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(13-12-2019, 11:58 AM)savitasharma Wrote: Komaalrani didi, Duggu here.
You were one of our favourites. The stories that you wrote are legendary. We liked it a lot during our xossip days.
We spent many a memorable moments reading and sometimes enacting your stories.
Your comment on a story that savi is writing, is beyond our expectations and really really heartening.
I know we will never meet in real life (or who knows I maybe knowing you in real life but not your secret identity, same goes for all of us !!), but you will
always have our love and respect.
Thanks.
~ DUGGU
thanks so much
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लिखती रहो जानेमन भाभी। मैं भी शर्मा हूँ। इस नाते आप मेरी भाभी हुई। और भाभी पर तो देवर का पूरा हक बनता है। तो इस बार जब change करने का मन हो तो अपने देवर को जरूर याद करना pm से।
Best of luck for your first story. Good start. Keep posting.
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नोएडा के एक बड़े कॉलेज मे दाखिला मिल गया. पिताजी का रसूख़ तो था ही, मैं चाहे जितना भी ठरकी रहा हूँ लेकीन पढ़ाई मे भी तेज़ था. college ठीक ठाक सा ही था. लेकिन society जहां हम लोग रहते थे वो बहुत अच्छी थी. अच्छी मतलब एक से बढ़कर एक माल थी वहाँ. उस उम्र मे और चाहिए भी क्या होता है !!
कई सारी यादें जुड़ी हैं मेरी जलवायु विहार से !! कॉलेज से आ जाने के बाद मैं लंच करके बाहर निकाल जाता था. घर पर उस समय कोई भी नहीं होता था. पिताजी ऑफिस रहते थे, मम्मी वापिस चेन्नई चली गयी थी हम लोगों को सैटल करके. एक काम वाली सुबह आकार खाना बनाकर चली जाती थी. घर के बाहर ही इतने माल घूमते थे कि कभी काम वाली को उस नज़र से देखने कि ज़रूरत ही नहीं पड़ी.
दोपहर के वक़्त मैं साइकल लेकर सोसाइटी घूमता रेहता. जलवायु विहार मे अपार्टमेंट्स और पार्क ऐसे बने हुए थे कि पार्क एक दम बीचों बीच था सोसाइटी के और चारों ओर अपार्टमेंट्स का पहलआ सर्कल और उसके बाद दीवारों से सटा अपार्टमेंट्स का एक चौकोर बना हुआ था. सोसाइटी थी बहुत बड़ी और एक दम हरियाली से भरी. और बाहर वाले चौकोर से परे भी एक सड़क थी। ज़्यादा मैंटेन नहीं किया जाता था उसको. घास से घिरा लगभग कच्चा सड़क था वो.
ऐसे ही एक दोपहर मैं सोसाइटी के दीवार से सटे रोड पर साइकल चला रहा था. ये रोड सोसाइटी के एक दम कोने पर था और दोपहर का टाइम तो वैसे ही सुनसान वाला होता था नोएडा मे. कई बार मैं साइकल चलाते चलाते ही लण्ड को सहलाता रहता. यही सब करते हुए मेरी आदत खराब हो रही थी.
उस दिन उस रोड पर साइकल चला कर जाते हुए मुझे एक झाड़ी के पीछे कोई झुकी हुई दिखाई पड़ी. मैंने साइकल आगे बढ़या तो देखा एक लड़की अपनी सलवार नीचे किए हुए वहाँ बैठी मूत रही थी. बहनचोद मेरा लण्ड तुरंत अकड़ने लगा. मैंने साइकल वहीं रोक ली और शॉर्ट्स के अंदर हाथ डालकर लण्ड मसलने लगा. थोड़ा गर्दन टेड़ा किया तो आगे भी एक और आंटी बैठी दिखाई दी. मैं समझ गया सोसाइटी की काम वाली यहीं पर मूतने आती हैं.
कुछ देर बाद वो थी और उठाकर अपनी चड्डी ऊपर की उसने. उसकी जांघें और गोल गांड देखकर मन तो हो रहा थ यहीं चोद दूँ उसको. लेकिन रिस्क था. तो मैंने जाने दिया.
उस दिन के बाद से मैंने उस रोड पर आना जाना frequent कर दिया. दूर दूर रहता था सड़क से जब तक कि कोई जाती हुई दिखाई न दे एक बार जब वो रोड पर जाती तब चुप चाप बिल्डिंग के पीछे से देखता. कई तरह कि गांड देखि मैंने गोल, चपटी, भूरी, काली, गोरी, पतली, सूडोल, मोटी.
कई बार मैं इन औरतों का पीछा मूतने के बाद भी करता. मैंने देखा ये मूत कर फिर दूसरे घर जाती थी काम करने के लिए. तो इनको मूतता देखने के बाद मैं दूर से इनके पीछे जाता. जब ये किसी बिल्डिंग कि तरफ मुड़ती तो मैं साइकल पर पेडल मारकर पहले पहुँच जाता और साइकल लगाकर लिफ्ट का इंतज़ार करता. वो काम वाली और मैं साथ मे लिफ्ट मे घुसते. लिफ्ट के अंदर मैं उसको बड़े ध्यान से देखता. आँखों मे हवस लिए. वो कभी सकुचाई सी रहती, खासकर जो थोड़ी जवान होती थी. उनकी चूत अभी उतनी खुली नहीं होती थी शायद !! जो थोड़ी आंटी टाइप कि रहती वो चौड़े मे खड़ी रहती. मैं उनको जताकर उनकी गांड और चुच्ची निहारता. वो कुछ बोल नहीं पाती. ज़्यादातर समय जब वो लिफ्ट से उतार जाती तो मैं उस बिल्डिंग कि टॉप फ्लोर तक जाता और फिर छत पर जाकर मुट्ठ मारता.
मेरा एक तरह से रूटीन ही बन गया था. दोपहर के वक़्त मुझे हर रोज़ एक नयी या at least एक रियल खुली नंगी गांड देखनी ही थी. और फिर मुट्ठ मारना था. छत पर खुली हवा मे मुट्ठ मारने का मज़ा ही अलगा था. जिनहोने ये काम अभी तक नहीं किया उनको करके देखना चाहिए.
सीढ़ियों से बाहर निकलकर मैं छत पर आ जाता. लण्ड अब तक सख्त हो चुका होता. मैं शॉर्ट्स नीचे करके चड्डी के ऊपर से ही लण्ड को दबोच लेता. और क्लास कि ही किसी लड़की या फिर किसी जानने वाली लड़की/औरत या कोई न सूझे तो प्रिय दीदी का ही नाम ले लेता. फिर वो नाम बोल बोल कर लण्ड को दबोच के ही मुट्ठी आगे पीछे करने लगता.
कभी रीतिका, कभी रचना, कभी अनु, कभी चारु, कभी प्रिया, कभी सृष्टि, कभी अमृता, कभी सुरभि .... सभी के नाम मुट्ठ निकाल चुका था. !! कभी इनके चुच्चियों पर, कभी नाभि पर, कभी गांड के ऊपर लेकिन ज़्यादातर इनके मुंह पर.
एक दिन ऐसे ही मुट्ठ मारकर जब मैं नीचे आया और लिफ्ट से बाहर आया तो देखा कि एक लड़की जा रही थी. शायद ऑफिस का नाइट शिफ्ट करने. मुझे realise हुआ सोसाइटी मे तो काम वाली ही नहीं और भी बहुत कुछ है. हाँ इनकी गांड खुली न देखने को मिले लेकिन चलती हुई, हिलती हुई तो दिखाई दे ही सकती है.
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(14-12-2019, 09:07 AM)komaalrani Wrote: waiting
थैंक यू दीदी. साथ रहने के लिए शुक्रिया.
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(14-12-2019, 03:04 PM)duttluka Wrote: nice...........
थैंक यू duttluka जी
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(13-12-2019, 11:55 PM)chandu_2288 Wrote: Super
थैंक यू chandu_2288 जी
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(14-12-2019, 03:27 PM)Loveseekerwild Wrote: लिखती रहो जानेमन भाभी। मैं भी शर्मा हूँ। इस नाते आप मेरी भाभी हुई। और भाभी पर तो देवर का पूरा हक बनता है। तो इस बार जब change करने का मन हो तो अपने देवर को जरूर याद करना pm से।
Best of luck for your first story. Good start. Keep posting.
ओहहह. आप भी शर्मा हैं ?? नमस्ते देवर जी. बिलकुल. देवर का भाभी पर हक़ बनता है. और भाभी का भी देवर पर हक़ बनता है !!! देवर के कान क्या कुछ भी खींच सकती हैं भाभी !!!
उम्मीद है आपको कहानी पसंद आ रही है. बाकी change के लिए हम लोग जानने वाले लोगो से ही करते हैं ! but if anything comes up we may contact you !
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लण्ड खड़ा कर दिया सविता जी आपकी कहानी ने ....pls update
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Wish you all a very Happy New Year 2020!????
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(01-01-2020, 12:28 AM)bhavna Wrote: Wish you all a very Happy New Year 2020!????
Happy new year
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(27-11-2019, 03:11 PM)savitasharma Wrote:
Receptionist ने तो professional अंदाज़ मे ही नमस्ते बोला था, लेकिन मुझे लगा कि थोड़ा ज़्यादा ही झुक कर बोला उसने. लाल बार्डर वाली सफ़ेद साड़ी, लाल रंग का स्लीवेलेस ब्लाउज़, खुले बाल और गोरा चिट्टा चेहरा. ये हल्की छिनालों वाली हंसी. लिपस्टिक लगे उसके होंठों के बीच मे चमकते हुए उसके सफ़ेद दाँत मेरे पेंट के अंदर एक हल्का हलचल मचा रहे थे.
चुदाई किए हुए लगभग 10-12 दिन हो चले थे. काम के बीच मे टाइम नहीं था. और कैब मे आते वक़्त whatsapp ग्रुप मे एक क्लिप भी आया था. सभी कॉलेज के मदरचोद दोस्त थे ग्रुप में, दिन भर कुछ न कुछ भेजते रहते थे. उस क्लिप मे एक आदमी अपने ऑफिस की लड़की चोद रहा था. कमरे के दरवाजे के पास, दरवाजा हल्का खुला छोडकर (खुला छोडना शायद मजबूरी थी, नहीं तो ऑफिस मे लोगों को शक होता) बंदी को दरवाजे पर आगे की ओर झुकाकर, साड़ी उठाकर वो बंदा चोदे जा रहा था. ज़ोर ज़ोर से झटके मारे जा रहा था. क्लिप मे आवाज़ नहीं थी. लेकिन बंदे और बंदी दोनों मे ही एक काम-आतुरता थी. एक urgency थी चुदाई की. और सबसे बड़ी बात ये एक रियल क्लिप थी. उसको देखते देखते मेरा लण्ड सख्त हो रहा था. इसलिए जब फ्रंट डेस्क पर ऐसी लड़की दिखी तो मन किया कि कुछ बात चीत की जाये. पीछे और कोई भी नहीं था. और फ्रंट डेस्क पर भी वो अकेली ही थी.
मेरा रूम बूक था. रूम बूक मतलब मेरे और चारु के नाम पर रूम बूक था. चारु अभी फ्लाइट मे थी और उसके आने मे 2-2.5 घंटे और थे. मैं access card लेकर निकल सकता था लेकिन मन किया थोड़ी और बात करूँ.
“आपके होटल मे भीड़ नहीं होती क्या?” मैंने हँसकर कहा.
“सर ये exclusive होटल है यहाँ केवल खास खास लोग ही आते हैं.” उसने हंस कर जवाब दिया. “जैसे आप” बंदी भी इंटरेस्ट ले रही थी.
मैंने थोड़ा और साहस किया. “अनन्या जी, लेकिन मुझे आपके exclusive hotel से एक शिकायत है”
“वो क्या सर?” उसने नकली चौंकते हुए पूछा.
“आप लोगो को अभी भी conservative ड्रेस पहनाते हैं” बोलकर मैं हंसा “अभी अभी मैं मिलान से आ रहा हूँ, वहाँ के होटेल्स मे सभी लेडिज स्टाफ को स्कर्ट दिया जाता है”
“सिर हमने इस बारे मे बात तो की थी management से. कि गेस्ट लोगों को conservative ड्रेस अच्छहा नहीं लगता. थोड़ा मॉडर्न किया जाय. लेकिन उन लोगों ने फ्रंट डेस्क का चंगे नहीं किया, बल्कि दूसरे स्टाफ का कर दिया”
“ओहह”
“वैसे भी सर फ्रंट डेस्क वालियों कि टांगें कहाँ दिखती हैं.” बोलकर वो मुसकुराई.
मैंने उसको दिखाकर अपनी चड्डी को एडजस्ट किया. लण्ड खड़ा हो रहा था. “अच्छा इसीलिए sleeveless ब्लाउज़ दिया है क्या आपको?”
वो हंस दी, खिलखिलाकर. उसकी हंसी देखकर मुझे चारु कि एक बात याद आ गयी – गोरी लड़कियों को हंसने नहीं देना चाहिए. तुम लड़कों का मन करता होगा इसके मुंह मे दे दो. है न?
उसके कई सवालो कि तरह मैंने ईसका भी जवाब नहीं दिया था.
वो पेंट के ऊपर से मेरे लण्ड कि तरफ देखकर बोली “सर मेरे खयाल से आपको अब रूम जाना चाहिए. रिलैक्स कीजिये थोड़ी देर.”
“मैडम सब कुछ तो टाइट हो रहा है, रिलैक्स कहाँ से होगा” कहकर मैंने बाग उठाया. वो हंसी.
पीछे के कमरे से डार्क ब्लू स्कर्ट पहने एक लड़की आई. “कोमल, सर को रूम तक ले जाओ”
मैंने कोमल को कार्ड देते देते बड़ी ही अश्लीलता से अपने लण्ड को पेंट के ऊपर से ही दबाया.
(30-11-2019, 03:23 PM)savitasharma Wrote: सुझाव के लिए शुक्रिया. अगले भाग मे कोशिश करूंगी.
धन्यवाद
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
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