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Romance मोक्ष : तृष्णा से तुष्टि तक
#21
अध्याय 4


इधर अभय के ऑफिस में अभय ने उस फ़ाइल को उठाया और काफी देर तक उसमें मौजूद कागजों को पढ़ता रहा....बार बार उसके चेहरे पर अलग अलग रंग आ जा रहे थे... फ़ाइल को पूरा पढ़ने के बाद वो कुर्सी के पीछे सिर टिकाकर लेट सा गया और अपनी आँखें बंद कर लीं... ऋतु सामने बैठी उसे बड़े गौर से देख रही थी... अचानक उसने कहा

“सर आखिर इस फ़ाइल में ऐसा क्या है जो अप इतनी टेंशन मे आ गए और इस फ़ाइल को किसलिए निकलवाया आपने.... मेरे ख्याल से जो कोटा से अनुराधा सिंह के नाम से फोन आया था... उसी सिलसिले में है.... विक्रम भैया भी तो शायद कोटा के पास ही रहते हैं.... ये अनुराधा सिंह कौन है?”

“रुको! रुको! में तुम्हें सबकुछ बताता हूँ लेकिन उससे पहले तुम्हें विक्रम के बारे मे एक जरूरी सूचना देनी थी.... पहले तो ये बताओ की विक्रम से तुम्हारा कितना नजदीक का रिश्ता है.... क्योंकि कज़न तो दूर के रिश्तेदार भी हो सकते हैं और आज के वक़्त में तो... बिना रिश्ते के भी” अभय ने पैनी नजरों से ऋतु को देखते हुये कहा... जैसे उसके दिमाग मे झाँककर देख रहा हो।

“आपका कहना सही है सर, लेकिन वो मेरे पिताजी के बड़े भाई के बेटे हैं.... बल्कि मेरे पिताजी और उनके भाइयों मे इकलौते बेटे...मेरे इकलौते भाई लेकिन वो कभी हमारे साथ नहीं रहे...इसलिए मुझे उनके बारे मे ज्यादा जानकारी नहीं है...”

“ठीक है! क्या तुम देवराज सिंह, रागिनी सिंह, अनुराधा सिंह या प्रबल प्रताप सिंह को जानती हो?”

“देवराज सिंह तो मेरे चाचाजी हैं जिनके पास विक्रम भैया रहते हैं” इतने सवाल जवाब से परेशान होते हुये ऋतु ने कहा “बाकी में किसी को नहीं जानती... लेकिन आप मुझे कुछ भी बताने की बजाय इतने सवाल जवाब क्यों किए जा रहे हैं?”

“आज सुबह कोटा से रागिनी सिंह का फोन आया था, उन्हें श्रीगंगानगर पुलिस से सूचना मिली है की वहाँ एक सड़ी-गली लवारीश लाश बरामद हुई है जिसकी जेब से विक्रम का मोबाइल और कागजात मिले हैं...”

“क्या? विक्रम भैया....” रागिनी आगे कुछ न बोल पायी और रोने लगी

“अभी कुछ पक्का पता नहीं ... रागिनी गंगानगर के लिए निकाल चुकी है...वहाँ पहुँचकर फोन करेगी की क्या हुआ...” ऋतु को दिलाशा देते हुये अभय ने कहा “हो सकता है वो कोई जेबकतरे की लाश हो जिसने विक्रम का मोबाइल और पर्स चुरा लिया हो... विक्रम ऐसे आसानी से मरनेवालों मे से नहीं है...तुम चाहो तो अपने घरवालों को ये सूचना अभी दे दो या फिर रागिनी का फोन आ जाने दो”

ऋतु ने कोई जवाब दिये बिना घर फोन मिलाया जो उसकी माँ ने उठाया तो ऋतु ने उनसे अपने पिताजी से बात कराने को कहा... लेकिन वो बैंक गए हुये थे किसी कम से... तो ऋतु ने अपनी माँ को कुछ नहीं बताया।

तब अभय ने उससे कहा की अब रागिनी का फोन आ जाने दो तभी बताना और कुछ देर मे अनुराधा और प्रबल भी दिल्ली पहुँच रहे हैं।

“लेकिन मुझे ये समझ नहीं आ रहा की ये रागिनी सिंह कौन हैं और ये अनुराधा-प्रबल...आप पहले भी पूंछ रहे थे...लेकिन बताया नहीं मुझे”

“रागिनी मेरे और विक्रम के साथ कॉलेज मे पढ़ा करती थी लेकिन 5-6 साल पहले वो विक्रम के साथ मेरे ऑफिस आयी थी तब विक्रम ने बताया था की उसकी शादी देवराज सिंह से हो गयी है... और उसके 2 बच्चे हैं बड़ी बेटी अनुराधा और छोटा बेटा प्रबल... लेकिन मुझे ये समझ नहीं आया कि 17-18 साल पहले वो हमारे साथ कॉलेज मे पढ़ती थी, उसके बाद शादी हुई तो उसके दोनों बच्चे 18 साल से ज्यादा के कैसे हो गए... शायद देवराज सिंह कि पहली पत्नी के बच्चे होंगे... “

“देवराज चाचाजी ने तो कभी शादी ही नहीं कि... गजराज ताऊजी कि मौत और ताईजी के घर छोडकर चले जाने के बाद वो विक्रम भैया को अपने साथ ले गए और उन्हें पाला-पोसा....”

“अब मेरी भी कुछ समझ मे नहीं आ रहा विक्रम तो मुझे कॉलेज में भी बड़ा रहस्यमय सा लगता था...अब तो लगता है पूरा परिवार ही रहस्यमय है... थोड़ी देर मे अनुराधा और प्रबल को आने दो उनसे पता करना, में भी रागिनी से पता करता हूँ कब तक पहुंचेगी”

ऋतु चुपचाप अपनी सीट पर जाकर बैठ गयी और आँखें बंद करके कुछ सोचने लगी
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“अभय में गंगानगर मे पुलिस स्टेशन मे हूँ, लाश पहचाने जाने के काबिल नहीं है.... लेकिन शायद विक्रम की ही है... कद काठी से और लाश के साथ मिले सामान से तो ऐसा ही लग रहा है” उधर से रागिनी की हिचकियों के साथ अटक-अटक कर आती रागिनी की आवाज को सुनते ही अभय की आँखें भी भर आयीं

“रागिनी! विक्रम के चाचा बलराज सिंह दिल्ली मे रहते हैं तुम उसे लेकर दिल्ली आ जाओ, उन्हें में सूचना दे रहा हूँ, अनुराधा और प्रबल कुछ देर मे मेरे पास ही पहुँच रहे हैं”

इतना कहकर अभय ने फोन काटा ही था दरवाजे पर नॉक करके अभय के ऑफिस का एक क्लर्क अंदर आकर बोला

“सर! अनुराधा सिंह.....” क्लर्क की बात पूरी होने पहले ही अभय ने उसे अनुराधा को अंदर भेजने को कहा

उनके अंदर आने पर उसने दोनों को बैठने को कहा ऋतु भी अपनी सीट से उठकर आकर उनके बराबर मे ही अभय के सामने बैठ गयी।

“तो तुम दोनों देवराज सिंह के बच्चे हो?” ऋतु ने सवाल किया

“एक मिनट ऋतु! मुझे बात करने दो” अभय ने ऋतु से कहा और अनुराधा की ओर देखते हुये बोलना शुरू किया “आप दोनों को मेंने इसलिए बुलाया है की विक्रमादित्य सिंह की मृत्यु हो सूचना मिली है और उनकी वसीयत मेरे पास है जो उनके बाद उनके वारिस आप दोनों को सौंपी जानी है....”

अनुराधा, प्रबल और ऋतु तीनों एक साथ चोंक जाते हैं और ऋतु व प्रबल की आँखों से आँसू बहने लगते हैं... जबकि अनुराधा एकदम गुमसुम सी रह जाती है...जैसे की समझ न आ रहा हो की क्या हुआ

अचानक रोते रोते ही ऋतु बेहोश होकर कुर्सी से गिर पड़ी...अभय ने प्रबल की सहायता से उसे उठाकर सोफ़े पर लिटाया और ऋतु का फोन मेज से उठाकर उसके घर का नंबर मिलाया...

“हैलो”

“आंटी नमस्ते! में एडवोकेट अभय प्रताप सिंह बोल रहा हूँ...”

“हाँ बेटा नमस्ते! क्या बात हो गयी...ऋतु ठीक तो है...” अभय का इस तरह अचानक फोन आने से ऋतु की माँ मोहिनी देवी ने घबराते हुये पूंछा... क्योंकि इस समय ऋतु ऑफिस मे ही होनी चाहिए थी... तो अगर सब कुछ ठीक होता तो फोन ऋतु का आता ...अभय का नहीं...

“आंटी! ऋतु तो ठीक है... आप और अंकल से मुझे कुछ काम था...इसलिए मेंने कॉल किया.... अगर आप दोनों ऑफिस आ सकें तो बेहतर रहेगा” अभय ने कहा

“बेटा तुम्हारे अंकल तो सुबह से बैंक गए हुये हैं... उनके आने पर फोन करती हूँ... या शाम को तुम ही घर आ जाओ....” मोहिनी देवी ने जवाब दिया

“ठीक है आंटी जी में ऋतु को साथ लेकर आता हूँ... 1-2 घंटे में” कहते हुये अभय ने फोन कट दिया और घड़ी की ओर देखा साढ़े तीन बज रहे थे

फिर उसने एक कॉल करके डॉक्टर को अपने ऑफिस आने को बोला और आकर अपनी सीट पर बैठ गया। और किसी को कॉफी भेजने को कहा

फिर अनुराधा की ओर देखकर कहा “देखो अनुराधा अभी एक जरूरी बात और तुम्हें बता दूँ... देवराज सिंह और विक्रम की फॅमिली दिल्ली की रहनेवाली है ...इनके परिवार के बाकी मेम्बर्स दिल्ली मे रहते हैं जिन्हें तुम शायद नहीं जानती... विक्रम, रागिनी और में दिल्ली में एक ही कॉलेज में पढ़ते थे.... ये जो मेरी असिस्टेंट बेहोश हो गईं विक्रम की मौत की खबर सुनकर .... ये विक्रम की चचेरी बहन हैं... बलराज सिंह की बेटी एडवोकेट ऋतु सिंह... अभी मेंने ऋतु की माँ से बात की है तो हम सब को वहीं उनके घर चलना होगा.... रागिनी भी विक्रम की लाश को लेकर यहीं आ रही है... अब जो भी बात होगी बलराज सिंह के सामने ही होगी”

“ठीक है...” अनुराधा ने भी उलझे से स्वर मे कहा...उसे भी सुबह से हो रही घटनाओ ने उलझकर रख दिया था...और अब विक्रम की मृत्यु के खुलासे से तो वो स्तब्ध रह गयी थी। इधर प्रबल बेखयाली में न कुछ बोल रहा था न सुन रहा था बस रोये जा रहा था....

इसके बाद कोई कुछ नहीं बोला थोड़ी देर बाद डॉक्टर ने आकर ऋतु को देखा, ब्लड प्रैशर चेक किया और कुछ दवाएं दी... ऋतु के होश मे आने पर उसे पानी से हाथ मुंह धोने और दवा खाने को कहा.....

डॉक्टर के जाने के बाद ऋतु फिर से सोफ़े पर चुपचाप बैठकर आँसू बहाने लगी तो अनुराधा जाकर उसके पास बैठ गयी और और उसे चुप कराने लगी। इधर अभय ने अपने स्टाफ के एक सीनियर को बुलाकर उससे ऑफिस संभालने को कहा और उसे बताया की वो और ऋतु किसी जरूरी काम से जा रहे हैं...शाम को ऑफिस लौटकर नहीं आएंगे...

इसके बाद अभय ने प्रबल को अपने साथ लिया और अनुराधा ऋतु को साथ लेकर बाहर आयी। पार्किंग से अभय ने अपनी गाड़ी निकाली तो अनुराधा ने उससे कहा की वो और ऋतु उनकी गाड़ी से चलेंगे.... अभय ने पार्किंग वाले को बुलाकर उसे ऋतु की गाड़ी वहीं पार्किंग में छोडने का बताकर वो सब ऋतु के घर की ओर चल दिये....

..................................अभी इतना ही
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#22
ईतना छोटा अपडेट ? तृष्णा बढ़ रही हैं, तुुष्टि सही से मिल पायेेगी क्या??
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#23
Good update bro... wating for next
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#24
(15-01-2020, 11:56 PM)bhavna Wrote: ईतना छोटा अपडेट ? तृष्णा बढ़ रही हैं, तुुष्टि सही से मिल पायेेगी क्या??
bhavna ji---- ye trishna badhane ke liye hi likha hai........... padhke trishna badhao
tushti padhke nahi "kam" karke hi ayegi
ha ha ha .............
update chhote hai par lagatar ate raheinge......... kal kuchh kaarano se nahi aya........ aaj 2 update deta hu
kal tak ke liye bye Smile

(16-01-2020, 07:14 AM)manmohar Wrote: Good update bro... wating for next

abhi kuchh der mein
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#25
अध्याय 5


घर की घंटी बजने पर मोहिनी देवी ने दरवाजा खोला तो बाहर अभय और ऋतु एक अंजान लड़की और लड़के के साथ खड़े दिखे... उन्होने किनारे हटते हुये रास्ता दिया और सबके अंदर आने के बाद दरवाजा बंद करके उन सभी को सोफ़े पर बैठने का इशारा करते हुये खुद भी बैठ गईं... ऋतु की हालत उनको कुछ ठीक नहीं लगी तो उन्होने पूंछा

“क्या हुआ ऋतु... तेरी तबीयत ठीक नहीं है क्या?”

“नहीं माँ! में ठीक हूँ...” ऋतु ने धीरे से कहा और नौकर को आवाज देकर सबके लिए चाय लाने को कहा, फिर अपनी माँ से पूंछा “पापा अभी नहीं आए क्या?”

“आने ही वाले हैं...मुझे ऐसा क्यूँ लग रहा है कोई बात है जो तू मुझसे कहना चाहती है”

“माँ! विक्रम भैया नहीं रहे....”अपने रुके हुये आंसुओं को बाहर आने का रास्ता देते हुये ऋतु ने मोहिनी के गले लगकर रोते हुये कहा... तो एक बार को मोहिनी देवी उसका मुंह देखती ही रह गईं... फिर जब समझ में आया की ऋतु ने क्या कहा है तो उनकी भी आँखों से आँसू बहने लगे... तभी फिर से दरवाजे की घंटी बजी तो अभय ने उठकर दरवाजा खोला... बाहर बलराज सिंह थे ...अभय को अपने घर का दरवाजा खोलते देखकर उनको अजीब सा लग और बिना कुछ बोले चुप खड़े रह गए।

“अंकल नमस्ते!” अभय ने चुप्पी को तोड़ते हुये कहा और उन्हें अंदर आने का रास्ता दिया

अंदर आते ही बलराज सिंह ने देखा की एक सोफ़े पर मोहिनी बैठी हुई है, उसकी आँखों से आँसू निकाल रहे हैं, ऋतु उसे सम्हाले हुये है लेकिन खुद भी रो रही है... दूसरे सोफ़े पर एक लड़का और एक लड़की बैठे हुये हैं... सबकी नज़र दरवाजे की ओर बलराज सिंह पर है... तो वो जाकर मोहिनी के पास खड़ा होता है

“क्या हुआ मोहिनी? क्यों रो रही हो तुम दोनों? और ये दोनों कौन हैं”

“अंकल अप बैठिए में बताता हूँ” पीछे से अभय ने कहा तो बलराज सिंह ने सवालिया नजरों से उसकी ओर देखा और जाकर मोहिनी के बराबर मे सोफ़े पर बैठ गए

अभय भी आकार सिंगल सीट सोफ़े पर बैठ गया और बोला

“अंकल जैसा की आपको पता ही है की में विक्रम का दोस्त हूँ, हम कॉलेज मे साथ पढे थे”

“हाँ!” बलराज ने फिर प्रश्नवाचक दृष्टि से अभय को देखा

“आज सुबह मेरे पास कोटा से रागिनी का फोन आया था की श्रीगंगानगर मे पुलिस को एक लाश मिली है उन्होने रागिनी को फोन किया था ... तो रागिनी वहाँ पहुंची और लाश के पास मिले कागजातों, फोन तथा लाश के कद काठी से उसने विक्रम की लाश होने की शिनाख्त की है” अभय ने सधे हुये शब्दों मे बलराज सिंह को विक्रम की मौत की सूचना दी... एक बार को तो बलराज सिंह भावुक होते लगे लेकिन तुरंत ही संभलकर उन्होने अभय से पूंछा

“तो अब श्रीगंगानगर जाना है, विक्रम की लाश लेने?”

“नहीं अंकल रागिनी ने लाश ले ली है और वो सीधा यहीं दिल्ली आ रही है... में आपका एड्रैस उसे मैसेज कर देता हूँ...” अभय ने बताया

“ये रागिनी कौन है? ....ये सब बाद मे देखते हैं.... पहले तो उसे एक एड्रैस मैसेज करो पाहुचने के लिए.... क्योंकि विक्रम का दाह संस्कार दिल्ली मे नहीं.... उसी गाँव मे होगा जहाँ उसने और हम भाइयों ने, हमारे पुरखों ने जन्म लिया और राख़ हुये... एड्रैस नोट करो.... गाँव ...... ....... कस्बे के पास जिला..... उत्तर प्रदेश राजस्थान बार्डर से 100 किलोमीटर है .....”

अभय ने एड्रैस टाइप किया और रागिनी को मैसेज कर दिया साथ ही मैप पर लोकेशन सर्च करके भी भेज दी... फिर रागिनी को फोन किया

“हाँ अभय ये एड्रैस किसका है?” रागिनी ने फोन उठाते ही पूंछा

“रागिनी...तुम्हें विक्रम की लाश लेकर इस एड्रैस पर पाहुचना है, ये विक्रम के गाँव का पता है... में अभी विक्रम के चाचाजी बलराज सिंह जी के साथ हूँ उनका कहना है की विक्रम का दाह संस्कार उनके गाँव में ही किया जाएगा.... हम भी वहीं पहुँच रहे हैं” अभय ने उसे बताया

“ठीक है! अनुराधा और प्रबल तुम्हारे पास पहुंचे?” रागिनी ने पूंछा

“हाँ! वो दोनों अभी मेरे साथ ही यहीं पर हैं...वो हमारे साथ ही वहीं पहुंचेंगे” अभय ने अनुराधा की ओर देखते हुये कहा। अनुराधा अभय की ओर ही देख रही थी लेकिन उसने अभय की बात पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और वैसे ही चुपचाप बैठी रही

“ठीक है...” कहते हुये रागिनी ने फोन काट दिया

फोन कटते ही बलराज सिंह ने अनुराधा और प्रबल की ओर इशारा करते हुये पूंछा “ये दोनों कौन हैं?”

“ये आपके भाई देवराज सिंह और रागिनी के बच्चे हैं” अभय ने बताया

“देवराज के बच्चे... लेकिन उसने तो शादी ही नहीं की” बलराज ने उलझे हुये स्वर मे कहा फिर गहरी सांस छोडते हुये अभय के जवाब देने से पहले ही बोले “अभी ये सब छोड़ो.... तुम हमारे साथ गाँव चल रहे हो ना?”

“जी हाँ! में और ये दोनों भी”

“ठीक है! ऋतु तुम अपनी माँ को सम्हालो... इन्हें और तुम्हें जो कुछ लेना हो ले लो.... हम सब अभी निकाल रहे हैं 200 किलोमीटर का सफर है...रास्ता भी खराब है.... हमें उन लोगों से पहले गाँव में पहुँचना होगा...” कहते हुये बलराज सिंह ने फोन उठाकर कोई नंबर डायल किया

........................................................

 

उत्तर प्रदेश का एक छोटा सा गाँव.... सड़क के दोनों ओर घर बने हुये... लेकिन ज्यादा नहीं एक ओर 5-6 घर दूसरी ओर 10-12 घर गाँव के हिसाब से  अच्छे बने हुये, देखने से ही लगता है की गाँव सम्पन्न लोगो का है,,,,,,,,, लेकिन ये क्या? ज़्यादातर घरों पर ताले लगे हुये जैसे उनमे किसी को आए अरसा बीत गया हो....धूल और सूखी पत्तियों के ढेर सड़क पर से नज़र आते हैं..... हर घर का मुख्य दरवाजा सड़क पर ही है....कोई गली नहीं....गाँव के शुरू में बाहर सड़क किनारे एक मंदिर है...उसकी साफ सफाई देखकर लगता है की गाँव मे कोई रहता भी है....मंदिर के सामने 2-3 बुजुर्ग सुबह के 5 बजे खड़े हुये हाइवे की तरफ सड़क पर नजरें गड़ाए हैं.... शायद किसी का इंतज़ार कर रहे हैं... लेकिन इतनी सुबह वहाँ कोई हलचल ही नज़र नहीं आ रही थी....

तभी उन्हें दूर से कुछ गाडियाँ इस ओर आती दिखाई देती हैं तो वो चोकन्ने होकर खड़े हो जाते हैं और एक बुजुर्ग गाँव मे आवाज देकर किसी को बुलाता है उसकी आवाज सुनकर 5-6 युवा लड़के गाँव की ओर से आकार मंदिर पर खड़े हो जाते हैं...

तब तक गाडियाँ भी आ जाती है... सबसे पहली गाड़ी का दरवाजा खुलता है और बलराज सिंह बाहर निकलते हैं... उन्हें देखते ही वो सब बुजुर्ग आकर उनसे गले मिलते हैं.... सभी लड़के शव लेकर आयी गाड़ी के पास पाहुचते हैं और उसमें से विक्रम का शव निकालकर मंदिर के बराबर ही खाली मैदान मे जामुन के पेड़ के नीचे जमीन पर रख देते हैं...... उस मैदान मे गाँव के अन्य आदमी औरतें शव के पास बैठने लगते हैं..... बलराज सिंह सभी को गाड़ियों से उतारने को बोलते हैं और खुद भी उन बुजुर्गों के साथ जाकर वहीं बैठ जाते हैं..... उनको देखकर ऋतु भी मोहिनी देवी को लेकर वही बढ्ने लगती है तो रागिनी आगे बढ़कर मोहिनी देवी को दूसरी ओर से सहर देकर चलने लगती है..... पीछे-पीछे अभय, पूनम, अनुराधा और प्रबल भी वहीं जाकर बैठ जाते हैं..... गाँव के युवा दाह संस्कार की प्रक्रिया शुरू करने के लिए बलराज सिंह व अन्य बुजुर्गो से पूंछते हैं तो सभी बुजुर्ग कहते हैं की विक्रम का विवाह तो शायद हुआ नहीं तो उसकी कोई संतान भी नहीं.... और कोई बेटा इनके घर मे है नहीं इसलिए बलराज सिंह को ही ये सब करना पड़ेगा... क्योंकि वो विक्रम के पिता समान ही हैं....

तभी अभय बलराज सिंह से इशारे में कुछ बात करने को कहता है.... बलराज सिंह और अभय उठकर एक ओर जाकर कुछ बातें करते हैं और लौटकर बलराज सिंह सभी से कहते हैं

“मुझे अभी अभय प्रताप सिंह वकील साहब ने बताया है की विक्रम की वसीयत इनके पास है.... उसमें विक्रम ने इच्छा जाहीर की हुई है की विक्रम की मृत्यु होने पर उसका दाह संस्कार प्रबल प्रताप सिंह करेंगे... जो हमारे साथ आए हुये हैं....”

गाँव वालों को इसमें कोई आपत्ति नहीं हुई क्योंकि ये विक्रम और उसके परिवार का निजी फैसला है की दाह संस्कार कौन करे..... लेकिन ये सुनकर मोहिनी देवी, ऋतु, रागिनी और प्रबल-अनुराधा सभी चौंक गए.....

लेकिन ऐसे समय पर किसी ने कुछ कहना या पूंछना सही नहीं समझा.... गाँव के युवाओं ने प्रबल को साथ लेकर शव को नहलाना धुलना शुरू किया.... कुछ काम जो स्त्रियॉं के करने के थे वो गाँव की स्त्रियॉं ने मोहिनी देवी को साथ लेकर शुरू किए.... कुछ युवा श्मशान मे चिता की तयारी करने चले गए....

अंततः सभी पुरुष शव को लेकर श्मशान पहुंचे और प्रबल के द्वारा दाह संस्कार करके वापस गाँव मे आए तो गाँव की स्त्रियाँ मोहिनी देवी, रागिनी व अन्य सभी को लेकर एक घर मे अंदर पहुंची और पुरुष बलराज सिंह, प्रबल आदि को लेकर उसी घर के बाहर बैठक पर पहुंचे......

…………………………………………..

 

“अंकल! आप सभी को रात 10 बजे एक जगह इकट्ठा होने को बोल दीजिये ... तब तक गाँव वाले और आपके जान पहचान रिश्तेदार सभी जा चुके होंगे.... मे वो वसीयत आप सभी के सामने रखना चाहता हूँ जो मुझे विक्रम ने दी थी.....उसमें कुछ दस्तावेज़ मेंने पढे हैं और कुछ लोगों ...बल्कि अप सभी के नाम अलग अलग लिफाफे हैं जो में नहीं खोल सकता... वो लिफाफे जिस जिस के हैं उन्हें सौंप दूंगा.... फिर उनकी मर्जी है की वो सबको या किसी को उसमें लिखा हुआ बताएं या न बताएं.......... जितना सबके लिए है... वो में सबके सामने रखूँगा” अभय ने बलराज सिंह को एकांत मे बुलाकर उनसे कहा

“ठीक है में घर मे बोल देता हूँ” बलराज सिंह ने बोला और अंदर जाकर मोहिनी देवी के को देखा तो वो औरतों के बीच खोयी हुई सी बैठी थीं तो उन्होने ऋतु को अपने पास बुलाकर उससे बोल दिया।

...................................

रात 10 बजे सभी लोग बैठक में इकट्ठे हुये क्योंकि घर गाँव के पुराने मकानों की तरह बना हुआ था तो केवल कमरे, बरामदा और आँगन थे.... आँगन मे सभी को इकट्ठा करने की बजाय बैठक का कमरा जो एक हाल की तरह था....वहाँ सभी इकट्ठे हुये........

अभय ने अपना बैग खोलकर उसमें से एक बड़ा सा फोंल्डर निकाला जो लिफाफे की तरह बंद था और उसमें से कागजात निकालकर पढ़ना शुरू किया

“में विक्रमादित्य सिंह अपनी वसीयत पूरे होशो हवास मे लिख रहा हु जो मेरी मृत्यु के बाद मेरी सम्पत्तियों के वारिसों का निर्धारण करेगी और परिवार के सदस्यों के अधिकार व दायित्व को भी निश्चित करेगी......

मेरी संपत्ति मे पहला विवरण मेरे दादाजी श्री रुद्र प्रताप सिंह जी की संपत्ति है जिसका विवरण अनुसूची 1 में संलग्न है.....मेरे दादा की संपत्ति संयुक्त हिन्दू पारिवारिक संपत्ति है.... जिसमें परिवार का प्रत्येक सदस्य हिस्सेदार है लेकिन वो संपत्ति परिवार के मुखिया के नाम ही है...और उसका बंटवारा नहीं होगा.... उस संपत्ति को परिवार का मुखिया ही पूरी तरह से देखभाल और व्यवस्था करेगा.... यदि परिवार का कोई सदस्य अपना हिस्सा लेना चाहे तो उसे उसके हिस्से की संपत्ति की कीमत देकर परिवार से अलग कर दिया जाएगा....... मेरे दादाजी के बाद इस संपत्ति के मुखिया मेरे पिता श्री गजराज सिंह थे लेकिन उनकी मृत्यु हो जाने के पश्चात और उनके मँझले भाई श्री बलराज सिंह के परिवार से निकाल दिये जाने तथा उनके छोटे भाई श्री देवराज सिंह के परिवार से अलग हो जाने के कारण में इस संयुक्त परिवार का मुखिया हूँ.... मेरे बाद इस संपत्ति का मुखिया प्रबल प्रताप सिंह को माना जएगा....और संपत्ति में मोहिनी देवी, रागिनी सिंह, ऋतु सिंह व प्रबल प्रताप सिंह बराबर के हिस्सेदार होंगे..... लेकिन प्रबल प्रताप सिंह का विवाह होने तक उनके हर निर्णय पर मोहिनी देवी की लिखित स्वीकृति आवश्यक है.... वो मोहिनी देवी की सहमति के बिना कोई फैसला नहीं ले सकते

मेरी दूसरी संपत्ति मेरे नाना श्री भानु प्रताप सिंह की है जिनकी एकमात्र वारिस मेरी माँ कामिनी देवी थीं लेकिन उनके कई वर्षों से लापता होने के कारण में उस संपत्ति का एकमात्र वारिस हूँ..... ये संपत्ति में मेरी मृत्यु के बाद रागिनी सिंह, ऋतु सिंह और अनुराधा सिंह  तीनों बराबर की हिस्सेदार होंगी लेकिन ये संपत्ति ऋतु और अनुराधा की शादी होने तक रागिनी सिंह के अधिकार में रहेगी

मेरी तीसरी संपत्ति मेरे छोटे चाचाजी देवराज सिंह की है जिनको अपनी ननिहाल की संपत्ति विरासत मे मिली और उनके द्वारा गोद लिए जाने के कारण मुझे विरासत मे मिली.... ये संपत्ति अनुराधा और प्रबल को आधी-आधी मिलेगी  लेकिन इन दोनों की शादी होने तक रागिनी सिंह के अधिकार मे रहेगी.....

और अंतिम महत्वपूर्ण बात................

रागिनी सिंह देवराज सिंह की पत्नी नहीं हैं

अनुराधा और प्रबल देवराज सिंह या रागिनी के बच्चे नहीं हैं

अनुराधा और प्रबल आपस मे भाई बहन भी नहीं हैं

लेकिन रागिनी की याददस्त चले जाने और अनुराधा व प्रबल दोनों को बचपन से इस रूप मे पालने की वजह से इन तीनों को ये जानकारी नहीं है.... लेकिन में इस दुनिया से जाते हुये इनको उस भ्रम मे छोडकर नहीं जा सकता, जो इनकी सुरक्षा के लिए मेंने इनके दिमाग मे बैठकर एक परिवार जैसा बना दिया था..... इन तीनों के लिए अलग अलग लिफाफे दे रहा हूँ.... जिनमें इनके बारे में जितना मुझे पता है... उतनी जानकारी मिल जाएगी.... ये चाहें तो इन लिफाफों मे लिखी जानकारियाँ किसी को दें या न दें.... अगर ये किसी तरह अपने असली परिवार को ढूंढ लेते हैं तो भी इनके अधिकार और शर्तों मे कोई बदलाव नहीं आयेगा”

ये कहते हुये अभय ने रागिनी, अनुराधा और प्रबल को उनके नाम लिखे हुये लिफाफे फोंल्डर में से निकालकर दिये...........

लेकिन इस वसीयत के इस आखिरी भाग ने सभी को हैरान कर दिया और उसमें सबसे ज्यादा उलझन रागिनी, अनुराधा और प्रबल को थी..... क्योंकि उन तीनों की तो पहचान ही खो गयी..... लेकिन अचानक रागिनी को कुछ याद आया तो उसने अभय से कहा

“तुम तो मेरे और विक्रम के साथ कॉलेज मे पढ़ते थे... तो तुम्हें तो मेरे बारे में पता होगा?” और उम्मीद भरी नज़रों से अभय को देखने लगी......

शेष अगले भाग में
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#26
शानदार अपडेट।
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#27
अध्याय 6


लेकिन इस वसीयत के इस आखिरी भाग ने सभी को हैरान कर दिया और उसमें सबसे ज्यादा उलझन रागिनी, अनुराधा और प्रबल को थी..... क्योंकि उन तीनों की तो पहचान ही खो गयी..... लेकिन अचानक रागिनी को कुछ याद आया तो उसने अभय से कहा

“तुम तो मेरे और विक्रम के साथ कॉलेज मे पढ़ते थे... तो तुम्हें तो मेरे बारे में पता होगा?” और उम्मीद भरी नज़रों से अभय को देखने लगी......

अब आगे..................................

“रागिनी में कॉलेज मे तुम्हारे साथ तो पढ़ा हूँ, लेकिन मेरा तुमसे कोई ताल्लुक नहीं रहा... विक्रम मेरा दोस्त था और तुम्हारा दुश्मन। मुझे तो आज तक भी ताज्जुब होता है की विक्रम ने तुम्हारे लिए इतना सब क्यों किया..... जबकि कॉलेज में तुमने हमेशा उसे दुखी, परेशान और बेइज्जत करने की ही कोशिश की थी... ये तो सब बाद की बातें हैं.... तुम्हारे बारे में इतना ही मुझे पता था कि तुम्हारा एक भरा पूरा परिवार था... माँ-बाप, भाई-भाभी और उनके बच्चे…. इससे ज्यादा मुझे कुछ नहीं पता” अभय ने रागिनी को बताया और फिर सब को संबोधित करके बोला “आप सब के किसी भी सवाल का जवाब में नहीं दे पाऊँगा क्योंकि में विक्रम के अलावा आप सब में से किसी के भी बारे मे कुछ नहीं जानता....हाँ! विक्रम ने सिर्फ इन तीनों के लिए ही नहीं.... सभी के लिए अलग-अलग लिफाफे छोड़े हैं जो में आपको देता हूँ.... इन लिफाफों को पढ़कर शायद आपको कोई नई जानकारी मिले.... साथ ही एक बार फिर से बता दूँ कि इन लिफाफों में दी हुई जानकारी.... आप अपनी इच्छा से किसी को बता भी सकते हैं या फिर अपने तक सीमित रख सकते हैं....इसके लिए आप पर कोई दवाब नहीं डाल सकता”

और अभय ने उस फोंल्डर में से निकालकर बलराज सिंह, मोहिनी देवी और ऋतु को भी एक-एक लिफाफा दिया.... और उस फोंल्डर को वापस बाग मे रखते हुये कहा “इस वसीयत की मेरी ज़िम्मेदारी अब खत्म होती है... मुझे जल्द से जल्द विक्रम के मृत्यु प्रमाण पत्र की कॉपी दे देना जिसे कोर्ट मे जमा करके इस वसीयतनामे को लागू किया जा सके.... में कल सुबह दिल्ली निकाल जाऊंगा... वहाँ भी काम देखना है... और श्रीगंगानगर पुलिस से इस मामले की अपडेट लेता रहूँगा...”

“में आपको वहाँ के फोन नंबर्स दे देती हूँ” कहते हुये रागिनी ने अपने फोन से वो नंबर अभय को दिये

तभी ऋतु ने कहा “भैया का मृत्यु प्रमाण पत्र भी श्रीगंगानगर से ही जारी होगा आप इन्हीं पुलिस वालों से बोलकर मँगवा लेना”

इसके बाद सभी अंदर की ओर चल दिये एक कमरे मे ऋतु और मोहिनी देवी के सोने की व्यवस्था थी, दूसरे में रागिनी और अनुराधा के .... और 3 कमरे बलराज सिंह, अभय और प्रबल के लिए थे लेकिन बलराज सिंह ने कहा की गाँव के नियमानुसार दाह संस्कार करनेवाले को बैठक में ही मतलब सार्वजनिक स्थान पर तेरह दिन तक रहना होता है...साथ में घर के 1-2 पुरुष सदस्य को भी इसलिए वो और प्रबल बैठक में ही सोयेंगे। तब अभय ने भी बैठक मे ही सोने की इच्छा जताई। इन तीनों के बैठक मे चले जाने पर ऋतु और अनुराधा भी अलग कमरों में सोने चली गईं।

.......................................................

“हैलो सुरेश! में गाँव में आ गयी हूँ... तुम कहाँ पर हो?” पूनम ने अपने पति को फोन पर पूंछा।

“में कोटा पहुँच गया हूँ... तुम वहीं रुकना ....में कल शाम तक बच्चों को लेकर पहुँच जाऊंगा” सुरेश ने जवाब दिया “तुम तो अपने घर पर ही होगी?”

“हाँ में घर ही आ गयी थी.... गाँव मे होते हुये अपने घर की बजाय उनके घर रुकना मेंने सही नहीं समझा... बच्चों के स्कूल में भी छुट्टी के लिए बोल देना...की उनके चाचा की मृत्यु की वजह से गाँव जा रहे हैं”

“ठीक है” कहते हुये सुरेश ने फोन काट दिया और बेड पर लेटे बच्चों को चादर उढ़ाकर एक कोने मे रखी मेज के सामने कुर्सी पर आँखें मूंदकर बैठ गया

11 साल पहले

“सुरेश मेरे भाई तू पागल तो नहीं हो गया? पूनम से शादी करेगा.... में किसी भी लड़की से तेरी शादी करा दूँगा.... लेकिन यार तू मेरा छोटा भाई है.... और मेरे और पूनम के रिश्ते को सिर्फ जानता ही नहीं.... बहुत कुछ देखा भी है तूने.... फिर भी” विक्रम ने चिल्लाते हुये सुरेश से कहा

“विक्रम यार अगर तुझे पूनम से शादी करनी है तो में रास्ते से हट जाऊंगा.... पूनम से खुद कह दूँगा की तुझ से शादी कर ले .... लेकिन अगर ऐसा नहीं है तो फिर मुझे मत रोक .... में और पूनम एक दूसरे को प्यार करते हैं.... और एक न एक दिन हम दोनों को ही किसी न किसी से शादी करनी ही होगी.... तो क्यों न एक दूसरे से कर लें.... वैसे तो शायद मेरे या पूनम के घरवाले न भी मानते लेकिन तू ये शादी करवा ही देगा... मुझे मालूम है” सुरेश ने लगभग गिड़गिड़ाते हुये विक्रम से कहा

“यार में तेरे या पूनम के प्यार के खिलाफ नहीं हूँ.... लेकिन मेरे और पूनम के बीच जो रिश्ता रहा है.... एक दिन तेरे मेरे बीच नफरत पैदा कर देगा, आज प्यार के जोश में तू सब भूल गया लेकिन कल तुझे येही कांटे से चुभेंगे.......... और सबसे बड़ी बात... में खुद अपनी नज़रों मे गिर जाऊंगा जब तुझे पूनम के साथ देखुंगा.... में कैसे तुम दोनों का सामना कर पाऊँगा”

“विक्की मेरे भाई.... ऐसा इस जनम मे कभी मत सोचना... की मेरी नज़र में आपकी इज्ज़त कम हो सकती है”

“ठीक है.... तू पूनम को बोल दे.... में तुम दोनों के माँ बाप से बात करके शादी की तारीख निकलवाता हूँ”

15 दिन के अंदर सुरेश और पूनम की शादी हो जाती है.... विक्रम स्टेज पर बैठे सुरेश और पूनम को एक गाड़ी और एक फ्लॅट की चाबियाँ देता है... और धीरे से कहता है...... “तुम दोनों ने एक दूसरे को पा लिया मुझे बहुत खुशी हुई लेकिन आज के बाद कभी मुझसे मिलने की सोचना भी मत.... और में भी जीतेजी कभी तुम दोनों के सामने नहीं पड़ूँगा...” और उन दोनों के कुछ कहने से पहले ही पलट कर सीधा वहाँ से चला जाता है

अब...............

सुरेश मन में “मेरे भाई जीतेजी क्या तू तो मरने के बाद भी मेरे सामने नहीं आया” और उसकी आँखों से आँसू बहने लगते हैं...

....................................................

इधर गाँव में............

सभी अपने अपने कमरों में चले गए.... रागिनी भी अपने कमरे में जाकर पलंग पर बैठ गयी और हाथ में पकड़े लिफाफे को टकटकी लगाए देखती रही..... कुछ देर ऐसे ही देखने के बाद उसने लिफाफे को खोला और उसमे रखे कागजात को बाहर निकाला....

सबसे ऊपर एक पुराने से कागज पर दिल्ली के एक अस्पताल का नाम पता और 14 अगस्त 1979 की तारीख दर्ज थी लेकिन उस कागज पर और कुछ भी नहीं लिखा हुआ था। उसके बाद दिल्ली के ही एक कॉलेज का प्रवेश पत्र जिसमें रागिनी का विवरण दिया हुआ था अप्रैल 2000 का उसमें केवल कोर्स का नाम, परीक्षाओं की तारीखें और रागिनी का नाम और फोटो था।

उसे अभी रागिनी गौर से देख ही रही थी की उसे अपने दरवाजे पर हल्की सी खटखटने की आवाज सुनाई दी तो उसने उन कागजातों को वापस लिफाफे मे रखा और उठकर दरवाजे के पास पहुँचकर धीरे से पूंछा “कौन?”

“माँ! में अनुराधा” बाहर से जवाब सुनते ही रागिनी ने दरवाजा खोलकर अनुराधा को अंडर आने का रास्ता दिया...अनुराधा अंदर आकार पलंग पर बैठ गयी...रागिनी ने भी दरवाजे को बंद किया और आकार अनुराधा के पास ही पलंग पर बैठ गयी... रागिनी के बैठते ही अनुराधा ने अपनी बाहें उसकी कमर में लपेटी और उसके सीने में मुंह छुपकर रोने लगी....रागिनी की भी आँखों में आँसू आ गए और अनुराधा के आँसू पूंछते हुये उसे उठाकर अपनी गोद मे लिटाकर चुप करने लगी।

“माँ! ये विक्रम भैया ने झूठ लिखा है ना!...आप ही मेरी माँ हो” अनुराधा ने रोते हुये कहा

“अनुराधा! मेरे और तुम्हारे बीच में क्या रिश्ता है या कोई रिश्ता है भी या नहीं... मुझे नहीं मालूम लेकिन तुम्हें मेंने जन्म नहीं दिया.... ये मुझे पता है” रागिनी ने कहा

“माँ! आपकी याददस्त चले जाने के कारण आप ऐसे समझती हैं लेकिन में जानती हूँ, बचपन से में आपके साथ ही रही थी...अपने ही मुझे पाला है.... हमारा इन सब से कोई रिश्ता नहीं... ये मुझे भी पता है क्योंकि पहले हमारा घर कहीं और था किसी बड़े शहर में.... एक दोमंजिला मकान था जिसमें में आपके साथ रहती थी...वहाँ हमारे घर के और भी लोग रहते थे.... लेकिन उनकी शक्लें अब मुझे याद नहीं....मेंने विक्रम भैया को पहली बार उसी दिन देखा था जब वो उस मकान से मुझे कोटा उस हवेली मे लेकर आए थे.... उनके साथ पुलिस थी जो वहाँ दूसरी मंजिल पर रह रही औरत को पकड़कर ले गयी थी और मुझे विक्रम भैया के हवाले कर दिया था” अनुराधा ने बताया तो रागिनी चौंक कर उसकी ओर गहरी नज़र से देखने लगी

“लेकिन ... बेटा तुम भी अब बच्ची नहीं हो... तुम्हें मालूम होगा की एक औरत बच्चे को जन्म कैसे देती है... मे... मे... मेरे साथ आजतक किसी ने शारीरिक संबंध यानि संभोग ही नहीं किया है बच्चा होना तो दूर की बात है.... ये बात मुझे एक डॉक्टर ने कोटा मे बताई थी.....”

अब चौंकने की बारी अनुराधा की थी.... अचानक अनुराधा को कुछ ध्यान आया तो वो पलंग से उठकर दरवाजा खोलकर बाहर निकाल गयी और कुछ क्षणो में ही हाथ में लिफाफा लिए अंडर आकार रागिनी के पास आकार बैठ गयी और अपना लिफाफा रागिनी की ओर बढ़ा दिया... रागिनी ने काँपते हाथों से उस लिफाफे को पकड़ा और खोलकर उसमें रखे समान को बाहर निकाला उसमें एक फोटो था जिसमें एक युवती की गोद में एक छोटी बच्ची थी... फोटो को दोनों ने गौर से देखा तो वो युवती रागिनी थी.... साथ में एक FIR थी जिसे विक्रम ने दर्ज कराया था किसी विमला पत्नी विजय सिंह के खिलाफ दिल्ली के गुमशुदा तलाश केंद्र कोतवाली दरियागंज में रागिनी पुत्री विजय सिंह के गायब होने की सूचना के साथ 7 जुलाई 2000 की तारीख को ये सूचना दर्ज कराई गयी थी।

ये देखते ही रागिनी ने अनुराधा से कहा की बैठक से प्रबल को बुला लाये और वो अपना लिफाफा साथ लेकर आए.....
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#28
Great... Suspense is on... Keep posting little fast please.
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#29
(18-01-2020, 10:10 PM)bhavna Wrote: Great... Suspense is on... Keep posting little fast please.

:थैंक्स ........ आपके लगातार साथ बने रहने और कहानी पसंद करने के लिए

1 अपडेट और दे रहा हूँ
अभी कुछ देर में
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#30
अध्याय 7


बैठक में अभय तो चुपचाप आँख बंद किए लेटा कुछ सोच रहा था या सो रहा हो.... प्रबल अपने हाथ मे लिफाफा लिए उसे यूं ही देखे जा रहा यहा...उदास आँखों से..... बलराज सिंह कहीं खोये से छत की ओर देख रहे थे.... आज के घटनाक्रम और इस वसीयत से खुले राज आज किसी को भी नींद नहीं आने दे रहे थे

तभी अनुराधा ने अंदर को खुलने वाले दरवाजे से बैठक में झाँकते हुये प्रबल को आवाज दी तो सभी पलटकर अनुराधा की ओर देखा

“प्रबल! चल माँ अंदर बुला रही हैं...और ये लिफाफा भी लेता हुआ आ” कहकर अनुराधा अंदर की ओर चल दी । प्रबल ने एक बार अभय और बलराज सिंह पर नज़र डाली और उठकर अनुराधा के पीछे चल दिया दोनों चुपचाप रागिनी के कमरे मे अंदर घुसे और पीछे से अनुराधा ने दरवाजा बंद कर लिया ....अनुराधा जाकर रागिनी के पास बैठ गयी, रागिनी ने प्रबल को अपने पास आने का इशारा किया... प्रबल जैसे ही रागिनी के पास पहुंचा रागिनी ने उसे अपनी बाहों में भर लिया...और माँ बेटे दोनों की ही आँखों से आँसू निकालने लगे....अनुराधा भी उनदोनों को रोते देखकर खुद को रोक नहीं पायी और रागिनी के गले लगकर प्रबल और रागिनी को बाहों में भरकर रोने लगी।

रागिनी ने संभलते हुये दोनों को अपने से अलग किया और एक एक हाथ से उनके आँसू पोंछते हुये उन्हें चुप कराया और बोली “मुझे भी मालूम है की मेंने तुम दोनों को जन्म नहीं दिया लेकिन में ही तुम्हारी माँ थी, हूँ और रहूँगी... मुझे तुमसे कोई अलग नहीं कर सकता बस! एक वादा करो...तुम दोनों कभी मुझे छोडकर नहीं जाओगे।“

“ माँ! आपके अलावा हमारा है ही कौन? और अगर कोई हुआ भी... तब भी में ज़िंदगी भर आपके साथ ही रहूँगा” प्रबल ने रोते हुये कहा

“माँ! मेंने जब से होश सम्हाला है, तब से आपको ही माँ के रूप में जानती हूँ.... हाँ! उस घर में ऊपर की मंजिल पर जो औरत रहती थी वो आपके जाने के बाद मुझे अपने साथ ले गयी थी...उसने कहा था की वो ही मेरी असली माँ है.... लेकिन में उसे नहीं जानती और न ही उसे कभी माँ माना.... फिर जब उसे पुलिस पकड़ कर ले गयी तो विक्रम भैया मुझे हवेली ले आए और कुछ दिन बाद आपको भी ले आए” अनुराधा ने भी कहा “लेकिन अगर वो औरत मेरी माँ है और अब भी वो मुझे मिल जाएगी तो भी में आपके साथ ही रहूँगी”

रागिनी ने फिर प्रबल के हाथ से लिफाफा लेकर उसे खोला और उसमें मौजूद समान बाहर निकाला। एक बेहद खूबसूरत लड़की का फोटो था जिसमे एक आदमी का हाथ उसके कंधे पर रखा हुआ था लेकिन वो फोटो आधा फाड़कर उस आदमी का फोटो हटा दिया गया था। यानि वो फोटो उन दोनों ने पति पत्नी या प्रेमी-प्रेमिका की तरह साथ में खिंचवाया हुआ था.... लेकिन आधा ही फोटो था.... उसे पलटने पर उस पर एक पंक्ति में Unique Ph और दूसरी पंक्ति मे Lal Qi की आधी फटी हुई मोहर लगी हुई थी। इसके अलावा उसमें एक जन्म प्रमाण पत्र था जो दिल्ली के ही एक अस्पताल का था दिनांक 15 जुलाई 2000 का जिसमें बच्चे का लिंग पुरुष था, माँ का नाम नीलोफर जहाँ, पिता का नाम राणा शमशेर अली तथा उमरकोट, सिंध, पाकिस्तान का पता लिखा हुआ था।

इसे पढ़कर तो रागिनी ही नहीं तीनों का ही दिमाग सुन्न हो गया... मतलब ये जन्म प्रमाण पत्र अगर प्रबल का है जो की यहाँ इस लिफाफे मे होने से जाहीर है की प्रबल का ही है.... तो वो तो एक पाकिस्तानी ,., है... इसके साथ जो फोटो है उसे रागिनी ने गौर से देखा तो उस औरत या लड़की की मांग मे सिंदूर का आभास नहीं हुआ लेकिन सर पर दुपट्टा एक पारिवारिक शादीशुदा औरत की तरह ही लिया हुआ था.... यानि ये औरत प्रबल की माँ हो सकती है.... नीलोफर जहाँ।

कुछ देर तक किसी के मुंह से कोई आवाज नहीं निकली फिर रागिनी ने ही प्रबल और अनुराधा से कहा “देखो अब हम तीनों के ही लिफाफों में कुछ न कुछ हमारी पिछली ज़िंदगी, हमारे परिवार और हमारी पहचान तक पहुंचाने का रास्ता बताता है... और ये भी लग रहा है इन सब से कि....” रागिनी ने अपनी बात रोक कर दोनों कि ओर देखा और गंभीर स्वर मे बोली “हम सब का अपना-अपना घर-परिवार था या शायद अभी भी है,,,,अब हम उन्हें तलाश करते हैं तो शायद वो हमें दोबारा अपने से अलग न होने दें... तो हम सब को अपनी पिछली ज़िंदगी भूलकर...एक दूसरे को भूलकर अपने अपने घर-परिवार मे रम जाना है........... या....... हम इन सब बातों को भूलकर जैसे जी रहे थे वैसे ही जीते रहें.... पहले हम में से किसी का कुछ भी नहीं था यहाँ... सबकुछ विक्रम का था और उसी के सहारे हम थे.... हालांकि हमें ये बात पता नहीं थी.... लेकिन सच यही था........फिर भी हमें सबकुछ अपना सा लगता था........ आज विक्रम को छोडकर, हमारे पास सबकुछ है.... घर-मकान, जमीन-जायदाद लेकिन फिर भी हमें कुछ भी अपना नहीं लग रहा.............. अब फैसला तुम दोनों के ऊपर है कि क्या करना है?”

रागिनी के चुप होने के बाद प्रबल ने कहा “माँ! हम कभी एक दूसरे से अलग होकर नहीं रह सकते.... इन लिफाफों मे जो कुछ भी है... एक बार उसका भी पता करेंगे लेकिन अपनी पहचान छुपाकर....लेकिन अभी विक्रम भैया की तेरहवीं तक इस बारे में हमें कुछ नहीं करना और उनकी आत्मा कि शांति के लिए 15 दिन यहीं रहना है....उसके बाद सोचेंगे”

“और माँ! इस बारे में हमें किसी से कोई बात नहीं करनी.... न कोई भी जानकारी देनी, कि इन लिफाफों मे क्या था या हम अब क्या करेंगे या कहाँ रहेंगे.......” अनुराधा ने भी कहा “अब हमें सोना चाहिए ....ज्यादा देर ऐसे इकट्ठे रहने से भी इन सबकी नज़र में हमारी स्थिति संदेहजनक हो जाएगी.... क्योंकि विक्रम भैया ने ये बताकर कि हमारा इस परिवार से कोई संबंध नहीं...फिर भी बहुत कुछ हमारे नाम कर दिया है...लगभग अपना सबकुछ”

रागिनी ने भी दोनों को जाने को कहा और स्वयं भी बिस्तर पर लेट गई

.....................................................

इधर प्रबल के जाते ही बलराज सिंह ने अभय की ओर देखा, उसकी आँखें बंद थी...पता नहीं सो रहा था या जाग रहा था.... कुछ देर उसको देखते रहने के बाद बलराज सिंह ने कुछ सोचा और उठकर अंदर रागिनी के कमरे के बाहर पहुंचे...उन्होने प्रबल और अनुराधा को बैठक के दरवाजे से ही रागिनी के कमरे मे जाते हुये और कमरे का दरवाजा बंद होते देख लिया था।

वो दरवाजे के बाहर जाकर खड़े ही हुये थे की मोहिनी अपने कमरे के दरवाजे पर नज़र आयी और उसने उनको इशारे से बुलाया। बलराज सिंह चुपचाप उसके पीछे पीछे उसके कमरे मे चले गए....

“आपको उनकी बातें सुनने की क्या जरूरत थी...???” अंदर आते ही मोहिनी देवी ने दरवाजा बंद करते हुये कहा

“मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था की ये लोग कौन हैं और विक्रम इनके लिए इतना कुछ क्यों कर रहा था....अब भी कर गया?” बलराज सिंह ने कहा

“क्या आप इनको नहीं जानते?” मोहिनी देवी ने उन्हें घूरते हुये कहा

“में कैसे जानूँगा?” बलराज सिंह ने असमंजस में उल्टा सवाल किया

“रागिनी को भी नहीं?” मोहिनी देवी ने भी सवाल का जवाब सवाल से ही दिया और गौर से उनके चेहरे की ओर देखने लगी। ये सवाल सुनते ही बलराज सिंह का चेहरा सफ़ेद पड गया और उनके मुंह से कोई आवाज नहीं निकली तो मोहिनी देवी ने आगे कहा “रागिनी को जब में देखते ही पहचान गयी तो आपने कैसे नहीं पहचाना होगा...... आखिर आप तो विमला के पास बहुत आते जाते रहे हैं.... मेंने तो सिर्फ अखबार में ही पढ़ा और फोटो देखा था.... फिर भी रागिनी को देखते ही में रागिनी और अनुराधा दोनों को पहचान गयी”

बलराज सिंह बिना कुछ कहे दरवाजा खोलकर वापस बैठक में लौटे और अपने बिस्तर पर लेट गए।

...........................................................

इधर ऋतु भी अपने कमरे में जाकर लेती ही थी की उसे दरवाजा खुलने और बंद होने की आवाज आयी... उसने अपने दरवाजे से झाँककर देखा तो रागिनी के कमरे का दरवाजा बंद होता दिखा.... वो वापस आकर बिस्तर पर लेट गयी.... थोड़ी देर बाद फिर से वैसी आवाज आयी और बैठक की ओर जाते और वापस आते कदमो की आहट सुनी तो वो फिर अपने दरवाजे के करीब आयी.... रागिनी का दरवाजा बंद होते ही वो वापस लौटने को हुयी कि उसे बलराज सिंह रागिनी के कमरे कि ओर आते दिखे फिर मोहिनी देवी अपने दरवाजे पर....बलराज सिंह के बैठक मे जाते ही फिर से रागिनी का दरवाजा खुला तो वो निकल कर बाहर आ गयी और प्रबल को बैठक कि ओर जाते तथा अनुराधा को अपने कमरे मे जाते देखने लगी.... उसने उनसे कुछ नहीं कहा और न ही वो दोनों कुछ बोले उधर मोहिनी देवी भी चुपचाप अपने दरवाजे पर खड़ी हुई सभी को देखती रही

“ऋतु अब बहुत रात हो गयी है ....सो जाओ” इतना कहकर मोहिनी देवी ने अपना दरवाजा बंद कर लिया

....................................................

सुबह उठकर अभय दिल्ली वापस चला गया और बाकी सब गाँव में ही रुके रहे... शाम को सुरेश भी गाँव में अपने घर पहुंचा और सुरेश सुरेश के माता-पिता और पूनम बलराज सिंह के घर पहुंचे....

पूनम मोहिनी देवी से मिलने के बाद रागिनी से कुछ अलग होकर मिली तो रागिनी ने उसे अपने कमरे में चलने को कहा। कमरे में पहुँचकर रागिनी ने पूनम से अपने अतीत के बारे में पूंछा तो पूनम ने बताया कि वो विक्रम के साथ ही कॉलेज में पढ़ती थी और उसकी शादी भी विक्रम ने ही अपने परिवार के चचेरे भाई सुरेश से करा दी थी...सुरेश भी उसी कॉलेज में विक्रम के साथ ही पढ़ता था...लेकिन रागिनी से उन दोनों कि ही कोई पहचान नहीं थी.... वो रागिनी को विक्रम के द्वारा ही जानते थे.... रागिनी को कोई विशेष जानकारी नहीं मिली।

धीरे-धीरे विक्रम कि तेरहवीं का दिन भी आ गया तब दिल्ली से अभय के साथ श्रीगंगानगर पुलिस से इंस्पेक्टर राम नरेश यादव भी साथ आए... चूंकि मामला एक व्यक्ति की अज्ञात कारणों से मौत का था तो उन्होने परिवार के सभी सदस्यों से विक्रम के बारे में पूंछताछ की.... लेकिन कोई खास जानकारी नहीं मिल सकी.... फिर भी उन्होने वसीयत कि एक कॉपी पुलिस रेकॉर्ड के लिए ले ली और वापस लत गए। अगले दिन अभय ने ऋतु को भी साथ जाने के लिए कहा तो बलराज सिंह ने मोहिनी को भी साथ भेज दिया,,, इधर पूनम को रागिनी ने रुकने के लिए बोला तो उसने सुरेश को कोटा वापस भेज दिया। अब रागिनी ही नहीं अनुराधा और प्रबल भी आगे क्या करना है और कहाँ जाना है.... इस उलझन का समाधान खोजने में लगे हुये थे...रागिनी ने रात को पूनम को अपने घर रुकने को बोला तो उसने अपने सास ससुर से बात करके रुकने कि सहमति दे दी....

मित्रो आज इतना ही............. अब देखते हैं रात को इनका क्या निर्णय होता है और क्या मोड आएंगे इनकी ज़िंदगी में उस निर्णय से...........
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#31
अध्याय 8


“पूनम! मेंने तुम्हें ये सब इसलिए बताया है की मुझे विक्रम के परिवार में किसी के बारे में कोई जानकारी नहीं है...अभय भी विक्रम के साथ पढ़ता जरूर था...लेकिन वो विक्रम के परिवार से संपर्क में है काफी समय से...और शायद काफी गहराई से भी” रागिनी ने अभय और ऋतु के बारे में सोचते हुये कहा “लेकिन तुमसे विक्रम ने जब मिलवाया था तो उसने कहा था की में तुम पर विक्रम की तरह ही विश्वास कर सकती हूँ, हर बात जो विक्रम को बता या पूंछ सकती थी...तुमसे भी कर सकती हूँ, इन लिफाफों में जो कुछ भी निकला तुम्हारे सामने है...अब बताओ मुझे क्या करना चाहिए और इसमें तुम मेरी क्या सहता कर सकती हो?”

“देखो रागिनी! में कॉलेज टाइम के बारे में तो तुम्हें बता सकती हूँ ...लेकिन उसके अलावा मुझे तुम्हारे बारे में कोई जानकारी नहीं है। लेकिन तुमने जो लिफाफे में निकला कागज और प्रवेश पत्र दिखाया है... उसके बारे में कॉलेज से पता लगाया जा सकता है..... और इस अस्पताल से.... अनुराधा के लिफाफे में निकली पुलिस रिपोर्ट से लगता है की तुम्हारा और अनुराधा का कोई न कोई संबंध जरूर है...और इसका सबूत भी है...वो फोटो जिसमें तुम अनुराधा को लिए हुये हो, बस प्रबल के बारे में इतना ही पता चल सकता है कि जब उसके माँ-बाप पाकिस्तानी थे तो वो उसे यहाँ क्यों छोड़ गए... या विक्रम उसे क्यों ले आया। इस सबके लिए हमें दिल्ली जाना होगा...क्योंकि तुम सब के लिफाफे में निकली हर चीज दिल्ली की है... यहाँ तक कि प्रबल का जन्म भी दिल्ली के ही अस्पताल में हुआ था.... लेकिन गाँव कि परंपरा के मुताबिक प्रबल अगले एक साल तक यहीं रहेगा...जब तक विक्रम कि बरसी नहीं हो जाती... क्योंकि उसी ने विक्रम को मुखाग्नि दी है”

“लेकिन में यहाँ ऐसे अकेला कैसे रहूँगा? और मुझे भी तो अपने बारे में पता करना होगा?” प्रबल ने प्रतीकार करते हुये कहा तो रागिनी ने उसे शांत होने का इशारा करते हुये कहा “प्रबल! तुम्हारे बारे में अस्पताल और विदेश मंत्रालय से...जहां से वीसा जारी हुआ में पता लगाऊँगी कि तुम्हारे माँ-पिता यहाँ कब आए और कब वापस गए... गए भी या नहीं गए.... और अगर गए तो तुम्हें क्यों नहीं ले गए.... तुम एक कागज के टुकड़े में लिखी बातों से मुझसे अलग नहीं हो गए... तुम अब भी मेरे ही बेटे हो और अगर तुम मुझे छोडकर भी चले जाओगे तो भी मेरे लिए मेरे बेटे ही रहोगे....” कहते कहते रागिनी कि आँखें भर आयीं।

“लेकिन दिल्ली में हुमें किसी होटल में ही रुकना होगा, ऋतु के घर रहना मुझे सही नहीं लगता क्योंकि दिल्ली में रहते हुये कभी भी विक्रम किसी को उनके घर लेकर नहीं गया...और मेरे घरवाले भी मेरी शादी के बाद इन लोगों के ही संपर्क में हैं...इसलिए में अपने घर भी नहीं जाऊँगी” पूनम ने कहा

“में भी नहीं चाहती कि हम क्या कर रहे हैं किसी को पता चले... इसलिए होटल में ही रुकना बेहतर रहेगा.... अनुराधा तो हमारे साथ जा ही सकती है?” रागिनी ने पूंछा

“अनुराधा को साथ ले जाने में कोई बुराई नहीं...बल्कि अनुराधा को साथ ही लेकर चलो...तो कब चलने का इरादा है...?” पूनम बोली

“कल सुबह एक बार विक्रम के चाचाजी से बात करके फिर निकलते हैं.... अगर प्रबल का यहाँ रुकना जरूरी नहीं हुआ तो उसे भी साथ ले चलेंगे” रागिनी ने कहा

“लेकिन उन्हें ये नहीं बताना कि हम दिल्ली जा रहे हैं...उनसे कह देना कि हम कोटा वापस जा रहे हैं” पूनम बोली

ठीक है.....” फिर अनुराधा और प्रबल कि ओर देखकर रागिनी बोली “बच्चो! अब तुम दोनों जाकर सो जाओ, ये मेरे साथ यहीं सो जाएंगी”

अनुराधा और प्रबल दोनों कमरे से बाहर निकल गए अपने अपने कमरे में सोने के लिए। उन दोनों के जाते ही पूनम भी पलंग पर ऊपर पैर करके रागिनी के बराबर में सिरहाने से टेक लगाकर बैठ गयी और उसका हाथ अपने हाथ में लेकर बोली “यार रागिनी मुझे बड़ा अजीब लगा सुनकर की तुमने आज तक चुदाई ही नहीं की और वो भी विक्रम जैसे खिलाड़ी के साथ रहकर”

रागिनी ने चुदाई सुनकर एकदम चौंकर उसकी ओर देखा और उसका हाथ अपने हाथ से झटककर गुस्से में बोली “ये कैसी गंदी जुबान बोल रही हो तुम...और विक्रम के साथ रहकर भी से क्या मतलब है तुम्हारा?”

“अरे यार अब न तो तुम कोई बच्ची हो न में....और न ही यहाँ पर बच्चे हैं की उनके सामने ऐसी बातें नहीं हो सकतीं। चुदाई को चुदाई न कहूँ तो क्या कहूँ... सेक्स या संभोग तो किताबी भाषा है.... आम बोलचाल में उसे चुदाई ही कहते हैं ज़्यादातर लोग.... चाहे कितने भी पढे लिखे हों” पूनम ने मुस्कुराकर उसका हाथ फिर से पकड़ते हुये कहा “में समझ सकती हूँ, जिसने चुदवाया ना हो उसे ये सुनने में भी गंदा लगता है और बोलने में भी शर्म आती है। जहां तक विक्रम की बात है तो तुम्हारी याददास्त चली जाने की वजह से तुम्हें कुछ याद नहीं, लेकिन एक जमाने में तुम उसके इन्हीं कारनामों की वजह से उससे नफरत करती थीं उसके लिए कॉलेज में न जाने कितनी मुश्किलें खड़ी कर दी थी तुमने... में इसी वजह से तो तुम्हें जानती थी। विक्रम और मेरे बीच रिश्ता दोस्ती या प्यार का नहीं था.... चुदाई का था.... विक्रम ने अपनी ज़िंदगी में जितना में जानती हूँ और समझ पायी हूँ,,, कभी किसी से प्यार नहीं किया...या यूं कहो की कभी किसी से प्यार नहीं कर पाया। पता नहीं क्या वजह थी की उसे प्यार शब्द से भी नफरत थी.... स्त्री से रिश्ते को वो सिर्फ एक ही रूप में जानता और मानता था,,,,हवस, शरीर की.... मेंने बहुत बार उससे पूंछा लेकिन उसने कभी इसका कारण नहीं बताया। मुझे हमेशा ऐसा लगता था की वो जैसा दिखता है...वैसा है नहीं। उस दिन श्रीगंगानगर जाते समय जब तुमने मुझे बताया की तुम बिलकुल अछूती हो तो मेरा ये विश्वास सही साबित हुआ...”

“क्यों? हो सकता है कि उसे मौका ही ना मिला हो... जैसा तुमने बताया कि वो हवस का भूखा था लेकिन शायद इन बच्चों कि वजह से मेरे साथ कुछ कर नहीं पाया” रागिनी ने बीच में टोकते हुये कहा

“बच्चों कि वजह ऐसी नहीं कि उसे मौके नहीं मिले होंगे... लेकिन उसका एक उसूल था...कॉलेज के दिनों में भी... कि, वो कभी किसी लड़की के पीछे नहीं पड़ा, कभी किसी से जबर्दस्ती नहीं की, कभी किसी को प्यार के नाम पर नहीं बहकाया.... तुम्हारे मामले में भी ऐसा ही हुआ.... क्योंकि तुम्हारी याददास्त चली गयी थी इसीलिए उसने तुम्हारा कोई फाइदा नहीं उठाया.... लेकिन मुझे अब तक ये समझ नहीं आया कि उसने तुम्हें सहारा तो इसलिए दिया कि तुम अपना सबकुछ भूल चुकी थी, और बेसहारा थी.... लेकिन उसने तुम्हारे बारे में जो जानकारी लिफाफे में छोड़ी है उससे वो खुद भी तो तुम्हारे बारे मे पता लगाकर तुम्हें तुम्हारे परिवार के हवाले कर सकता था इसकी बजाय उसने तुम्हें अपने घर में तुम्हारी पहचान छुपाकर रखा और उसके बाद भी अपनी सारी जमीन जायदाद यहाँ तक की पुश्तैनी पारिवारिक जायदाद में भी तुम्हें न सिर्फ हिस्सेदार बनाया बल्कि अपनी निजी जायदाद का तो तुम्हें केयर टेकर ही बना दिया.... इसमें भी कोई न कोई वजह जरूर है”

“एक वजह तो ये है कि....” कहते-कहते रागिनी रूक गयी फिर कुछ सोचकर बोली “ जैसा तुमने कहा कि विक्रम को प्यार से नफरत थी.... लेकिन ऐसा नहीं है...विक्रम को मुझसे प्यार था.... शुरुआत में में विक्रम से आकर्षित हुई, मेंने उससे प्यार का इज़हार किया ..... उसने भी मुझसे कहा कि वो मुझसे प्यार करता है..... लेकिन जब-जब मेंने उसके पास जाने कि कोशिश कि वो हमेशा मुझसे दूर ही रहा..... तुम कहती हो कि वो सिर्फ हवस को ही जानता और मानता था.... मेंने अपनी जवानी के उस उफान के समय जब हम दोनों ही जवान थे उसे कई बार अपना सब कुछ सौंपना चाहा, उसे उकसाया भी.... लेकिन वो हर बार मुझसे दूर हट जाता था.... कहता था ये ठीक नहीं है..... मुझे लगता था कि वो हमारे उस रिश्ते कि वजह से दूर हट जाता है.... जो कभी था ही नहीं और उसे मालूम भी था... में ही तो नहीं जानती थी कि में देवराज सिंह कि पत्नी नहीं हूँ.... लेकिन वो जानते हुये भी कभी मेरे पास नहीं आया.... वो अगर मुझसे शादी भी करना चाहता तो मे तयार हो जाती...... लेकिन शायद तुमने सही कहा वो मेरी याददास्त चले जाने की वजह से ही मुझसे दूर हो जाता था..... लेकिन सवाल ये भी है कि वो इन सुरागों और जैसा अनुराधा ने बताया वो हमारे घर को ही नहीं परिवार को भी जानता था.... तो मुझे वो सब बताकर भी ऐसा कर सकता था..... लेकिन उसने ऐसा किया क्यूँ नहीं?................. मेरा तो दिमाग ही काम नहीं कर रहा..... अब सोते हैं और कल दिल्ली पहुँचकर देखते हैं क्या पता चलता है” रागिनी ने बात खत्म करते हुये कहा तो, कुछ कहते-कहते पूनम भी रुक गयी और दोनों बिस्तर पर लेटकर नींद का इंतज़ार करने लगीं.... क्योंकि इतने सवाल दिमाग मे होते हुये नींद इतनी आसानी से कैसे आ सकती थी..... लेकिन नींद और भूख कुछ नहीं देखती... आखिरकार दोनों सो गईं।

सुबह जब रागिनी उठी तो पूनम किसी से फोन पर अपने दिल्ली जाने का बता रही थी, रागिनी ने ध्यान दिया तो उसकी बातों से पता चला कि वो अपने पति सुरेश से बात कर रही थी। रागिनी को उठा देखकर उसने अपनी बात खत्म कि और बोली कि वो अपने घर जाकर बोल आती है कि वो कोटा जा रही है.... लेकिन बच्चे जिद कर रहे हैं जो कि वो करेंगे भी, इसलिए वो बच्चों को कुछ दिन के लिए गाँव में छोड़ रही है। रागिनी ने उसे सहमति दे दी लेकिन उससे पूंछा कि उसने अपने पति को ये क्यों बता दिया कि वो दिल्ली जा रहे हैं तो पूनम ने कहा कि सुरेश को सबकुछ सच बता दिया है... अगर उसके घर से या विक्रम के घर से किसी ने कुछ जानकारी करने कि कोशिश कि तो सुरेश उन्हें संभाल लेगा...और सुरेश को सारी जानकारी होने से भी वो उनके लिए कोई परेशानी नहीं पैदा करेगा बल्कि कोई परेशानी होने पर सहायता भी कर सकता है।

तभी दरवाजे को किसी ने खटखटाया तो दरवाजे के पास ही खड़ी पूनम ने दरवाजा खोल दिया, अनुराधा और प्रबल कमरे के अंदर आकर रागिनी के पास खड़े हो गए। रागिनी ने दोनों को तैयार होने को कहा और खुद उठकर बैठक कि ओर चली गयी, बैठक के दरवाजे से अंदर देखा बलराज सिंह किसी सोच में डूबे लेते हुये छत की ओर देख रहे हैं। अचानक उन्हें बैठक के अंदर वाले दरवाजे पर किसी के खड़े होने का आभास हुआ तो उन्होने पलटकर रागिनी कि ओर देखा और उठकर बैठ गए, रागिनी भी उनके पास जाकर खड़ी हो गयी।

“क्या कुछ बात है? कुछ कहना था?” बलराज सिंह ने पूंछा 

“जी हाँ!... में कोटा हवेली वापस जाना चाहती हूँ और बच्चों को भी ले जाना चाहती हूँ,,,,अगर आपको कोई आपत्ति न हो तो!” रागिनी ने कहा

बलराज सिंह कुछ देर चुपचाप उसकी ओर देखते रहे फिर बोले “मुझे तो कोई आपत्ति नहीं है... वैसे परंपरा के अनुसार प्रबल को यहाँ 1 साल तक रोजाना दीपक जलाना चाहिए इस घर में... लेकिन ये काम परिवार का कोई भी सदस्य कर सकता है... तो में कर लूँगा लेकिन हर महीने उसी हिन्दी तिथि को जिस दिन विक्रम का दाह संस्कार हुआ, प्रबल को यहाँ आकर एक ब्राह्मण को भोजन कराना जरूरी है.... ये तुम्हें निश्चित करना होगा कि प्रबल हर महीने यहाँ आए”

“ठीक है,,,, और आप निश्चिंत रहें जब भी आप बुलाएँगे में खुद प्रबल को लेकर यहाँ आ जाऊँगी..... मेरा, और बच्चों का मोबाइल नं आप ले लें और अपने नं मुझे दे दें” रागिनी ने कहा और अपने मोबाइल नं उन्हें दे दिये... बलराज सिंह ने भी अपना, दिल्लीवाले घर का और ऋतु का मोबाइल नं रागिनी को दे दिया।

बैठक से घर में आकार रागिनी ने अनुराधा और प्रबल को चलने के लिए तयार होने को कहा और पूनम को भी फोन कर दिया...उधर से पूनम ने बताया कि वो तयार हो चुकी है और वहाँ पहुँच रही है।

थोड़ी देर बाद ही पूनम और उसके सास-ससुर वहाँ आ गए पूनम के ससुर बैठक में बलराज सिंह के पास बैठ गए और पूनम कि सास पूनम के साथ रागिनी के पास घर में आयीं... वो घर से उन लोगों के लिए खाना लेकर आयीं थी.... जो उन्होने और पूनम ने रागिनी, अनुराधा और प्रबल को खिलाया साथ ही बलराज सिंह को भी बैठक में पूनम कि सास देकर आयीं......खाना खाकर प्रबल और अनुराधा ने अपने बैग और पूनम का बैग गाड़ी में रखा और रागिनी उन सबसे मिलकर गाड़ी में जाकर बैठ गयी... पूनम अपने सास ससुर और बलराज सिंह के पैर छूकर गाड़ी कि ओर बढ़ी तो कुछ ध्यान आने पर रागिनी ने अनुराधा को सभी को नमस्ते करने और प्रबल को सभी के पैर छूने को कहा.....जिसके बाद सभी गाड़ी में बैठकर अपनी मंजिल की ओर निकल गए...............

अब अगले अध्याय से इन सबकी कहानी दिल्ली में पहुँचने से शुरू होगी... क्या इन्हें वो पता चल पाता है... जिसे जानने ये यहाँ आए हैं?

 

कहानी से ऐसे ही जुड़े रहिए और अपनी प्रतिक्रिया देते रहिए                                         
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#32
बहुत ही अच्छी कहानी है कृपया जारी रखे
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#33
Nice story...!
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#34
अध्याय 9


“रामलाल जी! किसी भी तरह मुझे ये रेकॉर्ड में से डिटेल्स निकालकर दिखा दो कि इस तारीख को हॉस्पिटल में कौन कौन मरीज आए हुये थे या भर्ती थे” रागिनी ने लोकनायक जयप्रकाश हॉस्पिटल के क्लर्क से कहा....

वो लोग रात मे दिल्ली पहुँचकर एक होटल में रुके थे क्योंकि अभी तक उनके आधार कार्ड में उनकी देवराज सिंह की पत्नी और पुत्र-पुत्री के रूप मे पहचान दर्ज थी इसलिए होटल मे एक साथ रुकने में कोई परेशानी नहीं हुई...... सुबह उठकर रागिनी ने सभी को बैठाकर आगे कैसे शुरुआत करनी है बात की तो पूनम ने कहा कि वो और प्रबल विदेश मंत्रालय जाएंगे और उस जन्म प्रमाण पत्र के आधार पर जानकारी लेंगे। रागिनी और अनुराधा रागिनी के लिफाफे से मिले पर्चे पर लिखे हॉस्पिटल से जानकारी लेंगी और रागिनी कि गुमशुदगी कि उस रिपोर्ट के बारे में थाने से पता करेंगी.....

“देखो मेडम जी ये तारीख 1979 कि है करीब 40 साल पहले की... इसके लिए मुझे रेकॉर्ड रूम में ढूँढना होगा, आप अपना कांटैक्ट नं मुझे दे दें.... वैसे तो हम रेकॉर्ड सिर्फ कोर्ट के आदेश पर ही दिखाते हैं लेकिन अगर आप कुछ हमारा भी ख्याल करेंगी तो .... में कोशिश कर सकता हूँ... लेकिन 1-2 दिन का समय आपको देना होगा” रामलाल ने धीमी आवाज मे कहा और अपने हाथ को मसलकर इशारा किया...... उसका इशारा समझकर रागिनी ने 2000 का 1 नोट पर्स से निकालकर अपनी मुट्ठी से उसकी मुट्ठी मे रख दिया

“ठीक है मेडम जी में आपको कल तक बताता हूँ आप अपना फोन .........” उसकी बात को बीच में ही काटते हुये रागिनी ने कहा “ये मेरा नं है... उस डेट की सारी डीटेल मुझे फोटो खींचकर व्हाट्सअप कर देना....... फोटो क्लियर हो जो पढ़ने मे आ सकें... और कोई बात हो तो मुझे इसी नं पर कॉल कर देना” ये कहकर रागिनी अनुराधा के साथ बाहर निकाल गयी तभी उसके मोबाइल पर पूनम का फोन आया।

“रागिनी! यहाँ से तो कुछ पता नहीं चल रहा क्योंकि राणा शमशेर अली और नीलोफर की कोई डिटेल हमारे पास नहीं है..... यहा पासपोर्ट नं से ही सर्च होगा....” फोन उठाते ही पूनम ने बताया तो रागिनी ने कहा

“ठीक है तुम दोनों किशन गंज आ जाओ में वहीं मिलूँगी वहाँ से कैब छोडकर हम सब एक साथ ही सब जगह चलेंगे”

और बाहर पार्किंग में आकर रागिनी ने अपनी गाड़ी निकाली और अनुराधा को साथ लेकर किशनगंज की ओर चल दी, किशनगंज पहुँचकर रागिनी ने किशनगंज मार्केट में मेन रोड़ पर ही गाड़ी लगा दी और एक फल की ठेली वाले से कश्मीरी बाग का रास्ता पूंछा तो उसने बताया की अगले कट से जो सड़क अंदर मूड रही है उस पर आगे जाकर जो चौक पड़ेगा वही कश्मीरी बाग है। रागिनी ने अपना शीश ऊपर किया और आँखें बंद करके सीट से पीठ टिकाकार बैठ गयी। 10-15 मिनट बाद उसके फोन की घंटी बजी तो उसने आँखें खोलकर फोन उठाकर देखा, पूनम का फोन था।

“पूनम! तुम किशनगंज मार्केट आ जाओ मेन रोड पर ही गाड़ी खड़ी है” कहकर रागिनी ने फोन काट दिया और फिर से आँखें बंद करके बैठी रही...अनुराधा ने एक नज़र रागिनी की ओर देखा और सड़क पर नजरें गड़ा दीं। थोड़ी देर बाद ही उनकी गाड़ी के पीछे आकार एक कैब रुकी और उसमें से पूनम के साथ प्रबल बाहर निकला दोनों के पास आने पर अनुराधा ने कहा तो रागिनी ने दरवाजा अनलॉक कर दिया, दोनों के बैठते ही रागिनी ने गाड़ी आगे बढ़ा दी।

“हम लोग यहाँ क्यों आए हैं? किसी से मिलना है क्या?” पूनम ने पूंछा

“उस पुलिस रिपोर्ट में यहीं का एड्रैस दिया हुआ थ। देखते हैं कौन मिलता है, कोई तो जानता-पहचानता होगा” रागिनी ने जवाब दिया

जवाब में पूनम ने कुछ नहीं कहा लेकिन रागिनी की बात सुनकर अनुराधा के दिल की धड़कनें बढ़ गईं, आखिर उसके लिफाफे में ये रिपोर्ट थी तो जाहिर है की ये उसका और रागिनी का घर होगा। गाड़ी चौक में पहुँचने पर रागिनी ने एक घर में बनी दुकान के सामने रोकते हुये अपना शीशा नीचे करके दुकान पर बैठे 28-30 साल के लड़के से वो पता पूंछा, पता सुनते ही लड़के ने बड़े ध्यान से रागिनी की ओर देखा और उसे पता बताने लगा... उसे ऐसे घूरते देखकर रागिनी को थोड़ा अजीब सा लगा लेकिन उसने रास्ता समझकर गाड़ी आगे बढ़ा दी। गाड़ी के निकाल जाने के बाद भी वो लड़का उस गाड़ी को देखता रहा जब तक वो एक गली में मुड़ नहीं गयी। उस मकान के सामने आकार रागिनी ने गाड़ी रोकी तो वहाँ मेन गेट खुला हुआ था सामने ही ऊपर जाती सीढ़ियों के नीचे एक बाइक खड़ी हुई थी। ऊपर की दोनों मंजिलों पर बाहर की तरफ कुछ कपड़े भी सूख रहे थे लेकिन ग्राउंड फ्लोर पर ताला लगा हुआ था और ऐसा लग रहा था।

रागिनी ने गाड़ी रोकी और दरवाजा खोलकर बाहर को निकली उसको देखकर पूनम, अनुराधा और प्रबल भी बाहर निकल आए... रागिनी ने आगे बढ़कर ऊपर की दोनों मंजिलों की घंटी बजाई और गाड़ी की तरफ आकार खड़ी हो गयी उन तीनों के पास। तभी ऊपर की मंजिलों से एक लगभग 40 वर्ष की औरत और एक 20-22 साल की लड़की ने झांक कर देखा तो रागिनी ने उन्हें नीचे आने का इशारा किया। थोड़ी देर में ही वो लड़की सीढ़ियों से उतरकर बाहर आयी और गाते के पास खड़ी होकर बोली “किससे मिलना है आपको?”

“मुझे विमला जी से मिलना है” रागिनी ने जवाब में कहा

“जी यहाँ तो कोई विमला नाम की नहीं रहतीं ... आप किस पते पर आयीं हैं?” लड़की ने पूंछा तो रागिनी ने उसे पता बताया, पता सुनकर लड़की बोली “पता तो सही है लेकिन यहाँ कोई विमला नहीं रहती ...”

“यहाँ करीब 20 साल पहले विमला जी रहती थी तब में उनसे मिलने आती थी... आप कब से यहाँ रह रही हैं? रागिनी ने पूंछा

“जी हमें करीब 5-6 साल हो गए यहाँ रहते... “

“ये आपका ही मकान है?”

“जी नहीं हम किराए पर रहते हैं, ये मकान विक्रमादित्य सिंह का है जो राजस्थान में रहते हैं”

लड़की की बात सुनते ही सब चौंकर एक दूसरे को और उस लड़की को देखने लगे... फिर रागिनी ने कहा “में उन्ही विक्रमादित्य सिंह की माँ हूँ और ये उनके भाई बहन हैं”

“लेकिन आपकी उम्र...”

“में उनकी चाची हूँ... मेरे पति ने ऊन्हें गोद लिया हुआ था... इसलिए में उनकी माँ ही हू...” रागिनी ने जैसे ही कहा तो उस लड़की ने तुरंत उन्हें ऊपर अपने घर चलने को कहा। रागिनी ने पूनम की ओर देखा तो उसने भी चलने का इशारा किया अनुराधा भी साथ चल दी लेकिन परबल वहीं खड़ा रहा तो अनुराधा ने हाथ बढ़ाकर प्रबल का हाथ पकड़ा और उन दोनों के पीछे चल दी। ऊपर के फ्लोर पर गाते से अंदर घुसते ही हॉल था जिसमे वही औरत सोफ़े पर बैठी हुयी थी... लड़की के पीछे इन सबको आते दीखकर वो औरत खड़ी हुयी और इन सबको सोफ़े पर बैठने को कहा और लड़की की ओर प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा, रागिनी ने उस औरत को भी बैठने को कहा तो लड़की रसोई की तरफ जाते हुई बोली की ये राजस्थान से विक्रम जी की चाची हैं। वो लड़की रसोई से उनके लिए पनि लेकर आयी और चाय बनाने चली गई।

“बहन जी! आपको आज पहली बार देखा है, विक्रम जी तो जब कभी आते रहते हैं, उनकी एक और चाची जी भी यहाँ आती रहती हैं उनके साथ वो आपसे बड़ी हैं शायद.... मोहिनी जी” उस औरत ने रागिनी से कहा तो सुनकर सभी चौंक गए

“जी हाँ! ,,,, वैसे विक्रम यहाँ आपके पास रुकते थे?” रागिनी ने पूंछा

“नहीं! ग्राउंड फ्लोर उन्होने अपने लिए रखा हुआ था तो जब वो आते थे तो पहले ही फोन कर देते थे जिससे उसकी साफ सफाई करवा दी जाए” उस औरत ने कहा

“तो इसकी चाबी आपके पास होगी?” रागिनी ने पूंछा

“नहीं! इसकी एक चाबी उनके पास रहती है और एक चाबी यहाँ बराबर के मकान वालों के पास रहती है... शुरू से ही”

“अच्छा इस मकान में पहले विमला जी रहती थीं उनके बारे में आपको कुछ जानकारी है” रागिनी ने पूंछा

“नहीं! लेकिन हमारे बराबर वाले जिनके यहाँ चाबी रहती है नीचे वाले हिस्से की वो जानती होंगी...शायद”

“आप उनसे चाबी मँगवा दीजिये हम लोग यहीं रुकेंगे” रागिनी ने कहा तो उसने अपनी बेटी को भेज दिया पड़ोस से चाबी लेने के लिए… उनकी बेटी चाय देकर चाबी लेने चली गई और वो सब चाय पीने लगे

“शांति कौन आया है... अनु बता रही थी कि विक्रम की छोटी चाची आयी है राजस्थान से” एक 50-55 कि उम्र कि बेहद खूबसूरत औरत ने उस लड़की अनु के साथ अंदर घुसते हुये पूंछा तो शांति ने उन्हें सोफ़े पर अपने पास बैठने का इशारा किया.... सोफ़े पर बैठते ही उस औरत कि नज़र रागिनी पर पड़ी जो दरवाजे की ओर पीठ किए सामने वाले सोफ़े पर पूनम और अनुराधा के साथ बैठी थी, प्रबल सिंगल सीटर पर बैठा हुआ था साइड में। रागिनी को देखते ही उसकी आँखों मे पहचाने से भाव उभरे और उसने रागिनी से कहा

“तुम रागिनी हो ना? ममता की ननद”

“जी!!!!! ... जी हाँ! में रागिनी ही हूँ... आपसे मुझे अकेले में कुछ बात करनी है क्या आप नीचे चलकर बात करेंगी...” रागिनी ने अपनी उत्सुकता और आश्चर्य को छिपते हुये उससे कहा

“बिलकुल! क्यों नहीं.... चलो नीचे ही बैठकर बात करते हैं”

“रेशमा दीदी आप इनको जानती हो... पहले से” शांति ने कहा

“हाँ! बहुत अच्छी तरह...... बाद मे बताऊँगी तुम्हें” रेशमा ने सोफ़े से खड़े होते हुये कहा तो रागिनी और वो तीनों भी खड़े हुये और पड़ोस वाली औरत रेशमा के साथ नीचे कि ओर चल दिये। नीचे पहुँचकर रेशमा ने अपने हाथ में पकड़ी हुई चाबियों में से एक चाबी निकालकर ग्राउंड फ्लोर का दरवाजा खोला और अंदर हॉल में आकार खड़ी हुई और पीछे मुड़कर उन सबको भी अंदर आने को कहा और सोफ़े के कवर हटाने लगी....परब ने आगे बढ़कर उनके साथ सभी सोफ़ों के कवर हटाये और बाहर का दरवाजा बंद कर दिया.... सभी सोफ़ों पर बैठ गए तो रेशमा ने कहा

“आज करीब बीस साल बाद तुम्हें देखकर मुझे पता नहीं कितनी खुशी हो रही है। रागिनी! तुम आज भी वैसी ही लगती हो.... वैसे विक्रम ने तो कभी बताया नहीं कि तुम उसकी चाची हो...मुझे तो इतना ही बताया था कि उसने ममता से मकान खरीद लिया है”

“में आपको सबकुछ बताऊँगी लेकिन पहले मुझे ये बताओ ये ममता कौन है...और वो कहाँ गई, विमला कहाँ है........ इस घर में कौन-कौन रहता था उनके नाम और मुझसे रिश्ता...... आंटी! मेरी याददास्त चली गई थी.... विक्रम से मुझे यहाँ का पता और विमला का नाम मालूम हुआ इसलिए आयी थी विमला को तलाशने” रागिनी ने कहा

“विक्रम को तो सब पता था.... तो उसने तुम्हें क्यों नहीं बताया और विक्रम खुद क्यो नहीं आया साथ मे” रेशमा ने पूंछा “और तुम मुझे आंटी नहीं भाभी कहा करती थीं.... रेशु भाभी....”

“विक्रम कि मृत्यु हो गई है 15 दिन पहले उसकी लाश लवारीश हालत में श्रीगंगानगर मे पाकिस्तान बार्डर के पास मिली थी .....”

“ओहह! बहुत दुख हुआ .... उसके बारे में जानकार....विक्रम भी नहीं रहा और तुम्हारी भी याददास्त चली गई.... तो तुम्हें कुछ पता भी कैसे चलता?” रेशमा ने अफसोस भरे लहजे में कहा और उठते हुये बोली “में घर पर खाने के लिए बोलकर आती हूँ.... फिर बैठकर तुम्हें सबकुछ बताऊँगी.... मेंने तो सोचा था कि शायद विक्रम कि कोई रिश्तेदार हैं... इसलिए ऐसे ही घर पर बिना बताए ही चली आयी थी कि चाबी देकर वापस लौट जाऊँगी”

“नहीं आंटी... सॉरी भाभी जी! आप परेशान न हो .... हम खाना खाकर आए हैं .... कल रात दिल्ली आ गए थे” रागिनी ने रेशमा को रोकते हुये कहा

“तो अभी मोहिनी जी के यहाँ से आ रही होगी?”

“नहीं हम होटल मे रुके थे.... और आप उन्हें बताना भी मत हमारे बारे में”

“मेरी उनसे कोई बात नहीं होती बस यहाँ आती रहती हैं इसलिए विक्रम ने बताया था कि उनकी चाची हैं इसलिए जानती हूँ” रेशमा ने कहा “तुम्हें खाना तो खाना ही होगा... अभी ही नहीं रात को भी और कल भी... जब तक दिल्ली में हो......... और तुम होटल मे क्यों रुकी? तुम्हारा अपना घर है ये तो... अब यहीं रुकना होगा और खाना हमारे साथ ही खाना होगा”

“नहीं भाभी जी! हम लोग होटल मे ही रुकेंगे.... यहाँ रुकने पर हो सकता है मोहिनी जी को पता चल जाए या वो यहाँ आ जाएँ” रागिनी ने प्रतिवाद करते हुये कहा

“वो यहाँ कभी अकेली नहीं आयीं और न ही उन्हें कोई जानता है.... अगर कोई आया भी तो ... ये घर आज भी तुम्हारा ही है... विक्रम ने बताया जरूर था कि उन्होने ये घर ममता से खरीद लिया है... लेकिन न तो ये घर ममता के नाम पर था जो वो बेच सके.... और ना ही आज तक मेंने ऐसा कोई कागज देखा ..... आज भी इस घर का हाउस टैक्स विमला आंटी .... तुम्हारी माँ ...के नाम पर ही आता है... बिजली बिल भी उन्हीं के नाम से है....” रेशमा ने कहा “तुम में से कोई जाकर होटल से अपना समान ले आओ तब तक में घर होकर आती हूँ.... फिर बैठकर बात करेंगे”

ये कहकर रेशमा चली गई। रागिनी और पूनम ने एक दूसरे की ओर देखा तो पूनम ने कहा कि वो और प्रबल होटल से समान लेकर आते हैं... वो पहाड़गंज के होटल में रुके हुये थे जो पास मे ही था....
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#35
अध्याय 10


उनके जाने के थोड़ी देर बाद ही रेशमा वापस आ गई और रागिनी के पास बैठ गई। उसने रागिनी से पूंछा कि ये बच्चे और उनके साथ आयी हुई औरत कौन है तो रागिनी ने उन सब के बारे में बताया। अनुराधा का नाम सुनते ही रेशमा छौं गई और उससे बोली

“अनुराधा तू भी रागिनी के ही साथ थी.... तूने मुझे नहीं पहचाना... मेरी बेटी अनुपमा कि तो याद होगी तुझे...... तुम दोनों हमेशा साथ रहा करती थी”

“अनुराधा से मेरा क्या रिश्ता है?” रागिनी ने पूंछा इधर अनुराधा भी बेचैन होकर रेशमा कि ओर देखने लगी

“अनुराधा ममता कि बेटी है.... तुम्हारे भाई की बेटी, तुम्हारी भतीजी.... लेकिन ये बचपन से ही सिर्फ तुम्हारी बेटी थी.... इसे हमेशा तुमने ही पाला 3 दिन की थी तब से हमेशा  तुम्हारे ही पास रही

अनुराधा और रागिनी दोनों एक दूसरे को देखने लगे..........

“लेकिन ये बताओ कि तुमने यहाँ ये क्यों बताया कि अनुराधा तुम्हारी बेटी है….. लाली बता रही थी कि विक्रमादित्य की चाची आयी हैं अपने बेटे-बेटी और सहेली के साथ?” रेशमा ने अचानक सवाल किया तो थोड़ी देर के लिए रागिनी चुप बैठी रही, फिर बोली”

“भाभी जी! मेरी तो याददास्त ही चली गयी थी तभी..... मुझे अगर कुछ याद होता तो इसी घर में लौटकर ना आती...... मुझे तो याददास्त जाने के बाद ये दोनों बच्चे अपने साथ ही मिले तो और विक्रम ने बताया कि ये मेरे बेटे बेटी हैं......... तो वही मान लिया” रागिनी ने आगे कहा “और फिर अनुराधा भी कहती है आपने भी कहा...बचपन से मेंने ही इसे पाला है और ये मुझे ही अपनी माँ जानती है...अब ये दोनों असलियत मे मेरे बेटे बेटी नहीं हैं...... लेकिन दोनों को ही जन्म से मेंने ही पाला है...... तो में ही इनकी माँ हूँ.....और में विक्रमादित्य कि चाची भी नहीं हूँ..... आपको इसलिए बता रही हूँ ये सब...पता नहीं क्यों आपको देखकर आपसे एक लगाव सा हो गया है....... एक प्यार सा उठ रहा है दिल में..... मुझे लगता है यहाँ रहकर मेरी याददस्त वापस लौट सकती है........ इसीलिए यहाँ रहने को तयार हो गयी”

“चलो अच्छा हुआ की अनुराधा तो तुम्हारे पास है.... वरना तुम्हारा तो पूरा परिवार ही बिखर गया.... किसी का कोई पता नहीं.....ममता को भी जेल गए करीब 20 साल होने को आए.... इतनी बड़ी सज़ा तो नहीं हुई होगी.... लेकिन वो लौटी ही नहीं.... तुम्हारे साथ ही विमला आंटी भी गायब हो गयी थीं... पुलिस वाले बता रहे थे की तुम्हारे गायब होने के पीछे विमला आंटी का ही हाथ था.... मुझे तो कभी कभी लगता भी था.... वो बहुत अजीब थीं” रेशमा ने अभी अपनी बात काही ही थी कि बाहर गाड़ी रुकने कि आवाज आयी तो फिर कोई कुछ नहीं बोला

तभी अपने बैग हाथों में लिए हुये पूनम और प्रबल अंदर आए और बैग एक किनारे रखकर सोफ़े पर बैठ गए..... रेशमा ने उन सबको फ्रेश होने के लिए कहा और साथ चलकर उनके घर खाना खाने को बोला.... और अपने घर चली गयी... वो सब भी फ्रेश होने चले गए .... हॉल से अंदर गैलरी थी जिसमें 3 कमरों के दरवाजे खुलते थे... जिस तरफ एक ही कमरा था वह कमरे के बाद थोड़ी खुली जगह थी जिसमें एक तरफ रसोई थी और सामने की खुली जगह में डाइनिंग तबले लगी हुई थी... रागिनी, पूनम और अनुराधा तो अलग अलग कमरों मे फ्रेश होने चली गईं, प्रबल ड्राइंग रूम से जुड़े बाथरूम में चला गया।

थोड़ी देर बाद जब प्रबल बाहर निकला तो हॉल में एक तीखे नैन नक्श की साँवली सी लड़की, लगभग अनुराधा की उम्र की सोफ़े पर बैठी हुई थी उसने एक नज़र प्रबल को देखा और हॉल के दूसरे कोने मे सफाई कर रही नौकरानी को देखने लगी... प्रबल भी आकर दूसरे सोफ़े पर चुपचाप बैठ गया और नज़रें नीची करके फर्श पर देखता रहा... थोड़ी देर बाद ही वो तीनों भी एक-एक करके हॉल में आयीं तो रागिनी को देखते ही वो लड़की उठकर खड़ी हो गयी और बोली

“रागिनी बुआ.... आप अब भी वैसी ही लगती हो... मुझे पहचाना...”

“अनुपमा! तुम अनुपमा ही हो शायद...” रागिनी ने अंदाजा लगते हुये कहा

“हाँ बुआ! अच्छा चलो पहले घर चलकर खाना खा लो... तब तक यहाँ की सफाई भी हो जाएगी और आप लोगों के रूम भी सेट हो जाएंगे...” अनुपमा कह ही रही थी कि अनुराधा ने आकर उसे गले से लगा लिया और रोने लगी... अनुराधा के गले लगते ही अनुपमा कि आँखों में भी आँसू आ गए........ रागिनी ने आगे बढ़कर दोनों के कंधों पर हाथ रखकर थपथपाया और अलग करके चलने का इशारा किया तो दोनों एक दूसरे का हाथ पकड़े रागिनी और पूनम के पीछे चल दी... प्रबल भी कुछ उदास सा उठकर खड़ा हुआ और उनके पीछे-पीछे चल दिया

आज प्रबल को बहुत अजीब सा महसूस होने लगा था ... पहले तो रागिनी ने उसे पूनम के साथ भेज दिया और खुद अनुराधा के साथ चली गयी, उसके बाद फिर से उसे पूनम के साथ होटल भेज दिया... यहाँ भी सब रागिनी और अनुराधा को जानते हैं तो सब उन्ही से बातें कर रहे या उनका जिक्र कर रहे थे... अब तो ये भी निश्चित हो गया था कि रागिनी और अनुराधा माँ-बेटी न सही बुआ-भतीजी तो हैं.... और उनका एक घर भी है... यही सब सोचता हुआ प्रबल उनके घर पहुंचा और फिर सबने रेशमा जी के परिवार से परिचय किया उनके परिवार में उनके पति, उनकी सास, एक बेटा जो लगभग प्रबल कि ही उम्र का था और बेटी अनुपमा थे... रेशमा जी कि सास ने खाना खने के बाद रागिनी को अपने साथ अपने कमरे में चलने का इशारा किया.... रागिनी उनके साथ उनके कमरे में गयी और दरवाजा बंद करके दोनों कुछ देर बातें करती रहीं.... फिर उलझन सी लिए हुये रागिनी बाहर आयी और दोनों बच्चों व पूनम को साथ लेकर अपने घर आ गयी, बाहर तक जब वो सभी उनको छोडने आए तो अनुपमा ने भी जिद करके अनुराधा के साथ जाने को कहा...उन लोगो ने भी बिना किसी ना नुकुर के उसे रात मे अनुराधा के साथ रहने कि इजाजत दे दी.....

घर में आकर उन्होने देखा कि पूरा घर साफ हो चुका था और बिजली से रोशन था...... सभी पूरे दिन के थके हुये थे तो सोने का फैसला लिया.... उसी समय ऊपर से शांति देवी उतार कर आयीं और रागिनी से पूंछा कि उन्हें कुछ चाहिए तो नहीं और खाना वगैरह का तो रागिनी ने उन्हें बता दिया कि फिलहाल सारी व्यवस्था रेशमा जी ने कर दी है और अब वो हमेशा यहीं रहेंगी क्योंकि विक्रम की मृत्यु हो चुकी है और वो खुद उस मकान कि असली मालकिन विमला देवी की बेटी हैं, और उस संपत्ति की एकमात्र मौजूदा वारिस, सुनकर शांति देवी को ताज्जुब हुआ लेकिन फिर उन्होने कुछ नहीं कहा और चली गयी.........

अनुराधा और अनुपमा एक कमरे मे सोने चली गईं, एक मे जाते हुये पूनम ने रागिनी को भी चलने को कहा तो रागिनी ने कहा कि आज वो प्रबल के साथ कुछ बात करेगी फिर वहीं सो जाएगी... तो वो रागिनी को अजीब सी नज़रों से देखते हुये अपने कमरे मे चली गयी

इधर रागिनी ने प्रबल को अपने साथ आने को कहा और तीसरे कमरे में जो रसोई कि तरफ था चली गयी प्रबल ने कमरे में अंदर आकार देखा तो रागिनी सामने बैड पर बैठी हुई थी...उसने प्रबल से दरवाजा बंद करके अपने पास आने को कहा तो प्रबल दरवाजे को बंद कर उसके पास पहुँच गया .... रागिनी ने प्रबल को हाथ पकड़कर अपने पास बैठाया और बाहों में जकड़कर सीने से लगा लिया... रागिनी के सीने से लगते ही प्रबल कि आँखों से आँसू निकालने लगे...रागिनी कि भी आँखें भर आयी और उसने प्रबल कि पीठ थपथपाते हुये बोला

“में बहुत देर से देख रही हूँ कि तुम बहुत उदास हो... क्या बात है? तुम्हें लगता है कि मुझे और अनुराधा को अपना घर मिल गया हम एक ही घर-परवर के हैं तो में तुम्हें अकेला छोड़ दूँगी” रोते हुये रागिनी ने कहा तो प्रबल ज़ोर से सिसकता हुआ रोने लगा

“तुम्हारे बारे में कुछ पता चले या ना चले... तुम उन बातों को भूलकर बस ये याद रखना कि में ही तुम्हारी माँ थी, हूँ और रहूँगी....जब से तुम पैदा हुये हो.....कोई भी तुम्हें मुझसे अलग नहीं कर सकता....आज में तुम्हारे पास ही सोऊंगी और अब कुछ भी मत सोचना... अब मुझे अपने और अनुराधा के बारे मे जो भी पता करना है.... बाद में करूंगी....... लेकिन कल से ही पहले तुम्हारे बारे में पता लगाऊँगी.... बस एक वादा करो..... कुछ भी हो जाए.... तुम मुझे कभी छोडकर नहीं जाओगे..... किसी के भी साथ” रागिनी ने प्रबल का सिर अपने सीने उठाकर उसके आँसू पोंछते हुये कहा

“माँ में तुम्हें छोडकर कभी कहीं नहीं जाऊंगा...... मेरी माँ तुम ही हो और हमेशा रहोगी.... अब मेरे बारे में कुछ भी पता लगाने कि जरूरत नहीं...... में उन माँ-बाप को क्यों ढूँढूँ जिनहोने कभी मुझे ढूँढने कि कोशिश नहीं की.... और वो मिल भी गए तो उससे क्या होगा... अब में बालिग हूँ और अपनी मर्जी से आपके पास रह सकता हूँ....... वो मुझे ले जा नहीं सकते...... बस आज यहाँ आने के बाद मुझे बहुत अकेलापन सा लगा और डर भी.... कि आपका और दीदी का घर मिल गया अब कहीं आप मुझे भूल तो नहीं जाओगी” प्रबल ने भी रागिनी के आँसू पोंछते हुये कहा

“पागल... मेरी याददास्त भी वापस आ जाएगी... तो भी तू मेरा बेटा ही रहेगा... और अनुराधा के बारे में भी कभी ऐसा मत सोचना.... पता है वो तुझे मुझसे भी ज्यादा प्यार करती है....... जब तू छोटा था तो हमेशा तुझे अपने साथ ही रखती थी... मुझे भी तुम दोनों के पास ही सोना पड़ता था.... मुझसे ज्यादा तो उसी कि गोदी में खेलकर बड़ा हुआ है.................. चल अब सो जा... थक गया होगा” ये कहते हुये रागिनी बिस्तर पर लेट गयी और प्रबल के लिए सरकते हुये जगह बना दी

......................................................

सुबह उठकर पूनम ने रागिनी से कहा कि अब सिर्फ प्रबल का मामला रह गया है इसलिए उसकी यहाँ रुकने कि कोई खास जरूरत नहीं है...तो वो कोटा वापस जाना  रागिनी ने भी कहा कि वो भी यही सोचती है ..... लेकिन अभी इन लोगो को भी एक बार कोटा जाना होगा और हवेली से सारा जरूरी समान लेकर दिल्ली आना होगा... रागिनी के ये कहने पर अनुराधा ने कहा कि वो और प्रबल यहाँ रुक जाएंगे और रागिनी और पूनम कोटा चली जाएंगी.........

“लेकिन बेटा... यहाँ में तुम्हें और प्रबल को अकेला नहीं छोडूंगी... यहाँ अगर कोई खतरा न होता तो विक्रमादित्य हमें कोटा क्यों लेकर जाता.... उसने अपनी वसीयत में भी बताया था कि हमारी पहचान छुपाने के लिए ही वो हमें वहाँ अपनी चाची और भाई बहन बनाकर रखे हुये था...... और अभी तो सबको पता चलना शुरू होगा कि में और तुम यहाँ आ गए हैं....... पता नहीं कौन हो इस सबके पीछे... जो आज हमारे इतने बड़े परिवार में सिर्फ हम 2 ही रह गए....बाकी किसी का पता नहीं....हमें हर हाल में साथ ही रहना होगा....... या तो चुपचाप चलकर कोटा में वैसे ही रहते हैं.... जैसे रहते आए थे.......... या सबकुछ पता करना है और इस गुमनामी कि ज़िंदगी से बाहर निकालना है तो फिर अभी कोटा चलकर सारा जरूरी समान कपड़े कागजात वगैरह.... और यहीं रहते हैं......... अगर जियेंगे तो साथ ...मरेंगे तो साथ...... हर खुसी और दुख का मिलकर सामना करेंगे..... क्योंकि यहाँ रहने से हम दोनों को तो अपने परिवार के बारे में सब पता चल ही जाएगा....... साथ ही प्रबल के बारे में भी पता करेंगे लेकिन सावधानी से ...... प्रबल का मामला दो देशों का है कहीं ऐसा न हो सरकार इसे उसी देश भेज दे... क्योंकि इसके माता-पिता वहाँ के रहने वाले हैं....लेकिन मेरी समझ में ये नहीं आया कि हमारे परिवार के बाकी सब लोग कहाँ चले गए..... पूरा परिवार ही गायब हो गया...” रागिनी कि बात को सुन समझकर वो सब भी कोटा चलने को तयार हो गए। 

तभी सुबह का चाय नाश्ता लेकर अनुपमा भी अपने घर से आ गयी तो उन सभी ने चाय-नाश्ता किया और रागिनी अनुपमा के साथ ही उसके घर जाकर रेशमा भाभी को बता आयी कि वो लोग अभी कोटा जा रहे हैं 2-4 दिन में वापस आएंगे, यहाँ हमेशा रहने के लिए। रेशमा भाभी ने उन्हें खाना खाकर जाने को कहा तो उन्होने कहा कि दूर का सफर है इसलिए उन्हें जल्दी निकालना होगा.... खाना वो रास्ते में खा लेंगे। इसके बाद रागिनी घर आयी तो तीनों तैयार मिले और वो सब गाड़ी में बैठकर कोटा कि ओर निकाल लिए। रेशमा भाभी का पूरा परिवार उन्हें छोडने बाहर तक आया।

...................................

रास्ते में कोई खास बात नहीं हुई लेकिन जब वो जयपुर के पास पहुंचे तो रागिनी के मोबाइल पर हॉस्पिटल से रामलाल के कई मैसेज आए जिनमें उन्होने अस्पताल के डाटा कि कॉपी भेजी थी.... रगिनी ने उन्हें पढ्ना शुरू कर दिया.....

कोटा पहुँचकर उन्होने पूनम को उसके घर के सामने छोड़ा तो पूनम ने उन्हें आज रात अपने घर रुकने को कहा लेकिन रागिनी ने वापस लौटते समय आने का वादा किया और अपनी हवेली कि ओर चल दिये....हवेली पहुँचकर थकान की वजह से नहा धोकर साथ में पाक करके लाया हुआ खाना खाकर सो गए....

.......................... इधर गाँव में

“ऋतु कुछ पता चला विक्रम के बारे में.... किसने किया ऐसा..... वो अत्महत्या तो हरगिज नहीं कर सकता..... लेकिन उसके दुश्मन बहुत थे....... और दोस्त तो शायद थे ही नहीं” बलराज सिंह ने फोन पर ऋतु से कहा

“नहीं पापा.... विक्रम भैया के बारे में अभी कुछ नहीं पता चला। लेकिन एक और बात करनी थी मुझे.........अगर आप गुस्सा न करें तो” ऋतु ने जवाब में कहा

“बोलो तो सही ........ऐसी क्या बात है जो में तुम पर गुस्सा करूंगा..... कोई लड़का पसंद कर लिया है क्या?” बलराज सिंह ने हँसते हुये कहा

“बहुत सीरियस बात है.... कल मेंने प्रबल और पूनम भाभी को देखा.....दिल्ली में” ऋतु ने संजीदा लहजे में कहा तो बलराज सिंह भी सुनकर चोंक गए

“क्या? लेकिन वो सब तो कोटा गए थे यहाँ से...” बलराज सिंह ने कहा

“में कल कनॉट प्लेस किसी क्लाइंट के ऑफिस गयी थी वहाँ से लौटते हुये मुझे उनकी गाड़ी पहाड्गंज पर दिखी में उनका पीछा करती हुई किशनगंज पहुंची तो वहाँ गाड़ी से पूनम भाभी और प्रबल अपने बैग लेकर उतरे और उसी मकान में घुस गए.... जिसका मेंने आपको पहले भी बताया था” ऋतु ने कहा

शेष अध्याय 11 में जारी................
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#36
अध्याय 11


ऋतु की बात सुनकर बलराज सिंह कुछ देर सोचते रहे फिर ऋतु से बोले “बेटा! तुम्हें इन सब से दूर रखना चाहता था में... लेकिन जब तुम्हें कुछ पता चला है तो अब सबकुछ ही जान लो..... लेकिन किसी तरह का कोई सवाल नहीं पूंछोगी.....और ना ही किसी से कुछ जानने की कोशिश करोगी.....किसी की ज़िंदगी में तुम दखल भी नहीं दोगी”

“ऐसी क्या बात है पापा? ...ठीक है... अब आप जो भी मुझे बताना चाहें बता सकते हैं... में इस मामले में ना तो फिर कभी कुछ पूंछूंगी और न करूंगी..... अगर आप कुछ न भी बताना चाहें तो कोई बात नहीं” ऋतु ने गंभीरता से कहा

“बेटा! ये तो तुम्हें पता चल ही गया है कि रागिनी कि याददास्त जा चुकी है और वो तुम्हारे देवराज चाचा कि पत्नी नहीं है....... बल्कि रागिनी और दोनों बच्चे ही हमारे परिवार के नहीं हैं........ विक्रम ने उस समय पर उनकी मुसीबत-परेशानी में उनको सहारा दिया और उनकी पहचान भी बदली तो कुछ वजह होगी” बलराज सिंह ने कहना शुरू किया “अब जितना में जानता हूँ रागिनी के बारे में....वो तुम्हें बता देता हूँ..... रागिनी को मेंने गाँव में आते ही पहचान लिया था... और वो भी मुझे जानती थी अब से 20 साल पहले.... दिल्ली में जिस घर का तुमने जिक्र किया है.... वो घर रागिनी का ही है...शायद विक्रम ने ही उसके लिफाफे में उसे बताया होगा...और”

“लेकिन पापा जब वो घर रागिनी का है तो माँ विक्रम भैया के साथ हम लोगो को बताए बिना उस घर में क्यों गईं थीं... क्या माँ भी जानती हैं रागिनी जी को...क्या उन लोगों से हमारा कोई रिश्ता है? या किसी और तरीके से इतनी गहरी जान पहचान कि... विक्रम भैया ने उन्हें याददास्त चले जाने पर भी इतने दिन से अपने पास रखा और देखभाल भी की” ऋतु ने बलराज सिंह की बात बीच में ही काटते हुये कहा

“हाँ! मोहिनी भी जानती है रागिनी को.... और अनुराधा को भी....... वो रागिनी के भाई कि बेटी है...... उन लोगों से हमारा बहुत करीबी रिश्ता है... लेकिन विक्रम नहीं जानता था.... अब या तो उसे वो रिश्ता पता चल गया या फिर वो वैसे भी कॉलेज से रागिनी को जानता था इसलिए उसने रागिनी के बुरे वक़्त में पनाह दी” बलराज सिंह बोले

“क्या रिश्ता है? पापा आप भी बात को साफ-साफ नहीं बोल रहे.... नहीं बताना चाहते तो कोई बात नहीं” ऋतु से अब अपनी उत्सुकता नहीं छिपाई गयी

“रागिनी की माँ विमला... मेरी सगी बहन है.... हम पाँ... तीन भाइयों कि इकलौती बहन....तुम्हारी और विक्रम कि बुआ...... रागिनी तुम्हारी बड़ी बहन है”

“पापा आप पहले पाँच कहते कहते रूक गए.... क्या आप पाँच भाई थे...?”

“नहीं! हम 3 ही भाई थे... और एक बहन .... वो मुझसे गलती से निकाल गया था” बलराज सिंह ने हड़बड़ाते हुये कहा

“तो पापा हम उनसे मिल तो सकते हैं..... वैसे विमला बुआ और उनका बाकी परिवार भी तो होगा... उन्होने रागिनी दीदी के बारे में कभी विक्रम भैया से कुछ पूंछा क्यों नहीं... या विक्रम भैया ने ही उन्हें उनके घरवालों को क्यों नहीं सौंपा?” ऋतु ने फिर से सवाल कर दिया

“बस! अब कुछ मत पूंछों ऋतु... बस ये ही समझ लो कि विमला के भी परिवार में रागिनी और अनुराधा को छोडकर कोई नहीं बचा......” बलराज सिंह ने दर्द भरी आवाज में कहा “जैसे हम भाइयों के परिवार में... सिर्फ में, तुम्हारी माँ और तुम बचे हैं”

“ठीक है पापा...... अब में आपसे इस सिलसिले में कभी कोई बात नहीं करूंगी” कहते हुये ऋतु ने फोन काट दिया

बलराज सिंह कॉल काटने के बहुत देर बाद तक भी फोन कि ओर देखते रहे... फिर उन्होने कॉल मिलाया

“कैसे हैं आप? सब ठीक तो है” कॉल उठते ही दूसरी ओर से मोहिनी देवी कि आवाज आयी

“में ठीक हूँ... तुम्हें कुछ बताना था...”

“क्या? जल्दी बताओ... मेरा दिल बहुत घबरा रहा है...क्या विक्रम के बारे में कोई बात है”

“नहीं! ऋतु के बारे में और.... रागिनी के बारे में भी” बलराज सिंह बोले “परसों मेंने तुम्हें बताया था कि रागिनी अनुराधा, प्रबल और पूनम के साथ कोटा गयी है... लेकिन आज मुझे ऋतु का फोन आया था ...कल उसने प्रबल और पूनम को किशन गंज वाले घर में जाते देखा...रागिनी के घर”

“इसका मतलब...” मोहिनी आगे कुछ बोल नहीं पायी

“नहीं रागिनी कि याददास्त एकदम से नहीं आ गयी.... उस मकान के बारे में शायद विक्रम ने ही उन लिफाफों में कुछ बताया होगा.... इसीलिए वो वहाँ पहुँच गयी”

“हाँ! यही हुआ होगा...... अगर रागिनी कि याददास्त वापस आ गयी होती.... तो अब तक न जाने क्या हो जाता...लेकिन याद रखना.... अब वो किशनगंज पहुँच गयी है.... वहाँ उसे बहुत कुछ जाना पहचाना मिलेगा तो उसकी पूरी याददास्त न सही कुछ तो यादें बाहर आएंगी ही, कुछ बातें वहाँ के लोग बताएँगे... मेरा तो दिल दहल जाता है ये सोचकर कि जिस दिन वो आकर हमारे सामने खड़ी होगी... हमारे लिए इस दुनिया में कहीं मुंह छुपाने को भी जगह नहीं मिलेगी..... कैसे कर पाऊँगी उसकी नज़रों का सामना....... और अगर ऋतु के सामने ये सब आया तो........” मोहिनी ने रोते हुये कहा....एक डर कि थरथराहट उसकी आवाज में साफ झलक रही थी

“मोहिनी अब जो होना है...होगा ही...आज या कल.... हर इंसान को उसकी गलतियों की सज़ा मिलती ही है....... चाहे वो कितना भी छुपा ले या पश्चाताप भी कर ले......... कर्म का फल तो भुगतना ही होता है..... में तो चाहता हूँ कि अब सबकुछ जल्दी से जल्दी सबके सामने आ जाए... इतने सालों से जो डर दिमाग पर हावी रहा है वो भी खत्म हो जाए, इस डर की वजह से हमारी आँखों के सामने ही हमारा परिवार हमारे अपने हमसे दूर होते चले और हम कुछ न कर सके...में तो तभी रागिनी और अनुराधा को सब बताना चाहता था लेकिन तुमने ही रोक दिया... आज मेंने ऋतु को रागिनी और अनुराधा के बारे में सब बता दिया है” बलराज सिंह रुँधे हुये स्वर में बोले

“क्या? अब क्या करना है...जब ऋतु को आपने सब बता ही दिया है तो मेरे ख्याल से अब आप भी यहाँ आ जाओ और हम सब चलकर एक बार रागिनी से भी मिलते हैं और ये सारी दूरियाँ खत्म करके एक साथ मिलकर फिर से ज़िंदगी शुरू करते हैं जैसी पहले थी” मोहिनी ने आशा भरे स्वर में कहा “अब तक तो मेंने सब कुछ विक्रम के भरोसे छोड़ा हुआ था ...उसने कहा था कि सही वक़्त आने पर वो सबकुछ सही कर देगा.......... लेकिन वो वक़्त आने से पहले विक्रम ही नहीं रहा.......अब सारे परिवार में एक आप ही अकेले हो ........अब तो जो करना है आप को ही करना है...... सही या गलत..... अगर अपने यही जिम्मेदारियाँ पहले ले ली होती तो इतना सबकुछ नहीं बिगड़ता....... चलो जब जागो तभी सवेरा” कहते हुये रागिनी ने फोन काट दिया

बलराज सिंह अपनी सोचों में गुम होकर वहीं बैठक में लेट गए

..........................................

उधर हवेली में ~~

रागिनी ने सुबह उठकर चाय बनाई तब तक अनुराधा और प्रबल भी अपने कमरों से निकलकर बाहर ड्राइंग रूम मे आकर बैठ गए और तीनों ने साथ बैठकर चाय पी... चाय पीकर रागिनी ने उन दोनों को अपना अपना सामान पैक करने को कहा और खुद अपने कमरे में अपना समान पैक करने चली गयी लगभग घंटे भर बाद तीनों ने अपने अपने बैग लाकर हॉल में रख दिये... तभी रागिनी के दिमाग में कुछ आया तो वो नीचे मौजूद एक मात्र कमरे की ओर बढ़ी और उसका दरवाजा खोला.... ये कमरा विक्रम का था... रागिनी और दोनों बच्चों के कमरे ऊपर थे...इस कमरे में कभी भी किसी को भी घुसने कि इजाजत नहीं थी... विक्रम से अगर रागिनी या बच्चों को बात करनी होती थी तो बाहर से ही आवाज देते थे और विक्रम ड्राइंग रूम में ही बात करता था....शुरू शुरू में तो रागिनी को ये बड़ा अजीब लगता था... लेकिन धीरे धीरे इसकी आदत हो गयी, बच्चे भी जब बड़े होने लगे तो उन्होने भी बिना कहे ही अपने आप समझकर इसी नियम का पालन किया...... लेकिन आज जब विक्रम नहीं रहा तो रागिनी के मन में आया कि जब हम यहाँ से जा ही रहे हैं तो शायद विक्रम के सामान में कुछ ऐसा हो जिसे ले जाना चाहिए और साथ ही उसके मन में दबी उत्सुकता भी कि आखिर इस कमरे में ऐसा क्या है जो विक्रम किसी को भी कमरे में नहीं आने देता था.... यहाँ तक कि उस कमरे कि साफ सफाई भी वो खुद ही करता था।

रागिनी दरवाजा खोलकर कमरे में घुसी तो वहाँ एक बैड, एक स्टडी टेबल, कुछ बुकसेल्फ एफ़जेएनमें किताबें भरी हुई थी और एक कोने में बार बना हुआ था। तभी रागिनी को अपने पीछे किसी के होने का आभास हुआ... पलटकर देखा तो अनुराधा और प्रबल भी अंदर आकर कमरे में खड़े थे तो रागिनी ने कहा

“कपड़ों वगैरह का तो कुछ करना नहीं है..... यहाँ कोई कागजात या ऐसी कोई चीज जिसमें किसी तरह कि जानकारी हो...वो साथ ले चलना है... तुम लोग टेबल और इन बुकसेल्फ में देखो... में उधर देखती हूँ” बार कि ओर इशारा करते हुये

प्रबल बुकसेल्फ में रखी किताबों को पलटकर देखने लगा कि कोई खास चीज हो... इधर अनुराधा ने टेबल को देखना शुरू किया...रागिनी ने बार कि सेल्फ में बने दराजों को खोलकर चेक करना शुरू किया और तीनों को जो भी काम कि छेज दिखी इकट्ठी करते गए...कुछ डायरियाँ, कुछ मेमोरी डिस्क, लैपटाप, कुछ फाइलें और कुछ फोटो जो भी मिला सब इकट्ठा करके पैक कर लिया और उस कमरे को फिर से बंद करके बाहर आ गए। फिर रागिनी ने गेट पर कॉल करके चौकीदार को बुलाया और सारे बैग गाड़ी में रखवाए और पूनम को फोन करके बताया की वो लोग आ रहे हैं और दोपहर का खाना उन्हीं के साथ खाएँगे...साथ ही सुरेश को भी घर ही मिलने का बोला। इसके बाद रागिनी और अनुराधा ने मिलकर नाश्ता तयार किया और वे सब नाश्ता करके घर से निकल पड़े। जाने से पहले रागिनी ने चौकीदारों को बताया की वे लोग किसी काम की वजह से कुछ समय दिल्ली में रुकेंगे, इसलिए घर का ध्यान रखें और कोई भी विशेष बात हो तो उनसे फोन पर संपर्क कर लें।

......................................................
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#37
अध्याय 12


“ऋतु बेटा कहाँ पर हो तुम?” मोहिनी देवी ने दूसरी ओर से फोन उठते ही कहा

“माँ! ऑफिस में ही हूँ...आप घर पर ही हैं?” ऋतु ने जवाब के साथ सवाल भी कर दिया

“हाँ! में घर पर ही हूँ। तुम घर पर ही आ जाओ... यहीं दोनों साथ में लंच भी कर लेंगे और मुझे कहीं जाना भी था तो तुम मेरे साथ चलना” मोहिनी ने कहा

“माँ! यहाँ भी मुझे कुछ काम था... लेकिन चलो... पापा भी नहीं हैं ...में आती हूँ” कहकर ऋतु ने फोन काट दिया

फोन काटने के बाद मोहिनी ने बलराज सिंह को फोन करके रागिनी का मोबाइल नं मांगा तो उन्होने रागिनी और दोनों बच्चों के मोबाइल नं दे दिये साथ ही उन्होने बलराज सिंह को गाँव में घर पर परंपरागत जो भी व्यवस्था करनी थी करके आज ही दिल्ली आने को कह दिया और खुद लंच बनाने की तैयारी मे लग गयी।

थोड़ी देर बाद घंटी बजी तो मोहिनी ने दरवाजा खोला और ऋतु उनके साथ ही अंदर आकर अपने कमरे में फ्रेश होने चली गयी.... मोहिनी देवी खाना डाइनिंग टेबल पर लगाकर वहीं बैठकर ऋतु का इंतज़ार करने लगी... ऋतु भी अपने कमरे से आकर मोहिनी के पास ही बैठ गयी और दोनों खाना खाने लगीं...खाना खाते हुये ही ऋतु ने मोहिनी से पूंछा की उन्हें कहाँ जाना है तो उन्होने बताया

“मेरी तुम्हारे पापा से बात हो गयी है.... वो भी आज रात तक यहाँ आ रहे हैं... लेकिन उससे पहले हम दोनों को किशनगंज चलना है... रागिनी से मिलने”

“क्या? लेकिन माँ .... और मुझे बुलाने की क्या जरूरत थी... वो घर तो अपने भी देखा हुआ है... शायद कई बार” ऋतु ने उन पर ताना कसते हुये कुछ तेज आवाज मे कहा... लेकिन मोहिनी ने सामान्य स्वर में ही उससे कहा

“मेंने वो घर देखा हुआ है... लेकिन पहले विक्रम के साथ जाती थी... कई बार गयी...... लेकिन अकेली कभी नहीं गयी तो मुझे रास्ता पता नहीं... और दूसरी बात...... उन लोगो से हमारा ही नहीं तुम्हारा भी तो कुछ रिश्ता है... तुम्हें भी तो आगे बढ़कर उन्हें जानना चाहिए.... कल को विमला कि तरह हम भी न रहे तो तुम्हारा अपना कौन होगा...जिसे तुम जानती हो.... रागिनी कि तो याददास्त चली गयी... इसलिए आज उसका कोई अपना नहीं.... जिसे वो जानती हो...”

“ठीक है माँ! में चलती हूँ... लेकिन ये बात तो आपको तभी गाँव में ही कर लेनी चाहिए थी... रागिनी दीदी ने अगर हमें नहीं पहचाना था तो आप और पापा तो जानते थे...कि वो कौन हैं.....” ऋतु ने कुछ चिढ़ने वाले अंदाज में कहा

जवाब में मोहिनी देवी कुछ कहते-कहते रुक गईं और चुपचाप खाना खाती रहीं।

.................................

“रागिनी आओ पहले खाना खाते हैं फिर बैठकर बात करेंगे” सुरेश ने दरवाजे से हटकर रागिनी, अनुराधा और प्रबल को अंदर आने का रास्ता देते हुये कहा “हम तब से तुम्हारा ही इंतज़ार कर रहे थे ...”

“आज क्या ऑफिस नहीं गए तुम?” रागिनी ने पूंछा

“गया तो था लेकिन पूनम ने फोन करके बताया कि तुम आ रही हो तो में तभी वापस आ गया था”

अंदर आते ही रागिनी ने प्रबल को हाथ मुंह धोने को कहा तो प्रबल वहीं वाश बेसिन पर चला गया और रागिनी ने अनुराधा को पूनम के बैडरूम कि ओर जाने को कहा... रागिनी खुद वहीं सोफ़े पर पूनम के पास बैठ गयी, सुरेश भी आकर दूसरे सोफ़े पर बैठ गया

“रागिनी तुम्हें तो तुम्हारा घर मिल गया... तुम्हारे परिवार वालों का भी पता चल ही जाएगा... लेकिन प्रबल का क्या करोगी.... अनुराधा तो तुम्हारी अपनी भतीजी है ही...” सुरेश ने बात शुरू करते हुये कहा

“प्रबल का क्या करना है....वो पहले भी मेरा बेटा था....अब भी है...उसे जन्म से पाला है मेंने....... और अनुराधा भी मेरी भतीजी से ज्यादा मेरी बेटी है...... दिल्ली में भी जो हमारे पड़ोसी हैं वो बता रहे थे... ये 3 दिन की थी तबसे पाला है मेंने......... वहाँ हमें घर नहीं मकान मिला है......घर तो मेरा हमेशा से मेरे साथ था, अब भी है..... मेरे दोनों बच्चे” मुसकुराते हुये रागिनी ने कहा.... तब तक प्रबल भी उनके पास आकर खड़ा हो गया तो अनुराधा ने अपने हाथ बढ़ाकर उसे अपने पास ही खींचकर बैठा लिया। तब तक अनुराधा भी पूनम के बैडरूम से निकाल कर आयी तो रागिनी ने उठते हुये उसे अपनी जगह पर प्रबल और पूनम के बीच बैठा दिया और खुद पूनम के बेडरूम में फ्रेश होने चली गयी

पूनम ने दोनों बच्चो और सुरेश को डाइनिंग टेबल पर चलने को कहा और कुछ देर में ही रागिनी भी आ गयी तो सबने मिलकर खाना खाया। खाना खाकर रागिनी ने पूनम और सुरेश से कहा की उसे कुछ जरूरी बातें बाटनी हैं... इस पर सुरेश ने अनुराधा और प्रबल की ओर इशारा किया... रागिनी ने कहा की जो भी बातें होंगी इन दोनों के भी सामने होंगी

“आप दोनों ने मुझसे विक्रम की वजह से रिश्ता जोड़ा है तो इन्हें भी उसी रिश्ते मे शामिल मानिए.... ये न तो छोटे बच्चे हैं और न ही मुझसे अलग... जब विक्रम ने इन्हें मुझे पालने को दिया तो आप ये मानिए की इनको भी आप वही प्यार और विश्वास दें जो विक्रम को देते थे” रागिनी ने आगे कहा “में और ये बच्चे अब हमेशा के लिए दिल्ली जा रहे हैं... विक्रम के जीतेजी तो आप लोग किसी भी तरह से हवेली मे रहने को तयार नहीं हुये ...लेकिन आज वो हवेली जिसमें विक्रम की ज़िंदगी बीती...वीरान होने जा रही है.... हालांकि हम यहाँ आते जाते रहेंगे... फिर भी... मेरा निवेदन है की अब आप लोग उसी हवेली में रहें जिससे हमें भी सिर्फ हवेली देखने नहीं आपसे मिलने आने की वजह मिले.... अभी के हालात हम तीनों के सामने हैं उस नजरिए से हमें न चाहते हुये भी बहुत समय के लिए दिल्ली रहना पड सकता है... और वैसे भी ये हवेली विक्रम के ही परिवार की है...... और अप उसी परिवार का हिस्सा हैं... मुझे गाँव में पता चला कि आपका गाँव केवल एक ही परिवार का है और आप लोग लगभग 100 साल पहले राजस्थान से आकार यहाँ बसे हैं....एक अलग नया गाँव बसाकर.. इसीलिए आपके परिवार के अलावा इस गाँव मे और कोई अन्य है ही नहीं”

“फिर भी ...” सुरेश ने कुछ कहना चाहा तो पूनम ने उसे रोकते हुये कहा “रागिनी अब हम हवेली में ही रहेंगे...शायद तुम्हें पता नहीं कि गाँव मे सब यही समझते हैं कि हम विक्रम के साथ हवेली में ही रहते हैं... न कि कोटा शहर में अलग मकान में........ये मकान भी विक्रम का ही है... जो उन्होने ‘इनके’ नाम पर खरीद कर दिया हुआ था........... एक बात तो तुम्हें पता ही है कि मेरे विक्रम से कैसे संबंध थे.... सुरेश इनके साथ रहते थे तो पता नहीं कब इन्हें मुझसे प्यार हो गया और मुझे इनकी मासूमियत भा गयी... विक्रम अपने रिश्ते कि वजह से हमारी शादी नहीं कराना चाहते थे...... हमारी जिद के आगे मजबूर होकर उन्होने ये शादी तो हो जाने दी, लेकिन शादी से लेकर अब तक जिंदा रहते विक्रम ने कभी मुझे मिलना तो क्या देखा भी नहीं......इसीलिए उन्होने हमें हवेली मे रहने को माना कर दिया और ये मकान लेकर दिया रहने को....... सुरेश से भी वो बाहर ही मिलते थे या इन्हें हवेली बुला लेते थे........” कहते कहते पूनम कि आँखों से आँसू निकालने लगे और सुरेश भी रोने लगा

तभी रागिनी के फोन पर घंटी बजी तो रागिनी ने देखा कि ऋतु के नं से कॉल आ रही है....रागिनी के फोन उठाते ही ऋतु ने जो कहा सुनकर रागिनी चौंक गयी

“रागिनी दीदी! में ऋतु बोल रही हूँ”

“ऋतु! तुम मुझे दीदी कबसे बोलने लगी...???” रागिनी ने चोंकते हुये कहा

“दीदी! में और माँ किशनगंज आए हुये हैं.... और मुझे आज ही पापा ने बताया कि आप मेरी विमला बुआ की बेटी हैं........ आप कब तक यहाँ आ रही हैं? हमें आपसे मिलना है” ऋतु ने भर्राए हुये स्वर में कहा

“में हवेली से निकलकर कोटा आ चुकी हूँ रात तक हम दिल्ली पहुँच जाएंगे, दिल्ली पहुँचते ही में तुम्हें फोन करती हूँ” रागिनी ने अपनी बेचैनी को दबाते हुये ऋतु से कहा और फोन काट दिया

फोन काट कर रागिनी ने पूनम और सुरेश कि ओर देखा और सुरेश से पूंछा “क्या विक्रम कि कोई बुआ थी... विमला... तुम्हारे बलराज चाचा कि बहन?”

“हाँ! मेंने उन्हें देखा तो नहीं लेकिन सुना था कि... बलराज चाचा 5 भाई और 2 बहन थे.... मेरे बाबा (दादा जी को कुछ जगह बाबा भी कहते हैं) बताया करते थे.... वो मेरे बाबा के बड़े भाई के बच्चे हैं.... उनका नाम तो मुझे भी नहीं पता... पूनम ने बताया कि तुम्हारी माँ का नाम विमला था.......... यानि तुम विमला बुआ की बेटी हो” सुरेश का मुंह भी खुला रह गया

“हाँ! और अब मुझे दीदी बोला करो....” रागिनी ने अपनी पलकों पर रुके हुये आँसू साफ करते हुये मुसकुराते हुये कहा

“लेकिन विक्रम आपको क्यों नहीं जानता था.... उसने कभी मुझसे ऐसा कुछ बताया भी नहीं....... जबकि वो आपसे ही नहीं.... आपके परिवार में सभी से मिला था.... विमला बुआ, ममता भाभी, सरोज भाभी ......सभी से....” सुरेश बोला

“शायद विक्रम पहले नहीं जानता होगा ......... लेकिन बाद में उसे पता चला होगा... इसीलिए वो हमें अपने साथ रखे हुये था...... तुम भी तो नहीं जानते थे” रागिनी ने सुरेश से कहा और मन में सोचने लगी...... शायद यही वजह थी... जो विक्रम ने कभी मेरे साथ जिस्मानी रिश्ता बनाना मंजूर नहीं किया...... वो हमारे रिश्ते को जानता था

“अब हमें निकालना चाहिए दिल्ली जाकर ऋतु और उनके मम्मी-पापा से भी मिलना है.... मोहिनी जी और ऋतु अभी किशनगंज वाले घर आयीं हुईं थी.... लेकिन एक और सवाल का जवाब पूनम तुमसे चाहती हूँ.... तुमने बताया था कि विक्रम कि शादी कि खबर सुनी थी किसी से तुमने.... क्या इस बारे में कोई जानकारी मिल सकती है किसी से... कहीं से भी...... क्योंकि मेरे ख्याल से ये बात विक्रम के परिवार में भी किसी को नहीं पता थी” रागिनी ने पूंछा

“हाँ! ये बात मुझे नेहा ने बताई थी.... कॉलेज में तुम्हारी सहेली थी.... नेहा कक्कड़.... लेकिन तुम शायद तब भी ये नहीं जानती थी की नेहा विक्रम के भी संपर्क मे थी.... विक्रम को बहुत मानती थी वो.... शायद तुम्हारी और विक्रम की आपस मे नहीं बनती थी...इसलिए वो तुम्हारे सामने विक्रम के बारे में अंजान बनी रहती थी.... वो तुम्हारी क्लास में ही थी.... तुम अपने प्रवेश पत्र में दी हुई डीटेल से कॉलेज में पता लगाना ....वहाँ नेहा का एड्रैस मिल सकता है” पूनम की बात सुनकर रागिनी ने हाँ में सिर हिलाया और उठ खड़ी हुई

साथ ही अनुराधा और प्रबल भी और उन सब को बाहर तक छोडने पूनम और सुरेश भी आए

तीनों बाहर आकर गाड़ी में बैठे और दिल्ली की ओर चल पड़े
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#38
Nice story ....
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#39
अध्याय 13


रात को रागिनी, अनुराधा और प्रबल दिल्ली पहुंचे तो उन्होने मोहिनी देवी के यहाँ सुबह जाने का निर्णय लिया और किशनगंज वाले घर पर पहुँच गए...खाना उन लोगो ने रास्ते मे ही खा लिया था... घर पहुँचकर वो लोग फ्रेश होकर सोने की तयारी करने लगे की तभी बाहर दरवाजे पर आवाज हुई तो प्रबल ने जाकर दरवाजा खोला, बाहर रेशमा खड़ी हुई थी और उनके साथ चाय नाश्ता लिए अनुपमा भी थी.... प्रबल ने उन्हें अंदर आने का रास्ता दिया और सोफ़े पर बैठने का कहकर रागिनी को बुलाने चला गया.... रागिनी को जैसे ही रेशमा और अनुपमा के आने का पता चला तो उन्होने प्रबल से अनुराधा को भी बुलाने का कहा और खुद बाहर ड्राइंग रूम मे आकर रेशमा के पास बैठ गईं

“भाभी नमस्ते! आप इतनी रात को क्यों परेशान हुई, हम लोग तो रास्ते में ही खाना खाकर आए थे... सुबह आपसे आकार मिलते... रात हो गयी थी तो सोचा की अभी सो जाते हैं.... सफर की भी थकान थी” रागिनी ने रेशमा से कहा तो रेशमा ने रागिनी का हाथ अपने हाथों में लेते हुये बड़े प्यार से कहा

“मुझे मालूम था की तुम अभी हमें परेशान करना नहीं चाहोगी ...इसीलिए तुम्हारी गाड़ी की आवाज सुनते ही मेंने चाय बनाने को कह दिया और लेकर यहाँ आ गयी... बेशक तुम लोग रास्ते में ही खाना खाकर आए हो.... लेकिन सफर के बाद अब कुछ चाय नाश्ता करके आराम करोगे तो नींद भी अच्छी आएगी और थकान भी कम हो जाएगी.... बाकी बात तो हम कभी भी दिन में बैठकर करते रहेंगे...”

तभी प्रबल और अनुराधा भी वहाँ आ चुके थे.... और अनुराधा अनुपमा के पास जाकर बैठ गयी तो रागिनी ने प्रबल को अपने पास बैठा लिया.... फिर चाय नाश्ते के दौरान हल्की-फुलकी बातचीत होने लगी। रेशमा ने बताया की आज दिन में विक्रम की चाची मोहिनी जी अपनी बेटी के साथ यहाँ आयीं थीं तो रागिनी ने कहा की उन्होने उसे फोन किया था और उनकी बात हो गयी है... साथ ही रेशमा ने बताया की बाहर चौक पर एक दुकान है.... वहाँ जो लड़का बैठता है वो भी रागिनी के बारे में पुंछने आया था कल... तो उन्होने उसे बता दिया था की वो 1-2 दिन में वापस आ रही हैं और अब यहीं रहेंगी... ये सुनकर रागिनी सोच में पड़ गईं तो अनुराधा ने कहा कि ये शायद वही है जिससे पहले दिन हमने इस घर का पता पूंछा था.... वो उस दिन भी रागिनी को बहुत ध्यान से देख रहा था.... जैसे बहुत अच्छी तरह जानता हो। तो रागिनी ने कहा की अब तो यहीं रहना है तो फिर किसी दिन उसको भी मिल लेंगे की वो क्यों मिलना चाहता है। इस सब के बाद रेशमा और अनुपमा वापस अपने घर चली गईं और वो सब अपने-अपने कमरे में जाकर सो गए।

...............................

इधर मोहिनी क घर ... शाम को लगभग 5 बजे एक टैक्सी आकर रुकी और उसमें से बलराज सिंह उतरे और घर में आ गए। मोहिनी ने उन्हें चाय नाश्ता दिया उसके बाद उन्हें आराम करने को कहा तो वो अपने बेडरूम में जाकर लेट गए और सो गए... 7 बजे ऋतु घर आयी तो मोहिनी ने उसे चाय दी और बताया की उसके पापा आ गए हैं और सो रहे हैं तो ऋतु ने उन्हें अभी सोने देने के लिए कहा और मोहिनी देवी के साथ रात के खाने की तयारी में लग गयी। 9 बजे खाना तयार होने पर मोहिनी देवी ने बलराज सिंह को जगाया और खाने के लिए कहा तो वो फ्रेश होने चले गए, फ्रेश होकर बाहर आए तो डाइनिंग टेबल पर ऋतु और मोहिनी बैठे उनका इंतज़ार कर रहे थे, वो भी आकर वहाँ बैठ गए और सबने खाना खाया।

खाना खाकर बलराज सिंह ने मोहिनी देवी की ओर देखा तो उन्होने सहमति मे सिर हिला दिया तो बलराज सिंह ने कहना शुरू किया

“ऋतु बेटा! अब तक तुम परिवार में सिर्फ मुझे और अपनी माँ को या फिर विक्रम को जानती थी... लेकिन अब तुम्हारी माँ ने तुम्हें रागिनी और अनुराधा के बारे में भी बता दिया होगा... विमला मेरी सगी बहन थी.... मुझसे बड़ी और गजराज भैया से छोटी.... किसी वजह से उससे हमारे संबंध खत्म हो गए और उसके या उसके परिवार से हमने कोई नाता नहीं रखा.... पूरे परिवार ने ही..... फिर आज से 20 साल पहले कुछ ऐसी परिस्थिर्तियाँ बनी कि हुमें विक्रम कि वजह से विमला से दोबारा मिलना पड़ा और उसके बाद परिस्थितियाँ बिगड़ती चली गईं.... जिसमें कुछ विमला का दोष था तो कुछ मेरा...... तुम्हारी माँ का कोई दोष तो नहीं था लेकिन उसने सिर्फ एक गलती की कि वो सबकुछ देखते हुये भी चुप रही...और उसकी चुप्पी ने वो कर दिया जो कि आज तुम्हारे सामने है.... विक्रम अब इस दुनिया मे ही नहीं रहा और रागिनी कि याददास्त चली गयी... तुम और अनुराधा कुछ जानते नहीं...अभी बहुत सी बातें हैं जो तुम्हें या यूं कहो कि मेरे और तुम्हारी माँ के अलावा जानने वाला कोई नहीं रहा घर मे। ये सब धीरे-धीरे वक़्त के साथ तुम सबको बताऊंगा लेकिन शायद तुम सुन न सको... या सह न सको... इसलिए अभी उन बातों को छोडकर हमें कल सुबह रागिनी के पास चलना है.... उस बेचारी का तो कोई दोष ही नहीं... जिसकी सज़ा उसने ज़िंदगी भर भोगी....और दुख कि बात ये है कि वो अब ये भी भूल चुकी है कि दोषी कौन था.... और शायद इसी वजह से में आज उसका सामना करने कि हिम्मत कर सकता हूँ।

अब तो सिर्फ यही कहूँगा कि जैसे रागिनी सबकुछ भूल गयी याददास्त जाने की वजह से .... तुम भी कुछ जानने या समझने को भूलकर... मिलकर ज़िंदगी नए सिरे से शुरू करो....कल चलकर रागिनी और अनुराधा को भी ले आते हैं और सब साथ मिलकर रहेंगे”

ऋतु एकटक उनके चेहरे कि ओर देखती रही... उनके चुप हो जाने के बाद भी कुछ देर तक ऋतु कि नजरें बलराज सिंह के चेहरे से नहीं हट पायीं। फिर ऋतु ने एक गहरी सांस लेते हुये उनसे कहा

“पापा में भी कुछ जानना नहीं चाहती कि पहले हमारे परिवार में ऐसा क्या हुआ कि हम सब बिछड़ गए और परिवार ही बिखर गया.... में भी चाहती हूँ कि हम सब मिलकर नए सिरे से अपनी ज़िंदगी शुरू करें। में सुबह रागिनी दीदी को फोन कर दूँगी... वो भी शायद दिल्ली पहुँच रही होंगी या पहुच चुकी होंगी”

इसके बाद सब अपने-अपने कमरे में चले गए। मोहिनी और बलराज बहुत रात तक धीमे-धीमे एक दूसरे से बातें करते रहे, हँसते, मुसकुराते और रोते रहे... शायद बीती ज़िंदगी की बातें याद करके, इधर ऋतु भी अपनी सोचों मे खोयी हुई थी...अपनी ज़िंदगी के सबसे महत्वपूर्ण फैसले को लेकर। वो जानती थी की विक्रम उसकी हर जिद पूरी करता था... और विक्रम का हर फैसला उसके माँ-बाप को मंजूर होता था.... इसीलिए वो सही वक़्त के इंतज़ार में थी... जब वो विक्रम को इस बारे में बताती और उसका मनचाहा हो जाता.... लेकिन विक्रम की मौत ने तो उसे अनिश्चितता के दोराहे पर खड़ा कर दिया.... अब इन बदलते हालत में तो वो इस बारे मे कोई बात भी करने का मौका नहीं बना प रही थी... विक्रम की मौत, फिर रागिनी और उसके बच्चों का सामने आना, फिर उन सबका राज खुलना वसीयत से और अब इस नए राज का खुलासा...की रागिनी कौन है? अभी तो इस घर में न जाने और क्या क्या बदलाव आएंगे.... तब तक उसे चुप रहना ही बेहतर लगा...साथ ही एक और भी उम्मीद उसे लगी, रागिनी। हाँ! रागिनी ही अब उसके लिए विक्रम की जगह लेगी... क्योंकि रागिनी के लिए उसने अपने माँ-बाप के दिल में एक लगाव और एक पछतावा भी देखा... साथ ही रागिनी के साथ इतने दिन रहकर उसे रागिनी बहुत सुलझी हुई भी लगी....

यही सब सोचते-सोचते ऋतु भी नींद के आगोश मे चली गयी..........एक नए सवेरे की उम्मीद में

.......................................

सुबह दरवाजा खटखटाये जाने पर रागिनी की आँख खुली तो उसने बाहर आकर दरवाजा खोला तो सामने अनुपमा चाय के साथ मौजूद थी... रागिनी ने उसे अंदर आने का रास्ता दिया तब तक अनुराधा और प्रबल भी अपने कमरों से निकालकर बाहर आ चुके थे...फिर सभी ने चाय पी और रागिनी अनुपमा के साथ ही रेशमा के घर जाकर उनसे बोलकर आयी कि अब वो उनके लिए खाना वगैरह न बनाएँ... आज से रागिनी अपने घर मे सबकुछ व्यवस्था कर लेगी... क्योंकि अब इन लोगों को यहीं रहना है...रेशमा के परिवार वालों के बहुत ज़ोर देने पर भी उसने नाश्ते को ये बताकर माना कर दिया कि उन्हें अभी विक्रम कि चाची के घर जाना है...वहीं नाश्ता कर लेंगे....

घर आने पर रागिनी को पता चला कि ऋतु का फोन आया था कि वो लोग आ रहे हैं तो रागिनी ने अनुराधा और प्रबल से घर का समान लेने के लिए बाज़ार चलने को कहा। अभी उनकी गाड़ी गली से बाहर निकलकर चौक पर पहुंची ही थी की रागिनी को रेशमा की बात याद आयी और उसने अनुराधा को गाड़ी उसी दुकान के सामने रोकने को कहा। दुकान पर वही आदमी मौजूद था जो उस दिन रास्ता बता रहा था। गाड़ी रुकते ही वो अपनी दुकान से निकलकर गाड़ी के पास आके खड़ा हो गया।

गाड़ी रुकने पर रागिनी अपनी ओर का दरवाजा खोलकर बाहर निकली और उसके सामने खड़ी हो गयी। रागिनी को देखते ही वो एकदम उसके पैरों मे झुका और पैर छूकर बोला “रागिनी दीदी...पहचाना आपने...में प्रवीण....आप कहाँ चली गईं थीं, इतने साल बाद आपको देखा है?”

रागिनी ने गंभीरता से उसे देखते हुये कहा “अब में यहीं रहूँगी... में राजस्थान में रहती थी.... मुझे रेशमा भाभी ने बताया था कि तुम मुझसे मिलने आए थे?”

“हाँ दीदी, उस दिन जब आप आयीं थीं तो मुझे कुछ पहचानी हुयी लगीं... और जब आपने अपने घर का पता पूंछा तो मुझे याद आ गया कि ये आप हैं... आइए आपको माँ से मिलवाता हूँ... माँ और सुधा दीदी आपको बहुत याद करतीं हैं...” उस आदमी ने रागिनी से कहा तो रागिनी असमंजस में पड गयी, तब तक उसे रागिनी के पैर छूते और बात करते देखकर प्रबल और अनुराधा भी गाड़ी से उतरकर रागिनी के पास ही खड़े हो गए

“नहीं भैया! फिर आऊँगी अभी तो बाज़ार जा रहे थे घर का समान लाना है... यहाँ रहना है तो सब व्यवस्था भी करनी होगी” रागिनी को असमंजस में देखकर अनुराधा ने उससे कहा

“आप चिंता मत करो दीदी, मुझे बताओ क्या समान लेना है... में सारा समान अभी घर भिजवा दूँगा... और ये दोनों कौन हैं” उसने रागिनी से कहा

“ये अनुराधा है... इसे तो जानते होगे.... मेरी भतीजी” रागिनी ने कहा

“हाँ! इसे तो में बहुत खिलाया करता था जब आप और सुधा दीदी इसे यहाँ दुकान पर लेकर आती थीं.... ये भी आपके साथ ही रहती होगी”

“हाँ! ये मेरे साथ ही रहती है...” रागिनी ने अनमने से होकर कहा तो उसे ध्यान आया कि वो बहुत देर से वहीं खड़े खड़े बात कर रहे हैं

“दीदी आप समान कि लिस्ट दो मुझे ये में पैक करा के गाड़ी में रखवाता हूँ, तब तक चलो माँ से मिल लो... उनकी तबीयत खराब रहती है... इसलिए चल फिर नहीं सकती” उसके कहने पर रागिनी ने अनुराधा को इशारा किया तो अनुराधा ने समान कि लिस्ट प्रवीण को दे दी और तीनों प्रवीण के पीछे-पीछे उसके घर में अंदर चले गए

अंदर एक कमरे में बैड पर एक 55-60 साल की औरत अधलेटी बैठी हुई कुछ पढ़ रही थी...प्रवीण के साथ इन लोगों को आते देखकर उसने ध्यान से सबको देखा और रागिनी को पहचानकर अपने पास आने का इशारा किया। पास जाते ही उसने रागिनी को खींचकर अपने सीने से लगा लिया और रोने लगी तो प्रवीण ने अनुराधा और प्रबल को बैठने का इशारा किया और कमरे से बाहर निकल गया

“रागिनी बेटा तुम्हें कभी हमारी याद नहीं आयी.... सुधा तो आजतक खुद को तुम्हारा दोषी मानती है.... ना वो उस कमीनी ममता के चक्कर में पड़ती और न ही तुम्हारे साथ ऐसा होता.... हमें तो ये लगता था कि पता नहीं तुम्हारे साथ क्या किया उन लोगों ने, पता नहीं तुम इस दुनिया में हो भी या नहीं या हो भी तो न जाने कैसी ज़िंदगी जी रही होगी” उस औरत ने कहा तो ममता का नाम सुनकर रागिनी और अनुराधा दोनों ही चोंक गईं। रागिनी के कुछ बोलने से पहले ही अनुराधा ने पुंछ लिया

“कौन ममता?”

“वही रागिनी की भाभी.... उसने सुधा के तो छोड़ो... रागिनी के भी विश्वास और प्यार को धोखा दे दिया... रागिनी तो उसे अपनी माँ से भी ज्यादा चाहती और मानती थी” उस औरत ने कहा तो अनुराधा मुंह फाड़े देखती रह गयी...रागिनी भी अवाक होकर देखने लगी... लेकिन वो अपनी धुन में आगे कहती गयी “रागिनी बेटा तुमने तो उसकी बेटी को भी अपनी बेटी की तरह पाला...बल्कि वो माँ होकर भी न पल सकी और न पाल सकती थी.... वैसे उसकी बेटी अनुराधा का कुछ पता है?”

“जी! ये अनुराधा ही है” रागिनी ने उलझे से अंदाज में अनुराधा की ओर इशारा करते हुये कहा तो एक पल के लिए प्रवीण कि माँ भी सकते से मे आ गयी और कमरे में मौजूद सभी एक दूसरे कि ओर देखने लगे लेकिन किसी के भी मुंह से कोई आवाज नहीं निकली

“अनुराधा बेटी... तुम्हें बुरा लगा होगा कि मेंने तुम्हारी माँ के बारे में ऐसा कहा... शायद रागिनी ने भी तुम्हें इस बारे में कभी बताया नहीं होगा... ये ऐसी ही थी... कभी किसी का न बुरा सोचती थी न बुरा कहती थी.... लेकिन जो मेंने कहा है... सिर्फ सुना है... सुधा के मुंह से... ममता के सामने... इसलिए जानती हूँ.... लेकिन रागिनी ने तो खुद भोगा है...इसीसे पूंछ लो?” कहते हुये उन्होने रागिनी कि ओर देखा तो रागिनी ने एक बार अनुराधा और प्रबल कि ओर देखा और प्रवीण की माँ कि आँखों में देखते हुये कहा

“मुझे कुछ भी याद नहीं... 20 साल से मेरी याददास्त गयी हुई है.... में पिछले 20 साल से राजस्थान मे रह रही थी... एक विक्रमादित्य सिंह थे उनके पास... उनकी मृत्यु के बाद उनकी वसीयत से मुझे यहाँ का पता मिला तब यहाँ पहुंची हूँ... और मुझे कुछ भी नहीं पता.... मुझे तो मेरा नाम भी विक्रमादित्य ने बताया था। ये दोनों बच्चे भी विक्रमादित्य ने मुझे सौंपे थे”

“ये तो तुम्हारे साथ बहुत बुरा हुआ.... लेकिन बस तुम सही सलामत हो...मुझे इसी की खुशी है..... एक मिनट में सुधा को भी बता दूँ तुम्हारे बारे में” कहते हुये उन्होने मोबाइल से कॉल मिलाया... थोड़ी देर बाद उधर से आवाज आयी

“माँ कैसी हो तुम? तबीयत तो ठीक है तुम्हारी?”

“सुन बेटा... तुझे एक खुशखबरी देनी है.... जो तू सोच भी नहीं सकती”

“क्या माँ? भैया के यहाँ कोई खुशखबरी है... नेहा के कुछ होनेवाला है क्या?”

“नहीं! उससे भी बड़ी खुशखबरी.......... अपनी रागिनी आयी है.... और अब वो यहीं रहेगी...अपने मकान में....ले बात कर” कहते हुये उन्होने फोन रागिनी को दे दिया फोन कान पर लगते ही रागिनी को उधर से भर्राई सी आवाज सुनाई दी

“रागिनी... तू सच में आ गयी... मेरा दिल कहता था तेरे साथ कभी बुरा नहीं हो सकता.... मुझे विक्रम पर पूरा भरोसा था कि वो तुझे बचा लेगा....” सुधा ने कहा तो रागिनी ने सिर्फ इतना कहा

“हाँ! में विक्रम के पास ही थी”

“चल ठीक है फोन पर नहीं अब तुझसे मिलकर ही बात करूंगी.... बच्चों को स्कूल से आ जाने दे... फिर में आती हूँ शाम तक... ‘उनको’ बोलकर.... रात को तेरे पास ही रुकूँगी” कहते हुये सुधा ने फोन काट दिया

तभी प्रवीण ने कमरे में आकर बताया कि उसने सारा समान पैक करा दिया है...चलकर गाड़ी में समान रखवा लें.... अनुराधा प्रबल का हाथ पकड़कर प्रवीण के साथ बाहर चली गयी... कुछ देर तक रागिनी भी कुछ नहीं बोली... फिर उसने कहा

“में फिर आऊँगी आपसे मिलने.... और सुधा भी शाम को आने का कह रही है...तब तक में भी कुछ जरूरी काम निपटा लेती हूँ” ये कहते हुये रागिनी भी बाहर निकाल आयी और गाड़ी में बैठ गयी... अनुराधा ड्राइविंग सीट पर बैठी हुयी थी, प्रबल ने गाड़ी में समान रखवाकर प्रवीण से समान के पैसे पूंछे तो प्रवीण ने माना कर दिया... इस पर रागिनी ने प्रवीण को पास बुलाकर समझाकर पैसे लेने को राजी किया और पैसे दे दिये। प्रबल भी जाकर आगे अनुराधा के बराबर में बैठ गया और गाड़ी चौक मे घुमाकर तीनों वापस घर आ गए।
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#40
अध्याय 14


“शमशेर ! मुझे मेरा बच्चा चाहिए.... कब तक उससे अलग रहूँगी... मेंने तो उसे देखा ही नहीं..... अगर कुछ दिन मेरे साथ रह लेता तो क्या बिगड़ जाता कम से कम एक बार उसे अपने सीने से लगाकर प्यार तो कर लेती...” शमशेर के सीने में मुंह छुपाए रोती हुयी नीलोफर ने कहा

“नीलो! तुमने ही तो कहा था हमें अपने बच्चे को इस सबसे बाहर रखना है... अगर वो एक दिन भी तुम्हारे पास रह जाता तो उसे वहाँ से हमारे साथ ही यहाँ भेज दिया जाता.... में तो तुम्हें और समीर को ही अब तक नहीं निकाल पा रहा हूँ...यहाँ तुम्हारे साथ बने रहने के लिए ही कितना बड़ा रिस्क लेना पड़ता है मुझे... लेकिन अब में हमेशा के लिए ही तुम्हारे पास आ गया” शमशेर ने नीलोफर के बालों में हाथ फिरते हुये कहा

“लेकिन प्रबल किसके पास रहेगा वहाँ... रागिनी को अभी तो अपने बारे में ही पता नहीं तो प्रबल को पाल रही है... लेकिन कल को उसे कुछ याद आ गया तो.... अनुराधा को भी अगर ये पता चल गया की वो उसका भाई नहीं है तो... पता नहीं प्रबल का क्या होगा” नीलोफर ने फिर कहा “में तो उसके लिए कुछ कर भी नहीं सकती, अपने जानने वाले किसी से प्रबल का जिक्र भी कर दिया तो मेरा तो इस जाल से निकालना मुश्किल हो ही जाएगा... साथ ही तुम्हारी, समीर और प्रबल की जान को भी खतरा हो जाएगा”

“अब एक बात बताऊँ? तुम नाराज मत होना... और ना घबराना... अभी तक सबकुछ ठीक चल रहा है और उम्मीद है कि सब ठीक ही चलेगा” शमशेर ने नीलोफर का सिर अपने सीने से उठाकर उसकी आँखों में देखते हुये कहा

“क्या? अब ऐसा क्या हो गया जो में घबरा जाऊँगी... नाराज तो इस ज़िंदगी में तुमसे हो ही नहीं सकती” नीलोफर ने चिंता भरे स्वर में कहा

“रागिनी, प्रबल और अनुराधा को सच्चाई पता चल चुकी है..... पूरी नहीं लेकिन इतना तो पता चल ही गया है कि उनकी असली पहचान क्या है? उनका घर-परिवार कहाँ और कौन हैं?”शमशेर ने धीरे से कहा

“फिर? अब? अब क्या होगा हमारे प्रबल का... रागिनी और अनुराधा कहीं उसे छोड़ न दें... या वो ही यहाँ आने कि कोशिश करे तो?” नीलोफर ने घबराते हुये कहा

“नहीं ऐसा कुछ नहीं हुआ! रागिनी, अनुराधा और प्रबल को साथ लेकर अपने घर दिल्ली रहने आ गईं हैं.... और उनके बीच कुछ नहीं बदला.... हालांकि वहाँ रहने से रागिनी को बहुत कुछ पता चलेगा समय के साथ, लेकिन सिर्फ अपने बारे में... हमारे बारे में उसे शायद ही पता चले.... और प्रबल के बारे में पता चलने के बाद भी पहले तो यहाँ तक पहुँचना ही उनका मुश्किल है.... अगर सरकारी जांच भी आयी तो कागजी तौर पर हमारा जो बेटा वहाँ पैदा हुआ था.... वो यहाँ हमारे साथ है.... समीर.... प्रबल को पैदा होते ही में इसीलिए लेकर चला गया था... जिससे वहाँ के रेकॉर्ड में जुड़वां बेटे नहीं बल्कि एक ही बेटा पैदा होने का दर्ज हो... इससे हमें 2 फायदे हुये एक तो प्रबल इंटेलिजेंस एजेंसियों के दायरे से बाहर निकल गया और दूसरे अब अगर प्रबल या रागिनी उस जन्म प्रमाण पत्र के आधार पर कोई जानकारी लेने की कोशिश करेंगे तो रेकॉर्ड में हम अपने उस बेटे के साथ यहाँ सिंध में आ चुके हैं.... जिसका जन्म प्रमाण पत्र है.... लेकिन उन्हें ये जरूर महसूस हो जाएगा की प्रबल से हमारा कोई रिश्ता जरूर है.......अब समय आ गया है की हम अपना अगला कदम उठाएँ..." शमशेर ने उसे आश्वस्त करते हुये कहा

.................................

रागिनी वगैरह अपने घर मे पहुंचे तो रागिनी ने प्रबल को घर में जरूरी सामान व्यवस्थित करने को कहा और अनुराधा को अपने साथ रसोई में साथ ले गयी। रसोई की साफ सफाई कर खाना बनाने की तयारी कर अनुराधा को ऋतु से बात करने को कहा तो उन्होने बताया की 20-25 मिनट में वो लोग पहुँच रहे हैं। फिर रागिनी ने सभी को अपने-अपने कमरे में जाकर तयार होने को कहा। लगभग आधे घंटे के बाद बाहर गाड़ी रुकने की आवाज आयी तो प्रबल ने बाहर निकालकर देखा... गाड़ी में से बलराज सिंह और मोहिनी देवी उतरे तो प्रबल ने उनके पैर छूए और उन्हें साथ लेकर घर की ओर बढ़ा.... रागिनी और अनुराधा भी निकलकर दरवाजे पर आ गईं थीं... मोहिनी ने आगे बढ़कर रागिनी को गले लगा लिया तभी ऋतु ने भी पीछे से आकर अनुराधा को गले लगा लिया…. प्रबल एकटक उन सबकी ओर देखने लगा तो अनुराधा ने हाथ बढ़ाकर प्रबल को भी अपने साथ लगा लिया... और सब अंदर आकार ड्राविंग रूम में बैठ गये.... अनुराधा रसोई में जाकर चाय तयार करने लगी... प्रबल भी अनुराधा के पास रसोई में ही जाकर उसकी सहायता करने लगा

“रागिनी बेटा तुम्हें तो कुछ याद नहीं...मुझे भी तुम्हारे परिवार के बारे में कोई खास जानकारी नहीं... लेकिन 20 साल पहले जब तुम्हारा अपहरण हो गया था तब मेंने तुम्हारी फोटो देखि थी अखबार और पोस्टर्स मे... इसीलिए अभी जब तुम गाँव पहुंची तब तुम मुझे कुछ पहचानी-पहचानी सी लगी.... बाद मे जब वसीयत में विक्रम ने बताया की तुम्हारा हमारे परिवार की नहीं तो मेंने इतना गौर नहीं किया.... लेकिन जब तुम इस घर में आयी तो मुझे पूरी तरह से याद आ गया की तुम कौन हो....” मोहिनी देवी ने अपनी बात शुरू करने के लिए भूमिका बँधनी शुरू की ही थी कि अनुराधा और प्रबल चाय-नाश्ता लेकर आ गए... रागिनी ने उन्हें सबको चाय नाश्ता देकर वहीं साथ में बैठने को कहा

“अब बताएं आप? क्या रिश्ता है आपसे हमारा? और अगर रिश्ता है तो फिर हम एक दूसरे को जानते क्यों नहीं?” रागिनी ने चाय का घूंट भरते हुये कहा

“”रागिनी! तुम्हारी माँ विमला मेरी बड़ी बहन थी, यानि में तुम्हारा मामा हूँ... विमला दीदी ने अपनी मर्जी से घर छोडकर लव मैरेज की थी इसलिए परिवार ने उन्हें न तो तलाश करने कि कोशिश कि और न ही बाद में पता चलने पर भी कोई संबंध रखा.... यही विमला दीदी ने भी किया...लेकिन जब तुम्हारा अपहरण हुआ था तब में तुम्हारे घर गया था... 2-3 बार... इसलिए में तुम्हारे घर के सभी मेम्बर्स को जानता हूँ... लेकिन मुझे ये नहीं समझ आया कि विक्रम तुम्हें सिर्फ कॉलेज से जानता था या हमारे रिश्ते को भी जानता था.... खैर छोड़ो इन सब बातों को.... अभी हम इसलिए यहाँ आए हैं कि अब तक जो हुआ या होता रहा... उस सब को भूलकर हम एक साथ एक परिवार कि तरह रहें.... विक्रम के बाद हमारे घर में सिर्फ हम दोनों पति-पत्नी और ऋतु हैं... इधर तुम्हारे घर में भी तुम्हारे और अनुराधा के अलावा किसी के बारे में कोई जानकारी नहीं.... तो हम पांचों ही एक साथ एक परिवार कि तरह रहें...”

“देखिये मामाजी!... अब मामाजी ही हुये ना आप मेरे.... यहाँ सिर्फ में और अनुराधा ही नहीं हैं... हमारे साथ प्रबल भी है... जो हमेशा से मेरे परिवार का हिस्सा है... जन्म से....” रागिनी ने कहा

“लेकिन बेटा! विक्रांत ने तो ये बताया था कि इसका हमारे परिवार से कोई संबंध नहीं है... फिर भी अगर तुम्हें सही लगता है तो हम भी तयार है...प्रबल को भी साथ रखने के लिए” बलराज सिंह ने कहा इस पर मोहिनी ने कहा कि विक्रम को कुछ तो पता होगा इसीलिए उसने अपना अंतिम संस्कार प्रबल के हाथों कराया.... ये परिवार से ही जुड़ा हुआ है तो बलराज सिंह ने भी सहमति दे दी

“अब दूसरी बात पर आते हैं” रागिनी ने कहा “हमारे परिवार के साथ तो अपराध कि कहानी जुड़ी और कोई जेल गया, किसी का अपहरण हुआ, कोई फरार हो गया, कुछ गायब भी हुये और शायद कुछ के कत्ल भी हो गए हों....लेकिन आपका तो भरा पूरा परिवार था.... उसमें से बाकी लोग कहाँ गए... आप 3 और एक विक्रम 4 लोग ही कैसे रह गए?”

“हम 3 भाई थे और एक बहन थी” बलराज सिंह ने बोल्न शुरू किया तो रागिनी, अनुराधा और प्रबल सभी चोंक गए लेकिन रागिनी ने इशारे से अनुराधा और प्रबल को शांत रहने का इशारा किया और बलराज सिंह कि बात सुनने लगी “मेरे बड़े भाई गजराज सिंह थे जो एक वैज्ञानिक थे ICSR में उनकी पत्नी कामिनी भाभी, मोहिनी कि सगी बड़ी बहन थी उनके इकलौता बेटा विक्रम था, जब विक्रम लगभग 10 साल का था तब गजराज भैया का हिमाचल में कार खाई में गिरने से निधन हो गया... भाभी भी भैया के अंतिम संस्कार के बाद गंगा स्नान को हरिद्वार गईं और वहाँ से लापता हो गईं... बाद में विक्रम को मुझसे छोटा भाई देवराज अपने साथ कोटा हवेली ले गया... देवराज ने शादी नहीं कि थी... कोटा में वो हवेली हमारे नानाजी कि थी... उनके कोई बेटा नहीं था... हमारी माँ उनकी इकलौती बेटी थी इसलिए उन्होने देवराज को अपने साथ रखा था और अपनी सारी जमीन-जायदाद देवराज के नाम कर दी थी... विक्रम हमेशा देवराज के ही साथ रहा... लेकिन पढ़ाई के लिए दिल्ली में रहा तब भी उसने हमारे घर रहना स्वीकार नहीं किया और अलग DU नॉर्थ कैम्पस के पास ही यहीं किशनगंज में मकान लेकर रहता था....”

“तो फिर जयराज सिंह और जयराज सिंह कौन थे?” रागिनी ने जैसे ही कहा बलराज सिंह के चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लगीं

“तुम्हें किसने बताया इनके बारे में” बलराज सिंह के चेहरे पर कठोरता के भाव आ गए

“अब में बताती हूँ आपको.... आप 3 नहीं 5 भाई थे और आपकी 1 नहीं 2 बहनें थीं.... अब मुझे कहाँ से पता चला इस बात को छोड़िए” रागिनी ने भी कठोरता से शब्दों को चबाते हुये कहा तो ऋतु ने चोंक कर बलराज सिंह और मोहिनी देवी की ओर देखा

“पापा! ये क्या कह रही हैं रागिनी दीदी?” ऋतु ने बलराज सिंह से पूंछा

“बेटा ये सही कह रही हैं” बलराज सिंह के कुछ बोलने से पहले ही मोहिनी देवी ने कहा “और ये भी सच सुन लो रागिनी... तुम विमला कि बेटी नहीं हो... बल्कि जयराज सिंह और वसुंधरा की बेटी हो”

“मुझे मालूम है चाचीजी! मेरा जन्म लोक नायक जयप्रकाश हॉस्पिटल में हुआ था जो इरविन हॉस्पिटल के नाम से जाना जाता था 14 अगस्त 1979 को... ये रहा हॉस्पिटल के रेकॉर्ड में दर्ज जयराज सिंह और वसुंधरा देवी के बेटी का जन्म होने का विवरण.... इसमें दिल्ली का नहीं गाँव का पता दर्ज है” कहते हुये रागिनी ने अपने मोबाइल में व्हाट्सएप्प पर आए हुये मैसेज में से एक पन्ने को बड़ा करके दिखाया तो ऋतु ने मोबाइल अपने हाथ में लेते हुये उसमें देखा

“चलिये छोड़िए इन सब बातों को.... आपने अब तक जो भी बताया है.... उसमें मुझे सच से ज्यादा झूठ दिख रहा है... इसलिए अब में सबकुछ खुद पता करूंगी.... मुझे तो लगता है कि कहीं न कहीं इस परिवार के खत्म हो जाने में आपका भी हाथ है.... मुझे तो क्या.... आपने शायद अपनी बेटी को भी कभी कुछ नहीं बताया होगा” कहते हुये रागिनी ने ऋतु के हाथ से मोबाइल लिया और उठकर खड़ी हो गयी... “अब आप जा सकते हैं.... में और ये दोनों बच्चे यहीं रहेंगे.... क्योंकि में आपके परिवार की हूँ... तब भी आपने मुझे कभी नहीं अपनाया....बल्कि अपनी ओर से तो खत्म ही हो जाने दिया.... ये दोनों बच्चे तो आपके परिवार के भी नहीं हैं.... कल को इनके साथ न जाने क्या हो..... मुझे और इन बच्चों को विक्रम ने सहारा दिया था.... अब में इन बच्चों को लेकर अपना-घर परिवार बसाऊँगी.... मुझे आपकी कोई जरूरत नहीं है”

अब बलराज सिंह और मोहिनी देवी के पास कहने के लिए कुछ भी नहीं नहीं बचा था तो वो भी उठ खड़े हुये और चुपचाप बाहर कि ओर चल दिये। उनको जाता देखकर ऋतु भी उनके पीछे पीछे बाहर निकल गयी। थोड़ी देर बाद उनकी गाड़ी स्टार्ट होकर जाने कि आवाज आयी तो अनुराधा और प्रबल आकर रागिनी के कंधों पर सिर रखकर बैठ गए..... और तीनों कि आँखों से आँसू बहने लगे
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