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Romance काला इश्क़!
update 58

शादी अच्छे से निपट गई और घर वाले अगले दिन वापस गाँव चले गए| फिर वही त्योहारों की झड़ी और इस बार घर वालों ने जबरदस्ती हमें घर पर बुला लिया तो सारे त्यौहार उन्हीं के साथ हँसी-ख़ुशी मनाये गए| अब घर पर थे तो अकेले में बैठने का समय नहीं मिलता था, इसलिए मैं कई बार देर रात को ऋतू के पास जा कर बैठ जाता और वो कुछ देर हम एक साथ बैठ कर बिताते| घर से बजार जाने के समय मैं कोई बहाना बना देता और ऋतू को साथ ले जाता| दिवाली की रात हम सारे एक साथ बैठे थे तो ताऊ जी ने मुझे अपने पास बैठने को बुलाया;

ताऊ जी: वैसे मुझे तेरी तारीफ तेरे सामने नहीं करनी चाहिए पर मुझे तुझ पर बहुत गर्व है| इस पूरे परिवार में एक तू है जो अपनी सारी जिम्मेदारियाँ उठाता है| मुझे तुझ में मेरा अक्स दिखता है....!

ये कहते हुए ताऊ जी की आँखें नम हो गईं|

पिताजी: भाई साहब सही कहा आपने| पिताजी के गुजरने के बाद सब कुछ आप ने ही तो संभाला था|

ताऊ जी: मानु बेटा, जब तूने घर लेने की बात कही तो मैं बता नहीं सकता की मुझे कितना गर्व हुआ तुझ पर| तू अपनी मेहनत के पैसों से अपना घर लेना चाहता है, सच हमारे पूरे खानदान में कभी किसी ने ऐसा नहीं सोचा|

मेरी तारीफ ना तो चन्दर भैया के गले उतर रही थी और ना ही भाभी के और वो जैसे-तैसे नकली मुस्कराहट लिए बैठे थे| पर मेरे माता-पिता, ताई जी और ख़ास कर ऋतू का सीना गर्व से चौड़ा हो गया था|

पिताजी: बेटा थोड़ा समय निकाल कर खेती-किसानी भी सीख ले ताकि बाद में तुम और चन्दर ये सब अच्छे से संभाल सकें| तेरी और रितिका की शादी हो जाए तो हम सब तुझे और चन्दर को सब दे कर यात्रा पर चले जायेंगे|

ताई जी: बेटा मान भी जा हमारी बात और कर ले शादी!

मैं: माफ़ करना ताई जी मैं कोई जिद्द नहीं कर रहा बस घर खरीदने तक का समय माँग रहा हूँ|

ताऊ जी: ठीक है बेटा!

तो इस तरह मुझे पता चला की आखिर घर वाले क्यों मुझे अचानक इतनी छूट देने लगे थे| अगले दिन मैं और ऋतू वापस चेहर लौट आये और फिर दिन बीतने लगे| क्रिसमस पर हम दोनों सुबह चर्च गए और वो पूरा दिन हम ने घूमते हुए निकाला| पर अगले दिन घर से खबर आई की ताऊ जी की तबियत ख़राब है, ये सुन कर ऋतू ने कहा की उसे घर जाना है| उसकी अटेंडेंस का कोई चक्कर नहीं था तो मैं उसे घर छोड़ आया| उसके यहाँ ना होने के कारन मैंने 31st दिसंबर नहीं मनाया और घर पर ही रहा| जब मैं उसे लेने घर पहुँचा तो ऋतू बोली; "जानू! जब से मैं पैदा हुई हूँ तब से हमने कभी होली नहीं मनाई|"

"जान! दरअसल वो .... 'काण्ड' होली से कुछ दिन पहले ही हुआ था| इसलिए आज तक इस घर में कभी होली नहीं मनाई गई| पर कोई बात नहीं मैं बात करता हूँ की अगर ताऊ जी मान जाएँ|"

"ठीक है! पर अभी नहीं, अभी उनकी तबियत थोड़ी सी ठीक हुई है और वैसे भी अभी तो दो महीने पड़े हैं|" ऋतू ने कहा| ताऊ जी की तबियत ठीक होने लगी थी इस लिए उन्होंने खुद ऋतू को वापस जाने को कहा था|       


जनवरी खत्म हुआ और फिर कॉलेज का एनुअल डे आ गया| पर मुझे दो दिन के लिए बरेली जाना था, जब मैंने ये बात ऋतू को बताई तो वो रूठ गई और कहने लगी की वो भी नहीं जायेगी| मैंने बड़ी मुश्किल से उसे जाने को राजी किया ये कह कर की; "ये कॉलेज के दिन फिर दुबारा नहीं आएंगे|" ऋतू मान गई और मैंने ही उसके लिए एक शानदार ड्रेस सेलेक्ट की| ऋतू ये नहीं जानती थी की मेरा प्लान क्या है! अरुण चूँकि पहले से ही बरेली में था तो मैंने उससे मदद मांगी की वो काम संभाल ले और मैं एक ही दिन में अपना बचा हुआ काम उसे सौंप कर वापस आ गया| एनुअल डे वाले दिन ऋतू कॉलेज पहुँच गई थी, मैंने गेट पर से उसे फ़ोन किया और पुछा की वो गई या नहीं? ऋतू ने बताया की वो पहुँच गई है| ये सुनने के बाद ही मैं कॉलेज में एंटर हुआ और ऋतू को ढूंढता हुआ उसके पीछे खड़ा हो गया| मैंने उसकी आँखिन मूँद लीं और वो एक दम से हड़बड़ा गई और कहने लगी; "प्लीज... कौन है?... प्लीज…छोड़ो मुझे!" मैंने उसकी आँखों पर से अपने हाथ उठाये और वो मुझे देख कर हैरान हो गई| 

[Image: 2-Year-College-Fest.jpg]

हैरान तो मैं भी हुआ क्योंकि ऋतू आज लग ही इतनी खूबसूरत रही थी 


[Image: 2-Year-College-Fest-Ritu.jpg]

और मैं उम्मीद करने लगा की वो आ कर मेरे गले लग जाएगी पर ऐसा नहीं हुआ| मुझे लगा शायद ऋतू शर्मा रही है पर तभी राहुल अपने दोनों हाथों में कोल्ड-ड्रिंक लिए वहाँ आ गया| उसने एक कोल्ड ड्रिंक ऋतू की तरफ बढ़ाई और ऋतू ने संकुचाते हुए वो कोल्ड-ड्रिंक ले ली| मुझे देख कर राहुल बोला; "Hi!" पर मैंने उसकी बात को अनसुना कर दिया|      

तभी ऋतू ने मेरा हाथ पकड़ा और राहुल को 'excuse us' बोल कर मुझे एक तरफ ले आई|

"आज तो बड़े dashing लग रहे हो आप?" ऋतू बोली|

"थैंक यू ... but .... I thought you didn’t like him!” मैंने कहा क्योंकि फर्स्ट ईयर के एनुअल डे पर ऋतू ने यही कहा था|

“I…realized that we should’nt blame children because of their parents. It wasn’t his fault?” ऋतू ने सोचते हुए कहा|

“Fair enough…. Anyway you’re looking faboulous today!” मैंने ऋतू को कॉम्पलिमेंट देते हुए कहा|

“Thank you! वैसे आपने तो कहा था की आपको बहुत काम है और आप नहीं आने वाले?" ऋतू ने मुझसे शिकायत करते हुए कहा|

"भाई अपनी जानेमन को मैं भला कैसे उदास करता?" मैंने ऋतू का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा|

"मैंने सोच लिया था की मैं आप से बात नहीं करुँगी!" ऋतू ने कहा|

"इसीलिए तो भाग आया!" मैंने हँसते हुए कहा और ऋतू भी ये सुन कर मुस्कुरा दी| इस बार कुछ डांस पर्फॉर्मन्सेस थीं तो मैं और ऋतू खड़े वो देखने लगे और लाउड म्यूजिक के शोर में एन्जॉय करने लगे| ऋतू की कुछ सहेलियाँ आई और वो भी हमारे साथ खड़ी हो कर देखने लगीं| ये देख कर मैंने सोचा की चलो ऋतू ने नए दोस्त बना लिए हैं. काम्य के जाने के बाद ऋतू की जिंदगी में दोस्त ही नहीं थे!     


खेर दिन बीते और होली आ गई....   

हर साल की तरह इस साल भी हम दोनों होली से एक दिन पहले ही घर आ गए| शाम को होलिका दहन था, जिसके बाद सब घर लौट आये| रात का खाना बन रहा था और आंगन में मैं, चन्दर भय, पिताजी और ताऊ जी बैठे थे|

मैं: ताऊ जी...आप बुरा ना मानें तो आपसे कुछ माँगूँ? (मैंने डरते हुए कहा|)

ताऊ जी: हाँ-हाँ बोल!

मैं: ताऊ जी ... इस बार होली घर पर मनाएँ?

मेरे ये बोलते ही घर भर में सन्नाटा पसर गया, कोई कुछ नहीं बोल रहा था और मैं मन ही मन सोचने लगा की मैंने कुछ ज्यादा ही माँग लिया क्या? ताऊ जी उठे और छत पर चले गए और पिताजी मुझे घूर कर देखने लगे और फिर वो भी ताऊ जी के पीछे छत पर चले गए| कुछ देर बाद मुझे ताऊ जी ने ऊपर से आवाज दी, मैं सोचने लगा की कुछ ज्यादा ही फायदा उठा लिया मैंने घर वालों की छूट का| छार पर पहुँच कर मैं पीछे हाथ बांधे खड़ा हो गया|

ताऊ जी: तुझे पता है की हम क्यों होली नहीं मनाते?

मैंने सर झुकाये हुए ना में गर्दन हिलाई, कारन ये की अगर मैं ये कहता की मुझे पता है तो वो मुझसे पूछते की किस ने बताया और फिर संकेत और उसके परिवार के साथ हमारे रिश्ते बिगड़ जाते|

ताऊ जी: तुझे नहीं पता, चन्दर की पहली बीवी रितिका जिससे हुई वो किसी दूसरे लड़के के साथ घर से भाग गई थी| उस टाइम बहुत बवाल हुआ था, गाँव में हमारी बहुत थू-थू हुई| उस समय गाँव के मुखिया जो आजकल हमारे मंत्री साहब है उन्होंने ......फरमान सुनाया की दोनों को मार दिया जाए| इसलिए हम ....होली नहीं मनाते| (ताऊ जी ने मुझे censored बात बताई|

मैं: तो ताऊ जी हम बाकी त्यौहार क्यों मनाते हैं?

पिताजी: ये घटना होली के आस-पास हुई थी इसलिए हम होली नहीं मनाते| (पिताजी ने ताऊ जी की बात ही दोहराई और 'होली नहीं मनाते' पर बहुत जोर दिया|)

मैं: जो हुआ वो बहुत साल पहले हुआ ना? अब तो सब उसे भूल भी गए हैं! गाँव में ऐसा कौन है जो हमारी इज्जत नहीं करता? हम कब तक इस तरह दब कर रहेंगे? ज़माना बदल रहा है और कल को मेरी शादी होगी तो क्या तब भी हम होली नहीं मनाएँगे?

शायद मेरी बात ताऊ जी को सही लगी इसलिए उन्होंने खुद ही कहा;

ताऊ जी: ठीक है...लड़का ठीक कह रहा है| कब तक हम उन पुरानी बातों की सजा बच्चों को देंगे| तू कल जा कर बजार से रंग ले आ|

मैं उस समय इतने उत्साह में था की बोल पड़ा; "जी कलर तो मैं शहर से लाया था|" ये सुन कर ताऊ जी हंस दिए और मुझे पिताजी से डाँट नहीं पड़ी|

मुझे उस रात एक बात क्लियर हो गई की मुझ पर और ऋतू पर जो बचपन से बंदिशें लगाईं गईं थीं वो भाभी (ऋतू की असली माँ) की वजह से थी| ऋतू को तो उसकी माँ के कर्मों की सजा दी गई थी| उसकी माँ के कारन ही ऋतू को बचपन में कोई प्यार नहीं मिला| घर वालों को डर था की कहीं हम दोनों ने भी कुछ ऐसा काण्ड कर दिया तो? पर काण्ड तो होना तय था, क्योंकि ताऊ जी के सख्त नियम कानूनों के कारन ही मैं और ऋतू इतना नजदीक आये थे|   


खेर जब ताऊ जी का फरमान घर में सुनाया गया तो सबसे ज्यादा ऋतू ही खुश थी| इधर भाभी को मुझसे मजे लेने थे; "मेरी शादी के बाद इस बार मेरी पहली होली है, तो मानु भैया मुझे लगाने को कौन से रंग लाये हो?"

"काला" मैंने कहा और जोर से हँसने लगा| ऋतू भी अपना मुँह छुपा कर हँसने लगी, ताई जी की भी हंसी निकल गई और माँ ने हँसते हुए मुझे मारने के लिए हाथ उठाया पर मारा नहीं|

"तो मानु भैया, पहले से प्लानिंग कर के आये थे लगता है?" चन्दर ने खीजते हुए कहा|     

"मैंने कोई प्लानिंग नहीं बल्कि रिक्वेस्ट की है ताऊ जी से, जो उन्होंने मानी भी है| कलर्स तो मैं इसलिए लाया था की अगर ताऊ जी मान गए तो होली खेलेंगे वरना इन से हम दिवाली पर रंगोली बनाते|" ये सुन कर वो चुप हो गए| अब मुझे कोई और बात छेड़नी थी ताकि माहौल में कोई तनाव न बने| "ताई जी ये कलर्स प्रकर्तिक हैं, इनमें जरा सा भी केमिकल इस्तेमाल नहीं हुआ है| हमारे त्वचा के लिए ये बहुत अच्छे हैं|" मैंने कलर्स की बढ़ाई करते हुए कहा| 

"हे राम! इसमें भी मिलावट होने लगी?" ताई जी ने हैरान होते हुए कहा|

"दादी जी आजकल सब चीजों में मिलावट होती है, खाने की हो या पहनने की|" ऋतू ने अपना 'एक्सपर्ट ओपिनियन' देते हुए कहा|

"सच्ची ज़माना बड़ा बदल गया, लालच में इंसान अँधा होने लगा है|" माँ ने कहा| घर की औरतों को बात करने को एक टॉपिक मिल गया था इसलिए मैं चुप-चाप वहाँ से खिसक लिया| मैं छत पर बैठ कर सब को होली के मैसेज फॉरवर्ड कर रहा था की चन्दर ऊपर आ गया और मुझसे बोला; "अरे रंग तो ले आये! भांग का क्या?"

"ताऊ जी को पता चल गया ना तो कुटाई होगी दोनों की!" मैंने कहा|

"अरे कुछ नहीं होगा? सब को पिला देते हैं थोड़ी-थोड़ी!"  चन्दर ने खीसें निपोरते हुए कहा|

"दिमाग खराब है?" मैंने थोड़ा गुस्सा करते हुए कहा|

"अच्छा अगर पिताजी ने हाँ कर दी फिर तो पीयेगा ना?" चन्दर ने कुछ सोचते हुए कहा|

मैंने मना कर दिया क्योंकि एक तो मैं ऋतू को वादा कर चूका था और दूसरा कॉलेज में एक बार पी थी और हम चार लौंडों ने जो काण्ड किया था की क्या बताऊँ| पर चन्दर के गंदे दिमाग में एक गंदा विचार जन्म ले चूका था|


अगले दिन सब जल्दी उठे और जैसे मैं नीचे आया तो सब से पहले ताऊ जी ने मेरे माथे पर तिलक लगाया और मैंने उनके पाँव छुए| फिर पिताजी, उसके बाद ताई जी और फिर माँ ने भी मुझे तिलक लगाया और मैंने उनके पाँव छुए| चन्दर भैया घर से गायब थे तो भाभी ही मुट्ठी में गुलाल लिए मेरे सामने खड़ी हो गई, पर इससे पहले वो मुझे रंग लगाती ऋतू एक दम से बीच में आ गई और फ़टाफ़ट मेरे दोनों गाल उसने गुलाल से चुपड़ दिए| वो तो शुक्र है की मैंने आँख बंद कर ली थी वरना आँखों में भी गुलाल चला जाता| मुझे गुलाल लगा कर वो छत पर भाग गई, मैंने थाली से गुलाल उठाया और छत की तरफ भागा| ऋतू के पास भागने की जगह नहीं बची थी तो वो छत के एक किनारे खड़ी हुई बीएस 'सॉरी..सॉरी...सॉरी' की रट लगाए हुए थी| मैं बहुत धीरे-धीरे उसकी तरफ बढ़ा और दोनों हाथों को उसके नरम-नरम गालों पर रगड़ कर गुलाल लगाने लगा| मेरे छू भर लेने से ऋतू कसमसाने लगी थी और उसकी नजरें नीचे झुकी हुई थीं| छत पर कोई नहीं था तो मेरे पास अच्छा मौका था ऋतू को अपनी बाहों में कस लेने का| मैंने मौके का पूरा फायदा उठाया और ऋतू को अपनी बाहों में भर लिया| ऋतू की सांसें भारी होने लगी थी और वो मेरी बाहों से आजाद होने को मचलने लगी| तेजी से सांस लेते हुए ऋतू मुझसे अलग हुई, मानो जैसे की उसके अंदर कोई आग भड़क उठी हो जिससे उसे जलने का खतरा हो| मैं ऋतू की तेज सांसें देख रहा था की तभी भाभी ऊपर आ गईं; "अरे मानु भैया! हम से भी गुलाल लगवा लो!" पर मेरा मुँह तो ऋतू ने पहले ही रंग दिया था तो भाभी के लगाने के लिए कोई जगह ही नहीं बची थी| "तुम्हारे ऊपर तो रितिका का रंग चढ़ा हुआ है, अब भला मैं कहाँ रंग लगाऊँ?" भाभी ने मेरी टाँग खींचते हुए कहा|

"माँ ...गर्दन पर लगा दो?" ऋतू हंसती हुई बोली और ये सुन कर भाभी को मौका मिल गया मुझे छूने का| उन्होंने मेरी टी-शर्ट के गर्दन में एकदम से हाथ डाला और उसे मेरे छाती के निप्पलों की तरफ ले जाने लगी| मुझे ये बहुत अटपटा लगा और मैंने उनका हाथ निकाल दिया| भाभी समझ गई की मुझे बुरा लगा है और ऋतू भी ये सब साफ़-साफ़ देख पा रही थी| मैं उस वक़्त कहने वाला हुआ था की ये क्या बेहूदगी है पर ऋतू सामने खड़ी थी इसलिए कुछ नहीं बोला| मैं वापस नीचे जाने लगा तो भाभी पीछे से बोली; "अरे कहाँ जा रहे हो? मुझे तो रंग लगा दो? आज का दिन तो भाभी देवर से सबसे ज्यादा मस्ती करती है और तुम हो की भागे जा रहे हो?" मैंने उनकी बात का कोई जवाब नहीं दिया और संकेत से मिलने निकल पड़ा| उसके खेत में जमावड़ा लगा हुआ था और वहां सब ठंडाई पी रहे थे और पकोड़े खा रहे थे| मुझे देखते ही वो लड़खड़ाता हुआ आया और गले लगा फिर तिलक लगा कर मुझे जबरदस्ती ठंडाई पीने को कहा| अब उसमें मिली थी भाँग और मैं ठहरा वचन बद्ध! इसलिए फिर से घरवालों के डर का बहाना मार दिया| कुछ देर बाद ताऊ जी और पिताजी भी आ गए और वो ये देख कर खुश हुए की मैंने भाँग नहीं पि! पर ताऊ जी और पिताजी ने एक-एक गिलास ठंडाई पि और फिर हम तीनों घर आ गए| चन्दर का अब भी कुछ नहीं पता था| घर पहुँच कर सबसे पहले भाभी मुझे देखते हुए बोली; "सारे गाँव से होली खेल लिए पर अपनी इकलौती भाभी से तो खेले ही नहीं?"

"छत पर ऋतू के सामने मेरी पूरी गर्दन रंग दी आपने और कितनी होली खेलनी है आपको?" मैंने जवाब दिया| फिर मैंने अचानक से झुक कर उनके पाँव छूए और भाभी बुदबुदाते हुए बोली; "पाँव की जगह कुछ और छूते तो मुझे और अच्छा लगता!" मैं उनका मतलब समझ गया पर पिताजी के सामने कहूँ कैसे? इसलिए मैं नहाने के लिए जाने को आंगन की तरफ मुड़ा तो भाभी ने लोटे में घोल रखा रंग पीछे से मेरे सर पर फेंका| ठंडा-ठंडा पानी जैसे शरीर को लगा तो मेरी झुरझुरी छूट गई| "अब तो गए आप?" कहते हुए मैंने ताव में उनके पीछे भागा, भाभी खुद को बचाने को इधर-उधर भागना चाहती थी पर मैंने उनका रास्ता रोका हुआ था| इतने में उन्होंने ऋतू का हाथ पकड़ा और उसे मेरी तरफ धकेला, मैंने ऋतू के कंधे पर हाथ रख कर उसे साइड किया और भाभी का दाहिना हाथ पकड़ लिया और उन्हें झटके से खींचा| भाभी को गिरने को हुईं तो मैंने उन्हें गिरने नहीं दिया और गोद में उठा लिया| उनका वजन सच्ची बहुत जयदा था ऊपर से वो मुझसे छूटने के लिए अपने पाँव चला रही थीं तो मेरे लिए उन्हें उठाना और मुश्किल हो गया था| आंगन में एक टब में कुछ कपडे भीग रहे थे मैंने उन्हें ले जा कर उसी टब में छोड़ दिया| जैसे ही भाभी को ठन्डे पानी का एहसास अपनी गांड और कमर पर हुआ वो चीख पड़ी; "हाय दैय्या! मानु तुम सच्ची बड़े खराब हो! मर गई रे!" उन्हें ऐसे तड़पता देख मैं और ऋतू जोर-जोर से हँसने लगे और भाभी की चीख सुन माँ और ताई जी भी उन्हें टब में ऐसे छटपटाते हुए देख हँसने लगे| इससे पहले की माँ कुछ कहती मैंने खुद ही उन्हें साड़ी बात बता दी; "शुरू इन्होने किया था मेरे ऊपर रंग डाल कर, मैंने तो बस इनके खेल अंजाम दिया है|" इधर भाभी उठने के लिए कोशिश कर रहीं थीं पर उनकी बड़ी गांड जैसे टब में फँस गई थी| आखिर मैंने और ऋतू ने मिल कर उन्हें खड़ा किया और भाभी की चेहरे पर मुस्कराहट आ गई क्योंकि आज जिंदगी में पहली बार मैंने उन्हें इस कदर छुआ था|

      मैंने उनकी इस मुस्कराहट को नजरअंदाज किया और अपने कपडे ले कर नहाने घुस गया| करीब पाँच मिनट हुए होंगे की चन्दर घर आया और उसके हाथ में मिठाई का डिब्बा था| उसने सब को डिब्बे से लड्डू निकाल कर दिए और मुझे भी आवाज दी की मैं भी खा लूँ पर मैं तो बाथरूम में था तो माने कह दिया की आप रख दो मैं नहा कर खा लूँगा| मेरे नहा के आने तक सबने लड्डू खा लिए थे और पूरा डिब्बा साफ़ था| जैसे ही मैं नहा के बाहर आया तो पूरे घर में सन्नाटा पसरा हुआ था.... आंगन में चारपाई पर ताई जी और माँ लेटे हुए थे, भाभी शायद अपने कमरे में थीं और ऋतू रसोई के जमीन पर बैठी थी और दिवार से सर लगा कर बैठी थी| ताऊ जी और पिताजी अपने-अपने कमरे में थे और चन्दर आंगन में जमीन पर पड़ा था| सब की आँखें खुलीं हुईं थीं पर कोई कुछ बोल नहीं रहा था| ये देखते ही मेरी हालत खराब हो गई, मुझे लगा कहीं सब को कुछ हो तो नहीं गया? मैंने एक-एक कर सब को हिलाया तो सब मुझे बड़ी हैरानी से देखने लगे| अब मुझे शक हुआ की जर्रूर सब ने भाँग खाई है और खिलाई भी उस कुत्ते चन्दर ने है!!! मैं पिताजी के कमरे में गया तो उन्हें भी बैठे हुए पाया और उन्हें जब मैंने हिलाया तो वो शब्दों को बहुत खींच-खींच कर बोले; "इसमें.....भांग.....थी.....!!!" अब मैं समझ गया की चन्दर बहन के लोडे ने भाँग के लड्डू सब को खिला दिए हैं! मैंने पिताजी को सहारा दे कर लिटाया और वो कुछ बुदबुदाने लगे थे| मैं ताऊ जी के कमरे में आया तो वो पता नहीं क्यों रो रहे थे, मैं जानता था की इस हालत में मैं उन्हें कुछ कह भी दूँ टब भी उनका रोना बंद नहीं होगा| मैंने उन्हें भी पुचकारते हुए लिटा दिया| इधर जब मैं वापस आंगन में आया तो माँ और ताई जी की आँख लग गई थी और चन्दर भी आँख मूंदें जमीन पर पड़ा था| मैंने भाभी के कमरे में झाँका तो वहां तो अजब काण्ड चल रहा था, वो अपनी बुर को पेटीकोट के ऊपर से खुजा रही थीं और मुँह से पता नहीं क्या बड़बड़ा रही थीं| मैंने फटाफट उनके कमरे का दरवाजा बंद किया और कुण्डी लगा कर मैं ऋतू के पास आया, तो पता नहीं वो उँगलियों पर क्या गईं रही थी? मैंने उसे हिलाया तो उसने मेरी तरफ देखा और फिर पागलों की तरह अपनी उँगलियाँ गिनने लगी| "जानू! I Love ......"इतना बोलते हुए वो रुक गई| अब मेरी फटी की अगर किसी ने सुन लिया तो आज ही हम दोनों को जला कर यहीं आंगन में दफन कर देंगे| मैंने उसे गोद में उठाया और ऊपर उसके कमरे में ला कर लिटाया| मैं उसे लिटा के जाने लगा तो उसने मेरा हाथ कस कर पकड़ लिया और Pout की आकृति बना कर मुझे Kiss करना चाहा| मैं उसके हाथ से अपना हाथ छुड़ा रहा था क्योंकि मैं जानता था की अगर कोई ऊपर आ गया तो हम दोनों को देख कर सब का नशा एक झटके में टूट जायेगा! पर ऋतू पर तो प्यार का भूत सवार हो गया था| पता नहीं उसे आज मेरे अंदर किसकी शक्ल दिख रही थी की वो मुझे बस अपने ऊपर खींच रही थी| "ऋतू मान जा...हम घर पर हैं! कोई आ जाएगा!" मैंने कहा पर उसने मेरी एक न सुनी और अपने दोनों हाथों के नाखून मेरे हाथों में गाड़ते हुए कस कर पकड़ लिए| ऋतू के गुलाबी होंठ मुझे अपनी तरफ खींच रहे थे और अब मेरा सब्र भी जवाब देने लगा था| मैंने हार मानते हुए उसके होठों को अपने होठं से छुआ पर इससे पहले की मैं अपनी गर्दन ऊपर कर उठता ऋतू ने झट से अपने दोनों हाथों को मेरी गर्दन के पीछे लॉक कर दिया और अपने होठों से मेरे होंठ ढक दिए| ऋतू पर नशा पूरे शबाब था और वो बुरी तरह से मेरे होंठ चूसने लगी| मेरे हाथ उसके जिस्म की बजाये बिस्तर पर ठीके थे और मैं अब भी उसकी गिरफ्त से छूटने को अपना जिस्म पीछे खींच रहा था|

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मुझे डर लग रहा था की अगर कोई ऊपर आ गया तो, इसलिए मैंने जोर लगाया और ऋतू के होठों की गिरफ्त से अलग हुआ| पर ये क्या ऋतू ने "I Love You" रटना शुरू कर दिया| वो तो अपनी आँख भी नहीं झपक रही थी बस लेटे हुए मुझे देख रही थी और I Love You की माला रट रही थी| मैंने उस के कमरे को बाहर से कुण्डी लगाईं और रसोई में गया और वहाँ से कटोरी में आम का अचार निकाल लाया| ऋतू के कमरे की कुण्डी खोली तो छत पर देखते हुए अब भी I Love You बड़बड़ा रही थी| मैंने कटोरी से एक आम के अचार का पीस उठाया और ऋतू के सिरहाने बैठ गया| मुझे अपने पास देखते ही उसने मुझे अपनी बाहों में कस लिया| मैंने आम का पीस उसकी तरफ बढ़ाया तो अपने होंठ एक दम से बंद कर लिए| पर मैंने भी थोड़ा उस्तादी दिखाते हुए पीस वापस कटोरी में रखा और अपनी ऊँगली ऋतू को चटा दी| ऊँगली में थोड़ा अचार का मसाला लगा था, ऋतू ने खटास के कारन अपना मुँह खोला और मैंने फटाफट अचार का टुकड़ा उसके मुँह में डाल दिया| ऋतू एक दम से मुँह बनाते हुए उठ बैठी और उसने वो अचार का पीस उगल दिया| मुझे उसका ऐसा मुँह बनाते हुए देख बहुत हँसी आई पर वो मेरी तरफ सड़ा हुआ मुँह बना कर देखने लगी| "सो जा अब!" मैंने ऋतू को कहा और उठ कर नीचे आ गया| बारी-बारी कर के सब को अचार चटाया और सब के सब ऋतू की ही तरह मुँह बना रहे थे और मुझे बहुत हँसी आ रही थी| सबसे आखिर में मैंने चन्दर को अचार चटाया तो उस पर जैसे फर्क ही नहीं पड़ा, वो तो अब भी बेसुध से पड़ा था| अब मैं इससे ज्यादा कुछ कर नहीं सकता था तो उसे ऐसे ही छोड़ दिया| बाकी सब के सब नशा होने के कारन सो रहे थे, इधर मुझे भूख लग गई थी| वो तो शुक्र है की घर पर पकोड़े बने थे जिन्हें खा कर मैं अपने कमरे में आ कर सो गया|


शाम को चार बजे उठा तो पाया की घर वाले अब भी सो रहे हैं| मैंने अपने लिए चाय बनाई और फिर रात के लिए खाना बनाने लगा| मैं यही सोच रहा था की बहनचोद चन्दर ने ऐसी कौन सी भाँग खिला दी की सब के सब सो रहे हैं? पर फिर जब मुझे अपने कॉलेज वाला किस्सा याद आया तो मुझे याद आया की जब पहली बार मैंने भाँग खाई थी तो मैंने सुबह तक क्या काण्ड किया था! खेर खाना बन गया था और मेरे उठाने के बाद भी कोई नहीं उठा था| सब के सब कुनमुना रहे थे बस| एक बात तो तय थी की कल चन्दर की सुताई होना तय है!

मैंने अपना खाना खाया और ऊपर आ गया, रात के 1 बजे होंगे की मुझ नीचे से आवाज आई; "मानु!" मैं फटाफट नीचे आया तो देखा ताई जी और माँ चारपाई पर सर झुकाये बैठे हैं| मैंने उन्हें पानी दिया और फुसफुसाते हुए पुछा; "ताई जी भूख लगी है?" उन्होंने हाँ में सर हिलाया तो मैं माँ और उनके लिए खाना परोस लाया| फिर मैंने पिताजी और ताऊ जी को उठाया और उन्हें भी खाना परोस कर दिया| इधर ऋतू भी नीचे आ गई और उसे देखते ही मैं मुस्कुराया और उसे माँ के पास बैठने को कहा| उसका खाना ले कर उसे दिया और मैं सीढ़ियों पर बैठ गया| तभी भाभी ने दरवाजा खटखटाया, क्योंकि उनके कमरे का दरवाजा मैंने बंद कर दिया था इस डर से की कहीं ताऊ जी और पिताजी उठ गए और उन्हें ऐसी आपत्तिजनक हालत में देख लिया तो! भाभी बाहर आईं और सीधा बाथरूम में घुस गईं| वो वपस आईं तो उन्हें भी मैंने ही खाना परोस के दिया| सब ने फटाफट खाना खाया और कोई एक शब्द भी नहीं बोला| खाना खाने के बाद ताऊ जी अपने कमरे से बाहर आये और उन्होंने चन्दर को जमीन पर पड़े हुए देखा तो उनका खून खौल गया| उन्होंने ठन्डे पानी की एक बाल्टी उठाई और पूरा का पूरा पानी उस पर उड़ेल दिया| इतना पानी अपने ऊपर पड़ते ही चन्दर बुदबुदाता हुआ उठा और ताऊ जी ने उसे एक खींच कर थप्पड़ मारा| चन्दर जमीन पर फिर से जा गिरा; "हरामजादे! तेरी हिम्मत कैसे हुई सब को भाँग के लड्डू खिलाने की? वो तो मानु यहाँ था तो उसने सब को संभाल लिया वरना यहाँ कोई घुस कर क्या-क्या कर के चला जाता किसी को पता ही नहीं चलता| तुझे जरा भी अक्ल नहीं है की घर में औरतें हैं, तेरी बीवी है, बच्ची है?” पर चन्दर को तो जैसे फर्क ही नहीं पड़ रहा था| मैंने भाभी को कहा की इन्हें अंदर ले कर जाओ, तो भाभी ने उन्हें सहारा दे कर उठाया और कमरे में ले गईं| इधर पिताजी ताऊ जी की गर्जन सुन कर बाहर आये और मुझे इशारे से अपने पास बुलाया| मैं उनके पास गया और पिताजी का शायद सर घूम रहा था इसलिए मैंने उन्हें सहारा दे कर बैठक में बिठा दिया| सब के सब बैठक में आ कर बैठ गए और मुझसे पूछने लगे की आखिर हुआ क्या था? मैंने उन्हें सारी बात विस्तार से बता दी और अचार वाली बात पर सारे हँसने लगे| पर तभी पिताजी ने पुछा; "तुझे कैसे पता की अचार चटाना है?" अब ये सुन कर मैं फँस गया था| 
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पहले तो सोचा की झूठ बोल दूँफिर मैंने सोचा की मेरा किस्सा सुन कर सब हंस पड़ेंगे और घर का माहौल हल्का हो जायेगा इसलिए मैंने अपना किस्सा सुनाना शुरू किया|
 
 
           "कॉलेज फर्स्ट ईयर था और होली पर घर नहीं  पाया था क्योंकि असाइनमेंट्स पूरे नहीं हुए थेहोली के दिन सुबह दोस्त लोग  गए और मुझे अपने साथ कॉलेज ले आये जहाँ हमने खूब होली खेलीफिर दोपहर को हम वापस हॉस्टल पहुँचे और नाहा धो कर खाना खाने  गएआज हॉस्टल में पकोड़े बने थे जो सब ने पेट भर कर खायेजब वापस कमरे में आये तो मेरा एक दोस्त कहीं से भाँग की गोलियाँ ले आया थाउसने सब को जबरदस्ती खाने को दी ये कह कर की ये भगवान का प्रसाद हैअब प्रसाद को ना कैसे कहतेजब सब ने एक-एक गोली खा ली तो वो सच बोला की ये भाँग की गोली हैहम टोटल 4 दोस्त थेअमनमनीष और कुणाल|  कुणाल को छोड़ कर बाकी तीनों डर गए थे की अब तो हम गएपता नहीं ये भाँग का नशा क्या करवाएगाहम ने सुना था की भाँग का नशा बहुत गन्दा होता है और आज जब पहलीबार खाई तो डर हावी हो गयापर 15 मिनट तक जब किसी ने कोई उत-पटांग हरकत नहीं की तो हम तीनों ने चैन की साँस लीहमें लगा की किसी ने बेवकूफ बना कर कुणाल को मीठी गोलियाँ भाँग की गोलियाँ बोल कर पकड़ा दींये कहते हुए अमन ने हँसना शुरू किया और उसकी देखा-देखि मैं और मनीष भी हँसने लगाकुणाल को ताव आया की हम तीनों उसे बेवकूफ कह रहे हैं तो उसने हमें चुनौती दी; 'हिम्मत है तो एक-एक और खा के दिखाओ|' हम तीनों ने भी जोश-जोश में एक-एक गोली और खा लीऔर फिर से उस पर हँसने लगेहम तीनों ये नहीं जानते थे की भाँग का असर हम पर शुरू हो चूका थातभी तो हम हँसे जा रहे थेउधर कुणाल बिचारा छोटे बच्चे की तरह रोने लगा था और उसे देख कर हम तीनों पेट पकड़ कर हँस रहे थे| 15 मिनट तक हँसते-हँसते पेट दर्द होने लगा था और बड़ी मुश्किल से हँसी रोकी और तब मनीष ने सब को डरा दिया ये कह कर की हमें भाँग चढ़ गई हैअब ये सुन कर हम चारों एक दूसरे की शक्ल देख रहे थे की अब हम क्या करेंगेअमन तो इतना डर गया था की कहने लगा मुझे हॉस्पिटल ले चलोमैं मरने वाला हूँतो कुणाल बोला की कुछ नहीं होगा थोड़ी देर सो ले ठीक हो जायेगापर मनीष को बेचैनी सोने नहीं दे रही थीइधर मनीष को गर्मी लगने लगी और वो सारे कपडे उतार कर नंगा हो गया और उसने पंखा चला दियामुझे भी डर लगने लगा की कहीं मैं मर गया तोइसलिए मैंने सोचा की ये हॉस्पिटल जाएँ चाहे नहीं मैं तो जा रहा हूँअभी मैं दरवाजे के पास पहुँचा ही था की कुणाल ने हँसते हुए रोक लिया और बोला; 'कहाँ जा रहा हैबड़ी हँसी  रही थी ना तुझेऔर खायेगा?' मैं उस हाथ जोड़ कर मिन्नत करने लगा की भाई माफ़ कर देआज के बाद कभी नहीं खाऊँगा ये भाँग का गोलामैं जैसे-तैसे बाहर आया और घडी देखि ये सोच कर की कहीं हॉस्पिटल बंद तो नहीं हो गयाउस वक़्त बजे थे रात के 2, यानी हम चारों शाम के 4 बजे से रात के दो बजे तक ये ड्रामा कर रहे थेअब हमारा कमरा था चौथी मंजिल परइसलिए मैं हमारे कमरे के दरवाजे के सामने लिफ्ट और सीढ़ियों के बीच खड़ा हो कर सोचने लगा की नीचे जाऊँ तो जाऊँ कैसेअगर लिफ्ट से गया और दरवाजा नहीं खुला तो मैं तो अंदर मर जाऊँगाऔर सीढ़ियों से गया तो पता नहीं कितने दिन लगे नीचे उतरने मेंमैं खड़ा-खड़ा यही सोच रहा था की हमारे हॉस्टल के वार्डन का लड़का  गया और मुझे ऐसे सोचते हुए देख कर मुझे झिंझोड़ते हुए पुछा की मैं यहाँ क्या कर रहा हूँमैंने उसे बताया की मैं हिसाब लगा रहा हूँ की सिढीयोंसे जाना सही है या लिफ्ट सेये सुन कर वो बुरी तरह हँसने लगाक्योंकि वहाँ लिफ्ट थी ही नहीं और जिसे मैं लिफ्ट समझ रहा था वो एक पुरानी शाफ़्ट थी जिसमें बाथरूम की पाइपें लगी थीपर मैं अब भी नहीं समझ पाया था की हुआ क्या है और ये क्यों हँस रहा हैवो मेरे कंधे पर हाथ रख कर मुझे कमरे में ले आया और अंदर का सीन देख कर हैरान हो गयामनीष पूरा नंगा था और उसने अपने गले में तौलिया बाँध रखा था जैसे की वो सुपरमैन हो और एक पलंग से दूसरे पर कूद रहा थाअमन बिचारा एक कोने में बैठा अपना सर दिवार में मार रहा था और बुदबुदाए जा रहा था; 'अब नहीं खाऊँगा....अब नहीं खाऊँगा....अब नहीं खाऊँगा...'  कुणाल फर्श पर उल्टा पड़ा था और चूँकि उसे मछलियां बहुत पसंद थी तो वो खुद को मछली समझ कर फड़फड़ा रहा था और मैं रात के 2 बजे से सुबह के 6 बजे तक बाहर खड़ा हो कर हिसाब लगा रहा था की सीढ़यों से जाऊँ या फिर लिफ्ट से!
 
                                         उसी लड़के ने एक-एक कर हमें आम चटाया और हमारा नशा उताराइसलिए उस दिन से कान पकडे की कभी भाँग नहीं खाऊँगा|"    
 
 
मेरी पूरी राम-कहानी सुन कर सारे घर वाले खूब हँसे और शुक्र है की किसी ने मुझे भाँग खाने के लिए डाँटा नहींबात करते-करते सुबह के चार बज गए थे इसलिए ताऊ जी ने कहा की सब कुछ देर आराम कर लें पर मुझे तो सुबह ही निकलना थापर ताऊ जी ने कहा की आराम कर लो और 7 बजे उठ जानाइसलिए सारे लोग सो गए और सुबह सात बजे जब मैं उठा तो ताई जीभाभी और माँ रसोई में नाश्ता बना रहे थेफ्रेश हो कर नाश्ता किया और ताई जी ने रास्ते के लिए भी बाँध दिया की भूख लगे तो खा लेनाशहर हम 11 बजे पहुँचे और पहले ऋतू को कॉलेज छोड़ मैं ऑफिस पहुँचासर ने थोड़ा डाँटा पर मैंने जाने दिया क्योंकि आधा दिन लेट था मैंदिन गुजरते गए और ऋतू के Exams  गए और उसने फिर से क्लास में टॉप कियाये ख़ुशी सेलिब्रेट करना तो बनता थातो संडे को मैं उसे लंच पर ले जाना चाहता था पर उसके कॉलेज के दोस्त भी साथ हो लिए और सब ने कॉन्ट्री कर के लंच किया|
 
 
कुछ महीने और बीते और ऋतू का जन्मदिन आयामैंने उसे पहले ही बता दिया था की एक दिन पहले ही मैं उसे लेने आऊंगा पर ऋतू कहने लगी की उसके असाइनमेंट्स पेंडिंग हैं और अपने दोस्तों के साथ उसने कुछ क्लास बंक की थीं तो वो भी कवर करना है उसेतो मेरा प्लान फुस्स हो गयापर वो बोली की शाम को उसके सारे दोस्त उसके पीछे पड़े हैं की उन्हें ट्रीट चाहिए तो हम शाम को मिलते हैंअब कहाँ तो मैं सोच रहा था की उसका बर्थडे हम अकेले सेलिब्रेट कर्नेगे और कहाँ उसके दोस्त बीच में  गएपर मैं ये सोच कर चुप रहा की कॉलेज के दोस्त कभी-कभी करीब होते हैं और मुझे ऋतू को थोड़ी आजादी देनी चाहिए वरना उसे लगेगा की मैं Possessive हो रहा हूँअब मैं भी इस दौर से गुजरा था इसलिए दिमाग का इस्तेमाल किया और ऋतू के बर्थडे को खराब नहीं कियाबल्कि उसी जोश और उमंग से मनाया जैसे मनाना चाहिएऋतू के चेहरे की ख़ुशी सब कुछ बयान कर रही थी और मेरे लिए वही काफी थादिन बीतने लगे और ऋतू के कॉलेज के दोस्तों ने कोई ट्रिप प्लान कर लियामुझे लगा की शायद मुझे भी जाना है पर मुझे तो इन्विते ही नहीं किया गया क्योंकि वैसे भी मैं कॉलेज वाला नहीं थाऋतू ने मुझसे मिन्नत करते हुए जाने की इज्जाजत मांगी तो मैंने उसे मना नहीं कियाइस ट्रिप पर बनने वाली यादें उसे उम्र भर याद रहेंगीजितने दिन वो नहीं थी उतने दिन मैं रोज उसे सुबह-शाम फ़ोन करता और उसका हाल-चाल लेता रहताजब वो वापस आई तो बहुत खुश थी और मुझे उसने ट्रिप की सारी pictures दिखाईं और वो संडे मेरा बस ऋतू की ट्रिप की बातें सुनते हुए निकलादिन बीत रहे थे और काम की वजह से कई बार मुझे सैटरडे को बरेली जाना पड़ता और इसलिए हम सैटरडे को मिल नहीं पाते पर संडे मेरा सिर्फ और सिर्फ ऋतू के लिए थाउस दिन वो आती तो मेरे लिए खाना बनाती और कॉलेज की सारी बातें बताती और कई बार तो हम संडे को पढ़ाई भी करते!
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कहानी तो मस्त हो रही है
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(08-12-2019, 09:57 PM)Jagdeepverma. iaf Wrote: कहानी तो मस्त हो रही है

शुक्रिया जी!!!         Heart   Heart   Heart
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bahut badhiya....
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(09-12-2019, 11:19 AM)smartashi84 Wrote: bahut badhiya....

शुक्रिया जी!!!  [Image: heart.png]   [Image: heart.png]   [Image: heart.png]

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दग़ा - The Twist!

[Image: ghosting-600x373.md.png]
update 59

दिन बीते...महीने बीते...और सब कुछ सही चल रहा था...... कम से कम मुझे तो यही लग रहा था! मेरे अकाउंट में लाख रुपये कॅश और बाकी के 4 लाख की मैंने FD करा दी थी जो अगले साल मार्च में mature होने वाली थी| इधर मैंने बैंगलोर में लोकैलिटी फाइनल कर ली थी, ऋतू के डाक्यूमेंट्स जैसे PAN Card, Aadhaar Card और Election Card सब मेरे ही एड्रेस से तैयार हो गए थे| ऋतू का बैंक अकाउंट भी खोला जा चूका था जिसके बारे में मेरे और ऋतू के आलावा किसी को कोई भनक नहीं थी| हमारे गायब होते ही सब मेरा अकाउंट चेक करते पर किसी को तो पता नहीं की ऋतू का भी कोई बैंक अकाउंट है! मुझे बस भागने से कुछ दिन पहले अपने अकाउंट से सारे पैसे निकाल कर ऋतू के बैंक में कॅश जमा करने थे| बस एक ही काम बचा था वो था ट्रैन की टिकट, जिसे मैंने पहले बुक नहीं कर सकता था| कारन ये की जिस दिन हम भागते उस दिन के चार्ट में हमारा नाम होता और सब को पता चल जाता की ये दोनों कहाँ भागे हैं| इसलिए जिस दिन भागना था उससे एक दिन पहले मुझे तत्काल टिकट लेनी थी, वो भी कुछ इस तरह की लखनऊ से वाराणसी पहुँचने के बाद आधे घंटे के अंदर ही दूसरी ट्रैन चाहिए थी जो हमें मुंबई उतारती और वहाँ से फिर आधे घंटे में दूसरी टिकट जो बैंगलोर छोड़ती! मैंने एक बैक-आप प्लान भी बना रखा था की अगर ट्रैन लेट हो गई तो हमें बस लेनी होगी| लखनऊ में कहाँ से ट्रैन पकड़नी थी वी जगह भी तय थी, स्टेशन से ट्रैन पकड़ना खतरनाक था क्योंकि सब सबसे पहले हमें ढूंढते हुए वहीँ आते| इसलिए मैंने रेलवे फाटक देख रखा था, इस फाटक पर हमेशा जाम रहता था और हरबार ट्रैन यहाँ स्लो होती और फिर करीब मिनट भर बाद ही आगे जाती थी| किसी भी हालत में कोई भी हमें ढूंढता हुआ यहाँ नहीं आ सकता था! मतलब प्लान बिलकुल सेट था और मैंने उसमें कोई भी लूपहोल नहीं छोड़ा था!!!!

खेर ये तो रही प्लान की बात, पर अब तो मेरा जन्मदिन आ ने वाला था और क्योंकि इस बार जन्मदिन वीकडे पर पड़ना था तो मैंने पहले ही छुट्टी ले ली थी| प्लान तो था की ऋतू को में एक दिन पहले ही उसके हॉस्टल से ले आऊंगा पर जब उसने बताया की उसके असाइनमेंट्स पेंडिंग हैं और कुछ lectures भी हैं तो मैंने उससे कहा की अगले दिन वो हाल्फ डे में इधर भाग आये| 

दो तारिक आई, मेरा जन्मदिन अगले दिन था और घडी में रात के साढ़े बारह बजने को आये थे पर अभी तक ऋतू ने मुझे कॉल करके wish नहीं किया था| हर साल वो ठीक बारह बज कर एक मिनट पर मुझे काल किया करती थी पर इस बार इतनी लेट कैसे हो गई?! फिर मैंने सोचा की शायद कॉलेज से थक कर आयी होगी और सो गई होगी, कोई बात नहीं कल wish कर देगी ये सोचते हुए मैंने फ़ोन को तकिये के नीचे रख दिया और तभी मेरे फ़ोन पर बर्थडे के wish वाला मैसेज आया जिसे देख कर मेरे चेहरे पर मुस्कान आ गई और मैंने जवाब में उसे ढेर सारी चुम्मियों वाली स्माइली के साथ थैंक यू का मैसेज भेजा पर उसके बाद वो ऑफलाइन हो गई, मैंने बात को दरगुज़र किया और मुस्कुराते हुए सो गया|  सुबह से ऑफिस के सभी दोस्तों के मैसेज आने लगे थे, घर से भी फ़ोन पर बधाइयाँ आने लगी थी| ऋतू के आने तक मैं बस यही सोच रहा था की घर से भागने से पहले ये मेरा आखरी जन्मदिन होगा और फिर अगले जन्मदिन पर मैं और ऋतू एक साथ बैंगलोर में अपनी नई जिंदगी शुरू कर रहे होंगे|

                                 अरुण और सिद्धार्थ ने इस बार जर्रूर कहा था की पार्टी करते हैं पर मैंने उन्हें ये कह कर टाल दिया की अगर ऋतू को पार्टी दिए बिना तुम्हारे साथ पार्टी की तो वो नराज हो जाएगी| दोनों ने मिल कर मेरा बड़ा मजाक उड़ाया की देखो शादी से पहले ये हाल है तो शादी के बाद क्या होगा?! 


खेर मैं फ्रेश हो कर नाश्ता बना रहा था की तभी ऋतू का मैसेज आया की वो बारह बजे आएगी और मैं इस ख़ुशी में अपने फोन पर गाने लगा कर कुछ ख़ास बनाने की तैयारी करने लगा और नाचता हुआ इधर से उधर घर में घूम रहा था| साढ़े बारह बजे दरवाजे पर दस्तक हुई, तो मैंने मुस्कुराते हुए दरवाजा खोला और ऋतू को प्यार से घर के अंदर आने का निमंत्रण दिया| ऋतू भी अंदर आ गई और उसने मेरे फ़ोन में बज रहे गानों को एकदम से बंद कर दिया, मैंने आगे बढ़ कर उसे गले लगाना चाहा तो उसने अपने हाथ को मेरी छाती पर रख के रोक दिया| मुझे उसका ये व्यवहार बड़ा अजीब लगा पर जब उसके चेहरे पर नजर गई तो वो बहुत सीरियस थी|

"आपसे कुछ बात करनी है|" इतना कह कर उसने मेरे दोनों हाथ पकड़ कर मुझे पलंग पर बिठाते हुए कहा| वो ठीक मेरे सामने खड़ी हो गई और मेरी आँखों में देखते हुए बोली;  
ऋतू: मैंने बहुत सोचा… ह....हमारा ये....घर से भागने .....का प्लान सही नहीं!


ऋतू ने बहुत डरते-डरते कहा, पहले तो मुझे बहुत गुस्सा आया पर फिर मुझे एहसास हुआ की जब हम कोई खतरनाक कदम उठाते हैं तो दिल में एक डर होता है और मुझे ऋतू के इसी डर का निवारण करना होगा| 

मैं: अच्छा पहले ये बता की तुझे क्यों लगता है की ये फैसला गलत है? (मैंने बहुत प्यार से पुछा|)

ऋतू: कोई स्टेबल लाइफ नहीं होगी हमारी.... दरबदर की ठोकरें खाना... और फिर हर पल डर के साये में जीना....

मैं: जान! थोड़ा स्ट्रगल है पर वो हम मिल कर एक साथ करेंगे! लाइफ में हर इंसान को थोड़ा-बहुत स्ट्रगल तो करना ही पड़ता है ना? फिर तु अकेली नहीं हो, मैं हूँ ना तुम्हारे साथ|

ऋतू: पर मुझसे ये स्ट्रगल नहीं होगा! एक महीने की जॉब में मेरा मन ऊब गया और मैं ही जानती हूँ की ये पार्ट टाइम जॉब मैंने कैसे किया, तो फुल टाइम जॉब कैसे करुँगी?

मैं: तुझे कोई जॉब करने की जर्रूरत नहीं है| मैंने तुम्हें जब शादी के लिए उस दिन प्रोपोज़ किया था, तब तुमसे वादा किया था की मैं तुझे पलकों पर बिठा कर रखूँगा, कभी कोई तकलीफ नहीं होने दूँगा! ये देख 4 लाख की FD और आज की डेट में मेरे पास 1 लाख रुपया कॅश में है, हमारे भागने तक अकाउंट में कम से कम 7 लाख होंगे! इतने पैसों से हम नै जिंदगी शुरू कर सकते हैं!

मैंने ऋतू को FD की रिसीप्ट और बैंक की पास बुक दिखाई पर उसे तसल्ली अब भी नहीं हुई थी|


मैं: अच्छा ये देख, बैंगलोर में हमें किस लोकैलिटी में रखना है, वहाँ तक कैसे पहुँचना है और job ऑफर्स सब लिखे हैं इसमें| 

ये कहते हुए मैंने ऋतू को अपनी डेरी दिखाई जिसमें मैंने सब कुछ फाइनल कर के रेडी कर रखा था| पर मुझे ये जानकर हैरानी हुई की ऋतू का डायरी देखने में जरा भी इंटरेस्ट नहीं था| मतलब की बात कुछ और थी और अभी तक वो बस बहाने बना रही थी|   

मैं: देख ऋतू, तो कुछ छुपा रही है मुझसे| यूँ बहाने मत बना और सच-सच बता की बात क्या है? (मैंने ऋतू के चेहरे को अपने दोनों हाथों में थामते हुए कहा|)

ऋतू की नजरें झुक गेन और उसने सच बोलने में पूरी शक्ति लगा दी;

ऋतू: मैं किसी और को चाहने लगी हूँ?

अब ये सुनते ही मेरा खून खोल गया और मैंने ऋतू के चेहरे पर से अपने हाथ हटाए और एक जोरदार तमाचा उसके बाएँ गाल पर मारा|

मैं: कौन है वो हरामी?

मैंने गरजते हुए कहा, पर ऋतू डर के मारे सर झुकाये रोने लगी और कुछ नहीं बोली| मैंने ऋतू के दोनों कन्धों को पकड़ कर उसे झिंझोड़ा और उससे दुबारा पुछा;

मैं: बोल कौन है वो?

ऋतू सहम गई और डरते हुए बोली;

ऋतू: र....राहुल

ये नाम सुन कर मैंने उसके कन्धों को अपनी पकड़ से आजाद कर दिया और सर झुका कर बैठ गया| मेरा मन मान ही नहीं रहा था की ये सब हो रहा है! तभी ऋतू ने हिम्मत बटोरी और बोली;

ऋतू: वो भी मुझसे बहुत प्यार करता है और शादी करना चाहता है!  

ये सुन कर मैंने ऋतू की आँखों में देखा तो मुझे उसकी आँखों में वही आत्मविश्वास नजर आया जो उस दिन दिखा था जब ऋतू ने मुझसे अपने प्यार का इजहार किया था| मेरी आँखों में आँसू आ गए थे क्योंकि मेरे सारे सपने चकना चूर हो चुके थे और रह-रह कर मेरे दिल में गुस्सा भरने लगा था, ऐसा गुस्सा जो कभी भी फुट सकता था| पर ऋतू इस बात से अनजान और मेरी आँखों में आँसू देख उसमें हिम्मत आने लगी थी, आज तो जैसे उसने इस रिश्ते को हमेशा से खत्म कर देने की कसम खा ली थी इसलिए वो आगे बोली; "कॉलेज ट्रिप पर हम बहुत नजदीक आ गए! उसने मुझसे ना केवल अपने प्यार का इजहार किया बल्कि मुझे शादी के लिए भी प्रोपोज़ किया! मैं उसे मना नहीं कर पाई क्योंकि वो मुझे एक स्टेबल लाइफ दे सकता है! फिर आप ये भी तो देखो की आपकी और मेरी age में कितना फासला है?!

ऋतू को एहसास नहीं हुआ की जोश-जोश में वो असली सच बोल गई जिसे सुनते ही मेरा गुस्सा फुट पड़ा और मैंने एक जोरदार झापड़ उसके गाल पर मारा और उसे जमीन पर धकेल दिया| मैं बहुत जोर से उस पर चिल्लाया; "ये था ना तेरा प्यार? तुझे सिर्फ ऐशों-आराम की जिंदगी जीनी थी ना? मन भर गया न तेरा मुझसे? तो साफ़-साफ़ बोल देती ये उम्र का फासला कहाँ से आगया? ये तब याद नहीं आया था जब मुझसे पहली बार अपने प्यार का इज़हार किया था तूने? Fuck बहनचोद! मैं ही चूतिया था जो तेरे चक्कर में पड़ गया|” ऋतू का बायाँ हाथ उसके गाल पर था और वो सर झुकाये वहीँ खड़ी थी, पर उसे देख कर मेरा गुस्सा बढ़ता ही जा रहा था| मैंने एक आखरी बार कोशिश की और अपने दोनों हाथों से उसके चेहरे को थामा, उसकी आँखों में झांकते हुए कहा: "प्लीज बोल दे तू मजाक कर रही थी? प्लीज .... प्लीज .... मैं तेरे आगे हाथ जोड़ता हूँ|" पर उसकी आँखों में आँसूँ बाह निकले थे और उसकी आंखें सब सच बता रहीं थी की अब तक जिस दिल पर मेरा नाम लिखा था उसे तो वो कब का अपने जिस्म से निकाल कर कचरे में डाल चुकी है| "तू...तू जानती है वो लड़का किसका बेटा है? और उसके बाप ने तेरे....." मेरे आगे कहने से पहले ही ऋतू ने हाँ में सर हिलाया और अपने आँसूँ पोछते हुए बोली; "जानती हूँ... उसके पापा ने पंचायत में मेरी माँ को मौत की सजा सुनाई थी|"

"और ये जानते हुए भी तू उससे प्यार करती है?"

"गलती मेरी माँ की थी, उसने शादीशुदा होते हुए भी किसी और से प्यार किया|" ऋतू ने सर झुकाये हुए कहा, जैसे की उसे अपनी माँ के किये पर शर्म आ रही थी|

"गलती? और जो तूने की वो क्या थी?" मेरा मतलब हम दोनों के प्यार से था|

"उसी गलती को तो सुधारना चाहती हूँ|" उसका जवाब सुनते ही मेरे तन बदन में आग लग गई और मैंने उसके गाल पर एक और तमाचा जड़ दिया| "तो ये प्यार तेरे लिए गलती था? उस टाइम तो तू मरने के लिए तैयार थी और अब तुझे वही प्यार गलती लग रहा है?" ऋतू फिर चुप हो गई थी| अब मेरे अंदर कुछ भी नहीं बचा था, मैं हार मानते हुए अपने घुटनों के बल आ गिरा और अपने दोनों हाथों से अपने सर को पकड़ा| मेरी आँखों से खून के आँसूँ बह निकले थे; "क्यों? .... क्यों किया तूने ऐसा मेरे साथ? क्यों मुझ जैसे पत्थर दिल को प्यार करने पर मजबूर किया और जब तेरा दिल भर गया तो मुझे छोड़ दिया| मैंने मना किया था...कहा था ....पर..." मैंने फूटफूटकर रोते हुए कहा| ऋतू खड़ी होकर मेरे पास आई मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए बोली; "हम अच्छे दोस्त तो रह सकते हैं?" ये सुनते ही मैंने उसका हाथ झिड़क दिया; "Fuck you and fuck your dosti! Now get the fuck out of my house! And I curse you…. I curse you that you’ll be never be happy… you’ll suffer… so bad that every day… every fucking day will be like hell for you! You’ll beg for this misery to end but it’ll get worse ….worse till everything you love is lost forever!” इतना सुन के ऋतू रोती-बिलखती हुई दरवाजा जोर से बंद कर के चली गई| उसके जाने के बाद तो जैसे मेरे जिस्म में अब जान ही नहीं बची थी और मैं निढाल होकर उसी जमीन पर गिर पड़ा और रोता रहा| रह-रह कर ऋतू की सारी बातें याद आने लगी जिससे दिमाग में और गुस्सा आता और गुस्से में आ कर मैं जमीन में मुक्के मारने लगता पर मेरे दिल का दर्द बढ़ता ही जा रहा था| शाम 5 बजे तक मैं जमीन पर पड़ा हुआ यूँ ही रोता रहा, पर जब फिर भी दिल का दर्द कम नहीं हुआ तो मैं उठा और अपने दिल के दर्द को कम करने के लिए दारु लेने निकल पड़ा|    

जेब में जितने पैसे थे सबकी दारु खरीद ली और घर लौट आया| जैसे ही दारु की बोतल खोलने लगा तो वो दिन याद आया जब ऋतू से वादा किया था की मैं कभी शराब को हाथ नहीं लगाऊँगा| जैसे ही ऋतू की याद आई अंदर गुस्सा भरने लगा और जोश में आ कर मैंने बोतल सीधा मुँह से लगाईं और एक बड़ा घूँट भरा, जैसे ही घूँट गले से निकला तो गाला जलने लगा| पर ये जलन उस दर्द से तो कम थी जो दिल में हो रहा था| अगला घूँट भरा तो वो दिन याद आने लगा जब ऋतू से मैंने अपने दिल की बात की कही, वो हमारा रोज फ़ोन पर बात करना ... उसका बार-बार मेरी बाहों में सिमट जाना.... उसका बार-बार मुझे Kiss करना और बेकाबू हो जाना.... वो हर एक पल जो मैंने उसके साथ बिताया था उसे याद कर के मैं पूरी की पूरी बोतल गटक गया और फिर बेसुध वहीँ जमीन पर लेट गया| मुझे कोई होश-खबर नहीं थी की मैं कहाँ पड़ा हूँ, सुबह कब हुई पता ही नहीं चला| सुबह के ग्यारह बजे मेरे फ़ोन की घंटी ताबड़तोड़ बजने लगी और मैं कुनमुनाता हुआ उठा और बिना देखे ही फ़ोन अपने कान पर लगा लिया;


मैं: हम्म्म...

बॉस: कहाँ पर है?

मैं: ममम...

बॉस: ग्यारह बज रहे हैं! तू अभी तक घर पर पड़ा है? शर्मा जी की फाइल कौन देगा? जल्दी ऑफिस आ!


ये सुनकर मुझे थोड़ा होश आया पर सर दर्द से फटा जा रहा था और बॉस की जोरदार आवाज कानों में दर्द करने लगी थी, इसलिए मैंने उनका फ़ोन ऐसे ही जमीन पर रख दिया और अपनी ताक़त बटोर के उठने को हुआ तो लड़खड़ा गया| फिर मैंने दुबारा उठने की कोशिश नहीं की और फिर से सो गया| करीब 1 बजे फिर से बॉस का फ़ोन आया पर मैं ने फ़ोन नहीं उठाया और फ़ोन ही बंद कर दिया| उस समय मेरा दिमाग काम नहीं कर रहा था बस मुझे नशे में सोना था और ये भी होश नहीं था की मैं फर्श पर ही नींद में मूत रहा हूँ| 5 बजे आँख खुली और मैं उठा, कमर से नीचे के सारे कपडे मेरे ही मूत से गीले थे| मैं उठा और जैसे-तैसे खड़ा हुआ और बाथरूम में गया और अपने सारे कपडे उतार दिए और बाल्टी में फेंक दिए और नंगा ही कमरे में आया| अलमारी की तरफ गया और उसमें से एक कच्छा निकाला और एक बनियान निकाली और उसे पहन के किचन से वाइपर उठा के फर्श पर पड़े अपने पिशाब को बाथरूम की तरफ खींच दिया और वाइपर वहीँ पटक दिया| कमरे की खिड़कियाँ खोली और तभी याद आया की ऋतू वहीँ खड़ी हो कर बहार झाँका करती थी| फिर से मन में गुस्सा भरने लगा और शराब की दूसरी बोतल निकाली पर इससे पहले की उसे खोलता बाजु वाले अंकल ने घंटी बजाई| मैंने दरवाजा खोला तो उन्होंने मुझसे अपने घर की चाभी माँगी और मेरी हालत देख कर समझ गए की मैंने बहुत पी रखी है| उनहोने कुछ नहीं कहा बस 'एन्जॉय' कहते हुए निकल गए| मैंने दरवाजा ऐसे ही भेड़ दिया पर दरवाजा लॉक नहीं हुआ| मैं आकर उसी खिड़की के सामने जमीन पर बैठ गया, पीठ दिवार से लगा कर दारु की बोतल खोली और सीधा ही उसे अपने होठों से लगाया और एक बड़ा से घूँट पी गया| आज मुझे उतनी जलन नहीं हुई जितनी कल हुई थी| पास ही फ़ोन पड़ा था उसे उठाया, फिर याद आया की सुबह बॉस ने कॉल किया था और फिर फ़ोन वापस स्विच ऑफ ही छोड़ दिया| अगला घूँट पीते ही दरवाजा खुला और मेरे ऑफिस का कॉलीग अरुण अंदर आया और मुझे जमीन पर बैठे दारु पीते देख बोला; "अबे साले! बॉस की वहाँ जली हुई है तेरी वजह से और तू यहाँ दारु पी रहा है?" मैंने उसकी तरफ देखा पर बोला कुछ नहीं बस दारु का एक और घूँट पिया| "अबे दिमाग ख़राब हो गया है क्या तेरा?" उसने मुझे झिंझोड़ते हुए कहा पर मैं अब भी कुछ नहीं बोल रहा था बस एक-एक घूँट कर के दारु पिए जा रहा था| अरुण मुझे बहुत अच्छे से जानता था की मैं कभी इतनी नहीं पीता, हमेशा लिमिट पि है मैंने और आज इस तरह मुझे बिना रुके पीता हुआ देख वो भी  परेशान होगया| मेरे हाथ से बोतल छीन ली और बोला; "अबे रुक जा! बहनचोद पिए जा रहा है, बता तो सही क्या हुआ?" मैंने अब भी उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया बस उससे बोतल लेने लगा तो उसने बोतल नहीं दी और दूर खिड़की के पास खड़ा हो कर पूछने लगा| जब मैं कुछ नहीं बोला तो वो समझ गया की ये दिल का मामला है| इधर मैं भी ढीठ था तो मैं उठ के उससे जबरदस्ती बोतल छीन के ले आया और वापस नीचे बैठ के पीने लगा| "यार पागल मत बन! उस लड़की के चक़्कर में ऐसा मत कर! बीमार पढ़ जायेगा|"उसने फिर से मेरे हाथ से बोतल खींचनी चाही तो मैं बुदबुदाते हुए बोला: "मरूँगा तो नहीं ना?"

"पागल हो गया है तू?" उसने गुस्से से मुझे डाँटते हुए कहा| "ये सब छोड़... ये बता ... माल है तेरे पास?" मैंने अरुण से पूछा तो वो गुस्सा करने लगा| "यार है तो दे दे वरना मैं बहार से ले आता हूँ|" ये कह कर मैं उठा तो अरुण ने मुझे संभाला| वो जानता था ऐसी हालत में मैं बाहर गया तो पक्का कुछ न कुछ काण्ड हो जायेगा| "ये ले" इतना कह कर उसने मुझे एक गांजे की पुड़िया दी और मैंने उसी से सिगरेट माँगी और लग गया उसे भरने| पहला कश लेते ही मैं आँखें बंद कर के सर दिवार से लगा कर बैठ गया| "बॉस को कह दियो की मैं तुझे घर पर नहीं मिला|" मैंने आँखें बंद किये हुए ही कहा|              


"अबे तेरी सटक गई है क्या? साले एक लड़की के चक्कर में आ कर कुत्ते जैसे हालत कर ली तूने अपनी! बहनचोद पूरे घर से बदबू आ रही है और तू चढ्ढी में बैठा शराब पिए जा रहा है? अबे होश में आ साले चूतिये?!" वो सब गुस्से में कहता रहा पर मेरे कान तो ये सब सुनना ही नहीं चाहते थे, वो तो बस उसी की आवाज सुन्ना चाहते थे जिसने मेरा दिल तोडा था| अगर अभी वो आ कर एक बार मुझे I love you कह दे तो मैं उसे फिरसे सीने से लगा लूँगा और उसके सारे गुनाह माफ़ कर दूँगा, पर नहीं.... उसे तो अब कोई और प्यारा था! जब अरुण का भाषण खत्म हुआ तो उसने मेरे हाथ से सिगरेट ले ली और कश लेने लगा; "तू साले....छोड़ बहनचोद! अच्छा ये बता कुछ खाया तूने?" मैंने अभी भी उसकी बात का जवाब नहीं दिया और वो दिन याद किया जब वो मेरे कॉल न करने से नाराज हो जाया करती थी और मैं उसे कॉल कर के पूछता था की कुछ खाया?" ये याद करते हुए मेरी आँख से आँसूँ बह निकले, उन्हें देखते ही अरुण को मेरे दिल के दर्द का एहसास हुआ और उसने मेरे कंधे पर थपथपाया और मुझे ढांढस बँधाने लगा|मैंने अपना हाथ उसके हाथ पर रख दिया और बोला; "थैंक्स भाई!!!" फिर अपने आँसूँ पोछे; "अब तू घर जा, भाभी चिंता कर रही होंगी| कल मैं ऑफिस आ जाऊँगा|" उसे मेरी बात पर भरोसा हो गया पर जाते-जाते भी वो मेरे लिए खाना आर्डर कर गया| 

अगली सुबह उठा और सबसे पहले माल फूँका! फिर मुँह धोया और अपनी लाश को ढोता हुआ ऑफिस आया| मुझे देखते ही बॉस ने इतना सुनाया की पूछो मत पर मैंने उसकी किसी बात का जवाब नहीं दिया| जवाब देता भी कैसे गांजे के नशे से मेरा होश गायब था और मैं बस सर झुकाये सब सुनने का दिखावा कर रहा था| जब उसका गुस्सा हो गया तो वो अपने केबिन में चला गया और मैं अपने टेबल पर आ कर बैठ गया| अरुण मेरे पास आया और मेरे कंधे पर हाथ रखा, जब मैंने सर उठाया तो मेरी आँखों की लाली देख कर वो समझ गया की मैंने गांजा पी रखा है और वो हँस दिया, उसे हँसता देख मेरी भी हँसी निकल गई| खेर इसी तरह दिन निकलने लगे, रोज बॉस की गालियाँ सुनना और फिर घर आकर दारु पीना और सो जाना| हर शुक्रवार घर से फ़ोन आता की मैं ऋतू को ले कर घर आ जाऊँ पर मैं कोई न कोई बहाना बना के बात टाल देता|

                                   पूरा एक महीना निकल गया और अब हालातों ने मुझे एक मुश्किल दोराहे पर ला कर खड़ा कर दिया| फ़ोन बजा जब देखा तो पिताजी का नंबर था और उन्होंने मुझे और ऋतू को कल घर बुलाया था| ऋतू की शादी के लिए मंत्री साहब के लड़के का रिश्ता आया था| ये सुन कर खून तो बहुत उबला पर मैं कुछ कह नहीं सका| "आप ऋतू.............रितिका के हॉस्टल फोन कर दो वो मुझे कॉल कर लेगी|" इतना कह कर मैंने कॉल काट दिया| मैं ऑफिस की छत पर चला गया और सिगरेट जला कर फूँकता रहा और ये सोचता रहा की कल कैसे उस बेवफा की शक्ल बर्दाश्त करूँगा! रात को रितिका का कॉल आया और उसका नंबर स्क्रीन पर फ़्लैश होते ही गुस्सा बाहर आ गया| पर मुझे अपना गुस्सा थोड़ा काबू करना था; "कल सुबह दस बजे बस स्टैंड|" इतना कह कर मैंने फ़ोन काट दिया| उस रात 2 बजे तक मैं पीता रहा और मन ही मन उसे कोसता रहा और सुबह मेरी आँख ही नहीं खुली| सुबह 10:30 बजे रितिका के धड़ाधड़ कॉल आये तब नींद खुली पर आँखें अब भी नहीं खुल रही थी|मैंने बिना देखे ही फ़ोन अपने कान पर लगा दिया; "आप कहाँ हो?" ये जानी पहचानी आवाज सुन कर आँख खुली और याद आया की मुझे तो दस बजे बस स्टैंड पहुँचना था| "आ रहा हूँ!" इतना कह कर मैंने फोन काटा और बिना मुँह धोये ही निकल गया| बाल बिखरे हुए, दाढ़ी बढ़ी हुई और जिस्म से ही दारु की तेज महक आ रही थी| जब मैं बस स्टैंड पहुँचा तो मुझे ऋतू इंतजार करती हुई दिखी, आज पूरे एक महीने बाद देख रहा था और मन में जिस प्यार को मैं दफना चूका था वो अब उभर आया था| मैंने जेब से फ्लास्क निकला और दारु का एक घूँट पिया और फिर रितिका की तरफ चलने लगा| रितिका की नजर जब मुझ पर पड़ी तो वो आँखें फाड़े बस मुझे ही देखे जा रही थी| आज तक उसने मुझे जब भी देखा था तो clean shaven और well dressed देखा था और आज मुझे इस कदर देख उसका अचरज करना लाजमी था| उसके पास आ कर मैं रुका और जेब में हाथ डाल कर सिगरेट निकाली और जला कर उसका धुआँ उसके मुँह पर फूँका! वो थोड़ा खांसते हुए बोली; "आपने तो कसम खाई थी की आप कभी दारु और सिगरेट को हाथ नहीं लगाओगे?" 

"तुमने भी तो कसम खाई थी की मेरा साथ कभी नहीं छोड़ोगी?! But here we are!" ये कह कर मैंने उसे ताना मारा और फिर नजरें इधर-उधर घुमाने लगा| मैं टिकट काउंटर पर पहुँचा तो पता चला की आखरी बस जा चुकी है जो शायद रितिका भी जानती थी| बस एक लेडीज स्पेशल बस थी जो अभी आने वाली थी, मैंने मन ही मन सोचा की इसे अकेले ही भेज देता हूँ| इसलिए मैं टहलता हुआ वापस उसके पास आया; "लेडीज स्पेशल बस आने वाली है, उसमें चली जा! मैं घर फोन कर देता हूँ कोई आ कर ले जाएगा|"

"अकेले...पर ...मैं तो...." वो नजरें झुकाये डरते हुए बोलने लगी|     

"तो बुला ले अपने 'राहुल' को! वो छोड़ देगा तुझे गाँव|" मेरा फिर से ताना सुन कर वो चुप हो गई और तभी मुझे लालू नजर आया| ये लालू उन्ही कल्लू भैया का छोटा भाई था और वो मुझे अच्छे से जानता था| उसने मुझे देखते ही हाथ दिखा कर रुकने को कहा और मेरे पास ही बाइक दौड़ाता हुआ आ गया|

लालू: अरे साब! आप यहाँ कैसे?

मैं: बस गाँव जा रहा था, पर बस निकल गई|

लालू: अरे तो क्या हुआ साब, ये रही बस मैं भी उसी रास्ते जा रहा हूँ|


लालू एक प्राइवेट बस का कंडक्टर था और अपने भाई की ही तरह मेरी बहुत इज्जत करता था| रितिका ने हम दोनों की सारी बातें सुन ली थी और वो थोड़ा हैरान भी थी की मैं कैसे लालू को जानता था| मैंने उसे बैठने का इशारा किया और खुद बाहर ही रुक गया और दूकान से एक परफ्यूम की बोतल ली और एक काला चस्मा| घर पर कोई नहीं जानता था की मैं दारु पीता हूँ और इस हालत में घर जाता तो काण्ड होना तय था| मैंने परफूम अच्छे से लगाया और लालू से माल माँगा उसने भी मुस्कुराते हुए अपनी भरी हुई सिगरेट मुझे दे दी और बदले में मैंने उसे पैसे दे दिए| बस के पीछे खड़ा मैं चुप-चाप सिगरेट पीता रहा और जब बस भर गई तो मैं बस में चढ़ गया|ऋतू खिडक़ीवाली सीट पर बैठी थी और उसकी साथ वाली सीट खाली थी पर मैं वहाँ नहीं बैठा बल्कि लास्ट वाली सीट पर पहुँच गया जो अभी भी खाली थी| मैंने उस पर पाँव पसार के लेट गया और सोने लगा| गांजे ने दिमाग तो पहले ही सन्न कर दिया था| एक बजा होगा और मुझे मूत आ रहा था तो मैं उठ कर बैठ गया| बस रुकने वाली थी और मैं ने उठ कर देखा तो अब भी ऋतू के बगल वाली सीट खाली ही थी| इतने में एक लड़का जो मेरे दाईं तरफ बैठा था वो उठा और जा कर रितिका के साथ बैठ गया और उसके साथ बदसलूकी करने लगा| वो जानबूझ कर उससे चिपक कर बैठा था और जबरदस्ती उससे बात करने लगा| रितिका उसके साथ बहुत uncomfortable थी और बार-बार उससे कह रही थी की; "मुझे आपसे बात नहीं करनी!" पर वो हरामी बाज़ ही नहीं आ रहा था|           

                         मैं धीरे-धीरे आगे बढ़ा और उस लड़के की गद्दी पर जोरदार थप्पड़ मारा| मेरा थप्पड़ लगते ही वो पलट के मुझे देखने लगा, मैंने ऊँगली के इशारे से उसे उठने को कहा: "निकल बहनचोद!" मैंने गरजते हुए कहा और ये सुनते ही लालू पीछे की तरफ देखने लगा और उसे समझते देर न लगी की माजरा क्या है| उसने एक कंटाप उस लड़के के मारा और लात मार के बस से उतार दिया और चिल्लाता हुआ बोला; "भोसड़ी के दुबारा अगर दिख गया न तो गंडिया काट डालब!" ऋतू की आँखें भर आईं थीं और उसने मेरी तरफ देखा और 'थैंक यू' कहना चाहा पर मैंने उससे नजर ऐसे फेर ली जैसे की वो यहाँ थी ही नहीं! मैं आगे चला गया और कंडक्टर के बाजू वाली सीट पर बैठ गया| नशे का झोंका आ रहा था और मुझे नींद आ रही थी तो मैं बैठे-बैठे ही सोने लगा| दस मिनट बाद बस रुकी और मैं मूत कर आ गया और वापिस पीछे की सीट पर लेट गया| जब हमारा बस स्टैंड आया तो लालू मुझे जगाने आया और वापस जाते समय रितिका से माफ़ी माँगने लगा; "दीदी...वो माफ़ करना आपको उस हरामी की वजह से तकलीफ हुई|" रितिका ये सुन के सन्न रह गई और मेरी तरफ देखने लगी पर मैंने कुछ नहीं कहा और बस से नीचे उतर आया| बस स्टैंड से हम दोनों गज भर की दूरी पर चल रहे थे, मैंने जेब से फ्लास्क निकला और शराब पीने लगा| मन में बहुत दुःख था और घर जाने से मैं कतरा रहा था| दरअसल मैं रितिका का रिश्ता अपने सामने होते हुए नहीं देखना चाहता था और इसीलिए जब घर दूर से नजर आने लगा तो मैंने रितिका से अकेले जाने को कहा| "आप घर नहीं...." वो बस इतना ही बोल पाई की में बोल पड़ा; "घर में बोल दिओ कल मेरा ऑफिस था इसलिए मैं यहीं से चला गया|" इतना कह कर मैं पलट कर वापस बस स्टैंड की तरफ चल पड़ा| रितिका मेरे दर्द को महसूस कर रही थी पर उसने कहा कुछ नहीं और चुप-चाप सर झुकाये घर चली गई| मैं बस स्टैंड पहुँचा और वहाँ बैठा बस का इंतजार करने लगा, अगली बस आने में आधा घंटा था तो मैं वहीँ लेट गया और कैसे भी कर के अपने दर्द को कम करने की सोचने लगा| रितिका की शादी में मैं खुद को कैसे सम्भालूंगा बस यही सोच रहा था की बस आ गई और मैं फिर से सबसे पीछे वाली सीट पकड़ के लेट गया| तभी घर से फ़ोन आया और पिताजी चिल्लाने लगे की मैं घर क्यों नहीं आया, मैंने फ़ोन उठा कर सीट पर दूसरी तरफ रख दिया और खुद खिड़की की से बाहर देखने लगा|  जब मैंने फ़ोन देखा तो कॉल काट चूका था पर इसका मुझे जैसे कोई फर्क ही नहीं पड़ा, मैंने फिर से जेब से फ्लास्क निकाली और आखरी घूँट पिया और शहर आने का इंतजार करने लगा| सात बजे हम शहर पहुँचे और उतारते ही पेट में दारु की ललक जाग गई| ठेके से दारु ली और एक सब्जी वाले से ककड़ी ली और घर आ गया और पीने लगा| आज रितिका की शक्ल देख कर कोफ़्त हो रही थी पर मुझे मेरी समस्या का अब तक कोई रास्ता नहीं मिला था| जमाने से तो विश्वास उठ चूका था मेरा, मेरा दिमाग कह रहा था की सब के सब मतलबी हैं यहाँ! सब मुझसे कुछ न कुछ चाहते थे, मोहिनी पढ़ना चाहती थी तो राखी ऑफिस के काम में मेरी हेल्प और तो और अनु मैडम ने भी मेरे जरिये अपना डाइवोर्स ले लिया था| ये डाइवोर्स Final वाली बात मुझे अरुण ने ही बताई थी और अब ये सब बातें मुझे कचोटने लगी थीं| क्या मैं इस दुनिया में सिर्फ दूसरों के लिए जीने आया हूँ? क्या मुझे मेरी ख़ुशी का कोई हक़ नहीं? क्या माँगा था मैंने जो भगवान से दिया न गया? बस एक रितिका का प्यार ही तो माँगा था और उसने भी मुझे धोका दे दिया! ये सब सोचते-सोचते मेरी आँख से आँसू बहने लगे और मैं अपनी आँख से बहे हर एक कतरे के बदले शराब को अपने जिस्म में उतारता चला गया| कब नींद आई मुझे कुछ होश नहीं था, आँख तब खुली जब सुबह का अलार्म तेजी से बज उठा|
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ओ भाई
गांड फटी तो क्या बोला ?
हाजमोला
☺☺☺☺☺

लेकिन यही सच्चाई है
जमाने में सब मतलबी होते हैं
चूत को बस एक तगड़ा सा लण्ड चाहिए चाहे वो किसी का भी हो
बस ऐश और आराम चाहिए।
[+] 1 user Likes Jagdeepverma. iaf's post
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अब तक आपने पढ़ा:
  
क्या मैं इस दुनिया में सिर्फ दूसरों के लिए जीने आया हूँ? क्या मुझे मेरी ख़ुशी का कोई हक़ नहीं? क्या माँगा था मैंने जो भगवान से दिया न गया? बस एक रितिका का प्यार ही तो माँगा था और उसने भी मुझे धोका दे दिया! ये सब सोचते-सोचते मेरी आँख से आँसू बहने लगे और मैं अपनी आँख से बहे हर एक कतरे के बदले शराब को अपने जिस्म में उतारता चला गया| कब नींद आई मुझे कुछ होश नहीं था, आँख तब खुली जब सुबह का अलार्म तेजी से बज उठा|

update 60

मैं कुनमुनाया और अलार्म बंद कर दिया पर ठीक पांच मिनट बाद फिर अलार्म बजा और मैं बड़े गुस्से के साथ उठा और जमीन पर फिर से बैठ गया| खिड़की से आ रही ठंडी हवा और उजाले ने मेरी नींद थोड़ी तोड़ दी थी| मेरा मन अब ये जॉब करने का बिलकुल नहीं था, क्योंकि अब मुझे इसकी कोई जर्रूरत नजर नहीं आ रही थी| ऊपर से ये घर जिसमें रितिका के लिए मेरा प्यार बस्ता था अब मुझे अंदर ही अंदर खाने लगा था| मैं उठा और नहाने चला गया, फिर बाहर आते ही मैंने लैपटॉप पर रेंट पर मकान देखने शुरू किये और तब मुझे याद आया की कहाँ तो मैं अपने और रितिका के लिए बैंगलोर में मकान ढूँढ रहा था और कहाँ लखनऊ में ढूंढने लगा| मन में एक खेज सी उठी .....

                                        लिस्ट में जो नाम सबसे ऊपर था उसी पर कॉल किया और अपनी requirement और budget उसे बता दिया, उसने ग्यारह बजे मुझे मिलने बुलाया| मैंने तुरंत बॉस को फ़ोन किया की मुझे घर शिफ्ट करना है इसलिए मैं आज नहीं आ पाउँगा, ये बोल कर मैं दलाल के पास चल दिया| एक-एक कर उसने मुझे 3-4 options दिखाए पर मुझे जो जच्चा वो था ठेके के पास| एक gated society थी और रेंट 15,000/- था| 2 BHK था बस ऑफिस से बहुत दूर था, पर हाईवे के पास था| वैसे भी मुझे कौन सा ऑफिस जाना था अब, मुझे तो जल्द से जल्द उस घर से निकलना था जहाँ अब मेरा दम घुटने लगा था| मकान मालिक ने मुझसे मेरे काम-धंधे के बारे में पुछा तो मैंने उसे सब कुछ बता दिया और अपने documents भी दिखा दिए| सब बात फाइनल कर मैं ने उनकी बैंक डिटेल्स ले ली और उसी वक़्त उन्हें साड़ी पेमेंट कर दी| दलाल ने सारे कागज बनवाने थे, मैं सीधा घर आया और दो suitcase में अपना समान भरा और घर की चाभी सुभाष अंकल जी को देने चल दिया| उन्हें मैंने ये कहा की मेरी पोस्टिंग अब बरेली में जयदा रहती है इसलिए मैंने नया घर हाईवे के पास लिया है ताकि आने-जाने में आसानी हो| घर की ad मैंने ऑनलाइन डाल दी है और नंबर उन्हीं का डाला है| तो वो खुश हुए की उन्हें नया किरायदार ढूंढने के लिए ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ेगी|

                               अपनी बुलेट रानी पर पीछे सारा समान बाँध कर मैं नए फ्लैट पर आ गया और समान रख कर सीधा कुछ समान खरीदने निकल पड़ा| Glass का एक सेट, दारु की बोतल और कुछ चखना ले कर मैं घर लौट आया| अभी मैंने सोचा ही था की मैं पीना शुरू करूँ की दलाल और मकान मालिक कागज ले कर आ गए| उन्होंने देख लिया की बिस्तर पर शराब की बोतल राखी है पर किसी ने कुछ नहीं कहा, क्योंकि उनका मुँह-माँगा रेंट जो दे रहा था| कागज साइन कर के उन्होंने एक काम करने वाली दीदी से मिलवाया जो सब के यहाँ झाड़ू-पोछा और बाकी के काम करती थीं| मेरे लिए तो ये ऐसा था जैसे अंधे को आँखें मिल गई हों| मैंने उनसे सारे काम की बात कर ली, झाड़ू-पोछा, कपडे, बर्तन और दिन में एक बार खाना बनाना| उन्होंने डरते हुए 5,000/- कहा और मैं जानता था की ये कम है पर मैंने इस डर से कुछ नहीं कहा की कहीं मकान मालिक इससे commission में पैसे ना लेता हो| मैंने सोचा जब ये काम करने आएँगी तो मैं इन्हें पैसे बढ़ा कर दे दूँगा| मकान मालिक ने जाते-जाते बस इतना कहा; "बेटा प्लीज कोई बखेड़ा खड़ा मत करना|" मैं उनका मतलब समझ गया| "अंकल जी मैं बहुत शांत स्वभाव का आदमी हूँ, यहाँ किसी से मेरी कोई बात-चीत नहीं होगी और न ही आपको कोई शिकायत आएगी|" मैंने उन्हें आश्वस्त करते हुए कहा| दीदी भी कह गईं की वो कल सुबह 7 बजे आएँगी, अब मुझे तंग करने वाला कोई नहीं था| मैंने अपना पेग बनाया और बालकनी में फर्श पर बैठ गया और सड़क को देखते-देखते घूँट भरने लगा| आज पता नहीं पर मेरा मन कह रहा था की शायद....शायद कुछ अच्छा हो जाए!                       

        पर नहीं जी..... ऊपर वाला तो मुझसे आज कल बहुत खफा था| पास में पड़ा फ़ोन जिमें अभी नुसरत फ़तेह अली का गाना बज रहा था वो अचानक से बंद हुआ और पिताजी का कॉल आ गया|

मैं: जी

पिताजी: बेटा रितिका का रिश्ते पक्का हो गया है, दिवाली के दूसरे दिन ही शादी है!

पिताजी ने हँसते हुए कहा और ये सुन कर मेरा हाल बेहाल था! आँख से एक कटरा एक आँसूँ निकला और बहता हुआ मेरी गोद में गिरा| जिसके दिल पर मेरा नाम लिखा था आज वो किसी और के नाम की मेहँदी रचवाने वाली थी! जो कल तक मेरा नाम लिया करती थी वो अब किसी और की होने जा रही थी| मैं अपने इन्हीं ख्यालों में गुम था और इधर पिताजी उम्मीद कर रहे थे की मैं ख़ुशी से उछाल जाऊँगा|

पिताजी: हेल्लो? मानु? हेल्लो?

मैं: हाँ जी! इधर ही हूँ मैं|

पिताजी: बेटा हम लोगों को तुझसे बात करनी है तू कल के आ जा|

अब में घर जा कर उस बेवफा की सूरत नहीं देखना चाहता था, उससे मेरा गम बढ़ना ही था कम नहीं होना था!

मैं: जी...वो....मैं नहीं आ पाऊँगा| आप बताइये की क्या काम था?

पिताजी: बेटा इतनी ख़ुशी की बात है और तू वहाँ अकेला है? देख भाई साहब भी कह रहे थे की तू कल आ जा वरना हम तुझे लेने आ जाते हैं|

मैं: मैं लखनऊ में नहीं हूँ! मैं.....नॉएडा में हूँ!

पिताजी: क्या? पर क्यों?

मैं: जी वो काम....काम के सिलिसिले में आना पड़ा|

पिताजी: तो कब वापस आ रहा है?

मैं: जी टाइम लगेगा.... 20-25 दिन....

उस टाइम मेरे मुँह में जो झूठ आ रहा था मैं वो सब बोले जा रहा था| मेरी शायद ये बात ताऊ जी भी सुन रहे थे इसलिए अगली आवाज उनकी थी जो बहुत गुस्से में थी;

ताऊ जी: मानु! रितिका के लिए इतना अच्छा रिश्ता आया है और तू बहाने बनाने में लगा है! मैं कहे देता हूँ की ये रिश्ता हाथ से जाना नहीं चाहिए, मंत्री जी सामने से रिश्ता ले कर आये हैं! रितिका की शादी से पहले मैं चाहता हूँ की तेरी शादी हो जाए| अच्छा लगता है की चाचा कुंवारा बैठा है और भतीजी की शादी हो रही है?! कल पहुँच यहाँ!

मैं: ताऊ जी मैं आपको पहले ही कह चूका ही की मुझे अभी शादी नहीं करनी तो फिर आप बार-बार मेरे पीछे क्यों पड़ जाते हैं? जिसका रिश्ता आया है उसकी चिंता करिये पहले! शादी के लिए वो मरी जा रही है मैं नहीं!

मैंने थोड़ा गुस्से में कहा क्योंकि कोई नहीं जानता था की मेरे दिल में क्या आग लगी है! हर किसी को अपनी करनी है तो करो, मैं भी अब वही करूँगा जो मुझे करना है|

ताऊ जी: जुबान लड़ाता है? तुझे जरा सी छूट क्या दी तू तो हमारे सर पर नाचने लगा?

मैं: आप को ये रिश्ता अपने हाथ से नहीं जाने देना ना तो आप करो उसकी शादी| मेरे लिए कौन सा प्रधान मंत्री का रिश्ता आया है जो आप एक दम से शादी-शादी करने लगे?

दारु का नशा अब मुझसे सब बुलवा रहा था|

पिताजी: (चिल्लाते हुए) तू होश में है? क्या बोले जा रहा है? नशा-वषा किया है क्या? ऐसे बदतमीजी से बात करेगा तू भाई साहब से?

मैं: मैं इतनी बार तो आप सब से कह चूका हूँ की मुझे अभी शादी नहीं करनी तो फिर हर 6 महीने बाद आप लोग क्यों मेरे पीछे पड़ जाते हैं? आपको समाज की क्यों इतनी चिंता है? शादी के बाद बीवी को खिलाऊँगा क्या? या ये दुनिया वाले रोज 3 टाइम का खाना देने आएंगे मुझे?

शायद ताऊ जी को मेरी बात समझ आई और वो नरम होते हुए बोलने लगे;

ताऊ जी: ठीक है, तुझे शादी नहीं करनी ना? पर अपनी भतीजी की शादी में तो आ जा!

उनकी नरमी देख मुझे मेरी गलती का एहसास हुआ की उन्होंने तो मेरा दिल नहीं तोडा ना?

मैं: ताऊ जी मुझे माफ़ कर देना, मुझे आपसे इस तरह बात नहीं करनी चाहिए थी! मैं अभी शहर में नहीं हूँ, नॉएडा आया हूँ काम के सिलसिले में| कम्पनी के कुछ लिकनेसेस का काम है, इसलिए उसमें टाइम लगेगा| रही रितिका की शादी की बात तो मैं आ जाऊँगा, आप निश्चिन्त रहिये| अभी तो तकरीबन 2 महीने हैं ना हमारे पास?

मैंने बड़ी हलीमी से बात की और ताऊ जी मान भी गए| फ़ोन कटते ही मैंने एक लार्ज पेग बनाया और उसे एक सांस में गटक गया| मैं कैसे उसकी शादी में जाऊँगा? कैसे उसे अपनी आँखों के सामने विदा होते हुए देखूंगा? काश ये सब देखने से पहले मैं मर जाता! ये सोचते-सोचते मैं पूरी बोतल पी गया पर कोई हल नहीं मिला| दिल और दिमाग को चैन नहीं मिल रहा था, अब तो दारु भी खत्म हो गई थी तो कुछ तो चाहिए था मुझे? मैं लड़खड़ाता हुआ उठा और गाँजा ढूँढने लगा, सारा समान उथल-पुथल करने के बाद मुझे वो मेरी ही पैंट की जेब में मिला| ठीक से दिख भी नहीं रहा था, इसलिए बड़ी मुश्किल से उसे सिगरेट में भरा और पहला कश लेते ही मैं वापस जमीन पर बैठ गया| दारु की खाली बोतल में मुझे एक आखरी बूँद दिखाई दी, मैंने उसे मुँह से लगाया और वो आखरी बूँद भी पी गया| ऐसा लगा मानो सबसे जयदा स्वाद उसी आखरी बूँद में था| फटाफट मैंने सिगरेट पी ताकि उसका नशा मेरा दिमाग जल्दी से सुन्न कर दे और मैं चैन से सो सकूँ| हुआ भी वही अगले दस मिनट में ही मेरी आँख लग गई और फिर सुबह खुली जब दीदी ने बेल्ल बजा-बजा कर मेरी नींद तोड़ी| मैंने बड़ी मुश्किल से उठ कर दरवाजा खोला, दरवाजा खुलते ही दीदी को दारु का एक बहुत तेज भभका सूंघने को मिला| उन्होंने ने एक दम से अपनी नाक सिकोड़ ली और मुझे ये देख कर एहसास हुआ की मैंने क्या छीछालेदर किया है! मैं बिना कुछ कहे बाथरूम में घुसा और नहा-धो कर तैयार हुआ, अब घर में बर्तन तो थे नहीं की मुझे चाय मिलती| घर की सफाई हो चुकी थी और मुझे तैयार देख दीदी कहने लगीं की वो कपडे शाम को कर देंगी| मुझसे उन्होंने पुछा की मैं कितने बजे लौटूँगा तो मैंने उन्हें 6 बजे बोल दिया और फिर मैं ऑफिस के लिए निकल गया| आज मैंने सोच लिया था की सर को अपना रेसिग्नेशन दे दूँगा| ऑफिस आ कर जब मैंने जॉब छोड़ने की बात कही तो सर ने मुझे अपने सामने बिठाया और पुछा;

बॉस: पहले तो तू ये बता की ये क्या हालत बना राखी है अपनी? और क्यों ये जॉब छोड़ना चाहता है? कहीं कोई और जॉब मिल गई? 

मैं: सर कुछ पर्सनल कारन हैं!

बॉस: जॉब छोड़ने के लिए पर्सनल करना है या फिर ये दाढ़ी उगाने की वजह पर्सनल है?

सर बार-बार कारन जानने के लिए कुरेदते रहे क्योंकि पिछले कुछ महीनों में उन्होंने under staffing की थी और एकाउंट्स में सिर्फ दो ही लोग बचे थे, यानी मैं और अरुण और हम दोनों ही पूरा एकाउंट्स का काम देख रहे थे, हेडोफ़्फ़िस का भी और यहाँ ब्राँच का भी| अब मुझे सर को कुछ न कुछ बहाना मारना था तो मैंने कहा;

मैं: सर मैं बोर हो गया हूँ! इतनी दूर से आना पड़ता है!

बॉस: अरे भाई अभी तो तुम्हारी उम्र ही क्या है जो बोर हो गए? अभी तो साड़ी उम्र पड़ी है! दूर से आना पड़ता है तो यहाँ कहीं नजदीक घर देख ले!

मैं: सर यहाँ कहाँ बजट में घर मिलेगा?

बॉस: तो अब तो मेट्रो शुरू हो गई उससे आ जाया कर!

पर मैं तो मन बना चूका था की मुझे जॉब छोड़नी है इसलिए सर ने कहा;

बॉस: ठीक है यार अब तेरा मन बन ही चूका है तो, पर देख एक महीना रुक जा और ये काम निपटा दे फिर बाकी का अरुण संभाल लेगा|

मैं: जी ठीक है पर सर सुबह के टाइम में थोड़ा relaxation दे दो! रात को आप जितनी देर बोलो उतनी देर बैठ जाऊँगा! 

सर मान गए और मैंने सोचा की अब महीना तो शुरू हो ही चूका है तो रो-पीट कर दिन पार कर लेता हूँ! इधर जब ये खबर अरुण को पता चली तो उसने चुप-चाप सिद्धार्थ को फ़ोन कर दिया और शाम को जबरदस्ती मेरे साथ मेरा घर देखने के बहाने से मेरे साथ आ गया| रास्ते में ही उसने सिद्धर्थ को भी पिक करने को कहा| जैसे ही सिद्धार्थ ने मेरी हालत देखि तो वो गाली देते हुए कहने लगा; "बहनचोद क्या हालत बना राखी है अपनी?" पर मेरे जवाब देने से पहले ही अरुण बोल पड़ा; "साहब आज कल मजनू हो गए हैं!" मैं बीएस झूठी हँसी हँस कर रह गया, दोनों को एक मिनट छोड़ कर मैं कुछ लेने चला गया, वापस आया तो मेरे पास चिप्स, नमकीन और सोडे की बोतल थी| 

                                       हम तीनों दारु लेते हुए घर आ गए, बालकनी में तीनों जमीन पर बैठ गए और मैंने तीनों के लिए small-small पेग बनाये| इधर सिद्धार्थ ने खाना आर्डर कर दिया, उन दोनों ने एक सिप ही ली थी और मैं एक साँस में गटक गया| "अबे साले! आराम से, तू तो कतई देवदास हो रखा!" सिद्धार्थ बोलै पर आगे बात होने से पहले ही दीदी आ गईं और मैंने दरवाजा खोला| वो चुप-चाप बाथरूम में कपडे धोने लगीं| अरुण ने बात शुरू करते हुए कहा; "जनाब नौकरी छोड़ रहे हैं!" ये सुनते ही सिद्धार्थ चौंक पड़ा और बोला; तू पागल हो गया क्या? एक लड़की के चक्कर में पड़ कर इतनी अच्छी नौकरी छोड़ रहा है? होश में आ और life में practical बन जा| देख तुझे मैं एक Sure shot तरीका बताता हूँ उस लड़की को भूलने का| घर के अंदर बैठेगा तो इसी तरह ऊल-जुलूल हरकतें करेगा, घर से बाहर निकल और पेल दे किसी लड़की को! मेरे ऑफिस में है एक लड़का मैं उससे किसी लड़की का नंबर माँगता हूँ, उससे मिल और घापा-घप्प कर और Move- On कर! वो भी लड़की तो move-on कर गई होगी तू क्यों उसके चक्कर में अपना नास (नाश) कर रहा है!            

"देख भाई, तेरे ये आईडिया तू अपने पास रख| मेरा गम बीएस मैं ही जानता हूँ और उसका ये इलाज तो कतई नहीं है|" मैंने दूसरा पेग बनाते हुए कहा|

"अच्छा तू ये बता की हुआ क्या एक्साक्ट्ली?" अरुण ने पुछा|

"कुछ नहीं यार, उसे कोई और पसंद आ गया| पैसे वाला था और वो उसे अच्छी जिंदगी दे सकता था|" मैंने जयदा डिटेल ना देते हुए कहा|

"तो Gold Digger थी वो?" सिद्धार्थ ने पुछा|

"ऐसी थी तो नहीं पर ......छोड़ ना! तू देख आर्डर कहाँ पहुँचा|" मैंने बात बदलते हुए कहा क्योंकि अब मुझे रितिका के बारे में कोई बात नहीं करनी थी| सिद्धार्थ भी समझ गया और उसने आगे कुछ नहीं बोला पर अरुण पर शराब का नशा चढ़ने लगा था और अब उसके मन में 'भाई के लिए प्यार' जाग गया था|

"बहनचोद! साला अगर उसने तुझे छोड़ा है तो वो किसी की सगी नहीं हो सकती! साले 1...2...3...4...5 साल से जानता हूँ तुझे!

अरुण ने उँगलियों पर गिनते हुए कहा और उसे ऐसा करता देख मैं और सिद्धार्थ हँस दिए|

"इसे और मत दे! साला रास्ते में ड्रामे छोड़ेगा और घर पर भाभी हमारी खाट खड़ी कर देगी!" सिद्धार्थ ने अरुण को और पेग देने से मना किया, मैंने उसका पेग हम-दोनों में आधा-आधा बाँटना चाहा तो उसने एक डीएम से पेग छीन लिया और गटक गया|

"ओ भोसड़ी के!" सिद्धार्थ चिल्लाया पर तब तक अरुण पेग पी चूका था और हम दोनों फिर से हँसने लगे| तभी खाना आ गया, मैं दरवाजा खोलने गया तो दीदी भी कपडे धो कर निकल आईं, अब उन्हें कपडे डालने थे बालकनी में और वहां तो हम महफ़िल जमा कर बैठे थे|

"दीदी रहने दो मैं दाल दूँगा बाद में! अच्छा आप नॉन-वेज खाते हो ना?" मैंने पुछा तो वो एक दम से हैरान हो गईं और हाँ में गर्दन हिलाई| मैंने उनके लिए भी एक प्लेट नूडल मंगाए थे जो मैंने उन्हें दे दिए| पहले तो वो मना करने लगीं फिर मैंने थोड़ी जबरदस्ती कर के उन्हें दे दिया| वो मुस्कुरा कर चली गईं और मैं हम तीनों के लिए खाना ले कर बालकनी में बैठ गया| एल्युमीनियम के डिब्बे में नूडल्स आये थे तो प्लेट की जर्रूरत नहीं थी| हम तीनों ने खाना शुरू किया पर अरुण मियाँ पर नशा फूल शबाब पे था; "साला लड़कियाँ होती ही ऐसी हैं? मेरे गऊ जैसे दोस्त को छोड़ कर चली गई.... तू...तू चिंता मत कर....मैं...बहनचोद....तेरी शादी कराऊँगा.... उससे भी अच्छी लड़की से.... रुक अभी तेरी भाभी को कॉल करता हूँ|" इतना कह कर वो फ़ोन मिलाने को हुआ तो मैंने उसके हाथ से फ़ोन छीन लिया|

"अबे चूतिया हो गया है क्या? चुप-चाप खाना खा|" मैंने कहा और आगे किसी को भी पीने नहीं दी| आज बहुत दिनों बाद मुझे खाना खाने में मजा आ रहा था| खाना खाने के बाद सिद्धार्थ बोला; "देख यार! मेरी बात मान जा और ये जॉब मत छोड़| मैं मानता हूँ तुझे थोड़ा टाइम लगेगा और तू उसे भूल जायेगा|" मैंने बस हाँ में सर हिलाया पर ये तो मेरा मन ही जानता था की मैं अंदर से बिखरने लगा हूँ|               

 

घडी में अभी बस 10 बजे थे और अरुण भैया तो लौटने लगे थे और अब उन्हें घर छोड़ना अकेले सिद्धार्थ के बस की बात नहीं थी| मैंने कैब बुलाई और फिर हम ने मिलकर अरुण को कैब में बिठाया और पहले उसे घर छोड़ा और भाभी से माफ़ी भी मानगी की मेरे बर्थडे ट्रीट की वजह से भाई को थोड़ी जयदा हो गई| फिर सिद्धार्थ को छोड़ मैं उसी कैब में वापस आया और रस्ते में ठेके से एक और बोतल ली| घर आते ही मैं बालकनी में बैठ गया और फिर से उसी दर्द की आगोश में चला गया| लार्ज बना के जैसे ही होठों से लगाया तो रितिका की शक्ल याद आ गयी और उसी के साथ गुस्सा भी खूब आया| एक सांस में पूरा पेग खींच गया और फटाफट दूसरा पेग बनाया, तभी याद आया की माल भी तो तैयार है! मैंने जेब से फेमस मलना की क्रीम की छोटी सी पुड़िया निकाली और लग गया पूरा सेटअप बनाने| पूरी Heisenberg वाली फीलिंग आ रहे थी और मैं अपने इस बचकाने ख्याल पर मुस्कुराने लगा| आज पहली बार था की मैं अपने ही इस तरह के बचकाने ख्याल पर हँस रहा था| पर मेरे मन ने मुझे ये ख़ुशी जयदा देर तक एन्जॉय नहीं करने दी और मुझे अचानक से रितिका का हँसता हुआ चेहरा याद आ गया, मैं ने तैयार सिगरेट वहीँ जमीन पर छोड़ दी क्योंकि मेरा मन मुझे इस गम से  बाहर नहीं जाने देना चाहता था| मैं पेग ले कर उठा और बालकनी में खड़ा हो कर ऊपर आसमान में देखने लगा| एक पल के लिए आँख मूँदि तो रितिका मुझे शादी के जोड़े में दिखी और फिर मेरी आँख से आँसू बह निकले और एक कटरा मेरे ही पेग में गिरा| मैंने सोचा की चलो आज अपने आंसुओं का स्वाद भी चख के देखूँ! झूठ नहीं कहूँगा पर ये वो स्वाद था जिसने दिल को अंदर तक छू लिए था! पेग खत्म हुआ और मैं वापस आ कर निचे बैठ गया पर अब दिल बगावत करने लगा था, उसे अब बस ऋतू चाहिए थी! चाहे जो करना पड़े वो कर पर उसे अपने पास ले आ! और अगर तू इतना ही बुजदिल है की अपने प्यार को ऐसे छोड़ देगा तो धिक्कार है तुझ पर! मर जाना चाहिए तुझे!!! मन ने ये suicidal ख्याल पैदा करना शुरू कर दिए थे| ऋतू को अपने पास ला सकूँ ये मेरे लिए नामुमकिन था और मरना बहुत आसान था! तभी नजर कमरे में घूम रहे पंखे पर गई.....
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yourock
Bhai aapki story se ek ye sikh bahut badi mili ki kisi Ko itna bhi na chaho ki vo tumhe kayar bana de 
Asal me to ab ladke ko ladki ko khatam kar dena chahiye.
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Kahani ko bahut achhe se aur feel ke saath likha hai aapne sir. Aur ye twist wala update bahut shandar hai bahuton ki pichli yaden taza ho gayi hongi.
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अब तक आपने पढ़ा:

 पेग खत्म हुआ और मैं वापस आ कर निचे बैठ गया पर अब दिल बगावत करने लगा था, उसे अब बस ऋतू चाहिए थी! चाहे जो करना पड़े वो कर पर उसे अपने पास ले आ! और अगर तू इतना ही बुजदिल है की अपने प्यार को ऐसे छोड़ देगा तो धिक्कार है तुझ पर! मर जाना चाहिए तुझे!!! मन ने ये suicidal ख्याल पैदा करना शुरू कर दिए थे| ऋतू को अपने पास ला सकूँ ये मेरे लिए नामुमकिन था और मरना बहुत आसान था! तभी नजर कमरे में घूम रहे पंखे पर गई.....

update 61

पर जान देना इतना आसान नहीं होता...वरना कितने ही दिल जले आशिक़ मौत की नींद सो चुके होते! मैं कुछ लड़खड़ाता हुआ उठा और रस्सी ढूँढने लगा, नशे में होने के कारन सामने पड़ी हुई रस्सी भी नजर नहीं आ रही थी| जब आई तो उसे उठाया और फिर पंखे की तरफ फेंकी और फंदा बना कर पलंग पर चढ़ गया| गले में डालने ही वाला था की दिमाग ने आवाज दी; "अबे बुज़दिल! ऐसे मरेगा? दुनिया क्या कहेगी? मरना है तो ऐसे मर की रितिका की रूह तुझे देख-देख कर तड़पे!" ये बात दिल को लग गई और मैं बिस्तर से नीचे उतरा और वापस जमीन पर बैठ गया| समानेभरी सिगरेट भरी पड़ी थी, वो उठाई और पीने लगा| घडी में 12 बजे थे और नशे ने मुझे दर्द के आगोश से खींच कर अपने सीने से चिपका लिया था और मैं चैन की नींद सो गया| सुबह दीदी के आने के बाद आँख खुली और मैं आँख मलता हुआ बाथरूम में घुस गया, जब बाहर आया तो दीदी घर से चाय ले आईं थी| मैंने उन्हें Thank you कहा और उनसे कहा की वो मेरी मदद करें ताकि मैं कुछ घर का समान खरीद सकूँ| पुराना समान तो मैं पुराने वाले घर में छोड़ आया था| दीदी की मदद से ऑनलाइन कुछ बर्तन मँगाए और कुछ कपडे अपने लिए मंगाए| दीदी उठ कर कमरे में सफाई करने गईं तो उन्हें वहाँ पंखे से लटकी रस्सी दिखाई दी और वो चीखती हुईं बाहर आईं|

"आप खुदखुशी करने जा रहे थे साहब?" दीदी ने हैरानी से पुछा, तो मैंने बस ना में सर हिला दिया| "तो फिर ये रस्सी अंदर पंखे से झूला झूलने को लटकाई थी?!" दीदी ने थोड़ा गुस्सा दिखाते हुए कहा, पर मेरे पास कोई जवाब नहीं था इसलिए मैं चुप रहा|

"क्यों अपनी जिंदगी बर्बाद करने पर तुले हो?"  दीदी ने खड़े-खड़े मुझे अपनापन दिखाते हुए कहा| मैं उस समय फर्श पर दिवार का सहारा ले कर बैठा था और वहीँ से बैठे-बैठे मैंने दीदी की आँखों में देखा और उनसे पुछा; "आपने कभी प्यार किया है?"

"जिससे शादी की उसी से प्यार करना सीख लिया|" दीदी ने बड़ी हलीमी से जवाब दिया, उनका जवाब सुन कर एहसास हुआ की मजबूरी में इंसान हालात से समझौता कर ही लेता है|

"फिर आप मेरा दुःख नहीं समझ सकते!" मैंने गहरी साँस छोड़ते हुए कहा|

"शराब पीने से ये दर्द कम होता है?" दीदी ने पुछा|

"कम तो नहीं होता पर उस दर्द को झेलने की ताक़त मिलती है और चैन से सो जाता हूँ!"

"कल आपका दोस्त कुछ कह रहा था ना की आप........." इसके आगे उनकी बोलने की हिम्मत नहीं हुई और उन्होंने अपना सर झुकाया और अपने सीन पर से साडी का पल्लू खींच कर नीचे गिरा दिया| उनका मतलब कल रात सिद्धार्थ की कही हुई बात की कोई लड़की पेल दे से था| इधर मेरी नजर जैसे ही उनके स्तनों पर पड़ी मैं तुरंत बोला:

"प्लीज ऐसा मत करो दीदी! मैं आपको सिर्फ जुबान से दीदी नहीं बोलता!" इतना सुनते ही दीदी जमीन पर घुटनों के बल बैठ गईं और अपना चेहरा अपने हाथों में छुपा लिया और रोने लगी| मैं अब भी अपनी जगह से हिला नहीं था, मेरा उन्हें सांत्वना देना और छूना मुझे ठीक नहीं लग रहा था|  "साहब....." वो आगे कुछ बोलतीं उससे पहले ही मैं बात काटते हुए बोला; "दीदी आपसे छोटा हूँ कम से कम 'भैय्या' ही बोल दो!" ये सुन कर वो मेरी तरफ आँखों में आँसू लिए देखने लगी और अपनी बात पूरी की; "भैय्या.... मैंने आज तक ऐसा कुछ नहीं किया! पर आप से मिलने के बाद कुछ अपनापन महसूस हुआ और आपकी ये हालत मुझसे देखि नहीं गई इसलिए मैंने....." आगे वो शर्म के मारे कुछ नहीं बोलीं|

"दीदी प्लीज कभी किसी के भी मोह में आ कर फिर कभी अपनी इज्जत को यूँ न गिरा देना! मेरा दोस्त तो पागल है!" आगे मेरा कुछ कहने का मन नहीं हुआ क्योंकि उससे दीदी और शर्मिंदा हो जातीं| मैं तैयार हुआ और तब तक दीदी ने पूरा घर साफ़ कर दिया था और वो मेरे कल के बिखेरे हुए कपडे संभाल रहीं थी|          


              "दीदी वो...बर्तन तो कल आएंगे ... आप कल से खाना बना देना!" इतना कह कर मैं ने अपना बैग उठाया, दीदी समझ गईं की मेरे जाने का समय है तो वो पहले निकलीं और मैं बाद में निकल गया| वो पूरा दिन ऐसे ही बीता और रात को 10 बजे मैं घर पहुँचा| फिर वही पेग बनाया और बालकनी में बैठ गया| पर आज Suicidal Tendencies पैदा नहीं हुईं क्योंकि दिमाग में कुछ और ही चल रहा था और जबतक सो नहीं गया तब तक पीता रहा| सुबह वही दीदी के आने के बाद उठा, वो आज भी मेरे लिए चाय ले आईं थी| चाय पीता हुआ मैं अभी भी सर झुकाये बैठा था, दीदी भी चुप-चाप अपना काम कर रही थीं| बात शुरू करते हुए मैंने पुछा; "दीदी आपके घर में कौन-कौन हैं?"

"मैं, मेरा पति और एक मुन्ना|" दीदी ने बड़ा संक्षेप में जवाब दिया, वो अब भी कल के वाक्या के लिए शर्मिंदा थीं|

"कितने साल का है मुन्ना?" मैंने बात को आगे बढ़ाने के लिए पुछा|

"साल भर का|" दीदी के जवाब से लगा की शायद वो और बात नहीं करना चाहतीं, इसलिए मैंने उठ खड़ा हुआ और बाथरूम जाने लगा| तभी दीदी को पता नहीं क्या सूझी वो आ कर मेरे गले लग गईं और बिफर पड़ीं; "भैया ....मुझे .... गलत ......न समझना|" उन्होंने रोते-रोते कहा| मैंने उन्हें अपने सीने से अलग किया और उनके आँसू पोछते हुए कहा; "दीदी मैं आपके जज्बात महसूस कर सकता हूँ और मैं आपके बारे में कुछ भी बुरा नहीं सोच रहा| जो हुआ उससे पता चला की आपका मेरे लिए कितना मोह है| अब भूल भी जाओ ये सब. जिंदगी इतनी बड़ी नहीं होती की इतनी छोटी-छोटी बातों को दिल से लगा कर रखो|" मेरी बात सुन कर उन्हें इत्मीनान हुआ और वो थोड़ा मुस्कुराईं और मैं बाथरूम में फ्रेश होने चला गया| मेरे रेडी होने तक उनका काम खत्म हो चूका था, मेरे बाहर आते ही वो बोल पड़ीं; "भैया आप सुबह पूछ रहे थे ना की मेरे बारे में पूछ रहे थे, मेरे पति सेठ जी के यहीं पर ड्राइवर हैं, माता-पिता की मृत्यु मेरे बचपन में ही हो गई थी| फिर मैं यहाँ अपनी मौसी के पास आ गई और उनके साथ रह कर मैंने घर-घर काम करना शुरू किया| दो साल पहले मेरी शादी हुई और शादी के बाद मेरे पति दुबई निकल गए पर कुछ ही महीनों में उनकी नौकरी चली गई| मौसी की जानकारी निकाल कर यहाँ नौकरी मिली और सेठ जी ने भी मुझे पूरी सोसाइटी का काम दे दिया| अब यहाँ के सारे घरों का काम मेरे जिम्मे है|" दीदी ने बड़े गर्व से कहा|

"सारी सोसाइटी का काम आप अकेली कर लेती हो?" मैंने मुस्कुराते हुए पुछा|

"यहाँ 20 फ्लैट हैं और अभी बस 10 में ही लोग रहते हैं| एक आपको छोड़ कर सब शादी-शुदा हैं और वहाँ पर सिर्फ झाडू-पोछा या कपडे धोने का ही काम होता है|"

"आप तो यहाँ सारा दिन होते होंगे ना? तो मुन्ना का ख्याल कौन रखता है?"

"भैया मैं तो यही रहती हूँ पीछे सेठ जी ने क्वार्टर बना रखे हैं| दिन में 20 चक्कर लगाती हूँ घर के ताकि देख सकूँ की मुन्ना क्या कर रहा है? कभी-कभी उसे भी साथ ले जाती हूँ|"

"तो मुझे भी मिलवाओ छोटे साहब से!" मैंने हँसते हुए कहा|

"संडे को ले आऊँगी|" उन्होंने हँसते हुए कहा|

उसके बाद दीदी निकल गईं और मैं भी अपने काम पर चला गया| शाम का वही पीना और नशे से चूर सो जाना| ऐसे करते-करते संडे आ गया और आज मैं तो जैसे उस नन्हे से दोस्त से मिलने को तैयार था| सुबह जल्दी उठा और तैयार हो कर बैठ गया, शराब की सारी बोत्तलें एक तरफ छुपा दीं| दीदी आईं तो दरवाजा खुला हुआ था और वो मुझे तैयार देख कर हैरान हो गईं| उनकी गोद में मुन्ना था जो बड़ी हैरानी से मुझे देख रहा था| "मुन्ना ...देखो तेरे मामा|" दीदी ने हँसते हुए कहा|


पर वो बच्चा पता नहीं क्यों मुझे टकटकी बांधे देख रहा थाजैसे की अपने नन्हे से दिमाग में आंकलन कर रहा हो और जब उसे लगा की हाँ ये 'दाढ़ी वालाआदमी सही है तो वो मेरी तरफ आने को अपने दोनों पँख खोल दिएमैंने उस बच्चे को जैसे ही गोद में लिया वो सीधा मेरे सीने से लग गयाजिस सीने में नफरत की बर्फ जम गई थी वो आज इस बच्चे के प्यार से  पिघलने लगी थीमेरी आँखें अपने आप ही बंद होती गईं और मैं रितिका के प्यार को भूल सा गया.... या ये कहे की उस बच्चे ने अपने बदन की गर्मी से रितिका के लिए प्यार को कहीं दबा दिया थाउसका सर मेरे बाएँ कंधे पर था और वो अपने नन्हे-नन्हे हाथों से जैसे मुझे जकड़ना चाहता थाउसकी तेज चलती सांसें ...वो फूल जैसी खुशबु.... उनके नन्हे-नन्हे हाथों का स्पर्श.... उस छोटे से 'पाक़दिल की धड़कन... वो फ़रिश्ते सी आभा.... इन सब ने मेरे मन में जीने की एक ख्वाइश पैदा कर दी थीमन इतना खुश कभी नहीं हुआ थाकी आज मुझे अपने अंदर एक नई ऊर्जा महसूस होने लगी थीमन ने जैसे एक छोटी सी दुनिया बना ली थी जिसमें बस मैं और वो बच्चा था|  

      इस बात से बेखबर की दीदी मुस्कुराती हुई मुझे अपने बच्चे को सीने से लगाए देख रही हैं| मुझे होश तब आया जब उस बच्चे ने 'डा...डा..डा' कहना शुरू किया| मैंने आँखें खोलीं और दीदी को मेरी तरफ देख कर मुस्कुराते हुए पाया| मैंने उसे नीचे उतारा तो वो अपने चरों हाथों-पैरों पर रेंगता हुआ बालकनी की तरफ जाने लगा| "भैया सच्ची तुम मुन्ना के साथ कितने खुश थे! ऐसे ही खुश रहा करो!"

"तो फिर आप रोज मुन्ना को यहाँ ले आया करो|" मैंने मुस्कुराते हुए कहा और फिर मुन्ना के पीछे बालकनी की तरफ चल दिया| वो बालकनी के शीशे के सहारे खड़ा हुआ और नीचे देखने लगा| उसके चेहरे की ख़ुशी ब्यान करने लायक थी, उस नन्ही से जान को किसी बात की कोई चिंता नहीं थी, वो तो बस अपनी मस्ती में मस्त था! कितना बेबाक होता है ना बचपन! दीदी काम करने में व्यस्त हो गईं और मैं मुन्ना के साथ खेलने लगा| कभी वो रेंगता हुआ इधर-उधर भागता... कभी हम दोनों ही सर से सर भिड़ा कर एक दूसरे को पीछे धकेलने की कोशिश करते, में जानबूझ कर गिर जाता और वो आ कर मेरे ऊपर चढ़ने की कोशिश करता| मैं उसे उठा कर अपने सीने पर बिठा लेता और उसके नन्हे-नन्हे हाथों से खुद को मुके पढ़वाता| कभी उसे गोद में ले कर पूरे कमरे में दौड़ता तो कभी उसे अपनी पीठ पर बिठा के उसे घोड़े की सवारी कराता| पूरा घर मुन्ना की किलकारियों से गूँज रहा था और आज इस घर में जैसे जानआ गई हो, छत-दीवारें सब खुश थे! काम खत्म कर दीदी मुन्ना को मेरे पास ही छोड़ कर चली गईं, फिर कुछ देर बाद आईं और तब तक दोपहर के खाने का समय हो गया था| उसे उन्होंने दूध पिलाया और मेरे लिए गर्म-गर्म रोटियाँ सेंकीं जो मैंने बड़े चाव से खाईं! आज तो खाने में ज्यादा स्वाद आ रहा था इसलिए मैं दो रोटी ज्यादा खा गया| मेरे खाने के बाद दीदी ने भी खाना खाया और वो काम करने चलीं गई| मुन्ना सो गया था तो मैं उसकी बगल ही लेट गया और उसे बड़ी हसरतें लिए देखने लगा और फिर से अपने छोटी सी ख़्वाबों की दुनिया में खो गया| मुन्ना के चेहरे पर कोई शिकन कोई चिंता नहीं थी, उसके वो पाक़ चेहरा मुझे सम्मोहित कर रहा था| कुछ घंटों बाद मुन्ना उठा तो मुझे देखते ही उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई| मैंने उसे गोद में लिया और फिर पूरे घर में घूमने लगा| उसने बालकनी में जाने का इशारा किया तो मैं उसे ले कर बालकनी में खड़ा हो गया और वो फिर से सब कुछ देख कर बोलने लगा| अब उसके मुँह से शब्द नहीं निकल रहे थे पर मेरा मन उसकी आवाजों को ही शब्दों का रूप देने लगा| मैंने भी उससे बात करना शुरू कर दिया जैसे की सच में मैं उसकी बात समझ पा रहा हूँ| घर का दरवाजा खुला ही था और जब दीदी ने मुझे पीछे से मुन्ना से बात करते हुए देखा तो वो बोलीं; "सारी बातें मामा से कर लेगा? कुछ कल के लिए भी छोड़ दे?" मैं उनकी तरफ घूमा और हँसने लगा| मैं समझ गया था की वो मुन्ना को लेने आईं है पर मन मुन्ना से चिपक गया था और उसे जाने नहीं देना चाहता था| बेमन से मैंने उन्हें मुन्ना की तरफ बढ़ाया पर वो तो फिर से मेरे सीने से चिपक गया| मैंने उसके माथे को चूमा और तुतलाते हुए उससे कहा; "बेटा देखो मम्मी आई हैं! अभी आप घर जाओ हम कल सुबह मिलेंगे!" पर उसका मन मुझसे अलग होने को नहीं था, ये देख दीदी भी मुस्कुरा दीं और बोलीं; "भैया सच ये आपसे बहुत घुल-मिल गया है| वरना ये किसी के पास जयदा देर नहीं ठहरता, मुझे देखते ही मेरे पास भाग आता है|" तभी उनका पति भी आ गया और उसने दीदी की बातें सुन भी लीं| अरे चल भी साहब को क्यों तंग कर रही है!"  दीदी उसकी आवाज सुन चौंक गईं और मेरे हाथ से जबरदस्ती मुन्ना को लिया और घर चली गईं|

         अब मैं फिर से घर में अकेला हो गया था, पर मन आज की खुशियों से खुश था इसलिए आज मैंने नहीं पीने का निर्णय लिया और खाना खा कर लेट गया| पर नींद आँखों से गायब थी, गला सूखने लगा और मन की बेचैनी बढ़ने लगी| मैंने करवटें लेना शुरू किया ताकि सो सकूँ पर नींद कम्भख्त आई ही नहीं| कलेजे में जलन महसूस होने लगी जो दारू ही बुझा सकती थी| मैं एक दम से खड़ा हुआ और दारु की बोतल निकाली और उसे अपने होठों से लगा कर पीने लगा| पलंग पर पीठ टिका कर धीरे-धीरे सारी बोतल पी गया और तब जा कर नींद आई| एक बात अच्छी हुई थी, वो ये की मुन्ना के प्यार ने मुझे उस दर्द की जेल से बाहर निकाल लिया था| सुबह जल्दी ही आँख खुल गई, शायद मन में मुन्ना से मिलने की बेताबी थी! मैं फ्रेश हो कर कपडे बदल कर बैठ गया की तभी बैल बजी| मैंने दरवाजा खोला और मुझे देखते ही मुन्ना मेरी बाहों में आने को मचलने लगा| उसे गोद में लेते ही जैसी बरसों पुराणी प्यास बुझ गई और मैं उसे ले कर ख़ुशी-ख़ुशी बालकनी में आ गया और वहाँ कुर्सी पर बैठ उससे फिर से बातें करने लगा| फिर मैंने अपना फ़ोन उठाया और मुन्ना को कुछ कपडे दिखाने लगा और उससे 'नादानी' में पूछने लगा की उसे कौन सी ड्रेस पसंद है? अब वो बच्चा क्या जाने, वो तो बस फ़ोन से ही खेलने लगा| वो अपने नन्हे-नन्हे हाथों से फ़ोन को पकड़ने लगा| आखिर मैंने उसके लिए एक छोटा सा सूट आर्डर किया और Early Delivery select कर मैंने उसे अगले दिन ही मँगवा लिया| दीदी को इस बारे में कुछ पता नहीं था, इधर अरुण का फ़ोन आया और वो पूछने लगा की मैं कब आ रहा हूँ? अब मन मारते हुए मुझे ओफिस जाना पड़ा और मुझे जाते देख मुन्ना रोने लगा| दीदी ने उसे बड़े दुलार से चुप कराया और मैं उसके माथे को चूम कर ऑफिस निकला| मेरी ख़ुशी मेरे चेहरे से झलक रही थी जिसे देख मेरा दोस्त अरुण खुश था| सर दोपहर को ही निकल गए थे और मैं शाम को जल्दी भाग आया, सोसाइटी के गेट पर ही मुझे दीदी और मुन्ना मिल गए और मुझे देखते ही वो मेरी गोद में आने को छटपटाने लगा| दीदी ने हँसते हुए उसे मुझे दिया और खुद बजार चली गईं, इधर मैं गार्ड से कल का आर्डर किया हुआ पार्सल ले कर घर आ गया| मैंने मुन्ना को खुद वो कपडे पहनाये जो उसे बिलकुल परफेक्ट फिट आये, कहीं उसे नजर न लग जाए इसलिए मैंने उसे एक काला टीका लगाया| ये कला टीका मैंने तवे के पेंदे से कालक निकाल कर लगाया था| फिर उसे गोद में लिए हुए मैंने बहुत सारी फोटो खींची| कुछ देर बाद जब दीदी आईं तो अपने बच्चे को इन कपड़ों में देख उनकी आँखें नम हो गईं| उन्होंने अपनी आँख से काजल निकल कर उसे टिका लगाना चाहा तो देखा की मैं पहले ही उसे टिका लगा चूका था| "भैया ये टिका तुमने कैसे लगाया?" उन्होंने अपने आँसू पोछते हुए पुछा| "दीदी मुझे डर लग रहा था की कहीं मेरी ही नजर न लग जाए मुन्ना को तो मैंने तवे के पेंदे से कालक निकाल कर ये छोटा सा टिका लगा दिया|" मैंने जब ये कहा तो दीदी हँस दी|

"पर भैया ये तो बहुत महँगा होगा?"

"मेरे भांजे से तो महँगा नहीं ना?!" फिर मैं मुन्ना को ले कर बालकनी में बैठ गया| रात होने तक मुन्ना मेरे साथ ही रहा, फिर दीदी उसे लेने आईं और मुन्ना फिर से नहीं जाने की जिद्द करने लगा| पर इस बार मैंने उसे बहुत प्यार से दुलार किया और उसे दीदी के हाथों में दे दिया| दीदी जाने लगी तो मैं हाथ हिला कर उसे बाय-बाय करने लगा और वो भी मुझे देख कर पाने नन्हे हाथ हिला कर बाय करने लगा| खाना खा कर लेता पर शराब ने मुझे सोने नहीं दिया, अब तो मेरे लिए ये आफत बन गई थी! मैंने सोच लिया की धीरे-धीरे इसे छोड़ दूँगा क्योंकि अब मेरे पास मुन्ना का प्यार था| पर उन दिनों मेरी किस्मत मुझसे बहुत खफा थी, क्यों ये मैं नहीं जानता पर मुझे लगने लगा था की जैसे वो ये चाहती ही नहीं की मैं खुश रहूँ! अगली सुबह मैं फटाफट उठा और फ्रेश हो कर दरवाजे पर नजरे टिकाये मुन्ना के आने का इंतजार करने लगा| आमतौर पर दीदी 7 बजे आ जाये करती थीं और अभी 9 बजने को आये थे उनका कोई अता-पता ही नहीं था| मन बेचैन हुआ और मैं उन्हें ढूँढता हुआ नीचे आया तो देखा की वहाँ पुलिस खड़ी है, गार्ड से पुछा तो उसने बताया की आज सुबह दीदी का पति उन्हें और मुन्ना को ले कर भाग गया| उसने रात को सेठजी के पैसे चुराए थे और उन्ही ने पुलिस बुलाई थी|


मुझे सेठ के पैसों से कोई सरोकार नहीं था मुझे तो मुन्ना के जाने का दुःख था! भारी मन से मैं ऊपर आया और दरवाजा जोर से बंद किया| शराब की बोतल निकाली और उसे मुँह से लगा कर गटागट पीने लगा| एक साँस में दारु खींचने के बाद मैंने बोतल खेंच कर जमीन पर मारी और वो चकना चूर हो गई, कांच सारे घर में फ़ैल गया था! मैं बहुत जोर से चिल्लाया; "आआआआआआआआआआआआआ!!" और फिर घुटनों के बल बैठ कर रोने लगा| "क्या दुश्मनी है तेरी मुझसे? मैंने कौन सा सोना-चांदी माँगा था तुझसे? तुने 'ऋतू' को मुझसे छीन लिया मैंने तुझे कुछ नहीं कहा, पर वो छोटा सा बच्चा जिससे प्यार करने लगा था उसे भी तूने मुझसे छीन लिया? जरा सी भी दया नहीं आई तेरे मन में? क्या पाप किया है मैंने जिसकी सजा तू मुझे दे रहा है? सच्चा प्यार किया था मैंने!!!! कम से कम उस बच्चे को तो मेरे जीवन में रहने दिया होता! दो दिन की ख़ुशी दे कर छीन ली, इससे अच्छा देता ही ना!" मैं गुस्से में फ़रियाद करने लगा|
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(10-12-2019, 11:11 PM)Arv313 Wrote: yourock
Bhai aapki story se ek ye sikh bahut badi mili ki kisi Ko itna bhi na chaho ki vo tumhe kayar bana de 
Asal me to ab ladke ko ladki ko khatam kar dena chahiye.

Thank You  Heart Heart Heart

(11-12-2019, 07:28 AM)Prativiveka Wrote: Kahani ko bahut achhe se aur feel ke saath likha hai aapne sir. Aur ye twist wala update bahut shandar  hai bahuton ki pichli yaden taza ho gayi hongi.

Thank you  Heart Heart Heart
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अब तक आपने पढ़ा:

मुझे सेठ के पैसों से कोई सरोकार नहीं था मुझे तो मुन्ना के जाने का दुःख था! भारी मन से मैं ऊपर आया और दरवाजा जोर से बंद किया| शराब की बोतल निकाली और उसे मुँह से लगा कर गटागट पीने लगा| एक साँस में दारु खींचने के बाद मैंने बोतल खेंच कर जमीन पर मारी और वो चकना चूर हो गई, कांच सारे घर में फ़ैल गया था! मैं बहुत जोर से चिल्लाया; "आआआआआआआआआआआआआ!!" और फिर घुटनों के बल बैठ कर रोने लगा| "क्या दुश्मनी है तेरी मुझसे? मैंने कौन सा सोना-चांदी माँगा था तुझसे? तुने 'ऋतू' को मुझसे छीन लिया मैंने तुझे कुछ नहीं कहा, पर वो छोटा सा बच्चा जिससे प्यार करने लगा था उसे भी तूने मुझसे छीन लिया? जरा सी भी दया नहीं आई तेरे मन में? क्या पाप किया है मैंने जिसकी सजा तू मुझे दे रहा है? सच्चा प्यार किया था मैंने!!!! कम से कम उस बच्चे को तो मेरे जीवन में रहने दिया होता! दो दिन की ख़ुशी दे कर छीन ली, इससे अच्छा देता ही ना!" मैं गुस्से में फ़रियाद करने लगा|

update 62


अल्लाह तुझसे, बंदा पूछे..
राह तू दे दे जाना कहा है जाना

अल्लाह तुझसे, बंदा पूछे..
राह तू दे दे जाना कहा है जाना

जाना कहा है जाना
जाना कहा है जाना...

तय थे दिल को ग़म जहाँ पे
मिली क्यों खुशियां वहीँ पे
हाथों से अब फिसले जन्नत
हम तो रहे न कही के

होना जुदा अगर
है ही लिखा
यादों को उसकी
आके तू आग लगा जा

अल्लाह तुझसे, बंदा पूछे..
राह तू दे दे जाना कहा है जाना
अल्लाह तुझसे, बंदा पूछे

तेरी ही मर्ज़ी सारे जहाँ में
तोह ऐसा क्यों जतलाये

ख्वाबों को मेरे छीन कैसे
तू खुदा कहलाये

माँग बैठा
चाँद जो दिल
भूल की इतनी
देता है कोई सजा किया?

अल्लाह तुझसे, बंदा पूछे..
राह तू दे दे जाना कहा है जाना

जाना कहा है जाना…
जाना कहा है जाना                                          

पर वहाँ मेरी फ़रियाद सुनने वाला कोई नहीं था, थी तो बस शराब जो मेरे दिल को चैन और रहत देती थी, एक वही तो थी जिसने मेरा साथ कभी नहीं छोड़ा था! कुछ देर बाद पोलिस और मकान मालिक घर आये और मेरी हालत देख कर पोलिस वाला कुछ पूछने ही वाला था की मकान मालिक बोला; "इंस्पेक्टर साहब ये तो अभी कुछ दिन पहले ही आया है| सीधा-साधा लड़का है!"

"हाँ वो तो इसे देख कर ही पता लग रहा है?! क्या नाम है?" पोलिस वाले ने पुछा| अब मैं इतना भी नशे में नहीं था; "मानु" मैंने बड़ा संक्षेप में जवाब दिया क्योंकि ज्यादा बोलता तो वो पता नहीं और कितने सवाल पूछता|

"तुम संजय या उसकी पत्नी को जानते थे?" उसने सवाल दागा|

"संजय से बस एक बार मिला था और उसकी पत्नी मेरे यहाँ काम करती थी|"

"उसका कोई फ़ोन नंबर है तुम्हारे पास?"

"जी नहीं!"

"दिन में क्यों पीते हो?"

"पर्सनल reason है!"  ये सुन कर वो मुझे घूरता हुआ बाकियों से पूछताछ करने लगा| मैंने दरवाजा भेड़ा और बिस्तर पर लेट गया, इधर मेरा फ़ोन बज उठा| मैंने फ़ोन उठाया तो अरुण पूछने लगा की कब आ रहा है? मैंने बस इतना बोला की तबियत ठीक नहीं है और वो समझ गया की मैंने पी हुई है| शाम को वो धड़धड़ाता हुआ मेरे घर आ पहुँचा और जब मैंने दरवाजा खोला तो वो मेरी शक्ल देख कर समझ गया| मैं हॉल में बैठ गया और वो मेरे सामने बैठ गया, "भाई क्या हो गया है तुझे? दो दिन तो तू चक रहा था और अब फिर से वापस उदास हो गया? क्या हुआ?" मैंने कोई जवाब नहीं दिया बीएस सर झुकाये बैठा रहा| तभी उसकी नजर कमरे में बिखरे काँच पर पड़ी और वो बोला; "वो आई थी क्या यहाँ?" मैंने ना में सर हिलाया| "तो ये बोतल कैसे टूटी?" उसने पुछा और तब मुझे ध्यान आया की घर में काँच फैला हुआ है| वो खुद उठा और झाड़ू उठा कर साफ़ करने लगा, मुझे खुद पर बड़ा गुस्सा आया इसलिए मैंने उससे झाड़ू ले लिया और खुद झाड़ू लगाने लगा| "तू ने खाया कुछ?" अरुण ने पुछा तो माने फिर से ना में सर हिलाया और उसने खुद मेरे लिए खाना आर्डर किया| "देख तू कुछ दिन के लिए घर चला जा! मैं भी कुछ दिन के लिए गाँव जा रहा हूँ|" मैं उसकी बात समझ गया था, उसे चिंता थी की उसकी गैरहजरी में मैं यहाँ अकेला रहूँगा तो फिर से ये सब करता रहूँगा और तब मुझे टोकने वाला कोई नहीं होगा| "देखता हूँ!" मैं बस इतना बोला और वापस उसके सामने बैठ गया| "मेरी सास की तबियत खराब है, तेरी भाभी तो पहले ही वहाँ जा चुकी है पर वो अकेले संभाल नहीं पा रही इसलिए कुछ दिन की छुट्टी ले कर जा रहा हूँ|" अरुण ने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा| "कुछ जयदा सीरियस तो नहीं?" मैंने पुछा और इस तरह से हमारी बात शुरू हुई| मैंने उसे अपनी बाइक की चाभी दी ताकि वो समय से घर पहुँच जाए वरना बस के सहारे रहता तो कल सुबह से पहले नहीं पहुँचता| "अरे! मैं बस से चला जाऊँगा|" अरुण ने चाबही मुझे वापस देते हुए कहा| अब मुझे बात बनानी थी इसलिए मैंने कहा; "यार तू ले जा वरना यहाँ कहाँ खड़ी रखूँगा?" मेरी बात सुन कर उसे विश्वास हो गया की मैं भी घर जा रहा हूँ और उसने चाभी ले ली| फिर मैं उसे नीचे छोड़ने के बहाने गया और रात की दारु का जुगाड़ कर वापस आ गया| वापस आया तो खाना भी आ चूका था, अब किसका मन था खाने का पर उसे waste करने का मन नहीं किया| मैं वापस से बालकनी में बैठ गया और अपना खाना और पेग ले कर बैठ गया|


मेरे मन में अब जहर भर चूका था, प्यार का नामोनिशान दिल से मिट चूका था| मन ने ये मान लिया था की इस दुनिया में प्यार-मोहब्बत सब दिखावा है, बस जर्रूरत पूरी करने का नाम है! पर अभी मेरी परेशानियाँ खत्म नहीं हुई थी, रितिका की शादी होनी थी और मुझे घर जाना था| घर अगर नहीं गया तो सब मुझे ढूंढते हुए यहाँ आ जायेंगे और फिर पता नहीं क्या काण्ड हो! घर जा कर मैं ये भी नहीं कह सकता की मैं शादी में शरीक ही नहीं होना चाहता! क्योंकि फिर मुझे उसका कारन बताना पड़ता जो की रितिका के लिए घातक साबित होता| ये ख्याल आते ही दिमाग ने बदला लेने की सोची, "जा के घर में सब सच बोल दे!" मेरे दिमाग ने कहा पर फिर उसका परिणाम सोच कर मन ने मना कर दिया| भले ही मेरा दिमाग रितिका से नफरत करता था पर मन तो अभी अपनी ऋतू का इंतजार कर रहा था| दिमाग और दिल में जंग छिड़ चुकी थी और आखिर नफरत ही जीती! इस जीत को मनाने के लिए मैंने एक लार्ज पेग बनाया और उसे गटक गया| नफरत तो जीत गई पर मेरा दिल हार गया और अब वो अंदर से बिखर चूका था| बस एक लाश ही रह गई थी जिसमें बस दर्द ही दर्द बचा था और उस दर्द की बस एक ही दवा थी वो थी शराब! अब तो बस इसी में डूब जाने का मन था शायद ये ही मुझे किसी किनारे पहुँचा दे| 

                                              अगली सुबह में देर से उठा और ऑफिस पहुँचा क्योंकि अरुण के गैरहाजरी में काम देखने वाला कोई नहीं था| अगले दो दिन तक मैंने देर रात तक बैठ कर काम निपटाया और फिर तीसरे दिन मैंने सर से बात की; "सर I'm सॉरी पर मैं अब और ऑफिस नहीं आ सकता! टैक्स रिटर्न्स फाइनल हो चुकी हैं और अरुण वापस आ कर जमा कर देगा| इसलिए प्लीज मैं कल से नहीं आ पाउँगा|" सर ने बटहरी कोशिश की पर मैं नहीं माना और उसी वक़्त सर से अपनी बैलेंस पेमेंट का चेक ले कर पहले बैंक पहुँचा और उसे जमा किया फिर घर आ कर सो गया| जब उठा तो पहले नहाया और जब खुद को आज माने आईने में देखा तो मुझे यक़ीन ही नहीं हुआ की ये शक़्स कौन है? मैं आँखें बड़ी कर के हैरानी से खुद को ही आईने में देखने लगा| वो सीधा-साधा लड़का कहाँ खो गया? उसकी जगह ये कौन है जो आईने में मुझे ही घूर रहा है? मेरी दाढ़ी के बाल इतने बड़े हो गए थे की मैं अब बाबा लगने लगा था| सर के बाल झबरे से थे और जब नजर नीचे के बदन पर गई तो मुझे बड़ा जोर का झटका लगा| गर्दन से नीचे का जिस्म सूख चूका था और मैं हद्द से ज्यादा कमजोर दिख रहा था| मेरी पसलियाँ तक मुझे दिखने लगीं थी! ये क्या हालत बना ली है मैंने अपनी? क्या यही होता है प्यार में? अच्छा-खासा इंसान इस कदर सूख जाता है?! अब मुझे समझ आने लगा था की क्यों मेरे दोस्त मुझे कहते थे की मैंने अपनी क्या हालत बना ली है?! दिमाग कहने लगा था की सुधर जा और ये बेवकूफियां बंद कर, वो कमबख्त तो तेरा दिल तोड़ चुकी है तू क्यों उसके प्यार के दर्द में खुद को खत्म करना चाहता है| पर अगले ही पल मन ने मुझे फिर से पीने का बहाना दे दिया, "अभी तो उसकी शादी भी होनी है? तब कैसे संभालेगा खुद को?" और मेरे लिए इतनी वजह काफी थी फिर से पीने के लिए| "पुराना वाला मानु अब मर चूका है!" ये कहते हुए मैंने किचन काउंटर से गिलास उठाया और उसमें शराब डाल कर पीने लगा| दोपहर से रात हुई और रात से सुबह.... पर मेरा पीना चालु रहा| जब नींद आ जाती तो सो जाता और जब आँख खुलती तो फिर से पीने लगता, इस तरह से करते-करते संडे आया|


                                               सुबह मेरी नींद पेट में अचानक हुए भयंकर दर्द से खुली, मैं तड़पता हुआ सा उठा और उठ कर बैठना चाहा| बैठने के बाद मैं अपने पेट को पकड़ कर झुक कर बैठ गया की शायद पेट दर्द कम हो पर ऐसा नहीं हुआ| दर्द अब भी हो रहा था और धीरे-धीरे बढ़ने लगा था, मैं उठ खड़ा हुआ और किचन में जा कर पानी पीने लगा| मुझे लगा शायद पानी पीने से दर्द कम हो पर ऐसा नहीं हुआ| मैं जमीन पर लेट गया पर पेट से अब भी हाथ नहीं हटाया था| बल्कि मैं तो लेटे-लेटे ही अपने घुटनों को अपनी छाती से दबाना छह रहा था ताकि दर्द कम हो पर उससे दर्द और बढ़ रहा था| फिर अचानक से मुझे उबकाई आने लगी, मैं फटाफट उठा और बाथरूम में भागा और कमर पकड़ कर उल्टियाँ करने लगा| मुँह से सिर्फ और सिर्फ दारु ही बाहर आ रही थी, खाने के नाम पर सिर्फ चखना या खीरा-टमाटर ही अंदर गए थे जो दारु के साथ बाहर आ गए| करीब 10 मिनट मैं कमोड पर झुक कर खड़ा रहा ताकि और उलटी होनी है तो हो जाये| पर उलटी नहीं आई और अब पेट का दर्द धीरे-धीरे कम हो रहा था| मुँह-हाथ धो कर आ कर मैं जमीन पर बैठ गया, मेरे हाथ-पैर काँपने लगे थे और निगाह शराब की बोतल पर थी| पर दिमाग कह रहा था की और और पीयेगा तो मरेगा! उठ और डॉक्टर के चल| मैं उठा कपडे बदले और परफ्यूम छिड़क कर घर से निकला| ऑटो किया और डॉक्टर के पास पहुँचा, मेरा नम्बर आने तक मैं बैठा-बैठा ऊँघता रहा| जब आया तो डॉक्टर ने मुझसे बीमारी के बारे में पुछा| "सर आज सुबह मेरे पेट में बड़े जोर से दर्द हुआ, उसके कुछ देर बाद उल्टियाँ हुई और अब मेरे हाथ-पैर काँप रहे हैं!" उसने पुछा की मैं कितना ड्रिंक करता हूँ तो मैंने उन्हें सब सच बता दिया| उन्होंने कुछ टेस्ट्स लिखे और सामने वाले Lab में भेज दिया| वहाँ मेरा Ultrasound हुआ, ECG हुआ और X-ray भी हुआ और भी पता नहीं क्या-क्या ब्लड टेस्ट किये उन्होंने! मैं पूरे टाइम यही सोच रहा था की शरीर में कुछ है ही नहीं तो टेस्ट्स में आएगा क्या घंटा! पर जब रिपोर्ट्स डॉक्टर ने देखि तो वो बहुत हैरान हुआ| "It’s a clear case of fatty liver! You’ll have to stop drinking otherwise you’re very close to develop Cirrhosis of Liver and things will get complicated from there. Your present condition can be controlled and improved.” डॉक्टर ने बहुत गंभीर होते हुए कहा| पर उसकी बात का अर्थ जो मेरे दिमाग ने निकला वो ये था की मैं जल्द ही मरने वाला हूँ पर कितनी जल्दी ये मुझे पूछना था! "Sir if you don’t mind me asking, how much time do I have?” ये सवाल सुन कर डॉक्टर को मेरे मानसिक स्थिति का अंदाजा हुआ और वो गरजते हुए बोला; "Are you out of your mind? This condition of yours can be contained, you’re not gonna die!”

“But what if I don’t stop drinking? Then I’m gonna die right?”

“Tell me why do you wanna die? Is that a solution to whatever crisis you’re going through? Death isn’t a solution, Life is!”    

       मैं खामोश हो गया क्योंकि उसके आगे मेरे कान कुछ सुनना नहीं चाहते थे| डॉक्टर को ये समझते देर न लगी की I'm going through depression! इसलिए वो अपनी कुर्सी से उठा और मेरी बगल वाली कुर्सी पर बैठ गया और मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए मुझे सांत्वना देने लगा|

“Do you have a family?” मैंने हाँ में सर हिलाया| “Call them here, you need their love and affection. You’ve to understand, you’re slipping into depression and its not good! You need proper medical care, don’t throw your life that easily!” मेरा दिमाग जानता था की डॉक्टर मेरे भले की कह रहा था पर रितिका की बेवफाई मुझे बस अन्धकार में ही रखना चाहती थी| "Thank you doctor!" इतना कह कर मैं उठ गया और उन्होंने मुझे मेरी केस फाइल दे दी| पर हॉस्पिटल से बाहर आते ही शराब की ललक जाग गई और मैं ऑटो पकड़ कर सीधा घर के पास वाले ठेके पर आ गया| वहाँ दारु ले ही रहा था की मेरी नजर एक बोर्ड पर पड़ी, कोई नया पब खुला था जिसका नाम 'मैखाना' था! ये नाम ही मेरे मन उस जगह के बारे में उत्सुकता जगाने के लिए काफी था, ऊपर से जब मैंने नीचे देखा तो वहाँ लिखा था 1 + 1 on IMFL Drinks after 8 PM अब ये पढ़ते ही मेरे मन में आया की आज रात तो कुछ नया ब्रांड try करते हैं!  वहाँ से मेरा घर करीब 20 मिनट दूर था तो मैंने ऑटो किया और घर आ गया| अब शराब पीने लगा ही था की पिताजी का फ़ोन आ गया| "कब आ रहा है तू घर?' उन्होंने डाँटते हुए कहा| मैं आगे कुछ कहता उससे पहले ही उनका गुस्सा फुट पड़ा; "मुश्किल से महीना रह गया है, घर पर इतना काम है और तू है की घर तक नहीं भटकता? क्या तकलीफ है तुझे? यहाँ सब बहुत खफा हैं तुझसे!"

"पिताजी .... काम...." आगे कुछ कहने से पहले ही वो फिर से बरस पड़े; "हरबार तेरी मनमानी नहीं चलेगी! तूने कहा तुझे नौकरी करनी है हमने तुझे जाने दिया, तूने कहा मुझे शादी नहीं करनी हम वहां भी मान गए पर अब घर में शादी है और तू वहाँ अपनी नौकरी पकड़ कर बैठ है? छोड़ दे अगर छुट्टी नहीं देता तेरा मालिक तो! बाद में दूसरी पकड़ लिओ!"

"पिताजी इतनी आसानी से नौकरी नहीं मिलती! ये मेरी दूसरी नौकरी है, पहली वाली मैंने छोड़ दी क्योंकि वो बॉस तनख्वा नहीं बढ़ाता था| मैंने आप को इसलिए नहीं बताया क्योंकि आप मुझे वापस बुला लेटे! अब नई नौकरी है तो इतनी जल्दी छुट्टी नहीं माँग सकता! मैं कल बात करता हूँ बॉस से और फिर आपको बताता हूँ|" मैंने बड़े आराम से जवाब दिया|

"ठीक है! पर जल्दी आ यहाँ बहुत सा काम है!" उन्होंने बस इतना कहा और फ़ोन काट दिया| अब माने बहाना तो बना दिया था पर कल क्या करूँगा यही सोचते-सोचते शाम हो गई, जो जाम मैंने पहले बनाया था उसे पीया और फिर गांजा फूंका और फिर बालकनी में बैठ गया| बैठे-बैठे आँख लग गई और जब खुली तो रात के नौ बज रहे थे| मुझे याद आया की आज तो 'मैखाने' जाना है, मैंने मुँह-हाथ धोया, कपडे पहने और परफ्यूम छिड़क कर ही पैदल वहाँ पहुँच गया| ज्यादा लोग नहीं आये थे, मैं सीधा बार स्टूल पर बैठा और बारटेंडर से 60 ml सिंगल माल्ट मांगी! वहाँ के म्यूजिक को सुन कर मुझे अच्छा लग रहा था, अकेले में शराब पी कर सड़ने से तो ये जगह सही लगी मुझे| मरना ही तो थोड़ा ऐश कर के मरो ना! ये ख्याल आते ही मैंने भी गाने को एन्जॉय करना शुरू कर दिया| एक-एक कर मैंने 10 ड्रिंक्स खत्म की और अब बजे थे रात के बारह और बारटेंडर ने और ड्रिंक सर्वे करने से मना कर दिया| कारन था की मैं बहुत ज्यादा ही नशे में था और मुझसे ठीक से खड़ा ही नहीं जा रहा था| बारटेंडर ने बाउंसर को बुलाया जिसने मुझे साहरा दे कर बाहर छोड़ा और खुद अंदर चला गया| मैं वहाँ ठीक से खड़ा भी नहीं हो पा रहा था और ऑटो का इंतजार कर रहा था पर कोई ऑटो आ ही नहीं रहा था और जो आया भी वो मेरी हालत देख कर रुका नहीं| अब मुझे एहसास हुआ की घर में पीने का फायदा क्या होता है, वहाँ पीने के बाद कहीं भी फ़ैल सकते हो! मैंने हिम्मत बटोरी और पैदल ही जाने का सोचा, पर अभी मुझे एक सड़क पार करनी थी जो मेरे लिए बहुत बड़ा चैलेंज था| रात का समय था और ट्रक के चलने का टाइम था इसलिए मैं धीरे-धीरे सड़क पार करने लगा| नशे में वो दस फूटा रोड भी किलोमीटर चौड़ी लग रही थी| आधा रास्ता पार किया की एक ट्रक के हॉर्न की जोरदार आवाज आई और मैं जहाँ खड़ा था वहीँ खड़ा हो गया| नशे में आपके बॉडी के रेफ्लेक्सेस काम नहीं करते इसलिए मैं रूक गया था, पर उस ट्रक वाले ने मेरे साइड से बचा कर अपना ट्रक निकाल लिया| आज तो मौत से बाल-बाल बचा था, पर मैं तो पलट के उसे ही गालियाँ देने लगा; "अबे! भोसड़ी के मार देता तो दुआ लगती मेरी बहनचोद साइड से निकाल कर ले गया!" पर वो तो अपना ट्रक भगाता हुआ आगे निकल गया| मैं फिर से धीरे-धीरे अपना रास्ता पार करने लगा| जैसे-तैसे मैंने रास्ता पार किया और सड़क किनारे खड़ा हो गया, कोई ऑटो तो मिलने वाला था नहीं, न ही फ़ोन में बैटरी थी की कैब बुला लूँ और अब चल कर घर जाने की हिम्मत थी नहीं| मैंने देखा तो कुछ दूर पर एक टूटा हुआ बस-स्टैंड दिखा, सोचा वहीँ रात काट लेता हूँ और सुबह घर चला जाऊँगा| धीरे-धीरे वहाँ पहुँचा पर वहाँ लेटने की जगह नहीं थी बस बैठने भर को जगह थी| मैं अपनी पीठ टिका कर और सड़क की तरफ मुँह कर के बैठ गया और सोने लगा| वहाँ से जो कोई भी गाडी गुजरती उसकी हेडलाइट मेरे मुँह पर पड़ती, पर मैं गहरी नींद सो चूका था| कुछ देर बाद मेरे पास एक गाडी रुकी, गाडी से कोई निकला जिसने मेरा नाम पुकारा; "मानु!" पर मैं तो गहरी नींद में था तो मैंने कोई जवाब नहीं दिया| फिर वो शक़्स मेरे नजदीक आया और अपने फ़ोन की रौशनी मेरे मुँह पर मार कर मेरी पहचान करने लगा| जब उसे यक़ीन हुआ की मैं ही मानु हूँ तो उसने मुझे हिलना शुरू कर दिया| मेरे जिस्म से आती दारु की महक से वो सक्स समझ गया की मैं नशे में टुन हूँ| बड़ी मेहनत से उसने मुझे अपनी गाडी की पिछली सीट पर लिटाया और मेरे पाँव अंदर कर के वो शक़्स चल दिया|               


अगली सुबह जब मेरी नींद खुली तो मेरी आँखों के सामने छत थी और मैंने खुद को एक कमरे में बिस्तर पर लेटा हुआ पाया| मैं जैसे ही उठा वो शक़्स जो मुझे उठा कर लाया था वो मेरे सामने था| "आप?" मेरे मुँह से इतना निकला की उन्होंने मेरी तरफ एक कॉफ़ी का मग बढ़ा दिया| ये शक़्स कोई और नहीं बल्कि अनु मैडम थीं|
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पुरानी चूत फिर मिल गयी
☺☺☺☺
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अब तक आपने पढ़ा:

अगली सुबह जब मेरी नींद खुली तो मेरी आँखों के सामने छत थी और मैंने खुद को एक कमरे में बिस्तर पर लेटा हुआ पाया| मैं जैसे ही उठा वो शक़्स जो मुझे उठा कर लाया था वो मेरे सामने था| "आप?" मेरे मुँह से इतना निकला की उन्होंने मेरी तरफ एक कॉफ़ी का मग बढ़ा दिया| ये शक़्स कोई और नहीं बल्कि अनु मैडम थीं|

update 63

"क्या हालत बना रखी है अपनी?" उन्होंने मुझे डाँटते हुए पुछा| पर मैं उन्हें अपने पास देख कर थोड़ा सकपका गया था, मेरा इस वक़्त उनके घर में होना ठीक नहीं था, इसलिए मैं उठा और कॉफ़ी का मग साइड में रखा और जाने लगा| उन्होंने मेरा हाथ पकड़ा और बोलीं; "कहाँ जा रहे हो? बैठो यहाँ और कॉफ़ी पियो!"

"Mam मेरा आपके घर रुकना सही नहीं है| आपके Parents क्या सोचेंगे?" इतना कह कर मैं फिर उठने लगा तो उन्होंने मेरे कंधे पर हाथ रखा और बोलीं; "ये मेरी फ्रेंड का घर है| तुम जरा भी नहीं बदले अब भी बिलकुल जेंटलमैन हो!" उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा और कॉफ़ी वाला मग मुझे दुबारा पकड़ा दिया| मैं चुप-चाप कॉफ़ी पीने लगा और इधर वो कुछ सोचने लगीं की कुछ तो माजरा है जो मेरी ये हालत हो गई है!

  'अच्छा अब बताओ क्या बात है? क्यों इस तरह अपनी हालत बना रखी है?" पर मैं खामोश रहा और कॉफ़ी पीने लगा| "ओह! Silent Treatment!!!! नाराज हो मुझसे?" Mam ने फिर से पुछा और मैंने ना में गर्दन हिला दी| फिर मैंने अपना फ़ोन ढूंढ़ने के लिए हाथ मारा तो उन्होंने मेरा 'Charged' फ़ोन मुझे दिया| "कभी फ़ोन भी charge कर लिया करो! या काम में इतने मशरूफ रहते हो की चार्ज करने का टाइम नहीं मिलता|" उन्होंने कहा और अचानक ही मेरे मुँह से निकला; "जॉब छोड़ दी मैंने!" ये सुनते ही वो चौंक गईं और मुझसे पूछने लगीं; "क्यों?" मैं जाने के लिए उठ के खड़ा हुआ तो उन्होंने एक बार फिर मुझे जबरदस्ती बिठा दिया; "जॉब क्यों छोड़ी?" अब मैं उन्हें कुछ भी नहीं कहना चाहता था क्योंकि मेरी बात सुन कर वो मुझे अपनी हमदर्दी देना चाहती जो में कतई नहीं चाहता था| "मन नहीं था! ... बोर हो गया था!" मैंने झूठ बोला पर उन्हें मेरी बात पर विश्वास नहीं हुआ, वो मेरे अंदर की झुंझलाहट समझ चुकीं थीं की अगर वो कुछ और पूछेंगी तो मैं उन्हीं पर बरस पडूँगा| इसलिए वो कुछ देर खामोश रहीं| मैं फिर उठा और जाने के लिए बाहर आया ही था की उन्होंने पीछे से कहा; "मुझे कॉल क्यों नहीं किया?" अब ये ऐसा सवाल था जिसके कारन मेरा गुस्सा बाहर आने को उबल पड़ा और मैं बड़ी तेजी से उनकी तरफ पलटा और चिल्लाने को हुआ ही था की मैंने अपने दाहिने हाथ की मुट्ठी तेज बंद की और खुद को चिल्लाने से रोका और दाँत पीसते हुए कहा; "आपने कॉल किया मुझे बैंगलोर जा कर?" ये सुन कर अनु mam का सर झुक गया| "और मैं कॉल करता भी तो किस नंबर पर?" ये कहते हुए मैंने उन्हें अपना व्हाटस अप्प खोल कर दिखाया जिस पर मेरे आखरी के दो happy Birthday वाले मैसेज अब भी उन्हें रिसीव नहीं हुए थे क्योंकि उन्होंने वहाँ जा कर अपना नंबर बदल लिया था| जब mam ने ये मैसेज देखे तो उनकी आँखों में आँसू छलक आये और उन्हें एहसास हुआ की उन्होंने मुझे मेरे बर्थडे तक पर wish नहीं किया था| दरअसल जब मैं उनके पति कुमार के ऑफिस में काम करता था तो मैं और राखी उन्हें उनके जन्मदिन पर Happy Birthday बोला करते थे और उनके बैंगलोर जाने के बाद भले ही मैंने उन्हें कोई कॉल करने की कोशिश नहीं की पर उनके बर्थडे वाले दिन उन्हें मैसेज जर्रूर कर दिया करता था| पहली बार जब मैसेज भेजा तो काफी दिन तक वो उन्होंने read नहीं किया| मैंने सोचा की शायद वो बिजी होंगी या नंबर चेंज कर लिया होगा| फिर भी मैंने उन्हें वो दूसरा मैसेज उन्हें भेजा था ये सोच कर की इतनी दोस्ती तो निभानी चाहिए|

"I’m sorry मानु! मैं वहाँ जा कर अपनी दुनिया में खो गई और तुम्हें कॉल करना ही भूल गई|" Mam ने सर झुकाये हुए कहा|

"Its okay mam...anyway thanks for ... what you did last night ......I hope I didn't misbehave last night." मैंने झूठी मुस्कराहट का नक़ाब पहन कर कहा और दरवाजे के पास जाने लगा तो mam ने आ कर मेरे कंधे पर हाथ रख कर फिर से रोक लिया| "ये mam - mam क्या लगा रखा है? पिछली बार मैंने तुम्हें कहा था न की मुझे अनु बोला करो!" mam ने मुस्कुराते हुए कहा|

"Mam दो साल में तो लोग शक़्लें भूल जाते हैं, मैं तो फिर भी आपको इज्जत दे कर mam बुला रहा हूँ!" मेरे तीर से पैने शब्द mam को आघात कर गए पर वो सर झुकाये सुनती रही| उन्हें ऐसे सर झुकाये देखा तो मुझे भी एहसास हुआ की मैंने उन्हें ज्यादा बोल दिया; "sorry!!!" इतना बोल कर मैं वपस जाने को निकला तो वो बोलीं; "चलो मैं तुम्हें drop कर देती हूँ|" इस बार उनके चेहरे पर वही मुस्कान थी जो अभी कुछ देर पहले थी|

"Its okay mam ... मैं चला जाऊँगा|"

"कैसे जाओगे? ऑटो करोगे ना?"

"हाँ"

"तो ऐसा करो वो पैसे मुझे दे देना|" mam ने फिर से मुस्कुराते हुए कहा| मैंने मजबूरन उनकी बात मान ली और उनके साथ गाडी में चल दिया| "दो दिन पहले मैं यहाँ अपने मम्मी-डैडी से मिलने आई थी, पर उन्होंने तो मुझे घर से ही निकाल दिया! अब कहाँ जाती, तो अपनी दोस्त को फ़ोन किया और उससे मदद मांगी| वो बोली की वो कुछ दिनों के लिए बाहर जा रही है और मैं उसकी गैरहाजरी में रह सकती हूँ| कल रात उसे एयरपोर्ट चूड कर आ रही थी जब तुम मुझे उस टूटे-फूटे बस स्टैंड पर बैठे नजर आये| पहले तो मुझे यक़ीन नहीं हुआ की ये तुम हो इसलिए मैंने दो-तीन बार गाडी की हेडलाइट तुम्हारे ऊपर मारी पर तुमने कोई रियेक्ट ही नहीं किया| हिम्मत जुटा कर तुम्हारे पास आई और तुम्हारा नाम लिया पर तुम तब भी कुछ नहीं बोले, फिर फ़ोन की flash light से चेक करने लगी की ये तुम ही हो या कोई और है! 5 मिनट लगा मुझे तुम्हारी इन घनी दाढ़ी और बालों के जंगल के बीच शक्ल पहचानने में, फिर बड़ी मुश्किल से तुम्हें गाडी तक लाई और फिर हम घर पहुँचे|"

"आपको इतना बड़ा रिस्क नहीं लेना चाहिए था|" मैंने कहा|

"कोई और होता तो नहीं लेती, पर वहाँ तुम थे और तुम्हें इस तरह छोड़ कर जाने को मन नहीं हुआ| " Mam ने नजरें चुराते हुए अपने मन की बात कह डाली थी| पर मेरा दिमाग उस टाइम जल्द से जल्द घर पहुँचना चाहता था ताकि मैं फिर से अपनी मेहबूबा को अपने होठों से लगा सकूँ! लगत-राइट करते हुए हम आखिर सोसाइटी के मैन गेट पर पहुँचे और मैन सीट बेल्ट निकाल कर जाने लगा तो mam बोलीं; "अरे! घर के नीचे से ही रफा-दफा करोगे?" अब ये सुन कर मैं फिर से बैठ गया और उनकी गाडी पार्क करवा कर घर ले आया| घर का दरवाजा खुलते ही उसमें बसी गांजे और दारु की महक mam को आई और उन्होंने जल्दी से बालकनी ढूँढी और दरवाजा खोल दिया ताकि फ्रेश हवा अंदर आये| मैन खड़ा हुआ उन्हें ऐसा करते हुए देख रहा था और मुझे इसका जरा भी अंदाजा नहीं था की घर में ऐसी महक भरी हुई है, क्योंकि मेरे लिए तो ये महक किसी इत्र की सुगंध के समान थी| जब mam ने मुझे अपनी तरफ देखते हुए पाया तो मैंने उनसे नजर बचा कर अपना सर खुजलाना शुरू कर दिया| "यार! सच्ची तुम तो बड़े बेगैरत हो! मेहमान पहली बार घर आया है और तुम उसे चाय तक नहीं पूछते!" Mam ने प्यार भरी शिकायत की| मैन सर खुजलाता हुआ बाथरूम में गया और हाथ-मुँह धो कर उनके लिए चाय बनाने लग गया| इसी बीच mam ने घर का मोआईना करना शुरू कर दिया और मोआईना करते-करते वो मेरे कमरे में जा पहुँची जहाँ उन्हें मेरी मेडिकल रिपोर्ट सामने ही पड़ी मिली| उन्होंने वो सारी रिपोर्ट पढ़ डाली और उनकी आँखें नम हो गईं, तभी मैंने उन्हें किचन से आवाज दी; "mam चाय!" अनु mam ने अपने आँसू पोछे और वो बाहर आ गईं और अपने चेहरे पर हँसी का मुखौटा पहन कर बैठ गईं| "चाय तो बढ़िया बनाई है?" उन्होंने मेरी झूठी तारीफ की|

"बुराइयाँ कितनी भी बुरी हों, सच्ची होती हैं...

झूठी तारीफों से तो सच्ची होती हैं!" मेरे मुँह से ये सुन कर mam मेरी तरफ देखने लगीं और अपने दर्द को छुपाने के लिए बोलीं; "क्या मतलब?"

"मतलब ये की चाय में दूध तक नहीं और आप चाय अच्छी होने की तारीफ कर रही हैं!"

"चाय, शायरी, और तुम्हारी यादें

भाते बहुत हो, दिल जलाते बहुत हो" Mam के मुँह से ये सुन कर मैन आँखें फाड़े उन्हें देखने लगा की तभी उन्होंने बात घुमा दी; "अच्छा… एक अरसा हुआ लखनऊ घूमे हुए! चलो आज घूमते हैं!"

"Mam मैं तो यहीं रहता हूँ, बाहर से तो आप आये हो! आप घूमिये मैं तो यहाँ सब देख चूका हूँ, यहाँ के हर रंग से वाक़िफ़ हूँ!"

"Oh come on यार! मैं अकेली कहाँ जाऊँगी? तुम सब जगह जानते हो तो आज मेरे guide बन जाओ, घर बैठ कर ऊबने से तो बेहतर है|"

"Mam मेरा जरा भी मन नहीं है, मुझे बस सोना है!" मैंने मुँह बनाते हुए कहा पर वो मानने वाली तो थी नहीं!

"जब तक यहाँ हूँ तब तक तो मेरे साथ घूम लो, मेरे जाने के बाद जो मन करे वो करना|" मैंने मना करने के लिए जैसे ही मुँह खोला की वो जिद्द करते हुए बोली; "प्लीज...प्लीज...प्लीज....प्लीज...प्लीज....प्लीज!!!" मैं सोच में पड़ गया क्योंकि मन मेरा शराब पीना चाहता था और दिमाग कह रहा था की बाहर चलते हैं| एक बार तो मन ने कहा की एक पेग पी और फिर mam के साथ चला जा पर दिमाग कह रहा था की ये ठीक नहीं होगा! आखिर बेमन से मैंने mam को बाहर बैठने को कहा और मैं नहाने चला गया| ठन्डे-ठन्डे पानी की बूँदें जब जिस्म पर पड़ी तो जिस्म में अजीब सी ऊर्जा का संचार हुआ एक पल के लिए लगा जैसे वही पुराना मानु ने जागने के लिए आँख खोली हैं पर दर्द ने उसे पिंजरे में कैद कर रखा था और उसे बाहर नहीं जाने देना चाहता था| मैं आज रगड़-रगड़ कर नहाया और आज फेस-वाश भी लगाया, साबुन की खुशबु से नहाया हुआ मैं बाहर निकला| मैंने बनियान और नीचे टॉवल लपेटा हुआ था और मेरे सामने Mam शर्ट-जीन्स ले कर खड़ी थीं| मुझे ये देख कर थोड़ी हैरानी हुई की mam ने मेरे लिए खुद कपडे निकाले थे पर मैंने उस बात पर जयदा ध्यान नहीं दिया क्योंकि मुझे अब जयदा चीजें affect नहीं करती थीं! मैं तैयार हुआ, दाढ़ी में कंघी मार कर उसे सीधा किया और बाल चूँकि बहुत लम्बे थे तो उन्हें पीछे की तरफ किया| जैसे ही बाहर आया तो Mam मुझे बड़े गौर से देख रहीं थी, उनका मुझे इस तरह देखने से पता नहीं कैसे मेरे चेहरे पर मुस्कराहट ले आया;

“My eyes were on him, when his shiny black hairs, thick black beard, beautiful brown eyes, red cheeks and the pleasant smile made me realize how colorful he was!”                

  Mam के मुँह से अपनी ये तारीफ सुन कर मैं चौंक गया था क्योंकि मेरी नजर में मैं अब वो मानु नहीं रहा था जो पहले हुआ करता था|

"धीरे-धीरे ज़रा ज़रा सा निखरने लगा हूँ मैं

लगता हैं उस बेवफ़ा के जख्मों से उबरने लगा हूँ मैं" मुझे नहीं पता उस समय क्या हुआ की ये शब्द मेरे मुँह से अपने आप ही निकले| Mam ने इन शब्दों को बड़े घ्यान से सुना था पर उन्होंने इसे कुरेदा नहीं, क्योंकि वो जानती थी की मैं उदास हो कर बैठ जाऊँगा और फिर कहीं नहीं जाऊँगा| उन्होंने ऐसे जताया जैसे की कुछ सुना ही ना हो और बोली; "चलो जल्दी!" मैंने भी उनकी बात का विश्वास कर लिया और उनके साथ चल दिया| "तो पहले थोड़ा नाश्ता हो जाए?" Mam ने कहा, पर मुझे भूख नहीं थी इसलिए मैंने सोचा वहाँ जा कर मैं खाने से मना कर दूँगा| Mam ने सीधा अमीनाबाद का रुख किया, गाडी पार्क की और टुंडे कबाबी खाने के लिए चल दीं| पूरे रस्ते वो पटर-पटर बोलती जा रही थीं, मेरा ध्यान आस-पास की दुकानों और लोगों पर बंट गया था| दूकान पहुँच कर मैं उनके लिए एक प्लेट टुंडे कबाबी और रुमाली रोटी लाया तो वो मेरी तरफ हैरानी से देखने लगीं और बोलीं: "ये तो मैं अकेली खा जाऊँगी! तुम्हारी प्लेट कहाँ है?"

"मेरा मन नहीं है...आप खाओ|" मैंने मना करते हुए कहा|

"ठीक है.... मैं भी नहीं खाऊँगी!" ऐसा कहते हुए उन्होंने एकदम से मुँह बना लिया|

"Mam प्लीज मत कीजिये ऐसा!" मैंने रिक्वेस्ट करते हुए कहा|

"अगर मुझे अकेले खाने होते तो मैं तुम्हें क्याहैं क्यों लाती? इंसान को कभी-कभी दूसरों की ख़ुशी के लिए भी कुछ करना चाहिए!" Mam ने उदास होते हुए कहा| "अच्छा एक बाईट तो ले लो|" इतना कहते हुए Mam ने अपनी प्लेट मेरी तरफ बढ़ा दी| मैंने हार मानते हुए एक बाईट ली और बाकी का उन्होंने ख़ुशी-ख़ुशी खाया|

"नेक्स्ट स्टॉप रेजीडेंसी!"  ये कहते हुए Mam ने गाडी स्टार्ट की, पूरी ड्राइव के समय मैं बस इधर-उधर देखता रहा क्यों की मन में शराब की ललक भड़कने लगी थी| जब भी कोई ठेका दिखता तो मन करता की यहीं उतर जा और शराब ले आ, पर Mam के साथ होने की वजह से मैं खामोश रहा और अपनी ललक को पकड़ के उसे शांत करने लगा| शायद Mam भी मेरी बेचैनी भाँप गई थी इसलिए अब जब भी मेरी गर्दन ठेके की तरफ घूमती तो वो मेरा ध्यान भंग करने के लिए कुछ न कुछ बात शुरू कर देतीं| किसी तरह से हम रेजीडेंसी पहुँचे और वहाँ घूमने लगे और वहाँ भी mam चुप नहीं हुईं और मुझे अपने बैंगलोर के घर के बारे में बताने लगी| बैंगलोर का नाम सुनते ही मेरा मन दुखने लगा और एक बार फिर अनायास ही मेरे मुँह से कुछ शब्द निकले;

"इन अंधेरों से मुझे कहीं दूर जाना था...

तुम्हारे साथ मुझे अपना एक सुन्दर आशियाना बसना था..."


ये सुन कर mam एक दम से चुप हो गईं और मुझे भी एहसास हुआ की मुझे ये सब नहीं कहना चाहिए था| माने इधर-उधर देखना शुरू किया और मजबूरन बहाना बनाना पड़ा; "Mam ... भूख लगी है!" ये सुनते ही उनके चेहरे पर ख़ुशी आ गई; "नेक्स्ट स्टॉप इदरीस की बिरयानी!!!" दोपहर के दो बजे हम बिरयानी खाने पहुँचे और मैंने अपने लिए हाफ और मम के लिए फुल प्लेट बिरयानी ली| मेरा तो फटाफट खाना हो गया पर mam अभी भी खा रही थीं| मैं पानी की बोतल लेने गया और मेरे जाते ही वहाँ सिद्धार्थ अपने ऑफिस के colleague के साथ वहाँ आ गया|

सिद्धार्थ: Hi mam!!!

अनु Mam: Hi सिद्धार्थ, so good to see you! यहाँ लंच करने आये हो?

सिद्धार्थ: जी mam!!!

अनु Mam: और अब भी वहीँ काम कर रहे हो?

सिद्धार्थ: नहीं mam ...सर ने काम बंद कर दिया था, मैंने दूसरी जगह ज्वाइन कर लिया और मानु ने अपने ही ऑफिस में अरुण को लगा लिया|

अब तक सिद्धार्थ का colleague आर्डर करने जा चूका था और mam को उससे बात करने का समय मिल गया|

अनु Mam: सिद्धार्थ ... If you don’t ind me asking, मानु को क्या हुआ है? मैं उससे कल रात मिली और उसकी हालत मुझसे देखि नहीं जाती! वो बहुत बीमार है, Fatty liver, Depression, Abdomen pain, loss of appetite...I hope तुमने उसे देखा होगा? वो बहुत कमजोर हो चूका है!

सिद्धार्थ: Mam वो चूतिया हो गया है!

सिद्धार्थ ने गुस्से में कहा और फिर उसे एहसास हुआ की उसने mam के सामने ऐसा बोला इसलिए उसने उनसे माफ़ी मांगते हुए बात जारी रखी;

सिद्धार्थ: सॉरी mam .... मुझे ऐसा...

अनु Mam: Its okay सिद्धार्थ, I can understand! (mam ने सिद्धार्थ की बात काटते हुए कहा|)

सिद्धार्थ: He was in love with Ritika, अब पता नहीं दोनों के बीच में क्या हुआ? ये साला देवदास बन गया! मैंने और अरुण ने इसे बहुत समझाया पर किसी की नहीं सुनता, सारा दिन बस शराब पीटा रहता है, अच्छी खासी जॉब थी वो भी छोड़ दी! अब आप बता रहे हो की ये इतना बीमार है, अब ये किसी की नहीं सुनेगा तो पक्का मर जायेगा|

अनु Mam: तो उसके घर वाले?

सिद्धार्थ: उन्हें कुछ नहीं पता, ये घर ही नहीं जाता बस उनसे फ़ोन पर बात करता है| अरुण बता रह था की बीच में दो दिन ये बहुत खुश था पर उसके बाद फिर से वापस दारु, गाँजा!

इतने में मैं पानी की बोतल ले कर आ गया|

सिद्धार्थ: और देवदास?

ये सुनते ही मैं उसे आँखें दिखने लगा की mam के सामने तो मत बोल ऐसा| पर वो मेरे बहुत मजे लेता था;

सिद्धार्थ: तू mam के साथ आया है?

मैं: हाँ... आजकल मैं गाइड की नौकरी कर ली है|

मैंने माहौल को हल्का करते हुए कहा, पर वो तो mam के सामने मेरी पोल-पट्टी खोलने को उतारू था;

सिद्धार्थ: चलो अच्छा है, कम से कम तू अपने जेलखाने से तो बाहर निकला|

मैंने उसे फिर से आँख दिखाई तो वो चुप हो गया|

मैं: चलें mam?!

अनु mam: चलते हैं.... पहले जरा तुम्हारी रिपोर्ट तो ले लूँ सिद्धार्थ से!

पर तभी उसका colleague आ गया और सिद्धार्थ ने मुझे उससे introduce कराया;

सिद्धार्थ: ये है मेरा भाई जो साला इतना ढीढ है की मेरी एक नहीं सुनता!

ये सुन कर सारे हंस पड़े पर अभी उसका मुझे धमकाना खत्म नहीं हुआ था;

सिद्धार्थ: बेटा सुधर जा वरना अब तक मुँह से समझाता था, अब मार-मार के समझाऊँगा?"

मैं: छोटे भाई पर हाथ उठाएगा?

और फिर सारे हँस पड़े| Mam का खाना खत्म होने तक हँसी-मजाक चलता रहा और मैं भी उस हँसी-मजाक में हँसता रहा| काफी दिनों बाद मेरे चेहरे पर ख़ुशी दिखाई दे रही थी जिसे देख Mam और सिद्धार्थ दोनों खुश दिखे|


विदा ले कर मैं और mam चलने को हुए तो सिद्धार्थ ने मेरे कंधे पर हाथ रखा और अचानक से मेरे गले लग गया| भावुक हो कर वो कुछ बोलने ही वाला था की mam ने पीछे से अपने होठों पर ऊँगली रख कर उसे चुप होने को कहा| सिद्धार्थ ने बात समझते हुए धीरे से मेरे कान में बुदबुदाते हुए कहा; "भाई ऐसे ही मुस्कुराता रहा कर! तेरी हँसी देखने को तरस गया था!" उसकी बात दिल को छू गई और मैं भी थोड़ा रुनवासा हो गया; "कोशिश करता हूँ यार!" फिर हम अलग हुए और वो ऑफिस की तरफ चल दिया और मैं अपने आँसुओं को पूछने के लिए रुम्मल ढूँढने लगा, तो एहसास हुआ की मेरी आँखों का पानी मर चूका है| दर्द तो होता है बस वो बाहर नहीं आता और अंदर ही अंदर मुझे खाता जा रहा है|

Mam ने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे बिना कुछ बोले पार्किंग की तरफ ले जाने लगीं| मैं भी बिना कुछ बोले अपने जज्बातों को फिर से अपने सीने में दफन कर उनके साथ चल दिया| अब mam भी चुप और  मैं भी चुप तो मुझे कुछ कर के उन्हें बुलवाना था ताकि मेरे कारन उनका मन खराब न हो| "तो नेक्स्ट स्टॉप कहाँ का है mam?" मैंने पुछा तो वो कुछ सोचने लगी और बोलीं; "हज़रतगंज मार्किट!!!"

                                                                                                ............और इस तरह हम शाम तक टहलते रहे, रात हुई और Mam ने जबरदस्ती डिनर भी करवाया और फिर हम वापस गाडी के पास आ रहे थे की मेरे पूरे जिस्म में बगावत छिड़ गई! मेरे हाथ-पेअर कांपने लगे थे और उन्हें बस अपनी दवा यानी की दारु चाहिए थी| मैं mam से अपनी ये हालत छुपाते हुए चल रहा था, गाडी में बैठ कर अभी कुछ दूर ही गए होंगे की mam को शक हो गया; "Are you alright?" उन्होंने पुछा तो मैंने ये कह कर टाल दिया की मैं बहुत थका हुआ हूँ| फिर आगे उन्होंने और कुछ कहा नहीं और मुझे सोसाइटी के गेट पर छोड़ा; "अच्छा मैं तो तुम्हें एक बात बताना ही भूल गई, Palmer Infotech याद है ना?”

मैंने हाँ में सर हिलाया| "मेरी उनसे एक प्रोजेक्ट पर बात चल रही थी जिसके सिलसिले में 'हमें' New York जाना है|"

"हम?" मैंने चौंकते हुए कहा|

"हाँ जी... हम! लास्ट प्रोजेक्ट पर तुमने ही तो सारा काम संभाला था!"

"पर mam...." मेरे आगे कुछ कहने से पहले ही उन्होंने मेरे सामने हाथ जोड़ दिए;

"मानु प्लीज मान जाओ! देखो मैं इतना बड़ा प्रोजेक्ट नहीं संभाल सकती!"

"mam .... मैं सोच कर कल बताता हूँ|"

"ok ... तो कल सुबह 10 बजे तैयार रहना!"

"क्यों?" मैंने फिर से चौंकते हुए पुछा|

"अरे यार! लखनऊ घुमाना है ना तुमने!" इतना कह कर वो हँसने लगी, मैं भी उनके इस बचपने पर हँस दिया और Good Night बोल कर घर आ गया| घर घुसते ही मैंने सबसे पहले बोतल खोली और उसे अपने मुँह से लगा कर पानी की तरह पीने लगा, आधी बोतल खींचने के बाद मैं अपनी पसंदीदा जगह, बालकनी में बैठ गया| अब मेरा जिस्म कांपना बंद हो चूका था और अब समय था अभी जो mam ने कहा उसके बारे में सोचने की| आज 31 अक्टूबर था, 25 नवंबर को दिवाली और 27 नवंबर को रितिका की शादी थी, मुझे कैसे न कैसे इस शादी में शरीक नहीं होना था! तो अगर मैं mam की बात मान लूँ तो मुझे विदेश जाना पड़ेगा और मैं इस शादी से बच जाऊँगा! ...... पर घर वाले मानेंगे? ये ख़याल आते ही मैं सोच में पड़ गया| इस बहाने के अलावा मेरे जहन में कोई और बहाना नहीं था, जो भी हो मुझे इसी बहाने को ढाल बना कर ये लड़ाई लड़नी थी| मन को अब थोड़ा चैन मिला था की अब मुझे इस शादी में तो शरीक नहीं होना होगा इसलिए उस रात मैंने कुछ ज्यादा ही पी| अगली सुबह किसी ने ताबड़तोड़ घंटियां बजा कर मेरी नींद तोड़ी! मैं गुस्से में उठा और दरवाजे पर पहुँचा तो वहाँ मैंने अनु mam को खड़ा पाया| उनके हाथों में एक सूटकेस था और कंधे पर उनका बैग, मुझे साइड करते हुए वो सीधा अंदर आ गईं और मैं इधर हैरानी से आँखें फाड़े उन्हें और उनके बैग को देख रहा था| "मेरी फ्रेंड और उसके हस्बैंड आज सुबह वापस आ गए तो मुझे मजबूरन वहाँ से निकलना पड़ा| अब यहाँ मैं तुम्हारे सिवा किसी को नहीं जानती तो अपना समान ले कर मैं यहीं आ गई|" मैं अब भी हैरान खड़ा था क्योंकि मैं नहीं चाहता था की मेरे इस place of solitude में फिर कोई आ कर अपना घोंसला बनाये और जाते-जाते फिर मुझे अकेला छोड़ जाए| "क्या देख रहे हो? मैंने तो पहले ही बोला था न की If I ever need a place to crash, I'll let you know! ओह! शायद मेरा यहाँ आना तुम्हें अच्छा नहीं लगा?" इतना कह कर वो जाने लगीं तो मैंने उनके सूटकेस का हैंडल पकड़ लिया| "आप मेरे वाले कमरे में रुक जाइये मैं दूसरे वाले में सो जाऊँगा|" फिर मैंने उनके हाथ से सूटकेस लिया और अपने कमरे में रखने चल दिया| मुझे जाते हुए देख कर mam पीछे से अपनी चतुराई पर हँस दीं उन्होंने बड़ी चालाकी से जूठ जो बोला था!
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 सुबह किसी ने ताबड़तोड़ घंटियां बजा कर मेरी नींद तोड़ी! मैं गुस्से में उठा और दरवाजे पर पहुँचा तो वहाँ मैंने अनु mam को खड़ा पाया| उनके हाथों में एक सूटकेस था और कंधे पर उनका बैग, मुझे साइड करते हुए वो सीधा अंदर आ गईं और मैं इधर हैरानी से आँखें फाड़े उन्हें और उनके बैग को देख रहा था| "मेरी फ्रेंड और उसके हस्बैंड आज सुबह वापस आ गए तो मुझे मजबूरन वहाँ से निकलना पड़ा| अब यहाँ मैं तुम्हारे सिवा किसी को नहीं जानती तो अपना समान ले कर मैं यहीं आ गई|" मैं अब भी हैरान खड़ा था क्योंकि मैं नहीं चाहता था की मेरे इस place of solitude में फिर कोई आ कर अपना घोंसला बनाये और जाते-जाते फिर मुझे अकेला छोड़ जाए| "क्या देख रहे हो? मैंने तो पहले ही बोला था न की If I ever need a place to crash, I'll let you know! ओह! शायद मेरा यहाँ आना तुम्हें अच्छा नहीं लगा?" इतना कह कर वो जाने लगीं तो मैंने उनके सूटकेस का हैंडल पकड़ लिया| "आप मेरे वाले कमरे में रुक जाइये मैं दूसरे वाले में सो जाऊँगा|" फिर मैंने उनके हाथ से सूटकेस लिया और अपने कमरे में रखने चल दिया| मुझे जाते हुए देख कर mam पीछे से अपनी चतुराई पर हँस दीं उन्होंने बड़ी चालाकी से जूठ जो बोला था!

update 64

मैं अपना समान बटोरने लगा था की तभी mam अंदर आईं और बोलीं; "कपडे ही तो हैं? पड़े रहने दो.... हाँ अगर कुछ पोर्न वाली चीजें हैं तो अलग बात है!" Mam ने जिस धड़ल्ले से पोर्न कहा था उसे सुन कर मेरी हवा टाइट हो गई! मुझे ऐसे देख कर mam ने ठहाका मार के हँसना शुरू कर दिया, इसी बहाने से मेरी में हँसी निकल गई| मैंने अपने कपडे छोड़ दिए बस शराब की बोतले उठा कर बाहर निकलने लगा| मेरे हाथ में बोतल देख कर mam की हँसी गायब हो गई और उदासी फिर से उनके चेहरे पर लौट आई| पर मैं इस बात से अनजान दूसरे कमरे में आ गया, इस कमरे में बस एक गद्दा पड़ा था| मैंने सारी खाली बोतलें डस्टबिन में डालीं और दो खाली बोतलें अपने सिरहाने रखी| इधर mam ने किचन में खाने लायक चीजें देखनी शुरू कर दी, मैं अपने गद्दे पर चादर बिछा रहा था की mam दरवाजे पर अपनी कमर पर हाथ रख कर खड़ी हो गईं; "तुम कुछ खाते-वाते नहीं हो? किचन में चायपत्ती और कुछ नमकीन के आलावा कुछ है ही नहीं!" अब में उन्हें क्या कहता की मैं तो सिर्फ दारु पीता हूँ! 'चलो get ready, कुछ ग्रोसरी का समान लाते हैं|" अब मेरा मन घर से बाहर जाने का कतई नहीं था, तो मैंने अपने फ़ोन में app खोल कर उन्हें दे दिया और मैं करवट ले कर लेट गया| मैंने ये तक नहीं सोचा की उस फ़ोन में मेरी और रितिका की तसवीरें हैं! Mam फ़ोन ले कर बाहर चली गईं और ग्रोसरी का समान आर्डर कर दिया, फिर उन्होंने फ़ोन गैलरी में photos देखनी शुरू कर दी| मेरा फोन मैने आज तक कभी किसी को नहीं दिया था इसलिए फ़ोन में किसी भी app पर लॉक नहीं था| Mam ने सारी तसवीरें देखि, इधर जैसे ही मुझे होश आया की mam फोटोज न देख लें तो में फटाफट बाहर आया और देखा mam ग्रोसरी की पेमेंट वाले पेज पर पिन नंबर एंटर कर रहीं थी| मैं उनके पीछे चुप-चाप खड़ा रखा और जब उन्होंने पेमेंट कर दी तो मैंने उनसे फ़ोन माँगा| "क्यों डर रहे हो? फ़ोन में पोर्न छुपा रखा है क्या?" Mam ने मजाक करते हुए कहा तो फिर से मेरे चेहरे पर मुस्कराहट आ गई| मैं दुबारा सोने जाने लगा तो mam ने रोक लिया; "यार कितना सोओगे? रात में कहीं चौकीदारी करते हो? चलो बैठो यहाँ मैं चाय बनाती हूँ|" मैं चुप-चाप बालकनी में फर्श पर बैठ गया| ठंड का आगाज हो चूका था और हवा में अब हलकी-हलकी ठंडक महसूस की जा सकती थी और मैं इसी ठंडक को महसूस कर हल्का सा मुस्कुरा दिया| मैंने दोनों हाथों से कप पकड़ा और mam भी मेरे सामने ही अपनी चाय ले कर बैठ गईं| "तो क्या सोचा New York जाने के बारे में?" Mam ने चाय की चुस्की लेते हुए पुछा| ये याद आते ही मैं बहुत गंभीर हो गया और mam समझ गईं की मैं मना कर दूँगा, इसलिए mam का चेहरा मुरझा गया; "कब जाना है?" मैंने थोड़ा मुस्कुराते हुए कहा तो mam के चेहरे पर ख़ुशी फिर से लौट आई| "20 नवंबर को पहले बैंगलोर जाना है, वहाँ से मुझे अपना समान लेना है और फिर वहाँ से मुंबई और फिर फाइनल स्टॉप New York!" Mam ने excited होते हुए कहा और उनके चेहरे की ख़ुशी मुझे सुकून देने लगी थी| ऐसा लगा मानो किसी अपने को ख़ुशी दे रहा हूँ और उनकी ख़ुशी से मुझे भी ख़ुशी होने लगी|

              कुछ देर बाद ग्रोसरी का सारा समान आ गया, इतना समान अपने सामने मैं कई दिनों बाद देख रहा था| मैं उठ कर नहाने गया और mam ने किचन संभाल लिया, नहा के आते-आते उन्होंने नाश्ता बना लिया था| Mam ने एक प्लेट में आधा परांठा मुझे परोस कर दिया| "Mam मुझे भूख नहीं लगती, आप क्यों मेरे लिए तकलीफ उठा रहे हो! आप खाइये!"

"क्या भूख नहीं लगती? अपनी हालत देखि है? अच्छी खासी body थी और तुमने उसकी रैड मार दी है! कहीं मॉडलिंग करने जाना है जो weight loss कर रहे हो?!" Mam ने प्यार से मुझे डाँटा और एक बार फिर मेरी हँसी निकल गई| दरअसल ये Mam का game प्लान था, मुझे इस तरह छेड़ना और प्यार से डाँटना ताकि मैं थोड़ा मुस्कुराता रहूँ, पर मैं उनके इस game plan से अनविज्ञ था!  मैंने परांठे का आधा हिस्सा Mam को दे दिया और बाकी का हिस्सा ले कर मैं वापस बालकनी में बैठ गया| Mam भी अपना परांठा ले कर मेरे पास बैठ गईं और मुझे Project के बारे में बताने लगी, इस बार मैं बड़े गौर  से उनकी बातें सुन रहा था| "वैसे हम जा कितने दिन के लिए रहे हैं?" मैंने पुछा तो उन्होंने 20 दिन कहा और मैं उसी हिसाब से सोचने लगा की घर पर मुझे कितने दिन का बताना है| "और expenses?" मैंने पुछा क्योंकि मेरे पास सवा चार लाख बचे थे, और बाकी मैं शराब और नए फ्लैट के चक्कर में फूँक चूका था! "उसकी चिंता मत करो वो सब reimbursed हो जायेगा!"

इसके अलावा मैंने उनसे कुछ नहीं पुछा| नाश्ते के बाद हम इधर-उधर की बातें करते रहे और लैपटॉप पर कुछ डिस्कशन करने लगे| तभी mam के लैपटॉप की बैटरी डिस्चार्ज हो गई और उन्होंने मुझसे मेरा लैपटॉप माँगा और उस पर वो मुझे कुछ साइट्स दिखाने लगीं जिनके साथ उन्होंने थोड़ा-थोड़ा काम किया था| मैं दो मिनट के लिए गया तो mam ने मेरा लैपटॉप सारा चेक कर मारा और उन्हें वो सब bookmarks चेक कर लिए जो मैंने मार्क किये थे रेंट पर घर लेने के लिए, साथ ही उन्होंने job opening भी देख ली थीं और वो अब धीरे-धीरे सब समझने लगी थीं| जो वो नहीं समझ पाईं थी वो था मेरा और ऋतू का रिश्ता! मेरे वापस आने तक उन्होंने साड़ी windows close कर दी थी और उन्हें history से भी डिलीट कर दिया था! जब मैं वापस आया तो mam ने फिर से मेरी टाँग खींचते हुए कहा; "यार तुम तो बढ़िया वाली पोर्न देखते हो?" ये सुनते ही मैं चौंका क्योंकि कई महीनों से पोर्न देखा ही नहीं था| "नहीं तो! बड़े दिन हुए......" इतना मुंह से निकला और मुझे एहसास हुआ की मैंने कुछ जयदा बोल दिया| Mam मेरा रिएक्शन देख कर जोर-जोर से हँसने लगी, उनकी देखा-देखि मेरी भी हँसी निकल गई| दोपहर हुई और Mam ने खाना बना दिया और मुझे आवाज दी, हम दोनों अपनी-अपनी प्लेट ले कर फिर वहीँ बैठ गए| मैंने बड़ी मुश्किल से एक रोटी खाई और जैसे ही मैं उठने को हुआ तो मम ने मेरा हाथ पकड़ कर वापस बिठा दिया| "हेल्लो मिस्टर इतनी मन मनाई नहीं चलेगी, चुप कर के दो रोटी और खाओ! सुबह भी आधा परांठा खाया है और अब बस एक रोटी?!" Mam ने फिर से प्यार से मुझे डाँटा|

"Mam क्या करूँ इतना प्यार भरा खाना खाने की आदत नहीं है!" मुझे नहीं पता की मेरे मुँह से ये क्यों निकला, शायद ये Mam का असर था जो मुझ पर अब दिखने लगा था|

"तो आदत डाल लो!" Mam ने हक़ जताते हुए कहा और मैं भौएं सिकोड़ कर हैरानी से उनकी तरफ देखने लगा| उनका ये कहना की आदत डाल लो का मतलब क्या था? तभी Mam ने मेरा ध्यान भंग करने को एक रोटी और परोस दी| चूँकि मैंने अभी पी नहीं थी इसलिए अब दिमाग बहुत ज्यादा अलर्ट था और आज सुबह से जो हो रहा था उसका आंकलन करने लगा था| मैं सर झुका कर चुप-चाप खान खाने लगा, Mam का खाना हो चूका था इसलिए वो मुझसे नजरें चुराती हुई चली गईं| मेरा दिल अब किसी और को अपने नजदीक नहीं आने देना चाहता था, फिर New York वाले trip के बाद उन्होंने बैंगलोर चले जाना था और मैंने फिर वापस यहीं लौट आना था तो फिर इतनी नजदीकियाँ क्यों? ये दूसरीबार था जब mam मेरे नजदीक आना चाहती थीं, पहली बार तब था जब हम मुंबई में थे और मैंने उन्हें अपने गाँव के रीती-रिवाज के डर की आड़ में उन्हें अपने नजदीक नहीं आने दिया था| इस बार भी मुझे फिर उसी डर का सहारा लेना था ताकि वो मेरे चक्कर में अपनी जिंदगी बर्बाद ना करें और मैं यहाँ अकेला चैन से घुट-घुट कर मरता रहूँ| मैंने सोचा अगली बार उन्होंने मुझे ऐसा कुछ कहा तो मैं उन्हें समझा दूँगा| अगर मुन्ना मेरी जिंदगी में नहीं आया होता तो शायद मैं mam की तरफ बह जाता पर मुन्ना के आने के बाद मैंने एक बहुत जरुरी सबक सीखा था! मैं अभी इसी उधेड़-बन में था की mam मेरी प्लेट लेने आ गई, पर मैंने उन्हें अपनी प्लेट नहीं दी बल्कि खुद उठा कर किचन में चल दिया| वहाँ से निकल कर मैंने देखा तो mam बालकनी में बैठीं थी और उनकी आँखें बंद थीं| मुझे लगा वो सो रही हैं, इसलिए मैं अपने कमरे में चला गया| कमरे में मेरे सिरहाने पड़ी बोतल पर ध्यान गया तो सोचा की एक घूँट पी लेता हूँ पर ख्याल आया की mam यहाँ हैं, ऐसे में मेरा पीना उन्हें uncomfortable महसूस करवाएगा| पर अब कुछ तो नशा चाहिए था, क्योंकि मेरे हाथ-पेअर थोड़ा कांपने लगे थे! इसलिए मैंने सिगेरट और माल उठाया और चुप-चाप छत पर आ गया| वहाँ बैठ कर मैंने मालभरा और तसल्ली से सिगरेट पी और वहीँ दिवार से पीठ लगा कर बैठ गया| शाम के 4 बजे मैं नीचे आया तो mam अब भी वैसे ही सो रही थीं बस ठंड के कारण वो थोड़ा सिकुड़ीं हुई थीं| मैंने अंदर से एक चादर निकाली और उन पर डाल दी, फिर मैं चाय बनाने लगा| चाय की खुशबु सूंघ कर मम अंगड़ाई लेते हुए उठीं| जान क्यों पर उन्हें ऐसे अंगड़ाई लेते देख मुझे रितिका की याद आ गई|  मैं दोनों हाथों में चाय का कप पकडे वहीँ रुक गया, अब तक mam ने मुझे देख लिया था इसलिए वो खुद आईं और मेरे हाथ से चाय का कप ले लिया|           

                              शायद mam ये भाँप गई थीं की मैं उनकी दोपहर की बात का बुरा मान चूका हूँ, इसलिए हम दोनों में फिलहाल कोई बात नहीं हो रही थी| रात का खाना बनाने के बहाने से mam ने बात शुरू की; "मानु रात को खाने में क्या बनाऊँ?"

"बाहर से मंगा लेते हैं!" मैंने कहा और फ़ोन पर देखने लगा की उनके लिए क्या मँगाऊँ?  पर mam बोलीं; "क्यों मेरे हाथ का खाना पसंद नहीं आया तुम्हें?"

"ऐसी बात नहीं है mam .... आप यहाँ खाना बनाने थोड़े ही आये हो!" मैंने उनकी तरफ देखते हुए कहा|

"पर मैंने लोबिया भिगो दिए थे!" Mam ने मुँह बनाते हुए कहा, ये सुनकर मैं जोर से हँस पड़ा| उन्हें समझ नहीं आया की मैं क्यों हँस रहा हूँ पर मुझे हँसता हुआ देख वो बहुत खुश थीं|

"Mam जब आपने पहले से लोबिया भिगो दिए थे तो आपने पुछा क्यों की क्या बनाऊँ?" ये सुन कर mam को पता चला की मैं क्यों हँस रहा था और अब उन्होंने अपना माथा पीटते हुए हँसना शुरू कर दिया|   

"बिलकुल मम्मी की तरह!" इतना कहते हुए उनकी हँसी गायब हो गई और सर झुका कर वो उदास हो गईं| उनकी आँख से आँसू का एक कटरा जमीन पर पड़ा, मैं एक दम से उठा और उनके कंधे पर हाथ रख कर उन्हें सांत्वना देने लगा| फिर मैंने उनका हाथ पकड़ा और उन्हें कुर्सी पर बिठाया|

“क्या किसी इंसान को खुश होने का हक़ नहीं है? स्कूल से ले कर शादी तक मैंने वो हर एक चीज की जो मेरे मम्मी-डैडी ने चाही| Tenth के बाद मुझे साइंस लेनी थी पर मम्मी-डैडी ने कहा कॉमर्स ले लो, फिर मुझे DU जाना था तो मुझे करेकपॉन्डेंस में एडमिशन दिलवा दिया ये बोल कर की कौन सा तुझे जॉब करनी है! उसके बाद सीधा शादी के लिए मेरे सामने एक लड़का खड़ा कर दिया और कहा की ये तेरा जीवन साथी है| मैंने वो भी मान लिया पर वो ही अगर धोकेबाज निकला तो इसमें मेरा क्या कसूर है? वो मुझे कैसे कह सकते हैं की निभा ले?! जब मैंने मना किया और डाइवोर्स ले लिया तो मुझे disown कर दिया! इतनी जल्दी माँ-बाप अपने जिगर के टुकड़े को खुद से काट कर अलग कर देते हैं?" ये कहते हुए mam रोने लगीं, मुझसे उनका ये दुःख देखा नहीं गया तो मैं उनके साथ बैठ गया और उनके कंधे पर हाथ रख कर उन्हें शांत करने लगा| उन्होंने अपना मुँह मेरे कंधे से लगाया और रोने लगीं| मैं बस उनका कन्धा सहलाता रहा ताकि वो शांत हो जाएँ| मेरा मन कहने लगा था की हम दोनों ही चैन से जीना चाहते है, एक को माँ-बाप ने छोड़ दिया तो दूसरे को उसकी मेहबूबा ने छोड़ दिया| हालाँकि तराजू में mam का दुःख मेरे दुःख से की ज्यादा बड़ा था पर कम से कम उन्होंने अपनी जिंदगी दुबारा शुरू तो कर ली थी और वहीँ मैं अपने गम में सड़ता जा रहा था|

             कुछ देर बाद वो चुप हुईं और मेरे कंधे से अपना चेहरा हटाया, जहाँ उनका मुँह था वो जगह उनके आंसुओं से गीली हो गई थी| अब उन्हें हँसाने की जिम्मेदारी मेरी थी, पर जो इंसान खुद हँसना भूल गया हो वो भला दूसरों को क्या हसायेगा? "Mam माने आपको पहले भी कहा था न की आप के चेहरे पर हँसी अच्छी लगती है आँसू नहीं!" Mam ने तुरंत मेरी बात मान ली और अपने आँसू पोछ कर मुस्कुरा दी| फिर mam ने खाना बनाया और उनका दिल रखने के लिए मैंने दो रोटी खाईं, कुछ देर तक हम दोनों बालकनी में खड़े रहे और फिर सोने चले गए| बारह बजे तक मैंने सोने की बहुत कोशिश की, बड़ी करवटें ली पर नींद एक पल के लिए नहीं आई| Mam की मौजूदगी में मेरा दिमाग मुझे पीने नहीं दे रहा था पर मन बेचैन होने लगा था, हाथ-पाँव फिर से कांपने लगे थे और अब तो बस दारु चाहिए थी|


हार मान कर मैं उठा और सोचा की ज्यादा नहीं पीयूँगा, जैसे ही मैंने अपने सिरहाने देखा तो वहाँ से बोतलें गायब थीं| मैं समझ गया की ये mam ने ही हटाईं हैं, मैं गुस्से में बाहर आया और mam के कमरे में झाँका तो पाया वो सो रही हैं| किसी तरह मैंने गुस्सा कण्ट्रोल किया और किचन में बोतले ढूँढने लगा| अभी 24 घंटे हुए नहीं इन्हें आये और इन्होने मेरी जिंदगी में उथल-पुथल मचाना शुरू कर दिया| ये शराब की ललक थी जो मेरे दिमाग पर हावी हो कर बोल रही थी! मेरा दिमाग भी यही चाह रहा था की mam ने वो बोतलें फेंक दी हों ताकि आज मैं दारु पीने से बच जाऊँ, ये तो कम्बख्त मन तो जिसे दारु का सहारा चाहिए था! सबसे ऊपर की शेल्फ पर मुझे बोतल मिल ही गई और मैंने फटाफट गिलास में डाली और उसे पीने ही जा रहा था की पीछे से एक आवाज मेरे कान में पड़ी; "प्लीज.... मत पियो...." इस आवाज में जो दर्द था उसने जाम को मेरे होठों से लगने नहीं दिया| मैंने सबसे पहले लाइट जलाई और पलट कर देखा तो mam आँखों में आँसू लिए मेरी तरफ देख रही थीं| उन्होंने ना में गर्दन हिलाई और मुझे पीने से मना करने लगी| ऐसा लगा जैसे बहुत हिम्मत कर के वो मुझे रोक रहीं हों, उनके हाव-भाव से मुझे डर भी साफ़ दिख रहा था| एक शराबी को दारु पीने से रोकना इतना आसान नहीं होता, क्योंकि शराब की ललक में वो कुछ नहीं सुनता और किसी को भी नुक्सान पहुँचा सकता है| पर मैं अभी उस हद्द तक नहीं गिरा था की उन पर हाथ उठाऊँ!   


मैंने चुप-चाप गिलास किचन स्लैब पर रख दिया और सर झुका कर अपने अंदर उठ रही शराब पीनी की आग को शांत करने लगा| मेरा ऐसा करने का करना था mam के आँसू, जिन्होंने मेरे जलते हुए कलेजे पर राहत के कुछ छींटें मारे थे| Mam डर्टी हुई मेरे नजदीक आईं और मेरे कांपते हुए दाएं हाथ को पकड़ कर धीरे से मुझे हॉल की कुर्सी पर बिठाया| फिर मेरे सामने वो अपने घुटनों के बल बैठ गईं और आँखों में आँसू लिए हिम्मत बटोर कर बोलीं; "मानु....मैं जानती हूँ तुम रितिका को कितना प्यार करते थे!" ये सुनते ही मैंने हैरानी से उनकी आंखों में देखा, पर इससे पहले मेरे लब कोई सवाल पूछते उन्होंने ही सवाल का जवाब दे दिया; "मुझे सिद्धार्थ ने कल बताया| मैं नहीं जानती की क्यों तुम दोनों अलग हुए पर इतना जर्रूर जानती हूँ की उसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं हो सकती| वो ही तुम्हें समझ नहीं सकी, इतना प्यार करने वाला उसे कहाँ मिलेगा? पर वो तो move on कर गई ना? फिर तुम क्यों अपनी जान देना चाहते हो? मैंने तुम्हारी साड़ी मेडिकल रिपोर्ट्स पढ़ी हैं, तुम ने अगर पीना बंद नहीं किया तो मैं अपना सबसे प्यारा दोस्त खो दूँगी!" Mam ने मेरे दोनों गालों को अपने दोनों हाथों के बीच रखते हुए कहा| ये सब सुन कर मैं फिर से टूट गया; "Mam ... अगर नहीं पीयूँगा तो वो और याद आएगी और मैं सो नहीं पाऊँगा| चैन से सो सकूँ इसलिए पीता हूँ!" मैंने ने रोते हुए कहा| ये सब मेरे दिमाग की उपज थी जो मुझे पीना नहीं छोड़ने देना चाहती थी और mam ये जानती थीं|

"तुम इतने भी कमजोर नहीं हो! ये तुम्हारे अंदर का डिप्रेशन है जो तुम्हें खुल कर साँस नहीं लेने दे रहा| फिर मैं हूँ ना यहाँ पर? I promise मैं तुम्हें इस बार छोड़ कर कहीं नहीं जाऊँगी| एक बार गलती कर चुकी हूँ पर दुबारा नहीं करुँगी! हम दोनों साथ-साथ ये लड़ाई लड़ेंगे और जीतेंगे भी|" Mam ने मेरी आँखों में देखते हुए कहा और ना चाहते हुए भी मैं उनकी बातों पर विश्वास करने लगा| वैसे भी मेरे पास खोने के लिए बस मेरी एक जान ही रह गई थी!


Mam ने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे उठा कर अपने साथ अपने कमरे में ले गईं, वो पलंग के सिरहाने बैठ गईं और मुझे उनकी गोद में सर रखने को कहा| मैं उस वक़्त अंदर से इतना कमजोर था की मुझे अब किसी का साथ चाहिए था जो मुझे इस दुःख के सागर से निकाल कर किनारे लाये| Mam की वो गोद मेरे लिए कश्ती थी, ऐसी कश्ती जिसका सहारा अगर मैं ना लिया तो मैं पक्का डूब जाऊँगा| जब इंसान डूबने को होता है तो उसकी fighting spirit सामने आती है जो उसे आखरी सांस तक लड़ने में मदद करती है और यही वो spirit थी जिसने मुझे mam की गोद में सर रखने को कहा| मैं भी उनकी गोद में सर रख कर सिकुड़ कर लेट गया| मेरी आँखें अब भी खुली थीं और वो सामने दिव्वार पर टिकी थी, दिल पिघलने लगा था और उसमें से आँसू का कतरा बहा और बिस्तर पर गिरा| Mam जिनकी नजर मुझ पर बनी हुई थी, उन्होंने मेरे आँसू पोछे और बोलीं; "मानु एक रिक्वेस्ट करूँ?"मैंने हाँ में सर हिलाया| "प्लीज मुझे मेरे नाम से बुलाया करो, तुम्हारे मुँह से 'Mam' सुनना मुझे अच्छा नहीं लगता|" मैंने फिर से हाँ में सर हिलाया|


'अनु' ने मेरे बालों में हाथ फेरना शुरू किया, ये एहसास मेरे लिए जादुई था| मन शांत हो गया था और आँखें भारी होने लगी थीं, धीरे-धीरे मैं नींद के आगोश में चला गया| पर जिस्म को नशे की आदत हो गई थी इसलिए तीन बजे मेरी आँख फिर खुल गई| कमरे में अँधेरा था और इधर मेरा गला शराब की दरक़ार करने लगा था, दिल की धड़कनें अचानक ही तेज हो गई थीं, हाथ-पेअर फिर से कांपने लगे थे अब बस दारु चाहिए थी ताकि मैं खुद को काबू में कर सकूँ| मैं धीरे से उठा और कमरे से बाहर आया और किचन स्लैब पर देखा जहाँ मेरा जाम मुझे देख रहा था और अपनी तरफ बुला रहा था| मेरे कदम अपने आप ही उस दिशा में बढ़ने लगे, काँपते हाथ अपने आप ही जाम को थाम कर उठा चुके थे पर कहते हैं ना की जब हम कोई गलत काम करते हैं तो हमारी अंतर्-आत्मा हमें एक बार रोकती जरूर है| मैं एक पल के लिए रुका और ममेरी अंतर्-आत्मा ने मुझे गाली देते हुए कह; "वहाँ अनु तुझे इस गम से निकालने के लिए इतना त्याग कर रही है और तू उसे ही धोका देने जा रहा है? भला तुझमें और रितिका में फर्क ही क्या रहा?" ये ख़याल आते ही मुझे खुद से नफरत हुई, क्योंकि मेरे लिए सिर्फ और सिर्फ रितिका ही दोषी थी और मेरी इस हालत की जिम्मेदार भी वही थी! मेरा कुछ भी ऐसा करना जिसके कारन मैं उसके जैसा बन जाऊँ उससे अच्छा था की मर जाऊँ| मैंने वो गिलास किचन सिंक में खाली कर दिया, पता नहीं क्यों पर मुझे ऐसा लगा जैसे नाली में गिरती वो दारु मुझे गालियाँ दे रही हो और कह रही हो; "जब कोई नहीं था तेरे पास तब मैं थी! आज जब अनु आ गई तो तू मुझे नाली में बहा रहा है? जब ये भी छोड़ कर जायेगी तब मेरे पास ही आएगा तू!"

"कभी नहीं आऊँगा तेरे पास, मर जाऊँगा पर नहीं आऊँगा! बहुत तिल-तिल कर मर लिया अब फिर तुझे कभी अपने मुँह नहीं लगाऊँगा| तूने सिर्फ मुझे जलाया ही है, कोई एहसान नहीं किया मुझ पर! एक इंसान मुझे सहारा दे कर संभालना चाहता है और तू चाहती है मैं भी उसे धोका दूँ?" मैं जोश-जोश में ऊँची आवाज में बोल गया इस बात से अनजान की अनु ने पीछे खड़े हो कर ये सब देख और सुन लिया है| जब मैं पलटा तो अनु की आँखें भरी हुई थीं, उन्होंने मेरे काँपते हुए हाथों को पकड़ा और आ कर मेरे सीने से लग गईं और बोलीं; "Thank You!!!" इसके आगे वो कुछ नहीं बोलीं, फिर मुझे वापस पलंग पर ले गईं और मुझे अपने गोद में सर रख कर लेटने को कहा| एक बार फिर मैं उस प्यार की गर्माहट में लेट गया पर नींद आना इतना आसान नहीं था| "I’m proud of you!” ये कहते हुए उन्होंने मेरे माथे को चूमा और मेरे बालों में अपनी उँगलियाँ फेरने लगीं| अनु का ये kiss मेरे पूरे शरीर को झिंझोड़ गया, पुराण मानु अब जाग गया था और वो अब वापस आने को तैयार था! पर अंदर से मेरा पूरा जिस्म काँप रहा था और अनु बस मन ही मन प्रार्थना कर रही थीं की ये रात कैसे भी पार हो जाए ताकि वो कल सुबह मुझे हॉस्पिटल ले जा सकें| जागते हुए दोनों ने रात गुजारी और सुबह होते ही उन्होंने मुझे फ्रेश होने को कहा, उन्होंने चाय बनाई और नाश्ता भी बनाया| मेरा शरीर अब बुरी तरह कांपने लगा था, जिस्म से पसीना आने लगा था और मुझे थकावट भी बहुत लग रही थी| नहाने का जैसे कोई असर ही नहीं पड़ा था मुझ पर, मुझसे तो ठीक से बैठा भी नहीं जा रहा था| अनु ने बड़ी मुश्किल से मुझे नाश्ता कराया और कटोरी से धीरे-धीरे चाय पिलाई| घर से निकलना आफत हो गई थी ऐसा लगा जैसे की कोई भूत-बाधा वाला मरीज भगवान के डर से बाहर नहीं आना चाहता हो|

"एम्बुलेंस बुलाऊँ?" अनु ने पुछा तो मैंने ना में सर हिला दिया और कहा; "इतनी जल्दी हार नहीं मानूँगा! आप कैब बुला लो!" कैब आई और मैं सीढ़ियों पर बैठते-बैठते नीचे उतरा और आखिर हम हॉस्पिटल पहुँचे| अनु ने वहाँ इमरजेंसी में मुझे उसी फैक्टर से मिलवाया और वो मेरी ये हालत देख कर समझ गया| "See I told you!" उसने फटाफट जो औपचारिकताएं थी वो पूरी कीं और वही tests दुबारा दोहराये| रिपोर्ट आने तक उसने मुझे आराम करने को कहा और एक बेड दे दिया| पर मैंने मना कर दिया; "सर I'm a fighter! अभी इस पर लेटने का समय नहीं आया| मैं बाहर वेट करता हूँ!" डॉक्टर और अनु मेरे अंदर ये पॉजिटिव चेंज देख कर बहुत खुश थे| रिपोर्ट्स आने के बाद डॉक्टर ने हमें वापस अंदर बुला लिया और बिठा कर बताने लगा; "मानु I’m afraid reports are not good! Your liver is damaged considerably….. you’ve Cirrhosis of Liver!!! YOU CAN’T GO BACK TO DRINKING OR ELSE YOU’RE GONNA DIE!” ये बात अनु के लिए बर्दाश्त कर पाना मुश्किल था इसलिए वो रो पड़ी| मैंने उनके कंधे पर हाथ रखा; "Hey! I'm dying!" मैंने थोड़ा मजाक करते हुए कहा|

"Is she you’re wife?” डॉक्टर ने पुछा| तो मैंने मुस्कुराते हुए कहा; "She's the one who’s keeping me alive!”

“Then mam its gonna be one hellova fight for you! As you can see the constant shivering, its because his body is addicted to the intoxication he’s been taking for such a long time. Now that he’s stopped, his body is craving for it! His body will reject any medication we give but you’ve to make sure he takes medicines on time. Also, very soon you’ll see the withdrawl symptoms! He’s goning to react and by react I mean he might become violent. Keep an eye on him cause I know HE WILL START DRINKING AGAIN! You’ve to keep alcohol away from him at any cost or you’ll loose your best friend! He also needs a therapist so he can ease the pressure on his head, he seems a very emotional person and he’ll eventually have a nervous breakdown! At that time do take care of him, the therapist will write some medication to ease his mental pressure and keep him in check. I’m writing some syrups and capsules for his liver as well as his apetite. Home cooked food only! No oily food, fast food or anything. Normal Home cooked food only. Also, he complained about sleep deprivation so I’m writing one sleeping pill, DO NOT INCREASE THE DOSAGE UNDER ANY CONDITION!” डॉक्टर ने बड़ी ही सख्त हिदायतें दी थीं और ये सुन कर ही पालन करने से डर लगने लगा था|
"कितना टाइम लगेगा इस में?" मैंने पुछा तो डॉक्टर ऐसे हैरान हुआ जैसे मैं कोई तुर्रमखाँ हूँ|


"It won’t be easy! If you follow my advice properly then atleast a year!” डॉक्टर ने गंभीर होते हुए कहा| पर मुझे अपने ऊपर पूरा विश्वास था की मैं ये कर लूँगा..... Bloody Overconfidence!
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"It won’t be easy! If you follow my advice properly then atleast a year!” डॉक्टर ने गंभीर होते हुए कहा| पर मुझे अपने ऊपर पूरा विश्वास था की मैं ये कर लूँगा..... Bloody Overconfidence!

update 65

पहला दिन


हॉस्पिटल से लौटते-लौटते शाम के 4 बज गए थे, अनु ने आते ही चाय बनानी शुरू कर दी और मैं उनसे बात करने लगा| जब से अनु आई थी वो बीएस घर में खाना ही बना रही थी, मुझे बड़ा बुरा लग रहा था की मेरी वजह से उन्हें ये तकलीफ उठानी पड़ रही है| मैंने सिक्योरिटी गार्ड को फ़ोन कर के कहा की वो कोई काम करने वाली भेज दे, अनु ने जब ये सुना तो वो बोली; "क्या जर्रूरत है? मैं कर रही हूँ ना सारा काम?"

"खाना बनाने तक तो ठीक है पर ये बर्तन धोना, झाड़ू-पोछा और कपडे धोना मुझे पसंद नहीं, ये काम कोई और कर लेगा| आप बस tasty-tasty खाना बनाओ!" मैंने हँसते हुए कहा|

"अच्छा मेरे हाथ का खाना इतना पसंद है? ठीक है तो फिर आज से एक रोटी एक्स्ट्रा खानी होगी!" अनु की बात सुन कर मैं अपनी ही बात में फँस गया था| मैं मुस्कुरा दिया और अपने कमरे में जा कर लेट गया| लेटे-लेटे मैं सोच रहा था की मुझे घर भी जाना है ताकि वहाँ जा कर मैं विदेश जाने का कारन बता कर शादी से अपनी जान बचा सकूँ! पर इस हालत में जाना, मतलब वो लोग मुझे कहीं जाने नहीं देंगे| दिन कम बचे थे और मुझे जल्द से जल्द ठीक होना था| रात को खाने के बाद अनु ने मुझे दवाई दी और मैं थोड़ा वॉक करने के बाद अपने कमरे में सोने जाने लगा| "वहाँ कहाँ जा रहे हो?" अनु ने पुछा, मैंने इशारे से उन्हें कहा की मैं सोने जा रहा हूँ| "नहीं....रात में तबियत खराब हुई तो?" अनु ने चिंता जताते हुए कहा|

"कुछ नहीं होगा? अगर तबियत खराब हुई तो मैं आपको उठा दूँगा|"

"तुम्हें क्या प्रॉब्लम है मेरे साथ इस कमरे में सोने में?" अनु ने अपनी कमर पर दोनों हाथ रखते हुए पुछा|

"यार! अच्छा नहीं लगता आप और मैं एक ही रूम में, एक ही बेड पर!"

"ओ हेल्लो मिस्टर! I'm single समझे! अपनी ये chivalry है न अपने पास रखो!" अनु ने मेरी टाँग खींचते हुए कहा|

"तभी तो दिक्कत है? आप सिंगल, मैं सिंगल फिर .... you know ... शादी हुई होती तो बात अलग होती!" मैंने भी अनु की टाँग खींची!

"अच्छा? चलो अभी करते हैं शादी?" अनु ने मेरा हाथ पकड़ा और बाहर जाने के लिए तैयार हो गईं| हम दोनों ने इस बात पर खूब जोर से ठहाका लगाया! 5 मिनट तक non-stop हँसने के बाद अनु बोली; "चलो सो जाओ!" उन्होंने जबरदस्ती मुझे अपने कमरे में सोने के लिए कहा| मैं भी मान गया और जा कर एक तरफ करवट ले कर लेट गया और अनु दूसरी तरफ करवट ले कर लेट गईं| दवाई का असर था तो मैं कुछ देर के लिए बड़े इत्मीनान से सोया पर असर ज्यादा देर तक नहीं रहा और 2 बजे मेरी आँख खुल गई और उसके बाद करवटें बदलते-बदलते सुबह हुई|


दूसरा दिन

 

सुबह अनु ने उठते ही देखा की मैं आँखें खोले छत को देख रहा हूँ; "Good Morning! सोये नहीं रात भर?"

"दो बजे के बाद नींद नहीं आई, इसलिए जागता रहा|" मैंने उठ के बैठते हुए कहा| तभी अनु की नजर मेरे काँपते हुए हाथों पर पड़ी और उनकी चिंता झलकने लगी| मैं धीरे-धीरे उठा क्योंकि मुझे लग रहा था की कहीं चक्कर आ गया तो! फ्रेश हो कर मैं बालकनी में कुर्सी पर बैठ गया और अनु चाय बना कर ले आई| "अच्छा therapist के पास कब जाना है?" अनु ने पुछा| ये सुनते ही मेरी आंखें चौड़ी हो गईं, मैं जानता था की थेरेपिस्ट के पास जाने के बाद मुझे उसे सब बातें बतानी होंगी और ये सब बताना मेरे लिए आसान नहीं था| "प्लीज...मुझे थेरेपिस्ट के पास नहीं जाना!" मैंने मिन्नत करते हुए कहा| "पर क्यों?" अनु ने चिंता जताते हुए कहा|

"प्लीज...मैं नहीं जाऊँगा.... तुम जो कहोगी वो करूँगा पर वहाँ नहीं जाऊँगा|" मैं किसी भी हालत में ये सच किसी के सामने नहीं आने देना चाहता था क्योंकि ये सुन कर डॉक्टर और अनु दोनों ही मेरे बारे में गलत सोचते और मैं खुद को गलत साबित होने नहीं देना चाहता था| अब मुझमें इतनी ताक़त नहीं थी की मैं किसी को अपनी सफाई दूँ पर उनकी सोच मुझे जर्रूर चुभती!

"ठीक है...मैं एक बार डॉक्टर से बात करती हूँ!"

नाश्ता बनाने का समय हुआ तो अनु ने एक पतला सा परांठा बनाया, जैसे ही उन्होंने मुझे परोस कर दिया मैंने तुरंत उसके दो टुकड़े किये और आधा टुकड़ा उठा लिया| पर अनु को मुझे डराने का स्वर्णिम मौका मिल चूका था, उन्होंने आँखें तर्रेर कर कहा; "थेरेपिस्ट के जाना है?" ये सुनते ही मैं डरने का नाटक करते हुए ना में सर हिलाने लगा| "तो फिर ये पूरा खाओ!" मैंने डरे सहमे से बच्चे की तरह वो बचा हुआ टुकड़ा उठा लिया, मेरा बचपना देख उन्हें बहुत हँसी आई| उनके चेहरे की हँसी मेरे दिल को छू गई, ऐसा लगा जैसे बरसों बाद उन्हें हँसता हुआ देख रहा हूँ| नाश्ते के बाद गार्ड एक काम करने वाली को ले आया और अनु ने चौधरी बनते हुए उससे सारी बात की और उसे आज से ही काम पर रख लिया| उसने काम शुरू कर दिया था और मुझे अचानक से दीदी और मुन्ना की याद आ गई| मैं एक पल के लिए खमोश हो गया और मुन्ना को याद करने लगा| उस नन्हे से बच्चे ने मुझे दो दिन में ही बहुत सी खुशियाँ दे दी थीं, पता नहीं वोकहान होगा और किस हाल में होगा? अनु ने जब मुझे गुमसुम देखा तो वो मेरे बगल में बैठ गईं और मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए बोलीं; "क्या हुआ?" उनका इतना प्यार से बोलना था की मैंने उन्हें मुन्ना और दीदी के बारे में सब बता दिया| वो मेरा दुख समझ गईं और मुझे संत्वना देने लगी.... खेर दोपहर हुई और फिर वही उनका मुझे थेरेपिस्ट के नाम से डराना जारी रहा| शाम को उन्होंने बताया की डॉक्टर बोल रहा है की मुझे थेरेपिस्ट के पास जाना पड़ेगा| पर मेरे जिद्द करने पर वो कुछ सोचने लगीं और बोलीं की हफ्ते भर के लिए वो जो-जो कहें मुझे करना होगा, मेरे लिए तो थेरेपिस्ट के बजाए यही सही था| मैं तुरंत मान गया पर मुझे नहीं पता था की वो मुझसे क्या करवाने वाली हैं!

                रात हुई और खाना खाने के बाद अनु ने मुझे अपने पास जमीन पर बैठने को कहा| वो मेरे पीछे कुर्सी ले कर बैठीं और मेरे दिल की अच्छे से मालिश की ताकि मुझे अच्छे से नींद आये| "बाल बड़े रखने हैं तो ठीक से बाँधा भी करो!" ये कहते हुए अनु ने मेरे बालों का bun बनाया| 

[Image: shttefan-472897-unsplash.md.jpg]


बाल बहुत बड़े नहीं थे वरना और भी अच्छे लगते| खेर दवाई खा कर मैं अनु वाले कमरे में लेट गया| मैं इस वक़्त सीधा लेटा था की अनु ने झुक कर मेरे माथे को चूमा| कल की ही तरह ये Kiss मेरे पूरे शरीर को झिंझोड़ कर चला गया| "कल सुबह 6 बजे उठना है! कल से हम योग करेंगे!" ये कहते हुए अनु बिस्तर के अपने साइड सो गईं| पर रात के दो बजते ही मेरे नींद खुली और मेरे बेट में बहुत जोर से दर्द होने लगा| दर्द इतनी तेज बढ़ रहा था की ऐसा लग रहा था की मेरे प्राण अब निकले! मैं जितना हो सके उतना अपनी कराह को दबा कर सिकोड़ कर लेटा हुआ था| पर अनु को मेरे दर्द का एहसास हो ही गया और उन्होंने तुरंत कमरे की लाइट जला दी| मैं अपने घुटने अपने छाती से चिपकाए लेटा कसमसा रहा था, माथे पर ढेर सारा पसीना, जिस्म में कंपकंपाहट! मेरी हालत देख कर अनु घबरा गई और किसी तरह खुद को संभाल कर मेरे माथे पर हाथ फेरने लगी| पसीने से उनके हाथ गीले हो गए, तो वो बाहर से एक टॉवल ले आईं और मेरे चेहरे से पसीने पोछने लगी और तभी उनकी आँखों से आँसू निकलने लगे| वो खुद को लाचार महसूस कर रही थी और चाह कर भी मेरा दर्द कम नहीं कर पा रहीं थी| उनका रोना मुझसे देखा नहीं गया तो मैंने उनसे पानी माँगा, वो दौड़ कर पानी ले आईं| दो घुट पानी पिया था की मुझे उबकाई आ गई, किसी तरह से मैं अपनी उबकाई को कण्ट्रोल करता हुआ बाथरूम पहुँचा और वहाँ मैं कमोड पकड़ कर बैठ गया और जो कुछ भी पेट में अन्न था वो सब बाहर निकाल दिया| मेरे उलटी करने के दौरान अनु मेरी पीठ सहला रही थी| पेट खाली हुआ थो कंपकपी और बढ़ गई| मुझे सहारा दे कर अनु ने मुझे वापस पलंग पर लिटाया; "मैं एम्बुलेंस बुलाती हूँ!" ये कहते हुए अनु फ़ोन नंबर ढूँढने लगी|

"नहीं.... !!! सुबह तक .... wait करो प्लीज!" मैंने कांपते हुए कहा| उस समय मुझे एहसास हुआ की मैं किस कदर कमजोर हो चूका हूँ| रितिका के चक्कर में मैं मौत के मुँह में पहुँच चूका हूँ| अनु उस वक़्त बहुत ज्यादा घबराई हुई थी, वो मेरे सिरहाने बैठ गई और मेरा सर अपनी गोद में रख लिया| पूरी रात वो मेरे सर पर हाथ फेरती रहीं, जिस कारन मेरी थोड़ी आँख लगी|


तीसरा दिन


सुबह 6 बजते ही मेरी आँख खुल गई क्योंकि अनु मेरा सर धीरे से अपनी गोद से हटा रही थीं| "चाय" मैंने कांपती हुई आवाज में कहा| अनु ने तुरंत चाय बनाई, मैंने बहुत ताक़त लगाई और bedpost से टेक लगा कर बैठा| अपने हाथों को देखा तो वो काँप रहे थे| अनु कप में हकाय लाइ और एक कप को पकड़ने के लिए हम दोनों ने अपने दोनों हाथ लगाए थे| चाय अंदर गई तो जिस्म को लगा की कुछ ताक़त आई है| मैं इतना तो समझ गया था की अगर मैंने खाना नहीं खाया तो मुझे IV चढ़ाना पड़ेगा इसलिए मैंने अनु से टोस्ट खाने को मांगे| ये सुन कर उन्हें थोड़ी तसल्ली हुई की मेरी तबियत में कुछ सुधार आ रहा है| नाश्ता करते-करते दस बज गए थे, मैं खुद ही बोला की हॉस्पिटल चलते हैं| बड़ी मुश्किल से हम हॉस्पिटल पहुँचे और जब डॉक्टर ने चेक किया तो उसने कहा; "मानु की बॉडी दवाइयाँ रिजेक्ट कर रहीं हैं, मैं दवाइयाँ बदल रहा हूँ| इसके खाने का भी ध्यान रखो हल्का खाना दो, सूप दो, खिचड़ी, फ्रूट्स ये सब दो| एक बार में नहीं खाता तो थोड़ा-थोड़ा दो!"

"डॉक्टर साहब प्लीज कोई भी दवाई दो पर कल वाला हादसा फिर से ना हो!" मैंने कहा|

"दवाई चेंज की है मैंने, hopefully अब नहीं होगा|" डॉक्टर ने और दवाइयाँ लिख दीं|

"सर इस कंपकंपी का भी कुछ कर दीजिये!" माने कहा|

"इसकी कोई दवाई नहीं है, ये तुम्हारा जिस्म जिसे तुमने नशे का आदि बना दिया था वो रियेक्ट कर रहा है| इसे ठीक होने में समय लगेगा!' तभी अनु ने इशारे से थेरेपी वाली बात छेड़ी और डॉक्टर ने मेरी क्लास ले ली! "ये बताओ तुम्हें थेरेपी लेने से क्या प्रॉब्लम है?"

"सर मैं जिन बातों को भूलना चाहता हूँ वो डॉक्टर को फिर से बता कर उस दुःख को दुबारा face नहीं करना चाहता|" मैंने गंभीर होते हुए कहा|

"ये बातें फिलहाल दबीं हैं पर कभी न कभी ये बाहर आएंगी और फिर तुम्हें बहुत दर्द देंगी, फिर तुम दुबारा से पीना शुरू कर दोगे! इसलिए आज चले जाओ डॉक्टर अभी यहीं है|" डॉक्टर की बात थी तो सही पर मैं उन बातों को किसी के सामने दोहराना नहीं चाहता था और उससे बचने के लिए मैं बहाने बनाने लगा| कभी योग का बहाना करता तो कभी morning walk करने का बहाना करता| पर डॉक्टर पर इसका कोई फर्क नहीं पड़ा और मुझे मजबूरन थेरेपिस्ट के पास जाना पड़ा| पर मैंने भी होशियारी दिखाई और उसे ऋतू और मेरे रिश्ते की बात छोड़ कर सब बता दिया| उसे लगा की एक और आशिक़ आ गया और उसने मुझे 10 मिनट का लेक्चर दिया और कहा की मैं ज्यादा सोचूं न, जो हो चूका है उसे भूल जाऊँ, हँसी-ख़ुशी रहूँ, तबियत सुधरने के बाद एक healthy lifestyle जिऊँ और जल्दी से शादी कर लूँ| घर की जिम्मेदारियाँ पड़ेंगी तो ये सब धीरे-धीरे भूल जाऊँगा| चलो आज अनु को भी आधा सच जानने को मिल गया की आखिर हुआ क्या था!

हम घर आये तो एक बात जो मैंने नोटिस की वो थी की अनु को शादी की बात से कुछ ठेस पहुँची हो| शायद उन्हें अपनी शादी याद आ गई, खेर ये बचा हुआ दीं बहुत ही शान्ति से गुजरा| रात में वही कंपकंपी और फिर जागते हुए सुबह का इंतजार करना|


     चौथा दिन


सुबह उठते ही मैंने अनु से कहा की वो मुझे योग करना सिखाये| अनु की योग में महारथ हासिल थी, उन्होंने चुन-चुन कर मुझे वो ही आसन कराये जो मेरे लिए करना आसान था| कोई भी exercise करने वाला आसन नहीं करवाया क्योंकि शरीर अभी भी बहुत कमजोर था| वो बीएस मुझे मेरी साँस पर नियंत्रण करना और फोकस करने के लिए  अनु-विलोम सीखा रही थीं| योग के बाद हमने चाय पी और तभी उनका फ़ोन बज उठा| वो फ़ोन ले कर कमरे में चली गईं और मैं उठ कर बाथरूम जाने लगा की तभी मुझे इतना सुनाई दिया; "मैं अभी नहीं आ सकती, जो भी है अपने आप संभाल लो!" मैं उस टाइम कुछ नहीं बोला, नाश्ते के बाद हम बैठे थे और नौकरानी काम कर रही थी| मेरा ध्यान अब भी मेरे कांपते जिस्म पर था और मुझे अपनी इस हालत पर गुस्सा आ रहा था| "मेरी वजह से आप क्यों अपना बिज़नेस खराब कर रहे हो?" मैंने अनु की तरफ देखते हुए कहा और उन्हें समझ आ गया की मैंने उनकी बात सुन ली है|

"अभी मेरा तुम्हारे साथ रहना जर्रूरी है!"

"1-2 दिन की बात होती तो मैं कुछ नहीं कहता, पर इसे ठीक होने में बहुत टाइम लगेगा और तब तक आपका ऑफिस का काम कौन देखेगा? आप चले जाओ, मैं अपना ध्यान रखूँगा!" मैंने कहा|

"बोल दिया न नहीं!" इतने कहते हुए वो गुस्से में उठ कर चली गईं| मुझे भी इस बात पर बहुत गुस्सा आया, मैं जोश में उठा और अपने कमरे में जा कर लेट गया| मैं नहीं चाहता था की कोई मेरी वजह से किसी भी तरह का नुक्सान सही और यहाँ तो अनु के बिज़नेस की बात थी तो मैं कैसे उन्हें ये नुक्सान सहते हुए देखता| मैंने अपने गद्दे के नीचे से सिगरेट का पैक निकाला और पीने लगा| अभी दो कश ही पीये थे की अनु धड़धड़ाते हुए अंदर आईं और मेरे हाथ से सिगरेट छीन कर फेंक दी| इतना काफी था मेरे अंदर के गुस्से को बाहर निकलने के लिए; "डॉक्टर ने सिगरेट पीने से तो मना नहीं किया ना?"     

"इसकी भी आदत लगानी है? Liver तो खराब कर ही लिया है अब क्या Lungs भी खराब करने हैं?" उन्होंने गुस्से में कहा| 

"कुछ तो रहने दो मेरी जिंदगी में? शराब छोड़ दी अब क्या ये सिगरेट भी छोड़ दूँ? तो जियूँ किसके लिए? ये उबला हुआ खाना खाने के लिए?" मैंने गुस्से से कहा|

"सिर्फ शराब और सिगरेट के लिए ही जीना है तुम्हें?" अनु ने पुछा| मेरे पास उनकी इस बात का कोई जवाब नहीं था, तो आँसू ही सच बोलने को बाहर आ गए|

"आप क्यों अपनी लाइफ मुझ जैसे लूज़रके लिए बर्बाद कर रहे हो? आपको तक़रीबन एक हफ्ता हो गया मेरी तीमारदारी करते हुए? क्यों कर रहे हो ये सब? क्या मिलेगा आपको ये सब कर के? छोड़ दो मुझे अकेला और मरने दो!" मैंने बिलखते हुए कहा| ये था वो Nervous Breakdown जो डॉक्टर ने कहा था की होगा| क्योंकि दिमाग को अब शराब पीने के लिए बहाना चाहिए था और इस समय उसने ये बहाना बनाया की अनु की लाइफ मेरे कारन खराब हो रही है| अनु भी जानती थी की वो मुझे चाहे कितना भी प्यार से समझा ले पर मेरे पल्ले कुछ नहीं पड़ेगा| उन्हें मुझे जीने के लिए एक वजह देनी थी, एक ऐसी वजह जिसके लिए मैं ये लड़ाई जारी रखूँ और फिर से अपने पैरों पर खड़ा हो जाऊँ| उन्हें मुझे अपनी दोस्ती का एहसास दिलाना था, पर सख्ती से ताकि मेरे दिमाग में उनकी बात घुसे!


वो मेरे गद्दे पर घुटनों के बल बैठीं और मेरे टी-शर्ट के कालर को पकड़ा और मुझे बड़े जोर से झिंझोड़ा, फिर गरजते हुए मेरी आँसुओं से लाल आँखों में देखती हुई बोलीं; "Look at me! तुम्हारी जगह मैं पड़ी होती तो क्या मुझे छोड़ कर चले जाते?..... बोलो? ..... नहीं ना?.... फिर मैं कैसे छोड़ दूँ तुम्हें?! ..... तुम्हें जीना होगा....मेरे लिए....मेरी दोस्ती के लिए..... तुम्हें ऐसे मरने नहीं दूँगी मैं! मेरी लाइफ में तुम वो अकेले इंसान हो जिसे मैंने अपना माना है और तुम मरने की बात करते हो? Now put on your big boy pants and start fighting! (मर्द बनो और इस लड़ाई को जारी रखो!)" अनु की ये बातें मेरे लिए ऐसी थीं जैसे काली गुफा में रौशनी की एक किरण, मैं धीरे-धीरे इस रौशनी की तरफ बढ़ ही रहा था की अनु ने मुझे एक बार फिर से झिंझोड़ा और पुछा; "समझे? Fight!!!!" मैंने हाँ में गर्दन हिलाई और तब जा कर उन्होंने मेरा कालर छोड़ा| कुछ टाइम तक वो मेरी तरफ प्यार से देखने लगीं जैसे मुझसे माफ़ी माँग रही हों की उन्होंने मेरे साथ सख्ती दिखाई और इधर मेरा पूरा जिस्म दहल गया था| अनु की आँखें नम हो चली थीं तो मैंने उनके आँसू पोछे और गद्दे के नीचे से सिगरेट का पैक उन्हें निकाल कर दे दिया| अनु ने वो पैक लिया और बिना कुछ बोले चली गईं और मैं दिवार से सर लगा कर बैठा रहा और अपने दिल को तसल्ली देता रहा और हिम्मत बटोरता रहा की अनु ने ने इतनी मेहनत की है मुझे ठीक करने में तो मैं इसे बर्बाद जाने नहीं दूँगा| कुछ देर बाद मैं खुद बाहर आया और देखा तो अनु किचन में खाना बना रही हैं| मैं चुप-चाप हॉल में बैठ गया की तभी उन्होंने कहा की मैं उनका लैपटॉप ऑन करूँ| मैंने वैसा ही किया और उन्होंने मुझे पासवर्ड बताया और Mail access करने को बोला| Mail में एक कंपनी का कुछ डाटा था जिसे उन्हें सॉर्ट करना था| आगे उन्हें कुछ नहीं कहना पड़ा और मैं खुद ही लग गया| इतने दिनों बाद माउस पकड़ कर बड़ा अजीब सा लग रहा था| दिक्कत ये थी की हाथ कांपने की वजह से माउस इधर-उधर क्लिक हो रहा था तो मैं उसे बड़े धीरे चला रहा था| जब टाइप करने की बारी आई तो लैपटॉप की keys ज्यादा press हो जाती| मुझे नहीं पता था की अनु मुझे इस तरह जूझते देख मुस्कुरा रही थीं| खाना बनने के बाद वो दोनों का खाना एक थाली में परोस कर लाईं| मैंने चुप-चाप लैपटॉप बंद कर दिया, थोड़ा डरा-सहमा था की कहीं अनु फिर से न डाँट दे| पर नहीं इस बार उन्होंने मुझे अपने हाथ से खाना खिलाना शुरू कर दिया| मुझे खिलने के बाद उन्होंने भी वही बेस्वाद खाना खाया| "आप क्यों ये खाना खा रहे हो? आप बीमार थोड़े हो?" मैंने कहा| "बहुत मोटी हो गई हूँ मैं, इसी बहाने मैं भी थोड़ा वजन कम कर लूँगी|" उन्होंने मजाक करते हुए कहा|

"कौन से Beauty Pageant में हिस्सा ले रहे हो?" मैंने उनका बहाना पकड़ते हुए कहा| "आप पहले ही मेरा इतना 'ख्याल' रख रहे हो ऊपर से ये बेस्वाद खाना भी खा रहे हो! प्लीज ऐसा मत करो!" मैंने रिक्वेस्ट करते हुए कहा|

"दो बार खाना मुझसे नहीं बनता!" अनु ने फिर से बहाना मारा|

"कोई दो बार खाना नहीं बनाना, दाल में तड़का लगाने से पहले मेरे लिए निकाल दो और तड़के वाली आप खा लो|" मैंने उन्हें solution दिया पर वो कहाँ मानने वाली थीं तो मुझे बात घुमा कर कहनी पड़ी; "ok! ऐसा करो मेरे मुंह का स्वाद बदलने के लिए मुझे 1-2 चम्मच तड़के वाली दाल दे दो| फिर तो ठीक है? इतने से खाने से कुछ नहीं होगा!" बड़ी मुश्किल से वो मानी|

                    खेर खाना हुआ और उसके बाद हमने लैपटॉप पर ही एक मूवी देखि, मूवी देखते-देखते अनु सो गई| शाम को मैंने चाय बनाई और बड़ी मुश्किल से बनाई क्योंकि हाथ कांपते थे!  रात को खाने के बाद मैंने फिर से बात शुरू की; "आप मेरे लिए इतना कर रहे हो की मेरे पास आपको शुक्रिया कहने को भी शब्द नहीं हैं|"

"लगता है सुबह वाली डाँट से अक्ल ठिकाने नहीं आई तुम्हारी?" उन्होंने फिर से चेहरे पर गुस्सा लाते हुए कहा|

"आ गई बाबा! पर एक बार बात तो सुन लो! काम ही पूजा होती है ना? तो आपका यूँ ऑफिस के काम ना करना ठीक है?" मैंने थोड़ा गंभीर होते हुए कहा|

"ठीक है...तुम्हें मेरे काम की इतनी ही चिंता है तो चलो मेरे साथ बैंगलोर! तुम मुझे वहाँ Join कर लो as an employee नहीं बल्कि as a business partner!" ये सुनते ही मैं चौंक गया?

"Business Partner? कैसे? ...impossible!"

"क्यों Impossible? तुम काम इतने अच्छे से जानते हो, वो Project याद है ना? वो सब तुम ने ही तो संभाला था| इस वक़्त मेरी टीम में बस दो ही लोग हैं और हम दोनों आसानी से काम कर सकते हैं|"

"पर Business Partner क्यों? Employee क्यों नहीं? मैंने पुछा|

"हेल्लो सैलरी कौन देगा? पहले ही दो लोगों को सैलरी देनी पद रही है ऊपर से तुम्हें तो सबसे ज्यादा सैलरी देनी पड़ेगी आखिर सबसे experienced हो तुम!" अनु ने हँसते हुए कहा|

"अच्छा? यार आप तो बड़े calculative निकले!" मैंने हँसते हुए कहा|

"Business संभालती हूँ तो इतना तो सीख गई हूँ, वैसे भी हम दोनों दोस्त हैं और ऑफिस में वो Employer - Employee का ड्रामा मुझसे नहीं होगा!" आखिर सच उनके मुँह से बाहर आ ही गया|

"Okay .... New York से आने के बाद मैं वहीं शिफ्ट हो जाऊँगा|" ये सुनते ही अनु खामोश हो गई|

"नहीं...हम New York नहीं जा रहे... अभी तुम्हारी तबियत ठीक नहीं है!" 

"हेल्लो...मैडम मुझे नहीं पता .... अगर New York नहीं जाना तो मैं कहीं नहीं जा रहा|" मैंने रूठते हुए कहा|

"But तुम्हारी तबियत...." अनु ने चिंता जताते हुए कहा पर मैंने उनकी बात काट दी;

"Come on यार! ऐसी opportunity कोई छोड़ता है क्या? हमारे पास अभी काफी टाइम है and I promise मैं ठीक हो जाऊँगा| मुझे भी थोड़ा change चाहिए! प्लीज....प्लीज...प्लीज..."  मेरा जबरदस्ती करने का कारन था की अनु ये golden opportunity waste करे| अगर मैं उन्हें ना मिला होता तो वो ये opportunity कभी miss नहीं करती, आखिर वो मान ही गईं और तुरंत Laptop से एक mail कर दिया|

         अगली सुबह से मेरे अंदर बहुत से बदलाव आने लगे, जितनी भी नकारात्मकता थी वो सब अनु की care के कारन निकल चुकी थी और मेरी जिंदगी की नै शुरुआत हो चुकी थी| अब मैंने रोज सुबह समय पर उठना, योग करना और फिर अनु के साथ morning walk करना शुरू कर दिया था| खाने में मैं वही उबला हुआ खाना खा रहा था और साथ में फ्रूट्स और sprouts वगैरह खाने लगा था| अनु के ऑफिस का सारा काम मैंने laptop से करना शुरू कर दिया था| अनु का काम बस खाना बनाना और मुझे दवाई देने तक ही रह गया था| हाथ-पैर अब भी कांपते थे पर पहले जितने नहीं! कुछ दिन बाद अरुण और सिद्धर्थ मुझसे मिलने आये और अनु को वहाँ देख कर दोनों थोड़ा हैरान थे और शक करने लगे थे की हम दोनों का कुछ चल तो नहीं रहा पर मैंने उन्हें अनु की चोरी से सब सच बता दिया| वो खुश थे की मेरी सेहत में दिन पर दिन सुधार आ रहा था और दोनों ने अनु को बहुत-बहुत शुक्रिया किया| दिन कैसे गुजरे पता ही नहीं चला और 15 तरीक आ गई| इन बीते दिनों में घर से बहुत से फ़ोन आये और मुझे बहुत सी गालियाँ भी पड़ीं क्योंकि लगभग 3 महीने हो गए थे मुझे घर अपनी शक्ल दिखाए और ऊपर से शादी भी थी जिसके लिए मैंने एक ढेले का काम नहीं किया था| 16 तरीक को आने का वादा कर के मैं जाने को तैयार हुआ तो अनु ने कहा की वो भी साथ चलेंगी, पर उन्हें साथ ले जाना मतलब बवाल होना! इसलिए मैंने उन्हें समझाते हुए कहा; "बस एक दिन की बात है, मैं बस घर जा कर New York जाने की बात कर के अगले दिन आ जाऊँगा|" पर उन्हें चिंता ये थी की अगर वहाँ जा कर मैंने फिर से पी ली तो? "I Promise मैं ऐसा कुछ नहीं करूँगा!" बड़ी मुश्किल से उन्हें समझा-बुझा कर मैं निकला पर अंदर ही अंदर रितिका की शक्ल देखने से दिल में टीस उठना और फिर खुद को फिर से गिरा देने का डर लग रहा था| पर कब तक मैं इसी तरह डरूँगा ये सोच कर दिल मज़बूत किया और बस में बैठ गया|
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वाह मेरे शेर
ऐसे ही लगे रहो
ऋतिका की m** c**d do
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Sir aap shabdon ko itni feel ke sath likh rahe ho ki ek update me dil hi nhi bharta

Agar ho sake to please update badha dijiye.
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