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Adultery कल हो ना हो" - पत्नी की अदला-बदली - {COMPLETED}
गौरव: "क्या आप सोच समझ कर ख्वाब देखते हो? क्या ख्वाब पर हमारा कोई कण्ट्रोल होता है क्या?"

अंकिता गौरव की बात सुनकर चुप हो गयी। उसके चेहरे पर गंभीरता दिखाई पड़ी। अंकिता की आँखें कुछ गीली से हो गयीं। गौरव को यह देख कर बड़ा आश्चर्य हुआ। वह अंकिता को चुपचाप देखता रहा। अंकिता के चेहरे पर मायूसी देख कर गौरव ने कहा, "मुझे माफ़ करना अंकिताजी, अगर मैंने कुछ ऐसा कह दिया जिससे आपको कोई दुःख हुआ हो। मैं आपको किसी भी तरह का दुःख नहीं देना चाहता।"

अंकिता ने अपने आपको सम्हालते हुए कहा, "नहीं कप्तान साहब ऐसी कोई बात नहीं। जिंदगी में कुछ ऐसे मोड़ आते हैं जिन्हें आपको झेलना ही पड़ता है और उन्हें स्वीकार कर चलने में ही सबकी भलाई है।"

गौरव: "अंकिताजी, पहेलियाँ मत बुझाइये। कहिये क्या बात है।"

अंकिता ने बात को मोड़ देकर गौरव के सवाल को टालते हुए कहा, "कप्तान साहब मैं आपसे छोटी हूँ। आप मुझे अंकिताजी कह कर मत बुलाइये। मेरा नाम अंकिता है और मुझे आप अंकिता कह कर ही बुलाइये।" अंकिता ने फिर अपने आपको सम्हाला। थोड़ा सा सोचमें पड़ने के बाद अंकिता ने शायद मन ही मन फैसला किया की वह गौरव को अपनी असलियत (की वह शादी शुदा है) उस वक्त नहीं बताएगी।
गौरव: "तो फिर आप भी सुनिए। आप मुझे कप्तान साहब कह कर मत बुलाइये। मेरा नाम गौरव है। आप मुझे सिर्फ गौरव कह कर ही बुलाइये।"

अंकिता का मन डाँवाडोल हो रहा था। वह गौरव के साथ आगे बढे या नहीं? पति (ब्रिगेडियर साहब) ने तो उसे इशारा कर ही दिया था की अंकिता को अगर कहीं कुछ मौक़ा मिले तो उसे चोरी छुपी शारीरिक भूख मिटाने से उनको कोई आपत्ति नहीं होगी, बशर्ते की सारी बात छिपी रहे। अंकिताके लिए यह अनूठा मौक़ा था। उसका मनपसंद हट्टाकट्टा हैंडसम नवयुवक उसे ललचा कर, फाँस कर, उससे शारीरिक सम्बन्ध बनाने की ने भरसक कोशिश में जुटा हुआ था। अब अंकिता पर निर्भर था की वह अपना सम्मान बनाये रखते हुए उस युवक को आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करे या नहीं। अंकिता ने सोचा यह पहली बार हुआ था की इतना हैंडसम युवक उसे ललचा कर फाँसने की कोशिश कर रहा था। पहले भी कई युवक अंकिता को लालच भरी नजर से तो देखते थे, पर किसीभी ऐसे हैंडसम युवक ने आगे बढ़कर उसके करीब आकर उसे ललचाने की इतनी भरसक कोशिश नहीं की थी। फिर भी भला वह कैसे अपने आप आगे बढ़ कर किसी युवक को कहे की "आओ और मेरी शारीरिक भूख मिटाओ?" आखिर वह भी तो एक मानिनी भारतीय नारी थी। उसे भी तो अपना सम्मान बनाये रखना था।
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काफी सोचने के बाद अंकिता ने तय किया की जब मौक़ा मिला ही है तो क्यों ना उसका फायदा उठाया जाए? यह मौक़ा अगर चला गया तो फिर तो उसे अपने हाथोँ की उँगलियों से ही काम चलाना पड़ेगा। एक दिन की चाँदनी आयी है फिर तो अँधेरी रात है ही। 

अंकिता ने अपनी आँखें नचाते हुए कहा, "कप्तान साहब, सॉरी गौरवजी, शायद आप ख्वाब और असलियत का फर्क नहीं समझते।"

गौरव ने आगे बढ़कर अंकिता का हाथ थामा और कहा, "आप ही बताइये ना? मैं तो नौसिखिया हूँ।"

जैसे ही गौरव ने अंकिता का हाथ थामा तो अंकिता के पुरे बदन में एक बिजली सी करंट मार गयी। अंकिता के रोंगटे खड़े हो गए। उस दिन तक ब्रिगेडियर साहब को छोड़ किसीने भी अंकिता का हाथ इस तरह नहीं थामा था। अंकिता हमेशा यह सपना देखती रहती थी कोई हृष्टपुष्ट युवक उसको अपनी बाँहों में थाम कर उसको गहरा चुम्बन कर, उसकी चूँचियों को अपने हाथ में मसलता हुआ उसे निर्वस्त्र कर उसकी चुदाई कर रहा है। अंकिता को अक्सर सपनेमें वही युवक बारबार आता था और अंकिता का पूरा बदन चूमता, दबाता और मसलता था। कई बार अंकिता ने महसूस किया था की वह युवक उसकी गाँड़ की दरार में अपनी उंगलियां डाल कर उसे उत्तेजना और उन्माद के सातवे आसमान पर उठा लेता था। फिर अंकिता ने ध्यान से देखा तो उसे लगा की कहीं ना कहीं गौरव की शक्ल और उसका बदन भी वही युवक जैसा था।

गौरव ने देखा की जब उसने अंकिता का हाथ थामा और अंकिता ने उसका कोई विरोध नहीं किया और अंकिता अपने ही विचारो में खोयी हुई गौरव के चेहरे की और एकटक देख रही थी, तब उसकी हिम्मत और बढ़ गयी। उसने अंकिता को अपनी और खींचते हुए कहा, "क्या देख रही हो, अंकिता? क्या मैं भद्दा और डरावना दिखता हूँ? क्या मुझमें तुम्हें कोई बुराई नजर रही है?" 

अंकिता अपनी तंद्रा से जाग उठी और गौरव की और देखती हुई बोली, "नहीं, ऐसी कोई बात नहीं, क्यों?"

गौरव: "देखो, सब सो रहे हैं। हम जोर से बात नहीं कर सकते। तो फिर मेरे करीब तो बैठो। अगर मैं तुम्हें भद्दा और डरावना नहीं लगता और अगर हमारा पहला परिचय हो चुका है तो फिर इतना दूर बैठने की क्या जरुरत है?"

अंकिता: "अरे कमाल है। भाई यह सीट ही ऐसी है। इसके रहते हुए हम कैसे साथ में बैठ सकते हैं? यह बर्थ तो पहले से ही ऐसी रक्खी हुई थी। मैंने थोड़े ही उसे ऊपर की और उठाया है?"

गौरव: "तो फिर मैं उसे नीचा कर देता हूँ अगर तुम्हें कोई आपत्ति ना हो तो?" ऐसा कह कर बिना अंकिता की हाँ का इंतजार किये गौरव उठ खड़ा हुआ और उसने बर्थको निचा करना चाहा। मज़बूरी में अंकिता को भी उठना पड़ा। गौरव ने बर्थ को बिछा दिया और उसके ऊपर चद्दर बिछा कर अंकिता को पहले बैठने का इशारा किया। अंकिता ने हलके से अपने कूल्हे बर्थ पर टिकाये तो 

गौरव ने उसे हल्का सा अपने करीब खिंच कर कहा, "भाई ठीक से तो बैठो। आखिर हमें काफी लंबा सफर एक साथ तय करना है।"
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अंकिता और खिसक कर ठीक गौरवके करीब बैठी। उसने महसूस किया की उसकी जाँघें गौरव की जाँघों से घिस रहीं थीं। कम्पार्टमेंट का तापमान काफी ठंडा हो रहा था। गौरव ने धीरे से अंकिता को अपने और करीब खींचा तो अंकिता ने उसका विरोध करते हुए कहा, "क्या कर रहे हो? कोई देखेगा तो क्या कहेगा?" गौरव समझ गया की उसे अंकिता ने अनजाने में ही हरी झंडी दे दी थी। अंकिता ने गौरव का उसे अपने करीब खींचने का विरोध नहीं किया, उस पर कोई आपत्ति नहीं जताई, बल्कि कोई देख लेगा यह कह कर उसे रोका था।

यह इशारा गौरव के लिए काफी था। गौरव समझ गया की अंकिता मन से गौरव के करीब आना चाहती थी पर उस को यह डर था की कहीं उन्हें कोई देख ना ले।" गौरव ने फ़ौरन खड़े हो कर पर्दों को फैला कर बंद कर दिया जिससे उनकी दो बर्थ पूरी तरह से परदे के पीछे छिप गयी। अब कोई भी बिना पर्दा हटाए उन्हें देख नहीं सकता था।

जब अंकिता ने देखा की गौरव ने उन्हें परदे के पीछे ढक दिया तो वह बोल पड़ी, "गौरव यह क्या कर रहे हो?"

गौरव: " मैं वही कर रहा हूँ जो आप चाहते हो। आपही ने तो कहा की कहीं कोई देख ना ले। अब हमें कोई नहीं देख सकता। बोलो अब तो ठीक है?" 

अंकिता क्या बोलती? उसने चुप रहना ही ठीक समझा। अंकिता को महसूस हुआ की उसकी जाँघों के बिचमें से उसका स्त्री रस चुने लगा था। उसकी निप्पलेँ फूल कर बड़ी हो गयीं थीं। अंकिता अपने आपको सम्हाल नहीं पा रही थी। उस पर कुछ अजीब सा नशा छा रहा था। अंकिता को कुछ भी समझ में नहीं रहा था की यह सब क्या हो रहा था। जो आजतक उसने अनुभव नहीं किया था वह सब हो रहा था। गौरव ने देखा की उसकी जोड़ीदार कुछ असमंजस में थी तो गौरव ने अंकिता को अपनी और करीब खींचा और अंकिता के कूल्हों के निचे अपने दोनों हाथ घुसा कर अंकिता को ऊपर की और उठाया और उसे अपनी गोद में बिठा दिया। जैसे ही गौरव ने अंकिता को अपनी गोद में बिठाया की अंकिता मचलने लगी। अंकिता ने महसूस किया की गौरव का लण्ड उसकी गाँड़ को टोंच रहा था। उसकी गाँड़ की दरारमें वह उसके कपड़ों के उस पार ऐसी ठोकर मार रहा था की अंकिता जान गयी की गौरव का लण्ड काफी लंबा, मोटा और बड़ा था और एकदम कड़क हो कर खड़ा हुआ था। 
अंकिता से अब यह सब सहा नहीं जा रहा था। 

अंकिता की चूत गीली होती जा रही थी। उसकी चूत में से रिस रहा पानी थमने का नाम नहीं ले रहा था। उसे यह डर था की कहीं उसकी पेंटी भीग कर उसके घाघरे को गीला ना कर दे, जिससे गौरव को अंकिता की हालत का पता लग जाए। साथ साथ अंकिता को अपनी मर्यादा भी तो सम्हालनी थी। हालांकि वह जानती थी की उसे अपने पति से कोई परेशानी नहीं होगी, पर फिर भी अंकिता एक मानिनी शादीशुदा औरत थी। अगर इतनी आसानी से फँस गयी तो फिर क्या मजा? आसानी से मिली हुई चीज़ की कोई कीमत नहीं होती। थोड़ा गौरव को भी कुछ ज्यादा महेनत, मिन्नत और मशक्कत करनी चाहिए ना? अंकिता ने तय किया की अब उसे गौरव को रोकनाही होगा। मन ना मानते हुए भी अंकिता उठ खड़ी हुई।

उसने अपने कपड़ों को सम्हालते हुए गौरव को कहा, "बस गौरव। प्लीज तुम मुझे और मत छेड़ो। मैं मजबूर हूँ। आई एम् सॉरी।".
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अंकिता से गौरव को यह नहीं कहा गया की गौरव का यह सब कार्यकलाप उसे अच्छा नहीं लग रहा था। अंकिता ने गौरव को साफ़ साफ़ मना भी नहीं किया। अंकिता अपनी बर्थ से उठ कर गैलरी में चल पड़ी।
अपर्णा ने अपनी आँखें खोलीं तो देखा की अंकिता कम्पार्टमेंट के दरवाजे की और बढ़ने लगी थी और उसके पीछे गौरव भी उठ खड़ा हुआ और अंकिता के पीछे पीछे जाने लगा। अपर्णा से रहा नहीं गया। अपर्णा ने हलके से जीतूजी के पाँव अपनी गोद से हटाए और धीरे से बर्थ पर रख दिए। जीतूजी गहरी नींद सो रहे थे। अपर्णा ने जीतूजी के बदन पर पूरी तरह से कम्बल और चद्दर ओढ़ाकर वह स्वयं उठ खड़ी हुई और गौरव और अंकिता की हरकतें देखने उनके पीछे चल पड़ी।

अंकिता आगे भागकर कम्पार्टमेंट के शीशे के दरवाजे के पास जा पहुंची थी। गौरव भी उसके पीछे अंकिता को लपकने के लिए उसके पीछे भाग कर दरवाजे के पास जा पहुंचा था। अपर्णा ने देखा की गौरव ने भाग कर अंकिता को लपक कर अपनी बाँहों में जकड लिया और उसके मुंह पर चुम्बन करने की कोशिश करने लगा। अंकिता भी शरारत भरी हुई हँसी देती हुई गौरव से अपने मुंह को दूर ले जा रही थी। फिर उससे छूट कर अंकिता ने गौरव को अँगुठे से ठेंगा दिखाया और बोली, "इतनी आसानी से तुम्हारे चंगुल में नहीं फँस ने वाली हूँ मैं। तुम फौजी हो तो मैं भी फौजी की बेटी हूँ। हिम्मत है तो पकड़ कर दिखाओ।

और क्या था? गौरव को तो जैसे बना बनाया निमंत्रण मिल गया। उसने जब भाग कर अंकिता को पकड़ना चाहा तो अंकिता कूद कर कम्पार्टमेंट का शीशे का दरवाजा खोलकर वहाँ पहुंची जो हिस्सा ऐयर-कण्डीशण्ड नहीं होता। जहां टॉयलेट बगैरह होते हैं। पीछे पीछे गौरव भी भाग कर पहुंचा और अंकिता को लपक कर पकड़ना चाहा।
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अंकिता दरवाजे की और भागी। दुर्भाग्य से दरवाजा खुला था। वहाँ फर्श पर कुछ दही या अचार जैसा फिसलन वाला पदार्थ बिखरा हुआ था। अंकिता का पाँव फिसल गया। वह लड़खड़ायी और गिर पड़ी। उस के दोनों पाँव खुले दरवाजे से फिसल कर तेज चल रही ट्रैन के बाहर लटक गए।

गौरव ने फुर्ती से लपक कर ट्रैन के बाहर फिसलकर गिरती हुई अंकिता के हाथ पकड़ लिए। अंकिता के पाँव दरवाजे के बाहर निचे खुली हवा में पायदानों पर लटक रहे थे। वह जोर जोर से चिल्ला रही थी, "बचाओ बचाओ। गौरव प्लीज मुझे मत छोड़ना।"

गौरव कह रहे थे, "नहीं छोडूंगा, पर तुम मेरा हाथ कस के थामे रखना। कुछ नहीं होगा। बस हाथ कस के पकड़ रखना।"

अंकिता गौरव के हाथोँ के सहारे टिकी हुई थी। गौरव के पाँव भी उसी चिकनाहट पर थे। वह अपने को सम्हाल नहीं पाए और चिकनाहट पर पाँव फिसलने के कारण गिर पड़े। गौरव के कमर और पाँव कोच के अंदर थे और उनका सर समेत शरीर का ऊपरी हिस्सा दरवाजेके बाहर था। चूँकि उन्होंने अंकिता के हाथ अपने दोनों हाथों में पकड़ रखे थे, इस लिए वह किसी भी चीज़ का सहारा नहीं ले सकते थे और अपने बदन को फिसल ने से रोक नहीं सकते थे। गौरव ने अपने पाँव फैला कर अपने बदन को बाहर की और फिसलने से रोकना चाहा। पर सहारा ना होने और फर्श पर फैली हुई चिकनाहट के कारण उसका बदन भी धीरे धीरे दरवाजे के बाहर की और खिसकता जा रहा था। पीछे ही अपर्णा रही थी। उसने यह दृश्य देखा तो उसकी जान हथेली में गयी। कुछ ही क्षण की बात थी की अंकिता और गौरव दोनों ही तेज गति से दौड़ रही ट्रैन के बाहर तेज हवा के कारण उड़कर फेंक दिए जाएंगे।

अपर्णा ने भाग कर फिसल रहे गौरव के पाँव कस के पकडे और अपने दो पाँव फैला कर कोच के कोनों पर अपने पाँव टिका कर गौरव के शरीर को बाहर की और फिसलने से रोकने की कोशिश करने लगी। गौरव अंकिता के दोनों हाथों को अपने हाथों में पकड़ कर अपनी जान की बाजी लगा कर उसे बाहर फेंके जाने से रोकने की भरसक कोशिश में लगा हुआ था। तेज हवा और गाड़ी की तेज गति के कारण अंकिता पूरी तरह दरवाजे के बाहर जैसे उड़ रही थी। गौरव ने पूरी ताकत से अंकिता के दोनों हाथ अपने दोनों हाथोँ में कस के पकड़ कर रखे थे। अंकिता के पाँव हवा में झूल रहे थे। अक्सर अंकिता का घाघरा खुल कर छाते की तरह फ़ैल कर ऊपर की और उठ रहा था। अंकिता डिब्बे में से नीचे उतरने वाले पायदान पर अपने पाँव टिकाने की कोशिश में लगी हुई थी।

अपर्णा जोर से "कोई है? हमें मदद करो" चिल्ला ने लगी। 
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कुछ देर तक तो शीशे का दरवाजा बंद होने के कारण कर्नल साहब और रोहित को अपर्णा की चीखें नहीं सुनाई दी। पर किसी और यात्री के बताने पर अपर्णा की चिल्लाहट सुनकर एकदम कर्नल साहब और रोहित उठ खड़े हुए और भाग के अपर्णा के पास पहुंचे। कर्नल साहब ने जोर से ट्रैन की जंजीर खींची। इतनी तेजी से भाग रही ट्रैन एकदम कहाँ रूकती? ब्रेक की चीत्कार से सारा वातावरण गूँज उठा। ट्रैन काफी तेज रफ़्तार पर थी। अंकिता को लगा की उसके जीवन का आखरी वक्त चुका था। उसे बस गौरव के हाथ का सहारा था।

पर गौरव की भी हालत ऐसी थी की वह खुद फिसला जा रहा था। एक साथ दो जानें कभी भी जा सकतीं थीं। गौरव ने अपने जान की परवाह ना करते हुए अंकिता का हाथ नहीं छोड़ा। अंकिता और गौरव के वजन के कारण अपर्णा की पकड़ कमजोर हो रही थी। अपर्णा गौरव के पाँव को ठीक तरह से पकड़ नहीं पा रही थी। गौरव के पाँव अपर्णा के हाथोँ में से फिसलते जा रहे थे। ट्रैन की रफ़्तार धीरे धीरे कम हो रही थी पर फिर भी काफी थी। अचानक अपर्णा के हाथोँ में से गौरव के पाँव छूट गए। गौरव और अंकिता दोनों देखते ही देखते ट्रैन के बाहर उछल कर निचे गिर पड़े। थोड़ी दूर जाकर ट्रैन रुक गयी।

अंकिता लुढ़क कर रेल की पटरियों से काफी दूर जा चुकी थी। बाहर घाँस और रेत होने के कारण उसे कुछ खरोंचे और एक दो जगह पर कुछ थोड़ी गहरी चोट लगी थी। पर गौरव को पत्थर पर गिरने के कारण काफी घाव लगे थे और उसके सर से खून बह रहा था। निचे गिरने के बाद चोट के कारण गौरव कुछ पल बेहोश पड़े रहे। ट्रैन रुकजाने पर कर्नल साहब और रोहित के साथ कई यात्री निचे उतर कर गौरव और अंकिताको पीछे की और ढूंढने भागे। कुछ दुरी पर उन्हें गौरव गिरे हुए मिले। गौरव रेल की पटरियोंके करीब पत्थरों के पास बेहोश गिरे हुए पड़ेथे। उनके सरसे काफी खून बह रहाथा। अपर्णा भी उतर कर वहाँ पहुंची। उसने अपनी चुन्नी फाड़ कर गौरवके सरपर कस के बाँधी। कुछ देर बाद गौरव ने आँखें खोलीं। कर्नल साहब गौरव को अपर्णा के सहारे छोड़ और पीछे की और भागे और कुछ दुरी पर उन्हें अंकिता दिखाई दी। अंकिता और पीछे गिरी हुई थी। अंकिता के कपडे फटे हुए थे पर उसे ज्यादा चोट नहीं आयीथी। वह उठकर खड़ीथी और अपने आपको सम्हालने की कोशिश कर रही थी। उसका सर चकरा रहा था। वह गौरव को ढूंढने की कोशिश कर रही थी।

कर्नल साहब और कुछ यात्री ने गार्ड के पास रखे प्राथमिक सारवार की सामग्री और दवाइयों से गौरव और अंकिता की चोटों पर दवाई लगाई और पट्टियां बाँधी और दोनों को उठाकर वापस ट्रैन में लाकर उनकी बर्थ पर रखा। अपर्णा और श्रेया जी उन दोनों की देखभाल करने में जुट गए। ट्रैन फिर से अपने गंतव्यकी और जानेके लिए अग्रसर हुई। अंकिता काफी सम्हल चुकी थी। वह गौरव के पाँव के पास जा बैठी। उसने गौरव का हाल देखा तो उसकी आँखों में से आँसुओं की धार बहने लगी। गौरव ने अपने जान की परवाह ना करते हुए उसकी जान बचाई यह उसको खाये जा रहा था। गौरव बच गए यह कुदरत का कमाल था। तेज रफ़्तार से चलती ट्रैन में से पत्थर पर गिरने से इंसान का बचना लगभग नामुमकिन सा होता है। पर गौरव ने फिर भी अपनी जान को जोखिम में डाल कर अंकिता को बचाया यह अंकिता के लिए एक अद्भुत और अकल्पनीय अनुभव था। उसने सोचा भी नहीं था की कोई इंसान अपनी जान दुसरेकी जान बचाने के लिए ऐसे जोखिम में डाल सकता था। अपर्णा और श्रेया अंकिता को ढाढस देकर यह समझा रहे थे की गौरव ठीक है और उसकी जान को कोई ख़तरा नहीं है।
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कम्पार्टमेंट में एक डॉक्टर थे उन्होंने दोनों को चेक किया और कहा की उन दोनों को चोटें आयींथी पर कोई हड्डी टूटी हो ऐसा नहीं लग रहा था।

कुछ देर बाद गौरव बैठ खड़े हुए और इधर उधर देखने लगे। सर पर लगी चोट के कारण उन्हें कुछ बेचैनी महसूस हो रही थी। उन्होंने अंकिता को अपने पाँव के पास बैठे हुए और रोते हुए देखा। गौरव ने झुक कर अंकिता के हाथ थामे और कहा, "अब सब ठीक है। अब रोना बंद करो। मैंने तुम्हें कहा था ना, की सब ठीक हो जाएगा? हम भारतीय सेना के जवान हमेशा अपनी जान अपनी हथेली में लेकर घूमते हैं। चाहे देश की अस्मिता हो या देशवासी की जान बचानी हो। हम अपनी जान की बाजी लगा कर उन्हें बचाने में कोई कसर नहीं छोड़ते। मैं बिलकुल ठीक हूँ तुम भी ठीक हो। अब जो हो गया उसे भूल जाओ और आगे की सोचो।"

थोड़ी देर बाद अपर्णा और श्रेया अपनी बर्थ पर वापस चले गये। अंकिता ने पर्दा फैला कर गौरव की बर्थ को परदे के पीछे ढक दिया। पहले तो वह गौरव के पर्दा फैलाने पर एतराज कर रही थी। पर अब वह खुद पर्दा फैला कर अपनी ऊपर वाली बर्थ पर ना जाकर निचे गौरव की बर्थ पर ही अपने पाँव लम्बे कर एक छोर पर बैठ गयी। अंकिता ने गौरव को बर्थ पर अपने शरीर को लंबा कर लेटने को कहा। गौरव के पाँव को अंकिता ने अपनी गोद में ले लिए और उनपर चद्दर बिछा कर वह गौरव के पाँव दबाने लगी। अंकिताके पाँव गौरव ने करवट लेकर अपनी बाहों में ले लिए और उन्हें प्यार से सहलाने लगा। देखते ही देखते कप्तान गौरव गहरी नींद में सो गये। धीरे धीरे अंकिता की आँखें भी भारी होने लगीं। संकड़ी सी बर्थ पर दोनों युवा बदन एक दूसरे के बदन को कस कर अपनी बाहों में लिए हुए लेट गए। एक का सर दूसरे की पाँव के पास था। ट्रैन बड़ी तेज रफ़्तार से धड़ल्ले से फर्राटे मारती हुई भाग रही थी।

गौरव की चोटें गहरी थीं और शायद कोई हड्डी नहीं टूटी थी पर मांसपेशियों में काफी जख्म लगे थे और बदन में दर्द था। अंकिता के कप्तान गौरव के बर्थ पर ही लम्बे होने से गौरव के बदन का कुछ हिस्सा दबा और दर्द होने के कारण कप्तान गौरव कराह उठे। अंकिता एकदम बैठ गयी और उठ कर गौरव के पाँव के पास जा बैठी। गौरव के पाँव को अपनी गोद में रख कर उस पर कम्बल डालकर वह हल्के से गौरव के पाँव को सहलाने लगी। फिर अंकिता की अपनी आँखें भी भारी हो रही थीं। अंकिता बैठे बैठे ही गौरव के पाँव अपनी गोद में लिए हुए सो गयी।

अंकिता के सोनेके कुछ देर बाद अंकिताके पति ब्रिगेडियर खन्ना अंकिता को मिलने के लिए अंकिता की बर्थ के पास पहुँचने वाले थे, तब अपर्णा ने उन्हें देखा। अपर्णा को डर था की कहीं अंकिता के पति अंकिता को गौरव के साथ कोई ऐसी वैसी हरकत करते हुए देख ना ले इसलिए वह ब्रिगेडियर साहब को नमस्ते करती हुई एकदम उठ खड़ी हुई और जीतूजी के पाँव थोड़े से खिसका कर अपर्णा ने ब्रिगेडियर साहब को अपने पास बैठाया। अपर्णा ने ब्रिगेडियर खन्ना साहब से कहा की उस समय अंकिता सो रही थी और उसे डिस्टर्ब करना ठीक नहीं था। अपर्णा ने फिर ब्रिगेडियर खन्ना साहब को समझा बुझा कर अपने पास बैठाया और अंकिता और गौरव के साथ घटी घटना के बारे में सब बताया। कैसे अंकिता फिसल गयी फिर गौरव भी फिसले और कैसे गौरव ने अंकिता की जान बचाई।
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अंकिता के पति ब्रिगेडियर खन्ना ने भी अपर्णा को बताया की जब गाडी करीब एक घंटे तक कहीं रुक गयी थी तब उन्होंने किसी को पूछा की क्या बात हुईथी। तब उनके साथ वाली बर्थ बैठे जनाब ने उन्हें बताया की कोई औरत ट्रैन से निचे गिर गयी थी और कोई आर्मीके अफसर ने उसे बचाया था। उन्हें क्या पता था की वह वाक्या उनकी अपनी पत्नी अंकिता के साथ ही हुआ था?

यह सब बातें सुनकर अंकिता के पति ब्रिगेडियर खन्ना साहब बड़े चिंतित हो गए और वह अंकिता के पास जाने की जिद करने लगे तब अपर्णा ने उन्हें रोकते हुए ब्रिगेडियर साहब को थोड़ी धीरज रखने को कहा और बाजू में सो रहे जीतूजी को जगाया और ब्रिगेडियर खन्ना से बातचीत करने को कहा। ब्रिगेडियर साहब जैसे ही जीतूजी से घूम कर बात करनेमें लग गए की अपर्णा उठखडी हुई और उसने परदे के बाहर से अंकिता को हलके से पुकारा।

अंकिता को सोये हुए आधे घंटे से कुछ ज्यादा ही समय हुआ होगा की वह जागी तो अंकिता ने पाया की गौरव की साँसे धीमी रफ़्तार से नियमित चल रही थीं। कभी कभार उनके मुंह से हलकी सी खर्राटे की आवाज भी निकलने लगी। अंकिता को जब तसल्ली हुई की गौरव सो गए हैं तब उसने धीरे से अपने ऊपर से कम्बल हटाया और अपनी गोद में से गौरव का पाँव हटाकर निचे रखा। अंकिता ने गौरव के पाँव पर कम्बल ओढ़ा दिया और पर्दा हटा कर ऊपर अपनी बर्थ पर जाने के लिए उठने ही लगी थी की उसे परदे के उस पार अपर्णा की आवाज सुनिए दी। उसको अपने पति ब्रिगेडियर खन्ना की भी आवाज सुनाई दी। अंकिता हड़बड़ा कर उठ खड़ी हुई। उस ने पर्दा हटाया और अपर्णा को देखा। अपर्णा अंकिता का हाथ पकड़ कर उसे ब्रिगेडियर साहबके पास ले गयी। अपर्णा ने अपने पति ब्रिगेडियर साहब को देखा तो उनके चरण स्पर्श करने झुकी।

ब्रिगेडियर साहब ने अपनी पत्नी अंकिता को उठाकर गले लगाया और पूछा, "अंकिता बेटा (ब्रिगेडियर खन्ना कई बार प्यार से अंकिता को अपनी पत्नी होने के बावजूद अंकिता की कम उम्र के कारण उसे बेटा कह कर बुलाया करते थे।) मैंने अभी अभी इन (अपर्णा की और इशारा करते हुए) से सूना की तुम ट्रैन के निचे गिर गयी थी? मेरीतो जान हथेली में गयी जब मैंने यह सूना। उस वक्त मैं गहरी नींदमें था और मुझे किसीने बताया तक नहीं। मेरा कोच काफी पीछे है। मैंने यह भी सूना की कप्तान गौरव ने तुम्हें अपनी जान पर खेल कर बचाया? क्या यह सच है?" ब्रिगेडियर खन्ना फिर अपनी पत्नी के बदन पर हलके से हाथ फिराते हुए बोले, "जानूं, तुम्हें ज्यादा चोट तो नहीं आयी ना?"

अंकिता ने ब्रिगेडियर साहब की छाती में अपना सर लगा कर कहा, "हाँ जी यह बिलकुल सच है। मैं कप्तान गौरवजी के कारण ही आज ज़िंदा हूँ। मुझे चोट नहीं आयी पर गौरवजी काफी चोटिल हुए हैं। वह अभी सो रहे हैं।" अपर्णा और कर्नल साहब की और इशारा करते हुए अंकिता ने कहा, "इन्होने गौरव साहब की पट्टी बगैरह की। एक डॉक्टर ने देखा और कहा की गौरव जी की जान को कोई ख़तरा नहीं है।"

फिर अंकिता ने अपने पति को जो हुआ उस वाकये की सारी कहानी विस्तार से सुनाई। अंकिता ने यह छुपाया की गौरव अंकिता को पकड़ने के लिए उस के पीछे भाग रहे थे और गौरव की चंगुल से बचने के लिए वह भाग रही थी तब वह सब हुआ। हालांकि यह उसे बताना पड़ा की गौरव उसके पीछे ही कुछ बात करने के लिए तेजी से भागते हुए हुए रहे थे तब उसे धक्का लगा और वह फिसल गयी और साथ में गौरव भी फिसल गए। ऐसे वह वाक्या हुआ। अंकिता को डर था की कहीं उसके पति उसकी कहानी की सच्चाई भाँप ना ले।
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अंकिता की सारी कहानी सुनने के बाद ब्रिगेडियर साहब ने अंकिता के बाल सँवारते हुए कहा, "अंकिता, शुक्र है तुम्हें ज्यादा चोट नहीं आयी और गौरव भी बच गए। चलो जो हुआ सो हुआ। अब तुम मेरी बात बड़े ध्यान से सुनो। तुम अब गौरव का अच्छी तरह ख्याल रखना। वह अकेला है। उसे कोई तकलीफ ना हो l उन्हें किसी तरह की कोई भी जरुरत हो तो तुम पूरी करना। उनके साथ ही रहना। उन्होंने तुम्हारी ही नहीं मेरी भी जान बचाई है। मेरी जान तुमहो। उन्होंने तुम्हारी जान बचाकर हकीकत में तो मेरी जान बचाई है। ओके बच्चा? मैं चलता हूँ। तुम अपना भी ध्यान रखना।"

यह कह कर अपर्णा और जीतूजी को धन्यवाद देते और नमस्कार करते हुए ब्रिगेडियर साहब धीरे धीरे कम्पार्टमेंट की दीवारों का सहारा लेते हुए अपने कम्पार्टमेंट की और चल दिए।

अपने पति का इतना जबरदस्त सहारा और प्रोत्साहन पाकर अंकिता की आँखें नम हो गयीं। वह काफी खुश भी थी। "गौरव के साथ ही रहना, उन का ख़ास ध्यान रखना। उन्हें किसी तरह की कोई भी जरुरत हो तो तुम पूरी करना।". क्या उसके पति ब्रिगेडियर साहब यह कह कर उसे कुछ इशारा कर रहे थे? अंकिता इस उधेङबुन में थी की अपर्णा ने अंकिता को बताया की उन्होंने अंकिता और गौरव के लिए भी दोपहर का खाना आर्डर किया था। खाना भी चुका था। अपर्णा ने अंकिता को कहा की वह गौरव को भी जगाये और खाने के लिए कहे। अंकिता ने प्यार से गौरव को जगा कर बर्थ पर बिठा कर खाने के लिए आग्रह किया। गौरव को चेहरे और पाँव पर गहरी चोटें आयी थीं, पर वह कह रहे थे की वह ठीक हैं। गौरव खाने के लिए मना कर रहे थे पर अंकिता ने उनकी एक ना सुनी। चेहरे पर पट्टी लगाने के कारण उन्हें शायद ठीक ठीक देखने में दिक्कत हो रही थी। अंकिता ने खाने की प्लेट अपनी गोद में रखकर कप्तान गौरव के मना करने पर भी उन्हें एक एक निवाला बना कर अपने हाथों से खिलाना शुरू किया।

अपर्णा, श्रेया, रोहित और जीतूजी इस दोनों युवा का प्यार देख कर एक दूसरे की और देख कर शरारती अंदाज में मुस्कराये। सबके मन में शायद यही था की "जवाँ दिल की धड़कनों में भड़कती शमाँ। आगे आगे देखिये होता ही क्या।" प्यार और एक दूसरे के प्रति का ऐसा भाव देख सब के मन में यही था की कभी ना कभी जवान दिलों में भड़कती प्यार की यह छोटी सी चिंगारी जल्द ही आगे चल कर जवान बदनों में काम वासना की आग का रूप ले सकती है।

अपर्णा अंकिता के एकदम पास खिसक कर बैठ गयी और अंकिता के कानों में अपना मुंह लगा कर कोई सुने ऐसे फुसफुसाते हुए कहा l "अंकिता, क्या इतना प्यार कोई किसी को कर सकता है? गौरव ने अपनी जान की परवाह ना करते हुए तुम्हारी जान बचाई। कोई भी स्त्री के लिए कोई भी पुरुष इससे ज्यादा क्या बलिदान दे सकता है भला? मैं देख रही थी की गौरव तुम्हारे करीब आने की कोशिश कर रहा था और तुम उससे दूर भाग रही थी। ऐसे जाँबाज़ पुरुष के लिए अपना स्त्रीत्व की ही क्या; कोई भी कुर्बानी कम है।" ऐसा कह कर अपर्णा ने अंकिता को आँख मारी और फिर अपने काम में लग गयी।
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अपर्णा की बात अंकिता के जहन में बन्दुक की गोली के तरह घुस गयी। एक तो उसका तन और मन भी ऐसी मर्दानगी देख कर मचल ही रहा था उस पर अपर्णा की सटीक बात अंकिता के दिल को छू गयी। खाने के बाद अंकिता फिर से गौरव के पाँव से सट कर बैठ गयी। फिर से सारे परदे बंद हुए। क्यों की गौरव को तब भी काफी दर्द था, इस कारण अंकिता ने मन ना मानते हुए भी गौरव को प्यार से उसकी साइड की निचली बर्थ पर लिटा कर उसे कंबल ओढ़ा कर खुद जैसे ही अपनी ऊपर वाली बर्थ पर जाने लगी थी की उसने महसूस किया की कप्तान गौरव ने उसकी बाँह पकड़ी।

अंकिता ने मूड के देखा तो गौरव का चेहरा कम्बल से ढका हुआ था और शायद वह सो रहे थे पर फिर भी वह अंकिता को दूर नहीं जाने देना चाहते थे। अंकिता के चेहरे पर बरबस एक मुस्कान गयी। अंकिता गौरव का हाथ ना छुड़ाते हुए वहीं खड़ी रही। गौरव ने अंकिता का हाथ पकडे रखा। फिर अंकिता धीरे से हाथ छुड़ाने की कोशिश करने लगी पर फिर भी गौरव ने हाथ नहीं छोड़ा और अंकिता का हाथ पकड़ अपना चेहरा ढके हुए रखते अंकिता को अपने पास बैठने का इशारा किया। अंकिता गौरव के सर के पास गयी और धीरे से बोली, "क्या बात है? कुछ चाहिए क्या?"

परदे को उठा कर अपना मुंह अंकिता के मुंह के पास लाकर बोले, "अंकिता, क्या अब भी तुम मुझसे रूठी हुई हो? मुझे माफ़ नहीं करोगी क्या?"

अंकिता ने अपने हाथ गौरव के मुंह पर रख दिए और बोली, "क्या बात कर रहें हैं आप? भला मैं आपसे कैसे नाराज हो सकती हूँ?"

गौरव ने कहा, "फिर उठ कर ऊपर क्यों जाने लग़ी? नींद रही है क्या?"

अंकिता ने गौरव की बात काटते हुए कहा, "मुझे कोई नींद नहीं रही। भला इतना बड़ा हादसा होने के बाद कोई सो सकता है? जो हुआ यह सोचते ही मेरा दिल धमनी की तरह धड़क रहा है। पता नहीं मैं कैसे बच गयी। मेरी जान तुम्हारी वजह से ही बची है गौरव!"

गौरव ने फट से अपने हाथ अंकिता की छाती पर रखने की कोशिश करते हुए कहा, "मैंने तुम्हें कहाँ बचाया? बचाने वाला सबका एक ही है। उसने तुम्हें और मुझे दोनों को बचाया। यह सब फ़ालतू की बातें छोडो। तुमने क्या कहा की तुम्हारा दिल तेजी से धड़क रहा है? ज़रा देखूं तो वह कितनी तेजी से धड़क रहा है?"

अंकिता ने इधर उधर देखा। कहीं कोई उन दोनों की प्यार की लीला देख तो नहीं रहा? फिर सोचा, "क्या पता कोई अपना मुंह परदे में ही छिपाकर उनको देख ना रहा हो?"

अंकिता ने एक हाथ से गौरव की नाक पकड़ कर उसे प्यार से हिलाते हुए और दूसरे हाथ से धीरे से प्यार से गौरव का हाथ जो अंकिता के स्तनोँ को छूने जा रहा था उसको अपने टॉप के ऊपर से हटाते हुए कहा, "जनाब को इतनी सारी चोटें आयी हैं, पर फिर भी रोमियोगिरी करने से बाज नहीं आते? अगर मैं आपके पास बैठी ना, तो सो चुके आप! मैं चाहती हूँ की आप आराम करो और एकदम फुर्ती से वापस वैसे ही हो जाओ जैसे पहले थे। मैं चाहती हूँ की कल सुबह तक ही आप दौड़ते फिरते हो जाओ। फिर अगले पुरे सात दिन हमारे हैं। अब सो जाओ ना प्लीज? तुम्हें आराम की सख्त जरुरत है।
"
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गौरव ने अंकिता की हाथों को अपने करीब खींचा और उसे मजबूर किया की वह गौरव के ऊपर झुके। जैसे ही अंकिता झुकी की गौरव ने करवट ली, कम्बल हटाया और अंकिता के कानों के करीब अपना मुंह रख कर कहा, "मुझे आराम से भी ज्यादा तुम्हारी जरुरत है।"

अंकिता ने मुंह बनाते हुए कहा, "हाय राम मैं क्या करूँ? यह मजनू तो मान ही नहीं रहे! अरे भाई सो जाओ और आराम करो। ऐसे जागते और बातें करते रहोगे तो आराम तो होगा ही नहीं ऊपर से कोई देखेगा और शक करेगा।"

गौरव ने जिद करते हुए कहा, "नहीं मैं ऐसे नहीं मानूंगा। अगर तुम मुझसे रूठी नहीं हो तो बस एक बार मेरे मुंह के करीब अपना मुंह तो लाओ, फिर मैं सो जाऊंगा। आई प्रॉमिस।"

अंकिता ने अपना मुंह गौरव के करीब किया तो गौरव ने दोनों हाथों से अंकिता का सर पकड़ा और अपने होँठ अंकिता के होँठों पर चिपका दिए।


हालांकि सारे परदे ढके हुए थे और कहीं कोई हलचल नहीं दिख रही थी, पर फिर भी गौरव की फुर्ती से अपने होठोँ को चुम लेने से अंकिता यह सोच कर डर रही थी की इतने बड़े कम्पार्टमेंट में कहीं कोई उन्हें प्यार करते हुए देख ना ले। पर अंकिता भी काफी उत्तेजित हो चुकी थी। गौरव ने अंकिता का सर इतनी सख्ती से पकड़ा था की चाहते हुए भी अंकिता उसे गौरव के हाथों से छुड़ाने में असमर्थ थी। मजबूर होकर "जो होगा देखा जाएगा" यह सोच कर अंकिता ने भी अपनी बाँहें फैला कर गौरव का सर अपनी बाँहों में लिया और गौरव के होँठों को कस के चुम्बन करने लगी। दोनों जवाँ बदन एक दूसरे की कामवासना में झुलस रहे थे। अंकिता गौरव के मुंह की लार चूस चूस कर अपने मुंह में लेती रही। गौरव भी अपनी जीभ अंकिता के मुंह में डाल कर उसे ऐसे अंदर बाहर करने लगा जैसे वह अंकिता के मुंह को अपनी जीभ से चोद रहा हो। इस तरह काफी देर तक चिपके रहने के बाद अंकिता ने काफी मशक्कत कर अपना सर गौरव से अलग किया और बोली, "गौरव! चलो भी! अब तो खुश हो ना? अब बहोत हो गया। अब प्लीज जाओ और आराम करो। मेरी कसम अब और कुछ शरारत की तो!"

गौरव ने कहा, "ठीक है तुमने कसम दी है तो सो जाऊंगा। पर ऐसे नहीं मानूंगा। पहले यह वचन दो की रात को सब सो जाएंगे उसके बाद तुम चुपचाप मेरी बर्थपर निचे मेरे पास जाओगी।"

अंकिता ने गौरव को दूर करते हुए कहा, "ठीक है बाबा देखूंगी। पर अब तो छोडो।"

गौरव ने जिद करते हुए कहा, "ना, मैं नहीं छोडूंगा। जब तक तुम मुझे वचन नहीं दोगी।"

अंकिता ने दोनों हाथ जोड़ते हुए कहा, "ठीक है बाबा मैं वचन देती हूँ। अब तुम छोडो ना?"

गौरव ने कहा, "ऐसे नहीं, बोलो क्या वचन देती हो?"

अंकिता ने कहा, "रातको जब सब सो जाएंगे, तब मैं चुपचाप निचे उतरकर तुम्हारी बर्थपर जाऊंगी बस?"

गौरव ने कहा, "पर अगर तुम सो गयी तो?"

अंकिता ने अपना सर पटकते हुए कहा, अरे भगवान् यह तो मान ही नहीं रहे! अच्छा बाबा अगर मैं सो गयी तो तुम मुझे आकर उठा देना। अब तो ठीक है?"

गौरव ने धीरे से कहा, "ठीक है जानूं पर भूलना नहीं और अपने वादे से मुकर मत जाना."

अंकिता ने आँख मारकर कहा, "नहीं भूलूंगी और किये हुए वादे से मुकरूंगी भी नहीं। पर अब तुम आराम करो वरना मैं चिल्लाऊंगी, की यह बन्दा मुझे सता रहा है।
"
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गौरव ने हँसते हुए अंकिता का हाथ छोड़ दिया और जैसे डर गए हों ऐसे अपना मुंह कम्बल में छिपा कर एक आँख से अंकिता की और देखते हुए बोले, "अरे बाबा, ऐसा मत करना। मैं अब तुम्हें नहीं छेड़ूँगा। बस?"

गौरव की बात सुन अंकिता बरबस ही हंसने लगी। अपने दोनों हाथ जोड़कर गौरव को नमस्ते की मुद्रा कर मुस्काती हुई अंकिता गौरव के साथ हो रही कामक्रीड़ा के परिणाम रूप अपनी दोनों जाँघों के बिच हुए गीलेपन को महसूस कर रही थी। काफी समय के बाद अपनी दो जाँघों के बिच चूत में हो रही मीठी मचलन अंकिता के मन में कोई अजीब सी अनुभूति पैदा कर रही थी। अंकिता जब अपना घाघरा अपनी जाँघों के उपर तक उठाकर अपनी टाँगों को ऊपर उठा कर अपनी ऊपर वाली बर्थ पर चढ़ने लगी तो गौरव धीरे से बोला, "अपने आपको सम्हालो! निचे वाला (यानी गौरव) सब कुछ देख रहा है!" लज्जित अंकिता ने अपने पाँव निचे किये। गौरव की हरकतों से परेशान होने पर कुछ भी ना कर पाने के कारण मजबूर, अंकिता अपना घाघरा ठीक ठाक करती हुई अपने आपको सम्हाल कर अपनी ऊपर वाली बर्थ पर पहुंची और लम्बे हो कर लेट कर पिछले चंद घंटों में हुए वाक्योँ के बारेमें सोचने लगी।


ट्रैन मंजिल की और तेजी से अग्रसर हो रही थी।

कम्पार्टमेंट में शामके करीब पांच बजे कुछ हलचल शुरू हुई। गौरव के अलावा सब लोग बैठ गए। अंकिता ने गौरव के लिए चाय मंगाई। कुछ बिस्किट और चाय पिलाकर अंकिता ने गौरव को डॉक्टर की दी हुई कुछ दवाइयाँ दीं। दवाइयाँ खाकर गौरव फिर लेट गए। गौरव ने कहा की उनका दर्द कुछ कम हो रहा था। डॉक्टर ने टिटेनस का इंजेक्शन पहले ही दे दिया था। अंकिता गौरव के पाँव के पास ही बैठी बैठ गौरव को देख रही थी और कभी पानी तो कभी एक बिस्कुट दे देती थी। अन्धेरा होते ही शामका खाना पहुंचा। फिर अंकिता ने अपने हाथों से गौरव को बिठा कर खाना खिलाया। अपर्णा, श्रेया, कर्नल साहब और रोहित ने भी देखा की अंकिता गौरव का बहोत ध्यान रख रही थी।

सब ने खाना खाया और थोड़ी सी गपशप लगाकर ज्यादातर लोग अपने अपने मोबाइल में व्यस्त हो गए। कई यात्रियों ने कान पर ईयरफोन्स लगा अपने सेल फ़ोन में कोई मूवी, या गाना या कोई और चीज़ देखने में ही खो गए। रात के नौ बजते ही सब अपना अपना बिस्तर बनाने में लग गए। सुबह करीब बजे जम्मू स्टेशन आने वाला था। अंकिता ने गौरव को उठाया और उसका बिस्तर झाड़ कर अच्छी तरह से चद्दर और कम्बल बिछा कर गौरव को लेटाया। गौरव अब धीरे धीरे बैठने लगा था। शामको एक बार अंकिताके पति ब्रिगेडियर खन्ना साहब भी आये और गौरव को हेलो, हाय किया। इस बार उन्होंने गौरव के साथ बैठकर गौरव का हाल पूछा और फिर अंकिता के गाल पर हलकी सी किस करके वह अपनी बर्थ के लिए वापस चले गए। गौरव को फिर भी अंदेशा ना हुआ की अंकिता ब्रिगेडियर साहब की पत्नी थी। रात का अँधेरा घना हो गया था। काफी यात्री सो चुके थे। एक के बाद एक बत्तियां बुझती जा रहीं थीं।

अंकिता ने भी जब पर्दा फैलाया तब गौरव ने फिर अंकिता का हाथ पकड़ा और अपने करीब खिंच कर कानों में पूछा, "अपना वादा तो याद है ना?" अंकिता ने बिना बोले अपनी मुंडी हिलाकर हामी भरी और मुस्काती हुई अपना घाघरा सम्हालते हुए अपनी ऊपर की बर्थ पर चढ़ गयी।
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पत्नी की अदला-बदली -  05

 
अपर्णा निचे की बर्थ पर थी और जीतूजी उसकी ऊपर वाली बर्थ पर। श्रेया निचे वाली बर्थ पर और रोहित उसके ऊपर वाली बर्थ पर।
 
रात के साढ़े नौ बजे अपर्णा ने अपने कम्पार्टमेंट की बत्तियां बुझा दीं। उसे पता था की आजकी रात कुछ ना कुछ तो होगा ही। कोई ना कोई नयी कहानी जरूर बनेगी। अपर्णा को पति को किये हुए वादे की याद आयी। अपर्णा को तो अपने पति से किये हुए वादे को पूरा करना था। रोहित जी अपनी पत्नी से लिए हुए ट्रैन में रात को अपर्णा का डिनर करने के वादे को पूरा जरूर करना चाहेंगे। उसे पता था की अंकिता को रात को निचे की बर्थ में गौरव के पास आना ही था। जरूर उस रात को ट्रैन में कुछ ना कुछ तो होना ही था। क्या होगा उस विचार मात्र के रोमांच से अपर्णा के रोंगटे खड़े होगये। पर अपर्णा भी राजपूतानी मानिनी जो थी। उसने अपने रोमांच को शांत करना ही ठीक समझा और बत्ती बुझाकर एक अच्छी औरत की तरह अपने बिस्तर में जा लेटी।

कम्पार्टमेंट में सब कुछ शांत हो चुका था। जरूर प्रेमी प्रेमिकाओं के ह्रदय में कामाग्नि की धधकती आग छुपी हुई थी। पर फिर भी कम्पार्टमेंट में वासना की लपटोँ में जलते हुए बदनोंकी कामाग्नि भड़के उसके पहले छायी शान्ति की तरह सब कुछ शांत था। कुछ शोर तब होता था जब दो गाड़ियाँ आमने सामने से गुजरती थीं। वरना वातानुकूलित वातावरण में एक सौम्य सी शान्ति छायी हुई थी। जब ट्रैन कोई स्टेशन पर रूकती तो कहीं दूर कोई यात्री के चढ़ने उतर ने की धीमी आवाज के सिवाय कहीं किसीके खर्राटे की तो कहीं किसी की हलकी लयमय साँसे सुनाई दे रहीथीं। सारी बत्तियाँ बुझाने के कारण और सारे परदे से ढके होने के कारण पुरे कम्पार्टमेंट में घना अँधेरा छाया हुआ था। कहीं कुछ नजर नहीं आता था। एक कोने में टिमटिमाती रात्रि बत्ती कुछ कुछ प्रकाश देने में भी निसहाय सी लग रही थी। कभी कभी कोई स्टेशन गुजरता तब उसका प्रकाश परदे में रह गयी पतली सी दरार में से मुश्किल ही अँधेरे को हल्का करने में कामयाब होता था।

काम वासना से संलिप्त ह्रदय बाकी यात्रियों को गहरी नींद में खो जाने की जैसे प्रतीक्षा कर रहे थे। बिच बिचमें नींद का झोका जाने के कारण वह कुछ विवश सा महसूस कर रहे थे। अंकिता की आँखों में नींद कहाँ? उसे पता था की उसका प्रियतम गौरव जरूर उसके निचे उतर ने प्रतीक्षा में पागल हो रहा होगा। आज रात क्या होगा यह सोच कर अंकिता के ह्रदय की धड़कन तेज हो रही थीं और साँसे धमनी की तरह चल रहीं थीं। अंकिता की जाँघों के बिच उसकी चूत काफी समय से गीली ही हो रही थी। गौरव काफी चोटिल थे। तो क्या वह फिर भी अंकिता को वह प्यार दे पाएंगे जो पानेकी अंकिता के मन में ललक भड़क रही थी? पर अंकिता गौरव को इतना प्यार करती थी और गौरव की इतनी ऋणी थी की अपनी काम वासना की धधकती आग को वह छुपाकर तब तक रखेगी जब तक गौरव पूरी तरह स्वस्थ ना हो जाएँ। यह वादा अंकिता ने अपने आपसे किया था। उससे भी बड़ा प्रश्न यह था की क्या अंकिता को स्वयं निचे उतर कर गौरव के पास जाना चाहिए? चाहे गौरव ने अंकिता के लिए कितनी भी कुर्बानी ही क्यों ना दी हो, क्या अंकिता को अपना मानिनीपन अक्षत नहीं रखना चाहिए? पुरुष और स्त्री की प्रेम क्रीड़ा में पहल हमेशा पुरुष की ही होनी चाहिए इस मत में अंकिता पूरा विश्वास रखती थी।

स्त्रियां हमेशा मानिनी होती हैं और पुरुष को ही अपने घुटने जमीं पर टिका कर स्त्री को रिझाकर मनाना चाहिए जिससे स्त्री अपने बदन समेत अपनी काम वासना अपने प्रियतम पर न्योछावर करे यही संसार का दस्तूर है, यह अंकिता मानती थी। पर अंकिता की अपने बदन की आग भी तो इतनी तेज भड़क रही थी की क्या वह मानिनीपन को प्रधानता दे या अपने तन की आग बुझाने को? यह प्रश्न उसे खाये जा रहा था। क्या गौरव इतने चोटिल होते हुए अंकिता को मनाने के लिए बर्थ के निचे उतर कर खड़े हो पाएंगे? अंकिता के मन में यह भी एक प्रश्न था। वह करे तो क्या करे
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आखिर में अंकिता ने यह सोचा की क्यों ना गौरव को उसे मनाना कुछ आसान किया जाए? ताकि गौरव को बर्थ से उठकर अंकिता को मनाने के लिए उठना ना पड़े? यह सोच कर अंकिता ने अपनी चद्दर का एक छोर धीरे धीरे सरका कर निचे की और जाने दिया ताकि गौरव उसे खिंच कर उस के संकेत की प्रतीक्षा में जाग रही (पर सोने का ढोंग कर रही) अंकिता को जगा सके। कुछ देर बीत गयी। अंकिता बड़ी बेसब्री से इंतजार में थी की कब गौरव उसकी चद्दर खींचे और कब वह अपना सर निचे ले जाकर यह देखने का नाटक करे की क्या हुआ? जिससे गौरव को मौक़ा मिले की वह अंकिता को निचे उतर ने का आग्रह करे। पर शायद गौरव सो चुके थे। अंकिता ऊपर बेचैन इंतजार में परेशान थी। काफी कीमती समय बितता जा रहा था।



अपर्णा को डर था की उस रात कहीं कुछ गड़बड़ ना हो जाए। उसके पति रोहित ने उससे से वचन जो लिया था की दिन में ना सही पर रात को जरूर वह अपर्णा को खाने मतलब अपर्णा की लेने (मतलब अपर्णा को चोदने) जरूर आएंगे। शादी के इतने सालों बाद भी रोहित अपर्णा का दीवाना था। दूसरे जीतूजी जो अपर्णा को पाने के पिए सब कुछ दॉंव पर लगाने के लिए आमादा थे। जिन्होंने कसम खायी थी की वह अपर्णा पर अपना स्त्रीत्व समर्पण करने के लिए (मतलब चुदवाने के लिए) कोई भी दबाव नहीं डालेंगे। पर अपर्णा और जीतूजी के बिच यह अनकही सहमति तो थी ही की अपर्णा जीतूजी को भले उसको चोदने ना दे पर बाकी सबकुछ करने दे सकती है। यह बात अलग है की जीतूजी खुद अपर्णा का आधा समर्पण स्वीकार करने के लिए तैयार होंगे या नहीं। वह भी तो आर्मी के सिपाही थे और बड़े ही अड़ियल थे।

अपर्णा को तब जीतूजी का प्रण याद आया। उन्होने बड़े ही गभीर स्वर में कहा था की जब अपर्णा ने उन्हें नकार ही दिया था तब वह कभी भी सामने चल कर अपर्णा को ललचाने की या अपने करीब लाने को कोशिश नहीं करेंगे। अपर्णा के सामने यह बड़ी समस्या थी। वह जीतूजी का दिल नहीं तोड़ना चाहती थी पर फिर वह उनको अपना समर्पण भी तो नहीं कर सकती थी।

अपर्णा जीतूजी को भली भाँती जानती थी। जहां तक उसका मानना था जीतूजी तब तक आगे नहीं बढ़ेंगे जब तक अपर्णा कोई पहल ना करे। वैसे तो माननीयों पर मॅंडराने के लिए उनको चाहने वाले बड़े बेताब होते हैं। पर उस रात तो उलटा ही हो गया। अपर्णा अपने पति की अपनी बर्थ पर इंतजार कर रही थी। साथ साथ में उसे यह भी डर था की कहीं जीतूजी ऊपर से सीधा निचे ना उतर जाएँ। पर जहां अपर्णा दो परवानोँ का इंतजार कर रही थी, वहाँ कोई भी नहीं रहा था। उधर अंकिता अपने प्रेमी के संकेत का इंतजार कर रही थी, पर गौरव था की कोई इंटरेस्ट नहीं दिखा रहा था। दोनों ही मानीनियाँ अपने प्रियतम से मिलने के लिए बेताब थी। पर प्रियतम ना जाने क्या सोच रहेथे? क्या वह अपनी प्रिया को सब्र का फल मीठा होता है यह सिख दे रहे थे? या कहीं वह निंद्रा के आहोश में होश खो कर गहरी नींद में सो तो नहीं गए थे?
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काफी समय बीत जाने पर अपर्णा समझ गयी की उसका पति रोहित गहरी नींद में सोही गया होगा। वैसे भी ऐसा कई बार हो चुका था की अपर्णा को रात को चोदने का प्रॉमिस कर के रोहित कई बार सो जाते और अपर्णा बेचारी मन मसोस कर रह जाती।
 
रात बीतती जा रही थी। रोहित का कोई पता ही नहीं था। तब अपर्णाने महसूस किया की उसकी ऊपर वाली बर्थ पर कुछ हलचल हो रही थी। इसका मतलब था की शायद जीतूजी जाग रहे थे और अपर्णा के संकेत का इंतजार कर रहे थे। अपर्णा की जाँघों के बिच का गीलापन बढ़ता जा रहा था। उसकी चूत की फड़कन थमने का नाम नहीं ले रही रही थी। गौरव और अंकिता की प्रेम लीला देख कर अपर्णा को भी अपनी चूत में लण्ड लड़वाने की बड़ी कामना थी। पर वह बेचारी करे तो क्या करे? पति नहीं रहे थे। जीतूजीसे वह चुदवा नहीं सकती थी।
 
रात बीतती जा रही थी। अपर्णा की आँखों में नींद कहाँ? दिन में सोने कारण और फिर अपने पति के इंतजार में वह सो नहीं पा रही थी। उस तरफ श्रेया जी गहरी नींद में लग रही थीं।

ट्रैन की रफ़्तार से दौड़ती हुई हलकी सी आवाज में भी उनकी नियमित साँसें सुनाई दे रहीं थीं। रोहित जी भी गहरी नींद में ही होंगें चूँकि वह शायद अपनी पत्नी के पास जाने (अपनी पत्नी को ट्रैन में चोदने) का वादा भूल गए थे। लगता था जीतूजी भी सो रहे थे। अपर्णा की दोनों जाँघों के बिच उसकी में चूत में बड़ी हलचल महसूस हो रही थी। अपर्णा ने फिर ऊपर से कुछ हलचल की आवाज सुनी। उसे लगा की जरूर जीतूजी जाग रहे थे। पर उनको भी निचे आने की कोई उत्सुकता दिख नहीं रही थी। अपर्णा अपनी बर्थ पर बैठ कर सोचने लगी। उसे समझ नहीं आया की वह क्या करे। अगर जीतूजी जागते होंगे तो ऊपर शायद वह अपर्णा के पास आने के सपने ही देख रहे होंगे। पर शायद उनके मन में अपर्णा के पास आने में हिचकिचाहट हो रही होगी, क्यूंकि अपर्णा ने उनको नकार जो दिया था। अपर्णा को अपने आप पर भी गुस्सा रहा था तो जीतूजी पर तरस रहा था। तब अचानक अपर्णा ने ऊपर से लुढ़कती चद्दर को अपने नाक को छूते हुए महसूस किया। चद्दर काफी निचे खिसक कर गयी थी। अपर्णा के मन में प्रश्न उठने लगे। क्या वह चद्दर जीतूजी ने कोई संकेत देने के लिए निचे खिस्काइथी? या फिर करवट लेते हुए वह अपने आप ही अनजाने में निचे की और खिसक कर आयी थी? अपर्णा को पता नहीं था की उसका मतलब क्या था? या फिर कुछ मतलब था भी या नहीं? यह उधेङबुन में बिना सोचे समझे अपर्णा का हाथ ऊपर की और चला गया और अपर्णा ने अनजाने में ही चद्दर को निचे की और खींचा। खींचने के तुरंत बाद अपर्णा पछताने लगी। अरे यह उसने क्या किया? अगर जीतूजी ने अपर्णा का यह संकेत समझ लिया तो वह क्या सोचेंगे? पर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। अपर्णा के चद्दर खींचने पर भी ऊपर से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई।

अपर्णा को बड़ा गुस्सा आया। अरे! यह कर्नल साहब अपने आप को क्या समझते हैं? क्या स्त्रियों का कोई मान नहीं होता क्या? भाई अगर एक बार औरतने मर्दको संकेतदे दियातो क्या उस मर्दको समझ जाना नहीं चाहिए? फिर अपर्णा ने अपने आप पर गुस्सा करते हुए और जीतूजी की तरफदारी करते हुए सोचा, "यह भी तो हो सकता है ना की जीतूजी गहरी नींद में हों? फिर उन्हें कैसे पता चलेगा की अपर्णा कोई संकेत दे रही थी? वह तो यही मानते थे ना की अब अपर्णा और उनके बिच कोई भी ऐसी वैसी बात नहीं होगी? क्यूंकि अपर्णा ने तो उनको ठुकरा ही दिया था। इसी उधेड़बुन में अपर्णा का हाथ फिर से ऊपर की और चला गया और अपर्णा ने चद्दर का एक हिस्सा अपने हाथ में लेकर उसे निचे की और खींचना चाहा तो जीतूजी का घने बालों से भरा हाथ अपर्णा के हाथ में गया। जीतूजी के हाथ का स्पर्श होते ही अपर्णा की हालत खराब! हे राम! यह क्या गजब हुआ! अपर्णा को समझ नहीं आया की वह क्या करे? उसी ने तो जीतूजी को संकेत दिया था। अब अगर जीतूजी ने उसका हाथ पकड़ लिया तो उसमें जीतूजी का क्या दोष? जीतूजी ने अपर्णा का हाथ कस के पकड़ा और दबाया। अपर्णा का पूरा बदन पानी पानी हो गया।
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वह समझ नहीं पायी की वह क्या करे? अपर्णा ने महसूस किया की जीतूजी का हाथ धीरे धीरे निचे की और खिसक रहा था। अपर्णा की जाँघों के बिच में से तो जैसे फव्वारा ही छूटने लगा था। उसकी चूत में तो जैसे जलजला सा हो रहा था। अपर्णा का अपने बदन पर नियत्रण छूटता जा रहा था। वह आपने ही बस में नहीं थी। अपर्णा ने रात को नाइटी पहनी हुई थी। उसे डर था की उसकी नाइटी में उसकी पेन्टी पूरी भीग चुकी होगी इतना रस उसकी चूत छोड़ रहीथी। जीतूजी कब अपनी बर्थ से निचे उतर आये अपर्णा को पता ही तब चला जब अपर्णा को जीतूजी ने कस के अपनी बाहों में ले लिया और चद्दर और कम्बल हटा कर वह अपर्णा को सुला कर उसके साथ ही लम्बे हो गए और अपर्णा को अपनी बाहों के बिच और दोनों टांगों को उठा कर अपर्णा को अपनी टांगों के बिच घेर लिया। फिर उन्होंने चद्दर और कम्बल अपने ऊपर डाल दिया जिससे अगर कोई उठ भी जाए तो उसे पता ना चले की क्या हो रहा था। जीतूजी ने अपर्णा का मुंह अपने मुंह के पास लिया और अपर्णा के होँठों से अपने होँठ चिपका दिए। जीतूजी के होठोँ के साथ साथ जीतूजी की मुछें भी अपर्णा के होठोँ को चुम रहीं थीं। अपर्णा को अजीब सा अहसास हो रहा था। पिछली बार जब जीतूजी ने अपर्णा को अपनी बाहों में किया था तब अपर्णा होश में नहीं थी। पर इस बार तो अपर्णा पुरे होशो हवास में थी और फिर उसी ने ही तो जीतूजी को आमंत्रण दिया था।

अपर्णा अपने आप को सम्हाल नहीं पा रही थी। उससे जीतूजी का यह आक्रामक रवैया बहुत भाया। वह चाहती थी की जीतूजी उसकी एक भी बात ना माने और उसके कपडे और अपने कपडे भी एक झटके में जबरदस्ती निकाल कर उसे नंगी करके अपने मोटे और लम्बे लण्ड से उसे पूरी रात भर अच्छी तरह से चोदे। फिर क्यों ना उसकी चूत सूज जाए या फट जाए। अपर्णा जानती थी की अब वह कुछ नहीं कर सकती थी। जो करना था वह जीतूजी को ही करना था। जीतूजी का मोटा लण्ड अपर्णा की चूत को कपड़ों के द्वारा ऐसे धक्के मार रहा था जैसे वह अपर्णा की चूतको उन कपड़ों के बिच में से खोज क्यों ना रहा हो? या फिर जीतूजी का लण्ड बिच में अवरोध कर रहे सारे कपड़ों को फाड़ कर जैसे अपर्णा की नन्हीं कोमल सी चूत में घुसने के लिए बेताब हो रहा था। जीतूजी मारे कामाग्नि से पागल से हो रहे थे। शायद उन्होंने भी अंकिता और गौरव की प्रेम गाथा सुनी थी। जीतूजी पागल की तरह अपर्णा के होँठों को चुम रहे थे। अपर्णा के होँठों को चूमते हुए जीतूजी अपने लण्ड को अपर्णा की जाँघों के बिच में ऐसे धक्का मार रहे थे जैसे वह अपर्णा को असल में ही चोद रहें हों।

अपर्णाको जीतूजी का पागलपन देख कर यकीन हो गया की उस रात अपर्णा की कुछ नहीं चलेगी। जीतूजी उसकी कोई बात सुनने वाले नहीं थे और सचमें ही वह अपर्णाकी अच्छी तरह बजा ही देंगे। जब अपर्णा का कोई बस नहीं चलेगा तो बेचारी वह क्या करेगी? उसके पास जीतूजी को रोकने का कोई रास्ता नहीं था। यह सोच कर अपर्णा ने सब भगवान पर छोड़ दिया। अब माँ को दिया हुआ वचन अगर अपर्णा निभा नहीं पायी तो उसमें उसका क्या दोष? अपर्णा जीतूजी के पुरे नियत्रण में थी। जीतूजी के होँठ अपर्णा के होँठों को ऐसे चुम और चूस रहे थे जैसे अपर्णा का सारा रस वह चूस लेना चाहते थे। अपर्णा के मुंह की पूरी लार वह चूस कर निगल रहे थे। अपर्णा ने पाया की जीतूजी उनकी जीभ से अपर्णा का मुंह चोदने लगे थे। साथ साथ में अपने दोनों हाथ अपर्णा की गाँड़ पर दबा कर अपर्णा की गाँड़ के दोनों गालों को अपर्णा की नाइटी के उपरसे वह ऐसे मसल रहे थे की जैसे वह उनको अलग अलग करना चाहते हों। जीतूजी का लण्ड दोनों के कपड़ों के आरपार अपर्णा की चूत को चोद रहा था। अगर कपडे ना होते तो अपर्णा की चुदाई तो हो ही जानी थी। पर ऐसे हालात में दोनों के बदन पर कपडे कितनी देर तक रहेंगे यह जानना मुश्किल था। यह पक्का था की उसमें ज्यादा देर नहीं लगेगी। और हुआ भी कुछ ऐसा ही। अपर्णा के मुंह को अच्छी तरह चूमने और चूसने के बाद जीतूजी ने अपर्णा को घुमाया और करवट लेने का इशारा किया।

अपर्णा बेचारी चुपचाप घूम गयी। उसे पता था की अब खेल उसके हाथों से निकल चुका था। अब आगे क्या होगा उसका इंतजार अपर्णा धड़कते दिल से करने लगी।
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जीतूजी ने अपर्णा को घुमा कर ऐसे लिटाया की अपर्णा की गाँड़ जीतूजी के लण्ड पर एकदम फिट हो गयी। जीतूजी ने अपने लण्ड का एक ऐसा धक्का मारा की अगर कपडे नहीं होते तो जीतूजी का लण्ड अपर्णा की गाँड़ में जरूर घुस जाता। अपर्णा को समझ नहीं रहा था की वह कोई विरोध क्यों नहीं कर रही थी? ऐसे चलता रहा तो चंद पलों में ही जीतूजी उसको नंगी कर के उसे चोदने लगेंगे और वह कुछ नहीं कर पाएगी। पर हाल यह था की अपर्णा के मुंह से कोई आवाज निकल ही नहीं रही थी। वह तो जैसे जीतूजी के इशारों पर नाचने वाली कठपुतली की तरह उनके हर इशारे का बड़ी आज्ञा कारी बच्चे की तरह पालन कर रही थी। जीतूजी ने अपने हाथसे अपर्णा की नाइटी के ऊपर के सारे बटन खोल दिए और बड़ी ही बेसब्री से अपर्णा की ब्रा के ऊपर से ही अपर्णा की चूँचियों को दबाने लगे। अपर्णा के पास अब जीतूजी की इच्छा पूर्ति करने के अलावा कोई चारा नहीं था। अपर्णा ना तो चिल्ला सकती थी नाही कुछ जोरों से बोल सकती थी क्यूंकि उसके बगल में ही उसका पति रोहित , श्रेया, गौरव और अंकिता सो रहे थे।

अपर्णा समझ गयी की जीतूजी अपर्णा की ब्रा खोलना चाहते थे। अपर्णा ने अपने हाथ पीछे की और किये और अपनी ब्रा के हुक खोल दिए। ब्रा की पट्टियों के खुलते ही अपर्णा के बड़े फुले हुए उरोज जीतूजी के हथेलियों में आगये। जीतूजी अपर्णा की गाँड़ में अपने लण्ड से धक्के मारते रहे और अपने दोनों हाथोँ की हथलियों में अपर्णा के मस्त स्तनोँ को दबाने और मसलने लगे। अपर्णा भी चुपचाप लेटी हुई पीछे से जीतूजी के लण्ड की मार अपनी गाँड़ पर लेती हुई पड़ी रही। अब जीतूजी को सिर्फ अपर्णा की नाइटी ऊपर उठानी थी और पेंटी निकाल फेंकनी थी। बस अब कुछ ही समय में जीतूजी के लण्ड से अपर्णाकी चुदाई होनी थी। अपर्णा ने अपना हाथ पीछे की और किया। जब इतना हो ही चुका था तब भला वह क्यों ना जीतूजी का प्यासा लण्ड अपने हाथोँ में ले कर उसको सहलाये और प्यार करे? पर जीतूजी का लण्ड तो पीछे से अपर्णा की गाँड़ मार रहा था (मतलब कपडे तो बिच में थे ही)l अपर्णा ने जीतूजी का लण्ड उनके पयजामें के ऊपर से ही अपनी छोटी सी उँगलियों में लेना चाहा। जीतूजी ने अपने पयजामे के बटन खोल दिए और उनका लण्ड अपर्णा की उँगलियों में गया। जीतूजी का लण्ड पूरा अच्छी तरह चिकनाहट से लथपथ था। उनके लण्ड से इतनी चिकनाहट निकल रही थी की जैसे उनका पूरा पयजामा भीग रहा था।

चूँकि अपर्णा ने अपना हाथ अपने पीछे अपनी गाँड़ के पास किया था उस कारण वह जीतूजी का लण्ड अपने हाथोँ में ठीक तरह से ले नहीं पा रही थी। खैर थोड़ी देर में उसका हाथ भी थक गया और अपर्णा ने वापस अपना हाथ जीतूजी के लण्ड पर से हटा दिया। जीतूजी अब बड़े मूड में थे। वह थोड़े से टेढ़े हुए और उन्होंने अपने होँठ अपर्णा की चूँचियों पर रख दिए। वह बड़े ही प्यार से अपर्णा की चूँचियों को चूसने और उसकी निप्पलोँ को दाँतसे दबाने और काटने लगे। उन्होंने अपना हाथ अपर्णा की जाँघों के बिच लेना चाहा। अपर्णा बड़े असमंजसमें थी की क्या वह जीतूजी को उसकी चूत पर हाथ लगाने दे या नहीं।

यह तय था की अगर जीतूजी का हाथ अपर्णा की चूत पर चला गया तो अपर्णा की पूरी तरह गीली हो चुकी पेंटी अपर्णा के मन का हाल बयाँ कर ही देगी। तब यह तय हो जाएगा की अपर्णा वाकईमें जीतूजीसे चुदवाना चाहती थी। जीतूजी का एक हाथ अपर्णा की नाइटी अपर्णा की जाँघों के ऊपर तक उठाने में व्यस्त था की अचानक उन्हें एहसास हुआ की कुछ हलचल हो रही थी। 

दोनों एकदम स्तब्ध से थम गए। रोहित बर्थ के निचे उतर रहे थे ऐसा उनको एहसास हुआ।
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अपर्णा की हालत एकदम खराबथी। अगर रोहित जी को थोड़ासा भी शक हुआकी जीतूजी उसकी पत्नी की बर्थ में अपर्णा के साथ लेटे हुए हैं तो क्या होगा यह उसकी कल्पना से परे था। फिर तो वह मान ही लेंगें के उनकी पत्नी अपर्णा जीतूजी से चुदवा रही थी। फिरतो सारा आसमान टूट पडेगा। जब रोहितने अपर्णाको यह इशारा किया था की शायद जीतूजी अपर्णा की और आकर्षित थे और लाइन मार रहे थे तब अपर्णा ने अपने पति को फटकार दिया था की ऐसा उनको सोचना भी नहीं चाहिए था। अब अगर अपर्णा जीतूजी से सामने चलकर उनकी पीठ के पीछे चुदवा रही हो तो भला एक पति को कैसा लगेगा?
 
अपर्णा ने जीतूजी के मुंह पर कस के हाथ रख दिया की वह ज़रा सा भी आवाज ना करे। खैर जीतूजी और अपर्णा दोनों ही कम्बल में इस तरह एक साथ जकड कर ढके हुए थे की आसानी से पता ही नहीं लग सकता की कम्बल में एक नहीं दो थे। पर अपर्णा को यह डर था की यदि उसके पति की नजर जीतूजी की बर्थ पर गयी तो गजब ही हो जाएगा। तब उन्हें पता लग जाएगा की जीतूजी वहाँ नहीं थे। तब उन्हें शक हो की शायद वह अपर्णा के साथ लेटे हुए थे।

खैर रोहित बर्थ से निचे उतरे और अपनी चप्पल ढूंढने लगे। रोहित जी को जल्दी ही अपनी चप्पल मिल गए और वह तेज चलते हुए, और हिलती हुई गाडी में अपना संतुलन बनाये रखने के लिए कम्पार्टमेंट के हैंडल बगैरह का सहारा लेते हुए डिब्बे के एक तरफ वाले टॉयलेट की और बढ़ गए। उनके जातेही अपर्णा और जीतूजी दोनों की जान में जान आयी। अपर्णा को तो ऐसा लगा की जैसे मौतसे भेंट हुई और जान बच गयी। जैसे ही रोहित जी आँखों से ओझल हुए की जीतूजी फ़ौरन उठकर फुर्ती से बड़ी चालाकी से कम्पार्टमेंट की दूसरी तरफ जिस तरफ रोहित नहीं गए थे उस तरफ टॉयलेट की और चल पड़े।
 
अपर्णा ने फ़ौरन अपने कपडे ठीक किये और अपना सर ठोकती हुई सोने का नाटक करती लेट गयी। आज माँ ने ही उसकी लाज बचाई ऐसा उसे लगा। थोड़ी ही देर में पहले रोहित जी टॉयलेट से वापस आये। उन्होंने अपनी पत्नी अपर्णा को हिलाया और उसे जगाने की कोशिश की। अपर्णा तो जगी हुई ही थी। फिर भी अपर्णा ने नाटक करते हुए आँखें मलते हुए धीरे से पूछा, "क्या है?"
 
रोहित ने एकदम अपर्णा के कानों में अपना मुंह रख कर धीमी आवाजमें कहा, "अपना वादा भूल गयी? आज हमने ट्रैन में रात में प्यार करने का प्रोग्राम जो बनाया था?" अपर्णा ने कहा, "चुपचाप अपनी बर्थ पर लेट जाओ। कहीं जीतू जी जग ना जाएँ।" रोहित ने कहा, "जीतूजी तो टॉयलेट गए हैं। अब तुमने वादा किया था ना? पूरा नहीं करोगी क्या?" अपर्णा ने कहा, "ठीक है। जब जीतूजी वापस आजायें और सो जाएँ तब जाना।" रोहित ने खुश हो कर कहा, "तुम सो मत जाना। मैं जाऊंगा।" अपर्णा ने कहा, "ठीक है बाबा। अब थोड़ी देर सो भी जाओ। फिर जब सब सो जाएँ तब आना और चुपचाप मेरे बिस्तर में घुस जाना, ताकि किसी को ख़ास कर श्रेया और जीतूजी को पता ना चले।" रोहित ने खुश होते हुए कहा, "ठीक है। बस थोड़ी ही देर में।" ऐसा कहते हुए रोहित अपनी बर्थ पर जाकर जीतूजी के लौटने का इंतजार करने लगे। अपर्णा मन ही मन यह सब क्या हो रहा था इसके बारे में सोचने लगी। 
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यहां देखिये, क्या हो रहा है?
 
यहां तो एक कामिनी कामुक स्त्री अंकिता चाहती थी की कप्तान गौरव उसे ललचाये और उससे सम्भोग करे। कप्तान गौरव के अंकिता की जिंदगी बचाने के लिए अपनी जिंदगी को कुर्बान करने तक के जाँबाज़ करतब से वह इतनी पूर्णतया अभिभूत हो गयी थी, की वह खुद सामने चलकर अपना कामाग्नि कप्तान गौरव से कुछ हद तक शांत करवाना चाहती थी। वह अपना शील और अपनी इज्जत कप्तान गौरव को सौंपना चाहती थी। पर कप्तान गौरव तो गहरी नींद में सोये हुए लग रहे थे। ऊपर की बर्थ में लेटी हुई कामाग्नि लिप्त कामिनी अंकिता, गौरव से अभिसार करने के लिए उन की पहल का इंतजार कर रही थी, या यूँ कहिये की तड़प रही थी। पहले जो बड़ी मानिनी बन कर गौरव की पहल को नकार रही थी वह खुद अब अपनी बदन में भड़क रही काम की ज्वाला को गौरव के बदन से मिला कर संतृप्त करना चाह रही थी। पर आखिर कामिनी भी मानिनी तो है ही ना? मानिनी कितनीही कामातुर क्यों नाहो, वह अपना मानिनी रूप नहीं छोड़ सकती। वह चाहती है की पुरुष ही पहल करे। जब गौरव से कोई पर्याप्त पहल नहीं हुई तो व्याकुल कामिनी ने अपनी चद्दर का एक छोर जानबूझ कर निचे की और सरका दिया। उसने गौरव को एक मौक़ा दिया की गौरव उसे खिंच कर इशारा दे और उसे निचे अपनी बर्थ पर बुलाले। तब फिर कामिनी का मानिनीपन भी पूरा हो जाएगा और वह गौरव पर जैसे मेहरबानी कर उसे अपना बदन सौंप देगी। पर काफी समय व्यतीत होने पर भी गौरव की और से कोई इशारा नहीं हुआ। समय बीतता जाता था। अंकिता को बड़ा गुस्सा रहा था। यह क्या बात हुई की उसे रात को आने का न्योता दे कर खुद सो गए? अंकिता ने अपनी निचे खिसकाई हुई चद्दर ऊपर की और खिंच ली और करवट बदल कर चद्दर ओढ़ कर सो गयी।

पर अंकिता की आँखों में नींद कहाँ? वह तो जागते हुए गौरव के साथ अभिसार (चुदाई) के सपने देख रही थी। अंकिता का मन यह सोच रहा था की जिसका शरीर इतना कसा हुआ और जो इतने अच्छे खासे कद का था ऐसे जाबाँझ सिपाही का लण्ड कैसा होगा? जब गौरव के हाथ अंकिता की चूँचियों को छुएंगे और उन्हें दबाने और मसलने लगेंगे तो अंकिता का क्या हाल होगा? जब ऐसे जवान का हाथ अंकिता की चूत पर उसकी हलकी झाँट पर फिरने लगेगातो क्या अंकिता अपनी कराहट रोक पाएगी? अंकिता की चूत यह सोच कर इतनी गीली हो रही थी की उसके लिए अब और इंतजार करना नामुमकिन सा लग रहा था। अंकिता का मन जब ऐसे विचारों में डूबा हुआ ही था की उसे अचानक कुछ हलचल महसूस हुई। अंकिता ने थोड़ा सा पर्दा हटा कर देखा तो पाया की रोहित अपनी बर्थ से निचे उतर रहे थे। अंकिता को मन में कहीं ना कहीं ऐसा अंदेशा हुआ की कुछ ना कुछ तो होने वाला था। उसने परदे का एक कोना सिर्फ इतना ही हटाया की उसमें से वह देख सके।
 
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अंकिता ने देखा की रोहित शायद अपनी चप्पल ढूंढ रहे थे। थोड़ी ही देर में अंकिता ने देखा की रोहित वाशरूम की और चल दिए। अंकिता को यह देख कुछ निराशा हुई।

वह सोच रही थी की रोहित जी शायद निचे की बर्थ पर लेटी हुई दो में से एक स्त्री के साथ सोने जा रहे थे। पर ऐसा कुछ नहीं हुआ। अंकिता के मन में पहले ही कुछ शक था की वह दोनों जोड़ियाँ एक दूसरे के प्रति कुछ ज्यादा ही रूमानी लग रही थीं। खैर, अंकिता दुखी मन से पर्दा धीरे से खिंच कर बंद करने वाली ही थी की उसके मुंह से आश्चर्य की सिसकारी निकलते निकलते रुक गयी। अंकिता ने ऊपर की बर्थ पर लेटे हुए कर्नल साहब की परछाईं सी आकृति को निचे की बर्थ पर लेटी हुई अपर्णाजी के बिस्तर में से अफरातफरी में बाहर निकलते हुए देखा। अंकिता की तो जैसे साँसे ही रुक गयी। अरे? अपर्णाजी जो अंकिता को दोपहर गौरव के बारे में पाठ पढ़ा रही थीं, उनके बिस्तरमें कर्नल अंकल? कर्नल साहब कब अपर्णा जी के बिस्तर में घुस गए? कितनी देर तक कर्नल साहब अपर्णाजी के बिस्तर में थे? यह सवाल अंकिता के दिमाग में घूमने लगे।

अंकिता का माथा ही ठनक गया। क्या अपर्णाजी चलती ट्रैन में श्रेया के पति कर्नल साहब से चुदवा रही थीं? एक पुरुष का एक स्त्री के साथ एक ही बिस्तर में से इस तरह अफरातफरी में बाहर निकलना एक ही बात की और इशारा करता था की कर्नल साहब अपर्णाजी की चुदाई कर रहे थे। और वह भी तब जब अपर्णाजी के पति सामने की ही ऊपर की बर्थ में सो रहे थे? और फिर वह अपर्णा जी के बिस्तर में से बाहर निकल कर दूसरी और भाग खड़े हुए तब जब अपर्णाजी के पति अपनी बर्थ से निचे उतर वाशरूम की और चल दिए थे। अंकिता को कुछ समझ नहीं रहा था की यह सब क्या हो रहा था। वह चुपचाप अपने बिस्तर में पड़ी आगे क्या होगा यह सोचती हुई कर्नल साहब और रोहित के वापस आने का इंतजार करने लगी। कुछ ही देर में पहले रोहित वापस आये। अंकिता ने देखा की वह अपर्णाजी की बर्थ पर जाकर, झुक कर अपनी बीबी को जगा कर कुछ बात करने की कोशिश कर रहे थे। कुछ देर तक उन दोनोंके बिच में कुछ बातचीत हुई, पर अंकिता को कुछ भी नहीं सुनाई दिया। फिर अंकिता ने देखा की रोहित एक अच्छे बच्चे की तरह वापस चुपचाप अपनी ऊपर वाली बर्थ में जाकर लेट गए।

अंकिता को लगा की कुछ कुछ तो खिचड़ी पक रही थी। थोड़ी देर तक इंतजार करने पर फिर कर्नल साहब भी वाशरूम से वापस गए। वह थोड़ी देर निचे अपर्णाजी की बर्थ के पास खड़े रहे। अंकिता को ठीक से तो नहीं दिखा पर उस ने महसूस किया की अपर्णाजी के बिस्तर में से शायद अपर्णाजी का हाथ निकला। आगे क्या हुआ वह अँधेरे के कारण अंकिता देख नहीं पायी, पर उसके बाद कर्नल साहब अपनी ऊपर वाली बर्थ पर चले गए। डिब्बे में फिर से सन्नाटा छा गया। अंकिता देखने लगी पर काफी देर तक कोई हलचल नहीं हुई।
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