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जीतूजी अपर्णा को देखते ही रहे। अपर्णा की आँखों में से भाव के प्यार भरे आँसूं बह रहे थे। उन्होंने अपर्णा की चूत में ही अपने लण्ड को गाड़े रखे हुए अपर्णा को चूमा और बोले, "प्रिया, तुम मेरी अपनी हो। तुम मेरी पत्नी नहीं उससेभी कहीं अधिक हो। तुम ना सिर्फ मेरी शैय्या भागिनी हो, तुम मेरी अंतर आत्मा हो। तुम्हें पा कर आज मैं खुद धन्य हो गया। पर जैसा की तुमने सबसे पहले कहा, अभी हमें अपना ध्यान प्यार से भी ज्यादा चुदाई में लगाना है क्यूंकि हमारे पास अभी भी ज्यादा समय नहीं। कहीं ऐसा ना हो, हमारा पीछा करते हुए दुश्मन के सिपाही यहां आ पहुंचे। यह भी हो सकता है की हमारी ही सेना के जवान हमें ढूंढते हुए यहां आ पहुंचे।" अपर्णा ने जीतूजी के मुंह में अपनी जीभ डाली और जीतूजी के मुंह को अपर्णा जोश खरोश के साथ चोदने लगी। चोदते हुए एक बार जीभ हटा कर अपर्णा ने कहा, "जीतूजी, आज मुझे आप ऐसे चोदिये जैसे आपने पहले किसीको भी चोदा नहींहोगा। श्रेया जी को भी नहीं। आपका यह मोटा तगड़ा लण्ड मैं ना सिर्फ मेरी चूत के हर गलियारे और कोने में, बल्कि मेरे बदन के हर हिस्से में महसूस करना चाहती हूँ।" यह कह कर अपर्णा ने जीतूजी का वीर्य से लबालब भरा लण्ड जो की अपर्णा की चूत की गुफा में खोया हुआ था, उसे अपनी उँगलियों में पकड़ा। अपर्णा की चूत और जीतूजी के लण्ड के बिच उंगली डाल कर अपर्णा ने जीतूजी का लण्ड और अपनी चूत को अपनी कोमल उँगलियों से रगड़ा। अपर्णा की नाजुक उँगलियों को छूने से जीतूजी का वीर्य उनके अंडकोषों में फुंफकार मारते हुए उनके लण्ड की रगों में उछलने लगा। जीतूजी ने अपनी प्रियतमा की इच्छा पूरी करते हुए अपना लण्ड अपर्णा की प्यासी चूत में फिर से पेलना शुरू किया।
जीतूजी का लण्ड पूरी तरह फुला हुआ अपनी पूरी लम्बाई और मोटाई पा चुका था। अपर्णा की चूत के हर मोहल्ले और गलियारे में वह जैसे एक बादशाह अपनी रियाया (प्रजा) के इलाके में उन्मत्त सैर करता है वैसे ही जीतूजी का लण्ड अपनी प्रियतमा अपर्णा की चूत की सुरंग के हर कोने में हर सुराख में जाकर उसे टटोलता और उसे चूमता हुआ अपर्णा की चूत के द्वार में से अंदर बाहर हो रहा था। अपर्णा के स्त्री रस से सराबोर और जीतूजी के पूर्व स्राव की चिकनाहट से लथपथ जीतूजी के मोटे लण्ड को अपर्णा की चूत के अंदर बाहर जाने आने में पहले की तरह ज्यादा दिक्कत नहीं हो रही थी। पर फिर भी अपर्णा की चूत की दीवारों को जीतूजी का लण्ड काफी तनाव में रखे हुए था। और इसके कारण ही अपर्णा को अपनी चूत में एक अनोखा उन्माद हो रहा था। अपर्णा उछल उछल कर जीतूजी के लण्ड को अपने अंदर गहराई तक डलवा रही थी। उसे इस लण्ड को आज इतने महीनों से ना चुदवाने की कसर जो निकालनी थी। अपर्णा ने थोड़ा ऊपर उठ कर जीतूजी के लण्ड को अपनी चूत से अंदर बाहर जाते हुए देखना चाहा। वह अपनी चुदाई को अनुभव तो कर रही थी पर साथ साथ उसे अपनी आँखों से देखना भी चाहती थी।
जीतूजी का चिकनाहट भरा लण्ड उसने अपनी चूत में से घुसते हुए और निकलते हुए देखा तो उसे अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हुआ की जीतूजी का इतना मोटा लण्ड अंदर लेने के लिये उसकी चूत कितनी फूली हुई थी। अपर्णा ने कभी कल्पना भी नहीं की होगी की इतना मोटा लण्ड लेने के लिए उसकी चूत इतनी फ़ैल भी पाएगी और वह कभी जीतूजी का लण्ड अपनी चूत में ले भी पाएगी। जीतूजी का लण्ड सफ़ेद चिकनाहट से लथपथ देख अपर्णा को डर लगा की कहीं जीतूजी ने अपना वीर्य तो नहीं छोड़ दिया? अगर ऐसा हुआ तो फिर जीतूजी ढीले पड़ जायेंगे और वह अपर्णा नहीं चाहती थी।
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पर जीतू जी की तेज रफ़्तार से चुदाई करते देख कर और उसकी चूत में जीतूजी के लण्ड की जो मोटाई और लम्बाई तब भी बरकरार थी उसे महसूस कर के अपर्णा को यकीन हो गया की जीतूजी ने अपना वीर्य नहीं छोड़ा था और जो चिकनाहट वह देख रही थी वह जीतूजी के लण्ड में से निकला हुआ पूर्व स्राव ही था। अपनी चुदाई का साक्षात दृश्य देख कर और जीतूजी का मोटा चिकनाहट से लथपथ लण्ड अपनी फूली हुई चूत के अंदर बाहर निकलते हुए देख कर अपर्णा की उत्तेजना और बढ़ने लगी। उसका स्त्रीत्व और उसका मन का उत्कट भाव उसकी चूत की झनझनाहट को ऐसे छेड़ रहा था जैसे कोई सितार बजाने वाला सितार के तारों को अपनी उँगलियों से झनझ-नाहट करता हुआ छेड़ रहा हो।
जैसे जैसे अपर्णा अपनी चुदाई देखती गयी वैसे वैसे और ज्यादा रोमांचित होती गयी। अपर्णा की चूत में उसका स्त्री रस फव्वारे सा बहने लगा। अपर्णा एक बार फिर अपने चरम पर पहुँचने वाली थी। जीतूजी का लण्ड उसकी चूत पर कहर ढा रहा था। इतनी थकान और कम नींद के बावजूद जीतूजी का लंड रुकने का नाम नहीं ले रहा था। एक बार फिर अपर्णा ने जीतूजी की कलाई सख्ती से पकड़ी और "आह्ह्ह्हह्ह... अरे... ऑफ़... जीतूजी आपका लण्ड कमाल कर रहा है। मेरा छूट रहा है। पर आप रुकिएगा नहीं। प्लीज चोदिये, चोदते जाइये।" कह कर अपर्णा फिर ढेर सी गिर पड़ी। उसका बदन एकदल ढीला पड़ गया था। वह चुदाई की थकान से हांफने लगी थी। जीतूजी ने अपर्णा के मना करने पर भी अपने आपको रोका और अपनी प्रियतमा को साँस लेने और आराम का मौक़ा दिया। घंटों की थकान और नींद की कमी के कारण अपर्णा और जीतूजी दोनों थके हुए तो थे। पर कुछ घंटों के आराम क बाद हालांकि उनकी थकाहट पूरी तरह खत्म तो नहीं हुई थी, फिर भी उनमें इतनी ऊर्जा का संचार ह चुका था की वह दोनों और ख़ास कर अपर्णा जीतूजी के तगड़े लण्ड को और अपनी प्यासी चूत को ज़रा भी आराम करने देना नहीं चाहती थी। दोनों को एक दूसरे से पहली मुलाक़ात के महीनों के बाद पहली बार ऐसा मौक़ा मिला था जब उनकी महीनों की चाहत पूरी होने जा रही थी। आराम करने का मौक़ा तो आगे चलकर खूब मिलेगा पर क्या पता ऐसे एक दूसरे के नंग्न बदन को इतने प्यार से लिपटने का और एक दूसरे के बदन को इतने एक दूसरे में मिलाने का मौक़ा नाजाने फिर कब मिले? और अगर मिलेगा भी तो इन वादियों और ऐसे खुशनुमा नज़ारे में तो शायद ही मिले। यह सोच कर दोनों प्रेमी एक दूसरे के बदन को छोड़ना ही नहीं चाहते थे। भगवान् ने भी क्या दुनिया बनायी है? जब आप एक दूसरे को इतना चाहते हो तो एक पुरुष और एक स्त्री अपने प्यार का इजहार कैसे करे? भगवान् ने सेक्स याने चुदाई का एक जरिया ऐसा दिया जिससे वह दोनों एक दूसरे के अंदरूनी उत्कट प्यार को अपने शरीर की जुबान से चुदाई द्वारा प्रकट कर सकते हैं।
समाज ने ऐसे प्यार भरी चुदाई पर कई अलग अलग तरह के बंधन और नियम लाद दिए हैं। पर जब प्यार एक हद को पार कर जाता है तो वह इन नियमों और बंधनों को नहीं मानता और दो बदन सारे वस्त्रों के आवरण को छोड़ कर एक दूसरे के बदन की कमी पूरी करने के लिए एक दूसरे के बदन को अंदर तक मिलाकर (एक दूसरे को चोद कर) इस कमी को पूरी करने की कोशिश करते हैं। और उसे ही प्यार भरा मैथुन कहते हैं। जीतूजी और अपर्णा उस रात ऐसा ही प्यार भरा मैथुन का आनंद ले रहे थे। जीतूजी जानते थे की उनके पास अमर्यादित समय नहीं था। इलाका खतरों से खाली नहीं था। हालांकि वह हिन्दुस्तानी सरहद में आ चुके थे फिर भी सरहद के दूसरी और से दुश्मन की फ़ौज कई बार बिना कारण गोली बारी करती रहती थी। उस समय कई अन-जान नागरिक उन गोलियों का शिकार भी हो जाते थे। कई जगह सरहद अच्छी तरह पक्की और सुरक्षित नहीं थी। वहाँ से दहशत गर्द अक्सर घुस आते थे और कहर फैला कर वापस अपनी सरहद में लौट जाते थे। उन्हें दुश्मनों और हिन्दुस्तानी फ़ौज के क्रॉस फायर से भी बचना था और अपने कैंप में पहुँचना था। कभी भी कोई दुशमन या हिंदुस्तानी फ़ौज का सिपाही भी छानबीन के लिये दरवाजे पर दस्तक दे सकता था। उस समय तक उनको तैयार हो जाना था। पर अपर्णा और उनपर प्यार का बहुत सवार था और ख़ास कर अपर्णा जीतूजी को आसानी से छोड़ने वाली नहीं थी। उसे महीनों से ना हो सकी उस चुदाई की सूद समेत वसूली जो करनी थी।
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अपर्णा को उस रात कई बार झड़ना था उसे ऐसे कई ऐसे अदभूत ओर्गाज़्म का अनुभव करना था जो अपर्णा जानती थी की जीतूजी ही उसे करा सकते थे। वह इतनी जल्दी चुदाई से बाज आने वाली नहीं थी। तीसरी बार झड़ने के बाद अपर्णा ने जब अपनी साँस वापस पायी तो वह दिए से उठी और पलंग के सहारे घोड़ी बन कर कड़ी हो गयी. जीतूजी समझ गए की अपर्णा कुतिया स्टाइल में (डॉगी स्टाइल) में पीछे से अपनी चूत चुदवाना चाहती थी। उसे जीतूजी के लण्ड का डर अब नहीं रहा था। उसे पता था की जो भी दर्द होगा वह उसे जो उत्कट मादक अनुभव करा देगा उसके मुकाबले में कुछ भी नहीं होगा। अपर्णा को पता था की पीछे से चूत चुदवाने से जीतूजी का लण्ड उसकी चूत में और ज्यादा अंदर घुसेगा। अपर्णा की बच्चे दानी तो को तो जीतूजी का लंड वैसे ही ठोकर मार रहा था। पर अब जब उनका लण्ड और गहरा घुसेगा तो क्या गजब ढायेगा उसके बारे में अपर्णा को ज़रा भी आइडिया नहीं था। पर वह यह सब झेलने के लिए तैयार थी।
अपर्णा को पता था की अगर प्यार से चुदाई करवाने की अगर ठानही लीहो तो एक स्त्री किसी भी लण्डसे चुदवा सकती है चाहे वह कितना बड़ा क्यों ना हो? दर्द जरूर होगा और खूब होगा। पर यही तो प्यार की रीती है। जहां प्यार है वहाँ दर्द तो होता ही है। जब बच्चा होता है तो दर्द के मारे माँ की जान निकल जाती है। पर फिर भी माँ बच्चे को जनम देने के लिए तैयार रहती क्यूंकि वहाँ प्यार है। जीतूजी ने अपना लण्ड अपर्णा की चूत के पंखुड़ियों पर कुछ समय तक प्यार से रगड़ा। जब उन्हें यकीन हो गया की उनका लण्ड इतना चिकना हो गया है की वह अपर्णा की चूत में घुसने से अपर्णा को उतना दर्द नहीं देगा तब उन्होंने अपना लण्ड अपर्णा की गाँड़ के सानिध्य में ही अपर्णा की चूत में पीछे से घुसेड़ा। जीतूजी अपर्णा की करारी गाँड़ को दखते ही रहे। अपर्णा की गाँड़ के गालों को वह बड़े ही प्यार से सहलाते और दबाते रहे और ऐसा करते हुए उन्हें गजब का उन्माद भरे आनंद का अनुभव हो रहा था। झुकी खड़ी अपर्णा के बाल उसके सर के निचे जमीन तक लटके हुए गजब दिख रहे थे। अपर्णा के अल्लड़ स्तन और उसकी निप्पलेँ भी अब धरती की और उंगली कर रहीं थीं। जीतूजी ने अपर्णा की चूँचियों को अपने दोनोंहाथों में पकड़ा और अपनी गाँड़ के सहारे अपर्णा की चूत में अपना लण्ड और घुसेड़ने के लिए एक धक्का मारा।
जीतूजी के लण्ड के ऊपर और अपर्णा की चूत की सुरंग के अंदर सराबोर फैली हुई चिकनाहट के कारण जीतूजी का लण्ड अंदर तो घुसा पर फिर वही अपर्णा की चूत की सुरंग की त्वचा को ऐसा खींचा की बहुत नियत्रण रखते और जरासा भी आवाज ना करने की भरसक कोशिश करने के बावजूद अपर्णा के मुंह में से चीख भरी कराह निकल ही गयी। जीतूजी अपर्णा की दर्द भरी कराहट सुनकर रुक जाना चाहते थे। पर उनकी प्रियतमा अपर्णा कुछ अलग ही मिटटी से बनी थी। जीतूजी को थम कर अपना लण्ड को निकालने का मौक़ा ना देते हुए, अपर्णा ने अपनी गाँड़ को पीछे धकेला और ना चाहते हुए भी जीतूजी का लण्ड अपर्णा की चूत में और घुस गया। अपर्णा ने थोड़ा सा पीछे मुड़ कर अपने प्रियतम की और देखा और मुस्कुरा कर बोली, "मेरे प्यारे प्रियतम, आप आज मुझे ऐसे चोदो जैसे आपने कभी किसीको चोदा ना हो। मैं यह दर्द झेल लूंगीं। अगर मैंने आपको विरह का दर्द दिया था तो मैं अब खुद मिलन का दर्द प्यार से झेल लूंगीं। पर मुझे विरह का दर्द मत दो। मेरे लिए यह चुदाई का दर्द सही है पर तुम्हारे लण्ड के विरह का दर्द मजूर नहीं। आज मैं पहली बार अपने प्रियतम जीतू से चुदवा रही हूँ। आज मेरी चूत को भले ही फाड़ दो पर बस खूब चोदो।"
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जीतूजी को अपर्णा की प्यार भरे पागलपन पर हँसी आ गयी। वह सोचने लगे, भगवान् ने औरतों को पता नहीं कैसा बनाया है। वह दर्द को भी प्यार के लिए सहन कर अपने प्रियतम को आनंद देना चाहती हैं। उन्हें अपने प्रियतमके आनंद में ही अपना आनंद महसूस होता है चाहे उसमें उनको कितना भी दर्द क्यों नाहो। उन्होंने बरबस ही झुक कर सारी स्त्री जाती को अपनी सलूट मारी और अपने लण्ड को अपर्णा की चूत में पेलने में लग गए। एक और धक्का दे कर जीतूजी ने अपर्णा की चूत में अपना आधा लण्ड घुसा दिया। धीरे धीरे बढती चिकनाहट के कारण एक के बाद एक धीरे धक्के से उनका लण्ड और अंदर और अंदर घुसता चला गया और देखते ही देखते वह पूरा अपर्णा की चूत की सुरंग में घुस गया। अपर्णा की चूत की पूरी सुरंग जीतूजी के लण्ड से पूरी तरह भर गयी। अपर्णा को खुद ऐसा महसूस हुआ जैसे जीतूजी उसके बदन में प्रवेश कर चुके थे और वह और जीतूजी एक हो चुके थे। अपर्णा अब जीतूजी से अलग नहीं थी। दो बदन प्यार में एक हो गए थे। सारी दूरियां ख़त्म हो चुकी थीं।
अपर्णा की चूत पुरे तनाव में इतनी दर्द भरे तरीके से खींची हुई होनेके बावजूद भी अपर्णाके उन्माद का कोई ठिकाना ना था। उसे अपने स्त्री होने का गर्व था की उसने अपने प्रेमी को वह आनंद दिया था जो शायद ही उसके पहले किसी स्त्री ने उनको दिया हो। और अपने प्रियतम के उन्माद भरे प्यार के कारण अपर्णा भी अपने जहन में एक गजब के उन्माद का अनुभव कर रही थी। उसका जीतूजी से चुदवाने का सपना पूरा हुआ था यह उसके लिए एक अद्भुत अवसर था। राजपूतानी की नफरत जान लेवा होती है तो उसका प्यार एक जान का संचार भी कर देता है। अपर्णा की दिली गूढ़ इच्छा थी की वह जीतूजी का बच्चा अपने पेट में पाले। जब जीतूजी ने पीछे से अपर्णा की चूत में अपना पूरा लण्ड घुसेड़ दिया तो अपर्णा जीतूजी के प्यार को अपने बदन से छोड़ना नहीं चाहती थी भले ही क्यों ना जीतूजी का लण्ड अपर्णा की चूत में से निकल जाए। अपर्णा जीतूजी की ज़िंदा निशानी पूरी जिंदगी गले से लगा कर रखना चाहती थी। अपर्णा चाहती थी की जीतूजी के वीर्य से उसे एक नयी जिंदगी देने का मौक़ा मिले। उसे पता नहीं था की उसके पति उसकी इजाजत देंगे या नहीं। पर अपर्णा एक राजपूतानी थी और अगर उसने ठान लिया तो फिर वह उसे पूरा करेगी ही।
जीतूजी अपर्णा की चूत में अपना लण्ड जोश खरोश से पेले जा रहेथे। उनके अंडकोष में उनका गरम वीर्य खौल रहा था। अपर्णा की चूत की फड़कन से वह बाहर फुट फुट कर फव्वारे के रूप में निकलने के लिए बेताब था। अपर्णा की चूत की अद्भुत पकड़ के कारण जीतूजी का धैर्य जवाब दे रहा था। अब समय आ गया था की वह महीनों की रोकी हुई गर्मी और वीर्य को खाली कर अपना उन्माद से कुछ देर के लिए ही सही पर निजात पाएं। अपर्णा ने जीतूजी के बदन के तनाव और चोदते हुए उनकी हूँकार की तीव्रता से यह महसूस किया की उसके प्रियतम भी अपने चरम पर पहुँचने वाले हैं। तब उसने जीतूजी के लण्ड के पिस्टन के धक्कों को झेलते हुए पीछे गर्दन कर एक शरारती मुस्कान देते हुए कहा, "मेरे प्रियतम, मेरी जान, तुम्हें अपना सारा वीर्य मेरी चूत में ही उंडेलना है। अगर मैं तुम्हारे वीर्य से गर्भवती हुई तो यह मेरे लिए बड़े सौभाग्य की बात होगी। मुझे तुमसे एक बच्चा चाहिए। चाहे इसके लिए श्रेया और रोहित सहमत हों या नहीं। बोलो क्या तुम मुझे गर्भवती बना सकते हो? तुम्हें तो कोई आपत्ति नहीं ना?" जीतूजी उन्माद के मारे कुछ भी बोलने की हालत में नहीं थे। उनका गरम वीर्य जो उनक अंडकोष और उनके लण्ड की रग़ों में खौल रहा था, फुंफकार रहा था उसे छोड़नाही था। और अगर उसे अपर्णा की चूत में छोड़ा जाए तो उससे और अच्छी बात क्या हो सकती है? उस समय उन्हें सही या गलत सोचने की सूझबूझ नहीं थी। जीतूजी उस समय अपने लण्ड के गुलाम थे। अपर्णा भी अपने उन्माद के शिखर पर पहुँच गयी थी। जीतूजी के धक्कों के साथ साथ अपर्णा भी अपनी गाँड़ को पीछे धक्का मार कर अपनी उत्तेजना दिखा रही थी। जीतूजी के एक जोरदार धक्के से जीतूजी के लण्ड के केंद्रबिंदु स्थित छिद्र से उनके गरम गरम वीर्य का फव्वारा अपर्णा ने अपनी चूत में फैलते हुए महसूस किया।
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अपर्णा की चूत तो पहले से ही जीतूजी के लण्ड से लबालब भरी हुई थी। जीतूजी का गरम वीर्य इतनी तादाद में था की अपर्णा की चूत की सुरंग में उसके लिए कोई जगह ही नहीं होगी। पर फिर भी वह शायद अपर्णा की चूत में से उसकी बच्चे दानी में प्रवेश कर गया। शायद अपर्णा के स्त्री अंकुर से जीतूजी का पुरुष अंकुर मिल गया और शायद एक नयी जिंदगी का उदय इस धरती पर होने के आगाज़ होने लगे। जीतूजी अपने लण्ड के कुछ और प्यार भरे धक्के मार के रुक गए। उनका वीर्य उनके एंड कोष से निकल कर अपर्णा की पूरी चूत को पूरी तरह भर चुका था। अपर्णा और जीतूजी एक दूसरे से चिपके हुए ऐसे ही कुछ देर तक उसी पोजीशन में खड़े रहे। धीरे से फिर जीतूजी ने अपना लण्ड अपर्णा की चूत में से बाहर निकाला और कुछ देर तक नंगी अपर्णा की चूत में से रिस रहे अप्पने मलाई से वीर्य को देखते रहे। अपर्णा ने देखा की ढीला होने के बावजूद भी जीतूजी का लण्ड इतना मोटा और लंबा एक अजगर की तरह चिकनाहट से लथपथ उनकी टांगों के बिच में से लटक रहा था।
अपर्णा ने फुर्ती से लपक कर जीतूजी का लण्ड अपने हाथों में लिया और अपना मुंह झुकाकर अपर्णा ने जीतूजी का लण्ड चाटना शुरू किया और देखते ही देखते अपनी जीभ से अपर्णा ने जीतूजी का लण्ड चाट कर साफ़ कर दिया। जीतूजी का मलाई सा वीर्य वह गटक कर निगल गयी। थके हुए जीतूजी निढाल हो कर पलंग पर गिर पड़े और कुछ ही देर में खर्राटे मारने लगे। अपर्णा ने बाथरूम में जाकर अपनी चूत और जाँघों को साफ़ किया। जीतूजी का वीर्य अपनी चूत में लेकर अपर्णा बड़ी ही संतुष्टि का अनुभव कर रही थी। उसे उम्मीद थी की उस सुबह की चुदाई से वह जरूर माँ बनेगी और जीतूजी की निशानी उसके गर्भ में होगी। अपने आप को अच्छी तरह साफ़ करने के बाद कपडे पहनने की जरुरत ना समझते हुए, अपर्णा वैसी ही नंगी जीतूजी की बाहों में उनकी रजाई में घुस कर लेट गयी। कुछ ही देर में दोनों प्रेमी गहरी नींद के आगोश में जा पहुं
सुबह की लालिमा आसमान में हलकी फुलकी दिख रही थी।
अपर्णा और जीतूजी को सोये हुए शायद दो घंटे बीत चुके होंगे की अचानक डॉ. खान के शफाखाने के दरवाजे की घंटी बज उठी। जीतूजी गहरी नींद में से अचानक जाग गए और अपने सूखे हुए कपडे अपने बदन पर डालते हुए दरवाजे की और भागे। वह नहीं चाहते थे की इतनी जल्द्दी सुबह डॉ. खान को घंटी सुनकर ऊपर की मंजिल से निचे उतरना पड़े। अफरा-तफ़री में अपने कपडे पहनते हुए जीतूजी ने दरवाजा खोला तो देख कर हैरान रह गए की सामने रोहित लहूलुहान हालात में सारे कपडे लाल लहू से रंगे हुए उनके सामने खड़ेथे।
***"**
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पत्नी की अदला-बदली - 09
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आयेशा ने रोहित का हाथ पकड़ा और साथ में अपनी अपनी बन्दूक सम्हाले दोनों चल पड़े। चलते हुए रास्ता दिखाते आयेशा ने रोहित जी का हाथ पकड़ा और बोली, "ओ परदेसी! आज तुझसे प्यार कर के तूने मुझे सही मायने में एक औरत होने का एहसास दिलाया। एक औरत जब अपने मन पसंद मर्द से चुदवाती है ना, तो वह समझती है की उसका जीवन आबाद हो रहा है। यह तुम मर्द लोग नहीं समझ सकते। एक औरत जब मर्द से चुदवाती है, तो यह मत समझो की वह सिर्फ अपने बदन का एक हिस्सा मर्द से मिलाती है l औरत मर्द को ना सिर्फ अपनी चूत, बल्कि सब कुछ दे देती है। हालांकि मैं मर्द नहीं हूँ पर जो मैंने मर्दों को समझा है उस की बुनियाद पर मैं कह रही हूँ की मर्द को चुदाई के समय औरत की चूत और अपने लण्ड के अलावा कुछ दिखता नहीं है। उन्हें औरत के जज्बात से कोई मतलब नहीं होता l तुम उन मर्दोंमें से नहीं हो। तुमने मेरे लिए अपनी जानको खतरेमें डाल कर और वह बेईमान फौजी के बिलकुल करीब जाकर अपने हाथों से उसका काम तमाम किया। तुमने मेरे जज्बातों की इज्जत की। मैं तुम्हारी उम्रभर की शुक्र गुजार हूँ। जैसा की मैंने कहा था अगर मैं तुम्हारे बच्चे की माँ बन पायी तो यह मेरे लिए यह बड़े फक्रकी बात होगी, चाहे मुझे इसके लिए हमारे समाज से कितनी ही जिल्लत क्यों ना उठानी पड़े।"
रोहित ने आयेशा की गंवार भाषा में भी एक सच्चा प्यार देखा तो वह गदगद हो उठे। उन्होंने आयेशा को अपनी बाँहों में लिया और दोनों एक प्यार भरे गहरे चुम्बन में जुट गए। अँधेरा छटने वाला था। समय कम बचा था। सूरज निकलते ही पकडे जाने का डर था। आयेशा उस क्षेत्रको भली भाँती जानती थी। उसने एक शार्ट कट जो पहाड़ी के रास्ते से जाता था उस से हिन्दुस्तान की सरहद में घुसने का फैसला किया। रोहित जी और आयेशा दोनों पहाड़ों की चट्टानों के पीछे अपने को छुपाते हुए जब ऊंचाई पर पहुंचे तो जमीन पर रेंगते हुए धीमी गति से आगे बढ़ रहे थे, ताकि दुश्मनों की नजर में ना आएं। आयेशा को यह लग रहा था की उसे परदेसी से अलग होना पडेगा। इसलिए वह थोड़ी इमोशनल हो रही थी और मौक़ा मिलने पर रोहित के हाथ को ले कर चूमने लगती थी। जब वह दोनों पहाड़ी के ऊपर पहुंचे, तब आयेशा ने रोहित को मुस्कुराते हुए देखा और कहा, "देखो परदेसी, वह जो कुटिया दिख रही है, वह हिन्दुस्तान की सरहद में है।"
वह दोनों को निकले हुए करीब एक घंटा हुआ होगा की अचानक उनके ऊपर फायरिंग शुरू हो गयी। फायरिंग दुश्मनों की दिशा से आ रही थी। लगता था जैसे गोली बारी उनको निशाने में रख कर नहीं चलायी जा रही थी। क्यूंकि गोली बड़ी दूर से आ रही थी और अंधाधुंध फायरिंग हो रही थी। शायद दुश्मन की सेना हिन्दुस्तान की सरहद के अंदर कुछ आतंकियों को भेज रही थी और उनको कवर करने के लिए गोलियां चलाई जा रहीं थीं। आयेशा इतनी भयानक फायरिंग से घबरा कर रोहित की बाँहों में आगयी थी। रोहित की समझ में नहीं आ रहा था की फायरिंग कहाँ से आ रही थी। तभी उन्होंने एक आतंकवादी को कुछ दुरी पर देखा। आतंक वादी वहाँ छुपने की कोशिश कर रहा था। लगता था की उसके पास भारी बारूद और मशीनगन थी। रोहितने बिना कुछ सोचे समझे, इससे पहले की वह उनको मार दे अपनी बन्दुक उठाई और निशाना लगा कर गोली छोड़ी। रोहित को बड़ा आश्चर्य हुआ जब वह आतंकवादी एकदम झुककर गिर पड़ा और तड़फड़ाने लगा। उनकी गोली ठीक निशाने पर लगी थी। जिंदगी में रोहित ने पहेली ही गोली चलाई थी और ना सिर्फ वह ठीक निशाने पर लगी पर उनकी गोलीसे एक आतंकवादी कोभी उन्होंने मार गिराया।
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रोहित ने सूना की आयेशा पहले ड़र के मारे रोहित की और देख रही थी। पर जब उन्होंने एक आतंकवादी को मार गिराया तो वह अनायास ही ताली बजाने और नाचने लगी। आयेशा भाग कर आयी और रोहित के गले लिपट गयी। दोनों प्रेमी कुछ देर तक ऐसे ही एक दूसरे के बाहुपाश में जुड़े रहे। अचानक ही एक गोली की सनसनाहट सुनी गयी, आयेशा के मुंह से चीख निकली और आयेशा बल खा कर रोहित के ऊपर गिर पड़ी। उसकी छाती में से खून का फव्वारा छूट पड़ा जिससे रोहित के कपडे खून से लाल लाल हो गए। रोहित वहाँ ही लड़खड़ा कर गिर पड़े। आयेशा की साँस फूल रही थी। उसे शायद फेफड़े में गोली लगी थी। अचानक एक और गोली रोहित की बाँहों में जा लगी। दुसरा खून का फव्वारा रोहित की बाँहों में से फुट पड़ा। आयेशा ने जब रोहित की बाँहों में से खून निकलते हुए देखा तो वह अपना दर्द भूल गयी और अपने कुर्ते का एक छोर फाड़ कर उसने रोहित को बाँहों पर पट्टी बाँध दी। रोहित की बाँहों में काफी दर्द हो रहा था।
इस तरफ आयेशा की साँसे टूट रही थीं। आयेशा ने रोहित का हाथ पकड़ा। उससे ठीक से बोला नहीं जारहा था। फिर भी आयेशा ने कहा, "परदेसी, लगता है हम यहां तक ही हमसफर रहेंगे। लगता है मेरा सफर यहां खत्म हो रहा है। हम राहों में चलते चलते मिले और एक रात के लिए ही सही पर हम हम बिस्तर बने। मुकद्दर तो देखिये। मैंने सोचा था की शायद तुम मुझे छोड़ कर अपने वतन को चले जाओगे। पर हुआ उलटा ही। आज यह सफर में हम तुम्हें छोड़ कर जा रहे हैं। अल्लाह तुम्हारा इकबाल बुलंद रखे। और हाँ, तुम छुपतेछिपाते निचे वह कुटिया के पास पहुँच जाना। वहाँ डॉ. खान हैं। बड़े ही भले आदमी हैं। वह तुम्हारा इलाज कर देंगे। तुम जरूर वहाँ जाना।" यह कह कर आयेशा ने आखरी सांस ली और रोहित की हाथ में से उसका हाथ छूट कर निचे गिर पड़ा। रोहित अपने आपको मजबूत ह्रदय के मानते थे। पर आयेशा का हाथ जब उनके हाथ के निचे गिर पड़ा तो उन्हें ऐसा सदमा लगा की जैसे उनका बड़ा ही करीबी कोई चला गया हो। एक ही रात की बात थी जब उनका और आयेशा का मिलन हुआ। पर उनको ऐसा लगा जैसे सालों का साथ हो। पर एक ही पल में वह साथ छूट गया। रोहित अपने आपको रोक नहीं पाए और जोर शोर से फफक फफक कर रोने लगे। उनको रोते हुए सुनने वाला और सांत्वना देने वाला कोई नहीं था। रोहित एक चट्टान के पीछे आयेशा का बदन घसीट कर ले गए। फायरिंग जारी था और रुकने का नाम नहीं ले रहा था। रोहित का वहाँ दुश्मनों की सरहद में रुकना खतरे से खाली नहीं था। कैसे भी कर उन्हें हिन्दुस्तान की सरहद में दाखिल होना जरुरी था। उनके पास आयेशा की बॉडी को दफनाने का समय ही नहीं था।
रोहित ने आयेशा की बॉडी को खिसका कर चट्टान के पीछे ले जाकर कुछ डाल और पत्तों से उसे ढक दिया। फिर धीरे धीरे वह उस कुटिया की ओर जमीन पर रेंगते हुए चल पड़े। कुछ देर चलने के बाद घनी झाडी में उन्हें वही नदी दिखाई दी। बिना सोचे समझे रोहित उसमें कूद पड़े। उतनी ही देर में उनपर फायरिंग होने लगी। रोहित ने पानी में डुबकी लगा कर गोलियों से बचने फुर्ती से पानी के अंदर तैरने लगे। पानी का बहाव तेज था। पहाड़ों से पानी निकल कर निचे की और फुर्ती से बह रहा था। बहाव इतना तेज था और पानी इतना गहरा था की कोई भी तैराक उस में कूदने का साहस नहीं करेगा। यही जगह थी जहां पर सरहद में कुछ झरझरापन था। यहाँ सैनिक निगरानी कुछ कमजोर थी। इसका फायदा दुशमन के फौजी और आतंकवादी अक्सर उठाते रहते थे।
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रोहित की बाँह का घाव अब दर्द देने लगा था। वह थके हुए थे और उनको ऐसा लग रहा था की कहीं वह पानी में बेहोश ना हो जाएँ। जैसे तैसे हाथ पाँव मारते हुए वह निचे की और तेजी से पानी में बह रहे थे। जिस दिशा में वह जा रहे थे उन्होंने अंदाज लगाया की वह हिन्दुस्तानी सरहद में दाखिल हो चुके हैं। गोलियों की फायरिंग भी बंद हो चुकी थी। रोहित ने अपना सर पानी से बाहर निकाला और देखा की कुछ दूर में वह कुटिया नजर आ रही थी। रोहित तैरते हुए नदी के किनारे आ गए। उनके बाँहों में सख्त दर्द हो रहा था। उनको ट्रीटमेंट की जरुरत थी। वह लुढ़कते हुए पानी के बाहर निकले। पर बाहर निकल कर थोड़ा चलने पर ही ढेर होकर गिर पड़े। थोड़ी देर बाद जब वह होश में आये तो पाया की वह तो वहीं नदी के किनारे लेटे हुए थे और कुछ मछवारे उनको ऊपर से देख रहे थे। उनमें से एक मछवारे ने उन्हें हाथ का सहारा देकर उठाया। उस मछवारेने रोहित से कहा, "तुम्हारे घाव से खून निकल रहा है। इस तरफ डॉ. खान का शफाखाना है। वहाँ जाइये और अपना इलाज कराइये। इंशाअल्लाह ठीक हो जाएगा।"
रोहित वहाँ से लड़खड़ाते लुढ़कते हुए डॉ. खान के शफाखाने पर पहुंचे और वहाँ पहुँचते ही उन्होंने दरवाजे की घंटी बजाई। उनके पाँव से जमीन जैसे खिसक गयी जब जीतूजी ने डॉ. खान के शफाखाने का दरवाजा खोला।
***"*
रोहित का हाल देख कर जीतूजी बड़े ही आश्चर्य और आघात से रोहित को देखने लगे। रोहित जी के सारे कपडे एकदम भीगे हुए पर खून के लाल धब्बों से पूरी तरह रंगे हुएथे। उनकी एक बांह से खून निकल रहा था। जीतूजी ने फ़ौरन रोहित को अंदर बुला लिया और दरवाजा बंद करते बुए पूछा, "क्या हुआ रोहित जी? यह क्या है...?" इससे पहले की जीतूजी अपनी बात पूरी करे, रोहित जीतूजी से लिपट गए और फफक फफक कर रोपड़े। उनकी आँखों से आंसूं रुकने का नाम ही नाहीं ले रहे थे। जीतू जी ने उनको अपना कमीज निकाल ने के लिए कहा। यह सब आवाजें सुनकर बिस्तरे पर नंगी सो रही अपर्णा जाग गयी और चद्दर को बदन पर लपेटे बिस्तरे में बैठ गयी। उसने अपने पति का खून में लथपथ हाल देखा तो अपर्णा की तो जान ही निकल गयी।
अपर्णा को होश ही नहीं रहा की उसने बदन पर कोई भी कपड़ा नहीं पहना था। जब अपर्णा बिस्तर से उठ खड़ी हुई तब उसे अपनी नग्न हालात का अंदाजा लगा। फ़ौरन उसने बिस्तर से ही चद्दर उठाई, अपने आपको ढका और भागती हुई आकर जार जार रोते हुए अपने पति से लिपट गयी। रोहित की आँखों से आंसूं की गंगा जमुना बह रही थी। जीतूजी ने उनको गले लगा कर रोहित को काफी सांत्वना देनेका प्रयास किया। अपर्णा और जीतूजी ने पूछा की क्या रोहित को कहीं घाव है? तब रोहित जी ने अपने कमीज की आस्तीन उठाकर बाँह पर लगे हुए घाव को दिखाया। जीतूजी भाग कर डॉ. खान की एक अलमारी में रखे हुए घाव पर पट्टी बगैरह लगाने वाले सामान को उठा लाये और उन्होंने और अपर्णा ने उनकी मरहम पट्टी की। अपर्णा भी अपने पति से गले लग कर उनको ढाढस देने की कोशिश करने लगे। कुछ समय बीतने पर जब रोहित कुछ शांत हुए तो उन्होंने अपनी कहानी जीतूजी और अपर्णा को बतानी शुरू की।
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रोहित ने कहा, "जीतूजी, मैंने आज तक मेरी जिंदगी में पटाखा फोड़ने वाली बन्दुक भी नहीं चलायीथी। पर आज रातको नासिर्फ मैंने आपका असली फौजी रूप देखा जिसमें आपने एक हट्टेकट्टे आदमी को गोली से भून दिया पर मैंने अपने हाथों से दुश्मन के एक फौजी को एक कटार से मौत के घाट भी उतार दिया। उतना ही नहीं, कुछ ही देर के बाद मैंने एक आतंकवादी को भी मेरी बन्दुक से मार गिराया। मेरे सामने मैंने मेरी ही करीबी महिला साथीदार को दुश्मन की गोलियों से छलनी होते हुए देखा। रोहित की बात सुन जीतूजी और अपर्णा दोंनो चकमें में आ गए। रोहित की महिला साथीदार? वह कौन थी? जीतूजी और अपर्णा पहले रोहित की और फिर एक दूसरे की और प्रश्नात्मक नजर से देखने लगे।
रोहित ने बताया की कैसे वह उस रात को जीतू जी से अलग होने के बाद अँधेरे में चलते चलते नदी किनारे एक गॉंव से कुछ दूर पहुंचे और वहाँ उन्होंने कुछ बन्दुक की फायरिंग की आवाज सुनी। उसके बाद उन्होंने अपनी सारी कहानी बताई जिसमें की उन्होंने एक दुशमन के मुल्क की लड़की की जान कैसे बचाई और काफी रात तक गुफा में छुपे रहने के बाद जब उस लड़की ने उनसे वादा किया की वह उन्हें सरहद पार करा देगी तब वह दोनों छुपते छुपाते गुफा से बाहर निकले। अचानक ही दुश्मन की और से आये हुए दहशतखोरों ने जब उन्हें देखा तो गोलियां दागनी शुरू कर दीं। रोहित जी ने भी जवाबी कारवाई करते हुए अपनी बन्दुक से एक आतंक वादी को ठार मार दिया, पर उस फायरिंग में उस लड़की जिसका नाम आयेशा था उसे गोली लगी। वह लड़की ने मरते हुए भी रोहित को डॉक्टर के घर का रास्ता बताया जहां रोहित को सुरक्षा मिलेगी और घाव का इलाज भी होगा।
रोहित थकान से चूर हो गए थे। उनमें बोलने की भी ताकत नहीं थी। उन्होंने देखा की उनकी पत्नी अपर्णा जीतूजी के बिस्तर में नंगी सोई हुई थी। उन्हें समझने में देर नहीं लगी की क्या हुआ होगा। आखिर वह जो चाहते थे वह हुआ। पर उनमें हिम्मत नहीं थी की वह कुछ बोले। उन्होंने हड़बड़ाहट में कपडे पहने हुए जीतूजी को देखा और चद्दर में लिपटी हुई अपनी पत्नी अपर्णा को भी देखा। पर आगे कुछ बोले उसके पहले वह बिस्तर पर ढेर हो कर गिर पड़े और फ़ौरन खर्राटे मारने लगे।
अपर्णा और जीतूजी एक दूसरे की और देखने लगे। अपर्णा ने तुरंत आपने पति के पाँव से गीले जूते निकाले। फिर उनका शर्ट और पतलून भी निकाला। रोहित के सारे कपडे ना सिर्फ भीगे हुए थे पर खून के लाल धब्बों से रंगे हुए और गंदे थे। अपर्णा ने अपने पति के सारे कपडे एक के बाद एक निकाले और गरम पानी से कपड़ा भिगो कर अपने पति के पुरे शरीर को स्पंज किया। इस दरम्यान रोहित गहरी नींद में सोये हुए ही थे। अपर्णा ने उन्हें पूरी तरह प्यार से निर्वस्त्र कर दिया और अपर्णा और जीतूजी ने बिस्तर में ठीक तरह से सुला कर और ऊपर से कम्बल बगैरह ओढ़ा दिया।
रोहित को आराम से बिस्तरे में सुलाकर जीतूजी फारिग हुए ही थे की डॉ. खान की आवाज उनको दरवाजे के बाहर से सुनाई दी।
डॉ. खान कह रहे थे, "कर्नल साहब, आज वैसे ही जुम्मा है। शफाखाना आज बंद है। आप आज के पुरे दिन और रात को आराम करो, दुपहर को और शामको मैं आप तीनों के लिए खाना लेकर आऊंगा। आप कल सुबह तक यहां ही रुकिए। आप तीनों ही थके हुए हैं। मैं एक गद्दा और भिजवा देता हूँ।
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कुछ ही देर में गद्दा और रजाई चटाई बगैरह लेकर डॉ. खान हाजिर हुए। डॉ. खान ने जीतूजी से रोहित की कहानी सुनी। कैसे आतंकवादियों से उनका पाला पड़ा था, बगैरा। आखिर में गहरी साँस लेते हुए डॉ. खान बोले, "अल्लाह, ना जाने कब ये मातमका माहौल थमेगा और चमन फिर इन वादियों में लौटेगा? पर बच्चों, यहां दुश्मनों को गोलीबारी का ज्यादा असर नहीं होता क्यूंकि यहां से सरहद दुरी पर है।" कर्नल साहब ने डॉ. खान से कहा, "डॉक्टर साहब आपका बहुत बहुत शुक्रिया। पर हमें हिंदुस्तानी सेना बड़ी शिद्दत से खोज रही होगी। हमें चाहिए की हम फ़ौरन हमारी सेना को इत्तला करदें की हम यहां है ताकि वह हमें यहां से ले जाने की व्यवस्था करें।"
डॉ. खान ने अपना सर हिलाते हुए कहा, "पिछले दो दिन से यहां दहशत गर्दों के कारण इंटरनेट और टेलीफोन सेवा ठप्प पड़ी हुई है। वैसे भी टेलीफोन मुश्किल से चलता है। पर हाँ अगर मेरी मुलाकात कोई हिंदुस्तानी फ़ौज के जवान से हुई तो मैं उसे बताऊंगा की आप लोग यहाँ रुके हुए हैं। आप अपना नाम और पता एक कागज़ में लिख कर मुझे दीजिये। जब तक सेना का बुलावा नहीं आता, आप निश्चिन्त यहाँ विश्राम कीजिये। तब तक इन जनाब का घाव भी कुछ ठीक होगा। आपके खाने पिने का सारा इंतजाम यहां है।"
जीतूजी इस भले आदमी को आभार से देखते रहे। उन्होंने अपना, अपर्णा का और रोहित का नाम एक कागज़ पर लिख कर दे दिया। फिर डॉ. खान ने अपर्णा को सही कपडे भी ला दिए और सब के नाश्ते का सामान दे कर वह ऊपर नमाज पढ़ने चले गए। सुबह के करीब दस बज रहे थे। जीतूजी ने अपर्णा की और देखा। वह डॉ. खान की बड़ी लड़की के दिए हुए ड्रेस में कुछ खिली खिली सी लग रही थी। दरवाजा बंद होते ही अपर्णा जीतूजी की गोदमें आ बैठी और जीतूजी की चिबुक अपनी उँगलियों में पकड़ कर अपने पति की और इशारा कर के बोली, "मेरे राजा, यह क्या होगया? रोहित की मानसिक हालत ठीक नहीं लग रही। अब बताओ हम क्या करें?" जीतू जी ने अपर्णा को अपनी बाँहों में भर कर कहा, "जानेमन, पहले तो हम इन्हें उठायें और कुछ् खाना खिलाएं। टेबल पर गरमागरम खाने की खुशबु आ रही है और मैं भूखा हूँ। " अपर्णा ने मजाक में हंसकर कहा, "जीतूजी आप तो हरबार भूखे ही होते हो।" जीतूजी ने फिर अपर्णा को अपनी बाँहिं में भरकर उसे चूमते हुए कहा, तुम्हारे लिए तो मैं हरदम भूखा होता हूँ। पर मैं अभी खाने की बात कर रहा हूँ।" अपर्णा ने अपने पति की और इशारा करते हुए कहा, "इनका क्या करें?" जीतूजी ने कहा, "रोहित बहुत ज्यादा थके हुए हैं। वह ना सिर्फ शारीरिक घावसे परेशान है, बल्कि उनके मन पर काफी गहरा घाव है। लगता है, उस विदेशी लड़की से उनका लगाव कुछ ज्यादा ही करीब का हो गया था। देखो यह थोड़ी गंभीर बात है पर मुझे लगता है एक ही रात में उस लड़की से रोहित का शारीरिक सम्बन्ध भी हुआ लगता है।" अपर्णा थोडा कटाक्ष करते हुए थोड़ा टेढ़ा मुंह कर बोली, "जीतूजी साफ़ साफ़ क्यों नहीं कहते की मेरे पति किसी अनजान औरत को चोद कर आए हैं?"
जीतूजी ने बड़ी गंभीरता से रोहित की और देखते हुए कहा, "अपर्णा, चुदाई को इतने हलके में मत लो। यह प्यार का अपमान है। चुदाई दो तरह की होती है। एक तो कहते हैं ना, "मारा धक्का, माल निकाला, तुम कौन और हम कौन?" यह एक रीती है। भरी जवानी के पुर जोश में कई बार कुछ लोग ऐसे चुदाई करते हैं। ख़ास कर आजकल कॉलेज में कुछ सिर्फ चंद युवा युवती। पर तुम्हारे पति ऐसे नहीं। मैं जानता हूँ की आज तक वह कितनी लड़कियों को चोद चुके हैं। पर अब वह बदल गए हैं।
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उनका सेक्स का भाव अब परिपक्व हो गया है। वह भी तुम्हारी तरह हो गए हैं। वह मानने लगे हैं की चुदाई याने सेक्स, वह मन के मिलने से होना चाहिए। रोहित का उस लड़की से सम्बन्ध भी उसी कक्षा में था भले ही एक ही रात में हुआ हो। तुम्हारे पति ने अगर उस लड़की को चोदा भी होगा तो उन्होंने खुद बताया की दोनों ने एक दूसरे के लिए जान न्यौछावर करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। अफ़सोस इस बात का है की वह लड़की अपनी जान गँवा बैठी। ख़ुशी इस बात की है की रोहित बाल बाल बच गए।"
जीतूजी की बात सुन अपर्णा कुछ झेंप सी गयी और जीतूजी के होँठों से होंठ मिलाती हुई बोली, "जीतूजी आप बड़े ही परिपक्व और सुलझे हुए इंसान हो। मैं अपने पति को नहीं समझ पायी। आपने उन्हें सही समझा। वाकई आप ठीक कहते हैं।" जीतूजी ने अपर्णा के होँठों को चूमते हुए कहा, "तुम जाओ और अपने पतिको प्यार से उठाओ। पहले उनको खाना खिलाते हैं। बाद में ठंडा हो जाएगा। फिर देखते हैं वह क्या कहते हैं।" अपर्णा अपने पति रोहित के पास गयी और उनके बालों को हलके से संवारते हुए उनके कानों में प्यार भरे शब्दों में बोली, "जानेमन रोहित, उठो तो, खाना आ गया है। थोड़ा खालो प्लीज? अभी गरम है। फिर ठंडा हो जाएगा।" रोहित ने आँखें खोलीं और आधी नींद में ही दोनों की और देखा। फिर बिना बोले ही बिस्तरमें लुढ़क पड़े।" यह बहुत थक गए हैं और वैसे भी उनको आराम की सख्त जरुरत है। उनको सोने देते हैं। जब वह जग जाएंगे तो मैं उनके लिए खाना गरम कर दूंगी। अभी हम दोनों खा लेते हैं और फिर हम भी आराम करते हैं। आप भी बहुत थके हुए हो। आखिर फौजियों को भी आराम की जरुरत होती है। मैं तो थकान और आधी अधूरी नींद के कारण चकनाचूर हो चुकी हूँ। बस बिस्तर में जाकर औंधी होकर सो जाउंगी। आज पूरा दिन और पूरी रात बस सोना ही है।"
अपर्णा ने फ़ौरन खाना परोसा और जीतूजी और अपर्णा दोनों ने खाना खाया। अपर्णा ने जीतूजी से पलंग की और इशारा कर कहा, "आप पलंग पर सो जाओ। मैं निचे फर्श पर इस गद्दे पर सो जाउंगी।" जीतूजी, "क्यों? तुम्हें फर्श पर बहुत ठण्ड लगेगी। मैं गद्दे पर क्यों नहीं सो सकता?" अपर्णा, "तो क्या आपको ठण्ड नहीं लगेगी? तो फिर क्या करें?" जीतूजी, "तो हम दोनों भी पलंग पर सो जाते हैं। वैसे भी यह पलंग काफी बड़ा है। तुम अपने पति के साथ सो जाना मैं हट के सो जाऊंगा।" यह कह कर जीतूजी ने निचे रक्खी हुई रजाई उठायी और पलंग एक छोर पर सो गए। अपर्णा ने कहा, "ठीक है। मैं अपने पति के साथ सो जाउंगी।" यह कह कर अपर्णा ने सारे बर्तन उठाये और उन्हें साफ़ कर रोहित का खाना अलग से रख कर हाथ धो कर गाउन पहने हुए बिस्तर पर जा पहुंची। पलंग पर एक कोने में रोहित सो रहे थे, दूसे छोर पर जीतूजी थे। अपर्णा बिच में जा कर लेट गयी। बिस्तर में पहुँच कर अपर्णा ने जीतूजी की रजाई खींची और अपने ऊपर ओढ़दी। अपना हाथ पीछेकर अपर्णा ने जीतूजी को अपनी और खिंच लिया। जीतूजी ने धीमे शब्दों में कुछ हलकी सी कड़वाहट के साथ कहा, "अरे! तुम अपने पति के पास सो जाओ ना? मेरा क्या है? मैं यहीं ठीक हूँ।" अपर्णा ने जवाब दिया, "मैं अपने पतियों के साथही तो सोई हुई हूँ। मैंने तुम्हें भी मेरे पति के रूप में स्वीकार किया है। अब तुम मुझसे बच नहीं सकते।" जीतूजी के मुंह पर बरबस मुस्कान आ गयी। जीतूजी ने कहा, "नहीं। सिर्फ सोना ही नहीं है। अभी तो हमारा मिलन पूरा नहीं हुआ। उसे भी तो पूरा करना है।"
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अपर्णा ने अपने पति की और इशारा करते हुए कहा, "तो फिर इनका क्या करें?" जीतूजी ने कहा, "यह तो आपका सामान है। इसे तो आपको सम्हालना ही पडेगा।" अपर्णा ने कहा, "ठीक है, मेरा जो भी सामान है उन्हें मैं ही सम्हालूँगी।" यह कह कर अपर्णा करवट बदल कर अपने पति रोहित के पास जा उनके शरीर से लिपट गयी। अपर्णा ने अपनी एक टाँग उठायी और अपने पति की जाँघ पर रख दी और रोहित को अपनी बाँहों में घेर लिया। फिर अपर्णा ने एक हाथ पीछे कर जीतूजी को अपनी और करीब खींचा। जीतू जी को खिसक कर अपर्णा के पीछे उस की गाँड़ से अपना लण्ड सटा कर लेटना पड़ा। अपर्णा ने जीतूजी की एक बाँह पकड़ कर अपने एक बाजू को ऊपर कर जीतूजी का हाथ अपने बाजू के निचे बगल में से अपने मस्त स्तनोँ पर रख दिया। अपर्णा चाहती थी की जीतूजी उसके स्तनोँ को सहलाते रहें। तीनों गरम बदन एक दूसरेसे चिपके हुए लेट गए। कुछ देर तक कमरे में एकदम शान्ति छा गयी। कुछ ही देर में तीनों खर्राटे मारने लगे। प्रचुर थकान की वजह से ना चाहते हुए भी तीनों गहरी नींद सो गए। चारों और सन्नाटा छाया हुआ था। खिड़की में से दूर दूर तक कोई इंसान जानवर नजर नहीं आता था। ऐसे ही कुछ घंटे बीत गए।
अचानक अपर्णा के गाल पर कुछ पानी की बूंदड़ें टपकने लगी। अपर्णा ने आँखें खोलीं तो पाया की उसके पति रोहित अपर्णा की आँखों में करीब से एकटक देख रहे थे। उनकी आँखों से आँसुंओं की धारा बह रही थी। अपर्णा अपने पति के और करीब खिसकी और और उनसे और कस के चिपक गयी और बोली, "मेरी जान! क्या बात है? इतने दुखी क्यों हो?" रोहित ने अपर्णा के होंठों पर हलके से चुम्बन किया और बोले, "डार्लिंग, आजतक मैंने किसी पर हाथ तक नहीं उठाया। आज इन्हीं हाथों से मैंने दो इंसानों को मौतके घाट उतार दिया। आज तक मैंने किसी डेड बॉडी को करीब से नहीं देखा था। आज और कलमें मैंने चार चार मृत शरीर को मेरे हाथों में उठाया। मैं खुनी हूँ, मैंने खून किया है। मुझे माफ़ कर दो।" अपर्णा ने अपने पति के सर को अपनी छाती से चिपका दिया और बोली, "जानू, तुम कोई खुनी नहीं हो। तुमने कोई खून नहीं किया। तुमने अपनी जानकी रक्षा की है और आत्मा रक्षा करना हम सब का कर्तव्य है। भगवान श्री कृष्ण ने भी श्रीमद भगवत गीता में अर्जुन को यही उपदेश दिया था की आत्मरक्षा से पीछे हटना कायरता का निशान है। जानू, तुम कायर नहीं और तुम खुनी भी नहीं हो। अगर तुमने उनको नहीं मारा होता तो वह तुमको मार डालते।" ऐसा कह कर अपर्णा ने अपने पति रोहित के ऊपर उठकर उनके होँठों से अपने होंठ चिपका दिए। अपने पति को क़िस करते हुए अपर्णा उनको दिलासा दिलाती हुई बार बार यही बोले जा रही थी की "मेरा जानू कतई खुनी नहीं है। वह किसीका खून कर ही नहीं सकता।" जैसे माँ अपने बच्चे को दिलासा देती रहती है ऐसे ही अपर्णा अपने पति को यह भरोसा दिला रही थी की उन्होंने कोई खून नहीं किया। साथ ही साथ में अपने स्तनों पर रोहित का मुंह रगड़ कर अपर्णा अपने स्तनों का अस्वादन भी अपने पति को करवा रही थी। अपर्णा चाहती थी की रोहित का मूड़ जो नकारात्मक भावों में डूबा हुआ था वह कुछ रोमांटिक दिशा में घूमे।
जीतूजी नींद से जाग गए और पति पत्नीकी चर्चा ध्यान से सुन रहे थे।
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वहभी अपर्णा के पीछे उसके और करीब आये और रोहित के आंसूं पोंछते हुए बोले, "रोहित आप ने देश की और अपनी सुरक्षा की है और वास्तव में आप शाबाशी के पात्र हो। एक साधारण नागरिक के लिए इस तरह अपनी रक्षा करना आसान नहीं है। आपने अपने देश की भी रक्षा की है। वह ऐसे की, अगर आप पकडे जाते तो आपको यह दुश्मन बंधक बना देते और फिर अपनी सरकार से कुछ आतंकवादी छुड़वाने के लिए फिरौती के रूप में सौदेबाजी करते। हो सकता है मज़बूरी में सरकार मान भी जाती। इस नजरिये से देखा जाये तो आपने अपने आपकी सुरक्षा कर के देश सेवा की है।" रोहित जी ने जीतूजी को अपनी पत्नी अपर्णा के पीछे देखा तो अपना हाथ बढ़ा कर उनका हाथ अपने हाथों में लिया। रोहित ने जीतूजी से कहा, "जीतूजी, मैं बता नहीं सकता की अपर्णा को बचाकर आपने मुझ पर कितना बड़ा एहसान किया है। जो काम करने की मेरी हिम्मत और काबिलियत नहीं थी वह आपने कर दिखाया। मैं और अपर्णा आपके सदा ऋणी रहेंगे।"
अपनी पत्नी और जिगरी दोस्त के सांत्वना और उत्साह से भरे वाक्य सुनकर रोहित का मूड़ बिलकुल बदल चुका था। अब वह अपने पुराने शरारती अंदाज में आ गए थे। उन्होंने अपर्णा को पकड़ा और जबरदस्ती करवट लेने को बाध्य किया। अपर्णा अब जीतूजी के मुंह से मुंह मिलाने के करीब थी। रोहित ने अपर्णा की गाँड़ में अपने पेंडू से धक्का माते हुए कहा, "अपर्णा अब तो तुम्हारा प्रण पूरा हुआ की नहीं? अब तो तुम अपनी माँ को दिए हुए वचन का पालन करोगी ना? जीतूजी ने अपनी जान जोखिम में डाल कर तुम्हारी जान बचायी। अब तो तुम मेरी ख्वाहिश पूरी करोगी ना?" अपर्णा ने अपने पति को चूँटी भरते हुए पर काफी शर्म से गालों पर लाली दिखाते हुए उसी अंदाज में कहा, "अब आपको जीतूजी का ऋणी होने की कोई आवश्यकता नहीं है। उन्होंने किसी और को नहीं बचाया उन्होंने अपनी अपर्णा को ही बचाया है। जहां तक आपकी ख्वाहिश पूरी करने का सवाल है तो मैं क्या कहूं? आप दोनों मर्द हैं। मैं तो आपकी ही मिलकियत हूँ। अब आप जैसा चाहेंगे, मैं वैसा ही करुँगी।" अपर्णा ने धीरे से सारी जिम्मेवारी का टोकरा अपने पति के सर पर ही रख दिया। वैसे भी पत्नियां ऐसे नाजुक मामले में हमेशा वह जो करेगी वह पति के ख़ुशी के लिए ही करती है यह दिखावा जरूर करती है। रोहित ने अपनी पत्नी को और धक्का देते हुए जीतू जी से बिलकुल चिपकने को बाध्य किया और अपने पेंडू से और कड़क लण्डसे अपर्णा की गाँड़ पर एक धक्का मारकर जीतूजी के होँठों से अपर्णा के होँठ चिपका दिए। उन्होंने अपर्णा का एक हाथ उठाया और जीतूजी के बदन के ऊपर रख दिया जिससे अपर्णा जीतूजी को अपनी बाँहों में ले सके।
जीतूजी ने बड़े ही संङ्कोच से रोहित की ओर देखा। रोहित ने आँख मारकर जीतूजी को चुप रहने का इशारा किया और अपना हाथ भी अपनी बीबी के हाथ पर रख कर अपर्णा को जीतूजी को बाहुपाश में बाँधने को बाध्य किया। अपर्णा ने अपने पति रोहित की ओर अपना सर घुमा कर देखा और कहा, "देखिये आज आपने दो दुश्मन के फौजी और आतंकवादी को मार दिए इससे आप को इतनी ज्यादा रंजिश हुई और आप इतना दुखी हुए। हमारे फौजी नवजवानों को देखिये। लड़ाई में वह ना सिर्फ दुश्मनों को मौत के घाट उतारते हैं, वह खुद दुश्मनों की गोली पर बलिदान होते हैं। देश के लिए वह कितना बड़ा बलिदान है? जीतूजी ने उस कालिये को मारने में एक सेकंड का भी समय जाया नहीं किया। अगर उस कालिये को चंद सेकंड ही मिल जाते तो वह हम सब को मार देता।"
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फिर अपर्णाने वापस जीतूजी की ओर घूम का देखा और बोली, "जीतूजी, आप ने हम सब पर इतने एहसान किये हैं की हम कुछ भी करें, हम आप का ऋण नहीं चुका सकते।" ऐसा कह कर अपर्णा ने जीतूजी का सर अपनी छाती पर अपने उन्मत्त स्तनोँ पर रख दिया और उनके सर को अपने स्तनोँ पर रगड़ने लगी। अपर्णा जीतूजी के घुंघराले बालों को संवारने लगी। पुरे कमरे में एक अत्यंत जज्बाती भावुक वातावरण हो गया। रोहित और अपर्णा की आँखों में प्यार भरे आंसूं बहने लगे। रोहित ने पीछे से अपर्णा को धक्का देते हुए अपर्णा को जीतूजी के आगोश में जाने को मजबूर कर दिया। जीतूजी ने अपर्णा को अपनी बाँहों में भर लिया और अपने बाजु लंबा करके रोहित को भी अपने आगोश में लेना चाहा। अपर्णा बेचारी दोनों मर्दों के बिच में पीस रही थी। एक तरफ उसके पति रोहित और दूसरी और उसके अतिप्रिय प्रियतम जीतू जी। अपर्णा ने अपने पति रोहित की ओर प्रश्नात्मक दृष्टि से देखा। वह पूछना चाहती थी की क्या वह जीतूजी के आगोश में जाए और उनको प्यार करे।
रोहित ने अपनी पत्नी की ओर देखा और मुस्कुराते हुए उसे कोहनी मारकर जीतूजी के और करीब धकेला और आँख की पालक झपका कर आगे बढ़ने को प्रोत्साहित किया। अपर्णा फ़ौरन जीतूजी के गले लिपट गयी और बोली, "आपने मुझे मरने से बचाया इसके लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया।" अपर्णा की बात सुनकर जीतूजी कुछ नाराज से हो गए। उन्होंने अपर्णा की पीठ थपथपाते हुए कहा, "अपर्णा यह तुम लोग बार बार शुक्रिया, शुक्रिया कहते हो ना, तो मुझे परायापन महसूस होता है। क्या कोई अपनों के लिए काम करता है तो शुक्रिया कहलवाना चाहता है? यह सभ्यता विदेशी है। हम तो एक दूसरों के लिए जो भी कुछ करते हैं वह तो स्वाभाविक रूप से ही करते हैं। अब तुम दोनों सो जाओ। मैं भी थोड़ी देर सो जाता हूँ।" यह कह कर जीतूजी करवट बदल कर लेट गए। अपर्णा को समझ नहीं आया की क्या वह अपर्णा से प्यार करने से कतरा रहे थे या फिर रोहित की हाजरी के कारण शर्मा रहे थे। कुछ ही देर में जीतूजी की खर्राटें सुनाई देने लगीं।
जीतूजी का रूखापन देख कर अपर्णा को दुःख हुआ। फिर उसने सोचा की शायद रोहित की हाजरी देख कर जीतूजी कुछ असमंजस में पड़ गए थे। अपर्णा ने करवट बदली और अपने पति के सामने घूम गयी। रोहित पूरी तरह जाग चुके थे। अपर्णा ने अपने पति से कहा, " आप कुछ खा लीजिये न? खाना टेबल पर रखा है।" रोहित ने हाँ में सर हिलाया तो अपर्णा फ़ौरन उठ खड़ी हुई और अपने कपड़ों को सम्हालती हुई खाना गरम कर रोहित को परोसा और खुद रोहित जी के करीब की कुर्सी में अपने कूल्हों को टिकाके बैठ गयी। खाते खाते रोहित जी ने अपर्णा से एकदम हलकी आवाज में पूछा ताकि सो रहे जीतूजी सुन ना पाए और जाग ना जाए, "अपर्णा, यह तुमने ठीक नहीं किया। जीतू जी ने तुम्हारे लिए इतना किया और तुमने बस? खाली शुक्रिया? ऐसे? तुम्हें जीतूजी ने मरने से बचाया और तुम कह रही हो, बचाने के लिए शुक्रिया? ऐसा शुक्रिया तो अगर तुम्हारा रुमाल गिर जाये और उसे उठाकर कोई तुम्हें दे दे तो कहते हैं। जान जोखिम में डाल कर बचाने के लिये बस शुक्रिया?" अपर्णा ने मूड कर अपने पति की ओर देखा और बोली, "क्या मतलब? ऐसे नहीं तो कैसे शुक्रिया अदा करूँ?" रोहित ने कहा, "जाने मन, जब मैंने शादी के समय आपके लिए दुनिया का सब कुछ कुर्बान करने की सौगंध खायी थी तो बादमें आपने मुझे क्या तोहफा दिया था?"
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अपर्णा ने सोचकर कहा, "तोहफा? मैंने आपको कोई तोहफा नहीं दिया था। मैंने तो आपको अपना सर्वस्व और अपने आपको भी आपके हवाले कर दिया था।" रोहित जी, "अपर्णा डार्लिंग, मैंने तो सिर्फ वादा ही किया था, जीतूजी ने तो जैसे अपनी जान ही कुर्बान करदी थी और आपको बचाया। क्या आपका कोई फर्ज नहीं बनता?"
अपर्णा के गालों पर शर्म की लालिमा छा गयी। अपर्णा की नजरें निचे झुक गयीं। अपर्णा समझ गयी थी की पति क्या कहना चाहते हैं। हालांकि अपर्णा ने जीतूजी से चंद घंटों पहले ही जम के चुदाई करवाई थी, पर अपने पति के सामने उसे इसके बारे में बात करना भी एकदम अजीब सा लग रहा था। वह अपने पति के सामने जीतूजी से कैसी प्यार करे? अपर्णा ने शर्माते हुए कहा, "मैं जानती हूँ तुम क्या चाहते हो। पर मुझे शर्म आती है।" रोहित ने पूछा, "देखो, जानेमन, मैं जानता हूँ की तुम भी जीतूजी से बहुत प्यार करती हो। शर्म अथवा लज्जा प्यार का एक अलंकार है। पर कभी कभी वह प्यार में बाधा भी बन सकता है। क्या तुम्हें मेरे सामने उन्हें प्यार करने में शर्म आती है?" अपर्णा ने लज्जा से सर नीचा करके अपना सर हिलाते हुए "हाँ" कहा। रोहित का माथा ठनक गया। वह अपनी बीबी को अपने सामने जीतूजी से चुदवाती हुई देखना चाहते थे। वह जानते थे की उसी रात को ही शायद जीतूजी ने अपर्णा की चुदाई कर के अपर्णा को चोदने की शुरुआत तो कर ही दी थी। पर वह अपनी पत्नी को इस के बारे में पूछ कर उसे उलझन में डालना नहीं चाहते थे। अब अगर वह अपनी बीबी को जीतू जी से चुदवाती हुई नहीं देख पाए तो उनका सपना अधूरा रह जाएगा। उन्होंने अपर्णा से दबी आवाज में पूछा, "पर अगर मैं चोरी से छुप कर देखूं तो?" अपर्णा ने अपना सर हिला कर मना कर दिया। अपर्णा ने कहा, "तुम अपने सामने मुझसे यह सब क्यों करवाना चाहते हो?" रोहित जी ने कहा, "यह मेरी दिली ख्वाहिश है।" अपर्णा ने अपने पति की बात का कोई जवाब नहीं दिया।
रोहितने कहा, "ठीक है भाई। मैंने इसे स्वीकार किया। तो फिर एक काम करो तुम्हें जीतूजी के सामने मुझसे चुदवाने में तो कोई आपत्ति नहीं है ना?" यह तो तुम एक बार कर ही चुकी हो?" अपर्णा चुप हो गयी। वह इस बात से मना नहीं कर सकती थी। उसने अपने पति से जीतूजी के देखते हुए अपनी चुदाई तो करवाई ही थी। तो अब कैसे मना करे? अपर्णा ने कुछ ना बोल कर अपने पति को अपनी स्वीकृति दे दी। रोहित जब उस कमरे में दाखिल हुए थे तो उन्होंने देख ही लिया था की अपर्णा नग्न अवस्था में बिस्तर में लेटी हुई थी और जीतूजी ने भी अपने कपडे आनन फानन में ही पहन रक्खेl थे। इसका मतलब साफ़ था की अपर्णा और जीतूजी एक ही बिस्तर में एक साथ नंगे सोये थे, तो जीतू जी को जानते हुए यह सोचना कठिन नहीं था की जीतूजी ने अपर्णा को उसरात जरूर चोदा होगा। यह तो एकदम स्वाभाविक था। अगर एक हट्टा-कट्टा नंगा जवान मर्द एक खूब सूरत नग्न स्त्री के साथ एक ही बिस्तर में रात भर सोता है तो उनके बिच चुदाई ना हो यह तो एक अकल्पनीय घटना ही मानी जा सकती है। पर फिरभी रोहित खुद अपनी आँखों से अपनी बीबी की चुदाई देखना चाहते थे। और साथ साथ वह भी अपनी बीबी को किसी और के सामने चोदनाभी चाहते थे। वह चाहते थे की कोई और उनको उनकी बीबी को चोदते हुए देखे और फिर दोनों मर्द मिलकर अपर्णा को चोदें। इसे इंग्लिश भाषा में "थ्री सम एम् एम् ऍफ़" याने दो मर्द मिलकर एक औरत को एक साथ या बारीबारी से एकदूसरे के सामने चोदें। अब जब अपर्णा के माँ को दिए हुए वचन की भली भाँति पूर्ति हो चुकी थी तो अपर्णाके अवरोध का बांध तो टूट ही चुका था। अब मौक़ा था की रोहित अपनी ख्वाहिश या यूँ कहिये की पागलपन पूरा करना चाहते थे। वह यह भी जान गए थे की अपर्णा को भी अब धीरे धीरे यह बात गले उतर ही गयी थी की उसके पति अब उससे यह "थ्री सम एम् एम् ऍफ़" करवाकर ही छोड़ेंगे।
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अपर्णा ने सोचा, अब उसके पास कोई चारा भी तो नहीं था। पर अपर्णाने तय किया की वह पहल नहीं करेगी। अगर उसके पति या जीतूजी, दोनों में से कोई एक पहल करेगा तो वह उसका साथ जरूर देगी। पर पहल नहीं करेगी। आखिर वह मानिनी जो ठहरी। अपर्णा ने अपने पति को अपनी बाँहों में लिया और उन्हें होठोँ पर एक गहरा चुम्बन करती हुई बोली, "तुम ना, सुधरोगे नहीं। तुम वाकई में ही मेरे पागल पति हो। तुम ने एक बार ठान लिया तो फिर तुम जो चाहते हो वह मुझसे करवाके ही छोड़ोगे। देखो तुम यह सब मुझसे करवा कर बड़ा ही जोखिम ले रहे हो। अपनी बीबी को किसीके हाथ में सौपना ठीक नहीं। खैर, चलो आप जा कर लेट जाओ। मैं बर्तन साफ़ कर के आती हूँ।" जल्द ही अपर्णा ने सारे बर्तन और टेबल साफ़ कर ठीक सजा कर अपने आपको ठीक ठाक कर वह रोहित और जीतूजी के बिच में अपनी जगह पर जाकर अपने पति की रजाई में घुस गयी। रोहित ने सोच ही लिया था की अब उन्हें अपनी पागल ख्वाहिश को पूरा करने का इससे अच्छा मौक़ा फिर नहीं मिलेगा। उन्होंने अपर्णा को जीतूजी के सामने घुमा दिया और खुद अपर्णा की गाँड़ में अपर्णा के गाउन के ऊपर से अपना लण्ड टिकाकर उन्होंने अपर्णा को अपनी दोनों टाँगों के बिच में जकड लिया। पीछे से रोहित ने अपर्णा के कान, उसकी गर्दन और उसके बालों को चूमना शुरू किया। वह अपर्णा को चुदवाने के लिए तैयार कर रहे थे। अपर्णाने अपने पतिके इशारे और बात का कोई जवाब नहीं दिया। वह जीतूजी के सामने ही उनकी छाती से छाती मिलाकर अपने पति की बाहों में ही छिप कर अपनी आँखें बंद कर अपना सर निचा कर आगे क्या होगा उसका इंतजार करती हुई चुपचाप पड़ी रही।
रोहित ने अपनी पत्नी अपर्णा की पीठको प्यार से सहलाना शुरू किया। हालांकि जीतूजी गहरी नींद सो रहे थे, अपने पति की हरकतें जीतूजी के सामने करते हुए देखकर अपर्णा एकदम रोमांचित हो उठी। अपर्णा के पुरे बदन में एक सिहरन सी फ़ैल गयी। रोहित ने धीरे से अपनी बीबी के गाउन के अंदर अपना हाथ डाल कर उसके भरे हुए स्तनोँ को अपनी हथेली में लेकर उसे बारी बारी से सहलाना और दबाना शुरू किया। ना चाहते हुए भी अपर्णाके होठों के बिच से सिस-कारी निकल ही गयी। रोहित ने अपर्णा की पीठ सहलाते हुए कहा, "डार्लिंग, यह सफर मेरे लिए एक अजीब, रोमांचक, उत्तेजना से भरा और साथ साथ बड़ा ही खतरनाक भी रहा। पर हर पल भगवान ने हमारा हर कदम पर साथ दिया। सब से बुरे वक्त में भी आखिरी वक्त में भगवान ने हमें बचा लिया। सबसे बड़ी बात यहरही की जीतू जी ने तुम्हें मौत के मुंह में से बचा के निकाला। हमारे लिए तो जीतूजी भगवान के सामान हैं। हैं की नहीं?" अपर्णा ने थोड़ा ऊपर उठकर जीतूजी के हाथों को सहलाते हुए कहा, "वह तो हैं ही।" पति पत्नी दोनों जीतूजी उनकी बात सुनकर उठ ना जाएँ इस लिए बड़ी ही हलकी आवाज में बात कर रहे थे।
रोहित ने अपनी पत्नी अपर्णासे कहा, "अपर्णा डार्लिंग, जहां इतना गहरा प्यार होता है, वहाँ कुछ भी मायने नहीं रखता है। अब आगे तुम समझदार हो, की तुम्हें क्या करना चाहिए।" अपर्णा ने बड़े ही भोलेपन से कहा, "डार्लिंग, मुझे नहीं मालुम, मुझे क्या करना चाहिए। तुम्ही बताओ मुझे क्या करना चाहिए।" रोहितने बड़ेही प्यारसे अपर्णा के गाउन के पीछे के बटन खोलते हुए कहा, "जो चीज़ में तुम सबसे ज्यादा मास्टर हो तुम वही करो। तुम बस प्यार करो।" अपर्णाके बटन खुलते ही रोहित ने अपनी बीबी का गाउन कन्धों के निचे सरका दिया।
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अपर्णा के बड़े उन्नत वक्ष फूली हुई निप्पलों के साथ गाउन से बाहर निकल पड़े। पीछे से हाथ डाल कर रोहित ने अपनी बीबी दोनों फुले स्तनोँ को अपनी हथेलियों में उठाया और उन जेली के समान डोलते हुए स्तनोँ को हिलाते हुए रोहित ने अपनी बीबी अपर्णा से कहा, "जानेमन यह तुम्हारे दो गोल गुम्बज पर कोई भी मर्द अपनी जान न्योछावर कर सकता है।" यह कर रोहित ने अपर्णा के बॉल अपनी हथली में दबाने और मसलने शुरू किये। अपर्णा के मुंह से फिर से सिसकारी निकल गयी। इस बार कुछ ज्यादा ही ऊँची आवाज थी। अपर्णा को डर था की कहीं उसकी सिसकारी सुनकर जीतूजी जाग ना जाएँ। रोहित तो चाहतेथे की जीतूजी जाग जाएँ और यह सब देखें। वह जितना हो सके अपनी पत्नी को उकसाना चाहते थे ताकि उसकी कराहटें और सिकारियों की आवाज बढे और जीतू जी उठ कर वह नजारा देखें जो वह उन्हें दिखाना चाहते थे। रोहित ने सिर्फ एक धोती जो डॉ. खान की अलमारी में मिली थी वह पहन रक्खी थी। उसकी गाँठ भी बिस्तरे में पलटते हुए छूट गयी थी। वह बिस्तर में नंगे ही सोये हुए थे। अपनी पत्नी के दो मस्त गुम्बजों को अपने हाथों में मसलते हुए और अपर्णा की निप्पलों को पिचकाते और अपनी बीबी की गाँड़ में पीछे से धक्का मारते हुए कहा, "डार्लिंग, जीतूजी हमारे लिए भगवान से भी ज्यादा हैं। वह इस लिए की भगवान को कुछ भी करने के लिए सिर्फ इच्छा करनी पड़ती है। जब की हम इंसानों को अपने प्रियजन के लिए कुछ करने के लिए महेनत और अपना आत्म समर्पण करना पड़ता है।
जीतूजी ने वह तुम्हारे लिए क्यों किया? क्यूंकि वह तुम्हें दिलोजान से चाहते थे। वह तुम्हारे लिए कुछ भी कर सकते हैं। तो क्या तुम उनके लिए कुछ कर नहीं सकती?" अपर्णा ने अपने पति की बात का कुछ भी जवाब नहीं दिया। वह जानती थी की उसके पति क्या चाहते थे। पर वह क्यों अपना मुंह खोले? वह सिर्फ अपने पति के अपनी गाँड़ पर धक्का मरते हुए लण्ड को मेहसूस कर रही थी। अपने पति का जाना पहचाना मोटा और लंबा लंड एकदम कड़क और जोशीला तैयार लग रहा था। अपर्णा भी एक साथ दो लण्ड से चुदवाने के विचार से ही काफी उत्तेजित हो रही थी। उसने कभी सोचा नहीं था की उसके दोनों प्राणप्रिय मर्द उसे एकसाथ चोदेंगे। उसके पति तो तैयार थे, पर क्या जीतूजी भी तैयार होंगे? यह अपर्णा को पता नहीं था। रोहित ने जब अपनी पत्नी का कोई जवाब नहीं मिला तो वह समझ गए की अपर्णा तैयार तो है पर अपने मुंह से हाँ नहीं कहना चाहती। आखिर में वह मानिनी जो ठहरी? रोहित जी ने फ़ौरन अपर्णा गाउन पूरा खोल कर उसे हटाना चाहा। अपर्णा ने भी कोई विरोध ना करते हुए अपने हाथ और पाँव ऊपर निचे कर के उसे हटाने में रोहित की मदद की। अब रोहित और उनकी पत्नी अपर्णा बिस्तरे में एक़दम नंगे थे। रोहित ने फिर से अपना लण्ड अपर्णा की गाँड़ के गालों पर टिका दिया और हलके धक्के मारने लगे। अपने पति का तगड़ा लण्ड अब उसकी गाँड़ को टोचने लगा तो अपर्णा चंचल हो उठी। उससे रहा नहीं गया। अपर्णा के मुंह से कुछ ज्यादा ही जोर से कराहट निकल पड़ी। अपर्णा समझ गयी की अब वख्त आ पहुंचा था जब उसके पति उसकी पीछे से चुदाई करेंगे। अपर्णा जानती थी की रोहित को पीछे से चोदना बहुत पसंद था।
अपर्णा की दोनों चूँचियों को अपने हाथों में पकड़ कर उन्हें दबोचते हुए अपर्णा की गाँड़ की दरार में से होते हुए अपर्णा की रसीली चूत में अपना लण्ड पेलने के लिए उसके पति हमेशा व्याकुल रहते थे। जब वह अपर्णा को पीछे से चोदते थे तो अपना मुंह अपर्णा के घने बालों में मलते हुए अपर्णा की गर्दन, पीठ और कन्धों को बार बार चूमते रहते जिससे अपर्णा का उन्माद सातवें आसमान पर पहुंच जाता था। अपर्णा को महसूस हुआ की जीतूजी अपर्णा की कराहट सुनकर शायद उठ चुके थे। अपर्णा के मन में उस समय एकसाथ कई भाव जाग्रत हो रहे थे।
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एक जीतूजी के इतने करीबसे देखते हुए की अपर्णा अपने पति से कैसे चुदाई करवा रही है यह सोच कर रोमांच का भाव, दुसरा चिंता का भाव की जीतूजी कहीं ईर्ष्या या दुःख से परेशान तो नहीं हो जाएंगे की अपर्णा किसी और से चुद रही थी? तीसरा डर का भाव की कहीं उसी समय अगर जीतूजी का अपर्णा को चोदने का मन किया तो कहीं वह रोहित से अपर्णा को चोदने के लिए बहस तो नहीं करेंगे? चौथा भावकी कहीं दोनों मर्द मिलकर अपर्णा को एक साथ चोदने के लिए अगर तैयार हो गए तो क्या एक अपर्णा की चूत में तो दुसरा उसकी गाँड़में तो अपना लण्ड नहीं घुसाना चाहेंगे? अपर्णा डर चिंता और रोमांच से एकदम अभिभूत हो रही थी। अपर्णा ने महसूस किया की जीतूजी थोड़ा हिल रहे थे। उसका मतलब वह जाग गए थे। अपर्णाने देखा की जीतूजीने अपनी आँखें नहीं खोलीं थी। यह अच्छा था। क्यूंकि भले ही जीतूजी ने महसूस किया हो की अपर्णा अपने पति से चुदाई करवा रहीथी। पर नादेखते हुए कुछ हद तक अपर्णा की लज्जा कम हो सकती थी। पर रोहित ने कोई कोशिश नहीं की वह अपर्णा की गरम चूतमें अपना लण्ड डालें। वह तो अपर्णा को इतना गरम करना चाहते थे की अपर्णा आगे चलकर अपनी सारी लज्जा और शर्म छोड़ कर, अगर जीतूजी उठ जाएँ तो भी अपने पति से बिनती करे की "प्लीज आप मुझे चोदिये।"
रोहित ने फुर्तीसे पलंगसे निचे उतर कर अपर्णा की जाँघें फैलायीं। अपना मुंह अपर्णा की जाँघों के बिच में रख कर वह अपर्णा का रिस्ता हुआ स्त्री रस चाटने लगे और अपनी जीभ डाल कर अपर्णा की चूत को जीभ से कुरेदने लगे। रोहित जी की जीभ के अंदर घुसते ही अपर्णा अपनी आँखें कस के मूंद के रखती हुई एकदम पलंग पर चौक कर उछल पड़ी। उसके तन के ऊपर से कम्बल हट गया। वह नंगी दिखने लगी। शायद जीतूजी ने भी एक आँख खोल कर अपर्णा का कामातुर खूबसूरत कमसिन नंगा बदन देख लिया था। जीतूजी ने यह भी देखा की अपर्णा के पति जीतूजी के उठने की परवाह ना करते हुए अपर्णा की चूत में अपनी जीभ डाल कर अपनी बीबी को "जिह्वा मैथुन" करा रहे थे।
अपर्णा पलंगके ऊपर उछल उछल कर उसे झेलने की कोशिश कर रही थी। थोड़ी देर अपर्णा का जिह्वा मैथुन करने के बाद रोहित वापस पलंग पर आ गए। रोहित फिर वही अपर्णा की गाँड़ पर अपना लण्ड टिकाकर अपर्णाको अपनी जाँघों के बिच में जकड कर उसके मद मस्त स्तनोँ को अपनी हथलियों में दबाने लगे और अपर्णा की फूली हुई निप्पलों को पिचकाने में फिर व्यस्त हो गए। रोहित ने अपना हाथ अपर्णा की पतली कमर और नाभि को सहलाते हुए धीरे से निचे ले जाकर उसकी चूत के ऊपर वाले टीले से सरका कर अपर्णा की चूत पर रक्खा। अपने पति का हाथ जब अपनी चूत के पास महसूस किया तो अपर्णा बोल पड़ी, "डार्लिंग यह क्या कर रहे हो?" रोहित ने कुछ ना बोलते हुए अपर्णा की पानी झरती चूत में अपनी दो उंगलियाँ डाल दीं और उसे प्यार से अंदर बाहर करने लगे। अपर्णा की (और शायद सब स्त्रियों की) यह बड़ी कमजोरी होती है की जब पुरुष उनकी चूत में उँगलियाँ डालकर उनको हस्तमैथुन करते हैं तब वह उसे झेलनेमें नाकाम रहतीं हैं। रोहित कभी उँगलियों से अपर्णा की चूतके पंखुड़ियों को खोल कर प्यारसे उसे ऐसे रगड़ने लगे की अपर्णा मचल उठी और उसके रोंगटे खड़े हो गए। बड़ी मुश्किल से वह अपने पति को चुदाई करने के लिए आग्रह करने से अपने आप को रोक पायी। जैसे जैसे रोहित की उँगलियाँ फुर्ती से अपर्णा की चूत में अंदर बाहर होने लगीं, अपर्णा की मचलन बढ़ने लगी। साथ साथ में अपर्णा की चूत की फड़कन भी बढ़ने लगी। अपर्णा अपनी सिसकारियां रोकने में नाकाम हो गयी। उसके मुंहसे बार बार "आहह ओफ्फफ्फ्फ़... हाय... उम्फ..." आवाजों वाली सिकारियाँ बढ़तीही गयीं। जाहिर है की ऐसे माहौल में एक मर्द कैसे सो सकता है जब एक जवान औरत उसके बगल में एक ही पलंग पर उसके साथ नंगी सोई हुई जोर शोर से सिकारियाँ मार रही हो? जीतूजी उठ तो गए पर अपनी आँखें मूंद कर पड़े रहे और उम्मीद करते रहे की उनको भी कभी कुछ मौक़ा मिलेगा।
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रोहित को भी शायद आइडिया हो गया था की जीतूजी उठ गए थे। रोहित का आइडिया था की वह ऐसे हालत पैदा करदें की जीतूजी खुल्लम-खुल्ला जाहिर करने के लिए मजबूर हो जाएँ की वह उठ गए हैं। रोहित ने अपर्णा की चूत में अपनी उँगलियों से चोदने की फुर्ती एकदम तेज करदी। उनकी उँगलियाँ अपर्णा की चूत से इतनी फुर्ती से अंदर बाहर होने लगीं जैसे कोई इंजन में पिस्टन सिलिंडर के अंदर बाहर होता हो। अपर्णाके लिए यह आक्रमण झेलना असंभव था। वह अपनी सिसकारियोंको रोकनेमें अब पूरी तरह से नाकाम होरही थी। अब उसे परवाह नहींथी की उसके साथमें ही सोयेहुए जीतूजी उसकी कराहट सुनकर उठ जाएंगे। वास्तव में तो कहीं ना कहीं उसके मन में भी छिपी हुई इच्छा थी की जीतूजी उठ जाएँ और अपर्णा को उसके पति के साथ दोनों मिलकर चोदें। सारी कुशंका और चिंताओं के बावजूद अपर्णाके मनमें भी पति की यह इच्छा पूरी करने का बड़ा मनतो थाही। जैसे जैसे रोहित जी ने उंगलयों से चोदने की गति तेज कर दी तो अपर्णा की सिसकारियों ने कराहट का रूप ले लिया। अपर्णा अब जोर शोर से रोहित को, "डार्लिंग, यह क्या कर रहे हो? अरे... भाई तुम थोड़ा रुको तो...अरे यह कोई तरिका है आह्ह... ओह... अह्ह्ह्हह." इत्यादि आवाजें निकालने लगी। पीछे से रोहित अपना लण्ड भी अपर्णा की गांड के गालों पर घुसेड़ रहे थे।
रोहित इस बात का ध्यान रख रहेथे की उनका लण्ड अभी जब तक उपयुक्त समय ना आये तब तक अपर्णा की चूत या गाँड़ में ना घुसेड़ें। अपर्णा अपने पति के उसकी गाँड़ में मारे जा रहे धक्कों और उनकी उँगलियों की चुदाई से इतनी ज्यादा उत्तेजित हो गयी थी की उसने जीतूजी की बाहें पकड़ीं और अपने साथ साथ जीतूजी को भी हिलाने लगी। जब थोड़ी देर तक ऐसा चलता रहा तो मज़बूरी में जीतूजीने अपनी आँखें खोलीं और अपर्णा की और देखा। अपर्णा आँखें बंद किये हुए अपने पति की उंगल चुदाई और फ़ालतू के गाँड़ पर उनका कडा और खड़ा लण्ड धक्के मार रहा था उसे एन्जॉय कर रही थी। जीतूजी ने एक हाथ अपर्णा की नंगी कमर पर रखातो अपर्णाने अपनी आँखें खोलीं। जब अपर्णा की जीतूजी से आँखें मिलीं तो वह शर्मके मारे फिर झुक गयीं और फिर अपर्णा ने अपनी आँखें बंद कर लीं। पर अपर्णा की कराहटें रुक नहीं पा रहीं थीं क्यूंकि उसके पति अपनी उँगलियों से अपर्णा की चूत में बड़े जोरसे चुदाई कर रहे थे। अपर्णा ने अब तय किया की जब जीतूजी ने उसे अपने पति से चुदते हुए देख ही लिया था तो अब फ़ालतू का पर्दा रखने का कोई फ़ायदा नहीं था। अपर्णा तब जीतूजी की और खिसकी और जीतूजी से चिपक गयी। अपर्णा के स्तन पर रोहितका हाथभी जीतूजी की छाती का स्पर्श कर रहा था। रोहित समझ गए की जीतूजी जग गए हैं और अपर्णा की उंगली चुदाई देख रहे हैं। रोहित ने अपर्णा की चूँचियों से अपना हाथ हटाकर जीतूजी के कन्धों पर रख दिया। रोहित ने तब अपनी बीबी की उँगलियों से चुदाई रोक दी। उन्होंने अपने हाथों से जीतूजी का कंधा थोड़े जोर से दबाया और बोले, "जीतूजी, उठो। मैं और अपर्णा आपसे प्रार्थना करते हैं की आप अपनी प्रिया और मेरी बीबी का आत्मसमर्पण स्वीकार करो।"
अपर्णा की चूँचियों को दबाते हुए रोहित बोले, "मैं जानता हूँ आप इन स्तनोँ को सहलाने के लिए कितने ज्यादा उत्सुक हो। मैं अपर्णा का पति आपसे कहता हूँ की आजसे अपर्णा के प्यार और बदन पर सिर्फ मेरे अकेले का ही हक़ नहीं होगा। अपर्णा के प्यार और बदन पर हम दोनों का साँझा हक़ होगा अगर अपर्णा इसके लिए राजी हो तो।" फिर वह अपनी बीबी की और देखते हुए बोले, "अपर्णा डार्लिंग तुम क्या कहती हो?"
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अपर्णा ने शर्म से अपनी नजरें निचीं कर लीं और कुछ नहीं बोली। रोहित ने जीतूजी का हाथ पकड़ा और अपनी बीबी के खुले स्तनों को उनके हाथ में पकड़ा दिए। जीतूजी ने रोहित के सामने देखा और झिझकते हुए अपर्णा के स्तनोँ पर अपना हाथ फिराने लगे। हालांकि जीतूजी ने पहले भी अपर्णा के मस्त स्तनोँ का भलीभांति आनंद ले रखा था, पर यह पहली बार हुआ था की अपर्णा के पति ने सामने चलकर अपनी पत्नी के स्तनोँ को उनके हाथों में दिए थे। जीतूजी को इस बात से एक अद्भुत रोमांच का अनुभव हुआ। जीतूजी की हिचकिचाहट रोहित के वर्ताव से काफी कम हो चुकी थी। उस समय के जीतूजी के चेहरे के भाव देखने लायक थे। जैसे कोई नई नवेली वधु शादी की पहली रात को पति के कमरे में पति के सामने होती है और पति जब उसके कपड़ों को छूता है तो कैसे उसका पूरा बदन रोमांचा से सिहर उठता है ऐसा भाव उनको अपर्णा के भरे-भरे रोहित के हाथों में उठाये हुए स्तनों को छूने से हुआ।
अपर्णा का हाल तो उससे भी कहीं और बुरा था। उसकी जाँघों के बिच उसकी चूत में से तो जैसे रस की धार ही निकल रही थी। अपने पति के सामने ही किसी और पुरुष के हाथों अपने स्तनोँ को छुआना कैसा अनूठा और पुरे शरीर को रोमांच से भर देने वाला होता है यह अपर्णा ने अनुभव किया। जीतूजी ने अपर्णा के दोनों स्तनोँ को अपने हाथों की हथेलियों में लिए और उनको झुक कर चूमा। रोहित ने अपर्णा को अपनी बाँहों में जकड कर पीछे से अपर्णा के कन्धों को चुम कर कहा, "जीतूजी, मैं सच कह रहा हूँ। हालांकि मेरे मनमें अपर्णाके लिए बहुत ही अजीब भावथे और मैं जानताथा की आपको और अपर्णा को भी इसके लिए कोई एतराज नहींथा l पर मैं यह चाहता था की अपर्णा सामने चलकर मुझे अपने आपको पूरी ख़ुशी के साथ समर्पित करे और उसकी माँ को दिया हुआ वचन अगर पूरा ना हो तो ऐसा ना करे। अगर अपर्णा की माँ को दिया हुआ वचन आपके और अपर्णा के हिसाब से पूरा हो गया है तो मुझे और कुछ नहीं कहना। अपर्णा मेरी थी और रहेगी। वह आपकी पत्नी थी है और रहेगी। अगर वह मेरी शैय्या भागिनी हुई तो उससे आपके अधिपत्य पर कोई भी असर नहीं होगा।" यह प्यार दीवाना पागल है। ना जाने क्या करवाता है। कभी प्यारी को खुद ही चोदे, कभी औरों से चुदवाता है।
जीतूजी ने पहले अपर्णा के कपाल पर और फिर अपर्णा के बालों पर, नाक पर, दोनों आँखों पर, अपर्णा के गालों पर और फिर होँठों पर चुम्बन किया। जीतूजी अपर्णा के होँठों पर तो जैसे थम ही गए। अपर्णा के होँठों के रस से वह रसपान करते थकते नहीं थे। जीतूजीने अपर्णा को अपनी बाँहों में ले लिया और अपर्णा के होँठों से अपने होँठ कस कर भींच कर बोले, "अपर्णा, मैं तुम्हें अपनी बनाना चाहता हूँ। क्या तुम मुझे अपना सर्वस्व अर्पण करने के लिए तैयार हो?" अपर्णा बेचारी बोल ही कैसे सकती थी जब उसके होँठ जीतूजी के होँठों से जैसे सील ही गए हों? फिर भी अपर्णा ने अपनी आँखें खोलीं और जीतूजी की आँखों से ऑंखें मिलाई और और अपना सर ऊपर निचे हिला कर उसने अपनी सहमति जताई । अपर्णा की आँखों में उस समय उन्माद छाया हुआ था। आज वह अपने पति के सामने अपने प्रियतम से प्यार का ना सिर्फ इजहार करने वाली थी बल्कि अपने प्यार को अपने पति से अधिपत्य (ऑथॉरिज़ेशन) भी करवाना चाहती थी। अपर्णा समझ गयी थी की उस दिन उसे जीतूजी उसके पति के देखते हुए चोदेंगे।
अपर्णा के पति रोहित की ना सिर्फ इसमें सहमति थी बल्कि उनकी इच्छा से ही यह मामला यहाँ तक पहुँच पाया था। अपर्णा जब जीतूजी के चुम्बनसे फारिग हुई तो उसने जीतूजी और अपने पति को अपनी दोनों बाँहों में लिया।
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