कौन समझाये इन्हे
कोमल जी, बिदेस , एक ऐसा एहसास औरत के लिए अनजान डर , उनकी चिंता , फ़िक्र सोचना अब उनके नखरे कौन झेल रहा होगा।
मजबूरी मैं ही , कौन अपने शौक से अपनी जगह , अपनी मिटटी से दूर होना चाहता है , आदमी अपनी काम की तलाश मैं,औरत अपनी मजबूरी, के साथ इंतज़ार करती हुई, कुछ उनकी आने की इतनी खुसी नहीं होती जितना वापस जाने का गम होता है, उनके .आते ही
पर मन में जो उमड़ता घुमड़ता रहता है न कभी वो वो आँख से फिसल पड़ता है
कोमल जी, अपनी लाख टके की बात कह दी, एक यही तो रास्ता रह गया है हम औरतो के पास, पर उस पर भी यह कहना , आँख मैं कुछ गिर गया था.
"कोमल जी दिल को छू गयी आप की कलम" , जादू है, जो हमको खेंच लता है,
बस प्यार बरसाते रहिये। .......
जो मैंने लिखा , जो नहीं लिख पायी , सब कुछ , एकदम मेरे मन की बात , कही अनकही सब कुछ
आप ऐसी सहेलो मिली , बस यही सोच कर मैं खुश रहती हूँ , वरना आज कल चारों ओर की ख़बरें , माहौल , सिर्फ डर डर
आपका साथ , गहरी काली रात के बात आने वाली विभावरी का विश्वास दिलाता रहता है ,बस हाथ थामे रहिएगा ,
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साजन घर आया
जिस दिन वो लौटे , ...पूरे पांच हफ्ते बाद ( वीकेंड मैं नहीं काउंट कर रही ) अपनी वो ट्रेनिंग वेनिंग खतम करके , ...
उस रात , ' कुछ नहीं ' हुआ , ...
लौटे भी वो आधी रात के बाद थे , मैं तो हर दस मिनट के बाद उन्हें कभी व्हाट्सऐप पर पूछ रही थी , कहाँ पहुंचे ,... और जब उनकी टैक्सी गवर्मेंट गर्ल्स इंटर कालेज ( अरे वहीँ , जहाँ उनका माल और उसकी सहेलियां पढ़ती थीं , ना )
मैं बस दौड़कर नीचे पहुंची , और जब दरवाजा खोला तो बस वो टैक्सी से उतर रहे थे।
असल में , गलती मेरी ही थी , मैंने ही उन्हें दस काम पकड़ा दिए थे।
एम्स्टर्डम से आ तो वो दोपहर को ही दिल्ली गए थे , पर मेरे काम। और उनसे वैसे भी सिवाय ' एक काम ' के और कोई काम ठीक से आता नहीं था ( और उसमें भी जबतक वो यहाँ थे रोज गुड मॉर्निंग गुड नाइट के साथ साथ उनकी सलहज , रीतू भाभी कोचिंग चलाती थीं , ऑन लाइन ) ,
और मैंने उन्हें काम पकड़ा दिया था , एकदम औरतों वाला , साड़ी खरीदने का।
मुझे लगा इत्ते दिन बाद आ रहे हैं तो खाली हाथ , ...
इसलिए सास और जेठानी के साथ मैंने कम्मो के बार्रे में भी उन्हें अच्छी तरह बता दिया था , साडी के बारे में भी , खूब चटक गाढ़ा रंग उसे पसंद था , लाल या गुलाबी। ये भी न एकदम बुद्धू , समझ में नहीं आया तो दोनों रंग की एक एक ले आये।
आप पूछेंगे कम्मो कौन , बताउंगी न। पक्का। लेकिन कुछ देर बाद पहले तो उनके बारे मैं।
तो मैं क्या कह रही थी , हाँ। शॉपिंग , ...
और सास जेठानी के साथ मैंने अपनी ननद के लिए भी , ...
वही गुड्डी रानी , ...
पर उसके लिए इन्हे याद दिलाने की जरुरत नही थी , वो तो वहीँ से , फॉरेन से ही , खूब हॉट ड्रेसेज , ...
पर सच में भुलकक्ड़ नंबर एक , उसकी भी असली चीज भूल गए थे , ...जब दिल्ली पहुंचे तो मैंने याद दिलाई , ...
अरे वही छोटे छोटे जुबना के लिए , २८ सी , ... और साथ में गुलाबो के लिए भी उसकी मॅचिंग पैंटी ,... क्या कहते हैं वो थांग।
और भी बहुत कुछ ,
मेरी जेठानी को मिठाई पसंद थी , तो दिल्ली में घंटेवाले के यहाँ से सोहन हलवा। पूरा चांदनी चौक उनका बस चलता तो उठा लेते , ...
ये मत पूछियेगा की मेरे लिए , ... हस्बेंड वाइफ की सब चीज बतानी जरुरी है क्या , ... लेकिन चलिए जब बाकी बातें नहीं छुपाई तो वो भी , जितना हो सकेगा बता दूंगी।
दो ये बड़े बड़े सूटकेस ,...
एक तो उन्होंने दिल्ली में ही ख़रीदा था सामान रखने के लिए , आखिर इतने दिन बाद , घर लौटे थे आखिर , ...
और फिर असली बात ये थी की इन्हे कुछ समझ में तो आता नहीं था , बाजार पहुंचे जो चमक दमक देखा बस खरीद लिया , हाँ साड़ियां अच्छी लाये थे , खूब तारीफ़ हुयी , जेठानी ने भी की और सास ने भी ,
और उनसे तो कुछ छिपता नहीं था इनका कान पकड़ के बोलीं ,
" तुझे तो कुछ याद रहता नहीं , ... होली आने वाली है , जरूर दुल्हन ने याद दिलाया होगा। "
जब उन्होंने कबूला तो जा के कान छूटा ,
और सच बताऊं जब मेरी सास और जेठानी मेरे सामने इनकी रगड़ाई होती है तो बहुत मजा आता है , बस मैं आँख झुकाये , मुंह छुपाये , ... खिस्स खिस्स ,... लेकिन सबसे ज्यादा खुश हुई कम्मो , इनकी ओर देख के बोली
" बहुत महंगी होगी न "
और इनकी भौजाई कुछ हड़काते , कुछ समझाते बोलीं ,
" भौजाई से होली मुफ़्ते में खेल लेंगे , ... "
फिर मेरी भी जुबान खुल गयी ,
" और क्या , एक होली खेलने के पहले की और दूसरी होली खेलने के बाद की , ... या क्या पता आपके देवर इलसिए साडी लाये हों की होली में इनकी रगड़ाई कम हो थोड़ी। "
" एकदम नहीं , डबल रगड़ाई होगी अब तो , ई चाहे चिल्लाएं , चाहें , ... अंदर तक हाथ डाल के , ... अउर देवर भाभी क होली तो पूरे फागुन भर चलती है , होली क दिन का कौन इन्तजार करेगा। "
कम्मो साडी देखते बोली।
उसकी मुस्कराती आँखे इन्ही पर गड़ी थीं।
' किस दिन से फागुन लगेगा , ... "
मैंने पूछा तो हँस कर उठते हुए मेरी जेठानी बोलीं ,
" सुबह उठ के इसके गाल देखलेना पता चल जाएगा , फागुन लग गया। "
इनके गाल फागुन से पहले गुलाल हो गए , ...
मैं कम्मो के साथ किचेन में और ये ऊपर कुछ आफिस का काम ,...
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