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Adultery दीदी की जेठानी को चोदा
#21
मुन्नी दीदी अड्मिट हो चुकी थी. तुम्हे वापस आना था इसलिए तुम दीदी और जेठ जी से मिलकर मुझे वहीं छोड़ कर निकल गये. मैं वहीं पर बारह बजे तक बैठी रही. तभी जेठ जी ने आकर घर चलने को कहा. दीदी के लिए खाना बना कर भेजना था. विज़िटिंग अवर्स भी ख़त्म हो रहे थे. सो मैं जेठ जी के साथ घर के लिए निकल पड़ी. कार मे बैठते हुए जेठ जी ने कहा, ” मुन्नी का पिच्छली बार मिसकॅरियेज हो गया था इसलिए इस बार हम कोई भी रिस्क नहीं लेना चाहते हैं.” दोस्तों आप यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है | ” फिर मुझे देखते हुए मुस्कुरा कर कहा, “तुम्हारी भी तो शादी को दो साल हो गये अब तो तुम्हें भी बच्चे के लिए तैयारी शुरू करनी चाहिए.” मैने शर्मा कर नीचे देखने लगी. “क्यों तायारी चल रही है कि नहीं?” मेरी ओर मुस्कुराते हुए उन्हों ने देखा. मेरी नज़र उनसे मिली तो मैने मुस्कुरा कर नज़रें झुका ली. उन्होने अपनी बाँह फैला कर मेरे कंधे पर रख दी और उंगलियों से मेरे गाल को सहलाने लगे. ” अगर रघु से नहीं होता हो तो मैं कोशिश करूँ.” मैने हल्के से उनकी ओर खिसक कर अपना सिर उनकी बाहों पर रख दिया. वो उसी तरह मेरे गालों से और मेरी ज़ुल्फो से खेलते रहे. उसके हाथ मेरी गर्दन को हल्के से स्पर्श कर रहे थे. कुछ ही देर मे घर पहुँच गये. जेठ जी नीचे उतर कर मेरी कमर मे हाथ डाल कर घर तक ले गये. घर के अंदर घुसते ही मुझे बाहों मे समा लिया. उनके खड़े लिंग की चोट मैं महसूस कर रही थी. मैने एक हाथ से उन्हे रोका. “जल्दी बाजी नहीं. पहले दीदी के लिए खाना बना दूं. आप तबतक नहा लो.” कह कर मैं उनकी बाहों से निकल गयी. उन्हें धकेलते हुए बाथरूम मे ले गयी. मैने जल्दी जल्दी खाना तैयार करके टिफिन मे पॅक कर दिया. जेठ जी तैयार होकर आए और खाना लेकर हॉस्पिटल चले गये. फिर मैने खूब जी भर के नाहया. बदन को तौलिए से लप्पेट कर बाहर निकली. आईने के सामने जाकर अपने जिस्म से टवल हटा दी. सारा बदन मानो साँचे मे ढला हुआ था. फर्म और बड़े बड़े ब्रेस्ट जिन पर मोटे निपल, हल्के से ट्रिम किए हुए बाल जांघों के जोड़ पर बहुत ही खूबसूरत लग रहे थे. अपने आप को उपर से नीचे तक निहारते हुए मैने एक ट्रॅन्स्परेंट पॅंटी पहनी. उसके उपर बदन पर एक स्लीवेलेस्स पतला सा गाउन डाल लिया. बड़े बड़े ब्रेस्ट और उसपर काले निपल गाउन के उपर से भी दिखाई दे रहे थे. मैं सोफे पर बैठ कर मॅग्ज़ाइन के पन्ने उलटने लगी. बार बार आँखें दीवार पर लगी घड़ी की तरफ उठ जाती थी. कोई 15 मिनट बाद उनकी गाड़ी की आवाज़ सुनकर मैं सतर्क हो गयी. आईने मे अपने सौन्दर्य को एक बार और निहारा. आज जेठ जी पर बिजली गिराने के लिए पूरी तरह से तैयार होगयि थी. बेल बजते ही दरवाजा खोलकर उन्हें अंदर आने दिया. मुझे ऊपर से नीचे तक वो गहरी नज़र से देखते हुए हल्के से मुस्कुराने लगे. “आज तो कत्ल कर के रहोगी लगता है.” उन्होने कहा.” भगवान ही अब मुझे बचा सकता है.” मैं उनकी बातें सुन कर शर्मा गयी. मुझे बाहों मे लेकर डाइनिंग टेबल पर आगये. फिर हम दोनो ने एक दूसरे को खाना खिलाया. वो मेरे बदन पर हाथ फेरते रहे. कभी ब्रेस्ट सहलाते कभी निपल्स से खेलते तो कभी जांघों को सहलाते. खाना ख़त्म कर के मैं दो ग्लास ऑरेंज जूस बना कर ले आई | | वो ड्रॉयिंग रूम मे सोफे पर बैठे हुए थे. मैने उन्हें एक ग्लास देकर दूसरा अपने हाथों मे लेकर उनके पास बैठ गयी. उन्हों ने एक सीप अपने ग्लास से लेकर ग्लास मेरे होंठों पर रख दिया. हम दोनो एक दूसरे के ग्लास से जूस पीने लगे. जूस ख़त्म कर के उन्हों ने मुझे बाहों मे भर लिया और मेरे होंठो पर अपने होंठ रख दिए. हम एक दूसरे के आलिंगन मे समय खड़े हो गये मैं उनकी बाहों मे पिघली जा रही थी. उन्हों ने गाउन के स्ट्रॅप्स मेरे कंधो से हटा दिए . गाउन मेरे बदन पर से फिसलता हुआ ज़मीन पर ढेर हो गया. मेरे बदन पर सिर्फ़ एक छ्होटी सी पॅंटी बची थी. मेरी उंगलियाँ उनके शर्ट की बटनो से खेल रही थीं. मैने भी उनके बदन से शर्ट हटा दिया. दोनो के नग्न बदन एक दूसरे मे सामने के लिए बेताब होरहे थे. उनके बदन की चुअन पूरे शरीर मे बिजली सी दौड़ा दी थी. उसके बाद मैने अपने हाथ उनकी पॅंट की ओर बढ़ाए. उनकी जीभ मेरे मुँह का मुआयना करते हुए मेरी जीभ के साथ अठखेलियाँ कर रही थी. पॅंट के ऊपर से कुछ देर तक उनके लिंग को सहलाती रही फिर मैने धीरे से पॅंट की ज़िप खोलकर हाथ अंदर डाल दिया. अंदर लिंग भट्टी की तरह गर्म हो रहा था.




तने हुए लिंग को मुट्ठी मे भर कर कुछ देर तक सहलाती रही. फिर पॅंट के बटन्स खोलकर पूरे बदन को नग्न कर दिया. उसने अपने हाथ मेरे कंधों पर रख कर नीचे झुकाने के लिए दबाव डाला. मैं कुछ झिझकति हुई अपने घुटनो पर झुक गयी. मेरी आँखों के सामने पूरा तना हुआ लिंग झटके खा रहा था. उनका लिंग काफ़ी मोटा और लंबा था. आप से डबल ही होगा तब मेरी समझ मे आया क्यों दीदी. कहा करती थी कि इनका लिंग तो आज भी मेरी जान निकाल देता है. वी अपना लिंग मेरे होंठों पर रगर्ने लगे. मैने उनके लिंग पर एक गहरा चुंबन लिया. उन्हों ने अपना लिंग मेरे होंठों पर दाब कर कहा,”मुँह मे लो इसे” मैने आज तक किसी लंड को मुँह मे नहीं लिया था. लेकिन आज इतनी गरम हो रही थी कि मेरा अपने उपर कोई कंट्रोल नहीं रह गया था. मैने अपने होंठों को थोड़ा सा खोल दिया. उसका गरम मोटा लंड मेरी जीभ के उपर से सरसरता हुआ अंदर प्रवेस कर गया. शुरू शुरू मे तो थोड़ी सी घिंन लगी मगर बहुत जल्दी ही मज़ा आने लगा. उसने मेरे सिर को पकड़ लिया और लिंग को मेरे मुँह के अंदर बाहर करने लगे. मैं भी मस्त हो गयी और अपने सिर को आगे पीछे करने लगी. वो एक तरह से मेरे मुँह को ही मेरी योनि के रूप मे इस्तेमाल कर रहे थे. कुछ देर मे उन्होने अपने लिंग को मेरे मुँह से निकाल लिया. पूरा लिंग मेरे लार से गीला हो रहा था. मुझे कंधे से पकड़ कर उठाया और मेरी छातियो को मसल ने लगे. मुझे खींचते हुए बेडरूम मे ले गये. अब उनके भी सब्र का पैमाना छलक्ने लगा था. मेरे आख़िरी वस्त्र को भी उतार कर मुझे बेड पर लिटा दिए. पहले होंठों से मेरी पलकों को च्छुआ. फिर उनके होंठ धीरे धीरे फिसलते हुए नाक के उपर से होंठों को च्छुए फिर गले का स्पर्श किया. होन्ट इतने हल्के से मेरे बदन पर फिरा रहे थे कि लग रहा था जैसे कोई मेरे बदन पर पंख फिरा रहा हो. मेरी योनि इतना बर्दस्त नहीं कर पाई और जैसे ही उनके होंठो ने मेरे निपल्स को स्पर्श किया.मैने उनके सिर को पकड़ कर अपनी छातियो मे दबा लिया. और झटके के साथ मेरा पहला नशीला डिसचार्ज हो गया. मैं हाँफ रही थी और वो मेरे निपल्स को चूसे रहा था || मैं धीरे धीरे फिर गरम होने लगी. उसके होंठ काफ़ी देर तक निपल्स से खेलने के बाद वापस नीचे की ओर फिसलने लगे. मेरे पेट के उपर से होते हुए मेरी योनि तक पहुँच गये कुछ देर तक मेरे सिल्की झांतों से खेलने के बाद मेरी योनि को चूमा. मैने अपने पैर जितना हो सकता था फैला दिए थे. उसके मुँह से जीभ निकल कर मेरी योनि मे प्रवेस कर गयी. मैं वापस च्चटपटाने लगी. मैने उसके सिर को अपनी योनि मे दाब दिया. उसकी जीभ योनि के अंदर बाहर हो रही थी. मेरा कमर ऊपर की ओर उठा हुआ था जिससे उसके जीभ को ज़्यादा से ज़्यादा अंदर तक ले सकें. मैं एक बार और झर गयी. आज पहली बार जिंदगी मे ऐसा हुआ था कि किसी के लिंग को योनि मे लेने से पहले ही दो दो बार मैं झर गयी थी. वो अपने काम मे लगा हुआ था. मैने ज़बरदस्ती उसके सिर को अपनी जांघों के बीच से हटाया. उनके होंठ मेरे कर्मरास से चमक रहे थे. “बस भी करो पागल कर दोगे क्या.” मैने उनसे कहा. ” अब और सहा नहीं जा रहा है. प्लीज़. मेरे बदन को मसल डालो. अपना लिंग मेरी योनि मे डाल दो” उन्हों ने मेरी टाँगें अपने कंधों पर रख दी. और मेरे योनि द्वार पर अपना लिंग सटा कर ज़ोर से धक्का मारा. योनि मेरे रस से पूरी तरह गीली हो रही थी फिर भी उनके लिंग के प्रवेश करते ही मेरी चीख निकल गयी. मैने सिर को उठा कर देखा कि उसका सिर्फ़ आधा ही लिंग अंदर गया है. उसने धीरे धीरे दो चार बार अंदर बाहर किया तो दर्द एक दम कम हो गया. फिर उसने एक और तगड़ा झटका मारा. इस बार पूरा लिंग मेरी योनि के अंदर डाल दिया. मैने जैसे ही चीखने के लिए मुँह खोला उन्हों ने अपने होंठ मेरे होंठों से सटा कर मेरे मुँह मे अपनी जीभ डाल दी. अंदर बाहर अंदर बाहर हम दोनो एक ही लय में अपने शरीर को हरकत दे रहे थे. कुछ देर तक इस प्रकार चोदने के बाद मुझे उल्टा कर के चोपाया बना दिया फिर पीछे की ओर से मेरी योनि मे लिंग डाल कर चोदने लगे. मेरे मुँह से आह ऊवू जैसी आवाज़ें निकल रही थी. बहुत ही तगड़ा लिंग था मेरी योनि को पूरी तरह से झनझोड़ कर रख दिया था. कुछ देर इस पोज़िशन से चोदने के बाद मुझे अपने उपर आने को कहा. वो बिस्तर पर पीठ के बल लेट गये. उनका तना हुआ मूसल जैसा लिंग छत की ओर देख रहा था मैने अपने हाथों से अपनी योनि को उनके लिंग पर सटा दिया और धम्म से उनके लिंग पर बैठ गयी. फिर तो उपर –नीचे, उपर – नीचे काफ़ी देर तक उसके लिंग पर बैठक लगाती रही. मेरी बड़ी बड़ी छातियाँ भी मेरे साथ उपर – नीचे उच्छल रही थीं. जेठ जी मेरी दोनो छातियों पर अपने हाथ रख कर मसल्ने लगे. घंटे भर तक हम दोनो की कबड्डी चलती रही. वो तो हारने का नाम ही नहीं ले रहे थे और मैं बार बार आउट हो कर भी दुबारा पूरे जोश के साथ मैदान मे कूद पड़ती. बहुत ही शानदार मर्द मिला था. मेरे एक – एक अंग दर्द की हिलोरें उठ रही थी. पूरा बदन पसीने से लथपथ हो रहा था. घंटे भर मुझे रोन्दने के बाद उन्हों ने ढेर सारा वीर्य मेरी योनि मे डाल दिया. मैं निढाल होकर बिस्तर पर पड़ी थी. कुछ देर तक यूँही हम दोनो एक दूसरे से सटे हुए हानफते रहे. फिर उन्हों ने उठकर मुझे उठाया. मेरे पैर काँप रहे थे. वे सहारा देकर मुझे बाथरूम तक ले गये. फिर हम दोनो ने एक दूसरे को खूब मसल मसल कर नहलाया. एक दूसरे को मसल्ते हुए हम फिर गरम हो गये. उन्होने मुझे वहीं फिर्श पर चौपाया बना कर चोदा. शवर की बूँदों के नीचे संभोग करते हुए बड़ा ही आनंद आ रहा था. एक बार फिर मेरे गर्भ मे अपना वीर्य भर कर मुझे चोदा. हम दोनो एक दूसरे के बदन को टवल से पोंच्छ दिए. मेरे कपड़ों की ओर बढ़े हाथ को उन्हों ने अपने हाथ से रोक कर कहा, “जब तक तुम्हारी दीदी हॉस्पिटल से नहीं आती तब तक तुम ऐसे ही रहना.”उन्हों ने मेरे पूरे नग्न बदन पर अपनी नज़रें फिराई | मैं उनकी आँखों की ओर देख कर शर्मा गयी. “इस बीच आपके छोटे भाई मिलने आगाए तो?” मैने नीची नज़र करके पूछा. “तो क्या देखेगा उसकी सेक्सी बीवी कैसे अपने सेठ जी की सेवा कर रही है. कितना पुन्य कमा रही है.” “धात” मैने उनके नग्न सीने पर मुक्का मारते हुए कहा. हम दोनो एक दूसरे से लिपट कर सो गये . शाम को तैयार हो कर दीदी से मिलने गये. उनको खाना खिला कर वापस घर आगाए. रात तो बस पूरी जागते हुए गुज़री. इस तरह हम जब तक दीदी घर नहीं आगाई तब तक खूब एक दूसरे को भोगे. दो दिन बाद दीदी के लड़का हुआ. तुम भी उसे देखने आए. और शाम को लौट गये. कॉंप्लिकेशन्स के कारण दीदी को हफ्ते भर रुकना पड़ा और मेरी योनि को आपके भाई साहब ने खूब रगड़ा. अगले दिन दीदी के बड़े भाई शाब आए थे जो नैनीताल मे रहते हैं. एक दिन रूकने का प्रोग्राम था. हम दोनो बहुत सम्हाल कर वायवहार कर रहे थे जिससे उन्हें कोई खबर नहीं लगे. मगर कहते हैं ना कि इश्क़ और मुश्क़ कभी च्छुपते नहीं हैं. मुझे तो दिन भर वो गहरी नज़रों से घूरते रहे. रात को सब अलग अलग सोए. मगर मुझे करवाने का ऐसा नशा डाला था जेठ जी के बिना नींद ही नहीं आ रही थी. रात बारह बजे तक करवटें बदलती रही. जब और नहीं रहा गया तो उठके बिना कोई आवाज़ किए बगैर अपने कमरे से निकली और जेठ जी के कमरे मे घुस गयी. अंधेरे मे मुझे पता ही नहीं चला की दो निगाहें मुझे घूर रही हैं. घंटे भर तक अपनी योनि की कुटाई करवाने और ढेर सारा वीर्य अपनी योनि मे लेने के बाद अपने कमरे मे आकर सो गयी. एक दो घंटे बाद दरवाजा खुलने और बंद होने की आवाज़ आई. मैने सोचा की जेठ जी फिर गरम हो गये होंगे. “मार ही डालोगे क्या. उतना ही खाना चाहिए जितना पचा सको.” मैने फुसफुसाते हुए कहा. “हुम्म” उन्हों ने बस इतना ही कहा. “आपके बड़े साले साहब घर पे हैं. अगर पता चल गया तो गजब हो जाएगा.”मैने फिर विनती की. मगर उन्हों ने कोई जवाब नहीं दिया और मेरे बिस्तर पर आगाए. मेरे बदन पर तो वैसे ही कोई कपड़ा नहीं था. मुझसे कसकर लिपट अगये और मेरी छातियो को थाम लिया. तभी मुझे लगा कि वो जेठ जी नहीं कोई दूसरा था. “कोन? कोन है?” मैने उनसे अलग होने की कोशिश की.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#22
मगर वो मेरे नंगे बदन को कस कर बाहों मे भर रखे थे. “मैं हूँ.” मुझे पता चल गया कि आने वाला जेठ जी नहीं उनके साले अशोक जी हैं. “आ, आप? आप यहाँ क्या कर रहें हैं?” “वही कर रहा हूँ जो अभी तुम अमर से करवा कर लौटी हो.” उनकी बातें सुनते ही मेरे होश उड़ गये. जब तक मैं सम्हल्ती तब तक तो उनका लिंग मेरी योनि के द्वार पर ठोकर मार रहा था. एक झटके से पूरा लिंग अंदर कर दिया. मैं काफ़ी थॅकी हुई थी. मगर मना भी नहीं कर सकती थी. वरना उन्हों ने सबको बता देने की धमकी देदी थी. बगल के कमरे मे जेठ जी सो रहे थे और इधर मेरी ठुकाई चल रही थी. तरह तरह के पोज़िशन मे मुझे ठोक रहे थे. मेरी चूचियो पर चारों तरफ दाँत के निशान नज़र आ रहे थे. निपल्स सूज कर अंगूर जैसे हो गये थे | सारी रात मुझे जगाए रखा. मैं उनके उपर आ कर उनके लिंग पर उठक – बैठक लगाती रही. सुबह तक मेरी हालत खराब हो गयी थी. फिर भी उठकर दीदी एवं बच्चे के लिए समान तैयार कर जेठ जी को दिया. तबीयत खराब होने का बहाना कर के मैं घर पे रुक गयी. कुछ देर आराम करना चाहती थी. मगर किस्मत मे आराम ना हो तो क्या करें. अशोक जी भी तबीयत खराब होने का बहाना कर के रुक गये थे. जेठ जी दोपहर तक वापस आए. इस दौरान असोक जी जी ने खूब मज़ा लिया. अब तो मैं भी उनके साथ का लुत्फ़ उठाने लगी थी. उन्हों ने अपने घर लौटने का प्रोग्राम भी पोस्ट्पोंड कर दिया था. दोपहर को जेठ जी को भी हमारी चुदाई का पता चल गया था. फिर तो दोनो एक साथ ही मुझ पर चढ़ाई करने लगे थे. एक पीछे से डालता तो दूसरा मेरे मुँह मे डाल देता. दोनो ने मुझे सॅंडविच की तरह भी इस्तेमाल किया. मैने कभी अपने पीछे वाले द्वार का इस काम के लिए इस्तेमाल नहीं किया था. पहली बार तो मेरी आँखें ही बाहर आ गयी थी. इतना दर्द हुआ कि बता ही नहीं सकती मगर फिर धीरे धीरे उसकी आदि हो गयी. मेरी तो हालत दोनो मिलकर ऐसी कर देते थे कि ठीक ढंग से चला भी नही जाता था. योनि सूज कर लाल रहती थी. चूचियों पर काले काले निशान पड़ गये थे. मैं तो जब तक दीदी घर नहीं आगेई तबतक दोबारा उनसे मिलने हॉस्पिटल नहीं गयी. नहीं तो मेरी हालत देख कर उनको मेरे व्यस्त कार्यक्रम का पता चल जाता. मुझे भी दोदो रंगीले मर्दों का साथ पाकर खूब मज़ा आ रहा था. आसोक जी दीदी के आने के बाद ही खिसक लिए. दीदी के घर आने के बाद ही मुझे जाकर आराम मिला. हम दोनो के मिलन मे भी बाधा पड़ गयी. वैसे दीदी को मेरी चाल और हालत देख कर मेरे रंगीले कार्यक्रम का पता चल गया था. छ्हप्पन व्यंजन के बाद ही एक दम से उपवास मुझे रास नहीं आरहा था. दो दिन मे ही मैं चटपट उठी. रात मे दीदी के सो जाने के बाद अमर जी को बुला लिया. हम दोनो को संभोग करते हुए कुछ ही समय हुआ होगा कि दीदी ने आकर हमे पकड़ लिया. हम दोनो सकते मे आगये ज़ुबान से कुछ नहीं निकल रहा था. दीदी ने हमारी हालत देख कर हन्स दिया और बोली. “अरे पगली मैने तुझे कभी किसी काम के लिए मना थोड़े ही किया है. फिर मुझ से क्यों छिपती फिर रही है?” उन्हों ने कहा. ” करना है तो मेरे सामने बेडरूम मे करो. अरे तुझे तो मैने बुलाया ही अमर की हर तरह से सेवा करने के लिए था. ये भी तो एक तरह से सेवा ही है.” फिर तो हम दोनो, ने जब तक तुम मुझे लेने नहीं आगाए, खूब जमकर ऐश किए. दीदी ने बाद मे मुझे तुम्हारे बारे मे भी बताया कि तुम किस तरह उन्हें परेशान करते हो. अब जब तुम किसी की बीवी को चोदोगे तो कोई तुम्हारी बीवी को भी चोद सकता है. पूरी घटना सुनकर मेरे पातिदेव का लिंग फिर से तन कर खड़ा हो गया था फिर तो हम वापस गुत्थम गुत्था हो गये. इस तरह हमारे बीच एक नये रिश्ते की शुरुआत हो गयी.









































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Heart
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#23






यह कहानी अक्टूबर 2010 की है.. मैं जब आगरा से वापिस वाराणसी आई तब की है। यह कहानी मेरे पति की फैमिली से है, मेरे पति के बड़े पिता जी के लड़के की है.. जो लखनऊ में बीडीओ के पद पर थे.. पर जब उनकी बीवी का देहान्त हो गया था.. तो उन्होंने अपनी पोस्टिंग बनारस करा ली थी, वे हमारे ही घर पर रह कर काम कर रहे थे।

बीवी के न रहने से उनकी सेक्स की भूख बढ़ गई थी। वह हमेशा मुझे घूरते रहते और वह अपने कमरे में मुठ्ठ मार कर वीर्य अपने अंडरवियर गिरा कर छोड़ देते थे।
यह उनका हमेशा का काम हो गया था। जब भी मैं उनके कमरे की साफ सफाई करती.. तो अक्सर उनकी गीली चड्डी मिलती और मैं भी उसे सूँघकर देखती.. पर मेरे दिल में जेठ जी के प्रति कभी गलत भावना या उनसे चुदने का ख्याल नहीं रखती.. मैं यह सोचकर रह जाती कि बेचारे को हाथ से करने के सिवा और क्या कर सकते हैं।
मेरी उनके प्रति सहानभूति थी।

वे कभी मुझसे बोलते नहीं थे, मैं चाय नाश्ता उनके रूम में ही पहुँचा देती और खाना भी वो कमरे में ही खाते थे.. पर जब भी मैं किसी काम से जाती.. तो वह मुझे चोर निगाहों से देखते रहते थे।

जब से मैं आगरा से जमकर चुदवा कर आई थी.. मेरे शरीर में एक बदलाव आ गया था और मेरा फिगर पहले से भी अच्छा हो गया था। खासकर मेरे चूतड़.. जो कि किसी को भी अपना दीवाना बना डाले।
मेरे ससुराल आते ही मुझे इतना लण्ड मिल गया कि मैं आगरा से आने के बाद पति से रोज चुदाई करवाती थी क्योंकि मेरी बुर को लण्ड खाने की आदत पड़ गई थी।

मैं अब ज्यादा गौर करने लगी कि जेठ जी का अब कुछ ज्यादा ही सेक्सी और रोमान्टिक हो रहे थे, अब वो कभी भी मौका देखकर मेरे कमरे में तांक-झाँक करते रहते।
कई बार मुझे लगा कि वे मुझे चुदते हुए देखते हैं.. पर मेरे पास कुछ सबूत नहीं था। जब भी मैं रात को सेक्स करती.. तो मुझे ना जाने क्यों महसूस होता कि जेठ जी देख रहे हैं और मेरे अन्दर उत्तेजना बढ़ जाती और मैं खूब खुल कर चिल्ला कर चुदने लगती।

एक दिन की बात है, मैं कमरे में कपड़े बदल कर रही थी और मुझे आहट सी लगी कि कोई मुझे देख रहा है।
उस वक्त घर में मेरे और जेठ के अलावा कोई नहीं था।
जैसे ही मुझे लगा कि सच में कोई है.. मेरा रोम-रोम गनगना उठा।

उस समय मैं ब्रा-पैन्टी में थी और शरीर में वैसलीन का बॉडी लोशन लगा रही थी।
मुझे थोड़ी शरम भी आ रही थी.. मैं उस वक्त अगर शरीर ढकती या पलटती तो जेठ जी समझ जाते कि मैं जान गई हूँ, इसलिए मैं जो कर रही थी.. उसी तरह करती रही ताकि उनको पता ना चले कि मैं समझ गई हूँ कि कोई देख रहा है।
मैं जेठ जी को लज्जित नहीं करना चाहती थी।

मैंने लोशन लगाते हुए थोड़ा तिरछी होकर देखा.. तो मैं शरमा उठी दरवाजे को थोड़ा खोलकर जेठ जी कमरे में मुझे देखते हुए अपना लण्ड बाहर निकाल कर हिला रहे थे।
मेरा विश्वास पक्का हो गया कि जेठ जी की नीयत मेरे पर ठीक नहीं है क्योंकि जेठ जी अपनी बहू को नंगी हालत में देखकर अपने मन में मुझे चोदने का ख्याल रखकर लण्ड पकड़ कर मेरी बुर चोदने का सोच कर मुट्ठ मार रहे थे। पर मैं बार-बार जेठ जी को अपनी भावनाओं में नहीं लाना चाहती थी।

मेरी भी सोच जवाब दे गई.. जब जेठ जी मेरे विषय में सोचकर लण्ड हिला सकते हैं.. तो मैं क्यों नहीं और मैं तो चूत, फ़ुद्दी, बुर के लिए तरसते जेठ की मदद कर रही हूँ।
जेठ जी को लण्ड हिलाते देखकर मेरी भी वासना हिलोरें मारने लगी।
क्योंकि मेरी आदत भी अलग-अलग मर्दों के लण्ड से चुदने की पड़ गई थी और मैं जब से आगरा से आई हूँ.. मुझे केवल पति के लण्ड से चुद कर संतोष करना पड़ रहा था।

जेठ जी का लण्ड मेरे पति के लण्ड जैसा बड़ा था.. पर मोटा कुछ अधिक था, उनके लण्ड का सुपारा काफी फूला हुआ था।
जेठ जी का लण्ड देखकर मेरी चूत ने पानी छोड़ दिया और फिर मैं जानबूझ कर और ज्यादा दिखाते हुए अपने जिस्म में लोशन लगाने के साथ साथ अपनी बुर की फांकों में और चूचियों में लोशन रगड़ कर चूत की मालिश करती रही।

मैं जितना जेठ को चूत दिखाना चाह रही थी उतनी अधिक मेरी चूत चुदने के लिए व्याकुल हुई जा रही थी। मैं चुदाई की वासना के नशे में अपनी पैन्टी नीचे खिसका कर चूत को नंगी करके लोशन लगाते हुए पीछे से झुककर अपनी बुर दिखाने के साथ मैं पनियाई हुई बुर को मसक देती थी। उधर जेठ जी मुठ्ठ मारे जा रहे थे.. वे इस बात से बेखबर लग रहे थे कि मैं जानबूझ कर सब दिखा रही हूँ।

अब मेरी चूत खुद चुदना चाहती थी.. मैं गरम होती जा रही थी। एक बार तो मुझे महसूस हुआ कि मैं जाकर जेठ जी का खुद ही लण्ड पकड़ कर कह दूँ कि हिलाना छोड़ो.. और मेरी बुर आपके सामने खुली पड़ी है.. अपना लौड़ा डाल कर.. इसकी फांकों में अपने लौड़े का सुपारा फंसाकर.. अपनी गरमी मेरी चूत में डाल दो।
पर मेरी हिम्मत नहीं हो रही थी।


मैं वासना के नशे में जलते हुए बुर को मसकते हुए दरवाजे की तरफ घूमकर बुर को रगड़ने लगी। ऐसा करने से मेरी चिकनी बुर पूरी तरह जेठ के सामने थी।
मैंने कनखियों से देखा.. तो जेठ जी की लण्ड हिलाने की स्पीड बढ़ गई थी और वह बस ‘सटासट’ सोटते हुए लण्ड पर मुठ्ठ मार रहे थे। मैं गरम और चुदासी चूत लेकर मुठ्ठ मारते देखने के सिवा कर भी क्या सकती थी।

मैंने अपनी ब्रा के हुक को खोल कर अपनी चूचियों को आजाद कर दिया। एक हाथ से मैं अपने कलमी आमों पर लोशन की मालिश करते हुए दबाकर वासना को कम करना चाहती थी। साथ ही दूसरे हाथ से अपनी चूत को मसल रही थी और बाहर मेरे जेठ जी मेरे जिस्म.. चूत और गान्ड को देखते हुए अपने लण्ड को कुचलते हुए अपना लावा निकालना चाहते थे।
वह वासना के नशे में चूर होकर बस अपना वीर्य निकाल कर शान्त होना चाहते थे।

मैं उनकी मदद करते हुए चूत को चौड़ा करते हुए बुर की गुलाबियत को पूरी तरह दिखाते हुए मालिश कर रही थी। मैं यह भी दिखाना चाहती थी कि आपके भाई की चुदाई से मेरी गरमी शान्त नहीं होती.. मुझे लण्ड की जरूरत है।

और तभी मेरी निगाह दरवाजे पर पड़ी.. जेठ जी का लण्ड वीर्य उगलने लगा था। जेठ जी सिसिया रहे थे- आहह.. सी.. नेहा.. आह.. चुद जा मेरे लौड़े से.. आह.. सीई.. आह.. नेहा..
वे झड़ रहे थे.. जबकि उनकी आवाज मुझे सुनाई दे रही थी।
वे सब भूल कर बस अपना पूरा वीर्य दरवाजे पर गिराकर चले गए।
शायद यह सब वह उत्तेजना में बोल गए थे।

मैं भी आखरी बार अपनी चूत को मसक कर पैन्टी-ब्रा और कपड़े पहन कर सारी घटना को बैठ कर याद कर रही थी।
तभी मुझे बाहर जेठ के पुकारने की आवाज आई।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#24
तभी मेरी निगाह दरवाजे पर पड़ी.. जेठ जी का लण्ड वीर्य उगलने लगा था। जेठ जी सिसिया रहे थे- आहह.. सी.. नेहा.. आह.. चुद जा मेरे लौड़े से.. आह.. सीई.. आह.. नेहा..
वे झड़ रहे थे.. जबकि उनकी आवाज मुझे सुनाई दे रही थी। वह सब भूल कर बस अपना पूरा वीर्य दरवाजे पर गिराकर चले गए। शायद यह सब वह उत्तेजना में बोल गए थे। मैं भी आखरी बार अपनी चूत को मसक कर पैन्टी-ब्रा और कपड़े पहन कर सारी घटना को बैठ कर याद कर रही थी। तभी मुझे बाहर जेठ के पुकारने की आवाज आई।

अब आगे..

मैं कपड़े ठीक करके बाहर गई, जेठ जी अपने कमरे में थे, उनके कमरे का दरवाजा खुला था।
मैंने अन्दर जाकर पूछा- कोई काम है क्या?
भाई साहब बोले- नेहा, मुझे एक कप चाय बना दो..

मैंने एक बात पर ध्यान दिया कि कुछ देर पहले जो भाई साहब मुझे देख कर कर रहे थे। ऐसा जेठ जी से बात करते कुछ जाहिर नहीं हो रहा था।
मैं बोली- जी भाई जी..

और मैं जैसे ही कमरे के बाहर निकलने के लिए घूमी… जेठ जी की फिर आवाज आई- सुनो.. एक कप नहीं.. दो कप बनाना।
मैं बोली- भाई जी.. कोई और आने वाला है क्या?
बोले- नहीं.. क्यों?
‘आप दो कप के लिए बोले.. तो मैंने सोचा कि कोई आने वाला होगा।’

जेठ जी बोले- तुम मेरे साथ चाय नहीं पी सकती क्या.. जब से आपकी जेठानी का देहान्त हुआ.. मैं अकेले ही पीता और खाता आ रहा हूँ.. अगर तुमको बुरा ना लगे.. तो मेरे साथ बैठ कर कुछ देर चाय के लिए ही साथ दे दो..
‘नहीं भाई साहब.. आप ऐसा क्यों बोल रहे हैं।’

मैं फिर चाय बनाने चली गई और दो कप चाय लेकर जेठ जी के कमरे में गई, एक कप उनको देकर मैं एक कप लेकर सोफे पर बैठ गई।
तभी जेठ अपने चाय का कप लेकर मेरी बगल में बैठ गए।
आज पहली बार जेठ के व्यवहार में बदलाव देख रही थी, जब से वह मेरे यहाँ रह रहे थे.. कभी ठीक से बात भी नहीं करते थे.. पर आज अकस्मात मेरे बगल में बैठ गए।

‘क्या हुआ नेहा.. बुरा तो नहीं लग रहा है?’
‘किस बात का बुरा भाईसाहब?’
‘यही.. जो मैं बिना पूछे आपकी बगल में बैठ गया।’
मैं शरमाते हुए बोली- नहीं..

और जेठ जी चाय पीते हुए धीरे से अपना एक हाथ मेरे पीछे कर मेरी कमर और चूतड़ों के पास रख कर हल्के से मेरी कमर को दबा कर हाथ वहीं रखकर रूक-रूक कर सहला देते।
जेठ जी के ऐसा करने से मैं पानी-पानी हो रही थी.. पर मैं जानबूझ कर अंजान बनी रही।

तभी जेठ ने पूछा- तुम्हारा और आकाश का आगरा का टूर कैसा रहा?
मैं बोली- बहुत बढ़िया रहा.. भाई साहब..
‘बहुत समय लगा दिया तुम लोगों ने..’
‘जी भाईसाहब.. कुछ काम भी था उनका..’

‘एक बात कहूँ.. बुरा न मानना..’
‘बोलिए..’
‘तुम्हारे जैसी बीवी पाकर आकाश का मन तो आने का कर ही नहीं रहा होगा..’

ऐसा कहते वक्त जेठ जी ने अपना पैर मेरे पैर से सटा दिया।
एक तो कुछ देर पहले ही जो कुछ जेठ ने किया था.. उससे तो मेरी चूत गर्म थी ही.. उस पर से जेठ की हरकतें मेरे रोम-रोम में सेक्स का रोमांच पैदा कर रही थीं। मुझे लगा कि अगर मैं हटी नहीं.. तो मैं खुद जेठ जी की गोद में जा बैठूंगी।

चाय खत्म हो चुकी थी और मैं कप लेकर उठने लगी.. तभी जेठ जी ने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे उठने से रोक लिया।
‘क्या हुआ.. क्यों जा रही हो.. क्या मुझ अकेले को अकेला छोड़ कर जा रही हो.. कुछ देर और बैठो ना..’
और मुझे जबरिया अपने पास बैठा लिया।
मैं भी विरोध न करते हुए बैठ गई।

‘नेहा अब मेरा कौन है.. वाईफ के बाद तुम ही तो हो..’
यह दो-अर्थी बात जेठ जी ने बोली थी।
इस बात से वे मेरी तरफ से अपनी नीयत साफ कर चुके थे.. पर मैं जानबूझ कर भी उनकी बात का मतलब नहीं समझना चाह रही थी।

मैं बोली- यह क्या कह रहे भाई साहब.. मैं भाभी जी की जगह कहाँ ले सकती हूँ? भाई साहब मैं समझ सकती हूँ कि आपका दु:ख.. आप अपनी दूसरी शादी कर लीजिए.. मैं आपको बना खिला तो सकती हूँ.. पर और काम तो आपकी वाईफ ही कर सकती है।
मैंने भी यह बात जानबूझ कर कह दी।

‘नहीं.. नेहा.. मैं अब शादी नहीं करूँगा.. वैसे भी तुम तो हो ही..’
‘मेरे होने ना होने क्या.. मैं तो आपका हर काम तो कर सकती हूँ.. पर ‘वो’ काम..’
मैंने जानबूझ कर बात अधूरी छोड़ दी।

‘कौन सा काम? जो तुम नहीं कर सकती… बोलो नेहा?’
‘आप खुद समझदार हैं.. समझ लीजिए..’
‘अगर वो काम भी तुम कर दो तो.. क्या फर्क पड़ेगा..’

यह कहते हुए जेठ जी ने मेरी जाँघों पर हाथ रख दिए और थोड़ा दबाकर बोले- तुम भी तो बड़ी खूबसूरत हो..
‘मेरी खूबसूरती तो आपके भाई के काम आएगी.. आपके नहीं..’
मैं कहते हुए एक झटके से उठ कर उनके कमरे से भाग गई और पीछे जेठ भी लपके।

मैं अपने कमरे तक पहुँच पाती.. उसके पहले मुझे जेठ ने दबोच लिया और एक हाथ मेरे चूतड़ों और एक हाथ से मेरी चूची को पकड़ने के बहाने दबाते हुए बोले- तुम क्यों नहीं कर सकती?

मैं खुद को छुड़ाने को जितना छटपटाती.. उतना ही वह मेरे जिस्म को दबोच रहे थे। वह मेरे जिस्म के लगभग सारे हिस्सों को स्पर्श करते हुए बोले- नेहा.. सच बताओ.. हर काम तुम कर रही हो तो ‘वह’ क्यों नहीं?
मैं बोली- मैं आपकी बहू हूँ.. छोटे भाई की बीवी हूँ.. कोई जेठ अपनी बहू को छूता तक नहीं है और आप तो..
मैंने फिर बात को अधूरा छोड़ दिया।

‘बोलो नेहा.. मैं तो.. क्या?’
‘मैं नहीं जानती.. छोड़ो मुझे..’
‘नहीं.. पहले बोलो..’


आखिर में मैंने एक ही सांस में बोल दिया- आपकी नीयत अपने छोटे भाई की बीवी पर खराब हो गई है.. जो नहीं होना चाहिए!
‘नहीं नेहा.. ऐसी बात नहीं है.. मैं तुमको चाहता हूँ.. प्यार करता हूँ.. नहीं तो भला आज तक कभी भी मैंने तुमको कुछ बोला.. और कहा?’
मैं बोली- सभी मर्द ऐसे ही कहते हैं.. आज तक आपने मुझे कुछ दिया?
‘मैंने कई बार सोचा कि तुम्हें कुछ दूँ नेहा.. पर मैंने सोचा कि कहीं तुम गलत ना समझो।’

मैं अब भी उनकी बाँहों की पकड़ में थी। वे कहते हुए मेरे होंठों को अपने होंठों में भर के किस करने लगे।
मैं बोली- प्लीज.. ऐसा मत करो..
पर वह मेरी छाती और चूतड़ों को मसकते हुए किस करते रहे।
मेरी साँसें अकुला उठीं.. उनकी हरकतें मेरी चुदने की चाहत को भड़का रही थीं।

जेठ का हाथ और मेरी बुर की चुदाई.. जेठ के लण्ड से.. यह सब सोचते महसूस करते हुए मेरी बुर पानी-पानी हो रही थी।
फिर भी मैं सती सावित्री बनते हुए मैंने जेठ से अपनी चूत को बचाने की कोशिश का ड्रामा करे जा रही थी।
मेरी जाँघों में जेठ का लण्ड खड़ा होकर ठोकर मार रहा था और जेठ बिना मेरी इजाजत के मेरे जिस्म से खेल रहे थे।

तभी जेठ का हाथ मेरी बुर पर पहुँच गया और जेठ ने मेरी बुर को हाथ में भरकर भींच लिया और मेरे मुँह से एक मादक सिसकी निकल गई- आहसीईई.. भाई साहब.. यह क्या कर रहे हैं छोड़डड दीजिए.. आह..सीई.. मैं आपके भाई की पत्नी हूँ और मैं भी तो तुम्हारे पति का बडा भाई हूँ।
‘मेरी भी वासना है.. कितने दिन तेरी पैन्टी पर मुठ्ठ मार कर शान्त करूँ.. मेरी जान..’

और तभी दरवाजे की घन्टी बज उठी.. हम दोनों चौंक कर अलग हुए। इस टाइम कौन होगा? मैं जैसे ही जेठ के बाहुपाश से छूटी.. सीधे अपने कमरे की तरफ भागी और अन्दर जाकर मैंने दरवाजा बंद कर लिया।

जेठ जी मेन गेट खोलने चले गए.. मैंने अन्दर पहुँच कर कपड़े और चेहरे को ठीक किया.. फिर बाहर की आहट लेने लगी।
तभी मुझे पति की जेठ जी से बात करने की आवाज सुनाई दी। मैं सीधे जाकर बिस्तर पर लेट गई ताकि लगे कि मैं आराम कर रही थी.. ऐसा ना लगे कि मैं उनके बड़े भाई से बुर चुदाने की कोशिश कर रही थी।
मैं नहीं चाहती थी कि मेरे पति को मेरे और जेठ के बीच जो हुआ.. या होगा.. उसका पता चले।
तभी पति ने दरवाजे पर दस्तक दी।









मैं जैसे ही जेठ के बाहुपाश से छूटी.. सीधे अपने कमरे की तरफ भागी और अन्दर जाकर मैंने दरवाजा बंद कर लिया।
जेठ जी मेन गेट खोलने चले गए.. मैंने अन्दर पहुँच कर कपड़े और चेहरे को ठीक किया.. फिर बाहर की आहट लेने लगी।

तभी मुझे पति की जेठ जी से बात करने की आवाज सुनाई दी। मैं सीधे जाकर बिस्तर पर लेट गई ताकि लगे कि मैं आराम कर रही थी.. ऐसा ना लगे कि मैं उनके बड़े भाई से बुर चुदाने की कोशिश कर रही थी। मैं नहीं चाहती थी कि मेरे पति को मेरे और जेठ के बीच जो हुआ.. या होगा.. उसका पता चले। तभी पति ने दरवाजे पर दस्तक दी।

अब आगे..

मैं नहीं चाहती थी कि मेरे पति को मेरे और जेठ के बीच जो हुआ या होगा.. उसका पता चले। तभी पति ने दरवाजे पर दस्तक की। मैंने उठकर दरवाजा खोला.. सामने पति खड़े थे.. मैं मुस्कुरा कर बगल को हो गई और जैसे ही पति अन्दर आए.. मैंने दरवाजा बंद कर दिया और उनसे लिपट गई।
मेरी चूत तो पहले से ही जेठ जी के छूने और रगड़ने से गरम थी.. मुझे चुदाई की चाहत हो रही थी। मैं उन्हें किस करते हुए उनका लण्ड पैंट के ऊपर से दबाने लगी।

‘अरे मेरी जान.. बड़ी सेक्सी मूड में हो.. क्या बात है?’

मैं बोली- जानू.. मुझे बड़ी चुदास लग रही है.. एक बार मेरी बुर पर चढ़ाई कर दीजिए और कस कर मेरी बुर चोद दो.. जानू..
पति बोले- नेहा यह आगरा नहीं है.. यह घर है और भाई जी बाहर बैठे हैं। यह सब काम अभी नहीं हो सकता और अभी रात में तेरी चूत को दो बार चोदा है न.. और अभी दोपहर में ही तुम फिर चुदासी हो उठीं..

मैं उन्हें कैसे समझाती कि यह मेरी चूत की चुदास आपके भाई साहब की ही देन है.. पर मैं बात बना कर बोली- जानू.. जब से आगरा से आई हूँ.. मेरी चुदने की इच्छा बढ़ती जा रही है.. मैं क्या करूँ.. मेरी क्या गलती है.. तुम तो जानते हो.. वहाँ कितने लोगों के साथ एक ही दिन में मेरी बुर चुद जाती थी और अब तो केवल आप ही चोद रहे हो शायद एक से अधिक मर्द से चुदने कि आदत पड़ गई है.. आपकी चूत को.. इसी लिए इस टाईम मेरी चूत की चुदास बढ़ गई है।

‘मत घबराओ मेरी जान.. आज रात मैं जम कर चोदूँगा और देखो अभी भाई जी बाहर बैठे हैं.. मुझे जाना भी है.. बस तुम जल्दी से लन्च करा दो और वादा करता हूँ कि रात में तुम्हारी चूत की सारी गरमी अपने लण्ड से चोदकर निकाल दूँगा।’
यह कहते हुए पति मुझे अलग करके कपड़े निकाल कर फ्रेश होने बाथरूम में चले गए।

मैंने रसोई में जाने के लिए जैसे ही दरवाजा खोला.. सामने जेठ जी बैठे दिखाई दिए।
मेरा जेठ जी से सामना होते ही मुझे शरम आ गई और मैं निगाह नीचे किए हुए रसोई में चली गई, मैंने खाना गरम करके खाने की टेबल पर लगा दिया।
मैंने नोटिस किया कि जेठ की निगाहें अब भी मेरे जिस्म का मुयायना कर रही थीं।

तभी पति भी बाहर आ गए और एक साथ सब बैठ कर लन्च करने लगे।
मैं और पति एक तरफ थे और जेठ जी सामने बैठे थे और जेठ जी इस मौके का भी पूरा फायदा उठा रहे थे। वह टेबल के नीचे मेरे पैर से पैर सटाकर सहलाने लगे और मैं उनकी इस हरकत से डर रही थी कि कहीं पति को पता ना चल जाए.. इसलिए मैं बिलकुल शांत दिखना चाह रही थी..

पर जेठ की ढिठाई कुछ ज्यादा ही बढ़ गई थी, इतना सब हो जाने पर भी मैं जेठ जी से चुदना नहीं चाहती थी.. भले मेरी चूत में गैर का लण्ड लेने की इच्छा बढ़ रही थी.. परन्तु मैं अपनी ईज्जत घर में नीलाम नहीं करना चाहती थी.. बाहर अगर कोई चोदता है.. तो उससे कोई लेना-देना नहीं रहता.. बस चूत चुदाओ और वह अपने रास्ते.. मैं अपने.. पर यहाँ तो जेठ की नीयत मेरे पर ठीक नहीं थी।

पता नहीं कब से.. पर उनकी हिम्मत कभी नहीं हुई लेकिन इस सबका कारण मैं थी.. मैंने क्यों उनको अपने जिस्म को देखने दिया.. क्यों मैंने अपना बदन नहीं ढका.. और फिर मैं भी तो वासना के नशे में चूर हो कर उनकी हरकतों का कोई विरोध नहीं कर पाई।

जेठ जी तो वाईफ के न रहने के बाद से अब तक बेचारे चूत के लिए तरस रहे थे, पता नहीं कितनी बार मुझे चुदते देख कर या मेरी कल्पना करके मेरे नाम की मुठ मार चुके होगें.. पर कभी मेरे साथ छेड़खानी नहीं की थी।

इसमें जेठ जी का दोष नहीं है.. उनको भी एक जनाना जिस्म और चूत की जरूरत है.. पर मैं अपनी चूत कैसे दे सकती हूँ। यह काम मैं नहीं कर सकती.. मेरी कल्पना को शायद पति ने ताड़ लिया था।
पति बोले- क्या हुआ.. किस सोच में डूबी हो.. हम लोग खाना खा चुके हैं.. और तुम अभी वैसे ही बैठी हो।
मैं हकलाते हुए बोली- ककक..कुछ.. नननन..हहीं.. बस ऐसे ही..

और मैं खाना खत्म करके बर्तन लेकर रसोई में चली गई, फिर साफ-सफाई करके मैं बेडरूम में आकर लेट गई, पति पहले से ही बिस्तर पर लेटे थे, मैं उनके बगल में लेट गई।
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कुछ देर बाद पति ने कहा- ज्यादा मन हो रहा है चुदने का?
मैं जानबूझ कर बोली- कुछ खास नहीं..
वह बोले- लेकिन तुम खाने के दौरान गहरी चिंता में थीं.. बताओ क्या बात है?
मैं बोली- कुछ नहीं..
तब पति बोले- मुझे पता है..

पति के इतना कहते ही मैं कांप गई.. क्या पता है.. कहीं मेरे और जेठ के बीच की बात तो नहीं?
मैं- क्या पता है आपको?
‘यही कि तुम्हारी इतनी चुदाई हो चुकी है कि तुम्हारी चुदने की इच्छा बढ़ गई है।’

मैंने सिर्फ ‘हाँ’ मैं सर हिला दिया और पति मुझे सहलाते हुए मेरे लहंगे को ऊपर उठाकर मेरी चूत सहलाते हुए मेरी पैन्टी को नीचे करके मेरी चूत पर मुँह लगा कर मेरी बुर चूसने लगे।
मेरी तपती चूत पर पति का मुँह पड़ते मेरी ‘आह.. उफ.. सीसी ईई..’ निकलने लगी।

कुछ देर तक मेरी चूत को पीने के बाद बोले- नेहा.. तुम्हारी चूत तो चुदने के लिए उतावली हो रही है।
पति ने मेरी पैन्टी पैर से बाहर निकाल दी और बोले- जान… अभी मैं तुम्हारी चूत में लण्ड घुसाकर कुछ राहत दे देता हूँ.. पर पूरी चुदाई रात में करूँगा।

पति ने मेरी बुर पर अपना सुपारा रख कर एक जोर का शॉट मारा और लण्ड पूरा चूत के अन्दर एक ही शॉट में घुसता चला गया।
पति अपना पूरा लण्ड मेरी बुर में डाल करके शॉट पर शॉट देने लगाने लगे।
मैं ‘आहहह आहहहह.. सिईईईई.. आहहह..’ करने लगी।

अभी आठ-दस शॉट दिए.. तभी पति का फोन बज उठा और पति ने लण्ड बुर से बाहर खींचकर फोन उठा कर ‘हैलो’ कहा और फोन रख कर बोले- नेहा मुझे जाना है.. तुम आराम करो.. कुछ राहत तो मिल ही गई होगी।

मैं बोली- आपका लण्ड जाने के बाद मेरी बेचैनी और चूत की प्यास और बढ़ गई है.. मेरी चुदाई पूरी करो.. ऐसे प्यासी पत्नी को छोड़ कर नहीं जाया जाता। मेरी चूत चुदने के लिए फड़फड़ा रही है। ऐसे में किसी ने मेरी वासना का नाजायज फायदा उठा लिया तो..
मेरी बात को पति ने मजाक में ले लिया और बोले- तब तो मेरी प्यासी रानी की चूत की प्यास बुझ जाएगी और रात मुझे तुम्हारी चूत मारने की मेहनत कम करनी पड़ेगी मेरी जान..

पति हँसते हुए चले गए और मेरी चूत चुदने के लिए चुलबुलाती रह गई।
पति के जाने के बाद मैं वैसे ही बिस्तर पर पड़ी रही, कुछ देर बाद मुझे नींद आ गई और मैं सो गई।
जब मेरी नींद खुली तो मुझे ध्यान आया कि मैं वैसे ही सो गई हूँ.. जिस हालत में पति चूत में लण्ड घुसाकर गए थे.. बिलकुल खुली चूत..

मैं अपनी प्यारी चूत को अपने हाथों से मसकते हुए ‘आहसीईई..’ कह कर उठी और बाथरूम चली गई। मैं फ्रेश होकर आई तो मैं अपनी पैन्टी खोजने लगी.. लेकिन मेरी पैन्टी कहीं दिख ही नहीं रही थी।
आखिर मेरी पैन्टी गई कहाँ.. यहीं तो पति ने निकाल कर फेंकी थी।
काफी खोजने पर भी नहीं मिली.. तो मैं फिर यूँ ही चाय बनाने चली गई। यह सोच कर कि शायद पति मुझे सताने के लिए साथ ले गए हों..

मेरे प्यारे मित्रो.. क्या आप पैन्टी खोजने में मेरी मदद करोगे.. कि मेरी पैन्टी गई कहाँ.. पति ले गए कि कहीं छिपाकर गए हैं.. या फिर मेरे सोने के बाद जेठ जी आए और वो ले गए.. या कोई और तो नहीं आया था.. जेठ से मिलने जो कि बाथरूम गया हो और लौटते वक्त दरवाजे के झिरी से मुझे नंगा देख कर और मेरी चूत सहला कर पैन्टी ले गया हो।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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#25
मैं अपनी प्यारी चूत को अपने हाथों से मसकते हुए ‘आहसीईई..’ कह कर उठी और बाथरूम चली गई। मैं फ्रेश होकर आई तो मैं अपनी पैन्टी खोजने लगी.. लेकिन मेरी पैन्टी कहीं दिख ही नहीं रही थी।
आखिर मेरी पैन्टी गई कहाँ.. यहीं तो पति ने निकाल कर फेंकी थी।
काफी खोजने पर भी नहीं मिली.. तो मैं फिर यूँ ही चाय बनाने चली गई। यह सोच कर कि शायद पति मुझे सताने के लिए साथ ले गए हों..

मैं जेठ जी के और अपने लिए चाय बना कर जेठ जी को देने उनके कमरे में गई। मैंने जैसे ही दरवाजा खोला तो देखा कि जेठ जी कमरे में सोए हुए थे, उनको सोया हुआ देख कर मैंने कमरे में चारों तरफ नजर दौड़ाई पर मेरी पेंटी यहाँ भी नहीं दिखी।
मैंने टेबल पर ट्रे रख कर जेठ जी को आवाज दी।

मेरी आवाज सुनकर जेठ जी चौंकते हुए उठ बैठे।
मैंने कहा- आप बहुत सो रहे हैं।
‘नहीं यार, बस थोड़ी नीद आ गई और सो तो तुम भी रही थी!’
‘आप फ्रेश होकर आइए और चाय पी लीजिए, नहीं तो चाय ठंडी हो जाएगी।’

जेठ जी जैसे ही बाथरूम गए, मैं पेंटी खोजने लगी, मुझे ज्यादा शक जेठ पर ही था, पर पेंटी कहीं दिखाई नहीं दे रही थी।
तभी मेरी निगाह बेड के नीचे गई… और यह क्या… मेरी पेंटी तो यहाँ है!
और मैंने लपक कर जैसे ही पेंटी उठाई, मेरी उंगली में कुछ गीला सा लगा।
यह क्या पूरी पेंटी जेठ जी के वीर्य से सनी हुई थी और एक मादक गंध उसमें से निकल रही थी।
मैंने ना चाहते हुए पेंटी को मुँह के पास ले जा कर जीभ से चाट ली और मेरा इतना करना कि मेरे जिस्म में एक रोमांच और जेठ जी के लण्ड से निकलते वीर्य की कल्पना घूमने लगी।

तभी मुझे बाथरूम से जेठ के निकलने की आहट हुई और मैं घबराकर पेंटी वहीं फेंक कर साँसों को नियंत्रित करने लगी।
और जैसे जी जेठ जी बाहर आए, मैं जेठ जी को चाय देकर तुरन्त वहाँ से भाग आई।
अब मेरे दिमाग में वही सब नजारा चलने लगा, मेरी पेंटी जेठ के रूम में मिलना यह साबित कर रहा था कि जेठ जी मेरे रूम में आए थे और मेरी खुली चूत का दर्शन करके मेरी पेंटी को जानबूझ कर यहाँ से लेकर गए, और फिर वासना के नशे में लण्ड को मुठ मार कर वीर्य मेरी पेंटी में गिराकर लण्ड को राहत दिलाई।

मैं यही सोच रही थी कि तभी दरवाजे पर आहट हुई, मैंने देखा तो जेठ जी खड़े थे।
मुझे देख कर बोले- क्या सोच रही हो?
मैं हड़बड़ा कर बोली- कुछ नहीं, आप कब आए? और चाय पी ली?
‘मैंने तो चाय पी ली, पर तुमने शायद चाय नहीं पी क्योंकि तुम चाय को मेरे रूम में ही छोड़ कर चली आई। तुम किस ख्याल में खोई हो? क्या बात है?’

मैं कैसे कहती कि मेरी पेंटी आप के रूम में कैसे पहुँची और आपने मुझे पूरी नंगी देख लिया है, मैं बोली- जी, वो मैं भूल गई थी, मेरे सर में थोड़ा दर्द था तो मैं दवा लेने चली आई।

मैं जेठ जी को ऐसा बोल कर उनके रूम में कप लेने गई और जेठ भी मेरे पीछे ही अपने रूम में आए।
और मैं जैसे ही कप लेकर घूमी, मेरे जेठ अपने हाथ में मेरी पेंटी घुमा रहे थे- नेहा, तुम्हारा यह सामान मेरे पास है, शायद इसी की तलाश में हो?
‘न न् न् ने नहीं प्प्प्प्प् पर… यह आप के पास कैसे आई?’ हकलाते हुए मैं बोली।

तभी जेठ जी मेरे पास आकर मेरी बांह पकड़ कर बोले- मेरी जान, तुम जब अपनी चूत खोल कर सोई हुई थी, तब मैं तुम्हारे कमरे में गया था और तुम्हें उस हाल में देखकर मेरा मन तुम्हारी चूत चोदने का किया पर मैं मन मारकर तुम्हारी चूत छोड़ कर तुम्हारी पेंटी
को ही लेकर अपना काम किया और मन की तसल्ली कर ली।

‘आप यह क्या कह रहे हैं? आपको शर्म नहीं आई? आप मेरे जेठ हैं!’
मैं कुछ और कह पाती तभी जेठ जी ने मेरी बाजू पकड़ कर मुझे खींच कर अपने सीने से लगा लिया और बोले- मुझे क्यूँ तड़पा रही हो नेहा प्लीज? मैं बहुत प्यार करता हूँ तुमसे!’ कहते हुए मेरी लबों को चूमने लगे।

मैं किसी तरह अलग हुई- यह आप मेरे साथ क्या कर रहे हैं? मैं आपके छोटे भाई की पत्नी हूँ!
मैं जान बूझ कर त्रिया चरित्र फैला रही थी, जबकि मेरा मन खुद चुदने का कर रहा था, मेरी चूत सुबह से पानी पानी हो रही थी और
जब से मैंने अपनी पेंटी जेठ जी के रूम में देखी थी, मेरी चूत की कुलबुलाहट बढ़ गई थी।
पर मैं इतने आसानी से जेठ जी के हाथ नहीं आना चाह रही थी, और मैं वहाँ से पलट कर भागने लगी पर आज शायद मेरी चूत जेठ के लण्ड से बच नहीं पाएगी।

मुझे जेठ जी ने अपनी बाजुओं में दबोच लिया।
‘आहह्ह्ह… मुझे छोड़ो!’
पर आज जैसे कसम खा कर आए थे जेठ जी अपने भाई के पत्नी के बुर में लण्ड डालने की!
मैं छटपटाती रही पर मेरी एक नहीं चली और जेठ ने मुझे ले जा कर बेड पर पटक दिया, और मेरे ऊपर छा गए।

‘आहह्ह्ह छोड़ो ना… आप मुझे बरबाद ना करो!’
पर मेरी एक ना सुनी और सिर्फ इतना कहा- नेहा, मेरी पत्नी के गुजरने के बाद मैं चूत के लिए तरस रहा हूँ, मेरे ऊपर कृपा करो, मैं कोई जबरदस्ती नहीं करूँगा, पर आज तुम अपनी चूत मुझे देकर मेरे तड़पते लण्ड को कुछ राहत दो प्लीज!

उनका इतना कहना था कि मैं झूठा प्रतिरोध जो कर रही थी, बंद कर दिया लेकिन मैं शर्म के कारण जेठ का साथ नहीं दे पा रही थी, बस जिस्म को ढीला छोड़ दिया।
मेरे ऐसा करने से जेठ जी को लगा कि मैंने उनको अपनी चूत चोदने की अनुमति दे दी है।
वो बोले- मैं तुमको अच्छा नहीं लगता?
मैं बोली- ऐसी कोई बात नहीं है, आप मुझे अच्छे लगते हो लेकिन मैंने कभी आपके बारे में ऐसा कुछ सोचा नहीं है, और ऊपर से मैं आपके छोटे भाई की बीवी हूँ, हमारा आपका रिश्ता जेठ-बहू का है।

वो बोले- तुम मेरे छोटे की बीवी हो तो मुझे तुमसे प्यार करने का हक नहीं है?
ऐसा कहते हुए जेठ ने मुझे बाहों में भर कर मेरे होंठों का रसपान करने लगे और बोले- मैं तुमसे प्यार करता हूँ, इसलिए मुझे तुम्हारी चूत चोदने का पूरा हक है। इसमें कुछ बुरा नहीं है, बस जान, आज मुझे अपनी चूत दे दो।

यह सुन कर मैंने भी जेठ जी को अपने बाँहों में भीच लिया।
मेरे ऐसा करते जेठ जी ने खुश होकर एक हाथ से मेरी चूत दबा दी।
‘आहह्ह्ह सिई… और मैंने जेठ जी की बाहों में कसमसाते हुए अपनी पकड़ ढीली छोड़ दी।
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जेठ जी ने अपना चेहरा ऊपर करके मेरे होठों को चूम लिया और हमारी साँसें आपस में टकराने लगी, मेरे अंदर एक अजीब सा नशा होने लगा था, मैं अपनी आँखें बन्द करके अपने होंठ खोल कर जेठ से चुदने के लिए उतावली होकर अपने होठों का अमृतपान कराने लगी। नीचे मेरी बुर के होठ खुल बंद होकर अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे, लग रहा था मानो कह रहे हो ‘जेठ जी, आओ और चूम लो मुझे!’

तभी जेठ जी अपने कपड़े निकालकर नंगे हो गए और मेरे भी कपड़े निकालने लगे।
जैसे ही मेरे नीचे के भाग को नंगा किया, मेरी मस्त बिना पेंटी के चिकनी बुर देखकर जेठ जी मेरी चूत पर मुँह रख कर चाटने लगे और बोले- नेहा, क्या मस्त चूत है तेरी, सालों के बाद चूत के दर्शन हुए!
और मेरी बुर को खींच-खींच कर चूसने लगे।

और मैं जेठ का साथ और एहसास करके सिसकारने लगी, आहह्ह्ह सिईईई आहह्ह्ह करती रही और जेठ जी मेरे चूतड़ों को भींच कर मेरी चूत पी कर मेरी बुर की प्यास बढ़ाने लगे।
कुछ देर बाद जेठ जी मेरी बुर को चाटना छोड़कर ऊपर की तरफ मेरी नाभि पेट और छाती को चूमते हुए मेरे गले को चूमने लगे।
इधर नीचे उनका लण्ड मेरी बुर को छू रहा था और मैं सेक्स की खुमारी में अपनी चूत उठाकर लण्ड पर रगड़ते हुए बोलने लगी ‘आहह्ह्ह सिईईई… अब मत तड़पाओ… डाल दो मेरी बुर में अपना लण्ड और बना लो मुझे अपनी बीवी… आहह्ह्ह जान पेलो मुझे!

फिर जेठ ने अपना थूक निकाल कर अपने लंड के सुपारे पर लगाया और अपने लण्ड के फ़ूले सुपारे को मेरी चूत पर लगा कर मेरे ऊपर लेट गए और मैं भी अपने पैर खोल कर ऊपर उठा कर जेठ जी के लण्ड को लेने के लिए दांत भींच कर धक्के का इंतजार करने लगी।
तभी जेठ जी ने एक जोर का धक्का मार कर लण्ड का सुपारा अंदर कर दिया।
‘आहह्ह्ह सीसी… आहह्ह्ह उफ मारो मेरी चूत… पूरा लंड मेरी चूत में डाल दो…’

और जेठ ने शॉट पर शॉट लगा कर पूरा लण्ड मेरी चूत में डाल मेरी चूत चोदने लगे और मैं जेठ जी के हर शॉट पर चूत उठाकर लण्ड लेते हुए चिल्लाने लगी- चोद और जोर जोर से चोद… आज छोड़ना नहीं मेरी चूत को… अहह्ह्ह सी… सी सी आहह्ह्ह… मेरी जान, तेरे लंड ने मेरी चूत को पसंद किया है, चोऊऊ… चोद इसको आज, इसकी गर्मी अपनी लंड से निकल दो, फाड़ दे मेरी चूत को हाह्हआआ!

और जेठ भी लण्ड पेलते हुए ‘ले मेरी जान… खा मेरा लण्ड, तू रानी है मेरी, आहह्ह्ह ले मेरी जान चूत में लण्ड… आहह्ह्ह’ और पलट कर मुझे ऊपर कर लिया और मैं जेठ जी के लण्ड पर उछल उछल कर चुदने लगी।

मैं झरने के करीब पहुँच कर उनसे चिपक कर झड़ने लगी- आहह्ह्ह सीसी सीईईईई आहह्ह्ह… मैं गई आहह्ह्ह… सीसी!
मैं झड़ कर चिपक गई।
तभी जेठ मुझे नीचे लेकर शॉट लगाकर लण्ड पेलते हुए वीर्य मेरी चूत में गिराने लगे- आहह्ह्ह नेहा, मैं भी गया!
आहह्ह्ह सीसीई कहते हुए हम दोनों चिपक कर आराम करने लगे!

6
मैं चूत में लण्ड लिए हुए अभी लेटी थी और जेठ जी बड़े प्यार से मेरी पीठ सहला रहे थे, जेठ के चेहरे पर भी एक असीम आनन्द और संतुष्टि के भाव थे।
वासना का एक दौर तो खत्म था पर हमेशा के लिए जेठ से सेक्स का खेल शुरू हो चुका था और मैं भी जेठ जी से चुदा कर खुश थी, मुझे एक और बात की खुशी थी, घर में मेरी चूत को नया लण्ड मिल गया था।

तभी जेठ जी ने कहा- नेहा, तुमने मुझे आज जो खुशी दी है मैं इसका एहसान नहीं चुका सकता, आज से तुम मेरी बीवी हो, आज
तुमको चोद कर नेहा, मेरा लण्ड निहाल हो गया मेरी जान!

‘क्या भाई साहब? यह आप क्या कह रहे हो? इसमें एहसान की क्या बात है, आप मुझसे प्यार करते हो तो यह मेरा भी फर्ज है कि मैं भी आप को हर खुशी दूँ! आपको मेरी चूत कैसी लगी?’
‘बहुत अच्छा मेरी जान, मेरी रानी, अब तो तुम्हारी चूत हमारी है! बोलो है ना हमारी?’
‘हाँ भाई साहब यह आपकी है, जब चाहो आप इसे चोद सकते हो, पर मेरे पति के सामने वैसे रहना जैसे पहले थे, मैं नहीं चाहती कि उनको कुछ पता चले!’

मैं भी यही चाहता हूँ मेरी रानी!’ कहते हुए जेठ जी मुझे अपनी छाती से लगाकर चूमने लगे, तभी मेन डोर की घन्टी बज उठी और हम दोनों उछल पड़े, मैं बोली- आप जाकर दरवाजा खोलो, मैं अपने कमरे में जाती हूँ।
यह कहते हुए मैं अपने कपड़े लेकर भागी और रूम में पहुँच कर सीधे बाथरूम में घुस गई, जल्दी से फ्रेश होकर बाहर आई, फिर पूरी तरह तैयार होकर जब मैं रूम से निकली तो देखा कि जेठ जी से कोई मिलने आया है, उनके साथ का कोई अफसर था।

मैंने चाय नाश्ता ले जा कर टेबल पर रख दिया पर वह व्यक्ति बहुत हेन्डसम था, उसे देखते ही एक बार फिर मेरी चूत मचल उठी, मैं जितनी देर तक चाय निकालती रही उससे नयना चार करती रही।
वह भी कम नहीं था, वह भी जेठ जी से निगाह बचा कर मुझे घूर रहा था।

तभी किसी काम से जेठ जी अंदर रूम में गए कि वह एकाएक मेरी तारीफ कर बैठा- आप बहुत सुन्दर हो भाभी जी!
वह मुझे जेठ जी की पत्नी समझ रहा था शायद!
उसे जब चाय देने लगी तो उसका ध्यान केवल मेरी चूचियों पर था, मैं उसे ऐसा करते देख मुस्कुरा करके वहाँ से किचन में चली आई।

कुछ देर बाद मुझे जेठ जी ने बुलाया तो मैं वहाँ गई तो जेठ जी बोले- नेहा, आकाश कब आ रहा है? उसे फोन कर दो कि आज जल्दी आ जाए, आज मेरे अजीज दोस्त डिनर यहीं करेंगे!

‘जी भाई साहब!’ मेरे मुख से ये शब्द सुन कर वह मेरी तरफ प्रश्न वाचक निगाह से देखने लगा।
मैं वहाँ से जाने लगी, तभी जेठ जी ने कहा- नेहा, ये मिस्टर नायर है, इनका तबादला इसी शहर में हुआ है, अभी यह यहाँ नए हैं, जब तक इनका इंतजाम नहीं हो जाता, यहीं रहेंगे!
‘नायर जी, यह मेरे छोटे भाई की वाईफ है!’

मैंने नमस्ते कहा, उन्होंने भी नमस्ते कहा।
फिर मैं वहाँ से रूम में आकर पति को फोन कर के जानकारी दी, वे बोले- तुम सब्जी वगैरह लेकर खाना तैयार करो, मैं आता हूँ।

मैंने किचन में जाकर देखा कि क्या है और क्या नहीं है। फिर मैं भाई साहब से बोली- मैं सब्जी लेने जा रही हूँ।
मेरे जेठ बोले- तुम किचन में जाओ, मैं सामान ले आता हूँ।
मैं जेठ जी को बैग देकर चली आई, जेठ जी सामान लेने चले गए और मैं किचन का काम करने लगी।

इस समय मैं और नायर घर में अकेले थे, नायर की निगाह में मैं अपने लिए वासना के डोरे देख चुकी थी और यह भी महसूस किया था कि नायर एक रंगीन मिजाज के शख्स हैं, उनका व्यक्तित्व उनकी निगाह किसी को आकर्षित कर सकती है, मैं तो लण्ड चूत में लेते – लेते लण्ड की दीवानी ही हो चुकी थी, मेरा देर तक उनका देखना मेरी चूत कि आग भड़का रही थी, मैं इन्हीं ख्यालों में डूबी थी कि नायर ने मेरे पीछे से आवाज दी- मिस नेहा!

और मैं आवाज सुन कर चौंकते हुए पीछे हुई!
पर यह क्या? नायर बिल्कुल मेरे करीब था और मैं उससे पूरी तरह सट गई एक और झटका खा गई।
और जैसे ही मैंने दूर होना चाहा, मेरा पैर फिसला और मैं गिरने लगी पर मैं इस बार नायर की बाहों में थी, नायर ने मुझे पकड़ लिया था और मैं जैसे सुध बुध खोए नायर से चिपकी रही।

मेरा ध्यान तब टूटा जब नायर का लण्ड फुफकार कर मेरी चूत पर चुभने लगा, वैसे ही मुझे अपनी दशा का ध्यान आया, मैं नायर से छुट कर दूर खड़ी होकर गुस्से से बोली- नायर जी, यह क्या है? आप यहाँ क्या करने आए हैं? और कोई ऐसे पीछे खड़ा होकर पुकारता है? मैं हड़बड़ा गई, गिर जाती तो?

मैं जैसे ही चुप हुई, नायर बड़ी मासूमियत से बोला- मेरे रहते आप कैसे गिर जाती नेहा? पर मेरा ऐसा करने का कोई इरादा नहीं था,
मैंने दो तीन बार बाहर से ही पुकारा, पर आप पता नहीं किस ख्याल में डूबी थी, आपने सुना ही नहीं तो मुझे करीब आकर कहना पड़ा और आप मेरी वजह से डर गई, आई एम सो सॉरी नेहा! मुझे पानी चाहिए था!
कह कर नायर बाहर चला गया।

जब मैंने पानी ले जा कर दिया तो वह बोला- नाराज हो क्या? आप हो ही इतनी खूबसूरत कि हर कोई आपको किसी बहाने देखना चाहे मैं भी अपने को रोक नहीं पाया था!
मैं कुछ नहीं बोली और वहाँ से हटने लगी।
तभी उसकी एक आवाज और कान में पड़ी- तुम बहुत हॉट हो… पर मेरी किस्मत में कहाँ?

ये शब्द बोल कर नायर ने छुपे तौर पर सब जाहिर कर दिया, अब तो मुझे पूरा मौका मिल गया उसका जवाब देने का- नायर साहब, लक्ष्य पाने से पहले हार मान लेने वाले का किस्मत साथ नहीं देती… सफलता पाने के लिए प्रयास किया जाता है!
मैं वहाँ से चली आई, तब तक जेठ जी सामान लेकर किचन में आ गए और बैग मुझे देते हुए बोले- जान, रात में आ जाना, तुमको चोदने का बहुत मन कर रहा है, एक बार तुम्हारी बुर चोदने से तुमको चोदने की लालसा बढ़ गई है। मैं रात को इंतजार करूँगा।

मैं कुछ कहती, जेठ जी बाहर चले गए, मैं मन मार कर खाना तैयार करने लगी, पति भी आ चुके थे, सबने एक साथ खाना खाया और नायर की सोने की व्यवस्था जेठ जी के रूम में की गई।

मैं मेन गेट को लॉक करके जैसे ही रूम में जा रही थी, मुझे जेठ जी एक तरफ ले गए और बोले- मैं इंतजार करूँगा, तुम आना!
‘पर नायर है, कैसे होगा?’
जेठ जी बोले- तुम चुपचाप आधी रात को आना, हो जाएगा!
और जेठ जी चले गए।

मैं अपने रूम जाकर पूरी तरह नंगी होकर पति के बगल में लेट गई, पति तो मेरी चूत पेलने के लिए पहले से ही बिना कपड़ों के लेटे थे।
फिर हम लोग एक दूसरे से गुत्थम गुत्था होकर चूमने चाटने लगे, मैं पति का लण्ड मुँह में लेकर चूसने लगी और पति एक हाथ से मेरी चूत मसकते हुए लण्ड लालीपाप की तरह चुसवा रहे थे।

एकाएक पति ने कहा- लग रहा है कि किसी ने तुम्हारी चूत चोदकर गरमी निकाल दी है?
उनके इतना कहने से मैं डर गई पर बात बना कर बोली- आपके सिवा है ही कौन जो मेरी चूत की गरमी निकाले?
उसी समय पति ने मुझे नीचे लेकर मेरी चूत थोड़ी चाट कर मेरी बुर पर सीधे चढ़ाई कर दी, मेरी बुर पर लण्ड रखकर एक ही बार में लण्ड मेरी बुर में पेल दिया।

और मैं सोचने लगी कि मेरी पति से चुदाई के बाद जेठ से फिर चूत चुदेगी और वो भी नायर के रहते!
तो इस सोच से मैं ज्यादा गर्म होकर बुर उछालते हुए ‘आहह्ह सीसीसीइइइ आहह्ह्ह… चोद मेरे सनम, दिन की अधूरी चुदाई को मेरी चूत चोद कर पूरा करो… आहह्ह्ह ले पेल मेरी बुर… आहह्ह्ह!

और पति भी खूब गर्मजोशी से मेरी चूत पर शॉट लगा रहे थे और मैं बुर उठाकर पूरी कोशिश कर रही थी, लण्ड मेरी चूत की पूरी दीवार भेद कर मेरी बुर को चोद रहे पति भी मेरी चूची हाथों से गूंथते हुए मेरी चूत पर थाप पर थाप लगा रहे थे और मैं हर थाप को यही सोच रही थी कि यह जेठ जी का, अब नायर का थाप है!

मेरी चूत लण्ड खाते खाते भलभला कर झड़ने लगी- आहह्ह्ह सीइइइ उइइइ मम्म्म्मा आहह्ह्ह!
और मैं पति को भींच कर झड़ते हुए बुर पर लण्ड के धक्के खाती रही।
तभी पति ने बुर से लण्ड बाहर खींच कर मेरे मुँह में दे दिया और मैं लण्ड चाटने लगी और लण्ड मेरी मुँह में ही फायर हो गया।

पति ने झड़ते हुए लण्ड को गले तक सरका कर के वीर्य पूरा मेरे गले से नीचे कर दिया!!

7

पति मेरे मुँह में झड़ने के बाद बेड पर सोकर अपनी सांसों को नियंत्रित करने लगे, मैंने पति के वीर्य की एक बूंद को भी बर्बाद नहीं की, सब चाट कर साफ करके पति से चिपक कर सोने लगी।
कुछ देर बाद मैं एक बार फिर पति के लण्ड से खेलने लगी पर पति मेरी पहली चुदाई से थक चुके थे, बोले- जान सो जाओ, मुझे नींद आ रही है!
‘प्लीज जानू, एक बार और मेरी चूत चोदो, मैं एक बार और चुदना चाहती हूँ।’
‘नहीं मेरी जान, मुझे जोर की नींद आ रही है! प्लीज सो जाओ!’

मैं पति को दोबारा चोदने के लिए जानबूझकर कर कह रही थी, मुझे भी पति से चूत चुदवाने का मन नहीं था, मुझे तो जेठ जी का
लण्ड भा गया था, मैं भी पति के ना कहने पर थोड़ा नाराजगी जाहिर करके सोने की एक्टिंग करने लगी।

काफी रात बाद मैं उठकर बाथरूम गई और सुसू करने लगी।
शर्र… शर्र… की तेज आवाज जब मेरे कानों में पड़ी तो मेरी सेक्स भावना जागने लगी और मैं सुसू करने के बाद बुर को हाथ से सहलाते हुए बाहर निकली और नाईट गाउन पहन कर पति को देखा, वो गहरी नींद में सोए थे, मैं खुली चूत लिए- बिना ब्रा, पेंटी के ही दरवाजे की तरफ बढ़ी और सावधानी के साथ बाहर निकल कर दरवाजे के बाहर से बंद कर के मैं जेठ के रूम की तरफ चली गई, और मेरा हाथ जैसे ही दरवाजे पर पड़ा दरवाजा खुलता चला गया।

कमरे में एकदम घुप अंधेरा था कुछ दिख नहीं रहा था, पर मेरा घर होने के कारण मैं जानती थी कि कौन सी चीज कहाँ पर है और रूम में जेठ के और नायर के सोने की व्यवस्था अलग की थी, चारपाई पर नायर जी को और बेड पर जेठ जी!
वैसे भी जेठ रोज बेड पर सोते हैं !

मैं बेड की तरफ बढ़ी, शायद जेठ जी मेरा इंतजार करते सो चुके थे, मैं भी उनके पास जाकर लेट गई, जेठ जी भी पूरे कपड़े निकाल कर लोअर पहन कर सो रहे थे, मैं बड़ी सावधानी से बिना कोई आहट किए लोअर के ऊपर से जेठ जी के लण्ड को सहलाते हुए जेठ जी को
चूमने लगी।

जेठ जी नींद से जाग चुके थे पर अपनी तरफ से कोई हरकत नहीं कर रहे थे। मैं पागलों की तरह चूत जेठ जी की जांघ से रगड़ने लगी और फुसफुसा कर बोली- क्या हुआ मेरे जानू? गुस्सा हो गए क्या? देखो ना तुम्हारी बुर कितनी प्यासी है, इसको आपका लण्ड चाहिए जान, मेरी चूत में लण्ड डाल कर मेरी चुदाई करो, देखो ना मैं सबको छेड़कर इतनी रात बुर पेलवाने आई हूँ, चोदो ना आहह्ह जानू, लो मेरी छातियाँ पियो!
और मैंने अपना एक स्तन जेठ जी के मुँह में दे दिया।

जेठ जी खींच खींच कर चूसने लगे और मैं जेठ के बालो को सहलाते हुए चूची चुसाई करती रही।
तभी जेठ ने मुझे पलट कर मेरे ऊपर आकर बैठ गए।
मैं तो पहले से ही पूरी नंगी थी, बस एक गाउन पहने थी, जेठ जी मेरी चूची मसलते हुए अपना मुँह मेरी चूत पर लगा कर मेरी चूत का रसपान करने लगे।

और जैसे ही जेठ के होंठ मेरी प्यासी चूत पर गए, मैं मचल उठी ‘आहह्ह सीइइइ’ मेरी मादक सिसकारी कुछ तेज निकल गई, जेठ जी ने अपना हाथ मेरे मुँह पर रख कर इशारा किया कि उनके और मेरे सिवा कोई और है!
और फिर मेरी चूत को चपड़ चपड़ चाटने लगे और मैं चूत उठकर चटवाती रही।
मैं सिसकारियों को अपने होठों से दबाकर जेठ से अपनी बुर की सन्तरे की सी फांकों चुसवा रही थी।

तभी जेठ चूत चाटना छोड़कर नीचे खड़े हो गए और मुझे खींच लण्ड को मेरे मुंह में दे दिया, मैं मुँह खोल कर जेठ के लण्ड के सुपारे पर जीभ फिराते हुए लण्ड पूरे मुँह में भरकर आगे पीछे करके चूसती रही, कभी अंडे को चाटती तो कभी सुपारे को और कभी पूरा लण्ड मुँह में ले लेती और जेठ जी मुँह में ही धक्का लगा देते, जैसे मेरा मुंह नहीं चूत हो!
और मैं ‘गुग्ग्ग्ग्गुगू’ करते हुए लण्ड चूसती रही। लण्ड चाटते हुए मुझे जेठ का लण्ड कुछ मोटा लग रहा था।

और तभी जेठ ने अपना लण्ड मेरे मुँह से निकाल कर मुझे बेड पे लिटा कर मेरी टाँगें खोल कर और उनके बीच बैठकर अपने लंड को
मेरी गर्म चूत पर रखकर ऊपर नीचे करते हुए रगड़ने लगे।
मैं सिसयाते हुए बोली- आहह्ह्ह सीईई मेरे चूत राजा, आपका लण्ड तो मेरी एक ही चुदाई करके फ़ूल कर मोटा हो गया है।
पर जेठ जी ने मेरी बातों पर ध्यान दिये बिना मेरी चूत को चौड़ा कर के एक धक्का मारा और आधा लण्ड मेरी गर्म चूत में घुसा दिया।

‘आहह्ह सीइइ उउफ्फ़’ करते हुए मैं अपने चूतड़ उछालने लगी और जेठ ही ने एक और तेज शॉट मार कर अपना पूरा लण्ड अंदर कर दिया और मैं आहह्ह कर उठी।
पर जेठ जी ने मेरे मुँह पर हाथ रख दिए और मेरी आहह्ह अंदर ही रह गई और जेठ जी पेलाई चालू करके मेरी बुर की नस नस को चटकाते हुए मेरी बुर चोदते हुए जब अपनी बाहों में लिया तो मुझे कुछ अजीब सा लगा पर मुझे चुदाई के सिवा कुछ नहीं सूझ रहा
था।

जेठ जी मेरे गालों को चूमते हुए लण्ड बुर में पेले जा रहे थे, मेरी चूत जेठ जी के लण्ड के हर शॉट के साथ पानी फेंक रही थी और मैं मदहोश होकर अपनी चूत उठा उठा कर चुदवाने लगी, मेरे हिलते उरोजों को जेठ जी बेरहमी से मसलते हुए लम्बे-लम्बे धक्के मारते हुए मेरी चूत को चोदते जा रहे थे और मैं ‘आहह्ह्ह सीई चोदो मेरे राजा… अब तो मैं आपकी बीवी बन गई हूँ, चोद चोद कर मुझे अपनी रखैल बना लो आहह्ह्ह आआहहह चोद बहू की चूत… ले मेरे राजा मेरी चूत चोद आहह्ह्ह याआआ राजाआ और घुसाआ अपनाआआ लण्ड’
और जेठ जी बिना कुछ बोले मेरी चूत चोदे जा रहे थे।

और फिर मुझे घोड़ी बना कर मेरी चूत में लौड़ा पेलने लगे, मैं हर शॉट पर करहाते हुए चूत मरवाती रही।
तभी एकाएक मेरी चूत पानी छोड़ कर झड़ने लगी और मैं घोड़ी बनी चूत में जेठ जी के लण्ड से चुदाते हुए जांघें भींचकर झड़ने लगी ‘आहह मैं गईइई आहह्ह सीईईई उफ्फ्फ…’

और मेरी झड़ती बुर पर जेठ के लण्ड के झटके बढ़ते गए और वो भी पंद्रह बीस शॉट मारते हुए एक शॉट घोड़े की तरह लगा कर हिनहिनाते हुए अपना बीज मेरी चूत में बोने लगे।
घोड़ी की चूत चुद कर शान्त हो गई थी, मेरा घोड़ा भी झड़कर मेरी चूत में आखिरी बूंद भी छोड़कर बेड पर लेट गया।
फिर मैं उठी और जेठ के लण्ड को चाट कर साफ किया और गाऊन पहन कर जेठ का माथा चूम कर अपने रूम में जाकर पति से चिपक कर सो गई !!

8
अब तक आपने पढ़ा..

जैसे ही उनके होंठ मेरी प्यासी चूत पर गए, मैं मचल उठी ‘आहह्ह सीइइइ’ मेरी मादक सिसकारी कुछ तेज निकल गई, जेठ जी ने अपना हाथ मेरे मुँह पर रख कर इशारा किया कि उनके और मेरे सिवा कोई और है और फिर मेरी चूत को चपड़ चपड़ चाटने लगे और मैं चूत उठकर चटवाती रही।
मैं सिसकारियों को अपने होठों से दबाकर जेठ से अपनी बुर की सन्तरे की सी फांकें चुसवा रही थी।

अब आगे..

रात में जेठ से चुदने का नतीजा सुबह मेरी नींद पति के जगाने पर खुली.. और मैं सीधे बाथरूम में घुस गई और नहाकर फ्रेश होकर मैं रसोई में चली गई।

क्योंकि पति को ऑफिस जाने के लिए देरी हो रही थी और उधर जेठ के लिए भी चाय-नाश्ता बनाना था।
तभी जेठ जी किसी काम से रसोई में आए.. पर वह जैसे मुझसे गुस्सा हों.. क्योंकि वह कुछ बोल नहीं रहे थे।
मैं बोली- क्या हुआ मेरे जानू.. रात में तो खूब मस्ती से मेरी..

तभी मेरे नजदीक आकर जेठ जी मेरी बात को बीच में काटते हुए बोले- मत कहो मुझे जानू.. रात को मैं इन्तजार करते-करते थक गया और फिर ना जाने कब मुझे नींद आ गई.. पर तुम तो आई ही नहीं?

‘ओ माई गाड.. फिर मुझे रात में किसने चोदा.. और अगर जेठ जी मेरी बात को रोककर यह बात ना कहते.. तो मैं यही बोलने जा रही थी कि रात में मेरी चूत चोदकर फुला दिए हो तो.. अब क्यों मुँह फुलाकर घूम रहे हो.. और अगर मैं ऐसा बोल देती तो क्या होता.. यानि मेरी बुर को नायर ने चोदा.. साला बोला भी नहीं बस मेरी चूत चोदता रहा।’

फिर मैं बात बनाते हुए बोली- भाई साब.. मैं बस डर के मारे नहीं आई.. कमरे में नायर जी भी सो रहे थे.. जाग जाते तो क्या होता? और मैं यह भी तो नहीं जानती थी कि आप कहाँ सोए थे।
मैं यह जानबूझ कर बोली ताकि शक को कन्फर्म कर लूँ..

‘मैं तो वहीं दरवाजे के पास ही चारपाई पर सोया था कि तुम को चोदकर इधर से ही बाहर निकाल देता.. बिस्तर की तरफ जाना ही नहीं पड़ता.. इसलिए मैंने नायर को बिस्तर पर सुला दिया था।’

मैं बात को बनाकर बोली- लो अच्छा ही हुआ जो मैं नहीं आई.. नहीं तो आप की जगह नायर मेरी चूत चोद देता.. मैं तो बिस्तर पर ही जाती और वहाँ तो नायर थे।
अब मैं कैसे कहती कि मेरी चूत की चुदाई आप के गफलत में नायर ने कर दी है।
जेठ- हाँ यह तो मैं सोचा ही नहीं और मैंने बताया भी नहीं कि मैं कहाँ सो रहा हूँ.. तुम ठीक नहीं आई.. नहीं तो नायर चोद देता और मेरी तुम्हारी पोल खुल जाती.. कि मैं तुमको चोदता हूँ।

मैं मन ही मन बड़बड़ाई कि पोल और चुदाई दोनों खुल गई है.. बचा ही क्या है..
‘जी भाई साब.. मैं इसी लिए नहीं आई.. आज आप एक काम कीजिए.. आज आप बाहर सोना और नायर जी को अन्दर सुलाना.. कोई डर भी नहीं रहेगा और हम लोग खुल कर चुदाई का मजा भी ले लेगें..’
‘ओके मेरी जान.. आज मैं बाहर ही सोऊँगा..’ यह कहते हुए जेठ जी बाहर निकल गए।

मैंने नाश्ता टेबल पर लगा दिया, पति पहले से ही बैठे थे.. तभी जेठ और नायर भी आ गए।
मैंने नाश्ता लगाते हुए गौर किया कि नायर कुछ ज्यादा ही खुश था..

सब लोगों ने नाश्ता कर लिया और पति के जाने के बाद नायर जेठ से निगाह बचाकर मेरे करीब आकर बोला- नेहा जी रात के लिए थैंक्स..
और फिर नायर और जेठ दोनों किसी काम से बाहर चले गए।

मैं घर में बैठ कर रात की नायर की चुदाई को याद कर रही थी कि ये साला नायर तो मस्त है.. उसे देख कर तो मेरी बुर चुदने के लिए सरसरा रही थी.. पर मैं नायर का लण्ड इतना जल्दी बुर में घुसवा लूँगी.. यह मैंने सोचा तक नहीं था।
नायर ने मेरी बुर की तो मस्त चुदाई की.. पर यह ठीक नहीं हुआ। वह मेरे और जेठ के सम्बन्ध को जान चुका था कि मैं उससे नहीं जेठ से चुदने गई थी.. गफलत से उससे चुद गई।
अब देखो नायर करता क्या है?!

मैं कोशिश करके उसे यह बताना चाहूंगी कि मैं तुमको देख कर रह नहीं पाई और रात चुदने चली आई.. यानि नायर जी आपके लण्ड से मैं खुद चुदी हूँ.. मेरा जेठजी से कोई सेक्स सम्बन्ध नहीं है।
बस यही सब सोचते हुए मुझे हल्की झपकी लग गई।

घन्टी की आवाज सुन कर उठी और गेट खोला तो जेठ और नायर थे, नायर मुझे देख कर मुस्कुराते हुए अपने होंठ पर जुबान फेर रहा था।
मैं वहाँ से हट गई और लंच तैयार करके जेठ और नायर को खाना खिलाकर फ्री होकर अपने कमरे में बैठ कर मोबाइल पर गेम खेल रही थी.. तभी आहट से मेरा ध्यान दरवाजे की तरफ गया।

नायर अन्दर आ रहा था.. वह सीधे मेरे बिस्तर के पास आकर मुझे एक पैकेट थमाकर बोला- नेहा जी.. यह आपका गिफ्ट है और हाँ आज रात मैं फिर इंतजार करूँगा।
मैंने आपके जेठ से बोल दिया कि बाहर मेरा बेड लगा देना.. मैं अकेला रहूँगा.. आप आएंगी ना.. मैं इंतजार करूँगा..

यह कहकर नायर बाहर चला गया.. मैंने पैकट खोल कर देखा कि दो सैट ब्रा-पैन्टी के थे, बिल्कुल लेटेस्ट डिजाइन के थे और साथ में एक कागज था जिस पर लिखा था- आज रात अपनी चूचियाँ और चूत पर.. इसमें से कोई एक जरूर पहन कर आना.. आई लव यू.. आपकी चूत का दीवाना- नायर।
मैं बस मुस्कुरा दी..

रात सब खा-पीकर जब सोने जाने लगे और मैं लाईट ऑफ कर रही थी.. तभी मेरी बगल से जेठ जाते हुए बोले- मैं कमरे में रहूँगा.. नायर बाहर रहेगा..

वे कहते हुए चले गए.. मैं कैसे कहती कि नायर सब बता चुका है और आपकी बहू की बुर पेल चुका है और आज रात दुबारा अपने लण्ड को आपकी बहू की बुर में डालना चाहता है।
मैं भी कमरे में गई तभी पति का फोन आया- मैं आज नहीं आ पाऊँगा.. तुम मेरा इन्तजार मत करना।
वे बोले और फोन रख दिया।

मैं कुछ देर बाद जेठ के कमरे में जाकर बोल आई- मैं आऊँगी.. पर आप अन्दर-बाहर मत करना.. नहीं तो नायर को शक होगा।
मैं इतना कहकर चली आई और आराम करने लगी।
अब मैं यही सोच रही थी कि पहले किसके पास जाऊँ.. क्या नायर से फिर से चुदना ठीक रहेगा?

यही सोचते हुए मुझे ना जाने कब नींद आ गई। फिर अचानक मेरी नींद खुलने का कारण बना किसी का हाथ… जो मेरे जिस्म पर चल रहा था।
‘कक्क्क्कौन.. हह्ह्ह्ह्है?’
‘मम्म्मैमैं.. ह्ह्ह्हूं.. नायर..’
‘अरे आप.. मेरे जेठ जी ने देख लिया.. तो..?’
‘नहीं मेरी रानी.. वह सो रहे हैं!’ और मेरी नाईटी ऊपर करके मुझे चूमने लगे और मैं भी कुछ देर बाद नायर का साथ देने लगी।
नायर ने मेरी नाईटी को निकाल दिया।

मैंने नायर के द्वारा लाए हुए ब्रा-पैन्टी को पहन लिया था। नायर भी अपने कपड़े उतार कर और अंडरवियर को भी निकाल कर एक गमछा लपेट कर आया था।
वह गमछा भी मेरे साथ मस्ती करते हुए छूट गया और नायर का लण्ड बाहर झूलने लगा। मैं नायर के मोटे-तगड़े लण्ड को पकड़ कर मुठियाते हुए मुँह में भर कर चूसने लगी, काफी देर तक मैं उसका लवड़ा चूसती रही।
यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !

तभी नायर ने लण्ड मुँह से निकाल कर मुझे बिस्तर पर लिटा कर मेरी जाँघों के बीच मेरी चूत पर मुँह रख कर मेरी चूत को चूम लिया।
‘आहह्ह्ह…’
नायर ने मेरी दोनों टांगों को कंधे पर रख लिया और वो अपनी जीभ लपलपाते हुए मेरी चूत में मुँह मारने लगा, अगले ही पल मेरी चूत की फांकों को कस कर चूसने लगा।

मैं नायर की चूत चटाई से गर्म होकर सिसकारियों को निकालते हुए चिल्लाने लगी- आआह्ह्ह.. मेरे राजा.. यसस्स स्स्सस्स.. चूसो मेरी चूत को अहह.. साले नायर.. भेनचोद.. चाट मेरी चूत को.. पूरा चाट.. इसको.. लवड़े.. आहह सीसीसीइइ.. उंउंउंउआह्ह्ह्ह..

और नायर मेरी चूत की फांकों को अलग करके मेरी बुर में जीभ डाल कर मेरी चूत की प्यास को बढ़ाते हुए काफी देर तक मेरी बुर की चुसाई करता रहा।
फिर अपने लण्ड के सुपारे को मेरी बुर पर लगा कर और पैरों को अपने कंधों पर रख कर.. शॉट लगाते हुए मेरी बुर में अपना पूरा लण्ड जड़ तक डाल कर मेरी बुर चोदने लगा।

मैं भी नायर के हर शॉट पर बस कराह रही थी ‘आह.. उई.. आह.. ऊंऊंह… ऊंऊएस्स्स्स्स.. आह..’
मैं सीत्कार करती रही और नायर मेरी चूत की धज्जियां उड़ाता रहा.. हर शॉट पर मेरी छातियां भींच लेता।

नायर का लण्ड मेरी चूत में फूल गया था और नायर हर बार स्पीड बढ़ाकर दुगनी ताकत से लण्ड को मेरी बुर में पेल रहा था। मेरी हरामिन बुर भी लौड़े के शॉट खाकर पानी-पानी हो रही थी, इसी पानी में मेरी कामवासना का पानी भी करीब आता रहा।
अब तो मैं भी ‘आहें’ भरने लगी ‘आहह्ह्ह.. मजाआाआअ.. आह..सीईई.. और पेलो.. साले सांड.. लो मारो मेरी चूत..’

तभी नायर ने चुदाई का आसन बदल लिया। नायर ने बिस्तर के नीचे उतर कर मुझे बिस्तर के किनारे खींच लिया और पलट दिया। अब वो मेरी बुर में पीछे से लण्ड घुसाकर बुर चोदने लगा।
मेरी बुर एक आखिरी शॉट पर ही ‘फलफला’ उठी और मैं चादर भींच कर नायर के शॉट पर चूत दबाते हुए उसके लण्ड पर झड़ने लगी ‘आहसीईई.. आहह्ह्ह्.. मैं गई..’

पर नायर भी मेरी झड़ी हुई चूत की चुदाई काफी देर तक करता रहा।
फिर एक दौर ऐसा आया.. जब नायर मेरी पीठ से सट कर मेरी चूत में झड़ने लगा ‘ले नेहा.. साली छिनार.. आहह्ह्ह्.. मैंने भी तेरी चूत में अपना बीज डाल दिया.. आह्ह..’ वो यह कहकर हाँफने लगा।


[Image: monal-gajjar-images-0114.jpg]
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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#26
banana जेठजी ने प्यास बुझाई banana
















banana banana banana
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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#27
मेरा नाम सीमा है और मेरे पति मुंबई में मार्केटिंग का काम करते हैं. उनका नाम रमेश है. जब वो घर आते हैं तब हम जम कर चुदाई करते हैं. अभी हाल ही में मेरे पति छुट्टी पर घर आ कर और मेरी जोरदार चुदाई करके वापस मुंबई गये हैं. दिन मैंने महसूस किया कि आजकल जेठजी मुझ पर अपनी आँखें गड़ाये हुए हैं.
फिर एक दिन मैं जेठ जी को चाय देने उनके कमरे में गयी तो मैं आश्चर्यचकित रह गयी. मैंने देखा कि जेठ जी सो रहे थे और उनका लन्ड खड़ा था. उनका खड़ा लंड देख कर मेरी चूत गीली होने लगी और मेरी सांसें तेज चलने लगी. फिर मैंने चाय को टेबल पर रखीऔर बाहर आ गयी.
इतना बड़ा लंड देख कर मैं चुदासी हो गयी थी फिर मैंने बाथरूम में जाकर अपनी चूत को रगड़ा और चूत रगड़ते समय जेठजी का लंड आँखों के सामने आ रहा था और थोड़ी देर में मेरी चूत ने पानी छोड़ दिया ओए मैं शांत हो गई. अब मैं भी जेठ जी को नोटिस करने लगी. वो भी मुझे घूर कर ही देखते थे. यह देख कर मुझे पता लग गया था कि वो क्या चाहते हैं मुझे भी उन्हें देख कर चूत में खुजली होती थी
उसके 3-4 दिन बाद रात के करीब 1 बजे सभी सो रहे थे. उस समय मैं भी नींद में थी. तभी मुझे महसूस हुआ कि कोई मेरे चूतड़ पर हाथ फिरा रहा है. मुझे यकीन था कि जरूर ही ये जेठ जी हैं मैं मन ही मन खुस होने लगी वो भी बिना कुछ बोले ये सब कर रहे थे. और मैं भी चुपचाप लेटी हुई थी. मुझे पता था कि जेठ जी क्या करने वाले हैं पर मुझे वो लंड चूत में लेना ही था मेरी चुदाई की प्यास भी अब बढ़ चुकी थी.
फिर जेठ जी धीरे – धीरे करके मेरी पैंटी को नीचे की तरफ सरकाने लगे और फिर थोड़ी देर बाद उन्होंने मेरी पैंटी को उतार कर अलग कर दिया. फिर जैसे ही उन्होंने मेरी चूत पर हाथ रखा और उसे मसलने लगे वैसे ही मेरी चूत में तेज खुजली होने लगी और अब मेरी चूत गीली भी होने लगी.
जेठ जी को अब पता चल चुका था कि मैं चुदासी हूँ और अब गर्म हो रही हूँ. फिर उन्होंने मेरे पेटीकोट का नाड़ा खींच कर उसे उतार दिया. फिर उन्होंने मेरा ब्लाउज भी उतार दिया और मेरे मम्मों को जोर – जोर से ब्रा के उपर से ही मसलने लगे.
अब मेरी सांसें और तेज हो गयी तो मैंने अपनी ब्रा का हुक खोल दिया अब जेठ जी ब्रा को मेरे मम्मों पर से हटा कर उनको मसलने लगे उनके मसलने से मेरे मम्मे टाइट होने उन्होंने मेरे मम्मों पर अपने होंठ लगा दिया और जोर – जोर से चूसने लगे और साथ ही एक हाथ से मेरी चूत भी मसलने लगे. अब मैं उत्तेजित होकर आगे – पीछे होने लगी. फिर उन्होंने मेरे चूतड़ों को दबोच लिया और फिर मेरे चूतड़ों को मसलने लगे.
अब मैं बहुत चुदासी हो चुकी थी और मुझे लंड लेने की जल्दी होने लगी. फिर मैंने अपना हाथ जेठ जी के लंड पर रखा तो मैं सन्न सी रह गयी. उनका सोया हुआ लंड भी करीब 5 इंच लंबा था. यह देख कर मेरी चूत में चीटियाँ रेंगने लगी. अब मैं उनके लंड को जोर – जोर से हिलाने लगी. जिससे उनका लंड मोटा और लम्बा होने लगा. अब मेरी चूत और ज्यादा गीली होने लगी ऐसा लंड मैंने पहली बार हाथ में लिया था
फिर मैंने उनके लंड को अपने मुंह में ले लिया और उसे चूसना शुरू कर दिया. ऐसे मस्त लंड चूस कर मजा आ गया. फिर लन्ड के गीला होने पर मैं फिर से हिलाने लगी. तभी लंड में जैसे बिजली का करंट दौड़ गया हो और वो लगभग 9 इंच लंबा हो गया.
लंड देखकर मैं तो उस समय मदहोस सी हो गयी थी अब जेठ जी ने मेरी चूत में अपनी एक उंगली डाल कर अंदर – बाहर करने लगे. थोड़ी देर ऐसा करने के बाद मेरी चूत लंड पाने के लिए तड़प सी उठी थी
अब जेठ जी मेरी टांगों के बीच में आ गए और फिर मैंने उनके लंड को अपने हाथ में पकड़ लिया और फिर मैं जेठ जी के लम्बे लंड को मसलने लगी. लंड की मोटाई मेरी मुट्ठी में नहीं आ रही थी. ये सोच कर कि मेरी चूत आज जरूर चौड़ी हो जायेगी, मैं काफी उत्तेजित थी. जेठजी ने मेरे चेहरे को देख कर भाँप लिया
फिर जेठ जी ने कंडोम निकाला और अपने लंड पर चढ़ा लिया. फिर जेठ जी ने अपना लंड को मेरी चूत के मुंह पर रखा और धीरे से लन्ड का सूपड़ा अंदर कर दिया. फक्क की आवाज के साथ लंड मेरी चूत में चला गया.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#28
दीदी की ससुराल
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#29
मैं कॉलेज में प्रथम वर्ष का छात्र हूँ और जब मेरे प्रथम सेमेस्टर की परीक्षा खत्म हुई तो मैं 15-20 दिन के लिए फ्री हो गया, तो मैंने छुट्टियों में इंदौर जाने का फ़ैसला किया जहाँ मेरी बड़ी दीदी रहती हैं। उनकी शादी आज से दो साल पहले हो गई थी और अब वो इंदौर में ही रहती हैं। मेरी दीदी का नाम आरती, उम्र 23 साल है, उनका रंग गोरा और उनका फीगर एकदम मस्त है, पर मैंने अपनी दीदी को चोदने के बारे में कभी नहीं सोचा, हम दोनों का रिश्ता हमेशा से ही भाई-बहन तक सीमित रहा है।

तो मैंने दीदी की ससुराल जाने का और वहाँ एक सप्ताह रहने का प्लान बना लिया, मैं इंदौर के लिए सुबह घर से निकल गया और ट्रेन से दो बजे तक इंदौर पहुँच गया, वहाँ जीजाजी मुझे लेने पहुँच गए और हम आधे घंटे में दीदी के ससुराल पहुँच गए।

दीदी ने मुझे देखते ही गले लगा लिया क्योंकि हम बहुत समय बाद मिल रहे थे। दीदी को देख कर तो मेरे होश ही उड़ गए, वो पहले से भी ज्यादा सुडोल और फूली हुई लग रही थी और उनके स्तन पहले से कहीं ज्यादा बड़े लग रहे थे, उस समय मुझे दीदी को देख कर उन्हें चोदने का मन करने लगा। इन सबके बाद मैंने घर पर खाना खाया और सभी घर वालों से बात करने लगा पर दीदी ने मुझे टोक कर कहा- तुम थक गए होगे इसलिए थोड़ा आराम कर लो !

और मैं भी सोने के लिए चला गया। मैं चार बजे सोया और शाम को सात बजे उठ गया, मैंने उठने के बाद थोड़ी देर टी.वी. देखा और नौ बजे तक डिनर का वक्त हो गया। हम सभी ने खाना खाया और बात करने लगे। यह सब होते-होते 11 बज गए और सबका सोने का समय हो गया।

दीदी को पता था कि मैं थोड़े शर्मीले स्वभाव का हूँ इसलिए दीदी ने मुझे अपने साथ सोने को कहा।

यह सुन कर तो मेर पप्पू फुंफ़कारें मारने लगा। जीजाजी भी यह कह कर राजी हो गए की दोनों भाई-बहन बहुत दिनों बाद मिले है, तो इन दोनों को बहुत सारी बातें करने होगी। ये सब बातें होने के बाद सभी अपने-अपने कमरों में सोने चले गए। दीदी के सास-ससुर एक कमरे में, देवर एक कमरे में और जीजाजी जी अलग कमरे में और दीदी वाले कमरे में दीदी, मैं और उनकी एक साल की बच्ची जिसका नाम कृति है सोने के लिए गए।

दीदी के कमरे में जाने के बाद मैंने देखा कि वहाँ सिंगल बेड ही था पर मैंने सोचा कि इसमें मेरा ही फायदा है, दीदी ने लाल रंग की साड़ी पहनी हुई थी पर मुझे पता था कि दीदी मेक्सी पहन कर सोती है। इसके बाद दीदी ने बाथरूम में जाकर काले रंग की मेक्सी पहन ली, इसमें वो और भी सेक्सी लग रही थी, उनके स्तनों का आकार साफ़ दिखाई दे रहा था और मैं उन्हें ही घूर रहा था।

इसके बाद बेड की बाईं ओर दीदी लेट गई, दाईं तरफ मैं और बीच में मेरी एक साल की भांजी कृति लेट गए। यह देख कर मैं निराश हो गया क्योंकि मैं दीदी के साथ सोना चाहता था। दीदी कृति को सुलाने के लिए उसे अपने दायें स्तन से दूध पिलाने लगी और स्तनों के ऊपर दुपट्टा डाल लिया और दीदी मुझसे बात भी कर रही थी। मैं बीच-बीच में चुपके से दीदी के स्तनों को दुपट्टे के ऊपर से ही निहारने की कोशिश भी कर रहा था और शायद दीदी ने मुझे यह करते हुए देख भी लिया था।
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#30
मैं केवल अंडरवियर और बनियान में ही सोता हूँ तो उस दिन भी मैं वैसे ही सो रहा था और मैंने एक चादर ओढ़ रखी थी।

बातें करते करते हमें साढ़े बारह बज गए और कृति भी सो चुकी थी इसलिए हम भी सोने लगे लेकिन मैं अभी भी दीदी को चोदने के बारे में ही सोच रहा था। पर मेरे और दीदी के बीच में कृति आ रही थी तो मैंने सोचा कि आज तो कुछ नहीं हो सकता।

और मैं भी सोने लगा पर भगवान को तो यह मंजूर नहीं था इसलिए लगभग आधे घंटे बाद कृति की नींद खुल गई और इससे दीदी की भी नींद खुल गई और दीदी उसे चुप कराने लग गई पर उसके चुप न होने पर दीदी ने उसे दूध पिलाने की सोची। क्योंकि दीदी ने पहले उसे अपने दायें स्तन से दूध पिलाया था इसलिए उसे अपने बायें स्तन से दूध पिलाने के लिए दीदी बीच में आ गईंऔर कृति को बेड की बाईं तरफ सुला दिया और दूध पिलाने लगी।

यह सब देख मेरा लंड फिर से खड़ा हो गया। थोड़ी देर बाद कृति फिर से सो गई और दीदी की भी नींद लग गई। दीदी अपनी गांड मेरी तरफ करके सोयी हुई थी और जैसा कि मैंने बताया था कि हम सिंगल बेड पर थे इसलिए जगह भी कम थी तो मैं थोड़ा दीदी की तरफ सरक गया। अब मेरा लंड जो पहले से ही खड़ा हुआ था, अब मेरी दीदी की गांड से छूने होने लगा था, मुझे इसमें बहुत मजा आ रहा था, मैंने अपना लंड अंडरवियर के बाहर निकाल लिया और दीदी की मेक्सी के ऊपर से ही धीरे-धीरे उनकी गांड मारने लगा।

अभी तक दीदी की नींद नहीं खुली थी तो मेरी हिम्मत और बढ़ गई और अब मैंने पीछे से दीदी के कंधे पर हाथ रखकर उन्हें सीधा लेटा दिया, दीदी ने थोड़ी बहुत हलचल की पर वो अभी भी नींद में ही थी। दीदी का एक स्तन अभी भी बाहर ही था क्योंकि उन्होंने कृति को दूध पिलाने के बाद उसे अन्दर नहीं किया था।

यह देखकर मैंने अपना एक हाथ धीरे से उनके खुले स्तन पर रख दिया और उसे सहलाने लगा और साथ में उसे दबाने भी लगा। फिर मैंने दीदी की मेक्सी के सारे बटन खोल दिए और मुझे उनकी ब्रा दिखने लगी, मैं ब्रा के ऊपर से ही दीदी के चूचों को मसल रहा था और दीदी अभी भी सोयी हुई थी तो मैंने अपना एक हाथ दीदी की जांघ पर रख दिया और उसे ऊपर से ही सहलाने लगा। फिर मैंने धीरे-धीरे अपना हाथ दीदी की चूत के ऊपर रख दिया और मेक्सी के ऊपर से ही चूत की दरार में अपनी उंगलियाँ फेरने लगा।
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#31
थोड़ी देर बाद दीदी मुझे कुछ कसमसाती लगी, मुझे लगा कि दीदी की नींद खुल गई, इसलिए मैंने जल्दी से अपना हाथ हटा लिया और बिल्कुल भी नहीं हिला। लेकिन दीदी का कोई भी विरोध न करने पर मेरी हिम्मत बढ़ गई पर मेरे हाथ-पैर कांप भी रहे थे, लेकिन मैंने हिम्मत करके फिर से दीदी की चूत पर हाथ रख दिया और उसे जोर-जोर से मसलने लगा और अब शायद दीदी भी जग चुकी थी, दीदी ने थोड़ी देर बाद अपनी आँखें खोल ली और उनके कुछ कहने से पहले मैंने अपने होंठ उनके होंठों से मिला दिए और उन्होंने भी मेरा कोई विरोध न करते हुए मेरा साथ दिया।

पांच मिनट तक हम दोनों ने एक दूसरे को चूमते रहे और इसके बाद दीदी ने मेरा लंड अपने हाथ में पकड़ लिया और उसे हिलाने लगी।

मैंने भी दीदी की मेक्सी ऊपर करके उनकी जांघों से होता हुआ उनकी चूत पर पहुँच गया और सहलाने लगा। दीदी की पेंटी पूरी गीली हो चुकी थी तो मैंने पहले दीदी को उनकी मेक्सी उतारने को कहा और अब वो मेरे सामने सिर्फ ब्रा और पेंटी में थी, उनका बदन एकदम दूध जैसा गोरा था, उनके स्तन काफी कड़े हो चुके थे। मैंने उनकी ब्रा भी उतार फेंकी, उनके स्तन बहुत बड़े थे और मैं पहली बार इतने पास से किसी औरत के स्तन देख रहा था।
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#32
ने स्तनों को बहुत चूसा और फिर दीदी की पेंटी उतार दी। उनकी चूत को देख कर मैं हैरान रह गया, उनकी चूत पर छोटे-छोटे बाल थे जो उसकी शोभा बढ़ा रहे थे। फिर मैंने जल्दी से अपने कपड़े उतारकर उनकी टाँगें चौड़ी कर दी। दीदी की चूत के दोनों होंठ बिल्कुल गुलाबी थे।

जैसे ही मैंने उनकी चूत पर अपना हाथ रखा, मुझे अपने हाथ में असीम गर्माहट का एहसास हुआ और दीदी भी बहुत गर्म हो चुकी थी और आ आ आ ऊ ऊ ऊ के स्वर निकाल रही थी। इसे सुनकर मैं और भी उत्तेजित हो रहा था।

इसके बाद हम दोनों 69 की अवस्था में आ गए और मैं उनकी चूत चाट रहा था जबकि वो मेरे लंड को बड़े चाव से चूस रही थी।

लगभग 15 मिनट चूसने के बाद दीदी बोली- वरुण, अब नहीं रुका जाता, जल्दी से अपना लंड मेरी चूत में डाल दे।

फिर मैंने दीदी की दोनों टांगों को अपने कंधों पर रखा और अपने लंड के सुपारे को दीदी की चूत पर रखकर जोर का धक्का लगाया और मेरा आधा लंड दीदी की चूत में चला गया।

दीदी अपने मुख से कामुक आवाजें निकाल रही थी और कह रही थी- फाड़ दे आज मेरी चूत ! और जोर से ! और जोर से।

इसके बाद मैंने अपने धक्कों की रफ़्तार और बढ़ा दी और करीब दस मिनट हिलने के बाद मैं झड़ गया और दीदी के ऊपर ही लेट गया।

पर मैं कहाँ अभी मानने वाला था, लगभग 15 मिनट बाद मैं फिर से दीदी को चोदने के लिए तैयार हो गया और इस बार मैंने दीदी को अलग प्रकार से चोदा। इस वाले दौर में दीदी भी झड़ गई। बाद में दीदी ने मेरा पूरा लंड चाट कर साफ़ कर दिया।

उस रात दीदी को मैंने दो बार और चोदा और जब तक मैं दीदी की ससुराल में रहा, मैंने दीदी को खूब चोदा।

फिर मैं भोपाल वापस आ गया और अब दीदी से फ़ोन पर ही सेक्स की बातें होती हैं। उसके बाद से मैंने अभी तक किसी और लड़की की चूत नहीं मारी पर मैं इधर से उधर चूत मारने के लिए लड़कियों को ढूंढता फिरता हूँ।
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#33
[Image: 3.jpg]
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#34
Didi ki Jethani ko Choda
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#35
yeh us waqtki baat hai jab Didi ki delivery ko 15 din hoye the or mere Bhanje cum bete ka naamkaran honewala tha. Didi ki saas ki tabyat theek nahi hone ke karan Didi ki saas or nanad nahi aasake. Didi ki saas ne unki jethani ko bhej diya. Didi ki jethani ko lene main VT station gaya tha. Unka naam Neha tha. Jab main station pohncha to train just arrive ho rahi thi main bogi number S4 mein ponhcha to dekha vo apna saaman lekar train se bahar nikal rahi hai.
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#36
Vo jaise hi apni bag train se niche rakhne ke liye jhuki to unki saree ka paloo apni jaga se sarak gaya or unke dono ball meri ankhon ke saamne the. Main unke balls ko dekh raha tha or vo meri taraf dekh rahi thi. Unke balls ko dekh kar mera lund ekdam khada hogay. Main ne us waqt track paint pehan rakhi thi. Meri track mein unhoone ubhar dekh liya. Phir achanak mera dhyan unki taraf gay to vo meri taraf dekh rahi thi. Main ne apni aankhein neeche kar lee or unki tarag chala gaya. Unhoon ne mujse poocha,”Kaise Ho”.
Main ne jawab diya,”Achchaa hoon, Aap kaisi hain or safar mein koee takleef to nahi huee”. Unhoon ne jawab diya “nahi mein theek hoon ou koee takleef to nahi hoee.”
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#37
hir main unko apnee bike CBZ per bithke har ki taraf chal pada. Unki bag meri bike ki tank par thee or doosri bag unkee god mein thi. Main ne unhein kha ke vo bag to peeche ke carrier par rakh de or thoda aage ki taraf ho kar baith jayein. Jab unhoon ne bag carier per rakah or khud aage ki taraf ho kar beith gayee. Main ne bike start ki or thodi der ke baad ek signal par pauhanch kar main ne break mara break marte hi Neha ke ball meri pith se takra gaye us ehsaas se mera lund ek baar phir salami dene laga. Phir har thodi doori par main break mar ta thaa. Neha ji bhi meri harkatoan ko samajh gayee or khud bhi maza lene lagi. Station se ghar ka fasla khuch zyada nahi tha or hum 40minute mein ghar poonhanch gaye. Jis waqt main Neha Ji ko lekar apni building mein enter hova to unhoon ne mujh se kaha, “Ek minute ruk jaoo main apni saree thodi sahee kar loon” yeh kehte hi unhoon ne apna palloo seene se hataa diya or blouse mein haath daal kar apne ball ko sahee karne lag gayee. Unhoon ne saree bhi naaf ke neeche bandhi thi or usko bhi unhoon ne ooper leliya, Meri nazrein unke balls par hi tikee hue thi. Sab kuch hone ke baad unhoone mujeh aavaz di, “sadik chalein” main apne khayaalon mein khoya huaa tha mere dono hathon mei bag the or track paint mein tambo bana huaa tha. Phi jab unhoone doosri aawaz di tu mujeh hosh ayaa. Jab main ne unki taraf dekha to vo thoda sa hans kar seedyon ki taraf chal di. Jab vo mere aage chal rahi thi to unki gaand kya mast hil rahee thee. Unki gaand ko main dekh kar bouhat khoosh ho raha tha.
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#38
Hum ghar ke ander dakhil hogaye. Ghar mein jaate hi main wash room mein gaya or fresh hone laga. Jis waqt main wash room mein apne chehre par soap laga raha tha Neha ji bedroom mein sari change kar ke nighty pehan rahi thee. Main unkee taraf dekh raha tha or achanak unhoon ne mujeh dekhte huye dekh liya us waqt vo sirf panty mein thee. Unke ball to qayamat lag rahe the. Unhoone mujeh dekh to hoye dekh liya. Dil chaa raha tha ke usi waqt uthaa ki vanhi chod doon.

Jab unhoon ne jab mujeh dekhte hue dekha to apni panty bhi tuar di or apni choot par haath pherne lagi. Itne mein Didi vahaan agee main ne jhat se washroom ka darwaza band kar liya.Kuch der baad jab main bahar nikla to Neha Ji meri taraf dekh kar hans rahi thee. Phir ammi ne khcu kaam diya or mein kuch samaan lene market chale gaya. Hun logoan ne raat me khana khaya or sab doosre din ke naam karan ke function ke bare mein discuss karne lage. Sab kuch decied karte karte raat ke 02.00 baj gaye. Raat ko main or mere mata pita hum log haa mein sogaye or didi or unki jethani bedroom mein sogaye. Jijaji apne ghar jake sogaye.
Dosre din sibha se kafi kaam thaa mandup(tent) wale ko lene jana tha, Khane ka intejam or doosri kaee sari zimedariyan thi saab kuch complete karte karte shaam ke 5:30baj gaye the. Main jis waqt sab kaam khatam kar ke ghar ki sidyaan chad raha tha to ami or didi chote ko lekar neeche mandup mein ja rahe the. Hamaree building ke neeche bouhat bada ground tha or usi ground mein hum ne naam karan ka function rakha tha.
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#39
Main ne ghar ka darwaza kholne ki koshish ki to vo band tha. Main ne apne jeb mein se key nikale or andar daakhil ho gaya. Andar jaise hi main pounhcha main ek dam hairan ho gaya. Neha ji naha kar nikli or unke jism per sif ek towel tha or room mein jane ke baad vo bhi hata diya. Nehaji ko pata nahi tha ke main ghar ke andar hoon. Voo poori nangi hokar apne badan ko to miror mein dekh rahi this or apne ball per or kabhi apnee gand par haath pher rahi thi.Phir unhoone apne haatoon se apne ball dabane shooro kiye thodi der ke baad vo theek ho gayee or kapde pehan kar tayyaar hogayee. Jab vo ghar se baahar jane ke liye nikal rahi thi to unki nazar mujh par padi or main kitchen mein khada khana khara tha. Kitchen ki vo khidki bhi khuli thi jis mein se bedroom saaf dikhee deta hain. Unhoone meri taraf dekha or phir jaldi se neeche chalee gayee. Main bhi jaldi jaldi naha dho kar or kapde change kar ke neeche fuction mein poanhach gaya. Function mein hamara amna samna kaee baar hua or vo bade tikhe andaz mein nazar aye. Hum sab ne function mein khoob kaam kiya or kafi thak chuke the. Raat 11:30 baje function khatam ho gaya. Kaafi sare gift chotu ke liye jama huye the to didi ne kha ke in gift ko unke ghar bhej do.

Main ne gift Jijaji ki gaadi mein rakh diye or jijaji ne kaha ke sadik tum yeh gift chod aaoo or Nehaji ko bhi saath le jakar hamara ghar bhi dikha do issee bahane vo ghar to dekh legee. Diidi ne bhi nehaji se saath jane ko kaha or ghar ki chabi unke haath mein dedi. Nehaji ne chabi lee or apne blaouse mein rakh di. Nehaji gaadi mein baithi or hum log didi ke ghar ki taraf chalpade. Raste mein maine do teen bar break mara to Nehaji ne kha, “Yeh koi motorcycle nahi hai jo eetne break mar rahe ho” main bhi mauke ki talash mein tha, “kaash yeh motorcycle hoti to ab tak to dus pandrah bar break mar chukka hota” Us din nehaji kayamat laga rahi thi.unhoon ne rani pink colour ki saari pehi hue thi or us ke andar matching blouse or Peticot pehna huva tha. Vo khud saanvle colour ki thi. Blouse kafi low cut ka tha kafi aurtain function mein unke bare mein batein kar rahi thi. Driving karte samaye meri nazrein kaee baar unke balls ki taraf jaa rahi thi.
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#40
Aakhir hum log Didi ki building ke pass pouhanch gaye. Main ne sab gift nikale. Kaafi saare gift mere haatoan mein ther or thode baouhat gift meine Nehaji ke haath mein de diye Jis mein Ek Bouhath bada Plane of Gadi thi. Room ke pass ponhacn gaye. Ghar ki key Neha ji ke pass this or unhon ne apne blouse mein rakhee thi. Jab hum room ke pass pouhanch gaye to un ke or mere do no hatoon mein gift the. Main ne unse gift neeche rakhen keliye kha. Voo jaise hi gift neeche rakhne ke liye jhuki unka palloo nich gir gaya or meri nazrein unke ball par padi. Nehaji samajh gaee ke main ne kyon unko gift neeche rakhne ko kaha. Unke balls ko dekh kar mera lund forran khada hogaya. Nehaji halka sa muskuraee or phir apna haath blouse mein dala or chabi nikal kar ghar ka duwar khol diya. Ghar mein kaafi andheraa tha. Hum ne andar jakar light on ki or sab gift ander rakhne lage. Nehaji ke haath se ghar ki chabi giri or vo uthane ke li jhuki itne mein maine unki taraf dekh raha tha.
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