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दोपहर के आराम के बाद कप्तान गौरव अच्छे खासे स्वस्थ दिख रहे थे। मेहमानों का स्वागत करते हुए कैंप के मुखिया ने बताया की हमारा पडोसी मुल्क हमारे मुल्क की एकता को आहत करने की फिराक में है। चूँकि वह हमसे सीधा पंगा लेने में असमर्थ है इसलिए वह छद्म रूप से हम को एक के बाद एक घाव देनेकी कोशिश कर रहा है। वह अपने आतंक वादियों को हमारे मुल्क में भेज कर हमारे जवानों और नागरिकों को मार कर भय का वातावरण फैलाना चाहता है। हालात गंभीर हैं और हमें सजग रहना है।
इन आतंकवादीयों को हमारे ही कुछ धोखेबाज नागरिक चंद रूपयों के लालच में आश्रय और प्रोत्साहन देते हैं। आतंकवादी अलग अलग शहरों में आतंक फैलाने का प्रोग्राम बना रहे हैं। इन हालात में सेना के अधिकारीयों ने यह सोचा की एक आतंकी विरुद्ध नागरिक प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाया जाए जिस में हमारे नागरिकों को आतंकीयों से कैसे निपटा जाए और शहर में आतंकी हमला होने पर कैसे हमें उनका सामना करना चाहिए इसके बारे में बताया जाए। उन्होंने बताया की इसी हेतु से यह प्रोग्राम तैयार किया गया था।
सारे मेहमानोंको चार ग्रुपमें बाँटा गया था। कप्तान गौरव, अंकिता , उसके पति ब्रिगेडियर साहब और उनके दो हम उम्र दोस्त, जीतूजी, रोहित, श्रेया और अपर्णा एक ग्रुप में थे। ऐसे तीन ग्रुप और थे। कुल मिलाकर करीब छत्तीस मेहमान थे। हर एक ग्रुप में नौ लोग थे। सुबह पाँच बजे योग और हलकी कसरत और उसके बाद चाय नाश्ता। बाद में सुबह सात बजे पहाड़ों में ट्रैकिंग का प्रोग्राम था। दोपहर का खाना ट्रैकिंग के आखिरी पड़ाव पर था। ट्रैकिंग का रास्ता पहले से ही तय किया गया था और जगह जगह तीरों के निशान लगाए गए थे। परिचय और प्रोग्राम की बात ख़त्म होते होते शाम के सात बज चुके थे। लाउड स्पीकर पर सब को आग की धुनि के सामने ड्रिंक्स और नाच गाने के प्रोग्राम में हिस्सा लेने का आमंत्रण दिया गया।
मजेकी बात यहथी की अंकिता उसके पति ब्रिगेडियर साहब और गौरव भी अपर्णा, रोहित, जीतूजी और श्रेया वाली धुनि के आसपास बैठे हुए थे। ब्रिगेडियर खन्ना, कप्तान गौरव के साथ बड़े चाव से बात कर रहे थे। कप्तान गौरव बार बार अंकिता की और देख कर अपनी नाराजगी जाहिर करने की कोशिश कर रहे थे की क्यों अंकिता ने उन्हें अपनी शादी के बारेमें नहीं कहा? तुरंत उन्हें याद आया की अंकिता ने उन्हें कहने की कोशिस तो की थी जब उसने कहा था की "जिंदगी में कुछ परिस्थितियां ऐसी आती हैं की उन्हें झेलना ही पड़ता है।" परन्तु उसके बाद बात ने कुछ और मोड़ ले लीया था और अंकिता अपने बारे में बता नहीं सकी थी। अब जब अंकिता शादीशुदा है तो गौरव को अपना सपना चकनाचूर होते हुए नजर आया। ब्रिगेडियर साहब ने गौरव से अपनी जिंदगी के बारे में बताना शुरू किया। उन्होंने बताया की कैसे अंकिता और उसके के पिता ने ब्रिगेडियर साहब और उनकी स्वर्गवासी पत्नी की सेवा की थी। बादमें अंकिता के पिता की मौत के बाद अंकिता को उन्होंने आश्रय दिया। उनके सम्बन्ध अंकिता से कुछ ज्यादा ही निजी हो गए। तब उन्होंने अंकिता को समाज में बदनामी से बचानेके लिए शादी करली। ब्रिगेडियर साहब ने गौरव को यह भी बताया की वह उम्र में उनसे काफी छोटी होने के कारण अंकिता को अपनी पत्नी नहीं बेटी जैसा मानते हैं। वह चाहते हैं की अगर कोई मर्द अंकिता को अपनाना चाहता हो तो वह उसे तलाक देकर ख़ुशी से अंकिताकी शादी उस युवक से करा भी देंगे।
ब्रिगेडियर साहब ने अंकिता को बुलाकर अपने पास बिठाया और बोले, "अंकिता बेटा, मैं जा रहा हूँ। मैं थोड़ा थक भी गया हूँ। तो आप कप्तान गौरव और बाकी कर्नल साहब और इन लोगों के साथ एन्जॉय करो। मैं फिर अपने हट में जाकर विश्राम करूंगा।" कह कर ब्रिगेडियर साहब चल दिए। ब्रिगेडियर साहब के जाने के बाद अपर्णा उठकर कप्तान गौरव के करीब जा बैठी।
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उसने गौरव को कहा, "कप्तान साहब, अंकिता आपसे अपनी शादी के बारे में कहना चाहती थी पर वह उस वक्त उसमें कहने की हिम्मत न थी और जब वह आपसे कहने लगी थी तो बात टल गयी और वह कह नहीं पायी। वह आपका दिल नहीं तोड़ना चाहती थी। आप उसको समझें और उसे क्षमा करें और देखो यह समाँ और मौक़ा मिला है उसे जाया ना करें। आप दोनों घूमे फिरें और एन्जॉय करें। बाकी आप खुद समझदार हो।"
इतना कह कर अपर्णा कप्तान गौरव को शरारत भरी हँसी देकर, आँख मार कर वापस अपने पति रोहित, जीतूजी और श्रेया के पास वापस आ गयी। उसे ख़ुशी हुईकी अगर यह दो जवान दिल आपस में मिल कर प्यार में कुछ समय एक साथ बिताते हैं तो वह भी उनके लिए और खास कर अंकिता के लिए बहुत बड़ी बात होगी। शाम धीरे धीरे जवाँ हो रही थी। जीतूजी और रोहित ने अपने जाम में व्हिस्की भर चुस्की पर चुस्की ले रहे थे। अपर्णा और श्रेया चाय के साथ कुछ स्नैक्स ले रहीं थीं। जीतूजी की उलझन ख़त्म होने का नाम नहीं ले रही थी। अपर्णा ने अपने पति रोहित को कहा, "ऐसा लगता है की कोई गंभीर मामला है जिसके बारे में जीतूजी कुछ जानते हैं पर हमसे शेयर करना नहीं चाहते। आप ज़रा जा कर पूछिए ना की क्या बात है?"
रोहित जीतूजी के पास पहुंचे। जीतूजी आर्मी के कुछ अफसरान से गुफ्तगू कर रहे थे। कुछ देर बाद जब जीतूजी फारिग हुए तब रोहित ने जीतूजी से पूछा, भाई, हमें हमें बताइये ना की क्या बात है? आप इतने चिंतित क्यों हैं?" जीतू जी ने रोहित की और देख कर पूरी गंभीरता से कहा, "रोहित, आपसे क्या छिपा हुआ है? आप को भी तो मिनिस्ट्री से हिदायत मिली हुई है की कुछ जासुस हमारी सेना के कुछ अफसरान के पीछे पड़े हुए हैं। वह हमारी सेना की गति-विधियोँ की गुप्त जानकारी पाना चाहते हैं। वह जानना चाहते हैं की हमारी सेना की क्या रणनीति होगी। मैं सोच रहा था की कहीं जो हमारे साथ कुछ हादसे हुए हैं उससे इस बात का तो कोई सम्बन्ध नहीं है?" जीतूजी की बात सुनकर रोहित चौक गए और बोल पड़े, "क्या इसका मतलब यह हुआ की पडोसी देश के जासूस हमारे पीछे पड़े हुए हैं? वह हम से कुछ सच्चाई उगलवाना चाहते हैं?" अपर्णा ने अपने पतिके मुंह से यह शब्द सुने तो उसके चेहरे पर जैसे हवाइयाँ उड़ने लगीं। उसके चेहरे पर साफ़ साफ़ भय और आतंक के निशान दिख रहे थे।
अपर्णा बोल उठी, "बापरे! वह टैक्सी वाला और वह टिकट चेकर क्या दुश्मनों के जासूस थे? अब मैं सोचती हूँ तो समझ में आता है की वह लोग वाकई कितने भयंकर लग रहे थे।" जीतूजी की और मुड़कर अपर्णा बोली, "जीतूजी अब क्या होगा?" जीतू जी ने अपर्णा का हाथ थामा और दिलासा देते हुए बोले, " अपने नन्हे से दिमाग को कष्ट ना दो। हमें कुछ नहीं होगा। हम इतनी बड़ी हिंदुस्तानी फ़ौज के कैंप में हैं और उनकी निगरानी में हैं। मुझसे गलती हुई की मैंने तुम्हें यह सब बताया।" तब अपर्णा ने अपना खूबसूरत सीना तान कर कहा, "हम भी भारत की शक्ति हैं। मैं एक क्षत्राणी हूँ और एक बार ठान लूँ तो सबसे निपट सकती हूँ। मुझे कोई डर नहीं।"
श्रेया ने अपर्णा की दाढ़ी अपनी उँगलियों में पकड़ी और उसे हिलाते हुए कहा, "अगर क्षत्राणी है तो फिर यह जूस ही क्यों पी रही है? कुछ गरम पेय पी कर दिखा की तू भी वाकई में क्षत्राणी है" अपर्णा ने श्रेया की और मुड़कर देखा और बोली, "इसमें कौनसी बड़ी बात है? चलो दीदी डालो ग्लास में व्हिस्की और हम भी हमारे मर्दों को दिखाते हैं की हम जनाना भी मर्दों से कोई कम नहीं।"
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अंकिता अपर्णा का जोश और जस्बा ताज्जुब से देख रही थी। उसने अपर्णा की हिम्मत ट्रैन में देखि थी। वाकई में तो सबकी जान अपर्णा ने ही बचाई थी क्यूंकि अगर अपर्णा ने गौरव की टाँगें कस के काफी देर तक पकड़ रक्खी नहीं होतीं तो गौरव फुल स्पीड में चल रही ट्रैन से गिर पड़ते और अंकिता और गौरव दोनों की मौत पक्की थी। श्रेया ने अपर्णा के गिलास में कुछ ज्यादा और अपने गिलास में कुछ कम व्हिस्की डाली और सोडा से मिलाकर अपर्णा को दी। जीतूजी और रोहित अपनी बीबियों की करतूत देख कर मन ही मन खुश हो रहे थे। अगर पी कर यह मस्त हो गयीं तो समझो उनकी रात का मजा कुछ और होगा। लाउड स्पीकर पर डांस संगीत शुरू हो गया था। अंकिता और गौरव बाँहों में बाँहें डाले नाच रहे थे। उनको देख कर अपर्णा ने श्रेया से कहा, "लगता है यह दो जवान बदनों की हवस की आग इस यात्रा के दरम्यान जरूर रंग लाएगी।"
अपर्णा पर व्हिस्की का रंग चढ़ रहा था। झूमती हुई अपर्णा गौरव और अंकिता डांस कर रहे थे वहाँ पहुंची और दोनों के पास जाकर अंकिता का कंधा पकड़ कर बोली, "देखो बेटा। मैं तुम दोनों से बड़ी हूँ। मैं तुम्हें खुल्लम खुल्ला कहती हूँ की जब भी मौक़ा मिले मत गंवाओ। जिंदगी चार दिनकी है, और जवानी सिर्फ दो दिन की। मौज करो। अंकिता तुम्हारे पति ब्रिगेडियर साहब ने खुद तुम्हें किसी भी तरह से रोका नहीं है। बल्कि वह तो तुम्हें गौरव से घुल मिल कर मौज करने के लिए कहते हैं। वह तुम्हें बेटी मानते हैं। वह जानते हैं की वह तुम्हें पति या प्रियतम का मरदाना प्यार नहीं दे सकते। तो फिर सोचते क्या हो? जवानीके दो दिन का फायदा उठाओ। अगर आप के प्यार करने से किसी का घर या दिल नहीं टूटता है, तो फिर दिल खोल कर प्यार करो। अंकिता के कान के पास जा कर अपर्णा अंकिता के कान में बोली, "हम भी यहां मौज करने आये हैं।" फिर अपनी माँ ने दी हुई कसम को याद कर अपर्णा के चेहरे पर गमगीनी छा गयी। अपर्णा थर्राती आवाज में बोली, "पर बेटा मेरी तो साली तक़दीर ही खराब है। जिनसे मैं चुदाई करवाना चाहती थी उनसे करवा नहीं सकती। कहते हैं ना की "नसीब ही साला गांडू तो क्या करेगा पांडु?" अंकिता और गौरव बिना बोले अपर्णा की और आश्चर्य से एकटक देख रहे थे की अपर्णाजी जो इतनी परिपक्व लगती थीं शराब के नशेमें कैसे अपने मन की बात सबको बता रही थी।
रोहित और श्रेया हॉल की बाँहों में बाँहें डाले घूम घूम कर डांस कर रहे थे। साथ साथ में जब मौक़ा मिलता था तब वह एक दूसरे से एकदम चिपक भी जाते थे। अपर्णा ने यह देखा। उसकी नजर जीतूजी को ढूंढने लगी। जीतूजी कहीं नजर नहीं आ रहे थे। जब अपर्णा ने ध्यान से देखा तो पाया की जीतूजी वहाँ से काफी दूर एक दूसरे कोने में अपनी बीबी के करतब से बेखबर बाहर आर्मी कैंप के कुछ अफसरान से बातें करने में मशरूफ थे। अपर्णा को व्हिस्की का सुरूर चढ़ रहा था। उसे जीतूजी के लिए बड़ा अफ़सोस हो रहा था। अपर्णा और जीतूजी आपस में एक दूसरे से एक होना चाहते थे पर अपर्णा की माँ के वचन के कारण एक नहीं हो सकते थे। यह जानते हुए भी की अपर्णा उनसे चुदवाने का ज्यादा विरोध नहीं करेगी, अगर वह अपर्णा पर थोड़ी सी जोर जबरदस्ती करें। पर जीतूजी अपने सिद्धांत पर हिमाचल की तरह अडिग थे। वह तब तक अपर्णा को चुदाई के लिए नहीं कहेंगे जब तक अपर्णा ने माँ को दिया हुआ वचन पूरा नहीं हो जाता और वह वचन इस जनम में तो पूरा होना संभव नहीं था। मतलब रेल की दो पटरियों की तरह अपर्णा और जीतूजी के बदन इस जनम में तो एक नहीं हो सकते थे। हालांकि अपर्णाने स्पष्ट कर दिया था की चुदाई के सिवा वह सब कुछ कर सकते हैं, पर अब तो जीतूजी ने यह भी तय कर दियाथा की वह अपर्णाको छेड़ेंगे भी नहीं। कारण जीतूजी का लण्ड जीतूजी के नियत्रण में नहीं रहता था। जब जब भी अपर्णा उनके करीब आती थी तो वह काबू के बाहर हो जाता था और तब जीतूजी का दिमाग एकदम घूम जाता था। इस लिए वह अपर्णा से दूर रहना ही पसंद करने लगे जो अपर्णा को बड़ा चुभ रहा था।
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श्रेया अपर्णा के पति के साथ चिपकी हुई थी। गौरव और अंकिता कुछ देर डांस करने क बाद वहाँ से थोड़ी दूर कुछ गुफ्तगू कर रहे थे। अपर्णा से बात करने वाला कोई वहाँ नहीं था। अपर्णा उठ खड़ी हो रही थी की एक साहब जो की आर्मी वाले ही लग रहे थे झूमते हुए अपर्णाके पास आये और बोले, "मैं मेजर कपूर हूँ। लगता है आप अकेली हैं। क्या मैं आपके साथ डांस कर सकता हूँ?" अपर्णा उठ खड़ी हुई और मेजर साहब की खुली बाँहों में चली गयी और बोली, "क्यों नहीं? मेरे पति किसी और औरत की बाँहों में हैं। पर सच कहूं कपूर साहब? मुझे डांस करना नहीं आता।"
कपूर साहब ने कहा, "कोई बात नहीं। आप मेरे बदन से साथ झूमते हुए थिरकते रहिये। धीरे धीर लय के साथ झूमते हुए आप सिख जाएंगे।" कपूर साहब करीब पैंतालीस साल के होंगे। आर्मी की नियमित कसरत बगैरह की आदत के कारण उनका बदन सुगठित था और उनके चपल चहल कदमी से लगता था की वह बड़े फुर्तीले थे। उनके सर पर कुछ सफ़ेद बाल दिख रहे थे जो उनके सुन्दर चेहरे पर जँचते थे। अपर्णा ने पूछा, "क्या आप अकेले हैं?" कपूर साहब ने फ़ौरन जवाब दिया, "नहीं, मेरी पत्नी भी आयी है।" फिर दूर कोने की और इशारा करते हुए उन्होंने कहा, "वह जो उस कोने में जीन्स और डार्क ब्लू टॉप पहने हुए सुन्दर सी महिला उस अधेड़ पुरुष के साथ डांस करती दिख रही है, वह मेरी पत्नी पूजा है।" अपर्णा ने देखा तो वह सुन्दर महिला एक आर्मी अफसर के साथ काफी करीबी से डांस कर रही थी।" अपर्णा का मन किया की वह पूछे की वह मर्द कौन था? पर फिर उसने पूछने की जरूरत नहीं समझी। कपूर साहबी काफी रोमांटिक लग रहे थे। वह अपर्णा को एक के बाद एक कैसे स्टेप लेने चाहिए और कब अलग हो जाना है और कब एक दूसरेसे चिपक जाना है इत्यादि सिखाने लगे। अपर्णा तो वैसे ही बड़ी कुशाग्र बुद्धि की थी और जल्द ही वह संगीत के लय के साथ कपूर साहब का डांस में साथ देने लगी। कपूर साहबभी काफी रूमानी मिजाज के लग रहे थे। जब बदन चिपका ने मौक़ा आता था तब कपूर साहब मौक़ा छोड़ते नहीं थे। वह अपर्णा का बदन अपने बदन से चिपका लेते थे। अपर्णा को महसूस हुआ की कपूर साहब का लण्ड खड़ा हो गया था और जब कपूर साहब उससे चिपकते थे तब अपर्णा उसे अपनी जाँघों के बिच महसूस कर रही थी। पर उसे कुछ बुरा नहीं लगता था। वह भली-भाँति जानती थी ऐसे हालात में बेचारे मर्द का लण्ड करे तो क्या करे? ऐसे हालात में अगर औरत को भी कोई अपनी मर्जी के पुरुष के करीब आने का मौक़ा मिले तो क्या उसकी चूत में और उसकी चूँचियों में हलचल मच नहीं जाती? तो भला पुरुष का ही क्या दोष? पुरुष जाती तो वैसे ही चुदाई के लिए तड़पती रहती है।
मेजर कपूर ने अपर्णा से पूछा, "अपर्णाजी क्या आप के पति यहाँ नहीं है?" अपर्णा ने रोहित को दिखाते हुए कहा, "कपूर साहब! वह सबसे खूबसूरत महिला जिनके साथ डांस कर रही है वह मेरे पति हैं।" कपूर साहब बोल पड़े, "अरे वह तो मिसिस अभिजीत सिंह है।" अपर्णा ने कहा, "कमाल है साहब, आप अपने आप उन्हें मिसिस अभिजीत सिंह क्यों कह रहे हैं?"हाँ वही श्रेया हैं। देखा आपने वह कितना करीबी से मेरे पति के साथ डांस कर रहीं हैं?" कपूर साहब ने कहा, "तो फिर आपको किसने रोका है? आप भी तो मेरे साथ एकदम करीबी से डांस कर सकती हैं।" अपर्णा ने अपनी आँख नचाते हुए पूछा, "अच्छा? क्या आप की पत्नी बुरा तो नहीं मानेगी?" कपूर साहब ने कहा, "भाई अगर आपके पति बुरा नहीं मानेंगे तो मेरी पत्नी क्यों बुरा मानेंगी? वह तो खुद ही उन साहब की बाँहों में चिपक कर डांस कर रही है।" अपर्णा ने कहा, "ठीक है फिर तो।" बस इतना बोल कर अपर्णा चुप हो गयी। कपूर साहब को तो जैसे खुला लाइसेंस ही मिल गया हो वैसे वह अपर्णा को अपनी बाँहों में दबाकर बड़ी उत्कटता से अपनी जाँघों से अपर्णा की जांघें रगड़ते हुए डांस करना शुरू किया। संगीत में चंद मिनटों का ब्रेक हुआ।
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मेजर कपूर और अपर्णा अलग हुए। मेजर कपूर फ़ौरन व्हिस्की के दो गिलास ले आये और अपर्णा को एक थमाते हुए बोले, "देखिये मोहतरमा, मैं सरहद पर तैनात हूँ। कल ही सरहद से आया हूँ। अगले हफ्ते फिर सरहद पर लौटना है। जिस तरह से सरहद पर लड़ाई छिड़ने का माहौल है, पता नहीं कल ही बुलावा आ जाये। और फिर पता नहीं मैं अपने पाँव से चलके आऊं या फिर दूसरों के कंधों पर। पता नहीं फिर हम मिल पाएं भी या नहीं। तो क्यों हम दोनों अकेले ही इस समाँ को एन्जॉय ना करें? कहते हैं ना की "कल हो ना हो"
अपर्णा को याद आया की जीतूजीने अपनी पत्नी श्रेया को भी यह शब्द कहे थे। अपर्णा सोच रही थी की इन शब्दोंमें कितनी सच्चाई थी। उसने खुद कई सगे और सम्बन्धियों की लाशें खुद देखीं थीं। उसे अपने पिता की याद आ गयी। अपर्णा ने भगवान् का शुक्र किया की उसके पिता जख्मी तो हुए थे, पर उनको अपनी जान नहीं गँवानी पड़ी थी। अपर्णा ने एक ही झटके में व्हिस्की का गिलास खाली कर दिया। यहाँ अपर्णा के व्यक्तित्व के बारे में एक बात कहनी जरुरी है। वैसे तो अपर्णा एक साधारण सी भारतीय नारी ही थी। वह थोड़ी सी वाचाल, बुद्धि की कुशाग्र, शर्मीली, चंचल, चुलबुली और एक पतिव्रता नारी थी। पर जब उसे शराब का नशा चढ़ जाता था तब अपर्णा की हरकतें कुछ अजीबोगरीब हो जाती थीं। अपर्णा को जानने वाला यह मान ही नहीं सकता था की वह अपर्णा थी। उसके हावभाव, उसकी वाचा, उसके चलने एवं बोलने का ढंग एकदम ही बदल जाता था। यह कहना मुश्किल था की वह असल में अपर्णा ही थी। रोहित को ऐसा अनुभव दो बार हुआ।
एक बार ऐसा हुआ की पार्टी में दोस्तों के आग्रह से अपर्णा ने कुछ ज्यादा ही पी ली। पिने के कुछ देर तक तो अपर्णा बैठी सबकी बातें सुनती रही। फिर जब उसे नशे का शुरूर चढ़ने लगा तब अपर्णा ने रोहित के एक दोस्त का हाथ पकड़ कर उस आदमी को रोहित समझ कर उसे चिपक कर उसे सबके सुनते हुए जल्दी से घर चलने का आग्रह करने लगी। वह जोर जोर से यही बोलती रही की "पार्टी में आने से पहले तो तुम मुझे बार बार कहते थे की आज रात को बिस्तर में सोने के बाद खूब मौज करेंगे? तो चलो ना, अब पार्टी में देर क्यों कर रहे हो? आज तो मेरा भी बड़ा मन कर रहा है। चलो जल्दी करो, कहीं तुम्हारा मूड (??!!) ढीला ना पड़ जाए!" वह रोहित का दोस्त बेचारा समझ ही नहीं पाया की वह रोये या हँसे?
दूसरी बार अपर्णा ने दो पेग व्हिस्की के लगाए तब अचानक ही वह योद्धांगिनी बन गयी और वहाँ खड़े हुए सब को चुनौती देने लगी की यदि उसके हाथ में ३०३ का राइफल होता तो वह युद्ध में जाकर दुश्मनों के दाँत खट्टे कर देती। और फिर वह वहाँ खडे हुए लोगों को ऐसे आदेश देने लगी जैसे वह सब लोग फ़ौज की कोई टुकड़ी हो और अपर्णा को सेना के जवानों की टुकड़ी का लीडर बनाया गया हो। अपर्णा चाहती थी की उस का कमांड सुनकर वहाँ खडे लोग परेड शुरू करें। वह "लेफ्ट, राइट, आगे बढ़ो, पीछे मूड़" इत्यादि कमांड देने लगी थी। जब वह लोग उलझन में खड़े देखते रहे तब अपर्णा ने उन लोगों को ऐसा झाड़ना शुरू किया की, "शर्म नहीं आती, आप सब जवानों को? तनख्वाह फ़ौज से लेते हो और हुक्म का पालन नहीं करते?" इत्यादि। बड़ी मुश्किल से रोहित ने सबसे माफ़ी मांगीं और अपर्णा को समझा बुझा कर घर ले आये।
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रोहित ने अपर्णा को एक बार एक विशेषज्ञ साइक्याट्रिस्ट को दिखाया तो उन्होंने कुछ टेस्ट करने के बाद कहा था, "चिंता की कोई बात नहीं है। अपर्णा की नशा हजम करने की क्षमता दूसरे लोगों से काफी कम है। बस अपर्णा को शराब से दूर रखा जाय तो कोई दिक्कत नहीं है। जैसे ही वह ज्यादा नशीली शराब जैसे व्हिस्की, रम, वोदका आदि थोड़ी सी ज्यादा पी लेती हैं तो उनका मन चंचल हो उठता है। जब तक उनपर नशे का शुरुर छाया रहता है तब तक वह उस समय उनके मन में चल रही इच्छा को अपने सामने ही फलीभूत होते हुए देखती है। मतलब वह यातो अपने को कोई और समझ लेती है या फिर किसी और को अपने मन पसंद किरदार में देखने लगती है। अगर उस समय अपर्णा के मन में शाहरूख खानके बारे में विचार होते हैं तो वह किसी भी व्यक्ति को शाहरूख खान समझ लेती है और उससे उसी तरह पेश आती है। उस समय यदि उसका मन कोई फिल्म में एक्टिंग करने का होता है वह खुद को एक्टर समझ लेती है और एक्टिंग करने लग जाती है। नशा उतरते ही वह फिर अपनी मूल भूमिका में आ जाती है। उसे पता तो चलता है की उसने कुछ गड़बड़ की थी। पर उसे याद नहीं रहता की उसने क्या किया था। तब फिर उसे अफ़सोस होने लगता है और वह अपने किये कराये के लिए माफ़ी मांगने लग जाती है और उस समय उसे सम्हालने वाले पर काफी एहसान मंद हो जाती है।" साइक्याट्रिस्ट की राय जान कर रोहित की जान में जान आयी। इसी लिए रोहित ख़ास ध्यान रखते थे की अपर्णा को कोई ज्यादा मद्य पेय (व्हिस्की, रम, वोदका आदि) ना दे। जब कोई ज्यादा आग्रह करता तो अपर्णा को रोहित थोड़ा सा बियर पिने देते, पर बस एकाद घूँट अंदर जाते ही रोहित उसका ग्लास छीन लेते इस डर से की कहीं उसको चढ़ ना जाए और वह कोई नया ही बवंडर खड़ा ना करदे। पर उस दिन शाम उस समय रोहित कहीं आगे पीछे हो गए और अंकिता, गौरव साहब बगैरह लोगों ने मिलकर अपर्णा को व्हिस्की पिला ही दी।
नशे का सुरूर अपर्णा पर छा रहा था। सेना के जवानों की शूरवीरता और बलिदानकी वह कायल थी। वह खुद भी देश के लिए बलिदान करने के लिए पूरी तरह तैयार थी। शराब का नशा चढ़ते ही अपर्णा के दिमाग में जैसे कोई बवंडर सा उठ खड़ा हुआ। उसको अपने सामने मेजर कपूर नहीं, कर्नल अभिजीत सिंह (जीतूजी) दिखाई देने लगे। वह जीतूजी, जो देश के लिए अपनी जान देने के लिए सदैव तैयार रहते थे। वह जीतूजी जिन्होंने अपर्णा के लिए क्या कुछ नहीं किया? जब कपूर साहब ने अपर्णा से कहा की वह देश के लिए अपनी जान तक देने के लिए तैयार थे तो अपर्णा सोचने लगी, "जब जीतूजी देश के लिए अपनी जान तक देने के लिए तैयार थे तो भला ऐसे जाँबाज़ के लिए देशवासियों का भी कर्तव्य बनता है की वह उनके लिए अपना सबकुछ कुर्बान करदें। अगर उनकी इच्छा सेक्स करने की हो तो क्या अपर्णा को उनकी इच्छा पूरी नहीं करनी चाहिए?" अपर्णा ने कपूर साहब से कहा, "जीतूजी, आप मेरे पति की चिंता मत करिये। आप मेरे वचन की भी चिंता मत करिये। जब आप देश के लिए अपनी जान तक का बलिदान करने के लिए तैयार हैं तो मैं आपको आगे बढ़ने से रोकूंगी नहीं। चलिए मैं तैयार हूँ। पर यहां नहीं। यहां सब देखेंगे। बोलिये कहाँ चलें?" कपूर साहब अपर्णा को देखते ही रहे। इनकी समझ में नहीं आया की यह जीतूजी कौन थे और अपर्णा कौनसे वचन की बात कर रही थी? अपर्णा उन्हें जीतूजी कह कर क्यों बुला रही थी? पर फिर उन्होंने सोचा, "क्या फर्क पड़ता है? जीतूजी बनके ही सही, अगर इतनी खूबसूरत मोहतरमा को चोदने का मौक़ा मिल जाता है तो क्यों छोड़ा जाये, जब वह खुद सामने चलकर आमंत्रण दे रही थी?"
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कपूर सर ने कहा, "मुझे कोई चिंता नहीं। आइये हम फिर इस भीड़ से कहीं दूर जाएँ जहां सिर्फ हम दोनों ही हों। और फिर हम दोनों एक दूसरे में खो जाएँ।" यह कह मेजर साहब ने अपर्णा का हाथ पकड़ा और उसे थोड़ी दूर ले चले। अपर्णा ने भी उतने जोश और प्यारसे जवाब दिया, "जीतूजी, मैं आप को प्यार करने ले लिए ही तो हूँ और रहूंगी। आपको मुझे पूछने की जरुरत नहीं।" अपर्णा नशे में झूमती हुई मेजर साहब के पीछे पीछे चलती बनी। कपूर साहब के तो यह सुनकर वारे न्यारे हो गए। उन्होंने हाथ बढ़ाकर अपर्णा के टॉपके बटन खोलने शुरू किये। अपर्णा भी कपूर साहब की जाँघों के बिच में हाथ डालने वाली ही थी की अचानक नजदीक में ही कपूर साहब को "अपर्णा अपर्णा" की पुकार सुनाई दी। वो आवाज रोहितकी थी। उनकी आवाज सुनकर कपूर साहब जैसे ज़मीन में गाड़ दिए गए हों, ऐसे थम गए। अपर्णा अँधेरे में इधर उधर देखने लगी की कौन उसे आवाज दे रहा था। कुछ ही देर में रोहित अपर्णा और कपूर साहब के सामने हाजिर हुए। इतने घने अँधेरे में भी सितारोँ की हलकी रौशनी में अपने पति को देखते ही अपर्णा झेंप सी गयी और भाग कर उनकी बाँहों में आ गयी और बोली, "रोहित देखिये ना! जीतूजी मुझसे कुछ प्यारी सी बातें कर रहे थे। वह मुझसे प्यार करना चाहते हैं। क्या मैं उनसे प्यार कर सकती हूँ? तुम्हें कोई आपत्ति तो नहीं है ना?" रोहित अपनी पत्नी अपर्णा को हक्केबक्के देखते ही रह गए। जब उन्होंने कपूर साहब को देखा तो रोहित कुछ ना बोल सके। वह समझ गए की कपूर साहब अपर्णा को फुसला कर वहाँ ले आये थे और नशे में धुत्त अपर्णा, कपूर साहब को जीतूजी समझ कर कपूर साहब के साथ वहाँ आयी थी। रोहित किसको क्या कहे? रोहित को वहाँ देखकर कपूर साहब शर्मिन्दा हो कर सिर्फ "आई ऍम सॉरी" कह कर वहाँ से चलते बने और कुछ ही देर में अँधेरे में ओझल हो गए। रोहित ने प्यार से अपर्णा को गले लगाया और कहा, "डार्लिंग, अभी वापस चलते हैं, फिर अपने कमरे में पहुँच कर बात करते हैं।"
रोहित ने अपनी पत्नी अपर्णा को प्यार से पकड़ कर अपने साथ ले लिया और कैंटीन की और चल पड़े। कैंटीन में पहुंचकर उन्होंने अपर्णा और अपने लिए डिनर मंगवाया और अपर्णा को अपने हाथों से खिलाकर अपर्णा को प्यार से वैसे ही बच्चे की तरह पकड़ कर अपने स्युईट की और चल दिए। रास्ते में अपर्णा ने अपने पति का हाथ थाम कर उनसे नजरें मिलाकर पूछा, "रोहित, आप बताइये ना, क्या मैंने शराब के नशे में कुछ उलटिपुलटि हरकत तो नहीं की?" रोहित ने अपनी पत्नी की और प्यारसे देख कर अपर्णा के बालों में अपने होँठ से चुम्बन करते हुए कहा, "नहीं डार्लिंग, कुछ नहीं हुआ। तुम थकी हुई हो। थोड़ा आराम करोगी तो सब ठीक हो जाएगा।" अपर्णा अपने पति की बात सुनकर चुपचाप एक शरारत करते हुए पकडे जाने वाले बच्चे की तरह उनके साथ अपने कमरे में जा पहुंची। वहाँ पहुँचते ही अपर्णा भागकर पलंगपर लेटने लगी पर रोहित ने अपर्णा को प्यार से बिठाकर उसका स्कर्ट और टॉप निकाल फेंका। सिर्फ ब्रा और पेंटी पहने लेटी हुई अपनी खूबसूरत बीबी को कुछ समय तक रोहित देखते ही रहे फिर उसे उसका नाइट गाउन पहनाने लगे। अपर्णा ने जब अपने पति को कपडे बदलते हुए पाया तो उसने उठकर अपने आप अपना नाइट गाउन पहन लिया और अपने बदन को इधर उधर करते हुए अपनी ब्रा और पेंटी निकाल फेंकी और लेट गयी। कोने में जल रही सिगड़ी से दोनों कमरों में काफी आरामदायक तापमान था। रोहित ने देखा की अपर्णा कुछ ही मिनटों में गहरी नींद सो गयी। रोहित अपनी पत्नी को बिस्तर पर बेहोश सी लेटी हुई देख रहे थे। उसका गाउन पलंग पर फैला हुआ उसकी जाँघों के ऊपर तक आ गया था। अपर्णा की नंगी माँसल जाँघों को देख कर रोहित का लण्ड खड़ा हो गया था। वह बेहाल लेटी हुई अपनी बीबी को देख रहे थे की कुछ ही पलों में रोहित को अपनी पत्नी अपर्णा के खर्राटे सुनाई देने लगे।
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रोहित पलंग के पास से हट कर खिड़की के पास खड़े हो कर सोचते हुए अँधेरे में दूर दूर जंगल की और सितारों की रौशनी में देख रहे थे तब उन्हें भौंकते और रोते हुए भेड़ियों की आवाज सुनाई दी। उन्होंने कई बार शहर में भौंकते हुए कुत्तों की आवाज सुनी थी पर यह आवाज काफी डरावनी और अलग थी। रोहित की समझ में यह नहीं आ रहा था की यह कैसी आवाज थी। तब रोहित ने जीतूजी का हाथ अपने काँधों पर महसूस किया। जीतूजी और श्रेया अपने कमरे में आ चुके थे। श्रेया कपडे बदल ने के लिए वाशरूम में गयी थी। रोहित को खिड़की के पास खड़ा देख कर जीतूजी वहाँ पहुँच गए और उन के पीछे खड़े होकर जीतूजी ने कहा, "यह जो आवाज आप सुन रहे हो ना, वह क्या है जानते हो? यह कोई साधारण जंगली भेड़िये की आवाज नहीं। यह आवाज सेनाके तैयार कियेगए ख़ास भयानक नस्ल के कुत्तों की आवाज है।" जीतूजी ने थोड़ा थम कर फिर बात आगे बढ़ाते हुए कहा, "सेना में इन कुत्तों को खास तालीम दी जाती है। इनका इस्तेमाल ख़ास कर दुश्मनों के बंदी सिपाही जब कैद से भाग जाते हैं तब उनको पकड़ ने के लिए किया जाता है। उनको अंग्रेजी में "हाऊण्ड" कहते हैं। यह कुत्ते "हाऊण्ड", जानलेवा होते हैं। इनसे बचना लगभग नामुमकिन होता है। कैद से भागे हुए कैदी सिपाही के कपडे या जूते इन्हें सुँघाये जाते हैं। अगर कैदी को मार देना है तो इन हाउण्ड को कैदियों के पीछे खुल्ला छोड़ दिया जाता है। हाउण्ड उन कैदियों को कुछ ही समय में जंगल में से ढूंढ निकालते हैं और उनको चीरफाड़ कर खा जाते हैं। अगर क़ैदियों को ज़िंदा पकड़ना होता है तो सेना के जवान इन हाउण्ड को रस्सी में बाँध कर उनके पीछे दौड़ते रहते हैं। यह हाउण्ड कैदी की गंध सूंघते सूंघते उनको जल्द ही पकड़ लेते हैं।" जीतूजी ने बड़ी गंभीरता से कहा, "रोहित मेरी समझ में यह नहीं आता की यह हाउण्ड किसके हैं। हमारी सेना ने तो इस एरिया में कोई हाउण्ड नहीं रखे। तो मुमकिन है की यह दुश्मनों के हाउण्ड हैं। अगर ऐसा है तो हमारी सीमा में दुश्मनों के यह हाउण्ड कैसे पहुंचे? मुझे डर है की जल्द ही कुछ भयानक घटना घटने वाली है।"
जीतूजीकी बात सुनकर रोहित चौंक गए। रोहित ने पूछा, "जीतूजी कहीं ऐसा तो नहीं की हमारी सेना के कुछ जवानों को दुश्मनने कैदी बना लिया हो?" जीतूजी ने अपने हाथ अपनी स्टाइल में झकझोरते हुए कहा, "ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। यही तो सोचनेवाली बात है। कुछ ना कुछ तो खिचड़ी पक रही है, और वह क्या है हमें नहीं पता।" रोहितने घूमकर जीतूजी का हाथ थामकर कहा, "जीतूजी, आप बहुत ज्यादा सोचते हो। भला दुश्मन के सिपाहियों की इतनी हिम्मत कहाँ की हमारी सीमा में घुस कर ऐसी हरकत करें? क्या यह नहीं हो सकता की हम अपना दिमाग बेकार ही खपा रहे हों और वास्तव में यह आवाज जंगली भेड़ियों की ही हो?" जीतूजी ने हार मानते हुए कहा, "पता नहीं। हो भी सकता है।"
रोहित ने जीतूजी की नजरों से नजर मिलाते हुए पलंग में लेटी हुई अपनी बीबी अपर्णा की और इशारा करते हुए कहा, "फिलहाल तो मुझे अपर्णा के खर्राटों की दहाड़ का मुकाबला करना है। पता नहीं आपने उस पर क्या वशीकरण मन्त्र किया है की वह आपकी ही बात करती रहती है।" रोहित की बात सुनकर जीतूजी को जब सकते में आते हुए देखातो रोहित मुस्कुराये और फिरसे जीतूजी का हाथ थाम कर अपने पलंग के पास ले गए जहां अपर्णा जैसे घोड़े बेचकर बेहाल सी गहरी नींद सो रही थी। अपनी आवाज में कुछ गंभीरता लाते हुए रोहित ने कहा, "जीतूजी मैं आपसे एक बात पूछना चाहता हूँ। क्या आप बुरा तो नहीं मानेंगे?" बड़ी मुश्किलसे अपर्णा की माँसल जाँघों परसे अपनी नजर हटाकर जीतूजीने आश्चर्य भरी निगाहों से रोहित की और देखा। अपना सर हिलाते हुए जीतूजी ने बिना कुछ बोले यह इशारा किया की वह बुरा नहीं मानेंगे।
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रोहित बोले, "जीतूजी, क्या आप अब मुझे और अपर्णा को अपना अंतरंग साथी नहीं मानते?" जीतूजी ने जवाब दिया, "हाँ मैं और श्रेया आप दोनों को अपना घनिष्ठ अंतरंग साथी मानते हैं। इसमें पूछने वाली बात क्या है?" रोहित ने कहा, "तब फिर क्या हम दोनों पति पत्नी की जोड़ियों में कोई पर्दा होना चाहिए?" जीतूजी ने फ़ौरन कहा, "बिलकुल नहीं होना चाहिए। पर आप यह क्यों पूछ रहे हैं?" रोहित ने कहा, "मैं भी यही मानता हूँ। पर मैं यहां यह कहना चाहता हूँ की कुछ बातें इतनी नाजुक होती हैं, की उन्हें कहा नहीं जाना चाहिए। हम लोगों को उन्हें बिना कहे ही समझ जाना चाहिए। मैं हम दोनों पति पत्नियों के बिच के संबंधों की बात कर रहा हूँ। मैं चाहता हूँ की हम दोनों जोड़ियों के बिच किसी भी तरह का कोई भी परायापन ना रहे l अगर हम सब एक-दूसरे के घनिष्ठ अंतरंग हैं तो फिर खास कर अपने पति या अपनी पत्नी के प्रति एक दूसरे के पति या पत्नी से सम्बन्ध के बारे में किसी भी तरह का मालिकाना भाव ना रक्खें। मुझे यह कहने, सुनने या महसूस करने में कोई परेशानी या झिझक ना हो की अपर्णा आपसे बेतहाशा प्यार करती है और आपको भी वैसे ही श्रेया के बारे में हो।" जीतूजी ने रोहित का हाथ थामते हुए कहा, "बिलकुल! मेरी और श्रेया की तो इस बारे में पहले से ही यह सहमति रही है। फिर रोहित की और प्यार से देखते हुए जीतूजी बोले, "रोहित, आप चिंता ना करें। आप और श्रेया के बिच के भाव, इच्छा और सम्बन्ध को मैं अच्छी तरह जानता और समझता हूँ। मेरे मन में आप और श्रेया को लेकर किसी भी तरह की कोई दुर्भावना नहीं है। आप दोनों मेरे अपने हो और हमेशा रहोगे। आप दोनों के बिच के कोई भी और किसी भी तरह के सम्बन्ध से मुझको कोई भी आपत्ति नहीं है ना होगी।"
पलंग पर मदहोश लेटी हुई अपर्णा की और देखते हुए अपनी आवाज में अफ़सोस ना आये यह कोशिश करते हुए जीतूजी ने कहा, "जहां तक मेरा और अपर्णा के सम्बन्ध का सवाल है, तो मैं यही कहूंगा की अपर्णा की अपनी कुछ मजबूरियां हैं। मैं भी अपर्णा से बेतहाशा प्यार करता हूँ। मैं अपर्णा की बड़ी इज्जत करता हूँ और साथ साथ में उसकी मजबुरोयों की भी बड़ी इज्जत करता हूँ।" यह कह कर जीतूजी बिना कुछ और बोले अपने मायूस चेहरे को रोहित की नज़रों से छुपाते हुए, बिच वाले खुले किवाड़ से अपने पलंग पर जा पहुंचे जहां श्रेया ने अपनी बाँहें फैलाकर उनको अपने आहोश में ले लिया। दोनों पति पत्नी एक दूसरे से लिपट गए। रोहित जी हैरान से देख रहे थे की उनकी निगाहों की परवाह किये बगैर जीतूजी श्रेया को पलंग पर लिटा कर उसके ऊपर चढ़ गए और श्रेया के गाउन के ऊपर से ही श्रेया के बड़े मम्मों को दबाने लगे। दोनों कमरे पूरी तरह प्रकाशित थे। रोहित श्रेया और जीतूजी को अच्छी तरह प्यार करते हुए देख सकते थे। जीतूजी ने श्रेया के कानों में कुछ कहा। यह सुनकर श्रेया कुछ मुस्कुरायी और उसने शरारत भरी नज़रों से रोहित की और अपना सर घुमा कर देखा। फिर अपनी हथेली को किस कर श्रेया ने एक फूंक मार कर जैसे उस किस को रोहित की दिशा में फेंकने का इशारा किया और अपने पति जीतूजी के निचे लेटी हुई श्रेया अपने पति जीतूजी के पयजामे में हाथ डाल कर उनका लण्ड एक हाथ में पकड़ उसे सहलाने लगी। अपर्णा के साथ दिन में हुए कई निजी सम्पर्कों की वजह से जीतूजी काफी उत्तेजित थे। श्रेया का हाथ लगते ही जीतूजी का लण्ड खड़ा होने लगा। श्रेया के थोड़े से हिलाने पर ही उसने अपना पूरा लंबा और मोटा आकार धारण कर लिया।
श्रेया ने फ़टाफ़ट जीतूजी के पाजामे का नाडा खोला और अपने पति के लण्ड को आज़ाद कर उस को लण्ड प्यार से हिलाने और सहलाने लगी। जीतूजी ने रोहित की नज़रों के परवाह किए बगैर श्रेया के छाती के आगे वाली ज़िप खोल दी और श्रेया ने उन्मत्त स्तनोँ को दोनों हाथों की हथेलियाँ फैलाकर उनसे खेलने लगे। जीतूजी और उनकी बीबी श्रेया की उनके पलंग पर हो रही प्रेमक्रीड़ा देख कर रोहित का लण्ड भी उनके पाजामे में फुंफकारने लगा।
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उन्हीने भी अपर्णा की छाती वाली ज़िप खोल कर अपर्णा के उन्मत्त स्तनोँ को अपने बंधन से आजाद किया और अपने हाथों की हथेलियों में लेकर वह भी उन से खेलने लगे। अपने पति की हरकतें महसूस कर अपर्णा नींद में से जाग गयी। जागते ही उसे समझ में आया की शराब पीने के बाद उसने कुछ गलत हरकत की थी। उसे धुंधला सा मेजर कपूर साहब का चेहरा याद आ रहा था पर आगे कुछ नहीं याद आ रहा था। अपर्णा अपने आप दोषी महसूस कर रही थी। उसे यह तो समझ में आ रहा था की कहीं ना कहीं उसने मेजर कपूर के साथ ऐसा कुछ किया था जिससे उसकी अपनी और उसके पति रोहित की इज्जत को उसने ठेस पहुंचाई थी। अगर रोहित वहाँ सही समय पर नहीं पहुँचते तो पता नहीं शायद मेजर कपूर अपर्णा को चोद ही देते और शायद इसके लिए अपर्णा ने खुद सहमति दिखाई होगी क्यूंकि वरना इतने लोगों के सामने उनकी क्या हिम्मत की वह अपर्णा पर जबरदस्ती कर सके? अपर्णा अपने पति रोहित की दोषी भी थी और साथ साथ में आभारी भी थी क्यूंकि उन्होंने अपर्णा को उस बदनामी और अपराध से बचा लिया, और फिर अपर्णा का वचन भी ना टूटा। अपर्णा ने तय किया की उसको इसके लिए अपने पति को कुछ पारितोषिक (उपहार) तो देना ही चाहिए। भला एक खूबसूरत पत्नी अपने पति से अगर दिल खोल कर बढ़िया चुदाई करवाए तो उससे कोई भी पति के लिए और बढ़िया पारितोषिक क्या हो सकता है?
पर इस में एक और मुश्किल थी। जीतूजी के और उनके कमरे के बिच वाला किवाड़ खुला जो था उपर से कमरे की बत्तियां भी जल रहीं थीं। ऐसे में अगर वह स्वच्छंद चुदाई करवाना चाहे तो ख़ास करके उन्हें चुदाई करते हुए नंगी देख सकते हैं। यह सच था की अपर्णा जीतूजी के सामने आधी से भी ज्यादा नंगी तो हुई ही थी, पर पूरी तरह से नंगी होना और चुदाई करवाते हुए किसी को दिखाना एक अलग बात थी। हालांकि जब अपर्णा यह सब सोच रही थी तब श्रेया अपने पति जीतूजीसे काफी कुछ सेक्सकी अठखेलियां कर रही थी। अपर्णा ने एक बार उन दोनों को नंगी हरकतें करते हुए देखा भी। पर उसने फिर अपनी आँखें फिरा लीं और उनकी हरकतों को अनदेखा कर दिया। अपर्णा ने अपने पति को अपने पास खींचा और बोली, "हाय राम! इन्हें तो देखो! कैसे खुल्लम खुल्ला बेशर्मी से एक दूसरे से मस्ती कर रहे हैं?" फिर कुछ बेफिक्री की अदा दिखाते हुए अपर्णा ने कहा, "वैसे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता उन्हें जो करना है वह करे! आखिर वह पति पत्नी जो हैं? पर मैं ऐसा आपके साथ खुल्लमखुल्ला नहीं कर सकती और कम से कम जीतूजी के सामने तो बिलकुल नहीं। "
रोहित ने अपर्णा को अपनी बाँहों में खींचते हुए कहा, "अरे यार तुम ना? बेकार की इन चक्करोंमें पड़ी रहती हो। आजाओ चलो खुल्लम-खुल्ला ना सही, चद्दर के निचे तो करने दोगी लोगी ना? इनको देख कर तो मेरा लण्डभी खड़ा हो रहा है। क्या तुम मेरा इलाज नहीं करोगी?" अपर्णा ने अपने पति रोहित से कहा, "हे भगवान्! मैं क्यों नहीं करुँगी? मैं जानती हूँ की ट्रैन में मैं आपको अच्छी तरह से आनंद दे नहीं पायी। हमेशा कोई उठ जाएगा, कोई देख लेगा यह डर रहता था। पर आज मौक़ा है। मेरा भी मन आप से जबरदस्त करवाने का है। पर आपने तो यहां मेरे लिए इस किवाड़ को खुला रख कर एक मुसीबत ही खड़ी कर दी है। अब मैं आपसे कैसे खुल्लमखुल्ला करवा सकती हूँ? क्या हम यह किवाड़ बंद नहीं कर सकते?" रोहित ने अपनी बीबी की और देखा और उसे अपनी बाँहों में ले कर उसके गाउन में हाथ डालकर उसकी चूँचियों को मसलते हुए कहा, "जानेमन, हमने सब मिलकर यह तय किया था की हम दोनों कपल एक दूसरे के बिच पर्दा नहीं रखेंगे। तुमने यह वचन श्रेया को भी दिया था।" अपर्णा अपने पतिकी बात सुनकर चुप हो गयी।
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फिर उसने अपने पति के कान में मुंह डाल कर धीरे से कहा, "ठीक है, पर लाइट तो बंद करो?" रोहितने कहा, "देखो तुमने कहातो मैं मान गया की चलो चद्दर के निचे चोदेंगे। अब तुम कह रही हो लाइट बंद करो! तुम्हारी शर्तें तो हर पल बढ़ती ही जाती हैं। लगता है तुम्हें चुदवाने का मूड़ नहीं है। अगर ऐसा है तो साफ़ साफ़ कहो। मैं तुम्हें परेशान नहीं करना चाहता। पर अगर लाइट बंद करने मैं गया तो वह जो तुम्हारा आर्मी वाला आशिक है ना? वह दहाड़ने लगेगा! अगर फिर भी तुम्हें लाइट बंद करनी ही हो तो तुम उठो, मैं तो नहीं जाऊंगा। तुम्ही खड़ी हो कर जाओ और जाकर खुद ही लाइट बंद करो। फिर अगर जीतूजी गुस्सा होंगे तो मुझे मत कहना।" अपर्णा सोच में पड़ गयी। रोहित को बात तो सही थी। एक बार पहले भी तो अपर्णा जीतूजी से झाड़ खा चुकी थी जब अपर्णा स्विमिंग कॉस्टूयूम में जीतूजी के सामने जाने में हिचकिचा रही थी।
कुछ सोच कर अपर्णा ने कहा, "चलो ठीक है। आखिर वह मियाँ बीबी हैं तो हम भी तो मियाँ बीबी ही है ना? अगर हम एक दूसरे से सेक्स करते हैं तो कौनसी नयी बात है? हर मियाँ बीबी रात को सेक्स तो करते ही है ना?" रोहित ने अपर्णा के मुंह पर हाथ रख कर कहा, "डार्लिंग! हम यहां घूमने आये हैं। अगर तुम घुमा फिरा कर ना बोलो और अगर चुदाई की ही बात करती हो तो बोलो चुदाई करवानी है! अगर ऐसा बोलोगी तो कौनसा पहाड़ टूट पड़ने वाला है? खुल्लम खुल्ला बोलो तो चोदने का और मजा आता है।" अपर्णा ने अपनी ही लाक्षणिक अदा में अपने पति को दोनों हाथ जोड़कर प्रणाम करती मुद्रा में कहा, "अच्छा मेरे पतिदेव, मैं हारी और तुम जीते। ठीक है भाई। चलो अब मैं सेक्स नहीं चुदाई ही कहूँगी, बस? खुश? तो चलो, पर फिर मेरी चुदाई करने के लिए तैयार हो जाओ।" रोहित ने अपना खड़ा लण्ड अपनी बीबी के हाथों में देते हुए कहा, "मैं तो कब का तैयार हूँ यह देखो।" अपर्णा ने अपने पति का लण्ड सहलाते हुए कहा, "हाँ भाई, यह तो बिलकुल लोहे की छड़ की तरह खड़ा है! और अपना रस भी खूब निकाल रहा है!" फिर थोड़ी धीमी आवाज में अपर्णा ने अपने पति के कानों में अपना मुंह डाल कर फुफुसाते हुए पूछा, "सच सच बताना, क्या श्रेया दीदी ने आज नहाते हुए अंगूठा दिखाया क्या? उन्हें चोदने का मौक़ा नहीं मिला क्या?" अपनी बीबी अपर्णा की बात सुन कर रोहित थोड़ा सा झेंप गए और बोले, "देखो डार्लिंग! सच कहूं? आज अगर मैं दस बार भी चोदुँगा ना? तो भी मेरा लण्ड ऐसा ही खड़ा रहेगा क्यूंकि चुदाई का मौसम है। मैं तो इस कैंप में आने के लिए इसी लिए तैयार हुआ था की यहां आते ही हम सब मिलकर खूब चुदाई करेंगे। शायद जीतूजी के मन में यह बात नहीं हो तो कह नहीं सकता। पर उन दोनों को अभी चुदाई की तैयारी करते हुए देख कर ऐसा तो नहीं लगता। और तुम यह मत कहना की तुम्हें पता नहीं था।" अपर्णा समझ गयी की उसके पति ने भले ही सीधासाधा ना माना हो की उन्होंने श्रेया को चोदा था। पर इधर उधर बात घुमाते हुए यह कबूल कर ही लिया की उन्होंने श्रेया की चुदाई उस वाटर फॉल के निचे जरूर ही की थी। पर बीबी जो थी! पति ने अगर श्रेया की चुदाई की तो वह जरूर उनसे कबूल करवाना चाहेगी।
अपर्णा ने कहा, "तो फिर तुम भी खुल्लमखुल्ला यह क्यों कबूल नहीं कर लेते हो की तुमने उस वाटर फॉल के निचे दीदी को अच्छी तरह से चोदा था?" रोहित की बोलती बंद हो गयी। अब वह झूठ तो बोल नहीं सकते थे। उनकी उलझन देख कर अपर्णा मुस्कराई और बोली, "चलो, छोडो भी, मुझे झूठ सुनना अच्छा नहीं लगेगा और सच बोलने की आपमें हिम्मत नहीं है। तो मैं कह देती हूँ की आज तुमने उस वाटर फॉल के निचे दीदी को खूब अच्छी तरह से चोदा था। अगर मेरी बात सही है तो तुम्हें कुछ बोलने की जरुरत नहीं है। और अगर मेरी बात गलत है तो तुम मना करो।" रोहित के चेहरे पर यह सुनकर हवाइयाँ उड़ने लगीं। वह चुप रहे।
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तब अपर्णा ने मुस्कराते हुए कहा, "आपका स्टैमिना मानना पडेगा मेरे पतिदेव! श्रेया को आज ही चंद घंटों पहले इतना चोदने के बाद भी अगर तुम्हारा लण्ड ऐसा तैयार है तो भाई मेरे खसम का जवाब नहीं।" फिर अपने पति का लण्ड हिलाते हुए अपर्णा ने अंग्रेजी झाड़ते हुए कहा, आई एम् प्राउड ऑफ़ यू डिअर हस्बैंड!" रोहित धीरे धीरे बीबी की बात सुनकर थोड़ा सम्हले और चद्दर से अपने आपको ढकने की परवाह ना करते हुए वह अपर्णा के ऊपर चढ़ कर अपर्णा को अपनी बाँहों में लेकर अपना मुंह अपर्णा के मुंह से सटाकर अपनी बीबी को गहरा चुम्बन करने लगे। दोनों हाथों से अपर्णा की मदमस्त चूँचियों को कुछ देर तक मसलते रहे और फिर बोले, "देखो डार्लिंग! अब हम दोनों कपल मित्रता से कहीं आगे बढ़ चुके हैं। क्या यह सब हमने जानबूझ कर नहीं किया है? तुम क्या यह मानती हो की नहीं? आज स्विमिंग करते हुए जो हुआ वह तो होना ही था। मैं तो कहता हूँ, तुम भी क्यों बेचारे जीतूजी को तड़पा रहीहो? क्या फरक पड़ता है? मैं जानता हूँ और तुम भी जानती हो की वह तुम्हें चोदने के लिए कितने बेताब हैं। हमें कौन देखेगा की हमने क्या किया? अगर तुम यह सोच रही हो की कहीं आगे चलकर कभी हम दोनों के बिच कोई रंजिश हो जाए तो कहीं मैं तुमपर तुम्हें जीतूजी से चुदवाने के बारे में ताना मारूंगा तो भरोसा रखो की ऐसा कभी भी नहीं होगा। इस बात का मुझ पर पूरा भरोसा रखो। मैं कभी भी यह ताना नहीं मारूंगा। बोलो क्या इसी लिए तुम अड़ी हुई हो?"
अपर्णा ने अपना सर हिलाते हुए कहा, "डार्लिंग! तुमतो बात का बतंगड़ बना रहे हो। ना भाई ना, ऐसी कोई बात नहीं है। मुझे मेरे लम्पट पति पर पूरा भरोसा है। मैं जानती हूँ की तुम ऐसा कुछ भी बोलोगे नहीं। तुम बोल कैसे सकते हो? जब तुम खुद ही मेरे सामने किसी और की बीबी को चोदते हो तब? और अगर तुमने कहीं गलती से भी ऐसा उल्टापुल्टा बोल दिया ना? तो मैं उसी वक्त तुम्हारा घर छोड़ कर चली जाउंगी। बात वह नहीं है।" सुनी ने पूछा, "तब बात क्या है डार्लिंग? बोलो ना? क्या तुम माँ के दिए हुए वचन से चिंतित हो? तो फिर माफ़ करना, पर तुम्हारी माँ कहाँ यहां आकर देखने वाली है की तुमने उसका वचन रखा या तोड़ा?" अपने पति की बात सुनकर अपर्णा अपने पति से एकदम अलग हो गयी। और कुछ रंजिश और कुछ गुस्से में बोली, "देखो डार्लिंग! मैं एक बात साफ़ कर देती हूँ। आपने और जीतूजी ने अगर मिलकर बीबी बदल कर चोदने की बात को अगर एग्री किया है तो बोलो। तुमने मुझे पहले से ही कहा था की ऐसी बात नहीं है l मैंने भी आपको पहले से ही कहा था की मैं कोई नैतिकता की देवी नहीं हूँ। शादी से पहले मैंने चुदवाया तो नहीं था पर जवानी के जोश में दो लड़कों का लंड जरूर हिलाया था और उनका माल निकाला भी था। मैं तुम्हें इसके बारे में बता चुकी हूँ। मैंने तुम्हें यह भी बताया था की जीतूजीने उस सिनेमा हॉल में अपना लण्ड मुझसे छुवाया था और उन्होंने मेरी ब्रेअस्ट्स दबायी भी थीं l आज झरने में स्विमिंग सीखते हुए जब मैं डूबने लगी थी तब अफरा-तफरी में आज फिर उनका लण्ड मेरे हाथों में आ गया था। उन्होंने जाने अनजाने में मेरी ब्रेअस्ट्स भी दबायी थीं। बल्कि कुछ पल के लिए तो मैं भी अपना होशो हवास खो बैठी थी पर उन्होंने मुझे सम्हाला और कहा की वह मेरी माँ का दिया हुआ वचन मुझे तोड़ने नहीं देंगे। वह एक सच्चे दिलके मालिक है और मैं भी एक राजपूतानी हूँ। मैंने तुम्हें साफ़ कर बता दिया है और अब हम इस के बारे में बात ना करें तो ही अच्छा है।"
अपर्णा ने अपने पति को झाड़ तो दिया पर उनकी बातें सुनकर वह बहुत गरम हो गयी थी। उसकी चूत में से रस चू ने लगा था। वह जीतूजी से तो चुदवा नहीं सकती थी पर अपने पति से जरूर चुदवा सकती थी। पति की उकसाने वाली बातें सुनकर उसकी चुदवाने की इच्छा तेज हो गयी। रोहित तो अपना लोहे की छड़ जैसा लण्ड लेकर तैयार ही थे। तब अचानकही अपर्णाको श्रेया के कराहने की आवाज सुनाई दी।
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अपर्णा ने ना चाहते हुए भी जीतूजी और श्रेया के कमरे की और मुड़कर देखा तो पाया की जीतूजी दोनों घुटनों पर बैठ कर अपनी बीबी श्रेया पर सवार हुए थे और अपना मोटा लंबा लौड़ा बेचारी श्रेयाकी छोटीसी चूतमें पेले जारहे थे। अपर्णा जीतूजी और श्रेया की चुदाई देखती ही रह गयी। चाहते हुए भी वह अपनी नजर वहाँ से हटा नहीं सकी। जीतूजी का जोश और जीतूजी के चिकने प्रकाश में चमकते हुए लण्ड को श्रेया की रस से लथपथ चूत में से अंदर बहार होते हुए देख अपर्णा पर जैसे कोई तांत्रिक सम्मोहिनी का वशीकरण किया गया हो वैसे अपर्णा एकटक श्रेया और जीतूजी की खुल्लमखुल्ला चुदाई देखने लगी। वह भूल गयी की उसका पति का फुला हुआ चिकना लण्ड उसकी हथेली में फर्राटे मार रहा था। वैसे तो रोहित ने चुदाई के कुछ अश्लील वीडियोस अपर्णा को दिखाए थे। पर यह पहली बार था की अपर्णा कोई मर्द और औरत लाइव चुदाई देख रही थी। उन वीडियो को देख कर अपर्णा को इतनी उत्तेजना महसूस नहीं हुई थी जितनी उस समय उसकी दीदी की अपर्णा के अपने गुरु और प्रेमी जीतूजी को चोदते हुए देख कर हो रही थी। अपर्णा का रोम रोम रोमांच से इस ज़िंदा प्रत्यक्ष साकार चुदाई देख कर कम्पन महसूस कर रहा था।
अपर्णा ने महसूस किया की श्रेया की छोटी सी चूत में जब जीतूजी अपना घड़े जैसा लण्ड घुसाते थे तो बेचारी छोटीसी जयोतिजी का पूरा बदन काँप उठता था। अपर्णा को जीतूजी और श्रेया की चुदाई को मन्त्र मुग्ध हो कर देखते हुए जब रोहित ने देखा तो अपर्णा को हिलाकर बोले, "तुम तो अपनी चुदाई उनको दिखाना नहीं चाहती थी, पर अब उनको चोदते हुए इतने ध्यान से देखने में तुम्हे कोई परहेज क्यों नहीं है? अरे भाई अगर तुम उनकी चुदाई देख सकती हो तो वह तुम्हारी चुदाई क्यों नहीं देख सकते? यह कहाँ का न्याय है?" अपर्णा ने जबरन अपनी नजरें जीतूजी के लण्ड पर से हटायीं और अपने पति की और देख कर मुस्करायी और बोली, "तुम मर्द लोग बड़े ही बेशर्म हो। देखो तो, ना तो तुम्हें जीतूजी और दीदी की चुदाई देखने में कोई लज्जा आ रही है और ना तो जीतूजी को अपनी बीबी को हमारे सामने चोदने में कोई हिचकि?-चाहट महसूस होरही है।" रोहितने कहा, "डार्लिंग, एक बात बताओ। क्या हम सब नहीं जानते की हर मर्द लगभग हर रात को अपनी बीबी को चोदता है? क्या हर औरत अपने मर्द से रात को चुदवाती नहीं है? जब यह सब साफ़ साफ़ सब जानते हैं तो फिर अपनों के सामने ही अगर हम अपनी अपनी बीबी को चोदे तो यह बताओ की तुम्हें क्या हर्ज है? तुम्ही ने तो कबूल किया था की तुम तुम्हारी दीदी और जीतूजी से कोई पर्दा नहीं करोगी। तुम ने श्रेया से यह वादा भी किया था की तुम जीतूजी अगर तुम्हारा बदन छुएंगे तो कोई विरोध नहीं करोगी। तब अगर यह मियाँ बीबी चुदाई करते हैं तो तुम्हें क्यों आपत्ति हो रही है?"
अपर्णा की नजर फिर बरबस जीतूजी और श्रेया की चुदाई की और चली गयी। इस बार अपर्णा ने देखा की जीतूजी ने भी अपर्णा की और देखा। अपर्णा को समझ नहीं आ रहा था की वह गुस्साए या मुस्काये। जीतूजी ने अपनी बीबी की चूत में लण्ड पेलते हुए ही अपर्णा की और देखा और बड़ी ही सादगी से मुस्कराये। अपर्णा को शक हुआ की शायद उनकी मुस्कान में कुछ रंजिश की झलक भी दिख रही थी। अपर्णा यह जानती थी की उस समय कहीं ना कहीं जीतूजी के मन में यह भाव भी हो सकता है की काश वह उस समय उनकीअपनी बीबी श्रेया को नहीं बल्कि रोहित की बीबी अपर्णा को चोद रहे होते। यह सोचते ही अपर्णा काँप उठी। जीतूजी के लण्ड को श्रेया की छोटी सी चूत में घुसते समय हर एक बार श्रेया जी की जो कराहट उनके मुंह से निकल जाती थी उससे अपर्णा को अच्छा खासा अंदाज हो रहा था की श्रेया चुदाई के आनंद के साथ साथ काफी मीठा दर्द भी बर्दाश्त कर रही होंगी। वह दर्द कैसा होगा? यह तो जब अपर्णा जीतूजी से चुदवायेगी तब ही उसे पता लगेगा।
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अपर्णा अब यह अच्छी तरह जान गयी थी की वह इस जनममें तो नहीं होगा। श्रेया जी भी अपने पति का घोड़े जैसा लण्ड लेकर काफी उत्तेजित लग रहीं थीं। अपने पति के साथ साथ अपर्णा श्रेया का स्टैमिना देख कर भी हैरान रह गयी। श्रेया ने रोहित से उस दोपहर चुदवाया था यह तो स्थापित हो चुका था। और अपर्णा यह भी जानती थी की उसके पति कैसी जबरदस्त चुदाई करते हैं। जब वह चोदते हैं तो औरत की जान निकाल लेते हैं।
अपर्णा को इसका पूरा अनुभव था। अपर्णा यह भी जानती थी की श्रेया की चूत का द्वार एकदम छोटा था। रोहित से चुदवाने के बाद अगर वह जीतूजी के इतने मोटे लण्ड से चुदवा रही थी तो मानना पडेगा की श्रेया की दर्द सहन करने की क्षमता बहुत ज्यादा थी। अपर्णाने अपने मन ही मन में गहराई से सोचने लगी। आखिर उसके पति रोहितकी बात तो सही थी। हर औरत अपने मर्दसे चुदवातीतो है ही। हर मर्द भी लगभग हर रात को अपनी बीबी को चोदता ही है। यह तो पूरी दुनिया जानती है, चाहे वह इस बातको किसी से ना कहे। जीतूजी भी जानते थे की रोहित अपर्णा को कैसे चोदते थे। बल्कि उस रात ट्रैन में तो जरूर जीतूजी ने अपर्णा और रोहित की चुदाई कम्बल के अंदर होती हुई देखि भले ना हो पर महसूस तो जरूर की होगी। जब उस समय जीतूजी और श्रेया की चुदाई अपर्णा बड़ी ही बेशर्मी से खुद देख रही थी तो उसे कोई अधिकार नहीं था की वह जीतूजी और श्रेया से अपनी चुदाई छुपाये। क्या उन दोनों को भी अपर्णा की चुदाई देखने का अधिकार नहीं है? अपर्णाके पास इस बातका कोई जवाब नहींथा। अपर्णाने आखिर में हार कर अपने पतिके कानोंमें बोला, "रोहित, आपसे ना? बहस करना बेकार है। देखिये मैं आपकी बीबी हूँ। मेरी लाज की रक्षा करना आपका कर्तव्य है। अगर आप ही मेरी इज्जत नीलाम करोगे तो फिर मैं कहाँ जाउंगी?" रोहित अपने मन में ही मुस्काये। उनको महसूस हुआ की उस रात पहेली बार उनकी बीबी अपर्णा चुदाई के मामले में उनके साथ एक कदम और चलने के लिए मानसिक रूप से तैयार हुई थी। रोहित ने एक चद्दर अपर्णा पर डाल दी और उसका गाउन निकाल दिया और बोले, "क्या तुम्हें कभी भी ऐसा लगा की जीतूजी, मैं और श्रेया हम तीनों में से कोई भी तुम्हारी इज्जत नहीं करता? क्या तुम्हें ऐसा शक है की अगर मैं तुम्हें चोदुँगा तो तुम्हारी इज्जत हम तीनों की नजर में कम हो जायेगी? अरे भाई, हम पति पत्नी हैं। अगर हम चुदाई करती हैं तो तुम्हारी इज्जत कैसे कम होगी?"
अपर्णा ने अपने पति की बात का कोई जवाब नहीं दिय। अपर्णा समझ गयी थी की उसके पति उसको तर्क में तो जितने नहीं देंगे। अपर्णा खुद जीतूजी और श्रेया की चुदाई देख कर काफी उत्तेजित हो गयी थी। उनकी खुल्लम खुली चुदाई देखकर उसकी हिचकिचाहट कुछ तो कम हुई ही थी, पर फिरभी जबतक रोहित ज्यादा आग्रह नहीं करंगे तो भला वह कैसे मान सकती है? आखिर वह एक मानिनी भी तो है? उसको दिखावा करना पडेगा की वह तो राजी नहीं थी, पर पति की जिद के आगे वह करे भी तो क्या करे? अपर्णा इस उलझन में थी की तब अचानक ही उन्हें जीतूजी की हाँफती हुए आवाज सुनाई दी। वह बोले, "रोहित और अपर्णा, अब ज्यादा बातचीत किये बिना जो करना है जल्दी करो। कल जल्दी सुबह चार बजे ही उठ कर पांच बजे मैदान पर पहुँचना है।" अपर्णा ने जीतूजी के पलंग की और देखातो पाया की जीतूजी पूरी तरह जोशो खरोश से श्रेया को चोद रहे थे और शायद उनका मामला अब लास्ट स्टेज पर पहुंचा हुआ था। जीतूजी कस कस के श्रेया की चूत में अपना लण्ड पेले जा रहे थे। पुरे कमरे में उनकी चुदाई की "फच्च, फच्च" की आवाज गूंज रही थी। जैसे ही जीतूजी का लण्ड पूरा श्रेया की चूत में घुस जाता था और उनका अंडकोष श्रेया की गांड पर फटाक फटाक थपेड़ मार रहा था, तो उस थपेड़ की "फच्च फच्च" आवाज के साथ श्रेया की एक कराहट और जीतूजी का "उम्फ... उम्फ..." की आवाज भी उस आवाज में शामिल होजाती थी।
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उनकी चुदाई की तीव्रता के कारण उनका पलंग इतना सॉलिड होते हुए भी हिल रहा था। अपर्णा ने देखा की श्रेया की खूबसूरत चूँचियाँ जीतूजी के धक्के के कारण ऐसी हिल रहीं थीं जैसे तेज हवा में पत्ते हिल रहे हों।
जीतूजी की चेतावनी सुनकर रोहित ने अपनी बीबी अपर्णा की टांगें फैलायीं और अपनी उँगलियों से अपर्णा की चूत के दोनों होँठों को अलग कर अपना लण्ड अपर्णा के प्रेम छिद्र पर टिकाया। अपर्णा ने भी अपना हाथ अपनी टांगों के बिच हाथ डाल कर अपने पति का लण्ड अपनी उँगलियों के बिच टिकाया और अपना पेंडू ऊपर कर अपने पति को चोदनेकी शुरुआत करने के लिए धक्का मारने का इशारा किया। जैसे रोहित ने चुदाई की शुरुआत की तो हर एक धक्के के बाद धीरे धीरे रोहित का लण्ड उनकी बीबी अपर्णा की चूत में थोड़ा थोड़ा कर अंदर अपना रास्ता बनाने लगा। रोहित को आज दो दो महोतरमाओं को चोदने का सुअवसर प्राप्त हो रहा था। दोनोंकी चूतमें भी काफी फर्कथा। श्रेया जी की चूत काफी टाइट थी। जबकि उनकी बीबी अपर्णा की चूत रसीली और नरम थी जिससे उनके लण्ड अंदर घुसने में ज्यादा परेशानी नहीं होती थी। श्रेया की चूत उनको लण्ड को इतना टाइट पकड़ती थी की उनका लंड कभी ज्यादा दब जाता तो कभी वह दबाव कम हो जाता था। इसके कारण श्रेया को चोदते हुए उनके जहन में काफी उत्तेजना और रोमांच फ़ैल जाता था। अपर्णा की चूत की तो बात ही कुछ और थी। रसीली और लचकदार होने के कारण उन्हें अपर्णा को चोदने में खूब आनंद मिलता था। उनका लण्ड अपर्णा के रस में सराबोर रहता था। पर फिर भी उनके लण्ड को अपर्णा की चूत अपनी दीवारों में जकड कर रखती थी। अपर्णा को चोदने में सबसे ज्यादा मजा अपर्णाके चेहरे के हावभाव देखनेमें रोहितको मिलता था। अपर्णा अपनी चुदाई करवाते समय उसमें इतनी मग्न हो जाती थी की उसे उस समय अपनी चूत में हो रहे उन्माद के अलावा कोई भी बाह्य चीज़ का ध्यान नहीं रहता था। कोई भी मर्द को औरत को चोदते समय अगर औरत चुदाई का पूरा आनंद लेती है तो खूब मजा आता है। अगर औरत चुदाई करवाते समय खाली निष्क्रिय बन पड़ी रहती है तो मर्द का आनंद भी कम हो जाता है।
अपर्णा चुदाई करवाते समय यह शेरनी की तरह दहाड़ने लगती थी। उसके पुरे बदन में चुदाई की उत्तेजना फ़ैल जाती थी। जब एक मर्द एक औरत चोदता है और उस चुदाईको औरत एन्जॉय करती है तो मर्द को बहुत ज्यादा आनंद होता है। अक्सर हर मर्द की यह तमन्ना होती है की औरत भी उस चुदाई का पूरा आनंद ले। चोदते समय अगर औरत चुदाई का आनंद लेती है लेती है और उस उत्तेजना का आनंद जब औरतके चेहरेपर दिखता है तो मर्द का चोदने का आनंद दुगुना हो जाता है। क्यूंकि मर्द को तब अपनी चुदाई सार्थक हुईं नजर आती है। अपर्णामें वह ख़ास खूबीथी। रोहित जब जब भी अपर्णा को चोदते थे तब अपर्णा के चेहरे पर उन्माद और उत्तेजना का ऐसा जबरदस्त भाव छा जाता था की रोहित का आनंद कई गुना बढ़ जाता था। उनका पुरुषत्व इस भाव से पूरा संतुष्ट होता था। उन्हें महसूस होता था की वह अपनी चुदाई करने की कला से अपने साथीदार को (अपर्णा को) कितना अद्भुत आनंद दे पा रहे हैं। अक्सर कई औरतें अपने मन के भाव प्रकट नहीं करतीं और पुरुष बेचारा यह समझ नहीं पाता की वह अपनी औरत को वह आनंद दे पाता है या नहीं। श्रेया जी की कराहटों से कमरा गूंजने लगा। जिस तरह श्रेया कराह रहीं थीं यह साफ़ था की वह अपनी चरम पर पहुँच रहीं थीं। फिर उसमें जीतूजी की भी आवाज जुड़ गयी। जीतूजी श्रेया के दोनों स्तनों को कस के पकड़ कर अपनी भौंहें सिकुड़ कर श्रेया की चूत में अपना लण्ड पेलते हुए बोलने लगे, "श्रेया, आह्हः.क्या बढ़िया पकड़ के रखती हो आह्हः... ओह्ह्ह...." करते हुए जीतूजी के लण्ड से श्रेया जी की चूत की गुफा में जोरदार फ़व्वार्रा छूट पड़ा। उसके साथ साथ श्रेयाके मुंहसे भी हलकी सी चीख निकल पड़ी। "जीतूजी, कमाल है! क्या चोदते हो आप। ओह्ह्ह... आअह्ह्ह... बापरे......"
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कुछ ही देर में दोनों मियाँ बीबी पलंग पर निढाल होकर गिर पड़े। अपर्णा ने देखा की जीतूजी का वीर्य श्रेया की चूत से बाहर निकल रहा था। जीतूजी के वीर्य की तादाद इतनी ज्यादा थी की श्रेया की चूत इतना ज्यादा वीर्य समा नहीं पायी। अपर्णा की जान हथेली में आ गयी। अगर जीतूजी को कभी अपर्णा को चोदने का अवसर मिल गया तो जरूर इतने ज्यादा वीर्य से वह अपर्णाको गर्भवती बना सकते हैं। उधर रोहित अपर्णा की चूत में अपना लण्ड पेलने में लगे हुए थे। रोहित ने अपर्णा को चद्दर के अंदर ढक कर रखा हुआ था। खुद सारे कपडे निकाल कर अपर्णा का गाउन भी निकाल कर दो नंगे बदन एक दूसरे को आनंद देने में लगे हुए थे। अपर्णा अपने पति को श्रेया से कुछ ज्यादा आनंद दे सके इस फिराक में थी। उसे पता था की उसी दोपहर को पति रोहित ने कस के श्रेया की चुदाई की थी। रोहित ने अपर्णा को चोदने की रफ़्तार बढ़ाई। अपर्णा के चेहरे पर बदलते हुए भाव देखते ही रोहितका जोश बढ़ने लगा। रोहित के जोर जोर से धक्के मारने के कारण ऊपर की चद्दर खिसक गयी और अपर्णा और रोहित श्रेया और जीतूजी के सामने नंगे चुदाई करते हुए दिखाई दिए। अपर्णा की आँखें बंद थीं उसे नहीं पता था की वह जीतूजी को नंगी रोहित से चुदवाती दिख रहीं थीं। अपर्णा को पहली बार बिलकुल नंग धडंग देख कर जीतूजी देखते ही रह गए। अपर्णा की चुन्चियाँ दबी हुई होने के कारण पूरी तरह साफ़ दिख नहीं रहीं थीं। अपर्णा की कमर का घुमाव और उसके सपाट सतह के निचे रोहित के बदन से ढकी हुई अपर्णा की चूत देखने को जीतूजी बेताब हो रहे थे।
अपर्णा की सुडौल नंगीं जांघें इतनी खूबसूरत नजर आ रहीं थीं की बस! जीतूजी ने गहरी साँस लेते हुए लाचारी में अपनी नजर अपर्णा के नंगे बदन से हटाई। रोहित की तेज रफ़्तार से पेंडू उठाकर मुकाबला कर रही अपर्णा को कहाँ पता था की उसे चुदवाने का नजारा जीतूजी और श्रेया बड़े प्यारसे ले रहे थे? रोहित जब वीर्य छोड़ने के कगार पर पहुँचने वाले ही थे अपर्णा की आँखें खुलीं और उसने देखा की उनको ढक रही चद्दर हट चुकी थी और वह और उसके पति के नंगे बदन और उनकी चुदाई जीतूजी और श्रेया प्यार से देख रहे थे। अपर्णा को उस समय कोई लज्जा या छोटापन का भाव नहीं महसूस हुआ। आखिर चुदाई करना औरत और मर्द का धर्म है। भगवान् ने खुद यह भाव हम सब में दिया है। औरतके बगैर मर्द कैसे रह सकता है? दुनिया को चलानेके लिए औरतका होना अनिवार्य है। अपने पसंदीदा मर्द से चुदवाना औरत के लिए सौभाग्य की बात है। अपर्णा ने भी हिम्मत कर के श्रेया और जीतूजीकी आँख से आँख मिलाई और मुस्कुरा दी। यह पहला मौका था जब अपर्णा ने चुदाई को इतना सहज रूप में स्वीकार किया था। जीतूजीने आँख मारकर अपर्णाको प्रोत्साहन दिया की चिंता की कोई बात नहीं थी। इससे अपर्णा को यह सन्देश भी मिला की जीतूजी अपर्णा की चुदाई करवाते हुए देख कर भी उतनी ही इज्जत करते थे जितनी की पहले करते थे। श्रेया जो की अपनी खुद की चुदाई करवाके निढाल पड़ी हुई थीं, उन्होंने भी उड़ती हुई किस देकर श्रेया की खुल्लमखुल्ला चुदाई को सलाम किया। रोहितसे चुदवाते हुएभी अपर्णाको जंगली कुत्तों की दहाड़ने की डरावनी आवाजें सुनाई देती थीं। अपर्णा ने जब रोहित से इसके बारे में पूछा तो रोहितने जीतूजी से हुई बात के बारे में अपर्णा को बताया।
रोहित ने कहा, "जीतूजी को शंका है की दुश्मन या आतंकवादियों के जंगली कुत्ते जिनको इंग्लिश में हाउण्ड कहते हैं उनको कुछ ख़ास कामके लिए तैनात किया हो, ऐसा हो सकता है। जीतूजी को आशंका थी की हो सकता है की अगले दो या तीन दिनों में कुछ ना कुछ दुर्घटना हो सकती है l पर मुझे लगता है की जीतूजी इस बात को शायद थोड़ा ज्यादा ही तूल दे रहे हैं। मुझे नहीं लगता की दुश्मन में इतनी हिम्मत है की हमारी ही सरहद में घुसकर हमारे ही बन्दों को कैदी बनाने का सोच भी सके। यह आवाज जंगली भेड़ियों की भी हो सकती है।"
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रोहित की बात से सेहमी हुई अपर्णा बिना कुछ बोले रोहित के एक के बाद एक धक्के झेलती रही। रोहित ने अपर्णा की टांगें अपने कंधे पर रखी हुई थी। गाँड़ के निचे रखे तकिये के कारण अपर्णा की प्यारी चूत थोड़ी सी ऊपर उठी हुईथी जिससे रोहित का लंड बिलकुल उनकी बीबी अपर्णा की चूत के द्वार के सामने रहे और पूरा का पूरा लण्ड अपर्णाकी चूत में घुसे। रोहित धीमी रफ़्तार से अपर्णा की चूत में अपना लण्ड पेले जा रहे थे। रफ़्तार जरूर धीमी थी पर धक्का इतना तगड़ा होता था की उनका पूरा पलंग समेत अपर्णा का पूरा बदन धक्के से हिल जाता था। अपर्णा के भरे हुए बूब्स रोहित के लगाए हुए धक्के के कारण हवा में उछल जाते और फिर जब रोहित का लण्ड चूत के सिरे तक चला जाता और एक पल के लिए रुक जाते तो वापस गिर् कर अपना आकार ले लेते। कामोत्तेजना के कारण अपर्णा की निप्पलेँ पूरी तरह से फूली हुई थीं। निप्पलेँ थोड़े ऊपर उठे हुए फुंसियों से भरी हुई हलकी सी चॉकलेटी रंग की गोल आकार वाली एरोलाओं पर ऐसी लग रहीं थीं जैसे एक छोटा सा डंडा मनी प्लाँट को टिकाने के लिए माली लोग रखते हैं।
रोहित ने अपनी बीबी के उछलते हुए स्तनों को देखा तो उस पर टिकी हुई निप्पलोँ को अपनी उँगलियों में पिचकाते हुए उत्तेजित हो गए और अपर्णा के दोनों स्तनोँ को जोर से दबा कर धक्के मार कर चुदाई का पूरा मजा लेने में जुट गए। श्रेया और जीतूजी रोहित और अपर्णा की चुदाई का साक्षात दृश्य पहली बार देख रहे थे। हकीकत में ऐसा कम ही होता है की आपको किसी और कपल की चुदाई का दृश्य देखने को मिले। हालांकि उनको रोहित का लण्ड और अपर्णा की चूत इतनी दूर से ठीक से दिख नहीं रही थी पर जो कुछ भी अच्छी तरह से दिख रहा था वह वाकई में देखने लायक था। रोहित ने भी देखा की खास तौर से श्रेया अपर्णा की चुदाई बड़े ध्यान से देख रही थी। शायद वह यह देखना चाहती हो की रोहित अपनी बीबी की चुदाई भी वैसे ही कर रहे थे जैसे की रोहित ने कुछ ही घन्टों पहले श्रेया की की थी। यह तो स्त्री सुलभ इर्षा का विषय था। कहते हैं ना की "भला तुम्हारी कमीज मेरी कमीजसे ज्यादा सफ़ेद कैसे?" जाहिर है अपर्णा की चूत की पूरी नाली में चुदाई के कारण हो रहे कामुक घर्षण से अपर्णा को अद्भुत सा उन्माद होना चाहिए था। पर रोहित की बात सुनकर उसका मन कहीं और उड़ रहा था। वह जाँबाज़ जीतूजी को मन ही मन याद कर रही थी। हालांकि रोहित का लण्ड जीतूजी के लण्ड से उन्नीस बिस हो सकता है, पर काश उस समय वह लण्ड जीतूजी का होता जिससे रोहित चोद रहे थे ऐसी एक ललक भरी कल्पना अपर्णा की चूत में आग लगा रही थी।
रोहित के बदन की अकड़न से अपने पति का वीर्य छूटने वाला था यह अपर्णा जान गयी। उसे भी तो अपना पानी छोड़ना था। वह अपने पति रोहितके ऊपर चढ़ कर रोहित को चोदना चाहती थी जिससे वह भी फ़ौरन अपने पति के साथ झड़ कर अपना पानी छोड़ सके। पर उसे डर था की उधर जीतूजी उसे चुदाई करते हुए देख लेंगे। एक होताहै औरतको नंगी देखना। दुसरा होताहै किसी नंगी औरत की चुदाई होते हुए देखना। दोनों में अंतर होता है। और यहां तो अपर्णा रोहित को चौदेगी। वह तो एक और भी अनूठी बात हो जाती है। अपर्णा का शर्माना जायजथा। फिर भी अपर्णा ने अपने पति से हिचकिचाते हुए धीरे से कहा, "ऐसा लगता है की तुम्हारा अब छूटने वाला है। थोड़ा रुको। मुझे भी तो मौका दो।" रोहित ने फ़ौरन कहा, "आ जाओ। मेरे पर चढ़ कर मुझे चोदो। दिखादो सबको की सिर्फ मर्द ही औरत को चोदता है ऐसा नहीं है, औरत भी मर्द को चोद सकती है।"
अपर्णा जब हिचकिचाने लगी तब रोहित ने कहा, "यही तो कमी है औरतों में। मर्दों के साफ़ साफ़ आग्रह करने पर भी औरतें अपनी सीमा से बाहर नहीं आतीं। फिर कहतीं हैं मर्द जातने उन को दबा रखा है? यह कहाँ का न्याय है?"
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अपर्णा ने जब यह सूना तो उसे जोश आया। वह चद्दर फेंक कर बैठ खड़ी हुई और अपने दोनों घुटनें अपने पति की दोनों टाँगों के बाहर की तरफ रख अपने घुटनों पर अपना वजन लेते हुए रोहित के ऊपर चढ़ बैठी। जीतूजी ने जब अपर्णाको बिस्तर में अपने पति से चुदाई करवाती पोजीशन में से उठ कर अपने पति को चोदने के लिए पति के ऊपर चढ़ते हुए देखा तो वह अपर्णा की हिम्मत देख कर दंग रह गए। पहली बार उन्होंने उस रात अपनी रातों नींद हराम करने वाली चेली को पूरा नंगी देखा। अपर्णा के अल्लड़ स्तन उठे हुए जैसे जीतूजी को पुकार रहे थे की "आओ और मुझे मसल दो।" अपर्णा की पतली कमर और बैठा हुआ पेट का हिस्सा और उसके बिलकुल निचे अपर्णा की चूत की झांटों की झांकी जीतूजी देखते ही रह गए। अपनी प्रियतमा को उसके ही पति को चोदते देख उन्हें सीने में टीस सी उठी। पर क्या करे? अपर्णा ने अपने पति का लण्ड अपनी चूत में डाल कर ऊपर से बड़े प्यार से अपने पति को चोदना शुरू किया। उसका ध्यान सिर्फ अपनी चूत में घुसे हुए जीतूजीके लण्ड का ही था। हालांकि लण्ड उसके पति का ही था पर अपर्णा की एक परिकल्पना थी की जैसे वह लण्ड जीतूजी का था जिसे वह अपनी चूत में घुसा कर चोद रही थी। इस कल्पना मात्र से ही उसकी चूत में से उसका रस जोरशोर से रिस ने लगा और जल्द ही वह अपने चरम के कगार पर जा पहुंची। कुछ ही मिनटों में रोहित और अपर्णा एक साथ झड़ गए। अपर्णा के मुंह से सिसकारी निकली जो उसके चरम की उत्तेजना को दर्शाता था। रोहित के मुंहसे "आहह..." निकल पड़ी।
दोनों मियाँ बीबी झड़ने के बाद ढेर हो गए। अपर्णा जैसे अपने पति पर घुड़सवारी कर बैठी थी वैसी ही अपने पति का लण्ड अपनी चूत में रखे हुए उनपर लुढ़क पड़ी। कुछ देर तक पति के ऊपर पड़ी रहने के बाद, चुदाईसे थकी हुई अपर्णा ऊपर से हट कर पति के बाजुमें जाकर गहरी नींद सो गयी। उसके सपने में सारी रात जंगली कुत्तों के चीखने की आवाजें ही सुनाई दे रहीं थीं।
सुबह चार बजे ही जीतूजी का पहाड़ी आवाज सारे हॉल में गूंज उठा। वह निढाल सो रहे रोहित और अपर्णा पर चिल्ला रहे थे। "अरे रोहित उठिये! ४ बजने वाले हैं। देखिये अब हमें सेना के टाइम टेबल के हिसाबसे चलना पडेगा। रात को आपको जो भी करना हो उसे जल्द निपटा कर सोना पडेगा। ऐसे देर तक लगे रहोगे तो जल्दी उठ नहीं पाओगे।" जीतूजी की दहाड़ सुनकर अपर्णा और रोहित चौंक कर जाग उठे। अपर्णा अपने कपडे पहनना तक भूल गयी थी। जैसे ही उसने जीतूजी की दहाड़ सुनी अपर्णा ने बिस्तरे में ही कम्बल अपनी छाती के ऊपर तक खिंच लिया और बैठ गयी। जीतूजी हमेशा की तरह सुबह बड़ी जल्दी उठ कर तैयार हो कर अपने सुसज्जित सेना के यूनिफार्म में आकर्षित लग रहे थे। अपर्णा खड़ी होने की स्थिति में नहीं थी। वह कम्बल के निचे नंगी थी। देर रात तक चुदाई कराने के बाद उसे कपडे पहनने का होश ही नहीं रहा था। रोहित ने पजामा पहन लिया था सो कूद कर खड़े हो गए और बाथरूम की और भागे। जीतूजी ने अपर्णा को देखा और कुछ बोलने लगे थे पर फिर चुप हो गए और घूम कर कैंप के दफ्तर की और चलते बने। जैसे ही जीतूजी आँखों से ओझल हुए की अपर्णा ने भाग कर बाहर का दरवाजा बंद किया और फ़टाफ़ट अपना गाउन पहन लिया। श्रेया जी वाशरूम में थीं। वह जानती थी की जब जीतू जी के साथ आर्मी से सम्बंधित कोई प्रोग्राम होता है तो वह देर बिलकुल बर्दाश्त नहीं करते। अपर्णा ने अपने कपडे तैयार किये और रोहित के बाहर आने का इंतजार करने लगी। कुछ ही देर में तीनों: श्रेया, रोहित और अपर्णा कैंप के मैदान में कसरत के लिए पहुंच गए। सब लोग कतारमें लग गए। जीतूजी कहीं नजर नहीं आरहेथे। प्राथमिक कसरतें करने के बाद सब को दरी पर बैठने को कहा गया। जो उम्र में बड़े थे उनके लिए कुछ कुर्सियां रखीं हुई थीं।
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सब के बैठने के बाद कर्नल जीतूजी भी वहाँ उपस्थित हुए। उन्होंने सब को आंतांकियों की गतिविधियों के बारेमें कहा और सबको सतर्क रहने की चेतावनी भी दी। यदि कोई सूरत में किसी का आतंकवादियों से या उनकी हरकतों से सामना होता है तो कैसे आतंकवादियों से मुकाबला किया जा सकता है उसके बारे में भी उन्होंने कुछ जरुरी हिदायतें दीं। सबको कैंटीन में नाश्ते के लिए कहा गया। नाश्ते की समय सीमा 30 मिनट दी गयी। सबने फ़टाफ़ट नाश्ता किया। अगला कार्यक्रम था पहाड़ो में ट्रैकिंग करना।
याने पहाडोंमें उबड़ खाबड़ लंबा रास्ता लकड़ी के सहारे चल कर तय करना। करीब दस किलोमीटर दूर एक आर्मीका छोटासा कैंप बना हुआ था जहां दुपहर के खाने की व्यवस्था थी। सबको वहाँ पहुँचना था। अपर्णा ने सिल्हटों वाली फ्रॉक पहनी थी। उस में अपर्णा की करारी जाँघें कमाल की दिख रहीं थीं। फ्रॉक घुटनोँ से थोड़ी सी ऊपर तक थीं। देखने में वह बिलकुल अश्लील नहीं लग रही थी। ऊपर अपर्णा ने सफ़ेद रंग का ब्लाउज पहना था और अंदर सफ़ेद रंग की ब्रा थी। उसका परिवेश निहायत ही साधारण सा था पर उसमें भी अपर्णाका यौवन और रूप निखार रहाथा। अपर्णा की गाँड़ का घुमाव और स्तनोँ का उभार लण्ड खड़ा कर देने वाला था। श्रेया ने कुछ लम्बी सी काप्री पहन राखी थी। घुटनों से काफी निचे पर यदि से काफी ऊपर वह काप्री में श्रेया की घुमावदार गोल गाँड़ का घुमाव सुहावना लग रहा था। ऊपर श्रेया ने मर्दों वाला शर्ट कमीज पहन रखा था। उस शर्ट में भी उनके स्तनोँ का उभार जरासा भी छुप नहीं रहा था। दोनों कामिनियाँ श्रेया और अपर्णा गजब की कामिनी लग रहीं थीं। जब वह मैदान में पहुंचीं तो सबकी आँखें उन दोनों की चूँचियाँ और गाँड़ पर टिक गयीं थीं।
कैंटीन में अपर्णा और श्रेयाकी मुलाक़ात अंकिता से हुई। उसके पति ब्रिगेडियर खन्ना साहब कहीं नजर नहीं आ रहे थे। अंकिता ने घुटनों तक पहुंचता हुआ स्कर्ट पहना था। उसकी करारी जाँघें खूबसूरत और सेक्सी लग रहीं थीं। ऊपर उसने सिलवटों वाला छोटी बाँहों वाला टॉप पहना था। टॉप पीछे से खुला था जो एक पतली सी डोर से बंधा था। पीछे से अंकिता की ब्रा की पट्टी साफ़ दिख रही थी। अंकिता के अल्लड़ स्तन उसके छोटे से टॉप में समा नहीं रहे थे और उसके टॉप में से उभर कर बाहर आने की भरसक कोशिश में लगे हुए दिख रहे थे। लम्बी और गोरी अंकिता अपने गदराते हुए बदन के कारण हर जवान मर्द के लण्ड को जैसे चुनौती दे रही थी। अंकिता ने कपाल पर टिका लगा रखा था जो उसकी सुंदरता में चार चाँद लगा रहा था। "हेलो, हाई" होने के बाद अपर्णा ने चुपके से जब अंकिता के कान में कप्तान गौरव के बारे में कुछ पूछा तो अंकिता थोड़ा शर्मायी और बोली की उसे गौरव के बारेमें कुछ भी पता नहीं था। गौरव से उसकी मुलकात सिर्फ पिछली शामको हुई थी उसके बाद पता नहीं वह कहाँ चले गएथे। अपर्णा ने अंकिता की कान में कुछ और भी बताया जिसके कारण शर्म केमारे अंकिता का मुंह लाल लाल हो गया। श्रेया ने यह देखा पर कुछ ना बोली।
कुछ ही देर में वहाँ गौरव और ब्रिगेडियर साहब हाजिर हुए। शायद हॉल के बाहर ही वह दोनों मिल गए थे और ब्रिगेडियर साहब कप्तान गौरव की कमर में हाथ डाले उन्हें साथ लेकर अपनी बीबी अंकिता के सामने आकर खड़े हुए। अंकिता के पास पहुँचते ही खन्ना साहब ने गौरव से कहा, "गौरव साहब, मैं ज्यादा चल नहीं पाउँगा इस लिए इस ट्रैकिंग में मैं आ नहीं पाउँगा। मैं चाहता हूँ की आप युवा लोग इस ट्रैकिंग में जाएं और खूब मौज करें। मेरी ख्वाहिश है की आप अंकिता के साथ ही रहें और उसका ध्यान रखें। अगर आप ऐसा करेंगे तो मैं आपका आभारी रहूंगा।"
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कप्तान गौरव ने झुक कर खन्ना साहब का अभिवादन किया और उनकी बात को स्वीकार कर अंकिता की जिम्मेदारी लेने का वादा किया। सब ट्रैकिंग में जाने के लिए तैयार हो गए थे। कर्नल अभिजीत सिंह का इंतजार था, सो कुछ ही देर में वह भी आ पहुंचे और सुबह के ठीक छह बजे सब वहाँ से ट्रैकिंग में जाने के लिए निकल पड़े।
श्रेया ने देखा की अपर्णाने अंकिताको आँख मार कर कुछ इशारा किया जिसे देख कर अंकिता शर्मा गयी और मुस्कुरा दी। श्रेया जी ने अपर्णा को कोहनी मारकर धीरेसे पूछा, "क्या बातहै अपर्णा? तुम्हारे और अंकिता के बिच में क्या खिचड़ी पक रही है?" अपर्णा ने शरारत भरी आँखों से श्रेया की और देखते हुए, "दीदी हमारे बिच में कोई खिचड़ी नहीं पक रही। मैंने उसे कहा, ट्रैन में जो ना हो सका वह आज हो सकता है। क्या वह तैयार है?" श्रेया ने अपर्णा की और आश्चर्य से देखा और पूछा, "फिर अंकिता ने क्या कहा?" अपर्णा ने हाथ फैलाते हुए श्रेया के प्रति अपनी निराशा जताते हुए कहा, "दीदी आप भी कमाल हो! भला कोई हिन्दुस्तांनी औरत ऐसी बात का कोई जवाब देगी क्या? क्या वह हाँ थोड़े ही कहेगी? वह मुस्कुरादी। बस यही उसका जवाब था।" श्रेया ने आगे बढ़कर अपर्णा के कान पकडे और बोली, "मैं समझती थी तू बड़ी सीधी सादी और भोली है। पर बाप रे बाप! तु तो मुझसे भी ज्यादा चंट निकली!" अपर्णा ने नकली अंदाज में जैसे कान में दर्द हो रहा हो ऐसे चीख कर धीरेसे बोली, "दीदी मैं चेलीतो आपकी ही हूँ ना?" कर्नल अभिजीत सिंह (जीतूजी) ने सबसे मार्किंग की गयी पगदंडी (छोटा चलने लायक रास्ता) पर आगे बढ़ने के लिए कहा।
एक जवान को सबसे आगे रखा और कप्तान गौरव और अंकिता को उनके पीछे चलने को कहा। सब को हिदायत दी गयी की सबकी अपनी सुरक्षा के लिए के लिए वह निश्चित किये गए रास्ते (पगदंडी) पर ही चलें। पहाड़ों की चढ़ाई पहले तो आसान लग रही थी पर धीरे धीरे थोड़ी कठिन होती जा रही थी। सबसे आगे एक जवान लेफ्टिनेंट थे। उनकी जिम्मेवारी थी की आगे से सबका ध्यान रखे। उसके फ़ौरन बाद अंकिता और गौरव थे। अंकिता फुर्तीसे दौड़ कर गौरव को चुनौती देती हुई आगे भागती और गौरव उसके पीछे भाग कर उसको पकड़ लेते। जीतूजी और अपर्णा, अंकिता और गौरव की अठखेलियां देखते हुए एक दूसरे की और मुस्कराते हुए तेजी से उनके पीछे चल रहे थे।
आखिर में श्रेया और रोहित चल रहे थे। रोहित को चलने की ख़ास आदत नहीं थी इस के कारण वह धीरे धोरे पत्थरों से बचते हुए चल रहे थे। श्रेया उनका साथ दे रही थी। नौ में से सिर्फ सात बचे थे। दो यात्री में से एक ब्रिगेडियर साहब और एक और उम्र दराज साहब ने टेक्किंग में नहीं जाने का फैसला लिया था वह बेस कैंप पर ही रुक गए थे। रास्ते में जगह जगह दिशा सूचक चिह्न लगे हुए थे जिससे ऊपर के कैंप की दिशा की सुचना मिलती रहती थी। खूबसूरत वादियों और नज़ारे चारों और देखने को मिलते थे।
अपर्णा इन नजारों को देखते हुए कई जगह इतनी खो जाती थी उन्हें देखने के लिए वह रुक जाती थी, जिसके कारण जीतूजी को भी रुक जाना पड़ता था। सब से आगे चल रहा जवान काफी तेजी से चल रहा था और शायद काफिले से ज्यादा ही आगे निकल गया था। रास्ते में एक खूबसूरत नजारा दिखा जिसे देख कर अंकिता रुक गयी और गौरव से बोली, "कप्तान साहब, सॉरी, गौरव! देखो तो! कितना खूब सूरत नजारा है? वह दूर के बर्फीले पहाड़ से गिर रहा यह छोटी सी युवा कन्या सा यह झरना कैसे कील कील करता हुआ अल्लड़ मस्ती में बह रहा है? और पानीकी धुंद के कारण चारों तरफ कैसे बादल से छाये हुए हैं? लगता है जैसे आसमान अपनी प्रियतमा जमीन को चूम रहा हो।"
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