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प्रिय मित्रो मेंने आप सब की बहुत सी कहानियाँ पढ़ीं और बहुत सारी कहानियाँ आपके साथ पढ़ीं... हर किसी के मन मे एक कहानी होती है..... ज़िंदगी की कहानी
लेकिन अपने मन की बात को शब्दों मे उतारना सभी के बस की बात नहीं... मेरे भी नहीं... अब आप सब के प्रोत्साहन और प्रेरणा से में अपनी कहानी शुरू करने जा रहा हूँ.... ये कहानी आपको जीवन के रास्ते पर पड़ने वाले सभी मोड़ों से होते हुये मंजिल तक लेकर जाने वाली यात्रा की तरह लगेगी.... कहीं आपको अपनी सी लगेगी तो कहीं पराई सी ..... लेकिन आपके दिल तक पहुंचे.... यही मेरा प्रयास रहेगा.....
साथ बने रहें
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07-01-2020, 01:11 AM
(This post was last modified: 07-01-2020, 01:12 AM by kamdev99008. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
मोक्ष
मोक्ष वास्तव में हमारी आत्मसंतुष्टि है... जब हमारी कामनाएं आनंद की अनुभूति करने लगती हैं इसको हम अपनी सुविधानुसार आनंद, सुख, संतुष्टि या समाधि भी कहते हैं. मोक्ष सम्पूर्ण तृष्णाओं के भोग अर्थात सम्पूर्ण भोग या सम्भोग से ही प्राप्य है.
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त्याग
मोक्ष की एक नकारात्मक अवधारणा त्याग है अर्थात समस्त तृष्णाओं का त्याग कर देना इसे भी कुछ व्यक्ति मोक्ष ही मानते हैं किन्तु ऐसा सत्य नहीं है.... त्याग एक भ्रम है जो आपकी नियति को नकारात्मक निर्धारित करता है. आपने जिस वस्तु को पूर्णतः प्राप्त ही नहीं किया उसका त्याग कैसे कर पायेंगे. त्याग केवल उसी का हो सकता है जिसको अपने प्राप्त कर लिया हो...जिस पर आपका अधिकार हो...जिस पर आपका स्वामित्व हो...
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तृष्णा
अनादि काल से संसार के जीव विभिन्न प्रकार की तृष्णाओं में जीवन जीते हुए तुष्टि की कामना करते रहे हैं और करते रहेंगे. संसार में 5 रूप में तृष्णा को परिभाषित किया गया है :-
१- काम
२- क्रोध
३- मद
४- लोभ
५- मोह
यही पांचों तृष्णायें जीवन को जीने के लिए प्रोत्साहित करती हैं और सभी जीवों को परस्पर सामंजस्य से रहने को प्रोत्साहित करती हैं क्योंकि सभी को अपनी तृष्णा की पूर्ति के लिए अन्य के सहयोग की लालसा ही समाज का निर्माण करती है.
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भय
इसके साथ ही एक अन्य शक्ति भी जो इन सब को नियंत्रित करती है :- भय
भय तृष्णा की पूर्ति की मानसिकता और प्रयासों को विकृत और निकृष्ट होने से रोकता है जिससे किसी एक या अधिक के हित साधने में सार्वजनिक अहित न हो.
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धर्म
तृष्णा के भोग पर नियंत्रण करने वाला भय इसे कभी सम्पूर्ण रूप से भोगने नहीं देता इस बाधा को दूर करने के लिए चिंतन-मनन-अध्ययन के द्वारा ज्ञानी-विज्ञानियों जिन्हें ऋषि कहा गया, ने एक प्रकृति आधारित व्यवस्था का निर्माण किया जिसे हम धर्म कहते हैं. साधारणतः हम धर्म को पूजन पद्धति, पंथ, संप्रदाय, मजहब या रिलिजन समझते हैं लेकिन "धर्म" का अभिप्राय व्यवस्था या जीवन पद्धति धारण करने से है. अर्थात भय मुक्त व्यवस्था ही धर्म है.
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भगवन या भगवान्
भगवान् ही हैं जो समस्त सृष्टि को संचालित करते हैं, लेकिन भगवान क्या हैं... ???
भगवान् = भ + ग + व् + अ + न अर्थात पंचवर्ण या पंचतत्वो का संयोजन
भ = भूमि
ग = गगन
व = वायु
अ = अग्नि
न = नीर
इन्ही पंचतत्वों से सम्पूर्ण सृष्टि का सञ्चालन होता है
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तो मित्रो इन्हीं सब जीवन के पहलुओं को इस कथा के माध्यम से आप सबके सामने रखने का प्रयास करूंगा...... इस कहानी के पात्रों का परिचय उनके कहानी मे प्रवेश और उनके व्यवहार व कर्मों द्वारा होगा.... कोई अन्य परिचय नहीं दिया जा सकेगा
अपडेट का इंडेक्स भी नहीं हो सकेगा.... क्योंकि केवल अपडेट पढ़ने से आप केवल कहानी को ही पढ़ पाएंगे लेकिन अनवरत रूप से सभी पाठकों के कमेंट्स के साथ पढ़ने से कहानी के विभिन्न पहलुओं को समझने में आपको आसानी रहेगी
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07-01-2020, 01:19 AM
(This post was last modified: 05-10-2020, 09:49 PM by kamdev99008. Edited 25 times in total. Edited 25 times in total.)
अनुक्रमणिका
प्रथम खंड
अध्याय 41 अध्याय 42 अध्याय 43 अध्याय 44 अध्याय 45 अध्याय 46 अध्याय 47 अध्याय 48 अध्याय 49 अध्याय 50
अध्याय 51 अध्याय 52 अध्याय 53 अध्याय 54 अध्याय 55 अध्याय 56 अध्याय 57 अध्याय 58 अध्याय 59 अध्याय 60
अध्याय 61 अध्याय 62 अध्याय 63 अध्याय 64 अध्याय 65 अध्याय 66 अध्याय 67 अध्याय 68 अध्याय 69 अध्याय 70
अध्याय 71 अध्याय 72 अध्याय 73 अध्याय 74 अध्याय 75 अध्याय 76 अध्याय 77 अध्याय 78 अध्याय 79 अध्याय 80
अध्याय 81 अध्याय 82 अध्याय 83 अध्याय 84 अध्याय 85 अध्याय 86 अध्याय 87 अध्याय 88 अध्याय 89 अध्याय 90
अध्याय 91 अध्याय 92 अध्याय 93 अध्याय 94 अध्याय 95 अध्याय 96 अध्याय 97 अध्याय 98 अध्याय 99 अध्याय 100
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Go ahead i think its something different
Just use more simple hindi words or every time I would have to use dictionary
Some would say I am the REVERSE
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10-01-2020, 01:00 PM
(This post was last modified: 10-01-2020, 01:07 PM by kamdev99008. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
अध्याय-1
रागिनी अपने बेडरूम में लेटी बहुत देर से छत को घूरे जा रही थी... पता नहीं किस सोच में डूबी थी। आज सुबह से ही वो अपने बिस्तर से नहीं उठी थी। तभी उसके मोबाइल की घंटी बजने से उसका ध्यान भंग होता है और वो अपना मोबाइल उठाकर देखती है... किसी नए या अनजाने नंबर से कॉल था।
कुछ देर ऐसे ही देखते रहने के बाद वो कॉल उठाती है.... “हॅलो”
“हॅलो! क्या आप रागिनी सिंह बोल रही हैं” दूसरी ओर से एक आदमी की आवाज आई
“जी हाँ! हम रागिनी सिंह ही बोल रहे हैं। आप कौन”
“रागिनी जी में सब इंस्पेक्टर राम नरेश यादव बोल रहा हूँ। थाना xxxxx श्रीगंगानगर से”
“जी दारोगा जी बताएं... किसलिए फोन किया”
“मैडम! हमारे क्षेत्र मे एक लाश मिली है जो पहचाने जाने के काबिल नहीं है, शायद 8-10 दिन पुरानी है... सडी-गली हालत में… लाश के कपड़ों में कुछ कागजात पहचान पत्र, ड्राइविंग लाइसेंस आदि मिले हैं विक्रमादित्य सिंह के नाम के और एक मोबाइल फोन…. जिसे ऑन करने पर लास्ट काल्स आपके नाम से थीं... मिस्सड कॉल...”
“क्या???” रागिनी की आँखों से आंसुओं की धार बह निकली
“आपको इस लाश की शिनाख्त के लिए श्रीगंगानगर आना होगा... वैसे आपका क्या संबंध है विक्रमादित्य सिंह से...?”
“हम उनकी माँ हैं” रागिनी ने अपने आँसू पोंछते हुये कहा “ हम अभी कोटा से निकाल रहे हैं 4-5 घंटे मे वहाँ पहुँच जाएंगे.... अप उन्हें सूरक्षित रखें”
रागिनी ने फोन काटा और बेजान सी बिस्तर पर गिर पड़ी
फिर उसने अपनेफोने मे व्हाट्सएप्प खोला और उसमें आए हुये विक्रमादित्य के मैसेज को पढ़ने लगी ....
“रागिनी! आज वक़्त ने फिर करवट ली है...... कभी में तुम्हें पाना चाहता था लेकिन तुम्हें मुझसे नफरत थी..... फिर हम पास आए... साथ हुये तो नदी के दो किनारों की तरह.... जो आमने सामने होते हुये भी मिल नहीं सकते..... मेरी हवस और तुम्हारी नफरत... दोनों ही प्यार मे बादल गए लेकिन बीच में जो रिश्ते की नदी थी उसे पार नहीं कर सके..... मिल नहीं सके..... अब शायद हमारा साथ यहीं तक था.... वक़्त ने हालात कुछ ऐसे बना दिये हैं की हुमें जुड़ा होना ही होगा....... शायद इस जन्म के लिए........ जन्म भर के लिए.........
एक आखिरी विनती है........ बच्चों का ख्याल रखना...... और दिल्ली मे अभय से मिलकर वसीयत इनके हवाले कर देना......... में कोई अमानत किसी की भी अपने साथ नहीं ले जाऊंगा....... तुम्हें भी तुम्हारा घर और बच्चे सौंप रहा हूँ.....
तुम्हारा.......................
विक्रमादित्य”
रागिनी फोन छोडकर ज़ोर ज़ोर से रोने लगी....विक्रमादित्य का नाम लेकर
तभी एक 21-22 साल की लड़की भागती हुई कमरे मे घुसी
“क्या हुआ माँ”
लेकिन रागिनी ने जब कोई जवाब नहीं दिया तो उसने बेड पर से रागिनी का मोबाइल उठाकर देखा और उस मैसेज को पढ़ने लगी....
“दीदी! माँ को क्या हुआ.... ये ऐसे क्यों रो रही हैं... किसका फोन आया” 18-19 साल के एक लड़के ने कमरे मे घुसते हुये पूंछा
उधर मैसेज पढ़ते ही लड़की का चेहरा गुस्से से लाल हो गया और उसने उस लड़के को मोबाइल देते हुये कहा
“प्रबल! इस मैसेज को पढ़ और इनसे पूंछ की क्या रिश्ता है इनके और विक्रमादित्य के बीच........... माँ बेटे के अलावा” कहते हुये उसने रागिनी की ओर नफरत से देखा
चट्टाक………….
“अनु तेरी हिम्मत कैसे हुयी अपने बड़े भाई का नाम लेने की........” अनु यानि अनुराधा के गाल पर रागिनी की पांचों उँगलियाँ छपता हुआ थप्पड़ पड़ा और वो गरजकर बोली “इस इलाके मे बच्चे से बूढ़े तक उनका नाम नहीं लेते... हुकुम या बन्ना सा बुलाते हैं.... और तू मेरे ही सामने उनका नाम इतनी बद्तमीजी से ले रही है”
अनुराधा और प्रबल को जैसे साँप सूंघ गया... रागिनी ने अनुराधा के हाथ से अपना मोबाइल छीना और कमरे से बाहर जाती हुई बोली
“में अभी और इसी वक़्त ... इस घर को छोडकर जा रही हूँ.... जब मुझे इस घर मे लाने वाला ही चला गया तो मेरा यहाँ क्या है..... अब तुम दोनों ही इस हवेली, जमीन-जायदाद के मालिक हो.... कोई तुम्हें रोकटोक करनेवाला नहीं होगा........ तुम्हें एक वकील का एड्रैस मैसेज कर रही हूँ.... दिल्ली जाकर उससे मिल लेना”
बाहर से कार स्टार्ट होने की आवाज सुनकर सकते से मे खड़े प्रबल और अनुराधा चौंक कर बाहर की ओर भागे, लेकिन तब तक रागिनी की कार हवेली के फाटक से बाहर निकाल चुकी थी।
अनुराधा ने फाटक पर पहुँच कर दरबान से पूंछा “माँ कहाँ गईं हैं”
“जी मालकिन ने कुछ नहीं बताया”
“बेवकूफ़! वो किधर गईं हैं” अनुराधा ने गुस्से से कहा
“जी! कोटा की तरफ” दरबान ने इशारा करते हुये कहा
“ठीक है” कहकर अनुराधा ने प्रबल को अंदर चलने का इशारा किया
अनुराधा और प्रबल हवेली के अंदर आकर रागिनी के कमरे मे गए और बेड पर बैठकर एक दूसरे की ओर देखने लगे।
“दीदी! आपको माँ से भैया के बारे में ऐसे बात नहीं करनी चाहिए थी” प्रबल ने खामोशी तोड़ते हुये कहा
“में उस आदमी का नाम भी नहीं सुनना चाहती जिसने हमारी ज़िंदगी का चैन, सुकून, खुशियाँ सब छीन लिया और यहाँ तक की हमारी माँ भी हमारी नहीं रही, सिर्फ उसकी वजह से.... देखा कैसे बिना कोई जवाब दिये माँ हमें छोडकर उसकी तलाश में कहाँ गईं हैं... पता नहीं उसे कब मौत आएगी?” अनुराधा गुस्से से बोली
प्रबल चुपचाप उठकर कमरे से बाहर चला गया, अपने कमरे मे पहुँचकर अपना फोन उठाकर व्हाट्सएप्प पर विक्रम का कई दिन पुराना मैसेज खोला... जिसे उसने आजतक पढ़कर भी नहीं देखा था.....
“प्रबल बेटा! मे तुम्हें और अनुराधा को अपने भाई बहन नहीं अपने बच्चों की तरह मानता हूँ शायद इसीलिए तुम लोगों के साथ कुछ ज्यादा ही सख्ती से पेश आया। लेकिन अब तुम दोनों ही बच्चे नहीं रहें समझदार हो गए हो... अपना भला बुरा खुद सोच-समझ सकते हो, इसलिए आज से ये सब हवेली जमीन जायदाद जो तुम्हारी ही थी तुम्हें सौंपकर... अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त होकर जा रहा हूँ... अपनी माँ का ख्याल रखना.... और मुझे हो सके तो माफ कर देना... मेरी ज़्यादतियों के लिए—तुम्हारा भाई विक्रमादित्य सिंह”
मैसेज पढ़ते ही प्रबल अपना फोन पकड़े भागता हुआ रागिनी के कमरे में पहुंचा “ दीदी! ये पढ़ो”
लेकिन जब उसने सामने देखा तो अनुराधा रागिनी के कमरे के सब समान को फैलाये ... एक डायरी हाथ में पकड़े खड़ी थी
प्रबल को देखकर अनुराधा पहले तो डर सी गयी... फिर बोली “क्या है...किसका मैसेज है”
“विक्रम भैया का मैसेज है... कई दिन पहले आया था... अभी पढ़ा है मेंने” प्रबल ने कमरे में चारों ओर देखते हुये कहा “ये क्या कर रही हो आप... माँ को पता चला तो...”
अनुराधा ने उसे कोई जवाब दिये बिना आगे बढ़कर उसके हाथ से मोबाइल लिया और उस मैसेज को पढ़ने लगी। तभी अनुराधा को कुछ ध्यान आया और वो डायरी और प्रबल का मोबाइल हाथ में लिए हुये ही अपने कमरे की ओर तेज कदमो से जाने लगी
“दीदी! दीदी!” कहता हुया प्रबल भी उसके पीछे भागा। कमरे में पहुँचकर अनुराधा ने अपना मोबाइल उठाया और मैसेज चेक करने लगी... उसके मोबाइल में भी वही मैसेज उसी दिन आया हुआ था, साथ ही एक मैसेज अभी अभी का रागिनी के नंबर से भी था जिसमे एडवोकेट अभय प्रताप सिंह का नाम और नंबर दिया हुआ था।
अनुराधा ने तुरंत अभय प्रताप सिंह को कॉल मिलाया
............................................
क्रमश: आगामी अध्याय में
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अध्याय 2
“हैलो! क्या में एडवोकेट अभय प्रताप सिंह से बात कर सकती हूँ?”
“में एडवोकेट ऋतु सिंह, उनकी असिस्टेंट बोल रही हूँ...आप का नाम?”
“में कोटा से अनुराधा सिंह बोल रही हूँ... मेरी माँ रागिनी सिंह ने ये नंबर दिया था वकील साहब से बात करने के लिए”
“जस्ट होल्ड ऑन ... मे अभी बात करती हु....”
थोड़ी देर फोन होल्ड रहने के बाद उस पर एक मर्दाना आवाज सुनाई दी
“हैलो अनुराधा... में अभय बोल रहा हूँ...”
“जी मुझे माँ ने आपसे बात करने को कहा है”
“हाँ! मेरे पास रागिनी का कॉल आया था... तुम और प्रबल मुझसे दिल्ली आकार मिलो... कानूनी औचरीकताओं के लिए तुम्हें खुद यहाँ आना पड़ेगा... जितना जल्दी हो सके”
“ठीक है आप मुझे अपना एड्रैस मैसेज कीजिये.... हम अभी निकल रहे हैं....”
“ठीक है.... और दिल्ली पहुँचते ही तुम मुझे कॉल करना...जिससे में ऑफिस में ही मिल सकूँ”
कॉल काटने के बाद अनुराधा के मोबैल में मैसेज आता है जिसमें एडवोकेट अभय शर्मा के ऑफिस का एड्रैस होता है
“प्रबल चलो दिल्ली चलना है....अभी... अपना जरूरी समान ले लो... कपड़े वगैरह”
प्रबल अपने कमरे में जाकर अपने बेग मे लैपटाप और जरूरत का समान, कपड़े वगैरह डालकर बाहर निकालकर आता है.... अनुराधा भी अपना बेग लेकर अपने कमरे से बाहर निकलती है
दोनों भाई बहन अपने बैग गाड़ी मे रखते हैं और ड्राइविंग सीट पर अनुराधा बैठ जाती है,,, गाड़ी स्टार्ट करके हवेली के फाटक पर लाकर रोकती है...
“हम दिल्ली जा रहे हैं माँ आयें या उनका कोई फोन आए तो उन्हें बता देना...”
अनुराधा ने दरबान से कहा और गाड़ी लेकर निकाल गयी......
.......................इधर दिल्ली में.........
एडवोकेट अभय प्रताप सिंह के ऑफिस में....
“रागिनी! में अभय बोल रहा हूँ... कहाँ हो तुम”
“में कोटा से श्रीगंगानगर जा रही हूँ... विक्रम की लाश मिली है। वहाँ से किसी सिक्युरिटीवाले का फोन आया था”
“क्या? विक्रम की लाश.... लेकिन कैसे हुआ ये”
“मुझे भी कुछ नहीं पता .... वहाँ पहुँचकर बताती हूँ”
“तुम अकेली ही जा रही हो क्या?”
“नहीं मेंने पूनम को साथ ले लिया है........तुमने अचानक किसलिए फोन किया”
“मेरे पास अनुराधा का फोन आया था... कह रही थी.....”
रागिनी ने बात बीच में ही काटते हुये कहा “हाँ! मेंने ही उसे तुमसे बात करने के लिए कहा था.......... प्रबल और अनुराधा को अब सबकुछ जान लेना चाहिए....और जो भी है उन्हें सौंप दो...उन्हें दिल्ली बुला लो”
“वो दोनों दिल्ली आ रहे हैं अभी” अभय ने कहा “क्या ऋतु को भी उनसे मिलवा दूँ.... और विक्रम की मौत के बारे में शायद ऋतु को भी नहीं पता”
“कौन ऋतु?”
“क्या तुम ऋतु को नहीं जानती... विक्रम की कज़न... मेरी असिस्टेंट एडवोकेट ऋतु सिंह”
“मेरी कुछ समझ मे नहीं आ रहा की विक्रम ने मुझसे कितने राज छुपाए हुये हैं...”
“तुम वहाँ पहुँचकर मुझे कॉल करो.... अगर जरूरत हुई तो में खुद वहाँ आ जाऊंगा..... और ये सब बातें हम बाद में बैठकर करेंगे”
अभय ने फोन काटकर ऋतु को आवाज दी... ऋतु के आने पर उससे कहा
“ऋतु! ये चाबियाँ लो और पुरानी वाली लोहे की अलमारी से एक फ़ाइल निकालो.... बहुत पुरानी रखी हुई है.... उसके ऊपर विक्रमादित्य सिंह का नाम होगा”
“विक्रम भैया की है क्या” ऋतु ने उत्सुकता से कहा
“हाँ! करीब 5-6 साल पहले दी थी उसने तब से वो कभी आया ही नहीं”
“अब क्या आज भैया आ रहे हैं यहाँ?”
“विक्रम नहीं आ रहा ....उस फ़ाइल को क्यों निकलवा रहा हूँ में बाद मे बताऊंगा”
ऋतु चुपचाप चाबियाँ लेकर ऑफिस के दूसरे कोने मे रखी एक पुरानी लोहे की अलमारी की ओर बढ़ गयी.... उसे जाते हुये पीछे से देखकर अभय ने एक ठंडी सांस भरी... उसकी काली पेंट में कसे उभरे हुरे नितंब देखते हुये
“साली की घोड़ी बनाकर गांड मारने मे बड़ा मजा आयेगा.... लेकिन क्या करू ....विक्रम की बहन है.... साला दोस्त से प्यार दिखाने तो कभी आता नहीं.... लेकिन उसकी बहन चोद दी तो आकार मेरी ही गांड मार लेगा...” सोचते हुये अभय मुस्कुराया.... लेकिन तभी उसे कुछ याद आया और उसकी पलकें नम हो गईं.... शायद विक्रम की मौत की खबर.... और फिर मन ही मन बुदबुदाया “ऋतु को कैसे बताऊँ? लेकिन बताना तो पड़ेगा ही.... देखते हैं पहले रागिनी को वहाँ पहुँचकर फोन करने दो... या अनुराधा को आ जाने दो”
ऋतु के जाते ही अभय अपनी कुर्सी से पीठ टिका कर आँखें बंद करके सोच में डूब गया... लगभग 5 साल पहले वो अपने ऑफिस मे बैठ हुआ था... तब इतना शानदार और बड़ा ऑफिस नहीं था उसका... नया नया वकील था छोटा सा दफ्तर... उसके मुंशी ने दफ्तर के गेट से अंदर झाँकते हुये कहा
“वकील साहब! कोई विक्रमादित्य सिंह आए हैं आपसे मिलने”
“अंदर भेज दो” अभय ने नाम को दिमाग मे सोचते हुये कहा...उसे ये नाम काफी जाना पहचाना सा लगा।
तभी दरवाजा खुला और एक नौजवान आदमी और औरत ने अंदर आते हुये कहा
“कैसे हैं वकील साहब!”
“विक्रम तुम? और रागिनी तुम भी... वो भी विक्रम के साथ” अभय ने उन्हें देखकर चौंकते हुये कहा और अपनी कुर्सी से उठकर खड़ा हो गया
“क्यों क्या हम दोनों साथ नहीं आ सकते” रागिनी ने मुसकुराते हुये कहा
“क्यों नहीं... लगता है...कॉलेज में लड़ते लड़ते थक गए तो हमेशा लड़ते रहने के लिए शादी कर ली होगी... अब दोनों साथ मिलकर अपने दोस्तों से लड़ने निकले हो” अभय ने भी मुसकुराते हुये कहा
“नहीं हमने आपस मे शादी नहीं की... बल्कि रागिनी अब मेरी माँ हैं” विक्रम ने गंभीरता से जवाब दिया
“तुम्हारी माँ हैं....क्या मतलब?”
“ये मेरे पिताजी देवराज सिंह की पत्नी हैं.... तो मेरी माँ ही हुई न”
अभय ने दोनों को सामने पड़ी कुर्सियों पर बैठने का इशारा किया और अपनी कुर्सी पर बैठते हुये दोनों के लिए चाय मँगवाने को अपने मुंशी से कहा तो विक्रम ने मुसकुराते हुये मुंशी को मट्ठी भी लाने को कह दिया। मुंशी चाय लाने चला गया
“यार तू तो वकील बनकर स्टेटस मैंटेन करने लगा है.... लेकिन हम तो हमेशा टपरी पर चाय...मट्ठी के साथ ही पीते थे” विक्रम ने मुसकुराते हुये अभय से कहा
“तू हमेशा ऐसा ही रहा है.... वो करता है जो कोई सोच भी नहीं सकता.... मुझे तो दिखावा करना ही पड़ता है” अभय ने भी मुसकुराते हुये कहा “और सुना आज मेरी याद कैसे आ गयी”
“सर! ये रही फ़ाइल” ऋतु की आवाज सुनकर अभय अपनी सोच से बाहर आया
...............................................................................अभी इतना ही मित्रो
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12-01-2020, 08:32 AM
(This post was last modified: 12-01-2020, 08:33 AM by kamdev99008. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
मित्रो !
अध्याय 1 व 2 आपके सामने प्रस्तुत हैं.....
पढ़कर अपनी प्रतिक्रिया दें....
अध्याय 3 भी आज आपको सौंप दिया जाएगा
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ये एक पारिवारिक प्रेम कहानी है.......... दो प्रेमियों के प्रेम .....उसको पा लेने या खो देने .......से सिर्फ उन दोनों की ज़िंदगी पर ही नहीं
उनके घर-परिवार और उनसे जुड़े हर इंसान पर, उनकी भी ज़िंदगियों पर .............. बहुत गहरा असर डालता है
अच्छा भी और बुरा भी.............
अभी जो दिख रहा है.........वो केवल दुखद परिणाम का आभास है...................... लेकिन वो दुख शायद इससे भी बहुत बड़ा है
लेकिन इसका कुछ सुखद परिणाम भी हो सकता है.............जो आगे चलकर आपके सामने आए
साथ बने रहिए............. प्रयास कर रहा हूँ की 4 से 8 अपडेट प्रति सप्ताह दे सकूँ।
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(12-01-2020, 09:04 AM)Wickedsunnyboi Wrote: Badhiya Shuruwaat.. Anokhi lekhi hai aapki
आपका स्वागत है मित्र...........साथ बने रहिए
•
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Good Start with wonderful vocubalary....
Keep it up ?
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अध्याय 3
रागिनी और पूनम रागिनी की गाड़ी से श्रीगंगानगर जा रहे थे तो गाड़ी चलाते-चलाते अचानक रागिनी बोली
“पूनम! तुम मुझे कितना जानती हो?”
“कितना मतलब? में तुम्हें तब से जानती हूँ जब तुमने कॉलेज मे बी॰कॉम मे एड्मिशन लिया था... “
“मतलब ये कि मेरे घर-परिवार के बारे में .... क्या तुम कभी मेरे घर गयी थीं?”
“नहीं में असल में तुम्हारी सहेली नहीं.... में विक्रम को जानती थी”
“और विक्रम को कितना जानती थी”
“ज्यादा नहीं... बस विक्रम के साथ मजे लूटती थी.... प्यार-व्यार से तो विक्रम का दूर-दूर तक कोई रिश्ता ही नहीं था....उसे तो बस जिस्म कि भूख मिटानी होती थी..... और मेरा भी यही मकसद था.... क्योंकि मेरे घरवाले मेरी शादी एक ऐसे लड़के से तो हरगिज नहीं करते जिसके नाम के चर्चे शहर भर में हवस के पुजारी के रूप मे हों ..... हाँ इतना पता है कि उसने कॉलेज से बाहर कि किसी लड़की से शादी कर ली थी.... लेकिन उसके बाद वो मुझे कई साल तक मिला ही नहीं.... जब मिला तो तुम्हें लेकर.... लेकिन उससे कुछ पूंछने कि मेरी हिम्मत भी नहीं हुई... क्योंकि अगर मेरे और उसके रिश्ते कि भनक लग जाती तो मेरा घर, मेरा पति और बच्चे ....शायद सब कुछ बिखर जाता.... इसलिए वो जैसा कहता गया ...में मानती गयी.... कम से कम मेरे घर परिवार पर तो कोई आंच नहीं आयी अब तक उसकी वजह से” पूनम ने कहा तो रागिनी चुपचाप कुछ सोचती रही...फिर बोली
“लेकिन मेरे और विक्रम के रिश्ते के बारे में तुमने उससे कुछ पूंछा नहीं... क्योंकि तुमने बताया था कि कॉलेज में मुझे विक्रम से नफरत थी”
“पूंछा था... तो उसने कहा कि तुम्हारे और तुम्हारे बच्चों के बारे मे वो समय आने पर बताएगा..... वैसे ये प्रबल तो तुम्हारा बेटा हो भी सकता है लेकिन अनुराधा तुम्हारी बेटी हरगिज नहीं हो सकती”
“में भी जानती हूँ इस बात को.... दोनों ही बच्चे मेरे नहीं हो सकते” रागिनी ने गंभीरता से कहा
“तुम ऐसा कैसे कह सकती हो?” पूनम ने सवाल किया
“क्योंकि अब से 6 महीने पहले मुझे कुछ दिन के लिए बीमारी कि वजह से कोटा हॉस्पिटल मे एड्मिट रहना पड़ा था... तुम और मोहन भी मुझे देखने आए थे.... तभी मेरे वहाँ मुझे कुछ परेशानी लगी थी” रागिनी ने अपनी टांगों के जोड़ की ओर इशारा करते हुये कहा “तो मेंने गाईनाकोलोजिस्ट को दिखाया था... उसने बताया कि मेंने तो अभी तक कभी सेक्स भी नहीं किया है... मेरी झिल्ली भी नहीं टूटी.... तो मेरे बच्चे कैसे हो सकते हैं?” रागिनी ने अजीब सी मुस्कुराहट के साथ कहा
“क्या? तो फिर तुमने विक्रम से नहीं पूंछा?”
“वही तो नहीं बताया विक्रम ने.... बल्कि कुछ नहीं बताया.... कभी कभी तो मुझे ऐसा लगता है जैसे मुझे एक तरह से मेरे दिमाग से कैद करके रखा हुआ है विक्रम ने... वो मेरे बारे मे सबकुछ जानता है.... लेकिन हर बात के लिए कह देता है कि समय आने पर बताऊंगा.......... अब तो विक्रम ही नहीं रहा.... मुझे तो कुछ समझ नहीं आ रहा कि मेरी ज़िंदगी का क्या होगा?”
पूनम को भी कुछ समझ नहीं आया तो वो भी चुपचाप बैठी रही...
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अचानक ब्रेक लगने से प्रबल की आँख खुली तो उसने बाहर देखते हुये पूंछा...
“दीदी! कहाँ आ गए हम? और कितनी देर लगेगी?”
“जयपुर से आगे आ गए हैं हम... हरियाणा मे रेवाड़ी पाहुचने वाले हैं.... तू तो कोटा से ही सोता चला आ रहा है...” अनुराधा ने कहा
“आपने जगाया क्यों नहीं मुझे... आधे रास्ते में भी ड्राइव कर लेता.... अप अकेले ही चलाकर ला रही हो”
“रहने दे तू चला रहा होता तो अभी जयपुर भी नहीं पहुँचते” अनुराधा ने झिड़कते हुये कहा “कुछ खाएगा तो बता?”
“नहीं! रहने दो... अब दिल्ली पहुँच ही रहे हैं... वहीं देखेंगे”
“अच्छा दीदी माँ ये क्यों कह रहीं थीं कि विक्रम भैया ही नहीं हैं तो वो यहाँ रहकर क्या करेंगी.... कहाँ गए विक्रम भैया”
“मुझे नहीं पता...” अनुराधा ने बुरा सा मुंह बनाते हुये कहा तो प्रबल ने मुसकुराते हुये पूंछा
“वैसे दीदी आप भैया से इतना चिढ़ती क्यों हैं... माना कि वो हुमसे सख्ती से पेश आते हैं... लेकिन हम उनके दुश्मन थोड़े ही हैं.... वो हमारे लिए कितना करते हैं...और उनके सिवा हमारा है ही कौन..... आज उनके बिना माँ हम दोनों को अकेली कैसे पाल पाती”
“तू जानना चाहता है... तो सुन.... मेंने बचपन से माँ को देखा है... में हमेशा उनही के पास रहती थी... पिताजी का तो मुझे याद भी नहीं...कि वो कैसे थे....हमारा घर भी कहीं और था..... फिर एक बार माँ कहीं चलीं गईं तो मुझे एक औरत जो उस घर मे रहती थी॥ उसने कहा कि वो मेरी असली माँ हैं... फिर कुछ दिन बाद एक दिन विक्रम हमारे घर आया.... में नहीं जानती थी कि ये कौन है.... लेकिन वो औरत इसे पहचानती थी..... विक्रम अपने साथ सिक्युरिटी को भी लेकर आया था, उस औरत को सिक्युरिटी पकड़ कर ले गई और मुझे विक्रम यहाँ ले आया.... फिर कुछ दिन बाद वो तुम्हें गोद में यहाँ लेकर आया और बाद मे माँ को....तब तुम बहुत छोटे से थे शायद 1-2 दिन के ही होते जब तुम्हें लाया गया था.... लेकिन मुझे आज तक ये समझ नहीं आया कि जब पिताजी थे ही नहीं तो तुम कैसे पैदा हुये...और माँ को विक्रम कहाँ से लेकर आया.... तुम भी अब बच्चे नहीं हो... मेरी बात को समझते होगे.... माना कि तुम मेरे भाई हो... लेकिन मेरे पिताजी को तो मेंने तुम्हारे जन्म के पहले से ही नहीं देखा.... और माँ के साथ तब से लेकर अब तक सिर्फ एक ही आदमी को देखा है.......विक्रम। और इन दोनों कि उम्र में भी मुझे कोई फर्क नहीं लगता.......... अगर इन दोनों का कोई ऐसा रिश्ता है तो खुलकर सामने क्यों नहीं आते......... माँ-बेटे क्यों बने हुये हैं..... इसीलिए मुझे इनसे नफरत है........ अब तो माँ से भी नफरत सी हो गई है.... क्योंकि वो भी विक्रम के इशारो पर ही चलती हैं”
प्रबल मुंह फाड़े अनुराधा कि बात सुनता है, शर्म से उसका चेहरा लाल हो जाता है और वो गुस्से से बोलता है “दीदी! आपके कहने का क्या मतलब है........ माँ पर इतना बड़ा इल्ज़ाम लगाते आपको शर्म नहीं आयी.... वो मुझ से पहले आपकी माँ हैं... मेंने बहुत बार देखा है कि वो आपको मुझसे ज्यादा प्यार करती हैं”
“में भी माँ से बहुत प्यार करती हूँ... बल्कि उनही से प्यार करती हूँ...जब से होश संभाला है....उनके सिवा मेरा इस दुनिया में है ही कौन.... लेकिन में तुझे वो बता रही हूँ.... जो मेरे सामने हुआ... जो मेंने देखा....” अनुराधा ने अपनी पलकों पर आयी नमी को पोंछते हुये आगे कहना जारी रखा “मेंने तुझे बचपन से पाला है... माँ से ज्यादा तू मेरे साथ रहा है......में तुझसे बहुत प्यार करती हूँ.... मेरा इरादा तेरे जन्म के बारे मे सवाल उठाकर तुझे नीचा दिखाना नहीं था.... पहले में खुद बच्ची थी... लेकिन अब में भी इस बारे मे सोचती हूँ तो मन मे ये सवाल उठने लगते हैं.... तू खुद बता... क्या तेरे मन मे ये सवाल नहीं उठा?”
प्रबल शांत होकर बैठ गया... उसके भी दिमाग मे सवालों का तूफान उठ खड़ा हुआ था....
शेष अगले अध्याय में
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मित्रो !
अध्याय 3 आपके सामने प्रस्तुत है.....
पढ़कर अपनी प्रतिक्रिया दें....
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अभी से क्या प्रतिक्रिया देवें? कथानक कुछ तो आगे बढ़े। आप तो बस कहानी को आगे बढ़ाते चलें। प्रतिक्रिया अपने आप मिलेंगी।
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Acchi chal rahi hai Kahani ...
Continuity bani rahe in regular intervals
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