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03-04-2020, 01:20 PM
(This post was last modified: 03-04-2020, 01:24 PM by Niharikasaree. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
(03-04-2020, 08:45 AM)komaalrani Wrote:
किस क्लास में थीं आप जब आपने ३२ बी वाली ब्रा खरीदी ,
ये साइज मेरी तो हाईकॉलेज में थी , दसवें और ग्यारहवें में , ... मैंने बताया था न मैंने पहली ब्रा दर्जा ८ में पहनी थी , एक मेरी मौसी थीं , वो आयीं और उन्होंने मुझे ही नहीं घर में सब को हड़काया , लड़की बड़ी हो गयी , उसी दिन शाम को ,... और उसी साल मैंने चुन्नी गले में लेनी शुरू की , पर मेरी पड़ोस की भाभी ने रास्ता समझा दिया था , घर से निकलो तो सब ढका तोपा , लेकिन गली के किनारे तक पहुँचते पहुँचते , थोड़ा दिखाओ , थोड़ा छिपाओ वाली स्टाइल , और ज्यादा मूड हुआ तो एकदम गले से चिपका के ,
कोमल जी,
ध्यानवाद , आप आये बहार आयी।
जी, आपने बतआया था, क्लास ८ मैं थी आप. माँ के लिए मैं हमेशा बच्ची ही थी, समीज़ ही काफी थी , मैं भी अनजन थी, जिस्म के बदलाव से हम्म, छूना , दबाना सोचना कब और बड़े होंगे, जोबन बढ़ते देखअच्छा लगता, था पर इतना तेज़ बदलाव नहीं हुआ था , क्लॉस ९ के बाद गोलाई आना शुरू हुई थी, पर कुछ खास नहीं, पर क्लास १० के बाद और ११ की हाफ इयरली तक जोबन मैं उठान आना शुरू है था।
यह प्रसंग बस तभी का है, हर लड़की मैं बदलाव देर - सवेर आ ही जाता सो मेरे साथ ही हुआ , और रही बात गले मैं चुन्नी डालने की ही ही , मेरी सहेली की करामात थी , उसका बदलाव मुझे से जल्दी हुआ था ,तभी मैं उसको लेकर ब्रा लेने गई थी।
चुन्नी, गले मैं डालना व् वापस जोबन ढकना बड़ा ही मस्त खेल है, यह तो मैं आज भी करती हूँ, दूसरा , बाल को खोलना , माने रबर बैंड हटाना बालों को सुलझाना और फिर वापस लगाना , फिर चुन्नी सेट करना मेरी आदत है.
बस आप , आ जाया कीजिये , जब भी समय मिले, .........................
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03-04-2020, 02:22 PM
(This post was last modified: 03-04-2020, 02:26 PM by Niharikasaree. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
मैं, जैसे सपने मैं थी , डी कप ब्रा के, उसकी आवाज़ सुन के एकदम झटके से बहार आयी।
मैं उसको देख नहीं पा रही थी, वो मेरे बूब्स देख रहा था , मैंने अपना आँचल ठीक किया , [ हम लड़कियों को न जाने कैसे पता चल जाता है की अगला इंसान कहा देख रहा है?]
.........................
आग्गे ,
प्रिय सखिओ ,
आशा है, आप सभी को मेरी कुछ पुरानी यादे, पसंद आ यही होंगी, आप भी अपनी कुछ यादें - बाते को शेयर करें कुछ खट्टी - कुछ मीठी ही ही , चटपटी भी चलेगी। .....................
फिर, जैसे मुझे लगा वो मेरी कुर्ती मैं ही घुसा जा रहा है, उसकी आंख न हो x - रे मशीन हो. सब कुछ नाप जाऐगा, अपना आँचल ठीक करते हुए।
मैं - हम्म, रेड , ब्लैक पिंक, वाइट
ये चार वर्ड्स मैंने कैसे बोले मैं ही जानती हु , बस ऊपर - निचे , इधर उधर देख कर १- २ मिनिट निकले होंगे, वो फिर वापस पूछताछ की मोड मैं आ गया ,
मैडम, आपके सामने, बॉक्स मैं नॉन - पैडेड ब्रा हैं, आप कहो तो पैडेड , और वायर वाली भी ले आउ , एक
नई कम्पनी की आयी है , कल ही. - दुकान वाला , वापस उसी कोने से बोला
मैं - उफ़ क्या से सारी ब्रा उसी कोने मैं रखता है?
मैं - साहिली को बोली, हां बोल दे, नहीं तो पडोसी भी आ जायेंगे
सहेली - अहं , हाँ भइया , ले आएए सभी,
दुकानवाला - लीजिये मैडम, एकदम , फ्रेश कलेक्शन, आप ही फर्स्ट कस्टमर हो.
मैं - पैडेड और वायर वाली ब्रा देखकर , उसकी शेप , शाइन , कलर वाओ , मैं ये , ये मेरी ब्रा, कितनी खूबसूरत लगेगी, अभी जाकर पेहनुगी , सिर्फ ब्रा, और कुछ नहीं,.........
सहेली - क्या हुआ, पसंद नहीं आयी , क्या सोच रही है।
दुकानवाला - हैं, मैडम, क्या पसंद नहीं आयी, कुछ और दिखाऊ ?
मैं - हम्म, नहीं ठीक है ,
अब , दूसरा सवाल , मन मैं - ये जायदा महंगी तो नहीं , जायदा मॅहगी हुई तो माँ, डाँटेगी - कहाँ ठगा गई तू।
मैं - भइया , कितने पैसे हुए ?
दुकानवाला - मैडम, कौन सी ब्रा ली आपने, पैडेड या नार्मल ?
मैं - सहेली को , तुझे कौन सी पसंद आयी ?
सहेली - मुझे, पैडेड , तू देख ले अपने "हिसाब" से. मेरे बूब्स की और देखती हुई बोली।
मैं - उफ़, ये भी न, पागल है, वो भी देख रहा है, ये भी मेरे बूब्स को ही देख कर बोल रही है.
फिर मैं बोली, पैडेड दे दीजिये , रेड , ब्लैक, वाइट और पिंक।
इस बार , मैंने उसके कलर पूछने से पहले बता दिए , पर छुटकारा आसान नहीं था , उसने पूछ ही लिया -
दुकानवाला - मैडम, फ्लावर डिज़ाइन या, प्लेन ?
मैं - अब क्या, करू ? फिर कहा , दो प्लेन और दो फ्लावर डिज़ाइन मैं दे दीजिये , रेड व् वाइट फ्लावर मैं और पिंक एंड ब्लैक प्लेन मैं.
\कितना हुआ \
दुकानवाला - मैडम जी, आपसे जायदा तो लेंगे नहीं , आगे भी तो बुलाना है, मगर, आपने पैंटी तो ले ही नहीं।
मैं - उफ़, ये ही बाकि था , अब.
हाँ, भइया मैं बोलने ही वाली थी,
तभी मेरी सहेली , मेरी और देख कर हंस देती है, धीरे से.
दुकानवाला - साइज मैडम, पैंटी का।
मैं - भइया - मीडियम चलेगा।
लिजीए, मैडम, मेरे सामने बॉक्सेस रखता हुआ बोला , ये शानदार , कम्फर्टेबल पीस है, कॉटन मैं, गर्मी मैं तकलीफ नहीं होगी। यह देखिये , पूरा सपोर्ट है, बीच मैं, "हर" दिन के लिए।
वो पैंटी के बीच के हिस्से को दीखाते हुए बोला , मैं शरम से लाल हुई जा रही थी.
मैं - ठीक है , ये भी दे दीजिये , २ पीेस , फिर कुछ रुक कर। ..... हम्म, ४ कर दीजिये डार्क कलर मैं.
फिर, वो कछ नहीं बोला , ब्रा और आपन्ति सब पैक कर दिए और हिसाब लगाने लगा ,
मैडम, आप को ९७५/- देना है,
मैं - उफ़, इतना जायदा ,
तभी सहेली बोली , भइया कुछ डिस्काउंट तो देना ही होगा , देखो आपके कहने से हमने नयी कम्पनी कीे ब्रा ली है , हम फर्स्ट कस्टमर है सो डीसकॉउन्ट तो बनता ही है, ......
दुकानवाला - हँसते हुए, मैडम, ठीक कहा आपने, वीएस भी आप तो पुराने ग्राहकः हैं, आपको नाराज थोड़ी करना है.
ऐसे कीजिये , ८५० दे दीजिये ,
सहेली - बिलकुल नहीं , ८००, बस
मैं - मन मैं सोच रही थी, ८५०, दे कर चालू यहाँ से, घर जा कर ब्रा पहनुंगी , और वो लडे जा रही थी. ... फिर मैं बोली , भइया प्लीज, आगे भी आपसे ही लेना है, जरुरत का सामान , आना जाना लगा ही रहेगा, देख लीजिये।
दुकानवाला - मैडम, आप इतना कह रही हैं तो ठीक है, आप मुज़ से ही सारा सामान लेंगी , दूसरी दुकान से नहीं, हमारी रेट और क्वालिटी बढ़िया है.
मैं - जी
फिर हमने , ८०० रुपए दिए और , भागे वहां से। ....... मैं घर की और चल दी। ...... मुझे तो ब्रा पहनने की जल्दी हो रही थी.
तभी ------ सहेली ने कहा, आरी कहाँ भागी जा रही है , यार कुछ खिला दे। ........ भूक लग रही है। ....
मैं - अच्छा जी, क्या खाना है,
..............................
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Kuch baatein beauty parlour, ladies tailer, boutique etc ki bhi post kijiye, ya young ladki ka college ka pehla din, kabhi kisi party function vivah shaadi ki koi chatpati baat, rishtedaari mein kabhi koi mann hi mann pasand aa jana, kabhi baarish mein nahana, kabhi ghar ya kahi aur bina bra ke chale jana aur sharminda hona ya mazboori mein kisi dusre ke ghar rukna padhna etc etc likhte rahiye sabhi
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तभी ------ सहेली ने कहा, आरी कहाँ भागी जा रही है , यार कुछ खिला दे। ........ भूक लग रही है। ....
मैं - अच्छा जी, क्या खाना है,
..............................
अब आगे ,
मैं - कहाँ चले , क्या खाना है जी ?
सहेली - देख , तेरी पहली ब्रा की पार्टी देनी होगी तुझे।
मैं - हैं जी, अच्छा जी , पार्टी का बहाना मिल गया तुझे , अच्छा क्या खाएगी ?
सहेली - वो ही, लड़किओं की पहेली पसंद - गोलगप्पे , दही बड़े , और कला खट्टा।
मैं - अच्छा जी, अब चले या यही, खड़े -खड़े सपनो मैं खानी है ये सब चीज़े।
सहेली और मैं , जल्दी से एक गोलगप्पे वाली के पास आ गए ,
उफ़, आज भी गोलगप्पे का नाम लेते ही मुँह मैं पानी आ जाता है. मैं आज भी गोलगप्पे नहीं छोड़ती जब भी बाजार जाना हो तब एक - दो राउंड हो ही जाते हैं
सहेली - आरी बोल ना , तू क्या खाने वाली है, भैया , जल्दी से गोलगप्पे खिला दो , हाँ खट्टा व् मिर्ची तेज़ होनी चाहिए।
मैं - हाँ, भइया , सही कहा, वैसे आपके गोलगप्पे मार्किट मैं सबसे टेस्टी होते हैं.
सहेली - हम्म, अब खिला भी दो.
यहाँ, पर मैं सभी महिला मित्रो से गुंजारिश करुँगी की, कुछ कहे गोलगप्पे के स्वाद के बारे मैं, एक अलग ही मज़ा आता है , खट्टा, तीखा , प्याज़ व् मसाले के साथ गोलगप्पे का पानी,
कुछ देर बाद सी। .. सी... सी..... करते हुए और खाना फिर बस भइया , पर मन मैं और खाने की इच्छा पर खुद को कण्ट्रोल करते हुए , मना ही लेना। ...
पर , आखिर मैं, सुखी पपड़ी का इंतज़ार वो भी नमक लगा के। ..........
क्यों , आ गया मुह मैं पानी, गोलगप्पे के स्वाद का.
हम्म, गोलगप्पे के स्वाद के साथ आगे बढ़ते हैं, हमने सभी चीज़े खा ली, सहेली खुश हो गई, बोली यार, मज़ा आ गया।
मैं - अब घर , गया तेरा।
सहेली - हाँ जी, घर चल के मार जो कहानी हैं,ऑन्टी से। ....
मैं - क्यों ,
सहेली - पागल, भूल गई , ब्लाउज और फॉल साड़ी की.
मन - उफ़, सच मैं , मैं तो एकदम भूल ही गई थी, ब्लाउज और फॉल के बारे में , मैंने कहा चल जल्दी कर, ब्लाउज लेते हैं.
फिर, हम एक दुकान पर पुहंची , ब्लाउज व् फॉल ले कर, बिना बार्गेन , न बाबा कुछ तो कम करवाना ही है, आखिर औरतो की नाक का सवाल है.
अब मुज़से नहीं रुका जा रहा था मार्किट मैं, सब दुकानों को नज़रअंदाज करते हुए , सीधा घर का रास्ता पकड़ लिया , मन मैं सोच रही थी, रेड ब्रा मैं कैसे लगूंगी , पिंक कैसे होगी, ब्लैक तो सब ड्रेस मैं चल जाती यही सोच कर ली थी, पर लाइट कलर की ड्रेस मैं ब्लैक तो साफ़ दिखेगी , कोई नहीं वाइट भी तो है, .......
सहेली - निहारिका , कहाँ खो गई, बोल न,
मैं - हम्म, कुछ नहीं रे, बहुत लेट हो गए , शॉपिंग मैं, फिर हम घर पहुंच गए,
माँ - आ गयी, देर लगा दी , निहारिका।
मैं - माँ , वो ब्लाउज व् फॉल भी तो लिया ना , और कुछ खाने मैं, ये गई थी न साथ मैं, भुक्कड़ , इसको तो गोलगप्पे बस दिखने चाहिए एकदम बच्चो जैसा ज़िद करि है।
माँ, - अच्छा बाबा , लाओ ब्लाउज और फॉल दो , कह कर माँ , ने प्लास्टिक बैग ले लिया ,
मेरी जान, फिर हलक मैं , उफ़, इसमें तो ब्रा और पैंटी भी हैं, कही माँ ने देख लिया तो,
और मैं ने देख ही लिया। .....
..............................................
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हम्म , जो डर था वो ही हुआ..... देख ली माँ ने ब्रा और पैंटी। ......
अब आगे ,
मेरा चेहरा शर्म से लाल था , आँखे माँ को ही देख रही थी की वो क्या बोले
माँ ने ब्रा और पैंटी को हाथ मैं लिया , कहा -
माँ - वाह अच्छी क्वालिटी की ब्रा है , कलर भी मस्त है , जब हम जवान हुए थे तो इतनी अच्छी ब्रा नहीं आती थी चल लेते थे काम, जो मिल जाती थी।
मैं - कुछ रिलैक्स हुई , फिर माँ ने पूछा , सहेली से अरी इसे भी दिला लाती ब्रा , देखो अब तो दिखने लगे है जोबन कुर्ती मैं से।
सहेली - ऑन्टी , निहारिका को ही तो दिला कर लायी हूँ , और देखो पैंटी भी है साथ मैं,
माँ - हम्म, अच्छी यही, कलर भी डार्क है , उन दिनों मैं भी काम आएगा और कपड़ो मैं से दिखगी भी नहीं। अच्छा किया जो तू साथ चली गई , नहीं तो ये बुद्धू ऐसे ही दिखती फिरती अपना जोबन।
मैं - हा , माँ, मैं ले आयी, अच्छा किया न ,
माँ - हम्म, ठीक है , पर आँचल ठीक से पहना कर , संभाल के जमाना ख़राब है, लोगों की नज़र जोबन पर ही रहती है।
सहेली - हाँ ,ऑन्टी जी, जरा समझा दो , पगली है एकदम।
सहेली भी, चुटी लेने से नहीं चुकती , "हर एक दोस्त कमीना होता है, ये तो कामिनी थी, जिसमे कोई कमी न थी"
मैं - अच्छा जी, समझ गई , बस।
सहेली - आंटी , अब मैं चलती हु , बाई निहारिका।
मैं - बाई
फिर सहेली , अपने घर को निकल गई, और मैंने माँ को देखा और माँ ने मुझे देखा , कुछ था जो हम एक दूसरे से कहना चाहते थे
मैं - माँ, अब अंदर चले , मने शॉपिंग बैग उठाये और कमरे मैं चल दी, थोड़ा तेज़ , शायद बचना चाहती थी, बातचीत से।
जैसे ही कमरे मैं पुहंची , आँचल उतार के बिस्तर पर फेंका और बिस्तर पर बैठ गई , पांच मिनिट ही हुए होंगे की माँ आ गई, अब क्या। .....
माँ - निहारिका , दिखा तो तेरी ब्रा , कैसे है बाहर तो ठीक से देख नहीं पायी।
मैं- हम्म, माँ लो ये देखो , ये पैडेड है और सॉफ्ट है, नई कंपनी की है. और पैंटी भी सॉफ्ट है.
माँ - हम्म, सॉफ्ट तो है, और पैंटी मैं भी ये बीच का हिस्सा अच्छा है, सपोर्ट के लिए।
मैं - हाँ , माँ
माँ- जरा पहन कर दिखा तेरी नई ब्रा। ...
..............................
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(05-04-2020, 04:24 AM)Niharikasaree Wrote: हम्म , जो डर था वो ही हुआ..... देख ली माँ ने ब्रा और पैंटी। ......
अब आगे ,
मेरा चेहरा शर्म से लाल था , आँखे माँ को ही देख रही थी की वो क्या बोले
माँ ने ब्रा और पैंटी को हाथ मैं लिया , कहा -
माँ - वाह अच्छी क्वालिटी की ब्रा है , कलर भी मस्त है , जब हम जवान हुए थे तो इतनी अच्छी ब्रा नहीं आती थी चल लेते थे काम, जो मिल जाती थी।
मैं - कुछ रिलैक्स हुई , फिर माँ ने पूछा , सहेली से अरी इसे भी दिला लाती ब्रा , देखो अब तो दिखने लगे है जोबन कुर्ती मैं से।
सहेली - ऑन्टी , निहारिका को ही तो दिला कर लायी हूँ , और देखो पैंटी भी है साथ मैं,
माँ - हम्म, अच्छी यही, कलर भी डार्क है , उन दिनों मैं भी काम आएगा और कपड़ो मैं से दिखगी भी नहीं। अच्छा किया जो तू साथ चली गई , नहीं तो ये बुद्धू ऐसे ही दिखती फिरती अपना जोबन।
मैं - हा , माँ, मैं ले आयी, अच्छा किया न ,
माँ - हम्म, ठीक है , पर आँचल ठीक से पहना कर , संभाल के जमाना ख़राब है, लोगों की नज़र जोबन पर ही रहती है।
सहेली - हाँ ,ऑन्टी जी, जरा समझा दो , पगली है एकदम।
सहेली भी, चुटी लेने से नहीं चुकती , "हर एक दोस्त कमीना होता है, ये तो कामिनी थी, जिसमे कोई कमी न थी"
मैं - अच्छा जी, समझ गई , बस।
सहेली - आंटी , अब मैं चलती हु , बाई निहारिका।
मैं - बाई
फिर सहेली , अपने घर को निकल गई, और मैंने माँ को देखा और माँ ने मुझे देखा , कुछ था जो हम एक दूसरे से कहना चाहते थे
मैं - माँ, अब अंदर चले , मने शॉपिंग बैग उठाये और कमरे मैं चल दी, थोड़ा तेज़ , शायद बचना चाहती थी, बातचीत से।
जैसे ही कमरे मैं पुहंची , आँचल उतार के बिस्तर पर फेंका और बिस्तर पर बैठ गई , पांच मिनिट ही हुए होंगे की माँ आ गई, अब क्या। .....
माँ - निहारिका , दिखा तो तेरी ब्रा , कैसे है बाहर तो ठीक से देख नहीं पायी।
मैं- हम्म, माँ लो ये देखो , ये पैडेड है और सॉफ्ट है, नई कंपनी की है. और पैंटी भी सॉफ्ट है.
माँ - हम्म, सॉफ्ट तो है, और पैंटी मैं भी ये बीच का हिस्सा अच्छा है, सपोर्ट के लिए।
मैं - हाँ , माँ
माँ- जरा पहन कर दिखा तेरी नई ब्रा। ...
.............................. निहारिका जी क्या बात है बहुत खूब
बिल्कुल बचपन का हूबहू चित्रांकन किया है
वो हम लड़कियों की मस्ती बाहर घूमना फिरना चुहलबाजी ओर फिर नए कपड़ो का तो ख़ुमार 10 दिन नहीं उतरता था मन से
बहुत बढ़िया लिख रही हो इस घर ग्रहस्ती के झमेले में पता नहीं बचपन कैसे बिल्कुल भूल गयी हम सब पर आप ने इस थर्ड के माध्यम से जीवंत कर दिया है
वेसे हम लड़कियां बचपन मे होती बहुत नटखट थी,,
ब्रा पेंटी किसी सहेली के लिए खरीदती भी हम ही थी फिर लाखों कसमें खिला के देखती भी हम ही थी
ओर साथ पढ़ने लिखने के समय तो कुछ मस्तियाँ ओर टाइप की भी हो ही जाती थी जब कुछ फ़िल्म या पत्रिका या किताब में कुछ ऐसा वेसा दिख जाता तुरंत सामने वाली के ऊपर डाल देना ये तुं है ये तेरा है,
ओर पलट के उस का जवाब ये तेरी शादी के बाद का हाल है ये फोटो तेरा है ऊफ़्फ़ कहाँ खो गयी वो चुहलबाजी अठखेलियाँ
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(05-04-2020, 08:09 AM)Poonam_triwedi Wrote: निहारिका जी क्या बात है बहुत खूब
बिल्कुल बचपन का हूबहू चित्रांकन किया है
वो हम लड़कियों की मस्ती बाहर घूमना फिरना चुहलबाजी ओर फिर नए कपड़ो का तो ख़ुमार 10 दिन नहीं उतरता था मन से
बहुत बढ़िया लिख रही हो इस घर ग्रहस्ती के झमेले में पता नहीं बचपन कैसे बिल्कुल भूल गयी हम सब पर आप ने इस थर्ड के माध्यम से जीवंत कर दिया है
वेसे हम लड़कियां बचपन मे होती बहुत नटखट थी,,
ब्रा पेंटी किसी सहेली के लिए खरीदती भी हम ही थी फिर लाखों कसमें खिला के देखती भी हम ही थी
ओर साथ पढ़ने लिखने के समय तो कुछ मस्तियाँ ओर टाइप की भी हो ही जाती थी जब कुछ फ़िल्म या पत्रिका या किताब में कुछ ऐसा वेसा दिख जाता तुरंत सामने वाली के ऊपर डाल देना ये तुं है ये तेरा है,
ओर पलट के उस का जवाब ये तेरी शादी के बाद का हाल है ये फोटो तेरा है ऊफ़्फ़ कहाँ खो गयी वो चुहलबाजी अठखेलियाँ
पूनम जी ,
मुझे ख़ुशी हुई की आपने अपने बचपन- अल्हड जवानी की यादे ताज़ा करी।
मेरी यही कोशिश है की हम अपने व्यस्त जीवन मैं से कुछ पल अपने लिए, पुरानी बातो को ताज़ा करे।
अब तो सिर्फ मिसेज़ ये या मिसेज़ वो बन कर ही रह गई हैं नहीं तो इसकी मम्मी या उसकी मम्मी। .......
वो चढ़ती जवानी मस्ती , चुलबुलाहट हंसी, जाने कहाँ खो गई , ब्रा खरीदने या साथ मैं जाना एक अलग ही एडवेंचर हुआ करता था , दुकान पर चार - पांच लड़किया ब्रा और पैंटी देखती, और दीखाओ, कलर पर लेनी एक को ही हैं, कभी दुकान वाला मज़े लेता कभी हम।
और आपने सही कहा की " एक बार पहन कर दिखा दे न, बहन प्लीज " क्या मज़ा आता था छेड़ने मैं , " तेरे पहले से बड़े हो गए, क्या खाती है, बता न "
फिर कॉलेज या कॉलेज के हैंडसम लड़के के साथ जोड़ कर उसे छिड़ना , तंग करना , हसना, खिलखिलाना। .......
क्या दिन थे। .........
जिम्मेदारी के साथ , सब सँभालते हुए , पति की " इच्छा" पूरी करना बस यही रह गया है, लेकिन, इसका अलग मज़ा है, उम्मीद है आप सभी महिला पाठक सहमत होंगी ।
मैं कोशिश करुँगी की अपनी जवानी की कहानी मैं सभी महिला पाठको को अपनी एक कहानी दिखाई दे,आम तोर पर हम लड़कियों का जवानी का दौर एक जैसा होता है.
कुछ का नमकीन,और कुछ का और जायदा नमकीन।
इसी तरह जुड़े रहिये। ..........................
Well to be honest your expression of girls feeling is awesome dear.. you reminded me of my gf's lil talk in which she used to narrate her first experience as a teen girl.
Read my thread:
Dr. Revati
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(06-04-2020, 01:18 AM)playboy131 Wrote: Well to be honest your expression of girls feeling is awesome dear.. you reminded me of my gf's lil talk in which she used to narrate her first experience as a teen girl.
Read my thread:
Dr. Revati
जी, शुक्रिया
यह तो हम लड़कियों की दास्ताँ है, टीन ऐज सभी का लगभग एक जैसा ही होता है, मुझे ख़ुशी हुई की आपको भी किसी लड़की की कही बाते याद आ गई , शब्द ही हैं जो काल को पीछे छोड़ कर वापस आपको उसी काल मैं ले जाने की क्षमता रखते हैं। शब्दों से ही फीलिंग आसानी से समाझ आ जाती है।
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मैं - हाँ , माँ
माँ- जरा पहन कर दिखा तेरी नई ब्रा। ...
..............................
प्रिय सहेलिओं ,
निहारिका का प्यार भरा नमस्कार ,
आम तोर पर इस देश मन लड़की को परायी अमानत और बेटे से कम समझा जाता रहा है , सहन करना , चुप रहना , जिद न करना, बात मान लेना, "उन दिनों" मैं तो क्या कहना जैसे गुनाह - ऐ - अज़ीम हो गया हो और भी कई समझौते जो जवानी से आगे पूरी जिंदिगी चलते रहते है.
माँ और बेटी के बीच घर के काम और बातचीत जो और जब माँ चाहे ही होती है , माँ - एक दोस्त या सहेली तरह तो वो लड़की के शादी के बाद और खुलती तो लड़की के बच्चा होने के बाद ही है.
जब लड़की को सबसे जायदा जरुरत होती है माँ की, टीन ऐज मैं तब बाते काम तकरार जायदा, लड़की को डर, संकोच , उम्मीद सब माँ से ही होता है, बाकि परिवार के लिए लड़की बस लड़की होती है.
माँ - ने कहा , जरा पहन कर दिखा। ...
मैं - खुश हुइ मैं, जल्दी से बाथरूम मैं जा कर , कुर्ती उतारी, पुरानी ब्रा व् समीज़ भी निकल फेंकी, नहीं ब्रा को हाथ मैं लिया कौन सी पेहेनू , रेड , ब्लैक हम्म्म, रेड ही पेहेन लेती हु.
इधर , माँ ने खिड़की दरवाजा सब बंद कर दिया था, जो मैं भूल गई थी. माँ आखिर माँ ही होती है.
बाथरूम का दरवाजा धीमे से खोल के देखा , सब बंद उफ़, माँ कितना ध्यान रखती है
माँ - आ जा , वही रहने का इरादा है
मैं - नहीं ,आ गई , माँ कैसे है
माँ - हाय , नज़र न लगे मेरी बेटी को, आज लग रहा है बेटी कब बड़ी हो जाती है, पता ही नहीं चलता
मैं - शर्मा कर, माँ , अभी कहाँ बड़ी हुई।
माँ - घर - मैं फंस कर, सुबह से शाम कैसे हो जाती है पता ही नहीं चलता , जिम्मेदारी और काम निभतएते चलो.
बेटी , होना तो ये चाइये था की मैं खुद जाकर तुझे तेरी ज़रूरत का सामान दिलवती बाजार से, पर घर मैं ही फसी रह गई, बेटी को इग्नोर कर दिया, बस काम मैं हाथ बटा दे काम कुछ हल्का हो जाए और बेटी कुछ सिख जाए जिससे आगे लेकर जाकर उसे परेशानी न हो, सबको खुश रखे ससुराल मैं , हर माँ की यही सोच रहती है पर मैं ये भूल गई की माँ - बेटी का रिश्ता अटूट होता है और उसे एक सहेली की तरह पेश आना चाहिए।
मैं - माँ के पास बैठ गई , उनके कंधे पे सर रख के , थोड़ी उदास हो कर,
तभी माँ ने कहा , आरी उदास क्यों होती है, और प्यार से सर पर हाथ फेरा कहा, उठ और दूसरी ब्रा दिखा पहन के।
मैं - है , माँ
माँ - हम्म, ले ये पिंक वाली ले
मैं - मैंने पिंक वाली ली और बाथरूम मैं जाने लगी, तभी माँ ने रोका , कहा यही चेंज कर ले , माँ से कुछ छुपा नहीं है
मैं - मैं , शर्मा के , अच्छा माँ , और मैं ब्रा उतार दी और दूसरी पहनने लगी,
माँ - तेरे स्तन तो ठीक हैं, कोई दर्द, या गांठ तो नहीं ध्यान रखना आगे दूध बनने मैं कोई शिकायत नहीं होनी चाहिए, जिंदगी व् जिम्मेदारी बहुत लम्बी होती है औरत के लिए.
मैं - नहीं, माँ अब तक तो सब ठीक है , थोड़ा रुक कर। ... आखिर पूछ ही लिया माँ से। ....
मैं - माँ, मेरे और कितने बड़े होंगे , तुम्हरे जैसे हो जायेंगे क्या ?
माँ - हंसती है, और कहती है , पागल अभी से कहाँ , है अभी तो तेरा साइज क्या है,
मैं - ३२
माँ - हम्म, ३६ तक तो हो ही जायेंगे , ठीक से खाया कर , जरूरी है।
मैं -सोच रही थी, ब्रा पहनते हुए, कितना जरूरी है एक माँ - बेटी की आपसी बातचीत , कितने सवाल का जबाब आसानी से मिल जाता है, माँ से।
फिर , पिंक वाली ब्रा दिखाते हुए, माँ कैसी है ये वाली
माँ - हम्म, एकदम मस्त, फब रही है तुज पे. वैसे भी पिंक कलर तो लड़कियों का होता है.
मैंने - फिर पानी घर की कुर्ती पहन ली और , हम माँ बेटी ने कुछ देर और बात करि, बातो ही बातो मैं , माँ ने कहा, तेरी पीरियड्स ठीक आ रहे हैं न,
मैं - .....................
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Ye poori xossipy ka specially Hindi section ka ab tak ka best of the best thread hai, baaki female members se bhi request hai ki aap sabhi bhi kuch puraani yaadein likh kar ismein apna sahyog de, suhagraat ke chatpate kisse, pehli baar baby ko breastfeeding karwate time ki mother feeling ya ghar mein ya kisi jaan pehchaan wali mahila ko breastfeeding karwate dekh sochna ki kabhi main bhi isi tarah apne bachhe ko doodh pilayungi etc etc
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07-04-2020, 02:28 AM
(This post was last modified: 07-04-2020, 09:21 PM by Niharikasaree. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
(07-04-2020, 12:25 AM)ghost19 Wrote: Ye poori xossipy ka specially Hindi section ka ab tak ka best of the best thread hai, baaki female members se bhi request hai ki aap sabhi bhi kuch puraani yaadein likh kar ismein apna sahyog de, suhagraat ke chatpate kisse, pehli baar baby ko breastfeeding karwate time ki mother feeling ya ghar mein ya kisi jaan pehchaan wali mahila ko breastfeeding karwate dekh sochna ki kabhi main bhi isi tarah apne bachhe ko doodh pilayungi etc etc
जी शुक्रिया ,
जर्रानवाजी का, वार्ना हम तो यु ही ज़िंदगी काट रहे थे।
सभी महिलाओ के सहयोग से ही, ये कहानी आगे चलेगी, जैसे की ऊपर सही कहा है, सभी औरतो की अपनी फीलिंग होती है, एक अपना एहसास होता है, कुछ पल कीमती होते है, कृपया शेयर करें।
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08-04-2020, 12:29 AM
(This post was last modified: 08-04-2020, 12:33 AM by Niharikasaree. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
तेरी पीरियड्स ठीक आ रहे हैं न,
मैं - .....................
प्रिय सहेलिओ
मेरा प्यार भरा नमस्कार ,
"पीरियड्स" की बात आते ही, मैं शोकेड थी, अब क्या बोलो , क्या बात करू, हम माँ - बेटी की इस बारे मैं कभी कोई ज़्यदा बात चित नहीं हुई, बस माँ - "वो" दिन आ गए, दर्द हो रहा है, किचन से दूर , जैसे हम सब ने फेस किया है।
माँ - अरि, बोल न, क्या हुआ, सब ठीक।
मैं - हाँ माँ, वैसे तो सब ठीक, पर, दर्द होता है, कमर मैं, और निचे।
माँ - वो तो सबको होता हैं, तू बताती क्यों नहीं,
यही, यही तो वो बात हैं जो हम लड़किया किसी को नहीं बताती , ऊपर वाले ने भर भर के सहनशक्ति दी है, सब सहो, सबको सहो.
मैं - कभी बात ही नहीं हुई हमारी, इस बारे मैं.
माँ - हम्म, अब मुझे लग रहा है, मैं भी इसी तरह बड़ी हो गई, शादी फिर बच्चे, जिम्मेदारी, घर मैं व्यस्त। न मेरी माँ ने कुछ कहा - समझा और न मैंने मेरी बेटी से , कितना कठिन हो जाता है अपनी बेटी के लिए समय निकलना , दो बाते करना , दर्द मैं दिलासा देना।
मैं - माँ , क्या हुआ , क्या सोच रही हो, सब ठीक है.
माँ - आजा, मेरे पास, मेरा बच्चा। ..
और माँ , ने मुझे गले से लगा लिया, हम दोनों चुप थे बस दो दिलो की धड़कन सुनाइ दे रही थी.
करीब, ५ - ७ मिनिट के बाद हम अलग हुए तो माँ के आँख मैं आंसू थे , टपके नहीं, पर दिख रहे थे , फिर माँ बोली -
माँ - अब कुछ भी परेशानी हो, मुज़से आ कर बात करना , देख ज़िंदगी बहुत बड़ी है, बड़ी जिम्मेदारी सम्भालनी है, मैं हमेशा तेरे साथ नहीं रहूंगी।
मैं- माँ, ऐसा क्यों बोलती हो, हम फिर चुप.
पीरियड्स की बारे मैं, आज भी हम चुप रहते हैं, माँ बस बता देती है , ये ले , लगा लेना, ज्यादा उछाल कूद बंद, किचन, मंदिर से दूर और तमाम हिदायाते।
पर वो दर्द, परेशानी, अलग - थलग महसूस करना, चुप रहना, एकदम वो बचकानी हरकते बंद होना, खुद मैं बदलाव महसूस करना , किसी से न कह पाना,..........................
एक लड़की, जैसे मैंने महसूस क्या था , लिख दिया, हो सकता है, कुछ पाठीकाओ को सामान या अच्छा माहौल मिला होगा , कृपया कुछ शेयर करे , अगर चाहे तो.
माँ - तेरे पास "पैड्स " हैं, या ख़तम हो गए ,
मैं - है, माँ, अभी है, कुछ. चल जाएँगे अभी तो.
माँ - यही ले पैसे , कल और ले आना, और रखना। इमरजेंसी मैं , रात को, जब दुकान न खुली हो , तब क्या करेगी। एक अपने साथ भी रखा कर , कॉलेज / कालेज मैं क्या करेगी। पागल लड़की।
मैं [मन मैं ] - उफ़, यही, प्यार, और प्यार भरी डांट , लड़कियाँ तरस जाती हैं, सुनने को., हाँ माँ , कल ले आउंगी बस.
माँ - चल, अब किचन मैं, खाने की तैयारी करनी है.
मैं - हम्म, तुम चलो, मैं आती हूँ यह सब रख कर, अपनी ब्रा , पैंटी को समेटते हुए कहती हु.
माँ - अच्छा, ज्यादा देर मत लगाना।
फिर माँ , रूम से बहार चली जाती है , मैं सोचती हु की, कितनी सारी बाते जो हम नहीं पूछ पाते, और माँ बाता नहीं पाती, कुछ देर से , कुछ परेशानी झेल कर कुछ ज़िंदगी सीखा देती है। ....
तभी , माँ की आवाज। ...... निहारिका ,औ निहारिका
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बहुत अच्छा , सच में माँ से बढ़ कर कोई सहेली नहीं होती , ... आप ने एकदम मेरे दिल की बात कह दी और कितनी यादों को झकझोर के रख दिया ,...
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(08-04-2020, 09:39 AM)komaalrani Wrote: बहुत अच्छा , सच में माँ से बढ़ कर कोई सहेली नहीं होती , ... आप ने एकदम मेरे दिल की बात कह दी और कितनी यादों को झकझोर के रख दिया ,...
कोमल जी,
सच कहा आपने, माँ सिर्फ माँ होती है, यह औरत को माँ बन कर ही समझ आता है.
आज हम मैं से कई पाठिकाएं, कुछ कुंवारी, कुछ नव विवाहित , कुछ माँ बनने की कोशिश मैं, कुछ माँ बनी होंगी , कुछ बच्चो की नटखट शैतानी झेल रही होंगी, हर पड़ाव मैं एक अलग स्वाद, एक अलग मज़ा है.
कोमल जी, बस आप झलक दिखलाते रहिये , चांदनी ऐसे ही बिखर जाएगी।
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फिर माँ , रूम से बहार चली जाती है , मैं सोचती हु की, कितनी सारी बाते जो हम नहीं पूछ पाते, और माँ बाता नहीं पाती, कुछ देर से , कुछ परेशानी झेल कर कुछ ज़िंदगी सीखा देती है। ....
तभी , माँ की आवाज। ...... निहारिका ,औ निहारिका
..........................
प्रिय सहेलिओं ,
निहारिका का प्यार भरा नमस्कार ,
अब आगे ,
फिर , मैं माँ के पास किचन मैं जाती हूँ. किचन मैं माँ, खाने की तैयारी कर रही थी, मेरे आते ही वो बोली, आ गई निहारिका , आजा. बता आज क्या बनाना है खाने मैं. मैं बोली कुछ भी जो पिताजी को पसंद हो वो बना लो
माँ- उनके पसंद का रोज़ ही बनता है, आज तू बता क्या खाना है.
मैं - माँ, क्या बोलू, आप जो चाहो बना लो.
एक सीधा सा सवाल, क्या खाना है, जिसका जवाब आज तक नहीं मिला , हँ लड़कियों से कभी पूछा ही नहीं जाता , बस जो भाई, या पिताजी को पसंद हो वो है , शादी के बाद पति की पसंद , या सास का हुकुम, फिर बच्चो की ज़िद , एक लड़की, लड़की से औरत और औरत से माँ व् बीबी बन जाती है पर उसे उसकी पसंद उसे कभी मालूम नहीं होती पर पुरे घर की पसंद और नापसंद का ध्यान रहता है वो भी जिंदगी भर.
मैं - सोचा की आज मौका मिला है , माँ भी पूछ रही है, कुछ तो बोलना है, या चुप रहु , पनीर है क्या , बस इतना ही बोल पायी उस दिन
माँ - नहीं है , पर बन जायेगा , तू रुक, हम्म, एक काम कर , तू बर्तन कर ले, इतने मैं कुछ करती हूँ.
मैं - अच्छा माँ, ठीक है.
बर्तन थे सिंक मैं , मैंने नल खोला और काम शुरू किया, साथ ही साथ सोचे जा रही थी, आज पनीर बनेगा, पर कैसे, पनीर तो है ही नहीं घर मैं, शायद माँ, पिताजी को बोल कर मंगवा लेंगी। इसी उधेड़बुन मैं, बर्तन साफ़ कर रही थी.
अचानक माँ बात याद आ गयी, उफ़ माँ ने कितनी आसानी से पीरियड्स और पैड्स के बारे मैं पूछ लिया और समझाया भी, कितनी बावली हूँ मैं भी, सही कहा माँ ने , एक तो हमेशा साथ होना ही चाहिए मुज़े जरुरत पड़े या किसी और को.
फिर , जैसे मैं बीते दिनों मैं जा पहुंची , जब पहेली बार दर्द हुआ था, पर खेलना - कूदना जरूरी था , मुझे याद है मैं पार्क मैं खेल रही थी, घर के सामने ही था, हंम उम्र के लड़कियों के साथ स्टापू खेल रही थी, पुराने खेल ये ही थे स्टापू, संतोलिया , छुपन - छुपाई , उस ज़माने मैं।
हम्म, मैं अपनी बारी का इंतज़ार कर रही थी, हल्का अँधेरा था, और माँ की आवाज़ का इंतज़ार, कि अभी घर बुला लेगी , पर अपनी चांस कौन छोड़े , सवाल ही नहीं, पर जिसका डर हुआ, आ गई माँ की आवाज़ , निहारिका , ओ निहारिका , आजा.
बस,मन मार के , घर आ गई,
तभी
माँ बोली- चल हाथ - मुँह धो ले, मैं जा रही थी, की माँ ने रोका , तुझे लगी है क्या , खेलते हुए,
मैं - नहीं माँ, , फिर यह खून के दाग......
वो माँ का चेहरा आज भी याद है , शंका, चिंता , डर, अंदेशा। ..........
वो भी मेरे बाथरूम मैं आयी, दिखा तो जरा.
...............................
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(09-04-2020, 11:28 AM)Niharikasaree Wrote: फिर माँ , रूम से बहार चली जाती है , मैं सोचती हु की, कितनी सारी बाते जो हम नहीं पूछ पाते, और माँ बाता नहीं पाती, कुछ देर से , कुछ परेशानी झेल कर कुछ ज़िंदगी सीखा देती है। ....
वो भी मेरे बाथरूम मैं आयी, दिखा तो जरा.
...............................
कोई भी शब्द काफी नहीं होंगे
न उन स्थितियों को बयांन करने के लिए जिनके आप चित्र उकेर रही हैं
न आपकी तारीफ़ करने के लिए
आप मेरी पक्की वाली सहेली हैं इसलिए नमन तो नहीं कर सकती हाँ अँकवार में जरूर भर सकती हूँ , खूब कस के , देर तक
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(09-04-2020, 11:51 AM)komaalrani Wrote: कोई भी शब्द काफी नहीं होंगे
न उन स्थितियों को बयांन करने के लिए जिनके आप चित्र उकेर रही हैं
न आपकी तारीफ़ करने के लिए
आप मेरी पक्की वाली सहेली हैं इसलिए नमन तो नहीं कर सकती हाँ अँकवार में जरूर भर सकती हूँ , खूब कस के , देर तक "आप मेरी पक्की वाली सहेली हैं इसलिए नमन तो नहीं कर सकती हाँ अँकवार में जरूर भर सकती हूँ , खूब कस के , देर तक "
कोमल जी,
आपने जी जो कुछ अनमोल शंब्द अपनी कर कलम के लिख दिए है,वो मेरे लिए किसी अवार्ड से काम नहीं है, आपकी बांते सावन की फुहार के जैसे आती है, सब गिला हो जाता है, भीग के , आँख के आंसू भी नहीं नज़र आते , , आँख नम हो जाती है आंसू से, प्यार भाई बातो से आये आंसू , ख़ुशी और अपनेपन की निशानी होते हैं.
बस अपना प्यार देते रहिये ,
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09-04-2020, 01:08 PM
(This post was last modified: 09-04-2020, 01:11 PM by @Kusum_Soni. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
(09-04-2020, 11:51 AM)komaalrani Wrote: कोई भी शब्द काफी नहीं होंगे
न उन स्थितियों को बयांन करने के लिए जिनके आप चित्र उकेर रही हैं
न आपकी तारीफ़ करने के लिए
आप मेरी पक्की वाली सहेली हैं इसलिए नमन तो नहीं कर सकती हाँ अँकवार में जरूर भर सकती हूँ , खूब कस के , देर तक बिल्कुल सच कहा कोमल जी आप ने
निहारिका जी ने हम सब के उस अल्हड़ दौर ओर बचपन से सयाने पन में आने और उस समय की मौज मस्ती के बीच भावी जीवन की जो चिंता होती थी उस को केनवास पर अपनी अदभुत लेखनी द्वारा जिस प्रकार उकेरा है में स्तब्ध हूँ जैसे उन्ही दिनों में जी रही हूं ऐसा लगता है पढ़ते हुए
कोमल जी आप ने हम सब को एक नया जीवन दिया है
आप का साथ जीवन का एक बहुत बड़ा पारितोषिक है हम सब लड़कियों के लिए
हमें अपने स्नेह और अपनत्व से यूँही सिंचती रहना
निहारिका जी कोई शब्द नहीं है आप की तारीफ में ये कर्ज़ बाकी ही रहेगा
आप की कुसुम सोनी
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