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Adultery कल हो ना हो" - पत्नी की अदला-बदली - {COMPLETED}
#81
जीतूजी फिर भी बड़े प्यार से अपर्णा के स्तनों को दबाते और सँवारते रहे। अपर्णा ने जीतूजी के हाथों को दबा कर यह संकेत दिया की वह जाग गयी थी। अपर्णा ने फिर जीतूजी के हाथों को ऊपर उठा कर अपने होठों से लगाया और दोनों हाथों को धीरे से बड़े प्यार से चूमा। फिर अपना सर घुमा कर अपर्णा ने जीतूजी की और देखा और मुस्काई। हालांकि अपर्णा जीतूजी को आगे बढ़ने से रोकना जरूर चाहती थी पर उन्हें कोई सदमा भी नहीं देना चाहती थी। अपर्णा खुद जीतूजी से चुदवाना चाहती थी। पर उसे अपनी मर्यादा का पालन भी करना था। अपर्णा ने धीरे से करवट बदली और जीतूजी के हाथों और टाँगों की पकड़ को थोड़ा ढीले करते हुए वह पलटी और जीतूजी के सामने चेहरे से चेहरा कर प्रस्तुत हुई।
 
अपर्णा ने जीतूजी जी की आँखों से आँखें मिलाई और हल्का सा मुस्कुराते हुए जीतूजी को धीरे से कहा, "जीतूजी, मैं आपके मन के भाव समझती हूँ। मैं जानती हूँ की आप क्या चाहते हैं। मेरे मन के भाव भी अलग नहीं हैं। जो आप चाहते हैं, वह मैं भी चाहती हूँ l जीतूजी आप मुझे अपनी बनाना चाहते हो, तो मैं भी आपकी बनना चाहती हूँ। आप मेरे बदन की चखना करते हो तो मैं भी आपके बदन से अपने बदन को पूरी तरह मिलाना चाहती हूँ। पर इसमें मुझे मेरी माँ को दिया हुआ वचन रोकता है। मैं आपको इतना ही कहना चाहती हूँ की आप मेरे हो या नहीं यह मैं नहीं जानती, पर मैं आपको कहती हूँ की मैं मन कर्म और वचन से आपकी हूँ और रहूंगी। बस यह तन मैं आपको पूरी तरह से इस लिए नहीं सौंप सकती क्यूंकि मैं वचन से बंधी हूँ l इसके अलावा मैं पूरी तरह से आपकी ही हूँ। यदि आप मुझे आधा अधूरा स्वीकार कर सकतेहो तो मुझे अपनी बाँहों में ही रहने दो और मुझे स्वीकार करो। बोलो क्या आप मुझे आधा अधूरा स्वीकार करने के लिए तैयार हो?

यह सुनकर कर्नल साहब की आँखों में आँसू भर आये। उन्होंने कभी सोचा नहीं था की वास्तव में कोई उनसे इतना प्रेम कर सकता है। उन्होंने अपर्णा को अपनी बाँहों में कस के जकड़ा और बोले, "अपर्णा, मैं तुम्हें कोई भी रूप में कैसे भी अपनी ही मानता हूँ।" यह सुनकर कर अपर्णा ने अपनी दोनों बाँहें जीतूजी के गले में डालीं और थोड़ा ऊपर की और खिसक कर अपर्णा ने अपने होँठ जीतूजी से होँठ पर चिपका दिए। जीतूजी भी पागल की तरह अपर्णा के होठों को चूसने और चूमने लगे। उन्होंने अपर्णा की जीभ को अपने मुंह में चूस लिया जीभ को वह प्यार से चूसने लगे और अपर्णा के मुंह की सारी लार वह अपने मुंह में लेकर उसे गले के निचे उतारकर उसका रसास्वादन करने लगे। उन्हें ऐसा महसूस हुआ की अपर्णा ने उनसे नहीं चुदवाया फिर भी जैसे उन्हें अपर्णा का सब कुछ मिल गया हो।
 
जीतूजी गदगद हो कर बोले, "मेरी प्यारी अपर्णा, चाहे हमारे मिले हुए कुछ ही दिन हुए हैं, पर मुझे ऐसा लगता है जैसे तुम मेरी कई जीवन की संगिनीं हो।" अपर्णा ने जीतूजी की नाक अपनी उँगलियों में पकड़ी और हँसती हुई बोली, "मैं कहीं श्रेया का हक़ तो नहीं छीन रही?" जीतूजी ने भी हंस कर कहा, "तुम बीबी नहीं साली हो। और साली आधी घरवाली तो होती ही है ना? श्रेया का हक़ छीनने का सवाल ही कहाँ है?"

अपर्णा ने जीतूजी की टाँगों के बिच हाथ डालते हुए कहा, "जीतूजी, आप मुझे एक इजाजत दीजिये। एक तरीके से ना सही तो दूसरे तरीके से आप मुझे आपकी कुछ गर्मी कम करने की इजाजत तो दीजिये। भले मैं इसमें खुद वह आनंद ना ले पाऊं जो मैं लेना चाहती हूँ पर आपको तो कुछ सकून दे सकूँ।"
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#82
जीतूजी कुछ समझे इसके पहले अपर्णा ने जीतूजी की दो जॉंघोंके बिचमें से उनका लण्ड पयजामेके ऊपरसे पकड़ा। अपर्णा ने अपने हाथ से पयजामा के बटन खोल दिए और उसके हाथ में जीतूजी इतना मोटा और लम्बा लण्ड गया की जिसको देख कर और महसूस कर कर अपर्णा की साँसे ही रुक गयीं। उसने फिल्मों में और रोहित जी का भी लंड देखा था। पर जीतूजी का लण्ड वाकई उनके मुकाबले कहीं मोटा और लंबा था। उसके लण्ड के चारों और इर्दगिर्द उनके पूर्वश्राव पूरी चिकनाहट फैली हुई थी। अपर्णा की हथेली में भी वह पूरी तरहसे समा नहीं पाता था। अपर्णा ने उसके इर्दगिर्द अपनी छोटी छोटी उंगलियां घुमाईं और उसकी चिकनाहट फैलाई। अगर उसकी चूतमें ऐसा लण्ड घुस गया तो उसका क्या हाल होगा यह सोच कर ही वह भय और रोमांच से कांपने लगी। उसे एक राहत थी की उसे उस समय वह लण्ड अपनी चूत में नहीं लेना था। अपर्णा सोचने लगीकी श्रेया जब जीतूजी से चुदवाती होंगी तो उनका क्या हाल होता होगा? शायद उनकी चूत रोज इस लण्ड से चुद कर इतनी चौड़ी तो हो ही गयी होगी की उन्हें अब जीतूजी के लण्ड को घुसाने में उतना कष्ट नहीं होता होगा जितना पहले होता होगा।

अपर्णा ने जीतूजी से कहा, "जीतूजी, हमारे बिच की यह बात हमारे बिचही रहनी चाहिए। हालांकि मैं किसीसे और ख़ास कर मेरे पति और आपकी पत्नी से यह बात छुपाना नहीं चाहती। पर मैं चाहती हूँ की यह बात मैं उनको सही वक्त आने पर कह सकूँ। इस वक्त मैं उनको इतना ही इशारा कर दूंगी की रोहित श्रेया के साथ अपना टाँका भिड़ा सकते हैं। डार्लिंग, आपको तो कोई एतराज नहीं ना?"
 
जीतूजी ने हँसते हुए कहा, "मुझे कोई एतराज नहीं। मैं तुम्हारा यानी मेरी पारो का देवदास ही सही पर मैं मेरी चंद्र मुखी को रोहित की बाँहों में जाने से रोकूंगा नहीं। मेरी तो वह है ही।" अपर्णा को बुरा लगा की जीतूजी ने बात ही बात में अपने आपकी तुलना देवदास से करदी। उसे बड़ा ही अफ़सोस हो रहा था की वह जीतूजी की उसे चोदने की मन की चाह पूरी नहीं कर पायी और उसके मन की जीतूजी से चुदवाने की चाह भी पूरी नहीं कर पायी पर उसने मन ही मन प्रभु से प्रार्थना की की "हे प्रभु, कुछ ऐसा करो की साँप भी मरे और लाठी भी ना टूटे। मतलब ऐसा कुछ हो की जीतूजी अपर्णाको चोद भी सके और माँ का वाचन भंग भी ना हो।" पर अपर्णा यह जानती थी की यह सब तो मन का तरंग ही था। अगर माँ ज़िंदा होती तो शायद अपर्णा उनसे यह वचन से उसे मुक्त करने के लिए कहती पर माँ का स्वर्ग वास हो चुका था। इस कारण अब इस जनम में तो ऐसा कुछ संभव नहीं था। रेल की दो पटरियों की तरह अपर्णा को इस जनम में तो जीतूजी का लण्ड देखते हुए और महसूस करते हुए भी अपनी चूत में डलवाने का मौक़ा नहीं मिल पायेगा। यह हकीकत थी।
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#83
अपर्णा ने जीतूजी का लण्ड अपनी छोटी छोटी हथेलियों में लिया और उसे सहलाने और हिलाने लगी। वह चाहती थी की जीतूजीका वीर्य स्खलन उसकी उँगलियों में हो और वह भले ही उस वीर्य को अपनी चूत में ना डाल सके पर जीतूजी की ख़ुशी के लिए वह उस वीर्य काआस्वादन जरूर करेगी। अपर्णा ने जीतूजी के लण्ड को पहले धीरे से और बाद में जैसे जैसे जीतूजी का उन्माद बढ़ता गया, वैसे वैसे जोर से हिलाने लगी। साथ साथ में अपर्णा और जीतूजी मुस्काते हुए एक प्यार भरे प्रगाढ़ चुम्बनमें खो गए।
 
कुछ मिनटों की ही बात थी प्यार भरी बातें और साथ साथ में अपर्णा की कोमल मुठी में मुश्किल से पकड़ा हुआ लम्बे घने सख्त छड़ जैसा जीतूजी का लण्ड जोरसे हिलाते हिलाते अपर्णा की बाहें भी थक रही थीं तब जीतूजी का बदन एकदम अकड़ गया। उन्होंने अपर्णा के स्तनों को जोरसे दबाया और "ओह.... अपर्णा..... तुम कमाल हो....." कहते हुए अचानक ही जीतूजी के लण्ड के छिद्र से जैसे एक फव्वारा फूट पड़ा जो अपर्णा के चेहरे पर ऐसे फ़ैल गया जैसे अपर्णा का चेहरा कोई मलाई से बना हो। उस दिन सुबह ही सुबह अपर्णा ने ब्रेकफास्ट में वह नाश्ता किया जो उसने पहले कभी नहीं किया था। अपर्णा ने जीतूजी से एक वचन माँगते हुए कहा, "जीतूजी मैं और आप दोनों, आपकी पत्नी श्रेया को और मेरे पति रोहित को हमारे बिच हुई प्रेम क्रीड़ा के बारे में कुछ भी नहीं बताएँगे। वैसे तो उनसे छुपाने वाली ऐसी कोई बात तो हुई ही नहीं जिसे छिपाना पड़े पर जो कुछ भी हुआ है उसे भी हम जाहिर नहीं करेंगे l मैं हमारे बिच हुई प्रेम क्रीड़ा को मेरे पति रोहित और आप की पत्नी श्रेया से छिपा के रखना चाहती हूँ ताकि सही समय पर उन्हें मैं इसे धमाके से पेश करुँगी की दोनों चौंक जाएंगे और तब बड़ा मजा आएगा।"

कर्नल साहब अपर्णा की और विस्मय से जब देखने लगे तब अपर्णा ने जीतूजी का हाथ थाम कर कहा, "आप कैसे क्या करना है वह सब मुझ पर छोड़ दीजिये। मैं चाहती हूँ की आपकी पत्नी और मेरी दीदी श्रेया से मेरे पति रोहित का ऐसा धमाकेदार मिलन हो की बस मजा जाये!" अपर्णा का आगे बोलते हुए मुंह खिन्नता और निराशा से मुरझा सा गया जब वह बोली, "मेरे कारण मैं आपको चरम पर ले जा कर उस उन्मादपूर्ण सम्भोग का आनंद नहीं दे पायी जहां मेरे साथ मैं आपको ले जाना चाहती थी l पर मैं चाहती हूँ की वह दोनों हमसे कहीं ज्यादा उस सम्भोग का आनंद लें, उनके सम्भोग का रोमांच और उत्तेजना इतनी बढ़े की मजा जाए। इस लिए जरुरी है की हम दोनों ऐसा वर्तन करेंगे जैसे हमारे बीच कुछ हुआ ही नहीं और हम दोनों एक दूसरे के प्रति वैसे ही व्यवहार करेंगे जैसे पहले करते थे। आप श्रेया से हमेशा मेरे बारे में ऐसे बात करना जैसे मैं आपके चुंगुल में फँसी ही नहीं हूँ।" जीतूजी ने अपर्णा अपनी बाहों में ले कर कहा, "बात गलत भी तो नहीं है। तुम इतनी मानिनी हो की मेरी लाख मिन्नतें करने पर भी तुम कहाँ मानी हो? आखिरकार तुमने अपनी माँ का नाम देकर मुझे अंगूठा दिखाही दियाना?" जब अपर्णा यह सुनकर रुआंसी सी हो गयी, तो जीतूजी ने अपर्णा को कस कर चुम्बन करते हुए कहा, "अरे पगली, मैं तो मजाक कर रहा था। पर अब जब तुमने हमारी प्रेम क्रीड़ा को एक रहस्य के परदेमें रखने की ठानी ही है तो फिर मैं एक्टिंग करने में कमजोर हूँ। मैं अब मेरे मन से ऐसे ही मान लूंगा की जैसे की तुमने वाकई में मुझे अंगूठा दिखा दिया है और मेरे मन में यह रंजिश हमेशा रखूँगा और हो सकता है की कभी कबार मेरे मुंहसे ऐसे कुछ जले कटे शब्द निकल भी जाए। तब तुम बुरा मत मानना क्यूंकि मैं अपने दिमाग को यह कन्विंस कर दूंगा की तुम कभी शारीरिक रूप से मेरे निकट आयी ही नहीं और आज जो हुआ वह हुआ ही नहीं l आज जो हुआ उसे मैं अपनी मेमोरी से इरेज कर दूंगा, मिटा दूंगा। ठीक है? तुम भी जब मैं ऐसा कुछ कहूं या ऐसा वर्तन करूँ तो यह मत समझना की मैं वाकई में ऐसा सोचता हूँ। पर ऐसा करना तो पडेगा ही। तो बुरा मत मानना, प्लीज?"
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#84
जीतूजी ने फिर थम कर थोड़ी गंभीरतासे अपर्णा की और देख कर कहा, "पर जानूं, मैं भी आज तुमसे एक वादा करता हूँ। चाहे मुझे अपनी जान से ही क्यों ना खेलना पड़े, अपनी जान की बाजी क्यों ना लगानी पड़े, एक दिन ऐसा आएगा जब तुम सामने चल कर मेरे पास आओगी और मुझे अपना सर्वस्व समर्पण करोगी l मैं अपनी जान हथेली में रख कर घूमता हूँ। मेरे देश के लिए इसे मैंने आज तक हमारी सेना में गिरवी रखा था। अब मैं तुम्हारे हाथ में भी इसे गिरवी रखता हूँ l अगर तुम राजपूतानी हो तो मैं भी हिंदुस्तानी फ़ौज का जाँबाज़ सिपाही हूँ। मैं तुम्हें वचन देता हूँ की जब तक ऐसा नहीं होगा तब तक मैं तुम पर अपना वचन भंग करने का कोई मानसिक दबाव नहीं बनाऊंगा। इतना ही नहीं, मैं तुम्हें भी कमजोर नहीं होने दूंगा की तुम अपना वचन भंग करो।"

अपर्णा ने जब जीतूजी से यह वाक्य सुने तो वह गदगद हो गयी। अपर्णा के हाथ में जीतूजी का आधा तना हुआ लंड था जिसे वह प्यार से सेहला रही थी। अचानक ही अपर्णा के मन में क्या उफान आया की वह जीतूजी के लण्ड पर झुक गयी और उसे चूमने लगी। अपर्णा की आँखों में आँसू छलक रहे थे l अपर्णा जीतूजी के लण्ड को चूमते हुए और उनके लण्ड को सम्बोधित करते हुए बोली, "मेरे प्यारे जीतूजी के प्यारे सिपाही! मुझे माफ़ करना की मैं तुम्हें तुम्हारी सहेली, जो मेरी दो जॉंघों के बिच है, उसके घर में घुस ने की इजाजत नहीं दे सकती। तुम मुझे बड़े प्यारे हो। मैं तुम्हें तुम्हारी सहेली से भले ही ना मिला पाऊँ पर मैं तुम्हें बहुत प्यार करती हूँ।" अपर्णा ने जीतूजी के पॉंव सीधे किये और फिर से सख्त हुए उनके लण्ड के ऊपर अपना मुंह झुका कर लण्ड को अपने मुंह में लेकर उसे चूमने और चूसने लगी। हर बार जब भी वह जीतूजी के लण्ड को अपने मुंह से बाहर निकालती तो आँखों में आँसूं लिए हुए बोलती, "मुझे माफ़ करना मेरे जीतूजी के दूत, मुझे माफ़ करना। मैं तुम्हें तुम्हारी सखी से मिला नहीं सकती।" अपर्णा ने फिर से जीतूजी के लण्ड को कभी हाथों से तो कभी मुंह में चूस कर और हिला कर इतना उन्माद पूर्ण और उत्तेजित किया की एक बार फिर जीतूजी का बदन ऐसे अकड़ गया और एक बार फिर जीतूजी के लण्ड के छिद्र में से एक पिचकारी के सामान फव्वारा छूटा और उस समय अपर्णा ने उसे पूरी तरह से अपने मुंह में लिया और उसे गटक गटक कर पी गयी।

उस दिन तक अपर्णा ने कभी कभार अपने पति का लंड जरूर चूमा था और एक बार हल्का सा चूसा भी था, पर उनका वीर्य अपने मुंह में नहीं लिया था। अपर्णा को ऐसा करना अच्छा नहीं लगता था। पर आज बिना आग्रह किये अपर्णा ने अपनी मर्जी से जीतूजी का पूरा वीर्य पी लिया। अपर्णा को उस समय जरासी भी घिन नहीं हुई और शायद उसे जीतूजी के वीर्य का स्वाद अच्छा भी लगा। कहते हैं ना की अप्रिय का सुन्दर चेहरा भी अच्छा नहीं लगता पर अपने प्रिय की तो गाँड़ भी अच्छी लगती है। काफी देर तक अपर्णा आधे नंगे जीतूजी की बाँहों में ही पड़ी रही। अब उसे यह डर नहीं था की कहीं जीतूजी उसे चुदने के लिए मजबूर ना करे। जीतूजी के बदन की और उनके लण्ड की गर्मी अपर्णा ने ठंडी कर दी थी। जीतूजी अब काफी अच्छा महसूस कर रहे थे। अपर्णा उठ खड़ी हुई और अपनी साडी ठीक ठाक कर उसने जीतूजी को चूमा और बोली, "जीतूजी, मैं एक बात आपसे पूछना भूल ही गयी। मैं आपसे यह पूछना चाहती थी की आप कुछ वास्तव में छुपा रहे हो ना, उस पीछा करने वाले व्यक्ति के बारे में? सच सच बताना प्लीज?"
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#85
कर्नल साहब ने अपर्णा की और ध्यान से देखा और थोड़ी देर मौन हो गए, फिर गंभीरता से बोले, "देखो अपर्णा, मुझे लगता है शायद यह सब हमारे मन का वहम था। जैसाकी आपके पति रोहित ने कहा, हमें उसे भूल जाना चाहिए।" अपर्णा को फिर भी लगा की जीतूजी सारी बात खुलकर बोलना उस समय ठीक नहीं समझते और इस लिए अपर्णा ने भी उस बात को वहीँ छोड़ देना ही ठीक समझा। 

#

उस सुबहके बाद कर्नल साहब और अपर्णा एक दूसरे से ऐसे वर्तन करने लगे जैसे उस सुबह उनके बिच कुछ हुआ ही नहीं और उनके बिच अभी दूरियां वैसे ही बनी हुई थीं जैसे पहले थीं।

पहाड़ों में छुट्टियां मनाने जाने का दिन करीब रहा था। अपर्णा अपने पति रोहित के साथ पैकिंग करने और सफर की तैयारी करने में जुट गयी। दोनों जोड़ियों का मिलना उन दिनों हुआ नहीं। फ़ोन पर एक दूसरे से वह जरूर सलाह मशवरा करते थे की तैयारी ठीक हो रही है या नहीं। एक बार जब अपर्णा ने जीतूजी को फ़ोन कर पूछा की क्या जीतूजी श्रेया छुट्टियों में जाने के लिए पूरी तरह से तैयार थे, तो जीतूजी ने अपर्णा को फ़ोन पर ही एक लंबा चौड़ा भाषण दे दिया। 

कर्नल साहब ने कहा, "अपर्णा मैं आप और रोहित से यह कहना चाहता हूँ की यह कोई छुट्टियां मनाने हम नहीं जा रहे। यह भारतीय सेना का भारत के युवा नागरिकों के लिए आतंकवाद से निपटने में सक्षम बनाने के लिए आयोजित एक ट्रेनिंग प्रोग्राम है l इस में सेना के कर्मचारियों के रिश्तेदार और मित्रगण ही शामिल हो सकते हैं। इस प्रोग्राम में शामिल होने के किये जरुरी राशि देने के अलावा सेना के कोई भी आला अधिकारी की सिफारिश भी आवश्यक है। सब शामिल होने वालों का सिक्योरिटी चेक भी होता है l इस में रोज सुबह छे बजे कसरत, पहाड़ों में ट्रेक्किंग (यानी पहाड़ चढ़ना या पहाड़ी रास्तों पर लंबा चलना), दोपहर आराम, शाम को आतंकवाद और आतंक वादियों पर लेक्चर और देर शाम को ड्रिंक्स, डान्स बगैरह का कार्यक्रम हैl हम छुट्टियां तो मनाएंगे ही पर साथ साथ आम नागरिक आतंकवाद से कैसे लड़ सकते हैं या लड़ने में सेना की मदद कैसे कर सकते हैं उसकी ट्रेनिंग दी जायेगी। मैं भी उन ट्रैनिंग के प्रशिक्षकों में से एक हूँ। आपको मेरा लेक्चर भी सुनना पडेगा।"

रोहित को यह छुट्टियां श्रेया के करीब जानेका सुनहरा मौक़ा लगा। साथ साथ वह इस उधेड़बुन में भी थे की इन छुट्टियों में कैसे अपर्णा और जीतूजी को एक साथ किया जाए की जिससे उन दोनोंमें भी एक दूसरेके प्रति जबरदस्त शारीरिक आकर्षण हो और मौक़ा मिलते ही दोनों जोड़ियों का आपस में एक दूसरे के जोड़ीदार से शारीरिक सम्भोग हो। वह इस ब्रेक को एक सुनहरी मौक़ा मान रहे थे।
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#86
जिस दिन सुबह ट्रैन पकड़नी थी उसके अगले दिन रात को बिस्तर में रोहित और अपर्णा के बिच में कुछ इस तरह बात हुई। रोहित अपर्णा को अपनी बाहों में लेकर बोले, "डार्लिंग, कल सुबह हम एक बहुत ही रोमांचक और साहसिक यात्रा पर निकल रहे हैं और मैं चाहता हूँ की इसे और भी उत्तेजक और रोमांचक बनाया जाए।". यह कह कर रोहित ने अपनी बीबी के गाउन के ऊपर से अंदर अपना हाथ डालकर अपर्णा के बूब्स को सहलाना और दबाना शुरू किया।
अपर्णा मचलती हुई बोली, "क्या मतलब?" रोहित ने अपर्णा की निप्पलों को अपनी उँगलियों में लिया और उन्हें दबाते हुए बोले, "हनी, हमने जीतूजी को आपको पढ़ाने के लिए जो योगदान दिया है उसके बदले में कुछ भी तो नहीं दिया l हाँ यह सच है की उन्होंने भी कुछ नहीं माँगा। ना ही उन्होंने कुछ माँगा और नाही हम उन्हें कुछ दे पाए हैं। तुम भी अच्छी तरह जानती हो की जीतूजी से हम गलती से भी पैसों की बात नहीं कर सकते। अगर उन्हें पता लगा की हमने ऐसा कुछ सोचा भी था तो वह बहुत बुरा मान जाएंगे। फिर हम करें तो क्या करें? तो मैंने एक बात सोची है। पता नहीं तुम मेरा समर्थन करोगी या नहीं। हम दोनों यह जानते हैं की जीतूजी वाकई तुम पर फ़िदा हैं। यह हकीकत है और इसे छिपाने की कोई जरुरत नहीं है। मुझे इस बात पर कोई एतराज नहीं है। हम जवान हैं और एक दूसरे की बीबी या शौहर के प्रति कुछ थोड़ा बहोत शारीरिक आकर्षण होता है तो मुझे उसमें कोई बुराई नहीं लगती।" अपने पति की ऐसे बहकाने वाली बात सुनकर अपर्णा की साँसे तेज हो गयीं। उसे डर लगा की कहीं उसके पति को अपर्णा की जीतूजी के साथ बितायी हुई उस सुबह का कुछ अंदाज तो नहीं हो गया था? शायद वह बातों ही बातों में इस तरह उसे इशारा कर रहे थे। रोहित ने शायद अपर्णा की हालत देखि नहीं।

अपनी बात चालु रखते हुए वह बोले, "मैं ऐसे कई कपल्स को जानता हूँ जो कभी कभार आपसी सहमति से या जानबूझ कर अनजान बनते हुए अपनी बीबी या शौहर को दूसरे की बीबी या शौहर से शारीरिक सम्बन्ध रखने देते हैं। फिर भी उनका घरसंसार बढ़िया चलता है, क्यूंकि वह अपने पति या पत्नी को बहोत प्यार करते हैं l उन्हें अपने पति या पत्नी में पूरा विश्वास है की जो हो रहा है वह एक जोश और शारीरिक उफान का नतीजा है। वक्त चलते वह उफान शांतहो जाएगा। इस कारण जो हो रहा है उसे सहमति देते हैं या फिर जानते हुए भी अपने शोहर या बीबी की कामना पूर्ति को ध्यान में रखे हुए ऑंखें मूँद कर उसे नजरअंदाज करते हैं। जीतूजी तुम्हारी कंपनी एन्जॉय करते हैं यह तो तुम भी जानती हो। में चाहता हूँ की इस टूर में तुम जीतूजी के करीब रहो और उन्हें कंपनी दे कर कुछ हद तक उनके मन में तुम्हारी कंपनी की जो इच्छा है उसे पूरी करो। अगर तुम्हें जीतूजी के प्रति शारीरिक आकर्षण ना भी हो तो यह समझो की तुम कुछ हद तक उनका ऋण चुका रही हो।"

पति की बात सुनकर अपर्णा गरम होने लगी। अपर्णा के पति अपर्णा को वह पाठ पढ़ा रहे थे जिसमें अपर्णा ने पहले ही डिग्री हासिल कर ली थी। उसके बदन में जीतूजीके साथ बितायी सुबह का रोमांच कायम था। वह उसे भूल नहीं पा रही थी। अपने पति की यह बात सुन कर अपर्णा की चूत गीली हो गयी। उसमें से रस रिसने लगा।
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#87
अपर्णा ने पति रोहित के पायजामे का नाड़ा खोला और उसमें हाथ डाल कर वह अपने पति का लण्ड सहलाने लगी। तब उसे जीतूजी का मोटा और लंबा लण्ड जैसे अपनी आँखों के सामने दिखने लगा। अनायास ही अपर्णा अपने पति के लण्ड के साथ जीतूजी के लण्ड की तुलना करने लगी। रोहित का लण्ड काफी लंबा और मोटा था और जब तक अपर्णा ने जीतूजी का लण्ड नहीं महसुस किया था तब तक तो वह यही समझ रही थी की अपने पति रोहित के लण्ड जितना लंबा और मोटा शायद ही किसी मर्द का लण्ड होगा। पर जीतूजी का लण्ड देखने के बाद उसकी गलतफहमी दूर हो गयी थी। हो सकता है की जीतूजी के लण्ड से भी लंबा और मोटा किसी और मर्द का लण्ड हो।

लेकिन अपर्णा यह समझ गयी थी की किसी भी औरतकी पूर्णतयः कामुक संतुष्टि केलिए जीतूजी का लण्ड ना सिर्फ काफी होगा बल्कि शुरू शुरू में काफी कष्टसम भी हो सकता है। यही बात श्रेया ने भी तो अपर्णा को कही थी। अपनी कामुकता को छिपाते हुए स्त्री सुलभ लज्जा के नखरे दिखाते हुए अपर्णा ने अपने पति के लण्ड को हिलाना शुरू किया और बोली, "देखो जानू! मुझसे यह सब मत करवाओ। मुझे तुम अपनी ही रहने दो। तुम जो सोच रहे या कह रहे हो ऐसा सोचने से या करने से गड़बड़ हो सकती है। तुम जीतूजी को तो भली भांति जानते हो ना? तुम्हें तो पता है, उस दिन सिनेमा हॉल में क्या हुआ था? तुम्हारे जीतूजी कितने उत्तेजित हो गए थे और मेरे साथ क्या क्या करने की कोशिश कर रहे थे और मैं भी उन्हें रोक नहीं पा रही थी? वह तो अच्छा था की हम सब इतने बड़े हॉल में सब की नज़रों में थे l वरना पता नहीं क्या हो जाता? हाँ मैं यह जानती हूँ की तुम श्रेया पर बड़ी लाइन मार रहे हो और उन्हें अपने चंगुल में फाँसने की कोशिश कर रहे हो। तो मैं तुम्हें पूरी छूट देती हूँ की यदि उन दोनों को इसमें कोई आपत्ति नहीं है तो तुम खूब उनके साथ घूमो फिरो और जो चाहे करो। मुझे उसमें कोई आपत्ति नहीं है।"

अपर्णा की धड़कन तेज हो गयी थीं। वह अपने पति के ऊपर चढ़ गयी। उनके होँठों पर अपने होँठ रख कर अपर्णा उनको गहरा चुम्बन करने लगी। अपर्णा का अपने आप पर काबू नहीं रख पा रही थी। पर अपर्णा को आखिर अपने आप पर नियत्रण तो रखना ही पडेगा। उसने अपने आपको सम्हालते हुए कहा, "जहां तक जीतूजी का ऋण चुकाने का सवाल है तो जैसे आप कहते हो अगर श्रेया को एतराज नहीं हो तो मैं जीतूजी का पूरा साथ दूंगी, पर तुम मुझसे यह उम्मीद मत रखना की मैं उससे कुछ ज्यादा आगे बढ़ पाउंगी। तुम मेरी मँशा और मज़बूरी भली भाँती जानते हो।" रोहित ने निराशा भरे स्वर में कहा, "हाँ मैं जानता हूँ की तुम अपनी माँ से वचनबद्ध हो की तुम सिर्फ उसीको अपना सर्वस्व अर्पण करोगी जो तुम पर जान न्योछावर करता है। खैर तुम उन्हें कंपनी तो दे ही सकती हो ना?" अपर्णा ने अपने पति की नाक, कपाल और बालों को चुम्बन करते हुए कहा, अरे भाई कंपनी क्या होती है? हम सब साथ में ही तो होंगे ना? तो फिर मैं उन्हें कैसे कंपनी दूंगी? कंपनी देने का तो सवाल तब होता है ना अगर वह अकेले हों?"

रोहित ने अपनी पत्नीके मदमस्त कूल्होंपर अपनी हथेली फेरते हुए और उसकी गाँड़ के गालोँ को अपनी उँगलियों से दबाते हुए कहा, "अरे मेरी बुद्धू बीबी, मेरे कहने का मतलब है दिन में या इधर उधर घूमते हुए, जब हम सब अलग हों या साथ में भी हों तब भी तुम जीतूजी के साथ रहना , मैं श्रेया के साथ रहूंगा। हम हमारा क्रम बदल देंगे। रात में तो फिर हम पति पत्नी रोज की तरह एक साथ हो ही जाएंगे ना? इसमें तुम्हें कोई आपत्ति तो नहीं?"
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#88
अपर्णा ने टेढ़ी नजरों से अपने पति की और देखा और शरारत भरी आँखें नचाते हुए पूछा, "क्यों मियाँ? रात को क्या जरुरत है अपनी बीबी के पास आने की? रात को भी अपनी श्रेया के साथ ही रहना ना?"
रोहित ने भी उसी लहजे में जवाब देते हुए कहा, "अच्छा, मेरी प्यारी बीबी? रात में तुम मुझे श्रेया के साथ रहने के लिए कह कर कहीं तुम अपने जीतूजी के साथ रात गुजारने का प्लान तो नहीं बना रही हो?" अपने पति की वही शरारत भरी मुस्कान और करारा जवाब मिलने पर अपर्णा कुछ झेंप सी गयी। उसके गाल शर्म से लाल हो गए। अपनी उलझन और शर्मिंदगी छिपाते हुए रोहित की कमर में एक हल्काफुल्का नकली घूँसा मारती हुई अपनी आँखें निचीं करते हुए l अपर्णा बोली, "क्या बकते हो? मेरा कहने का मतलब ऐसा नहीं था। खैर, मजाक अपनी जगह है। मुझे जीतूजी को कंपनी देने में क्या आपत्ति हो सकती है? मुझे भी उनके साथ रहना, घूमना फिरना, बातें करना अच्छा लगता है। आप जैसा कहें। मैं जरूर जीतूजी को कंपनी दूंगी। पर रात में मैं तुम्हारे साथ ही रहूंगी हाँ!"

रोहित ने अपनी बीबी अपर्णा को अपनी बाँहों में भरते हुए अपर्णा का गाउन दोनों हाथों में पकड़ा और कहा, "अरे भाई, वह तो तुम रहोगी ही। मैं भी तो तुम्हारे बगैर अपनी रातें उन वादियों में कैसे गुजारूंगा? मुझसे तो तुम्हारे बगैर एक रात भी गुजर नहीं सकती।" अपर्णा ने अपने पति को उलाहना देते हुए कहा, "अरे छोडो भी! तुम्हें मेरी फ़िक्र कहाँ? तुम्हें तो दिन और रात श्रेया ही नजर रही है। भला उस सुंदरी के सामने तुम्हारी सीधी सादी बीबी कहाँ तुम्हें आकर्षक लगेगी?" रोहितने शरारतभरे लहजेमें अपने लण्ड की और इशारा करते हुए कहा, "अच्छा? तो यह जनाब वैसे ही थोड़े अटेंशनमें खड़े हैं?" अपर्णा ने अपने पति की नाक पकड़ी और कहा, "क्या पता? यह जनाब मुझे देख कर या फिर कोई दूसरी प्यारी सखी की याद को ताजा कर अल्लड मस्त हो कर उछल रहे हैं।" अपर्णा की शरारत भरी और सेक्सी बातें और अदा के साथ अपनी बीबी की कोमल उँगलियों से सहलवाने के कारण रोहित का लण्ड खड़ा हो गया था। उसके छिद्र में से उसका पूर्वरस स्राव करने लगा। रोहित ने दोनों हाथोँ से अपर्णा का गाउन ऊपर उठाया।

अपर्णा ने अपने हाथ ऊपर उठा कर अपना गाउन अपने पति रोहितको निकाल फेंकने दिया,अपर्णा ने उस रात गाउन के निचे कुछ भी नहीं पहना था। उसे पता था की उस रात उसकी अच्छी खासी चुदाई होने वाली थी। अपने पति का कड़क लण्ड अपने हाथों में हिलाते हुए पति के कुर्ता पयजामे की और ऊँगली दिखाते हुए कहा, "तुम भी तो अपना यह परिवेश उतारो ना? मैं गरम हो रही हूँ।" रोहित अपनी कमसिन बीबी के करारे फुले हुए स्तनों को, उसके ऊपर बिखरे हुए दाने सामान उभरी हुई फुंसियों से मण्डित चॉकलेटी रंगकी एरोला के बीचो बिच गुलाबी रंग की फूली हुई निप्पलोँ को दबाने और मसलने का अद्भुत आनंद ले रहे थे। अपना दुसरा हाथ रोहितने अपनी बीबी की चूत पर हलके हलके फिराते हुए कहा, "गरम तो तुम हो रही हो। यह मेरी उँगलियाँ महसूस कर रहीं हैं। यह गर्मी किसके कारण और किसके लिए है?"
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#89
अपर्णा बेचारी कुछ समझी नहीं या फिर ना समझने का दिखावा करती हुई बोली, "मैं भी तो यही कह रही हूँ, तुम अब बातें ना करो, चलो चढ़ जाओ और जल्दी चोदो। हमारे पास पूरी रात नहीं है। कल सुबह जल्दी उठना है और निकलना है।" अपर्णा पतिका लण्ड फुर्तीसे हिलाने लगी। उसकी जरुरत ही नहीं थी। क्यूंकि रोहित का लण्ड पहले ही फूल कर खड़ा हो चुका था। जैसे ही रोहित ने अपनी दो उंगलियां अपनी बीबी अपर्णा की चूत में डालीं तो अपर्णा का पूरा बदन मचल उठा। रोहित अपनी बीबी की चूत की सबसे ज्यादा संवेदनशील त्वचा को अपनी उँगलियों से इतने प्यार और दक्षता से दबा और मसला रहे थे की अपर्णा बिन चाहे ही अपनी गाँड़ बिस्तरे पर रगड़ ने लगी। अपर्णा ने मुंह से कामुक सिसकारियां निकलने लगीं। सुबह जीतूजी से हुआ शारीरिक आधा अधूरा प्यार भी अपर्णा को याद आनेसे पागल करने के लिए काफी था। उस पर अपने पति से सतत जीतूजी की बातें सुन कर उसकी उत्तेजना रुकने का नाम नहीं ले रही थी। अपर्णा अब सारी लज्जा की मर्यादा लाँघ चुकी थी।

अपर्णा ने अपने पति का चेहरा अपने दोनों हाथों में पकड़ा और उसे अपने स्तनों पर रगड़ते हुए बोली, "रोहित, मुझे ज्यादा परेशान मत करो। प्लीज मुझे चोदो। अपना लण्ड जल्दी ही डालो और उसे मेरी चूत में खूब रगड़ो। प्लीज जल्दी करो।" रोहित भी तो अपनी पत्नी को चोदने के लिए पागल हो रहा था। रोहित ने झट से अपना पयजामा और कुरता निकाल फेंका और फुर्ती से अपनी बीबी की टाँगें चौड़ी कर के उसके बिच में अपनी बीबी की प्यारी छोटी सी चूत को बड़े प्यार से निहारने लगा। सालों की चुदाई के बावजूद भी अपर्णा की चूत का छिद्र वैसा ही छोटा सा था। उसे चोद कर रोहित को जो अद्भुत आनंद आता था वह वही जानता था। अपर्णा को जब रोहित चोदता था तो पता नहीं कैसे अपर्णा अपनी चूत की दीवारों को इतना सिकुड़ लेती थी की रोहित को ऐसा लगता था जैसे उसका लण्ड अपर्णा की चूत में से बाहर ही नहीं निकल पायेगा।

अपर्णा की चूत चुदवाते समय अंदर से ऐसी गजब की फड़कती थी की रोहित ने कभी किसी और औरत की चूत में उसे चोदते समय ऐसी फड़कन नहीं महसूस की थी। रोहित के मन की इच्छा थी की जो आनंद वह अनुभव कर रहा था उस आनंद को कभी ना कभी जीतूजी भी अनुभव करें। पर रोहित यह भी जानता थाकी उसकी बीबी अपर्णा अपने इरादों में पक्की थी। वह कभी भी किसी भी हालत में जीतूजी या किसी और को अपनी चूत में लण्ड घुसा ने की इजाजत नहीं देगी। इस जनम में तो नहीं ही देगी। रोहित ने फिर सोचा, क्या पता उस बर्फीले और रोमांटिक माहौल में और उन खूबसूरत वादियों में शायद अपर्णा को जीतूजी पर तरस ही जाये और अपनी माँ को दिया हुआ वचन भूल कर वह जीतूजी को उसे चोदने की इजाजत देदे। पर यब सब एक दिलासा ही था। अपर्णा वाकई में एक जिद्दी राजपूतानी थी। रोहित यह अच्छी तरह जानता था। अपर्णा जीतूजी के लिए कुछ भी कर सकती थी पर उन्हें अपनी चूत में लण्ड नहीं डालने देगी। बस जीतूजी का लण्ड अपर्णा की चूत में डलवाने का एक ही तरिका था और वह था अपर्णा को धोखेमें रख कर उसे चुदवाये। जैसे: उसे नशीला पदार्थ खिला कर या शराब के नशे में टुन्न कर या फिर घने अँधेरे में धोखे से अपर्णा को रोहित पहले खुद चोदे और फिर धीरे से जीतूजी को अपर्णा की टांगों के बिच ले जाकर उनका लण्ड अपनी पत्नी की चूत में डलवाये।
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#90
अपर्णा जीतूजी को अपना पति समझ कर चुदवाये तब तो शायद यह हो सकता था। पर ऐसा करना बड़ा ही खतरनाक हो सकता था। अपर्णा जीतूजी का लण्ड को महसूस कर शायद समझ भी जाए की वह उसके पति का लण्ड नहीं है। रोहित कतई भी इसके पक्ष में नहीं था और वह ऐसा सोचने के लिए भी अपने आपको कोसने लगा।

खैर, जीतूजी से अपनी बीबी अपर्णा को चुदवाने की बात सोचकर रोहित का लण्ड भी फुफकारने लगा। रोहित ने फिर एक नजर अपनी बीबी अपर्णा की चूत को देखा और धीरे से अपना लण्ड अपर्णा की दोनों टांगों के बिच रखा और हलके हलके उसे उसकी सतह पर रगड़ने लगा। सालों के बाद भी रोहित अपनी बीबी की चूत का कायल था। पर वह यह भी जानता था की अपर्णा की चूत में पहली बार लण्ड डालते समय उसे काफी सावधानी रखनी पड़ती थी। चूत का छिद्र छोटा होने के कारण लण्ड को पहली बार चूत में घुसाते समय उसे अपने पूर्व रस को लण्ड पर अच्छी तरह लपेट कर उसे स्निग्ध बना कर फिर धीरे धीरे अपर्णा के प्रेम छिद्र में घुसाना और फिर अपर्णा की चूत की सुरंग में उसे आगे बढ़ाना था। थोड़ी सी भी जल्दी अपर्णा को काफी दर्द दे सकती थी। अपने पति रोहित की उलझन अपर्णा देख रही थी। अपर्णा ने प्यार से अपने पति का लण्ड अपनी उँगलियों में पकड़ा और खुद ही उसे अपनी चूत की होठोँ पर हलके से रगड़ कर उन्हें थोड़ा खोल कर लण्ड के लिए जगह बनायी और अपने पति का लण्ड अपनी चूत में घुसेड़ कर अपने पति को इंगित किया की वह अब धीरे धीरे उसे अंदर घुसेड़े और और उसे चोदना शुरू करे। रोहित ने अपना लण्ड घुसेड़ कर हलके हलके धक्का देकर अपनी बीबी को चोदना शुरू किया। शुरुआत का थोड़ा मीठा दर्द महसूस कर अपर्णा के मुंह से हलकी सिसकारियां निकलने लगीं। धीरे धीरे रोहित ने अपनी पत्नी अपर्णा को चोदने के गति तेज की। अपर्णा भी साथ साथ अपना पेडू ऊपर की और उठाकर अपने पति को चोदने में सहायता करने लगी। अपर्णा की चूत स्निग्धता से भरी हुई थी और इस कारण उसे ज्यादा दर्द नहीं हुआ। रोहित जी को अपनी बीबी को चोदे हुए कुछ दिन हुए थे और इस लिए वह बड़े मूड़ में थे।

रोहित और उनकी बीबी अपर्णा के बिच में हुए जीतूजी के वार्तालाप के कारण दोनों पति पत्नी काफी गरम थे। अपर्णा अपने मन में सोच रही थी की उसकी चूत में अगर उस समय जीतूजी का लण्ड होता तो शायद उसकी तो चूत फट ही जाती। रोहित जोर शोर से अपनी बीबी की चूत में अपना लण्ड पेल रहा था। अपर्णा भी अपने पति को पूरा साथ दे कर उन्हें, "जोर से... और डालो, मजा गया" इत्यादि शब्दों से प्रोत्साहित कर रही थी। रोहित की जाँघें अपर्णा की जाँघों के बिच टकरा कर "फच्च फच्च" आवाज कर रही थीं। रोहित का अंडकोष अपर्णा की गाँड़ को जोर से टक्कर मार रहा था।

अपर्णा कभी कभी अपने पति का अंडकोष अपने हाथों की उँगलियों में पकड़ कर सहलाती रहती थी जिसके कारण रोहित का उन्माद और भी बढ़ जाता था। अपनी बीबी को चोदते हुए हाँफते हुए रोहित ने कहा, "डार्लिंग, हम यहां एक दूसरे से प्यार कर रहे हैं, पर बेचारे जीतूजी इतनी रात गए अपने दफ्तर में लगे हुए हैं।"
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#91
अपर्णाने अपने पति की बात सुनकर अपनी जिज्ञासा को दबाने की कोशिश करते हुए पूछा, "क्यों? ऐसा क्या हुआ? जीतूजी इस समय अपने दफ्तर में क्यों है?" रोहित ने कहा, "हमारे देश पर पडोशी देश की नजरें ठीक नहीं है। देश की सेना इस वक्त वॉर अलर्ट पर है। पाकिस्तानी जासूस भारतीय सेना की गतिविधियां जानने के लिए कुछ भी कर सकते हैं। मुझे डर था की ऐसी परस्थितियों में कहीं हमारा यह प्रोग्राम आखिरी वक्त में रद्द ना हो जाए।" यह सुन कर अपर्णा को एक झटका सा लगा। अपर्णा को उस एक हफ्ते में जीतूजी के करीब रहने का एके सुनहरा मौक़ा मिल रहा था। अगर वह ट्रिप कैंसल हो गयी तो यह मौक़ा छूट जाएगा, यह डर उसे सताने लगा। अपने पति को चुदाई में रोकते हुए अपर्णा ने पूछा, "क्या ऐसा भी हो सकता है?"

रोहित जी ने अपना लण्ड अपनी बीबी अपर्णा की चूत में ही रखते हुए कहा, "ऐसा होने की संभावना नहीं हैं क्यूंकि अगर कैंसिल होना होता तो अब तक हो जाता। दूसरे मुझे नहीं लगता की अभी लड़ाई का पूरा माहौल है l शायद दोनों देश एक दुसरेकी तैयारी का जायजा ले रहें हैं। पर सरहद की दोनों पार जासूसी बढ़ गयी है। एक दूसरे की सेना की हलचल जानने के लिए दोनों देश के अधिकारी कोई कसर नहीं छोड़ रहे l सुरक्षा पत्रकार होने के नाते मुझे भी मिनिस्ट्री में बुलाया गया था। चूँकि हमारे सूत्रों से मुझे सेना की हलचल के बारे में काफी कुछ पता होता है इस लिए मुझे हिदायत दी गयी है की सेना की हलचल के बारे में मैं जो कुछ भी जानता हूँ उसे प्रकाशित ना करूँ और नाही किसीसे शेयर करूँ।" यह सुनकर की उनका प्रोग्राम कैंसिल नहीं होगा, अपर्णा की जान में जान आयी। अपर्णा उस कार्यक्रम को जीतूजी से करीब आने का मौक़ा मिलने के अलावा पहाड़ो में ट्रैकिंग, नदियों में नहाना, सुन्दर वादियों में घूमना, जंगल में रात को कैंप फायर जला कर उस आग के इर्द गिर्द बैठ कर नाचना, गाना, ड्रिंक करना, खाना इत्यादि रोमांचक कार्यक्रम को मिस करना नहीं चाहती थी। अपर्णा ने अपने पति को चुदाई जारी करने के लिए अपना पेडू ऊपर उठा कर संकेत दिया। रोहित ने भी अपना लण्ड फिर से अपर्णा की चूत में पेलना शुरू किया। दोनों पति पत्नी कामुकता की आगमें जल रहे थे। अगले सात दिन कैसे होंगें उसकी कल्पना दोनों अपने-अपने तरीके से कर रहे थे। अपर्णा जीतूजी के बारे में सोच रही थी और रोहित श्रेया के बारे में।


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#92
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सुबह होते ही सब नहा धो कर फ्रेश होकर ट्रैन में ले जाने के लिए नाश्ता बगैरह बची खुची तैयारी होते ही सब कपडे पहन कर तैयार होने लगे। अपर्णा ने अपने पति के आग्रह पर परम्पराओं को तोड़ कर कैप्री (लम्बी सी शोर्ट या हाफ पेण्ट) पहनी थी। ऊपर से खुला टॉप पहना था। टॉप गले के ऊपर से काफी खुला हुआ था पर स्तनों के बिलकुल निचे तना हुआ बंधा था। बालों को एक क्लिप से बाँध कर बाकी खुला छोड़ रखा था। शॉर्ट पहनने के कारण अपर्णा की सुआकार करारी जाँघें कामुक और ललचाने वाला नज़ारा पेश कर रही थी। अपर्णा ने पहनी हुई कैप्री (देसी भाषा में कहें तो चड्डी) निचे से काफी खुली थी, पर घुटने से थोड़ी ही ऊपर तक थी। रोहित ने पिछली शाम अपर्णा के लिए एक वेणी खरीदी थी उसे अपर्णा ने बालों में लटका रखा था। होँठों की कुदरती लालिमा को हलकी सी लिपस्टिक से उनका रसीलापन दिख रहा था। अपर्णा के गाल वैसे ही काफी लालिमा भरे थे। उन्हें और लालिमा आवश्यकता नहीं थी। तैयार हो कर जब अपर्णा कमरे से बाहर आयी और दोनों टाँगें मिलाकर थोड़ा टेढ़ी होकर अपनी पतली कमर और उभरे हुए कूल्हों को उकसाने वाली सेक्सी मुद्रा में खड़ी हो कर जब उसने अपने पति को पूछा, "मैं कैसी लग रही हूँ?"

रोहित ने अपनी बीबी को अपनी बाहों में लेकर, उसके ब्लाउज में से बाहर उभरे हुए स्तनों पर अपना हाथ रख कर, उन्हें ब्लाउज के ऊपर से ही सहलाते हुए अपर्णा के होँठों पर हलकासा चुम्बन करते हुए कहा, "पूरी तरह से खाने लायक। तुम्हें देख कर मुझे तुम्हें खाने को मन करता है।" अपर्णा ने अपने पति को हल्का सा धक्का मारते हुए टेढ़ी नजर कर कहा, "शर्म करो। कल रात तो तुम मुझे पूरा का पूरा निगल गए थे। पेट नहीं भरा था क्या?" रोहित ने भी उसी लहजे में जवाब दिया, "वह तो डिनर था। मैं तो नाश्ते की बात कर रहा हूँ।" अपर्णा ने अपने पति के होँठों से होँठ चिपकाकर उन्हें एक गहरा चुम्बन किया। फिर कुछ देर बाद हट कर नटखट अदा करती हुई बोली, "नाश्ते में आज यही मिलेगा। इससे ही काम चलाना पडेगा। दुपहर में लंच तो नहीं दे पाउंगी, पर रात को फिर डिनर करने की इच्छा हो तो कुछ जुगाड़ करना पड़ेगा। चलती ट्रैन में कम्पार्टमेंट में तुम्हें खिलाना थोड़ा मुश्किल है। पर जनाब पहले यह तो देखोकी कहीं जे जे (जीतूजी और श्रेया) घर से बाहर निकले या नहीं?"

अपर्णा ने खिड़की में से झांका तो देखा की जीतूजी और श्रेया अपना सामान उठा कर निचे उतर ही रहे थे। निचे टैक्सी खड़ी थी। सुबह के पांच बजे होंगे। भोर की हलकी लालिमा छायी हुई थी। हवा में थोड़ीसी ठण्डकी खुशनुमा झलक थी। रोहित ने जब श्रेया जी को देखा तो देखते ही रह गए। श्रेया ने फूलों की डिज़ाइन वाला टॉप पहना था और निचे स्कर्ट जिसका छोर घुटनोँ से थोड़ा ज्यादा ही ऊपर तक था पहन रखा था। उनके ब्लाउज के निचे और स्कर्ट के बेल्ट के बिच का खुला हुआ बदन किसी भी मर्द को पागल करने के लिए काफी था। पतली कमर, पेट की करारी त्वचा, नाभि में बिच स्थित नाभि बटन और फिर पतली कमर के निचे कूल्हों की और का फैलाव और फिर कातिल सी कमल की डंडी के सामान सुआकार जाँघें किसी भी लोलुप मर्द की आँखों को अपने ऊपर से हटने नहीं दें ऐसी कामुक थीं।
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#93
रोहित के निचे उतरते ही दोनों पति दूसरे की पत्नी को अपनी पत्नी की नजर बचाकर चोरी छुपके से ताकने की होड़ में लगे थे। रोहित ने आगे बढ़कर कर्नल साहब के हाथ में हाथ देते हुए उन्हें "गुड मॉर्निंग" कहा और फिर श्रेया से हाथ मिलाकर उनको हल्का सा औपचारिक आलिंगन किया। उनका मन तो करता था की श्रेया को कस के अपनी बाहों में ले, पर बाकी लोगों की नजरें और आसपास में खिड़कियों से झाँक रहे जिज्ञासु पड़ोसियों का ख्याल रखते हुए ऐसा करने का विचार मुल्तवी रखा। जीतूजी ने पर फिर भी अपर्णा को कस कर अपनी बाहों में लिया और कहा, "तुम बला की खूबसूरत लग रही हो।" और फिर मज़बूरी में अपनी बाहों में से आजाद किया।

उन्हें टैक्सी में स्टेशन पहुँचने में करीब डेढ़ घंटा लगा। ट्रैन प्लेटफार्म पर खड़ी थी। टू टायर .सी. कम्पार्टमेंट में बर्थ थीं। चार बर्थ जीतूजी, श्रेया, रोहित और अपर्णा की थीं। अपना और जीतूजी और श्रेया का सामान लगाने के बाद रोहित ने देखा की साइड की ऊपर की बर्थ पर एक करीब २५ वर्ष की कमसिन लड़की थी। लड़की का सामान बर्थ के निचे लगाने के लिए एक जवान साथ में लिए एक प्रौढ़ से आर्मी अफसर दाखिल हुए। उस प्रौढ़ आर्मी अफसर ने अपना परिचय ब्रिगेडियर खन्ना (रिटायर्ड) के नाम से दिया। उन्होंने बताया की वह युवा लड़की, जो की उनकी बेटी से भी कम उम्र की होगी, वह उनकी पत्नी थी। सब इस उधेड़बुन में थे की इतने प्रौढ़ आर्मी अफसर की बीबी इतनी कम उम्र की कैसे हो सकती थी। खैर कुछ देर बाद उन प्रौढ़ आर्मी अफसर के साथ सबकी 'हेलो, हाय' हुई और तब सबको पता चला ब्रिगेडियर खन्ना को अपनी पत्नी के साथ रिज़र्वेशन नहीं मिल पाया था। उन्हें दो कम्पार्टमेंट छोड़ कर रिज़र्वेशन मिला हुआ था। कुछ देर तक बातें करने के बाद जब ट्रैन छूटने वाली थी तब ब्रिगेडियर खन्ना अपने कम्पार्टमेंट में चले गए।

उस के कुछ ही समय बाद कम्पार्टमेंट में साइड वाली निचे की बर्थ पर जिनका रिज़र्वेशन था वह युवा आर्मी अफसर (जिसके यूनिफार्म पर लगे सितारोँ से पता चला की वह कप्तान थे) दाखिल हुए और फिर उन्होंने अपना सामान लगाया। कप्तान की उम्र मुश्किल से पच्चीस या छब्बीस साल की होगी। लगता था की वह अभी अभी राष्ट्रीय सुरक्षा अकादमी से पास हुए थे। उनके सामने ही युवा लड़की अंकिता बैठी हुई थी। दोनों ने एक दूसरे से "हेलो, हाय" किया। ट्रैन ने स्टेशन छोड़ा ही था की कर्नल साहब, रोहित, श्रेया और अपर्णा के सामने एक काला कोट और सफ़ेद पतलून पहने टी टी साहब उपस्थित हुए। हट्टाकट्टा बदन, फुले हुए गाल, लम्बे बाल, बढ़ी हुई दाढ़ी और काफी लंबा कद। वह टी टी कम और कोई फिल्म के विलन ज्यादा दिख रहे थे। खैर उन्होंने सब का टिकट चेक किया। टी टी साहब कुछ ज्यादा ही बातें करने के मूड में लग रहे थे।

उन्होंने जब रोहित से उनका गंतव्य स्थान (कहाँ जा रहे हो?) पूछा तो कर्नल साहब ने और रोहित ने कोई जवाब नहीं दिया। जब किसी ने कुछ नहीं बोला तो अपर्णा ने टी टी साहब को कहा, "हम जम्मू जा रहे हैं।
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#94
टी टी साहब फ़ौरन अपर्णा की और मुड़े और बोले, "हां हाँ वह तो मुझे आप के टिकट से ही पता चल गया। पर आप जम्मू से आगे कहाँ जा रहे हैं?" जब फिर रोहित और कर्नल साहब से जवाब नहीं मिला तब टी टी ने अपर्णा की और जिज्ञासा भरी नजरों से देखा। फिर क्या था? अपर्णा ने उनको सारा प्रोग्राम जो उसको पता था सब टी टी साहब को बता दिया।

अपर्णा ने टी टी को बताया की वह सब आर्मी के ट्रेनिंग कैंप में जम्मू से काफी दूर एक ट्रेनिंग कैंप में जा रहे थे। अपर्णा को जब टी टी ने उस जगह का नाम और वह जगह जम्मू से कितनी दुरी पर थी पूछा तो अपर्णा कुछ बता नहीं पायी। अपर्णा को उस जगह के बारे में ज्यादा पता नहीं था। चूँकि कर्नल साहब और रोहित बात करने के मूड में नहीं थे इस लिए टी टी साहब थोड़े मायूस से लग रहे थे। उस समय श्रेया नींद में थीं। रोहित, अपर्णा, कर्नल अभिजीत सिंह और श्रेया जी का टिकट चेक करने के बाद टी टी साहब दूसरे कम्पार्टमेंट में चले गए। उन्होंने उस समय और किसी का टिकट चेक नहीं किया। टी टी के चले जाने के बाद सब ने एक दूसरे को अपना परिचय दिया। साइड की निचे की बर्थ पर स्थित युवा अफसर कप्तान गौरव थे। वह भी श्रेया जी, जीतूजी, रोहित और अपर्णा की तरह ट्रेनिंग कैंप में जा रहे थे।

देखते ही देखते दोनों युवा: कप्तान गौरव और अंकिता खन्ना करीब करीब एक ही उम्र के होने के कारण बातचीत में मशगूल हो गए। अंकिता वाकई में निहायत ही खूबसूरत और कटीली लड़की थी। उसके अंग अंग में मादकता नजर रही थी।कप्तान गौरव को मिलते ही जैसे अंकिता को और कुछ नजर ही नहीं रहा था। गौरव का कसरत से कसा हुआ बदन, मांसल बाज़ूओं के स्नायु और पतला गठीला पेट और कमर और काफी लंबा कद देखते ही अंकिता की आँखों में एक अजीब सी चमक दिखी। गौरव का दिल भी अंकिता का गठीला बदन और उसकी मादक आँखें देखते ही छलनी हो गया था। अंकिता के अंग अंग में काम दिख रहा था। अंकिता की मादक हँसी, उसकी बात करते समय की अदाएं, उसके रसीले होँठ, उसके घने काले बाल, उसकी नशीली सुआकार काया कप्तान को भा गयी थी। कप्तान गौरव की नजर अंकिता के कुर्ते में से कूद कर बाहर आने के लिए बेताब अंकिता के बूब्स पर बार बार जाती रहती थी। अंकिता अपनी चुन्नी बार बार अपनी छाती पर डाल कर उन्हें छुपा ने की नाकाम कोशिश करती पर हवाका झोंका लगते ही वह खिसक जाती और उसके उरोज कपड़ों के पीछे भी अपनी उद्दंडता दिखाते। अंकिता का सलवार कुछ ऐसा था की उसके गले के निचे का उसके स्तनोँ का उभार छुपाये नहीं छुपता था। अंकिता की गाँड़ भी निहायत ही सेक्सी और बरबस ही छू ने का मन करे ऐसी करारी दिखती थी। बेचारा गौरव उसके बिलकुल सामने बैठी हुई इस रति को कैसे नजर अंदाज करे?

अपर्णा ने देखा की गौरव और अंकिता पहली मुलाक़ात में ही एक दूसरे के दीवाने हों ऐसे लग रहे थे। दोनों की बातें थमने का नाम नहीं ले रहीं थीं। अपर्णा अपने मन ही मन में मुस्काई। यह निगोड़ी जवानी होती ही ऐसी है। जब दो युवा एकदूसरे को पसंद करते हैं तो दुनिया की कोई भी ताकत उन्हें मिलने से नहीं रोक सकती। अपर्णा को लगा की कहीं यह पागलपन अंकिता की शादीशुदा जिंदगी को मुश्किलमें ना डालदे। कर्नल साहब और रोहित भी उन दो युवाओँ की हरकत देख कर मूंछों में ही मुस्कुरा रहे थे। उनको भी शायद अपनी जवानी याद गयी।
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#95
रोहित श्रेया की बर्थ पर बैठे हुए थे। श्रेया जी खिड़की के पास नींद में थीं। जीतूजी भी सामने की खिड़की वाली सीट पर थे जबकि अपर्णा बर्थ की गैलरी वाले छोर पर बैठी थी। कम्पार्टमेंट का .सी. काफी तेज चल रहा था। देखते ही देखते कम्पार्टमेंट एकदम ठंडा हो गया था। अपर्णा ने चद्दर निकाली अपने बदन पर डाल दी। चद्दर का दूसरा छोर अपर्णा ने जीतूजी को दिया जो उन्होंने भी अपने कंधे पर डालदी। थोड़ी ही देर में जीतूजी की आँखें गहरा ने लगीं, तो वह पॉंव लम्बे कर लेट गए। चद्दर के निचे जीतूजी के पॉंव अपर्णा की जाँघों को छू रहे थे। कप्तान गौरव और अंकिता एक दूसरे से काफी जोश से पर बड़ी ही धीमी आवाज में बात कर रहे थे। बिच बिच में वह एक दूसरे का हाथ भी पकड़ रहे थे यह अपर्णा ने देखा। उन दोनों की बातों को छोड़ कम्पार्टमेंट में करीब करीब सन्नाटा सा था। ट्रैन छूटे हुए करीब एक घंटा हो चुका था तब एक और टिकट निरीक्षक पुरे कम्पार्टमेंट का टिकट चेक करते हुए अपर्णा, रोहित, जीतूजी और श्रेया जी के सामने खड़े हुए और टिकट माँगा।

उन सब के लिए तो यह बड़े आश्चर्य की बात थी। कर्नल साहब ने टिकट चेकर से पूछा, "टी टी साहब, आप कितनी बार टिकट चेक करेंगे? अभी अभी तो एक टी टी साहब आकर टिकट चेक कर गए हैं। आप एक ही घंटे में दूसरे टी टी हैं। यह कैसे हुआ?" टी टी साहब आश्चर्य से कर्नल साहब की और देख कर बोले, "अरे भाई साहब आप क्या कह रहे हैं? इस कम्पार्टमेंट ही नहीं, मैं सारे .सी.डिब्बों के टिकट चेक करता हूँ। इस ट्रैन में .सी. के छे डिब्बे हैं। इन डिब्बों के लिए मेरे अलावा और कोई टी.टी. नहीं है। शायद कोई बहरूपिया आपको बुद्धू बना गया। क्या आपके पैसे तो नहीं गए ना?" 

रोहित ने कहा, "नहीं, कोई पैसे हमने दिए और ना ही उसने मांगे।"

टी टी साहब ने चैन की साँस लेते हुए कहा, " चलो, अच्छा है। फ्री में मनोरंजन हो गया। कभी कभी ऐसे बहुरूपिये जाते हैं। चिंता करने की कोई जरुरत नहीं है।" यह कह कर टी टी साहब सब के टिकट चेक कर चलते बने। रोहित ने जीतूजी की और देखा। जीतूजी गहरी सोच में डूबे हुए थे। वह चुप ही रहे। अपर्णा चुपचाप सब कुछ देखती रही। उसकी समझ में कुछ नहीं रहा था।

अपर्णा ने अपने दिमाग को ज्यादा जोर ना देते हुए, उस युवा अंकिता लड़की को "हाय" किया उस को अपने पास बुलाया और अपने बाजूमें बिठाया और बातचित शुरू हुई। अपर्णा ने अपने बैग में से कुछ फ्रूट्स निकाल कर अंकिता को दिए। अंकिता ने एक संतरा लिया और अपर्णा और अंकिता बातों में लग गए। अपर्णा की आदत अनुसार अपर्णा और अंकिता की बहुत ही जल्दी अच्छी खासी दोस्ती हो गयी। अपर्णा को पता लगा की उसका नाम मिसिस अंकिता खन्ना था। सब अंकिता के बारे में सोच ही रहे थे की ऐसा कैसे हुआ की इतनी कम उम्र की युवा लड़की अंकिता की शादी ब्रिगेडियर खन्ना के साथ हुई। अपर्णा ने धीरे धीरे अंकिता के साथ इतनी करीबी बना ली की अंकिता पट पट अपर्णा को अपनी सारी राम कहानी कहने लगी।
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#96
अंकिता के पिताजी ब्रिगेडियर खन्ना के ऑर्डरली थे। उनको ब्रिगेडियर साहब ने बच्चों की पढाई और घर बनाने के लिए अच्छा खासा कर्ज दिया था जो वह चुका नहीं पा रहे थे। अंकिता भी ब्रिगेडियर साहब के घर में घर का काम करती थी। ब्रिगेडियर साहब की बीबी के देहांत के बाद जब वह लड़की ब्रिगेडियर साहब के घर में काम करने आती थी तब ब्रिगेडियर साहब ने उसे धीरे धीरे उसे अपनी शैया भगिनी बना लिया। जब अंकिता के पिताजी का भी देहांत हो गया तो वह लड़की के भाइयों ने घर का कब्जा कर लिया और बहन को छोड़ दिया। अंकिता अकेली हो गयी और ब्रिगेडियर साहब के साथ उनकी पत्नी की तरह ही रहने लगी। उन के शारीरिक सम्बन्ध तो थे ही। आखिर में उन दोनों ने लोक लाज के मारे शादी करली।
अपर्णा को दोनों के बिच की उम्र के अंतर का उनकी शादी-शुदा यौन जिंदगी पर क्या असर हुआ यह जानने की बड़ी उत्सुकता थी। जब अपर्णा ने इस बारे में पूछा तो अंकिता ने साफ़ कह दिया की पिछले कुछ सालों से ब्रिगेडियर साहब अंकिता को जातीय सुख नहीं दे पाते थे। अंकिता ने ब्रिगेडियर साहब से इसके बारे में कोई शिकायत नहींकी। पर जब ब्रिगेडियर साहब उनकी उम्र के चलते जब अंकिता को सम्भोग सुख देने में असफल रहे तो उन्होंने अंकिता के शिकायत ना करने पर भी बातों बातों में यह संकेत दिया था की अगर अंकिता किसी और मर्द उसे शारीरिक सुख देने में शक्षम हो और वह उसे सम्भोग करना चाहे तो ब्रिगेडियर साहब उसे रोकेंगे नहीं।

उनकी शर्त यह थी की अंकिता को यह सब चोरी छुपी और बाहर के लोगों को ना पता लगे ऐसे करना होगा। अंकिता अगर उनको बता देगी या इशारा कर देगी तो वह समझ जाएंगे। अंकिता ने अपर्णा को यह बताया की ब्रिगेडियर साहब उसका बड़ा ध्यान रखते थे और उसे बेटी या पत्नी से भी कहीं ज्यादा प्यार करते थे। वह हमेशा अंकिता को उसकी शारीरक जरूरियात के बारे में चिंतित रहते थे। उन्होंने कई बार अंकिता को प्रोत्साहित किया था की अंकिता कोई मर्द के साथ शारीरिक सम्बन्ध रखना चाहे तो रख सकती थी। पर अंकिता ने कभी भी इस छूटका फायदा नहीं लेना चाहा। अंकिता ने अपर्णाको बतायाकी वह ब्रिगेडियर साहब से बहुत खुश थी। वह अंकिता को मन चाहि चीज़ें मुहैय्या कराते थे। अंकिता को ब्रिगेडियर साहब से कोई शिकायत नहीं थी। अपर्णा ने भी अपनी सारी कौटुम्बिक कहानी अंकिता को बतायी और देखते ही देखते दोनों पक्के दोस्त बन गए। बात खत्म होने के बाद अंकिता वापस अपनी सीट पर चली गयी जहां कप्तान गौरव उसका बेसब्री से इंतजार कर रहे थे।

अपर्णा की ऑंखें भी भारी हो रहीं थीं। जीतूजी की लम्बी टाँगें उसकी जाँघों को कुरेद रहीं थीं। अपर्णा ने अपने पॉंव सामने की सीट तक लम्बे किये और आँखें बंद कर तन्द्रा में चली गयी।अपर्णा ने अपनी टाँगें सामने की बर्थ पर रखीं थीं। रोहित सामने की बर्थ पर बैठे हुए ही गहरी नींद में थे। जैसे ही अपर्णा ने अपने बदन को थोड़ा सा फैला दिया और आमने सामने की बर्थ पर थोड़ी लम्बी हुई की उसे जीतूजी के पॉंव का अपनी जाँघों के पास एहसास हुआ।
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#97
जीतूजी अपने लम्बे कद के कारण थोड़ा सा पॉंव लंबा करने में कष्ट महसूस कर रहे थे। अपर्णा ने जब यह देखा तो जीतूजी के दोनों पाँव उठाकर अपनी गोद में ले लिए। जीतूजी को ठण्ड ना लगे इस लिए अपर्णा ने एक और रक्खी एक चद्दर और उसके ऊपर रक्खा पड़ा हुआ कम्बल खिंच निकाला और जीतूजी के पुरे शरीर को उस कम्बल से ढक दिया। कम्बल के निचे एक चद्दर भी लगा दी। वही कम्बल और चद्दर का दुसरा छोर अपनी गोद और छाती पर भी डाल दिया। इस तरह ठण्ड से थोड़ी राहत पाकर अपर्णा प्यार से जीतूजी की टाँगों को अपनी गोद में रख कर उस पर हाथ फिरा कर हल्का सा मसाज करने लगी। उसे जीतूजी के पाँव अपनी गोद में पाकर अच्छा लग रहा था। उसे अपने गुरु और अपने प्यारे प्रेमी की सेवा करने का मौक़ा मिला था। वह उन दिनों को याद करने लगी जब वह अपने पिताजी के पॉंव तब तक दबाती रहती थी जब तक वह सो नहीं जाते थे। पाँव दबाते हुए अपर्णा जीतूजी की और सम्मान और प्यार भरी नज़रों से देखती रहती थी। उसे जीतूजी के पाँव अपनी गोद में रखने में कोई भी झिझक नहीं महसूस हुई।

अपर्णा ने अपनी टांगें भी लम्बीं कीं और अपने पति रोहित की गोद में रख दीं। रोहित खर्राटे मार रहे थे। कुछ पल के लिए वह उठ गए और उन्होंने आँखें खोलीं जब उन्होंने अपनी पत्नी की टाँगें अपनी गोद में पायीं। उन्होंने अपर्णा की और देखा। उन्होंने देखा की जीतूजी की टाँगें उनकी पत्नी अपर्णा की गोद में थीं और अपर्णा उन्हें हलके से मसाज कर रही थी। अपर्णा ने देखा की वह कुछ मुस्काये और फिर आँखें बंद कर अपनी नींद की दुनिया में वापस चले गए। 

अपर्णा जीतूजी की टाँगों को सहला और दबा रही थी तब उसे जीतूजी के हाथका स्पर्श हुआ। जीतूजी ने कम्बल के निचे से अपना एक हाथ लंबा कर अपर्णा के हाथ को हलके से थामा और धीरे से उसे दबा कर ऊपर की और खिसका कर उसे अपनी दो जाँघों के बिचमें रख दिया। अब अपर्णा समझ गयी की जीतूजी चाहते थे की अपर्णा जीतूजी के लण्ड को अपने हाथोँ में पकड़ कर सहलाये। अपर्णा जीतूजी की इस हरकतसे चौंक गयी। वह इधर उधर दिखने लगी। सब गहरी नींद सो रहे थे। अपर्णा का हाल देखने जैसा था। अपर्णा ने जब चारों और देखा तो पाया की कम्बल के निचे की उनकी हरकतों को और कोई आसानी से नहीं देख सकता था। सारे परदे फैले हुए होने के कारण अंदर काफी कम रौशनी थी। करीब करीब अँधेरा जैसा ही था।

अपर्णा ने धीरे से अपना हाथ ऊपर की और किया और थोड़ा जीतूजी की और झुक कर जीतूजी के लण्ड को उनकी पतलून के ऊपर से ही अपने हाथ में पकड़ा। जीतूजी का लण्ड अभी पूरा कड़क नहीं हुआ था। पर बड़ी जल्दी कड़क हो रहा था। तभी अपर्णा ने चारोँ और सावधानी से देख कर जीतूजी के पतलून की ज़िप ऊपरकी और खिसकायी और बड़ी मशक्कत से उनकी निक्कर हटा कर उनके लण्ड को आज़ाद किया और फिर उस नंगे लण्ड को अपने हाथ में लिया। अपर्णा के हाथ के स्पर्श मात्र से जीतूजी का लण्ड एकदम टाइट और खड़ा हो गया और अपना पूर्व रस छोड़ने लगा। अपर्णा का हाथ जीतूजी के पूर्व रस की चिकनाहट से लथपथ हो गया था। फिर अपर्णा ने अपनी उँगलियों की मुट्ठी बना कर उसे अपनी छोटी सी उँगलियों में लिया। वह जीतूजी का पूरा लण्ड अपनी मुट्ठी में तो नहीं ले पायी पर फिर भी जीतूजी के लण्ड की ऊपरी त्वचा को दबा कर उसे सहलाने और हिलाने लगी।
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#98
अपर्णा ने जीतूजी के चेहरे की और देखा तो वह अपनी आँखें मूँदे अपर्णा के हाथ में अपना लण्ड सहलवा कर अद्भुत आनंद महसूस कर रहे थे ऐसा अपर्णा को लगा। उसके बाद अपर्णा ने धीरे धीरे जीतूजी का लण्ड हिलाने की रफ़्तार बढ़ाई। अपर्णा चाहती थी की इससे पहले की कोई जाग जाए, वह जीतूजी का वीर्य निकलवादे ताकि किसीको शक ना हो। अपर्णा के हाथ बड़ी तेजी से ऊपर निचे हो रहे थे। अपर्णा ने कम्बल और चद्दर को मोड़ कर उसकी कुछ तह बना कर ख़ास ध्यान रक्खा की उसके हाथ हिलाने को कोई देख ना पाए। अपर्णा जीतूजी के लण्ड को जोर से हिलाने लगी। अब अपर्णा का हाथ दुखने लगा था। अपर्णा ने देखा की जीतूजी के चेहरे पर एक उन्माद सा छाया हुआ।
थोड़ी देर तक काफी तेजी से जीतूजी का लण्ड हिलाने पर अपर्णा ने महसूस किया की जीतूजी पूरा बदन अकड़ सा गया। जीतूजी अपना वीर्य छोड़ने वालेथे। अपर्णा ने धीरे से अपनी जीतूजी के लण्ड को हिलाने की रफ़्तार कम की। जीतूजी के लण्डके केंद्रित छिद्र से उनके वीर्य की पिचकारी छूट रही थी। अपर्णा को डर लगा की कहीं जीतूजी के वीर्य से पूरी चद्दर गीली ना हो जाए। फिर अपर्णा ने दूसरे हाथ से अपने पास ही पड़ा हुआ छोटा सा नेपकिन निकाला और उसे दूसरे हाथ में देकर अपने हाथ की मुट्ठी बना कर उनका सारा वीर्य अपनी मुट्ठी में और उस छोटे से नेपकिन में भर लिया। नेपकिन भी जीतूजी के वीर्यसे पूरा भीग चुकाथा। जीतू जी के लण्ड के चारों और अच्छी तरह से पोंछ कर अपर्णा ने फिर से उनका नरम हुआ लण्ड और अपना हाथ दूसरे नेपकिन से पोंछा और फिर जीतूजी के लण्ड को उनकी निक्कर में फिर वही मशक्कत से घुसा कर जीतूजी की पतलून की ज़िप बंद की। उसे यह राहत थी की उसे यह सब करते हुए किसीने नहीं देखा था। जीतूजी को जरुरी राहत दिला कर अपर्णा ने अपनी आँखें मुँदीं और सोने की कोशिश करने लगी। 

श्रेया पहले से ही एक तरफ करवट ले कर सो रही थीं। शायद वह रात को पूरी तरह ठीक से सो नहीं पायीं थीं। श्रेया ने अपनी टाँगें लम्बीं और टेढ़ी कर रखीं थीं जो रोहित की जाँघों को छू रही थीं।
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#99
Heart 
अपर्णा जब आधी अधूरी नींद में थी तब उसे गौरव और अंकिता की कानाफूसी सुनाई दी। अपर्णा समझ गयी की गौरव अंकिता को फाँसने की कोशिश में लगा था। अंकिता भी उसे थोड़ी सी ढील दे रही थी। दरअसल अंकिता और गौरव साइड वाली बर्थ लम्बी ना करके बर्थ को ऊपर उठा कर दो कुर्सियां बना कर आमने सामने बैठे थे। अंकिता और गौरव का परिचय हो चुका था। पर शायद अंकिता ने अपनी पूरी कहानी गौरव को नहीं सुनाई थी। अंकिता ने यह नहीं जाहिर किया था की वह शादी शुदा थी। वैसे भी अंकिता को देखने से कोई यह नहीं कह सकता था की वह शादीशुदा थी। अंकिता ने अपने चेहरे पर कोई भी ऐसा निशान नहीं लगा रखा था। ना ही माँग में सिंदूर और नाही कोई मंगल सूत्र। अंकिता ने ऊपर सफ़ेद रंग का टॉप पहना था। उसका टॉप ब्लाउज कहो या स्लीवलेस शर्ट कहो, अंकिता के उन्नत स्तनोँ के उभार को छुपाने में पूरी तरह नाकाम था। अंकिता के टॉप में से उसके स्तन ऐसे उभरे हुए दिख रहे थे जैसे दो बड़े पहाड़ उसकी छाती पर विराजमान हों। अंकिता ने निचे घाघरा सा खुबसुरत नक्शबाजी वाला लंबा फैला हुआ मैक्सी स्कर्ट पहना था जो अंकिता की एड़ियों तक था। अंकिता ने अपने लम्बे घने बालों को घुमा कर कुछ क्लिपों में बाँध रखे थे। होठोँ पर हलकी लिपस्टिक उसके होठोँ का रसीलापन उजागर कर रही थी। और अंकिता की लम्बी गर्दन और चाँद सा गोल चेहरा, जिस पर उसकी चंचल आँखें उसकी खूबसूरती में चार चाँद लगाती थी। अंकिता की गाँड़ का उभार अतिशय रमणीय था।

उसकी पतली कमर के निचे अचानक उदार फैलाव से वह सब मर्दो की आँखों के आकर्षण का केंद्र हुआ करता था। जब अंकिता चलती थी तो उसकी गाँड़ का मटकना अच्छेअच्छों का पानी निकाल सकता था। जब कभी थोडासा भी हवा का झोंका आता तो अंकिताका घाघरा अंकिता के दोनों पाँव के बिच में घुस जाता और अंकिता की दोनों जाँघों के बिच स्थित चूत कैसी होगी यह कल्पना कर अच्छे अच्छे मर्द का मुठ मारने का मन करता था। अंकिताकी जाँघें सीधी और लम्बी थीं। अंकिता कोई भी भारतीय नारी से कुछ ज्यादा ही लम्बी होगी। उसकी लम्बाई के कारण अंकिता का गठीला बदन भी एकदम पतला लगता था। हम उम्र होने के अलावा एक दूसरे से पहली नजर से ही जातीय आकर्षण होने के कारण गौरव और अंकिता दोनों एक दूसरे से कुछ अनौपचारिकता से बातें कर रहे थे। अपर्णा को जो सुनाई दिया वह कुछ ऐसा था।

गौरव: "अंकिता, आप गजब की ख़ूबसूरत हो।"

अंकिता: "थैंक यू सर। आप भी तो हैंडसम हो!"

गौरव: "अरे कहाँ? अगर मैं आपको हैंडसम लगता तो आप मेरे करीब आनेसे क्यों झिझ-कतीं?"

अंकिता: "क्या बात करते हैं? मैं आपके करीब ही तो हूँ।"

गौरव ने अपनी टांगों की अंकिता की टांगों से मिलाया और बोला, "देखो हमारे बिच इतना बड़ा फासला है।"

अंकिता: "फासला कहाँ है? आप की टाँगें मेरी टाँगों को टच तो कर रहीं हैं।"
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गौरव: "सिर्फ टाँगें ही तो टच कर रहीं है। हमारे बदन तो दूर हैं ना?"

अंकिता: "कमाल है, कप्तान साहब! अभी हमें मिले दो घंटे भी हुए नहीं और आप हमारे बदन एक दूसरे से मिलाने का ख्वाब देख रहे हो?"

गौरव: "क्यों भाई? क्या ख्वाब देखने पर की कोई पाबंदी है? और मान लो हमें मिले हुए एक दिन पूरा हो गया होता तो क्या होता?"

अंकिता: "नहीं कप्तान साहब ख्वाब देखने पर कोई पाबंदी नहीं है। आप जरूर ख्वाब देखिये। जब ख्वाब ही देखने है तो कंजूसी कैसी? और जहां तक मिलने के एक दिन के बाद की बात है तो वह तो एक दिन बीतेगा तब देखेंगे। अभी तो सिर्फ शुरुआत है। अभी से इतनी बेसब्री क्यों?"

गौरव: "क्या मतलब?"

अंकिता: "अरे जब ख्वाब ही देखने हैं तो फिर ख्वाब में सब कुछ ही देखिये। खाली बदन एक दूसरे से करीब आये यही क्यों रुकना भला? ख्वाब पर कोई लगाम लगाने की क्या जरुरत है? हाँ ख्वाब के बाहर जो असली दुनिया है, वहाँ सब्र रखना जरुरी है।"

गौरव: "मोहतरमा, आप कहना क्या चाहती हो? मैं ख्वाब में क्या देखूं? जहां तक सब्र का सवाल है तो मैं यह मानता हूँ की मुझमें सब्र की कमी है।"

अंकिता: "कमाल है कप्तान साहब! अब मुझे ही बताना पडेगा की आप ख्वाब में क्या देखो? भाई देश आजाद है। जो देखना हो वह ख्वाब में देख सकते हो। मुझे क्या पता आप ख्वाब में क्या देखना चाहते हो? पर ख्वाब की दुनिया और असलियत में फर्क होता है।"

गौरव: "मैं बताऊँ मैं ख्वाब में क्या देखना चाहता हूँ?"

अंकिता: "फिर वही बात? भाई जो देखना चाहो देखो। बताओ, क्या देखना चाहते हो?"

गौरव: "अगर मैं सच सच बोलूं तो आप बुरा तो नहीं मानोगे?"

अंकिता: "कमाल है! आप ख्वाब देखो तो उसमें मुझे बुरा मानने की क्या बात है? कहते हैं ना, की नींद तुम्हारी ख्वाब तुम्हारे। बताओ ना क्या ख्वाब देखना चाहते हो?"

गौरव: "हाँ यह तो सही कहा आपने। तो मैं ख्वाब देखना चाहता हूँ की आप मेरी बाँहों में हो और मैं आपको खूब प्यार कर रहा हूँ।"

अंकिता: "अरे! अभी तो हम ढंग से मिले भी नहीं और आप मुझे बाँहों में ले कर प्यार करने के ख्वाब देखने लगे?"

गौरव: "आपने ही तो कहा था की ख्वाब देखने पर कोई प्रतिबन्ध नहीं है? जहां तक ढंग से मिलने का सवाल है तो बताइये ना हम कैसे ढंग से मिल सकते हैं?"

अंकिता: "ढंग से मिलने का मतलब है आपस में एक दूसरे को जानना एक दूसरे के करीब आने के लिए समय निकालना, एक दूसरे की ख़ुशी और भले के लिए कुछ बलिदान करना, बगैरह बगैरह। हाँ, मैंने कहा तो था ख्वाब देखने पर कोई पाबंदी नहीं है, पर ख्वाब भी सोच समझ कर देखने चाहिए।"
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