25-02-2020, 12:53 PM
सलाम दोस्तों … मेरा नाम सना है और फिलहाल मैं दिल्ली में ओखला इलाके में रहती हूँ। शादीशुदा हूँ और ओखला में ससुराल है। अब तक जिंदगी दिल्ली में ही गुजरी है और जो भी मजे लिये जा सकते हैं एक जवान जिस्म और उफनती जवानी के साथ … वे सारे ही मैंने लिये हैं।
पहली बार अठारह की उम्र में सेक्स किया जब अपने शरीर में मौजूद उन नशीली तरंगों से परिचित हुई जो आपको एक अलग ही दुनिया में ले जाती हैं। आज मेरी उम्र चौबीस साल है और इस बीच मैंने लगभग हर तरह से अपने शरीर का मजा लिया है।
पहला ब्वायफ्रेंड तो कॉलेज से ही बन गया था और अकेले में दूध दबाने मसलने का सिलसिला शुरू हो गया था। यहां मैं एक बात यह बता दूँ कि मुझे जो सबसे ज्यादा चीजें पसंद हैं, उनमें से एक तो अपने बदन को सहलवाना मसलवाना है और दूसरा लंड को हाथ से धीरे-धीरे सहलाते हुए चूसने का।
यह शौक इस हद तक है कि किसी भी मर्द को देखते ही मेरी कुत्सित निगाहें उसके पैंट में छुपे लंड तक चली जाती हैं और दिमाग इस कल्पना में डूब जाता है कि इसका कैसा होगा और चूसने में कितना मजा आयेगा।
फर्स्ट इयर तक आते-आते बात मेरे जिस्म की सहलाहट मसलाहट से कहीं आगे बढ़ कर सलवार के ऊपर से मेरी चूत रगड़ने मसलने, उंगली करने और मेरे हाथ से मूठ मरवाने तक पहुंच गयी थी जो अपनी पहली चुदाई से ठीक पहले तक लंड चूसने चाटने तक जा पहुंची थी।
मैंने बहुत पोर्न साहित्य पढ़ा था और फिल्में देखी थीं जिससे उनका असर मेरे दिल दिमाग पर बड़े गहरे तौर पर पड़ा था, जिससे मैं सबकुछ वैसे ही करना चाहती थी। एक बार चुद गयी तो जैसे एक नये आनन्द का द्वार खुल गया।
अब कालेज से बंक कर कर के ब्वायफ्रेंड बदल बदल के पार्क में चली जाती थी जहां ज्यादातर वक्त में चुदाई की तो नौबत नहीं आ पाती थी लेकिन दबाई मसलाई और चूत में उंगली तक के खेल के साथ मेरा मनपसंद ओरल जरूर होता था।
यहां तक कि शुरू शुरू में अटपटाने के बाद मैं मुंह में ही झड़वा लेती थी, क्योंकि वहां पौंछने पाछने का कोई इंतजाम भी नहीं होता था।
इक्कीस तक शादी होने की नौबत आई. तब सात सात ब्वायफ्रेंड बदल कर सात लंडों के मजे चख चुकी थी लेकिन शादी के बाद इस सिलसिले पर ब्रेक लग गया था और शौहर पर ही सब्र करना पड़ गया था।
लेकिन हाय री मेरी किस्मत … शौहर भी मिला तो गल्फ वाला। चार महीने यहां तो पौने दो साल कतर में। आये तो अंधाधुँध चुदाई और जाये तो चूत एक लंड को भी तरस के रह जाये।
जिस कहानी का मैं जिक्र कर रही हूँ वह इसी ईद से पहले वाली चांद रात की है। उन दिनों मैं अपनी चुदास के चलते बहुत तपी हुई थी। साल भर हो चुका था उन्हें गये … चुदाई के लिहाज से देखें तो चूत सूख चुकी थी।
मुंह अलग तरसा हुआ था एक अदद लंड के लिये।
इधर अपनी चुल मिटाने के लिये मैं अक्सर एक काम करती थी कि बाजार के दिन नकाब पहन के अकेली ही खरीदारी करने बाजार चली जाती थी। दिल तो करता था कि बिना अंदर कोई और कपड़ा पहने सिर्फ नकाब पहन कर ही बाजार चली जाऊ और हर तरह के मर्दाने स्पर्श का मजा ले आऊं लेकिन ससुराल में यह काम थोड़ा ज्यादा रिस्क वाला था।
आप दिल्ली के हैं तो आपको पता होगा कि हफ्ते के अलग-अलग दिन में अलग-अलग इलाकों में बाजार लगती है जहां काफी भीड़ भाड़ होती है और यहां हाथ और लंड सेंकने के चक्कर में काफी चालू लौंडे भी हर हाल में पहुंचते ही पहुंचते हैं।
तो मेरे इलाके में बटला हाऊस में संडे को बाजार लगती है और मैं खास इसी इरादे से बाजार चली जाती थी कि शौकीन लौंडों के हाथों से दूध और चूतड़ सहलवा दबवा और रगड़वा लेती थी जिससे थोड़ी चुल तो शांत हो जाती थी … बाकी गर्मी रात को उंगली कर के निकाल लेती थी। खास इस मौके पर न मैं ब्रा ही पहनती थी और न ही पैंटी, जिससे भरपूर टच मिल सके।
तो चांद रात को भी यही हुआ था … उस दिन बाजार में इतनी ज्यादा भीड़ थी कि एकदम सट-सट के चलना पड़ रहा था। किसका हाथ टच हो रहा, किसका लंड … ठीक से अहसास ही नहीं हो पा रहा था।
मैं उस वक्त एक दुकान पे कुछ देख कर हटी ही थी कि पीछे से किसी हाथ का अहसास हुआ जो कमर पर था। अंदाज ऐसा ही था जैसे चलते-चलते लोगों के अनजाने में लोगों के पड़ जाते हैं और लगा कि कमर पे हाथ रखने वाला जगह बना के आगे निकल जायेगा।
लेकिन वह सट कर कंधे से कंधा रगड़ता चलने लगा। मैंने कनखियों से देखने की कोशिश की लेकिन बस इतना ही देख पाई कि कोई जवान युवक था।
एक बार तो मेरा रियेक्शन जांचने के लिये उसने हाथ कुछ सेकेंड रखने के बाद हटा लिया था लेकिन मेरे कोई नोटिस न लेने पर उसने हाथ फिर टिका दिया था और भीड़ में लगभग सरकते हुए साथ ही चलने लगा था।
फिर उसका हाथ कमर से नीचे सरकते हुए चूतड़ों तक पहुंच गया। पहले तो एकदम अजीब सा लगा लेकिन अगले पल में जैसे ही मन ने उस स्पर्श को स्वीकार किया, एकदम से मादक सी सनसनाहट पूरे शरीर में फैल गयी।
पहली बार अठारह की उम्र में सेक्स किया जब अपने शरीर में मौजूद उन नशीली तरंगों से परिचित हुई जो आपको एक अलग ही दुनिया में ले जाती हैं। आज मेरी उम्र चौबीस साल है और इस बीच मैंने लगभग हर तरह से अपने शरीर का मजा लिया है।
पहला ब्वायफ्रेंड तो कॉलेज से ही बन गया था और अकेले में दूध दबाने मसलने का सिलसिला शुरू हो गया था। यहां मैं एक बात यह बता दूँ कि मुझे जो सबसे ज्यादा चीजें पसंद हैं, उनमें से एक तो अपने बदन को सहलवाना मसलवाना है और दूसरा लंड को हाथ से धीरे-धीरे सहलाते हुए चूसने का।
यह शौक इस हद तक है कि किसी भी मर्द को देखते ही मेरी कुत्सित निगाहें उसके पैंट में छुपे लंड तक चली जाती हैं और दिमाग इस कल्पना में डूब जाता है कि इसका कैसा होगा और चूसने में कितना मजा आयेगा।
फर्स्ट इयर तक आते-आते बात मेरे जिस्म की सहलाहट मसलाहट से कहीं आगे बढ़ कर सलवार के ऊपर से मेरी चूत रगड़ने मसलने, उंगली करने और मेरे हाथ से मूठ मरवाने तक पहुंच गयी थी जो अपनी पहली चुदाई से ठीक पहले तक लंड चूसने चाटने तक जा पहुंची थी।
मैंने बहुत पोर्न साहित्य पढ़ा था और फिल्में देखी थीं जिससे उनका असर मेरे दिल दिमाग पर बड़े गहरे तौर पर पड़ा था, जिससे मैं सबकुछ वैसे ही करना चाहती थी। एक बार चुद गयी तो जैसे एक नये आनन्द का द्वार खुल गया।
अब कालेज से बंक कर कर के ब्वायफ्रेंड बदल बदल के पार्क में चली जाती थी जहां ज्यादातर वक्त में चुदाई की तो नौबत नहीं आ पाती थी लेकिन दबाई मसलाई और चूत में उंगली तक के खेल के साथ मेरा मनपसंद ओरल जरूर होता था।
यहां तक कि शुरू शुरू में अटपटाने के बाद मैं मुंह में ही झड़वा लेती थी, क्योंकि वहां पौंछने पाछने का कोई इंतजाम भी नहीं होता था।
इक्कीस तक शादी होने की नौबत आई. तब सात सात ब्वायफ्रेंड बदल कर सात लंडों के मजे चख चुकी थी लेकिन शादी के बाद इस सिलसिले पर ब्रेक लग गया था और शौहर पर ही सब्र करना पड़ गया था।
लेकिन हाय री मेरी किस्मत … शौहर भी मिला तो गल्फ वाला। चार महीने यहां तो पौने दो साल कतर में। आये तो अंधाधुँध चुदाई और जाये तो चूत एक लंड को भी तरस के रह जाये।
जिस कहानी का मैं जिक्र कर रही हूँ वह इसी ईद से पहले वाली चांद रात की है। उन दिनों मैं अपनी चुदास के चलते बहुत तपी हुई थी। साल भर हो चुका था उन्हें गये … चुदाई के लिहाज से देखें तो चूत सूख चुकी थी।
मुंह अलग तरसा हुआ था एक अदद लंड के लिये।
इधर अपनी चुल मिटाने के लिये मैं अक्सर एक काम करती थी कि बाजार के दिन नकाब पहन के अकेली ही खरीदारी करने बाजार चली जाती थी। दिल तो करता था कि बिना अंदर कोई और कपड़ा पहने सिर्फ नकाब पहन कर ही बाजार चली जाऊ और हर तरह के मर्दाने स्पर्श का मजा ले आऊं लेकिन ससुराल में यह काम थोड़ा ज्यादा रिस्क वाला था।
आप दिल्ली के हैं तो आपको पता होगा कि हफ्ते के अलग-अलग दिन में अलग-अलग इलाकों में बाजार लगती है जहां काफी भीड़ भाड़ होती है और यहां हाथ और लंड सेंकने के चक्कर में काफी चालू लौंडे भी हर हाल में पहुंचते ही पहुंचते हैं।
तो मेरे इलाके में बटला हाऊस में संडे को बाजार लगती है और मैं खास इसी इरादे से बाजार चली जाती थी कि शौकीन लौंडों के हाथों से दूध और चूतड़ सहलवा दबवा और रगड़वा लेती थी जिससे थोड़ी चुल तो शांत हो जाती थी … बाकी गर्मी रात को उंगली कर के निकाल लेती थी। खास इस मौके पर न मैं ब्रा ही पहनती थी और न ही पैंटी, जिससे भरपूर टच मिल सके।
तो चांद रात को भी यही हुआ था … उस दिन बाजार में इतनी ज्यादा भीड़ थी कि एकदम सट-सट के चलना पड़ रहा था। किसका हाथ टच हो रहा, किसका लंड … ठीक से अहसास ही नहीं हो पा रहा था।
मैं उस वक्त एक दुकान पे कुछ देख कर हटी ही थी कि पीछे से किसी हाथ का अहसास हुआ जो कमर पर था। अंदाज ऐसा ही था जैसे चलते-चलते लोगों के अनजाने में लोगों के पड़ जाते हैं और लगा कि कमर पे हाथ रखने वाला जगह बना के आगे निकल जायेगा।
लेकिन वह सट कर कंधे से कंधा रगड़ता चलने लगा। मैंने कनखियों से देखने की कोशिश की लेकिन बस इतना ही देख पाई कि कोई जवान युवक था।
एक बार तो मेरा रियेक्शन जांचने के लिये उसने हाथ कुछ सेकेंड रखने के बाद हटा लिया था लेकिन मेरे कोई नोटिस न लेने पर उसने हाथ फिर टिका दिया था और भीड़ में लगभग सरकते हुए साथ ही चलने लगा था।
फिर उसका हाथ कमर से नीचे सरकते हुए चूतड़ों तक पहुंच गया। पहले तो एकदम अजीब सा लगा लेकिन अगले पल में जैसे ही मन ने उस स्पर्श को स्वीकार किया, एकदम से मादक सी सनसनाहट पूरे शरीर में फैल गयी।