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पलंग पर से दोनों मर्दों की खर्राटें सुनाई दे रही थी। दरवाजे के पास ही गद्दा बिछा हुआ था। उस गद्दे पर अपर्णा सोइ होगी ऐसा कालिया ने मान लिया। उसे अँधेरे में कुछ ज्यादा साफ़ दिखाई नहीं दे रहा था। अंदर आते ही कालिया ने अपनी बन्दुक दरवाजे से थोड़ी अंदर की दीवार के सहारे रक्खी और अपर्णा को अपनी बाहों में लेनेके लिये अपर्णाकी और कमरेके अंदर आगे बढ़ा। कालिया जैसे ही अपर्णा के करीब पहुंचा की जीतूजी और रोहित दोनों पलंग पर रक्खे गद्दे को लेकर कालिया पर टूट पड़े। एक ही जबर दस्त झटके में दोनों ने कालिया को गिरा दिया और गद्दे में दबोच लिया जिससे उसके मुंह से कोई आवाज निकल ना सके।
अपर्णा ने फ़ौरन बन्दुक अपने हाथों में ले ली। जीतूजी ने फ़टाफ़ट गद्दा हटाया और अपर्णा के हाथों से बन्दुक लेकर कालिया की कान पट्टी पर रख कर बोले, "अगर ज़रा सी भी आवाज की तो मैं तुझे भून दूंगा। मैं हिन्दुस्तानी सेना का सिपाही हूँ और दुश्मनों को मारने में मुझे बड़ी ख़ुशी होगी। तुम अगर अपनी जानकी सलामती चाहते हो तो हमें यहां से बाहर निकालो। क्या तुम हमें बाहर निकालोगे या नहीं?" कालिया ने कर्नल साहब की और देखा। उस अँधेरे में भी उसे कर्नल साहब का विकराल चेहरा दिखाई दे रहा था। वह समझ गया की कर्नल साहब कोरी धमकी नहीं दे रहे थे। कालिया ने फ़ौरन कर्नल साहब को अपना सर हिला कर कहा, "ठीक है।" कर्नल साहब ने कालिया की कान पट्टी पर बंदूक का तेज धक्का देकर कहा, "चलो और अपने कुत्तों को शांत करना वरना तुम्हें और उन्हें दोनों को गोली मार दूंगा।" कालिया आगे और उसके पीछे कर्नल साहब कालिया की कान पट्टी पर बंदूक सटाये हुए और उनके पीछे रोहित और अपर्णा चल पड़े। वही रास्ता जो कालिया ने अपर्णा को बताया था उसी रास्ते पर कालिया सबको अपने घर के पास ले गया।
अचानक दोनों हाउण्ड कर्नल साहब की गंध सूंघते ही भागते हुए वहाँ पहुंचे। कालिया ने झुक कर उन हाउण्ड का गला थपथपाया तो वह हाउण्ड वहाँ से चले गए। वह हाउण्ड कालिया को भली भाँती जानते थे। जब कालियाने उनका गला थपथपाया तो वह समझ गए की अब उनको कर्नल साहब की गंध के पीछे नहीं दौड़ना है। अब यह आदमी उनका दोस्त बन गया था ऐसा वह समझ गए। हाउण्ड से निजात पाते ही कालिया उन्हें लेकर आगे की और चल पड़ा। थोड़ा चलते ही वही नदी आ गयी जिसके किनारे किनारे वह काफिला आया था। जैसे ही सब नदी के किनारे पहुंचे, कर्नल साहब ने अचानक ही बंदूक ऊपर की और उठायी और फुर्ती से बड़े ही सटीक चौकसी से और बड़ी ताकत से कालिया को सतर्क होने का कोई मौक़ा ना देते हुए बंदूक का भारी सिरा कालिया के सर पर दे मारा। कालिया के सर पर जैसे ही बंदूक का भारी सिरा लगा, तो कालिया चक्कर खाकर जमीन पर गिर पड़ा। कालिया की कानपट्टी से खून की धार निकल पड़ी। इतने जोर का वार कालिया बर्दाश्त नहीं कर पाया। एक उलटी कर कालिया वहीँ ढेर हो गया।
रोहित और अपर्णा ने जीतूजी का ऐसा भयावह रूप पहले नहीं देखा था। उनके चेहरे पर हैरानगी देख कर कर्नल साहब ने कहा, "यह लड़ाई है। यहाँ जान लेना या देना आम बात है। अगर हम ने इसको नहीं मारा होता तो वह हम को मार देता। अब हमें इसकी बॉडी को ऐसे ठिकाने लगाना है जिससे वह दुश्मन के सिपाहियों को आसानी से मिल ना सके ताकि पहले दुश्मन कालिया की बॉडी ढूंढने में अपना काफी वक्त गँवाएँ। और हमें कुछ ज्यादा वक्त मिल सके।" जीतूजी का सोचने का तरिका सुनकर अपर्णा जीतूजी की कायल हो गयी। जीतूजी ने कालिया की बॉडी को टांगों से नदी की और घसीटना चालु किया। रोहित भी जीतूजी की मदद करने आ गए। दोनों ने मिलकर कालिया की बॉडी को नदी के किनारे एक ऐसी जगह ले आये जहां से उन्होंने दोनों ने मिलकर उसे उछालकर निचे नदी में फेंक दिया। नदी के पानी का बहाव पुर जोश में था। देखते ही देखते, नदी के बहाव में कालिया की बॉडी गायब हो गयी।
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वैसे ही चारों और काफी अन्धेरा था। आकाश में काले घने बादल छाने लगे और बूंदा बांदी शुरू हो गयी थी। आगे रास्ता साफ़ दिखाई नहीं दे रहा था। दिन की गर्मी की जगह अब ठंडा मौसम हो रहा था। जीतूजी ने रोहित का हाथ थामा और उनके हाथोंमें कालिया की बंदूक थमा दी। जीतू जी ने अपर्णा को कहा, "अपर्णा तुम सबसे आगे चलो। मैं तुम्हारे पीछे चलूँगा। आखिर में रोहित चलेंगे। हम सब पेड़ के साथ साथ चलेंगे और एक दूसरे के बिच में कुछ फैसला रखेंगे ताकि यदि दुश्मन की गोली का फायरिंग हो तो छुप सकें और अगर एक को लग जाए तो दुसरा सावधान हो जाए।" फिर जीतूजी रोहित की और घूम कर बोले, "रोहित अगर हमें कुछ हो जाये तो आप इस बंदूक को इस्तेमाल करने से चूकना नहीं। अब हमें बड़ी फुर्ती से भाग निकलना है। हमारे पास ज्यादा से ज्यादा सुबह के पांच बजे तकका समय है। शायद उतना समय भी ना मिले। पर सुबह होते ही सब हमें ढूंढने में लग जाएंगे। तब तक कैसे भी हमें सरहद पार कर हमारे मुल्क की सरहद में पहुँच जाना है।"
रोहित ने बंदूक अपने हाथ में लेते हुए कहा, "यह तो ठीक है। पर मेरा काम कलम चलाना है, बंदूक नहीं। मुझे बंदूक चलाना आता ही नहीं।" जीतूजी थोड़ा सा चिढ कर बोल उठे, "काश! यहां आपको बंदूक चलाने की ट्रेनिंग देने का थोड़ा ज्यादा समय होता। खैर यह देखिये......." ऐसा कह कर जीतूजी ने रोहित को करीब पाँच मिनट बंदूक का सेफ्टी कैच कैसे खोलते हैं, गोली दागने के समय कैसे पोजीशन लेते हैं, गोली का निशाना कैसे लेतेहैं वह सब समझाया। जीतूजी ने आखिर में कहा, "रोहित, हम सबको नदी के किनारे किनारे ही चलना है क्यूंकि आगे चलकर इसी नदी के किनारे हमारा कैंप आएगा। थक जाने पर बेहतर यही होगा की आराम करने के लिए भी हम लोग किसी झाडी में छुप कर ही आराम करेंगे ताकि अगर दुश्मन हमारे करीब पहुँच जाए तो भी वह आसानी से हमें ढूंढ ना सके।" काफी अँधेरा था और रोहित को क्या समझ आया क्या नहीं वह तो वह ही जाने पर आखिर में रोहित ने कहा, "जीतूजी, फिलहाल तो आप बंदूक अपने पास ही रखिये। वक्त आने पर मैं इसे आप से ले लूंगा। अब मैं सबसे आगे चलता हूँ आप अपर्णा के पीछे पीछे चलिए।"
रोहित ने आगे पोजीशन ले ली, करीब ५० कदम पीछे अपर्णा और सबसे पीछे जीतूजी गन को हाथ में लेकर चल दिए। बारिश काफी तेज होने लगी थी। रास्ता चिकना और फिसलन वाला हो रहा था। तेज बारिश और अँधेरे के कारण रास्ता ठीक नजर नहीं आ रहा था। कई जगह रास्ता ऊबड़खाबड़ था। वास्तव में रास्ता था ही नहीं। रोहित नदीके किनारे थोड़ा अंदाज से थोड़ा ध्यान से देख कर चल रहे थे। नदीमें पानी काफी उफान पर था। कभी तो नदी एकदम करीब होती थी, कभी रास्ता थोड़ी दूर चला जाता था तो कई बार उनको कंदरा के ऊपर से चलना पड़ता था, जहां ऐसा लगता था जैसे नदी एकदम पाँव तले हो।
उनको चलते चलते करीब एक घंटे से ज्यादा हो गया होगा। वह काफी आगे निकल चुके थे। रोहित काफी थकान महसूस कर रहे थे। चलने में काफी दिक्कत हो रही थी। ऐसे ही चलते चलते रोहित एक नदी के बिलकुल ऊपर एक कंदरा के ऊपर से गुजर रहे थे। रोहित आगे निकल गए, पर अपर्णा का पाँव फिसला क्यूंकि अपर्णा के पाँव के निचे की मिटटी नदी के बहाव में धँस गयी और देखते ही देखते अपर्णा को जैसे जमीन निगल गयी। पीछे आ रहे जीतूजी ने देखा की अपर्णा के पाँव के निचे से जमीन धँस गयी थी और अपर्णा नदी के बहावमें काफी निचे जा गिरी। गिरते गिरते अपर्णा के मुंह से जोरों की चीख निकल गयी, "जीतूजी बचाओ.......... जीतूजी बचाओ........." जोर जोर से चिल्लाने लगी, और कुछ ही देर में देखते ही देखते पानी के बहाव में अपर्णा गायब हो गयी।" उसी समय जीतूजीने जोरसे चिल्लाकर अपर्णा को कहा, "अपर्णा, डरना मत, मैं तुम्हारे पीछे आ रहा हूँ।"
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यह कह कर उन्होंने रोहित की और बंदूक फेंकी और जोर से चिल्लाते हुए रोहित से कहा, "आप इसे सम्हालो, आप बिलकुल चिंता मत करो मैं अपर्णा को बचा कर ले आऊंगा। आप तेजी से आगे बढ़ो और नदी के किनारे किनारे पेड़ के पीछे छुपते छुपाते आगे बढ़ते रहो और सरहद पार कर कैंप में पहुंचो। भगवान् ने चाहा तो मैं आपको अपर्णा के साथ कैंप में मिलूंगा।" ऐसा कह कर जीतूजी ने ऊपर से छलाँग लगाई और निचे नदी के पुरजोर बहाव में कूद पड़े। रोहित को पानी में जीतूजी के गिरने की आवाज सुनाई दी और फिर नदी के बहाव के शोर के कारण और कुछ नहीं सुनाई दिया।
रोहितका सर इतनी तेजीसे हो रहे सारे घटनाचक्र के कारण चकरा रहा था। वह समझ नहीं पा रहे थे की अचानक यह क्या हो रहा था? एक सेकंड में ही कैसे बाजी पलट जाती है। जिंदगी और मौत कैसे हमारे साथ खेल खेलते हैं? क्या हम कह सकते हैं की अगले पल क्या होगा? जिंदगी के यह उतार चढ़ाव "कभी ख़ुशी, कभी गम" और "कल हो ना हो" जैसे लग रहे थे। वह थोड़ी देर स्तब्ध से वहीँ खड़े रहे। फिर उनको जीतूजी की सिख याद आयी की उन्हें फुर्ती से बिना समय गँवाये आगे बढ़ना था। रोहित की सारी थकान गायब हो गयी और लगभग दौड़ते हुए वह आगे की और अग्रसर हुए। जहां तक हो सके वह नदी के किनारे पेड़ों और जंगल के रास्ते ही चल रहे थे जिससे उन्हें आसानी से देखा ना जा सके। अँधेरा छटने तक रास्ता तय करना होगा। सुबह होने पर शायद उन्हें कहीं छुपना भी पड़े।
जीतूजी ऊपर पहाड़ी से सीधे पानी में कूद पड़े। पानी का तेज बहाव के उपरांत पानी में कई जगह पानी में चक्रवात (माने भँवर) भी थे जिसमें अगर फ़ँस गए तो किसी नौसिखिये के लिए तो वह मौत का कुआं ही साबित हो सकता था। ऐसे भँवर में तो अच्छे अच्छे तैराक भी फँस सकते थे। इनसे बचते हुए जीतूजी आगे तैर रहे थे। किस्मत से पानी का बहाव उनके पक्षमें था। माने उनको तैरने के लिए कोई मशक्कत करने की जरुरत नहीं थी। पर उन्हें अपर्णा को बचाना था। वह दूर दूर तक नजर दौड़ा कर अपर्णा को ढूंढ ने लगे। पर उनको अपर्णा कहीं दिखाई नहीं दे रही थी। एक तो अँधेरा ऊपर से पानी का बहाव पुर जोश में था। अपर्णा के फिसलने और जीतूजी के कूदने के बिच जो दो मिनट का फासला रहा उसमें नदी के बहाव में पता नहीं अपर्णा कितना आगे बह के निकल गयी होगी। जीतूजी को यह डर था की अपर्णा को तैरना तो आता नहीं था तो फिर वह अपने आपको कैसे बच पाएगी उसकी चिंता उन्हें खाये जा रही थी। जीतूजी ने जोर से पानी में आगे की और तैरना चालु रखा साथ साथ में यह देखते भी रहे की पानी के बहाव में अपर्णा कहीं किनारे की और तो नहीं चली गयी? पानी का बहाव जितना जीतूजी को आगे अपर्णा के करीब ले जा रहा था उतना ही अपर्णा को भी तेजी से जीतूजी से दूर ले जा रहा था। अपर्णा ने जीतूजी के चिल्लाने की और उसे बचाने के लिए वह आ रहे हैं, यह कहते हुए उन की आवाज सुनी थी। पर उसे यकीन नहींथा की नदी का इतना भयावह रूप देख कर वह अपनी जान इस तरह जोखिम में डालेंगे।
थोड़ी दूर निकल जाने के बाद नदी के तेज बहाव में बहते हुए अपर्णा ने जब पीछे की और अपना सर घुमा के देखा तो अँधेरे में ही जीतूजी की परछाईं नदी में कूदते हुए देखि। उसे पूरा भरोसा नहींथा की जीतूजी उसके पीछे कूदेंगे। इतने तेज पानी के बहाव में कूदना मौत के मुंह में जाने के जैसा था। पर जब अपर्णा ने देखा की जीतूजी ने अपनी जान की परवाह नाकर उसे बचाने के लिए इतने पुरजोश बहाव में पागल की तरह बहती नदी में कूद पड़े तो अपर्णा के ह्रदय में क्या भाव हुए वह वर्णन करना असंभव था। उस हालात में अपर्णा को अपने पति से भी उम्मीद नहीं थी की वह उसे बचाने के लिए ऐसे कूद पड़ेंगे। अपर्णा को तब लगा की उसे जितना अपने पति पर भरोसा नहीं था उतना जीतूजी के प्रति था। उसे पूरा भरोसा हो गया की जीतूजी उसे जरूर बचा लेंगे। वह जानती थी की जीतूजी कितने दक्ष तैराक थे। अपर्णा का सारा डर जाता रहा। उसका दिमाग जो एक तरहसे अपनी जान बचाने के लिए त्रस्त था, परेशान था; अब वह अपनी जान के खतरे से निश्चिन्त हो गया।
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अब वह ठंडे दिमाग से सोचनी लगी की जो ख़तरा सामने है उससे कैसे छुटकारा पाया जाये और कैसे जीतूजी के करीब जाया जाये ताकि जीतूजी उसे उस तेज बहाव से उसे बाहर निकाल सकें। अब सवाल यह था की इतने तेज बहाव में कैसे अपने बहने की गति कम की जाए ताकि जीतूजी के करीब पहुंचा जासके। अपर्णा जानती थी की उसे ना तो तैराकी आती थी नाही उसके अंदर इतनी क्षमता थी की पानी के बहाव के विरूद्ध वह तैर सके।
उसे अपने आप को डूबनेसे भी बचाना था। उसके लिए एक ही रास्ता था। जो जीतूजी ने उसे उस दिन झरने में तैरने के समय सिखाया था। वह यह की अपने आपको पानी पर खुला छोड़ दो और डूबने का डर बिलकुल मन में ना रहे। अपर्णा ने तैरने की कोशिश ना करके अपने बदन को पानी में खुल्ला छोड़ दिया और जैसे पानी की सतह पर सीधा सो गयी जैसे मुर्दा सोता है। पानी का बहाव उसे स्वयं अपने साथ खींचे जा रहा था। अब उसकी प्राथमिकता थी की अपनी गति को कम करे अथवा कहीं रुक जाए। अपने बलबूते पर तो अपर्णा यह कर नहीं सकती थी। कहावत है ना की "हिम्मते मर्दा तो मददे खुदा।" यानी अगर आप हिम्मत करेंगे तो खुदा भी आपकी मदद करेगा। उसी समय उसको दूर एक पेड़ जैसा दिखाई दिया जो नदी में डूबा हुआ था पर नदी के साथ बह नहीं रहा था। इसका मतलब यह हुआ की पेड़ जमीन में गड़ा हुआ था और अगर अपर्णा उस पेड़ के पास पहुँच पायी तो उसे पकड़ कर वह वहाँ थम सकती है जिससे जीतूजी जो पीछे से बहते हुए आ रहे थे वह उसे मिल पाएंगे। अपर्णा ने अपने आपको पेड़ की सीध में लिया ताकि कोशिश ना करने पर भी वह पेड़ के एकदम करीब जा पाए। उसे अपने आपको पेड़ से टकराने से बचाना भी था। बहते बहते अपर्णा पेड़ के पास पहुँच ही गयी। पेड़ से टकराने पर उसे काफी खरोंचें आयीं और उस चक्कर में उसके कपडे भी फट गए। पर ख़ास बात यह थी की अपर्णा अपनी गति रोक पायी और बहाव का मुकाबला करती हुई अपना स्थान कायम कर सकी। अपर्णा ने अपनी पूरी ताकत से पेड़ को जकड कर पकड़ रक्खा। अब सारा पानी तेजी से उसके पास से बहता हुआ जा रहा था। पर क्यूंकि उसने अपने आपको पेड़ की डालों के बिच में फाँस रक्खा था तो वह बह नहीं रही थी। अपर्णा ने कई डालियाँ, पौधे और कुछ लकड़ियां भी बहते हुए देखीं। पानी का तेज बहाव उसे बड़ी ताकत से खिंच रहा था पर वह टस की मस नहीं हो रही थी।
हालांकि उसके हाथ अब पानी के सख्त बहाव का अवरोध करते हुए कमजोर पड़ रहे थे। अपर्णा की हथेली छील रही थी और उसे तेज दर्द हो रहा था। फिर भी अपर्णा ने हिम्मत नहीं हारी। कुछ ही देर में अपर्णा को उसके नाम की पुकार सुनाई दी। जीतूजी जोर शोर से "अपर्णा..... अपर्णा.... तुम कहाँ हो?" की आवाज से चिल्ला रहे थे और इधर उधर देख रहे थे। अपर्णा को दूर जीतूजी का इधर उधर फैलता हुआ हाथ का साया दिखाई दिया। अपर्णा फ़ौरन जीतूजी के जवाब में जोर शोर से चिल्लाने लगी, "जीतूजी!! जीतूजी....... जीतूजी..... मैं यहां हूँ।" चिल्लाते चिल्लाते अपर्णा अपना हाथ ऊपर की और कर जोर से हिलाने लगी। अपर्णा को जबरदस्त राहत हुई जब जीतूजी ने जवाब दिया, "तुम वहीँ रहो। मैं वहीँ पहुंचता हूँ। वहाँ से मत हिलना।"
पर होनी भी अपना खेल खेल रही थी। जैसे ही अपर्णा ने अपने हाथ हिलाने के लिए ऊपर किये और जीतूजी का ध्यान आकर्षित करने के लिए हिलाये की पेड़ की डाल उसके हाथ से छूट गयी और देखते ही देखते वह पानी के तेज बहाव में फिर से बहने लगी। जीतूजी ने भी देखा की अपर्णा फिर से बहाव में बहने लगी थी। उन्हें कुछ निराशा जरूर हुई पर चूँकि अब अपर्णा को उन्होंने देख लिया था तो उनमें एक नया जोश और उत्साह पैदा हो गया था की जरूर वह अपर्णा को बचा पाएंगे। उन्होंने अपने तैरने की गति और तेज कर दी। अपर्णा और उनके बिच का फासला कम हो रहा था क्यूंकि अपर्णा बहाव के सामने तैरने की कोशिश कर रही थी और जीतूजी बहाव के साथ साथ जोर से तैरने की। देखते ही देखते जीतूजी अपर्णा के पास पहुंचे ही थे की अचानक अपर्णा एक भँवर में जा पहुंची और उस के चक्कर में फँस गयी। जीतूजीने देखा की अपर्णा पानी के अंदर रुक गयी पर एक ही जगह भँवर के कारण गोल गोल घूम रही थी। पानी में खतरनाक भँवर हो रहे थे। उस भँवर में फंसना मतलब अच्छे खासे तैराक के लिए भी जानका खतरा हो सकता था।
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अगर उन्होंने अपर्णा को फ़ौरन पकड़ा नहीं और अपर्णा पानी के भँवर में बिच की और चली गयी तो सीधी ही अंदर चली जायेगी और दम घुटने से और ज्यादा पानी पीने से उसकी जान भी जा सकती थी। पर दूसरी तरफ एक और खतरा भी था। अगर वह अंदर चले गए तो उनकी जान को भी कोई कम ख़तरा नहीं था। एक बार भँवर में फँसने का मतलब उनके लिए भी जान जोखिम में डालना था। पर जीतूजी उस समय अपनी जान से ज्यादा अपर्णा की जान की चिंता में थे। बिना सोचे समझे जीतूजी भँवर के पास पहुँच गए और तेजी से तैरते हुए सुनिता का हाथ इन्होने थाम लिया। जैसे ही अपर्णा भँवर में फँसी तो उसने अपने बचने की आशा खो दी थी। उसे पता था की इतने तेज भंवर में जाने की हिम्मत जीतूजी भी नहीं कर पाएंगे। किसी के लिए भी इतने तेज भँवर में फँसना मतलब जान से हाथ धोने के बराबर था। पर जब जीतूजी ने अपर्णा का हाथ अपने हाथ में थामा तो अपर्णा के आश्चर्य का ठिकाना ना रहा। "यह कैसा पागल आदमी है? अपर्णा को बचाने के लिए अपने जान की भी परवाह नहीं उसे?" अपर्णा हैरान रह गयी। उसे कोई उम्मीद नहीं थी और नाही वह चाहती थी की जीतूजी अपनी जान खतरे में डाल कर उसे बचाये।
पर जीतूजी ने अपर्णा का ना सिर्फ हाथ पकड़ा बल्कि आगे तैर कर अपर्णा को अपनी बाँहों में भर लिया और कस के अपर्णा को अपनी छाती से ऐसे लगा लिया जैसे वह कोई दो बदन नहीं एक ही बदन हों। अपर्णा ने भी अपना जान बचाने के चक्कर में जीतूजी को कस कर पकड़ लिया और अपनी दोनों बाजुओं से उनसे कस के लिपट गयी। भँवर बड़ा तेज था। जीतूजी इतने एक्सपर्ट तैराक होने के बावजूद उस भँवर में से निकलने में नाकाम साबित हो रहे थे। ऊपर से बारिश एकदम तेज हो गयी थी। पानी का बहाव तेज होने के कारण भँवर काफी तेजी से घूम रहा था। जीतूजी और अपर्णा भी उस तेज भँवर में तेजी से घूम रहे थे। घूमते घूमते वह दोनों धीरे धीरे भँवर के केंद्र बिंदु (जिसे भँवर की आँख कहते हैं) की और जा रहे थे। वह सबसे खतरनाक खाई जैसी जगह थी जिस के पास पहुँचते ही जो भी चीज़ वहाँ तक पहुँचती थी वह समुन्दर की गोद में गायब हो जाती थी। भंवर काफी गहरा होता है। २० फ़ीट से लेकर १०० फ़ीट से भी ज्यादा का हो सकता है।
जीतूजी का सर चक्कर खा रहा था। भँवर इतनी तेजी से घूमर घूम रहा था की किसी भी चीज़ पर फोकस कर रखना नामुमकिन था। जीतूजी फिर भी अपना दिमाग केंद्रित कर वहाँ से छूटने में बारे में सोच रहे थे। अपर्णा अपनी आँखें बंद कर जो जीतूजी करेंगे और जो भगवान् को मंजूर होगा वही होगा यह सोचकर जीतूजी से चिपकी हुई थी। थकान और घबराहट के कारण अपर्णा जीतूजी से करीब करीब बेहोशी की हालात में चिपकी हुई थी। तब अचानक जीतूजी को एक विचार आया जो उन्होंने कहीं पढ़ा था। उन्होंने अपर्णा को अपने से अलग करने के लिए उसके हाथ हटाए और अपने बदन से उसे दूर किया। अपर्णा को कस के पकड़ रखने के उपरांत उन्होंने अपर्णा और अपने बदन के बिच में कुछ अंतर रखा, जिससे भँवर के अंदर काफी अवरोध पैदा हो। एक वैज्ञानिक सिद्धांत के मुताबिक़ अगर कोई वस्तु अपकेंद्रित याने केंद्र त्यागी (सेन्ट्री-फ्यूगल) गति चक्र में फंसी हो और उसमें और अवरोध पैदा किया जाये तो वह उस वस्तु को केंद्र से बाहर फेंकने को कोशिश करेगी। अपर्णा को अलग कर फिर भी उसे कस के पकड़ रखने से पैदा हुए अतिरिक्त अवरोध के कारण दोनों जीतूजी और अपर्णा भँवर से बाहर की और फेंक दिए गए।
जीतूजी ने फ़ौरन ख़ुशी के मारे अपर्णा को कस कर छाती और गले लगाया और अपर्णा को कहा, "शुक्र है, हम लोग भँवर से बाहर निकल पाए। आज तो हम दोनों का अंतिम समय एकदम करीब ही था। अब जब तक हम पानी के बाहर निकल नहीं जाते बस तुम बस मुझसे चिपकी रहो और बाकी सब मुझ पर छोड़ दो। मुझे पूरा भरोसा है की हमें भगवान् जरूर बचाएंगे।" अपर्णा ने और कस कर लिपट कर जीतूजी से कहा, "मेरे भगवान् तो आप ही हैं। मुझे भगवान् पर जितना भरोसा है उतना ही आप पर भरोसा है। अब तो मैं आपसे चिपकी ही रहूंगी। आज अगर मैं मर भी जाती तो मुझे कोई अफ़सोस नहीं होता क्यूंकि मैं आपकी बाँहों में मरती। पर जब बचाने वाले आप हों तो मुझे मौत से कोई भी डर नहीं।
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पानी के तेज बहावमें बहते बहते भी अपर्णा जीतूजी से ऐसे लिपट गयी जैसे सालों से कोई बेल एक पेड़ से लिपट रही हो। अपर्णा को यह चिंता नहीं थी की उसका कौनसा अंग जीतूजी के कौनसे अंगसे रगड़ रहाथा। उसके शरीर पर से कपडे फट चुके थे उसका भी उसे कोई ध्यान नहीं था। अपर्णा का टॉप और ब्रा तक फट चूका था। वह जीतूजी के गीले बदन से लिपट कर इतनी अद्भुत सुरक्षा महसूस कर रही थी जितनी उसने शायद ही पहले महसूस की होगी। भँवर में से निकल ने के बाद जीतूजी अब काफी कुछ सम्हल गए थे। अब उनका ध्येय था की कैसे पानी की बहाव का साथ लिए धीरे धीरे कोशिश कर के किनारे की और बढ़ा जाए।
उन्होंने अपर्णा के सर में चुम्बन कर के कहा, "अपर्णा अब तुम मुझे छोड़ कर पानी में तैर कर बह कर किनारे की और जाने की कोशिश करो। मैं तुम्हारे साथ ही हूँ और तुम्हारी मदद करूंगा।" पर अपर्णा कहाँ मानने वाली थी? अपर्णा को अब कोई तरह की चिंता नहीं थी। अपर्णा ने कहा, "अब इस मुसीबत से आप अपना पिंड नहीं छुड़ा सकते। अब मैं आपको छोड़ने वाली नहीं हूँ। वैसे भी मुझमें तैरने की हिम्मत और ताकत नहीं है। अब आपको किनारे ले जाना है तो ले जाओ और डुबाना है तो डुबाओ।" इतना बोल कर अपर्णा जीतूजी के बदन से लिपटी हुई ही बेहोश हो गयी। अपर्णा काफी थकी हुई थी और उसने काफी पानी भी पी लिया था। जीतूजी धीरे धीरे अपर्णा को अपने बदन से चिपकाए हुए पानी को काटते हुए कम गहराई वाले पानी में पहुँचने लगे और फिर तैरते, हाथ पाँव मारते हुए गिरते सम्हलते कैसे भी किनारे पहुँच ही गए। किनारे पहुँचते ही जीतूजी अपर्णा के साथ ही गीली मिटटी में ही धड़ाम से गिर पड़े। अपर्णा बेहोशी की हालत में थी। जीतूजी भी काफी थके हुए थे। वह भी थकान के मारे गिर पड़े। अपर्णा ने बेहोशी की हालत में भी जीतूजी का बदन कस के जकड रखा था और किनारे पर भी वह जीतूजी के साथ ऐसे चिपकी हुई थी जैसे किसी गोंद से उसे जीतू जी से चिपका दिया गया हो। दोनों एक दूसरे से के बाजू में एकदूसरे से लिपटे हुए भारी बारिश में लेटे हुए थे।
उस समय उन दोनों में से किसी को यह चिंता नहीं थी की उनके बदन के ऊपर कौनसा कपड़ा था या नहीं था। बल्कि उन्हें यह भी चिंता नहीं थी की कई रेंगते हुए कीड़े मकोड़े उनको बदन को काट सकते थे। जीतूजी ने बेहोश अपर्णा को धीरे से अपने से अलग किया। उन्होंने देखा की अपर्णा काफी पानी पी चुकी थी। जीतूजी ने पानी में से निकलने के बाद पहली बार अपर्णा के पुरे बदन को नदी के किनारे पर बेफाम लेटे हुए देखा। अपर्णा का स्कर्ट करीब करीब फट गया था और उसकी जाँघें पूरी तरह से नंगी दिख रही थी। अपर्णा की छोटी से पैंटी उसकी चूत के उभार को छुपाये हुए थी। अपर्णा का टॉप पूरा फट गया था और अपर्णाकी छाती पर बिखरा हुआ था। उसकी ब्रा को कोई अतापता नहीं था। अपर्णाके मदमस्त स्तन पूरी तरह आज़ाद फुले हुए हलके हलके झोले खा रहे थे। पर जीतूजी को यह सब से ज्यादा चिंता थी अपर्णा के हालात की। उन्होंने फ़ौरन अपर्णा के बदन को अपनी दो जाँघों के बिच में लिया और वह अपर्णा के ऊपर चढ़ गए। दूर से देखने वाला तो यह ही सोचता की जीतूजी अपर्णा को चोदने के लिए उसके ऊपर चढ़े हुए थे। अपर्णा का हाल भी तो ऐसा ही था। वह लगभग नंगी लेटी हुई थी। उसके बदन पर उसकी चूत को छिपाने वाला पैंटी का एक फटा हुआ टुकड़ा ही था और फटा हुआ टॉप इधरउधर बदन पर फैला हुआ था जिसे जीतूजी चाहते तो आसानी से हटा कर फेंक सकते थे।
जीतूजी ने अपर्णा के बूब्स के ऊपर अपने दोनों हाथलियाँ टिकायीं और अपने पुरे बदन का वजन देकर दोनों ही बूब्स को जोर से दबाते हुए पानी निकालने की कोशिश शुरू की। पहले वह बूब्स को ऊपर से वजन देकर दबाते और फिर उसे छोड़ देते। तीन चार बार ऐसा करने पर एकदम अपर्णा ने जोर से खांसी खाते हुए काफी पानी उगल ना शुरू किया। पानी उगल ने के बाद अपर्णा फिर बेहोश हो गयी।
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जीतूजी ने जब देखा की अपर्णा फिर बेहोश हो गयी तो वह घबड़ाये। उन्होंने अपर्णा की छाती पर अपने कान रखे तो उन्हें लगा की शायद अपर्णा की साँस रुक गयी थी। जीतूजी ने फ़ौरन अपर्णा को कृत्रिम साँस (आर्टिफिशल रेस्पिरेशन) देना शुरू किया। जीतू जी ने अपना मुंह अपर्णा के मुंह पर सटा लिया और उसे अपने मुंह से अपनी स्वास उसे देने की कोशिश की। अचानक जीतूजी ने महसूस किया की अपर्णा ने अपनी बाँहें उठाकर जीतूजी का सर अपने हाथों में पकड़ा और जीतूजी के होँठों को अपने होँठों पर कस के दबा कर जीतूजी के होँठों को चूसने लगी।
जीतूजी समझ गए की अपर्णा पूरी तरह से होश में आ गयी थी और अब वह कुछ रोमांटिक मूड में थी। जीतूजी ने अपना मुँह हटा ने की कोशिश की और बोले, "छोडो, यह क्या कर रही हो?" तब अपर्णा ने कहा, "अब तो मैं कुछ भी नहीं कर रही हूँ। मैं क्या कर सकती हूँ तुम अब देखना।"
उधर....
रोहित की आँखों के सामने कितने समय के बाद भी अपर्णा के फिसल कर नदी में गिर जाने का और जीतूजी के छलाँग लगा कर नदी में कूदने का ने का दृश्य चलचित्र की तरह बार बार आ रहा था। उन्हें बड़ा ही अफ़सोस हो रहा था की उनमें उतना आत्मविश्वास या यूँ कहिये की साहस नहीं था की वह अपनी जान जोखिममें डालकर अपनी बीबी को बचाएं। वह अपने आपको कोस रहे थे की जो वह नहीं कर सके वह जीतूजी ने किया। रोहित ने मन ही मन तय किया की अगर मौक़ा मिला तो वह भी अपनी जान जोखिम में डाल कर अपने अजीज़ को बचाने से चूकेंगे नहीं। आखिर देश की आजादी के लिए कुरबानियां देनी ही पड़तीं हैं। अब आगे अंजाम क्या होगा: अपर्णा ज़िंदा बचती है या नहीं, जीतूजी अपर्णा को बचा पाते हैं या नहीं और क्या जीतूजी खुद बच पाते हौं या नहीं यह तो वक्त ही बताएगा। अब रोहित को तो सिर्फ अपने आप को बचाना था। अचानक ही तीन में से दो लोग जाते रहे। उन्हें ना तो रास्ते का पता था और ना तो कौनसी दिशा में जाना है उसका पता था। जीतूजी के बताये हुए निर्देश पर ही उन्होंने चलना ठीक समझा। रोहित ने अपनी आगे बढ़ने की गति और तेज कर दी। उन्हें सम्हाल के भी चलना था क्यूंकि उन्होंने देखा था की नदी के एकदम करीब चलने में बड़ा ही खतरा था। रोहित की चाल दौड़ में बदल गयी। अब उन्हें बचाने वाले जीतूजी नहीं थे। अब जो भी करना था उन्हें ही करना था। साथ में उनके पास गन भी थी।
अँधेरे में पेड़ों को ढूंढते हुए गिरते लुढ़कते पर जितना तेज चल सके उतनी तेजी से वह आगे बढ़ रहे थे। रास्ते में कई पत्थर और कीचड़ उनकी गति को धीमी कर देते थे। पर वह चलते रहे चलते रहे। उन्हें कोई दर्द की परवाह नहीं करनी थी, क्यूंकि अगर दुश्मनों ने उनको पकड़ लिया तो उन्हें मालुम था की जो दर्द वह देंगे उसके सामने यह दर्द तो कुछ भी नहीं था। एक तरीके से देखा जाए तो अपर्णा और जीतूजी नदी के तूफ़ान में जरूर फँसे हुए थे पर कमसे कम दुश्मनोंकी फ़ौज से पकडे जाने का डरतो उन्हें नहीं था। ऐसी कई चीज़ों को सोचते हुए अपनी पूरी ताकत से रोहित आगे बढ़ते रहे। चलते चलते करीब चार घंटे से ज्यादा वक्त हो चुका था। सुबह के चार बजने वाले होंगे, ऐसा अनुमान रोहित ने लगाया। रोहित की हिम्मत जवाब देने लगी थी। उनकी ताकत कम होने लगी थी। अब वह चल नहीं रहे थे उनका आत्मबल ही उन्हें चला रहा था। उनको यह होश नहीं था की वह कौनसे रास्ते पर कैसे चल रहे थे। अचानक उन्होंने दूर क्षितिज में बन्दुक की गोलियों की फायरिंग की आवाज सुनी। उन्होंने ध्यान से देखा तो काफी दुरी पर आग की लपटें उठी हुई थी और काफी धुआं आसमान में देखा जा रहा था। साथ ही साथ में दूर से लोगों की दर्दनाक चीखें और कराहट की आवाज भी हल्की फुलकी सुनाईदे रही थी।
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रोहित घबड़ा गए। उन्हें लगा की शायद उनका पीछा करते करते दुश्मन के सिपाही उनके करीब आ चुके हैं। रोहित को जल्दी से कहीं ऐसी जगह छुपना था जहां से उनको आसानी से देखा नहीं जा सके। रोहित ने डरके मारे चारों और देखा। नदी के किनारे थोड़ी दूर एक छोटीसी पहाड़ी और उसके निचे घना जंगल उनको दिखाई पड़ा। वह फ़ौरन उसके पास पहुँचने के लिए भागे। अन्धेरा छट रहा था। सूरज अभी उगने में समय था पर सूरज की लालिमा उभर रही थी। रोहित को अपने आपको दुश्मन की निगाहों से बचाना था। वह भागते हुए नजरे बचाते छिपते छिपाते पहाड़ी के निचे जा पहुंचे। झाड़ियों में छुपते हुए ताकि अगर दुश्मन का कोई सिपाही उस तरफ हो तो उन्हें देख ना सके, बड़ी सावधानी से आवाज किये बिना वह छुपने की जगह ढूंढने लगे। अचानक उन्हें लगा की शायद थोड़ी ऊपर एक गुफा जैसा उन्हें दिखा। वह गुफा काफी करीब जाने पर ही दिखाई दी थी। दूर से वह गुफा नजर नहीं आती थी। रोहित फ़ौरन उस चट्टान पर जैसे तैसे चढ़ कर गुफा के करीब पहुंचे। एरिया में गुफा लगभग एक बड़े हॉल के जितनी थी। उन्हें लगा की शायद वहाँ कोई रहता होगा, क्यूंकि गुफा में दो फटे हुए गद्दे रखे थे, एक पानी का मटका था, कुछ मिटटी के और एल्युमीनियम के बर्तन थेऔर एक कोने में एक चूल्हा और कुछ राख थी जिससे यह लगता था जैसे किसने वहाँ कुछ खाना पकाया होगा।
रोहित चुपचाप गुफा में घुस गए और बहार एक घांसफूस का लकड़ी और रस्सी से बंधा दरवाजे जैसा था (वह एक घाँस और लकड़ी की फट्टियों का बना आवरण जैसा हीथा, दरवाजा नहीं) उससे गुफा को ढक दिया ताकि किसी को शक ना हो की वहाँ कोई गुफा भी थी। रोहित थकान से पस्त हो गए थे। उनमें कुछ भी करने की हिम्मत और ताकत नहीं बची थी। खुद को बचाने के लिए जो कुछ वह कर सकते थे उन्होंने किया था अब बाकी उपरवाले के भरोसे छोड़ कर वह एक गद्दे पर लम्बे हुए और लेटते ही उनकी आँख लग गयी। उन्हें पता नहीं लगा की कितनी देर हो गयी पर अचानक उनको किसीने झकझोर कर जगाया। उनके कान में काफी दर्द हो रहा था। चौंक कर रोहित ने जब अपनी आँख खोली तो देखा की एक औरत फटे हुए कपड़ों में उनकी ही बंदूक अपने हाथों में लिए हुए उनके सर का निशाना बना कर खड़ी थी और उन्हें बंदूक के एक सिरे से दबा कर जगा रही थी। उस हालात में ना चाहते हुए भी उनकी नजर उस औरत के बदन पर घूमने लगी। हालांकि उस औरत के कपडे फटे हुए और गंदे थे, उस औरत की जवानी और बदन की कामुकता गजब की थी। उसकी फटी हुई कमीज में से उसके उन्मत्त स्तनोँ का उभार छुप नहीं पा रहा था। औरत काफी लम्बे कद की और पतली कमर वाली करीब २६ से २८ साल की होगी।
रोहित ने देखा तो उस औरत ने एक कटार जैसा बड़ा एक चाक़ू अपनी कमर में एक कपडे से लपेट रखा था। उसके पाँव फटे हुए सलवार में से उसकी मस्त सुडौल जाँघे दिख रहीं थीं। शायद उस औरत की चूत और उस कपडे में ज्यादाअंतर नहीं था। उसकी आँखें तेज और नशीली लग रही थीं। अचानक बंदूक का धक्का खाने के कारण रोहित गिर पड़े। वह औरत उन्हें बन्दुक से धक्का मारकर पूछ रही थी, " क्या देख रहा है साले? पहले कोई औरत देखि नहीं क्या? तुम कौन हो बे? यहां कैसे आ पहुंचे? सच सच बोलो वरना तुम्हारी ही बंदूक से तुम्हें भून दूंगी।" उस औरत के कमसिन बदन का मुआइना करने में खोये हुए रोहित बंदूक का झटका लगते ही रोहित वापस जमीन पर लौट आये।
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उन्हें पता नहीं था यह औरत कौन थी। वह आर्मी वाली तो नहीं लग रहीथी क्यूंकि नातो उसने कोई यूनिफार्म पहना था और ना ही उसके पास अपनी कोई बंदूक थी। ना ही उसने अपने कपडे ढंग से पहने हुए थे। पर औरत थी कमालकी खूबसूरत। उसके बदन की कामुकता देखते ही बनती थी। उस औरत ने सोते हुए रोहित की ही बंदूक उनकी कानपट्टी पर दाग रक्खी थी। रोहित को ऐसा लग रहा था जैसे वह औरत भी कुछ डरी हुई और तनाव में थी। रोहित ने डरते हुए अपने दोनों हाथ ऊपर उठाते हुए कहा, "मैं यहां के सिपाहियों की जेल से भगा हुआ कैदी हूँ। मेरे पीछे यहां की सेना के कुछ सिपाही पड़े हैं। पता नहीं क्यों?" रोहित की बात सुनकर रोहित को लगा की शायद उस औरत ने हलकी सी चैन भरी साँस ली। बंदूक की नोक को थोड़ा निचे करते हुए उस औरत ने पूछा, "कमाल है? सिपाही पीछे पड़े है, और तुम्हें पता नहीं क्यों? सच बोल रहा है क्या? कहाँसे आयाहै तू?" रोहितने कहा, "हिंदुस्तानी हूँ मैं। हमें पकड़ कर यहां के सिपाहीयो ने हमें जेल में बंद कर दिया था। हम तीन थे। जेल से तो हम भाग निकले पर मेरे दो साथी नदी में बह गए। पता नहीं वह ज़िंदा हैं या नहीं। मैं बच गया और उन सिपाहियों से बचते छिपते हुए मैं यहां पहुंचा हूँ।"
रोहित ने देखा की उनकी बात सुनकर उस औरत कुछ सोच में पड़ गयी। शायद उसे पता नहीं था की रोहित की बात का विश्वास किया जाये या नहीं। कुछ सोचने के बाद उस औरत ने अपनी बन्दुक नीची की और बोली, "फिर यह बंदूक कहाँ से मिली तुमको?" रोहित ने राहत की एक गहरी साँस लेते हुए कहा, "यह उन में से एक सिपाही की थी। हम ने उसे मार दिया और उसकी बंदूक लेकर हम भागे थे। यह बंदूक उसकी है।" औरत ने रोहित की कानपट्टी पर से बंदूक हटा दी और बोली, "अच्छा? तो तुम भी उन कुत्तों से भागे हुए हो?" जैसे ही रोहित ने "भी" शब्द सुना तो वह काफी कुछ समझ गए। अपनी आवाज में हमदर्दी जताते हुए वह बोले, "क्या तुम भी उन सिपाहियों से भागी हो?" उस औरत ने बड़े ध्यान से रोहित की और देखा और बोली, "तुम्हें पता नहीं क्या यहाँ क्या हो रहा है?" रोहित ने अपने मुंडी नकारात्मक हुइलाते हुए कहा, "मुझे कैसे पता?" औरत ने कहा, "यह साले कुत्ते यहां की आर्मी के सिपाही, हमारी बस्तियों को लुटते हैं और हम औरतों को एक औरत को दस दस आदमी बलात्कार करते हैं और उनको चूंथने और रगड़ने के बाद उन्हें जंगल में फेंक देते हैं। मेरे पुरे कबीले को और मेरे घर को बर्बाद कर और जला कर वह मेरे पीछे पड़े थे। मैं भी तुम्हारी तरह एक सिपाही को उसी की बंदूक से मार कर भागी और करीब सात दिन से इस गुफा में छिपी हुई हूँ। मेरे पीछे भी वह भेड़िये पड़े हुए हैं। पर एक दो दिन से लगता है की हिंदुस्तान की आर्मी ने उनपर हमला बोला है तो शायद वह उनके साथ लड़ाई में फँसे हुए हैं।"
रोहित ने अपनी हमदर्दी जारी रखते हुए पूछा, "तुम इस गुफा में गुजारा कैसे करती हो? तुम्हारा गाँव कौनसा है और तुम्हारा नाम क्या है?" औरत ने कहा, "मेरा नाम आयेशा है। मैं यहां से करीब पंद्रह मील दूर एक गाँव में रहती थी। मेरे पुरे गाँव में साले कुत्तों ने एक रात को डाका डाला और मेरा घर जला डाला। मेरे अब्बू को मार दिया और दो सिपाहियों ने मुझे पकड़ा और मुझे घसीट कर मुझ पर बलात्कार करने के लिए तैयार हुए। तब मैंने उन्हें फंसा कर मीठी बातें कर के उनकी बंदूक ले ली और एक को तो वहीँ ठार मार दिया। दुसरा भाग गया। मैं फिर वहाँ से भाग निकली और भागते भागते यहां पहुंची और तबसे यहां उन से छिपकर रह रही हूँ। मैं खरगोश बगैरह जो मिलता है उसका शिकार कर खाती हूँ। एक रात मैं छिपकर नजदीक के गाँव में गयी तो वहाँ एक झौंपड़ी में कुछ बर्तन और गद्दे रक्खे हुए थे। झौंपड़ी वालोँ को उन गुंडों ने शायद मार दिया था। यह चुराकर मैं यहां ले आयी। "
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रोहित ने कहा, "हम दोनों की एक ही कहानी है। वह सिपाही हमारे पीछे भी पड़े हैं। मुझे यहां से मेरे मुल्क जाना है। मुझे पता नहीं कैसे जाना है, कौनसे रास्ते से। क्या तुम मेरी मदद करोगी?" आयेशा: "तुम अभी कहीं नहीं जा सकते। चारों और सिपाही पहरा दे रहे हैं। अभी पास वाले गाँव में कुछ सिपाही लोग कहर जता रहे हैं। काफी सिपाही इस नदी के इर्दगिर्द पता नहीं किसे ढूंढ रहे हैं। शायद तुम लोगों की तलाश जारी है। यहां से बाहर निकलना खतरे से खाली नहीं है। एकाध दो दिन यहां रहना पडेगा। यह जगह अब तक तो मेहफ़ूज़ है। पर पता नहीं कब कहाँ से कोई आ जाये। यह बंदूक तुम्हारे पास है वह अच्छा है। कभी भी इसकी जरुरत पड़ सकती है।" जब आयेशा यह बोल ही रही थी की उनको कुछ आदमियों की आवाज सुनाई दी। आयेशा ने अपने होँठों पर उंगली रख कर रोहित को चुप रहने का इशारा किया। धीरे से आयेशा ने गुफा के दरवाजे की आड़ में से देखा तो कुछ साफ़ साफ़ नजर नहीं आ रहा था। आयेशा ने दरवाजा कुछ हटा कर देखा और रोहित को अपने पीछे आने का इशारा किया। बंदूक आयेशा के हाथ में ही थी। आयेशा निशाना ताकने की पोजीशन में तैयार होकर धीरे से बाहर आयी और झुक कर इधर उधर देखने लगी।
गुफा के अंदर छुपे हुए रोहित ने देखा की एक सिपाही ने आयेशा को गुफा के बाहर निकलते हुए देख लिया था। पहले तो रोहित का बदन डर से काँप उठा। अगर उस सिपाही ने बाकी सिपाहियों को खबर कर दी तो उनका पकडे जाना तय था। रोहित ने तयकिया की जीतूजी ने उन्हें बंदूक दे कर और उसे चलाना सीखा कर उन्हें भी सिपाही बना दिया था। अब तो वह जंग में थे। जंग का एक मात्र उसूल यह ही था की यातो मारो या मरो। चट्टान पर रेंगते हुए वह चुचाप आगे बढे और आयेशा के पाँव को खिंच कर उसे बाजू में गिरा दिया। अपने होँठों पर उंगली डाल कर चुप रहने का इशारा कर उन्होंने आयेशा की कमर में लटके बड़े चाक़ू को निकाला और पीछे चट्टान पर रेंगते हुए चट्टान के निचे कूद पड़े। वह सिपाही आयेशा की और निशाना तान कर उसे गोली मारने की फिराक में ही था। पीछे से बड़ी ही सिफ़त से लपक कर उस सिपाही के गले में चाक़ू फिरा कर उसके गले को देखते ही देखते रेंट डाला। सिपाही के गले में से खून की धारा फव्वारे जैसी फुट पड़ी। वह कुछ बोल ही नहीं पाया। कुछ पलों तक उसका बदन तड़पता रहा और फिर शांत हो कर जमीन पर लुढ़क गया। । खून के कुछ धब्बे रोहित के की शर्ट पर भी पड़े। वैसे ही रोहित की कमीज इतनी गन्दी थी की वह धब्बे उनके कमीज पर लगे हुए कीचड़ और मिटटी में पता नहीं कहाँ गायब हो गए।
ऊपरसे देखरही आयेशा जो रोहितके अचानक धक्का मारने से गिरने के कारण गुस्से में थी, वह अचरज से रोहित के कारनामे को देखती ही रह गयी। रोहित ने उसे धक्का मार कर गिराया ना होता और उस सिपाही को उसकी कमरमें रखे हुए चाक़ू से मार दिया ना होता तो वह सिपाही आयेशा को जरूर गोली मार देता और बंदूक की गोली की आवाज से सारे सिपाही वहां पहुँच जाते। रोहित की चालाकी से ना सिर्फ आयेशा की जान बच गयी बल्कि सारे सिपहियों को उस गुफा का पता चल नहीं पाया जहां आयेशा और रोहित छुपे हुए थे। रोहित उस सिपाही की बॉडी घसीट कर उस पहाड़ी के पीछे ले गए जहां निचे काफी गहरी खायी और घने पेड़ पौधे थे। उस बॉडी को रोहित ने ऊपर से निचे उस खायी में फेंक दिया। वह लाश निचे घने जंगल के पेड़ पौधोंके बिच गिरकर गायब होगयी। रोहित जी के करतब को बड़ी ही आश्चर्य भरी नजरों से देख रही आयेशा रोहित के वापस आने पर गुफा में उन पर टूट पड़ी और उनसे लिपट कर बोली, "मुझे पता नहीं था तुम इतने बहादुर और जांबाज़ हो।" आयेशाका करारा बदन अपने बदन से लिपटा हुआ पाकर रोहित की हालत खराब हो गयी। उस बेहाल हाल में भी उनका काफी समय से बैठा हुआ लण्ड उनके पतलून में खड़ा हो गया।
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रोहित को लिपटते हुए आयेशा के दोनों भरे हुए अल्लड़ स्तन रोहित की बाजुओं को दबा रहे थे। आयेशा की चूत रोहित के लण्ड को जैसे चुनौती दे रहे थी। रोहित ने भी आयेशा को अपनी बाँहों में ले लिया और कांपते हुए हाथों से आयेशा के बदनके पिछवाड़े को सहलाने लगे। आयेशा ने अपने बदन को रोहित के बदन से रगड़ते हुए कहा, " मैं नहीं जानती आपका नाम क्या है। मैं यह भी नहीं जानती आप वाकई में है कौन और आप जो कह रहे हो वह सच है या नहीं। पर आपने मेरी जान बचाकर मुझे उन बदमाशों से बचाया है इसका शुक्रिया मैं कुछ भी दे कर अदा नहीं कर सकती। मैं जरूर आपकी पूरी मदद करुँगी और आपको उन भेड़ियों से बचाकर आपके मुल्क भेजने की भरसक कोशिश करुँगी, चाहे इसमें मेरी जान ही क्यों ना चली जाए। वैसे भी मेरी जान आपकी ही देन है।" मुश्किल से रोहित ने अपने आपको सम्हाला और आयेशा को अपने बदन से अलग करते हुए बोले, "आयेशा, इन सब बातों के लये पूरी रात पड़ी है। हमने उनके एक सिपाही को मार दिया है। हालांकि उसकी बॉडी उनको जल्दी नहीं मिलेगी पर चूँकि उनका एक सिपाही ना मिलने से वह बड़े सतर्क हो जाएंगे और उसे ढूंढने लग जाएंगे। हमें पुरे दिन बड़ी सावधानी से चौकन्ना रहना है और यहां से मौक़ा मिलते ही भाग निकलना है। पर हमें यहां तब तक रहना पडेगा जब तक वह सिपाहियों का घिराव यहां से हट ना जाए।"
रोहित ने सिपाही की बॉडी निचे गिराने पहले उसकी बंदूक ले ली थी। अब उनके पास दो बंदूकें हो गयीं। एक बंदूक आयेशा के पास थी अब एक और बंदूक सिपाही से हथिया ली। आयेशा काफी खुश नजर आ रही थी। पहली बार उसे महसूस हुआ की उसने ना सही, उसके साथीदार परदेसी (रोहित) ने उसके अब्बूकी कतल का बदला लिया था। आयेशा को सिपाही के मरने का कोई ग़म नहीं था। रोहित ने जब दुश्मन के सिपाही को मौत के घाट उतार दिया उस समय उनमें एक गज़ब का जोश और जूनून था। पर रोहित जब चट्टान से चढ़कर गुफा में घुसे तब उनका मन बहोत दुखी था। उनके लिए यह सोचना भी नामुमकिन था की कभी वह किसी आदमी को इतनी बेरहमी से मार भी सकते हैं। उनके मन में अपने आपके लिए एक धिक्कार सा भाव पैदा हुआ। उन्हें अपने आप पर नफरत हो गयी। जब वह गुफा में घुसे और जब आयेशा उनसे लिपट कर उन्हें किस करने लगी तो उनके मन में अजीब से तूफ़ान उमड़ रहे थे। रोहित को रोना आ रहा था। उनके लिए अपने जीवन का यह सबसे भयावह दिन था। जब कालिया को जीतूजी ने मार दिया था तो उन्हें बड़ा सदमा लगा था। पर उस समय वह काम जीतूजी ने किया था, उन्होंने नहीं। जब उस सिपाहीको स्वयं रोहितने अपने हाथों से मौतके घाट उतारा तो उन्हें लगा की उनमें एक अजीब सा परिवर्तन आया है। उन्होंने महसूस किया की वह एक खुनी थे और उन्होंने एक आदमी का क़त्ल किया था। हमें यह समझना चाहिए की जो सिपाही सरहद पर हमारे लिए जान की बाजी लगा कर लड़ते हैं, उन्हें भी मरना या किसी को मारना अच्छा नहीं लगता, जैसे की हमें अच्छा नहीं लगता। पर वह हमारे लिए और हमारे देश के लिए मरते हैंऔर मारते हैं। इसी लिए वह हमारे अति सम्मान और प्रशंशा के पात्र हैं।
रोहित के करतब को बड़ी ही आश्चर्य भरी नजरों से देख रही आयेशा रोहित के वापस आने पर गुफा में उन पर टूट पड़ी और उनसे लिपट कर बोली, "मुझे पता नहीं था तुम इतने बहादुर और जांबाज़ हो।" जब रोहित ने आयेशा को कहा की उनको सावधान रहने की जरुरत है, तब आयेशा ने कहा, "इस चट्टान के बिलकुल निचे एक छोटासा झरना है। मैं अक्सर वहाँ जा कर नहाती हूँ। वह गुफा में छिपा हुआ है। बाहर से कोई उसे देख नहीं सकता। तुम भी काफी थके हुए हो और तुम्हारे कपडे भी गंदे गए हैं। चलो मैं तुम्हें वह झरना दिखाती हूँ। तुम नहा लो और फिर दिन में थोड़ा आराम करो। मैं चौकीदारी करुँगी की कहीं कोई सिपाही इस तरफ आ तो नहीं रहा।" रोहित ने आयेशा की और देखा और मुस्कराये और बोले, "मोहतरमा! मेरे पास बदलने के लिए कोई कपडे नहीं है।"
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आयेशा ने शरारत भरे अंदाज में कहा, "कोई बात नहीं। तुम बगैर कपडे ही ऊपर आ जाना, मैं नहीं देखूंगी, बस!" ऐसा कह बिना रोहित के जवाब का इंतजार किये आयेशा ने रोहित का हाथ थामा और उन्हें खींच कर हलके कदमों से गुफा के पीछे निचे एक झरने के पास ले गयी।
वहाँ पहुँचते ही उसने धक्का मारकर रोहित को झरने में जब धकेला तो रोहित ने भी आयेशा को कस के पकड़ा और अपने साथ आयेशा को लेकर धड़ाम से झरने में गिर पड़े। आयेशा हंसती हुई रोहित स लिपट गयी और बोली, "परदेसी, तुम तो बड़े ही रोमांटिक भी हो यार!" रोहित ने आयेशा को भी जकड कर पकड़ा। उनका मन उस समय कई पारस्परिक विरोधी भावनाओं से पीड़ित था। विधि का विधान भी कैसा विचित्र है? एक दुश्मन के मुल्क की औरत उनकी सबसे बड़ी दोस्त और हितैषी बन गयी थी। उस समय के रोहित के मन के भावों की कल्पना करना भी मुश्किल था। वह सिपाही तो थे नहीं। उन्हें तो यही सिखाया गया था की "अहिंसा परमो धर्म।" अहिंसा ही परम धर्म है। सिपाही का खून और उसका मृत शरीर देख कर रोहित को उलटी जैसा होने लगा था। जैसे तैसे उन्होंने अपने आप पर नियत्रण रखा था। पर जब आयेशा ने उनकी बहादुरी की प्रशंशा की तो उनको रोना आ गया और वह फुट फुट कर रोने लगे। आयेशा रोहित के मनके भाव समझ रही थी। वह जानती थी की एक साधारण इंसान के लिए ऐसा खूनखराबा देखना कितना कठिन था। वह खुद भी तो उस नरसंहार के पहले एक आम औरत की तरह अपना जीवन बसर करना चाहती थी। पर विधाता ने उसे भी मरने मारने के लिए मजबूर कर दिया था और जब पहली बार उसने वह सिपाही को मार डाला था तब उसे भी ऐसे ही फीलिंग हुई थी।
आयेशा ने आगे बढ़कर रोहित को अपनी बाँहों में ले लिया हुए प्रगाढ़ आलिंगन करके (कस के जफ्फी लगा कर) रोहित के बालों में उंगलियां फिराते हुए बोली, "ओ परदेसी, मैं समझ सकती हूँ तुम्हारे मन में क्या हो रहा है। मैं भी तो इस दौर से गुजर चुकी हूँ। पर हम लड़ाई के माहौल में है। क्या करें, या तो हम उनके हाथों मारे जाएँ, या फिर उनको मार दें। यहां शान्ति और अमन के लिए जगह ही नहीं छोड़ी है उन्होंने। मेरी माँ को मार दिया, मेरे अब्बू को मार दिया और मेरी इज्जत लूटने पर आमादा हो गए थे वह।" आयेशा ने रोहित का सर अपनी छाती पर रख दिया। आयेशा का पूरा जवान गीला बदन, उसकी छाती पर उभरे हुए आयेशा के स्तन की नरमी रोहित के गालों को छू रही थी। आयेशा के बदन पर वैसे ही कम कपडे थे। जो थे वह गीले हो चुके थे और आयेशा के बदन को प्रदर्शित कर रहेथे। रोहित की आँखों के सामने आयेशा के स्तनों के उभार, आयेशा के बूब्स के बिच की खायी, यहां तक की उसकी निप्पलेँ भी दिख रहीं थीं। रोहित ने देखा की आयेशा भी शायद उनके शरीर के स्पर्श से उत्तेजित हो गयी थी और उसकी निप्पलेँ उत्तेजना के मारे फूल कर एकदम सख्त होरही थीं। आयेशाकी नशीली आँखें रोहितकी आँखों को एकटक निहार रही थीं। रोहित कीआँखों में सावन भादो की तरह पछतावे के आंसू बहे जा रहे थे। आयेशा अपने मदमस्त स्तनों से रोहित की आँखें बार बार पोंछ रही थी, और कहे जा रही थी, "बस परदेसी, काफी हो गया। मैं औरत हूँ। मैंने भी एक सिपाही को जान के घाट उतार दिया था। मुझे भी बहुत बुरा लगा था। पर मैं ऐसे नहीं रोई। तुम तो मर्द हो। बस भी करो।" ऐसा कह आयेशा ने अपने हाथ ऊपर कर अपनी कमीज उतार दी। रोहितने जब देखा की आयेशाने अपनी कमीज़ उतार दी और वह सिर्फ ब्रा में ही पानी में खड़ीथी, तो वह स्तब्ध हो गए। आयेशाकी कमीज काफी लम्बी थी और करीब करीब पुरे बदन को ढक रही थी। उसके हटने से आयेशा का पतला पेट और पतली छोटी सी कमर बिलकुल नंगी दिखाई दे रही थी। रोहित चुप हो गए। अब उनका ध्यान आयेशा की खिली हुई जवानी पर था। आयेशा की ब्रा उसके उभरे पूरी तरह फुले हुए स्तनोँ को बांध सकनेमें पूरी तरह नाकामियाब थी। पानीमें भीग जाने की वजहसे ब्रा भी आयेशा के स्तनोँ का गोरापन और फुलाव छिपा नहीं पा रही थी।
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आयेशा की ढूंटी खूबसूरत सी उसके पेट के निचे और चूत के उभार के ऊपर बड़ी ही खूबसूरत लग रही थी। आयेशा का सलवार फटा हुआ था। आयेशा की जाँघें फ़टे हुए सलवार में से दिख रहीं थीं। आयेशा के सुआकार कूल्हे उसकी सलवार के नियत्रण में नहीं थे। कमीज़ के निकलते ही उनकी खूबसूरती रोहित की आँखों को अपने ऊपर से हटने नहीं दे रहे थे। उस फ़टीसी सलवार में से भी आयेशा के दोनों मस्त कूल्हे और उसके बिच की दरार सलवार के पानी में गीला होने पर आयेशा की गाँड़ के दर्शन करा रहे थे। आयेशा की गाँड़ के बिच की दरार देख कर रोहित का मन विचलित होने लगा था। उनका लण्ड उस दरार के बिच अपनी जगह बनाने के लिए लालायित हो उठा। रोहित की फ़टी हुई आँखों पर ध्यान ना देते हुए आयशा ने झुक कर अपनी कमीज़ झरने के पानी में धोयी और उसे निचोड़ कर एक पत्थर रख दी। फिर बड़ी ही अदा से उसने अपनी सलवार निकालदी। अब आयेशा सिर्फ एक ब्रा और पैंटी में ही थी। सलवार को भी उसने अच्छी तरह धोया और निचोड़ कर उसी पत्थर पर रख दिया।
रोहित की आँखों के सामने अब आयेशा करीब करीब नंगी खड़ी थी। रोहित आयेशा की जाँघों का कमल की नाल जैसा आकार देख कर देखते ही रह गए। उन्होंने विधाता की एक बड़ी ही खूबसूरत रचना अपने सामने साकार नग्न रूप में देखि। कहीं भी कोई कमी उस रचना में नहीं थी। मन ही मन रोहित सोचने लगे की भगवान् ने औरत को कितना खूबसूरत बनाया है। और उसमें भी उनकी इस रचना एकदम लाजवाब थी। आयेशा की दोनों जाँघों के बिच स्थित उसकी चूत का टीला अब स्पष्ट नजर आ रहा था। पानी में गीली होने के कारण आयेशा की पैंटी भी पारदर्शक हो गयी थी और आयेशा की छिपी हुई प्रेम बिंदु (उसकी खूबसूरत चूत) की झाँकी करा रही थी। आयेशा की झाँटें अगर होंगीं तो हलकी सी ही रही होंगी, क्यूंकि चूत के बाल नजर नहीं आ रहे थे। आयेशा की गाँड़ के दोनों गाल (कूल्हे) अब नंगे थे और पैंटी की पट्टी जो की गाँड़ की दरार में घुस चुकी थी वह ना तो आयेशा की गाँड़ को छुपा सकती थी और ना तो गाँड़ के गालों के बिच की दरार को।
आयेशा रोहित की नज़रों को नजर अंदाज करते हुए रोहित के पास आयी। उसने रोहित जी के दोनों हाथ ऊपर कर उनकी शर्ट और बादमें बनियान भी निकाली और उन्हें धो कर निचोड़ कर अपने कपड़ों के साथ ही रख दी। फिर आयेशा ने धीरे से अपने हाथों से रोहित की पतलून की बेल्ट लूज की और पतलून खोली। आयेशा का हाथ अपनी पतलून पर लगते ही रोहित के पुरे बदन में झनझनाहट सी होने लगी। बेल्ट खुलते ही पतलून निचे गिर गयी। रोहित का मोटा खड़ा लण्ड उनकी निक्कर में साफ़ साफ़ दिख रहा था। आयेशा ने रोहित के लण्ड को छुआ नहीं था। पर उनका लण्ड एकदम फौजीकी तरह निक्करमें खड़ा होगया था। रोहित जी के लण्ड की और ध्यान ना देते हुए आयेशा ने उनकी पतलून भी पानी में अच्छी तरह धोयी और पहले की ही तरह अच्छी तरह निचोड़ कर पत्थर पर रख दी। आखिर में आयेशा पानी में बैठ गयी अपने बदन को घिस घिस कर पानी को अपने हाथों से अपने पर उछाल कर नहाने लगी। पानी में बैठे बैठे उसने रोहित की और देखा। रोहित जी बेचारे एक बूत की तरह आयेशा की गति-विधियां अचम्भे से देख रहे थे। आयेशा ने रोहित जी के पाँव को पकड़ उन्हें झकझोरा और कहा, "कमाल है! तुम कैसे मर्द हो? एक औरत तुम्हारे कपडे इतने प्यार से निकाल रही है और तुम हो की बूत की तरह खड़े हो और हिल ही नहीं रहे हो। अब मैं तुम्हारी निक्कर भी निकाल दू क्या? या फिर तुम ही निकाल कर मुझे धोने के लिए दोगे?" आयेशा का ताना सुनकर रोहित चौके और आयेशा के पास ही खड़े खड़े उन्होंने अपनी निक्कर अपने पाँव के निचे की और सरका दी।
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रोहित की निक्कर का पर्दा हटते ही रोहित का खड़ा और कडा लण्ड खुलकर आयेशा के सामने आ खड़ा हुआ। आयेशा ने परदेसी का लण्ड देखा तो वह उसे देखती ही रह गयी। उसके चेहरे पर शर्म की लालिमा सी छा गई। गुलाबी रंग का पूरी तरह तना हुआ इतना मोटा और लंबा लण्ड देख कर उसके मन में क्या भाव हो रहे थे उसकी कल्पना करना भी मुश्किल था। आयेशा रोहित के खुले और आस्मां की और अपना उद्दण्ड सर उठाते हुए लण्ड को काफी देर तक नजरें उठा कर तो कभी झुका कर देखती रही। आयेशा जब आगे झुकी तो रोहित को ऐसा लगा जैसे आयेशा उनके लण्ड को उसके मुंह में लेकर उसे चूसने लगेगी। पर आयेशा ने आगे झुक कर रोहित के पांव के निचे गिरी निक्कर को उठाया और बड़े प्यार से उसे अच्छी तरह धोया। फिर उसे निचोड़ कर पत्थर पर बाकी कपड़ों के साथ रख दिया। आयेशा यह सोचकर बेताब थी की परदेसी का अगला कदम क्या होगा। आयेशा उम्मीद कर रही थी की परदेसी उसकी ब्रा और पैंटी निकाल कर उसको अपनी बाँहों में भर लेगा और उसके बरसों से प्यासे बदन और प्यासी चूत की प्यास उस वक्त बुझा देगा। पर रोहित को वैसे ही खोया हुआ देख कर आयेशा ने अपने ही हाथोँ से अपनी ब्रा की पट्टी खोल दी और फिर थोड़ा झुक कर अपने पाँव ऊपर कर अपनी पैंटी भी उतार दी।
रोहित बड़े ही अचरज और लोलुपता से विधि की सबसे खूबसूरत रचना को पूर्णिमा के चाँद की तरह अपनी पूरी कला में बिना कोई आवरण के नग्न रूप में देखते ही रहे। एक और मरने मारने की बात थी तो दूसरी और एक खूबसूरत रचना उनको अपनी पूरी खूबसूरती के दर्शन दे रही थी। रोहित मन ही मन सोच रहे थे की हो सकता है इस मिलन से ही कोई नयी खूबसूरत रचना यह धरती पर पैदा हो! पूरी तरह बिना किसी आवरण के नंगी आयेशा को रोहित हक्केबक्के खड़े खड़े देखते ही रहे। उनके लण्ड से उनका पूर्वश्राव बहना शुरू हो गया था। रोहित ने पहली बार आयेशा की इतनी खूबसूरत चूत को पूरी तरह से अनावृत हाल में देखा। आयेशा की चूत रोहित को बहुत ही ज्यादा सुन्दर लग रही थी। रोहित को वह और औरतों से अलग ही लग रही थी। यह उनके मन का वहम था या हकीकत वह रोहित समझ नहीं पा रहे थे। आयेशा की चूत की दरार एक महीन पतली रेखा की तरह थी। उसके दोनों और उभरे हुए चूत के होँठ कमालके खूबसूरत थे। चूत के ऊपर बाल नजर नहीं आ रहे थे। ऐसा लग रहा था जैसे आयेशा ने अपनी झाँट के बाल कुछ ही समय पहले साफ़ किये होंगे। पर ऐसाथा नहीं। क्यूंकि कुछ हलके फुल्के बाल फिर भी दिख रहे थे। आयेशा की चूत के होँठों के आरपार आयेशा की खूबसूरत सुआकार लम्बी जाँघें इतनी ललचाने वाली और अच्छे अच्छे मर्दों का पानी निकाल देने वाली थीं। चूत की सीध में ऊपर की और उभरा हुआ पेट जो और ऊपर जाकर पतली सी कमर में परिवर्तित हो जाता था, कमाल का था। आयेशा ने जब देखा की रोहित फिर भी चुपचाप उसे देख रहे थे तो चेहरे पर निराशा का भाव लिए आयेशा जाने की तैयारी करने लगी तब रोहित ने उसे रोक कर कहा, "अभी हमने खतरों से निजात नहीं पायी है। हम दुश्मन के एक्टिव रहते हुए गाफिल नहीं रह सकते। कहीं कभी कोई सिपाही हमें देख ले और मार दे या पकड़ ले इससे बेहतर हैं हम पूरी तरह सावधान रहें। पहले हम यह सुनिश्चित कर लें की दुश्मन के सिपाही से हमें कोई ख़तरा नहीं है।"
रोहित की बात सुनकर बिना कुछ जवाब दिए निराश हुई आयेशा धुले हुए सारे कपडे उठा कर जमीन का थोड़ा सा चढ़ाव चढ़ कर वापस गुफा में जाने लगी। नंगी चलती हुई आयेशा के मटकते हुए कूल्हों को रोहित देखते ही रहे। उन्हें और उनके फुले हुए मोटे और लम्बे लण्ड को इस तरह चुदाई करवाने के लिए इतनी इच्छुक कामिनी को निराशा करना बड़ा ही खटक रहा था। पर क्या करे? वक्त ही ऐसा था की थोड़ी सीभी लापरवाही उनकी जान ले सकती थी। आयेशा चुपचाप अपनी गुफा में पहुंची और धुले हुए गीले कपडे उसने पत्थर पर इधर उधर बिछा दिए। फिर अपने हाथ में एक बंदूक लेकर उसने गुफा के पत्तों से आच्छादित दरवाजे की दरार में से बाहर देखना शुरू किया।
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कुछ ही देर में रोहित भी नंगे गुफा में पीछे से आ पहुंचे। उन्होंने पीछे से आकर नंगी खड़ी आयेशाको अपनी बाँहोंमें लिया और अपना लण्ड आयेशा की गांड की दरार से सटाते हुए और आयेशा के उद्दंड दोनों स्तनोँ को अपने दोनों हाथों में दबाते और मसलते हुए बोले। "देखो आयेशा, मैं कोई नामर्द नहीं हूँ की तुम्हारे जैसी बला की खूबसूरत औरत को नंगा देख कर मुझे कुछ नहीं होता। मैं इसी वक्त तुम्हें मन से और बदन से मेरी बनाना चाहता हूँ। मैं तुम्हारे और मेरे बदन की प्यास बुझाना चाहता हूँ। पर धीरज का फल मीठा होता है। पहले हम यह पक्का करलें की खतरा नजदीक नहीं। अब मुझ पर हम दोनों के जान की जिम्मेवारी है।" आयेशा ने मुड़कर रोहित के सर को अपने हाथों में लिया और रोहित के होँठों से अपने होँठ चिपका कर उन्हें चूसते हुए बोली, "मैं सोचती थी की यह मर्द तो पूरा छह फ़ीट लम्बा और हट्टाकट्टा है। इसका लण्ड भी इतना लंबा, मोटा, खड़ा और कडा है। फिर क्या इस परदेसीके सीनेमें दिल है की नहीं?"
आयेशा ने फिर गद्दे की और इशारा कर कहा, "तुम थके हुए हो। तुम वहाँ थोड़ी देर आराम करो। मैं यहां पैहरा दे रही हूँ। कुछ भी होने पर मैं तुम्हें जगा दूंगी। तुम्हें आराम की सख्त जरुरत है।" आयेशा ने फिर अपनी आँखें नचाते हुए शरारत भरे अंदाज़ में कहा, "अगर तुम्हें ठीक आराम मिला तो तुम फिर से चुस्त हो जाओगे और दोस्तों और दुश्मनों दोनों को ही पूरा इन्साफ दे पाओगे।"
रोहित ने आयेशाके पीछे अपना बदन सटाकर आयेशा के उन्नत स्तनोँ को अपनी उँगलियों में रगड़ते हुए कहा, "मैं हिंदुस्तानी जवान हूँ। मैं फौजी ना सही पर दिल हमारे फौजियों जैसा दिलफेंक रखता हूँ। हम हमारे जवानों को देश भक्ति और दूसरे कड़े नियमों के साथ साथ महिलाओं की इज्ज़त करना सिखाते हैं। हमारे फौजी जवान कभी भी महिलाओं से बदसुलूकी या जबरदस्ती नहीं करते। पर जो हमारी जानेमन होती है, उन्हें हम छोड़ते भी नहीं। हम उन्हें पूरी तरह से खुश और संतुष्ट करने का मादा रखते हैं।" आयेशा ने फिर अपनी आँखें नचाते हुए कहा, "अच्छा?" आयेशा ने अपना हाथ पीछे किया और रोहित से थोड़ा अलग हो कर रोहित का लण्ड अपनी उँगलियों में लिया। रोहित की उत्तेजना के कारण उनके लण्ड के केंद्र छिद्र में से चिकना स्राव रिसना शुरू हो गया था। अपनी उँगलियों से उस स्राव को रोहित के लण्ड की सतह पर फैलाते हुए आयेशा ने पूछा, "हाँ जी! तुम जिस तरह अपनी चिकनाहट निकाल रहे हो, यह तो साफ़ दिख रहा है। वैसे तुम करते क्या हो?" रोहित ने आयेशा के नंगे कमसिन पेट, कमर और नाभि पर हाथ फिराते हुए कहा, "अभी तो मैं एक बेहद खूबसूरत मोहतरमा के खुबरात बदन का जायजा ले रहा हूँ और उन से प्यार कर रहा हूँ।" आयेशा ने कहा, "तुम तो कमाल हो! जब मैं चाहती हूँ की तुम मुझसे प्यार करो, तो जनाब मुझे बड़े उपदेश देने लगते हैं की अभी हमें चौकन्ना रहना है बगैरह बगैरह और जब मैं कहती हूँ आराम करो तो जनाब को प्यार करने का मन करता है? यह क्या बात हुई?" रोहित ने आयेशा की कमर को पकड़ा, उसका हाथ अपने लण्ड से हटाया और आयेशा की कमर को पीछे की और खींचा और अपने लण्ड को आयेशा की गाँड़ की दरार में घुसाया और खोखले धक्के मारने लगे जैसे की चोदते समय धक्के मारते हैं। फिर बोले, "इस समय तो मैं अपनी माशूका को मेरे लण्ड को महसूस कराना चाहता हूँ, बस। जैसा तुमने कहा, मोहतरमा का हुक्म सर आँखों पर। अब मैं थोड़ी देर आराम करलूं और तुम तब तक चौकन्नी रह कर नजर रखो।"
कुछ ही देर में रोहित थकान के मारे गद्दे पर गहरी नींद सो गए और खर्राटे मारने लगे। अब उनको कोई चिंता नहीं थी क्यूंकि उनकी रखवाली करने वाली एक जांबाज औरत भरी बंदूक के साथ उनकी हिफाजत के लिए चौकी कर रही थी।
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पत्नी की अदला-बदली - 08
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पता नहीं कितना समय बीत चुका था। रोहित को गहरी नींद में अजीब सा सपना देख रहे थे। सपने में उन्होंने देखा की जिस कमरे में उन्हें बंद किया गया था, उसमें उनके और जीतूजी के हाथ पाँव बंधे हुए थे और रोहित और जीतूजी दोनों को एक रस्सी से कस कर पलंग के साथ बाँध दिया गया था। उन्होंने देखा की कालिये ने अपर्णा के भी हाथ बाँध दिए थे और उसके मुंह पर पट्टी बांध दी थी। कालिया के हाथ में वही बंदूक थी और वह बन्दुक को रोहित और जीतूजी की और तान कर अपर्णा से बोल रहा था, "अब मैं तुम्हें चोदुँगा। तुमने ज़रा भी आवाज निकाली या मेरा विरोध किया तो मैं तुम्हारे पति और इस आशिक को गोली मारकर यहीं ख़त्म कर दूंगा। तुम नहीं जानती मैं कितना खतरनाक हूँ। मैंने कई लोगों को मार दिया है और इन सब को मारने में मुझे मारने में मुझे कोई तकलीफ या दुःख नहीं होगा। कालिया ने अपने सारे कपडे एक के बाद निकाल दिए और अपर्णा के सामने नंगा खड़ा था। उसका बड़ा मोटा लण्ड कड़क खड़ा था और कालिया उसे अपर्णा के मुंह के सामने हिला रहा था। वह चाहता था की अपर्णा उसके लण्ड को चूसे। अपर्णा ने अपना मुंह फेर लिया। जैसे ही अपर्णा ने अपना मुंह फेर लिया तो कालिये ने कस के एक थप्पड़ अपर्णा के कोमल गाल पर जड़ दिया। अपर्णा दर्द के मारे कराहने लगी। अपर्णा ने जब मुँह फेर लिया तो कालिया चिल्लाया, "साली रण्डी! नखरे करती है? जानती नहीं मैं कौन हूँ? मैं यहाँ का खूंखार छुरेबाज और हत्यारा हूँ। मुझे यहां के लोग कसाई कहते हैं। मैंने आजतक कमसे कम दस को जरूर मार दिया होगा। अगर तुमने मेरा कहा नहीं माना तो तुम ग्यारविंह होगी। तुम्हारे दो साथीदार मिलकर तेरह होंगे। तुम्हारे रिश्तेदारों को तुम्हारी लाश भी नहीं मिलेगी।"
कालिया ने एक के बाद एक अपर्णा के कपडे निकाल दिए और उसकी जाँघों को चौड़ा किया। अपना मोटा तगड़ा हाथ कालिया ने अपर्णा की दो जाँघों के बिच में डाल दिया और अपर्णा की चूत में उंगली डाल कर उसका रस निकाल कर उस उंगली को कालिये ने अपने मुंह में डाली और उसे चाटने लगा। कालिये की यह हरकत देख कर जीतूजी पलंग पर ही तड़फड़ा रहे थे। उनके देखने की परवाह ना करते हुए कालिये ने अपर्णा का ब्लाउज एक ही झटके में फाड़ डाला। अपर्णा की ब्रा को भी एक झटका लगा कर खोल दिया और अपर्णा की चूँचियों को अपने दोनों हाथों से कालिया मसलने लगा। वह बार बार अपर्णा की निप्पलोँ पर अपना मुंह लगा कर उन्हें काटता था। अपर्णा बेहाल हालात में पलंग पर लेटी हुई थी। अपर्णा का फटा हुआ स्कर्ट उसकी जाँघोंसे काफी ऊपर था। उसकी पैंटी गायब थी। कालियेने पहले ही अपर्णा का ब्लाउज और ब्रा फाड़ के फेंक दी होगी, क्यों की अपर्णा के उन्मादक बूब्स अपर्णा की छाती पर छोटे टीले के सामान फूली निप्पलोँ से सुशोभित दिख रहे थे। जल्द ही कालिया अपने लण्ड को उसकी चूत में डालेगा इस डर से अपर्णा बिस्तर पर मचल कर जोर से हिल रही थी और डर से काँप रही थी। वह इसी फिराक में थी की कैसे ना कैसे उस भैंसे जैसे राक्षस के भयानक लम्बे और मोटे लण्ड से चुदवाना ना पड़े।
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अपर्णा को पता था की यदि कालिये ने अपने उस खम्भे जैसे लण्डसे उसे चोदातो उसके लम्बे लण्ड से और दूसरे उसके हिंसक एवं जोरदार धक्कों से अपना लण्ड अपर्णा की चूतमें पेलते हुए कालिया अपर्णा की चूत फाड़ कर रख देगा और क्या पता अपर्णा उसकी चुदाई झेल ना सके और कहीं ज्यादा खून बहनेसे मर ना जाए? अपर्णा की आँखों में उस भय के कारण आतंक छाया हुआ दिख रहा था। अपर्णा की चूत साफ दिख रही थी। पर आश्चर्य की बात यह थी की रोहित ने देखा की उनकी बीबी अपर्णा की चूत में से पानी रिस रहा था जो चुगली खा रहा था की अपर्णा का मन उस डर के बावजूद कालिये से चुदाई के लिए उत्तेजित हो रहा था। रोहित समझ नहीं पाए की ऐसी हालत में भी उनकी पत्नी कालिये से चुदवाने के लिए भला कैसे उत्तेजित हो सकती है? पर खैर, इनको तो मज़बूरी में चुपचाप कालिया क्या करता है वह देखना ही था। अपनी नंगी बीबी को देख कर रोहित का लण्ड भी तो खड़ा हो गया था। वह भी तो अपनी दो टाँगों के बिच में गजब की हलचल महसूस कर रहे थे।
रोहित ने अपने साथीदार जीतूजी की और देखा। जीतूजी का लण्ड जरूर खड़ा हो गया था, क्यूंकि वह इधर उधर खिसक कर अपना खड़ा लण्ड एडजस्ट करनेकी कोशिशकर रहेथे। रोहित जी ने देखा की कालिया ने जब अपर्णा के गाल पर करारा थप्पड़ मार दिया तो अपर्णा कराह उठी। उसे लगा की कहीं उसके एकाध दांत कालिया की थप्पड़ से टूट ना गया हो। कालिया की आज्ञा पालन करने के अलावा उसके पास कोई रास्ता नहीं था। अपना लहराता हुआ लण्ड जब कालिया अपर्णा की मुँह के पास लाया और अपेक्षा के साथ अपर्णा की और देखने लगा तो ना चाहते हुए भी अपर्णा ने कालिया के लण्ड की और देखा। इस बार उसकी हिम्मत नहीं थी की वह अपना मुंह फेर ले।
कालिया फिर चिल्लाया, "चलो चुसो मेरा लण्ड।" कालिये की चिल्लाहट सुनते ही अपर्णा ने अपने मुंह से बोलने की कोशिश की और अपने बंधे हुए हाथोँ को उठाकर कालिया को दिखाए। कालिया समझ गया की उसका लण्ड चूसनेके लिए अपर्णा का मुंह खोलना जरुरी था। और अगर उसने मुंह खोला और चिल्लाई तो जरूर सब जाग जाएंगे। कुछ सोचने के बाद कालिया ने तय किया की अपर्णा के हाथ छोड़ने में कम जोखिम था। उसने आगे बढ़कर अपर्णा के हाथ खोल दिए। हाथ खुलते ही कालिये ने अपर्णा के हाथों में अपना लण्ड पकड़ा दिया। अपर्णा ने अपने हाथ में कालिये का लण्ड पकड़ा और उसे डर के मारे हिलाने लगी। उसके हाथों में कालिया लण्ड ऐसा लग रहा था जैसे अपर्णा ने हाथ में कोई अजगर पकड़ रखा हो। रोहित बार बार अपर्णा के चेहरे की और देख रहे थे पर वह अपर्णा के भावों को समझ नहीं पा रहे थे। कुछ ही देर में कालिया से रहा नहीं गया और उसने अपने दोनों हाथोँ से अपर्णा की टाँगें चौड़ी कीं। कालिया झुक कर अपर्णा की चूत देखने लगा।
उसकी चूत का छोटा सा छिद्र देख कर उसने एक भयानक तरीके से ठहाका मार कर हंसा और बोला, "अरे रानी तेरी चूत का होल तो बड़ा छोटा है। मेरा लण्ड इतना मोटा। कैसे डलवायेगी उसको अपने अंदर? मैं तो तुंझे छोडूंगा नहीं।" यह कह कर कालिया अपर्णा के ऊपर चढ़ गया। उसके ऊपर सवार होकर उसने अपना लण्ड अपर्णा की चूत के छिद्र पर रखा और अपर्णा से कहा, "अब मैं तुझे यह मौक़ा देता हूँ की तू मरे लण्ड को सहला कर उसकी चिकनाहट से अपनी चूत गीली करले ताकि तुझे ज्यादा परेशानी ना हो।" जैसे ही अपर्णा ने कालिये का लण्ड पकड़ कर उसे सहलाया और अपनी चूत के होंठों को चिकना किया, कालिये ने एक ही झटके में अपना लण्ड अपर्णा की चूत में घुसा दिया। रोहित की समझ में यह नहीं आया की कैसे कालिया अपना इतना मोटा लण्ड अपर्णा की चूत में घुसा पाया। उसके बाद कालिया अपने पेंडू से धक्के मारकर अपर्णाकी चूतमें अपना लण्ड पेलने लगा। अपर्णा की काराहट बढ़ती जा रही थी। पर अपर्णा मुंह पर लगी पट्टी के कारण चिल्ला नहीं पा रही थी। कालिया एक के बाद एक धक्के मार कर अपना लण्ड थोड़ा थोड़ा ज्यादा अंदर घुसेड़ रहा था वैसे वैसे अपर्णा की हलचल बढ़ रही थी।
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रोहित ने देखा की अपर्णा भी कालिये के साथ साथ चुदाई का मजा ले रही थी। रोहित की झल्लाहट का ठिकाना ना रहा? वह मन ही मन सोच रहे थे, "यह कैसी औरत है जो ऐसे भयानक आदमी से चुदवा कर मजे ले रही है?" अपर्णा को काफी देर तक कालिये ने चोदा। अपर्णा की चूत में से खून निकल रहा था। रोहित से देखा नहीं गया। उन्होंने अपनी आँखें मूँद लीं। अचानक उन्हें महसूस हुआ की कमरे में श्रेया जी दाखिल हुई। वह अचम्भे से देखते रहे की देखते ही देखते वहाँ से अपर्णा, कालिया, जीतूजी सब पता नहीं कहाँ चले गए। उन्होंने यह भी महसूस किया की उनके हाथ और पाँव खुले थे। श्रेया जी के बदन पर कोई कपड़ा नहीं था। बापरे! रोहित ने महसूस किया की श्रेया वैसी ही नग्नावस्था में उनके पास आकर सो गयीं और एक हाथ से उनके खड़े हुए लण्ड को सहलाने लगीं। उन्होंने यह भी महसूस किया की उनके बदन पर भी कोई कपड़ा नहीं था। श्रेया का नंगा बदन अब उनके नंगे बदन से सटकर लेटा था। श्रेया उनके ऊपर अपने स्तनोँ को रगड़ती हुई बोली, "परदेसी, मैं जानती हूँ तुम जल्दी ही चले जाओगे। तुम मेरे नहीं होने वाले, पर मैं कुछ देर के लिए ही सही तुम्हारी बनना चाहती हूँ। मैं चाहती हूँ की इस बिरावान जंगल में तुम आज मुझे अपनी बनालो।"
रोहित का माथा ठनक गया, उन्हें समझ नहीं आया की श्रेया उन्हें "परदेसी" क्यों कह रही थी।
वह चौंक कर अपनी नींद में से जग गए तो उन्होंने पाया की आयेशा नंगा रेशमी बदन उनसे सट कर लेटा हुआ था और आयेशा उनका लण्ड हलके से सहला रही थी। गुफा में पूरा अन्धेरा छाया हुआ था। लगता था शाम ढल चुकी थी। आयेशा के घने बाल रोहित के चेहरे पर बिखरे हुए थे। रोहित ने आयेशा के नंगे बदन पर हाथ फेरा। उनके हाथ में आयेशा के पके हुए आम से आयेशा के भरे हुए स्तन महसूस हुए। आयेशा ने रोहित के कानों में कहा, "परदेसी, अब सारे दुश्मन सिपाही भाग गए हैं। एक सिपाही भागते हुए चिल्ला रहा था। "भागो और जान बचाओ। हिंदुस्तानी फौजवाले आ पहुंचे हैं। लगता है, तुम्हारे सिपाहियों ने उनको खदेड़ दिया है। यहां उसके बाद पुरे दिन कोई नजर नहीं आया। अब सारी रात हमारी है।"
रोहित का सर चकरा रहा था। उन्हें समझ नहीं आ रहा था की क्या सच था और क्या सपना। कालिया तो मर गया था फिर वह कैसे अपर्णा को चोदने आया और अचानक श्रेया की जगह आयेशा कहाँसे आगयी, उनकी समझ में नहीं आ रहा था। कई दिनों की थकान और तनाव के कारण उनका दिमाग ठीक से काम नहीं कर रहा था। हालांकि दिन भर की नींद और आराम के बाद वह काफी राहत महसूस कर रहे थे। आयेशा का रेशमी बदन उनके नंगे बदन से रगड़ रहा था। आयेशा के घने मुलायम बाल उनके चेहरे और छाती पर बिखरे हुए थे। उनके हाथों में आयेशा के मस्त स्तनोँ और उनकी फूली हुई निप्पलेँ थीं। आयेशा के स्तन पके हुए फल की तरग पूरी तरह परिपक्व थे पर ज़रा से भी ढीले नहीं थे।
रोहित जी ने खुद महसूस किया की उन्हें शायद आयेशा से प्यार सा हो गया था। आयेशा भी बिना बोले रोहित के पुरे बदन को सहला रही थी, प्यार कर रहीथी। काफी समय वह चुप रहकर रोहित जी के सारे अंगों को प्यार से सहलाती तो कभी कभी वह रोहित के पुरे बदन को बार बार चुम कर "ओह! परदेसी, तुम कितने प्यारे हो। आज मैं पूरी तरहसे तुम्हारी बनना चाहती हूँ। आज तुम मुझे जैसे चाहो जी भरके प्यार करो। तुम मुझसे जो चाहे करो। मुझे एक रात में ही जनम जनम तक याद रहे ऐसा प्यार करो।" कभी यह बोलती तो कभी बस प्यार से रोहित के पुरे बदन को चुपचाप बिना बोले चूमती रहती। रोहित आयेशा का प्यार देख कर दंग रह गए। एक दुश्मन देश की लड़की उन्हें कितना प्यार करती थी। वह दोनों जानते थे की उनका प्यार थोड़ी ही देर के लिए था। कुछ ही देर में रोहित अपने रास्ते और आयेशा अपने रास्ते जुदा हो जाने वाले थे। आयेशा का पूरा बदन रोमांच से काँप रहा था। आयेशा के रोंगटे खड़े होगये थे जो उसकी मानसिक उत्तेजना दर्शाता था।
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रोहित का लण्ड भी एकम फौलादकी छड़ की तरह खड़ा हो गया था। आयेशा कभी उसे अपने हाथों में लेकर हलके से प्यार से हिलाती थी तो कई बार झुक कर उनके लण्ड की नोंक को चुम कर छोड़ देती। रोहित आयेशा की पीठ सहलाते तो आयेशा की गाँड़ पर हाथ फिराते। कई बार आयेशा की सपाट कमर पर हाथ फिराते तो कई बार आयेशा की जाँघों के बिच में हाथ डालकर उसकी चूत के उभार को सहलाते। धीरे धीरे रोहित की उत्तेजना बढ़ने लगी। आयेशा भी अपनी धीरज की सीमा पर पहुँच रही थी। वह परदेसी के लण्ड को अपनी चूत में महसूस करना चाहती थी। उसे कोई क्या कहेगा इस की रत्ती भर की भी कोई चिंता नहीं थी। रोहित अब नींद की असर से पूरी तरह से बाहर आचुके थे। उनके सामने आयेशा थी जो उन्हें अपना नग्न, सुकोमल और कमसिन बदन पेश कर रही थी। रोहित ने आएशा के नग्न बदन को देखा तो था पर गौर से महसूस नहीं किया था। अब उनके पास मौक़ा था की वह आयेशा के नग्न बदन को प्यार से सहलाये और उसकी प्यार भरी जांच पड़ताल कर सके। वह बदन पूरी रात उनका था। रोहित का एक हाथ आयेशा की छाती पर उसके स्तनोँ को सहला रहाथा तो दुसरा हाथ आयेशाके पिछवाड़े आयेशा की सुकोमल और सुगठित गाँड़ को सहलाने में लग गया। रोहित ने जब से पहली बार आयेशा को देखा था तबसे उनको आयेशा की गाँड़ का आकार भली भाँति भाया था और उनके मन की इच्छा थी की उनको मौक़ा मिलेगा तो वह आयेशा की गाँड़ को अच्छी तरह से सहलायेंगे और उसे चूमेंगे।
अक्सर मर्दों को औरतों की गांड का घुमाव बड़ा ही आकर्षित करता है। अक्सर कईलोग युवतियां, एक्ट्रेस एवं सीरियल में काम करने वाली अभिनेत्रियों की गाँड़ का आकार देख कर पागल हो जाते हैं। रोहित ने भी आयेशा की गाँड़ के गालों की कोमलता और उस का करारापन अपने हाथों से महसूस किया। वह बार बार आयेशा की गाँड़, उसके गालों, बिच की दरार में अपनी उंगलियां डाल कर आयेशा की युवा त्वचा का मुआइना कर रहे थे। रोहित बार बार आयेशा के बालों में अपना मुंह लगा कर उन्हें चुम रहे थे। आयेशा भी बार बार रोहित से चिपक कर "मेरे परदेसी, मेरी जान। मेरे आका। कह कर उनके हर एक अंग को चूमती रहती थी। आयेशा के बदन में कामुकता की आग लगी थी। इतने सालों के बाद उसे अपनी जवानी और जवानी भरा बदन किसी मर्द को सौपने का सपना साकार करने का मौक़ा मिला था। आयेशा को पूरी जवानी जिल्लत, अपमान और मशक्कत में गुजारनी पड़ी थी। उसे अपने माँ बाप की हिफाज़त और महेनत करनी पड़ती थी। उसे अपना ख्याल भी नहीं आता था।
रोहित ने आयेशा के सर से शुरू कर आयेशा के बाल, उसका कपाल, उसकी भौंहें, आँखें, नाक और होंठों को चूमने लगे। हाँठों पर पहुँच कर रोहित ने आयेशा को अपनी बाँहों में कस के जकड़ा और अपना लण्ड आयेशा की जाँघों के बिच में घुसाते हुए वह आयेशा के होँठ जोश से चूमने लगे। आयेशा के ऊपर के तो कभी निचे के होँठ चूमते तो कभी आयेशाके मुंह में अपनी जुबाँ घुसा कर उसे चूसने का मौक़ा देते। आयेशा भी रोहित की जुबान को चूसती और उसकी लार निगल जाती थी। उसे परदेसी के मुंहकी लार और उसके बदन की खुशबू भा गयी थी। आयेशा के मस्त बूब्स रोहित की छाती में चिपक गए थे। रोहित का हाथ बार बार आयेशा की पसलियों की खाई से फिसलता हुआ उसकी गाँड़ के पास रुक जाता और धीरे से उन नाजुक मरमरी त्वचा को मसलनेके लिए लालायित रहता था। होँठों का काफी रस पिनेके बाद रोहित आयेशाकी गर्दन चूमने लगे। आयेशा की लम्बी गर्दन पर उसकी घनी जुल्फें बिखरी हुई थीं। उसके बाद आयेशा के कंधे और बाजुओं से होकर बिच की और बढ़ कर रोहितका सबसे अजीज़ स्थान आयेशाके बूब्स पर आकर रोहित की गाडी रुक गयी। दो बड़े बड़े गुम्बज और उसके उप्पर गोल चॉकलेट रंग के एरोला जो उत्तेजना के कारण कई उभरी हुई फुंसियों से भरे हुए थे। उन एरोला के बोचोबीच तनेहुए दो शिखर सामान फूली हुई निप्पलेँ रोहित जी के होँठों के दबाने से और उन्मादित हो जाती थीं। रोहित कभी निप्पलोँ को चूसते तो कभी स्तनोँ के पुरे उभार को अपने मुंह में लेकर ऐसे चूसते जैसे बच्चा माँ के स्तनोँ को उसका दूध पिने के लिए चूसता है। रोहित के स्तनोँ को चूसते ही आयेशाका उन्माद बेकाबू होजाता था। अक्सर औरतों से सम्भोग करते समय मर्द को चाहिए की उसके स्तनोँ का ख़ास ख्याल रखें। औरत के स्तन से उनकी कामुकताका सीधा सम्बन्ध है। कई बार चुदाई करते हुए जब मर्द औरतके स्तनोँ का ध्यान नहीं रखतातो औरत बेचारी अपने स्तनोँ को खुद ही सहलाती दबाती रहती हैं ताकि उसके उन्माद में कोई कमी ना आये और उस सम्भोग को वह पूरी तरह एन्जॉय कर सके।
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आयेशा के स्तनोँ को चूसते हुए और उसकी निप्पलोँ को काटते हुए रोहित का उन्माद बढ़ता जा रहा था। आयेशा के स्तनोँ को रोहित जी ने इतनी उत्कटता से चूसा था की उसके बूब्स पर लाल चकामे पड़ गए थे। पर आयेशा को इसका कोई गम नहींथा। आज उसे अपनेआशिक़ को पूरी ख़ुशी और उन्माद देना था और उससे अपनी जिंदगीकी सबसे खूबसूरत रातको यादगार बनाना था। रोहित जब आयेशा के स्तनोँ को जी भर के पी चुके तब वह आयेशा के सपाट पेट और पतली कमर के बिच स्थित ढूंटी याने नाभि पर पहुँच कर फिर रुक गए। आयेशा की नाभि के इर्द गिर्द चूमते हुए उनके होँठ निचे की और जाने लगे तब आयेशा ने शर्म के मारे अपने दोनों हाथों से अपनी चूत छुपानी चाही। रोहित ने प्यार से आयेशा के दोनों हाथों को हटा दिया और झुक कर प्यार से आयेशा की चूत के उभार को चूमने लगे। रोहित के होँठों के स्पर्श अपनी चूत के करीब होते हुए ही आयेशा मचल उठी। उसके होँठोंसे एक हलकीसी टीस निकल गयी। अना-यास ही आयेशा की टांगें चौड़ी हो गयीं। रोहित जी ने अपना सर आयेशा की जाँघों के बीच में रख दिया और आयेशा की चूतके होँठों को चुम्बन करने लगे। अपनी जीभ से रोहित ने आयेशा की चूत के सवेंदनशील होँठ के बिच वाली त्वचा की कुरेदना शुरू किया। आयेशा के उन्माद का ठिकाना नहीं रहा। वह उन्माद से कराह उठी और बोली, "अरे परदेसी, क्या कर रहे हो? मुझे पागल कर दोगे क्या?"
पर रोहित यह सुनकर और जोश खरोश से आयेशा की चूत को चाटने में लग गए। आयेशा की चूत में से जैसे उसका उन्माद फव्वारे के रूप में फुट पड़ा। आयेशा की चूत में से उसका रस रिसने लगा। रोहित की जबान उस रस को चाटने लगी। आयेशा ने रोहित के लण्ड को आवेश में जोर से हिलाना शुरू किया। अब वह रोहित से चुदवाना चाहती थी। वह चाहती थी की रोहित उस रात उसे खूब सख्ती और जोश से चोदे। वह चाहती तह की रोहित के मिलन की याद वह पूरी जिंदगी भूल ना पाए। लेटी हुई आयेशा बैठ खड़ी हुई और उसने रोहित को खड़ा किया और खुद रोहित के क़दमों में आ बैठी। नंगे रोहित के खड़े होते ही उनका लण्ड भी हवा में लहराने लगा। आयेशा ने रोहित का लण्ड अपने एक हाथ में लिया और उसे चूमा और ऊपर रोहित की ओर देखा। रोहित ने आयेशा के सर पर हाथ रक्खा और आयेशा के बाल अपनी उँगलियों से संवारने लगे और आयेशा आगे क्या करेगी उसका बेसब्री से इंतजार करने लगे। आयेशा ने रोहित के लण्ड पर फैली हुई चिकनाहट को अपने हाथ की उँगलियों से उनके लण्ड की सतह पर फैलाते हुए उसे खासा स्निग्ध बना दिया। रोहित के लण्ड की अग्र त्वचा को मुट्ठी में दबाकर आयेशा ने उसे हिलाना शुरू किया। कुछ देर तक हिलाने के बाद आयेशा ने रोहित के लण्ड का अग्रभाग मुंह में लिया और उसे चूसा। धीरे धीरे आयेशा ने रोहित का लण्ड अपने मुंह में लेकर अपना मुंह आगे पीछे करने लगी जिससे रोहित का लण्ड आयेशा के मुंह को धीरे धीरे से चोद सके। रोहित ने भी आयेशा की इच्छा के मुताबिक़ आयेशा के मुंह को अपने लण्ड से चोदना शुरू किया। आयेशा के मुंह को चोदते हुए रोहित ने आयेशा की चूत में अपनी दो उंगलियां घुसेड़ दीं। आयेशा के मुंह के साथ वह अपनी उँगलियों से आयेशा की चूत को भी चोदने लगे। आयेशा मुंह में परदेसी का लण्ड और चूत में उनकी उंगलयों से चुदवा ने का मजा ले रही थी। कुछ देर तक चुदवाने के बाद आयेशा को अब परदेसी से असली चुदाई करवानी थी।
आयेशा ने कहा, "परदेसी, अब मेरा और इम्तेहान मत लो। अब मेरा सब्र खत्म हो रहा है। तुम जानते हो की मैं तुमसे चुदवाने के लिए कितनी तड़प रही हूँ। अब मुझे अपने इस मोटे और लम्बे लण्ड से खूब चोदो। इतना चोदो, इतना चोदो की मजा आ जाये।"
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