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31 41.89%
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Romance मोक्ष : तृष्णा से तुष्टि तक
#41
अध्याय 15


“कहाँ जा रही हो?” ऋतु को अपने बैग लेकर बाहर आते देखकर बलराज सिंह ने गुस्से से कहा

“आप चिंता मत करो.... में किसी के साथ भागकर नहीं जा रही हूँ...और न ही कुछ ऐसा करने...जिससे आपकी ही नहीं मेरी भी इज्ज़त पर दाग लगे” ऋतु ने भी उनकी आँखों में आँखें डालकर गुस्से से जवाब दिया “में आप लोगों के साथ नहीं रह सकती... यहाँ मेरा दम घुट रहा है.... में अब से रागिनी दीदी के साथ रहूँगी....”

“ऋतु बेटा सुनो तो...” मोहिनी देवी ने ऋतु को रोकते हुये कहा

“अब फिर कोई नई कहानी है सुनने के लिए?” लेकिन मेरे पास न तो सुनने के लिए वक़्त है और न ही दिमाग...” ऋतु ने फिर गुस्से से कहा

“बेटा हमने जो भी जरूरी था...तुम्हें बता दिया...कुछ बातें समय आने पर बताते... लेकिन न तो रागिनी ने ही हमें मोहलत दी और न ही तुम...वहाँ से आने के बाद तुमने हमसे कुछ भी जानने की कोशिश की? कुछ भी पूंछा? आते ही अपने कमरे में गईं और समान लेकर घर छोडकर चल दी” मोहिनी ने भी गुस्से में कहा

“हाँ! यहाँ आकर फिर आपसे पूंछती और फिर एक नई कहानी सुनती....जब मेंने आपको विक्रम भैया के साथ वहाँ उस घर में जाते देखा था तो उसका अपने बताया कि वहाँ अप उनके साथ उस मकान कि देखरेख के लिए जाती थी... लेकिन ऐसी कौन सी देखरेख है जो आपको उस घर में घंटो विक्रम भैया के साथ रहना पड़ता था....? और जब आप लोग रागिनी दीदी के बारे में सबकुछ जानते थे तो उनके साथ अंजान क्यों बने रहे...जब तक कि वो यहाँ उस मकान में नहीं आ गईं और मेंने उनको वहाँ देखकर सवाल नहीं किया? आप लोगो ने मुझे पहले तो कभी बताया ही नहीं परिवार के बारे में... विमला बुआ के बारे में, रागिनी दीदी के बारे में........... और अभी पिछले 2-3 दिन में जो आपने बताया वो बिलकुल झूठ... जिसे आपके मुंह पर ही रागिनी दीदी ने गलत साबित कर दिया.......... वो बिना किसी याद, बिना पहचान, अंजान शहर में भी सिर्फ 3 दिन में इतना जान गईं... और में इतनी काबिल, एक वकील होते हुये, परिवार के बीच में रहकर भी कभी कुछ जान ही नहीं पायी और जब जानना चाहा तो आपसे सिर्फ झूठ सुनने को मिला.... अब मुझसे कभी मिलने या बात करने कि कोशिश भी मत करना......... मुझे तो आज जो रागिनी दीदी कि हालत है और जो विक्रम भैया के साथ हुआ... उसमें भी आपका ही हाथ लगता है... इसीलिए आप इन बातों को दबाये रखना चाहते हैं.........और एक आखिरी बात...अगर रागिनी दीदी, अनुराधा या प्रबल के साथ कुछ भी बुरा हुआ तो.... उसके जिम्मेदार केवल आप ही होंगे...मेरी नज़र में” कहते हुये ऋतु ने अपने बैग लिए और बाहर खड़ी कैब में जाकर बैठ गयी.... उसके बैठते ही ड्राईवर ने गाड़ी आगे बढ़ा दी

......................................

उन लोगों के जाने के कुछ देर बाद रागिनी ने दोनों बच्चों को अपने से अलग किया और खाना खाने के लिए कहा तो सब अपनी अपनी सोच में डूबे खाना खाने बैठ गए.... खाना खाकर अनुराधा और रागिनी ने रसोई का काम निबटाया और तीनों ड्राविंग रूम में आकार बैठ गए

“माँ तुम्हें ये सब जानकारी कहाँ से मिली और आपको अपने माता-पिता का तो हॉस्पिटल के रेकॉर्ड से पता चला होगा... लेकिन वो भी आपने कैसे पक्का किया? और दूसरे चाचा का?” अनुराधा ने बात शुरू करते हुये कहा

“मुझे अभय ने विक्रम के गाँव का एड्रैस मैसेज किया था... और में गाँव भी गयी थी तो गाँव का नाम और तहसील, जिला सहित पूरा एड्रैस मुझे पता था.... जब हम यहाँ से कोटा गए थे तो रास्ते में मुझे हॉस्पिटल का डाटा व्हाट्सएप्प पर जो मिला उसे चेक करते समय मुझे एक बच्ची के जन्म के रेकॉर्ड में उसी गाँव का पता दिखाई दिया तो मेंने वो जानकारी नोट कर ली बाद में जब हम कल वापस लौटते हुये कोटा गए थे तब सुरेश ने बताया था की बलराज सिंह 5 भाई थे... रात मेंने सुरेश को बोला था की गाँव से इन सभी भाई बहनों के नाम पता करके  बताए तो सुरेश के पिताजी ने बताया था  के 2 बड़े भाइयों के नाम जय और विजय हैं... और तीसरे भाई गजराज जिन्हें गाँव में गज्जू कहते थे से छोटी 2 बहनें हैं जुड़वां, विमला और कमला उनसे छोटे 2 भाई बल्लू उर्फ बलराज और देवू उर्फ देवराज हैं।

जय की शादी के समय में वो लोग अपनी ननिहाल में रहते थे....और वहीं से की थी, विजय की शादी के समय वो गाँव में रहते थे लेकिन शादी ननिहाल के रिशतेदारों ने ही करवाई थी.... उसके बाद उनके पिताजी बीमार रहने लगे थे तो दोनों बहनों की शादी जयराज ने ही खुद रिश्ता देखकर की और लगभग 1 साल बाद पिता की मृत्यु हो जाने पर अपनी माँ और छोटे-छोटे तीनों भाइयों को अपने साथ लेकर दिल्ली चले गए फिर बहुत सालों के बाद उनकी माँ और भाइयों ने तो बड़े होकर गाँव आना जाना शुरू कर दिया था लेकिन जयराज कभी गाँव नहीं आए और उनकी वहीं मृत्यु हो गयी ऐसी सूचना मिली थी” रागिनी ने बताया

“लगता है आपको लगभग सारी जानकारी मिल गयी है.... और विजयराज के बारे में भी कुछ पता चला? जयराज के भी क्या आप अकेली ही बेटी थीं या कोई और भी? ...............लेकिन अब क्या करना है... जितनी जानकारियां मिलती जा रही हैं उनसे हम तीनों एक दूसरे से अलग दिखते जा रहे हैं.......... पहले हम आपके बच्चे थे, मेरे पास एक माँ और एक भाई थे... और विक्रम भैया को चाहे सौतेला ही समझती थी लेकिन लेकिन वो भी भाई थे..... फिर उनके बाद जो पता चला तो आप मेरी बुआ थीं अब आप मेरी दादी के बड़े भाई की बेटी हैं.... प्रबल के परिवार के बारे में तो पता चला ही नहीं.... और दूसरे देश का मामला होने की वजह से इतना आसान भी नहीं.... अब क्या हम सब ऐसे भी जिएंगे... खुद को न पहचानने का डर और पता नहीं कब कौन आ जाए और हम मे से किसी पर अपना हक जताने लगे.....” अनुराधा अभी बोल ही रही थी की बाहर कोई गाड़ी रुकने की आवाज आयी तो प्रबल उठकर बाहर की ओर चल दिया...रागिनी और अनुराधा भी उसके पीछे दरवाजे तक आए तो देखा की बाहर एक कैब से ऋतु अपना समान निकाल रही है ...प्रबल ने आगे बढ़कर गाड़ी से बैग निकले और ऋतु के साथ घर में आ गया

अनुराधा और रागिनी वापस आकर सोफ़े पर बैठ गए ऋतु ने भी अपने हाथ में पकड़े बैग को सोफ़े से टिकाकार रखा और बैठ गयी....प्रबल भी आकार उसके पास ही बैठ गया। कुछ देर तक सभी चुपचाप बैठे रहे फिर ऋतु ने बताया कि वो अपना घर छोडकर यहाँ उनके पास रहने आ गयी है

“दीदी आज सुबह की बातों से मुझे लगा की मुझसे भी बहुत कुछ छुपाया जा रहा है या झूठी कहानियाँ सुनाई जा रही हैं....लेकिन एक बात साफ हो चुकी है मेरे सामने, कि विक्रम भैया के बाद, उन दोनों लोगों के अलावा अगर इस परिवार में कोई बचा है तो आप हैं.... वो भी आपने पता लगा लिया इसलिए.... वरना तो उन्होने तो अपने आप तक ही परिवार को समेट दिया था ..... अब मुझे उनका विश्वास नहीं रहा.... अब तो में सोचती हूँ कि कहीं आपकी तरह में भी किसी और कि बेटी तो नहीं.... अब मुझे आपके अलावा किसी पर भरोसा नहीं रहा... इसलिए अब में आपके साथ ही रहने आ गयी हूँ......हमेशा के लिए.......अगर आपको कोई ऐतराज न हो तो?” ऋतु ने आखिरी वाक्य को रागिनी कि आँखों में सवालिया नज़रों से देखते हुये कहा

“देखो ऋतु मुझे तुम्हें साथ रखने में कोई ऐतराज नहीं है... बल्कि खुशी ही होगी कि अगर हम परिवार के बचे हुये सब लोग एक साथ रहें.... लेकिन कुछ बातों का तुम्हें भी ध्यान रखना होगा” रागिनी ने जवाब दिया

“किन बातों का? आपकी जो भी शर्तें होंगी... मुझे मंजूर हैं” ऋतु ने भी कहा

“मेरी कोई शर्त नहीं है... सिर्फ इतना कहना है कि अब से हम सब एक परिवार कि तरह साथ रहेंगे.... किसी के बारे में कुछ भी पता चले उससे हमारे आपस के संबंध न तो बदलेंगे और ना ही हम में से कोई एक दूसरे को छोडकर कहीं जाएगा... अगर किसी के बारे में कुछ भी पता नहीं चलता तो भी अभी हम जो रिश्ते मानते आ रहे हैं....वही मानकर नए सिरे से अपने परिवार कि शुरुआत करेंगे... मुझे फिर से कोई उलझन या मुश्किल नहीं चाहिए अपने इस घर में... इसलिए हमें और किसी से कोई मतलब नहीं रखना….. अब से तुम मेरी बहन हो और इन बच्चों की मौसी-बुआ जो भी बनना चाहो.... ये बच्चे जितने मेरे हैं उतने ही तुम्हारे” रागिनी ने साफ शब्दों में कहा जिस पर ना केवल ऋतु बल्कि अनुराधा और प्रबल ने भी सहमति जताई

और फिर सबने मिलकर प्लान किया की आगे किस तरह से किसको क्या करना है... ऋतु ने बताया की वो अभी फिलहाल अभय के साथ ही काम करती रहेगी। अनुराधा और प्रबल को आगे पढ़ने के लिए उसी कॉलेज में एड्मिशन करा दिया जाएगा जिसमें न केवल विक्रम और रागिनी पढे थे बल्कि ऋतु का भी एड्मिशन विक्रम ने उसी कॉलेज में कराया था।

साथ ही ऋतु ने बताया की विक्रम की वसीयत जो अभय के ऑफिस में आगे की कार्यवाही के लिए थी उसकी फोटोकोपी उसने निकाल ली थी.... उस फोटोकोपी में विक्रम की जो वसीयत अभय ने पढ़कर सुनाई थी उसके अलावा भी बहुत से दस्तावेज़ थे ..... जो कि न केवल विक्रम और बलराज सिंह के परिवार के बारे में पूरी जानकारी देते थे बल्कि उन लोगो कि संपत्ति का भी पूरे विस्तार से ब्योरा दिया हुआ था।

ऋतु ने वो कागजात निकाल कर रागिनी को दिये और उन चारों ने उन्हें पढ्ना शुरू किया... उसमें कुछ विवरण देवराज सिंह, रुद्र प्रताप सिंह और भानु प्रताप सिंह की जायदाद के थे और कुछ कागजात में वारिसान प्रमाण पत्र भी लगे हुये थे जिनमें परिवार के सदस्यों का ब्योरा था। उन सभी वारिसान प्रमाण पत्रों को रागिनी ने अलग किया और चारों ने उन्हें पढ़ना शुरू किया

1- रुद्र प्रताप सिंह के परिवार का विवरण उनसे संबंध और जन्म वर्ष के साथ

     1- निर्मला देवी   -पत्नी     -1928

     2- जयराज सिंह  -पुत्र       -1947

     3- विजयराज सिंह -पुत्र       -1949

     4- गजराज सिंह  -पुत्र       -1954

     5- विमला देवी   -पुत्री      -1960

     6- कमला देवी   -पुत्री      -1960

     7- बलराज सिंह  -पुत्र       -1965

     8- देवराज सिंह   -पुत्र       -1968

2- शम्भूनाथ सिंह के परिवार का विवरण संबंध और जन्म वर्ष सहित

     1- जयदेवी      -पत्नी     1911

     2- निर्मला देवी   -पुत्री      1928

     3- सुमित्रा देवी   -पुत्री      1932

     4- माया देवी    -पुत्री      1940

     इसके अलावा इसमें 2 लोगों के नाम शम्भूनाथ सिंह की समस्त चल अचल    संपत्ति के वारिस के तौर पर भी दिये हुये थे

     1- जयराज सिंह  -1947     व    2- विजयराज सिंह -1949

     पुत्रगण श्रीमती निर्मला देवी एवं श्री रूद्र प्रताप सिंह

3- भानु प्रताप सिंह के परिवार का विवरण संबंध और जन्म वर्ष सहित

     1- श्यामा देवी   -पत्नी     -1937

     2- कामिनी देवी  -पुत्री      -1955

     3- मोहिनी देवी   -पुत्री      -1965

 

ये सारा विवरण पढ़ते ही रागिनी और ऋतु आश्चर्यचकित होकर एक दूसरे की ओर देखने लगे.........दोनों की ही समझ में नहीं आया कि अब क्या कहें। फिर ऋतु ने ही कहा

“दीदी ये तो बहुत अजीब बात है.... विक्रम भैया की माँ और मेरी माँ सगी बहनें हैं और आजतक मेरी माँ ने मुझे ये बताया ही नहीं”

“ऐसा भी तो हो सकता है कि ये विक्रम कि मौसी कोई और ही मोहिनी देवी हो” रागिनी ने कहा

“नहीं मुझे मम्मी के कुछ कागजात मे उनके मटा पिता का नाम देखने को मिला है... और वैसे भी उन्होने बताया भी था कई बार उनके पिता का नाम भानु प्रताप सिंह और माँ का नाम श्यामा देवी ही है.... और उनकी जन्म तिथि भी यही है...” इस पर ऋतु ने बताया

“हो सकता है.... शायद ये सारे कागजात इस वसीयत के साथ थे...इसीलिए इन सब बातों को विक्रम ने अपनी वसीयत मे जाहिर नहीं किया.........अब ये भी साफ हो गया कि ये 5 भाई और 2 बहनें थे.... और उनमें से 2 भाइयों की शादी तुम्हारी माँ और मौसी से हुई थी” रागिनी ने गहरी सांस छोडते हुये कहा “अगर हमने पहले ही ये सारे कागजात पढ़ लिए होते तो हमें इतना परेशान न होना पड़ता”

“दीदी इनके अलावा कुछ और भी है....इस कागज में....” ऋतु ने अपने हाथ में पकड़े हुये एक कागज को दिखते हुये कहा

“क्या है?” कहते हुये रागिनी ने वो कागज अपने हाथ में लिया और पढ़ने लगी... उस कागज में एक कोर्ट का आदेश था... जयराज सिंह और बेलादेवी के तलाक का 1974 का उसे पढ़ते ही रागिनी को और बड़ा झटका लगा....

“ये जयराज सिंह को ही तो मेरा पिता बताया था मोहिनी चाची ने.... लेकिन मेरी माँ का नाम तो उन्होने वसुंधरा बताया था.... तो ये बेला देवी कौन हैं?”

“दीदी इनका तो तलाक ही 1974 में हो गया और आपकी जन्म तिथि 1979 की है.... इसका मतलब जयराज ताऊजी की दो शादियाँ हुईं थी.... आपकी माँ वसुंधरा ताईजी उनकी दूसरी पत्नी थी। लेकिन इन कागजातों में अभी बहुत कुछ नहीं है........ हमारे पिता सब भाई-बहनों कहाँ और किससे शादियाँ हुई, उनके बच्चे ....” ऋतु अभी आगे कुछ कहती उससे पहले ही ड्राइंग रूम के दरवाजे से किसी औरत ने रागिनी को आवाज दी तो प्रबल ने जाकर दरवाजा खोला एक 40-42 साल की रागिनी कि हमउम्र औरत दरवाजे पर खड़ी थी प्रबल के बराबर से अंदर घुसकर वो सीधे रागिनी के पास आयी और उसका हाथ पकड़कर खींचा... रागिनी भी उठकर खड़ी हुई तो उसने रागिनी को अपने सीने से लगाकर रोना शुरू कर दिया.... रागिनी इस अजीब से हालात में चुपचाप खड़ी अनुराधा, ऋतु और प्रबल की ओर देखने लगी

रागिनी ने उसे अपने साथ ही पकड़कर सोफ़े पर बिताया और बोली “मेंने पहचाना नहीं आपको? अप रोईए मत.... बताइये... क्या बात हो गयी”

“तूने मुझे भी नहीं पहचाना... सही बताया था  प्रवीण और माँ ने .... तेरी याददास्त सचमुच ही चली गयी है.... तू तो मुझे मेरी खुशबू से पहचान लेती थी” उसने रोते हुये ही कहा

“सुधा! तो तुम हो सुधा” रागिनी को सुबह की बात ध्यान आ गयी “अब रो मत .... देखले तेरे सामने सही सलामत बैठी हूँ.... मुझे कुछ याद नहीं तो क्या हुआ.... तुझे तो सबकुछ याद होगा.... तू बता देना”

“हाँ! में तुझे सबकुछ बताऊँगी....... वो भी जो तुझे पहले भी नहीं पता था.... तब कितनी बार तूने मुझसे पूंछा लेकिन में हमेशा टाल देती थी कि कहीं तू भी इस झमेले मे न फंस जाए.... लेकिन अब में सबकुछ बताऊँगी.... में आज यहाँ तुझसे मिलकर सबकुछ बताने ही आयी हूँ और और में तेरी गुनहगार हूँ... माफी न सही लेकिन दोस्ती को जोड़े रखना” सुधा ने रागिनी से कहा

“दीदी! आज सुधा दीदी को भी अपने साथ रोक लेते हैं.... रात में ये सब बातें होंगी.... अभी कुछ नाश्ता वगैरह कर लेते हैं... फिर रात के खाने कि तयारी करते हैं” ऋतु ने वहाँ फैले सभी कागजात समेटते हुये कहा और अनुराधा को साथ आने का इशारा करते हुये किचन कि ओर चल दी
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#42
कहानी सही गति से आगे बढ़ रही हैं।
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#43
(07-02-2020, 01:20 AM)bhavna Wrote: कहानी सही गति से आगे बढ़ रही हैं।

आपकी प्रतिकृया के लिए धन्यवाद ........ भावना जी
कहानी की गति निरंतर बनी रहेगी........... अद्यतन (अपडेट) में कुछ देरी हो सकती है

कृपया साथ
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#44
yourock कहानी काफी दमदार है आपकी ओर
[+] 1 user Likes Gazisara's post
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#45
Great, keep it up , very interesting.  I like this thread. Thanks
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#46
Are wah Thakur saab.. aap to sach mai bde writer nikle, bhout achi story hai...!
Keep it up dost
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#47
अध्याय 16


1996

“मम्मी दुकान पर कोई आया है...समान दे दो... मुझे स्कूल के लिए तैयार होना है” दुकान से अंदर आते हुये सुधा ने कहा तो किचन में खाना बनाती उसकी माँ ने स्टोव बंद किया और बाहर निकालकर दुकान पर आयी। दुकान के बाहर एक उन्हीं की उम्र की औरत सुधा के बराबर की एक बच्ची के साथ खड़ी हुई थी....

“हाँ जी बताइये क्या चाहिए?” सुधा की माँ ने पूंछा तो उस औरत ने उन्हें घर के दैनिक और रसोई के समान की लिस्ट दे दी। उन्होने सारा समान तौल के पैक किया और उनके थैले में रखवाते समय पूंछा की वो कहाँ रहती हैं.... क्योंकि उन्होने उस औरत को वहाँ पहले नहीं देखा था और ये कोई बाज़ार भी नहीं था जहां कि कोई दूर से समान खरीदने आता। उनकी दुकान पर तो आसपास रहने वाले ही समान लेने आते थे तो नए चेहरे को देखकर उन्हें भी जानकारी लेने कि उत्सुकता हुई। उस औरत ने बताया कि उसका नाम विमला है और उसने पीछे वाली गली में मकान खरीदा है और अब यहीं रहेंगी, थोड़ी बातचीत के बाद उसने बताया कि उनके पति का मकान-जमीन खरीदने बेचने का काम है, उसके दो बेटे और एक बेटी है जो उसके साथ थी, बेटी का नाम रागिनी है...बातों बातों में ही उसने कहा कि उसके बेटे तो पढ़ने लिखने में फिसड्डी है और पढ़ाई छोडकर अब अपने पिता के साथ उनके व्यवसाय में हाथ बंटा रहे हैं। बेटी पढ़ने में तेज है और अब यहाँ उसका दाखिला कराना है। तब उन्होने कहा कि वो रागिनी का दाखिला सुधा के ही स्कूल में करा दें इसके लिए कल सुबह वो रागिनी को तयार करके ले आयें। अगले दिन से रागिनी और सुधा साथ साथ एक ही स्कूल में पढ़ने लगीं... धीरे धीरे वक़्त गुजरता गया कि एक दिन

“आंटी कल सुधा को में अपने साथ लेकर जाऊँगी” रागिनी ने सुधा कि माँ से कहा

“कहाँ जाओगी बेटा... तुम दोनों तो वैसे भी साथ साथ अति जाती रहती हो...आज पूंछ क्यों रही हो” उन्होने हँसते हुये रागिनी से कहा

“आंटी! मम्मी ने अभी बताने को माना किया है...किसी को भी, लेकिन आप ‘कोई’ नहीं हो... इसलिए आपको बताती हूँ... आज हम बड़े भैया के लिए लड़की देखने जा रहे हैं उनकी शादी होने वाली है” रागिनी ने शर्माते हुये कहा....तो उन्होने भी हँसते हुये सुधा को साथ ले जाने को कह दिया

कुछ समय बाद धूमधाम से विमला के बड़े बेटे दीपक की शादी ममता से हुई, ममता बहुत सुंदर थी और 12वीं तक पढ़ी हुई भी थी... रागिनी और सुधा के स्कूल में पढ़ी थी इसलिए वो उसे देखते ही पहचान भी गईं थीं.... लेकिन सुधा कुछ ज्यादा ही उनसे घुलमिल गयी थी... रागिनी कुछ शर्माती थी...सुधा उसे पहले से भी जानती थी क्योंकि ममता का माइका किशनगंज मे ही दूसरे मोहल्ले में tha ऐसे ही वक़्त गुजरा और 1999 में विमला के छोटे बेटे कुलदीप ने भी अपने साथ प्रॉपर्टी के काम में जुड़े सरदार चरणजीत सिंह की बेटी सिमरन से प्रेम विवाह कर लिया, शुरू में घरवालों ने विरोध किया लेकिन फिर ममता और दीपक के ज़ोर देने पर उन्हें घर ही रहने के लिए बुला लिया गया।

एक दिन ....

सुधा किसी काम से कनॉट प्लेस गयी थी लौटते समय उसने नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के सामने एक कर को पहाड़गंज में मुड़ते देखा वो कार सुधा की मोपेड़ के सामने से जब मुड़ी तो उसे कार में ममता भाभी दिखाई दी उनके साथ एक बड़ी दाढ़ी में पठानी सुइट पहने एक शख्स ड्राइविंग करता दिखाई दिया.... इससे भी ज्यादा चौंकाने वाली बात ये थी की ममता भाभी ने बुर्का पहना हुआ था केवल चेहरा ही दिख रहा था...उस समय ममता की नज़र गाड़ी के सामने की ओर थी अगर वो अपनी खिड़की की तरफ देख लेती तो उसे सुधा सामने ही दिख जाती.... क्योंकि गाड़ी मोड़ने की वजह से धीमी स्पीड में थी तो सुधा ने बहुत गौर से देखकर पक्का कर लिया की ये चेहरा ममता का ही है....

सुधा ने भी अपनी मोपेड़ तुरंत उस कार के पीछे घुमा दी, कुछ दूरी रखते हुये मोपेड़ को कार के बिलकुल पीछे न रखकर किनारे पर रखा जिससे की बॅक व्यू मिरर से ममता की नज़र सुधा पर न पड़े। पहाड़गंज में आम तौर हर समय भीड़भाड़ ही रहती है तो कार आराम से धीरे धीरे चल रही थी... कुछ देर बाद कार आगे जाकर एक होटल के सामने रुकी और उसमें से ममता बाहर निकली सुधा ने भी अपनी मोपेड़ पीछे ही दूसरी ओर एक दुकान के सामने रोक ली और ध्यान से ममता की ओर देखने लगी.... सुधा ने दिल्ली की सभी लड़कियों की तरह मुंह पर दुपट्टा लपेटा हुआ था तो उसे पहचाने जाने का कोई डर नहीं था और इतनी भीड़भाड़ में वैसे भी किसी पर ऐसे ध्यान नहीं जाता...

ममता ने बाहर निकालकर अपना चेरा सड़क की ओर किया और झुककर कार की ड्राइविंग सीट पर बैठे उस आदमी से कुछ बात की उसने ममता को कुछ समझते हुये उसे कुछ दिया और ममता अपने सी पर नकाब डालकर मुड़कर अंदर चली गयी... वो आदमी भी कार लेकर आगे झंडेवालान वाली रोड की ओर चला गया.... सुधा वहीं खड़ी रही कुछ देर बाद उसी होटल के सामने आकार एक ई-रिक्शा रुका और उसमें से वही आदमी बाहर निकला... सुधा समझ गयी की वो कार को मेट्रो पार्किंग में लगाकर वापस आया है...ई-रिक्शा से उतरकर वो आदमी भी होटल में वापस अंदर घुस गया तो सुधा भी अपनी मोपेड़ वहीं दुकान के सामने खड़ी छोडकर उस आदमी के पीछे-पीछे होटल में घुसी...

अंदर जाकर उसने देखा की वो आदमी रिसिप्शन पर खड़ा रूम नं बताकर रास्ता पूंछ रहा है... सुधा भी उसके पास ही जाकर खड़ी हो गयी... रिसिप्शन वाले ने उससे पूंछा की किस नं से बूकिंग है तो उसने नाम बताया तो रिसैप्शनिस्ट ने कहा की आपकी वाइफ़ अभी अभी गयी हैं... इस पर उस आदमी ने कहा की वो गाड़ी पार्किंग में लगाने गया था... और अपना पहचान पत्र दिखाया... देखकर रिसैप्शनिस्ट ने उसे रास्ता बताया तो वो आगे चला गया फिर रिसैप्शनिस्ट ने सुधा की तरफ देखा तो उसने कहा की उसे एक रूम चाहिए था और किराया वगैरह क्या है... सुधा ने उसे खासतौर पर उसी फ्लोर पर रूम मांगा जिस फ्लोर का रूम उस आदमी ने पूंछा तो रिसैप्शनिस्ट ने कहा की मिल जाएगा... लेकिन पहले उसे अपना पहचान पत्र देना होगा.... सुधा ने अपना पहचान पत्र दिया... पढ़कर रिसैप्शनिस्ट ने कहा की उसके पहचान पत्र में दिल्ली का पता है...इसलिए उसे रूम नहीं मिल सकता.... सुनकर सुधा ने कहा की असल में उसके कोई मिलनेवाले यहाँ शाम तक आ रहे हैं उनके रुकने के लिए उसे रूम चाहिए था तो अगर वो रूम दिखा दे तो सुधा उनही के पहचान पत्र से उनके नाम से ही बुक करा देगी... तो उसने एक लड़के को सुधा के साथ भेजा दिया उस फ्लोर पर जाकर सुधा ने देखा की वहाँ सभी कमरों के दरवाजे बंद थे और किसी तरह की कोई आवाज किसी कमरे से नहीं महसूस हुई... वो चुपचाप जाकर कमरा देखकर वापस आयी और रिसैप्शनिस्ट को शाम को बताने का बोलकर बाहर चली आयी।

बाहर आकर सुधा अपनी मोपेड़ पर बैठ गयी और ममता के बाहर निकालने का इंतज़ार करने लगी... लगभग डेढ़ दो घंटे के बाद वो आदमी बाहर निकला और ई-रिक्शा में बैठकर मेट्रो पार्किंग की ओर चला गया... उसके थोड़ी देर बाद ही एक औरत बुर्के में पूरा चेहरा ढंके हुये बाहर निकली जिसकी कद-काठी और चाल देखकर सुधा को विश्वास हो गया की ये ममता ही है...उसने भी एक ऑटोरिक्शा रुकवाया और उसमें बैठकर चल दी... सुधा ने भी अपनी मोपेड़ उस ऑटो के पीछे लगा दी।

ऑटो पहाडगंज से निकलकर करोल बाग में गुप्ता मार्केट पर जाकर रुका और उसमें से हाथ में हेंडबैग लिए ममता भाभी नीचे उतरीं... साधारण कपड़ों में साड़ी-ब्लाउज में... और पास खड़े रिक्शा वाले से फाटक के लिए बोलकर रिक्शा पर बैठने लगीं तो सुधा ने अपनी मोपेड़ उनके पास रोकी और हेलमेट का शीशा हटाकर पूंछा कि वो क्या घर जा रही हैं... तो उन्होने हा कहा और उसने उन्हें अपनी मोपेड़ पर बैठने को कहा

उनको साथ लेकर वो घर की ओर चल दी... रास्ते में सुधा ने पूंछा की वो कहाँ से आ रही हैं तो उन्होने बताया की वो कुछ सामान लेने करोल बाग मार्केट मे गईं थीं... सुधा ने मोपेड़ को किशनगंज मार्केट मे रोका और उनसे कहा की भाभी मुझे पता है की आप कहाँ से आ रही हैं...में पिछले 2 घंटे से आपके पीछे ही थी.... इतना सुनते ही भाभी का चेहरा एकदम सफ़ेद पड गया और उनकी आँखों में आँसू आ गए।

उनकी आँखों में आँसू देखते ही सुधा को बहुत गुस्सा आया और उसने कहा कि एक तो अप खुद ऐसा घिनौना काम कर रही हो और फिर रोकर भी दिखा रही हो... तो उन्होने कहा कि ये सबकुछ वो मजबूरी में कर रही हैं.... और वो इसका सबूत भी दिखा देंगी....उनकी बात सुनकर सुधा ने उन्हें गले से लगाया आँसू पोंछे और कहा कि ठीक है....... लेकिन कल तक मुझे उनकी मजबूरी का सबूत चाहिए... फिर चाहे जो करना पड़े में उनको इस दलदल से बाहर निकालने में पूरी मदद करूंगी... वरना परसों में इस बात को विमला आंटी, दीपक भैया और रागिनी को बताकर उन्हें घर से बाहर का रास्ता दिखा दूँगी

.......................................

सुधा की इतनी कहानी सुनकर अनुराधा ने पूंछा “सुधा बुआ तब में थी या नहीं...मतलब मेरा जन्म हो गया था या नहीं?”

“तुम्हारा जन्म तो दीपक भैया की शादी के एक साल के भीतर ही हो गया था 1997 में लेकिन तुम्हारे जन्म के बाद विमला आंटी और दीपक भैया ने जब बेटी होने की वजह से उनको ताने मारने शुरू किए तो तुम्हारे जन्म के तीसरे दिन से ही रागिनी ने तुम्हें अपने पास रख लिया.... सिर्फ दूध पिलाने के लिए ममता को देती थी.... क्योंकि उन लोगो ने काम-काज को लेकर भी ममता भाभी पर सख्ती करनी शुरू कर दी थी.....लेकिन लगभग एक-डेढ़ साल बाद पता नहीं क्या हुआ दीपक ने ऊपर दूसरी मंजिल बनवाई और ममता को लेकर वहीं रहने लगे... तुम्हें भी ले जाने लगे तो रागिनी ने साफ माना कर दिया कि अब वो तुम्हें किसी को भी नहीं देगी.... खुद पालेगी.... इस पर ममता ने कहा कि जब शादी होगी तब क्या करोगी... तो रागिनी ने कहा कि में उसी से शादी करूंगी जो अनुराधा को भी अपनाएगा.... मेरी बेटी के रूप में” सुधा ने बताया

सुनकर अनुराधा ने एक गहरी सांस ली और सुधा कि ओर देखने लगी तो रागिनी ने सुधा से आगे बताने को कहा

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#48
Good one...
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#49
(13-02-2020, 01:14 AM)Gazisara Wrote: yourock कहानी काफी दमदार है आपकी ओर

(16-02-2020, 07:21 PM)Hotmaniac Wrote: Great, keep it up , very interesting.  I like this thread. Thanks

(17-02-2020, 02:22 PM)Some1somewhr Wrote: Are wah Thakur saab.. aap to sach mai bde writer nikle, bhout achi story hai...!
Keep it up dost

(17-02-2020, 11:00 PM)bhavna Wrote: Good one...

आप सनही को कहानी पसंद आयी उसके लिए धन्यवाद.....प्रयास यह है की अपडेट जल्दी से जल्दी दूँ ....
किसी कारणवश देरी होने पर व्याकुल न हों ..........कहानी बहुत लंबी चलेगी........
अभी बहुत कुछ नहीं.............सबकुछ बाकी है
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#50
Update plz...
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#51
Aapka kahani padhkar bahut acha laga. Keep update
Meri story read karne k liye niche link par jayen
Rasleela Bachpan se jawani tk
https://xossipy.com/thread-1887.html
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#52
Update 1-2 din me deta hu
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#53
अध्याय 17


सुनकर अनुराधा ने एक गहरी सांस ली और सुधा की ओर देखने लगी तो रागिनी ने सुधा से आगे बताने को कहा

“फिर क्या हुआ?”

“अब आगे सुनिए:-

शाम को ममता ने कुछ सामान लेने जाने का बहाना किया और सुधा की दुकान पर पहुंची... सामान लेकर थोड़ी देर सुधा की मम्मी से बात की और फिर सुधा का पूंछा तो उन्होने बताया कि सुधा अपने कमरे में बैठकर पढ़ाई कर रही है... ममता उनसे बोलकर सीधे अंदर सुधा के कमरे में पहुंची तो सुधा ने किताबों नज़र उठाकर जब देखा तो ममता अंदर आकर सुधा के बिस्तर पर बैठ गयी ... सुधा भी समझ गयी कि ममता इस समय उसी बात को लेकर आयी हुई है... ममता ने सुधा से कहा कि वो आज ही उसको कुछ दिखाना चाहती है इसलिए सुधा अपनी मम्मी से कहे कि उसे आज रागिनी के साथ उसके घर में पढ़ाई करनी है... इसलिए आज रात वो रागिनी के घर ही रुकेगी... सुधा के मन में इस बात को लेकर दुविधा थी कि वो ममता का कहा माने या न माने

“लेकिन भाभी अगर में रागिनी के कमरे में रहूँगी तो अप मुझे कैसे कुछ दिखा पाओगी...”

“तुम उसकी चिंता मत करो में आज रागिनी को भी ऊपर अपने एक कमरे में रुकने को मना लूँगी” ममता ने कहा

“लेकिन फिर रागिनी को भी तो सब पता लग ही जाएगा” सुधा ने फिर से बहाना बनाया ताकि ममता उसे घर ले जाने से पीछे हट जाए.....हालांकि वो भी ममता के बारे में जानना चाहती थी, उस समय गुस्से में बहुत कुछ कह-सुन भी लिया... लेकिन घर आकर जब उसने सब बातों पर गौर किया तो उसे लगा की ममता से दूरी बनाकर रखने में ही फाइदा है... क्योंकि जिस तरह से उसे कोई साथ लेकर होटल में गया और जैसे वो बेखौफ घर के इतने नजदीक होटल में गयी... और फिर उसने बताया की वो ये सब मजबूरी में कर रही है तो सुधा को लगा की इसके पीछे जरूर कोई बड़ा मामला हो सकता है.... एक शादीशुदा औरत अगर पूरे परिवार और पति के होते हुये भी मजबूर है किसी दवाब में.... तो वो अकेली लड़की जिसके पीछे विधवा माँ और छोटा भाई... कहीं वो इस झमेले में न फंस जाए...

“आंटी सुधा को रागिनी के साथ पढ़ाई करनी है... रात को हमारे घर दोनों मिलकर पढ़ाई कर लेंगी.... सुधा डर रही थी की आप कहीं माना न कर दो... तो मेंने कहा ... में ही आंटी से कह देती हूँ... वहाँ कहीं बाहर थोड़े ही है” सुधा को सोच में डूबा और झिझकता देखकर ममता ने सुधा की मम्मी से दुकान की ओर मुंह करके कहा और सुधा को आँख मारकर इशारा किया

“ठीक है बेटा शाम को खाना खाकर आ जाएगी” सुधा की माँ ने दुकान में से कहा

“अरे नहीं आंटी... वहीं खाना खा लेगी... अभी तो खाने में देर है... तब तक दोनों पढ़ती भी रहेंगी” ममता ने कहा और फिर सुधा से बोली “चलो अपनी किताबें ले लो मेरे साथ ही चली चलो... फिर अकेले आना पड़ेगा”

अब सुधा न चाहते हुये भी अपनी किताबें लेकर ममता के साथ चल दी। रास्ते में सुधा ने ममता से कुछ कहना चाहा तो ममता ने उसे चुप रहने का इशारा करते हुये घर पर बात करने का कहा

घर पहुँचकर ममता ने सुधा को अपने साथ ऊपर आने का इशारा करते हुये रागिनी से कहा “रागिनी आज सुधा भी हमारे यहाँ रहकर ...तुम्हारे साथ ही पढ़ाई करेगी... तुम भी ऊपर ही आ जाओ... वहीं अनुराधा वाले कमरे में तुम दोनों पढ़ाई कर लेना”

“अरे भाभी... हम यहीं ठीक हैं, फिर अनुराधा को भी यहीं मेरे कमरे में सोने की आदत है... तो उसे वहाँ नींद भी नहीं आएगी” रागिनी ने कहा

“हाँ! अब मेरा तो इतना भी हक नहीं रहा कि तुम्हारी बेटी को एक दिन अपने पास भी रख सकूँ.... देखती हूँ... तुम्हारी शादी के बाद तो मेरे पास रहना ही पड़ेगा उसे.... ऐसा कोई नहीं मिलेगा जो दहेज में एक बेटी भी लेकर जाए.... यहाँ तो घर में पैदा हुई बेटी भी नहीं सुहाती किसी को” ममता ने ताना मरते हुये कहा... जिस पर विमला ने सुनकर कुछ कहना चाहा तो रागिनी ने इशारे से रोक दिया।

“ठीक है भाभी में खाना खाकर आऊँगी....में तो तुम्हारे यहाँ खा भी लूँगी लेकिन अनुराधा तो यहीं खाएगी... मेरे हाथ का बना हुआ... अब इस बात को लेकर फिर ताने मारना शुरू मत कर देना” रागिनी ने हँसते हुये कहा तो ममता ने मुस्कुराकर सहमति में सिर हिलाया और सुधा के साथ ऊपर आ गयी

ऊपर आकर ममता ने एक कमरे में सुधा को ले जाकर बैठाया और उससे कहा कि वो और रागिनी इसी कमरे में पढ़ाई करें... रात में वो दोनों के लिए दूध लेकर आएगी तो सुधा दूध के लिए मना करके चाय या कॉफी पीने के लिए कह दे... क्योंकि वो दूध के दोनों ग्लास में नींद कि दवा डालकर लाएगी... अगर वो एक गिलास में ही नींद कि दवा डालकर लायी और हो सकता है रागिनी दूसरा गिलास ले ले तो ममता उसे खास तौर पर वही गिलास लेने पर ज़ोर नहीं दे सकती जिसमें नींद की दवा मिली हो...

थोड़ी देर बाद रागिनी भी ऊपर आ गयी अनुराधा भी उसी के साथ आयी...और वो दोनों पढ़ाई करने लगीं कुछ देर बाद दीपक भी आ गया फिर खाना खाकर दीपक हॉल में टीवी देखने बैठ गया और ममता रसोई का कम निपटाने में लग गयी... अनुराधा को दीपक अपने साथ ही ले गया।

रसोई का कम निपटाकर ममता ने आकार दीपक से कहा कि वो अब टीवी बंद करके अपने कमरे जाकर सोने कि तयारी करे वो दूध लेकर आती है... अंदर पढ़ाई करती हुई सुधा ने दूध का सुना तो उसके भी कान खड़े हो गए... लेकिन उसने ऐसी कोई प्रतिकृया नहीं दी जो रागिनी चोंकती। दीपक अपने कमरे में चला गया उसने अनुराधा को भी साथ ले जाना चाहा तो अनुराधा ने कहा कि वो मम्मी के पास सोएगी और भागकर रागिनी के पास आ गयी...

“रागिनी तुमसे कितनी बार कहा है कि इससे बुआ कहलवाया करो... कल को जब तुम्हें लड़के वाले देखने आएंगे शादी के लिए ...तब भी ये मम्मी ही कहेगी” दीपक ने हँसते हुये कहा और जिस कमरे में रागिनी और सुधा पढ़ रहीं थी उसके दरवाजे पर आकर खड़ा हो गया

“भैया मेरी मम्मी तो यही हैं और यही रहेंगी.... वो भाभी हैं में उनको मम्मी नहीं कहूँगी” अनुराधा ने रागिनी के पीछे से पलटकर जवाब देते हुये कहा

“हम तेरे भैया भाभी नहीं हैं.... रागिनी के हैं....” दूध लेकर आते हुये ममता ने अनुराधा से कहा

“तो कोई बात नहीं... अब आपको भैया-भाभी नहीं मामा-मामी कहूँगी... क्यूंकी आप लोग मेरी मम्मी के भैया-भाभी हैं” अनुराधा ने जवाब में कहा तो चारों जाने हंसने लगे... ममता ने दूध के गिलास स्टूल पर रखते हूये अनुराधा के सिर पर चपत लगाई तो वो बुरा सा मुंह बनाकर रागिनी से चिपक गयी

इधर अनुराधा को चपत लगाकर अपना हाथ वापसी में सुधा के सिर को हल्का सा छूते हूये निकाला ममता ने तो, सुधा ने उसकी ओर देखा और इशारा समझकर बोली

“भाभी! में दूध नहीं पियूँगी मुझे गले में इन्फ़ैकशन है...मुझे चाय या कॉफी दे दो...”

“ठीक है में कॉफी बनाकर लाती हूँ... रागिनी और अनुराधा तुम दोनों दूध पी लो” कहते हूये ममता ने वहाँ रखे तीन गिलासों में से एक उठाकर दीपक को देते हूये उसे कमरे में जाने का इशारा किया और खुद रसोई में जाकर कॉफी बना लायी अपने और सुधा के लिए....

“अरे भाभी अपने दूध क्यों नहीं लिया?” सुधा ने मुस्कुराकर इशारा करते हुये कहा

“ननद रानी में दूध पीती नहीं...पिलाती हूँ.... तुम्हारी भतीजी को तो पिलाती ही हूँ... तुम्हें भी पीना हो तो अभी पी लो... फिर बाद में मत कहना....”ममता ने मुसकुराते हुये उस कमरे की ओर इशारा किया जिसमें दीपक गया था सोने “जब सारा दूध खत्म हो जाए”

उसके मज़ाक को समझते हुये रागिनी और सुधा दोनों हंस दिये ... और कॉफी खत्म करके ममता ने अपना और सुधा के कप भी उसी ट्रे में रखे जिसमें रागिनी और अनुराधा ने दूध पीकर गिलास रखे थे जाकर रसोई में रख आयी और अपने कमरे में जाती हुई उन तीनों को गुड नाइट बोली तो उन तीनों ने भी जवाब दिया। अब सुधा किताब सामने रखे बेचैनी से अनुराधा और रागिनी के सोने का इंतज़ार करने लगी , थोड़ी देर बाद ही अनुराधा को नींद आ गयी और वो सो गयी। रागिनी भी कुछ अलसाई सी पढ़ने में लगी रही... थोड़ी देर बाद उसे भी झपकियाँ आने लगीं तो सुधा ने उसे भी सोने के लिए कहा तो वो बोली पता नहीं आज कुछ जल्दी नींद आ रही है... शायद काफी देर से पढ़ रहे हैं इसलिए। उसने भी सुधा से लाइट बंद करके सोने के लिए कहा तो सुधा ने किताबें उठाकर टेबल पर रखीं और उठकर लाइट बंद कर दी और बिस्तर पर लेट गयी... हालांकि अब 11 से ऊपर टाइम हो गया था लेकिन सुधा को उत्सुकता में नींद नहीं आ रही थी की ममता उसे रात को क्या दिखने वाली है...

थोड़ी देर बाद उसे दरवाजा खुलने की हल्की सी आहट हुई तो वो समझ गयी की ममता और दीपक के कमरे का दरवाजा खुला है... क्योंकि अपने कमरे का दरवाजा तो उसने बंद किया ही नहीं था उसने देखा ममता ने हॉल में आकर वहाँ की लाइट ऑफ की और दबे पाँव उसके कमरे में घुसी तो सुधा भी उठकर बैठ गयी। ममता ने उसका हाथ पकड़ा और बाहर हॉल में लेकर आयी।

“ये दोनों सो गईं?” ममता ने फुसफुसाते हुये पूंछा

“हाँ भाभी! अपने क्या अनुराधा के भी दूध में कुछ डाला था?” सुधा ने भी फुसफुसाते हुये कहा

“अरे उसको अगर नींद की दवा नहीं देती तो वो रात में जागकर सारा घर सिर पर उठा लेती। वैसे यहाँ हम दोनों के अलावा सबने दूध पिया है” ममता ने कहा और सुधा की चूचियों पर हाथ फिरा दिया। सुधा एकदम चौंककर दूर हुयी और नाराज़ होती हुई बोली

“ये क्या है भाभी... और सबने दूध पिया है... मतलब? दीपक भैया भी?”

“और क्या? क्यूँ अपने भैया के साथ रात को कोई प्रोग्राम बनाना था क्या” ममता ने मुसकुराते हुये कहा और सुधा की ओर हाथ बढ़ाया तो उसने हाथ पकड़ लिया

“भाभी आप फालतू की बात मत किया करो... में कभी आपसे मज़ाक नहीं करती। अब बताओ क्या दिखने वाली थी?” सुधा ने चिढ़ते हुये कहा तो ममता ने संजीदा होते हुये उससे कहा

“देखो अब जो तुम्हें देखने को मिलेगा उसे तुम सोच भी नहीं सकती लेकिन तुम्हारी ओर से न तो कोई हरकत होनी चाहिए और न ही इस बात का किसी को पता चले.....रागिनी को भी तुम कुछ नहीं बताओगी”

“ठीक है भाभी” सुधा ने जवाब दिया

“अब तुम अपने कमरे में ऐसे ही चुपचाप लेती रहोगी... जो कोई भी आयेगा वो हो सकता है तुम्हारे कमरे में भी आए, लेकिन उसे यही लगना चाहिए की तुम तीनों गहरी नींद में सो रहे हो... नींद की दवा के असर में। अगर में भी तुम्हें उठाऊँ या आवाज दूँ... तब भी तुम्हें कोई जवाब नहीं देना... चुपचाप पलकों में से देखती रहना की क्या हो रहा है... जब वो आनेवाला और में कमरे में चले जाएँ तो तुम बाहर से छुपकर सब देख और सुन लेना... लेकिन ध्यान रखना... न कोई आवाज हो और ही तुम नज़र में आओ। वरना फिर मेरी कोई ज़िम्मेदारी नहीं है... तुम्हारे साथ कुछ हुआ तो” ममता ने कहा तो सुधा ने सिर हिलाकर हामी भर दी उसके बाद ममता ने सुधा को अपने कमरे में जाने का इशारा किया तो सुधा जाकर रागिनी और अनुराधा के पास लेट गयी

ममता ने जाकर अपने फ्लोर के मेन गेट की कुंडी खोल दी, दरवाजा भिड़ा रहने दिया और हॉल में आकर सोफ़े पर बैठ गयी अधलेटी होकर ... लगभग 12 बजे धीरे से दरवाजा खुलने की आवाज हुयी और ऐसा लगा जैसे कोई बाहर से अंदर हॉल में घुसा, थोड़ी देर बाद दरवाजे की कुंडी लगाने की आवाज आयी। सुधा चुपचाप दम साधे लेटी रही तभी उसने मुंदी हुई आँखों से पलकों को थोड़ा सा खोलकर देखा तो ममता और उसके साथ एक आदमी उनके कमरे में अंदर आए... ममता ने फुसफुसाकर उस आदमी को बोला की देख लो सब सो रहे हैं... मेंने अपने सामने दूध पिलाया है... तो कोई गड़बड़ होने का चान्स नहीं है... वो आदमी कुछ नहीं बोला और वो दोनों तीसरे कमरे में चले गए अंदर जाकर उन्होने दरवाजा बंद करना भी जरूरी नहीं समझा बल्कि कमरे में लाइट भी जला दी...

सुधा भी उनके पीछे-पीछे बाहर आयी और उस कमरे की लाइट जलती देखकर उसके दरवाजे के पास पहुंची।लेकिन तुरंत ही पीछे हट गयी क्योंकि दरवाजे पर पर्दा तो पड़ा हुआ था लेकिन पर्दा फर्श से करीब 6 इंच ऊंचा था तो अंदर से अनेवाली लाइट की वजह से उसके पैर दिख सकते थे फिर सुधा गैलरी के दूसरी ओर दीपक के कमरे के सहारे से होकर आगे बढ़ी और रसोई के सामने उस तीसरे कमरे की खिड़की के पास आयी, हालांकि खिड़की पर पर्दा पड़ा हुआ था लेकिन उसमें थोड़ी सी जगह बनी हुयी थी किनारे से जिसमें से उस कमरे में झाँका जा सकता था

सुधा ने अंदर नजर डाली तो देखकर चौंक गयी उस कमरे में एक लोहे की अलमारी ड्रेसिंग टेबल और एक दीवान पलंग पड़ा हुआ था, पलंग का कुछ हिस्सा खिड़की से दिख रहा था लेकिन ड्रेसिंग टेबल के शीशे से पूरा पलंग दिखाई दे रहा था, उस पलंग पर ममता के साथ उसका ससुर यानि रागिनी और दीपक का पिता विजय लेता हुया था सिरहाने से टेक लगाकर। ममता ने उसके सीने पर अपना सिर रखा हुआ था और उसका हाथ ममता की छती पर रखा चूचियाँ सहला रहा था

..................................

“क्या?” इतना सुनते ही रागिनी ने चौंक कर सुधा की ओर देखा

“अभी तो शुरुआत है..... अभी तो बहुत कुछ ऐसा है कि तुम सोच भी नहीं सकती” सुधा ने कहा

“एक काम करते हैं.... अनुराधा और प्रबल तुम दोनों अपने अपने कमरों में जाकर सो जाओ... में जितना जरूरी है उतना तुम्हें सब बता दूँगी लेकिन सुबह” रागिनी ने दोनों बच्चों से कहा

सुधा ने भी सहमति दी कि... रागिनी को वो सबकुछ बता देना चाहती है... लेकिन बच्चों के सामने बहुत से बातें वो कह नहीं पाएगी... इसलिए उन दोनों को रागिनी सुबह सबकुछ बता देगी। प्रबल तो उठकर चल दिया लेकिन अनुराधा ने कहा कि क्योंकि बात उसकी माँ को लेकर चल रही है...इसलिए वो भी सबकुछ सुनेगी... चाहे कितना ही गंदा क्यों न हो। इस पर रागिनी ने कहा कि उसकी माँ ममता है या वो... अगर वो रागिनी को अपनी माँ मानती है तो अभी जाकर सो जाए, सुबह वो उसे सबकुछ बता देगी। ये सुनकर अनुराधा भी उठ खड़ी हुई और अपने कमरे में चली गयी
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#54
Nice update Thakur saab..
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#55
अध्याय 18


उन दोनों के जाने के बाद रागिनी ने सुधा को आगे सुनने का इशारा किया तो सुधा ने ऋतु की ओर देखते हुये इशारा किया और कहा

“पहले मुझे ये बताओ ये ऋतु कौन है? ये तुम्हें दीदी कह रही है और बच्चे इसे बुआ कह रहे हैं.... और घर पर भी सुबह तुम्हारे साथ नहीं थी ये?”

“वैसे तो बहुत करीबी रिश्ता है मेरा ऋतु से... लेकिन जैसे तुम्हें समझने में आसानी होगी वो बताती हूँ। ये विक्रम के चाचा बलराज सिंह की बेटी है...यानि विक्रम की चचेरी बहन...और ये आज दोपहर से ही हमारे साथ रहने आ गयी है। अब ये हमारे साथ ही रहेगी। और एक बात जो तुम्हें भी नहीं पता और पहले मुझे भी नहीं पता था अभी यहाँ आने के बाद पता लगी है.... तुम्हारी विमला आंटी जिसे तुम मेरी माँ के तौर पर जानती हो.... वो ऋतु की सगी बुआ थीं और शायद मेरी भी” रागिनी ने सुधा को बताया तो सुधा मुंह फाड़े उन दोनों की ओर देखने लगी

“सुधा दीदी! आप अभी ज्यादा मत सोचो और मेरे सामने ये सब बताने में कोई झिझक भी मत रखो... में कोई अनुराधा प्रबल की तरह बच्ची नहीं हूँ... यहीं दिल्ली में वकालत करती हूँ.... वकील हूँ...एडवोकेट.... और साथ ही जिनकी अप कहानी सुना रही हो उनसे मेरा भी उतना ही रिश्ता है...जितना रागिनी दीदी का” ऋतु ने सुधा के आश्चर्य को देखते हुये उसका हाथ अपने हाथों में लेते हुये कहा

“ठीक है” सुधा ने गहरी सांस लेते हुये कहा “अब आगे सुनो :-

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ममता और विजय को ऐसे देखकर सुधा की जैसे सांस ही थम गयी... लेकिन फिर ममता की बात याद आते ही उसने चुपचाप देखना ही बेहतर समझा और उनकी बातें सुनने लगी

“तो आज कैसा रहा? मजा आया की नहीं?” विजय ने उसको धीरे धीरे मसलते हुये कहा

“अब मजा आए या ना आए... जो काम दिया गया था वो तो करना ही था... एक तरह से समझ लो नौकरी करने गयी थी.... काम किया और आ गयी” ममता ने चिढ़ाते हुये कहा

“तू बहुत बड़ी रंडी है.... विमला से भी बड़ी... उसने तो जो कुछ भी किया ...अपने घर और अपने बच्चों के फायदे के लिए किया... लेकिन तू तो मजा लेने के लिए करती है” विजय ने फिर उसे छेड़ते हुये कहा

“हाँ! एक उम्र थी जब मजा लिया मेंने... लेकिन आज वो सजा बन गयी है... सोचा था शादी हो जाएगी अपना घर, अपना पति अपने बच्चे होंगे तो इन सबसे पिण्ड छूट जाएगा और चैन से अपना घर चलाऊँगी.... लेकिन यहाँ भी तेरे जैसे कमीने के चंगुल में फंस गयी” ममता ने कहा

“हाँ मुझे भी पता है.... कितनी बड़ी शरीफजादी है तू.... अहसान मान मेरा की दीपक से तेरी शादी करा दी... तेरा घर बस गया... अब कुछ दिन की बात और है... धीरे धीरे वहाँ तेरा काम खत्म हो जाएगा... उम्र हो रही है तेरी भी... बस तेरे हुनर की वजह से कुछ खास लोग ही तेरी डिमांड करते हैं.... नाज़िया मेडम ने कहा है कि वो तुझसे बात करना चाहती हैं.... कल जाकर मिल लियो...राधु पैलेस के पास जो कॉफी हाउस है.... 12 बजे” विजय ने कहा और फिर दोनों एक दूसरे को चूमने लगे और धीरे धीरे करके एक दूसरे के कपड़े उतारने लगे.... सुधा ने पहले तो वहाँ से वापस अपने कमरे में आने का सोचा... लेकिन फिर उसने भी सोचा कि क्यों न देखकर मजा भी लिया जाए.... अब दोनों बिलकुल नंगे होकर एक दूसरे को चूमने चाटने चूसने पर लग गए, थोड़ी देर बाद ममता बिस्तर पर घुटने और हाथों के बल कुतिया बन गयी और विजय पीछे से आकार उसे चोदने लगा.... सुधा भी उन्हें देखकर बेचैन होने लगी...उसे भी अपने शरीर में गर्मी का अहसास होने लगा... लेकिन उनकी बातें फिर से शुरू हो गईं जिनको सुनकर सुधा के कान खड़े हो गए और अपनी हालत को भूलकर फिर से उनकी बातों पर ध्यान देने लगी.........

“क्या हुआ मामाजी बुड्ढे हो गए क्या? दम नहीं रहा?” ममता ने बोला

मामाजी सुनते ही सुधा चौंक गयी कि ममता अपने ससुर को मामाजी क्यों कह रही है

“दम तो बहुत है मुझमें लेकिन तू ही रंडी है.... साला पता ही नहीं चलता कि कहाँ जा रहा है.... तुझसे ज्यादा मजा तो विमला में आता है” विजय ने धक्के लगते हुये कहा

“मौसी के साथ मजा क्यों नहीं आयेगा... बहनचोद जो ठहरे” ममता ने भी पीछे की ओर धक्के लगाते हुये कहा

“कोई नया माल देख..... नाज़िया के तो भाव बढ़ गए हैं........ वो तो मुझे लूटने पर आ गयी है....कोई कमसिन सी बिना खुली हो” विजय ने फिर से ज़ोर लगते हुये कहा

“कहाँ ढूंढते फिरते हो, बहनचोद तो हो ही...बेटीचोद भी बन जाओ... रागिनी को ही उतार लो नीचे... कुछ में तैयार कर देती हूँ...कुछ तुम कोशिश करो” ममता ने कहा

“नहीं यार... रागिनी तो पहले ही विमला की वजह से मुझसे बात तक नहीं करती है...वो मेरे हाथ नहीं आएगी... कोई और देख” इतना कहते हुये विजय झड के हाँफता हुआ बिस्तर पर लेट गया...ममता ने उठकर उसकी ओर देखा और बुरा सा मुंह बनाकर बोली

“मुझे तो झेल नहीं पाते... नया माल ढूंढते हो.... तुमसे बढ़िया तो दीपक ही चोद लेता है.... मजबूरी है कि तुमने और उस कमीनी नाज़िया ने ऐसा फंसा रखा है कि कुछ कर नहीं सकती....  वरना गाण्ड पर लात मारके भगाती”

विजय ने कुछ कहा नहीं और खिसियानी सी हंसी हँसता हुआ उठकर अपने कपड़े पहनने लगा। इधर सुधा ने विजय को कपड़े पहनते देखा तो भागकर अपने कमरे में जाकर आँखें बंद करके लेट गयी...थोड़ी देर बाद उसे दरवाजा खुलने और बंद होने कि आवाज आयी और किसी के कमरे में घुसने की कदमों कि आवाज महसूस हुयी तो उसने पलकों में से देखा... ममता को देखकर वो उठकर पलंग से उतरी और बाहर को चल दी... ममता के पीछे। ममता उसे लेकर हॉल में रुकने कि बजाय उसी तीसरे कमरे में वापस आ गयी और पलंग पर बैठकर सुधा को भी बैठने का इशारा किया

“ये सब क्या है भाभी?” सुधा ने पूंछा

“देखकर मजा आया या नहीं?” ममता ने उल्टा मुस्कुराकर कहा तो सुधा ने चिढ़कर उसे घूरते हुये कहा

“फालतू कि बकवास करने कि बजाय मेरे सवाल का जवाब दो”

“तूने देख ही लिया... इस घर का जो मुखिया है वो मेरी चूत चाटता है... तू किसी को भी कुछ भी बता दे मुझे कोई डर नहीं...लेकिन पूंछ क्या पूंछना चाहती है मुझसे? आज तेरे हर सवाल का जवाब दूँगी... मेरे भी मन में आता है कि किसी से अपने मन की कहूँ... लेकिन कोई पूंछता ही नहीं... सब अपने मन कि कहते और करते हैं मेरे साथ” ममता ने दर्द भरी आवाज में कहा

“पहले तो ये बताओ कि तुम विजय अंकल को मामा क्यों कह रहीं थीं...और विमला आंटी को मौसी?” सुधा ने पूंछा

“इसलिए कि यही उनका रिश्ता है... विमला मौसी मेरी माँ की सहेली हैं... बचपन की... वो दोनों साथ-साथ पढ़ा करती थीं जैसे तुम और रागिनी पढ़ते हो... और विजय मामा उनके भाई हैं... दीपक और कुलदीप विमला मौसी के बेटे हैं... लेकिन रागिनी विजय मामा की बेटी है” ममता ने कहा तो सुधा का मुंह आश्चर्य से खुला का खुला रह गया

.........................................

इधर ये सुनते ही रागिनी और ऋतु के भी मुंह से एकसाथ निकला “क्या?”

“हाँ! ये राज तुम और ऋतु भी नहीं जानते। में पहली बार ऋतु से मिली लेकिन जब तुमने बताया कि ये भी विमला आंटी कि भतीजी है तो मेंने इसके सामने बताना और ज्यादा सही समझा... लेकिन तुमने तो अभी मुझसे कहा था कि वो तुम्हारी भी बुआ हैं.... तो तुम्हें कैसे पता चला... मेरे बताने से पहले ही...???” सुधा ने ताज्जुब से पूंछा

“मेंने जो विक्रम की वसीयत के लिफाफे से हॉस्पिटल का एड्रैस मिला था वहाँ से पता किया था... और ऋतु की माँ ने भी बताया था.... लेकिन उन्होने मेरे पिता का नाम जयराज बताया था और वही हॉस्पिटल के भी रेकॉर्ड में था .... विजयराज के बड़े भाई” रागिनी ने बताया

“अब मुझे नहीं पता .... में तुम्हें वो बता रही हूँ जो मुझे ममता ने बताया था” सुधा ने कहा तो रागिनी ने उसे आगे बताने को कहा

..............................

सुधा ने फिर आगे बताना शुरू किया :-

“ठीक है भाभी! में तो अब सोने जा रही हूँ.... मुझे तो आप लोगों का ही समझ में नहीं आया... कि कौन क्या है? आज तक रागिनी ने भी मुझे नहीं बताया कि विमला आंटी उसकी माँ नहीं हैं.... और ना ही विमला आंटी और विजय अंकल का ही किसी को पता कि वो मियाँ-बीवी नहीं भाई-बहन हैं” कहते हुये सुधा उठ खड़ी होने लगी तो ममता ने कहा कि चाहो तो दोनों यहाँ भी सो सकते हैं... लेकिन सुधा ने माना कर दिया और जाकर रागिनी के पास सो गयी

दूसरे दिन सुबह ममता ने सुधा से कहा कि आज वो नाज़िया से मिलने जाएगी.... चाहे तो सुधा भी चल सकती है... लेकिन सुधा ने साफ माना कर दिया कि अब उसे इन सब बातों से कोई मतलब नहीं। धीरे धीरे समय बीतता गया और ममता सुधा से ज्यादा से ज्यादा करीब होती गयी... यहाँ तक कि वो अब आपस में ममता के बाहर चुदने के अनुभवों को भी आपस में सिर्फ पूंछने या बताने तक ही नहीं... गहराई से समझने और मजा लेने तक भी आ गयी... ममता हमेशा खुद को मजबूर और लाचार दिखाकर सुधा कि सहानुभूति से नज़दीकियाँ बढ़ती और फिर उनमें वासना का रंग घोलने लगती, साथ ही सुधा को कहती कि... इस दलदल से बाहर निकालने में उसकी सहता करे।

इधर सुधा कि जो उम्र थी उसमें इन चुदाई के लिए ही नहीं... इस बारे में छोटी बड़ी हर बात के लिए एक जिज्ञासा होती ही है, सो वो भी अब ममता के साथ बातें करके मजा लेने लगी... ममता ने भी रागिनी और विमला के परिवार के बारे में सुधा को जो बताना शुरू किया उससे सुधा कि रागिनी से दोस्ती सिर्फ नाम मात्र कि ही रह गयी थी ऊपरी मन से.... अन्तर्मन से तो सुधा को भी लगने लगा था कि ये सभी बहुत गलत लोग हैं और इनहोने एक लाचार विधवा माँ कि बेटी को मजबूर और बेबस कर रखा है... उसका गलत इस्तेमाल कर रहे हैं, उसे रागिनी तक से नफरत होने लगी थी कि उसने भी कभी अपने घर कि सच्चाई नहीं बताई।

अब सुधा कभी-कभी ममता के कहने पर कभी अपनी मर्जी से भी ममता के पास रुकने लगी...और रात के विजय और ममता के कारनामों का छुपकर मजा लेने लगी... ऐसे ही एक दिन जब सुधा ममता के पास रुकी हुई थी तो रात को कॉफी पीने के बाद सुधा कि आँख सुबह ही खुली... ममता के जगाने पर... उठते ही सुधा ने जब देखा कि सुबह हो गयी है... और वो रात को कॉफी पीते ही सो गयी तो वो दर से काँप गयी... लेकिन अपने शरीर में उसे कुछ भी अजीब नहीं महसूस हुआ तो  उसने सवालिया नज़रों से ममता कि ओर देखा, जैसे पूंछ रही हो कि ममता ने रात उसे क्यों नींद कि दवा देकर सुला दिया तो ममता ने धीरे से उसे दोपहर को घर आने को कहा और कहा कि इसी सिलसिले में उसे कुछ जरूरी बात करनी है।

दोपहर को स्कूल से आकर सुधा ममता से मिलने आयी तो ममता कहीं जाने को तयार दिखी... सुधा ने पूंछा तो ममता ने कहा कि उसे बाज़ार जाना है कुछ सिलाई का सामान  लेने, सुधा भी उसके साथ चली चले। सुधा उसके इशारे को समझ के साथ चल दी वहाँ से निकलकर फाटक पर करके ममता ने करोल बाग पी एण्ड टी कॉलोनी के लिए रिक्शा लिया और वहाँ पार्क के सामने उतरकर पार्क में अंदर जाकर एक बेंच पर बैठ गयी... दोपहर का समय था तो पार्क में वो दोनों ही थे बाकी खाली था। बेंच पर बैठकर ममता ने सुधा को एक लिफाफा दिया। लिफाफा खोलकर जब सुधा ने देखा तो उसमें सुधा की कुछ तस्वीरें थी बिना कपड़ों के जिन्हें देखकर ही पता चल रहा था कि वो रात को उसी तीसरे कमरे में ली गईं थीं। तस्वीरों को देखकर सुधा पहले तो रो पड़ी फिर गुस्से में ममता को बुरा भला कहने लगी कि उसने ऐसा क्यों किया। ममता ने लाचार सी सूरत बनाकर कहा कि पिछली बार जब सुधा उसके घर रुकी थी तो उस रात विजय ने उसे खिड़की से झाँकते देख लिया था और उसने ममता को मजबूर करके ये सब करवाया है। विजय ने ये तस्वीरें न सिर्फ उसे दी हैं बल्कि नाज़िया को भी दे दी हैं और अब नाज़िया इन तसवीरों के दम पर उसे अपने काम में लगाना चाहती है.... अगर सुधा ने इन्कार किया तो न सिर्फ सुधा के घर बल्कि आसपास के सब लोगों तक ये तस्वीरें पहुँच जाएंगी.... सुधा अगर इस मामले में कोई कानूनी कार्यवाही करना चाहे तो अदालत में किसी भी तरह ममता या विजय को मुजरिम साबित नहीं कर पाएगी...उल्टे उसकी खुद कि बदनामी होगी.... लेकिन अगर वो चुपचाप मान जाती है तो उसे भी ममता कि तरह बिना किसी को कानोकान खबर हुये... इस काम से मज़ा और पैसा दोनों मिलते रहेंगे...

सुधा ने उस वक़्त तो कुछ नहीं कहा और उठकर चल दी घर आकार उसने खुद को पढ़ाई और घर में व्यस्त रखने कि कोशिश कि लेकिन दिमाग से वो बातें हटने का नाम नहीं ले रही थीं। आज उसे महसूस हुआ कि उसने ममता पर भरोसा करके कितनी बड़ी गलती कर दी... फिर भी वो खुद को सम्हालने कि कोशिश करने लगी... लेकिन अगले दिन ही शाम को ममता उसके घर आयी और एकांत में उसे फिर समझाया कि वो नाज़िया कि बात को मन ले वरना अंजाम भुगतने को तयार रहे.... आखिरकार सुधा को झुकना ही पड़ा और 2 दिन बाद ममता ने फिर उसे अपने साथ बाज़ार जाने के नाम पर लिया और नाज़िया से मुलाक़ात कराई.... धीरे धीरे ये सिलसिला चलता रहा।

एक दिन विजय ने ममता और सुधा को बताया कि नाज़िया के यहाँ की एक लड़की नेहा कक्कड़ को लेकर कुछ बवाल हो गया है और वो दोनों भी नाज़िया के किसी भी कांटैक्ट को संपर्क ना करें…. सुधा और रागिनी अब कॉलेज में पढ़ती थीं नेहा भी उन्हीं के कॉलेज में पढ़ती थी, सुधा तो नाज़िया वाले काम से जुड़े होने की वजह से कॉलेज में नेहा से कोई बात नहीं करती थी लेकिन रागिनी से नेहा कि अच्छी दोस्ती थी। दूसरे दिन कॉलेज से लौटते समय रागिनी ने सुधा को बताया कि नेहा को कोई नाज़िया नाम कि औरत ब्लैकमेल करके देह व्यापार कराती थी॥ उनके कॉलेज के ही एक दबंग लड़के विक्रम को इस मामले का पता चला तो विक्रम ने उस गिरोह के चंगुल से नेहा सहित कई लड़कियों को मुक्त करा दिया है.... नाज़िया पकड़ में आने से पहले ही फरार हो गयी लेकिन नाज़िया की बेटी का पता चला है जिसका नाम नीलोफर है... वो पुलिस हिरासत में है.... तो सुधा ने पूंछा कि रागिनी को ये सब किसने बताया...रागिनी बोली कि ये सब उसे विक्रम के साथ जो पूनम नाम कि लड़की और सुरेश नाम का लड़का रहता है... उन्होने बताया... क्योंकि नेहा रागिनी कि दोस्त थी और रागिनी विक्रम और पूनम के चरित्र को लेकर बहुत कुछ कहती रहती थी कॉलेज में इसलिए उसने रागिनी को नीचा दिखने के लिए ये सब बताया कि रागिनी की सहेली कितनी गिरी हुई है और विक्रम कितना महान है।

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ऋतु और रागिनी बड़े ध्यान से ये सब सुन रह थे..... सुधा इतना बताकर जब चुप हुई तो रागिनी ने पूंछा कि इस सब कहानी का रागिनी कि ज़िंदगी से क्या संबंध है......... तब उसने आगे बताना शुरू किया

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#56
(27-02-2020, 06:51 PM)Some1somewhr Wrote: Nice update Thakur saab..

thanks rana ji...........aage padhiye
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#57
अध्याय 19


ऋतु और रागिनी बड़े ध्यान से ये सब सुन रह थे..... सुधा इतना बताकर जब चुप हुई तो रागिनी ने पूंछा कि इस सब कहानी का रागिनी कि ज़िंदगी से क्या संबंध है......... तब उसने आगे बताना शुरू किया

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कुछ दिन बाद ममता ने सुधा को बताया कि नाज़िया वापस आ गयी है नाम बदलकर दोबारा उसी काम को शुरू कर रही है.... ममता भी दोबारा उसके साथ जुड़ गयी है...

“लेकिन अब क्या मजबूरी है तुम्हारी.... अब तो नाज़िया तुम्हें ना तो ब्लैकमेल कर पाएगी ना उससे कोई और खतरा है.... आजकल तो वो खुद छुपी फिर रही है” सुधा ने कहा

“यार अब क्या बहुत दिन पहले भी कोई ऐसी मजबूरी नहीं थी.... बस एक नशा सा हो गया था... शुरू में मजबूरी में किया फिर मजबूरी खत्म हो गयी तो मजा आने लगा.... अब तो रहा नहीं जाता... तुझे नहीं लगता... मोटे-पतले लंबे –छोटे रोज नए नए तरह तरह के लेने में जो मजा है.... वो एक के सहारे बोरियत भरी ज़िंदगी गुजारने में कहाँ” ममता ने कहा तो सुधा चौंक कर उसे देखने लगी

“तुमने जानबूझकर मुझे फंसाया था ना? पहले कुछ दिखने के नाम पर घर में बुलाया फिर बेहोश करके फोटो ले लिए” सुधा ने गुस्से से कहा

“हाँ जब उस दिन तूने मुझे पहाड़गंज में देख लिया तो घर आकर मेंने विजय मामा को बताया... उन्होने नाज़िया से बात करके तुम्हें फँसाने के लिए ये प्लान बनाया.... और मेंने उस प्लान पर काम करके थोड़े ही दिन में तुम्हें भी अपने धंधे में उतार लिया... फिर मुझे तुमसे कोई खतरा नहीं रहा” ममता ने कहा

“लेकिन अब में ये काम नहीं करूंगी...और अब न तो तुम और न तुम्हारा विजय मामा और ना वो नाज़िया... कोई मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकता... क्योंकि तुमने ही मुझे बताया था की नाज़िया के फरार होने के बाद उसके पास या विजय के पास जो भी फोटो या विडियो थे लड़कियों के ........सब खत्म कर दिये तुमने... सबूत मिटाने को” सुधा ने ममता को बोला

“वो तो सब ठीक है... तुम्हारी मर्ज़ी करो या मत करो... वैसे अब मुझे तुम्हारी जरूरत भी नहीं रह गयी... मेंने एक नए माल का इंतजाम कर लिया है....” कहते हुये ममता ने नीचे की ओर इशारा किया तो सुधा को कुछ समझ नहीं आया

“ठीक है.... अब आगे से” कहते कहते सुधा अचानक ममता की काही बात को समझकर चौंक कर उसकी ओर देखने लगी और फिर बोली “अगर तुम रागिनी की कह रही हो तो तुमसे बड़ी कमीनी मेंने नहीं देखी.... भले ही सगी न सही... है तो तुम्हारी ननद ही”

“उसके बाप ने मुझे रंडी बनाया अब में उसे बनाऊँगी.... और में क्या उसे तो उसका बाप ही रंडी बनाएगा...पहले अपनी हवस मिटाएगा फिर नाज़िया के लिए काम करेगी...”

“रागिनी ने क्या कहा?” सुधा ने बेबसी भरे स्वर में पूंछा

“वो क्या कहेगी...उसे तो अभी पता भी नहीं की क्या होनेवाला है... और तुझे भी बता रही हूँ.... अगर तूने उसे कुछ बताया तो तेरे कुछ फोटो अभी भी मेरे पास हैं.... में तुझे चाहूँ तो मजबूर कर सकती हूँ...लेकिन तुझे मेंने कहा की तू धंधा कर?” ममता ने कमीनी मुस्कान के साथ कहा

“लेकिन में रागिनी के साथ भी ऐसा नहीं होने दूँगी.... और नाज़िया के लिए तुम इतना क्यों कर रही हो... रागिनी तो तुम्हारी अपनी है...नाज़िया से तो तुम्हारा कोई रिश्ता भी नहीं...” सुधा ने आँखों में आँसू भरे हुये कहा

“पूरी बात तो बहुत लंबी है... अब बात सुन जो में बता रही हूँ... मेरे ख्याल से इतना ही तुझे समझने के लिए काफी होगा...जिससे तू हमारे रास्ते से हट जाए और चुपचाप अपनी ज़िंदगी जिये” ममता ने गंभीरता से कहना शुरू किया “अब ये धंधा नाज़िया का नहीं विजय का है.... वो हुमेशा से इन्हीं उल्टे सीधे कामों से पैसा कमकर रईस बनना चाहता था...किसी जमाने में उसने मेरी माँ के साथ मिलकर नकली पासपोर्ट का धंधा किया था... ये नाज़िया पाकिस्तान की रहने वाली है... रंडीबाजी के चक्कर में विजय को मिली और विजय ने इसका नकली पासपोर्ट बनाकर इसे यहाँ का नागरिक साबित कर दिया... इसका असली नाम मुझे भी नहीं मालूम... ये सारा धंधा भी इससे विजय ही चलवा रहा था... मेरी माँ भी इसमें शामिल थी...और मेरा छोटा भाई भी...इसीलिए में भी इससे बाहर नहीं निकालना चाहती.... उन सबका कहना है की अब से ये धंधा में और नीलोफर मिलकर सम्हालेंगे.... लेकिन नेहा के मामले को लेकर जो बवाल हुआ उसमें सब तो साफ बच गए पर नेहा फंस गयी और जेल पहुँच गयी।

जेल से जमानत होकर वो बाहर आ ही जाती लेकिन ऐसा नहीं हुआ... उसकी जमानत किसी और ने हमारे कुछ करने से पहले ही करा ली और जेल से निकालकर वो गायब हो गयी... अब हम रागिनी को भी इस धंधे में लाना चाहते हैं....वो इतनी आसानी से नहीं आएगी.... पहले उसे इस काम में जबर्दस्ती घुसाना होगा.... रंडी बनाकर... इससे मेरी माँ मुन्नी, विजय और नाज़िया तीनों हिस्सेदारों की बेटियाँ... नए धंधे में मालिक हो जाएंगी।“

“तो नीलोफर क्यों किसी और के साथ गायब हो गयी... आखिर वो भी एक रंडी की बेटी है और खुद भी रंडी होगी तुम्हारी तरह.... उसे भी अपना खुद का जमा जमाया धंधा मिल रहा है?” सुधा ने चिढ़ते हुये कहा “रही बात रागिनी की ...जब उसका बाप ही उसे धकेल रहा है तो में उसे कैसे रोक सकती हूँ... अब मुझे इस धंधे या तुम सब से कोई मतलब नहीं...मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो”

“पहली बात तुम्हें मेंने इसलिए ये सब बताया की अगर तुम हमारे साथ शामिल होना चाहो तो तुम्हें भी हम बराबर का हिस्सेदार बना लेंगे... अगर तुम नहीं चाहती तो कोई बात नही...ये कोई कोठा नहीं है...जहां जबर्दस्ती की जाएगी... अब इस धंधे की फिलहाल में इकलौती मालकिन हूँ और में तुमसे कोई जबर्दस्ती नहीं करूंगी..... दूसरी बात...... रागिनी के मामले में तुम अगर हमारी कोई सहता नहीं करोगी तो ऐसा भी कुछ नहीं करोगी कि रागिनी हमारे हाथ से निकाल जाए... वर्ण तुम्हारे खिलाफ मुझे कुछ नहीं सबकुछ करना होगा...... और तीसरी बात.......... क्योंकि रागिनी अभी हमारे हाथ में नहीं है... और पता नहीं कब तक पूरी तरह हमारे साथ मिलकर ये काम सम्हालेगी... उसके द्वारा हम नेहा से संपर्क करके नीलोफर का पता लगाना चाहते हैं...नीलोफर मेरी या तुम्हारी तरह रंडी नहीं है... उसने बेशक अपनी माँ का रंडियों का धंधा चलाया है... लेकिन उसने खुद आज तक एक बार भी चुदाई नहीं कि है.... हमें जो पता चला है कि उसकी जमानत विक्रम ने कराई है और शायद वो विक्रम के साथ ही है...अब पता नहीं विक्रम ने उसे क्या घुट्टी पिला दी जो वो अपनी माँ और जिस धंधे के पैसे पर ऐश काट रही थी...उसे छोडकर विक्रम के साथ भाग गयी।“ ममता ने कहा

“तो सीधे विक्रम से ही पता कर लो... कॉलेज में मिलेगा” सुधा ने कहा

“जब से नेहा वाला कांड हुआ है तुमने कॉलेज में नेहा या विक्रम को देखा है तब से?... नेहा तो चलो इस मामले के खुलने कि वजह से शायद ही कॉलेज आए... लेकिन विक्रम भी गायब है.... हमने पता लगाया है... विक्रम और नेहा को नीलोफर के गायब होने के बाद कहीं साथ में भी देखा गया था... इसलिए में चाहती हूँ कि तुम रागिनी से नेहा के बारे में पता करो... या सुरेश और पूनम से विक्रम के बारे में....और हमें बताओ.... जिससे विक्रम तक पहुँचकर हम नीलोफर का पता लगा सकें” ममता ने ज़ोर देते हुये कहा

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सुधा इतना कहकर रुकी तो उसकी नज़र दरवाजे को थोड़ा सा खोलकर अंदर देखते अनुराधा और प्रबल पर पड़ी तो उसने दरवाजे कि ओर पीठ करके बैठी रागिनी और ऋतु को दरवाजे कि ओर देखने का इशारा किया....

“मेरे बच्चो... वहाँ क्यों खड़े हो यहाँ आओ मेरे पास” रागिनी ने उन दोनों को पास आने का इशारा करते हुये कहा तो दोनों आकर रागिनी के कि गोदी में लेटकर उससे चिपक गए

“माँ! प्रबल कि मम्मी वही नीलोफर हैं ना.... लेकिन जब वो विक्रम भैया के साथ थीं तो वे पाकिस्तान कैसे पहुँच गईं... और प्रबल विक्रम भैया के पास कैसे आ गया” अनुराधा ने रुँधे गले से पूंछा ..... प्रबल तो रोता हुआ कुछ कह ही नहीं पाया... शायद अनुराधा को अब प्रबल के माँ-बाप का पता चलने से प्रबल के चले जाने का डर सताने लगा था

“तुम अभी भी नहीं समझी? याद है हमें पूनम ने क्या बताया था?.... उन्हीं दिनों पूनम को नेहा ने बताया था कि विक्रम ने किसी ,., लड़की से शादी कर ली है... वो नीलोफर ही रही होगी.... नीलोफर का नाम और उसके बारे में नेहा सबकुछ जानती थी लेकिन उसने शायद पूनम को उसके बारे में इसलिए नहीं बताया होगा कि पूनम पता नहीं विक्रम के बारे में क्या सोचती... एक कॉल गर्ल रैकेट चलानेवाली लड़की से शादी की..... और दूसरी बात हम राजस्थान में रहे हैं ...तुमने देखा होगा कि ,.,ों में भी राजपूत होते हैं... उन्होने मजहब जरूर बदल लिया लेकिन जाति अपने पूर्वजों कि ही लिखते और बताते है.... राणा, चौहान आदि... तो ये राणा शमशेर अली कोई और नहीं विक्रम ही है.... मुझे पूरा यकीन है.... अब रही पाकिस्तान में रहने कि बात... तो नाज़िया और नीलोफर के बारे में तब न सही बाद में सरकार को जब भी पता चला होगा कि उनका पासपोर्ट नकली है तो उन्हें लौटकर पाकिस्तान ही भागना पड़ा होगा.... क्योंकि वो कानूनी तौर पर पाकिस्तानी नागरिक थीं....तो आसानी से वहाँ रह सकती थीं...अब मुझे समझ आया कि विक्रम इतने इतने दिन के लिए कहाँ गायब हो जाता था”

रागिनी कि बात सुनते ही प्रबल ने सिर उठाकर रागिनी की ओर देखा साथ ही ऋतु, अनुराधा और सुधा भी उसकी ओर देखने लगे .....

“तो ये विक्रम और नीलोफर का बेटा है... पता है... में तुम्हारी माँ को बहुत अच्छी तरह जानती थी.... चाहे उस गंदगी में घुसे होने की वजह से ही... बहुत सुंदर और नाजुक सी लगती थी.... लेकिन बहुत तेज थी.... हम सबसे क्या नाज़िया से भी...लेकिन बहुत भावुक भी थी.... वो कभी किसी भी लड़की को उसकी मर्जी के बिना या जबर्दस्ती कम नहीं कराने देती थी.... इस बात पर बहुत बार माँ-बेटी में झगड़ा भी हो जाता था हालांकि नाज़िया ज़्यादातर बातों से उसे दूर ही रखती थी... उसकी इसी आदत कि वजह से”

“अब आगे बताओ? फिर क्या हुआ?” रागिनी ने कहा तो सुधा ने आगे बताना शुरू किया

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फिर सुधा ने रागिनी से नेहा का पता करने कि कोशिश कि तो रागिनी ने कुछ खास नहीं बताया... सिर्फ इतना कहा कि नेहा को उसके घरवालों ने कहीं बाहर भेज दिया है.... कॉलेज में भी पूनम से कोई खास जानकारी नहीं मिल सकी सुधा ने नीलोफर का पता लगाने कि कोशिश यही सोचकर की...कि नीलोफर के बदले आगे चलकर वो रागिनी को इस सब से बाहर निकालने कि शर्त रख सकती है....और रागिनी को भी सबकुछ बता देगी.... लेकिन नीलोफर या विक्रम के बारे में ही पता नहीं चल सका.... कुछ दिन बाद एक दिन रागिनी और विमला कहीं गए और लौटकर नहीं आए ममता ने आकार सुधा को बताया कि विमला और रागिनी दोनों गायब हो गए हैं..... सुनकर सुधा ने ममता से कहा कि इसमें उसका और विजय या नाज़िया का ही तो हाथ नहीं है.... इस पर ममता ने अनभिज्ञता जाहिर की। फिर एक दिन उसे कॉलेज में सुरेश ने बात की और कहा कि विक्रम उससे मिलना चाहता है....कॉलेज से सुरेश सुधा को साथ लेकर कश्मीरी गेट अंतर्राज़्जीय बस अड्डे पर लेकर गया जहां विक्रम ने उससे रागिनी के बारे में पूंछा तो सुधा ने उसे वो सब बता दिया जो ममता ने उसे बताया था.... सुनकर विक्रम ने कुछ देर सोचा और कहा कि वो ममता पर नज़र रखे और जब ममता अकेली हो घर पे तो उसे फोन कर दे.... लेकिन इतना समय होना चाहिए कि एक दो घंटे जबतक वो ममता से अपनी बात न कर ले तब तक कोई और न आए....

सुधा ने घर जाकर कपड़े बदले और सीधी ममता के पास पहुंची... वहाँ जाकर पूंछा तो ममता से उसे पता चला कि विजय सिंह ने रागिनी के अपहरण कि रिपोर्ट दर्ज करा दी है विमला के खिलाफ और अभी पुलिस के साथ उनके संभावित ठिकानों पर छापामारी कर तलाश करा रहा है... वो 1-2 दिन में वापस आयेगा... सुधा ने वहाँ से निकलकर विक्रम को सारी बात बताई तो विक्रम ने उससे कहा कि वो आ रहा है सुधा किशनगंज मार्केट पर उसे मिल जाए और ममता के घर तक छोड़ दे...सुधा ने वही किया... विक्रम ने फिर उससे कह दिया कि अब वो इस सब मामले और इन लोगो से अपने सारे संपर्क तोड़ दे... इनमें से कोई उसके लिए कभी कैसी भी परेशानी नहीं कर पाएगा....और वो ममता के घर में चला गया...

2-3 दिन बाद ही विक्रम पुलिस को लेकर आया और ममता को गिरफ्तार कर लिया गया.... ममता का पति दीपक और विजय तो पहले से ही लौटकर नहीं आए थे जबसे पुलिस के साथ रागिनी को ढूँढने गए थे.... कुलदीप और सिमरन... जिसका नाम शादी के सरोज कर दिया था.... भी इस सारे मामले से हाथ झाड़कर दूर हट गए ....यहाँ तक कि उन्होने ममता की बेटी अनुराधा को भी अपने साथ रखने से मना कर दिया और कहा कि वो ये घर छोडकर कहीं और रहने जा रहे हैं.... तो विक्रम ने ही अनुराधा को अपने साथ ले जाने का कहा

बस इसके बाद उस मकान को पुलिस ने सील कर दिया... कुछ समय बाद विक्रम ने आकार उस मकान को खुलवाया और बताया कि ये मकान उसने ले लिया है... सुधा ने कई बार विक्रम से बात करके अनुराधा और रागिनी के बारे में जानने कि कोशिश कि लेकिन विक्रम ने सिर्फ इतना बताया कि दोनों ठीक हैं और साथ-साथ ही हैं कहीं पर.... लेकिन न तो उनका पता बताया और ना ही कभी मिलवाया और उसने कभी विक्रम के मुंह से नीलोफर का भी नाम नहीं सुना...साथ होना तो दूर की बात है

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#58
Nahut badhiya story h..
Lekin itne character hone se bahut confusing ho gayi h..
Math ki kisi theorem ki tarah..
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#59
अध्याय 20 


सुधा के इतना बताकर चुप हो जाने के बाद भी वहाँ बैठे सभी कुछ देर तक बिना कुछ बोले उसके मुंह की ओर देखते रहे तो सुधा ने असहज होते हुये रागिनी के कंधे पर हाथ रखा रागिनी ने और बाकी सब ने तब चौंक कर सुधा की ओर देखा 

“इसके अलावा तुम्हारे परिवार में से किसी के भी बारे में मुझे कोई जानकारी नहीं ....और न ही उनमें से कोई कभी यहाँ आया” सुधा ने रागिनी से कहा

“सुधा दीदी! क्या कभी विजय अंकल ...मतलब विजय ताऊजी और विमला बुआ के पास कोई उनके अपने परिवार का सदस्य कभी आता जाता था....या कोई ऐसा जो इन दोनों के बारे में इनकी असलियत जानता हो....” ऋतु ने पूंछा

“हाँ! एक इनके बड़े भाई आते थे कभी-कभी वो यहीं दिल्ली में रहते थे... उनके बारे में मुझे बस इतना पता है कि उनकी पत्नी उन्हें अपने पास भी नहीं फटकने देती थी और उनके कोई बच्चा भी नहीं था।“ सुधा ने कहा तो ऋतु ने छोंकते हुये उसकी तरफ देखा... सुधा के होठों पर फीकी सी मुस्कुराहट आयी और उसने आगे बोलना शुरू किया

“हाँ! तुम जो सोच रही हो वही..... लेकिन जब से तुम्हारे बारे में रागिनी ने बताया है तब से यही सोच रही हूँ कि अगर तुम उनकी बेटी हो तो उन्होने ये क्यों कहा कि उनके कोई बच्चा ही नहीं है.....जबकि तुम्हारी उम्र इतनी कम भी नहीं... और दूसरी बात...तुम जो समझ रही हो कि उन्होने भी मेरे साथ शारीरिक संबंध बनाए... तो सही समझ रही हो..... विजय सिंह और बलराज सिंह दोनों ने साथ मिलकर भी मेरे साथ ये सब किया.... ममता भी साथ होती थी.... और ये सब होता था.... ममता के उसी कमरे में..... हाँ बाहर कभी बलराज सिंह ने मुझसे बात तक नहीं की”

सुधा की बात सुनते ही ऋतु का चेहरा नफरत और गुस्से से काला पड़ गया... और आँखों से आँसू बहने लगे...कुछ देर बाद उसने कहा “दीदी! में आपके सामने शर्मिंदा हूँ...और खुद अपने आपसे नफरत हो गयी है मुझे.... कि में ऐसे माँ-बाप की बेटी हूँ..... माँ के विक्रम भैया से नाजायज ताल्लुकात थे और पापा भी ऐसे निकले.... तभी में समझी कि पापा कभी माँ के खिलाफ क्यों नहीं गए.... यहाँ तक कि अभी तो मेंने उनके सामने माँ और विक्रम भैया के यहाँ आने का जिक्र और उनके नाजायज सम्बन्धों का शक भी जाहिर किया लेकिन उन्होने माँ से एक शब्द भी नहीं कहा.... कहते ही कहाँ से...वो खुद इसी गंदगी में घुसे हुये थे”

रागिनी ने अनुराधा को इशारा किया तो उसने साइड टेबल से पानी का ग्लास उठाकर ऋतु को दिया और रागिनी ने उसकी पीठ पर हाथ फेरते हुये दिलासा देते हुये पनि पीने का इशारा किया

फिर रागिनी ने घड़ी कि ओर देखा तो सुबह के 4 बजने वाले थे...रागिनी ने सभी को अपने-अपने कमरे में जाकर सोने को कहा... सुधा को अपने साथ ही सोने को उसने पहले ही बता दिया था.... नींद तो रागिनी को भी नहीं आ रही थी... लेकिन उसने सोचा कि अगर मन में उठ रहे सवालों के जवाब जानने के लिए वो सोचती रहेगी या सुधा से और पूंछताछ करेगी तो शायद मन कि बेचैनी घटेगी नहीं...बल्कि और बढ़ ही जाए... इसलिए वो चुपचाप लेटकर सारी बातों से दिमाग हटाने कि कोशिश करती रही और थोड़ी देर बाद उसे भी नींद आ गयी

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सुबह सबसे पहले ऋतु ने आकर रागिनी का दरवाजा खटखटाया रागिनी ने नींद से जागकर घड़ी की ओर देखा 9 बज रहे थे... हालांकि उसे अब भी नींद आ रही थी लेकिन उसने उठना ही बेहतर समझा और सुधा को भी उठाकर बाहर निकली लो देखा कि अनुराधा और प्रबल भी हॉल में सोफ़े पर बैठे पता नहीं किस सोच में डूबे हुये थे... रागिनी को देखते ही वो दोनों भी उठकर खड़े हो गए....सुधा ने ऋतु का हाथ पकड़ा और उसे अपने साथ लाकर सोफ़े पर बैठा लिया... साथ ही अनुराधा और प्रबल को भी थोड़ी थोड़ी जगह बनाकर वहीं बैठा लिया  और उन सभी के सिर पर हाथ फिराने लगी... ऐसा करते करते कुछ सोचते हुये रागिनी की आँखों में आँसू आ गए जो ऋतु की गर्दन पर गिरे क्योंकि ऋतु ने अपना सिर रागिनी के सीने पर रखा हुआ था... गर्दन पर बूंदों का गीलापन महसूस होते ही ऋतु ने सिर उठाकर रागिनी की ओर देखा तो उसे रोता हुआ देखकर अपने हाथ बढ़ाकर उसके आँसू पोंछने लगी...

“दीदी आप क्यों रो रही हैं.... अब हमें किसी से भी कोई मतलब नहीं ..... आपने देखा ना... में भी उन दोनों को छोडकर आप सब के साथ आ गयी हूँ.... अब आप ही मेरी भी माँ हो जैसे अनुराधा और प्रबल की माँ हो....मुझे अब किसी से कोई रिश्ता नहीं रखना.... अब हम सभी साथ रहेंगे ....एक नया संसार...एक नया परिवार....एक नया घर बसाएँगे.... जिसमें इन सब के लिए कोई जगह नहीं होगी... दीदी आपको बस एक वादा करना होगा मुझसे कि अब हमारे घर में इनमें से किसी को भी घुसने कि इजाजत नहीं मिलनी चाहिए... चाहे मेरे माँ-बाप हों, आपके माँ-बाप हों या अनुराधा के..... प्रबल के माँ-बाप का जैसा अपने बताया कि वो विक्रम भैया और नीलोफर भाभी का बेटा है तो अगर कभी नीलोफर भाभी आयीं तो उनके बारे में देखा जाएगा...कि प्रबल क्या फैसला करता है....ये उसके ऊपर छोड़ा है”

अनुराधा और प्रबल भी ऋतु को रागिनी से ये सब कहते हुये बड़े गौर से देख रहे थे.... प्रबल कुछ कहने को हुआ तभी सुधा अंदर से फ्रेश होकर हॉल में आयी और दूसरे सोफ़े पर बैठ गयी

“क्या बात है रागिनी? कैसे तुम सभी एक ही सोफ़े में फंसे हुये बैठे हो.... इधर आ जाओ” सुधा कि बात सुनकर रागिनी उठकर खड़ी हुई और सुधा के पास बैठ गयी.... और फिर गंभीर लहजे में बोली

“सुधा! आज मेंने इन सभी बच्चों की सहमति से ये फैसला किया है कि अब हमें किसी के बारे में न कुछ जानना है और ना समझना..... अब हम चारों यहाँ एक साथ एक परिवार के रूप में रहेंगे.... मेंने बेशक इन बच्चों को जन्म नहीं दिया और ना मेरी शादी हुई.... लेकिन अब तक जो रिश्ता हमारे बीच था वही आगे भी चलेगा..... ऋतु मेरी बहन है और इन दोनों बच्चों को इनके जन्म से मेंने अपने बच्चों के रूप में पाला है..... ये बच्चे भी हमेशा से मुझे ही अपनी माँ के रूप में जानते और मानते आए हैं........ अब आगे से तुम भी कभी इन सब बातों को न मुझे याद दिलाओगी... जो रात हमारे बीच हुई... और न ही में या मेरे इस परिवार का कोई सदस्य तुमसे इस बारे में कुछ पूंछेगा.... अब से तुम मेरी सहेली, मेरी बहन के रूप में इस परिवार से जुड़ी रहोगी.........बोलो अगर तुम्हें अभी कुछ कहना है?”

“रागिनी तुम्हारे इस फैसले से में भी खुश हूँ....... पिछली बातों को कुरेदने से न सिर्फ मेरी-तुम्हारी बल्कि इन सबकी ज़िंदगी उलझनों, दर्द और चिंताओं में डूब जाएगी.... इसलिए अब नयी ज़िंदगी की नए सिरे से शुरुआत करो... और सबकुछ भूलकर.... एक दूसरे के साथ खुशियाँ बांटो....... मुझे सिर्फ एक आखिरी बात कहनी है...... तुम्हारे परिवार कि वजह से मेरे साथ जो कुछ भी हुआ.... लेकिन मेरी ज़िंदगी में आज जो खुशियाँ है... बल्कि ये ज़िंदगी ही जो में जी रही हूँ... तुम्हारे ही परिवार के एक सदस्य...तुम्हारे भाई विक्रम की वजह से है... लेकिन तुम्हारी ज़िंदगी में जो मुश्किलें आयीं या आज तक हैं... उनमें में भी कहीं न कहीं दोषी हूँ.... इसके लिए तुमसे एक बार फिर माफी चाहती हूँ... और अगर में तुम्हारे किसी काम आ सकूँ तो मुझे बहुत खुशी होगी”

“हाँ! एक काम तो आ सकती हो...” रागिनी ने मुसकुराते हुये कहा

“बताओ किस कम आ सकती हूँ... में हर हाल में करूंगी” सुधा ने फिर भी संजीदा लहजे में कहा तो रागिनी ने ऋतु का हाथ अपने हाथ में लेते हुये हँसकर उससे कहा

“मेरी छोटी बहन के लिए एक ऐसा लड़का ढूंढ कर लाओ जो इसका घर सम्हाल सके.... घर का सारा काम सम्हाल सके.... और आगे चलकर बच्चे भी खिला सके”

“दीदी आप भी... में वकील हूँ इसका मतलब ये नहीं कि में घर नहीं सम्हाल सकती” ऋतु ने शर्माते हुये कहा

“अच्छा जी! तो वकील साहिबा का भी मन है कि अब शादी में देर न कि जाए” सुधा ने हँसते हुये कहा “कोई लड़का भी पसंद किया हुआ है क्या”

“नहीं दीदी मेंने कॉलेज में पढ़ाई की है या दिल्ली शहर में रही हूँ, इसका मतलब ये नहीं कि अपने संस्कारों को भूल जाऊँ .... मम्मी-पापा खुद चाहे जैसे हों ...उन्होने मुझे कभी कोई गलत रास्ता नहीं चुनने दिया... हमेशा सही रास्ते पर चलना सिखाया... इसीलिए ज़िंदगी में बहुत से मौके मिले, बहुत से लोग मिले लेकिन मेंने ये सोचा हुआ था कि में शादी उसी से करूंगी... जिससे मेरे मम्मी-पापा चाहेंगे.... क्योंकि वो मुझसे ज्यादा समझदार हैं...इसलिए उनका फैसला भी मुझसे ज्यादा सही होगा....” कहते हुये ऋतु कि आँखों में नमी आ गयी... अपने माँ-बाप को याद करके “लेकिन जैसे जैसे मुझे उनकी असलियत पता चलती गयी.... मुझे उनकी समझदारी पर भी अब भरोसा नहीं रहा...और न उनके फैसलों के सही होने पर.... अब में वही करूंगी... हर वो बात मानूँगी.... जो फैसला रागिनी दीदी मेरे बारें में लेंगी”

“में नहीं...अब हर फैसला हम दोनों लेंगे....बल्कि हम चारों...मिलकर.... अच्छा अब ये बताओ इन बच्चों कि पढ़ाई का क्या करना है” रागिनी ने कहा

“दीदी उसकी चिंता आप मत करो...आखिर आपकी बहन दिल्ली में वकालत कर रही है....में इन्हें यहाँ कहीं न कहीं एड्मिशन दिला ही दूँगी... वैसे तो जिस कॉलेज में आप, सुधा दीदी, विक्रम भैया और में सभी पढे हैं ...उसी में इनका भी एड्मिशन हो जाएगा... क्योंकि उस कॉलेज में विक्रम भैया का नाम चलता है... मेरा एड्मिशन विक्रम भैया ने कराया था वो भी सिर्फ एक चिट्ठी लिखकर दे दी थी... मुझे भी कॉलेज में प्रिन्सिपल से लेकर स्टाफ तक सभी जानते हैं कि में विक्रम भैया कि बहन हूँ........... इधर मुझे एक साल तक किसी अनुभवी वकील के पास प्रैक्टिस करनी थी बार काउंसिल में रजिस्ट्रेशन के लिए वो मेंने पूरी कर ली और मेरा रजिस्ट्रेशन भी हो गया.... अब में चाहती हूँ कि पवन भैया के पास प्रैक्टिस करने की बजाय अपना अलग ऑफिस बनाकर अपने दम पर अपना कैरियर बनाऊँ .... इस बारे में में आज ऑफिस जाकर पवन भैया से बात करती हूँ और इन दोनों के कागजात मुझे दे दें... इनके एड्मिशन की बात भी कर लेती हूँ” ऋतु ने कहा तो रागिनी ने अनुराधा और प्रबल की ओर देखा... वो दोनों उठकर खड़े हुये और अपने-अपने कमरे से कागजात लेने अंदर चले गए

“ठीक है रागिनी... अब में भी चलती हूँ... माँ के पास होकर में भी घर जाऊँगी... और तुम सब भी मेरे घर आना” कहती हुई सुधा भी सोफ़े से उठ खड़ी हुई तो रागिनी भी उठकर उसके साथ बाहर चलकर आ गयी

“सुन अब तुझे यहाँ रहना ही है... और बच्चे भी इतने छोटे नहीं हैं...समझदार हैं... अब तक तो जो भी जैसी भी व्यवस्था विक्रम चला रहा था तुम सब रह रहे थे... लेकिन अब यहीं कोई कम शुरू कर दो ऐसा जो... तुम्हारी आमदनी भी होती रहे... और बच्चों को भी कुछ अनुभव हो जाएगा.... जब तक इनकी पढ़ाई पूरी होगी तब तक व्यवसाय भी सही से चलने लगेगा..... फिर आज ऋतु कल अनुराधा...दोनों लड़कियों की शादी भी करनी है... और प्रबल की भी.... तो आज से सोच समझकर चलोगी तभी आगे कुछ कर पाओगी” बाहर निकलते हुये गेट पर खड़े होकर सुधा ने कहा

“हाँ! तेरा कहना भी सही है, माना विक्रम की वसीयत से हमें बहुत कुछ मिला है... लेकिन उसे भी अगर बैठे-बैठे खाते रहेंगे तो कब तक चलेगा......... और वैसे भी अब में परिवार के किसी भी व्यक्ति या किसी भी संपत्ति से कोई मतलब नहीं रखना चाहती … ना तो स्वयं और न ही अपने बच्चों को में वापस उसी दलदल में घुसने दूँगी.... जिसमें हमारा पूरा परिवार डूबकर खत्म हो गया... इस सिलसिले में मुझे यहाँ की ज्यादा जानकारी तो नहीं है... ऋतु से सलाह करूंगी की क्या किया जा सकता है....” रागिनी ने भी जवाब में कहा। फिर सुधा अपने घर चली गयी और रागिनी वापस आकार हॉल में ऋतु के पास बैठ गयी... तभी थोड़ी देर में अनुराधा और प्रबल भी अपने कागजात लेकर आए और वहीं सोफ़े पर बैठकर ऋतु को वो कागजात दे दिये

ऋतु ने सारे कागजात को पढ़कर देखा और बोली की इनमें जो मटा पिता के नाम दिये हैं...उनका क्या कुछ बदलाव कराना है... इस पर रागिनी ने कहा की शायद इसकी जरूरत नहीं... क्योंकि इसमें किसी और का नाम नहीं... परिवार के ही बुजुर्ग देवराज सिंह का नाम है.... हाँ अगर बच्चों के मन में अपने असली माता-पिता का नाम डलवाने की इक्षा हो तो देख लो अगर कुछ हो सकता है.... इस पर अनुराधा ने कहा कि अगर रागिनी गलत न समझे तो उसकी राय यही है कि इसमें उन दोनों के असली माता पिता का नाम ही डलवा दिया जाए जिससे कोई भ्रम कि स्थिति आगे चलकर न पैदा हो...और रागिनी बुआ के भी कागजात उस कॉलेज से निकलवा कर उनकी भी पढ़ाई पूरी कारवाई जाए.... उनकी असली पहचान से

“दीदी आपकी याददास्त तो जा चुकी है... तो क्या आप आगे अपनी पढ़ाई कर पाओगी?” ऋतु ने रागिनी से पूंछा 

“में जब से विक्रम के साथ रही...शुरू में तो इन बच्चों के साथ समय कट जाता था, लेकिन जैसे जैसे ये बड़े होते गए...खासकर अनुराधा ने पबल को सम्हालना शुरू कर दिया तो वहाँ मेरे पास कोई काम ही नहीं रहता था... विक्रम के पास बहुत सारी किताबें हुआ करती थी... में उन्हें ही पढ़कर अपना समय बिता लेती थी... शायद ही किसी विषय कि किताब मेंने न पढ़ी हो.... इसलिए मुझे लगता है कि में ना सिर्फ पढ़ाई कर सकती हूँ बल्कि बहुत अच्छे अंक भी प्राप्त कर सकती हूँ परीक्षा में” रागिनी ने मुसकुराते हुये कहा तो ऋतु ने भी हँसते हुये बोला

“तभी में सोच रही थी कि इस घर में रहते हुये इन सब के बारे में मेंने इतने सालों में जो नहीं पा लगा पाया आपने 3 दिन में ही सब पता कर लिया.... जरूर जासूसी उपन्यास बहुत पढे होंगे आपने... जो मेरी वकालत कि काबिलियत भी आपके सामने ना के बराबर रही”

“हाँ पढ़ा तो बहुत कुछ है... अब जो कुछ भूल गयी वो तो याद नहीं कर सकती कहीं भी पढ़कर.... लेकिन जो कुछ भी जानना चाहिए... वो सब जान सकती हूँ” रागिनी ने भी मुस्कुराकर कहा

अनुराधा, प्रबल और ऋतु तीनों रागिनी को बाहों में भरकर बोले “आप हमारी माँ जो हो”

तो रागिनी ने ऋतु के सिर पर चपत मरते हुये कहा.... “तुम्हारी भी.......माँ” 

“और नहीं तो क्या?” ऋतु ने भी मुसकुराते हुये कहा....

फिर ऋतु ने रागिनी से कहा की वो और अनुराधा खाना बनाने जा रही हैं... क्योंकि अब दोपहर ही होनेवाला है.... फिलहाल कुछ नाश्ता तैयार करते हैं जिसके बाद ऋतु दोनों बच्चों को लेकर कॉलेज जाएगी... वहाँ से लौटकर दोपहर को खाना खाकर... ऋतु और रागिनी पवन के ऑफिस जाएंगे।

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अध्याय 21

“राधा तू यहाँ... क्या यहीं एड्मिशन ले रही है??” कॉलेज में प्रिन्सिपल ऑफिस के सामने खड़े प्रबल और अनुराधा को देखकर अनुपमा जो अभी-अभी अपनी क्लास से बाहर निकली थी... उनके पास आकर बोली

“हाँ अनु! में और प्रबल अब यहीं पढ़ेंगे.... ऋतु बुआ यहीं एड्मिशन करा रही हैं हमारा” अनुराधा ने कहा

“तुम तो 2nd इयर में होगी और प्रबल 1st इयर में” अनुपमा ने पूंछा

“नहीं हम दोनों ही 1st इयर में ही हैं..... बचपन से ही में प्रबल को छोडकर स्कूल नहीं जाती थी... इसलिए बाद में हम दोनों को एक साथ एक ही क्लास में पढ़ने भेजा गया... जब प्रबल भी स्कूल जाने लायक हो गया” अनुराधा ने बताया

“ही...ही...ही...ही... और तो सब भाई अपनी बहन का ध्यान रखते हैं स्कूल, कॉलेज या घर के बाहर लेकिन मुझे तो लगता है यहाँ उल्टा तुम अपने भाई का ध्यान रखोगी.... कहीं कोई लड़की उसे छेड़ न दे” अनुपमा ने हँसते हुये प्रबल की ओर देखकर उसे चिढ़ाते हुये कहा

“मज़ाक मत उड़ा मेरे भाई का.... वो कमजोर नहीं है...बस में उससे प्यार करती हूँ... इसलिए उसका ध्यान रखती हूँ... मेरा छोटा भाई है आखिर......... और मुझे लगता है...की और लड़कियों को तो वो खुद सम्हाल लेगा.... बस तुझसे मुझे ही बचाना होगा” अनुराधा ने भी हँसते हुये कहा

“दीदी आप भी मज़ाक बना रही हो मेरा” प्रबल ने शर्माते हुये अनुपमा से कहा तो अनुपमा ने भोंहें चढ़ाते हुये उसे घूरकर देखा

“मेरा नाम अनुपमा है... तुम प्यार से अनु भी कह सकते हो..... दीदी बस अपनी दीदी को कहा करो.... खबरदार जो मुझे दीदी कहा तो.......” अनुपमा ने कहा तो अनुराधा जवाब में उससे कुछ कहने को हुई तभी ऋतु प्रिन्सिपल ऑफिस से बाहर निकलकर उनके पास आ गयी... 

“ये लो तुम्हारी रसीद .... तुम दोनों का एड्मिशन हो गया कल से कॉलेज आना शुरू कर दो” ऋतु ने अनुराधा को कागज देते हुये कहा तो अनुपमा ने प्रश्नवाचक दृष्टि से अनुराधा की ओर देखा

“ये मेरी ऋतु बुआ हैं... अभी बताया था न इन्होने ही एड्मिशन कराया है हमारा यहाँ...” अनुराधा ने उसे बताया और फिर ऋतु से बोली “बुआ ये अनुपमा है...अपने बराबर वाले घर में रहती है... हम दोनों बचपन में एक साथ खेलती थीं... जब में और माँ यहाँ रहा करते थे”

“बुआ जी नमस्ते” अनुपमा ने ऋतु को हाथ जोड़कर नमस्ते किया और अनुराधा से बोली “लेकिन ये बता ये बुआ कैसे हुई तेरी...क्योंकि यहाँ तुम्हारे परिवार का तो कोई कभी देखा सुना ही नहीं मेंने... और तू रागिनी बुआ को माँ क्यों कहती है”

“में बताती हूँ... विक्रमादित्य भैया को तो जानती थी न तुम... में उनकी छोटी और रागिनी दीदी मेरी बड़ी बहन हैं.... और में इसी कॉलेज में पढ़ती थी... बल्कि में ही नहीं.... रागिनी दीदी और विक्रम भैया भी इसी कॉलेज में पढे हैं.... विक्रम भैया ने मेरा एड्मिशन कराया था यहाँ.... अब मेंने इन दोनों का कराया है” ऋतु ने अनुराधा और प्रबल की पीठ पर हाथ रखते हुये कहा

“और पता है.... ऋतु बुआ वकालत करती हैं.... अब ये हमारे साथ यहीं रहेंगी....अब कल से तेरे साथ ही कॉलेज आया करेंगे हम....”अनुराधा ने अनुपमा से कहा “और तू क्या कह रही थी....माँ क्यों कहती हूँ.... अपने घर में सबसे पूंछ लेना... तुझे तो शायद याद नहीं.... में हमेशा से उन्हें माँ ही कहती थी... वो ही मेरी माँ हैं और हमेशा रहेंगी”

“ठीक है मेरी माँ, चल में भी घर चलती हूँ.... कॉलेज में पढ़के भी बंक नहीं मारा तो कॉलेज की बेइज्जती हो जाएगी” कहते हुये अनुपमा ने अनुराधा के चेहरे से नजर हटाई तो ऋतु को घूरते हुये पाया...उसकी हंसी वहीं की वहीं रुक गयी

“अच्छा तो कल से यही होगा...अब तो एक से दो बल्कि तीन का गिरोह बन जाएगा” ऋतु ने घूरते हुये कहा 

“अरे नहीं बुआ... ऐसा कुछ नहीं... में कहीं और थोड़े ही जा रही हूँ…घर ही तो चल रही हूँ...वहाँ आपके पास ही आ जाऊँगी...आपसे भी तो जान पहचान करनी है....” अनुपमा ने हँसते हुये कहा और उन तीनों के आगे आगे कॉलेज के गेट की ओर चल दी...

ऋतु भी उन दोनों को लेकर बाहर की ओर चल दी... कुछ देर में वे सभी घर पहुँच गए। घर पहुँचकर अनुपमा अपने घर चली गयी। रागिनी ने उन्हें बोला की फ्रेश होकर खाना खा लें ... वो तीनों फ्रेश होकर कपड़े बदलकर आए तभी अनुपमा भी आ गयी और बोली की वो भी आज उनही के साथ खाना खाएगी... खाना खाते पर रागिनी ने अनुपमा और उसके परिवार के बारे में ऋतु को बताया और ऋतु के बारे में भी थोड़ी सी जानकारी दी जो अनुराधा पहले ही दे चुकी थी। खाना खाकर ऋतु और रागिनी एडवोकेट अभय प्रताप सिंह के ऑफिस को निकल गईं... अनुराधा, अनुपमा और प्रबल घर पर ही रहे।

प्रबल प्रताप सिंह के ऑफिस जाकर एक तो रागिनी ने विक्रम की मृत्यु से संबन्धित पुलिस कार्यवाही के बारे में जानकारी ली तो कुछ खास जानकारी नहीं मिल सकी... सिवाय इसके की मृत्यु किसी भी हथियार से नहीं हुई तो मामला हत्या का तो नहीं हो सकता.... और शायद अत्महत्या का भी नहीं.... बल्कि दुर्घटना का ज्यादा लग रहा था.... 

उसके बाद वसीयत से संबन्धित सारे कागजात की जानकारी ली....तो अभय ने बताया कि उसने उन कागजात का पिछला विवरण निकलवाया जो कि दिल्ली से मिले हुये उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्ध नगर जिले में था...जिसे नोएडा शहर के रूप में ज्यादा पहचाना जाता है..... लेकिन उस जायदाद के पिछले विविरण में एक और बात सामने आयी कि ये सभी जायदाद विक्रमादित्य को सीधे तौर पर नहीं दी गयी थीं... इन सब जायदाद के इकलौते वारिस तो जयराज सिंह थे और उनकी मृत्यु के बाद उनके पुत्र राणा रविन्द्र प्रताप सिंह इस परिवार के आजीवन मुखिया के तौर पर इस सारी संपत्ति के स्वामी बने....लेकिन राणा रविन्द्र प्रताप सिंह ने स्वेच्छा से अपने सारे अधिकार विक्रमादित्य सिंह पुत्र विजयराज सिंह को प्रबंधन के लिए सौंप दिये थे। 

हालांकि उस संपत्ति में परिवार के सभी सदस्य बराबर के हिस्सेदार थे लेकिन उसमें एक व्यवस्था ये भी जोड़ दी गयी थी...कि .....परिवार को कोई भी सदस्य उस संपत्ति में से अपना हिस्से का बंटवारा कराकर नहीं ले सकता था.... बल्कि वो सिर्फ अपने हिस्से कि उस समय कि मौजूदा कीमत लेकर परिवार से अलग हो सकता था...... किसी भी स्थिति में शामिल परिवार की कुल संपत्ति का प्रबंधन और स्वामित्व केवल राणा रविन्द्र प्रताप सिंह का ही रहना है, विक्रमादित्य को केवल उस संपत्ति के प्रबंधन और परिवार के सदस्यों को घटाने या जोड़ने और उन्हें उस संपत्ति में हिस्सेदारी देने या निकालने का अधिकार था....उस संपत्ति से होने वाली आय को परिवार के सदस्यों में बांटने का भी अधिकार था। 

इसी वजह से विक्रमादित्य ने जो संपत्ति के बँटवारे की वसीयत बनाई थी वास्तव में उसमें से सबको उस संपत्ति में हिस्सा तो मिलना था.... लेकिन वो अपने हिस्से को लेकर अलग नहीं हो सकते थे........ उसके लिए संपत्ति के कानूनी रूप से असली मालिक माने गए राणा रविन्द्र प्रताप सिंह की सहमति आवश्यक थी... विक्रमादित्य सिंह कि वसीयत के अनुसार केवल....आय में हिस्सेदारी ही ले सकते थे.... 

“दीदी! अब ये राणा रविन्द्र प्रताप सिंह जो बड़े ताऊजी के बेटे बताए गए हैं....इनका तो कुछ अता-पता नामोनिशान ही नहीं बल्कि यूं कहो कि बड़े ताऊजी जयराज सिंह और उनके पूरे परिवार के बारे में ही किसी भी तरह कि कोई भी जानकारी नहीं...सिवाय इसके कि उनके एक बेटी हुई 1979 में जो कि मम्मी-पापा ने बताया कि आप हो.... लेकिन सुधा दीदी ने जो बताया उसके अनुसार तो आप विजयराज ताऊजी की बेटी हैं...और हाँ........... इसमें विक्रम भैया भी तो विजयराज ताऊजी के बेटे हैं..........यानि आप और विक्रम भैया... सगे भाई बहन हैं... तो आप दोनों एक दूसरे को जानते क्यों नहीं थे...” ऋतु ने रागिनी से कहा.... सारे कागजात लेकर ऋतु रागिनी के साथ अपने केबिन में बैठी हुई थी

“मेंने तुम्हें पहले भी कहा था ऋतु! मुझे इस परिवार और परिवार कि जायदाद ....किसी के बारे में कुछ नहीं जानना..... अब हमें नए सिरे अपनी ज़िंदगी अपनी शर्तों पर शुरू करनी है..........इसलिए इस मामले को यहीं छोड़ो.........विक्रम के बारे में पता करना था मुझे....उसमें कुछ खास बात नहीं सामने आयी..... अब ये बताओ कि हम लोगों को अपने भविष्य के लिए क्या करना है... अपनी अपनी पसंद के अनुसार नौकरियाँ या व्यवसाय..... या फिर सब मिलकर एक व्यवसाय चलाएं....मेरे, प्रबल और अनुराधा के खाते में लगभग 10 करोड़ की रकम है... जो कि हमारे खातों में हर साल किसी कंपनी द्वारा प्रॉफ़िट में हिस्सेदारी के तौर पर धीरे-धीरे करके भेजी गयी....और शायद आगे भी भेजी जाएगी।“ रागिनी ने बात का रुख मोड़ते हुये ऋतु को जवाब दिया

“दीदी! मेरे ख्याल से तो हमें ऐसे काम में पैसा लगाना चाहिए जिसमें लगाया हुआ पैसा अगर तुरंत वापस न हो तो भी सुरक्षित रहे और उसकी कीमत भी बढ़े...जिससे अगर आज न सही ...भविष्य में कभी वो पैसा उस व्यवसाय से निकाल पाएँ तो उसकी कुछ अहमियत भी हो...” ऋतु ने कहा...उसने भी रागिनी के रुख को देखते हुये और वर्तमान परिस्थितियों में जरूरी समझते हुये व्यवसाय के मुद्दे पर ही आना सही समझा

“हाँ बात तो तुम्हारी सही है... इस नज़रिये से तो हमें किसी ऐसे समान में पैसा लगाना चाहिए जिसे लोग ज्यादा खरीदते हों ताकि हमारा पैसा वापस भी आता रहे....जल्दी से जल्दी...और साथ ही जो पैसा व्यवसाय में लगा हुआ रहे उसकी कीमत के बराबर का सामान भी हमारे हाथ में हो……… मेरी समझ में तो ऐसी चीजें खाना, कपड़े आदि ही हैं...जिन्हें लोग रोजाना खरीदते हैं...और हर जगह हमेशा बिकती भी हैं” रागिनी ने अपनी राय दी

“वो तो आप सही कह रही हैं दीदी! लेकिन इनके साथ एक समस्या होती है की अगर हमने ये सामान जल्दी नहीं बेचे तो इनके खराब होने पर इनकी कोई कीमत नहीं रहती और इनकी दुकानें भी हर जगह बहुत होती हैं तो शुरुआत में इतनी आसानी से बेचा भी नहीं जा सकता... धीरे-धीरे ही बाज़ार पर पकड़ बनेगी...तो मुझे लगता है की हमें इसके साथ साथ कुछ पैसा जमीन जायदाद में भी लगाना चाहिए.... क्योंकि वो बेशक न बिके या हम न बेचें.... लेकिन उसकी कीमत हमेशा बढ़ती रहेगी.... जब जरूरत हो तो उसे बेचे बिना भी कहीं से भी उसकी उस समय की कीमत का आधा तो लोन मिल ही जाएगा आसानी से....” ऋतु ने कहा

“हाँ ये भी ठीक है... लेकिन हमारे पास जो पैसा है उससे दिल्ली में कितना क्या खरीद पाएंगे... यहाँ तो जमीन जायदाद भी बहुत महंगी है....” रागिनी बोली

“दीदी इस बारे में में किसी से आपको मिलवाना चाहती हूँ...यहाँ एक जूनियर ने जॉइन किया है... उसका जमीन-जायदाद की खरीद-बेच में पिछले कई साल का अनुभव है... तो वो भी हुमें काफी सही सलाह दे सकता है” ऋतु ने बताया

“ठीक है... लेकिन यहाँ बात करना सही नहीं रहेगा.... उसे शाम को घर बुला लो...” रागिनी ने कहा तो ऋतु ने केबिन से बाहर निकलकर उस लड़के पवन को रागिनी के घर का एड्रैस देते हुये शाम को घर आने का कहा। इसके बाद दोनों बहनें वहाँ से घर को निकल गईं। 

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