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श्रेया ने एक प्लस्टिक की चद्दर की और इशारा किया जिसे अपर्णा ने उठ कर श्रेया के नंगे बदन के निचे रख दिया और फिर श्रेया का मालिश करना जारी रखा। अपर्णा ने अच्छी तरह श्रेया की गाँड़ के गालों को रगड़ा और अपनी एक उंगली गाँड़ की दरार में हलके से ऐसी घुसाई की सीधी निचे ढकी हुई चूत की पंखुड़ियों को छूने लगी। गाँड़ के ऊपर से ही धीरे धीरे अपर्णा ने श्रेया की चूत को भी सहलाना शुरू किया। हर औरत की यह अक्सर कमजोरी होती है जब उसकी चूत की संवेदनशील लेबिया को कोई स्पर्श करे या सहलाये तो उसे चुदवाने की प्रबल इच्छा इतनी जागरूक हो जाती है की उसका स्वयं पर कोई नियत्रण नहीं रहता। तब वह कोई भी हो उससे चुद वाने के लिए तैयार हो ही जाती है।
अपर्णा ने महसूस किया की श्रेया की चूत में तब भी जीतूजी का थोड़ा सा वीर्य था जो अपर्णा ने अपनी उँगलियों में महसूस किया। जीतूजी के अंडकोषों में कितना वीर्य भरा होगा यह सोच में अपर्णा खो गयी। जब वह इतने सुदृढ़, माँसल और ताकतवर थे तो वीर्य तो होगा ही। अपर्णा ने अपने हाथ हटा लिए और देखेतो उसपर जीतूजी का कुछ वीर्यभी चिपका हुआ था। कपडे से हाथों को पौंछ फिर उसपर तेल लगा कर अपर्णा श्रेया की कमर और पीठ पर मालिश करने में लग गयी। धीरे से अपर्णा ने श्रेया की पीठ का मसाज इतनी दक्षता से किया की श्रेया के मुंह से बार बार आह... ओह... बहुत अच्छ लग रहा है, बहन। तेरे हाथों में कमाल का जादू है। बदन से दर्द तो नाजाने कहाँ गायब हो गया।" बोलती रही।
अपर्णा ने कहा, "दीदी, अब जब कभी जीतूजी आपको रात को जम कर चोदे और अगर बदन में दर्द हो तो दूसरी सुबह मुझे बेझिझक बुला लेना। मैं आपकी ऐसी ही अच्छे से वर्जिश भी करुँगी और पूरी रात की आप दोनों की काम क्रीड़ा की पूरी लम्बी दास्तान भी आपसे सुनूंगी। आप मुझे सब कुछ खुल्लमखुल्ला बताओगी ना?"
श्रेया ने हँसते हुए कहा, "अरे पगली, मैं तो चाहती हूँ की तुझे हमारी चुदाई की दास्ताँ सुनाने की जरुरत ही ना पड़े। मैं ऐसा इंतजाम करुँगी की तुम हमें अपनी आँखों के सामने ही चोदते हुए देख सको।" फिर अपर्णा की और देख कर धीमे सुर में बड़े ही गंभीर लहजे में बोली, "पगली हमारी चुदाई तो देखना ही , पर मैं तुम्हें जीतूजी की चुदाई का स्वअनुभव भी करवा सकती हूँ, अगर तुम कहो तो। बोलो तैयार हो?"
यह सुनकर अपर्णा को चक्कर आगये। श्रेया यह क्या बोल रही थी? भला क्या कोई पत्नी किसी और स्त्री को अपने पति से चुदवाने के लिए कैसे तैयार हो सकती है? पर श्रेया तो श्रेया ही थी। अपर्णा की चूत श्रेया की बात सुन कर फिर रिसने लगी। क्या श्रेया सच में चाह रही थी की जीतूजी अपर्णा को चोदे? क्या श्रेया सच में ऐसा कुछ बर्दाश्त कर सकती हैं?
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अपर्णा ने श्रेया की बात का कोई जवाब नहीं दिया। उसके मन में घमासान मचा हुआ था। वह क्या जवाब दे? एक तरफ वह जानती थी की कहीं ना कहीं उसके मन के एक कोने में वह जीतूजी का मोटा लण्ड अपनी चूत में डलवाने के लिए बेताब थी। दूसरी और अपना पतिव्रता होना और फिर उसमेंभी अपनी राजपूती आन को वह कैसे ठुकरा सकती थी? अपर्णा ने बिना बोले चुपचाप श्रेया की पीठ का मसाज करते हुए अपने हाथ निचे की और किये और श्रेया के करारे, कड़क और फुले हुए स्तनों को हलके से एक बाजू से रगड़ना शुरू किया। अपर्णा की चूत श्रेया की गाँड़ को छू रही थी। अपर्णा को तब समझ आया की क्यों मर्द लोग औरत की गाँड़ के पीछे इतना पागल हो रहे होंगें। श्रेया की गाँड़ को अपनी चूत से छूने में अपर्णा की चूत रिसने लगी। श्रेया जी की नंगी गाँड़ पर वह पानी जब "टपक टपक" कर गिरने लगा तब श्रेया जी अपना मुंह तकिये में ही ढका हुआ रखती हुई बोली, "देखा अपर्णा बहन! किसी प्यारी औरत की नंगीं गाँड़ को अपने लिंग से छूने में कितना आनंद मिलता है?"
अपर्णा ने श्रेया को पलटने को कहा। अब अपर्णा को श्रेया की ऊपर से मालिश करनी थी। अपर्णा फिर वही श्रेया का प्यारा सुन्दर करारा बदन देखने में ही खो गयी। बरबस ही अपर्णा के हाथ श्रेया जी के अल्लड़ स्तनोँ पर टिक गए। वह उन्हें सहलाने और दबाने लगी। श्रेया भी अपर्णा के हाथों से अपने स्तनोँ को इतने प्यारसे सहलानेके कारण मचलने लगी। फिर अपर्णा ने झुक कर श्रेया के नंगे उन्मत्त, पके फल की तरह फुले हुए स्तनोँ को चूमा और उनपर तेल मलना शुरू किया। साथ साथ वह उनकी पूरी फूली हुई गुलाबी निप्पलोँ को अपनी उँगलियों में दबाने और पिचका ने लगी। अपर्णा का गाउन अपर्णा ने जाँघों के ऊपर तक उठा रखा था ताकि वह पलंग पर अपने पाँव फैलाकर श्रेया जी के बदन के दोनों और अपने पाँव टिका सके। श्रेया को वहाँ से अपर्णा की करारी जाँघें और उन प्यारी जाँघों के बिच अपर्णा की चूत को छुपाती हुई सौतन समान कच्छी नजर आयी। श्रेया ने अपर्णा का गाउन का निचला छोर पकड़ा और गाउन अपने दोनों हाथों से ही ऊपर उठाया जिससे उसे अपर्णा की बाहों के ऊपर से उठाकर निकाला जा सके। अपर्णाने जब देखा की श्रेया उसको नग्न करने की कवायद कर रही थी तो उसके मुंह और गालों पर शर्म की लालिमा छा गयी। वह झिझकती, शर्माती हुई बोली, "दीदी आप क्या कर रही हो?" पर जब उसने देखा की श्रेया उसकी कोई बात सुन नहीं रही थी, तो निसहाय होकर बोली, "यह जरुरी है क्या?"
श्रेया ने कहा, "अरे पगली, मुझसे क्या शर्माना? अब क्या हमारा रिश्ता इन कपड़ों के अवरोध से रुकेगा? क्या तुमने अभी अभी यह वादा नहीं किया था की हम एक दूसरे से अपनी कोई भी बात या चीज़ नहीं छुपाएंगे? मैंने तो पहले ही बिना मांगें अपना पूरा बदन जैसा है वैसे ही तेरे सामने पेश कर दिया। तो फिर आओ मेरी जान, मुझसे बिना कोई अवरोधसे लिपट जाओ।" अपर्णा बेचारी के पास क्या जवाब था? श्रेया की बात तो सही थी। वह तो पहले से ही अपर्णा के सामने नंगी हो चुकी थीं। अपर्णा ने झिझकते हुए अपने हाथों को ऊपर उठाये और गाउन उतार दिया। अपर्णा ब्रा और पैंटीमें श्रेया को अपनी टाँगों के बीच फँसा कर अपने घुटनों के बल पर ऐसे बैठी हुई थी जिससे श्रेया के बदन पर उसका वजन ना पड़े। अब श्रेया को अपर्णा को निर्वस्त्र करने की मौन स्वीकृति मिल चुकी थी।
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श्रेया ने अपर्णा की ब्रा के ऊपर से उठे हुए उभार को देखा और उन कामुक गोलों को छूने के लिये और पूरा निरावरोध देखने के लिए बेताब हो गयी। श्रेया थोड़ा बैठ गयी और धीरे से अपर्णा की पीठ पर हाथ घुमा कर श्रेया ने अपर्णा की ब्रा के हुक खोल दिए। अपर्णा के अक्कड़ स्तन जैसे ही ब्रा का बंधन खुल गया तो कूद कर बाहर आ गए। अपर्णा ने देखा की अब श्रेया से अपना बदन छुपाने का कोई फायदा नहीं था तो उसने अपने हाथ ऊपर किये और अपनी ब्रा निकाल फेंकी। श्रेया मन्त्र मुग्ध सी उन फुले हुए प्यारे दो अर्धगोलाकार गुम्बजों को, जिनके ऊपर शिखर सामान गुलाबी निप्पलेँ लम्बी फूली हुई शोभायमान हो रही थी; को देखती ही रही। श्रेया ने अपनी बाँहें फैलायीं और उपरसे एकदम नग्न अपर्णा को अपनी बाँहों में कस के जकड़ा और प्यार भरा आलिंगन किया। दोनों महिलाओं के उन्नत स्तन भी अब एक दूसरे को प्यार भरा आलिंगन कर रहे थे। फिर अपर्णा के बालों में अपनी उंगलियां फिराते हुए बोली, "मेरी प्यारी अपर्णा, कसम से मैंने आज तक किसी महिला से प्यार नहीं किया। आज तुझे देख कर पता नहीं मुझे क्या हो रहा है। मैं कोई लेस्बियन या समलैंगिक नहीं हूँ। मुझे मर्दों से प्यार करवाना और चुदवाना बहुत अच्छा लगता है, पर यार तूम तो गजब की कामुक स्त्री हो। मेरी पति जीतूजी की तो छोडो, वह तो मर्द हैं, तुम्हारे जाल में फंसेंगे ही, पर मैं भी तुम्हारे पुरे बदन और मन की कायल हो गयी। आज तुमने मुझे बिना मोल खरीद लिया।" श्रेया ने अपर्णा की छाती के स्तनों पर उभरी हुई और चारों और से एरोला से घिरी उन फूली हुई निप्पलों को अपने मुंह में लिया और उन्हें चूसने लगी। साथ साथ में अपर्णा के गोल गुम्बज सामान स्तनों को भी जैसे श्रेया अपने मुंह में चूसकर खा जाना चाहती हो ऐसे उनको भी अपने मुंह में प्यार से लेकर चूसने, चूमने और चाटने लगी। दूसरे हाथ से श्रेया ने अपर्णा के दूसरे स्तन को दबाया और बोली, "आरी मेरी बहन, तेरी चूँचियाँ तो बाहर दिखती हैं उससे कहीं ज्यादा मस्त और रसीली हैं। इन्हें छुपाकर रखना तो बड़ी नाइंसाफी होगी।" अपर्णा उत्तेजना के मारे, "ओहहह... आहहह..." कराह रही थी। जब अपर्णा ने श्रेया की बात सुनी तो वह मुस्करा कर बोली, "दीदी, मेरी चूँचियाँ आपकी के मुकाबले तो कुछ भी नहीं।" अपर्णा ने पलंग पर श्रेया का बदन अपनी टाँगों के बिच जकड कर रखा हुआ था। श्रेयाने जब अपनी आँखें खोली तो अपर्णा की कच्छी नजर आयी। श्रेया ने अपर्णा की कच्छी पर अपने हाथ फिराना शुरू किया तो अपर्णा रुक गयी और बोली, "दीदी अब क्या है?"
श्रेया ने अपनी आँखें नचाते हुए कहा, "अरे कमाल है, क्या मैं तुम्हारे इस कमसिन, करारे बदन की सबसे खूबसूरत नगीने को छू नहीं सकती? मैं देखना चाहती हूँ की मेरी अंतरंग प्यारी और बला की खूबसूरत दोस्त की सबसे प्यारी चीज़ कितनी खूबसूरत और रसीली है।
अपर्णा शर्म से सहम गयी और बोली, "ठीक है दीदी। मुझे आदत नहीं है ना किसी और से बदन को छुआने की और वह भी वहाँ जहां आप ने छुआ, इसलिए थोड़ा घबरा गयी थी।"
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श्रेया ने भी जवाब में हँसते हुए काफी सन्दर्भ पूर्ण और शरारती इशारा करते हुए कहा, "अरे पगली आदत डालले! अब कई और भी मौके आएंगे किसी और से बदन को छुआने के। अब तुझे मेरा संग जो मिल गया है।" ऐसा कह कर श्रेया ने अपर्णा की कच्छी (पैंटी) को अपर्णा के घुटनों की और निचे खिसकाया। अपर्णा ने अपने दोनों पांव एक तरफ कर कच्छी को निचे की और खिसका कर निकाल फेंकी। दोनों स्त्रियां पूरी तरह निर्वस्त्र थीं। इन्सान जब भी इस दुनिया में आता है तो भगवान् उसे उसके शरीर की रक्षा के लिए मात्र चमड़ी के प्राकृतिक आवरण में ढक कर भेजते हैं।
इन्सान उसी बदन को अप्राकृतिक आवरणों में छिपा कर रखना चाहता है, जिससे पुरुष और स्त्री का एक दूसरे के अंग देखने का कौतुहल बढे जिससे और ज्यादा कामुकता पैदा हो। दोनों स्त्रियां कुदरत की भेंट सी किसी भी अप्राकृतिक आवरण से ढकी हुई नहीं थीं। अपर्णा फिर अपनी मूल पोजीशन में वापस आ गयी। श्रेया अपर्णा की टाँगों के बिच स्थित अपर्णा की चूत पर हाथ फेर कर उसे सहलाने और दबाने लगीं। अपर्णा अपनी गाँड़ इधर उधर कर मचल रही थी। उसके जीवन में यह पहला मौक़ा था जब किसी महिला ने अपर्णा बदन को इस तरह छुआ और प्यार किया हो। अपर्णा इंतजार कर रही थी की जल्द ही श्रेया की उंगलियां उसकी चूत में डालेंगीं और उसे उन्माद से पागल कर देंगीं। और ठीक वही हुआ। अपर्णा की चूत के ऊपर वाले उभार पर हाथ फिराते श्रेया ने धीरेसे अपनी एक उंगली से अपर्णा की चूत की पंखुड़ियों को सहलाना शुरू किया। अपर्णा की यह कमजोरी थी की जब कभी उसके पति अपर्णा को चुदवाने के लिए तैयार करना चाहते थे तो हमेशा उसकी चूत की पंखुड़ियों को मसलते और प्यार से रगड़ते। उस समय अपर्णा तुरंत ही चुदवाने के लिए तैयार हो जाती थी। श्रेया ने धीरे से वही उंगली अपर्णा की चूत में डालदी। धीरे धीरे श्रेया अपर्णा की चूत की पंखुड़ियों के निचे वाली नाजुक और संवेदनशील त्वचा को सहलाने और रगड़ने लगी। अपर्णा इसे महसूस कर उछल पड़ी। उसे ताज्जुब हुआ की श्रेया को महिलाओं की चूत को उत्तेजित करने में इतने माहिर कैसे थे। श्रेया की सतत अपनी उँगलियों से अपर्णा की चूत चोदने के कारण अपर्णा की चूत में एक अजीब सा उफान उठ रहा था। अपर्णा का पति रोहित अपर्णा को उंगली डालकर उसे चोदते थे। पर जो निपुणता और दक्षता श्रेया की उंगली में थी वह लाजवाब थी।
जब श्रेया ने देखा की अपर्णा अपनी चूत की श्रेया की उँगलियों से हो रही चुदाई के कारण उन्मादित हो कर अपने घुटनों के बल पर ही मचल रही थी। तब श्रेया ने अपर्णा के बाँहें पकड़ कर उसे अपने साथ ही लेटने का इशारा किया। अपर्णा हिचकिचाते हुए श्रेया के साथ लेट गयी तब श्रेया जी बैठ गयी और थोड़ा सा घूम कर अपनी दो उँगलियों को अपर्णा की चूत में घुसेड़ कर अपर्णा की चूत अपनी उँगलियों से फुर्ती से चोदने लगीं। अब अपर्णा के लिए यह झेलना बड़ा ही मुश्किल था।
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अपर्णा अपने आप पर नियंत्रण खो चुकी थी। पहली बार अपर्णा की चूत किसी खबसूरत स्त्री अपनी कोमल उँगलियों से चोद रही थी। अपर्णा की चूतसे तो जैसे उन्माद का फव्वारा ही छूटने लगा। अपर्णा की सिसकारियाँ अब जोर शोर से निकलने लगीं। अपर्णा की, "आह... ओह... दीदी यह क्या कर रहे हो? बापरे..." जैसी उन्माद भरी सिसकारियोँ से पूरा कमरा गूंज उठा। जैसे जैसे अपर्णा की सिसकारियाँ बढ़ने लगीं, वैसे वैसे श्रेया ने अपर्णा की चूत को और तेजी से चोदना जारी रखा। आखिर में, "दीदी, आअह्ह्ह... उँह... हाय... " की जोर सी सिसकारी मार कर अपर्णा ने श्रेया के हाथ थाम लिए और बोली, "बस दीदी अब मेरा छूट गया।" बोल कर अपर्णा एकदम निढाल होकर श्रेया के बाजू में ही लेट गयी और आँखें बंद कर शांतहो गयी। अपर्णा की जिंदगी में यह कमाल का लम्हा था। उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था की वह कभी किसी स्त्री की उँगलियों से अपनी चूत चुदवाएगी। वही हुआ था। उस दिन तक अपर्णा ने कभी इतना उन्माद का अनुभव नहीं किया था।
वो काफी समय से अपने पति से चुद तो रही थी, चुदाई में आनंद भी अनुभव कर रही थी, पर सालों साल वही लण्ड, वही मर्द और वही माहौल के कारण चुदाई में कोई नवीनता अथवा उत्तेजना नहीं रही थी। उस दिन अपर्णा ने वह उत्तेजना महसूस की। उत्तेजना सिर्फ इस लिए नहीं थी की अपर्णा की चूत किसी सुन्दर महिला ने अपनी उँगलियों से चोदी थी, पर उसके साथ साथ जो जीतूजी के बारे में उन्मादक बातें हो रही थीं उसने आग में घी डालने का काम किया था। जीतूजी का लण्ड, उनसे चुदवानिकी बातें जीतूजी की बीबी से ही सुनकर अपर्णा के जहन में कामुकता की जबरदस्त आग लगी थी। उस सुबह अपर्णा और श्रेया के बिच की औपचारिकताकी दिवार जैसे ढह गयीथी। अपर्णा ने तो अपनी उन्मादक ऊँचाइयों को छू लिया था पर अपर्णा को श्रेया को उससे भी ऊँची ऊंचाइयों तक ले जाना था। अपर्णा ने थोड़ी देर साँस थमने के बाद फिर श्रेया को पलंग पर लिटा दिया और फिर वह घुटनों के बल पर उनपर सवार हो गयी और बोली, "दीदी अब मेरी बारी है। आज आपने मुझे कोई और ही जन्नत में पहुंचा दिया। आज का मेरा यह अनुभव मैं भूल नहीं सकती।"
यह सुनकर श्रेया मुस्करादीं और बोली, "अभी तो मैंने तुझे कहा उतनी ऊंचाइयों पर पहुंचाया है? अभी तो मैं और मेरे पति तुझे अकल्पनीय ऊंचाइयों तक ले जाएंगे।" श्रेया के गूढ़ार्थ से भरे वाक्य सुनकर अपर्णा चक्कर खा गयी। उसे यकीन हो गयाकी श्रेया जरूर उसे जीतूजीसे चुदवाने का सोच रहीथी। श्रेया की बात का जवाब दिए बिना अपर्णा अपने एक हाथ से श्रेया की चूत के ऊपर का उभार सहलाने लगी और झुक कर अपर्णा ने अपने होँठ श्रेया के स्तनोँ पर रख दिए। अपर्णा ने दुसरा हाथ श्रेया के दूसरे स्तन पर रखा और वह उसे दबाने और मसलने लगी। अब मचलने की बारी श्रेया की थी। अपर्णा ने अपनी उँगलियाँ अपनी चूत में तो डाली थीं पर कभी किसी और स्त्री की चूत में नहीं डाली थीं।
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उस दिन, पहली बार श्रेयाकी चूतको सहलाते पुचकारते हुए अपर्णा ने अपनी दो उंगलियां श्रेया की चूत में डाल दीं। श्रेया ने जैसे ही अपर्णा की उँगलियों को अपनी चूत में महसूस किया तो वह भी मचलने लगी। अपर्णा एक साथ तीन काम कर रही थी। एक तो वह श्रेया की चूत अपनी उँगलियों से चोद रही थी, दूसरे उसका मुंह श्रेया के उन्मत्त स्तनोँ को चूस रहा था और तीसरे वह दूसरे हाथ से श्रेया का दुसरा स्तन दबा रही थी और उनकी निप्पल को वह उँगलियों में भींच रही थी।
अपर्णा ने श्रेया से उनको उँगलियों से चोदते हुए धीरे से उनके कानों में कहा, "दीदी, एक बात पूछूं?"
श्रेया ने अपनी आँखें खोलीं और उन्हें मटक कर पूछने के लिये हामी का इशारा किया।
अपर्णा ने कहा, "दीदी सच सच बताना, क्या आप मेरे पति को पसंद करती हो?"
अपर्णा की भोली सी बात सुनकर श्रेया हँस पड़ी और बोली, "मैंने तुझे पहले ही नहीं कहा? मैं उन्हें ना सिर्फ पसंद करती हूँ, पगली मैं उनके पीछे पागल हूँ। तुम बुरा मत मानना। वह तुम्हारे ही पति हैं और हमेशा तुम्हारे ही रहेंगे। मैं उनको छीनने की ना ही कोशिश करुँगी ना ही मेरी ऐसी कोई इच्छा है l पर मैं उनकी इतनी कायल हूँ की मैं सारी मर्यादाओं को छोड़ कर उनसे खुल्लम-खुल्ला चुदवाना चाहती हूँ। मैंने आज तुझे मेरे मन की बात कही है। और ध्यान रहे, मैं अपने पति से भी कोई धोखाधड़ी नहीं करुँगी, क्यूंकि मैंने उनको भी इस बात का इशारा कर दिया है।" रोहित के बारे में ऐसी उत्तेजक बातें सुनकर श्रेया के जहन में भी काम की ज्वाला भड़क उठी। श्रेया ने अपर्णा से कहा, "बहन, तू भी बहुत चालु है। तू जानती है की मुझे कैसे भड़काना है। मैं तेरे पति के बारे में सोचती हूँ तो मेरी चूत में आग लग जाती है l उनकी गंभीरता, उनकी सादगी और उनकी शरारती आँखें मेरी चूत को गीली कर देती हैं। मैं जानती हूँ की आग दोनों तरफ से लगी है। अब तो तू मेरी बहन और अंतरंग सहेली बन गयी है ना? तो तू कुछ ऐसा तिकड़म चला की उनसे मेरी चुदाईहो जाए!" फिर श्रेया ने सोचा की उनकी ऐसी उटपटांग बात सुनकर कहीं अपर्णा नाराज ना हो जाए, इस लिए वह थोड़ा सम्हाल कर अपर्णा के सर पर हाथ फिराते हुए बोली, "बहन, मुझे माफ़ करना। मेरी बेबाकी में मैं कुछ ज्यादा ही बक गयी। मैं तुझे तेरे पति के बारेमें ऐसी बातें कर परेशान कर रही हूँ।"
अपर्णा ने जवाब में कहा, "दीदी, मैं जानती हूँ, मेरे पति आप पर फ़िदा हैं। और मैं उसे गलत नहीं समझती। आप जैसी कामुक बेतहाशा खूबसूरत कामिनी पर कौन अपनी जान नहीं छिड़केगा? अब तो हम दोनों ऐसे मोड़ पर आ गए हैं की क्या बताऊँ? मुझे ज़रा भी बुरा नहीं लगा दीदी, क्यूंकि मैं जानती हूँ की आप अपने पति जीतूजी से बहुत प्यार करते हो l यही तो कारण है की आप मुझे उनसे चुदवाने के लिए ऐसे वैसे बड़ी कोशिश कर प्रोत्साहित कर रहे हो। कौन पत्नी भला अपने पति से चुदवाने के लिए किसी स्त्री को तैयार करेगी, जब तक की उसे अपने पति से बहुत प्यार ना हो और उन पर पूरा विश्वास ना हो?"
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अपर्णा की ऐसी कामुकता भरी बातें सुनकर श्रेया गरम हो रहीथी। वैसे भी अपर्णा के उँगलियों से चोदने से काफी गरम पहले से ही थी। श्रेया की साँसे तेज चलने लगीं.. उन्होंने कहा, "अपर्णा, मैं अब झड़ने वाली हूँ।" अपर्णा ने उँगलियों से चोदने की फुर्ती बढ़ाई और देखते ही देखते श्रेया एक या दो बार पलंग पर अपने कूल्हे उठाके, "आह... ऑफ़... हायरे..." बोलती हुई उछली और फिर पलंग पर अपनी गाँड़ रगड़ती हुई एकदम निढाल हो कर चुप हो गयी। उसकी साँसे तेज चल रही थी। श्रेया का छूट गया और वह शांत हो गयी। परन्तु उनके मन में से अपन पति से अपर्णा को चुदवाने का विचार अभी गया नहीं था। वह इस बात को पक्का करना चाहती थी।
साँस थमने पर श्रेया ने अपर्णाका हाथ अपने हाथ में ले कर पूछा, "मेरी प्यारी बहन, तू क्या बोलती है? जब तुझे सारी बातें साफ़ है तो फिर कुछ करते हैं जिससे तू जीतूजी के लण्ड का अनुभव कर सके।"
श्रेया जी की बात सुनकर अपर्णा थोड़ी सकपका गयी, क्यूंकि वह जो बोलने वाली थी उससे श्रेया काफी हतोत्साहित हो सकती थी। अपर्णा ने दबे स्वर में बड़ी ही गंभीरता से कहा, "दीदी मैं आपसे माफ़ी मांगना चाहती हूँ। पर दीदी, मैं आपसे एक बात बताना चाहती हूँ की ऐसा हो नहीं पाएगा। ऐसा नहीं है की मैं जीतूजी को पसंद नहीं करती। मैं ना सिर्फ उन्हें पसंद करती हूँ बल्कि दीदी मैं आज आपसे नहीं छुपाउंगी की मैं जब भी उनको देखती हूँ तब मैं उनपर वारी वारी जाती हूँ। अगर आप की शादी उनसे नहीं हुई होती और अगर मैं उनसे पहले मिली होती तो मैं जरूर उनको आपके हाथों लगने नहीं देती। जैसे आपने उनको और स्त्रियों से छीन लिया था ऐसे मैं भी कोशिश करती की मैं उनको आपके हाथों से छीन लूँ और वह मेरे हो जाएं । पर अब जो हो चुका वह हो चुका। वह आपके हैं और हमेशा आपके रहेंगे। पर मेरी मजबूरी है की मेरी कितनी भी इच्छा होते हुए भी मैं आपकी मँशा पूरी नहीं कर सकती।"
अपर्णा की बात सुनकर श्रेया को बड़ा झटका लगा। उन्हें लगा था की अपर्णा तो बस अब फँसने वाली ही है, पर यह तो सब उल्टापुल्टा हो रहा था। श्रेया ने पूछा, "पर क्यों तुम ऐसा नहीं कर सकती? क्या तुम्हें अपने पति से डर है? या फिर लज्जा, या कोई धार्मिक आस्था का सवाल है? आखिर बात क्या है?"
अपर्णा ने सरलता से कहा, "श्रेया बात थोड़ी समझने में मुश्किल है। मैं एक राजपूतानी हूँ। मेरी माँ की मैं चहेती बेटी थी। मेरी माँ मुझसे सारी बातें स्पष्ट रूप से करती थीं। जब कोई लड़कों के बारेमें बात होती थी तो मुझे माँ ने बचपन से ही यह सिखाया था की औरत का शील ही उसका सबकुछ है। उसके साथ कभी छेड़ छाड़ मत करना।"
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जब मैं थोड़ी बड़ी हुई और माँ ने देखा की ज़माना बदल चुका था। लड़के लडकियां एक दूसरे से इतनी मिलती जुलती थीं की उनमें एक दूसरे के प्रति आकर्षण होना और चुम्माचाटी आम बात हो गयी थी तब माँ ने अपनी सिख बदली और कहा, "ठीक है। आज कल ज़माना बदल चुका है। आज कल के जमाने में लड़का लड़की में कुछ चुम्माचाटी चलती है। तो चिंता की कोई बात नहीं l पर तुम अपना सब कुछ, अपना शील उसीको देना जो तुम्हारे लिए अपना जीवन तक छोड़ने के लिए तैयार हो और अपनी जान पर खेल कर तुम्हारी रक्षा करे।
मेरी माँ की सिख मेरे लिए मेरे प्राण के सामान है। मैं उसको ठुकरा नहीं सकती। दीदी मैं आपको निराश कर के बहुत दुखी हूँ। आई एम् सो सॉरी। बल्कि सचमें तो मैं भी जीतूजी की कायल हूँ और उनसे मुझे कोई परहेज भी नहीं है। मेरे पति तो उलटा जीतूजी की बातें कर के मुझे छेड़ते रहते हैं l सिनेमा हॉल में उन्हों ने ही मुझे जीतूजी के पास बिठा दिया था और जीतूजी की और मेरी जो राम कहानी हुई थी वह सब मेरे पति रोहित को पता है l आपकी जो मँशा है वही मेरे पति की भी है। मैंने आपको बता ही दिया है की कैसे जीतूजी ने मेरे हाथों में अपना लण्ड पकड़ा दिया था और मैंने कैसे जीतूजी को मेरी ब्रेस्ट्स से खेलने की भी इजाजत दे दी थी।"
श्रेया अपर्णा की बात सुनती रही। अपर्णा ने श्रेया की और देखा और बोली, "मेरे पति रोहित ने मेरे साथ शादी कर अपना सब कुछ मेरे हवाले कर दिया। वक्त आने पर वह मेरे लिए अपनी जान पर भी खेल सकते हैं तो मैं उनकी हो गयी। अब मैं अपनी माँ की बात कैसे ठुकराऊँ?"
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श्रेया अपर्णा की बात सुन कर चुप हो गयी। शायद उनको लगा जैसे अपर्णा ने उनके सारे मंसूबों पर ठंडा पानी डाल दिया। अपर्णा ने महसूस किया की श्रेया उसकी बातें सुनकर काफी निराश लग रहे थे। अपर्णा ने आगे बढ़ते हुए श्रेया दीदी का हाथ थमा और बोली, "दीदी, मैं आपका दिल तोड़ना नहीं चाहती। पर आप भी मेरे मन की बात समझिये। मैं मेरी माँ से वचन बद्ध हूँ। मेरी माँ की इच्छा और सिख की अवज्ञा करना उनका अपमान करने बराबर है l बस मैं आपसे इतना वादा करती हूँ की आप मेरे पति के साथ जब चाहे जहां चाहे सो सकती हैं, मतलब चुदवा सकतीं हैं। मुझे उसमें कोई एतराज ना होगा। जहां तक मेरा सवाल है, मने मेरी मजबूरी बतायी। हाँ मैं जीतूजी को जी जान से प्यार करती हूँ और करती रहूंगी। मैं कोशिश करुँगी की जो सुख मैं उनको नहीं दे सकती उसके अलावा जो सुख मैं उनको दे सकती हूँ वह उनको जरूर दूंगी l मैं प्रार्थना करुँगी की इस जनम में नहीं तो अगले जनम में ही सही मुझे जीतूजी की शैयाभागिनी बनने का मौक़ा मिले।"
रोहित की पत्नी अपर्णा की बात सुनकर जीतूजी की पत्नी श्रेया का मुंह छोटा हो गया। उनके मुंह पर लिखे निराशा और कुंठा के भाव अपर्णा को साफ़ नजर आ रहे थे। वह खुद बड़ी निराश और दुखी महसूस कर रही थी। पर क्या करे? माँ को जो वचन दिया था। उसे तो निभाना ही था। अपर्णा ने श्रेया की और देखा। श्रेया कुछ बोल नहीं पा रही रहीं। अपर्णा को लगा की श्रेया अब उससे बात नहीं करेंगी। निराश सी होकर वह उठ खड़ी हुई और कपडे पहनने लगी; तब श्रेया ने अपर्णा का हाथ थामा और बोली, "देखो बहन, तुम्हारी बात सही है की प्यारी माँ को दिया हुआ वचन तोड़ना नहीं चाहिए। पर एक बात को समझो। तुम्हारी माँ ने सबसे पहले तुम्हें जो सिख दी थी वह समय के चलते बदली थी की नहीं? बोलो?"
अपर्णा ने श्रेया की तरफ देखा और मुंडी हिला कर कहा, "हाँ दीदी, बदली तो थी। पहले तो वह मुझे कोई लड़के से ज्यादा मिलने या बातचीत करने से ही मना कर रही थी; पर बाद में उन्होंने समय को बदलते हुए देखा तो छूआछुही और चुम्मा चाटी से आगे बढ़ने के लिए मना किया था।"
श्रेया ने कहा, "देखो बहन, अगर तुम्हारी माँ आज होती ना, तो मुझे पक्का पता है की वह तुम्हें रोकती नहीं। क्यूंकि वह यह समझती की तुम अब बड़ी समझदार और परिपक्व हो गयी हो और अपना सही निर्णय तुम खुद ले सकती हो। मैं तुम्हें कोई जबरदस्ती नहीं कर रही। पर मैं तुम्हें जो मैंने कहा वह सोचने के लिए आग्रह जरुर करुँगी। बाकी निर्णय लेना तुम्हारे हाथमें है।"
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रोहित की पत्नी अपर्णा ने कर्नल साहब की पत्नी श्रेया का हाथ थाम कर बड़ी विनम्रता से कहा, "दीदी, आप मुझसे नाराज तो नहीं हो ना? मैं आपकी छोटी बहन और अंतरंग सहेली बने रहना चाहती हूँ। कहीं मेरी यह सोच के कारण आप मुझसे रिश्ता ही ना रखना चाहो ऐसा तो नहीं होगा ना? हमारे दोनों के बिच अभी जो प्यार हुआ मैं उससे बहुत ही रोमांचित हूँ और उसके कारण आपके प्रति मेरा सम्मान और प्यार और भी बढ़ा है। अगर मैं आपको थोड़ी सी भी सेक्सी लगती हूँ और अगर आपको मेरे बदन से थोड़ा सा भी प्यार करने का मन करता हो तो मुझे 'मालिश करने के लिए बुला लेना। हमारे बिच अभी जैसे हमने किया ऐसे प्यार करने का कोड होगा 'मालिश' करनी है'।"
अपर्णा की प्यारी और मीठी सरल बोली सुनकर श्रेया बरबस हँस पड़ी। अपर्णा को गले लगाते हुए बोली, "शायद कर्नल साहब के भाग्य में तुम्हारी 'मालिश' करना लिखा नहीं। पर तुम उन्हें प्यार करने से तो नहीं रोकेगी ना? और हाँ, मैं तुम्हें जल्दी ही 'मालिश' करनेके लिए बुलाऊंगी।"
अपर्णा भी श्रेया के साथ हँस पड़ी और बोली, "दीदी, मैं एक राज की बात कहती हूँ। मैं खुद भी आपका बार बार 'मालिश' करना चाहती हूँ और आपसे बार बार 'मालिश' करवाना चाहती हूँ। आपके पति से भी मैं बहुत प्यार करती हूँ। आपकी इजाजत हो तो मौक़ा मिलने पर मैं उनको बहुत प्यार दूँगी। और जहां तक उनसे 'मालिश' करवाने का सवाल है, तो क्या पता कल क्या होगा?"
बड़ी देर तक दोनों बहनें एक दूसरे से लिपटी रहीं और एक दूसरे की गीली आँखें पोछती रहीं और एक दूसरे की गीली चूत पर हाथ फिराती रहीं।
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कहते हैं की समय सब का समाधान है। समय सारे दुःख और सुख को लाता है और ले भी जाता है। श्रेया और रोहित की पत्नी को मिले हुए कुछ दिन हो गए। कर्नल साहब (जीतूजी) और रोहित दोनों अपने काम में व्यस्त हो गए। कॉलेज की छुट्टियां भी खत्म हो गयीं और जीतूजी की पत्नी श्रेया और रोहित की पत्नी अपर्णा दोनों भी अत्याधिक व्यस्त हो गए। देखते ही देखते गर्मियां शुरू हो गयीं। कॉलेजों में परीक्षा की चिंता मैं बच्चे पढ़ाई में लग गए थे।
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एक दिन शाम रोहित दफ्तर से घर पहुंचा ही था की कर्नल साहब का फ़ोन आया की उनके घर में चोरी हुई है। रोहित और अपर्णा ने जब यह सूना तो वह दोनो भागते हुए कर्नल साहब के फ्लैट पहुंचे। उनके घर सिक्युरिटी आकर चली गयी थी। ड्राइंग रूम में सारा सामान बिखरा हुआ था।
अपर्णा ने जीतूजी की पत्नी के पास जा कर उनका हाथ थामा और पूछा की क्या हुआ था तो श्रेया बोली, "समझ में नहीं आता। हम सब बाहर थे। दिन दहाड़े कोई चोर घरमें ताला तोड़ कर घुसा। चोर ने पूरा घर छान मारा। पर एक लैपटॉप, कुछ डायरियां और एक ही जूते को छोड़ कुछ भी नहीं ले गया। जूता ले गया तो भी बस एक। दुसरा जूता यहीं पड़ा है। पता नहीं, एक जूते को तो वह पहन भी नहीं सकता। उसका वह क्या करेगा? घर में इतनी महंगी चीजें हैं। मेरे गहने हैं। उन्हें छुआ तक नहीं। मेरी समझ में तो कुछ नहीं आता।"
रोहित ने कहा, "हो सकता है, अचानक ही कोई आ गया हो ऐसा उसे लगा तो जो हाथ आया उसे लेकर वह भाग निकला।"
जीतूजी बड़ी गहरी सोचमें थे। उन्होंने कहा, "हो सकता है। पर हो सकता है कुछ और बात भी हो।"
रोहित कर्नल साहब की और आश्चर्य से देख कर बोलै, "आपको क्यों ऐसा लगता है की कुछ और भी हो सकता है?"
कर्नल साहब बोले, "वह इस लिए की पिछले कुछ दिनों से कोई मेरा पीछा कर रहा है। उसे पता नहीं की मैं जानता हूँ की वह मेरा पीछा कर रहा है। अगर यह चालु रहा तो एक ना एक दिन मैं उसे पकड़ पर पता कर ही लूंगा। पर इस बात में कुछ ना कुछ राज़ जरूर है।" रोहित और उसकी पत्नी अपर्णा कुछ समझ नहीं पाए और कुछ औपचारिक बातें कर अपने घर वापस लौट आये। कुछ दिनों में यह बात सब भूल गए।
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गर्मी की छुट्टियां कुछ दिन के बाद शुरू होने वाली ही थीं।
रोहित, कर्नल साहब उनकी पत्नी श्रेया और रोहित की पत्नी अपर्णा एक दिन निचे कार पार्क में ही मिल गए l तब कर्नल साहब ने कहा, "रोहित और अपर्णा सुनो। आर्मी में इस छुट्टियों में सामान्य नागरिकों के लिए आतंक विरोधी अभियान के तहत एक ट्रेनिंग एवं जागरूकता कार्यक्रम हिमाचल की पहाड़ियों में रखा है। इसमें नाम रजिस्टर करवाना है। कार्यक्रम सात दिनों का है। उसमें पहाड़ों में घूमना, तैराकी, शारीरिक व्यायाम, मनोरंजन इत्यादि कार्यक्रम हैं। सारा कार्यक्रम बड़ा रोमांचक होता है। मैं भी उसमें एक ट्रेनर हूँ। हमें तो जाना ही है। अगर आप की इच्छा हो तो आप भी शरीक़ हो सकते हो।"
श्रेया रोहित की पत्नी ने अपर्णा के करीब आयी, प्यार से उसका हाथ थामा और अपर्णा के कानों में मुँह रख कर शरारत भरी आवाज में धीमे से बोलीं, "बहन चलो ना। राज की बात यह भी है की काफी दिन से मैंने तुमसे 'मालिश' भी नहीं करवाई। यह बहुत बढ़िया मौक़ा है। छुट्टियां हैं। घूमेंगे फिरेंगे और मजे करेंगे। तुम हाँ कह दोगी ना, तो रोहित तो अपने आप ही आ जाएंगे।"
रोहित ने श्रेया की और देखकर कहा, "अगर आप कहते हैं तो हम चलेंगे।" अपनी पत्नी अपर्णा की और देखते हुए रोहित ने पूछा, "क्यों डार्लिंग, चलेंगें ना?" अपर्णा समझ गयी की श्रेया के मन में कुछ जबरदस्त प्लान है। इतने करीब रहते हुए भी व्यस्तता के कारण पिछले कुछ दिनों से श्रेया से मिलना भी नहीं हो पाया था।
वह शर्माती हुई अपने पति की और देखती हुई बोली, "अगर आप कहेंगे तो भला मैं क्यों मना करुँगी? वैसे भी वेकेशन में हमें कहीं ना कहीं तो जाना ही है; तो क्यों ना हम इसी कार्यक्रम में हिस्सा लें? लगता है यह काफी रोमांचक और मजेदार होगा साथ साथ पहाड़ों में घूमना और एक्सरसाइज दोनों हो जाएंगे।" तो फिर तय हुआ की पहाड़ों में छुट्टियां बितानेके लिए इस कार्यक्रम में रोहित और उनकी पत्नी अपर्णा के नाम भी रजिस्टर कराएं जाएं। सब अपना सामान जुटाने में और तैयारी में लग गये।
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उसी दिन शामको रोहित ने फ़ोन कर के कर्नल साहब को बताया की उसे उनसे कुछ जरुरी बात करनी है। बात फ़ोन पर नहीं हो सकती थी।
कर्नल साहब आधे घंटे में ही रोहित और अपर्णा के घर पहुँच गए। रोहित डाइनिंग कुर्सीपर अपना सर पकड़ कर बैठे थे साथ में अपर्णा उनसे कुछ सवाल जवाब कर रही थी। जब कर्नल साहब पहुंचे तो रोहित खड़ा हो गया और औपचारिकता पूरी होते ही उसने अपनी समस्या सुनाई।
रोहित ने कहा की वह जब शाम को मार्किट में गए थे तो उन्हें लगा की कोई उनका पीछा कर रहा था। पहले तो उन्हें यकीन ही नहीं हुआ की भला कोई उसका पीछा भी कर सकता है। पर चूँकि कर्नल साहब ने उन्हें बताया था की कुछ दिन पहले उनका भी कोई पीछा कर रहा था इसलिए रोहित ने तय किया की वह भी ध्यान से देखेंगे की क्या वह बन्दा सचमुच उनका पीछा ही कर रहा था की या फिर वह सुनिलजी का वहम था। रोहित चेक करने के लिए थोड़ी देर अचानक ही रुक गए। जब रोहित रुक गए तो वह बन्दा भी रुक गया और दिखावा करने लगा जैसे वह कोई दूकान में सामान देख रहा हो। दिखने में वह काफी लंबा और हट्टाकट्टा था। उसने कपड़े से अपना मुंह ढक रखा था। रोहित को लगा की शायद उन्हें वहम हुआ होगा। वह चलने लगे तो वह शख्श भी चलने लगा। तब रोहित को यह यकीन हो गया की वह उनका पीछा कर रहा था। रोहित फुर्ती से एक गली में घुसे और कहीं छुप कर उस शख्श का इंतजार करने लगे।
जैसे ही वह शख्श उनके पाससे गुजरा तो रोहित ने उसे ललकारा। रोहित ने उसे पूछा, "अरे भाई, तुम कौन हो, और मेरा पीछा क्यों कर रहे हो?" रोहित की आवाज सुनकर उसने पलट कर देखा तो रोहित पीछे से उसके करीब आने लगे। रोहित को करीब आते हुए देख कर वह एकदम भाग खड़ा हुआ। रोहित उसके पीछे दौड़ते हुए गये पर वह बन्दा अचानक कहीं गायब ही हो गया।
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रोहित ने कर्नल साहब से कहा, "जीतूजी मैं वाकई में चिंतित हूँ। मैं यह समझ नहीं पाता हूँ की मेरा पीछा करने की जरुरत किसीको क्यों पड़ गयी? आखिर मेरे पास ऐसा क्या है? मेरी समझ में तो कुछ नहीं रहा।"
कर्नल साहब काफी चिंतित दिखाई दे रहे थे। उन्होंने रोहित के कंधे पर हाथ फिराते हुए कहा, "आपके पास कुछ ऐसा है जिसकी किसीको जरुरत है। खैर, कोई बात नहीं। मैं पता लगाता हूँ और देखता हूँ की यह मसला क्या है।" रोहित की पत्नी अपर्णा जीतूजी की बात सुनकर और भी चिंतित दिखाई दे रही थी। उसने कर्नल साहब से पूछा, "जीतूजी, आखिर बात क्या है? इनका कोई पीछा क्यों करेगा भला? कुछ गड़बड़ तो नहीं? आप की बात से लगता है की हो ना हो आपको कुछ पता है जो हमें नहीं मालुम। कहीं आप हमसे कुछ छुपा तो नहीं रहे हो?"
कर्नल साहब रक्षात्मक हुए और बोले, "नहीं ऐसी कोई बात नहीं है। मैं आपसे कुछ नहीं छुपाऊंगा। इतना तो जरूर है की कहीं ना कहीं कुछ ना कुछ तो रहस्य जरूर है। पर जब तक मुझे पक्का पता नहीं चले तब तक क्या बताऊँ?"
रोहित ने पूछा, "जीतूजी, क्या यह नहीं हो सकता की वह किसी और का पीछा करना चाह रहा था और गलती से मुझे वह आदमी समझ कर मेरा पीछा कर रहा हो?"
जीतूजी ने कहा, "हो भी सकता है। पर अक्सर ऐसे शातिर लोग इतनी बड़ी गलती नहीं करते।"
अपर्णा को शक हुआ की जीतूजी जरूर कुछ जानते थे पर बताना नहीं चाहते जब तक उन्हें पक्का यकीन ना हो। अपर्णा इसका राज़ जानने के लिए बड़ी ही उत्सुक थी पर चूँकि जीतूजी बताना नहीं चाहते थे इस लिए अपर्णा ने भी उस समय उन्हें ज्यादा आग्रह नहीं किया। पर उसी समय अपर्णा ने तय किया की वह इस रहस्य की सतह तक जरूर पहुचेंगी। रोहित ने कर्नल साहब को धन्यवाद कहा। जीतूजी जब जाने के लिए तैयार हुए तो रोहित ने अपर्णा को कर्नल साहब को छोड़ने के लिए कहा और खुद घरमें चले गए।
अपर्णा जीतूजी को छोड़ने के लिए घर से सीढ़ी उतर कर जब निचे उतरने लगी तब उसने जीतूजी का हाथ पकड़ कर रोका और कहा, "जीतूजी आप इसका राज़ जानते हैं। पर हमें बता क्यों नहीं रहें हैं। बोलिये क्या बात है?"
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जीतूजी ने अपर्णा की और देखा और आँखें झुका कर बोले, "मैं आपको खामखा परेशानी में नहीं डालना चाहता। मैं खुद इसकी सतह तक पहुंचना चाहता हूँ पर क्या बताऊँ? वक्त आने पर मैं आपको खुद बताऊंगा। अभी आप मुझे इस बारेमें प्लीज आग्रह नहीं करें तो अच्छा है।" इतना कह कर कर्नल साहब फुर्ती से सीढ़ियां निचे उतर गए।
अपर्णा उन्हें देखती ही रह गयी। जीतूजी के जाने के तुरंत बाद अपर्णा ने तय किया की वह जल्द ही जीतूजी से बात कर उनसे इसके बारे में सारे राज़ बताने के लिए आग्रह करके मजबूर करेगी। पर उसकी समझ में यह नहीं आ रहा था की उसे जीतूजी से एकांत में मिलने का मौक़ा कब मिलेगा।
पर दूसरे ही दिन यह मौक़ा मिल गया। सुबह ही श्रेया का फ़ोन आया। श्रेया ने कहा, "अपर्णा बहन एक समस्या हो गयी है। जीतूजी को बुखार है और वह ऑफिस नहीं जा रहे। मेरी कॉलेज में कॉलेज के वार्षिक दिवस का कार्यक्रम है। मुझे तो जाना पडेगा ही। मैं गैर हाजिर नहीं रह सकती। तो क्या तुम अगर फ्री हो तो आज छुट्टी ले सकती हो? दिन में दो तीन बार जीतूजी के पास जा कर उनकी तबियत का जायजा ले सकती हो प्लीज? मेरी बेटी भी बाहर ट्रेनिंग में गयी हुई है।" यह सुन कर अपर्णा खुश हो गयी। वह पिछली शाम से यही सोच रही थी की कैसे वह जीतूजी से अकेले में बात करे।
अपर्णा ने फ़ौरन कहा, "श्रेया आप निश्चिन्त जाइये। जीतूजी की देखभाल मैं कर लुंगी। वह मेरे गुरु हैं और उनकी सेवा करना मेरा सौभाग्य होगा। मुझे आज कॉलेज में कोई ख़ास काम है नहीं। ज्यादातर पीरियड फ्री हैं। मैं छुट्टी ले लुंगी।" श्रेया सुबह ही घर से निकल गयीं। रोहित के दफ्तर चले जाने के बाद अपर्णा थोड़ा सा ठीक-ठाक होकर नहा धो कर फ्रेश हुई और श्रेया और जीतूजी के फ्लैट की और चल पड़ी। फ्लैट की घंटी बजायी तो जीतूजी ने दरवाजा खोला। अपर्णा ने देखा तो जीतूजी तैयार हो रहे थे। उन्होंने बनियान और पतलून पहन रखा था और अपना यूनिफार्म पहनने जा रहे थे।
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जीतूजी अपर्णा को देख कर थम गए और आश्चर्य से बोल पड़े, "अरे अपर्णा तुम, इस वक्त. यहां? क्या बात है?" शायद श्रेयाने अपने पतिको नहीं बताया था की उन्होंने अपर्णा को आने के लिए कहा था।
अपर्णा ने पूछा, "अरे आपको बुखार है ना? आप तैयार क्यों हो रहे हैं?"
जीतूजी, "अरे ऐसा छोटा मोटा बुखार तो आता रहता है। इससे घबराएंगे तो काम कैसे चलेगा? लगता है तुम्हें श्रेया ने बता दिया है। श्रेया तो फ़ालतू में बात का बतंगड़ बना रही है।"
अपर्णा ने आगे बढ़ कर जीतूजी का हाथ थामा तो पाया की उनका बदन काफी गरम था। अपर्णा ने जीतूजी का हाथ सख्ती से पकड़ा और बोली, "यह छोटा मोटा बुखार ही? आपका बदन आग जैसे तप रहा है। अब हरबार आपकी नहीं चलेगी। चलो कपडे निकालो।"
कर्नल साहब यह सुनकर आश्चर्य से अपर्णा की और देखने लगे और बोले, "कपडे निकालूँ? क्यों?"
अपर्णा को समझ आया की जीतूजी कहीं उसकी बात का गलत मतलब ना निकालें। उसने तुरंत ही कहा, "मेरा मतलब है, कपडे बदलो। ऑफिस जाने की कोई जरुरत नहीं है। आज आप घर में ही आराम करेंगे। यह मेरा हुकम है।"
कर्नल साहब चुपचाप अपर्णा की अधिकारपूर्ण आवाज सुन कर सकपका गए। आज तक कभी उन्होंने अपर्णा की ऐसी सख्त आवाज सुनी नहीं थी। वह चुपचाप पीछे हटे, अपर्णा को अंदर आने दिया और खुद एक हाथ का टेका ले कर सोफे पर बैठ गए। उनकी कमजोरी साफ़ दिख रही थी।
अपर्णा ने कहा, "कपडे निकाल कर पयजामा पहन लीजिये। दफ्तर में फ़ोन करिये की आज आप नहीं आएंगे। मैं आपके सर पर ठन्डे पानी का कपड़ा लगा कर बुखार को कम करने की कोशिश करती हूँ।" कर्नल साहब चुपचाप बैडरूम में अंदर चले गए और पतलून निकाल कर पजामा पहन कर पलंग पर लेट गए। अपर्णा ने बर्फ के कुछ टुकड़े निकाल कर एक कटोरी में डाले और एक साफ़ कपड़ा लेकर वह जीतूजी के बगल में उनके सीने के पास ही अपने कूल्हे टिका कर पलंग पर बैठ गयी। जीतूजी का बुखार काफी तेज था। अपर्णा ने कपड़ा भिगोया और उसे निचोड़ कर जीतूजी के कपाल पर लगाया और प्यार से उसे दबा कर जीतूजी के सर पर हाथ फिराने लगी। जीतूजी आँखें बंद कर अपर्णा के कोमल हाथोँ के स्पर्श का आनंद लेरहे थे।
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बिच में जब वह अपनी आँखें खोलते तो अपर्णा के करारे, फुले हुए, ब्लाउज और ब्रा के अंदर से बाहर आने को व्याकुल मस्त स्तन उनकी आँखों और मुंह के ठीक सामने दीखते थे। अपर्णा के स्तनोँ के बिच की गहरी खाई में से उसकी हल्के चॉकलेट रंग की एरोला की गोलाइयों में कैद निप्पलोँ की हलकी झांकी भी जीतूजी को हो रही थी। अपर्णा के बदन की खुसबू उनको पागल कर रही थी। कई बार अपर्णा के स्तन जीतूजी के मुंह को और आँखों को अनायास ही स्पर्श कर रहे थे। अपर्णा अपने काम में इतनी मशगूल थी की उसे इस बात का कोई भी ख़याल ही नहीं था की उसके मदमस्त स्तन जीतूजी की हालत खराब कर रहे थे। अपर्णा बार बार झुक कर कभी कपड़ा भिगो कर निचोड़ती तो कभी उसे जीतूजी के कपाल पर दबा कर अपने हाथोँ से इनका कपाल और उनका सर प्यार से दबाती और अपना हाथ उस पर फिराती रहती थी।
जब अपर्णा कर्नल साहब के सर पर कपड़ा दबाती तो उसे काफी झुकना पड़ता था जिसके कारण उसके स्तन जीतूजी के मुंहमें ही जा लगते थे। कर्नल साहब ने कई बार कोशिश की वह उन्हें नजरअंदाज करे पर आखिर वह भी तो एक मर्द ही थे ना? कब तक अपने आपको रोक सकते थे? एक बार अचानक ही जब अपर्णा झुकी और उसकी चूँचियाँ जीतूजी के मुंह में जा लगीं तो बीन चाहे जीतूजी का मुंह खुल गया और अपर्णा का एक स्तन जीतूजी के मुंह में घुस गया। कर्नल साहब अपने आपको रोक नहीं पाए और उन्होंने अपर्णा के स्तन को मुंह में लेकर वह उसे मुंह में ही दबाने और चूसने लगे। अपर्णा ने ब्लाउज और ब्रा पहन रखी थीं, पर जीतूजी के मुंह की लार से अपर्णा का ब्लाउज और ब्रा भीग गए। अपर्णा को महसूस हुआ की उसके स्तन जीतूजी अपने मुंह में लेकर चूस रहे थे। अपर्णा को इस कदर अपने इतने करीब पाकर जीतूजी का सर तो ठंडा हो रहा था पर उनके दो पॉंव के बिच उनका लण्ड गरम हो गया था। जल्दी में जीतूजी ने अंदर अंडरवियर भी नहीं पहना था। उनका पयजामा के ऊपर उनके लण्ड के खड़े होने के कारण तम्बू जैसा बन गया था। अपर्णा की पीठ उस तरफ थी इस कारण वह उसे देख नहीं सकती थी।
अपर्णा ने जब पाया की जीतूजी ने उसके एक स्तन को मुंह में लिया था तो वह एकदम घबड़ा गयी। उसने पीछे हटने के लिए एक हाथ का टेका लेने केलिए अपना हाथ पीछे किया तो वह जीतूजी की टाँगों के बिच में जा पहुंचा। अपर्णा ने अपना हाथ वहाँ टिकाया तो जीतूजी का लण्ड ही उसके हाथ में आ गया। यह दूसरी बार हुआ की अपर्णा ने जीतूजी का लण्ड अपने हाथ में कपडे के दूसरी और महसूस किया था। एक तरफ अपर्णा को जीतूजी का बुखार की चिंता थी तो दूसरी और उनके नजदीक आने से वह भी तो गरम हो रही थी। अपर्णा की समझ में यह नहीं आ रहाथा की वह करे तो क्या करे? उसका एक स्तन जीतूजी के मुंह में था तो उसका हाथ जीतूजी का लण्ड पकडे हुए था। उसके हाथ में जीतूजी के लण्ड से निकल रही चिकनाहट महसूस हो रही थी। जीतूजी का पजामा भी उनकी टाँगों के बिच में फैली हुई चिकनाहट से भीग चुका था। अपर्णा ने अपना हाथ हिलाया तो उसकी मुठ्ठी में जीतूजी का लण्ड भी हिलने लगा।
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26-12-2019, 11:34 AM
पत्नी की अदला-बदली - 04
अपर्णा की हालत साँप छछूंदर निगले ऐसी हो गयी। ना वह निगल सकती थी और ना वह उगल सकती थी। ना वह जीतूजी को रोक सकती थी और नाही उन्हें आगे बढ़ने की इजाजत दे सकती थी। वह करे तो क्या करे? उस रात वह भी ठीक तरह सो नहीं पायी थी। उसके दिमाग में पिछली शामकी घंटनाएँ पूरी रात घूमती रहीथीं। रोहित का पीछा कौन कर रहा था? क्यों कर रहा था? वाकई में कर भी रहा था की नहीं? यह सवाल उसको खाये जा रहे थे। पर उस समय वह सब सोचने का वक्त नहीं था। उसे एक ही चिंता थी। अगर जीतूजी उसे चोदने के लिए मजबूर करेंगे तो वह क्या करेगी? एक बात साफ़ थी। अपर्णा जानती थी की उसमें उतनी हिम्मत नहीं थी की वह जीतूजी को रोक सके। इसका कारण यह था की वह खुद भी कहीं ना कहीं अपने मन की गहराइयों में जीतूजी से चुदवाना चाहती थी। अपर्णा को जीतूजी का मोटा, लंबा लण्ड उसकी चूत में कैसे फिट होगा उसकी जिज्ञासा मार रही थी। वह उस लण्ड को अपनी चूत में अनुभव करना चाहती थी। तो दूसरी और उसने माँ को दिया हुआ वचन था। उसे अपने पति से धोका करेगी उसकी चिंता नहीं थी, क्यूंकि उसके पति को अगर अपर्णा जीतूजी से चुदवाने के लिए राजी हो जाए तो कोई आपत्ति नहीं होगी यह अपर्णा जानती थी। बल्कि अपर्णा के पति रोहित तो अपर्णा को जीतूजी का नाम लेकर उकसाने के लिए जी भर कोशिश कर रहे थे। जाहिर था की रोहित चाहते थे की कभी ना कभी अपर्णा जीतूजी से चुदवाले ताकि उनका रास्ता साफ़ हो जाये। मतलब अपर्णा के पति रोहित जी भी तो जीतूजी की बीबी श्रेया को चोदना चाहते थे ना? अगर अपर्णा जीतूजी से चुदवाने लगी तो फिर अपर्णा भी तो अपने पति रोहित को जीतूजी की बीबी श्रेया को चोदने से कैसे रोक सकती है?
हालांकि अपर्णा ने कभी अपने पति को किसी भी औरत को चोदने से रोकना नहीं चाहा। अपर्णा जानती थी की उसके पति भी रंगीले मिज़ाज के तो हैं ही। वह विदेश में जाते हैं तो वहाँ तो औरतें, अगर कोई मर्द मन भाया तो, अक्सर अपनी टाँगों को खोलने में देर नहीं करतीं। मर्दों को अपने देश की तरह वहाँ खूबसूरत औरतों को चोदने के लिए बहुत ज्यादा प्रयास नहीं करने पड़ते। इस लिए अपर्णा ने मानसिक रूप से यह स्वीकार कर लिया था की उसके पति रोहित मौक़ा मिलने पर दूसरी औरतों को चोदते थे और इसके बारे में ना तो वह अपने पति से पूछती थी और ना तो उसके पति अपर्णा को कुछ बताते थे। तो मानसिक रूप से उनका वैवाहिक जीवन खुला सा ही था। पर बात यहां अपर्णा की अपनी अस्मिता की थी। अपर्णा को लगा की वह उस समय ज्यादा कुछ सोचने की स्थिति में नहीं थी। दबाव के मारे उसका सर फटा जा रहा था। उसे कुछ ज्यादा ही थकान महसूस हो रही थी। उसकी बगल में जीतूजी भी शायद नींद में थे क्यूंकि काफी समय से उन्होंने अपनी आँखें खोली नहीं थी और उनकी साँसे एक ही गति से मंद मंद चल रहीं थी। अपर्णा को एक नींद की झपकी आ गयी और वह जीतूजी के बदन पर ही लुढ़क गयी। उसका एक स्तन जीतूजी के मुंह में था वह जानते हुए भी वह उस समय कुछ कर पाने के लिए असमर्थ थी।
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अपर्णा गहरी नींद में बेहोश सी हालत में जीतूजी के मुंह में अपना एक स्तन धरे हुए जीतूजी के ऊपर अपना बदन झुका कर ही सो गयी। कर्नल साहब भी बुखार के कारण आधी निंद और आधे जागृत अवस्था में थे। उनके जहन में अजीब सा रोमांच था। उनके सपनों की रानी अपर्णा उनपर अपना पूरा बदन टिका कर सो रही थी। उसका एक मद मस्त स्तन जीतूजी के मुंह में था जिसका रसास्वादन वह कर रहे थे, हालांकि अपर्णा ने ब्लाउज और ब्रा पहन रक्खी थी।
जब कर्नल साहब थोड़ा अपनी तंद्रा से बाहर आये तो उन्होंने अपर्णा का आधा बदन अपने बदन पर पाया। कर्नल साहब जानते थे की अपर्णा एक मानिनी थी। वह किसी भी मर्द को अपना तन आसानी से देने वाली नहीं थी। श्रेया ने उनको बताया था की अपर्णा एक राजपूतानी थी और उसने प्रण लिया था की वह अगर किसीको अपना तन देगी तो उसको देगी जो अपर्णा के ऊपर अपना प्राण तक न्योछवर करने के लिए तैयार हो। किसी भी ऐसे वैसे मर्द को अपर्णा अपना तन कभी नहीं देगी। कर्नल साहब ऐसी महिलाओं की इज्जत करना जानतेथे। वह कभी भी स्त्रियोंकी कमजोरी का फायदा उठाने में विश्वास नहीं रखते थे। यह उनके उसूल के खिलाफ था। पर उनकी भी हालत ख़राब थी। वह ना सिर्फ अपर्णा के बदन के, बल्कि अपर्णा के पुरे व्यक्तित्व से बहुत ज्यादा प्रभावित थे। अपर्णा की सादगी, भोलापन, शूरवीरता, देश प्रेम, जोशके वह कायलथे। अपर्णा की बातें करते हुए हाथों और उँगलियों को हिलाना, आँखों को नचाना बगैरह अदा पर वह फ़िदा थे। और फिर उन्होंने अपर्णा को इस हाल में अपने पर गिरने के लिए मजबूर भी तो नहीं किया था। अपर्णा अपने आप ही आकर उनकी इतनी करीबी सेवा में लग गयी थी। उन्होंने अपने लण्ड पर भी अपर्णा का हाथ महसूस किया था। कर्नल साहब भी क्या करे? क्या अपर्णा उनपर अपना सब कुछ न्योछावर करने के लिए तैयार थी? यह सब सवाल कर्नल साहब को भी खाये जा रहे थेl
खैर कर्नल साहब थोड़ा खिसके और अपर्णा के स्तन को मुंह से निकाल कर अपर्णा को धीरे से अपने बगल में सुला दिया। अपर्णा का ब्लाउज और उसकी ब्रा जीतूजी के मुंह की लार के कारण पूरी तरह गीली हो चुकी थी। जीतूजी को अपर्णा के स्तन के बिच में गोला किये हुए अपर्णा के स्तन का गहरे बादामी रंग का एरोला और उसके बिलकुल केंद्र में स्थित फूली हुई निप्पल की झांकी हो रही थी। कर्नल साहब की समझ में नहीं आ रहा था की वह क्या करे। पर उस समय उन्होंने देखा की अपर्णा गहरी नींद सो रही थी। उन्होंने अपर्णा को एक करवट लेकर ऐसे लिटा दिया जिससे अपर्णा का पिछवाड़ा कर्नल साहब की और हो। अपर्णा की गाँड़ कर्नल साहब के लण्ड से टकरा रही थी। कर्नल साहब ने अपना हाथ अपर्णा की बाँह और कंधेके ऊपर से अपर्णा के स्तन पर रख दिया। वह इतना तो समझ गए थे की अपर्णा को अपना बदन जीतूजी से छुआ ने में कोई भारी आपत्ति नहीं होगी। क्यूंकि जीतूजी ने पहले भी तो अपर्णा के स्तन छुए थे। उस समय अपर्णा ने कोई विरोध नहीं किया था। अपर्णा गहरी नींद में एक सरीखी साँसे लेती हुई मुर्दे की तरह लेटी हुई थी। उसे कुछ होश न था। जीतूजी ने धीरे से अपर्णा के ब्लाउज के बटन खोल दिए। फिर उन्होंने दूसरे हाथ से पीछे से अपर्णा की ब्रा के हुक खोल दिए। अपर्णा के अल्लड़ करारे स्तन पूरी स्वच्छंदता से आज़ाद हो चुके थे। जीतूजी बदन में रोमांचक सिहरनें उठ रही थी। जीतूजी के रोंगटे खड़े हो गए थे। जीतूजी ने दुसरा हाथ धीरे से अपर्णा के बदन के निचे से घुसा कर अपर्णा को अपनी बाँहों में ले लिया। जीतूजी दोनों हाथोँ से अपर्णा के स्तनोँ को दबाने मसलने और अपर्णा के स्तनोँ की निप्पलोँ को पिचकाने में लग गए। अपने हाथों की हाथेलियों में अपर्णा के दोनों स्तनोँ को महसूस करते ही जीतूजी का लण्ड फुंफकार मारने लगा था। कर्नल साहब ने अपर्णा का निचला बदन अपनी दोनों टाँगों के बीचमें ले लिया। अपर्णा उस समय जीतूजी की दोनों बाँहों में और उनकी दोनों टांगों के बिच कैद थी।
ऐसा लगता था जैसे उस समय अपर्णा थी ही नहीं।
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अपर्णा और जीतूजी दोनों जैसे एक ही लग रहे थे। जीतूजी का लण्ड इतना फुंफकार रहा था की जीतूजी उसे रोकना नामुमकिन सा महसूस कर रहे थे। जीतूजी महीनों से अपर्णा को अपने इतने करीब अपनी बाहों में लाने के सपने देख रहे थे। अपर्णा के स्तन, उसकी गाँड़, उसका पूरा बदन और ख़ास कर उसकी चूत चूसने के लिए वह कितने व्याकुल थे? उसी तरह उनकी मँशा थी की एक ना एक दिन अपर्णा भी उनका लण्ड बड़े प्यार से चूसेगी और अपर्णा एक दिन उनसे आग्रह करेगी वह अपर्णा को चोदे। यह उनका सपना था। यह सब सोच कर भला ऊनका लण्ड कहाँ रुकता? जीतूजी का लण्ड तो अपनी प्यारी सखी अपर्णा की चूत में घुसने के लिए बेचैन था। उसे अपर्णा की चूत में अपना नया घर जो बनाना था। अपर्णा उस समय साडी पहने हुए थी। कर्नल साहब ने देखा की अपर्णा को ऊपर निचे खिसकाने के कारण अपर्णा की साडी उसकी जाँघों से ऊपर तक उठ चुकी थी। अपर्णा की करारी मांसल सुडौल नंगी जाँघें देख कर जीतूजी का मन मचल रहा था। पर जैसे तैसे उन्होंने अपने आप पर नियत्रण रक्खा और अपर्णा को खिंच कर कस कर अपनी बाँहों में और अपनी टाँगों के बिच दबोचा और अपर्णा के बदन का आनंद लेने लगे।
जाहिर था की जीतूजी का मोटा लंबा लण्ड पजामें में परेशान हो रहा था। एक शेर को कैद में बंद करने से वह जैसे दहाड़ता है वैसे ही जीतूजी लण्ड पयजामे में फुंफकार मार रहा था। अपर्णा की गाँड़ और उसकी ऊपर उठी हुई साडी के कारण जीतूजी का लण्ड अपर्णा की गाँड़ की बिच वाली दरार में घुसने के लिए बेताब हो रहा था। पर बिच में साडी का मोटासा लोचा था। जीतूजी अपर्णा की गाँड़ में साडी के कपडे के पीछे अपना लण्ड घुसा कर संतोष लेने की कोशिश कर रहे थे। पर अपर्णा के नंगे स्तन उनकी हथेलियों में खेल रहे थे। उसे सहलाने में, उन्हें दबानेमें और मसलने में और उन स्तनोँ की निप्पलोँ को पिचकाने में जीतूजी मशगूल ही थे की उन्हें लगा की अपर्णा जाग रही थी।
अपनी नींद की गहरी तंद्रा में अपर्णा ने ऐसे महसूस किया जैसे वह अपने प्यारे जीतूजी की बाँहों में थी। उसे ऐसा लगा जैसे जीतूजी उसकी चूँचियों को बड़े प्यार से तो कभी बड़ी बेरहमी से दबाते, मसलते तो कभी उसकी निप्पलों को अपनी उँगलियों में कुचलते थे। वह मन ही मन बड़ा आनंद महसूस कर रही थी। उसे यह सपना बड़ा प्यारा लग रहा था। बेचारी को क्या पता था की वह सपना नहीं असलियत थी? जब धीरे धीरे अपर्णा की तंद्रा टूटी तो उसने वास्तव में पाया की वह सचमुच में ही जीतूजी की बाँहों और टाँगों के बिच में फँसी हुई थी। जीतूजी का मोटा और लम्बा लण्ड उसकी गाँड़ की दरार को टोंच रहा था। हालांकि उसकी गाँड़ नंगी नहीं थी। बिच में साडी, घाघरा और पेंटी थी, वरना शायद जीतूजी का लण्ड उसकी गाँड़ में या तो चूत में चला ही जाता। शायद अपर्णा की गाँड़ में तो जीतूजी का मोटा लण्ड घुस नहीं पाता पर चूत में तो जरूर वह चला ही जाता। अपर्णा ने यह भी अनुभव किया की वास्तव में ही जीतूजी उसके दोनों स्तनों को बड़े प्यार से तो कभी बड़ी बेरहमी से दबाते, मसलते और कुचलते थे। वह इस अद्भुत अनुभव का कुछ देर तक आनंद लेती रही। वह यह सुनहरा मौक़ा गँवा देना नहीं चाहती थी। ऐसे ही थोड़ी देर पड़े रहने के बाद उसने सोचा की यदि वह ऐसे ही पड़ी रही तो शायद जीतूजी उसे स्वीकृति मानकर उसकी साडी, घाघरा ऊपर कर देंगे और उसकी पेंटी को हटा कर उसको चोदने के लिए उस के ऊपर चढ़ जाएंगे और तब अपर्णा उन्हें रोक नहीं पाएगी। अपर्णा ने धीरे से अपने स्तनों को सहलाते और दबाते हुए जीतूजी के दोनों हाथ अपने हाथ में पकडे। जीतूजी का विरोध ना करते हुए अपर्णा ने उन्हें अपने स्तनोँ के ऊपर से नहीं हटाया। बस जीतूजी के हाथों को अपने हाथों में प्यार से थामे रक्खा।
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