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Adultery कल हो ना हो" - पत्नी की अदला-बदली - {COMPLETED}
श्रेया ने कहा, "भाई घर की मुर्गी दाल बराबर यह कहावत मुझ पर तो जरूर लागू होती है पर अपर्णा पर नहीं होती।"

रोहित: "पर ऐसा आप क्यों कहते हो यह तो बताओ?"

श्रेया: "और नहीं तो क्या? अपनी बीबी से घर में भी पेट नहीं भरा तो आप ट्रैन में भी उसको छोड़ते नहीं हो, तो फिर में और क्या कहूं? हम ने तय किया था इस यात्रा दरम्यान आप और मैं और जीतूजी और अपर्णा की जोड़ी रहेगी। पर आप तो रात को अपनी बीबी के बिस्तरेमें ही घुस गए। क्या आपको मैं नजर नहीं आयी?" श्रेया फिर जैसे अपने आप को ही उलाहना देती हुई बोली, "हाँ भाई, मैं क्यों नजर आउंगी? मेरा मुकाबला अपर्णा से थोड़े ही हो सकता है? कहाँ अपर्णा, युवा, खूबसूरत, जवान, सेक्सी और कहाँ मैं, बूढी, बदसूरत, मोटी और नीरस।" रोहित का यह सुनकर पसीना छूट गया। तो आखिर श्रेया ने उन्हें अपनी बीबी के बिस्तर में जाते हुए देख ही लिया था। अब जब चोरी पकड़ी ही गयी है तो छुपाने से क्या फायदा?

रोहित ने श्रेया के करीब जाकर उनकी ठुड्डी (चिबुक/दाढ़ी) अपनी उँगलियों में पकड़ी और उसे अपनी और घुमाते हुए बोले, "श्रेया, सच सच बताइये, अगर मैं आपके बिस्तर में आता और जैसे आपने मुझे पकड़ लिया वैसे कोई और देख लेता, तो हम क्या जवाब देते? वैसे मैं आपके बिस्तर के पास खड़ा काफी मिनटों तक इस उधेड़बुन में रहा की मैं क्या करूँ? आपके बिस्तर में आऊं या नहीं? आखिर में मैंने यही फैसला किया की बेहतर होगा की हम अपनी प्रेम गाथा बंद दीवारों में कैद रखें। क्या मैंने गलत किया?"

श्रेया ने रोहित की और देखा और उन्हें अपने करीब खिंच कर गाल पर चुम्मी करते हुए बोली, "मेरे प्यारे! आप बड़े चालु हो। अपनी गलती को भी आप ऐसे अच्छाई में परिवर्तित कर देते हो की मैं क्या कोई भी कुछ बोल नहीं पायेगा। शायद इसी लिए आप इतने बड़े पत्रकार हो। कोई बात नहीं। आप ने ठीक किया l पर अब ध्यान रहे की मैं अपनी उपेक्षा बर्दास्त नहीं कर सकती। मैं बड़ी मानिनी हूँ और मैं मानती हूँ की आप मुझे बहुत प्यार करते हैं और मेरी बड़ी इज्जत करते हैं। आप की उपेक्षा मैं बर्दाश्त नहीं कर सकती। वचन दो की मुझे आगे चलकर ऐसी शिकायतका मौक़ा नहीं दोगे?"

रोहित ने श्रेया को अपनी बाँहों में भर कर कहा, "श्रेया जी मैं आगे से आपको ऐसी शिकायत का मौक़ा नहीं दूंगा। पर मैं भी आपसे कुछ कहना चाहता हूँ।"

श्रेया जी ने प्रश्नात्मक दृष्टि से देख कर कहा, "क्या?"

रोहित ने कहा, "आप मेरे साथ बड़ी गंभीरता से पेश आते हैं। मुझे अच्छा नहीं लगता। जिंदगी में वैसेही बहुत उलझन, ग़म और परेशानियाँ हैं। जब हम दोनों अकेले में मिलते हैं तब मैं चाहता हूँ की कुछ अठखेलियाँ हो, कुछ शरारत हो, कुछ मसालेदार बातें हों। यह सच है की मैं आपकी गंभीरता, बुद्धिमत्ता और ज्ञानसे बहुत प्रभावित हूँl पर वह बातें हम तब करें जब हम एक दूसरे से औपचारिक रूप से मिलें। जब हम इतने करीब गए हैं और उसमें भी जब हम मज़े करने के लिए मिलते हैं तो फिर भाड़में जाए औपचारिकता! हम एक दूसरे को क्यों "आप" कह कर निरर्थक खोखला सम्मान देने का प्रयास करते हैं? श्रेया तुम्हारा जो खुल्लमखुल्ला बात करने का तरिका है ना, वह मुझे खूब भाता है। उसके साथ अगर थोड़ी शरारत और नटखटता हो तो क्या बात है!"

श्रेया रोहित की बातें सुन थोड़ी सोच में पड़ गयीं। उन्होंने नज़रें उठाकर रोहित की और देखा और पूछा, " रोहित तुम अपर्णा से बहोत प्यार करते हो। है ना?"

रोहित श्रेया की बात सुनकर कुछ झेंप से गए। उन दोनों के बिच अपर्णा कहाँ से गयी? रोहित के चेहरे पर हवाइयां उड़ती हुई देख कर श्रेया ने कहा, "जो तुम ने कहा वह अपर्णा का स्वभाव है। मैं श्रेया हूँ अपर्णा नहीं। तुम क्या मुझमें अपर्णा ढूँढ रहे हो?" 

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यह सुनकर रोहित को बड़ा झटका लगा। रोहित सोचने लगे, बात कहाँ से कहाँ पहुँच गयी? उन्होंने अपने आपको सम्हालते हुए श्रेया के करीब जाकर कहा, "हाँ यह सच है की मैं अपर्णा को बहुत प्यार करता हूँ। तुम भी तो जीतूजी को बहुत प्यार करती हो। बात वह नहीं है l बात यह है की जब हम दोनों अकेले हैं और जब हमें यह डर नहीं की कोई हमें देख ना ले या हमारी बातें सुन ना लें तो फिर क्यों ना हम अपने नकली मिजाज का मुखौटा निकाल फेंके, और असली रूप में जायें? क्यों ना हम कुछ पागलपन वाला काम करें?"

"
अच्छा? तो मियाँ चाहते हैं, की मैं यह जो बिकिनी या एक छोटासा कपडे का टुकड़ा पहन कर तुम्हारे सामने मेरे जिस्म की नुमाइश कर रही हूँ, उससे भी जनाब का पेट नहीं भरा? अब तुम मुझे पूरी नंगी देखना चाहते हो क्या?" शरारत भरी मुस्कान से श्रेया रोहित की और देखा तो पाया की रोहित श्रेया की इतनी सीधी और धड़ल्ले से कही बात सुनकर खिसियानी सी शक्ल से उनकी और देख रहे थे। श्रेया कुछ नहीं बोली और सिर्फ रोहित की और देखते ही रहीं। रोहित ने श्रेया के पीछे आकर श्रेया को अपनी बाहों में ले लिया और श्रेया के पीछे अपना लण्ड श्रेया की गाँड़ से सटा कर बोले, "ऐसे माहौल में मैं श्रेयाजी नहीं श्रेया चाहता हूँ।" श्रेया ने आगे झुक कर रोहित को अपने लण्ड को श्रेया की गाँड़ की दरार में सटाने का पूरा मौक़ा देते हुए रोहित की और पीछे गर्दन घुमाकर देखा, और बोली, "मैं भी तो ऐसे माहौल में इतने बड़े पत्रकार और बुद्धिजीवी को नहीं सिर्फ रोहित ही चाहती हूँ। मैं महसूस करना चाहती हूँ की इतने बड़े सम्मानित व्यक्ति एक औरत की और आकर्षित होते हैं तो उसके सामने कैसे एक पागल आशिक की तरह पेश आते हैं।"

रोहित ने कहा, "और हाँ यह सच है की मैं यह जो कपडे का छोटासा टुकड़ा तुमने पहन रखा है, वह भी तुम्हारे तन पर देखना नहीं चाहता। मैं सिर्फ और सिर्फ, भगवान ने असलियत में जैसा बनाया है वैसी ही श्रेया को देखना चाहता हूँ। और दूसरी बात! मैं यहां कोई विख्यात सम्पादक या पत्रकार नहीं एक आशिक के रूप में ही तुम्हें प्यार करना चाहता हूँ।" पर श्रेया तो आखिरमें श्रेया ही थी ना? उसने पट से कहा, "यह साफ़ साफ़ कहो ना की तुम मुझे चोदना चाहते हो?" रोहित श्रेया की अक्खड़ बात सुनकर कुछ झेंप से गए पर फिर बोले, "श्रेया, ऐसी बात नहीं है। अगर चुदाई प्यार की ही एक अभिव्यक्ति हो, मतलब प्यार का ही एक परिणाम हो तो उसमें गज़ब की मिठास और आस्वादन होता है l पर अगर चुदाई मात्र तन की आग बुझाने का ही एक मात्र जरिया हो तो वह एक तरफ़ा स्वार्थी ना भी हो तो भी उसमें एक दूसरे की हवस मिटाने के अलावा कोई मिठास नहीं होती।"

रोहित की बात सुन श्रेया मुस्कुरायी। उसने रोहित के हाथों को प्यार से अपने स्तनोँ को सहलाते हुए अनुभव किया। अपने आपको सम्हालते हुए श्रेया ने इधर उधर देखा। वह दोनों वाटर फॉल के दूसरी और जा चुके थे। वहाँ एक छोटा सा ताल था और चारों और पहाड़ ही पहाड़ थे। किनारे खूबसूरत फूलों से सुसज्जित थे। बड़ा ही प्यार भरा माहौल था। रोहित और श्रेया दोनों ही एक छोटी सी गुफा में थे ओर गुफा एक सिरे से ऊपर पूरी खुली थी और सूरज की रौशनी से पूरी तरह उज्जवलित थी। जैसा की जीतूजी ने कहा था, यह जगह ऐसी थी जहां प्यार भरे दिल और प्यासे बदन एक दूसरे के प्यार की प्यास और हवस की भूख बिना झिझक खुले आसमान के निचे मिटा सकते थे। प्यार भरे दिल और वासना से झुलसते हुए बदन पर निगरानी रखने वाला वहाँ कोई नहीं था। अपर्णा और जीतूजी वाटर फॉल के दूसरी और होने के कारण नजर नहीं रहे थे। श्रेया अपनी स्त्री सुलभ जिज्ञासा को रोक नहीं पायी और श्रेया ने वाटर फॉल के निचे जाकर वाटर फॉल के पानी को अपने ऊपर गिरते हुए दूर दूसरे छोर की और नज़र की तो देखा की उसके पति जीतूजी झुके हुए थे और उनकी बाँहों में अपर्णा पानी की परत पर उल्टी लेटी हुई हाथ पाँव मारकर तैरने के प्रयास कर रही थी।
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श्रेया जानती थी की उस समय अपर्णा के दोनों बूब्स जीतूजी की बाँहों से रगड़ खा रहे होंगे, जीतूजी की नजर अपर्णा की करारी नंगी गाँड़ पर चिपकी हुई होगी। अपर्णा को अपने इतने करीब पाकर जीतूजी का तगड़ा लण्ड कैसे उठ खड़ा हो गया होगा यह सोचना श्रेया के लिए मुश्किल नहीं था। पता नहीं शायद अपर्णा को भी जीतूजी का खड़ा और मोटा लण्ड महसूस हुआ होगा। अपने पति को कोई और औरत से अठखेलियां करते हुए देख कर कुछ पलों के लिए श्रेया के मन में स्त्री सुलभ इर्षा का अजीब भाव उजागर हुआ। यह स्वाभाविक ही था। इतने सालों से अपने पति के शरीर पर उनका स्वामित्व जो था! फिर श्रेया सोचने लगी, "क्या वाकई में उनका अपने पति पर एकचक्र स्वामित्व था?" शायद नहीं, क्यूंकि श्रेया ने स्वयं जीतूजी को कोई भी औरत को चोदने की छूट दे रक्खी थी l पर जहां तक श्रेया जानती थी, शादी के बाद शायद पहली बार जीतूजी के मन में अपर्णा के लिए जो भाव थे ऐसे उसके पहले किसी भी औरत के लिए नहीं आये थे।


अपने पति और रोहित की पत्नी को एकदूसरे के साथ अठखेलियाँ खेलते हुए देख कर जब श्रेया वापस लौटी तो उसे याद आया की रोहित चाहते थे की उसे श्रेया बनना था l श्रेया फिर रोहित को बाँहों में आगयी और बोली, "जाओ और देखो कैसे तुम्हारी बीबी मेरे पति से तैराकी सिख रही है। लगता है वह दोनों तो भूल ही गए हैं की हम दोनों भी यहाँ हैं।" रोहित ने श्रेया की बात को सुनी अनसुनी करते हुए कहा, "उनकी चिंता मत करो। मैं दोनों को जानता हूँ। ना तो वह दोनों कुछ करेंगे और ना वह इधर ही आएंगे। पता नहीं उन दोनों में क्या आपसी तालमेल या समझौता है की कुछ ना करते हुए भी वह एक दूसरे से चिपके हुए ही रहते हैं।" श्रेया ने कहा, "शायद तुम्हारी बीबी मेरे पति से प्यार करने लगी है।" रोहित ने कहा, "वह तो कभी से आपके पति से प्यार करती है। पर आप भी तो मुझसे प्यार करती हो." श्रेया ने रोहित का हाथ झटकते हुए कहा, "अच्छा? आपको किसने कहा की मैं आपसे प्यार करती हूँ?" रोहित ने फिरसे श्रेया को अपनी बाँहों में ले कर ऐसे घुमा दिया जिससे वह उसके पीछे आकर श्रेया की गाँड़ में अपनी निक्कर के अंदर खड़े लण्ड को सटा सके।

फिर श्रेया के दोनों स्तनोँ को अपनी हथेलियों में मसलते हुए रोहित ने श्रेया की गाँड़ के बिच में अपना लण्ड घुसाने की असफल कोशिश करते हुए कहा, "आपकी जाँघों के बिच में से जो पानी रिस रहा है वह कह रहा है।" श्रेया ने कहा, "आपने कैसे देखा की मेरी जाँघों के बिच में से पानी रिस रहा है? मैं तो वैसे भी गीली हूँ।" रोहित ने श्रेया की जाँघों के बिच में अपना हाथ ड़ालते हुए कहा, "मैं कबसे और क्या देख रहा था?" फिर श्रेया की जाँघों के बिच में अपनी हथेली डाल कर उसकी सतह पर हथेली को सहलाते हुए रोहित ने कहा, "यह देखो आपके अंदरसे निकला पानी झरने के पानी से कहीं अलग है। कितना चिकना और रसीला है यह!" यह कहते हुए रोहित अपनी उँगलियों को चाटने लगे। श्रेया रोहित की उंगलियों को अपनी चूत के द्वार पर महसूस कर छटपटा ने लगी। अपनी गाँड़ पर रोहित जी का भारी भरखम लण्ड उनकी निक्कर के अंदर से ठोकर मार रहा था। फिर श्रेया ने वाकई में महसूस किया की उसकी चूत में से झरने की तरह उसका स्त्री रस चू रहा था। वह रोहित की बाँहों में पड़ी उन्माद से सराबोर थी और बेबस होने का नाटक कर ऐसे दिखावा कर रही थीं जैसे रोहित ने उनको इतना कस के पकड़ रक्खा था की वह निकल ना सके।

श्रेया ने दिखावा करते हुए कहा, "रोहितजी छोडो ना?" रोहित ने कहा, "पहले बोलो, रोहित। रोहितजी नहीं।" श्रेया ने जैसे असहाय हो ऐसी आवाज में कहा, "अच्छा भैय्या रोहित! बस? अब तो छोडो?" 
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रोहित ने कहा, " भैय्या? तुम सैयां को भैय्या कहती हो?" 

श्रेयाने नाक चढ़ाते हुए पूछा, "अच्छा? अब तुम मेरे सैयां भी बन गए? दोस्त की बीबी को फाँस ने में लगे हो? दोस्त से गद्दारी ठीक बात नहीं।

रोहित ने कहा, "श्रेया, दोस्त की बीबी को मैं नहीं फाँस रहा। दोस्त की बीबी खुद फँस ने के लिए तैयार है। और फिर दोस्त से गद्दारी कहाँ की? गद्दारी तो अब होती ही जब किसी की प्यारी चीज़ उससे छीनलो और बदलेमें अंगूठा दिखाओ l मैंने उनसे तुम्हें छीना नहीं, कुछ देर के लिए उधार ही माँगा है। और फिर मैंने उनको अंगूठा भी नहीं दिखाया, बदले में मेरे दोस्त को अकेला थोड़े ही छोड़ा है? देखो वह भी तो किसी की कंपनी एन्जॉय कर रहा है। और वह कंपनी उनको मेरी पत्नी दे रही है।"

श्रेया रोहित को देखती ही रही। उसने सोचा रोहित जितने भोले दीखते हैं उतने हैं नहीं। श्रेया ने कहा, "तो तुम मुझे जीतूजी के साथ पत्नी की अदला-बदली करके पाना चाहते हो?"

रोहित ने फौरन सर हिलाए हुए कहा, "श्रेया, आपकी यह भाषा अश्लील है। मैं कोई अदला-बदली नहीं चाहता। देखिये अगर आप मुझे पसंद नहीं करती हैं तो आप मुझे अपने पास नहीं फटकने देंगीं। उसी तरह अगर मेरी पत्नी अपर्णा जीतूजी को ना पसंद करे तो वह उनको भी नजदीक नहीं आने देगी। मतलब यह पसंदगी का सवाल है। श्रेया मैं तुम्हें अपनी बनाना चाहता हूँ। क्या तुम्हें मंजूर है?"

श्रेया ने कहा, "एक तो जबरदस्ती करते हो और ऊपर से मेरी इजाजत माँग रहे हो?"

रोहित एकदम पीछे हट गए। उनके चेरे पर निराशा और गंभीरता साफ़ दिख रही थी। रोहित बोले, "श्रेया, कोई जबरदस्ती नहीं। प्यार में कोई जबरदस्ती नहीं होती।"

श्रेया को रोहित के चेहरे के भाव देख कर हँसी गयी। वह अपनी आँखें नचाती हुई बोली, "अच्छा जनाब! आप कामातुर औरत की भाषा भी नहीं समझते? अरे अगर भारतीय नारी जब त्रस्त हो कर कहती है 'खबरदार आगे मत बढ़ना' तो इसका तो मतलब है साफ़ "ना" ऐसी नारी से जबरदस्ती नहीं करनी चाहिए l पर वह जब वासना की आग में जल रही होती है और फिर भी कहती है, "छोडो ना? मुझे जाने दो।", तो इसका मतलब है "मुझे प्यार कर के मना कर चुदवाने के लिए तैयार करो तब मैं सोचूंगी।" पर वह जब मुस्काते हुए कहती है "मैं सोचूंगी" तो इसका मतलब है वह तुम्हें मन ही मन से कोस रही है और इशारा कर रह है की "मैं तैयार हूँ। देर क्यों कर रहे हो?" अगर वह कहे "हाँ" तो समझो वह भारतीय नहीं है।"

रोहित श्रेया की बात सुनकर हंस पड़े। उन्होंने कहा, "तो फिर आप क्या कहती हैं?"

श्रेया ने शर्मा कर मुस्काते हुए कहा, "मैं सोचूंगी।"
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रोहित ने फ़ौरन श्रेया की गाँड़ में अपनी निक्कर में फर्राटे मार रहा अपना लण्ड सटा कर श्रेया के करारे स्तनोँ को उसकी बिकिनीके अंदर अपनी उंगलियां घुसाकर उनको मसलते हुए कहा, "अब मैं सिर्फ देखना नहीं और भी बहुत कुछ चाहता हूँ। पर सबसे पहले मैं अपनी श्रेया को असली श्रेया के रूप में बिना किसी आवरण के देखना चाहता हूँ।" ऐसा कह कर रोहित ने श्रेया की कॉस्च्यूम के कंधे पर लगी पट्टीयों को श्रेया की दोनों बाजुओं के निचे की ओर सरका दीं। जैसे ही पट्टियाँ निचे की और सरक गयीं तो रोहित ने उनको निचेकी ओर खिसका दिया और श्रेया के दोनों उन्मत्त स्तनोंको अनावृत कर दिए। श्रेया के स्तन जैसे ही नंगे हो गए की रोहित की आँखें उनपर थम ही गयीं। श्रेया के स्तन पुरे भरे और फुले होने के बावजूद थोड़े से भी झुके हुए हैं नहीं थे। श्रेया के स्तनों की चोटी को अपने घेरे में डाले हुए उसके गुलाबी एरोला ऐसे लगते थे जैसे गुलाबी रंग का छोटा सा जापानी छाता दो फूली हुई निप्पलोँ के इर्दगिर्द फ़ैल कर स्तनोँ को और ज्यादा खूबसूरत बना रहे हों। बीचो बिच फूली हुई निप्पलेँ भी गुलाबी रंग की थीं। एरोला की सतह पर जगह जगह फुंसियां जैसी उभरी हुईं त्वचा स्तनों की खूबसूरती में चार चाँद लगा देती थीं। साक्षात् मेनका स्वर्ग से निचे उतर कर विश्वामित्र का मन हरने आयी हो ऐसी खूबसूरती अद्भुत लग रही थी।

श्रेया की कमर रेत घडी के सामान पतली और ऊपर स्तनोँ काऔर निचे कूल्हों के उभार के बिच अपनी अनूठी शान प्रदर्शित कर रही थी। श्रेया की नाभि की गहराई कामुकता को बढ़ावा दे रही थी। श्रेया की नाभि के निचे हल्का सा उभार और फिर एकदम चूत से थोडासा ऊपर वाला चढ़ाव और फिर चूतकी पंखुडियों की खाई देखते ही बनती थी। सबसे ज्यादा खूबसूरत श्रेया की गाँड़ का उतारचढ़ाव था। उन उतारचढ़ाव के ऊपर टिकी हुई रोहित की नजर हटती ही नहीं थी। और उस गाँड़ के दो खूबसूरत गालों की तो बात ही क्या? उन दो गालों के बिच जो दरार थी जिसमें श्रेया की कॉस्च्यूम के कपडे का एक छोटासा टुकड़ा फँसा हुआ था वह श्रेया की गाँड़ की खूबसूरती को ढकनेमें पूरी तरह असफल था।

रोहित का धीरज अब जवाब देने लगा था। अब वह श्रेया को पूरी तरह अनावृत (याने नग्न रूप में) देखना चाहते थे। रोहित ने श्रेया की कमर पर लटका हुआ उनका कॉस्टूयूम और निचे, श्रेया के पॉंव की और खिसकाया। श्रेया ने भी अपने पाँव बारी बारी से उठाकर उस कॉस्टूयूम को पाँव के निचे खिसका कर झुक कर उसे उठा लिया और किनारे पर फेंक दिया। अब श्रेया छाती तक गहरे पानी में पूरी तरह नंगी खड़ी थी। ना चाहते हुए भी रोहित नग्न श्रेयाकी खूबसूरती की नंगी अपर्णा से तुलना करने से अपने आपको रोक ना सका। हलांकि अपर्णा भी बलाकि खूबसूरत थी और नंगी अपर्णा कमाल की सुन्दर और सेक्सी थी, पर श्रेया में कुछ ऐसी कशिश थी जो अतुलनीय थी। हर मर्द को अपनी बीबी से दूसरे की बीबी हमेशा ज्यादा ही सुन्दर लगती है। रोहित ने नंगी श्रेया को घुमा कर अपनी बाँहों में आसानी से उठा लिया। हलकीफुलकी श्रेया को पानी में से उठाकर रोहित पानी के बाहर आये और किनारे रेतके बिस्तर में उसे लिटा कर रोहित उसके पास बैठ गए और रेत पर लेटी हुई नग्न श्रेया के बदन को ऐसे प्यार और दुलार से देखने लगे जैसे कई जन्मों से कोई आशिक अपनी माशूका को पहली बार नंगी देख रहा हो। ऐसे अपने पुरे बदन को घूरते हुए देख श्रेया शर्मायी और उसने रोहितकी ठुड्डी अपनी उँगलियों में पकड़ कर पूछा, "ओये! क्या देख रहे हो? इससे पहले किसी नंगी औरत को देखा नहीं क्या? क्या अपर्णा ने तुम्हें भी अपना पूरा नंगा बदन दिखाया नहीं?"
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श्रेया की बात सुनकर रोहित सकपका गए और बोले, "ऐसी कोई बात नहीं, पर श्रेया तुम्हारी सुंदरता कमाल है। अब मैं समझ सकता हूँ की कैसे जीतूजी जैसे हरफनमौला आशिक को भी तुमने अपने हुस्न के जादू में बाँध रखा है।" रोहित फिर उठे और उठ कर रेत पर लेटी हुई श्रेया को अपनी दोनों टाँगों के बिच में लेते हुए श्रेया के बदन पर झुक कर अपना पूरा लम्बा बदन श्रेया के ऊपर से सटाकर उस पर ऐसे लेटे जिससे उसका पूरा वजन श्रेया पर ना पड़े। फिर अपने होँठों को श्रेया के होँठों से सटाकर उसे चुम्बन करने लगे। श्रेयाने भी रोहित के होँठों को अपने होँठों का रस चूमने का पूरा अवसर दिया और खुद भी बार बार अपना पेंडू उठाकर रोहित के फूल कर उठ खड़े हुए लण्ड का अपनी रस रिस रही चूत पर महसूस करने लगी। ऐसे ही लेटे हुए दो बदन एक दूसरे को महसूस करने में और एक दूसरे के बदन की प्यार और हवस की आग का अंदाज लगाने में मशगूल हो गए। उन्हें समय को कोई भी ख्याल नहीं था। श्रेया रोहित के होँठों को चूसकर उनकी लार बड़े प्यार से निगल रही थी। श्रेया की प्यासी चूत में गजब की मचलन हो रही थी। अनायास ही श्रेया का हाथ अपनी जाँघों के बिच चला गया।

श्रेया रोहित का लण्ड अपनी प्यासी चूत में डलवाने के लिए बेताब हो रही थी। जब रोहित श्रेया के होँठों का रस चूसने में लगे हुए थे तब श्रेया अपनी उँगलियों से अपनी चूत के ऊपरी हिस्से वाले होँठों को हिला रही थी। रोहित ने महसूस किया की श्रेया की चूत में अजीब सी हलचल होनी शुरू हो चुकी थी। रोहित श्रेया के ऊपर ही घूम कर अपना मुंह श्रेया की जाँघों के बिच में ले आये। रोहित का लण्ड श्रेया के मुंह को छू रहा था। श्रेया की चूत तब रोहित की प्यासी आँखों के सामने थी। श्रेया की चूत की झाँटें श्रेया ने इतने प्यार से साफ़ की थी की बस थोडेसे हलके हलके बाल नजर रहे थे। रोहित को बालों से भरी हुई चूत अच्छी नहीं लगती थी। वह हमेशा अपनी पत्नी अपर्णा की चूत भी साफ़ देखना चाहते थे। कई बार तो वह खुद ही अपर्णा की चूत की सफाई कर देते थे। श्रेया अपनी चूत में उंगलियां डाल कर अपनी उत्तजेना बढ़ा रही थी। रोहित ने श्रेया की उंगलियां हटाकर वहाँ अपनी जीभ रख दी। श्रेया की टाँगों को और चौड़ी कर श्रेया की चूत के द्वार पर त्वचा को रोहित चाटने लगे। अपनी जीभ की नोक को श्रेया की संवेदनशील त्वचा पर कुरेदते हुए रोहित श्रेया की चुदवाने की कामना को एक उन्माद के स्तर पर वह पहुंचाना चाहते थे। रोहित की जीभ लप लप श्रेया की चूत को चाटने और कुरेदने लगी। यह अनुभव श्रेया के लिए बड़ाही रोमांचक था क्यूंकि उसके पति जीतूजी शायद ही कभी अपनी बीबी की चूत को चाटते थे।

दूसरी तरफ रोहित का लण्ड एकदम घंटे की तरह खड़ा और कड़ा हो चुका था। श्रेया ने रोहित के निक्कर की इलास्टिकमें अपनी उंगली फँसायी और निक्कर को टांगो की और खिसकाने लगी। श्रेया रोहित का लण्ड देखना और महसूस करना चाहती थी। श्रेया ने रोहित की निक्कर को पूरी तरह उनके पाँव से निचे की और खिसका दिया ताकि रोहित अपने पाँव को मोड़ कर निक्कर को निकाल फेंक सके। निक्कर के निकलते ही, रोहित का खड़ा मोटा लण्ड श्रेया के मुंह के सामने प्रस्तुत हुआ। श्रेया ने रोहित का लंबा और मोटा लण्ड अपनी उँगलियों में लिया और उसे प्यार से हिलाने और सहलाने लगी। श्रेया ने रोहित को पूछा, "रोहित, एक बात बताओ। तुमने मुझे कभी अपने सपने में देखा है? क्या मेरे साथ सपने में तुमने कुछ किया है?" रोहित ने श्रेयाकी चूतमें अपनी दो उँगलियाँ डालकर चूत की संवेदनशील त्वचा को उँगलियों में रगड़ते हुए कहा, "श्रेया, कसम तुम्हारी! एक बार नहीं, कई बार मैंने मेरी बीबी अपर्णा को श्रेया समझ कर चोदा है l एक बार तो अपर्णा को चोदते हुए मेरे मुंह से अनायास ही तुम्हारा नाम निकल गया। पर अपर्णा को समझ आये उससे पहले मैंने बात को बदल दिया ताकि उसे शक ना हो की चोद तो मैं उसे रहा था पर याद तुम्हें कर रहा था।
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हर औरत, ख़ास कर किसी और औरत के मुकाबले अपनी तारीफ़ सुनकर स्वाभाविक रूप से खुश होती ही है। मर्द लोग यह भलीभांति जानते हैं और अपनी जोड़ीदार को चुदाई के लिए तैयार करने के लिए यह ब्रह्मास्त्र का अक्सर उपयोग करते हैं। जो भी पति लोग मेरी इस कहानी को पढ़ रहे हों, ध्यान रखें की अपनी पत्नी को चुदाई के लिए तैयार करने के लिए हमेशा उसके रूप,गुण और बदन की खूब तारीफ़ करो। अगर कोई महिला इसे पढ़ रही है तो समझे की पति उनको वाकई में खूब प्रेम करते हैं और वह जो कह रहे हैं उसे सच समझे। आसमान में सूरज ढलने लगा था। 

अचानक श्रेया को ख़याल आया की बातों बातों में समय जा रहा था। श्रेया ने रोहित से कहा, "यार समय जा रहा है। तुम्हारी बीबी तो मेरे पति को घास डालने वाली है नहीं। मेरे पति तो तुम्हारी बीबी को तैराकी सिखाते हुए ही रह जाएंगे। आखिर में रात को मुझे ही उनकी गर्मी निकालनी पड़ेगी। पर चलो तुम तो कुछ करो ना? तुम्हारे दोस्त की बीबी तो तैयार है।" रोहित श्रेया की उच्छृंखल खरी खरी बात सुनकर मुस्कुरा दिए। श्रेया की साफ़ साफ़ बातें रोहित के लण्ड को फनफनाने के लिए काफी थीं। रोहित ने श्रेया को बैठा दिया और उनको अपनी बाँहों में उठा कर फिर पानी में ला कर रख दिया। किनारे के पत्थर पर श्रेया के हाथ टिका कर खुद श्रेया के पीछे गए और श्रेया की नंगी करारी और खूबसूरत गाँड़ की मन ही मन प्रशंशा करते हुए थोड़ा झुक कर श्रेया की गाँड़ की दरार में अपना लण्ड घुसेड़ा। श्रेया ने रोहित का लण्ड अपनी उँगलियों में लिया और अपनी चूत की पँखुड़ियों पर थोड़ा सा रगड़ते हुए, उसे अपनी चूत के द्वार पर टिका दिया। फिर अपनी चूत की पंखुड़ियों को फैलाकर अपने प्रेमछिद्र में उसे थोडासा घुसने दिया। अपनी गाँड़ को थोड़ा सा पीछे की और धक्का मार कर श्रेया ने रोहित को आव्हान किया की आगे का काम रोहित स्वयं करे। रोहित ने धीरे से श्रेया की छोटी सी नाजुक चूत में अपना मोटा लंबा और लोहे की छड़ के सामान कड़क खड़े लण्ड को थोड़ा सा घुसेड़ा। श्रेया पहली बार किसी मर्द से पानी में चुदवा रही थी। यहां तक की उस दिन तक उसने अपने पति से भी कभी पानी में खड़े रह कर चुदवाया नहीं था। यह पहला मौक़ा था की श्रेया पानीमें खड़े खड़े चुदवा रही थी और वह भी एक पराये मर्द से।

रोहित ने धीरे धीरे श्रेया की चूत में अपना लण्ड पेलना शुरू किया। श्रेया की चूत का मुंह छोटा होने के कारण श्रेया को दर्द हो रहा था। पर श्रेयाको इस दर्दकी आदतसी हो गयीथी। रोहित का लण्ड शायद श्रेया के पति जीतूजी के लण्ड मुकाबले उन्न्नीस ही होगा। पर फिर भी श्रेया को कष्ट हो रहा था। श्रेया ने अपनी आँखें मूंदलीं और रोहित से अच्छीखासी चुदाई के लिए अपने आपको तैयार कर लिया। धीरे धीरे दर्द कम होने लगा और उन्माद बढ़ने लगा। श्रेया भी कई महीनों से रोहित से चुदवाने के लिए बेक़रार थी। यह सही था की श्रेया ने अपने पति से रोहित से चुदवाने के लिये कोई इजाजत या परमिशन तो नहीं ली थी पर वह जानती थी की जीतूजी उसके मन की बात भलीभांति जानते थे। जीतूजी जानते थे की आज नहीं तो कल उनकी पत्नी रोहित से चुदेगी जरूर। धीरे धीरे रोहित का लण्ड श्रेया की चूत की पूरी सुरंग में घुस गया। रोहित का एक एक धक्का श्रेया को सातवें आसमान को छूने का अनुभव करा रहा था। रोहित का धक्का श्रेया के पुरे बदन को हिला देता था। श्रेया की दोनों चूँचियाँ रोहित ने अपनी हथेलियों में कस के पकड़ रक्खी थीं। रोहित थोड़ा झुक कर अपना लण्ड पुरे जोश से श्रेया की चूत में पेल रहे थे। रोहित की चुदाई श्रेया को इतनी उन्मादक कर रही थी की वह जोर से कराह कर अपनी कामातुरता को उजागर कर रही थी। श्रेया की ऊँचे आवाज वाली कराहट वाटर फॉल के शोर में कहीं नहीं सुनाई पड़ती थी। श्रेया उस समय रोहित के लण्ड का उसकी चूत में घुसना और निकलना ही अनुभव कर रही थी। उस समय उसे और कोई भी एहसास नहीं हो रहा था। रोहित उत्तेजना से श्रेया की चूतमें इतना जोशीला धक्का मार रहे थे की कई बार श्रेया ड़र रही थी की रोहित का लण्ड उसकी बच्चे दानी को ही फाड़ ना दे।
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श्रेया को दर्द का कोई एहसास नहीं हो रहा था। दर्द जैसे गायब ही हो गया था और उसकी जगह रोहित का लण्ड श्रेया को अवर्णनीय सुख और उन्माद दे रहा था। जैसे रोहित का लण्ड श्रेया की चूत की सुरंगमें अंदर बाहर हो रहा था, श्रेया को एक अद्भुत एहसास हो रहा था। श्रेया सिर्फ रोहित से चुदवाना चाहती थी; उसे रोहित से तहे दिल से प्यार था। उनकी कुशाग्र बुद्धिमत्ता, उनकी किसी भी मसले को प्रस्तुत करनेकी शैली, बातें करते समय उनके हावभाव और सबसे ज्यादा उनकी आँखों में जो एक अजीब सी चमक ने श्रेया के मन को चुरा लिया था। श्रेया रोहित से इतनी प्रभावित थी की वह उनसे प्यार करने लगी थी। अपने पति से प्यार होते हुए भी वह रोहित से भी प्यार कर बैठी थी। अक्सर यह शादीशुदा स्त्री और पुरुष दोनों में होता है। अगर कोई पुरुष अपनी पत्नी को छोड़ किसी और स्त्री से प्यार करने लगता है और उससे सेक्स करता है (उसे चोदता है) तो इसका मतलब यह नहीं है की वह अपनी पत्नी से प्यार नहीं करता। ठीक उसी तरह अगर कोई शादीशुदा स्त्री किसी और पुरुष को प्यार करने लगती है और वह प्यार से उससे चुदाई करवाती है तो इसका कतई भी यह मतलब नहीं निकालना चाहिए की वह अपने पति से प्यार नहीं करती।

हाँ यदि यह प्यार शादीशुदा पति या पत्नी के मन में उस परायी व्यक्ति के लिए पागलपन में बदल जाए जिससे वह अपने जोड़ीदार को पहले वाला प्यार करने में असमर्थ हो तब समस्या होती है। बात वहाँ उलझ जाती है जहां स्त्री अथवा पुरुष अपने जोड़ीदार से यह अपेक्षा रखते हैं की उसका जोड़ीदार किसी अन्य व्यक्ति से प्यार ना करे और चुदाई तो नाही करे या करवाए। बात अधिकार माने अहम् पर आकर रुक जाती है। समस्या यहां से ही शुरू होती है। जहां यह अहम् नहीं होता वहाँ समझदारी की वजह से पति और पत्नी में पर पुरुष या स्त्री के साथ गमन करने से (मतलब चोदने या चुदवाने से) वैमनस्यता (कलह) नहीं पैदा होती। बल्कि इससे बिलकुल उलटा वहाँ ज्यादा रोमांच और उत्तेजना के कारण उस चुदाई में सब को आनंद मिलता है यदि उसमें स्पष्ट या अष्पष्ट आपसी सहमति हो। श्रेया को रोहितसे तहे दिल से प्यार था और वही प्यार के कारण दोनों बदन में मिलन की कामना कई महीनों से उजागर थी। तलाश मौके की थी। श्रेया ने रोहित को जबसे पहेली बार देखा था तभी से वह उससे बड़ी प्रभावित थी। उससे भी कहीं ज्यादा जब श्रेया ने देखा की रोहित उसे देख कर एकदम अपना होशोहवास खो बैठते थे तो वह समझ गयी की कहीं ना कहीं रोहित के मन में भी श्रेया के लिए वही प्यार था और उनकी श्रेया के कमसिन बदन से सम्भोग (चोदने) की इच्छा प्रबल थी यह महसूस कर श्रेया की रोहित से चुदवाने की इच्छा दुगुनी हो गयी। जैसे जैसे रोहित ने श्रेया को चोदने की रफ़्तार बढ़ाई, श्रेया का उन्माद भी बढ़ने लगा। जैसे ही रोहित श्रेया की चूत में अपने कड़े लण्ड का अपने पेंडू के द्वारा एक जोरदार धक्का मारता था, श्रेया का पूरा बदन ना सिर्फ हिल जाता था, श्रेया के मुंह से प्यार भरी उन्मादक कराहट निकल जाती थी। अगर उस समय वाटर फॉल का शोर ना होता तो श्रेया की कराहट पूरी वादियों में गूंजती। रोहित की बुद्धि और मन में उस समय एक मात्र विचार यह था की श्रेया की चूत में कैसे वह अपना लण्ड गहराई तक पेल सके जिससे श्रेया रोहित से चुदाई का पूरा आनंद ले सके। पानीमें खड़े हो कर चुदाई करने से रोहित को ज्यादा ताकत लगानी पड़ रही थी और श्रेया की गाँड़ पर उसके टोटे (अंडकोष) उतने जोर से थप्पड़ नहीं मार पाते थे जितना अगर वह श्रेया को पानी के बाहर चोदते। पर पानी में श्रेया को चोदने का मजा भी तो कुछ और था। श्रेया को भी रोहित से पानी में चुदाई करवाने में कुछ और ही अद्भुत रोमांच का अनुभव हो रहा था।
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रोहित एक हाथ से श्रेया की गाँड़ के गालों पर हलकी सी प्यार भरी चपत अक्सर लगाते रहते थे जिसके कारण श्रेया का उन्माद और बढ़ जाता था। श्रेया की चूत में अपना लण्ड पेलते हुए रोहित का एक हाथ श्रेया को दोनों स्तनोँ पर अपना अधिकार जमाए हुए था। रोहित को कई महीनों से श्रेया को चोदने के चाह के कारण रोहित के एंड कोष में भरा हुआ वीर्य का भण्डार बाहर आकर श्रेया की चूत को भर देने के लिए बेताब था। रोहित अपने वीर्य की श्रेया की चूत की सुरंग में छोड़ने की मीठी अनुभूति करना चाहते थे। श्रेया की नंगी गाँड़ जो उनको अपनी आँखों के सामने दिख रही थी वह रोहित को पागल कर रही थी। रोहित का धैर्य (या वीर्य?) छूटने वाला ही था। श्रेया ने भी अनुभव किया की अगर उसी तरह रोहित उसे चोदते रहे तो जल्द ही रोहित अपना सारा वीर्य श्रेया की सुरंग में छोड़ देंगे। श्रेया को पूरी संतुष्टि होनी बाकी थी। उसे चुदाई का और भी आनंद लेना था। श्रेया ने रोहित को रुकने के लिए कहा। रोहित के रुकते ही श्रेया ने रोहित को पानी के बाहर किनारे पर रेत में सोने के लिए अनुग्रह किया। रोहित रेत पर लेट गए। श्रेया शेरनी की तरह रोहित के ऊपर सवार हो गयी। श्रेया ने रोहित का फुला हुआ लण्ड अपनी उँगलियों में पकड़ा और अपना बदन नीचा करके रोहित का पूरा लण्ड अपनी चूत में घुसेड़ दिया।

अब श्रेया रोहित की चुदाई कर रही थी। श्रेया को उस हाल में देख ऐसा लगता था जैसे श्रेया पर कोई भूत सवार हो गया हो। श्रेया अपनी गाँड़ के साथ अपना पूरा पेंडू पहले वापस लेती थी और फिर पुरे जोश से रोहित के लण्ड पर जैसे आक्रमण कर रही हो ऐसे उसे पूरा अपनी चूत की सुरंग में घुसा देती थी। ऐसा करते हुए श्रेया का पूरा बदन हिल जाता था। श्रेया के स्तन इतने हिल तरहे थे की देखते ही बनता था। श्रेया की चूत की फड़कन बढ़ती ही जा रही थी। श्रेया का उन्माद उस समय सातवें आसमान पर था। श्रेया को उस समय अपनी चूत में रगड़ खा रहे रोहित के लण्ड के अलावा कोई भी विचार नहीं रहा था। वह रगड़ के कारण पैदा हो रही उत्तेजना और उन्माद श्रेया को उन्माद की चोटी पर लेजाने लगा था। श्रेया के अंदर भरी हुई वासना का बारूद फटने वाला था। रोहित को चोदते हुए श्रेया की कराहट और उन्माद पूर्ण और जोरदार होती जा रही थी। रोहित का वीर्य का फव्वारा भी छूटने वाला ही था। अचानक रोहित के दिमाग में जैसे एक पटाखा सा फूटा और एक दिमाग को हिला देने वाले धमाके के साथ रोहित के लण्ड के केंद्रित छिद्र से उसके वीर्य का फव्वारा जोरसे फुट पड़ा। जैसे ही श्रेया ने अपनी चूत की सुरंग में रोहित के गरमा गरम वीर्य का फव्वारा अनुभव किया की वह भी अपना नियत्रण खो बैठी और एक धमाका सा हुआ जो श्रेया के पुरे बदन को हिलाने लगा। श्रेया को ऐसा लगा जैसे उसके दिमाग में एक गजब का मीठा और उन्मादक जोरदार धमाका हुआ। जिसकेकारण उसका पूरा बदन हिल गया और उसकी पूरी शक्ति और ऊर्जा उस धमाके में समा गयी। चंद पलों में ही श्रेया निढाल हो कर रोहित पर गिर पड़ी। रोहित का लण्ड तब भी श्रेया की चूत में ही था। पर श्रेया अपनी आँखें बंद कर उस अद्भुत अनुभव का आनंद ले रही थी।

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पत्नी की अदला-बदली -  06
 

अपर्णा जैसे ही जीतूजी की बाँहों में समायी उसने जीतूजी के खड़े लण्ड को महसूस किया। अपर्णा जानती थी की जीतूजी उस पर कोई जबरदस्ती नहीं करेंगे पर बेचारा जीतूजी का लण्ड कहाँ मानने वाला था? अपर्णा को ऐसे स्विमिंग कॉस्च्यूम में देख कर जीतूजी के लण्ड का खड़ा होकर जीतूजी की निक्कर में फनफनाना स्वाभाविक ही था। अपर्णा को जीतूजी के लण्ड से कोई शिकायत नहीं थी। दो बार अपर्णा ने जीतूजी के लण्ड की गरमी अपने दक्ष हाथों के जादू से निकाल दी थी। अपर्णा जीतूजी के लण्ड की लम्बाई और मोटाई के बारे में भलीभांति वाकिफ थी। पर उस समय उसका एक मात्र लक्ष्य था की उसे जीतूजी से तैरना सीखना था। कई बार अपर्णा को बड़ा अफ़सोस होता था की उसने तैरना नहीं सीखा था। काफी समय से अपर्णा के मन में यह एक प्रबल इच्छा थी की वह तैरना सीखे। जीतूजी जैसे आला प्रशिक्षक से जब उसे तैरना सिखने का मौक़ा मिला तो भला वह उसे क्यों जाने दे? जहां तक जीतूजी के उसके बदन छूने की बात थी तो वह अपर्णाके लिए उतनी गंभीर बात नहीं थी। अपर्णा के मन में जीतूजी का स्थान ह्रदयके इतना करीब था की उसका बस चलता तो वह अपनी पूरी जिंदगी जीतूजी पर कुर्बान कर देती। जीतूजी और अपर्णा के संबंधों को लेकर बार बार अपने पति के उकसाने के कारण अपर्णा के पुरे बदन में जीतूजी का नाम सुनकर ही एक रोमांच सा हो जाता था। जीतूजी से शारीरिक संबंधों के बारेमें अपर्णा के मन में हमेशा अजीबो गरीब ख़याल आते रहते थे। भला जिसको कोई इतना चाहता हो उसे कैसे कोई परहेज कर सकता है?

अपर्णा मन में कहीं ना कहीं जीतूजी को अपना प्रियतम तो मान ही चुकी थी। अपर्णा के मन में जीतूजी का शारीरिक और मानसिक आकर्षण उतना जबरदस्त था की अगर उसके पाँव माँ के वचन ने रोके नहीं होते तो शायद अब तक अपर्णा जीतूजी से चुद चुकी होती। पर एक आखरी पड़ाव पार करना बाकी था शायद इस के कारण अब भी जीतूजी से अपर्णा के मन में कुछ शर्म और लज्जा और दुरी का भाव था। या यूँ कहिये की कोई दुरी नहीं होती है तब भी जिसे आप इतना सम्मान करते हैं और उतना ही प्यार करते हो तो उसके सामने निर्लज्ज तो नहीं हो सकते ना? उनसे कुछ लज्जा और शर्म आना स्वाभाविक भारतीय संस्कृति है। जब जीतूजी के सामने अपर्णा ने आधी नंगी सी आने में हिचकि-चाहट की तो जीतूजी की रंजिश अपर्णा को दिखाई दी। अपर्णा जानती थी की जीतूजी कभी भी अपर्णा को बिना रजामंदी के चोदने की बात तो दूर वह किसी भी तरह से छेड़ेंगे भी नहीं। पर फिर भी अपर्णा कभी इतने छोटे कपड़ों में सूरज के प्रकाश में जीतूजी के सामने प्रस्तुत नहीं हुई थी। इस लिए उसे शर्म और लज्जा आना स्वाभाविक था। शायद ऐसे कपड़ों में पत्नीयाँ भी अपने पति के सामने हाजिर होने से झिझकेंगी। जब जीतूजी ने अपर्णा की यह हिचकिचाहट देखि तो उन्हें दुःख हुआ। उनको लगा अपर्णा को उनके करीब आने डर रही थी की कहीं जीतूजी अपर्णा पर जबरदस्ती ना कर बैठे। हार कर जीतूजी पानी से बाहर निकल आये और कैंप में वापस जाने के लिए तैयार हो गए। उन्होंने अपर्णा से इतना ही कहा की जब अपर्णा उन्हें अपना नहीं मानती और उनसे पर्दा करती है तो फिर बेहतर है वह अपर्णा से दूर ही रहें।

इस बात से अपर्णा को इतना बुरा लगा की वह भाग कर जीतूजी की बाँहों में लिपट गयी और उसने जीतूजी से कहा, "अब मैं आपको नहीं रोकूंगी। मैं आपको अपनों से कहीं ज्यादा मानती हूँ। अब आप मुझसे जो चाहे करो।" उसी समय अपर्णा ने तय किया की वह जीतूजी पर पूरा विश्वास रखेगी और तब उसने मन से अपना सब कुछ जीतूजी के हाथों में सौंप दिया।
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पर जीतूजी भी तो अकड़ू थे। वह दया, दान, मज़बूरी या भिक्षा नहीं वह अपनी प्रियतमा से प्यार भरा सक्रीय एवं स्वैच्छिक सम्पूर्ण आत्म समर्पण चाहते थे। ट्रैन में सफर करते हुए जीतूजी अपर्णा के बिस्तर में जा घूसे थे उस वाकये के कारण वह अपने आपसे बड़े नाराज थे। कैसे उन्होंने अपने आप पर नियत्रण खो दिया? जब अपर्णा ने उन्हें स्पष्ट शब्दों में कहा था की वह उनसे शारीरिक सम्बन्ध नहीं रख सकती तब क्यों वह अपर्णा के बिस्तर में चले गए? यह तो उनके सिद्धांतों के बिलकुल विरुद्ध था। उन्होंने अपर्णा के सामने सौगंध सी खायी थी की जब तक अपर्णा सामने चलकर अपना स्वैच्छिक सक्रीय एवं सम्पूर्ण आत्म समर्पण नहीं करेगी तब तक वह अपर्णा को किसी भी तरह के शारीरिक सम्बन्ध के लिए बाध्य नहीं करेंगे। पर फीर भी ट्रैन में उस रात अपर्णा के थोड़ा उकसाने पर वह अपर्णा के बिस्तर में घुस गए और अपनी इज्जत दाँव पर लगा दी यह पछतावा जीतूजी के ह्रदय को खाये जा रहा था।

अपर्णा ने तो अपने मन में तय कर लिया की जीतूजी उसके साथ जो व्यवहार करेंगे वह उसे स्वीकारेगी। अगर जीतूजी ने अपर्णा को चोदने की इच्छा जताई तो अपर्णा जीतूजी से चुदवाने के लिए भी मना नहीं करेगी, हालांकि ऐसा करने से उसने माँ को दिया गया वचन टूट जाएगा। पर अपर्णाको पूरा भरोसा था की जीतूजी एक सख्त नियम पालन करने वाले इंसान थे और वह कभी भी अपर्णा का विश्वास नहीं तोड़ेंगे।

जीतूजी ने अपर्णा को सीमेंट की फर्श पर गाड़े हुए स्टील के बार हाथ में पकड़ कर पानी को सतह पर उलटा लेट कर पॉंव एक के बाद एक पछाड़ ने को कहा। खुद स्टील का पाइप पकड़ कर जैसे सिख रहे हों ऐसे पानी की सतह पर उलटा लेट गए और पॉंव को सीधा रखते हुए ऊपर निचे करते हुए अपर्णा को दिखाया। और अपर्णा को भी ऐसा ही करने को कहा। अपर्णा जीतूजी के कहे मुजब स्टील के बार को पकड़ कर पानी की सतह पर उल्टी लेट गयी। उसकी नंगी गाँड़ जीतूजी की आँखों को परेशान कर रही थी। वह अपर्णा की सुआकार गाँड़ देखते ही रह गए। अपर्णा की नंगी गाँड़ देख कर जीतूजी का लण्ड जीतूजी के मानसिक नियत्रण को ठेंगा दिखाता हुआ जीतूजी की दो जाँघों के बिच निक्कर में कूद रहा था। पर जीतूजी ने अपने ऊपर कडा नियत्रण रखते हुए उस पर ध्यान नहीं दिया। जीतूजी के लिए बड़ी दुविधा थी। उन्हें डर था की अगर उन्होंने अपर्णा के करारे बदन को इधर उधर छु लिया तो कहीं वह अपने आप पर नियत्रण तो नहीं खो देंगे? जब अपर्णा ने यह देखा तो उसे बड़ा दुःख हुआ। वह जानती थी की जीतूजी उसे चोदने के लिए कितना तड़प रहे थे। अपर्णा को ऐसे कॉस्च्यूम में देख कर भी वह अपने आप पर जबर दस्त कण्ट्रोल रख रहे थे। हालांकि यह साफ़ था की जीतूजी का लण्ड उनकी बात मान नहीं रहा था।

खैर होनी को कौन टाल सकता है? यह सोचकर अपर्णा ने जीतूजी का हाथ थामा और कहा, "जीतूजी, अब आप मुझे तैरना सिखाएंगे की नहीं? पहले जब मैं झिझक रही थी तब आप मुझ पर नाराज हो रहे थे। अब आप झिझक रहे हो तो क्या मुझे नाराज होने का अधिकार नहीं?" अपर्णा की बात सुनकर जीतूजी मुस्कुरा दिए। अपने आप को सम्हालते हुए बोले, "अपर्णा मैं सच कहता हूँ। पता नहीं तुम्हें देख कर मुझे क्या हो जाता है। मैं अपना आपा खो बैठता हूँ। आज तक मुझे किसी भी लड़की या स्त्री के लिए ऐसा भाव नहीं हुआ। श्रेया के लिए भी नहीं।" अपर्णा ने कहा, "जीतूजी मुझमें कोई खासियत नहीं है। यह आपका मेरे ऊपर प्रेम है। कहावत है ना की 'पराये का चेहरा कितना ही खूबसूरत क्यों ना हो तो भी उतना प्यारा नहीं लगता जितनी अपने प्यारे की लगती है। अपर्णा जीतूजी के सामने गाँड़ शब्द बोल नहीं पायी। अपर्णा की बात सुनकर जीतूजी हंस पड़े और अपर्णा की नंगी गाँड़ देखते हुए बोले, "अपर्णा, मैं तुम्हारी बात से पूरी तरह सहमत हूँ।" अपर्णा जीतूजी की नजर अपनी गाँड़ पर फिरती हुई देख कर शर्मा गयी और उसे नजर अंदाज करते हुए उलटा लेटे हुए अपने पाँव काफी ऊपर की और उठाकर पानी की सतह पर जैसे जीतूजी ने बताया था ऐसे पछाड़ने लगी।
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पर जीतूजी भी तो अकड़ू थे। वह दया, दान, मज़बूरी या भिक्षा नहीं वह अपनी प्रियतमा से प्यार भरा सक्रीय एवं स्वैच्छिक सम्पूर्ण आत्म समर्पण चाहते थे। ट्रैन में सफर करते हुए जीतूजी अपर्णा के बिस्तर में जा घूसे थे उस वाकये के कारण वह अपने आपसे बड़े नाराज थे। कैसे उन्होंने अपने आप पर नियत्रण खो दिया? जब अपर्णा ने उन्हें स्पष्ट शब्दों में कहा था की वह उनसे शारीरिक सम्बन्ध नहीं रख सकती तब क्यों वह अपर्णा के बिस्तर में चले गए? यह तो उनके सिद्धांतों के बिलकुल विरुद्ध था। उन्होंने अपर्णा के सामने सौगंध सी खायी थी की जब तक अपर्णा सामने चलकर अपना स्वैच्छिक सक्रीय एवं सम्पूर्ण आत्म समर्पण नहीं करेगी तब तक वह अपर्णा को किसी भी तरह के शारीरिक सम्बन्ध के लिए बाध्य नहीं करेंगे। पर फीर भी ट्रैन में उस रात अपर्णा के थोड़ा उकसाने पर वह अपर्णा के बिस्तर में घुस गए और अपनी इज्जत दाँव पर लगा दी यह पछतावा जीतूजी के ह्रदय को खाये जा रहा था।

अपर्णा ने तो अपने मन में तय कर लिया की जीतूजी उसके साथ जो व्यवहार करेंगे वह उसे स्वीकारेगी। अगर जीतूजी ने अपर्णा को चोदने की इच्छा जताई तो अपर्णा जीतूजी से चुदवाने के लिए भी मना नहीं करेगी, हालांकि ऐसा करने से उसने माँ को दिया गया वचन टूट जाएगा। पर अपर्णाको पूरा भरोसा था की जीतूजी एक सख्त नियम पालन करने वाले इंसान थे और वह कभी भी अपर्णा का विश्वास नहीं तोड़ेंगे।

जीतूजी ने अपर्णा को सीमेंट की फर्श पर गाड़े हुए स्टील के बार हाथ में पकड़ कर पानी को सतह पर उलटा लेट कर पॉंव एक के बाद एक पछाड़ ने को कहा। खुद स्टील का पाइप पकड़ कर जैसे सिख रहे हों ऐसे पानी की सतह पर उलटा लेट गए और पॉंव को सीधा रखते हुए ऊपर निचे करते हुए अपर्णा को दिखाया। और अपर्णा को भी ऐसा ही करने को कहा। अपर्णा जीतूजी के कहे मुजब स्टील के बार को पकड़ कर पानी की सतह पर उल्टी लेट गयी। उसकी नंगी गाँड़ जीतूजी की आँखों को परेशान कर रही थी। वह अपर्णा की सुआकार गाँड़ देखते ही रह गए। अपर्णा की नंगी गाँड़ देख कर जीतूजी का लण्ड जीतूजी के मानसिक नियत्रण को ठेंगा दिखाता हुआ जीतूजी की दो जाँघों के बिच निक्कर में कूद रहा था। पर जीतूजी ने अपने ऊपर कडा नियत्रण रखते हुए उस पर ध्यान नहीं दिया। जीतूजी के लिए बड़ी दुविधा थी। उन्हें डर था की अगर उन्होंने अपर्णा के करारे बदन को इधर उधर छु लिया तो कहीं वह अपने आप पर नियत्रण तो नहीं खो देंगे? जब अपर्णा ने यह देखा तो उसे बड़ा दुःख हुआ। वह जानती थी की जीतूजी उसे चोदने के लिए कितना तड़प रहे थे। अपर्णा को ऐसे कॉस्च्यूम में देख कर भी वह अपने आप पर जबर दस्त कण्ट्रोल रख रहे थे। हालांकि यह साफ़ था की जीतूजी का लण्ड उनकी बात मान नहीं रहा था।

खैर होनी को कौन टाल सकता है? यह सोचकर अपर्णा ने जीतूजी का हाथ थामा और कहा, "जीतूजी, अब आप मुझे तैरना सिखाएंगे की नहीं? पहले जब मैं झिझक रही थी तब आप मुझ पर नाराज हो रहे थे। अब आप झिझक रहे हो तो क्या मुझे नाराज होने का अधिकार नहीं?" अपर्णा की बात सुनकर जीतूजी मुस्कुरा दिए। अपने आप को सम्हालते हुए बोले, "अपर्णा मैं सच कहता हूँ। पता नहीं तुम्हें देख कर मुझे क्या हो जाता है। मैं अपना आपा खो बैठता हूँ। आज तक मुझे किसी भी लड़की या स्त्री के लिए ऐसा भाव नहीं हुआ। श्रेया के लिए भी नहीं।" अपर्णा ने कहा, "जीतूजी मुझमें कोई खासियत नहीं है। यह आपका मेरे ऊपर प्रेम है। कहावत है ना की 'पराये का चेहरा कितना ही खूबसूरत क्यों ना हो तो भी उतना प्यारा नहीं लगता जितनी अपने प्यारे की लगती है। अपर्णा जीतूजी के सामने गाँड़ शब्द बोल नहीं पायी। अपर्णा की बात सुनकर जीतूजी हंस पड़े और अपर्णा की नंगी गाँड़ देखते हुए बोले, "अपर्णा, मैं तुम्हारी बात से पूरी तरह सहमत हूँ।"
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अपर्णा जीतूजी की नजर अपनी गाँड़ पर फिरती हुई देख कर शर्मा गयी और उसे नजर अंदाज करते हुए उलटा लेटे हुए अपने पाँव काफी ऊपर की और उठाकर पानी की सतह पर जैसे जीतूजी ने बताया था ऐसे पछाड़ने लगी।

पर ऐसा करने से तो जीतूजी को अपर्णा की चूत पर टिकाई हुई अपर्णा की कॉस्टूयूम की पट्टी खिसकती दिखी और एक पल के लिए अपर्णा की खूबसूरत चूत का छोटा सा हिस्सा दिख गया। यह नजारा देख कर जीतूजी का मन डाँवाँडोल हो रहा था। अपर्णा काफी कोशिश करने पर भी पानी की सतह पर ठीक से लेट नहीं पा रही थी और बार बार उसक पाँव जमीन को छू लेते थे। जीतूजी ने बड़ी मुश्किल से अपनी नजर अपर्णा की जाँघों के बिच से हटाई और अपर्णा के पेट के निचे अपना हाथ देकर अपर्णा को ऊपर उठाया। अपर्णा ने वैसे ही अपने पाँव काफी ऊपर तक उठा कर पछाड़ती रही और ना चाहते हुए भी जीतूजी की नजर अपर्णा की चूत के तिकोने हिस्से को बारबार देखने के लिए तड़पती रही। अपर्णा जीतूजी के मन की दुविधा भलीभाँति जानती थी पर खुद भी तो असहाय थी। ऐसे ही कुछ देर तक पानी में हाथ पाँव मारने के बाद जब अपर्णा कुछ देर तक पानी की सतह पर टिकी रह पाने लगी तब जीतूजी ने अपर्णा से कहा, "अब तुम पानी की सतह पर अपना बदन तैरता हुआ रख सकती हो। क्या अब तुम थोड़ा तैरने की कोशिश करने के लिए तैयार हो?"
अपर्णा को पानी से काफी डर लगता था। उसने जीतूजी से लिपट कर कहा, "जैसे आप कहो। पर मुझे पानी से बहुत डर लगता है। आप प्लीज मुझे पकडे रखना।" जीतूजी ने कहा, "अगर मैं तुम्हें पकड़ रखूंगा तो तुम तैरना कैसे सिखोगी? अपनी और से भी तुम्हें कुछ कोशिश तो करनी पड़ेगी ना?" अपर्णा ने कहा, "आप जैसा कहोगे, मैं वैसा ही करुँगी। अब मेरी जान आप के हाथ में है।" जीतूजी और अपर्णा फिर थोड़े गहरे पानी में गए। अपर्णा का बुरा हाल था। वह जीतूजी की बाँह पकड़ कर तैरने की कोशिश कर रही थी। जीतूजी ने अपर्णा को पहले जैसे ही पानी की सतह पर उलटा लेटने को कहा और पहले ही की तरह पाँव उठाकर पछाड़ने को कहा, साथ साथ में हाथ हिलाकर पानी पर तैरते रहने की हिदायत दी। पहली बार अपर्णा ने जब जीतूजी का हाथ छोड़ा और पानी की सतह पर उलटा लेटने की कोशिश की तो पानी में डूबने लगी। जैसे ही पानी में उसका मुंह चला गया, अपर्णा की साँस फूलने लगी। जब वह साँस नहीं ले पायी और कुछ पानी भी पी गयी तो वह छटपटाई और इधर उधर हाथ मारकर जीतूजी को पकड़ने की कोशिश करने लगी। दोनों हाथोँ को बेतहाशा इधर उधर मारते हुए अचानक अपर्णा के हाथों की पकड़ में जीतूजी की जाँघें गयी। अपर्णा जीतूजी की जाँघों को पकड़ पानी की सतह के ऊपर आने की कोशिश करने लगी और ऐसा करते ही जीतूजी की निक्कर का निचला छोर उसके हाथों में गया। अपर्णा ने छटपटाहट में उसे कस के पकड़ा और खुद को ऊपर उठाने की कोशिश की तो जीतूजी की निक्कर पूरी निचे खिसक गयी और जीतूजी का फुला हुआ मोटा लण्ड अपर्णा के हांथों में गया। जान बचाने की छटपटाहट के मारे अपर्णा ने जीतूजी के लण्ड को कस के पकड़ा और उसे पकड़ कर खुद को ऊपर आने की लिए खिंच कर हिलाने लगी।

अपर्णा के मन में एक तरफ अपनी जान बचाने की छटपटाहट थी तो कहीं ना कहीं जीतूजी का मोटा और काफी लंबा लण्ड हाथों में आने के कारण कुछ अजीब सी उत्तेजना भी थी। जीतूजी ने पानी के निचे अपना लण्ड अपर्णा के हाथों में महसूस किया तो वह उछल पड़े। उन्होंने झुक कर अपर्णा का सर पकड़ा और अपर्णा को पानी से बाहर निकाला। अपर्णा काफी पानी पी चुकी थी। अपर्णा की साँसे फूल रही थीं।
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जीतूजी अपर्णा को अपनी बाँहों में उठाकर चल कर किनारे ले आये और रेत में लिटा कर अपर्णा के उन्मत्त स्तनोँ के ऊपर अपने हाथों से अपना पूरा वजन देकर उन्हें दबाने लगे जिससे अपर्णा पीया हुआ पानी उगल दे और उसकी साँसें फिर से साधारण चलने लग जाएँ। तीन या चार बार यह करने से अपर्णा के मुंह से काफी सारा पानी फव्वारे की तरह निकल पड़ा। जैसेही पानी निकलातो अपर्णा की साँसे फिर से साधारण गति से चलने लगीं। अपर्णा ने जब आँखें खोलीं तो जीतूजी को अपने स्तनोँ को दबाते हुए पाया। अपर्णा ने देखा की जीतूजी अपर्णा को लेकर काफी चिंतित थे। उन्हें यह भी होश नहीं था की अफरातफरी में उनकी निक्कर पानी में छूट गयी थी और वह नंगधडंग थे। जीतूजी यह सोच कर परेशान थे की कहीं अपर्णा की हालत और बिगड़ गयी तो किसको बुलाएंगे यह देखने के लिए वह इधर उधर देख रहे थे। अपर्णा फिर अपनी आँखें मूंद कर पड़ी रही। जीतूजी का हाथ जो उसके स्तनों को दबा रहा था अपर्णा को वह काफी उत्तेजित कर रहा था। पर चूँकि अपर्णा जीतूजी को ज्यादा परेशान नहीं देखना चाहती थी इस लिए उसने जीतूजी का हाथ पकड़ा ताकि जीतूजी समझ जाएँ की अपर्णा अब ठीक थी, पर वैसे ही पड़ी रही। चूँकि अपर्णा ने जीतूजी का हाथ कस के पकड़ा था, जीतूजी अपना हाथ अपर्णा के स्तनोँ पर से हटा नहीं पाए।

जब जीतूजी ने अपर्णाके स्तनोँ के ऊपरसे अपना हाथ हटा ने की कोशिश की तब अपर्णा ने फिर से उनका हाथ कस के पकड़ा और बोली, "जीतूजी, आप हाथ मत हटाइये। मुझे अच्छा लग रहा है।" ऐसा कह कर अपर्णा ने जीतूजी को अपने स्तनोँ को दबाने की छूट देदी। जीतूजी ना चाहते हुए भी अपर्णा के उन्नत स्तनोँ को मसलने से अपने आपको रोक नहीं पाए। अपर्णा ने अपना हाथ खिसकाया और जीतूजी का खड़ा अल्लड़ लण्ड एक हाथ में लिया तब जीतूजी को समझ आया की वह पूरी तरह से नंगधडंग थे। जीतूजी अपर्णा के हाथ से अपना लण्ड छुड़ाकर एकदम भाग कर पानी में चले गए और अपनी निक्कर ढूंढने लगे। जब उनको निक्कर मिल गयी और वह उसे पहनने लगे थे की अपर्णा जीतूजी के पीछे चलती हुई उनके पास पहुँच गयी। जीतूजी के हाथ से एक ही झटके में उनकी निक्कर छिनती हुई बोली, "जीतूजी, निक्कर छोड़िये। अब हम दोनों के बिच कोई पर्दा रखने की जरुरत नहीं है।"

ऐसा कह कर अपर्णा ने जीतूजी की निक्कर को पानी के बाहर फेंक दिया। फिर अपर्णा ने अपनी बाँहें फैला कर जीतूजी से कहा, "अब मुझे भी कॉस्च्यूम को पहनने की जरुरत नहीं है। चलिए मुझे आप अपना बना लीजिये। या मैं यह कहूं की आइये और अपने मन की सारी इच्छा पूरी कीजिये?" यह कह कर जैसे ही अपर्णा अपना कॉस्टूयूम निकाल ने के लिए तैयार हुई की जीतूजी ने अपर्णा का हाथ पकड़ा और बोले, "अपर्णा नहीं। खबरदार! तुम अपना कॉस्टूयूम नहीं निकालोगी। मैं तुम्हें सौगंध देता हूँ। मैं तुम्हें तभी निर्वस्त्र देखूंगा जब तुम अपना शरीर मेरे सामने घुटने टेक कर तब समर्पित करोगी जब तुम्हारा प्रण पूरा होगा। मैं तुम्हें अपना वचन तोडने नहीं दूंगा। चाहे इसके लिए मुझे कई जन्मों तक ही इंतजार क्यों ना करना पड़े।" यह बात सुनकर अपर्णा का ह्रदय जैसे कटार के घाव से दो टुकड़े हो गया। अपने प्रीयतम के ह्रदय में वह कितना दुःख दे रही थी? अपर्णा ने अपने आपको जीतूजी को समर्पण करना भी चाहा पर जीतूजी थे की मान नहीं रहे थे! वह क्या करे? अब तो जीतूजी अपर्णा के कहने पर भी उसे कुछ नहीं करेंगे। अपर्णा दुःख और भावनात्मक स्थिति में और कुछ ना बोल सकी और जीतूजी से लिपट गयी। जीतूजी का खड़ा फनफनाता लण्ड अपर्णा की चूत में घुसने के लिए जैसे पागल हो रहा था, पर अपने मालिक की नामर्जी के कारण असहाय था। इस मज़बूरीमें जब अपर्णा जीतूजी से लिपट गयी तो वह अपर्णा के कॉस्च्यूम के कपडे पर अपना दबाव डाल कर ही अपना मन बहला रहा था।
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जीतूजी ने सारी इधर उधर की बातों पर ध्यान ना देते हुए कहा, "देखो अपर्णा, तैरने का एक मूलभूत सिद्धांत समझो। जब आप पानी में जाते हो तो यह समझलो की पानी आपको अपने अंदर नहीं रखना चाहता। हमारा शरीर पानी से हल्का है। पर हम इसलिए डूबते हैं क्यूंकि हम डूबना नहीं चाहते और इधर उधर हाथ पाँव मारते हैं l पानी की सतह पर अगर आप अपना बदन ढीला छोड़ देंगे और भरोसा रखोगे की पानी आपको डुबाएगा नहीं तो आप डूबेंगे नहीं। इसके बाद सुनियोजित ताल मेल से हाथ और पाँव चलाइये। आप पानी में ना सिर्फ तैरेंगे बल्कि आप पानी को काट कर आगे बढ़ेंगे। यही सुनियोजित तालमेल से हाथ पैर चलाने को ही तैरना कहते हैं।" अपर्णा जीतूजी की बात बड़े ध्यान से सुन रही थी। उसे जीतूजी पर बड़ा ही प्यार रहा था। उस समय जीतूजी का पूरा ध्यान अपर्णा को तैराकी सिखाने पर था। मनसे असहाय और दुखी अपर्णा को लेकर जीतूजी फिर से गहरे पानी में पहुँच गए और फिर से अपर्णा को पहले की तरहही प्रैक्टिस करने को कहा। धीरे धीरे अपर्णा का आत्म विश्वास बढ़ने लगा। अपर्णा जीतूजी की कमर छोड़ कर अपने आपको पानी की सतह पर रखना सिख गयी। इस बिच दो घंटे बीत चुके थे। जीतूजी ने अपर्णा को कहा, "आज के लिए इतना ही काफी है। बाकी हम कल करेंगे।" यह कह कर जीतूजी पानी के बाहर आगये और अपर्णा अपना मन मसोसती हुई महिलाओं के शावर रूम में चलीगयी।


##

अपर्णा जब एकपडे बदल कर बाहर निकली तो जीतूजी बाहर नहीं निकले थे। अपर्णा को उसके पति रोहित और श्रेया आते हुए दिखाई दिए। दोनों ही काफी थके हुए लग रहे थे। अपर्णा को अंदाज हो गया की हो सकता है रोहित की मन की चाहत उस दोपहर को पूरी हो गयी थी। श्रेया भी पूरी तरह थकी हुई थी। अपर्णा को देखते ही श्रेया ने अपनी आँखें निचीं करलीं। अपर्णा समझ गयी की पतिदेव ने श्रेया जी की अच्छी खासी चुदाई करी होगी। अपर्णा ने जब अपने पति की और देखा तो उन्होंने ने भी झेंपते हुए जैसे कोई गुनाह किया हो ऐसे अपर्णा से आँख से आँख मिला नहीं पाए। अपर्णा मन ही मन मुस्कुरायी। वह अपने पति के पास गयी और अपनी आवाज और हावभाव में काफी उत्साह लाने की कोशिश करते हुए बोली, "डार्लिंग, जीतूजी ना सिर्फ मैथ्स के बल्कि तैराकी के भी कमालके प्रशिक्षक हैं। मैं आज काफी तैरना सिख गयी।" रोहित ने अपनी पत्नी का हाथ थामा और थोड़ी देर पकडे रखा। फिर बिना कुछ बोले कपडे बदल ने के लिए मरदाना रूम में चले गए।
अब श्रेया और अपर्णा आमने सामने खड़े थे।

श्रेया अपने आपको रोक ना सकी और बोल पड़ी, "अच्छा? मेरे पतिदेवने तुम्हें तैरने के अलावा और कुछ तो नहीं सिखाया ना?" अपर्णा भाग कर श्रेया जी से लिपट गयी और बोली, "दीदी आप ऐसे ताने क्यों मार रही हो? क्या आपको बुरा लगा? अगर ऐसा है तो मैं कभी आपको शिकायत का मौक़ा नहीं दूंगी। मैं जीतूजी के पास फरकुंगी भी नहीं। बस?" श्रेया जी ने अपर्णा को अपनी बाँहों में भरते हुए कहा, "पगली, मैं तो तुम्हारी टांग खिंच रही थी। मैं जानती हूँ, मेरे पति तुम्हें तुम्हारी मर्जी बगैर कुछ भी नहीं करेंगे। और तुमने तो मुझे पहले ही बता दिया है। तो फिर मैं चिंता क्यों करूँ? बल्कि मुझे उलटी और चिंता हो रही है। मुझे लग रहा है की कहीं निराशा या निष्फलता का भाव आप और जीतूजी के सम्बन्ध पर हावी ना हो जाए।
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अपर्णा को गले लगाते हुए श्रेया की आँखों में आंसूं छलक आये। श्रेया अपर्णा को छाती पर चीपका कर बोली, "अपर्णा! मेरी तुमसे यही बिनती है की तुम मेरे जीतूजी का ख्याल रखना। मैं और कुछ नहीं कहूँगी।" अपर्णा ने श्रेया जी के गाल पर चुम्मी करते हुए कहा, "दीदी, जीतूजी सिर्फ आपके ही नहीं है। वह मेरे भी हैं। मैं उनका पूरा ख्याल। रखूंगी।"

कुछ ही देर में सब कपडे बदल कर कैंप के डाइनिंग हॉल में खाना खाने पहुंचे। खाना खाने के समय अपर्णा ने महसूस किया की जीतूजी काफी गंभीर लग रहे थे। पुरे भोजन दरम्यान वह कुछ बोले बिना चुप रहे। अपर्णा ने सोचा की शायद जीतूजी उससे नाराज थे। भोजन के बाद जब सब उठ खड़े हुए तब जीतूजी बैठे ही रहे और कुछ गंभीर विचारों में उलझे लग रहे थे। अपर्णा को मन ही मन अफ़सोस हो रहा था की जीतूजी जैसे रंगीले जांबाज़ को अपर्णा ने कैसे रंगीन से गमगीन बना दिया था। अपर्णा भी जानबूझ कर खाने में देर करती हुई बैठी रही। श्रेया सबसे पहले भोजन कर "थक गयी हूँ, थोड़ी देर सोऊंगी" यह कह कर अपने कमरे की और चल पड़ी। उसके पीछे पीछे रोहित भी, "आराम तो करना ही पड़ेगा" यह कह कर उठ कर चल पड़े। जब दोनों निकल पड़े तब अपर्णा जीतूजी के करीब जा बैठी और हलकेसे जीतूजी से बोली, "आप मेरे कारण दुखी हैं ना?" जीतूजी ने अपर्णा की और कुछ सोचते हुए आश्चर्य से देखा और बोले, "नहीं तो। मैं आपके कारण क्यों परेशान होने लगा?" "तो फिर आप इतने चुपचाप क्यों है?" अपर्णा ने पूछा l "मैं कुछ समझ नहीं पा रहा हूँ। यही गुत्थी उसुलझाने की कोशिश कर रहा हूँ।" जीतूजी ने जवाब दिया। "गुत्थी? कैसी गुत्थी?" अपर्णा ने भोलेपन से पूछा। उसके मन में कहीं ना कहीं डर था की जीतूजी आने आप पर अपर्णा के सामने इतना नियंत्रण रखने के कारण परेशान हो रहे होंगे।" "मेरी समझ में यह नहीं रहा की एक साथ इतने सारे संयोग कैसे हो सकते हैं?" जीतूजी कुछ गंभीर सोच में थे यह अपर्णा समझ गयी। जीतूजी ने अपनी बात चालु रखते हुए कहा, "एक कहावत है की एक बार हो तो हादसा, दूसरी बार हो तो संयोग पर अगर तीसरी बार भी होता है तो समझो की खतरे की घंटी बज रही है।"

अपर्णा बुद्धू की तरह जीतूजीको देखती ही रही। उसकी समझमें कुछभी नहीं रहा था। जीतूजी ने अपर्णा के उलझन भरे चेहरे की और देखा और अपर्णा का नाक पकड़ कर हिलाते हुए बोले, "अरे मेरी बुद्धू रानी, पहली बार कोई मेरे घरमें से मेरा पुराना लैपटॉप और एक ही जूता चुराता है, यह तो मानलो हादसा हुआ। फिर कोई मेरा और तुम्हारे पतिदेव रोहित का पीछा करता है। मानलो यह एक संयोग था l फिर कोई संदिग्ध व्यक्ति टिकट चेकर का भेस पहन कर हमारे ही डिब्बे में सिर्फ हमारे ही पास कर हम से पूछ-ताछ करता है की हम कहाँ जा रहे हैं। मानलो यह भी एक अद्भुत संयोग था। उसके बाद कोई व्यक्ति स्टेशन पर हमारा स्वागत करता है, हमें हार पहनाता है और हमारी फोटो खींचता है l क्यों भाई? हम लोग कौनसे फिल्म स्टार या क्रिकेटर हैं जो हमारी फोटो खींची जाए? और आखिर में कोई बिना नंबर प्लेट की टैक्सी वाला हमें आधे से भी कम दाम में स्टेशन से लेकर आता है और रास्ते में बड़े सलीके से तुम से हमारे कार्यक्रम के बारे में इतनी पूछताछ करता है? क्या यह सब एक संयोग था?" अपर्णा के खूबसूरत चेहरे पर कुछ भी समझ में ना आने के भाव जब जीतूजी ने देखे तो वह बोले, "कुछ तो गड़बड़ है। सोचना पड़ेगा।" कह कर जीतूजी उठ खड़े हुए और कमरे की और चल दिए। साथ साथ में अपर्णा भी दौड़ कर पीछा करती हुई उनके पीछे पीछे चल दी। दोनों अपने अपने विचारो में खोये हुए अपने कमरे की और चल पड़े।
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कर्नल साहब (जीतूजी) ने काफी समय पहले ही कैंप के मैनेजमेंट से दो कमरों का एक बड़ा फ्लैट टाइप सुईट बुक करा दिया था। उसमें उनके दोनों बैडरूम को जोड़ता हुआ परदे से ढका एक किवाड़ था। वह किवाड़ दोनों तरफ से बंद किया जा सकता था। जब तक दोनों कमरों में रहने वाले ना चाहें तब तक वह किवाड़ अक्सर बंद ही रहता था। अगर वह किवाड़ खुला हो तो एक दूसरे के पलंग को दोनों ही जोड़ी देख सकती थी। दोनों ही बैडरूम में एक एक वाशरूम जुड़ा हुआ था। बैडरूम का दुसरा दरवाजा एक साँझा बड़े ड्रॉइंग कम डाइनिंग रूम में खुलता था। सुईट के अंदर प्रवेश उसी ड्रॉइंगरूम से ही हो सकता था। ड्रॉइंगरूम में प्रवेश करने के बाद ही कोई अपने कमरे में जा सकता था। जब कैंप में आगमन के तुरंत बाद सुबह में पहली बार दोनों कपल कमरों में दाखिल हुए थे (चेक इन किया था) तब सबसे पहले रोहितने सुईटकी तारीफ़ करते हुए जीतूजी से कहा था, "जीतूजी, यह तो आपने कमाल का सुईट बुक कराया है भाई! कितना बड़ा और बढ़िया है! खिड़कियों से हिमालय के बर्फीले पहाड़ और खूबसूरत वादियाँ भी साफ़ साफ़ दिखती हैं। मेरी सबसे एक प्रार्थना है। मैं चाहता हूँ की जब तक हम यहां रहेंगे, दोनों कमरों को जोड़ते हुए इस किवाड़ को हम हमेशा खुला ही रखेंगे। मैं हम दोनों कपल के बिच कोई पर्दा नहीं चाहता। आप क्या कहते हैं?"

जीतूजी ने दोनों पत्नियों की और देखा। श्रेया जी फ़ौरन रोहित से सहमति जताते हुए बोली थी, "मुझे कोई आपत्ति नहीं है। भाई मान लो कभी भी दिन में या आधी रात में सोते हुए अचानक ही कोई बातचित करने का मन करे तो क्यूँ हमें उठकर एक दूसरे का दरवाजा खटखटा ने की जेहमत करनी पड़े? इतना तो हमें एक दूसरे से अनौपचारिक होना ही चाहिए। फिर कई बार जब मेरा करे की मैं मेरी प्यारी छोटी बहन अपर्णा के साथ थोड़ी देर के लिए सो जाऊं तो सीधा ही चलकर चुचाप तुम्हारे पलंग पर सकती हूँ ना?" उस वक्त श्रेया ने साफ़ साफ़ यह नहीं कहा की अगर दोनों कपल चाहें तो बिना किसी की नजर में आये एक दूसरे के पलंग में सांझा एक साथ सो भी तो सकते हैं ना? अपर्णा सारी बातें सुन कर परेशान हो रही थी। वह फ़ौरन अपने पति रोहितको अपने कमरे में खिंच कर ले गयी और बोली, "तुम पागल हो क्या? तुम एक रात भी मुझे प्यार किये बिना तो रह नहीं सकते। अगर यह किवाड़ खुला रखा तो फिर रात भर मुझे छेड़ना मत। यह समझ लो।" अपनी पत्नी की जिद देख कर रोहितने अपनी बीबी अपर्णा के कानों में फुसफुसाते हुए कहा था, "डार्लिंग, तुम्ही ने तो माना था की हम दोनों कपल एक दूसरे से पर्दा नहीं करेंगे। अब क्यों बिदक रही हो? और अगर हम प्यार करेंगे भी तो कौनसा सबके सामने नंगे खड़े हो कर करेंगे? बिस्तर में रजाई ओढ़कर भी तो हम चुदाई कर सकते है ना?" यह सुन कर अपर्णा का माथा ठनक गया। उसने तो अपने पति से कभी यह वादा नहीं किया था की वह जीतूजी और श्रेया से पर्दा नहीं करेगी। तब उसे याद आया की उसने श्रेयासे यह वादा जरूर किया था। तो क्या श्रेया ने उनदोनों के बिच की बातचीत रोहित को बतादी थी क्या? खैर जो भी हो, उसने वादा तो किया ही था। रोहित की बात सुन कर हार कर अपर्णा चुपचाप अपने काम में लग गयी थी।

दोपहर का खाना खाने के बाद चारों के जहन में अलग अलग विचारों की बौछार हो रही थी। श्रेया पहली बार अच्छी तरह कुदरत के आँगन में खुले आकाश के निचे रोहितसे चुदाई होने के कारण बड़ी ही संतुष्ट महसूस कर रही थी और कुछ गाना मन ही मन गुनगुना रहीं थीं। उनके पति जीतूजी अपनी ही उधेड़बुन में यह सोचनेमें लगेथे की जो राज़था उसे कैसे सुलझाएं। उस राज़ को सुलझाने का मन ही मन वह प्रयास कर रहे थे। अपर्णा मन ही मन खुश भी थी और दुखी भी। खुश इसलिए थी की उसने तैराकी के कुछ प्राथमिक पाठ जीतूजी से सीखे थे और इस लिए भी की उसे जीतूजी के लण्ड को सहलाने के मौक़ा मिला था। वह दुखी इस लिए थी की सब के चाहते हुए भी वह जीतूजी का मन की इच्छा पूरी नहीं कर सकती थी।
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रोहितको दोनों हाथों में लड्डू नजर रहे थे। बिस्तर में वह अपनी बीबी को चोदेंगे और कहीं और मौक़ा मिला तो श्रेया को। दोपहर का खाना खाने के बाद अलग अलग वजह से दोनों ही कपल थके हुए थे। डाइनिंग हॉल से वापस आते ही श्रेया और जीतूजी अपने पलंग पर और रोहित और अपर्णा अपने पलंग पर ढेर हो कर गिर पड़े और फ़ौरन गहरी नींद सो गए। बिच का किवाड़ खुला ही था।


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शामको छे बजे स्वागत और परिचय का कार्यक्रम था और साथ में सब मेहमानों को अगले सात दिन के प्रोग्राम से अवगत कराना था। उसके बाद खुले में कैंप फायर (एक आग की धुनि) के इर्दगिर्द कुछ ड्रिंक्स (शराब या जूस इत्यादि) और नाच गाना और फिर आखिर में खाना। शाम के पांच बजने वाले थे। सबसे पहले जीतूजी उठे। चुपचाप वह हलके पाँव वाशरूम में जाने के लिए तैयार हुए। उन्होंने अपने पत्नीकी और देखा। वह अपने गाउन में गहरी नींद सोई हुई बड़ी ही सुन्दर लग रही थी। श्रेया के घने बाल पुरे सिरहाने पर फैले हुए थे। उसका चेहरा एक संतुष्टि वाला, कभी हलकी सी मुस्कान भरा सुन्दर प्यारा दिख रहा था। जीतूजी के मन में विचार आया की कहीं उस झरने के वाटर फॉल के पीछे रोहितने उनकी बीबी को चोदा तो नहीं होगा? विचार आते ही वह मन ही मन मुस्काये। हो सकता है रोहित और श्रेया ने उस दोपहर अच्छी खासी चुदाई की होगी। क्यूंकि श्रेया और रोहित काफी कुछ ज्यादा ही दोस्ताना से एक दूसरे घुलमिल रहे थे। जीतूजी के मन में स्वाभाविक रूपसे कुछ जलन का भाव तो हुआ, पर उन्होंने एक ही झटके में उसको निकाल फेंका। वह श्रेया को बेतहाशा प्यार करते थे। श्रेया सिर्फ उनकी पत्नी ही नहीं थी। उनकी दोस्त भी थी। और प्यार में और दोस्ती में हम अपनों पर अपना अधिकार नहीं प्यार जताते हैं। हम अपनी ख़ुशी से ज्यादा अपने प्यारे की खुशी के बारे में ही सोचते हैं।

खुले हुए किवाड़ के दूसरी और जब जीतूजी ने नजर की तो देखा की रोहित अपनीं बीबी को अपनी बाँहों में घेरे हुए गहरी नींद में सो रहे थे। अपर्णा अपने पति की बाँहों में पूरी तरह से उन्मत्त हो कर निद्रा का आनंद ले रही थी। जीतूजी फुर्ती से वाशरूम में गए और चंद मिनटों में ही तैयार हो कर बाहर आये। उन्होंने फिर अपनी पत्नी को जगाया। श्रेया आखिर एक फौजी की बीबी थी। जीतूजी की एक हलकी आवाज से ही वह एकदम बैठ गयी। अपने पति को तैयार देख वह भी वाशरूम की और तैयार होने के लिए अपने कपडे लेकर भागी। जीतूजी हलके से चलकर बिच वाले खुले किवाड़ से अपने कमरे से रोहित और अपर्णा के कमरे में आये। जीतूजी ने रोहित और अपर्णा के पलंग में बदहाल गहरी नींद में लेटी हुई अपर्णा को देखा। अपर्णा का गाउन ऊपर उसकी जाँघों तक गया था। अगर थोड़ा झुक कर टेढ़ा होकर दो जाँघों के बिच में देखा जाये तो शायद अपर्णा की चूत भी दिख जाए। बस उसकी चूत के कुछ निचे तक गाउन चढ चुका था। अपर्णा की दो जाँघों के बिच में गाउन के अंदर कुछ अँधेरे के कारण गाउन अपर्णा की प्यारी चूत को मुश्किल से छुपा पा रहा था। यह जाहिर था की अपर्णा ने गाउन के अंदर कुछ भी नहीं पहन रखा था। जीतूजी को बेहाल लेटी हुई अपर्णा पर बहुत सा प्यार रहा था। पता नहीं उन्हें इससे पहले कभी किसी औरत पर ऐसा आत्मीयता वाला भाव नहीं हुआ था। वह अपर्णा को भले ही चोद ना पाएं पर अपर्णा से साथ सो कर सारी सारी रात प्यार करने की उनके मन में बड़ी इच्छा थी। उन्होंने जो कुछ भी थोड़ा सा वक्त अपर्णा को अपनी बाँहों में लेकर गुजारा था वह वक्त उनके लिए अमूल्य था। अपर्णा के बदन के स्पर्श की याद आते ही जीतूजी के शरीर में एक कम्पन सी सिहरन दौड़ गयी।
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सिरहाने की साइड में खड़े होकर देखा जाए तो गाउन के अंदर अपर्णा के दो बड़े बूब्स के बिच की खाई और उसके दो मस्त पहाड़ की चोटी पर विराजमान निप्पलोँ तक का नजारा लण्ड खड़ा कर देने वाला था। वह इसलिए की गहरी नींद में लेटे हुए रोहित के दोनों हाथ अपनी बीबी के उन्मत्त स्तनोँ को नींद में ही दबा रहे थे। जीतूजी को रोहितके भाग्य की बड़ी ईर्ष्या हुई। रोहित को अपर्णा के साथ पूरी रात गुजारने से रोकने वाला कोई नहीं था। वह जब चाहे अपर्णा के बूब्स दबा सकते थे, अपर्णा की गाँड़ में अपना लण्ड घुसा सकते थे, अपर्णा को जब चाहे चोद सकते थे। एक गहरी साँस ले कर जीतूजी ने फिर यह सोच तसल्ली की की जिस रोहित को वह अति भाग्यशाली मानते थे वही रोहित उनकी पत्नी श्रेया के आशिक थे। यह विचार आते ही वह मन ही मन हंस पड़े। सच कहा है, घर की मुर्गी दाल बराबर। जीतूजी का बड़ा मन किया की रोहित के हाथ हटा कर वह अपने हाथ अपर्णा के गाउन में डालें और अपर्णा के मस्त नरम और फिर भी सख्त बूब्स को दबाएं, सहलाएं और अच्छी तरह से मसल दें। अपर्णा करवट लेकर पलंग के एक छोर पर सो रही थी और उसके पति रोहित उसके पीछे अपर्णाकी गाँड़में अपना लण्ड वाला हिस्सा पाजामे के अंदर से बिलकुल अपर्णा की गाँड़ में जाम किये हुए सो रहे थे। दोनों मियाँ बीबी इतनी गहरी नींद सो रहे थे की उन्हें जीतूजी के आने का एहसास नहीं हुआ l जीतूजी ने अपने आप पर बड़ा नियंत्रण रखते हुए अपर्णा के बालों में उंगलियां डाल उन्हें बालों को उँगलियों से कँघी करते हुए हलके से कहा, "अपर्णा, उठो।"

जब जीतूजी की हलकी आवाज का कोई असर नहीं हुआ तब जीतूजी रोहित के सिरहाने के पास गए और थोड़ी सख्ती और थोड़े मजाक के अंदाज में रोहित से कहा, "दोपहर का आप दोनों के मिलन का कार्यक्रम पूरा हुआ नहीं क्या? उठो, अब आप एक सेना के कैंप में हैं। आप को कुछ नियम पालन करने होंगें। सुबह साढ़े चार बजे उठना पडेगा। उठकर नित्य नियम से निपट कर सबको कुछ योग और हलकी फुलकी कसरत करनी पड़ेगी। चलो जल्दी तैयार हो जाओ। ठीक छे बजे प्रोग्रम शुरू हो जाएगा। मैं जा रहा हूँ। आप तैयार हो कर मैदान में पहुंचिए।" जीतूजी का करारा फरमान सुनकर अपर्णा चौंक कर उठ गयी। उसने जीतूजी को पलंग के पास में ही पूरा आर्मी यूनिफार्म में पूरी तरह से सुसज्ज खड़ा पाया। जीतूजी आर्मी यूनिफार्म में सटीक, शशक्त और बड़े ही प्यारे लग रहे थे। अपर्णा ने मन ही मन उनकी बलाइयाँ लीं। अपर्णा ने एक हाथ से जीतूजी को सलूट करते हुए कहा, "आप चलिए। आपको कई काम करने होंगें। हम समय पर पहुँच जाएंगे।"

चंद मिनटों में ही रोहित उठ खड़े हुए हुए और वाशरूम की और भागे। अपर्णा ने देखा की श्रेया नहा कर बाहर निकल रही थीं। तौलिये में लिपटी हुई वह सुंदरता की जीती जागती मूरत समान दिख रही थीं। अपर्णा को वह दिन याद आया जब उसने श्रेया की "मालिश" की थी। अपर्णा उठ खड़ी हुई और किवाड़ पार कर वह श्रेया के पास पहुंची। अपर्णा को आते हुए देख श्रेया ने अपनी बाँहें फैलायीं और अपर्णा को अपनी बाँहों में घेर लिया और फिर प्यार भरे शब्दों में बोली, 'अपर्णा कैसी हो? मेरे पति ने तुम्हें ज्यादा छेड़ा तो नहीं ना?" अपर्णा ने शर्माते हुए कहा, "दीदी झूठ नहीं बोलूंगी। जितना छेड़ना चाहिए था उतना छेड़ा। बस ज्यादा नहीं। पर मेरी छोडो अपनी बताओ। मेरे पति ने आपके साथ कुछ किया की नहीं?" श्रेया ने कहा, "बस मेरा भी कुछ वैसा ही जवाब है। थोड़ा सा ही फर्क है। तुम्हारे पति ने जितना कुछ करना था सब कर लिया, कुछ छोड़ा नहीं। अरी! तेरे शौहर तो बड़े ही रंगीले हैं यार! तेरी तो रोज मौज होती होगी। इतने गंभीर और परिपक्व दिखने वाले रोहित इतने रोमांटिक हो सकते हैं, यह तो मैंने सोचा तक नहीं था।" अपर्णा अपने पति की किसी और खूबसूरत स्त्री से प्रशंशा सुनकर उसे मुश्किल से हजम कर पायी। पर अब तो आगे बढ़ना ही था।
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अपर्णा ने श्रेया से कहा, "दीदी, लाइए मैं आपके बालों को आजकी पार्टीके लिए सजा देती हूँ। मैं चाहती हूँ की आज मेरी दीदी अपनी खूबसूरती, जवानी और कमसिनता से सारे ही जवानों और अफसरों पर गजब का कहर ढाये! मैं सबको दिखाना चाहती हूँ की मेरी दीदी पार्टी में सब औरतों और लड़कियों से ज्यादा सुन्दर लगे।"

रोहित जब वाशरूम में से तैयार होकर निकले तो उन्होंने देखा की अपर्णा श्रेया को सजाने में लगी हुई थी। श्रेया को आधे अधूरे कपड़ों में देख कर रोहित ने अपने आप पर संयम रखते हुए दोनों महिलाओं को "बाई" कहा और खुद जीतूजी को मिलने निकल पड़े।
 
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शामके ठीक छह बजे जब सब ने अपनी जगह ली तब तक अपर्णा और श्रेया जी पहुंचे नहीं थे। मंच पर जीतूजी और कैंप के अधिकारी कुछ गुफ्तगू में मशगूल थे। जीतूजी को भी मंच पर ख़ास स्थान दिया गया था। धीरे धीरे सारी कुर्सियां भर गयीं। प्रोग्राम शुरू होने वाला ही था की श्रेया और अपर्णा का प्रवेश हुआ। उस समय सब लोग एक दूसरे से बात करने में इतने मशरूफ थे की पूरा हॉल सब की आवाज से गूँज रहा था। जैसे ही अपर्णा और श्रेया ने प्रवेश किया की सब तरफ सन्नाटा छा गया। सब की निगाहें अपर्णा और श्रेया पर गड़ी की गड़ी ही रह गयीं। श्रेया ने स्कर्ट और उसके ऊपर एक फ्रिल्ल वाला सतह पर सतह हो ऐसा सूत का सफ़ेद चिकन की कढ़ाई किया हुआ टॉप पहना था। श्रेया के बाल अपर्णा ने इतनी खूबसूरती से सजाये थे की श्रेया नयी नवेली दुल्हन की तरह लग रहीं थीं। श्रेया का टॉप पीछे से खुला हुआ ब्लाउज की तरह था। श्रेया जी के सुदृढ़ बूब्स का उभार उनके टॉप से बाहर उछल कर निकल ने की कोशिश कर रहा था। श्रेया के कूल्हे इतने सुगठित और सुआकार लग रहे थे की लोगों की नजर उस पर टिकी ही रह जाती थीं।

अपर्णा ने साडी पहन रक्खी थी। श्रेया के मुकाबले अपर्णा ज्यादा शांत और मँजी हुई औरत लग रही थी। साडी में भी अपर्णा के सारे अंगों के उतार चढ़ाव की कामुकता भरी झलक साफ़ साफ़ दिख रही थी। अपर्णा की गाँड़ साडी में और भी उभर कर दिख रही थी। जब धीरे धीरे सब ने अपने होश सम्हाले तब कैंप के मुख्याधिकारी ने एक के बाद एक सब का परिचय कराया। जीतू जी का स्थान सभा के मंच पर था। कैंप के प्रशिक्षकों में से वह एक थे। वह सुबह की कसरत के प्रशिक्षक थे और उनके ग्रुप के लीडर मनोनीत किये गए थे। जब उनका परिचय किया गया तब श्रेया को भी मंच पर बुलाया गया और जीतूजी की "बेहतर अर्धांगिनी" (Better half) के रूप में उनका परिचय दिया गया। उस समय पूरा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। कप्तान गौरव रोहित की बगल में ही बैठे हुए थे। अंकिता और उसके पति ब्रिगेडियर खन्ना आगे बैठे हुए थे। कप्तान गौरव के पाँव तले से जमीन खिसक गयी जब अंकिता का परिचय श्रीमती खन्ना के रूप में कराया गया।
 
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